ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ८६ म अंक १५ जुलाइ २०११ (वर्ष ४ मास ४३ अंक ८६)
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.नवीन कुमार आशा
३.७.गजेन्द्र ठाकुर- गजल
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1 to 8.3 MAITHILI LITERATURE IN ENGLISH
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१. संपादकीय
२. १.
३. मैथिली कथा संग्रह सभमे १.रमेश नारायणक “पाथरक नाव” २. विनोद बिहारी वर्माक “बलानक बोनिहार ओ पल्लवी (तथा अन्य कथा)” ई दुनू कथा संग्रह अपन किछु खास विशिष्टताक कारण विशेष स्थान रखैत अछि।
४. रमेश नारायणक “पाथरक नाव” १९७२ ई. मे उपासना प्रकाशन, ९०, श्रीकृष्णानगर, पटना-१ सँ छपल। विनोद बिहारी वर्माक “बलानक बोनिहार ओ पल्लवी (तथा अन्य कथा)” १९९४ ए. मे मैथिली प्रतिभा. एल.एफ. १/३, युनिट-३, कोहाउसिङ्ग कालोनी, भुवनेश्वर-७५१००१ सँ छपल।
५. रमेश नारायणक “पाथरक नाव”
६.
७. रमेश नारायण अपन कथा-संग्रहक समर्पण करै छथि ---अथाहो पानिमे ऐना जकाँ झलकैत/ अपना गामक ओहि थाल-कादोकेँ,/ जाहिमे हमरे लेल/ एक गोट रक्तकमल/ जनमि कए फुलेबाक हमर आस/ अटकल अछि.... आ अपना दिससँ कहै छथि- इएह, जे/ एहि संग्रहक कतेको कथा आकाशवाणीक पटना केन्द्रसँ प्रसारित अछि,/ तैं आकाशवाणीक सौजन्यों सँ।
८.
९. ऐ कथा संग्रहमे ई सभ कथा संकलित अछि:- १.ठेहियायल मोन घुमाओन बाट, २.काजरक रेख, ३.आँजुर भरि नोर, ३.काँच निन्न टुटैत स्वप्न, ४.सइँतल सेज निहुँछल निन्न, ५.तेजि गेल बिदेस..., ६.काँट कुसक छाहरि, ७.एक पोस्टकार्ड: सरोजिनी आ’ हम ८.चीरल पन्ना जोड़ल पाँती।
१०. विनोद बिहारी वर्माक “बलानक बोनिहार ओ पल्लवी (तथा अन्य कथा)”
११. विनोद बिहारी वर्मा अपन कथा-संग्रहक समर्पण करै छथि:- बहु विद्या विद् / पूज्य लाल भाइ,/ डा. ब्रज किशोर वर्मा “मणिपद्म” क/ पुण्य स्मृतिमे/ श्रद्धापूर्वक समर्पित- विनोद। ऐ संग्रहमे १४ टा कथा अछि जइमे सँ ३ टा कथा मिथिला मिहिर मे छपल छल आ ११ टा कथा वैदेही मे। ऐ कथा संग्रहमे ई सभ कथा संकलित अछि:- १. बलानक बोनिहार ओ पल्लवी, २. कुन्ती, कर्ण ओ परशुराम, ३.सुलोचनाक चटिसार, ४. साहेब, ५. ब्रह्मा-बिसुन-राति, ६.हम पान खेलहुँ, ७.फूलक कथा, ८.अन्तर्मुखी बसुन्धरा, ९. काशक फूल, १०. माछक पिकनिक, ११.जीवन-नाओ, १२.कापुरुष, १३.गोनौर-बाबू, १४.आकाश-फूल
१२. २
१३. दिनांक ९ जुलाइ २०११ केँ सायं ४.४५ बजेसँ राति ७.४५ बजे धरि विदेह द्वारा आयोजित पहिल "समानांतर साहित्य अकादेमी" मैथिली कवि सम्मेलन २०११- निर्मली (जिला सुपौल) सम्पन्न भेल। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित कोलकाता मैथिली कवि सम्मेलन मे २१म शाताब्दीक पहिल दशकक सर्वश्रेष्ठ मैथिली कविता संग्रह "अम्बरा"क लेखक राजदेव मंडल आन श्रष्ठ कविकें नै बजाओल गेल आ ने कोनो सूचना देल गेल। साहित्य अकादेमीक प्रवेश निषेधक ऐ कृत्यक सुधार लेल विदेह द्वारा पहिल "समानांतर साहित्य अकादेमी" मैथिली कवि सम्मेलन २०११" दिनांक ०९ जुलाइ २०११ केँ निर्मली (जिला सुपौल) मे असर्फी दास साहू समाज महिला इन्टर महाविद्यालय परिसर (निर्मली- जिला सुपौल वार्ड नम्बर ७) आयोजित कएल गेलन । ऐ मे ककरो प्रवेष निषेध नै छल। समारोहक उद्घाटन हरिनारायण कामत आ श्री रामजी मण्डल द्वारा दीप प्रज्वलित कऽ कएल गेल। समारोहक अन्तमे श्री राजदेव मण्डलक २०१० ई. मे प्रकाशित कविता संग्रह “अम्बरा”, जे २१म शाताब्दीक पहिल दशकक सर्वश्रेष्ठ मैथिली कविता संग्रह मानल जा रहल अछि, क लोकार्पण सम्मिलित रूपेँ ६ गोटे (डॉ. बचेश्वर झा, श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, श्री रामजी प्रसाद मण्डल, श्री रौशन कुमार गुप्ता, श्री हरिनारायण कामत, श्री नन्द विलास राय) द्वारा सम्पन्न भेल। ऐ काव्य संध्यामे कविता पाठ केलन्हि- १.श्री राधाकान्त मण्डल (स्वागत गीत), २. उमेश पासवान (गेलहे घर छी, हाल, कबाड़ी), ३. श्री रामकृष्ण मण्डल छोटू (माइ), ४. श्री रामदेव प्रसाद मण्डल “झाड़ूदार” (५ टा गीत), ५. श्री नन्द विलास राय (इन्दिरा आवास), ६.श्री कपिलेश्वर साहु (कोसी), ७.श्री रामविलास साहु (३ टा कविता), ८. श्री उमेश मण्डल (२ टा कविता), ९. श्री राजदेव मण्डल (३ टा कविता), १०. श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (२ टा कविता)। सभ कविताक बाद कवितापर दुटप्पी समीक्षा सेहो भेल। कवि-सम्मेलनक अध्यक्षता श्री डॉ. बचेश्वर झा केलनि आ कार्यक्रमक संचालन श्री दुर्गानन्द मण्डल केलनि।
१४. ऐ कवि सम्मेलनक विशेषता ई रहल जे ऐ इलाकामे ऐ तरहक कार्यक्रम पहिले बेर आयोजित भेल, से श्रोता लोकनिक कहब छलन्हि। मुख्य अतिथि श्री जगदीश प्रसाद मण्डल कार्यक्रम बीचमे कहलनि जे ऐ कार्यक्रमक एतेक हलतलबीमे आयोजित करबाक कारण ई भऽ गेल जे आइ साहित्य अकादेमी द्वारा कोलकातामे मैथिली कवि गोष्ठी कराओल जा रहल अछि, जे हमरा सभक लेल लाजिमीक बात थिक जे हमरा-अहाँक गाममे होमएबला कार्यक्रम कोलकातामे होइए आ हमरा-अहाँकेँ बुझलो नै अछि। लोक ईहो कहलनि जे आइ धरि कार्यक्रमक सभक संचालन हिन्दीमे होइ छल, ई पहिल बेर भेल अछि जे कोनो कार्यक्रमक संचालन ऐ इकाकामे मैथिलीमे भेल।
१५. सूचना: विदेह द्वारा २०१२ क जनवरी-फरवरी मासमे पहिल “ विदेह मैथिली नाट्य महोत्सव २०१२” आयोजित कएल जाएत, संयोजक रहताह श्री बेचन ठाकुरजी। स्थान-समयक जानकारी बादमे देल जाएत।
१६. ३
१७. विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान (मैथिली)
१८. १.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११
१९. २०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
२०. २०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)
२१. २.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२
२२.
२३. २०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
२४. २०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा संग्रह)
२५. २०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
२६. २०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मा नदीक माझी, बांग्ला- माणिक वन्दोपाध्याय, उपन्यास बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)
२७.
२८. नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता (नेपाल देशक भाषा-साहित्य, दर्शन, संस्कृति आ सामाजिक विज्ञानक क्षेत्रमे सर्वोच्च सम्मान)
२९.
३०. नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता
३१. श्री राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' (2010)
३२. श्री राम दयाल राकेश (1999)
३३. श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव (1994)
३४.
३५. नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान मानद सदस्यता
३६. स्व. सुन्दर झा शास्त्री
३७.
३८. नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान आजीवन सदस्यता
३९. श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव
४०.
४१. फूलकुमारी महतो मेमोरियल ट्रष्ट काठमाण्डू, नेपालक सम्मान
४२. फूलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान २०६७ - मिथिला नाट्यकला परिषदकेँ
४३. फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ - सप्तरी राजविराजनिवासी श्रीमती मीना ठाकुरकेँ
४४. फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ -बुधनगर मोरङनिवासी दयानन्द दिग्पाल यदुवंशीकेँ
४५.
४६. साहित्य अकादेमी फेलो- भारत देशक सर्वोच्च साहित्य सम्मान (मैथिली)
४७.
४८.
४९. १९९४-नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी आ मैथिली कवि।
५०. २०१०- चन्द्रनाथ मिश्र अमर (१९२५- ) - मैथिली साहित्य लेल।
५१.
५२. साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल):-
५३.
५४. २०००- डॉ. जयकान्त मिश्र (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
५५. २००७- पं. डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
५६. पं. श्री उमारमण मिश्र
५७.
५८. साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली
५९.
६०.
६१. १९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
६२. १९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
६३. १९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
६४. १९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
६५. १९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
६६. १९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
६७. १९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
६८. १९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
६९. १९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
७०. १९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
७१. १९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
७२. १९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
७३. १९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
७४. १९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
७५. १९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
७६. १९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
७७. १९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
७८. १९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
७९. १९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
८०. १९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
८१. १९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
८२. १९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
८३. १९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
८४. १९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
८५. १९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
८६. १९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
८७. १९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
८८. १९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
८९. १९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
९०. १९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
९१. १९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
९२. २०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
९३. २००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
९४. २००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
९५. २००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
९६. २००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
९७. २००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
९८. २००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
९९. २००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा)
१००. २००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
१०१. २००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
१०२. २०१०-श्रीमति उषाकिरण खान (भामती, उपन्यास)
१०३.
१०४. साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
१०५. १९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१०६. १९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१०७. १९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१०८. १९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१०९. १९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
११०. १९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१११. १९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
११२. १९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
११३. २०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
११४. २००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
११५. २००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
११६. २००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
११७. २००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
११८. २००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
११९. २००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
१२०. २००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
१२१. २००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
१२२. २००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
१२३. २०१०- डॉ. नित्यानन्द लाल दास ( "इग्नाइटेड माइण्ड्स" - मैथिलीमे "प्रज्वलित प्रज्ञा"- डॉ.ए.पी.जे. कलाम, अंग्रेजी)
१२४.
१२५. साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
१२६. २०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल" लेल
१२७.
१२८. प्रबोध सम्मान
१२९. प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
१३०. प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
१३१. प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
१३२. प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
१३३. प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
१३४. प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
१३५. प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
१३६. प्रबोध सम्मान 2011- श्री सोमदेव (1934- )
१३७.
१३८. यात्री-चेतना पुरस्कार
१३९.
१४०. २००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
१४१. २००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
१४२. २००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
१४३. २००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
१४४. २००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
१४५. २००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
१४६. २००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
१४७. २००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
१४८. २००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
१४९. २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
१५०. २०१० ई.- डॉ. तारानन्द वियोगी, महिषी, सहरसा
१५१.
१५२. कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान
१५३. २००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झा (कविता संग्रह “एना त नहि जे”)
१५४. २००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता” (नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश)
१५५. २०१० ई.- श्री महाप्रकाश (कविता संग्रह “संग समय के”)
१५६.
१५७. भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता
१५८. युवा पुरस्कार (२००९-१०) गौरीनाथ (अनलकांत) केँ मैथिली लेल।
१५९.
१६०. भारतीय भाषा संस्थान (सी.आइ.आइ.एल.) , मैसूर रामलोचन ठाकुर:- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००३-०४ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) जा सकै छी, किन्तु किए जाउ- शक्ति चट्टोपाध्यायक बांग्ला कविता-संग्रहक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त। रमानन्द झा 'रमण':- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००४-०५ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) छओ बिगहा आठ कट्ठा- फकीर मोहन सेनापतिक ओड़िया उपन्यासक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त।
१६१.
१६२. मैलोरंग, दिल्लीक ज्योतिरीश्वर रंगकर्मी सम्मान
१६३. 2010- श्रीमति प्रेमलता मिश्र 'प्रेम'
१६४.
१६५. विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार
१६६.
१६७. १.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११
१६८. २०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
१६९. २०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)
१७०.
१७१. २.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२
१७२. २०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
१७३. २०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा संग्रह)
१७४. २०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
१७५. २०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मा नदीक माझी, बांग्ला- माणिक वन्दोपाध्याय, उपन्यास बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
डॉ. राजीव कुमार वर्मा
कारी घटा बरसैत मेघ
तीस बरीख भ गेल दिल्ली मे I गामक जिनगी मोन पड़ैत अछि I शेफालिका जीक पोथी भावांजलि क कुच्छ पन्ना पलट लौं - हमर अपन गाम
सजीव भ गेल --
आम , लताम , सीसो, सपाटू, नारियल वृक्षक फुनगी सँ
धरती कें अशीशैत चान सुरुजक
किरण I
हेमंत-बसंतक सुन्नर प्रसून प्रसन्न I
कोसी कछेरक प्रार्थना सदृश मंद मंद सुगन्धित ,
शीतल बयार
हवा सँ अठखेली करैत खेत मे गहुमक बालि
अनगिन हीरक जोत पसारैत मोइनक
जलधार I
नाह पर बैसल हम अहाँ
पारिजात सुमन सन शुभ्र तारकक
ज्योत्सना परिधान
स्वर्गक मन्दाकिनी तीर सँ बरसावैत जीवन-दान
ब्रह्मक थान सँ अबैत कीर्तन-गान
प्राचीन ऋषि मुनिक आश्रम सन पावन
शुभ्र स्निग्ध हमर इ डुमरा गाम
बाबूजीक विश्वास माँ क ममत संभरल
इ सुन्दर शुचि- धाम I
हमरा मोन पड़ल गामक घनघोर मेघ I हथिया आ कान्हा नक्षत्र I चमकैत बिजुरि I मयूरक नाच I ऋतुक रानी वर्षा I मोन पड़ल ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्णन - मेघक गज्ज , आकाशक मेचकता , विदुल्लताक तरंग , कदम्बक सौरभ , विष धरक संसार , ददुरक कोलाहल , धाराक संताप , आदित्यक तुच्छता I
हम सभ ग्रीष्म ऋतुक ज्वालासं जखन मृतप्राय भ जायत छी तखन वर्षाक बूंद संजीवनिक काज करैत अछि I मोन पाडू भुवनेश्वर सिंह भुवनक शब्द -
आएल आषाढ़ , आएल आषाढ़ I
भए गेल तिरोहित ग्रीष्म गाढ़ I
झर-झर-झर -झर झहरय फुहार I
खुजि गेल प्रकृति-मंदिर-दुआर I
विश्वनाथ विषपायी जीक पंक्ति सेहो याद अवैत अछि --
पट पहिरि हरित नव प्रकृति नटी
पुनि गरा बान्हि कए बक्क माल I
झिंगुर नूपुर पिक गीत गाबि
फेकै अछि बिजुरिक नयन-जाल II
विद्यापतिक नायिका कारी नुआ पहिरि मुह झाँपि, पएरक कड़ा कें ऊपर ससारि, नूपुरक मुह बंद कए पिच्छर मे अभिसारक निमित्त स्थल पर जाइत छथि जबकि वर्षा भए रहल अछि , मेघ गरैज रहल अछि , सांप सह-सह कए रहल अछि I
दिल्ली मे वर्षाक इन्तजार मे आंखि मे दरद आ दिल मे बैचेनी I हथिया आ कान्हा क कोनो चर्चा नहि I झिन्गुरक गीत दुर्लभ आ मानव स्वयं विषधर I
रत्ती भरि बूंद आ बाट पर गाड़ीक लम्बा जाम I पाईने- पाइन, गड्ढे -गड्ढा I नालीक यमुना रोड पर I
नहि चाही हमरा दिल्ली मे हथिया आ कान्हा I दू बुन्न से काम चला लेब I गाम जायब ते हथिया - कान्हा देख लेब I खूब देखब कारी घटा आ बरसैत मेघ I
लेखनी क विराम द रहल छी शेफालिका जीक भावांजलि क गोटेक शब्द सं -
हमर हृदय मरुस्थल बनि जाइत अछि
अहाँ
मेघ बनि बरैस जाइत छी
हम कृतज्ञ भ जाइत छी II
जगदीश प्रसाद मण्डल १
कथा
मातृभूमि
जिनगीक अंतिम चरणमे आइ अपन मातृभूमिक दर्शन भेल। ओ भूमि जइठामसँ माए सदति नजरि उठा-उठा देखैत रहैत, ओ प्यारी, सिनेही, प्रेमी, जीवनदायिनी, जीवन रक्छिनी भूमि-मातृभूमि। दर्शन पबिते कमल मन कलपि उठल मुदा असीम उत्साहक संग उमंग संचारित भेल। काल्हि धरिक जिनगी आँखसँ छिपए लागल, ओझल हुए लगल, मुँह नुकबए लगल। जइ दिन अपन जीवनदायिनी भूमिसँ विदा हुअए लगल रही पूर्ण जुवा रही। नस-नसमे नव खूनक संचार होइत रहए। समुद्री जुआर जकाँ जुआनी उठैत रहए। आशा-अभिलासाक संग पकड़ैक लेल उत्साहित रहए। बाट नहि भेटने मातृभूमिक दर्शन लाखो कोस दूर दुर्गमे छिपल रहए। मुदा दर्शन पबिते सत्-चित्त-आनन्दसँ खेलैत देख, नमन केलियनि।
डाक्टरीक डिग्री प्राप्त करिते वियाह भेल। नीक गाम, नीक कन्या नीक कुल-मूलक संग नीक दहेज भेटल। कोना नै भेटैत, जइ डिग्रीक मांग देश-विदेशमे अछि ओइमे बेकारी कतएसँ आओत। मुदा इंजिनियर जकाँ तँ नै जे डिग्री पेलोपर काज नै! तइले तँ साधनक जरूरत अछि से अछि कत्तऽ। जुआनीक उमंग उठिते गेल। संयोगो नीक रहल जे बाइस बर्खक अवस्थामे ओइ फ्रान्समे जइमे महान्-महान् दार्शनिक, तत्व चिन्तक वैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यकार, देशभक्त जन्म लेने छथि, काज करैक अवसर भेटल। रंगीनी दुनियाँक स्वर्ग, जेहन ओतऽ सड़क तेहन एतऽ घर नै, ओइ पेरिसमे। बिसरि गेलौं अपन भूमि-अपन मातृभूमि। ओना सोलहन्नी विसरि नै गेल रही, मुदा विचारक आलमारीक पोथी जाकमे, तर जरूर पड़ि गेलैं। अखनो मन अछि, गामक विद्यालयक देश वन्दना। हृदैमे नै पहुँचल छल गंगा सन पवित्र जलधाराक सरिता, नै जनैत छलौं माटिक सुगंध आ गाछी-विरछीक फल-फूलक महमही।
अनुकूल हवा पाबि मन मोहित भऽ गेल। जी तोड़ि जिनगीक पाछु पड़ि गेलौं। करमेसँ जिनगी तँ हमरा किअए नै। नीक स्तरक परिवार बनेलौं, नीक बैंक बैलेन्स अछि। अपनोसँ बेसी खुशी परिवारक सभ रहै छथि। कारणो स्पष्ट अछि। वाल-बच्चाक जनमे भेल, पत्नी अनके घरमे रहैवाली। मुदा आइ मन वेकल किअए लगैए। बौराइ किअए अछि? एकाग्रचित्त सभ दिन रहलौं तखन बान्हल मन पड़ाए कतऽ चाहैए। कि ‘आएल पानि गेल पानि बाटे-बिलाएल पािन।’ जइ मातृभूमिक गुनगान बच्चा, वृद्ध सभ करै छथि, तइठाम कतऽ छी। बढ़ैत-बढ़ैत जहिना धन बढ़ैए, गाछ-विरीछ बढ़ैए तहिना ने विचारो बढ़ैए। मुदा एना किअए भऽ रहल अछि जे आब ऐठाम- माने पेरिसमे, नहि रहब अपन मातृभूमिक रजकण बनब।
जहिना बाइस बर्खक वएसमे अपन गाम, समाज, भूमि-मातृभूमि छोड़ि पेरिस आएल रही तहिना आइ छोड़ि अपन प्रेमी मातृभूमि, सिनेही मातृभूमिक कोरामे विश्राम करब। मुदा नहियो बुझैत रही तैयौ अबैकाल सभसँ असिरवाद लऽ लेने रही तहिना तँ एतौसँ असीरवाद लइये लिअ पड़त। जरूर पड़त। मुदा ककरासँ? ककरोसँ नै! ने अपन गंगा-यमुनाक जलधारा, ने हिमालय-कैलाश सन पहार, ने गंगा-ब्रहमपुत्र सन धरती, ने समुद्र सदृश्य हृदए। जहिना पत्नीक संग आएल रही तहिना जाएब। जँ ओहो नइ जाथि तखन? ओ नइ जाए चाहती तेकर कारणो तँ कहती।
“आब ऐठाम नै रहब।” हम पुछलयनि।
पत्नी बजलीह- “तखन?”
हम कहलियनि- “अपन मातृभूमिक दर्शन भऽ गेल। ओतए जाएब।”
फेर पत्नी उत्तर देलनि- “सभ अपन-अपन मालिक होइए। जँ अहाँ जाएब तँ जाएब।”
पुन: पुछलियनि- “अहाँ?”
पत्नी बजलीह- “अपन कारोवार अछि। बेटा-पुतोहू दुनू फ्रान्सक भऽ गेल। दुनियाँक स्वर्गमे रहि रहल छी। तखन कि?”
मन पड़ल ओ दिन जइ दिन जिनगीक हिसाब जोड़ि आएल रही। पत्नी संगे रहथि। मुदा आइ? जुग बीत गेल। जिनका सभसँ असीरवाद लऽ आएल रही भरिसक मरि-हरि गेल हेता, गेलापर के हृदए लगौताह। तखन? तखन कि? किछु ने। मुदा जाधरि पहुँचव ता धरिक तँ उपाए चाही। विदा भऽ गेलाैं।
एक समुद्रसँ मिलैत दोसर समुद्रक विशाल जलराशिक बीच जहाजसँ मद्रास पहुँचलौं। मद्रास बन्दरगाहमे उतड़ि अपन धरती, अपन देश, अपन मातृभूमिकेँ हृदैसँ नमन केलियनि। मन पड़ल रामेश्वरम्। जखन मद्रास आबि गेल छी तखन बिनु दर्शने जाएब बचपना...। विदा भेलौं।
धरती-समुद्रक बीच बनल रामेश्वरमक मंदिर। एक दिस विशाल जल-राशिक समुद्र तँ दोसर दिस खिलैत इठलाइत मातृभूमि। उपर शून्य अकास। समुद्रेक लहड़िमे स्नान कऽ दर्शन केलौं। मंदिरसँ निकलिते खजुरीपर गबैत एकटा साधु मुँहे सुनलौं, “अवगुन चित्त न धरो।” जना भूखकेँ अन्न, पियासकेँ पानि खेहािर दैत, तहिना मनमे भेल। जलखै कऽ गामक लेल गाड़ी पकड़लौं।
जंगल, पहाड़, नदी, मैदानकेँ चिड़ैत गाड़ी गाम लग पहुँचल। जे गाम कहियो नन्दन वन सदृश्य सजल छल- लहलहाइत खेत, रास्ता-पेरा विद्यालयसँ सजल छल, धारक कटावसँ विरान बनि गेल अछि। ने एकोटा सतघरिया पोखरि बचल अछि आ ने पीपरक गाछक निच्चाक विद्यालय। घरारी, खेत बनि गेल अछि आ पोखरि-झाँखड़ि घरारी। मुदा तँए कि, ने गामक परिवार कमल, ने लोक आ ने गामक नाअों। गामक दछिनवरिया सीमापर पहुँचते एकटा नवयुवककेँ पुछलयनि- “बाउ की नाओं छी, अही गाम रहै छी?”
नवयुवक बालज- “हँ। रमेश नाम छी।”
हम पुछलयनि- “गामक की हाल-चाल अछि?”
प्रश्न सुनि रमेश ठमकि गेल। किअए नै ठमकैत। लम्वाइ (नमती) भलहिं नै बढ़ल हुअए मुदा रंग आ चौराइ तँ जरूर चतरिये गेल अछि। भरिसक चेहरा देख डरा गेल अछि। मुदा डर तँ ओतऽ बढ़ैत जतऽ डरनिहारकेँ आरो डेराएल जाइत। से तँ नै अछि। मधुआएल मन मुस्कुराइत मुँह खोलि निकलल- “बौआ, चालीस बर्ख पूर्व अही माटि-पानिक बीच डॉक्टर बनि विदेश गेलौं......।”
मधुर बोली सुनि रमेश बाजल- “गाममे के सभ छथि?”
कहलिऐ- “कियो नै। जेहो हेताह, हुनको छोड़ि देलियनि। जखन छोड़ि देलियनि तँ वएह किअए पकड़ता।”
तखन रमेश पुछलक- “रहबै कतऽ.......।”
हम बजलौं- “सएह गुनधुनमे छी।”
रमेश बाजल- “हम तँ महिसवारि करै छी, आन किछु जनै नै छी। चलु वस्तीपर पहुँचा दइ छी।”
वस्तीपर पहुँचा रमेश चलि गेल। हम ठमकि गेलौं। पूवारि भागक घरवारीक नजरि पड़िते, ओतैसँ पुछलनि- “कतऽ जाएब?”
कहलियनि- “ब्रह्मपुर।”
घरवारी कहलनि- “यएह छी। इमहर आउ।”
मनमे सवुर भेल। हूबा बढ़ल। अपन गामक चालि बढ़ल। लफड़ि कऽ दरबज्जापर पहुँचलौं। घरवारी कहलनि- “थाकल-ठहिआएल आएल छी, पहिने पएर धोउ। चाह बनौने अबै छी, तावत कपड़ा बदलि आराम करू। आइ भरिक तँ अभ्यागत भेलौं काल्हिक विचार काल्हि करब।”
कहि आंगन जा चाह अनलक। दुनू गोटे पीबैत कहलियनि- “हमहूँ अही गामक वासी छी। नोकरी करए बाहर गेल रही। अपन घरारियो अछि आ दस वीघा चासो।”
ओ बाजल- “हमहूँ आने गामक वासी छी। नानाक दोखतरीपर छी। तँए, ने गामक आँट-पेट जनै छी आ ने पुरना लोक सभकेँ।”
कहलियनि- “हम डॉक्टर छी।”
ओ बजलाह- “तखन तँ गामक देवते भेलौं। जाबे अपन ठर नै बनि जाइए ताबे एतै रहू। अतिथि-अभ्यागतकेँ खुऔने आरो बढ़ै छै।”
ठौर पाबि मन खुशी भेल। जीवैक आशा देख पत्नीकेँ फोन लगेलौं-
“हेलो..”
पत्नी उत्तर देलनि- “हँ, हँ, हेलो।”
हम कहलियनि- “गामसँ बजै छी। पुन: घुरि कऽ पेरिस नै आएब। अहाँ जँ आबए चाही तँ चलि आउ।”
पत्नी कहलनि- “चूक भेल जे संगे नै गेलौं। जाधरि अहाँ छलौं ताधरि आ अखनमे जीवन-मृत्युक अन्तर आबि गेल अछि।”
हम कहलियनि- “जखने मन हुअए तखने चलि आएब।”
ओ बजलीह- “फोन रखै छी..?”