ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १२४ म अंक १५ फरबरी २०१३ (वर्ष ६ मास ६२ अंक १२४)
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती
प्राचीन कालहिसँ महान
पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक
पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२००
वर्ष पूर्वक) अभिलेख
अंकित अछि। मिथिलाक
भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़
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"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक
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१. संपादकीय
[नो एण्ट्री: मा प्रविश २००८ ई. मे
छपल आ साहित्य अकादेमी पुरस्कार लेल एकर चयन २०१०, २०११ बा
२०१२ मे नै भऽ सकलै। आब ई पोथी मैथिली साहित्य लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कार लेल
उपलब्ध नै रहत। ऐ तरहक आनो उदाहरण रहल अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश क मैथिली
साहित्य आ विश्व साहित्य मध्य स्थान नीचाँक आलेखमे निरूपित कएल जा रहल अछि। ई
शृंखला आगाँ सेहो जारी रहत।]
भाग-२ (आगाँ)
चारिटा उत्तर आधुनिक नाटक: सैमुअल बैकेटक
फ्रेंच नाटक “वेटिंग फॉर गोडो”, हैरोल्ड
पिंटरक अंग्रेजी नाटक “द बर्थडे पार्टी”, बादल सरकारक बांग्ला नाटक “एवम् इन्द्रजीत” आ उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’क
मैथिली नाटक “नो एण्ट्री: मा प्रविश”
उत्तर आधुनिक भावप्रधान
निरर्थक (एबसर्ड) नाटक: एन एटेण्डेन्ट गोडो क सैमुअल बेकैट द्वारा स्वयं फ्रेंचसँ अंग्रेजीमे अनुवाद कएल गेल “वेटिंग फॉर गोडो” शीर्षकसँ आ उपशीर्षक “अ ट्रेजिकॉमेडी इन टू एक्ट्स” सेहो जोड़ल गेल जे
फ्रेंच संस्करणमे नै छल। ट्रेजीकॉमेडी माने ट्रेजेडी आ कॉमेडीक मिश्रण। एकर
कथानकसँ स्पष्ट भऽ गेल हएत जे एकर मुख्य पात्र “गोडो”
ऐ नाटकमे छैहे नै, दोसर ओ भावक दृष्टिसँ सेहो
नाटकक मुख्य तत्व नै छै। नाटकक मुख्य तत्व छै “वेटिंग”
माने बाट तकनाइ। भाषा, स्टेज, बाजब, चुप्प रहब, चलबाक तरीका,
ई सभ ऐ नाटकक अभिन्न अंग छिऐ। देश-कालमे भागैबला बनजारा जीवनशैलीक
लोक सभ अछि एकर मुख्य पात्र। बिनु बजने शारीरिक भावसँ अभिनय करैबला “माइम कलाकार” जेकाँ ऐ नाटकक पात्र अभिनय करै छथि। नाटकमे
प्लॉट आ संतुलनक नव परिभाषा ई नाटक गढ़ैत अछि। आधुनिक थियेटरकेँ ई नाटक नव युगमे
प्रवेश कराबैत अछि। ब्रिटेनक “म्यूजिक हॉल” थियेटर मे संगीत हास्य रहै छलै जइमे जीवनक निराशा “क्रॉस-टॉक”सँ बेकेट आ राजनैतिक-सामाजिक आतंक हैरोल्ड पिन्टर हास्य रूपमे देखबैत छथि।
“नो एण्ट्री: मा प्रविश” सेहो स्वर्क
(बा नरक) क द्वारपर आरम्भ होइए जतए ओना तँ सभ मृत लोक पंक्तिबद्ध छथि मुदा एकटा
जीवित व्यक्ति सेहो छथि!उचक्का बाजारी लग सञ्च-मञ्च रहैए! प्रेमी-प्रेमिकाक ओतए
बियाहो भऽ जाइ छै! नेताजी मृत्युक बादो विलम्बसँ एबा लेल अभिशप्त छथि! वामपंथी ओतौ
बाहरसँ समर्थन दै छथि! वी.आइ.पी. क्यू सँ ओतौ त्राण नै भेटै छै! मुदा जइ दरबज्जाक
बाहर लोक पंक्तिबद्ध छथि से एक युगमे खुजितो छल आ बन्न सेहो होइत छल, ई रहस्योद्धाटन चित्रगुप्त करै छथि! माने आब ई नै खुजत तखन इन्तजारी कथीक?
नन्दी-भृंगी कहैए जे सोझाँक दरबज्जा स्वप्न नै, मात्र बुझबाक दोष छल! अभिनेता विवेक कुमार अपन “सरनेम”
पुछल गेलापर कहै छथि जे कतेक मोश्किलसँ तँ जाति हुनकर पाछाँ छोड़लक
अछि से उर्फ तँ छोड़िये देल जाए। वामपंथीक कथामे ने स्वर्ग-नर्क होइ छै आ नहिये यमराज-चित्रगुप्त,
मुदा एतुक्का परिस्थिति देखि कऽ ओ अविश्वास कोना करथु? मुदा यमराजे हुनका कहै छथिन्ह जे ई दुःस्वप्न हुअए। यमदूत सभ कड़ाह लग
अनेरे ठाढ़ छथि कियो भूजैले भेटिते नै छन्हि, चित्रगुप्तक
मेकप बला दाढ़ी देखि भिखमंगनीक हँसलापर भृंगी कहै छथि जे भिखमंगनी सेहो हुनके सभ
जेकाँ कलाकार छथि। मोनक दरबज्जा मोन छोड़ि एलापर कोना खुजत?
फ्रेंच नाटक “वेटिंग
फॉर गोडो”, हैरोल्ड पिंटरक अंग्रेजी नाटक “द बर्थडे पार्टी”, बादल सरकारक बांग्ला नाटक “एवम् इन्द्रजीत” आ उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’क मैथिली नाटक “नो
एण्ट्री: मा प्रविश” पुरान नाटक जेकाँ परिभाषित आरम्भ आ
अन्तक परिधिसँ अलग अछि। ई कतौ सँ शुरू भऽ जाइत अछि, कतौ खतम
भऽ जाइत अछि। एवम् इन्द्रजीत मे लेखक पात्र ताकि रहल अछि, आ अनचोक्के ओ दर्शक दीर्घाकेँ सम्बोधित करैत चारिटा देरीसँ आएल दर्शककेँ मंचपर
बजा लैए आ ओकरा नाटकक पात्र बना दैए। चारिम पात्र ओकरा प्रिय छै, ओ निर्मल नै “इन्द्रजीत” छी। ओ
अलग अछि, इन्द्रकेँ जीतैबला ऐतिहासिक पात्र अछि। ओ अमल विमल,
कमल जेकाँ लीखपर नै चलत। मुदा अन्त जाइत जाइत इन्द्रजीत सेहो अमल
विमल, कमल एवम् इन्द्रजीत भऽ जाइए।
हैरोल्ड पिन्टरक “द
बर्थडे पार्टी”क प्रारम्भमे तेहेन समीक्षा भेल जे हुनकर
लेखकीय जीवन समाप्त हुअए पर आबि गेल। मुदा एकर पुनर्पाठ एकरा क्लासिक बना देलक।
किछु रहस्य, किछु आतंककेँ ओ सम्पूर्ण नाटकमे बनेने रहलाह,
हास्य कथ्यकेँ आर मजगूत केलक। स्टैनले की अछि, छल बा बनऽ चहैत अछि? की ओ स्त्रीकेँ दूषित करैए,
बा ओ अपन पत्नीक हत्या केलक? मुदा मेग तँ ओकरा
पसिन्न करै छै? ओकर पहिल आ दोसर कन्सर्ट, के तकर बाधक बनलै? की ओ झूठ बजैए बा वर्तमान सामाजिक
आ राजनैतिक परिभाषासँ अलग व्यवहारक अछि? ओ मेगकेँ मोकऽ चाहैए
मुदा तैयो किए मेग ओकरा पसिन्न करै छै आ सामाजिक आ राजनैतिक शक्ति ओकरा किए आ कोना
उठा कऽ लऽ गेल जाइ छै, जकर सिपाही गोल्डबर्ग (गोल्डबर्गक
लुलुक संग रहस्यमय व्यवहार) स्वयं आदर्श उपस्थित नै कऽ पाबै छथि।
सुन्न-मसान सड़कक कातक माटिक ढिमका आ
पत्रहीन नग्न गाछ “वेटिंग फॉर गोडो” क
स्टेज छिऐ, ताला लागल दरबज्जाक बाहरक स्थल/ मण्डप “नो एण्ट्री: मा प्रविश”क स्टेज छिऐ तँ “एवम् इन्द्रजीत”मे दर्शक दीर्घा, सएह स्टेज बनि जाइए। “द बर्थडे पार्टी”मे घरक कोठली स्टेज छिऐ मुदा पिन्टर एकर पात्र स्टैनले केँ डेरीडाक “विखण्डन” पद्धतिसँ कखनो खण्ड कऽ दैत छथि तँ कखनो
फेरसँ जोड़ि दै छथि। लोक बा दर्शक ओकरासँ ईर्ष्या करऽ लगैए, खने
सहानुभूति करऽ लगैए खने घृणा करऽ लगैए, मुदा स्टैनली
गोल्डबर्ग आ मैक्कानक सोझाँ जखन निर्बल बुझि पड़ैए तँ दर्शक ओकरा संग अपनाकेँ देखैए,
जेना ओ “एवम् इन्द्रजीत” मे इन्द्रजीत संग अपनाकेँ देखैए। “वेटिंग फॉर गोडो”
मे जखन लोक गुलाम संग अपनाकेँ देखैए तखने सहानुभूति देखेलापर चमेटा
पड़लापर ओ हतप्रभ रहि जाइए। “नो एण्ट्री: मा प्रविश” मे भिखमंगनी ईर्ष्यावश रम्भा-मेनकाकेँ
मुँहझड़की कहैए! पॉकेटमार इन्द्रक व्रजपर रुपैय्याक बोली लगबैए। नन्दी-भृंगी कहैए
जे सभ गोटे सत्य छी मुदा क्यो गोटे पूर्ण सत्य नै बजलौं। “एवम् इन्द्रजीत”मे इन्द्रजीतक हाल सिसीफस सन छै।
शापित ग्रीक मिथक सिसीफस, संगमरमरक पाथरपर चढ़बाक लेल अभिशप्त,
आ जखने ओ चोटीपर पहुँचैए आकि पाथर फेर गुरकि कऽ ओकरा नीचाँ आनि दै
छै। मनुक्खक काज आ जीवन निरर्थकतापर आधारित अछि। मनुक्ख असफल होइले अभिशप्त अछि,
इन्द्रजीत जेकाँ? आकि “नो
एण्ट्री: मा प्रविश”क स्वर्ग-नरक, यमराज-चित्रगुप्तक
अमान्यता देखलाहा गपकेँ देखि बदलत? मुदा तखन यमराजे कहै छथि
जे देखलाहा गप दुःस्वप्न भऽ सकैए? “वेटिंग फॉर गोडो” ईश्वरक इन्तजारी नै छिऐ, बेकेट स्वयं कहै छथि जे
इन्तजारी “गॉड”क नै “गोडो”क भऽ रहल अछि, ओना
क्रिस्टियेनिटी “मिथोलोजी” अछि से ओ
तकर प्रयोग करै छथि। अस्तित्ववादी विचारधारा, मनुक्ख आ
ब्रह्माण्ड सभ निरर्थक अछि, अबसर्ड अछि।
.......................................
"वेटिंग फॉर गोडो” दू अंकीय ट्रेजी-कॉमेडी अछि।
सैमुअल बैकेट द्वारा ई 1952 ई. मे फ्रेंच भाषामे लिखल गेल आ एकर पहिल प्रदर्शन
पेरिसमे 1953 ई. मे भेल। एकर अंग्रेजी संस्करणक प्रदर्शन लंदनमे 1955 ई. मे भेल आ
अंग्रेजी संस्करण 1956 ई. मे प्रकाशित भेल।
हैरोल्ड
पिंटरक अंग्रेजी नाटक “द बर्थडे पार्टी”
कैम्ब्रिजमे 1958 ई. मे मंचित भेल आ 1960 ई. मे प्रकाशित भेल।
बादल
सरकारक बांग्ला नाटक “एवम् इन्द्रजीत” 1962
ई. मे लिखल गेल आ ई 1965 ई. मे कलकत्तामे मंचित भेल।
उदय
नारायण सिंह ‘नचिकेता’क “नो
एण्ट्री: मा प्रविश” 2008 ई. मे ई-प्रकाशित आ फेर ओही बर्ख
प्रकाशित भेल। 19 फरबरी 2011 केँ कुणालक निर्देशनमे कालिदास रंगालय, पटनामे ई डेढ़ घण्टाक नाटक मंचित भेल।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
जगदीश
प्रसाद मण्डल
उपन्यास- बड़की बहिन (आगाँ..)
बड़की बहिन
चारि भाए-बहिनक बीच सुलोचना, पहिल रहने बड़की बहिनक नाओंसँ गाम भरिमे
जानल जाइत छथि। बीघा दू-अढ़ाइक जमीनबला परिवार।
छियासी बर्खक
अवस्थामे जिनगीक ढलानक आखिरी सीढ़ीमे पहुँचल सुलोचना भातीजक संग बिलसपुर-मध्य प्रदेशसँ
अपने गाड़ीसँ गाम पहुँचली। गाम पहुँचते हलचल भऽ गेल सुलोचना बहिन एली। ओना पछिला
पीढ़ीक अनुकरण करैत अगिलो पीढ़ी, दीदीक जगह बहिने कहै छन्हि। एक्के-दुइये टोलक धिया-पुता आ जनि-जातियो पहुँचए
लगली। डेढ़ियापर गाड़ी रोकि रघुनाथ (छोट भाइक जेठ बेटा) उतरि एका-एकी सभकेँ उतारए
लगल। दू बर्खक पोताकेँ सुलोचना कोरामे नेने गाड़ीसँ उतरली।
रिष्ट-पुष्ट शरीर, चानीक बल्ला
दुनू हाथमे, महीन, सादा साड़ी पहिरने।
थुल-थुल
देह। उतरिते चारू दिस आँखि उठा तकलन्हि तँ बूझि पड़लन्हि जे जेबा कालसँ विपरीत
सभ किछु बूझि पड़ैए। जिनगीक आशा तोड़ि घरो-दुआर आ गामोकेँ
गोड़ लागि कहने रहियनि जे अंतिम दर्शन केने जाइ छी। कहाँ आशा छल जे गामक मुँह
फेर देखब। तइ बीच जेठ भौजाइपर नजरि पड़लन्हि। नजरिसँ नजरि मिलिते दुनूकेँ
बघजर लागि गेलन्हि। मुँहक बोल बन्ने रहलन्हि तइ बीच झुनकुट चेहरा, ठेंगा हाथे
बसमतिया दीदी सेहो पहुँचली। जहिना सुलोचना गामक बेटी तहिना बसमतिया दीदी सेहो।
एक उमेरिये दुनू गोटे, मुदा
सुलोचना बहिन तीन मास जेठ छथि। बसमतिया दीदीकेँ देखिते सुलोचना बजली- “साले भरिमे एते
लटैक गेलैं?”
दुनूक जिनगी बच्चेसँ एकठाम बीतने बजैमे कोनो कमी रहबे ने
करए। निधोक भऽ बसमतिया दीदी बजली- “तूँ ने
भाए-भातिजक
कमेलहा खा कऽ गेंड़ा बनि गेलैं, हमरा के देत?”
सुलोचना- “किअए
भगवान तोरा थोड़े बेपाट छथुन जे नै देनिहार छौ?”
बसमतिया- “हँ से
तँ अछिये, मुदा
जएह कमाएत तेहीमे ने देत। अच्छा, कह जे टुटलाहा लग कज्जी ने तँ रहलौं। नीक जकाँ हड्डी जूटि
गेलौं किने?”
“हँ। आब
तँ बाल्टीनो उठबै छी, पोतोकेँ
कोरो-काँखमे
लऽ कऽ खेलबै छिऐ। अपने गाड़ियो छी, आब गामेमे रहब।”
“ऐ
उमेरमे असकरे रहि हेतौ?”
“छोट भाए- मुनेसरो रहत किने? काल्हि ओहो
आओत। ताबे कहुना अही टुटलाहा घरमे रहि पजेबाक घर बनाओत। हम सभ कते जीबे करब। मुदा
जाबे आँखि तकै छी, ताबे
तकक ओरियान तँ करए पड़त किने?”
चौदह बर्खक अवस्थामे सुलोचनाक बिआह
भेलन्हि। जहिना पिताक साधारण किसान परिवार तेहने परिवारमे बिआहो भेलन्हि।
समाजमे अखन धरि धन नै कुले-मूलक महत अधिक रहल मुदा लेनो-देन तँ चलिते
छल। नीक-मूलक
कन्याक माङो बेसी। ओना अपन-पिताक कुल-मूलसँ दब परिवारमे बिआह भेलन्हि, मुदा कोनो हिनके
टा नै, समाजमे
कतेको गोटेकेँ भेल छन्हि आ होइतो अछि। कोनो प्रश्ने नै उठल।
मिथिलांचलक ओइ गाममे सुलोचनाक जन्म
भेल छलन्हि जइ गाम होइत एकटा धारो अछि आ पूबसँ कोसीक पानि आ पछिमसँ कमलाक
पानि सेहो बरसातक मौसममे बाढ़ि बनि अबिते अछि। ओना कोसी-कमलाक बान्ह नै
रहने अबैत-अबैत
बाढ़ि पतरा जाइत मुदा बरखोक तँ कोनो निश्चित ठेकान नहिये छै। जइ साल बरखा बेसी
भेल तइ साल बाढ़ियो नमहर-नमहर आएल आ जइ साल कम बरखा भेल बाढ़ियो छोट अबैत।
खेतीक लेल बरखा छोड़ि दोसर कोनो साधन नै छल। लकड़ीक करीनसँ किछु खेती होइत छल
मुदा ओ तँ पोखरिसँ होइत छल जे बैशाख-जेठमे अपने सुखि जाइत। जे पोखरि गहींर रहैत ओइ
पोखरिक पानि ऊपर अनैमे तीन-चारि गाड़ करीन लगि जाइत। गहुमक खेती नहियेँक
बराबर होइत छल, कियो-कियो दू-चारि कट्ठा कऽ
लैत छलाह।
छह गोटेक परिवार चलबैमे सुलोचनाक पिता
हरिहरकेँ कठिनाइ तँ रहबे करनि मुदा गाममे मात्र हरिहरे एहेन नै बहुतो एहेन
छलाह जे हुनकोसँ भारी जिनगी जीबैत छलाह। एक तँ महिला शिक्षाक चलनि नै, दोसर गाममे
साधनोक अभाव। ओना बाहरसँ कम सम्पर्क रहने गाममे शिक्षाक ओते जरूरतो नहियेँ छल।
बेवहारिक ज्ञानक जरूरत छल जे सभमे छलैक, अखनो छैक। स्कूलक मुँह सुलोचना नै देखली।
बिआहक तीन साल पछाति सुलोचनाक दुरागमन
भेल, सासुर
गेली। बर्ख-पाँचे-छबेक पछाति
सासुरसँ सुलाचनाकेँ भगा देलकन्हि। भगबैक कारण रहैक जे सन्तान नै भेलन्हि।
ओना ने कहियो डॉक्टरी जाँच कराओल गेलन्हि आ ने सन्तान नै हेबाक दोष किनकामे
छन्हि, से
फड़िछाओल गेल।
समाजमे एहेन धड़ल्लेसँ होइत जे कोनो महिलाकेँ
कुरुप कहि सासुरसँ ठोंठिया कऽ भगाओल जाइत तँ कोनोकेँ सौतिन तर बसा भगाओल जाइत।
इत्यादि-इत्यादि।
वैदिक पद्धति एक-पुरुष
एक नारीक सम्बन्धकेँ पहिल श्रेणीक विचार समाज मानने अछि, तइठाम रंग-रंगक बाधा बना
नारीकेँ अगुआइसँ रोकल गेल। रंग-रंगक सगुन-अपसगुन कहि, तँ उढ़री-ढढ़री बना दबाओल
गेल। एहेन स्थितिकेँ जँ रोगक जड़ि बिना तकने आ ओइठामसँ वैचारिक बाट बनौने बिना
आइ एक्कैसम शताब्दीमे पहुँचल छी। ई बिलकुल सत्य छैक जे कियो शेर होइ आकि सियार
सभकेँ अपन कालखण्डक लेखा-जोखा होइ छै। तँए ओ अगिला-पछिला दोखक
भागी भेला, बूझब ई
ननमति भेल। हँ, जँ कियो
अपना हाथे किछु केलन्हि तेकर जबावदेह तँ भेबे कएल।
सुलोचनाक पिता हरिहर समाजक ओहन व्यक्ति
जे आँखिक सोझामे कियो गाछक आम तोड़ि लैत वा खेतक धान नोचि लैत तँ एतबे चेतावनी
दैत बजैत छलाह जे जाइ िछयौ बापकेँ कहए जे ई छौड़ा धान नोचलक कि आम तोड़लक। बुझिअहन्हि
जे जखन तोरा कनैठी पड़तौ। समाजमे सहयोगक विचार छल। अपन गारजन अपने बच्चाकेँ सिखबैत
छल। मुदा एकटा जबरदस गुण परिवारमे छलन्हि जे महीनाक चारि-पाँच रवि, चारि-पाँच सोमक
सोमवारी संग कतेको पावनिक उपाससँ सोलो छोट कऽ नेने छलाह। सरस्वतीक आगमन परिवारमे
भऽ गेल छलन्हि। िसर्फ अपने हरिहरेटा नै पढ़ने। कारणो छल समंगर परिवारमे एक
समांग गिरहस्थियो करैत छलाह। तँए शुरुहेसँ पढ़ाइ दिस नै लगाओल गेलन्हि। काल-क्रमे ओहन-ओहन भैयारी
पछुआएल। ई दीगर भेल। ओना किछु समाज एहनो छल जे एहेन-एहेन अवस्था (सुलोचनाक संग
जेहेन भेल तेहेन)
केँ बाहुबलसँ रोकलक मुदा समाजोक कटनियाँ तँ बड़का मूस कतिते छै। जाति-जातिकेँ बाँटि
सभ रोगसँ रोगाएल छी। कियो कम कियो बेसी। मुदा एहेन-एहेन अपराध
समाजक मुद्दा नै बनि बनि,
जातिय मुद्दा बनि कमजोर पड़ैत गेल। काल-क्रमे जातियोसँ
परिवारमे पहुँच गेल। एक जातिकेँ नीच देखाएब वा जातिक भीतर कोनो परिवारकेँ निच्चाँ
मनोरंजनक साधन बनि गेल अछि।
सरस्वतीक आगमनसँ हरिहरक परिवारक विचारमे
किछु नवीनता तँ आबिये गेल अछि। सासुरसँ भगाओल सुलोचनाकेँ परिवार सहर्ष अपना
लेलन्हि। अपनबैक कारण भेल जे परिवारक सभ अपने गल्ती मानि लेलन्हि जे ओहन
कुल-मूलमे
डेगे नै उठबैक चाही। ओहनसँ मुँहो लगाएब नीक नै हएत। बापक दुलरूआ बेटा दोसर बिआह
कऽ लेलन्हि। मुदा सुलोचना अपनाकेँ वैधव्य नै बुझलन्हि। हाथक चुड़ी रखनहि
रहली। समए आगू बढ़ल। लक्ष्मी जहिना दरबज्जापर हँसी-खुशीसँ आबि जाइ
छथिन तखन केतबो ताड़ी-दारूक खर्चा हराएले रहै छै। तहिना ने सरस्वतियो रगड़ी-झगड़ी छथि।
सुलोचना जकाँ नै ने छथि जे मने-मन संकल्पक संग जीबैक बाट पकड़ैत, ओ तँ तेहेन
रगड़ी छथि जे एकटा सौितनक कोन गप जे हजारो सौतिनकेँ झोंटिया अपन हिस्सा लैये
कऽ छोड़ैत। पुरुखक कहने भऽ जेतै जे जेठकीक जेठुआ जोश कमा देतै।
सरस्वतीक रूप परिवारमे बदलल। संस्कृत
पद्धतिक जगह नव-नव
पद्धति शुरू भेल। संस्कृतोक पद्धति रहबे कएल। मुदा शिक्षाक बुनियादी पद्धतिसँ
उछालि देलक। सुलोचनाक पीठ परक जेठ भाए युगेसर मैट्रिक पास तमुरिया स्कूलसँ
केलन्हि। गरीबी बेकारीसँ त्रस्त परिवार। नोकरीक तलासमे कलकत्ता गेला। दू साल
रहलाह। भाषाक दूरी, शहर-गामक दूरी तँ स्पष्टे
रहै। दू साल पछाति युगेसर टीचर्स ट्रेनिंग केलन्हि। लोअर प्राइमरीक शिक्षक
बनलाह।
युगेसरसँ छोट मुनेसर सेहो मैट्रिक पास
तमुरिया स्कूलसँ केलन्हि। साइंस पढ़ैत। जनता काओलेजमे साइंसक पढ़ाइ नै होइत। गर
लगबैत खगड़ियाक गर लगौलन्हि। ओही ठामक संस्कृत विद्यालयमे विद्यार्थीकेँ
भोजन-डेराक
बेवस्था सेहो करैत अछि। कोसी कओलेज सेहो छैहे। साइंसक विद्यार्थी, नीक जकाँ बी.एस.सी केलन्हि तइ
बीच बिआहो अफसरक परिवारमे भऽ गेलन्हि। चारि भाँइक भैयारी हरिहरक छलन्हि, तइमे बँटवारा
भऽ गेलन्हि। दुनू परानी हरिहरो मरि गेलखिन। दुनू भाँइक परिवार...।
(जारी..)
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर
पठाउ।
जगदीश
प्रसाद मण्डल जीक दूटा लघुकथा- बलजोर/ दोस्ती नै
धारैए
बलजोर
राज-दरबारसँ घूमि
कऽ अबिते बड़का-भैया
हाँइ-हाँइ
बैग राखि जुत्ता निकालि बेसुधि जकाँ पलंगपर चारूनाल चीत भऽ ओंघरा गेला। एतेक
सुधि नै रहलनि जे तरबा पसीनासँ पसीज पैताबाक संग देहक घामक भीजल गोलगला कुर्ता
निकालितथि। आंगनमे बड़की-भौजी चुल्हि लग बैस भानस करैत पुतोहुकेँ कहैत रहथिन-
“कनियाँ, भगवान जँ ससुर देलनि तँ अहाँकेँ देलनि, अपनो ऐ
बुढ़ाड़ी तक पहुँचैमे कहियो खाइ-पीबै आकि कोनो मन-मनोरथक दुख बेकल
नहियेँ भेल अछि।”
सासुक (बड़की-भौजी) बात सुनि
पुतोहु (रेखा) जे तिलकोरक पात
छाँटि-छाँटि
तहिया-तहिया
सासु-ससुर
लेल राखि अपना-ले लोहियामे
देल उनटबैले छोलनी दिस आँखि उठबैत बाजलि-
“कहै तँ छथिन बड़ सुन्नर बात माए, मुदा गाममे हिया
कऽ देखथुन जे हिनका एते उमेरक कते गोटे घरक गारजनी अपना हाथे चुहुटि कऽ पकड़ने
छै। खाएल-पीअल
पोसल देह छन्हि नोकरनी जकाँ रखने छथि। ई कहाँ कहियो मनमे होइ छन्हि जे पोता-पोती बिआह-दुरागमन करै
जोकर भऽ गेल। अपनो उमेर पचास-पचपनक तँ भैये गेल हएत मुदा हाथ-मुट्ठी केना चलै
छै से सोचै-विचारैक
मौका अखैन तक कहाँ देलनि। जहिना दुरागमन कऽ ऐ घर प्रवेश केलौं तहिना अखनो छी।
पाकल आम जकाँ दुनू बेकती भेली, कखन ढन दे आँखि मुनि लेती तेकर कोनो ठीक छन्हि। किछु
दिन पछाति बेटा-पुतोहु
घर सम्हारत। तखन यएह कहथु जे हिनका जकाँ कहिया हएब?”
अपन मलिकियतपर
पुतोहुक व्यंग्यवाणक आक्रमण देखि बड़की भौजी तिलकोर उनटबैत पुतोहुक बोल सुनि
तिल-मिलाए
लगलीह। ढोढ़ साँप जकाँ मन सनकए लगलनि मुदा विचार रोकि मनमे उठलनि, घरवाली घर लेती
दाइ जेती छुच्छे, तइले
लक्कड़-झक्कर
करब नीक नै। चारि पएरक हाथी हूसि जाइए मनुख तँ सहजहि दुइये पएरक होइ छै। आगिक
ताउ लग मन तबधि गेल हेतनि, भरिसक तँए एहेन बात बजलीह। मुदा लगले विचार घूमि गेलनि।
एहेन बात पुतोहुकेँ बाजक चाहियनि। एतबो नै होश रहलनि जे मुँहपर एहेन बात बजलीह।
घर-दुआर
केतौ पड़ाएल जाइ छै। एहेन उचित भेल जे पाकल आम जकाँ बुझै छथि। जिनगीक कोनो
ठेकान छै, जँ कहीं
हमरासँ पहिने अपने चलि जाथि तँ पोत-पुतोहुक गारजनी केहेन हएत। छौड़ा-मारड़िक गारजनी
आ पटुआ सागक झोरमे की भेद छै। मुदा किछु बजली नै। नजरि दुनूक तिलकोरक तड़ूआपर, एहेन ने हुअए जे
कोनो लहकि जाए आ कोनो असिझू भऽ नरमे रहि जाए। एक हुकुमदारनी दोसर केनिहारि।
बड़का-भैयाक असल नाओं
सुलोचन आ बड़की भौजीक शान्ती छियनि। परिवारक बाबा समाजक भैयारीमे सुलोचन बड़के
भैया आ शान्ती बड़की-भौजियेक रूपमे रहि गेली। ओना दुनू बेकतीक उमेर अस्सीसँ
उपरेक छन्हि। मुदा ऊपरका खाड़ीक लाटमे धियो-पुतो बड़के-भैया आ बड़किये
भौजी कहै छन्हि।
सुलोचनाक पलंगक
मचमचीक अबाज आँगन धरि पहुँचि दुनू बेकतीक कानमे ओहिना पहुँचल छल जहिना मलकार िकसान
परिवारमे बाधसँ अबैत माल-जालक आवाज अबैत। अकानि-अकानि अनुमान
लगौलनि जे भरिसक बुढ़ा पहुँचि गेला। अनुमानो ठीके रहलनि।
बड़की भौजी
रेखासँ बेसी पनिगर। देहो हल्लुक। तँए जाबे रेखा छोलनी राखि पल्था सम्हारि
दुनू हाथ रोपि उठैत-उठैत ताबे बुढ़ी (बड़की भौजी) तीनियेँ डेगमे
पति-बड़का-भैया लग पहुँचि
गेली। पहुँचिते आँखि मूनि चारूनाल चीत, दुनू हाथ सिरमा दिस बढ़ौने देखि अर्द्धचेत जकाँ
हुअए लगलीह। मुदा हाेश सम्हारि दहिना हाथक आँगुर नाक लग भिरौलनि। साँस नीके
चलैत रहनि मुदा रस्ताक झमारसँ किछु गरम तँ रहबे करनि। पंखा हौकलासँ भक्क टूटि
जेतनि। पाछू उनटि तकलीह तँ डाँड़पर हाथ नेने रेखाक मौकनी हाथी नहाँति लुदुर-लुदुर अबैत
देखलनि। लग अबैसँ पहिनहि जोससँ हुकुम फेकलनि-
“कनी पंखा नेने आउ।”
एक तँ राकश दोसर
नतल, दस डेग
आगू बढ़बसँ रेखा हुकुमेकेँ नीक बुझलनि। घूमि तँ गेली मुदा मन बिसाइन जकाँ हुअए
लगलनि। जत्ते विष-विस्सी बढ़ल जान्हि तत्ते मनक हौंर सेहो तेज होइत जाइत
छलनि। ई केहेन भेल जे नैनसँ देखैक बदला पंखा अनैले घुमा देलनि। भलहिं डाॅक्टर
नै छी मुदा डाॅक्टरक परिवारक बेटी तँ छीहे। पढ़ल-लिखल छीहे, तखन किअए बुढ़ी
अपचंग भेल छथि। एक तँ बुढ़ा खेलाड़ जे एत्ते दूरसँ पएरे एला से भेलनि मुदा बजितथि
से नै भेलनि। लोककेँ कोनो बेमारी होइ छै तँ बजैए आ हिनकर पहने बकारे बन्न भऽ
गेलनि। तेहने खेलाड़ि बुढ़ी छथिन। जना लूटि लैतियनि तहिना दुरसेसँ हुकुम
चला देलनि। हमरासँ बेसी पनिगर तँ अपने छथिये किअए ने दौग कऽ पंखा लऽ गेली। मन
ठमकलनि। परबस जीव...। मनमे
ठहैकते रेखाक सभ विचार,
पानि पड़ल झोलीक आगि जकाँ सिमसि गेलनि। जँ बात कटितियनि तँ पीड़ित-सँ-विपरीत भऽ
जइतथि, जँ नै
कटलियनि तँ बुढ़ाक जान-परान निकलि रहल छन्हि। अजीब लीला बुढ़ीक छन्हि।
हड़पटाहि गाए जकाँ, दूधक
काल छड़पि उठती आ डोरी तोड़ि आड़ि-धूर कुदि कऽ टपै बेर खलीफा भऽ जेती। इहए छी परिवार
बाबा-दादी, बाबी-दादी, दीदी-पीसा, मौसी-मौसा, काका-काकी, भाय-भौजाइक सम्बन्धक
कोनो महत नै, मुदा...। कतए बिला गेल
बाबा-दादीक
सम्पति गुण, जे पेट-काटि उपार्जित
केने रहथि। उचित-अनुचित
जिनगीक दिशा बोध करबैत अछि तइठाम मंत्र बनि ढोलक-झालिक संग
हवामे रमैत रहै छै।
पंखाक
आदेश पुतोहुकेँ दैत बड़की-भौजी कान लग मुँह सटा कऽ पुछलखिन-
“किछु खेबो-पीबोक मन होइए?”
बड़की-भौजीक आवाज
कानमे पैसिते ढोढ़ साँप जकाँ बड़का-भैया फुफकार छोड़लनि-
“की खाएब की पीब, अह्लादि कऽ पुछै छथि, बड़ हएत तँ यएह
ने हएत जे एते दिन छानि-छानि खाइ छलौं आब झाड़ि-झाड़ि खाएब।” तरे-तर जे बड़का-भैया बजैत रहथि
से बड़की-भौजी
नीक जकाँ नै सुनि पौलनि। अह्लाद-सँ-अह्लादित होइत हाथीक सूढ़ जकाँ मजीराक ध्वनिमे
बड़की-भौजीक
गछाड़ देखि बड़का-भैयाक
मन सुगबुगेलनि। बजलाह-
“कनी थम्हू। आँखिक पल उठबे ने करैए।”
भक्ति भावसँ बड़की भौजी धड़-फड़ाइत बजली-
“अच्छा, पानि आनि आँखि पोछि दइ छी।”
कहि बड़की-भौजी जुआनीक जोशमे
पलंगसँ कूदि पानि आनए दौगलीह। चौकठिक अढ़मे पुतोहु-रेखा पंखा नेने
अबैत रहथि, अकासमे
उड़ैत बड़की-भौजीक
नजरि रेखापर नै पड़लनि। एक गोटे असथिरसँ अबैत दोसर कुदैत-फुदैत िनकलैत, मोखे लग भिड़ंत
भऽ गेलनि। कोनो एक-दोसर परिवारक भिड़ंत नै तँए ने बड़की-भौजी किछु
बजलीह आ ने पुतोहु-रेखा।
मन दुनूक टाँगल बुढ़ाक कोसलपर। चलचलौ जकाँ छथि, अखने जे पाबि लेब से पाबि लेब। बुढ़ीक
(बड़की
भौजी) धड़फड़ी
देखि रेखाक मनमे उठल, शान्त-चित्त रहैबला
बुढ़ा एना विस्मृत जकाँ किअए कऽ रहला अछि। जनिकामे एते दूरसँ अबैक शक्ति
छलनि मुदा घरक लोककेँ कहितथिन से होश नै रहलनि। जरूर कोनो राजरोग छियनि। (राजरोग ओहन
बेमारी होइत जे जड़ि-मूल नै छुटैत मुदा पथ-परहेजसँ जिनगी
देने रहैत अछि।)
राजरोग मनमे अबिते
विचार फुद-फुदाए
लगलनि। जहिना छठी रातिक दूध जिनगीक अंतिम क्षण धरि स्मरण रहैत, जेकर सफर जिनगीमे
सभसँ नमहर होइत छै। किछु रोग एहनो होइ छै जे चटपट जिनगीकेँ तोड़ि दइ छै आ किछु
एहनो होइ छै जे मुसकारीक मूस जकाँ कुहि-कुहि जिनगी लइ छै। भरिसक बुढ़होकेँ ने
सएह पकड़ि लेलकनि।
चून जकाँ मन
चुनिया गेलनि। ओना जखन दुनू गोटेक (सासु-पुतोहु) कानमे बुढ़ाक पहिल ध्वनि एलनि तखन दुनूक अपन-अपन उत्साह
रहनि। बड़की-भौजीक
उत्साह रहनि जे राज-दरबारसँ घुमलाहेँ। नीक जकाँ परिवारक विदाइ भेले हेतनि, देखा चाही चाइन
केहेन चमकैए।
जाबे रेखा कोठरी
पहुँचि बुढ़ा लग बैस किछु पुछैक ओरियान करिते रहथि आकि बड़की-भौजी लोटामे
पानि नेने पहुँचली। मनमे शंका जगलनि। शंका ई जे बुढ़ासँ किछु कहा ने नेने होथि।
मुदा बिनु सुनल बात बाजबो उचित नै। तहूमे एक दिस मालिक (पति) छथि दोसर दिस
पुतोहु। जँ कहीं दुनू एक दिशाह भऽ जाथि तखन अपन गति की हएत? गाड़ी उनार
भेने चढ़निहारक जान थोड़े बँचै छै। जँ बचबो करै छै तैयो अबाह बनाइये दइ छै। मुदा
मनक ताप-संताप
बनले रहलनि। पुतोहुकेँ कहलखिन-
“कनियाँ, अहाँ उन्टा घुट्ठी ऐँठ दिअनु।”
घुट्ठीक भार देला पछाति बड़की-भौजीक मन रमकलनि- ओह, लगले दोहरा कऽ
अढ़ाएब नीक नै तहूमे तीन गोटेक बीचमे। नै तँ कड़ू तेलसँ तरबा रगड़ब नीक होइतनि।
पानिसँ चानि धुआ जइतनि आ तेलसँ तरबा रगड़ा जइतनि तँ अनेरे होशमे आबि जइतथि।
खैर, जे हूसल
से हूसल। चानिपर पानिक फुहार पड़िते बड़का-भैया आँखि
खोललनि। आँखि-पर-आँखि पड़िते
बड़की-भौजीक
आँखिमे ललकारीक रेगहा जगलनि। जगिते सहमि गेली। अनेरे बुढ़ाड़ीमे घी-ढारीक बात मन
पाड़ै छी। लोककेँ अपनो उमेरक ठेकान करक चाही। दुनियोँ तँ अजीबे छै, दुनियाँक एको
प्रतिशत लोक एहेन नै अछि जे अपने माए-बहिन जकाँ दुनियोँक माए-बहिनक चर्च नै
करैत अछि मुदा एत्ते अपराध किअए होइ छै। नैतिकताक महत जँ नै होइतै तँ माए-बहिनिक अपराध
कहाँ केतौ होइ छै।
पतिक थरथराइत
मन छाती डोला देलकनि। पँजरा उनटि तकलीह तँ पुतोहुकेँ उन्टा घुट्ठी जोर-जोरसँ ससारैत
देखलीह। मुदा शंका भेलनि, शंका ई
जे जरूर कोनो बात हेतै। बुद्धियार आदमी काजे देखि आदमी चिन्हैए। जँ कहीं
घुट्ठिये पकड़ि घोलटिया लेलकनि तखन अपने तँ बीचेमे रहि जाएब। पुरुखक ठेकाने
कोन। साँढ़-परा
जकाँ कखन की करत तेकर कोन ठेकान। कखनो भगत सिंह बनि जान फूकत तँ कखनो वेश्यालयमे
दिने-देखार
लुटत-लुटाएत।
मन पड़लनि घी-ढारिक
मंत्र। मुदा आब ओ मंत्रक समए कहाँ रहल। गाछपर सँ खसैत लोक जकाँ भौजीक मन झुमलनि
मुदा थाकल ठेहिआएल पतिक सेवाकेँ प्रथम प्रश्रय दैत अपन बेथा बिसरि भौजी पति (बड़का भैया) केँ कहलखिन-
“लोककेँ सौंसे देह गुड़-घा रहै छै से बरदास
कऽ समैपर नहेबे-खेबे
करैए आ अहाँ मुरदा जकाँ आरो धड़ खसौने जाइ छी।”
भौजीक बात भैयाकेँ कठानि नै लगलनि।
पुरुखपाना जगलनि। मरितो धरि पत्नी लग झुकि जाएब तँ केहेन पुरुख हएब। फुड़फुड़ा
कऽ चिड़ै जकाँ, उठि
बैस भौजीकेँ कहलखिन-
“कनी कुरताक बटम खोलि दिअ।”
“एहिना उनटा-पुनटा बुझै छिऐ।” झपटैत पतिकेँ
भौजी कहि रेखाकेँ आदेश देलखिन-
“पहिने पएरक पैताबा कनियाँ निकालि दिअनु।”
ओना बड़का-भैया रंगा
रूपैयाक मुस्की देलनि मुदा मनमे उठि गेलनि पत्नीक बात ‘उनटा-पुनटा काज।’ मुदा बजलाह किछु
ने। सभ बात स्त्रीगण लग बाजब उचित नै। जँ ओकरा नाक नै रहितै तँ कि-कि ने करैत।
मुदा छाती राँइ-बाँइ
भेल जाइत रहनि। कुरताक बटम खोलिते बड़की-भौजी राँइ-बाँइ भेल हृदए
देखलनि। बजली किछु ने। देह खलिआइते बड़का-भैया बजला-
“कनी लेटरीनो जैतौं आ नहाइयो लैतौं।”
एक राकश दाेसर नोतल भौजी आदेश फेकलनि-
“कनियाँ, अहाँ चौका सम्हाररू हम बाथ रूप सम्हारने अबै छी।”
दुनू गोटे माने
सासुओ आ पुतोहुओ अपना-अपना मने खुशी जे खेबे कालक गप ने रस पाबि मिठाँसपूर्ण
होइ छै। दुनूकेँ खुशी देखि बड़को-भैया खुश। परिवार खुशी तँ अपनो खुशी। जँ खुशी नै तँ
बजार घुमैकाल ओहिना बाप बेटाकेँ आ माए बेटीकेँ कोरामे लऽ घुमैत रहै छै।
कोठरी छोड़ैक विचार
तीनू गोटे करिते रहथि आकि शिवशंकर पहुँचि गेलखिन। किनको लजेबाक प्रश्ने
नै। बड़का-भैया
बड़के-भैया
भेला, भौजी
भौजिये भेलखिन आ रेखा अंगीतेक बेटियो आ काॅलेजक विद्यार्थियो। कोठरी प्रवेश
करिते शिवशंकर पूछि देलखिन-
“भाय, केहेन यात्रा रहल?”
जहिना मुर्दा ऊपर अस्सी मन जारनि लादि
जराओल जाइत तहिना अस्सी मन पानिमे डुमल बड़का-भैया मिरमिराइत
कहलखिन-
“अशुभे रहल।”
भैयाक बात सुनि शिवशंकर बजलाह-
“पहिने फ्रेस भऽ जाउ, नहा-खा लिअ तखन निचेनसँ
आगूक गप हेतै। ताबे हम बैसै छी।”
शिवशंकरक मनमे
रहनि जे नव-नव रचना
अनने हेता, सेहो
देख लेब आ दरबारक कागजो-पत्तर देख लेब। एक्के वस्तुकेँ एक स्तरसँ गिरौलापर अनेक
तरहक दबाब पड़ै छै। असथिरसँ गिरौलापर नरमो वस्तुकेँ बँचैक संभावना रहै छै, जखन कि जोरसँ
गिरौलापर कड़ो वस्तुकेँ टुटै-फुटैक संभावना भऽ जाइ छै। बड़का-भैयाक स्थिति
सएह रहनि। मुदा दबाबो देब उचित नै बूझि शिवशंकर चुपे रहलाह मुदा रेखाकेँ कहलखिन-
“पान सए नम्बर जर्दा देल पान खुआ दिअ। एक झपकी ताबे
मारि लेब।”
जते काज बड़का-भैया अाधा
घंटामे करै छलाह ततबे करैमे घंटोसँ ऊपर लागि गेलनि। जहिना पएरमे जात बान्हि वा
जहलमे डंडा-वेरी..., मुदा से शिवशंकर
नै बूझि सकलाह। कारण भेलनि जे रेखा काॅलेजमे खेल-कुदमे नम्बर एक
छल आइ उठबो-बैसबोमे
असोकर्ज भऽ रहल छन्हि। मनमे उठलनि अखराहाक खलीफा पहिने डण्ड-बैसक कऽ लपटैए, तखन कुश्ती
लड़ैए आ तेकर पछाति छोट-छोट खलीफाकेँ लपटाबैए। पछाति सवारी कसि परीक्षा लइए। जिनगीयोक
अवस्था अहिना होइ छै। बड़का-भैया ऐमे चुकलाह। भोगी-विलासीक परिवार
बना लेलनि आ आशामे जीबै छथि जे चाननक गाछी लगौने छी। सोचिते-सोचैत आँखि
बन्न भऽ गेलनि। भकुआइत ओंघा गेला।
बड़का-भैयाकेँ पहुँचिते
बड़की-भौजी
पनबट्टी नेने पहुँचि गेलखिन। दुनू गोटे पान खेलनि। शिवशंकर पुछलखिन-
“अशुभ की कहलिऐ?”
शिवशंकरक प्रश्न सुनि बड़का-भैया झमान भऽ
जेना हजारो हाथ ऊपरसँ खसला-
“मिसियो भरि जेकर आशा नै छल से भेल मुदा...?”
खेतक अकटा-मिसियाकेँ कियो
अन्न मानबे ने करैत तँ कियो सागो आ रोटियो बना खाइत अछि। खेती भलहिं नै होउ
मुदा ओहो (अकटा-मिसिया) मैदानमे डटल अछि।
जँ कनियो नजरि नै राखब तँ जजातेक छातीपर चढ़ि धरतीकेँ अन्नमंडल बना दैत अछि।
बाट-घाट
रोकने तीर्थ यात्रीकेँ किछु नै बिगड़ैत छै, देखै-सुनैक नव-नव स्थान भेटैत छै। मानिऔ वा नै मानिऔ समैक शक्ति
सबल होइ छै।
बड़का-भैयाक चेहराक
क्रिया देखि शिवशंकर सोचथि जे चेहरा कहि रहल छन्हि जे जना धमसुरक चोट लगल
होन्हि। जटा-जटीनक
बेंगकेँ जहिना कुटनी कूटि पेटसँ पानि निकालि पानिक संग मुइल बेंगकेँ मटकुरमे
नेने गीत गबैत केकरो ऐठाम फेक भरि दिन फौतली सुनैक रास्ता बना लैत तहिना गसिया
कऽ शिवशंकर पकड़लनि। मुदा मनमे ईहो होन्हि जे धमसुरक चोट कनियो खड़खड़ाएल नै।
एकाएक एना किअए भेल। जाबे अकासमे पािन पानिसँ नै टकराएत ताबे बिजली केना बनतै
आ बिजली नै बनत तँ ठनका केना बनत। भलहिं अहाँ ओकरा सोनोसँ अमूल्य बुझैत होइऐ
मुदा ने राधाकेँ नअ मन घी हेतनि आ ने राधा नचती। केकरा बुते हएत जे ओकरा पकड़ि
हाथमे आनत। ओकरा पकड़ै ले गोवरधन जकाँ गोबरक ढेरी बनबए पड़त, तइपर फुलही थारी
राखए पड़त तखन जब समए औतै समुद्रसँ करिया हवा उठि अदलि-बदलि बादल बनि
दोसर बादलसँ टकराएत, ओही
टक्करसँ बिजली बनि ठनका बनै छै। तखन जा कऽ ओही थारीपर ठनका खसत। कतबो ठनका जोर
करतै मुदा गोबर की ओकर शक्तिकेँ शक्ति मानतै। रास्ता रोकतै। भलहिं अश्वमेघ
युद्ध किअए ने होउ।
जहिना छातीपर
बैस कंठ पकड़ि बलजोर मुँहसँ बजबा लैत, तहिना बड़का-भैया बजलाह-
“आशाक विपरीत अपना हाथे केलौं।”
बड़का-भैयाक बात सुनि
शिवशंकर विर्ड़ोक मोड़मे पड़ि गेला। पुछलखिन-
“एना किअए?”
“तीन गोटे कारोबारी छेलौं। दू गोटे शिकारी छेलौं आ एक
गोटे अनाड़ी छलाह। हुनका लिए दिन-राति बारहे-बारहे घंटाक होइ छै सहए बुझैत। ओना जहिना
आदि ऋृषिका सबहक परिवारकेँ जँ कोनो परिवार कहि देबै तँ ई जल्दवाजी भेल। इंजिन
िनर्माताक परिवार जँ इंजिन िनर्मितक शक्ति नै राखत तँ वंशक रक्छा केना
हेतै।”
“हँ तखन?”
“प्रस्ताव देलिऐ। दोसरो प्रस्ताव एलै। मुदा जेकर
कल्पना नै छल से भेल!”
“से...।”
“प्रस्ताव दइते जे दोसर छलाह, जिनकासँ मिसियो
आशा नै छल जे ठनका जकाँ बनि जेता। जहिना अकासमे उड़ैत गीध अपन सहयोगी चीलकेँ
देखा दैत आ हरड़ी-विदेशरक
मकड़क मेलामे अरबा चाउरक चिक्कसमे, इनहोर देल पानिसँ बनल रोटी आ तइपर पँचफोरना देल अल्लूक
दमक संग हाथमे रोटी लऽ मेलो देखैत आ खेबो करैत रहैए आ तखने जहिना हाथक रोटी झपटि
चील पोखरिक महारक पीपरक गाछपर बैस कुचड़ए लगैए, तहिना भेल। तेना झपटलक जे छाती छॅहो-छित्त भऽ गेल।
कतबो अपनाकेँ असथिर करी मुदा नै भऽ सकल। अन्त भेल जे संदेश तँ समाजमे जेबे करत।
मुदा-संदेशो
तँ सनेसे छी। केम्हर केहेन बिलहाएत से के कहलक।”
“आब?”
“देखार होइ दुआरे बहुमत नै हुअए देलिऐ। सर्वसम्मति
कऽ जान बचा लेलौं।”
सुनि दुनू गोटे
मर्माहत भऽ गेला। मुदा दुनूक मनमे दू तरहक विचार नाचए लगलनि। बड़का-भैयाक मनमे उठैत
रहनि जे ई उमेर सन्यासक छी। हमरा कोन ऐ दुनियाँ-दारीसँ मतलब अछि
जे अनेरे...।
शिवशंकरक मनमे उठैत रहनि जे जाधरि समए
नै पकड़ि चलब ताधरि समए संग नै चलि सकब। विकासोक प्रक्रिया छै। ओहीमे गति-मति संगे चलै
छै। से नै भेल।
(“बलजोर” कथा डॉ. प्रेम शंकर
सिंहकेँ समर्पित...)
दोस्ती नै धारैए
मतिछिन्नु जकाँ भेल दरबज्जाक खुटाँमे
ओंगठि अपने करनीक फल देखबो करैत रही आ अगिला फल दिस तकबो करैत रही। मुदा मन
केतौ थहेबे ने करए, केतौ-कतौ डुमियो जाए
तँ केतौ-कतौ
बूझि पड़ए जे समुद्रक कातमे लहड़िक संग बालुपर ढूसि खेलै छी। गाम दिस ताकी तँ
देखिऐ जे गोसाँइ भायकेँ सौसे गामसँ दोस्ती निमहि रहल छन्हि दोसर हम छी जे लऽ
दऽ कऽ एकटा दोस खेनाइ-पीनाइसँ लऽ कऽ बर-बरिआती पुरनाइ धरि छल, सेहो चलि गेल।
ओह! अनेरे
झगड़ा कऽ अपन संकल्प तोड़लौं। एेँह कहू जे ई केहेन भेल जे जइ भोला बेटाक केश कटबए
गंगा कात गेल रही आ केश कटौला पछाति छौड़ाकेँ असीरवाद देने रहिऐ जे पान साल
पछाति बरिआती पूरि बिआहो कऽ देबौ, से तँ टूटि गेल। भोलबो सप्पत खा लेलक जे तोरा
दुआरपर थूक नै फेकबौ तहिना झोंकमे अपनो तँ कहिये देलिऐ। लाभ-हानि तकै छी तँ
एकटा दाेस छल सेहो चलि गेल। असकरे जहिना पुरुखक घर तहिना ने मौगियोक होइ छै।
ओह, अनेरे
एहेन झोंकमे पड़लौं, ओ जँ
बजबे कएल तँ पछाति बुझा दैतिऐ जे मनक कोनो ठेकान छै ओहिना मुँहसँ निकलि गेल
तइले दोस्ती किअए चलि जाएत। भेल तँ एतबे ने रहए जे ओ माटिक तरक अल्हुआ-सुथनीकेँ फल कहि
एकादशीक बात कहै आ हम आम-जामुनकेँ अकास फल कहि एकादशीक बात कहैत रहिऐ। अनेरे बातक
रग्गड़-झग्गड़
बनि मग्गह कऽ दऽ आएल। बुकौड़ लगि गेल जे असकरे गाममे केना रहब? जइ गाममे जाति-जातिक रगड़ा, जाति-जातिक बीच कूल-मूलक रगड़ा, कखनो टिक-बिनु टकक रगड़ा, कखनो राम-कृष्णक रगड़ा, तँ कखनो ऐ टोल
ओइ टोलक रगड़ा, केना
एहेन समाजमे असकरे रहब।
जहिना बान्ह
टुटने वा छहर टुटने बाढ़िक पानि घरेकेँ डुमा दैत आ घरमे बैसल घरवारी घरकेँ रक्षक
बूझि भक्षक भऽ जाइत सएह गति भेल। मुदा गरिबाहा जे धनिकाहाक देखसी-रस्ता पकड़त तँ
कते दिन चलि सकत। मनमे उठल जे जाबे अपन दुख दोसरकेँ नै कहब ताबे एहिना हएत।
मुदा कहबो केकरा करब। डोंगी नावमे बैसा डगमगा कऽ डुमबैयेबला बेसी अछि। नजरि उठा
तकलौं तँ मंगल ग्रह जकाँ गोसाँइ-भाय छोड़ि दोसर कियो ने बुझाएल।
गोसाँइ भाय स्कूलक संगी। गोटि-पंगड़ा जे पुरान
लोक छथि ओ अपनाकेँ पुरना सीमा बना लेलनि तहिना नवका तूर नवका सीमा। कारणो भेल
शिक्षाक बदलाव! मुदा
गोसाँइ-भाय तँ
एक बतरिया छथि,
हुनकेसँ पूछब नीक हएत।
विदा भेलौं।
गोसाँइ-भाय
हमरा गिरगिटिया कहै छथि। जखन बजै छी तखन ‘ठीक-ठीक’ कहि दैत छथि, मुदा रंग बदलैकाल सतरंगा कहि गिरगिटिया कहै छथि।
संगी-साथीमे
अहिना होइ छै। बान्हपर देखिते गोसाँइ-भाय पुछलनि-
“की गिरगिट भाय, सुनै छी अहू बेर इलेक्शन हएत?”
कहलियनि-
“आब ऐ सभकेँ छोड़ि देलौं। सभ पाटी टहलि-बूलि देखि
लेलिऐ। एक उमेरोपर एलौं। छौड़ा-मारड़िक चालि धड़ब से सकब।”
चाह पीबिते मन
असथिर भेल। पुछलियनि-
“भाय, हमरा दोस्ती नै धारैए। तेकर की कारण? अहाँकेँ देखै
छी जे सगरो लुधकी लागल अछि आ हमरा एकटा छल सेहो टूटि गेल?”
“किअए?”
“मुहाँ-ठुट्ठी भऽ गेल।”
“की मुहाँ-ठुट्ठी?”
“कौआ-ठुट्ठी नै खेलाइ छिऐ तहिना।”
“गिरगिट भाय, अहाँ लंगोटिया संगी छी तँए कहै छी। जहिना कोनो-कोनो गाछमे
एकेटा सिर होइ छै, आ
कोनोमे मुसरासँ लऽ कऽ मोटका सिर, पतरकाक संग जल्लो होइ छै, सबहक अपन-अपन काजो आ जिनगियो
छै। तहिना बिनु रोपल मनुक्खोक सिर छै। ओकरामे दोसर केना सटै छै आ हटै छै, यएह खेल छै। अही
पाशापर सभ बैस जिनगीक नाव खेिब भव-सागर पहुँचैए।”