भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, January 01, 2010

'विदेह' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ५०)- Part_I

'विदेह' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ५०)

वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
विशेष:
प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१.जगदीश प्रसाद मंडल- -दूटा कथा
२.२.१.परमेश्वडर कापड़ि कथा- धुमगज्जmर २. आशीष चमन- कथा- पछता रोटी ३. प्रेमशंकर सिंह-जयकान्तड मिश्र जीवन आ साहित्यi–साधना
२.३.१ कमला चौधरी-कथा--गुणनफल २.दुर्गानन्द मंडल बकलेल (कथाक दोसर आ अन्तिम भाग)
२.४.१.प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार २. सुशान्त झा-विकासक तेजीमे कहीं छुटि नै जाय मिथिला ३. नवेन्द्र कुमार झा-पचास वर्षक भेल प्रादेशिक समाचार एकांश/1993 मे प्रारंभ भेल छल मैथिली मे समाचारक प्रसारण/ सताक प्राप्ति बनल भाजपाक उद्देश्यल ४. केदार कानन-जगदीश प्रसाद मंडलक पछताबा पर एक दृष्टिी
२.५..१. डॉ. कैलाश कुमार मिश्र-सखी कुन्ती २. बिपिन झा-के करत मिथिलाक्षरक रक्षा ३. फूलचन्द्र झा प्रवीण- मैथिलीक बाल साहित्य
२.६.१. श्या मसुन्दसर शशि-नमन गुरुदेव- (साहित्य कार डा़. धीरेश्वार झा धिरेन्द्रेक ६ अम वार्षिकीपर विशेष) २. सुजीत कुमार झा हारैत हारैत नेपाल पत्रकार महासंघक केन्द्री य अध्यवक्ष
२.७. कुमार मनोज कश्यप-कथा- अन्हेर
२.८. १.डा.रमानन्द झा ‘रमण’-तन्त्रानाथझा/ सुभद्रझा जन्मशतवार्षिकी २. ऋृषि वशिष्ठ- जुआनी जिन्दाबाद ३. शिवशंकर श्रीनिवास- पण्डित ओ हुनक पुत्र





३. पद्य

३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ

३.२.१. श्री काली नाथ ठाकुर-सून मिथिलाञ्चल…..। २.एकइसम सदीक नाम-प्रेम विदेह ललन ३. विनीत ठाकुर- जाढ़

३.३.१.पूर्णियाँ कवि स्व. प्रशान्तक कविता २. सुदिप कुमार झा-दूटा रचना

३.४.१.एक भुम जोड़ एक सत्या बराबर दू क्षण- अयोध्याननाथ चौधरी २. हमर माय- डॉ. शेफालिका वर्मा ३.नवका साल, पुरने हाल ! धीरेन्द्र प्रेमर्षि

३.५.१. सतीश चन्द्र झा २.मधेशक आवाज-वौएलाल साह ३.हिमांशु चौधरी -पाथर ४. -क्षणिका-प्रशांत मिश्र-हड़ाहि

३.६.१. अरविन्द ठाकुर-गजल २. महेन्द्र कुमार मिश्र-पद्य ३.इन्क-लाव सुरेन्द्रव लाभ
३.७. शिव कुमार झा-किछु पद्य
३.८.१. कुमार पवन-नहि बिसरैछ/ काल्हि तँ रवि छै २. रोशन जनकपुरी-चप्ा्ूटाल आ सड़क ३.ओम कुमार झा-थर-थर कापिँ रहल छौ तोहर पयर ४. राजदेव मंडल-कविता

४. मिथिला कला-संगीत-कल्पनाक चित्रकला

५. गद्य-पद्य भारती -पाखलो (धारावाहिक)-भाग-७- मूल उपन्यास-कोंकणी-लेखक-तुकाराम रामा शेट, हिन्दी अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस, मैथिली अनुवाद-डॉ. शंभु कुमार सिंह

६. बालानां कृते-१. प्रसंग- आशीष चौधरी २. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु लघुकथा ३. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1. Sindhu Poudyal-Indo-Nepal Relations: A Personal Reflection


विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।



गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय
२. मैथिलीक स्वॉट Strenghth- Weakness- Opportunity- Threat (SWOT) एनेलेसिस आ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन
३. मैनेजमेन्टमे एकटा विषए छैक स्वॉट अनेलिसिस। मैथिलीक वर्तमान समस्याकेँ आ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनक कार्ययोजनाकेँ एहि कसौटीपर कसै छी।
४. Strenghth- शक्ति, सामर्थ्य, बल –
५. मैथिली लेल हृदएमे अग्नि छन्हि, से सभक हृदएमे, परस्पर एक दोसराक विरोधी किएक ने होथु। जनक बीचमे एहि भाषाक आरोह, अवरोह आ भाषिक वैशिट्यकेँ लऽ कऽ आदर अछि आ एहि मे मैथिली नहि बजनिहार भाषाविद् सम्मिलित छथि। आध्यात्मिक आ सांस्कृतिक महत्वक कारण सेहो मैथिली महत्वपूर्ण अछि। एहि भाषामे एकटा आन्तरिक शक्ति छै। बहुत रास संस्था, जाहिमे किछु जातिवादी आ सांप्रदायिक संस्था सेहो सम्मिलित अछि, एकर विकास लेल तत्पर अछि। एहि भाषाक जननिहार भारत आ नेपाल दू देशमे तँ रहिते छथि आब आन-आन देश-प्रदेशमे सेहो पसरल छथि।
६.
७. Weakness- न्यूनता, दुर्बलता, मूर्खता –
८. प्रशंसा परम्परा जाहिमे दोसराक निन्दा सेहो एहिमे सम्मिलित अछि, एकरे अन्तर्गत अबैत अछि- माने आत्मप्रशंसाक।
९. परस्पर प्रशंसा सेहो एहिमे शामिल अछि। सरकारपर आलम्बन, प्राथमिकताक अज्ञान- जकर कारणसँ महाकवि बनबा/ बनेबा लेल कवि समीक्षक जान अरोपने छथि- जखन भाषा मरि रहल अछि। कार्ययोजनाक स्पष्ट अभाव अछि आ जेना-तेना किछु मैथिली लेल कऽ देबा लेल सभ व्यग्र छथि, कऽ रहल छथि। स्वयं मैथिली नहि बाजि बाल-बच्चाकेँ मैथिलीसँ दूर रखबाक जेना अभियान चलल अछि आ एहिमे मीडिया, कार्टून आ शिक्षा-प्रणालीक संग एक्के खाढ़ीमे भेल अत्यधिक प्रवास अपन योगदान देलक अछि। मैथिलीक कार्यकर्ता लोकनिक कएक ध्रुवमे बँटल रहबाक कारण समर्थनपरक लॉबिइंग कर्ताक अभाव अछि। मैथिलीकेँ एहिअँ की लाभक बदला अपन/ अप्पन लोकक की लाभ एहि लेल लोक बेशी चिन्तित छथि। मैथिली छात्रक संख्याक अभाव। उत्पाद उत्तम रहला उत्तर सेहो विक्रयकौशलक आवश्यकता होइत छै। मैथिलीमे उत्तम उत्पादक अभाव तँ अछिए, विक्रयकौशलक सेहो अभाव अछि।
१०. Opportunity- अवसर, योग, अवकाश –
११. विशिष्ट विषयक लेखनक अभाव, मात्र कथा-कविताक सम्बल। मैथिलीमे चित्र-शृंखला, चित्रकथा, विज्ञान, समाज विज्ञान, आध्यात्म, भौतिक, रसायन, जीव, स्वास्थ्य आदिक पोथीक अभाव अछि। ताड़ग्रन्थक संगणकक उपयोग कऽ प्रकाशन नहि भऽ रहल अछि। छात्र शक्तिक प्रयोग न्यून अछि। संध्या विद्यालय आ चित्रकला-संगीतक माध्यमसँ शिक्षा नहि देल जा रहल अछि। दूरस्थ शिक्षाक माध्यमसँ/ अन्तर्जालक माध्यमसँ मैथिलीक पढ़ाइक अत्यधिक आवश्यकता अछि। मैथिलीमे अनुवाद आ वर्तमान विषय सभपर पुस्तक लेखन आ अप्रकाशित ताड़ ग्रन्थ सभक प्रकाशनक आवश्यकता अछि। मैथिलीक माध्यमसँ प्रारम्भिक शिक्षाक आवश्यकता अछि। प्रवासी मैथिल लेल भाषा पाठन-लेखन-सम्पादन पाठ्यक्रमक आवश्यकता अछि।
१२. Threat- भीषिका, समभाव्यविपद् –
१३. हताशा, आत्महीनता, शिक्षासँ निष्कासन, पारम्परिक पाठशालामे शिक्षाक माध्यमक रूपमे मैथिलीक अभाव, विरल शास्त्रज्ञ, ताड़पत्रक उपेक्षा आ विदेशमे बिक्री, भाषा शैथिल्य, सांस्कृतिक प्रदूषण आ परिणामस्वरूप भाषा प्रदूषण, मुख्यधारासँ दूर भेनाइ आ मात्र दू जातिक भाषा भेनाइ, शिक्षक मध्य ज्ञान स्तरक ह्रास, राजनैतिक स्वार्थवश मैथिलीक विरोध ई सभ विपदा हमरा सभक सोझाँ अछि।
१४. विदेहक मैथिली साहित्य आन्दोलन मैथिलीकेँ जनभाषा बनएबाक प्रक्रममे लागल अछि। पाक्षिक रूपेँ मासमे दू बेर एहिपर विचिन्ता होइत अछि। नकारात्मक चिन्तन, परदूषण आ अभाव भाषण द्वारा ई आन्दोलन नहि अवरोधित होएत आ एकरा न्यून करबाक आवश्यकता अछि। ई सभटा ऊपरवर्णित बिन्दु प्रबन्धन-विज्ञानक कार्ययोजनाक विषय अछि, आ भाषणक नहि कार्यक आवश्यकता अछि आ से हम सभ कऽ रहल छी। सम्भाषण, मैथिली माध्यमसँ पाठन, नव सर्वांगीन साहित्यक निर्माण लेल सभकेँ एकमुखी, एक स्तरीय आ एक यत्नसँ प्रयास करए पड़त। धनक अभाव तखने होइत अछि जखन सरकारी सहायतापर आस लगेने रहब। सार्वजनिक सहायताक अवलम्ब धरू, दाताक अभाव नहि स्वीकारकर्ताक अभाव अछि।
१५.
१६. प्रबोध सम्मान २०१० जीवकान्तकेँ भेटलन्हि।
१७.
१८. एहि बेरुका पुरस्कार चयन प्रक्रियामे २१ गोटेक शुरुआती दौड़मे छलाह। पहिल बेरमे ७ गोटे बहार भेलाह (लेबल १), दोसर बेर आठ गोटे बहार भेलाह (लेबल २), तेसर दौड़मे मात्र छह गोटे बचलाह (लेबल ३)। ओहि छह गोटेक क्रम एहि प्रकारसँ रहल:-
१९. जीवकान्त: ४८ अंक
२०. सोमदेव: २२ अंक
२१. भीमनाथ झा: १७ अंक
२२. रमानन्द रेणु: १७ अंक
२३. चन्द्रभानु सिंह: १२ अंक
२४. चन्द्रनाथ मिश्र अमर: १२ अंक
२५.
२६. जज एहि प्रकारेँ रहथि:
२७. एल-१- १०/१०
२८. एल.२- ९/१०
२९. एल.३- १०/१०
३०.
३१. सभ मिला कऽ २९/३० जज जाहिमे २६ गोट जज रिपीट नहि छलाह, माने २६ विभिन्न गोटे जज छलाह।
३२.
३३. सभटा वोट एहि तरहेँ रहल:
३४.
३५. 30 x 3 = 90 आ 30 x 2 = 60 आ 30 x 1 = 30 = 180
३६.
३७. वोट छह टा कम माने १७४ टा देल गेल, जाहिमे छह गोटे जे ऊपरमे रहलथि हुनका एहि मे सँ १३१ टा वोट भेटलन्हि।
३८. जीवकान्तकेँ १७४ मे ४८ वोट भेटलन्हि-२७.५९% ( संगहि १३१ मे सँ ४८ भेल- ३६.६४%)
३९.
४०. अंतिम लेबलमे दसमे सँ आठटा जज हुनका पहिल वोट देलन्हि।
४१.
४२. जीवकान्तजीकेँ बधाई।
४३. मैथिली पत्रकारिताक विकास कें ध्यान मे राखि तथा युवा पत्रकार कें प्रोत्साहित करबाक उद्दश्यें वर्ष २०१० सं ५०००/- टाका राशिक मिथिला दर्शन पत्रकारिता पुरस्कार आरभ कयल गेल अछि.
४४.
४५. समकालीन समस्या सम्पर्कित साहित्येतर आलेख जे मिथिला दर्शन मे प्रकाशित होयत तकरे आधार पर ई पुरस्कार देल जायत. साल भरिक विभिन्न अंक मे प्रकाशित आलेख मे जे सर्वोत्तम होयत तेकर लेखक कें पुरस्कृत कायल जायत. एहि सन्दर्भ मे सम्पादक मंडलक निर्णय अंतिम होयत.
४६.
४७. प्रथम मिथिला दर्शन पत्रकारिता पुरस्कार स्वस्ति foundation प्रदत प्रबोध साहित्य सम्मानक संगहि फरवरी २०११ मे प्रदान कयल जायत.
४८.
४९. रंगकर्मी प्रमीला झा नाट्यवृत्ति – 09
५०.
५१.
५२. प्रथम :
५३. प्रियंका झा (जनकपुर )
५४. सुश्रीप्रियंका झाक जन्म प्राचीन मिथिलाक राजधानी जनकपुर धाम नेपाल मे भेलन्हि । संगहि जनकपुरे के ई अपन कर्मभूमि बनेली । त्रिभूवन विश्वविद्यालयक जनकपुर कैम्पस स’कॉमर्स विषय स’अंतरस्नातक तक अहाँ अपन पढ़ाई केलहु । प्रियंका के रंगमंच धरोहरिक रूप मे हुनकर पिता श्री रमेश झा स’ प्राप्त भेलन्हि । हिनक पिता मैथिली रंगमंचक अति महत्वपूर्ण हस्ताक्षर छथि ।
५५.
५६. प्रियंका अपन जीवनक छोटपने स’ मैथिली रंगमंच पर अपन महत्वपूर्ण उपस्थिति देब’ लगलीह । अहाँ प्रस्तुति विधाक लेल कतेको तरहक प्रशिक्षण प्राप्त केने छी जाहि मे महत्वपूर्ण संस्थान अछि गुरुकुल, आरोहण, एक्सन एड, शिल्पी आदि । संगहि मैथिली रंगमंचक सुप्रसिद्ध संस्था मिनाप, जनकपुर स’ लगातार मैथिली रंगकर्म क’ रहल छी ।
५७.
५८. प्रियंका अखन तक लगभग 6 टा मैथिली नाटकक लगभग 37 टा प्रस्तुति आ 10 टा मैथिली सड़क नाटकक लगभग 5 सौ स’ बेसी प्रस्तुति क’ चुकल छथि । हिनका द्वारा कयल गेल प्रमुख नाटक अछि : ओ खाली मुँह देखै छै, छुतहा घैल, ओकरा ऑगनक बारहमासा, सुनिते करैये हरान, हाय रे हमर घरबाली आ बगिया । संगहि सड़क नाटक अछि : चिन्हियौ नेपाल, लेहुआयल आँचर, नै आब नै, ककर लाल, कोंटा सिंगार आदि ।
५९.
६०. द्वितीय :
६१. रूपम श्री ( सहरसा )
६२. सुश्री रूपम श्रीक जन्म सहरसा में भेलन्हि । अहाँ स्नातक मे पढ़ैत छी संगहि संगीत स’ सेहो प्रभाकर क’ रहल छी । रंगमंच स’ लगाव अहाँ के सुजीक प्रयास स’ 1995 स’ भेल । रूपम श्री विभिन्न संस्था संग रंगमंच क’ रहल छथि । जाहि मे प्रमुख अछि इप्टा, पंच कोसी । हिनका द्वारा कयल गेल महत्वपूर्ण नाट्य प्रस्तुति अछि : मधुश्रावणी, कनिया पुतरा, पाँच पत्र । रूपम श्रीक प्रिय नाटककार छथि महेन्द्र मलंगिया आ प्रिय निर्देशक छथिन उत्पल झा । मैथिली रंगमंच में काज क’र’ में नीक लगैत अछि । 2003 में खगौल, पटना मे अहाँके सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री स’ सम्मानित कयल गेल, तरंग महोत्सव मे उत्कृष्ठ नृत्यक लेल द्वितीय पुरस्कार राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा सिंहदेवी पाटील स’ अहाँ ग्रहण केलहुँ ।
६३.
६४. तृतीय :
६५. कल्पना मिश्रा ( दिल्ली )
६६. सुश्री कल्पना मिश्राक जन्म मिथिलाक नागदह गाम मे भेलन्हि । बच्चे स’ कल्पना जीक लगाव संगीत स’ भ’ गेलन्हि । अहाँ शास्त्रीय संगीतक प्रशिक्षण प्रयाग विद्यापीठ संगीत समिति, इलाहाबाद स’ प्राप्त केलहुँ । अहाँक शिक्षा दिक्षा बेगूसराय मे भेल । पहिने हिनक झुकाव मैथिली संगीत दिस भेल, तत्पचात ई अभिनय दिस सेहो आकर्षित भेलीह । अहाँ दिल्ली स्थित मिथिलांगन संस्था स’ रंगकर्म क’ रहल छी । मैथिलीक संग भोजपुरी, हिन्दी मे सेहो अहाँ लगातार अपन पहचान बनेबा मे सफल भेलहुँ अछि । रंगमंचक संग अहाँ लगातार फिल्म, टेलीविजनक लेल काज क’ रहल छी । कल्पना जी कतेको मैथिली नाट्य प्रस्तुति मे अपन अभिनय प्रतिभा देखा चुकल छथि । जाहि मे प्रमुख अछि : जट जटिन, उगना हॉल्ट, सामा चकेबा आदि । हिनक इच्छा छनि जे महिला कलाकारक प्रति मिथिला समाजक नजरिया मे बदलाव अयबाक चाही । कल्पना जीक प्रिय निर्देशक छथि संजय चौधरी आ प्रिय नाटककार महेन्द्र मलंगिया ।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....

पंकज पराशरकेँ बैन कए विदेह साहित्य आन्दोलनसँ। निकालल जा रहल अछि।
कारण नीचाँक लिंकपर देल गेल अछि।
http://www.box.net/shared/75xgdy37dr
विदेहमे किछु अनोनिमस ई-मेल अएलाक बाद ओकर इन्क्वायरीक बाद चेतना समिति द्वारा पंकज पराशरकेँ देल सम्मानकेँ वापस लेबा लेल आ एहि लेखककेँ बैन करबा लेल ई हमर (चेतना समितिक आजीवन मेम्बरक हैसियतसँ) आधिकारिक अनुरोध अछि आ इन्क्वायरीक विस्तृत विविचन नीचा देल जा रहल अछि। कृपया चेतना समिति एहि विषयपर अपन आपात बैसकी करए आ उचित निर्णय लए से अनुरोध।
-गजेन्द्र ठाकुर
इन्क्वायरीक विवरण:
पाठकक सूचनाक बाद ई पता चलल अछि (आ ओकर सत्यापन कएल गेल) जे एहि लेखकक ई एहि तरहक पहिल कृत्य नहि अछि। ई लेखक पहिने सेहो Douglas Kellner क Technopolitics क पंक्तिशः अनुवाद मूल लेखकक रूपमे नामसँ ज्ञानरंजनक हिन्दी पत्रिका "पहल"मे धोखासँ छपबओलक। तकर पता चललाक बाद "पहल"मे एहि लेखकक रचनाक प्रकाशन बन्द भऽ गेल। एहि सम्बन्धमे विस्तृत आलेख विदेहक अगला अंकक सम्पादकीयमे देल जाएत।
२.एहि सभ घटनाक बाद पंकज पराशरकेँ विदेहसँ बैन कएल जा रहल अछि। विदेह आर्काइवसँ "विलम्बित कइक युगमे निबद्ध" पोथीकेँ हटाओल जा रहल अछि । प्रकाशककेँ सेहो उचित पुलिसिया कार्यवाही (यदि आवश्यक हुअए तँ) लेल एहि समस्त घटनाक्रमक सूचना दऽ देल गेल अछि।
३.पाठक डगलस केलनरसँ ई-मेल kellner@gseis.ucla.edu पर "पहल" पत्रिका वा तकर सम्पादक श्री ज्ञानरंजनसँ editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in वा info@deshkaal.com पर आ दैनिक जागरणसँ nishikant@jagran.com, response@jagran.com, mailbox@jagran.com, delhi@nda.jagran.com पर सम्पर्क कए विस्तृत जानकारी लऽ सकैत छथि। डगलस केलनरक आर्टिकल गूगल सर्चपर technopolitics टाइप कए ताकि सकै छी आ पढ़ि सकै छी। पहल पत्रिकाक वेबसाइट www.deshkaal.com पर सेहो पहल पत्रिकाक पुरान अंक सभ आस्ते-आस्ते देबाक प्रारम्भ भेल अछि।

विस्तृत जानकारीक लेल सुधी पाठकगण अहाँक धन्यवाद। भविष्यमे सेहो एहि घटनाक पुनरावृत्ति नहि हुअए ताहि लेल अहाँक पारखी नजरिक आस आगाँ सेहो रहत। एहि तरहक कोनो घटनाक जानकारी हमर ई-पत्र ggajendra@gmail.com पर अवश्य पठाबी।
blackmailer pankaj parashar ke viruddha google ke likhit complain usa sthit karyalaya me official channel se patha del gel chhai aa google ke Douglas Kellner se sampark karbak lel kahi del gel chhai. ehi blackmailer ke sabhta pseudo id identify kay lel gel achhi.

In Indian Constitution we all have certain rights, If somebody in the name of freedom of expression, in the name of Literary Criticism(????) and in the name of freedom on web is blackmailing you or abusing you then remember that the freedom is available to you too and all these are punishable cognizable offences.
SAY NO TO BLACKMAIL. FOR FURTHER INFORMATION contact me at ggajendra@gmail.com
2.ANNOUNCEMENT:NATASHA FOR KIDS: IN MAITHILI WE HAVE CHEATS LIKE PANKAJ PARASHAR BUT AT THE SAME TIME WE HAVE CREATIVE PEOPLES TOO LIKE DEVANSHU VATS.
VIDEHA ANNOUNCES FIRST EVER MAITHILI COMICS NATASHA BY DEVANSHU VATS- the pdf version will be sent through email to you all in a few days, the print version is available (48 cartoon sories) for just Rs. 50/-
HOWEVER THE PDF VERSION can be downloaded and printed without any restriction.
SO SHARE THIS NEWS WITH ALL THE MAITHILI SPEAKING KIDS IN YOUR VICINITY.
and congratulate Devanshu Vats on email devanshuvatsa@gmail.com
3.VIDEHA LANGUAGE AND LITERATURE MOVEMENT IS HERE TO STAY. WE CARE FOR YOU BUT AT THE SAME TIME WE ARE STERN WITH THE INTELLECTUAL PROPERTY RIGHT THIEFS. LET THEM TRY AGAIN WE WILL EMERGE EVEN STRONGER.
REGARDS
GAJENDRA THAKUR


VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

अन्तर्जालपर ब्लैकमेलिंग विरुद्ध गूगल, चिट्ठाजगत आ ब्लोगवानीकेँ सूचित करू, साइबर क्राइम आ ब्लैकमेलिंग रोकबा लेल सेहो ढेर रास प्रावधान छै, विशेष जानकारी ggajendra@gmail.com पर सम्पर्क करू। अहाँसँ पत्रकार, न्यूजपेपर, पत्रिका आ हिन्दीक गणमान्य लेखकगण/ प्रोफेसर/ विश्वविद्यालय आदिकेँ एहि घटनासँ सूचित करेबाक अनुरोध अछि। विशेष जानकारी लेबाक आ देबाक लेल ggajendra@gmail.com पर सूचित करू।
Reply 01/26/2010 at 01:56 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

you may also brought this episode before sanjay@jagran.com
Thanks readers.
Reply 01/26/2010 at 12:25 AM
3
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

But this time he has not used his name as maithil, mithila aa subodhkant but as Pankaj Parashar pparasharjnu@gmail.com
Reply 01/25/2010 at 09:48 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

The same blackmail letter has been sent by the blackmailer to my email address which has been spammed through ISP ISP address 220.227.163.105 , 164.100.8.3 aa 220.227.174.243 and has been forwarded for taking Police action immediately.
Reply 01/25/2010 at 09:45 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

Professor Kellner has thanked me for this detective work, but it all your efforts dear reader.
Reply 01/25/2010 at 08:21 PM
Douglas Kellner
Philosophy of Education Chair
Social Sciences and Comparative Education
University of California-Los Angeles
Box 951521, 3022B Moore Hall
Los Angeles, CA 90095-1521

Fax 310 206 6293
Phone 310 825 0977
http://www.gseis.ucla.edu/faculty/kellner/kellner.html
6
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

pahal=- 86, aarambh -23 aa arunkamalak naye ilake me ka sambandhit prishtha pathebak lel dhanyavad pathakgan.
Reply 01/25/2010 at 08:16 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

http://www.gseis.ucla.edu/courses/ed253a/newDK/intell.htm ehi link par douglas kellner ke lekhak anuvad pahal-86 ke page 125-131 par achhi- soochnak lel dhanyad pathakgan.
Reply 01/24/2010 at 08:16 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

ehi ghatnakram me kono pathak lag je Arun Kamal jik kavita "Naye Ilake Me" hoinh aa Aarambh (ank 23, maithili magazine editor Sh. Rajmohan Jha (March 2000) me prakashist maithili kavita "Sanjh Hoit Gam Me" te kripya ggajendra@gmail.com par soochit karathi- Dhanyavad.
Reply 01/24/2010 at 08:02 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

ehi ghatnakram me bahut ras aar jankari aa dher ras samarthan debak lel dhanyavad pathakgan.
Reply 01/23/2010 at 11:40 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

विदेहक पाठकक सूचनाक बाद ई पता चलल अछि (आ ओकर सत्यापन कएल गेल) जे एहि लेखकक ई एहि तरहक पहिल कृत्य नहि अछि। ई लेखक पहिने सेहो Douglas Kellner क Technopolitics क पंक्तिशः अनुवाद मूल लेखकक रूपमे नामसँ ज्ञानरंजनक हिन्दी पत्रिका "पहल"मे धोखासँ छपबओलक। तकर पता चललाक बाद "पहल"मे एहि लेखकक रचनाक प्रकाशन बन्द भऽ गेल। एहि सम्बन्धमे विस्तृत आलेख विदेहक अगला अंकक सम्पादकीयमे देल जाएत।
२.एहि सभ घटनाक बाद पंकज पराशरकेँ विदेहसँ बैन कएल जा रहल अछि। विदेह आर्काइवसँ "विलम्बित कइक युगमे निबद्ध" पोथीकेँ हटाओल जा रहल अछि आ एकटा इनक्वायरी द्वारा एहि पोथीक ( डगलस केलनर बला घटनाक्रमक बाद) जाँच किछु चुनल लेखक-पाठक द्वारा कएल जएबा धरि रहत। प्रकाशककेँ सेहो उचित पुलिसिया कार्यवाही (यदि आवश्यक हुअए तँ) लेल एहि समस्त घटनाक्रमक सूचना दऽ देल गेल अछि।
३.पाठक डगलस केलनरसँ ई-मेल kellner@gseis.ucla.edu पर "पहल" पत्रिका वा तकर सम्पादक श्री ज्ञानरंजनसँ editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in वा info@deshkaal.com पर आ दैनिक जागरणसँ nishikant@jagran.com, response@jagran.com, mailbox@jagran.com, delhi@nda.jagran.com पर सम्पर्क कए विस्तृत जानकारी लऽ सकैत छथि। डगलस केलनरक आर्टिकल गूगल सर्चपर technopolitics टाइप कए ताकि सकै छी आ पढ़ि सकै छी। पहल पत्रिकाक वेबसाइट www.deshkaal.com पर सेहो पहल पत्रिकाक पुरान अंक सभ आस्ते-आस्ते देबाक प्रारम्भ भेल अछि।

विस्तृत जानकारीक लेल सुधी पाठकगण अहाँक धन्यवाद। भविष्यमे सेहो एहि घटनाक पुनरावृत्ति नहि हुअए ताहि लेल अहाँक पारखी नजरिक आस आगाँ सेहो रहत। एहि तरहक कोनो घटनाक जानकारी हमर ई-पत्र ggajendra@gmail.com पर अवश्य पठाबी।
Reply 01/22/2010 at 12:03 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

out of these three addresses of the spammer i.e. pkjpp@yahoo.co.in, pparasharjnu@gmail.com and pkjppster@gmail.com the address pkjpp@yahoo.co.in, is fails verification test and addresses pparasharjnu@gmail.com and pkjppster@gmail.com stands verified and confirmed.
Reply 01/21/2010 at 10:00 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

the htpps host matches reliance communications and the corresponding email gamghar at gmail dot com and maithilaurmithila at gmail dot com is fake ids related with the actual spammers id i.e.pkjpp@yahoo.co.in, pparasharjnu@gmail.com and pkjppster@gmail.com
Reply 01/21/2010 at 08:50 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

The office premise has been located, the blackmailer works in Dainik Jagran, Process to file complaint against Cyber Crime Act is being initiated and the organisation being taken into confidence.
Reply 01/21/2010 at 06:13 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

maithil, mithila aa subodhkant nam se abhadra aa blackmail karay bala blackmailer ke cheenhi lel gel achhi,ISP address 220.227.163.105 , 164.100.8.3 aa 220.227.174.243 aa ban kayal ja rahal achhi, agan ohi organisation se seho sampark kayal jaayat jatay se ee email aayal achhi.
Reply 01/18/2010 at 11:19 PM
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

comment moderation lagoo kayal ja rahal achhi
Reply 01/18/2010 at 09:27 PM
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सुबोधकांत said...


ist Pankaj Parashar told Pranav (Son of Maithili Story writer Sh. Pradip Bihari) to translate that article (and also one by Noam Chomsky) and he promised him to publish that hindi article as translation.The young boy translated it and handed over to him but after six months Pankaj Parashar told Pranav that the translation was not upto mark and was rejected and the translation of Noam Chomsky was misplaced. Then Pranav by chance saw that article in Hindi magazine PAHAL (86th issue) and started weeping, then when everybody saw it it was detected that Pankaj Parashar was shown as author of that article, the editor of Pahal banned him and said that a pirated article of Noam Chomsky that was sent to him by Pankaj Parashar will not be published.
Arun Kamal's Poem and its blatant translation in Maithili and a series of these act by Pankaj Parashar led me to ban him the he started abusing me through false ids like gamghar@gmail.com, and maithilaurmithila@gmail.com and ISPs 220.227.163.105 , 164.100.8.3 aa 220.227.174.243

2.from ISP 220.227.174.243 of Dainik Jagran he abused many times earlier too to others
.doc is attached.
अविनाशकेँ सेहो 220.227.174.243 आइ.एस.पी.सँ एहि प्रकारक ई-पत्र अबैत रहै मुदा ओ मामिला खतम कs देने रहथिन। ओ टिप्पणी सभ एतेक घृणित छैक जे एतए नहि देल जा रहल अछि।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ जनबरी २०१०) ९३ देशक १,०४२ ठामसँ ३६,७१७ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,१९,८९१ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।


गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in
२. गद्य
२.१.जगदीश प्रसाद मंडल- -दूटा कथा
२.२.१.परमेश्वडर कापड़ि कथा- धुमगज्ज८र २. आशीष चमन- कथा- पछता रोटी ३. प्रेमशंकर सिंह-जयकान्तड मिश्र जीवन आ साहित्यध–साधना
२.३.१ कमला चौधरी-कथा--गुणनफल २.दुर्गानन्द मंडल बकलेल (कथाक दोसर आ अन्तिम भाग)
२.४.१.प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार २. सुशान्त झा-विकासक तेजीमे कहीं छुटि नै जाय मिथिला ३. नवेन्द्र कुमार झा-पचास वर्षक भेल प्रादेशिक समाचार एकांश/1993 मे प्रारंभ भेल छल मैथिली मे समाचारक प्रसारण/ सताक प्राप्ति बनल भाजपाक उद्देश्यल ४. केदार कानन-जगदीश प्रसाद मंडलक पछताबा पर एक दृष्टिी
२.५..१. डॉ. कैलाश कुमार मिश्र-सखी कुन्ती २. बिपिन झा-के करत मिथिलाक्षरक रक्षा ३. फूलचन्द्र झा प्रवीण- मैथिलीक बाल साहित्य
२.६.१. श्या मसुन्दसर शशि-नमन गुरुदेव- (साहित्यजकार डा़. धीरेश्व र झा धिरेन्द्रेक ६ अम वार्षिकीपर विशेष) २. सुजीत कुमार झा हारैत हारैत नेपाल पत्रकार महासंघक केन्द्री य अध्याक्ष
२.७. कुमार मनोज कश्यप-कथा- अन्हेर
२.८. १.डा.रमानन्द झा ‘रमण’-तन्त्रानाथझा/ सुभद्रझा जन्मशतवार्षिकी २. ऋृषि वशिष्ठ- जुआनी जिन्दाबाद ३. शिवशंकर श्रीनिवास- पण्डित ओ हुनक पुत्र

२.१.जगदीश प्रसाद मंडल- -दूटा कथा
जगदीश प्रसाद मंडल- -दूटा कथा
जगदीश प्रसाद मंडल1947- गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.। कथा (गामक जिनगी-कथा संग्रह), नाटक(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यास(मौलाइल गाछकफूल, जीवन संघर्ष, जीवनमरण, उत्थान-पतन,जिनगीक जीत- उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। मुदा सीलिंगसँ बचबाक लेल कम्युनिस्ट आन्दोलनमे गेनिहार लोक सभसँ भेँट भेने मोहभंग। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
दूटा कथा
ठेलाबला
टाबरक घड़ीमे बारह बजेक घंटी बजितहि भोलाक निन्न टूटि गेलनि। ओछाइन परसँ उठि सड़कपर आबि हियासय लगला तँ देखलनि जे डंडी-तराजू माथसँ कनिये पछिम झुकल अछि। मेघनक दुआरे सतभैया झँपाएल। जिमहर साफ मेघ रहए ओम्हुरका तरेगण हँसैत मुदा जेमहर मेघोन रहए ओम्हुरका मलिन। गाड़ी-सबारीसँ सड़क सुनसान। मुदा बिजलीक इजोत पसरल। गस्तीक सिपाही टहलैत रहए। सड़क परसँ भोला आबि ओछाइनपर पड़ि रहला। मुदा मन उचला-चाल करैत रहनि। सिनेमाक रील जेकाँ पैछला जिनगी मनमे नचैत रहए। जहिना चुल्हिपर चढ़ल बरतनक पानि तरसँ उपर अबैत तहिना भोलोक मनक खुशी हृदएसँ निकलि चिड़ै जेकाँ अकासमे उड़ैत अछि। किएक नहि खुशी अओतैक ? हराएल वस्तु जे भेटि गेलैक अछि। मन गेलनि परसुका पत्रपर। जे गामसँ दुनू बेटा पठौने रहनि। असंभव काज बुझि विश्वासे नहि होइत रहनि। पत्र तँ नहि पढ़ल होइत रहनि मुदा पढ़बै काल जे पाँती सभ सुनने रहथि, ओहिना आँखिक आगू नचैत रहनि। पत्र उघारि आँखि गड़ा देखै लगलथि। ‘‘बाबू, पाँच तारीखकेँ दुनू भाइ ज्वाइन करै जाएब। इच्छा अछि जे घरसँ विदा हेबा काल अहाँकेँ गोर लागि घरसँ निकली। तेँ पाँच तारीखकेँ दस बजेसँ पहिनहि अपने गाम पहुँचि जाइ।’’ पत्रक बात मनमे अबितहि भोला गाम आ शहरक बीचक सीमापर लसकि गेलाह। मनमे ऐलनि, समाजसँ निकलि छातीपर ठेला घीचि, दूटा शिक्षक समाजकेँ देलिऐक, की ओहि समाजक आरो ऋण बाकी छैक ? जँ नहि तँ किएक ने छाती लगाओताह। जाहिसँ मनमे खुशी उपकलनि जे जहिना गामसँ धोती गोलगोलाटा दू टाका लऽ कऽ निकलल छलहुँ, तहिना देहक कपड़ा, सनेस, चाह-पानक खर्च छोड़ि किछु नहि एहिठाम लऽ जाएब। चिड़ै टाँहि देलकै, फेर ओछाइन परसँ उठि निकललाह, तँ देखलखिन जे बाँस भरि ऊपर भुरुकबा आबि गेल अछि। चोट्टे घुरि कऽ आबि संगी-साथीकेँ उठा अपन सभ किछु बाँटि देलखिन, अपनाले खाली टिकटक खर्च, सनेसटा पाँकेट खर्च मिला सए रुपैया राखि, कपड़ा पहीरि, धर्मशालाकेँ गोड़ लागि हँसैत निकलि गेलाह।
जखन आठे बर्खक भोला रहथि तखनहि माए मरि गेलखिन।। तीनिये मासक पछाति पिता रघुनी चुमाओन कऽ लेलखिन। ओना पहिलुको पत्नीसँ चारि सन्तान भेल रहनि। मुदा खाली भोलेटा जीवित रहल। सत्मायक परिवारमे ऐने भोलाकेँ सुखे भेलनि। ओना गामक जनिजातियो आ पुरुखोकेँ होइत जे सत्माय भोलाकेँ अलबा-दोलबा कऽ घरसँ भगा देतैक, नहि तँ परिवारमे भिनौज जरुर कराइये देतीह। मुदा सबहक अनुमान गलत भेलनि। भोला घरसँ सोलहन्नी फ्री भऽ गेलाह। फ्री सिर्फ काजे टामे भेला, मान-दान बढ़िये गेलनि। दुनू साँझ भानस होइतहि माए फुटा कऽ भोलाले सीकपर थारी साँठि कऽ राखि दैत छलीह। भलेही भोला दिनुका खेनाइ साँझमे आ रौतुका खेनाइ भोरमे किएक ने खाथि।
परोपट्टामे जालिम सिंह आ उत्तम चन्दक नाच जोर पकड़ने। सभ गाममे तँ नाच पार्टी नहि मुदा एक गाममे नाच भेने चारि कोसक लोक देखै अबैत।
भोलाक गामक विषौलक नाच पार्टी सभसँ सुन्दर अछि। जेहने नगेड़ा बजौनिहार तेहने बिपटा। जाहिसँ पार्टीक प्रतिष्ठा दिनानुदिन बढ़ितहि जाइत। घरसँ फ्री भेने भोला नाचक परमानेंट देखिनिहार भऽ गेलाह। नाचो भरि रौतुका, नहि कि एक घंटा, दू घंटा, तीन घंटाक। जेहने देखिनिहार जिद्दी, तेहने नचिनिहारो। गामक बूढ़-बुढ़ानुससँ लऽ कऽ छौँड़ा-मारड़ि घर भरि मन मनोरंजन करैत। मनोरंजनो सस्ता। ने नाच पार्टीकेँ रुपैआ दिअए पड़ैत आ ने खाइ-पीबैक कोनो झंझट। ओना गामक बारह-चौदह आना लोकक हालतो रद्दिये। मुदा जे किसान परिवार छल ओ अपना ऐठाम मासमे एक-दू दिन जरुर नाच करबैत छलाह। ओ नटुआकेँ खाइयोले दैत छलथि आ कोनो-कोनो समानो कीनिकेँ दैत छलखिन। भोलो नाच पार्टीक अंग बनि गेल, डिग्री सेदैक जिम्मा भेटि गेलैक। डिग्री सेदैक जिम्मा भेटितहि काजो बढ़ि गेलैक। घूरक लेल जारनोक ओरियान करै पड़ैत छलै। अपना काजमे भोला मस्त रहै लगल। मुदा एतबेसँ ओकर मन शान्त नहि भेलैक। काजक सृजन ओ अपनोहु करै लगल। स्टेजक आगूमे जे छोटका धिया-पूता बैसि पी-पाह करैत, ओकरो सभपर निगरानी करै लगल। आब ओ चुपचाप एकठाम नहि बैसैत। घूमि-घूमिकेँ महफिलोक निगरानी करै लगल। आरो काज बढ़ैलक। नटुआ सभकेँ बीड़ी सेहो लगबै लगल। बीड़ी सुनगबैत-सुनगबैत अपनो बीड़ी पीब सीखि लेलक। किछुए दिनक पछाति भोला बीड़ीक नमहर पियाक भऽ गेल। किएक तँ एक्के-दू दम जँ पीबए तैयो भरि रातिमे तीस-पैंतीस दम भऽ जाइत छलैक। जाहिसँ भरि राति मूड बनल रहैत छलैक।
बीड़ीक कसगर चहटि भोलाकेँ लागि गेलै। रातिमे तँ नटुऐ सभसँ काज चलि जाइत छलैक मुदा दिनमे जखन अमलक तलक जोर करैत तँ मन छटपटाए लगैत छलैक। मूडे भंगठि जाइत छलैक। मूड बनबैक दुआरे भोला बापक राखल बीड़ी चोरा-चोरा पीबै लगल। जहिक चलैत सभ दिन किछु नहि किछु बापक हाथे मारि खाइत। एक दिन एक्केटा बीड़ी रघुनीकेँ रहनि। भोला चोरा कऽ पीबि लेलक। कोदारि पाड़ि रघुनी गामपर अएलाह तँ बीड़ी पीबैक मन भेलनि। खोलिया परसँ अनै गेलाह तँ बीड़ी नहि देखलनि। चोटपर भोला पकड़ा गेलै। सभ तामस रघुनी भोलापर उताड़ि देलखिन। मारि खाए भोला कनैत उत्तर मुहेक रास्ता पकड़लक। कनिये आगू बढ़ल आकि करिया काकाक नजरि पड़लनि। भोलाक कानब सुनि ओ बुझि गेलखिन जे भीतरिया मारि लागल छै। चुचुकारिकेँ पुछलखिन- ‘‘की भेलौ रौ भोला?’’
करिया काकाक बात सुनि भोला आरो हिचुकि-हिचुकि कनै लगल। हिचुकैत भोला कनिये जोरसँ काकाकेँ कहलकनि, जे कानबक अवाजमे हरा गेलैक। काका भोलाक बात नहि बुझलखिन। मुदा बिगड़लखिन नहि, दहिना डेन पकड़ि रघुनीकेँ कहै बढ़लथि। काकाकेँ देखि रघुनियोक मन पघिल गेलैक। काका कहलखिन- ‘‘रघुनी, भोला बच्चा अछि किऐक तँ विआह नञि भेलै अए। तेँ नीक हेतह जे विआह करा दहक। अपन भार उतड़ि जेतह। परिवारक बोझ पड़तै अपने सुधरत। अखन मारने दोषी हेबह, समाज अबलट्ट जोड़तह जे बाप कुभेला करैत छैक। जनिजातिक मुँह रोकि सकबहक ओ कहतह जे ‘‘माइ मुइने बाप पित्ती।’’
करिया काकाक विचार रघुनीक करेजकेँ छेदि देलक। आँखिमे नोर आबि गेलैक। अखन धरि जे आँखि रघुनीक करिया काकापर छलैक ओ भोलाक गाल पड़क सुखल नोरक टघारपर पहुँचि अटकि गेलैक। मारिक चोट भोलाक देहमे निजाइये गेलैक जे संग-संग विआहक बात सुनि मनमे खुशियो उपकलै। बुद्धिक हिसाबसँ भलेही भोला बुड़िबक अछि मुदा नाचमे मेल-फीमेल गीत तँ गबितहि अछि।
पिताक हैसियतसँ रघुनी करिया काकाकेँ कहलखिन- ‘‘काका, हम तँ ओते छह-पाँच नहि बुझैत छिऐ, काल्हिये चलह कतौ लड़की ठेमा कऽ विआह कइये देबै।’’
‘‘बड़बढ़िया’’ कहि करियाकाका रास्ता घेलनि।
भोलाक विआह भेला आठे दिन भेल छलैक कि पाँच गोटेक संग ससुर आबि रघुनीकेँ कहलकनि- ‘‘विआहसँ पहिने हम सभ नहि बुझलिऐक, परसू पता लागल जे लड़का नाच पार्टीमे रहै अए। नटुआ-फटुआ लड़काक संग अपन बेटीकेँ हम नहि जाए देब। तेँ ई संबंध नहि रहत। अपना सभमे तँ खुजले अछि। अहूँ अपन बेटाकेँ बियाहि लिअ आ हमहूँ अपना बेटीक दोसर विआह कऽ देब।’’ कहि पाँचो गोटे चलि गेलाह।
ससुरक बात सुनि भोलाक बुद्धिये हरा गेलै। जहिना जोरगर बिरड़ो उठलापर सभ किछु अन्हरा जाइत छैक तहिना भोलोक मन अन्हरा गेल। दुनियाँ अन्हार लगै लगलैक। ओना तीन मास पहिनहि नाच पार्टी टुटि गेल छलैक। एकटा नटुआ एकटा लड़की लऽ कऽ पड़ा गेल छलैक, जाहिसँ गाम दू फाँक भऽ गेलैक। दू ग्रुपमे गाम बँटा गेलैक। सैाँसे गाममे सनासनी चलै लगलैक। ताहि परसँ भोला आरो दू फाँक भऽ गेल।
पाण्डु रोगी जेकाँ भोलाक देहक खून तरे-तर सुखै लगलैक। मुदा की करैत बेचारा? किछु फुड़बे नहि करैत छलैक। ग्लानिसँ मन कसाइन होअए लगलैक। मने-मन अपनाकेँ धिक्कारै लगल। कोन सुगराहा भगवान हमरा जन्म देलनि जे बहुओ छोड़ि देलक। विचारलक जे एहि गामसँ कतौ चलिये जाएब नीक होएत।
घरसँ भोला पड़ा गेल। संगी-साथीक मुँहसँ दिल्ली, कलकत्ता, बम्बइक विषयमे सुननहि रहए। जाहिसँ गाड़ियोक भाँज बुझले रहए। ने जेबीमे पाइ रहए, ने बटखरचा। सिर्फ दुइयेटा टाका संगमे रहए। अबधारि कऽ कलकत्ताक गाड़ी पकड़ि लेलक।
हबड़ा स्टेशन गाड़ी पहुँचते भोला उतड़ि बिदा भेल। टिकट नहि रहनहुँ एक्को मिसिया डर मनमे नहि रहैक। निरमली-सकरीक बीच कहियो टिकट नहि कटबैत छल। एक बेर पनरह अगस्तकेँ सिमरिया धरि बिना टिकटे घुरि आएल रहए। प्लेटफार्मक गेटपर दूटा सिपाहीक संग टी.टी. टिकट ओसुलैत। भोलाकेँ देखि टी.टी.क मनमे भेलै जे दरभंगिया छी भीख मंगै आएल अछि। टिकट नहि मंगलकै। सिपाहियोकेँ बुझि पड़लै जे जेबीमे किछु छैक नहि। टिकटेबला यात्री जेकाँ भोलो गेट पार भऽ गेल।
सड़कपर आबि आँखि उठा कऽ तकलक तँ नमहर-नमहर कोठा चौरगर सड़क, हजारो छोटका-बड़का गाड़ी आ लोकक भीड़ भोला देखलक। मनमे भेलै जे भरिसक आँखिमे ने किछु भऽ गेल अछि। जहिना आँखि गड़बड़ भेने एक्के चान सात बुझि पड़ैत तहिना। दुनू हाथे दुनू आँखि मीड़ि फेर देखलक तँ ओहिना। भीड़ देखि मनमे एलै जे जखन एत्ते लोकक गुजर-बसर चलैत छै तँ हमर किएक ने चलत। आगू बढ़ि लोकक बोली अकानै लगल। तेँ ककरो बाजब बुझबे नहि करैत। अखन धरि बुझैत जे जहिना गाए-महीस सभ ठाम एक्के रंग बजैत अछि तहिना ने मनुक्खो बजैत होएत। मुदा से नहि देखि भेलैक जे भरिसक हम मनुक्खक जेरिमे हरा ने तँ गेलहुँहेँ। फेर मनमे एलै जे लोक तँ संगीक बीच हराइत अछि, असकरमे कोना हराएत। विचित्र स्थितिमे पड़ि गेल। ने आगू बढ़ैक साहस होइ आ ने ककरोसँ किछु पूछैक। हिया हारि उत्तर मूहे बिदा भेल। सड़कक किनछरिये सभमे खाइ-पीबैक छोट-छोट दोकान पतिआनी लागल देखलक। भुख लगले रहै मुदा अपन पाइ आ बोली सुनि हिम्मते ने होइत। जेबी टोबलक तँ दूटकही रहबे करै। मन पड़लैक मधुबनीक स्टेशन कातक होटल, जहिमे पाँच रुपैये प्लेट दैत। ई तँ सहजहि कलकत्ता छी। एहिठाम तँ आरो बेसी महग हेबे करत। एकटा दोकानक आगूमे ठाढ़ भऽ गर अँटबै लगल जे नहि भात-रोटी तँ एक गिलास सतुऐ पीबि लेब। बगए देखि दोकानदारे कहलक- ‘‘आबह, आबह बौआ। ठाढ़ किएक छह?’’
अपन बोली सुनि भोला घुसुकि कऽ दोकान लग पहुँचि पुछलक- ‘‘दादा, कोना खुआबै छहक?’’
तीन मास पहिने धरि आठे आनामे खुआबै छेलिऐक। अखन बारह आनामे खुआबै छिऐ।’’
भोलाक मनमे संतोष भेल। पाइयेबला गहिकी जेकाँ बाजल- ‘‘कुरुड़ करैले पानि लाबह।’’
भरि पेट खा आगू बढ़ल। ओना तँ रंग-विरंगक बस्तु देखैत मुदा भोलाक नजरि सिर्फ दुइये ठाम अँटकैत। देवाल सभमे साटल सिनेमाक पोस्टरपर आ सड़कपर चलैत ठेलापर। जाहि पोस्टरमे डान्स करैत देखए ओहि ठाम अटकि सोचए जे ई नर्तकी मौगी छी आकि पुरुख। गाम-घरमे तँ पुरुखे मौगी बनि डान्स करैत अछि। फेर मन पड़लै संगीक मूहे सुनल ओ बात जे कहने रहए सत्य हरिश्चन्द फिल्ममे मर्दे मौगिओक रौल केने रहए। गुनधुन करैत बढ़ल तँ अपने जेकाँ छौड़ाकेँ ठेला ठेलने जाइत देखि सोचै लगल जे ई काज तँ हमरो बुते भऽ सकैत अछि। गाड़ीक ड्राइवरी तँ करै नहि अबै अछि। बिना सिखने रिक्शो कोना चलाओल हएत ? ततमत करैत आगू बढ़ल। सड़कक बगलेमे एकटा ठेलाबलाकेँ चाह पीबैत देखलक। ओहिठाम जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल। चाह पीबि ठेलाबला पुछलक- ‘‘कोन गाँ रहै छह?’’
‘‘विषौल।’’
‘‘हमहूँ तँ सुखेते रहै छी। चलह हमरा संगे।’’
गप-सप करैत दुनू गोटे धर्मतल्लाक पुरना धर्मशाला लग पहुँचल, ठेलाकेँ सड़केपर छोड़ि दीनमा भोलाकेँ धर्मशालाक भीतर लऽ जा कऽ कहलक- ‘‘समांग असकरे कतौ जैहह नहि। हरा जेबह। हम एक ट्रीप मारने अबै छी।’’
टंकीपर हाथ-पाएर धोए भोला दीनमासँ बीड़ी मांगि पीबि, पीलर लगा ओँगठिकेँ बैसि गेल। आँखि उठा कऽ तकलक तँ झड़ल-झुरल देवालक सिमटी, तैपर कतौ-कतौ बर-पीपरक गाछ जनमल देखलक। पैखाना कोठरीक आ पानिक टंकीक आगूमे ठेहुन भरि किचार सेहो देखलक मन पड़लैक गाम। नाच-पार्टी टूटि गेल, घरवाली छोड़ि देलक। दू पाटी गाम भऽ गेल। सोचितहि-सोचितहि निन्न आबि गेलैक। बैसिले-बैसल सुति रहल।
गोसाँइ डूबितहि बुचाइ -दोसर ठेलाबला- आबि भोलाकेँ जगबैत पुछलक- ‘‘कोन गाम रहै छह?’’
आशा भरल स्वरमे भोला बाजल- ‘‘बिषौल।’’
विषौलक नाओ सुनितहि मुस्की दैत बुचाइ पुछलक- ‘‘रुपनकेँ चीन्है छहक?’’
‘‘उ तँ हमरा कक्के हएत।’’
अपन भाएक ससुर बुझि भोलासँ सार-बहिनोइक संबंध बनबैत कहलक- ‘‘चलह, पहिने चाह पीबी। तखन निचेनसँ गप-सप करब।’’
कहि टंकीपर जा बुचन देह-हाथ धोए, कपड़ा बदलि भोलाकेँ संग केने दोकानपर गेल। आखिक इशारासँ दोकानदारकेँ दू-दूटा पनितुआ, दू-दूटा समौसा दैले कहलक। दुनू गोटे खा, चाह पीबि पानक दोकानपर पहुँचि बुचइ पान मंगलक। पान सुनि भोला बाजल- ‘‘पान छोड़ि दियौ। बीड़िये कीनि लिअ।’’
बीड़ी पीबैत दुनू गोटे धर्मशालाक भीतर पहुँचल। एका-एकी ठेलाबला सभ अबै लगलैक। बिषौलक नाओ सुनितहि अपन-अपन संबंध सभ फरिअबै लगल। संबंध स्थापित होइतहि चाहक आग्रह करैत। चाह पीबैत-पीबैत भोलाक पेट अगिया गेलै। अखन धरिक जिनगीमे एहन स्नेह पहिल दिन भेटलै। ठेलाबला परिवारक अंग भोला बनि गेल। भोलाक सभ व्यवस्था ठेलाबला सभ कऽ देलक। दोसर दिनसँ ठेला ठेलए लगल।
शनि दिनकेँ सभ ठेलाबला रौतुका नाइट शो सिनेमा देखै जाएत। ओहि शोमे एक क्लासक कन्सेशन भेटैत अछि। भोलो सभ शनि सिनेमा देखै लगल।
चौदह मास बीतलाक बाद भोला गाम आएल। नव चेहरा नव बिचार भोलाक। घरक सभले कपड़ा अनने अछि। धिया-पूताकेँ दू-दूटा चौकलेट देलक। धिया-पूताकेँ चौकलेट देखि एका-एकी जनिजातियो सभ अबै लगलीह। झबरी दादी आबि भोलाकेँ देखि बजै लगलीह- ‘‘कहू तँ एहिसँ सुन्नर पुरुख केहेन होइ छै जे सौंथ जरौनिया छोड़ि देलकै।’’
दादीक बात भोलाकेँ बेधि देलक। आँखि नोराए लगलैक। रघुनीक मन सेहो कानै लगलै। दोसरे दिन रघुनी लड़की तकै घरसँ निकलल। ओना लड़कीक तँ कमी नहि, मुदा गाम-घर देखि कऽ कुटुमैती करैक विचार रघुनिक मनमे रहै। लड़कीक कमी तँ ओहि समाजमे अधिक अछि जहिमे भ्रूण-हत्याक रोग धेने छैक। समयो बदलल अछि। गिरहस्त परिवारसँ अधिक पसन्द लोक नोकरिया परिवारकेँ करैत अछि। बगलेक गाममे भोलाक विआह भऽ गेल।
विआहक तीनिये दिन पछाति कनियाँक बिदागरियो भऽ गेलैक आ पाँचमे दिन अपनो कलकत्ता चलि देलक।
सालक एगारह मास भोला कलकत्ता आ एक मास गाममे गुजारै लगल। गाम अबैत तँ अपनो घरक काज सम्हारि अनको सम्हारि दैत।
तेसर साल चढ़ितहि भेलाकेँ जैाँआ बेटा भेलै। नवम् मास चढ़ितहि ओ गाम आबि गेल छल। मनमे आशो बनले रहैक जे पाइ-कौड़ीक दिक्कत तँ नहिये हएत। सभ ठेलाबला अपन संस्था बना पाइ-कौड़ीक प्रबन्ध अपने केने अछि। मुदा पहिल बेर छी, कनियाँक देखभाल तँ कठिन अछिये। सरकारीक कोनो बेवस्थो नहिये छैक। मुदा समाजो तँ समुद्र थिक। बिनु कहनहुँ सेवा भेटैत अछि। जाहिसँ भोलोकेँ कोनो बेसी परेशानी नहिये भेलैक।
समय आगू बढ़ल। पाँच बर्ख पुरितहि भोला दुनू बेटाकेँ स्कूलमे नाओ लिखौलक। शहरक वातावरणमे रहने भोलोक विचार धिया-पूताकेँ पढ़बै दिशि झुकि गेल रहैक। मनमे अरोपि लेलक जे भलेही खटनी दोबर किऐक ने बढ़ि जाए मुदा दुनू बेटाकेँ जरुर पढ़ाएब। अपन आमदनी देखि पत्नीक ऑपरेशन करा देलक। जाहिसँ परिवारो समटले रहलैक।
पढ़ैमे जेहने चन्सगर रतन तेहने लाल। क्लासमे रतन फस्ट करैत आ लाल सेकेण्ड। सातवाँ क्लास धरि दुनू भाए फस्ट-सेकेण्ड स्कूलमे करैत रहल। मुदा हाइ स्कूलमे दुनू भाए आर्ट लऽ पढ़ै लगल जाहिसँ क्लासमे कोनो पोजीसन तँ नहिये होइत मुदा नीक नम्बरसँ पास करै लगल।
मैट्रिकक परीक्षा दऽ दुनू भाय कलकत्ता गेल। अखन धरि आने परदेशी जेकाँ अपनो पिताकेँ बुझैत छल। तेँ मनमे रंग-विरंगक इच्छा संयोगने कलकत्ता पहुँचल रहए। मुदा अपन पिताक मेहनत, छातीक बले ठेला घीचैत देखि- पराते भने गाम घुमैक विचार दुनू भाय कऽ लेलक। पितेक जोरपर तीनि दिन अँटकल। मुदा किछु कीनैक विचार छोड़ि देलक। मेहनतक कमाइ देखि अपन इच्छाकेँ मनेमे दुनू भाय दाबि लेलक। मुदा तइयो भोला दुनू बेटाकेँ फुलपेंट, शर्ट, धड़ी, जुत्ता कीनिकेँ देलखिन।
तीन मासक उपरान्त मैट्रिकक रिजल्ट निकललै। दुनू भाय-रतनो आ लालो- प्रथम श्रेणीसँ पास केलक। फस्ट डिवीजन भेलोपर आगू पढ़ैक विचार मनमे नहि अनलक। उपार्जनक लेल सोचै लगल। नोकरीक भाँज-भुँज लगबै लगल। नोकरियोक तँ ओएह हाल। गामक-गाम पढ़ल बिनु पढ़ल नौजवानक फौज तैयार अछि। एक काजक लेल हजार हाथ तैयार अछि। जाहिसँ समाजक मूल पूँजी –मानवीय- आगिमे जरैत सम्पति जेकाँ नष्ट भऽ रहल अछि।
समय मोड़ लेलक। पढ़ल-लिखल नौजवानक लेल नोकरीक छोट-छीन दरबज्जा खुजल। गामक स्कूलमे शिक्षा-मित्रक बहाली होअए लगलैक। जाहिसँ नव ज्योतिक संचार गामोक पढ़ल लिखल नौजवानमे भेलैक। ओना समएक हिसाबसँ शिक्षा मित्रक मानदेय मात्र खोराकी भरि अछि, मुदा बेरोजगारीक हिसाबसँ तँ नीक अछिये। बगलेक गामक स्कूलमे रतनो आ लालोक बहाली भऽ गेलैक। पाँच तारीककेँ दुनू भाय ज्वाइन करत।
आगू नहि पढ़ैक दुख जते दुनू भाइक मनमे नहि रहैक ताहिसँ बेसी खुशी नोकरीसँ भेलैक। कोपर बुद्धिमे कलुषताक मिसियो भरि आगमन नहि भेलैक अछि। दुनू भाय बैसि कऽ अपन परिवारक संबंधमे विचारै लगल। रतन लालकेँ कहलक- ‘‘बौआ, कोन धरानी बाबू अपना दुनू भायकेँ पढ़ौलनि से तँ देखले अछि। अपनो सभ एक सीमा धरि पहँचि गेल छी। तेँ अपनो सभक की दायित्व बनैत अछि, से तँ सोचै पड़तह ?’’
रतनक बात सुनि लाल बाजल- ‘‘भैया, अपना सभ ओहि धरतीक सन्तान छी जाहि धरतीपर श्रवण कुमार सन बेटा भऽ चुकल छथि। पाँच तारीकसँ पहिनहि बाबूकेँ कलकतासँ बजा लहुन। हम सभ ठेलाबलाक बेटा छी, एहिमे कोनो लाज नहि अछि। मुदा लाजक बात तहन हएत जहन ओ ठेला घीचताह आ अपना सभ कुरसीपर बैसि दोसरकेँ उपदेश देबै।’’
मूड़ी डोला स्वीकार करैत रतना बाजल- ‘‘आइये बाबूकेँ जानकारी दऽ दैत छिअनि जे जानकारी पबितहि गाड़ी पकड़ि घर चलि आउ। पाँच तारीखकेँ दुनू भाय ज्वाइन करै जाएब। दुनू भायक विचार अछि जे अहाँकेँ गोर लागि घरसँ डेग उठाएब।’’
दुनू भाइक विचार सुनितहि माएक मन सुख-दुखक सीमापर लसकि गेलनि। जरल घरारीपर चमकैत कोठा देखै लगलीह। आखिमे नोर छलकि गेलनि। मुदा ओ दुखक नहि सुखक छलनि।
कामिनी
अन्हरगरे भैयाकाका लोटा नेनहि मैदान दिशिसँ आबि रस्ते परसँ बोली देलखिन.......।

हमहूँ मैट्रिकक परीक्षा दैले जाइक ओरियान करैत रही। ओना हमर नीन बड़ मोट अछि मुदा खाइये बेरिमे माएकेँ कहि देने रहिऐ जे कने तड़गरे उठा दिहें नञि तऽ गाड़ी छुटि जाएत। किऐक तँ साढ़े पाँचे बजे गाड़ीक समय अछि। आध घंटा स्टेशन जाइयोमे लगैत अछि। तेँ, पौने पाँच बजे घरसँ बिदा होएब तखने गाड़ी पकड़ाएत। जँ ई गाड़ी छुटि जाएत तँ भरि दिन रस्तेमे रहब। निरमलीसँ जयनगरक लेल एक्केटा डायरेक्ट गाड़ी अछि। नहि तँ सभ गाड़ी सकरीमे बदलै पड़ैत अछि। तहूमे बसबला सभ तेहेन चालाकी केने अछि जे एक्कोटा गाड़ीक मेलि नहि रहए देने अछि। तीनि-चारि घंटा सकरीक प्लेटफार्मपर बैसू तखन दरभंगा दिशिसँ गाड़ी आओत। तहूमे तेहेन लोक कोंचल रहत जे चढ़बो मुश्किल। तेँ ई गाड़ी पकड़़ब जरुरी अछि। ततबे नहि, अपन स्कूलक विद्यार्थियो सभ यैह गाड़ी पकड़त। अनभुआर इलाका तेँ असगर-दुसगर जाएबो ठीक नहि। सुनै छी जे ओहि इलाकामे उचक्को बेसी अछि। जँ कहीं कोनो समान उड़ौलक तँ आरो पहपटिमे पड़ि जाएब। भैया कक्काक बोली सुनि चिन्हैमे देरी नञि भेल। किऐक तँ हुनकर अबाज तेहेन मेही छनि जे आन ककरोक बोलीसँ नहि मिलैत। बोली अकानि हम दरबज्जेक कोठरीसँ कहलियनि- ‘कक्का, आउ-आउ। हमहूँ जगले छी। पँचबजिया गाड़ी पकड़ैक अछि तेँ समान सभ सरिअबै छी।’
रस्ता परसँ ससरि काका दरवज्जाक आगूमे आबि कहलनि- ‘कने हाथ मटिया लै छी। तखन निचेनसँ बैसबो करब आ गप्पो करब।’
कहि पूब मुहे कल दिशि बढ़लाह। हमहूँ हाँइ-हाँइ समान सरिअबै लगलौं। कलपर सँ आबि काका ओसारक चौकी तरमे लोटा रखि अपने चौकीपर बैसलाह। चौकीपर बैसितहि गोलगोलाक जेबीसँ बिलेती तमाकुलक पात निकालि तोड़ैत बजलाह- ‘भाइ सहाएब कहाँ छथुन?’
‘ओ काल्हिये बेरु पहर नेवानी गेला, से अखन धरि कहाँ ऐलाहहेँ।’
हमर बात सुनि, भैयाकाका चुनौटीसँ चून निकालि तरहत्थीपर लैत बजलाह- ‘अखन जाइ छी, होएत तँ ओइ बेरिमे फेरि आएब।’
काकाक वापस होएब हमरा नीक नहि लागल। किऐक तँ लगले ऐलाह आ चोट्टे घुरि जेताह। तेँ बैसै दुआरे बजलहुँ- ‘अहाँ तँ कक्का गाममे दगबिज्जो कऽ देलिऐक। एत्ते खर्च कऽ कऽ कियो कन्यादान नहि केने छलाह। अहाँ रेकर्ड बना लेलिऐक।’
अपन प्रशंसा सुनि भैयाकाका मुस्कुराइत बजलाह- ‘ बौआ, युग बदलि रहल अछि। तेँ सोचलहुँ जे नीक पढ़ल-लिखल वरक संग बेटीक विआह करब। हमरो बेटी तँ बड़ पढ़ल-लिखल नहिये अछि। मुदा रामायण, महाभारत तँ धुरझार पढ़ि लैत अछि। चिट्ठियो-पुरजी लिखिये-पढ़ि लैत अछि। घर-आश्रम जोकर तँ ओहो पढ़नहि अछि। ओकरा की कोनो नोकरी-चाकरी करैक छैक, जे स्कूल-कओलेजक सर्टिफिकेट चाहिऐक। अपना सभ गिरहस्त परिवारमे छी तेँ बेटीकेँ बेसी पढ़ाएब नीक नहि।’
‘किए?’
अपना सबहक परिवारमे गोंत-गोबरसँ लऽ कऽ थाल-कादो धरिक काज अछि। ओ तँ घरेक लोक करत। तइमे देखबहक जे जे स्त्रीगण पढ़ल-लिखल अछि ओ ओहि काजक भीड़ि नहि जाए चाहतह। आब तोंही कहह जे तखन गिरहस्ती चलतै कोना?’
काकाक तर्कक जबाब हमरा नहि फुड़ल। मुदा चुप्पो रहब उचित नहि बुझि कहलिएनि- ‘जखन युग बदलि रहल अछि तखन तँ सभकेँ शिक्षित होएब जरुरी अछि की ने?’ सभ पढ़त सभ नोकरी करत। नीक तलब उठाओत। जाहिसँ घरक उन्नति आरो तेजीसँ होएत। तहूमे महिला आरक्षण भेने नोकरियोमे बेसी दिक्कत नहिये होएत।’
भैयाकाका- ‘कहलह तँ बड़ सुन्दर बात मुदा एकटा बात कहह जे दुनू गोटे ,मर्द-औरत, एक्के स्कूल वा ऑफिसमे नोकरी करत तखन ने एकठाम डेरा रखि परिवार चलौत। मुदा जखन पुरुष दोसर राज्य वा दोसर जिला वा दस कोस हटि कऽ नोकरी करत तखन कोना चलतै। परिवार तँ पुरुष-नारीक योगसँ चलैत अछि की ने? परिवारमे अनेको ऐहेन काज अछि जे दुनूक मेलसँ होएत। मनुष्य तँ गाछ-बिरीछ नहि ने छी जे फलक आँठी कतौ फेकि देबै तँ गाछ जनमि जाएत। आब तँ तोहूँ कोनो बच्चा नहिये छह जे नै बुझबहक। मनुष्यक बच्चा नअ मास २७० दिन माइक पेटमे रहैत अछि। चारि-पाँच मासक उपरान्त माइक देहमे बच्चाक चलैत कते रंगक रोग-व्याधिक प्रवेश भऽ जाइत छैक। किऐक तँ माइक संग-संग बच्चोक विकासक लेल अनुकूल भोजन, आराम आ सेवाक आवश्यकता होइत। तखन माए असकरे की करत? नोकरी करत आ कि पालन करत ? एहि लेल तँ दोसरेक मदतिक जरुरत होइत।’
‘आन-आन देशमे तँ मर्द-औरत सभ नोकरी करैत अछि आ ठाठसँ जिनगी बितबैत अछि।’
भैयाकाका- ‘आन देशक माने ई बुझै छहक जे जत्ते दोसर देश अछि सबहक रीति-नीति जीवन शैली एक्के रंग छैक ? नहि। एकदम नहि। किछु देशक एक रंगाहो अछि। मुदा फराक-फराक सेहो अछि। हँ, किछु ऐहन अछि जहि ठाम मनुष्य सार्वजनिक सम्पति बुझल जाइत छैक। ओहि देशक व्यवस्थो दोसर रंगक अछि। सभ तरहक सुविधा सबहक लेल अछि। तहि ठामक लेल ठीक अछि। मुदा अपना ऐठाम अपना देशमे तँ से नहि अछि। तेँ एहिठामक लेल ओते नीक नहि अछि जते अधलाह।’
अपनाकेँ निरुत्तर होइत देखि बातकेँ विराम दैक विचार मनमे उठै लगल। तहि बीच आंगनसँ माए आबि गेलीह। माएकेँ देखितहि हम अपन समान सरिअबै कोठरी दिशि बढ़ि गेलहुँ।
भैयाकाकाकेँ देखि माए कहलकनि- ‘बौआ अहाँ तँ गाममे सभकेँ उन्नैस कऽ देलिऐ। आइ धरि गाममे बेटी विआहमे एते खर्च कियो ने केने छलाह।’
अपन बहादुरी सुनि मुस्कुराइत भैयाकाका कहलखिन- ‘भौजी कामिनीकेँ असिरवाद दियौ जे नीक जेकाँ सासुर बसए।’
माए- ‘भगवान हमरो औरुदा ओकरे देथुन जे हँसी-खुशीसँ परिवार बनाबए। पाहुन-परक तँ सभ चलि गेल हेताह?’
भैयाकाका- ‘हँ भौजी। काल्हि सत्यनारायण भगवानक पूजा कऽ हमहूँ निचेन भऽ गेलहुँ। पाहुनमे-पाहुन आब एक्केटा सरहोजि टा रहि गेल अछि। ओहो जाइ ले छड़पटाइ अए। मुदा ओकरा पाँच दिन आरो रखै चाहै छी।’
माए- ‘जहिना एकटा बेटीक विआहक काजकेँ खेलौना जेकाँ गुड़केलहुँ, तहिना दोसर ई सरहोजिकेँ आब गुड़कबैत रहू।’
सरहोजि दिशि इशारा होइत देखि कक्का बुझि गेलखिन। मकैक लावा जेकाँ बत्तीसो दाँत छिटकबैत बजलाह- ‘धरमागती पूछी तँ भौजी एते भारी काज- जे ने खाइक पलखति होइत छल आ ने पानि पीबैक। तीनि राति एक्को बेरि आँखि नहि मुनलौं। मुदा सरहोजिकेँ धन्यवाद दिअ जे घिरनी जेकाँ दिन-राति नचैत रहलि। ओते फ्रीसानी रहए तइओ कखनो मूह मलिन नहि। सदिखन मुहसँ लबे छिटकैत। तेँ सोचै छी जे पाँच दिन पहुनाइ करा दिऐ।’
माए- ‘बच्चा कइए टा छैक?’
‘एक्कोटा नहि। तीनिये सालसँ सासुर बसै अए। उमेरो बीस-बाइस बर्खसँ बेसी नहिये हेतै।’
‘आब तँ लोककेँ बिआहे साल बच्चा होइ छै आ अहाँ कहै छी जे तीन सालसँ सासुर बसै अए।’
‘ऐँह, हमरा तँ अपने पान सालक बाद भेल आ अहाँ तीनिये सालमे हदिआइ छी। अच्छा एकटा बात हमहीं पूछै छी जे भैया ने हमरासँ साल भरि जेठ छथि मुदा अहाँ तँ साल छौ मास छोटे होएब। अहों कोन-कोन गहबर आ ओझा-गुनी लग गेल रही।’
अपनाकेँ हारैत देखि बात बदलैत माए बाजलि- ‘सभ मिला कऽ कते खर्च भेल ?’
भैयाकाका- ‘धरमागती पूछी तँ भौजी हमहूँ कंजुसाइ केलिऐ। मुदा तैयो पाँच लाखसँ उपरे खर्च भेल। तीन लाख तँ नगदे गनि कऽ देने छलिऐक। तइपर सँ डेढ़ लाखक समान, गहना, बरतन, लकड़ीक समान, कपड़ा देलिऐ। पचास हजारसँ उपरे बरिआतीक सुआगतमे लागल। तइपरसँ झूठ-फूसमे सेहो खर्च भेल।’
‘एते खर्च केलिऐ तखन किए कहै छिऐ जे हमहूँ कंजुसाइ केलिऐ?’
‘देखिओ भौजी, हमरा दस बीघा खेत अछि। तेकर बादो कते रंगक सम्पति अछि। गाछ-बाँस, घर-दुआर, माल-जाल। अइ सभकेँ छोड़ि दै छी। खाली खेतेक हिसाब करै छी। अपना गाममे दस हजार रुपैये कट्ठासँ लऽ कऽ साठि हजार रुपैये कट्ठा जमीन अछि। ओना सहरगंजा जोड़बै तँ पेंतीस हजार रुपैये कट्ठा भेल। मुदा हम्मर एक्कोटा खेत ओहन नहि अछि जेकर दाम चालीस हजार रुपैये कट्ठासँ कम अछि। बेसियोक अछि। मुदा चालिसे हजारक हिसाबसँ जोड़ै छी तँ आठ लाख रुपैये बीघा भेल। दस बीघाक दाम अस्सी लाख भेल। तीनि भाइ-बहीन अछि। हमरा लिये तँ जेहने बेटा तेहने बेटी। अनका जेकाँ तँ मनमे दुजा-भाव नै अछि। आब अहीं कहू जे कोन बेसी खर्च केलिऐ।’
बातक गंभीरताकेँ अंकैत माए बाजलि- ‘अहाँ विचारे बेटीक विआहमे कते खर्च बाप कऽ करै चाहिऐक?’
भैयाकाका- ‘देखियौ भौजी, जे बात अहाँ पुछलहुँ ओकर जबाब सोझ-साझ नहि अछि। किऐक तँ जते रंगक लोक आ परिवार अछि तते रंगक जिनगी छैक। मुदा अनका जे होउ, हमरा मनमे ई अछि जे बेटा-बेटी एक-रंग जिनगी जीबए। मुदा समस्यो गंभीर अछि। धाँइ दे किछु कहि देने नहि हेतै।’
‘एते लोक सोचै छै?’
‘से जँ नहि सोचै छै तेँ ने एना होइ छै। जँ अपने कोनो बात नहि बुझिऐ तँ दोसरसँ पूछैयोमे नहि हिचकिचेबाक चाही।’
कामिनीक विआह लालाबाबू संग भेल। जेहने हिरिष्ट पुष्ट शरीर कामिनीक तेहने लालबाबूक। दुनूक रंगमे कने अन्तर। जहिठाम लालबाबू लाल गोर तहि ठाम कामिनी पिंडश्याम। ने अधिक कारी आ ने अधिक गोर, जाहिसँ दाइ-माएक अनुमान जे किछु दिनक उपरान्त दुनूक रंग मिलि जाएत, अर्थात् एकरंग भऽ जाएत।
विआहक तीन मास बाद लालबाबूक बहाली कओलेजक डिमोंसट्रेटरक पदपर भेल। नोकरी पबितहि सासुरेक दहेजबला रुपैयासँ दरभंगामे डेढ़कट्ठा जमीन कीनि घर बना लेलक। गामसँ शहर दिशि बढ़ल। जाहिसँ जिनगीमे बदलाब हुअए लगल। एक दिशि बजारु आधुनिकता जोर पकड़ै लगलै तँ दोसर दिशि ग्रामीण जिनगीक रुप टूटै लगलै। रंग-विरंगक भोग-विलाशक वस्तुसँ घर सजबै लगल। पाइक अभावे ने बुझि पड़ैत। किऐक तँ भैयारीमे असकरे। तेँ गामक सभ सम्पति बेचि-बेचि आनए आ मौज करए। मिथिला कन्या कामिनी। तेँ पतिक काजमे हस्तक्षेप नहि करै चाहैत। पति-पत्नीक बीच ओहने संबंध जेहेन अधिकांशक।
शिक्षाक स्तर खसल। अजाति सभ सरस्वतीक मंदिरमे प्रवेश केलक। जहिठाम प्राइवेट टयूशन पढ़ाएब अधलाह काज बुझल जाइत छल, से प्रतिष्ठित भऽ गेल। परिणाम भेल जे टयूशनकेँ अधलाह आ पाप बुझनिहार शिक्षक स्वयं मूर्खक प्रतीक बनि गेलाह। अवसरक लाभ अज्ञानीकेँ बेसी भेलै। पाइ-कौड़ीबला लालबाबू कोना नै अवसरक लाभ उठबैत। बीसे हजारमे एम.एस.सी. फिजिक्सक सर्टिफिकेट कीनि लेलक। विश्वविद्यालयोमे कानून पास केने जे नवशिक्षकक बहालीमे कओलेजक डिमोसट्रेटरकेँ प्राथमिकता देल जाएत। लालोबाबू फिजिक्सक प्रोफेसर बनि गेल। हाइ स्कूल वा सरकारी ऑफिस जेकाँ प्रोफेसरकेँ ड्यूटियो नहि। सालमे कओलेज छह मास बन्ने रहत बाकी समयमे कहियो ड्यूटी होएत कहियो नहि होएत। तइपर सँ अपन सी.एल. आ मेडिकल पछुआइले।
पाँच बर्ख बीतैत-बीतैत लालबाबूक माए-बाप मरि गेल। मरने लाभे। घरारी धरि बेचि कऽ बैंकमे लालबाबू जमा कऽ लेलक, । मुदा एकटा बात जरुर केलक, ओ ई जे घरारीक रुपैआ - घरारीक दाम अखनो मिथिलांचलमे अधिक होइत, कारण नञि बुझै छी- सँ पाँचटा आलमारी आ जते किताबसँ आलमारी भरत, ओते किताब जरुर कीनि लेलक। एक तँ पाइक गर्मी दोसर किताबक गर्मी, अध्ययनक गर्मी नहि देखलाहा गर्मी- सँ लालबाबूक मति ऐहेन बदलि गेल जेहेन ठंढ़ा पानि आ ठंढ़ा दूधसँ चाह बनैत। अखन धरि छह बर्खमे दूटा सन्तान सेहो भेल। अपन दुनियाँक बीच कामिनी नचैत तेँ लालबाबूक जिनगी कोना देखैत ? दोसर उचितो नहि किऐक तँ हर युवा आदमीकेँ अपन जिनगीक बाटपर नजरि राखक चाहिऐक।
साँझू पहर लालबाबू होटलसँ सीधे आबि कोठरीमे कपड़ा बदलै लगल। देहक सभ कपड़ा उताड़ि लेलक। उपरसँ लऽ कऽ भीतर धरि शरीरमे आगिक ताव जेकाँ लहकैत। पंखाक बटन दबलक। मुदा भगवानक मूर्तिक आगूक जे कोठरीक दिवारक खोलियामे रखने छल, बौल जरौने बिना अपन कोठरीक बौल कोना जरबैत। तेँ पहिने ओ बौल जरौलक। मुदा मूर्तिक आगू बौल जरौला बाद अपन कोठरीक बौल जरौनाइ बिसरि गेल। पियाससँ कंठ सुखैत। मुदा टंकीपर जाइक डेगे ने उठैत। लटपटाइत। कहुनाकेँ कुरसीपर बैसल आकि टेबुल तरक जगपर नजरि पड़लै। दिनुके पानि। जग उठा पानि पीलक। जग रखि कुरसीपर अंगोठि मने-मन अकासक चिड़ै हियासय लगल। उड़ैत मृगनयनीपर नजरि गेलै। कओलेजक छात्रा मृगनयनीकेँ किछु देर देखि पत्नी कामिनीपर नजरि देलक। मनमे उठलै दू बेटीक जिनगी। फेर मन देखलकैक चहकैत मृगनयनी। निर्णय केलक जे अपना घर मृगनयनीकेँ जरुर आनब। रसे-रसे मन शान्त हुअए लगलै।
दोसर दिन कोर्ट होइत लालबाबू मृगनयनीक संग घर पहुँचल। मृगनयनीकेँ देखि कामिनी घबड़ाएल नहि। मन पड़लै दादी मूहक सुनल खिस्सा। तेँ पुरुखक लेल दूटा पत्नी होएब कोनो अधलाह नहि। अपन दुनियाँमे मस्त। काजक कोनो घटती नहि, कनी-मनी बढ़तिये। तेँ जुआनीक आनन्द कामिनीमे।
विआहक आठ बर्ख वाद जे लालबाबू डिमोसट्रेटरसँ प्रोफेसर बनल, ओ आइ स्त्रीक खिलौना बनि गेल। ऐहन-ऐहन लोकक कते आशा। आठ बजे साँझ। बजारसँ दुनू परानी मृगनयनी आ लालबाबू मोटर साइकिलसँ उतड़ि कोठरीमे पहुँचल। अगल-बगलक कुरसीपर बैसि ब्राण्डीक बोतल निकालि टेबुलपर रखलक। मुदा टेबुल कहऽ चाहै जे ‘भाइ सोझा-सोझी बेइज्जत नञि करह, हम किताब रखै बला छी, नञि कि बोतल। मुदा बेचाराक विचार, मिथिलाक कन्या जेकाँ, तेँ सभ कुछ सहि लैत। जहिना राज-दरबारमे मिथिलाक राजा जनककेँ जननिहार पंडित सहि लैत।
असेरी गिलाससँ दुनू बेकती एक-एक गिलास ब्राण्डी चढ़ा अपन दुनियाँमे विचरण करै लगल। प्रश्न उठल कामिनीक।
मृगनयनी- ‘हम्मर एकटा विचार सुनू।’
‘बाजू।’
‘पत्नीक सभ सुख जँ एक पत्नीसँ पूर्ति हुअए तखन दोसर रखबाक की जरुरी?’
‘कोनो नहि।’
‘तखन सौतीन कामिनीकेँ रखि की फएदा?
कने गुम्म भऽ लालबाबू सोचै लगल। मन पड़लै कामिनी। निस्सकलंक, स्वच्छ, कोमल-कोमल पंखुड़ी गंध युक्त कामिनी।
दोहरा कऽ मृगनयनी बाजलि- ‘बस, ईएह पुरुखक कलेजा छी। कामिनीकेँ रस्तासँ हटाएब हम्मर जिम्मा भेल।’
मृगनयनीक रुप देखि विधातो अपन गल्तीपर सोचितथि। जे नारी-पुरुषक बीच जेहेन थलथलाह पुल बनोलिऐ तेहेन नारी-नारीक बीच किअए ने बनोलिऐ । मृगनयनी आ लालबाबूक दुनू गोटेक बीचक बात कामिनीओ सुनैत। जहिना मृगनयनीक करेजमे कामिनीक प्रति आगि धधकैत तहिना मृगनयनियोक प्रति कामिनीक करेजमे आगि पजरि गेल। मुदा अपनाकेँ सम्हारैत ओ कामिनीक घरसँ निकलि जाएब नीक बुझलक। किऐक तँ तीन जिनगीक प्रश्न आगूमे आबि ठाढ़ भऽ गेलै। तहूमे दूटा ओहन जिनगी जे दुनियामे अखन पएरे रखलक अछि। चुपचाप कामिनी अपन रहैबला कोठरी आबि दुनू बेटीकेँ एक टक देखि, छह बर्खक रीताकेँ पएरे आ तीन बर्खक सीताकेँ कोरामे नेने घरसँ निकलि गेल। मनमे आगि लगल, तेँ कोनो सुधि-बुधि नहि।
स्टेशन आबि कामिनी ट्रेन-गाड़ीक पता लगौलक। चारि घंटाक बाद गाड़ी। दुनू बच्चाक संग ओ प्लेटफार्मपर गाड़ीक प्रतीक्षामे बैसि रहलि। मनमे अनेको रंगक प्रश्न उठै लगलैक। मुदा सभ प्रश्नकेँ मनसँ हटबैत एहि प्रश्नपर अॅटकल जे, जे माए-बाप जन्म देलक ओ जरुर गरा लगौत। जँ नहि लगौत तँ बड़ी टा दुनियाँ छैक, बुझल जेतैक। तेँ सभसँ पहिने माए-बाप लग जाएब। डेढ़ बजे रातिमे गाड़ी पकड़ि, दुनू बच्चाक संग भोरमे अपना नैहरक स्टेशन उतड़ल। भुखे तीनू लहालोट होइत। मुदा ऐठामक नारीमे तँ सभसँ पैघ ई गुण होइत जे धरती जेकाँ सभ दुखकेँ सहि लैत। मुदा दुनू बेटीक मूह देखि चिन्ताक समुद्रमे डूबै लगल। की ककरोसँ भीख मांगि बच्चाकेँ खुआबी ? कथमपि नहि। की बच्चाक जिनगीकेँ एतै अन्त हुअए दिऐ ? अपन साध कोन। मुदा नाना ऐठाम तक पहुँचत कोना ? जी जाँति कऽ एकटा मुरही-कचड़ीक दोकानपर कामिनी पहुँचि मुरही बेचइवाली बुढ़ियाकेँ कहलक- ‘दीदी, हमर नैहर दुखपुर छी। ओतै जाइ छी। दुनू बच्चा रातिमे खेलक नहि, तेँ भुखे लहालोट होइ अए। दू रुपैआक मुरही-कचड़ी उधार दिअ। काल्हि पाइ दऽ देब।’ बिना किछु सोचनहि-विचारने बुढ़िया बाजलि- ‘बुच्ची, तोरा पाइ नञि छह, तेँ की हेतै। हमरो एहेन-एहेन चारि गो पोता-पोती अछि। हम बच्चाक भुख बुझै छिऐ।’ कहि दुनू बच्चाकेँ मुरही-कचड़ी देलक। तीनू खा कऽ विदा भेलि।
कामिनीक नैहर पहुँचैत-पहुँचैत सूर्य एक बाँस उपर चढ़ि गेल। दुखपुरक दछिनवरिया सीमापर एकटा पाखरिक गाछ। पाखरिक गाछसँ आगू बढ़ैक साहसे ने कामिनीकेँ होए। गाछक निच्चामे बैसि ठोह फाड़ि कनै लगल। दुखपुरक सइओ ढ़ेरबा बचिया घास छिलैत बाधमे। कामिनीक कानब सुनि सभ पथिया-खुरपी नेनहि पहुँच गेलि। दुनू बच्चाकेँ दू गोटे कोरामे लऽ कामिनीकेँ संग केने घरपर आइलि।
२.२.१.परमेश्वटर कापड़ि कथा- धुमगज्जबर २. आशीष चमन- कथा- पछता रोटी ३. प्रेमशंकर सिंह-जयकान्तट मिश्र जीवन आ साहित्य –साधना
१.परमेश्वूर कापड़ि कथा- धुमगज्जतर २. आशीष चमन- कथा- पछता रोटी ३. प्रेमशंकर सिंह-जयकान्त् मिश्र जीवन आ साहित्यव–साधना
–परमेश्वगर कापड़ि
-धनुषा, नेपाल
नामीगरामी वंशक कहबैका– बड़ैता लोक छथि डागडर साहेब । मैथिली विभागक पहुँचल प्रोफेसर । ई आओर बात जे जतेक छथि नइँ, ततेक देखबऽ लेल अफसियाँत रहैत छथि । बपौती धनक बले घाँटी बजबऽमे कानोे चुक– कोताही नहि करैत छथि । ताहूमे एमरी शहरक तीन कठबा ओऽऽ खुआखानि घराड़ी बिकाएल छैन्हिच । धन दंरभंगा के दोहरी अङा रहबे करतनि ।
से एहि शुद्धि लागनमे हिनकर छोटकी दुलरी ननकिरबीक कन्याीदान छन्हि । एहि बेर अगौते नियार भेलै जे बरियातीके भोजन बास्तेि अपना हाथक, अपन आँखिक देखल शुद्ध नीक माँउस खातीर किछु पूर्वे खँसी कीनिली । तऽ से कैला तऽ असल भितरिया बात रहै जे हिनकर पड़ोसिया पैकारके खँसी रहै आ गप्पउसप्प दऽ कऽ नफगरे माल बेचऽ लाथे उन्टाा–सुन्टाै पढ़ा अन्हगरझौली मारि देलकैन्हि । दू ढौैआक खँसी तीनमे किना अपन सुरखुरु भऽ गेल फेरहा । तहूमे कि तऽ रहनि खगता दू गोट खँसिक तऽ घटी–बेसी लेल तीनटा बेसहि लेलाह । नइँ कहू बरियातीके कनिको कमि गेलै तऽ नाहँसी आ सोहरा भऽ जाएत तैला जैं चालीस तैं घपचालिसो रहओ ।
तिरपित नेहाल डागडरनी खँसीके आबऽ बला बरियातीयोसँ बेसीए ध्या न देबऽ लगलथिन्हा । कोनो उपेक्षा कोताही नइँ हुअ पाबए ।
आबऽला तऽ अएलै हेंड़े किनाकऽ आब भऽ गेलै गराक घेघ – एकरा चराएत–बझाएत के ? कनिके कालमे ततेक ने झौहरा– अंकाल कएलक जे डागडर साहेबके टेन्श न बढ़ऽ लागलनि । टहलनी कहलकै – मर, अपन दूध उठओनाबाली हएबे करै । चराओन पोसान ओ.करे दऽ दियौन । उहे चरा–बझाकऽ पोसतै ।
बड़ बेस बड़ बढियाँ, शुभ–शुभकऽ नीक जेकाँ पक्काय–पक्कीझ गछा खरियारिकऽ ओकर जिम्मात लगाओल गेल ।
गम्हबरियाबाली दूधबालीक सैंझली ढ़िलही बेटी गछने छलै– ओकरा बास्तेक सेहो किटुआ पोसान छुटिया देल गेलै ।
खँसी पिच्छे दू–चारि मुट्ठी चाउर, बदाम भुजा बास्तेस अलगसँ सेहो । भुजा भूजऽला आमक ढेङ जरना ला भेटलै । ढिलही माइ आबले बलैया नितराए लगली– गे माइ, अगबे चाउर दालि देने तऽ पेटमे चलि जएतै । जौले रिहन्तैइ नइँ तौले खएते केना ? मर तेकरो ला भनसिया चाही । ओहि भनसियाकेँ पेटपर लात हिनका आउरके मारल जएतनि ?
हे लिअ भेल दू पसेरी चाउर अहूँक े। गुड़िया बियाहमे अहुँ जै सँ प्रसन्नेह रही। गम्हपरियाबाली सतखेलिया रहए, असली घैंहरि खेलाड़ि । खँसीके बूझऽ लागलि गोनू
बाबूक बिलाड़ि ।
दिन दशो नइँ बीतल हएतै कि दौड़ल आएल हबेलीमे । गुड़िया माय हपसले बहरएली महखरसँ –यैे गम्हकरियाबाली । खँसीक कया–समाङ नीके ना अइ ने ।
दुर कि नीक रहतै । पहिलका बान्ह ल खुटेसल खँसीकेँ पेट बैठल रहै । तैला खखाएले अहगरेसँ छौड़ियासभ लपेलप भुजाभरी देलकै से आब पेट–मुँह चलै है ।
से सूनिते हहाएले गेलीह डागडरनी गोसाइ घर– हे भगवती ! केहन भाग करम भऽ गेलै एहि छौड़ियाके से नइँ जानि । ओइ दिन गहुम पीसबऽ गेलै तऽ आटे दोखरा रहि गेलै । दहीक खोर पौड़बला जेकरासँ साइ गछाकऽ अएलै तेकर महिसे दू दिन रहिकऽ बिका गेलै । केहुनाकऽ खँसी बचाकऽ भरमा इज्जेति बचादा हो देवता पितर । जिउके बदलामे झाँप आ सभटा नीकेना सिद्ध भऽ जएतै तऽ पातरि सेहो देबऽ हे गोसैंयाँ ।
मर अइमे देवता पितर की करतै– गम्हऽरीयाबाली एहन समधानल चोट ठोकि े देलकनि जे छिलमिला गेलीह गुड़िया माय – जे करत सेैे बैदा ने करतै । सुइया–दवाइ दिअएबै तैसँ ने ठीक होतै । नइँ तऽ झाँप पातरि पड़ले रहिजाएत आ खँसी जाएत टिङ।
–हे देवता पितर नामे एखन एहन कुभाख नै बाजू ।
– हे अब दबे–दारुसँ मालो–जाल ठीक होइ छै । गेठरी खोलू हम चलब ।
फिस आ दबाइमे सवा सात सय खरच भऽ गेलनि । डागडर साहेब उसास फेरलनि – मर बंहि , ढौओ लागिकऽ केहुना खँसीक बलाय तऽ टरल ।
चिकबा लुचैया नदाफक सलाहे खँसीके एक–आध चम्महच घीउ उठौना शुरु भेेल । एहिसँ खँसी एबरसँ दोब्ब र भिसिण्डय लगले भऽ गेल ।
दिनके बितैत देरी नइँ लगलै । धराएल शुभ दिनमा भल अएबे कएलै । उँजबड़ेड़ा आ भीड़ भरक्काँक बरनेमा नइँ ।
सख–सोहर लेनदेनके लेखा–जोखा नइँ । पाल–पण्डाडलके कोन खेरहा । मुज्ज फरपुरके ऊ नामी हलुवाइ मिठाइ बनबऽ बला, जनकपुरके बढ़का स्टा र होटलके “कूक” खाना बनबऽ बला आ काठमाण्डूर मीट हाउसक भनसीया स्पे शली माछ–मँाउसके परिकार बनबऽलेल मंगाओल गेल रहै । एम्ह”र तरुआ–बघरुआ, तिलौरी, दनौरी, बड़ी–कढ़ी बास्तेल गाम गमैतक बूढ़ पुरैनियाँ सभ रहबे करथिन्हु ।
ठाम–ठाम भिडियो कैमरा चालू रहै । एकदम सिनेमा माफिक । जेकरा नहियो काम रहै सेहो अफसियाँत, कैला तऽ भिडियो सिडीमे देखार होएब ।
रातिमे मन माफिक रंग–विरंगक मधुर मिष्ठािन संगे माछक व्ययबस्था रहै । माछ रहे से देख पड़ोसनी जैर मरऽ बला । बीस–बीस किलोकेँ । बनबऽ कालमे दू–दू पट्ठा जुआनके सम्हायर नइँ धरै । ओकर बनौनाइ देखबऽलए भिडियो कैमरा एकदम रेडी । धन कही सुखरा मलहबाक पहलमनमा बेटा सोंसियाके जे े माछा काटि बना देलकै । दैव रे दैव माछ रहौ कि बनेल से नइँ जानि, सोसिया मलाहके कएल खेती गमल बात रहै तँए बना सकलै नइँ तऽ नइँ बैनतै । मुड़ा निकलै पँँच–पँँच किलोके आ कुटिया याह–याहटाके
खाइतकाल एक छोड़ि दोसर कुटिया कोनो बरियतिया नै गछनि । सौसे मुरा एक्केकगोटा लेलनि । तिनको सोसै नइँ अघरलनि ।
बिहान भने भतखइमे माउस एकदम अलेल । डब्बु के लकऽ परसल गेल । घरबैयाके होइ जेना माउससे तोइपकऽ तऽरकऽ दी । खनाइसँ इज्जदती बढ़ै छै । जेहन भोज तेहन मान प्रतिष्ठा । बराइ आ परशंसासँ डागडरो साहेबके बराती निहाल कऽ देलकनि । आब गच्छ अघाएल बरियाती ढेकारसंग मुँह प्रशंसा करऽ लगलथि ।
–नै विलक्षण । गच्छा अघाएल बराती अछिनरे रहलै ।
–हँ तऽ काल्हि यो आ आइयो मधुर मिष्ठाेनसँ थैहर–थैहर कऽ देलथिन । माछ–माउस अनपूछे रहलै ।
जहिना परसऽमे उपरौंझ तहिना बड़ाइ प्रशंसामे रहलै ।
अघएला उत्तर मूल्याबङ्कन किछु गोटे खोदवेदक रुपमे शुरु कएलनि । –नइँ–नइँ बड़ बेस, बड़ बढिंयाँ रहलनि । खाली माछ बेसी जुआएल छलनि । व्योग्र डागडर साहेबके पछताबा हुअ लगलनि– केहन हम रजिनराके बात नइँ मानि सेरिए– असेरी माछ किनने रहितहुँ तऽ आइ ई खिधान्सप नइँ होइत ।
–ततबे, कुटिया कने छोटछोट रहितनि ।
–कने तरल झूर छलनि ।
घरबैयाके होइक सभ बूरल आ से भनसिया कारणे । सरबेके बोइने काटि लेबनि ।
– इह । माउस कनेे बेसिए सीझल रहनि ।
एकगोटे व्यं।गसँ बजलाह – से नइँ बूझल गेलै । स्पेनशल भनसिया भेने एहिना होइ छै ।
खाएला तऽ हमहुँ खएबे कएलियै । पाइ लागल रह,ै धरि एते तऽ अबश्य। कहब जे खसी बेसी तेलाह रहैक से कोनो खास स्वाहद नइँ रहैक ।
जतेक मुँह ततेक छेद ।
डागडर साहेब झाम घुरैत मथाहाथ दैत सभ कएल–धएल अकारथ गेल । ओहिमे एकगोटे एहन बरियाती रहथि जे वरपक्षके नइँ रहथि । खाली अइ दुआरे मार्कण्डेबय झा जीके लाएल गेल रहनि जे हुनकर कामे रहनि बहुते खाएब । चूड़ा दही भेल तऽ अढ़ैया चूड़ा, खोरभरि दही, बिन ढेकारेके देख देताह । खाएल–पियलपरसँ साठि–सत्तरि रसगुल्ला देखि देताह । आम महिना चालीस–पचास आम उठितो–उठितो गींर जएता । से पुरुष अहू बरियातीमे खएनाइए देखऽ वास्तेे मङाओल गेल छलाह । ओ देखहि जोग खएने छलाह । ई दिगर बात जे भोजमे हुनकर मन नइँ भरलनि । खौंझाएल मार्कण्डेछय खिन्नो होइत बजला– हँ कहऽ तऽ पड़लै जे नीके खएनाइ रहनि । मुदा मन पछताइए जे कएक ठामसँ बरियातीमे खाए चल लए बजाहटि आएल रहए । ओम्हार गेल रहितहुँ तऽ पछताए नहि पड़ल रहितए ।
एहि बीचमे, एकगोटे जे खाइतकाल हुनकर बहुत रास फोटो खिचने रहथि से देखा देलकनि– देखियौ तऽ फोटोमे अपने केना–केना कते–कते खएने छियै ।
अएना जेकाँ आब फोटबो बजै छै साँच, से देखि भड़कि गेला मार्कण्डे य – रौ साऽऽर, ऐमे हमरा बजनियाँ के बना देलक ?

लोको उत्सु कतासँ फोटो देखऽ लागल तऽ देखलक जे ई दुनू हाथे कोकाकोलाके जे बोतल पिबैत छथि से फोटोमे बुझाइक सहनाइ बजबै छथि । चौल करैत एकगोटे बजला – होउ आब इएह फोटो देखा–देखा साइयो बान्हझब ।
– आऽरौ बहिं, से ओतबे, के ने के याहटाके बेढब मूड़ा हमरा पातपर राखि देलक ।
– होउ तऽ एहन मूड़ा आनठाम कतौ देखनहुँ ने हएब तकर प्रमाण भेल । माने कि जे से, कि जेसे सेहे रहितै तऽ नीक । ओइमे तऽ हमरा मरपर लुधकल सनके बुझाइए ।
–छीया–छीया । आरे बापरे बा, अन्हे र कएलक ई सभ मार्कण्डेतय जी ! अहाँके तऽ गया–गांग लागल । होउ धोती जनउ जल्दी सँ बदलु आ गंगाजली छीटि शुद्ध होउ ।

आशीष चमन
मूल नाम- आशीष कुमार मिश्र
पिता-श्री सच्चिदान्दम मिश्र अधिवक्ता‍
जन्मनतिथि-7 जनवरी 1973 टीचर्स क्वा टर, जिला गर्ल्स हाइ स्कूगल सहर्षा।
योग्याता- बी.ए. (प्रतिष्ठाव)
राजनैतिक कार्य कलाप- प्रारम्भ मे S.F.I के संयुक्तल सचिव, पुन: अ.भा.वि.प. के कार्यालय एवं बौद्धिक प्रमुख, विहिप के नगर मन्त्री , पश्चावत् राजनीतिसँ मोहभंग।
सामाजिका सांस्कृितिक गतिविधि- सांस्कृेतिक चेतना समिति के संस्थासपक सचिव आ एहि बैनर सँ प्रायः- दुइ दशक बाद सुपौल मे विद्यापति पर्व समारोहक संचालन, प्रलेस के जिला सचिव, विप्लाव फांउडेशन के सचिव आ एहि बैनर के तत्वादवधान मे नागार्जुन जयंती, सगर राति दीप जरय के आयोजन।
वृति:— कौलिक दबाइ व्य वसायक सफल संचालन किन्तुद आपसी कलह के कारण निष्कासन, पुन: जीविका हेतु अनेक जगह छिछियाएब आ पूर्णत: द्ररिद्र बनलाक बाद लघु उद्यम सँ पारिवारिक पोषण ।
लेखन: 1984 सँ सक्रिय आरंभ मे कविता बाद मे हिन्दी कहानी लेखन आ परती पलार संवदिया आदि मे प्रकाशित पुन: मैथिली मे लेखन आ भारती मंडल मिथिला चेतना, घर बाहर, कर्णामृत प्रवासी मैथिल, अंतिका आदि अनेक पत्रिका सभ मे प्रकाशित
वर्तमान पता:-द्वारा सच्चिदानन्दल मिश्र अधिवक्ताह चकला निर्मली सुपौल जिला-सुपौल बिहार
मोo 9199062081
पछता रोटी
‘की रौ भीम ! मोटरसाइकिल सभक बहु भीड़ देखैत छियैक....’’
गजीन्दोर बाबूक ओहिठाम करमान लागल लोक सभकेँ देखैत ओ पुछलकैक ....ओहिकाल भोरूक लगभग छओ बजैत छलैक....।
’गजीन्द9र बाबू मरि गेलथिन....’। ओंघाएल स्वकरेँ भीमा उतारा देलकैक।
ओकर बढ़ैत डेग अकस्ताकत् रूकि गेलैक आ अनायास मुँह सऽ निकललैक-‘अँय कखनि....आ की भेल छलरनि हुनका?
‘की भेलैक? किछुओ नहि, राति मे केहन बढि़या छलथिन, किन्तु. अकस्माछत्। भीमा पूर्ववते जेकाँ बाजल।
ई कने काल लेल गुम्म पड़ि गेलैक। ओम्हर भीमा केँ ओहिठाम सँ जल्दी हटबाक हलतलबी छलैक मुखाकृति पर एकरा उद्वेग तकरा ओ दबने छल-, किन्तुज ओ पहिने कोना हरितऽ चमन भैया ठाढ़ छथि अपना सँ दस पनरह बरखक जेठ।
ओकर आतुरता केँ पारेख करैत ई ओतऽ ससरि कऽ चलि गेलैक जतऽ दुइ जन अपना मे बात करैत सिकरेट धुकैत छलैक, ओतऽ ई सहारे कऽ देखलैक, भीमा मनोयोग पूर्वक भरि रातुक संचित लग्धीा केँ बहार कऽ रहल छलैक, एकरा निवृत्तिक भाव केँ अपन चेहरा पर पसारने ।
’ओ स्वाइत!’ ओ मोनहि-मोन बाजल आ आगाँ चौबटिया दिशि बढि़ गेल।
चौबटिया, लग आबल जा रहल छलैक- ओकरा अजय चौधरीक ओहिठाम जयबाक छलैक। अजय चौधरी पानमसाला, सिकरेट सभक फेरिया छल जे साइकिल पर माल लादि गामे-गाम आ हाट-बाजार सभ मे बौआइत रहेक, किन्तुर किछु लक्ष्मीप कृपा आ किछु जन्म जात वाणिक बुद्धि एहि दुनुक संयोग सँ ओ दुइये-तीन बरख मे कमा कऽ टाल लगा देने छलैक....। ओ ओकरे लग जा रहल छल उपेक्षा आ बेकारी भरल जिनगी सँ त्राणण्य बा लेल, किछु राय विचारक हेतु अपन पुरान जान-चिन्हयक संचित निधि लऽ कऽ। ओ भरि रातुक संकल्पा लऽ कऽ भोरे चलल छल जे प्रात-काले ओकरा सऽ भेंट भऽ सकैत अछि, भरि दिन तऽ ओ पतनुकात धयने रहैत अछि।
ओकर मोन मे विभिन्न प्रकारक विचार उठि-बैसि रहल छलैक। ‘गजीन्दिर बाबूक मृत्यु ....,तीन टा लड़का दुइटा तऽ बड्ड कमबैत छैक मुदा जेठका कने गड़बड़ा गेलैक- तकरा सम्हासरक लेल ओ दोकान खोलि देलथिन-ओना दोकान पहिनो दुइ-दुइ बेर खोलल गेल छलैक मुदा तकरा ओ खा पका नेने छलैक.... तेँ एहिबेर ओ-स्व यं बेसीकाल बैसथि....एकटा आशा तीन फूके चानीक-ओवर बेटा माने अपन पोता केँ ओ मोट डोनेशन दऽ कऽ राँचीक इस्कूबल मे भर्ती करौलनि-बेटा नहि तऽ की भेलैक पोते सु‍तरि जाइक-एकरा मृग-मरीचिका....।
ओ आब चौबतिया लग आबि गेल छलैक भोरूका पहर मे चाहक दोकान पर भीड़ कने बेशीये रहैत छैक ओ सोझे आगाँ बढि़ गेलैक आ थोड़े दूरक बाद एकरा गली होइत अजय चौघरीक घर लग आबि गेलैक....।
‘की यौ चाचा जी! अजय बाबू उठलाह....?’ अपन स्व र मे चीनीक चाशनी सन घोरैत ओकर शिक्षक पिता सऽ पुछलकैक....।
‘अबह आबह! अजय लैट्रिन मे छैक....। ई कहि गृहपति ओहिठाम पहिने सऽ बैसल आन लोक सभ सँ गप्पअ करय लगलाह....।
एकरा पेट मे खलबली छलैक- ‘गजीन्दबर बाबूक’
घर सऽ ई घर आधा माइल पर छैक आ एतेक भोर मे ई घटना एकरा सभकेँ तऽ नहिये टा बूझल होयतैक....। ओ चर्चा करऽ चाहैत छल गजीन्द र बाबूक असामयिक निधन करि। हुनक शिक्षक संघक विषय मे, हुनक व्य क्ति व ओ कृतित्व क चर्चा कऽ ओ स्वनयं ओहि दरबज्जास पर बैसल समस्त‍ लोकक केन्द्र -बिन्दुे बनऽ चाहैत छल....लोक सभकेँ चौकाएब अचंभित करय चाहैत छल- ‘अँय कखनि मुइलाह गजीन्द र बाबू? आ हा-हा-केहन स्वबस्थच लोक रहथि ....भगवानक लीला अपरम्पानरक कहू चमनजी अहाँ कखनि बुझलहु आदि आदि....।
ओ, बाजब शुरू कयनहि छल कि दीर्घ-श्वा‍स छोड़ैत गृहपति बाजि उठलाह-‘ की करबहक ओहिना होइत छैक....बड्ड नीक लोक छलाह....शिक्षक समुदायक बड्ड पैघ हितैषी....,हुनक देहावसान सँ हम सभ लोक बड्ड मर्माहत छी....।
’के मुइलाह? ‘उपस्थित लोक-सभ मे सँ एक गोटे पुछलथि।
’अरे वैह मास्टरसाहेब ने रातिए....।’ दोसर गोटे यन्त्र वतद्य सन बाजल....।
अच्छार तऽ वैह ने....।’
‘अच्छाा तऽ ई बात एकरा सभ सँ हमरा पहिने बुझल छलैक आ एकटा नव गप्पछ ई जे गजीन्द.र बाबू भोर मे नहि अपितु रातिए मुइलाह....ई खबरि एकरा सभक लेल आब बासी भऽ गेलैक अछि....।“ओ सोचए लागल....। ताऽ धरि अजय आबि गेल छलैक....।
ओतए सँ घुमलाक बाद ओ पुन-चौबटिया लग ठाढ़ भऽ गेलैक....। चाहक दोकान लग आब भीड़ बेसी भऽ गेल छलैक। एकरा नेता सन लोक-चाहक मफाएल गिलास धऽ कऽ भाषण झाड़ि रहल छलैक मुदा महगीक छैक आ केन्द्रा सरकारक पतन के भविष्यवाणी सेहो-आगाँ, के सरकार बनाओल तकरा पर विचार-विमर्श चलि रहल छल।
मोहल्लाेक एकरा पैघ व्याक्तिक मृत्युस पर कोनो चर्चा नहि भऽ रहल छलैक ओ कनेकाल ठाढ़ रहल आ फेर घुमिते चाहैत छल की लतीफ भेटलाह-‘की यौं पंडीजी! अहाँक पीसा छथि, की गाम गेलाह’?
लतीफ एहि गा्मक पुरान काश्तकार अछि आ पीसा सऽ मोकदमाबाजी सेहो करैत अछि....। उत्तर देलाक बाद ओ जहाँ गजीन्दलर बाबूक चर्चा शुरू कयलक तऽ लतीफ बाजि उठल-‘अल्ला हो अल्ला ’! जख.नि सुनलियेक तखनि सऽ भरि राति नीन्देक नहि भेलैक....।
ई सुनितहि ओ आगाँ बढि़ गेल ओ अपन विचारक कड़ी केँ सोझराबऽ चाहिते छल कि ‘बड़े’ भेट गेलैक। बड़े माने अनिल झाक माझिल बेटा-ब्रेन पारालैसिसक पुरान शिकार, आब कने सुधारक संकेत देखैत छियैक ओकरा मे....।
अनिल भैया ओकरा लेल चौराहा पर “सोना जेनरल स्टोछर” खोलि देने छथि आ बेटाक बदला मे स्वरयं बेसीकाल गद्दी पर बैसैत छथि....। ओ मजाक मे बेसीखन बजैत रहैत अछि-‘की यौ भाइ साहेब! खोललहँ बड़े के लेल आ बैसेत छी अपने....।
अनिल बाबू बिझुँसैत उत्तर दैत रहैत छथि-‘की करबैक ओहिना होइत छैक चिल्ह काक लाथे चिल्ह कौर सेहो....।’
बड़े राति कऽ दोकाने मे सुतैत अछि। ओ बड़े केँ सभ दिन जेकाँ एखनुहुँ सैल्युतर ठोकैत अछि....। ओ ओकर स्वा भाविक मित्र अछि भातिज नहि समान धर्मा....।
ओ कहि उठैत ‘अछि- ‘चचा! गजीन्द र बाबू, आ आँगुर केँ आडर केर मुद्रा मे उठा दैत अछि ।
ओफ्फ! तऽ ईहो बूझि गेल अछि?’ ओ पुन: घर दिशि विदा भऽ जाइत अछि।
गजीन्दउर बाबूक घर सऽ एकर घर कने बेसी दूर पर छैक बीच मे जनशून्यवता छैक आ बसबिटारि तथा कलमबाग सेहो छैक....।
‘निश्चित रूप सँ हुनक मृत्युक खबरि घर पर नहि गेल होयताह’ ओ झटकि कऽ विदा होइत अछि कत्तहु नहि रूकबाक संकल्पब लऽ कऽ–मुदा ओकर मोन पर विचार पुन-हावी भऽ रहल छैक-‘बड़े पारालौसिसक शिकार अबोध रहि गेल मस्तिष्कबला एकरा जवान मानव देह धारी, गजीन्द र बाबूक जेठ नशेरी बालक, दुनूक पिता करि अपन-अपन ओहि अक्षम सन्तानन लेल भगीरथ श्रम....।
ओकरा लगलैक जे गजीन्दिर बाबूक नशेरी बालक आ बड़े चलि रहल अछि आ जाइत लटपटा कऽ खसि पड़ैत अछि दुनू बूढ़ पिता अपन-अपन धोती सम्हाचरैत दौगैत छथि आ भीजल स्वऽर सँ पूछि रहल छथि- ‘बाज’ चोट तऽ नहि लगलौ?’
ओ आँखि मुनने कने बिलमि जाइत अछि। फेर ओ देखैत अछि- जे ‘पुन’ ओ दुनू जा रहल अछि आब दुनूक घर पर एक-दोसराक मूड़ी लागि गेलैक अछि फेर ओहि घर पर सँ मूड़ी फिर भऽ गेलैक अछि।’ सभटा असंगत लेतरल चित्र सभ, चलचित्र जेकाँ एकर मानस पटल पर आबऽ जाऽ लगलैक....।
एक दिशि गजीन्दरर बाबू अनिल भैया आ दुनूक सं‍तान, एकटा ई आ एकटा एकर बाप....? सर्वत्र, स्वररचित, कपोल कल्पित एकर अक्षमताक ढ़ोलहा पीटैत....।
ओकर मोन तिवूत भऽ गेलैक, भेलैक जे ‘वैह कियैक ने अनिल झा आ गजीन्दकर बाबूक बेटा भऽ कऽ जनमलैक....बस अक्षमे सही....।
ओ एक बेर मूड़ी झमकारलक आ पुनः घर दिशि बिदा भऽ गेल-विचार पुन: अपन तारतम्य् बैसाबऽ लगलैक- ‘ओ गजीन्दभर बाबूक मृत्युघक खबरि सभ सँ पहिने बाँटि, लोक केँ अचांभित करैत पहिने पत्नीक केँ कहतैक....घरबाली एकरा सऽ सोझ मुँहे कहियो नहि बजैत छैक...,जेना झुरापित्ती सन उठल रहैत छैक....।
ओ पत्नीर केँ संमाद देतैक ओ अपन प्रकृतिक अनुरूपेँ लहोछि केँ पुछतैक- ‘के गजीन्दबर बाबू’?
तकरा अनसून करैत ओ बाजत-‘अरे! वैह राजाक दादा! वैह राजा जे अपन सनिक संग पढ़ैत छलैक आ आब राँची मे एडमीशन करौलक अछि....।’
पत्नीँ आँखि गोल करैत कहतीह-‘अच्छाा तऽ ओ....? । ओ तकर बाद बुढि़या माए अर्थात् दादी लग जाएत, बूढ़ी एकरा आइ-काल्हि मछी दैत छथि....। अरे कियैक नहि, जखनि घरक मुखिया सभ नहि छलथिन तऽ वएह ने ओहि राति बुढ़ी केँ दर्द भेला पर अड़ोस-पड़ोस एक करनैत दवाइ विरोक व्यवस्था कयने छलैक....। बूढ़ी सिनेह देखबैत बजने छलथिन-‘तऽ हौ बच्चाव! तोँ नहि रहितह तऽ हमर प्राण नहि बचितह....।
पहिल बेर ओकरा अपन व्येक्ति व सम्पूछर्ण रूपेँ सार्थक बुझना गेलैक....। जे-सें ओ बूढ़ी लग जाइत आ एहि आकस्मिक मृत्युयक ओकरा हाल-चाल कहत....। तखनि दुइ-चारि आँगन मे हल्ला मचि जयतैक- ‘कखनि मुइलाह आ हा-हा....ओ....हो....तो कोना बुझलहक हौ चमन....।
तखनि ओ फडि़छा फडि़छा कऽ आद्योपान्त. सभ गप्प. कहत आ लोक सभ ओकरा दिशि मुँह बाबि ताकत...सर्वत्त चमन, क्षणभंगुरे सही मुदा सर्वव्यासपी चमन....।
ई सोचैत ओ आँगन दिशि विदा भेल। ड़योढ़ी लग पत्नीु छिटटा छाउर काढ़ने जाइत छलीह, ओ डुर्लास कऽ बाजल-‘अय सुनैत छी।’
पत्नीै छाउरक छिट्टा उनटबैत लहोछि कऽ बजलीह-‘इह कमैनी ने धमैनी आ टहंकार केहन....एकोटा जारनि काठी ने....छओड़ाकऽ इस्कूनल के भऽ रहल छैक ऊपर सऽ छओंड़ीक नंगो-चंगो....आइ ओकरा हम खून कऽ देबैक। ‘ई कहि ओ द्रुतगति आँगन गेलि आ बेटी केँ ओध-बाध उठाबऽ लागलि.... छओंड़ी चीत्कारर कऽ उठलि....।
एकर भीतर मे आक्रोश बिरंड़ो तांडव करऽ लगलैक तकरा दबौने ओ दादी गेलैक, आ बाजल ‘बुढि़या माँ गय। गजीन्देर बाबू....।’
बूढ़ी बात केँ बिच्चिन्ह। सँ कटैत बजलीह-‘हम तऽ रातिये बूझि गेल हूँ....आह केहन भद्र लोक....एकूटा हम छी....हमर बही जमराज लग सऽ हरा गेल अछि, आं आगाँक जनमल लोक सभ उठल जा रहल अछि।’
‘अछाा तऽ ईओ बुढि़या बुझि छल....तख नि हमही देरी सँ बुझलहुँ....सत्ते हम पिछड़ल छी-पत्नीक ठीके कहैत अछि जे अहाँ पछता रोटी खयने छी....।’
ओ स्वेयं केँ धिक्का.रऽ लागल ओकर समस्तौ उत्साकह आब तिरोहित भऽ गेलैक ओ अपरतीब भऽ गेलैक। तथापि बात केँ बढ़बैत बाजल-मर्र, ओ की कोनो कम उमेर के छलथिन सत्तरि सँ कदापि कम्म नहि।
बूढ़ी हाथ नचबैत बजलीहा-दुर बतहा नहितक्ष । सत्तरि के तऽ इन्जीनरा आ मंदाग्नि सेहो नहि अछि।
ओ अपन समस्त कुण्ठा. आ हतबुद्धि केँ बूढ़ी पर कुतारैत मुँह‍ दुसलक- ‘हुँह ! इन्जीयरार आ मन्दा.ग्नि कईक बेर कहल हूँ ले इन्दिरा आ मंदाकिनी बाजू....।
बूदी प्रत्योलक्रमण करैत बजलीह-‘रौ बाउ! हम नहियों पढ़लहुँ तथापि ओहि कोशीक विकराल सभटा मे छओ गोंट बच्चाय सभ केँ पढ़ा-लिखा मनुक्ख बनेलहुँ जगह-जमीन आ मकान बनेलहुँ केओ धिया-पुता मुँह नहि दुसैत अछि आ एकटा काबिल तोँ छेँ बड्ड बुधियार छेँ तेँ ने ई हालाति छैक जे बापो सऽ नहि पहैत छैक क अछि आदि कहैत बूढि़ घर-चलि गेलीह।
ओ हतबुद्धि भेल जड़वत ठाढ़ छल ओकर समस्त उत्सािह कखनि ने बिला गेल छलैक आ ऑंखिं नोरा गेलैक....।
कनेक्शन कालक बाद पत्नी आचलि आ गौर सँ मुँह देखैत बाजलि- ‘अरे आठ बजैत अछि- किछु जलखै खा लितहुँ फेर तऽ भरि दिन अहाँ केँ की करबैक काजक जोगाड़ आ टाका-पैसा कोनो अपना हाथ मे छैक की.... जहिया जे हेबाक हैतैक से तऽ हेबे ने करतैक....।
ओ अपन हाथक घड़ी देखलक आ बाजल- ‘सते आइयो फेर बहु अबेर भऽ गेलैक....


प्रेमशंकर सिंह
जयकान्तक मिश्र जीवन आ साहित्ये–साधना

मिथिलांचलक पावन भूमिमे कतिपय मातृभाषानुरागी जाज्व्गा लमान नक्षत्र उदित भऽ सुधी साहित्यछ–मनीषी अनवरत साधनारत रहलाह, किन्तुा विगत शताब्दीाक तृतीय दशकमे अपन अविरल साहित्य –साधना, आन्दोरलनात्मलक आ रचनात्म क सृजन द्वारा विश्वत स्तारपर मैथिलीकेँ प्रतिष्ठित करबामे, स्वाावलम्बीो बनयबामे, विधिध अभावादिक पूत्य्र्थ, मातृभाषाक माध्य मे प्राथमिक शिक्षा नीति लागू करयबामे सतत संघर्षरत, वैज्ञानिक आलोचनात्मबक ग्रन्थमक प्रणयन करबामे, शोध एवं अनुसंधानकेँ नव दिशामे, साहित्यमक हेड़ायल–भुतिआयल विभूतिकेँ प्रकाशमे अनबामे, दिवारात्रि चिन्ता ग्रस्तं रहनिहार एक एहन दिव्यह अक्षर पुरुष प्रादूर्भूत भेलाह जे अपन बहुआयामी व्याक्तित्वक प्रभावसँ मातृभाषा नुरागी निरन्तधर एकर उत्था नार्थ कार्यरत रहलाह ओ रहथि प्रोफेसर डाक्टअर जयकान्त मिश्र (१९२२-२००९), विगत लगधक सात दाशकक दीर्घ अन्तओराल धरि अनबरत एक रस आ एक चित्त भऽ कए मातृभाषाक निष्प्राण धमनीमे नव रक्तरक संचारक अभिनव साहित्यिक वातावरणक निर्माणक ओकर भरण–पोषण कयलनि। मैथिली भाषा आ साहित्य जखन अन्धकारमे टापर–रोइया दऽ रहल छल तखन अते अपन अनुसंधान द्वारा एक आलोकक रश्मि विकीर्ण कयलनि।
प्रथम दर्शन
मैथिलीक अध्यंयन–अनुशीलनमे निरत रहबाक कारणेँ छात्रावस्थाहिसँ एहि अक्षर पुरुषक नामसँ अवगत छलहुँ, किन्तुक हुनक दर्शन करबाक सुअवसर नहि भेटल छल। हिनक पहिल दर्शनक अवसर भेटल बिहारक राजधानी पटनामे जतय ओ बिहार पब्लिक सर्भिस कमीशनमे, बिहार विश्वेविद्यालयक मैथिली विभागक रीडर एवं विभागाध्येक्ष एक इन्टरभ्यूभ देबाक हेतु आयल रहथि1 कमीशन आफिसमे हम अपन गुरुदेव प्रोफसर शैलेन्द्रा मोहन झा (1929-1994)क दर्शनार्थ गेल छलहुँ। ई घटना थिक सन् 1963 ईo क जखन हम पटना विश्वधविद्यालयक एम.ए. मैथिलीक अन्तिम वर्षक छात्र छलहुँ। ओतहि हुनका प्रथमे प्रथम देखलियनि आ हमर विस्तृत परिचय शैलेन्द्रए बाबू हुनका देलथिन। जखन हम भागलपुर विश्वछविद्यालयमे मैथिलीक लेक्चथरर भऽ अयलहुँ आ शहरमे विद्यापति पर्वकेँ आयोजनमे सम्मिलित हैबाक हेतु आमंत्रित कयलनितँ ओ सहर्ष स्‍वीकार कऽ कए आयोजनमे अपन सारगर्भित गम्भीतर व्याआख्यातन दऽ कए जनमानसमे मातृभाषानुरागक वीज वपन कयलनि आ सफल बनौलनि।
हम जखन शोध कार्यमे तल्ली न छलहुँ तँ मैथिली प्राचीन पत्रिकादिमे प्रकाशित कतिपय रचनादिक
संकलनार्थ हुनक निजी पुस्तयकालय देखबाक हेतु इलाहाबाद गेलहुँ। हमर मुख्यत कार्य छल हरिमोहन झा (1908–1984)क बहुचर्चित उपन्याेस कन्यालदान (1933) एवं द्विरागमन (1943) पर श्रीकृष्णि मिश्र (1918–1991)क एक वृहत समालोचना मिथिला मि‍हिरमे प्रकाशित भेल छल तकरा देखबाक हेतु ओतय गेलहुँ। हमर शोधकेँ सारगर्भित बनयबाक उद्देश्यासँ हमर इच्छानुरूप आवश्यकक सामग्री सभकेँ टाइप करबा देलनि, कारण ओहि समयमे जिराक्सनक आविष्कार नहि भेल छलैक। ओ टाइप काँपी अदयापि हमर व्यकक्तिगत पुस्तओकालयमे स्मृ‍तिक धरोहरक रूपमे वर्त्तमान अछि। मेथिलीक एहन सम्पन्नम पुस्त्कालय हम नहि देखने छलहुँ।
हुनकासँ कतेक बेर भेट भेल तकर ठेकान नहि, किन्तुछ विश्वनविद्यालय अनुदान आयोग एवं विश्वमविद्यालय स्तकरपर, चेतना समितिक संगोष्ठी मे, मिथिला सांस्कृितिक संगम प्रयागक आयोजनोत्स‍व पर तथा व्रजकिशोर वर्मा (1918–1986)क हुनकासँ भेट भेल छल (2009) पुस्तयकक सम्पारदनक क्रममे मैटर एकत्रित करबाक लेल सहस्राधिक बेर हुनक दर्शन आ सान्निद्ध प्रप्तस करबाक अवसर हमरा भेटल तथा सतत अपन अशेष शुभकामनासँ उत्प्रेरित करैत रहलाह मातृभाषक सेवार्थ।
पृष्ठमभूमि
हिनक पारिवारिक पृष्ठ भूमिमे संस्कृसतक पठन–पाठनक प्रति अगाध आस्था आ श्रद्धा छलनि, कारण हिनक पितामह महामहोपाध्यातय पण्डित जयदेव मिश्र ( ) आ पिता महामहोपाध्याअय डाक्टर उमेश मिश्र (1895–1967)केँ संस्कृ्त शिक्षणक प्रति अनुराग छलनि1 किन्तु उपर्युक्तय वातावारणक विपरीत हिनक पठन–पाठन पाश्चा त्यं–शिक्षानुरूप पिता एवं प्रोफेसर अमरनाथ झा (1897–1955)क छत्र छायामे भेलनि कारण ओहि समय समग्र उतर भारत वर्षमे इलाहाबाद आधुनिक यूरोपियन परम्पोराक केन्द्र –विन्दूक छल जतय अमरनाथ झा सहश बहुभाषाविद अंग्रेजी विभागक सर्वेसर्वा रहथि। यद्यपि ओ पाश्यामत्यु–शिक्षा पद्धतिसँ अवश्य शिक्षित भेलाह, किन्तुु हिनका हृदयमे भातृभाषानुराग एतेक बलवती छलनि जे जीवन पर्यन्ता विभिन्ना रूपेँ सक्रिय रहि ओकर उत्थाुनार्थ सतत दत्तचित रहलाह।
अध्याुपन
प्रोफसर जयकान्तन मिश्रक विलक्षण वैदुव्यय आशैक्षणिक योग्ययताकेँ ध्या्नमे राखि मात्र 21 वर्षक अवस्था मे इलाहाबाद विश्वतविद्यालयमे स्टलडीज एण्डव मार्डन यूरोपियन विभागमे लेक्चररक पदकेँ ई सुशोभित कयलनि सन् 1944 ईo मे1 उक्त‍ विभागमे रीडर, युनिभर्सिटी प्रोफेसर एवं विभागाध्योक्ष पद पर आसीन भऽ ओ सन् 1983 ईo मे अवकाश ग्रहण कयलनि। किन्तुत अवकाशोपरान्तर हिनका अध्याेपन कार्यसँ मुक्ति नहि भेटलनि, कारण हुनक वैदुव्य्सँ प्रभावित भऽ सागर विश्वमविद्यालय हुनका भिजीटिंग फेलोक रूपमे चयन कयलकनि जतय ओ सन् 1985 सँ सन् 1988 धरि कार्यरत रहलाह। एही अवधिमे अर्थात् 1986 ई मे हुनक चयन आँल इण्डिया बोर्ड फार रिसर्च एवाड इन ह्यूमैनिटीजक हेतु मैसूर विश्वलविद्यालय आमंत्रित कयलक। अध्यचयन–अध्याणपनक प्रति विशेष अभिरूचिक कारणे हुनका पुनः आमंत्रित कयलक चित्रकूट ग्रामोदय विश्व्विद्यालय जतय ओ सन् 1992 सँ 1994 धरि डीन फैक्ल री आँफ लैंग्वेजज एण्डो सोसल साइन्सव विभागमे अध्यापन करैत रहलाह।
अनुसंधान–प्रेरणा
निष्प्रा ण मैथिली साहित्यशमे नव प्राणक रचन्द्न भरनिहार प्रोफेसर जयकान्तस मिश्र प्रथम मैथिल सरस्व तीक वरद पुत्र प्रादुर्भूत भेलाह जे मातृभाषाकेँ जीवनदान देलनि अपन गहन अनुसन्धानन द्वारा। इलाहाबाद विश्व विद्यालयक शैक्षणिक पृष्ठभभूमि आ अध्याषपन वृत्तिमे संलग्न रहलाक कारणेँ ओ अनुसन्धानक दिशामे उन्मुवख भैलाह। हिनका हृदयमे अनुसन्धानक तीव्र आकांक्षा छलनि जे हुनक अनुसन्धो्त्तर कृतिक अवलोकनिसँ स्पशष्टव होइत अछि1 जेँ अंग्रेजी विभागमे अध्य्यनक शुभारम्भस कयलनि तेँ आवश्यअक छल जे ओ उपर्युक्त‍ विषय पर शोध करथि। एहि लेल विचार-विमर्श करबाक हेतु ओ अपन गुरुवर प्रोफेसर अमरनाथ झाक लग गेलाह। ओ अपन विचार व्य क्त- कयलनि जे हम शेक्स पियरक ड्रामा पर काज करय चाहैत छी। एहि पर ओ कहलथिन ‘नहि काराक पढ़त? शेक्सपियर पर विश्वसक विभिन्न भाषामे हजारो पोथी उपलब्ध छैक1 ककरो ध्या न जयतैक अहाँक पोथी पर। भारतीय छात्रों आक्सफोर्डक पब्लिकेशन पढ़त ? इण्डियन राइटरक पोथी नहि पढ़य चाहत।’
प्रोससर झाक एहन बात सुनिक ओ अवाक् भऽ गेलाह। हुनका साहस नहि भेलनि जे झा साहेबक बातकेँ काटथि। हुनकासँ ओ जिज्ञासा कयलथिन, अपने कहल जाओ जे कोन विषय पर शोध करी’। ओ कहथिन, ‘मैथिलीक काज’। ओ सन्न रहि गेलाह जे अंग्रेजी साहित्यिक शोध–प्रबन्धयक विषय मैथिली कोना होयत ? हुनका किछु नहि फुरलनि ओ पुन: साहसक जिज्ञासा कयलथिन, ‘मैथिली?’ डाo झा उत्तर देलथिन, ‘हँ, मैथिली! साहित्ययक विषयमे अमैथिल भाषी जानकारी प्राप्ते करत। अंग्रेजी भाषामे लिखल रहतैक तँ अंग्रेजीमे डी.फिल.क डिग्री प्राप्ति होयत’।
प्रोफेसर झा एक दूरदर्शी साहित्यी–मनीषी रहथि तेँ उपयुक्तप सलाह आ प्रेरणा हुनका देलथिन संगहि इहो कहलथिन जे इएह अहाँकेँ अजर, अमर आ अक्षुण्णी यशक भागी बनाओत जकर फलस्व रूप हुनक भाग्योनदय भेलनि। हुनक ई अनुसन्धाअन वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यरमे मैथिली आ प्रोफेसर मिश्रक हेतु एक दोसराक पर्याय बनि गेल अछि। बिनु हुनक नामोल्लेिख कयने मैथिलीक कोनो कृति अनोन लगैछ। हिनक अनुसंधानात्ममक कृति A History Of Matheli Literature पर इलाहाबाद विश्व विद्यालय हिनका सन् 1948 ईo डी. फिल.क उपाधिसँ अलंकृत कयलक। पश्चाaत् जा कऽ हिनक कृति प्रकाशित भेल दुइ खण्डधमे जे प्रकाशित होइतहि मैथिली साहित्य क अमूल्यr निधिक रूपमे उदधोषित भेला कारण हिनकासँ पूर्व मैथिलीक कोनो साहित्येतिहासि‍क ग्रन्थ नहि छल, तें हिनक अनुसंधान मैथिलीमे अनुसंधानकेँ दिशा–बोधक अनुसन्धाहन कहब तँ कोनो अत्युमक्ति नहि हैत। हिनक अनुसंधान मात्र मैथिलीक हेतु नहि, प्रत्युदत निखिल विश्वुमे आधुनिक भारतीय भाषा साहित्या न्तर्ग विशिष्टर अवदानक रूपमे चर्चित–अर्चित अछि।
हिनक अक्षय अनुसन्धा्नक फलस्वमरूप अन्याून्यु भाषाभाषीकेँ बोध भेलैक जे मैथिली साहित्य एक सम्प न्न् भाषा साहित्यन थिक जकर क्रमवद्ध ऐतिहासिक पृष्ठ्भूमि तेरहम शताब्दीेसँ अविच्छिन्न् रूपेँ चलि आबि रहल अछि1 एहि ऐतिहासिक अनुसन्धा्नक प्रथम खण्ड् पर विश्रुत भाषा शास्त्रीस प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी (1890–1977)क कथन छनि जे पथमे प्रथमे एहि भाषा साहित्य क इतिहास प्रकाशित भेल अछि तेँ ई स्वा1गतेय थिक1 ई श्रेय आ प्रेय हिनके छनि जे एहि साहित्यक गरिमाकेँ जन मानसक समक्ष प्रस्तुत कयलनि द्वितीय खण्डव पर प्रोफेसर अमरनाथ झा आमुख लिखलनि जाहिमे मातृभाषानुरागी साहित्यँ मनीषीक कीर्तिकेँ ई अवगत करौलनि। एहि पर प्रियरंजन सेन जे हुनक शोध–प्रबन्धिक निर्देशक छलथिन हुनक कथन छनि जे एहि विस्तृित साहित्यज गौरवमय इतिहास आधुनिकताक परिप्रेक्ष्य्मे मूर्त्त रूपमे प्रस्तुेत कऽ कए अत्य न्तअ साहसिक काज ई कयलनि अछि।
हिनक गहन अनुसन्धाृत्मक प्रृत्तिक परिचय भेटैछ हिनक महत्त्वपूर्ण कीर्ति An Introduction to the folk leterafse of Mithila जाहिमे इ मिथिलांचलक परिसरमे उपलब्धू लोक साहित्यnक विश्लेoषण कयलनि
अपन शोध साहित्यक संचयनक क्रममे लोक साहित्यिसँ सम्बन्धित जतेक सामग्री हिनका उपलब्धI भेलनि तकरा संकलित कयलनि आ अंग्रेजीमे विश्लेहषणक प्रमाणित कयलनि जे एकर समृद्धशाली विपुल; लोक साहित्यक जनमानसमे छिड़िआयल अछि ताहि दिशामे अनुसंधानक प्रयोजन अछि।
अपन अनुसन्धा‍नक तीव्र आकांक्षाक पूत्यशर्थ ओ दुइ बेर पड़ोसी राष्ट्र नेपालक यात्रा कयलनि। प्रथम यात्रा तँ ओ शोध-प्रबन्धनक सामग्री संकलनार्थ गेलाह आ द्वितीय यात्राक हुनक उद्देश्यल छलनि जे प्रथम यात्रामे जाहि सामग्रीक पाण्डुबलिपि नहि उपलब्धीक पौलनि तकरा मूर्त्तरूप प्रदान करबाक निमित्त पुन: ओतय गेलाह। एहि क्रममे ओ मैथिली भाषा आ साहित्य क बहुमूल्यप नाटकादिक पाण्डुालिपिक संचयन कऽ कए प्रकाशित करौलनि जकर विवरण हुनक कृतित्व क अन्तर्गत कयल जायल। ओहि नाटकादिक प्रकाशनक फलस्विरूप भावी अनुसन्धितसुक पथ-प्रदर्शन कयलनि1 उक्त कृतिक सम्पादनक क्रममे ई सारगर्भित भूमिका अंग्रेजी आ मैथिलीमे लिखि ओकर मूल्यां्कनक सं‍गहि ओकर ऐतिहासिकताकेँ उदघाटित कयलनि जकर फलस्वगरूप मैथिलीक कतिपय समस्यादिक ओझरौठ केँओ सोझरा देलनि।
हिनक अनुसंधान सम्पूार्ण अवधारणाकेँ बदलि देलक आ ओ सकारात्मकक भेल। आब मैथिली गम्भी्र अध्यियनक विषय मानल जाय लागल। ई अवधारणा एवं सकारात्मदकता मैथिली साहित्येक बड्ड विधि विकास मार्ग प्रशस्तन कयलक। एहि दिशामे हुनका द्वारा कयल गेल प्रयास स्तुत्यउ अछि।
साहित्यन–याधना
जयकान्तन मिश्रक साहित्यध–साधनाक अन्तर्गत मौलिकक, सम्पादित एवं स्व तन्त्र आलेखादिक रचनावली पाठकक समक्ष ओ थिक अंग्रेजी एवं मैथिलीमे1 ओ मैथिली साहित्य्केँ नव दिशा देबाक निमित्त उपर्युक्त दुनू भाषामे समान रूपेण लेखन कयलनि जकरा पाछाँ हुनक उद्देश्यम छलनि अमैथिल भाषी सेहो एकर गौरव-गरिमाकेँ जानय, बुझय जकर विवरण एहि प्रकारेँ अछि:
अंग्रेजीमे मौलिक
i. A History of Maithiki Literafuse Valume–I–1949
ii. A History of Maithili Leterature Volume–II–1950
iii. An Introduction to folk Leterature of Mithils volume–I–1950
iv. An Introduotion to folk literature of Mithila Volume–II–1951
v. A case of Maithili–1963
vi A History of Maithili Leterature–1976
मौलिक मैथिली
i. कीर्त्तनिञा नाटक–1965
ii. तिरहुता ककहारा–1967
iii. मैथिलीमे प्राथमिक शिक्षा–1969
iv. वृहत मैथिली शब्दाकोश खण्ड9–1–1973
v. मैथिली साहित्यथक इतिहास–1988
vi. वृहत मैथिली शब्द् कोश खण्डr– 2–1995
मौलिक अंग्रेजी
जीवको पार्जन अंग्रेजीक प्रोफेसरक रूपमे भेलनि तेँ ओहू साहित्य मे रचनात्म0क प्रवृत्तिक परिचय देलनि:
i. Leetures on Thomas Hardy–1955 एवं 1965
ii Leetoores on Four Poets–1957 एवं 1963
iii iComplez style in English Poetry–1977
vi Leetares on Four Poets (Romantic Poets) –1987
v Leetorees on four Poets (Victoriam Poets) –1992
सम्पादित कृति
नेपाल यात्रामे हुनका मैथिलीक बहुमूल्यP धरोहर नाटकादि एवं अन्यत कृति उपलब्ध् भेलनि नेपाल दरबार लाइब्ररी जे धूल-धूसरित भऽ रहल छल तकरा सयत्न आनि ऐतिहासिक भूमिका लिखि सम्पापदित कयलनि आ प्रकाशित कयलनि:
i. धूर्मसमागम–ज्यो तिरीश्वदर–1960
ii. गौरी परिणय–शिवदत्त–1960
iii. गौरी स्वणयंवर–कान्हाकराम–1960
iv. गोरक्षविजय–विद्यापति–1961
v. रुक्मिणी परिणय–रमापति–1961
vi. कृष्णि केलिमाला–नन्दी9पति–1961
vii. श्री कृष्णवजता रहस्य6व–श्रीकान्तकगणक–1961
viii. गौरीस्वीयंवर–लालकवि –1962
ix. विद्या विलाप–भूपलीन्द्रतभल्ल1- 1965
x. Eneyelopadie of Indian Leteeahese Medieval & Modern Indian Leteratuse Maithili Seetion.
Xi. आधुनिक गद्यक निर्माता महामहोपाध्यालय डाo उमेश मिश्र–2006
सह सम्पादन
कीर्तिपताका–विद्यापति–1960
अनुवाद
जयकान्तत मिश्र् सफल अनुवादक रहथि जे साहित्य‍ अकादेमी द्वारा भारतक साहित्यप निर्माता सिरीजक अन्तर्गत गोविन्दत झा (1923) द्वारा मैथिलीमे लिखित उमेश मिश्र ( ) मनोग्राफक अंग्रेजीमे अनुवाद कयलनि जे साहित्य अकादेमी द्वारा सन् ई. मे प्रकाशित भेल।
उपर्युक्त् रचनाबलीक अतिरिक्तप मैथिलीमे हिनक निम्नमस्थे निबंध मैथिली पत्रकादिमे प्रकाशित होइत रहल जे निम्नुस्थत अछि:
1. प्रोफेसर गंगापति सिंहक सुशीला उपन्यामसक समीक्षा, मिथिला मिहिर–1943
2. मिथिलाक जन साहित्यत, चौपाड़ि मधुमास–2011
3. मिथिलाक इतिहास सम्बिन्धी किछु समस्याम, प्रथम अखिल भारतीय लेखक सम्मशलेन, रचना संग्रह प्रथम भाग, –1956
4. प्रथम अखिल भारतीय लेखक सम्मेबलन, नाटक विभागक अध्यिक्षीय भाषण–1956
5. आधुनिक मैथिली साहित्यक पर अंग्रेजीक प्रभाव, वैदेही नवम्बयर–दिसम्ब र–1957
6. हमर नेपाल यात्रा, वैदेही जनवरी–1958
7. पूर्वाo चलीय भाषा, साहित्य8 एवं संस्कृवतिक पारस्प–रिक प्रभाव, चेतना समिति संगोष्ठी –1972
8. आधुनिक मिथिलामे कीर्त्तनकचेतना, चेतना समिति संगोष्ठीव–1973
9. परम्पकराक परित्यारग: साहित्यमक अस्तित्विक प्रश्नि, चेतना समिति संगोष्ठीस–1974
10. मैथिली नाटक ओ रंगमंच: वर्त्तमान स्थिति एवं भविष्यअ, चेतना समिति संगोष्ठी –1977
11. भारतीय संविधान: मैथिलीक समस्यास, चेतना समिति स्माारिका–1977
12. जीवित जातिक जीवित भाषा, मिथिला मिहिर 11 जून–1978
13. संगीत शास्त्री ओ पूर्वाञ्चलीय गीति काव्या, चेतना समिति संगोष्ठी‍–1979
14. साहित्या ओ प्रतिवद्धता, चेतना समिति संगोष्ठी –1980
15. साहित्या मे परिवर्तनक स्वचर, चेतना समिति संगोष्ठीि–1984
16. राष्ट्री य ओ आञ्चलिक संस्कृचतिक विकास, चेतना समिति संगोष्ठीठ–1986
17. साहित्यिक समालोचना: सन्द‍र्भ इतिहास लेखनक, चेतना समिति संगोष्ठीठ–1987
18. विद्यापति पर्व कोनाकरी, स्मा‍रिका चेतना समिति स्मामरिका–1987
19. महाकाव्यिमे युगीन संकेत, चेतना समिति संगोष्ठीस–1988
20. मैथिली आन्दो‍लन: अद्यतन स्थिति, चेतना समिति संगोष्ठी––1989
21. यात्रीक मूल्यांकन कविक रुपमे करबाक थिक, चेतना समिति संगोष्ठीस 2000
22. मैथिली उपन्याासमे चित्रित समाज, चेतना समिति संगोष्ठीस–2003
हुनक समग्र कृतिक अवलोकनसँ हुनक साहित्‍य–साधनाक यथार्थ परिचय भेटि जाइछ जे ओ अपन मातृभाषाक विकासार्थ सतत कार्यरत रहलाह। ओ अपन अक्षय कृति परवर्ती पीढ़ीक छोड़ि गेलाह तकर आलोकमे मैथिली साहित्यतमे नव जीवनक संभावना दृष्टिगत होइछ। ओ अपन अद्धितीय वैदुव्यआक एक आदर्श प्रस्तुम त कयलनि जे वर्त्तमान पीढ़ीक लेल पाथेय बनल।
सम्मातन
मातृभाषानुरागी एवं साहित्यारनुरागी कीर्ति पुरुष जयकांत मिश्र जे मैथिलीक सम्मावनार्थ जे योगदान देलनि ओहिसँ अनु प्राणित भऽ कए भारतक नेशनल एकेडेमी आँफ लेटर्सक संगहि विभिन्नश मातृभाषा सेवी संस्थादि द्वारा समय–समय पर हिनका सम्माएनितक गौरवान्वित भेल।
1. भारतक आर्थिक राजधानी मुम्बनईक मिथिला मण्डेल द्वारा आयोजित अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलनक अवसर पर 31 दिसमबर 1969मे सम्मालन पत्रसँ अलंकृत कयलक।
2. बिहारक राजधानी पटनाक सांस्कृ‍तिक एवं साहित्यिक संस्थाक चेतना समिति 1990मे मातृभाषाक अतुलित सेवाक कारणेँ मिथिला विभुति ताम्रपत्रसँ सम्माकनित कयलक।
3. मातृभाषा नुराग आ ओकर विकासार्थ हिनका द्वारा जे साहित्यिक, रचनात्माक आ आन्दो्लनात्म क कार्य कयल गेल ताहिसँ अनुप्राणित भऽ मिथिला सांस्कृहतिक संगम प्रयाग–1995 ई.मे सम्मा न पत्र समर्पित कयलक।
4. झारखण्ड्क धनवाद स्थित विद्यापति समिति विगत शताब्दी‍क अवसान बेलामे अर्थात् 1999 ई. मातृभाषाक उत्थाखनार्थ कार्यसँ अनुप्राणित भऽ सम्मातन पत्र समर्पित कयलक।
5. विगत शताब्दीरक अन्तिम वर्षमे अर्थात् 2000 ई.मे नेशनल एकेडेमी आँफ लेटर्स अर्थात् साहित्यल अकादेमी नई दिल्ली द्वारा कालजयी मध्यवकालीन मैथिली साहित्यपक विशेषज्ञक रुपमे भाषा सम्मानसँ विभूषित कयलक।
6. हिनक बहुमूल्य् मातृभाषाक सेवाक परिप्रेक्ष्यिमे साहित्यल अकादेमी नई दिल्लीम एवं मिथिला सांस्कृरतिक संगम प्रयागक संयुक्तक तत्वावधानमे मीट दऽ आथर अर्थात् लेखकसँ भेट कार्यक्रमक आयोजन कयलक 28 मई 2000 मे।
7. बंगभूमिक जगता ज्योाति संस्थार मिथिला सांस्कृातिक परिषद कोलकाता 2006 अभिनन्दमन कयलक।
संस्थाक–संस्थाापक
प्रयाग अति प्राचीन कालहिसँ मैथिल मातृभाषानुरागी मैथिलीक कार्य स्थसल रहल अछि तकर दू कारण अछि। प्रथमत: धर्माम्बैलवी मैथिल समाज गंगा–यमुना आ विलुप्तत सरस्वती नदीक संगम रहल आ द्वितीय एतय विद्याक केन्द्रच हैबाक कारणेँ विद्यानुरागी लोकनिक जमावड़ा रहल अछि। स्वालधीनतासँ पूर्व प्रयागक मातृभाषानुरागी जयकान्तर मिश्र एतय मैथिलीक विकासार्थ दू संस्थालक स्था‍पना कयलनि तीरभुक्ति पब्लिकेशन्स आ अखिल भारतीय मैथिली साहित्य् समितिक स्थाापना सन् 1944 ई मे कयलनि जकर वर्त्तमान परिदृश्य ऐतिहासिक‍ भऽ गेल अछि जे जनजागरण अनलक तत्काालीन साहित्याकार लोकनिमे। एहि दुनू संस्थाक द्वारा कतिपय समकालीन साहित्यकार लोकनिक पुस्ताकक प्रकाशन कयलक जकर ऐतिहासिक महत्त्व अछि। एहि संस्थासक द्वारा मैथिली समाचार एक अनियति कालीन पत्रिका मात्र सूचनात्महक समाचारक अतिरिक्त नव प्रकाशनसँ पाठककेँ अवगत करबैछ। वर्त्तमान परिदृश्यामे स्वततन्त्र् मिथिला राज्यकक समर्थनमे विभिन्नत समाचार आ प्रयासक विभिन्न आयात पर विगत दुइ दशकसँ प्रकाशित करैत आबि रहल अछि। एकर सम्पादन ओ स्व्यं करथि।
पी.ई. एन.मे मैथिली अन्त्र्राष्ट्रीबय एवं सा‍हित्यिक सोफिया वाडिया द्वारा संस्थातपित साहित्यिक संस्थाा Poets, Essayist and Novelist जकरा संक्षेपमे पी.ई.एन. कहल जाइछ। उक्त संस्थायक ई सक्रिय सदस्यऐ भऽ भारतीय भाषा साहित्याएनुरागी लोकनिक ध्याईन मैथिली भाषा आ साहित्य दिस आकर्षित कयलनि1 एकर अधिवेशनमे ओ सहभागी भेलाह बड़ौदा (1957), भुवनेश्वलर (1959) आ लखनऊ (1964)मे सम्मिलित भऽ कए मैथिली भाषा आ साहित्य क पुनराख्यानन कऽ कए ओहि संस्था‍ द्वारा मैथिलीकेँ भारतक प्राचीनतम भाषाक रुपमे मान्यसता दिऔलनि। एहि संस्थाक द्वारा मान्यंता भेटलाक पश्चाथत् एकर अग्रिम योजनाकेँ क्रियान्वित करवामे अभूत पूर्वक सहायता भेटल। उक्ति अधिवेशनमे पठित हिनक भाषणादि ओकर कार्य विवरिणीमे प्रकाशित अछि।
पुस्तपक प्रदर्शनी
बिहारक तत्कातलीन राज्या‍ल डा. रंगनाथ रामचन्द्रण दिवाकर आँल इण्डिया पर एक भाषण देलनि जाहिमे हृदयसँ अपन उद्ऽगार व्यपक्तज करैत उद्ऽघोषणा कयने रहथि जे मैथिली ज्ञान ग्रन्थ स्थक प्राचीन भाषा थिक जे एकर विकासमे अति मत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलक। जखन जयकान्त मिश्र ई व्याख्यानन सुनलनि तँ ओ अत्यसधिक उत्साणहित भऽ जोर–सोरसँ काज करब प्रारम्भर कयलनि।
ई एक ऐतिहासिक परिदृश्यण अछि जे मैथिलीक भविष्यसक दिशा–निर्देश करैछ। पुरातन कालसँ इलाहाबाद विश्वध विद्यालय प्राच्यि एवं प्रतीच्यै उच्चय शिक्षाक हृदय स्थवल अछि जतय साहित्यिक एवं सांस्कृवतिक क्षेत्रक लब्धस प्रतिष्‍ठ विद्धत समाजक निवास स्थ‍ल रहलनि। हिनक कर्मभूमि सेहो ओही विश्व विद्यालयमे रहलनि जतय गणतन्त्र भारतक प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरूक जन्मू भूमि छलनि। ओ अवकाश भेटला पर निश्चित रुपेँ ओतय अबैत–जाइत रहथि। अखिल भारतीय मैथिली साहित्यम समितिक अध्यओक्ष आ विश्विविद्यालयक अंग्रेजी विभागक व्याख्याताक रूपमे ओ तत्कालीन प्रधानमंत्री सँ सन् 1960 ई. आनन्दय भवनमे दर्शनार्थीक रुपमे मैथिली दू पुस्तवक वैद्यनाथ मिश्र यात्री (1911-1998)क काव्यज–संग्रह चित्रा आ गल्पाञ्जलि कथा–संग्रह हुनका उपहार देलथिन, संगहि अनुरोध कयलथिन जे मैथिली भाषा आ साहित्य क गौरवशाली साहित्यिक परम्पसरा तेरहम शताब्दीसँ उपलब्धथ अछि, किन्तु् सरकारी मान्य ताक अभावमे ई सर्वथा उपेक्षित अछि पण्डित नेहरू ध्या नसँ हुनक कथनकेँ स्नेथहपूर्वक सुनलथिन आ कहलथिन Institutional reorganization is not soul management of the richness of a language we enjoy with sound literature.
एही क्रममे हुनका ओतहि भेटलथिन इलाहाबाद हाईकोर्टक चीफ जस्टिस न्या यमूर्ति बी. मल्लिक। ओ कहलथिन एहि रूपेँ अहाँक मातृभाषाकेँ मान्याता नहि भेटि सकैछ। ओ सलाह देलथिन जे एहि लेल आन्दोनलनक तरीका अपना बय पड़त तखनकहि अहाँक मातृभाषाकेँ मान्य ता भेटि सकैछ। आन्दो लनक तरीका थिक जे अपन साहित्यतक समृद्धशाली, गौरवशाली आ वैभवशाली परम्पारासँ जनमानसक संगहि संग साहित्यो चिन्तेक लोकनिक‍ ध्याीन कर्षित करबाक उपक्रम करू। न्या यमूर्ति मल्लिकक सत्प्रे रणा आ विचारसँ उत्प्रे रित भऽ कए ओ इलाहाबादमे सरगंगानाथ संस्कृात रिसर्च इन्सकच्यूरटमे 15 दिसम्बहर 1961 ई. केँ मैथिली पुस्तिक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि तथा ओकर उद्घाटन करबाक हेतु जस्टिस मल्लिकसँ अनुरोध कयलनि तथा ओकर उद्घाटन करबाक हेतु जस्टिस मल्लिकसँ अनुरोध कयलथिन। ताधरि जस्टिस मल्लिकक भारत सरकारक कमीशन फाँर माइनोरोटी लैंग्वेजजक चेयरमैनक पद पर सुशोभित भऽ गेल रहथि। ई सुखद संयोग थिक जे उक्त पुस्तगक प्रदर्शनीक उद्घाटन जस्टिस मल्लिक स्वीदकार कयलथिन जाहिमे आ‍ेहिठामक प्रवुद्ध साहित्यत चिन्तगक लोकनि मैथिली भाषा आसाहित्यमक प्राचीनतम गौरवशाली परम्पेरासँ अवगत भेलाह जे हुनका सभ पर अपन अमिट छाप छोड़लक। एहि अवसर पर यशस्वीथ कवि वैद्यनाथ मिश्र यात्री मैथिलीमे काव्य पाठ कयने रहथि।
इलाहाबादक पुस्तठक प्रदर्शनीसँ अनुप्राणित आ अनुप्रेरित भऽ कए ओ सोचलनि जे एहन प्रदर्शनीक आयोजन गणतन्त्र भारतक राजधानी दिल्लीअमे कयल जाय तँ निश्चित रूपेँ मैथिलीकेँ सरकारी मान्यआता भेटबामे कोनो वाधा नहि आबि सकैछ। एकर आयोजनार्थ ओ अपन प्रोभिडेण्डय फण्डशसँ लोन लऽ कए 8 आ 9 जनवरी 1963 ई. मे दिल्लीओक आजाद भवनमे ऐतिहासिक राष्ट्री य पुस्ताक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि जाहिमे मिथिलांचलक विभिन्नआ क्षेत्रसँ चन्दा एकत्रित कयल गेल आ भालण्टीयर गेल रहथि। प्रदर्शनीक सजावट हृदयाकर्षक छला बहुतायादमे पुस्तलकादि एकत्रित कयल गेल छल जाहिमे मिथिला इन्स्टीच्यूट दरभंगा आ पटना विश्व विद्यालय विशेष उल्लेेखनीय अछि। सांसद रूपमे ललितनारायण मिश्र एवं यमुना प्रसाद मंडल सहभागी भेल रहथि। भारत सरकार संसदीय कार्य मंत्री बाबू सत्यानारायण सिंहक सहयोगसँ प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू एकर उद्घाटन कयलनि यद्यपि ओ पन्द्र ह मिनट विलम्बकसँ पहुँचलाह, किन्तुल पुस्ततकक अम्बार देखि हतप्रद भऽ गेलाह। अपन भाषणमे ओ जे बजलथिन ओ कल्पनाक विपरीते अनुभव भेलनि प्रोफेसर मिश्रकेँ। भीजिटिंग रजिस्टलर ओ टिंप्पणी कयलथिन, I was ray to inaygware Maithali Book Exibition and to see the large Colleetion of books and Manuseripts in Maithli . This domonst trated that Maitili hasd been for long time and is today a living among the people of that areas the Language deseirurs encouragement एहि प्रदर्शनीकेँ सफल बनयबाक लेल हास्यe - व्यं ग्यi सम्राट प्रोफेसर हरिमोहन झा मायानन्दm मिश्र (1934), रामस्व रूप नटुआक अतिरिक्तं अनेको गण्ययमान्ये राजनैतिक, साहित्यिक, मैथिली प्रेमी उनटिक’ प्रदर्शनी सफल बनयबाक हेतु उपस्थित भेलाह। एकर शानदार सजाबटक कारणेँ समग्र कार्यक्रमक झाँकी सिनेमा हाँलमे प्रदशित भेंल जे मिथिलीक हेतु ऐतिहासिक घटना थिक। उपर्युक्तट पुस्त क प्रदर्शनी एहि बातक सबल प्रमाण थिक जे ओ एक सफल आयोजक रहथि मैथिली आन्दोालन एक डेग आगू बढ़ल।
साहित्यन अकादेमीक सामान्यज परिषदमे प्रवेश
विश्व्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यदता प्राप्ति भारतक विश्वएविद्यालयक अक्षरानुक्रमसँ बीस प्रतिनिधि पाँच वर्षक काला‍वधि हेतु साहित्यव अकादेमीक सामान्यत परिषदक सदस्यश मनोनीत करबाक प्रक्रिया थिक, जकर नामक अनुशंसा सम्बयद्ध विश्व्विद्यालयक कुलपति करैत छथि। जीवनक परिणत वयमे बिहार सरकार हिनक पिता श्री महामहोपाध्यािय डाo उमेश मिश्रकेँ सर कामेश्वकर सिंह संस्कृात विश्वपविद्यालयक कुलपति नियुक्ता कयलक। ई सुखद संयोग छल जे हुनक कार्य कालमे साहित्यश अकादेमीक सामान्य परिषद्क सदस्य क नाम अनुशंसित करबाक सूचना उक्तह विश्वमविद्यालयक कुलपतिकेँ भेटलनि। मातृभाषानुरागी कुलपतिक अतीव इच्छा् छलनि जे एहन व्यसक्तिक नाम अनुशंसित कयल जे मैथिलीक मान्यितार्थ एहि भाषाक पुरातन परम्पतराक उपस्थाेपन सबल तर्क द्वारा प्रस्तुलत कऽ कए ओकर अध्येक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरूकेँ कनभीन्सप कऽ सकथि अंग्रेजीमे। कुलपति कार्यालय तीन बेर प्रोफेसर जयकान्तऽ मिश्रक नाम प्रस्ताडवित कऽ हुनक अनुमोदनार्थ प्रस्तुलत कयलक, किन्तुज कुलपति बारम्बानर विनु कोनो टिंप्प णी कयने फाइलकेँ वापस कऽ देथि। हुनका एहि बातक आशंका छलनि जे जनमानस ई आरोप लगाओत जे अपन पुत्रक नाम अनुशंसित कयलनि। अन्तात: सामाजिक दबाबक कारणेँ कुलपति जयकान्तन मिश्रक अनुशंसित कयलथिन आ ओ अकादेमीक सामान्यह परिषदक सदस्यम भऽ गेलाह। सामान्य परिषदक सदस्यर बनि तहि ओ मैथिलीक मान्य तार्थ आन्दोसलन प्रारम्भ‍ कयलनि जे एकर विकासक अवरुद्ध द्वारा शनै:-शनै: खुजय लगलैक। अन्याान्यत भाषा भाषी सदस्यप लोकनिक ध्याान मैथिलीक गौरवशाली साहित्यिक परम्प राक दिशामे ध्या:न आकर्षित करब ओ प्रारम्भस कयलनि।
मैथिलीक मान्यतता
मैथिलीकेँ मान्यआता साहित्यी अकादेमी दिअ, ताहि हेतु ओ फाँड़ बान्हि कऽ एकरा पाछाँ पड़लनि तकरा पाछाँ हुनक त्या ग आ बलिदानक इतिहास जनमानससँ नहि नुकायल अछि। ओ सामान्यि परिषदक माननीय सदस्यप लोकनिक ध्याानकर्षित करबाक आ मातृभाषा मैथिलीक महत्त्व निरुपित करबाक निमित्त अंग्रेजीमे दू बुकलेट लिखलनि A cabe for Maithili एवं Cohal They say about Maitheili तकरा सदस्यल लोकनिक बीच वितरित कयलनि। यद्यपि दिल्लीभक पुस्तक प्रदर्शनीमे पण्डित नेहरू जे अकादेमीक अध्य क्ष सेहो रहथ ओ एहि बातक संकेत देने रहथि जे एहि भाषाकेँ मान्य्ता भेटबाक चाही1 किन्तुद दुर्भाग्यसँ हुनक मृत्‍यु भऽ गेलनि आ हुनक मृत्युपरांत प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी एकर अध्यजक्ष बनलाह जे मैथिलीक गौरव-गारिमा आ महत्त्वसँ पूर्व परिचित रहथि। हुनका अध्युक्ष बनितहि ई अत्यदधिक आशान्वित भऽ गेलाह जँ आब मान्य-ता भेटवामे मात्र वैधानिक प्रक्रिया शेष अछि। एहि लेल एक समिति गठित कयल जाहि मे भाषाविद डाo सुकुमार सेन (1900–1992) प्रोफेसर हजारी प्रसाद द्विवेदी (1907–1979) आ डाo सुभद्र झा (1909–2000)केँ सदस्य9 मनोनीत कयल गेलनि जकर बैठक दिल्लीमे आहूत भेल। एहि सँ पूर्व कोलकाताक प्रवासी मातृभाषा सेवी संस्था9दिक संग मिथिलांचल मे जनजागरण भऽ गेल ओ पोस्ट कार्ड अभियान चला कऽ एहि माँग कऽ समर्थन कयलक जकर फलस्वरूप भेटल। एहि दिशामे प्रोफोसर मिश्रक सत्प्र यास ऐतिहासिक घटनाक रूपमे सतत चिरस्थायीय रहताह।
तिरहूता लिपिक संरक्षक
अन्यू स्वकतंत्र साहित्यिक आधुनिक भारतीय भाषादिक समान मैथिली भाषाकेँ अपन प्राचीन स्वतन्त्र लिपि छैक जकरा तिरहुता वा मिथिलाक्षर वा मैथिलाक्षर वा मैथिली लिपि कहल जाइछ। तिरहुता नामसँ ज्ञान होइत अछि जे ई लिपि तिरहुत देशक थिक। जहिना भाषा आ सभ्यलता परस्प र अन्योजन्या श्रित अछि तहिना लिपि आ भाषाक सम्बिन्ध छैक1 अपन लिपिसँ जहिना–जहिना सम्बान्ध‍ छूटल जायत तहिना–तहिना भाषाक प्रति ताहि अनुपातमे आकर्षण कम होइत जायत तकर प्रत्यषक्ष प्रमाण थिक मैथिली। एहि लिपिक जाननिहारक संस्था दिनानुदिन नगण्य भेल जा रहल अछि जे मैथिली हेतु चिन्तषनीय विषय थिक। एहि प्रश्नन पर जयकान्तथ मिश्र गम्भीरता पूर्वक विचार कयलनि जे एकर संरक्षणार्थ प्रयासक प्रयोजन अछि। साहित्यप अकादेमी मैथिलीक मान्यरताक प्रसंगमे एक प्रश्नए उपस्थित भेल छल जे एकर स्वरतन्त्रम लिपिक अस्तित्त्व छैक वा नहि? ओ एकर उत्तरमे तर्क देलथिन जे एकरा अपन स्वसतन्त्रा लिपि छैक जकर पुरातन इतिहास छैक। हुनक मान्यसता छलनि जे मैथिलीक स्वलतन्त्र अस्तित्त्व स्थापपित करबामे जे कठिनता लिपिक कारणेँ भेलनि आ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यल मे भऽ रहल अछि से नहि होइत जँ हमरा लोकनि एकरा संरक्षित रखने रहितहुँ तँ ई प्रश्न कथमपि नहि उठैत।
वार्तालापक क्रममे ओ हमरा एक बेर कहने रहथि जे पुरातन कालमे समग्र मिथिलाञ्चलमे तिरहुताक संगहि कैथी लिपिक प्रचलन छलैक। दरभंगा राजक कार्य–कलापमे सेहो तिरहुता लिपिक प्रयोग होइत छलैक किन्तु ओकरा बहिष्कृ्त कऽ कए हिन्दीक बहुल देवनागरी लिपिकेँ लादि देल गेलैक जकर भयंकर दुष्परिणाम भेलैक जे शनै:-शनै: जनमानससँ ई विलुप्ते होइत गेल। एकर फलस्वैरूप मैथिली सदृश प्राचीनत्तम भाषाकेँ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य-मे हिन्दीहक अंगक उद्घोषणा विद्धान लोकनि कयलनि जेना व्रजभाषा आ अवधीक प्रसंगमे कहल जाइछ। जँ तिरहुता लिपि प्रचलित रहैत तथा एकर साहित्य एही लिपिमे लिखल जाईत तँ एहन विवादक उद्भावना कथमपि नहि होइत। संस्कृततक हेतु वैकल्पिक रूपमे समस्तल भारतमे देवनागरी लिपि व्यदवहृत होबय लागल तकर प्रभाव मिथिलाञ्चल पर पड़ल आ मैथिली साहित्य निर्माता लोकनि तिरहुताक स्थालन पर देवनागरी लिपिक प्रयोग करय लगलाह।
यद्यपि एहि लिपिक संरक्षणार्थ कतिपय प्रयास अवश्ये कयल गेल, किन्तु कोनो प्रयास सफल नहि भऽ सकल। दरभंगासँ तिरहुता लिपिमे समाचार पत्र बाहर करबाक प्रयास कयल गेलैक, किन्तु ओहोक विफल रहल। मैथिली भाषी जनमानस तिरहुता आ कैथी लिपिमे पढ़ैत–लिखैत छल आ एहिसँ अतिरिक्तु कोनो लिपिक प्रयोगक ज्ञान लोककेँ नहि छलैक। यद्यपि एकरा पुनर्जीवित करबाक नेयारभास पुस्तुक भण्डािरसँ जीवनाथ राय (1891–1964) बाडण्लाु लिपिक प्रभाव काँटा अवश्यव बनाओल गेल आ ओ ‘मैथिलीक प्रथम पुस्क् र क रचना अवश्यप कयलनि, मुदा ओ सफल नहि भऽ सकल।
जखन मैथिली कोश प्रकाशित करबाक प्रश्नर उपस्थित भेलनि तखन ओ विशुद्ध तिरहुता लिपिक टाइप बनयबाक अथक प्रयास कयलनि, कारण हुनक बलवती इच्छा छलनि जे तिरहुता लिपिमे कोश प्रकाशित हो। एहि भावनासँ ओ उत्पेयरित भऽ तिरहुता ककहारा (1967) नामक एक पुस्तपक लिखलनि1 दैव दुर्योग एहन भेल जे हुनक ओ प्रयास सफली भूत नहि भऽ पौलनि। हुनक मान्य6ता छलनि जँ हमरा लोकनि एकरा अपनौने रहितहुँ तँ मैथिलीक अस्तिरण, प्राचीन एवं मध्य‍युगीन कालजयी साहित्यरक रिसर्च अधिक सुकर होइत। वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य्मे एकर पुनरुत्थावन करब प्रयोजनीय अछि रिसर्च आ सांस्कृ तिक कार्यादिमे अलंकरणक रूपमे विशेष उपादेय होयल। प्रत्ये क मैथिली प्रेमी जनमानससँ आ विशेषत: मैथिली पढ़निहार छात्र समुदायकेँ एहि लिपिकेँ सिखबाक प्रेरणा देलनिओ।
परामर्श माण्डेलक संयोजक
साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिलीक मान्यनता भेटलाक पश्चामत् समग्र मिथिलाञ्चल एवं प्रवासी मातृभाषानुरागीमे प्रसन्न ताक लहरि परिव्याीप्त भऽ गेल। जनमानस आनन्दनक सागरमे डुब्बी मारय लागल आ आशांवित भेल जे मैथिलीक विकासक अवरूद्ध मार्गमे एक नव किरण विकीर्ण अवश्यल होयत। मैथिली परामश्र मण्डीलक प्रथम संयोजक भेलाह रमानाथ झा (1906-1971)क आकस्मित् निधनोपरान्त जयकान्तम मिश्रकेँ एकर संयोजक बनाओल गेल।
यद्यपि ओ दू खेप परामर्श मण्ड(लक संयोगक रहला, किन्तुन हुनक कार्य कालमे कोनो एहन उल्लेखनीय प्रकाशन नहि भेल। हुनक कार्यावधिमे निम्न स्थ) पुस्त्क प्रकाशमे आयल ओ थिक उमानाथ झा द्वारा सम्पाशदित विद्यापति गीत शती ( ) आ जयधारी सिंह द्वारा संग्रहीत मैथिली कथा संग्रह ( ) इत्यानदि।
हिनकहि संयोजक कालक दुइ घटना मैथिलीक चिरस्मिरणीय अछि। ओ थिक अकादेमी द्वारा मैथिलीक स्वीहकृति पश्चाटत् इतिहासकार प्रोफेसर राधाकृष्ण् चौधरी (1924–1984)केँ अंग्रेजीमे मैथिली साहित्यतक इतिहास लिखबाक दायित्व् सौंपलक। ओ यथा समय ओकर पाण्डुषलिपि साहित्यद अकादेमीमे समर्पित कयलनि जकरा परामर्श मण्डिलक समक्ष विचारार्थ प्रस्तु त कयल गेल। किन्तुस हुनक पाण्डुेलिपि एहन बभन पेंचमे पड़ल जे कतिपय कारणसँ ओकरा प्रकाशनसँ वंचित कऽ देल गेल। एकर प्रमुख कारण छल जे मैथिलीक इतिहास लेखन पर प्रोफेसर मिश्रक एकाधिकार छलनि1 ओ अपन पूर्व प्रकाशित इतिहास प्रथम खण्डण आ द्धितीय खण्ड केँ संक्षिप्त कए अकादेमी द्वारा प्रकाशित करौलनि A History of Maithili Leterature (1976)। तत्पश्चा त् ओकर मैथिली अनुवाद मैथिली साहित्य क इतिहास (1988) स्वपयं कयलनि, कारण हुनका एहि विषयक शंका छलनि जे कदाचित अन्यि अनुवादक एम्हतर-ओम्हiर ने कऽ देत। किन्तु) उपर्युक्त, पाण्डुएलिपिकेँ प्रोफेसर चौधरी सेहो प्रकाशित करौलनि A Seervey of Maithili Leterature (1976) नामे। उक्तव दुनू इतिहास मैथिलीमे विवादास्पद रहल।
हिनक कार्यावधिमे अकादेमी एक पुस्तिक प्रकाशित कयलक Indian Leterature Since Independence (1973) जाहिमे अकादेमी द्वारा स्वीएकृत भाषादि स्वातन्त्र्यो त्तर कालक प्रगतिक विकास–यात्राक मूल्यांेकन करबाक छलैक। मैथिली भाषाक स्वारतन्य्यो त्तर काजक विकास गतिक प्रसंगमे प्रोफेसर मिश्र आलेख प्रस्तुयत कयलनि जे प्रकाशनोपरान्ता साहित्यी जगतमे एक पैध विवाद केन्द्र बिन्दू् बनि गेल। स्वा तन्त्र्यो त्तर मैथिलीक साहित्याक यथार्थ मूल्यां्कन करबामे अज्ञानतावश वा यथार्थ सूचनाक अभावमे जे भ्रामक विचार प्रस्तु‍त कयलनि तकर विरोधमे पटनासँ प्रकाशित मिथिला मिहिरक पचीस अंकक लगधक भिन्नक–भिन्न् लेखक द्वारा साहित्याक यथार्थताक मूल्यां कन कयल गेल। मिहिरक सम्पादक सुधांशु शेखर चौधरी (1920–1990) वादे–वादे जायते तत्वकबोध नामे एक सीरिज चलौलनि जाहिमे उक्ता आलेखाहि प्रकाशित भेल जाहिमे हुनक कटु आलोचना कयल गेल।
दिशा बोधक समीक्षक
यद्यपि ओ जीवन पर्यन्त अंग्रेजी साहित्यतक अध्यययन–अध्या पन निरल रहलाह जाहिमे समीक्षाक प्रचूर सामग्री उपलब्ध छैक, किन्तुअ मातृभाषामे समीक्षाक सर्वथा अभाव देखि ओकरा अभिवर्द्धित करबाक उद्देश्य सँ उत्प्रेचरित भऽ मैथिलीमे समीक्षा लिखबाक शुभारम्भं कयलनि। हिनक वृहत समीक्षात्म क कृति प्रकाशमे आयल प्रोफेसर गंगापति सिंह (1894–1969)क सद्रय: प्रकाशित उपन्या स सुशीला () पर जे दरभंगासँ प्रकाशित मिथिला मिहिरक सम्पादक सुरेन्द्र झा सुमन ( 1910–2002) प्रकाशित कयलनि। एकर महत्त्व एहि कारणेँ अछि जे उपन्या सकार उपन्याकसमे कतिपय स्थदल पर मैथिली शब्द क बदलामे हिन्दीत शब्दअ–समूहक प्रयोग कयने रहथि तकर आ सतर्क प्रतिवाद कयलनि। इएह आलेख हिनका मैथिली आलोचनामे प्रवेशक द्वार खोललक तथा हिनका यशस्वीप बनौलक। जनमानसक ई धारणा छलैक जे मैथिलीमे जे लिखल जाइत छैकसे ठीक छैक तकर आलोचना नहि होमक चाही। एहि पर कतेक विवाद चलल। मैथिलीक युवा साहित्य चिन्तकक बाबू भुवनेश्वनर सिंह भुषन (1907–1944) हिनका अत्ययधिक प्रोत्सा हित कयलथिन।
यद्यपि हिनकहिसँ मैथिलीमे इतिहास–लेखनक परम्प4राक शुभारम्भय होइत अछि जे वस्तुित: समीक्षाक श्रेणीमे परिणत अछि। एहि ऐतिहासिक ग्रन्थसक जे उपयोगिता छैक ताहि प्रसंगमे हम बिस्तार पूर्वक विवेचन कयल अछि हिनक अनुसंधान उपशीर्षकान्तसर्गत। तेँ एतय गाओल गीतकेँ गायब समुचित नहि। आधुनिक परिप्रेक्ष्य:मे तथा कथित आलोचकक कथन छनि हुनक इतिहासमे कतिपय दोष अछि। किन्तु एहि बातकेँ ओ सर्वथा बिसरि जाइत छथि जे हुनका समक्ष कोनो प्रतिमान नहि छलनि जकर आलोकमे ओकर विस्तृ त विश्लेधषण करितथि। अपन इतिहासकु अन्तर्गत ओ एहि विषय–वस्तुलक विश्लेतषण नहि कऽ पौअनि तकरा हमरा लोकनि अनुसंधान कऽ प्रकाशमे अनबाक प्रयास करी। जँ हुनक इतिहासकेँ मात्र डाँक मेटैशन कहबैक तँ ओकर आलोकमे ओ अनेक दिशा निर्देश कयलनि जाहि दिशामे वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यहमे गहन अनुसंधानक प्रयोजन अछि जे परवर्ती पीढ़ीकेँ करबाक छैक। हिनक इतिहास मैथिली आलोचना साहित्याकेँ दिशा बोध करौलक जाहिसँ आगाँ हमरा लोकनि नहि बढ़ि पौलहुँ अछि जे चिन्तसनीय थिक।
मैथिली लोक साहित्य सँ सम्ब न्धित हिनक An Introdution to Folk Literatuse of Mithila एहि विधाक प्रथम ग्रंथ थिक जाहिमे मिथिलाञ्चलमे हुनका लोक साहित्यकसँ सम्बoन्धित जतेक सूचना उपलब्ध भऽ पौलनि तकर लेखा–जोखा ओ दुइ खण्डममे प्रस्तुकत कयलनि1 प्रथम खण्डकमे लोक गीतसँ सम्बभन्धित प्रचुर सामग्री, लोकनाट्य सम्बमन्धी गीत आदिक विवेचन ओ कयलनि। द्वितीय खण्डांतर्गत लोक विश्वास, लोक परम्परा एवं कतिपय लोक कथादिक चर्चा भेल अछि। आधुनिक परिप्रेक्ष्यवमे लोक साहित्यख पर जतेक कार्य भेल अछि वा भऽ रहल अछि तकर प्रेरणा स्रोत उपर्युक्त समीक्षा थिक जे परवर्ती पीढ़ीक लोक साहित्य कारक पाथेय बनल।
वैदेही समिति द्वारा आयोजित प्रथम अखिल भारतीय लेंखक सम्मेलनक अवसर प्रकाशित रचना संग्रहमे मैथिली इतिहास सम्बान्धीर किछु समस्या दिस जनमानसक संगहि प्रबुद्ध वर्गक ध्यातनाकर्षित कयलनि जे दिशा बोध करबैछ जे जाधरि उपर्युक्ती समस्यासदिक समाधान नहि होयत ताधरि इएह स्थिति रहता उपर्युक्तक अवसर पर अपन अध्येक्षीय भाषणमे नाट्य साहित्य्क भविष्या पर प्रकाश दऽ कए कतिपय नव–बिन्दु क संकेत देलनि आ जोर देलनि जे एकरे माध्ययमे मैथिलीक भविष्य सुरक्षित रहि सकैछ जे हुनक आलोचनात्मपक प्रवृत्तिक संकेत करैछ।
हिनक समग्र उपलब्धय आलेखक अनुशीलनसँ आब बोध होइछ जे ओ मैथिल संस्कृहति, साहित्यिक परम्पंराकेँ अक्षुण रखबाक दिशा–बोध करौलनि। एहि प्रसंगमे हुनक अवधारणा छलनि जे भेष–भूषा, भाव–भाषा, कला–कौशल, चित्र–कला–संगीतकेँ उद्धार करबाक प्रयोजन अछि। एहि उद्देश्यिक पूत्यर्थ अपन आलेखादिमे विस्तानर पूर्वक विचार कयलनि आ संकेत देलनि जे युवा पीढ़ीकेँ अग्रसर भऽ कार्य करबाक प्रयोजन अछि। हुनक मान्यकता छलनि जे मैथिली नाटक आ रंगमंचक माध्यगमे एकर भविष्यरकेँ सुनिश्चित कयल जा सकैछ। नाट्य साहित्यव जीवित रहल–पढ़बाक ओ सुतबाक एवं देखबाक प्रक्रियामे सजीवता छैक, मूर्तमय वस्तुाकेँ उपस्थित करबाक क्षमता छैक तथा अभिनयमे सौन्दकर्य ओ कलाक वास्तेवितकता, मनुष्य ता एवं सत्यमता छैक, से साहितयक अन्याछन्य विधामे भेटब असम्भव छैक।
बीसम शताब्दीमे मैथिली साहित्यामे परिवर्त्तनक स्व्र गुंजित भेल तकर ओ समर्थकक रूपमे अयलाह। आधुनिक शिक्षाक प्रचारसँ लोकक ज्ञान ओकर दृष्टि विकसित भेलैक तथा मातृभाषानुरागी लेखक लोकनिक लेखनी ओहि परिवर्त्तनकेँ अंकित करय लागल जे सा‍हित्यकमे नवीनताक संचार भेलैक। परिवर्त्तनक स्वसरक मुखरताक कारण अछि नूतन वैज्ञानिक आविष्कारक चमत्का‍र, औद्योगिकरणक वृद्धि, एहिसँ उत्पखन्न, जन–जीवनक संकुलता, आर्थिक विचारक क्षेत्रमे मार्क्सवादक उदय, फ्रायडक सिद्धान्ति, बौद्धिकता वृद्धि। साहित्य क क्षेत्रमे एकर प्रभाव पड़ल आ परिवर्त्तनक स्व्र गुंजित भेल तकर ओ पक्षपाती रहथि। उपर्युक्त‍ परिप्रेक्ष्यकमे हिनक समग्र रचनादि हिनका दिशाबोधक समीक्षक रूपमे प्रमाणित कयलक।
कीर्त्तनिञा नाटक
A History of Maithili Leterature क Volume–I मे मिथिलामे उपलब्ध नाटकादिकेँ ओ कीर्त्तनिञा नामे संबोधित कयलनि जाहि प्रसंगमे आपत्ति प्रस्तुuत कयलनि रमानाथ झा अभिव्येञ्जनाक प्रथम अंकमे हुनका द्वारा स्थातपित मनक खण्डपन करैत ओकरा कीर्त्तनिञा नाच कहलनि। एहि पर मैथिली आलोचनाक क्षेत्रमे विवादक एक परम्पराक शुरुआत भेल। प्रोफेसर मिश्र हुनक मतक खण्डतन कयलनि उक्तर पत्रिकाक अग्रिम अंकमे । तत्पमश्चा त् रमानाथ झा प्रबन्ध संग्रह (1371 साल)मे मैथिली नाटकपर एक बृहत् आलोचना कयलनि। इहो कीर्ननिञा नाटक (1965) नामक एक स्वतन्त्रन पुस्ताक अपन मतक समर्थनमे प्रकाशित कयलनि जाहिमे हुनक मतक खण्डभन तर्क देलनि जे मैथिलीमे शोध कोना हो, इतिहासमे परम्प राक नामकरण कीर्त्तनिञा नामक सार्थकता, नटुआ आ नटकियामे भेद, नाच ओ नाटकक अभेद सम्बपन्धी प्रमाण, नाटक शब्दतक व्यारपक अर्थ, मिथिलामे अभिनयक परम्पारा, कीर्तनिञामे पात्रक प्रवेश - निष्क्रगमण, पात्रक संख्यार, योग्य्ता, मिथिलामे कीर्तनिञाक परम्परा, मिथिलामे नाटकक परम्पराक अभाव, कीर्तनिञा संस्कृ त नाटक थिक तथा एकर नटुआक अयोग्य,ता आदि विषय पर प्रकाश देलनि।
एहि प्रसंगमे हुनक मान्यतता छलनि, जे ई नेपालक जगाओल धनराशि थिक। इतिहास बुझबाक हेतु बड़ तहमे जाय पड़त। हुनक कथन छलनि जे इतिहासकारकेँ इमानदार आ निष्पईक्ष होयब परमावश्यइक अछि। रमानाथ झा वाज ए कन्जकरभेटिव इमैजनेटिव हिस्टोदरियन।
उपर्युक्तक परिप्रेक्ष्यैमे मैथिली आलोचक लोकनि दू भागमे विभक्त् भऽ गेलाह1 किछु वर्षक पश्चा‍त् प्रोफेसर प्रेमशंकर सिंह (1942) मैथिली नाटक ओ रंगमंच (1978) एक नव बिन्दुा दिस संकेत कयलनि जे ई ने कीर्त्तनिञा नाटक थिक ने कीर्तनिञा नाच, प्रत्युंत एहि सब नाटकादिककेँ ओ लीला नाटक कहलनि। प्रोफेसर सिंह एहि दिशामे विचार करबाक एक नव दिशाक बोध करौलनि जे विचारणीय थिक।
आन्दोएलनक सजग प्रहरी
अनुसन्धा‍नोत्तर एक नव प्रवृत्तिक जागरण हुनक मस्तिष्कयमे भेलनि जे मैथिलीक गौरव–गारिमाकैँ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य‍मे जागृत करबाक निमित्त ओ रचनात्ममक आ आन्दोेलनात्मिक मार्गक अनुसरन कयलनि। एहि लेल ओ अकर्मण्य् निष्क्रिय, सुसुप्त, धार्मिक कट्टरता, रुढ़िग्रस्तन जीवनक अन्धिकूपमे डूबल समाजमे नवजीवनक संचार करबाक हेतु जनजागरणक अभियानक सूत्रपात कयलनि जे मिथिलाक सामाजिक, सांस्कृनतिक एवं साहित्यिक जीवनमे नव चेतना अनबाक हेतु ओ रचनात्‍मक आ आन्दोसलनात्मकक रूख अख्तियार कयलनि जकर प्रभाव मिथिलावासी पर पड़ल। हुनक आन्दोचलनकारी स्व रूप पहिल परिचय भेटैछ जे साहित्ययक समृद्धशाली परम्पाराकेँ जनमानसकेँ अवगत करयबाक हेतु ओ इलाहाबाद आ दिल्ली मे दुइ बेर अति उत्सालहित भऽ पुस्तपक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि। साहित्यर अकादेमीक सामान्य् परिषदक सदस्येक मनोयननक पश्चात् अपन मातृभाषाक साहित्यिक परम्परासँ अन्य भाषाभाषीकेँ एकर महत्त्वसँ अवगत करयबाक निमित्त ओ संधर्ष करब प्रारम्भक कयलनि। हुनक एहि सकारात्मीक आन्दो्लनकेँ मूर्त्त रूप प्रदान करबामे मिथिलाञ्चल आ प्रवासी मातृभाषानुरागी संस्थाहदि अपरिमित सहयोग भेटलनि जकर एतय पुनराख्यानक प्रयोजन नहि। एहि आन्दोथलन मे मात्र हिनके नहि, प्रत्युित समस्तग मैथिली भाषी जनमानसक सहयोगकेँ अस्वीकारल नहि जा सकैछ जकर परिणाम भेल भारतक सर्वोच्चह साहित्यिक संस्था नेशनल लेटर्स ऐकेडमी अर्थात् साहित्यि अकादेमी द्वारा एहि भाषा साहित्यिक परम्पवरासँ अवगत भऽ मान्य्ता प्राप्तट भेलैक।
बिहार एवं केन्द्रम सरकारक उदासीनताक कारणेँ ई भाषा सर्वथा उपेक्षित देखि हुनका हृदयक आक्रोश भेलनि आ ओ कविवर सीताराम झा (1891–1975)क निम्नसस्थि पंक्तिसँ अतिशय प्रभावित भेलाह:
अछि सलाइ मे आगि, बरत की बिना रगड़ने।
पायब निज अधिकार, कतहुँ की बिना झगड़ने।।
• कविवरक उपर्युक्त पंक्तिक व्याधपक प्रभाव जनमानस पर पड़लैक जाहिसँ अभिभूतओ जन जागरणक अभिनव अभियान चलौलनि जे जनमानस अपन लेल मातृभाषाक महत्त्वकेँ जानय, बुझय आ अपन समुचित अधिकार प्राप्तल करबाक दिशामे हुनका सहयोग देमक हेतु उताहुल भऽ गेल। कारण ओ अनुभव कयलनि जे मिथिलांचल वासीमे भाषा चेतनाक सर्वथा अभाव छैक। भाषा चेतनाक अर्थ थिक मातृ भाषाक प्रति प्रेम, दायित्व–बोध, कर्त्तव्यछ–बोध, गौरव–बोध आदि समस्ति विषय चेतना शब्दिमे सन्निहित अछि। भाषाक उन्नंति आ विकास ओहि भाषा भाषीक चेतना पर निर्भर करैछ, किन्तुध मैथिली भाषी जनमानसमे अपन भाषा आ साहित्यवक सर्वांगीन विकासक अकाँक्षाक अभाव देखि ओ सर्वप्रथम भाषा चेतना जगयबाक निमित्त आन्दोनलन कयलनि जे हम मैथिल छी, हमर मातृभाषा मैथिली थिक आ हम मिथिलावासी छी। एहि भावनासँ ओ उत्प्रे रित भऽ मिथिलांचल वासीसँ अनुरोध कयलनि जे जाति–भेद, वर्ग–भेद छिद्रान्वेषणक प्रवृतिक परित्या गक एक जुट भऽ मिलजुलिक भाषाक विकास कार्यक प्रति सम्बैद्ध भऽ आन्दोमलन करी।
• ओ मैथिली आन्दोालनकेँ नव स्वैरूप प्रदान करबाक आकांक्षी रहथि, कारण हुनक प्रबल इच्छाा छलनि जे आन्दोथलन सम्बन्धीे कार्यक्रमकेँ रूपायित करबाक झुण्डी बान्हिक ढ़ोल बजा कऽ गाम–गाममे घुमि कऽ मातृभाषाक महत्वकेँ बुझायब। एहि लेल मुख्या–मुख्यर स्थान पर मीटिंगक आयोजन करब आ मातृभाषाक वास्तविक महत्त्व आ तज्जयनित विविध समस्यापदिसँ जनमानसक ध्यामनाकर्षित करब। एहि भाषा पर एक जातिक वर्चस्वतकेँ समाप्तल करबाक लेल सेहो आन्दोदलनक आवश्यमकता अछि तकर अनुभव हुनका भेलनि। ओ मिथिलांचलक मुसलमानकेँ आन्दोालनक संग जोड़ेबाक हुनक बलवती इच्छाज छलनि। ओ एहन आन्दो लनक आकांक्षी रहथि जे सामान्य् जनक वैह प्रतिनिधत्त्वक ओहि अंचलक, ओहि क्षेत्रक, समाजक सर्वांगीन उन्नततिक हेतु सतत सक्रिय रहथि। किन्तु‍ हुनका पीड़ा एहि बातक छलनि जे मिथिलांचलवासी आन्दो लनक प्रति उदासीन अछि। मैथिली आन्दोनलनमे तीव्रता अनबाक हेतु जाधरि क्षेत्रीय सांसद आ विधायक सहयोग नहि करताह ताधरि ई धारधार नहि भऽ सकैछ। किन्तु ओ एहि बातसँ अत्यीधिक दु:खी रहथि जे मिथिलांचलसँ निर्वाचित प्रतिनिधि लोकनिमे जागरणक अभाव परिलक्षित भेलनि। मैथिली आन्दो्लन दधीचि बाबू भोला लाल दास (1894–1977) कथनछनि जे चुप्पचाप बैसने न्या्य नहि भेटि सकैछ। मिथिलांचलक सर्वांगीन विकासक हेतु मिथिलावासीकेँ एकबद्ध भऽ सिंहनाद करबाक प्रयोजन अछि आ अपन अधिकारक लेल संघर्ष करबाक ओ आह्वान कयलनि यथा:
• अन्यायी सत्ता छी प्रलय, गगन सम अति विषम।
• हमरहिं लधु हुँकार सँ, महाप्रलय होइछ नियम।
• मैथिली आन्दोुलनकेँ ओ नव रूप देबाक प्रयास कयलनि। हुनक धारणा छलनि जे जाधरि राष्ट्रीिय रूप एकरा नहि प्रदान कयल जायत ताधरि मैथिलीक विकासक सम्भावना नहि। जहिना ओड़िया भाषी, असमिया भाषी आ नेपाली भाषीकेँ अपन भाषाक प्रति अगाध श्रद्धा छैक जे अपन चिर स्नेनही ‘अमार भाषा जननी’क नारा लगबैत अछि तहिना मैथिली भाषीकेँ अपन भाषाक प्रति स्नेाह उत्प‘न्ना करबाक लेल आन्दोृलनक प्रयोजन अछि। जाहि–जाहि भाषाकेँ साहित्यष अकादेमी द्वारा मान्यसता प्राप्त छैक ओहि सब भाषाकेँ भारतीय संविधानक अष्टजम अनुसूचीमे नहि सम्मिलित कयल जायत तकरा लेल राष्ट्री य स्त्र पर आन्दोभलनक प्रयोजन अछि1 एहि लेल आन्दोीलनकेँ तीव्रतर करबाक लेल मिथिलांचलक गामक पद्–यात्रा कयल जाय आ जिला–जिलामे जन आन्दोआलन करबाक ओ आह्वान कयलनि। मैथिली आन्दोिलन तँ पत्र–पत्रिका, पत्रकार, साहित्यिकार आ सहृदय मैथिली प्रेमी धरि सीमित अछि तकरा व्याआपक परिधिमे अनबाक आवश्यदकता अछि।
• हुनक धारणा छलनि जे जाधरि एकरा राष्ट्रीहय रूप नहि देल जायत ताधरि एहि भाषाक कल्या णक सम्भाुवना हुनका नहि छलनि। जहिना पौल रोबसनक लिखल जाहि गीतकेँ लूथर किंग नामक निग्रो नेता अपन निग्रो आन्दोालनमे उपयोग कयलनि तहिना तकरा हमरा लोकनिकेँ भाषा समूहक संग्राम गीत धोषित करबाक आवश्यआकता अछि:
• We Shall OverCome, We Shall Over Come
• We Shall over come, Some day, o ! deep in my hewck
• I do seelieve, We Shall OverCome Someday
• We will have in peaee, We will go hand in hand
• जाधरि मिथिलांचल वासीकेँ उपर्युक्त काव्यांkशसँ अनुप्राणित नहि हैताह ताधरि हमरा लोकनिक आन्दोालन सफलीभूत नहि भऽ सकैछ।
• जयकान्ति मिश्र मैथिली नाम पर चलाओल आन्दोkलनकेँ टिमटिमाइत दीप मानैत रहथि। मैथिलीक नाम पर जतेक संघर्ष चलाओल जाइत ओ साधारणत: हमर आन्दोालनकेँ उजागर करैत अछि। छोट–छोट बातकेँ लऽ कए आन्दोरलन करब तकरा कथमपि आन्दो लनक संज्ञासँ नहि अलंकृत कयल जा सकैछ। मैथिली आन्दोलनकेँ चलयबाक लेल विराट शक्ति प्रयोजन अछि। मैथिली भाषी द्वारा जे आन्दोकलन चलाओल जा रहल अछि ओकरा एकर विकास नहि–प्रत्युजत विनाश मानैत रहथि।
• मैथिली आन्दोालनक असफल भऽ जयबाक कारणक उल्लेख करैत हुनक कथन छलनि जे पंजाबी आ उर्दू सहश हमर भाषा कोनो धर्मक संग सम्बरद्ध नहि अछि। मैथिली बजनिहारक संख्याओ भारतमे सातम अछि। हमर भाषाकेँ स्वतंत्र लिपि छैक। एकर अतीत अत्यंत समुज्जवल अछि। एकर महान सांस्कृसतिक परम्पहरा छेक। सांस्कृपतिक अस्मिताक रक्षाक लेल आन्दोकलन आजुक धर्म थिक। आन्दोालनमे तखने बल आओत जखन हम संस्कृेतिक शंखनादकरब जन–जन भाषिक चेतनाक हुँकार भरब। एहि प्रसंगमे ओ आरसी प्रसाद सिंह (1911–1996)क प्रसिद्ध काव्य बाजि गेल रनडंक उल्लेख करैत रहथि:
• बाजि गेल रनडंक, ललकारि रहल अछि
• गरजि–गर्जि कय जनजनकेँ परचारि रहल अछि
• आबहु की रहतीह , मैथिली बनलि वन्दिनी ?
• तरूक छाँहमे बनि उदासिनी जनकनन्दिनी?
• मैथिली आन्दोतलन सतत गतिशील रहल जकर परिणम अछि जे ओ नीचाँसँ ऊपर ससरल अछि। ई एकरे परिणाम थिक जे साहित्यल अकादेमी, भारतीय संविधानक अष्टपम अनुसूची, संघलोक सेवा आयोग, बिहार लोक सेवा आयोग, उच्चात्तर माध्यमिक, विश्वरविद्यालय स्त र पर अध्यायनक रूपमे स्वीाकृत भेल। इएह तँ मैथिली आन्दोवलनक अद्यतन स्थिति अछि। जतेक सुविधा हमरा लोकनिकेँ उपलब्धर भेल अछि तकरा ओ उपयोग करबाक मंत्र देलनि।
• मैथिलीक वास्त विक विकासक हेतु अद्यापि आन्दोधलन अपेक्षित अछि। आवश्यअकता अछि जे हमरा लोकनि आन्दो नोन्मुतख भऽ प्रयास करबाक चाही जे राजभाषाक रूपमे एकरा स्वी कृति भेटैक। जीवनक परिणत वयमे ओ मिथिला राज्योक स्था पनार्थ आन्दोहलनक हेतु संघर्ष करबाक शुभारम्भव कयलनि। अपन सम्मावनक रक्षार्थ ओ पुन: एहि अग्निकेँ प्रज्वथलित कयलनि जे अद्यापि जनमानस संघर्षरत अछि। हुनक आकांक्षा छलनि जे राष्ट्र क अखण्डिता एवं एकता रहओ, किन्तुह अपना घरमे, अपना जिलामे, अपना प्रान्तष वा राज्य मे अपन भाषा आ संस्कृनति अक्षुष्णत राखि अग्रसर होइ। लोक भरिपोख, भरि मन जीवित रहि देशक उन्नेतिमे सहभागी हैत। कुंठित, कलुषित, हीन, व्योक्तित्वमक विकास कहियो नहि सम्भमव छैक।
• मातृभाषाक माध्यकमे प्राथमिक शिक्षा
• शिक्षा आ भाषा दुनूक विकास परस्पाराश्रित अछि। शिक्षा मानव जीवनक मेरुदण्डम थिक। शिक्षाक उद्देश्यष ज्ञानार्जन थिक। ज्ञानार्जनक हेतु भाषा माध्य्म थिक। अतएव कोना भाषाक सफलता एहि बातपर अवलम्वित अछि जे कोन सीमा धरि ज्ञानार्जन आ अर्जित ज्ञानक अभिव्यषक्तिमे सहायक होइछ जकरा द्वारा व्यमक्तितत्त्वक निर्माण होइछ आ आन्त्रिक शक्तिक विकास होइछ तथा ओ एक उत्तरदायी नागरिक रूपमे जनमानसक समक्ष अबैछ।मातृभाषाक माध्यमे प्रथमि शिक्षा एक सिक्काक दू पहलू थिक। अतएव प्रारम्भिकावस्थाैमे जीवनमे मातृभाषा आ प्राथमिक शिक्षा दुनूमे प्राथमिकता अपेक्षित अछि। एहि प्रसंग भारतेन्दुम हरिश्च्न्द्र। (1850–1885) क कथन छनि:
• निज भाषा उन्नरति अहै, सब उन्न5ति की मूल
• बिनु निज भाषा ज्ञानकेँ मिटय नहि हृदयक सून।
• मातृभाषाक माध्य्मे शिक्षा नहि देलाक कारणेँ हुनका हृदयमे अपार कष्टत छलनि। एहि लेल ओ पृथकसँ जन आन्दोालनक चलयबाक अभियान चलौलनि, किन्तुम हुनक ई स्व प्नल साकार नहि भऽ पौलनि बिहार सरकारक उदासीनताक कारणेँ। हमरा जनैत मिथिलावासी अपन मातृभाषाक महत्त्व नहि बुझबाक ई दुखद परिणाम थिक। जँ लोक अपन नेना–भुटकाकेँ मातृभाषाक महत्त्वसँ वस्तुित: अवगत करबितथि तँ एक एहन स्वणस्थो वातावरणक निर्माण होइत जे बिहार सरकारकेँ वाध्य भऽ कए शिक्षा नीति लागू करय पड़ितैक। जखन जगन्ना।थ मिश्र बिहारक मुख्य्मंत्री भेलाह तखन जयकान्त् मिश्र अत्यशधिक आशान्वित भेलाह, किन्तुव ओकर कोनो फलाफल नहि बहरायल। हुनक अवधारणा छलनि जे जँ प्राथमिक शिक्षा मैथिलीक माध्यशमे होइत तँ मिथिलांचलक अधिकांश समस्याुक समाधान स्व त भऽ जाइत। मातृभाषाक माध्य मे शिक्षा नहि भेटबाक कारणेँ प्राथमिक स्तंर नेना सभकेँ शिक्षाक प्रतिअरुचि भऽ जाइछजकर परिणाम होइछ जे विद्यालयसँ छात्रक पलायन भऽ जाइछ। तेँ प्राथमिक स्तनर पर मातृभाषाक माध्य मे शिक्षाक कार्याययनक हेतु ओ सतत संघर्ष करैत रहलाह। मैथिलीकेँ प्राथमिक स्तार पर शिक्षा नीति लागू करयबाक हेतु ओ समस्त मिथिलांचलमे पद–यात्रा, बैसार, प्रचार तँ करबे कयलनि, एतेक धरि ओ कानूनी लड़ाई लड़बासँ पाछू नहि रहलाह।
• एहि प्रसंगमे हुनक कथन छनि आन–आन देश उन्तातिक शिखरपर पहुँचल अछि तकर प्रमुख कारण थिक जे ओ सव मातृभाषाक महत्त्वसँ अवगत अछि। रुस, जापान, इंग्लै ण्डर, अमेरिका आदि देशमे प्राथमिक शिक्षा ओकर मातृभाषाक माध्यतमे देल जाइछ जे प्रगतिक पथ पर दिनानुदिन अग्रसर भेल जा रहल अछि। किन्तु मिथिलांचलमे जन जागरणक अभाव कारणेँ अभिभावक अपन भाषाक श्रीवृद्धि करवाक हेतु प्रयत्नि नहि करैत छथि। मै‍थिल शिक्षक मैथिली पढ़यबाक हेतु प्रयत्नप नहि करैत छथि। यावत मैथिल समाज एहि प्रश्नथक समुचित उत्तर नहि देत, तावत मैथिलीकेँ आगाँ बढ़यबाक कोनो आन्दो लन सफल नहि भऽ सकत।
• सन् 1969 ई.मे मिथिला मण्डहल मुम्बिई द्वारा आयोजित अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलनमे विचारणीय बिन्दु् मातृभाषाक माध्यरमे प्राथमिक शिक्षा ओहि सम्मेँलनमे हमहुँ सम्मिलित भेल छलहुँ। जयकान्ते मिश्र अपन विचार प्रस्तुुत कयने रहथि जे निम्नरस्थ् अछि:
• 1. शैशवावस्थामे मातृभाषाक माध्यथमे शिक्षाक व्यँवस्थाछ रहला पर ओकर मस्तिष्क क विकास सहज, सुगम आ विषय-वस्तुाक ज्ञान प्रारम्मिक संस्कार स्था्यी होइछ। ओ सुगमता पूर्वक ग्रहण करैछ जे विषय-वस्‍तु बुझवामे सहायक होइछ। एहिमे कोनो सन्देमह नहि जे सुगमतासँ ओकर विकासक सम्भावना अछि।
• 2. प्रजातन्त्रइक प्रथम शर्त थिक जे जनमानसकेँ शिक्षित करब, जाहिसँ ओ कोनो कार्य सम्पूवर्ण शक्तिक संग सहर्ष करता ओकर शक्ति विषय-वस्तु् बुझबामे सहायक होइछ। जतय कोनो समस्याम उत्पनन्नू हैत तँ ओकर समाधान ओ आसानीसँ कऽ पबैछ। जीवित प्रजातन्त्र्क मूल मन्त्रइ थिक प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाक माध्यामे देल जाय।
• 3. एहिमे कोनो सन्दे ह नहि जे प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाक माध्यरमे देल जाय, कारण मैथिली एक प्राचीनतम जीवित भाषा थिक तेँ एकरा अनिवार्य रूपेँ लागू करबाक दिशामे प्रयासक प्रयोजन अछि आ सरकार पर एकरा लागू करबाक हेतु वाध्यए करबाक प्रयोजन अछि। बिहार एवं झारखण्ड् राज्यनक अधिकांश जिलामे ई बाजल जाइत अछि ततय अनिवार्य रूपेँ एकरा लागू करबाक हेतु सरकार पर दबाव बनायब आवश्य क अछि।
• किन्तुत दुर्योग विषय थिक जे सरकारक उदासीनताक कारणेँ नहि तँ मैथिलीमे प्राथमिक शि‍क्षाक पुस्तिक प्रकाशि‍त भेल आ ओकर अध्यापनक व्यावस्थात अछि जे चिन्तशनीय विषय थिक। अतएव आवश्यमक अछि एकर विरोधमे जनमत संग्रह कऽ कए सशक्त आन्दोयलन कऽ कए बधिर सरकारकेँ जगयबाक प्रयोजन अछि। सुसुप्तध सरकारकेँ जाधरि जगाओल नहि जायत ताधरि मिथिलांचलमे प्राथमिक शिक्षाक माध्यपम मैथिलीकेँ मान्य ता नहि भेटत। मिथिला आ मैथिलीक सर्वतो भावेन विकास आ विविछ समस्याादिक निदान ओकर निराकरण ताधरि सम्भावित नहि अछि जा‍धरि ओहिसँ लड़बाक शक्तिक लेल मातृभाषाक माध्यामे प्राथमिक शिक्षा अपेक्षित अछि। जयकान्ति मिश्र द्वारा चलाओल एहि आन्दोषलनकेँ साकार रूप देबाक हेतु घर–घरमे बच्चाि सभकेँ प्राथमिक शिक्षा देबाक दिशामे प्रयास अपेक्षित अछि। ई विषय बुझबामे नहि अवैछ जे भारतीय संविधान, साहित्यि अकादेमी आ अन्त र्राष्ट्रीषय साहित्यिक एवं साहित्यिक संस्थाघ, पी.इ.एन. द्वारा एहि भाषा आ साहित्यिकेँ मान्यहता प्राप्तक तखन बिहार सरकार प्राथमिक शिक्षाक रूपमे एकरा लागू किएक नहि करैत अछि? एकरा लागू कयला सँ सरकारक प्रतिष्ठाआ बढ़तैक।
• नि:सारण
• मैथिली साहित्यरक प्राचीनतम परम्परराकेँ सुदृढ़ करबाक दिशामे जनजागरणक जयकान्त मिश्र द्वारा जे अभियान चलौलनि एकर मान्यातार्थ ओ जे संघर्ष कयलनि, दधीचिक समान हड्डी गलौलनि तनिक अक्षय अवदानकेँ अक्षुण्ण रखबाक आ ओकरा अग्रगति करब प्रत्येक मैथिली भाषी जनमानसक पुनीत कर्त्तव्यल थिक। एहि परिप्रेक्ष्यणमे हुनक आलेखादि यत्र–तत्र विविध संग्रहादिमे, पत्रिकादिमे प्रकाशित अछि वर्त्तमानमे धूलधूसरित भऽ रहल अछि तकरा संकलित कऽ कए प्रकाशमे आनब प्रत्येक मैथिली भाषीक पुनीत कर्त्तव्यर थिक।इएह एहि युगपु रुषक प्रति वास्तेविक श्रद्धाञ्जलि हैत जे हुनक मातृभाषानुरागक प्रति व्यएक्त विचारादि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य मे प्रकाशित कऽ कए परवर्त्ती एवं भावी पीढ़ीक दिशा–बोध करयबामे सक्षम भऽ पाओत अन्य्था ओ अक्षय कीर्ति कालक प्रवाहमे गिरि–गहवरमे विलीन भऽ जायत।
ई श्रेय आ प्रेय हिनके धनि जे ओ अपन सत्प्रहयाससँ मिथिली साहित्यनकेँ समृद्ध आ व्याापक स्वयरूप प्रदान कयलनि जे मैथिलीक अस्तित्त्व सुरक्षित कऽ सकल। हुनका समक्ष कोनो आदर्श नहि छलनि तथापि मातृभाषाक सम्वलर्द्धनार्थ ओ आदर्श पुरुष रहथि। ओ मार्ग निर्देशक बनि मातृभाषानुरागक बीजक वपन कयलनि आ ओकर उन्नसयनार्थ अति महत्त्वपूर्ण कार्य कयलनि। हुनक तप, त्याृग, तपस्याप, कर्मशीलता, वैचारिक स्तकरपर सतत अटल–अडिग रहनिहार मैथिली प्रेमी जनमानसकेँ चिरन्तान प्रेरणा–स्रोत बनल रहता। ओ अपन अद्वितीय वैदुष्यक जे आदर्श छोड़ि गेलाह ओ मातृभाषानुरागी सतत प्रेरणा–स्त्रोत बनल रहता परवर्ती पीढ़ी पर। हिनक मातृभाषाक बहुमूल्यछ साहित्यिक अवदानसँ अतिशय प्रभावित भऽ विश्रुत भाषाशास्त्रीी प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी मैथिली शब्द कोशक प्रथम खण्डतक फारवार्ड लिखलनि जे डा. सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1850-1941)क पश्चामत् भारतमे मैथिलीक सबसँ पैघ चिन्ताकक रूपमे अजर, अमर आ अक्षुष्ण रहता His name will be handed down to Posterity in India as the greatest been factor of Maithili at present day after that of illustrious George Abraham Geierson, and will earn for him gratitude of sixteen millions of Maithili speakers in the first instance and of the Senolarly world of India, in the see and वस्तुhत: हिनका हेतु ई सौभाग्यlक बात रहलनि जे अपन जीवन कालमे ओ मैथिलीक विकास आ विस्ताrर देखि पौलनि।
२.३. १ कमला चौधरी-कथा--गुणनफल २.दुर्गानन्द मंडल बकलेल (कथाक दोसर आ अन्तिम भाग)

१.
कमला चौधरी-1953-कृति- मैथिलीक वेश-भूषा-प्रसाधन सम्बन्धी शब्दावली, प्रकाशनाधीन: बाटे बिलायल पानि (कथा संग्रह), पिया मधुमास (कविता संग्रह), आशापूर्णा देवीक बंगला लघु उपन्यास मन मंजूषाक मैथिली अनुवाद। मुजफ्फरपुरसँ प्रकाशित मैथिली साहित्यिक पत्रिका स्वातीक सम्पादन (१९८४-८५)।
कथा- गुणनफल
मीरा माइक प्रसन्नताक कोनो सीमा नहि। आइ भोरेसँ छोट–मोट मोटरी बन्हवामे लागलि छथि। आखिर नव गृहस्थी बसतैक। कतेक छोट–छिन वस्तुक खगता होइत छैथ।
ताबत ध्यानमे अयलनि जे थोड़ेक कोबीक सुखौत आ चिक्कस सेहो बान्हि देबाक थिक। नहि तऽ जाइते बजारक मुम्ह देखय पड़तैक। ई सभ करैत–करैत आँखि नोरा गेलनि। मीरा–फूल सन कोमल आ सादा कागत सन स्वच्छ। आँखिक आगाँ चमकि गेलनि विवाहक ओ दिन।
परिछन करैत काल दाइ–माइ सबकेँ मीराक भाग्यपर ईर्ष्या भेल रहनि। केओ टिपैत कहने छलीह–गे दाइ ई तँ सत्ते मीरा आ क्रष्णक जोड़ी हेतै।
वर जहिना कुर्ता आ गंजी खोललनि कि सभक नजरि हुनक उन्नत आ पुष्ट छाती पर रूकि गेलनि। मीराक माए जल्दीसँ जमाएकेँ डोपटा ओढ़ाए, काजर लगाए, देलथिन्ह आ गोसाऊनि घर लऽ कऽ चलि गेलीह। आङ्गन घर शुभे हे शुभेसँ मुखीत भऽ गेल रहए।
सिनुरदान नीक जकाँ सम्पन्न भऽ गेलैक। मीरा माए निश्चित नहि रहि सकलीह। चारि दिनुक बादे ओझाक नाकर–नुकुर कानमे पड़ए लगलनि।
ओझा माने सुनील बाबू–खबासक संग स्नान करए जएबाकाल आङनेमे ठाढ़ि सासुकेँ सुनबैत कहलनि–हमरा तऽ सूनल छल जँ मीरा मैट्रिकक परीक्षार्थी छथि। मुदा, हिनका तँ मिडिल मात्रक योग्यता छनि। हम शहरमे रहनिहार लोक छी। पढ़ल–लिखल लोक सभक संग उठब बैसब अछि। ओहिमे मीरा कोना एडजस्ट करतीह?
मीरा माए कमलपुर वाली अति विनम्र शब्देँ ओझाकेँ बुझबैत कहने छलीह, मीरा एखन मात्र चौदह वर्षक अछि। ओकरा जेना जे पढ़बए चाहथिन से पढ़ि लेतनि। हम एकसरि अपना भरि मीराकेँ सुयोग्य स्त्री बनबाक शिक्षा देने छिऐक। आब आगाँ हिनकर थिकन्हि। जेहन बनाबथि। जेना राखथि।
सप्ताह दिन मात्र सासुरमे रहि ओझा विदा भऽ चल गेल छलाह। सासुक बहुत आग्रह पर फगुआमे अएबाक भरोस देलथिन।
मुदा, तीन फगुआ बीति गेल। ओझाक कोनो पता नहि। शिवरात्रिक मेलामे ओझाक कोनो गौआँ बौआ ककाकेँ कहने रहथि जे हुनकर जोगर कनिञा नहि भेलनि। तेँ आन–जान छोड़ने छथि।
ई बात बुझिते कमलपुर वाली कबुला–पातीक आभार लगा देलनि। बेटीक मुँह देखिते ह्रदय टुकड़ी–टुकड़ी होबए लगनि। मुदा साध्य की! तीन वर्ष तीन युग सन बीतल छल।
ओझाकेँ नहाएकेँ घर जाइत देखि कमलपुर वालीक ध्यान टूटलनि। मोटरी बान्हब छोड़ि दौड़लन्हि भानस घर। जैधीकेँ चूल्हि लग बैसा आयल रहथि। कटोरी सभमे तीमन तरकारी सजबए लगलीह। ओझाकेँ भोजन पठाकेँ फेर पेटी सरिआबए लागल रहथि। जेठकी दियादिनीकेँ सोर पाड़ि मीराकेँ नूआ बदलि केश खोपा कऽ देबए कहलनि।
सभ ओरिओन होइत बेर खसि पड़लैक। ओझाक सम्बाद आयल जे पटना पहुँचैत राति भऽ जाएत, ते जल्दी विदा होएब जरूरी। आङनमे आइ माइ जुमि गेल छलीह।
कमलपुर वाली मीराके भरि पाँज पकड़ि घर लऽ गेलीह। हृदयमे हाहाकार भऽ रहल छलनि। किछु फूटि कऽ बाहर होबए चाहैत छल, मुदा अपनाकेँ नियंत्रित कैने छलीह। इहो दिन भेल जे तीन बरखक बाद ओझा मीराकेँ लेबए अयलाह अछि। दुनू हाथेँ बेटीक गाल पकड़ि बुझबैत कहलनि, दाइ, आइसँ सभ किछु वैह छथुन। जेना रखथुन तहिना रहिहेँ। बिनु पुरूषक स्त्री पाथर होइए। बिसरि जइहेँ सभ किछु। बस कहियो काल पोस्टकार्डपर कुशल मंगल खसा दिहे। आर किछु नहि।
माए, काकी, काका सभकेँ गोर लागि विदा भऽ गेल छलीह मीरा।
बसमे चुपचाप बैसलि मीराक आँखिक आगाँ झुलैत रहलनि सभ दृश्य–पोखरि, इनार, कलम, सरिसोक साग आ संगी बहिनिया–जोड़ी, फूल, लौंग....। माएक बात मोन पड़ि गेलनि। इ सभ तऽ बिसरि जएबाक थिक। मन रखवा लेल छथि, बस इएह टा!
पटना पहुँचि अपन गृहस्थी बसएबामे मीरा लागि गेलीह। बहुत किछु तँ माए संग कऽ देने रहथिन। बाँकी आवश्यक वस्तु सुनील जुटाए देलथिन्ह। मीरा अपन गृहस्थीमे लीन भऽ गेलीह।
मास दिन तँ पाँखि लगा उड़ि गेल। मुदा एहि बात दिस मीराकेँ आइ ध्यान गेलनि। ऑफिस जएबाक तऽ एकटा कोनो निश्चित समय होइत छैक। सुनीलकेँ बाहर जएबाक तँ कोनो निश्चित समय नहि छन्हि। ओ ई बात आब सुनीलकेँ पूछबे करतीह।
एक दिन उदास स्वरमे सुनील कहने रहथिन्ह मीरा, हम बहुत दुविधामे जीबि रहल छी। अहाँसँ नुकाएब थीक नहि। वस्तुतः हमर नोकरी छोटि गेल अछि। इम्हर–ओम्हरसँ पैंच–उधार लऽ घरक खर्च चला रहल छी। आब दोस्तो–महीम संग छोड़ि देलथि अकि। एहन समौअमे अहीं हमर मददि कऽ सकैत छी।
मीरा हतप्रभ भऽ गेलीह। ओ कोना मददि कऽ सकैत छथि? ओ तँ अधिक पढ़लो–लिखल नहि छथि।
हुनक मनोभाव पढ़ि सुनील बुझओने रहथिन, ‘यैह कातहिमे सौंदर्य केन्द्र छैक। ओहिमे तीन मासक प्रशिक्षण लऽ लिअ आ फेर ओतहि काज करब शुरू कऽ दिअ। दू–तीन हजार मास कमायब साधारण बात अछि।
ओहिना ठाढ़ि रहली मीरा। हुनका बुझबामे किछु नहि अयलनि। सौंदर्य केन्द्र?, प्रशिक्षण? रूपैया? तीनू शब्द मनमे बेर–बेर–हौड़ए लगलनि। ओ तँ स्त्रीक काज घर सम्हार बुझैत छलीह। ई हुनकासँ की करबए चाहैत छथि?
सुनील मीराकेँ हाथ पकड़ि चौकीपर बैसा लेने रहथिन–मीरा, हम सभ बुझा देब। बस, जेना हम कहैत छी, से करैत चलू। अहाँ सुंदरि छी। कने स्मार्ट भऽ जाउ। फेर देखू मे, हमर सभक दरिद्रा कोना भागि जाएत।
ई सभ किछु सुनबामे मीराकेँ नीक नहि लागल रहनि मुदा माइक कहल जहिना रखथुन, तहिना रहिहै’ मन पड़ि गेलनि। ठीके तँ छैक, जहिना रखताह तहिना रहब।
ओहि दिन साँझमे सुनील नव ‘डिजाइन’क साड़ी, रेडिमेड ब्लाउज, हिल चप्पल एवं अन्य फैशनक वस्तु मीराक आगाँ पसारि देलनि।
-ई सभ पहिरिकेँ तँ अहाँ परी जकाँ लागब मीरा। मुदा, हमरा बिचारेँ अहाँक नाम बदलिकेँ जँ ‘रूबी’ रहितए तँ बेसी नीक होइत। मीरा! बहुत ‘ओल्ड’ फैशनक नाम थिक। आइसँ हम अहाँकेँ रूबी कहल करब।
सभ किछु स्वीकार करबाक अतिरिक्त ओ कए की सकैत छलीह? प्रातःकाल सुनीलक संग हुनका सौंदर्य–केन्द्र जयबाक छलनि। सुनीलक बिचार छनि जे प्रशिक्षणसँ पूर्व हुनकर अपन सौंदर्यमे निखार आबि जयबाक चाही। तखनहि ओ ठीक ढ़ँगसँ प्रशिक्षण लऽ सकैत छथि।
आज्ञाकारी नेना जेना अभिभावकक संग पाठशाला जाइत अछि, तहिना दोसर दिन सुनीलक पाछाँ–पाछाँ मीरा विदा भेलीह। सौंदर्य केन्द्रक व्यव्स्थापिका मिस डेजीसँ मीराक परिचय दैत सुनील कहने रहथिन, ई हमर पत्नी रूबी छथि। हिनका कने अहाँ स्मार्ट बना दियनु–जाहिसँ इहो अहाँक ‘एसिसटेंट’ बनि सकथि। बेस, तँ जावत हिनका निखारबामे समय लागत, ताबत हम एकटा मित्रसँ भेंट कऽ अबैत छी।
सुनील तँ चलि गेल छलाह मुदा मीरा बलिक छागर जकाँ भयभीत दृष्टिसँ मिस डेजी दिस तकिते रहलीह।
तकिते तँ रहि जइतथि मुदा मिस डेजी मीराकेँ केन्द्रक भीतर लऽ कऽ चल गेलीह। ओतए मोट–मोट स्त्रीकेँ कुर्सीपर ओंघरल आ मुँहपर लेप लगौने देखि मीराक मन भिनकि गेलनि। ओतुका बात व्यवस्था बड़ अजगुत बुझना जाइनि। ई कोन दुनियाँ थिक? एहि दुनियाँक खिस्सा तँ कतहु नहि सुनने छी। किछु काल मीराक सुधि–बुधि जेना हेरा गेलनि।
ध्यान तखन भंग भेलनि जखन मिस डेजीक कैंची हुनक केशपर चलब शुरू भेल। मीरा, ‘नहि नहि’ कहैत उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेलीह।
-देखू, अहाँक पति जे निर्देश देलनि अछि, सैह हम कऽ रहल छी। हमर समय बर्बाद नहि करू। भौं चढ़बैत मिस डेजी बजलीह। ठीके तँ ओ सुनीलक निर्देशक अनुसार सभ किछु करैत छथि। तखन विरोध कथीक? मीरा धब्ब दऽ कुर्सी पर बैसि गेलीह।
किछु कालक बाद हुनक केश आ भौंहुक आकार–प्रकार बदलि चुकल छल। कुर्सीक नीचाँ काटल केशकेँ देखि भीतरे–भीतर कुहरि गेलीह मीरा। केश बन्हैत काल माइक मुँहसँ झहरैत गीत मन पड़ि गेलनि केशक पोरे–पोरे तेल लगा केहन सीटिकेँ केश बन्हैत रहथिन। आब से सम्भव नहि भऽ सकत। नोरक प्रबल वेगकेँ बलात नियंत्रित कएने रहलीह।
केन्द्रक दाइ सुनील बाबूक अयबाक सूचना दऽ गेल रहनि। मीराक संग मिस डेजी सेहो बाहर अयलीह। मिस डेजी आ सुनीलमे किछु गप्प–सप्प भेलनि आ निश्चित भेल जे काल्हिसँ दस बजे ओ अपन पत्नीकेँ ओतए पहुँचाए देल करताह।
रिक्शापर सुनील मीराकेँ चुटकी लैत कहने रहथि–वाह, हमर रूबी! आइ तँ अहाँ कमाल लागि रहल छी। चलू एही बातपर एकटा सिनेमा देखल जाए। रिक्शा सिनेमा हॉल दिस बढ़ि गेल छल।
सिनेमा हॉलमे आँखिक आगाँ अबैत–जाइत चित्र मीराकेँ कनेको नीक नहि लागि रहल छलनि। चित्रमे एकटा खूब अधिक आधुनिकाकेँ देखबैत सुनील कहलनि–रूबी! छौ मासमे अहाँ एहने स्मार्ट भऽ काएब। तखन तँ अहाँकेँ गामक सखी बहिनया चिन्हबो नहि करतीह।-आ सुनील मीराक हाथ अपना हाथमे लेबए चाहलनि।
मीराकेँ किछु नीक नहि लागि रहल छलनि। ओ ओहिन चुपचाप निर्जीव सन बैसल रहलीह। हुनकर चुप्पीकेँ सुनील लक्ष्य कऽ रहल छलाह। घर अयलापर ओ विशेष तमसाए गेल रहथि–अहाँ अपन देहाती चालि–ढ़ालि छोड़ब कि नहि? पति जँ पत्नीसँ हँसी मजाक करए चाहैत अछि तँ ओकर काज थिक ओहिमे संग देब। अहाँ एना–पाथर सन किए बनल रहैत छी? गामसँ की अहाँकेँ हम पूजा करए अनलहुँ अछि? हम कर्ज लऽ कए अहाँपर खर्च कऽ रहल छी, एकर बदलामे अहाँसँ किछु चाहैत छी तँ से अहोकेँ नीक नहि लगैए। मीरा, समदाउन आ सोहरक आब समय नहि अछि! प्रैक्टिकल बनू प्रैक्टिकल। जतयसँ आयल छी से बिसरि जाउ। जतय आइ छी बस ओकरे टा ध्यानमे राखू। नहि तँ बाजू, काल्हिए माए लग पहुँचा आबी?
दुनू हाथेँ कान बन्द कऽ लेने छलीह मीरा। नहि, नहि ओ माए लग नहि जयतीह। तीन वर्ष धरि माइक अंतःपीड़ाकेँ ओ भोगने छलीह। फेरसँ हुनका वैह दुःख देबय नहि जयतीह। मीरा ओछाओनपर कछमछाइत रहलीह। सुनील नीन पड़ि गेल छलाह। काल्हिसँ ओ नव दुनियाँमे प्रवेश करए जा रहल छथि। नहिजे नीक लगैत ओहिमे मन लगेबाथ छनि। माइक कहब पुनः मन पड़ि गेलनि। जहिना रखथुन, तहिना....’।
भिनसरे मीरा सुनीलक उठबासँ पहिनहि घरक काज धन्धासँ निश्चिंत भऽ स्नान कऽ रहल छलीह। सुनील हुनक फुर्ती देखि अचंभित छलाह।
देखू, हम तैयार छी। अपने विलम्ब करब तँ हमर दोष नहि।-स्नान घरसँ बहराइत मीरा बजलीह। सुनील सेहो तैयार भऽ मीराकेँ प्रशिक्षण केन्द्र धरि दए अएलाह।
लऽ जयबाक ओ लऽ अनबाक ई क्रम सप्ताह भरि चललाक बाद मीरा सुनीलकेँ एहि भारसँ मुक्त कऽ देलनि। आब हुनकामे आत्मविश्वास आबि गेल छल। नियत समयपर जाएब आएब हुनक जीवनक अभिन्न अंग बनि गेल छल आ एकर संगहि दिन प्रतिदिन मिस डेजीक कुशलता अपन आङ्गुरमे समेटने जाथि।
तीन मास बितैत–बितैत श्रृंगार-कलामे मीरा निपुण भऽ गेलीह। कटिंग, फेशियल, ब्लीचिंग, वैक्सिंग, मैनीक्योर, पैडीक्योर आदि, सौंदर्यक सभ विद्यापर हुनका दक्षता भऽ गेल छलनि।
ओना तँ केन्द्रमे आर प्रशिक्षिता सभ रहथि मुदा मिस डेजीक बाद दोसर नाम रूबीक सएह छल। मिस डेजी सेहो अपन ग्राहकक सोझाँ रूबीक नाम गर्वसँ लैत छलीह। कोनो आकस्मिक काजक दिन केन्द्रक चाभी रूबीक ओतए दऽ अबैत रहथि। रूबीकेँ आमदनी सेहो नीक होबए लगलनि।
पहिल आमदनी लऽ जहिया सुनीलक हाथमे देलनि त ओ अनन्दसँ मीराकेँ कोरामे उठा लेने रहथि। ओना, मीराक भीतर किछु भिनकि गेलनि मुदा बाहर सँ प्रसन्न होयबाक नाटक कैने छलीन्ह–‘अच्छा कहू, आब हम अहाँ जोगर ‘स्मार्ट’ आ ‘प्रैक्टिकल’ छी कि नहि? आब तँ ने हमरा गाम दए आएब?
-सेन्ट परसेन्ट! रूबी आब अहाँ ‘फर्स्ट क्लास’ भऽ गेल छी। अहाँकेँ भला हम गाम छोड़ि आएब? कथमपि नहि। जनैत छी रूबी, अहाँक ई रूप गढ़बामे हमर मित्र प्रकाशक बड पैघ हाथ अछि। ओ अहाँक फोटो देखि हमरा बिचार देने छल, तोहर पत्नी तँ सुन्दरि छथुन्ह। हुनका पटना आनि ले आ प्रशिक्षित कऽ काजमे लगा दहुन। फेर तँ ओ ‘सोनाक अंडा’ देनिहारि मुर्गी भऽ जयथुन।
भभाकऽ हँसि देने छलाह सुनील। ‘सोना अंडा देनिहारि मुर्गी’? मीराक मनमे चोट लगलनि। मुदा, आब तँ ओ ओहि चोटक अभ्यस्त भऽ गेल छथि। जल्दीसँ कपड़ा बदलि जलखै बनबए चल गेलीह। मुदा, मुर्गी शब्द माथमे नचैत रहलनि। मीराक मूल्य बस यैह अछि। हृदय हाहाकार करए लगलनि। एहन समयमे माएक स्मृति मनकेँ शांति दैत छलनि। मुदा, एहि सभ पीड़ासँ माएकेँ अनचिन्हार रखने छलीह। ओ बरोबरि अपन माएकेँ अपन सुख आ खुशीक मिथ्या वर्णन पत्र द्वारा दैत रहैत छथि। मीराक माए ओ पत्र टोल–परोसमे लोकसँ पढ़ा कऽ कतेक आनन्दित होइत होयतीह से मीरा खूब जनैत छथि। बस, यैहटा खुशी तँ ओ अपन माएकेँ दऽ सकलीह अछि। मुदा, माए हुनका अनवा लेल ककरो किएक नहि पठबैत छथि? मीराक आँख भरि गेलनि। ओ जनैत छथि जे माइक आशंकाकेँ जे अनलासँ फेर कतहुँ ओझा छोड़ि ने देथि। माइक बिचारे बिना पुरूषक स्त्री देवाल बराबरि थिक। स्मृतिक झंझावातकेँ बसात रोकि मीरा सुनीलक आगाँ जलखै दऽ अयलीह।
आब मीराक बेसी समय केन्द्रमे बितैत अछि। ओहिसँ आमदनी सेहो बढ़ि गेलनि। तेँ सुनीलकेँ कोनो विरोध नहि।
हँ घरक टहल टिकोरा लेल एकटा बीरू नामक टेल्हकेँ राखि लेल गेल अछि। मीरा संध्यामे घर आबथि। सुनीलकेँ मित्र मण्डली संग ताश खेलाइत देखथि। बीरू चाह जलखैक ओरिआओनमे लागल। मीराकेँ मोन होइनि जे जखन ओ थाकि कऽ अबैत छथि तँ सुनील हुनका लग आबथि। हाल चाल पूछथि। मुदा सुनील तँ आबि गेलहुँ पूछिकेँ अपन खेलमे लागि जाइत छथि।
एम्हर मीराक मन किछु दिनसँ खराब लागि रहल छनि। एक दिन केन्द्रपर जोरसँ कै भऽ गेलनि। मिस डेजी बुझाकेँ कहने रहथिन, अहाँकेँ डॉक्टरसँ देखाए कए आरामक जरूरी अछि।
घर आबि सुनीलकेँ मीरा अपन स्थिति कहने रहथि। सुनील एहि बातसँ बहुत चिंतित आ व्यग्र भऽ गेलाह। रूबी, ई ठीक नहि भेल। एखन अहाँ कुशलताक चोटीपर छी। यैह समय तँ अछि कमएबाक। एहिमे बाल बच्चाक समस्या बड़ बाधक होएत। एहि लेल तँ एखन पूरा जीवने पड़ल अछि। हमर बात मानू। डॉक्टरक ओतए चलू। एकरा खतम कए आबी।
मीराकेँ सुनीलक मुँह दिसि ताकि नहि भेलनि। लगलनि जेना हजारक हजार संख्यामे पील्लू सुनीलक चेहरापर ससरि रहल अछि। घृणासँ मन भरि गेलनि। एहने पुरूष बिना स्त्री देवाल थिक?
-मीरा ओछाओनमे मुँह गाड़ने कनैत रहलीह। मनक विषाद दूर करवाक हुनका लग आर दोसर कोनो रास्ता नहि छलनि। जँ कनेक काल लेल हुनका उड़बाक शक्ति भेटि जाए तँ माएकेँ जा कहि अबितथि। एहुना तँ ओ देवाले बराबर छथि; जकरा मकान मालिक अपन मनोनुकुल रंगमे समय–समय पर रङैत रहैत अछि। मुदा, माइक भ्रम तोड़िकेँ ओ शांत तहि सकतीह?
सुनीलक इच्छा आगाँ झुकि गेल छलीह मीरा। सप्ताहक भीतरे डॉक्टरक ओतए सुनील हुनका लऽ गेल छलाह। आ, मीरा खाली मन आ खाली हाथेँ घर फिरल छलीह। मुदा ओकर बाद मीरा कखनो सहज नहि रहि पाबथि। घरक आगाँ दए कोरामे नेनाकेँ नेने जाइत कोनो स्त्रीकेँ देखि भीतरसँ जेना ओ कुहरए लागथि। दोकानपर धीया–पूता लेल टाङल छोट–छोट वस्त्र दिस टकटकी लागि जाइनि।
एक दिन केन्द्रसम फिरैत काल पता नहि कतेक काल एकटा दोकानक आगाँ ठाढ़ि रहि गेलीह। दोकानमे किनबा लए आएल स्त्री लोकनिक नेना आ किनल जाइत वस्तुकेँ अपलक देखैत रहलीह। संयोगे कात दऽ जाइत केन्द्रक सहायिका नीलू टोकि देने रहथिन। परिस्थितिक आभास होइतहि सङ्कित भऽ गेल छलीह। आ घर दिस झटकल डेगे विदा भऽ गेल रहथि।
घर पहुँचि देखलनि जे सुनील ज्वरमे पड़ल छथि। समीपेक डॉक्टरकेँ बजा अनने छलीह। दवाइ चलए लागल। सौंदर्य केन्द्रसँ थाकल आबि फेर सुनीलक सेवामे लागि जाथि। केन्द्रसँ फिरबाकाल सुनीलक हेतु फल, दूध, अंडा आ दवाइ लऽ आबथि।
सुनीलकेँ पूर्ण स्वस्थ्य होएबामे करीब मास दिन लागि गेल रहनि। डॉक्टर पूर्ण आरामक बिचार देने रहथिन। मीरा अपन कर्त्तव्यमे रत्ती भरि कमी नहि आबए देने छलीह। मुदा कखनो कऽ जीवन भार सदृश लगनि। पटरीपर निर्विकार भावेँ दौड़ैत निर्जीव ट्रेन सन अपन जीवन बुझाइनि। ओ आगाँ बढ़वा लेल विवश छथि।
ओहि दिन मीरा केन्द्र जयबाक लेल तैयार भऽ रहल छलीह। बीरूक शिकायत करैत सुनील कहने रहथि–बीरू दुपहरियामे सूति रहैत अछि। लाख बजौलासँ नहि उठैए। दुपहरियाक दवाइ आ जूस लेबामे देरी भऽ जाइए। नहि हो, तँ किछु दिनक छुट्टी लऽ लिअ। एखन हमरा विशेष सेवा चाही। से तँ अहीं कऽ सकैत छी।
मीराकेँ कंघीक दाँत जेना माथमे गड़ि गेलनि। भीतरसँ छतपटा उठलीह। एतेक दिनमे ओ बहुत सहनशीलता भऽ गेल रहथि। मुदा, आजुक बात कानमे पघिलल शीशा सन बुझयलनि। शरीरमे एक संचार जेना बहुत तीव्र भऽ गेल रहनि। कनपट्टीक नस तनि कऽ टूटबा लेल तैयार भऽ गेल छल। आइ कतबो चाहलनि मुदा चुप नहि रहि सकतीह!
____बस करू आब! सहन करबाक सेहो एकटा सीमा होइत छैक। चाही....चाही....अहाँकेँ बस चाहबेटा करी। कहियो किछु देबए तँ नहि जनलहुँ। हमर शरीर हमर कमाइ, हमर मातृत्व सभ तँ अहाँ लऽ चुकल छी। हमरा लग आब देबा लेल किछु अछि नहि। मन पाड़ू....। हम मीरा नहि....रूबी छी। सौंदर्य केन्द्रक शीर्षस्थ प्रशिक्षिका। अहाँक शब्दमे सोनाक अंडा देनिहारि मुर्गी। से तँ अहाँक हाथमे सोना दैते छी। मुदा, आब हमरो किछु चाही....। हमरो आब अपन किछु व्यक्तित्व अछि....। दस लोकक बीच उठब–बैठब अछि। कत्र्को ‘कस्टमर’ रूबीक प्रतीक्षा कऽ रहल होएतीह। हमरा जाएब जरूरी अछि। अहाँ लग सेवा लेल बीरू तँ अछिए। धैर्य राखू। अहींक निर्देशनमे हम प्रैक्टीकल बनब सिखलहुँ अछि....।
पर्स कान्ह पर लटकबैत, परदाकेँ तेज हाथेँ उठा मीरा बाहर निकलि गेल छलीह। सुनील बाबू परदाक डोलब बहुत काल धरि देखैत रहल छलाह।
२.

दुर्गानन्द मंडल
सहायक शिक्षक,
उ. वि. झिटकी-बनगावाँ, मधुबनी (बिहार)।

बकलेल (कथाक दोसर आ अन्तिम भाग)

सरोजनी फोन लइत- ‘‘परनाम करै छी। अहाँ नीके छी की नै? माँ बावूजी कोना छथि? अपना शरीरपर ध्यानन दैत छी की नै? मन लगैए की ने? मेला देखऽ कहिआ ऐवै? कमलनी आ अजय, विजय अहाँक विषयमे पुछैत रहैए। दीदी गै दीदी, जीजा जी कहिया ऐतौ?''
सरोज बावूक जवाव छल एको राति मन नहि लगैत अछि। संभवतः दूर्गापूजामे नहि आवि सकब। धिया-पूताकेँ मेला देखक लेल दस-दसटा टाका दऽ देवई। तामसे टीक ठाढ़ केने फोन काटि दैत छथि।
सरोज बावूक लेल असमंजसक स्थिकति रहनि, जे जकरा घरमे जोड़ा छागर बलि प्रदान हेतै, से एखन धरि एको बेर अएवाक लेल नहि कहलैन्हि । ऐहेन कोन सासुर, कोन सासु आ ससुर, केहेन सारि आ शरहोजि। तामसे मन अधोड़ आ टीक ठाढ़। की करी आ की नहि करी? ई द्वन्द्वाुत्म क स्थिाति बनल रहैन्हि । किछु नहि फुरैन्हि।। मुदा अष्टीमी अवैत-अवैत- ये दिल है कि मानता नहीं
ये वेकरारी क्यों हो रही है,
ये जानता नहीं....। अपना कऽ नहि रोकि सकलाह। आ चलि गेला अपन सासुर महरैल। भगवती दर्शन कऽ जहाँ की पानक दोकानपर जाए छथि, पान खेवाक लेल, आकि मेला देखक लेल आएल सारि-शरहोजिक नजरि हुनकापर पड़ैत अछि आ ओ सभ पकड़ि लैत अछि हिनकर गट्टा। जीजा जी, जीजा जी अहाँकेँ गामपर चलए पड़त। दीदीयो कहने छलि, सप्पहत दऽ कऽ। मुदा सासु ससुरक आग्रह नहि तेँ एखनो धरि हिनक टीक ठाढ़े।
अन्त़तः थाकि-हारि एक किलो मधुर लऽ सारि-शरहोजिक संग चललाह सरोज बावू सासुर। पहिल-पहिल बेर सासुर गेल छलाह तेँ स्वा गत बातमे कोनो कमी नहि रहल। चाह-पान बढ़ियासँ भेल। मुदा खेवा काल ओ पसारलैन्हिल बड़का नाटक, जे हम नहि खाएब। हम खाऽ आएल छी, भुख नहि अछि। सासु आग्रह केलथिन कोनो असर नहि, ससुर हाथ पकड़लथिन्हह, कोनो फरक नहि, बड़का सार सेहो खुशामद्‌ केलथिन्हक मुदा कोनो असर नहि। एकहि ठाम जे हम खा कऽ आएल छी, भूख नहि अछि। आ ओ भोजन नहिए केलैन्हिो।
ओम्हहर दुनू छागर जे बनल ओकर सुगन्धखसँ टोला-पड़ोसा गम-गम करैत। टोलाक निमंत्रित सज्जबन सभ आबि माउस-भात अर्थात छागर रुपी प्रसाद पावथि आ ओकर स्वाधदक सविस्तासर चर्चा करथि। ऐह छागर जे जुआएल छल, चर्वी केहेन तरहथ्थीर सन छलै आ प्रसाद बनल कतेक सुन्द्र अछि! वाह मन तँ भीतरसँ प्रसन्नल भऽ गेल, चर्चा करैत बाँका सीक्कीससँ खैरका करैत कुकुर कऽ पान खा ओ लोकनि तृप्ति क ढेकार लैत चल जाइ गेला।
एम्हनर सरोज बावूक पेटमे बिलाड़ि कुदऽ लागल। ओत भुखे लहालोट। राति खसल जाए, बहरवैआक बाद घरवैयो सभ खा कऽ सुतए गेलाह। मुदा किछु लिऔन वाली सभ एखनो जगले, ओ लोकनि पाँछा काल कऽ भोजन करथि, फैलसँ पलथा मारि माउस आ भात, खाथि आ ओहि छागरक माउसक चर्चा करथि। आग्रह अलग जे दीदी कलेजी दू पीस लिअ। हे यै फल्लाँ गाम वाली हे ई चुस्तास लिअ। हे यै दाय, हे, ई हड्‌डी वाला दूटा पीस लिअ। आग्रहपर आग्रह। आ ओ लोकनि बड़ी काल धरि गप्पई-सप्पि करति, भोजन करए गेली।
एम्हार सरोज बावू जठराग्निर आओर तेज भेल चल जा रहल छल। आव होएत छलैन्हिि जे क्योक आवि आग्रह करितथि तऽ भरि पेट माउस-भात खइतौं। मुदा से तऽ आव सभ क्योा सुतऽ चल गेल छल। धियो-पूता माउस-भात खा फोफ कटैत छल। आव तँ हिनका किदुन- ‘‘जे अपने करनी गै मुसहरनीक परि भऽ गेल छल। थाकि हारि किछु कालक वाद हरलैन्हिँ ने फूरलैन्हि सरोज विदाह भेलाह भनसा घर दिस। आ अपनहिसँ मॉस-भात भरि थारी निकालि आ चुपे-चाप भोकसए लगलाह। किनको एहि बातक पत्तो नहि। जागल जे सभ रहथि से सभ हिनका खोजए लागल जे पाहुन कतए, पाहून कतए। आ पाहून तऽ भनसा घरकेँ केवाड़ तर नुका कऽ गुप-गुप माउस-भात दऽ रहल छथिन्ह । तात गणेश जीक वाहन एहि कोठीसँ ओहि कोठी जा कि छरपल आ कि कोठीपर राखल खापड़ि पाहूनक कपारपर खसल। अवाज सुनतहि लोक सभ ओहि घर दिस दोगल। देखलक जे पाहून तऽ केवाड़क दोगमे नुका कऽ माउस-भात भोकसि रहल छथि। परल बड़का पिहकारी, शारि-शरहोजि मारलक ताली खुब जोरसँ शोर-गुल सुनि सुतलहो लोक सभ जागि गेल। ताली आ पिहकारी पड़ि रहल अछि। पाहून तऽ लाजे कठौत भऽ गेलाह।
रति जखन सुतए घर गेलाह तँ कनियाँक कटू व्यंकग वाणक वर्षा होमए लागल। पाहूनक तँ मने शांत। किछु नहि फूरैन। सोचलाह जे अन्हलरोखे गाम चल जाएव। विदाहो भैलाह, मुदा अन्हानर वेशी रहवाक कारणे कुकुर सभ झॉउ-झॉउ करए लागल। लोक सभ जागि गेल देखलक जे आँगा-आँगा पाहून आ पाछाँ-पाछाँ कुकुर हिनका खिहारने जाइत अछि। लोक सभ दोड़र महरैलिक हाटपर आवि हिनका पकड़लक। धुरि जएवाक आग्रह कयलक। मुदा हिनकर मन तँ तामसे अधोड़ छल। किनको वातक मोजर नहि, दऽ हाक दैत दैत धोती पकड़लक से हुनकर ढेका खुजि गेल, धरफरा खसलाह, मुदा ओ तइयो नहि रुकि लटपटाइत धोती खोलि फेकेत गारि दैत परात होइत-होइत अपन घर पहुुँचलाह।
कहू तँ ऐतेक पढ़ल-लिखल लोकक ई काज कोनो वकलेल जेकाँ काज केलैन्हिु। सरिपों जँ अधलाह नहि लागए तँ हुनका बकलेले न कहवैन्हिा।

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