ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १०६ म अंक १५ मइ २०१२ (वर्ष ५ मास ५३ अंक १०६)
ऐ अंकमे अछि:-
३.७.जगदानन्द झा 'मनु'
३.८.१. अमित मिश्र- गजल २.मुन्नाजी-रुबाइ
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान
अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ
धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन
कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला
लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र,
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ऐ बेर मूल
पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी
उपयुक्त अछि ?
Thank you for voting!
श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा”
(कविता-संग्रह) 13.02%
श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक
अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक) 10.79%
श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट”
(उपन्यास) 6.35%
श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति”
(कथा संग्रह) 5.08%
श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक) 6.03%
श्री सुभाष चन्द्र यादवक “बनैत
बिगड़ैत” (कथा-संग्रह) 5.08%
श्रीमती वीणा कर्ण- भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह) 5.71%
श्रीमती शेफालिका वर्माक “किस्त-किस्त
जीवन (आत्मकथा) 7.94%
श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ
आ बलचन्दा” (दूटा नाटक) 6.98%
श्री महाप्रकाश-संग समय के (कविता संग्रह) 5.71%
श्री तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह) 5.4%
श्री महेन्द्र मलंगियाक “छुतहा
घैल” (नाटक) 7.94%
श्रीमती नीता झाक “देश-काल”
(कथा-संग्रह) 6.35%
श्री सियाराम झा "सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि
(गजल संग्रह) 6.67%
Other:
0.95%
ऐ बेर बाल साहित्य पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
श्री जगदीश
प्रसाद मण्डल जीक “तरेगन”(बाल-प्रेरक
कथा संग्रह) 50%
श्री जीवकांत - खिखिरक बिअरि 25%
श्री मुरलीधर झाक “पिलपिलहा
गाछ 23.53%
Other:
1.47%
ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?
श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस”
(कविता संग्रह) 23.15%
श्री विनीत उत्पलक “हम
पुछैत छी” (कविता संग्रह) 7.41%
श्रीमती कामिनीक “समयसँ
सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह) 6.48%
श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती
वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह) 4.63%
श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल
संग्रह) 25%
श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा
नहि” (कविता संग्रह) 6.48%
श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै
(कविता संग्रह) 8.33%
श्री आदि यायावरक “भोथर
पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह) 4.63%
श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी”
(कविता संग्रह) 12.04%
Other:
1.85%
ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी,
दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?
Thank you for voting!
श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास
श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर) 35.23%
श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन"
(कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो) 13.64%
श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास
श्री दिव्येन्दु पालित) 11.36%
श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ"
(नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा) 14.77%
श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली
गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत) 11.36%
श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी
शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास) 12.5%
Other:
1.14%
फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य
अकादेमी,
दिल्ली
Thank you for voting!
श्री राजनन्दन लाल दास 52.94%
श्री डॉ. अमरेन्द्र 25%
श्री चन्द्रभानु सिंह 20.59%
Other:
1.47%
1.संपादकीय
१
जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा
बायोग्राफी...गजेन्द्र ठाकुर द्वारा ........शीघ्र
जगदीश प्रसाद मण्डल बी.ए.
पार्ट-1 केलनि आ करिते १९६७ ईस्वीक आम चुनाव आएल। जहिना काग्रेस पार्टी
जन-समूहसँ हटि किछु खास जातिक पार्टी बनि रहल छल तहिना आनो-आन पार्टीक स्थिति
छलैक। कम्युनिस्ट पार्टी िकछु क्षेत्रमे मजगूत छल मुदा झंझारपुर इलाकामे कमजोर
छलैक। मुदा तैयो जोर-सोरसँ पकड़ि रहल छल। काग्रेसक प्रति लोकक आक्रोश बढ़ि रहल
छल। सरकार विरोधी (काग्रेस सरकार) हवा बनि रहल छल। कारणो छलैक, स्वतंत्रता आन्दोलनमे
स्वतंत्र देशक जे आकांक्षा होइत ओ तँ छलैहे मुदा ओकर पूर्तिक कोनो उपाए नै भेल।
संगे-संग काग्रेस पाटी जनसमूहक संग छोड़ि परिवार विशेष वा जाति-विशेषमे समटा
चुकल छल। ग्रामीण समाजमे स्वतंत्रताक कोनो लाभ स्पष्ट रूपे सोझा नै आएल। किसान
प्रधान मिथिलांचलकेँ आजादी पूर्वेक स्थिति बनल रहल। ओना देशेमे पंजाबक किसानक
स्थिति सुधरि गेल। कारण ओइठामक सरकार कृषिकेँ प्रमुखतासँ पकड़ि पानि-बिजलीक
बेवस्था कऽ लेलक। पानि आ बिजली, कृषि लेल दुनू साधन
प्रमुख अछि। से बिहार (मिथिलांचल)मे नै भेल। शिक्षा-बेवस्थामे सेहो जेहेन
हेबाक चाही सेहो नै भेल। संग-संग आरो बहुत कारण भेल। जइसँ विद्यार्थीक बीच आक्रोश
सेहो बढ़ल। राजनीतिक चेतना बढ़ने जगौनिहारोक संख्या बढ़ल। मुदा अपनेमे
लड़ने-झगड़ने सभ विरोधी पार्टीक स्थिति सेहो खराबे। नव चेतनाक संग विरोधी
(काग्रेस विरोधी) सभ राजनीतिक पार्टी एक मंचपर आएल। अंग्रेजिये शासन जकाँ
काग्रेसो शासनक विरूद्ध लोक उठि कऽ ठाढ़ भेल। ओना देशेक मुदा बिहारक तँ कहले
जेतइ जे स्वतंत्रताक उपरान्त पहिल जन-जागरण छल।
सभ पार्टीकेँ एक मंचपर
एने कोनो निश्चित कार्यक्रम बनब असंभव छल कारण एते जल्दिबाजीमे भइये कि सकैए।
तखन तँ आम-चुनाव पीठपर अछि तँए सरकार बदलैक कार्यक्रम बनल।
किसान-बोनिहारक संग
बुद्धिजीवियो मैदानमे उतरलाह। कांग्रेस विरोधीक नीक हवा बनल। अपन मधुबनी जिलामे
अखन दूटा पार्लियामेंट क्षेत्र अछि, तइदिन दरभंगे जिला छल। दुनू क्षेत्रमे
काग्रेस हारल। हारबे नै कएल वोटोक प्रतिशत बहुत निच्चा उतरल। एकसूत्री
कार्यक्रम, कांग्रेस हटाउ, रहने काेनो
राज्यमे एक पार्टीक सरकार नै बनल। खिचड़िये सरकार बिहारो, बंगालो, उत्तरोप्रदेश आ आनो-आन राज्यमे बनल। समस्यासँ
ग्रसित राज्य सभ छलैहे, किमहरसँ समस्या पकड़ल जाए,
मुख्य समस्या छल। तइबीच चतरल-गछगर भूदानो आन्दोलन उधिआए लगल।
मुदा तैयो किछुु गोटे भूदानसँ राजनीतिक मंचपर एलाह।
भूदानकेँ आन्दोलनक रूपमे
ठाढ़ कएल गेल। ओना तेलांगनाक भूमि आन्दोलन चरमपर छल। जमीनक छअम भाग (छठा हिस्सा
दान दिअ) हिस्सा मंगैक अभियान शुरू भेल। लोक लाखक-लाख बीघा दान देलनि। सबहक
अनुमान भेलनि जे देशक छअम हिस्सा गरीबोक बीच आओत। कोनो गाम दू प्रतिशतसँ लऽ कऽ
पनरह बीस प्रतिशत तकक जमीन घर-घराड़ीमे लगै छै। तइठाम छअम हिस्सा सोलह प्रतिशतसँ
ऊपर, जमीनक
आमद-खर्च दुनू भऽ गेल। भलहिं आइयो, २०१२ ई.मे ढेरो परिवार
एहन अछि जेकरा चारि डिसमिल जमीन नै छैक जे घरो बना सकत।
जहिना हवामे उधिआइत
भूदान आन्दोलन आएल आ गेल तेकर ओत्ते प्रभाव नै पड़ल जत्ते गामक एकटा गृह-उद्योग
समाप्त भेने भऽ गेल। खादी-भंडारक माध्यमसँ कारोबार चलैत छल, तइमे तेना कऽ
मुसहनि लागल जे अन्न-माटि दुनू एकबट्ट भऽ गेल। जेहने दाना अन्न तेहने मुसहनिक
माटि, केना बेराओल जाएत। ओना अखनो किछु गोटे भूदानी जमीन
पाबि खुशहालीक जिनगी बनौने छथि तहिना कपड़ोक (खादी) कारोबार चलैए, मुदा नगण्य रूपमे। जहिना लूटमे चरखा नफा कहल जाइ छैक तहिना चरखोक नफा
सठि रहल छल। मुदा अखनो बुनियादी समस्याक भीड़ कियो जाए नै चाहैत अछि। ओहन
समाजो नै बनि सकल अछि। ओना समाजो केना बनत, दुरूस्त केनिहारसँ
बेसी भङठेनिहारे अछि। बेरोजगारोक संख्या कम नै छैक मुदा ओहनो बेरोजगार तँ अछिये
जेकरा मोटर साइकिल, होटल, मोबाइल होइत
कपड़ा-लत्ता, भोजन-छाजन सहित बीस हजार रूपैआ महीनाक जिनगी
बनि गेल अछि।
तैंतीस सूत्री कार्यक्रम
लऽ कऽ मिलल-जुलल सरकार बनल। मैट्रिकक परीक्षामे अंग्रेजी भाषाकेँ कमजोर कएल गेल
संग-संग हाइ स्कूल तकक शिक्षा फ्री करैक अावाज उठल। १९५७ ई.क बाद अंग्रेजी शिक्षा
आगू बढ़ल। जइ अंग्रेजीक पढ़ाइ आठमा (हाइ स्कूल) सँ शुरू होइत छल ओ मिड्ल स्कूलमे
प्रवेश कऽ गेल। छठासँ पढ़ाइ शुरू भऽ गेल। घीच-तीड़ कऽ अठारह महीना सरकार चलल। फेर
मध्याबद्धि चुनाव भेल। मुदा पहिलुका खिचड़ी, जे सोलहन्नी घीसँ अलग छल, ऐबेर घी-खिचड़ी सरकार बनल। समस्या-समाधानक प्रति ओते नै भेलै मुदा
जन-जागरण जरूर भेलै। तइ बीच हरितक्रान्ति कृषिमे सेहो भेल। कतौ-कतौ तँ एहेन
भेल जे जइ खेतमे पाँच सेर कट्ठा होइत छल ओ क्वीन्टल कट्ठा उपजए लगल। मुदा अपना
ऐठामक जमीनक ईहो दुभाग्य रहल जे खेतबला नोकरी-चाकरी करए शहरसँ विदेश धरि पहुँचि
गेलाह, मुदा खेत तँ गामेमे रहि गेलनि। बटाइक एहेन बेवहार
जे बटेदारकेँ लाभ नै होइत। पाइ-कौड़ी कमेने संस्कारो तेज भेलनि। अभावमे लोक खेत
बेचैए आकि पाइयो-कौड़ी रहने लोक बेचत। पड़ले रहत। मुदा बेचि कऽ बाप-दादाक नाक
केना कटाएब!
तइ संग सरकारी कार्यालय
कागजी झंझटिक अड्डा बनल अछि। मिथिलांचलक एक-एक समस्या मिथिलावासीक छियनि।
अखनो बच्चा सबहक स्कूलमे ऐ ढंगसँ मारल-पीटल जाइ छै जे ओ स्कूल छोड़ि दैत अछि।
एक्कैसम शताब्दीमे जँ अठारहम सदीक बेवहार चलत तँ ओइसँ समुचित लाभक आशा नै कएल जा
सकैए।
जगदीश प्रसाद मण्डल १९६७
ई.क चुनावी दौड़मे जनवरी १९६७ ई.मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीक सदस्य बनला।
चुनावो पीठेपर रहै, मधेपुरोसँ काग्रेस पार्टी हारल।
गाम-समाजसँ लऽ कऽ देशक
राजनीति तकमे अराजक स्थिति बनए लगलै। १९५७ ई.क केरलक वामपंथी सरकार तोड़ैमे
सरकारक साख खसल। स्वतंत्रता सेनानियोक (आजादीक लड़ाइ लड़निहारोक)क संख्यामे
बहुत कमी नहिये भेल छल। किछु प्रखर नेता जरूर मरि गेल छलाह। राजनीतिक
क्षेत्रमे भाइ-भातिज आ जातिवाद, सम्प्रदायवाद, दल-बदल इत्यादि जोर
मारलक। नेतृत्वक साख सेहो घटल। जातिवाद रूपमे जतऽ जनताक साख नेतृत्वक नजरिमे
गिरल ततऽ कोनो पार्टीक विधायक सांसद कोनो कुरता-धोती पहीरि-पहीरि लोकक बीच अबए
लगलाह। बड़का नेताक संग छोटकाक बलि चढ़ए लगल किएक तँ जाति, कुटुम्ब, गौआँ, पड़ोसी, लेन-देन ओकर आधार बनल। बिहारोक राजनीति जटा-जटीनक नाच जकाँ झिलहोरि
खेलए लागल। प्रशासनो लाभ उठौलक। वोटक पार्टीकेँ बिनु वोटक पार्टी दबा-दबा शासन
पकड़ए लागल। एक तँ ग्राम-पंचायत सिनेमा पोस्टर जकाँ नाम गाम छल, जेकरा मजगूत करब सभसँ अहं मुदा देशक छल जेकरा आरो कमजोर बना सरकारी तंत्रक
हाथमे समेटि कऽ राखि देल गेल छल। कोट-कचहरीक चलती आबि गेल। केन नै अबैत एक दिस
हारल मुखिया मुखिया, हारल आरो-आरो सत्तासीन हुअए लगल आ
जनताक प्रतिनिधि सड़कपर रहि गेल। जमीनदार-सामंत घसाइत-घसाइत घसा गेल, गाम-गामक ओकर जमीन गौआँक अखड़ाहा बनि गेल। जेकर लाठी, तेकर भैंसक स्थिति बनि गेल।
विचारधारक बीच राजनीतिक
पार्टीक बीच सेहो उठा-पटक हुअए लागल। मोटा-मोटी सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक, राजनीतिक सभ मंचपर वैचारिक संघर्षक संग
सामाजिक-आर्थिक सेहो हुअए लागल। जेकर परिणाम इन्दिरा जीक नेतृत्वकालमे स्पष्ट
भऽ गेल। आजादीक बाद कांग्रेसक बीच पहिल वैचारिक लड़ाइ छल।
गाम-गाममे सेहो पुरोहितवादकेँ
धक्का लागल। जतिया आगू पतिया नै लगै छै, िनर्णायक भेल। मुदा जइ रूपमे आर्थिक शोषण
होइत छल तइमे कमी नै भेल। जातिमे किछु बदलाव आएल मुदा बेवहारिक पक्ष ठामक ठामहि
रहि गेल। कतबो ठामक-ठामे रहल तैयो बेवस्थाक विरोधमे किछु ने किछु लाभ भेबे
कएल। कारणो भेल, हो-हामे काज तँ शुरू भेल मुदा पोथी-पत्राक
भाषा तँ संस्कृते रहए। पढ़निहारोक संख्या कम आ बुझिनिहारक तँ सहजहि नै। मुदा
तैयो किछु ने किछु चक-चूक चलिते रहल। कतौ ओम लऽ कऽ मारि-पीटि तँ कतौ किछु।
जहिना पोथी-पतराक दशा भेल तहिना राजनीतिक मंचपर गाँधीवादक दशा भेलनि। एक्के
बात एक्के पाँतिक व्याख्या जते-मुँह तते रंगक हुअए लगल। जरूरत अछि, जरूरत अछि जे ऐ समस्याक समाधान मजगूतीसँ कएल जाए। नै तँ मूड़न आ सराधक
भोजमे कोनो भेद नै रहत।
शिक्षा-संस्थान आरो
एकटा अड्डा बनि गेल। कोनो तरहक प्रतिबंध नै। वएह कओलेजमे गाँधीवादी सिद्धान्तो
पढ़ौता आ फील्डमे आबि खिल्लियो उड़ौताह। आ विधानसभा संसदमे बिकेबो करताह।
एहेन खेल धड़ल्लेसँ भेल। मुदा एकटा जरूर भेल जे जहिना १९४२ई.क अंगेज विरोधी हवा
पैदा केलक।
तहिना १९६७ ई.क हवा सेहो
केलक। एक दिस रौदीक मारल किसान, सामंत-पूँजीपतिक बीच विवाद, जाति-जातिक आ वर्ग-जातिक बीचक दूरी जोतल खेत जकाँ चौकिया कऽ एकबट्ट भऽ
गेल। मुदा सोलहन्नी नै भेल। ओना कोसीक पुल (नेपाल फाटक सहित) बनल, कोसी नहरिमे हाथ लागल मुदा की लाभ भेल, देखिते छिऐ।
जइ तरहक हलचल कओलेज आ
हायर शिक्षण संस्थानमे भेल तइ तरहक हलचल हाइ स्कूलमे नै भेल। मिड्ल स्कूलक तँ
चर्चे नै। जे युनिवर्सिटीक सर्वोच्च पद (भी.सी) विद्वत मंडलीक बीच छल ओ
प्रशासनिक अफसरक हाथ जाए लगल। केना ने जाइत, विद्वता आ प्रशासनमे तँ किछु बेवहारिक अंतर
अछिये। कोनो कारगर निअमो नै लगौल जा सकैए। किछु सरकारी कओलेज तँ किछु गैर
सरकारी। किछु बनिते तँ किछु बनैक विचारे करैत। एहना स्थितिमे निअममे
मजगूती केना आओत। उपरका धार निच्चा दिस बहल। विद्यार्थियो जे साल भरि नेतागिरी
केलनि ओ परीक्षा केना पास करताह। तहू ले तँ कानूनेक जरूरति। हूड़ उठल आ
एक्के-दुइये किछु कओलेज छोड़ि परीक्षामे चाेरी शुरू भेल। काॅपी जँचनिहारोकेँ
अगहन हाथ लगलनि। कतेक कंठी शिक्षकक बीच टुटल। पाइ हाथ लगने शहर दिस सेहो
बढ़लाह। मुदा किछु होउ, किछु कमजोर लोकक विद्यार्थीकेँ
जरूर लाभ भेलनि। ओना जते हेबाक चाही से नै भेलनि। रंग-बिरंगक प्राइवेट कओलेज
कागजेपर उठि कऽ ठाढ़ भेल। कागजेपर पढ़ाइ कागजेपर परीक्षा आ कागजेक डिग्री बिकाए
लागल। जइसँ बुनियादी समस्या छुटि गेल। ने मेडिकल कओलेज बढ़ल आ ने इंजीनियरिंग, ने इंजीनियर ने कारखाना। ने टेकनीकल कओलेज बढ़ल आ ने कुशल कारीगरक िनर्माण
भेल। ने एग्रीकल्चर कओलेज बढ़ल आ ने कुशल किसान बढ़ल। उत्तर-दछिन बिहारक
संबंधसँ ऐठामक (मिथिलांचल) पढ़ल-लिखलकेँ दछिन बिहारमे नोकरी भेटलनि। बहुत
गोटे घरो-अंगना बना लेलनि, मुदा दुनू राज्यकेँ विभाजित
भेने भाषाक सीमाबंदी भेल। ओना जेहन एकरंगाह भाषा मिथिलांचलक अछि ओहन दछिन बिहारक
नै अछि। कारणो अछि जे जखन कल-कारखाना अछिये नै तखन कोन नोकरी पाबए आन राजक लोक
औताह। तँए भाषामे कोनो धक्का नै लागल अछि।
हिन्दी आनर्सक संग
बी.ए. पास केलन्हि जगदीश प्रसाद मण्डल, १९६९-७१ ई.क बैचमे सी.एम. कओलेजमे नाओं लिखेलन्हि।
पढ़ाइक स्तर सेहो कमि चुकल छल। प्रोफेसर आ विद्यार्थीक बीचक संबंधमे जबरदस्त
धक्का लागल। जइसँ शिक्षकक प्रतिष्ठामे कमी आबि रहल छल। नीक शिक्षक अपन मुँह
बन्न कऽ अपन प्रतिष्ठा बचबैमे लगि गेलाह। आक्रोश शिक्षकोक बीच बढ़बे कएल।
पाइ-कौड़ीक लेन-देन आ पैरबी-पैगाम खूब बढ़ल। जाति आधारित छात्र-शिक्षकक बीच
संबंध बढ़ल तँ दोसर दिस (आन-जातिक) संबंधमे कमियो भेल। ओना तँ सभ क्लासक मुदा
एम.ए.क परीक्षा तीन साल पछुआएल रहए। क्लास सम्पन्न केलाक बाद गाम आबि परीक्षाक
प्रतीक्षा करए लगला। तइ बीच गाममे (बेरमा) दुर्गापूजाक विचार उठल। जतऽ-ततऽ चर्चा
हुअए लागल। अधिकांश लोक पूजाक पक्षमे रहथि। मुदा दुर्गापूजा तँ आन पूजा नै जे
कमो जगहमे कएल जा सकैए। ऐ लेल अधिक जगहक जरूरति होइत अछि। कारण जे एक तँ दस दिनक
पूजा, तइपर दोकान-दौरी, मेला, नाच-तमाशा सेहो होइए।
गौआँक सहमति बनले रहै, स्कूलक
प्रांगनमे बैसार भेलै, ओना तइसँ पहिनौं गौआक बैसार कते बरे
भेल मुदा जते लोक ऐ बैसारमे उपस्थित भेल ओते कहियो नै भेल छल। तहिना बैसारमे
बजनिहारोक संख्या बढ़ल। नव पीढ़ी कान्ह उठौलनि।
बैसारमे पूजा स्थलक
चुनाव हुअए लगल। दू-तीनटा जगह ओहन भेटल जइमे दुर्गापूजा सम्हरि सकैए। मुदा खाली
जगहेटा सँ नै हुअए, दिन-रातिक मेला, तँए सुरक्षो अनिवार्य अछि। तँए
सुरक्षित जगहक महत बढ़ल। स्कूलेक प्रांगनक सहमति बनल। दोसर प्रश्न उठल बलि
प्रदानक। परोपट्टाक दुर्गापूजा दुनू ढंगक चलैत। किछु ठाम बलि प्रदानो होइत आ किछु
ठाम नहियो होइत। मुदा गप आेझरा गेल। एक मतक गाममे दुनू मत पनपल। जहिना बैसार एक
मतसँ शुरू भेल तहिना दू मतमे विभाजित भऽ गेल। बलि प्रदानक पक्षसँ अधिक विपक्षक।
दोसर दिस पूजा करीब आबि गेल रहैक। जँ हूसि जाइत तँ साले हूसि जाएत। ईहो बात
सबहक मनमे रहनि। घमर्थन होइत-होइत बलि प्रदान रूकल। मुदा विवाद बढ़िये गेल। विवाद
बढ़ैक कारण भेल जे पंचायतक जे मुखिया रहथि, हुनकर प्रभाव
अधिक रहनि। मुदा समाजोमे नव चेतना जागि चुकल छल। शुरूमे (१९५२ ई.) जखन पंचायत
बनल तखन जे मुखिया बनलाह ओ १९६२ ई.क चुनावमे हारि चुकल छलाह। ओहो मतभेद रहबे
करनि।
पूजा दस-बारह दिन पहिने
एकटा जबर्दस घटना घटल। ओ घटना ई जे मौजुदा मुखिया किछु गनन-चुनल लोकक विचारसँ
दोसर स्थानपर माने स्कूलक प्रांगनसँ अलग स्थानपर पूजाक न्यों लऽ लेलनि। समाजक
बीच आक्रोश बढ़ल। मुदा आगू बढ़ैक हिम्मति नै। मनमे उत्साह जरूर मुदा डरो।
कारणो स्पष्ट छल जे इलाकाक मुड़हन लोकक समर्थन ओही स्थानकेँ भेट गेल। जगदीश
प्रसाद मण्डल जी सभ दोहरा कऽ बैसार केलन्हि। सोझा-सोझी तँ कियो विरोध नै
केलखिन्ह मुदा खुलि कऽ अबैयोले कियो तैयार नै। जबर्दस समस्या उठि कऽ ठाढ़ भऽ
गेल। ई बात सभ बुझैत जे जहिना खटपट भेलोपर जहिना बिआहक बाद समझौता भइये जाइत
अछि तहिना ऐबेरक हूसलापर पूजोमे हेबे करत। तँए मौका हाथसँ निकलने पूजे निकलि
जाएत। बैसारमे तँइ भेल जे दोसरो पूजा हुअए। सएह भेल। संग-संग ईहो तँइ भेल जे सभ
समाजसँ बाहर चंदा करए नै जाएल जाए, भलहिं जतबे चंदा हएत ततबे
लऽ कऽ पूजा कएल जाए। नै पान तँ पानक डंटियेसँ काज चलाएल जाए। मुदा दोसर दिस (जइ
दिस मुखिया रहथि) चंदाक भरमार भेल। सरकारीसँ लऽ कऽ आनो-आन पंचायतक चंदा भेल।
संग-संग ईहो भेल जे गाममे बन्हुआ चंदा सेहो भेल। बन्हुआ चंदा ई जे चंदा देनिहारक
विचारसँ होइत अछि नै कि जबर्दस्ती। मुदा सेहो भेल। चंदाक नाओंपर जुरिमानाक
रूप पकड़लक। खुलि कऽ नै, चुपे-चाप। परिस्थितियो अनुकूले
पकड़ाएल। जे आदमी झगड़ा-झंझटिमे ओझरा गेल अछि ओ कतऽ जाएत। मुदा समाज (गाम)मे तँ
कोनो बात छपित नहिये रहै छै। तीन-पार्टीमे समाज बँटि गेल। दुनू दुर्गास्थानक
दू पार्टी आ दुदिसिया। दुदिसियाबला सभ बन्हुआ चंदामे फँसलाह।
पूजाक आरंभ भेल। दुनू स्थानक
बीच किछु खास-खास अंतर भेल। ओ ई भेल जे जगदीश प्रसाद मण्डल सभ गामक लोककेँ नव
दोकानदारक रूपमे ठाढ़ केलन्हि। कियो मिठाइ तँ कियो दोसर चीजक दोकान केलनि।
समाजक चंदासँ पूजा हएत समाजेक लोक दोकान करताह तँए मेलामे बट्टी (टेक्स)क
प्रावधान समाप्त कऽ देल गेल। किछु गोटे ताल ठोकि ठाढ़ भऽ गेलाह जे हमहूँ सभ ओहिना
पूजाक आयोजन करब जहिना ओ सभ करताह। भलहिं चंदा नै पूरत तँ व्यक्तिगत रूपमे
देब। एहेन करीब पान-सात गोटे भेलाह। तइ संग ईहो भेल जे सभ ओइ स्थान (दोसर स्थान)
पर नै जेता। फेर दुदिसिया सभ फँसलाह। फँसबे नै केलाह जिमहर जाथि तिमहर लोक
लू-लू, थू-थू करनि। एमहर आबथि तँ ओमहुरका आ ओमहर जाथि तँ एमहुरका मुँहेँ-काने
बोकिअबए लगलनि। पुरान पीढ़ीक विचारकेँ धक्का लागल। नव पीढ़ीक हाथमे समाज आएल।
तइ संग ईहो भेल जे बेरमाक बगलक गाम जगदरो आ कछुबियो बँटा गेल। जइसँ दुनू गामक
समर्थन दुनू स्थानकेँ भेटल।
मिलि-जुली सरकार बनने
हाइयो स्कूल प्रभावित भेल। किएक तँ किछु स्कूल सरकारक नियंत्रणमे आएल। मुदा
सभ नै आएल। जे आएल ओकर हालतो सुधरलै आ शिक्षककेँ वेतनो बढ़लनि। मुदा जे नै आएल ओ
ठामक ठामहि रहि गेल। जइसँ एक नव लड़ाइ शिक्षो विभागमे शुरू भेल।
सन् सैंतालीस...
भारतक स्वतंत्रताक त्रिवार्णिक झण्डा फहरा रहल छल।
मुदा कम्यूनिस्ट पार्टीक माननाइ छल जे भारत स्वतंत्र नै भेल अछि।
असली स्वतंत्रता भेटब बाँकी छै...
मिथिलाक एकटा गाम…
जन्म होइत अछि एकटा बच्चाक.. ओही बर्ख ...
ओइ स्वतंत्र वा स्वतंत्र नै भेल भारतमे...
पिताक मृत्यु...गरीबी..
केस मोकदमा...
वंचितक लेल संघर्षमे भेटलै स्वतंत्र भारतक वा स्वतंत्र नै भेल भारतक
जेल....
आइ बेरमामे पाँच-दस बीघासँ पैघ जोत ककरो नै..
ओइ गाम मे आइ जीवित अछि आइयो किसानी आत्मनिर्भर संस्कृति...
पुरोहितवादपर ब्राह्मणवादक एकछत्र राज्यक जतऽ भेल समाप्ति..
संघर्षक समाप्तिक बाद जिनकर लेखन मैथिली साहित्यमे आनि देलक
पुनर्जागरण...
जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी...गजेन्द्र ठाकुर द्वारा
........शीघ्र
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ अखन
धरि ११८ देशक १,५७० ठामसँ
७८,३४३ गोटे द्वारा ३९,०२१
विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,५३,८४९
बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स
डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
१.जगदीश प्रसाद मण्डल-गतांशसँ आगू-दीर्घकथा- फाँसी२.शिव कुमार झा ‘टिल्लू’-इन्द्रधनुषी अकासमे सामाजिक विमर्श
१
जगदीश प्रसाद मण्डल
गतांशसँ आगू
दीर्घकथा- फाँसी
सूर्योदय भऽ गेल। बलदेवक
पत्नी कामिनी आ बेटा सुशील गुमसुम भेल अपन-अपन काजमे लागल, मुदा मनमे विचित्र
स्थिति बनल रहैक। ने सुशील माएकेँ किछु कहैत आ ने माए बेटाकेँ। दुनूक मनकेँ
बलदेवक फाँसी भीतरे-भीतर खिंचैत रहए। जइसँ मनक पीड़ा बढ़ैत रहैक। मनक पीड़ा ताधरि
बढ़ैत जाधरि ओकरा निकालि दोसरकेँ नै कहल जाइत अछि। तखने अकासमे एकटा कौआ बाजल।
कौआक बोलमे कामिनीकेँ अपशगुन बूिझ पड़लनि, मुदा सुशीलकेँ
सगुन बूझि पड़ल। गुम्मी तोड़ैत कामिनी बाजलि-
“बौआ, कौआक बोल केहेन ओल सन भेल।”
ओना बलदेवक फाँसी दुनूकेँ
बुझल, मुदा तौयो मनकेँ फुसलबैत बहलबैत कामिनी बजलीह। माइक बेथाकेँ सुशील बूझि
गेल, मुदा जिनगीमे एहिना सोग-पीड़ा अबै-जाइ छैक। छोटसँ-छोट
पीड़ा होय आकि पैघसँ-पैघ होय मुदा समैक संग तँ लोक ससरिये जाइत अछि। जइसँ
धीरे-धीरे कमैत-कमैत मेटा जाइत अछि। जहिना चलैले रास्ता चाही, से तँ नीक कि बेजाए अछिये। समाज तँ ओहन समुद्र छी जइमे करोड़ो-अरबो
जीव-जन्तु स्वछंद भऽ जीवन-यापन करैत रहैए, भलहिं एक-दोसराक
बाटो घेरैत रहै छै, पकड़ि-पकड़ि खेबो करै छै मुदा, तैयो तँ रहबे करैए। नीक कि अधला, मनुख मनुखे बीच
रहैत अछि। माइक पीड़ाकेँ सुशील भाँपि गेल। मने-मन सोचलक जे एक तँ बेचारीकेँ जिनगी
भरिक संगी छूटि रहल छन्हि तइपर जँ हमहूँ ओहने बात कहबनि तँ आरो मनमे धक्का
लगतनि। चोटपर-चोट लगने आरो अधिक वेदनाक अनुभव होइ छै। मुदा जहिना कड़ू लगने लोक
पानि पीब कड़ू कम करैए तहिना जे दर्द मेटबैक उपाए करब तँ दर्द आगू नै बढ़ि या
तँ ठमकल रहतनि वा कमतनि। समगम होइत सुशील माएकेँ उत्तर देलक-
“माए, कौआ तँ केहेन सुन्नर बाजल। कबकबाएल कहाँ?”
सुशीलक बात सुनि कामिनी
बजलीह-
“आन दिन केहेन
सुन्नर भिनसुरका बोली निकालै छलै आइ केहेन सबसबाएल बोल निकाललक।”
माइक हृदैक वेदनाकेँ
सुशील भाँपि लेलक। ओना मनुष्यक हृदैक थाह नै छैक। एक दिस रूइयाक फाहा जकाँ बिनु
हवोक उड़ैए तँ दोसर दिस जुआन पति, कमाइबला जुआन बेटाक मृत्यु, सेहो तँ सहबे करैए। बाट टुटल वा कटल होउ आकि छोटसँ नमहर खाधि होउ, लोककेँ चलैले तँ बाट चाहबे करी। एकठाम बैसलासँ तँ जिनगी नहिये चलै छै।
कोनो ने कोनो उपाए तँ करै पड़ै छैक। कतौ लोक कूदि कऽ खाधि पार करैत अछि तँ कतौ
बगलक माटि काटि वा छीलि कऽ ओकरा पहेटि चलैत अछि। कतौ एहनो होइ छै जे नमहर
टुटान वा कटान रहै छै तँ ओकरा छोड़ि दोसर बाट बना लइए। माइक पीड़ाकेँ कमैत नै
देखि सुशीलक मनमे उठल। एक-एक ढेपासँ सेहो बाटक खाधि भरल जाइत अछि आ खाधिक हिसाबसँ
चेकान काटि सेहो भरल जा सकैत अछि।
सुशील बाजल-
“माए, हमरा तँ कौआक बोलमे सकुन बूझि पड़ल। जहिना ककरो कोनो वस्तु हरेलासँ दुख होइ
छै तहिना ने भेटिनिहारकेँ खुशियो होइ छै। बीचक वस्तु तँ एकेटा रहै छै। एक्के
बात वा वस्तु एकक लेल नीक अछि तँ दोसराक लेल अधलो भऽ जाइत अछि। जीवन रक्षक पतियो
होइत अछि आ बेटो होइत अछि। मुदा एक काज रहितो दुनूक करैक विधिमे किछु-ने-किछु
अन्तर तँ भइये जाइत अछि। वएह अन्तर तँ एक-दोसराक बीच अन्तरो पैदा करैत अछि।”
सुशीलक विचार कामिनीक
विचारक सोझा-सोझी ठाढ़ भऽ गेल। कामिनीक विचार ठमकलनि। एकाएक ठाढ़ भेने जहिना
शरीरमे झोंक अबैत छैक तहिना कामिनीकेँ एलनि। मनमे झों लगिते डोललनि। डोलिते
नजरि एक दिस पतिपर तँ दोसर दिस पुत्रपर विभाजित हुअए लगलनि। जइ छत्रछायामे
अखन धरि रहलौं ओ तँ टूटि रहल अछि। मन निराश हुअए लगलनि, मुदा लगले आगूमे
पुत्र देखि आशा जगलनि। पुत्रो तँ पतिये जकाँ प्रहरी होइत अछि। निराशक मचकीमे
आशाक आश लगलनि। हृदय सिहरलनि। सिहरिते पुत्रक प्रति प्रेम जगलनि। ओ प्रेम
नै जे प्रेम माइक आशामे पुत्रकेँ होइत। बल्कि ओ प्रेम जइ आशामे पुत्रक आश्रयमे
माए जीबैत छथि। जहिना जलसँ जलकण आ ओससँ ओसकण बनि पुन: जल वा ओसक सृजन करैत अछ,
तहिना। निराश मनमे खुशीक संचार भेलनि। संचार होइते खिलैत कली
जकाँ मन खिललनि। जहिना खापड़िमे मकै वा धानक लाबा एक्के-दुइये फुटि-फुटि रंग
बदलैत तहिना मनक रंग बदलए लगलनि। केना लोक कहैए जे कोनो बीआक लेल अनुकूले
वातावरण भेटलापर अंकुर होइ छै। अंकुरक लेल तँ वएह वातावरण अनुकूल भऽ जाइत अछि जइ
मूलक ओ बीआ आ बीआक गाछ होइत अछि। जँ से नै तँ एक दिस अगम पानिबला समुद्रमे बीआ
अकुरि पनिगाछक जन्म दैत अछि तँ दोसर माटि-पानि बीच सेहो दैत अछि। ततबे किअए? दोखरा बालुओ आ चखान भेल पाथरोमे तँ कोनो-ने-कोनो गाछक बीआ तँ अकुरिते अछि।
जखन दुनियाँक सभठाम शक्ति मौजूद अछि तखन मिथिलाक भूमि किअए शक्तिहीन भऽ
जाएत। जे बीत भरिक पेटक रच्छा नै कऽ सकैत अछि। जे धरती भिखारीकेँ भिक्क्षु
बना सकैए, भोगीकेँ जोगी बना सकैए, ओ
जोगीकेँ किअए ने भोगी आ भिक्क्षुकेँ भिखारी बना सकैए। एक नव शक्तिक उदय कामिनीक
मनमे जमि चुकल छलनि। साैंसे धानक लाबा जकाँ मन दू फाँक भऽ गेल छलनि। जहिना
खापड़िमे एक-फाँक, दू-फाँक, तीन-फाँक
होइत लाबा खापड़िसँ उड़ए चाहैत अछि, उड़बो करैत अछि तहिना
कामिनीक विचार उड़लनि। मुदा मुँहक बोल सुखा गेलनि। कंठक तरास बढ़ए लगलनि।
मुदा पति-पुत्रक बीच चलैत धारमे अपनाकेँ पाबि कामिनीक हृदय छटपटेलनि। सुशीलक
आँखिमे आँखि गाड़ैत बजलीह-
“बाउ सुशील,
अहाँक पिता आ अपन पतिक तँ अंतिम दिनक क्षण क्षणकि रहल अछि।
चलि कऽ आइ दुनू माए-बेटा भेँट कऽ लिअनु?”
माइक बात सुनि सुशीलक मन
ठमकल। ककरो मनमे फुलक वर्षा होइत अछि तँ ककरो पानि-पाथर बनल ओला-पाथर बरसैए।
मुदा जहिना मरबो दुनू करैए तँ जीबो तँ करिते अछि। भेँट करए चाइले माए कहै छथि
मुदा कि ई उचित हएत? हम सभ जेबे करब तइसँ कि हुनका भेटतनि?
आ हमरे सभकेँ भेटत? अस्ताचल गामी सूर्यक लाभ तँ ओकरे भेटैत
छै जे उदीयमान अछि। उदीयमान नै अछि ओकरा लेल तँ जेहने दिन तेहने राति, तखन अस्ताचलक महत्वे की? हुनका -पिता- किछु ने
भेटतनि, भेटतनि वएह जे अपना ले फाँसीपर चढ़ि रहला अछि आ
परिवारक लेल। जँ परिवारक लेल तँ कि अधले काजपर परिवार चलि सकैए आ नीक काजपर
नै चलि सकैए। जँ चलि सकैए तँ ओ खुद नीक बाट छोड़ि अधला बाटपर चलि अंतिम दर्शन
देखा रहला अछि। अंतिम दर्शन की? यएह ने जे धरतीपर कनैत
एलौं हँसैत जाएब आकि जहिना कनैत एलौं तहिना कनैत जाएब, तँ
कि एहेन जिनगीकेँ सुभर जिनगी मानबै? कथमपि नै? जखने घरसँ डेग उठाएब तखनेसँ लोक कहबो करत आ थूकबो करत जे खुनिया-अधरमीक
बहु-बेटाकेँ देखियौ? निरलज जकाँ केहेन धमौड़ दैत जा रहल
अछि। माइक प्रश्नक उत्तर दैत सुशील बाजल-
“माए, कोन मुँह देखए आ देखबए जाएब। सोझ पड़लापर पिता यएह ने कहता जे अहीं सभले
जा रहल छी? मुदा अपना सभ कि पुछबनि?”
सुशीलक विचार कामिनीक
मनमे अभिभावकक रूपमे जगलनि। जहिना सइयो हाथक लत्ती बिना सहाराक धरतीसँ नै उठि
सकैत अछि तहिना ने नारियो अछि। डाॅड़मे चोट मारि ने विधातो विधिक रचना
केलनि। बेटाक सहारा देखि कामिनीक मनमे अगिला जिनगीक आस जगले रहनि। विह्वल
भऽ बजलीह-
“बेटा, बेटा बनि जँ धरतीपर आबी तँ बेटा कहबैत चली। आब तँ तोंही ने सभ किछु
भेलह। वैधव्य भेने एक आकुश मात्र लगत। मुदा आरो जिनगी तँ संग मिलि चलबे करबह
कि ने, तोहर जे विचार हेतह यएह ने हमरो विचार हएत। कहुना
भेलह तँ तूँ पुरुष-पात भेलह? हम कतबो हएब तँ घरे भरि हएब।”
माइक बात सुनि सुशीलक मन
पसीज गेल। अपन दायित्वक भान भेलै। मुदा लगले मन मुरुछि गेलै। एक दिस धरती सदृश
निश्चल माए तँ दोसर दिस कुकर्मी अपराधी, धरतीक पापात्मा पिता देखए लगल। पिताक
प्रति मनक उष्मा तेज भऽ गेलै। बाजल-
“माए, परिवारक बड़का बोझ उतरैक दिन........।”
सुशीलक बोल बन्न भऽ गेलै।
विस्मित अवस्थामे सुशीलकेँ देखि कामिनी बाजलि-
“सोग नै करह। जइ दिनक
जे भवितव्य छलै ओ भेलै। जहिना जरल-मरल धरती आद्राक बुन्न पाबि िसर्फ जीविते
नै सृजक सेहो बनि जाइत अछि। तों तँ सहजे पुरुख छिअह। आन के केकरा कहत आ केकर के
सुनत। मुदा जहिना तोहर पिता तहिना तँ हमरो पति छथिये। तँए अन्तिम घड़ीमे
श्रद्धापूर्वक स्मरण कऽ विसरि जाह। चलह अंगनेक ओसारपर बैस चाहो बना पीब आ
गपो-सप करब। दुनियाँ किछु कहह, मुदा तोहर मुँह देखि एहेन
खुशी भऽ रहल अछि जे जिनगीमे कहियो नै भेल छल।”
माइक बात सुनि सुशीलक मन
ओहिना फड़फड़ा उठल जहिना आवेशी मुँहमे दुरभाखा नै छै मुदा बड़ असानो तँ नहिये
अछि।
बेटाक आस भरल बात सुनि
कामिनीक हृदए पसीज गेलनि। बजलीह-
“बौआ, आब तूँ बौआ नै बेटा भेलह। बापक काज कऽ देखि परेखि दुनियाँक संग चलैक
एक सिपाही भेलह। परिवार-समाज कर्मभूमि भेलह। ने अनका पढ़ने आनकेँ ज्ञान होइत आ
ने अनकर ज्ञान अनका ले सबतरि उचिते होएत। तँए अपन समए, परिस्थितिकेँ
अॅकैत परिवारकेँ आगू मुँहेँ ससारैक तँ भार माथपर आबिये गेल छह। केहेन मनुख बनि
धरतीक धारण केलौं, यएह ने जिनगीक परीछा छी।”
माए-बेटाक बीच जिनगी परिवारक
गप-सपक बीच कामिनीक मन कखनो पतिसँ हटियो जाइत मुदा लगले पुन: आबि मनकेँ पकड़ि
लैत। जखन मनसँ हटैत तखन अपनो हाथ-पएर निहारि-निहारि देखथि आ सुशीलोकेँ निहारि-निहारि
देखथि। मनमे उठलनि पाँखि तँ टिकुलियोकेँ होइ छै, अकासमे उड़बो
करैए मुदा तँए ओ चिड़ै तँ नै कहाइत। चिड़ै लेल तँ पाँखिमे दम चाही। से कहाँ टिकुलीमे
होइ छै। कनियो किछु होइ छै कि पाँखि टुटि जाइ छै। जइसँ अकास उड़बे बन्न भऽ जाइ
छै। तहिना तँ अखन अपनो परिवार भऽ गेल अछि। हम उमरदार छी तँ घरसँ बहार किछु
करबे ने केलौं आ सुशील तँ सहजे कोनो भार बुझबे ने केलक। नै बहराइक कारणो भेल जे
अपनाकेँ घरेक सीमामे रखलौं। जे उचितो भेल आ अनुचितो भेल। अर्द्धांगिनी होइक
नाते जिनगीक सभ वृत्तिसँ परिचित हेबाक चाहै छल से नै भेल। जँ से भेल रहैत तँ
जरूर नीक-अधला वृत्तिक विचार करितौं। मुदा, अपसोचो केने
तँ नहिये किछु हएत। बाजलि-
“बेटा, जँ ऐ धरतीपर बेटा बनि आबी तँ किछु कऽ देखाबी। जँ से नै तँ बेटाक महत्ते
की?”
माइक बात सुनि सुशीलक मन
नव कलशल टुस्सा जकाँ नव रूपमे पनगल। माइक आँखिमे आँखि गाड़ि बाजल-
“माए, दुनियाँमे सभ अपन-अपन भाग-तकदीर लऽ जिनगी बनबैत अछि। जेहेन जेकर जिनगी
जीबैक बाट रहै छै तेहेन से भार उठा चलैत अछि।”
सुशीलक बात सुनि कामिनी
विह्वल होइत बजलीह-
“बेटा, जहिना एक बेटा बनल-बनाएल परिवार-खनदानकेँ नाश कऽ दैत अछि तहिना एक
बेटा बनल-बनाएल परिवारकेँ उठा ठाढ़ो कऽ दैत अछि।”
जहिना कल्पवृक्षक निच्च
बैसिनिहार बौड़ाइत रहैए तहिना फाँसीपर चढ़ैत बलदेवक परिवारक मन बौड़ा रहल अछि।
असमसान जाइकाल मुर्दाक पाछू कठियारीबला ‘राम-नाम सत् है, सबको
यही गत है।’, कहैत चलैत मुदा घुमतियो काल जखन कि मुर्दा नै
रहैत, वएह कहैत जे ‘राम नाम सत् है,
सबको यही गत है।’ भलहिं मृत्युक आंगन आबि
लोह-पाथर, आगि छूबि बिसरि जाइत वा छोड़ि दैत। जइठाम बच्चासँ
सियान धरि मंत्र जपैत तइठाम एहेन जिनगीक दशा किएक? जहिना
रस्ता चलैत बताह कखनो रस्तासँ हटि तँ कखनो सटि ललकारो भरैत आ कखनो असथिर भऽ
बौको बनि जाइत तहिना माए-बेटाक अर्थात् सुशील-कामिनीक मन पिता-पतिक फाँसीक किछु
समए पूर्व पुरबा-पछबा जकाँ रस्सा-कस्सी करैत।
कामिनी- “बेटा, तीन गोरेक परिवारमे एकक अंत भऽ रहल अछि तैयो तँ दू गोरे बँचलौं। तोहर
बिआह होइते फेर तीन गोरे भइये जाएब।”
माइक बात सुनि सुशील
बाजल-
“एहिना परिवार
कम-बेसी होइत एलैए आ होइत चलतै। तइले कत्ते माथ धूनब। तखन तँ एकटा बात बुझए पड़त
जे आनकेँ केकर परिवारक भार उठबैए, अपन परिवारक भार तँ अपने
उठबए पड़त।”
कामिनी- “हँ, ई तँ बेस बजलह।”
सुशील- “दुखे कि सुखे परिवारक
बोझ तँ परिवारेक लोककेँ उठबए पड़तै।”
सुशीलक बात सुनि कामिनीक
मन सहमि गेलनि। बेटा सहजहि अनाड़िये अछि, अपने कहियो भारे ने बुझलौं।
तखन.....?
बकार बन्न भऽ गेलनि। जहिना
भुमकमक समए धरतीक सभ किछु डोलए लगैत तहिना कामिनीक भीतर-बाहर डोलए लगलनि।
धारक बहैत पानिमे जहिना
पएर असथिरो कऽ टपैमे थरथड़ाइत तहिना कामिनीकेँ हुअए लगलनि। सुशीलोक मन विचलित
होइत मुदा मनकेँ थीर करैत बाजल-
“माए, प्रश्न तँ छुटिये गेल अछि। उत्तर कहाँ देलँह।”
सुशीलक प्रश्न मन पाड़ि
कामिनी बजलीह-
“अर्द्धांगिनी बनि
जइ पुरुखक संग पकड़लौं हुनका चीन्हि नै सकलियनि। आइ बुझै दभ् जे पुरुखक भीतर
सेहो, पुरुख होइ छै आ नारीक भीतर सेहो नारी होइ छै। जँ से
बुझने रहितौं तँ एतेक दूरी नै बनि पबैत। ओना परिवारक भीतर अपन भार निमाहैमे
कहियो कोताही नै केलौं मुदा....। आब उपाऐ कि अछि?”
बजैत-बजैत कामिनी ठमकि
गेलीह। जहिना नदी-नालाक पानिक बेग आगूमे बान्ह पाबि रूकि जाइत तहिना कामिनीकेँ भेलनि।
सहत बेधल माछ जकाँ छटपटाए लगलीह। छटपटाइत मनमे आबए लगलनि,
एक दिस तत्ववेत्ता तात्विक चिन्तन-विवेचनमे लगल रहैत अछि तँ दोसर दिस व्यक्ति-व्यक्तिक
बीच सेहो होड़ लगल अछि। सभ सभसँ आगू बढ़ए चाहैत अछि। जइसँ संगे चलब छूटि जाइत
अछि। समाज विखंडित भऽ जाइत अछि। श्रमिक अश्रमिकक बीच दिशा-दिशान्तरक अंतर
बनि जाइत अछि।
दुनू माए-बेटा गुमसुम भेल
एक-दोसराक मुँह देखैत। गुम्मी तोड़ि सुशील बाजल-
“माए, तोहर की इच्छा छउ?”
बेटाक बात सुनि कामिनीक
मन शान्त भऽ गेलनि। पतिक फाँसी मनसँ हटि गेलनि। मन पाड़ि बाजए लगलीह-
“बेटा, बहुत दुनियाँ देखलौं। नाना-नानी, दादा-दादी,
बाप-माए, मामा-मामी, केत्ते
कहबह। पाछू उनटि तकै छी तँ सभ किछु देखै छी मुदा आगू तकै छी तँ तोरा छोड़ि किछु
ने देखै छी। जहिना नमहर गाछ खसि रस्ता रोकि दइए तहिना आगू बूझि पड़ैए।”
माइक बात सुनि सुशील
बाजल-
“माए, तोहर जे इच्छा छोउ, ओकरा जहाँधरि भऽ सकत पूरबैक
कोशिश करब। जे धरती छोड़ि चलि गेल, ओ तँ सहजे चलि गेल।
ओकरा संग किछु थोड़बे जेतइ। मुदा जे अछि ओकर तँ आशा अछिये।”
आशा भरल सुशीलक विचारमे
आस लगबैत माए बजलीह-
“दुनियाँक खेल छिऐ
जे एकपर सए ठाढ़ अछि आ कखनो सए सए दिसि छिड़िआएल रहैए। तँए सभ किछु बिसरि
जाह। बीतलाहा काल्हि मन राखह आ अगिला काल्हि लेल हाथ-पएर उठाबह।”
२
शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
इन्द्रधनुषी अकासमे
सामाजिक विमर्श
“इंद्रधनुषी अकास” आधुनिक मैथिलीक चर्चित गद्यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक पहिल पद्य
संग्रह अछि। जगदीशजी सन् 2008सँ पूर्व मैथिली साहित्यक लेल अनचिन्ह नाओं
छलाह, मुदा गत तीन-चारि बरखक भीतर हिनक विविध बिम्बक
उपन्यास, कथा, नाटक, एकांकी, बाल गद्य साहित्य आदिसँ मैथिली साहित्यकेँ
उतर आधुनिक युगमे प्रवेशक अवसरि भेट गेलनि।
मूलत: कथाकार आ उपन्यासकार
जगदीश प्रसाद मण्डल कोनो चन्दा झा सन प्राचीनता ओ नवीनताक सन्धिक कवि नै आ ने
हिनक रचनामे परम्परावादी प्रीतिक कतहु दर्शन होइछ। भुवनेश्वर सिंह भुवन जकाँ ने
जगदीश नवीन प्रगीत काव्यक व्याख्याता छथि आ ने आरसी प्रसाद सिंह जकाँ आशु कवि।
९५ कविताक संग्रह “इंद्रधनुषी अकास”मे जे ई वैशिष्ट्यता प्रमाणित कएलनि ओ अछि सम्पूर्ण समाजक लेल समन्वयवादी
दृष्टिकोणक दार्शनिक अवलोकन आ अर्थनीतिक सम्यक विश्लेषण। अनचोकेमे कविता
सबहक रूपेँ हिनक विराट सरल जीवन दर्शन प्रदर्शित होइत अछि।
“मणि” विषधर साँपकेँ सेहो मनोरम बना दैत जकर लोभमे सपेरा सबहक अंत भऽ जाइछ। ओ
मणि तँ वैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ काल्पनिक थिक, मुदा मणि
कवितामे कवि अपन मनक मनोभावकेँ मढ़ि-मढ़ि मणि’क रूप
रेखाक संदेश दैत छथि। भाववाचक संज्ञा थिक-मणि मुदा जाति आ व्यक्तिक रचनाक
लेल भावक आवश्यकता प्रासांगिक होइछ। जखन अर्न्तमनमे दिव्य ज्योति जागत तँ
तन अवश्य प्रज्जवलित हएत। लक्ष्मी तखने
औतीह जखन कर्मपथ उज्ज्वल हएत। कर्मपथकेँ प्रकाशित करबाक लेल स्वस्थ मोनक आवश्यक्ता
होइत छैक। पहिने ई अवधारना छल जे स्वस्थ शरीरमे स्वस्थ
मनक निवास होइत छैक, मुदा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टकोणे ई मिथ्या प्रमाणित भ्ाऽ
रहलैक। व्यस्त जीवन शैलीमे मोन अस्थिर भऽ गेल छैक। बिनु कर्मक अधिक प्राप्तिक
तृष्णासँ मनमे विचलन स्वाभाविक जइसँ मोन अस्वस्थ। जखन मोन अस्वस्थ तँ
शरीरक अस्वस्थ हएब कोनो अजगुत नै। ‘चिन्ह बिना औषधि
भारी’ वैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ अक्षरश: सत्य मानल जाए। सोडियम
कार्बोनेट धोविया सोडर थिक आ सोडियम बाइकार्वोनेट पेटक अम्लीयताकेँ दूर करैत
अछि। मात्र ‘वाइ’ शब्द हटलासँ जौं उलटा सेवन हएत तँ जीवन
वाइ-वाइ भऽ सकैत अछि।
मुदा सामाजिक जीवनमे
धोवियो सोडर अनिवार्य किएक तँ मात्र पेटक अम्लीयता दूर कएलासँ शरीरक मोइल नै
धोअल जा सकैछ। तँए जीवनमे सबहक लेल समायुसार स्थान देल जाए। ‘श्रेष्ठ जीवन
मानव कहबै छै मानवता उद्देश्य जकर’ ऐ पॉतिसँ रचनात्मक
समन्वयवादी न्याय दर्शन प्रदर्शित होइत छैक। समाजक आगाँ पॉतिक लोक जखन कात लागल
वर्गकेँ मर्मािहत करैत अछि, तखन कातक लोक सेहो उग्रता
प्रदर्शित करैत अछि। ऐ प्रकारक अदला-बदलाक भाव जगदीश जीक ऐ कवितामे नै भेटल। ई
तँ सकारात्मक सोचक आशावादी दार्शनिक जकाँ अपन कविताक इति श्री करैत छथि-
‘मनुखक भेद विभेद
मेटबैक छी धर्म ओकर’
संभवत: ब्रह्माक वरद पूत
सभकेँ आदर्शवादी बनबाक संदेश देलनि अछि। ओना अलंकार मिलएबाक क्रममे एकठाम चूकि
गेल छथि
जखने मन मणि बनत छिटकत ज्योति
धरतीपर
अपने बाट अपने देखब हँसैत
चलब पृथ्वीपर
ऐठाम पृथ्वी परक स्थानपर
‘परतीपर’
जौं लिखल रहितए तँ शब्द सामंजस्य भऽ सकैत छल। ओना कविक दृष्टिकोण
भऽ सकैत छैक जे किछु आर होन्हि।
गंभीर आशु काव्यक मान्यता
समाप्त होइत मैथिली साहित्यमे विचार मूलक पद्य बिरले भेटैत अछि। जीवन आ आध्यात्मक
संबंध चलन्त समाजक बीच देखैमे आबि रहल छैक। सभ दिश भागमभाग सोचबाक लेल फुरसत
नै। मैथिली साहित्यमे छायावादक काल िनर्धारण तँ नै कएल गेल अछि, मुदा अनचोकेमे किछु
साहित्यकार ऐ काव्य विधापर समए-समैपर रचना कऽ दैत छथि। ‘चल रे जीवन’ कविता आध्यात्मिक दर्शनसँ कर्मशील
जीवनक संधि करबामे पूर्णत: सफल मानल जा सकैछ। महाकवि आरसीक कहब छलन्हि जे सभ
लोकमे आशुत्व होइत छैक मुदा लेखनीसँ अभिव्यक्त करबाक लेल अर्न्तमन आ आत्माक
मिलन जिनकामे हएत वएह ‘आशु कवि’
मानल जएताह। जगदीश तँ आशुकवि नै छथि, मुदा ‘चल रे जीवन’ हिनक क्षणिक अर्न्तमन आ आत्मीय मिलनक
परिणामे आशु कविता अवश्य भऽ गेल। जीवनमे गति सर्वाधिक उपयोगी आ सम्प्रभु-सर्वशक्ति
मान तत्व थिक। जइ वसुन्धराक माथपर हमर अस्तित्व अछि ओ कखनो ने रुकैत छथि।
ग्रह-नक्षण सभ सदिखन गतिमान, अंतिम काल धरि जीवन गतिमान,
मुइलापर प्राण गतिमान होइत अदृश्य चक्रमे प्रवेश कऽ जाइत अछि।
“यात्रीकेँ आराम
कहाँ छै
यात्रा पथ विश्राम कहाँ
छै।”
जे अभागल छथि ओ सुतले
रहथि मुदा हुनको शरीरमे क्षिति, जल, पावक, समीर, रुधिरक संग सभ अंग मौलिक रुपसँ गतिमान रहैत
अछि। ‘सूर्य-तरेगन सेहो चलै छै’
वैज्ञानिक मान्यतासँ सर्वथा अनुचित मानल जाइत अछि। सूर्य नै तँ उगैत अछि आ ने
डुमैत अछि। तँए कविक एक पाॅतिकेँ मात्र उत्साह वर्धनक लेल कवित्वक किछु मंद
वात मानल जाए। वास्तविक रूपसँ ई असत्य मात्र कवितेमे क्षम्य जौं कथा रहितए
तँ अप्रासंगिक मानल जा सकैत छल।
जेना जगदीश कथामे शब्द
समंजन कऽ लैत छथि ओना कवितामे कतहु-कतहु ओझरा जाइत छथिन्ह।
“समए संग चल,
ऋूतु संग चल
गति संग चल मति संग चल।”
सभठाम ‘संग’ उदेश्य आ कथोपकथनक लेल सर्वथा उचित, मुदा स्वरात्मक
पद्यमे कथोपकथनक संग-संग अलंकार आ छंदक सम्मिलन सेहो आवश्यक होइत अछि। ई कविता
कोनो अतुकांत कविता नै तँए छंदमे आबद्घ करबाक लेल कविकेँ विशेष धियान देबाक
छलनि। जगदीशक शब्द-कोषमे मैथिलीक खॉटी शब्द सभ भरल छन्हि तँए हिनकासँ आर
आशा कएल जा सकैत अछि।
बाल मनोविज्ञानक दृष्टिसँ
ई पद्य उपयुक्त मानल जाए। जे बाल आ युवावस्थाक संधि भऽ सकैत अछि किएक तँ ऐ
अवधिमे जीवनक गति-चक्रकेँ बूझब विशेष अनिवार्य होइछ। ऐसँ भाषा-साहित्य विकास
सेहो होइत छैक। आरसी प्रसाद सिंह, सोहन लाल द्विवेदी,
सुमित्रा नंदन पंत आ हरिवंश राय बच्चन सन हिन्दी साहित्यक ‘आशुकवि’ लोकनिक ऐ
प्रकारक पद्य प्रारंभिक आ माध्यमिक शिक्षामे विशेष लोकप्रियता प्राप्त कएने
अछि।
“टुटए ने कहियो
सुर-तार
हुअए ने कहियो जिनगी
बेहाल।”
जखने जीवनमे गति मति आ
नियतिक त्रिवेणी अलग-अलग भऽ जाइत अछि तँ जीवन उदासीन आ परिणाम कष्टदायी, तँए कविक ऐ उक्तिकेँ
विचारक संग-संग शिक्षा मूलक सेहो मानल जाए। गति बिनु पहिने जिनगी अक्रिय
फेर अकर्मण्यता आ परिणाम जिनगी बेहाल, अंकगणितीय आधारपर
दृष्टिकोणकेँ प्रमाणित कएल गेल जे सर्वथा उपयुक्त लगैत अछि।
जीवन जीवाक कलासँ संबंध
काव्यमे प्राय: कवि लोकनि स्वयंकेँ नायक बना कऽ कविता लिखैत छथि। हिन्दी साहित्यमे जानकी वल्लभ शास्त्री आध्यात्म दर्शनक सम्मिलन-
“मेरे
पथ में न विराम रहा” सँ कएलनि तँ मैथिली साहित्यमे
कालीकान्त झा बूच- “मृगी जकाँ हम कॉपि रहल छी, झॉखुरसँ तन झॉपि रहल छी” रूपेँ समाजक रुग्न दशासँ
बचि कऽ जीबए चाहैत छथि। मुदा जगदीश ऐ समाजक मैलकेँ साफ करबाक लेल उद्विग्न छथि।
‘धोब घाट’ कविता कोनो मैल वस्त्रक
मूल नै, वरन समाजक कृत-कृत्यपर लागल कुचक्रकेँ साफ कऽ कऽ ऐ
सँ वचबाक प्रेरणा थिक-
“धोइब घाट ओ घाट छी,
पाप धुआ पुन बनैत रहैत
अज्ञान-ज्ञान राति दिन
रगड़ि सान चढ़बैत रहैत”
मैथिली साहित्यमे रीतिक
त्रिभाषीय नाटक, प्रीतिक महाकाव्य अर्थहीन वैरागी काव्य शास्त्र कखनो विनोदी, कखनो चलन्त कविता आ कखनो नाम-गाम आ ठामक पद्यसँ भरल पद्य संग्रहक
प्रधानता अछि किएक तँ भलमानुस जे लिखत वएह कोसक पाथर मानल जाएत। तँए अभावक ऐ
साहित्यमे नीतिशास्त्रसँ सन्निहित पद्याभावकेँ ‘धोब
घाट’ सन कविता पूरा करैत अछि-
उला-पका रातिकेँ
साले साल सूर्ज सुड़कैए
सुख आरामक पहर छीिन
हँसि-हँसि राति दिन
झाड़ैए।
कोनो आवश्यक नै जे जाज्वल्यमान
नक्षत्रक कर्मसँ निकसैत प्रभावक सभटा परिणाम उत्तमे हएत। सूर्य ज्योतिक प्रतीक
छथि,
मुदा कखनो तँ हिनको किरण जीव-अजीवकेँ उला-पका दैत अछि तत्पश्चात् अन्हार। हिनक
प्रतिभा आ कर्मपर कविकेँ कोनो संदेह नै तँए भलमानुसोक अधलाह कर्मक विरोध करबाक
चाही। ऐसँ समाजमे दृष्टिकोणक विजय प्रासंगिक हएत। वृक्ष मात्र गगनगामी.....
एकर एक दृष्टि एकटा उद्देश्य होइछ परंच शोर विचलनसँ भरल लक्षण रखैत अछि। एक
ध्वनि अकास आ दोसर पताल प्रकृतिक रंग बॉसक गिरह जकाँ प्रत्येक दृश्यपर
पटाक्षेप। नाटकक अंकमे एकसँ बेसी दृश्य होएबाक चाही, मुदा
प्रकृति अर्थात् विधाता अपन प्रत्येक अंककेँ अलग-अलग दृष्यसँ आबद्घ कऽ विविध
नाटकीय परिदृश्यक मंचन करैत अछि। ऐ पद्यक प्रत्येक छंदमे विशेष अर्थ झॉपल अछि
जे पाठकक मस्तिष्कपर ज्यामितिक दबाब अवश्य बनाएत-
जहिना डारि करोटन लीची
खोंधिते खोंइचा पकड़ैए
निच्चाँ-ऊपर ससरि-ससरि
अपन-अपन बाट पबैए
भारतीय संस्कृतिक संग ई
दुर्भाग्य रहल जे परम्परावादी दृष्टिकोणक किछु अवांक्षित तत्वसँ लोक परेशान
तँ छथि मुदा कियो ओकरा समाप्त होमए देबए नै चाहैत छथि। ‘काटर प्रथा’
ऐ रूपेमे सभसँ िनर्घिष्ठ मानल जाए। ‘सासु-पुतोहु
वार्ता’मे कवि ओना स्पष्ट रूपेँ काटरक परिणाम स्वरूपक
उद्वोधन नै कएने छथि, मुदा परक बेटीकेँ बेटीक रूपमे स्वीकार
करब सुसंस्कृत समाजक नारी लेल असहज होइछ। ई विडंवना जे अपन संतानक संग जे सिनेह
रहैछ ओ दोसराक संतान जे आब आत्मसात भऽ गेल छथि तिनका लेल असंभव। ओना एकरा स्वार्थ
सेहो नै मानल जा सकैछ किएक तँ पुतोहुक आवश्यकता व्याहुत बेटीसँ बेसी होइत छैक।
ऐमे प्रतिद्वन्द्वताक भाव रहैत अछि। मनुक्खकेँ अपन अधिकार तँ मोन रहैत अछि
मुदा कर्त्तव्यवोधक ज्ञान जिनकामे नै रहत हुनका पारिवारिक शांतिक स्पप्न
देखनाइ सर्वता अनुचित आ भ्रामक।
प्रतिद्वन्द्विता ऐ
खेलमे सासु-पुतोहु दुनू दोषी मुदा सासुक दोख बेसी किएक तँ आनक बेटी अपन घरमे
अनलाक बाद हास-परिहास सासुएक मुखसँ पहिने निकलबाक संभावना रहैत छैक-
ओसार पुवरिया बैस सासु
पड़ल पुतोहुकेँ देल धाही
अकड़ि कऽ मकड़ि बाजलि
देहक पानि लऽ गेल हाही।
ककरोपर जौं झूटका फेंकब
तँ प्रत्युत्तरमे पाथर अवश्य भेटत, किएक तँ कियो-ककरोसँ कम नै। अधलाह देखौंस
संस्कार मनुक्खमे पहिने अबैछ तँ नवकी कनियाँ कोना चुप रहतीह-
पानिये तँ पसरि देहमे
पीब गेल सभटा पाणि
की करब, फुरिते कहाँ अछि
कहाँ पड़ल छी जानि....।
ऐ प्रकारक आरोप-प्रत्यारोप
ग्रामीण समाजमे बरोबरि देखए मे अबैत अछि। परिणाम परिहासक संग-संग अपन दैनन्दिनीमे
लागलि पुतोहु सासुरमे बसलि ननदिकेँ बीचमे सेहो लऽ अबैत छथि।
कविक कहबाक उद्देश्य
छन्हि जे स्वस्थ जड़िसँ स्वस्थ वृक्षक विकास हएब प्रासंगिक तँए सासुकेँ
अपन मर्यादाक स्मरण राखि पुतोहुक संग ओहने बेबहार करबाक चाहियनि जेना बेटीक
संग करैत छथि। पुतोहुकेँ सेहो सासुमे अपन माइक छबि देखबाक आवश्यकता छैक।
प्रयोगात्मक रूपेँ आब ऐ
प्रकारक अनटेटल क्रिया-कलापक संभावना क्षीण भऽ रहलैक किएक तँ पलायनवादी समाजमे
सासु-पुतोहु एक संग रहतीह, बिरले अवसरि भेटैछ। जगदीशजी गाममे रहि कऽ साहित्य साधना
कऽ रहल छथि तँए ऐ प्रकारक घटना गाम-घरमे घटित होइत देखानाइ कविक लेल कोनो अजगुत
नै। कविताक बिम्ब आ शिल्पसँ बेसी महत्वपूर्ण अछि कविक उद्देश्य। एे दृष्टिसँ
जौं देखल जाए तँ कविता नीक छैक। भाषा विज्ञानक रूपमे अद्भुत किएक तँ अपन गद्य
जकाँ एेठाम जगदीश धाही, अकड़ि, मकड़ि, हाही, लसिया, निचेन सन लुप्त
होइत शब्द सभसँ पद्यकेँ वांछित रूपेँ बोरि कविता श्रवणीय बना देलनि।
“बौड़ाएल बटोही” शीर्षक कविता ऐ संग्रहक सभसँ नीक बिम्बकेँ केन्द्रित कऽ कऽ लिखल
गेल अछि। जीवन दर्शन आ आध्यात्मक तात्विक विवेचन अत्यन्त विस्मयकारी
छायावादसँ भरल मानल जा सकैछ। ‘परदा’मे
ओझराएल जिनगी जकाँ वर्त्तमान मनुक्खक जीवन भऽ गेल अदि। प्रयोगात्मक रूपेँ आब
कोवरक कनियाँक ओ रूप कतए जकर कल्पना कवि कएने छथि, मुदा
गामक समाजमे एखनो कोवरमे नुकाएल कनियाँ भेटैत अछि। कोवरक कनियाँ तँ मर्यादाक
अनुपालनक लेल नुकाएल छथि मुदा कर्म पथपर विचरण करैबला मनुक्ख कटि कऽ किएक रहि
रहल अछि? जे किछु नै जानि रहल अर्थात् अशिक्षित मूक
अनभुआरसँ सामर्थ्यशील मनुक्ख किएक तकरार कऽ रहल छथि?
अपन-अपन कर्मक संग-संग माए-बापक कर्म ओ धर्म संतानक सफलताक बाट उज्ज्वल करैत अछि।
ऐठाम धर्मक भाव संप्रदाय नै अपितु मानवीय मूल्यक सम्यक अनुपालन मानल जाए। विलगित
पथपर जौं चरण राखल जाए तँ बुइध बिलेनाइ स्वाभाविक आ जखन बुइध बिला जाएत तँ
बाट कलुष अवश्य भऽ जाएत-
बाटे बिला वुइध
बाटे बिसरि गेल
जेम्हर जे चलल
तेम्हरे पहुँचि गेल...।
कर्मक बीआ जाैं सत्व तम
ओ रज रस रससँ बोरल नै जाएत तँ ‘मनोकामना’ भ्रम बनि अपन सिद्धिक आशमे
लुप्त अवश्य भऽ जाएत।
कोनाे रचनाकार जौं स्वयं
नायक बनि कविता लिखैत छथि तँ कोनो अचरज नै, मुदा बेसीठाम कवि स्वयंकेँ रीति ओ
प्रीतिक नायक बना कऽ कविता लिखलाहेँ ई बरोबरि मैथिली साहित्यमे देखएमे अबैत
अछि। अपन आलोचना करब सबहक लेल संभव नै, ओना कतौ-कतौ हास्य
रसक कवितामे कवि लोकनि अपन मजाक अवश्य उड़बैत छथि मुदा एना करब कविताकेँ
लोकप्रिय बनाएब मात्र मानल जाए। ‘अपनेपर हँसै छी’ शीर्षक कविता मूलत: वर्त्तमान शिक्षा प्रणालीपर कविक आलोचनात्मक काव्य
शैलीमे प्रहार थिक। स्वयंकेँ नायक बना कऽ चोरिक डिग्रीक आधारपर ‘शिक्षा मित्र’क नौकरी प्राप्त करबामे हेर-फेर
देखाओल गेल अछि। गाममे रहि कऽ बिहारक शैक्षणिक प्रणालीपर कटु टिप्पणी न्यायोचित।
शासन तंत्र कतबो मजगूत मानल जाए मुदा जखन बेबस्थे भ्रष्ट, तखन
इमानदारीक दाबा केनाइ भ्रामक सिद्ध होइत छैक। साम्यवादी विचारधाराक अक्षरश: सम्पोषक
कवि कोनो राजनैतिक दल विशेषपर टिप्पणी नै केने छथि। अर्थनीति जौं भ्रामक
हुअए तँ ऐ लेल सम्पूर्ण समाजकेँ दोख देल जाए। लोक जखन स्वयं भ्रष्ट भऽ गेल छथि
तँ प्रजातंत्र वा शासन तंत्रपर दोख देब अनुचित-
लाखे रूपैयामे
दशो कट्ठा जमीन गमेलौं
गुरु दक्षिना देने बिना
गुरु भाइक भार
उठेलौं....।
ओना भारतीय परिदृश्यमे
बिहारक राज्य बेबस्था भलहिं स्तरीय मानल जा रहल मुदा शैक्षणिक बहालीमे योग्यतमक
उत्तरजीविकामे धन बल आ कुचक्रबल बेसी भारी पड़लैक, ज्ञानक मोजर एखनों नै भेटि रहल।
पाँच हजारक नौकरीक लेल मूल्यवान वसुन्धराकेँ बेचि लोक लौटरी लगा रहल छथि। एकर
दू गोट कुपरिणाम- पहिल कृषि कार्य जे हमरा समाजक रीढ थिक तकर महत्व समाप्त
भऽ रहलैक आ दोसर प्रतिभाक पलायन अवश्यभावी किएक तँ साधनहीन प्रतिभा सम्पन्न
व्यक्ति ऐ भ्रष्ट मंचपर कोना आसीन होथि-
बिनु धनक धनिक जहिना
ताम-झाम देखबैए
देखि-देखि आँखि करूआए
लाजे आँखि मुनै छी
अपने पर हँसै छी.....।
विचारमूलक पद्य देशकालक
दशाक एक रूपेँ सत्यश: चित्रण करैत अछि। चारूकातक परिदृश्य हेहर भऽ गेलैक, ऐ दशामे सोझ बाट
अकल्याणकारी लगनाइ कोनो अनुचित नै। चोटगर तीक्ष्ण वान चला कऽ भ्रष्ट लोक
अपनाकेँ सत्य साबित करबामे कोनो अर्थे नै हुसैत अछि किएक तँ धनक संग गालक
जमाना एक तँ चोरि आ दोसर सीना जोरि। ऐ कटु सत्यकेँ साहित्यमे कोना स्वीकार
कएल जाए ई तँ भविष्यक गप्प मुदा यात्री आ आरसी जकाँ अपन लेखनीक संग जीवनमे सम्यक
साम्यवादी जगदीशक ई कविता समाजक लेल दिशा िनर्देश कऽ रहलैक। ओना ई अलग बात जे
वर्त्तमान परिदृश्य फ्रांसक राज्यक्रांति जकाँ नै जखन रूसो आ वाल्टेयरक
आखर-आखरसँ समाजमे क्रांति आबि गेल छल।
आशावादी दृष्टिसँ जौं
सोचल जाए तँ साहित्य समाजक दर्पण अवश्य प्रतीत हएत, मुदा प्रत्येक
पाठक एकर सम्यक् तत्वकेँ जौं अपन जीवनमे उतारि लेथि तखने ई संभव मानल जा सकैछ।
क्रमश:.............
समाजक माने सबहक दृष्टिकोण
आ आचार-विचारक सभ गोट रूप व्यापक अर्थमे मंथन कएल जाए। जगदीशजी ‘धोब घाट’ कविताक बाद ‘धोबि घाट’ कविता
सेहो लिखने छथि। ‘दर्शन’ कोनो पोथी
पढ़ि नै उत्पन्न कएल जा सकैछ, ई तँ जीवनकेँ देखबाक अपन दृष्टकोण
होइत अछि। उदयनाचार्य कोनो काशी आ प्रयागमे रहि ‘न्याय
कुसुमांजलि’ सन पोथी नै लिखने रहथि। राजपूत कालक ‘करियन’ हुनक साहित्य सृज्नताक गहवर छलनि। तँए
जगदीशसँ टेम्स नदीक सभ्यताक आधुनिक बिम्बक आश केनाइ सर्वथा अनुचित हएत किएक
तँ मिथिलाक खॉटी गाम ‘बेरमा’ हिनक
साहित्य साधनाक केन्द्र बिन्दु छन्हि। दर्शनक तीन वयस होइत अछि- नीति, श्रृंगार ओ वैराग्य। सामाजिक जीवनमे रहनिहार मनुक्खक लेल तीनूक सम्यक
काल ओ भाव होइत छैक। जीवन क्रममे संतुलन बनएबाक लेल तीनू वयससँ अलग-अलग सत्व रज ओ
तमो गुण टपकैछ। ‘सात्विक भाव’ कविता
सत्व गुणकेँ आधार बना कऽ लिखल गेल अछि। सात्विक भाव विरासतपर आधारित होइत
छैक। जाहि ठामक भूमि सात्विक, हवा पानि सात्विक माने
नैसगिक संस्कार सात्वकतासँ भरल होइछ ओइठाम एकर प्रभाव अवश्यंभावी होइत छैक।
लक्ष्य, संकल्प आ दृष्ता सेहो मनुक्खकेँ सम्यक शाश्वत
कर्म दिश लऽ जाइछ, मुदा ऐ लेल संस्कार अनुवंशिकी आदिपर
व्यक्तित्वक विचार िनर्भर होइछ। सुभाव-कुभाव आदि संगहि चलैत अछि मुदा ऐ
लेल दृष्टिकोणकेँ जाहि रूपसँ देखल जाए वएह रूप दृष्टिगोचर हएत। कविताक भाव
दर्शनपर आधारित सरल शब्दमे मुदा विचार बोधक लेल गूढ़ अछि तँए एकरा बेशी
लोकप्रिय नै मानल जाए परंच साहित्यिक विकासक लेल आ जीवन-दर्शनक लेल युक्तिसंगत
कविता थिक।
दिव्य पुरुष ओ जे सोलह
कलासँ परिपूर्ण होथि। ‘दिव्य शक्ति’ शीर्षक पद्य सरल रूपेँ
पढ़लाक बाद किछु विशेष नै देखबामे अबैछ मुदा जेना कविक व्यक्तित्व अर्न्तमुखी
तहिना पद्यमे गूढ़ रहस्य झॉपल छैक। दिव्य शक्तिसँ पूर्ण होएबाक बाद मनुजमे
प्रखर ज्योतिक आवरण पनकि जाइत अछि। नीक-अधलाह विचार संस्कारसँ उत्पन्न होइत
अछि मुदा गंगा माने पवित्रताक परिचायक संस्कृतिसँ आबद्घ् जलधाराक कोखिमे
सबहक लेल समान स्थान। जइ भूमिपर वसुदेव विराजथि वएह वसुधा.......।
नन्द आ वसुदेवक प्रसंग
तँ वर्तमान सामाजिक परिदृश्यमे ‘उपहास’ जकाँ भऽ गेल
अछि मुदा कवि आशावादी छथि.....
पाँचम कला बनि जे बीआ
मनुज मन विरजैए
डेगे-डेगे डगरि-डगरि
सोलहम कला पबैए...
जगदीश जीक जे काव्य
सृजनता ओ व्यंगनाक विशेषता छन्हि ओ थिक हिनक आशावादी सकारात्मक दृष्टिकोण।
अपन पद्यमे कतौ कवि सामाजिक दशासँ निराश नै छथि। कालक अकालकेँ अपन पद्यमे
देखबैत तँ छथि मुदा ओहिसँ उदिग्न नै।
‘उड़िआएल चिड़ै’ कवितामे वर्त्तमान मानवक मनोवृत्ति उझलि लेखनीसँ कविताक रूपेँ उद्धृत
कऽ कवि पलायनवादपर तीक्ष्ण प्रहार कएलनि अछि। ऐ पलायनमे मात्र अपन मािटसँ
पलायन नै अपितु संस्कार आ मानवीयमूल्यक पड़ाइन सेहो देखाएल गेल अछि। ‘चिड़ै’क उदाहरण मात्र कविक छायावादी दृष्टिकोण
छन्हि, कचोट तँ संस्कृतिक पराभवकेँ मानल जाए। जे चिड़ै
अपन डीहो-डाबरकेँ बिसरि स्वार्थ आ कृत्रिमताक लहरिमे जतऽ घोघ भरतै ओतहि रास
करत ओहि चिड़ैक मधुर स्वरसँ मूल समाजकेँ कोन काज-
ओहन स्मृति स्मृते की
जे मने मन घुरिआइत रहैत
पसरि नै पबैत जे कहियो
तरे-तर खिआइत रहैत....।
कविसँ बेशी समाजक लेल विडंबना
जे बाटसँ भटकल बाटोही अपन मूल बाटपर श्रद्धा तँ व्यक्त करैत अछि, मुदा जइ पथमे पहिल
बेर उदयायल आदििलक दर्शन होइत अछि ओइ पथपर फेर धुरब पथ भ्रष्टक लेल असंभव जकाँ
लगैत अछि। अपन मूल संस्कारक पराभव करब उचित नै मात्र स्मृतिसँ मूल माटिमे
मातृत्व कोना उत्पन्न हएत। तँए ‘पलायन’ कोनो रूपेँ उचित नै।
मिथिलाक माटि-पानिसँ
फलैत-फूलैत हिन्दीक चर्चित उपन्यासकार फनीश्वर नाथ रेणु आंचलिक बनि गेलनि।
जौं मैथिलीक गप्प करी तँ कथाकार तँ कथा जगतमे ललित, राजकमल, धूमकेतु, कुमार पवन आ कमला चौधरी सन प्रांजल आंचलिक
कथाकार भेल छथि मुदा आंचलिक काव्य जगतमे समग्र सामाजिक दैनन्दिनीककेँ छूबैत
कविमे यात्री (चित्रा) ओ आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी)क पश्चात् जगदीश प्रसाद
मण्डलकेँ मानल जाए। ‘सान-धार-धारा’
कविता कोनो कैंचीक शानपर आधारित काव्य बून नहि ई तँ मानवीय मूल्य ओ संवेदनाक
शानपर आधारित पद्य अछि-
जे धारा सिरजए गंगा
कमला कोशी ओ महानन्दा
ओ धार कहिया धरि ठमकि
मानैत रहत फंदा?
गंगा, कमला आ कोसीक किछेरमे
बसल गाम सभ मिथिलाक परिधिक भीतर अबैछ ऐ तरहक उल्लेख तँ बहुत रास कवितामे
भेटैत अछि, मुदा ऐठाम ‘महानन्दा’क चर्च कऽ कवि पुबरिया बिहारक क्षेत्र किशनगंजसँ आगाँ धरिक लोककेँ
आश्वस्त कऽ देलन्हि जे अहूँ मैथिले थिकौं? मात्र पद्यमे
लयात्मकता भरबाक लेल एना नै कएल गेल। कवि मोन भावुक होइत छैक, भावमे बहनाइ कविक प्रवृत्ति मुदा मिथिलाक संस्कारसँ भरल रहलाक बादो
ई क्षेत्र साहित्यमे अपच जकाँ छल, तँए कविक भावनाकेँ सम्मान
करबाक चाही।
’जहाँ न जाए रवि
वहाँ जाए कवि’- ई वाक्य जे कियो लिखने होथि मुदा ई
सर्वथा विचारमूलक अछि। ऐ संग्रहक किछु पद्य जेना पपीहाक गीत, विखधरक बीख, नंगरकट घोड़ा आदि पढ़लासँ स्पष्टत:
बुझना गेल जे छायावादी दृष्टिकोण रचनाकारकेँ छोड़ि सबहक लेल पूर्णत: बुझबामे नै
अबैत छैक। ‘कोइली’ शीर्षक कवितामे कवि
चन्द्रभानु सिंह ‘मैथिली’क सरसताकेँ
स्पष्ट रूपेँ पाठक वा श्रोता लग परसि देने छथि मुदा पपीहा गीत शीर्षक पद्य
कोनो चिड़ै-चुन्मुन्नीक स्वरपर आधारित संस्कृति गीत नै ई तँ सम्पूर्ण दर्शन
थिक- जीवन-मरणक दर्शन। धरती अकाश, जल-थल कानि-अकानि सन
सहचाी विपरीतार्थक जीवन दर्शन.........
काव्यक व्याख्या बड़
कठिन होइछ, तँए गजेन्द्र ठाकुर जीक ऐ मतसँ सहमत छी जे कविता कम लोक पढ़ैत छथि।
चलन्त गीत-नादकेँ जौं छोड़ि देल जाए तँ प्राय: साहित्यिक काव्यमे कतौ ने कतौ
कवि स्वयं जीवित रहैत छथि। किछु विशेष बिम्बकेँ स्पर्श करएबला कविता
सभमे सेहो छायावादिताक आवरण लागल रहैत अछि। ऐ ओहारक मध्य बिन्दु दर बिन्दु
प्रवेश करब किनको लेल दुष्कर, तँए कविताक वास्तविक दृष्टकोणकेँ
कवि-छोड़ि कियो नै बूझि सकैत छैक।
“सरस्वती वंदना” कोनो देवोपराध क्षमा मंत्र नै, आ ने पारम्परिक
सनातन संस्कृतिक अवलम्बकेँ स्पर्श करैत भक्तिगीत। ऐ वन्दनामे समाजक असंतुलित
दशाकेँ समाप्त करबाक लेल बुधिक देवीकसँ याचना कएल गेल अछि। किछु विशेष दिवसकेँ
देवोपासनाक लेल चयन आ तात्कालिक आस्था कोनो भक्तिक श्रद्धा नै, एकरा कवि आडंवर मानने छथि। साम्यवादमे आस्तिकता विशेष पंथसँ संबंध
नै रखैत अछि। कर्म प्रधान विवेचन कविक कोनो कविता मात्रमे नै ई अर्न्तआत्माक
ज्वार थिक। मात्र एक दिन वर्ष भरिमे बुधिक आवरहन आ शेष दिवस-रातिमे
कुमार्गपर चलैत रहबामे संस्कारक पराभव अवश्यम्भावी हएत। तँए सरस्वतीसँ प्रतिक्षण
आ प्रतिपल संग रहबाक प्रार्थना कएल गेल अछि। कर्म आ ज्ञानक सराबोरि जौं नै हएत
तँ सिनेहसँ सिनेह स्पर्श नै कऽ सकैछ। जेना महाकवि विद्यापति “अपन करम फल हम उपभोगव तोहि किए तेजह पराने सखि हे मन जनि करुऊ
मलाने......” लिखि कर्म फलक मूल्यांकनमे कर्त्ताक
कर्त्तव्यकेँ आधार बनेने छथि। जगदीश सेहो कहैत छथि-
“जे हूसल से हम्मर
हूसल
तइले किअए छी कलहन्त
सभ जागैए सभ सूतैए
एक दिन हेतै सबहक
अंत....”
ऐमे याचक भगवती सरस्वतीसँ
किछु विशेष नै मँगैत अछि मात्र सत्कर्मक बाटपर चलबाक दिशा िनर्देशक आश रखैत
अछि। जौं ऐमे ओ हूसि जाएत तँ भगवानक संग-संग आन ककरो दोख नै।
कामना तँ सभ करैत अछि
मुदा ओकरा कर्मक पतवारिसँ जौं िनत्य आगाँ नै बढ़ाएल जाए तँ प्रतिस्पर्द्धाक
युगमे पाछाँ रहब प्रासंगिक अछि। सबहक आगाँ आ पाछाँक बाट सुन्न नै, सभ ठाम जीव अपन
अस्तित्वक रक्षार्थ िनरंतर लागल छथि ऐमे विजयश्री ओकरे भेटत जेकर चंचल मन
रुढ़ रहत आ भीड़-भार देखि उजगुजाएत नै-
“टुटिते लाट धरासँ
भीड़े-भीड़ बनैत रहैत
एक्के-दुइये भीड़ टपैमे
भीड़ेमे भरमति रहैत....”
कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्तिकेँ
हंस जकाँ दुग्ध आ नीरमे विभेद करबाक प्रयोजन किएक तँ हरि-हरी सन सहचरी कखनो
नारायण कखनो बेग तँ कखनो साँप सेहो भऽ सकैत अछि।
ऐ प्रकारक काव्य सामान्य
बहुत आकर्षक आ सुस्वादु नै भऽ सकैछ मुदा निष्िक्रय जीवन भेलापर अलात अनिवार्य।
जेना भूमिगत जल पीबाक योग्य होइत अछि मुदा आसुतजाल कंठसँ पीअल नै जा सकैछ किएक
तँ ओ सीरम थिक। वएह सीरम नाद आ स्नायुमे नाद आ स्नायुमे िनर्जलीकरणक स्थितिमे
सोडियम आ क्लोरीन मिला कऽ नस द्वारा सूई भोंकि शरीरमे चटाओल जाइछ। तँए जगदीशक
कविता हास्य आ प्रीतिक मंचसँ थपरी बजएबलाक लेल भलहिं उपयोगी नै होनि मुदा ऐमे
छुच्छ तत्व भरल छैक तँए मृतक समान भऽ रहल समाजक लेल एकरा सीरम अवस्था मानल जाए।
ऋृतु वर्णन बहुत रास कवितामे
भेटैत अछि मुदा “अगहन” कविताक माध्यमसँ कविक ऋृतुक विवेचन अत्यन्त
विलक्षण छन्हि। “समय पाठ तरूवर फले, केतक सींचो नीर” जकाँ कवि अगहन केर आ वाहनमे किसान
जकाँ उताहुल नै छथि। जखन धान लबालब शीशसँ धराकेँ स्पर्श करए लगैत अछि, तँ किसान मजूरक धैर्यक बान्ह टुटब स्वाभाविक। मुदा कवि धैर्य धरबाक
लेल आगाह करैत छथि-
“तीन दिन, आठ अगहन वाॅकी
धड़फड़ बेसी नै अगुताउ
धीरजसँ सभ किछु होइ छै
तइ बीच घरक काज सरिआऊ....”
स्वाभाविक छैक कृषि
प्रधान देशमे किसान मजदूरक जीविकाक साधन कोनो सभ मासक विशेष तारिखकेँ नौकरिहारा
जकाँ धनसँ कऽ नै अबैछ। बरख भरिक मेहमति आ पसीनाक गंगा जखन बान्ह तोड़बाक लेल
उफान तोड़ि रहल तँ कविक िनर्देश जे घरक आन काज सभ सरिया कऽ पहिने खरिहान
बनाएल जाए एकटा यथार्थ प्रयोगवाद मानल जा सकैछ। रातुक नाच देखबाक लेल दर्शक लोकनि
गाम-गाममे सपरिवार जाइत छलाह मुदा ओ कृत्रिमतासँ भरल, किएक तँ भोर
होइते जखन कलाकारक रूप बदलि जाइत छै तँ दर्शकक कोन ठेकान ओतए ठका गेल। मुदा
चौकीपर धम्म–धम्म जखन चानक बोझ पड़ि चष्टाएल बहार भऽ
जाइछ किसानक नाच कर्मफल बनि कोठीमे भरि जाइत अछि। ई चौकी स्टेज नै ऐठाम मान
सम्मानक माने आजीविकाक फल आ अर्थक आवाहन। एहू कर्ममे लोक सभ परानी हांसू लऽ कऽ
खेत दिश जाइत अछि मुदा अन्नपूर्णाक संग अपन घर घुरैत अछि। बनाबटी नाचमे टका
अर्थात् अन्नपूर्णाक संग जाइत तँ अछि मुदा घुरबाक काल खाली हाय अपन आंगन आ बथान
वापस अबैत अछि।
मनोरंजन तखने नीक जखन
कर्मक गति प्रखर हुअए कविक ऐ शिक्षामे समाजक वास्तविक रूप-रेखा दृष्टि
पटलपर उभरि कऽ समक्ष आबि गेल। ऐ प्रकारक संदेश ऋृतु वर्णनक माध्यमसँ मैथिली
साहित्यमे संभवत: पहिने नै भेटल हएत। ग्राम्य जीवनक वृत्ति चित्रक िनर्देशक
वएह भऽ सकैत अछि जे गामक संस्कार आ व्यवस्थाकेँ आत्मसात कऽ नेने हुअए।
जीवन तीनू मौिलक गुण सत्व
रज ओ तमक दार्शनिक अवलोकन मैथिली गद्य साहित्यमे “खट्टर ककाक तरंग” रूपेँ प्रो. हरिमोहन झा कएने छथि, मुदा गंभीर चिन्तनकेँ
हास्यक बिहाड़िमे उधिया देलासँ एकर प्रासंगिकता ओइठाम निष्क्रिय भऽ गेल। ऐ
कमीकेँ जगदीशजी “तरंग” कवितामे पूर्ण
कऽ देलनि। तरंग कोनो जल तरंग नै जीवन क्रियाशीलता ओ शैलीक तरंग थिक। एकटा कहबी
छैक जेहने छलिअ हौ कुटुम तेहने भेटलऽ हौ कुटुम- वास्तवमे जीवन क्रीड़ाक मैदानमे
जेहेन दृष्टिकोण रहत ओहने खेलबाक खेलौना भेटत।
आइ धरिक मैथिली काव्य
जगतमे जे कमी खलैत अछि ओ थिक रचनाकारक जीवनशैली ओ रचनाक तारतम्यक अभाव। संभवत:
जगदीशक कविता पढ़ि पाठक कविक दृष्टिकोणपर प्रश्नचिन्ह नै ठाढ़ कऽ सकैत छथि।
शैक्षणिक पाठ्यक्रममे कोनो चर्चित व्यक्ति जीवन परिचय मात्र सकारात्मक दृष्टकोणकेँ
पनकबैत देल जाइत अछि। प्राथमिक आ माध्यमिक शिक्षामे समालोचना छात्र नै कऽ
सकैत अछि, ओइमे मर्यादाक बान्हकेँ नाङब संभव नै। मैथिली साहित्यमे संभवत: एहिना
होइत रहल अछि। व्यक्तिगत वा किछु खास वर्गकेँ महिमामंडित करबाक क्रममे अधिकांश
साहित्यकार समाजक वास्तविक वृतिचित्रकेँ झाँपि देबाक प्रयास करैत छथिन्ह।
ऐ दुर्भाग्यसँ साहित्य कलंकित तँ होइत रहल मुदा किनको एकर क्षेभ नै। सभ शब्द
समंजन आ आत्म संतुष्टिमे लागल छथि किएक तँ आत्म संदृष्टिक रूप विचित्र
भऽ गेल छैक।
जगदीश जीक काव्यमे ई सभ
नै भेटत किएक तँ हिनक दृष्टिकोण साफ छन्हि ई सामाजिक विडंबना आ विषमताकेँ
झाँपि कऽ नै राखए चाहैत छथि। आब िनर्भर करैत छैक जे समाज हिनक दृष्टिकोणकेँ
कतए धरि मोजर देतन्हि-
सत बनि कखनो राज विराजए
रज बनि-बनि शासन करए
धरिते धारण तम तम-तमा
झहरि-झहरि फुनगीसँ गिरए....
ऐ पद्यांशमे गिरए केर स्थानपर
खसए रहबाक चाही मुदा गिरए वा खसए जे लिखल जाए ई तँ अक्षरश: सत्य अछि समाजक परिदृश्यमे
अधोगति शिखरकेँ छूबि लेलक। “बान्हसँ खाधि ऊँच” अनिश्चयवाचक
लोकोक्ति छल मुदा मिथिलाक समाजमे आब ई निश्चियवाचक भऽ गेल। अंग्रेजीमे कहबी
छै “Nature and signature remains constant” मुदा मिथिला
क्षेत्र एकर अपवाद िथक। मंचीय भाषणमे जीवन शैलीक उद्वोधन कतबो साफ रहए मुदा वास्तविक
रूप किछु आर भेटैत अछि।
विवादित पृष्ठभूमिसँ
जगदीशजी कतबो दूर होथि मुदा साहित्यकार कुकर्मीक हाथसँ फेकल अक्षतकेँ माॅथसँ
लगा कऽ सम्यक जीवनक कतबो उद्वोधन करए परंच जखन लेखनी उठाएत तँ सत्य अवश्य परिलक्षित
भऽ जाएत। “नङरकट घोड़ा” एकर प्रत्यक्ष प्रमाण मानल जाए। कवि
समाजसँ मात्र सिनेह चाहैत अछि। कोनो आत्मिक कवि स्वार्थी नै आ ने ओकरा
समाजसँ पिरही वा सम्मानक आश... ओ तँ मात्र चाहैत अछि जे विद्वतमंडली ओकर
रचनाकेँ जन-जन धरि पहुँचा कऽ ओकर दृष्टिकोणकेँ परिलक्षित करथि। जकर अभाव
मैथिली साहित्यक वास्तविक रूपकेँ पाठक धरि पहुँचबा रहल अछि। अर्थात् ऐ साहित्यमे
पारदर्शीकेँ कहए पारभासक समालोचक सेहो एखन धरि नै आएल छथि।
“गीत-1” द्वारा कवि एकटा िनर्भीक समालोचकसँ मैथिली साहित्यक रक्षाक आश रखैत
छथि ई संभव हएत वा नै ई तँ भविष्यक विषय थिक मुदा जगदीशजी इंद्रधनुषी अकासक
द्वारा की देलनि ऐपर मंथन कएलासँ उत्तर आधुनिक मैथिली काव्य जगतकेँ अवश्य स्वस्थ
चिन्तन भेटत।
सुजीत कुमार झा
कथा
केहन सजाय?
कामनी मैडम काज
समाप्त कएलाक बाद चश्मा उतारलीह । हुनका जाढ़क अनुभव भऽ रहल छल । आइ आठ बाजि गेल ।
साँझ रात्रीमे परिवर्तित भऽ गेल छल । चौकीदारकँे आफिस बन्द करबाक आदेश दऽ ओ साल
ओढ़लीह आ अपन रुम दिस बढ़ि गेलीह । कामनी मैडमकेँ एतऽ अएला एक हप्ता मात्र भेल अछि ।
एकटा सरकारी विद्यालयक प्रधानाध्यपक पदसँ अवकाश प्राप्त मैडम अपन घर
जाए चाहैत छलीह । मुदा मारवाड़ी सेवा समितिक अध्यक्ष रामरतन शर्माजी हुनका महिला सदन
होस्टलके जिम्मेवारी स्वीकारबाक लेल बाध्य कऽ देलैन्हि । महिला सदनकँे मारवाड़ी
सेवा समिति चला रहल अछि ।
चारि हजार विद्यार्थीक प्रधानाध्यापक लेल ई सदन छोट छल । शर्माजी
एहि सदनके लेल कोनो अनुभवी व्यक्ति ताकि रहल छलाह । तँए कामनी मैडमसँ ई पदभार
ग्रहण करबाक आग्रह कएलैन्हि, जकरा मैडम अस्वीकार नहिकऽ सकलीह
। एतऽ पचास महिला, भोजन बनाबऽ बला तीन गोटे भनसिया आ किछु
कार्यालयक कर्मचारी छल । एतऽ रहऽ बला कुल ५७ सदस्य छल ।
सदनके नियमानुसार ९ बजे प्रार्थनाक लेल सभ सदस्य सभाहलमे उपस्थित
होइत छल । तँए मैडम महिलासभकँे चिन्हऽ लागल छलीह । एहिमे किछु विवाहित सेहो छल ।
केओ सरकारी कर्मचारी, केओ बिमा कम्पनी, केओ शिक्षिका, केओ एनजीओकर्मी तऽ किछु इञ्जिनियर
सेहो छल ।
हरेक दिन अपन काजक हिसाबसँ ओ सभ जाइत छल मुदा साँझ आठ बजेधरि कोनो
हालतमे घूरि जाएकेँ नियम छल । ओना मार्केटिङ्ग वा एनजीओमे काज करऽबलाके राति ९ बजेधरिके
लेल छुट छल । आवश्यकता पड़लापर ओ राति १० बजेधरि बाहर रहि सकैत छल मुदा एहिके लेल
मैडमकेँ पहिले सूचित करबाक नियम छल ।
आत्मविश्वास आ बुद्धिमतासँ काज करऽबला उच्च शिक्षित महिलाकेँ देखिकऽ
मैडम स्त्रीक बदलैत प्रतिभापर बहुत प्रशन्न होइत छलीह । असगर रहैत अवलाकँे सवला बनैत
देखि हुनका नीक लगैत छल । ओ एतऽ एक वर्षक लेल अनुबन्धित छलीह । सदनमे अलग–अलग वर्ग छल । एटैच बाथरुम बला रुम, तीन बेड बला रुम
आ फेर चारि बेड बला रुम । चारि बेड बला रुमक लेल बाथरुम बाहर छल । मैडमक प्रभावसँ
एक्के हप्ता भितर होस्टलमे सफाइ तथा अन्य कार्य नियमपूर्वक होबऽ लागल ।
एतऽ रहऽबाली लड़की नेपालक सभ ठामक छल । किछु मैथिल, किछु वीरगञ्ज दिसक, किछु पहाड़क तऽ किछु हुम्ला,
जुम्ला दिसक लोक सेहो छल । एहि लड़कीमे एकटा श्याम रंगक, जे मौनताक चद्दरि ओढ़ने, ओकर व्यक्तित्व अलग छल ।
पातर–छितर युवती । बड़का–बड़का आँखि
एक्के बेरमे सभकेँ अपना दिस आकर्षितकऽ लैत छल । ओकर भोला चेहरामे तऽ गजवके हाव–भाव अबैत जाइत छल । आँखिमे डेराएल सन देखाइत छल । कोनो बनाबटी श्रृंगार
नहि । ओ पाउडर, काजर, टिकुलीधरि नहि
लगबैत छल ।
समान्यतया एतऽके लड़की आत्मनिर्भर भेलाक कारण अपन रुप सज्जापर विशेष
ध्यान दैत छल । काटल केश, मीलल भँओ, नीपल–पोतल चेहरा, पैmशनेबुल कपड़ा ।
कमाउ सभ छल तँए बनिठनिकऽ रहैत छल । एहनमे भोजपुरी भाषी ओ लड़कीक सादगी उभरिकऽ देखाइ
देबऽ लगैत छल । हलका रंग बला सलवार–कुर्ती पहिरने, नहि आइरन, नहि किछु ।
रातिमे टिभी देखैत लड़कीक अवाज, हल्ला वा
हँस्सीसँ सभागृह गुञ्जित होइत रहैत छल । मुदा ओ लड़की कोनो कोणमे ठेहुनपर दाढ़ी
अड़काकऽ आ दुनू हाथसँ पएरकँे घेरने नहि जानि कतऽ देखैत रहैत छल । टिभी दिस प्रायः
ओकर ध्याने नहि रहैत छल । अपने संसारमे ध्यानमग्न अपने विचारमे हेराएल रहैत छल ।
ओकर आँखिमे देखऽबला उदासी मैडमकेँ बेर–बेर चिन्तित करैत रहैत
छल । ओकरा कोन बिपत्ति पड़ल छैक मैडमकँे ई बात डङ्क मारैत रहैत छल ।
बेरियामे सदन खाली रहैत छल । एक दिन बेरियामे मैडमक कानमे गीतक एकटा
सुन्दर स्वर सुनाइ पड़ल । ओ स्वंयकँे नहि रोकि सकलैथि । शीघ्रतासँ ओ स्वरकँे पाछू ओहि
रुम तक गेलीह जतऽ भोजपुरी भाषामे गीत गाबि रहल छल । देवालमे ओत लगओने गीतमे निमग्न
बन्द आँखिसँ नोरक बर्षा भऽ रहल छल । दर्दमे डूबल स्वर गुञ्जित भऽ रहल छल ।
रुमक बाहरसँ मैडम किछु देर गीत सुनैत रहलीह । एकाग्रता भंग करब ठीक
नहि बूझि मैडम ओतयसँ घूरि एलीह । बेर–बेर ओ इएह प्रश्नक
उत्तर ताकि रहल छलीह, आखिर ओकरा कोन दुःख अछि । किए ओ एतेक
उदास रहैत अछि ?
दोसर दिन मैडम ओहि रुमसँ झगड़ाक आवाज सुनलैन्हि । रुमक अन्य लड़कीसँ
ओकरा उकटा–पैची भऽ गेल छल । तँए हेतु ई लड़की चिचिया–चिचियाकऽ गाढ़ि पढ़ि रहल छल । ओकरा कोनो होश नहि छल, कि
बाजि रहल छल ।
मैडम शीघ्र ओतऽ पहुँचलीह आ ओकरा देखिते बूझि गेलीह जे ओकर मानसिक
अवस्था ठीक नहि अछि । ओकरा ने अपन कपड़ाक होश छल आ ने बूझि पाबि रहल छल जे ओ कि
बाजि रहल अछि । चढ़Þल
आँखि ओकर अस्वस्थताक बखानकऽ रहल छल । ओ भोजपुरी, मैथिली आ नेपाली भाषाक मिश्रणमे किछु
बरबरा रहल छल । मैडम ओकरा निन्नक गोली आ दूध दऽकऽ जवरदस्ती सुता देलीह ।
ओकर नाम चमेली छल । मैडमकेँ आब ओकर चिन्ता होबऽ लागल । एखनधरि
चमेलीके प्रति हुनकर जे उत्सुकता छल से आब परेशानीमे बदलि गेल छल । आब ओ सोचऽ
लगलीह जे कोनो प्रकारे चमेलीकेँ बातचितक लेल तैयार कएल जाए । ओकर मोनमे विश्वास बढ़ाओल
जाए । मैडम सोचैत छलीह जे कहुना ओ खूलिकऽ अपन बात कहि मोनक बोझ हल्लुक करए । मुदा
एहिमे कोनो शक नहि छल जे ई लड़की बहुत बड़का दुर्घटना मोनमे दवओने अछि वा कोनो एहन
कारण अछि जाहिसँ ओ कुण्ठाग्रस्त अछि ।
चमेलीक विषयमे मैडम एक प्रकारसँ अनुसन्धान शुरु कएलैन्हि । होस्टलक
आफिसक रजिष्टरपर ओकर पूरा नाम–पता नहि छल ।
चमेली कम्प्युटर टाइपिङ्गकऽ किछु पैसा कमइत छल । समान्यतया होस्टलक
लड़कीकेँ ओकरासँ शिकायत रहैत छल । ओ बेसी समय चुप रहैत छल, ककरोसँ
ओकरा कोनो सरोकार नहि रहैत छल । मुदा कहियो–कहियो छोटको
बातपर लड़ि जाइत छल । गाड़ि पढ़ैत कोनो दिन स्वयं चिरचिराकऽ बरबराए लगैत छल । दोसर
लड़कीसँ दूर नहि झगड़ा लगाबएबला बात वा नहि हँस्सी–मजाक सभसँ
दूर रहैत छल । ओकरा कोनो ने कोनो समस्या अवश्य अछि ।
मैडम ओकरासँ बात करवाक कोशिसक क्रममे कोने ने कोनो बहन्ना बना एक–दू बेर अपना रुममे बजओलैन्हि । मुदा चमेली कोनो सन्तोषजनक उत्तर नहि देलक
ओ मात्र हँ वा नहिमे जबाब दऽ दैक ।
किछु दिनक बाद चमेलीक रुमक एकटा लड़की आबिकऽ बाजल, ‘चमेलीकँे बहुत बोखार अछि ।’
मैडम तुरन्त ओकर रुममे गेलीह । बोखारसँ तड़पैत चमेली ओछाएनपर पड़ल छल
। मैडम ओकर माथपर हाथ रखलैन्हि । माथ पूरे दहैकि रहल छल । ओकरा तुरन्त दवाइ पिअओलैन्हि
। बोखार कम करबाक लेल मैडम ओकर माथ लग बैसिकऽ ठण्ढा पानिक पट्टि देबऽ लगलीह ।
बोखारसँ चमेलीक बेहोशी जेहन अवस्था छल । ओ बरबरा रहल छल, ‘मम्मीके
घर जाएब’ घर जाएब, अपन घर जाएब ।
ओकर बात सूनिकऽ मैडमके हृदय कानि उठल । बेचारी असगरे अछि । एकरा घरो
अछि कि नहि, घर जाए चाहैत अछि, माए
बाबुके स्मरणकऽ रहल अछि । बेहोशीक अवस्थामे हृदयक बात मुँहसँ निकलि रहल छल । एकर
घर तऽ अछिए नहि, कि एहिसँ पहिने एकर माता पिता कतौ बाहर छल
वा ई एकर सपना अछि ? मैडम किछु बूझि नहि पाबि रहल छलीह ।
भोरमे बोखार कम छल मुदा चमेली बहुत कमजोर भऽ गेल छल । मुँह सुखा गेल
छलै । आँखि धँसि गेल छलै । बाथरुमधरि जएबाक शक्ति ओकरामे नहि छलै । मैडम ओकर शारिरीक
आ मानसिक अवस्था देखि सही इलाज कराएब अपन दायित्व बुझलैन्हि । हुनका साह डाक्टर
दम्पति स्मरण अएलैन्हि ।
नोकरीसँ अवकाश पओलाक बाद ई दम्पति अपन नर्सिङ्ग होम खोलि लेने छल ।
डाक्टर पति पत्नी दुनू मैडमके मित्र छल । ओ सभ मैडमकेँ बहुत सम्मान करैत छल । चमेलीक
उपचार डाक्टर सोनिया साह बढियाँ जकाँ कऽ सकत एकर पूर्ण विश्वास मैडमकेँ छल । मैडम
डाक्टर सोनियाके चमेलीक विषयमे टेलिफोनपर कहलैन्हि आ चमेलीकेँ लऽकऽ नर्सिङ्ग होम
पहुँचलीह ।
चमेली कमजोरी आ बोखारक थकानक कारण बेहोशी सन हालमे छल । डाक्टर ओकरा
ठीकसँ जाँच कएलैन्हि । नर्सक सहयोगसँ ओकरा कपड़ा बदलाओल गेल । दवाइ आ इञ्जेक्शन देलाक
बाद आश्वस्त भऽ डाक्टर सोनिया मैडम लग आबि बजलीह, ‘घवराएके
कोनो आवश्यकता नहि अछि, कमजोरी बहुत अछि दू–तीन दिनमे ठीक भऽ जाएत, हम ओकरा एडमिटकऽ लेलहुँ अछि
।’ कनि रुकिकऽ डाक्टर सोनिया फेर बजलीह, ‘ओकरा गर्भपात कएल गेल अछि । एखनधरि ओ किछु कहबाक अवस्थामे नहि अछि । अपने
जे कहलहुँ अछि ओकरा देखिते मानसिक शान्तिक लेल आवश्यक दवाइ शुरुकऽ देने छी ।
स्वस्थ्य भेलाक बादे ओकरासँ बात करब बढ़ियाँ हएत ।’ मैडमके
कनी सोचमे पडैÞत सन देखलाक बाद ओ कहलीह, ‘अपने मैडम चिन्ता
नहि करु हम टेलिफोनपर खबरि दैत रहब, अपने तीन दिनक बाद आउ
आशा अछि ओ स्वस्थ्य भऽ जाएत । हमसभ एकरा बढ़ियाँ जकाँ ध्यान देब ।’
चमेलीकेँ अस्पतालमे छोड़िकऽ मैडम होस्टल चलि अएलीह ।
लड़की सभकेँ कहलैन्हि जे चमेलीकेँ बोखार अछि । अतः अस्पतालमे भर्ती
करा देल गेल अछि, चिन्ताक कोनो बात नहि, तीन–चारि दिनक बाद ओकरा आनि लेब । एतेक कहिकऽ मैडम
अपना रुममे चलि गेलीह । मुदा मैडमक मोनमे उथल–पूथल मचले रहल
। चमेलीकेँ लऽकऽ अनेक विचार मस्तिष्कमे घूमि रहल छल । हुनका स्वयंपर विश्वास छल ।
अनुभवी नजरिसँ ओहि व्यक्तिकेँ परख सही छल वा कम उमेरबला चमेलीकेँ बुझऽमे तऽ नहि
गल्ती भऽ गेल छलैन्हि ?
चमेली खराब, वद्चलन, भूmठ अछि ई मानऽके लेल हुनकर मोन तैयार नहि छल । अनेक सम्भावना छल जे शायद
केओ एकरा असगरे रहलाक कारण फाइदा उठा लेने हो वा काज देवाक लालच दऽकऽ एकर इज्जति
लूटि लेने हुअए ।
मैडम सोचि रहल छलीह, ‘ चमेली वद्चलन तऽ नहि
अछि, कारण ओकरा लग ने पैसा आ ने कपड़ा, गहना
। एक दू–टा सलवार–कुर्ती अछि ओकरा
भेटवाक लेल केओ अएबो नहि करैत अछि । नहि कोनो चिठ्ठी, नहि
कोनो फोन ।’ तीन दिनक बाद चमेलीक विचारमे ओझराएल मैडम दैनिक
काम–काज समाप्तकऽ अस्पताल पहुँचलीह । बेरीयाधरि डाक्टर सोनिया
व्यस्ततासँ मुक्त भऽ जाइत छथि । मैडम चमेलीक रुममे पहुँचलीह, ओ ओछाएनपर सूतल छल । ओकर मुँहपर आभा चलि आएल छल ।
शान्त, असहाय चमेलीकेँ देखिकऽ मैडमके हृदयमे
ममत्व चलि आएल छल । ओ चमेलीके माथपर स्नेहसँ हाथ रखलैन्हि, तखने
चमेली आँखि खोललक । मैडमके दुनू हाथ कसिकऽ पकड़ि बाजल,‘ मैडम
हमरा गलत नहि बुभूm । हम खराब नहि छी । हमरापर विश्वास करु हम
कोनो गलत काज नहि कएने छी । रितेश चाहैत छलाह बच्चाकेँ पालन–पोषण
बढ़ियाँ जकाँ होइक । हमरा सभ जकाँ तकलिफ ओकरा नहि होइक । आर्थिक अस्थिरता आ माए बापक
प्रेम, वात्सल्य भेटैक सही माहौलमे बच्चाकेँ बढ़ियाँ जकाँ
देखभाल होएबाक चाही ..........’ बहुत मुश्किलसँ एतेक कहि
स्वयंकेँ सम्हारऽमे असमर्थ चमेली हिचुकि–हिचुकिकऽ कानऽ लगल ।
मैडम ओकर पीठ थप–थपओलैन्हि तऽ स्नेहिल स्पर्श
पाबिकऽ चमेली किछु शान्त भेल ।
ओ बहुत किछु बाजऽ चाहैत छल । डाक्टर ओकरा किछु देर शान्त भऽ बैसबाक
लेल कहलक । ओकरा चाह पिवाक लेल देलक, एकर बाद चमेली दिस तकैत
कहलैन्हि, ‘देखू एहि बातकेँ बढ़ियाँ जकाँ बूझि लिअ हम सभ
अहाँके शुभ चिन्तक छी । विना किछु नुकओने सभ किछु कहि देब यथा सम्भव हम सभ अहाँकेँ
सहयोग करब ।’
डाक्टरक ई शव्द चमेलीकेँ किछु कहबाक हौशला बढ़ओलक । ओ बाजल, ‘मैडम हमही अहाँके सभ बात कहऽबला छलहुँ । अहाँ आ डाक्टर दिदी के छी हमरा
बुझऽमे नहि आबि रहल अछि, अहाँ सभ हमरा बचएलहुँ अछि । मैडम
अहाँ हमरा होस्टलसँ नहि निकालब हम प्रार्थना करैत छी, हम
ओहिठाम बढियाँ जकाँ रहब । ककरो तकलिफ नहि देब ।
चमेली जे अपना विषयमे कहलक से सूनि मैडम आश्चर्य चकित छलीह । एहनो
लोक होइत अछि । एतेक निष्ठुर, पत्थरक हृदयबला ।
बराबर देखऽमे अबैत अछि जे कुकुर–बिलाइयक वच्चा
घरक सदस्य बनि जाइत अछि । पालतु जानवरसँ सेहो हम सभ जुड़ि जाइत छी । अगल–बगलकेँ बच्चा सेहो नीक लगाऽ लगैत अछि । एका–एक पालतु
कुकुर–विलाइकेँ छोड़ि देबाक कल्पना असम्भव लगैत अछि । फेर एतऽ
तऽ घरमे पलल एक दशकसँँ नित्य संग होइतो एहि लड़कीकेँ छोड़ि देब सोचिकऽ मैडम सिहरि
उठलीह ।
ओ केहन माँ अछि वा माँ संज्ञा सेहे ओकरा लेल अनुचित अछि । की महिलाक
एतेक स्वार्थीरुप सेहो भऽ सकैत अछि ? जाहि बच्चाकेँ पोसपुते
किए नहि बनओने हुए मुदा अपन पुत्री तऽ मानने छल, अपन नाम तऽ
देने छल, पाइल–पोसिकऽ पढ़ओने छल । ओहि
बेटीकेँ बस स्टेण्डपर निर्ममतासँ छोड़ि देलक मैडम किछु देर सोचिते रहलीह ।
चमेली वीरगञ्जके सम्पन्न यादव परिवारमे पलल–बढ़ल
छल । जतऽ ओ सामान्य आ सुरक्षित सहज वाल्यावस्था व्यतित कएने छल । भड़ल–पूड़ल परिवारक कौशिल्याकेँ बच्चा नहि होइत छल । बच्चा होएबाक कोनो सम्भावना
नहि देखलाक बाद कौशिल्या अनाथाश्रमसँ दू वर्षक बच्चाकेँ अनने छलीह । ओहि बच्चाक
नाम चमेली राखल गेल । अपन पितियौत भाइ–वहिनक संग चमेली बड़का
भेल । प्रेम, संरक्षण आ संस्कार ओ पाबि रहल छल । परिवारक
अन्य बच्चा जेकाँ एकरो लेल हरेक प्रकारक प्रवन्ध छल । ओ बुझैत छल जे ओकरा गोद लेल
गेल अछि । मुदा एहि बातकेँ नहि कहियो नुकाएल गेल आ नहि कहियो उच्चारण कएल गेल ।
एकटा लम्बा समय बित गेल । चमेली एक–एक सिढ़ी
चढैÞत यौवना अवस्थामे पहुँच रहल छल
। बुद्धिमान चमेली ८मे पढ़ैत छल । आश्चर्यजनक रुपमे कौशिल्या ढलैत उमेरमे गर्भवती
भऽ गेलीह, हुनका मातृत्वक आहट भेल । घरमे सभ खुशी छल । चमेली सहित सभ आँखि पथने छल ।
चमेली आ ओकर पापाकेँ खुशीके ठेकान नहि छल । समयपर कौशिल्या पुत्रकेँ जन्म देलीह ।
शायद एतहिसँ चमेलीके खराब दिन शुरु भेल । अपन कोखिसँ जनमल पुत्रकेँ पाबि कौशिल्या
धन्य छलीह । ओ जोड़ल सम्बन्धकेँ तोड़बाक निर्णय कएलीह ।
एक दिन चमेलीके पापा कहलैन्हि जे चमेलीकेँ मुन्सीजीके सङे गाम जएबाक
अछि मुदा, चमेली बूझि नहि पाबि रहल छल जे पढाइयक समयमे किए
ओकरा पठाओल जारहल अछि । मुंसीजी तऽ हरेक समय कामकाजसँ घुमैत रहैत छलाह । गर्मी वा
दुर्गा पूजाक छुट्टीमे बच्चाक मामा वा मौसी लग पहुँचबैत छलाह । मुदा असगरे
मुंसीजीके संग जाएब चमेलीकेँ किछु जमि नहि रहल छल । ओकरा अस्वीकार कएलाक बाद मम्मी
बहुत सम्झओने छल की दू–तीन दिनक बात अछि गाम जाएब जरुरी अछि
। छोटका बेगमे दू–चारिटा कपड़ा राखिकऽ चमेलीकँे बिदा कऽ देल
गेल ।
घरक सभ बच्चा मुंसीजीके कोरामे पलल–बढ़ल छल ।
तँए चमेली हुनका संग बिदा भऽगेल । ई यात्रा चमेलीक जीवनके धार बदलि देत ओकरा कि
पता छल ।
मध्य रातिमे चमेली सूतल छल । तखने मुंसीजी ओकरा जगओलक । कोनो बस
स्टैण्ड चलि आएल छल । जतऽ ततऽ लोक सूतल छल । बस स्टैण्डक एकटा कोन्हपर खाली
बेञ्चपर मुंसीजी सुतऽ लेल कहलैन्हि आ ओकर माथ लग बसि रहलाह । दू घण्टाक बाद बस आएत
से बिना कोनो आशंकाके चमेली सूति रहल । तखने मुंसीजी चुपचाप ओतऽसँ निकलि गेलैथि ।
बहुत समय बित गेल । माथ लग ठकठकके आबाज सूनिकऽ चमेली जल्दीसँ उठल,
रौद आबि गेल छल । किछु देरक लेल चमेलीकँे किछु बुझऽमे नहि आबि रहल
छल कि ओ कतऽ अछि । पुलिस किछु कहि रहल छल, लोक जम्मा भऽ रहल
छल । पुलिस किछु गरैज रहल छल । चिचियाकऽ किछु पूछि रहल छल । मुदा ओकर भाषा
चमेलीकेँ बुझऽमे नहि आबि रहल छल । मुंसीजीके कोनो अता–पता
नहि छल । चमेली लग नहि पैसा छल आ नहि किछु । ओहि ठाम रहल पुलिस मुंसीजीकेँ किछु
देर खोजलक आ जखन नहि भेटल तऽ चमेलीकेँ अनाथ आश्रममे पठा देलक ।
अनाथ आश्रममे चमेलीक हालत बहुत खराब छल । ओतऽके भाषा, वातावरण, भोजन सभमे बहुत अन्तर छल । ओ बूझि रहल छल
जे कोनो दुर्घटनाक कारण मुंसीजी ओकरासँ अलग भऽ गेल अछि । पापा ओकरा लेबाक लेल
तुरन्त एताह । घरपर सभ परेशान हएत । कानि–कानि कऽ बिताएल दिन
निराशाक अन्हारकँे आओर घनघोरकऽ रहल छल । एतऽके काम करऽ बाली, रहऽ बला सभ मूर्ख आ गन्दामे रहबाक आदी छल । खुब गारि बाजि रहल छल । लड़की सभकँे
पिटब समान्य बात छल ।
चमेली भयभित छल ककरो ओकरासँ सहानुभूति नहि छल ।
व्यवस्थापिकासँ चमेली किछु पुछैत छल तऽ कोनो ध्यान नहि दैत छल,
उल्टे चमेलिएकेँ डाँटि दैत छल । ओ सभ कहैत छल, ‘कथिलए कनैत छेँ, जीवनभरि कनिते रहबेँ, तोरासँ भेटऽ केओ नहि एतहु, तोरा अपना लग राखबाक
रहितहु तऽ छोडितहुँ किए ?’
चमेलीकँे एक–एक क्षण ओतऽ रहब मुश्किल भऽ रहल
छल । मुदा समय ककरो लेल रुकैत नहि अछि । एक–एक दिन बित रहल
छल चमेली हताश, निराश आ उदाश छल । अनाथ आश्रमक भोजन ओकर
कण्ठमे नहि ससरि रहल छल । घरपर ओकरा अँचार, चटनी, तरकारी, माछ, माउस आ स्वादिष्ट
भोजनसँ भड़ल थारी भेटैत छल । रसगुल्ला बिना ओकर भोजने पुरा नहि होइत छल । आश्रममे
मोट–मोट काँच–पाकल दूटा रोटी, बिना स्वादक दालि वा तरकारी आ हप्तामे दू दिन एक बाटी भात भेटैत छल ।
ओतऽ रहऽ बला लड़की सभ ओकरा बहुत समझबैत छल । अपन भात चुपचाप चमेलीकँे
देबाके कोशिस करैत छल । उएह लड़कीसभसँ ओकरा किछु सहानुभूति भेटैत छल ।
आश्रमके नियम अनुसार चमेलीकेँ विद्यालयमे नामांकन कराओल गेल ।
नेपाली माध्यमसँ ओकरा किछु बुझऽमे नहि आबि रहल छल ।
कोनो तरहें एस.एल.सी. पास कराओल गेल ।
आब चमेली परिस्थितिसँ सम्झौता करऽ चाहलक । मुदा अनाथ आश्रमक नियम
अनुसार १८ वर्षक उमेर पुरा होइते अनाथ आश्रममे रहबाक अनुमति नहि अछि ।
एहि क्रममे ओ अपन पापाके कतेको पत्र पठओलक । मुदा कोनो उत्तर नहि
अएलाक बाद अन्तिम प्रयासक रुपमे अपन मौसीकँे एकटा पत्र लिखलक । मौसीसँ चमेलीकँे
बहुत स्नेह छल । मौसी एहि शहरक अनाथ आश्रमसँ सम्पर्क कएलैन्हि आ कहुनाकऽ होस्टलमे राखएबाक
प्रयास कऽ देलैन्हि । जेठ बहिनद्वारा काएल गेल पापक प्रायश्चित छोट बहिन यानी मौसी
एहि प्रकार कएलक ।
ई होस्टल स्वच्छ आ स्वतन्त्र छल । एहि ठाम रहैत काल चमेली कम्प्युटर
टाइप सिखलक आ जल्दिए अपन पएरपर ठाढ़ हएबाक कोशिस करऽ लागल । १२ कक्षाक पढाइ सेहो शुरु
कएलक । चमेली कम्प्युटर टाइपिङ्गके लेल जतऽ जाइत छल ओतऽ बेरियाक छुट्टीमे ओ खाली
रहैत छल । ओतऽ छोट फुलवारीमे चमेली घण्टोधरि रहैत छल । फुलवारीक बाहर रिक्सा
स्टैण्ड छल । ओ रिक्सा स्टैण्ड लग रितेश दैनिक अबैत छल । स्कूलक बच्चा साँझ चारि
बजे जाइत छल । ओ १० बजे बच्चाकेँ स्कूलमे छोड़लाक बाद अहिना पुलवारीमे सुस्ताए अबैत
छल । ओ चुपचाप चमेलीकेँ प्रत्येक दिन देखैत रहैत छल ।
रितेश ओकरासँ परिचय बढओलक । रितेशक अपनत्व आ सहानुभूति चमेलीकँे
मलहमके काज कएलक । चमेली हुनकासँ घूलि–मीलि गेल । धीरे–धीरे ओ रितेशकँे अपन बितल घटना सुनओलक । रितेश सान्तवनो देलैन्हि, जीबाक इच्छा बढ़ओलैन्हि । स्वयं रितेश अपन काकाके घरमे रहि रहल छलाह । ओ
चमेलीक पिड़ा बुझैत छलाह । एक समान दुनू एक दोसरकँे पसिन करऽ लागल । संसारक सताओल
चमेली रितेशसँ अलग होबऽ नहि चाहैत छल । ओ रितेशकँे विवाहक पवित्र बन्धनमे बान्हयके
लेल कहैत रहल, दिन बितैत गेल एहि क्रममे पेटमे बच्चा भऽ गेल
।
मैडम पुछलैन्हि, ‘तोँ वीरगञ्ज जाए चाहैत छेँ ?
तोरा हम स्वयं लऽ जएबौ ।’
चमेली तुरन्त बाजल, ‘नहि मैडम, नहि हम वल पूर्वक ककरोसँ किछु नहि चाहैत छी । मुदा, मोन
करैत अछि एक बेर हुनका सभसँ भेटकऽ पुछी जे, कोन अधिकारसँ ओ
हमरा पोसलैन्हि आ फेर हमरा जनसागरमे भँसा देलैन्हि । हम जन्मसँ अनाथ छी । ओतहि पलितहुँ,
एहि गन्दा वातावरणक असरि तऽ नहि पड़ितए । किए हमर विश्वासकेँ तोड़ल गेल
।’
‘अनाथ आश्रमक अनुभव कि कहू, छोट उमेरमे हमरा
अचानक संसारक सभसँ खराब दृश्य देखा देलक । हमर बुद्धिमता व्यर्थ भऽ गेल ।
महत्वपूर्ण शिक्षाक वर्ष वर्वाद भऽ गेल । यदि पहिलेसँ आश्रममे रहितहुँ तऽ अपन
मार्ग दोसर हिसावसँ बढ़बितहुँ । हमरा कतहुके नहि छोड़लैन्हि ओ सभ । मौसी आ रितेश
हमराजँ सहारा नहि देने रहितैथि तऽ या मरिगेल रहितहुँ वा पागलखानामे अवश्य पहुँच
गेल रहितहुँ ।’
मैडम ओकर माथ सहलओलैन्हि । डाक्टर सोनिया बातके बदललैन्हि । ओ
कहलैन्हि, ‘जे भऽ गेल से भऽ गेल एहि परिस्थितिसँ अहाँकेँ
लड़बाक अछि । तीन–चारि दिन हमरा लग रहू । हम अहाँ आ रितेशक
विषयमे अवश्य किछु सोचब ।
मैडम खोजिकऽ रितेशकेँ बजओलैन्हि । ओ सज्जन, मेहनती
आ इमान्दार लड़का छल । दिन भरि स्कूलक रिक्सा चलबैत छल आ रातिमे पढ़ैत छल । स्नातकक
पढाइके अन्तिम वर्षक छात्र छल । मैडम आ डाक्टर सोनियाक सल्लाहसँ रितेश चमेलीसँ
बियाह कएलैन्हि ।
डाक्टर सोनिया चमेलीकँे अपन अस्पतालमे नोकरी देलैन्हि । आखिर
चमेलीकेँ जीवनक एकटा किनारा भेटिए गेल ।
ऐ रचनापर अपन
मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
सत्यनारायण झा
डायरी
बैसाख मासक बर महत्व छैक मुदा एहि बेर एहि
मास मे असहनीय घाम भ’ रहल
छैक |कइएक ठाम सं नोत पता छल |ब्याह ,द्विरागमन
,उपनयन सं पूरा मिथिला पटल छल |घाम
त’ बर रहैक ,तैयो दिनांक १४ ४
०१२ जुड सि तल दिन बिदा भेलौ अपन देस,अपन गाम |गाड़ी लेलौ आ अपने चलबैत बिदा भेलौ |संग मे
पत्नी रेणुजी रहथि आ पितयौत अनुज चि० जी० सुरेश जे पतरातु थर्मल कॉलेज मे शिक्षक
छथि |ओ एक दिन पहिनहि आबि गेल छलाह |छह वजे भोर मे बिदा भेलौ आ पहिल पराव दरभंगा मे
छोट साढू डा० महादेव जी ओहिठाम छल जे हम सभ नौ वजे पहूँच गेलौ |एक तरह बुझू पहुनाइ प्रारम्भ भ’
गेल छल |जखन हमर ब्याह भेल रहय त’
हमर सारि कंचन झा मात्र दु सालक रहथि मुदा आब, आब त’ ओ बुढ़िया नानी जकाँ गप्प करैत छथि |कियैक नहि आखिर उमरो त’ पुरे तेतालीस भ’ गेल छनि |काँलेज टीचर छथि तै गप्प हकबा मे पटु भ’ गेल
छथि |सुन्दर चाह पियेलनि आ जलखइ त’ एहन सुन्दर बनेने रहथि जे मोन हुए आंगुर चटिते रही |दुनू बहिन मे नैहर क’ गप्प ततेक ने होमय लगलनि जे बुझाय जे आइ एतहिये ने रहय परय |जखन
बहिन बहिन क’ भेट होयत छैक तखन दुनिया मे दोसर रहिये नहि
जायत छैक |बस नैहर |से हम देखल
गप्प तुरत खतम होयबाला नहि छैक| जलखइ क’ कने देह सोझ करय लगलौ ता आँखि लागि
गेल |आँखि फुजल त’ देखैत छी बारह
पर घड़ीक दुनू सूई छल |एम्हर देखल दुनू बहिनिक गप्पक प्रबाह रुकबाक नाम नहि छल |बहुत कहला सुनला पर दुनू गोटाक गप्प रुकल |एम्हर
पुनः आग्रह होमय लागल जे बसिया बड़ी खा लिअ|आइ जुड़सितल छैक
|नहिये मानलनि दुटा बड़ी खाइए परल |
मधुबनी २ बजे पहुचलौ |सुखद आनन्द भेल जे पचासी बरखक हमर
सासु बालकोनी मे ठाढ़ हमरा सभक बाट तकैत रहैथि |पहुचते
पहिने त’ माय ,बेटी क’ डटलखीन जे कतेक देरी क’ देलही |भोरे सं बाट देखैत छलियौक \फेर माय कहलखिन ,नहा ले आ फेर किछु खा ले तखन गप्प करिहे |स्नान
त’ हम सभ पटने मे केने रही | हिनकर छोटकी भाउजि ,विभा सरबत बनेलनि ,मैझली चाह बनेलनि आ जेटकी
सरहोजि पुछलनि,ओझा ,आइ त’जुड़सितल छैक |ओहुना बरकी बौआ लेल बड़ी त’
बनेबे करितियनि |नैहर मे बेटी आबय त’
बड़ी सं स्वागत होयत छैक |से देखियौ
जुड़सितल छैक तै बड़ीक त’ ई पावनिए छैक |ओहुना अहाँक सार कहलखिन्ह जे ओझा अबैत छथीन तै माछ त’ बनबे करय |से अहाँ आजुक दिन माछ खेबैक ?हम कहलियैन ,आहाँ केहन बताहि जकाँ गप्प करैत
छी |आजुक दिन ज’ माछ भेट जाय त’
बुझू भरि सालक यात्रा बनि गेल |जल्दी
थारी लगाउ |भोजनोप्रांत साझ मे मधुबनी सं अपन गाम पिलखवार
चलि गेलौ |
मधुबनी सं गाम गेलौ त’ रास्ता मे सड़क दीस ध्यान गेल |२००५ मे नीतीश जी पहिल बेर मुख्यमंत्री भेलाह आ एहि क्षेत्र सं श्री
विनोद नारायण झा जीतलाह त’ एहि क्षेत्रक लोकक सुबिधा लेल
रांटी चौक सं राजनगर तक पक्की सड़क बनायल गेल |मुदा चारि
पाँच बरखक अंदर सड़क जीर्ण शीर्ण भ’ टूइट गेल अछि |एहि रोड पर एखन तक मेंटिनेन्स नहि भेल अछि |ई
स्थित रहतैक त’ फेर १० साल पहिने वाला स्थिति भ’ जेतैक |
गाम पहुँचलौ |दरवाजा लोक सभ सं पूरा भरल छलैक |मिन्टूक ब्याह काल्हि छैक |हमर पूज्य अग्रज
श्री रघुबंश झा जी पहुँच गेल छलाह |अनुज सर्व नारायण जी
सेहो उपस्थित छलाह |अन्य पितियौत सभ सभ ठाम सं आबि गेल
छलाह |मास्टर साहेब बेटाक ब्याह छनि | मास्टर साहेब श्री अमरनाथ झा हमर पितयौत अनुज छथि |हम सभ भाई जखन कोनो काज मे पहुचैत छी त’
आनन्दक समुद्र मे नहाय लगैत छी |सभहक आकर्षण हमर अग्रज रहैत छथि |हुनका दसटा लोक घेरने रहैत छनि आ ओ सुन्दर सुन्दर अपन गप्प सभ दैत रहैत
छथिन |गुप्तचर अधिकारी छलाहे ,तै
गप्पक कमी रहिते नहि छनि |गाम अबिते लगैत अछि जेना सभटा
तनाव समाप्त भ’ गेल |अपन गाम ,अपन लोक , बचपनक बाल संगी सभ ,काकी ,काका सभ सं गप्प क’ मोन आनन्दित भ’ जायत अछि |एहि सं आनंदक बात आओर की हेतैक |बाल संगी यार
जखन भेटैत अछि त’ मोन अनेरे प्रसन्न भ’ जायत अछि |भोर मे सभ कलम गाछी गेलौ |पूरा गाम आमरस भ’ गेल छैक |ब्रह्मस्थान मे पहिलुका बर –पाकरि गाछ एखनो
याद भ’ जायत अछि |हमर प्रपितामह
सुनाम धन्य नैयायकि पं० कैलाश झाक लगाओल ओ बर –पाकरि पूरा
टोल क’ सितलता प्रदान करैत छलैक |मुदा एकदिन ओ बिहारिक वेग सहन नहि क’ सकल आ
धड़ाम सं खसि परल |कतबो बाउंड्री परौक,मंदिर बनैक मुदा पहिलुका नैसर्गिक सुंदरता आब कहाँ ?दुर्गा घर विशाल बनि गेल छैक |मुदा दुर्गा
स्थान आ माध्यमिक विद्यालयक जमीनक अतिक्रमण भ’ रहल छैक |
आइ सवेरे सं चहल पहल छैक |साँझ मे मिंटूक व्याह चचराहा गाँव मे हेतनि |बरियाती लेल सभ तैयारी क’ रहल छैक | उपेंद्रा सभक दाढ़ी मोछ कपचि रहल छैक |बगुला
सन् उज्जर धोती पहिर यार दलान पर पहुँचि गेल छैक |साँझ मे मार्शल आ सुमो सं वरियाती
गंतब्य दिस बिदा भ’ गेल |रांटी ,मंगरौनी ,पिलखवार मिथिलाक प्राचीनतम गाम थीक |एखनो मिथिलाक संस्कृति एहि गाम सभ मे भेटत |शुद्ध
मैथिली भाषा ,मैथिल भेषभूषा,आ
मैथिल संस्कार एखनो एहिठाम जिबैत छैक |मैथिलीक गीत एखनो
ललना सभ बर टोप टहंकार सं गबैत छथि |अयलै शुभ क’ लगनमा शुभे हे शुभे क’ संग वरियाती विदा भेल |मधुबनी सं जितवारपुर वेल्ह्वार सिविपटी होयत कलुआही चौक पहुचलौ आ नरार
कोठी होयत चच्रराहा |सड़क कतौ ठीक नहि छल |बिहारक विकास एहि सभ ठाम नहि छैक |
अखबार मे जे पढ़ैत छी ओ अखबारे तक छैक |हमरा गाम मे दु मास सं विजली देवी
गुम छथि |ट्रांसफोर्मर जरि गेल छैक |पूरा गाँव जेनेरेटर सं लाइन नेने अछि |मधुबनी
में १० वजे राति क’ बाद लाइन अबैत छैक \बिहारक विकास देहात मे देखायत |आखिर ई सरकार
की क’ रहल अछि ?
मैथिलक बरियातीक भोजन आब आधुनिक भ’ गेलैक अछि |पहिने कम बरियाती रहैत छलैक त’ स्वागतो सत्कार
नीक होयत छलैक ,आब लोक की करत |जस्य
जनारो तस्य गिर गिरी |पहिलुका बरियाती ,आह पुछू नहि |खाय मे आ खुआबै मे होर रहैत छलैक
|सात्विक भोजन रहैत छलैक |आसन
लगैक ,पात लगैक ,दोना मे सचार
लगैक |मुदा आब ने ओ लोक आ ने ओ कराह |आबक बौअया सभ क’ पुछियोन जे बिझकी केकरा कहैत
छैक |सौजन केकरा कही |नहि कहता |मैथिलक अपन परम्परा छैक जे बर अल्प खर्च मे निमहि सकैत छैक मुदा आडम्बर
बेसी भ’ गेल छैक |एक दोसर सं
प्रतियोगिता भ’ गेल छैक |गरीबक
बेटी कतबो संस्कारी रहय ,कतबो सुन्दर रहय ,ज ओकरा बाप क’ टाका नहि
होयक त’ नीक ब्याह नहि होयतैक |मुदा
टाका बाला अपन कुरूपो कन्याक ब्याह नीक सं नीक घर मे करैत छथि |ई समस्या मिथिले मे नहि पूरा देस मे पसरल अछि |एकर निदान सरकारे टा क’ सकैत अछि मुदा वोटक
राजनीति नीक काज करहि नहि देतैक |एकर परिणाम पूरा समाज भोगि रहल अछि |१० -१५ प्रतिशत क’ लेल ८० -८५ प्रतिशत कियैक
कष्ट करत ?
बरियाती मे पायर धोबाक परम्परा समाप्त भ’ गेल ओना आब पायर मे माटियो नहि लागल
रहैत छैक |आज्ञाक डाला एखनो अबैत छैक |परिछनि सं ब्याह तक पहिलका आ एखुनका मे फर्क नहि |एकटा बात नीक देखल |बरियाती खा क’ तुरत चलि देलक |पहिने हमरा सभक गाम मे रहैक जे
ब्याह भेलाक बाद बरियाती भोजन करैक आ भोजन क’ कनियाँ क’
सोहाग अर्थात आशीर्बाद द’ बरियाती तुरत
बिदा भ’ जायक | खर्चक हिसाबे
बरियाती ओही दिन चलि जाय से नीक ब्यबस्था |हमहू सभ ओही
दिन भोर मे १६ ४ ०१२ क’ गाम चलि एलौ |सभ भरि दिन सुतले रहल |साँझ मे चाह पीबि बाध
बोन घुमय चलि गेलौ |पूरा बाँध हरियर लगैत छल |शुद्ध वायु ,शुद्ध वातावरण |
१८. ०४. ०१२ –आइ जूहीक ब्याह छैक |जुही हमर
भगिनी छी |जरैल जेबाक अछि |जरैल
बेनीपटीक नजदीके छैक |घरक बच्चा बच्चा जरैल जेतैक |२१ आदमी जरैल पहुचलौ |मधुबनी सं धकजरी तक नीक
रास्ता छल मुदा धकजरी सं जरैल बहुत खराब रास्ता छल |बिजली
ओहू एरिया में नहि छलैक |विकासक कोनोटा चिह्न नहि देखायल |बेनीपटी मधुबनी जिलाक एकटा अनुमंडल छैक |जरैल
बेनीपटी सं ५-६ कि० मी० हेतैक |मुदा बर पिछरल |ब्याह नीक जकाँ संपन्न भ’ गेलैक |१९ ०४ .२०१२ क’ जरैल सं पुनः गाम चलि अयलौ |
एक दिन २१.०४.२०१२ क’ कपिलेश्वर स्थान गेलौ मुदा रोड बर
खराब | रहिका प्रखंड कार्यालय देखबाक मोन भेल |११ वजे तक कियो नहि आयल छल |प्रखंड कार्यालय
मे विकासक नहि गंद्गीक वयार बहैत छल| पता चलल जेकरा जखन
मोन हेतैक आबि जायत ,बेसी कर्मचारी भागले रहैत छैक |सेवा
यात्राक बढ़िया प्रभाव छैक |
गाम पर २३.४.२०१२ ,२५ .०४ .०१२ क’ फेर कइएक ब्याह,द्विरागमन छलैक मुदा हम गामे
रहलौ |गमैया भोज खेलौ |आ भोरे
२६.०४ ०१२ क’ मधुबनी पहुचलौ |आइ
आयूषक उपनयन मे विष्णु –बरुआर जेबाक छैक |आयुष हमर ज्येष्ठ सार श्री प्रमोद जीक नैत छनि अर्थात अलकाक पुत्र |अलकाक बर इच्छा जे हम सभ उपनयन मे बरुआर आबी |अपनो
इच्छा छल जे बरुआर जाय |बरुआर मधुबनी सं ४० कि० मी० छैक |समस्त परिवार क’ जेबाक रहैक |तीन टा गाड़ी सं हम सभ बिदा भेलौ |मधुबनी ,राजनगर ,पिपराघाट , बाबूबरही
होयत मिर्जा पुर चौक पहुचलौ |एतबा दुर नीक सड़क छलैक |मिर्जापुर सं बरुआर ४-५ कि० मी० छैक |४ -५ कि०
मी० एहन बिकट मार्ग रहैक जेकर वर्णन कइए नहि सकैत छी |पैघ पैघ खाधि ,उभर खाभर रास्ता |बाबा आदम ज़माना क’ वाट |लागे नहि जे पहुचब|मुदा पहुचलौ |अलकाक घर पुस्तैनी छलैक |वाटक दर्द दरवाजा पर
आबि बिसरा गेल |लागे जेना कोनो पिकनिक स्पॉट पर आनन्द ल’
रहल छी |गाम मे एकटा विष्णुक सुन्दर
मंदिर छैक |कुल मिलाक’ बरुआरक
यात्रा सुखद छल |ओही दिन ११वजे रात्रि मे वापस मधुबनी आबि
गेलौ |२७ .४ .२०१२ क’ आराम केलौ
आ २८ .४.२०१२ क’पटना वापस भ’ गेलौ
|
ई डायरी
लिखबाक किछु उद्येश्य अछि |मिथिलाक कइएक गामक भ्रमण कयल |कतेक लोक सभ सं
भेट भेल |मिथिलाक विकासक अवलोकन कयल |सरकार एहि बेरक टेन्योर में लोक के खाली परतारि रहल अछि |पाँच साल पहिने जे काज जाहि स्थिति में रहैक ओहिना छैक |जे काज रोडक भेल छलैक ओहो टूइट रहल छैक |ग्रामीण
क्षेत्रे नहि मिथिलाक कोनो शहर में विजली नहि |उद्योग
धंधा बंद छैक |बच्चाक स्कूल ठीक सं नहि चलैत छैक |मिथलाक हृदयस्थली मधुबनी छैक आ मधुबनीक हृदयस्थली पंचकोसी छैक \
रांटी ,मंगरौनी ,पिलखवार पंच कोसीक हृदय छैक ,जतय सं मिथिला ,मैथिली भाषाक विकास भेलैक |ओ तीनू गाम मधुबनीक
सटल छैक मुदा ने सड़क ,ने विजली ,ने
नहर ,ने बढ़िया स्कूल –किछु नहि |मुदा सरकारी तंत्र ढोल पिटैत अछि |हमरा जबाब
चाही ,हमरा हिसाब चाही |
अतुलेश्वर
मिथिला राज्य आन्दोलन आ शहीद रञ्जु झा
मिथिलाक जनमानसमे
एकटा आस जागल छल जे यदि नेपालमे मिथिला राज्यक निर्माण होइत अछि तँ एकर प्रभाव
भारतमे सेहो पड़त। एहि विषय पर अपन-अपन विचार आ प्रभावक बारे मे टीका-टिप्पणी भ
रहल अछि । ज्ञातव्य अछि जे नेपाल मे मिथिला राज्यक विरुद्ध षडयंत्र कयला पर नेपालक
मैथिल जनता एकर विरुद्ध अपन स्वर उठौलन्हि। हुनका लोकनिक पहिल डेग छल शान्तिपूर्ण ढंग
सँ अपन गप्प सरकार ओ सांसद लोकनिक समक्ष राखब आ संगहि जनमानसमे एहि प्रति भावना
जागरूक करब। हुनका सभक एहि प्रयासकेँ जनताक सकारात्मक सहयोग भेटब प्रारम्भ भेलासँ
किछु स्वार्थी तत्त्वकेँ बहुत जोरसँ धक्का लगलनि आ तकरहि प्रतिक्रियामे विगत जानकी
नवमी दिन चलि रहल शान्तिपूर्ण धरना कार्यक्रममे एक अतिवादी उग्रवादी संगठन द्वारा
बम विस्फोट कएल गेल, जकर कतबो निन्दा कएल जाए, कमे होएत। हमरा जनैत ई
कार्य मिथिला राज्य आन्दोलनकेँ शिथिल करबाक लेल कयल गेल छल । कारण मैथिलक विषय मे
लोकक ई भावना छनि जे ओ जतेक बजैत छथि ओतेक कए नहि पबैत छथि, मुदा मिथिला राज्यक लेल चलि
रहल आन्दोलनमध्य आन्दोलनी मैथिलक मानसिकता देखि स्वार्थी तत्त्वकेँ डर पैसि गेलनि, ओ सभ सोचबाक हेतु
बाध्य भए गेलाह जे आइ धरि जे किछु सुनि रहल छलहुँ ओ हमरा लोकनिक भ्रम छल। हुनका
सभकेँ एतबा डर पैसि गेलनि जे संघर्षक अन्तिम चरणमे पहुँचि मारि-काट पर उतरि गेलाह।
स्मरण अबैछ ओ क्षण, जखन हम बम विस्फोटक
समाचार कान्तिपुर नेपाली दैनिक मे पढ़लहुँ, तँ रोइयाँ ठाढ़
भए गेल आ सोचबाक हेतु बाध्य भए गेलहुँ जे कि शान्तिपूर्ण आन्दोलनक ई गति उचित? सङहि स्मरण भए उठलाह मिथिला
राज्य संघर्ष समितिक अध्यक्ष प्रा. परमेश्वर कापड़ि, जनिका फोन कए मात्र ई पूछलियैन्ह जे- ‘ई की?’ । एहनो विकट परिस्थितिमे हुनक धैर्य आ साहसपूर्ण शब्द
सुनि हमर मोन किछु क्षणक लेल भावुक भए भेल, मुदा एकटा योद्धाकेँ समक्ष पएबाक गौरव बोध सेहो
भेल। हुनक वक्तव्य छल- ‘ई मात्र धरना पर बैसल
लोक पर कयल आक्रमण नहि छल, ई छल सम्पूर्ण मैथिल पर कयल
आक्रमण। जेकर जवाब हमरा लोकनि अपन अधिकार लऽकऽ देखयबाक लेल संघर्षमे गति आनब।’ एहिना जखनि कान्तिपुर क
संवाददाता आ नेपाली मैथिली साहित्यकार प्रा. श्याम सुन्दर शशि सँ, जनिका सङ हमर पारिवारिक संबंध
अछि आ माँक आदेश पाबि हुनक खोज खबरि लेल, तँ ओ मात्र एतबे कहलनि- ‘जे एहि लेल शहादत दिअ
पड़तैक बौआ’। एहि तरहक उक्ति सुनि हुनका लोकनिक प्रति
श्रद्धा सँ माथ झुकि गेल।
सम्पूर्ण
घटना आ षडयंत्र पर विचार कएलाक पश्चात हमर धारणा इएह बनल जे ई सांस्कृतिक अस्मिता
समाप्त करबाक षडयंत्र छल। जगत्जननी सीताक ई भूमि युग-युगसँ श्रेष्ठ सांस्कृतिक
क्षेत्र रहल अछि, इएह श्रेष्ठता किछु गोटएकेँ सह्य नहि भए रहल छनि। ओसभ एहि क्षेत्रक
विरुद्ध सामाजिक आ सांस्कृतिक रूप सँ किछु नहि क सकलाह, तखन
क्षुद्र राजनीतिकेँ अपनएबाक विचार कए एहि तरहक घिनाएल कार्य कएलनि। एही क्रममे
वृहत्त मधेशक सपना देखा मिथिलाक नाम मिटेबाक प्रयत्न कयल गेल। एहि प्रकारक
राजनीतिक षडयंत्रक बीच मिथिला अपन अस्तित्वक लेल लड़ि रहल अछि, मुदा बाँचत कि नहि ओ हम नहि कहि सकैत छी। हमर एकटा मित्र छथि मणिपुरक
डा. लोंगजम आनन्द सिंह, जखनि हुनका सँ मिथिला राज्य आ मैथिली भाषाक विषयमे चर्चा कएल तँ ओ कहलनि
जे – अहाँक कहनाम आ वर्तमान
अध्ययनक अनुसारे हम कहि सकैत छी जे मिथिला आ मैथिलीक संग ई
दूर्भाग्य भ गेलैक जे ओ जाधरि अपन स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखने रहल ताधरि कतेको
प्रदेशक भाषा, साहित्य आ संस्कृतिकेँ प्रभावित करैत
रहल, मुदा
जहिया सँ ओकर राजनीतिक प्रभाव क्षीण होइत गेलैक, ओ एकटा
वृहत्त संरचनाक माँझमे फँसैत गेल आ आइ अपन भाषा आ क्षेत्रक अस्मिता बचेबाक लेल
लड़ैत देखल जा रहल अछि। एहि दुर्भाग्यकेँ समाप्त करबाक लेल सर्वप्रथम अपन राज्यक
स्थापना दिस सम्पूर्ण मैथिल लोककेँ अग्रसर होएबाक चाही।- हुनक ई कथन हमरा नेपालमे
मिथिला राज्यक लेल संघर्ष क रहल मैथिल जनताक सोच मे समानता देखौलक। कहि सकैत छी जे
ओ लोकनि पुनः अपन अस्मिता आ पूर्वमे मिथिलाक संग कयल गेल व्यवहार प्रति सचेष्ट भए
उठलाह अछि आ सद्य:घटल घटनासभसँ आओर बेसी उर्जा प्राप्त
करताह।
आइ
धरि हमरा जनैत राजा शिवसिंह आ हुनक मैथिल सिपाही केँ छोड़ि केओ मैथिल मिथिला
राज्यक लेल शहीद भेलाह अछि से हमरा बुझल नहि अछि। मुदा एहि बेर मैथिल जनता अपन
धरती पर डटि संघर्षक मार्ग धएलनि आ ओहि यज्ञ मे अपन प्राणक आहूति तक दए देलन्हि।
हम प्रत्येक शहीदक प्रति नमन व्यक्त करैत छी, ओसभ अनचिन्हार होयतहुँ चिन्हार छलाह कारण ओ सभ
मैथिल छलाह, मुदा ओहि प्राण आहुति
देनिहारि एकटा शहीद, जनिका हम मात्र मैथिलक रूपमे नहि, एकटा संघर्षशील कलाकारक रूपमे
जनैत छलहुँ, छलीह शहीद रञ्जु झा। जनकपुर मे रहबाक समय वा कालक्रममे कखनो जयबा काल
हुनका सँ भेंट निश्चय होइत छल मुदा बेसी परिचय नहि, कारण ओ
एकटा नाट्यकर्मी छलीह आ हम छलहुँ एकटा शोधार्थी, जे अपन कम
सँ कम शोधक समय अपन विषय सँ इत्तर जएबाक प्रयास नहि करैत रही, आर जे करैत होथु मुदा हम इएह करैत छलहुँ। मिनाप मे एकटा सशक्त महिला
कलाकारक नाम छल रेखा कर्ण आ रेखा कर्णक पश्चात सभसँ लगनशील आ कर्मशील महिला कलाकार
हमरा मिनाप मे देखाएल छलीह रञ्जु। हुनक विषय मे बहुत किछु एहि सँ पहिने पढ़ने
छलहुँ आ सुनैत छलहुँ आ जहिया सँ शहीद भेलीह तँ आर बेशी हुनक विषय मे जानल । मुदा
जखनि हम हुनक विषय मे पढ़ैत छलहुँ तँ हमर मोन मे अनायास एकटा भावना आयल छल जे एहि
बेर जनकपुर जायब तँ निश्चय हुनका सँ भेंट करब, आ एकटा रंगकर्मीक जीवन पर
उपन्यास लिखबाक प्रयास करब। कारण हमरा लोकनि बहुत किछु एहि दुआरे नहि क पबैत छी जे
एहि लेल अर्थ चाही , व्यवस्था चाही, एहन परिस्थितिमे कोना होएत, मुदा रञ्जु मिथिला सन
परम्परावादी सोचक तीर्थ स्थान मे अपन उद्देश्य आ लक्ष्य पूरा करैत रहलीह। एहि लेल
हुनका कतहुँ भेटैत छलनि मान तँ कतहु अपमान। मुदा ओ एकटा उपन्यासक कथा नायिका जेकाँ
डटल रहलीह, कतहु ओहि मे ब्रेक नहि, सहज-निर्मल धार जेकाँ
बढ़ैत। हमरा सभक जीवनमे जखनि कठिनता अबैत अछि आ ओहि सँ लड़बामे अपनाकेँ
सामर्थ्यहीन भपैत छी, तखनि एहन–एहन मैथिलक जीवनसँ
ऊर्जा भेटैत अछि, ओहि समस्यासभसँ लड़बा लेल सशक्त मानसिकताक
जन्म होइत अछि। जहिना सीताक चरित्र एखनहुँ हमरासभक लेल आदर्शतम रुपमे उपलब्ध अछि,
ठीक तहिना रञ्जु सेहो सम्पूर्ण मिथिलाबासीक हृदयमे बसतीह। रञ्जु
भौतिक रुपेँ अपन शरीरकेँ त्यागि देल, मुदा हुनक आत्मा मिथिलाक बसात, पानि, ओकर परिवेश आ लोकक आत्मा मे
जीबैत रहत सदिखन। एतए डा. धीरेन्द्र क ओहि पाँतिक, जाहिमे नारीक आदर्शतम रुपकेँ
प्रतिष्ठापित कएल गेल अछि, सङ शहीद रञ्जूक प्रति
श्रद्धांजलि व्यक्त करैत छी-
नारी
थिक आधार पुरुषकेर , जाहि रूपमे देखी,
जनना, भगिना, मित्र, पत्नी वा दुहिता लए पेखी।
नारी
थिक पर्याय ममत्वक,सहनशीलता भारी
जते
बतहपन पुरुष करैए, सहए सदासँ नारी।
सर्वंसही
धरती थिक नारी, आर पुरुष आकाश,
जे
वर्षण कए अपन मोनसँ उपजबैत अछि चास।
नारी
पुरुषक कागज थिक जइ पर लिखइछ ओ कविता,
नारी
शितल चन्द्र-ज्योत्सना रहओ ओना नर सविता।।
चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान
मधुबनी, बिहार
विहनि-कथा
सद्गति
अनहेर भ गेलै......कोना के आब कटतै ओकर
परिवारक दिन......? कंठ
लागल बेटी छै घर मे...... दू टा संतान मे बेटीए जेठ छै......कोना हेतइ ओकर बियाह?
किशन..असेसरक बेटा ...चौदहे बरखक छै.......कोना के सम्हारतै घर.?
कोना करतै बहिनक बियाह......?बेशी
जथो-पात नहि छै जे बेच लेत. पाँचे कट्ठा खेत छैक. ओकरो यदि बेच लेत तखन खेतै कथी.?
अनेको प्रश्न..अनेको मुँह...सगरो संवेदना...सगरो गाम एकहि टा'
बात..जुलुम भ' गेलै........भरल जुआनी
मरि गेल असेसर......चालीसे बरखक अबस्था मे...नहि जानि कोन बेमारी धेलकै..ओह
....कन्नारोहट...नहि देखल जाइछ किशुनमा मायक कानब..हे भगवान...ई की भइ गेलै.....?
हाक-डाक छै......के जेतै कठियारी......एगारह
गोटे हिम्मत क के विदा भेल. आगाँ-आगाँ किशन हाथ मे आगिक कोहा नेने विदाह
भेल...मुखाग्नि देलकै..धधकि उठल अछिया..कक्का .....हबोढकार भ' कानय लागल किशुनमा हमरा कान्ह पर
मूड़ी रखने...संतोष बान्ह.....नहि भेल एहि सँ आगाँ किछु कहल हमरो..कंठ बाझि गेल
जेना.
तीन दिन बीतल..बैसार छै आइ..कोना हेतै
काज..गंगे कात मे बढ़िया हेतै-कहलियै हम."नहि-नहि, ई ठीक नइ हेतइ"- चट द' कहलखिन्ह पढुआ कका. चुप भ' गेल रही
हम."कनिञा, अहाँ कोनो तरहक चिन्ता नहि करू..हमरा लेल
जेहने हमर अप्पन बेटा-पुतोहु अछि तहिना अहूँ छी. हम करबइ असेसरक श्राद्ध. ओकर
श्राद्ध गामे मे हेतइ. अहाँक जतेक खर्च करबाक हो से करू. अहाँक जे केने संतोष भेटै
से करू. कोनो तरहक बिथुति नहि रहतैक." -असेसरक कनिञा के कहलखिन्ह पढुआ कका.
केबारक अढ़ मे बैसलि किशुनमा माय आ' दरबज्जा पर बैसल किशन,
किछु नहि बाजल रहय. "हाँ-हाँ, नीक
जेकाँ श्राद्ध त' हेबाके चाही जाहि सँ मृतक के सद्गति
प्राप्त हो"- बजलथि पण्डित कका.
पंचदान श्राद्ध आ दुनू साँझ सौजनिया होयब
निश्चित भेल.एकादशा......द्वादशा...बड़..बड़ी..पचमेर..बड्ड नीक काज भेलइ. जेहने
पवित्र असेसरक मोन रहैक तेहने पवित्र काज भेलै.सभ सामग्री एक पर एक..... जस दैत
नोतहारी....सौँसे गाम.
माछ-मौसक प्रात, आगाँ-आगाँ किशुन आ' पाछाँ ओकर माय के चौक दिस सँ अबैत देख मोन मे शंका भेल.लग अबितहि
पुछलियै-कत' सँ अबैत छह.? "झंझारपुर
सँ"-कहलक किशुन.मोनक शंका आओर बढ़ि गेल. तखनहि पाछाँ सँ पढ़ुआ कका के अबैत
देख सभ शंका दूर भ' गेल छल.रजिस्ट्री आफिस सँ?...मुँह सँ बहरा गेल हमरा..मूड़ी झुका लेलक किशुन..किशुनक हाथ मे झुलैत
रसगुल्ला भरल पन्नी देख अनायास मुँह सँ बहरा गेल-"सद्गति भेट गेल असेसर
के".
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
कथा
चन्दा
राघवकेँ चन्दाक
संगति सोहनगर लगैत छलन्हि। राघव आ चन्दा समवयस्क रहथि- लगभग पंद्रह बर्खक।
दू-चारि मासक दुनूमे कियो छोट तँ कियो पैघ। चन्दा छलीह सांवरि, सुन्दरि। शरीरसँ
पुष्ट मुदा लोथगर नै। सांमरि चाम मुदा चमकैत। आँखि मध्यम कदक मुदा रसगर। ठोर
मोट मुदा चहटगर। नाक पातर आ नोक लेने। शायद राघव केर दृष्टिमे सुन्दरताक नीक विवरण
यएह छलन्हि। चन्दा छलीह चंचल, कनीक ठसकसँ भरल आ ऐ गुमानमे
तनल जे ओ दबंग पिता एवं दबंग परिवारसँ छथि! चन्दाकेँ केवल दू बहिन आरो छलथिन्ह।
एक्को भाइ नै। ताहि चन्दा अपने-आपकेँ बेटा बुझैत छलीह। पन्द्रहम वयसिमे अएलाक
उपरान्तो चन्दा अपन उन्नत वक्षकेँ नै झपैत छलीह। ऐमे हुनक उदेस अपने-आपकेँ कामुक
बनेबाक नै छलन्हि बल्कि बेटा जकाँ बेटी छथि तइ बातक गुमान! मुदा जुआनीक दरबज्जा
खटखटबैत वक्ष, नाक, आँखिक गुमानसँ की
मतलब! चन्दाक गुमानमे हुनकर शारीरिक अंग अपन कामुकताक भावकेँ अनेरे प्रदर्शन करए लगैत छलन्हि।
आर-तँ-आर चन्दा राघव एवं अन्य समवयस्की छौड़ा सभ संगे कखनो कबड्डी तँ
चोरा-नुक्की खेलाए लगैत छलीह। जखन कबड्डी खेलाइत छलीह तँ चेतऽकऽबऽड्डी.....
डी...डी...डी... करैत हुनकर वक्ष सेहो शब्दक लयक संग संगीतक धूनमे मस्त भऽ
ऊपर-नीचा होमए लगैत छलन्हि। जेना चन्दा रंगमंचक कुनो नर्तकी होथि!
कतेको बेर जखन चन्दा
कबड्डी पढ़ैत राघव दिस अबैत छलीह, राघवकेँ मारबाक हेतु तँ राघव चन्दाकेँ पकड़बाक
प्रयास करैत छलाह। प्रयास ई जे चन्दाक सांस टूटि जाइन्हि। मुदा चन्दा ऐ
प्रयासमे जे बिना सांस तोड़ने राघवकेँ छू ली, आ बिना राघवक
चंगुलमे कबड्डी पढ़ैत अपना दिसि आपस भऽ जाइ। एक-आध बेर चन्दा अपन रणनीतिमे
सफलो भेलीह। मुदा अन्तत: छलीह लड़की। केना सकतथि, राघवक ठोस,
बलीष्ठ कद-काठीक समक्ष? अधिकतर समैमे राघव चन्दाकेँ
पकड़ि लैत छलथिन्ह। आब चन्दा राघवसँ अपने-आपकेँ छोड़ेबाक हेतु पूरा प्रयास
करैत छलीह। राघव सेहो अपने-आपकेँ ऐ प्रयासमे लगा लैत छलाह जे बिना सांस टुटने चंन्दा नै छुटथि।
ऐ नोक-झोकमे बिना कुनो गलत भावनाकेँ कतेको बेर छीना-झपटी करैत राघव केर हाथ
अनायास चन्दाक वक्षपर लागि जाइत छलन्हि। चन्दा बुझैत छलीह जे राघव कुनो दोसर
विचारसँ ई सभ नै कऽ रहलाह अछि। तँए चन्दाक मुँहपर कुनो तामस, लज्जाक भाव, प्रतिकार, घृणा आदिक भाव नै अबैत छलन्हि। बिल्कुल
स्वभाविक रहैत छलीह। मुदा कहि नै किएक राघवक कठोर हाथक स्पर्शकेँ अनुभव करैत छलीह।
हुनका किछु-किछु होमय लगैत छलन्हि। आँखि अनेरे आनन्दातिरेकमे मुना जाइत छलन्हि। की होइत छलहि तकरा ओ
शायद केवल अनुभव कऽ सकैत छलीह,
ओकर बखान शब्दक माध्यमसँ संभव नै। एहने हालति राघवोकेँ होइत छलन्हि।
नहु-नहु राघवकेँ एना लागए
लगलन्हि जेना चन्दाक वगैर जीवन अर्थहीन हुअए। चन्दासँ जइ दिन राघव भेँट नै
करथि तइ दिन मोन खिन्न भऽ जान्हि। चन्दा सेहो राघवसँ ओतबे सिनेह करैत छलीह।
मुदा राघव आर चन्दाक सिनेह छल निश्छल!
राघव छलाह आर्थिक
रूपसँ विपन्न ब्राह्मण कूलक बालक। एकर ठीक विपरीत चन्दा छलीह एक सुभस्य
ब्राह्मण कन्या। चन्दाक पिताकेँ तेरह बीघा ठोस खेतीहर जमीन आ खूब नीक लगानी केर
कार्य चलैत छलन्हि। चन्दाक पिताक नाओं छलन्हि बुलेसर। बुलेसर बलंठ छलाह। छह
फूट्टा मर्द, पहलवान, केवल अपन नाओं आ संख्याक ज्ञान छलन्हि।
लगानीक ललका बहीकेँ कऽ टऽ कऽ लिखैत-पढ़ैत छलाह। गरीब लोक सभकेँ सूदिपर टाका दैत
छलथिन्ह। बन्धकमे गहना, वर्तन, जमीनक
कागत इत्यादि राखि लैत छलथिन्ह। सूदिक दरसूदि जखन गरीब लोक सभ आसीन-कातिक
मासमे भूखे मरय लगैत छल तँ बुलेसर बाबू ओतए सबैया-डेओढ़ापर धान अथवा आन अन्न लेमय
जाइत छल। बुलेसर बाबू अपने हाथे अन्न जोखैत छलाह। एक मोनक बदला हमेसा 38 सेर दैत
छलथिन्ह। ओहूमे अनाजमे धूल-माटि मिलल। छाँटल पखरा अथवा आन कुनो मोटका धान। आ
लेबय काल एक मोनक बदला 41 सेरक आसपास लैत छलाह।
कतेको लोक पाइ दैयो
दैत छलन्हि तैयो अपन लगानीक ललाक बहीसँ नाओं कटैत छलथिन्ह। चारि-पाँच बर्ख
चुप भऽ जाइत छलाह। फेर एकाएक एक दिन बही लऽ कऽ ओइ व्यक्तिक घरपर महाजन बनि
पहुँचि जाइत छलाह, तगेदा हेतु। बेचारा परेशान! मुदा अपन बलंठीसँ चूर बुलेसर बाबू ओइ व्यक्तिकेँ
गरदनि अपन गमछासँ जकड़ि लैत छलाह। फेर ओकरा लाचार कऽ दैत छलथिन्ह पंचैती
बैसेबाक लेल। पंच की तँ छह-सात चमचाक दल। सभ बुलेसर बाबूकेँ हँ-मे-हँ मिलबैबला।
सभ हुनके सबहक बात कहएबला। बेचारा असहायक बातकेँ के सुनैत अछि? लाचार कऽ ओइ व्यक्तिसँ ओकर
जमीन आर गहना इत्यादि हथिया लैत छलाह। अही प्रक्रियासँ चारि बीघासँ तेरह बीघा
जमीन भऽ गेल छलन्हि बुलेसर बाबूकेँ।
एकबेर तँ बुलेसर
बाबू एहेन काज केलन्हि जेकरा लोक अखनो धरि नै बिसरल अछि- नृशंसकारी, जघन्य, हत्या समान, बल्कि साक्षात हत्या! एना भेलैक जे
टुनटुनमा मलाह बुलेसर बाबूसँ अपन पत्नीक इलाजक हेतु तीन सए टाका सूदिपर लेलकन्हि।
ई कहि जे छह मासमे सूदिक संग आपस कऽ देतन्हि। मुदा किछु कारणवश एक बर्ख धरि
आपस नै कऽ सकलन्हि। एक दिन प्रचण्ड जाड़सँ कपैत टुनटुनमा राघवक दरबज्जापर आबि
राघवकेँ पितामह संगे घूर तापि रहल छल। तमाकूल चुना राघवक पितामहकेँ देलकन्हि
आ अपनो खेलक। किछु कालक बाद अपन एक लठैतक संग बुलेसर बाबू सेहो राघव केर दरबज्जापर
घूर तापअ आबि गेलाह। टुनटुनमाकेँ देखैत मातर हुनका तामस चढ़ि गेलन्हि। विभत्स
गारि देमय लगलथिन्ह ओकरा -
“रौ बहान
...ोद! तूँ एखन धरि पाइ आपस नै केलयँ?”
टुनटुनमा कहए लगलन्हि-
“मालिक! हमर
हाथ तंग अछि। बेटा कलकत्तासँ आबैबला अछि। अबिते मातर दऽ देब, बिथुत नै करब।”
मुदा बुलेसर बाबूक
तामसे दुर्वाक्षा बनल छलाह। आरो गारि पढ़ैत गमछा टुनटुनमाकेँ गरदनिमे फँसा उठा
लेलथिन्ह। टुनटुनमा लाचार भऽ घेँघयाए लगल। बुलेसर बाबू सोहाइ चमेटा ओकरा ओकरा
कानक जाड़िमे मारलथिन्ह। हे भगवान! जाड़क मास, बुढ़ शरीर, भुखाएल
पेट, जीने काया, बेचारा टुनटुनमाक
कानसँ खून बहए लगलैक। मुदा तखनो बुलेसर बाबूकेँ संतोष नै भेलन्हि। गमछासँ
टुनटुनमाकेँ घिसियाबए लगलाह। ई देखि राघवकेँ पितामहकेँ भेलन्ह जे कहीं
टुनटुनमा हुनके दरबज्जापर नै मरि जान्हि। ओ बीचमे आबि गेलाह आ कहखिन्ह-
“हौ बुलेसर! ई
हमरा दरबज्जापर आएल अछि। मरि जएतैक। अतए किछु नै करहक।”
ऐ बातपर बुलेसर बाबू
कहलखिन्ह-
“ठीक छै कारी
कक्का, हम ऐ सार मलहाकेँ धोबिया गाछी लऽ जाइ छी।”
ई कहि टुनटुनमाक
गरदनिमे फँसाओल गमछा घिचैत धोबियो गाछी दिसि लऽ गेलन्हि। ‘मरता क्या नहीं करता'
बेचारा टुनटुनमा जेना कसाइ लग
गाए जाइत अछि तहिना बुलेसर बाबूक संग विदा भेल। आ बुलेसर बाबू जखन धोबिया
गाछी गेलाह तँ एक लात मारि टुनटुनमाकेँ धरतीपर पाड़ि पुन: एक ऐँर मारलखिन्ह।
फेर अपन ठेंगा ओकर निकासमार्ग -गुदामार्ग-मे घुसा देलथिन्ह। खूनक फुचुक्का निकलि
पड़लैक। बेचारा ओतहि कनैत बेहोश भऽ गेल। मुदा बुलेसर बाबूक चेहरापर अफसोस नहि
भेलन्हि आ मुँहसँ निकलन्हि-
“ठेंगो अपवित्र
भऽ गेल!”
टुनटुनमाकेँ ओतहि
ओही हालतिमे छोड़ि अपन घर दिसि विदा भऽ गेलाह।
लगभग आधा घंटाक
पछाति ऐ घटनाक जानकारी टुनटुनमाक बेटाकेँ लगलैक। जो ओकरा उठा कऽ घर लऽ गेलैक।
पैसा नै रहैक तँए देसी दबाइ प्रारम्भ केलकैक। भरि पेट खेबाक सेहो सामर्थ्य नै, तइ मनुक्खपर एहेन
अत्याचार! बेचारा टुनटुनमा 10 दिनक भीतर कराहि-कराहि कऽ मरि गेल। मरी गेल से
नीके भेलैक! अन्यथा दर्द स अनेरे परेशान रहैत । मनुक्खपर मनुक्ख द्वारा
एहेन अत्याचार! हे भगवान किएक नै देखैत छी एहेन लोक सभकेँ। किछु अही तरहक विचार
राघव केर लोक किशोर मनमे अएलन्हि जखन टुनटुनमाक सम्बन्धमे पता लगलन्हि।
मुदा बुलेसर बाबूक हृदैपर कुनो प्रभाव नै पड़लन्हि। ओ अपन बलंठगरीरीमे लागल
रहलाह।
बुलेसर बाबूक दू व्यक्तित्व
छलन्हि। लहनाक मामलामे ओ बलंठ, हृदैहीन, कसाइ आ कईंया छलाह। ठीक एकर विपरीत पिताक
रूपमे स्नेहशील, उदार आ अनुरागी। राघवकेँ चन्दाक नेनपनक
दृश्य यादि आबए लगलन्हि। जखन चन्दा चारि-पाँच बर्खक छलीह तँ बुलेसर बाबू सदिकाल
चन्दाकेँ अपना कन्हापर चढ़ेने रहैत छलाह। दुलारक अन्त नै। चन्दाकेँ सदिकाल
चन्दा बेटा कहि सम्बोधित करैत छलाह। चन्दा अगर कुनो कारणे रूसि जाइत छलीह किंवा
कनैत छलीह तँ बुलेसर बाबू चन्दाकेँ कोरामे उठा गीत गाबि-गाबि बौसैक प्रयास करैत
छलाह। गीतक आखरि किछु ऐ प्रकारक होइत छलैक-
“चन्दा तोरे
देबौ गे
सभ धन तोरे देबौ गे
तेरह बीघा के जोता
चन्दा तोरे देबौ गे
गहना तोरे देबौ गे
सोना-रूपा तोरे देबौ
गे....।”
आ गुमानसँ तनल चन्दा
शनै: शनै: कानब बन्न कए अपन पिताक चौरगर छातीसँ चीपकि जाइत छलीह। पिता-पुत्रीक
अगाध प्रेम। एहेन प्रेम जइमे प्रेमाधिक्य आ सिनेहक धार सदिखन बहैत रहैत छल।
राघवक किशोर मनमे
बुलेसर बाबूक प्रति धोर घृणा उत्पन्न होमय लगलन्हि। मन होन्हि जे ‘बुलेसराकेँ उठा कऽ
पटकि दी बीच चौबट्टियापर। लाते-लाते खनि दी।’ मुदा ई
हुनका नीक जकाँ ज्ञात छलन्हि जे बुलेसर बाबूक समक्ष हुनकर परिवारक अस्तित्व
शुन्य छन्हि। आर-तँ-आर राघव केर पिता सेहो बुलेसर बाबूसँ ऋृण लेने छलथिन्ह।
फेर राघवकेँ विचार अएलन्हि जे किएक नै चन्दासँ बात कएल जाए? मुदा फेर ओ अपना-आपकेँ
चेतलाह। चन्दा तँ थीकीह अन्तत: बुलेसरेक बेटी ने। साँपक गर्भसँ कुनो हंस जन्म
लेलकैक अछि। साँपक नेना साँपे जकाँ डॅसबे करतै। चन्दाकेँ कहने की लाभ? ऊपरसँ अगर चन्दा अपन पितासँ
शिकाइत करतीह तँ हमरो घरमे विपत्तिक भूकम्प आबि जाए!
...ई सोचैत राघव
चुप्पी साधि लेलन्हि। मुदा जखन-जखन टुनटुनमा बेटाकेँ बापक कर्म करैत देखैत
छलाह तखन-तखन घृणा आ पश्चातापक ज्वारिमे जरए लगैत छलाह। मुदा छलाह बेवश! लचार!!
मरता क्या नहीं करता!!!
कहि नै किएक चन्दा
राघवकेँ बिना अपने-आपके अनेरे बेचैन अनुभव करए लगलन्हि। एकबेर राघव आठ दिनक हेतु
मातृक गेलाह। चन्दाकेँ बिना कहने। चन्दा राघव केर घर लगका पोखरिमे नहाए अएलीह।
जखन राघवकेँ नै देखलन्हि तँ मनमे ई भेलन्हि जे राघव कतौ इम्हर-उम्हर चलि
गेल छथि किछु क्षणक हेतु। मन तँ नै लगलन्हि। चुप-चाप जल्दी-जल्दी स्त्रगनाही
घाटपर जाए पोखरिमे दू-चारि
डुम देलीह। एक लोटा अछिंजल लए ओतुक्के पंचमुखी महादेवपर आधा मनसँ जल
ढारलन्हि। राघवसँ भेँट नै भेलन्हि ऐ बातक कचोट करैत घर चलि गेलीह। घर जाए आधा
मनसँ आधा-छीधा अन्न खेलीह आ सोझे आमक गाछी आम ओगरए लेल चलि अएलीह। आमोक गाछीमे
चन्दाकेँ मन नै लगलन्हि। चन्दा मोने-मन भगवानसँ प्रार्थना करए लगलीह-
“हे भगवान!
जल्दी-जल्दी राति करू। सूति रही। जल्दी-जल्दी भोर करू जे राघव भेट जाए।”
मुदा राघव तँ आठ दिनक
हेतु गामेसँ बाहर भऽ गेल छलाह। खैर! चन्दा मुन्हारि साँझक बाद घर अएलीह। माए
पुछलखिन्ह-
“चन्दा,
अतेक देरीसँ किअए अएलेँह?”
चन्दा बजलीह-
“चोरा सभ आम
तोरबाक फिराकमे छल। सोचलौं जखन मखना रखबार आबि जाएत तखने कलम छोड़ब।”
चन्दाक ऐ जबाबसँ
प्रसन्न भऽ बुलेसर बाबू अपन सीना चौड़ा करैत पत्नीकेँ कहलखिन्ह-
“बुझलिऐक,
कतेक ज्ञानी आ बुझनुक अछि अप्पन चन्दा? चन्दा सन भगवान अगर बेटी
देथि तँ बेटाक कुन प्रयोजन?”
तइपर चन्दाक माए
कहलखिन्ह-
“अहाँ अनेरे
बजैत छी। लड़कीकेँ कुनो हालतिमे साँझ भेला उत्तर घरसँ बाहर नै रहबाक चाही।
समए-साल खराप चलि रहल छैक। कुनो ऊँच-नीच भऽ गेलैक तँ की हेतैक।”
मुदा बुलेसर बाबू
कतए चुप हुअएबला छलाह। कहलखिन्ह-
“की बाजि रहल
छी? केकरा हिम्मति छैक जे हमर चन्दा संग कनीकबो बद्तमीजी
करए। जे सोचबो करत तकर आँखि निकालि लेबैक।”
मुदा चन्दा अपन
माता-पिताक वाक्-युद्धमे हिस्सा नै लेलन्हि। बिना कुनो हर्ष-विषादक चुपचाप
ठाढ़ि रहलीह।
क्रमश:
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