भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आधर्मशास्त्री विद्यापतिकस्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महानपुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिलालोकनिकचित्र'मिथिला रत्न'मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि।मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नवस्थापत्य, चित्र, अभिलेखआ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू'मिथिलाक खोज'
आचार्य रमानाथ झा रचनावली (पाँचखण्डमे)भारतीय भाषा संस्थानक सहयोगसँ वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित भऽगेलअछि। एहिमे स्वर्गीय रमानाथ झाक मैथिली, हिन्दी, इंग्लिश आ संस्कृतलेखनकेँएक ठाम समेटबाक प्रयास कएने छथि संकलनकर्ता-सम्पादक श्री मोहन भारद्वाज। एहिमे पहिल खण्डमे विद्यापति दोसर खण्डमे मैथिली साहित्य तेसर खण्डमे मिथिला ओ मैथिली चारिम खण्डमे विविध आ पाँचम खण्डमे संस्कृत रचना देल गेल अछि। स्वर्गीय रमानाथ झा जीक रचना सभ बड्ड दिनसँ अनुपलब्ध छल ।एहिरचनावलीक सम्पूर्ण सेट रु.५०००/- मे उपलब्ध अछि। पुस्तक प्राप्ति स्थान: वाणी प्रकाशन, ४६९५,२१-A,दरियागंज, नई दिल्ली-११०००२
६८मसगर राति दीप जरए०३ अप्रैल२०१० केँ जनकपुरमे भऽ रहल अछि, संयोजक छथि श्री राजाराम सिंह राठौर।
मैथिलीक सुपरिचित गायकहेमकान्त जीनहिरहलाह, हुनकर आत्माक शान्ति लेल ईश्वरसँ प्रार्थना।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १३ मार्च २०१०) ९६ देशक १,१९४ ठामसँ ३९,८९०गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,३१,३३२ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)-धन्यवाद पाठकगण।
मैथिली साहित्यमे जगदीश प्रसाद मंडलक पदार्पण किछु-किछु ओहिना भेल अछि जेना कहियो विवेकानन्द ठाकुरक भेल छल। जहिना विवेकानन्द ठाकुर अपन जीवनक उत्तरार्धमे बहुत बहुत आकस्मिक ढ़ंगे मैथिलीमे प्रगट भेलाह, तहिना जगदीश प्रसाद मंडल एकबैग अपन अनेक कथा आ उपन्यास लऽ कऽ उपस्थित भेल छथि। विवेकानन्द ठाकुरक काव्यमे पाठककेँ ग्रामीण परिवेशक जेहन टटका बिम्ब आ नव सुआद भेटल छलनि, जगदीश प्रसाद मंडलक कथामे ओहने टटका चित्र आ नव आस्वाद भेटतनि। दुनू रचनाकार मिथिलाक ग्राम्य-जीवन संस्कृतिसँ मोहाविष्ट छथि। दुनुक शैली वर्णनात्मक अछि।
लेकिन आगमन, विषयवस्तु, दृष्टि आ शैलीमे समानता होइतहु दुनूमे क्यो ने तँ ककरो अनुकरण कएने छथि ने एक दोसरासँ प्रभाव ग्रहण कएने छथि। दुनुक अपन स्वतंत्र लेखकीय व्यक्तित्व छनि।
ठेलाबला, रिक्शाबला, चूनवाली, इन्जीनीयर, डॉक्टर इत्यादि शीर्षकसँ लागत जेना जगदीश प्रसाद मंडल वर्ग संघर्षक कथाकार हेताह। लेकिन ओ जनवादी या प्रकृतिवादी कथाकार नहि छथि, जीवन-संघर्षक कथाकार छथि।
हुनक कथाक सन्दर्भमे जे सर्वाधिक उल्लेखनीय बात अछि से ई जे हुनक सभ कथामे औपन्यासिक विस्तार अछि। वर्तमान समएमे प्रचलित आ मान्य कथासँ हुनक कथा भिन्न अछि। हुनक कथा घटना बहुलता आ ऋजुसँ युक्त अछि।
जगदीश प्रसाद मंडल जीवनमे प्राप्य जिजीविषा, मानवीयता एवं आदर्शकेँ सुदृढ़ आ पुनर्प्रतिष्ठित करबाक उद्देश्यसँ अनुप्राणित छथि।
विनीत उत्पल
कथा
निमंत्रण
नीताक एकटा मेल सचिनक दिमागकेँ सोचैक लेल मजबूर कऽ देलकै। आजुक बाजारवादक युगमे संबंध एहने भऽ गेल छैक जे काज भेलाक बाद लोक एक-दोसराकेँ बिसरि जाइत अछि। संबंध एहन वस्तु भऽ गेल अछि जेकरा प्रयोग केलाक बाद छोड़हिमे लोक नीक बुझैत अछि। दू गोटेक अंतरंगताक मूल्य किछु नहि अछि। केकरोसँ अपनत्व मात्र स्वार्थ लेल बनाओल जाइत अछि। सचिनकेँ मोन पड़ै लागल नृत्यांगना नीताक दोस्ती आ अंतरंगता।
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ओ जूनक महिना छल जहिया पहिलुक बेर ओ नीताकेँ देखने छल। ओहि काल सचिन दिल्लीसँ ठामे दूर फरीदाबादमे काज करैत छल। ओ देशक प्रतििष्ठत एकटा अखबारमे रिपोर्टर छल। काजक संगे हुनका पढ़ै-लिखैमे बेसी मन लागैत छल। जखन ओ फरीदाबादमे छल तखन एकटा संस्था ‘वाइस ऑफ फरीदाबाद’ नामक कार्यक्रम कएने रहै जइमे नीता निर्णायक बनि आएल छल। संजोग छल जे ओहि प्रोग्रामकेँ कवर करबाले सचिन अपन संस्थान दिससँ गेल छल। प्रोग्राममे नीतासँ ओकरा नीक जेकाँ भेंट तँ नहि भेलै मुदा सचिन ओकर फोन नंबर लऽ कऽ घुरि गेल। संगे कहि देलक जे काल्हि ओ फोन करत आ एकटा छोट सन इंटरव्यू लेत। दोसर दिन जखन आफिसक मीटिंग-सिंटिंगक निपटारा कऽ सचिन नीताकेँ फोन केलक तँ नीताक खुशीक ठेकाना नहि रहलै। गपे-गपमे सचिन जानि गेल जे ओ सेहि बिहारेक अछि। दिल्लीमे काकाक संग रहैत छलीह नीता। ओ दिल्लीक कथक केंद्रसँ कथकक प्रशिक्षण लेलक अछि। संगे-संग पूरा इंटरव्यू बड नीक भेलै जे दू दिन बाद अखबारमे छपलै।
भोरे-भोर जखन सचिन सुतले छलाह तखने नीताक फोन मोबाइल पर अएलै। आँखिकेँ मिरने सचिन अपन मोबाइलपर नबका नंबर देखि कऽ अलसा गेल आ साइलेंटमे कऽ देलक। किछु काल बाद फेरसँ मोबाइल टनटनाए लागल। ताधरि हुनकर निन्न टूटि गेल छलै।
-हेलो, के...?
-हम नीता बाजैत छी।
-की, की हाल ?
-नीक अछि, आइ हमर इंटरव्यू छपल, अहाँक अखबारमे।
-हँ, से तँ अछि।
-आँय यौ, अहाँ तँ बड्ड नीक लिखैत छी।
-नहि, ओतेक नहि, जतेक अहाँ सोचैत छी।
-तखन कहियौ, दिल्ली कहिया आबि रहल छी।
नीता बाजि गेलीह।
-देखियौ, कहिया धरि आबैत छी, जहिया आएब, कहि देब। चलु हम फोन राखैत छी। एखन धरि बिछोनकेँ नहि छोड़ने छी।
-हँ, हँ, अहाँ जाऊ, फ्रेश भऽ आऊ।
-ओ.के. बाय।
-ओ.के. बाय।
ई तँ मात्र अरम्भक गप छल जकरा बाद दुनू गोटेमे राति-बिराती गप हुअए लागल। एहि बीचमे नीता किछु प्रोग्राम करबाक लेल अमेरिका गेलीह। हुनका जाइसँ पहिलुक साँझ सचिन फरीदाबादसँ दिल्ली आएल छल आ नीतासँ मंडी हाउसमे मिलल छल। मंडी हाउसमे ओहि समए वाणी प्रकाशनक एकटा किताबक दोकान छल, जाहि ठामसँ कतेको किताब ओ किनने छल। नेनेसँ सचिनकेँ पोथी किनैक शौक रहै जे एखनो धरि छलै। अमेरिका गेलापर दू दिन नीता सचिनकेँ फोन केलक। जखन नीता अमेरिकामे छल तखने सचिनकेँ अपन आफिसक नबका बॉससँ सामान्य गपपर झगड़ा भऽ गेलै। सचिन तखन किछु बाजल तँ नहि मुदा ओहि गपक पाँचम दिन ओ नोकरी छोड़ि देलक। ओ आगराक एकटा अखबार ज्वाइन कऽ लेलक। भरि ठंढी ओ सभ दिन फरीदाबादसँ पाँच घंटाक रस्ता ट्रेनसँ कऽ आगरा जाइत छल। बादमे एकटा डेरा फरीदाबादमे आ एकटा डेरा आगरामे राखलक। एहि बीच नीता अमेरिकासँ घुरि गेल छल। दुनू मोबाइल फोनसँ भोर आ साँझ एक-दोसराक हालचाल लैत छल। एक बेर तँ एहन भेल जे एक महीनाक मोबाइल फोनक बिल एत्ते अएलै जतेक सचिनक दरमाह रहै। कारण फरीदाबादमे जे मोबाइल फोन हुनका संग छल ओ आगरामे रोमिंगपर छलै। ओहिपर इनकमिंग अएलापर सेहो पाइ कटैत छलै।
दुनू युवा छल आ ओहि समएमे वैलेंटाइन डे एकटा एहन ‘डे’ बनि गेल छल जाहि दिन सभ प्रेमी एक-दोसराकेँ ‘विश’ करैत छल। संजोग छल जे तेरह तारीकक रातिमे सचिन दिल्ली आबि गेल छल, कोनो काजक लेल। ई गप नीताकेँ बुझल भऽ गेल छलै। ओ सचिनकेँ नाकोदम कऽ देलकै जे आइ अहाँ मंडी हाउसक रेस्टोरेंटमे आऊ। भोर भेलापर सचिन भेँट करबाक लेल मंडी हाउस पहुँचलाह तँ नीता पहिनेसँ ओत्तै बाट ताकैत रहै। दुनू गोटे नास्ता कऽ चाह पीबि हाय-हेलो कहि कऽ बिदा भेल। साँझ खन जखन ओ आगरामे अपन ऑफिसमे काजमे लागल छल तखने नीताक फोन अएलै आ ओ ऊकरा प्रपोज कऽ देलकै।
ओहि दिन नीता सचिनक जिनगीमे पहिल लड़की छल जेकरा ओ प्रेमक प्रस्ताव देने छल। ओकर दिमाग कनी काल लेल सुन्न भऽ गेलै जे ई की सुनि रहल छी। दोसर दिन पन्द्रह तारीख छल आ नीता ओकरा दिल्ली आबैक लेल जिद करए लागल। एखन धरि सचिनकेँ दिल्ली काटि रहल छलै आ ओ दिल्लीक नाम पर नाक-भौंह सिकुड़ैत छल। मुदा एहि गपक बाद ओकरा ताजमहलक नगरी आगरासँ विरक्ति होमए लगलै। ओ जिदिया गेल छल। दोसर दिन अपन बॉससँ छुट्टी मांगलक मुदा नहि भेटलै। ओकरा एतेक तामस उठलै जे ओ नोकरी छोड़ि कऽ दिल्ली बिदा भऽ गेल। नहि आगाँक सोचलक आ नहिये पाछाँक जे दिल्लीमे आगू की करब। खाली एकेटा गप मोनमे छलै जे आब ओकर जिनगीमे नीता आबि गेल छै, किछु ने किछु तँ कैये लेत।
दिल्ली अएलापर ओकर शुरू भऽ गेलै द्वारि-द्वारि भटकब आ घूमब आ ताकब नोकरीक नब ठिकाना। एहि बीच सचिनकेँ गोसाँइ भऽ गेलै। जहि दिन ओकर जन्म दिन छल ओही दिन ओ गोसाँइक कारण बोखारसँ जड़ि रहल छल। एहि दिन पहिलुक बेर दिल्लीक शकरपुरक डेरापर नीता ओकरा देखबा लेल आएल छलि। सचिनकेँ सभ किछु एकटा सपना सन लागैत छलै। ओहि दिन गपे-गप मे सचिन नीतासँ पुछिये देलखिन।
‘नीता, अहाँ हमरासँ दोस्ती किऐ करैले चाहै छी।’
‘अहाँमे हम एकटा किछु पाबैत छी, जे हमरा नीक लगैत अछि।’
‘सचिन, एना अहाँ किऐ बाजैत छी। जे भगवान चाहलक तँ हम अहाँक भऽ जाइब।’
‘तखन की हमर मरण होएत। एक दिस घरक लोक रहत, दोसर दिस हमर प्रेम।’
ई सुनि लागल जे नीताक देहमे जान नहि छैक। ओकर मुँह चुप रहि गेल आ ओ एकटक्कीसँ सचिनक मुँह देखए लागल। ताधरि शताब्दी ट्रेनक सीटी बाजि गेल आ दुनू गोटे एक-दोसरक गरा मिलि बिदा लेलक। जाधरि ट्रेन नई दिल्लीक एक नंबर प्लेटफार्मसँ निकलि नहि गेल ताधरि सचिन चलैत ट्रेनकेँ देखैत रहि गेल।
सत मानू तँ दुनू गोटाक बीच प्रेम तकरा बादे बढल। अमृतसर तँ नीता चलि गेलि मुदा कोनो दिन नहि बीतल होएत जाहि दिन भोर ओ रातिमे सुतएसँ पहिने फोन नहि करथि। आठ दिन बीतल, एना लागैत छल जेना आठ बरख बीति गेल छल। बारह बजे राति तँ छोड़ि दियौ चारि बजे भोर सेहो नीता फोन करैत छल। जेखनकि ओ जानैत छल जे तीन बजे सचिन आफिससँ आबैत अछि।
‘हुनका हम किछु काल पहिने कनॉट प्लेसमे छोड़ि कऽ आएल छी’
‘ओ घर कतएसँ पहुँचि गेल’
‘हम घर पहुँचि कऽ अहाँसँ गप कराबैत छी’
कहि समरेंद्र फोन काटि देलक। सचिन खून घोंटि कऽ रहि गेल। मुदा ओकरा ऑफिस जएबाक रहै से ओ चलि गेल। ऑफिस पहुंचि ओकरा मोन नहि लागलै। कनी देरीमे नीताक फोन आएल। खूब तमसाएल जे फोन उठाबै बलासँ एना किऐ बाजलिऐ। एहि गपपर सचिन आर तमसा गेल। दुनू गोटामे घोर बहस भेलै। नीता अपन घुंघरूक सप्पत खाइत रहि गेल जे ओ ओकरेसँ प्रेम करैत अछि। दूनू गोटामे ताधरि बहस होइल रहल जाधरि नीता हवाइ जहाजपर चढ़ि गेल। सचिनकेँ बेसी तामस एहि गपक छल जे समरेंद्र किए नीताकेँ छी लेल हवाइ अड्डा गेल छल। सचिनकेँ सभसँ बेसी तामस एहि गपक छल जे आगू बला लोक किए झूठ बाजैत छल। नीताक एकटा झूठ ई छल जे ओकर चाचा ओकरा एयरपोर्ट छोड़ै लेल जाएत आ गेल छल समरेंद्र। आ झूठ बाजैबला लोकक संग ओ एयरपोर्ट गेल। ओकरा मोनमे ओ गप आबि गेलै जे भोरमे नीता फोनपर करैत छल। मुखर्जीनगरमे समरेंद्र रहैत छल।
आब साफ-साफ सभ किछु सचिनकेँ बुझबामे आबै लागल।
अमेरिका गेलाक बाद आठ दिन तक नीताक कोनो फोन नहि अएल। ओहि बीच सचिनकेँ हैदराबाद जाए पड़लै, बहिनकेँ पहुँचाबैक लेल। हैदराबादसँ दिल्ली आबैक रस्तामे ओ छल जखन नीताक फोन आएल। ओ कहलक-
आइ कएक साल बाद नीताक संस्थान मेलसँ नीता सचिनकेँ अपन कार्यक्रमक निमंत्रण पठेने छल। मंडी हाउसक एल.टी.जी. सभागारमे मंगल दिन साँझमे नृत्यक कार्यक्रम अछि। आइ सोम दिन अछि।
‘सचिन, अहाँकेँ आइ साँझमे न्यूयार्कक फ्लाइट पकड़हि पड़त। एखन दू बाजि रहल अछि, साँझ छह बजैत टिकट आबि जाएत। जल्दीसँ घर जा कऽ तैयार भऽ जाउ। ओतए अहाँकेँ तीन दिन धरि संयुक्त राष्ट्रसंघक अधिवेशनकेँ संबोधित करए पड़त। भारत सरकार एकमात्र अहाँकेँ अपन प्रतिनिधि बना कऽ पठा रहल अछि।‘
फोन राखि सचिन अमेरिका जाइ लेल तैयार होमए लेल मेल बंद कऽ आफिससँ बिदा भऽ गेल।
मनोज झा मुक्ति-
मिथिला महोत्सव आ एकर उपलब्धि
–मनोज झा मुक्ति
जगत जननी माता जानकी अर्थात माँ मैथिलीक जन्मस्थल, प्राचीन विदेह राज्यक राजधानी आ अखुनक परिवेशमे प्रस्तावित मिथिला राज्यक प्रमुख नगरी जनकपुरमें अखन ‘मिथिला महोत्सव’क तैयारी धुमधामसँ भऽ रहल अछि । जनकपुरके यथासंभव चिक्कन–चुनमुन देखयवाकलेल युद्ध स्तरपर काज कयल जाऽरहल अछि । ओना एहि तरहें जनकपुरकेँ सजएवाक काज ई पहिलके खेप नहिं भऽरहल अछि, एहिसँ पहिनहुँ बहुतोवेर जनकपुरके सजाओल गेल छल । कहियो मिथिला महोत्सवक नामपर त कहियो कोनो राजनीतिक पार्टीक महाधिवेशन, सम्मेलन आ कहियो विवाह–पञ्चमी त कहियो आन–आन प्रयोजनक नामपर ।
मिथिलाक संस्कृति केहन अछि, एतुक्का वातावरण केहन अछि, बाहरसँ आओल पाहुन सबके सैह देखएवाक लेल नाना प्रकारक तामझाम कएल जाइत अछि । जनकपुर संसारक सबठामक हिन्दूक लेल आस्थाक केन्द्रके रुपमे रहल अछि । जे कियो रामायण पढने या सुनने छथि, हुनका जीवनमें जनकपुर जाएव सम्भवतः एकटा प्रवल मनोभावना बढि जाइत छन्हि । ताँए बहुत दुर–दुरसँ लोक जनकपुर देखवाकलेल अवैत छथि । ईच्छा होइतो जे देशी/विदेशी कहियो जनकपुर नहि आएल रहैत छथि, हुनका सबके एहि तरहक सम्मेलन/महोत्सव अएवाकलेल नीक अवसर जुरवैत अछि ।
सम्मेलन/महोत्सवक दिनक अलावा आनदिन सेहो जनकपुरमे प्रायः भिडभाड रहिते अछि, तथापि विषेश अवसरमें अनदिनासँ तेब्बर–चौबर लोकक भिडभाड़ लागि जाइत अछि । एहि तरहक विषेश प्रयोजनकलेल जखन जनकपुरके सजाओल जाइए, तहन ई सोंचवाकलेल विवश होमय पड़ैए जे विषेश प्रयोजन बाहेक जनकपुरक कोनहुँ महत्व नहिं ? जौं आनदिन सेहोजनकपुरक महत्व हमसब बुझितहुँत जनकपुरके ई दुर्दशा किया रहैत ? सामान्य दिनमे दूर्गन्धित आ अव्यवस्थित शहरक नमूना लगैत जनकपुरमें विषेश दिन या महोत्सवमें मात्र डेन्ट–पेन्ट कऽ कऽ हमसब कि देखबऽ चाहैत छी ?
कोनहुँ पार्टीक महाधिवेशन या सम्मेलन जनकपुरमें होइत अछि त ओहि पार्टीक नेता आ कार्यकर्ता जनकपुरके जीजानसँ लागिकऽ सजवैत अछि । विवाहपञ्चमी या परिक्रमा सन धार्मिक प्रयोजनकलेल गुठी संस्थानक माध्यमसँ आ निजी स्तरसँ मठ–मन्दिरसब खर्च कऽ जनकपुरके सजाओल करैत अछि । तहिना मिथिला महोत्सव सन सन काजकलेल वृहत्तर जनकपुर क्षेत्र विकास परिषद अपन साधन–श्रोतसब परिचालन कऽकऽ जनकपुरके सजएवामे कोनो कसर बाँकि नहि रखैत अछि । आ ई अवस्था अर्थात जनकपुरके सजएवाक काज प्रत्येक ६ मास/एक वर्षपर होइते रहैत अछि, जाहिमें लगभग सऽभ मिलाकऽ करोड़ो रुपैया खर्च भऽ जाइत अछि । आ फेर–फेर हमसब एहि खर्चके निरन्तरता देवामे अपनाके गर्वान्वित महशुश करैत छी । मात्र आ मात्र क्षणिक प्रशंसाकलेल जनकपुरके सजएबाक काज हमसब कहिया धरि करैत रहब ? सम्मेलन/महोत्सवक बाद जनकपुरके किया ओ सम्मेलन/महोत्सवक आयोजक सबके जनकपुर बिसरा जाइत छन्हि ?
जनकपुरक विकासकलेल दीर्घ योजना नहि बनऽमें कोन कारण अछि ? बेर–बेर जनकपुरेक सजाबऽमे जे खर्च कएल जाइत अछि से ठोसरुपसँ एकैबेर किया नहि करबाक सोंच किनकोमे अवैत अछि ? कोनो विषेश प्रयोजमे नीक आ सामान्य दिनमें अशान्त, अव्यवस्थित आ दूर्गन्धित रहऽवला जनकपुरके, सऽभ दिनलेल किया नहिं नीक आ आकर्षक/मनमोहक बनाओल जाऽ सकैया ?
सम्मेलन/महोत्सवक वाहेक जनकपुरक विकासके ध्यान नहिं देवाक कारण बहुतो भऽ सकैय । राजनीतिक पार्टीक नेता सबहक गैर जिम्मेवारीपन, स्थानियवासीक जनकपुरक विकासमे अभिरुचि नहिं लेब, राज्यद्वारा जनकपुरके उपेक्षाकसिकार बनाएब, सार्वजनिक सम्पतिके व्यक्तिगत प्रयोजनमे नेता, मठाधिश सबद्वारा प्रयोग करबाक प्रवृति । एहिके अतिरिक्त जनकपुरक विकास नहिं होएबामे एकटा प्रमुख कारण अछि– एक्कहिटा काजक नामपर फेर–फेर खएबाक मनोवृति । किछुलोक एहनो छथि जिनकर सोंच रहैत छन्हि जे काज जौं एक्कहि वेरमे नीक भऽगेल त फेरसँ ओही नामपर पाई नहि निकालल जा सकैय, ताँए काज एहन कमजोर हुए जे फेरफेर करबाक मौका अवैत रहय । किछु काज जनकपुरमे एहनो देखलगेल जे दोसर प्रमुख जौं कऽदेने अछि त ओकरा फेरसँ तोरबाओलगेल आ पुनःनिर्माणक नामपर बजेटके उड़यबाक काज सेहो भेल । सबसँ प्रमुख बात ई अछि जे हमसब जनकपुरक विकासके नामपर कमाए चाहैत छी, कि वास्तविकरुपमे जनकपुरके विकास करऽ चाहैत छी ? ताइमे प्रष्ट होमय पड़त ।
मिथिला महोत्सव मनाएब बहुत नीक बात अछि, मुदा ई निर्भर करैत अछि एकरा आयोजन करबाक मनसाय पर । जौं वास्तविक रुपमे मिथिलाक संस्कृति, मैथिली भाषाक विकासक लेल एहि तरहक आयोजन होइत अछि त स्वागत योग्य आ प्रशंसनिय काज अछि । आ जौं अपना पार्टीक नेताके चाकड़ी करबाकलेल, एकर नामपर बजेट खएवाकलेल आ मात्र सुरखुरु बनवाक मनसायसँमहोत्सवक आयोजन कएल जाइत अछि त मिथिला एवं जनकपुरकलेल ओहिसँ पैघ दुर्भाग्य किछु नहि होएत । ‘चार दिनकी चान्दनी फिर आधेरी रात’ जे हिन्दीक कहवी अछि सैह जनकपुरके नियति बनल अछि । जनकपुरके एहिसँ उठएवाक दायित्व कि एहि तरहक सम्मेलन/महोत्सवक आयोजककेँ नहिं ? जनकपुर, मिथिला आ मधेशक राजनीतिकके प्रमुख केन्द्रक रुपमे रहल अछि । जनकपुर मिथिला, मधेश, नेपाल आ सम्पूर्ण हिन्दू सबहक परिचायक अछि । जौं जनकपुरके सबदिनलेल स्वच्छ आ व्यवस्थित हमसब राखऽसकलहुँ त जनकपुरके परिचय करेबाकलेल सम्मेलन आ महोत्सव अएनाइ या मनेनाई जरुरी नहि रहि जायत । मात्र सम्मेलन आ महोत्सवमे जनकपुरके सजाएव अखन कौआके बकुला बनाएब जकाँ हाँस्यास्पद काज मात्र प्रतीत होइत अछि । किया त अनदिना अर्थात सम्मेलन आ महोत्सवक बाहेकदिनक जनकपुरहमरा सबके वास्तविक परिचय दैत अछि ।
कहियाधरि जनकपुर नीक बनवाकलेल सम्मेलन आ महोत्सवेके बाट जोहैत रहत ? हमसब सोंचव की... ?
सुजीतकुमार झा
नेपालमे मैथिली भाषामे पढाइ: उत्साह कम निराशा बेसी
अपन मातृभाषाक उत्थानक लेल नेपालक हरेक जनता जागल अछि ।
कोना बेसी अधिकार प्राप्त हुए ताहिमे सम्बन्धित भाषीसभ लागल रहैत अछि । नेपालक राजा सभद्वारा लागु कएल गेल एकटा भाषा आ एकटा भेषक सूत्रमे परिवर्तन भऽ रहल अछि ।
एहनमे सभ अपन अधिकारक लेल सचेत अछि ।
कोनो भाषाक विकासमे ओकर इतिहास, साहित्य आ लिपीके जहिना योगदान होइत छैक ताहि सँ कम ओकर भाषामे पढाइ आ भाषाक माध्यम सँ रोजागारीके सेहो नहि होइत छैक ।
मैथिलीके स्वर्णिम इतिहास अछि एकर अपन लिपी अछि एकर पढाई सेहो प्राथमिक विद्यालय सँ लऽ कऽ स्नात्तकोत्तरधरि होइत अछि । नेपाल आ भारतक लाखो व्यक्तिक मातृभाषा मैथिली अछि । मुदा एकर विकास जाहि गति सँ होएबाक चाही से नहि भऽ रहल अछि । उपलब्धी सेहो ओतेक नहि अछि ।
पढाइके स्थिति
मैथिलीमे प्राथमिक विद्यालय सँ स्नात्तकोत्तरधरि पढाइ होइत अछि । नेपाल भारतक विभिन्न विश्वविद्यालय में एकर पढाइके मान्यता अछि । नेपालमे मिथिला राज्य स्थापनाकें चर्चा चलिते विद्यार्थीसभ मैथिली पढाइके अपन भविष्य बनाबय लागल छथि ।
नेपालक त्रिभुवन विश्वविद्यलय अन्तर्गत भऽ रहल एमएकेँ पढाईमे मैथिली विषय लऽ कऽ जनकपुरमे मात्र एक सय सँ बेसी विद्यार्थी अहि वर्ष नामाकंन करौने छथि । पाँच वर्ष पूर्व एमए मे दूटा तीनटा विद्यार्थी रहैत छल । मुदा तीन वर्ष सँ विद्यार्थीसभक चाप एकाएक बढल मैथिली विभागक तथ्यांक देखबैत अछि । तहिना नेपालमे एफएम रेडियो सभक विकासक कारण सेहो मैथिली भाषामे पढाइ दिस लोक अग्रसर भेल अछि । नेपालक ४० टा एफएम रेडियो मैथिली भाषामे समाचार आ कार्यक्रम प्रशारण करैत अछि । नेपालक किछ टेलिभिजन सेहो मैथिलीमे समाचार देबय लागल अछि । अहि सभ सँ मैथिली भाषा लिखय आ जानयबलाके मँाग कसि कऽ बढ़ल अछि ।
फेर प्राथमिक विद्यालयमे सेहो नेपालमे मैथिलीकेँ पढाइ होइत अछि । २०५६ सालमे मैथिलीकेँ प्राथमिक तहमे पढाइक लेल किताब छपाएल । तहिया सँ विभिन्न विद्यालय सभमे पढाइ होइत अछि । अहि क्रममे अखन फेर सँ प्राथमिक स्तरक पढाईक लेल ४० हजार किताब छपाबयकेँ काज चलि रहल अछि ।
ओ दल विभिन्न जिल्लामे कोना किताब पठाओल जाए सँ लऽ कऽ पढाइ केना शुरु कएल जाए ताहिमे अग्रसर रहल कार्यदलक सचिव देवेन्द्र मिश्र जानकारी देलन्हि । धनुषाक बहुअर्बा माध्यमिक विद्यालयक पूर्व प्राधानाध्यापक अयोध्यानाथ चौधरी धनुषामे पहिलवेर प्राथमिक तहमे पढाइ शुरु कएलन्हि । ओ विद्यालयमे प्राथमिक तह तथा ९ आ १० कक्षामे एखनो मैथिलीमे पढाइ होइत अछि ।
पढाईकेँ इतिहास
भारतमे बहुत पहिनहि सँ मैथिलीमे पढाइ शुरु भऽ गेल मुदा नेपालमे २००८ साल सँ पढाइ शुरु भेल इतिहास अछि । जानकी आधार स्कुलमे एकर पहिल पढाई शुरु भेल अछि । ओना २०१९ सालमे सरकारद्वारा पूर्वीय भाषाके रुपमे ९ आ १० कक्षामे पढाइके लेल अनुमति देलाक बाद जोड सँ शुरु भेल अछि । जनकपुरक सरस्वती माविमे पण्डित सच्चिानन्द झा मैथिली पढाइ शुरु कएलन्हि । फेर धनुषाक विभिन्न विद्यालयमे क्रमशः मैथिली पढाइ शुरु भेल । धनुषाक बभनगामा मावि आ नगराइन माविमे बहुत विद्यार्थी रहैत छल । बभनगामामे मैथिलीक प्रसिद्ध नाटककार महेन्द्र मलंगिया लम्बा समयधरि मैथिलीमे पढबैत रहलाह ।
क्याम्पसक इतिहासक बात कएल जाए तऽ २०१४ साल साउन १४ गते इन्टर कलेजक नाम सँ क्याम्पसकेँ स्थापना भेल आ स्थापने काल सँ मैथिलीक अध्ययन शुरु भेल । मैथिलीक प्रथम प्राध्यापकक रुपमे पण्डित सूर्यकान्त झा नियुक्त भेलाह आ डा. धीरेश्वर झा धिरेन्द्रके आगमन १९६१ इ.धरि ओ कुशल शिक्षकके रुपमे सुशोभित रहलाह । डा. धीरेन्द्रक करिश्माई व्यक्तित्वक कारण सभक ध्यान मैथिली दिस आएल । डा. धीरेन्द्रक प्रयासमे २०३८ सालमे जनकपुरमे त्रिभुवन विश्वविद्यालय मैथिलीकेँ केन्द्रीय विभाग खोललक । ओहि साल सँ मैथिलीके स्नात्तकोत्तरमे पठन पाठन शुरु भेल । पहिल ब्याच मे १६ गोटे छात्र रहथि ।
नेपाल सरकार मैथिली भाषाक विकासक लेल त्रिभुवन विश्वविद्यालय अन्तर्गत केन्द्रीय मैथिली विभाग खोलने अछि ।
ओकर कार्यालय जनकपुरमे रहला सँ आ मैथिली भाषाक लेल सरकारक उच्च निकाय सेहो रहला सँ विभागक दायित्व किछ आओर बढि जाइत अछि । मैथिली भाषाक स्नात्तकोत्तरमे मात्र एक सँ बेशी विद्यार्थी नयाँ ब्याचमे अध्ययन कऽ रहल अछि । मुदा पढाई नहि होइत अछि । एकर मुख्य जिम्मेदार विभागाध्यक्ष डा. पशुपति नाथ झा छथि जे तलब भत्ता पकाबय पर मात्र ध्यान केन्द्रित कएने छथि ।
नेपाल सरकार सँ भाषिक शिक्षाक विकास विस्तारक जिम्मा पौने विभागकेँ अहि क्षेत्रक अन्य क्याम्पस सभमे मैथिलीमे पढाई विस्तारक लेल अखन धरि कोनो योजना नहि लौने अछि । आइए, बीए कोनो विषय सँ करु मुदा एमए मे मैथिली पढि सकैत छी मैथिली विभागद्वारा आनल गेल नयाँ नीति मैथिलीकेेँ समाप्त करबाक प्रयास रहल जानकारसभ कहैत छथि । मैथिली विभागद्वारा आनल गेल नयाँ पाठ्यक्रम सेहो विवाद सँ मुक्त नहि रहल अछि । मैथिली विभागमे कार्यरत सह–प्राध्यापक परमेश्वर कापड़ि कहैत छथि –‘मैथिली विभागक प्रमुख डा. पशुपति नाथ झा मैथिलीकेँ आन्दोलनी नहि मैथिलीक कर्मचारीकेँ रुपमे काज करैत छथि । हुनकर दीर्घ योजना किछ नहि छन्हि । ताहि लेल एतेक समस्या भऽ रहल अछि । ओना डा. झा नयाँ पाठ्यक्रममे किछ गल्ती भेल स्वीकार करैत अहिमे सुधार करब बतबैत छथि । ओना मैथिलीकेँ सभ सँ बडका आन्दोलनी अपने रहल प्रसंगक क्रममे बेर बेर कहलन्हि ।
पढाइक लेल बर्तमानमे प्रयास
पढाईक लेल जे नेपालमे माहौल बनि रहल अछि । ताहि हिसाव सँ विशेष रुप सँ प्रयास नहि भऽ रहल अछि । तखन मैथिलीक यूवा साहित्यकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक प्रयास सराहनीय रहल अछि । ओ कान्तिपुर एफएमक हेल्लो मिथिला मार्फत अभियान चला रहल छथि ।
मैथिली पढाई उत्प्रेरक दल सप्तरीक सचिव देवेन्द्र मिश्र स्वीकार कएलन्हि ‘यदि धीरेन्द्र प्रेमर्षि बेर बेर नहि खोंचारितथि तऽ सप्तरीमे कार्यदल नहि बनैत ।’ ओना जनकपुरक मिथिला नाट्यकला परिषद, युवा साहित्यकार नित्यानन्द मण्डल, मानवअधिकारवादी विजय दत्तक सेहो महत्वपूर्ण योगदान रहल छन्हि ।
जनकपुरमे अन्तराष्ट्रीय मातृभाषा दिवसक अवसर पर अहिबेर निकालल गेल जुलुसमे मातृ भाषा शिक्षा पर विशेष जोड देल गेल छल ।
आब की ?
मैथिली भाषाक विकासक लेल बहुत काज भेल अछि । मुदा एतहि सन्तोष करबाक अवस्था नहि अछि । विश्वविद्यालयक पढाईमे हरेक तहमे मैथिली भाषाक पढाई सञ्चालन करबाक लेल लविङ्ग ,कैम्पानिङ्ग, प्रचार प्रसार, क्षेत्र विस्तार, अवसरके सृजना, योजना , अनुगमन, कार्यनीति, रणनीति आ व्यवस्थापनक आवश्यक्ता अछि । अहिके लेल त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल सरकार, गैर सरकारी संस्था, स्थानीय निकाय सहितक अग्रसरताक आवश्यक्ता अछि । तहिना आवश्यक्ता अछि आन्दोलनक आ ओकर कुशल नेतृत्वकेँ । मुदा ई जिम्मेबारी के लेत ? मिथिला ओकर प्रतिक्षा कऽ रहल अछि ।
बिपिन झा
बिपिन झा
कृतारिषड्वर्गजयेनमानवीम्…।
(सफलताक मूलसूत्र)
आजुक युवा में एकटा बहुत पैघ कमी देखै में आबय लागल अछि, जे बाहरी शत्रु पर तऽ ओ सहजता सँऽ विजय प्राप्त कय लैत छथि मुदा आन्तरिक शत्रु काम, क्रोधादि पर ओ विवश भय जाइत छथि। जाहि कारण बहुत बेर ओ सफलता सँऽ वंचित रहि जाइत छथि अथवा ई कहब उचित होयत जे आंशिक सफ़लता प्राप्त करैत छथि।
Earl Nightingale केर अनुसार सफलता कआशय “Progressive realization of worthy goal” अछि। अस्तु, सफलता क्षणभरिक कार्य सँ नहि अपितु निरन्तर उद्यम सँ संभव अछि।
एहि संदर्भ में किरातार्जुनीयम् (महाकवि भारवि केर अनुपमकृति, संस्कृत महाकाव्य) क प्रथम सर्गक एकटा श्लोक स्मरण में अछि जतय दुर्योधन कें एहि कारण प्रशंसा कयल गेलैक जे ओ अपन समस्त आन्तरिक शत्रु पर विजय प्राप्त कय समय केर नियमपूर्वक विभाजन कय जनता क सेवा में लागल अछि। ओतय ओकर सम्बोधन दुर्योधन केर् अपेक्षा सुयोधन कहनाई उचित बुझल गेल छैक।
यदि आन्तरिक शत्रु पर विजय प्राप्त कयल जाय तऽ दुःसाध्य काज सेहो सम्भव छैक। क्षणभरि धैर्य नहि रहब साल भरिक परिश्रम कें व्यर्थजँका सिद्ध कय दैत अछि (’जका’ एहि कारण कहल गेल जे परिश्रम कखनहु व्यर्थ नहिं जाइत अछि )। धैर्य केर उदाहरण एहि प्रकारें देल जा सकैत अछि-
एक व्यक्ति केर व्यापार ओहि समय ठप्प भय गेलैक जखनि ओ मात्र २१वर्षक छल। २२ वर्षक अवस्था में ओ चुनाव लडल आ हारि गेल। पुनः व्यापार में आयल जाहि में समुचित सफलता नहिं भेटलैक ओहि समय ओ मात्र् २४वर्षक छल। जखनि ओ २६ वर्षक छल अपन प्रियतमा सँ सदाक लेल दूर भय गेल, स्वाभाविक अछि ओ किछु वर्ष धरि नर्वस जका भय गेल। हारि नहिं मानलक पुनः कांग्रेसियल रेस में आयल किन्तु सफलता नहिं भेटलैक ओहि समय ओ ३४ वर्षक छल। एहि तरहें ओ जीवन रूपी समरांगण में सतत् संघर्ष करैत रहल हारि नहिं मानलक। अन्ततः ओ अमेरिका केर प्रथम राष्ट्रपति बनल। ओ छलाह अब्राहम लिंकन।
कहबाक आशय मात्र एतवा अछि जे जाहि क्षेत्र में रुचि हो, ओहि क्षेत्र में बिना विचलित होइत निरन्तर आगू बढी कियाक तऽ एहि राष्ट्र कें विकसित राष्ट्र के पंक्ति में आनव मात्र सरकारी योजना सं संभव नहि अपितु समस्त नागरिक केर अथक, सांविधिक आ नैतिक नियमानुकूल समुचित कार्य सँऽ संभव छैक।
१. बेचन ठाकुर,नाटक-‘छीनरदेवी’२.राधा कान्त मंडल ‘रमण’-कने हमहूँपढ़व
बेचन ठाकुर , चनौरा गंज, मधुबनी, बिहार।
‘छीनरदेवी’बेचनठाकुरक-
बेचन ठाकुर
(चनौरा गंज) दृश्य तेसर
(स्थान-सुभाष ठाकुरक घर। दुनू परानी ललनक विषएमे गप-सप करैत छथि।) मीरा- यै ललनक बाबू, हमर विचार अछि जे आब ललनकेँ कोनो बढ़ियाँ धाइमसँदेखाए दियौक। सुभाष- यै ललनक माए, रातिमे अपन घरक गोसांइ काली बंदी हमरा सप्पन देलनिजे बौआकेँ कोनो चिक्कन धाइमसँ देखा। हम पुछलियनि जे के चिक्कन धाइम छथितऽ ओ कहलनि जे खोपामे रोडक कातमे परवतिया कोइर नामक एकटा धाइम छथि, ओएकदम सिद्ध धाइम छथि आ ओ जे किछु कहैत छथि से उचितो मे उचित। ओतए तोरामोनक भ्रम दूर भऽ जेतौक। मीरा- ललन बाउ, घरक गोसांइ बड़ पैघ होइत छथिन्ह हुनक कहल नहि करबनि तँकिनक कहल करबनि। सुभाष- हँ हँ हुनक कहल करबाके अछि! ललन, ललन, बौआ ललन।
(ललनक प्रवेश। ललन बताहक अवस्थामे छथि।) ललन- हमरा तों बौआ किएक कहैत छह? हम तोहर बौआ नहि छियह। हम तोहर नानाछियह। आइसँ तों हमरा नाना कहह। सुभाष- ललन नाना, हमरा सङे चलू एकठाम मेला देखै लए। मएओ जेतीह। ललन- हम पएरहि नहि जेबह। हम कनहापर जेबह। सुभाष- चलह ने, बेसी कनहेपर चलिह आ कने-मने पएरो। ललन- बेस चलह। हमरा ओतए रसगुल्ला, लाय मुरही, झिल्ली किनि दिह। बगियोकीनि दिह। मीरा- चल ने, सबटा कीनि देबौक।
(सुभाष, मीरा ओ ललन जा रहलाह अछि परबतिया कोइर ओहिठाम। परबतिया गहबरमेबैसल छथि! मृदंग बाजि रहल अछि। किछए कालमे परबतियाक देहपर काली बंदीसवार भऽ जाइत छथिन्ह। मृदंग बजनाइ बन्द भऽ जाइत अछि) परबतिया- होऽऽऽ बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। काली बंदी छियह हम। बोल जयगंगा। बाजह, के कहाली छह? बोल जय गंगा। जल्दी लग आबह। बोल जय गंगा जल्दीआबह। हमरा जेबाक छह बाबा धाम। फेर गंगोकेँ देखनाइ अछि।
(तीनू परानी लग जाइत छथि। ललन देह-हाथ पटकि रहल अछि। मूरी हिलाए रहलअछि।भगत पीड़ि परसँ माटि लऽ कऽ ललनक देहपर फेंकलथि। ललन शांत भऽ जाइत अछि।भगत ललनक माथक पूरा पकड़ैत छथि।) परबतिया- हओ बाबू, एकरा केलहा नहि छह। जे कियो तोरा कहैत छह जे एकराकेलहा अछि से तोहर कट्टर दुश्मन छियह। तोरा दुनू दियादमे झगड़ा लगाबएचाहैत छह। बोल जय गंगा। काली बंदी छियह। हओ बाबू ओ तोरासँ ऊपरे ऊपरमुँह धएने रहैत छह। ओ आस्तीनक साँप छियह। हओ बाबू तोड़ै लऽ सब चाहैत अछिमुदा, जोड़ै लऽ कियो नहि। बोल जय गंगा। ओ बड़का धुर्त्त छह, मचण्ड छह। सुभाष- सरकार, हमरा बहुते लोक कहलक जे अहाँक छोटकी भाबो पहुँचल फकीरअछि।ओकरहि ई कारामात छी। परबतिया- बोल जय गंगा। हओ बाबू, कने तोहुँ सोचहक, अकल लगाबहक जे जदिडाइनकेँ एतेक पावर रहितैक तँ ओ अपन विद्यासँ सौंसे दुनियाँपर शासन करैतरहितैक। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री, एस.डी.ओ., कलक्टर, थाना-पुलिस बैंक सभटा वएह रहितैक ने। बोल जय गंगा। हओ बाबू, डायनपरविश्वास केनाइ खाटी अंध विश्वास छी। ई मोनक भ्रम छी। ई मोनक शंका छी।बोल जय गंगा। हओ बाबू, अगर शंकाबला आदमी केकरो हँसैत देखि लेलक तँ ओकरोहोइत छैक जे ओ हमरेपर हँसल। तें हम यएह कहबह जे तों नीक लोक लागैत छह, एहि भ्रममे नहि पड़ह। नहि जौं पड़लह तँ सत्यानाश भऽ जेतह। हम तोरहि घरगोसांइ काली बंदी बाजैत छियह। बोल जय गंगा। हओ बाबू, आब हमरा देरी भऽरहल छह, हमर विमान ऊपरमे लागल छह। मीरा- सरकार, ई ठीक कोना होएत, से उपए बता दथुन्ह न? ई एना किएक करैतअछि? परबतिया- बोल जय गंगा। हओ बाबू, एहि छौंड़ाकेँ छीनर देवी लागलि छह। सुभाष- छीनरदेवी हटत कोना? परबतिया- हँ हटत, नहि किएक हटत? जल्दी तों एकर बिआह केहनो लड़कीसँ करह।सभ ठीक भऽ जेतह। आओरो कोनो कष्ट छह? सुभाष- नहि सरकार, जदि अपने सहाय रहबैक तँ कोनो कष्ट नहि होएतैक। मीरा- सरकार, कने विभूति दए दिअ।
(परबतिया मीराकेँ विभूति देलनि।) परबतिया- बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। आब हम जाइ छियह। बाबाधाम।
(कहैत कहैत काली बंदी चलि जाइत छथि।) सुभाष- सरकार, अपनेक दक्षिणा? परबतिया- पाँच टका मात्र। सुभाष- सरकार एतबै? परबतिया- हँ पाँचहि टका मात्र। उहो गहबरमे प्रसाद चढ़ाबए लेल। हमरागहबरमे ठकै फुसलबै बला काज नहि होइत अछि। हमरा गहबरमे कलयाणक आ संतोषकगप होइत अछि। शंका वा भ्रम बढ़ाबए बला नहि, पूर्णतः हटाबए बला गप होइतअछि आब अपने सभ जाउ। एकर बिआह जल्दी करु, छीनरदेवी भागि जाएत।
(तीनू परानी माथा टेक कऽ प्रणाम करैत छथि आ आर्शीवाद लऽ कऽ प्रस्थानकरैत छथि।) पटाक्षेप दृश्य चारिम क्रमशः
2.
राधा कान्त मंडल ‘रमण’ जन्म- 01 03 1978 पिता- श्री तुरन्त लाल मण्डल गाम- धबौली, लौकही भाया- निर्मली जिला-मधुबनी षिक्षा- स्नातक
मैथिली एकांकी
कने हमहूँ पढ़व
पात्र परिचय
1. धनिकलाल पंचाइतक मुखियाजी छथि।
2. चम्पत लाल मुंशी मुखियाजीकेँ
3. दुखना गरीव व्यक्ति
4. दुखनी ‘‘ ’’
5. अमर ‘‘ ’’
6. रीता ‘‘ ’’
प्रथम दृश्य
(दुखना दुखनी अपन घरमे जीवनकेँ पलक घड़ी दुखसँ वितबैत छलै जेकरा एकसांझक भोजनपर आफद छल। ई बात अपनामे विचार करैत दुखना आ दुखनीक प्रवेशहोइत अछि। दुखनी आंगन घरक काज करैत छलि आ मने-मन विचारैत छल जे हेभगवान आइ हम आ हमर धिया पुता खाएत की तहि बीचमे दुखनाक प्रवेश)
दुखना- सुनै छहक ने?
दुखनी- अहाँ बाजू ने की भेल हेँ?
दुखना- आइ बच्चा सभ की खतौ घरमे किछो छौ कि नाइ, हम तू तँ भूख मेटा लेवआ बच्चा कोना रहतौ।