ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ७८ म अंक १५ मार्च २०११ (वर्ष ४ मास ३९ अंक ७८)
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.नवीन कुमार आशा- आव मोन करें कमाई
३.७.1.शिवकुमार झा टिल्लू 2.गजेन्द्र ठाकुर
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संपादकीय
होलीपर व्यंग्य
“देखियौ तँ। एतेक टाक अपन भारत आ छोट सन देश सभसँ हारि जाइए। कखनो काल ओना जितितो अछि। क्रिकेटे टा नै यौ, ओहो, आनो खेल सभमे देखू ने।”
“औ बाबू। क्रिकेट, फुटबॉलमे देश पैघ रहने थोड़बे होइ छै। पूरा देश मिलि कऽ थोड़बे खेलाइ छै। यौ, एगारहे टा ने खेलाड़ी खेलेतै यौ। आ से पैघ देश रहौ आकि छोट देश।”
“मुदा पैघ देशमे ११ टा खेलाड़ी चुनबा काल नीक आ तेजगरकेँ नै चुनल हएत की? ”
“नीक आ तेजगर चुनबा में सेहो झमेला अछि। आब दक्षिण अफ्रीकाकेँ लिअ। जखन ओतऽ रंगभेद रहै तखन खाली गोरका खेलाड़ी चुनल जाइ छलाह। आब रंभेद खतम भेल तँ बीच में कारी खेलाड़ी सेहो चुनल जाए लगलाह। मुदा जखन टीम हारऽ लागल तँ पता लागल जे उल्लिखित रूपमे ई निर्णय लेल गेल छल जे अदहा कारी आ अदहा गोर खेलाड़ी चुनल जएताह। आब भारतेकेँ लिअ। उत्तर-दक्षिण, पूब-पच्छिम आ मध्य सन कतेक क्षेत्रसँ बराबर मात्रामे खेलाड़ी चुनल जाइत छथि। पहिने जे टीम रणजी ट्राफी जितै छल तकर ढेर रास खेलाड़ी टीम में आबि जाइ छलाह। आ आब साहित्यमे सेहो ई प्रवृत्ति आएल अछि।”
“साहित्यक गप कतऽ घोसिया देलियै मीत भाइ।”
मीत भाइ चुनौटी निकालै छथि, एक कातसँ अहगरसँ तमाकुर झाड़ै छथि आ फेर चुनौटीक दोसर भागसँ आंगुरसँ चून बहार करै छथि आ तरहत्थीपर राखल तमाकुरमे मिज्झर करै छथि। जखन तमाकुर आ चूनक गधमिसान उठै अछि तखन नोसि झाड़ैत तमाकुरकेँ ठोढ़क नीचाँ दाबि दै छथि।
“हौ, सभ गप मिलै छै। मैथिली साहित्यकेँ लैह। साहित्य आगाँ बढ़ि गेल मुदा समीक्षक ओतै ठाढ़ छथि, माने पछुआ गेल छथि। आब साहित्यकारकेँ लैह। लोक आ समाज आगाँ बढ़ि गेल मुदा साहित्यकार ओतै ठाढ़ छथि, माने पछुआ गेल छथि।”
“मुदा अहाँ तँ सभकेँ एक्के संगे डाङि दै छिऐ। अपवाद तँ सेहो होइ छै।”
“हौ, अपवाद तँ बेसी चीजमे होइ छै। आ जतऽ नहियो छै ओतौ सम्भावना रहै छै जे अपवाद भऽ सकै छै भविष्यमे। मुदा अपवादक डरे की निअम बनेनाइ छोड़ि दियौ हौ।”
“हँ, से तँ ठीके।”
“आब मैथिली साहित्यमे आउ। दछिनाहा, पछिमाहा तँ कहल जाइ छै मुदा उतराहा, पुबाहा सुनने छहक?”
“नै, से तँ नै सुनने छिऐ।”
“आब सुनै छिऐ पटनाबला ग्रुप, दिल्लीबल ग्रुप, कलकत्ताबला ग्रुप, जनकपुरबला ग्रुप आ दरभंगाबला ग्रुप सभ सेहो छै।”
“मुदा जनकपुर आ दरभंगाकेँ छोड़ि ई आन नग्र सभ तँ मिथिलासँ बाहर छै मीत भाइ।”
“हौ, सएह ने कहै छिअह। आब पटनाबला ग्रुपमे सभ पटनाक लोक थोड़बे छै। किछु पटनाक लोक दरभंगाबला ग्रुपमे आ किछु कलकत्ताबला ग्रुपमे सेहो छै।”
“माने मात्र नामकरण छै।”
“नै हौ। नामकरण छै आ संख्याक बहुलताक आधारपर ई नामकरण छै।”
“मुदा मीत भाइ। जइ रचनामे जान रहतै तँ बिन ग्रुपोक बात सुनल जेतै ने।”
“हौ, मिथिलाक क्षेत्रफल तँ थोड़ छै। मुदा तैयो ग्रुप छै, किए छै से ने बुजहक।”
“से किए छै मीत भाइ।”
“हौ, गाममे रहै छह तँ एक्के गाममे कएकटा फाँट नै देखै छहक।”
“से तँ ई पंचायती चुनाव देखार कैये देने छै।”
“आब पंचायती चुनावकेँ दोष देबहक। हौ, प्रवृत्ति होइ छै। गाममे जातिक मध्य ग्रुप होइ छै।”
“आ जे एकछाहा होइ, मैथिली साहित्य जकाँ, तखन?”
“तखन तँ आरो ग्रुप होइ छै। माने ब्राह्मणमे देखहक। एकहरे, दलिहरे, सरिसवे खांगुर। चर्चा कऽ कए देखहक तखन पता चलतह। सरिसवे खांगुर कहतह जे एकहरेसँ बेसी धूर्त आर कियो नै आ एकहरे कहतह जे सरिसवे खाङुर बड्ड मारुख। यादवमे कृष्णौठ आ गरेड़ी आ वैश्यमे मारवाड़ी (बाहरी) आ देसवाल (एतुक्का स्थानीय), तहिना धानुकमे मगहिया आ देसिल। हौ, कतेक गनेबह। परुकाँ साल गन्धबरिया आ चौहानी राजपूतक बीच झमेला नै मोन छह। दियाराक बनौत आ गंगा दियाराक गंगौत अलगे संगठन छै।”
“तँ की हम सभ खण्ड-पखण्ड भऽ गेल छी।”
“नै हौ। तोरा कहलियह जे ई प्रवृत्ति होइ छै। आब आगाँ आबह। गाम छोड़ि झंझारपुर आबि जाह तँ सौंसे गौआँ एक। झंझारपुर छोड़ि दरभंगा आबि जाह तँ सौँसे जिला एक। दरभंगासँ पटना आबि जाह तँ सौँसे मिथिला एक। दिल्ली, कोलकाता, काठमाण्डू चलि जाह तँ सौँसे बिहार आ मधेस एक बुझेतह। हिन्दीमे नै देखै छहक, बिहारी लेखकक संगठन, मध्य प्रदेशक लेखकक संगठन; सहित्य क्षेत्रमे हौ।”
“माने एक हेबा लेल दूर गेनाइ जरीरू छै।”
“नै हौ, सेहो नै। बात फेर वएह छै। साहित्य समाजक दर्पण हेबाक चाही, मुदा ओ पछुआ गेल छै हौ। आगाँक बदला पाछाँ जा रहल छै हौ।”
मीत भाइ तमाकुर थुकरै छथि।
“ई बुझू जे लोक तँ जुड़ल अछि मुदा साहित्यकार सभ नै जुड़ल छथि। हुनका सम्मान चाही आ तै लेल ओ राजनीतिज्ञ बनि गेल छथि, मैथिलीकेँ खण्ड-पखण्ड करबामे लागल छथि। आ से होइ छै ऐ छोट होइत जाइत भाषाक भौलिक क्षेत्रमे! सहरसा, सुपौल, जनकपुर, मधुबनी, दरभंगासँ बढ़ि कऽ पटना, दिल्ली, कलकत्ता आ आब प्रिन्ट आ इन्टरनेटक साहित्य मध्य सेहो ई लोकनि अन्तर करऽ चाहै छथि।”
“इन्टरनेट साहित्य मध्य सेहो अन्तर! से किए मीत भाइ।”
“फेर वएह गप। प्रवृत्ति होइ छै हौ। हमरा लोकनिक एकटा सांसद भारतीय संसदमे भाखड़ा नांगल परियोजनामे पनबिजली निकालबाक योजनाक विरोध केने छलाह।”
“से किए मीत भाइ?”
“प्रवृत्ति होइ छै हौ, जखन तोहर साहित्यकार आ राजनेता समाजसँ पछुआ जेतह तखन यएह सभ ने हेतह। आब सुनह ओ विरोध किए केने रहथिन्ह। हुनकर मानब रहन्हि जे पानिसँ जे बिजली निकालि लेल जाएत तँ किसानकेँ साबुत पानि नै भेटतै आ ओइसँ जे पटौनी हेतै तइसँ पुरकस फसिल नै हेतै।”
“आब बुझलहुँ मीत भाइ। अन्तर्जालक साहित्यक विरोध पछुआएल साहित्यकार लोकनिक अज्ञानता देखबैत अछि।”
“देखार तँ लोक भैये जाइ अइ ने हौ।”
तावत मीत भाइ लेल अंगनासँ भांगक गोला अबै छन्हि आ हम बिदा होइ छी। ठामे गोनर भाइ भेटै छथि।
“ई मितबा की सभ भाषण-भाख दै छल। बड्ड चिक्कन गप-सप होइ छै ओकर। मुदा लोक दू नमरी अछि। भरि टोलसँ केस-फौदारी लड़ि रहल अछि, पोखरिक केस तँ बान्हक केस। आ अपन माए-बापकेँ तँ बड्ड मारै छलै। मएकेँ तँ एक बेर टेटर उठि गेल छलै।”
“मुदा गप्प-सप्प तँ ठीके कहै छलाह।”
“तँ कोन नव गप कहै छलाह। हमहूँ कने काल बान्हपर लगही करबाक बहन्ने बिलमि गेल छलहुँ। ओ जे गप करै छल से ककरा नै बुझल छै यौ।”
“हँ, से तँ सत्ते।”
हम पुछै छियन्हि- “मुदा मीत भाइ जे अहूँक विषयमे सएह कहथि तखन?”
“हौ, हमरा कोन बौस्तुक कमी अछि। मास्टरी करै छी। छह हजार नौ सए निनानबे टका दरमाहा अछि। ओइमे एक टका जोड़ि कऽ सात हजार टका सभ मास बैंकमे जमा कऽ दै छिऐ। आ से बीस बर्खसँ कऽ रहल छी, खेती-बाड़ीसँ गुजर करै छी। अपन बापक बेटा नै होइ जे ओइ जमा पाइसँ एकटा नवका पाइ निकालने होइ। लड़काबला लग जाइ छी, कन्यादान जे कपारपर अछि, तँ बैसैये नै दैए। की, तँ मास्टर छिऐ, कतऽसँ पाइ एतै। रौ, बाजै जो ने जे कत्ते पाइ चाही। ऐ कल्लर मीत भाइ जकाँ ठोड़बे हौ, जे भरि दिन भांग पीबि गप्प छँटैत रहैए।”
बुझा पड़ल जे मीत भाइ गप्प सुनि लेने छलखिन्ह, से हमरा दुनू गोटेकेँ सोर केलन्हि। मुदा गोनर भाइ बहन्ना बना आगाँ ससरि गेलाह।
मीत भाइ बजलाह- “हे ई की कहैए जे लड़काबला बैसैए नै दैए। से कोना बैसऽ दै जेतै। तेसुरकाँ हम एकटा कुटमैती कऽ देलिऐ। सभ चीज गछि लेलकै आ जखन बियाह भऽ गेलै तँ देबा काल की कहै छै बुजलहक। ... ’हमरा की मोन अछि जे ओइ धुनिमे की गछलियन्हि आ की नै, लड़काबला जे सभ कहैत गेलाह हम हँ, हँ करैत गेलियन्हि।’... आ जखन गछलाहा मोने नै छै तँ देतन्हि की कपार। आ से दोसर लड़काबलाकेँ बुझल छै, आ तखन के ओकरा बैसऽ देतै। आ हमर खिधांश करैए, धन हम जे एकटा कुटमैती भेलै।”
मीत भाइ तामसे पएर झटकारैत आंगन दिस बिदा होइ छथि आ हम गुम्म भेल ठाढ़ रहि जाइ छी।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १,७२६ ठामसँ ५७, ६६५ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,९४,९९० बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
डॉ. शेफालिका वर्मा एकटा संस्मरण एकटा प्रश्न
आइ अखबार मे पढ्लों मृदुला गर्ग केर एकटा आलेख ' सेक्युलर के नाम पर सम्मान का धंधा '....ओ ते लिखलनि ..आप हमारी संस्था को दास हज़ार रुपये दो,मै आपको 'फ़लाने' सम्मान से सम्मानित करूँगा..'...ओ चमत्कृत भ गेल छलीह .केओ ते हमरा सम्मान योग्य बुझ्लनी ..पाछा जे ओ दस हज़ार क गप सामने आइल...
हमरो मोन पड़ी आइल . स्थायी रूप स हम दिल्ली आइल छलों स्यात २००९ क मार्च मे.. ....२ .३ मासक उपरांत एकटा बड पैघ इंटर नेशनल संसथान दिसि से हमरा बड़का लिफाफा भेटल . रंग विरंगी बेसकीमती कागज़ मे बड़का बड़का लोगक फोटो छपल , पुरस्कार लैत, दैत...भव्य मंच, सजावट....अंग्रेजी मे एकटा पत्र हमर नामे छपल छल ..जे साहित्य आ समाजक सेवा लेल हम अहाँ के सम्मानित करे चाहैत छी..अहाँ देखि लेब जे हम कतेक गोटा के सम्मानित केने छी ,सभक फोटो सेहो पठा रहल छी ..सांचे ओहि मे पूरा प्रोग्राम केर फोटो छल .सबटा आर्ट पेपर पर .....हमर जी थरथरा गेल ई कोन संस्था थीक जे दिल्ली अबितहि सम्मानित करे लेल अगुआय्ल अछ ...रोमांचित भ उठलों ..फेर सोच्लों ,अरे एतेक भाषाक ' हूज हु' मे नाम निकलल अछ ओहि से खोजी नेने होइत.लागले फोन आइल अहाँ के हमर लिफ़ाफ़ भेटल ..आमंत्रण भेटल.हम सब अहाँ के सम्मानित कर चाहैत छी .......हम सोचैत सोचैत ठीक छै बाजि देलों..सब टा गप्प अन्ग्रेजिये मे भेल..हमर नाम के , किएक प्रस्तावित केने हेताह , दूर दूर धरि अहि युग मे केओ नै बुझा पडल..देखा पडल .....१ लाख रुपैया मामूली गप नै थीक जे केकरो करेज होइत केओ आन के दय दी ..सभक जी अपना अपना ले ओनाय्ल अछ......बड देर धरि सोचैत रहलों ,अपन आन के गुनैत रहलों ..के भ सकैत अछ...ई कोन संस्था एतेक ठस्सा वाला थीक एतेक पाई वाला..!
तखन हम अपन जेठ बेटा राजीव के फोन लगेलों जे दिल्ली विश्व विद्यालय मे प्रोफेसर अछ आ आइ ३० बरिस से दिल्लीमे अछ --ओकरा जरुर बुझल हेतैक....हम सब बात ओकरा पढ़ी के सुना देलों....ओ ख़ुशी से गद गद भ गेल..मम्मी ,एहिठाम अबिते अहाँ मैथिली भोजपुरीक सेमिनार मे भाग लेलों...आब ई ...बहुत ख़ुशी क गप , हम बाजलों ..राजू मैथिली भोजपुरी मे ते सब अप्पन छल एहि मे ते देसी विदेसी भरल अछ...हमर नाम के कहलक ..ओ एतेक खुश छल जे --छोड़ू ई सब गप भगवन जे दै छथिन ख़ुशी ख़ुशी ग्रहण करु....हम आश्वस्त भ गेलों.....अपन सम्मान दुनिया मे केकरा ख़राब लगैत छैक....
दस दिन बाद क बात छी, हम बिसरी गेलों , दिल्ली मे नव नव किनल घर द्वार के ठीक करे लगलों .....अचक्के एक दिन फोन आइल.. आर यु डॉ. शेफालिका ...हम यस बाजलों...अहांके मोन ऐछ ने काल्हिये प्रोग्रम्म थीक. ..हम चोंकि उठलों ..हं हं किएक नै...मोन अछि...
तं काल्हि ५ बजे साँझ से प्रोग्राम होइत...अहाँ एतेक हज़ार रुपैया एकटा लिफ़ाफ़ मे नेने आइब, प्रोग्राम से एक घंटा पहिने.......
हम अव्चंक भ गेलों .कहियो ई सब जानि बुझि तखन ने , रूपया किएक ??? ई नियम थीक एहि संस्थाक दीप तर अन्हार , वो बाला मधुर स्वरे बजलीह एहि मे कोन बुराई, अहाँ के सम्मानक संग ट्को भेटत ..,,,,,कोनो लोस नै अछ खाली गेने गेन...हम सपाट स्वरे ब्ज्लों हमरा टका द क सम्मान नै चाही...
तखन मोन मे घुमड़ लागल कतेको प्रश्न जाहि मे एकटा प्रश्न जरैत बुझैत आगि जकां ठाढ़ छल ..की एहनो होइत छैक ....
१.शिव कुमार झा "टिल्लू"- समीक्षा मैथिली कथाक विकासमे गामक जिनगीक योगदान-
गामक जिनगी'क पहिल कथा भैंटक लावा मिथिलाक बाढ़िक दशाकेँ केन्द्रित कऽ कऽ लिखल गेल अछि। भैंटक लावाक संदर्भमे हमरा सबहक गाम-गाममे एकटा कहबी चर्चित छैक- “बड़-बड़ जनकेँ भैंटक लाववा पदनोकेँ मिटाइ।” ऐसँ प्रमाणित होइछ जे सोती, मुरदैया, पोखरि, धनखेतामे जलमग्नक परिणाम स्वरूप जनमल भैंटक- निघृष्ठ भोज्य पदार्थ थिक। भोज्य पदार्थ मात्र समाजमे रहितौं यायावरी जीवन व्यतीत करैबला लोक लेल। ऐ कथाकेँ पढ़ि एकर प्रयोजन कनेक्शन विस्मित कर'बला परंच उपयोगी लागल। कथा मुसना ओकर अर्द्धांगिनी जीबछी आ दुनू बच्चाकेँ बाढ़िक जीवन दशासँ जोड़ि विम्वित कएल गेल अछि। अपना ऐठामक लोक संतान प्राप्तिक लेल जीबछ घाटमे मनौती मनैत अछि। जौं पुत्र लेलक तँ जीबछा आ जौं बेटी आएलि तँ जीबछी। ऐ जीबछीक तँ नेनकाल नै देखाओल गेल, ओहेन मॉगल-चाॅगल छथियो नै मुदा साहस देखनुक। मुसनाकेँ सर्पदंशक काल जीबछी साहस नै छोड़ली। झाड़-फूक सन भ्रांतिकेँ ऐ कथामे देखाओल गेल परंच परिणाम सकारात्मक- “मुदा ढोढ़ सॉप कटने रहए तेँ बिख लगबे नहि केलै।” ऐसँ रचनाकारक ग्राम्य जीवनक मनोदशाकेँ परिवर्तन करबाक उद्देश्य प्रमाणित होइत अछि।
श्रीकान्त सन गामक छड़ीदारकेँ बाढ़ि उद्देश्य पूरा नै करए देलक। जौं अन्न रहितनि तँ सूदिखोरी चैलतनि मुदा अपने खएबाक लेल नै तँए आगाँ की सोचथि.....?
जीवछी हुनके आश्रममे कुटौनी करति छलीह, श्रीकान्त बाबूकेँ सोगाएल देख जीबछीक कथन- “एक्केटा बाढ़िमे चिन्ता करै छथि कक्का, कनी नीक की कनी अधलाह, दिन तँ बितबे करतनि।” मे साहसक संग-संग यथार्थबोध होइत अछि। अभावक नाहमे सवार व्यक्तिकें भासि जएबाक कोनो चिन्ता नै, ओ तँ ई सोचि कऽ जल-यात्रा करैत अछि जे अथाह पानिमे नाह डूबबे करत। तँए हेलबाक कला पहिने सीख लेल जाए। दीन-हीन आ साधन वििहन मानवीय जीवनमे विचलन नै होइत छैक। मुसना अर्थात मकसूदन मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भातमे जीबछीक सिनेह आ दुखनीक आश देख अमृत मानि कऽ ग्रहण कऽ लेलक। रातुक कोनो चिन्ता नै जीबछी साक्षात आर्या बनि ठाढ़ छलीह- “ककरो किछु होउ जकरा लूरि रहतै ओ जीबे करत।” बाढ़िसँ सभ क्यो तबाह कमला महरानीकेँ दीप बाड़ि अपन प्रभाव कम करबाक प्रार्थना सभ िकयो करैत छल। यएह थिक मिथिलाक गामक जीवन केर मनोवैज्ञानिक रहस्य। हम-सभ भगवतीक आगाँ बलि प्रदानो कऽ सकैत छी तँ कखनो प्रकृत पूजन सेहो। जखन पानि कम भेल तँ सभ कियो अपन डूबल खेत-पथारक गलल डाॅटकेँ गनऽ मे लागि गेलाह मुदा जीबछीक पारखी दृष्टि भैंटक कोखिकेँ देखबामे मग्न छल। श्रीकान्त बाबूसँ आज्ञा लऽ कऽ हुनक खेतसँ भाँटिकेँ उजाड़ि अन्न निका लऽ लगलीह। लावाक सुगंधसँ जीबछीक कल्पनामे चारि चान लागि गेल बाढ़िकेँ जीवनक उपहार मानि कमला-कोसीकेँ धन्यवाद दिअ लगलीह। ऐ प्रकारक सोचसँ कियो विस्मित भऽ सकैत अछि- बाढ़ि कखनहुँ लाभकारी कोना होएत? मुदा जीबछीकेँ डूबैक लेल तँ किछु रहबे नै करए धास-पातक घर फेर बनि जाएत। महींस नहियो तँ गाइये कीनबाक योजना बनाबऽ लगलीह।
स्वाभाविक अछि कर्मठ लोककेँ दुआरि ताकए नै पड़ैत अछि। कथाक सभसँ नीक प्रसंग लागल जे पहिलुक भैंटक चाउर श्रीकान्त बाबूकेँ देबामे जीबछीक दृष्टिकोण। गरीब कखनहुँ विश्वासधात नै कऽ सकैत अछि। संग-संग कथाक आकर्षण घटना चक्रक क्रममे जखन ठेंगी मुसनाक भरि पोख खून पी लेलक तखन मुसनाक शंकाग्रस्त करब जे जीबछी हुनक मरबाक कामना करैत अछि किएक तँ दोसर पुरूष भेंट जेतनि। समाजक दाबल वर्गमे नारी शोषण नहि, किएक तँ नारी पुरूषक संग-संग जीवनक वाहनकेँ गति देवामे गतिशील रहैत छथि। ओ दोसरो विवाह करबाक लेल स्वतंत छथि। आगाँक जाति तँ नारीकेँ आब अधिकार दिअ लागल पहिने तँ अो अंगनक लक्ष्मी मात्र छलीह। ऐ कथाकेँ पढ़बाक कम सोचऽ मे अबैत अछि जे अागाँ किनका मानल जाए मुसना सन मुसहरकेँ वा हमरा सन......।
रचनाकारक एकटा आर दृष्टिकोण नीक मानल जाए जे समाजक दूटा अलग-अलग वर्गक कथा कहितहुँ वर्ग संघर्ष नै वरन् सिनेहिल भाव। श्रीकान्त लावा तँ स्वीकार करै छथि संगहि जीबछीकेँ नव-वस्त्रक संग विदाइ सेहो दै छथि अइमे सामाजिक सामंजस्यकेँ बढ़ेबाक प्रयास देखऽ मे आएल।
क्रमश:
किशन कारीगर मोछ वाली माउगी।
होली पर हास्य कथा।
धनिक दोकान दिस सॅ अबैत रही कि रस्ते मे खरंजे पर बिकाउ दास भेंट भए गेलाह पूछलनि बच्चा ई कहू करिया के कतहू देखलियैअ। हम बजलहूॅ नहि यौ बाबा हम अहॉ पोता के एमहर कहॉ देखलहूॅ। बिकाउ दास बजलाह धू जी महराज हम कारी सॅ केस दारही कटाएब आ अहॉ हमरा पोताक भांज कहि रहल छी। लगैए जे आई होरी खेलेबाक निशा मे अहॅू मातले छी। हमरे खनदानी नौआ छल कारी ठााकुर एमहर बिकाउ दासक पोतक नाम सेहो कारी। दूनू गोटे नामक अनुरूप देखैयोअ में ततबेक कारी। कारी जतबाक देखबा में कारी ओतबाक उजर धब- धब आकेर मोछ । बड्ड ईमानदारी सॅ शाही अंदाज मे हजामत करैत छल। ओकरा मोछक आगू मे त राजा महराजक मोछ छुछूआन लगैए। बिकाउ दास के हम कहलियैन बाबा बुझहैए मे धोखा भए गेल कारी नौआ तए अपने बथान दिस भेटत ओम्हरे जाउ ने। ताबैत उतरभारी दिस सॅ कारी अपने मगन में झूमैत चलि अबैत रहैए। ओनाहियो फागुन मे सभ अपना धुन में मगन रहैए। कारी के देखैत मातर बिकाउ दास बजलाह अईं रौ करिया एहि बेर जोगिरा गबै लेल नहि एबहि रौ तोहर सिद्धप वाली भाउज खोज पूछारी क रहल छलखुन जे एहि बेर किर्तन मंडली होरी गीत गाबि जोगीरा खेलेताह कि नहि। कारी मोछ पिजबैत बाजल भैया अहॉ जाउ ने अहॉ भाउजी के कहबैन भांगक सरबत बना के रखतीह। हम सभ पहिने भगवति स्थान में होरी गीत गाबि अबीर चढ़ाएब तकरा बाद अंगने अंगने होरी खेलाएब।
कारी के गप सुनि त हमहूॅ राग मल्हार मे मोने मोन नाचए लगलहूॅ जे आई भंाग पीबि क कारी संगे खूम नाचब। एहि बिचार मे मगन रही की कारी बाजल जे बच्चा अहॅू चलि आएब एहि बेर झाइल बजौनिहार लोक कम छै त अहॉ गीत गाबि झाइलो बजाएब। गाम घर मे नाटक खेलाई त हमही गीत नाद गाबै सॅ ल के मंच संचालन तक करी। तहि द्वारे निधोखे हम बजलहॅू बेस जाउ हम भगवती स्ािान में भेंटइ भए जाएब । दूपहर दू बजे किर्तन मंडलीक सभ कलाकार आस्ते आस्ते जुटान होमए लगलयै। कारी अपना दरवज्जा पर बैसी के चिलम फूकै मे मगन रहैए एक सोंठ खिचनहियै रहै की केम्हरो सॅ मनोज क्रांतिकारी धरफराएल आएल आ कारी े देह पर धाई दिस खसल। बाजल हौ कारी कक्का आई तोरे संगे होरी खेलाएब। एतबाक मे कारी फनकैत बाजल कह त हनो खसान खसब होइत छैक एखने चिलमक आगि सॅ मोछ झरैक जाएत। फेर मनोज बाजल हौ कक्का हमरो स बेसी त डंफाक ओजन छै तही दुआरे धरफरा गेलहूॅ। तकरा बाद दूनू गोटे एक एक सोंठ चिलम खिचलक धुऑं नाक दए के फेकलकै की कारी बाजल रौ भातिज किर्तन मंडलीक कलाकार सभ कतए नुकाएल अछि।
एतबाक में हरेकृष्ण ढ़ोलकिया ढ़ोल ढ़ूम-ढ़ूमबैत बुद्धना हरमोनियम पिपयबैत आ रामअशीष झाइलि झनकबैत तीनू गोटे तीन दिसि सॅं एकसुरे बजबैत आएल। ताबैत मे मनोज डंफा डूग-डूगबैत बाजल हल्ला गुल्ला बंद करू आ सुनु कारी कक्का के वाणी जी नहि त भरू ढ़ोलकिया के पानि जी। कि एतबाक मे कारी कठझाइल झनकबैत बाजल जोगी जा सारा...रा...रा. त सभ गोटे एक सुरे बाजल सारा रा रा। बुद्धन बाजल रौ मनोजबा तेहेन शास्त्रीय राग मे पानि भरबाक लेल कहलीह जे दू-चारि टा छौंड़ा मारेर त डरे स भागी गेल। मनोज बाजल हौ भौया रंग घोरबाक लेल त पानि चाहि ने। रामअशीष बाजल हं रौ भजार ई त ठीके कहलीहि आब ई कह जे एहि बेर भाउजी के बनत। एतबाक में कारी मोछ पिजबैत बाजल रौ भातिज जूनि चिंता कर हम एखन जीवते छी।
होरी मे कारी सौंसे गौआक भाउजी बनैत छलैक की बुढ़-पुरान की छौंड़ा मारेर सभ गोटे हंसी खुशी सॅ गीत गाबि कारी संगे दिअर भाउज जेका होरी खेलाइत छल। मनोज बाजल हौ कक्का माउगी बनबहक से साड़ी बेलाउज कहॉ छह। कारी बाजल धूर रे बुरिबक जो ने तू अपने माए बला साड़ि नेने आ ने तोरे माए त हमरा भाउजे हेतीह। हौ कक्का तूं मारि टा खूएबह तोरा त बुझलेह छह हमर बाप मलेटी सॅ रिटायर आ हमर माए सेहो मलेटी। ज ई सारी मे लाल पीअर लागल देेखतैह त कतेक मुक्का मारत से कोनो ठीक नहि। अच्छा कक्का तू चिंता नहि करअ हम अपने कनियॉ वला नुऑ नेने अबैत छी। कारी बाजल रौ भातिज तू बुरहारी मे हमरा गंजन टा करेमेह। हम ससुर भए के पूतहॅू देहक नुऑ कोना पहिरब रौ राम-राम। लोक त साड़ी देखैते मातर चिन्हि जेतैए जे ई तोरे कनियॉक नुआ छै तब त लोको कोनो दसा बॉकि नहि राखत। बुद्धन कनेक बुझनुक ओ बाजल हौ तोरा डर किएक होइत छह कियो पूछतह त कहिअक जे ई त बुधनाक साउस के नुआं छियैक। हमर साउस एखन अपने गाम आएल छथहिन। कारि ई सुनि चौअनियॉ मुस्कान दैति एकसुरे दू गिलास देसी भांगक सरबत घोंटि गेल आ बाजल बुधन तूं हरमोनिया बजाअ ताबैत हम समधिन संगे होरी खेलेने अबैत छी जोगी जा सारा...रा....रा। कि फेर सभ एकसुरे गाबैए लागल जोगी जा सारा रा रा। हरेकृष्ण ढ़ोलकिया ढ़ोल धूम-धूमबैत बाजल होरी मे कक्का करै छथि बरजोरी बुरहोरी मे मोन होइत छनि थोरू थोरू जोगी जा सारा रा रा। मनोज डंफा डूग-डूगबैत बाजल हौ कारी कक्का एना किएक मोन लुपलुपाइत छह। कारी झाइलि झनकबैत बाजल रौ भातिज ई फगुआ होइते अछि रंगीन तोंही कह ने मलपुआ खेबाक लेल केकर मोने ने लुपलुपाइत छैक। हं हौ कक्का एनाहियो होरी मे नएका नएका भाउज सबहक गाल त मलपुए सन पुल पुल करैत रहैत छैक।
कारी साड़ी पहिर अनमन माउगी बनि गेल मुदा मोछक देखार चिनहार दुआरे घोघ तनने। कारी हाथ सॅ झाइलि ल हम गीत गाबि झाइलि बजबैत होरी गाबै लगलहूॅ रंग घोरू ने कनहैया हो खेलैए होरी रंग घोरू सभ गोटे गीत गबैत भगवति स्थान बिदा भेलहूॅ। भगवति के अबीर चढ़ा प्रणाम करैत मंडलीक सभ कलाकार अंगने अंगने होरी खेलेबाक लेल बिदा भेलहूॅ। जेहेन घर तेहेन सरबत कतहॅ छूछे रंग टा। मुदा लोक हॅसी खुशी स होरी खेलाई मे मगन होइत होइत बिकाउ दासक दरवज्जा पर पहुॅचलहॅू त होरी गीत शुरू केलहॅू हो हो किनका के हाथ कनक पिचकारी बुधना हरमोनियम पिपयबैत बाजल हो बिकाउ कक्का के हाथ कनक पिचकारी। एतबाक सुनितेह विकाउ दास अपना बेटा के हाक देलखिहिन हौ मांगनि जल्दी सॅ मंडली सभहक लेल दूध भांगक सरबत नेने आबह। ई सुनि हम सभ आर बेसी जोर सॅ जोगीरा गबै लगलहूॅं ताबैत मनोज एक आध बेर डंफा लेने धरफड़ा के खसि पड़ल। ओकरा उठेलहूॅ आ सभ गोटे भरि छाक भांगक सरबत पीबि होरी गबै मे मगन। एम्हर जोगीरा देखबाक लेल कनिया-पूतरा धिया-पूता सभ घूघरू लागल।
एतबाक मे सिद्धप वाली दाई अबीर उड़बैत एलीह आ हॅसैत बजलीह गे दाए गे दाए ई नचनिहार माउगी के छीयैक? सुखेत वाली कनिया बजलीह माए इहेए चिन्थुहुन ने। दाई बजलीह चिन्हबै की पहिने रंग अबीर स देह मुॅह छछारि दैति छियैक। दाई निधोखे रंग लगबै लगलीह की घिचा तिरी मे कारीक घोघ उघार भए गेलै। दाई बजलीह गे माए गे माए एहेन मोछ वाली कनियॉ त पहिनुक बेर देखलहूॅ। ताबैत कारी मुस्की मारैत बाजल भाउजी हम छी अहॉक दुलरूआ दिअर कारी। दाई एतबाक सुनि ठहक्का मारैत बजलीह अईं रौ मोछ वाली कनियॉ ला कनि तोहर मोछो कारीये रंग मे रंगि दैति छियौ। एकटा दिअर भाउज के निश्छल प्रेम त गामे घर में भेटत। तखने मनोज बाजल काकी ई कनियॉ पसीन भेल किने ? दाई बजलीह हं रौ मनोज बड्ड पसीन भेल 60 वर्षक अवस्था में पहिनुक बेर देखलहॅू एहेन सुनर मोछ वाली माउगी।
1.राम प्रवेश मण्डल- विहनि कथा- आह मिथिला! वाह मैथिली! 2 सुमित आनन्द- भाव-भूमि रसवंत पुस्तकक लोकार्पण 1
राम प्रवेश मण्डल विहनि कथा
आह मिथिला! वाह मैथिली!
अहाँ घर आंगनसँ निकलि संसारमे पसरि गेलौं। संसार गाम जकाँ भऽ रहल अछि। सकेंडोमे विश्वक कोनोठाम रहैबला परिजनसँ गप्प कऽ सकै छी। हुनक छाया देख सकै छी। जइसँ हृदए आनंदित, अह्लादित भऽ जाइछ।
ऐ आनन्दमे हमहुँ साझी हएब, इच्छा भेल। साठि वसंत पार कऽ रहल छी। नूनूकेँ कहलियनि- “हओ, एकटा मोवाइल कीन लैह। विज्ञान आ वैज्ञानिकक ऐ चमत्कारक लाभ हमहुँ सभ उठाबी।”
नूनू एकटा नीक-दामी मोवाइल कीनलक आ हाथमे दैत कहलक- “लिअ अहूँ अपन इच्छाकेँ पूरा कऽ लिअ।”
हम कहलिऐ- “हओ, मॉरिससमे सुन्दरलाल अर्थोपार्जनक लेल गेल अछि। हुनकासँ गप्प कराबह।”
नूनू नम्बर टीपलक आ हमरा हाथकेँ देलक। गप्प हुअए लगल। हम पुन: मोवाइल नूनू हाथकेँ दैत कहलियनि- “हओ नूनू, सुन्दरलाल तँ दोसर भाषामे बजै छै। गाममे तँ मैथिली बजै छलै। एतेक ल्दी ई परिवर्तन केना भेलै? नम्वरकेँ जाँचि अपन मातृभाषा मैथिलीमे गप्प कराबह। सुनै छी जे मोवाइलमे सभ भाषा रहै छै?”
नूनू आगा किछु नै बाजि हमरापर ऑंखि ला-पीयर करए लागल।
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सुमित आनन्द
भाव-भूमि रसवंत पुस्तकक लोकार्पण
जखन-तखन द्वारा ललितनारायण मिथिला विष्वविद्यालयक संगीत एवं नाट्य विभागमे डॉ भीमनाथ झाक समग्र मूल्यांकन ‘भाव-भूमि रसवंत’ पुस्तकक लोकार्पण समारोह दिनांक 06 03 2011 के ँ अपराह्ण 03 बजे दिनमे मनाओल गेल। एहि 512 पृष्ठक पुस्तकक लोकार्पण करैत बहुभाषाविद् पं गोविंद झा कहलनि जे डॉ भीमनाथ झाक भाषा सर्वजन सुलभ अछि। ओ चिंता व्यक्त कयलनि जे वर्तमान समयमे भावना मरि रहल अछि संगहि कवि लोकनिके ँ दोसरक हेतु जीबाक परामर्ष देलनि।
पुस्तकक समीक्षा करैत मैथिलीक सुप्रसिद्ध समीक्षक श्री मोहन भारद्वाज हिनक एहि पोथीके ँ साहित्यिक दस्तावेज कहलनि। ओ हिनक छन्दोबद्ध एवं तुकान्त रचनाक भूरि-भूरि प्रषंसा कयलनि संगहि ईहो कहलनि जे छन्दोबद्ध रचना स्थायी महत्वक थिक। बच्चा सभक पाठ्यक्रममे सम्मिलित करबाले हुनका अर्वाचीन कविक छन्दोबद्ध रचना नहि भेटैत छनि। श्री भारद्वाज हिनका एकसरे एहन लेखक मानैत छथि जे लगभग 150 साहित्यकारपर लिखि चुकल होथि। कार्यक्रमक अध्यक्षता करैत वयोवृद्ध साहित्यकार पं चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ डॉ झाक लेखनकेँ महत्वपूर्ण अवदान कहलनि। ज्योत्स्ना चन्द्रमक संचालन एवं डॉ अषोक मेहताक धन्यवाद ज्ञापनसँ सम्पन्न समारोहमे डॉ झा अपन लेखनक संबंधमे कहलनि जे ओ जे किछु कए सकलाह से अक्षरपुरुष लोकनिक सान्निध्य आ स्नेहभाजनक कारणसँ। कार्यक्रमक ष्षुभारम्भ श्री हीरेन्द्र कुमार झाक स्वागत भाषण एवं अंजली मेहता द्वारा ‘‘वाणी हेरू, कृपा दृग फेरू’’ कविताक गायनसँ भेल जे डॉ झाक लिखल थिक। पुस्तकक सुन्दर प्रस्तुतीकरणक हेतु प्रायः सभ वक्ता लोकनि डॉ विभूति आनन्दक प्रयासक प्रषंसा कयलनि।
एहि अवसरपर पटना सहित आसपासक जिलाक पर्याप्त संख्यामे साहित्यकार लोकनिक उपस्थिति छल जाहिमे प्रमुख छलाह-डॉ सुरेष्वर झा, डॉ गणपति मिश्र, श्री कमला कान्त झा, प्रो अजीत वर्मा, डॉ शिवाकान्त पाठक डॉ देवनारायण यादव, डॉ षषिनाथ झा, डॉ नीता झा, डॉ रमण झा डॉ नरेन्द्र नारायण निराला, डॉ आषा मिश्र, डॉ नरेष मोहन झा, डॉ बुचरू पासवान, डॉ धीरेन्द्र नाथ मिश्र, डॉ पुष्पम नारायण, श्री अमलेन्दु शेखर पाठक इत्यादि। याेगानन्द झा
इसवी सन 2010 : मैथिलीक गतिविधि
वर्ष 2003क अन्तिम मासमे जखन मैथिली भाषाकेँ संविधानक अष्टम अनुसूचिमे स्थान प्राप्त भेलैक तँ आवासी-प्रवासी मैथिल जनसमुदाय तत्कालीन प्रधानमंत्री मान्यवार श्री अटल बिहारी बाजपेयी ओ गृहमंत्री मान्यवर श्री लालकृष्ण आडवाणीक प्रति अभिभूत भेल अपन चिर आकांक्षाक प्रतिपूर्तिसँ हर्षोल्लासमे निमग्न प्रतीत भेल। ज्योतिरीश्वर ओ विद्यापति ठाकुरक देसिल वयना, ब्रजकिशोर ठाकुर आ कर्पूरी ठाकुरक सत्यप्रयाससँ आ अन्तत: मान्यवर डा. श्री सी.पी. ठाकुरक प्रयत्ने राष्ट्रीय क्षितिजपर अपन उचित स्थान पओलक। सुमन, मधुप, किरण, मणिपद्म, प्रबोध, देवनारायण, यात्री आदिक आत्मा जुड़ा उठल हेतनि। सर्वश्री अमर, प्रदीप, वैद्यनाथ चौधरी आदि गोटाक एकटा यज्ञ पूर्णाहुति दिस अग्रसर भेलनि। हिनकालोकनिक संघर्ष सफलता प्राप्त कएलक आ एकबेर फेर नव स्पन्दन मैथिली जगतमे अएलैक।
मैथिली पत्रकारिता जगतमे ई स्पन्दन मिथिला दर्शन, पूर्वोत्त मैथिल, विद्यापति टाइम्स, समय-साल, आँकुर, पक्षधर, पूर्वोत्तर मैथिल समाज, कर्णामृत, जखन-तखन, मिथिला-दर्पण, सांध्य गोष्ठी, मिथिलायतन, गामधर, आङन ओ ई-पत्रिका विदेह आदिक माध्यमे विगत वर्षमे मैथिली गतिविधिकेँ समंजित-संयोजि करैत रहल अछि। कलकत्तासँ प्रकाशित मैथिलीक एकमात्र दैनिक मिथिला समाद, स्वदेशक सरणिपर मैथली दैनिकक अवधारणाकेँ सम्पुष्ट करबामे लागल रहल अछि। पक्षधर (स. श्रीसीतांशु कश्यप, राँची) आ मिथिला सृजन (स. श्रीऋृषिवशिष्ठ, मधुबनी) एही वर्षक देन थिक।
पोथी प्रणयन ओ प्रकाशनक दिशामे सेहो क्षिप्र गतित्व विगत 2010क उपलब्धि मानल जा सकैछ। प्रकाशक ओ वितरकक सर्वथा अभाव रहतौं मैथिली लेखकलोकनि ग्राहकक परवाहि बिनु केने स्वयं अपन-अपन रचनावलीक प्रकाशनसँ मैथिलीक समृद्धि हेतु प्रतिबद्ध देख पड़लाह। दिल्लीक श्रुति प्रकाशन, सरिसबक साहित्यिकी, दरभंगाक जखन-तखन, पटनाक चेतना समिति ओ शेखर प्रकाशन, एत' धरि जे विद्यापति टाइमसो प्रकाशन आ मिथिला रिसर्च सोसाइटी आदि ऐ यज्ञमे लेखकलोकनिक सहायता-संवर्द्धनामे जुटल देख पड़ल। प्रकाशनक दृष्टिये ऐ वर्षक महत्वपूर्ण प्रकाशन अछि पाँच खण्डमे प्रकाशित रमानाथझा समग्र जकर सम्पादन कएलनि अछि श्रीमोहन भारद्वाज। पाँच हजार मूल्य ई बेछप रचना संचयन मैथिलीक गौरव ग्रन्थ थिक। पूर्वमे श्री गजेन्द्र ठाकुर पाँच हजार टाका मूल्यक जीनोम मैपिंग एक्के खण्डमे प्रकाशित कएने छथि।
एकरे सबहक परिणामस्वरूप मैथिली कथा आन्दोलनकेँ समर्पित सगर राति दीप जरय आन्दोलन वर्ष 2010क चारू किस्त, जकर आयोजन क्रमश: श्रीरमाकान्त राय रमा'क संयोजकत्वमे नरहन, समस्तीपुरमे, डा. योगानन्दझाक संयोजकत्वमे कबिलपुर, लहेरियासराय, दरभंगामे, श्री जगदीश प्रसाद मण्डल'क संयोजकत्वमे बेरमा झंझारपुर, मधुबनीमे आ श्रीअरविन्द ठाकुर'क संयोजकत्वमे सुपौल (कोशी क्षेत्र)मे सफलतापूर्वक सम्पन्न भेल आ ऐ अवसरपर पोथीक लोकार्पण-प्रक्रियामे निरन्तरता बनौने रहल जइमे कबिलपुरक मिथिला रिसर्च सोसाइटीक तत्वावधानमे सत्रह गोट पोथी आ एकटा सी.डी.क लोकार्पण कीर्तिमान स्थापित करबा योग्य ऐतिहासिक प्रकृतिक रहल। ऐ अवसरपर लोकार्पित पोथीमे श्रीमती प्रीति ठाकुरक- दू गोट चित्रकथा संग्रह, श्री जगदीश प्रसाद मण्डल'क दूटा उपन्यास (जिनगीक जीत आ उत्थान-पतन) आ एकटा कथा संग्रह गामक जिनगी, श्री गजेन्द्र ठाकुर कृत मिथिलाक पंजी प्रबंध (तारपत्र आदिक डिजिटल इमेजिंग, डी.भी.डी), डॉ. प्रेमशंकर सिंह'क मैथिली भाषा साहित्य: बीसम शताब्दी (अलोचनात्मक निबंध संग्रह) डा. वीणा ठाकुरक भारती उपन्यास, डॉ. मुरलीधर झाक पिलपिलहा गाछ बालकथा संग्रह, डॉ. धीरेन्द्रनाथ मिश्रक समाचार कथा कथा संग्रह, डॉ. अमरनाथ चौधरीक हमरो लेने चलू, कथा संग्रह, डॉ. योगानन्दझाक कथा-लोककथा कथा संग्रह आदि उल्लेखनीय अछि। तहिना बेरमाक 71म सगर राति दीप जरय'क आयोजनक अवसरपर छह गोट पोथी आ दू गोट सी.डी-डी.भी.डी.क लोकार्पण भेल। जइमे श्री जगदीश प्रसाद मंडलक तीन गोट पोथी- जीवन-मरण आ जीवन संघर्ष उपन्यास, बाल-किशोर प्रेरक कथा संग्रह तरेगन, कमलकान्त झा अलका, डाॅ. तारानन्द वियोगीक, प्रलय रहस्य (कविता संग्रह), श्रीपति सिंह निबंध-तरंग (निबंध संग्रह)क लोकार्पण भेल।
स्वतंत्रो रूपेँ पोथीक लोकार्पण बरसात होइत रहल जइमे पं. श्रीचन्द्रनाथमिश्र अमर'क अतीत मन्थन ओ पं. श्रीगोविन्द्रझाक जनम अवधि हम आत्मसंस्मरण, डॉ. नीता झाक देश-काल कथा संग्रह, डॉ. महेन्द्र नारायण रामक लोकदर्शन आलोचना, स्व. गोविन्द चौधरीक गोविन्द रचनावली (रचना-संचय), प्रो. उमानाथझाक मैथिली नवीन साहित्य संग्रह, श्रीप्रदीप मैथिलीपुत्रक श्रीसीतावतरण महाकाव्य प्रबन्धक द्वितीय संस्करण, श्रीमकलाकान्त झाक फोँका कविता संग्रह, डाॅ. सुरेन्द्र कुमार सुमनक राधाकृष्ण चौधरीक व्यक्तित्व ओ कृतित्व शोध-ग्रंथ, प्रो. राजाराम प्रसादक मैथिली लोकनाट्य शोधग्रंथ, डॉ. देवकान्त मिश्रक बेनीपुर अनुमंडलमे मैथिली शोधग्रंथ आिदक संगहि अनेकानेक लेखकलोकनिक पोथिक आयोजनपरक लोकार्पण होइत रहल। हरिमोहन झाक सरणिपर गप्प श्रेणीक वस्तुिनर्माण कऽ डाॅ. राम किशोर झा 'विभाकर' एही वर्ष मनीषा मामाक मीमांसा नामक ग्रन्थ प्रकाशित करौलनि।
नेपालमे श्रीराम भरेस कापड़ि 'भ्रमर' द्वारा सम्पादित मैथिली नाटक संग्रह ओ स्वरचित नओ गोट एकांकीक संग्रह भैया अएलै अपन सोराज मैथिली नाट्यविधाकेँ युगानुकूल प्रस्तुतिक दृष्टिऍं महत्वपूर्ण सावित भेल।
सामान्य अनुवाद प्रणालीसँ हटि कऽ बिना कोनो अनुबन्धक अनुवादकारिताक दृष्टिऍं ऐ वर्षक उपलब्धिमे रेमिका थापा कृत कविता संग्रह देश र अन्य कविताहरूक मैथिली अनुवाद देश आ अन्य कविता सभ दृष्टिपथपर आबि सकल अछि जे श्रीमती मेनका मल्लिकक कृति थिक आ स्वतंत्र रूपेँ अनुवादकारिताक महत्वपूर्ण दिशाबोधक अछि।
मैथिली लेखन-प्रकाशनकेँ सम्वर्द्धित करबामे श्री गजेन्द्र ठाकुर प्रयोजित ई-प्रत्रिका विदेह अन्यतम मानल जाए लागल अछि, जकर सदेह (हार्ड काँपी) अंक दू, तीन आ चारि पत्रिकाक चयनित रचना सभसँ कथा, कविता आ प्रबन्ध-समालोचनाकेँ पुस्तकाकार प्रकाशित कऽ ऐ वर्षक प्रारंभमे अपन सामार्थ्यक परिचय दऽ देने छल। महिला सशक्तिकरणक प्रतीक पत्रिका जानकी अपन अस्तित्व अहू वर्ष बनौने रहल। मिथिला दर्पण, बम्बइ, समय-साल ओ घर-बाहर, पटना तथा पक्षधर, राँची अपन अवधि सोपेक्षाताक िनर्वाह कएने रहल। मिथिला दर्पणकेँ श्री हीरेन्द्र कुमार झाक ऊर्जाक लाभ भेटलैक।
ऐ वर्ष जे सर्वाधिक प्रशस्त सम्मान मैथिलीकेँ भेटलैक अछि से थिक मैथिलीक वरेण्य कवि ओ महारथी पं. श्रीचन्द्रनाथ मिश्र 'अमर'केँ साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा फेलोशिप प्रदान करब। मैथिलीक पालामे ई सम्मान पहिले बेर आएल बूझल जएबाक चाही, जइसँ मिथिला-मैथिली गौवान्वित अनुभव कएलक। श्री अमरकेँ भेटल ई सम्मान हुनका हिन्दीक केदारनाथ सिंह आ अंग्रेजीक खुशवंत सिंहक संगे प्रदान कएल गेलनि अिछ जइसँ मैथिलीकेँ राष्ट्रीय क्षितिजपर आत्मतोषात्मक अनुभूति भेलैक। ओना ऐसँ पूर्व हिन्दी-मैथिलीक जनकवि नागार्जुन-यात्रीकेँ 1955मे ई सम्मान भेटल छलनि मुदा सुच्चा मैथिली लेखक ओ सेवककेँ प्राप्त ऐ बेरूक उपलब्धि मैथिली प्रेमीलोकनि द्वारा मानल गेल।
ऐ वर्ष मैथिली-संस्कृतिक विद्वान ओ हिन्दी-मैथिलीक बहुआयामी लेखक डाॅ. तारानन्द वियोगीकेँ साहित्य अकादेमी द्वारा बाल साहित्य 'ई भेटल तँ की भेटल' पर पुरस्कृत कएल गेलनि। जइसँ अभिनव प्रकृति ओ अनुसन्धानात्मक बाल साहित्य लेखन दिस मैथिली साहित्यकारलोकनि प्रेरित भेलाह अछि आ युवा लेखन नव उत्साहक संचारसँ उत्फुलल अछि। हिनक प्रलय-रहस्य कविता संग्रह एही वर्ष प्रकाशित भेलनि। साहित्य अकादेमी द्वारा फूलचन्द्र मिश्र 'रमण' कृत मैथिली विनिबन्ध बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर' एही वर्ष प्रकाशमे आबि सहल। डाॅ. रमानन्द झा रमण खोजी पत्रकार जकाँ जर्मन पत्रिकासँ ग्रियसर्न संकलित गीत दीनाभद्रीक ओ गीत नेवारककेँ ताकि-हेरि उद्धार कऽ पं. गोविन्दझाक सानुवाद प्रकाशित करौलनि।
उक्त अकादेमी द्वारा तंत्रनाथ झा ओ सुभद्रझाक जन्मशताब्दी सरिसवमे इशनाथ झा, लक्ष्मीपति सिंह ओ भुवनेश्वर सिंह भुवनक जन्म शताब्दी मधुबनीमे तथा यात्री ओ आरसी प्रसाद सिंहक जन्म शताब्दीक अवसरपर राष्ट्रीय संगोष्ठीक आयोजन क्रमश: पटनाक चेतना समिति ओ मुजफ्फरपुरक स्नातकोत्तर मैथिली विभागक तत्वाधानमे सम्पन्न भेल। एही क्रममे प्रगतिशी लेखक संघ द्वारा नागार्जुन-यात्रीक जन्मशती समारोह उल्लेखनीय अछि। अकादेमीक वर्तमान मैथिली प्रतिनिधि डॉ. विद्यानाथ झा 'विदित' एही अवधिमे अपन औपन्यासिक कृति सभ करपुरिया, अनामिकाक चिट्ठी, मात्र तीन घंटाक समय आदिक निरन्तरता ओ विपुलता-बहुसंख्यकताक कारणे प्रतिष्ठापित भेलाह अछि। पूर्वमे पं. श्री गोविन्दझा, पं. श्रीचन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' श्री मायानन्द मिश्र, डॉ. रामदेव झा एवं मार्कण्डेय प्रवासीकेँ प्रदत्त 'ऑथर ऐट रेसिडेन्स' सुनबामे आएल जे एही वर्ष डॉ. सुरेश्वर झाकेँ भेटलनि अछि। तुषारपात ई जे मार्कण्डेय प्रवासी सदृश मनीषी कवि, राष्ट्रीयता ओ गीतकाव्यक प्रति समर्पित व्यक्तित्व एही वर्षकेँ अपन महाप्रयाणक हेतु चुनि मैथिलीसँ एक गोट सशक्त रचनाकारकेँ छीन लेलखिन। डॉ. जयकान्त मिश्र ओ पं. जयमन्त मिश्रक निधन सेहो असह्य अशनिपात रहल।
ऐ वर्षक अन्यतम उपलब्धि अछि गतिविधियेँ मृतप्राय मैथिली अकादमी, पटनाक पुनर्जागरण। बिहार सरकार ऐ संस्थाक पुनर्गठन कऽ एकर बहुत दिनसँ रिक्त अध्यक्ष पद एक गोट विशिष्ट सेवी श्री कमलाकान्त झाक सशक्त हाथमे प्रदान कएलनि जइसँ मैथिली जगत प्रफुल्लित अनुभव कएलक। श्री झाक अबिते मैथिली अकादमी कायाकल्पक अनुभव कएलक आ अनेको वर्षसँ दबल-पड़ल आधा दर्जन व्याख्यानमालाकेँ ओ पटना आ दरभंगामे आयोजित कए, पुस्तक प्रदर्शनी लगाए लोककेँ एकबेर फेर अकादमीक सुगबुगाहटिसँ परिचय करा देलखिन। अकादमीक खर्चपर चेतना परिसरमे 'पारिजातहरण' नाटकक मंचन एकटा अलगे संदेश दऽ सकल। मैथिली साहित्यक उत्कृष्ट सेवाक हेतु विद्वानलोकनिकेँ सम्मानित करबाक परम्पराकेँ जगजियार करैत अकादेमी एम.एल.एस.एम. काओलेजक मैथिली, ल.ना.मिथिला.विश्वविद्यालयक श्री विभूति आनन्दक हाथेँ सम्मानित कऽ नूतन अध्याय जोड़लक अछि। कीर्तिनारायण मिश्र पुरस्कार ऐबेर महाप्रकाशकेँ प्रदान कएल गेलनि अछि।
भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर सेहो ऐ वर्ष मैथिलीक कार्यशालाक आयोजन कऽ मैथिली अनुवादक माध्यमे ऐ भाषाकेँ राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिजपर प्रक्षेपित करबाक प्रयास कएलक अछि। एकरा द्वारा विभिन्न पत्रिकाक पोषण ओ अनेक पोथीक क्रय सेहो मैिथली क्षेत्रमे उत्साहक कारण बनल रहल अछि।
ऐ वर्ष स्व. हरिवंश 'तरूण', समस्तीपुर संस्थापित ओ अखिल भारतीय साहित्य-सेवाकेँ समर्पित साहित्यक संस्था भारतीय साहित्यकार संसद जै मैथिली रचनाकार-पत्रकारकेँ सम्मानित करबाक िनर्णय लेलक अछि तइमे श्रीविजयनाथ झा, डाॅ. सुरेन्द्र कुमार 'सुमन' ओ िवद्यापति टाइम्सक सम्पादक आ अधिष्ठाता श्री विनोद कुमारक नाम उल्लेखनीय अछि। ज्ञातव्य जे श्री विजयनाथ झाकेँ ऐ वर्ष विहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना सात हजारक लोकभाषा पुरस्कारसँ सम्मानित कए मैथिलीक प्रति अपन आत्मीयताक परिचय अनेक वर्षोपरान्त सम्मानित कए मैथिलीक प्रति अपन आत्मीयताक परिचय अनेक वर्षोपरान्त प्रस्तुत कऽ सकल। विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा ओ चेतना समिति, पटना अहू वर्ष परम्परिते रूपमे विद्यापति स्मृति-पर्वक आयोजन कऽ संतुष्ट देखल गेल।
ऐ वर्ष श्री सोमदेवक रचनावलीपर डाॅ. सुधाकर चौधरीक 'बहुआयामी जनकवि सोमदेव' समालोचनात्मक ग्रन्थ प्रकाशित भेल जे जीवित रचनाकारर लिखल जाइत विरल पोथीक परम्परामे समादृत भेल आ सोमदेवजीकेँ स्वस्ति फाउण्डेशन, सहरसा लाइफ टाइम एचिभमेन्टक आधारपर प्रबोध साहित्य सम्मानक रूपमे एक लाख टाकाक पुरस्कारसँ सम्मानित करबाक हेतु चयनित केलकनि जकर मैथिली साहित्य जगतमे स्वागत भेल अछि। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ऐ वर्ष मैथिलीक हेतु मौलिक पुरस्कारक उद्घोषणा तकनीकी व्यवधानक कारणे नै कऽ सकल छल जे आब डॉ. श्रीमती उषा किरण खानकेँ हुनक पोथी भामती नामक उपन्यासपर प्राप्त होएबाक सूचना अछि।
मैथिलीक गतिविधिक दृष्टिऍं ऐ वर्ष दिसम्बर बाइस-तेइसकेँ श्री रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर'क संयोजकत्वमे काठमांडूमे आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन सेहो ऐतिहासिक प्रकृतिक कहल जा रहल अछि जइमे नेपालक सम्पूर्ण सत्ता एतए धरि जे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति सेहो समुपस्थित भऽ मैथिलीक उत्थान-मार्गकेँ प्रशस्त करबाक आश्वासन देलनि। ऐ सम्मेलनमे भारतीय साहित्यकार-कलाकारलोकनिक सेहो पर्याप्त सहभागिता रहल जइमे सर्वश्री वैद्यनाथ चौधरी 'बैजू' चन्द्रेश, कमलकान्त, फुलचन्द्र झा 'प्रवीण' नलिनी चौधरी, कुंजबिहारी िमश्र, रंजना झा, जय प्रकाश चौधरी 'जनक' उषा पासवान आदिक नाओं उल्लेखनीय अछि। नेपाल मैथिलीक तिरहुता लिपिकेँ यूनीकोडमे समाहित करेबाक हेतु दत्तचित अछि, से अलगे प्रसन्नताक विषय थिक।
तथापि, भारतीय संविधान, बिहार लोक सेवा आयोग, भारतीय संघ लोकसेवा आयोग सदृश संस्थामे मान्यताप्राप्त मैथिली आइयो प्राथमिक शिक्षामे उपेक्षित अपन आयामक मौलिकता ओ व्यापकताक बाट ताकिये रहल छथि। तँए ने मैथिली-मनीषी पं. श्री अमरजीकेँ लिखए पड़ि रहलनि अछि-
फुनगीये दिस ताकि रहल छथि
मैथिलीक सभ प्रेमी।
घरमे डिबिया मिझा रहल अछि
के उकसाओत टेमी?