भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, August 23, 2008

चारि टा टेलीग्राम- मदन ठाकुर

हमरा गाममे एक टा पुजेगरी बाबा छलथि ! ओऽ सभ भगवानक परम भक्त छलथि (खाश कs भैरब बाबाक बेसी पूजा पाठ करैत छलथि) मानू जेना ओऽ सभ देवता गणकेँ अपना बसमे कs लेने छथि ! गाममे बहुत प्रतिष्ठा आऽ मान सम्मान हुनका भेटैत छलनि, सभ कियो पुजेगरी बाबा पुजेगरी बाबा हरदम अनघोल करैत रहैत छल ! सबटा धिया पुता सभ साँझ-भोर-दुपहरिया बाबासँ कहानी आऽ चुटुक्का सुनए के लेल ललाइत रहैत छल ! बाबा सबकेँ केवल भलाई करैत छलखिन ! किएकी बाबा भैरबक परम भक्त छलखिन ! चारी घंटा केवल पूजा पाठ करयमे समय लागैत छलनि ! शीत-लहरी ठंढी रहए वा वर्षा होइत रहए, हुनका केवल पूजा पाठसँ मतलब रहैत रहनि ! खेती बारीसँ कुनू मतलब नञि रहैत रहनि, पूजा केलाक बाद केवल समाजक भलाईमे ध्यान दैत छलखिन ! जे की केला सँ, समाजमे यश आर प्रतिष्ठा रहत आऽ ग्रामीण लोकनिक भलाई होइत रहत! एतबे नञि दू चारि गाममे यदि किनको झगड़ा होइत छलनि तँ पुजेगरी बाबा पंचैती करैत छलखिन !



मुदा पुजेगरी बाबाकेँ एकटा बातक विशेष ध्यान रहैत छलनि, जे हम यदि मरि जायब तँ हमर समाजक की होयत ! हमर मृत शरीरकेँ केना अग्निमे जराओल जायत, ई सब बात हुनका परेशान केने रहैत छलनि !



एक दिन पुजेगरी बाबा यमराजसँ प्रार्थना आऽ विनती केलथि, जे हे यमराजजी, हमर मरए के समय जखन नजदीक आबए तँ हमरा डाक द्वारा टेलीग्राम, वा नञि तँ ककरो दिआ समाद पठा देब ! जाहिसँ हम निश्चिंत भs जायब आऽ अपन सबटा काजकेँ समेट लेब, आर हमर जे अपन सम्पति अछि (पूजा पाठक सब सामान) से हम कुनू निक लोककेँ दऽ देबैन जाहिसँ आगू ओऽ हमर काज धंधाकेँ देखताह !



समय बितल जाइत छल ! पुजेगरी बाबा वृद्ध सेहो हुअ लगलथि ! केश सेहो पाकि गेलनि ! दाँत सेहो आस्ते-आस्ते टूटए लगलनि आऽ डाँर सेहो झुकए लगलनि, ओऽ आब यमराजक टेलीग्रामक इंतजार करए लगलाह !



एक दिन पुजेगरी बाबा भगवानक पूजा-पाठ केलथि आऽ भैरब बाबाक सेहो ध्यान केलथि ! भोजन केलाक उपरांत कुर्सी पर बैसल छलथि, अचानक पेटमे दर्द उठलनि, ओहिसँ आधा घंटाक बाद हुनकर शरीरसँ प्राण निकलि गेलनि, सब ग्रामीण लोकनि मिलि कए हुनक अंतिम संस्कार कs देलकनि ! किएकी पुजेगरी बाबाकेँ किओ वंशज नञि छलनि,ताहि लेल ग्रामीणक सहयोगसँ पंचदान-श्राद्ध कर्म बिधि पूर्वक कs देल गेलनि !



पुजेगरी बाबा जखन स्वर्ग लोक गेलाह तँ हुनका लेल चारू द्वार खुजल छल! यमराज हुनका आदर पूर्वक सभा भवनमे लs गेलथि ! हिनकर बही खातामे सबटा नीके कर्म कएल गेल छलनि, ताहि लेल पुजेग्अरी बाबाकें निक स्थान निक व्यबहार आऽ निकसँ स्वागत कएल गेलनि!



हुनका स्वर्गमे कुनू तरहक कष्ट नञि होइत छलनि, मुदा ओऽ पूजा पाठ, पूजाक सामिग्री आर समाजक कल्याण लs कए बहुत चिंतित छलाह ! हुनका कनियोटा स्वर्गलोकमे मोन नञि लागए छनि ! एक दिन पुजेगरी बाबा खिसिआ कए यमराजसँ कहलखिन, जे हम अहाँकेँ कहने रही जे हमरा मरएसँ पहिने अहाँ टेलीग्राम भेज देब ताकि हम अपन काज धंधाकेँ सही सलामत कs कए स्वर्ग लोक आबितहुँ से अहाँ नञि केलहुँ ?



यमराज कहलखिन :



पुजेगरी बाबा हम अहाँकेँ चारि टा टेलीग्राम भेजलहुँ मुदा अहाँ ओकरापर ध्यान नञि देलहुँ से कहू हमर कोन कसूर अछि ? पुजेग्री बाबा सुनि कए चकित भs गेलाह, जे हमरा तँ कोनो टेलीग्राम नञि आयल! नञि यौ यमराज, अहाँ झूठ बजैत छी ! दुनु व्यक्तिकेँ आपसमे बहस चलए लगलनि तँ यमराज कहलखिन, सुनू पुजेगरी बाबा, हम अहाँकेँ कखन-कखन टेलीग्राम पठेलहुँ, अहाँ ओकर ध्यान राखब !



(१): हम पहिल टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँकेँ कारी केश पाकय लागल



(२): हम दोसर टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँक आस्ते-आस्ते सभ दाँत टूटय लागल



(३): हम तेसर टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँकेँ आस्ते-आस्ते डाँर झुकय लागल



(४): हम चारिम टेलीग्राम जखन केलहुँ, तखन अहाँ एतेक देरी कs कए हमरा ओहिठाम एलहुँ ! आब अहीँ कहू पुजेगरी बाबा, हमर कते गलती अछि ?



पुजेगरी बाबा कहलखिन :



यमराजजी अहाँ ठीके कहैत छी ! हम अपन काज-धंधामे लागल रही, ताहि द्वारे नञि ध्यान दए सकलहुँ आऽ नञि पढ़ि सकलहुँ अहाँक चारि टा टेलीग्राम ........



जय मैथिली, जय मिथिला



-: लेखक :-

मदन कुमार ठाकुर
कोठिया पट्टीटोल
झंझारपुर (मधुबनी)
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