भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, January 24, 2009

विद्यापति गीत

(१.)

जय जय भैरवि असुरभयाउनि, पसुपति–भाबिनि माया ।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाञुनि, अनुगति गति तुअ पाया ।।

बासर–रइनि सवासने सोभित, चरन चन्‍द-मनि-चूड़ा ।
कतओक दैत मारि मुहे मेरल, कतन उगिलि करु कूड़ा ।।

सामर बदन, नयन अनुरञ्जित, जलद जोग फुल कोका ।
कट-कट विकट ओठ–पुट पाँड़रि, लिधुर–फेन उठ फोका ।६।।

घन घन घनन घुघुरु कटि बाजए, हन हन कर तुअ काता ।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरु जनु माता ।।८।।



(२.)

सैसव जौवन दुहु मिलि गेल। स्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।
वचनक चातुरि लहु-लहु हास। धरनिए चाँद कएल परगास।
मुकुर हाथ लए करए सिङ्गार। सखि पूछए कैसे सुरत-बिहार।
निरजन उरज हेरइ कत बेरि। बिहुसए अपन पयोधर हेरि।
पहिल बदरि सम पुनु नवरङ्ग। दिने-दिने मदन अगोरल अङ्ग।।
माधव देखल अपरुब बाला। सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि। दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।

(३.)

के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास।
हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास।।
एकसरि भवन पिआ बिनु रे, मोहि रहलो न जाय।
सखि अनकर दुख दारुन रे, जग के पतिआय।।
मोर मन हरि लय गेल रे, अपनो मन गेल।
गोकुल तेजि मधुपुर बसु रे, कत अपजस लेल।।
विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास।
आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास।।




(४.)

चानन भेल विषम सर रे, भुषन भेल भारी।
सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी।।
एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी।
हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी।।
जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे।
चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह।।
कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी।
आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी।।




(५.)

सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।


(६.)

उचित बसए मोर मनमथ चोर। चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।
बारह बरख अवधि कए गेल। चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।
बास चाहैत होअ पथिकहु लाज। सासु ननन्द नहि अछए समाज।
सात पाँच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसाँतर आँतर भेल।
पड़ेओस वास जोएनसत भेल। थाने थाने अवयव सबे गेल।
नुकाबिअ तिमिरक सान्धि। पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।
मोरा मन हे खनहि खन भाग। गमन गोपब कत मनमथ जाग।


(७.)

हम एकसरि, पिअतम नहि गाम। तेँ मोहि तरतम देइते ठाम।
अनतहु कतहु देअइतहुँ बास। दोसर न देखिअ पड़ओसिओ पास।
छमह हे पथिक, करिअ हमे काह। बास नगर भमि अनतह चाह।
आँतर पाँतर, साँझक बेरि। परदेस बसिअ अनाइति हेरि।
मोरा मन हे खनहि खन भाँग। जौवन गोपब कत मनसिज जाग।
घोर पयोधर जामिनि भेद। जे करतब ता करह परिछेद।
भनइ विद्यापति नागरि-रीति। व्याज-वचने उपजाब पिरीति।


(८.)

ससन-परस रबसु अस्बर रे देखल धनि देह।
नव जलधर तर चमकय रे जनि बिजुरी-रेह।।
आजु देखलि धनि जाइत रे मोहि उपजल रंग।
कनकलता जनि संचर रे महि निर अवलम्ब।।
ता पुन अपरुब देखल रे कुच-जुग अरविन्द।
विकसित नहि किछुकारन रे सोझा मुख चन्द।।
विद्यापति कवि गाओल रे रस बुझ रसमन्त।
देवसिंह नृप नागर रे, हासिनि देइ कन्त।।

(९.)

जाइत पेखलि नहायलि गोरी।
कल सएँ रुप धनि आनल चोरी।।
केस निगारहत बह जल धारा।
चमर गरय जनि मोतिम-हारा।।
तीतल अलक-बदन अति शोभा।
अलि कुल कमल बेढल मधुलोभा।।
नीर निरंजन लोचन राता।
सिंदुर मंडित जनि पंकज-पाता।।
सजल चीर रह पयोधर-सीमा।
कनक-बेल जनि पडि गेल हीमा।।
ओ नुकि करतहिं जाहि किय देहा।
अबहि छोडब मोहि तेजब नेहा।।
एसन रस नहि होसब आरा।
इहे लागि रोइ गरम जलधारा।।
विद्यापति कह सुनहु मुरारि।
वसन लागल भाव रुप निहारि।।

(१०.)

जाइत देखलि पथ नागरि सजनि गे, आगरि सुबुधि सेगानि।
कनकलता सनि सुनदरि सजनि में, विहि निरमाओलि आनि।।
हस्ति-गमन जकां चलइत सजनिगे, देखइत राजकुमारि।
जनिकर एहनि सोहागिनि सजनि में, पाओल पदरथ वारि।।
नील वसन तन घरेल सजनिगे, सिरलेल चिकुर सम्हारि।
तापर भमरा पिबय रस सजनिगे, बइसल आंखि पसारि।।
केहरि सम कटि गुन अछि सजनि में, लोचन अम्बुज धारि।।
विद्यापति कवि गाओलसजनि में, गुन पाओल
अवधारि।

(११.)

जखन लेल हरि कंचुअ अछोडि
कत परि जुगुति कयलि अंग मोहि।।
तखनुक कहिनी कहल न जाय।
लाजे सुमुखि धनि रसलि लजाय।।
कर न मिझाय दूर दीप।
लाजे न मरय नारि कठजीव।।
अंकम कठिन सहय के पार।
कोमल हृदय उखडि गेल हार।।
भनह विद्यापति तखनुक झन।
कओन कहय सखि होयत बिहान।।

(१२.)

कि कहब हे सखि आजुक रंग।
सपनहिं सूतल कुपुरुप संग।।
बड सुपुक्ख बलि आयल घाइ।
सूति रहल मोर आंचर झंपाइ।।
कांचुलि खोलि आंलिगल देल।
मोहि जगाय आपु जिंद गेल।
हे बिहि हे बिहि बड दुम देल।।
से दुख हे सखि अबहु न गेल।।
भनई विद्यापति एस रश इंद।
भेक कि जान कुसुम मकरंद।।

(१३.)

मानिनि आब उचित नहि मान।
एखनुक रंग एहन सन लागय जागल पए पंचबान।।
जूडि रयनि चकमक करन चांदनि एहन समय नहि आन।
एहि अवसर पिय मिलन जेहन सुख जकाहि होय से जान।।
रभसि रभसि अलि बिलसि बिलसि कलि करय मधु पान।
अपन-अपन पहु सबहु जेमाओल भूखल तुऊ जजमान।।
त्रिबलि तरंग सितासित संगम उरज सम्भु निरमान।
आरति पति मंगइछ परति ग्रह करु धनि सरबस दान।।
दीप-बाति सम भिर न रहम मन दिढ करु अपन गेयान।
संचित मदन बेदन अति दारुन विद्यापति कवि भान।।



(१४.)

कुच-जुग अंकुर उतपत् भेल।
चरन-चपल गति लोचन लेल।।
अब सब अन रह आँचर हाथ
लाजे सखीजन न पूछय बात।।
कि कहब माधव वयसक संधि।
हेरइत मानसिज मन रहु बंधि।।
तइअओ काम हृदय अनुपाम।
रोपल कलस ऊँच कम ठाम।।
सुनइत रस-कथा थापय चीत।
जइसे कुरंगिनि सुय संगीत।।
सैसव जीवन उपजल बाद।
केओ नहि मानय जय अवसाद।।
विद्यापति कौतुक बलिहारि।
सैसव से तनु छोडनहि पारि।।

(१५.)

सैसव जीवन दुहु सिलि गेल।
श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहुनहु हास।
धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करम सिंगार।
सखइ पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरंजन अपन पयेचर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग।
दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव पेखल अपरुब बाला।
सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि।
दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।

(१६.)

कान्ह हेरल छल मन बड़ साध।
कान्ह हेरइत भेलएत परमाद।।
तबधरि अबुधि सुगुधि हो नारि।
कि कहि कि सुनि किछु बुझय न पारि।।
साओन घन सभ झर दु नयान।
अविरल धक-धक करय परान।।
की लागि सजनी दरसन भेल।
रभसें अपन जिब पर हाथ देल।।
न जानिअ किए करु मोहन चारे।
हेरइत जिब हरि लय गेल मारे।।
एत सब आदर गेल दरसाय।
जत बिसरिअ तत बिसरि न जाय।।
विद्यापति कह सुनु बर नारि।
धैरज धरु चित मिलब मुरारि।।

(१७.)

कंटक माझ कुसुम परगास।
भमर बिकल नहि पाबय पास।।
भमरा भेल कुरय सब ठाम।
तोहि बिनु मालति नहिं बिसराम।।
रसमति मालति पुनु पुनु देखि।
पिबय चाह मधु जीव उपेंखि।।
ओ मधुजीवि तोहें मधुरासि।
सांधि धरसि मधु मने न लजासि।।
अपने मने धनि बुझ अबगाही।
तोहर दूषन बध लागत काहि।।
भनहि विद्यापति तओं पए जीव।
अधर सुधारस जओं परपीब।।

(१८.)

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।
(१९.)

आहे सधि आहे सखि लय जनि जाह।
हम अति बालिक आकुल नाह।।
गोट-गोट सखि सब गेलि बहराय।
ब केबाड पहु देलन्हि लगाय।।
ताहि अवसर कर धयलनि कंत।
चीर सम्हारइत जिब भेल अंत।।
नहि नहि करिअ नयन ढर नीर।
कांच कमल भमरा झिकझोर।।
जइसे डगमग नलिनिक नीर।
तइसे डगमग धनिक सरीर।।
भन विद्यापति सुनु कविराज।
आगि जारि पुनि आमिक लाज।।

(२०.)

सामरि हे झामरि तोर दहे।
कह कह कासँए लायलि नहे।।
निन्दे भरल अछि लोचन तोर।
कोमल बदन कमल रुचि चारे।।
निरस धुसर करु अधर पँवार।
कोन कुबुधि लुतु मदन-भंडार।।
कोन कुमति कुच नख-खतदेल।
हा-हा सम्भु भागन भेय गेल।।
दमन-लता सम तनु सुकुमार।
फूटल बलय टुटल गुमहार।।
केस कुसुम तोर सिरक सिन्दूर।
अलक तिलक हे सेहो गेल दूर।।
भनइ विद्यापति रति अवसान।
राजा सिंवसिंह ईरस जान।।

(२१.)

कि कहब हे सखि रातुक बात।
मानक पइल कुबानिक हाथ।।
काच कंचन नहि जानय मूल।
गुंजा रतन करय समतूल।।
जे किछु कभु नहि कला रस जान।
नीर खीर दुहु करय समान।।
तन्हि सएँ कइसन पिरिति रसाल।
बानर-कंठ कि सोतिय माल।।
भनइ विद्यापति एह रस जान।
बानर-मुह कि सोभय पान।।

(२२.)

आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन, बदन मलिन भेल तारो।
मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि, से न कहिअ किअ मारो।
आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि, कान्ह रभस कर मंदा।
गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि, राहु गरासल चंदा।।
अधर सुखायल केस असझासल, धामे तिलक बहि गेला।
बारि विलासिनि केलि न जानथि, भाल अकण उड़ि गेला।।
भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति, ताहि कहब किअ बाधे।
जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल, सखि सभ कर उपहासे।।

(२३.)

कामिनि करम सनाने
हेरितहि हृदय हनम पंचनाने।
चिकुर गरम जलधारा
मुख ससि डरे जनि रोअम अन्हारा।
कुच-जुग चारु चकेबा
निअ कुल मिलत आनि कोने देवा।
ते संकाएँ भुज-पासे
बांधि धयल उडि जायत अकासे।
तितल वसन तनु लागू
मुनिहुक विद्यापति गाबे
गुनमति धनि पुनमत जन पाबे।

(२४.)

नन्दनक नन्दन कदम्बक तरु तर, धिरे-धिरे मुरलि बजाब।
समय संकेत निकेतन बइसल, बेरि-बेरि बोलि पठाव।।
साभरि, तोहरा लागि अनुखन विकल मुरारि।
जमुनाक तिर उपवन उदवेगल, फिरि फिरि ततहि निहारि।।
गोरस बेचरा अबइत जाइत, जनि-जनि पुछ बनमारि।
तोंहे मतिमान, सुमति मधुसूदन, वचन सुनह किछु मोरा।
भनइ विद्यापति सुन बरजौवति, बन्दह नन्द किसोरा।।

(२५.)

अम्बर बदन झपाबह गोरि।
राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।।
घरे घरे पहरु गेल अछ जोहि।
अब ही दूखन लागत तोहि।।
कतय नुकायब चांदक चोरि।
जतहि नुकायब ततहि उजोरि।।
हास सुधारस न कर उजोर।
बनिक धनिक धन बोलब मोर।।
अधर समीप दसन कर जोति।
सिंदुर सीम बैसाउलि मोति।।
भनइ विद्यापति होहु निसंक।
चांदुह कां किछु लागु कलंक।।

(२६.)

चन्दा जनि उग आजुक राति।
पिया के लिखिअ पठाओब पांति।।
साओन सएँ हम करब पिरीति।
जत अभिमत अभि सारक रिति।।
अथवा राहु बुझाओब हंसी
पिबि जनु उगिलह सीतल ससी।।
कोटि रतन जलधर तोहें लेह।
आजुक रमनि धन तम कय देह।।
भनइ विद्यापति सुभ अभिसार।
भल जल करथइ परक उपकार।।

(२७.)

ए धनि माननि करह संजात।
तुअ कुच हेमघाट हार भुजंगिनी ताक उपर धरु हाथ।।
तोंहे छाडि जदि हम परसब कोय। तुअ हार-नागिनि कारब माथे।।
हमर बचन यदि नहि परतीत। बुझि करह साति जे होय उचीत।।
भुज पास बांधि जघन तले तारि। पयोधर पाथर अदेह मारि।।
उप कारा बांधि राखह दिन-राति। विद्यापति कह उचित ई शादी।।

(२८.)

माधव ई नहि उचित विचार।
जनिक एहनि धनि काम-कला सनि से किअ करु बेभिचार।।
प्रनहु चाहि अधिक कय मानय हदयक हार समाने।
कोन परि जुगुति आनके ताकह की थिक तोहरे गेआने।।
कृपिन पुरुषके केओ नहि निक कह जग भरि कर उपहासे।
निज धन अछइत नहि उपभोगब केवल परहिक आसे।।
भनइ विद्यापति सुनु मथुरापति ई थिक अनुचित काज।
मांगि लायब बित से जदि हो नित अपन करब कोन
काज।।

(२९.)

सजनी कान्ह कें कहब बुझाइ।
रोपि पेम बिज अंकुर मूड़ल बांढब कओने उपाइ।।
तेल-बिन्दु दस पानि पसारिअ ऐरान तोर अनुराग।
सिकता जल जस छनहि सुखायल ऐसन तोर सोहाग।।
कुल-कामिली छलौं कुलटा भय गेलौं तनिकर बचन लोभाइ।
अपेनहि करें हमें मूंड मूडाओल कान्ह सेआ पेम बढ़ाइ।।
चोर रमनि जनि मने-मने रोइअ अम्बर बदन भपाइ।
दीपक लोभ सलभ जनि घायल से फल पाओल घाइ।।
भनइ विद्यापति ई कलयुग रिति चिन्ता करइ न कोई।
अपन करम-दोष आपहि भोगइ जो जनमान्तर होइ।।

(३०.)

अभिनव पल्लव बइसंक देल।
धवल कमल फुल पुरहर भेल।।
करु मकरंद मन्दाकिनि पानि।
अरुन असोग दीप दहु आनि।।
माह हे आजि दिवस पुनमन्त।।
करिअ चुमाओन राय बसन्त।।
संपुन सुधानिधि दधि भल भेल।
भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।।
केसु कुसुम सिन्दुर सम भास।
केतकि धुलि बिथरहु पटबास।।
भनइ विद्यापति कवि कंठहार।
रस बझ सिवसिंह सिव अवतार।।

(३१.)

अभिनव कोमल सुन्दर पात।
सगर कानन पहिरल पट रात।
मलय-पवन डोलय बहु भांति
अपन कुसुम रसे अपनहि माति।।
देखि-देखि माधव मन हुलसंत।
बिरिन्दावन भेल बेकत बसंत।।
कोकिल बोलाम साहर भार।
मदन पाओल जग नव अधिकार।।
पाइक मधुकर कर मधु पान।
भमि-भमि जोहय मानिनि-मान।।
दिसि-दिसि से भमि विपिन निहारि।
रास बुझावय मुदित मुरारि।
भनइ विद्यापति ई रस गाव।
राधा-माधव अभिनव भाव।।

(३२.)

सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिज, की सरसिज बिनु सूरे।
जौबन बिनु तन, तन बिनु जौबन की जौक पिअ दूरे।।
सखि हे मोर बड दैब विरोधी।
मदन बोदन बड पिया मोर बोलछड, अबहु देहे परबोधी।।
चौदिस भमर भम कुसुम-कुसुम रम, नीरसि भाजरि पीबे।
मंद पवन बह, पिक कुहु-कुहु कह, सुनि विरहिनि कइसे जीवे।।
सिनेह अछत जत, हमे भेल न टुटत, बड बोल जत सबथीर।
अइसन के बोल दुहु निज सिम तेजि कहु, उछल पयोनिधि नीरा।।
भनइ विद्यापति अरे रे कमलमुखि, गुनगाहक पिय तोरा।
राजा सिवसिंह रुपानरायन, रहजे एको नहि भोरा।।

(३३.)

लोचन धाय फोघायल हरि नहिं आयल रे।
सिव-सिव जिव नहिं जाय आस अरुझायल रे।।
मन कर तहाँ उडि जाइ जहाँ हरि पाइअ रे।
पेम-परसमनि-पानि आनि उर लाइअ रे।।
सपनहु संगम पाओल रंग बढाओलरे।
से मोर बिहि विघटाओल निन्दओ हेराओल रे।।
सुकवि विद्यापति गओल धनि धइरज धरु रे।
अचिरे मिलत तोर बालमु पुरत मनोरथ रे।।

(३४.)

आसक लता लगाओल सजनी, नयनक नीर पटाय।
से फल आब परिनत भेल मजनी, आँचर तर न समाय।।
कांच सांच पहु देखि गेल सजनी, तसु मन भेल कुह भान।
दिन-दिन फल परिनत भेल सजनी, अहुनख कर न गेआना।
सबहक पहु परदेस बसु सजनी, आयल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी, नहि मन बाढय नहे।।
भनइ विद्यापति गाओल सजनी, उचित आओत गुन साइ।
उठि बधाव करु मन भरि सजनी, अब आओत घर नाह।।

(३५.)

जौवन रतन अछल दिन चारि।
से देखि आदर कमल मुरारि।।
आवे भेल झाल कुसुम रस छूछ।
बारि बिहून सर केओ नहि पूछ।।
हमर ए विनीत कहब सखि राम।
सुपुरुष नेह अनत नहि होय।।
जावे से धन रह अपना हाथ।
ताबे से आदर कर संग-साथ।।
धनिकक आदर सबतह होय।
निरधन बापुर पूछ नहि कोय।।
भनइ विद्यापति राखब सील।
जओ जग जिबिए नब ओनिधि भील।।

(३६.)

हम जुवती, पति गेलाह बिदेस। लग नहि बसए पड़उसिहु लेस।
सासु ननन्द किछुआओ नहि जान। आँखि रतौन्धी, सुनए न कान।
जागह पथिक, जाह जनु भोर। राति अन्धार, गाम बड़ चोर।
सपनेहु भाओर न देअ कोटबार। पओलेहु लोते न करए बिचार।
नृप इथि काहु करथि नहि साति।
पुरख महत सब हमर सजाति॥
विद्यापति कवि एह रस गाब। उकुतिहि भाव जनाब।


(३७.)

बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि, ठामे ठामे बस गाम।
हम एकसरि, पिआ देसाँतर, नहि दुरजन नाम।
पथिक हे, एथा लेह बिसराम।
जत बेसाहब किछु न महघ, सबे मिल एहि ठाम।
सासु नहि घर, पर परिजन ननन्द सहजे भोरि।
एतहु पथिक विमुख जाएब तबे अनाइति मोरि।
भन विद्यापति सुन तञे जुवती जे पुर परक आस।


(३८.)

परतह परदेस, परहिक आस। विमुख न करिअ, अबस दिस बास।
एतहि जानिअ सखि पिअतम-कथा।
भल मन्द नन्दन हे मने अनुमानि। पथिककेँ न बोलिअ टूटलि बानि।
चरन-पखारन, आसन-दान। मधुरहु वचने करिअ समधान।
ए सखि अनुचित एते दुर जाए। आओर करिअ जत अधिक बड़ाइ।

(३९.)

कि कहब हे सखि रातुक बात।मानिक पइल कुबानिक हाथ।
काच क्ञ्चन नहि जानए मूल।गुञ्जा रतन करए समतूल।
जे न कबहु किछु कला-रस जान।नीर-खीर दुहु करए समान।
तन्हि सञो कहाँ पिरीति रसाल।बानर-कण्ठ कि मोतिम माल।
भनइ विद्यापति ई रस जान।बानर-मूह कि सोभए पान।
(४०.)


सैसव जौवन दरसन भेल। दुहु दले बलहि दन्द पड़ि गेल।
कबहु बान्धए कच कहु बिथार। कबहु झापए अङ्ग कबहु उघार।
थीर नयान अथिर किछु भेल। उरज-उदय-थल लालिम देल।
पद चञ्चल, चित चञ्चल भान। जागल मनसिज मुदित नयान।
विद्यापति कह कर अवधान। बाला आङ्गे लागल पञ्चवान।


(४१.)

बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे। छाड़इते निकट नयन बह नीरे।
कर जोड़ि बिनमञो विमलतरङ्गे । पुन दरसन होअ पुनिमति गङ्गे ।
एक अपराध छेँओब मोर जानी । परसल माए पाए तुअ पानी।
कि करब जप तप जोग धेआने । जनम सुफल भेल एकहि सनाने।
भनइ विद्यापति समन्दञो तोही । अंत काल जनु बिसरह मोही।



(४२.)

कखन हरब दुख मोर, हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल, दुखहि जिवन गेल, सपनहु नहि सुख मोर।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि, भैरव धरु करुआर।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति करब अन्त मोहि पार।



तर्पण - कथा -अनलकांत

गामक छिच्छा आब एकोरत्ती नीक नइँ लागि रहल छै डॉक्टर कामना यादव केँ।
लोके अधक्की होइ छै, वंशउजाड़ौन होइ छै! अपने हाथ-पयर भकोसि कृतमुख बनि जाइ छै!...मुदा एना तँ नइँ जे गामक कोनो चीन्हे-पहिचान नइँ रहय? कत' गेल ओ गाम जे उजडि़-उपटि गेल अपन भूतपूर्व गौआँ लोकनिक स्वप्ने टा मे अबै अछि?...
तखन ओ अपना आँगनक क'ल लग बाथकीट आ कपड़ा राखि पछुआड़ि धरि आयल छलि। ई पछुआडि़ ओकरा पोखरिक पूबारि महार पर छलै। जत' एक टा कागजी नेबोक गाछ छलै आ ओहि मे मारतेरास नेबो लुधकल छलै। किछु पीयर-पीयर नेबो खसि क' सड़ि गेल छलै। कने हटि पतियानी सँ पाँच टा अड़रनेबा गाछ रहै। ओहू मे कैक टा अड़रनेबा तेहन पीयर सँ ललौन जकाँ भ' रहल छलै जे खसेला पर भक्काक-भक्का भ' जयतै। किछु मे तँ चिड़ै-चुनमुनी भूर सेहो तेना पैघ-पैघ क' देने छलै जे भितरका लाली लखा दै छलै। ओ भूर सब केँ ध्यान सँ देखि रहलि छलि। कि एक टा अड़रनेबाक भूर देखि ओ चिड़ैक कलाकारी पर मुग्ध भ' गेलि। ओहि अड़रनेबा मे ऊपर-नीचाँ पातर आ बीच मे कने चाकर भूर तेहन ढंग सँ बनायल छलै जेना अंग्रेजीक एक टा 'वी' अक्षर पर दोसर 'वी' उनटि क' राखल हो!...ओहि पर एक गो बगिया राखि देने पूरा भूर मुना जयतै!
ओहि भूर देखि बगिया मोन पड़ला सँ ओकर अरुआयल-अरुआयल सन मोन ओस नहायलि दूबि जकाँ लहलहा गेलै। एहि बेर गाम अयलाक बाद पछिला तीन दिन मे ई एहन पहिल क्षण छलै जखन ओकर ठोर पर मुस्कीक पातर-सन रेह
जगजियार भ' अयलै।
पछिला तीन दिन सँ ओ एक टा ढंगक रखबार आकि चौकीदार लेल परेशान छलि। कैक टा एजेंसीक दलाल सँ गप्प क' चुकलि छलि। सब कैक टा ने रखबार ल' क' आयलो छलै, मुदा कामना यादव केँ जेहन ग्रामीण टाइपक काजुल आ अनुभवी रखबार चाही छल, से नइँ भेटि पाबि रहल छलै।
ओकर दादा कारी यादवक अमल सँ रहि रहल बुढ़बा रामजी मंडल आब अपन बेटा-पोता लग रहय चाहै छल। ओकर पैरुख सेहो थाकि गेल छलै। जेना-तेना कारी यादव सँ मंगनी यादव धरिक जीवन तँ पार लगा देलकैञ्, मुदा तकरा बाद कामना लग हाथ जोडि़ देलकैञ्, ''नइँ बुच्स्न्ची, आब पैरुख नइँ छौ। किछु दिन हमरो बेटा-पोता संग रहैक सख पुरब' दे। ''
एहि पर की कहैत कामना?...तेँ ओ ससミमान बुढ़वाक विदाइ कर' चाहै छलि, मुदा कोनो दोसर रखबार भेटतै तखने ने?...
पछिला दू मास मे ई ओकर तेसर यात्रा छलै। लगले लागल ई यात्रा ओकरा परेशान कयने छलै, मुदा ओकर समस्याक निदान नइँ भ' रहल छलै। ओम्हर पूना मे ओकर क्लीनिक एक-एक दिन बन्न भेला सँ जे परेशानी आबि रहल छलै, से अलगे।
बापक जीबैत कामना गामक बाट बिसरिए जकाँ गेलि छलि। कैक बेर तीन वा चारि साल सँ बेसी पर आयलि छलि। तहिना दू मास पहिने मंगनीलाल यादवक मुइलाक बाद जे ओ गाम आयलि छलि सेहो प्रायः दू साल सँ बेसीए पर। ई रच्छ रहलै जे ओकर बाप ओकरा क्लीनिकमे मुइलै आ तत्काल गाम अयबाक झंझटि सँ बचि गेलि। नइँ तँ एसगरि जान की-की करितय? एहने ठाम भाय-भातीज, कक्का-पीसा, बहिन-गोतनी आकि जाउत-जयधी बला पुरना परिवार मोन पडि़ जाइ छै लोक केँ। जे-से, ओ एसगरुआ छलि तेँ कहियो ओकरा पर कोनो दबावो नइँ देलकै ओकर बाप। तीन सँ चारि मास नइँ बीतै कि बुढ़वा अपने पहुँचि जाइ पूना। फोन पर तँ गप्प होइते रहै छलै।...
बापक मादे सोचैत-सोचैत कामनाक ठोर परक मुस्की कखन ने बिला गेल छलै। ओकर नजरि चारूभर सँ भटकि क' पोखरिक अँगनी दिस झुकल लताम गाछ पर चलि गेल छलै। एहि गाछक रतबा लताम तेहन ने लाली लेने रहैत रहै जेना सुग्गाक लोल कि ओकर अपने तहियाक ठोर बुझाइत रहै।
लताम गाछक पात कोकडि़या गेल छलै। ड्डूञ्ल-फर एखन नइँ छलै। मुदा किछुए मास मे, कने गरमी धबिते, एकर पात फेर नव तरहेँ लहलहा जयतै आ फूल-फर सँ लदि जयतै एकर डारि। फेर-फेर एहि पर लुधकि जयतै डम्हा आ पाकल लताम। तखन फेर बहरेतै एहि रतबा लतामक भीतर सँ वैह लाली। मुदा ओकर ठोर? नइँ, आब तँ बाजारक महँग-सँ-महँग लिपिस्टिको नइँ सोहाइ छै ओकरा। गाछक आत्मा डिम्बा मे के भरि सकैए?
पछुआडि़क मारतेरास अड़हर-बड़हर, अत्ता-शरीफा, अनार-बेल, केरा-मुनिगा सन गाछ पर सँ नजरि हटा कामना यादव पोखरिक पानि मे खेलाइत माछ दिस ताक' लागलि। चारि-पाँच टा रोहुक एक टा झुंड पैघ-पैघ सुंग डोलबैत झिहरि खेला रहल छलै। पानिक सतह पर दूर धरि खूब-खूब हलचल पसरि रहल छलै। एहि हलचल मे हेरायलि कामना दू डेग आगू बढि़ दूबिक निर्मल ओछाओन पर टाँग पसारि बैसि गेलि। ओहि दूबि पर कचनारक किछु फूल खसल छलै। एक फूल उठा हाथ मे तँ ल' लेलक, मुदा ओकर नजरि पानिक हलचले पर रहलै। ई हलचल ओकरा भीतर एक टा नव हलचल अनलकै। ओहि हलचल संग बहैत-भसिआइत कामनाक भीतर कतेक ने अतीतक पन्ना फडफ़ड़ाब' लगलै।...


...ई पोखरि ओकर दादाक खुनायल छलै। अपन पूरा जीवन गाय-महीसक बीच गुजार' बला ओकर दादा एहि परोपट्टाक अंतिम अँगुठाछाप छलै। ओना रोज-रोज गाय-महीस दूहैत ओकर अँगुठाक निशान मेटा जकाँ गेल छलै। ताहि पर, गोबर-गोंत गिजलाक बाद, सदिखन ओ तीन किलोक हरौती आकि गेन्हवाँ लाठी जे पकड़ने रहैत छल, से ओकर हाथक रेखा खाय गेलै। मुदा ओकर कपारक रेखा जगजियारे होइत गेलै। खदबद करैत पंडित-पजियार आकि बाबू-बबुआन सभ सँ भरल गामक एक मात्र 'अहूठ गुआर' कहाब'बला कारी यादव ओहिना 'मड़र' नइँ कहाब' लागल छल! दूध-घीक पैसा आकि गाछ-बाँस आ उपजा-बारी सँ कै गोटे सुभ्यस्त भेल अछि? ओहि सँ पैत-पानह बचि जाय, तँ बड़का बात!...से जेना-तेना पैत-पानह बचबैत कारी यादव स्वयं अँगुठाछाप होइतो अपन एकमात्र मँगनिया बेटा मंगनी यादव केँ शहर-नगरक कॉलेज-यूनिवर्सिटी धरि पढै़ मे कोनो कमी नइँ होअय देलक।
कारी यादव सुधंग लोक छल। ओकरा नजरि मे दरोगा आ बीडीओ सँ बढि़ दुनिया मे कोनो हाकीम नइँ छलै आ सैह ओ अपन बेटो केँ बनब' चाहै छल। मुदा मंगनी यादव से नइँ बनि सकल। ओ काशीक नामी विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर बनल तँ की? बापक लेल मास्टरे छल!...ओ रंगमंचक मशहूर कलाकार भेल तँ की? बापक लेल नचनिञे छल!...बियाहो ओम्हरे कयलक। मुदा कारी यादव लेल धनसन।

मायक चेहरा मोन नइँ छलै मंगनी केँ। बापेक रान्हल खाइत अपना हाथें बनायब सीखलक। तेँ बापक दुःख ओकरा बेसी छटपटाबै, मुदा बाप लेल ओ किछु क' नइँ पाबय। ई फराक जे हरसाइत मंगनी बाप केँ खुश करैक खूब प्रयास क' रहल छल। ओ जखन-जखन गाम आबय, बाप लेल मारतेरास कपड़ा-लत्ता आ अनेक सामान आनय। मुदा ओकर बाप केँ तकर दरकारे ने रहै छलै! खरपा पहिरय बला कारी यादव केँ चप्पल-जूता सँ गोड़ मे गुदगुदी लागै। गोलगला छोडि़ कुर्ता पहिरब ओकरा कोनादन ने बुझाइ। मंगनीक आग्रह पर बाबा विश्वनाथक दर्शन करबाक लोभ ओकरा बनारस जयबा लेल उसकाबै तँ जरूर, मुदा माल-जाल आ गाछ-बिरिछक चिन्ता पयर रोकै। तेँ ओ बेटा लग बनारस कहियो ने जा सकल।
गाछ-बिरिछ सँ बुढ़वाक बेसी लगावक एक टा खास कारण ईहो छलै जे बेसी गाछ बुढि़याक लगायल छलै। फेर बुढि़याक सारा सेहो सरौली आम आ बुढ़वा धात्री गाछक बीच मे छलै जे गोहाल सँ ओकरा सुत' बला मचानक ठीक सोझाँ पड़ैत छलै तहिया। ओइ सारा पर एक टा ने एक टा तुलसी गाछ सब दिन रहै छलै। गाय-महीस दुहलाक बाद बुढवा ओही तुलसी गाछ दिस घुरिक' धार दैत छल। फेर नहेलाक बाद ओहि तुलसी आ धात्रीक जडि़ मे पानि ढारब सेहो नइँ बिसरै छल।
मंगनी जहिया ठेकनगर भेल छल तहिया सँ बाप केँ अपने हाथेँ भानस करैत देखने छल। ओकर कनियाँक गौनाक बाद ई सब किछु दिन लेल छुटबो कयलै, मुदा कामनाक जन्मक किछुए मास बाद ओ अपन परिवार बनारस आनि लेलक। फेर बुढ़वाक वैह हाल भ' गेल रहै। मंगनी एक टा चाकर रखबाब' चाहलक, तँ बुढ़वा डाँटि-धोपि थथमारि देलकै, ''धुर बुडि़! हमरा देह मे कोन घुन लागल जे हम दोसरा सँ चाकरी खटायब?... एहने ठाम कहै छै, माय करय कुटौन-पिसौन बेटाक नाम दुर्गादा!...''
किछु दिनुका बाद मंगनी तातिल मे गाम आयल तँ बुढ़वा केँ कने बीमार देखलक। बुढ़वा डाँड़ कने टेढ़ क'क' चलै छल आ सूतल मे कुञ्हरैत रहै छल। दिन मे कैक ने बेर लोटा ल' बहराइत छल आ ढंग सँ किछु खाइतो ने छल। मंगनी कतबो पूछै, ''हौ, की होइ छअ?'', मुदा बुढ़वा सही-सही किछु बतबैते ने छलै। बुढ़वा केँ शहरक डॉタटर लग चलै लेल मंगनी कतबो जिद्द करै, बुढ़वा तैयारे ने होइ। अंत मे मंगनी खायब-पीबि छोडि़ रुसि रहल।
तखन बुढ़वा मंगनी केँ मनबैत कहलकै, ''रौ मंगनी, चल खाय ले। तों किऐ जान दै छही! हम मरिये जेबै तँ की बिगड़तै? आब जीविक' कोनो बान्ह-पोखरि देबाक छै हमरा?''
''किऐ हौ बाबू, मरिक' तों हमरा कपूत कहबेबहक? कह' तँ जीविक' बान्ह-पोखरि किऐ ने दए सकै छहक तों?'' मंगनीक स्वर भखरि गेलै।
''रौ मंगनी, ओइ लेल एक बोरा टाका चाही। से ने हमरा दूध-घी सँ हैत, आ ने गाछ-बाँस आकि उपजा-बारी सँ। तोहर मास्टरियो सँ नहिऐं हेतौ। कोनो दरोगा-बीडीओ भेल रहितय तखन ने!...'' कारी यादव गंभीर स्वर मे बाजल।
''हौ बाबू, तों नइँ बुझै छहक! हम दरोगा-बीडीओ सँ पैघे छिऐ हौ। तों बाज' ने जे कोन बान्ह देबहक आकि पोखरि खुनेबहक!...''
''ठीके कहै छही रे?''
''हँ हौ!...हम तोरा फूसि कहबह?''
''बान्हक तँ एहि जमाना मे कोनो खगते नइँ छै। एक टा पोखरिए खुना तँ बड़की टा, अपना घरक पश्चिम दू बिगहा मे। मरियो जायब तँ, जुग-जुग धरि नाम तँ रहतै जे कारी जादब पोखरि खुनेलक।...'' बुढ़वा भावना मे बह' लागल छल।
''चलह, पहिने तोहर दवाइ करा दै छियह। ठीक होइते तों मटिकट्टस्न मजूर सब सँ बात करह। जहियाक दिन तों ठीकबहक तहिए सँ काज शुरू भ' जेतै।''
आ से ठीके भ' गेलै। आ ओही संग एक टा चौकीदार, टेहलुक, भनसिया आकि मैनेजर जे बूझी, ताहि रूञ्प मे रामजी मंडल केँ ओ रखबौने छल। ई फराक जे तकरा बादो बूढ़वा जावत जीयलै माल-जाल रोमब, दुहब-गारब आकि गोबर-करसी; किछु ने छोड़लक। रामजी मंडल ओकरा घर-परिवारक अपन समाँग जकाँ भ' गेल छलै।...आ कारी यादवक मान-मर्यादा ततेक बढि़ गेलै जे ओ पूरा परोपट्टस्न मे 'मड़र' कहाबय लागल छल।
कामना केँ ई सब बेसी सुनले छै। ओहि पोखरिक जाग जे भेल छलै तकर भोज कने-मने मोन छै ओकरा। मुदा दादाक हाथक तीन किलोक लाठीक ओ लाली एखनो खूब मोन छै ओकरा। ओहि लाठी मे चुरु भरि तेल पचाबैत कालक दादाक मालिश सेहो ओकरा मोन छै। ओ लाठी एखनो ओकरा घरक कोनो कोन मे राखल छै ठीक सँ, जुगताक'।
ओकर दादा कारी यादवक मुइलाक बादे एत' फूसिघरक जगह पक्का मकान बनल छलै। मुदा ओहि मे रह'बला रामजी मंडल टा छलै। ओकरा सँ मारते बबुआनक बीच एक गुआरक घरक ठीक सँ देखभाल नइँ भ' पबै। ताहि पर किछु मालोजाल छलै। सभ छुट्टी मे मंगनी अबै तँ किछु ने किछु नव बिदैत भ' गेल रहै। हारिक' ओ आँगन-दलान संगे पोखरि-गाछ-माने पूरा सात बिगहाक रकबाक चारू कात खूब ऊँच देबाल द'क' तकरा ऊपर खूब ऊँच धरि काँटबला तारक बेढ़ सँ बेढ़बा देलक। एक जोड़ा करिया गाय छोडि़ बाकी मालजाल हटा देलक। तकरा संग रामजी मंडल केँ सख्तआदेश भेटलै जे गाछक कोनो फल आकि तीमन तरकारी ओ जते चाहय खाय सकैञ्त अछि, मुदा एक्कोपाइक किछु बेचि नइँ सकै अछि। तकर पालन करैत रामजी मंडल ओकर बाग-बगीचा, बाड़ी-झाड़ी सँ पोखरि धरि केँ सब दिन खिलखिल हँसैत जेना बनौने रहल। अपने मंगनी दू-तीन मास पर आबि तकतान क' जाय। ओना ओकरा सभक सब छुट्टी गामे मे बीतै छलै आ ओहि छुट्टी मे माय-बापक संग कामना सेहो अबै छलि।
जे-से, समय-साल बीतैत गेलै। आ एक दिन मंगनी यादव विश्वविद्यालय सँ सेवामुक्त भ' सपत्नीक गाम आबि गेल। तखन कामना अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली मे एमबीबीएस फाइनल क' रहलि छलि आ दुनियाँ साधारण सँ साधारण आदमीक मुट्ठी मे अँट' लागल छलै।
ओहि समय धरि दुनियाँक सब शहर मे एक तरहक बसात बह' लागल छलै आ अपना ठाँक गाम-घर खाली भ' रहल छलै। ककरो बेटा शहर बसलै, तँ बापक मरिते डीह पर नढि़या भुक' लगलै। किओ चारो दिसक कर्ज आ उकबा मे घेराय आकि दबंगक प्रताड़ना सँ डराय राता-राती गाम छोडि़ देलक, तँ किओ भूखक आवेग मे जत'-तत' पड़ा गेल। बाबू-भैया लोकनि कोनो ने कोनो कंञ्पनीक स्थानीय मैनेजर भ' अपना केँ शहरी बनाब' लगलाह, तँ किछु गोटे वातानुकूलित लाक्षागृह मे सेन्ह लगेबाक प्रयास मे धोती-कुर्ता उज्स्न्जर कर' लगलाह। गाम-गामक खेत-पथार बड़का-बडक़ा कंपनीक फॉर्म हाउस मे बदल' लागल छल। सस्ता कार सनक कारखाना आ केञ्मिकल्स हौज लेल पैघ-पैघ रकबा हथियाओल जा लागल छल। किसान नामक प्राणी मे सँ किछु अपने अपन लीला खत्म क' लेलक, किछु शहर-नगरक मशीन चलब' चलि गेल आ जे बचल छल तकरा मे सँ किछु मारल गेल, किछु केञ्र जीन बदलि एहन मजूर बना देल गेल जे ने शहरी रहल आ ने देहाती आ जकर ने कोनो भाषा रहल आ ने कोनो आने चीन्ह-पहिचान। सगरे नव-नव कन्वेंट, नव-नव ढाबा, नव-नव चकलाघर मिल्क-बुथ आ टेलीफोन-बुथ जकाँ खुज' लागल छलै। आ साधारण लोक 'मैन-पावर' कहाब' लागल छलै। एहने सन आफत-बसात मंगनी यादवक गाम मे सेहो आयल छलै। एही आफत मे रामजी मंडलक बेटा-पोता ओकर काजुल घरवाली धरि केँ ल'क' दिल्लीक झुग्गीवास कर' चलि गेल।
मंगनी यादव जहिया सेवामुक्त भ' बनारस सँ गाम घूरल छल, ओकरा अपन स्टेशन कातक दोकान मे बेसी अपरिचिते लोक भेटल छलै। साँझक झलअन्हारी मे घर पहुँच' धरि कतौ किओ एहन नइँ भेटलै जकरा सँ दूटप्पियो कुशल-क्षेम भ' सकैत। रामजी मंडल केँ छोडि़ ओकर आगमन ककरो लेल कोनो खबरि नइँ छलै।
अगिला भोर गामक सड़क धयने टोलक एहि कात सँ ओहि कात गुजरि गेल मंगनी, केओ हाल-चाल नइँ पुछलकै। ओत' कतहु ओकरा अपन ओ गाम नइँ भेटलै जकरा ओ चिन्है छल। जत' पहिने पंडित दीनबंधु झाक घर छलै, ओहि ठाम शून्य-सपाट एक टा मैदान बनि गेल छलै आ तकरा चारूञ्कात खूब ऊँच देबाल रहै जकरा गेट पर एक टा पैघ सन बोर्ड टाँगल छलै, 'भटिंडा फार्म हाउस'। पंडितजीक बेटा आब जामनगर मे बैसि गेल छनि। बेटी अमेरिकी नागरिकता ल' लेने छनि।
मंगनी कने आरो आगू बढ़ल, तँ देखलक जेम्हर पहिने धनुकटोली छलै, ओत' पैघ सन कोनो फैक्टरीखुजि गेल छलै जकरा छतक ऊपर तीन टा मोट-मोट चीमनीनुमा पाइप मारतेरास धुआँ छोड़ैत आसमान कारी करबाक अभियान मे लागल छलै। आ टोलाक कात सँ कलकल हँसैत बह'बला स्वच्छ-निर्मल जलधारा बला मिरचैया मे जमुना सन गन्हाइत कारी पानि तेना जमकल छलै जेना कोनो नाला।
मंगनी केँ थकान भेलै आ घर घुरय लागल। घर घुरैत ओ जगह ध्यान मे अयलै जत' पहिने विशाल-विशाल बर आ पाकडि़क गाछ छलै। ओहि ठाँ लगे-लग कोनो दू गोट मोबाइल कंपनीक विशाल-विशाल टावर ठाढ़ छलै। ओ रुकिक' चारूभर ताक' लागल। दूर-दूर धरि देखलाक बादो ओकरा नजरि पर अपना घर लगक गाछ छोडि़ कतहु एक्कोटा तेहेन पैघ गाछ नइँ अयलै। जेम्हरे देखलक सब किछु एकदम उजड़ल-उजड़ल सन बुझेलै। बीच टोल मे आबि एक ठाम ठमकल। बगलक दासजीक डीह पर कोनो टैंट हाउसक बोर्ड लागल छलै। कने हटि एक टा ट्रैवेल एजेंटक साइन बोर्ड टँगल छलै जकरा नीचाँ शीशाक गेटक भीतर एक टा पगड़ीवला सरदार जी कुर्सी पर बैसल छलै। तकरा दस डेग आगुक ग्राम देवता स्थान पर बजरंगबलीक एक टा पैघ सन मंदिर ठाढ़ छलै जकर दछिनबरिया देबाल पर कामोत्तेजना जगब'बला कोनो टिकियाक विज्ञापन छलै। तकरा बाद मंगनी किछु ने देखलक आ सोझे अपना घर आबि गेल। घर मे ओकर पत्नी मुनिगाक तरकारी रान्हि रहल छलि। ओ ओकरा लग जाय अकबका गेल।
रसे-रस मंगनी अपन घर आ सात बिगहाक रकबा मे घेरायल पोखरि-गाछ, पछुआडि़-महार धरि अपना केँ समेटि लेलक। बेटी कामना आ बाकी हित-मित सँ संपर्कञ् लेल ओकरा घर मे फोन आ मोबाइल छलै, रंगीन स्क्रीनबला कंप्युटर छलै जकर तार संपूर्ण दुनियाँ सँ जुड़ल छलै। घरक पाछाँ पैघ सन आयताकार आँगन छलै। आँगनक पश्चिम-उत्तर कोन मे चापाकल छलै। तकर पछुआडि़ मे पोखरिक महार पर मारते गाछ-बिरिछ छलै। ओहि पर सँ कखनो कोयली, तँ कखनो पड़ौकी केर सुपरिचित स्वर आबै।...माने ओकर गाम ओकरा सात बिगहाक रकबा मे बन्हायल छलै।
जेना-तेना समय कटि रहल छलै। कामना दिल्ली छोडि़ पूना मे प्रैक्टिस शुरू क' देने छलि। मुदा मंगनीक घर पर एक टा एहन कार कौआ बैसि गेल छलै जे जखने ओ दुनू प्राणी शांति सँ आराम कर' चाहय कि ओ जोर-जोर सँ टाँहि मार' लागै। भोर होइ कि साँझ, दिन होइ कि राति-कार कौआक टाँहि मारब बन्न नइँ भेलै। आ एक राति कामनाक मायक छाती मे तेहेन ने दर्द उठलै जे डॉक्टरक अबैत-अबैत बेचारी चलि गेलि। आ तकरा बाद एसगर मंगनी कारी यादव जकाँ बाड़ी-झाड़ी मे लागल रहय आ बीच-बीच मे कामना लग पूना चलि जाय।...मुदा रामजी मंडल तँ एहन शापित यक्ष छल जकरा लग ने किओ अबै छलै आ ने ओ कतौ जाय छल।...


अनचोके कामनाक भक टूटलै । पोखरिक उतरबरिया महार परक कोनो गाछ पर नुकायल कोयली बाजि रहल छलै। कामनाक भीतर किछु उमडि़ अयलै। मुदा ओ तत्काल उठि गेलि। स्नान केँ अबेर भ' रहल छलै।
भोजनक बाद ओ आराम क' रहलि छलि कि ओकर मोबाइल बजलै। एक टा नव एजेंटक कॉल छलै, ''मैडम, ऐसा कीजिए कि चौकीदार और माली के रूप में दो अलग-अलग आदमी को रख लीजिए। यहाँ ऐसा कोई चौकीदार नहीं मिल रहा जो आपकी प्रॉपर्टी के साथ पेड़-पौधों की भी देखरेख कर सके । यूँ पोखर की मछली की देखरेख के लिए मछुआरे की जरूरत फिर भी रह जाएगी।''
''नहीं, तीन-तीन आदमी रखना मुश्किल है हमारे लिए।'', कामना बाजलि।
''चौकीदार तो नेपाली ही है मगर माली जो मिल रहा है, वह एक उडि़या भाई है। ये दोनों हमारे पटना सेंटर के मार्फत आ रहे हैं और उनकी शर्त है कि वेतन के अलावा हाउसिंग फैसिलिटी भी चाहिए।''
बिना कोनो जवाब देने कामना कॉल डिस्कनेक्ट क' देलक। मुदा भीतर सँ ओकर परेशानी आरो बढि़ गेल छलै। आब एहि गाम मे गाम भने नहि रहि गेल हो मुदा ओकर बाप-दादा, माय-दादी सभक स्मृतिक गाम सात बिगहाक एहि रकबा मे बेड़हल घर-आँगन, गाछ-बिरिछ, पोखरि-कल सभक बीच छै। कारी यादव सँ मंगनी यादव धरिक नाल एतहि गड़ल छै। कारी यादवक माल-जालक गोबर-गोंत एत'क माटिक कोनो ने कोनो कण मे एखनो खादक रूप मे बचल हेतै। प्रोफेसर मंगनी यादवक कलाकार मोन एहि रकबा मे जाहि गामक लघु संस्करण केँ समेटने छल, से जरूर एही ठाम कतहु ने कतहु नुकायल हेतै।... की एकरा सब केँ ओ लुटा देत?...की ओ अपन जिनगी भरिक कमाइ सँ एकर रक्षा नइँ क' पाओत?
कामना केँ मोन पडै़ छै जे एक बेर ओकर पिता मंगनी यादव बड़ व्यथित मोन सँ कहने छलै, ''गाम मे जेहो गाम देखाइ छलै, से तोरा मायक मुइलाक बाद नइँ बुझाइ छै। कखनो-कखनो तँ मोन करैए जे हमहूँ सब किछु बेचि-बिकीनि ली। मात्र घर-आँगन आ गाछ-पोखरि सँ गाम नइँ होइ छै, बौआ। जखन पहिने जकाँ केओ गौएँ नइँ रहल तँ कोन गाम आ की गाम?...''
कामना किछु जवाब नइँ द' सकलि छलि तखन। मुदा एखनो मोन छै ओकरा जे ओ अपन बापक ओहि हेरायल-बेचैन आकृति केँ बड़ी काल धरि देखैत परेशान भ' रहलि छलि। एक्को शब्द एहन नइँ भेटल छलै तखन ओकरा जाहि सँ अपन कलाकारमना बापक मोन केँ राहत द' सकैत छलि। तखन ओकरा अपन डॉक्टरीक ज्ञान अकाजक बुझायल छलै।
सहसा एक कोन मे राखल अपन दादा कारी यादवक कारी खटखट लाठी देखा पड़लै ओकरा। ओ उठलि ओहि लाठी केँ छुबिक' देखबाक लेल, मुदा तखने कॉलबेल जोर सँ बजलै। ओ गेट दिस पलटलि। गेट पर सी सी मिश्रा नामक एक टा मैथिली भाषी सेक्युरिटी एजेंटक दलाल छलै जे पछिला दू दिन सँ नव-नव रखबार ओकरा लेल ताकि रहल छलै।
ओहि दलाल केँ ड्राइंग रूञ्म मे बैसा ओ दू मिनट बाद दू गिलास पानि ल' घुरलि। कि विनम्र सन बनैत ओ दलाल बाजल, ''डॉक्टर यादव, सुनियौ! अहाँ बड़ सौभाग्यशालिनी छी जे एखनो अपन बाप-दादाक डीह पर अबै छी। हम तँ नोकरीयेक क्रञ्म मे एम्हर आबि गेलहुँ। कोशीक पूबे सही, मुदा ईहो कहाइ तँ छै आइयो मिथिले ने। हम डीही छी कमला कातक। हमर जनम भेल हिमाचल मे व्यास नदी कातक एक टा अस्पताल मे। बचपन बीतल दिल्लीक यमुनापार मे आ नोकरी भेल कोलकाता मे। मैथिली तँ हम कोलकाता आबि सिखलहुँ सेहो एहि लेल जे हमर दादा मैथिलीक प्रसिद्घ लेखक छलाह आ हुनकर किताब सभक अंग्रेजी अनुवाद एखनो खूब लाभ दै अछि।...एखन कोलकतेक एजेंसीक काजें तीन मास लेल एहि क्षेत्र मे अयबाक अवसर भेटल। एहि क्षेत्र मे कैक टा कंपनी अपन कल-कारखाना शुरू क' रहल छै, से बहुत जल्दी एत'क प्रॉपर्टीक कीमत उछल'बला छै।...''
कामनाक धैर्य चुकि रहल छलै। ओ बाजलि, ''अहाँ कह' की चाहै छी?... साफ-साफ बाजू!''
''अहाँ अन्यथा तँ नइँ लेबै?''
''बाजू ने!...''
''अहाँ यैह ने चाहै छी जे अहाँक ई गाछ-पोखरि बचल रहय, सुरक्षित रहय

आ अहाँक बाप-दादाक नाम...''
''तँ?...'', कामनाक माथ पर बल पड़लै।
''देखू, ओहेन रखबार बड़ महँग पड़त जे अहाँक इच्छा अनुकूल हो। एहि लेल रखबार, माली, मल्लाह आ मारतेरास मजदूर पर खर्च कयलाक बादो भेटत तँ किछु ने, उनटे चिन्ता आ परेशानी बेचैन कयने रहत।''
''तँ की करी?... हम बड़ परेशान छी। ओझराउ जुनि।''
''सैह ने कहै छी!...आ लाभक बात कहै छी।...'' क्षण भरि बिलमि ओ बाजल, ''एहि ठाम एक टा भव्य रिजार्ट खोलै केर अनुमति जँ दी तँ अहाँ केँ एक खोखा पूरा भेटि जायत। संगे पोखरि-गाछक सुरक्षाक गारंटी सेहो। मात्र एहि घर-आँगन केँ तोडि़ नव बहुमंजिला बनब'क अनुमति देब' पड़त। गाछ सब लग मुक्ताकाश मे टेबुल-कुर्सी लगा देल जयतै आ डारि सब पर जगमग लाइट टँगा जयतै। पोखरि मे दू-चारि टा छोटका नाह खसा देल जयतै जाहि पर लोक सब अन्हरियो मे इजोरिया रातिक मजा लैत नौका-विहार करत। पोखरिक बीच मे जाठिक जगह एक टा छोट सनक सुइट बनि जायत, जकर डिमांड पर्यटन स्थल सभ पर सब सँ बेसी होइत छै। से एतहु हेबे टा करतै। किएक तँ एतहु रसे-रस बड़का-बड़का कंपनीक डायरेक्टर, सीईओ, एनआरआई आ विदेशी मेहमानक आगमन शुरू होबए बला छै।...''
''हम अहाँक गप्प खूब नीक जकाँ बुझि गेलहुँ।... अहाँ तँ बड़ बुधियार लोक छी यौ!...तत्काल अहाँ जा सकै छी, दान-पत्र हम शीघ्रे पठा देब!...'' कामना अपन आवाज सप्रयास संयत रखलक।
कनेक सकपका जकाँ गेल मृदुभाषी मैथिल दलाल सी सी मिश्रा चालीस सँ बेसीक नइँ छल। गेट पार क' ओ एकबेर ठमकल, ''कने इत्मीनान सँ विचार करबै मैडम। डॉक्टर छी अहाँ, ओल्ड थिंक आ भावुकता सँ किछुओ फायदा नइँ हैत। हानिए-हानि!...''आ हीं-हीं क' ठिठिआब' लागल।
चालीस पार क' चुकलि डॉक्टर कामना यादव मे प्रौढ़ता आ धैर्य आबि गेल छलै, मुदा तैयो ओ अपना जगह पर बैसलि नइँ रहि सकलि। ओ उठिक' दुआरि दिस आयलि। तेज-तर्रार दलाल सी सी मिश्रा लपकिक' अपन विदेशी मॉडलक गाड़ी मे बैसि गेल छल। कदमक गाछ तर थोड़ेक गरदा उडि़याबैत ओकर गाड़ी तुरंते फुर्र भ' गेलै।
कामना बाहरक ओसारा पर नहुँ-नहुँ बुल' लागलि छलि। कदम गाछक बाद देबालक काते-कात लागल जिम्हड़, अमड़ा आ अशोक पर बेरियाक रौद खसि रहल छलै। ओहि रौद मे गाछ सभक पात-पात पर जमल गरदाक मोटका परत नीक आर की हेतह?''
रामजी मंडलक बूढ़ चेहरा पर लाजक संग हँसीक फाहा छिडि़या गेलै। ओ खिलखिलाइत उठिक' आँगन चलि गेल।
तखने घर मे राखल कामनाक मोबाइल बजलै। पूना सँ ओकर क्लीनिकक फोन छलै। ओ उठबैते बाजलि, ''डोंट वर्री! सुबह की फ्लाइट से आ रही हूँ। एक-डेढ़ बजे तक क्लीनिकमें रहूँगी।'' आ एतबा कहैत ओकर नजरि एकबेर फेर अपन दादा कारी यादवक तीन किलोक हरौती लाठी पर चलि गेलै। ओ लपकिक' लाठी उठौलक।
लाठी मे पहिनेक लाली आ चमकि नइँ छलै। कारी खटखट ओहि लाठी पर झोल-गरदा जमि गेल छलै। भावावेश मे कामना ओहि लाठी केँ चूम' चाहलक। मुदा रुकि गेलि।...
कामनाक हाथ चीन्ह' जोग नइँ छलै। पूरा हाथ कारी भ' गेल छलै। तखने ध्यान अयलै जे ओकर ओजनो आब तीन किलो तँ नहिये टा हेतै। कि एक ठाम लाठी पर कनेक दबाव पडि़ते ओकर आँगूर धँसि जेना गेलै! कि ओकरा बुझेलै जे ई लाठी कोकनि क' फोंक भ' गेल छलै आ जोर सँ पटकि देने टुकड़ी-टुकड़ी भ' जयतै!... अचांचके डरा गेलि ओ। डराइते-डराइत ओ ओहि लाठी केँ पूर्ववत घरक कोन मे राखि हाथ धोअ' कल पर चलि गेलि।
बड़ी काल धरि बेर-बेर हाथ धोयलाक बादो ठीक सँ हाथ साफ नइँ भेलै। साबिकक तेल पीयल लाठी सँ आओल एक टा अजीब तरहक गंध हाथ मे समा गेल छलै। हारिक' तोलिया सँ हाथ पोछैत क्षण भरिक लेल पछुआडि़ दिस गेलि कामना। ओत' ओकरा लगलै, सब गाछ पर जोर-जोर सँ केओ कुड़हरि चला रहल छलै। पोखरि दिस तकबाक साहस नइँ भेलै ओकरा। ओ सोझे पड़ायलि घर आ जल्दी-जल्दी अपन ब्रीफकेस सैंत' लागलि।