भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, April 18, 2009

सुन्दर झा 'शास्त्री' : भुवनेश्वर पाथेय : अशोक दत्त : धर्मेन्द्र विह्वल

सुन्दर झा “शास्त्री”- कलम बनाम कोदारि


कवि। छोड़ुह कलम पकड़ह कोदारि
मानस-धरती व्यर्थे कोड़ह
किछु भाव-कुसुम व्यर्थे लोढ़ह।
किछु नाहक चारण-भाट जकां,
स्तुतिगान करति लाजो छोड़ह॥

उठिगेल जखन जन-आकर्षण
ककरासँ करबह तों अरारि॥कवि.॥

कवितासँ ककरो पेट भरत?
सोझे पुछैत अछि अज्ञानि।
केओ भक्ति-भावसँ गीत रचय
कवि सूर-बिन्दु सन विज्ञानी॥

एखनुक कविकाठी जे लिखैछ-
से कवितेके दय रहल गारि॥कवि.॥

सगरो अछि अनधन घास उगल,
वन भेल घरक लगहक बाड़ी।
महगी अछि ऊंच अकाश चढ़ल
खायब दुर्लभ अछि तरकारी॥

पड़ले सम्प्रति बड़का अकाल
कत जनके देते जान मारि॥कवि.॥

दुर्भिक्ष पड़ल बड़का जहिया
राजर्षि जनक हरबाह बनल।
बनमे जे पोसल पूर्व गाय-
से कृष्ण जकाँ चरबाह बनल॥

तऽ लाज कथिक? श्रमनिष्ठ बनह,
शरिगर भूमे फाटल दराड़ि॥

कचि! छोड़ि कलम पकड़ह कोदारि।

भुवनेश्वर पाथेय- चुल्ही


चुल्ही जारनि नहि खायत
छाउर नहि बोकरत आइ
किएक तँ?
किछु एकचारी खाऽ लेलकै’
चारो छरेनाइ जरूरी छल
नहि तँ, एहि बेरक बरखा-बुन्नीमे
मेघ चारे दने सनिया जाइत
जे बाँकी छल बौआक फीसमे चलि गेलै’
हमरे जकाँ मुरख नहि रहौक, छौड़ा
घड़ेरी नहि बिकाउक घिसुआ जकाँ
ओइ सुरीबाकेँ देहपर बज्जर गिर जाउक
जे देत किछु आ छाप लगाओत...
गलि जाउक ओकर देह
तैं गामसँ पड़ाए पड़लै...

एखनो सालमे एक-दुटा पड़ाइते छै
पंजाबक कमोट बिदागरीमे नुकाऽ गेलै
सेहो भेलै जमायकेँ पुराने धोती
लाल-लाल, गोल-गोल छापल
लाठीक हुरसँ
आ छौड़ीकेँ भेंटलै फाटले नूआँ-फट्टा
की करिऔक?
एहिना चलत...?
डण्डी-तराजु छीट कपड़ा पर ससरि गेलै
आउ सुत रही आब
कऽ लिऽ आइ एकादशी
जाए नहिं पड़तै आब, काशी।


अशोक दत्त- के कहने छलौ बेटी जनमाबऽ


बजार, गहिकी आ पैकार,
आवश्यक होइछ जीवन हेतु
मुदा,
एखुनका बजारु संस्कृति
विवश कऽ रहलैए
आत्महत्या आ हत्या हेतु
कतेकोकेँ।

धर्मेन्द्र विह्वल- रफ्फू


नेताजीक
भरि जिनगीक संकलन
भ्रष्टाचारक गटर धोधिकेँ
एहिबेर चूनावमे
मुस कुतरि देलकन्हि अछि
आब ओ रफ्फू
कराबऽ जा रहल छथि।

सियाराम झा 'सरस' : महाप्रकाश : रमेश : देवशंकर नवीन

सियाराम झा ‘सरस’- छौंड़ा गहुमन सन सनसना उठै छै

छौंड़ा गहुमन सन सनसना उठै छै
छौंड़ी माचिस सन फनफना उठै छै

शांति लै बुद्ध ध्यानस्थ तैखन कान नारा सब गनगना उठै छै

संतुलन शीत-तापक ने सम्हरै आंखि तेँ खूब बनबना उठै छै

ब्याह एक्कर, पिता करथिन सौदा से सुनैए कि हनहना उठै छै
देखि खद्धर मे माधो-वीरप्पन तार नस-नस के झनझना उठै छै
अनटोटल सँ टोटल एलर्जी तेँ तँ भनभना आ रनरना उठै छै






महाप्रकाश- चान, अंतिम पहर मे

ई के अछि बुढ़िया नील ओछाओन पर सूतलि
पसारने अपन केशराशि चतुर्दिक
डूबलि अतीतक निन्न मे
-अखन धरि निसभेर
अस्फुट शब्देँ बाजि रहलि अछि
-कोन कथा बेर-बेर?





रमेश- ओइ पार अइ पार

तोरा कन जेल, हमरा कन फाँसी।
तूहें कहियो-काल जेल स’ निकलबो करबही,
हम्में कोसी-बान्ह टुटलै त’ फाँसी-रे-फाँसी।
तोरा पूस मास के दिन मे तरेगन लखा जाइ छै
मोरा बारहो महीना मे तेरहम महिनमा
कतिका मास लखा दै छै भैय्या मोरे!

मोरा बान्ह टूटै के आदंक फा मे देलकै सरकार
तोरा हमरा नामें ईर्खा फा मे देलकै सरकार।
तोंहे रिलीफ के ओस चाटहो विला गेलौ
मेहनति के संस्कार, हमरा बैंक लोन नै देलको,
जिनगी भेलै पहाड़।
हौ बाबा कारू खिड़हरि,
हौ बाबा सोखा! हौ बाबा लछमी गोसाँय!
लए जाहो कोसी, लए जाहो बान्ह के
हमरा ने जिनगी पड़ै छै पोसाय।



देवशंकर नवीन – मोहमुक्ति

पैघक संरक्षण जं किनकहु
भेटि रहल हो भाइ।
गगनसं खसल शीत सम बूझी
जुनि कनिओं इतराइ।
वटवृक्षक छहरि सन शीतल,
रखने जे प्रभुताइ।
मेटा लैछ अस्तित्व अपन,
ओहि तरमे सभ बनराइ।
सागर सन कायामे कखनहु,
जं उफनए आक्रोश।
निधि तट पर बैसल दम्पति केर,
प्रणयने बुझए अताइ।
फांकथि तण्डुल कण पोटरीसं,
मुदित होथि दुहू मीत।
तेहेन बचल नहि कृष्ण एकहुटा,
विवश सुदामा भाइ।

कथा- चूल्हि - भालचन्द्र झा

कथा- चूल्हि - भालचन्द्र झा



'... चूल्हि आ स्त्री - दुनूक प्रारब्ध एके जकाँ होइत छैक, बुझलहक? जरैत-जरैत जीबइए में दुनूक गुजरि होइत छैक... गै दाई !'
जाबैत जियलै - ई गप्प, माय हमरा सदिखन कहिते रहलै। ई कह' में जे मर्म नुकाएल छलै, से बुझबाक उमिर त' नहिंए रहय, मुदा जाहि तरहैं उसाँस ल' क' माय ई बात कहय, ताहि स' ई त' लागबे करय जे ई गप्प अबस्से कोनो तरहक जीवन-मंत्र हेतैक - अहि तरहक विचार मोन मे आबि आबि जाय।
... आ देखियौ भाग्यक खेला, जे हमर आ चूल्हिक संग कहाँदनि जनमिते देरी कि धरा गेलै।
माइये कहथिन्ह जे हमर जनम अहिना जाड़ स' कनकनाइत राति मे भेलै। हे दाई - जनम त' भ' गेलै, मुदा मुँह स' पहिल केहां निकाल' लेल चुल्हिएक सहारा लेब' पड़लै।
अपन गरमी द' क' चूल्हिए हमरा बचा लेने रहय। आ ताहि लेल वा की, जे घर-आँगनक लोक आओर हमर नामे ध' देलकै चुल्हिया' ...। आब कहियौ त' भला, इहो कोनो रीत भेलै नाम जोड़बाक !
ओ त' धन्यभाग हमर, जे बबा के की फुरेलन्हि आ नामकरणक दिन हमर नाम राखि देलखिन्ह - 'सिया सुन्नरि'।
तैयो घर-आँगन के त' बूझिते छियै ने' ... एक बेर जे कह' लगलै 'च्ुूल्हिया' त' ओ कियो बदलै भला! हे दाई, 'सिया-सुन्नरि'। ई नाम त' मात्र कागजे लेल रहि गेलै।
बबा त' बड्ड खिसियैथिन्ह मुदा लोको सभ थेथर भ' गेल रहै। हुनका सोझा मे त' सभ किओ दम साधि लै, मुदा जखने परोछ भेलाह कि फेर सभके कोनो झरकबाही लागि जाय छलै... चुल्हिया, चूल्हियाक से किलोल मचि जाय जे की कही ... आई त' हँसियो लागि जाइयै । मुदा छोटपन मे हमरा बड़्‌ड खराब लागय, बुझलहुँ की?
आई बैसल-बैसल जहन ओ गप्प सभ मोन पड़ेैयै त' विचार' लागै छी जे वास्तव में, एहन आगांक बिचार करयबला पुरूख पात्र के रहब घर में कतेक जरूरी होई छै। नञि त' घूमैत रहू जनम भरि अपन एहने जरल धनकल सन नाम ल' क' ... चुल्हिया ..पनबसना दाई ... ताबा कुमारी ... चकला देबी ...!!! धुर्र जाउ, अहाँ के हँस्सी लगैय' ...
आ हम सोचै छी जे देखियौ त'। बेटी आओर के एक गोट नीक नामो टा नसीब नञि होई छै अइ समाज मे... तहन आर कथीक आस धरै ओ...? कोन भरोस पर जीबय ओ?
... त' कह' जे लगलहुँ ... जे कनि बूझ' सूझ' जोगर भेलहुँ त' देखियैक जे हमरा घरक चूल्हि जहाँ कनिको करियैलै कि हमर माय ओकरा लीप-पोइत क' ओकरा चिक्कनि चुनमुन बना दैक।
चूल्हि सेहो ओकरा लेखे एकटा नान्हि टाक बच्चे टा रहै। जाहि माया आ ममति स' ओ हमरा आओर के धोबै-पोछै छलै, ओहि स' कम माया ममति नञि देखलियै हम ओकरा चूल्हि लीपैतकाल। आ, कने नीक स' सोचियौ, त' चूल्हि स' जे ओकर सिनेह रहय से अनर्गल नञि छलै ने! यै! जे चूल्हि आजन्म जरि धनकि क' लोग आओरक पेट भरै छै, ओकरे प्रति लोक एतेक कृतघ्न कोना क' भ' जाइत छैक? ... माउगि के ल' क' सेहो अपना समाज मे अहिना होबैत एलैये आई धरि। भरि जिनगी दोसरे लेल जरितहु-धनकितहु बेर पडला पर ओकरो अही चूल्हि जँका कात क' दै छैक लोक आओर। जिबिते जी मुँह में छाउर भरने पड़ल रहैत अछि अपन भनसाघर क एकटा कोन्टा मे...।
धुरि जो। हमहूँ ई कोन जरल धनकल सनक कथा ल' क' बैसि गेलहँु। त'...कहैत जे छलहुँ ...। रसे - रसे ई चूल्हि लीप' पोतक काज हमरे जिम्मा लागि गेल। आ ओहि में हमर मोने सेहो लाग' लागल। बुझलहुँ ! फूसि कियैक बाजब? आहि रे बा। ले बलैय्या के। एकटा बात त' कहब बिसरिए गेलहुँ। हमर माय बड्ड लुरिगर आ तैं अपना लूरि-ढंगक कारणे पूरे परोपट्टा में नामी। सत्यनारायण भगवानक पूजा मे ओ जे अरिपन दै से की कहू। देखितहुँ त' आँखि चोन्हरा जयतियैक। केहनो खरकट्टल बासन कियैक नञि रहौ - से कहै छी जे यदि ओ माँजि दैक त' बर्तन चानी जकां झलमल क' उठै छलै। हे, छठि मे अहिबातक पातिल जे ढेरितै - तँ एहन, जे गाँम के लोक कहै छी, भकचन्ह रहि जाइत छलै। माउगि बला कोनो एहेन लुरि बाँकी नञि छलै, जाहि मे ओ ककरो स' पाछां भ' जइतियैक, कहै छी जे से । सिआइयो-कढ़ाई सीख' लेल परोपट्टाक नवकनिञा सभ के कहै छी जे से सिहंता लागल रहैत छलै जे कहिया ओ हुनकर अंगना मे आबथु आ कहिया ओ सभ हुनका स' अपन मनपसीनक चीज बतुस आओर बनाबय के सीखि लियए।
माय मे बस कमी छलैक त' एकेटा, जे ओ नैहरक बड्ड गरीब छलै ! आ गाँम-घर मे त' बुझले अछि, जे जकरा लग टाका पूँजीक ढेर छै, सएह लोक मातबर कहल जाइत छैक। ओ मनुक्ख मे गनल जाइत छैक। आ कि नञि? लूरि-बेबहार त' बादक गप्प भेलै। टाका पूँजी रहलै त' बींगलो-बताह सभ बुधियार भ' जाइ छै। आ से जे नञि रहलै त' आँखि-कान रहितहु लोक आन्हरे-लांगड़ बुझल जाइ छै।
यै, जौं सच-सच पूछी त' अपना सभ मे माउगि-मनुक्ख स' बियाहदान थोड़बे कएल जाइत छैक? बियाह-दान त' होइत छैक जर-जमीन स', टाका-पूँजी स', किंवा धन-संपत्ति, मान-मरातब स'। माउगि त' ओहि बियाहक उललक्ष्य मे देल गेल एकटा सनेसे (भेंटवस्तु) छैक। से कियैक त' पूँजी-टाका कतबो कियैक नञि रहौक, एकदिन त' खतम भइए जाइत छैक। तहन मोन कोना क' रहतैक जे अई घर मे बियाहो भेल छै ककरो! से बस, माउगि नामक सनेस के देखि क' ई बुझल जाइत रहैत छैक जे अहू घर मे एकटा बियाह भेल छैक। तैं बूझियौ जे माउगि भ' गेलै यादगारक एकटा समान। बुझलहुँ कि नञि। बस अहिना एकटा समान रहै हमर माय।
से कियैक त' हमर दाई जे रहथिन - कहै छी जे बड्ड लोभी। हुनका भगवान संतोषक नामक वस्तु जेना देनेहि नञि रहथिन्ह जिनगी मे। बार रौ बाप। चानी परक तेलो चाट' लेल तैयार रह' बला एहन लोभी स्त्री हम नहीं देखलहुँ आई धरि, से जे कहै छी। ओ त' हमर बाबा जाबति समंगगर रहथिन्ह, ताबति हिनकर जितुए नञि चलैन्हि तैं, वरना हमर माय एहि घर मे अबितियैक भला? बाबा अपना जुतिए माय के पुतोहु बनाक' ल' त' एलखिन, मुदा अँगना मे त' जे हाल ओकर करथिन दाई से दलान पर बैसल ओ बेचारे की जान' गेलथिन्ह। आ गरीबी जे आदमी के सहनशीलता सिखा दैत छै, से त' अहां के बुझले अछि। हमर माय अपन करमक लेख बुझि क' सभकिछु चुपचाप सहन कएने जाइ। ककरा कहितियैक! के रहै ओकर अपन, जकरा कहिक' दू छनक दु:खो बाँटि लितियैक? नैहर बला सभ तँ छौंरी सभके ब्याह-दान करबा क' कहुना क' अपन पतिया छोड़ा लैये ने। तकर बाद त' कहबी छै जे ओ आ ओकर तकदीर। जे जे पा्ररब्ध छै ओकरा लेल, तकरा स' ओकरा सभके कोन सरोकार ।
आ दैबक रचना देखियो, एकरे ओ सभ हिन्दू धर्मक महादान 'कन्यादान' कहै छथि। दानो कर' लेल कन्ये भेटलन्हि भगवानक ई भक्त लोकनि के। बुझलहूँ। ओहि काल मे की अखनो। आस्त्तिकता-नास्तिकताक सवाले नञि! मात्र कर्तव्य दुधारी चलेनाई आ नामे भ' गेलै ई दानक कन्यादान त' अहि मे किओ की क' सकैय'? बेटा के दान कर' के बात नहिं फुरैलनि। हँ, बेटाक बिक्री त' होइते छलै, आइयो होइते छै। ओह, बिक्री नञि, कन्यादान जकाँ एकरो सम्माननीय नाम छै - तिलक दहेज। बेटीक सुख लेल बेटीक भावी घर के खलिहान आ कोठी जकाँ भरि देबाक कर्तव्य बोध ! नञि जानि हम सब कहिया धरि एकरा सभके करमक लेख कहि-कहि के अपना आओर के बहटारैत रहबै।
त' कह' जे लगलहुँ ...
हमरा माय मे आ गाय मे कोनो अंतर नञि रहै, बुझलहँु? सभ लाथे। हम जखन-जखन गाय के नबेद खुआब' जइयै - अकस्माते कहै छी जे हमर ध्यान ओकर आँखि दिस चलि जाय। सदिखन लागय जेना ओहि आँखि में करूणा भरल रहै छै।
करूणा छोड़ि क' जेना दोसर कोनो भाव भगवान भरनैये नञि रहथिन्ह गायक ऑखि मे!
आ एम्हर हमरा माय के आँखि मे सेहो कोनो भय आ करुणाक मिश्रित भाव एहन रचि-बसि गेल रहै जे भय ओकर देहक दोसर नाम भ' गेल रहै आ करुणा आंखिक। जखन देखितियै, जेना डेराएले रहै आ दयनीये बनल रहै। लागै जेना अहि घर मे सदिखन ओ अपना के असुरक्षिते बुझै। आ सरिपहुं अही डरक खातिर ओकरा मे चौबीसो पहर खटैत रहबाक ताकति आबि गेल छलै। कखनो जे बैसल देखितीयै माय के! ओह! कहियो, कखनो, पलखतियो लेल!
हे... मुदा एकटा बात जे कहलहुँ - आँखि बला। सँाचे कहै छी, आँखि कहियो झूठ नञि बाजि सकैयै। अहाँक मोनक छोट स' छोट छीन उथल-पुथल के देखार क' दइत छै ई आँखि। तैं देखै नै छियै जे अइ पुरूष-प्रधान समाज मे नियमे बनि गेल छै जे कोनो माउगि पुरूषक सोझा मे आबि क' ठाढ़ नञि भ' सकैय', ठाढ़ भ' क' नञि रहि सकैये। डर बनले रहै छै आ कि नै। सदिखन तकरा नुकौने रही जे कतहु आँखि मे किओ किछु देखि लेलक, तहन तँ उधारे भ' जायब। कत' नुकाएब अपन ढ़ोंगी स्वरूप...? तैं नियमे बना देलकै धोधक आ नाम द' दैलकै संस्कृति आ परंपराक। यदि संस्कृति आ परंपराक एतबे धेयान रहै छै त' पुरूष पात्र कियैक नञि करै छथि ई सभ' परहेज, पाबनि तिहार, व्रत उपवास, कोखि सेनूर लेल सभ थान-भगवती थान, दुर्गाथान, महावीर थान गोहरबैत, हरतालिकाक निर्जला उपास करैत, बटसाइतक बड़ भगवानक 108 फेरा लगबैत। कहू त' भला जे इहो कोनो नियम भेलै जे पुरूष पात्र अपने त' सांढ़ जँका छुट्टा, अंबड बनल घूमैत रहौक आ माउगि आओर जोताएल रहौक अपन चूल्हा-चौकी मे...।
धुर्र जो, हमहूँ की अनर्गल बात ल' क' बैसि गेलहुँ।
त' कह' लगलहुँ जे हमर माय बेदसा बेदसा भ' भ' क' काम करै। आ हमर दाई जखन अबै त' ओकरा संहारे करबाक पाछू लागल रहैक। कियैक... त' नैहर स' किछु दान-दहेज नञि आनलकै ने, तैं!
आ ताहू पर देखियौ, कतबो राति बीत जाए... तैयो हमर माय दाई के चानि पर तेल रगड़ने, हुनक गोड़ हाथ जाँतने बगैर नञि सूतै। बुझलहुँ। अपन ई कर्तव्य ओ मरितो दम धरि नञि छोड़लकै। आ तैयो ई हडासंखनी के कहै छियै जे करेज नहिं पसिजलै।
आ... ई सभ देख क' हमर एकटा विचार पक्का भ' गेलै जे माउगिक मोजरि ओकर लूरि सँ बेसी कीमती छै ओकर नैहर स' आब' बला बिदाईक समान के। बियाह दान आई काल्हि स्त्री पुरूष मे नञि ने कएल जाई छै। ओ त' कयल जाई छै जर-जमीन सँ... टाका-पूँजी सँ ... धन-दौलति सँ... मान मरजाद सँ... मातबरी स'। ओत' हमर भागक लेख जे हमर बियाह माय के रहिते भ' गेलै। बाबू त' नहिंए रहथिन्ह। सासुर अयलाक बाद कहियो किओ गाम घर से एम्हर-ओम्हर स' आबि जाय, त' माय के समाचार कने-मने बुझि जइयैक। मोन हुअए, जे भरि पोखि हुनका आओर स' गप्प करी। मुदा सासु बीच मे मचिया ल' क' बैसि जातथि। त' जे आएल छल, ओकरा स' भेंट घांट करबाक लेल हम जे भीतर स' छन भर लेल दलानक कोठरी मे आबी त' मात्र औपचारिक हाल-चालि पूछलाक अतिरिक्त कइए की सकै छलहुं। तइयो किओ-किओ सासुक परबाहि नञि क' क' मायक व्यथा बखानिए जाए आ ई सभ सुनिक' त' हमर कोंढि फाटि जाय...। सुनि क' हेहरू भ' भ' क' कान' लागी। बुझलहुँ। आर कइये की सकतियैक? हमहूँ त माउगे रहियै ने ? ओम्हर जेना ओ बन्हाएल... ओहिना एम्हर हम बन्हाएल...। कोनो लाथे कोन्टाबला घर मे चलि जाइ आ मुंह मे अँचरा कोंचि क' खूब... भरि मोन कानी।
कहू त'... जाहि घर मे अपन दु:खो के नुकाए क' भोग' पड़ै... ओकरा घर कहल जेतै। याहि टा होई छै अपन घर? माउगि लेल, माउगक अपन घर लेल, जाहि लेल शास्त्र सम्मत शिक्षा, जे जाहि घर मे डोली उतरौ ताहि घर स' अर्थीए उठौ गै बाउ। एहन एहन घर । मुदा उपाय? थू, एहन अपनापन पर!
हे दाई, अहिना होइते-होइते एक दिन इहो सुनि लेलियैक जे माय अपन असावधानीक कारणे चूल्हि मे जरि क' मरि गेलै...।
अँ ... यै .. जाहि चूल्हि के ओ अपन संतानों स' बढ़िक परिचर्या केलकै, सएह चूल्हि ओकरा जरा देलकै। के पतियेतै एहेन-एहेन कथा पर।
आओर किओ पतियाओ वा नञि, हमरा त' रत्तीयो भरि विश्र्वास नहिं भेलै अइ बात पर।
बूझि त' गेलियै सभ किछु, मुदा जकर हेराई छै, ओकरा बाजब के अधिकार त' नहिंए रहि जाइ छै ने यौ! के सुनतै ओकर आक्रोशक कथा? के बूुझतै ओकर मोनक व्यथा। भीतरे-भीतरे दाँत पर दाँत गस्सा क' क' इहो आघात पचा लेलहुँ...।
बुझा देलियै मोन के जे अहू लाथे जरैत-जरैत जीब' स' त' ओ बचि गेलै। जीबिते में कोन सुख रहै जे मरला स' कम भ' जयतयन्हि ! सोचै छी जे चूल्हियो के नै देखल गेलै ओकर अवस्था। तैं ल' लेलकै ओकरा अपना कोरा में... जेना साीता के अग्नि माता ल' लेने छलीह! सीता त' तइयो घुरा देल गेल छलीह अग्नि द्वारा, मुदा चूल्हि त' धरती माता जकाँ ओकरा अपना मे समेटि लेलकै - सदिखन लेल। सुता देलकै चिर-निद्रा मे...
आ मोनक एकटा गप्प कहू..
आब त' हमरो ओहि चूल्हि स' ऐतेक नेह भ' गेल अछि से की कहू ! कनिको झरकल देखलियै ने कि बस, लीप' लेल बैसि जाइत छियै...।
हर खन लगैत रहैये जे कतहु माय देख लेतै त' की कहतै - देखियो त' कने। एना किओ चूल्हि के राखैए! कहै छी जे जाबति लीपबै नै ताबति कान में जेना माइयेक आवाज गॅूंजैत रहैत अछि - 'हे सिया-सन्ुनरि... कने देखहक त'... केहेन करिया गेल छह चूल्हि... लीप देबहक से नै !' आ हम चाभी लागल मशीन जँका उठै छी... आ नूरा ल' क' चूल्हि के लीप' लागै छी।
अँगना घर में सभ किओ हँसियो उड़बैत छथि जे - ई कतहु बताहि त' नहिं भ' गेलीहए। चूल्हि के किओ एतेक जल्दी-जल्दी लीपय?
मुदा हमरा कनिको रोष नै लगैये लोक आओर अइ हँसी ठट्ठा पर...कियैक त' हम जनैत छी जे माउगि आ चूल्हिक एके प्रारब्ध होईत छै... जरू आ जरि -जरि क' जीबैत रहू। अहीे में ओकरा आओरक बास छै...।'
जे कथा ई सभ किओ नहिं बुझलखिन्ह, सएह कथा कहै छी जे नान्हि टाक हमर छोटकी बेटी अही उमिर मे बुझि गेल छै।
एखने किछु देर भेलै, हमर छोटकी आ ननटुनवा दुनू खेलाई छलै। की से बुझलहुँ ... घर-घर ! दुनू आपस मे खेलौना बाँटे छलै आ हम अहिना कोनियाँ घर मे बैसल-बैसल देखै छलियै जे देखियो की करै जाई छै ओ सभ!
थारी लेलकै ननटुनमाँ त' बाटी लेलकै हमर छोटकी।
लाठी लेलकै ननटुनमा त' चकला-बेलनी लेलकै छोटकी।
ननटुनमाँ पँजिएलकै अपन सन्दूक, तँ छोटकी सम्हारलकै अपन घैल-तमघैल। अहिना करैत-करैत ननटुनमा के हाथ पड़ि गेलै, कहै छी जे चूल्हि पर...। आ ननटुनमाक हाथ पड़लाक देरी से कहै छी जे हमर छोटकी तेहेन ने चील जकाँ झपट्टा मारलकै आ खींच लेलकै चूल्हि के अपना दीस जे हम ताकिते रहि गेलहुँ ओकरा। ओ कह' लागलै ननटुनमा के -'हे... चूल्हि कतहु पुरूष पात्र लेल भेलैये। लेबइये के अछि त' दियासलाई ल' लीय'। अहाँ के काज आओत कतहु, कखनो ! चूल्हि त' मौगी आओरक काज अबै छै ...। अहाँक कोन मतलबि एकरा आओर स' ! ओ सुनि क' जेना सुन्न रहि गेलहँु... बुझलहँु। कतके जल्दी बूझि गेलै हमर ई नन्हकी, अपन ई नान्हिपने में अइ दुनियाँक रीति रेबाज ! यै, आइ ओ एतेक बुझि गेलैये त' भ' सकैये जे प्रारब्ध हेतै त' एकरा स' सावधानो हेबाक रस्ता खोजि लेतै ओ। जतेक अधिकार स' ओ चूल्हि के अपना दिसि क' क' दियासलाई ओकरा दिसि बढ़ा देलकै, भ' सकै छै, तहिना एक दिन ओहि दियासलाइक जरैत तीली अपना दिसि बढैत देखि सएह अधिकार स' ओकरा फँूकि क' मिझा देतै आ जरैत काठी बढ़ब' बलाक गस्सा ओतबे कसि क' पकड़ि लेतै, जतेक कसिक' चूल्हिक परिपाटी ओकरा धएने छै। मुदा एखनि त' चली... उठी। आब नोर त' सुखा गेलै। देखियै, चूल्हि सुखेलै की नहिं...

कथा- माउगि - विभा रानी

कथा- माउगि - विभा रानी

माउगि, माउगि, गे माउगि, गे माउगि! तों माउगि, हम माउगि, ई माउगि, ऊ माउगि - सभ किओ माउगे-माउगि। ऊँहूँ - सभ किओ भला माउगि हुअए। ई तय कर' बाली तों के? अएं गे? तोरा कहिया स' भेटलौ ई हक? ई सभ काज-धंधा हमरा आओरक अछि - हमरे आओर के करे दें। देख त' कने, तोहरो आओर के कतेक रंग-बिरंगा रूप दिया देलियौ! माउगि, गे माउगि, बुझै छैं कि नञि गै!
हँ यो! तैं त' हम भेलहुँ माउगि - माने ओकलाइन, डाक्टराइन, मास्टराइन - आ हड़ही-सुड़ही सभ भेल मौगी, जनी जाति, हमरा आओर स' हीन। नञि बुझलियै। धुर्र जाऊ! हमरा आओर स' ऊपर भेलीह स्त्रीसभ, जेना किरण बेदी, मेधा पाटकर, फ्‌लेविया एग्नेस त' ई सभ, त' ओ सभ आ सभ स' ऊपर नारी - आदरणीया, परमादरणीया; जेना सीता, जेना सावित्री, जेना गांधारी, जेना कुंती, जेना द्रौपदी ... उँह! द्रौपदीक नाम नञि ली। हे! बड़ खेलायल मौगी छली। ओकरा नारीक पद पर प्रतिष्ठित केनाई! सत्तरि मूस गीड़ि के बिलड़ो रानी चललीह गंगा नहाए। ऋषि-मुनि आओर के कोन कथा - एतेक ताप-तेजबला साधु महातमा सभ आ माउगि के देखतही वीर्य चूबि जाइ छै; घैल में त' पात पर त' माछक पेट मे त' कहाँ दनि, कोम्हर दनि दान द' देइत छथि जेना हुनक वीर्य-वीर्य नञि भेलै कोनो रत्नक खान भ' गेलै।
छोडू ई सभ कथा-पेहानी। आऊ असली बात पर - माने माउगि पर। की कहू, कतबो ई नारी, स्त्री, माउगि, मौगीक वर्गीकरण भ' गेल हुअए, मुदा वास्तविकता त' ई छै जे मूलत: हम सभ माउगे छी - माउगि।
अहिना दू गोट माउगि छली, माने मध्यवर्गीय परिवारक दू गोट माउगि। अहाँ चाही त' सुभीता लेल हुनक नाम राखि सकै छी - दीपा आ रेशमा। दुनू पड़ोसिया। एकदम दूध मे चीनी जकाँ बहिनपा, दुनू के एक-दोसराक घरक हींग हरदिक पता, ई दुनूक घर में एक एकटा मौगी छल, कहि लिय' जे ओकर दुनूक नाम छल भगवती आ जोहरा आ ओ दुनू ई दुनूक ओहिठाम चौका बासन करैत छली। संयोग छल, जोहरा दीपा ओहिठाम काज करै छलै आ भगवती रेशमा ओहिठाम. हौजी, बड़का शहर मे ई सभ चलै छै। ओहिना, जेना आइ काल्हि शहर मे दंगा आ खून-खराबा फटाखा जकाँ फुटैत रहै छै आ लोक आओर तीमन-तरकारी जकाँ कटाएत रहै छै। की कहू जे जाहि शहर मे ई चारू माउगि रहै छली, ओहि शहर मे दंगा संठीक आगि जकाँ धधकि उठलै। आ सभ माउगि एके जकाँ भ' गेलै - मांगि आ कोखिक चिन्ता स' लहालोट।
आब जेना दीपे के देखियौ। शहर मे तनाव छलै। तइयो लोग अपन-अपन ड्यूटी पर निकलि गेल छलै। मुदा बेरहटिया होबैत-होबैत पता लागलै जे शहरक स्थिति आओर खराब भ' गेलै त' सभ किओ 'जइसे उडि जहाज कौ पंछी, पुनि जहाज पै आयौ' बनि बनि अपन अपन जहाज दिस पडाए लागल। रेशमा स' दीपा के ई समाचार भेटलै, ओम्हर ठीक दू बजेक बेरहटिया मे मनोज बाबू घर स' बहिरा गेलाह। दीपा टोकबो कएलकै - 'शौकत भाइक फोन आएल छलै रेशमा कत' जे शहरक हालति आओर खराब भ' गेल छै। लोग-बाग घर घुरि रहल अछि आ अहाँ सभ किछु जानि-बुझिक' तहयो बाहरि निकलि रहल छी। जुनि जाऊ।'
आब ओ मरद मरदे की जे अपना घरवालीक कहल राखि लियए। आ दीपा त' माउगि स' एक कदम आगां छली - स्त्री छली - पढ़ल-लिखल, सुंदर, स्मार्ट आ अपन बिजनेस सेहो चलब' बाली, जकरा मे सभटा आभिजात्य भरल रहनाइ अपेक्षिते नयिं, परम आवश्यक अछि। मुदा बावजूद एकटा सफल स्त्रीक, ओ छली त' माउगे।
सत्ते, कहियो कहियो के मायक कहल ई कथा मोन पडिये जाइत अछि जे माउगि कतबो पढ़ल हुअए कि सुंदर कि स्मार्ट कि बिजनेसवुमन, रहत त' माउगे आ तैं चूल्हि त' फूंकैये पडतै आ घर वा घरबलाक चिंता मे सुड्डाहि होबैये पडतै ओकरा। तैं रातुक एगारह बाजि गेलाक बादो मनोज के नहिं घुरलाक कारणे ओ अत्यन्त चिंतित आ परेशान छलै। ओकरा रहि-रहि क' बुझाए जे कॉलबेल बजलै, खने दरबज्जा फोलए त' खने खिड़की पर जा क' ठाढ़ भ' जाए। सांस भांथी जकाँ चलि रहल छलै आ मोनक सभटा परेशानी मुंह पर लिखा गेल छलै। मना कएलो पर जहन मनोज नञि रूकल छलाह त' कहने छलै - जल्दीए आएब। जवाब भेटल छलै -'आइ त' फल्ना डेलीगेशन आएल अछि।'
'माने रातिक एक-डेढ़ बजे धरिक छुट्टी।' दीपाक माउगि ओकर भीतरे-भीतरे बाजलै। तहन कियैक एगारहे बजे स' एतेक बेचैनी छै? ओकरा त' दू बजे रातिक बाद परेशान होएबाक चाही। मनोज बाबू लेल दू बजे रातक घुरनाई कोनो नव कथा त' छलै नञि! मुदा दंगा जे नएं कराबए।
हारि-थाकि क' ओ घर स' निकललै आ अपना बगले बला कॉलबेल दबेलकै। अहू मे एकटा माउगि छलै - रेशमा। परेशानी ओकरो संपूर्ण देह पर अक्षर-अक्षर लिखाएल। ओकरो घरबला घुरल नञि छलै। मुदा फोन कएने छलै -'हालति बड्ड खराब छै। दरबज्जा आदि नीक स' लगाक' राखने रहब। हाथ मे सदिखन एकटा चक्कू वा एहेने कोनो चीज सेहो राखने रहब। पतियाएब नञि ककरो पर चाहे ओ कतबो नजदीकी हुअए।'
दुनू माउगि एक-दोसरा के देखि क' तेना चेहैली जेना एक-दोसरक सोझा मे दूध चीनी सनक संबंधवाली दीपा आ रेशमा नञि, गहुँमन आ बिज्झी हुअए। रेशमा एतेक देर राति मे ओकर आएब पर चेहैली त' दीपा रेशमाक गस्सा मे फंसल चक्कू देखि क'।
माउगि त' माउगे होइत छै - एतेक अविश्र्वास स' काज थोडबे छलै छैक। आ ई स्त्री माने दीपाक त' सौंसे देहे पर परेशानी छपाएल छलै। शौकत त' फोनो क' देने छलाह। मुदा मनोज के त' तकर कोनो परवाहिए नञि छलै। रहितियैक त' एतेक प्रतिकूल परिस्थिति मे ओकरा मना करबाक बादो जयतियन्हि की? आ मानि लिय' जे बड्ड खगता छलैन्हे जेबाक, तें चलि गेलाह। मुदा चलि गेलाक माने ई त' नयिं जे एकदमे स' निश्चिन्त भ' क' बैसि जाइ; बेगर ई महसूस कएने जे दीपा कतेक चिंतित आ परेशान हेतीह। धुर्र? माउगि आओर लेल किओ एतके परेशान हुअए!
दुनक दुनू माउगिक मुंह मे जेना बकार नञि छलै। अंतत: रेशमा सेहे चिनियाबदाम जकाँ एक-एक टा शब्द चिट चिट क' क' तोडैत-भांगैत बाजलै -
'बच्चे सो गए? मेरे तो अभी-अभी सोए हैं।'
'हँ! हुनका आओर के की पता जे दंगा-फसाद की सभ होइ छै। स्कूल नञि गेनाई त' ओकरा आओर लेल पिकनिक भ' गेलै'। भरि दिन ऊधम मचा-मचाक' थाकि-हारिक' एखने सूतल अछि।'
'मनोज भैया लौटे?'
'घुरि गेल रहितियन्हि त' हम की अईठां रहितहुँ?' स्त्री मोने मे बाजलै। प्रत्यक्षत: मूड़ी नयिं मे डोला देलकै।'
'ये भी अभी तक नहीं लौटे हैं। मगर फोन कर दिया है कि लौटेंगे। फिर भी गर हालात ज्यादा खराब हुए तो उधर ही कहीं किसी रिश्तेदार के यहाँ रूक जाएंगे।' माउगि बाजलै।
स्त्री चुपचाप ओकर मुंह तकैत रहि गेलै। ओहि दीपा रूपी स्त्रीक चेहरा पल-पल बदलि रहल छलै। माउगि रेशमा कहलकै - 'उनका फोन नहीं आया है तो तू ही पता कर ले न?'
'कत'? ओ कत छथि, हमरा कहि के जाइ छथि जे कहै छी जे फोन करी आ की दनि करी, कहाँ दनि करी।' स्त्री अपन विवशता मे खौंझैली।'
'हौसला रखो। सब ठीक हो जाएगा।'
मुदा सभ ठीक नञि भेलै। माउगिक मरद आबि गेलै। शौकत भाइ के देखि क' रेशमाक मुंह मुरझाएल फूल पर मारल पानिक छींटा जकाँ तरोताजा भ' उठलै। दीपाक चेहरा पर सेहो आंशिक आश्र्वस्तिक भाव उभरलै। बेस! एक गोट त' सकुशल आबि गेलाह। आब दोसरो आबि जाथि त' आ निश्चिंत भ' जयतियैक। अहिना सबहक सर समांग सकुशल अपना अपना बासा घुरथि जाथु त' सबहक घरक जनी जाति के कतेक आश्र्वस्ति भेंटतैक! ओ शौकत भाइ स' शहरक मूड पर कनेक गप सप कर' चाहै छलै। मोन मे छलै जे आकर परेशानी आ चिंता स' शौकत भाइ सेहो कनेक सरोकार राखति। पूछथि कनेक मनोजक मादे, कहथि कनेक शहरक हालचालि। मुदा शौकत भाइ त' तेहेन ने सख्त नजरि स' घूरि क' रेशमा के देखलनिह कि ओहि नजरिक कठोरता आ बेधकता दीपा सेहो बूझि गेलै आ कहलकै -'चलै छी रेशमा, बच्चा सभ असगरे छै।'
बाहर मे दंगा आ घर मे भूकंप आबि गेलै। मर्द प्रतिवादक गाड़ी पर फर्राटा स' सवार भ' गेलै -'कहा था न कि किसी अपने कहे जानेवाले पर भी भरोसा मत करना। क्या जरूरत थी इतनी रात को इसे बिठाए रखना? इन काफिरों का कोई भरोसा है क्या?'
'रेशमा, ई कोफ्ता शौकत भाइ लेल। दिने मे बनौने छलहुं। हमरा बूझल अछि जे हिनका कोफ्ता बड्ड पसंद छै।' स्त्रीक फेर प्रवेश भेलै। माउगि फेर सहमि गेलै। मर्द फेर तनतना गेलै।ओ अई लल्लो-चप्पो स' प्रसन्न ¬नञि भेलै। स्त्रीक गेलाक बाद गरजलै -'फेंक दो इसे डस्टबिन में। क्या ठिकाना, कुछ मिला-विला कर लाई हो।'
माउगिक करेज कनछलै -'अहीं सभ एक-दोसरा लेल दुश्मन भ' सकै छी। माउगि त' माउगे होइत छै। सभटा दुख त' ओकरे माथ पर बजरै छै। ओकर मरद के किछु भ' जेतै त' ओकरा अहिना अपन सगरि जिनगी काट' पड़तै। आ अहाँ आओरक घरवाली मरतै त' कब्र मे देह गललो ¬नञि रहतै कि दोसर निकाहक मुबारकबाद बरस' लागतै। यौ - माउगि हिन्दू-मुसलमान आ कि क्र्रिस्तान नञि होई छै। ओ खाली माउगे होइत छै।'
मुदा नञि! माउगि खाली माउगे नञि होइ छै। ओ नारी, स्त्री, माउगि, मौगी सभ भ' जाइ छै। आ सेहो कठपुतरी बनिक'। आब देखियौ ने! शौकत भाइ एम्हर पहिने आगि जकां बररसलन्हि आ फेर कने प्रेमक फूंही खसबैत आस्ते आस्ते क' क' तेना ने बुझेलखिन्ह जे कि रेशमा सेहो पतिया गेलै आ तय क' लेलकै जे ई कोफ्ता काल्हि भिन्सर मे बर्तन मांजयबाली के द' देल जेतै। ओम्हर दू बजे राति मे घुरल मनोज बाबू नामक मरदक फरमान सेहो निकललै जे आओर कतहु जाइ त' जाइ, बगल बला घर मे कथमपि नञि। ठीक पुरना जमानाक राजकुमार बला कथा जकाँ - पूब जाउ, पच्छिम जाउ, उत्तर जाउ मुदा दक्षिण कहियो नञि जाउ आ अहि अतिरिक्त सावधानी मे ओ सभस' पहिल काज कएल जे अपन दरबज्जा पर साटल 'ऊँ' स्टिकर के नोंचि-चोथि क' उजाड़ि देलन्हि।
आबी, कनेक एम्हर ईहो दुनू गोट मौगीक खोज खबरि ल' ली। ई दुनू मौगी ऊपरका दुनू स्त्री आ माउगि स' जुड़ल छली से त' अहां अओर के मोने हएत। ई दुनू छल भगवती आ जोहरा जे दीपा आ रेशमाक घर मे बर्तन चौका करै छल। ईहो एकटा संयोगे छल जे भगवती नामक मौगी रेशमा नामक माउगिक घर मे काज करै छलै आ जोहरा नामक मौगी दीपा नामक स्त्रीक घर मे। ईहो दुनू मौगी उपरकी दुनू माउगे जकां पड़ोसिया छलै।
आइ भगवतीक घर मे भम्ह लोटै छलै। आध सेर आटा बांचल छलै। तकरे रोटी बनाक' अपन चारू धिया-पुता के खुआ देने छलै - भिन्सरे मे। आब बेरहटिया स' ई अधरतिया भ' गेलै। दोकान बंद आ पाइक खूँट खुल्ला। कोनो दिस स' रस्ता नञि! धिया-पुता के ठोक-ठाकि क', एक-दू चमेटा खींचि क' सुता देने छलै। आब जागल-जागल भरि पोख पहिने अपन मरद के गरियौलकै जे ठर्रा आ अढ़ाई सौ रूपैयाक लालचि मे दंगा फोड़'बला लेल काज कर' चलि गेल छलै। ओहि स्त्री दीपे जकाँ ईहो भगवती मौगी अपना मरद के रोकबाक प्रयास कएने छलै आ मनोजे बाबू जकाँ ओकरो मरद ओकर अक्किल के ओकर ठेहुन मे रोपैत चलि गेल छलै आ बाद मे चेथड़ी भेल देह ओकर अक्किल के ओकर ठेहुन मे स' निकालि क' माथ मे राखि देलकै। मुदा एखनि त' माथ मे राखल अक्किल सेहो भुतियाएल छलै। हारि थाकि क' ओ धिया-पुता लग ढेर भ' गेलै जे आब त' भिन्सरे मे भ' सकै छै किछु। करफू लागल रहौ कि किछु। पुलिसबला गोली मारौ कि डंडा। मेम साब ओहिठां त' जाइए पड़तै। दू गोट लोभ - पगार भेटबाक आ सदिखन जकाँ अहू बेर ततेक बचल-खुचल भेटि जेबाक आस जाहि स' चारू धिया-पुताक खींचखाचि क' जलखई त' भइये जाइ छै। मुदा भिन्सर त' हुअए पहिने! हे सुरूज महराज! जल्दी बहार आबथु!'
सुरूज महाराज त' प्रकट भेलाह, मगर दोसर मौगी ई मौगीक रस्ता छोपि देलकै -'तुम बच्चावाली औरत! तुम किधर कू जाएगा ये आफत में। मेरे कू जाने दो। अपुन का क्या है? अकेला औरत। पुलिसबाला गोली मार भी दिया तो क्या हो जाएंगा। और जो नहीं मारा तो तेरा मेम साब का भी काम अपुन करके आ जाएंगा आउर तेरा पगार आउर खाने-पीने का जो कुछ भी देंगा वो सब लेके आ जाएंगा। ठीक?' आ अंचरा मे स' गरम-गरम चारि टा भाखरी निकालि क' थम्हा देलकै - एतबे बचल छलै, तैं एतबे ...
जाबथि भगवती किछु सोचय, किछु बाजय, जोहरा नामक ई दोसरकी मौगी चिड़ै जकाँ फुर्र स' उड़ि गेलै। भगवती मौगी थकमकाएले रहि गेलै, जेना जोहराक मरद दंगा बलाक बीच मे फंसल थकमकाएले रहि गेल छलै आ पछाति मे अपन टूटल - भांगल फलक ठेला आ ओहि पर सजाओल सभटा फले जकाँ पिचा-पिचू के थौआ-थौआ भ' गेल छलै। दीन ईमानक पक्का, पाँचो बेरक नमाजी आ सभटा जनानी के दीदीए आ भाभी कहैबला ओकर मरद जोहरा हिरदै में जिनगी भर लेल कांट छोड़ि गेलै - ओकर देह भरि पोख देखबाक साध मोने मे रहि गेलै आ तहिये स' ई काँट कहियो ओकर पूरा देह मे गड़' लागै छै आ कहियो अपन मरदे जकाँ मौगीक अपनो सौंसे मोन आ देह थौआ-थौआ भेल बुझाए लागै छै।
नुका-चोरा क', झटकारि क' जोहरा दुनू स्त्री आ माउगिक घरक काज कर' पहुँचि गेलै। वाह रे पुलिसबलाक चौकस नजरि! अल्लाह! जोहरा शुक्र मनौलकै। जाए बेर सेहो नञि पडए ओह दरिंदा सभक नजरि त' बेस। आएल त' असगरे छलै, जाएत त' भगवतीक दरमाहा आ खाए-पियक समान सेहो रहतै। खेनाइ-पिनाइ त' रोड पर चलि जेतै आ पाइ जानि नञि ककरा पाकिट मे - दंगाबलाक कि पुलिसबलाक।
माउगि आ स्त्री कतेक बेर दुनू मौगी स' ठट्ठा केने छलै - "गै, दुनू अपन-अपन मेमसाब बदलि ले। मियां मियांक घर मे आ हिंदू हिंदूक घर मे। तहियाक मजाक आइ दुनू माउगि आ स्त्री के वास्तविक लागि रहल छलै - दुनू मरद जे झोटैंला पंचक ई मजाक पर कहियो कान नञि देलन्हि, आइ गंभीर फैसलाक तीर, कटार ई दुनू माउगि पर संधानि देलन्हि। फर्मान बंदूक स' गोली जकाँ बहिरा गेल छलै आ ई दुनू के आब ओहि गोली के अपना-अपना करेज मे धँसा क, धँसलाक बाद अपना-अपना के जीवित, चालू पुर्जा राखैत ओहि फर्मान पर अमल करबाक छलै।
जहिया ठेला छलै, फल छलै आ फलक ताजगी जकाँ मुस्की मारैत ओकर मरद छलै, तहिया जोहरा के काजक कोनो दरकार नञि छलै। दीपा ओकर चेहराक मासूमियत आ खबसूरती देखि क' सोचै बेर-बेर - जे कोनो नीक घरक स्त्री रहितियैक त' रूप-रंग झाड़-फानूस जकाँ चमकतियैक। मुदा एखनि त' ओकर उदास मुंह, उड़ल रंग आ बेजान कपड़ा। हठात ओकरा जोहरा मे रेशमाक झलक भेटलै त' बड़ी जो स' ओ चेहा उठलै। मोने मोन अपना के लथाड़लकै। जतेक गारि अबै छल, सभटा अपना मोनक ऊपर खाली क' देलकै। जोहरा काज क' क' रेशमा ओहिठां चलि गेल छलै। मनोज बाबू सुतले छलाह। दीपा फ्रिज मे स' झब-झब समान सभ बाहर कर' लागलै।
फेर कॉलबेल। फेर दीपाक मुंह। फेर रेशमाक बदलैत रंग। रेशमा स' कोनो औपचारिक रिश्ता त' छलै नञि! तै धड़ाधड़ि भन्से मे चलि गेलै -'जोहरा! ई खाए पियक समान सभ छै। भगवती के द' दिहें।'
'लेकिन मैं जो ये सब तुझे दे रही हूँ, ये सब केवल तेरे लिए हैं। किसी काफिर-वाफिर को नहीं देगी तू और सुन! कल से तू उधर नहीं, इधर काम करेगी। दस रूपए ज्यादे ले लेना। चलेगा। वो चाहे तो उधर करले। कल साहब यही कह रहे थे।'
थकमक भेल स्त्री दीपा देखलकै - भन्साघरक स्लैब पर जोहराक देल खाद्य सामग्री मे रतुक्का कोफ्ता। ओम्हर कोफ्ता ओकरा अंगूठा देखा रहल छलै आ एम्हर रेशमाक गप्प ओकर करेज पर आड़ी चला रहल छलै। त', कतेक पतिव्रता स्त्री छै। पति जे कहलकै, तुरंत ओकर ताबेदारी मे लागि गेलै। आ ओ? दू बजे राति मे घुरल मनाज् बाबू स' फिरकापरस्ती पर बहस केलकै आ जोहरा भगवतीक प्रसंग पर मना क' देलकै जे ओ नञि करतै काज कर' बालीक अदला-बदली।
मुदा आब? जौं ई मौगी मानि गेलै त' ओकरा त' डबल फैदा। आ ओम्हर बेचारी भगवतीक काजक नोकसान। तहन त' नीके छै ई अदलाबदली। तैं ओहो दही में सही मिलेलकै। ओना त' ओहो अदला-बदली के व्यावहारिकताक जामा त' पहिराइये देने छलै जहन कि फ्रिज से खाद्य सामग्री निकालि क' ओ भगवती लेल आनने छलै। कहियो ई नञि देखल-सुनल जे काज करए किओ आन आ खाएक पियक भेटै कोनो आन के।
मुदा ई मौगी ! जोहरा मौगी! केहेन खरदार! केहेन जबर्दस्त! केहेन जोरगरि! ओ चकचक करैत दुनू माउगिक मुंह देखलकै। बाजलै किछु नञि। खाली रेशमा स' कहलकै -'करफू लगा हुआ है। भोत मुश्किल से आया मैं। कल आने को होएंगा कि नेई, मालूम नेई। भगवती अपना पगार वास्ते बोला है। आप दे देंगा तो मैं ले जाके उसकू दे देंगा।'
'बोल उसे वो खुद आकर ले जाएगी। जब तू आ सकती है तो वो क्यों नहीं। और अच्छा है न! पुलिस की नजर चढ़ गई तो एक काफिर तो घटेगा कम से कम।'
कि माउगि गै माउगि! हम माउगि, तों माउगि, ई माउगि; ओ माउगि - सभ माउगे-माउगि! इहो चारो माउगे माउगि। मुदा ई मौगी - छोटहा लोग - मसोमात जोहरा त' जेना पुलिसक गोली आ दंगाबलाक ईंट, पत्थर, बोतल घासलेट तकरो सभ स' बेसी आक्रांत भ' उठलै। काली जकाँ, दुर्गा जकाँ, चंडी जकाँ ! 'मेम साब! आप दोनों अपना-अपना सामान रख लो। मेरे कू नेई चाहिए ऐसा खाना, जिसमें शैतानी खून बोलता हो। ई दंगा - आप दोनों का मन मे इतना फरक पैदा किएला है कि आप दोनों एक मिनट में अपना से गैर बना दिया। भगवती तो बच्चा लोग का खातिर आने को तैयार था। मईच रोका उसकू कि मेरा क्या! मइ अकेला माणस। पुलिस गोली मारेंगा तो भी क्या चला जाएंगा मेरा। पण उसकू कुछ होएंगा तो उसका बच्चा लोग यतीम हो जाएंगा, जैसे मइ हो गया अपना मरद का जाने से। आपलोग बड़ा लोग। इसलिए आपलोग का बड़ा बात। बड़ा समझदारी। मेरे कू तो खोपड़ी नेई। आपको भगवती को नेई रखना, मति रखो। उसका पगार नेई देने का, मति दो। लेकिन कल से मइ भी काम पर नेई आने का। लेकिन उसका पहिले अभी आपका घर मे मइ जो काम किया, वो पइसा मेरे कू अब्भी का अब्भी देने का। वो मेरा हक्क है। मइ उसकू लेके जाएंगा आउर जो मर्जी आएंगा, करेंगा। आपका ई भीख नेई चाहिए मेरे कू।'
मौगियो आओर बाजि सकै छै, सोचि-समझि सकै छै! एहेन अजगुत कथा ! बाप रौ बाप! दुनू माउगि के साँप सुंघा गेलै। ई मौगी भ' क' एतेक नाटक! माउगिक सोझा मे एकर एतेक टनटनी छै ने। कनेक साहेबक सोझा मे पड़' दियौक। सभटा बिलाडिपन एके क्षण मे घुसडि जेतै आ ओ फेर केथरी जकां गुड़िया-मुड़िया जेतै। रेशमा सोच लागलै। यदि शौकत मियां उठि क' आबि जाथु त' एकर मुंहक टनटनी एखने बंद भ' सकै छै।
नीक भेलै। शौकत मियां आबि गेलाह! भन्साघरक स' भोरुक्का चाहक गन्धक बदला ई खिच-खिचक गंध बर्दाश्त नञि भेलै आ अधकचरा भेल नीनक खौंझ स' भरल ओ बाहर निकललाह!
'क्या हुआ? सुबह-सुबह चाय देने के बदले घर को कर्बला का मैदान क्यों बना रखा है?' ड्राइंग रूम भड़कलै। रेशमाक चेहरा चमकलै। दीपा शरीर स' एम्हर छलै आ मोन स' मनोज कत'। तैं ओ संभ्रमित सेहो भेलै। मुदा जोहरा ओहीठां छलै - तन आ मोन दुनू स'। कतहु कोनो तरहक बनावटी चमक नञि, मुंह पर कोनो तरहक भ्रमक चेन्हासी नञि। ओ माथ पर ओढ़नी धेलकै आ भन्साघरक खिचखिच के ओतहि छोड़ैत ड्राइंगरूम में पहँुचि गेलै -'साब! मेरे कू बताओ, ये दंगा हम और आप कराया क्या? आओर जो कराया, उसका बदन का एक बाल भी गिरा क्या? भगवती का आदमी गया, मेरा मरद गया। तो क्या ये सब उसका, मेरा या आपका चाहने से हुआ? कल को खुदा न करे, आपको या वो साब को कुछ हो जाता तो वो सब आपका या आपका मेमसाब लोग का चाहने से होता था क्या? आओर ये मारामारी का फरक किसका पर गिरेंगा साब। हम औरत लोग पर। बेवा तो अपुन लोग होता है न साब! और बेवा खाली बेवाइच कहलाता - हिन्दू बेवा आ मुसलमान बेवा नेई। साब, मइ जाता। बस मेरा आज का काम का पइसा दे दो। उस पइसा से मेरे जो मर्जी करेंगा, जिसके लिए मन करेगा सामान खरीदेंगा।'
ड्राइंगरूम गरजलै -'क्या बकवास लगा रखी है। रेशमा, तुम इनलोगों को यहाँ से भगाती क्यों नहीं?
भन्साघर फेर डेराएल चिड़ई भ' गेलै। दीपा स' आब सहन नञि भेलै। ओ जाए लेल डेग उठेलकै। जोहरा एक पल भन्साघर मे मोजद दुनू माउगि के देखलकै। फेर ओकरो डेग उठलै। आ भन्साघर जेना भूकंप स' डोल' लागलै। आब कनेक स्थिर भेलै। स्वरक अरोह-अवरोह मे सेहो स्थिरता अएलै। उठल डेग स्वर स' मिलान कर' लागलै -'जोहरा, ये सब ले जाओ और भगवती की पगार भी। हालात ठीक होने पर ही उसे घर से निकलने देना और तुम भी तभी आना। और दीपा, बैठो न! चाहो तो तबतक शौकत मियां से बात करो या फिर यहीं किचन मे मेरे साथ। मैं तुरंत चाय बनाती हूँ। जोहरा, तुम भी पीकर जाना।'
वाह रे तिरिया चरित्तर वाह! ऋषि मुनि सभ कहिये गेलैन्हिए जे देवो नञि जानि सकलाह त' पुरूषक कथे कोन? किन्तु अईठां एहेन कोनो गुंफित रहस्य नञि छलै, नञि त' काम केलिक कोनो नुका छिपी छलै, ने नैनक कटाक्ष आ बैनक मुस्कान छलै। अईठाँ त' एकेटा चीज पसरल छलै - चाह मे, पत्ती में, चीनी मे, कप मे - माउगे -माउगि। चाह, दूध, चीनी आगिक गरमी स' एके रंग ध' लेइत छै, एकमेक भ' जाएत छै। बनल चाह मे से चाहक रंग, दूध, चीनी के अलग-अलग करब मोश्किल। ईहो माउगि सभ चाहे जकाँ एक मेक भ' गेल छलै।
शौकत साहब ड्राइंगरूम में चाहक चुस्की ल' रहल छलाह। चाहक भाफ ड्राइंगरूम ठरल, बर्फ भेल सर्दपना के तोड़लकै कि नञि, पता नञि; मुदा सौंसे भन्साघर मे भाफक नरम गरमी पसरि गेलै। आ ओहि नरम-गरम माहौल मे देखाई पड़लै जे एकटा मौगी चीज बतुस आ भगवतीक पगार ल' क' झटकल चलल जा रहल छै। एक गोट स्त्री आ दोसर माउगिक आँखिक पानि टघरि क' चाहक प्याली मे खसि रहल छलै। चाह नमकीन भेलै कि मीठे रहलै, सेहो नञि बुझेलै। खाली एक गोट स्वर ओहि भन्साघर मे बरकि गेलै - बरकैत गेलै - 'दीपा हम औरतों के दुख कितने एक समान होते हैं न!'
'भगवान नञि करथु ककरो माँगि आ कोखि उजड़ै।'
'आ श्मशानक मनहूसियत ककरो घर मे पैंसए।'
लोक आओर कहे छै, माउगि-माउगि अलग होई छै - नारी, स्त्री, महिला, माउगि, मौगी, जनी - हौ जी ई एतेक नाम द' देने ओ सभ बदलि जाइ छै की ? कहू त' ! एहनो कतहु भेलैये !

नताशा 03 (चित्र-श्रृंखला पढ़बाक लेल नीचाँक चित्रकेँ क्लिक करू आ आनन्द उठाऊ।)

नेना भुटका लेल दू टा नाटक -1.अपाला आत्रेयी आ 2.दानवीर दधीची : गजेन्द्र ठाकुर

नेना भुटका लेल दू टा नाटक -1.अपाला आत्रेयी आ 2.दानवीर दधीची : गजेन्द्र ठाकुर



1.अपाला आत्रेयी

पात्र: अपाला: ऋगवैदिक ऋचाक लेखिका अत्रि: अपालाक पिता

वैद्य 1,2,3: कृशाश्व: अपालाक पति।

वेषभूषा

उत्तरीय वस्त्र (पुरुष), वल्कल, जूहीक माला(अपालाक केशमे), दण्ड।

मंच सज्जा

सहकार-कुञ्ज(आमक गाछी), वेदी, हविर्गन्ध, रथक छिद्र, युगक छिद्र, सोझाँमे साही, गोहि आ’ गिरग़िट।


दृश्य एक

(आमक गाछीक मध्य एक गोट बालिका आ’ बालक)।

बालिका: हमर नाम अपाला अछि। हम ऋषि अत्रिक पुत्री छी।अहाँ के छी ऋषि बालक।

बालक: हम शिक्षाक हेतु आयल छी। ऋषि अत्रि कतए छथि।

अपाला: ऋषि जलाशय दिशि नहयबाक हेतु गेल छथि, अबिते होयताह। (तखनहि दहिन हाथमे कमंडल आ’ वाम हाथमे वल्कल लेने महर्षि अत्रिक प्रवेश।)

अत्रि: पुत्री ई कोन बालक आयल छथि।

अपाला: ऋषिवर। आश्रमवासीक संख्यामे एक गोट वृद्धि होयत। ई बालक शिक्षाक हेतु...

बालक: नहि। हमर अखन उपनयन नहि भेल अछि। हम अखन माणवक बनि उपाध्यायक लग शिक्षाक हेतु आयल छी। ई देखू हमर हाथक दण्ड। हम दण्ड- माणवक बनि सभ दिन अपन गामसँ आयब आ’ साँझमे चलि जायब। हम वेद मंत्रसँ अपरिचित अनृच छी।

अत्रि: बेश तखन अहाँ हमर शिष्यक रूपमे प्रसिद्ध होयब। दिनक पूर्व भाग प्रहरण विद्याक ग्रहणक हेतु राखल गेल अछि। हम जे मंत्र कहब तकरा अहाँ स्मरण राखब। पुनः हम अहाँक विधिपूर्वक उपनयन करबाय संग ल’ आनब।

बालक: विपश्चित गुरुक चरणमे प्रणाम। (पटाक्षेप)

दृश्य दू

(उपनयन संस्कारक अंतिम दृश्य। अपाला आ’ किछु आन ऋषि बालक बालिकाक उपनयन संस्कार कराओल जा चुकल अछि।)

अत्रि: अपाला। आब अहाँक असल शिक्षा आ’ विद्या शुरू होयत।

(पुनः आन विद्यार्थी सभक दिशि घूमि।) अहाँ सभकेँ सावित्री मंत्रक नियमित पाठ करबाक चाही। ॐ भूरभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। सविता- जे सभक प्रेरक छथि- केर वरेण्य- सभकेँ नीक लागय बला तेज- पृथ्वी, अंतरिक्ष आ’ स्वर्गलोक-सर्वोच्च अकाश-मे पसरल अछि। हम ओकर स्मरण करैत छी। ओ’ हमर बुद्धि आ’ मेधाकेँ प्रेरित करथु।

अपाला: पितृवर।“ ॐ नमः सिद्धम” केर संग विद्यारम्भक पूर्व शिक्षाक अंतर्गत की सभ पढ़ाओल जायत।

अत्रि: वर्ण, अक्षर-स्वर-, मात्रा- ह्र्स्व,दीर्घ आ’ प्लुत- बलाघात- उदात्त, अनुदात्त, स्वरित- शुद्ध उच्चारण, अक्षरक क्रमिक विन्यास- वर्त्तनी-, पढ़बाक आ’ बजबाक शैली, एकहि वर्णकेँ बजबाक कैकटा प्रकार, ई सभ शिक्षाक अंतर्गत सिखाओल जायत। साम संतान- जेकि सामान्य गान अछि- केर माध्यमसँ शिक्षा देल जायत।

अपाला: गुरुवर। आश्रमक नियमसँ सेहो अवगत करा देल जाय।

अत्रि: वनक प्राणी अवध्य छथि। आहारार्थ फल पूर्व-संध्यामे वन-वृक्षसँ एकत्र कएल जायत। प्रातः आ’ सायं अग्निहोत्र होयत, ताहि हेतु समिधा, कुश, घृत-आज्य-, एवम् दुग्धक व्यवस्था प्रतिदिन मिलि-जुलि कय कएल जायत। हरिणकेँ निर्विघ्न आश्रममे टहलबाक अनुमति अछि। कदम्ब, अशोक, केतकी, मधूक, वकुल आ’ सूदकारक गाछक मध्य आश्रममे यद्यपि कृषिक अनुमति नहि अछि, परञ्च अकृष्य भूमि पर स्वतः आ’ बीयाक द्वारा उत्पन्न अकृष्टपच्य अन्नक प्रयोग भ’ सकैछ।

बालक: हम सभ एकहि विद्यापीठक रहबाक कारण सतीर्थ्य छी। गुरुवर। दण्ड आ’ कमण्डलक अतिरिक्त्त किचुउ रखबाक अनुमति अछि?

अत्रि: कटि मेखला आ’ मृगचर्म धारण करू आ’ अपनाकेँ एहि योग्य बनाऊ, जाहिसँ द्वादशवर्षीय यज्ञ सत्रक हेतु अहाँ तैयार भ’ सकी आ’ महायज्ञक समाप्तिक पश्चात् ब्रह्मोदय, विदथ परिषद आ’ उपनिषद ओ’ अरण्य संसदमे गंभीर विषय पर चर्चा क’ सकी। (पटाक्षेप)

दृश्य तीन

(कुटीरमे ऋषि अत्रि कैक गोट वैद्यक संग विचार-विमर्श कए रहल छथि।)

अत्रि: वैद्यगण। बालिका अपालाक शरीरमे त्वक् रोगक लक्षण आबि रहल अछि। शरीर पर श्वेत कुष्ठक लक्षण देखबामे आबि रहल अछि।

वैद्य 1: कतबा महिनासँ कतेको औषधिक निर्माण कए बालिकाकेँ खोआओल, आ’ लेपनक हेतु सेहो देल।

अत्रि: अपाला आब विवाहयोग्य भ’ रहल छथि। हुनका हेतु योग्य वर सेहो ताकि रहल छी।

वैद्य 2: कृशाश्वक विषयमे सुनल अछि, जे ओ’ सर्वगुणसंपन्न छथि, आ’ वृद्ध माता-पिताक सेवामे लागल छथि। ओ’ अपन अपालाक हेतु सर्वथा उपयुक्त वर होयताह। अत्रि: तखन देरी कथीक। अपने सभ उचित दिन हुनकर माता-पितासँ संपर्क करू।

दृश्य चारि

(आश्रमक सहकार-कुञ्जमे वैवाहिक विधिक अनुष्ठान अछि। वेदी बनाओल गेल अछि, आ’ ओतय ऋत्विज लोकनि जव-तील केर हवन क’ रहल छथि।)

अपाला(मोने मोन): माथ पर त्रिपुंडक भव्य-रेखा, आ’ शरीर-सौष्ठवक संग विनयक मूर्त्ति, ईएह कृशाश्व हमर जीवनक संगी छथि। (तखने कृशाश्वक नजरि अपालासँ मिलैत छन्हि, आ’ अपाला नजरि नीँचा कए लैत छथि।। मुदा स्त्रीत्वक मर्यादाकेँ रखैत ललाट ऊँचे बनल रहैत छन्हि।)

अत्रि: उपस्थित ऋषि-मण्डली आ’ अग्निकेँ साक्षी मानैत, हम अपाला आ’ कृशाश्वक पाणिग्रहण करबैत छी। (अग्निक प्रदक्षिणा करैत काल कृशाश्वक उत्तरीय वस्त्र कनेक नीँचा खसि पड़ल आ’ अपालाक केशक जूही-माला पृथ्वी पर खसि पड़ल।)

दृश्य पाँच

(अपालाक पतिगृह।वृद्ध माता-पिता बैसल छथिन्ह आ’ अपाला घरक काजमे लागल छथि।)

अपाला: प्रिय कृशाश्व।एतेक दिन बीति गेल। पतिगृहमे हम कोनो नियंत्रणक अनुभव नहि कएलहुँ। हमरा प्रति अहाँक कोमल प्रेम सतत् विद्यमान रहल। मुदा श्वेत श्वित्रक जे दाग हमरा पर ज्वलन्त सत्ताक रूपमे अछि, कदाचित् वैह किछु दिनसँ अहाँक हृदयमे हमरा प्रति उदासीनताक रूपमे परिणत भेल अछि।

कृशाश्व: हमर उदासीनता अपाला?

अपाला: हँ कृशाश्व। हम देखि रहल छी ई परिवर्त्तन। की एकर कारण हमर त्वगदोषमे अंतर्निहित अछि?

कृशाश्व: हे अपाला। हमरा भीतर एकटा संघर्ष चलि रहल अछि। ई संघर्ष अछि प्रेम आ’ वासनाक। प्रेम कहैत अछि, जे अपाला ब्रह्मवादिनी छथि, दिव्य नारी छथि। मुदा वासना कहैत अछि, जे अपालाक शरीरक त्वगदोष नेत्रमे रूपसँ वैराग्यक कारण बनि गेल अछि।

अपाला: पुरुषक हाथसँ स्त्रीक ई भर्त्सना। कामनासँ कलुषित पुरुष द्वारा नारीक हृदय-पुष्पकेँ थकूचब छी ई। हम वेदक अध्ययन कएने छी। चन्द्रमाक प्रकाशक बीचमे ओकर दाग नुका जाइत अछि, मुदा हमर ई श्वेत श्वित्र दाग हमर विशाल गुणराशिक बीचमे नहि मेटायल। (कृशाश्व स्तब्ध भय जाइत छथि, मुदा किछु बजैत नहि छथि।)

अपाला: सबल पुरुषक सोँझा हम अपन हारि मानैत, अपन पिताक तपोवन जा रहल छी, कृशाश्व।

दृश्य 6

(अपाला प्रातः कालमे समिधासँ अग्निकुण्डमे होम करैत इन्द्रक पूजा आ’ जपमे लागि गेल छथि। कुशासन पर बैसलि छथि।)

अपाला: धारक लग सोम भेटल, ओकरा घर आनल आ’ कहल जे हम एकरा थकुचब इंद्रक हेतु, शक्रक हेतु।गृह गृह घुमैत आ’ सभटा देखैत, छोट खुट्टीक ई सोम पीबू,दाँतसँ थकुचल, अन्न आ’ दहीक संग खेनाइमे प्रशंसा गीत सुनैत। हम सभ अहाँकेँ नीक जेकाँ जनबाक हेतु अवैकल्पिक रूपसँ लागल छी, मुदा क्यो गोटे अहाँकेँ प्राप्त नहि क’ सकल छी। हे चन्द्र, अहाँ आस्ते-आस्ते आ’ निरन्तर ठोपे-ठोपे इन्द्रमे प्रवाहित होऊ। की ओ’ हमरा लोकनिक सहायता नहि करताह, हमरा लोकनिक हेतु कार्य नहि करताह। की ओ’ हमरा लोकनिकेँ धनीक नहि बनओताह? की हम अपन राजासँ शत्रुताक बाद आब अपना सभकेँ इन्द्रसँ मिला लिय’। हे इन्द्र अहाँ तीन ठाम उत्पन्न करू। हमरा पिताक मस्तक पर, हुनकर खेतमे आ’ हमर उदर लग। एहि सभ फसिलकेँ ऊगय दियौक। अहाँ हमरा सभक खेतकेँ जोतलहुँ, हमर शरीरकेँ आ’ हमर पिताक मस्तककेँ सेहो। अपालाकेँ पवित्र कएल। इन्द्र! तीन बेर, एक बेर पहिया लागल गाड़ी, एक बेर चारि पहिया युक्त्त गाड़ीमे आ’ एक बेर दुनू बरदक कान्ह पर राखल युगक बीच। हे शतक्रतु! आ’ अपालाकेँ स्वच्छ कएल आ’ सूर्यसमान त्वचा देल। हे इन्द्र!


दृश्य 7 (महायज्ञक समाप्तिक पश्चात ब्रह्मोदयक दृश्य।)

अत्रि: एहि विशाल ऋत्विजगणक मध्य ऋकक मंत्रमे अपालाक ऋचाकेँ हम सम्मिलित कए सकैत छी, कारण ई स्वतः स्फुटित आ’ अभिमंत्रित अछि। अपालाक चर्मरोग एहिसँ छूटि गेल, एकर ई सद्यः प्रमाण अछि। अपाला एहि मंत्रक दृष्टा छथि। ऋषिगण: अत्रि, हमरा सभ सेहो एहि मंत्रक दर्शन कएल। अहो। सम्मिलित करबाक आ’ नहि करबाक तँ प्रश्ने नहि अछि। ई तँ आइसँ ऋकक भाग भेल। (एहि स्वीकृतिक बाद ब्रह्मोदय सभामे दोसर काज सभ प्रारम्भ भ’ जाइत अछि। कृशाश्व विचलित मोने अपालाक सोझाँ अबैत छथि।)

कृशाश्व: अपाला। हम दु:खित छी। अहाँक वियोगमे।

अपाला: हे कृशाश्व। इन्द्रक देल ई त्वचा योगक परिणाम अछि। अहाँक उपेक्षा हमरा एहि योग्य बनेलक, मुदा आब एहि पर अहाँक कोनो अधिकार नहि।

(दुनू गोटे शनैः-शनैः मँचक दू दिशि सँ बहराए जाइत छथि।)

(पटाक्षेप)_




2. दानवीर दधीची

मंच सज्जा

अम्र वन, पोखरि आ’ युद्ध स्थल


वेष-भूषा

अधो वस्त्र- आश्रमवासीक हेतु

आश्विनक हेतु वैद्यक श्वेत वस्त्र

आ’ इन्द्रक हेतु योद्धाक वस्त्र

रथ आ’ अस्त्र शस्त्रक चित्र पर्दा पर छायांकित कएल जा’ सकैत अछि।



प्रथम दृश्य


( महर्षि दध्यङ आथर्वन दधीचीक तपोवनक दृश्य। सूर्योदयक स्वर्णिम आभा, फूलक गाछक फूलक संग पवनक प्रभावसँ सूर्य दिशि झुकब। यज्ञक धूँआसँ मलिन भेल गाछक पात। महर्षि सूर्योदयक दृश्यक आनन्द लए रहल छथि। मुदा दृष्टिमे अतृप्त भाव छन्हि। ओहि आश्रमक कुलपति थिकाह महर्षि, दस सहस्र छात्रकेँ विद्यादान करैत छथि, सभक नाम, गाम आ’ कार्यसँ परिचित छथि। से ओ’ तखने प्रवेश करैत एकटा अपरिचित आगंतुकक आगमन सँ साकांक्ष भ’ जाइत छथि।)



दध्यङ आथर्वन दधीची: अहाँ के छी आगंतुक?


अपरिचित: हम एकटा अतिथि छी महर्षि, आ’ कोनो प्रयोजनसँ आयल छी। कृपा कए अतिथिक मनोरथ पूर्ण करबाक आश्वासन देल जाय।

दध्यङ आथर्वन दधीची: एहि आश्रमसँ क्यो बिना मनोरथ पूर्ण कएने अहि गेल अछि आगंतुक। हम अहाँक सभ मनोरथ पूर्ण होयबाक आश्वासन दैत छी।


अपरिचित: हम देवता लोकनिक राजा इन्द्र छी। अहाँसँ परमतत्त्वक उपदेशक हेतु आयल छी।एहिसँ अहाँक कीर्त्ति स्वर्गलोक धरि पहुँचत।


(दध्यङ आथर्वन दधीची सोचमे पड़ल मंच पर एम्हरसँ ओम्हर विचलित होइत घुमय लहैत छथि। ओ’ मंच पर घुमैत मोने- मोन, बिनु इन्द्रकेँ देखने, बजैत छथि, जे दर्शकगणकेँ तँ सुनबामे अबैत अछि, मुदा इन्द्र एहन सन आकृति बनओने रहैत छथि, जे ओ’ किछु सुनिये नहि रहल छथि, आ’ मंचक एक दोगमे ठाढ़ भ’ जाइत छथि।)

दध्यङ आथर्वन दधीची: (मोने-मोन) हम शिक्षा देब तँ गछि लेने छी, मुदा की इन्द्र एकर अधिकारी छथि। बज्र लए घुमए बला, कामवासनामे लिप्त अनधिकारी व्यक्त्तिकेँ परमतत्त्वक शिक्षा? मुदा गछने छी तँ अपन प्रतिज्ञाक रक्षणार्थ मधु-विद्याक शिक्षा इन्द्रकेँ दैत छियन्हि।


इन्द्र: कोन सोचिमे पड़ि गेलहुँ महर्षि।


दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र हम अहाँकेँ मधुविद्याक शिक्षा दए रहल छी। भोगसँ दूर रहू। नाना प्रकारक भोगक आ’ भोज्यक पदार्थ सभसँ। ई सभ ओहने अछि, जेना फूल सभक बीचमे साँप। भोगक अछैत स्वर्ग अधिपति इन्द्र आ’ भूतलक निकृष्ट कुकुरमे कोन अंतर रहत तखन?

( इन्द्र अपन तुलना कुकुरसँ कएल गेल देखि कए तामसे विख-सबिख भ’ गेल। मुदा अपना पर नियंत्रण रखैत मात्र एक गोट वाक्य बजैत मंच परसँ जाइत देखल जाइत अछि।)

इन्द्र: महर्षि अहाँक ई अपमान तँ आइ हम सहि लेलहुँ। मुदा आजुक बाद जौँ अहाँ ई मधु-विद्या ककरो अनका देलहुँ तँ अहाँक गरदनि पर ई मस्तिष्क जकर अहाँकेँ घमण्ड अछि, एहि भूमि पर खसत।



दृश्य 2:


( ऋषिक आश्रम। आश्विन बन्धुक आगमन।महर्षिसँ अभिवादनक उपरान्त वार्त्तालाप। )


आश्विन बन्धु: महर्षि। आब हम सभ अहाँक मधु विद्याक हेतु सर्वथा सुयोग्य भ’ गेल छी। हिंसा आ’ भोगक रस्ता हम सभ छोड़ि देलहुँ। इन्द्र सोमयागमे हमरा लोकनिकेँ सोमपानक हेतु सर्वथा अयोग्य मानलन्हि, मुदा हमरा सभ प्रतिशोध नहि लेलहुँ। कतेक पंगुकेँ पैर, कतेक आन्हरकेँ आँखि हमरा सभ देलहुँ। च्यवन मुनिक बुढ़ापाकेँ दूर कएलहुँ। आ’ तकरे उपकारमे च्यवन हमरा लोकनिकेँ सोमपीथी बना देलन्हि।


दध्यङ आथर्वन दधीची: आश्विनौ। ब्रह्मज्ञानककेँ देब एकटा उपकारमयी कार्य अछि, आ’ अहाँ लोकनि एहि विद्याक सर्वथा योग्य शिक्षार्थी छी। इन्द्र कहने अछि, जे जाहि दिन ई विद्या हम कहियो ककरो देब तँ तहिये ओ’ हमर माथ शरीरसँ काटि खसा देत। मुदा ई शरीरतँ अछि क्षणभंगुर। आइ नहि तँ काल्हि एकरा नष्ट होयबाक छैक। ताहि डरसँ हम ब्रह्म विद्याक लोप नहि होए देबैक।


आश्विनौ: महर्षि अहाँक ई उदारचरित! मुद हमरो सभ शल्यक्रिया जनैत छी आ’ पहिने हमरा सभ घोड़ाक मस्तक अहाँक गरदनि पर लगाए देब। जखन इन्द्र अपन घृणित कार्य करत आ’ अहाँक मस्तककेँ काटत तखन अहाँक अस्ली मस्तक हमरा सभ पुनः अहाँक शरीरमे लगा देब।

(मंच पर आबाजाही शुरू भ’ जाइत अछि, क्यो टेबुल अनैत अछि तँ क्यो चक्कू धिपा रहल अछि, जेना कोनो शल्य चिकित्साक कार्य शुरू भ’ रहल होय। परदा खसए लगैत अछि, आ’ पूरा खसितो नहि अछि, आकि फेर उठब प्रारम्भ भ’ जैत अछि। एहि बेर घोड़ाक गरदनि लगओने महर्षि आश्विन बन्धुकेँ शिक्षा दैत दृष्टिगोचर ओइत छथि।)

दध्यङ आथर्वन दधीची: एहि जगतक सभ पदार्थ एक दोसराक उपकारी अछि। ई जे धरा अछि से सभ पदार्थक हेतु मधु अछि, आ’ सभ पदार्थ ओकरा हेतु मधु। समस्त जन मधुरूपक अछि। तेजोमय आ’ अमृतमय। सत्येक आधार पर सूर्य ज्योति पसारैत अछि एहि विश्वमे, आ’ चन्द्रक धवल प्रकाश दूर भगाबैत अछि रातिक गुमार आ’ आनैत अछि शीतलता। ज्ञानक उदयसँ अन्हारमे बुझाइत साँप देखा पड़ैत अछि रस्सा। विश्वक सूत्रात्माकेँ ओहि परमात्माकेँ अपन बुद्धिसँ पकड़ू। जाहि प्रकारेँ रथक नेमिमे अर रहैत अछि, ताहि प्रकारेँ परमात्मामे ई संपूर्ण विश्व।


( तखने मंचक पाछाँसँ बड्ड बेशी कोलाहल शुरू भ’ जाइत अछि। तखने बज्र लए इन्द्रक आगमन होइत अछि। एक्के प्रहारमे ओ’ महर्षिक गरदनि काटि दैत छथि। फेर इन्द्र चलि जाइत छथि। मंच पर आबाजाही शुरू भ’ जाइत अछि, क्यो टेबुल अनैत अछि तँ क्यो चक्कू धिपा रहल अछि, जेना कोनो शल्य चिकित्साक कार्य शुरू भ’ रहल होय। परदा खसए लगैत अछि, आ’ पूरा खसितो नहि अछि, आकि फेर उठब प्रारम्भ भ’ जैत अछि। एहि बेर महर्षि पुनः अपन स्व-शरीरमे देखल जाइत छथि। ओ’ बैसले छथि आकि इन्द्र अपन मुँह लटकओंने अबैत अछि।)


इन्द्र: क्षमा करब महर्षि हमर अपराध। आइ आश्विन-बन्धु हमरा नव-रस्ता देखओलन्हि। गुरूसँ एको अक्षर सिखनहार ओकर आदर करैत छथि मुदा हम की कएलहुँ। असल शिष्य तँ छथि आश्विन बन्धु।


दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र। अहाँकेँ ताहि द्वारे हम शिक्षा देबामे पराङमुख भए रहल छलहुँ। मुदा अहाँक दृढ़निश्चय आ’ सत्यक प्रति निष्ठाक द्वारे हम अहाँकेँ शिक्षा देल। हमरा मोनमे अहाँक प्रति कोनो मलिनता नहि अछि।

इन्द्र: धन्य छी अहाँ आ’ धन्य छय्हि आश्विनौ। आब हम ओ’ इन्द्र नहि रहलहुँ। हमर अभिमानकेँ आश्विनौ खतम कए देलन्हि।


(इन्द्र मंचसँ जाइत अछि। परदा खसैत अछि।)



दृश्य 3:


( स्वर्गलोकक दृश्य। चारू दिशि वृत्र आ’ शम्बरक नामक चर्चा करैत लोक आबाजाही कए रहल छथि। ओ’ दुनू गोटे आक्रमण कए देने अछि भारतक स्वर्गभूमि पर। इन्द्र सहायताक हेतु महर्षिक आश्रम अबैत छथि।)


इन्द्र: वृत्र आ’ शम्बरक आक्रमण तँ एहि बेर बड्ड प्रचंड अछि। अहाँक विचार आ’ मार्गदर्शनक हेतु आयल छी महर्षि।


दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र। कुरुक्षेत्र लग एकटा जलाशय अछि, जकर नाम अछि, शर्यणा। अहाँ ओतए जाऊ, ओतय घोड़ाक मूड़ी राखल अछि, जाहिसँ हम आश्विनौकेँ उपदेश देने छलहुँ। ब्रह्मविद्या ओहि मुँहसँ बहरायल आ’ ताहि द्वारे ओ’ अत्यंत कठोर आ’ दृढ़ भ’ गेल अछि। ओहिसँ नाना-प्रकारक शस्त्र बनाऊ, अग्नि आश्रित विध्वंसकक प्रयोग करू, त्रिसंधि व्रज, धनुष, इषु-बाण-अयोमुख-लोहाक सूचीमुख सुइयाबला आ’ विकंकतीमुख- कठोर कन्ह सन एहि तरह्क शस्त्रक प्रयोग करू, कवच आ’ शिरस्त्राणक प्रयोग करू, अंधकार पसारयबला आ’ जड़ैत रस्सी द्वारा दुर्गंधयुक्त्त धुँआ निकलएबला शस्त्रक सेहो प्रयोग करू आ’ युद्ध कए विजयी बनू।


इन्द्र: जे आज्ञा महर्षि।


( परदा खसैत अछि, आ’ जखन उठैत अछि, तँ पोखडिक कातमे घोड़ाक मूड़ीसँ इन्द्र द्वारा वज्र आ’ विभिन्न हथियार बनाओल जा’ रहल अछि, फेर परदा खसि क’ जखन उठैत अछि तँ अग्नियुक्त शस्त्र, जे फटक्काक द्वारा उत्पन्न कएल जा’ सकैत अछि, देखबामे अबैत अछि आ’ मंच धुँआसँ भरि जाइत अछि। फेर परदा खसैत अछि आ’ मंचक पाछाँसँ सूत्रधारक स्वर सुनबामे अबैत अछि।)


सूत्रधार: इन्द्रक विजय भेलन्हि आ’ दुष्ट सभ गुफामे भागि गेल। ईएह छल वैदिक नाटक बादमे एहि अर्थकेँ अनर्थ कए देलन्हि पौराणिक लोकनि, जाहि कथामे दधीचीक हड्डीसँ इन्द्रक वज्र बनएबाक चर्च कएल गेल अछि।


(पर्दा ओ’ ई असल बात अछि केर फुसफुसाहटिक संग खसले रहैत अछि, आ’ लाइट क्षणिक ऑफ भेलाक बाद ऑन भए जाइत अछि।)

सृजन- सतीश चन्द्र झा


सृजन
बुन्द बरखा कँे उतरि क’
देह के सगरो भिजेलक।
तप्त मोनक आगि नहि
तैयो कहाँ कनिओं मिझेलक।

जड़ि रहल छल गाछ रौदक
धाह सँ आँगन दलानक।
छल केना सुड्डाह भ’ गेल
फूल गेना, तरु गुलाबक।

निन्न सँ जागल कमलदल
बुन्द पड़िते दृग उठौलक।
स्नेह सँ जल बूँद कँे सब
निज तृषित उर सँ लगौलक।

प्रस्फुटित नव पंखुरित
किछु बुन्द आंचर मे नुकौलक।
पीबि जल अमृत धरा कँे
जीव जीवन कँे बचैलक।

जड़ बनल किछु बीज कँे
जखने भेलै स्पर्श जल सँ।
अंकुरित भ’ गेल बंजर
भूमि के चेतन अतल सँ।

अछि मनोरम दृष्य सबकेँ
छै केहन आनंद भेटल।
हर्ष मे डूबल प्रकृतिक
नृत्य मे जीवन समेटल।
गाछ पर बैसल केना अछि
खग बना क’ स्नेह जोड़ा।
छी एतय हम आई असगर
नहि पिया छथि,सुन्न कोरा।

की केलहुँ हम स्नेह क’ क’
द’ देलक किछु घाव जीवन।
नीक छल दुनियाँ अबोधक
पूर्ण जीवन, तृप्त जीवन।

घाव जँ रहितै शरीरक
फोरि क’ कखनो सुखबितहुँ।
तूर के फाहा बना क’
घाव पर मलहम लगबितहुँ।

देत के औषधि बना क’
अछि चोटायल घाव मोनक।
के मिटायत आबि हमरो
नेह सँ संताप मोनक।

द्वारि के पट बंद कयने
छी व्यथित हम आबि बैसल।
आइ अबितथि पिया, रहितहुँ
अंक मे आबद्ध प्रतिपल।

ठोर पर ठहरल सुधा जल
आइ ‘प्रियतम’ के पियबितहुँ।
प्रज्ज्वलित देहक अनल किछु
स्नेह के जल सँ भिजबितहुँ।

रक्त सन टुह-ंउचयटुह कपोलक
मध्य चुंबन ल’ लितथि ओ।
बाँहि के बंधन बना क’
बाध्य हमरो क’ दितथि ओ।

तेज किछु बहितै पवन जँ
ल’ जितय आँचर उड़ा क’।
भ’ जितहुँ निर्लज्ज , भगितहुँ
नहि हुनक बंधन छोरा क’।

तोड़ि क’ सीमा असीमक
द्वारि पर जा निन्न पड़ितहुँ।
त्यागि क’ देहक वसन नव,
स्वर्ण आभूषण हटबितहुँ।

क्षण भरिक अवरोध क्षण मे
क’दितहुँ अपने समर्पण।
झाँपि आचरि मुँह करितहुँ
देह कँे निष्प्राण किछु क्षण।

प्राण सँ प्राणक मिलन मे
अछि केहन जीवन अमरता।
होइत तखने देह मे किछु
‘बूँद अमृत’ सँ सृजनता।

के करत वर्णन क्षणिक ओ
प्राण मे अनुभूति नभ कँे।
शब्द सँ बांन्धब असंभव
ओ घटित आनंद भव के।
एकर शेष भाग ...... दोसर बेर.......

अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनमे जे देखलगेल








निष्कर्षविहीन सम्मेलन !


—मनोज झा मुक्ति


१९म् अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन वितलाहा चैतमासक २९ आ ३० गते नेपालक राजधानी काठमाण्डूमें सम्पन्न भेल । मूदा जाई तरहक उत्साह मोनमें छल, बहुत कचोट लागल सम्मेलनकेँ उद्घाटन आ समापन देखिकऽ ।

सम्मेलनक जिम्मा पओने वरिष्ट पत्रकार एवं राजनीतिकर्मी रामरिझन यादवक कार्यक्षेत्र काठमाण्डूसँ बाहर भेलाक कारणे आयोजन कठीन होएब निश्चिते छल । अखनधरि देखल जाएबला मैथिली कार्यत्रmम आयोजनाक खराब पक्ष सबसँ अछुत इ सम्मेलन नहि रहऽ सकल । कोनहुँ समिति बनएबाकालमे, समितिमे रहिकऽ जाइ तरहे बहुतोलोक सुति रहैत छथि सैह विडम्बना अहु सम्मेलनमें देखलगेल । अपन—अपन काज गछियोकऽ नई करबाक प्रवृति अखन अपना समाङ्गसँ नई हटल से प्रमाणित केलक अछि ई सम्मेलन ।

सम्मेलनमे नेपाल आ भारत दूनु देशक मिथिलाञ्चलसँ ३०० सहभागी होएबाक बात छल । सहभागिसब ऐलथि, मूदा निक जकाँ व्यवस्थापन नहि भऽ सकल । सम्मेलनमें मैथिली आ मिथिलाप्रति अनुरागी कम आ कोनो पार्टीक कार्यकर्ता सभक बेसी जमघट बुझाइत छल ।

२९ गते ९ बजे बसन्तपुरसँ धोती—कुर्ता आ पाग पहिरिकऽ झाँकी निकालबाक कार्यत्रmम छल, मूदा ११ बजेधरि एक डेढसय लोकक उपस्थिति मात्रे छल । मैथिली आ मिथिलासँ सम्वद्ध सँघ—संस्थासब काठमाण्डू उपत्यकामें ३ लाखसँ बेसी मैथिल रहल ठोकुवा दाबी कयल जाएत अछि । अपनाके मैथिलीक योद्धा कहऽबला किछु गोटे त उपराग देबऽमे सेहो पाछा नई परलथि "जे हमरा खबरि किया नई भेल" ? देखिकऽ अजगुत लागल आ दुःख सेहो जे जौ हम अपना आपके मैथिलीके योद्धा कहैत छी त कि व्यत्तिmगतरुपसँ खवरि केनाई जरुरिए छियै ? कोनो माध्यमसँ जानकारी होएब पर्याप्तता नहि छई ?

हँ, कहुनाकऽ विलम्बेसँ सही बसन्तपुरसँ जाउलाखेलधरि धोती—कुर्ता त कमसम, मूदा पागक प्रदर्शन करैत जुलुश पहुँचल । जुलुश प्रदर्शन वास्तविकरुपमे एहि सम्मेलनक सबसँ नीक पक्ष रहल । एकरा नेपालमें मिथिला आ मैथिलक स्थानके प्रमाणित करबामे ठोस कदमके रुपमें अवश्य लेल जा सकैय ।

सम्मेलनके उद्घाटन कयलथि नेपालक प्रधान मन्त्री प्रचण्ड । ओ अपना भाषणसँ सहभागि सभक मोन जितलथि ताइमें कोनहुँ शंका नई । काठमाण्डू उपत्यकामे कवि कोकिल विद्यापतिक शालिक रखबाक बात सहभागि सबहक दवावपर त कहलथि मूदा राखि देताह ताइके बादेमे पतियाओल जाऽसकैय । तहिना सम्मेलनमे उपस्थित अतिथि फोरमक नेता जय प्रकाश प्रसाद गुप्ता त अन्तराष्ट्रिय विमानस्थलक नाम विद्यापति विमान स्थल होएबाक कहिकऽ प्रचण्डसँ भाषणमें एक कदम आगा रहल प्रमाणित कयलथि । ओ कहलथि जे "जौ काठमाण्डूक विमान स्थलक नाम विद्यापति विमान स्थल नई होएत त निजगढमे विद्यापति अन्तराष्ट्रिय विमान स्थल बेगर हमसब मानऽबला नई छी" । जे हुए बहुत निक गप्प जौं हुनक बात मात्र नेताक भाषण जौं नई होए ।

सम्मेलनमें नेपालक हिन्दी आन्दोलनके अगुवा आ अन्तराष्ट्रिय मैथिली परिषद् नेपालक अध्यक्ष राजेश्वर नेपाली अपनाके आसन ग्रहण नई कराओलगेल कहिकऽ सम्मेलन बहिष्कार करबाक घोषण त कएलथि मूदा किछुएकालकबाद ओ मञ्चपर आसीन भेल नजरि औलथि । पहिलदिनक कार्यत्रmम साँस्कृतिक कार्यत्रmम करैत सम्पन्न भेल ।

दोसर दिन अर्थात चैत ३० गते ९ बजेसँ विचार गोष्ठीक कार्यत्रmम छल, मूदा कार्यत्रmमक संयोजक बहुभाषाविद् गंगा प्रसाद अकेला अपने १० बजे एलाह । विचार गोष्ठीमे दूगोट कार्यपत्र प्रस्तुतक कार्यत्रmम छल, ताइमे नेपालदिससँ राम रिझन यादव आ भारतदिससँ डा धनाकर ठाकुरक कार्यपत्र रहनि । कोनो सम्मेलनमे विचार गोष्ठीक सत्रके बहुत पैघ महत्व देल जाइत छैक, मूदा एहि सम्मेलनमे विचार गोष्ठीक सत्र सबसँ महत्वहीन बुझि पडल । विचार गोष्ठीमे गन्थन क कऽ कोनो निष्कर्ष निकालि ताइपर कार्य आगु बढएबाक कोनो सम्मेलनके मुख्य उद्देश्य रहल करैत अछि । मूदा एतऽ अपन अपन कार्यपत्र प्रस्तुत कयलाकबाद प्रस्तोतासब आ अधिकाँश मञ्चपर आसिन व्यक्तिसब मञ्च छोडिकऽ निपत्ता भऽ गेलाह । ओना टिप्पणी करबाकलेल कुल २६ गोटे मञ्चपर गेलाह, मूदा कार्यपत्रपर बहुत कम आ प्रायःलोक अपने राग अलापि कऽ विचार गोष्ठीके अपन व्यक्तिगत विचारक मञ्च बनावऽमे सेहो पाछा नई परलाह । सम्मेलन कोन निष्कर्षपर पहुँचल कोनो सहभागिके मालुम नई भऽसकल ।

सम्मेलनमे विचार गोष्ठीक सत्रकबाद कवि गोष्ठीक आयोजना भेल छल । ताही बीचमे सम्मेलनक संयोजक रहल राम रिझन यादव अन्तराष्ट्रिय मैथिली परिषद् नेपालक समितिके नव कार्यकारिणीक घोषणा कएलथि । जाहिमे प्रमुख पदक अलावा जे जे मञ्चपर आबि बजने छलथि ओ सबगोटे कार्य समितिक सदस्य भेल घोषणा कएलथि । घोषणा कएल पश्चात किछु युवा एहन गलत प्रत्रिmयाके विरोध करैत हो—हल्ला करबाक शुरु कएलथि । ओना सम्भवतः ई पहिल एहन कार्यसमितिक निर्माण होएत जाहिमें मञ्चपर जे जे जाकऽ बजलाह ओ सबगोटे सदस्य बनाओलगेल होई ।

तहिना कवि गोष्ठीक सत्रमे सेहो तहिना देखलगेल । कवि गोष्ठीमें सोंचसँ बेसी कवि लोकनिकेँ कविता वाचनकलेल आओल मूदा समयक आभावके कारणे सभ कविके मौका नई देबऽ सकलाक कारणे किछु कविके मोनमे दुःख होएब अतिश्योत्तिm नहिं । काठमाण्डूमे सेहो एतेकरास मैथिली कविता आएब बहुत उत्साहक पक्ष कहल जाऽसकैया मैथिलीक लेल । सम्मेलनमें किछु गोटे सम्मेलनकेँ वास्ते अपन काठमाण्डू यात्राके व्यक्तिगत काजमें सेहो प्रयोग करैत देखलगेल । सम्मेलन छोडिकऽ काठमाण्डू घुमबाक वास्ते आएल जकाँ देखनिहार सहभागि सबहक सेहो कमी नई छल ।

समग्रमे मैथिलक वर्चश्वताके काठमाण्डूमे स्थापित करबाक पक्षमे सफल रहल १९म् अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन, उद्देश्य आ निष्कर्ष बिहीन बुझाएल ।
jmukti@gmail.com

काठमांडू नेपाल