भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Wednesday, June 10, 2009

मन्दाकिनी- प्रभास कुमार चौधरी

सुतली रातिमे गर्द मचल छलै।
बरबज्जी ट्रेनक पुक्की गामक लोक सुनने छलै, तकर कनियेँ कालक बाद रातुक निस्तब्धताकेँ चीरि पिहकारी आ ठहक्काक स्वर सभ चारू कात पसरऽ लगलै। ओही गर्दमगोल पर मनोजक निन्न टूटि गेलै।
बीच आँगनमे चैकी पर चितंग पड़ल छल। गुमार बेसी छलै। आँगनमे राखल चैकिये पर माइ बिछौन करबा देने छलै। गुमारक द्वारे सभक बिछौन आँगनेमे लागल छलै। आँगनक मड़बाक उतरबारी कात ओकर चैकी छलै जकर पौथान लग राखल चैकी पर ओकर माइक संग दीयर आ सुधा सूतल छलै-ओकरासँ छोट बहिनक बेटा-बेटी। मड़बाक पुबारी कात राखल चैकी पर प्रदीप सूतल छलै। पाँच भाइमे ओएह टा गाम रहै छै आ गामेसँ कॉलेज जाइत छै। छोटकी बहिन मुन्नीक बिछौन पुबारी घरक पछबरिया ओसारा पर छै आ मड़बाक माँटि पर निभेर सूतल छलै ओकर चरबाह गेनमा। उतरबरिया घरमे काका रहै छथिन, जकर पछबरिया अलंग झड़ि गेल छै। आ मात्रा एकटा कोठली फूसक कहुना ठाढ़ छै। दछिनबरिया घरक तीन कोठलीमे भाइक परिवार रहै छनि।
आँगनमे इजोरिया छिड़िया गेल छै। मनोज जखन आँगन आएल छल, नीक जकाँ अन्हरिया जमकल रहै। सभ सूति रहल छलै। खाली माइ जागल छलै, मुदा ओंघाइत एकटा चैकी पर बैसल छलै। थारी परसैत कहलकै-बड़ राति भऽ गेलौ। कतऽ छलऽ अन्हारमे?
माइक ओइ बात पर ओकर मोन पाछाँ... बहुत पाछाँ उधिआए लगलै। छोट... बहुत छोट होइत चल गेल ओ। अधिक काल साँझ पड़लो पर आँगन घुरबामे देरी भऽ जाइक। मुदा, गामक जइ कोनो आँगनमे रहए आ चाहे जतबा अबेर होइ, आँगन दिस जएबा लेले जखन बिदा होबऽ लागए... लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै। ओकरा देखि अनेरो मनोजक मोन लोहछि जाइ। चरवाह ओकर मोनक बात जेना बुझि जाइ।-हमरा पर किए बिगड़ै छी बौआ? मालिक नइं मानलनि। कहलनि-ताकि लबहुन जतऽ होथि। अन्हारमे कोना घुरताह?
आ, तामसें मुँह धुआँ कएने जखन मनोज अपन घर दिस विदा होअए, दरबज्जे पर लालटेम नेने टहलैत भेटि जाथिन दादा(पिता)। हुनका देखि ओकर क्रोध आर बढ़ि जाइ। दादा ओकर मोनक बात नइं जानि कोना बुझि जाथिन-अनेरो तमसैलासँ की हेतऽ? समय पर नइं घूरि सकैत छऽ तऽ कम सँ कम टाॅर्च लऽ कऽ जा। सेहो नइं होइ छऽ तऽ कहि कऽ जा जे कोन आँगनमे रहबऽ? घरे-घर ताकऽ तऽ नइं पड़तैक एना।
अही घरे-घर तकनी पर ओकर मोन लोहछि जाइ। जेना ओ कोनो दुध-पिब्बा नेन्ना रहए। प्रात भेला पर ओकर तामस आर बढ़ि जाइ। जेम्हरे जाए, सभ पूछऽ लगै-राति कहाँ चल गेल रही मनोज! चरवाह हमरो आँगन ताकऽ लेल आएल रहौ।
मुदा मनोज कतबो तमसाए, दादाक व्यवस्थामे कोनो अन्तर नइं होइत छलनि। साँझक बाद गामक कोनो आँगनमे रहए वा धार पार पेठिया-बजारमे अँटकि जाए, जखने विदा होइत छल लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै छलै। आ, अपन दलान लग दोसर लालटेम नेने दादा टहलैत रहै छलखिन। माइक बात पर मनोजकेँ ओ पुरना बात मोन पड़ि गेलै। आब ने ओ गाममे रहै अछि, ने घरे-घर क्यो लालटेम नेने ठाढ़ रहै छै। दलान-दरबज्जा सुन्न रहै छै। दादा नइं छथिन आब। ओकर संग ओकर छोटका भाइ सभ सेहो बाहरे रहै छै, गाममे रहै छै-माइ, एकटा छोट भाइ, एकटा छोट बहिन आ भागिन-भगिनी...
आइ दिनेमे गाम पहुँचल छल। दलान सुन्ने छलै। आँगनमे पैसि गेल छल। भनसा घरमे व्यस्त माइ देखिते दौड़ि कऽ आँगन आएल छलै आ हाथ पकड़ि शम्भूनाथकेँ भगवतीक घर लऽ गेल छलै। ओकरा खाली हाथ प्रणाम करैत देखि ओकर आँजुरमे किछु फूल आ दूटा टाका राखि देने छलै। भगवतीक बाद माइकेँ प्रणाम कऽ आँगन आएल ता उतरबरिया घरसँ काका बहार भेलखिन-कखन अएलऽ? ने कोनो समाद, ने चिट्ठी। कुशल-क्षेम कि ने!
ओ पैर छूबैत कहलकनि-आॅफिसक काजसँ दरभंगा आएल रही। एक दिन लेल गामो चल अएलहुँ।
-एक्के दिन लेल?-काकाक स्वर उदास भऽ गेलनि-एतुक्का हाल तऽ देखिते छी। पचहत्तरि बरखक बूढ़ आ जीर्ण रोगी। आब ई बबासीर एक्को क्षण चैन नइं लेबऽ दैत अछि।-एतबा कहि ओ शोणितसँ भीजल धोती देखबऽ लगलखिन।
ताबत माइ पछबरिया ओसारा पर बिछौन कऽ देने छलै। चैकी पर आबि कऽ जहिना बैसल, गेनमा पंखा हौंकऽ लगलै। कनेटा हाथपंखा। ओकरा फेर एकटा पुरना गप्प मोन पड़लै। दादाक व्यवस्था आ हुनकर नियम। जहिना शहरसँ क्यो आएल कि बड़का पंखा लऽ गेनमाक पित्ती टुनमा ठाढ़ भऽ जाइत छलै। अढ़ाइ हाथक डण्टा लागल बड़का पंखा! टुनमाक हाथ तैयो लगातार चलैत छलै-घण्टो।
पछबरिया घरक ओसारा परक चैकी पर जखन चाह पीबि, आ जलखै कऽ पड़ि रहल, बहुत रास पुरना बात मोन पड़लैक। भाइ गाममे नइं छलखिन। दक्षिणबरिया घर जा भौजीकेँ प्रणाम कऽ अएलनि। धीया-पूता सभ स्कूल-कॉलेज चल गेल छलै। माइ भनसाघरमे भानस-भातमे व्यस्त छलै। असगर चैकी पर पड़ल ओकर मोन बौआइत रहलै।
आँगनक सभटा चीज चीन्हल, मुदा तैयो नवे सन लगै। ओना, नव होएबाक सती सभ चीज पुरनाए गेल छलै आँगनमे। पछबरिया कोठे टा नव छलै, जकर ओसारा पर राखल चैकी पर ओ पड़ल छल। मुदा, ओकरो दुनू कोठली आ सौंसे ओसारामे एखनो माँटिए-माँटि छलै। कोठली ओसाराक संग भनसाघरकेँ सेहो सीमेन्ट करबा देबाक दादाक बड़ इच्छा रहनि, आ ओहू सँ पैघ इच्छा रहनि पछबरिया घरक कोठा पर चढ़बा लेल सीढ़ी बना देबाक। माइ कहियो काल दाबल स्वरेँ बजैत छै-एतबो नै पार लगैत छऽ तोरा सभकेँ। अपना नइं काज छऽ, मुदा बापक आत्माकेँ शान्ति भेटतह, हुनको लेल तऽ एतबा करबा लैह। ओ एकसर एतेक कऽ गेलखुन, तोरो लोकनि तँ पाँच छऽ...
सत्ते, ओकरा बुते किछुओ कहाँ सम्भव भेल छै? पछबरिया घरक सीढ़ी आ सीमेन्टक कोन कथा, पुबारि घरक मरम्मति पर्यन्त पार नइं लागल छै। चारू कोठली बरसातमे पोखरि बनि जाइत छै-एक्को बुन्न बाहर नइं। ओहो पक्के देबाल छै, मुदा छतमे टीन पाटल छै।
दादा सभ वर्ष ओकर नट-बोल्ट बदलि, पोलटिस लगबा दैत छलखिन... बीच-बीचमे कोनो चदरा बदलबा दैत छलखिन। आब वर्षक वर्ष भऽ जाइत छै। पुबारि घरक उतरबरिया आ दछिनबरिया कोठलीक देबाल वर्षाक पानिसँ अलगि गेल छै। देबाल टेढ़ भऽ गेल छै, कहियो खसि सकैत छै! दुनू बिचला कोठलीक आसमानी रंगक देबाल पर पानिक टघारसँ विचित्रा-विचित्रा रेखाकृति बनि गेल छै। पुबारी कातक ओसारा जे दलानक काज करैत छै, एकदम बदरंग भेल छै। किरमिची रंग धोखड़ि गेल छै आ फर्श परक सिमटी ठाम-ठाम उखड़ि गेल छै।
मुदा, माइ आब एकर सभक चर्चा नइं करैत छै ओकर गाम अएला पर। पहिने करैत छलै। ओइ चर्चा पर ओ उत्साहित भऽ सभटा बजट बना लैत छल। सीढ़ीक बजट, सिमटीक बजट, मरम्मतिक बजट। फेर गामसँ चल जाइत छल। अगिला बेर फेर बजट बनैत छलै। मुदा आब ओकर चर्चा नइं होइत छै। माइकेँ दोसरे चिन्ता छै-जेहो खेत बाँचल छऽ, परतिए रहतह। तोरा लोकनि देखबह नइं, तऽ हम आँगनसँ कतेक की देखबइ! एकटा बड़दसँ कतहु खेती भेलै अछि? भाँजवला बड़ झँझट करैत अछि। गाममे पाइयो देला पर आब हऽर लेल क्यो बड़द नइं दैत छै। दाउन करबा लेल बड़द नइं होइत छै। सभ झरबा लैत अछि बोझाकेँ।
माइक इहो बात कैक बेर सुनने छल मनोज आ ओकरो बजट बनल छलै। तकर बाद तीन खेप गाम आएल अछि। ने माइ चर्चा करैत छै, ने ओ मुँह खोलैत अछि।
पछबरिया घरक ओसारा पर पड़ल-पड़ल मनोज इएह सभ सोचि रहल छल। माइ एक बेर आरो चाह दऽ गेलै। ओ तैयो ओहिना पड़ल छल। दोसर बेर भनसे घरसँ माइ टोकलकै-एना पड़ल किए छऽ! नहा-सोना कऽ गामक लोक सभसँ भेट कऽ आबऽ।
तैयो ओ ओहिना पड़ल रहल। नहएला-खएलाक बादो बिछौने पर पड़ल रहल। किम्हरो जएबाक इच्छा नइं भेलै खएला-पीलाक बादो। माइयो आबि कऽ ओही ओसारा पर पटिया बिछा बैसि गेलै। ओकरा ओहिना पड़ल देखि पुछलकै-नोकरक कोनो इन्तजाम भेलऽ की नइं।
ओ मूड़ी डोला देलकै। माइ चिन्तित होइत कहलकै-तखन तऽ बड़ झँझट होइत हेतनि। चिलकाउर छथि, दुनू नेन्ना छोट छनि। ऊपरसँ एतेकटा परिवारक भानस-भात। ऐ गाममे तऽ आब आगि लागल छै। क्यो छोटका लोक बाते नइं सुनैत अछि। क्यो तैयारो भेल जएबाक लेल तऽ ओकर पट्टीक मालिक झट बहका दैत छथिन-खबरदार जौं गेलें। बसबें हमर जमीनमे आ काज आन पट्टीक। एहन-एहन पट्टीदार सभ छथुन। तोहर पट्टी तऽ सफाचट छऽ। लोके कम्म, ओ जेहो छऽ से बाहर जाइ लेल तैयार नइं। गाममे भुखले रहत, मुदा बाहर नीक-निकुत नइं जुड़तैक। एकटा तैयार भेल छथुन। छथि तऽ ब्राह्मणे, मुदा भानसक संग अइंठ-कूठ सेहो करऽ लेल तैयार छथि। पछिलो बेर तोरा कहने रहिअऽ।
-ककरा दऽ कहै छें?-मनोज मोन पाड़ैत पुछलकै।
-ओएह, मन्दाक बेटा...।
मनोजकेँ मोन पड़ि गेलै। पछिला बेर माइ चर्चा कएने छलै। मन्दाक नाम सुनि ओ चैंकल छल। मन्दाकिनी ओकरे गामक छलै, ओकर संग खेलाएल छलै। ओकरा बेटाक नाम सुनि ओकरा आश्चर्य भेल छलै-मन्दाक बेटा किऐक भनसीयाक काज करतै! ओकर वर तऽ कलकत्तामे कमाइत छै। सासुरोमे खेत-पथार छै।
माइ कने घृणासँ कहलकै-सभटा अपन चालि आ कर्म। वर छोड़ि देने छै, घरोसँ निकालि देने छै। चारिटा धीया-पूता छै। वर्ष दिनसँ बापक लग पड़ल अछि। गरीब बाप-माइ अपने बेटा सभ पर आश्रित छै। चारि गोटेक पेट कोना भरतैक? दुनू जेठका मजूरी करैत छै-अपनो ढहनाएल फिरैत अछि, चालि सुधरै तखन ने?
सूनि कऽ आश्चर्य आ दुःख भेलै। मन्दा ओकरासँ जेठ छल वयसमे। कनियाँ-वरक खेलमे कहियो काल ओ ओकरो कनियाँ बनैत छल। ओना बेसी काल ओकर कनियाँ बनैत छल मोना। ओ जेहने सुन्नरि छल, तेहने शान्त। कनियाँ बनि खपटाक बासन सभमे काँच बालु आ तरकारीक बतिया सभ राखि ओकरा लेल भानस करैत छल आ फेर स्कूलक कोठलीक माटिमे ओकर कनियाँ बनि चुपचाप ओकरा संग सूति रहै छल।
मन्दा सुन्दर नइं छल। रंग ओकर कारी नइं, तऽ गोरो नइं छलै। केश भुल्ल छलै जकरा कतबो तेल-कूड़ दैत छलै, भुल्ले रहै छलै। आँखि छोट-छोट छलै, मुदा शैतानीसँ नचैत। ने बेसी दुब्बर, ने मोट। चालि फुर्तिगर छलै, हरदम बुझाइ जेना पड़ाएल जाइत होअए। गाल फूलल-फूलल आ लाल पातर ठोर रहै, जकरा अधिक काल ओ बिचकाबैत रहै छल। ओ जहिया ओकर कनियाँ बनैक, अकच्छ करऽ लगै। जाहि कोठलीमे सभ कनियाँ-वर पड़ल रहै, ततऽ नइं सुतैक। कहियो कोनो झोंझमे, तऽ कहियो कोनो कोनटामे लऽ जाइ आ बुझनुक जकाँ बजैक-वर-कनियाँ कतौ सभक सामने सुतलैक अछि संगे!
मुदा संग सुतैत देरी ओ तंग करऽ लगैक-एना कल्ल-बल्ल की पड़ल छें! वर-कनियाँ एना नइं पड़ल रहै छै चुपचाप।
-तऽ गप्प करऽ ने कोनो! मोना तऽ कतेक रास गप्प करैत अछि।
-ओ बकलेल अछि। वर-कनियाँ खाली गप्पे करैत रहि जाएत तऽ बिआह कथी लेल करत, संगे किऐ सुतत?-मन्दा बुझनुक जकाँ बजैक।
-तऽ तोहीं कह, वर-कनियाँ की करैत छै!
झिक्का-झोरी होबऽ लगै। कहुना अपन पैण्ट सम्हारैत ओ उठि कऽ पड़ाए तऽ मन्दा खूब हँसैक-लाज होइ छै मौगाकेँ।
पड़ाइत मनोजकेँ मोना भेटैक तऽ मुँह कनौन आ आँखिमे नोर-हम नइं बनबैक कमलेशक कनियाँ! नंगरियाबऽ लगै अछि। ओकर कनियाँ मन्दा बनतैक। हम तोरे कनियाँ बनबौक।
मुदा बीच-बीचमे मन्दा शैतानी करैक आ मोनाकेँ कमलेश लग पठा दै आ अपने मनोजक संग लागि जाइ-हम एकरे कनियाँ बनबै, मौगाकेँ लाज होइत छै।
आ, एकसर होइत देरी ओ झट पैण्ट खोलि, फ्रॉक उनटि लैक आ मनोज लंक लऽ कऽ पड़ाए।
मुदा, ओही फ्रॉक उनटाबऽवाली मन्दाक जखन विवाह भेलै, चारिटा मौगी टांगि कऽ कोबर घर लऽ गेलै आ सभक नूआ चिरी-चोंत कऽ देलकै आ मुँह-कान नछोड़ि लेलकै।
आ, ओहि मन्दाकेँ वर घरसँ निकालि देलकै आ बेटा मजूरी करैत छै, से सुनि ओइ दिन मनोज स्तब्ध रहि गेल छल। माइकेँ तत्काल कोनो जवाब नइं दऽ सकल छल। साँझ खन मन्दा अपने आएलि छलै। माइ कोम्हरो गेल छल। मन्दा लग आबि ठाढ़ि रहलै, कहला पर बैसलै नइं। एकटा फाटल नूआमे सौंसे देह झाँपल। दोसर कोनो वस्त्रा नइं। आंगियो नइं। शरीर सुखाएल, आँखिक नीचाँ कारी छाँह आ ठोरो करिआएल। मनोजकेँ मोन पड़लै जे मन्दाक ठोर कतेक पातर आ लाल रहै। ओकरा एकटक देखैत देखि मन्दा कहलकै-की देखै छें एना! अनचिन्हार लगै छियौ हम?
-नइं... से बात नइं! देखै छलियौ जे तोहर ई हाल किऐ भेलौ? केहन तऽ सुखी छलें अपन घरमे!
मन्दा हँसलकै-से तों कोना जानऽ गेलें जे सुखी रही। विवाहक बाद की पहिनो घुरि कऽ कहियो पुछलें जें कोना छें मन्दा? नेनामे पैण्ट खोलि दैत छलियौ, ताहि डरेँ जे पड़ाइत छलें, से डर भरिसक लगले रहि गेलौ।
मनोजकेँ लाज भेलै। मन्दा ठीके कहैत छै। ओकरा नइं जानि मन्दासँ किऐ बाजि नइं होइत छलै। मन्दा जखन कने पैघो भेलै, ओकर चारू कात घण्टो बौआइत रहै छलै। पोखरिक जाहि घाट पर ओ नहाइत छल, ठीक ओकरे नहएबाक समय सभ दिन ओ पानिमे पैसि घण्टो चुभकैत रहै छलै। मनोज हेलि कऽ जाठि लगसँ भऽ आबए, मुदा ओ ओहिना छाती भरि पानिमे डूबल घण्टो ठाढ़ि रहै। जाहि आँगनमे ओकर ताश-कौड़ीक अड्डा जमए, मन्दा ओही ठाम भेटि जाइ। मुदा वर-कनियाँक खेलमे जे ओकरासँ डेराएल, से डेराएले रहल मनोज।
मन्दा ओही बात पर हँसी कएलकै आ मनोजकेँ लाज भेलै। अपनाकेँ स्वभाविक बनएबाक चेष्टा करैत कहलकै-से बात नइं छलै मन्दा। तोहर हाल तऽ बुझिते छलियौ, जा धरि गाममे रही। आब तऽ अपने गाम अनचिन्हार भेल जाइए। कहियो काल अबै छी। मुदा तोरा दऽ सुनि कऽ बड़ दुख भेल। मिसरक मति एना किऐ खराब भेलनि? एहि वयसमे, धीया-पूताक संग किऐ त्यागि देलखुन तोरा? झगड़ा भेल छलौ?
मन्दा फेर हँसलै-संग रहिते कहिया छलौं जे झगड़ा होइत? ओ कलकत्ता, हम गाम। कहियो काल वर्षमे एक बेर, पाँच-सात दिन आबि जाइत छलाह। झगड़ो करबाक बेर कहाँ भेटेत छल?
-तखन की भेलौ?-मनोजक प्रश्न पर ओ फेर हँसल, गामक लोक एखन धरि नइं कहने छौ? सभकेँ बूझल छै। जकरेसँ पुछबही, सएह कहि देतौ-हम कुलटा छी, किदन छी। एही कलंकक संग घरसँ विदा कएने छथि। मुदा हम तऽ कहियो नइं कहने रहिअनि जे पतिवरता आ सदवरता छी।
मनोजकेँ अवाक देखि ओ आगू बाजलि-तोरा कहबामे लाज नइं! तोरा लगमे नेन्नेमे अपन फ्रॉक उघारि लैत रही आ तों पड़ा जाइत रहें। सभ पुरुष तोरे सन नइं होइत अछि। जहिया गामक सभ स्त्राीगण उठा कऽ हमरा कोबरामे ठेलि देने छल, तोहर मिसरकेँ बड़ हड़बड़ी भऽ गेल रहनि। जहिया कहियो वर्ष दू वर्ष पर गाम अबैत छलाह, एक्के क्रियाक हड़बड़ी रहै छलनि। तकर बादे किछु।
मनोज रोकैत कहलकै-तऽ एहिमे कोन हर्ज छलै! स्वामीक अधिकार छलै ओ। एहिमे घरसँ निकालबाक कोन बात भेलै?
मन्दा फेर हँसलि-बात तकरे बाद भेलै। ओ सटल रहि पाँच-सात दिनमे चल जाइत छलाह। आँगनमे एकसर हम स्त्राीगण! ने सासु, ने ननदि। कतेक बेर कहलिअनि-हमरो कलकत्ता लऽ चलू, मुदा नइं लऽ गेलाह। लऽ कोना जैतथि? बापक माथ पर भार छलिअनि। कहुना छुट्टी पौलनि। जमाइ अनलनि मूर्ख, आॅफिसमे दरबान। घर रहनि तखन ने लऽ जैतथि कलकत्ता! मास-दू मास पर मनीआर्डर पठा निश्चिन्त भऽ जाइत छलाह।
मनोज फेर टोकलकै-ई तऽ भेलै नौकरीक विवशता। टाका तऽ पठा दैत छलखुन, तखन फेर की भेलौ?
मन्दाक हँसी आर बढ़ि गेलै-तखने तऽ असली बात भेलै। सुन्न आँगनमे एकसर मौगीक खोज-खबरि लेबऽवला, सहानुभूति देखाबऽवलाक संख्या बढ़ैत गेलै। पहिने अएलाह एकटा पितिऔत देयोर। भौजी-भौजी करैत एक दिन नइं छोड़लनि। फेर परकि गेला। हमहूँ परकि गेलहुँ। मुदा हुनका रोकलकनि अपने स्त्राी। तखन आएल गामक सम्बन्धे एकटा जाउत। काकी-काकी करैत ओहो ओहने...।
मनोज बीचमे रोकि देलकै-आ तोरा नीक लगैत गेलौ, परिकल गेलें। तखन तऽ वाजिबे निकालि देलखुन तोरा। कोनो पुरुष सैह करैत!
ओकर आँखि क्रोधसँ भभकि उठलै-ठीके कहै छें! सभ पुरुष एहिना करैत अछि। ओकरा दूरि कऽ किम्हरो चलि दैत अछि, आ मौगी एकसर ओकर बाट देखौ, अपनाकेँ झाँपि-तोपि कऽ राखौ। हमहूँ झाँपि-तोपि कऽ रहै रही। मुदा चारू कातसँ हाथ लपकल। मुदा से उघार होएबा लेल तऽ नइं निकललहु ँ ओइ घरसँ। निकलल छी ओइ घरमे पच्चीस वर्ष बिता कऽ, जखन हमरा संग रहबाक इच्छा तोहर मिसरकेँ नइं होइत छनि। ओ एकटा नव राखि नेने छथि, कलकत्तेमे। कमाइयो बढ़ि गेल छनि। आब हमर काज नइं छनि। चालीसक वयस पार भेलाक बाद, पन्द्रह वर्षक बेटाक माइ बनलाक बाद हम छिनारि बनि गेल छी। आब चारूमे कोनो सन्तान हुनकर नइं छनि, ओ ककरो बाप नइं छथिन। सभ अनजनुआक जनमल आ टूअर अछि। बड़काकेँ राखि लही तों, सभ काज कऽ देतौ। ने तऽ हमरे राखि ले, भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ कऽ देबौक, तोहर नेन्नो सभकेँ खेला-खुआ कऽ पोसि देबौक।
मनोज कोनो उत्तर नइं दऽ सकलै। तावत माइ आबि गेलै। ओ माइयोकेँ एक बेर फेर विनती कएलकै आ चल गेल। माइ ओकर जाइते पुछलक-की कहैत छलऽ तोरा?
-ओएह अप्पन बेटाकेँ, चाहे अपने राखऽ दऽ कहैत छल। भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ गछैत छल।
माइ एकदम्म निषेध कएलकै-एहन काज किन्नहु ने करिहऽ! बेटाकेँ रखबह तऽ राखि लैह। मुदा अपना नइं। प्रमोद लऽ गेल छलखिन अपना संग धनबाद। भारी काण्ड मचि गेलनि। बड़का अड्डा बनि गेलनि डेरा। कनियाँसँ नित्य झगड़ा होबऽ लगलनि। हारि कऽ पठा देलखिन।
आ अइ बेर गाम अएला पर माइ फेर कहलकै-ओ जाएब गछैत छथि, ओएह मन्दाक बेटा।
माइकेँ तखनो कोनो जवाब नइं दऽ सकलै। साँझ धरि ओहिना पछबरिया घरक पुबरिया ओसारा पर पड़ल रहल। धीया-पूता सभ स्कूलसँ घुरि गोड़ लगलकै।
आँगनसँ बाहर आएल तखन अन्हार नइं भेल रहै। उतरबरिया घरक दरबज्जा पर काकाक संग लाल काका बैसल छलखिन। गोड़ लगलखिन तऽ आशीर्वाद दैत कहलखिन-अखन रहबऽ ने!
-नइं काका। काल्हिए चल जाएब। छुट्टी नइं अछि।
मनोजक जवाब पर लाल काका पैघ साँस लैत कहलखिन-नीके करैत छऽ। ई गाम आब रहबा जोगर छऽहो नइं! हमरा लोकनि बूढ़-अथवल, जकरा कोनो उपाय नइं अछि, पड़ल रहै छी। लऽ चलऽ हमरो सभकेँ! दू साँझ खएबह आ धीया-पूताकेँ खेलबैत पड़ल रहबह। किताब-पत्रिका जमा कऽ दिहऽ पढ़ैत पड़ल रहब।
मनोज हँसैत कहलकनि-तऽ चलू ने लाल काका! अहाँ तऽ सब बेर एहिना कहैत छी, मुदा माया छोड़ैत अछि? अबितो छी कहियो काल, तऽ दोसरे दिनसँ मोनमे हल्दिली पैसि जाइत अछि-गाममे कोना की हैत! पड़ा अबै छी लगले।
लाल काका ओहिना पैघ साँस लैत कहलखिन-ठीके कहै छऽ हौ! कहाँ छोड़ैत अछि माया? ई गाम रहबा जोगरक अछि आब? नर्कसँ बत्तर। ने सभ्यता, ने शिष्टाचार। नवका छौंड़ा सभक उद्दण्डताक कथे कोन, बुढ़बो लोकनिक आचरण देखि दंग रहै छी। इएह, मोन नइं लगैत अछि तऽ भाइ लग आबि बैसैत छी। आर कतहु जाइ छी हम! देयर आर ब्रोथेल्स इन योर भिलेज नाउ!
लाल काकाक बात पर मनोज चैंकल नइं छल। ओकरा पछिलो बेर ई बात सुनल छलै। उतरबारि भीड़ पर घरे-घर रातिकेँ अड्डा जमैत छै। सेठ मुरली मिसरकेँ सभ घर नोत होइत छनि। अही गाममे रहै छथि आब मुरली। अपन घर नइं जाइत छथि। भोला झाक विधवा बेटी हुनका स्वामी मानि नेने छथिन, गामो मानि नेने छनि, मुदा खाली भोला झाक बेटीसँ सेठ मुरलीक मोन नइं भरैत छनि। टोलक सभ घरमे हुनकर अड्डा जमैत छनि। गामक नीक-नीक लोक ओइ बैसारमे शामिल होइत छथि। लाल काकाकेँ बर्दाश्त नइं होइत छनि।
मुदा, गामक लोककेँ सभटा रुचैत छै! बूढ़ सभक संग छौंड़ो सभ ओइ बैसार सभमे हुलकी दैत अछि। सभ भोरका ट्रेनसँ दरभंगा जाइत अछि कॉलेज, आ कहियो सतबज्जी, तऽ कहियो बरबज्जी गाड़ीसँ गाम अबैत अछि। छुट्टी आ शानि-रविकेँ गामेमे हल्ला-गुल्ला कएलक, पिहकारी मारलक आ राति-विराति चोर-चाहर आ छिनरपन कएलक! कथूक लेहाज नइं छै। लाल काका पछिलो बेर कहने छलखिन।
ओकरा कोम्हरो जएबाक मोन नइं भेलै। बेसी ठाम एहने गप्प, ने तऽ गोलैसी आ पाटा-पाटीक गप्प! ओ सोझे लाइब्रेरी दिस गेल। ओतऽ साँझसँ ब्रिजक खेलाड़ी सभ जुटैत अछि! पेट्रोमेक्स जरा कए, ने तऽ लालटेमो लेसि कऽ ओहो बाजी पर बाजी खेलाइत चल गेल।
जखन घुरल, सौंसे गाम निसबद छलै। आँगनोमे कोनो सुगबुगी नइं। खाली एकसरे जागलि माइ ओंघाइत बैसल छलै! परसि कऽ थारी आगूमे दैत कहलकै-बड़ अबेर भेलऽ। कतऽ चल गेल छलऽ अन्हारमे?
आ, ओकरा बहुत रास बात मोन पड़लै। दादा मोन पड़लै आ मोन पड़लै आँगने-आँगन लालटेम लऽ कऽ तकैत अपन चरवाह। ओही स्मृतिमे भोतिआएल आँखि लागि गेलै।
बरबज्जी टेªनक पुक्कीक किछुए कालक बाद गाममे कचबच-कचबच होबऽ लगलै। ओकर निन्न नीक जकाँ टूटि गेलै। बीच आँगनमे चैकी पर चितंग पड़ल छल। ऊठि कऽ आवाजक अख्यास कएलक। बुझएलै जेना बहुत रास लोक पुबारी दिस आबि रहल होइ। ओ ऊठि कऽ आँगनसँ बाहर आएल।
भीड़ ओकरे दरबज्जा दिस आबि रहल छलै। बड़का ठहक्का लागि रहल छलै आ बीच-बीचमे पिहकारी। मनोजक उत्सुकता बढ़िते गेलै।
भीड़ लगले नइं पहुँचलै ओकर दलान पर। सभ आँगनमे गेलै आ अन्तमे ओकर दरबज्जा दिस बढ़लै। दृश्य देखि ओ अवाक रहि गेल।
दू टा छौंड़ा दुनू दिससँ मन्दाक बाँहि मोड़ि पकड़ने छलै। ओ ओकरा धकिया-धकिया आगू ठेलि रहल छलै। मन्दाक आँखिमे ने नोर छलै, ने याचना। एकटा विचित्रा सन पथराएल दृष्टि, जेना जे किछु भऽ रहल छलै, तकर कोनो ज्ञान नइं होइ ओकरा। कोना यंत्राचालित पुतला जकाँ भीड़क संग आगू ठेला रहल छल। छौंड़ा सभक संख्या गोड़ दसेक। तकरा पाछाँ किछु गामेक लोक भीड़क तमाशा देखबा लेल संग भेल।
मन्दाक हाथ मोड़ने ठाढ़ रमेश आ दीनूकेँ मनोज डँटलकै-छोड़ि दहक हाथ! एना क्यो स्त्रिागणक संग व्यवहार करैत अछि! लाज नइं होइत छौ तोरा लोकनिकेँ?
दुनू ओकर हाथ छोड़ि देलकै आ आर आगू आबि दीनू बाजल-हमरा सभकेँ किऐ लाज हैत? लाज तऽ एकरा हेबाक चाही। अपना संग गामक इज्जति बजारमे नीलाम करैत अछि। आइ हमरा सभकेँ सतबज्जी ट्रेन छूटि गेल। बरबज्जीक आसामे रही कि देखैत छी एकरा प्लेटफार्म पर एकटा मोछियल बुढ़बाक संग टहलैत। दुनू एकटा घरमे पैसल। हमहूँ सभ पछोड़ धऽ लेलिऐ। पकड़ि लेलिऐ ठामहि। ओतहिसँ सभकेँ कहैत आएल छिऐक। गामोमे घरे-घर सभ ठाम लऽ जा कऽ कहलिऐ। मुदा, देखू, एकरा। लाज छै कोनो गत्रामे? एक्को बुन्द नोर छै पश्चात्तापक कतहु?
सत्ते, से नइं छलै कतहु! मुदा जे छलै से देख्ेिा मनोज डेरा गेल। ओ सर्द... भावनाहीन आँखि दिस देखैत ओ सिहरि गेल। तैयो साहस कऽ कहलकै-किऐ करै छें एना मन्दा? तोरा कनियो लाज नइं होइ छौ सत्ते?
ओकर बात पर मन्दाक स्थिर आँखिक पुतली कने हिललै! सोझे मनोजक आँखिमे तकैत कहलकै-सत्त कहियौ! ठीके हमरा कनियो लाज नइं होइए। ओ तऽ कहिया ने मरि गेल। मरि गेल देहक भूख! सभटा सुखा गेल। मुदा पेटक भूख नइं मरल। ओ अखनो लगैत अछि। तखन ई देखबाक फुरसति कहाँ रहै अछि जे बुढ़बा मोछियल अछि कि निमुच्छा छौंड़ा? नइं होइ छौ विश्वास तोरा? हम करा देबौ विश्वास तोरा, लाज हमरा कनियो नइं होइत अछि। एही छौंड़ा सभमे देख ने! बेसी हमर बड़कासँ कनिये छोट पैघ हैत! मुदा हमरा एकरो सभक संग लाज नइं। भूख हमरा अखनो लागल अछि। पाइ आ अन्न हमरा चाही। जकरासँ ई हमरा भेटत, तकर नाम-धाम, मुँह-कान नइं देखैत छिऐ हम। ठाम-कुठामक ध्यान नइं रहै अछि। हमरा लेल बन्न कोठली आ गामक एहि बाटमे कोनो अन्तर नइं। आबि जो, जकरा मोन होउ!
आ, सभकेँ आश्चर्यसँ विस्मित करैत मन्दा ओही ठाम माँटि पर चित्ते पड़ि रहलि। बहादुर छौंड़ा सभ भागऽ लागल। भागि गेल! मुदा मन्दा ओहिना पड़लि छल, सुन्न अकाशक नीचाँ, गामक सड़क पर छिड़िआएल इजोरियामे ओ चितंग पड़लि छल! निर्विकार! ओकर आँखिमे कोनो भाव नइं छलै! ने वासना, ने आमंत्राण, ने कातर-याचना। सम्पूर्ण भावविहीन छलै ओकर आकृति आ आँखिक पुतली स्थिर छलै-ऊपर आकाश दिस उठल।
मनोजक मोन कोनादन कऽ उठलै। ठेहुनियाँ दऽ ओकर मुँह लग बैसैत कहलकै-उठ मन्दा! झाँपि ले अपन देह! सभ पड़ा गेलौ, खाली हमही टा छियौ।
मन्दाकेँ जेना होश भेलै! स्थिर पुतली हिलऽ लगलै आ नइं जानि कहाँसँ बाढ़ि आबि गेलै ओइमे? अपन देह झँपैत उठि बैसल। मनोजक आँखिमे नोर देखि हँसबाक चेष्टा करैत कहलकै-तों कोना ठाढ़े रहि गेलैं रौ? तों तऽ हमरा एना देखि कऽ नेन्नोमे पड़ा जाइत छलैं।
मनोज कोनो जवाब नइं देलकै! कने काल दुनू आमने-सामने ठाढ़ छल-निःशब्द! तखन मनोज कहलकै-तों अपन आँगन जो मन्दा! भोरमे बड़काकेँ पठा दियहि। अपना संग पटना लऽ जएबै।

ताराकांत झाकेँ 2008 क साहित्य अकादमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार



श्री ताराकान्त झाकेँ २००८ केर साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार "संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र"-गोपीचन्द नारंग, उर्दूसँ मैथिली अनुवादपर प्रदान कएल गेल छन्हि।

श्री ताराकान्त झा पत्रकारितासँ जुड़ल छथि। पत्र-पत्रिकामे निबन्धक अतिरिक्त बंगलासँ हिन्दी आ बंग्लासँ मैथिलीमे एकाधिक पोथी प्रकाशित भेल छन्हि।

श्री ताराकान्त झा संप्रति मैथिली दैनिक "मिथिला समाद"क सम्पादक छथि।


साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार

१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)