भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, February 20, 2009

असोथकित-कथा-अनलकान्त

प्राइवेट वार्डक बिस्तर पर पड़ल-पड़ल ओ सामनेक टेबुल पर राखल एक मात्र
खाली गिलास मे बड़ीकाल सँ ओझरायल छल। काँचक ओ मामूली सन गिलासओकरा देखैत-देखैत रूप बदल' लागल छलै। एक बेर ओकरा लगलै जे ओहि खाली गिलास मे नीचाँ सँ अनायास पानिक सतह ऊपर उठ' लगलै आ अगिले क्षणगिलासक चारूभर पानि खसैत सेहो ओकरा प्रत्यक्षे जेना बुझेलै! ओ झट आँखि मूनिलेलक। बड़ीकाल पर आसते-आसते फेर ओ आँखि खोललक। गिलास पूर्ववत खाली छलै। ओ फेर निश्चेष्ट गिलास पर नजरि गड़ा देलक। कोठली मे देबालघड़ीक टिक्-टिक् केर हल्लुक-सन आभास छलै।
किछुए क्षण बीतल हैत कि ओ देखलक गिलासक आकृति एक लय-क्रम मेपैघ होअय लगलै! एक बेर ओकरा लगलै, ई तँ कुंभकरणक पेट थिक! तत्क्षणे फेरबुझेलै, ई विशाल बखारी थिक!...भरि पेट भात लेल रकटल मोन-प्राण मे पेटक
संग बखारीक स्मृति ओकरा नेनपने सँ खेहारने आबि रहल रहै। परेशान जकाँ भ'क' ओ अपन नजरि ओकहर सँ हटाब' चाहलक कि ओकरा बुझेलै जे माथ मे किछु चनकि रहल छै आ देह मे तागति सन किछुओ ने रहि गेल छै। ओ अपना केँ बड़असहाय-असोथकित बुझि फेर आँखि मूनने रहय कि तखने एक टा सर्द-सन हाथओकरा माथ पर बलबला आयल घाम पोछ' लगलै। कोठली मे तखन ओकर पत्नीमात्र छलि, मुदा ओकर हाथ ओहन सर्द हेबाक अनुमान नइँ छलै ओकरा। ई फराक जे ओकर आत्मा मे खरकटल खरखर हाथक धन्नी-हरदि वला गमक आँखि नइँ खोल' देलकै।
हठात् हल्लुके सँ केबाड़ ठकठका क' ककरो भीतय अयबाक आभास भेलै,तँ नइँ चाहैतो ओ आँखि खोलि देलक। नर्स छलि। नर्सक आगू-आगू ओकर मुस्कीछलै। ओकरा मन मे स्फूर्ति जकाँ अयलै। नर्सक मुस्कीक उतारा मुस्किए सँ देलक।एक नर्से टा तँ छलै जकर आयब ओकरा बड़ सोहाबै छलै। डाकटरो सँ बेसी। एक टामधुर-सन धुन ओकर धिरछायल मोन केँ छुबलकै। एक खास किसिमक निसाँ मेआँखिक पल झपा गेलै।
कनेकाल बाद 'मनोहर कहानियाँ' मे डुबलि पत्नीक पन्ना पलटबाक स्वरओकरा कर्कश जकाँ लगलै। भीतर सँ कचकचा गेल छल। पत्रिका मे डुबलि पत्नीदिस तकबा सँ बचैत, नइँ चाहैतो फेर सामनेक टेबुल पर राखल खाली गिलास दिसताक' लागल।
किछुए क्षण बीतल हैत कि गिलास फेर रंग-रूप बदल' लगलै। ओकराअपन दिमाग पर बेस दबाव बुझेलै। ओ नइँ चाहैतो बाजल, ''टेबुल पर सँ एहिगिलास केँ हटाउ!...''
पत्नी पछिला तीन दिन सँ बेसी खन ओकरा संग छलि। पहिल दिन तँ मारतेफजहति करैत भरि दिन ओ बड़बड़ाइते रहि गेल छलि। कतेको केओ बुझारति कि अनुनय-विनय कयलकै, ओकरा पर तकर असरि नइँ भेलै। एकदमे झिकने जाइतरहलि, ''सब हमरे घर बिलटाबै पर लागल यए। धियापुता केँ के देखतै? अयँ! जकरा कपार पर दू-दू टा अजग्गि बेटी रहतै तकर ई किरदानी?... काज-धंधाक चिंते ने! हरखन दोसे-मीत! सब दिन नाटके-साहित्य आ दरुबाजीक मोहफिल! देखौ, आइ केओ ताकहु अयतै!...'' एहने-सन मारते रास बात! मुदा ओ एको बेरमुँह नइँ खोललक। दोसर दिन पत्नीक बाजब स्वाभाविके रूपेँ कने कम भेलै, मुदा ओकर मुँह सिबले रहलै। तेसरो दिन ओकरा ओहिना गुमसुम देखि पत्नीक भीतरआतंक जकाँ किछु पैस' लगलै। से ओहि दिन गुकमी जकाँ लधने ओ ओकराबजबाक बाटे ताकि रहल छलि। एहन खन पतिक आदेश ओकरा नीक लगलै। ओ उठलि आ गिलास हटा बगलक अलमारी मे रखै सँ पहिने पानि लेल पूछलक। ओमुड़ी डोला नासकार कयलक।
पत्नीक भीतर किछु कचकि जकाँ उठलै। आँखि डबडबा गेलै।...
एकरा एहि अस्पताल मे भर्ती दोसे-मित्र सभ करौने छलै। ओकरे सभक समाद पर ओ बताहि जकाँ छोटकी बेटीक संग भोरे-भोर भागलि आयलि छलि।ओकर लाख फजहति आ बड़बड़ाहटिक बादो इलाजक सभ टा व्यवस्था वैह सभ क' रहल छल। ओकरा बेसी बजबाक साफल ई भेलै जे कैक गोटे बाहरे सँ हालचाल ल', सभ टा व्यवस्था बुझि-गमि, घुरि जाइ छल। से थाह पाबि गेलि छलि ओ।
क्षण भरिक लेल तँ ओकरा अपन कड़ैती आ बजबाक प्रभाव पर गौरवे जकाँ
भेलै। ओकरा लगलै जे एहि तरहेँ ओ अपन घरवला केँ मुट्ठीमे क' सकै अछि। मुदापतिक पीयर चेहरा देखिते ओकरा भीतर पैसल अदंक आशंकाक झड़ी लगा देलकै। ओ चोट्ïटे उठलि। पयर मारि आस्ते सँ बाहर भेलि।
पैघ सन गलियारा पार क' ओ रिसह्रश्वशनक आगूक गुलमोहर लग ठाढ़ भेलि।
अस्पताल प्रांगणक सामनेवला छोर पर बेरू पहरक रौद मे बैसल किछु गोटे पर ओकर नजरि गेलै। ओ दूरे सँ चिन्हैक प्रयास क' रहलि छलि कि ओकहर सँ दू गोटेलपकि क' ओकरा लग अयलै, ''की, कोनो बात?" ई दुनू ओकरा पतिक सब सँ
पुरान मित्र छलै। ओकरा बियाहो सँ पहिनेक सहमना, लंगोटिया!...जकरा सभक
ताधरि किछुओ फराक नइँ छलै। बियाहक बादो चौदह-पंद्रह वर्ष धरि प्राय: ओहिनारहलै। शुरूक पाँच साल तँ आश्रमो संगे रहलै जावत्ï अलग-अलग ठाम चाकरी नइँ भेटलै। एहि मे पहिल ओ छल जे ओकरा 'कनियाँ गै' कहै छलै आ 'वर बाबू' कहैत जकरा सँ ओ हँसी-मजाक मे सदति साँय-बौहुक अदला-बदली करबाक गपशप करै छलि। मुदा तखन ओकरा मुँह सँ बहरायल वाकय संबोधनहीन छलै। दोसर, छात्र-जीवन मे भनसाघरक इंचार्ज रहबाक कारणेँ शुरूहे सँ ओकरा सौतिन कहै छल। मुदा तखन तीनूक संबंधक कोनो टा पहिचान नइँ छलै। ई स्थिति ओकराबड़ दारुण जकाँ बुझेलै। एक बेर ओकरा मोन मे अयलै जे वैह ओहि संबोधन सँ पुकारय, मुदा से भेलै नइँ। ओ अपन भावना पर कठोरता सँ लगाम लगौलक, ''की करबै आब, हमर तँ घरे बिलटि गेल। तै पर सँ ओकर गुमसुम रहब!..." सेरायलआ घबड़ायल सन स्वर बहरेलै। कनेक असमंजसक बाद पहिल दोस्त जे कह' चाहैत छल, से नइँ कहिओहिना किछु बाजि देलक, ''ठीक भ' जयतै। डॉकटर सँ हमरा गह्रश्वप भेल यए।"
''नइँ! ...कोनो चिंताक बात नइँ!" दोसर तोस देब' चाहलक।
एहन जवाब ओ नइँ सुन' चाहने छलि। मुदा ओकरा बस मे किछु ने छलै।आब ओ पहिनेक स्थिति मे नइँ घुरि सकै छलि जकरा सँ कहियो पिण्ड छोड़बैतनीक लागल छलै। ओकरा मुँह सँ बहरेलै, ''घुटनाक अलावा डॉकटर तँ कहै छै,
सब कुछ नॉर्मल है!

''हँ, सैह तँ! ..." पहिल जल्दी सँ जवाब ताकलक, ''रसेरस सब ठीक भ' जयतै।'
''हँ! हँ!..." दोसरक चेहरा पर टार'क भाव बेसी साफ छलै।

हारिक' ओ वार्ड दिस घुरलि, ''आउ ने, कनेकाल हुनके लग.."
गाछ ओकरा लगीच अयलै। सिरमा लग। दुनूक नजरि मिललै। ओ निहालभ" गेल।
ओ किछु बाज' चाहलक, तँ ओकरा अपन पत्नीक उपस्थितिक भान भेलै।
गाछ सेहो किछु बाज' चाहलक, मुदा कोठली मे ओकरा मीतक कयाहता छलि। गाछओकरा बेडे पर सटिक; बैसि रहल। दुनूक हाथ एक-दोसराक हाथ मे छलै। दुनूक हाथ गरम छलै।
''चाह-ताह बाहर सँ एत' आबि सकै छै ने?" दोसर बुदबुदायल।
तखने ओकर पत्नी उठलि, ''लगले अबै छी"' आ कोठली सँ बाहर भ'गेलि। ओकरा पाछाँ लागल दोसर मीत सेहो बहरायल।
किछु पल बीतल कि ओ पड़ले-पड़ल फुसफुसायल, ''ककर्यू मे ढील बुझाइ
छौ!.."
''नइँ-नइँ!... अपना सब घर-परिवार लेल सही समय पर किछु ने सोचलौं।तकर सब टा दु:ख एकरे सब केँ भेलै।" गाछ आब झुकि जकाँ आयल छल।
ओ किछु क्षण चुपचापे रहल। फेर एकहर-ओकहर ताकि बाजल, ''रौ बुडि़!
हमरा सभक लेल अपने टा घर कहिया घर छल? हमसभ तँ सभक घर-परिवार केँ अपने बुझैत रहलौं।" बेड पर पड़ल देह जेना मोन संग उड़' चाहै छल।
''जँ सैह रहि जाइत शुरू सँ अंत धरि तँ कोनो दु:ख नइँ छल मीत! मुदा एक
एहन मोड़ पर आबि हम सभ अपन आरि बेराब' लगलौं जत' पछिलुको कयलधयल सभ टा पर पानि फिरि गेल। ने घरक रहलौं ने घाटक।..." आब गाछ साक्षात मनुकख भ' गेल छल।
''ई तों की कहै छें?... हम तँ एखनो एकरे पाछू सब किछु न्योछावर कयनेछी। के अछि आइ हमरा सँ बेसी कयनहार?'
''यैह!... यैह भेलौ सीमा! दोसर केओ तोरा सँ बढि़ नइँ किछु करै यए तेँ तों आगू किएक बढबें!... आ ई त्याग-न्योछावर-कथा मंचे टा सँ शोभै छै। हम-तों जतेक ने न्योछावर करबाक गपशप करै छी, से सब वास्तव मे आब कैरियर चमकाबैक
साधन भ' गेल यए। जेँ केओ दोसर हमरा सब सँ आगू बढि़ सक्रिय नइँ अछि, ते हमरासभक ई अधकचरा प्रयास पैघ अभियान कहाबै यए। मुदा ई जानि ले जे हमरासभक ई प्रयास एक टा बिजुका सँ बेसीक ओकाति नइँ रखै अछि जकरा सँ बड़ीकाल पर ओ आँखि फोललक। सामनेक खाली टेबुल पर ओकर नजरि गेलै, तँकिछु चिड़ै-चुनमुनी डराइत होइ तँ होइ, सुग्गर-हरिन आकि नीलगाय पर कोनोओकरा टेबुलक सतह सहाराक रेगिस्तान बुझेलै। टेबुलक पार बैसल लोकक आकृति असरि नइँ पड़ै छै।' मीत आवेश मे आबि गेल छलै।रेगिस्तानक छोर परक गाछ लगलै। ओ ओहि गाछक हरिअरी पर नजरि टिकौलक। जवाब मे एखनो ओ बहुत रास तर्क द' अजेय रहि सकै छल। यैह तँ ओकरआँखि तृप्त भ' गेलै। शकित छलै। मुदा एक तँ ओहि बातक कने असरि पड़ल छलै आ दोसर, पत्नीक घुरिक' आब' सँ पहिने ओकरा किछु आर जरूरी बात पूछबाक छलै। से शांत होइतमद्धिम स्वर मे बाजल, ''एखन से सब बतायब जरूरी नइँ छै। कहले बात कते कहबौ? ...सुन, एक टा जरूरी बात!..."आ फुसफुसायल, ''ओत' रंगशालाक
हॉल मे हमर किछु भेटबो कयलौ?"
''की?" गाछक पात-पात खिलखिला क' हँसल।
''हमर कुञ्जी?"
''हँ! ...ओ कत' जायत? मंचक काते मे छल।"
''दे!..."
''बाकस मे बंद क' राखि देने छियौ। पहिने ठीक तँ हो!"
''शहर मे कोनो चर्चा?"
''हँ, कल्पना मंचक छौंड़ा सब एक टा रीमिकस तैयार कयलक अछि—
कुञ्जी हेराय गेल भाँगक बाड़ी मे..." क्षणभरि बिलमि फेर नहुँए बाजल, ''आचार्यक 'मुसल आ मुसलमान" कथाक मंच प्रस्तुति आइ मुजकफरपुर मे छिऐ जत' सहरसा सँ जनकपुर धरिक लोक जमा भ' रहल छै। एत' सँ कल्पनो वला सभ गेल छै!.."
ओकरा पर तनाव जकाँ बढि़ गेलै। क्षणेभरि कोठली मे भारीपन रहलै! तखने
चाहक ट्रे लेने एक टा छौंड़ाक संग ओकर पत्नी आ दोसर मीत घुरि अयलै।
रसेरस फेर टेबुल पर रेगिस्तान पसरि गेलै आ गाछ तकर ओहि पार चलि
गेल।
ओ दोसर मीतक मदति सँ गेड़ुआक सहारें ओठङि गेल छल। पत्नीक हाथ सँ
कप पकड़लक। फेर एक टा बिस्कुट ल' नहु-नहु कुतरैत कतहु हेरा गेल छल।
चाहक घोंट लैत ओत' शुरू भेल बाल-बच्चाक पढ़ाइ-लिखाइ, कयाह-दान आमहँगाइक संग-संग क्रिकेटक गह्रश्वप ओकरा जोडि़ नइँ पाबि रहल छलै।
साँझक अन्हार जखन बाहरक वातावरण केँ गाढ़ कर' लागल छलै आ साँझुक
राउण्ड पर आयल डॉकटर देखिक' जा चुकल छलै, घर सँ टिफिन बॉकसवला झोड़ानेने एक टा नवोदित कवि मित्र आबि गेल छलै। राति मे ओहि नवतुरिए केँ रुकबाक छलै।
किछु काल बाद ओकरा पत्नीक संगे ओकर दुनू मीत घर विदा भेल।नवतुरिया कवि सेहो पानिक बोतल आन' लेल बहरायल छल कि पहिल मीत गेटक बाहर सँ घुरिक' ओकरा लग अयलै आ एक टा कने पैघ सन कुञ्जी हाथ मे दैत कहलकै, ''ले! ...एकरा बिना तोरा नीन नइँ हेतौ!" आ झट बहराय गेल।
ओ एक बेर ठीक सँ ओहि कुञ्जी केँ देखलक। बड़ पुरान होइतो सब तरहें नव छलै। पुलक सँ भरि तुरंत जेब मे राखि लेलक। पानि ल'क' घुरल नवतुरिया प्रेम सँ भोजन लगौलकै। नवतुरियाक आवेशभोजन मे रुचि बढ़ा देलकै। तेँ खाय क' पड़ल तँ नवतुरियाक दू गोट कवितोसुनलक। चाबसी द' सब चिंता सँ ध्यान हटा आगू मे जे फिल्म छलै तकरसफलताक कल्पना मे झिहरि खेलाय लागल। नीन किछु जल्दिए आबि गेलै।
ओ देखलक जे ओकर किताब लोकसभ लाइन लगाक' कीनि रहल छै।मारते रास चैनलवला सभ घेरने छै। ओ जल्दी-जल्दी किछु बाजि एक टा उज्जररंगक कार मे बैसि जाइ अछि। कार अज्ञात दिशा मे जा रहल छलै कि नीन टूटि गेलै।
ओ फेर आँखि मूनि जल्दी सँ जल्दी ओहि सपना मे जयबाक चेष्टा कर' लागल।
एहि बेर ओ देखलक जे ओकरा ढाइ लाखक कोनो पुरस्कार भटलै। ओकरासकमान मे पुरस्कार प्रदाता नौकरशाह सभक दिस सँ रंगमंडलक समस्त सदस्यक संगहि वरिष्ठ पत्रकार आ साहित्यकार लोकनिक बीच भव्य पार्टी चलि रहल छै।...अचानक ओहि बीच ठाढ़ एक टा अद्र्धविक्षिह्रश्वत सन युवक चिचिया लगै छै, ''अहाँ सभ अवसरवादी छी! पूजीपतिक दलाल छी!..." कि तमसाक' ओत' जमा सभ केओ अपना-अपना गिलासक दारू ओहि युवक पर फेकि दैत छै।... आ ततेक दारू ओकरा पर खसै छै जे ओ युवक बगलक नाली मे बहि जाइ छै!...
अचानक फेर ओकर नीन टूटलै। एहि बेर ओकर छाती जोर-जोर सँ धड़कि
रहल छलै।कनेकाल मे ओकर मोन स्थिर भेलै, तँ ओ नवतुरिया कवि दिस ताकलक। ओओकरा बेडक दहिना कातक सोफा पर नीन छलै।
ओकर बामा हाथ अनायास पेंटक जेब मे गेलै आ अगिले पल कुञ्जी ओकरा आँगुरक बीच छलै। बड़ीकाल धरि ओ ओहि कुञ्जी केँ देखैत रहल। कुञ्जीदेखैत-देखैत ओकरा अपन वियारंगक ओ अन्हार मोन पडि़ अयलै जे ओकर कुञ्जी तँ गिडऩहि छलै, ओकरा एहि बेड धरि पहुँचा देलकै। वियारं ओहि विद्यापति यात्रीरंगशालाक संक्षिह्रश्वत नाम छलै जकर ओ अध्यक्ष आ निर्देशक छल। जत' पछिला दससाल मे सभ सँ बेसी नाटक ओकरे निर्देशन मे भेल छलै। जत'क ओ सभ सँ सकमानित आ सर्वेसर्वा छल। जत' पहिल मंजिल पर ओकरा एक टा पैघ सन कक्ष भेटल छलै। ओहि कक्ष सँ नइँ मात्र वियारंक सभ टा गतिविधि संचालित करैत छलओ, ओकर समस्त हित-मीतक चौपाल वैह छलै। मुदा ओहि रातुक अन्हार!...
...असल मे ओइ दिन बेरू पहर अशोका मे बालीबुडक एक टा पैघ प्रोड्यूशरसंग ओकर मीटिंग सफल भेल छलै। भूमि समस्या आ सशस्त्र आन्दोलन सन विषय
पर ओ एक टा मसालेदार फिल्मक लेल स्क्रीह्रिश्वटंग आ सह-निर्देशनक एग्रीमेंट साइन कयने रहय। तकरा बाद शैकपेनक दौर जे शुरू भेलै से प्रोड्यूशरक उड़ान-समयक कारणें सँझुका आठे बजे धरि चललै। ओत' सँ ओ बाहर भेल तँ ऑटो मे बैसैतअपन सभ सँ करीबी कॉमरेड दासक मोबाइल पर पहिल सूचना देलक। दास नगरक सभ सँ बेसी प्रसार संकयावला दैनिक समाचार पत्रक कयूरोचीफ रहय। ओ तत्कालओकरा अपन दकतर बजा लेलकै। दासक केबीन मे ओकरा पहुँचिते तय भेलै जे एहि उपलकिध केँ खास दोस्तसभक बीच सेलिब्रेट कयल जाय। से ओतहि सँ फोन क' चारि-पाँच गोट 'हमह्रश्वयाला'साहित्यकार-पत्रकार-रंगकर्मी केँ साढ़े दस बजे धरि वियारं पहुँचबाक सूचना देल गेलै। फेर ओ दासेक खटारा एलएमएल वेस्पा पर पाछाँ बैसि विदा भेल छल। रस्ता मे महात्मा गांधी चौक पर चारि-चारि ह्रश्वलेट चिकन आ पनीर फ्राइ पैक करबौलक। काजू, मूँगफली आ दालमोटक संगे सलादक व्यवस्था क' चारि डिकबासिगरेट सहित दू टा पैघ-पैघ पॉलिथीन पैकेट मे लेलक। दासक डिककीक झोड़ा मेरमक बड़का-बड़का बोतल रखैत आधा सँ कमे बचल अद्धा टकरेलै। ओकराबगलक जूस दोकानक पाछाँ दुनू मीलि खाली करैत अमेरिकन पॉलिसीक चर्चा कर'लागल छल। अपन-अपन सिगरेट जराय जखन ओत' सँ विदा भेल, तँ साहित्यअकादेमी आ मनुवादक व्याकया शुरू भेल छलै।
कनेक तेज सन चलैत बसात जाड़क प्रभाव बढ़ाब' लागल छलै। मुदा ओ दुनूमौसम केँ ठेङा देखबैत वियारं दिस जाइत अपना मे मस्त छल। तेहन मस्त जे साँझेसँ शुरू झिस्सी केँ 'इन्जॉय क' रहल छल।
तखन ओ सभ वियारं सँ किछुए दूर नेहरू स्टेडियम वला मोड़ पर छल कि दूटा घटना एक संग घटलै। एक, बुनिआयब तेज हेबाक संगे बसात बिहाडि़ जकाँ रूपल' लेलकै आ दोसर, दासक जेब मे राखल मोबाइल अंग्रेजी धुन पर चिचियाब' लगलै। कात मे स्कूटर रोकि दास एको मिनट सँ कमे गह्रश्वप कयलक आ पाछाँ घुमिबाजल, ''रौ, समान सभ ल'क' तों जो वियारं। एखन साढ़े नौ भ' रहल छौ। हम एक घंटा मे अयबौ। संपादकक आदेश छै, की क' सकै छी?... चल गेटक बाहरछोडि़ दै छियौ।"
खराब मौसमक बादो गेट सँ दूरे पॉलिथीन पैकेट आ झोड़ा थमा दास स्कूटरमोडि़ फुर्र भ' गेलै। ओ वियारं बिल्डिंग दिस तकलकै। सभ किछु अन्हार मे डूबल
छलै। गेटक दुनू कात स्थित विद्यापति आ यात्री बाबाक प्रतिमा धरि देखा नइँ पडि़ रहल छलै, तँ कालिदास-शैकसपीयर सन-सन मारते रास नाटककारक देबाल मेजड़ल छोट-छोट पाषाण मूर्ति कत' लखा दैतै। हवा प्रचंड भ' गेल रहै आ बुन्नीआर तेज। ओ धतपत आगू बढ़ल। ग्रील-गेट फोलि अन्हार पैसेजक मुँहथरि परठमकल। चिकरिक' रमुआ चौकीदार केँ दू-तीन बेर शोर पाड़लक। मुदा कोनो
उतारा नइँ भेटलै। एहन मौसम मे राति-बिराति ककरो नइँ अयबाक अनुमान क' ओसरबा साइत घर पड़ा गेल रहय! बिजली नइँ रहै आकि स्वीचे लग सँ काटि देनेछलै ढोहरीक सार, से नइँ कहि। ओकरा अपना हाथक पॉलिथीन पैकेट धरि नइँ सुझि रहल छलै। आखिर कहुनाक' सीढ़ी तकबाक साहस क' ओ एक टा पयर आगू बढ़ौनहि रहय कि गेटक सटले कतेको युग सँ ठाढ़ बडग़ाछक एक टा पैघ सनडारि टूटिक' हड़हड़ाइत गेट पर खसलै। ओकरा लगलै, पृथ्वी दलमलित भ' गेलैआकि ओहि गाछ संग पूरा वियारं बिल्डिंग भरभराक' खसि पड़लै! कत' गेलै पॉलिथीन पैकेट सभ, कत' खसलै झोड़ा आ कोकहर अपने ढनमनायल; तकर कोनो ठेकान नइँ रहलै!...बड़ीकाल बाद होश अयलै, तँ ओ कराहि जकाँ रहल रहय। ओकरा पयरलग भीजल सन किछु डारि-पात बुझेलै आ माथ लग सर्द देबाल। देबाल टोब'क क्रम मे ओकर हाथ अपना माथ पर गेलै। ओत' लसलस सन किछु सटल जकाँ बुझेलै। ओ ओकरा रगडि़क' पोछबाक प्रयास कयलक, तँ भीतर सँ पातर सन दर्दहुल्की मारलकै।
तखन ओकरा ई बुझबा मे भाँगठ नइँ रहलै जे ओकर कपार फुटि गेलै आताहि पर शोणितक थकका जमि गेल छै। मुदा तैयो ओकरा ई भान नइँ भ' रहल रहैजेे ओ कत', किऐ आ कोन परिस्थिति मे पड़ल छलै।...
किछु क्षण आरो बीतलै तखन ओकरा नीचाँ सीमेंटक सतहक भान भेलै। कि पयर मोडि़ हड़बड़ाक' बैसल आ घबड़ाक' चारूकात हथोडिय़ा मार' लागल।अचानके ओकरा हाथ मे काँचक एक टा चोखगर टुकड़ी गड़लै आ दर्द सँ सिसिया उठल। मुदा क्षणे बाद ओ फेर हथोडिय़ा द' रहल छल। हथोडिय़ा मारैत ओबदहवाश छल। कि एक ठाम फर्श पर किछु तेजगंधवला तरल पदार्थ बुझेलै। ओहि गंध केँ परख' मे थोड़ समय लगलै, मुदा जहिना ओकरा गंधक पहिचान भेलै कि सभ किछु स्मरण भ' अयलै।आब ओ जल्दी-सँ-जल्दी सीढ़ी ताकबा लेल व्यग्र छल। ओकरा कोनोहालति मे शीघ्र पहिल मंजिल पर स्थित अपन कक्ष मे पहुँचबाक छलै। ओहि कक्षमे जत' इजोतक कैक टा वैकल्पिक साधन रखने छल ओ। ओकर कुञ्जी ओकराजेब मे छलै। बामा जेब मे हाथ द' कुञ्जी छूबिक' ओ आश्वस्त भेल। कि ओकरा कोना क्षण अपन संगी सभक आबि जयबाक आशंका भेलै। अन्हार मे घड़ीअकाजक छलै, से झट ओ दहिना जेब मे राखल मोबाइल निकाल' चाहलक जाहिसँ अन्हारो मे समयक ज्ञानक संग क्षीण-सन इजोत सेहो भेटि सकै छलै। मुदा जेबसँ बहरेलै दू-तीन भाग मे अलग-अलग भेल मोबाइलक पार्ट-पुर्जा! आब ओकरघबड़ाहटि आरो बढि़ गेल छलै। अन्हारक सोन्हि मे ओ तेना भुतिया गेल जे दिशाक कोनो ज्ञाने ने रहि गेल छलै। आरो किछु काल धरि बौअयलाक बादो जखन थाह नइँ लगलै, तँ अन्हारक कोनो अज्ञात स्थल पर ओ सुस्ताब' लागल छल। सुस्ताइत-सुस्ताइत ओकरा भीतरहँसी जकाँ किछु फुटलै। ओकरा मोन पड़लै जे एतबे टा जिनगी मे ओ कतेक बिहडि़धाँगि आयल छल। लगभग एक दशक तँ अण्डरग्राउण्डे रहल छल। केहन-केहन कठिन ऑपरेशन सफल कयने छल। कतेक मुठभेड़, कतेक काउन्टर मे बमगोलीक बीच सँ निकलि आयल छल ओ!... ओकर ई इतिहास आइयो कतेको युवा केँ प्रेरणा दैत छलै।अपन स्वर्णिम अतीतक स्मरण सँ ओकरा भीतर साहसक संचार भेलै।उठिक' सावधान मुद्रा मे ठाढ़ भेल आ दृढ़ निश्चय क' एक सीध मे थाहि-थाहिक' बढ़' लागल। किछुए क्षण बाद सहसा ओकरा ठेहुन सँ किछु टकरेलै। हाथ सँ छूबिक' ओ परखलक—आगू मे कुर्सी छलै। फेर हाथ बढ़ाय क' ओ एकहर-ओकहर टटोललक—कुर्सीक पतियानी लागल छलै। तत्काल ओकरा बुझबा मे आबि गेल छलै जे ओ फुजले रहि गेल दुआरि सँ मेन हॉल मे आबि गेल छल। तखन कुर्सीदर-कुर्सी पकड़ैत ओ बीचक रस्ता ध'क' सभ सँ आगूक कुर्सी धरि पहुँचि गेल।एत' पहुँचि ओकरा सब किछु सुरक्षित जकाँ बुझेलै। से ओ ततेक आश्वस्त भ' गेलजे आराम सँ ओहि कुर्सी पर बैसि पयर पसारि देलक।आब ओकरा मेहमान मित्र सभ सँ पकड़ेबाक कोनो चिंता नइँ रहलै। तेँ धीरे धीरे ओ ओकरा सभ केँ बिसरय लागल छल। कि तखने सेलिब्रेट करबाक अवसरक महकाा मोन पड़लै। मोन मे कनेक कचोट भेलै। मुदा एते पैघ नाट्य-अनुभव ओकरासभ स्थिति मे तालमेल बैसायब सिखा देने छलै।
आब ओ सहज भ' जयबाक स्थिति मे आबि रहल छल कि ठीक तखने मंचक बीचोबीच खसैत प्रकाशक एक फाँक मे ओकर प्रतिरूप ठाढ़ देखा पड़लै।क्षणभरि मुरुत जकाँ ठाढ़ रहलाक बाद प्रतिरूप अचानक बाजल, ''रौ मीत, किऐदु:खी छें?
''अयँ!... तों के?" ओ अकचकाइत पूछलकै।
''नइँ चिन्हले हमरा?... कोनो बात ने! चिंता नइँ करय, दुनिया एहिना चलै छै!" प्रतिरूप मुस्किआइत कहलकै।
''मुदा छें के तों?" ओ फटकारैत पूछलकै आ उठिक' ठाढ़ भ' गेल।
''हमरा चिन्हि क' की करबें? दुनिया तोरा चिन्है छौ! दोसर खेमाक लोक के गरियाबैत रह! ओ सभ पतीत छै, कुपमंडुप छै, समाज केँ पाछाँ ल' जायवला छै।ओकरा ई सभ कहला मात्र सँ समाज बदलि जयतै आ तों महान भ' जयबै! फेरअंग्रेजी बोहु-बेटी घर अयतौ। स्टेटस बदलि जयतौ! बेचारी बहिन हिंदी बड़अलच्छी, बाड़हनि झाँट!... प्रतिरूपक स्वर संयत छलै।
''तों हमरा पर व्यंग्य करै छें?" ओ फेर बिगड़लै।
''व्यंग्य?... एहि सभ पर तँ तोरा महारत छौ। बस लिखैक फुर्सति नइँ छौ। नेतँ आलोचक जीक गुरुद्वारा मे माथ टेकिते कोर्स मे लागि गेल रहितौ। आचार्यक प्रसाद पबिते साहित्य अकादेमी भेटि गेल रहितौ!"
''हम कोर्सक भूखल नइँ छी। आचार्य आ आलोचक जी केँ ठिठुआ!...
साहित्य अकादेमी चाहबे ने करी हमरा! हम ओहि पर थुको फेक' नइँ जायब। हमतँ व्यापक सामाजिक परिवर्तनक आकांक्षी छी। समातामूलक वैज्ञानिक सोचक आग्रही। सदिखन जनते टा हमरा नजरि मे रहै अछि।" ओ आक्रोश सँ भरल स्वर मे गरजलक।
प्रतिरूप थपड़ी पाडय़ लगलै, ''वाह! वाह! कतेक कर्णप्रिय लगैत अछि ईसब! अद्ïभूत!... जँ सरिपहुँ एना होइतय!...सय मे निन्यानबे टा मैथिली भकत दुमुँहेबहराइतय?..."
ओ छड़पि क' मंच पर चढि़ गेल छल, ''तोरा बुझल नइँ छौ, मंच परडायरेकटरक इच्छाक विरुद्ध केओ एको क्षण ने रहि सकै अछि! जल्दी भाग! हम
की क' सकै छी से बुझले ने छौ तोरा!"
''डायरेकटर छें तों?... धुर्र! अपन कोठलीक ताला तँ खोलिए ने सकै छें! जोतँ अपन कोठली?..." प्रतिरूप ओहिना ठाढ़ रहलै।
ओ तामसे कँपैत कुञ्जी निकालि लेलक, ''देख, देख कुञ्जी हमरा हाथ मेअछि। देख!..." कि तखने ओरा हाथ सँ छिटकि क' दर्शकदीर्घा दिस गेल कुञ्जीअन्हारक समुद्र मे डूबि गेलै।
अचानक प्रतिरूप जोर-जोर सँ हँसैत ठहाका लगब' लागल।
अपमान सँ माहुर होइत ओ प्रतिरूप केँ मारै लेल दौड़ल। प्रतिरूप अलोपित भ' गेलै। मुदा अन्हार मंच पर ओ बताह जकाँ दौडि़ रहल छलै। कि हठात चारि फुटनीचाँ मंचक आगू मे ओ अरर्रा क' खसल—धड़ाम! ...  
अस्पतालक बेड पर पड़ल-पड़ल ओकरा लगलै, भीतर सँ ओ खुकख भ' गेल,
एकदम कोढि़ला!...
देह पसेना-पसेना छलै! कंठ सुखाय लागल छलै। बामा हाथक कुञ्जी दहिना जेब मे नुकबैत बड़ प्रयास क' ओ बगलक सोफा पर सूतल नवतरिया कवि केँ आवाज देलक।
अकचकाइत जागल ओ कवि ओकरा संकेत पर गिलास मे पानि भरि आनलक।ओकरे सहारा पाबि माथ अलगा क' ओ दू घूट पानि पीबि असोथकित जकाँ पडिऱहल।
नवतुरिया दया भरल नजरिएँ एकटक ओकरा देखैत रहलै। सामनेक खिड़कीक
साफ होइत काँच भोरक आभास द' रहल छलै।

की हमहूँ रहबै कुमार - मदन कुमार ठाकुर

यौ पाठक गण की कहू अपन मिथिला राज्य चौपट भ' गेल ( से कोना यौ ) एक त कमला कोशीक दहार आ दोसर दहेज़ प्रथाक व्यवहार ! कमला कोशी लेलक पेटक आहार त दहेज़ प्रथा केलक आर्थिक लाचार ! कन्यादान से कतेक पिता लोकनि सेहो भेला बीमार आ कतेको बर छथि ओही बाधा सँ सेहो कुमार आ बीमार ! ओही सभ बात के लs क' हम नब युबक संघक बाधा कs ल'क' पाठक गणक समक्ष मैथिल आर मिथिला पर हाजिर छी.......


जय गणेश मंगल गणेश, सदिखन रटलो मंत्र उचार !
सभ बाधाक हरय बाला, कते गेलो अहाँ छोड़ि संसार !!
अपना लेल अगल - बगल मे, हमरा लेल किए दूर व्यवहार !
आब कहू यो गणपति महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार... !!


बरख बीत गेल देखते देखते, जन्म कुंडली मे थर्टी ! (३०)
दहेजक आस मे हम नै बैसब, हमरो उम्र भो जेत सिक्सटी !! (६०)
गाम - गाम मे जे के बाजब, बाबू हमर छथि दुराचार !
आब कहू यो बाबू - काका, की हमहूँ रहबै कुमार... !!


ब्रह्म बाबा के सभ दिन गछ्लो, लगाबू अहि लगन मे बेरापार !
ओही खुशी मे अहाँ के देब, हम अपन गाय के दूधक धार !!
हे कुसेश्वर हे सिंघेश्वर, अहाँक महिमा अछि अपरम पार !
अहि लगन मे पार लगाबू, हम आनब दूध दही आ केराक भार !!
आब कहू यो भोले दानी, की हमहूँ रहबै कुमार .......


सौराठ सभा मे जे के बैसलों, सातों दिन आ सातो राति !
कियो नै पुछलक नाम आ गाम, की भेल अपनेक गोत्र मूल बिधान !!
घर मे आबी के खाट पकरलो, नै भेल आब हमर कुनू जोगार !
आब कहू यो बाबा - नाना, की हमहूँ रहबै कुमार !!


दौर - दौर जे पंडित पुर्हित, सभ दिन पूछी राय बिचार !
पंडित जी के मुहँ से फुटलैन ई बकार ..........
जेठ अषाढ़ त बितैते अछि, अघन से परैत अछि अतिचार !!
आब कहू यो पंडित पुर्हित, की हमहूँ रहबै कुमार .....


नै पढ़लो हम आइये - बीए, छी हमहूँ यो मिडिल पास !
डॉक्टर भइया - मास्टर बहिया, ओहो काटलैथ एक दिन घास !!
ओही खान्दानक छी यो हमहूँ, जून करू आब हमर धिकार !
आब कहू यो बाबू - भैया, की हमहूँ रहबै कुमार !!


गोर - कारी सभ के रखबै, लुल्ही - लंगरी से घर के सजेबई !
बौकी पगली के दरभंगा में देखेबाई, कन्ही कोतरी से करब जिन्दगी साकार !!
आब कहू यो संगी - साथी, की हमहूँ रहबै कुमार ..........


अघन के लगन देख हम झूमी उठलो, जेना करैत अछि नाग फुफकार !
लगन बीत गेल माघ फागुन के, गुजैर रहल अछि जेठ अषाढ़ !!
अंतिम लगन ओहिना बितत, नैया डूबत हमरो बिच धार !
आब कहू यो मैथिल आर मिथिलाक पाठक गन, की हमहू रहबै कुमार !!

नब युवक के बातक रखलो मान, शादी.कॉम में लिखेलो अपन नाम !
नै कुनू भेटल कतो से मेल, लागैत अछि जे ईहो भेल फैल !!
कतेक दिन करब मेलक इंतजार........
आब कहू यो कम्पूटर महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार !!

भोरे उठी गेलो खेत खलिहान, उम्हरे से केना एलो कमला स्नान
देखलो दुई चैर आदमी के, बात करैत छल कन्यादान !
पीड़ी छुई हम भगवती के, पहुँच गेलो हम अपन दालान !!
हाथ जोरी हम सबके, विनती केलो बारम् बार !
आब कहूँ यो घटक महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार !!





मदन कुमार ठाकुर,
कोठिया पट्टीटोला,
झंझारपुर (मधुबनी)
बिहार - ८४७४०४.

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