भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, July 04, 2008

विदेह वर्ष-1मास-1 अंक-1 संपादकीय (01.01.2008)http://www.videha.co.in/

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विदेह
वर्ष-1 मास-1 अंक-1
संपादकीय (01.01.2008)
एहि प्रथमांक केँ प्रस्तुत करैत हम हर्षित छी। एहि मे मिथिला पेंटिंग आ’ संस्कृत शिक्षासँ संबंधित समग्री समयाभावक कारणे नहि देल जा’ सकल। पाठक एहि संबंधित लेख ggajendra@yahoo.co.in केँ अटैचमेण्टक रूपमे पठाय सकैत छथि।
एहि अंक मे अछि 1. शोध लेख. 1.विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) 2. उपन्यास
1.सहस्रबाढ़नि
3.महाकाव्य
1.महाभारत
4.कथा 1.शनैः-शनैः
5.पद्य
1 सँ 44 धरि
6.आऽ अंतमे प्रवासी मैथिलक हेतु अंग्रेजीमे
VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT
1.Introduction



अपनेक प्रतिक्रिया आ’ रचनाक प्रतीक्षा अछि। गजेन्द्र ठाकुर नई दिल्ली 01.01.2008
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1.शोध लेख.
1.विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952)
जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य
वंशावली-
जीवन चौधरी(जन्म स्थान-पंचोभ-दरिभङ्गा)
1801 ई.मे रुद्रपुर आगमन
-दुइ पुत्र--श्री रंगी चौधरी(रुद्रपुरमे जन्म) आ’ श्री कंत चौधरी(रुद्रपुरमे जन्म)
-कंत चौधरीकेँ तीन पुत्र-श्री चुम्मन चौधरी,श्री बुधन चौधरी आ’ श्री रूदन चौधरी
-चुम्मन चौधरीकेँ दुइ पुत्र श्री गोनी चौधरी आ’ श्री पं कवि रामजी चौधरी.

श्री जीवन चौधरी जे कविक वृद्ध-पितामह छलाहतनिकर दोखतरी रुद्रपुरमे रहन्हि,जाहि कारणसँ ओ’ 1801 ई.मे पंचोभ छोड़ि रुद्रपुर बसि गेलाह।
कविजीक पितामह बहुत पैघ गवैय्या रहथिन्ह।हुनकर गायनक मुख्य क्षेत्र युगल सरकार सीतारामक भक्ति गीत होइत छल,तजकर प्रभाव कविजी पर खूब पड़ल।ओ’ अप्पन पौत्रक नाम रामजी एहि कारणसँ रखलन्हि। स्व.कविजी अपन नामक अनुरूप तुलसीकृत श्रीरामचरित मानस कंठस्थ कय गेल छलाह। ओ’ प्रत्येक प्रश्नक उत्तर रामायणक चौपायसँ करैत छलाह। हुनकर जीवनक सभसँ दुःखद घटना छन्हि जे ओ’ तीन विवाह कएल मुदा कोनो पत्नी चारि सालसँ बेशी नहि जीबि सकलखिन्ह।अंतिम विवाह ओ’ 53 वर्षक अवस्थामे कएल ,जे एक पुत्र, जनिकर नाम दुर्गानाथ चौधरी (दुखिया चौधरी)छन्हि,,,,केर जन्मदेलाक 15 दिनक भीतरे स्वर्गवासी भय गेलीह।
कविजी अप्पन जीवनकालमे दरिभङ्गा राजक अंतर्गत जेठ रैय्यतक पद पर कार्यरत छलाह,तथा तेसर पत्नीक मृत्युक उपरांत ओ’ ईहो पद त्यागि कय भगवद भक्तिमे लागि गेलाह। हिनकर एकमात्र प्रकाशित पोथीमे मैथिलीक संगे ब्रजबुलीक कविता सेहो अछि।













हिनकर एहि कविता सभमे हिनाक पितामहक देल राग बोधक संगहि मिथिलाक महेशवाणी,चैतक ठुमरी आ भजन प्रभाती(परती) सेहो भेटैछ।
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2.उपन्यास

1.सहस्रबाढ़नि
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सन~~ 1885 ई.। झिंगुर ठाकुरक घरमे एक बालकक जन्म भेल। एहि वर्षमे कांग्रेस पार्टीक स्थापना बादक समयमे एकटा महत्त्वपूर्ण घटनाक रूपमे वर्णित होमयवला छल। अंग्रेजी राज अपनाकेँ पूर्णरूपसँ स्थापित कए चुकल छल।राजा-रजवाड़ासभ अपनाकेँ अंग्रेजक मित्र बुझवामे गौरवक अनुभव करैत छलाह।शैक्षिक जगतमे कांग्रेस शीघ्रअहि उपद्रवी तत्वक रूपमे प्रचारित भय गेल। मिलाजुलाकेँ कांग्रेसी लोकनि अंग्रेजीराज आ’ भारतीय रजवाड़ा सभक सम्मिलित शासनकेँ स्थायित्व आ’ यथास्थिति निर्माणकर्त्ताक रूपमे स्थान भेटि चुकल छल। कांग्रेस अपन यथास्थितिवादी स्वरूपकेँ बदलबाक हेतु भविष्यमे एकटा आन्दोलनात्मक स्वरूप ग्रहण करयबला छल। संस्क़ृतक रटन्त विद्याक वर्चस्व छल। परंतु सरकारी पद बिना आङ्ल सिखलासँ भेटब असंभव छल। सरकारी पदक तात्पर्य राजा-रजवाड़ाक वसूली कार्यसँ संबंधित आ’ ओतबहि धरि सीमित छल। मुदा किछु समयापरान्त अंग्रेजक किरानीबाबू लोकनि सेहो अस्तित्वमे अयलाह।

तखन बालककेँ संस्क़ृत शिक्षाक मोहसँ दूर राखल गेल। मैथिल परिवारमे अंग्रेजीक प्रवेश प्रायः नहियेक बराबर छल आ’ ताहि कारणसँ अधिकांश परिवार एक पीढ़ी पाछू चलि गेल छल। मुदा झिंगुर बाबू अपन पुत्रक कलिकतियाबाबूकेँ राखि शिक्षाक व्यवस्था कएल। तदुपरांत दरिभङ्गामे एकटा बंगालीबाबू बालककेँ अंग्रेजीक शिक्षा देलखिन्ह। बालक कलित शनैः शनैः अपन चातुर्यसँ मंत्रमुग्ध करबाक कलामे पारंगत भ’ गेलाह। जाहि बालककेँ झिंगुरबाबू अन्यमनस्क पड़ल आ’ मात्र सपनामे हँसैत देखलखिन्ह, तकर बाद ठेहुनिया मारैत, फेर चलैत से आब शिक्षा-दीक्षा प्राप्त क’ रहल छथि। हुनका अखनो मोन पड़ि रहल छलन्हि जे कोना ठेहुनिया दैत काल, नेनाक हाथ आगू नहि बढैक आ’ ओ’ बेंग जेंकाँ पाछू सँ सोझे आगू फाँगि जाइत छलाह। पूरा बेंग जेकाँ-अनायासहि ओ’ मुस्कुरा उठलाह। पत्नी पूछि देलखिन्ह जे कोन बात पर मुस्कुरेलहुँ, तँ पहिने तँ ना-नुकुर केलन्हि फेर सभटा गप कहि देलखिन्ह। तखनतँ गप पर गप निकलय लागल।
“एक दिन कलितकेँ देखलहुँ जे ठेहुनियाँ मारने आगू जा’ रहल छथि। आँगनसँ बाहर भेला पर जतय अंकर-पाथर देखल ततय ठेहुन उठा कय, मात्र हाथ आ’ पैर पर आगू बढ़य लगलाह” , पत्नीकेँ मोन पड़लन्हि।
“एक दिन हम देखलहुँ जे ओ’ देबालकेँ पकड़ि कय खिड़की पर ठाढ़ हेबाक प्रयासमे छथि। हमरो की फूड़ल जे चलू आइ छोड़ि दैत छियन्हि। स्वयम प्रयास करताह। दू बेर प्रयासमे ऊपर जाइत-जाइत देवालकेँ पकड़ने-पकड़ने कोच पर खसि गेलाह। हाथ पहुँचबे नहि करन्हि। फेर तेसर बेर जेना कूदि गेलाह आ’ हाथ खिड़की पर पहुँचि गेलन्हि आ’ ठाढ़ भ’ गेलाह” , झिंगुर बाबूकेँ एकाएक यादि पड़लन्हि।
“एक दिन हम ओहिना एक-दू बाजि रहल छलहुँ। हम बजलहुँ एक तँ ई बजलाह, हूँ। फेर हम बजलहुँ दू तँ ई बजलाह, ऊ। तखन हमरा लागल जे ई तँ हमर नकल उतारि रहल छथि”।
“ एक दिन खेत परसँ एलहुँ आ’ नहा-सोना भोजन कय खखसि रहल छलहुँ। अहाहा’ केलहुँ तँ लागल जेना कलित सेहो अहाहा’ केलथि। घूरि कय देखलहुँ तँ ओ’ गेंदसँ बैसि कय खेला रहल छलाह। दोसर बेर खखसलहुँ तँ पुनः ई खखसलाह। हम कहलहुँ किछु नहि, ई हमर नकल कय रहल छथि। दलान पर सभ क्यो हँसय लागल। फेर तँ जे आबय, कलित ऊहुहूँ, तँ जवाबमे ईहो ऊहूहूँ दोसरे तरीकासँ कहथि। उम्र कतेक हेतन्हि, नौ-वा दस महिना”।
“ हम जे सुनेलहुँ ताहि समय कतेक वयस होयतन्हि, छ’ आ’ कि सात मास”। पत्नी सासु-ससुर वा बाहरी सदस्य नहि रहला पर सोझे-‘गप सुनलहुँ’ वा’ ई करू वा’ ओ’ करू बजैत छलीह। मुदा सासु- ससुरक सोझाँ तृतीया पुरुषमे-सुनैत छथिन्ह, फलना कहैत छलैक-। आ’ फेर झिंगुर बाबू की कम छलाह. ओहो ओहिना गीताक काजक लेल काजक अनुकरणमे तृतीया पुरुषमे जवाब देथि। मुदा एकांतमे फेर सभ ठीक। पुनः मुस्कुरा उठलाह झिंगुर बाबू, ई प्रण मोने-मोन लेलथि जे कलितकेँ एहि जंजालसँ मुक्त करेतथि, ओहो तँ बूझताह जे पिता कोनो पुरान-धुरान लोक छथि। पनी पुनः पुछलथिन्ह जे आब कोन बात पर मुस्की छूटल। मुदा एहि बेर झिंगुर कन्नी काटि गेलाह। मुस्की दैत दलान दिशि निकलि गेलाह, ओतय किछु गोटे अखड़ाहाक रख-रखाबक बात क’ रहल छलाह। भोरहाकातक अखड़ाहाक गपे किछु आर छल। भोरे-भोर सभ तुरियाक बच्चा सभ, जवान सभ पहुँचि जाइत छल। एकदम गद्दा सन अखड़ाहा, माटि कय कोड़ि आ’ चूरि कय बनायल। बालक कलितकेँ छोड़ि सभ बच्चा ओतय पहुँचैत छल। झिंगुर बाबू कचोट केलन्हि तँ आन लोक सभ कहलखिन्ह जे से की कहैत छी। अहाँ हुनका कोनो उद्देश्यक प्राप्ति हेतु अपनासँ दूर रखने छी, तँ एहिमे कचोट कथीक। एकौरसँ ठाकुर परिवार मात्र एक घर मेंहथ आयल आ’ आब ओहिसँ पाँचटा परिवार भ’ गेल अछि। डकही माँछक हिस्सामे एकटा टोलक बराबरी ठकुरपट्टीकेँ भेट गेल छैक। कलितक तुरियाक बच्चाकेँ ल’ कय आठटा परिवार अछि ठकुरपट्टीमे। अखनेसँ बच्चा सभकेँ मान्यता द’ देल गेल छैक। तखने एकौरसँ एकटा समदी एलाह आ’ भोजपत्रमे तिरहुतामे लिखल संदेश देलखिन्ह। झिंगुर बाबू अँगनासँ लोटा आ’ एक डोल पानि हुनका देलखिन्ह आ’ पत्र पढ़य लगलाह। प्रायः कोनो उपनयनक हकार छलन्हि। ‘परतापुरक सभागाछी देखि कय जायब’ , ई आदेशपूर्ण आग्रह झिंगुर बाबू समादीकेँ देलखिन्ह, एकटा पूर्वजसँ मूल-गोत्रक माध्यमसँ जुड़ल दियादक प्रति अनायासहि एकत्वक प्रेरणा भेलन्हि। फेर आँगन जाय पत्र पढ़ब प्रारंभ कएल।
॥श्रीः॥
स्वस्ति हरिवदराध्यश्रीमस्तु झिंगुर ठाकुर पितृचरण कमलेषु इतः श्री गुलाबस्य कोटिशः प्रणामाः संतु। शतम~ कुशलम। आगाँ समाचार जे हमर सुपुत्र श्री गड़ेस आ’ चन्द्रमोहनक उपनयन संस्कारक समाचार सुनबैत हर्षित छी। अहाँक प्रपितामह आ’ हमर प्रपितामह संगहि पढ़लथि। अपन गोत्रीयक समाचार लैत-दैत रहबाक निर्देश हमर पितामह देने गेल छलाह। हर्षक वा’ शोकक कोनो घटना हमरा गामसँ अहाँक गाम आ’ अहाँक गामसँ हमरा गाम नहि अयने अशोचक विचार नहि करबासँ भविष्यक अनिष्टक डर अछि। संप्रति अपने पाँचो ठाकुर गुरुजनक तुल्य पाँच पांडवक समान समारोहमे आबि कृतार्थ करी। अहींकेँ अपन ज्येष्ठ पुत्रक आचार्य बनेबाक विचार कएने छी। परतापुरक सभागछीक पंचकोशीमे अपने सभ गेल छी, तेँ बहुत रास लोक गप-शपक लालायित सेहो छथि। अगला महीनाक प्रथम सोमकेँ जौँ आबि जाइ तँ सभ कार्य निरन्तर चलैत रहत। बुधसँ प्रायः प्रारम्भिक कार्य सभ शुरु भ’ जायत। इति शुभम~।
बलान धारक कातमे परतापुरक चतरल-चतरल गाछ सभ आ’ तकर नीचाँ सभागछी। बलानक धार खूब गहींर आ’ पूर्ण शांत। ई तँ बादमे हिमालयसँ कोनो पैघ गाछ बलानमे खसल आ’ हायाघाट लग सोझ रहलाक बदला टेढ़ भ’ एकर धारकेँ रोकि देलक आ’ एकटा नव धार कमलाक उत्पत्ति भेल। बलान झंझारपुर दिशि आ’ कमला मेंहथ , गढ़िया आ’ नरुआर दिशि। बलान गहींर आ’ शांत, रेतक कतहु पता नहि; मुदा कमला फेनिल, विनाशकारी। बाढ़िक संग रेत कमला आनय लगलीह। ग्रीष्म ऋतुमे बलान पूर्वे रूप जेकाँ रहैत छथि, बिना नावक पार केनाइ कठिन, किंतु कमलामहारानीकेँ पैरे लोक पार करैत रहथि। सभटा सभागछीक चतरल गाछ बाढ़िक प्रकोपमे सुखा गेल। चारूदिश रेत आ’ सभागाछी उपटि गेल। चलि गेल सभटा वैभव सौराठ। मुदा झिंगुर बाबूक कालमे परतेपुरक ध्रुवसँ पंचकोशी नापल जाइत छल, से बादहुमे परम्परारूपमे रहल।
कलित दरिभङ्गासँ परसू आबि जयताह,,,, , तखन हुनका ल’ कय एकौर जायब। बेचारे बहुत दिन तपस्या कयलन्हि। एहि बेर मामा गाम, दीदीगाम सभ ठाम घुमा देबन्हि। सभकेँ मोन लागल छैक।

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पिता-पुत्र एकौर पहुँचलाह। ई गाम कोनो तरहेँ आन जेँकाँ नहीं लगलन्हि। जेना जमघट लगला पर शास्त्रार्थक परम्परा रहल अछि, तहिना विद्वतमण्डलीमे विभिन्न विषय पर चर्चा होबय लागल। चर्चामे अंग्रेजी शासन आ’ भारतवासीक सैन्य अभियान रहल। मँगरूबाबू लाल कोट पहिरि कय कतेक लड़ाई लड़ल छलाह। 1867-68क अबीसीनिया युद्धमे सर चार्ल्स नेपियरक संग कोनाकेँ अभियानमे ओ’ गेल छलाह, तकर वर्णन विस्तृतरूपमे देबय लगलाह मँगरूबाबू। द्वितीय अफगान-युद्धमे कोना समयक अभावमे सेनाकेँ लालक बदला मलिछह वर्दी लगबय पड़्लैक तकर वर्णन सेहो देलन्हि। यैह वर्दी बादमे खाकीरंगक रूपमे प्रसिद्ध भय गेल। एनफील्ड रायफालक खिस्सा जे 1857क स्वतंत्रता संग्राममे परिणत भेल केर बदलामे बेश नमगर स्नाइडर रायफल जे 1887मे देल गेल। मँगरू बाबू कांग्रेसक चर्चा सेहो केलन्हि।ओम्हर झिंगुर बाबू भोज-भातक फेहरिस्ट आ’ एस्टीमेट बनबय लगलाह। कलित सेहो अपन तुरियाक विद्यार्थी सभक संग मगन भय गेलाह। ओहि भीड़मे राजे गामक फन्नू बाबू सेहो आयल छलाह। एकौरमे हुनकर बहिन-बहनोइ रहैत छलखिन्ह। ताहि द्वारे एतय एनाइ-गेनाइ ओ’ किछु बेशी करैत छलाह। कलितकेँ एहिसँ पहिने ओ’ नहीं देखने रहथि। अनायासहि उत्सुकता भेलन्हि आ’ कलितक विषयमे पूछ्पाछ केलन्हि। ई जानि कि कलित झिंगुरबाबूक सुपुत्र छथि, क्षणहिमे झिंगुरबाबू लग घुसकि कय चलि गेलाह। वार्त्तालाप क्रममे झिंगुर बाबू सँ ईहो पता चललन्हि जे जमीन्दारीक पर्मनेंट सेटलमेंटक बाद दरिभङ्गा राजकेँ वसूलीक हेतु परगनाक आधारपर मिथिला क्षेत्रक वसूलीक हेतु अधिकार प्राप्त भेलाक बाद कलित कटिहारमे वसूलीक कार्यक हेतु जयताह। एम्हर फारसी आ’ अंग्रेजीक शिक्षा कलित पूरा क’ लेने छलाह। विवाहक संबंधमे पता चललजे फन्नू बाबू अपन बचियाक हेतु योग्य वरक ताकमे छथि। तखन विचार भेल जे परतापुरक सभागाछीमे अगिला महिनामे फन्नू बाबू आबथि आ’ झिंगुर बाबूकें आतिथ्यक अवसर भेटन्हि। मुदा बीचहिमे दियाद सभ झिंगुर बाबूकँ तेनाने घेरलकन्हि जे कलितक विवाह फन्नू बाबूक बचियासँ थीक करैत आ’ भराममे सिद्धांत करेनहि गाम पहुँचलाह। ड’रो होइन्हि जे कनियाँ ने कहीं रपटा दय देथिन्ह। मुदा विवहक बात सुनितहि, कनियाँ खुशीसँ बताहि जेकाँ भय गेलीह। पिछला चारि दिनसँ जतेक गुनधुनी लागल रहन्हि सभटा खतम भ’ गेलन्हि।
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पैरे किंवा कटही गाड़ी यैह छल यातायातक साधन। महफा सेहो बेश नक्काशी बला आ’ भरिगर। वर महफा पर आ’ बरियातीमे जे युवा रहथि से पैरे आ’ जे कनेक उमरिगर रहथि से कटही गाड़ी पर विदा भेलाह। संगमे सेवकक लश्कर। दरबज्जा पर स्वागत भेलन्हि। हजाम पैर धोलकन्हि, पुनः इत्र-सेंट, फूल, नाश्ता। गप्प सरक्का। शास्त्रर्थ आ’ चुटक्का। अँगनामे परिछनि आ’ विधि-व्यवहार तँ दलान पर गप्पक फूहारि। बीच-बीचमे क्यो आबि कय कहीं जाथि जे गहना कतय छैक। घोघट के’ देथिन्ह। घोघटाही नूआ नहीं भेटि रहल अछि। एहिसँ विवाहक क्रम आ’ प्रगतिक विषयमे बरियाती लोकनिकेँ सेहो पता चलैत छलन्हि। एवम् प्रकारे आँगन आ’ दरबज्जा दुनू ठाम विवाहक कार्यक्रम भोरक पाँच बज्वए तक चलैत रहल। वर आ’ कनियाक हाथमे ब्रह्मचारी डोरी बान्हि देल गेल, जे चारि दिन धरि रहल। तकरा बाद विवाह पूर्ण भेल। विदाइक दिन’ तका कय झिंगुर बाबू पठेलखिन्ह आ’ कलित अपन गाम आ’ कलित अपन गाम आबि गेलाह। कटिहार जयबाक तैयारी भेल। अश्रुपूरित नेत्रसँ माय आ’ ग्रामीणसँ विदा लेलाक बाद कलित अपन रोजगार पर विदा भेलाह।
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कोशीक विभीषिकासँ त्रस्त क्षेत्र होइत कटिहार पहुँचि कय कलित अप्पन काजमे शीघ्रहि पारंगत भय गेलाह। काजक अधिकता भेलापर अपन पितियौत भाय आ’ भातिजकेँ सेहो बजा लेलथिन्ह। एहि क्षेत्रक लोकक बीचमे बहुत थोरबेक दिनमे अपन प्रतिष्ठा बढ़ा लेलथि कलित। एहि क्षेत्रक लोकक बीचमे जमीन्दारीक परमानेंट सेटलमेन्टक विषयमे पुराण अनुभव बहुत खराब छल। वसूली पदाधिकारीक भ्रष्ट तरीका सभकेँ कलित बदलि देलखिन्ह। मुदा कालक गालनमे किछु आरे छल। कलितक द्विरागमनक पहिनहि हुनकर माय गुजरि गेलखिन्ह। बड्ड रास सौख-मनोरथ लेने चलि गेलीह माय। कखनो कलितकेँ कहैत छलखिन्ह जे तोरा कनियाँसँ खूब झगड़ा करबौक तखन देखबौक जे तूँ हमर पक्ष लैत छँह कि कनियाक।
झिंगुर बाबू सेहो अन्यमनस्क रहय लगलाह। कलित कहबो केलखिन्ह जे सँगहि चलू, मुदा भरि जन्म जतय रहलाह ओहि ठामकेँ छोड़थु कोना।
तेसर साल कलितक द्विरागमन भेलन्हि आ|तकरा बादे ओ| निश्चिंत भ| सकलाह। जाइत-जाइत कलितकेँ कहैत गेलखिन्ह जे तोँ तँ बेशीकाल गामसँ बाहरे रहलह। हमरा सभहक सेवा तँ ई बुचिया केलक। अपन बहिनक भार आब तोहिँ उठाबह। हमारा सोचने छलहुँ जे एकर विवाह दान करबाइये कय निश्चिंत हैब। मुदा तोहर माय हमरा तोड़ि देलन्हि। आब तूँ अपना जोगर भइये गेल छह। पाँच बरखक बेटा रहैत छैक तखनो लोक केँ लोक कहैत छैक जे अहाँ केँ कोन बातक चिंता अछि, पाँच बरखक बेटा अछि। तूँ तँ आब पढ़ि लिखि कय अपन जीवन यापन करैत छह। फेर पुतोहुकेँ सेहो बुचियाक हाथ पकड़ा कय एहि लोकसँ छुट्टी लेलन्हि झिँगुर बाबू। कलित हुनका एतेक हड़बड़ीमे कहियो नहि देखने छलथिन्ह।स्थिर, शांतचित्त आ| फलक चिंता केनिहार किसान सेहो अपन जीवन-संगीक संग छुटलाक बाद अधीर भ| गेल।

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कलितकेँ कटिहार अयलाक बादो एकेटा चिंता लागल रहैत छलन्हि। से छल बुचियाक विवाह। पिताक रहैत ओ’ कोनो परेशानीसँ चिंतित नहि भेल छलाह। मुदा हुनका गेलाक बाद आब लोकोकेँ देखेबाक छलन्हि जे क्यो ई नहि कहय जे बापक गेलाक बाद बहिन पर ध्यान नहि देलन्हि कलित। पिताक बरखी तक विवाहक प्रश्न उठेबो कोना करितथि। मुदा समय बितबामे कतेक देरी लगैत छैक। पूरा गामक बारहो वर्णक भोज कय, कलित बुचियाक विवाहक हेतु वर ताकयमे लागि गेलाह। परतापुरक सभागाछीमे गेलाह मुदा कोनो वर पसिन्न नहि पड़लन्हि जे बुचियाक हेतु सुयोग्य होय। पन्द्रह दिनक छुट्टी बेकार गेलन्हि। पुनः कटिहार पहुँचि गेलाह। कार्यक क्रममे गिद्धौर,बाढ़ इत्यादि गंगाक दक्षिण दिशक मैथिल ब्राह्मण परिवार सभसँ सेहो परिचय भेलन्हि। ओहिसँ हुनका बाढ़क एकटा लड़काक विषयमे पता चललन्हि जे गिदद्धौर स्टेटमे कार्य कय रहल छलाह।
चोट्टहि ओ’ लड़कासँ भेँट करबाक हेतु गिद्धौर पहुँचि गेलाह। बालक अत्यंत दिव्य छलाह। पता लय बाढ़ पहुँचि कय बालकक पितासँ गप केलन्हि। पंचकोशीक कथा कतबा दिनक बाद बाढ़क क्षेत्रमे आयल छल से एकरा काटब मुश्किल छल। सभटा गपशप कय पुनः भराममे सिद्धांत करेने मेहथ पहुँचलाह। बूढ़- पुरान जे क्यो सुनलन्हि से आश्चर्यचकित रहि गेलाह। बढ़य पूत पिताक धरमे- झिंगुर बाबू जेना कलितक सिद्धांत करेनहि पहुँचल छलाह तहिना कलित केलन्हि, वाह...। कथा ओनातँ दूरगर भेलन्हि, मुदा कलित स्वयम् नेनेसँ दूरदेशक बाशी छलाह, ताहि द्वारे हुनका सभचीजक अनुभव छलन्हि , यैह सोचि सभ संतोष कएलक। पूरा टोल विवाहक तैयारीमे लागि गेल। बुचियाकेँ कोनो दिक्कत नहि होएतैक। सर्वगुण संपन्न अछि बुचिया। गीत-नाद लियऽ आ’कि सराय-कटोरा, दसो हजार महादेव सुगढ़ पातर-पातर छनहिमे बना दैत अछि। जाहि घरमे जायत तकरा चमका देत।
विवाह विधि-विधानसँ संपन्न भय गेल। वरपक्ष संगहि द्विरागमनक प्रस्ताव राखलन्हि, मुदा कलित तैयार नहि भेलाह, तखन बुचियाक हाथक छाप लऽ कय वरपक्ष केँ जाय पड़लन्हि। कलितक पत्नी छलीह पूर्ण शुद्धा। बुचियासँ बहिनापा छलन्हि। बुचियो भौजी-भौजी कहैत नहि थकैत छलीह। तेसर साल द्विरागमनक दिन भेलैक। बुचियाक संग जे खबासनी गेल छलीह से आबि कय गंगा आ’ गंगा पारक दृश्यक वर्णन करय लगलीह तँ भाउजक आँखिसँ दहो-बहो नोर चुबय लागलन्हि। कलितसँ कतेक बेर पुछलथिन्ह जे ई बाढ़ छैक कतय। समयक सँग सभ किछु सामान्य भाय जाइत अछि। बुचिया जखन एक-दू बेर एलथि-गेलथि तखन भाउज आरो निश्चिंत भय गेलीह। एवम् क्रमे कलित पुनः एकाकी भय गेलाह। सन् चौंतीसक भूकम्पमे महादेव पोखरि पर पत्नी आ’ दुहु पुत्री आऽ
एकटा पुत्रक संग बितायल रातिक बाद परिवार सहित किछु दिनका बाद कटिहार गेलाह। कारण छल महीना भरि चलल छोट-छोट भूकंपक तरंग। मुदा पत्नीकेँ घरक पीड़ा सतबय लगलन्हि। घरतँ भूकम्पमे ढहि गेल छलन्हि, से कलित भूमिक ओहि टुकड़ाकेँ छोड़ि फुलवरीक कातमे नव घरक निर्माण केलन्हि। अपन पुरान डीह अपन दियादकेँ दऽ एहि नबका डीह पर घरहट कएल। तकरा बाद एकटा पुत्र एवम् एकटा पुत्रीक प्राप्ति आओर भेलन्हि। पुनः एकटा पारिवारिक चक्रक प्रारंभ भय गेल। समय बितैत कतेक काल लगैत अछि। अपन बचिया सभ सेहो आब विवाह योग्य लागय लगलन्हि। अपन बच्चातँ सदिखन बच्चे लगैत छैक मुदा तँ की। पहिल बचियाक विवाह कछबी आऽ दोसरक खरख करेलखिन्ह। कछबीक परिवार सेहो राज-दरबारक कर्मचारी छलाह। घोड़ा, महफा, चास-बास....। मुदा बच्चा होयबाक क्रममे कलितक प्रथम पुत्रीक देहांत भय गेलन्हि मुदा ननकिरबी बचि गेल आऽ ओ’ मातृके मे रहय लागल। मुदा ओहो पाँचे वर्षक होयत कि एक दिन पेटमे दर्दक शिकायत भेलैक आऽ ओहो भगवानक घर मायक सेवामे चलि गेल।कलित जीवन आ’ मृत्युक एहि संग्रामकेँ देखैत रहलाह। कहियो गाममे हैजाक प्रकोप पड़य लागल तँ कहियो प्लेग आ’ कि की ? एक गोटाकेँ लोक जरा कय आबय तँ दोसर गोटाक मृत्युक समाचार भेटय। मुदा कलितक परिवार अक्षुण्ण रहलन्हि।

कलितक कटिहारमे पदोन्नत्ति आ’ प्रतिष्ठा बढ़ैत रहलन्हि। भातिज सभ पूर्वरूपेण ओतय रहैत छलाह। दुहू पुत्र केजरीवाल हाई स्कूल, झंझारपुरममे पढ़य लागल छलथिन्ह। कालक मंथर गतिमे कखनो काल गति आबि जाइत अछि। अपन तेसर पुत्रीक विवाह तमुरिया लग आमारूपी गाममे करबाय कलित जेना निश्चिंत भय गेलाह। अपन पैघ पुत्रक विवाह करेलन्हि, आऽ छोट पुत्रक अकादमिक प्रतिभाक प्रति निश्चिंत भेलाह। मुदा छोट पुत्रक अंधविश्वाशी होयबामे सेहो हुनका कोनो संदेह नहि छलन्हि। कारण एक दिन हल्ला उठलैक, जे घनगर चन्ना-गाछीमे, जतय दिनोमे अन्हार रहैत छैक, कोनो गाछक नीचा चाटी उठैत छैक, तखन हुनकर ई पुत्र चाटी उठाबय ओतय पहुँचि गेलन्हि। से जखन आठम वर्गमे विज्ञान वा कला चुनबाक बेर अयलैक, तखन पुत्रक विज्ञान विषय लेबाक निर्णयमे हाँमेहाँ मिला देलखिन्ह कलित बाबू। कतेक गोटे कहलथिन्ह जे सत्यनारायण बाबू आ’ के-के साइंस लय फैल कए गेलाह, बादमे पुनः आर्ट्स विषय लेबय परलन्हि। मुदा नन्द नहि मानलथि। साइंसोमे गणित लेलन्हि। कलित सोचलथि जे विज्ञान विषय पढ़ि अदृश्यक प्रति स्नेहमे नन्दक रुचि कम हेतन्हि। पता नहि किएक एकर बाद कलित निश्चिंत जेकाँ भय गेलाह। कटिहारसँ एक बेर आयले रहथि कि भोरमे नित्यक्रियासँ निवृत्त भय कलित हाथ मटियाबय लेल चिकनी माटिक ढ़ेर दिशि बढ़ि रहल छलाह कि पता नहि कि भेलन्हि, हाथक लोटा दूर फेंका गेलन्हि। ओ’ नीचाँ खसि पड़लाह। कनिया दौड़ल अयलीह, मुदा जीवनक खेल एक बेर भेटैछ आ’ एक्के बेर चलियो जाइछ।नन्द पिताक मृत्युक साक्षी छलाह। मृत्युक ई प्रकार हुनका लेल सर्वथा नवीन आ’ सर्वथा रहस्यमयी छल। अदृश्यक शक्ति विज्ञानक सर्वोच्चताकेँ नन्दक जीवनमे दबाबय लागल।
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वृत्तक गोलाकार आकृति केंद्रक परिधिमे घुमैत एकटा चक्र पूरा केलक। अदृश्य केंद्रक फाँसमे फँसल।
नन्द अपन यशोदा मैयाक छत्रछायामे बढ़य लगलाह, उम्रोमे आ’ पढ़ाइयोमे। अप्पन शिक्षक लोकनिक प्रिय पात्र भय गेलाह नन्द। हुनकर प्रैक्टिकलक कॉपीक साफ-सुथरा रूपक चर्चा सर्वत्र शिकक्षहु वर्गमे होमय लागल। फूल-सन अक्षर हुनकर शारीरिक सौन्दर्यसँ मेल खाइत छल।
एहि बीच एकटा आर घटना घटित भेल। यशोदा मैय्याक दुहु पुत्र भगवत्ती घरक सोझाँमे नीचाँमे सुतल छलाह। भोरमे माय देखलन्हि जे गहुमन साँप चारि टुकरा भेल पड़ल अछि आ’ बिज्जी माथ लग ठाढ़ पहरा दय रहल अछि। प्रायः बिज्जीक मारि पड़लैक गहुमनकेँ आ’ दुहु पुत्र सुरक्षित रहलन्हि यशोदा मैयाक। नन्द एहि घटनाक स्मृतिक संग आगू बढ़य लगलाह।
बीचमे बँटवारा भेल। घरारी सभ, निकहा खेत सभ सभटा दू-दू टुकड़ा होमय लागल। बाहरी लोक सभ कहैत छल, जे दुनू भायक संग अन्याय भय रहल अछि। स्कॉलरशिप प्राप्त कय नन्द आर.के.कॉलेज मधुबनीमे अंतर-स्नातक विज्ञान(गणित)मे नामांकन लेलथि। शुरूमे गणित बुझबामे दिक्कत भेलन्हि तँ रटय लगलाह। गणितकेँ रटबाक बुद्धि ई सोचिकेँ लगेलथि जे बादमे लोक ई नहि कहय, जे की सोचि कय विज्ञानक चयन कएल। मुदा किछु दिनका बाद रटैत क्रममे बुझबामे सेहो आबय लगलैन्ह। गामक फुटबॉलक मैदानक स्मृतिये शेष रहलन्हि, खेलेबाक अवसरे नहि भेटन्हि। गणितक शिक्षक तीन सय प्रश्नक सेट परीक्षाक पहिने दैत छलखिन्ह आ’ कहैत छलखिन्ह जे, जे क्यो साठि प्रतिशत प्रश्नक सही-सही उत्तर बना लेताह, ओ’ प्रथम श्रेणीमे निश्चित रूपसँ उत्तीर्ण होयताह। नन्द सत्तरि प्रतिशत प्रश्नक उत्तर तैयार कय शिक्षककेँ देखा देलखिन्ह। आशानुरूप बादमे परीक्षाक परिणाम अयला पर प्रथम श्रेणी भेटलन्हि। 1959 इंजीनियरिंगमे नामांकनक हेतु आवेदन दय देलखिन्ह। अंकक आधार पर सर्वोच्च अंक अयला उत्तर मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजीमे नामांकन लय लेलथि। ओहि समय मात्र सिविल इंजीनियरिंग शाखाक पढ़ाई ओहि संस्थानमे होइत छलैक, से ओहि शाखामे नामांकन लय धोती-कुर्त्ता पहिरि कय पहुँचि गेलाह।दीक्षित साहेब वर्कशॉपक मशीन देखाय कहलखिन्ह, जे एहिमे धोती फँसि जायत, से फुलपैंट आ∙ शर्ट पहिरि कय आऊ। दू टा फुलपैन्ट आ∙ शर्ट कीनय पड़लन्हि नन्दकेँ। कपड़ा कीनि सियबितथि तँ ढ़ेर दिन लागि जयतन्हि से रेडीमेड कीनय पड़लन्हि। मुदा गाम जाथितँ बिदेसरे स्थानमे फुलपैन्ट-शर्ट बदलि कय धोती कुर्त्ता पहिरि लैत छलाह। कहियो गाम फुलपैंट पहिरि कय नहि गेल छलाह। सन् 1959 सँ 1963 धरि इंजीनियरिंगक पढ़ाई चललन्हि आ’ तखन बिहार सरकारमे इंजीनियरिंग असिसटेंन्ट आ’ एक सालक बाद 1964 सँ सहायक अभियन्ताक रूपमे बहाली भेलन्हि। इंजीनियरिंग पढ़ाई विशेष खर्च बला छल से एहि शर्त्तनामाक संग विवाह भेलन्हि जे पढ़ाइक खर्चा ससुर उठेथिन्ह। गर्मी तातिलक एक मास आ’ दुर्गापूजाक पंद्रह दिनक छुट्टीक पाइ ससुर काटि लैत छलथिन्ह। जौँ सासुरक लोक कहियो ई उपराग दैत छलैन्ह, जे हमही सभ इंजीनियरिंग करबेलहुँ अछि, तँ नन्द सेहो हँसि कय उपर्युक्त बातक खुलासा कय दैत छलखिन्ह। वृत्तक परिधि जेना पैघ भेल जा रहल छल। कालक परिधि पहिने पूर्ण चक्र पूरा कएलक आ’ आब परिधिक विस्तार शुरु भय गेल। दुःख-सुख आ’ उत्थान-पतनक खिस्सा। स्वतंत्रता दिवसक दिनक उमंग, झंडा ल’कय स्कूलक बच्चाक संग 15 अगस्त 1947 केँ घुमैत छलाह। कांग्रेसक भक्ति संगमे रहलन्हि। मुदा 1962क चीनी आक्रमणक बाद भारतीयसेनाक पाछू हटबाक दुःस्वप्न वायुसेनाक उपयोग नहि करबाक भारतक आश्चर्यजनक निर्णयक बादक मनःस्थिति छल पलायनक,हारिक । ऑल इंडिया रेडियोक घोषणा जे हमर सेना गर्वसँ पाछू हटि रहल अछि-सुनि नन्दक हृदय रुकि सन जाइन्ह। से जखन 1965क युद्धक बेर इंजीनियरक भर्त्ती सेनामे कैप्टनक रूपमे शुरु भेल तखन नन्द आ’ साहा साहब आवेदन दय देलखिन्ह। साहा साहेबक कनियाँतँ कानय लगलीह आ’ साहा साहेबकेँ रुकि जाय पड़लन्हि। नन्दक पत्नी एको बेर प्रतिरोध नहि कएल। मुदा ओजनमे छँटा गेलाह नन्द। मसोसि कय रहि गेलाह। तकर बाद जे शरीर घटेबाक सूर चढ़लन्हि, से बढ़िते गेलन्हि। एकेटा सपना छलन्हि-गाममे कोठाक घर। से सभटा सर्वे सभक नक्शा ऊपर कय घरक कुर्सी देलन्हि जे सड़कमे घरक कोनो भाग नहि जाय। मकानक डिजाइनक मात्र आधे भाग पूरा भय सकलन्हि। जतय-जतय ट्रांसफर होइन्ह एकटा नव अनुभव भेटन्हि।ओहि समय कनियाँकेँ तृतीय पुरुषक रूपमे संबोधित करबाक प्रचलन छलैक, मुदा नन्द द्वितीय पुरुषमे संबोधन शुरु केलन्हि। एकर आलोचना होयबाक बदला गाममे आनो लोक सभ ई संबोधन अपना घरमे शुरु कए देलन्हि। डेहरी-ऑन-सोनमे विकास कार्यमे ग्रामीण आदिवासीक पूर्ण सहयोग भेटलन्हि। कहियो पाइ देखि कय अंतरात्मा नहि डिगलन्हि। जी-जानसँ जीप जीप उठा कय अपन कार्यकेँ पूर्ण करथि। कखनो जीप तेज होइन्हतँ यादि पड़न्हि जे कोनो बच्चा ने पिचा जाइ।मुदा कहियो कोनो दुर्घटना नहि भेल। गामक सभ जातिक लोककेँ कतहु ने कतहु मस्टरे रॉल पर नोकरी देलन्हि। स्थानीय लोककेँ सेहो नोकरी करबाक हेतु प्रोत्साहित करैत छलाह। स्थानीय गरीब आदिवासी नन्दकेँ देवता बुझैत छलाह। एतहि दमाक पहिल बेर अटैक भेलन्हि नन्द पर। स्थानीय वैद्य दिन-राति एक कय जंगलसँ बीटी आनि कय देलकन्हि। दमाक इलाज एलोपैथियोमे नहि अछि, मुदा एहि बूटीक एकमात्र खोराकी सँ अगिला कतेक साल तक नन्द दमासँ दूर रहलाह। सँगी सभ भोलेनाथ नाम राखि देलथिन्ह। कतेक कमाइ-धमाइक गुर सभ सिखेबाक प्रयास सेहो केलन्हि। मुदा ग्रामीण-जनक लाचारीकेँ ततेक ल’ग सँ देखने छलाह नन्द, जे एहि सभ गप्प दिशि ध्यानो नहि जाइत छलन्हि। ताहुमे गरीबीक बादो जे आपकता स्थानीय जनसँ भेटैत छलन्हि, तकरा बाद?
एहि बीच एक पुत्रीक प्राप्ति सेहो भेलन्हि। दोसर बेर पुत्रक प्राप्ति भेलन्हि। पुत्री मामा गाममे जन्म लेलथिन्ह आ’ पुत्र अपन गाममे। बच्चा सभक स्थितप्रज्ञ भाव, फेर हँसबफेर ठेहुनिया,---। बच्चाक बढ़बाक प्रक्रियाक दर्शन ओहिना अछि, जेना विश्वक निर्माण ओ’ ओकर चेतनाक विकास।हुनकर भातिजक देहांत नेनेमे भेलाक बाद एहि दुनू बच्चाक प्रति स्थितप्रज्ञताक भाव, न्हि सुखमे सुखी नहि दु:खमे दुखीक अवतरण भेल नन्दमे। नन्द दिल्ली कोनो ट्रेनिंगमे गेल छलाह।एक राति सपना देखलखिन्ह, जे नवीन हुनकर गामक फूसक ओसारा पर बैसल छथि।ओ’ नेना जकरासँ नन्दकेँ बड्ड आपकता छलन्हि, उठि कय खेलाइ लेल जाइत अछि। कनेक कालक बाद पेटमे दर्दक शिकाइत करैत अछि। सभ क्यो जमा भय जाइत छथि।बूढ़-पुरान अपन-अपन नुस्खा देबय लगैत छथि।मुदा कनिये कालक बाद बच्चाक मृत्यु भ’ जाइत अछि। नन्दक आँखि खुजि गेलन्हि।हुनका अपन बड़की बहिनक बचियाक मोन पड़लन्हि। एहने घटना छल ओहो।बचियाकेँ क्यो बूढ़ी पेट पर हाथ दय देने छल, आ’ ओ’ कनेक कालक बाद संयोगवश पेट दर्दसँ काल कवलित भय गेल छलीह। नन्दकेँ अदृश्य, भूत-प्रेत, राकश आ’ डाइन जोगिन पर असीम विश्वास छलन्हि। ई सभ सोचिते ओ’ जोर-जोरसँ कानय लगलाह। संगी सभ हड़बड़ा कय उठैत जाइत गेलाह। जखन सभ समाचार ज्ञात होइ गेलन्हि त’ किछु गोटे कहलखिन्ह, जे भातिजक अउरदा बढ़ि गेल। नन्दक मुँह लटकल देखि कय, क्यो-क्यो हुनक अभियंताक वैज्ञानिक दृष्टिकोणकेँ मोन पाड़य कहलकन्हि। मुदा नन्दकेँ बोल-भरोस क्यो नहो दय सकलाह। नन्द ट्रेनिंग छोड़ि कय सपनेक गप पर गाम विदा ब’ गेलाह। तेसर दिन गाम पहुँचलाह, तँ भैयाकेँ केस कटेने देखि कय सशंकित भय गेलाह। गामक सीमांतेसँ जे क्यो भेटन्हि से कनेक दु:खी स्वरमे गप करन्हि।आँगन पहुँचलाह तँ माय जोर-जोरसँ कानय लगलीह।सपनाक सभ्टा गप सत्य बुझेलन्हि, अक्षरसः सत्य। भातिज हुनका केश कटाबय हेतु सही समय पर बजा लेलखिन्ह। नवीनक फोटोक पाँछामे अंग्रेजीमे ओकर जन्मक आ’ मृत्युक तिथिक संग ओकर तोतरायल बोलीमे काका-कका कहबाक बात फाउंटेन पेनक सियाहीसँ नन्द लिखलन्हि। कोठा घरकेँ बनयबाक पहिनहि ओ’ चल गेलाह, गेलाक बादो मुदा स्वप्नमे काकाकेँ नहकेशक दिन मुदा बजा कय।

पुत्रीक जन्मक बाद कोठाक घरो बननाय शुरु भय गेलन्हि। पुत्री जखन पैघ भेलन्हि, तँ यादि करबाक क्रममे कहैत छलीह, जे कुर्सी पड़बाक लेल जे खधाइ खुनल गेल छल से बड्ड गँहीर छल।मुदा पिता यादि पाड़लखिन्ह जे काका अहाँकेँ हाथसँ पकड़ि कय खधाइमे पात सभ साफ करबाक लेल नीचाँ दैत छलाह, तखन खधाइ बहुत गँहीर कोना भेल। पुत्री बा’ केर कोरामे एकर समाधानक हेतु पहुँचि जाइत छलीह, जे खधाइतँ बहुत गँहीर बुझाइत छल , तखन ईहो बात सही जे काका हाथेसँ खधाइमे उतारि दैत छलाह। नन्दक माय बच्चा सभक बा’ भय गेलीह।नन्दक पुत्रकेँ बा’ नन्दक नन्द कहैत छलीह। कखनो गोपाल तँ कखनो राजकुमार, ओकर हँसी, औँठिया कारी घनगर केश। बा’क कोठाक घर बनि गेलन्हि तँ पेटक दर्द सेहो शुरु भेलन्हि। मुदा नन्द एहि बेर अपन घरक पेटक दर्दक दू टा मृत्युकेँ अदृश्यक निर्देशपर होइत देखलाक उत्तर मायकेँ इलाजक हेतु कैक ठाम एलोपैथिक डाक्टरक ल’ग पैघ-पैघ शहरमे लय गेलाह। डायगनोस भेलन्हि कैंसर नामक दु:खदायी रोग। एहि बीमारीक इलाज रोगोसँ बेशी दुःखदायी छल। रेडियमसँ ट्यूमरकेँ जरेनाइ। बा’ टूटि गेलीह। पटनेमे मृत्यु भय गेलन्हि। ओतहि दाह संस्कार गंगा-तट पर भेलन्हि, कारण ओतय मान्यता छल जे गंगा तट पर गायक बोली जतेक धरि सुनाइ पड़ैत अछि, ततेक दूर मगहक क्षेत्र नहि मानल जायत। तदंतर श्राद्ध कर्म गाममे भेलन्हि। बा’ चलि गेलीह नन्दक द्वितीय पुत्रक जन्मक पहिनहि। मुदा बा’क चर्चाघरमे होइते रहल। बा’ केर फोटो बा’ केर नाति सभक प्रेरणा श्रोत बनल रहल। जे सपेताक गाछ बा केर श्राधमे उसरगल गेल छल, तकर आम हुनकर नाति-नातिन नहि खाइत छलन्हि।जे आम खसैत छल से बाबाक सारा पर राखि देल जाइत छल।गोदान आ’ वैतरणी पार करेबाक विधिमे जे गायकेँ दागल गेलैक तकरा देखि बा’ केर दुहु पुत्र प्रण लेलन्हि जे आब ई काज भविष्यमे कहियो नहि केल जायत। बा’ अपन धैर्यसँ मरैत काल तक अपन परिवारकेँ पुनः अपन पूर्व प्रतिष्ठा आ’ सरस्वतीक भक्तक रूपमे प्रतिष्ठित करबामे सक्षम भेलीह। मरैत काल बुचिया सेहो बाढ़सँ अपन भौजीकेँ भेंट करय लेल अयलीह।दुनू ननदि आ’ भौजी पुरान-पुरान गप सपमे अपना- अपनाकेँ बिसरबैत गेलीह। भौजी भय गेल छलीह बच्चा सभक बा’ आ’ ननदि भय गेल छलीह बच्चा सभक बुढ़िया दीदी। बुढिया दीदीक खिस्सा बच्चा सभक मध्य बड्ड लोकप्रिय भय गेल छल। बृहत्यकथाक खिस्सा सन नमगर- कैक रातिमे खतम होयबला। खिस्सा सुनबाक क्रममे एक बच्चा सुति जाइत छल, फेर ओहिसँ पैघ बच्चा आ’ सभसँ पाँछाँ सभसँ पैघ बच्चा सुति जाइत छल।अगिला राति मारि शुरु, सभसँ पैघ बच्चा कहन्हि, जे जतयसँ खतम केलहुँ ततयसँ शुरु करू, ई सभ पहिने सुति गेलथितँ ई सभ अपन जानथि। मुदा बुढ़ियो दीदी कम नहि छलीह। अपन खिस्सा कनेक आओर आगूसँ शुरू करैत छलीह।जखन सभसँ पैघ बच्चा कहय, जे एकर पहिनेक खिस्सा हम कहाँ सुनलहुँ तँ बुढ़िया दीदी कहथिन्ह, जे हम बताहि जेकाँ खिस्सा कहिते रहि गेलहुँ आ’ अहूँ सुति गेल छलहुँ।तखन हम खिस्सा कहब बन्द कए देलहुँ।तखन निर्णय भेल जे जतयसँ सभसँ छोट बच्चा चाहैत अछि, ततहिसँ खिस्सा शुरु कएल जाय।

बड़काकोला बला खेतमे नन्द बोरिंग गरबेलन्हि, जे पानिक हेतु ललायल ई बाध सिंचित भय जाय।मुदा कतेको दिनका परिश्रमक बाद ई पता चलल जे नीचाँमे पानिक अभाव छल। लेयर नहि भेटबाक कारणसँ पाइप खेतेमे लागल रहल, आ’ सुखा गेल।बच्चा सभक हेतु ई खेत बोरिंग बला खेतक नामसँ प्रसिद्ध भेल।बादमे सरकारी बोरिंग गाममे लगबाक घोषना भेल, मुदा नन्दक भैयाकेँ पता चललन्हि, जे ई बोरिंग ओहि पानि विहीन बाधमे नहि गरायत, वरन् ओहि बाधमे गरायत जाहिमे बारहोमास पानि लागल रहैत अछि। किछु गोटेकेँ ल’क’ पटना पहुँचि, मुख्यमंत्रीकेँ आवेदन देलन्हि। तखन जा कय ओहि सुखायल बाधक जीर्णोद्धार भेल। सात हाथक उज्जर अंग्रेज इंजीनियर कोन-कोन मशीन ल’कय आयल आ’ दुइये दिनमे बोरिंग गारि कय चलि गेल। मुदा बादमे क्यो कहलन्हि जे ओ’ अमेरिकन छल आ’ कारण सेहो देलन्हि जे सभटा उज्जर लोक अंग्रेज होय से जरूरी नहि।फेर कमला बलानक दुनु कात छहरक निर्माण भेल। किछु दिन तक ठीक रहल, मुदा किछु दिनका बाद हाल ई भेल जे दुनु छहरक बीचमे बालु भरैत गेल, जतेक छहरकेँ ऊँच करू ततेक कम। झंझारपुर पुलक नीचाँ तक बालू भरि गेल। कनियो पानि आबय तँपानि खतराक चेन्हसँ पार आ’ फाटकसँ बाहा बाटे पानि पोखरि-खेतकेँ डुबा दैत छल। जे खेत बहुत ऊँच आ’ दू पाइक मोलक छल से नीक भ’ गेल आ’ निकहा खेतमे खेती बन्द भय गेल। दुनू छहरक बीचक बलुआही जमीनमे तीन-तीन बेर रोपनी करय पड़ैत छल। लोककेँ आब परोर आ’ अल्हुआक खेती एहि बलुआही जमीनमे शुरू करय पड़ल। डकही पोखरिक चारू कातक बढ़मोतरमे छिटुआ धान करय पड़ल, कारण रोपनी महग भय गेल। पूर्णाहा बाध पानिसँ भरल रहैत छल। कोठिया-मेहथक बीचमे भोरहा छल-गँहीर पट्टी- प्रायः कोशीक कोनो पुरनका छिटकल धार। मुदा अखुनका कोशीक भौगोलिक दूरीक कारण एहि पर संदेह करनिहारक संख्या सेहो बेश। एहि भोरहा कातमे मेहथक आ’ कोठियाक संघर्षक खिस्सा....पछिमा-भुमिहार टोलक एकटा आन्हर बूढ़क करतब। बूढ़केँ सभ बान्हि कय रखलकन्हि,जे ओ’ मारि करय नहि पहुँचि जाथि।मुदा केबाड़ी तोड़ि आ’ बड़का बाँसमे फरसा-भाला लगा कय पहुँचि गेलाह लड़बाक हेतु।सवा मोन चूड़ि कोठियामे फूटल ओहि मारिमे। आ’ मारि कोन गप पर..सूगरक सीराक हेतु।......एकटा आर कथा-बूढ़ा काकाक झठहाक कथा, सभटा बानर सभ डरक लेल कलम-गाछी छोड़ि पड़ा गेल छल। आइ काल्हिक छौरा सभकेँ देखियौक, झठहा कियो मारि कय देखाबय जे जोमक फुनगीकेँ छू लय। सभटा अखराहा लोक सभ जोति लेलक तखन शरीर कोना बनैत जयतन्हि।

नन्दक डेरा पर बुढ़िया दीदी एक बेर बाढ़सँ अपन बेटाकेँ ल’ कय अयलीह, बेटाक नोकरीक लेल। बाढ़क लाइ केर स्वाद सभ बच्चा सभ बुढ़िया दीदीक पटना आकि गाम अयले पर चिखैत जाइत छल।जमीन्दारी प्रथाक समाप्तिक बाद नौकरीक चलती भय गेल छल आ’ दिक्कत सेहो ताहिमे सरकारी नोकरीक। जयराम नौआ तखनने कहैत छथि, जे नन्द सभ जातिकेँ सरकारी नोकरी देलखिन्ह, मुदा नौआ-ठाकुर टा बचि गेल। से नन्द नहितँ हुनकर बेटेसँ अपन बेटाक लेल नोकरी माँगताह। सभकेँ नोकरी भेटलैक मुदा बुढ़िया दीदीक बेटाकेँ नोकरी नहि भेटलैक।किछु समय-साल सेहो बदलल नहितँ पहिनेतँ लोक नोकरी करैयो नहीं चहैत छल। पुबाइ टोलक गुलाब झा कहैत छलाह,जे नोकरीक माने भेल नहि करी, आ’ करीतँ की पाबी-वेतन माने बिना तन आ’ तनखा माने तनकेँ खा।

बुढ़िया दीदीक आनल लाइ आ’ कतेक राति धरि चलय बला खिस्सा। गाम घरमे कखनो काल शुरु भय गेल आन आन प्राकारांतरक खिस्सा, इनार, पोखरि,करीन,बाहा,खत्ता,गाछी- पोखरिक बीच, आ’ एहि सभक हेतु होबय बला छोट-मोट झगरा-झाँटि आ’ कि रमन-चमनक मध्य नन्दक नन्द सभ बढ़य लगलाह।
नन्द अपन बच्चा सभकेँ गामसँ दूर नहि कयलन्हि। गर्मी तातिल, होली आ’ दशहरा, तीन बेर कमसँ कम साल भरिमे समस्त परिवार गाममे जयबेटा करैत छल। बच्चा सभ आम खयबाक हेतु दीदीक गाम जाइत छल। पैरे-पैरे दूर-दूर धरि, कहियो कमलाक रेतक बीच तँ कहियोआमक गाछीक मध्य चलैत चलबाक अनुभवे किछु भिन्न छल। आमक मासमे रात्रिक माछ-भातक आमक कलममे बनभोज,खुरचनसँ आमक खोइचा हटयबाक अनुभव, ती-ती- ‘जकरे नाम लाल छड़ी’ –सतघरिया खेलेबाक अनुभव,संठीमे आगि लगा कय धुँआ निकालबाक अनुभव आ’कि काँच आममे चून लगाकय खयबाक उपरांत ओकर मीठ भ’ जयबाक अनुभव हो; ई सभ अनुभव आइ काल्हिक बच्चाकेँ कोना भेटतैक यावत ओकरा सभकेँ गाम एनाइ जेनाइ नहि करायब। नन्द तँ एकबेर अपन जमायकेँ कहनहियो रहथि जे आगाँक सात जन्म शर दिशि घुरि कय नहीं आयब।

सन् 1975क पटनाक बाढ़िक समय नन्द गंगाक उत्तर गंगा पुल परियोजनामे आबि गेल छलाह। नन्द दुइ पुत्र आ’ एक पुत्रीक संग अपन परिवार चला रहल छलाह।तीनू बच्चा स्कूलमे पढ़ाइ-लिखाइ करैत जाइत छलाह। तखन ककरा भुझल छलैक जे ई सन् 1975 नन्द आ’ हुनकर बच्चा सभक जीवनक एकटा विभाजन रेखा बनत आ’ जीवनक धारकेँ बदलि देत।

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आरुणिक वृत्तांतक सारांश यैह अछि,जे हुनक जन्मक समय हुनकर पिताकेँ क्यो कहीं देलकन्हि, जे बचिया भेल अछि। दू-तीन दिन धरि हुनका दिमागमे छलन्हि जे बेटिये भेल अछि। छठिहारिक एक दिन पहिने हुनका पता चललन्हि जे बेटा भेल अछि। एहि अनिश्चितताक उपरांत यैह सिद्ध भेल, जे यावत सत्यक जे रूप बूझल अछि ,सैह तावत धरि सत्य रहत। सत्यक विभिन्न रूप , जे असत्यतँ नहीं अछि तकरे प्रतिकीर्तिक रूपमे आरुणिक व्यक्तित्वक प्रादुर्भाव भेलैक। जन्मेसँ एहि आभासित सत्यक विभिन्न रूपक साक्षी रहलाह आरुणि। आरुणिक जन्मक पहिनहि बा’ केर देहांत भ’ गेलन्हि। बादो मे जखन-जखन बा’ केर चर्चा अबैत छल, आरुणि ध्यानसँ सुनैत छलाह,आ’ अपन जिज्ञासा बढबैत छलाह। एवम क्रमे बा’ हुनकर जीवनक अंग भ’ गेलीह। बा’ हुनकर जन्मक पहिनहि सँ शरीररूपे नहीं छलीह, मुदा हुनकर अवस्थिति एहि घरमे सदिधन छलन्हि।
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आरुणिक कथा आ’ नन्दक कथा आ’ नन्दक कथाक बीचक तारतम्य पहिने तँ नहीं बुझि पड़ि रहल छल। मुदा प्रकृतिक संगहि आरुणि सेहो अपन प्रतिभा देखाबय लगलाह। मनुष्यक प्रवृत्तिये होइछ समानता आ’ तुलना करबाक, साम्य आ’ वैषम्यक समालोचना आ’ विवेचनमे कतेक गोटे अपन जिनगी बिता दैत छथि। आरुणि आ’ नन्दक बीच सेहो अनायासहि साम्य देखल जा’ सकैत अछि। दुहु गोटेक ऊपरी प्रतिभा आ’ तथाकथित वैचारिक मतभेदाक रहितहु, जे मूल व्यक्तित्वक साम्य होइत छैक, से दुनू गोटेमे वर्त्तमान अछि। एअहन सन बुझना जाइत छल।
भार्तीय मध्य वर्गक बच्चाक लालन-पालन आ’ पोषण, जाहि आशाओ’ आकांक्षा सँ होइत अछि, तकर अपवाद आरुणि नहीं छलाह। जेना सभ माता-पिता अपन नेनाक छोटो छोट बातमे प्रतिभाक छप देखैत छथि,तहिना आरुणिक माता-पिता विशेष कय पिता, आरुणिक व्यक्तित्वमे विशेष प्रतिभा देखय लगलाह।
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आरुणि केँ खूब स्वप्नसभ अबैत छलन्हि। तहिना दाँत सेहो सूतलमे कटकटाइत छलन्हि। सपनामे नीक आ’ अधलाह दुनू प्रकारक तत्त्व रहैत छलन्हि, मुदा डराओन तत्त्व विशेष रहैत छलन्हि। बहुत दिन तक आरुणि एहि प्रयासमे रहथि, जे कोना कय सपना आ’ कि दुःस्वप्न अयनाइ बन्द भय जायत। बीच रातिमे ओ’ घामे-पसीने भय जाइत रहथि, आ’ जखन निन्न खुजनि त’ देखथि जे माता-पिता पंखा होँकि रहल छथि। सभसँ पहिने ककर जन्म भेल, आ’ तकर पहिने ककर, आ’ सभकेँ भगवान बनओलन्हि तँ भगवानकेँ के बनोलकन्हि। ई सभ सोचि-सोचि कय आरुणि चिंतित भय जाइत छलाह। रातिमे स्वप्नमे हुनका होइत छलन्हि, जे इनाररूपी प्रकृतिमे ओ’ गामक छतपर घूमि रहल छथि। फेर ओ’ छतक कातमे जाय लगैत छथि। फेर जेना पोखरिक कछेर अछि, तहिना छतक काते कात बिन इच्छेक जाइत रहैत छथि, फेर चाहैत छथि, जे कातसँ हटि कय बीच छतपर आबि जाइ। किंतु इनार रूपी प्रकृतिक गुरुत्वमे ओ’ खिचाइत चलि जाइत छथि। आ’ खसि जाइत छथि। अनायासहि निन्न खुजैत छन्हि तँ खुशी आ’ दुःख दुनू प्रकारक भावना मोनमे अबैत छन्हि। खुशी एहि बातक जे स्वप्ने छल ई, यथर्थ नहि। दुःख एहि बातक जे फेर ने कतहु एहि प्रकारक दःस्वप्न फेर आबय। एहि बीच आरुणि कखन निन्न अबैत अछि आ’ कखन स्वप्न, एहि सभ पर जेना शोध करय लगलाह। फेर अगिला दिन मोन पाड़थि, जे नौ बजे धरि जागल छलहुँ, दसो बजे यावत जागले छलहुँ, तखन कखन सुतलहुँ। फेर किछुए दिनमे ओ’ अपना मोनके बहटारि लेलन्हि, जे जौँ हुनका ई यादि पड़ि जाइन्हि जे निन्न कखन आयल, तखन तँ ओ’जागले रही जयताह। हुनकर नाम कतेक बेर बदलल गेल। पुरातन ग्रंथ सभक अध्ययन नंद एहि हेतु कएलन्हि। फेर हुनक पढ़ाइ-लिखाइक कार्य शुरु भेलन्हि। श्री गणेशजीक अंकुश लिखनाइ सिखाओल गेल आरुणिकेँ, आ’ एहि आकृतिक संग गौरीशंकरक अभर्थना-सिद्धरस्तु।
“साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः। सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादांतस्य धूर्जटेः जाह्णवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥“

पशुपतिः पतिः कहीं आरुणि खूब हँसथि। एहिसँ हुनकर तोतरेनाइ सेहो समाप्त भय गेलन्हि। एक सँ सय तकक पाठमे आरुणिकेँ पशुपतिःपतिः बला तारतम्य यादि पड़ैत छलन्हि। दस सँ उन्नैस आ’ फेर बीस सँ उनतीस। नन्दक छोट पुत्र आरुणि शुरुअहिसँ नन्दक आशा आ’ आकांक्षाक प्रतीक बनय लागल छलाह। एकर किछु कारण सेहो छलैक । एकसँ सय धरि लिखब नन्द हुनका सिखा रहल छलाह।नन्द हुनका एकसँ दस धरि लिखनाइ आ’ बजनाइ सिखेलखिन्ह आ’ एगारहसँ आँगाँ सेहो सिखाबय लागलखिन्ह ।पुनः ई सिचि कय जे बालक पर एतेक बोझ लदनाइ ठीक नहीं अछि ओ’ रुकि गेलाह। परंतु बालककेँ एगारहसँ बीस, फेर एक्कैससँ तीस जयबा धरि,एहि बातक पता भ’ गेलन्हि जे ई तँ एक सँ दस तकक पुनरावृत्ति मात्र छैक। ओ’ एकर औचित्यक अपन पितासँ चर्चा के देलन्हि,तँ पिता हुनका एकसँ सय तक लिखबाक चुनौति दय देलखिन्ह। बालक से लिखि कय जखन देखा देलखिन्ह, तकरा बाद प्रत्येक शब्दकेँ कोन नाम देल जाय तकर समस्या आयल। नन्द एगारह,एक्कैस,उन्नासी आ’ नबासीक विशेष रूपसँ चर्चा केलन्हि। माँ जखन आधा घंटाक प्रगतिक समीक्षाक हेतु अएलीह, तखन हुनका पता चललन्हि जे पाठ्यक्रमतँ पिता-पुत्रक बीच पूर्ण भ’ चुकल अछि। पिता गदगद भय गेलाह आ’ माँ एहि घटनाक चर्चा बहुत कम गोटेसँ केलन्हि, जे कतहु ककरो नजरि नहीं लागि जाय। एहने-एहन ढेर उदाहरण पिताक हृदयमे पुत्रक कोनो गलती नहीं केनहारक छवि अंकित करबामे सक्षम भ’ गेल। --------------------------------------------------------------------------------------------------------

आरिणिकेँ अप्पन पुरना बात सभकेँ यादि रखबाक धुनि जेकाँ छलन्हि। कोन ईस्वी मे की भेल , कोन ईस्वी सँ की-की भेल से कोना यादि होयत। हम बच्चामे की सभ कएलहुँ –अप्पन पिता-माता आ’कि आनो बूढ़-पुरान सभक जीवनक घटनाक्रमक सभ गप बुझबाक लालसा हुनकामे छलन्हि। कखनोकालकेँ हुनका एहि गपक छगुंता होइत रहन्हि जे बिना हुनकर देखनो, एहि विश्वमे सभ गोटे सभ काज कोना कय रहल अछि। मने ई जे जखन आरुणि सुतल छथि तखनो विश्व चलि कोना रह्ल अछि। बच्चाक हुनका दुइ-चारिटा घटनाक यादि मात्र रहन्हि। जेना कि सिनेमा हॉलमे बॉबी सिनेमाक स्मरण,स्टुडियोमे माता-पिताक संग मुंडनक पहिने केशबला फोटो खिचेबाक स्मृति। फेर कोनो गप पर माँ द्वारा धयान नहि देलाक उपरांत भरि घरक चाभीक झाबाकेँ सोँझाक डबरामे फेंकि देबाक स्मृति।गाममे कोनो काज-उद्यमक भीड़क दृश्य।फेर आरुणि एहि सभपर सोचलाक बाद यैह निष्कर्ष निकाललन्हि, जे 1976 ई.सँ हुनका सभ किछु यादि छन्हि, कारण तखन ओ’ 5-6 वर्षक होएताह आ’ एहि वर्षसँ माँ हुनका अखबार पढ़बाक हिस्सक धरा देने छलखिन्ह।नन्दक हाथमे आरुणिक डायरी हाथ लागि गेलन्हि, जाहिमे आरुणि अपन स्मृतिक घटनाक्रमक इतिहासकार जेकाँ वर्णन देने रहथि।
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हम ,आरुणि,सन्1976 ई.केँ अपन जीवनक विभाजन रेखा मानैत छी। कारण एहिसँ पहिने हमरा अपन जीवनक घटनाक्रम किछु टूटल कड़ीक रूपमे बिना तारतम्यक बुझना जाइत अछि। कखनोकेँ हमरा ईहो होइत अछि जे एहि मे सँ किछु पूर्व जन्मक कोनो घटनाक्रमतँ नहि अछि?
सन् 1976 ई.। हम गंगाब्रिज प्रोजेक्टक गंगाक उतरबारी कातमे हाजीपुरमे बनायल कॉलोनीमे अपन माता-पिता आ’ पैघ भै-बहिनक संग रहि रहल छी। पिताजी व्यवसायसँ सरकारी अभियंता छथि, मुदा होम्योपैथिक चिकित्सामे सेहो एम.डी.(गोल्ड मेडेलिस्ट) छथि, आ’ हुनकर ई एक तरह सँ हॉबी छन्हि। भरि कॉलोनीक लोक चंदा एकत्र कय होम्योपैथिक दबाइ कानपुरसँ मँअगबैत छथि। बाबूजीक संग एकाध गोटे कानपुर जा’ कय दवाइ सभ लेने अबैत छथि। हमरा सभक सर्कारी क्वार्टरक ड्रॉइंग रूममे एकटा अलमीरा, दू टा कुर्सी आ’ एकटा टेबुल चिकित्सकीय कार्यक हेतु समर्पित अछि। हमर एकटा छोटका टेबुल सेहो एहि रूपमे रहैत अछि, जाहिमे तीस पाइक आर्यावर्त्त अखबार हम अप्पन माँकेँ पढ़ि कय सुनबैत छियन्हि।जतय धरि हमरा यादि अछि, एहि कॉलोनीक दूटा भाग छल। चारू दिशि चहरदिवारी कछल, जे एहि कॉलोनीक बीचमे सेहो एकटा दिबारि छल, जे एहि कॉलोनीकेँ ‘रहयबला’ आ’ ‘गोदामबला’ एहि दू हीसमे बँटैत छल। गोदामबला इलाकामे मारि रास लोहाक छड़, जोखय बला मशीन आ’ ट्रक सभक संग एकटा कदम्बक गाछक स्मृति हमरा अछि। जोखय बला एकटा मशीन ततेक पैघ छल, जाहि पर हम जखन ठाढ़ होइत छलहुँ, तँ ओकर काँटा हिलबो धरि नहि करैत छल।हमरा बताओल गेल छल जे एहि पर भरिगर चीज सभ मात्र जोखल जा सकैत अछि। पन्द्रह-सत्रह किलोक पाँच सात बर्षक बच्चाक भार एकरा हेतु नोँसिक समान अछि।
एहि गङ्गा-ब्रिज कॉलोनीक रहयबला क्षेत्रमे एकटा पैघ आ’ एकटा छोट मैदान छल।दुनूक बीच एकटा पैघ पानिक टंकी आ’ पम्प हाउस छल।पम्प हाउसमे पानि जाहि बाटे अबैत छलैक ,से बेस मोटगर पाइप छलैक आ’ हमरा अखनो यादि अछि, जे ओ ओहिना खुजल रहैत छलैक। हम ओहिमे आँखि दय कय तकनहियो रही मुदा दोसर बेर डरसँ पाछू हँटि गेलहुँ जे कतहु खसि पड़लहुँ तखन की होयत। ओ’ पाइप मात्र एकटा बोरासँ झाँपल रहैत छल। पैघ क्रीडांगनक उतरबारी कातमे एकटा कोटाबला दोकान रहैक। ओहिसँ पछबारी कातमे एकटा हनुमानजीक मूर्त्ति आ’ मंदिर बनि रहल छल,जे बहुत पहिनहि बनि गेल रहैत,मुदा कारीगर हनुमानजीक नाँक ठीकसँ नहि लगा पाबि रहल छल। हनुमांजीक नाँक चाहेतँ सामग्रीक समुचित मत्राक अनुपात नहि रहलाक कारण वा ककरो बदमाशीक कारण टूटि जाइत रहय,किंतु किछु दिनुका बाद हनुमानजीक मूर्त्ति बनि कय तैयार भ’ गेल रहय।मंगलकेँ आर्ती होमय लागल छल, पूरा कॉलोनी जेना भक्ति-भावसँ भरि उठल। किछु दिनुका बाद सभक उत्साहमे कनेक कमी आबय लागल, जेना आन संस्थाक संग होइत अछि, प्रारम्भिक क्रमशः कम होइत गेल आ’ मंदिरक सँग जुटल सभटा सामाजिककार्यक्रमक योजना योजने रहि गेल।

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हम कॉलोनीसँ दूर एकटा स्कूलमे पढ़बाक हेतु जाय लागल छलहुँ। हमर पैघ भाइ आ’ बहिन सेहो ओहि स्कूलमे पढ़ैत रहथि। एक दिनका गप्प अछि, जे स्कूलमे हमरा कोनो दोसर बच्चाक संग झगड़ा भय गेल।दुनु गोटेक संग स्लेट रहय। हम आ’ ओ दोसर बच्चा एकरा हथियारक रूपमे प्रयोग करय लागलहुँ। हम सोचय लगलहुँ जे जौँ स्लेटकेँ दोसर बच्चाक माथ पर मारबैक तँ शोनित निकलय लगतैक। ताहि द्वारे हम स्लेटकेँ रक्षात्मक रूपे प्रयोग केलहुँ। मुदा ओ’ दोसर बच्चा मचंड छल.......खच्च....हमर माथसँ शोनितक धार निकलय लागल।टीचर सभ हमरा प्रिंसपलक रूममे लय गेलथि। रुइयामे सेवलोन वा डिटॉल ओकर रंग आ’ सुगंध हमरा अखन धरि यादि अछि। फर्स्ट-एडक बाद साँझक होयबाक आ’ छुट्टीक बेर नहि ताकल गेल। स्कूलक रिक्शा जाहि पर “सावधान बच्चे हैं” लिखल छलकेर बाट नहि जोहि एकटा दोसर रिक्शामे हमरा दीदीक(बहिनक) संग घर पठा देल गेल। हम दीदीकेँ पुछलियैक, जे “सावधान बच्चे हैं” केर अर्थ की भेल। हमरा लगैत छल जे एकर अर्थ छल जे सभटा बच्चा जे ओहि रिक्शामे बैसल अछि, से सभ सावधान अछि, आ’ एहि बातसँ ओ’ दोसर छौड़ा असहमति देखा रहल छल आ’ ताहि गप्प पर झगड़ा बजरि गेल छल। दीदीक उत्तर जे इइ लिखबाक उद्देश्य चेतावनी छैक, जे कोनो दोसर गाड़ी पाछू सँ ठोकर नहि मारि दैक आ’ सम्हरि कय चलय।
“मुदा किएक”- हम संतुषट नहि होइत पुछलियन्हि।
एहने प्रश्न आ’ उत्तरक संग हम बढ़य लागल छलहुँ। आ’ बढ़ैत- बढ़ैत कहियो काल खिसियेला पर माँ कहथि, जे सोचैत रही जे कहिया पैघ होयत आ’ पैघ भेलतँ नाकमे दम कए देने अछि।
कॉलोनीक बाहरक क्रिश्चियन संतक नाम पर बनल स्कूलमे हम सभ भाइ-बहिन जाइत रही।स्लेटसँ कपार फोरबयलाक बाद बाबूजी कॉलोनीमे ऑफिसर सभक मीटिंग करबओलन्हि। फैसला भेल जे खेलाक मैदान आ’उत्तरबरिया सीमंतक देबालसँ सटल कोटाक दोकान(सार्वजनिक वितरण प्रणालीक दोकानकेँ कोटाक दोकान कहल जाइत छल) अपन आवश्यकतासँ बेशी पैघ घरमे छल। ओहि कोटाबलाक लाइसेंस सेहो कोनो कारणसँ समाप्त भय गेल छलैक, से ओहि एसबेस्टस बला 3-4 कोठलीक घरकेँ प्राथ्मिक विद्यालय बनयबाक निर्णय लेल गेल,आ’ दू-चारिटा शिक्षकक बहाली कय , दू चारिटा लोकक क्मेटी बनाय स्कूल शुरु कय देल गेल। पड़ोसक गंडक कॉलोनीकेँ सेहो छह महीना बाद नोत देल गेल, जे अहूँ अप्पन कॉलोनीक बच्चा सभकेँ एतय पढ़ा सकैत छी। उत्तरबड़िया देबाल पर बाहर दिशिसँ स्कूलक नाम लिखल गेल, जे किछु दिनक बाद मलिछोँह होइत गेल। मुदा स्कूलक प्रतिष्ठा बढ़ैत गेल छल।क्यो गोटे जौँ अप्पन बच्चाक नाम लिखाबय अबैत छलाह,तँ हुनकर बच्चाकेँ एक किंवा कखनोकालकेँ दुइ वर्ग नीचाँ नामांकन लेल जयबाक गप्प शिक्षकगण करैत छलाह।अप्पन स्कूलक स्तर कनेक ऊँच होयबाक गप्प करइत छलाह।बेशी जिद्द केला पर हमरा बजा कय टेस्ट लैत छलाह, आ’ जाहि प्रश्नक उत्तर तेसर वर्गकनामांकनक अभिलाषी नहि दय पाओल छलाह, से प्रश्न हमरा सँ पुछैत छलाह, आ’ हम्मर सही उत्तर पर ओ’कुटिल मुस्कान दैत नामांकनक हेतुक आयल बालक अभिभावक दिशि मुँह करैत छलाह।मोटा-मोटी बुझु जे ओहि स्कूलक हम सभसँ उज्जवल विद्यार्थी छलहुँ-जकर प्रतियोगितोमे ,ओहि गामसँ आयल विद्यार्थीक अयलाक पहिने, क्यो थाढ़ नहि भय सकल छल।पढ़ाइक प्रति एकटा विशिष्ट लगाव छल हमरामे,जे बादमे क्रमशः उदासीनतामे बदलय लागल। से एक बेर जखन बोखारसँ बरबड़ाइत छलहुँ,तहिया परीक्षाक दिन रहैक। बड़बड़ा रहल छलहुँ जे परीक्षा ने छूटि जाय। घर पर प्रश्न आ’कॉपी आयल आ’ तखन अप्पन परीक्षा दय सकलहुँ हम।स्कूल छल छोट-छीन, मुदा ओकर सभ गतिविधिमे कॉलोनीक निवसीगण सोत्साह भाग लैत छलाह।क्रीडाक्रिया होय आकि सांस्कृतिक। क्रीड़ामे दू विद्यार्थी एक-एक पैर डोरीसँ बान्हि कय तीन टाँग बनाय दौड़ैत छलाह। दौड़ि कय मैदानक दोसर छोड़ पर राखल ब्लैक बोर्ड पर लिखल हिसाबकेँ बनाय दौड़ि कयाअपस अयबाक खेल मे शारीरिक आ’ मानसिक दुहुक परीक्षा होइत छल जाहिमे हम अग्रणी अबैत छलहुँ।












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3.महाकाव्य
1.





1

पाराशर पुत्र भगवान व्यासकेँ, नमन-नमन शत नमन। केलन्हि चारू वेद लिपिबद्ध, आ’ जय संहिता सम्मिलन॥ ध’ कय ध्यान ब्रह्माकेँ पूछल, पूछल के करत आब निबद्ध। ई नव ग्रंथ जे आयल अछि, अछि आयल मानस पटल समक्ष॥ ब्रह्मा अति प्रसन्न भय कहल, करू प्रसन्न अहँ प्रसन्नवदनकेँ। वैह लिखि सकैत छथि पल, पल नित पल एहि ग्रंथ सकलकेँ॥ केलन्हि ऋषि ध्यान गणेशक, आग्रह कएल प्रसन्नवदनकेँ। लिपिबद्ध करू भारतकेँ देववर, जाहिने छूटल किछु एहि जगकेँ॥ कहल विनायक करब हम लिपिबद्ध ई, करू मुदा ई काज। रुकय नहि अहाँक वाणी हमर शर्त्त ई, नहि तँ रुकत ई काज॥ व्यास से स्वीकारि कहल, मुदा राखू हमरो ई बात। लिखू अनवरत हे विनायक, मुदा बूझि सभ बात॥ हँसि विनायक कहल फेर, शुरु करू ई भारत। बढ़ैत-बढ़ैत जे भेल जे, महा-महा महाभारत॥
गणेशक गति अति तीव्र, देखि व्यास कएल श्लोक जटिल।
श्लोकक भाष्य बूझि शीघ्र, विघ्नकर्ता लिखल सकल।।

वैदिक प्रार्थना
ॐ संगच्छध्वं संवदध्यं संवो, मनांसि जानताम~~
। देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते॥ समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः समानमस्तु वो मनो यथ वः सुसहासति॥

व्यास सुनाओल कंठस्थ कराओल, पुत्र शुकदेव आ’ अन्य शिष्यकेँ। देवगण सुनल नारदमुनिसँ, गंधर्व राक्षस यक्ष सुनल शुकसँ॥ व्यास शिष्य वैशंपायन, केलन्हि एकर प्रसार। कहि सुनाओल यज्ञ बिच, जे परीक्षित पुत्र जनमेजय कएल निस्तार॥ पौराणिक सूतजी रहथि, तत मध्य। करि ऋषिसभा नैमिषारण्यमे, महर्षि शौनक अध्यक्ष॥ सूतजी कएल शुरु, संहिता सतसहस्त्र। जय-भरत आ’ महाभारत, ऋषि-गणक मध्य॥



2

हस्तिनापुर सम्राट शांतुनु, गंग तट भ्रमण करि रहल। युवती बनि देवि गंगा, तट जकर छलि ठाढ़ निश्चल॥ भय अभिभूत कहल हे सुन्दरि, करु प्रेम स्वीकार हमर। पत्नी बनि करु राज, राज्य-धन-प्राण पर।। अछि समर्पण सभ अहाँ पर, किंतु अछि किछु बंधन हमर। क्यो पूछय नहि परिचय हमर, नहि रोक-टोक करय हमर कार्य पर।। प्रेम-विह्वल शांतुनु, करि स्वीकार बंधन सकल। आनल महल मानव-गंगाकेँ, समय बितल बितिते रहल॥ भेल बात विचित्र ई जे, सात पुत्र शांतुनुकेँ भेल। युवती फेकल सभकेँ गंगधारमे, राजाने किछु पुछि सकल॥ ई युवती के अछि जे, बुझि परैछ क्षण कोमल। क्षण क्रूर-क्रूरतम जे, अबोध बालक केर प्राणक हेतु विकल॥ पूछल राजन् अपन शर्त्त तोड़ि, आठम बेर अपनाकेँ रोकि नहि सकल। देलक युवती परिचय सकल, हम गंग आ’ ई आठ वसु छल॥ देलन्हि महर्षि वशिष्ठ शाप तनिका, मर्त्यलोकक जन्म लेबक। आठम पुत्रकेँ राखब हम किछु दिन, देवव्रत देब स्वरूप सेवक॥ महर्षि वशिष्ठक नन्दिनीकेँ, देखि केलक प्त्नी वसु प्रभासक।
अपन मर्त्यलोकक सखी हेतु, नन्दिनीकेँ हरण तकर परु संग॥ ऋषि ताकल गौ-देविकेँ, ज्ञान-चक्षुसँ। देलक शाप वसुगणकेँ भय-क्रोधित, कएल प्रार्थना वसुघ्राण शापित॥ हमर शाप नहि घूरि सकत परञ्च, सात वसु भय जायत मुक्त तुरन्त। प्रभासकेँ रहय परत ततय, किछु दिन धरि मर्त्यलोकक शरण॥
होयत यशस्वी ई बहुत, घुरि आयल वसुगण गंग पास। हे देवि बनू माता हमरा सभक, दिय’ मुक्ति तखन अछि आस॥ शांतुनु भय गेल विरक्त,
छूटि गेल गंगक सानिध्य। समय बीतल गेल एकदिन, तट, धारक समक्ष॥ दिव्य बालककेँ देखल तत, करि रहल केलि ततय। रोकि रहल वाणक धारसँ, गंगधारकेँ जतय॥ प्रस्तुति भेलि गंग तखन, सौंपि देल देवव्रतकेँ कहल। महर्षि वशिष्टसँ लय शिक्षा, वेद-वेदांगक निखिल॥ शास्त्र-ज्ञान शुक्रचार्य सन, शस्त्रमे परशुराम खल।

3
पाबि पुत्र तेजस्वी घुरि अयलाह शान्तनु, देवव्रतकेँ बनाय राजकुमार, दिन बितय लागल तनिक। कैक वर्ष बीतल एना, पुनि एक दिन आयल;
शान्तनु देखलन्हि जतय। यमुना तट तर अद्भुत सुवास,
आबि रहल तरुणी तनय॥
तरुणी छलि सत्यवती तनिक, सुवास छल वरदान मुनिक, परासर जिनकर नाम।
गंगा-वियोग-विराग भेल दूर, मोनमे आयल ब्याहक विचार, प्रेम-याचना केल रज्यवर। तरुणी छलि, पिता जनिक, रहथि मल्लाहक सरदार।
कहलन्हि, हे राजा जायब, पिता जदि अनुमति देताह, तखनहि हम पत्नी बनब।
केवटराज रहथि चतुर मुदा, लगेलन्हि एकटा शर्त्त जे, बनय हमर नातियेटा, हस्तिनापुरक राजा एतय।
शान्तनु ई वचन दितथि कोना, से घुरि अयलाह अपन नगर। चिन्ता घून बनि काटय लागल, शरीर-कान्ति सकल तनय॥
देवव्रत पूछल पितासँ, हे बताऊ की बनल, चिन्ताक कारण अहाँ कय, शरीरकेँ दुबरा रहल। हे पुत्र की कहू, अहँकेँ, एकटा चिन्ता हमर, की होयत जदि अहाँकेँ, होयत युद्धमे किछु, ककर आश हम करब बढ़ायत, वंश हस्तिनापुरक हमर।।

कुशाग्र देवव्रत पूछि सारथीसँ, बात सभटा बूझि गेलाह, गेलथि केवटराज लग आ ∙
राजपाट त्यागि अयलाह। केवटराज परञ्च राखल एकटा शंका, की होयत जौँ अहाँक, पुत्र जौँ छीनि लय, हमर नातिक राज्य जौँ॥

अप्रत्याशित प्रश्नक उत्तर,
अप्रत्याशित जौँ हुअय। बुझू जे इतिहास बनत, ई प्रतिज्ञा के करय। देवव्रत पितृ भक्तसँ, ई प्रतिज्ञा भेल तखन।
नहि करब हम विवाह आजन्म, गार्हस्थ्य आश्रम छोड़ि कय।
रहब आजन्म ब्रह्मचारी, छोड़ब वानप्रस्थ आश्रम, हस्तिनापुर सिंहासनक मात्र रक्षा, करब हम आजन्म।

संन्यास आश्रम सेहो छोड़ब, संतान बूझब हस्तिनापुर सिंहासनकेँ। क्यो नहि छूबि सकत तकरा, हमरा जिबैत-जीबैत जतय।
धन्य-धन्य दिगान्त बाजल, पुष्प वर्षा कएलन्हि देवतागण, भीष्म-भीष्म धन्य-धन्य, बाजि उठल लोक सभ।
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केवटराज केलन्हि विदा, सत्यवतीकेँ सानन्द कएल ई कार्य। कालांतरमे पुत्र दू, पाओल चित्रंगद आ’ विचित्रवीर्य।
भेल देहावसान शांतुनुक, चित्रंगद पओलाह राजा आसन, गति पाओल युद्ध् मध्य एक, विचित्रवीर्यकेँ भेटल शासन। तनिक दूटा रानी छलन्हि, अम्बिका ओ’ अम्बालिका। अम्बिकाक पुत्र धृतराष्ट्र रहथि, काल छिनलक आँखि जनिकर, पाण्डु रहथि अम्बालिका पुत्र, पौण्ड्र रोग ग्रसित तनिक छल।
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सत्यवती-पुत्र चित्रांगदक मृत्यु, गंधर्व-युद्धमे भेल जखन। विचित्रवीर्यकेँ हस्तिनापुर, राज्य छल भेटल तखन। छलाह छोट आयुक ओ’, से राज्य-काजक भार सभ। भीष्मकेँ भेटल सम्हारय, से उठओलन्हि तात सभटा। भेलथि विवाह-योग्य विचित्रवीर्य जखन, भीष्मकेँ होबय लगलन्हि चिंता। समाचार सुनि स्वयंबरक खबरि, कशीराजक कन्या सभक भेटल प्रसन्नता। विदा भेलाह कशी भीष्म, जतय पहुँचल छलाह सौभदेश राजा शल्व, काशीराजक ज्येष्ठ पुत्री, अम्बा छलीह अनुरक्त जनिक। अम्बा,अम्बिका,अम्बालिका, दृष्टि फेरल भीष्म दिशि। बढि गेलीह आगू तखन, भीष्म क्रोधित भय दहोदिश, ललकारिकेँ कहलन्हि तखन ओ’ समस्त राजा सुनि लिअह ई, जौँ पराजित कय सकी तौँ, स्वयंबरक भगी बनू सौँ। सभकेँ हराकए भीष्म जखन, चललाह भीष्म कशीराजक कन्याँ समेत। शाल्व रथक पाछू पड़ल आ’, ललकारि कएँ कहलक विशेष। घोर युद्ध मचि गेल तकरा, बादक ई गप्प सुनु जन। धनुष-विद्या धनी भीष्म, कएलन्हि पराजित शाल्वकेँ तखन। काशीराजक कन्यासभ कएलन्हि, प्रार्थना भीष्मसँ जखन, छोड़ि देलन्हि प्राण शल्वक, पहुँचलाह भीष्म हस्तिनापुर तुरंत। विचित्रवीर्यक व्याहक तैयारी, जखन भ’ गेल पूर्ण छल। अम्बा कहलन्हि भीष्मसँ एकांतीमे, हे गंगेय अहँ धर्मज्ञ छी। हमरा मोनमे अछि एक गोट शंका, करू अपने दूर ई। मानि लेल सौभ देश राजाकेँ, पति हम अपना हृदय-बिच। धर्मात्मा, महात्मा छी अहाँ, उद्धार करू हमर सोचि ई। भीष्म-निर्णय भेल ई जे, जाथु अम्बा शल्व लग खन। कराओल विवाह विचित्रवीर्यक, अम्बा-अम्बालिकाक संग तखन। अम्बा गेलीह शल्व लग आ’ सुनाओल सभ वृतांत सभ। मानि हृदयमे पति अहाँकेँ, कएल अनुरोध भीष्मसँ हम। भीष्म छथि पठओने अहाँ लग, करु हमरा स्वीकार अहाँ। शास्त्रोक्त विधिसँ कए विवाह, पत्नी बनाऊ हमरा अहाँ।
शाल्व छलाह वीर किंतु, कहल हे अम्बे सुनू। भीष्म हराओल लोक सभ विच, जीति लए गेल अहाँकेँ सुनू। एहि अपमानक बाद की ई, बात हमरा स्वीकार हो? ई उचित अछि जाऊ अहाँ, पुनि भीष्म दरबार ओ’। घूरि कय अम्बा गेलीह, भीष्म लग ई गप कहल। भीष्म कहल-बुझाओल विचित्रवीर्यकेँ, ओ’ ह्ठी छल नहि बुझल। कहल हे भाई ई सुनू जे, दोसराकेँ पति मानि चुकल। क्षत्रियोचित नहि होयत जौँ, हम विवाह करू तखन। अम्बा कहलन्हि भीष्मकेँ हे, गंग-पुत्र सुनू तखन। अहाँ हरि अनलहुँ जखन। विवाह करू हमरासँ तखन। ई परम कर्त्तव्य होयत, स्वयंबर जीतल छलहुँ अहीं, हमर वर्त्तमानक हेतु, अहीं जिम्मेवार छी।
भीष्म कहल, छी प्रतिज्ञ हम, कएलन्हि अनुरोध विचित्रवीर्यसँ, नहि बनल गप जखन पुनि, सुझव देल शाल्वक सुनि, शल्व नहि भेलाह तैयार किंतु। बीतल छह वर्ष हस्तिनापुर-सौभ, एनाई-जेनाईमे जखन, अम्बा भरि उठलीह प्रतिशोधसँ, भीष्मे छलाह हुनक दुर्दशाक कारण। कएलन्हि कतबा राजासँ ई आग्रह, भीष्मक विरुद्ध, परंतु नहि पाबि, कोनोटा उत्तर गेलीह शरण, युद्धदेव कार्तिकेयक। हे मोरक सवारी केनिहार, युद्धक देवता कार्तिकेय। नहि क्यो पृथ्वी पर आर, भेल भीष्म अजेय। कमल नयनी अम्बाक घोर तपस्या, केलन्हि कार्तिकेयकेँ प्रसन्न। देलन्हि नहि मौलायबला कमलक माला। कहलन्हि हे अम्बे!लियह ई शस्त्र, जकर गार पहिरायब सैह करत भीष्मकेँ नष्ट। भीष्मक भय परञ्च छल ततेक, नहि क्यो तैयार भेल पहिरय माला एक। सुनलन्हि छथि द्रुपद वीर पांचाल, सेहो तैयार नहि भेलाह पहिरय ई माल। निराश हताश लटकाय ई माला, द्रुपदक महलक द्वारि। घुरलीह अम्बा अंतमे हारि, गेलीह ब्राह्म्ण तपस्वीक शरण। सभ तपस्वी कए विचार कहलन्हि, जाऊ अहाँ परुशरामक आश्रम। क्षत्रिय-दमन छथि ओ’ देथिन्ह द्ण्ड भीष्मकेँ, जे कष्ट देलन्हि अहाँकेँ अकारण। परशुराम लग पहुँचि केलन्हि प्रार्थना, सुना कय अपन अभ्यर्थना। पुछलन्हि परशुराम, कहू की करू हम, हे काशीराज कन्या। शल्व अछि प्रिय हमर बात नहि काटत, विवाह शल्वसँ करक हेतु की छी तैयार अहाँ। अम्बा कहलन्हि,हे परशुरामजी, हम आब विवाह नहि करय चाहैत छी। अछि हमर आब ई इच्छा मात्र, करू भीष्मसँ युद्ध अहाँ। भीख माँगय छी हे तात, वध दुष्टक करू अहाँ। परशुराम कए स्वीकार ई प्रार्थना, देलन्हि भीष्मकेँ ललकारा, जितेन्द्रीय,ब्रह्मचारी छलाह दुनू, धनुर्धारी-योद्धा मध्य युद्धघोष बरु।
हारि-जीतक प्रश्न नहि छल जौँ, अनिर्णायक युद्ध बनल पुनि।
अम्बा हारि भीष्मक छल सौँ कैलाशक दिशि प्रयाण कएल तौँ, अम्बा गेलीह शम्भूक शरणमे। भए प्रसन्न भोला देलन्हि वर हर-हर, होयत पुनर्जन्म अम्ब सुनू अहँक, भीष्मक मृत्यु अहींक हाथ होयत। अम्बाक संयमक सेहो छल सीमा, नहि रुकि सकलीह तखन ओ’, लाल आँखि अग्निक समान, कूदि पड़्लीह चितामे। मृत्यु पाबि जन्म लेल तखन ओ’, कन्या बनि द्रुपदक राजमहलमे। खेल-खेलमे माला पहिरल ओ’, दय कय जखन गरामे। कार्तिकेय देखल अम्बकेँ फेर, पहिरैत अपन ई माला। द्रुपद देखल होयत ई फेर , वैर भीष्मक आयत झमेला। निकालि राजमहलसँ कन्याकेँ, विदा कएल जंगल दिशि। यादि छल सभटा कन्याकेँ, पुनर्जन्मक कथन सकल ई। कएल तपस्या पाओल पुरुष रूप, नाम धरल शिखण्डी।















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4.कथा

1.शनैः-शनैः


परम शांति आऽ कि घोर कोलाहल। आरुणि ठाकुर किछु अस्वस्थ छथि आऽ कलकत्तामे वुडलैण्ड नर्सिंग होमक समीपस्थ स्थित विशालकाय अपार्टमेंटक अपन फ्लैटमे असगरहि अध्यावसनमे लीन अपन अतीतक पुनर्विश्लेषणमे रत छथि। अशांतिक क्षण हुनका रहि-रहि कय अनायासहि यादि आबि रहल छन्हि। जखन ओऽ अपन समस्या सभ अपन हित-संबंधी सभकेँ सुना कय अपन मोनक भार कम करैत रहथि। शनैः-शनैः समस्या सभ बढ़ैते चल गेल एतेक तक कि आब दोसरकेँ सुनेलापरांत मोन आर उचटि जाइत छलन्हि। ताहि द्वारे आब ओ’ अपने तक सीमित रहय लगलाह। हित संबंधी सभ बुझय लगलाह जे आरुणि समस्यासँ रहित भय गेल छथि।
+ + + +
बच्चेसँ सपनामे भयावह चीज सभ देखाइ पड़ैत छलन्हि आरुणिकेँ। अखन धरि हुनका यादि छन्हि कोना आध-आध पहर रातिमे ओऽ घामे-पसीने भय जाइत रहथि आऽ हुनकर माता-पिता चिंतित भय बीयनि होकैत रहथि छलखिन्ह। पिताक-पिता आ’ तकर जन्मदाता के ? भगवान जौँ सभक पूर्वज तखन हुनकर पूर्वजके ? लोकसभ एहि प्रश्न सभकेँ हँसीमे उड़ा दैत छलाह, परंतु बादमे जखन आरुणि दर्शनशास्त्र पढ़लन्हि तखन हुनका पता चललन्हि जे एकर उत्तरक हेतु कतेक ऋषि-मुनि सेहो अप्पन जीवन समर्पित कय चुकल छथि मुदा ई प्रशन एखनो अनुत्तरिते अछि।
कख्ननोकेँ निन्दमे हुनका लागन्हि जे ओऽ घरक छत पर छथि आऽ नहि चाहितो शनैः-शनैः छतक बिना घेरल भाग दिशि गेल जा रहल छथि। गुरुत्वक कोनो शक्ति हुनका खीचि रहल छन्हि तावत धरि जावत ओऽ नीचाँ नहि खसि पड़ैत छथि। की ई छल कोनो प्रारब्धक दिशानिर्देश आऽकि कोनो भविष्यक दुर्घटनासँ बचबाक संदेश।

किछु दिन तकतँ आरुणि सुतबाक सही समयक पता लगबैत रहलाह परंतु शनैः-शनैः हुनका ई पता लागि गेलैन्ह जे स्वप्न आऽ निन्न एहि जीवनक दूटा एहन रहस्य अछि जे नियम विरुद्ध अछि आऽ अनुत्तरित अछि।
आऽ आरुणि पैघ भेलथि, फेर हुनकर पढ़ाइ शुरु कएल गेल- अगस्त्यक स्तोत्र- सरस्वति नमस्तुभ्यम वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भम् करिष्यामि सिद्धिर्भवतुमे सदा।
श्रीगणेषजीक अंकुश क संग गौरिशंकरक अभ्यर्थना सिद्धिस्तु। साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वसिनी उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिःपतिः सिद्धिःसाध्ये सतामस्तु प्रसदांतस्य धूर्जटेः जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला।

एहि श्लोककेँ बजैत काल प्रायः आरुणि पशुपतिःपतिःक सामवेदीय तारतम्यक बाद अनायासहि हाऽ हाऽ कऽकय जोरसँ हँसय लगैत छलाह आऽ बीचहि मे रुकि जाइत छलाह। पिता सोचलखिन्ह जे कम वयसमे पढ़ाई शुरु केलासँ आरुणिक कुर्सी पर बैसि कय माथपर हाथ राखि कय बैसबाक आदतितँ खतम होयतन्हि।सय तकक खाँत ओऽ एके बेर मे सीखि गेलाह जखन ओऽ देखलन्हि जे बीसक बाद गणनामे पशुपतिःपतिःक जेकाँ लयबद्धता छैक।
मायक एकटा गप्प हुनका पसिन्न नहीं छलन्हि। ओऽ बिचमे गप्प करैत-करैत आरुणिक बातकेँ अनठिया दैत छलथिन्ह। एकबेर मायक क्यो संगी आयल छलीह। आरुणिक कोनो बातपर माय ध्यान नहीं दय रहल छलीह। आरुणिक हाथमे भरिघरक चाभीक झाबा छलन्हि तेँ ओऽ कहखिन्ह जे जौँ हुनकर बात नहीं सुनल जयतन्हि तँ ओऽ झाबाकेँ सोझाँअक डबरामे फेंकि देताह। माय सोचलखिन्ह जे हाँ-हाँ केलापर झाबा फेकियेटा देताह तैँ आर अनठिया देलखिन्ह। परिणाम दुनु तरहेँ एके हेबाक छल। चाभी बहुत खोज केलो पर नहि भेटल। एखनो घरक सभ अलमीरा आदिक चाभी डुप्लीकेट अछि। एतेक दिनक बाद ई सभ सोचि आरुणिक मुँहपर अनायासहि मुस्की आबि गेलन्हि।
+ + + + + +

सिद्धांतवादी पिताकेँ नोकरीमे किछु ने किछु दिक्कत होइते रहैत छलन्हि ताहि द्वारे ओऽ आरुणि जल्दी सँ जल्दी पैघ देखय चाहैत छलाह। तेसर सँ सोझे पाँचम वर्गमे फनबा देल गेलन्हि।फेर भेल ई जे होलीक छुट्टीमे नियमानुसार सभ गोटे गाम गेल छलाह। नियम ई छल जे होली आऽ दुर्गापूजामे सभ बेर गाम जयबाक नियम जेकाँ छलैक। पिताजी सभकेँ छोड़ि कय वापिस भय गेलाह। फेर दरमाहा बन्द भय गेल छलन्हि प्राय़ःसे गाम चिट्ठी आयल जे आब सभकेँ गामहि मे रहय पड़तन्हि। मायतँ कानय लगलीह मुदा आरुणि खूब प्रसन्न भेलाह। मुदा सरकारी स्कूलमे ओहि समय वर्गक आगाँमे (नवीन) लगाकय एक वर्ग कममे लिखबाक गलत परम्परा नवीन शिक्षा नीतिक आलोकमे लेल गेल छलैक कारण नवीन नीतिमे आर किछुओ नवीन नहि छल। पिताजीकेँ जखन एहि बातक पता चललन्हि तँ ओऽ तमसायलो छलाह आऽ एकर प्रतिकार स्वरूप पाँचम क्लासक बाद जखन ओऽ सभ शहर वापस अयलाह तँ आरुणिकेँ फेर एक वर्ग तरपाकय सोझे छठम वर्गक बदलामे सातम वर्गमे नाम लिखवा देलन्हि। छठम वर्गक विज्ञान आऽ गणितक पढ़ाइ पाँचमे वर्गमे कय लेबाक पिताक निर्देशक उद्देश्यक जानकारी आरिणिकेँ तखन जाकय भेलन्हि जखन प्रवेश-परीक्षामे यैह दुनु विषय पूछल गेल आऽ आरुणि छठा आऽ सातम दुनु वर्गक प्रवेश परीक्षामे बैसलाह आऽ सफल भेलाह। बहुत दिन बाद तक जखन क्यो आनो संदर्भमे छठम वर्गक चर्चा करैत छल तँ आरुणिकेँ किछु अनभिज्ञताक बोध होइत छलन्हि।

गामक प्रवासमे एकबेर आरुणि पिताकेँ चिट्ठी लिखने छलाह कारण हुनकर जुत्ता शहरेमे छूटि गेल छलन्हि। जुत्तातँ आबिये गेलन्हि संगहि चिट्ठीक तीन टा शाब्दिक गल्तीक विवरण सेहो आयल आऽ ईहो मोन पाड़ल गेल जे एकबेर दौरिकय गणितक प्रश्न हल करबाक प्रतियोगितामे तीनक बदला हड़बड़ीमे दुइयेटा प्रश्नकेँ हल कऽकय ओऽ कोना कॉपी जमा कय देने छलाह।
हुनकर स्वभावमे क्रोधक प्रवेश कखन भेलन्हि से तँ हुनको नहि बुझबामे अयलन्हि मुदा पिताजी हुनका क्रोधक समान कोनो दोसर रिपु नहि एहि संस्कृत श्लोकक दस बेर पाठ करबाक निर्देश देने छलखिन्ह- से धरि मोन छन्हि। एकटा घटना सेहो भेल छल जाहिमे स्कूलमे एकटा बच्चा झगड़ाक मध्य सिलेटसँ हुनकर माथ फोड़ि देने छलन्हि। आरुणि सेहो सिलेट उठेलथि मुदा ई सोचि जे ओकर माथ फूटि जयतैक हाथ रोकि लेने छलाह। एकर परिणामस्वरूप हुनकर पिता दू गोट काज केलन्हि। एकतँ हुनकर सिलेटकेँ बदलि कय लोहाक बदला लकड़ीक कोरबला सिलेट देलखिन्ह जकर कोनो ने कोनो भागक लकड़ी खुजि जाइत छलैक आऽ दोसर जे कॉलोनीमे समकक्ष अधिकारीक बैठक बजाकय कॉलोनीअहिमे स्कूल खोलि देल गेल जतय आरुणि पढ़य लगलाह। बादमे क्यो पंडित जखन वाल्मीकि रामायणक सुन्दरकाण्डक पाठ तँ क्यो ज्योतिष कँगुरिया आँगुरमे मोती आऽ कि मूनस्टोन पहिरबाक सलाह अही उद्देश्यक हेतु देबय लगैत छलाहतँ ओऽ संस्कृत श्लोक हुनका मोन पड़ि जाइत छलन्हि।

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बाल संस्कारक अंतर्गत सहायता माँगयमे आऽ समझौता करयमे अखनो हुनका असहजता अनुभव होइत छन्हि। मुदा हारि आऽ जीत दुनुकेँ बराबड़ बूझि युद्ध करबाक विश्वास हुनकामे नहीं रहलन्हि विशेषकरिके पिताक मृत्युक बाद। आऽ विजय हुनकर लक्ष्य बनैत गेलन्हि शनैः-शनैः। जकर ओऽ जी-जानसँ मदति कएलन्हि सेहो समयपर हुनकर संग देलकन्हि। समय-समय पर केल गेल समझौता सभ हुनकर संघर्षकेँ कम केलकन्हि। जतेकसँ दोस्तियारी छलैन्ह तकरे निभेनाइ मुश्किल भय रहल छलैन्ह। फेरतँ नव शहरमेँ नव संगीक हेतु स्थान नहि बचल।

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महत्वाकांक्षाक अंत नहि आऽ जीवन जीबाक कला सभक अद्वितीय अछि। आरुणि ई नाम आब कखनो-कखनो घरमे सुनाइ पड़ैत छल। कलकत्ता शहर प्रतिभाक पूजा करैत अछि। मुदा व्यवसायी होयबामे एकटा बाधा छल-अंग्रेजीक संग बाङलाक ज्ञान जे ओऽ बाट चलैत सीखि गेलाह।व्यस्त जीवनमे बीमारीक स्थितिअहिमे हुनका आराम भेटैत छलैन्ह। बीमारियेमे सोचबाक आदति मोन पड़ैत छलैन्ह। आऽ ई फ्लैट किनलाक बाद मायकेँ सेहो बजा लेलखिन्ह। ओना हुनका बुझल छलन्हि जे माय एहि सभसँ प्रभावित नहि होयतीह। कारण ओऽ अधिकारी प्त्नी छलीह आऽ पुत्रकेँसेहो ओहि रूपमे देखबाक कामना छलन्हि। ई नव शहर हुनक पुत्रक व्यक्तित्वमे सैद्धांतिकताक स्थानपर प्रायोगिकताक प्रतिशतता बढ़ा देने छलन्हि। आब समयाभावक कारण स्वास्थ्य खराब भेलेपरांत सोचबोक समय पुत्रकेँ भेटैत छलन्हि।
व्यसायमे सफलता प्राप्तिक पूर्व आरुणि एकटा कागज प्रिंटिंग प्रेसमे काज केनाइ शुरु केलन्हि। अपन मित्रवत प्रिंटिंग प्रेस मालिकसँ दरमाहाक बदला पर्सेंटेज पर काज करबाक आग्रह केलन्हि। ऑर्डर आनि बाइंडिंग आऽ प्रिंटिंग करबाबथि आऽ आस्ते-आस्ते अपन एकटा प्रिंटिंग प्रेस लगओलथि। किछु गोटे हिनका अहिठामसँ छपाइ करबाकय ग्राहककेँ बेचथि। हुनका जखन एहि बातक पता चललन्हि तँ ओऽ एकटा चलाकी केलथि जे सभ बंडलमे अपन प्रेसक कैलेंडर धऽ देलखिन्ह। जखन अंतिम उपभोक्ताकेँ पता चललैक जे ओ’ सभ अनावश्यके दलालक माध्यमसँ समान कीनि रहल छलाह तँ ओऽ सभ सोझे आरुणि प्रिंटिंग प्रेस केँ ऑर्डर देबय लागल। आरुणिकेँ घरमे अपन नाम कखनहुँ काले सुनि पड़ैन्ह। किताबक ऊपर छपल हुनकर नाम तँ कोनो कंपनीक छलैक- आऽ ओऽ ओकरासँ निकटता अनुभव नहि कऽ पाबि सकैत छलाह। संसारक कुचालि हुनकर पिताक अंत केने छलन्हि मुदा आरुणि व्यावसायिक युद्ध मस्तिष्कसँ लड़ैत आऽ जितैत गेलाह।
मायक एलाक बाद आरुणि ई नाम बीसो बेर दिन भरिमे सुनाइ पड़य लागल। ओकर संगी लोकनि उपरोक्त घटना सभकेँ जखन आरुणिक मायकेँ सुनबैत रहैत छलाह ई सोचि जे ओऽ अपन मित्रक बड़ाइ कय रहल छलाह तँ आरुणि असहजताक अनुभव करय लगैत छलाह आऽ गप्पकेँ दोसर दिशि मोड़ि दैत छलाह।
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हुनकर मायतँ जेना हुनक विवाहक हेतु आयल छलीह। माय जखन जिद्द ठानलन्हि तँ हुनका आश्चर्य भेलन्हि कारण घरमे जिद्दक एकाधिकारतँ हुनकेटा छलन्हि। मुदा माय बूझि गेल छलीहजे हुनकर बेटा प्रक्टिकल भय गेल छन्हि आऽ जिद्द केनाइ बिसरि गेल छन्हि। आरुणि सोचलन्हि जे छोटमे बड्ड जिद्द पूरा करबओने छथि तेँ आब पूरा कर्बाक समय आयल अछि। विवाह फेर बच्चा। माय अपन नैतमे पतिक रूप देखलैन्ह। पतिक मृत्यु बेटाकेँ प्रैक्टिकल बना देने छल मुदा आब ई नहीं होयत। कजे बेटा नहि कय सकल से आब नैत करत। नैतक नाममे बेटा आऽ पति दुहुक नामक समावेश केलन्हि-जयकलित आरुणि। फेर पढ़ाइ शुरु- सिद्धरस्तु-श्री गणेशजीक अंकुश आऽ वैह उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिःपतिः। हुनकर बेटाकेँ पेशंट पढ़ेलखिन्ह ओऽ तँ घर सम्हारैत छलीह। आब पुतोहु घर सम्हारलैन्ह, बेटाकेँ तँ फुरसतिये नहि। आब बाऽ पढेतीह नैतकेँ।
उतपत्स्येत हिमम कोऽपि समानधर्मा कालोह्यम निरवधिर्विपुला च पृथ्वी।
पृथ्वी विशाल अछि आऽ काल निस्सीम,अनंत, एहि हेतु विश्वास अछि जे आइ नहीं तँ काल्हि क्यो ने क्यो हमर प्रयासकेँ सार्थक बनायत।

आरुणि अपनाकेँ अपन मायसँ दूर अनुभव केलन्हि, किछु अस्वस्थ सेहो छथि आऽ वुडलैण्ड नर्सिंग होमक समीपस्थ स्थित विशालकाय अपार्टमेंटक अपन फ्लैटमे असगरहि अध्यावसनमे लीन अपन अतीतक पुनर्विश्लेषणमे रत छथि।

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6.पद्य


1.इच्छा-मृत्यु


हे भीष्म अहाँक कष्टक बखान, सुनल छल खाइत पान-मखान, मुदा बुझलहुँ नहि ई बात , ईच्छा-मृत्यु किए कै तात!
भीषणताक’ कथा नहि थोड़, भूख,अत्यचार गरीब पर जोड़, हरिजन शोलकन्ह थोड़हि-थोड़,
केलन्हि भयावह क्षत्रिय तोर, घोषनि-ब्राह्मण सभ मोर, केलन्हि रटन्ता विद्या तोर। एक युधिष्ठिरपर छोरिकय राज, छोड़ल अ’हाँ निसास।
हमर युधिष्ठिर पाँच सय चालीस, पहिरथि खादी-रेशमी खालिस, बुझल भीष्म हम आब ई बात, पेलहुँ इच्छा-मृत्युएँ अहाँ निजात।





2.वार्ड नं 29 बेड नं. 32 सँ
सफदरजंग हॉस्पीटलसँ, आइ देखल हम मीत, डॉक्टर-पेशेंट फ्री इलाजक, दंभ भरइ छथि,हा’ इष्ट। साबुन-तेल सभपर टैक्स, भरइ छथि सभ वासी, लैटरीन गंदा अछि पुछने, नर्स बिगरि देखबइ छथि अपोलोक पगपाती। जाऊ अपोलो गंदगी जौँ लागय, टैक्सक बात फिनान्स मिनिस्टरेकेँ जाऊ बूझाबय।


























3.ट्रेन छल लेट

जायब दिल्ली कोना, अस्पतालक भर्ती कक्ष, ट्रेन अछि लेट, डॉक्टर अछि व्यस्त। पहुँचलहुँ दिल्ली, दिल्ली दूर अस्त, दिल्लीक सरकारी डॉक्टर, आइ,काल्हि,परसू,भेलहुँ पस्त। युग बदलल,गणतंत्र आयल, मुदा ट्रेन दिल्ली जायबला, आ’ डॉक्टर दूनू फुर्र, दिल्ली अखनहुँ अछि दूर।




















4.सूर्य-नमस्कार

ॐ मित्राय नमः।।1॥
आँखि करताह ठीक मह, हिनकर लाली’ कत्था-पान, दाँतक त’रमे जखन चबान, हनूमानक सूर्यक ग्रहण पड़ल मोन, लाली देखल चढ़िकय मचान। सूर्य-ग्रहणक वर्ण अछि,नहि ई राहुक ग्रास, विज्ञानक छैक सभ बात,कहलन्हि कुलदीप काक। पृथ्वी घुमैछ पश्चिम सँ पूर्व,आऽ, सूर्य केँ घूमबैत अछि पूर्व सँ पश्चिम। मुदा कहू जे गर्मीमे उत्तर-पूर्व आऽ
जाड़मे उत्तर-पश्चिम कियै छथि सूर्य।

की नहीं चलैत छथि अपन अक्ष, ग्रहणक हेतु राहुक नहि काज, चन्द्रमा बीचमे किरणक करै छथि ग्रास। सभ गणना कय ठामे देल, बूड़ि पंडित केलक अपवित्रक खेल।
खेल-खेलमे देश गेल पाछू, आबहुतँ सभ आगू ताकू।
पुनि-पुनि करि दण्ड हम देल, स्थिरचित्त नेत्र ई सभक लेल; राहू-केतु सभक दिन आब गेल।
गंगामे गोदावरी तीरथमे प्रयाग, धन्यभाग कौशल्यामायकेँ राम लेल अवतार। स्नानक बादक मंत्रक ई भाग, खोलत भरत प्रगति-एकताक द्वार।
शक्ति देहु हे भानु मामहः; ॐ रवये नमः।।2॥

मेरुदण्ड-पग होयत सबल, सूर्य-नमस्कारक परञ्च पाठ प्रबल। सूर्यवंशीयोक अहह अभाग, कर्ण-तर्पणक नहि करू बात। जाति-कर्मक ज्ञानक ओर, छल ओतय, नहि किएक पकड़ल। राहू-ग्रासक बातक मर्म, अहह; ॐ सूर्याय नमः॥3॥
सात अश्व-रथक उमंग, रथमूसल अजातशत्रूक संग, महाशिलाकंटकक जोड़, केलक मगध काज नहि थोड़। जर्मनी-इटलीक एकताक प्रयास, दुइ सहस्त्राब्दी पहिनहि काश, रश्मिक सात-अश्वक रहस्य, बूझल मगध ताहिये पहर। छोड़ल भाव पकड़लहूँ अर्थ, हाÝ भरतपुत्र केलहुँ अनर्थ।
भरु शक्ति हे सूर्य अहाँ; ॐ भानवे नमः।

श्वासक-कुंभक केलहूँ अभ्यास, यादि पड़ल कुन्तीक अनायास। सूर्यमेल सुफल भऽ गेल, कवच-कुण्डल भेटल, सेहो इन्द्रहि संगे गेल। एकलव्य पहिनहि द्रोण केलन्हि फेल, अर्जुन, कर्ण-विजय कय लेल? अखनहुँ ई प्रतियोगितामे अछि भेल, प्रतिभाक रूप छय विकृत कैल, अखनहूँ धरि की तू ई सहबह !! ॐ खगाय नमः॥5॥
सूर्या आश्विन गमनमे फेर, अछि परस्पर द्वंदक देरि, गुरु बृहस्पति ठाढ़े-ठाढ़ , करतथि ई सभक उद्धार।
अखनहुँ गुरु छथि गूड़, शूल दैत जोड़ पर हमारा ऋणी, कहैत जे बनओताह हमरा चिन्नी, रहताह स्वयं कुसियारक गूड़, गुरुक-गुरुत्व उष्ण-सुड्डाह हह, ॐ पूष्णे नमः॥6॥
जकर अंकसँ निकलल विश्व
विश्वक प्राण, आऽ तकर श्वासोच्छवास, गुरुत्वक खेलकेँ बनेलहूँ अहाँ, काछुक, सहस्त्रनागक फनि जानि कि-की? एकटा रहस्य आर गहिरायल, भरत-पुत्र गेल हेरायल।
तकर ध्यान हेयास्तदवृत्तयः; ॐ हिरण्यगर्भाय नमः॥7।।
सूर्यकिरण पसरि छय गेल, कतेक रहस्य बिला अछि गेल, तिमिरक धुँध भेल अछि कातर, मुदा ई की अद्भुत भेल। रात्रि-प्रहर देखलहुँ सप्त-ऋषिगण, दिनमे सभ-किछु स्वच्छ अछि भेल, मुदा नहीं तरेगणक लेल ई भेल। सत्यक परत तहियायल बनल सूर्यकिरण पसरि छय गेल, कतेक रहस्य बिला अछि गेल, तिमिरक धुँध भेल अछि कातर, मुदा ई की अद्भुत भेल। रात्रि-प्रहर देखलहुँ सप्त-ऋषिगण, दिनमे सभ-किछु स्वच्छ अछि भेल, मुदा नहीं तरेगणक लेल ई भेल। सत्यक परत तहियायल बनल खेल, हाऽ विश्ववासी शब्दक ई मेल, अहाँक दर्शनक स्तंभ किए भेल। ते व्यक्तसूक्ष्मा गुणात्मानः। ॐ मरीच्ये नमः॥8।।
अहँक तेजमे हे पतंग प्रभाकर, सागराम्बरा अछि जे नहायल, सौर ऊर्जाक नव-सिद्धांत, नहीं की देलक कनियोटा आस, मेघा-मास नहि अहाँक अछि जोड़, तखन मनुक्खक बात की छोड़। पढ़ल ग्रंथ ब्रह्मांडक बात, तरणि सहस्त्र एकरा पार, अंशुमाली तपनसँ पैघगर गाल। तकर ऊष्णता की हम सहब;
ॐ आदित्याय नमः॥9॥

पिताक बात अछि आयल मोन, बिना सावित्रीक गायत्रीक की मोल, दुइ वस्तुक मेल कखनहुँ नीक, कहुखन परिणाम भेल विपरीत। कटहर-कोआ खेलाह तात, देलन्हि ऊपर पानक पात। पेट फूलल भेल भिसिण्ड, परल मोन रसायन-शास्त्र। तीव्रसंवेगानामासन्नः; ॐ सवित्रे नमः॥10॥

मोन पड़ल चोरी केर बात, चोरक आँखिमे आकक पात, पातक दूध पड़ला संता चोर, सोचलक आब आँखि गेल छोड़ि। कहलक मोने बुद-बुद्काय, करु तेल नहि देब मोर भाय।अर्कक दूधक संग करु तेल, बना देत सूरदासक चेल। गौवाँ केलन्हि बुरबकी एहि बेर, चोरक बुनल जालक फेर। तेल ढ़ारि पठौलन्हि चोरकेँ गाम।
मुदा रसायन भेल विपरीत, चोरक आँखि बचि गेल हे मीत। गौआँक काजक हम लेब नहि पक्ष, बस सुनायल रटन्त विद्याक विपक्ष। ध्यान धरह आ’ ई कहह; ॐ अर्काय नमः॥11॥
पोथीक भाष्य आ’ भाष्यक भाष्य, अलंकारक जाल-जंजाल, विज्ञानक पाखंड, ऋतम्भरा बुद्धि कतय छल गेल। योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः; ॐ भास्कराय नमः॥12।।
करु स्वीकार हमर ई कविता, हे दुःखमोचन हे, हे सविता। दूर करू विकार संपूर्ण; केलहुँ सूर्य-नमस्कार हम पूर्ण।













5.सनT सत्तासीक बाढ़ि

कमलामहारानीकेँ पार कएल पैरे, बलानकेँ मुदा नाउक सहारे। मुदा आइ ई की भेल बात, दुनू छ’हरक बीच ई पानि, झझा देत किछु कालमे लियऽ मानि।
चरित्रक ई परिवर्तन देलक डराय,
नव विज्ञानक बात सुनाय। बाँध-बाँधि सकत प्रकृति की? भीषण भेल आर अछि ई। हृदयमे देलक भयक अवतार, देखल छल हम गामक बात। बड़का क’लम आ’ फुलवारीमे, बड़का बाहा देल छल गेल; पानिक निकासी होइत छल खेल। नव विज्ञानी ई की केलथि, बाहा सभटा बन्न भऽ गेल। फाटक लागल छहरक भीतर, बालु मूँहकेँ बन्न कय देल। एक पेड़िया पर छलहुँ चलल हम, आरिये-आरिये, देखल रुक्ष। पहिने छल अरिया दुर्भिक्ष, आब दुर्भिक्ष अछि छुच्छ। सिल्ली, नीलगाय सभटा सुन्न, उपनयनमे शाही काँट अनुपलब्ध। जूड़िशीतलक भोगक छल राखल, गाछक नीचाँ सप्ताह बीतल। नहि क्यो वन्यप्राणी आयल खाय, चुट्टीक पाँत पसरायल जाय।
छहरपर ठाढ़ अभियन्ताक गप, छलहुँ सुनैत हम निर्लिप्त। मुदा जाहि धारकेँ कएल पैर पार, तकर रूप अछि ई विस्तार। नवविज्ञानिक चरित्रानुवाद होयत एहन नहि छल हम जानल, मुदा देने छल ओकरा दुत्कार, कुसियारक किछु गाछ,पानिक बीचमे ठाढ़। माटिक रंगक पानि,आ’ हरियर कचोड़ गाछ, छहरक ऊपरसँ झझायल पानि, लागल काटय छहरकेँ धारक-धार। ठाम-ठाम क़टल छल छहर, ऊपरसँ बुन्नी परि रहल। सभटा धान-चारु,भीतक कोठी, टूटि खसल,पानिक भेल ग्रास। हेलिकॉप्टरसँ खसल चूड़ा-गूड़, जतय नहि आयल छल बाढ़ि, किएकतँ पानिमे खसाकय होयत बर्बाद। हेलीकॉप्टरक नीचाँ दौड़ैत छल भीड़, भूखल पेट, युवा आ’ वृद्ध।
ओ’ बूढ़ खा’ रहल छथि चूड़ा-गूड़, बेटा-पुतोहुक शोक की करि सकत पेटक क्षुधा दूर?

एकटा बी.डी.ओ.क बेटा छल मित्र, कहलक ई सरकार अछि क्षुद्र, ओकरा पिताकेँ शंटिंग केलक पोस्टिंग, गिरीडीह सँ झंझारपुरक डिमोशन, कनिंग। मुदा भाग्यक प्रारब्ध अछि जोड़, आयल बाढ़ि पोस्टिंग भेल फिट।
सोचलहुँ जे हमरेटा प्रारब्ध अछि नीच, शनियो नीच, सरस्वती मँगेतथि की भीख? पहुँचलहुँ गाम, पप्पू भाइक मोन छोट, विकासक रूपरेखा, जल-छाजन,निकासी..,...
बात पर बात फेर सरकारक घोषणा, बाढ़ि राहत, एक-एक बोरा अनाज, सभ बोरामे पंद्रह किलो निकाललथि ब्लॉकक कर्मचारी।
बूरि छी पप्पू भाई अहूँ, मँगनीक बरदक गनैत छी दाँत, पिछला बेर ईहो नहीं प्राप्त। हप्ता दस दिनक बादक बात, क्यो गेल बंबई,क्यो धेलक दिल्लीक बाट; गाममे स्त्री,वृद्ध आ’ बच्चा, बंबईमे तँ तरकारी बेचब,बोझो उठायब; सभ क्यो केलक ई प्रण, मायक स्वप्न अछि कोठाक होय घर, अगिलहीक बाद फूस आ’ खपड़ा, पुनः बनायल बखाड़ी जखन भेल बखड़ा।
भने भसल बाढ़िमे भीत, बनायब कोठाक घर हे मीत। खसल लागल ईंटा गाममे, कोठा-कोठामे भेल ठाम-ठाममे। पुरनका कोनटा सभ गेल हेराय, जतय हेरयबाक नुक्का-छिप्पी खेलायल ह’म भाय। आब सुनु सरकारक खटरास, आर्थिक स्थिति सुधारल ह’म मेहथमे क’ खास। आदर्श ग्राम प्रखंडक एकरा बनाओल, कहैत छी जे ह’म बंबई दिल्लीमे कमाओल,
सुनु तखन ई बात, जौं रहैत अस्थिर सरकार, तँ रहैत नहीं दिल्ली नहि बम्मई, विजयनहरम साम्राज्यक हाल, पुरातात्विककेँ अछि बूझल ई बात। धन्यभाग ई मनाऊ, हमरा जितबिते रहू हे दाऊ। प्रगति-परिश्रम अहाँ करू, हमर समस्यासँ दूर रहू। बाढ़ि आयल सत्तासीमे, तबाही देखलहूँ,मुदा कहैत छी हम, देखू आबाजाहीकेँ।

धन्यभाग हे नेता भाई, अहीसँ तँ मनोरंजन होइत अछि, मेला-ठेला खतम भय गेल, हुक्कालोली भेल दिवाली, आ’ जूड़िशीतलक थाल-कादो-गर्दा भेल होली। तखन अहूँक बात सुनने दोष नहि , कमायलेल हमहूतँ दिल्ली-बंबई आयल छी, कमसँ कम अहाँक ई बड़कपन, जे गामकेँ नहि छोड़ल, मनोरंजनो करैत छी,कमाइतो छी,खाइतो छी। आ’ दिल्ली बंबइ सेहो घुमैत छी।





































6. महाबलीपुरममे
असीम समुद्रक कातक दृश्य, हृदय भेल उमंगसँ पूरित। सूर्य-मंदिर पांडव-रथ संग, आकश-द्वीपक दर्शन कयल हम। नूनगर पानि जखन मुँह गेल, भेलहुँ आश्चर्यित,गेलहुँ हमारा हेल। लहरिक दीवारिसँ हमारा टकराय, अंग-अंग सिहरि-सिहराय। देखल सुनल समुद्रक बात, बिसरल मन-तन लेलहुँ निसास। सुनेलक ‘मणि’ गाइड ई बात, एलथि विदेशी खोललथि ई सत्य, पल्लव वंशक ई छल देन, भारतवसी बिसरल तनि भेर। मोन पडल अंकोरवाटक मंदिर, राजा खतम भेल बिसरल जन,हरि-हरि। टूटल इतिहासक तार जखन, स्वाति भेल ह्रास अखन; कास्पियन सागरक पानिक भीतरक मंदिर, भारतीय व्यापारीक द्वारा निर्मित।
आब एखन अछि हम्मर ई हाल, गामक बोरिंग पम्पसेट अमेरिकन इंजीनियरक खैरात। छोडू भसियेलहुँ कतय अहाँ फेर, प्रीति,पत्नी,हँसि-हँसि भेलथि भेड़।



7.स्मृति-भय
शहरक नागरिक कोलाहल्मे, बिसरि गेलहुँ कतेक रास स्मृति, आ’ एकरा संग लागल भय, भयाक्रांत शिष्यत्व-समाजीकरणक। समयाभाव,आ’कि फूसियाहिंक व्यस्तता, स्मृति भय आ’कि हारि मानब, समस्यासँ,आ’ भय जायब, स्मृतिसँ दूर,भयसँ दूर, सामाजिकरणसँ दूर-खाँटी पारिवारिक।
मुदा फेर भेटल अछि समय,युगक बाद, बच्चा नहि,भ’ गेलहुँ पैघ; फेरसँ उठेलहुँ करचीक कलम, लिखबाक हेतु लिखना,मुदा दवातमे सुखायल अछि रोशनाइ, युग बीतल,स्मृति बिसरल,भेलहुँ एकाकी।
सहस्त्रबाढ़नि जेकाँ दानवाकार, घटनाक्रमक जंजाल,फूलि गेल साँस,
हड़बड़ाक’ उठलहुँ हम,आबि गेल हँसी, स्वप्नानुशासन,लट्पटाकेँ खसलहुँ नहि,धपाक; भ’ गेलहुँ अछि पैघ।
बच्चामे कहाँ छल स्वप्नानुशासन, खसैत छलहुँ आ’ उठैत छलहुँ, शोनितसँ शोनितामे भेल, उठिकय होइत घामे-पसीने नहायल, स्मृति-भयक छोड़ नहि भेटल, ब्रह्मांडक कोलाहल, गुरुत्वसँ बान्हल, चक्कर कटैत,करोड़क-करोड़मील दूर सूर्य, आ’ तकर पार कैकटा सूर्य। के छी सभक कर्ता-धर्ता, आ’ जौं अछि क्यो,त’ ओकर
निर्माता अछि के’, ओह! नहि भेटल छोड़। लेलहुँ निर्णय पढ़िकेँ दर्शन, नहि करब चिन्तन,तोड़ल कलम, करची आ’ दवात।
के छी ई सहस्त्रबाढ़नि, घूमि रहल अछि एकटा परिधिमे,
शापित दानव आकि कोनो ऋषि, ताकैत छोड़ समस्याक, आ’ समस्यातँ वैह, के ककर निर्माता आ’ तकर कतय अंतिम छोड़, के ककड़ स्वामी आ’ सभक स्वामी के? आ’ तकरो के अछि स्वामी!
भेटल स्वप्नानुशासन,टूटल शब्दानुशासन, तकबाक अछि समाधान, फेर गेलहुँ स्वप्नमे लटपटाय, खसब नहि धपाक,तकबाक अछि छोड़।
शंका-समाधान ल’ग,
डगमग होमय लागल अपना पर विश्वास।
जेना कोनो भय,कोनो अनिष्ट, बढ़ा देलक छतीक धरधरी, आ’ कि नेनत्वक पुनरावृत्ति! जन्म-जन्मांतरक रहस्य,आत्माक डोरी? आ’ कि किण्वन आ’ विज्ञान केलक सृष्टिक निर्माण!
पीयूष आ’ विषक संकल्पना, स्वाद तीत,कषाय,क्षार,अम्ल कटु की मधुर! खाली बोनमे उठैत स्वर, षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद! खोजमे निकलि गेलथि अत्रि, अंगिरा, मरीचि, संग लेने पुलऋतु,पुलस्त्य आ’ वशिष्ठ। प्राप्त करबालेल अष्टसिद्धि अण्मिक, महिमाक, गरिमाक, लघिमाक, प्राप्तिक, प्राकाम्यक, ईशित्व आकि वशित्व, सप्तऋषिक अष्टसिद्धि। नौ निधिक खोज-पद्म,महापद्म,शंख,मकर, कच्छप, मुकुन्द,कुन्द, नील आ’ खर्व, बनल आधार दशावतारक। मत्स्यावतार बचेलन्हि वेद, सप्तर्षिकेँ, आ’ संगे मनुक परिवार। कूर्मावतार संग मंदार-मेरु आ’ वासुक व्याल, आनल सुधा-भंडार। वाराहावतार आनल पृथ्वीकेँ बाहर, चारि अंबुनिधिक कठोर छल जे पाश, मारल हिरण्याक्ष।
नरसिंह भगवान बचाओल प्रह्लाद, मारिकय हिरण्यकश्यप,
वामन मारल बालि नापल, दू पगमे पृथ्वी आ’ तेसरमे दैत्यराज। परशुराम, राम आ’ कृष्ण; केलन्हि असुरक संहार, आ’ बुद्धि बदललन्हि तकर विचार। तैं की जे हुनक प्रतिमा, खसौलक देवदत्तक संतान। छिः।क्यो रोकि नहि सकल बामियान। नहि कल्कि नहि मैत्रेय, जल्दीसँ आऊ श्वेत-सैंधव सवारि, चौदह भुवन आ’ तेरह विश्वक, अनबा युग-कलधौत। अर्णवक कोलाहलमे जाय छल, नेनत्व डराय।
मुदा अखन विज्ञान टोकलक मोन, ई तँ अछि किण्वनक सिद्धांत। दशावतारे तँ छथि, उत्पत्तिक आधुनिक सिद्धांत। मत्स्य, कूर्म, तखन वाराह, फेर नरसिंह, तखन वामन। एकसँ दोसर कड़ी मनुष्यक रंग-रूपक, ताकय लेल छल निकलल। दऽ देलन्हि अवतारक नाम, भरत-तनय रोकलन्हि वैज्ञानिक सोच, कड़ी गेल टूटि, ताकयमे कल्कि, ओ’ ताहि द्वारेतँ नहीं एलाह मैत्रेय। लागि रहल अछि भेटल सूत्रक ओर आर, फूसिये छलहुँ डरायल करब षोडषोपचार।
वेद, पुराण, महाभारत,रामायण,अर्थशास्त्र ओ’, आर्यभट्टीय,लीलावती, भामती,राजनीति,गणित,भौतिकी केर समग्र चरित्र। कर्मक शिक्षा गेल ऊधियाय, बिहारिमे अंधविश्वासक। दर्शन भेल जतय अनुत्तरित, आ’ विज्ञान देलक किछु समाधान, तँ पकरब छोर एकर गुरुवर, जे केलक समस्या दूर। एकर परिधि भने अछि छोट,यदि परिधि करब पैघ, तँ फेर बदलताह दर्शनक कांट्रेक्टर, दर्शनकेँ धर्ममे आ’ धर्मकेँ नरक-स्वर्गक प्रकार-प्रकारंतरमे।

भौतिकी आ’ एस्ट्रोनोमीकेँ बनेलथि एस्ट्रॉलोजी
विज्ञान बनल अंधविश्वास।

जखन नेति-नेति बनत उत्तर। तखन भने रहय दियौक प्रश्ने अनुत्तरित।
सभ गेलथि आगू, मुदा भरत-तनय छथि पाछू। लीलावतीयोमे,भानुमतीयोमे कोना तकताह जातिगत भेद, एकलव्यक प्रशंसामे व्यासजीक लेख मुदा कार्य नहि क्यो बढ़ेलक आगू। सहस्त्राब्दीक अंतराल देलक जातिगत करताल। विज्ञान आ’ कला,भूख आ’ अन्न; भेलाह जातिगत छोड़ताह की स्वाछन्न। यादि पड़ल गामक भोज,ब्राह्मण आ’ शोलहकन्हक फराक पाँति, पहिल पाँतिमे खाजा-लड्डू परसन पर परसन, दोसर पाँतिमे एक्के बेर देल। रोकल कला-विज्ञानक भागीरथीक धार, भेटल राहूक ग्रास। यादि पड़ैछ पिताक श्राद्धकर्म,भरि दिन कंटाहा ब्राह्मणक अत्याचार, आ’ साँझमे गरुड़ पुराणक मारि।
सौर-विज्ञानक रूपांतर आ’ ग्रहणक कलन, दक्षिणाक हेतु भेल कलुषित। रक्षा-विज्ञानक रामायणक पाठ, कखन सिखेलक भीरुताक अध्यात्म। ब्यास्जीक कर्ण-एकलव्य-कृष्णक पाठ सामाजिक समरसताक; अखनहु धरि अछि जीवंत, नहीं भेल खतम; दू-सहस्त्राब्दी पहिनेक उदारवादी सोच; सुखायल किएक विद्या,सरस्वती-धार जेकाँ भेल अदिन;
तखनहि जखन विद्या-देवी छोड़लन्हि, सुखा गेलीह बिनपानिक बिन बुद्धिक। फेर अओतीह कि घुरि कए बदलि भेष, एतय, हम्मर भारत देश?
हजार बर्षक घोँघाउज,कि होयत बंद? आ’कि एकलव्य-कर्ण-कृष्णक पाठ छोड़ि, युधिष्ठिर-शकुनिक एक्का-दुक्का-पंजा-छक्काक पढ़ब पाठ। कच्चा बारहकेँ शकुनि बदलताह पक्का बारहमे, आ’ करताह अपन पौ-बारह। तीनटा पासा आ’ चारि रंगक सोरे-भरि गोटी, करत भाग्यक निर्माण? चौपड़क चारि फड़ आ’ एक फड़मे चौबीस घर, की ई फोड़त भारतक घर? युधिष्ठिर जौं भेटताह तँ कहितियन्हि, जे चारि लोकक सोझ केला पासाक, खेलयतहुँ जकर नियम होइछ हल्लुक।

दू व्यक्तिक रंगबाजी खेलकेँ अहाँ ओझरेलहुँ, खेला खेलक संग नहि वरनT खेलेलहुँ देश आ’ प्त्नीक संग। तैं दैत छी ह’म ई उपराग, शकुनियोसँ पैघ कैल अहँ अपराध।
जकरे नाम लालछड़ी सैह चलि आबय ठोकर मारि पड़ाय,सतघरिया; ती-ती –तीतार तार मेना बच्चा अंडा पार;
बच्चामे खेलाय छलहुँ आमक मासमे ई खेला;
पासाक खेल सेहो खेलेलहुँ द्विरागमनक बाद भड़फोड़ी तक कनियाक संग। वासर-रैन हे युधिष्ठिर-रूपी भरत-तनय नहि खेलाऊ ई खेल, सभकेँ दियऽ ई शिक्षा,दिअऊ संगीतक मेल; स्मृति भय तोड़ल सुर,दियह सुमति वर हे अय गोसाञुनि, गाबि सकी हमारा गीत। कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, मात्र ईएह नहि सत्य हे मीत, उज्जल रूप तुअ वाणी कहिअए; सएह होयत हमर परिणीत। झम्पि बादर दूर भेल भय, गगन गरजि उठेलक हुतासन कए, हृदय मध्य बाउग कए, मौलि-मउल छाउर दए। शंख-फूकब वीर रससँ, करब शुरु भय-भंजन; स्मृति-स्वप्नक दंडसँ, खनहि तोड़ब खन-खन, करब मंथन।
सागर-द्वारि पर आनब भुजदंडसँ, गामक दूटा पाँतिक भोजनक आस्वादन। खोलब बंद बुद्धि-विवेक, रुण्डमालमसानीसँ, तोड़ब पाँति नहितँ करब नगरकेँ पलायन। गाम गाम रहत नहितँ, डुबायब भागीरथीक धारसँ; जे रोकलथि एकर धार प्रलय-सन, डूबताह-डूबेताह दू पाँतिबला गामकेँ अपन कुकर्मसँ।
भेल भूमि विलास कानन, निविल बोन विहसि आनल; कण्टक मध्य कुसुम विकल छल, दर्शन-घोषनि-ब्राह्मण ओझरल। धरणि विखिन छल,गंगा-तनु झामर,नहि कल-कल। विज्ञान गणितक कोमल-गल, अभाग्य तापिनि केल’क छल।
बुद्धक नगर बसायब हम भल, अहाँ देव रहब स्वर्ग करि-केलि, गामक लोकहि बजायब ठाम, सोंपलि गाम,पाँति तोहाऊ, चलब दर्शन-अद्वैत मोहाऊ, गामेमे रहब हम मीत, गायब नव-दर्शनक गीत। अपन दर्शनक लेल जे देलक, अहाँकेँ गामक वनवास, लेब तकर बदला हमारा जा कय, कष्ट सहब देब अहाँकेँ निसास।
अपन दर्शनक लेल,दुइ सहस्त्राब्दिक खेल केलेलन्हि जे, तनिकर गामक स्वरूप हम करब कानन, बुद्धक नगर बनेलन्हि जे कण्टक, कुसुम ततय आनब हम आनब। सयमे दूटा दर्शनलेल फाजिल, पासा फेकब सहस्त्राब्दीक चौपड़ चारि युग पर, जे अज्ञात तकरो ताकब हमारा तात, परञ्च जे ज्ञात,तकर त’ करए दिय’ हिसाब-किताब।

























8.फ्रैक्चर

हॉस्पीटलमे आबाजाही
गामक प्रवासीक। बुझैत छलाह जखन समाचार पिताक भर्त्तीक। ठामहि दरभङ्गा बस-स्टैंडहिसँ, गाम जयबाक बदला अबैथ हॉस्पीटल।

की केलहुँ शरीरकेँ,
आ’ नहिये बनेलहुँ जमीन-जत्था। बच्चा सभक लेल नहि
राखल दृष्टि यैह व्यथा। की सभ करैत, कतय नहि पढ़ैत, चण्डाल किए भेलहुँ हे कक्का।
ओतहि बैसल छलाह टुटियाँ, पिताक समक्ष, पहिनहिँ बुझने छलाह जे, छल ई फ्रैक्चर।
कहल पहिने समाचार तँ पुछिअन्हु, चाहो आब अबैत होयत, पैर हाथ धोआय अनिहन्हु।
कहल पैर टुटि गेल की कका, पिता किछु बजितथि, बजलाह टुटियाँ, होइछ टूटब आ’ फ्रैक्चर होयब एक्के, नहि छलन्हि बूझल से, कहल नहि चिंता करैत जाउ, भगवान रक्ष रखलन्हि, फ्रैक्चरे भेलन्हि, पैर टूटल नहि बाउ।






































9.मरकरी डिलाइट
सोझाँसँ त्रिपुण्ड-चानन, देने आयल रहथि उदना।

देखल गामक प्रवासी जहिना, कहल रौ छँ तोँ भाइ उदना।
संग कटलहुँ बाँस, जड़िमे बान्ही गमछा हम आवाजकेँ दबेबा लेल, आ’ टेंगारीसँ दू छहमे काटय छलह तोँ, पुरनाहाक डबरामे लीढ़क नीचा नुका कय, करी संपन्न ई काज बिन विघ्न।

हम पश्चात् भेलहुँ प्रवासी, मरकरी-डिलाइट दयकेँ तोँ, भेलह गामक वासी।
पंडितक अकाल छल नहि, छलह कोनो कंपीटीशन, भेलहुँ अहाँ औ’ भजार, गामक नव उदयनाचार्य।










10.चोरबजारक जुत्ता
ओह नहि मोन पारू, बुझल अपनाकेँ बुधियार, आनल ई जुत्ता ततयसँ, गेलहुँ जहिया चोर बजार।
सैंत कय राखल एकरा, थाल कीच नहि लागय देल। पैर दैत छलहुँ पानिमे आ’ जुत्ताकेँ हाथमे लेल। दुइये दिन तँ पहिरल एकरा, सीढ़ीसँ छलहुँ उतरैत, सोलसँ उखड़ि सोझँहि निकलल, शरीर आत्मासँ रहित जे भेल।
सीबि-साबि कय ची पहिरि रहल, पाइ वसूली तैयो हएत। नहि पूछू जौँ पूछय छथि क्यो, मोन कनैछ भोकारि-पारक लेल।












11.की-की गछलियन्हि
ट्रेनमे भेटलाह घटक, यौ फलना बाबू। मुँह देखाबक जोग नहि छोड़ल, आगाँ की-की बाजू।
शांत बैसू भेल की। अहाँक अछैत होइत की, एहि गरीबक पुत्रीक, कन्यादान संभव की भाइजी।
औ’ अहाँ गछि लेलियन्हि, भेल कोजगरा द्विरागमनो, भेटलन्हि किछुओटा नहि वरागतकेँ, कोनोटा इज्जत नहि राखलन्हि ओ’।
यौ अहूँ हद्द कएलहुँ। यादि नहि की-की गछलियन्हि।
ओहि सुरमे छलुहुँ बेसुध, हँ मे हँ टा मिलेलियन्हि। कहैत गेलाह ओ’ एक पर एक, नहि कहि कय बुरबकी करितहुँ। लक्ष्मीपात्र छथि से लक्ष्मी देलियन्हि, आबोतँ जान बकसू।
मॉटरसायकिल लय की करतथि, देहो-दशा ताहि लेले चाही, चेनक लेल बेचैन किय छथि, निचेन रहथु, बाकी अक्चि बात ई।
ताकि रहल छी पुत्रक हेतु, तकैत रही अँहीक आस, औ’ छलहुँ कतय भाँसल, अहाँ यौ घटकराज।
कोनो मोटगर असामी, आनि करू उद्धार, तीनू बेटीक कर्जसँ उबारथि जे, चाही एहन गुणानुरागी।




















12. बेचैन नहि निचैन रहू
दौरि-दौरि कय पोस्ट-ऑफिस, भेलहुँ जखन अपस्याँत किएकतँ,
मनीऑर्डरक छल आस। पुछल एखन धरि अछि नहि आयल, मनीऑर्डर यौ प्रभास।
चिट्ठीयेक संग पठेने छलथि पाइ, चिठी तँ समयेसँ पहुँचल, टाका किए नहि बाउ।
पोस्ट बाबू जे कए नेने रहथि, हुनकर पाइसँ कोनो उद्यम, कहल चिट्ठी अबैत अछि, बेटा अछि अहाँक छट्ठु, पाइ पठबैत समयसँ तँ पहुँचैत, मुदा पठबैत अछि छुच्छे संदेश।

बेचैन किए छी, की अप्पन उद्यम करब हम अहाँक टाकासँ, से बुझैत छी।

दोसर गामक पोस्टबाबू, फेकैत अछि चिट्ठी कमलाक धारमे, हम छी बँटैत तेँ कहैत छी जे भेटल अछि संदेश।




13.होइ ची जे हुम लुक्खी नहि छी
देखि हुनका(गारिपढ़ुआकेँ), देबय लागलथि गारि, लुखीक नाम लय कय, सात पुरखाकेँ देलन्हि ताड़ि।
ओ’ अनठेने ठाढ़ बूझल, दैत अछि ई लुक्खीकेँ गारि।
कहल अन्तमे(गारि पढ़निहार), हौ की छह होइत ई, मूँहतँ छह केहन अप्पन, लुक्खी नहि अपनाकेँ बुझैत छी।



















14.क-ख सँ दर्शन
ट्युशन पढ़बय जाइत छँह, इज्जततँ करैत छौक? जलखै तँ नहिये परञ्च, चाहो-पानिक हेतु पुछैत छौह।
ट्युशन कय खाइत छी, की कहलहुँ हे से नहि बाजू। द्रोणक नव अवतार छी हम, से छियन्हि कहि देने, जाइत देरी करह जलखैक व्यवस्था, करू नहितँ छी नहि हम द्रोण, औठाँक नहि कोनो लालसा थोड़। मात्र पढ़ेबन्हि छओ महिना, दर्शन नहि होयतन्हि क-ख केर, नहि से नहि बाजू, खुआ पिया कय केने अछि ढेर।














15.गाय
लाठी मारबामे कोनो देरी नहि, बछी भेला पर शोको थोड़ नहि, परन्तु छी पूजनीया अहाँ, निबंध लिखैत छी अहाँ पर क्षमा।































16.बापकेँ नोशि नहि भेटलन्हि
यौ बुझलहुँ बुच्चुनक गप्प, नहि करैत छी खिधांश,सुनू हम्मर साँच।

समयक छल नहि हमरो अभाव, कहल हँ सुनाउ किछु भाषण-भाख ।

देखि पुछलियैक बुच्चुनकेँ हौ, ई की उजरा नाँकसँ सुँघने जाइत छह, कहलक काका खोखीँ होइत छल, खोखीँक दवाइ अछि ई।
औ बाबू बाप मरि गेलैक, मोशकिल रहय नौँसि भेटब, मुदा देखू बेटा सोँटैत अछि विक्स वेपोरब।



















17.पाइ
देखू पाइ नहि लिय’ अहाँ, बेटा विवाहमे कारण जे, पुतोहु करत उछन्नड़, पाइ बाली आयत जौँ।
पूछल अहाँ सभ जे छलियैक लेने, बेटा विवाहमे पाइ जे, कहलन्हि अहूमे गप्प अछि दूटा।
पहिल जे पाइ दबबैत अछि लोककेँ। मुदा दोसर, जे दबा दैत छियैक, हमरासभ पाइकेँ ।
जे कहलहुँ गुनू तकरे, हमरा पर नहि आउ दाइ गे।
















18.असत्य
हम कक्कर काज नहि कएलहुँ, बेर पर मुदा काज क्यो आयल? असत्य नहि कहियो छी बाजल, सत्यक आस नहि छोड़लहुँ आ’ असत्यक बाट सेहो नहि ताकल।
यौ अहाँ, एहनो क्यो बजैत अछि, असत्य नहि छी कहियो बाजल, एहिसँ पैघ कोनो असत्य अछि।
क्यो दुःखी कहलकतँ काज केलहुँ, अपने जा कय तँ नहि पुछलहुँ, ओक्कर काज भय जाइत छैक, तँ उपकरि कय पुछैत छी, जौँ काजमे भाँगठ होइत छैकतँ, निपत्ता भय जाइत छी, बेर पर एहने काज अहाँ अबैत छी।

हम आलांकारिक प्रयोग केलहुँ तेँ, टाँग पकरैत जाइत छी।













19.मसोमात
मलेमासक मेला-ठेला, ट्रेनक धक्का मुक्की। हँसैत-हँसैत पेट छी पकड़ल, हे यै कनियाकाकी।
कहैइत छलीह एकटा मसोमात, भीड़मे ओहि गाड़ीमे, एतेक दुःखतँ ओहू दिन नहि भेल, भेलहुँ राँड़जाहि दिन, हौ सवारी।























20. श्राद्ध नहि मरा जाय
एक मृत्यु फेर दोसर मृत्यु, नेनाक पिताक-काकाक।
कक्काक लोकवेद छलन्हि दबंगर, से चिन्तित छ्ल छोटका भाइ।
श्राद्धावधिमे दोसर मृत्यु भेने, एक्के श्राद्धसँ होइछ दोसराक श्राद्ध, एकक श्राद्ध जायत मराय, छल चिंतित दूनू भाय।
कमजोरहाक संग पण्डितो देत नहि, शास्त्र धरि किछुओ कहय,
मामागाम खबरि दियौक, पिताक श्राद्धने मरा जाय।















21.बानर राजा
सिँह राजसँ भेल पीड़ित वन-जन, इलेक्शन करायल मिलि सभ क्यो, संख्या वानरक हरिण मिला कय, छल बेशी से भेल ओ’ राजा। सिंहराजकेँ तामस अयलन्हि, खा’गेल हरिणराजक बच्चा एकदिन।

दाबीसँ हरिण गेल सम्मुख, वानर राजा कहलन्हि, बदमाशी अछि सिंहक, कहि निकलि गेल जंगल बिच। गाछक डारि पकड़ि छिप्पी धरि, खूब मचेलक धूम। तामसे विख भय सिंह राज, खएलक बच्चा सभटा मृगराजक, जखन सुनाओल जाय वनराजकेँ, फेर वैह धूम फेर मचाओल।
मृगराज कहल हे नृप, एहि हरकंपसँ होयत, जीवित हमर संतान।
कहल नृप कहू भाय, हम्मर मेहनतिमे अछि की कमजोरी, करल प्रयास हम भरिसक मुदा, बुझू हमरो मजबूरी।

22.समुद्री
संस्कृतक पाठ नहि पढ़ल, कोन पाठ अहाँ पढ़ने छी, पंडित कहि बजबैत अछि सभ क्यो, त्रिपुण्ड धारण कएने छी!
रहथि हमर पुरखा पंडित, छोड़ू हमरा इतिहास देखू। मिथिलाक गौरव याज्ञवलक्य, कपिल कणादक देश छी ई, जैमिनीक,गौतमक अछैतहुँ,
पुछै छी पण्डित केहन छी।
सामुद्रिक विद्या ज्योतिषिक जनय छी,
नहि सुनल फेर बहस किए छी केने। फेर छी हँसी करैत अहाँ यौ, भविष्यक छी हम हाल लेने।














23.मैट्रिक प्लक

हौ सभकेँ सुनलहुँ केने बी.ए.,एम.ए.,
मुदा बुझल नहि छल डिग्री, दोसरो होइछ आनो-आनो।
आइ एक पकठोस बटुक, अछि आयल दलान पर पूछल, कोन अंग्रेजिया डिग्री छी लेने, मैट्रिक प्लक एहने किछु बाजल।
हौ काका अछि की ओ’ गेल, ओकर गेलाक बाद हम बाजब, कारण अछि भेल ओ’ फेल।





















24.क्रिकेट-फील्डिंग

हम बाबा करू की पहिने, बॉलिंग आ’ कि बैटिंग।
बॉलिंग कय हम जायब थाकि, बैटिंग करि खायब जे मारि।
पहिले दिन तूँ भाँसि गेलह, से सुनह हमर ई बात बौआ, बटिंग बॉलिंग छोड़ि-छाड़ि, पहिने करह ग’ फील्डिंग हथौआ।























25.गाम
तीस वर्ष नौकरी कइयो कय, नहि बनल एकोटा मित्र।
आस-पड़ोसी चिन्हैतो नहि अछि, ऑफिसक पूछू नहि गति।
गाम छोड़ि शहर छी आयल, हमर मुदा अछि मोन। सात जनम घूरि नहि जायब, गाम छोड़ि नगरक कोनो कोन।























26. लोली
एहि शब्द पर भेल धमगिज्जर, लोल हम्मर अछि नहि बढ़ल, एतेक सुन्दर ठोढ़केँ छी, अहाँ लोली कहि रहल।
हँसल हम नहि स्मृतिकेँ, छोड़ि छी सकलहुँ अहाँ, फैशन-लिपिस्टिक युगोमे, लोलीकेँ खराब बुझलहुँ अहाँ।


























27.जाति
ऑफिसमे छल काज बाँझल, किरानी पर एकगोट तमसायल। कोन जातिक छी अहाँ,धैर्य आब नहि बाँचल, दशो लोककेँ कैक दिनसँ छी झुट्ठो घुमाओल।

छाती ठोकिकय जातिक नाम छल ओ’ बाजल, दसोलोकक दिशि निन्गहारि ताकल, ताहिमेसँ एक सजाति उठल बाजल,
घोल-आसमर्द्दक बीच कहलक नहि बाजू, जातिक नाम धय कय,ई यादि राखू।
काज अछि हमरो बाँझल,मुदा जातिक अछि बात जौँ, अछि कलेजावला जाति ई,से काज कतबो लेट हो।



















28.काँकड़ु
काँकड़ुगणकेँ छोड़ल एकटा ड्रममे, नहि बन्न कएलक ऊपरसँ, पुछल हम छी निःशंक अपने।
यौ मिथिलाक ई अछि काँकड़ु सभ, एक दोसराक टाँग खींचत, बक्शा बन्द कर्बाक करू नहि चिन्ता, खुजलो सभटा सभ ठामे रहत।


























29.कैप्टन
वॉलीवॉलमे खेलाइत काल, पप्पू भाइक होइछ हुरदंग, खेलायब हम फॉरवार्डसँ, नहि नीक खेलैत छे नीक, आगू खेलाय देखैब हम।
सभ सोचि विचार कय, बनाओल कैप्टन पप्पू भायकेँ, टीमक हारि देखि कय जिद्द,खेलाय पाछुएसँ। फारवॉर्ड बनू अहीं सभ नहि तँ मैच हारू आगुएसँ।






















30.कोठिया पछबाइ टोल

बूढ़ छलाह मरैक मान, पुत्र पुछल अछि कोनो इच्छा, जेना मधुर खयबाक मोन, नीक कपड़ा पहिरबाक मोन, फल-फूल खयबाक मोन। कोठाक घर बनयबाक इच्छा, पूर्ण भय पायत किछु सालक बादे, कहू कोनो छोट-मोट इच्छा, पूर करब हम ठामे।

हौ’ कहितो लाजे होइत अछि, पछिबारि टोल कोठियाक रस्ता, दुरिगरो रहला उत्तर ओकरे धेलहुँ, जाइत दुर्गास्थान कारण, टोल छल ओ’ अडवांस्ड।
मोनमे लेने ई इच्छा जाइत छी, जे ओहि टोलमे होइत विवाह। कहैत तावत हालत बिगड़ि गेलन्हि, ओ’ बूढ़ स्वर्गवासी भेलाह।









31. पुत्रप्राप्ति
लुधियानाक मन्दिर पर रहैत छी, पूजा पाठ करैत छी। कहैत छी अहाँ ठकि कय हम खाइत छी, गाममे तँ एक साँझ भुखले रहैत जाइत छी। दस गोटेकेँ पुत्र प्रप्तिक आशीर्वाद देल, पाँचटाकेँ फलीभूत भेल। पुत्री जकरा भेलैक से हमरा बिसरि गेल, मुदा पुत्रबला कएलक हमर प्रचार, मिथिलाबाबाकेँ ठक कहैत छह, गामक हमर ओ’ दियादी डाह।






















32. दि’न

विवाह दिन तकेबाक बात, युवक बाजल पंडितजी अहूँ, नहि बुझलहुँ अमेरिकाक प्रगति, ओतय के दि’न तकबैत अछि कहू।
अहाँ अधखिज्जू विद्वान सुनू।
हमर तकलाहा दिनमे विवाह कय, झगड़ा-झाँटि करितहु बुझु, जिनगी भरि पड़ै अछि निमाहय।
ओतय बिनु दिनुक विवाह, भोरसँ साँझेमे भय जाइछ समाप्त।




















33. दूध

महीस लागल छल लागय, बहिन दाइक ठाम।
पहुँचलहुँ आस लेने, ठाँऊ भेल बैसलहुँ ओहि गाम।
दूध छल जाइत औँटल, मुदा बहिन दाइकेँ गप्पमे
होस नहि रहल।
भोजन समाप्ते प्राय छल, दूध राखल औँटाइते रहल।
कहल हम हे बहिन दाइ, अबैत रही रस्तामे देखल, साँप एक बड़-पैघ, एतयसँ ओहि लोहिया धरि, दूध जतय औँटाइछ।
ओह भैया बिसरलहुँ हम, दूध रहल औँटाइत, मोनमे बात ततेक छल घुमरल, होश कहाँ छल आइ।





34. बिकौआ
बड़ पैघ भोज उपनयनक,
पछबारि पारक छथि नव-धनिक।
बी.के.झा नाम नहि सुनल, ओतय ठाढ़ ओ’ धनिक। आरौ बिकौआ छँ तूहीँ, दूटा पाइ भेल ओ’ भाइ, कलकत्ता नगरीक प्रतापे। नहि तँ मरितहुँ बिकौए बनि, झा,बी.के. नाम भेल।
























35.गद्दरिक भात
गत्र- गत्र अछि पाँजर सन,
हड्डी निकलल बाहर भेल। भात धानक नहि भेटयतँ, गद्दरियोक किए नहि देल।
औ’ बबू गहूमक नहि पूछू, दाम बेशी भेल। गेल ओ’ जमाना बड़का, बात-गप्प नहि खेलत खेल।























36.एकटा आर कोपर
गप्प पर गप्प, प्रकाण्डताक विद्वताक।
हम्मर पुरखा ई, हाथीक चर्चा, सिक्कड़ि-जंजीर टा जकर बचल।
आँगनमे लालटेन नहि वरन् डिबिया टिमटिमाइत, लालटेन गाममे समृद्धिक प्रतीक।
फेर दलान पर गप्पक छोड़, एकटा कोपर दियौक आउर।






















37. महीस पर वी.आइ.पी.

छलहुँ हम सभ जाइत, आर मारि लोकसभ पैरे-पैरे। दुर्गास्थानमे छल कोनो मेला, देखि हमरा सभकेँ बाट देल।
मारि लोक छल ओतय छलहुँ, महीस पर हम चारिटा वी.आइ.पी.ये, ओकर सभक बात छल लौकिक जौँ, हमरा लोकनिक आध्यात्मिक तेँ, मूल-गोत्रक प्रभावे!


























38.गप्प-सरक्का

नहि गेलथि घूमय बूरि, बुझैत अछि बड्ड छैक काज। आइ-काल्हितँ अहाँक चलती अछि, हमरा सभतँ करैत छी बेकाजक काज।

































39.फलनाक बेटा
भोज देलन्हि रेंजरक बाप। आह कमेने अछि तँ
फलनाक बेटा।
भोज समाप्ति पर लय, पान सुपारी लय देखल,रेंजरकेँ जे लोक। अओ कहू कोन बोनकेँ, साफ कएल एहि भोजक लेल।



























40.ट्रांसफर

नॉर्म्सक हिसाबे ट्रांसफर, कएल हम अहाँक, कहल छल एकर कोन, छल महाशय जरूरति। कएल सेवा हम अहाँक, राति-दिन भोर धरि।
अप्पन घरक काज छोड़ल, अहाँक काजकेँ आगू राखल। ताहिमे नहि हम लगायल, नॉर्म्स केर नहि गप्प छल आयल।
ट्रांसफरमे ई कतयसँ, आबि गेल श्रीमान। तखनहि रोकल हुनक, ट्रांसफर, औफिसर तत्काल।
















41.अटेंडेंस
लेट किए अएलहुँ अहाँ, अटेंडेंस लगाऊ।
लाल बहादुर अयलाह जखन, देखल छल क्रॉस लगायल। नहि देल ध्यान साइन कएल, पूछल अफसर लेट छी आयल। ऊपरसँ कय हस्ताक्षर, क्रॉस नुकयने नहि अछि मेटायल।
लाल बहादुर कहल सुनू ई, के करत निर्णय तखन, हम कएल हस्ताक्षर पहिने, क्रॉस लगाओल अहाँ तखन।


















42.शो-फटक्का
की यौ बाबू शो-फटक्का, बड्ड देने छी आइ। पहिने कोनो दिन आबि बुझायब, नहि जायब पड़ताय।
दहो-दिशा दस दिन काज, देत चालि संग चालिस साल। बड़ा देने छी शो-फतक्का, करू पहिने किछु काज।


























43.भारमे माटि

काबिल ठाकुर कहल जोनकेँ, भारमे माटि उघि लाऊ। दुहु दिशि भार रहततँ, बोझ दुनू दिशि जायत। कम थाकब अहाँ आ’, माटि सेहो बेशी आओत।
दियाद कलामी ठाकुर देखि ई,
सोचल ओ’ नोकसानक भाँज। भरिया तोरा जान मारतह, एके बोनिमे दोबर काज!
पटकि भार भरिया पड़ायल, काबिल ठाकुर रहलाह मसोँसि। लंघी मारि पैर खींचि कय, अप्पन कोन भल भेल हे भाइ।















44.मजूरी नहि माँगह
भरि दिन खटि हम गेलहुँ, माँगय अपन मजूरी। कहलन्हि जौँ मजूरी मँगबह, मारि देबह हम छूरी।
कहल नहि बरू दिय मजूरी, मारू नहि परञ्च ई छूरी।
जियब जखन हम करब काज, कय आनो ठाम जी-हजूरी।























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6.आऽ अंतमे प्रवसी मैथिलक हेतु अंग्रेजीमे

VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT
1.Introduction

Mithila includes `North Bihar',’parts of Anga(south of Ganges), 'Tarai' and `Southern' portion of the kingdom of Nepal inclusive of lower ranges of hills. The earlier reference to Videha is in Satapatha Brahmana' ' Circa1000 B.C. Sadanira demarcated Videha from Kosala. Sadanira has been identified with the Budhi Gandak.Itcovers the modern districts of Muzaffarpur, Darbhanga, Madhubani, Champaran, Khagaria,Saharsa and parts of Purnea in India and those of Rohtara, Sarlahi, Mobitari, Saptari and Morang of Nepal.The Eastern boundary has been fluctuating with the changes in the course of river Kosi, the common boundary of the provinces of Mithila and Kamrup, the Ganga andthe Himalayas,the estates of Dinajpur,Koochbihar, Maldwara,Maldah, estates in Bangladesh,Rajmahal district of jharkhand and as far as Tejpur Pargana, the traditional grant of the kingdom of Mithila to Maharaja Mahesa Thakura by theMughal Emperor Akbar the District of Champaran, linguistically and culturally, been encroached by the Bhojpuri speaking people.On the other hand much of Monghyr and Bhagalpur Districts as lie to the south of Ganga river has been encroached by the Maithils. It has also crossed the Kosi and occupied Purnea,KoochBehar,Dinajpur,gidhhaur, badh etc. also habitations.goa also.
Kosi never been known to return eastwards to any of it deserted channels advancing westward

Rama had finished journey between the Sona and the Gangs before reaching Vaisali within a day only. It took Visvamitra along with Rama and Lakshmana, four days to reach the capital of the country Of Videha from Ayodhya. They rested on the way for one night only.'

In the Buddhist texts extended the conno¬
tation of Madhyadesa - the most sacred part of India- simply because they had to include in it the land par excellence of Buddhism, viz., Bodhgaya and Banaras. eastern boundary of Majjhimadcsa-Pundravardhana which in ancient times included Varendra'.' (North Bengal). the Aitareya Brahmana' boundary of Madhyadesa somewhere near Prayag. sage of Mithila, Yajnavalkya, in that country in which black antelope roams about,' is that though Mithila was not included in the four ancient holy lands of Bharatavarsa-Brahmavarta, Brahmari.. sidesa, Madhyadesa and Aryarvarta. sanctity only from the fact pointed out by the Dharmasastra. Mithila was consistently regarded as an independant unit of the Pracyadesa. Praci, in ancient Tibetan works, excluded even Magadha, Kasi and Kosala but included Mithila and Vanga.The Puranas only in Brihad Vishnu Purana c. 5th cen. A.D., Mithila Mahatmaya ll Khamla Tirabhukti (a later name of the province) is described as` situated between the river Ganga and the Himalayas, extending over fifteen rivers and from Kosi (Kausiki, in the east) to the Gandaki in the west, for -24 yojanas and from Ganga to the forests of Himalayas for 16 Yojanas. The messengers sent by Janaka reached Dasaratha's capital in three days by travelling very fast, while Dasaratha on his journey to the Videhan capital in his chariot took four days.Buddhist work Divyavadmra.those of Rohtara, Sarilahi, Mohitari, Saptari and Morang of subsequent movement of the Kosi.
The Brihacf-Vishnu Purana gives the following twelve names of Mithila.1Mithila2.Tairabhuktisca3.Vaidehi4.Naimikunanam5.Jnanaksetram6.kripaoitham7.svarnalai8.galapaddhati9.Janakijanmabhumischa10.nirapeksh11.vikalmasha12.Ramanandakuti viswabhavani nityamadgala. At first it seems that the whole province was called Videha and had several kingdoms in it, the chief ones being those of Mithila and Vaisali.Indeed, from the account in earlier literature it would seem that the chief city of the kingdom of Mithila, was Mithila. The name Videha appears to have lost vogue in the mediaeval times.Then came the name Tirabhukti 4th and 5th centuries A.D. The Basarh terracotta seals of the 4th century A.D. mention this name for the first time. It became very popular and its simplified form, Tirhut, is now used extensively, though, the name Mithila is now gradually gaining ground. 'Tirhut' also indicated at one time a Sirkar (a division of the Subah of Bihar) under Muslim rulers ; it comprised of a very large tract of Brilrad-Vishnu Purana Mithilakhanda : Milimla; Tirabhukti; Vaidehi; Naimikanarn the forest associated with the descendants of Mini; Jnanakehelram, Kripa-pitham-the home of knowledge and the centre of grace; Svarnalangalpaddhari-The footsteps of the gold plough; lanakijanmabhumi; Vihalmashn-Devoid of sins ; Ramanandakuri-the cottage of Sita's Pleasure; Visvahharani-world pleasant; and Nityamangala-ever blissful.Britishers formed the modern division of Tirhut comprising the Districts of Muzaffarpur, Darbhanga, Champaran and Saran.'Videha' is the earliest designation, probably derived from the name of the Vedic King Videgha Mathava who is said to have introduced the Agni into the lands beyond the river Sadanira. visit led to the cultivation and more habitation of the country, for we are told that previously the land was extremely marshy
and had to he dried.Mithila is not mentioned in the Vaidika or post-Vaidika Literature. The Ramavana and the Mahahharala, Dasakumaraehariia, Raghuvalnia Prasannargghara etc use it for the whole country. It is used most extensively in literature specially as the capital city of Videha or Tirabhukti province situated somewhere in the Tarai - modern Janak¬pur.Mithila is also called Miyulu in the Buddhist Annals. the origin of the name Mithila too in the title Mathava of this king, Mithi being reminiscent of it.In some Jataka accounts a city called Jayanta on the bank of the Gangas is spoken of as the capital of Videha. The Devi Bhogar'ata (Skandhe 6) wrongly located the city on the bank of the Ganga.The use of the appellation 'Mithila' along with 'Tirabhukti' or Tirhut for the whole country is comparatively very late-from about thef time of the installation of Karnata Dynasty in 1097 A.D. the Valmikiya Ramayana observes that the city of Mithila was founded by king Mithi. The most reasonable explanation of the origin of the name appears to be as given by the Unadi-sutras.Its authors derives it from 'mantha' (to churn). name of the capital city carne to be used for the whole kingdom.Tirabhukti or Tirhut nothing more than the Mithila and Vaisali king¬doms of older days. Tirabhukti is so called because it is regard as a land of three mythical sacrifices performed at the birth place of Sita, it extends up to the Tira or the bank of the Ganga, so it is called Tirabhuhti,two sides of the river Kausiki (the Kosi).This area is even today divided into two broad groups: Pachharari andPuvaripara.The extent of Mithila as given in the Brihad-Vislnur Puraua,are East to West 96 Kosas or 24 Yojanas, North to South 64 Kosas or I6 Yojanas. aha¬janaha Jataka as 300 Yojanas and about 10000 sq miles in the kingdomsof Nepal.work of King Nanyadeva on music-Sorasvatihridayakanthabharana.According to the Bhavishya Purana Nimi the son of Manu, king of Ayodhya frequented the land of sacrifices. His son Mithi founded a kingdom here which was named Mithila after his name. Being a 'city builder', he came to be known as 'Jataka'.Geology looks further than History,scholars who have engaged themselves in the study of Ancient India have complety ignored Pre¬historic Mithila,watery nature of its land particularly because of its situation at the foot of the Himalayas and by the frequent changes in the courses of its numerous rivers and rivulets have made it difficult to collect materials in the field of pre-historic antiquities.marshy character of the land.Jalodbhara i.e. reclaimed from swamp.it was cultivated by the Brahmanas. who had caused agni, the Fire God, to taste it through sacrifices vast chain of temporary lakes, joined together by the numerous beds of hill streams Nepal to the Ganges. communications are open for only three or tour months of the year.The river side is so common that the expression `aadi dim ' is used by every one irrespective of age for going out for excreting wild animals used to roam about till recently, the long grass which grows in abundance in such a land all these give the picture of Mithila gradually coming out of water in the Cain-Ozoic Epoch.The story of the Avati ras is believed by a group of scholars to indicate the gradual stages of evolution, especially that of Vishnu as half-tortoise and half-fish. We have in Mithila, in the first instance the famous Varaha¬kshetra Tirtha which map indicate the evolution of man through the stage of a boar; and then there is a Pauranic story of the birth of Narakasura by the Union of Vishnu and Varaha. This may indicate in some form, the knowledge or existence of the evolution of the primitive man from half-animals and half-man in Mithila-^ Of the ages that followed the age of sub-men or primitive men, the remains are so scanty in India that much cannot be said about any region, especially that of Mithila, which has been so far practically has remained wholly unexplored.

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