कवि। छोड़ुह कलम पकड़ह कोदारि
मानस-धरती व्यर्थे कोड़ह
किछु भाव-कुसुम व्यर्थे लोढ़ह।
किछु नाहक चारण-भाट जकां,
स्तुतिगान करति लाजो छोड़ह॥
उठिगेल जखन जन-आकर्षण
ककरासँ करबह तों अरारि॥कवि.॥
कवितासँ ककरो पेट भरत?
सोझे पुछैत अछि अज्ञानि।
केओ भक्ति-भावसँ गीत रचय
कवि सूर-बिन्दु सन विज्ञानी॥
एखनुक कविकाठी जे लिखैछ-
से कवितेके दय रहल गारि॥कवि.॥
सगरो अछि अनधन घास उगल,
वन भेल घरक लगहक बाड़ी।
महगी अछि ऊंच अकाश चढ़ल
खायब दुर्लभ अछि तरकारी॥
पड़ले सम्प्रति बड़का अकाल
कत जनके देते जान मारि॥कवि.॥
दुर्भिक्ष पड़ल बड़का जहिया
राजर्षि जनक हरबाह बनल।
बनमे जे पोसल पूर्व गाय-
से कृष्ण जकाँ चरबाह बनल॥
तऽ लाज कथिक? श्रमनिष्ठ बनह,
शरिगर भूमे फाटल दराड़ि॥
कचि! छोड़ि कलम पकड़ह कोदारि।
भुवनेश्वर पाथेय- चुल्ही
चुल्ही जारनि नहि खायत
छाउर नहि बोकरत आइ
किएक तँ?
किछु एकचारी खाऽ लेलकै’
चारो छरेनाइ जरूरी छल
नहि तँ, एहि बेरक बरखा-बुन्नीमे
मेघ चारे दने सनिया जाइत
जे बाँकी छल बौआक फीसमे चलि गेलै’
हमरे जकाँ मुरख नहि रहौक, छौड़ा
घड़ेरी नहि बिकाउक घिसुआ जकाँ
ओइ सुरीबाकेँ देहपर बज्जर गिर जाउक
जे देत किछु आ छाप लगाओत...
गलि जाउक ओकर देह
तैं गामसँ पड़ाए पड़लै...
एखनो सालमे एक-दुटा पड़ाइते छै
पंजाबक कमोट बिदागरीमे नुकाऽ गेलै
सेहो भेलै जमायकेँ पुराने धोती
लाल-लाल, गोल-गोल छापल
लाठीक हुरसँ
आ छौड़ीकेँ भेंटलै फाटले नूआँ-फट्टा
की करिऔक?
एहिना चलत...?
डण्डी-तराजु छीट कपड़ा पर ससरि गेलै
आउ सुत रही आब
कऽ लिऽ आइ एकादशी
जाए नहिं पड़तै आब, काशी।
अशोक दत्त- के कहने छलौ बेटी जनमाबऽ
बजार, गहिकी आ पैकार,
आवश्यक होइछ जीवन हेतु
मुदा,
एखुनका बजारु संस्कृति
विवश कऽ रहलैए
आत्महत्या आ हत्या हेतु
कतेकोकेँ।
धर्मेन्द्र विह्वल- रफ्फू
नेताजीक
भरि जिनगीक संकलन
भ्रष्टाचारक गटर धोधिकेँ
एहिबेर चूनावमे
मुस कुतरि देलकन्हि अछि
आब ओ रफ्फू
कराबऽ जा रहल छथि।
"सुन्दर झा 'शास्त्री' : भुवनेश्वर पाथेय : अशोक दत्त : धर्मेन्द्र विह्वल" nepaala mithilaa^chalaka ehi purana nav kavi loknik kavitak prastutu mon prasann kay delak.
ReplyDeleteehi prastutik jatek prashansa kayal jay se kam
ReplyDeleteभुवनेश्वर पाथेय- चुल्ही
ReplyDeleteचुल्ही जारनि नहि खायत
छाउर नहि बोकरत आइ
किएक तँ?
किछु एकचारी खाऽ लेलकै’
चारो छरेनाइ जरूरी छल
नहि तँ, एहि बेरक बरखा-बुन्नीमे
मेघ चारे दने सनिया जाइत
जे बाँकी छल बौआक फीसमे चलि गेलै’
हमरे जकाँ मुरख नहि रहौक, छौड़ा
घड़ेरी नहि बिकाउक घिसुआ जकाँ
ओइ सुरीबाकेँ देहपर बज्जर गिर जाउक
जे देत किछु आ छाप लगाओत...
गलि जाउक ओकर देह
तैं गामसँ पड़ाए पड़लै...
बद निक प्रस्तुति
स्वर्गीय सुन्दर झा 'शास्त्री' जीक आ स्वर्गीय भुवनेश्वर पाथेय जीक कविताक प्रस्तुति हुनकर दुनू गोटेक चित्रक संग कए बहुत पैघ उपकार कएलहुँ हमरा सभपर। बुवनेश्वर पाथेय जी तँ बड्ड कम वयसमे सुन्दर झा शास्त्री जी सँ पहिनहि इहलोक छोड़ि गेलाह, हुनका मृत्युक बाद सुन्दर झा शास्त्री जी हुनकापर कवितो लिखने रहथि।
ReplyDeleteधन्यवाद, धन्यवाद।
एहि प्रस्तुतिक कतेक प्रशंसा करी।
ReplyDeletebad nik prastuti, nepalak mithilanchal kshetrak sahityakar loknik rachna bina internet ke kahan sambhav hoit chhal bhetab
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