भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Saturday, November 21, 2009

'विदेह' ४६ म अंक १५ नवम्बर २००९ (वर्ष २ मास २३ अंक ४६)-PART I

'विदेह' ४६ म अंक १५ नवम्बर २००९ (वर्ष २ मास २३ अंक ४६)

वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास

२.२.उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल-मौलाइल गाछक फूल

२.३. सुजीत कुमार झा-कथा-धधकैत आगि ः फुटैत कनोजरि

२.४. बिपिन झा-स्वातन्त्रोत्तरयुगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मे मिथिलाक भूमिका।
२.५.१. कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन आ २. हेमचन्द्र झा-साढ़े तीनो लाख
२.६.१.अमन कुमार झा , २. मनोज झा मुक्ति आ ३.३. गोपाल प्रसाद -हिंदी ,मैथिली , मिथिला , बिहार ओ मैथिल लोकनि सं अपेक्षा
२.७.१. कामिनी कामायनी- कथा समय कालआ २. अनमोल झा-लघुकथा- अधिकार
२.८. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’-साझा प्रकाशनमे विद्यापति

३. पद्य

३.१. गुंजन जीक राधा-पन्द्रहम खेप

३.२.१. राजदेव मंडल-सीमा परक झूला आ चीड़ीक जाति २. विनीत उत्पल-मन परैत अछि

३.३.उमेश मंडल (लोकगीत-संकलन)- आगाँ

३.४.कल्पना शरण-इण्टरनेट स्वयंवर
३.५.१. सतीश चन्द्र झा-भाषा आ राजनीति आ २. सुबोध कुमार ठाकुर-जुग बदलि गेल
३.६.१. श्यामल सुमन-मैथिली दोहा २. अजित कुमार मिश्र-अप्पन माटि
३.७.१. बिनीत ठाकुर-गीत आ २. दयाकान्त मिश्र-हे मैथिल आबो जागु
३.८. शेफालिका वर्मा-बाजी

४. मिथिला कला-संगीत-कल्पनाक चित्रकला

५. गद्य-पद्य भारती -पाखलो (धारावाहिक)-भाग-७- मूल उपन्यास-कोंकणी-लेखक-तुकाराम रामा शेट, हिन्दी अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस, मैथिली अनुवाद-डॉ. शंभु कुमार सिंह

६. बालानां कृते- देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)२.कल्पना शरण:देवीजी.
७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,Translated into English by Lalan
8.2.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
9. VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION(contd.)


विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


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१. संपादकीय
अपन सफलताक आकलन अनका प्रति कएल सेवासँ नापू नञि की ओहि वस्तुसँ जे अहाँ अनका हानि पहुँचा कऽ प्राप्त केने छी। धोखा देनाइ खराप गप छियै् धोखा खेनाइ नहि। साक्षात्कार केना लेबाक चाही ओहिमे की की आवश्यक बिन्दु छै से अवश्य सीखू। अफवाह सुनू मुदा अपना दिससँ ओहिमे कोनो वृद्धि वा योगदान नहि देल करू। अपन बच्चाक चिन्ता वा भएपर ध्यान देल करू। अपन माएक संग बहस नहि करू। सभटा सुनलाहा चीजपर विश्वास नहि करू। अहाँ लग जतेक पाइ अछि ओहिमेसँ किछु बचा कए खर्च करू। बूढ़-पुरानक संग भद्र व्यवहार करू। बुराइ आ अन्यायकेँ कखनो बर्दास्त नहि करू। प्रशंसात्मक पत्रकेँ सम्हारिकेँ राखू। कोनो सेमीनारमे भाषण देलाक बादे छपल भाषण वितरित करू। बियाहक बादेसँ अपन बच्चाक शिक्षा लेल पाइ बचेनाइ शुरू कऽ दिअ। माता-पिता अपन बच्चाकेँ आत्मनिर्भर रहनाइ सर्वदा सिखाबथु। अहाँ तखने मानसिक रूपसँ स्वतंत्र भऽ सकब जखन अपन समस्याक समाधान लेल दोसराक मुँहतक्की नहि करब। विवाह वा बच्चाक पोषण ओतेक भरिगर चीज नहि छैक। जखन अहाँ हँसब तँ स्वतः अहाँ सुन्दर देखा पड़ब, खूब हँसू।जाधरि अहाँ नव-नव काज नहि करब ताधरि नव-नव चीज कोना सीखब? जे अहाँ कोनो काज बिना त्रुटिक करए चाहब तँ ओ काज कहियो नहि भऽ सकत। कोनो खराप भेल सम्बन्धकेँ सुधारबा लेल कतबो देरी भेलाक बादो प्रयास करबाक चाही। मानवीय भावना कोनो काज करबामे आ कतबो कठिन परिस्थितिकेँ पार पएबामे सफल होएत। कोनो मार्गक,कोनो विचारक आ कोनो कार्यक जानकारी ओहिपर आगाँ बढ़लासँ पता चलत, ओहिपर बहस कएलासँ नहि। एकटा दोस वैह अछि जे अहाँक सभ गुण-दुर्गुणसँ अवगत रहलाक बादो अहाँकेँ पसिन्न करैत अछि।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ नवम्बर २००९) ८८ देशक ९७३ ठामसँ ३३,१८८ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,०८,४५७ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।

२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास

२.२.उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल-मौलाइल गाछक फूल

२.३. सुजीत कुमार झा-कथा-धधकैत आगि ः फुटैत कनोजरि

२.४. बिपिन झा-स्वातन्त्रोत्तरयुगीन संस्कृत साहित्यक संवर्द्धन मे मिथिलाक भूमिका।
२.५.१. कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन आ २. हेमचन्द्र झा-साढ़े तीनो लाख
२.६.१.अमन कुमार झा , २. मनोज झा मुक्ति आ ३.३. गोपाल प्रसाद -हिंदी ,मैथिली , मिथिला , बिहार ओ मैथिल लोकनि सं अपेक्षा
२.७.१. कामिनी कामायनी- कथा समय कालआ २. अनमोल झा-लघुकथा- अधिकार
२.८. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’-साझा प्रकाशनमे विद्यापति

प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी (१५ फरबरी १९२१- १५ मार्च १९८५) अपन सम्पूर्ण जीवन बिहारक इतिहासक सामान्य रूपमे आ मिथिलाक इतिहासक विशिष्ट रूपमे अध्ययनमे बितेलन्हि। प्रोफेसर चौधरी गणेश दत्त कॉलेज, बेगुसरायमे अध्यापन केलन्हि आ ओ भारतीय इतिहास कांग्रेसक प्राचीन भारतीय इतिहास शाखाक अध्यक्ष रहल छथि। हुनकर लेखनीमे जे प्रवाह छै से प्रचंड विद्वताक कारणसँ। हुनकर लेखनीमे मिथिलाक आ मैथिलक (मैथिल ब्राह्मण वा कर्ण/ मैथिल कायस्थसँ जे एकर तादात्म्य होअए) अनर्गल महिमामंडन नहि भेटत। हुनकर विवेचन मौलिक आ टटका अछि आ हुनकर शैली आ कथ्य कौशलसँ पूर्ण। एतुक्का भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता ई सभटा मिथिलाक इतिहासक अंग अछि। एहिमे सम्मिलित अछि राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म, दर्शन आ साहित्य सेहो। ई इतिहास साहित्य आ पुरातत्वक प्रमाणक आधारपर रचित भेल अछि, दंतकथापर नहि आ आह मिथिला! बाह मिथिला! बला इतिहाससँ फराक अछि। ओ चर्च करैत छथि जे एतए विद्यापति सन लोक भेलाह जे समाजक विभिन्न वर्गकेँ समेटि कऽ राखलन्हि तँ संगहि एतए कट्टर तत्त्व सेहो रहल। हुनकर लेखनमे मानवता आ धर्मनिरपेक्षता भेटत जे आइ काल्हिक साहित्यक लेल सेहो एकटा नूतन वस्तु थिक ! सर्वहारा मैथिल संस्कृतिक एहि इतिहासक प्रस्तुतिकरण, संगहि हुनकर सभटा अप्रकाशित साहित्यक विदेह द्वारा अंकन (हुनकर हाथक २५-३० साल पूर्वक पाण्डुलिपिक आधारपर) आ ई-प्रकाशन कट्टरवादी संस्था सभ जेना चित्रगुप्त समिति (कर्ण/ मैथिल कायस्थ) आ मैथिल (ब्राह्मण) सभा द्वारा प्रायोजित इतिहास आ साहित्येतिहास पर आ ओहि तरहक मानसिकतापर अंतिम मारक प्रहार सिद्ध हएत, ताहि आशाक संग।-सम्पादक
मिथिलाक इतिहास
अघ्या य – २
मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक साधन
भारतीय इतिहासक अध्ययनक हेतु जतवा जे श्रोत उपलब्ध अछि तकर शतांशो मिथिलाक इतिहासक हितु नहिं अछि। मिथिलाक दुर्भाग्य इहो जे पुरातत्व वेता लोकनिक ध्यान आर्य सभ्यताक पूर्वी सीमाक प्राचीनतम केँन्द्र दिसि अद्यावधि नहिं गेल छन्हि। पता नहिं जेतैन्ह अथवा नहिं। मिथिलाक प्राचीन भौगोलिक सीमा, जाहि मे जनकपुर आर सिमरॉवगढ सेहो सम्मिलित अछि, विशेष भाग सम्प्रति नेपाल तराई मे पडैत अछि आर ओतए सरकारक दिसि सँ अहि क्षेत्रक प्राचीन ऐतिहासिक तत्वक पता लगेवाक हेतु अखन धरि कोनो सशक्त प्रयास नहिं भेल अछि। मोतिहारी, वैशाली, गोरहोघाट, पुर्णियाँ, आदि क्षेत्रक यदा – कदा पुरातत्वक खोज भेला उत्तए अहि दिसि ध्यान नहिं गेल अछि। आ तैं मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक जे एकटा महत्वपूर्ण श्रोत होयबाक चाही से सम्प्रति अपूर्णे अछि।
आन – आन क्षेत्रक हेतु जतबो साधन उपलब्ध भेल छैक ततवो मिथिलाक हेतु नहिं भसकल अछि कारण अहि दिसि मैथिल - अमैथिल इतिहासकारक ध्यान नीक जकाँ आकृष्ट नहिं कैल गेल अछि। मिथिलाक प्राचीन गौरव आर साँस्कृतिक देनक अध्ययनक हेतु हमरा लोकनि अहुखन मात्र साहित्यिक साधने पर निर्भर करए पडैत अछि जकर नतीजा ई होईयै जे कोनो प्राचीन प्रश्न पर हमरा लोकनि एकटा निर्णयात्मक मत नहिं द सकैत छी। प्रत्येक प्रश्न विवादास्पद अछि आर निर्विवाद रूपें हम अखनो ई कहबाक स्थिति मे नहिं छी जे अमूक बातक निंदा, घटना, अमूक समय मे घटित भेले हैत। ई अनिश्चितताक स्थिति अखन मिथिलाक इतिहास मे बहुत दिन धरि बनले रहत। युनान जका हमरा ओतएअ नेऽ कोनो हिरोडोटस आर धुसीडाइड्स भेल छथि आर नेऽ मुसलमान शासकक इतिहासकार जकाँ कोनो इतिहास कारे। वेदेशी यात्रियो लोकनि जे विवरण अहि क्षेत्रक देने छथि से मात्र सामान्ये कहल जा सकइयै आर ओहि सँ स्थिति मे कोनो परिवर्तन नहिं अवइयै। एहना स्थिति मे अहि प्राचीन क्षेत्रक इतिहासक निर्माण करब एकटा जटिल समस्या बनल अछि आर ओहि समस्या मध्य हमरा लोकनि केँ ऐतिहासिक साधन खोजि केँ संकलित करबाक अछि।
मिथिला मे पैघ सँ पैघ दार्शनिक एवं तात्विक विषय पर ग्रंथक रचना भेल अछि जहि सँ ई प्रमाणित होइछ जे अहिठामक लोग विज्ञ एवं विद्वान छलाह परञ्च अपना सबंध मे किछु लिखबाक क्रम मे वो लोकनि राजर्षि जनकक विदेह नीति मे अपनौ लन्हि अछि अहि मे कोनो सन्देह नहिं। ‘मैथिल’ शब्द “वैदिक” युग सँ व्यवहृत होइत आएल अछि आर अहि सँ ई स्पष्ट होइत अछि जे ताहि दिन सँ मिथिलाक भौगोलिक इकाई स्वीकृत अछि आर अहि भौगोलिक क्षेत्र मे रहनिहार मैथिल कहबैत छलाह – बिहार मे एतेक प्राचीन गौरव आर कोनो क्षेत्र केँ प्राप्त नहिं छैक तथापि एकर इतिहास अखनो एतैक संदिग्ध आर अनिर्णयात्मक स्थिति मे अछि से एकटा विचारणीय विषय।
प्राचीन मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु मुख्य साधन अछि वेद, उपनिषद, ब्राह्म साहित्य, अरण्यक, महाभारत, रामायण, पुराण, स्मृति, पाणिनि, पतञ्जलि, आदिक रचना एवं तत्कालीन बौद्ध आर जैन साहित्य। मिथिलाक संबध मे सूचना हमरा लोकनि केँ यजुर्वेद एवं अथर्ववेद सँ भेटए लगैत अछि यथापि अप्रत्यक्ष रूपें मिथिलाक ऐतिहासिक घटनाक विवरण ऋग्वेद मे सेहो देखल जा सकइयै। शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेउअ ब्राह्मण, पंचविंश ब्राह्मण, बृहदारण्यकोपनिषद, एवं छन्दोग्योपनिषद मे मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, एवं धार्मिक अवस्थाक विस्तृत विवरण भेटैत अछि। आहि मे सब सँ महत्वपूर्ण विवरण शतपथ ब्राह्मणक अछि जाहि मे जनक केँ सम्राट कहल गेल अछि आर संगहि याज्ञवम्ल्यक संरक्षक सेहो। साँस्कृतिक स्थितिक अध्ययनक हेतु तँ उपरोक्त साधन अद्वितीय अछि आर अहि बात केँ विदेशी विद्वान सेहो मानैत छथि। अहि मे संदेह नहिं जे अहि युग मे ब्राह्मण वर्ग प्रधानता छल तथापि परिक्षितक बाद सँ जनक वंशक इतिहासक हेतु उपरोक्त साधनक अध्ययन अत्यावश्यक मानल जाइत अछि। एतरेय ब्राह्मण सँ तत्कालीन अवस्थाक विवरण भेटैत अछि आर उपनिषद तँ सहजहि दार्शनिक विचार-विमर्शक खान अछिये। ओहि मे जाहि ढंगे वाद – विवाद अछि से सर्वथा अद्वितीय कहल जा सकइयै। पाणिनि, पतञ्जलि एवं अर्थशास्त्र (कौटिल्यक ) से हो प्राचीन मिथिलाक इतिहासक विभिन्न अंश पर प्रकाश पड़इत अछि।
बौद्ध आर जैन साहित्यक सबंध मे ई सोचि कहल गेल अछि जे जखन कोनो आन साधन मिथिलाक इतिहासक हेतु नहिं प्राप्त होइत अछि तखन बौद्ध आर जैन साधन हमरा लोकनिक साहित्यक हेतु प्रस्तुत होइत अछि। दीपवंश, महावंश, अशोकविद्वान अश्वघोषक युद्धचरित, बुद्धघोषक रचना सभ, धभ्मयद्ध कथा, असंग, वरूवन्धु, दिगनाथा, धर्मकीर्ति, आदिक रचना सँ मिथिलाक सांस्कृतिक एवं दार्शनिक इतिहासक निर्माण मे बहु साहित्य भेटैत अछि। बौद्ध दार्शनिक लोकनि केँ कहबाक क्रम मे मिथिला मे नव – न्यायक जन्म भेल छल आर तै ७–८ शताब्दी सँ १५–१६म शताब्दी धरि जे बौद्ध एवं मैथिल दार्शनिकक मध्य वाद – विवाद भेल अछि से मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक अध्ययनक हेतु परमाश्वयक मानल जाइत अछि। वाचस्पति मिश्र (वृद्ध) सँ ल केर शंकर मिश्र धरिक समस्त ग्रंथ आर नालंदा विक्रमशिलाक महान पंडित लोकनिक रचित ग्रंथक अध्ययन अहि हेतु सर्वथा अपेक्षित।
ओना बौद्धकालीन मिथिला सर्वांगीन इतिहासक हेतु समस्त जातकक अध्ययन आवश्यक बुझल जाइछ। महापदानक जातक, गाँधार जातक, सुरूचि जातक, महाजनक जातक, निमि जातक, महानारदकस्पा जातक इत्यादि तत्कालीन मिथिलाक राजनैतिक समाजक एवं साँस्कृतिक इतिहास पर वृहत प्रकाश पड़इयै– जाहि सँ सामान्य लोकक दैनन्दिनीक ज्ञान सेहो होइत अछि। जातक मे जे राजनैतिक श्रृंखला बताओल गेल अछि ताहि सँ पुराण वर्णित अवस्था मे काफी मतभेद अछि तैं राजनैतिक इतिहासक निर्माण मे जातकक अध्ययन मे सतर्कताक आवश्यकता अछि। सामाजिक–साँस्कृतिक–आर्थिक अवस्थाक अध्ययनक हेतु जातक प्रमुख साधन मानल गेल अछि। जैन श्रोत मे सेहो मिथिलाक विभिन्न स्थितिक विशेष विश्लेषण भेटैत अछि आर औहि दृष्टिकोण सँ उतरा ध्यायन सूत्र, उवासगदसाओ, कल्पसूत्र, स्थविरावली चरित्र (परिशिष्ट पर्वत) एवं त्रिशस्ति शेलाकार पुरूष आदि ग्रंथक अध्ययन अपेक्षित अछि। कखनो कखनो जैन एवं बौद्ध अपाख्यान मे समता से हो देखबिन मे अवइयै। जैन–बौद्ध साहित्य आर अन्यात्य साधन मिथिलाक सामाजिक–आर्थिक इतिहासक अध्ययनक हेतु बहु लाभदायक मानल गेल अछि कारण ओहि सब विवरण मे सामान्य लोकक जीवन पर सेहो प्रकाश पडैत अछि। जातक आदि सँ इहो ज्ञात होइछ जे कोना ताहि दिनक मैथिल अपन घर दुआर छोडि़ केँ व्यापार–व्यवसायक हेतु देश–विदेश जाइत छलाह आर ओहि मे बहुत गोटए ओहिठाम बैसिओ जाइत छलाह। वो लोकनि वेस उद्दमी आर परिश्रमी होइत छलाह आर समुद्र यात्राक हेतु कोनो संकीर्णता हुनका लोकनि मे नहिं छलैन्ह। महाभारत, रामायण, आर पुराण मे मिथिलाक सबंध मे प्रचुर सामग्री अछि परञ्च अहि तीनू मे वैज्ञानिकताक हिसाबें कतहु कोनो साम्य नहिं छैक। पुराणक विभिन्न खण्ड मे जलवा जे नामावली अथवा राजाक सूची भेटइत अछि ताहि मे एकरूपता नहिं देखबा सँ अवइयै आर अहि विरोधाभास सँ इतिहासक सामान्य विद्यार्थी अगुता केँ घबरा जाइत अछि। ब्रिट्रिश विद्वान पारजीटर महोदय आर बंगाली विद्वान प्रधान महोदय बड्ड परिश्रम कए पुराण रूपी जंगल सँ मिथिलाक राजवंशक इतिहासक एकटा रूपरेखा प्रस्तुत करबा मे समर्थ भेल छथि तथापि ओकरा सर्व सम्मत अखनो नहिं मानल जाइत छैक। प्राचीन – काल मे इतिहास – पुराण एकटा अध्ययनक महत्वपूर्ण विषय छल आर अध्ययनक दृष्टिकोण सँ एकरा पंचमवेद से हो कहल गेल छैक तथापि एकरा अध्ययन मे जे एकटा वस्तुनिष्ठताक अपेक्षा छल से प्राचीन विद्वान लोकनि नहिं राखि सकलाह आर पुराण मे ततेक रास एम्हर – ओम्हरक बात घुसिया गेल जे एकर एतिहासिकता मे लोग केँ संदेह होमए लगलैक। अहिठाम एतवा स्मरणीय जे एतवा भेल उत्तरो पुराण, रामायण आर महाभारतक एतिहासिक महत्व केँ काटल नहिं जा सकइयै। परंपरागत इतिहासक जे अपन महत्व छैक ताहि हिसाबे उपरोक्त सबंधक अध्ययन ककए हमरा लोकनि मिथिलाक इतिहासक निर्माण मे अहि सँ सहायक लसकैत छी।
मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु लिगिट मे नुस्कृष्ट से हो आवश्यक बुझना जाइत अछि। अहि सँ मिथिला आर वैशाली दुनुक इतिहास पर प्रकाश पडैत अछि। अहि मे कहल गेल अछि जे जखन वैशाली मे गणराज्य छल तखन मिथिला मे राजतंत्र आर मिथिला मे ताहि दिन मे एकटा प्रधानमंत्री छलाह जिनक नाम खण्ड छलैन्ह आर हुनका अधीन मे ५०० अमात्य रहथिन्ह। संस्कृत साहित्यक विभिन्न अंश सँ मिथिलाक इतिहासक अध्ययन मे सहायता भेटैत अछि। कालिदास, भव भूति, दाण्डिन, राजशेखर, आदिक रचना सँ मिथिलाक इतिहासक विभिन्न पक्ष पर प्रकाश पडइयै। लक्ष्मीधरक कृत्य कल्पना सँ, श्रीनिवासक भद्रीकाव्यटीका, जयसिंहक लिंगवार्त्तिक, श्रीधर ठक्कुरक काव्य प्रकाशविवेक, नारायणक छांवोग्यपरिशिष्ट एवं मिथिला आर भारतक अन्य भाग सँ प्राप्त मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपि अहि सँ मिथिलाक इतिहासक निर्माण मे सहायता भेटैत अछि। विल्हणक विक्रमाँइदेवचरित, विद्यापतिक समस्त रचना, वर्धमानक दण्डविवेक, अभिनव वाचस्पति मिश्रक समस्त रचना, गणेश्वरक सुगति सोपान, चण्डेश्वरक आठो रत्नाकर, ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्णन रत्नौकर आदि ग्रंथ मिथिलाक इतिहासक निर्माण मे उपादेय सिद्ध भेल अछि। बिहार रिसर्च सोसायटी द्वारा प्रकाशित “कैटलोग आफ मिथिला मे नुस्कृष्ट” (४ भाग), हरिप्रसाद शास्त्रीय द्वारा संपादित “कैटलोग आफ नेपाल दरबार मे नुस्कृष्ट ” इत्यादि सँ सेहो मिथिलाक इतिहासक सब पक्ष पर विशेष प्रकाश पडइयै। मिथिला मे सुरक्षित तालपत्र पर ब्राह्मण आर कायस्थक पाँजि से हो मिथिलाक सामाजिक इतिहासक एकटा मूलि श्रोत मानल गेल अछि। ओना पुरातात्विक साधनक अभाव तँ मिथिला मे अछि तथापि मोतिहारी सँ बंगालक सीमा धरि जे विभिन्न पुरातात्विक महत्वक स्थान अछि तकर सर्वेक्षण सँ मिथिलाक इतिहासक निर्माण मे सहायता भेटत। मिथिलाक प्रमुख क्षेत्रक उत्खनन अखनो नहिं भेल अछि तँ ओहिठाम सँ पर्याप्त मात्रा मे शिलालेख, सिक्का, आदि नहिं भेटल अछि। एम्हर मोतिहारी सँ कैकटा ताम्रलेख प्रकाशित भेल अछि, मुजफ्फरपुरक कहरा थाना सँ जीवगुप्तक एकटा अभिलेख भेटल अछि जाहि सँ पता लगैत अछि जे तीरभुक्ति मे चामुण्डा नामक एकटा विषय छल। इमादपुर सँ पाल कालीन अभिलेख भेटल अछि जाहि सँ ई सिद्ध होइछ जे पाल लोकनिक शासन मिथिला पर छल। नौलागढ (बेगुसराय) सँ दूटा पालकालीन अभिलेख भेटल अछि – जाहि मे एकटा शिमिला विषयक आर दोसर मे एकटा बिहारक उल्लेख अछि। अहिठाम इहो स्मरणीय जे अहि क्षेत्र सँ गुप्तकालीन मोहर एवं रक्षायुक्त विषयक एकटा गुप्तकालीन मोहर सेहो भेटल अछि जाहि सँ ई स्पष्ट होइछ जे मिथिलाक ई क्षेत्र शासनक प्रधान केन्द्र छल। बनगाँव सहरसाक गोरहोघाट, पटुआहा, आदि स्थान सँ पंचमार्ड सिक्का तँ बहुत पूर्वहिं भेटल छल आर एम्हर विग्रटपाल तृतीयक एकटा प्रमुख ताम्रपत्र बहरायल अछि जाहि मे ई कहल गेल अछि तीरभुक्तिक अंतर्गत हौद्रेय नामक एकटा विषय छल। इयैह हौद्रेय आधुनिक हरर्धथिक। अहि सँ पूर्व हमरा लोकनिकेँ तीरभुक्ति मे मात्र एक्केय विषयक ज्ञान छल आर वो छल ‘कक्ष’ विषय जकर उल्लेख नारायण पालक भागलपुर ताम्रलेख मे भेल अछि। ई कक्ष विषयक सबंध मे अखनो धरि इतिहासकार एकमत नहिं भेल छथि मुदा हमर अपन विचार ई अछि जे ई ‘कक्ष’ विषय प्राचीन अंगुतराय मे छल आर महाभारत मे वर्णित ‘कौशिकी कक्ष’ क प्रतीक छल। नारायण पालक ताम्रलेख मे अहि कक्ष विषयक विवरण भेटैत अछि। चामुण्डा विषय पश्चिम मे, हौद्रेय केन्द्र मे आर कक्ष विषय तीरभुक्तिक पूर्वी सीमाक संकेत छल। एकर अतिरिक्त पंचोभ सँ प्राप्त ताम्रपत्र सेहो मिथिलाक इतिहासक अध्य़यनक हेतु अत्यावश्यक अन्धराठाढी़ सँ प्राप्त श्रीधरक अभिलेख, कन्दाहा सँ नरसिंह देव ओइनवारक अभिलेख, भगीरथपुर सँ प्राप्त ओइनवार कालीन अभिलेख, मुहम्मद तुगलकक अभिलेख, वेदीवनक तुगलक कालीन अभिलेख, इव्राहिम शाह शर्रीक अभिलेख, शिवसिंहक सिक्का ओइनवार शाखा भैरव सिंह देवक चाँदी सिक्का आदि सँ मिथिलाक इतिहासक विभिन्न पक्ष पर प्रकाश पडैत अछि। नेपाल वंशावली आ नेपाल सँ प्राप्त अभिलेख जाहि मे सिमराँव गढ स्थित नान्य देवक तथाकथित अभिलेख एवं प्रताप मल्लक शिलालेख महत्वपूर्ण अछि। एम्हर आवि के वैशाली, बलिराजगढ, करिऔन आदि स्थानक उत्खनन सँ जे सामग्री प्राप्त भेल अछि सेहो मिथिलाक इतिहासक निर्माण मे सहायक सिद्ध भेल अछि। महेशवारा (बेगुसराय) सँ प्राप्त रूकनुद्दिन कैकशक अभिलेख तँ अन्यान्य दृष्टिकोण सँ महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक विभिन्न भाग सँ मुसलमानी सिक्का पर्याप्त मात्रा मे भेटल अछि जाहि सँ राजनैतिक इतिहासक निर्माण मे सहायता भेटैत अछि। मटिहानी (बेगुसराय) सँ बंगालक सुल्तान नसरत शाहक अभिलेख सेहो भेटल छल आर कहल जाइत अछि जे बेगुसरायक सभी चनूरपुर गॉव मे मीरजापुरक पुत्रक एकटा अभिलेख अछि। वेदेशी यात्री लोकनि सेहो मिथिला मे आएल छलाह आर अहि मे चीन सँ आयल यात्री लोकनिक विशेष महत्व अछि कारण वो लोकनि एतए बौद्धधर्म अध्ययनार्थ अवैत छलाह। फाहियान हियुएन – संग, सूंग – युन, इत्सिंग आदि यात्रीक नाम उल्लेखनीय अछि। ई लोकनि मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रक भ्रमण कएने छलाह आर वो लोकनि जे अपन विवरण लिखने छथि ताहि सँ अहि क्षेत्र पर विशेष प्रकाश पडइयै। वृज्जी, लिच्छवी एवं तीरभुक्ति’क प्रसंग हिनका लोकनिक लेख उपादेय अछि। विदेशी धरती मे सर्व प्रमुख व्यक्ति, जे मिथिलाक हेतु सर्वतोभावेन महत्वपूर्ण कहल जा सकैत छथि, भेलाह, तिब्बती यात्री धर्मस्वामी जे १३ शताब्दीक पूर्वाद्ध मे मिथिला होइत नालंदा गेल छलाह। तखन मिथिला राजगद्दी पर कणरिवंशीय रामसिंह देव विराजमान छलाह। धर्मस्वामी मिथिलाक सबंध मे बहुत रास बात लिखने छथि। बहुत दिनधरि वो रामसिंह हुनका अपन पुरोहित बनबाक हेतु आग्रहो केने छलथि परञ्च ओकरा वो स्वीकार नहि केलन्हि। ताहि दिन मे मिथिला पर मुसलमानी आक्रमण प्रारंभ भचुकल छल तकर विवरण वो दैत छथि कारण जखन वैशा जी बाटे जाइत छलाह तखन वो अपना आँखिये ई सब घटना देखलन्हि। धर्मस्वामी मिथिलाक इतिहासक हेतु एकटा आवश्यक श्रोत भेला।
एकटा दोसर महत्वपूर्ण साधन भेल वसातिलुनउंस नकर लेखक छलाह मुहम्मद सद्र उला अहमद हसन दाबिर इदुसी (उर्फ ताज) आर वो इखतिसान उद देहलवीक नामे सेहो विख्यात छलाह। वो गयासुद्दीन तुगलकक संगे बंगाल आक्रमण मे गेल छलाह आर धुरती मिथिला गयासुद्दीन तुगलक आक्रमणक समय मे हुनके संग छलाह। तै इहो एकटा आँखि देखल साधन भेल आर ओहि हिसाबे महत्वपूर्ण सेहो। फोलियो १२ (एकर सम्पूर्ण पटनाक काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान मे सुरक्षित अछि आर ४ टा फोलियो जकर सबंध मिथिलाक इतिहास सँ छैक हमर हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूलैन तिरहुत मे छपल अछि।) पर लिखल अछि जे हरिसिंह देव ककरो कोना सलाह नहिं सुनलन्हि आर परा के पहाड दिसि चलि गेलाह। गयासुद्दीन तुगलकक तिरहुत ताहि दिन विस्मृत आर सुखी संपन्न राज्य छल आर अखन धरि ककरो अधीन नहिं छल तैं गयासुद्दीन बंगाल सँ घुरबा काल अपना अधीन करबाक प्रयास केलक। इसामी अपन फुतुह–सालातीन मे लिखने छथि जे गयासुद्दीन तिरहुत कर्णाटवंशक अंतिम राजा पर आक्रमण केलन्हि आर वो बिना कोनो प्रकारक विरोध केने पहाड – जंगल दिसि भागि गेलाह। सुल्तान तीन दिन धरि ओतए ठहरलाह आर जंगल के काटि के सम्पूर्ण क्षेत्र के साफ करौलन्हि। तेसरदिन वो मिथिला राज्यक विशाल किला जकर दिवाल गगनचुम्बी छल आर जे सात टा गहिर खाधि स चारू कात सँ घेरल छल, पर आक्रमण केलन्हि आर ओहि पर विजय प्राप्त केला उत्तर ओहि किला मे दू या तीन सप्ताह रूकला आर चारू दिसक विरोध केँ दबैलन्हि आर एवं प्रकारें मिथिला पर अपन प्रभुत्व स्थापित केलन्हि। जेबा सँ पूर्व तो तवलिघाक पुत्र धर्मात्मा अहमद के तिरहुतक प्रधान बनौलन्हि। एवं प्रकारे एक–दू मासक बाद गयासुद्दीन अपन राजधानी दिसि चलि गेलाह। फरिस्ता आर मुल्लातरिया जे राजाक गिरफ्तारीक गप्प लिखैत छथि से गलती बुझि पडइयै। वसातिनुलउंसक अनुसार तिरहुतक राजा सम्मृद्धशाली छलाह, आर हुनका सैनिकक कोनो अभाव नहिं छलन्हि, विराट राजभवन छलैन्ह आर सब तरहें वो सुखी आर सम्पन्न छलाह। अपन अजेय दूर्ग – किलाबंदी आर सेना पर अटूट विश्वास छलैन्ह आर आई धरि कतहु हुनक माथ झुकल नहि छलैन्ह। गयासुद्दीनक पहुँचबाक समाचार सुनितहिं वो एतेक भयभीत भ गेलाह जे हुनक सब घमण्ड धूल – धुसरित भगेल। अपन प्रतिष्ठा बचेबाक हेतु वो अपन तेज घोडा पर चढि के भागि गेलाह। वसातिनुलउंसक लेखकक विचार अछि जे जँ राजा मेल सँ चाहतैथ तँ गयासुद्दीन हुनका संग बढिया व्यवहार करितथिन मुदा वो बिनु कोनो प्रकारक वार्ता कएने भागि गेल। अपन स्वतंत्रताक रक्षाक हेतु वो पहाडक कोरा मे नुका रहलाह। गयासुद्दीन ओहिठाम थोडेक दिन ठहरि समस्त राज्यक शासनक व्यवस्था अपने निर्देशन मे केलन्हि। ग्राम मुखिया (मकिद्दम) लोकनिक संग नीक व्यवहार दर्शौलन्हि आर तकर बाद सब प्रबंध केला उत्तर ओहिठाम सँ अपन राजधानी दिसि बढलाह।
एकर अतिरिक्त एकटा आर महत्वपूर्ण साधन अछि मुल्ला तकियाक वयाज । मुल्ला तकियाक वयाज पटनाक मासिक (पटना – १९४६) मे छपल अछि आर ‘मिथिला’ साप्ताहिक मे सेहो एकर मुख्य साराँश मैथिली मे छपल छल बहुत दिन पूर्वहिं जे आव उपलब्ध नहिं अछि। मुल्ला तकिया मुगल कालीन रइस छलाह आसाम जवाक क्रम मे मिथिला होइत गेल छलाह आर ताहि दिन मे अहिठाम जत्तेक गप किछु छल तकर विस्तृत विवरण संकलित कए वो मिथिलाक एकटा व्योरेवार इतिहास बनौने छलाह। एकर अतिरिक्त फरिता, अलवदाओनी, अबुल फजल, अब्दुल सलिम आर गुलाम होसेन हुसेनक पोथी सब सँ सेहो मिथिलाक इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पडैत अछि।
मुसलमानी साधनक अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनीक रेकार्डस, कलक्टरेटक कागज पत्र, अंग्रेज कर्मचारी लोकनिक मध्य भेल पत्राचार, जमीन्दारीक कागज आर दरभंगा राजक सचिवालय एवं रेकार्डस रूम मे सुरक्षित पुरान कागज सब सेहो मिथिलाक इतिहासक निर्माणक हेतु सहायक सिद्ध होएत। मिथिला मे जे बहुत रास जमीन्दारी छल।
ओहि सब जमीन्दारक ओतए विभिन्न प्रकार सरकारी गैर सरकारी कागज उपलब्ध अछि आर ओहि सब सँ मिथिलाक आधुनिक इतिहासक निर्माण मे काफी सहायता भेटल अछि। अहि सब केर संकलन एवं प्रकाशन आवश्यक अछि – दरभंगा राज्यक इतिहासक निर्माण अहि सँ बड्ड सहायता भेटल अछि। दरभंगा, बनैली, नरहन, वेतिया, सुरसंड, गंधवरिया, चकवार आदि राजवंशक वृहद एवं वैज्ञानिक इतिहास नहि लिखल जा सकल अछि। दरभंगा राज्यक अतिरिक्त बोंसी राज्य सब हक सबंध हमरा लोकनि केँ पूर्ण जानकारियों नहिं अछि कारण साधनक अभाव अछि। अहि सब साधनक वैज्ञानिक अध्ययन केला सँ मिथिलाक प्रमाणिक इतिहासक निर्माण भ सकइयै। सब साधनक समीचीन व्याख्या केला उत्तरे हमरा लोकनि मिथिलाक समीक्षात्मक सर्वेक्षण क सकैत छी। ओना आन प्रांतक तुलना अहिठाम साधनक सर्वथा अभावे कहल जाएत तथापि जतवा जे उपलब्ध अछि ताहि पर वैज्ञानिक रूपें अध्ययन करब आवश्यक मिथिलाक हेतु मैथिली साधन पर विशेष निर्भर करए पडत। अहि प्रसंग मे एकटा उदाहरण देव अ प्राँसगिक नहिं होइत। विद्यापति कवि होइतहुँ इतिहासक नीक ज्ञाता छलाह जकरा प्रमाण हमरा हुनक ग्रंथ सब सँ भेटैत अछि। पुरूष परीक्षा जाहि सिल – सिलेवार ढंग सँ वो एतिहासिक व्यक्तित्वक विवेचन कएने छथि ताहि सँ हुनक एतिहासिक वोध एवं वस्तुनिष्ठताक पता लगइयै। (अहि सबंध मे द्रष्टव्य – हमर लेख – विद्यापतिज पुरूष परीक्षा – जे हमर ‘हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहुत’ क परिशिष्ट मे छपल अछि।) ज्ञातब्य जे पुरूष परीक्षाक अध्ययन केला उपरांत स्वर्गीय चन्दा झा मिथिलाक इतिहासक अध्ययन दिसि आकृष्ट भेल छलाह आर ओहि सबंध मे बहुत रास सामग्री से हो जमा केने छलाह। कीर्तिलता, कीर्ति पतारा, लिखनावली आदि ग्रंथ से हो ओतवे महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक इतिहासक लेल मैथिली साधनक हेतु खोज करए पडत कारण एकर एकटा अविच्छिन्न प्रवाह वैदिक काल सँ अद्यावधि बनल अछि। यशस्तिल्कचम्पू मे तिरहुत रेजिमेटक विवरण मिथिलाक स्वतंत्र व्यक्तित्व केँ स्पष्ट करइत अछि। जकर स्पष्टोक्ति विद्यापति मे भेल अछि। मिथिलाक इतिहासक निर्माणक हेतु उपरोक्त सब साधनक वैज्ञानिक अध्ययन ओकर समीक्षात्मक विश्लेषण उपेक्षित अछि।


अघ्याषय – ३
जनकवंशक इतिहास
कुरू – पाँचाल मे कुरूवंशक अंत भेला उत्तर भारत’क जे सर्व प्रसिद्ध राज्यवंश छल तकरे हमरा लोकनि जनक वंशक नाम सँ जनैत छे। अहि वंशक सर्वश्रेष्ठ एवं सर्व प्रसिद्ध राजा छलाह जनक जनिक दरबार दर्शनक प्रसिद्ध केन्द्र छल आर ओहि हेतु मिथिला मे जनकवंशक एतेक प्रसिद्धियो अछि। कुरू लोकनिक अवसानक काल मे पूर्वी भारत मे जनकवंश उत्थानक पथ पर छल। एकर सब सँ पैघ प्रमाण ई अछि जे ब्राह्मण साहित्य मे ताहि दिन मे कुरू राजकुमार लोकनि केँ ‘राजन’ क संज्ञा सँ सम्बोधित कैल जाइत छ्लन्हि आर जनक राजवंशक लोक केँ ‘सम्राट’ क संज्ञा सँ। शतपथ ब्राह्मण मे सम्राट केँ राजन् सँ पैघ मानल गेल अछि। पौराणिक चाकरायन आर निचलक समय मे कुरू लोकनिक पतन भेल छलैन्ह। राजा परिक्षितक अवसान भचुकल छल परञ्च हुनक स्मृति अखनो लोकक मध्य विराजमान छल आर मिथिलाक राजदरबार मे वो अहुखन श्रद्धाक संग चर्चित छलाह। जनकक सभा मे जे दार्शनिक विचार – विमर्श एवं एवं चिंतन’क क्रम चलैत छल ताहुठाम राजा परिक्षित एकटा विचारणीय विषय बनल छलाह जेना कि भुज्यु लाह्यायनि एवं याज्ञवल्म्यक विवाद सँ स्पष्ट होइछ। सम्प्रति हमरा लोकनिक समक्ष जे साधन मिलल अछि ताहि आधार ई कहब कठिन अछि जे जनमेजेय आर जनक वंशक मध्य कोनो प्रकारक सम्पर्क छल अथवा नहिं। पुराण एवं महाकाव्य मे जनक आर परिक्षित वंश केँ सम – सामयिक कहल गेल छैक। जनक केँ उद्धालक आरूणि आर याज्ञवल्म्यक सम – सामयिक कहल गेल छैक। महाभारत मे वर्णित अछि जे जनमेजेयक सर्पसत्र मे उद्धालक आरूणि एवं हुनक पुत्र स्वेतकेतु उपस्थित छलाह। विष्णुपुराण मे तँ एतवा धरि कहल गेल अछि जें जनमेजेयक पुत्र एवं अधिकारी शतानीक याज्ञवल्म्य सँ वेदक शिक्षा ग्रहण केलन्हि। उपरोक्त कथन केँ प्रामाणिक मानव असंभव कारण वैदिक साहित्य, पुराण आर महाकाव्यक मध्य तिथि निर्धारण एवं राजवंशक साक्ष्यक संबध मे एकटा विरोधाभास अछि आर तें अद्यावधि अहि सब शासक लोकनिक काल निर्धारण एकटा समस्ये बनल अछि। देश – विदेश मे अहि प्रश्न पर वेस विवाद भेल अछि परञ्च तइयो प्रामाणिकताक लेशमात्र कतहु देखबा मे नहिं अवइयै। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार दैवापशौनक जनमेजेयक सम – सामयिक छलाह। जैमिनी उपनिषद एवं वंशब्राह्मणक अनुसार दैवाप शौनकक शिष्य छलाह दूनि एन्द्रोत आर एन्दोतक शिष्य छलाह पुलुप प्राचीन योग्य। पुलुप प्राचीन योग्य। पुलुपक शिष्य छलाह पौलुषी सत्ययज्ञ।छान्दोग्य उपनिषदक अनुसार सत्ययज्ञ उद्धालक आरूणि एवं बुडिल आश्वतराश्वीक समकालीन छलाह आर अहि हिसाबे तँ वो जनकक समकालीन सेहो रहलहेतहि। अहि सँ होइछ जे इन्द्रोत जनमजेयक समकालीन रहल हेताह आर सातयज्ञि जनकक। जनक जनमजेय सँ पाँच – छह पीढी बाद मे भेल होथि से संभव। विदेह राजक सर्वप्रथम उल्लेख हमरा लोकनि केँ यजुर्वेदक संहिता मे भेटैत अछि। वाल्मीकि रामायणक अनुसार एहि राजवंशक मूल संस्थापक छलाह राजा निमि। हुनके पुत्र छलाह मिथि आर मिथिक पुत्र जनक प्रथम। ओहि वंशक जे सीताक पिता छलाह उवैह भेलाह जनक द्वितीय आर हुनक भ्राता कुशध्वज साँकास्यक शासक छलाह। वायु एवं विष्णुपुराण मे निमि केँ इस्वाकुक पुत्र कहल गेल अछि आर ओहि निमि के विदेहक संज्ञा सेहो देल गेल अछि। ओहि ‘विदेह’ सँ ओहि क्षेत्रक नाम विदेह सेहो पडल। वायुपुराण मे वशिष्टक जाहि श्रापक उल्लेख अछि तकर वर्णन हमरा लोकनि केँ बृहद्धवता मे सेहो भेटैत अछि। उपरोक्त दुनु पुराणक अनुसार निमि’क पुत्र ‘मिथि’ केँ जनक प्रथम सेहो मानल जाइत अछि आर ओहि क्रम मे सीताक पिताक नाम सीरध्वज जनक सेहो भेटैत अछि। इवैह सीरध्वज संभवतः रामायणक द्वितीय जनक भसकैत छथि। पुराणक अनुसार अहिवंशक अंतिम राजा कृति छलाह। रामायण, महाभारत आर पुराणक अध्ययन सँ ई स्पष्ट होइछ जे जनक, व्यक्ति विशेषक नामक अतिरिक्त, वंशक नाम सेहो छल। अहिप्रसंग मे ई स्मरण राखब आवश्यक जे अहि वंशक क्रम मे जनकानाम, जनकै आदि शब्दक जे प्रयोग भेल अछि ताहु सँ उपरोक्त कथन प्रमाणित होइत अछि। वैदिक साहित्य मे नमिसाण्य नामक एकटा विदेहक राजाक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। मुदा अहिठाम ई स्मरणीय जे नमिसाण्य कतहु कोनोठाम मिथिलाक राजवंशक संस्थापकक रूप नहिं उपस्थित कैल गेल अछि। शतपथ ब्राह्मणक कथा सँ एतवाधरि स्पष्ट अछि जें विदेघ माथव मिथिलाक राजवंशक ऐतिहासिक संस्थापक छलाह। वो सरस्वती नदीक तट सँ सदानीरा (गण्डकी) केँ तह धरि आएल छलाह। हुनका संग हुनक पुरोहित गौतम राहुगता। सरस्वतीक तट सँ जंगल के जरबैत वो लोकनि मिथिला धरि पहुँचलाह। आहि सँ पूर्व कोनो ब्राह्मण एम्हर एतए दूर धरि नहिं आएल छलाह कारण ताधरि अहि क्षेत्र के अग्निवैश्वानर द्वारा जराओल नहि गेल छल। एम्हुरका जमीन दल – दल छल आर किछु उपजा वारी नहिं होइत छल। अग्निदेव जखन अहि भूमि केँ जरा केँ पवित्र केलन्हि तखन माथव हुनका सँ पूछलथिन्ह जें हम आव कोम्हर जाईव ताहि पर अग्निदेव कहलथिन्ह जे अहां पूर्व दिस जाउ आर ओतहि अपन वास स्थापित करू तदुपरांत माथव विदेघ अथवा मिथि विदेह ओहिना काज केलन्हि आर उत्तरपूर्वी भारत मे एकमात्र आर्य राज्यक स्थापना संभव भेल। जँ हमरा लोकनि शतपथ ब्राह्मणक अहिकथाक ऐतिहासिकता केँ स्वीकार करैत छी तखन तँ ई स्पष्ट भ जाइछ जें ‘निमि साप्य’ मिथिलाक संस्थापक नहिं छलाह आर ने हुनका ई प्रतिष्ठे देल जा सकैत छन्हि। मज्झिम निकाय आर निमि जातक मे मखा देव केँ मिथिलाक राजवंशक संस्थापक कहल गेल छैक। जनक वंशक संबध मे एवं प्रकारे ततेक रास नेऽ मतभेद अछि जे ओहि प्रसंग मे कोनो निर्णयात्मक उत्तर देव असंभव। बृहद्देवता मे उल्लेख अछि जे विदेह लोकनि सरस्वती तट सँ मिथिला पहुँचला उपरांतो अपन वंश सँ सरस्वती नदी सबंध बहुत दिन धरि बनौने रहलाह आर अहि बातक पुष्टि तखन आर होइछ जखन हमरा लोकनि पंचावंश ब्राह्मणक निमि साप्य प्रकरण पर दृष्टिपात करैत छी। बौद्ध साहित्य मे मिथिला मे निमि केँ प्रथम शासक नहि मानिओ बाद’क शासक मानल गेल अछि। मिथिलाक राजवंश के सामान्यतः जनक वंश कहल गेल अछि तैं कोन जनक महान जनक छलाह जनिक पुत्री सीता छलथिन्ह अथवा जनिक दरबार मे विद्वानक गोष्ठी भेलछल से कहब असंभव। ओकर प्रामाणिकता सिद्ध करब सेहो असंभव।
विभिन्न श्रोत सँ उपलब्ध सामग्रीक अध्ययन केला संता हमरा लोकनि अहि निष्कर्ष पर पहुँचैत छी जे सीताक पिताक नाम छल सीरध्वज जनक। पुराण मे जनक राजवंशक जे सूची अछि ताहि आधार पर हमरा लोकनि उपरोक्त निर्णय पर पहुँचैत ची। अयोध्याक भरतक माम छलथिन्ह केकेयीक राजा अश्वपनि आर सीरध्वज जनक हुनके समकालीन छलाह। उद्धालक आरूणि आर बुडिल अहि दुनु राजाक दरबार मे बरोबरि जाइत छलाह। भयभूति सेहो अहिमतक समर्थक छथि जे सीरध्वज जनक सीताक पिता छलाह। जातक नं ५३९ मे जाहि महाजनकक चर्च अछि सैह संभवतः सीरध्वज जनक छलाह आर हुनके दरबार विद्वानक हेतु विश्वविख्यात छल। अहि महाजनकक संबध मे कहबी अछि –
“ मिथिलायाम् प्रदिप्रायाम्
नमे दहयनि किञ्चन। अपिच भवति मैथिलेन गीतम्
नगरम् आहितम् अग्निनऽभिविद्य,
न खलु मम हि द्य्यतेत्र किञ्चत्
स्वयमिदमाह किलस्म भूमिपालः”
अहि सं तँ स्पष्ट रूपे जनक विदेहक बोध होइछ।
महाभारत, शतपथ ब्राह्मण एवं वृहदारण्यकोपनिषद मे जनक केँ सम्राटक संज्ञा देल गेल छैक। सम्राट जनकक महानताक द्दोतक कहल जा सकइयै कारण बिनु वाजपेय यज्ञ केने केओ सम्राट नहि कहा सकैत छल। आश्वलायन श्रोत सूत्र मे जनक केँ महान यज्ञकर्ताक रूप मे वर्णन कैल गेल छैन्ह। सम्राटक हिसाबें कम आर चिंतक एवं दार्शनिक हिसाबें वेसी ई महान जनक इतिहास मे विशेष प्रसिद्ध छथि आर मिथिलाक अहुना जतवा जे सांस्कृतिक प्रतिष्ठा अछि ओकर जडि मे छथि इयैह राजा जनक आर हुनक राजदरबारक।ताहि दिन मे मिथिलाक राजदरबार संस्कृति आर दर्शनक प्रधान केन्द्र छल आर अहिठाम विजय प्राप्त करबाक अर्थ होइत छल समस्त भारत मे यश प्राप्त करब। कुरू पाँचलि, मद्र, कौशल आदि स्थानक विद्वान लोकनि जनकक दरबार के सुशोभित करैत छलाह। किछु प्रसिद्ध विद्वानक नाम एवं प्रकार छन्हि–अश्वल, जारतकारव, आर्तभाग, भुज्यु लाहयायनि, उवस्त चाकरायण, कहोड (कहोल) कौषीतकेय, गार्गी वाचक्नवी, उद्धालक आरूणि, आर विदग्ध शाकल्य इत्यादि। कुरू पाँचलिक ब्राह्मण संग जनकक संबध विलक्षण छलैन्ह आर ओहिठाम सँ तरह – तरहक विद्वान केँ वो अपना ओतए बजबैत छलाह। राजा जनकक सबंध मे ऐतिहासिकताक जतवा जे अभाव हो मुदा ओकर साँस्कृतिक महत्वक संबध मे ककरो कोनो प्रकारक सन्देह नहि छन्हि।
जेना कि उपर कहल जा चुकल अछि जनक वंशक प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करब एकटा कठिन समस्या अहुखन बनले अछि आर सम्प्रति एकर कोनो निदानो देखवा मे नहि अवइयै।जाहि ‘कृत’ केँ कुलक्षण सँ तुलना कैल गेल अछि से संभवतः कराल जनक रहल हेताए कारण ऐतिहासिक दृष्टिकोण सँ हमरा लोकनि जनैत छी जे कराल जनक अजातशत्रुक समकालीन छलाह आर हुनके शासन काल मे जनक वंशक अंत भेल। इहो संभव जे ‘कृति’ आर ‘कएल’ दुनु दु जनक वंशक अंतिम शासक होथि।
वैदिक साहित्य मे माथव आर जनकक अतिरिक्त दू आर विदेह वंशक उल्लेख भेटैत अछि – निमि साप्य आर पर आहलारक। किछु विद्वान पर कोशलक शासक पर आतणार सँ मिलवैत छथि। पंचविंश ब्राह्मण मे निमि साप्य केँएक महान यज्ञकर्ता कहल गेल अछि आर तै किछु गोटए हुनका जनक सँ मिलवैत छथि। वैदिक निमि साप्यक तुलना उतराध्यायन सूत्रक राजा निमि सँ। विष्णुपुराणक नेमी सँ, मज्झिम निकायक मखादेव सुप्तक निमि सँ तथा कुम्भकार एवं निमिजातक मे वर्णित ओहि नामक राजा सँ करैत छथि। एकर प्रत्यक्षीकरण अखनो एकटा ऐतिहासिक समस्या बनल अछि। निमिजातकक अनुसार वो मैथिल राजवंशक अंतिम शासक छलाह आर संगहि पाँचालक राजा द्विमुख, गाँधारक नग्गति आर कलिंगक करण्डुक समकालीन सेहो। मज्झिम निकायक उपरोक्त सुत्र मे कराल(कलार) जनक केँ निमिक पुत्र कहल गेल अछि। कौटिल्यक अर्थ शास्त्र मे अहि कराल जनक केँ ‘वैदेह’ कहल गेल अछि। अहि राजक संग ‘वैदेह’ वंशक अंत भेल। वैदेह वंशक अंत होइतहिं अहिठाम कुलीनतंत्री गणतंत्रक स्थापना भेल आर ई वैशाली कुलीनतंत्र अथवा वृज्जिसंघक एकटा प्रमुख अंग बनि गेल। प्राचीन परंपरा सँ अहिबातक सबूत भेटैत अछि जे विदेह मे बरोबरि संघर्ष होइत रहैत छलैक। महाभारतक अनुसार काशीक प्रतरदन आर विदेहक जनकक मध्य संघर्ष भेल छल। परमथ्थजोतिक नामक बौद्ध ग्रंथ मे कहल गेल अछि जे जनक वंशक अंत भेला पर उत्तर विहार अथवा मिथिला मे लिचछवी लोकनिक शक्तिशाली शासन प्रारंभ भेल। लिच्छवीक संबध सेहो काशी सँ बताओल जाइत अछि। किछु श्रोत सब अहि बातक दिसि संकेत कैल गेल अछि जे वैशाली विदेह पर प्रत्यक्ष वा प्रत्यक्ष रूपें काशीक प्रभाव छल।
यजुर्वेद संहिताक अध्ययन सँ ज्ञात होइछ जे ब्राह्मण युग मे विदेहक राजनैतिक आर साँस्कृतिक महत्व एक्के रंग छल। ताहि दिन मे विदेहक गाय समस्त उत्तरी भारत मे प्रसिद्ध छल। पश्चिम मे जे स्थान कुरू – पाँचाल लोकनिक छलैन्ह से पूर्व मे कोशल – विदेह लोकनिक। कोशल आर विदेहक निवासी विदेघ माथव केँ अपन पूर्वज शाखा संस्थापक मनैत छथि। अहिठाम ई स्मरण रखबाक अछि जे विदेघ माथव (विदेह माधव) अपनामुँह मे अग्निवैश्वानर केँ लकऽ चलल छलाह। अहि सँ ई स्पष्ट अछि जे पूर्वी भारतक ई समस्त हिस्सा जंगल आर दलदल छल आर अग्निवैश्वानरक प्रतापें ओहि जंगल केँ जरा केँ विदेघ माथव एकरा रहबा योग्य भूमि बनौलन्हि। विदेह आर्यक प्रसारक पूर्वी सीमारेखा बनल। एकटा प्राचीन परंपरा मे तँ इहो कहल गेल अछि जे विदेहक आर्यकिरण भेलाक पछाति शतपथ ब्राह्मणक रचना विदेहे मे भेल। अहि संबध मे विद्वानक मध्य काफी मतभेद अछि। एतवाधरि निश्चित एवं निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे विदेहक साँस्कृतिक मान्य्ता समस्त उत्तर भारत मे छल। उपनिषदक युग विदेहक ब्राह्मणक प्रतिष्ठा कुरू – पाँचालक ब्राह्मण सँ विशेष छल। विदेहक महत्व एतेक छल जे वादो मे एकर च्गर्च विभिन्न साहित्य इत्यादि मे होइत रहल। जातक, बौद्ध साहित्य, अध्यात्म रामायण, रामायण आदि ग्रंथ सब मे विदेहक वैशिष्ट्यक विश्लेषण भेटैत अछि।
अपन दिग्विजयक क्रम मे भीम विदेहक राजा केँ पराजित कएने छलाह। विदेहक राजधानी मिथिला पर कर्ण अपन दिग्विजयक क्रम मे अपन आधिपत्य स्थापित कएने छलाह। शांति पर्व मे एक स्थल पर जनक – याज्ञवल्म्यक वार्तालापक प्रसंग आएल अछि। एकर अतिरिक्त महाभारत मे वेदेह राज जनकक प्रसंग मे निम्नलिखित बातक उल्लेख भेटइयै –
______ i) जनकक आध्यामिकताक विवरण
______ ii) पंचशिख आर शल्याक संग जनकक वार्तालाप
______ iii) शक केँ जनक द्वारा शिक्षा देवाक प्रसंग
भीम आर अर्जुनक संग जखन कृष्ण इन्द्रप्रस्थ सँ राजगीर जाइत छलाह तखन वो मिथिला सेहो आएल छलाह आर एहेन बुझि पडइयै जे ताहि दिन मे राजगीर जेवाक बाट मिथिले दकए छ्ल। भीष्म पर्व मे विदेह लोकनिक विश्लेषण अछि। भीष्म पर्वक एक स्थान पर विदेह लोकनिक संग आर दोसर वेर ताम्रलिप्तक लोकनिक संग भेल अछि। ‘विदेह’ शब्दक उत्पत्तिक विवरण विशुद्ध रूपेण विष्णु पुराण मे भेटइत अछि। विदेह निमि सँ उत्पन्न मिथि जे नगर बसौलन्हि सैह मिथिला कहा ओल। दीघनिकायक महागोविन्द सुत्तांत मे कहल गेल अछि जे गोविन्द नामक एक व्यक्ति मिथिलाक संस्थापक छलाह। विभिन्न श्रोत सँ विदेहक विभिन्न राजा लोकनिक नाम भेटइत अछि – सागर देव, भरत, अंगीरस, रूचि, सुरूचि, पताप, महामुचल, कल्यान द्वय, सनधनु, मखादेव, साधीन इत्यादि। स्वप्रवास्वदत्तम् (अंक ६) मे सेहो उद्यन केँ वैदेही पुत कहल गेल छन्हि। बिम्बिसारक पत्नी वासवी (अजातशत्रु माय) सेहो विदेह पुत्री छलीहे। वर्धमान महावीर विदेह पुत्री विदेह दत्ताक पुत्र छलाह आर वो स्वयं बहुत दिनधरि मिथिला – विदेह मे रहल छलाह। छह टा वर्षावास व्रो विदेह मे वितौने छलाह। महावीर आर बुद्धक समय मे जे वृज्जि संघ छल तकर दूटा प्रमुख सदस्य छलाह लिच्छवी आर विदेह लोकनि। अहि वृज्जि संघ के कौटिल्य राज शब्दोपजीवी संघ कहने छथि। विदेहक वन सम्पति महत्वपूर्ण छल आर अहिठामक प्राकृतिक साधन सेहो समृद्ध छल। धन, जन, पशुक कतहु कोनो अभाव नहि छल। जातकक अनुसार विदेह मे १६००० गाँव छल आर १६००० नाचै वाली छौडी। रथ, घोडा, हाथी, बरद, गाय, माल आदिक तें कथेऽ न ञ। चीनी यात्री लोकनि सेहो मिथिला – विदेह आर वृजीक विवरण उपस्थित कएने छथि आर ओहि आधार पर किछु विद्वान मिथिलाक राजधानी जनकपुर केँ मानैत छथि। जातक मे एवं जैन ग्रंथ सब मे विदेह संबधी असंख्य कथा सब सुरक्षित अछि। एक कथा मे कहल गेल अछि जे विदेहक राजा केँ गान्धार राज वोधिसत्वक संग मित्रताक संबध छलैन्ह। दुनु अपन राज केँ छोडि तपस्या करबाक हेतु हिमालय गेल छलाह। मखादेव, साधीन, सुरूचि आदिक संबध मे सेहो कैक प्रकारक कथा जातक मे सुरक्षित अछि। साधीन एक पवित्र आत्मा छलाह जनिक न्याय प्रियता सँ ईश्वर लोकनि सेहो प्रभावित छलाह। सुरूचिक पत्नीक नाम सुमेधा छलन्हि आर उहो दुनु गोटए परम धर्मात्मा छलाह। वैदिक युग मे काशी, कोशल आर विदेह प्रधान आर्य केन्द्र छल। मगध आर अंगक निवासी केँ व्रात्य बुनेल जाइत छलैक आर वाक्यक अर्थ होइत छल ‘पतित’। प्राच्यक सबटा आर्य केन्द्र सब मे विदेह सर्व प्रधान छल। गौतम, याज्ञवल्म्य, भृगु, वामदेव, कवि, अगस्त, भार्गव, भारद्वाज, इत्यादि ऋषिगण विदेह मे एकत्र भेल छलाह आर सत्प्रयास सँ वो निमि के जीवित केलन्हि। मिथिला – विदेहक शासक लोकनि जनक आर “वैदेह” पदवी सँ विभूषित होइत छलाह। राजा जनक ‘ब्रह्मज्ञानक अंवेषणार्थ कुरू पाँचाल सँ बहुत रास ब्राह्मण के बजौलन्हि आर ओहिक्रम वो याज्ञवल्म्य सँ ब्रह्मविद्याक उपदेश पऔलनि। याज्ञवल्म्य जनकक राजगुरू बनलाह आर विदेह मे ब्रह्मविद्याक केन्द्र स्थापित भेल। महाभारत युद्ध मे मिथिलाक राजा क्षेमधूर्त्ति दुर्योधनक पक्ष मे छलाह कियैक तँ पाण्डुवंश एक वेर मिथिला पर आक्रमण कएने छलाह। दुर्योधन मिथिले मे बलभद्रक ओतए गदा सिखने छलाह आर तखनहिं सँ मिथिलेश आर दुर्योधन मे वेस मित्रता भ गेल छलन्हि। महाभारत युद्धक समय मे मिथिला मे विराट नामक एकटा शासक छलाह।दरभंगा जिलाक बराँटपुर आर सहरसा जिलाक बराँटपुर दुनु अहि राजाक राजधानी कहल जाइयै। सहरसाक वराँटपुर सँ साबिकक वस्तु सेहो प्राप्त भेल अछिओ जाहि मे मध्य युगक एकटा शिलालेख सेहो अछि। नेपाल क्षेत्र मे सेहो एकटा विराटनगर छैक। मिथिला स्थित विराटनगर मे युधिष्ठिर राजा विराटक ओतए बहुत दिन धरि अज्ञातवास मे रहल छलाह। कहल जाइछ जे वराटपुर आर कीचकगढ प्रांत सहरसा जिलाक धर्मपुर परगना मे छल आर पच पडरिया ग्राम मे पाण्डव लोकनि अपन अज्ञातवासक समय वितौने छलाह। विदेहक संबध मे सामग्री उपलब्ध अछि ताहि आधार पर निर्णयात्मक इतिहासक निर्माण करब असंभव अछि। प्राच्य मे रहनिहार काशी, कोशल, मगध, आर विदेहक लोग मे विदेह वासी के विशिष्ट स्थान देल गेल छैक। मनुस्मृति मे वैश्य पिता आर ब्राह्मण माता सँ उत्पन्न व्यक्ति केँ “वैदेह” कहल गेल छैक। मनुस्मृति ब्रह्मर्षि देश केँ विशेष महत्व देल गेल छैक जतए भरत लोकनि रहैत छलाह। एकर अर्थ ई भेल जे मनु पूर्वी क्षेत्र केँ बहुत पवित्र नहिं मानैत छलाह। लिच्छविक संग वो विदेह लोकनि केँ सेहो व्रात्यक कोटि मे रखने छथि। मनु चाहे अहि क्षेत्र केँ जाहि हिसाबें देखने होथि, महाभारत मे मिथिला केँ विशेष प्रतिष्ठा देल गेल अछि। शखदेव तँ जनक सँ ब्रह्मविद्या सिखबाक हेतु मिथिला आएल छलाह। ‘जनक’ पदवीक प्रारंभ राजा मिथिलाक समय सँ भेल छल। I. जनक वंशक राजाक नामावली
____ निमि (विदेह) ____ मिथि –
____ अरिष्टनोमि –
____ सीरध्वज – (जनक द्वितीय), सीताक पिता (छोट भ्राता कुशध्वज) (हिनका सँकाश्च जीतला पर सीरध्वज ओतुका राजा बना देलक)
____ भानुमंत –
____ सतधुम्न – (प्रद्युम्न) ____ शुचि (मुनि) ____ उर्जवह
____ सुतध्वज (सत्वध्वज, सनध्वज) ____ शकुनी (कुणी) - (अहिठाम सँ जनक वंश दू भाग मे बँटि गेल) –
II. (पुराणक अनुसार बनाओल सूची)
____ निमि
____ मिथि
____ उदावसु ____ नन्दिवर्धन ____ सुकेतु ____ देवराट ____ बृहद्रथ (बृहदुक्त) ____ महावीर ____ सुधृति ____ धृष्टकेतु
____ हरयाश्व ____ मरू
____ प्रतिन्धक
____ कीर्तिस्थ
____ देवमिढ
____ विबुद्ध
____ महिधक्र
____ कीर्तिराट
____ महारोमा
____ स्वर्णरोमा
____ हस्वरोमा
____ सीरध्वज जनक (जनक द्वितीय)
III. (सीर ध्वज वंशज) ____ कृतिजनक (अपना समयक महान
शासक आर चिंतक) –
(बहुलाश्वक पुत्र)
उग्रायुध –
IV. साँकाश्च मे ____ कुशध्वज – (भरत आर शत्रुघ्नक ससूर) धर्मध्वज
कृतध्वज आर मितध्वज खाण्डिम्य – (हिनका केँशीध्वज सँ युद्ध भेल छलैन्ह)
____ पुराण मे साँकाश्चक जनक वंशक अंत अहिठाम भजइत
अछि। पार्जिटर महोदय अपन डायनस्टीज आफ द कलि एज मे
लिखने छथि –
कलिंगाश्चैव द्वात्रिशंद अश्मकाः पंचविशंतिः कुरवश्चापि षट् – त्रिशद अष्टावंशति मैथिलाः॥ महापद्मनन्द मैथिल राज्य के पराजित कएने छलाह – ताहि दिन पुराणक अनुसार २४ टा इद्वाकु, २७ टा पाँचाल, २४ टा काशी, ३६ टा कुरू आर २८ टा मैथिल शासक क्षत्रिय वंश मे शासन क चुकल छलाह।
V. जातक सूची : -
सुरूचि सुरूचि कुमार
महापणाद
संदिग्ध : - विदेह महाजनक
अस्थि जनक पोल जनक
महाजनक द्वितीय दिघावु कुमार VI. अन्यान्य राजाक नाम – (जातक सँ) _ कलार अथवा कराल जनक _ अंगति
_ साधीन
_ पर अहलार
VII. विदेह राजतंत्रक अवसान
अर्थशास्त्र मे –
दाण्डक्यो नाम भोजः कामाद ब्राह्मण कान्याममि मन्यमानः
सुबन्धुराष्ट्रो विनाशकएलश्च वैदेहः। अहि सँ स्पष्ट अछि जे कराल जनकक समय मे मिथिलाक राजतंत्रक अंत भेल राजा कराल व्यभिचारी छलाह आर अपन चरित्रक चलते हुनका राजगद्दी सँ हाथ धोमए पडलन्हि। अश्वघोष अपन बुद्धचरित मे सेहो अहि प्रसंग मे लिखने छथि –
“कराल जनकश्चैव हृत्वा ब्राह्मणकन्यकाम अवाप भ्रंशमप्येवं न तु से जे न मन्मधम्”
कहल जाइत अछि जे कराल जनकक प्रजा राजाक दुर्व्यहार सँ तंग आवि विद्रोह केलन्हि आर राजा के मारिओ देलन्हि आर विदेह राजतंत्रक ओहि दिन सँ भीतरे – भीतर काशीक हाथ सेहो रहल होएत एहन अन्दाज लगाओल जा सकइयै। सुरूचि जातकक अनुसार काशीक राजा ब्रह्मदत्त अपन पुत्री सुमेधाक विवाह विदेहक राजकुमार सँ करेबा लेल तैयार नहि भेला आर तकरा चलते विदेह राज काशी पर खिसिया गेलाह। आरो बहुत रास बात लकए काशी मिथिलाक उन्नति नहि देखए चाहैत छल आर तरे – तर मिथिला केँ नष्ट करबाक कुचक्र करैत रहैत छल। काशीक अतिरिक्त कुरू – पाँचाल सँ से हो मिथिला केँ मतभेद रहैत छलैक। कुरू – पाँचालक महत्व घटलाक बाद मिथिलाक प्रगति सँ कुरू – पाँचाल केँ ईर्ष्या होइत छलैक। कुरू – पाँचाल सँ पैघ विद्वानों के अहिठाम बजाओत जाइत छलैक। महाउमग्य जातक सँ ज्ञात होइछ जे उत्तर पाँचालक राजा ब्रह्मदत्त सँ मिथिलाक राजा के लडाई भेल छलैक आर अहि सब सँ दिनानुदिन मिथिला पर परेशानी बढले जाइत छलैक।
मिथिलाक राज्य मे सेहो आपसी संघर्ष होइते रहैत छलैक जाहि सँ ओहिठाम चारूकात असंतोष पसरल छल। इयैह कारण छल जे खण्ड सन सुयोग्य महामंत्री विदेह छोडि केँ वैशाली चलि गेल छलाह आर ओहिठाम सम्मानित भेल छलाह।
बुद्धघोषक अनुसारे जनक वंशक शासनक अंत भेला उपरांत लिच्छवी लोकनि ओकर उत्तराधिकारी भेलाह परञ्च अहि प्रश्न के लकए विद्वान कवीच अखनो मतभेद बनल अछि। पौराणिक आधार पर कहल जाइये जे वैशाली मे इद्वाकु वंशक अंत भेला पर वैशाली मिथिला मे मिलगेल परञ्च अहु पर विद्वान लोकनि एकमत नहिं छथि।
विदेह वृज्जीगणराज्यक (जाहि मे आठ गणराज्य सम्मिलित छल) संघक रूप मे पतंजलि विदेहक वर्णन केने छथि – “ संधान्माभूत पंचालानाम पत्यम विदेहा नामपत्यमिति”। विदेह आर वैशाली मे ई. पू. ६ ठम शताब्दी गणराज्य छल से मानल जाइत अछि। कराल जनकक बाद संभवतः मिथिला मे गणराज्यक स्थापना भेला उत्तरो ओहिठाम शासक केँ राजा कहल जाइत होन्हि से संभव। उवासगद साओ (पूम शताब्दीक) मे मिथिलाक वर्णन अछि। १२म शताब्दीक अभिधानप्पदीपिका मे २४ प्रसिद्ध नगरक नाम मे मिथिला आर वैशालीक नाम अछि। जैन आर बौद्ध साहित्य मे मिथिला केँ गणराज्यक रूप मे वर्णन कैल गेल छैक आर ओहि सँ ओकर प्रसिद्धि छलैक से स्पष्ट अछि। वैशाली समेत जे दशटा गणराज्यक उल्लेख पालि साहित्य मे अछि ताहि मे मिथिलोक स्थान छल जाहि सँ बुझना जाइत अछि जे कराल जनकक पतनक बाद वैशाली समेत विदेह मे गणराज्यक स्थापना भगेल। बुद्धक समय मे विदेहक गणना गणराज्यक रूप मे कैल गेल अछि। अजातशत्रुक आक्रमण सँ वैशालीक अंत भेल आर महापद्मनन्दक आक्रमण सँ मिथिलाक। वैशालीक पतनक बादो लगभग २५० वर्ष धरि मिथिला अपना केँ मगध साम्राज्यवादक चाङुर सँ मुक्त रखबा मे सफल रहल छल। नंदवंशक बाद भारत मे मौर्यक तत्वावधान मे एकटा अखिल भारतीय साम्राज्यक स्थापना भेल आर मिथिला ओकरे अंग भगेल।



अध्याय – ४
वैशालीक इतिहास

i.) भौगोलिक विश्लेषण : - अति प्राचीन काल मे भौगोलिक क्षेत्रक हिसाबें वैशाली विदेह राज्यक अंतर्गत छल, आर विदेह जकाँ वैशाली मे सेहो पहिने राजतंत्र छल आर तत्पश्चात् गणतंत्र भेल। वैशाली गण्डक सँ पूर्व अछि आर एकर आर्यीकरण विदेहक संग भेल छल। प्राचीन उत्तर विहारक वैशाली और विदेह दूनू महत्वपूर्ण राज्य छल आर दुनूक अपन अलग – अलग ऐतिहासिक महत्व छैक। अति प्राचीन विदेहक अंग होइतहुँ, वैशालीक सेहो अपन एकटा निर्धारित क्षेत्र छैक। प्राचीन वैशालीक अंतर्गत चम्पारण आर मुजफ्फरपुर जिलाक विशेष भाग छल आर विदेहक अंतर्गत छल दरभंगा, कटिहार, समस्तीपुर, मधुबनी, सहरसा, पूर्णियाँ, अररिया, बेगुसराय, मूँगेरक उत्तरी भाग, भागलपुरक उत्तरी भाग आर नेपालक तराई सेहो विदेह वैशालीक अंश छल।
विदेह शब्दक अर्थ ताहि दिन मे वेस व्यापक छल – विदेह एकटा जातिक नामक संकेत सेहो दैत छल। विदेह एकटा भौगोलिक सीमाक प्रतीक छल एवं विदेह एकटा राज्य छल जकरा अंतर्गत ताहि दिन मे गण्डकीक पूव सँ महानंदा धरिक समस्त क्षेत्र सम्मिलित छल। आधुनिक उत्तर विहारक द्दोतक छल विदेह। इयैह कारण थिक जे अहि व्यायकताक कारणे महावीरक जन्मस्थान कुण्डग्राम केँ विदेह मे मानल गेल अछि, अजातशत्र्य केँ वैदेही पुत्र कहल गेल अछि। विदेहक व्यापकताक प्रभाव पाछाँ धरि बनल रहल कारण हम देखैत छी जें ‘ललित विस्तार’ मे विदेहक संगहि पूर्व विदेहक वर्णन सेहो अछि। शक्ति संगम तंत्र मे जें मिथिला क्षेत्रक वर्णन भेल अछि ताहि मे कहल गेल अछि गण्डकीक तीर सँ चम्पाक जंगल धरिक जे क्षेत्र अछि उयैह क्षेत्र विदेह अथवा तैरभुक्ति कहबैत अछि। चम्पाक जंगल सँ अहिठाम बहुत गोटए चम्पारणक उत्तरी जंगली भागक अर्थ लैत छथि मुदा जखन हम एकर सीमाक विश्लेषण समीचीन नहिं अछि कारण विदेहक सीमा एतबेटा नहिं भसकइयै। चम्पाक जंगल धरिक अर्थ भेल वो क्षेत्र जे चम्पाक उत्तरी भाग मे छल आर जकरा बौद्ध साहित्य मे अंगुतराय कहल गेल अछि। चम्पा आर विदेहक सीमा कोनो एक खास बिन्दु पर मिलैत छल अहि मे संदेह नहिं। पुरूषोत्तम देव अपन त्रिकाण्डशेष मे, वामन अपन लिंगावुशासन मे एवं विदेह आर तीरभुक्ति केँ पर्यायवाची शब्द मानने छथि। बारहम शताब्दीक एकटा शिलालेख मे वैशाली केँ तीरभुक्तिक अंतर्गत बताओल गेल अछि। जीनप्रभासूरी अपन विविध तीर्थकल्प मे सेहो किछु अहि प्रकारक संकेत दैत तीरभुक्तिक विवरण देने छथि। शक्ति संगम तंत्र मे सेहो विदेह आर तीरभुक्ति केँ पर्यायवाची शब्द मानल गेल अछि। बौद्ध लोकनि विदेह आर वैशाली केँ दू अलग – अलग राज्यक रूप मे वर्णन कएने छथि। बौद्ध साहित्य मे वैशाली आर वृज्जि केँ पर्यायवाची मानल गेल अछि।
मूँगेर आर भागलपुरक उत्तरी भाग के बौद्ध साहित्य मे अंगुतराय कहल गेल अछि जकर सीमा कोनो समय मे लिच्छवीक राज्य सँ मिलैत छल। अंगुतरायक सीमा कमला – कोशीक बीच छल। प्राचीन अंगक उत्तरी सीमा छल कोशी आर पश्चिम मे एकर क्षेत्र बेगुसरायक गण्डकी धरि पसरल छल। वैशालीक लिच्छवी लोकनिक अधिकार कमला नदी धरि बढि गेल छलन्हि अर तकर बाद मिथिलाक राज्य शुरू होइत छल जाहि मे ताहि दिनक अंगुतराय आर पुण्डवर्धन मुक्तिक किछु अंश समाहित छल। तैं हमरा बुझने शक्ति संगम तंत्र मे जे चम्पाक जंगल धरिक गप्प अछि तकरा सँ चम्पारण नहिं बुझि अंगुतराय एवं ओकर ओहि क्षेत्रक वोध होइछ जाहिठाम ताहिठाम खाली जंगले – जंगल छल आर जमीन सेहो दलदले छल। गण्डकी सँ अंगक जंगलक सीमा धरि विदेहक राज्य पसरल होएत ई वेसी तर्कसंगत बुझि पडइयै आर तैं अखनो ई परिभाषा एकटा विचारणीय विषय बनल अछि। ii.) ऐतिहासिक विवरण (राजतंत्र धरि) : - विदेहक प्राचीन इतिहास जकाँ वैशालीक प्राचीन इतिहास ओझरैले अछि। यद्धपि पौराणिक श्रोत सँ वैशालीक विवरण भेटैत अछि परञ्च वैदिक साहित्य मे वैशालीक कोनो श्रृंखलाबद्ध विवरण उपस्थित नहिं अछि। यत्र – तत्र एहन एकाधटा नाम वैदिक साहित्य अथवा वेद मे भेटैत अछि जकर सम्पर्क वैशाली सँ रहल हो परञ्च अहि आधार पर वैशालीक कोनो इतिहास निर्माण करब असंभव। अथर्ववेद मे तक्षक वैशालेयक उल्लेख अछि आर हुनका विशालान्मज विराजक पुत्र कहल गेल छन्हि। पंचविश ब्राह्मण मे हुनके (वैशालेय) केँ एकटा सर्वयज्ञक पुरोहितक रूप मे वर्णन कैल गेल अछि। पुराण मे वैशालीक इतिहासक संबध मे बहुत रास सामग्री अछि परंतु ओहि मे ततेक ने विरोधाभास अछि जे ओहि मे सँ कोनो ठोस सत्यक निर्माण करब एकटा कठिन कार्य। मार्कण्डेपुराण मे मनु आर हुनक पुत्र प्रियव्रत तथा उत्तानपादक कथा अछि। प्रियव्रतक संतानक घनिष्ट संबध वैशाली एवं हिमालय क्षेत्र सँ छलन्हि। वृद्धावस्था मे अग्निध्र (प्रियव्रतक पुत्र) गण्डकी पर अवस्थित शालग्राम (हिमालय) गेल छलाह। हुनक पुत्र नाभि तपस्याक हेतु वैशाली आएल छलाह। ताहि दिन मे वैशाली विशालक नाम सँ प्रसिद्ध छल। नाभिक पुत्र छलाह ऋषभ (संभवतः प्रथम जैन तीर्थकर ईयैह छलाह) आर हुनक पुत्र भेला भरत जिनका नाम पर अहि देशक नाम अछि। भारतवर्षक पुर्व’क नाम छल हिमवर्ष। भरत अपन राज्य सुमति के दए तपस्या मे चल गेलाह।मार्कण्डे, भागवत, विष्णु आदि पुराण मे वैशालीक इतिहास जे विवरण अवइयै ताहि मे तत्तेक नेऽ संशयात्मक बात सब अछि जे हमरा लोकनि कोनो एकटा निर्णयात्मक सत्य पर नहिं पहुँचि सकैत छी तथापि ओहि श्रोतक आधार पर एकटा वैज्ञानिक इतिहासक रूपरेखा ठाढ करबाक प्रयास केल गेल अछि। गजेन्द्र मोक्षक प्रसंग सेहो वैशालीक इतिहासक प्रसंग मे अवइयै। गजे – ग्राहक संघर्ष वैशालीक गण्डकी क्षेत्र मे भेल छल आर कहल गेल अछि जे विष्णु गज के ग्राहकक चाङ्गुर सँ वचाकेँ अहि क्षेत्र केँ एकटा तीर्थक थान बना देलन्हि। ई घटना गंगा – गण्डकक संगम पर भेल छ्ल आर तैं एकटा गजेन्द्र मोक्ष तीर्थ,हरिहर क्षेत्र, हरि क्षेत्र कहल गेल अछि आर पुराण मे अहि स्थान केँ विशाल क्षेत्रक अधीन राखल गेल अछि। दिप्तिक तपस्याक क्षेत्र सेहो वैशाली छल। दिप्तिक पुत्र मरूत लोकनि जे समुद्रमंथनक कार्य कएने छलाह ताहि सँ ई स्पष्ट होइछ जे अति प्राचीन कालहि सँ वैशालीक लोक समुद्र सँ परिचित छलाह। हिन्दु, जैन आर बौद्ध धर्मक दृष्टिये सेहो वैशालीक इतिहास महत्वपूर्ण मानल जाइयै।
विदेह – वैशालीक प्राक – इतिहासक संबध मे हमरा लोकनिक ज्ञान एकदम स्वल्पो सँ कम अछि तथापि जे किछु हम जानतो छी से रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रंथक आधार पर। ओहु सब साधन मे सब मे अलग –अलग विवरण अछि। विदेहक आर्यीकरण सँ वैशालीक इतिहास प्रारंभ होइत अछि आर प्राचीन ग्रंथक आधार ई बुझना जाइत अछि जे मनुवैवस्वत केँ ९ टा पुत्र छलथिन्ह आर एकटा पुत्री जिनक नाम छलन्हि इला। नवो पुत्रक नाम अछि – इलाकु, नाभाग (नृग) , धृष्ट, शरयाति, नरिष्यंत, प्रांशु, नाभाने दिष्ठ, कारूष आर पृषधर। मनु भारत केँ १० भाग मे बटलन्हि। अहि ९ वो पुत्र मे नाभानेदिष्ठ वैशाली राज्यक संस्थापक भेलाह। हिनका वंश मे ३४ टा शासक भेलथिन्ह जाहि मे सन सँ अंतिम छलाह सुमति। सुमति अयोध्याक दशरथ आर विदेहक सीरध्वज जनकक समकालीन छलाह।
नाभाने दिष्ठक संबध मे सेहो प्राचीन साहित्य मे एकमत नहिं छैक। रामायण महाभारत अहि नाम पर गुम्म छथि। एहन बुझि पडइयै जे पाछाँ चलि के लोग अहि नाम के बिसैर गेल छल। राजा विशाल केँ वैशालीक संस्थापक मानल गेल छन्हि। रामायण मे वैशालीक राजा सुमतिक शासन क्षेत्र संबध मे कहल गेल अछि जे हुनक गण्डक सँ पुर्व आर विदेह सँ दक्षिण पश्चिम दिसि छल। अहि सँ स्पष्ट अछि जे नाभाने दिष्ठ जाहि राज्यक स्थापना वैशाली मे केने छलाह तकर सीमा ताहि दिन मे बड्ड छोट छल। हुनक पुत्र भेला नाभाग, जे वैश्य कन्या सँ विवाह केलाक कारणे, गद्दी सँ वंचित रहलाह। कृषि आर व्यवसाय मे वो वेसी रत रटए लगलाह आर हुनका भाई सब सँ सेहो नहिं पटलाक कारणे बरोबरि १२ घंटा लगले रहैत छलन्हि। नाभाग अपनी पत्नी प्रेमक चलते राजगद्दी केँ त्यागलन्हि आर क्षत्रियत्व छोडि वैश्यत्व ग्रहण केलन्हि। हुनका तीनटा पुत्र छलथिन्ह जाहि मे एकटाक नाम भालनंद छलन्हि आर दू भाई ब्राह्मणत्व प्राप्त कए ने छलाह। नाभागक अथक परिश्रमक कारणे वैशाली क्षेत्र मे कृषि आर व्यवसाय केँ प्रोत्साहन भेटलैक आर अति प्राचीन कालहि सँ वैशाली कृषि एवं उद्योगक प्रधान केन्द्र बनि गेल। एक विद्वानक तँ इहो मत छन्हि जे नाभागक वैश्यत्व ग्रहण करब वैशालीक नामक उत्पत्ति सँ संबध रखइयै। नगरक हिसाबें नाभाग अपना क्षेत्र केँ वैश्य लोकनिक हेतु सब सँ प्रमुख नगर बनैलन्हि आर उयैह नगर वाद मे वास्यु लोकनिक नगर अथवा वैशालीक नाम सँ प्रसिद्ध भेल। विदेह ब्रह्मविद्या आर आर्यसंस्कृतिक केन्द्र बनल आर वैशाली कृषि, उद्योग, वेद विरोधी धर्म आर कुलीनतंत्र शासन पद्धतिक केन्द्र। ओहि युग मे मात्र पत्नीक हेतु राजगद्दीक त्याग करब एवं ब्राह्मण व्यवस्थाक परित्याग कए वैश्यत्व ग्रहण करब एक महान – क्रांतिकारी कदम छल। अहि विवाहक एकटा दोसरो असर पडल सामाजिक व्यवस्था पर जकरा चलते वैशाली मे बादक राजा सब केँ “आयोगम” कहल गेल अछि। अहि सँ एक एहेन जातिक वोध होइछ जकर माय वैश्य आर पिता शूद्र रहल हो। शतपथ ब्राह्मण मे राजा मरूत्त केँ आयोगम कहल गेल अछि। नाभागक वैश्य पत्नीक नाम सुप्रभा छलैन्ह। सुप्रभा सँ उत्पन्न पुत्रक नाम छल भलंदन। वो राजर्षिनिप (काम्पिल्त) सँ सहायता लय अपन पैत्रिक राज्य केँ प्राप्त करबाक प्रयत्न केलन्हि आर अहि क्रम वो सफल भेलाह आर अपन सर संबन्धी केँ पराजित कए वो राज्य प्राप्त केलन्हि आर राजमुकुट अपना पिताक देलन्हि मुदा पिता वो ग्रहण करबा सँ अस्वीकार केलथिन्ह। तखन भलंदन स्वयं शासक भ गेलाह। न्यायपूर्वक ढंग सँ वो शासन केलन्हि आर अपन कर्तव्यपथ पर चलैत रहलाह। हुनका वत्सप्रि नामक एकटा योग्य पुत्र छलथिन्ह। वत्सप्रिक पत्नीक नाम छल मुदावती (सुनंदा)। अपना पिताक बाद वत्सप्रि शासक भेलाह। हुनक दोसर नाम अजवाहन सेहो छलैन्ह। वो मालवाक राजाक संग वैवाहिक संबधक कारणें वो एक पुश्तधरि मालवा पर सेहो शासन केलन्हि। हुनक शासन काल शांतिप्रिय छल आर वो अपन उदारता एवं महानताक हेतु प्रसिद्ध छलाह। सुनन्दा (मुदावती) सँ १२ टा पुत्र छलथिन्ह – प्रांशु, प्रचीर, सूर, सुचक्र, विक्रम, क्रम, बालीन, बलाक, चण्ड, प्रचण्ड, सुविक्रम, स्वरूप। पौराणिक श्रोत सँ इहो ज्ञात होइछ जे वेदक तीनटा वैश्य मंत्रकर्त्ता लोकनि वैश्यलियेक शासक छलाह जनिक नाम छलैन भलंदन, वत्सप्रि आर संकील। प्रांशु अपन पिताक पछति वैशालीक शासक भेलाह। वो एकटा सशक्त शासक छलाह। ओकर बाद प्रजानि, (प्रजापति, प्रमति) हुनक पुत्र, शासक भेलाह। अहि समय मे वैशाली राज्य मे किछु आपसी संघर्ष शुरू भेल। प्रजानिक पाँच पुत्र मे खनित्र महत्वपूर्ण भेलाह आर अपन पिताक बाद शासक सेहो। वो बहुत वीर आर वुधियार छलाह। अपना प्रजाक हेतु वो सब किछु करबा लेल प्रस्तुत रहैत छलाह। अपना भाई सबहिक प्रति वो दयावान आर विचारवान छलाह। वो अपन सब भाई केँ अपना अधीन मे छोट – छोट राजा बना देने छलाह। अंत मे हुनके एकटा छोट भाई हुनका विरोध मे विद्रोह कए राज्यक शांति केँ नष्ट कए देल। खनित्रक पछति हुनक पुत्र क्षुप शासक भेलाह। हुनका चाक्षुश सेहो कहल जाइत छन्हि। वो ब्राह्मण लोकनिकेँ प्रचुर दान दए यशक भागी बनलाह। हुनका बाद हुनक पुत्र विविंश राजा भेलाह। हुनका समय मे जनसंख्याक वृद्धिक कारण अन्याय बढि गेल छल। स्थिति’क सुधारक हेतु वो कैक प्रकारक यज्ञ सेहो केलन्हि।विविंश केँ १५टा पुत्र छलथिन्ह जाहि मे सब सँ पैघक नाम छलैन्ह खनीनेत्र । हुनका पुराण मे धार्मिक शासक कहल गेल छन्हि। वो ब्राह्मण केँ उदारतापूर्वक दान दैत छलाह। हुनका पुत्र नहि छलन्हि तँ पुत्र प्राप्तिक हेतु वो पशुयज्ञक त्याग केलन्हि गोमतीक तट पर पापहारिणी यज्ञक आयोजन केलन्हि। एकर फलस्वरूप हुनका एकटा पुत्र भेलन्हि जकरनाम बलाश्व छल। वैशालीक इक्ष्वाकु – मानव क्षेत्र मे बलाश्वक राज्यारोहण सँ ऐतिहासिक स्तर पर आर्यक तत्वक विस्तार भेल। अहि राजा के बलाश्व – करनधम सेहो कहल जाइत अछि। खनीनेत्र आर करनधमक बीच मे एकटा विभूति राजाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि।
करनधम वैशालीक एकटा महत्वपूर्ण शासक छलाह। वो बहुत रास क्षेत्र केँ जीतलन्हि आर अपन राज्यक अंतर्गत केलन्हि। नव – नव प्रकार कर पराजित राज्य पर लगैलन्हि। वीरा नामक कात्या सँ स्वयंवक माध्यमे हुनक विवाह भेल छलैन्ह। आर ओहि सँ उत्पन्न पुत्रक नाम छल अविक्षित । अविक्षित एतक निपुण एवं योग्य छलाह जे सात ठाम स्वयंवर मे हुनके जयमाल पडलन्हि। जयमाल पहिरौनिहार कन्याक नाम एवं प्रकार अछि –
____ i.) हेमधर्मक पुत्री वरा
____ ii.) सुदेवक पुत्री गौरी (काशी) ____ iii.) बालिनक पुत्री सुभद्रा (अंग – वंग)
____ iv.) वीरक पुत्री लीलावती (अविक्षितक रायक बहिन) ____ v.) वीरभद्रक पुत्री अनिभा (ऐजन
____ vi.) भीमक पुत्री मान्यवती (विदर्भ)
____ vii.) दम्यक पुत्री कुमुदवती (मालवा) उपरोक्त सूची अहिबातक द्धोतक अछि जे वैशालीक सम्पर्क ताहि दिन मे सब प्रसिद्ध राज्य सब सँ छल आर अहि सँ वैशाली राज्यक महत्वक संकेत भेटैत अछि। अंग, वंग, विदर्भ, मालवा आदि राज्यक संग सम्पर्क तत्कालीन अंतर राज्य सम्बन्धक प्रतीक मानल जा सकइयै। नहि दिन हैहय राज्यक शासक लोकनि विदेह एवं वैशाली पर आक्रमणक सूरसार मे लगेल रहैत छलाह परञ्च हुनका लोकनि केँ अहि मे कोनो सफलता नहि भेटलन्हि कारण करनधर्म, अविक्षित, एवं मरूत्त सन् शासक वैशालीक राजगद्दी पर छलाह। करनधर्म अपना युगक एकटा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व छलाह जे वैशाली एवं समस्त उत्तर भारतक इतिहास पर एकटा अमिट छाप छोडने छथि। महाभारत मे जे पाँचटा तीर्थक वर्णन अछि ताहि मे कारन्धमतीर्थक महत्वपूर्ण स्थान अछि। आन तीर्थक नाम अछि अगस्त्य, सौभद्र, पौलोम एवं भारद्वाजीय। महाभारत मे करन्धम के एकटा प्राचीन धर्मात्मा राजाक रूप मे वर्णन कैल गेल छैक। स्कन्धपुराण मे करन्धम केँ राजर्षि कहल गेल छैक। करन्धम एक महान शासक छलाह आर अपना राज्यक सब विद्रोही तत्व केँ दबा केँ एक सशक्त राज्यक स्थापना कएने छलाह आर बहुत दिन धरित शासन कएने छलाह। वैशालीक साम्राज्यवादी परंपराक जन्मदाता करन्धम के मानल जाइत अछि। हुनक पुरोहित छलथिन्ह अंगीरस। हुनके शासन काल सँ वैशालीक राजदरबार मे अंगीरस पुरोहित लोकनिक प्रभाव बढलन्हि। करन्धराक वाद हुनक पुत्र अविक्षित शासक भेला। वो हैहेय आक्रमण के रोकबा मे समर्थ भेलाह। विदिशाक संग सेहो हुनका किछु खटपट भेल छलैन्ह। तकरबाद हुनक पुत्र मरूत्त शासक भेला। पुराण मे मरूत्त केँ चक्रवर्त्तीक संज्ञा देल गेल छैक। महाभारत मे मरूत्त केँ भारतक १६ राजा मे सँ एक प्रमुख राजा मानल गेल छैक। एक किंवदंती छैक जे न्यायक तरूआरि मुचुफुन्द सँ लकए मरूत्त रैवत केँ देलथिन्ह आर अहि सँ ई ज्ञात होइत अछि जे वो एक न्याय–प्रिय शासक छलाह। हुनक अंगिरस पुरोहितक नाम छल सम्वर्त। वो बड्ड पैघ – पैघ यज्ञ कएने छलाह आर धर्मप्रिय शासक मे हुनक नाम अग्रगण्य छन्हि। मरूत्त अपन पुत्रीक विवाह संवर्तक संग केलन्हि।हिनका शासन काल मे ‘एन्द्रेमहाभिषेक’ क आयोजनक उल्लेख भेटइयै आर अश्वमैघ यज्ञक श्रेय हुनका देल जाइत छन्हि। विभिन्न स्थान पर पैघ – पैघ यज्ञ करबाक आर करेबाक श्रेय सेहो हिनका देल जाइत छन्हि। स्कन्दपुराणक अनुसार गण्डकी उपत्यमक राजा मरूत्त यज्ञ करबाक हेतु एक बेर जय आर विजय केँ आमंत्रित कएने छलाह आर हुनका लोकनि केँ प्रचूर दक्षिणा देने छलाह। कोनो अघटित घटनाक चलते हिनका दुनु गोटए केँ श्राप पडलन्हि आर इयैह दुनु गोटए ग्रज आर ग्राह मे अहि क्षेत्र मे परिवर्तित भ गेलाह आर वाद मे इयैह स्थान हरिहर क्षेत्रक नाम सँ प्रसिद्ध भेल। मरूत्त नाग आर हैटेय लोकनि केँ सेहो पराजित केलन्हि। मरूत्त के सात टा पत्नी छलथिन्ह –
____ i.) विदर्भ राजक पुत्री प्रभावती
____ ii.) सौवी राजक पुत्री – सुवीग
____ iii.) मागधकेतुवीर्भक पुत्री – सुकुशी
____ iv.) मद्रराजासिन्धुवीर्भक पुत्री – केकयी
____ v.) केकयी राजक पुत्री – सैरन्ध्री
____ vi.) सिन्धुक आनवराजक पुत्री – वपुषमती
____ vii.) चेद्री राज्यक पुत्री – सुशोमना
____ अहि वैवाहिक संबध सँ वैशालीक स्थिति सुदृढ छल आर भारतक विभिन्न राज्यक संग एकर संबध सेहो नीक छल। मरूत्तक अठारह पुत्र मे ज्येष्ठ पुत्रक नाम छल नरिष्यंत।
नरिष्यंत एक प्रमुख शासक छलाह आर उहो वैवाहिक सम्बन्धक माध्यमे अपन ताकत बढौलन्हि। ओकर बाद हुनक पुत्र दम शासक भेलाह। दमक बाद राज्यवर्द्धन आर वो दक्षिणापथ सँ अपन वैवाहिक संबध स्थापित केलन्हि। एकर बाद पुनः वैशालीक इतिहास अंधकारपूर्ण अछि आर तृणविन्दूक रज्यारोहण सँ पुनः हमरा लोकनि एकटा लीख पर पहुँचैत छी।
तृणबिन्दुक संबध मे कोनो विशेष जानकारी हमरा लोकनि केँ नहि अछि। संभव जे वो कोनो स्थानीय शासक रहल होथि आर राजनैतिक अस्थायित्वक स्थिति सँ लाभ उठाकए एकटा संशक्त राज्यक स्थापना मे समर्थ भेल होथि। पुराण सब मे तृण विन्दु महिपति आर राजर्षि दुनु कहल गेल छैक। हिनक पत्नीक नाम छल अलभकुषा आर हिनका लोकनिक केँ तीनटा पुत्र छलैन्ह – विशाल, शूत्यबंधु आर धूम्रकेतु। विशाल वैशाली नगरक संस्थापक मानल जाइत छथि। हिनक पुत्री इलविलाक विवाह पुलसय (दक्षिणक राक्षसवंश) सँ भेल छल। एवं प्रकारे अहि वेर क्षत्रिय कन्याक विवाह ब्राह्मण सँ भेल। बुझि पडइयै जे वैशालीक शासक लोकनि विवाह’क मामला मे उदार छलाह। अहि सँ उत्पन्न पुत्र विश्ववस मुनिक आश्रम नर्मदा तट पर छल। दक्षिण पौलस्य वंशक उत्पत्ति वैशालीक राजवंश सँ भेल छल।
तृणबिन्दुक पुत्र विशाल प्राचीन भारतीय इतिहासक प्रसिद्ध मील स्तंभ मानल जाइत छथि। वो अपना नाम पर अपन राजधानीक नाम विशाला रखलन्हि जे कालक्रमेण वैशालीक नाम सँ प्रसिद्ध भेल। मार्कण्डेपुराण मे सेहो एकटा विशालग्रामक उल्लेख भेटैत अछि आर अथर्ववेद मे वर्णित तक्षक वैशालेयक उल्लेख तँ हम पूर्वहिं क चुकल छी। राजा विशाल केँ विशालाक प्रभु, आर विशालापुरीक संस्थापकक रूप से बताओल गेल अछि। ओहि समय मे गया आर वैशालीक बीच घनिष्ट सम्पर्क छल। राजा विशाल पिण्डपूजा आर पिण्डदानक समर्थक छलाह आर ऐतिहासिक दृष्टिकोण सँ हुनका पिण्डदानक प्रवर्तको कहल जा सकइयै। ब्रह्माण्डपुराण मे राजा विशाल केँ धर्मात्मा पुरूष कहल गेल अछि। मार्कण्डेपुराण मे विशाल नामक एकटा ब्राह्मण आर हुनक पुत्र वैशालीक उल्लेख भेटैत अछि। वैशाली मे एकटा महावत छल जे गौतमबुद्धक समय धरि विराजमान छल। विशाल बहादुरीक द्धोतक सेहो बुझल जाइत अछि। आर संभवतः अहु अर्थ मे ‘वैशाली’ शब्दक उद्भव भेल हो। सम्प्रति ‘राजा विशालक गढ’ प्राचीन वैशालीक खण्डहरक रूप मे विराजमान अछि जकर उत्खनन सँ ताहि दिनक बहुत रास सामग्री उपलब्ध भेल अछि। विशालक बाद हेमचन्द्र शासक भेलाह, तखन क्रमिक रूपें सुचन्द्र, धूम्राश्व, श्रृंञय, सहदेव, वृशाश्व, सोमदत्त, जनमेजेय, आर सुमति। वैशालीक इतिहास मे सुमतिक शासन बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। अपनावंशक वो सब सँ अंतिम राजा मानल गेल छथि। विश्वामित्र जखन राम लक्ष्मणक संग वैशाली पहुँचल छलाह तखन अहिठाम सुमति शासन करैत छलाह। वैशाली केँ ‘उत्तमपुरी’ कहल गेल अछि। देखबा मे वो एतेक सुन्दर एवं स्वर्गीय छल जे सामान्य लोग केँ बुझि पडैत होइक जे जेना ई स्वर्गे हो। सुमति आदरपूर्वक विश्वामित्र राम एवं लक्ष्मणक ठहरबाक प्रबंध केलथिन्ह आर यथायोग्य स्वागत सेहो। ओहिठाम सँ मिथिला पहुँचबाक बीच मे वो लोकनि गौतमाश्रम सेहो रूकल छलाह। सुमतिक बाद वैशालीक इतिहास पुनः अंधकारपूर्ण भगेल आर एकर कि स्थिति रहल तकर कोनो ज्ञान हमरा लोकनि केँ नहि अछि। राजतंत्रक अंत आर कुलीनतंत्रक प्रगति जे कोना अहि क्षेत्र मे भेल तकरा संबन्ध मे अखनो विशेष बात संदिग्ध एवं अनिश्चिते अछि।
iii.) सुमतिक पछति आर वज्जीकुलीनतंत्रक स्थापना धरिक इतिहास : -
सुमतिक शासनक अंत भेला पर लगभग ६०० वर्षक पछति वैशाली मे कुलीनतंत्रीय शासनक विकास भेल आर कमेण वृज्जीसंघ सेहो। अहि ६०० वर्ष केँ वैशालीक इतिहास मे अन्धकार युग कहल गेल अछि। साहित्य एवं पौराणिक परंपरा मे सुमतिक बाद कोनो राजाक नामक संकेत नहि अछि। महाभारत युद्धक समय मे विदेह, कोशल एवं मल्लराष्ट्रक विवरण तँ भेटैत अछि परञ्च वैशालीक संबध मे कोनो सूचना उपलब्ध नहि होइछ। एहेन बुझि पडइयै जे सुमतिक अवसानक पछाति विदेहक पराक्रम बढि गेल छल आर वैशालीक विशेष भाग पर संभवतः विदेहक अधिपत्य भगेल छल। उत्तर विहारक विदेह आर मल्लक उल्लेख महाभारत युद्धक प्रसंग मे अवैत अछि तँ संभव जे वैशालीक विशेष भाग पर विदेहक अधिपत्य (वैशाली पर विदेह राज्यक आधिपत्य) भगेल हो आर किछु अंश पर मल्ल लोकनिक। वैशालीक स्वतंत्र सत्ता समाप्त रहलाक कारणे वैशालीक स्वतंत्र उल्लेख नहि भेटल स्वाभाविके बुझि पडइत अछि। किछु विद्वानक मत छैन्ह जे राजा सुमतिक पछाति वैशाली पर किछु दिनक हेतु कोशलक आधिपत्य भगेल छल। कोशलक कमजोर भेला पर विदेह राज्य ओहि परिस्थिति सँ लाभ उठा केँ वैशाली केँ अपना अधीन कलेलैन्ह। ताहि दिन मे रामक सार भानुमंत मिथिला मे शासक छलाह। वैशालीक प्रभुत्व घटि चुकल छल। विदेहक आधिपत्य भेला संता वैशालीक अपन जे स्वतंत्र संबन्ध यादव अथवा पाण्डव लोकनि सँ रहल हेतैन्ह सेहो गौण भ गेल हेतैन्ह आर ई लोकनि अपन अधीनस्थ स्थितिक कारणें गुम – सुम भए अपन समय कटैत हेताह। भ सकइयै जे विदेहक राजतंत्रक अंत भेने दुनु ठाम एक्के वेर कुलीनतंत्रीय गणतंत्रक स्थापना भेल हो।
सुमतिक पछाति मिथिलाक इतिहासक जे क्रम उपलब्ध अछि ताहि आधार पर ई उचित बुझना जाइत अछि जे मिथिला अपन साम्राज्यवादी प्रसारक क्रम मे वैशाली केँ पराजित कए अपना अधीन कलेने होएत। साम्राज्यवादी प्रवृतिक प्रारंभ सीरध्वज जनक धरि जमवत छल आर वो साँकास्त धरि अपन राज्यक सीमाक विस्तार कएने छलाह। महाभारत युद्धक पश्चात जे एकटा अनिश्चितताक स्थिति उत्पन्न भेल ताहि सँ लाभ उठाके जनकवंशक शासक गण, उग्रसेन, जनदेव, धर्मध्वज, तथा आयुस्थन, अपन साम्राज्यवादी परंपरा केँ आगाँ बढौलन्हि आर करीब बारह पुस्त धरि एकरा जारी रखलन्हि। अयोध्याक राज्यक छिन्न – भिन्न भेल उत्तरो मिथिलाक राज्यक विस्तार होईते रहल। कोशल – काशी मे बरोबरि खटपट होइत रहल। वैशालीक वस्तुस्थितिक संबध मे कोनो ठोस ज्ञान हमरा लोकनि केँ अहि समय मे नहि अछि।
महाभारत मे प्राचीन भारतीय गणतंत्र एवं विभिन्न जातिक विवरण भेटइत अछि परञ्च ओहु सूची मे वैशाली अथवा ओहिठामक गणतंत्रक कोनो उल्लेख नहि अछि। एकमात्र उल्लेख जे वैशालीक संबध मे अछि से विशालाक पुत्री भद्रा – वैशाली – जाहि राजकुमारीक हेतु द्वारावतीक वासुदेव, वेदिक शिशुपाल, एवं कारूषक शासक लालायित रहैत छलाह। वैशाली मे नाग प्रधानक उल्लेख सेहो भेटैत अछि आर कहल जाइत अछि ई लोकनि अर्जुनक साहायता कएने छलथिन्ह। वैशाली मे नाग लोकनिक प्रधानताक विवरण दीर्घनिकाय आर महावंश मे सेहो भेटैत अछि। अथर्ववेद मे तक्षक वैशालेयक उल्लेख तँ हम पूर्वहिं क चुकल छी। वैशाली सँ गुप्तकालीन अवशेष मे बहुत रास सर्प मूर्ति भेटल अछि जाहि सँ ई स्पष्ट होइछ जे अहिक्षेत्र नाग लोकनिक प्रधानता रहल हेतैन्ह। [ कहल जाइत अछि जे भीमसेन अपन दिग्विजयक क्रम मे गण्डक लोकनि केँ पराजित कएने छलाह। अहुठाम वैशाली नाम नहि दए गण्डक लोकनिक (गण्डकक समीप रहनिहार) नाम अछि आर अहु सँ बुझि पडइयै जे वैशालीक राजनैतिक महत्व तादिन धरि समाप्त भ चुकल छल। ओहि दिग्विजयक क्रमक जे सूची अछि ताहि मे विदेहक पूर्वहिं गण्डक लोकनिक विवरण अछि। भीमसेन उत्तरी कोशल, मल्ल, जलोद्भव, जनक वैदेह, शक, वर्बर, एवं सातटा किराल प्रधान केँ पराजित कएने छलाह आर आर शरमक, वर्मक आर गोपालकक्ष लोकनि के सेहो। किछु गोटएक मत छन्हि जे ई तीनू वर्ग वैशलीक निवासी छलाह आर ओतहिक ब्राह्मण, क्षत्रिय आर वैश्यक द्धोतक सेहो। मुदा ठोस साधनक अभाव मे ई सब एकटा अंदाज मात्रथिक आर तै अहि पर पूर्ण विश्वास करब असंभव। सुमतिक वाद सँ लिच्छविक उत्थान धरिक इतिहास अंधकार पूर्ण अछि आर ओहि मे जे कोनो एकटा मान्य तथ्य अछियो तँ सए मात्र इयैह अहि ६०० वर्षक अभ्यंतर मे वैशाली कैक टुकडा मे बहि गेल छल आर मुख्य रूप सँ विदेह एवं मल्ल लोकनि एकर विशेष भाग पर अपन आधिपत्य स्थापित क लेने छल।
iv.) मिथिला मे गणराज्यक स्थापनाक इतिहास : - अन्धकार युग सँ जखन वैशाली अवतीर्ण होइछ तखन हम देखैत छी जे वैशालीक नेतृत्व मे समस्त उत्तर बिहार मे एकटा कुलीनतंत्रीय गणराज्यक परंपराक स्थापना होइत अछि। ई. पू. छठी शताब्दी समस्त विश्वक इतिहास मे अपन एकटा महत्वपूर्ण स्थान रखइयै आर भारत मे तँ सहजहि ई युग एकटा युगांतकारी युग छल राजनैतिक आर साँस्कृतिक दृष्टिये। मिथिलाक इतिहास दृष्टिये सेहो ई युग युगांतकारी कहल जा सकइयै। राजनीति मे राजतंत्रक उत्तराधिकारी गणतंत्र भेल आर विचारक क्षेत्र मे वर्धमान महावीर आर गौतमबुद्ध एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केलन्हि। वैशाली मे कहिया आर कोना गणराज्यक स्थापना भेल एकर ठीक –ठीक पता हमरा लोकनि के नहि अछि मुदा एतवा हम सब जनैत छी जे महावीर आर बुद्धक समय मे वैशाली मे कुलीनतंत्रीय गणराज्यक प्रभुत्व छल। बुद्ध जाहि शब्द मे वैशालीक गणराज्यक प्रशंसा कएने छथि ताहि सँ बुझना जाइत अछि जे बुद्ध सँ १०० – २०० वर्ष पूर्वहिं सँ ई गणराज्य रहल हो। कराल जनकक अत्याचारी शासन सँ तंग आवि जखन प्रजा विद्रोह कए विदेह राज्य मे क्रांति मचौलक तखन ओहिठाम राजतंत्रक अवसान भेल आर गणराज्यक स्थापना। कहल जाइत अछि जे शि घटनाक फलस्वरूपे समस्त उत्तर विहार मे गणराज्यक परंपरा प्रारंभ भेल आर चूँकि वैशाली विदेहक अंग छल तै वैशालियो मे गणराज्यक स्थापना भेल। कराल जनक विदेहक जनक वंश अंतिम राजा छलाह आर हुनक अवसानक पछातिये सँ मिथिला मे गणतंत्रक स्थापना मानल जाइत अछि। कहल जाइत अछि महाभारत युद्धक २२ पुस्तक बाद बौद्ध धर्मक उत्थान भेल आर अहि बीच मे मिथिला मे गणतंत्रक स्थापना भेल होएत। पुराण मे अहि बीच २८ मैथिल राजाक उल्लेख भेटैत अछि।
बौद्ध धर्मक उत्थानक बहुत पूर्वहि मिथिला मे गणतंत्रक स्थापना भेल होएत तकर संकेत हम उपर दए चुकल छी। पुराण मे २८ मैथिल राजाक विवरण अछि आर जातक मे मात्र १५ राजाक २८ मे सँ जे १५ घटा देल जाइक ते १३ राजा बचि जाइत छथि आर महाभारत युद्ध आर गणराज्यक स्थापनाक बीच संभवतः इयैह १३ राजा मिथिला मे राज्य कएने होयताह। अहि १३ मे अंतिम राजा कराल जनक रहल हेताह। जातक मे मरवादेव केँ मिथिलाक राजतंत्रक संस्थापक मानल गेल अछि। मिथिला मे जातक सूचीक अनुसार राजाक नाम एवं प्रकारे अछि –
____ सुरूचि प्रथम, सुरूचि द्वितीय, सुरूचि तृतीय, महापनाद
(जातक नं - ४८९ + २६४)
____ महाजनक प्रथम, आरिद्वजनक, पोलजनक, महाजनकद्वितीय, दिघावु
(जातक नं – ५३९ )
____ साधीन, नारद (जातक नं - ४९४)
____ निमि, कलार (जातक नं – ९, ४०८, ५४१)
____ मरवादेव (जातक नं – ९० ५४१) ____ अंगात (जातक नं - ५४४)
वर्द्धमान महावीर सँ २५० वर्ष पूर्व मिथिला मे निमि नामक एकटा शासक भेल छलाह जे जैन धर्म ग्रहण कएने छलाह। ई. पू. ६५० क आसपास मिथिला मे जनक वंश अंतिम शासकक राज्यक अवसान भेल आर तकरावादे ओहिठाम गणतंत्रक स्थापना भेल। आर तकरावादे ओहिठाम गणतंत्रक स्थापना भेल। मिथिला मे गणराज्यक स्थापनाक संगहि वज्जीगण राजाक स्थापना सेहो भेल। मिथिला मे राजमंत्रक पश्चात गणतंत्रक स्थापना एकटा मह्त्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। कौटिल्यक अनुसार वज्मी (वृज्जी) आर लिच्छवी अलग अलग छल। महापरिनिवान्नसुत मे बुद्ध वज्जी लोकनिक गुणगाथा कएने छथि आर पाणिनि सेहो वज्जी लोकनिक विवरण देने छथि। वज्जीगण राज्यक संदर्भ मे अष्टकुलकक उल्लेख सँ ज्ञात होइत अछि जे अहि मे आठकुलक लोग संगठन रहल होइत। तथापि अहिठाम लिच्छवियेक प्रधानता रहल होइत। लिच्छवी लोकनि वैशालीक रहनिहार छलाह आर अष्टकुलकक सर्वशक्तिमान सदस्य सेहो। ज्ञात्रिक नामक जाति सेहो वज्जी गणराज्य मे प्रसिद्ध छल। अहि कुल मे वर्धमान महावीरक जन्म भेल छलैन्ह। सूत्रकृतांग मे ज्ञात्रिकक सम्पर्क उग्र, भोज, इक्ष्वाकु, कौरवा, लिच्छवी आदि सँ बताओल गेल अछि। अहि सँ बुझि पडैत अछि जे ई सब एक दोसराक समीपे रहैत छलाह आर उत्तर बिहारक विभिन्न क्षेत्र पर हिनका लोकनिक अधिकार छलैन्ह। ई सब गणराज्यक सदस्य छलाह अथवा नहि से कहब असंभव। मिथिला मे जे वज्जी गणराज्य छल तकर दूटा प्रमुख महारथी रहैथ वैशाली आर विदेह।
v.) गणराज्यक सदस्य जाति : - लिच्छवी वज्जी गणराज्यक सर्वश्रेष्ठ अंग रहैथ। बौद्ध साहित्य मे लिच्छवीक विशद विश्लेषण भेल अछि। हुनका लोकनिक प्रधान केन्द्र छल वैशाली आर राजनैतिक रूपे वो वैशाली आर नेपाल पर अपन अधिकार स्थापित कएने छलाह। चारिम शताब्दी मे जे गुप्त साम्राज्यक स्थापना मगध मे भेल छल ताहु मे लिच्छवी लोकनिक विशेष हाथ छलैन्ह। लगभग ८०० वर्ष धरि विहार आर नेपाल इतिहास केँ लिच्छवी लोकनि प्रभावित कएने छलाह। लिच्छवी जातिक उत्पत्तिक संबध मे अद्धतन विद्वान लोकनिक वीच मतभेद बनले अछि। लिच्छवि, निच्छवि, लिच्चिकि, लेच्छवी, लेच्छाई, लेच्छकी, आदि शब्द लिच्छविक द्धोतक मानल जाइत अछि। पालि साहित्य, सिनका, अभिलेख, आर अन्यान्य साधन सब मे लिच्छवी शव्दक प्रयोग भेटैत अछि जाहि ई ज्ञात होइछ जे इयैह शव्द इतिहास मे जनप्रिय भए स्वीकृत भ गेल। कैटिल्य मे धातिथी, गोविन्दराज आदि लिच्छवी शब्दक व्यवहार कएने छथि।
बहुत रास विद्वानक कहब छैन्ह जे लिच्छवी लोकनि विदेशी छलाह – आर हुनक संबध तिब्बत, कोलारियन लोकनि सिथियन, तथा फारस सँ छलैन्ह। किछु विद्वानक मत छैन्ह जे लिच्छवीक संबध जारे देल जाइत अछि। लिच्छवीक आचार – विचार आर सामाजिक नियम आदिक आधार ई कहल गेल अछि जे हुनका लोकनिक उत्पत्ति तिब्बती श्रोत सँ भेल होएत। अहिमतक समर्थकक विचार छन्हि जे प्रागैतिहासिक काल मे किछु मंगोलियन – तिब्बती जाति अहि क्षेत्र मे आवि के वसल हेताह आर ओहि सँ लिच्छवी लोकनिक उत्पत्ति भेल होएतैन्ह। भारतीय विद्वान लोकनि लिच्छवी केँ भारतीय मनैत छथि परञ्च अपनहु सब मे किछु एहनो विद्वान छथि जनिक विचार छन्हि जे लिच्छवी लोकनिक उत्पत्ति परसिया (फारस) सँ भेल होएत। निच्छवि शब्दक उत्पत्ति फारसक ‘निसि विस’ नगर सँ भेल अछि आर ओहि सँ लिच्छवी क उत्पत्ति सेहो फारसक इतिहास विवरण मे कतहु एहेन उल्लेख नहि भेटैत अछि जाहि आधार पर ई कहल जाए जे फारसक लोग पूर्वी भारत मे आवि के कहियो हुनका लोकनि केँ कोनो प्रकारक सम्पर्क रहल होन्हि। प्राचीन भारतीय साहित्य मे लिच्छवी लोकनि केँ क्षत्रियक रूप मे वर्णन भेल छैक। महापरिनिव्याणसुत सँ ज्ञात होइछ जे वो लोकनि क्षत्रियक हिसाबे वुद्धक शवक अवशेष प्राप्त करबा लेल इच्छुक छलाह। सिगालजातक मे लिच्छवी कान्या के क्षत्रिय कहल गेल छैक। महालीनामक लिच्छवी अपना बुद्ध जकाँ क्षत्रिय घोषित करैत अछि। जैनकल्प सूत्र मे वैशालीक लिच्छवीनेता चेतकक बहिन। त्रिशला केँ क्षत्रियाणी कहल गेल छैक। लिच्छवीक उत्पत्तिक संबध मे बुद्धघोषक मत छन्हि जे वो लोकनि क्षत्रिय छलाह। नेपाल वंशावली मे लिच्छवी सूर्यवंशी क्षत्रिय कहल गेल छैक । मनु लिच्छवी के व्रात्य क्षत्रिय कहैत छथि। वज्जि आर लिच्छवीक मध्य कोन संबध छल अथवा दुनुक वीच कोनो सीमारेखा छल अथवा नहि से कहब असंभव वृज्जी – वज्जी गणराज्यक सर्वश्रेष्ठ सदस्य लिच्छवियेलोकनि छलाह। बुद्ध लिच्छवीक तुलना ताव तिंश देव सँ कएने छथि। वृजि (वज्जिका) आर लिच्छवी दुनु दू शब्द छल परञ्च लिच्छवीक प्रधानताक कारणे वज्जी सँ लिच्छवीक बोध होइत छल
नेपाल अभिलेख मे लिच्छवी कुलकेतु, लिच्छवी कुलांबरपूर्ण चन्द्र, लिच्छवी कुलानंदकारा, लिच्छवी कुलतिलको आदि शब्दक व्यवहार भेल अछि। चीनी आर तिब्बती श्रोत सँ ज्ञात होइछ जे ई लोकनि लिच्छवीक नाम सँ प्रसिद्ध छलाह। एक परंपराक अनुसार तिब्बतक राजवंश लिच्छवीक वंशज छलाह। प्राचीन काल मे संभव जे नेपालक बाटे तिब्बत आर मिथिलाक संबध घनिष्ट रहल ये आर राजनैतिक – साँस्कृतिक अदान – प्रदान होइत हो। हिमालयक तराई मे किरात लोकनिक वास छल आर ई लोकनिक बरोबरि पहाडक आर पार जाइत आवैत छलाह आर दुनु दिस सँ हिनका लोकनि केँ सम्पर्क छलैन्ह। अहि क्रम तिब्बत आर मिथिलाक संपर्क घनिष्ट भेल हो से संभव आर दुनुक वीच साँस्कृतिक आदान – प्रदान सेहो। लिच्छवी लोकनि विचार सँ प्रगतिशील छलाह आर तै जँ हिनक विचार तिब्बती विचारधारा केँ ताहि दिन मे प्रभावित केने हो तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि। अहिठामक संस्कृति सँ प्रभावित होएब हुनका लोकनिक लेल स्वाभाविक छल कारण मिथिला तिब्बती नेपाली व्यापारीक बाट पर पडैत छल।
लिच्छवी केँ विदेशी नहि कहल जा सकइयै। लिच्छवी आर विदेह दुनु क्षत्रिय छलाह आर हुनका लोकनि केँ कोनो जातिगत विभिन्नता देखबा मे नहि अवइयै। अरुयुग मे वैशाली केँ विदेहक अंगे बुझल जाइत छल आर तै तँ त्रिशला केँ वैदेही कहल गेल अछि। लिच्छवी लोकनि देखबा सुनबा मे सुन्दर होइत छलाह आर हुनकर पहिरब ओढब अत्यंत सुन्दर होइत छलैन्ह। अंगुत्तर निकाय मे आन क्षत्रिय शासक जकाँ लिच्छवी लोकनि केँ अभिषिक्त मानल गेल छैन्ह। हियुएन संग लिच्छवी के क्षत्रिय कहने छथि। लिच्छवी लोकनि ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, कार्तिकेय, वासुकी, लक्ष्मी आर अहु सँ ई स्पष्ट अछि जे वो विदेशी नहि छलाह। वैशाली मे जैन, बोद्ध आर ब्राह्मण धर्मक प्रधानता छल आर नेपाल मे सेहो ई लोकनि ओहि सब धर्मक पालन करैत छलाह। लिच्छवीक अतिरिक्त आर कैकटा जाति वैशाली मे रहैत छलाह जकर विवरण निम्नोकिंत अछि।
ज्ञात्रिक जाति ओहि मे सब सँ प्रसिद्ध छल आर अहि कुल मे जनधर्मक संस्थापक वर्द्धमान महावीरक जन्म भेल छलैन्ह। ज्ञात्रिक लोकनिक प्रधान केन्द्र छल कुन्द ग्राम आर कोलाग्ग। बौद्ध साहित्य मे महावीर केँ नात (नाट) पुत्र कहल गेल छन्हि। ई लोकनि काश्यप गोत्रक छलाह। वज्जीगण राज्यक विकास मे हिनका लोकनिक विशेष योगदान छलैन्ह। राहुल साँकृत्यायनक अनुसार आजक जथारिया भूमिहार ब्राह्मण अहि ज्ञात्रिक वंशजक छथि। राहूल जीक अहि मत केँ सब केओ नहि मानैत छथि। उग्र लोकनि सेहो एक प्रसिद्ध जाति छलाह। वैशाली सँ हिनका लोकनि केँ घनिष्ट सम्पर्क छलैन्ह। ‘हत्थीगाम’क समीप ई सब रहैथ होथि से संभव। बृहदारण्यकोपनिषद एवं धम्मपद्द ठीका मे उग्र लोकनिक विवरण भेटइत अछि मुदा वो लोकनि इयैह उग्र छलाह अथवा नहि से कहब असंभव। विदेह आर काशी मे उग्र लोकनिक प्रभुता आर सैन्यवलक चर्च भेटैत अछि। बुद्ध सेहो उग्र लोकनिक शहर मे गेल छलाह। सूत्रकृतांग मे उग्र केँ बड्ड पैघ स्थान देल गेल छैन्ह आर ललित विस्तार मे जे ६४ लिपिक विवरण अछि ताहि मे एकटा उग्र लिपिक विवरण सेहो अछि। ओहि ६४ मे एकटा पूर्व विदेहक लिपिक वर्णन सेहो भेटैत अछि। उग्र केँ मिश्रित जाति सेहो कहल गेल अछि।
जैन साहित्य मे उग्र जकाँ भोग केँ सेहो क्षत्रिय कहल गेल छैक। ई लोकनि प्रथम जैन तीर्थकंर ऋषभक वंशज छलाह महापरि निव्वानसुत्त सँ ज्ञात अछि जे वैशाली सँ पावा जेवाक रास्ता मे भोगनगर, जम्बुगाम, अम्बगाम, हत्थिगाम, भण्डगाम आदि भेटैत छल आर अहि सब सँ भोग लोकनिक घनिष्ट सम्पर्क छलैन्ह। सूत्रकृतांग मे ऐक्ष्वाकु लोकनिक विवरण अछि आर इहो लोकनि वज्जी क्षेत्र रहैत छलाह। संभवतः ई लोकनि सुमतिक वंशज होथि। चूँकि विदेह लओकनि इक्ष्वाकुक पुत्र निमिक वंशज छलाह तैं इहो संभव अछि जे इहो लोकनि अपना के इक्ष्वाकु कहैत होथि। इहो संभव जे अयोध्याक इक्ष्वाकु एम्हर आवि केँ बसि गेल होथि।
वज्जी संघ मे कौरव लोकनिक उपस्थिति एकटा समस्याक प्रश्न बनि गेल अछि। अहि संबध मे निम्नलिखित तथ्य केँ स्मरण राखब आवश्यक। महाभारतक अनुसार पाण्डु मिथिला जाकए विदेह केँ पराजित कएने छलाह। भीम गण्डक लोकनि केँ पराजित केला उत्तर वैदेहक जनक केँ पराजित केलन्हि। वो विदेह पर आधिपत्य स्थापित कए ओहिठाम अपन खुट्टा गारि अपन साम्राज्यवादी अभियान केँ आगाँ बढौलन्हि आर कौशिकी कच्छक राजा केँ पराजित केलन्हि। ई क्षेत्र सम्प्रति विहपुर – पूर्णियाँ क्षेत्रक संकेत दैत अछि। कौशिकी क्षेत्र आर अहि सँ पूर्वक क्षेत्र पर एकटा कौरव राजकुमार केँ लादि देल गेल। एम्हर विदेह जे विदेह मे कौरव वचि गेलाह से अहिठामक वासी बनि केँ रहि गेल। हस्तिनापुरक अंत भेला पर सेहो कौरव लोकनि अहि क्षेत्र मे आवि केँ बसलाह। राजा जनक दरबार मे तँ प्रारंभहि सँ कुरू पाँचालक ब्राह्मण लोकनिक अबरजात बनले छल।
वज्जी गणराज्यक अंतर्गत बहुत तरह लोग रहल होएत अहि मे संदेह नहि। त्रिकाण्डशेष मे लिच्छवी वैदेह आर तैरभुक्त केँ पर्यायवाची शब्द मानल गेल छैक आर वज्जी संघक अगुआर इयैह सब छलाह। कुछ विद्वानक कथन अछि जे कराल जनकक मृत्युक पश्चातो विदेह मे राजतंत्र बनल रहल आर महापद्म नंद जखन मिथिला केँ जीत लैन्ह तकर वादे मिथिला मे गणराज्य भेल मुदा हमरा ई बात मान्य नहि बुझि पडइयै कारण कराल जनकक मृत्यु भेला उपरांत मिथिला मे विद्रोहक आगि भभकि उठल आर ओतए राजतंत्र केँ समाप्त ककए गणतंत्रक स्थापना कैल गेल। बुद्धक समय मे विदेह एकटा गणतांत्रिक राज्य छल। अजातशत्रुक वैशाली आक्रमणक पछाति अहि क्षेत्रक सूर्यास्तक संकेत भेटए लागल। पतंजलि अहि बातक साक्षी छथि जे विदेह मे गणराज्य छल। अहि मे आठ कुलक संघ छल। मल्ल, विदेह, उग्र, भोग, इक्ष्वाकु, ज्ञात्रि, कौरव एवं लिच्छवी केँ मिला केँ एकटा शासन छल – जकरा हमरा लोकनि लिच्छवी, विदेह अथवा वज्जीसंघक नाम सँ जनैत छी।
vi.) बौद्ध साधन आर मिथिलाक इतिहास : - अंगुत्तर निकाय मे वज्जी संघक विवरण अछि मुदा विदेहक नाम नहि अछि। इहो संभव जे वज्जी संघक सदस्य रहलाक कारणे अहि मे एकर नाम नहि देल गेल हो। दीपवंश मे वर्णित परंपराक अनुसार कराल जनकक पुत्र छलाह समञ्कर आर हुनका बाद राजा भेलाह अशोक। ओहि परंपरा मे इहो कथा अछि जे चम्पानगरक राजा नागदेवक वंशज कैक पुस्त धरि मिथिलाक पर शासन केलन्हि। अहि मे सब सँ अंतिम राजा भेलाह बुद्धदत्त। दीपवंशक कथा सँ ई सिद्ध होइत अछि जे कलार जनकक बादो मिथिला मे राजा द्वारा शासन होइत रहल आर मिथिला नगर मे २५ टा राजा तकर बादो शासन केलन्हि जाहि मे बुद्धदत्त अंतिम छलाह। तकर बाद राज्य मगधक अंतर्गत चल गेल। एकर अतिरिक्त मिथिला मे अंगति, सुमित्र आर विरूधक नाम सेहो भेटैत अछि अंगतिक शिक्षक छलाह गुणकस्सप/ गुणकस्सयक विचार पुराणकस्सप आर मंखलि गोसाल्ल्क विचार सँ मिलैत – जुलैत अछि आर ई सब बुद्धक समकालीन छलाह। राजा सुमित्रक संबध मे ललित बिस्तार मे वर्णन भेटैत अछि। ललित विस्तार मे मिथिलाक सोन्दर्यक वर्णन अछि – आर ओहि मे इहो कहल गेल अछि जे सुमित्र केँ हाथी, घोडा, रथ आर पैदल सेनाक कोनो अभाव नहि छलन्हि। सबतरहे सुखी सम्पन्न रहैतहुँ राजा बड्ड बूढ छलाह आर शासन क्षमता हुनक घटि चुकल छलैन्ह। विदेहक तुलना मे ललित विस्तार मे वैशालीक गणराज्यक विशेष प्रशंसा अछि। इहो सूचना भेटैत अछि राजा विरूधक मंत्री सकल केँ विदेह छोडि केँ वैशाली भागेऽ पडल छलिन्ह कारण विदेह राज दरबार मे तरह – तरह षडयंत्र चलि रहल छल आन मंत्री सब हिनका सँ इर्ष्या करैत छलाह। सकल वैशाली मे आवि केँ प्रख्यात भेलाह आर अहिठाम नायकक पद पर निर्वाचित भगेलाह। गिलगिंट मैन्युसाकिष्ट मे सेहो मिथिलाक कोनो एक अनमा राजक प्रधानमंत्री खण्डक उल्लेख भेटैत अछि। खण्डक ५०० अमात्यक प्रधान छलाह। हुनक जनप्रियता सँ आन – आन मंत्री घबडा उठलाह आर हुनका समाप्त करबाक प्रयास करे लगलाह। वो लोकनि राजा केँ ई कहि केँ भरकावे लगलाह जे ‘खण्ड’ अपना केँ राजा बुझि रहल छथि आर तदनुसार काज क रहल छथि। खण्ड अहि सब सँ तंग आवि वैशाली (जे कि गणराज्य छल) चल गेलाह जाहिठाम लिच्छवी लोकनि हुनक स्वागत केलथिन्ह।
अहि सब सँ स्पष्ट होइत जे वैशाली विदेह सँ पूर्वहि गणराज्य भ चुकल होएत।
vii.) वज्जी गणराज्यक राजनैतिक संबध : -
ई. पू. छठी शताब्दीक १६ महाजनपद मे वज्जीक विवरण केँ सम्मिलित करब अहि बातक धोतक थिक जे ताहि काल तक एकर राजनैतिक प्रतिष्ठा स्थापित भए चुकल छल। अंगुत्तर निकाय मे सेहो एकर विवरण अछि।वज्जीसंघक स्थापना ताहि दिन मे भेल छल जखन नेऽ तँ काशी पर कोशलक अधिकार भेल छल आर ने अंग पर मगधक । वज्जीसंघ आर बिम्बिसारक राज्यक सीमा मिलैत – जुलैत छल। दुनुक बीच युद्ध भेल छल तकरो उल्लेख यदा कदा भेटैत अछि। दुनुक बीच युद्धक कारण कि छल से कहब असंभव अछि। संभव अछि जे मगध जखन अंग पर आक्रमण केलक तखन मगधक नजरि अंगक उत्तरी भाग अंगुतराय पर सेहो छलैक। अंगुतरायक सीमा वज्जीसंघक सीमा सँ मिलैत –जुलैत छलैक आर तै वज्जीसंघ केँ सतर्क रहब आवश्यक आवश्यक छलैक अहि अंगुतराय प्रश्न लकए दुनुक वीच मतभेदक संभावना भ सकैत छैक। अंगुतराय एक महत्वपूर्ण जनपद छल आर बौद्ध धर्मक केन्द्र सेहो। अहिठाम बुद्ध कैक वेर गेल छलाह आर आपन ग्राम मे एकाधमास रहलो छलाह। अंग जीतलाक बाद बिम्बिसार अंगुतराय अपन आधिपत्य स्थापित करए चाहैत हेताह जकर विरोध करब वैशालीक हेतु स्वाभाविक छल। अहि क्रम मे जे संघर्ष भेल होएत ताहि मे संभवतः लिच्छवी लोकनि अंगुतराय क्षेत्र पर अधिकार कलेने हेताह जे बिम्बिसार मानबा लेल तैयार नहि भेल हेताह आर अहि कारणे दुनु मे युद्ध भेल हेतैन्ह। झगडा एकटा आओर कारण अम्बपाली सेहो छल। बिम्बिसार चुपेचाप वैशाली मे आवि केँ एकाध सप्ताह रहल छलाह आर अम्बपाली सँ बिम्बिसार केँ एकटा पुत्रो छलन्हि जकर नाम छल अभय। संघर्षक चाहे जे कारण अथवा स्वरूप रहल हो परञ्च अंत मे जाकए वैशालीक संग बिम्बिसार वैवाहिक संबध स्थापित केलन्हि आर एकर फलस्वरूप दुनु राज्यक बीच युद्धक अंत भेल। तखन सँ मगधक संग वैशालीक संबध अजातशत्रुक आक्रमणक समय धरि ठीके रहल।
मल्ल आर लिच्छवीक बीचक संबध सेहो बढिया छल। दुनुक ओतए गणराज्यक व्यवस्था छल आर दुनु केँ जैन आर बौद्ध धर्मक प्रति आस्था छलैन्ह। मनु दुनुक वर्णन व्रात्य कहि केँ केने छथि। अजातशत्रुक आक्रमणक समय मे दुनु सम्मिलित रूपें काज कएने छलाह। कोशल राजाक सेनापति बन्धुल मल्ल रहथिन। कोशल राज्यक संग सेहो लिच्छवी लोकनिक संबध बढिये छलैन्ह। लिच्छवी महाली आर राजकुमार प्रसेनजित तक्षशिलामे संगे पढैत छलाह। दुनु मे खूब दोस्ती छलैन्ह। वत्सक संग सेहो वैशालीक वैवाहिक संबध छल। वत्सराज सतानिकक विवाह चेतकक पुत्री मृगावती सँ भेल छल। उद्यन ओहि दुआरे वैदेही पुत्र कहबैत छथि।