भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Monday, February 15, 2010

'विदेह' ५२ म अंक १५ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५२)- PART I

'विदेह' ५२ म अंक १५ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५२)

वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१.भालचन्द्रश झा- -बाल-शिक्षणपर निबन्ध हमर शिक्षण-यात्रा
२.२. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (अध्याय- १५सँ १८)

२.३.जगदीश प्रसाद मंडल- -दू टा कथा-१.डंका २ कोना जीवि?

२.४.१.सपथमे मैथिली- सुजीतकुमार झा २.बेचन ठाकुर,नाटक-‘छीनरदेवी’

२.५.जनकपुरमे मिथिला महोत्स्वक आयोजन : नवअध्यानयक शुभारंभ- -रामभरोस कापडि भ्रमर २.-कथा- ऋषि बशिष्ठ-पूत कमाल
२.६.१. प्रकाश चन्द्र-नचिकेताक ‘प्रियंवदा’ : एक विश्लेषण २. बिपिन झा-युवा हेतु प्रेमक "समुचित मार्ग" (वेलेण्टाइन डे विशेष पर)

२.७.१. कुमार मनोज कश्यप-कथा- कचोट २.कथा-मुसिबत– सन्तोिष कुमार मिश्र ३. दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी

२.८.१. विद्यानन्द झा-किशोर लोकनिक लेल दूटा कथा २ श्याकमसुन्दबर शशि- जनकपुरके खवरि



३. पद्य

३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ

३.२. गंगेश गुंजन:अपन-अपन राधा १८म खेप

३.३. कामिनी कामायनी-वसंत
३.४. शिव कुमार झा-किछु पद्य

३.५. आमोद कुमार झामैथिल नँइ–छोटका

३.६. सरोज ‘खिलाडी‘-गीत

३.७.१.सत्यक जीत- सतीश चन्द्र झा२. मनोज कुमार मंडल ३.कल्पना शरण-नुकाएल दिनकर
३.८. कालीनाथ ठाकुर, -एक श्रद्धाञ्जलि-- कोकिलकेँ२. तीनटा कविता राजदेव मंडलजीक

४. गद्य-पद्य भारती अन्नावरन देवेन्दर-अंतिम शब्द (तेलंगानाक किसान द्वारा आत्महत्यासँ पहिने पत्नीसँ कहल)-(तेलुगु कविता: तेलुगुसँ अंग्रेज पी. जयलक्ष्मी द्वारा, अंग्रेजीसँ मैथिली गजेन्द्र ठाकुर द्वारा)

५. बालानां कृते-१.. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक कथा २.. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)३.कल्पना शरण-देवीजी

६. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

7.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
7.1.NAAGPHAANS-PART_II-Maithili novel written by Dr.Shefalika Verma-Translated by Dr.Rajiv Kumar Verma and Dr.Jaya Verma, Associate Professors, Delhi University, Delhi

7.2.Original Poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy of New York.-In the depth of my heart

विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions

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मैथिली देवनागरी वा मिथिलाक्षरमे नहि देखि/ लिखि पाबि रहल छी, (cannot see/write Maithili in Devanagari/ Mithilakshara follow links below or contact at ggajendra@videha.com) तँ एहि हेतु नीचाँक लिंक सभ पर जाऊ। संगहि विदेहक स्तंभ मैथिली भाषापाक/ रचना लेखनक नव-पुरान अंक पढ़ू।
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव



भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।



गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
विदेह जालवृत्तक डिसकसन फोरमपर जाऊ।
"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाऊ।

१. संपादकीय
कविता: कविता लोक कम पढ़ैत अछि। संस्कृतसन भाषाक प्रचार-प्रसार लेल कएल जा रहल प्रयास, सम्भाषण-शिविरमे सरल संस्कृतक प्रयोग होइत अछि। कथा-उपन्यासक आधुनिक भाषा सभसँ संस्कृतमे अनुवाद होइत अछि मुदा कविता ओहि प्रक्रियामे बारल रहैत अछि। कारण कविता कियो नहि पढ़ैत अछि आ जाहि भाषा लेल शिविर लगेबाक आवश्यकता भऽ गेल अछि, ताहि भाषामे कविताक अनुवाद ऊर्जाक अनर्गल प्रयोग मानल जाइत अछि। मैथिलीमे स्थिति एहन सन भऽ गेल अछि, जे गाम आइ खतम भऽ जाए तँ एहि भाषाक बाजएबलाक संख्या बड्ड न्यून भऽ जएत। लोक सेमीनार आ बैसकीमे मात्र मैथिलीमे बजताह। मैथिली-उच्चारण लेल शिविर लगेबाक आवश्यकता तँ अनुभूत भइए रहल अछि। तँ एहि स्थितिमे मैथिलीमे कविता लिखबाक की आवश्यकता आ औचित्य ? समयाभावमे कविता लिखै छी, एहि गपपर जोर देलासँ ई स्थिति आर भयावह भऽ सोझाँ अबैत अछि। एहना स्थितिमे आस-पड़ोसक घटनाक्रम, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, आक्षेप आ यात्रा-विवरणी यैह मैथिली कविताक विषय-वस्तु बनि गेल अछि। मुदा एहि सभ लेल गद्यक प्रयोग किएक नहि ? कथाक नाट्य-रूपान्तरण रंगमंच लेल कएल जाइत अछि मुदा गद्यक कवितामे रूपान्तरण कोन उद्देश्यसँ। समयाभावमे लिखल जा रहल एहि तरहक कविता सभक पाठक छथि गोलौसी केनिहार समीक्षक लोकनि आ स्वयं आमुखक माध्यमसँ अपन कविताक नीक समीक्षा केनिहार गद्यसँ पद्यमे रूपान्तरकार महाकवि लोकनि ! पद्य सर्जनाक मोल के बूझत ! व्यक्तिगत लौकिक अनुभव जे गहींर धरि नहि उतरत तँ से तुकान्त रहला उपरान्तो उत्कृष्ट कविता नहि बनि सकत। पारलौकिक चिन्तन कतबो अमूर्त रहत आ जे ओ लौकिकसँ नहि मिलत तँ ओ सेहो अतुकान्त वा गोलौसी आ वादक सोंगरक अछैतहुँ सिहरा नहि सकत। मनुक्खक आवश्यक अछि भोजन, वस्त्र आ आवास। आ तकर बाद पारलौकिक चिन्तन। जखन बुद्ध ई पुछै छथि जे ई सभ उत्सवमे भाग लेनिहार सभ सेहो मृत्युक अवश्यंभाविताकेँ जनै छथि? आ से जे जनै छथि तखन कोना उत्सवमे भाग लऽ रहल छथि। से आधुनिक मैथिली कवि जखन अपन भाषा-संस्कृतिक आ आर्थिक आधारक आधार अपना पएरसँ नीचाँसँ विलुप्त देखै छथि आ तखनहु आँखि मूनि कऽ ओहि सत्यताकेँ नहि मानैत छथि, तखन जे देश-विदेशक घटनाक्रमक वाद कवितामे घोसियाबए चाहै छथि, देशज दलित समाज लेल जे ओ उपकरि कऽ लिखऽ चाहै छथि, उपकार करऽ चाहै छथि, तँ ताहिमे धार नहि आबि पबै अछि। मुदा जखन राजदेव मंडल कविता लिखै छथि-
....
टप-टप चुबैत खूनक बून सँ
धरती भऽ रहल स्नात
पूछि रहल अछि चिड़ै
अपना मन सँ ई बात
आबऽ बाला ई कारी आ भारी राति
कि नहि बाँचत हमर जाति...?
तँ से हमरा सभकेँ सिहरा दैत अछि। कविक कवित्वक जाति, ओहि चिड़ैक जाति आकि..। कोन गोलौसी आ आत्ममुग्ध आमुखक दरकार छै एहि कविताकेँ। कोन गोलौसीक आ पंथक सोंगर चाही एहि सम्वेदनाकेँ। तँ कविताकेँ उत्कृष्टता चाही। भाषा-संस्कृतिक आधार चाही। ओकरा खाली आयातित विषय-वस्तु नहि चाही, जे ओकरापर उपकार करबाक दृष्टिएँ आनल गेल छै। ओकरा आयातित सम्वेदना सेहो नहि चाही जे ओकर पएरक नीचासँ विलुप्त भाषा-संस्कृति आ आर्थिक आधारकेँ तकबाक उपरझपकी उपकृत प्रयास मात्र होअए। नीक कविता कोनो विषयपर लिखल जा सकैत अछि। बुद्धक मानवक भविष्यक चिन्ताकेँ लऽ कए, असञ्जाति मनकेँ सम्बल देबा लेल सेहो, नहि तँ लोक प्रवचनमे ढ़ोंगी बाबा लेल जाइते रहताह। समाजक भाषा-संस्कृति आ आर्थिक आधारक लेल सेहो, नहि तँ मैथिली लेल शिविर लगाबए पड़त। बिम्बक संप्रेषणीयता सेहो आवश्यक, नहि तँ कवि लेल पहिनेसँ वातावरण बनाबए पड़त आ हुनकर कविताक लेल मंचक ओरिआओन करए पड़त, हुनकर शब्दावली आ वादक लेल शिविर लगा कऽ प्रशिक्षण देल जएबाक आवश्यकता अनुभूत कएल जएत आ से कवि लोकनि कइयो रहल छथि ! मिथिलाक भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता आ राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म आ दर्शन सेहो साहित्यमे अएबाक चाही। आ से नहि भेने साहित्य एकभगाह भऽ जएत, ओलड़ि जएत, फ्रेम लगा कऽ टँगबा जोगड़ भऽ जएत। कविता रचब विवशता अछि, साहित्यिक। जहिया मिथिलाक लोककेँ मैथिली भाषा सिखेबा लेल शिविर लगाओल जएबाक आवश्यकता अनुभूत होएत, तहिया कविताक अस्तित्वपर प्रश्न सेहो ठाढ़ कएल जा सकत। आ से दिन नहि आबए ताहि लेल सेहो कविकेँ सतर्क रहए पड़तन्हि।
मैथिली आ ब्रेल लिपि
फ्रांसक लुइस ब्रेल -अठारह सए नौ ई. मे जन्म आ अठारह सए बावन ई.मे मृत्यु- जे अपने आन्हर छलाह पन्द्रह बर्खक अवस्थामे ब्रेल लिपिक आविष्कार आँखिसँ विहीन लोकक लेल कएने रहथि। एहि लिपिमे कागजपर विशेष प्रिंटरसँ उठल-उठल बिन्दुक माध्यमसँ -जकरा हाथक स्पर्शसँ अनुभव कएल जा सकए- भाषाक संप्रेषण होइत अछि। एकरा दुनू हाथक स्पर्शसँ पढ़ल जाइत अछि। दहिना हाथ संदेशकेँ रूपान्तरित कए संप्रेषित करैत अछि आ वाम हाथ अगिला पंक्तिक प्रारम्भक अनुभव करैत अछि। एहि लिपिकेँ सामान्यतः डेढ़ सए शब्द प्रति मिनटक गतिसँ पढ़ल जा सकैत अछि जे आँखि द्वारा पढ़ल जाएबला सामान्य शब्द संख्या तीन सए शब्द प्रति मिनटक अदहा अछि।
एहि लिपिक आधारकेँ सेल कहल जाइत अछि। एकटा सेलक निर्माण छह टा बिन्दुक संयोजनसँ होइत अछि। एहिसँ तिरसठि प्रकारक विभिन्न वर्णक –अक्षर-संख्या आ विराम-अर्द्धविराम आदि चेन्ह- निर्माण होइत अछि।
हमर लिखल सहस्रबाढ़नि जे मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक अछि (ISBN:978-93-80538-00-6) २००९ मे रिलीज भेल आ पुअर होम दरभंगा स्थित ब्लाइन्ड स्कूलकेँ पठाओल गेल अछि।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ फरबरी २०१०) ९५ देशक १,१०० ठामसँ ३८,५०३ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,२६,५९६ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद (http://www.box.net/shared/75xgdy37dr)बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....
१.डॉ. जेकील आ मिस्टर हाइडक कथा अंग्रेजी विषएमे स्कूलमे पढ़ने रही। एकटा वैज्ञानिक रहथि डॉ. जेकील हृदएसँ कलुषित। मोन करन्हि जे चोरि-उच्क्कागिरी करी। से एकटा द्रवक खोज कएलन्हि जकरा पीबि कऽ ओ मिस्टर हाइड बनि जाथि आ रातिमे चोरि-उच्क्कागिरी करथि। एक रातुक गप अछि जे मिस्टर हाइड ककरो हत्या कऽ भागि रहल रहथि मुदा भोर भऽ गेल रहै से लोक सभ हुनका खेहारए लगलन्हि। ओ डॉ.जेकीलक घरमे पैसि गेलाह (कारण डॉ.जेकील तँ ओ स्वयं छलाह) आ केबार भीतरसँ लगा लेलन्हि। लोक सभ चिन्तित जे डॉ. जेकीलकेँ ई बदमाश मारि देतन्हि से ओ सभ केबार पीटए लगलाह। मिस्टर हाइड द्रव पीअब शुरु केलन्हि मुदा ओहि दिन दवाइमे रिएक्शन नहि भेलैक आ हुनकर रूप डॉ. जेकीलमे नहि बदलि सकलन्हि। आब एहि कथाक अन्तमे मिस्टर हाइड माथ नोचि रहल छथि जे हुनका अपन समस्त पापक प्रायश्चित मिस्टर हाइड बनि करए पड़तन्हि।
२. पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... हिनकर रियल आइडेन्टिटी हम नाङट करै छी आ ई आब अभिशप्त छथि अपन शेष जीवन मिस्टर हाइड रहि अपन कुकृत्यक सजा भुगतबाक लेल।
३.मैथिलमे ई एकटा तथ्य छै जे चुपचाप जे गारि सुनै अछि तकरा कहल जाइ छै जे ओ बड्ड नीक लोक छथि। मुदा समए आबि गेल अछि मिस्टर हाइड सभकेँ देखार करबाक आ ओकरा कठोर सजा देबाक। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। मैथिलीमे बहुत गोटे छथि जे हिन्दीमे बैन भेल लेखककेँ पोसै छथि (मैथिली सेवाक लेल) जे जखन ककरो गारि पढ़बाक होए तँ ओ तकर प्रयोग कऽ सकथि।
४.एहि ब्लैकमेलरक डॉ. जेकील आ मिस्टर हाइड बला चरित्र मैथिल सर्जनाक विरोधमे मैथिल-जन पत्रिकामे एक दशक पहिने उजागर भऽ गेल छल मुदा लोक हिनका पोसैत रहल।
५.आरम्भमे सेहो ई एकटा चिट्ठी मैथिलीक सम्पादकक विरोधमे देलन्हि जे छपि गेल आ ओकर घृणित भाषाक कारण भाइ साहेब राजमोहन झाकेँ माफी माँगए पड़लन्हि आ फेर ई मिस्टर हाइड सेहो ओहि सम्पादकसँ लिखितमे माफी मँगलन्हि।
६.एकटा आग्रह आ आह्वान: सुभेश कर्ण आ समस्त मैथिली-प्रेमी-गण- एहि मिस्टर हाइडक ब्लैकमेलिंग आ एब्युजक द्वारे अहाँ सभकेँ मैथिली छोड़ि कऽ जएबाक आवश्यकता नहि अछि, कारण पापक घैला भरि गेलाक बाद ई आब अभिशप्त छथि अपन शेष जीवन मिस्टर हाइड रहि अपन कुकृत्यक सजा भुगतबाक लेल।
जे.एन.यू.मे छात्र-छात्रा सभसँ पोस्टकार्ड पर साइन लऽ ओहिपर अपन रचना लेल प्रशंसा-पत्र पठबैत घुमैत अपस्याँत कथित गोल्ड मेडेलिस्ट(!!!) मिस्टर हाइडकेँ चिड़ैक खोता तोड़बाक सख शुरुहेसँ छन्हि। पहिल कथा गोष्ठीमे जखन ई सहरसामे सभसँ पुछने फिरै छथि जे साहित्यकार बनबासँ की-की सभ फाएदा छै तखन ई एकटा पाइ आ पुरस्कारक लेल अपस्याँत मैथिल युवा-पीढ़ीक प्रतिनिधित्व करै छथि, जे राजमोहन झा जीक शब्दमे मैथिलीसँ प्रेम नञि करैत अछि। ई मिस्टर हाइड सेहो ओहि सम्पादकसँ लिखितमे माफी मँगलन्हि आ जखन ओ माफ कऽ देलखिन्ह तखन फेर हुनका गारि पढ़ब शुरु कऽ देलन्हि। हमरासँ लिखित मेल-माफी अस्वीकार भेलाक बाद मिस्टर हाइडक माथ नोचब स्वाभाविके। मिस्टर हाइड ककरो इनकम टैक्स, कस्टम वा सरकारी नोकरीमे देखै छथि, सुनै छथि तँ पाइक मारल जेकाँ हिनका मोनमे ब्लैकमेलिंग कुलुबुलाए लगै छन्हि, प्रायः आनन्द फिल्मक एक गोट कलाकार जेकाँ- जे एहने मिस्टर हाइड लेल कहै अछि- जे ई डॉक्टर रहितए तँ किडनी बेचितए, से ओ जतए छथि ओतहु ब्लैकमेलिंगक धन्धा शुरू कैये देने छथि। मुदा चिड़ैक खोता उजाड़ैत-उजाड़ैत मधुमाखीक छत्ता उजाड़बाक गल्ती एहेन ब्लैकमेलर कैये दैत अछि। जे सरकारी नोकरी वा इन्कम-टैक्स, कस्टममे ई ब्लैकमेलर रहितए तँ देश जरूर बेचि दैतए।

kellner@ucla.edu" Dear Gajendra
thanks for the detective work. was there a response?
best regards,
Douglas Kellner
Philosophy of Education Chair
Social Sciences and Comparative Education
University of California-Los Angeles
Box 951521, 3022B Moore Hall
Los Angeles, CA 90095-1521

Fax 310 206 6293
Phone 310 825 0977
http://www.gseis.ucla.edu/faculty/kellner/kellner.html

dear Gajendraji,
apnek mail milal. Pankajjik kritya janike bar dukh bhel. Ahi se maithilik nam kharab hoyat achhi. Apnek kadam ekdum uchit achhi.
Rajiv K Verma
These People are hellbent to bring down the literary discourse down to the gutter. Now you have been receiving mails like one. We are with you and i have forwarded your mails to Maithili speaking people all across the country

--
VIJAY DEO JHA
dhanyvad. muda ehne lok sabjagah aadar pabait achi
shridharam

अहां कें सूचनार्थ पठेने छी जे पंकज पहिनेहो इ सब काज करैत रहय छलैए।
aavinash

Dear Gajendra g

You are doing very well in the field of collecting all the documents related to the Maithili. Videha. Com realy a adventureous collection. I will also find some time to learm the article published through the videha.
Now your detective style theft the sleeping of many of the so called literary personnel. Go a head
jai Maithili jai Mithila
Sunil Mallick
President
MINAP, Janakpur

Dear Gajendra g

You are doing very well in the field of collecting all the documents related to the Maithili. Videha. Com realy a adventureous collection. I will also find some time to learm the article published through the videha.
Now your detective style theft the sleeping of many of the so called literary personnel. Go a head
jai Maithili jai Mithila

Sunil Mallick
President
MINAP, Janakpur

your efforts are commendable. Anysuch ghost writer or fake identity holder must be boycotted from literature at once Thanks.

shyamanand choudhary

Namaskar.
Chetna samitik sachiv ken mailak copy hastgat kara del achi.
Dr. Ramanand Jha' Raman'
गजेन्द्र जी ,
चेतना समिति हिनका सम्मानित कएलक अछि सेहो हमरा ज्ञात नहिं | यद्यपि हमहू चेतना क स्थाई सदस्य | जे हो. मुदा निंदास्पद घटना तं ई थिके तें दुखी कयलक | कतिपय नव मैथिल-प्रतिभाक आकलन-मूल्यानकनक हमर अपन स्नेग्रही स्वभाव, एहि दुर्घटनाक बाद तं आब चिंता मे ध' देलकय|
देखी,
सस्नेह ---गं गुंजन
प्रिय गजेंद्रजी
हम अपने विस्मित भेलहुँ| बहुत दु:खद दृश्य | सृजन विरूद्ध साहित्यिक सन्दर्भ मे ई घटना आधुनिक मैथिलीक बहुत कुरूप प्रसंग क' क' स्मरण कैल जायत
सस्नेह,
गंगेश गुंजन.
PRIYA MAITHILJAN
APPAN BHASHA- SANSKAR-SANSKRITI KE ASMARAN KARU AA EHAN VIVADAASAPAD LEKANI B KARANI KE VIRAM DIYA. ESWAR KE SAKCHI MANI - DIL PAR HATH RAKHI AA KULDEVI KE ASMARAN K-K YAD KARU KI SACHHAI KE KATEK KARIB CHHI.NIK BATAK LEL MANCH KE UPYOG KARI TA UTTAM.
DHANYABAD.
SAPREM,PK CHOUDHARY
Gajendra babu
pankaj puran chor achhi. Ham sab okar likhit ninda das sal pahine aarambh me kene rahi. Okra ban k kay ahan nik kayal. Chetna samiti ke seho samman wapas lebak chahi aa okar ninda karbak chahi.
subhash Chandra yadav
प्रिय ठाकुरजी!
(माननीय संपादक)
“विदेह ई-पत्रिका” [मैथिली]
एखन धरिक उपलब्ध साक्ष्यक आधार पर हम अपनहिक संग जाएब पसिन्न करब।
शंभु कुमार सिंह
Sir I have sent the link of Parashar's duplicacy to several people
along with Pranabh Bihari who had traslated that article. I had
telephonic conversation with him also and he was quite upset over
Parashar;s duplicay
Pranav is my junior and a good friend of mine. since you have referred Pranav who had traslated that article it is unfortunate that he was misused by Parashar. But i must congratulate you for exposing scam run by Parashar and his team. Parashar, though must not be blamed if he lifted the article of Nom Chomskey . Now i must doubt the artistic sensibility of Parashar who is now a pseudo-- intellectuals. I am amazed that how did he dare to publish the article of Nom Chomskey as his own.
God bless him no more
Vijay Deo Jha
Dear Gajendraji,
I fully agree with you that we must fight against blatant cases of wrongful appropriation.
हां अपन मेल में लिखने छी जे विदेह आर्काइव से संबंधित लेखक'क सबटा रचना हटा लेल जायत। अहि से आर्काइव सं ई प्रसंग सेहो, एकर साक्ष्य सेहो मेटा जायत। हमर मत ई जा साक्ष्यब रहबाक चाही निक आ अधलाह दुनु तरहक काज'क। अहां अप्पसन कामेंट आ र्निणय सेहो आर्काइव मे जा के संबंधित रचना के पोस्टा-स्क्रिाप्टर के रुप मे भविष्या'क पाठक'क लेल सुरक्षित राखि सकैत छियन्हिि।
ई दोहरेबाक बहुत औचित्यक नहि जे विदेह निक लागि रहल अछि आ अहांक परिश्रम एकदम देखा रहल अछि।
ईति,
सदन।


Sadan Jha
Sadan Jha

Thank you and same to you.

Nishikant Thakur

Thanx Gajendraji, for your immediate response. I must congratulate you for the work you have done to save the sanctity of the literature world as a whole.

I feel proud for the person like you who shows the courrage to bell the cat. If the so called writers like Parasharji are there to spoil the sea, on the other side it is very hopeful sight to have a person like you who is alert enough to take care of such filth & keep the sea clean.

Thanx for enlightening me on the subject.

Regards,
Bhalchandra Jha.

पंकज पराशरकेर एहन कार्य पर स्मरण अबैत अछि करीब बीस-पचीस साल पहिलुक घटना, जहिया आकाशवाणी दरभंगासँ म,म,डॉ, सर गंगानाथ झाक एकमात्र मैथिलीक कारुणिक पदकेँ एक गोट कवि द्वारा अपन कहि प्रसारित कए देल गेल छल, जे बादमे (सजग श्रोता द्वारा सूचना देलाक बाद) आजन्म बैन कए देल गेलाह । कहबाक तात्पर्य जे जँ हम मैथिल दरभैगा- मधुबनीमे गंगानाथ बाबूक पदकेँ अपन कहि सकैत छी तँ ई कोन बड़का गप । निश्चये एहन रचनाकारकेर सङ्ग कड़गर डेग उठाएब आवश्यक ।
ajit mishra

Dear Gajendrajee,
We should take strong step to prevent such intellectual cheats.
My support is always with you.
K N Jha
This seems to be a dangerous trend and we should also try and refrain from publishing anything from such authors. Regards,
Prof. Udaya Narayana Singh
प्रियवर ठाकुर जी,
मैथिल साहित्यकार आब साइबर क्राइम सेहो क रहल छथि, ई जानि अपार प्रसन्नता भेल |
पंकज पराशर के नकारात्मक बुद्धिक पूर्ण उपयोग करबाक लेल हम नोबेल प्राइज सा सम्मानित कराय चाहैत छी |
बुद्धिनाथ मिश्र
Sampadak Mahoday
Apne ehi prakarak durachar rokwak lel je prayash ka rahal chhee
ohi lel dhanyabad.Ehen blackmailer sa maithili ken bachayab aawashyak
achhi
Sadar
SHIV KUMAR JHA


गजेन्द्र भाई,
नमस्कार ! मैथिली मे एहि तरहक काज लगातार भ' रहल अछि । किछु व्यक्ति एहि धंधा मे अग्रसर छथि । मैथिलीक सम्पादक लोकनिक अनभिज्ञताक फायदा कतेको अंग्रेजी पढ़निहार तथाकथित साहित्यकार लोकनि उठा रहल छथि । पंकज जीक पहल मे छपल लेख के हम सेहो पढ़्ने र्ही आ किछुए दिनक बाद हम नेट पर मूल लेखकक आलेख के सेहो पढ़लहु । हमरा त' आश्चर्य लागल छल जे पंकज जी आलेखक कम स कम शीर्षक त' बदलि लैतथि मुदा हुनका एतेक ज्ञान रहितनि तखन की छल ।

एतबे नहि , हिनक बहुत रास कवितो अंग्रेजी साहित्य स' हेर-फेर कयल गेल अछि । खैर ! जे करथि ... । मुदा एहि बेर कहाबत ठीक होबाक चाही " सौ सोनार के त' एक लोहार के " । प्रकाशन मे जे भी कियो व्यक्ति गलती क' रहल छथि हुनका गंभीर क्रिमिनल बुझबाक चाही ।

धन्यवाद एहि लेल अहाँ के जे एतेक जोरदार तरीका स' एहि गप्प के उठैलहु ।

अहाँक

प्रकाश चन्द्र ।
pankaj parashar vala prasang bar dukhad laagal ,,
kamini
Gajendr jee,
maamailaa ke tool jatabe debainhi, sabhak oorjaa otabe svaahaa hetai. हमर मनतब एतबे, जे एक बेर अहां देखार क देलहुं, आब छोडि देल जाओ. हिन्दीयो मे एहिना भ रहल छै. बेर बेर आ खराब भाषा मे लिखल मोन के दुखी करैत अछि. फेर लागैत अछि जे अहि मे समय कियैक नष्ट करी?
हिन्दुस्तान मे जाति आ सेहो मैथिली से जाति नयि जाएत. हम एकरा नयि मानैत छलहुं मुदा आब 30 बरख से मैथिली मे लिखनाक बाद आब देखल जे एक ओर
1 मैथिली साहित्य मे लिली जी, उषा जी आ शेफलिका जी के बाद यदि किओ नाम लैत अछि त हमर.
2 एखनो कोनो पत्रिका बै छै त हमरा लेल रचनाक आग्रह होइते छै.
3 एखनो हम ओतबे सक्रिय छी आ निरंतर लिखि रहल छी.
4 दुखद जे हमरा बाद (सुस्मिता पाठक आ ज्योत्स्ना मिलन के हम अपने तुरिया बुझैत छी) के बाद एहेन कोनो सशक्त कोन, महिला लेखने नयि आएलए.
5 ई स्थिति रहलाक बादो, आब जहन हम देखै छी, त पाबै छी जे हमरा पर, हमर रचना यात्रा अथव हमर रचना पर किछु नयि लिखल गेलए, चाहे ओ मोहन भारद्वाज रहथु अथवा आन किओ. जहन हमर दशक केर चर्च होइत छै, तीन चारिटा नाम पर सविस्तार चर्चा होइत छै, जाहि मे हमर नाम नयि रहैत छै. हमर नाम मात्र सन्दर्भ लेल जोडि देल जाइत छै.
6 एतेक दिन मे मात्र रमण जी हमरा पर एक गोट लेख लिखलन्हि. हम ओकरा पुन: टाइप करबा के अहां लग पठायब.
7 जाति पाति धर्म आ द्वेष पर कहियो ध्यान नयि देलाक कारणे त कही हमर ई स्थिति नयि छै, आब हमरा ई सोचबा मे आबि रहल अछि.
8 हमर शिक्षक, जे स्वयं हिन्दी के ख्यातिलब्ध कथाकार छथि, हमरा बुझेने रहलाह जे हम मैथिली मे लिखब बन्न क; दी, कियैक त हम गैर मैथिल (जाति विशेष) से नयि छी, तैं हमर लेखन के कहियो मैथिल सभ नयि नोटिस करताह, कहियो किछु नयि करता.. अपन भाषाक प्रति प्रेम के आगरह कारणे हम हुनकर बात नयि मानलियै, लिखैत गेलहुं, मुदा आब लागि रहलअए जे हुनकर कहबी सही छलन्हि की?
9 एखनो की हाल छै मैथिली मे, देखियो. ओकरा विरुद्ध किछु करियु. मैथिली मे जे पैघ पैघ संस्था चाइ, चेतना समिति सनक, सभ बेर विद्यापति पर्व मनबैत छथि. लाखो खर्च करै छथि, मुदा नीक लेखक केर पोथी सभ बेर 5-7 टा निकालैथु, से नयि होबैत छन्हि.
10 हमरा भेटल जानकारी के मोताबिक विद्यापति हॉल किराया पर चढै छै. तकरा मे कोनो आपत्ति नयि, यदो ओकरा से किछु आय होबै. मुदा ओकरा मैथिलीक काज अथवा नाटक आदि लेल मांगल जाएत, त; नयि भेटै छै. यदि ओकर शुल्क चुका दी, तहन त किरायाके रूप मे किऊ ल' सकि छै. एकरा सभ के उजागर करी.
11 व्यक्ति से संस्था पैघ होइत छै. जतेक संस्था सभ छै, तकरा पर लिखी, साहित्य अकादमीक मैथिली विभाग सहित.
12 लिली रेक सभटा रचनाक अनुवाद अधिकार हमरा देने छथि. हुनक साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त पोथी 'मरीचिका' केर हिन्दी अनुवाद लेल पिछला 2-3 साल से हम लिखि रहल छी. साहित्य अकादमीक पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य" मे हम पिछला 25 साल से अनुवाद सहित छपि रहल छी. मुदा हमरा से अनुवादक नमूना मांगल गेल. ओहि कुर्सी पर जे स्वनाम धन्य बैसल छथि, हुनका हमरा मादे नयि बूझल त कोनो मैथिल साहित्यकार से पूछि सकैत छलाह. ई तहिने भेलै, जेना एक बेर एक गोट चैनल ऋषिकेश मुखर्जी से हुनकर बायोडाटा मंगने छल आ एखनि पढल समाचारक अनुसारे आ. जानकी वल्लभ श्हस्त्री से हुनकर बायोडाटा पद्मश्री लेल मांअगल गेलैय.
13 अपन विनम्रता दर्शाबैत हम लिली जीक दू तीन टा कथाक हिन्दी अनुवाद हम पठा देलियन्हि. तैयो अई पर कोनो विचार नयि. लिखला के बाद हमरा कहल गेल जे हम लिली जी से साहित्य अकादमी के अनुवादक अधिकार दियाबे मे मददि करी. आरे भाई, अहां के अनुवाद से मतलब अछि ने, आ जहन हम अनुवाद क; के देब' लेल तैयार छी तहन अकादमी के किअयैक अधिकार चाही? अई लेल जे अकादमी अपन पसीनक आदमी के अनुवाद लेल द; सकय. एखनि धरि ओकरा पर निपटारा नयि भेलैये. अकादमी से फेर कोनो पत्र नयि आएल अछे. अनुवाद तैयार राखल छै. लिली जी आब बहुत बुजुर्ग भ; गेल छथि. हुनक मात्र इयैह इच्छा छै (आ बहुत स्वाभाविक) जे हुनकर पोथी सभ हुनका सोझा मे प्रकाशित भ; जाए.
14 लिली जी के पोथी हिन्दी मे आनबाक श्रेय हमरे अछि, ई मनितहुं ओकरा रेकॉर्ड केनाए मैथिल समीक्षक आवश्यक नयि बुझैत छथि. एकरा पर लडू.
15 मैथिली के भारतीय ज्ञानपीठ से पुस्तक प्रकाशन लेल हमही आगां एलहुं आ प्रभास जी आ लिली जी के पोथी बहार भेलै.भारतीय ज्ञानपीठ से मैथिली पुस्तक प्रकाशन के श्रेय हमरे छन्हि, ईहो मनैत ओकरा रेकॉर्ड केनाए मैथिल समीक्षक आवश्यक नयि बुझैत छथि. एकरा पर लडू.
गजेन्द्र जी, मैथिलीक ई सभ मानसिकता पर आन्दोलन करी जाहि से रचनाकार आ वरिष्ठ रचनाकार सभ के अपमानित नयि होब' पडै. अहां चाही त' एकरा विदेह पर द' सकै छी.
हम दोसर बात सेहो लिखि के पठायब. मुदा हम फेर कहब, जे हम व्यक्ति के नयि संस्था आ व्यक्ति के मानसिकता के दोष देबन्हि. लोक पढथु आ पूचाथु ई स्वनामधन्य सभ से जे जकरा से अहां के गोलौंसी अछे, तकरा पर अहां लिखब आ जकरा से नयि अछे, जे मौन भावे लिखि रहलए कोनो विविआद मे पडल बगैर, हुनका लेल ई व्यवहार?
-विभा रानी.
Shri gajendraji

good work.

Anha sa ehina neer khshir vivekakak ummeed lagatar banal rahat.

chor ke ehina dekhar kelak baad dandit seho karbak prayas karbaak chahi. anha bahut raas neek pahal ka rahal chhi.


Saadhuvaad.

manoj pathak.


गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in

२. गद्य
२.१.भालचन्द्र9 झा- -बाल-शिक्षणपर निबन्ध हमर शिक्षण-यात्रा
२.२. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (अध्याय- १५सँ १८)

२.३.जगदीश प्रसाद मंडल- -दू टा कथा-१.डंका २ कोना जीवि?

२.४.१.सपथमे मैथिली- सुजीतकुमार झा २.बेचन ठाकुर,नाटक-‘छीनरदेवी’

२.५.जनकपुरमे मिथिला महोत्सरवक आयोजन : नवअध्याययक शुभारंभ- -रामभरोस कापडि भ्रमर २.-कथा- ऋषि बशिष्ठ-पूत कमाल
२.६.१. प्रकाश चन्द्र-नचिकेताक ‘प्रियंवदा’ : एक विश्लेषण २. बिपिन झा-युवा हेतु प्रेमक "समुचित मार्ग" (वेलेण्टाइन डे विशेष पर)

२.७.१. कुमार मनोज कश्यप-कथा- कचोट २.कथा-मुसिबत– सन्तोेष कुमार मिश्र ३. दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी

२.८.१. विद्यानन्द झा-किशोर लोकनिक लेल दूटा कथा २ श्या.मसुन्दमर शशि- जनकपुरके खवरि

भालचन्द्रद झा--बाल-शिक्षणपर निबन्ध
हमर शिक्षण-यात्रा
भालचन्द्रण झा-
मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दी, मराठी, अग्रेजी आ गुजरातीमे निष्णात। १९७४ ई.सँ मराठी आ हिन्दी थिएटरमे निदेशक। बीछल बेरायल मराठी एकांकी-मराठीसँ मैथिली अनुवाद।
बाल-शिक्षणपर निबन्ध
हमर शिक्षण-यात्रा

ई गोट पचीस- तीस बरख पुरान गप्पश अछि। तहिया हम नव-नव ए.टी.डी. (आर्ट टीचर्स डिप्लोकमा) कएने रही। मुम्ब इक (तखन बम्बनइ रहै) एक गोट प्रसिद्ध स्कू.लक प्राथमिक विभागमे सहायक शिक्षकक रूपमे नाकरी धऽ लेलहुँ। आध दिन नोकरी आ अ‍ाध दिन अपन कॉलेजक अगिलुका पढ़ाइ। किछुए दिनमे हमर पढ़एबाक पद्धतिकेँ लऽ कऽ अभिभावक सभक उपराग आबऽ लगलैक। नहूँ-नहूँ ई उपरागक स्वकर कनेक ऊँच बुझाए लागल। बात मुख्यािध्यारपक धरि पहुँचि गेलै।

मुख्याझध्यातपक शैक्षणिक क्षेत्रमे राष्ट्रुपति अवार्ङसँ विभूषित छलाह। अपन काजक प्रति एतेक समर्पित, जे जाहि दिन हुनकर अपन बेटीक बियाह रहनि, ओहू दिन अपन काजक क्षतिपूर्तिक वास्ते् भोरमे पाँचे बजे अपना टेबुलपर हाजिर। आ ककरो कानोकान खबरि धरि नहि। ने किओ प्यू न आ ने कोनो सहायक। मुहूर्तक समएसँ किछु पहिने फोन कऽ देल गेलनि तँ कन्याकदान करबाक हेतु विवाह मण्ड।पमे पहुँचलाह (महाराष्ट्र्मे विवाह दिनमे होइत छै)।

एकदिन हठात प्यूतन आबिकऽ हमरा हुनक समाद देलक जे ‘हेड गुरूजी अपनेकेँ याद कएलनि अछि’। एहने बिना कोनो कारणक ओ ककरो डिस्टऽर्ब नहि करैत छलाह। खासकऽ हमरा। हमरा सँ कनेक विशेष लगाव होएबाक कारण। जे हम ओहिकालक शिक्षक सभक लॉटमे नवतुरिए रही। दोसर जे कला शिक्षकक हैसियतसँ हम बिनु ककरो कहने अपने मोनसँ स्कूेलमे अनेक तरहक विधाक काज करी। रूटीनसँ हटिकऽ किछु-किछु नब-नब प्रयोग करबामे हमरा बड्ड मोन लागए। किछु विषयान्त र तँ होएत मुदा एतऽ उदाहरणक वास्तेस एक-दू गोट छोट-छिन प्रसंग कहब आवश्यक हएत।

शिशु-वर्गक नेन्ना सभ जहन पहिल-पहिल बेर स्कूबल अबैत अछि तँ माए-बापकें छोड़ैत नञि रहैत छैक। कनैत-कनैत अपस्यॉं त भेल रहैत छैक। झौहरि तँ एतेक पड़ैत छैक जे कान नञि देल जाइत छैक। स्कू लक पूरा स्‍टाफ ओकरा सभकें तरह-तरहसँ बौंसऽ मे लागल रहैत अछि। हमहूँ ओहि प्रयासमे लागल रही। नेन्ना सभक ध्याान बँटेबाक वास्ते हम किछु कागज आ ऑइल पेस्ट ल (मोमक रंग-पेन्सिल) आनि कऽ ओकरा सभक सोझाँमे राखऽ लगलिऐक। परिणामो जल्दी्ये देखाए लागल। ओहिमे सँ किछुकें तँ ओ कागज आ पेन्सिल देखिते मातर तरबा लहमरि मगजमे पहुँचि गेलै। ओ सभ कागजकेँ हाथमे लऽ कऽ ओकरा चिर्री-चिर्री कऽ देलकै। पेन्सिल टुकड़ी-टुकड़ी कऽ कऽ बीगि देलकै।

एक गोट नेन्नाकें जहन हम बहुत फोर्स केलिऐ तँ ओ हमरा हाथसँ पेन्सिल छीनि कऽ सामने राखल कागजपर जेना टूटि पड़ल। हाँ‍‍ञि-हाँ‍‍ञि कऽ पेन्सिलकेँ कागजपर घसऽ लागल। एक बेर जे कागजपर पेन्सिल रखलकै से फेर बिनु उठौनहें पूरा कागजकें भरि देलकै। मुदा एहि के बाद ओ शांत भऽ गेलै। भऽ सकैये, ओकर एनर्जी जबाब दऽ देने होइ। अथवा ओ हमर प्रतिक्रियाक प्रतीक्षा करऽ लागल हुअए। वा हमर प्रति अपन क्रोधक प्रदर्शन करबाक वास्तेा ओ एहि माध्य्मक उपयोग केलाक बाद शांत भऽ गेल।

बहुत दिन धरि हम एहि विषएमे सोचैत रहलहुँ। से किएक तँ पूर्ण विश्वा स अछि जे छोटोसँ छोट, प्रत्येजक कृतिक (Act) किछु अर्थ होइत छैक, किछु प्रयोजन होइत छैक। भने आइ ओहि विशिष्ट् कृतिक सार्थकता दृष्टिपथमे नहि आबए। मुदा बिना कोनो प्रयोजने कृति भऽ नञि सकैत अछि। कमसँ कम एतेक तँ बुझबामे आबिये गेल जे आत्मए-प्रगटीकरण हेतु चित्रकला सन प्रभावी दोसर माध्यकम नहि। जाहि माध्यषममे बिना कोनो संस्कागर वा व्यााकरणकेँ नेन्नो अपन मोनक गप्पन व्यसक्त‍ कऽ सकैत हुअए, ओहिसँ सरल आ श्रेष्ठद कोन माध्यिम भऽ सकैत अछि ?

किछु दिनक बाद जहन नेन्ना सभ स्कूणलक माहौलसँ घुलि-मिलि गेल, हम एही तरहक एक गोट आर प्रयोग कएल। एक गोट कक्षाक साफ-सफाइ करा कऽ पूरा फर्शपर उज्ज-र प्ले्न कागज पसारि देलिऐक। कोठरीमे एक गोट स्पी कर टँगवा देलिऐक । आ डोलमे भित्र-भित्र रंगकें घोरि कऽ कोठरीगक बाहरक जमीनपर हेरा देलिऐक, जाहिसँ कोठरीमे जाइ काल ओकरा सभकें ओहि रंगेपर सँ जाए पड़ैक। आ तकर बाद कोठरीक स्पीऐकरपर नेन्ना सभक कोनो परिचित गीत शुरू कऽ देलिऐक। नेन्ना सभकें खालीए पएर ओहि कोठरीमे जएबाक लेल कहि देल गेलैक।

अनेक रंगसँ पोताएल तरबा लऽ कऽ गीतक तालपर नेन्ना सभ ओहि उज्जऐर प्लेकन कागजपर नाचऽ लागल। ओहि कागज परक रंग-बिरंगा छापकें देखि कऽ ओकर सभक जे प्रतिक्रिया भेलैक तकर वर्णन कोनो प्रतिभाशाली, संवेदनशील कवि कऽ सकैत छल। तकरा बाद तँ ओ सभ अपनेसँ बाहर जा-जा कऽ अपना पसंदक रंगमे पएर पोति-पोति कऽ भरि पोख अपन तरबाकें ओहि कॅनवासपर अंकित करऽ लागल। एहि तरहें बनल रंग-छापकें (Colour Print) चुनि-चुनि कऽ जहन ओकर फ्रेम बनाओल गेलै, तहन तँ ओकर सौंदर्य आर निखरि गेलैक। ओहि फ्रेमकें शिशुवर्गक कक्षा सभमे टाँगि देल गेलैक। तकरा बाद बहुत दिन धरि नेन्ना सभ अपन-अपन पएरक छाप चीन्हरऽ मे अपन आनन्द हेरैत रहल।

कहक माने ई जे एहि तरहक प्रयोग सभसँ हमर मुख्याकध्याआपक बड्ड प्रसत्र होथि। प्यूदन जखन हुनक समाद देलक तँ हम पहिल फुरसहतिमे हुनकर केबिनमे पहुँचि गेलहुँ। ओ जाहि तरहें वातावरण बनबऽ लगलाह ओहिसँ ई बुझबा मे कनेको भाङ्गठ नहि भेल जे कोनो गम्भी र बात छैक। खैर ओकर अधिक विस्ताारमे नहि जाइत एतऽ एतबे कहब जरूरी अछि, जे अभिभावक सभ हमर पढ़एबाक पद्धतिक विरोधमे हुनका धरि पहुँचि गेल रहथि। मिला-जुला कऽ उपराग एतबे जे ‘अहाँ नेन्ना सभकेँ चित्र बनाएब नञि सिखबैत छिऐक। घरमे नेन्ना सभक चित्र पूरा करबाक जिम्मेरदारी माए-बापकें उठबऽ पड़ैत छैक।’

उपराग सुनिते एहि तरहक सोचक मूल स्रोत बुझबामे भाङ्गठ नञि भेल। एहि तरहक सोचक मूल स्रोत छैक प्रचलित शिक्षा पद्धति। हम सभ जाहि शिक्षा-व्य वस्थारकें अंगिकार कएने छी, ओकर सभसँ भारी समस्याद हमरा जनितब इएह जे एहि शिक्षा-पद्धतिसँ नेन्ना सभक मोनपर जाहि तरहक संस्काकर पड़ब अपेक्षित‍ से नञि भऽ रहल छैक। विद्यार्थीकें स्वसयंसिद्ध बनएबामे जाहि तरहक ज्ञान, मेहनत आ संयमक आवश्यिकता होइत अछि, ओकर पूर्ण अभाव। किताबमे छपल शब्दव पढ़ि देलहुँ वा पढ़वा देलहुँ। ओही महक किछु शब्दवक पर्यायवाची शब्दपक अर्थ कहि कऽ पड़सि देलहुँ। भऽ गेलै! छुतिका छुटि गेलै।

स्वा इत गुरूदेव रविन्द्रहनाथ ठाकुरकें ‘शान्तिनिकेतन’ आरंभ करबाक आवश्यरकता बुझेलनि ! आ हम सभ एखनो धरि वएह लकीरक फकीर बनाबऽ मे लागल छी। नवीनताकेँ स्वीरकारब तँ हमरा सभकें जेना पापे बुझाइत रहैत अछि। तें एहि युगक महान वैज्ञानिक आइन्सकटाइनकें ई कहऽ पडलनि, जे ‘हमर शिक्षा-दीक्षा तँ ओही दिन समाप्तत भऽ गेल, जाहि दिन हमरा स्कूालमे भर्ती करा देल गेल।’
कला जकाँ सृजनशील विषएक अवस्था कोनो भित्र नञि अछि। ब्लैमकबोर्डपर कोनो चित्र खीचि देल आ नेन्ना सभकेँ ऑर्डर भऽ गेल, जे एकरा देखिकऽ चित्र बनबै जाऊ। भऽ गेलै। आब अपने टाइम-पास करबाक हेतु फ्री छी। गार्जियनो सभ एहिना सिखने छथि। तें नेन्नाकें कॉपी भरल देखलन्हि आ भऽ गेलाह प्रसन्न, जे चलू, पढ़ाई भऽ रहल छैक। कॉपी भरि रहल छैक। मुदा ओ सभ ई नञि सोचैत छथि, जे ब्लैचकबोर्डपर बनाएल चित्र तँ कोनो वयस्करक दिमागक प्रतिमा (Image) छैक। नेन्ना सभक दिमागमे ओहि प्रतिमाकेँ स्थालपित करबाक धडफड़ी किएक ? नेन्ना सभक दिमागक विकास-क्रमक अनुरूप ओकर अपनो किछु प्रतिमा हेबे करतैक। ओकरा सोझा अनबाक प्रयास किएक ने, जाहिसँ ओकर अपन स्वोतंत्र विकास होइ?

एहि बातकें एहि तरहें बूझल जाए। मानि लिअ जे वयस्क, शिक्षक अपन विकसित (! ) दिमागसँ एकगोट फुजल छत्ताक चित्र ब्लैूकबोर्ड पर बना कऽ नेन्ना सभकें ओकरा बनाबऽ लेल कहैत छथि। ब्लैककबोर्डपर चित्रित फुजल छत्ता, भौमितिक आकारक अनुरूप साधरणतया अर्धगोल देखाइत छैक। मुदा अहाँ देखबैक जे नेन्ना सभक मानस पटलपर भौमितिक आकारक मिती (Dimension) स्पगष्टक नहि भेल छैक। पचमा- छठमा दर्जामे जहन भूमिती पढ़ाएल जेतैक तँ ओकरो दिमागमे मितीक अंतर स्पणष्टो भऽ जेतै।

एहि अवस्थानमे वयस्क शिक्षक जहन अपन चित्रक तुलनामे नेन्ना सभक चित्रमे ‘गलती’ सुधारऽ लगैत छैक तँ नेन्ना सभ बाजि तँ किछु नञि सकैत अछि। मुदा भीतरे-भीतर ओकरा सभक दिमागमे घोंघाउज (Confusion) शरू भऽ जाइत छैक। किएक तँ ओकरा जनितबें ओहो वएह चित्र बनौने अछि। तहन गलती कोन तरहक भेलैक, से बुझबाक प्रगल्भओता एखन ओकरामे विकासित नहि भेल छैक। नेन्ना सभक चित्र वयस्कह सभक चित्रसँ भिन्न भने देखाइत हुअए, मुदा गलत नहि भऽ सकैत अछि। तें हमरा जनितब नेन्ना सभक चित्र देखबाक नञि पढ़बाक वस्तुभ होइत अछि। एहि बातकें जखन चित्रकला सिखाबऽ बला शिक्षके नञि बुझैत छथि तँ सामान्या स्त्री -पुरुषक कथे की !

ब्लै कबोर्डपर चित्र बना कऽ पढ़ाएब नेन्ना सभक स्वछतंत्र सोचपर अन्यालय करब भेलैक। ओकरा आश्रित बनेनाइ भेलैक। हम योजित विषयपर नेन्ना सभक स्तढरपर चर्चा कऽ ओकरा सभकें प्रेरित करबामे अधिक विश्वा स राखैत छी, जाहिसँ ओकरा सभक मानस पटलपर ओहि विषएकेँ लऽ कऽ ओकर अपन स्वधतंत्र बिम्बर बनौ, आ तकरा बाद ओ सभ अपन क्षमताक अनुरूप कागजपर ओकरा उतारए। भनहि ओ चित्र वयस्कऽ सभक दृष्टियेँ कतबो बेढब, आकारहीन, मितिहीन होइ मुदा ओहि चित्रमे नेन्ना सभक अपन व्यबक्तित्वौ हेतैक, ओकरासँ अपनत्व हेतैक, ओकर आत्मआविश्वाउस बढ़तैक, स्वनतंत्र रूपसँ अपन दिमाग लगएबाक आदति लगतैक।

नेन्ना सभक चित्रमे एहिसँ अपेक्षा हमरा अपराध बुझाइत अछि, किएक तँ एखन ई विषए पढ़एबाक मूल उद्देश्यभ, एहि विषएक प्रति ओकरा मोनमे आत्मी,यता उत्पनन्न करब छैक, ओकरा चित्रकार बनेनाइ नञि। ई तँ काले तए करतै जे ओ चित्रकार बनत की नञि। एहि विषएक माध्य,मसँ ओकरामे खाली नवनिर्माणक क्षमताक प्रति आस्थाै जागृत कएल जा सकैत अछि।

एक गोट ठोस उदाहरणसँ एहि संकल्पनाकें आर बेसी स्पिष्ट, कएल जा सकैत अछि। साधारण रूपसँ जहन नेन्ना सभकेँ मुर्गीक चित्र बनेबाक लेल कहल जाइत छैक तँ ओ मुर्गीक पेटमे अन्डाै सेहो देखबैत छै। आब हम सभ तथाकथित संस्कारसँ ग्रस्तब लोक जहन ई चित्र देखैत छी, तँ गुम भऽ जाइत छी। जे केहन मतसुन्न नेन्ना अछि ई ? मुर्गीक पेटमहुक अन्डा कतऽ सँ देख लेलक ई ? बस लगलहुँ ओकरा हूथऽ ... तरह-तरहसँ ओहि महक गलती बुझाबऽ। चीजक ‘असलियत’ बुझने, लगलहुँ ओकरा ‘असली’ चीजक अर्थ बुझाबऽ।

असलियत ई अछि जे आठ-दस साल धरि नेन्ना सभकें यथार्थ दृष्टि प्राकृतिक रूपसँ भेटल रहैत छैक। एकरा दोसर शब्देमे ‘एक्सर रे’ दृष्टि सेहो कहि सकैत छिऐक। प्रत्येकक वस्तुसकें देखबाक ओकर अपन दृष्टिकोण होइत छैक। वस्तु कें आर-पार ओ देख सकैत अछि। मुदा हमरा सभक दृष्टिमे ओकर एहि दृष्टिकें कोनो मोजरे नञि। हम सभ सदखनि अपन तथाकथित वयस्कर (!) संस्कामरित दृष्टिकोणसँ सभ चीजकें नपबाक अभ्य स्त छी। तैं ओकर यथार्थवादी दृष्टिकोणकेँ पढबामे हम सभ सक्षम होइत छी।

ई रहने हमरा आओर तँ बुझितिऐक जे नेन्ना जहन मुर्गीक आङ्गिक विशेषताक बारेमे ख्या।ल करैत छैक तँ ओकर यथार्थवादी दृष्टिकोण इएह कहैत छैक जे मुर्गी अन्डाी दैत छै। ई सोचिते ओकर मोन कहैत छै, एकर माने कतहु अन्डाट जमा हेतैक। तुरत ओकर स्म्रण ओकरा मदद करक वास्ते हाजिर भऽ जाइत छैक। माएसँ सुनने अछि, मुँहसँ खाएल अन्न पेटमे चलि जाइत छैक। माने पेटमे जमा होएबाक जगह छैक। ओ पेटमे अन्डाा देखा दैत छैक। एहि प्रक्रियामे ओ गलत कोना आ कतऽ भेल? रहल वैज्ञानिक सत्य ताक गप्पक। तँ जेना-जेना ओकर उम्र बढतैक, उपरका दर्जामे ओ जाएत, ओकरा ईहो स्पखष्ट भऽ जेतैक। एखनि तँ शिक्षकक उद्देश्यप ई होबाक चाही जे ओ निडरतासँ अपना आपकें व्यनक्त करबामे सक्षम हुअए। हमरा बुझने अपन कल्प ना लादि कऽ शिक्षक आ गार्जियन सभ ओकर प्राकृतिक यथार्थकें, तार्किक दृष्टिकोणकें, ओकर स्म रणशक्तिक विकासकें कुंठित करबामे लागल छथि।

सभाक उपसंहार करैत हम एतेक अवश्यद कहलियन्हि, जे जाहि दिन नेन्ना सभक चित्रमे अपने सभ दखल देब बन्न कऽ देबन्हि, ओही दिनसँ नेन्ना सभक मानसिक विकास शुरू भऽ जेतैक।



दुइये बरखमे मास्टहरीसँ हमर मोन उपटि गेल। नोकरी छोडि देलहुँ। मुदा ई भाव सदिखन बनल रहल जे हम स्कूरल नञि, अपन सिखबाक प्रयोगशाला छोडि़ रहल छी। मुदा ईहो स्थिति बहुत दिन धरि नञि रहल। पुरना स्कू लक एक गोट स्टासफ हमर अभित्र छलाह। एकदिन हमरा अचक्केछ भेट गेलाह। कहऽ लगलाह जे एक गोट शिक्षक एक गोट झुग्गीस बस्तीअमे स्कूनल खोलि रहल छथि। ओकर विशेषता ई अछि जे ओहि स्कू लमे ओ एहने विद्यार्थीकेँ एडमिशन देबऽ चाहैत छथि जकरा कोनो आन स्कूरलमे एडमिशन नहि भेटैत छै।

गप्प वास्तमवमे ध्याान देबऽ योग्यच रहैक। एहन स्कू ल खोलबाक हेतु तेहन ध्येतयवादी शिक्षक सभक आवश्यटकता हेतैक। अपन अभिन्नक मंतव्यह बुझबामे हमरा कनियो भाङ्गठ नहि भेल। मुदा हमरा एकहि नोकरीमे ई बुझबामे आबि गेल छल जे मास्टमरीमे जाहि तरहक संयम, स्थैभर्य आ धैर्यक आवश्यीकता होइत छैक, हमरामे ओकर लेशो मात्र नञि अछि। हुनका तत्कामल हम कोनो वचन नञि देलियन्हि। असलमे हम फेरसँ ओहि रुटीनमे फँसऽ नहि चाहैत छलहुँ। मुदा ओ अपनहिसँ हमर नामक सिफारिश कऽ देलन्हि। किछुए दिनमे हमरा ओहि मुख्याध्याापकजीक समाद भेटि गेल। ई १९८१-८२ क गप्पक अछि।

एक गोट शिष्टातचारक धर्म बुझि हम हुनकासँ भेंट करबाक निश्चकय कएल। मुदा हुनक कथा-वार्तासँ हम बड्ड प्रभावित भेलहुँ। ओहो हमर प्रतिक्रिया स्वसरूप टिप्प्णीसँ प्रभावित बुझएलाह। हम ट्रायल बेसिसपर किछु दिनक हेतु हुनकर ऑफर स्वीोकार करबाक निश्चेय केलहुँ। एहिबेर हमर नियुक्ति माध्यहमिक दर्जा (पँचमा सँ दसमा दर्जा) हेतु भेल रहए। झुग्गीन बस्तीेक ओहि स्कूयलमे सभ तरहक अपराध बेरोकटोक चलै छल। दारू बनेनाइ, बेचनाइ, पिनाइ आ जूआ खेलेनाइ तँ बड्ड साधारण गप्प्।

बस्तीइक स्वाबभाविक अस्वपच्छखतासँ पसरल दुर्गन्धि आ दारूक गंधसँ स्कूहलमे नाक नञि देल जाइ। स्कूओलक खिड़कीक निच्चाी जुआक दाँव लगै। ओ तँ धन्य कही मुख्याध्याुपकजीक जे ओ निडरतासँ एहिसभ सँ निपटैत छलाह। लाठी लऽ कऽ खिहारि-खिहारि कऽ ओकरा सभकेँ भगबथि। आ स्कूकलमे ओकरे सभक बेटा-बेटीकें पढ़एबाक भार उठाबथि। बेरोजगार युवक सभ महिला शिक्षिका सभकें बड्ड उछन्नरि दै। जान मुट्ठीमे लऽ कऽ सभ व्यावहार चलैक, किएक तँ कखन ककरासँ उट्ठा-बज्जारि भऽ जाए, एकर कोनो गैरेंटी नञि।

अनुकूल परिस्थितिमे कोनो काजकें सफल बनेनाइ कोनो विशेष गप्पए नञि। मुदा सभ तरहसँ परिस्थितिक प्रतिकूलतामे कोनो काजकें सफल बनेनाइ एकटा उपलब्धिये कहल जा सकैत अछि। आ सेहो शिक्षा जेकाँ एक गोट गंभीर तथा जिम्मेंदारीबला क्षेत्रमे। मुख्याजध्या।पकजीक एहि साहसकें एक तरहें तपस्ये कहल जएबाक चाही। बस इएह एक गोट बात छल जाहि सँ हम हुनका दिसि आकर्षित भेलहुँ। एक गोट भित्र तरहक, शिक्षाक असली बेगरताबला नेन्ना सभक संग साथक अनुभव।

स्कू लक टाइम-टेबुलमे ‘चित्रकला’ एकतरहें जगह भरऽ बला (Filter) विषयक तौरपर लेल जाइत अछि। टाइम-टेबुलमे सभसँ अग्रिम स्थागन पाबऽ बला विषए होइत अछि गणित (हिसाब), दोसर मान विज्ञानक, तेसर मान देल जाइत अछि भाषाकें, ताहूमे अंग्रेजीक स्थावन प्रथम, तहन मातृभाषा, तकरा बाद द्वितीय भाषा। चारिम स्थादनपर इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रनकें कोनहुना फिट कऽ देल जाइत छैक। तहन अबैत छैक नम्बभर पॉलिसी मैटरबला विषए सभक, जेना कार्यानुभव, हस्ततकला, चित्रकला, पी.टी., जकरा ‘खेल’ क नामपर शहीद कऽ देल जाइत छैक। सप्ता्हमे एक-दू बेर सांस्कृ्तिक कार्यक नामपर अनेक तरहक छूटल-छिरियाएल विषएसँ छुतिका छोड़ा लेल जाइत छैक।
अइ कथापर गौर केलासँ शिक्षाक दर्जा आ ओहिसँ होबऽबला परिणामक अंदाज अ‍ाबि सकैत अछि। आटा पीसऽबला मशीनकें देखियौ। ओकर मुँहमे गहूम अथवा आन कोनो अनाज उझील देल जाइत छैक। आ किछुए कालमे दोसर दिसिसँ पिसाए आटा बहरा जाइत छैक। आजुक शिक्षा-पद्धतिकें देखिकऽ हमरा ई स्कूपलो सभ विद्यार्थी बनाबऽ बला बड़का-बड़का मशीने बुझाए लगैत अछि, जाहिमे प्रत्येमक वर्ष विद्याक अर्थी उठाओल जाइत अछि।
त्रुटि दृष्टिकोण (Vision) मे नञि, त्रुटि कार्यान्व्यन (Execution) मे अछि। प्रत्येपक विषयक अपन किछु विशिष्टदता छैक। समय आ स्थाहनक मर्याद अछि। तैँ सम्प्रुति मात्र किछु पॉलिसी मैटरबला विषएक सन्दअर्भमे हम अपन विचार राखब। असलमे एहि सभ विषएकें दू गोट श्रेणीमे राखल जा सकैत अछि। दिमागमे तनाव पैदा करऽ बला विषए आ दिमागी तनावकें ढील (Relax) करऽ बला विषय।
मुख्यक विषए सभ कोनो ने कोनो सिद्धान्त(क व्यामकरणक ज्ञान दैत छैक। एहि तरहक विषए सभमे शरीर स्थिर रहैत छैक मुदा दिमागी एकाग्रता, सतर्कता, आ जागरूकता अपन चरमपर, जाहिसँ दिमागपर दबाव बनैत छैक। दोसर दिस हस्तगकला, चित्रकला, संगीत, कार्यानुभव, पी.टी. (खेल) एहि तरहक विषए सभमे एक तरहक नवनिर्मितिक आनन्दक भेटैत छैक। संपूर्ण शरीरमे भित्र-भित्र तरहक लय, ताल आ भंगिमामे कृतिशील रहलासँ मनोरंजनक अनुभति होइत छैक। एहिसँ तनाव आ दबावकें ढील होमएमे मदति भेटैत छैक।

तें नेन्ना सभक टाइम-टेबुलमे एहि दूनू तरहक विषएकें एहि तरहें बान्हतल जएबाक चाही, जाहिसँ समतोल (Balance) बनल रहै। जतेक सम्भनव भऽ सकै, तनाव उत्पेत्र करऽबला विषएक बाद, तनावकेँ मुक्त करबाक वास्तेभ दोसर तरहक विषएक रचना करबाक चाही। जाहि सँ अगिलुका विषएक तनाव झेलबाक क्षमता उत्पेत्र भऽ सकए। अइमे मेहनति छैक, दिमागी छैक। योजनाबद्ध तरीकासँ काज करबाक परीक्षा छैक। के करत ? मुदा एहि विषए सभक योग्यक नियोजनसँ की चमकाजन र भऽ सकैत छैक तकर प्रत्याक्ष अनुभव हमरा एहि स्कूभलमे कएल अपन प्रयोगसँ भेल।

जाहि तरहक वातावरणसँ ई स्कूदल घेराएल छल तकर वर्णन तँ ऊपर केनहे छी। एहन वातावरणमे के टिकए ? तें शिक्षक सभक कमी सदिखन बनल रहैक। कोटा पद्धतिसँ शिक्षकक नियुक्ति, तकरामे आर अड़चनि पैदा करए। बहुत रास विषएक शिक्षके नहि भेटै। आपसमे कहुना कऽ ऐडजस्टक करैत विषए सभ पढ़ाअ‍ोल जाइ। हमरो कोनो ने कोनो शिक्षकक क्षतिपूर्ति करबाक वास्ते बेगरतू कक्षामे पठा देल जाए। हमहूँ एकरा एक गोट मौका बूझि कऽ टाइम-टेबुलपर देल विषए पढाबऽ लागी। कतहु अंग्रेजी तँ कतहु मराठी, कतहु हिन्दी तँ कतहु आन कोनो विषए।

ताबत ए.टी.डी. कएलाक बाद हम रुपारेल कॉलेजसँ बी.ए. कऽ लेने रही। थिएटर डिप्लोेमा चलि रहल छल। तैं पँचमासँ दसमा धरिक नेन्ना सभकें विषए पढ़ेनाइ ततेक कठिन नञि बुझाए। हम बी.ए. अर्थशास्त्रए लऽ कएने रही। तें दसमा वर्गमे अर्थशास्त्र पढ़एबाक जिम्मान हमरे दऽ देल गेल रहए। नियामनुसार ई ठीक नञि छल। किऐक तँ हमर नियुक्ति रहए स्पेंशल शिक्षकक रूपमे। मुख्या विषए पढ़एबाक हेतु हम प्रशिक्षित नञि रही। मुदा मुख्यानध्या्पको मजबूर छलाह। दोसर कोनो उपाये नञि रहनि।

अहिना एकदिन हमरा दिमागमे एक गोट बात आएल। जे एकहि कक्षामे एक गोट विद्यार्थी प्रथम अबैत छैक। आ ओकरे बगलमे बैसऽबला फेल भऽ जाइत छैक, से किएक ? दोसर बात जे फेल विद्यार्थियो कोनो विषएमे बढिञाँ अंक आनैत अछि तँ कोनोमे खराप, से किएक ? जखन कि कक्षा, शिक्षक, समए सभ एके रंगक होइत छैक। किछु कारण तँ अवश्येअ हेतैक।

विचार केला सन्ताा ई बुझाएल जे जाहि विषएमे ओ बेसी अंक आनैत अछि ओहिमे अवश्येथ एहन किछु गप्प, छैक जे ओकरा पसिन्न छैक। तें ओहि विषएमे ओकर मोन अधिक रमै‍त छैक। दोसर विषएमे ठीक एकर उल्टाे हेतैक। यदि ओहि विशिष्टे विषएमे सँ ओकर पसीन (Interest) केँ ताकि लेल जाए तँ दोसर विषएमे ओकर ओहि पसीनकें पैदा कऽ कऽ परिणाम बदलल जा सकैत अछि की नहि ?

हम एहि दिशामे प्रयत्न करबाक निश्चदए केलहुँ। ओहि समएमे प्रत्येrक कक्षाकें विद्यार्थी-संख्याेक अनुसार ‘अ’-‘ब’-‘क’-‘ड’-‘ई’ ...एहि तरहेँ भिन्न-भिन्न विभागक संरचना कएल जाए। एहि व्यअवस्थाममे ‘अ’-‘ब’ मे बढिञाँ, पास होबऽ बला विद्यार्थी आ ओकरा बादक दर्जामे सभ भुसकौल, फेल होबऽबला विद्यार्थी सभ राखल जाइ। आब अइ तरहक भिन्न-भिनाऊज करबाक अनुमति नञि छैक। मिझ्झर कऽ बैसाएल जाइत छैक। तँ हम आठमा ‘ड’ क चारि गोट विद्यार्थीकेँ हेरि ओकरा सभकें दत्तक लेबाक विचार कएलहुँ। माने एहि चारि गोट विद्यार्थीक परीक्षा-परिणाममे परिवर्तन अनबाक दृष्टिसँ हम ओकरा सभक मार्गदर्शन करबाक जिम्माए उठा लेलहुँ।

विद्यार्थी सभक मानसिकताकें परखऽ लेल हम चित्रकलाकें आधार बनाओल। हमरा सफलतो दृष्टिगोचार होमए लागल। एहि प्रयोगक पराकाष्ठापमे हमरा आश्चार्यजनक गप्पम सभक पता लागल। पँचमा दर्जाक एक गोट विद्यार्थी हमरा एहेन भेटल, जकरा कोनो चित्र बनाबऽ कहिऐक तँ ओ अपन चित्रकलाक कॉपी ठाढ़े (Vertical) अवस्थामे पकड़ैक। पहिने तँ एहि बातकें हम कोनो गम्भीचरतासँ नहि लऽ पेलहुँ। मुदा जहन एकर पुनरावृत्ति होमए लगलैक तखन हमर ध्या न एहि दिसि गेल। तकरा बाद तँ हम जानि-बूझि कऽ ओकर प्रत्येरक कृतिकें अपन अध्यमयनक (Study) विषए बना लेलहुँ।
ओकर रचना, आकृतिक बनावट, रंगक चुनाव, रंगबाक पद्धति... ओकर प्रत्ये क कृतिकें कखनो हम अलग (Isolate) कऽ कऽ देखिऐक तँ कखनो आन विद्यार्थी सभक तुलनामे। ई क्रम बहुत दिन धरि चलैत रहलैक। एकर चरम आबि गेलै ओहि दिन, जहिया हम विषए देने रहिऐक ‘हमर परिवार’ (My family) । ओकर ई चित्र जेना भक दऽ हमर आँखि फोलि देलक। एहि चित्रसँ जाहि तरहक निष्क।र्ष निकलल ओहिकें ठीकसँ बुझबा लेल सर्वप्रथम ओकर चित्रक बनावटकेँ ठीकसँ बूझए पड़त।

सभसँ पहिने ओकरा द्वारा कागजकें ठाढ़ कऽ कऽ पकड़बाक पाछाँक रहस्यन बूझि ली। कॉपी ठढ़का आयतक आकार लऽ लैत छैक। जाहिमे चौड़ाइ कम आ लम्बापइ बेसी होइत छैक। एहिसँ ओ ‘जगहक संकोच’ दिसि हमर सभक ध्याान आकृष्टा करऽ चाहैत छल। छोट जगह ओकर नियति बनि गेल छलैक। स्थाचनक ई अभाव ओकरा दिमागपर एतेक हाबी छलैक जे ओ एहिसँ बाहर सोचिये नहि सकैत छल।

आब ओकर चित्रक संरचनाक (Construction) विषएमे। कागचक भीतर दिसि चारूकात अंदाजसँ एक-दू इन्चकक बॉर्डर छोडि़ कऽ ओ रेघ खिचने छल। जेना ठाढ़ आयताकार कागजक भीतर एक गोट आर ठाढ़ आयत। चित्रक परिपूर्णतामे ई डायनिंग टेबुल जकॉं देखाइत छल। डायनिंग टेबुलक छवि (Image) ओकरा लेल आइ-काल्हुमक सिनेमा आ टीभी प्रोग्रामक देन छलैक, ई बूझल जा सकैत अछि।

टेबुलक उपरका हिस्सा्मे दू गोट अल्प वयी नेन्नाक बीचमे एक गोट वयस्कू स्त्री केँ चित्रित कएल गेल रहैक। ई सम्भ वत: ओकर माए आ भाएक छवि छलैक। आ ओकरा सभक आगूमे थारी, बाटी, आ गिलास सदृश किछु समान सभ। निचलुका हिस्साओमे केवल एक गोट नेन्नाक आकार। सम्भमवत: ओ स्व यं। ओकरो आगूमे ओहिना किछु बासन सभ। टेबुलक बिचला पूरा हिस्साल खाली।

रंगक नामपर जे रंग भेटलैक ओकरा ओ पोछि-पाछि देने रहैक। एहिमे प्रत्ये क वस्तुीक प्रति ओकर उदासीनता प्रकट भऽ रहल छलैक। मुदा ओहूमे गौर करबाक गप्पप ई जे लाल रंगक उपयोग प्रमाणमे किछु बेशिये बुझाइत रहैक। ई ओकर मरखाहा (Aggresive) प्रवृत्तिक निदर्शक छलै। आर किछु छोट-मोट विशेषता (Details) भऽ सकैत अछि जे हम बिसरि गेल होएब। मुदा कुल मिला कऽ ओहि नेन्नाक मानसिकता बुझबाक दृष्टिसँ ओकरा द्वारा चित्रित दृश्य क एतबा वर्णन काफी अछि।

ओहि चित्रकें लऽ कऽ एक गोट कला शिक्षकक रूपमे तथा प्रत्ये क कृतिक पाछाँक सत्य क सन्धातनमे रुचि राखऽबला एक गोट विद्यार्थीक रूपमे हमरा अपना जे बुझाएल ताहि दिसि देखी। चित्रक विषए रहैक हमर परिवार (My family)। ई चित्रित करबाक वास्तेि विद्यार्थी द्वारा ‘खाइक बेर’ क दृश्यनक चुनाव करब, हमरा जनितब ओहि नेन्नाक जागृत बुद्धिकेँ देखाबैत छल। किएक तँ मुम्बिइ सन शहरमे साधारण रूपसँ इएह ओ बेर होइत अछि, जाहिमे परिवारक सभ सदस्यिक एक संगे बैसब संभावित छैक। वास्तएवमे किओ बैसैत छैक कि नञि ई आन गप्प, अछि। आन नेन्ना सभमे किओ एकरा लेल ‘बगीचा’ क चुनाव कएने छल, तँ किओ कोनो समारम्भगक। एहि सभ विभिन्ना दृश्य क चुनावक पाछाँ सम्बान्धित पारिवारिक स्थितिकें लऽ कऽ बनल मानसिकताक छाप स्प ष्टस रूपसँ बुझाइत छलैक।
आब चित्रक रचनाक मादे। डायनिंग टेबुलक एक छोरपर बनल दू गोट नेन्नाक बीचमे बैसल स्त्री् तथा दोसर छोरपर चित्रित एकसरि नेन्ना। ई पारिवारिक समबन्धूमे आएल कोनो तरहक दूरी दिसि इंगित करैत अछि। सभसँ चौंकाबऽबला गप्पन तँ ई छल जे एहि चित्रमे वयस्के पुरुषक रूपमे ककरो चित्रित नहि कएल गेल रहैक। हमरा बुझने ई बात परिवारसँ गाएब पिताक अस्तित्वेक सम्बुन्धिमे छल। टेबुलक दोसर कोन्टाा महक एक गोट नेन्नाक आकारक माध्यवमसँ ओ ककरो एकसरिपन (Loneliness) देखा रहल छल। साइत परिवार-समूहसँ दुराएल नेनपन!

कोनो ठोस निर्णयपर पहुँचबाक पहिने विचार कएलहुँ जे ओहि विद्यार्थीसँ एहि सम्ब)न्ध मे गप्पो कएल जाए। ओकरा अपन विश्वापसपात्र बनएबाक दृष्टिसँ प्रयत्नज शुरू कएलहुँ। किछुए दिनमे ओ बधि गेल। तकरा बाद फुसिए आहे-माहे करैत, ओकरा पोल्हार-पोल्हाह कऽ जाहिसँ ओकरा कोनो तरहक शंका नञि होइ, ई ख्यााल रखैत ओकर दिन क्रम, घरक वातावरण, माता-पिता, भाइ-बहिन इत्याञदि जीवन सम्बखन्धीा बातक लेबऽ लगलहुँ। गप्प करिते सभ चीज फरिछा गेल। दुर्भाग्यरसँ हमर कयास ठीके रहए।

आब ओकर बापसँ गप्पत करब हमरा बड्ड आवश्य्क बुझाए लागल। दू-तीन बेरुक समादक बाद ओ भेंट करऽ आएल। किछु परिचय-पात्र भेलाक पश्चा्त जतबे गम्भी रतासँ हम ओकर बेटाक बारेमे चिन्ता व्यदक्त करैत गेलहुँ, ओतबे दृढ़तासँ ओ एहि गप्प‍क खंडन करैत रहल। ओकरा मोने हम अनेरे एहि गप्पिकें गंभीर बुझि रहल छलहुँ। हारि कऽ हम ओहि विषएकें छोड़ि ओकर नोकरीक विषएमे, ओकर परिवारक विषएमे, ओकर दिनचर्याक विषएमे गप्प करऽ लगलहुँ।

बेटा नान्हिएटा रहैक, जखन ओकर पहिल स्त्रीर स्व,र्ग सिधारि गेल रहैक। टुअर नेन्नाकें माएक कमी नञि बुझाइ, तैं ओ दोसर बियाह कऽ लेलक। नव माउगिसँ दू गोट आर नेन्ना, एक गोट बेटा, एक गोट बेटी। घरमे कमाए जोगरि वएह एके टा बेकति। भोरे काजपर चलि जाए तँ आबए साँझखनि। ई सभ बढिञाँसँ चलि रहल रहैक, एक तँ दोसर माउगि अपन नेन्ना आ ओकर पहिल नेन्नामे कहिओ कोनो फरक नहि केलकै। ई छल एहि दिसि देखबाक ओकर दृष्टिकोण।

तैयो हम अपना मर्यादामे ओकरा हृदए धरि एतेक बात पहुँचा देलाइक जे एहि बेटाक बारेमे जतबा ओ बूझैत अछि ओतबा सभ किछु ठीक ठाक नञि छै। तैं तरहें आस-पड़ोससँ, दोस्तम महीमसँ, आन कोनो स्रोतसँ एहि गप्पओक वास्त विकताक जतेक जल्दीप पता लगा लेत, ओकरा हेतु ओतबे योग्ये हेतैक। खैर, बात आएल-गेल भऽ गेलैक। हमहूँ रुटीनमे लागि गेलहुँ।

एकदिन अचानक शिक्षक-कक्षमे ओ हाजिर भऽ गेल। नमस्का र पातीक पश्चाात हम अपन व्य्क्तिगत काजमे लागि गेलहुँ। हमरा भेल अपन कोनो काजसँ ओ आएल होएत। मुदा जहन बड़ी काल धरि बिना कोनो एहन विशेष व्युवहारक मूड़ी खसौने बैसल देखलिऐक तँ शंका भेल। औपचारिकतावश पूछि देलिऐक जे कोनो विशेष कार्यसँ आएल छह की विद्यर्थीक रुटीन रिपोर्ट लेबाक वास्तेि। हालाँकि अहि बातक संभावना कम्मे रहैक। कनेक कालक दुबिधाक बाद ओ कहलक जे अहींसँ भेंट करबाक अछि। अपन देह-भंगिमासँ ओ बड्ड डिस्ट र्ब्डक बुझाएल। किछु संकोचमे सेहो रहए। हमरा कने-मने ई बुझबामे आबि गेल जे हम जे ओकर बेटाक मादे कहने रहिऐक, ओही सम्बमन्ध मे कोनो हेतैक। ओकरा सहज करबामे कनेक बेर तँ लागल मुदा हमरा लऽ कऽ सभ तरहें आरश्वहस्त। भेलाक बाद गरम बालुमे फुटैत मकइक लाबा जकाँ ओ भड़भड़ाए लागल।

संपूर्ण रामायणक सार ई जे हम विद्यार्थीक चित्रकलाक आधारपर जे गप्पम ओकरा कहने रहिऐक तकर वास्त्विकता ओकरा समक्ष आबि गेल रहैक। हम जाहि शंकाक बीज ओकरा हृदएमे रो‍पि देने रहिऐक ओ राति-दिन ओकरा खिहारऽ लगलैक। ओहिसँ पाछाँ छोड़एबाक हेतु ओ एहि बातक तहमे जएबाक निश्चऐय केलक, जाहिसँ हमर सिद्धान्तहक झूठ वा सत्यु सामने आबि गेलापर ओकरा कमसँ कम एहि दुबिधासँ छुटकारा तँ भेटिये जेतैक। मुदा भेलै उन्टात। सत्य‍क ई चेहरा ओकर कल्प नोसँ अधिक भयंकर छलै।

नव पत्नी,कें अपन संतान भेलाक बादक परिस्थितिमे भेल बदलावसँ ओ पूर्णरूपेण अनभिज्ञ छल। भोरूक गेल नोकरीसँ साँझ धरि घुरए। बेटा किछु कहबो करैक तँ नेन्ना सभक गप्पल बूझि कऽ बातकें टारि जाए। पत्नीसयो हँसी-मजाकक आधार लऽ कऽ गप्प्क गंभीरताकें स्पिष्ट नहि होमऽ दैक। पतिक परोक्षमे ओहि नेन्नासँ ओकर व्यवहार पास-पड़ोसक लोक सभक नजरिमे सेहो आबऽ लागल रहैक। मुदा मुंबइ सन महानगरमे अनकर जीवनमे केओ जल्दी। पैसार नञि करैत अछि। ककरो एतेक फुरिसतिए कतऽ ?

केओ किछु कहियो दैक तँ पत्नीस कानि-भाखि कऽ ओहि बातकें एना घुमा देथि जे ओकरा पत्नीनक बातपर अविश्वाुस करबाक कोनो कारणें नहि रहि जाइक। हमरासँ चर्च भेलाक बाद ओ काजपर सँ कोनो ने कोनो बहन्ने औचक्केंस घर घूरऽ लागल। घरबाक व्य वहारपर दूरेसँ नजरि राखऽ लागल तँ परिणामो दे‍खाए लगलैक। लोक सभक मुँहसँ सूनल गप्प क सत्य ता दृष्टिमे आबऽ लगलैक। पहिने तँ एकाध दिनक बात बूझि कऽ अनठेलक। मुदा अनुभवक पुनरावृतिसँ ओ ठहकल।

स्कू ल छुटलाक बाद बेटा घर लौटए तँ सतमाय दरबज्जोय नञि फोलए। बेरहटिया धरि भोजन-भात निपटा कऽ दुनू नेन्नाक संग सूति रहए। आ ई दरबज्जात ठोकैत-ठोकैत कानि –बाजि कऽ भूखल-पिआसल चौकठेपर बस्तान लेने ओकर उठबाक बाट जोहैत बैसल रहि जाए। पड़ोसी सभक नजरि पड़ैक तँ ओ सभ किछु खुआ दैक। स्त्री् उठैक तँ बहन्ना बना दैक जे मोन खराप छल, आँखि लागि गेल तैं नञि बुझलिऐक। ऊपरसँ डरो देखा दैक जे बाबूकें कहबही तँ बूझि लिहें। छोट-छोट गप्पआपर लोहछा देनाइ तँ सामान्यस गप्पे रहैक।

नेन्ना नहूँ-नहूँ अपना कोश (Cell) मे घुसऽ लगलैक। ओकरा असुरक्षाक भाव घेरऽ लगलैक। नेन्ना सभक ‘अहं’ बहुत व्या पक होइत छैक। ओहि ‘अहं’ केँ नान्हियोटा धक्काग लगलासँ ओ लोहछि जाइत अछि। मुदा नेन्ना सभ लग ओहि भावनाकें, दर्दकें, व्य क्त करबाक हेतु सियान सन साधन नञि होइत छैक। योग्य शब्द संग्रह नञि होइत छैक। दोसर शब्दकमे एहि उम्रक नेन्ना सभ लग हम-अहाँ आसानीसँ बूझि सकिऐ एहि तरहक भावनाक आदात-प्रदानक कोनो स्पदष्टक भाषा विकसित नहि भेल रहैत छैक।

तैँ ओ सभ अपन भावनाकेँ प्रतीकात्मक रूपसँ व्यक्त करबाक प्रयत्न करैत देखाइत अछि। ई प्रतीकात्मकता उम्रक विभिन्न अवस्थामे भिन्न–भिन्न तरहक होइत जाइत छैक। उदाहरणार्थ, शैशवावस्थामे नेना सभ अनेकानेक तरहसँ कानि कऽ अपन भावना व्यक्त करैत छथि। आइ तँ एहि तरहक भाषाक विश्लेषण सेहो सम्भव भऽ गेल अछि। एहि भाषाकेँ ज्ञाता वा अभ्यासक, नेना सभक कानब सुनि कऽ ओहि विशिष्ट समएमे हुनक जे माँग आ समस्या छनि तकर निदान कऽ सकैत छथि। बाल्यावस्थामे अपन विरोध जतएबाक हेतु नेना सभ रूसि कऽ खेनाइ बारि कऽ अथवा कोनो आन तरहक नोकसान कऽ कऽ अपन भावनाकेँ व्यक्त करैत देखाइत अछि।

नेना सभक व्यक्त करबाक इएह प्रतीकात्मक भाषाक कड़ीमे चित्रकला एक गोट महत्वपूर्ण अध्याय अछि। तैं हमर कहब अछि, जे नेना सभक चित्रकला देखबाक नहि अपितु पढ़बाक वस्तु होइत अछि। विद्यार्थीक पिताकेँ हम जतेक बुझा सकलिऐक, बुझेलिऐक। ‘जे बेटा भीतरसँ पूर्ण रूपेण टूटि गेल अछि, ओकरा शीघ्रातिशीघ्र मूल स्वभावपर आनब अति आवश्यक अछि। सभसँ पहिने ओकरा भीतरसँ असुरक्षाक भावनाकेँ निकालब जरुरी अछि। ओकर हेराएल आत्मविश्वासकेँ पुनः प्रस्थापित केनाइ जरूरी अछि। पाछाँ छुटि गेल माता–पिताक अस्तित्वकेँ ओकरा जीवनमे सम्मिलित करब जरूरी अछि। ओकरा भीतर ई विश्वास जगेनाइ जरूरी अछि जे ओहो एहि परिवारक एक गोट महत्वपूर्ण सदस्य अछि। एहि परिवारक ओकरो आवश्यकता छैक आ आन सदस्य जकाँ ओकरो सभ तरहेँ सभपर समान हक छैक। अन्यथा एहि परिवारक व्यवहारसँ एखन धरि ओकरा भीतर जाहि तरहक शत्रुत्व (Hatred) पनपि रहल अछि, ओ आगू चलि कऽ एहन भयानक रूप लऽ सकैत अछि, जकर एखन कल्पनो नञि कएल जा सकैत अछि’।

ई सुनि कऽ ओ किछु ठहकल। पूछलक, ‘तखन आब उपाय की’? हम कहलियन्हि- ‘उपाय ई जे सभसँ पहिने अपना घरबालीकेँ बुझबिऔन्ह जे हुनकर व्यवहारक की परिणाम भऽ सकैत अछि। तकरा बाद किछु दिनक छुट्टी लऽ लिअ। एहि माहौलसँ ओकरा बाहर निकालू। सपरिवार पन्द्रह–बीस दिनक लेल कतहु बाहर घुमि आउ। मुदा एहि पूरा समएमे ओकरा ई अनुभव कराओल जाए जे आइ धरिक अनुभवसँ ओकर जे भावना बनल छलैक से गलत छै। खास कऽ सतमाएक माध्यमसँ ई सन्देश जाए। एहि यात्राक सभ कार्यक्रम ओकरा केन्द्रमे राखि कऽ बनाओल जेबाक चाही। मुदा सतभाय, सतबहीन, सतमाय तथा पिताक समान सहभागिता रहौक। ओकरा प्रति सभक व्यवहार सहज रहौक। ओहिमे कोनो तरहक देखाबा नहि रहौक। नेनाकेँ ई शंका नञि होइ जे जानि–बुझि कऽ हमरापर विशेष ध्यान देल जा रहल अछि। एहिसँ अपन पुरनका अनुभवकेँ ओ एक गोट दुःस्वप्न मानि कऽ ओहिसँ बाहर आबि जाएत। मुदा ओकर बाद एहि पुरनका अनुभवक ने चर्चा होए आ ने पुनरावृत्ति’।

ओकर किछुए दिनक बाद हम स्कूल छोड़ि देने रही। मुदा हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे ओहि विद्यार्थीक जीवनमे अवश्ये किछु सकारात्मक उद्यम भेल हेतैक, जकर पूर्ण श्रेय जएबाक चाही चित्रकला सन सृजन शील विषएकेँ जकरा माध्यमसँ ओ अपन आंतरिक भावनाकेँ व्यक्त करबामे सक्षम भऽ सकल।

'विदेह' ५१ म अंक ०१ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५१)-PART III

बालानां कृते-
१. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक प्रसंग २. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स) ३.कल्पना शरण-देवीजी

१. जगदीश प्रसाद मंडल
किछु प्रेरक प्रसंग

41 धर्मक असल रुप
श्रावस्तीक सम्राट चन्द्रचूड़ कऽ अनेक धर्म आ ओकर प्रवक्ता सभ स नीक लगाव छलनि। राज-काज स जे समय बचनि ओकरा ओ धर्मेेक अध्ययनो आ सत्संगे मे बितबथि। ई क्रम बहुत दिन स चलि अबैत छल। एक दिन ओ असमंजस मे पड़ि गेला। मोन मे एलनि जे जखन धर्म मनुक्खक कल्याण करैत अछि तखन एतेक मतभेद एक दोसर प्रवक्ता मे किऐक अछि?
अपन समस्याक समाधानक लेल ओ (चन्द्रचूड़) भगवान बुद्ध लग पहुँचलाह। ओहिठाम ओ अपन बात बुद्ध कऽ कहलखिन। चन्द्रचूड़क बात सुनि बुद्धदेव हँसै लगलखिन। सत्कारपूर्वक हुनका ठहरै ले कहि दोसर दिन भिनसरे समाधानक बचन देलखिन। एकटा हाथी आ पाँच टा आन्हर ओ जुटौलनि।
दोसर दिन भिनसरे तथागत (वुद्धदेव) चन्द्रचूड़ कऽ संग केने ओहि हाथी आ अन्हरा लग पहुँचलथि। एकाएकी ओहि अन्हरा सभ के हाथी छुबि ओकर स्वरुप बुझबै ले कहलखिन। बेराबेरी ओ अन्हरा सब हाथी कऽ छुबि-छुबि देखै लगल। जे जे अंग हाथीक छुलक ओ ओहने स्वरुप हाथीक बतबै लगलनि। क्यो खूँटा जेँका त क्यो सूप जेँका त क्यो डोरी जेँका त क्यो टीला जेँका कहलकनि।
सभक बात सुनि तथागत (बुद्ध) चन्द्रचूड़ कऽ कहलखिन- राजन!
सम्प्रदाय अपन सीमित क्षमताक अनुरुप धर्मक एकांकी व्याख्या करैत अथि। अपन-अपन मान्यताक प्रति जिद्द धऽ अपने मे सब लड़ैत छथि। जहिना एक्केटा हाथीक स्वरुप पाँचो अन्हरा पाँच रंगक कहलक तहिना धरमोक व्याख्या करैवला सभ करैत छथि। धर्म त समता सहिष्णुता उदारता आ सज्जनता मे सन्निहित अछि।
42 सौन्दर्य
संगीतकार गाल्फर्ड लग पहुँच एकटा शिष्या अपन मनक व्यथा कहै लगलनि। कुरुपताक कारणे संगीतक मंच पर पहुँचते मन मे अवै लगैत अछि जे आन लड़कीक अपेक्षा दर्शक हमरा नापसन्द कऽ हँसी उड़बैत अछि। जहि स सकपका जाइ छी। गबैक जे तैयारी केने रहै छी ओ नीक जेँका नहि गाबि पबै छी। ओइह गीत घर पर बढ़ियाँ जेँका गबै छी मुदा मंच पर पहुँचते की भऽ जाइत अछि जे हक्का-बक्का भ जाइ छी।
ओहि शिष्याक बात सुनि गाल्फर्ड एकटा नमगर-चैड़गर अयना ल आगू मे रखि गबैक विचार दैत कहलखिन- अहाँ कुरुप नहि छी जना मन मे होइ अए। गीति गौनिहारि केँ स्वरक मिठास हेबाक चाही। जकरा कुरुपता स कोनो संबंध नहि छैक। जखन भाव-विभोर भऽ गायब तखन अहाँक आकर्षण बढ़ि जायत। केयो सुनि निहार कुरुपता पर ध्यान नहि द स्वर पर ध्यान देत। जहि स मनक हीनता समाप्त भऽ जायत आ आत्म-विश्वास बढ़ि जायत।
फ्रान्सक वैह गायिका मेरी वुडनाल्ड नाम स प्रख्यात भेलीह।
43 स्तब्ध
दोसर विश्वयुद्ध समाप्त भ गेलैक। इंगोएशियन (आंग्ल-रुसी) संधि पर हस्ताक्षर करैक लेल चर्चिल मास्को अयलाह। संधि पर हस्ताक्षरो भऽ गेलैक। मास्को छोड़ै स एक दिन पहिने अनायास स्तालिन आ मोलोटोव चर्चिल लग पहुँच कहलकनि- लड़ाई-उड़ाई त बहुत भेल। नीक समझौतो भऽ गेल। काल्हि अहाँ जेबो करब तेँ आइ थोड़े मौज-मस्ती क लिअ। हमरा ऐठाम चलि भोजन करु।
स्तालिनक आग्रह सुनि चर्चिल मने-मन सोचै लगलथि जे महान् तानाशाह स्तालिन नौत देबए अयलाह आइ जरुर किछु अद्भुत वस्तु देखैक मौका भेटत। चर्चिल नौत मानि स्तालिनक संग विदा भेलाह। रास्ता मे सिपाही सब अभिावादन करनि। थोड़े दूर गेला पर एकटा पीअर रंगक दुमहला मकानक आगू मे कार रुकल। सभ केयो उतड़लथि। स्तालिनक संग चर्चिल मकानक भीतर गेला। भीतर जा चर्चिल कऽ बैसबैत स्तालिन कहलखिन- ऊपरका तल्ला मे लेनिन रहैत छलाह। ओ गुरु छथि तेँ ओहि तल्लाक उपयोग हम नहि करै छी। ओ म्युजियम बनल अछि। निच्चा मे तीनि टा कोठरी अछि एकटा मे दुनू परानी रहै छी। दोसर मे बेटी रहैत अछि आ तेसर मे पार्टी सदस्यक लेल बैठकी बनौने छी।
स्तालिनक बात सुनि चर्चिल छगुन्ता मे पड़ि गेलाह जे जाहि तानाशाहक डरे पूँजीवादी जगत थरथराइत अछि ओहि तानाशाहक रहैक व्यवस्था ऐहने छैक। मने-मन सोचैत चर्चिल गुम्म रहथि कि स्तालिन कहलकनि- थोड़े काल हमरा छुट्टी दिअ। भोजन बनबै जाइ छी।
ई सुनि चर्चिल अचंभित होइत पूछलखिन- अपने भानस करै छी? भनसिया नहि अछि?
मुस्कुराइत स्तालिन उत्तर देलखिन- नहि। अपने दुनू परानी मिलि भानस करै छी।
स्तालिनक बात सुनि चर्चिल हतप्रभ होइत कहलखिन- बड़ बढ़ियाँ। आइ घरेवाली केँ भानस करै कहिअनु। अहाँ गप-सप करु।
हम लाचार छी। पत्नी घर पर नहि छथि। ओ पाँच बजे कपड़ा मिल स औतीह।
चर्चिल स्तब्ध भऽ गेलाह।
44 एकता
एकटा पैघ भवनक निर्माण होइत छलैक। निर्माणस्थल लग एक भाग पजेबा दोसर भाग बालू तेसर लकड़ी सीमेंट चून इत्यादि जमा छल। ढ़ेरी स पजेबा बाजल- अकास ठेकल कोठा हमरे स बनत तेँ कोठाक श्रेह हमरे भेटक चाही।
पजेबाक बात सुनि सिमटी आ बालू प्रतिवाद करैत कहलकै- तोँ झूठ बजै छेँ। तोरा इ नहि बुझल छौ जे एक स दोसर पजेबाक बीच जँ हम नहि रहबौ त तू ढ़नमनाइते रहमे। संगे तोरा इहो नइ बुझल छौ जे जत्ते दूर तक तोँ जेमे तत्ते दूर तक हमहू संगे जेबौ आ तोरो स ऊपर हमही सुइत क रक्षो करबौ।
बालू आ सिमटीक बात सुनि खिड़की आ केवाड़िक लकड़ी तामसे थरथराइत कहलकै- तोरा तीनू बूते बर हेतौ त देबाल बनि जेमे मुदा बिना हमरे ने छत बनि सकमे आ ने मुह-कान चिक्कन हेतौ। जाबे हम नइ रहबौ ताबे कुत्ता-बिलाईक घर रहमे।
सब सामानक बीच कटौज चलैत छल। कारीगर चाह पीबि बीड़ी सुनगेलक। बिड़ियो पीबैत छल आ मने-मन हँसबो करैत छल। जखन भरि मन बीड़ी पीलक मूड साफ भेलै तखन तीनू कऽ चुप करैत कहलक- अगर तू सब मिलाने क लेमे तइ से की हेतौ? जाबे हम नहि इलम स तोरा सबके बनेवौ ताबे ओहिना माटि पर पड़ल रहमे। कौआ-कुकुड़ आबि-आबि गंदा करैत रहतौ।
सभक विचार सुनि निर्णय करैत भवन कहलकै- अपना-अपना जगह पर सबहक महत्व छौ। मुदा जाबे एक-दोसर स मेल क कऽ नहि रहमे तावे भवन नहि कहेमे। वहिना पजेवा सिमटी चून लकड़ी रहमे। तेँ अपन-अपन बड़प्पन छोड़ि मिलानक रास्ता पकड़ जहि स कल्याण हेतौ।
45 विधवा विवाह
राजस्थानक इतिहास मे हठी हम्मीरक विशेष स्थान अछि। ओ ऐहन जिद्दी छल जे जकरा उचित बुझैत छलैक ओ वैह करैत छल। भले ही कतबो विरोध आ निन्दा किऐक ने होय। जखन हम्मीर विआह करै जोकर भऽ गेल तखन विआहक चरचा शुरु भेल। विद्यार्थिये (छात्रे) जीवन मे हम्मीर विधवाक दुर्दशा क गहराइ स अध्ययन केने छल। पढ़ैऐक समय संकल्प क नेने छल जे हम विधवे औरत स विआह करब। हम्मीरक विआहक चरचा पसरलै। मुदा हम्मीर एकदम संकल्पित छल जे विधवे स विआह करब। कुटुम परिवार सब हम्मीर पर बिगड़ै मुदा तकर एक्को पाइ गम नहि। पंडित सभक माध्यम स परिवारबला कहबौलक जे विधवा अमंगल सूचक होइत तेँ ऐहन काज नहि करक चाही। मुदा हम्मीर ककरो बात सुनै ले तैयारे नहि।
एकटा बाल-विधवा क हम्मीर देखलक। विधवा देखि हृदय पसीज गेलै। तखने ओहि विधवा के हम्मीर कहलक- हम अहाँस विआह करब। भले ही परिवारक कतबो विरोध हुअए।
हम्मीरक बात सुनि विधवा खुशी स अह्लादित भ उठल। हम्मीर विआहक दिन तय क कुटुम्ब-परिवार आ पुरहित-पंडित केँ छोड़ि अपन संगी-साथी आ सैनिक सभ कऽ संग केने जा विआह कऽ लेलक।
जखन हम्मीर मेवाड़क शासक बनल तखन सभ विरोधी सहयोगी बनि गेलैक। पंडित सब घोषणा केलक- विधवा नास्ति अमंगलम्।
46 देशसेवाक व्रत
सुभाषचन्द्र बोस बच्चे रहथि। एक दिन राति मे माए लग स उठि निच्चा मे सुतै लगला। बेटा कऽ निच्चा मे सुतैत देखि माए पुछलखिन जे ऐना किऐक करै छी?
सुभाष जबाव देलखिन- माए! आइ स्कूल मे मास्टर साहेब कहने छेलखिन जे हमर पूर्वज ऋृषि मुनि जमीने पर सुतबो करथि आ कठिन मेहनतो करैत छलाह। हमहू ऋृषि बनव। तेँ कठिन जिनगी जीवैक अभ्यास शुरु कऽ रहल छी।
सुभाषचन्द्रक पिता जगले रहथिन। सब बात सुनि सुभाष केँ पिता कहलखिन बेटा! जमीने पर सुतब टा पर्याप्त नहि होइत। एहिक संग ज्ञानोक संचय आ मनुक्खोक सेवा आवश्यक अछि। आइ माइये लग सुति रहू जखन नमहर हैब तखन तीनू काज संगे करब।
सिर्फ शिक्षकेक बात नहि पितोक बात केँ सुभाष गिरह बान्हि लेलनि। आई. सी. एस. केलाक उपरान्त जखन नोकरीक बात सोझा मे एलनि तखन ओ (सुभाष) कहलखिन- हम जिनगीक लक्ष्य तय कऽ नेने छी। नोकरी नहि करब। मातृभूमिक सेवा करब।

47 आत्मबल
फ्रान्सक कथा थिक। रास्ता बगलक पहाड़ी पर बैसि एक गोटे अपन जुत्ता मरम्मत करबैत रहथि। एकटा ढ़ेरबा बच्चा जुत्ता मरम्मत करैत छल। ओहि बच्चाक बगए-बानि स गरीबी झलकैत रहए। मुदा आत्म-बल आ लगन मजगूत छलैक। जुत्ता मरम्मत करा ओ आदमी एक रुपैया पारिश्रमिक दऽ चलै लगल। मुदा माएक बिचार ओहिना ओहि बच्चाक हृदय मे जीबैत छल। बच्चा अपन उचित पाइ काटि बाकी घुमाबए लगल। ओ महानुभाव (जूत्ता मरम्मत करौनिहार) सब पाइ राखि लइ ले कहलक। बच्चा कहलक- हमर जतबे उचित मजूरी हैत ओतबे लेब। माए कहने छथि जे जतबे श्रम करी ओतबे मजूरी ली।
बच्चाक बात सुनि ओ गुम्म भ आहि बच्चा केँ ऊपर स निच्चा घरि निंग्हारै लगल। वैह बच्चाक फ्रान्सक राष्ट्रपति दगाल भेलाह।

48 स्वाभिमान
स्कूलक पढ़ाई समाप्त क सुभाष चन्द्र बोस कओलेज मे नाओ लिखाओल। ओहि कओलेज मे अंग्रेजीक शिक्षक अंग्र्रेज छल। नाम छलनि सी.एफ. ओटन। ओहुना सत्ता मे रहनिहारक बोली जनताक बोली स भिन्न होइत। मुदा ओटन मे आरो बेसी रोब छलैक। बात-बात मे ओ (ओटन) भारतीय जिनगीक मजाक उड़बैत। भारतवासीक जिनगीक प्रति घृणा पैदा करब ओ अपन बहादुरी बुझैत छल।
सुभाष बाबू केँ ओटनक व्यवहार पसिन्न नहि होइन। मुदा विद्यार्थी रहने मन भसोसि क रहि जाथि। एक दिन वर्गे मे सुभाष बैसल रहथि। ओटन भारतबासीक प्रति व्यंग्य करै लगल। व्यंग्य सुनि सुभाषक हृदय मे आगि धधकै लगलनि। क्रोधे ओ बेकाबू भऽ गेलाह। अपन जगह स उठि आगू बाढ़ि ओटनक गाल मे कसि कऽ दू थापर लगबैत कहलखिन- भारतवासी मे अखनो स्वाभिमान जीवैत छैक। जँ क्यो एहि बात क बिसरि चुनौती देत त एहिना मारि खायत।
49 कलंक
गामक कोन लेखा जे पचकोसीक लोक किसुन भाय केँ इमानदार बुझैत छनि। ओना ओ एकचलिया लोक छथि जबकि गामो आ परोपट्टाक लोक बहुचलिया। तेँ किसुन भाय कऽ जत्ते प्रशंसा होइत ओतवे निन्दो। ओना ज्ञान-अज्ञानक बीच सुख-दुखक बीच धरम-पापक बीच उत्थान-पतनक बीच प्रशंसा-निन्दाक बीच त पहिनहि स संघर्ष होइत आयल अछि। मुदा किसुन भाय अनकर प्रशंसा-निन्दा क ओते महत्व नहि दैत जत्ते अपन सैद्धान्ति जिनगी क। अपन जिनगीक रास्ता पर सदिखन सचेत रहैत छलथि। कैक दिन एहेन होइत जे किसुनभाइक बिचार स अलग सैाँसे गामक लोकक विचार होइत। मुदा तेकर एक्को पाइ गम हुनका नाहि। अपन रास्ता पर ओ असकरो निरभिक स ठाढ़ रहैत छलाह। मुदा बिचार बदलैक लेल तैयार नहि होथि।
जिनगीक आरंभे किसुन भाय खेती स केलनि। खेत त बहुत नहि छलनि मुदा जतबे छलनि तहि स मेहनतक बले परिबार चला लथि। बाढ़ि रौदी आ आरो-आरो प्राकृतिक आफत तथा उपद्रव जेँका मानवीय आफत क मुकावला करैक लूरि सीखि नेने छथि। तेँ आन परिवार जेँका परिवार मे चिन्तो नहि होइन। खानदानी खेती कऽ कतौ बदलि त कतौ सुधारि क करति। जहि स गामोक खेतिहर अचता-पचता क हुनकेर अनुकरण करैत।
तेसर साल टहलै ले पंजाब गेल रहथि। टहलै ले की जइतथि खेती देखै ले गेल रहति। पंजाबक खेती अगुआइल तेँ देखब जरुरी बुझि पड़लनि। पंजाव मे झिगुनिक (झिमनिक) खेती देखलखिन। मिथिला क्षेत्र मे जत्ते-जत्ते घेड़ा (नेनुआ घिया झिंगा) होइत तत्ते-तत्ते झिंगुनी देखलखिन। फड़ो अटूट। झिगुनी देख किसुन भायक मन मे गड़ि गेल। मने-मन सोचलनि जे जहि पंजाबक माटि गोंग अछि (दब माटि) तखन जब ऐहेन अछि त अपन माटि (मिथिलाक माटि) मे केहन हैत तत्काल ओ नहि सोचि सकलथि। मुदा ओ बीआ नेने ऐलाह। समय पर बीआ रोपलनि। ओहि चारि कट्ठा झिंगुनिक खेती स किसुन भाय एकटा जरसी गाय किनलनि। अपना ले ओते बीआ शुरुहेक फड़ रखि लेलनि जे छः कट्ठा खेती अगिला साल करब। धुर-झाड़ जखन झिंगुनी बेचै लगलथि तखन गामोक लोक बीआ मंगलकनि। पचता फड़क बीआ लोक सब ले रखि देलखिन अगता फड़क समय त निकलि चुकल छल।
एहि बेर गाम मे झिंगुनिक अनधुन खेती भेल। किसुन भायक उपजा ते पैछिलेसाल जेँका भेल मुदा गामक लोकक दब भ गेलै। दब होइक कारण छलैक उपजवैक ढ़ंग आ पचता बीआ। सैाँसे गामक लोक हुनका ठक कहि कलंकित करै लगलनि। कतेक गोटे सोझहो मे कहलकनि। ठकक कलंक स किसुन भाय रोगाय लगलथि। जना कते भारी कुकर्म क नेने होथि। मन मे सदिखन यैह नचैत रहनि जे- ऐना भेलै किएक?
एहि प्रश्नक उत्तर मन मे जगवे ने करनि। अनायास एक दिन हृदय स आवाज उठलनि- किसुन! तोहर दोख एक्कोपाइ नइ छह। अनेरे सोगाइल छह। तोहर कलंकक कारण बीआक मुरहन आ दौंजी गुने भेल छह।
हृदयक आवाज सुनि किसुन भाय पूछलखिन- अगर हम एहि बात क मानि अपना क निरदोस बुझिये लेब तइयो आन कोना बुझत?
-हँ तोरा ओहि दिन तक कलंकक मोटरी कपार पर रखै पड़तह जहि दिन तक ओहो सब मुरहन आ दौजीक भेद बुझि नहि जायत।
50 बुलकी
एकटा खेत बोनिहारक घरवाली नाकक बुलकी ले रुसि रहलि। बुलकी कीनैक उपाय पति क नहि। हर जोति क जखन ओ (बोनिहार) आयल त घरबाली केँ रुसल देखलक। मुह-तुह फुलौने ओसार पर बैसलि। धिया-पूता खाइ ले कनैत। बोनिहार अपन तामस क घोटि घरबाली लग जा कहलकै- किअए रुसल छी? भूखे बच्चो सब लहालोट होइ अए। आबो भानस करु।
अपन रोष झाड़ैत पत्नी बाजलि- जाबे बुलकी नइ आनि देब ताबे ने खायब आ ने किछु करब।
खुशामद करैत पति कहलकै- आइये साँझ मे हाट स कीनि क आनि देब। अखन भानस करु।
पतिक बात पत्नी मानि गेलि। बोनिहार कर्ज रुपैआ अनै ले विदा भेल। दश रुपैआ अना दर सूइद पर अनलक। रुपैआ घरवालीक हाथ कऽ द देलक। भानस भेलै। सब खेलक। बेरु पहर दुनू परानी हाट स बुलकी कीनि अनलक।
दोसरि साँझ मे बुलकी पहिर सुगिया दादी कऽ गोड़ लगै बोनिहारिन गेलि। सुगिया दादी ओसार पर बैसि पोता-पोती क नल-दमयत्नीक खिस्सा सुनबति रहति। दादी कऽ गोड़ लागि बोनिहारिन बुलकी देखै ले कहलक। बुलकी देखि दादी कहै लगलखिन- कनियाँ। सोन चानी गरीब-गुरबा घर मे नइ रहै छै। जइ घर मे पेटेक भूख नइ मेटाइ छै ओइ घर मे सिंगारक चीज कन्ना रहतै। अनेरे अपन सख करै छह। कहुना-कहुना बच्चा सब के पालह जे कुल-खानदान जीबैत रहतह।
दादीक बात सुनि बोनिहारिन आंगन आबि पति केँ कहलक- गलती भेल जे हम रुसि क अहाँ स बुलकी किनेलहुँ। अखैन रखि दइ छियै काल्हि घुमा क कर्जवालाक रुपैआ द ऐबै।


२.देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा एकतालीस

नताशा बियालीस


३.कल्पना शरण- देवीजी
देवीजी ः बिहारमे आर्थिक विकास
26 जनवरीके अवसर पर झण्डा फहरेलाके बाद देवीजी अपन भाषण प््रा ारम्भ केने छलैथ। देवीजी कहलखिन जे गणतंत्र भारतमे आर्थिक विकास हेतु पंचवर्षीय याेजना बनाआेल गेल जाहि के अन्तर्गत एक दिशामे प््रा गति पर जाेर देल गेल। जेनाकि पहिल मे कृषि दाेसर मे कल कारखाना तेसरमे कृषिये मे चाउर उत्पाादन पर जाेर चारिम मे बैकिंग तथा कृषि पर पाॅंचम मे बेराेजगारी आ गरीबी उन्मूलन तथा न्याय व्यवस्थाकसुधार पर जाेर छठममे उद्याेग विशेषतः इन्फाेरमेशन टेक्नामेलाॅजीक तीब्र गति स विकास पर जाेर सातममे तकनीकी विकास द्वारा उद्याेगक उत्पासदमे वृद्धि पर जाेर आठममे उद्याेगक आधुनिकीकरण पर जाेर नवममे राेजगार व्यवस्था गरीबी आैद्याेगिकरण आदि पर जाेर तथा दशममे सेहाे नवम जका ध्येय राखल गेल एवम दशम मे अहि सबहक अतिरिक्तन शिक्षा पर्यावरण स्वास्थ्य महिला एवम् बच्चासबहक भलाइर् पर ध्यान देल गेल अछि।अहि सबमे देशके आर्थिक विकासमे मददि भेटल अछि मुदा देवीजीके विशेष प््रा सन्नता अहि बातक छलैन जे 2008 09 स लऽ कऽ अखन तक बिहारके आर्थिक विकास बहुत नीक अछि। गणतंत्र दिवसके अवसर पर देवीजीक शब्दमे गामक बच्चा बच्चा के बिहारक विकासक सुन्दर सपना देखि रहल छल।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
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मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
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1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ इआद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दालान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ/लए कए
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए 61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे


71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करैऔ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि

181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ /करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि/नहि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)-आ (conjunction-and)/आ
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/ओ
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए(अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह(बिकारी)क प्रयोग उचित

२६५.केर/-क/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझ छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि।वक्तव्य/ वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.बाली/ (बदलएबाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ , षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ ऐछ
छथि- छ इ थ – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए।
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) –रामक आ संगे राम के/ राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ रामकेँ- राम कऽ राम के

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)

३.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक
धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)

6.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
6.1 Dr.Shefalika Verma-SUBLIME LOVE-Translated by poetess herself

6.2.NAAGPHAANS- Maithili novel written by Dr.Shefalika Verma-Translated by Dr.Rajiv Kumar Verma and Dr. Jaya Verma, Associate Professors, Delhi University, Delhi.





DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22 Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
Dr. Shefalika Verma


SUBLIME LOVE
All my extended affection

The brute world did prune?

How I panted under the unbearable

Prangs and suffocations?

My love?



The wearied wide of time
Surrounds me

My tired fingers are still

Searching the worth

In life



...And you met me today

Your soft vouschafe

Did thrive my life…

Never did I hanker after

Overpowering your heart

But would share your affection

…The thirst prevailing

Life after life.



Wish your sublime love

…To sing me soft

To tender me faith…
translated by poetess herself
NAAGPHAANS



Maithili novel written by Dr. Shefalika Verma in 2004.
Arushi Aditi Sanskriti Publication, Patna.


Translated by Dr. Rajiv Kumar Verma and Dr. Jaya Verma
Associate Professors, Delhi University, Delhi.





Standing near the transparent glass-wall of her flat, Dhara was looking at the boys and girls returning from their school. Dressed in navy blue uniform, some of them had also put on sweaters – they were divided into groups. Some girls were going alone – snow also started falling.

The frozen ice of last night had covered the black road like a white cloth and the garland of snow was sparkling like small ice sparklers – cool but pleasant and fresh air was refreshing the mind and body, the sky was overcast with black cloud as if the entire universe darkened like an unending night. Nature with all its proud movements made the whole environment enchanting.

The British children were full of mirth and joy, playing with one another. Some children were throwing ice on their friends, some others were trying to collect ice in their hands like a flower, atmosphere was agog with enjoyment. Another group arrived, one girl collected a piece of ice and pushed it inside the shirt of a boy – the boy started jumping, dancing awkwardly as the ice entered inside his shirt. After sometime the boy retaliated and started chasing the girl with ice in his hands, caught hold the girl and pushed the ice inside her school dress, the girl screamed and all the students started clapping with joy. White cheek of that girl reddened but she kept on smiling. Dhara used to witness these scenes everyday. The activities of these students were the only active and dynamic point in the peaceful, disciplined and regulated life of England. It seemed the life existed here only, the movement was there, otherwise men working as robot, leading self-centred life.

Dhara used to sit near the glass-wall of her flat at the time of Kadamba’s arrival, the speed on road made her static life active. She had always waited for Simant in the same way. The heart started crying – when she used to live with Simant, she always sat near the window waiting for him – at that time life was enjoyable and full of excitement in the midst of struggle. Dhara kept on thinking – her life was empty, only Kadamba was shining like a pole star. In England, she was with Kadamba for the last one year. He brought her to England through lots of love and persuasion.
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What are you thinking Ma? Dhara got surprised to hear Kadamba’s voice. Nothing son, what to think of? Ma, please do not tell a lie. You are blessed with vast ocean like thoughts – I know all these and he kept his hands on mothers’s shoulder with love and care. Ma, let us go to Blackpool today to celebrate the weekend. Dhara tried to say, what is the use of visiting Darkpool/ Blackpool in this dark life? Simant has made her life dark but Kadamba is her life’s polestar – in this empty sky only shining polestar, outshining many suns and moons. Kadamba was an engineer, getting a job at Wigan in U.K. He owned a small flat with a beautiful garden and a car, but had no time to stand ,stare and spare. He worked all through the day, achieving too much in little time through hard labour and perseverance.

But Simant was obsessed with worldly life and comforts and had no desire to meet his wife and son.

Let us go Ma. Time is flying. I have no words to explain the beauty of Blackpool. Besides, we will not get parking space due to weekend. She wanted to keep some eatables. Why Ma? We will take lunch in some good restaurant. Dhara hurriedly dressed up and sat in the car. Kadamba fastened her seat belt and got himself tied in the seat belt. Dhara never liked the seat belt as she felt imprisoned. Ma, if you do not tie it, I will be fined $50 by the police – Kadamba told me while driving. Road was flanked by electric poles on both sides, fitted with TV camera. Here car maintains a speed of more than one mile in a minute , Kadamba tried his best to convince Ma. Really, Kadamba has become matured.
So much of composure, so much of knowledge – and particularly so much devoted to mother. This song was being played in the car – Tum na jane kis jahan mein kho gaye, hum bhari duniya mein tanha ho gayein.

Dhara rested her head on the seat- back. She has lost everything in her life. Where is Simant? What is he doing? He indulged himself in all kind of vices and had earned money by hook or by croock. Right from beginning he was a pure businessman – running after money, ignoring himself, his family. Due to accumulated merits of past life, she was blessed with a son like Kadamba. Otherwise Dhara’s life was really pathetic.

Ma, do not worry for anything. Man does not have anything in his hands. Whatever is to happen, will happen – we all are puppets—then Kadamba spoke in a serious voice – Papa may be somewhere nearby. They were crossing through a city named Entry which was an industrial centre, with second largest race course of the world – in future we might also visit this city. Dhara also started thinking about Simant’s whereabouts, but her face remained expressionless. She told Kadamba, look, wherever he is, should be hale and hearty. I feel happy to just have vermilion in his name.

The car was speeding, but Dhara’s thoughts moved faster. Why do not you drive the car, Dhara asked Simant, resting her head on his shoulder. Look, the master never drives the

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car, but always hires a driver, it shows his status. What a status? Many persons driving their own car are bereft of status or reduced to low-born? Dhara always wanted Simant to
drive, to sing and she sitting besides dreaming seven colors of life. Simant used to spend minimum time with Dhara and if sometimes they were together in car, the presence of third person i.e. driver irritated Dhara. Right from beginning Dhara was a rebel, but not obstinate and in-disciplined – however, she never liked to carry out obsolete traditions.

Dhara once asked Simant, who is the person whom you always give valuable and costly gifts? I have earlier pardoned Tarang didi, now who is this new person in your life? You may be of a good character, but money is not everything in life.
Look Dhara, what is good, what is bad, leave this to me. You always try to impose your imaginative pictures on others.

You are right. I always tried to impose my ideals on you all. I always run after others to fulfill my ideals, but yet to meet a complete human being.
Complete human being, Simant laughed, Dhara, are you complete, do not you have weaknesses, limitations, demerits. You look for merits in others, why do not you look the same for yourself ?

The speeding car suddenly shifted from Highway to Motorways. Dhara’s thoughts also moved to the narrow lanes of motorways. It seemed Simant had really attacked her soul. Dhara always aspired for an ideal, disciplined and well-regulated life. She used to get up before sunrise which she inherited first from her parents and then from in-laws.
Getting up on time, by 7 am everybody was free from daily chores, by 9 am coming together at breakfast table, the routine followed religiously by everybody right from master to servant in the house. Dhara’s disciplined attitude was reflected everywhere in home, dustless furniture, everything well- arranged, young ones paying respect to elders and elders caring for them, nobody was allowed to cross the limits of relationship. Everybody had a place in Dhara’s large heart. She considered other’s sorrow-happiness as her own, she tried to inculcate all good values in her husband and son. She tried to upgrade their existing good quality, she considered it as divine creative work and her precious gift to mankind and society. If she saw anybody with shallow heart and baser qualities, she was not able to tolerate that person and his very presence resulted into mental agony – this was the complex mental attitude of Dhara which was both easy and difficult to comprehend.
Ultimately what happened to Dhara? Faces of Akash, Tarang, Simant, Vanya and Jalad all danced before her eyes. She considered Akash as the ideal person. I became overjoyed to see you laughing, Akash had once uttered. Laughter! Laughter has got so much of importance? Everybody heard the laughter but why only Akash was affected?

Ma, this is Blackpool – the lights there appeared as countless stars dancing on earth- they were visible from a great distance. In the darkness of night, the lights presented a beautiful picture as if all planets, stars, sun and moon have descended there. The vast sea

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appeared limitless and unending, couples in two piece clothes were moving, engrossed with themselves, unaware of the surroundings.

Nobody bothered for others. Male- Female both liberated, enjoying cigarettes, satiating each others desires – really it was altogether a different world on this earth.

Ma, this is Lancaster, the road was up and down and zig-zag. It was a hilly area. Kadamba told Dhara that car was now crossing through the Lancaster canal – both sides of canal were flanked by green fields on which the sheep were grazing. Under the canal bridge, rows of houses of uniform height and design looked distinct . They never go for white-washing ,Dhara asked. Yes,they can, but will have to seek government permission, but nobody has a spare time for these things.

When they reached Blackpool, Kadamba told Dhara, Ma, this is roller-coaster, it is the largest and the fastest train of the world. Perhaps dangerous also, Dhara asked. Kadamba laughingly replied, Ma, you have always said that life is a challenge, accept it.
Dhara smiled. She observed that many British children rode on the roller-coaster, tied the belt and when it moved ferociously at a break-neck speed, they started making loud noises, hue and cry, almost screaming. Dhara thought that the British made their children strong and independent through these activities. What a dangerous play roller-coaster was, as if people threw their children in fire to struggle, accept the challenge and fight the battle.

Sea waves were continuously returning to shore – trying to permanently get united with the shore, but constantly falling on the sands and returning back unsuccessfully. Dhara’s life perhaps resembled the sea waves. She was now all alone due to her insistence on high ideals to be followed by everybody. She felt almost tied in a Naagphaans and its venomous sting on her entire body.
TO BE CONTINUED

7.VIDEHA MAITHILI SANSKRIT TUTOR- XXV
संस्कृत शिक्षा च मैथिली शिक्षा च- २५
(मैथिली भाषा जगज्जननी सीतायाः भाषा आसीत् - हनुमन्तः उक्तवान- मानुषीमिह संस्कृताम्)
-गजेन्द्र ठक्कुरः
(आगाँ)
ACKNOWLEDGEMENTS: chamu krishna shashtry, janardan hegde, vinayak hegde, sudhishtha kumar mishra, shravan kumar, kailashpati jha, H.N.VISHWAS AND other TEACHERS.
पञ्चतिंशतितमः पाठः

शक्नोमि, शक्नुवंत्, शक्नोति, शक्नुनः इत्येतेषाम् अम्भासं कृतवेतः इदानीम् स्तेषामः पुनः स्मरणः कुर्मः अहम् देवनागरी लिपिम् कर्त्तुम् शक्नोमि।
एसः शीघ्रम् पठितुम न शक्नोति।
सः कुर्मः इत मंदम् आगच्छति।
महेशः–इत गर्जनम् करोति
अहम शुकः इव समालणम् करोमि।
इदानीम् रूचिवाचिकानाम् अभ्यासम कुर्मः।
गुरस्य रूचिः मधुरः।
शक्कराय रूचिः मधुरः।
जम्मीरफलस्य रूचिः आम्लः।
रूचिः काः।
रक्तमरीचिकायाः रूचिः कटुः।
एतत् लवणम्। तत् लवणम्
लवणस्य रूचिः लवणः।
आमलक फलानि–
आमलक्स्य रूचिः का–आम्लः
कारवेलस्य (करेला) रूचिः तिक्तः।
एता तिंतिना।
तित्रिण्याः रूचिः आम्लः।
मरीचिकायाः रूचिः कटुः।
कर्नवाचक–पुल्लिंग
रूचिवाचक–पुल्लिंग
एतम् भोजने षडरसाः भवंति तिक्तः–लवनः कटुः आम्लः मधुरः–षष्टः एकः रसः अस्ति।
वृक्षस्य तिक्तः आयुर्वेदिक वैद्याः ओषधम् कुर्वंति। क्वथनम् कुर्वंति–त्वयम् क्वथयंति।
ततः एक विध रसः भवति–तस्य रूचि कषाय भवति। एवम् षड् रसाः संति। कस्य वस्तुनः रूचिः का इति इदानीम् तदंति गतिक्ता अस्ति
आम्रफलम् आम्लम् अस्ति
अतलेहः कटुः अस्ति।
स्वादफलम् मधुरम् अस्ति।
स्वादुफलम् मधुरम् अस्ति।
चाकलेहः मधुरः अस्ति।
चाकलेहः मधुरम् अस्ति।
नारिकेलस्य जलम् मम् गृहे मधुरम् भवति।
एतत् मम् नूतनं पुस्तकम्। इतः पूर्वम् अहम् पञ्च पुस्तकानि लिखितवान्। इतः पूर्वम् पत्रिकाषु मम् बहु लेखाः प्रकाशिताः। इतः पूर्वम् अहम् आगरा नगरे आसम्। इतः पूर्वम् अहम् काशी–विश्वनाथम् न दृष्टवान्। इतः पूर्वम् अहम् कारवाहनम् न चलितवान्। इतः पूर्वम् एताद्वश वाक्यानि तदंति वा।
इतः पूर्वम् अहम् आगरा नगरे आसम्।
इतः परम् अहम् बेङ्गलुरू नगरे मतिष्यामि।
अहम् विमानेन प्रयाणम न कृतवान
विमानेन प्रयाणम् करोमि।
- इतः परम् भवती कृतः गच्छति।
- इतः परम् अहम् हिमालयम् गमिष्यामि।
- इतः परम् एषा संन्यासिनी भतितष्यति।
- इतः पूर्वम् महम् मूर्खः आसम्
- इतः परम् वोद्वानभवामि
चषकः स्क्तिः अस्ति–
चषकः पूर्णः अस्ति–
कूपी रिक्ताः अस्ति–
चषकः पूर्णाः अस्ति–
पात्रम् पूर्णम् अस्ति–
मम् उद्टम् पूर्णम् अस्ति–
1. पर्वदिने देवालयः प्ऊर्ण भवति–
2. अन्य दिनेष्य रिक्तः भवति–
पर्व दिनेष्य पूर्णः भवति
पत्रम् रिक्तम् अस्ति।
सुभाषितम्
बहूनाम् अल्पसाराणां
संहतिः कार्यसाधिका।
तृणैर्गुणत्वमापन्नेः
बध्यंते मत्तदंतिनः॥
तृणानि यद्यपि दुर्बलानि भवति–परंतु समूहरूपेण यदि वयम् तृणानाम् ग्रथनं कुर्मः–तर्हि तृणास्य एकः शक्तिः निर्मिता भवति–तृणानाम् समूहेन ग्रथेनेन एका रज्जु निर्मिता भवति। तृणनिर्मित–रज्जुमिः वयम् गजम् (मत्तम् गजमेंवव) बंधुम शक्नुमः। कारणम् ग्रथित तृणैहि शक्तिः। बलम् संपादयते। एवमेंव सामान्याः जनाः भवति ते असघटित स्थितौ अत्यतं दुर्बलाः परंतु यदि एकवारम् संघटिताः भवंति–तदा बलिष्ठाः भवंति–महत् कार्यम् साधयितुम् शक्नुवंति। संघे शक्तिः अस्ति। संघटनेन एव महत साधयितुम् शक्यते।
कथा
पूर्वम् ग्रंतिदेत नाम एकः महाराजः आसीत्। सः अत्यंतं श्रेष्ठः महाराजः इति प्रसिद्धः। यद्यपि सः उतमतया राज्यषालनांदिकम् करोति स्म–तष्य राज्ये समृद्धिः आसीत्–महाराजः उत्तमः इति कारणतः कालः एत उत्तमः आसीत्। काले काले वृष्टिः भवति स्म।प्राणिनः सुखेन वासेन कुर्वंति स्म। स्मृद्धिः बहूनि वर्षाणि–सः एवम् सुखेन राज्यम् पालितवान्। एकस्मिन् वर्षे वृष्टिः एव न आगता। केवलम् मेघाः आगच्छंति, गर्जंति, पुनः गच्छन्ति। वृष्टिः न भवति। एक वर्ष पर्यंतम् अपि वृष्टिः न भवति। परंतु महाराजः स्वकोलतः धनम् सर्वम्–धान्यम् सर्वम् अपि वितरति। दरिद्रा संति–भोक्तुन किमपि न संपादयंति–तेभ्यः सर्वेभ्यः अपि धान्यादिनम् वितरणम् करोति। एवम् दरिद्राः अपि शामकाले जीवंति। महाराजस्य औदार्यम् श्लाघ्नते जनाः। परंतु अपरस्मिन् वर्षे अपि वृष्टिः न भवंति। इदानीम् महाराजस्य कोषे धनम् धान्यम् इत्यादिकम् अधिकम् नास्ति। किंचित–प्रमाणेन वितरति। परंतु शामः अधिकः–सर्वम् शुष्कम् भवति–कृषिकानाम् कार्यम् न भवंति–धानयस्य वृद्धिः न भवति। मेघाः केवलं गर्जंति। वृष्टिम् न यच्छंति। वृक्षाः शुष्काः भवंति। प्राणिनं जलम् अप्राप्यम् भृताः भवंति। एतादश सन्निवंशे जनाः किं कुर्बंति। ते अनिवार्य वस्तु स्वीकल्प अन्यत्र गच्छंति। एवम् जनाः समूह रूपेण अन्य राज्यम् गच्छंति। महाराजस्य समीपे अपि एलु दिनेषु किमपि न भवति। पातुम वा खादितुम वा महाराजस्य एत दुः स्थितः भवति। महाराजस्य पत्नी भवति। पुत्र द्वयम् भवति। महाराजस्य पत्नी भवति। पुत्र द्वयम् भवति। पुत्रः द्वितीयः शिशुरूपेण अस्ति। तष्यापि पानार्थम् जलम् न भवति। तादृश दुःस्थितिः। महान् क्षामः। एतादृश समये महाराजः अपि राज्यगृहम् त्यजति–बहिः गच्छति। कष्टेनं एकत्र किन्चित जलम् कथंचित संपादयति। इतः परम शिशेव किंचित् जलम् ददामि, इति चिंतयति–परंतु तसमिन्नेव काले एकः कृषकायः दीनः वृद्धः आगच्छति। महाराजमेव पश्यति–महाराजः किं कुर्यात–एकत्र शिशुः अस्ति–रोदनं करोति–पिपासया–अन्यत्र दीनः कृशः–यदि न हदाति सः भृतः भवति–तदृश अस्तितौ अस्ति। महाराजस्य अनुकंपः जायते। सः सर्तम् जलम् तस्मै ददाति। दरिद्रायः कृशाय–सः पिबति–संतुष्टः भवति–परंतु तस्मितेव क्षणे सः शिशुः मुर्च्छितः भवति–तदृष्टता माता अपि मूर्च्छिता भवति। एतत् सर्वम् अपि सः दरिद्रः अपि पश्यति। दृष्टवा महाराजस्य समीपे वदति महाराजा अहम् भवतः स्थितिम् ज्ञातवान्–यद अप्लम् जलम् प्राप्तम् तदपि, दत्तम दानम् रूपेण–भवतः दानशीलता अत्यंतं श्लाघनीया अस्ति। मम् विशेष शक्तिः अस्ति–भवान् यम् कम अपि वरमू पृच्छतु–महाराजः पश्यति शिशुः मूर्च्छावष्यायाम अस्ति–पत्नी मूर्च्छावस्थायाम् अस्ति–तथापि महाराजः विशालरूपेण चिंतयति–तस्य दृष्टि एव विशाला–सः समग्र राज्यस्य चिंतम् मनसि एत आनयति। वरम् पृच्छति–अहम् राज्य न इच्छामि अहम् स्वर्गम् अपि अ इच्छामि, मोक्षम् न इच्छामि। परंतु येये प्राणितः दुह्खेन पीड़िता संति तेषाम् दुःखम् सर्वम् अपि अपगच्छतु–ते सर्वेपि सप्रक्त जीवनम् कुर्वंतु। तादृश स्थितः भवतु। इति वरम् पृच्छति।
न त्वहन कामये राज्यम् न स्वर्गम् न पुर्नभवम् कामये दुःखत प्रानाम् प्राणिनाम् अर्थिनाशनम्। एवम् श्लोक रूपेण प्रश्नम् पृच्छति, वरन् पृच्छति। सः सामान्यः मनुष्यः न आसीत्, प्रातः सः देवः एव आसीत्। एतस्य परीक्षार्थम् आगतवान् आसीत्। सः महाराजे न यत पृस्टम् सर्वम् अपि ददाति। पुनः प्राणिनः सुखेन जीवनि। तथा वृष्टिः भवति। पुनः राज्ये समृद्धि भवति। सर्वे अपि सुखेन जीतंति। तथा वृष्टिः भवति। बहिर्गताः आगच्छंति–स्तराज्यम्। एवम् महाराजः प्रजाः सर्वे अपि संतुष्टाः भवंति।
संस्कृत अनुवाद मैथिली अनुवाद अंग्रेजी अनुवाद
अत्र हस्ताङ्कनं करोतु। कृप्या, एते हस्ताक्षर करू। Please, sign here.
आगामि–सप्ताहे मां पश्यतु। कृप्या, आगूक सप्ताहमे हमरासँ मिलू। Please, see me next week.
कार्यालये भवान् कस्मिन् स्थाने नियुक्तः? कार्यालयमे अहाँक की स्थान छल। What is your designation in the office?
अहं विक्रयणविभागस्य व्यवस्थापकः अस्मि। हम व्यवस्थापक छलहुँ बैचेबला विभागमे। I am manager of the sales department.
भवान् कति दिनानां विरामं स्वीकरोति? अहाँक कतेक दिनक छुट्टी स्वीकारल गेल अछि। How many days’ leave are you taking?
प्रतिदिनं भवान् विलम्बेन आगच्छति। अहाँ प्रतिदिन देरिसँ आबए छलहुँ। You come late every day.
कार्यालयस्य समयः समाप्तः, श्र्वः आगच्छतु। कार्यालयक समय खतम भऽ गेलि अछि, कृप्या, काल्हि आबू। Office time is over, please come tomorrow.
आयकर–विभागतः पत्रम् आनीतं किम्? इन्कमटैक्सक विभागसँ पत्र आनले छलहुँ की। Have you brought the letter from the IT department?
एतस्य प्रतिलिपिं सर्वेभ्यः प्रेषयतु। सभटा कॉपीक फोटोस्टेट भेजु।
Send Xerox copy of this to all.
तत् पत्रं कदा ददाति? ई पत्र अहाँ कते दैत छलहुँ। When will you give that letter?
पञ्चनिमिषेषु कृत्वा ददामि। हम पाँच मिनटमे एकरा कऽ कए दऽ देए छलहुँ। I’ll do it in 5 minutes and give.
सः विरामं स्वीकृतवान् अस्ति। उ छुट्टी लेले छलै। He was taken leave.
तं देयादेशं वित्तकोषे निवेशितवान् किम्? अहाँ चेक बैंकमे जमा करा देलौ। की? Did you deposit that cheque in the bank?
एतद्विषये श्र्वः मां पनरपि स्मारयतु। काल्हिकेँ बारेमे हमरा बता देब। Remind me about tomorrow again.
एतेन आवेदन पत्रेण सह च्छायाचित्रमपि आवश्यकम्। एकटा फोटो ई आवेदनक साथ बड्ड जरूरी छलै। A photograph is also necessary with this application.
भवतः कृते सन्देशद्वयम् अस्ति। दूइटा सन्देश अहाँक लेल अछि। There are two messages for you.
कृपया उपविंशतु। कृप्या, स्थान ग्रहण करू। Please be seated.
तस्य स्थानपरिवर्त्तनम् अभवत्। ओकर स्थान परिवर्त्तन भऽ गेलैए। He has been transferred.
तस्याः पदोन्नतिः अभवत्। ओकर पदोन्नति भऽ गेल अछि। She has been promoted.
मंत्रिणा सह मेलनसमयः निश्चितः अभवत् किम्? ओकर मिलेकेर समय मंत्रीकेर साथ निश्चित भऽ गेलैए। Has the appointment with the minister been confirmed?
श्र्वः सर्वेषां कार्यालयसदस्यानाम् एकं मेलनं भविष्यति। सभटा कार्यालयक सदस्यक काल्हि मिलेकेर समय निश्चित अछि। There is a meeting tomorrow of all the office staff.
मेलनस्य समयः कः? सभाक की समय छलै। What is the time of the meeting?
सिन्हामहोदयः भवंतम् आहूतवान् । मि. सिन्हा अहाँक सूचना दऽ दैत। Mr. Sinha has called you.
सः कदा आगमिष्यति? काल्हि कते आबे पड़त। When will he come?
अस्तु, परिशीलयामः। ओके, अहाँक सोच ठीके अछि। Okey. Let us think over it.
सा सञ्चिका कस्य समीपे अस्ति? उ सञ्चिका ककर लग अछि। Who has that file?
आगच्छतु, चायं पिबामः। आबू, चाय लिअ (पिबू)। Come, let’s drink tea.
भोजनविरामः कदा? भोजनकेँ की समय अछि। When is the lunch time?
अस्माकम् अधिकारी शीघ्रकोपी अस्ति। हमर अधिकारी तुरंत गुस्साबेबला आदमी अछि। Our officer is short tempered.
सः बहु समयपालकः। उ बड्ड समयक पालन करए बला आदमी छलै। He is very punctual.
लेखा–परीक्षणं कदा अस्ति? लेखन आ परीक्षणक काज कतै होइछ। When is the auditing?
श्र्वः सर्वेषां कर्मचारिणां कार्यावरोधःभविष्यति। सभटाकर्मचारी काल्हि हड़तालपर जाए रहल अछि। All the workers will be on strike tomorrow.
तद्विषये अहं विस्मृतवान् एव। हम तुरंत सभटा बात बिसरि जाइत छलहुँ। I just forgot about that.
एतत् कस्य उत्तरदायित्वम्? एते ककर उत्तरदायित्व छलै। Whose responsibility is this?
भवतः कार्येण अहं संतुष्टः अस्मि। हम अहाँक कामसँ संतुष्ट छलहुँ। I am satisfied with your work.

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५.मिथिला चित्रकला/ आधुनिक चित्रकला आ चित्र Mithila Painting/ Modern Art and Photos

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६.विदेह मैथिली क्विज :
http://videhaquiz.blogspot.com/



७.विदेह मैथिली जालवृत्त एग्रीगेटर :
http://videha-aggregator.blogspot.com/



८.विदेह मैथिली साहित्य अंग्रेजीमे अनूदित :
http://madhubani-art.blogspot.com/



९.विदेहक पूर्व-रूप "भालसरिक गाछ" :
http://gajendrathakur.blogspot.com/



१०.विदेह इंडेक्स :
http://videha123.blogspot.com/



११.विदेह फाइल :
http://videha123.wordpress.com/
१२. विदेह: सदेह : पहिल तिरहुता (मिथिला़क्षर) जालवृत्त (ब्लॉग)
http://videha-sadeha.blogspot.com/

१३. विदेह:ब्रेल: मैथिली ब्रेलमे: पहिल बेर विदेह द्वारा
http://videha-braille.blogspot.com/

१४.VIDEHA"IST MAITHILI FORTNIGHTLY EJOURNAL ARCHIVE
http://videha-archive.blogspot.com/

१५. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मैथिली पोथीक आर्काइव
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१६. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऑडियो आर्काइव
http://videha-audio.blogspot.com/

१७. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका वीडियो आर्काइव
http://videha-video.blogspot.com/

१८. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मिथिला चित्रकला, आधुनिक कला आ चित्रकला
http://videha-paintings-photos.blogspot.com/

१९. मैथिल आर मिथिला (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
http://maithilaurmithila.blogspot.com/

२०.श्रुति प्रकाशन
http://www.shruti-publication.com/
२१.विदेह- सोशल नेटवर्किंग साइट
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२२.http://groups.google.com/group/videha
२३.http://groups.yahoo.com/group/VIDEHA/
२४.गजेन्द्र ठाकुर इडेoक्स
http://gajendrathakur123.blogspot.com
२५.विदेह रेडियो:मैथिली कथा-कविता आदिक पहिल पोडकास्ट साइटhttp://videha123radio.wordpress.com/

२६. नेना भुटका
http://mangan-khabas.blogspot.com/

महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७ Combined ISBN No.978-81-907729-7-6 विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइटhttp://www.shruti-publication.com/ पर।

महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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विदेह: सदेह : १ : तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:१)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर; सहायक-सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा
Details for purchase available at print-version publishers's site http://www.shruti-publication.com or you may write to shruti.publication@shruti-publication.com

"मिथिला दर्शन"

मैथिली द्विमासिक पत्रिका

अपन सब्सक्रिप्शन (भा.रु.288/- दू साल माने 12 अंक लेल
भारतमे आ ONE YEAR-(6 issues)-in Nepal INR 900/-, OVERSEAS- $25; TWO
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दर्शन"केँ देय डी.डी. द्वारा Mithila Darshan, A - 132, Lake Gardens,
Kolkata - 700 045 पतापर पठाऊ। डी.डी.क संग पत्र पठाऊ जाहिमे अपन पूर्ण
पता, टेलीफोन नं. आ ई-मेल संकेत अवश्य लिखू। प्रधान सम्पादक- नचिकेता।
कार्यकारी सम्पादक- रामलोचन ठाकुर। प्रतिष्ठाता
सम्पादक- प्रोफेसर प्रबोध नारायण सिंह आ डॉ. अणिमा सिंह। Coming
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मीडिया, समाज, राजनीति और इतिहास

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राजनीति मेरी जान : पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.300.00
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मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


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भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कविता-संग्रह



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कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
पेपरबैक संस्करण

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
मैथिली पोथी

विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क भा.रु.2100/-चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका प्रकाशन” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे भा.रु. 30/- अतिरिक्त जोड़ू।
बया, हिन्दी तिमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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अंतिका प्रकाशन
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादवमूल्य: भा.रु.१००/-
२.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलनखण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि)
खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर)
खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ)
खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण)
खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन )
खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत)- गजेन्द्र ठाकुर मूल्य भा.रु.१००/-(सामान्य) आ $४० विदेश आ पुस्तकालय हेतु।
३. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (मूल्य भा.रु.१२५/- US$ डॉलर ४०) आ पेपरबैक (भा.रु. ७५/- US$ २५/-)
४/५. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संलस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
६. गामक जिनगी (कथा संेग्रह)- जगदीश प्रसाद मंकडल): मूल्य भा.रु. ५०/- (सामान्य), $२०/- पुस्तकालय आ विदेश हेतु)
७/८/९.a.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश; b.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आ c.जीनोम मैपिंग ४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.- मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध-सम्पादन-लेखन-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा
P.S. Maithili-English Dictionary Vol.I & II ; English-Maithili Dictionary Vol.I (Price Rs.500/-per volume and $160 for overseas buyers) and Genome Mapping 450AD-2009 AD- Mithilak Panji Prabandh (Price Rs.5000/- and $1600 for overseas buyers. TIRHUTA MANUSCRIPT IMAGE DVD AVAILABLE SEPARATELY FOR RS.1000/-US$320) have currently been made available for sale.
१०.सहस्रबाढ़नि (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक)-ISBN:978-93-80538-00-6 Price Rs.100/-(for individual buyers) US$40 (Library/ Institution- India & abroad)
११.नताशा- मैथिलीक पहिल चित्र श्रृंखला- देवांशु वत्स
१२.मैथिली-अंग्रेजी वैज्ञानिक शब्दकोष आ सार्वभौमिक कोष--गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा Price Rs.1000/-(for individual buyers) US$400 (Library/ Institution- India & abroad)
13.Modern English Maithili Dictionary-Gajendra Thakur, Nagendra Kumar Jha and Panjikar Vidyanand Jha- Price Rs.1000/-(for individual buyers) US$400 (Library/ Institution- India & abroad) COMING SOON:
I.गजेन्द्र ठाकुरक शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-
१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२
खण्ड-८
(प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग
२.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास
स॒हस्र॑ शीर्षा॒
३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह
स॑हस्रजित्
४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह
शब्दशास्त्रम्
५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक
उल्कामुख
६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध
नाराशं॒खसी
७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक
जलोदीप
८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह
बाङक बङौरा
९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह
अक्षरमुष्टिका
II.जगदीश प्रसाद मं डल-
कथा-संग्रह- गामक जिनगी
नाटक- मिथिलाक बेटी
उपन्यास- मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत
III.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरन मैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल। पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
IV.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
V.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
VI.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
VII.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
VIII.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
IX.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
X. स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-
मिथिलाक इतिहास, शारान्तिधा, A survey of Maithili Literature
XI. मैथिली चित्रकथा- नीतू कुमारी
XII. मैथिली चित्रकथा- प्रीति ठाकुर
[After receiving reports and confirming it ( proof may be seen at http://www.box.net/shared/75xgdy37dr ) that Mr. Pankaj Parashar copied verbatim the article Technopolitics by Douglas Kellner (email: kellner@gseis.ucla.edu) and got it published in Hindi Magazine Pahal (email:editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in and info@deshkaal.com website: www.deshkaal.com) in his own name. The author was also involved in blackmailing using different ISP addresses and different email addresses. In the light of above we hereby ban the book "Vilambit Kaik Yug me Nibadha" by Mr. Pankaj Parashar and are withdrawing the book and blacklisting the author with immediate effect.]
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(कार्यालय प्रयोग लेल)
विदेह:सदेह:१ (तिरहुता/ देवनागरी)क अपार सफलताक बाद विदेह:सदेह:२ आ आगाँक अंक लेल वार्षिक/ द्विवार्षिक/ त्रिवार्षिक/ पंचवार्षिक/ आजीवन सद्स्यता अभियान।
ओहि बर्खमे प्रकाशित विदेह:सदेहक सभ अंक/ पुस्तिका पठाओल जाएत।
नीचाँक फॉर्म भरू:-
विदेह:सदेहक देवनागरी/ वा तिरहुताक सदस्यता चाही: देवनागरी/ तिरहुता
सदस्यता चाही: ग्राहक बनू (कूरियर/ रजिस्टर्ड डाक खर्च सहित):-
एक बर्ख(२०१०ई.)::INDIAरु.२००/-NEPAL-(INR 600), Abroad-(US$25)
दू बर्ख(२०१०-११ ई.):: INDIA रु.३५०/- NEPAL-(INR 1050), Abroad-(US$50)
तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
आजीवन(२००९ आ ओहिसँ आगाँक अंक)::रु.५०००/- NEPAL-(INR 15000), Abroad-(US$750)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)


२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रिं‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस पंषक्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- अहाँ द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोग अनुचित-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जे अपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि.....ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे हमर उपन्यास स्त्रीधनक जे विरोध कएल गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रशंुसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मे समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँक जुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी- मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल। पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो अहाँसँ आशा अछि।
विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

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