ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ८४ म अंक १५ जून २०११ (वर्ष ४ मास ४२ अंक ८४)
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.मनोज कुमार झा-शासक लोकनिसँ (बाढ़िक सन्दर्भमे)
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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संग समय के (कविता संग्रह)- महाप्रकाश 2.72% (44 votes)
भाग रौ बलचंदा (दू नाटक)-विभारानी 2.35% (38 votes)
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नो एंट्री मा प्रविश (नाटक )- उदय नारायण सिंह "नचिकेता" 16.65% (269 votes)
गामक जिनगी (कथा संग्रह)-जगदीश प्रसाद मंडल 21.1% (341 votes)
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक (विविधा)-गजेन्द्र ठाकुर 20.17% (326 votes)
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मेनका मल्लिक- देश आ अन्य कविता सभ (रेमिका थापा- नेपाली) 22.77% (74 votes)
कृष्ण कुमार कश्यप आ शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द (जयदेव - संस्कृत) 14.77% (48 votes)
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ले.क.मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ- बालकथा संग्रह) 23.92% (111 votes)
जीवकांत - खिखिरक बिअरि- कविता संग्रह) 11.21% (52 votes)
विद्यानाथ झा "विदित" (साते भवतु सुप्रीता- बाल उपन्यास) 11.42% (53 votes)
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Thank you, we have already counted your vote. आनंद कुमार झा- हठात् परिवर्त्तन ( नाटक) 50.28% (442 votes)
विनीत उत्पल - हम पुछैत छी (कविता संग्रह ) 16.5% (145 votes)
उमेश मंडल- निश्तुकी ( कविता संग्रह) 16.84% (148 votes)
ज्योति सुनीत चौधरी- अर्चिस (कविता संग्रह ) 15.59% (137 votes)
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संपादकीय
१
सिद्ध सरहपाद आ तिब्बती लिपि: राधाकृष्ण चौधरीजीक पोथीक डिजाइनमे हम जखन सिद्ध सरहपादक फोटो देलौं तँ ओकर नीचाँमे लिखल तिब्बती लिपि, जे चीनी लिपिसँ एकदम्मे फराक अछि आ सिक्किमक लेपचा आ लिम्बू (सुब्बाभाषा) सँ लग, दिशि अनायास ध्यान आकृष्ट भेल। सिक्किमक राजा चोग्याल बौद्ध छलाह, ओ सभ आ हुनकर वंशज सभ सिक्किमी कहल जाइ छथि, जेना डेम्जोंगपा, ओ सभ भुटिया भाषा बजै छथि, मुदा जखन भूटान तिब्बत आदिसँ राजा लग भुटिया भाषी सभ एलाह तँ दुनूमे अन्तर देखाबए लेल सिक्किमी आ भुटिया ई दू भेद भेल। मोटा-मोटी सिक्किमक लोकसँ गप करब तँ ओ तिब्बती आदि सभ भाषा जे नेपालीक अतिरिक्त अछि, केँ भुटिया कहि दै छथि।
गंगटोकमे भरत सुब्बा कहै छथि जे ओ शुद्ध नेपाली छथि आ सुब्बाभाषा (लिम्बू) लिपि छी, अपन दादाकेँ ओ पढ़ैत देखने छथि मुदा हुनका ई भाषा नै अबै छन्हि। लेपचाक मुदा भाषा आ लिपि दुनू अलग अछि।
दिनेश खरका नेपाली ब्राह्मण छथि, ओ कहै छथि जे सिक्किममे नेपाली पढ़ू, भुटिया पढ़ू वा लेपचा पढ़ू, कोनो रोक नै छै। लेपचा एतुक्का आदिवासी छथि। भुटिया पढ़लासँ पर्यटन विभागमे नोकरी भेटबामे आसानी होइ छै। ओ कहै छथि जे नेपालक नेपाली आ एतुक्का नेपालीमे सेहो अन्तर छै। लड़का-लड़की हम सभ कहै छी मुदा नेपालमे लड़काकेँ बाबू आ लड़कीकेँ नानी कहल जाइत अछि। कान्छा-कान्छी घरक सभसँ छोट लड़का-लड़कीकेँ (बाबू-नानीकेँ) कहल जाइत अछि। उरगेन भुटियाक माता नेपाली छथिन्ह से हुनका भुटिया नीक जकाँ नै अबै छन्हि, ओ सिक्किममे नै रहै छथि, दार्जिलिंगमे रहै छथि जे पश्चिम बंगालमे छै, से ओतुक्का शिक्षा व्यवस्था बांग्ला आ नेपालीक अतिरिक्त दोसर भाषाक विषयमे अनुदार अछि, बिहारे सभ जेकाँ जकर शिक्षा व्यवस्था हिन्दीक अतिरिक्त दोसर भाषाक प्रति असहनशील अछि, से भुटिया भाषा एतए खतमे बुझू। सिक्किम मुदा ऐ मामिलामे उदार अछि।
छिरिंग पहिने हमरा कहै छथि जे ओ भुटिया (जकरा ओ तिब्बती कहै छथि) बजै छथि, फेर उत्तर सिक्किमक लाचुंगक रस्तामे खेनाइ खाइले एकठाम ओ रुकै छथि, महिला कहै छथि जे ओ तिब्बती छथि। हुनका लग देहरादूनसँ एकटा लामा आएल छथिन्ह जे हमरा तिब्बती लिपि सिखबै छथि। लाचुंगक बगलमे छै लाचेन। आब छेरिंग याककेँ देखि कऽ असल भेद खोलै छथि। ओ कहै छथि जे भेड़पालककेँ डोंगपा कहल जाइ छै। लाचुंगक जे लोक अछि से लाचुंगपा उपाधि राखै छथि आ ओ बगलक लाचेनक छथि आ तेँ हुनकर नाम छन्हि छेरिंग लाचेनपा। सभ लाचुंगपा डोंगपा नै छथि मुदा बेसी डोंगपा लाचुंगपा उपाधिबला छथि। डेंगजोंगपा लोकनि गंगटोकमे रहै छथि, व्यापार करै छथि। टोक माने ऊँचपर, जेना एकटा जगह छै गणेश टोक। ओ कहै छथि जे भुटिया भाषासँ लाचेनपा आ लाचुंगपाक भाषा अलग होइत अछि। ओ बौद्ध छथि। लाचुंगपा आ लाचेनपा भाषामे शॉर्टकट/ लॉन्गकटक अन्तर अछि। लाचुंगसँ आगाँ जीरो धरि सड़क छै जतए गाछ-बृच्छ खतम भऽ जाइ छै आ ऑक्सीजनक कमी भऽ जाइ छै, मुदा एतए मई- आरम्भक जून मास धरि बरफ देखबामे आओत। रस्तामे आ मोनेस्टरी लग सभ ठाम तिब्बती भाषामे मंत्र लिखल “प्रेयर ह्वील” देखबामे आएत। मोनेस्टरी जेबा काल एकटा बाल भिक्षु प्रेयर ह्वील घुमेबासँ मना करै छथि आ कहै छथि जे घुरबा काल एकरा घुमाएल जाइ छै आ सेहो घड़ीक सुइयाक दिशामे। रस्ता सभमे १०८ टा झण्डामे तिब्बती भाषामे मंत्र लिखलभेटत। जँ ई सभटा उज्जर रंगक अछि तँ कोनो मृतकक स्मृतिमे हुनकर परिजन लगेने छथि आ जँ ई सभ विभिन्न रंगक अछि तँ बुझू जे ग्रह शान्ति लेल ई फहराएल गेल अछि। छिरिंग कहै छथि जे जावत झण्डामे लिखल मंत्र नै मेटाइत अछि तावत हवा एकरा नै खसा सकैए, जखन ई मलिच्छ पड़ि जाइए तखने हवा एकरा उड़ा सकैए।
सांगू झील जे नाथूला (अकानैबला कानक दर्रा) क रस्तामे अछि (पूर्व सिक्किम), ओतए प्रदीप तमांग याकक संग भेटै छथि, पहाड़क पाछाँ हुनकर गाम छन्हि। ओ कहै छथि जे तिब्बती आ भुटिया भाषामे अन्तर छै, मुदा समानतो छै। नाथूला चौदह हजार फीटपर अछि आ प्राचीन कालसँ भारत-तिब्बतक बीच व्यापार लेल ऐ दर्राक उपयोग होइत रहल अछि। एतौ जीरो जकाँ ऑक्सीजनक कमी अहाँकेँ बुझा पड़त। ऐ दर्रासँ आइयो तिब्बती व्यापारी रेशम लऽ कऽ शेराथांग गामक शेड लागल हाट-बजार अबै छथि आ एतएसँ बदलामे बिस्कुट आ डलडा लऽ जाइ छथि।
दिनेश तमांग गंगटोकमे कहै छथि जे ओ नेपाली बौद्ध छथि। मुदा बंगालमे जन्म छन्हि। गोरखालैण्डक मांग नै मानल जाएत से हुनकर कहब छन्हि कारण से मानलासँ जलपाइगुरीक कान्तापुरी (कामतापुरी) आ कूच बिहारक अलग प्रान्तक मांग सेहो मानए पड़तै, ओ ऐ दुनू जगहक भाषाकेँ बांग्लासँ अलग कहै छथि आ ओकरा “वाया बंगाली” (बाहे बंगाली- बंगाली आ बाहे बंगालीमे भाषाक अतिरिक्त शारीरिक गठन सेहो बंगालीसँ भिन्न ओ कहलन्हि, दोसर ओ ईहो कहलन्हि जे सत्य पूछी तँ यएह बाहे बंगाली असली प्रारम्भिक बंगाली छल) कहै छथि।
संलग्न चित्रमे तिब्बती लिपि सिखबाक विधि दऽ रहल छी।
२
अन्तर्जाल आ मैथिली साहित्य आन्दोलन: मैथिलीपर भऽ रहल अन्तर्जालीय सम्वाद कखनो काल जातिगत स्वरूप लऽ लैत अछि, लोक जोर-जोरसँ चिकड़ऽ लागै छथि आ सम्वादकेँ रोकऽ चाहै छथि। मैथिलीकेँ मारि कऽ पारि दैबला सभ मैथिली मरि जाएत डिसकसन छोड़ि दियौ, सम्वाद बन्न करू, करए लगैत छथि।
किछु प्रमुख सम्वाद जे अन्तर्जालपर ऐ बीच चर्चामे रहल:
साहित्यिक वर्णसंकरता आ हिन्दीक प्रश्न: आशीष अनचिन्हार मैथिली आ हिन्दी दुनूमे लिखैबला खास कऽ दुनूमे एक्के बौस्तुकेँ मौलिक कहि लिखैबलाक खिलाफ एकटा बहसक आरम्भ केलन्हि। मूल रूपमे ई मुद्दा किरणजीक छियन्हि। सुभाष चन्द्र यादव जीक कथा संग्रह “बनैत बिगड़ैत” क आमुखमे हमहूँ ई मुद्दा उठेने छी। एकर बहसमे विनीत उत्पल सम्बन्धित रचनाकार सभकेँ ऐ पर अपन स्थिति स्पष्ट करबा लेल कहलन्हि। अविनाश दास कहलन्हि जे मुद्दा तँ सही अछि मुदा घृणा आ आक्रोशसँ उठाएल गेल अछि, ओ ऐ नाम सभमे यात्रीजी आ तारानन्द वियोगीकेँ छोड़बाक आग्रह केलन्हि आ कहलन्हि जे ई सभ प्रतिभाक बलसँ हिन्दी-मैथिलीमे आवाजाही करबामे निपुण छथि। हुनकर ईहो धारणा छल जे अमर आ सुमनक कविता दब अछि आ ओइसँ थोथा चनाक अबाज अबैए। आशीष अनचिन्हार कहलन्हि जे तखन हिन्दीक सेहो सभ छन्दोबद्ध रचनाकेँ खारिज करए पड़त। मुदा तइपर बकथोथी शुरू भऽ गेल। गप घुमैत-घुमैत पहुँचल आ अविनाश कहलन्हि जे अनुवाद-मौलिकता कोनो चीज नै होइ छै। ओइपर हम अपन विचार देलौं जे अनुवादमे किछु कमी होइ छै भलहि ओ अनुवाद स्वयं द्वारा किए नै कएल गेल हुअए। हिन्दीक पाठककेँ ई अधिकार बनै छै जे ओकरा कहल जाए जे ओ हिन्दीमे मौलिक रचना पढ़ि रहल अछि आकि मैथिलीसँ हिन्दीमे कएल अनुवाद। तहिना मैथिलीक पाठककेँ सेहो ई हक बनै छै जे ओकरा कहल जाए जे ओ मूल मैथिली पढ़ि रहल अछि वा हिन्दीसँ मैथिलीमे कएल अनुवाद। अविनाश ऐपर कहलन्हि जे अहाँ जै भाषा (मैथिली) क पाठकक हकक गप कऽ रहल छी ओतए पाठकक संख्या कतेक छै, १०, १००, १०००...। तकर बाद बहस बढ़ैत गेल आ अविनाश जी अनचिन्हारजी केँ कहलन्हि जे जखन तर्क खोखला भऽ जाइए तँ व्यक्तिगत आक्षेप बढ़ऽ लगैए आ ऐ मामिलामे अहाँ आ हम दुनू कमीना छी। बादमे अविनाशक गपक जवाब दैत हम लिखलौं जे ई महानुभाव मैथिलीमे पाठकक संख्यापर गप उठेने छथि आ गनती १० सँ शुरू केने छथि तिनका हम कहऽ चाहै छी जे प्रिंट आ पी.डी.एफ.क तँ गप छोड़ू, हमर उपन्यास सहस्रबाढ़निक ब्रेल संस्करणक पाठक तीन संख्यामे छथि। तकर बाद तारानन्द वियोगी जीक हिन्दीमे रंग-तरंग आ अभद्र भाषा (रे-रे सम्बोधित कएल भाषा) मे पोस्ट दोसर ठाम आएल (विदेहक फेसबुक चौबटियापर) आ अपनाकेँ ओ गएर-मैथिल घोषित कएलन्हि आ सम्वेदनाक गप उठेलन्हि। ओइपर एकटा पाठक हुनका लेल मैथिलीक उपयोगिता पुरस्कार पएबा धरि सीमित बतेलन्हि तँ दोसर पाठक हुनकर सम्वेदनाक स्वरकेँ फूसि बतेलन्हि आ हुनका अपन “समय साल” मे पठाओल लेखक विषयमे मोन पाड़लन्हि जकर चर्चा बहुत दिन धरि मैथिली साहित्य मध्य चलैत रहल छल- ऐ लेखमे ओ विभूति आनन्दकेँ मैथिलीक मूल साहित्य अकादेमी पुरस्कार देल जएबाकेँ सान्त्वना पुरस्कार बतेने रहथि कारण ओइ बर्ख हुनकर जवान बेटाक मृत्यु भऽ गेल छलन्हि। ई पाठक वियोगीजी सँ प्रश्न केलन्हि जे तखन की अहाँक सम्वेदनाकेँ लकवा मारि गेल छल। एकटा पाठक प्रश्नक जवाबमे श्रीधरम कहलन्हि जे जाइ तरहेँ मैथिलीक किछु बेटा सभ यात्रीसँ वियोगी धरिक लेखनीक मौलिकतापर प्रश्न उठेने छथि तँ ओइ स्थितिमे कियो अही तरहेँ सोचि सकैत अछि। ओ ईहो कहलन्हि जे जँ हिनका सभकेँ हटा देल जाए तँ मैथिली साहित्यमे की बचत अण्डा !! बहुत दिनक बाद सुनील कुमार मल्लिक सेहो ऐ पोस्टपर वियोगीजी सँ प्रश्न केलन्हि जे अहाँ मैथिल नै छी तँ अहाँक आइडेन्टिटी की छी? सुभाष चन्द्र मोन पाड़लन्हि जे गंगेश गुंजन कमानी ऑडिटोरियममे मैथिली लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कार लैत काल कहने रहथि जे ओ हिन्दीमे लिखै छथि मुदा मैथिलीबला सभ हुनका पुरस्कार दऽ देलकन्हि से ऐ तरहक लेखकक विरोध हेबाक चाही। उमेश मंडल प्रश्न उठेलन्हि जे जखन मूलो मौलिक आ अनुवादो तखन अनुवाद नाम किए भेल? विभा रानी स्वीकार केलन्हि जे हुनकर एकटा कथा मैथिली आ हिन्दी दुनूमे मौलिक अछि। ओ लिखलन्हि जे पहिने शुद्धतावादी सभक दुआरे शोलकन्ह सभ मैथिली छोड़ि चलि गेल आ आब हुनका बजाओल जा रहल अछि जेना उपकार कएल जा रहल हुअए। उमेश मंडल जवाब देलखिन्ह जे अहाँ कएटा शोलकन्हपर पछिला २५ बर्खमे उपकार केलिऐ, अहाँक बच्चा लिखए तँ प्रतिभाशाली आ शोलकन्हक बच्चा लिखए तँ ओकरापर अहसान कएल जा रहल छै। तारानन्द वियोगी लिखलन्हि जे हुनकर “ई भेटल तँ की भेटल” हुनकर “ये पाया तो क्या पाया” क अनुवाद नै छी। वियोगीजी लिखलन्हि जे “ई भेटल तँ की भेटल” ३२ पृष्ठक पोथी अछि आ “ये पाया तो क्या पाया” १५० पृष्ठक जे २०११ धरि प्रकाशकक कृपासँ बहार नै भऽ सकल अछि। आशीष अनचिन्हार वियोगजीक कर्मधारयक फ्लैपक स्कैन लगेलन्हि जइमे “ये पाया तो क्या पाया” २००५ ई. मे प्रकाशित कहि वियोगीजी स्वयं देखेने छथि। एकटा पाठकक ई पुछलापर जे ई कोन प्रकाशक छथि आ ई १५० पृष्ठक पाण्डुलिपि हस्तलिखित छल वा टंकित आ की ओ तकर स्कैन १० दिनमे एतए दऽ सकै छथि, तकर जवाब ओ दू मासक बादो नै दऽ सकलाह। जातिक गप फेर आएल आ ईहो जे की ई संयोग अछि जे साहित्यिक वर्णशंकरताक दोषी एकोटा कर्ण कायस्थ लेखक नै छथि।
काल्पनिक प्रश्नोत्तरी आधारित मैथिली समीक्षा: काल्पनिक प्रश्नोत्तरी आधारित मैथिली समीक्षा जइमे लेखक/ समीक्षक कोनो मृत लेखकसँ भेल व्यक्तिगत चर्चा जकर कोनो इतिहास ओइ मृत लेखकक लेखनीमे नै भेटैत अछि-क चर्चा करैत अछि आ अपन लेखनी/ समीक्षाकेँ मजगूत बनबैत अछि- क चर्चा भेल आ ऐ मे मोहन भारद्वाज आ तारानन्द वियोगीक चर्चा आएल। बलचनमाक धोधिक सम्बन्धमे एकटा काल्पनिक प्रश्नोत्तरीक चर्चा मोहन भारद्वाजक परिप्रेक्ष्यमे हम विदेह प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचनामे कऽ चुकल छी। आशीष अनचिन्हार “तुमि चिर सारथि” मे तारानन्द वियोगी द्वारा स्वयंकेँ दीन-हीन दलित कहबाक मामिला पकड़लन्हि कारण ओ नहिये जातिसँ दलित छथि आ महिषीक लोकक अनुसार बेस जमीन-जत्था, पाइ कौड़ीबला छथि, आशीष अनचिन्हार कहलन्हि जे ई सम्वेदना प्राप्त करबा लेल झूठ तथ्यक प्रयोग अछि। दोसर तथ्य जे ओ अही पोथीसँ उठेलन्हि से छल काल्पनिक प्रश्नोत्तरीबला जइमे वियोगीजी लिखलन्हि जे यात्री जी अविवाहित मातृत्वक पक्षमे छलाह, ई हुनका यात्रीजी कहने छलखिन्ह !! यात्रीजीक स्वयं कएल लेखन एकर पक्षमे नै अछि। एहेने तरहक एकटा अमेरिकीक फेक संस्मरण आएल छल जइमे ओ अपनाकेँ तालिबानी द्वारा पकड़ल जएबाक आ प्रतारणा सहबाक चर्च केने छल, करोड़ों टाका जखन ओ पोथी कमा लेलक तखन एक्सपोजे आएल जइमे सिद्ध कएल गेल छलै जे ऐ तरहक किछु भेले नै छलै आ अफगानिस्तानक ओ गौँवा सभ जतए ओ व्यक्ति आपदाक बाद शरण लेने छल, ओतए ओइ व्यक्तिक नीक सेवा कएने छल। गोविन्द झाक मादेँ अजित आजाद लिखलन्हि जे ओ दुखी छथि जे नव लोक हुनकासँ सलाह नै लैत अछि तँ प्रकाश झा लिखलन्हि जे बड्ड जल्दी हुनका नव लोक मोन पड़ि गेल छन्हि, एहेने हालत ओइ सभ गोटेक हेतन्हि जे नव पीढ़ीक अवहेलना करत। आशीष अनचिन्हार प्रकाश झाकेँ मोन पाड़लखिन्ह जे मैथिली-भोजपुरी अकादेमीक बहन्ने ओ शेफालिका वर्मा आ गंगेश गुंजनपर अनर्गल आरोप किए लगेलन्हि। प्रकाश झा कहलखिन्ह जे ओ आशीष अनचिन्हरकेँ सेमीनारमे नै बजाओल गेलन्हि आ गौरीनाथकेँ सेहो आइ धरि नै बजाओल गेलन्हि, तेँ ओ ई प्रश्न उठेने रहथि। तइपर आशीष अनचिन्हार कहलखिन्ह जे महिला दिवसपर जखन सभ महिलाकेँ बजाओल गेल रहन्हि तखन ओ आ गौरीनाथ की करए जैतथि आ आशीष अनचिन्हार प्रकाश झाकेँ ईहो मोन पाड़लखिन्ह जे ओ अपन अनियमित पत्रिकाक माध्यमसँ छद्मनामसँ गौरीनाथकेँ जे विकट-विकट गारि पढ़ने छलखिन्ह से गौरीनाथकेँ मोने हेतन्हि। शेफालिका वर्मा आ गंगेश गुंजनक हुनका द्वारा पूर्वमे फज्झति करबाक तथ्य सेहो फेर सोझाँ आएल। वियोगीजी सम्वाद बन्न करबाक आग्रह केलन्हि आ कहलन्हि जे गोविन्द झा ठीके कहने छलाह जे मैथिली (मैथिली साहित्य) ३०-४० सालमे मरि जाएत। राधाकृष्ण चौधरी जीक “अ सर्वे ऑफ मैथिली लिटरेचर” विदेहक सौजन्यसँ श्रुति प्रकाशनसँ आएल आ ओइपर दूटा टिप्पणी सेहो आएल। विभूति आनन्द अपन “भाषा टीका” मे लिखै छथि जे ऐ पोथीक आमुखमे राधाकृष्ण चौधरी जै जतियारेक गप करै छथि ई पोथी तइसँ गछारल अछि। भीमनाथ झा अन्यत्र राधाकृष्ण चौधरीजीपर पोथीक आमुखमे लिखै छथि जे इतिहासमे सभ हरही-सुरहीक चर्चा नै हेबाक चाही, से मुदा राधाकृष्ण चौधरीक ऐ पोथीमे भेल अछि। मुदा विभूति आनन्द आ भीमनाथ झा ऐ सन्दर्भमे देल अपन-अपन एक पाँतीक निर्णयक पक्षमे कोनो उदाहरण नै देलन्हि। धनाकर ठाकुर चर्चा करै छथि जे मैथिलीकेँ पाइ कमेबाक आधार बनाबएबला लोक सभ हुनकर मिथिला राज्यक समर्थन नै करै छथि आ हुनकर ऐ सम्बन्धमे मेल पठेबापर अभद्र मेलसँ प्रत्युत्तर दैत छथि। ओ विदेहपर साहित्य अकादेमी पुरस्कार लेल वोटिंग करेबाक विरोध केलनि आ उमेश मण्डल केँ लिखलन्हि जे अहाँ सभ जे मेहनतिक महल ठाढ़ केने छी तइमे संस्था सभक सेहो योगदान छै। उमेशजी जवाब देलखिन्ह जे ई वोटिंग अगिलो सालसँ जारी रहत आ एकर प्रक्रिया एकरा प्रतिष्ठित बनेने छै आ तकरा अभिलेखित कएल जाएत जखन राधाकृष्ण चौधरी जीक सर्वे ऑफ मैथिली लिटेरेचरक दोसर भाग (लेखक- गजेन्द्र ठाकुर) मे ई वर्णित हएत, जइपर हम अपन सहमति देखेलौं। उमेश मण्डल ईहो लिखलन्हि जे मेहनतिक जे महल ठाढ़ भेल छै तइमे संस्था सभक कोनो योगदान नै भेटल छै (जातिवादी तत्वक संस्था सभक विरोध अबस्स भेटल छै) आ ने संस्था सभक भविष्यमे कोनो योगदान लेल जेतै। धनाकर ठाकुर कहलन्हि जे रमानन्द झा “रमण”, देवशंकर नवीन आ प्रकाश झा विदेहमे प्रकाशित छथि आ से हिनका लोकनिसँ हम गप करी जे ओ लोकनि किए मैथिली-मैथिली करै छथि आ मिथिला राज्यक मेलक विरोध करै छथि। चन्द्रनाथ मिश्र “अमर”क सौभाग्य मिथिलामे मिथिला राज्यक विरोधक चर्चा करैत ओ कहलन्हि जे ऐ तरहक मैथिली साहित्यकारक बहिष्कार हेबाक चाही। देवशंकर नवीन हुनका लिखने छलखिन्ह जे अहाँक माथमे गोबर भरल अछि आ जँ अहाँ मेल फेर पठाएब तँ अहाँकेँ हम लीगल नोटिस पठाएब, प्रकाश झा लिखलखिन्ह जे हम बाज छी ऐ समाज सेवासँ, हमर ई-मेलकेँ माफ कएल जाए। रमानन्द झा “रमण” अपन ई-मेलकेँ हुनकर मेलिंग लिस्टसँ हटेबाक मांग केलखिन्ह। हम हुनका कहलियन्हि जे अहाँ स्वयं हुनका सभसँ ई-पत्र वा टेलीफोनपर गप करू। जे कियो इन्टरनेट वा ई-पत्रपर छथि भलहि विदेहपर ई-प्रकाशित छथि, अपन जिम्मेवारी हुनकर सभक अपन छन्हि। धनाकर ठाकुर उमेश मंडलकेँ ईहो लिखने रहथिन्ह जे अपन बड़ाइ अपने नै करू दोसर लोक करत, हुनका ईहो शंका रहन्हि जे विदेहसँ जुड़ल लोक हुनकर विकीपीडियाक संशोधनकेँ हटा देलक, बादमे देखलापर पता चलल जे कियो गोटे (आब स्वीकारोक्तिक बाद सिद्ध भेल जे ई धनाकरजी छलाह) हिनका द्वारा कुणालक बादक सभ लेखक, जइमे जगदीश प्रसाद मण्डल आ तारानन्द वियोगी सहित ढेर रास लेखकक नाम छल, क नाम जे ई हटा देलन्हि, केँ रेस्टोर कऽ देलक। संगमे हिनका द्वारा ई तथ्य सभ जे मैथिलीसँ हिन्दी आ बांग्ला निकलल आ मैथिली भाषीक जनसंख्या सम्बन्धी अपुष्ट जानकारी, यूरोप स्थित विकीपीडियाक एडमिन द्वारा हटा देल गेल। जँ ई सभ विदेहसँ जुड़ल लोक छथि तँ बुझू जे मैथिलीक सुदिन आबि गेल। ईरानक एकटा राजा शतरंजक एकटा खिलाड़ीकेँ खुश भऽ कहलखिन्ह जे मांगू की मांगै छी। ओ शतरंजक पहिल घरमे एकक, दोसरमे दूक; आ एहिना एक्सपोनेन्सियल रूपेँ ६४म घरमे तकर एक्सपोनेन्शियल जतेक चाउरक दाना हएत ततेकक चाउरक दानाक मांग केलन्हि। राजा बुझलन्हि जे ई मात्र दू चारि पट्टा हेतै आर कतेक हेतै। मुदा हुनका बताओल गेलन्हि जे ई ततेक हेतै जे हुनकर राज्यक समस्त चाउरक उत्पाद सेहो पूर नै कऽ सकत तँ राजा लज्जित भेलाह। धनाकर जी सेहो विदेहमे छपल छथि आ विदेहक पाठक सेहो छथि, ओइ हिसाबे ओहो विदेहसँ जुड़ल छथि। “विदेहसँ जुड़ल लोक” एक्सपोनेन्सियल रूपेँ बढ़ि रहल छथि आ ई किछु गोटे लेल बुझौअलि बनि गेल अछि।
उमेश मण्डल आ प्रकाश झा (आ मुकेश झा सेहो):- मैथिली विकीपीडियामे उमेश मण्डलजीक योगदान किछु लोककेँ नै अरघलनि आ प्रत्यक्ष रूपेँ नै अप्रत्यक्ष रूपेँ ओ लोकनि रोष प्रकट केलन्हि। जखन भाभा एटोमिक रिसर्च सेन्टरक राधामोहन चौधरी कहलन्हि जे बंगलोर, हैदराबाद आ सिएटलमे रहनिहार मैथिल लेल मैथिली टाइमपास छिऐ मुदा उमेश मण्डलजी निर्मलीमे रहि जे काज केलन्हि अछि से मैथिलीक प्रति हुनकर समर्पण देखबैए तँ प्रकाश झा लिखलन्हि जे उमेशजीक बड़ाइ करबाक बहन्ने बंगलोर, हैदराबाद आ सिएटलमे रहनिहार मैथिलक बुराइ नै करबाक चाही। ओ ईहो कहलन्हि जे विकीपीडिया लेल जे लोक काज करैए से अपन ऑफिसक कम्प्यूटरसँ आ ओइसँ ऑफिसक काज हर्जा होइ छै। ओ ईहो लिखलन्हि जे अही सभ दुआरे ई लोकनि मैथिली साहित्यसँ दूर भऽ जाइ छथि आ ओ अपनो विषयमे कहलन्हि जे पाँच साल पहिने अंतिकामे छपल कथाक बाद अही सभ कारणसँ ओ मैथिली कथा लिखनाइ छोड़ि देलखिन्ह आ अही सभ कारणसँ ओ आब मैथिली नाटक सेहो छोड़ि देताह। ऐपर पाठक लोकनि कहलन्हि जे छोड़निहार आ छोड़बेनिहार सभ एक्के जातिक (ब्राह्मण) छथि आ उमेश मण्डल वा कियो आन जातिक लोक ओइ राजनीतिमे शामिल नै हेताह, तखन ई द्वेष किएक? आशीष अनचिन्हार लिखलन्हि जे प्रकाशजी अहाँक कथा छोड़लाक बाद मैथिली कथा आर आगाँ बढ़लैक आ अहाँ द्वारा नाटक छोड़लाक बाद नाटक आर आगाँ बढ़तैक, ओ अपनाकेँ प्रकाशजी द्वारा ग्रुपसँ हटेबाक सेहो विरोध केलन्हि आ कहलन्हि जे हुनकर विचार प्रकाश जी सँ हटि कऽ भऽ सकैए, उग्र भऽ सकैए, मुदा हुनका जकाँ जातिवादी आ ग्रुपवादी विचारक ओ नै छथि। अजित आजाद सेहो प्रकाशजी द्वारा आशीष अनचिन्हारकेँ रजिस्टरसँ हटेबाक विरोध केलन्हि आ कहलन्हि जे आशीष अनचिन्हारक विचारसँ सहमति-असहमति भऽ सकैए मुदा हुनका रजिस्टरसँ हटेबाक ओ विरोध करै छथि आ आहत छथि। उमेश मण्डल जातिवादक परिभाषा देलन्हि जे जातिवाद एकटा जातियोकेँ संग लऽ कऽ नै चलैए आ मात्र जाति मध्य एकटा समूहकेँ संग लऽ चलैए, आ ऐ मे दोसर जातिक सेहो एकटा छोट समूह मौद्रिक आ अन्य लाभ लेल शामिल रहैए, संगे जातिवाद नारीविरोधी सेहो अछि। ओ प्रकाश जीकेँ कहलन्हि जे हुनका (उमेशजीकेँ) नै तँ कोनो सरकारी नोकरी छन्हि आ नहिये कोनो प्राइवेट नोकरी, से कोनो कार्यालयक कम्प्यूटर हुनका नै पइड़ लागल छन्हि, आ जे प्रकाशजीकेँ कथा-नाटक सभ लिखबासँ रोकने छन्हि ओइ समूह सभक संग प्रकाशजी तखन किए छथि? बादमे ई तथ्य सोझाँ आएल जे उन्टे प्रकाशजी अपन ऑफिसक कम्प्यूटरसँ प्रकाश आ मुकेशक नामसँ काज करै छथि आ सम्भावना बनैत अछि जे चाहे तँ मुकेशक आइ.डी.क प्रयोग ओ करै छथि वा मुकेश झा सेहो हुनकर ऑफिसक कम्प्यूटरसँ कार्यकालमे फेसबुकपर लॉग-इन करै छथि। उमेशजी ईहो मोन पाड़लन्हि जे “मिथिला दर्शन” मे रामभरोस कापड़ि भ्रमरक विद्वतापूर्ण आलेखमे मलंगिया जीक प्रति कएल किछु टिप्पणीक विरोध मुकेश झाक पत्र द्वारा मिथिला दर्शनमे भेल छल से ऐ घटनाक बाद ई सम्भावना भऽ सकैए जे ओहो प्रकाशजी वा ककरो आनक कहलापर तँ नै पठबाओल गेल। मैथिली पत्रिका सभमे पाठकीय पत्रक घृणित राजनीतिपर सेहो चर्चा भेल। उमेश मण्डल विदेहसँ जुड़ल लोकक लिस्ट देलन्हि जइमे कतेको देश-विदेशक मैथिली भाषी कम्प्यूटर वैज्ञानिकक नाम छल जे अपना-अपना ढङे मैथिली लेल काज कऽ रहल छथि।
मैथिली गजल: गजलपर हमर आलेख तेरह खण्डमे आएल जे बेस चर्चामे रहल। मैथिलीक कथित गजलकार लोकनिक छन्द आ बहरक अज्ञानता मैथिली गजलक विकासमे बाधक भेल, बुझू जे लोकवेद आ लालकिलावाद मे संकलित सभ रचना गजलक परिभाषासँ बाहर अछि। मायानन्द मिश्र आ गंगेश गुंजन ऐ समस्यासँ परिचित रहथि मुदा कोनो समाधान नै ताकि सकलाह आ मायानन्द मिश्र गीतल कहि आ गंगेश गुंजन “गजल सन किछु मैथिलीमे” कहि पलायनक रस्ता चुनलन्हि। श्रीधरमक पुरान कमेन्ट जे साहित्यिक वर्णसंकरताक सम्बन्धमे छल ओतए तँ नै मुदा एतए लागू होइत अछि, मैथिली गजलमे की बचल अण्डा! ठीके अण्डे बचल। आ एतएसँ नव आस जागल जखन सुनील कुमार झा सन युवा गजलकार सरल वार्णिक छन्दमे अपन अ-छन्दोबद्ध गजलकेँ पुनर्लेखित केलन्हि। हमर ई अनुभव रहल अछि जे कम्प्यूटर लेल जँ कोनो प्रोग्राम बनाएल जाए आ ओ गड़बड़ भऽ जाए तँ कतबो सेक्यूरिटी आ अपडेट पैच देल जाए ओइमे कमी रहिये जाइ छै आ मेहनति सेहो बेसी पड़ै छै। ऐ सँ सुविधा आ कम मेहनति नव प्रोग्राम बनेबामे होइ छै। मैथिलीक जर्जर विधा आ संस्था सभक जँ सुधार नै हुअए तँ हमरा सभकेँ ऐ सभक बदलामे एकटा समानान्तर ढाँचा बनबए पड़त आ विश्वास करू जे ओ बेसी कारगर हएत आ ओइमे कम मेहनति लागत।
बेचा ठाकुर: बेचन ठाकुरक नामकेँ प्रकाश झा द्वारा बेचा ठाकुर लिखबाक सेहो विरोध भेल। एकटा पाठक लिखलन्हि जे ई टाइपिंग गल्ती भऽ सकैए, तइपर उमेश मण्डल लिखलन्हि जे ई हुनके कहऽ दियन्हु कारण शब्द जालसँ सेहो लोक आक्रमण कऽ रहल छथि। ओ बेचन ठाकुरक नाटकक प्रकाश झा द्वारा डिलीट करबाक चर्चा केलन्हि। गंगेश गुंजनक उपन्यास माहुरबोनक पाण्डुलिपिक मिथिला मिहिर कार्यालयसँ आ लक्ष्मीनाथ झाक पाण्डुलिपिक मैथिली अकादेमी कार्यालयसँ लुप्त हेबाक चर्चा भेल। डॉ. फॉस्टस नाटकक लेखक चार्ल्स मार्लोवेक चर्चा भेल जे सेक्सपीयरसँ सम्भवतः बेशी प्रतिभाशाली रहथि मुदा हुनकर हत्या २९ बर्खक अवस्थामे कऽ देल गेलन्हि, बेचन ठाकुरक नाटकक डिलीट कएल जाएब आ हुनकर नाम बेचा ठाकुर लिखल जाएब आ टाइपिंग मिस्टेक भेल सेहो स्वीकार नै कएल जाएबकेँ ओ बेचन ठाकुरक नाटकक साहित्यिक हत्याक प्रयास कहलन्हि। ऐ सन्दर्भमे ओ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनक चर्चा केलन्हि आ कहलन्हि जे ई विद्यापति आ चन्दा झाक बाद मैथिलीक तेसर पुनर्जागरण काल छी जे अगिला २०-३० साल धरि चलत आ जँ विदेह नै रहैत तँ जगदीश प्रसाद मण्डल आ बेचन ठाकुरक साहित्यिक हत्या भऽ गेल रहैत। बेचनजी विगत पचीस बर्खसँ मैथिली नाटकक लेखन आ निर्देशनमे जुटल छथि। हिनकर एक दर्जन नाटक ग्रामीण सभक मोन तँ मोहनहिये छल, हिनकर विदेहमे प्रकाशित छीनरदेवी आ बेटीक अपमान विश्व भरिमे पसरल मैथिली भाषीक बीचमे कएकटा समीक्षात्मक बहस शुरू कऽ देने अछि। मुकेश झा लिखलन्हि जे हुनकर कोनो संस्था नटरंग नामसँ छन्हि जे रंगमचक मंचनक लेखा-जोखा रखैत अछि, तकरा लग बेचन ठाकुरजी द्वारा नाटकक मंचनक कोनो सूचना नै छै, तँ बेचन ठाकुर हुनकासँ प्रश्न केलकन्हि जे ई कोनो एन.जी.ओ. छिऐ की, कारण एकर नाम आइ पहिले बेर सोझाँ आएल अछि आ ऐ तरहक एन.जी.ओ. सभ गली-गलीमे खुजल अछि आ तेँ ऐ तरहक संस्था कागजी आ पॉकेट संस्था सभक डेटापर कियो विश्वास नै करैत अछि। जखन प्रकाश झा अपन सर्वेक्षण शुरू केलन्हि जे मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ नाटक महेन्द्र मलंगियाक ओकर आंगनक बारहमासा वा बेचन ठाकुरक बेटीक अपमान, आ आशीष अनचिन्हारक समीक्षापर बहस चलिये रहल छल तँ तारानन्द वियोगीक कथन आबि गेल, ऐ सर्वेक्षणकेँ रोकबाक आग्रह करैत- "हम त चकित छी प्रकाश। की मैथिलीक एहन दुर्दिन आबि गेलै जे आब एना तुलना कएल जेतै? जकरा बल पर सौंसे भारतीय साहित्य मे मैथिलीक झंडा बुलन्द मानल जाइत रहल अछि, तकरा मादे हमर नवतुरिया सब एना बात करता? एतेक सतही आ विवेकहीन पीढी मिथिला पैदा केने छथि यौ? की पं० गोविन्द झाक ओ कथन सत्य होब'बला छै जे तीस-चालीस साल मे मैथिली मरि जाएत। (मैथिली माने मैथिली साहित्य।) एना नहि काज चलत। किछु करियौ बाबू।" मुदा प्रकाश बाबू कहलखिन्ह- "सर ! किछु कारण अछि । सब नवतुरियाक स्थिति एक रंग नहि छनि । सभहक अपन अपन मनतव्य छनि । मुदा अँग्रेजी मे एकटा कहाबत अछि । सरभाइवल ऑफ दी फिटेस्ट.... । जे कियो जे किछु सोचैइथ मुदा मैथिली आ नाटक लेल सोचैत छैथि यैह हमरा लेल जीवन दायी अछि ।" तारानन्द वियोगी फेर लिखलन्हि- "मिथिलाक प्रति जं प्रेम अछि, तं अपन बिरासत कें चिन्हनाइ आ ओहि पर गर्व करनाइ सीखू। हरेक भाषा मे किछु एहन रचना होइ छै जे 'क्लासिक्स' के कोटि मे अबै छै। । (से मैथिलियो मे छै) जखन आगुओ कोनो ओहि टक्कर के रचना आबि जाइ छै तं ओकरा सम्मान दैत पूर्वक क्लासिक्स के बराबर मे राखल जाइ छै। एहि लेल बिरासत कें खारिज करब जरूरी नै छै। मानि लिय' जे गजेन्द्र ठाकुर बड्ड विशिष्ट कवि छथि, तें की अहां ई सर्वेक्षण कराएब पसन्द करब जे 'विद्यापति पैघ कवि की गजेन्द्र ठाकुर?' साहित्य के संस्कृति मे आम तौर पर एना नहि कएल जाइ छै। मुदा 'खास' तौर पर जं करए चाही, तं ताहि सं ककरो के रोकि सकै छै। राजनीति के संस्कृति मे तं से चलन छैके।" तइपर उमेश मंडल जवाब देलखिन्ह जे ई उदाहरण तखन सटीक होइतए जँ बेचन ठाकुर वा महेन्द्र मलंगियाक तुलना ज्योतिरीश्वरसँ कएल जाइत। ऐ डिसकसनक शुरूमे प्रकाशजीक विचार बेचनजीक नाटकक विरुद्ध छलन्हि आ से पुनः सिद्ध भेल जखन बेचन ठाकुरक "अधिकार" नाटक ऐ टिप्पणीक संग पोस्ट कएल गेल तँ ओ ओकरा डिलीट कऽ देलन्हि। एना किए भेल? जखन प्रकाश झा महेन्द्र मलंगियाक नाटक करबै छथि (मैथिलीमे विदेहक एलासँ पूर्व प्रूफरीडरकेँ सम्पादक कहल जाइ छल आ नाटकमे जे कियो कोनो काज नै करथि कुर्सीपर पएर लटका कऽ बैसथि आ गप छाँटथि तकरा नाटकक निर्देशक कहल जाइ छल) तँ ९० प्रतिशत दर्शक मैथिल ब्राह्मण आ जखन संजय चौधरी मलंगियेक नाटक करै छथि तँ ९० प्रतिशत दर्शक कर्ण कायस्थ; आ दुनू गोटे मैथिलीक नामपर सरकारी संगठनसँ, जे टैक्सपेयरक पाइसँ चलै छै, पाइ लऽ नाटक करै छथि, शहरो वएह दिल्ली छिऐ। ई समाज किए तोड़ल जा रहल अछि? आ दू जातिक अतिरिक्त शेष मैथिली भाषी? मुदा तइमे सुधारले वियोगीजीक आह्वान प्रकाशकेँ नै भेटै छन्हि! किए!! आ प्रकाशजी बेचनजीक नामो बेचा ठाकुर लिखै छथि आ पाठकक ऐपर भेल विरोधक बावजूद सुधार नै करै छथि से उच्चारण दोष, ह्रिजै दोष अनायास भेल नै सायास भेल सिद्ध होइत अछि। एकटा पाठक प्रश्न केलखिन्ह जे जँ मुकेश झाक नटरंग संस्थाकेँ नटवरलाल रंग कहल जाए तँ सेहो प्रकाश/ मुकेशकेँ स्वीकार्य हेतन्हि? प्रकाशजी उमेश मंडलकेँ कहै छथि जे ओ हुनकासँ सम्पर्क बढ़ेबामे रुचि नै राखै छथि मात्र फोनपर गप छन्हि से हमहूँ २००८ मे प्रकाशजीक पहिल बेर नाम नाम सुनने रहियन्हि, मिथिलांगनक अभय दास नाम-नम्बर देने रहथि आ तहियासँ दू-तीन बेर २-३ मिनटक फोनपर गप अछि आ २-३ बेर ठाढ़े-ठाढ़े गप अछि, अंतिम बेर भेँट जखन उमेश मंडल जीक कहलापर जगदीश प्रसाद मण्डल जीक नाटक हुनका देने रहियन्हि आ ओ ओइ बदलामे मलंगियाजीक पोथी कूरियरसँ पठेबाक गप कहने रहथि। वियोगीजी आ प्रकाशजी अखनो धरि "मेडियोक्रिटी" सँ बाहर नै आबि सकल छथि आ सार्थक सम्वाद आ समालोचना सहबामे तत्काल अक्षम छथि। जँ जँ ओ लोकनि आर मेहनति करताह आ "मेडियोक्रिटी"सँ बाहर बहरेताह तँ तँ हुनका लोकनिमे समालोचना सहबाक क्षमता बढ़तन्हि। टैक्सपेयर तँ सभ छथि, ओतए तँ जाति-भेद नै छै। मुदा "अधिकार" नाटक डिलीट नै कएल जा सकल, ई बचि गेल कारण ऐ नाटकक कएक टा बैकप कतेक संगणकपर उपलब्ध छल। से ऐ परिप्रेक्ष्यमे बेचन ठाकुर जीक तेसर नाटक "अधिकार" आएल अछि आ आशा करैत छी जे आशीष अनचिन्हार फेर ऐ नाटकक समीक्षा करताह आ सूतल लोक जेना आँखि मीड़ैत उठल अछि तहिना ई नाटक ग्रामीणक पहिने आ मैथिली नाटकक किछु ठेकेदार समीक्षक/ निर्देशक लोकनिक पछाति निन्न तोड़त। संगहि जेना मजारपर वार्षिक उर्स होइ छै जतए लोक सालमे एक बेर चद्दरि चढ़ा आ अगरबत्ती जड़ा क' कर्तव्यक इतिश्री मानि लैए, तहिना मैथिलीक नामपर खुजल कागजी संगठन सभक, जे बेसी (९५ प्रतिशत) मैथिल ब्राह्मण सम्प्रदाय द्वारा टैक्सपेयरक पाइकेँ लुटबा लेल फर्जी पतापर बनाएल गेल अछि, तकर वार्षिक (बर्खमे ओना एक्के बेर हिनकर सभक निन्न खुजै छन्हि) काजक समीक्षा होएबाक चाही। जखन हम संस्कृत वीथी नाटकक निर्देशन/ अभिनय करै छलहुँ तँ ओतए अभिनय केनिहार सभक आ सह-निर्देशक लोकनिक प्रतिभा आ मेहनति देखि हर्ष होइ छल; मुदा एतए प्रतिभाक दरिद्रता किएक? उत्तर अछि जे एक जातिकेँ लेब आ तहूमे तै जातिकेँ जकरा अभिनयसँ पारम्परिक रूपमे कोनो लेना देना नै छै, आ जकरा लेना-देना छै तकरा अहाँ बारने छी, तँ की हएत? जखन हरखा पार्टीमे खतबेजी रावणक अभिनय करै छलाह तँ से आ जखन ओ चन्द्रहास नाटकमे खलनायकक नै वरन चरित्र अभिनेताक अभिनय करै छलाह से, दुनू मे कियो नै कहि पबै छल जे कोन अभिनय बीस! बच्चामे गाममे आँखिसँ देखल अछि। संगहि जे लिस्ट गनाओल जाइत अछि, तैमे खतबे जी कतौ नै!! दसटा मैथिली निर्देशक छथि जे पटना, कलकत्ता, दिल्ली, मुम्बइ, चेन्नइमे (सभटा मिथिलासँ बाहर) निवास करै छथि आ २०० लोकक सोझाँमे ऑडिटोरियममे नाटक करबै छथि आ कलाक न्यूनताक पूर्ति लाल-पीअर-हरियर लाइट-बत्ती जड़ा कऽ करै छथि (किछु अपवादो छथि), की भरि मिथिलामे एतबे नाटक मैथिलीमे होइए आ की एतबे निर्देशक मैथिलीमे छथि? गाम-गाममे पसरल असली मैथिली नाटकक निर्देशकक सूची आ हुनका द्वारा बिना टैक्सपेयरक फण्डसँ खेलाएल गेल नाटकक अभिलेखनक काज विदेह टीम द्वारा चलि रहल अछि जकर विस्तृत सूची "सर्वे ऑफ मैथिली लिटेरेचर वोल्यूम.२ मे देल जाएत। नाटक “अधिकार” इन्दिरा आवास योजनाक अनियमितताकेँ आर.टी.आइ.सँ देखार करैबला आ रिक्शासँ झंझारपुरसँ दिल्ली जाइबला (आ अभिषेक बच्चनसँ झंझारपुरमे पुरस्कार पाबैबला) असली चरित्र मंजूरक कथा अछि जे डिलीट नै कएल जा सकल मुदा किए डिलीट कएल जा रहल छल, किनकर हितकेँ ऐ नाटकसँ खतरा छन्हि/ छलन्हि आ किए एकर विरोध एतेक तीव्र रूपमे भेल, से सभटा आब फरिच्छ भऽ गेल अछि।
उपेन्द्र भगत नागवंशी आ मैथिलीमे फील्डवर्क- ऐतिहासिक कृतघ्नताक प्रश्न: महेन्द्र मलंगिया जे काज जनकपुरमे कऽ रहल छलाह से काज उपेन्द्र भगत नागवंशी ओतए आइ कऽ रहल छथि, मुदा हुनकर काजक कोनो अभिलेखन किए नै भऽ रहल छल? महेन्द्र मलंगियाकेँ हम मैथिलीक सेक्सपियर लिखने रहियन्हि (नचिकेताक नो एण्ट्री:मा प्रविशक आमुखमे) आ हुनकर आ रामभद्र (कथाकार) क काजक विश्लेषण करबाक आह्वान केने रही। मुदा हुनकर नाटक काठक लोक आ ओकर आंगनक बारहमासाक सन्दर्भमे हमर विचार भिन्न अछि। थोपड़ी पड़ेबाले काठक लोकक मुख्य पात्र एकटा वर्णशंकर हिन्दी भरि नाटकमे बजैए जइसँ नहिये मैथिली नाटककेँ कोनो लाभ भेलै आ नहिये हिन्दी प्रेमी लोकनि प्रसन्न हेताह। ई हिन्दी नाटक छी आकि मैथिली नाटक ऐपर सेहो विवाद चलैत रहत। ओकर आंगनक बारहमासा नाटक आस रखैए जे ओकर दर्शक मैथिल ब्राह्मण हेताह आ ओइमे तथाकथित राड़क मैथिली कहि जे भाषा थोपड़ी पाड़बाक उद्देश्यसँ प्रयुक्त कएल गेल अछि से भाषाशास्त्री रामावतार यादवक ऐ कथनक विपरीत अछि जे भाषाक संधानमे एहेन स्थिति नै आबए देबाक चाही जइसँ एकर मूल विशेषता गौण पड़ि जाए। संगे बेचन ठाकुर, जगदीश प्रसाद मण्डल आ राजदेव मण्डलक क्रमसँ नाटक, कथा आ कविता मलंगियाजीक काल्पनिक राड़क मैथिलीक भ्रमकेँ तोड़ि देने अछि। उमेश मण्डलक डिजिटल रूपमे संरक्षित (देखू विदेह ऑडियो- वीडियो) १७ तथाकथित दलित-पिछड़ा-मुस्लिम जातिक मध्य कएल फील्डवर्क देखू सुनू आ ओइमे बाजल मैथिलीक विश्लेषण करू। ओइमे बाजल मैथिली विद्यापतिक गाम बिस्फीमे बाजल मैथिलीसँ बीस पड़त उन्नैस नै। मलंगियाजीक लेखनीमे ऐ तरहक फील्डवर्कक सर्वथा अभाव छन्हि आ हुनकर फील्डवर्क अपूर्ण छन्हि, भऽ सकैए एकटा छोट क्षेत्रमे कएल गेल होन्हि। संस्कृत नाटक सभ जइमे शूद्र आ स्त्री लेल एहने भाषाक प्रयोग होइ छलै से ऐ २१म शताब्दीमे सम्भव नै। फेर हुनकर हरिमोहन झाक पाँच पत्रक हुनकर कएल नाट्य रूपान्तरण आ ओकर प्रकाश झा द्वारा कएल निर्देशन देखू। थोपड़ीक लेल किछु एहेन समस्याकेँ हास्यास्पद बना देल गेल जकर विरुद्ध हरिमोहन झा भरि जीवन लड़ैत रहलाह। दोसर गप जे मैथिलीक साहित्यकार जे गाममे रहबाक दम्भ भरै छथि ओ गाममे रहितो गामसँ पड़ाइन केने छथि जँ ओही गामक कोनो दोसर जातिक संस्कृतिसँ सम्पर्कक गप कएल जाए तँ ओ पूर्ण अज्ञानी सिद्ध होइ छथि।
पंजीक विषयमे बहुत रास भ्रम छल, ओकर स्कैनिंग कऽ इन्टरनेटपर धऽ देल गेल। किछु गोटे ओइमे सँ अन्तर्जातीय विवाह (चर्मकार, रजक, मुस्लिम आदिसँ आ गएर अधिकारक विवाहक चर्चा) केँ हटेबाक मांग केलन्हि। किछु गोटे ओइमे हुनकर एक फरीकक चर्चा नै हेबाक गप उठेलन्हि। किछु गोटेकेँ भ्रम छन्हि जे पंजीक डिजिटल स्कैनिंग आ लिप्यंतरणक उद्देश्य पंजी प्रथाक पुनर्स्थापना अछि, एकर उद्देश्य एकर उलट अछि आ कोनो ब्राह्मण वा श्रोत्रिय सभाक क्षुद्र उद्देश्य पूर्ति लेल ई मेहनति नै कएल गेल अछि। ई स्पष्ट करब एतए आवश्यक अछि जे पंजीक सम्बन्धमे भ्रम जे ई कुलीनता स्थापित करबा लेल स्थापित भेल (हरिसिंहदेव तँ नहिये केलन्हि हँ माधव सिंह केलन्हि) आ जे ई प्रतिभाक आधारपर निर्धारित भेल (हम राजक आदेश लगेने छी जइमे पाइ लऽ कऽ नीचाँसँ ऊपर स्थान निर्धारित भेल आ चूड़ा-दही खुआ कऽ पंजीकार लोकनिक हस्ताक्षर लेल गेल) तकर निवारणार्थ आ ऐ मे सँ ऐतिहासिक आ समाजशास्त्रीय तथ्य बहार करब हमर सभक उद्देश्य छल आ अछि। पंजीमे एक बेर उच्च वर्ग निर्धारित भेलाक बाद महामूर्खाधिराज उच्च कोटिक बनले रहलाह। कतेक उदाहरण अछि जइमे चालीससँ बेसी विवाह लोक केलन्हि आ बाप बेटीसँ विवाह करए पहुँचि गेलाह (मिथिलाक इतिहास, राधाकृष्ण चौधरी)। हमर जवाब ईहो अछि जे ११००० पंजी तालपत्रक जे.पी.जी. इमेजक लिप्यंतरणमे कोनो दोष नै अछि तकर गारन्टी अछि, सौराठक पंजीकार जँ अहाँक फरीकक डेटा अपडेट नै केलनि अछि तँ से हुनकर दोष, शोध आ फील्डवर्कक आधार कहा सुनी आधारित नै अछि, ई पाण्डुलिपि आधारित अछि आ जँ ओइमे कोनो डेटा अछि (जेना अन्तर्जातीय वा अनधिकार विवाह) तँ हम ओकरा हटा नै सकै छी आ ने कोनो एहन बौस्तु हम जोड़ि सकै छी जे ओइमे नै अछि। पंजीक डी.वी.डी. अलगसँ रिलीज सेहो भेल अछि आ अन्तर्जालपर सेहो उपारोपित कएल गेल अछि, एकर लिप्यंतरणक दोसर खण्ड शीघ्र आएत। पंजीक ऐतिहासिक आ समाजशास्त्रीय विश्लेषण पोथीक सए पृष्ठक आमुखमे कऽ देल गेल अछि। दोसर गप ई जे अ-इतिहासाकर लोकनिक जातिगत आधारपर कएल ऐतिहासिक कृतघ्नतापर दू तरहेँ आक्रमण भेल। एक तँ पंजीक हमर सभक पोथीमे ऐतिहासिक आधारपर पंजीक स्थापना हरसिंहदेव द्वारा कएल सिद्ध भेल आ दोसर ईहो जे हरसिंहदेव नै तँ ब्राह्मण आ नहिये कायस्थ मध्य कुलीनताक आधारपर विभेद केने छ्लाह आ श्रोत्रिय नाम्ना ब्राह्मणक उपजाति १७६० ई. मे माध्व सिंह द्वारा किछु चाटुकारक कहलापर शुरू भेल आ सएह कायस्थ मध्य सेहो भेल। मुदा गोविन्द झा बिना कोनो प्रमाणक लिखै छथि जे हरसिंहदेव पंजीक स्थापक नै छलाह। एकटा सत्तरि बर्खक ब्राह्मणक श्रोत्रिय उपजातिक योगनाथ झा प्रसिद्ध सिन्धुनाथ झा हमर सभक पंजीक द्वितीय खण्डक (श्रोत्रिय खण्डक) निर्लज्जतापूर्वक चोरि कऽ एक साल बाद छपबेबे टा नै केलन्हि वरन् ओइमे सँ अन्तर्जातीय विवाहक चर्चा मेटा कऽ आ आमुखमे हरसिंहदेवकेँ पंजी प्रबन्धक संस्थापक नै मानि कऽ अपन ब्राह्मणवादी विद्वेषक परिचत तँ देबे केलन्हि, हुनका ईहो भ्रम छन्हि जे श्रो‘त्रिय १७६० ई. सँ पूर्व जातिक रूपमे मिथिलामे छलाह। हरसिंहदेव-मिथिलाक कर्णाट वंशक। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह। १२९४ ई. मे जन्म आ १३०७ ई. मे राजसिंहासन। घियासुद्दीन तुगलकसँ १३२४-२५ ई. मे हारिक बाद नेपाल पलायन। मिथिलाक पञ्जी-प्रबन्धक ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय मध्य आधिकारिक स्थापक, मैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक लेल शंकरदत्त, आ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त एहि हेतु प्रथमतया नियुक्त्त भेलाह। हरसिंहदेवक प्रेरणासँ- आ ई हरसिंहदेव नान्यदेवक वंशज छलाह, जे नान्यदेव कार्णाट वंशक १००९ शाकेमे स्थापना केने रहथि- नन्दैद शुन्यं शशि शाक वर्षे (१०१९ शाके)... मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके १२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे पञ्जी-प्रबन्धक वर्तमान स्वरूपक प्रारम्भक निर्णय कएलन्हि (मुदा ई हरसिंहदेव द्वारा लगभग १३११ ई. मे स्थापित भऽ गेल छल- मिथिलाक इतिहास- राधाकृष्ण चौधरी)। पुनः वर्तमान स्वरूपमे थोडे बुद्धि विलासी लोकनि मिथिलेश महाराज माधव सिंहसँ १७६० ई. मे आदेश करबाए पञ्जीकारसँ शाखा पुस्तकक प्रणयन करबओलन्हि। ओकर बाद पाँजिमे (कखनो काल वर्णित १६०० शाके माने १६७८ ई. वास्तवमे माधव सिंहक बादमे १८०० ई.क आसपास, कारण ओइमे वर्णित सभ गोटे माधव सिंहक समकालीन) श्रोत्रिय नामक एकटा नव ब्राह्मण उपजातिक मिथिलामे उत्पत्ति भेल।
ई महानुभाव योगनाथ झा प्रसिद्ध सिन्धुनाथ झा प्रसिद्ध योगनाथ सिन्ध अपना नामसँ रीप्रिन्ट करेबामे सेहो अपन पंजीक अज्ञानताक परिचय देलन्हि आ ढेर रास गल्ती छपाइमे केलन्हि। अही तरहक घृणित काज पूर्वमे हिनके सभसँ सम्बन्धित किछु गोटे केने छलाह जखन ओ सभ पंजी तालपत्र सभ पंजीकार सभसँ ठकि कऽ लेने छलाह जे ओकरा फोटोकॉपी/ स्कैन कऽ घुरेताह मुदा तकरा अमेरिकासँ आएल महिला जीनियोलोजिस्ट/ सोशियोलोजिस्टकेँ बेचि देलन्हि आ पंजीकार लोकनिकेँ ५-१० पाइ प्रति तालपत्र हर्जाना देबाक प्रस्ताव राखलन्हि। मुदा २०१० ई. मे विदेहक सौजन्यसँ तीससँ बेसी बर्खसँ फाइलमे बन्द राधाकृष्ण चौधरी जीक “मिथिलाक इतिहास” श्रुति प्रकाशनसँ आएल आ ओतए ईअकाट्य रूपसँ ऐतिहासिक प्रमाणक आधारपर सिद्ध भेल अछि जे हरसिंहदेव पंजीक स्थापक छथि आ ओ नहिये ब्राह्मण आ नहिये कायस्थ मध्य कोनो कुलीन तंत्रक स्थापना केलन्हि। जातिवादी आ चोर अ-इतिहासकार लोकनिपर ई एकटा अन्तिम मारक प्रहार सिद्ध भेल आ ऐतिहासिक कृतघ्नताक ई अन्त केलक। एक बेर बिल गेट्सकेँ पूछल गेलन्हि जे ओ पाइरेसीक डरसँ “एक्स बॉक्स” भारतमे देरीसँ उतारि रहल छथि तँ हुनकर जवाब छलन्हि जे माइक्रोसॉफ्ट पाइरेसीक डरसँ कहियो कोनो उत्पाद देरीसँ नै उतारने अछि। विदेह सेहो अपन समस्त उत्पाद, (किछु लोककेँ भ्रम छन्हि जे विदेह मात्र कथा-कविता-निबन्ध छपैत अछि) जेना ऑडियो, वीडियो, कला-चित्रकला-संगीत, सॉफ्टवेयर, पंजी, प्राचीन मैथिली तालपत्रक डिजिटल संस्करण, तिरहुता/ वेकीपीडियाक तकनीकी स्वरूप , पोथीक डिजिटल रूप आदि स्वतंत्र उपयोग आ डाउनलोड लेल उपलब्ध करेने अछि आ योगनाथ प्रसिद्ध सिन्धुनाथ झा सन लोकक पाइरेसीक डरसँ विदेह ई काज नै रोकत।
राजनन्दल लाल दास जी आ मायानन्द मिश्र प्रारम्भमे तामसमे रहथि, मायानन्द मिश्र ऐ लऽ कऽ जे कुरुक्षत्रम् अन्तर्मनक मे हम स्त्रीधनक ऐतिहासिक विवेचनाक आलोचना केने रही, ओ शेष तीनू पोथी, प्रथमं शैलपुत्री च, पुरोहित आ मंत्रपुत्रक आलोचनासँ मोटामोटी सहमत रहथि आ कहलन्हि जे मंत्रपुत्रमे ओ राहुल सांकृत्यायनसँ प्रभावित रहथि मुदा आब ओ ओकर पुनर्लेखन कऽ रहल छथि। राजनन्दन लालदास जीक मत छलन्हि जे हम सभकेँ एक्के लाठीसँ हाँकि दै छी। मुदा जखन ओ सभ विदेह देखलन्हि तँ अपन प्रसन्नता व्यक्त केलन्हि। ओ ईहो कहलन्हि जे मैथिलीक नामपर बनल संस्था सभ मैथिल ब्राह्मण वर्चस्वक होइत अछि आ बिना कोनो अपवादक ब्राह्मण लोकनि आपसी विवाद करिते टा छथि आ संस्था टुटिते टा अछि आ तेँ कर्ण कायस्थ लोकनिकेँ नै चाहितो मजबूरीमे मैथिलीक कार्य करैत रहबा लेल कर्णगोष्ठी बनाबए पड़लन्हि। गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा (प्रीति ठाकुर) क एकटा चित्रकथा कालिदास सेहो सम्वादकेँ जन्म देलक। किछु पाठकक कहब छल जे ओ मैथिल ब्राह्मण छलाह आ किछु हुनका कर्ण कायस्थ मानै छलाह। मुदा ई चित्रकथा हुनकर लोककथाक ई तथ्य जे ओ अमरीताकेँ कमलदहमे भेटलखिन्ह आ मिथिलाक यादवक किछु कुलमे हुनकर अखनो अभ्यर्थना होइत अछि, ओइ आधारपर रचल गेल अछि। ई मेघदूतम बला कालिदास नै छथि कारण मेघ गलतीयोसँ मिथिला नै आएल। ई दोसर कालिदास छथि आ उच्चैठमे जे दुर्गापूजा होइए तकरोसँ ई भिन्नता रखैए कारण उच्चैठक भगवती कुण्डलधारी बौद्ध तारा छथि जे बौद्धधर्मक अवसानक बाद सभ ठाम भगवती काली बनि गेलीह, आ एतए कहिया दुर्गा बनि गेलीह से नै जानि।
साहित्यिक लठैत आ कालीकान्त झा बूचक साहित्यिक हत्याक ओझरी: कालीकान्त झा बूचक कोनो कविता सरकारी संस्था सभक संकलनमे नै आएल। जँ विदेह नै अबितै तँ की संसारक सभसँ मधुर आ लयात्मक भाषा (येहुदी मेनिहिनक शब्दमे) क विद्यापतिक बादक सभसँ लयात्मक कविक साहित्यिक हत्याक ओझरी नै सुनझितैक। वियोगीजी ककरा विषयमे लिखै छथि जे अहाँ लग पाइ आ लठैत हुअए तँ अहाँ साहित्यकार नै बनि सकै छी, विधायक बनि सकै छी। एकटा पाठक बिना कोट केने ई प्रश्न उठबै छथि जे ई किनकर कथन अछि तँ अविनाश (साहित्यिक वर्णसंकरताक डिसकसनक बाद ओ पुनः अबै छथि) कहै छथि जे ई हमर पैघ भाइ तारानन्द वियोगीक कथन छी आ ऐ उत्तर लेल की पुरस्कार भेटत?। तइपर कृष्णा यादव नाम्ना ई पाठक लिखै छथि जे लठैतकेँ अपन आकाकेँ पैघ भाइ कहबाक तँ अधिकार छै मुदा पुरस्कार पएबाक नै। मुदा राजमोहन झाक ई वक्तव्य जे सभ अपन-अपन चेला पोसने छथि आ ओकरा बढ़ेबामे लागल छथि, की एतए नै सोझाँ अबैत अछि? सरकारी संस्था सभक सर्वकालीन आ स्वातंत्र्योत्तर गद्य-पद्य संकलन देखू आ देखू जे ई साहित्यिक लठैत सभ तँ ऐ संकलनमे शामिल छथि (माने पुरस्कृत कएल गेल छथि, सर्वकालीन कवि बनि गेल छथि, एकर चर्चा हम सुभाष चन्द्र यादव जीक कथा संग्रह “बनैत बिगड़ैत” क आमुखमे सेहो केने छी) मुदा एतए कालीकान्त झा बूचक साहित्यिक हत्या कएल गेल अछि। बूचजीक सए कविताकेँ विदेह द्वारा धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित कएल गेल अछि जे आब कलानिधिक रूपमे प्रिंटमे सेहो आएल अछि, आ ऐ साहित्यिक हत्याक ओझरी सुनझा देल गेल अछि।
मीठ बाजएबला कायस्थ आ ब्राह्मण समाज किए टूटि गेल अछि? एकर एकटा कारण ईहो सोझाँमे आएल जे कर्ण कायस्थ मैथिलक संस्था सभमे छल मुदा ओ संस्था सभ मैथिल ब्राह्मण बहुल छल आ कोनो संस्था नै बचल जे दू भागमे नै टूटल। से की करितौं, हमरा सभकेँ (कर्ण कायस्थ) अलग संस्था बनबए पड़ल। मुदा ऐ दुनू जातिक झगड़ासँ शेष ९० प्रतिशत मैथिली भाषीकेँ कोन सरोकार। हितेन्द्र गुप्ता मैथिली समाचारक जालवृत्त (बादमे वेबसाइट सेहो) तीन-चारि सालसँ चला रहल छथि, कुमुद सिंह सेहो मैथिली समाचारक जालवृत्त (बादमे वेबसाइट सेहो) तीन-चारि सालसँ चला रहल छथि। एकर अतिरिक्त मैथिलीमे अनचिन्हार आखर (मैथिली गजलक जालवृत्त), रेखा मिश्रक-विनोद झाक मिथिला लोक, पद्मनाभ मिश्रक कतेक रास बात, मिथिला डट कम (जनकपुरक मैथिली दैनिकक जालवृत्त), बिपिन बादलक मैथिली टाइम्स आदि ढेर रास जालवृत्त/ जालस्थल अन्तर्जालपर काज कऽ रहल अछि। फेसबुकपर आब ऐ साइटमे किछु अपन चौबटिया बनेने छथि, मोटा-मोटी सभ चौबटियाक सदस्य कॉमन छथि। किछु अहम् सेहो टकराइ छै, मुदा सभ मैथिली लेल काज कऽ रहल छथि, आ के बेसी मैथिली प्रेमी सेहो कखनो काल सम्वादमे सोझाँ अबैए। अपन कमजोरी लेल बाहरी ताकतिकेँ जिम्मेवार ठहरेबाक प्रवृत्ति सेहो छै। साहित्यमे जाति शब्द नै आबए ऐपर बहस होइ छै मुदा तर्क कमजोर भेलापर वियोगीजी नन-मैथिल बनि जाइ छथि फेर कहै छथि जे मैथिल समाजमे दोसराक कहलासँ ओपिनियन बनाओल जाइ छै लेखककेँ पढ़ला उत्तर नै। किसलय कृष्णक ऐ प्रश्नक उत्तरमे जे सए बेंगकेँ एक तराजूपर तौलब असान मुदा तीन मैथिलकेँ एक ठाम रखनाइ कठिन (ई प्रश्न तीन साल पहिने राज झा सेहो कहने रहथि, अक्सर उठैत रहै छै), एकर जवाब हम देलौं जे इन्टरनेट लोककेँ जिम्मेवार बना रहल छै, लिखलाहा गपपर आब लोककेँ स्टैण्ड लेमए पड़तन्हि, जँ जँ सम्वाद करबाक शक्ति बढ़तन्हि, मेडियोक्रिटीसँ बाहर एताह, सहनशीलता बढ़तन्हि आ ई इन्टरनेटक सभ ग्रुपमे होइ छै मात्र मैथिलक ई विशेषता नै।
विदेहसँ जुड़ल लोक: भलहि सम्वादक बीच विषयकेँ मोड़बाक प्रयत्न होइ छै , मुदा ऐ डरसँ ने सम्वाद रोकल जाएत आ ने साहित्यिक समीक्षा। शिव कुमार झा आ मुन्नाजीकेँ फोन आ एस.एम.एस. अबै छन्हि आ हमरा, उमेशजी आ प्रीति ठाकुरकेँ अभद्र ई-मेल। इनारक बेंग ढेपा खसलापर चिन्तित भऽ जाइत अछि जे दुनियाँमे भूकम्प तँ नै आबि गेल। हमरा टोलमे बदरी भाइक माए एक बेर चिट्ठी लिखबै छलखिन्ह जे हुनकर महीस लागि रहल छन्हि से टोलबैय्या मोने-मोने जरि रहल छन्हि। मोने-मोनेबला गप सब्जेक्टिव अछि आ ऐ सब्जेक्टिव तत्वक साहित्यिक समीक्षामे कोनो स्थान नै। लोक तर्कक अकाल होइतहि मैथिली छोड़बाक आ मैथिल समाजकेँ गरियेबाक जे प्रक्रम शुरू करै छथि से मेडियोक्रिटीक आक्रोश अछि, “विदेहसँ जुड़ल लोक” ऐसँ बाहर छथि, आ जे ऐ मेडियोक्रिटीसँ, जातिवादसँ, ईर्ष्यासँ आ हीन भावनासँ बाहर आबि जएताह से “विदेहसँ जुड़ल लोक” भऽ जेताह। अकासी उपारोपण लेल सभ सदस्य दस सालसँ प्रतिदिन दू घण्टाक औसतसँ जमीनी काज कऽ रहल छथि। सम्वादक परम्परा पुरान अछि आ वैदिक ऋचाक पाठ केनिहारकेँ अथर्ववेद मे “अनेरे टर्र-टर्र करैबला बेंग”कहि मजाक उड़ाएल गेल अछि, से परम्परा सेहो विदेहक संग अछि। उजहियामे धारक दिशामे बहबाक जिनका आदति छन्हि से मैथिलीमे पाठक नै, प्रकाशक नै, मैथिलकेँ मैथिलीसँ प्रेम नै आदि बहन्ना मैथिली छोड़बाक लेल तकैत रहथु, धारक विपरीत हेलबाक आ धार मोड़बाक परम्परा विदेह लग छै।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १११ देशक १,७८९ ठामसँ ६१, २६१ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,०५,४७५ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
मीना झा
जन्म स्थान: दरभंगा
शिक्षा: बी.ए (मैथिली ओनोर्से फर्स्ट क्लास) १९७६; एम. ए (फर्स्ट क्लास) १९८०
कार्य अनुभव: १९८२-१८८७ रा. रा.कैम्पस , जनकपुर (नेपाल) मैथिली विभाग मे ब्याख्यता , प्रकाशन: मैथिली क विभागाध्यक्ष स्वर्गीय डॉ धीरेश्वर झा धीरेन्द्र क प्रेरणा सँ हमर पहिल निबंध नेपाल क पत्रिका "सिंहावलोकन" मे प्रकाशित भेल.
बर्तमान: हम अपन पति डॉ अरुण कुमार झा तथा पुत्र द्वय संगे सन १९८७ सँ इंग्लैंड मे रहि रहल छी. एहिठाम अपन बच्चा सभक संगे आन आन मैथिल बच्चा सभकेँ सेहो मैथिली भाषा आ संस्कारक प्रति जागरूकता उत्पन्न करवामे लागल रहैत छी. . Mithila Cultural Society, UK क २०११ वार्षिक अधिवेशनक प्रमुख अतिथि डाक्टर श्रीमती शेफालिका वर्माक प्रोत्साहन पावि पुन: मैथिलीमे लिखबाक सौभाग्य प्राप्त भेल अछि...
कथा
ब्रेस्ट कैंसर
लन्दनक थेम्स नदीक पश्चिम किनारपर नवनिर्मित सेंट थोमस अस्पतालक पाँचम मंजिलपर कैंसर वार्ड रहैक। खिरकी लगक कोनाबला बेड रहनि मनोरमा सिंघक। खिरकीक पैघ शीशासँ मनोरमाक आँखि बिग बेनक पैघ घड़ीपर अटकल छलनि। सूर्यास्तक समयमे सूरजक किरण बिग बेनकेँ मनोरम बना रहल छल मुदा मनोरमाक आँखि ऐ मनोरम दृश्यक आनंद नै लऽ घड़ीक सुइपर लागल छल जे आब ६ बाजि ३५ मिनट देखा रहल छल। हुनकर पति सुरेश आ जौंवा बेटी रश्मि आ किरणकेँ तँ अखन तक आबि जायके चाही छलन्हि। पति अपन न्यूज़ एजेंटक दोकान साढ़े ५ तक बंद कऽ दैत छथिन आ बेटी सभ सेहो स्कूलसँ आबि जाइत छन्हि। ६ बजे नर्स हुनका रातुक भोजन दऽ गेलनि, ओ नै खयली, ओ अपन परिवार संगे भोजन करए चाहैत छलीह।
कैंसर वार्डमे १२ टा बेड रहैक, पुरुख आ स्त्रिगनक वार्ड अलग-अलग। स्त्रिगनक वार्डक सभटा बेड भरल रहैक। ओना सबहक बेडक चारू कात हरियर पर्दा लागल रहैक तैँ के की कऽ रहल छल से नै पता चलैक। नर्स मनोरमाक टेबलसँ भरल प्लेट लऽ गेलन्हि आ आइसक्रीम दऽ गेलन्हि, आब आइसक्रीम सेहो पिघलि कऽ चुबय लागल, जेना मनोरमाक आँखिसँ नोर। मनोरमा पिछला ३ सालमे १३ बेर अस्पतालमे भर्ती भेल छथि। जखने दर्द तेज होइन्ह वा उलटी नै रुकन्हि, अस्पतालमे भर्ती भऽ जाथि। कखनो कोनो समय ९९९ नंबर घुमाबथि, अम्बुलेंस लेबय लेल आबि जानि। ओहू दिन किछु एहिना भेल रहैक। मनोरमा अपन पतिक पसंदक भोजन मकइक रोटी आ सरिसौंक साग बनौने छलीह। दुनु बेटी भोजन कऽ बैठकमे टीवी देखि रहल छलन्हि आ पति देव मुँह हाथ धोअ लेल बाथरूममे गेल छलखिन्ह। एम्हर मनोरमा दुकान बंद होबय कऽ आवाज सुनिते टेबलपर २ टा थारीमे सरिसोंक साग हरियर मिर्चीक संगे, २टा कटोरीमे दही, आ तवा चूल्हापर राखी मकइक रोटी हाथपर गोल-गोल घुमाबऽ लगलीह, तवा गर्म होइते रोटी राख देलखिन्ह। अपन पसंदक लाल रंगक सलवार कुरता पहिरने मनोरमा चूल्हा लग ठाढ़ छलीह, मुदा हुनकर आटा लागल दहिना हाथ रोटीके उनटाबय लेल उठि नै रहल छलन्हि। अचानक हुनका दहिना छातीमे दर्द उठल जे बाहींसँ होइत हाथ धरि पहुँचि गेल। दर्दसँ छटपटा उठलीह मनोरमा। भानस घरमे सौंसे धुँयासँ भरि गेलैक, स्मोक अलार्म बजे लागल। घरक सभ लोक भानस घर दिस दौड़लाह। रोटीसँ धधरा निकलि रहल छल। मनोरमा अपन बामा हाथसँ दहिना हाथ पकड़ने चिचिया रहल छलीह। ओही दिन अम्बुलेंस संगे फायर ब्रिगेड सेहो आएल छल।
३ बरख पहिने मनोरमाकेँ कैंसर डैगनोस भेल रहनि, बामा ब्रेस्टमे, जे ६ मासक इलाजक बाद ठीक नै भेलन्हि, तैँ डॉक्टरकेँ हुनकर ब्रेस्ट काटि हटाबय पड़लन्हि, जइसँ शरीरक आर भागमे कैंसरक कीटाणु नै फैलैक। मुदा हुनका रेडिओ थेरापी भेलन्हि आ कतेक तरहक दवाइ सेहो खाइत छलीह, तइ सभसँ कैंसर कण्ट्रोलमे छलन्हि। नव दवाइ आ दवाइक खुराकमे फेर बदल कएलापर साइड इफेक्ट बढ़ि जाइत छलन्हि तैँ अस्पतालक बेर-बेर चक्कर लगाबय पड़ैत छलन्हि। ऐबेर ओ तेरहम बेर अस्पतालमे भर्ती भेल छलीह। डॉक्टर सबहक अथक प्रयासक बादो मनोरमाक दहिना ब्रेस्टमे सेहो कैंसर भऽ गेल रहनि। हुनकर सबहक सलाह रहैक जे दवाइसँ ठीक नै हएत। ओइ लेल ओपरेसन मात्र उपाय अछि।
मनोरमा बड्ड असमंजसमे छलीह। ओपरेसन करा लेने हुनका किछु दिन आर जिनगी भेट जयतनि मुदा की ओ जिनगी मृत्युसँ कम भयावह हेतन्हि। मनोरमा लेल निर्णय लेब बहुत कठिन लागि रहल छलन्हि। जौँ ओ ओपरेसन नै करोतीह तँ कैंसर सौंसे शरीरमे पसरि जेतन्हि आ जौं करोतीह तँ हुनकर स्त्रीत्व समाप्त भऽ जेतन्हि। मोनमे उथुल-पुथल मचल छन्हि। पहिल बेर ओपरेसन करौने छलीह तहियासँ सुरेश शराब पीयब शुरू कऽ देलखिन। शराबक लत तेहन लगलन्हि जे आब भोरका चाहक बदला शराबक गलास हाथमे रहए लगलन्हि। आमदनीक एक मात्र जरिया न्यूज़ एजेंटक दुकान रहनि, तकर आधा कमाइ ओ अपन सिगरेट आ शराबमे खर्च कऽ दैत छलखिन। शराब पिला बाद हुनका तामस सेहो बहुत होइत छलन्हि।,बेटी सभपर सेहो कहियो काल हाथ उठा दैत छलखिन। ओपरेसनक बादसँ सुरेश बेडरूममे मनोरमा संगे सुतब छोड़ि देलन्हि, बेशी काल शराब पिबैत-पिबैत बैठकमे लुढ़कि जाइत छलाह।
अपना लेल नै तँ अपन दुनो बेटी लेल तँ जीबय पड़तन्हि। दुनु बेटी “ए” लेवलक रहल छलन्हि, आगाँ साल एकटा बेटी मेडिकल कॉलेजमे जेतन्हि आ दोसर ला पढ़तनि। मनोरमा ओपरेसन करा लेलीह। बेटीक भविष्यक लेल ओ अपन भविष्य दावपर लगा लेलीह। ममताक आगू सभ बात छोड़ि देलखिन, बेटी सभकेँ कॉलेज जाइत देखी से सपना रहनि।
मनोरमाक आधा खुजल आँखिसँ नोर झर-झर बहि रहल छल। माँ-बाप, भाइ-बहिन सबसँ एतेक दूर अपनाकेँ बहुत असगर महसूस कऽ रहल छलीह। बिग बेनक घड़ीमे ७ क घंटा बाजल। मनोरमाक मोन आशंकित भऽ रहल छन्हि जे अखन धरि बेटी आ पति किए नै अएलखिन। मनोरमा आइ भोरेसँ अस्पतालसँ डिस्चार्ज भऽ घर जाय लेल व्यग्र रहथि, जइ घरमे पिछला २० सालसँ एक-एक टा वस्तु कीनि सजौने रहथि। आगूमे पैघ दुकान रहनि आ पाछूमे भंडार घर,भानस घर आ स्नान घर रहनि। ऊपरमे २ टा सुतयबला घर, एकटा स्नान घर आ एकटा पैघ बैठक आ तइसँ लागल छोट सनक बालकोनी। मनोरमाकेँ ई घर बड्ड पसिन्न छलन्हि कारण इंग्लैंडमे बालकोनीबला घर बहुत कम भेटैत छैक। ओहुना आब जीवाक इच्छा जेना समाप्त भऽ गेल रहनि, बेटी सभक खातिर ओ घर जाय चाहैत छलीह। जइ कोठरीमे ओ पति संगे कतेओक मधुर पल बितौने छलीह, आब ओ कोठरी हुनका काटय दौड़ैत छलनि। मनोरमा अपनाकेँ पति द्वारा तिरस्कृत महसूस करैत छलीह। सुरेशक सहयोगक बदला उदासीनता हुनकर मोनकेँ आर आहत करैत छलन्हि।
मनोरमाक विवाह बड्ड धूमधामसँ बनारसमे भेल रहनि। माँ-बापक बड्ड दुलारू रहथि। पिता अपने आइ.ए.एस. ऑफिसर रहथिन। चारु भाइ बहिनक शिछा दीक्षा कॉन्वेंटमे भेल रहनि। मनोरमा देखे-सुने मे निक, मुदा चंचल रहथि। मनोरमा ७-८ सालक रहथि, तइ बेर दिवाली दिन फटाका छोड़य कालमे छुरछुरी घूमि गेलैक जइसँ हुनकर दहिना बाँही केहुनी तक आ दहिना गाल निक जकाँ पाकि गेलन्हि, कतेक दिनक इलाजक बाद ठीक भेलथि मुदा दाग नै छुटलनि। ऐ दागक कारण सर्वगुण संपन्न होइतो मनोरमाक विवाह नै भऽ रहल छलनि जइसँ माँ-बाप बड्ड चिंतित रहैत छलखिन। मनोरमाक उम्र सेहो ३० पार कऽ गेल छलनि, सुरेशसँ हुनका अपन एकटा दोस्तक घरमे भेँट करायल गेलनि। सुरेशक अपन अंग्रेज पत्नीसँ तलाक भऽ गेल रहनि, ओहो सुशील कनियाक खोजमे इंडिया आएल रहथि। दुनो गोटाक बात मिलि गेलन्हि। चट मंगनी आ पट विवाह भऽ गेलनि।
विवाहक बाद मनोरमा अपन घर गृहस्थीसँ बड्ड प्रसन्न छलीह। बेटी भेला बाद दुनो गोटा आर प्रसन्न रहए लगलाह। काजक बाद सुरेशकेँ जे समय भेटन्हि ओ अपन बचिया संगे बिताबथि। कहियो काल बेटी सभकेँ लेगोलैंड, डिजनीलैंड घुमाबथि आ कहियो मेला सभमे। बेटी पैघ भेलन्हि तखन पेरिस आ स्विटजरलैंड सेहो घुमा देलखिन। ३ साल पहिने हिनका सबहक ख़ुशीमे जेना ग्रहण लागि गेलन्हि। जहियासँ मनोरमाकेँ कैंसर डैगनोस भेलन्हि, सभ बात उलट-पुलट भऽ गेलनि। मनोरमा ऐ बातसँ बड्ड आहत महसूस करैत छलीह जे सुरेश हुनकर व्यथा कोना नै बुझि रहल छथिन। हुनका लागैत छलन्हि जे ओ हुनकासँ नै हुनकर शरीर मात्रसँ प्रेम करैत छलखिन।
ककरो पदचाप सुनि मनोरमाक आँखि खुजि गेलनि। बाहर अन्हार भऽ गेल रहैक, हुनकर आँखिक नोर सुखा गेल रहनि। हुनका आगू हुनकर दुनो बेटी नोराएल आँखिये मुँह लटकौने ठाढ़ छलखिन। मनोरमा धरफरा कऽ बैसैत पुछलखिन “अहाँ सभ कखन अएलहुँ?”
“अखने मम्मी” - दुनु बेटी धीरेसँ जवाब देलकन्हि।
मनोरमा चारू कात तकैत पुछलखिन- “अहाँक पापा कतए छथि?” दुनु बेटी एक दोसराक मुँह ताकए लागल।
“की बात छैक बेटा? अहाँ सभ एना गम सुम किए छी?” मनोरमा व्याकुल होइत बजलीह।
“मम्मी ......................... पापा.................”
“हाँ बेटा पापा के की भेलनि?” मनोरमा आतुर होइत बजलीह। हुनकर चिंता बढ़ि गेलनि। की बात भेलैक? बच्चा सभ कानि किए रहल अछि? हुनकर आँखि सुरेशकेँ ताकि रहल छलनि। तखने दुनु बेटी हुनकर गर पकड़ि काने लगलनि। ओ दुनु बेटीक पीठपर हाथ फेरैत पुचाकरैत कहलखिन,- “अहाँ सभ एना बच्चा जकाँ किए कानि रहल छी?”
रश्मि कनैत बाजल- “मम्मी-पापा हमरा सभकेँ छोड़ि चलि गेलाह?” “कतए चलि गेलाह बेटा।” हतप्रभ होइत मनोरमा बजलीह। हुनकर करेजक धड़कन तेज भऽ गेलनि।
“हम सभ जखन स्कूलसँ अएलहुँ तँ पापा दोकानक भीतर खसल छलाह। ओ नींदक दवाइ खा आत्म हत्या कऽ लेलनि।” किरण सिसकैत बजलीह।
“की............”- मनोरमा चिचिया उठलीह।
“निचाँ इमरजेंसी रूममे पापाकेँ रखने छन्हि। हम सभ अम्बुलेंसमे पापाक संगे अएलहुँ।” किरण हिचकैत बाजल। मनोरमा अवाक रहि गेलीह।
मनोज झा मुक्ति जनगणनामे मातृभाषा
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देशमे जनगणनाक काज शुरु भऽ गेल अछि । देशक सभ जिला आ गाममे जनगणना हेतु सरकार गणक सबके खटादेने अछि । सब भाषिक लडाइय बीड़ा उठौने संस्थासब जनगणनामे अपन–अपन मातृभाषा लिखयबाकलेल विभिन्न प्रकारक अभियानसब शुरु कऽ देने अछि । मुदा मधेशक जनता अखन भ्रमित भेल जकाँ बुझना जाइत अछि । ओ दिग्भ्रमीत बनेवाक काज कएने अछि अपनाके मधेशक कर्णधार कहेनिहार नेतासब ।
मधेशमे सबठाम अपन–अपन मातृभाषा रहल अछि । सब भाषा सबहक अपन–अपन प्राचीन इतिहास रहल अछि । जकरा बले अपनाके मधेशक नेता कहएवामे जे सब गर्व करैछथि, वएह नेतागण आई ओहि संस्कृति आ भाषाके कमजोर कऽरहल छथि । अपना आपके मधेशवादीदलक नेता कहेनिहार सब अपन–अपन मातृभाषाके छोडि मधेशक सम्पर्क भाषाक रुपमे रहल हिन्दी भषापर बेसी जोड दऽरहल छथि ।
मनुष्यक जीवनमें भाषा बहुत पैघ महत्व रखैत अछि । भाषाक कारणे पाकिस्तानसँ अपनाके अलग क कऽ बंगलादेशक निर्माण भेल उदाहरण हमरा सबहक आगा अछि । फेर मधेशवादी दलक नेतासब एहि बातके किया बिसरि रहल छथि ? किछुए दिन पहिने काठमाण्डूक एकटा प्रत्यक्ष टेलिभीजन कार्यक्रममे तमलोपा नेपालक अध्यक्ष महेन्द्र यादव अपन आ मधेशक मातृभाषा हिन्दी कहने रहथि । कि महेन्द्र यादवक माय हिन्दीमें हूनका लोरी सुनाकऽ सुतवैत छलन्हि ? हूनक माय हूनका–‘मुन्ना सो जाओ’ कहिकऽ सुतवैत छलखिन्ह कि–‘बौआ सुत रहु’ कहिकऽ सुतवैत छलखिन्ह ? जौं मुन्ना सो जाओ’ कहिकऽ सुतवैत छलखिन्ह होएत त निश्चित रुपसँ हूनकर मातृभाषा हिन्दी छैन्हि । मुदा से बात नहि अछि हूनकर माय हूनका–‘बौआ सुत रहु’ कहिकऽ सुतवैत छलखिन्ह ताँए हूनक मातृभाषा मैथिली छन्हि, ताइमे कोनो शंका नहि । महेन्द्र यादव त मात्र एकटा उदाहरण छथि, अपनाके मधेशवादी दलक नेता कहएनिहार सबके याह स्थिति छैन्हि । किनको मातृभाष मैथिली छन्हि त किनको भोजपुरी, अवधी आ आन आन । मुदा, सबकियो वकालत करैछथि हिन्दी भाषाके ।
हुनका सब प्रति सहजहिँ एकटा प्रश्न उठैत अछि जे कि मधेश आन्दोलनमें लागल सबकियो आन्दोलन केनिहारक मातृभाष हिन्दी छलन्हि ? कि मैथिली, भोजपुरी, अवधी, थारु या उर्दू भाषा जे अपना मातृभाषामे लिखौता ओ मधेशी नहिं रहताह ? जौं से बात नहिं, तहन अपना–अपना कार्यकर्ताके ओसब अपना–अपना मातृभाषामे मैथिली, भोजपुरी, अवधी, थारु आ जिनकर जिनकर जे मातृभाषा छन्हि ओ लिखेवा लेल निर्देशन देवऽमे किया हिचकि रहल छथि ? हँ एतेक त ध्रुव सत्य अछि कि मधेशक सम्पर्क भाषा हिन्दी अछि, तहन हिन्दीके बढेबा खातीर आन–आन मातृभाषाक सँगे सौतिनियाँ व्यवहार किया ? मधेशवादी दलक नेता आ कार्यकर्तासब एहि बातके नहिं बिसरथु जे मातृभाषामे मैथिली, भोजपुरी, अवधी, थारु, उर्दु, राजवंशी लगायतक भाषा लिखौनिहारसब मधेशी मात्र भऽ सकैछथि । किया त मातृभाषासँ सहजहिं बुझल जासकैया कि अमुक व्यक्ति मधेशी अछि कि नहिं ।
बहुतके कहब अछि जे मधेशवादी दलसब भारतमुखी अछि आ हिन्दी भारतक भाषा अछि, ताँए ओसब हिन्दीके स्थापित करबामे लागल छथि । जौं याह बातके सत्य मानल जाए त कि भारतक सब प्रदेशमे हिन्दी बुझल जाइत अछि ? हमरासबके निक जकाँ देखल अछि कि भारतक एच.डी.देबेगौड़ा सन–सन बहुतो एहन प्रधानमन्त्री भेल छथि जिनका हिन्दी त की अन्तराष्ट्रिय भाषाक रुपमे मानलगेल अंग्रेजीधरि नहि अवैत छलनि । ओसब घर स लऽ कऽ कोनो मञ्च आ विदेशक मञ्च किया नई हुए अपन मातृभाषाक प्रयोग मात्र करैत छलाह आ अखनो करैत आएल अछि । त कि एहिसँ भारतमे हिन्दी कमजोर भऽगेलैया ? कथमपि नहि । एहि कटु सत्यके मनन सब मधेशवादी दलके क कऽ शिघ्रातिशिघ्र अपना–अपना कार्यकर्ताके, भऽ रहल जनगणनामें हिन्दी भाषाके सम्पर्क भाषक लेल आ अपन–अपन मातृभाषामे मधेशक माइयक बोलीक रुपमे रहल मैथिली, भोजपुरी, अवधी, थारु, उर्दू या आन....के े लिखएवाकलेल जागरण अभियानक निर्णय करब आवश्य अछि ।
तहिना मातृभाषाक नामपर बहुत रासे संघ–संस्थासब खुलल अछि । बहुत गोटेक दालिरोटी मातृभाषासँ चलैत छन्हि । मातृभाषाक नामपर खुजल संघ–संस्थासब आ मातृभाषाक नाममर अपन बाल–बच्चाके पालनिहारसबहकलेल जनगणना बहुत पैघ मौका लऽ कऽ आएल अछि । अपना–अपना दिसिसँ मातृभाषामें अपन माइयक बोली लिखेबाकलेल गाम–गाममे अभियान करबाक समय चलि आएल अछि । गाम–गाममे मातृभाषासँ प्रेम केनिहार युवासब संगठीत भऽ अपना गाममे गणक सँगे घुमिकऽ विवरणमे अपन मातृभाषा लिखएवाक काजमे जुटि जाएव आवश्यक अछि । सबकियोके अपना–अपना ठामसँ जनगणनाक विवरणमे मातृभाषाप्रति सजग रहब जरुरी अछि । राज्य आ सरकारमे रहल बहुतो लोक एहन अछि जे सबहक मातृभाषामे नेपाली या हिन्दी लिखएवालेल चाहैत अछि । जौं एहि समयमे हमसब सजग नहि रहलहुँ त इतिहास ककरो माफ नई करत । माइयक दूध धिक्कारैत रहत सबके....।
शिवकुमार झा टिल्लू
समीक्षा
आशु कवित्वक हृदयांतरिक किलोल- कलानिधि
:: शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
महााकवि विद्यापतिक वाद मैथिली साहित्यमे आशु कविक जे श्रृंखला काव्य साहित्यकेँ गतिमान केलक ओइमे विविध कारणसँ किछु काव्य प्रतिभा झाॅपले रहि गेल। ओहेन आशु कविमे कालीकान्त झा ‘बूच’ सेहो एकटा नाअों अछि। सन् 1934ईं.मे महान दार्शनिक उदयनाचार्यक जन्म ओ कर्मस्थली समस्तीपुर जिलाक करियन गाममे जन्म नेनिहार कवि कालीकान्त झा ‘बूच’ अपन काव्य साधनाक श्रीगणेश हिन्दी साहित्यसँ कएलनि, परंच किछुए हिन्दी कविताक रचनाक पश्श्चात अपन मातृभाषामे लिखए लगलथि, फेर हिन्दीमे लिखबाक कोनो जिज्ञासा नै, कोनो योजना नै। कवि आ पाठकक मध्य रचनाक अभिव्यक्तिक साधन मिथिला मिहिर, माटि-पानि आ मैथिली भाषा सन पत्रिका छल। ऐ पत्रिका सभकेँ बन्न भेलापर कविक कविता गामक किछु लोकक मध्य मनोरंजन मात्रक साधन रहि गेल, कविता पन्ना फाटल आ कविक रचना गुम्म। बहुत रास रचना अप्रकाशित रहि लुप्त भऽ गेलनि। जे किछु उपलब्ध भऽ सकल ओकरा विदेहक सौजन्यसँ श्रुति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कएल गेल। दुभाग्य अछि जे कविक मृत्यु 2009ईं.मे आ कविता संग्रह 2010ईं.मे। एकरा ककर दुर्भाग्य मानल जाए मैथिली साहित्य वा कविक एकर िनर्णए पाठक कऽ सकैत छथि। किएक तँ सन् 1970ईं.सँ 1984र्इं.क मध्य मिथिला मिहिरक लोक प्रिय कविमे जनिक गणना होइत छल ओकर रचनाक केतौ कोनो चर्च नै, कोनो प्रोत्साहन नै। एे सभ उपहासक दंशसँ आकुल भऽ कवि गंभीर आ विचारमूलक रचना लिखब छोड़ि भक्ति, हास्य आ चुटुक्काक संग-संग गामक वियाह सबहक अभिनंदन पत्र लिखए लगलथि। जइ कविकेँ कहिओ मधुपजी सन कवि चूड़ामणिक प्रशंसा पत्र भेटैत छल ओ मैथिलीक लेल अछोप बनि गेल। मात्र डाॅ. दुर्गानाथ झा श्रीश, डाॅ. विद्यापति झा, डाॅ. नरेश कुमार विकल सन किछु साहित्यकार कतौ-कतौ हिनक चर्च केने छथि, जइ लेल मैथिली साहित्य हिनका सभसँ कृतज्ञ रहत।
श्री गजेन्द्र ठाकुरक विशेष प्रयाससँ जे हिनक कविता संग्रह प्रकाशित भेल, ओकर नाओं अछि- ‘कलानिधि’ कलानिधिक अर्थ होइछ चन्द्रमा, ऐ संसारकेँ छोड़ि देलाक बाद संग्रह आएल तँए अाकाशीय पिंड जकाँ मात्र दर्शनीय नाओं देल गेल।
आशु कविक कोनो बंधन नै छैक आ ने ओ अतुकांत कविता जकाँ योजना बना कऽ कविता लिखैत अछि तँए समीक्षक लोकनिक दृष्टिमे किछु कविता अप्रासंगिक भऽ सकैत अछि।
कवि ‘बूच’ कविताक रचना प्राय: गाबि कऽ करैत छलाह, जखन जे फुरेलनि गीत जकाँ लिखि देलनि। तँए गोष्ठीक मंचपर सेहो मात्र गबैए रहि गेला। श्रृंगार, हास्य, विरह, भक्ति ओ विचार मूलक कविता सभमे कोनो कालक बंधन नै अछि। भक्तिकाल, रीतिकालसँ लऽ कऽ उत्तर आधुनिक साहित्यकाल धरिक परिवेशकेँ बूच अपन कविता सभमे समेटने छथि। तँए किछु रचनाकेँ घसल-पिटल सेहो मानल जा सकैछ।
अपन काव्य रचनाक श्री गणेश कवि गंभीर लेखनसँ कएने छलाह, मुदा ऐठाम ‘सरस्वती वंदना’सँ कएल गेल। भक्ति रसमे कवि बहुत रास कविता लिखने छथि। रामचरित मानसक हिनका विशेष ज्ञान छलनि तँए भक्ति मूलक कवितामे ओइ युगक घटना स्वभाविक अछि, मुदा मिथिलाक भक्ति शक्ति अराधना तँ मातृगीतकेँ विशेष महत्व देल गेल। भऽ सकैछ ऐ प्रकारक वकिता उत्तर आधुनिक मैथिली साहित्यक लेल विशेष महत्वपूर्ण नै हुअए मुदा जइठाम भाषा सुशुप्त भऽ गेल हो ओइठाम भक्ति मूलक गीत भाषाक समृद्धिक लेल अनिवार्य, किएक तँ आर्य परिवारक सभ लग्नमे स्त्रीगण देवोपराधनाकेँ विशेष महत्व दैत छथि। यएह कारण अछि जे मैथिली साहित्यमे सभसँ लोकप्रिय पद्य विद्यापतिक बाप प्रदीप मैथिली पुत्र जीक ‘जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर’ भेल अछि। कविश्चकेँ सीताराम झा वा प्रदीप मैथिलीपुत्र जकाँ लोकप्रियता नै भेटल मुदा हिनक भक्ति पद्य सभमे जे झंकार अछि ओकर अपन अलग अस्तित्व मानल जाए-
“सद्य: सुधा सिन्धु स्नात, मॉजल गंगा जलसँ गात
सेवक खातिर तजलनि नवरतनक रजधानी अय
मणिद्वीपक महरानी अय ना.....।”
जेना रवि भूषण जी आमुखमे लिखने छथि जे कवि रामकेँ प्रवासी कहलनि बनवसी नहि, ऐ प्रकारक दृष्टिकोण पितृ: आज्ञा पालनाय अर्थात पितृभक्ति आ संबंधक मर्यादामे क्रांतिकारी दृष्टिकोणकेँ विशेष महत्व देवाक लेल आदरनीय मानल जाए-
भ्क्ति मूलक एकटा गजलमे राधा कृष्णक सिनेह केर अनुशासित चित्रण गजलमे भक्तिक बोर मैथिली साहित्यमे विरले भेटैछ-
श्याम होइछ परक प्रेम अधलाह हे,
तेँ विसरि जाह हमरा विसरि जाह हे।
कविक श्रृंगार मूलक पद्यमे विचार, अनुशासित सिनेह, वैराग्य आ जीवन दर्शन मर्म स्पर्शी अछि। कतौ कोनो अवांछित प्रेमकेँ प्रोत्साहन नै, कतौ अशोभनीय शब्द नै। भाषा सरल आशुगीत मुदा लोकप्रियता लेल लिखल गेल चलन्त नै। अतुकांत कवितामे बिम्ब विश्लेषण करबाक लेल व्यवधान नै होइत छैक किएक तँ ताल-मात्राक बंधन नै। आशु कवितामे बंधन रहितो जौं बिम्ब विश्लेषण बोधगम्य आ हृदयान्तरिक स्पर्श करैत हुअए तँ कविता आर लोकप्रिय किएक नै मानल जाए-
“जाहि बाटकेँ नित्य बहारी
हम तीतल ऑचरसँ झारी
जकरा अपनामे रखने अछि
हमर आँखि ई कारी-कारी
आइ ताहि पर किएक अलासित गतिसँ आबै छी
रातु बीच चान पर तपि-तपि ध्यान लगाबै छी...।”
दोसर पद्य ‘विरहिनी’मे कृष्णक अवाहनक आशमे अश्रुउच्छवाससँ आकुल राधाक “व्यथा रीति-प्रीतिक हिलकोरसँ भरल मानल जाए-
अहँक रूप राखि नैन युग-युगसँ जागलि छी
मुरलीक मधुर बैन गुनि-गुनि कऽ पागलि छी
परकीया पतिता हम प्रेमक पुजारिनकेँ
नहि चाही गीताक ज्ञान
आऊ-आऊ रूसल हमर भगवान....।”
एकदिश कवि ‘तोहर ठोर’ कविताक माध्यमसँ प्रेमिकाक सौन्दर्यक गुणगान ठोरकेँ केन्द्र बिन्दु बना कऽ करैत अछि। प्रेमी प्रेमिकाक ठोरकेँ स्पर्थ जौं नैतिक रूपसँ नै कऽ सकत तँ राहुक रूप धारण कऽ जबरदस्ती करत एहूमे जौं सफलता नै तँ भगवानसँ प्रार्थना कऽ कऽ पुर्नजन्ममे धान बनि प्रेमिका पातपर चिष्टान्न अर्थात् भात वा खीरक रूपेँ पड़त आ प्रेमिका स्वत: प्रेमी रूपी भातकेँ ठोरसँ सटा लेतीह-
“बनव हम पुर्नजन्ममे धान,
धानसँ भऽ जाएब चिष्टान्न
पड़ब पुनि अहँक प्रतीक्षापात
अछिंजलसँ सद्य: स्नात....।”
दोसर दिस कवि समाजकेँ सिनेहमे मर्यादाक सीमा नै लंघबाक िनर्देश सेहो दैत छथि-
“नहि श्रंृगार रौद्र हुंकारे
हम एहि पार अहाँ ओहि पारे
दुहूक बीच कठोर कर्तव्यक
भरल अथाह भयंकार नाला
सुरभित अहँक सिनेहक माला...।”
विरह, श्रंृगारक स्पंदन होइत छैक, जौं विरह नै हुअए तँ मिलन आनंदक अनुभूित कोना कराएत। ऋृतु वर्णनकेँ मूलाधार बना कऽ कवि ‘वसन्ते-विरहिनी’ कविता लिखलक, अचल जीव अर्थात् गाछ-वृक्ष वसंतक नशामे मॉतलि छथि मुदा पतिसँ दूर विरहिनीक लेल वसंतक कोन प्रयोजन-
“रहलहुँ शेष राति भरि जागलि,
हुनक दोष की हम अभागलि
रसक अथाह सिन्धु छल उछलल
प्राण मुदा बुन्ने लय विह्वल
घर-घर अकाशे चन्ना धरती अन्हार गय.....।”
अर्न्तमनक जुआरिकेँ कियो झाँपि सकैत अछि, कविक दृष्टि भनहि रविक प्रकाशसँ दूर चालि जाए, मुदा कविता जौं शान्तचित्त भऽ कऽ पढ़ल जाए तँ अपन व्यक्तिगत जीवनकेँ कविसँ झाँपब असंभव। ‘उदासी’ शीर्षक कवितामे कवि किए उदास अछि, चानक मुख िकए मलीन भऽ गेल ई तँ नहि कहल जा सकैत मुदा ककरो देल व्यथासँ कविक मोन अवश्य हहरि गेल छन्हि-
“ककरा पर रूपसि करी आश
ई कल्पो विटप बबूर भेल
रोपल अभिसिचिंत वर प्रवाल
बढ़ि जेठक ठुट्ठ खजूर भेल...।”
यात्री, आरसी आ चन्द्रभानु जकाँ कवि भौतिकतामे अपन समाजक मध्य शिखर स्थान नै रखलक, अर्थयुगक देल पीड़ा एकरा इमानदार साधारण कर्मचारी लेल असहनीय तँए ‘करूण गीत’ बनि उपटि गेल-
“कटि रहल किए ई कला इन्दु
घटि रहल किए जीवन प्रकाश
रजनीक रूदन विगलित प्रभात
कऽ रहल किए अतिशय उदास.....।”
हिनक विचार मूलक कविता सभमे सेहो सिनेहसँ वेशी वैराग्यक बोध होइत अछि। जीवनक अंतिम अवस्था धरि कवि पारिवारिक र्धमे बान्हल रहल कोनो दबाबमे नै, अपन आत्मीयतासँ समाजकेँ सर्वे भवन्तु निरामया रूपेँ ेदेखलक मुदा व्यक्तिगत जीवनमे ‘ठोप-ठोप चारक चुआठकेँ ऑगुरसँ उपछैत रहल छी’ लिखबाक किए आवश्यकता पड़ल? हास्य कविता पाठ सुनि पाठक हँसैत छथि, वा मर्म स्पर्शी रचनापर कनैत छथि परंच कविसँ कियो नै पुछैत अछि जे ओ ऐ प्रकारक पद्य किए लिखलनि। बूचक व्यथा सेहो झॉपले चलि गेल मुदा एतेक तँ हम निश्चित रूपेँ कहि सकैत छी जे अपन जीवनक व्यक्तिगत संघर्षक संग-संग कवि साहित्यकार मंडलीमे अपन महत्व नै देख- ‘एकला चलो रे’क आधारपर अपन साहित्यिक कृतिकेँ सेहो एकात कऽ लेलक-
“दुनिया हमर एकातक गहवर
भेल जीअत मुरूतक स्थापना एहि जीवनमे...।”
एकर परिणाम स्वरूप कवि मैथिलीक अस्तित्वपर सेाहे प्रश्नचिन्ह लगा देलक-
“चन्दा सुमन यात्री मधुपक
जुनि करू ओ आबि रहल अछि
हेती मैथिली सभसँ कात......।”
वास्तवमे कवि मिथिला-मैथिलीमे जाति, क्षेत्र आदिक आधारपर परसल भेदभावसँ आहत अछि, जातिवाद तँ सम्पूर्ण आर्यावत्तक अस्तत्वक कलंकित कएने अछि, मुदा कोनो भाषामे जौं जातिक आधारपर भेद हएत तँ एकरा की कहल जाए? मैथिली ऐ भंवरजालमे एना ओझरा गेल छथि जे ब्राह्मणोमे भलमानुष आ जयवारक मध्य अभिव्यक्तिक अंतर आन जातिकेँ रूढ़िवादी भाषाधिकारी लोकनि कोना मोजर देथि। कवि 1978ईं.मे जागरणगान लिख अपन वयनानुरागकेँ पसरबाक प्रयास कएलनि-
“असम वंग पंजाव गुजरात जागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
हरण भऽ रहल अछि हमर मीठ वयना
कोना कऽ सिखत आन बोली ई मयना....।”
स्वागत गानक विषयमे आमुखमे रिव भूषणजी आ गजेन्द्र ठाकुरजी विशेष चर्च केनहि छथि। संभवत: ऐ प्रकारक स्वागतगान जकरा व्यथागान सेहो कहल जा सकैत छैक मैथिलीमे तँ निश्चित नै लिखल गेल हएत। गजेन्द्रजी कवि बूचकेँ विद्यापतिक बाद सभसँ लयात्मक कवि मानलनि ऐ गप्पपर समालोचक लोकनि निश्चित प्रश्न ठाढ़ करताह मुदा एतेक तँ अवश्य सत्य अछि जे आरसी आ यात्रीक पश्चात एहेन समन्ववादी आशुकवि मैथिली साहित्यमे नै भेटत।
एखन किछु लोक मिथिला राज्यक लेल पगहा तोड़ि कऽ चिचिआ रहल छथि। समाजक मध्य समन्वयवाद नै रहत तँ मिथिला राज्यक कल्पना करब सेहो असंभव। अगिला आसनपर बैसल लोककेँ समाजक कात लागल वर्ग जकर संख्या बारह आना अछि, मिथिला राज्यक पुरौधा कोना मानत, किएक तँ ऐ उपेक्षित लोक सभकेँ मैथिल मानले नै गेल। ऐ विषयपर कवि 30 वर्ष पहिनहि ‘मिथिला दु:दशा’ नाओंसँ कविता लिखलक-
“राज्यक की बात कठिन पाॅचोटा गाॅव गय....।”
कविक पोटरीमे पलायनवादक विरोध सेहो अछि। बाल साहित्य सन विषयपर ‘दीनक नेना’ सन मर्म स्पर्शी आ ‘पोताक अट्ठाहास’ सन हास्य कविता लिख कवि प्रमाणित केलक जे बाल साहित्य ओछ विषय बिम्ब नै थिक। भऽ सकैछ किछु हास्य कविताकेँ लोक मात्र मंचक गबैयाक गीत बुझथु मुदा ओहू सभमे गंभीर दृष्टिकोण झापल छैक- मात्र अपन संस्कृतिक विस्मयकारी विषय दृष्टिकोणपर कवि प्रहारेटा नै केलक आ मात्र काटर प्रथा सन कलंककेँ उघारे नै केलक संग-संग अपन संस्कृतिक सिक्कड़िकेँ सेहो ‘अप्पन मिथिला’ कवितामे पिजौलक, परंच ओइमे लागल जगपर कवि व्यथित सेहो भेल-
“गंगो दीदी चाह बनावथि,
कमला बेटी पान लगावथि
कोशी वहिना धान कुटै छथि
वागमती सिदहा फटकै छथि
घऽरक लक्ष्मी विहुंसथि मॉझ ओसार अप्पन मिथिला.....।”
ओना ई गप्प ओतबे सत्य सेहो अछि जे कवि किदु निरर्थक कविता सेहो लिखने छथि। जकर देशकालक दशासँ कोनो संबंध नै। जेना डहकन, हमर गाम अादि। ऐ प्रकारक कविताकेँ साहित्यक विकासमे कोनो योगदान नै, वरन् व्यर्थ अपन कवित्वकेँ नष्ट करब मानल जाए, मुदा इहो गप्प ओतबे सत्य जे आशु कविक कोनो सीमा नै होइत छैक।
बहिर्मुखी व्यक्तित्वक बूच अपन रचनामे अर्न्तमुखी बनि विशेष अर्थ राखएबला कविता सभ लिखैत छलाह। मुदा हिनक अन्तर्तममे स्वांग नै अछि कतौ किलोल नै कएलनि जे हमहूँ कवि छी, मुदा अपन समन्वयवादी दृष्टिकोणकेँ अात्मामे नुका कऽ नै राखि सकलथि आ हृदयांतरिक किलोल कविताक माध्यमेँ बाहर निकलि गेल।
विदेहक सम्पादक गजेन्द्र ठाकुर, सह सम्पादक उमेश मण्डल आ श्रुति प्रकाशन धन्यवादक पात्र छथि जे ऐ उपेक्षित अभिशप्त कविक बचल-खुचल रचनाकेँ प्रकाशमे अनलनि, नै तँ अगिला पीढ़ीक गप्प के कहए वर्तमान पीढ़ीक किछु लोकेँ छोड़ि ई कियो नै जनैत अछि जे ‘बूच’ मैथिलीक कवि छलाह। ऐ लेल ककरा दोष देल जाए कविक अथवा साहित्यक हथियार नेने मैथिलीक रथपर सवार महारथी लोकनिकेँ? एकर िनर्णय पाठक कऽ सकै छथि।
पोथीक नाअों- कलानिधि
रचनाकार- कालीकान्त झा ‘बूच’
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2010
दाम- 150 टाका मात्र।