भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Tuesday, January 14, 2014

‘विदेह'१४६ म अंक १५ जनवरी २०१४ (वर्ष ७ मास ७३ अंक १४६)

                                                           ISSN 2229-547X VIDEHA
विदेह'१४६ म अंक १५ जनवरी २०१४ (वर्ष ७ मास ७३ अंक १४६)  

 

अंकमे अछि:-
उलहन
 (विहनि कथा संग्रह)


कपिलेश्वर राउत







दू शब्‍द


प्रस्‍तुत कथा संग्रहक नवोदि‍त कथाकार श्री कपि‍लेस्‍वर राउत छथि‍, जि‍नक पहि‍ल कथा-प्रसून छि‍यनि‍। सामाजि‍क प्राणी हेबाक कारणे कथाकार सेहो समाजेक उपज होइ छथि‍। मुदा समाजोक उन्नति‍ वा अवनति‍ तँ सभ रंग अछि‍ए। जइ समाजक उपज कथाकार छथि‍ ओकर स्‍पष्‍ट झलक कथामे अछि‍ए।
मि‍थि‍लांचलक वैदि‍क दर्शन आ सनातनी पद्यति‍क रचल-बसल पद्यति‍ रसे-रसे तेना पकड़ि‍ वि‍परीत दि‍शामे मोड़ि‍ देने अछि‍ जइमे वि‍द्रोह फूटब अनि‍वार्य भऽ गेल अछि‍। जेकर झलक कथामे आबि‍ए गेल अछि‍।
कथाकारक स्‍पष्‍ट वि‍चार, कथाक भाषा आ वि‍षय-वस्‍तु कथा सभमे आबि‍ए गेल अछि‍।
कथाकारक उत्‍साह अनवरत बनल रहनि‍, यएह शुभकामना।

जगदीश प्रसाद मण्‍डल
२४ फरवरी २०१४  














अप्‍पन बात


हमर पि‍ताजी कृषक छला। रामायण, महाभारतसँ बेसी सि‍नेह रहनि‍। रेहलपर रामायण राखि हारमोनि‍यमपर सुर-तालमे गबै छला। हमहूँ पि‍ता जीक संग लागल गाबी। तीन भाँइक भैयारी अछि‍। आइ.. पास केला पछाति‍ बी..मे नाओं लि‍खौने रही तही दि‍नमे‍ पि‍ताजी गुजरि‍ गेला। बूढ़ दादा-दादी, माए वि‍धवा भऽ गेली। छह माससँ साल भरि‍क पेसतर पहि‍ने पत्नी (लक्ष्‍मी देवी) छह मासक बेटा लाल कुमारकेँ छोड़ि‍ चल गेली पछाति‍ दादीक मृत्‍यु भऽ गेल। खेत-पथारसँ लऽ कऽ बरैब-बाड़ी धरि‍क देख-रेख हमरे ऊपर। तहि‍या भाए सभ छोट रहथि‍। परि‍स्‍थि‍ति‍ तेना ने झकझोरि‍ देलक जे पढ़नाइ छोड़ए पड़ल। माइक ममता संग रहल।
श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डलक नेतृत्‍वमे कम्‍युनि‍ष्‍ट पार्टीक कार्यकर्ता बनि‍ काज करी। बहुत रास मोकदमामे पार्टीक सदस्‍य सभकेँ फँसौल गेल। हमहूँ फँसौल गेलौं। पार्टीक पोथी सभ पढ़ी। एकटा अंग्रेजी स्‍कूल, नि‍जि‍ वि‍द्यालयक उद्घाटनमे भाग लेलौं। ओतए मैथि‍लीमे अपन वकतव्‍य देलि‍ऐ। स्‍कूलक प्राचार्य बादमे कहलनि‍, अहाँ कोन छी-छा-छथि‍मे बजलौं। हम कहलि‍यनि‍ मि‍थि‍लाक छी मातृभाषा मैथि‍ली अछि‍, मैथि‍लीमे नै बजि‍तौं तँ कि‍ वि‍देशी भाषामे बजि‍तौं।
श्रुति‍ प्रकाशनसँ प्रकाशि‍त जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक लि‍खल पोथी (गामक जि‍नगी, उत्‍थान-पतन, मौलाइल गाछक फूल, मि‍थि‍लाक बेटी जि‍नगीक जीत इत्‍यादि‍) सभ जखनि‍ पढ़लौं तँ हमरो जि‍ज्ञासा भेल कि‍छु लि‍खबाक।
तइ समैमे श्री गजेन्‍द्र ठाकुर मण्‍डलजी सँ भेँट करए बेरमा एला, हमरो भेँट भेला, गप-सप्‍प केलाैं। लि‍खैक उत्‍साह ठाकुरजी जगौलनि‍। धैनवाद दइ छि‍यनि‍ श्री गजेन्‍द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीकेँ।
प्राय: तही दि‍नसँ छोट-छोट कथा सभ लि‍खए लगलौं। मि‍थि‍लाक एक मात्र सर्वहारा मंच सगर राति‍ दीप जरए कथा गोष्‍ठीमे जाए-अबए लगलौं। लघुकथा, वि‍हनि‍ कथा आ कवि‍ता वि‍देह ई पत्रि‍का आ वि‍देह-सदेह पत्रि‍कामे प्रकाशि‍त भेला पछाति‍ आरो उत्‍साह बढ़ल।
धैनवाद दइ छि‍यनिश्रुति‍ प्रकाशनक श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ नीतु कुमारीकेँ जे पोथी रूपमे हमर लघुकथा सभकेँ प्रकाशि‍त कऽ अहाँ सबहक हाथ तक पहुँचेलनि‍। धैनवाद दइ छि‍यनि‍ श्री उमेश मण्‍डलकेँ जे कथा सभकेँ सलैया केलनि‍ संग-संग श्री गजेन्‍द्र ठाकुरकेँ बेर-बेर धैनवाद।
ई हमर पहि‍ल लघुकथा संग्रह छी। आशा करै छी जे अहाँ सभकेँ पढ़ैमे नीक लगत। कथाक दृष्‍टकोण समाजक बीच रीत-रेबाजक संग रीत-कुरीतकेँ सेहो देखेबाक चेष्‍टा केलौं अछि‍। पोथी पढ़एमे नीक आकि‍ अधला लागए, सुझाव देबाक कष्‍ट करब।
अहींक-
कपि‍लेस्‍वर राउत
जीवि‍कोपार्जन- कृषि
सम्‍पर्क-
गाम- बेरमा, भाया- तमुरि‍या
जि‍ला- मधुबनी, प्रखण्‍ड- लखनौर
बि‍हार-८४७४१०
मोबाइल-९९३९९९७७५७ 

              

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एकसत्तरि-

१.     वंश
२.     उलहन
३.     थरथरी
४.     भोग
५.     कुमारि भोजन
६.     कीर्तन आ सम्मेलन
७.     मूर्दा
८.     सतमाए
९.     तकरीर
१०   . पान
११   . मई दिवस
१२   . भूख
१३   . बेथा
१४   . कि‍सानक पूजी
१५   . छूआ-छूत
१६   . कलि‍युगक नि‍र्णए




वंश

परशुरामकेँ बिआह भेना दस साल भऽ गेल छल। परशुराम, जदुवीर बाबूक एक मात्र लड़का। पुत्री दूटा हुनका लोकनिकेँ शादी मुदा भऽ गेल छल ओ दुनू अपन सासुर बसै छेली। जदुवीर बाबू खूब धुम-धामसँ परशुरामकेँ बिआह कौशल्‍या संग केलनि। कौशल्‍याकेँ पिता धनी-मनी बेकती पढ़ल-लिखल परिवार, समाजमे अलगे मान प्रतिष्ठा, कौशल्‍या सेहो बी.. तक पढ़ल-लिखल छल। खूब दान दहेजक संग बिआह भेल। मौज-मस्ती संग कौशल्‍या आ परशुराम रहए लगला। बिआह भेना दस बरख भऽ गेल मुदा कौशल्‍याकेँ एकोटा पुत्र वा पुत्री नै भेलनि। डाक्टरीओ इलाज केलनि, ओझहाे-गुणीसँ देखौलनि। कौबुला-पातीसँ देवालय तक देखेलक मुदा कोनो सफलता नै भेटलनि।
सासु अंजनी फुट्टे कलहन्त रहए लगली। जे वंश आब लुप्त भऽ गेल। ओम्हर जदुवीर बाबू सेहो दुखी रहए लगला। एतेक सम्पति के भोगत। कौशल्‍याकेँ माए-बाबू फुट्टे दुखी रहए लगला। सर समाज से अलगे कुटी-चालिबला गप-सप्प जहाँ-तहाँ बजै छल। कौशल्‍याक मन दुखी हुअ लगल। कि कएल जाए...। एकाएक एकटा विचार मनमे उपकल। एक राति लाज-धाक छोड़ि स्वामी परशुरामसँ कहलक
स्वामीजी एकटा बात पुछौं?”
परशुराम बजला
किएक नै पूछब। जे पुछबाक अछि से पुछू हमरो-अहाँमे कोनो बात छिपेबाक छै। निधोकसँ पुछू।
कौशल्‍या सिहकैत बाजलि‍-
आब हमरा धिया-पुता नहियेँ हएत। किएक ने अनाथालयसँ एकटा बच्चाकेँ आनि पुत्र बना ली।
परशुराम-
अहाँ पागल तँ नै भऽ गेलौं।
कौशल्‍या-
नै-नै सएह पुछै छी। ऐमे कोन हरज छै। हमरा अहाँकेँ पुत्र भऽ जाएत सासु-ससुरकेँ पोता भऽ जेतनि वंशकेँ चलेबाक जोगारो भऽ जाएत।
परशुराम तमसाइत बाजल-
अहाँ पगलाए गेलौं। हम ऐमे किछु नै बाजब। लोक की कहत?”
कौशल्‍या हिम्मतसँ काज लेलनि। विहान भने ससुर जदुवीर बाबू लग जा पुछलखिन-
बाबूजी एकटा विचार लइले एलौं हेन। की आदेश दइ छी।
जदुवीर बाबू-
पुछह ने की कहै चाहै छहक।
कौशल्‍या
बाबूजी हमरा कोइखसँ आब धिया-पुता नै हएत तँ किएक नै अनाथालयसँ एकटा बच्चाकेँ आनि पोइस पुत्र बना ली।
जदुवीर बाबू आगि बबूला होइत बजला-
चुप रहू ई की बजै छी। पागल तँ नै भऽ गेलौं। केतए हमर खनदान आ केतए अनाथालय। अनाथालयमे केकर जनमल कोन बच्चा हएत तेकरा अहाँ गोद लेब। डोमक हएत आकि चमारक, मुसहरक हएत आकि मुसलमानक, अवैध सम्‍बन्‍धक हएत आकि‍ कन्या कुमारीक। हमरो अहाँ पागल बना देब। ई विचार हम नै देब।
कौशल्‍या-
बाबूजी वंश चलेबाक तँ जरूरी छै। कोन सरल-गलल विचारमे अहाँ डुमल छी घुरन बाबूकेँ नै देखै छियनि तीन-तीनटा बेटा, बेटो केहन तँ खलीफा सन-सन। तीनू बेटाककेँ घुरन बाबू पढा-लिखा कमाइले बाहर भेज देलखिन। तेकर फल भेलनि जे बुढ़ाकेँ तीनूमे सँ कियो देख-भाल करैबला नै। भैया करथिन देख-भाल, बाबू माएकेँ छोटकाक विचार तँ भैया सोचैत जे मझिला आ छोटका करत। तीनू अपन-अपन घरवाली संग परदेशमे रहै छथि। घुरणबाबू मुइलथि आकि दुखी छथि, धैनसन। धैन कही पहुलका नोकर बिलेँतीया दुसाधकेँ जे घुरनबाबूकेँ वृद्धा आश्रम नै जाए देलकनि आ सेवा टहल कऽ रहल छन्‍हि। एहने तँ कमलो बाबूकेँ छन्‍हि दूटा बेटा आ दुनू अमेरिका आ फ्राँसमे रहै छथि कहाँद‍नि ओत्तै दुनू बिआहो कऽ लेलनि। केतेक उदाहरण देब अपन पुत्र तँ कुपुत्रे ने भऽ गेलनि।
जदुवीर बाबू दुनू आँखि ऊपर करैत किछु सोचैत बजला-
की कहि रहल छी।
कहलौं तँ ठीके।
कौशल्‍या-
बाबूजी, अपन बेटा तँ छेलनि किएक बुढ़ाड़ीमे छोड़ि देलकनि। तँ कहब जे अनाथआलयमे केकरो बच्चा होइ तइसँ की, आखिर बच्चा तँ छिऐ ने। हमरा आ स्वामीकेँ पुत्र भऽ जाएत। अहाँकेँ पोता भऽ जाएत, एकटा बच्चाकेँ पालन-पोषण भऽ जेतै वंशक परम्परा कएम भऽ जाएत। हमरा माए-बाबूकेँ नाति भऽ जाएत।
जदुवीर बाबू-
धन्य छी कौशल्‍या। आइ अहाँ हमर आँखि खोलि देलौं। जाउ आ स्वेच्छासँ अनाथालयसँ बच्चा लऽ आनू।
कौशल्‍या
बाबू ओइ बच्चाकेँ श्रवण कुमार जकाँ पढा-लिखा कऽ बनाएब सएह ने माए-बापक करतब होइ छै।
जदुवीर बाबू-
आब अधिक नै कहू। हमर असिरवाद हमेशा अहाँक संग रहत। ठीके कहल गेल छै पुत्र-कुपु्त्र तँ किए धन संचय पुत्र-सपुत्र तँ किए धन संचय।mm



उलहन


जवाना तेना ने बदलि गेल हेन जे। जे काल्हि तक एक रूपैआ लेल जमीन्दारसँ वा कोनो मालिक लग दँतखिसड़ी करैत रहै छल, ओ आइ सभ छान-पगहा तोड़ि कऽ दिल्ली, पंजाब, कलकत्ता, बम्बइ, चलि गेल आ नोकरी-चाकरी करए लगल। ओकर रहन-सहन बात-विचार कपड़ा-लत्तासँ लऽ कऽ रूपैआ तकमे, ओकर संस्कारो बदलि गेल। जेकर बाप कहियो स्कूलक मुँह नै देखलकै तेकर बेटा अपना धिया-पुताकेँ कनभेण्ट स्कूलमे पढ़ा रहल अछि।
शंकर छोट-छीन गिरहस्त। परिवारमे सतरह गोटे सदस। भिनसर जाए हर जोतैले से एक डेढ़ बजे दिनमे आबए। कहियो मरूआ बीआ खसौनाइ तँ कहियो रोपनि, कहियो धानक बीआ तँ कहियो धनरोपनी। सभ दिन काज करैत देहक हार जागि गेल। शंकरकेँ पाँचटा धिया-पुता, तीनटा लड़का, दूटा लड़की। बेटाकेँ नाओं छल, ज्ञानचन्द्र, धनिचन्द्र, रामचन्द्र। आ बेटीकेँ नाओं छल चन्द्रकला आ सुग्गावती, बेटी तँ सासुर बसै छेली। बेटा सभमे ज्ञानचन्द्रकेँ दूटा लड़का, धनिचन्द्रकेँ दूटा लड़की आ रामचन्द्रकेँ एकटा लड़की, शंकरक पत्नी बसुन हरिदम धिए-पुतेकेँ टहल-टिकोड़ामे बेस्त। वेचारा शंकर बुढ़ाड़ी तक खेतीए काजमे मन लगैने छेलै। बाम-दहिन किम्हरो नै देखै छल। बेटा सभ संग पूरि दइ छेलै परिवार नमहर रहने तंग रहै छल। कखनो नून-तेल, तँ कखनो चाउर-दालि, कखनो तीमन-तरकारीमे तँ कखनो कपड़ा-लत्ता लेल मन अघोर-अघोर रहै छेलै। कोनो मेला-ठेलामे धिया-पुताकेँ केकरो दू रूपैआ, केकरो दस रूपैआ, केकरो बीस रूपैआ देखैले दइ छल। जमीनो रहने कि हेतै कहियो दाही कहियो रौदी, कोनो तीन महिनाबला फसिल, कोनो छह महिनाबला फसिल, नकदी आमदनीबला सिरिफ दूटा गाए आ एकटा महिंस छेलै, दूधे बेचि कऽ टाका-पैसासँ काज चलबै छल। पाँच बीघा जमीने रहने की हएत तंगहाली बढ़िते जाइ छेलै।
परिवारक स्थित देखि कऽ ज्ञानचन्द्र आ धनिचन्द्र, बम्बइ चलि गेल। पहिने तँ दू-चारि दिन घुमिते-फिरते रहल, तेकर बाद जा कऽ ज्ञानचन्द्रकेँ एकटा सेठ लग अँगना-घरक काज भेलै। धनीचन्द्रकेँ एकटा बसक खलासीमे नोकरी भेटलै। इमानदारीसँ दुनू भाए काज करए लगल। सेठकेँ पूतकरण नै ज्ञानचन्द्रकेँ खूब मानै। सेठकेँ एकटा बेटी छेलै सेहो सासूर बसै छेलै। आब ज्ञानचन्द्र चूलही-चौकासँ ऊपर उठि, सेठक कारोबारकेँ देखए लगल सेठो सभ सम्पतिकेँ मालिक ज्ञानचन्द्रेकेँ बना देलक। जे करै सम्‍पतिकेँ। एम्‍हर धनिचन्द्र खलासीसँ ड्राइवर बनि गेल, तेकर बाद अपन मोटर गैरेज थोड़ेक जमीन कीनि‍ कऽ चलाबए लागल। खूब रूपैआ कमाए दुनू भाँइ। घर परहक स्थित बदलि गेल। चारि-पाँच बर्खक बाद ज्ञानचन्द्र घर एबाक जोगार केलनि। सेठसँ जा कऽ कहलखिन-
सेठजी चारिम दिन हम घर जाएब आ पनरह दिन घरपर रहब आ सोलहम दिन गाड़ी पकड़ि फेर आपस आबि जाएब।
सेठ तँ थोड़ेक काल नाकूर-नूकूर केलक फेर जाइक आदेश दऽ देलकै।
सेठ अपना दिससँ सभ समांगले पच्चीस हजार रूपैआ, कपड़ा-लत्ता, पाँच किलो मिठाइ, धिया-पुताले सट-पेन्ट, ज्ञानचन्द्रक घरवालीले सोनाक मंगलसूत आ सोनेक पायल देलकै। बड़का एटैचीमे भरि एटैची सभ समान लऽ कऽ ज्ञानचन्द्र घर विदा भेल। तीन दिनक बाद घर आएल। पहिने तँ गामक लोक जे देखै ज्ञानचन्द्रकेँ आश्चर्यो लगै। किएक तँ टेम्पूसँ आएल छल। देहो दशा बदलल। तहूमे आँखिमे चश्मा लगौने। घर अबिते माए-बापकेँ गोर लगलनि। माएकेँ गोर लगिते माएक आँखिसँ साैनक बून जकाँ नोर खसए लगल। ज्ञानचन्द्रक घरवालीकेँ पएर तँ धरतीपर पड़िते नै छेलै। चट-पट खाना तैयार भेल। ज्ञानचन्द्रो कलपर जा स्नान साबुनसँ केलनि। भोजन भात खेला पछाति समान बाबू आ माए लग पसारि देलकनि। तीनू दियादनीकेँ कपड़ा-लत्ता, धिया-पुताक अलग कपड़ा-लत्ता, माएले साड़ी-साजा-ब्लौज, दू-दू सेट। बाबूले कूर्ताक कपड़ा, जोर भरि धोती, एकटा चद्दरि, एकटा गमछा, पएरले जुत्ता। सबहक लेल जे जे समान छल सभकेँ दऽ देलक बादमे मिठाइबला पैकिट सभ निकालि-निकालि सबहक हाथमे देलकै। धिया-पुता सभ अँगनामे लबका कपड़ा पहिरि खिलौना लऽ कऽ खेलाए लगल। बादमे माए-बाबूकेँ लगमे बजा कऽ पच्चास हजारक एकटा गड्डी रूपैआक देलक। बाप तँ एते रूपैआ कहियो देखने नै, से अच्मभा लागि गेलनि, बजला-
तोहीं राखऽ ने जेना करैक विचार हएत तेना करब।
नै बाबू अहीं राखू।
माएकेँ हाथमे पाँच हजारक गड्डी देलकै सभ दियादनीओ केँ दू हजार देलकै। सबहक मन गद-गद। एक दिन दुनू बापूत रामचन्द्र घूर लग आगि तपैत रहए। तखने ज्ञानचन्द्र बाबूकेँ कहलक-
बाबूजी, जखनि हम सभ धिया-पुता रही तखनि हमरा सभकेँ केतेक पाइ दीएे मेला देखैले।
बापकेँ पछिला गरीबी जिनगीक मोन पड़ि‍ गेलै। आ जेना बूझना गेलै जे कियो हथौरीसँ कपाड़पर चोट मारलक हेन। चुपे रहल किछु नै बाजल। थोड़ेक काल चूप रहला पछाति बाजल-
बौआ कहलहक तँ ठीके मुदा बिना सोचने-विचारने बजलहक हेन। बूझि पड़ैए जेना तोरा धनक दाबी भऽ गेलऽ हेन। सुनह एकटा हम अपन घटल घटना कहै छिअ, जखनि हम दस-पनरह बर्खक रही तँ हमरा डाँरमे एकटा भूरही पाइ छल ओकरा डोराडोरिमे गाँथि कऽ पहिरिने रही। रबि दिन रहै बिना माए-बाबूकेँ कहने हर्ड़ी-चन्देसर बाबाकेँ दर्शन करैले चलि गेलौं। किएक तँ दाबी छल, डाँरमे एकटा पाइ अछि। जखनि माए-बाबूकेँ पत्ता लगलनि जे छौड़ा हर्ड़ी मेला देखए गेल हेन तखनि अपने गामक एक गोटे दिया माए थोड़ेक चूड़ा आ दूटा कलकतिया आम पठा देलनि। ताबे हम पाइकेँ मूरही-कचौरी आ लाय कीनि नेने रही। हमरा जखनि गौंआ देखलनि तँ बिगरबो केलनि आ मोटरी हाथमे दैत बजला, ई माए पठा देलकौ हेन। हम चूड़ा आ आम खेलौं आ लाय मूरही कचरी घरपर नेने एलौं। कहैक मतलब समैकेँ हिसाबसँ ने लोककेँ रहन-सहन बदलै छै। जेतेकटा टाँग रहत तेतनीटा ने बिछानो चाही। सुनह हमर जे दादी छेलथि ओ कहै छेली बौआ हम जखनि केकरो खेतमे कमाइले जाइत रही तँ गिरहत एगो ठूरि पाइ दइ छल बोइनमे।से बौआ आइ जखनि दू बीघा जमीन आ दू सेर अन्न घरमे अछि तँ हमहीं पाँच किलो अनाज आकि एक सए रूपैआ दइ छिएे बोइनमे। आब तोहीं कहऽ तोरा लोकनिकेँ कम केना दइ छेलियऽ। जहिया दू टाका दइ छेलियऽ तहिया दूओ टाकाक महत छेलै महगाइ बढ़ने वहए दू टाका अखनि सौ रूपैआ भऽ गेल हेन।
ज्ञानचन्द्रकेँ बजलासन पछतावा होइ। वेचाराकेँ ठकमुड़ी लगि गेल। ई की बजा गेल मुँहसँ।
ठकमुड़ी लगल बेटाकेँ आँखि पोछेत बाप बाजल-
एहेन उलहन फेर नै दिहऽ कहियो।mm



थरथरी


ओना तँ ऋृतु छहटा होइत अछि‍। गृष्‍म, वर्षा, शरद, हेमन्‍त, शि‍शि‍र आ वसन्‍त। मुदा बेवहारमे लोक तीनटाकेँ मानै छै गरमी, वर्षा आ जाड़। सभ ऋृतुकेँ अपन अलग-अलग गुण अवगुण होइ छै। मुदा जाड़केँ एकटा अपन अलगे गुण अवगुण अछि‍। कोन भगवान जाड़केँ जनम देलनि‍ से नै कहि‍। अान ऋृतुमे तँ लोक हर्ष-वि‍षम, रंग-रभस आ वर्षाक फूहारक आनन्‍द लऽ कऽ ि‍बता दइ छै। मुदा जाड़ तँ कोढ़केँ कँपा दइ छै। गरीब लेल मारूख आ धनि‍कक वास्‍ते वि‍‍लासक ऋृतु बनि जाइए।
घुटर एक दि‍न एहने समैमे सुरेशबाबूक खेत जे मनखप केने छल पटबैले गेल। समए छेलै माघ मासक शुरूआतक। जहि‍ना २००३ई.मे शीतलहरी छेलै तहि‍ना अहू बेर भेलै। पछि‍या बोहैत जाड़ सुसकारी दैत रहए। सुरूजो भगवान केतए नुका रहला तेकर ठेकान नै। कुहेस लागल रहए। पानि‍क बून जकाँ वर्फ झहरैत रहए। लोक हरिदम घूरे लग आगि‍ तपैत रहै छल। ठि‍ठुरल घास-पात खेलासँ माल-जालकेँ पीठ पाँजर बैस गेलै। आ बिमारो पड़ए लगल। तन्नुक चि‍ड़ै-चुनमुनी सभ जहि‍ंपटार मरए लगल। साँप सभ कोनो बीलमे तँ कोनो आड़ि‍क कातमे मूइल पड़ल। जीनाइ लोककेँ कठीन भऽ गेलै। एक पनरहि‍यासँ जे शीतलहरी चलल से लदले रहि गेल।
एहने समैमे घुटर मनखप गहुम केने छल। तेकरा पटबैले बोरिंगबला जोखन संगे विदा भेल। बोरि‍ंगमे जखनि पम्‍पसेटसँ पानि‍ धराबए लगल पानि‍ धऽ लेलके। पलास्‍टि‍क पाइपसँ पानि‍ लऽ गेनाइ छेलै से जहाँ कि‍ पाइप पम्‍पसेटमे धराबए लगल आकि‍ पानि‍ दोसर दि‍सामे फूच्चूका मारलके आकि‍ घुटर आ जोखन दुनू गोटाकेँ भीजा देलके। तथापि‍ कोनो तरहेँ पाइपकेँ बान्‍हि‍ लेलक। जाड़े दुनू गोटे थरथर काँपए लगल। घुटर खेत जा एक किआरीमे पानि‍ खोलि‍ देलके। आ आगि‍क जोगारमे घुटर बगलमे कलमवाग छेलै ओतए नार राखल छेलै जइमेसँ एक पाँज नार थरथराइते अनलक। आब जखने सलाइसँ आगि‍ धराबऽ लगल आकि‍ तेहेन जाड़ होइत रहै जे सलाइक काठी खर्ड़ले ने होइत होइ। थरथरीसँ सलाइक काठी मुझा जाइत। जँ कठीमे आगि‍ धरे तँ नारमे धरबेकाल मि‍झा जाइ। खाएर, कोनो तरहेँ आगि‍ धरौलक आगि‍ धधका दुनू गोटे आगि‍ तापए लगल। थोड़ेक काल पछाति होश भेलै।
सुरेशबाबू खेत देखैले वि‍दा भेला। पएर लग तक कोट देने, पएरमे मोजा-जुत्ता लगौने, जाँधमे ट्रोजर देने कानमे मोफलर लगौने तैपर सँ माथमे टोपी देने आँखिओमे चश्‍मा छेलनि‍। तैयो जाड़े थरथराइत छला। जखनि बोरि‍ंग लग एला तँ देखलखि‍न जे दुनू गोटे आगि‍ तापि‍ रहल अछि‍। सुरेशोबाबू हाथ महक दस्‍ताना नि‍काि‍ल आगि‍ तापए लगला। आ बजला-
घुटरा केहेन समए भऽ गेलै जे केतनो कपड़ा देहमे देने छि‍ऐ तैयो जाड़ जेना जाइते ने अछि‍। तूँ सभ केना कऽ रहै छीही।‍
घुटर बाजल-
याै मालिक, गरीबक जि‍नगी कोनो जि‍नगी छि‍ऐ। एक तँ दैवि‍क मारल छी, दोसर सरकारोक बेवस्‍था तेहेन ने छै जे की कहब। कमाए लंगोटीबला आ खाए धोतीबला।‍ देहमे देखै छि‍ऐ जेतने कपड़ा अछि‍ तइसँ राति‍क जाड़मे गुजर करै छी। घरवाली परसौती भेल अछि‍। एकेटा रहैक घर अछि‍। दोसर बकरी आ गाएले अछि‍। तइमे एक कोनमे जारनि‍-काठी रखै छी। सेहो बकरीबला घरक टाट टुटल अछि।‍
सुरेशबाबू बजला
तब तँ बर दि‍क्कत होइत हेतौ?”
घुटर
यौ मालि‍क, की कहौं। खएर जाए दि‍यौ। हमरा सभले तँ एकटा ऊपरेबला छथि‍। मुदा हे एकटा बात कहै छी जे केतनो अहाँ सभ कपड़ा लगाएब, बि‍जलीक गरमीमे रहब मुदा तीनबेर अहूँ सभकेँ जाड़ पछारबे करत।
सुरेशबाबू अकचकाइत पुछला
केना रौ।‍
घुटर
नै बुझै छि‍ऐ, नहाइ, खाइ आ झाड़ा फि‍रै कालमे।‍
सुरेशबाबू
ठीके कहै छेँ।‍
घुटर
मालि‍क, हमरा सभकेँ कोन अछि‍। खूब मोटगर कऽ लार बीछा दइ छि‍ऐ तैपर सँ कुछो बी‍छा दइ छि‍ऐ आ चद्दैर ओढ़ि‍ लइ छी आ तखनो जँ जाड़ होइए तँ झट्टासँ बनेलहा पटि‍या-गोनरि ओढ़ि‍ लइ छी। बगलमे गोरहन्नी आ खड़ड़न-मड़ड़नकेँ ओरि‍या कऽ रखने रहै छी नै भेल तँ ओकरो पजारि‍ दइ छि‍ऐ। भरि‍ राति‍ सुनगैत रहल घर गरमाएल रहल। अहाँकेँ तँ बुझलै हएत जे बोरैसक आगि‍ केहेन होइ छै। ठाठसँ सुतै छी।‍  
सुरेशबाबू-
तहन तँ एअर-कण्‍डीशन‍ बना कऽ घरमे रहै छेँ। बड़ नीक अहि‍ना जाड़सँ बँचैक कोशि‍श करि‍हेँ। नै तँ सत्तो डाक्‍टर जकाँ हेताै, वेचारा कालिखि‍न पैखानासँ अाएल, कलपर कुरूड़ करि‍ते रहए आकि‍ ठंढ़ा मारि‍ देलकै। टांगि‍-टुंगि‍ कऽ डाक्‍टर लग लऽ गेलै। तँए कहलियो जे जाड़सँ बँचि‍ कऽ रहिहेँ। बकरी आ गाएकेँ सेहो झोली ओढ़ा कऽ रखि‍हेँ।
मुड़ी डोलबैत घुटर बाजल
ठीके कहै छी मालि‍क।
सुरेशबाबू-
रौ घुटर, धियो-पुतोकेँ हाँटि‍-दबाि‍र दि‍हनि जे ठंढ़ासँ बँि‍च कऽ रहतौ।‍
घुटर
से छौड़ा मानि‍ते ने अछि‍। खन गुल्‍ली डण्‍टा, खन क्रि‍केट तँ खन कबड्डी खेलाइत रहैए। की करबै। हम तँ कहबे ने करबै मालि‍क।‍
सुरेशबाबू
सएह हम कहबो ने।‍
घुटर
हम तँ भरि‍ दि‍न काज-धन्‍धामे लागल रहलौं। अहीं सबहक बँसबि‍ट्टीमे बाँसक ओइद उखारि‍ चीर-फार कऽ लइ छी। जइसँ देहमे घाम फेकैत रहैए।‍ आ राति‍ कऽ बौरेसबला आगि‍ गरमेने रहैए।
सुरेशबाबू
ठीक करै छेँ। जान छौ तँ जहान छौ।‍ शरीर नै तँ कि‍छु नै। अच्‍छा एकटा कह जे योगासन करै छेँ आकि‍ नै?”
घुटर
यौ मालि‍क, हम मूर्ख आदमी की जानए गेलि‍ऐ‍ योगासन आकि‍ परनियाम। हमरा सभले देहे धूनब योगासन आ परनि‍याम होइ छै। खटनीए सँ ने देह दुहाइत रहैए।
सुरेशबाबू बजला
ईहो बात ठीके छौ।‍
घुटर
मालि‍क अगहनमे मारि‍-धुइस‍ क‍ऽ कमेलौं, खूब धान कटलौं जइसँ घरमे एक कोठी धानो अछि‍ आ थोड़ेक चाउरो अछि‍। खेतसँ खेसारी साग, बथुआ साग, सेरसो साग, तोरी साग सबहक तीमन कऽ लइ छी। कहि‍यो काल अल्‍लू, कोबी, भाँटा, मुरै सेहो सबहक तीमन खा लइ छी आ बम-बम करैत रहै छी।
सुरेशबाबू-  
तहन तँ नीके वस्‍तु सभ खाइ छेँ।‍
घुटर
अहाँ सभ जकाँ की अण्‍डा, मौस-तौस आकि‍ दूध-दही हमरा सभकेँ भेटै छै‍। हमरा सबहक देह तँ बैशाख-जेठक रौद, भादवक वर्षा आ माघ मासक जाड़सँ ठाेकाएल-ठठाएल अछि‍। अहाँ सभ जकाँ की गाइद परहक बाँस जकाँ मोटगर नै ने अछि‍ जे तागत कि‍छु ने। केहनो भीरगर काज देखा दि‍अ कऽ देब।‍ हँ अहाँ सभ जकाँ पोथी-पतरा नै ने पढ़ने छी। थमहू खेत देखने अबै छी।
कहि‍ खेत आबि‍ दोसर किआरीमे पानि‍ खोलि‍ फेर घूर तर चलि‍ आएल आ गप-सप्‍प करैत बाजल-  
यौ मालि‍क, अहाँ सभ जकाँ की हमरा सए बीघा खेत अछि‍। लऽ दऽ कऽ अपन दस कट्ठा खेत अछि‍। कनीमे तरकारी-फड़कारी, कनीमे दलि‍हन-तेलहन, कनीमे साग-पात केने छी। धान-गहुम तँ अहीं सबहक खेतमे मनखप कऽ के गुजर करै छी।‍
सुरेशबाबू
एकटा कहाबत छै जे लड़ा-चड़ा धन पाइए बैठे देगा कौन। हे बड़ जाड़ होइ छै जल्‍दी खेत पटा ले आ घरपर जो। हमहूँ आब अधि‍क घूम-फिड़‍ नै करब घरेपर जाइ छी।‍
घुटर कहलक
जँ गपे-सप्‍प करै छी तँ एकटा गप औरो सुनि‍ लि‍अ। हम तँ पंजाब-भदोही आकि‍ दि‍ल्‍ली-बम्‍बइ नै ने कमाइले गेलौं। देखै छि‍ऐ जे ढबाहि‍ लागल लोक देासर मुलुक जाइत अछि‍। हँ ओतएसँ पाइ तँ अनैए मुदा परि‍वारसँ हटल रहैए। जबकि‍ सरकारो खेतीपर वि‍शेष धि‍यान देलकै हेन। खेत अफर-जात पड़ल अछि‍ केनि‍हारक चलैत। कम उपजा भेने तंगी तँ बढ़बे करत गाममे माए-बाप से हकन कानै छै। माि‍लक अहीं अपन दशा देखि‍ओ ने, एते खेत अछि‍ आ धि‍या-पूता सभ वि‍देशमे नोकरी करैए। मालकि‍न बूढ़मे कन्ना कऽ भानस भात करैत हेती से वएह जनैत हेती।‍
सुरेशबाबू बजला
से तँ ठीके कहैत छेँ। कखनो कऽ हमरो मनमे होइत अछि‍ जे कथीले एते कमेलौं आ एते जमा केलौं।‍ अच्‍छा छोर ई सभ बात। हम जाइ छियौ।
कहि‍ सुरेशबाबू घर दि‍स वि‍दा भेला। आ घुटर अंति‍म किआरीमे पानि‍ काटए लगल।mm



भोग


सोनाइकेँ सात बीघा खेत छेलनि, एकटा लड़का रामदेव आ एकटा लड़की सुदामा। सोनाइ तँ पढ़ल-लिखल नै मुदा गिरहस्तीमे पारंगत छला। बेटा रामदेव आइसँ चालिस बरख पूर्ब मिडिल पास केने छल। रामदेवक पत्नी-ज्ञानी गिरहस्तक बेटी तँए बड़ कमासूत। सोनाइक पत्नी घुरनी सेहो तेहने कमासूत। दुनू बापूत तेहेन ने खेती करए जे गाममे चर्चाकेँ विषय बनल रहए। खेतीए बले सोनाइ अस्सी हजार ईंटा आनि घर बनौलक। एम्‍हर रामदेवकेँ तीनटा पुत्र आ एकटा लड़की कौशल्‍या छेलनि। तीनू लड़काक नाओं छेलनि करण कुमार, जूगे कुमार, विपिन कुमार। तीनू लड़कामे रामदेवकेँ बड़ जोर छेलनि हमरो धिया-पुता पढ़ि-लिख नोकरी चाकरी करत मुदा प्रकृतक डाँग तेहेन ने पड़लै जे जवानीमे करीब पैंतीस बर्खक उमेरमे लकबा बिमारीसँ मरि गेला। आब तँ पूरा परिवार हतोत्‍साह भऽ गेल। जहिना कोनो गाछ बिहाड़िमे जड़िसँ उखरि कऽ खसि परैए आ डारि पात छिन्न-भिन्न भऽ जाइ छै, तहिना भेलनि रामदेवक धिया-पुता सभ छेलनि पनरह बर्खक, बारह बर्खक, दस बर्खक आ लड़कीक उमेर मात्र पाँच बरख। पि‍ता सोनाइक उमेर लगभग साि‍ठ बरख छेलनि, माए घुरनीकेँ वरसातक समैमे एकटा डेन टूटि गेल छेलनि किएक तँ पिछड़ि कऽ खसि पड़ल छेली। 
खैर! धिया-पुताकेँ पढ़ेनाइ-लिखेनाइ कमजोर पड़ि गेलनि। एक तरफ परिवारक भार दोसर तरफ रंग-बिरंगक बिमारीमे तीन-तीनटा बूढ़-बुढ़ानूस घरमे। गामक लोक रंग-बिरंगक उड़ेबा उड़बैत। तैपर पड़ोसी एकटा केसमे उलझा देलकनि। करणक हालति नै पुछू। एक सालक बाद दादी घुरनी सेहो मरि गेलनि। करणक बिआह भेना मात्र छह बरख भेल छेलै एकटा लड़का भेल छल। छह महिना पछाति करणक स्त्री सेहो मरि गेल। दू सालक बाद करणक माए सेहो मरि गेल जेना परिवारमे मरैनक ढवाहि लागि गेल। एतेक शोग-संतापक बीच सोनाइक हालति जे भेल होन्‍हि भगवाने जनैत। तेहेन हालतिमे एक दिन सोनाइकेँ पेटझड़ी बिमारी भऽ गेलनि। कोनो दबाइ असर नै करैत रहनि। हालति दिनो-दि‍न बि‍गड़ए लगलनि‍। एक तँ परिवारक शोग, दोसर बिमारी! मरनासनक स्थितमे लऽ अनलकनि। एम्‍हर करण झंझारपुरमे प्राइवेट मुंशीक काज करै छल। काज केला पछाति जखनि घर आबऽ लगैत तँ बाबा लेल चारि-पाँच पीस रसगुल्ला नेने अबैत रहए। बाबाकेँ छाती जुड़ा जन्‍हि बेटा तँ मरि गेल पोता तँ बेटे जकाँ सेवा-टहल कऽ रहल अछि। मुदा सुखेलहा गाछमे केतनो पानि आकि खाद दियौ ओ की हरिअर हएत। सएह स्थित सोनाइकेँ भऽ गेल छल। करो-कुटुम सभ आबि-आबि जिगेसा-बात कऽ जाइत जे बुढ़ा आब नै खेपत। जिगेसे करैक खियालसँ एक दिन मझिला पोता जुगे कुमारक ससुर घनश्याम बाबू झंझारपुरसँ एक किलो पचमेर मिठाय लऽ कऽ बुढ़ाकेँ माने जमाएक दादाकेँ देखैले एला। बुढ़ा तँ अपने बेहोश भेल पड़ल छला। घनश्याम बाबू अबिते दादाकेँ गोड़ लगलनि। सोनाइ कुहरैत बजला-
के छी यौ?”
धनश्याम बाबू उत्तर देलखिन-
हम छी धनश्याम।
निके रहू धिया-पुता सभ निके-ना अछि ने?”
हँ सभ ठीके-ठाक अछि।
घनश्याम बाबू कनी रूकि‍ कऽ कहलखिन-
अहाँले थोड़ेक मिठाय अनने छी कनी खा लियो।
सोनाइ उत्तर देलखिन-
यौ बौआ, आब चित नै मानैए। कोनो वस्‍तुकेँ खैक इच्छा नै करै अछि। आब भगवानकेँ कहियनु जे उठा लेता। किएक तँ बड़ कष्ट होइत अछि। धियो-पुतोकेँ केतेक भार देबै?” 
घनश्याम बाबू-
मरनाइ-जिनाइ कोनो अपना हाथमे छै जे जखनि चाहब तखनि मरि जाएब। से तँ नै हएत।
सोनाइ-
हँ से तँ ठीके।
घनश्याम बाबू-
ई मिठाइ कनी ‌खा लिअ। ई रसगूल्ला छिऐ।
सोनाइ उतर देलखिन-
यौ बौआ, करण झंझारपुर जाइ छल तँ सभ दिन थोड़े-थोड़े रसगुल्ला नेने अबै छल बहुत खेलौं-पीलौं। आब की खाएब मोन नै मानैत अछि किछु खाइ-पीबैक, दऽ दियौ अँगनामे। धिया-पुता सभ खा लेत।
घनश्याम बाबू-
नै बाबू, से नै हएत। किछु तँ खाइए पड़त हमरो आनैक साफल भऽ जाएत।
सोनाइ तामसे बिख भऽ गेला। कहलखिन-
अहाँ महा बुड़ि कुटुम छी। कहै छी तँ बूझते नै छिएे।
केतएसँ जोश एलनि से नै कहि। जेना डिबिया बुताए लगैत अछि तँ भक दऽ मारै छै आ खूब जोर सँ इजोत होइत अछि तहिना उठि कऽ बैस गेला आ घनश्यामक हाथ सँ मिठाइक डिब्बा झपटि लेलखिन। किछु मिठाइ अगल-बगलमे खसल। जोरसँ बाजए लगला-
रौ धिया-पुता, केतए गेलेँ?, ले मिठाइ खो।
घनश्याम बाबू तँ बौक भऽ गेला। सोनाइ बजला-
जखनि खाइबला छेलौं तँ कहियो भेल जे किछु लऽ जा कऽ बाबूकेँ दियनि आ आब जखनि खाइबला नै छी तँ बजै छथि जे ई रसगुल्ला छी, ई लालमोहन छी, ई जिलेबी तँ ई बदशाही! यौ अखनि अमृतो हमरा लेल बिखे भऽ गेल अछि!
घनश्याम बाबू कथी बजता। बकर-बकर मुँह तकैत रहथिन। एक तरफे सोनाइ बजैत रहलखिन-
ठीके कहावत अछि जे जितामे किदनि भात आ मूइलापर दूध भात। जाउ एतएसँ। हमर मन ठीक नै अछि। हमरा ऐ पृथ्वीपर सँ भोग उठि गेल। भगवानकेँ कहियनु जे उठा लेता। हमर कोनो आस नै। पाकल आम छी कखनि खसब से कोनो ठीक नै।
कहि ठामे बिछौनपर ओंघरा गेला। घनश्‍याम बाबू देखि‍ते रहला, मुँहसँ कि‍छु ने नि‍कलै छेलनि।mm


कुमारि भोजन


मखनाक माए सियावती दुर्गापूजामे साँझ दइले केतौसँ एक पथिया चिकनी माटि अनने रहए। कलशथापनासँ पहिने एक दिन दूर्गा नोतल जेती आ ओही दिनसँ दूर्गास्थानमे साँझ-बाती पड़त। सियावती गरीब घरक स्त्रीगण रहए एकटा बेटा भेले रहै, बाप साँपकटीमे मरि गेलखिन। तीनटा बेटीए भेल रहनि। उमेर करीब पैसठ बर्खक रहनि। बोइन-बुता करि कऽ गूजर-बसर करै छेली। कोनो तरहेँ तीनू-बेटीकेँ बिआह केलनि। बेटी सभ सासुर बसए लगली। मखना जखनि बच्चे रहथि तहिएसँ दूर्गाजीकेँ पूजा करै छेलखिन। मनमे रहनि बच्चा सभ तरहेँ निरोग आ सूखी सम्पन्न रहत। मुदा तीनू बेटीकेँ बिआहक खर्चमे तेना ने कोढ़ तोड़ि देलकनि जे जमीन्दारक चंगुलमे फँसि गेला। जमीन्दार इन्द्रकान्त बाबू तेहेन ने चंठ जे जन बोनिहारकेँ गारि फजहैत, लोभ लालच कर्ज दऽ कऽ फसौंने रहै छल। तथापि सियावती अपन नेम-टेम नै छोड़ै छेली। जखनि बोइन-बुताक पैरूख नै रहलनि तँ बेसीकाल पूजे पाठमे बितबै छेली। बेटा मखना बोइन करि कऽ अानए तखनि गूजर करए। मखना छोट बेटा रहने बिआह नै केने रहए। बेटा धरि एतेक सपूत रहए जे माएकेँ माए बुझैत। अखुनका मजदूर जकाँ नै जे कमा कऽ अबै आ अदहासँ फाजिल ताड़ीए-दारूमे खर्च कऽ लैत। हँ ओकरा बीड़ी पीबैक आदति रहै, सेहो समैसँ।
कलशथापनक बाद खष्टी दि‍न माने बेलनोती दि‍न, सप्तमीकेँ भगवतीकेँ डिम्‍हा पड़ैत। आँखि देला पछाति अष्‍टमी दिन निशाँपूजा होइए। नमीकेँ साँझमे जखनि सियावती साँझ दऽ कऽ एेली तँ संजय पुछलकनि-
काकी, तूँ तँ सभ दिन दूर्गास्थान साँझ दइले जाइ छीही। कह तँ साँझ दइकाल भगवतीसँ कि सभ कहै छीही?”
सियावती बजली-
तूँ की बुझबिहिन, अखनि नेना छँह।
संजय-
नै दादी कहए पड़तो, कह ने हमहूँ दूर्गाजीसँ माँगि लेब।
सियावती-
नै, नइ कहबो।
संजय-
नै, कहए पड़तौ।
दुनूमे जिद्दम-जिद्द भऽ गेल। अन्तमे सियावती कहए लगलखिन-
की कहबै, कहै छिएे जे हे दूर्गा महरानी धिया-पुताकेँ समांग दिहेँ, विद्या दिहेँ, धन दिहेँ, सम्‍पति दिहेँ, हमरो निरोग रखिहेँ। सएह सभ कहै छिएे।
संजय बाजल-
दादी गै, बिना कोनो काज केने सभटा दूर्गाजी दऽ दइ छथिन, तँ तोरा की भेलौं जे नेम-टेम आकि पूजा-पाठ करै छीही, से तँ आइ तक जवानीसँ बुढ़ापा ओहिना छौ। तोहर दिन किए अदिन भेल छौ?”
सियावती बजली-
रौ छौड़ा, तूँ बड़ पाखंडी छँह। एक्को रती बजैत लाजो-सरम ने होइ छौ!
संजय-
नै दादी, तोहीं कह ने एतेक पूजा-पाठतँ भरि जनम करैत एलँह मुदा तइसँ की भेलौ?”
सियावती जेना दिनेमे तरेगन गिनए लगली। किछु बजबे ने करै छेली। चूप देखि संजय पुछलकनि-
बौक किए भऽ गेलेँ। कौल्हका एकटा घटना दूर्गास्थानक कहै छियौ। काल्हि‍ मिठुआक माए दुलारी ब्राह्मण भोजन आ कुमारि भोजन करबैले दूर्गास्थान आएल छल। ओकरा अपना घरमे चूड़ा लेल अगहनीओ घान नै छेलै तँ रतीबाबूसँ कर्जा उठा‍ कऽ एक पसेरी धान सूदिपर अनने छल ओकरा अपनेसँ चूड़ा कुटलक आ पचीस रूपैए किलो महिंसक दूध तीन किलो अनलक आ दही पौड़लक। दोकानसँ चीनी अनलक आ काल्हि‍ अष्टमी दिन ब्राहमण भोजन आ कुमारि भोजन करेबैले गेल छल। संग लागल पोता वीरेन्द्र सेहो गेल छेलै जेकर उमेर बारह साल आ पोती डोली जेकर उमेर आठ साल छेलै ऊहो गेल छल। दूर्गास्थानमे कुमारि भोजन, ब्राह्मण भोजन, बटूक भोजनक एतेक ने भीड़ छेलै से कहल नै जाए! एक-एकटा ब्राह्मण कुमारि बटूक दस गोटेक नोत मानने छल दक्षिणाक लोभमे जेना उजैहिया चढ़ल होइ! भेल ई जे दुलारी जखनि अपना पुरहीतकेँ ठौंपर नारक बि‍ड़ी बना कऽ दूटा कुमारि, दूटा बटुककेँ केराक पातपर चुड़ा, दही, चिन्नी दऽ भगवतीकेँ भोग लगौलहा लड्डू दू-दूटा दऽ जखनि ओ लोकनि भोजन करए लगलखिन आकि पोती डोली कहए लगलै दादी हमहूँ चुड़ा-दही खेबौ। आकि दुलारी पोतीकेँ गालेपर एक चमेटा लगा देलकै आ बाजलि, चूप पहिने ब्राह्मण भोजन हेतै आ उगरतै तब तोरो देबौ। पोती हवो-ढेकार भऽ कऽ कानए लगलै। बकर-बकर मुहोँ तकै आ कनबो करए। एम्हर पुरहीत आ कुमारि बिना किछु सोचने निर्लज जकाँ खाइत रहल। एकोरती दया नै एलै डोलीपर! सवाल ठाढ़ भऽ जाइत अछि, तँए तँूही कह, की डोली कुमारि नै भेल? की वीरेन्द्र बटूक नै भेल? जखनि कि शास्त्रो-पुरानमे लिखल अछि दस बरख यानी रजस्वबाला होइसँ पहिने कोनो जातिक लड़की कुमारि अछि। कुमारि भोजन कराैल जा सकैत अछि। ई तँ कुमारि भोजनबला भेलौ गै दादी, एकटा और घटना देखलिएे जे किछु स्त्रीगण धनुक टोलीक आ किछु स्त्रीगण बरई टोलक अपने धिया-पुताकेँ लऽ कऽ कुमारि भोजन ओही दूर्गास्थानमे करौलक। ब्राह्मणो सभ तँ अपने धिया-पुताकेँ कुमारि भोजन करबैत अछि। कह तँ ऐमे कोन पेँच छै जे ब्राह्मणेटा केँ धिया-पुताकेँ कुमारि आ बटूक कहल जाइत अछि?”
रौ संजय, कहै तँ छीही ठीके।
संजय फेर कहए लगल-
गै दादी, जइ दू्र्गाकेँ तूँ एतेक नेम-टेमसँ अर्चना करै छीही तेकरा बारेमे किछु बूझितो छिहिन आकि भेड़ि‍या धसान जकाँ सभकेँ देखै छिही तँए तहूँ करए लगैत छँह?”
सुन महिषासूर, शूंभ, निशूंभ तँ एहेन आतातायी राजा छल जे केकरो बौह-बेटीकेँ इज्जत आबरू लूटि लइ छेलै। पहुलका रजो-महाराजो सभ एक-एक सए धौरबी रखै छल। तहिना अखुनका नेता आ बड़का अफसर सभ होइए। बहुत कमे नेता आ अफसर आकि जनता धोल पखारल भेटतौ। तेहने छल ओ महिषासूर, शूंभ, निशूंभ। जखनि बड़ अति‍याचार, बेवि‍चार राजमे बढ़ले आ लोकक नाकपर ठेकि‍ गेलै तखनि जा कऽ केकरो एकटा लड़की जनम लेलक ओ जनमि‍ते जेना प्रतिभाशाली छल, जेहने देखैमे सुन्दर तेहने काजोमे फूर्तिला जखनि जवानीपर एलै तखनि महिषासूर ओकरोपर अपन खराप नजरि‍ दौड़ौलक, मुदा ओ युवती इटक जवाब पत्थरसँ देलकै। जेतेककेँ महिषासूर सतौने छल ओ सभ ओइ युवतीकेँ संग देलक तँ देखै छिहिन दूर्गाकेँ दसटा हाथ छै आ सभ हाथमे अस्त्र छै। सबहक सहयोगक प्रतीक छिएे। जखनि सभ मिलि कऽ महिषासूरपर चढ़ाइ केलक तँ केतेक दिन तक लड़ाइ चलल अन्तमे महिषासूर मारले गेल। एम्‍हर जे महिषासूरक किला छेलै तेकरा ओ युवती ढाहि देलकै। तब ने ओइ युवतीकेँ नाओं दूर्गा राखल गेल। दूर्गाक लड़ाइ दस दिन तक चलल। संगठनेमे ने शक्ति होइ छै। सएह शक्‍तिकेँ माने दूर्गाक पूजा होइ छै।
सियावती बजली-
रौ बौआ, एना फरिछा कऽ कहाँ कियो अखनि तक कहलक हेन।
संजय बाजल-
गै दादी, केतेक कहबो। ओ सभ बुधियार छल, आगू बढ़ल। ओकरा सबहक तुलना करैमे धिया-पुताकेँ पढ़ा-लिखा अपना कर्मपर बिसवास करैत गेल। ओकरा पछुअबे ले तँ खिहारए पड़तो कि‍ने। ई जे साँझ दइ बेरमे कहै छिहिन से की केतौ राखल छै जे तोरा दऽ देतौ। तोहीं कह जे केतोसँ चिकनि माटि लऽ अनलेँ फटलहा कपड़ाकेँ बाती बना करूतेलमे भिजौने एलही आ एकटा अगरबतीसँ दूर्गास्थान साँझ दइले चलि गेलेँ। खरचा भेलौं चारिओ आना नै आ मांगि लेलहिन लाखोक सम्‍पति। केतएसँ भेटतौ। समाजमे जे अगुआएल अछि पहिनेसँ आ अखनो अछि ओ सभ अपना सुख-सुविधा लेल जाल बुनने अछि। अमरूख समाजक लोककेँ दिशाहीन बना कऽ अपन गोटी लाल करैए। हमहूँ तँ बूझि-सूझि कऽ कखनो काल भँसिआइए जाइ छी। जाति-धर्मक नाओंपर कोठलीमे कोठली छै। जेतेक जाति तेतेक देवता। बड़काकेँ बड़का देवता, छोटकाकेँ छोटका देवता भरल अछि।
सियावती बजली-
ठीके कहलेँ बौआ, आब सोचि-समझि कऽ कोनो काज करब।
संजय कहए लगल-
गै दादी, भोजन-भात आकि रहन-सहन ने स्वर्गक रहब छिएे। हम तूँ तँ कठपुतली जकाँ जेना-जेना नचबै छौ तेना-तेना नचै छेँ। तँए ने कहबी छै कमए लंगोटीबला आ खाए धोतीबला। तँए कहबौ, खूब कमा-खटा खूब खो-पी, धिया-पुताकेँ पढ़ा-लिखा जखनि धिया-पुता पढ़ि-लिखि‍ लेतौ आ नोकरी-चाकरी आकि‍ अपन काज-धंधा भऽ जेतौ तँ अपने देखबिहिन जे स्वर्गक भोग कऽ रहल छी। सूखे ने जिनगी छिएे। कुमारि भोजन करा आकि‍ पूजा-पाठ कर, तीर्थ-बि‍र्त कर, नेम-टेम कर सभटा अपने बुधिए-विवेके काज देतौ। केकरो कष्ट नै दहिन, जहाँ तक भऽ सकौ केकरो उपकारे कऽ दहिन सएह सभसँ पैघ घर्म छिएे। कोन झूठ-फूसि‍क फेड़मे पड़ल रहै छँह।
सियावती बजली-
रौ बौआ, एतेक जे पूजा-पाठ आकि धरम-करम होइ छै सभ झूठे छिएे की?”
संजय पुन: कहए लगलै-
गै दादी, सोझ शब्दमे बुझही जे अन्‍हारसँ प्रकाश दिस आनै सएह भेल पूजाकेँ शाब्दि‍क अर्थ आ नीके काज ने धर्म होइ छै। भगवानक केतौ अन्तए छै ओ तँ तोरा हमरा आत्मामे बसै छथिन। वेद तँ बेवहारीक ज्ञान छी, शास्त्र-पुराणमे लिखल अछि जे भगवान कण-कणमे बास करैत अछि तँ कि हमरा तोरा छोड़ि क?”mm


कीर्तन आ सम्मेलन




बहुत दिनक बाद आशा पूरा भेलनि घूसर बाबूकेँ। अपने तँ कएकटा मुखिया चुनाव लड़ला मुदा एकोबेर नै जीत सकला। लोक हुनकर धुर्तैसँ परिचित छल। २०११ इस्‍वीमे मुखिया चुनाव भेल अपना लड़काकेँ ठाढ़ केलनि। लड़का बी.. पास चालि-ढालि सेहो नीक छेलै। खाली काैलेज जिनगीमे किछु खराप सतसंग भऽ गेल छेलै तथापि लड़लनि। चुनावो जीत गेला। गामक मुखिया भऽ गेला। जइसँ २०१२ इस्‍वीमे एकटा नवाह-कीर्तनक आयोजन केलनि। लोककेँ कहथिन जे मुखिया चुनाव जीत गेलौं तँए नवाह करा रहल छी आ माँ दुर्गाक कबुला केने छेलियनि जे हम जीतब तँ अहाँक दरबारमे कीर्तन आ नवाह करब। सएह खूब डील-डालसँ नवाह कीर्तनक आयोजन केलनि। मनरेगाक तहत एकटा पोखरिक उराही छल जे एगारह लाखक योजना छेलै। दर-दियाद, हित-अपेछित सभकेँ सरकारी रेटपर नाओं दर्ज करा रोज असुली लेलनि मजदूर सभसँ किछु टाका भगवतीक नाओंपर लेलनि। हुनक मँुहलगुआ छल बनठा मुसहर। जे अनेरो ताड़ी-दारू पीब कऽ अन्ट-सन्ट बजैत रहै छल। ओ बनठा समरपित भऽ नवाहमे योगदान दइ छल। बैसाख जेठक समए छल। समए रौदियाह जकाँ छेलै। बनठा एक बीघामे पनरह किलो कठ्ठापर धानपर बटाइ केने छल। ओइ साल गरमामे चौदह-पनरहटा पानि लगैत रहए। बनठा कीर्तनक पछति कहियो खेत दिस नै गेल। गमहराइक समए छेलै, पानि नै पड़ने गमहरा भीतरेमे रहि गेल, कुहरि-कहारि कऽ धान फुटलै। कात-करोटमे सबहक धान नीक छल। वेचारा बनठा एक दिन घुमैत-घुमैत खेतक आड़िपर गेल तँ झमान भऽ खसल। कहू! ऐ नवाहक पाछाँ तँ खेतीओ बूड़ि गेल। कोनो तरहक लाभ भेल...! एम्‍हर गाममे करीब पचीसटा हौरन गामक चारूकात आ बिच्‍चाेमे टाँगल छल। सौंसे गाम अनघोल भऽ रहल छल। केकरो मोबाइलपर जे केतोसँ फौनो अबै सेहो गप करैमे दिक्कत होइ। केकरोसँ गप करैमे कठिन होइत। गप्पो करू तँ ऊँचे अवाजमे। हँ किछु नव युवती आ स्त्रीगण सभकेँ जेना रोजगार भऽ गेल होइ जे जहियासँ कलश भरलक तहिएसँ अरवा-अरवानि‍, फल-फलहारी साँझ-भिनसर स्नान करि कऽ कलशक पूजा करब दसो दिनक रोजगार भेट गेल छेलै। कीर्तन मंडलीकेँ तँ बतीसो आना नफे। दसो दिनक फिस छल एकैस हजार। नीक निकुत जलखै-भोजनक आयोजन। दोसर दिस जनरेटर आ साउण्‍डक भाड़ा छल पैंतीस हजार। साउण्‍डबला गद-गद रहए। पंडीजी संकल्पेमे जखनि‍ पाँच सए एक टाका लेलनि तँ पूर्णाहुुतमे केतेक लेता। एम्‍हर आयोजककेँ चैन नै। कथीले एको घंटा कीर्तन करता आगत-भागत प्रसाद बँटैमे तवाह। नवाह दसम दिन सम्पन्न भेल। सम्‍पन्न होइते आयोजक घूसर बाबूकेँ कियो कहलकनि-
जे ऐसँ नै भेल। अठजाम कीर्तन सेहो काइए लिअ।
तुरन्त फेर अष्ठयाम कीर्तन सेहो शुरू भऽ गेल। अष्ठयामकेँ समाप्त होइते पंडीजी घूसर बाबूकेँ कहलखिन-
ऐ यज्ञक पूर्णाहुत बिना सत्यनारायण भगवानक पूजाक केना हएत।
तँ रातिमे सत्यनारायण भगवानक पूजा सेहो भेल। कीर्तन मंडली सभ बाजल-
बिना साधु भण्डाराक कोनो सफलता नै भेटत।
तुरन्त एक-सए-एक मुरतेक साधुक भण्डारा भेल। गाममे धर्मक अम्बार लगि गेल। मुदा ओइ अनपढ़ मजदूरकेँ ध्वनि प्रदूशनक चलैत आ आनो-आनो बरदाहटि‍सँ संग-संग श्रमक पाइसँ खेला-बेला भेल तेकर के नफा-नोकसान गनेबला? ठीके कहबी छै माल मारए मुसबा आ खाए युनूसबा। कीर्तन तँ ओ भेल ने जे कोनो भगवानक कृतकेँ अपना ऊपर लागू करी। से नै करब। हुनक कृत हुनके लग रहए दियनु। राम-कृष्ण हमरो लोकनि लेल उदाहरण अछि। सिरिफ हुनके कृत केलहाकेँ अपनाबी जे ॠषि-मुनि कहि गेला से ने असली धर्म भेल। के बिना नीक काज केने पुजनीय भेला अछि। दोसर दिस कबीर पंथी सम्मेलनक आयोजन सेहो भेल। जखनि प्रवचन शुरू भेल आकि एकटा तेसरे विहंगरा ठाढ़ भऽ गेल। मंचक अध्‍यक्ष वचन बंशी आ प्रवचनकर्ता पारखीमतक अनुसार गप उठलै-
आनंद भेटै वएह स्वर्ग। मनूखे सबहक कर्ता-धर्ता अछि। भगवानक भोग लगाबी नै लगाबी वा भूखले राखी।
तर्क रहनि-
मुसलमान इसलामकेँ मानै छथि, इसाई इशुकेँ आ हिन्दु राम-कृष्णकेँ मानै छथि, तहिना सीख गुरुनानककेँ मानै छथिन। सभ धर्मक लोक एक दोसरकेँ निन्दा सेहो करै छथिन। हमर पैघ तँ हमर पैघ। किएक ने इसलाम मुसलमानेक खेतमे पानि दऽ दौ। राम-कृष्‍ण हि‍न्दूएक खेतमे बर्खा दउ। से कहाँ होइत अछि? सभ मनगढ़न्त अछि। हँ पाँचटा देवता अबस्‍स छथिन जल, आगि, धरती हवा आ अकास। जे सबहक लेल बरबरि।
तइ बिच्‍चेमे सवाल उठलै कबीर दासक जन्मक सम्‍बन्‍धमे। दोसर सवाल रहै कबीर दासक लाशकेँ हिन्दू मूसलीम बाँटि लेलक तइ सम्‍बन्‍धमे। तेसर सवाल रहै वेदक विचारधारा आैर कवीर दर्शनक सम्‍बन्‍धमे। जहाँ ने कि रामाशंकर साहैब बजला-
बिना स्‍त्री-पुरुषक संयोगे केतौ धिया-पुता भेलैए!
तँ कियो लोक लाजक चलैत अवैध सम्‍बन्‍धवाली कुमारि अपना बच्चाकेँ पोखरिक कनछरिमे फेकि‍ देलक। जेना-तेना आने पोसलक-पाललक। वैदिक धर्म कबीरक दर्शनसँ मिलैत-जुलैत अछि। बेवहारे ने वेद अछि। मृतमे कबीरक लाशकेँ भीतरे साजि‍शक तहत दफना देल गेल आ चद्दरि‍ ओढ़ा एकटा फूल रखि देल गेल। जे हिन्दू-मुसलिम अदहा-अदहा बाँटि लेलक। आकि अध्‍यक्षकेँ खौंत फेकि‍ देलकनि। हल्ला भेल! सहीकेँ केतेक काल छिपाैल जाएत। अध्‍यक्षक अध्‍यक्षता समाप्त कऽ देल गेलनि।‍ दोसर अध्‍यक्ष चुनल गेला। तखनि फेरि‍ रमाशंकर साहैब बजला-
यौ श्रोता लोकनि, कबीर पंथीओ तीन तरहक होइत अछि। एकटा वचन बंसी, दोसर ईश्वरवादी आ तेसर पारखी। सहो बात खोंचाह होइ छै। जहिना महिला सिंगार करैत अछि पुरुषकेँ रिझबैले तहिना बबाजीओकेँ देखियनु एकहक हाथक दाढ़ी, दू-दू हाथक केश, चमचमाइत कपड़ा। देखबैएले ने दाढ़ी बढ़ा कऽ सीताहरण भेल छल। ईश्वरवादी सभटा ईश्वरक उपमा देता मुदा अपने करता ओकर विपरीत। पारखी कोनो दृष्टांतकेँ सही गलतकेँ बूझि कऽ वैज्ञानिक तर्ककेँ मानि सोना जकाँ आगिमे धिपा कऽ बजता आ करता। ढोंगी-ढकक चलैत देशक ई हालति अछि। मुँहसँ किछु बजता आ करै बेर किछु करता। एकटा अमेरिकन बबाजी ऐ बेरका कुम्भ मेलामे इलाहावाद आएल छला। ओ मूर्ती सभकेँ देखि कऽ बजला, जितना भगवान है हिन्दूस्तानमे सभ आतंकवादी है क्‍यौंकि सबो कें हाथ में अस्त्र-शस्त्र है। अस्त्र-शस्त्र के बदौलत राज्य कएम करना चाहते थे। कृष्ण है कर्मवीर क्‍यौं कि उनके हाथमे बासुरी है। लेकिन कबीर कें हाथ में क्‍या था कोइ बताबें। गुरुनानक के हाथ में क्या था। इसीलिए आज के समय में कबीर कि जरूरत है। जो वैज्ञानिक तर्कपर खड़ा उतरता है। वही पूज्यनीय है।
अपन बकतब दऽ शंकर साहैब प्रवचन समाप्त केलनि।mm


मूर्दा




रामेश्वरकेँ जखनि मोछक पोम्‍ह एलै तँ एक दिन धिया-पुताकेँ खेलैत देखि‍ भाव-विभोर भऽ गेल। मने-मन सोचए लगल हमहूँ तँ एक दिन अहिना धिया-पुता रहल हएब। माए-बाबू हमरो कोरा-कान्हपर लऽ कऽ खेलबैत हेता। रामेश्वरक पिताक नाओं छेलनि बंसधर आ माएक नाओं कलावती। बंसधरक उमेर करीब पचपन आ कलाबतीक अरतालीस बर्ख रहनि। नीक गिरहस्त। दस बीघा खेत जोतनिहार। दरबज्जापर टेकटर। कामधेनू सन एकटा जरसी गाए रहनि। कलाबतीकेँ मात्र एकटा बेटा आ एकटा बेटी छेलनि। तेकर पछाति औपरेशन करा नेने छेली। बेटीक नाओं सुगाबती। पहिल लड़की तँ बड़ दुलार खास कऽ माए लेल होइते छै जे रहबो करनि। माएकेँ जेतेक पिअरगर बेटी होइ छै तेतेक बेटा नै। बेटी जखनि अठारह बर्खक भेल छल तखने ओकर बिआह निर्मलीक सुबोधकान्तसँ कराैल गेल छल। सुबोधकान्तक परिवार जमीनदार तँ नै मुदा नून-तेल आ कपड़ाक दोकान नीक चलै छेलै। परिवारो छोट-छीन। सिरिफ माए बाप आ दू भाँइक भैयारी। बिआहो आधुनिक ढंगसँ भेल। धूम-धरक्का यानी डिजे बाजा संग लगभग डेढ़ सए बरियाती आएल छल। दानो दहेज नीक जकाँ देलखिन। सुगाबती सासुर बसए लगली। एम्‍हर छोट बेटा रामेश्वर पढ़ै-लिखैमे बड़ तेज। कोनो वर्गमे फस्ट सकेण्ड छोड़ि‍ तेसर नै भेल। जखनि वी.एस-सी.क सकेण्ड पार्ट छल तखनि जा कऽ घटना घटलै। छोट बेटा रहने तहूमे एकलौता। एकलौता बड़ दुलारू होइते अछि। माए-बाप लेल तँ आँखिक तारा छल। बंसधर अपने गिरहस्ती करथि। एकटा नोकर बिलेतिया टेकटरक डेरबरी करैत आ दोसर नोकर पिचकून घर-बाहरक काज देखैत। जहि‍ना बेटाक प्रति अगाध प्रेम रखै छला तहिना गाएक प्रति सेहो। पहिने देहाती गाए पोसै छला जेकरा खाइ-पीबैले देथिन मुदा दूधक बेरमे मात्र किलो भरि‍ भिनसर आ आध किलो साँझमे होइ छल। सेहो कोनो साँझ झूस भऽ जान्‍हि। एक दिन तमुरियाक शिव कूमार डाक्‍टर घुमैत-घुमैत बंसधरक ऐठाम एला आ जरसी गाएकेँ सम्‍बन्‍धमे विचार दैत कहलखिन
ई जे देहाती नसलक गाए पोसने छी से आब छोड़ू। जरसी गाए लिअ। तेतेक ने दूध देत जे अपनो खाएब आ बेचबो करब। जरसी गाए तँ ओहन कामधेनू होइत अछि जे सगरे नफे-नफा, खुट्टापर कारी गाए रहत से शुभ भेल, दोसर सालमे एकटा बाछा वा बाछी देत। तेसर गोबरसँ जारनि आ खेतक उर्वरा शक्ति बढ़बैमे काज देत। रंग-बिरंगक काज कऽ सकै छी। नगदी आमदनी लेल दूध कमसँ कम बीस लीटर तँ देबे करत। पाँच लीटर अपना खाइले रखि लेब आ बाँकी दूधकेँ वेपारी हाथे बेचि लेब। भारततँ कृषि प्रधान देश अछिए अस्सी प्रतिशत आदमी खेतीएपर निर्भर अछि। तँए कहब जे जरसी गाए लिअ हमहूँ अहाँ संग मधुबनी जाएब आ खटालसँ नीक नस्लकेँ गाए कीनि देब।
बंसधर बजला-
ठीक छै। काल्हिए चलल जाउ।
विहान भने शिव कुमार डाक्‍टर बंसधर बाबू आ एकटा नोकर पिचकूनकेँ संग लऽ मधुबनीसँ सहिवाल नस्लक दूटा गाए एकटा बाछी तरे आ एकटा बछा तरे कीनि अनलनि। सएह गाए बंसधरक खुट्टापर। गाममे चर्चाक विषए बनि गेल। हरिदम पाँच-दस गोटे गाए देखैले अबिते-जाइते रहै छल। शिव कुमार डाक्‍टर तेहन ने मिलनसार लोक जे हरिदम केकरोसँ गप-सप्प करता तँ हँसिते। बुझने नै जाएत जे एतेक नीक डाक्‍टर झंझारपुरक पाँच कोस चौतरफामे भेटत। खास गुण हुनकामे तँ ई छन्‍हि जे जइ बिमारीकेँ ओ नै जनता तँ अपनासँ ऊपरक डाक्‍टरसँ सलाह लऽ कऽ इलाज करता। तइसँ सगरे मान-सम्मान खूब भेटैत छन्‍हि। फिसो आन डाक्‍टर जकाँ नै उचित मजदूरी उचित दबाइक दाम लइ छथिन। एम्‍हर बंसधरक चर्चा गाममे हुअ लगल। बंसधरो पहिल दिनका दूध दर-दियाद, हित अपेछितमे बाँटि देलखिन घरपर जे आनो दिन कियो आबनि तँ बिना चाह-पान वा जलखैक नै जाए देथिन। समाजिको काजमे तन-मन धनसँ योगदान देथिन। तइ सभसँ समाजमे एकटा अलगे मान-सम्मान भेटै छेलनि। किए ने भेटितनि, कहबीओ छै जे मन हर्षित तँ गाबी गीत, चारू डंडी सूरेब छन्‍हि।
जेना केकरो नीक, दुष्ट आदमीकेँ नै देखल जाइ छै तहिना भगवानोकेँ नै देखल गेलनि। एक दिन बंसधरकेँ जानसँ मारिए कऽ भगवानोकेँ चैन भेटलनि। भेलै ई जे बंसधरकेँ सधारण बोखार लगलनि। बोखार कोनो दबाइकेँ सुनबाइ करिते ने छेलनि। गामसँ लऽ कऽ दरभंगा तक इलाज करौलनि मुदा कोनो सुनबाइ नै भेलनि। हिया-हारि कऽ घरपर आबि गेला। बिछान धऽ लेलनि, शरीर तँ सुखा कऽ संठी जकाँ भऽ गेलनि। केतए ओ दोहारा हार-काठक शरीर लाल मुँगबा जकाँ। ओ आइ केतए गेलनि से नै कहि। पत्नी कलावती तँ फूटमे हवो-डकार भऽ भऽ कनैत रहै छेली। वेचारी कलावती स्वामी भक्त कहियो पतिक आदेशकेँ अवहेलना नै केलनि। वेचारी सोगेसँ एक हड्डा भऽ गेली। बेटा जे कौलेजमे सकेण्ड पार्ट वी.एस-सी.मे पढ़ै छल से घर आबि गेला। रामेश्वर हरिदम सोगेमे डुमल। खन बाबू लेल पानि तँ खन दबाइ तँ खन पथ परहेजपर धियान दैत रहै छला। एक दिन तीन बजेकेँ समाए छल। पत्नी कलावती स्वामीकेँ पएर लग सेवा कऽ रहल छेली तखने बंसधरकेँ हिचकी उठलनि आ प्राण तियागि देलनि। कलावतीकेँ फूटे दाँती-पर-दाँती लागए लगल, हवो-डकार भऽ बपहारि‍ काटए लगली-
यौ चण्डलबा! हमरा छोड़ि केतए परा गेलौं यौ! आब हमर देख-भाल के करत। के आब एतेक सम्पतिक भोग करत। केकरा हम स्वामीनाथ कहबै। 
वेचारा रामेश्वर दोसर कोठलीमे सूतल छल। ओहो दौग कऽ आएल। पिताक मृत शरीर देखि कऽ ठकमुड़ी लगि गेलै। बेहोश भऽ धरामसँ खसल। दाँती लागि गेलै। ताबत दर-दियाद गौआँ-घरूआ सभ पहूँचए लगल। सबहक मुँहसँ एक्के शब्द निकलै-
अन्‍हेर भऽ गेल! भरल-पूरल परिवार छोड़ि कऽ बंसधरबाबू चलि गेला। हमरा सबहक खुट्टा छला। आब हमहूँ सभ अनाथ भऽ गेलौं।
दोसर दिस रामेश्वर मुर्दा जकाँ एकान्तमे बैसल। आँखिसँ नोर खसि रहल छल। कियो कहै-
जल्‍दी हिनका तुलसीचौरा लग उत्तरमुहेँ सूता दियनु। गाए गोबरसँ ठाँउ करि कऽ सूता दियनु।
कियो बजैत
जल्दी कपड़ा लाउ।
जल्दी बाँसक टाटी बनाउ।
मुइलकेँ जेतेक जल्दी भऽ सकए, जरा दी।
मुदा वेचारा रामेश्वर सबहक विचार सुनैत। एकटकी लगौने सोचैत लोकोकेँ विचार अजीवे अछि काल्हि‍ तक जे पिता एतेक लार-प्यार देलनि प्राणक आधार छला से आइ मुर्दा...। तहिना लोको बाजि रहल अछि। गामक बूढ़-बुढ़ानुस बजथि-
की करबहक, सबहक यएह गति होइ छै। वेचारा वंशधर आइ भरल-पुरल परिवारकेँ छोड़ि स्वर्गधाम गेला। तहूँ कि मुर्दा भेल ठार छह। ई ने मुइला। मुदा अखनि जेतेक लोक देखै छहक, जखनि मेही नजरसँ देखबहक तँ सभ मुइले जकाँ भेटतह। जेना कृष्ण महाभारतमे अपन विराट रूप देखौने छेलखिन आ करूक्षेत्रक मैदानमे सभकेँ मुइले देखौने छेलखिन आ युद्ध लेल ललकारने रहथिन तहिना ई समाजो अछि। सही बात बाजब, करब से कहाँ होइ छै। अपन-पराया सभकेँ देखबहक निर्णए लैत। देखबहक सामनेमे कुर्कम होइत अछि मुदा बजनिहार कियो नै। कहत अपन आदमी छी झाँपि दहक, वहए विजक धारा भरैत-भरैत समाज आइ एतेक भ्रष्ट भऽ गेल अछि। नीको अछि। केतेक कहबह छोड़ह सोच-पीड़ाकेँ। जे हेबाक हेतै से हएत। दहिना हाथमे कोहा आ बामा हाथमे आगि लऽ आ बंसधरकेँ दाह संसकार कऽ दियनु।
तेराति दिन गौआँक बैसार भेल, भतखौखा पंच सभ भोजक इंतजाममे बेस्‍त भेल। कियो बजैत-
गुड्डीक धागा तँ अपने सबहक पास अछि ने, जेना-जेना कहबनि तेना-तेना करए पड़तनि। तीन दिन भोज कचरि-कचरि कऽ खाएब।
भोजक हि‍साबक कर्त रहनि, नह-केश दि‍न भात-दालि, एकादशीकेँ चूड़ा-दही, द्वादसामे पुड़ी-तरकारीपर लालमोहन-रसगुल्‍ला। पात्र-पुरहित लेल पंचदान-सराध, बिआएल गाए बाछीक संग वर्तन-बासन, कोंच, तोसक-तकिआ, कपड़ा-लत्ता सहित सभ किछु दान करथि। कोनो कि बेटा अपन कमेलहा दान करत, बापे तेतेक ने अरजि देलकनि जे भोग करैत रहत। कि‍छु जमीनो-जत्‍था बेचि‍लापर एहेन पुण्‍यकाज करबाके चाही। माए-बापक सराध कि दोहरा कऽ होइ छै।
अर्जुनबाबू बजला-
हौ रामेसर, हमर विचार सुनह जे वेभव हुअ तेतेसँ निमहि जा। समाजक पेंच-पाँचकेँ तूँ अखनि नै ने बुझैत छहक, आने कहिओ समाजक बीचमे रहलह। सभ दि‍न बाहरे रहलह। घरक भार कहि‍यो बुझलहक कहाँ। दानो-पूनक कोनो इता छै। कोनो सीमा सरहद छै। पुरहि‍त-पातकेँ केतनो देबहक तैयो ओकर मन झूसे रहै छै। दान तँ ओकर छि‍ऐ जे उपभोग करए, ई नै जे बजारमे जा कऽ बेचि‍ लि‍अए।
रामेश्वर मुड़ी डोलबैत बजला-
ठीक छै।
ठीक छै कहि, तहिना करबो केलनि।
कनी दि‍नक बाद रामेश्वरक गाएक बच्‍चा मरि‍ गेलै। लोक सभ बाजए लगल-
जइ गाएक बच्‍चा मरि‍ जाए तइ गाएक दूध नै दुहक चाही।
ई बात सुनि रामेश्वर गाएकेँ दुहनाइ छोड़ि‍ देलनि। शिवकुमार डाक्‍टरकेँ जखनि पता लगलनि‍ जे वंसधरबाबू स्‍वर्गवास भऽ गेला तँ जि‍गेसा करए एला। वंसधर बाबूकेँ श्रर्द्धाजलि दऽ रामेश्वरकेँ सानत्‍वना दैत पुछलखिन-
गाए ठीक-ठाक अछि कि‍ने?”
रामेश्वर कहलकनि-
नै, बच्‍चा मरि‍ गेलै। लोक सभ दूध दुहब मना कऽ देलनि।
डाक्‍टर साहैब तामसे बीख भऽ बजला-
गाएसँ तँ दूधे ने लेबै आकि‍ हर जोतल जेतै। कोन सड़ल-गलल वि‍चारमे बौआइ छी। नगदी आमदनीक स्रोत अछि। आमदनी हरेलासँ कमजोर नै हएब। पढ़ल-लि‍खल छीहे बुधि‍सँ काज लैत चलू। लोक अहिना कुटि‍चालि‍बला बात बजैत रहै छै।mm


सतमाए




मातृभूमी, गौमाता आ माए तीनूकेँ केतनो वर्णन कएल जाए तैयो कम्‍मे हएत। जे ममता आकि प्रेम माएमे होइत अछि, संयोगे केतो अन्यत्र भेटत। अपन माए तँ माइए होइत अछि। केतौ-केतौ सतमाइयो जीवन सूधारमे मार्ग दर्शक बनि जाइत अछि।
सुधीरकेँ बिआह भेना मात्र तीन साल भेल छल। सुधीरक चारि भाँइक भैयारी छेलै। चारू भाँइ खेतीएपर निर्भर छल। मात्र सात बीघा खेत, परिवार नमहर, मुदा खेती तेना कऽ करै छल जे पनरह बीघाबलाकेँ कान कटै छल। पढ़ल-लिखल कोनो खास नै मुदा जानकारी बेसी छेलै। माए-बाप, दादा-दादी जीवि‍ते छेलै। सुधीरक बिआह लक्ष्मी संग भेल छल। नीचलो तीनू भाँइक बिआह भऽ गेल छल। सुधीरक बिआह भेना तीन साल भेल छेलै तखने जा कऽ एकटा लड़काक जनम भेलै। छठियार दिन भोज-भात भेलै। परिवारमे पहिल लड़का जनम लेने खुशीक लहर दौग गेलै। पमरिया ढोलकीपर नाचए लागल। सुधीरक माए-बाप, दादा-दादी दिल खोलि कऽ दान देलक। बच्चाक नाओं राखल गेल अनमोल कुमार, बच्चा जहिना देखबामे सुन्दर तहिना हिस्ट-पुस्‍ट शरीर। बच्‍चाकेँ देखि‍ते केकरो मोन भऽ जाइ जे कोरामे लऽ खेलैबि‍तौं।
जखनि अनमोल कुमार छह मासक भेल आकि माए बिमार पड़ि गेली, डाक्‍टर प्रभाष लग लऽ जाएल गेलै। रोगीकेँ देखि‍ डाक्‍टर प्रभाष कहलखिन-
हिनका पेटमे कश रहि गेल छन्‍हि। वएह काँट जकाँ भऽ गेलनि। कोनो चिन्ताक विषय नै अछि ठीक भऽ जाएत। 
दबाइ-दारू भेलनि मुदा ठीक नै भेली। रातिमे सुतली से सुतले रहि गेली। डाक्टरकेँ अचम्भा लागि गेलनि। ई की भऽ गेलै! गेनिहारकेँ के रोकि सकैत अछि लाशकेँ घरपर आनल गेल। परिवारमे कोहराम मचि गेल। परिवारक सभ सदस्य जेना बौक भऽ गेल। जनिजातिसँ अँगनामे भीड़ लगि गेल। कियो बजैत-
ई छहमस्‍सुआ बच्चा केना कऽ बँचत। 
कियो बजै-
भगवान ऐ बच्चा लेल बड़ अन्याय केलखिन।
जेतेक मुँह तेतेक रंगक बात। खैर जे कि‍छु, दाह संस्कार, नह-केस सम्‍पन्न भेल। सराधमे एक आदमी बजलै-
हमरासँ छोट मुइल हेन तँए हम केना ओकर सराधक भात ‌खाएब।
मुदा एगारह जन पुरेनाइ अछि। कोनो तरहेँ एगारह जन लऽ कऽ सराध भेल। हलाँकी नहो-केस दिन पात्रक संग सुधीरकेँ दक्षिणाक सम्‍बन्‍धमे झनझटि भऽ गेलै। सुधीर बाजल-
यौ सरकार, जबान-जहान मुइल हेन। बच्चा अनाथ अछि। बूढ़ दादा-दादी अछि। कोनो तरहेँ उद्धार कऽ दियौ ने।
महापात्र मानेबला नै। तँए झंझटि भेलै। पात्र बजै-
कियो मरतै तइसँ हमरा की, हम कि कोनो भूमि-छेदन करै छी। हमर दोकान तँ यएह छी कि‍ने। हमर गुजरक रस्ता तँ यएह अछि कि‍ने।
खैर, कोनो तरहेँ सभ कि‍छु सम्पन्न भेल।
परिवारो कोनो तरहेँ ससरए लगल, देखैत-दैखैत तीन साल बीति‍ गेल। कियो कहै-
हौ सुधीर दोसर बिआह कऽ लैह ने।
सुधीर बाजल-
दोसर बिआह करब तँ ऐ बच्चाकेँ की हएत। सतमाए भेने कुभेले ने हेतै। हम बिआह नै करब।
परिवारोक लोक बुझबै मुदा सुधीर मानैले तैयार नै। सुधीर समाजिक लोक तँए कियो-ने-कियो दरबज्जापर अबिते-जाइत रहै छल। मुदा एनिहारकेँ कम-सँ-कम चाह-पान हेबाक तँ चाही। से एक दिन मझिली भावोकेँ चाह बनेबैले कहलनि। ओ ठोका जवाब देलकनि-
के हरिदम चाह बनबैत रहतनि, बिआह कऽ लेता से नै।
सुधीरकेँ बड़ दुख भेलनि। करता कि मन मसोसि कऽ रहि गेला। एक दिन अनमोल कुमार आठ बजे जे पैखाना केलक से दस बजे तक कियो ओकरा छोंछ करौनिहार नै। दस बजेमे जखनि सुधीर एला तँ बच्चाकेँ देखि कऽ बुकोर लागि गेलै। बजता तँ केकरापर? दादी पानि ढारि छोंछ करौलखिन। पछाति अन्ट-सन्ट पुतोहुपर बजबो केलखि‍न। सुधीर सोचला आब बिआह केनाइ अनिवार्य अछि। चारिम-पाँचिम सालमे जा कऽ दोसर बिआह करैक मन बनौलनि। मनमे उठलनि, एक बेर सासुर जा कऽ सासु-ससुरसँ विचार लऽ ली। सासुर वि‍दा भेला। संग लागल अनमोल कुमारकेँ सेहो लेने गेला। सासूरमे आगत-भागतमे कोनो तरहक कमी नै रहलनि। सासु कहलखि‍न-
पाहुन, किए ने कुलिन कन्या, नीक घर देखि कऽ बिआह कऽ लइ छथि?”
सुधीर किछु नै बजला। तीन दिन सासुरमे रहला पछाति आपस आबि गेला। लोकक असिरवाद जेना काज कऽ गेलनि। नीक घरक एकटा लड़कीकेँ बिआह करबैले घटक, सुधीर ऐठाम पहुँचल। नीक तरहेँ छान-बीन केला पछाति सुधीरक दादा हँ भरि देलखिन। सुधीरक दोसर बिआह बुच्चीदाय संग भेलनि। जेहने बरतुहार कहने रहथिन, तेहने लड़की बेवहारिक छेलखिन। अनमोल कुमारकेँ कोनो तरहक कुभेला कहियो नै केलखिन। कुटीचालि वाली स्त्रीगनक कमी तँ कोनो समाजमे नहियेँ अछि। दुष्ट आदमीकेँ जेना अनकर नीक देखले नै जाइत तहिना स्त्रीगनो होइत अछि, स्त्री जातिक दुश्‍मन जेतेक मर्द नै होइत अछि तेतेक स्त्रीगन होइत अछि। कोनो स्त्रीगन जे हाँट-दबार अपना बच्चा संग करैत अछि तहिना अगर सतौत संग केलक तँ अड़ोसी-पड़ोसी तुरन्‍ते उलहन जकाँ काना-फुसी करए लगत-
कहुना तँ सतमाए छिएे ने!
तीलकेँ तार बना कऽ स्त्रीगन सभ बाजए लगत। बच्चोकेँ रंग-बिरंगक गप-सप्पसँ कान भरि दइ छै। मुदा सुधीर सभ बातकेँ जनैत हरिदम सतर्क रहै छला। अपना माए संग कहाँ सत्, शब्द लागल अछि, दोसर माएक संग सत् शब्द लागल अछि, सतमाए। बच्चाक बेवहार जेहेन माए संग हेतै सतमाए तँ ओहने बेवहार करैत अछि। हँ बेसी ओहने सतमाए होइत अछि जे अपना बेटाकेँ नीक आ सतौतकेँ अधला करैत अछि। मुदा केतौ-केतौ सतमाए मार्गदर्शकक काज सेहो करैत अछि। स्त्री जातिकेँ अपना स्वभिमानक रक्षा लेल स्वयं आगाँ आबए पड़त। तहिना बच्चोकेँ अपन पुरुषार्थ लेल स्वयं ठाढ़ हुअ पड़त।mm



तकरीर




मुसलमान टोलसँ मुहम्मद साहैबक पैगाम लऽ कऽ जमात निकलैबला छल। जहिया महजिदमे बैसार भेल छल तही दिन कियो पाँच दिनक तँ कियो दस दिनक, कियो एक मासक, कियो चारि मासक जमातमे जाइले नाओं लिखा नेने छल। जमातोकेँ अपन निअम छै। जमातमे गेनिहार अपन खेनाइ-खोराकक संग जाइत आ मुहम्मद साहैबक विचारकेँ मुसलमान समाजमे रखैत। जइसँ नीक बातक प्रचार होइत। समाज सुधरत। कैजूम सेहो चालिस दिनक जमातमे भाग लेलक आ जहाँ-तहाँ तकरीर करए लगल। एक दिन महजि‍दमे मैक लगा कऽ कैजूम तकरीरमे प्रवचन देबए लगल। तकरीर बड़ नीक जकाँ होइ छेलै। संतोष धार्मिक प्रकृतक, ओकरो मन भेलै जे हमहूँ तकरीरमे भाग ली। संतोषो जा कऽ एकटा चटाइपर किछु जगह खाली छेलै ओतै बैस गेल आ तकरीर सुनए लगल। जुम्मा दिन रहने महजि‍दमे बैसैक जगहोक अभाव छल। इमामत करैत कैजूम तकरीरमे कहए लगल-
हम और आप लोग जो आनेबला दिनमे एक महिना का रोजा रखेगें उस में सिरिफ दिन भर खाना वा पानी नहीं पीने से काज नहीं चलेगा। उसमे निअम पुर्वक मुँह का रोजा, कान का रोजा, आँख का रोजा, हाथ-पएर का रोजा भी रखना है। जिससे बुरा वस्‍तु को न देखना, न सुनना और न बोलना है। तब जा कर असली रोजा होगा और सबाब मिलेंगे।
फेर दोसर तकरीर स्त्री जातिपर देलखिन-
औरत को हमेशा पर्दामे रहना चाहिए। नख से बाल तक दुसरे मर्द का नजर उनपर ना पड़े।
तेसर तकरीरमे बाजल-
अगर पड़ोसी के घर किसी तरह का अच्‍छा खाना बने तो बगल के पड़ोसी को उसमे से थोरा अबस्‍स दे देना चाहिए। जिससे उसके आत्मा को भी शान्ती मिलेगी और आपको भी शवाब मिलेगा।
संतोष पूरा तकरीर सुनलक। सुनला पछाति ओकरामे तर्क-बि‍तर्क शुरू भऽ गेलै। रोजाक सम्‍बन्‍धमे मोलबी जे बजला ओ तँ तर्क युक्त आछि‍ मुदा औरत जातिक सम्‍बन्‍धमे जे बजला ओ आइ-काल्हिक जुगक लेल केतेक जाइज अछि। कहूँ जे आइ वैज्ञानिक जुग अछि। वैज्ञानिक जुगमे स्त्री आ पुरुष समान अधिकार लेल लड़ि रहल अछि। तहूमे भारत कृषि प्रधान देश अछि। केना सम्‍भव हएत।
पंचायत चुनावक सरगर्मी चलि रहल छल। गाम-गाममे मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति आ जिला परिषदक चुनाव हएत। सभ गाममे सीटक आरक्षित कोटा अछि। पिपरौलिया गामक जे मोलबी छला हुनको भतीजी चूनाव लड़ैले तैयार छेली। ओ पंचायत समितिक लेल महिला क्षेत्र छल। तँ भतीजी नसीरा खातून पंचायत समितिसँ नोमिनेशन करेने छेली। नसीरा खातून पढ़ल-लिखल एगारहमी तक। पिपरौलिया गाममेमे अधिक मुसलमान तँए जीतमे कोनो असुविधा नै भेलनि। ब्लौकक मिटिंग सभमे भाग लैत, समाजक नीक-बेजाए काजमे इमानदारी पुर्बक काज करथि‍। एक दिन अपने फटेदारक संग दिबानी आ फौजदारी मुकदमा भऽ गेलै। आब ओ कोर्ट कचहरीक फेड़ामे पड़ि‍ चलता-फिरता सेहो भऽ गेली। सौहर मरि गेने, कियो हटनिहार-दबारनिहार नै, तँए छमक-छलो भऽ गेली। नसीरा खातूनक ओकिल छला सुलेमान साहैब। सुलेमान साहैबकेँ तीनटा पत्नी पहिल पत्नीमे चारि सन्तान तीनटा लड़का एकटा लड़की, दोसर अपना सैरक इलाकामे छल तेकरे संग बिआह कऽ लेलक। ई सदमासँ पहिल स्त्री जुबेदाकेँ नापसंद भेलै तेकरे सोगसँ मरि गेली। दोसरोमे पाँच सन्तान भेलनि, तीनटा लड़का, दूटा लड़की, तेसर बिआह एकटा गरीबे घरक लड़कीसँ कऽ लेलनि तहूँमे तीनटा धिया-पुता एकटा लड़का आ दूटा लड़की छल। सुलेमान साहैब एक तँ ओकिल छला, बजै-भुकै आ तुक मिलानीमे पारंगत। आब तँ उमेरे करीब पैंसठि-सत्तरि‍ बरख भइए गेल छेलनि। पाकल-पाकल दाढ़ी, माथपर उजरा टोपी इमानदारीक सभ लक्षण मौजूद। मुदा रूपैआ ठकैमे एक नम्बरक चतूर-चलाक। कखनो हाकिमक नाओंपर, तँ कखनो आॅफिसक नाओंपर, तँ कखनो घूसक नाओंपर मोकिर सभसँ पैसा अँठि लैत। कामूक तँ एक नम्बरक छलाहे। नसीरा खातून अपन मुकदमा लड़ै बास्‍ते ओकिलमे सुलेमान साहैबकेँ रखलनि। नसीरा खातूनकेँ सुन्दरता आ चंचलता देखि कऽ ओकिल साहैब फिदा भऽ गेला।
एक दिन कोर्टसँ आपस पाँच बजे भेला, आ नसीरा खातूनकेँ कहलखिन-
साँझमे अहाँ अपन कागत तैयार कऽ लिअ। कोर्टमे सो काउज देनाइ अहाँक मुकदमामे जरूरी अछि।
नसीरा खातून किआँने गेली जे सतरंजक चालि जकाँ उलटा चालि चलत। सुलेमान साहैब डेरा लऽ कऽ झंझारपुरमे रहै छथि। ओत्तैसँ कोर्ट आबाजाही करै छथि। तेसर स्त्रीकेँ डेरापर रखने छला। ओ केम्हरो बजार दिस समान लऽ गेल छेली। डेरा खाली छल। सुलेमान साहैब कामूक नजरि नसीरा खातूनपर दौड़ा देलखिन। केते तरहक भय आ लोभो दऽ कऽ अपन कामुक इच्छा पूर्ति केलनि। ऐ तरहेँ आब समए-समैपर नसिरा खातूनसँ गलत बेवहार करए लगला। जखनि नसीरा खातूनकेँ छह मासक पेटमे बच्‍चा भऽ गेल, ओकरा आब अपनासँ दूरे राखए लगला। नसीरा खातूनकेँ ऊपर-निच्‍चाँ सुझए लगल। एक दिन ओकिल साहैबकेँ पुछलखिन
अहाँ जे कहने रही जे निकाह करब से कहिया करब?”
ओकिल साहैब ताउमे आबि बजला-
की कहलिएे निकाह! की हमरा स्त्री नै अछि जे दोसर निकाह करब। जाउ एतएसँ! नै तँ कंठपर हाथ दऽ कऽ भगा देब!
आब तँ नसीरा खातूनकेँ चौन्ह आबि गेल। ओइ दिन तँ घूमि आएल। दिमाग अशान्ति भऽ गेलै। देहमे जेना आगि लगि गेलै। स्त्री जाति जहिना ममता रूपी माए आ बहिन होइत अछि तहिना क्रोध एलापर ओ कालीओ रूप धारण करैत अछि। सएह काली सन रूप बना एक दिन कोर्टक ओकालत खानामे गेल आ सीधे सुलेमान साहैबकेँ भरि मुट्ठी दाढ़ी पकड़ि झूला-झूला कऽ कहए लगलनि-
ई जे हमरा पेटमे छह मासक बच्चा अछि तेकर की हएत?”
ओकिल साहैबकेँ किछु फुड़बे नै करनि। मुड़ी गोंतने ठाढ़! किछु बजबे ने करथि। तौं, तौं नसीरो खातून जोर-जोरसँ बजैत-
ओकिलक करतूत देखि लियनु। हमरासँ निकाहक वादा केने छला। हमरासँ अपन काम-पिपासाक पूर्ति केलनि आ पेटमे छह मासक बच्चा अछि। आब की हएत!
एतेक बात सुनिते ओकालतखानामे भीड़ लगि गेल। लोक सभ ओकिल साहैबकेँ धूरछी-धूरछी करए लगल। ओकिल साहैब ताउमे आबि नसीरा खातूनकेँ गालपर एक चमेटा मारि देलखिन आ पएरसँ एक ऐड़ लगा देलखिन। आब तँ आरो तेसर काण्ड भऽ गेल। नसीरा खातूनकेँ ओकिल सभसँ आ किछु दर्शको सभसँ सहानभूति भेटलै। लोक सभ बजै-
कहू तँ ओकिल साहैबकेँ असगरमे पनरहटा धिया-पुता छन्‍हि, बेटा, बेटी सभकेँ धिया-पुता भऽ गेल छन्‍हि। अपनो उमेर तेतेक छन्‍हि जे दाढ़ी केस पाकि गेलनि। तब एहेन काज केला। बड़ अन्याय केलनि!
स्त्रीगण सभ बजैत-
बड़ छुद्दर ओकिल अछि!
नसीरा खातून कोर्टमे बलतकारी मुकदमा डायर कऽ देलकनि। पुलिस सुलेमान साहैबकेँ पकड़ि कऽ जेल पठा देलकनि ३७६ दफामे। आब जेलमे पाँच बखत नमाज अदा करै छथि आ कैदीकेँ बीच तकरीर करै छथि। कैजूम जे जमातक अगूआ छल तिनका संग तेसरे घटना घटलनि। कैजूमकेँ चारिटा लड़का। चारू लड़का अलग-अलग, केकरोमे केकरो मिलाने नै। एतेक धरि जे कैजूमकेँ देखनिहार अपन बेटाे नै। बेटा सभ बजै-
बड़ तकरीर करैत रहै छला, आब खाथु-पीबथु आकि ओरहौन-पिनहौन करैत रहथु। कमेता खटेता नहियेँ आ खेता नीके-निकुत!
मझिला बेटाक घरमे मुर्गा फराइ भेल छल आ गहुमक आँटाक दलि‍पुड़ी बनल छल। घर-अँगना गमा-गम करै छल। कैजूमकेँ मन होइ जे दूटा पुड़ी आ मुर्गा फराइ केलहा, दइतए तँ खैतौं। बाजत केना अपन तकरीर मोन पड़ि‍ जाइ। मझिला बेटा सनेसक मोटरी बान्हि सासुर चलि देलक। वेचारा कैजूम मुँह तकिते रहि गेल। सोचै लगल हमर तकरीर तँ लोक सभ सुनबेटा केलक। करैबला कहाँ कियो भेल। अपने जँ नीक सोचितौं, बजितौं आ करितौं तँ आइ ई दशा नै होइत। आब पचतेलासँ की हएत। समए तँ निकलि गेल। ठीके कहावत अछि वक्‍ता एलै कहैले आ बरद एलै बहैले। अपना मोनकेँ संतोष देलनि।mm


पान




१९६२ इस्‍वीक शीतलहरिक समए छल। राम अवतार दू कठ्ठामे बड़ैब केने छल। पानक बिक्री तेहने सन छेलै। राम अवतार तीन भाँइक भैयारी, तीनू भाँइ बड़ैबे पाछू अपसियाँत रहै छल। जमीन मात्र दू बीघा धनहर आ दसकठ्ठा कलम-बाग आ चौमासबला। कनी-मनी तरकारी आ धान-मरूआ उपजाबै छल। तीनू भाँइ पढ़ल-लिखल कमे तँए देश-विदेश जाइक कोनो चरचे नै। भैयारीमे मिलानी नीक छल। तीनू भाँइक बिआह-दुरागमन भऽ गेल छल। तीनू कनियाँ बसै छेलखिन। दियादनीओ सभमे मिलानी नीक छल। धिया-पुता टेलहू सभ छेलै। शीतलहरि तेहेन मारूक भेलै से जूनि पुछू। पनरह नवम्‍भर दिन जे शुरू भेल से भरि जनवरी तक लधले रहलै। एमहर केतौ कीर्तन तँ केतौ जग, माने परोपट्टामे पूजा-पाठक अम्बार लगि गेल। तथापि शीतलहरि खतमे ने होइत। प्रकृतक डाँग तँ अजीवे होइ छै। केतेक कठुआ कऽ मरल। चिड़ै-चुनमुनीसँ लऽ कऽ गाए-माल तक, साँप-कीड़ासँ लऽ कऽ, बूढ़-बुढ़ानुस धरिक जान अवग्रहमे पड़ि गेल। राम अवतार सन-सन पचासो गोटेकेँ बड़की पोखरि महारक भीठाबला खेतमे बड़ैब छेलै। लगभग पनरह बीघामे। सबहक बड़ैबक पान झड़ि गेल, पानक गाछ सभ जड़िसँ गलि-गलि सुखए लगल। केना कऽ कोन लहरि चललै जे राम अवतारक दू कठ्ठाक बड़ैबमे रूइयाँ भगन तक नै भेल। छोटकी देहाती पान छेलै, गुथल पान छेलै। इलाकामे बड़ैबक खेती सुन्न भऽ गेल। पान खाइबला सभ पान लइले राम अवतार ओइठाम आबए लगल। तेतेक रूपैआ भेलै जे पाही पट्टीबलाकेँ छह बीघा जमीन कीनि‍ लेलक। एक दिन बुचुन मास्टर पान लइले गेलखिन। पाँच रूपैआक राम अवतारसँ पान लऽ कहलखिन-
राम अवतार, तूँ बड़ भागमन्‍त छह। इलाका सुन्न भऽ गेलै पानसँ आ तोहर केना बँचि गेलह?”
भगवानक दया। राम अवतार बाजल।
बुचुन मास्टर बजला-
ई तँ लंकामे जहिना विभिषणक घर बँचि गेल तहिना बुझना जाइए। हौ, एकटा बात बुझलहक हेन, चीनो कहाँदन भारतपर चढ़ाइ कऽ देलकै आ बहुत रास जमीन अपना लेलकै। अपना सबहक सरकार हारि गेल। चीन बड़ अन्‍याय केलक हेन। अपना सरकारकेँ तागति नै छेलै की। छब्‍बीस जनवरीकेँ सुनै छिएे जे अस्त्र-शस्त्रक प्रदशर्न करैत अछि, अखनि ओ अस्त्र-शस्त्र की भेलै। अक्षत-फूल दइले रखने अछि?”
राम अवतार बाजल-
खैर जाए दियौ, सरकारक काज छिएे जनताकेँ सुरक्षा केनाइ।
बुचुन बजला-
हँ से तँ ठीके।
राम अवतार हँ-मे-हँ मि‍लबिते छल आकि तखने बालेसर आबि राम अवतारकेँ पुछलकै-
केना कऽ पानक खेती होइ छै, की सभ गुण-अवगुण छै से कहऽ हमरो मन होइए पानक खेती करौं।
अहाँ बुते हएत तँ करू, मुदा बड़ भीरगर खेती होइ छै पानक। हँ, आमदनीओ नीक होइ छै। कोनो फसिलसँ नीक आमदनी होइ छै। पानक खेती करब तँ करू हम पानक बीआ देब।
की गुण छै से तँ कहऽ।
राम अवतार बाजल-
खेती केना होइत अछि पानक से सुनू। एकर शुरूआत दऽ बूढ़-बुढ़ानुस सभ बजै छला जे मध्य प्रदेशक नागपूरमे पानक पत्ताक खोज भेल, खोज केनिहार नागवंसी सभ छला। ओकरा सबहक अगुआ छेलै गोरहू कुमर जेकर पूजा अखनो मुंगेर लगमे एकटा स्थान छै, ओतँ बरइ जातिक लोक बाबा धामक रस्तामे जा कऽ पूजा-पाठ करैत अछि। बरइ जातिक मुल-गोत्र नागवंसीय अछि। पहिने एकर खेती बरइये जातिटा करै छल, मुदा अखनि सभ जातिक लोक करै छथि। पानक आकार दिल जकाँ होइ छै से तँ देखिते छिऐ। दू दिल मिललासँ जहिना दिल प्रसन्न होइत तहिना पानमे चुन, खएर, सुपारीक संग खिल्ली बना मुँहमे देलासँ मुँहक सुर्खीए बदलि जाइ छै। जखनि पानक खेती शुरू करब आ बरेठा लगि जाएत तँ छह महिना धरि तँ आमदनी नै हएत, खाली खर्चे हएत। छह महिना पछाति आमदनी हुअ लगत।
तूँ कहऽ ने हम मोन बना लेने छी। पानक खेती करबेटा करब।
राम अवतार-
पहिने एकेकठ्ठा खेती करह ओकरा लेल पच्चीसटा बाँस, टाट बान्‍हैले खरही, छाड़ैले खढ़, बाँसक फट्ठा सात हाथक, सौंसे बाँसक कान्ह फाड़ि लेब, थोड़ेक बती दस हाथक बना लेब, यएह सभ समान भेल भीठाबला खेतकेँ तैयार कऽ लिअ। बीआ हम देबे करब। एक हाथक दूरीपर पान रोपि देबै भऽ गेल। गाछ लगलापर महिना दिन पछाति खैर छीटि‍ कऽ ऊपरसँ माटि दऽ देबै।
ठीक छै।
कहि बाले घरपर आबि पत्नी-सुग्गीयासँ राय लऽ कऽ पानक खेती करैक विचार केलक। बिहाने भनेसँ खेतोक जोगारमे लगि गेल। पानक गाछ लगि गेलै, राम अवतारक मोताबिक मास दिनक पछाति खैर सेहो देलक, छबे मासक बाद आमदनीओ हुअ लगलै। खुशीसँ दुनू परानी बालेक मन अकास ठेक गेल।
बालेकेँ तीनटा धिया-पुता दूटा लड़का, एकटा लड़की। जेठका दसमामे पढैत, छोटका तीसरामे, लड़कीकेँ जनमना एक साल भेल छेलै। जे बालेसर काल्हि तक बोइन-बुता करि कऽ गुजर-बसर करै छल। मन हरिदम कलहन्तमे पड़ल रहै छेलै, तेकरा हाथमे रूपैआ एने आइ मने बदलि गेलै। कपड़ो-लत्ता, रहन-सहन, खेनाइ-पिनाइ सभ बदलि गेलै।
एक दिन बालेसर बड़ैठामे काज करै छल। जलखै लऽ कऽ पत्नी आबि कहलखिन-
आउ जलखै कऽ लिअ।
बालेसर बाजल-
थमहूँ अबै छी। कनीए दुर कसियाबैले बाँकी अछि।
आँतर लगा बालेसर जलखै करए लगल आ सुग्गीया पान तोड़ए लगली। एक मोटरी पान तोड़ि सुग्गीया घरपर आबि गेली आ बाले बड़ैबक काज करैत रहल। दुपहरमे घरपर आएल।
दुपहरि‍यामे बालेसर पान गोइछ कऽ ढोली बना देलक। सुग्गीया गोछियाैल पान पथियामे लऽ बेरू पहर झंझारपुर बजार बेचै लेल चलि गेली। बालेसर मुनहारि साँझमे राम अवतार ऐठाम आएल। दुनू गोटे गप-सप्प करए लगल। बालेसर राम अवतारसँ पुछलक-
भाय हौ, लोक तँ पान खाइत अछि, खूब खाइत अछि। कि‍छु-किछु कहक। की सभ आनो-आन गुण छै पानक।
खुशीसँ उमकल बालेसरक लटपटाएल प्रश्नक भाव बूझि राम अवतार बाजए लगल-
गुण तँ एतेक छै जे मत पुछू! अपना गाममे महावीर दास बबीजी छला ओ आयुर्वेदक बड़ ज्ञानी, बासठिक शीतलहरिमे हम सभ जे पानक लत्ती फेक दिएे तेकरा महावीर दास बोझक-बोझ आनि ओकरा कुटि कऽ दबाइ बनबै छेलखिन। ओ कहथिन जे ऐमे प्रचुर मात्रामे विटामिन पौल जाइ छै, प्रोटीन, बसा, खनीज, कार्वोहाइड्रेट, विटामिन सी.बी.., नाइट्रोजन फाँसफोरस, पोटासियम, कैलसियम, आयोडिन, तेल, उर्जा इत्‍यादि पौल जाइ छै। तँए पानक लत्ती आनि कऽ हम ओकरा दबाइ बना लइ छी। जेकर उपयोग हम साँस सम्बन्धी बिमारीमे, टी.बी.मे, कब्जियतमे, पेटक किटानुरोधीमे, कोलरा बिमारीमे रोगी सभकेँ दइ छिएे। यौ भाए, एतेक गुण छै।
बालेसर मुड़ी डोलबैत बाजल-
तब ने एकर एतेक महत छै।
राम अवतार बाजल-
पान बड़ कोमल-तन्नुक होइत अछि, एकरा ने अधिक बरसात, ने अधिक गरमी, ने जोरगर हवा आ ने अधिक ठंडा चाही। माने अधिक कोनो चीज नै। सभ समरूपे चाही। देखै नै छहक बड़ैबेक बनाबटि मकरा जाल जकाँ बीनल अछि। कोनो-ने-कोनो काज लधले रहतह बड़ैबमे।
से तँ नीक छै जे कोनो-ने-कोनो काजमे ओझराएल रहै छी। कर्मे ने जिनगी छिऐ। काज नै करू तँ हरमपाना करैत रहू। एकटा पान खुआ दिअ आब सुग्गीओ बजारसँ पान बेचि कऽ आएल हएत। ओकराे कि कम धौजनि होइ छै। जलखै बना, दुपहरियाक भानस कऽ बेरू पहर पान लऽ कऽ झंझारपुर गेनाइ आ बेचनाइ! साँझमे औत तँ फेर रतुका भानस करत। एहेन घरवाली भगवान सभकेँ देथुन। साक्षात् लक्ष्‍मी अछि।
पान खा बालेसर घरपर आएल। ताबत सुग्गीया खाना बना लेने छेली। बोलेसरकेँ देखिते सुग्गीया बजली-
एतेक राति धरि केतए रहै छी। सबेरे-सकाल घरपर आबि जाएब से नै?”
बालेसर बाजल-
राम अवतार दोस लग गेल छेलौं। पानक गुण-अवगुण आ पानक खेतीओक बारेमे बुझैले।
सुग्गीया पुछलखिन-
सभ गप कहलथि किने?”
हे पानक खेती तँ पुश्‍तैनी खेती छेलै। आब ने सभ जातिक लोक करए लगल। एकर खेतीसँ आमदनी तँ नीक अछि एकबेर लगेलाक बाद केतेक साल तक उपजा दैत रहत।
सुग्गीया-
से तँ नीक बात छै। सुनै छिएे जे चाहो पत्तीक खेती अहिना होइ छै मुदा पाँचे-साते साल तक होइ छै। ओकरा बर्खा-पालाक डरे नै होइ छै मुदा पानमे तँ से नै छै। सुधरल तँ धेनू गाए नै तँ ठाँठ भेल पड़ल रहत।
बालेसर-
ठीके सुनैत छिएे। और सुनू राम अवतार कहलक, यौ भाए अपना ऐठामक पान दोसरो राज्यमे जाइ छै। एकबेर बनारस गेल रही एकटा पानक दोकानपर पान खाइले गेलौं तँ ओ दोकानदार, ना ठेकान पुछलक, जखनि ना ठेकान कहलिएे तखनि दोकानदार कहए लगल हमहूँ बड़की पोखरिक पान अनै छेलौं, बेरमाकेँ कटोरिया आ मघी पान जानो-मानो पोखरि महार महक साँची आ कलजोरिया पान नामी छेलै। हमरो आश्चर्य लागल।
सुग्गीया बजली-
एतेक दूर तक अपना ऐठामक पान जाइ छल!
बालेसर-
हँ, हे और सुनू पहिलुका जमानामे वादशाह, जमीन्दार सबहक ऐठाम डालामे पाइ, वस्त्र आ पान दऽ कऽ कोनो काजक शुरूआत करै छल। अपनो देखै ने छिएे कोनो तरहक मांगलीक काज हुअ बिना पानक होइ छै। एहेन नीक फसिलपर ग्रहण लगि गेलै। पहिने स्त्रीगण पानेक खिल्लीसँ मुँहक ठोरक लाली रखै छेली। आइ ने रंग-बिरंगक लिपिस्टिक सभ आबि गेल हेन। झाँट-बिहाड़ि आ पालासँ बरइ जातिकेँ नोकसान होइ छै से तँ होइते छै सरकारोकेँ करोड़ोक घटा लगै छै। आब सरकारो बरइ जातिपर धियान देलक मुदा देने कि हएत पानक खेती केनिहार सभ शहर चलि जाइ गेल। खाली बूढ़-सूड़टा अछि। के करत पानक खेती। अपने जेठकाकेँ नै देखै छिएे दिल्ली जा कऽ कोनो कम्पनीमे कम्पूटर चलबैए। कम्पनीबला सभ शिखर, गुटका, रंग-बिरंगक पान मसाला सभ बजारमे भरि देने अछि। मिथिलांचलक पान ने उपटल जा रहल छै मुदा बंगालमे जलवायु नीक रहने ओतुके पान अखनि सौंसे बजारमे पसरल अछि। सएह सभ बुझैले गेल छेलौं। और केतए जाएब। भरि दिन तँ कोनो-ने-कोनो काज करिते रहै छी साँझूपहर कनी टहलि लइ छी।
सुग्गीया बजली-
होउ, खेनाइ खा लिअ। धिया-पुता खा कऽ सुति रहल।
बालेसर खेनाइ खा-पी कऽ सुति रहल। सुग्गीओ खा कऽ सुति रहली। समैक चक्र बदलल। पछिला चारि-पाँच सालमे तेहेन ने पाला खसल जे बरइ सभकेँ रीढ तोड़ि देलकै। जड़ि सहि‍त पानक गाछ सुड्डाह भऽ गेलै। गाम-गामक बरैठा ओहिना झोज परए लगले। सभटा जवान-जुहान सभ दिल्ली-पंजाब, बम्बइ-कलकत्ता पड़ा गेल आ ओतै नोकरी करए लगल। मात्र बूढ़-बुढ़ानुस सभ गाममे रहि गेल। बड़ैब उपटने बालेसर माथा हाथ दऽ सोगमे बैसल छल। सुग्गीया भानस करि‍ कऽ पति लग आएल आ बाजल-
एना माथा हाथ दऽ बैसने काज हएत आकि अगिलो दिन दुनियाँक लेल सोचब।
असमंजसमे पड़ल बालेसर बाजल-
की करू से किछु फुड़िते ने अछि।
सुग्गीया ताना मारैत बजली-
है रे मरद, एके दहारमे किदनि‍ बहार। हमरबला चूड़ी पहिरि‍ लिअ आ घरमे बैस जाउ! सुनू हमरा गारामे हौंसूली अदहा किलोक अछि। तेकरा बन्हकी लगा कऽ पानक कारोबार करू, कलकत्तासँ पान आनू आ बेचू।
बालेकेँ हिम्मति बढ़लै। बाले हौंसली बन्हकी लगा रूपैआ लऽ कऽ कलकत्तासँ पानक कारोबार शुरू कऽ देलक अपने सकरी मधुबनीमे पान बेचए लगल आ सुग्गीया झंझारपुरमे। मुदा मनमे कचोट हरिदम रहबै करै जे केतए गामक रहन-सहन आ केतए शहरक भाग-दौग। ने स्वच्छ हवा ने समाजिकता आ ने ओ बेवहार। गामक बेवहार शहरमे तकनौं नै भेटै छै। गाम तँ गामे छी।mm


मई दिवस




महान खगोल शास्त्री गलेलियो सावित कऽ देलखिन जे पृथ्वी गोल अछि, सुर्य स्थिर अछि। तैपर ओइ समैक इसाई धर्मबला सभ मिलि कऽ हुनका फाँसीक सजा देलकनि। मुदा आइ सम्पूर्ण दुनियाँ गलेलियोक दर्शनकेँ सत्य मानि रहल अछि। अतियाचारक खूनसँ रँगल एक मई तँ वहए दिन छी। मजदूरेक खूनसँ रँगल झंडा आ केतेक भाए-बहिन, सर-सम्बन्धी, माए-बापक शहीदक प्रतीक अछि। साम्राज्यवादी आ पूजीपतिकेँ विरोधक प्रतीक अछि। साम्यवादक चेन्ह छी। एक मई उनैस सए नब्बेकेँ मजदूर दिवस केना मनाैल जाए तेकरे तैयारी भऽ रहल छल। पार्टी आॅफिसमे कामरेडक भीड़सँ पएर रखैक जगह नै। एकटा फड़ाके उत्साह सबहक मनकेँ झकझोड़ि‍ कऽ रहल छेलै। एकाएक एकटा घटना घटल। हमर जे बाबा छला मृत्य सज्जापर, हुनक देहावसान भऽ गेलनि‍। ई समाचार सौंसे पार्टीगणक बीच पसरि गेल। हमरा सभमे एकटा नवके उमंग जगि‍ गेल। तखने सर्व सम्पतिसँ तँए भेलै-
हम सभ मई दिवस क्रान्ति दिवसकेँ रूपमे मनाबी। रूढिवादी, मनूवादी, ब्राह्मणवादी विचार धाराकेँ तोड़ि नव सन्देश समाजक बीचमे दिएे।
सएह भेल। बाबाक संस्कार पहुलके रीति-रि‍वाजक अनुकूल भेलनि। तेराइत दिन जाति आ परजातिक बैसार केलाैं। बैसारमे ठाढ़ भऽ बजलाैं-
बाबाक सराधमे हम पुरोहित-पात्रकेँ नै आनब। अपने स्वजातिसँ जे जेना हेतै कर्म कराएब।
गौआँमे खलबली मचि गेल। फेर बजलौं एगारह गाम लऽ कऽ पुड़ी-जिलेबी, खाजा-लड्डूक भोज करब। जाति-परजाति, परहित-पात्र आ दलाल सभकेँ बुझू जेना आगि लगि गेलै। पार्टीमे बहुत दिनसँ ऐ सबहक मादे चर्चा होइ जे ई सभ ढोंग छी एकर वहिष्‍कार कएल जाए। मारि घोल-फचक्काक बाद सर्व सम्मतिसँ तँइ भऽ गेल।
माए-बापक सराध कर्म जेना मोन हुए तेना करू।
हम बजलौं-
यौ भाय-बन्धु लोकनि ई शरीरो तँ पाँचटा तत्वसँ बनल अछि। माटि, पानि, हवा, आगि आ अकाससँ। मूइला पछाति फेर ई शरीर ओही पाँचो तत्वमे विलिन भऽ जाइ छै। आत्माकेँ मृत्यु नै होइ छै। कमर्क अनुसार कोनो-ने-कोनो जीवमे जनम होइ छै। तखनि केतए स्वर्ग आ नरक छै। के सभ देखने छिएे, आकि किनकर माता-पिता कहैले एला जे हमरा कष्ट अछि आकि सुख। बाजू ने। हमर बाबा कुकर्मी नै छला, साधु मिजाजकेँ छला। केकरो नीके केलखिन तँए हमरो बिसवास अछि, जे केतौ स्वर्ग छै तँ हमरो बाबाकेँ स्वर्ग भेटबे करितनि। भोज-भात कइए दइ छी, अहाँक जिद्दपर अपना स्वजातिसँ कर्म सेहो भऽ जेतनि।
हमर बात सुनिते घोंघाैज हुअ लगल। फेर कहलिए-
ब्राह्मण, तेली, यादव, मुसहर, चमार, धानुक, कियोटमे स्वजाजातिये पुरहित-पात्र होइ छै। अपना जातिमे भेलासँ की हर्ज, से कहू।
सएह भेलै। हमहूँ भोज-भातक ओरियानमे लगि गेलौं। गाममे जेना आगि सुनगि गेल। जहिना कुकुरक नांगरि‍पर मटिया तेल पड़िते दौग एमहर तँ दौग ओमहर करए लगैए छै तहिना लुच्चा सभ करए लगल। जगदीश प्रसाद मंडलक नेतृत्वमे कम्युनिष्ट पार्टीक संघर्ष चलि रहल छल। झंझारपुरक जमीन्दार लक्षीकान्त, रामा कान्तक जमीन बेरमामे लगभग पचास बीघा। जमीनपर बटेदारी मुकदमा कएल गेल छल। गाम दू भागमे बँटि गेल। प्रमुख जमिन्दारक संग दइ छेलखि‍न। तखने ई घटना घटित भेल छल। प्रमुख किछु जाति सभकेँ सनका कऽ भोज बिगाड़ैक चेष्टा केला मुदा चललनि‍ किछु नै। पार्टी सदस्य छल एक सए पचासक लगभग। एगारहो गामक स्वजाति सभ जातिक पार्टी सदस्यक संग भोज भेल, एगारहो गाममे जे महा दरिद्र (भिखमंगा) केँ अलगसँ पुरुखक दफे धोती, गंजी, गमछा आ स्त्रीगण सभकेँ साड़ी, साया, ब्लौज संग भोज खुआ सम्पन केलौं। कालीकान्त झा आसाममे डी.आई.जी. छला सेवा निवृत भेला पछाति ऊहो आएल छला। हुनका संग लागल पाँच गोटे महापात्र सेहो छेलखिन। काली बाबू अपने संस्कृतक विद्वान। बेरमामे हुनकासँ कियो कर्म काण्डेक बारेमे पूछि देलखिन ओ कहलखिन-
यौ बाबू, जे जेतेक चाटूकार, जे जेतेक घूसखोर, जे जेतेक बेइमान, माने दू नम्बरी कमाइबला ओ सभ किए ने खूब नमहर-नमहर वर्तन-बासन, कपड़ा-लत्ता, टेबूल-पलंग आ बाछा-गाए दान करत। लेनिहार बजारमे जा कऽ बेचि लेत। दान तँ ओकरे दिएे जे ओइ वस्तुकेँ उपयोग कऽ सकए। कर्म काण्डो सभ जे कहि रहल छथि मन गढ़न्त अछि। स्वर्ग-नरक एतै छै। ऊपर केतए तकै छिएे।
एते बात सुनिते संग लागल पाँचो संगी हिनका छोड़ि कऽ घर दिस विदा भऽ गेला। आ बजैत रहथि‍न-
कहूँ! अपने पएरमे कुरहरि मारै छथि। अपने ने उच्च पदपर छथिन। हमरा लोकनिकेँ तँ रोजी-रोटी यएह छी जैपर लात मारै छथि। हुनका तँ पेनशनों मारे रास भेटै छन्‍हि।
हमर बातपर तँ पोंगा-पंडित सभ लेल खोंचाह हेबे करतनि।
काली बाबू कहलखिन।
पुन: बाजए लगलखिन-
यौ भाय-बन्धू लोकनि, बुझना जाइत अछि पुरोहित-पात्र लोकनि सीधे स्वर्गसँ कनफर्म टिकट लऽ कऽ आएल छथि आ मृतककेँ सीधे स्वर्ग पठा देथिन।
ई घटना सभ जखनि प्रमुखकेँ पता लगलनि तँ बिदेश्वर ठाकुर नौआकेँ बलजोरी महिंस खोलि लेलक। अनेक तरहक मुकदमामे कामरेड सभकेँ फँसबऽ लगल। बि‍रासी किता मुकदमा लादि देलक। एकटा-ने-एकटा कौमरेड हरिदम जेलमे रहैत रहथि। लोकक मन पीता गेलै। जहिना शान्‍तिक बाद बबन्डर अबै छै तहिना एक दिन प्रमुख सभ समांगकेँ तत् मारि लगलनि जे नानी ने मरिहेँ जे फेर कोनो आन्दोलनपर कुठाराघात करता। मई दिवस अखनो कोनो-ने-कोनो रूपे एक मईकेँ मनौल जाइत अछि। हमरा लोकनिकेँ चाहे जइ तरहक खतरा हुअए, खूनसँ रंगल लाल झंडाक सहारा लऽ कऽ काजकेँ सफल बनाबी। नै कि तूँ कमा आ हमरा खुआ हमर स्वर्ग एतै आ तोहर स्वर्ग मुइला पछाति! सर्वसम्मति‍सँ निर्णए भेल-
ढोंगी सबहक फेड़ासँ सतर्क रही।mm




भूख


बित भरिक पेट जे ने करए। करे-करे पेट आ छबे-छबे खेत, तहिना मनोकेँ भुख बढ़ले जाइ छै। बास भेल तँ चासक जोगार, कोठलीसँ कोठाक जोगार, साइकिल भेल तँ मोटर साइकिलक जोगार, मोटर साइकिल भेल तँ स्‍कारपीओक जोगार, काल्हि जा कऽ हवाय जहाजक जोगार! माने ई जोगोर कखनो रूकबाक कोनो नामे ने लैत। जइ कारणे चोरी-डकैती, बेभिचार, अपहरण, एसमाैगलिंग बढ़ले जाइत अछि। शत्रुधन बाबू पैघ जमीनदार दू भाँइक भैयारी। लगभग चारि सए पचास बीघा जोता जमीन छेलनि। तीन बीघामे बाँस आ दस बीघामे कलम-गाछी। तीनटा पोखरि। पोखरिमे रंग-बिरंगक माछ। चौधरा मकान वंगला जकाँ दलान। दसटा नोकर-चाकर, मंशी देवान, मुँहलगुआ सेहो दू-चारिटा रखने छला। आँगनमे तीनटा स्त्रीगणक नोकरानी। मिला जुला कऽ ठाठ-बाठ तेहेन। राजा महाराजा जकाँ छोट भाइक नाओं छल अमरजी। अमरजी सीमापर फौजक डाक्टर। हुनका दूटा लड़का। इमहर शत्रुधन बाबूकेँ दूटा लड़का आ दूटा लड़की। एकटा लड़का डाक्टर दरभंगा अस्पतालमे। दोसर इंजीनियर अहमदावादक सरकारी काजमे। अपने शत्रुधन बाबू घर परहक काज देखिते छथि। कोनो गरि‍बाहाक खेत जँ हिनका खेतक आड़िमे आकि बीचमे पड़ैत तँ बलजोरी दफानि पछाति औना-पौना दाममे लऽ लथि। केकरो अन्न दऽ कऽ केकरो, बेटी बिआहमे कर्जा दऽ कऽ, केकरो माए-बापक सराधमे कर्जा दऽ दऽ सूदि-दर-सूदि जमीन बटोरैत रहला। गाममे गरीबो-गुरबाक कमी नै। जेतै धनीक रहत ओतै ने गरीबीओ बढ़ैत जाइ छै। केतेक की हुअए तेकर कोनो सीमे सरहद नै। लोभीओ एक नम्‍बरक। अनको नीकहा वस्‍तु हमरे भऽ जाए। अजब बाबू सेहो जमीनदार। हुनका एकटा लड़का महावीर। जखनि अजब बाबू मरि गेला तँ सभ कारोबार महावीरक देख-रेखमे चलए लगल। जेहने नाओं महावीर तेहने करबो करैत। भूखल-दूखलकेँ भोजन करौनाइ, जेकरा जइ चीजक दिकत होइ से जँ महावीरसँ माँगै तँ ओकर आवश्‍यकताक पूर्ति अबस्‍स कऽ दैत। मिला-जुला कऽ साधु प्रकृतक महावीर। लोभक नामो-निशान नै। एक दिन महावीरक मनमे एलै जे तीन गोटेकेँ आश्रममे एतेक सम्‍पति लऽ कऽ की करब, से नै तँ गरीब, भूमिहीनकेँ, खगल बेकती जे मागंत तेकरा देबै। सएह केलक। जे अबै केकरो पाँचकठ्ठा, केकरो बीघा तँ केकरो दस कट्ठा, देबए लगल। शत्रुधन बाबू ई बात बुझलनि। लोभी तँ छलाहे पहुँच गेला महावीर बाबू लग। शत्रूधन बाबू कहलखिन-
यौ महावीर बाबू, सुनै छी जमीन दान करै छी। हमरो देल जाउ थोड़ेक जमीन।
महावीर मुड़ी डोलबैत कहलकनि-
अहाँ काल्हि आएब जे मांगब दऽ देब।
ठीक छै।
कहि शत्रूधन बाबू अपना घरपर आबि गेला। ऐ बिच्‍चेमे महावीर बाबू, शत्रूधन बाबूक बारेमे पुरा जानकारी लऽ लेलनि। विहान भने जखनि शत्रूधन बाबू एला तखनि महावीर कहलकनि-
ठीक छै अहाँकेँ जेतेक चाही से हम देब मुदा एक शर्तपर।
शत्रूधन पुछलखिन-
कोन शर्त?”
शर्त यएह जे काल्हि छह बजे भिनसरसँ लऽ कऽ साँझ छह बजे तकमे जेतेक दूर अहाँ दौग कऽ घेरि‍ लेब ओ जमीन अहाँक छी।
लोभी शत्रूधन शर्त मानि लेला। विहान भेने महावीर अपन एकटा सिपाहीक हाथमे बाँसक थोड़े खुट्टी दऽ कहलक-
हिनका संगे जा आ जेतएसँ ई दौगनाइ शुरू करता तेतएसँ लऽ कऽ जेतेक जमीनकेँ अपना पएरसँ घेरैत औता खुट्टी गारैत जइहऽ।
छह बजे साँझमे शुरू केलहा स्थानपर ओतए फेर घूमि आबथि। छह बजे भि‍नसरसँ जे शत्रूधन बाबू दौगए लगला। खेत घेरलथि, आमक बगान घेरलथि, पोखरि घेरलथि‍, मोटगर देह दौगैत-दौगैत थाकि गेला। जेतए-केतौ रूकथि तँ सिपाही कहनि-
मालिक जल्‍दी करू। फूलक बगान घेरू। ई मंदि‍रबला बीस बीघबा कोलाकेँ घेरू!”
तौं-तौं शत्रूधन बाबू दौगैत-दौगैत निद्रिश स्थान लग अबैत-अबैत धरामसँ खसला। तखने सिपाही बाजल-
भऽ गेल आब।
शत्रूधन बाबूकेँ होश केतए! हुनका तँ प्राण-पेखरू उड़ि गेलनि सिरिफ साढ़े तीन हाथक ठठर जगह छेकने। महावीर जखनि एला तँ बजला-
देखियनु लोभीकेँ। हिनका सिरिफ सारहे तीन हाथ जमीन चाही। बेकारे ने भीनसरसँ साँझ धरि अपसियाँत भेला!
सुनू यौ भाए लोकनि, संतोषसँ रहू मनमे संतोष राखू। जेतबे अछि तेतबेसँ संतोष करू। सुखी रहब। तँए कहबी छै संतोषम् परम सुखम्।mm



बेथा




मधुमास फागुनक जुआनीपर छेलै। कठगुमारी उकठाह मास चैतकेँ शुभ आगमन भऽ रहल छेलै। महाकान्त चौकीपर बैसल मने-मन किछु सोचि रहल छला। सोचता कि अपन दिन-अदिनक विषयमे सोचै छला। आइ-काल्हिक लोक जुआन-जहान सभ, एना किए भऽ गेलै हेन। केकरोसँ जेना कोनो मतलबे नै होइ। जुआन-जहान अपने धुनिमे बेहाल। माए-बाप मरै आकि‍ जीबै कोनो चिन्ते नै। गुन-धून करिते छला तखने पत्नी-सुलोलचना एक कप चाह आ थोड़ेक बिस्कूट नेने एली। भिनसुरका पहर छल। महाकान्‍त चाहो पीबथि आ तगधले मोने किछु सोचितो रहथि। चेहराकेँ निंग्‍हारैत सुलोचना पुछलकनि-
मोन खसल किए अछि। कथी गुन-धुन करै छी?”
नै किछु, किछु नै। महाकान्‍त कहलखिन।
तैयो मुँह लटकले रहनि। सुलोचना फेर पुछलकनि-
हमरा शंका होइत अछि, कोनो-ने-कोनो बात अबस्‍स भेल हेन। या नै तँ बिमारीक कोनो लक्षण बुझना जाइत अछि। बाजू ने।
किछु सोचैत महाकान्त बजला-
जँ पुछै छी तँ कहै छी। हम पनरहे बर्खक रही तहिए माए-बाबू मरि गेला। पित्ती रामअधिन अहाँ संग हमर बिआह कऽ देलनि। भैयारीमे असगरे छेलौं। बहिन नै छल। पित्तीएक देख-रेखमे सभ काज-धन्धा चलै छल। आब तँ धियो-पुतो भेल। बाबूक अमलदारीमे एक बीघा खेत छल। अखनि दस बीघा खेत अछि। एकटा महिंस छल, दूटा गाए छल, जोरा भरि बरद छल तेकरे बदौलत ने दस बीघा खेत अरजलौं। धिया-पुताकेँ पढ़ेबो केलौं। कल्यानी बेटीकेँ नीक दान दहेजक संग बिआहो केलौं। तीनू बेटा पढ़ि-लिख कऽ जेठका बेटा-महेन्द्र दिल्लीमे, मझिला रितेश मद्रासमे आ छोटका दिनेश जायपुरमे नोकरी करैत अछि। जेठका महेन्द्र जखनि आइ.. मे छल तखने ओकर बिआह कऽ देलिए। मझिला मद्रासमे कोनो नर्ससँ बिआह कहाँ दिन कऽ लेलक। छोटका दिनेश सेहो कहाँ दिन ओत्तै बिआह कऽ लेलक। दुनू छौड़ा खबरिओ नै देलक! सएह सभ सोचै छी। अहूँकेँ सभ बुझलै अछि।
सुलोचना कहलकनि-
अहीले मन अघोर अछि। एकर चिन्ता छोड़ू। लाउ चाह पीअल भेल?”
बँचलाहा एक घोंट चाह पीब खाली कप सुलोचनाक हाथमे दैत महाकान्त बजला-
ओकर चिन्ता तँ अछिए मुदा अधिक चिन्ता ई अछि जे अपना सबहक जिनगीक की हएत। आब तँ हमरो उमेर साठि बर्खसँ ऊपरे भेल हएत। अहूँक उमेर पच्चपन-छप्पन बरख भेले हएत। केना कऽ दिन कटत। जाबे पैरूख छल ताबे देह धुनि खूब खेबो करी आ खूब काज करै छेलौं। दस बीघा खेतो अरजलौं आ अखनि भोगनिहार कियो नै!
सुलोचना कहलकनि-
से तँ ठीके कहै छी। देखियौं ने छौड़ा सबहक अगरजिद। चिठ्ठीओ-पत्री नै दइए। आब तँ मोबाइल युग आबि गेल। तहूसँ कोनो गप-सप नै। छौड़ा सबहक लेल धैनसन। सएह तँ कखनो काल हमहूँ सोचै छी केहेन निदर्द भऽ गेल। अहूँकेँ दमा बिमारी आ हमरा वातरस तबाह केने रहैत अछि।
सएह सभ सोचै छेलौं जे कथीले पढ़ेलौं। सभटा खेत बटाइ लगल अछि। उपजाक कोनो ठेकान नै।
माएक ममता जगले-
होउ, खाउ-पिबू भगवान केतौ गाम गेलखिन अछि। बेटा धन छी, केतौ रहऽ नीके-ना रहऽ। अपन गुजर-बसर तँ करिते अछि ने। अइले एतेक चिन्ता जूनि करू।
ठीक छै जलखै नेने आउ।
सुलोचना थोड़ेक कालक बाद सोहारी आ दूध नेने एली। महाकान्त जलखै खा कऽ सूति रहला। जेठका बेटा महेन्द्र दिल्लीसँ परिवारक संग बेटा अभिषेक बेटी मालतीक संग गाम आएल। अबिते देरी दुआरपर पि‍ता-महाकान्तकेँ गोड़ लगलकनि। धियो-पुतोकेँ गोड़ लगैक इशारा केलक। बेटा अभिषेक बाजल-
यही है दादाजी, नमस्ते दादाजी।
बेटी मालतीओ बाजल-
नमस्ते दादाजी।
पुतोहु कल्‍यानी सेहो पएर छूइ कऽ गोर लगलनि। सभतूर आँगन जाइ गेल। आँगनोमे महेन्द्र आ कल्‍यानी माए-सुलोचनाकेँ पएर छूइ कऽ गोड़ लगलनि। मुदा अभिषेक आ मालती नमस्ते-नमस्ते कहि चौकीपर बैस जाइ गेल। जेना कोनो खाना पूर्ति केने हुअए। कोनो तरहेँ पाँच-सात दिन रहल पाँचे-सात दिनमे होइत रहै जे कोन जंगल आकि पीजड़ामे फँसि गेलौं। छान-पगहा तोड़ि कखनि भागि जाइ। अभिषेक बजैत-
दादाजी का दरबज्जा गंध करता है। दादाजी हमेसा ठोँ-ठोँ करते रहते हो। जहाँ सोते हो वही कफ-थूक फेक देते हो। किसी तरह का ज्ञान नहीं है। जल्‍दी दिल्ली चलिए ने पापा।
बेटी मालतीओक तेहने भाषा। हँ, पुतोहु आ बेटा महेन्द्र बजैत तँ किछु नै मुदा तरे-तर मन अघोर छेलै, जेना घीबक घैल हरा देने होइ माए-बाप। कोनो तरहेँ सात दिन गाममे रहल आठम दिन पितासँ जा कऽ महेन्द्र कहलनि-
बाबूजी, हम सभ दिल्ली जाइ छी।
ई गप सुनिते महाकान्‍तकेँ जेना चौन्ह आबि गेलनि। बजला-
एतने दिन ले आएल छेलह। कहियो कोनो कुशलो-छेम नै पुछै छह, की बात छिएे। जेहने तूँ तेहने रितेश आ दिनेश भेल। जेकर जेठकी छुलाहि तेकर छोटकी भरे लगल खाइ। माएओ-बाप अछि तेकर कहियो कोनो खोजो-खबरि लइ छहक। सपनोमे नै देखै छहक माए-बापकेँ। की कहबऽ तोरा सभकेँ। जाइ छह तँ जा।
महेन्द्र बाजल-
रितेश आ दिनेश ऊहो सभ नै कोनो खोज-खबरि लइए!
तीनू तँ एके चटी-बटीक भऽ गेल।
एतेक सुनिते महेन्द्र ताउमे आबि कहलकनि-
एतेक जमीन-जथा अछि तैइसँ गुजर-बसर नै जाइए। नोकर आ नोकरानी रखि लिअ।
ई कहि महेन्‍द्र विदा भऽ गेल दिल्ली। महाकान्त चूपे रहला। करता की। सुलोचना पतियेपर जोरसँ बजली-
की करबै जबऽने बदलि गेल हेन। आबक लोक पति-पत्नी आ धिया-पुताकेँ मात्र परिवार बुझैत अछि। छोड़ू ई माया जालकेँ। केना-केना कऽ पढ़ेलौं जे बुढ़ाड़ीमे सहेता करत अन्हराक लाठी जकाँ। मुदा हिनका लोकनि लेल धैनसन। सभ अपने-अपने कर्मे-धर्मे जीबैत अछि। नीक डाक्टरसँ दबाइ-दारू कराउ। जे हेबाक हेतै से देखल जेतै।
महाकान्तकेँ आँखिसँ नोर खसए लगलनि। सुलोचनाकेँ कहलखिन-
हे, गाममे जे कमलाकान्त अछि तेकरा देखै छिएे तँ किछु ने फुड़ाइत अछि। कमलाकान्तकेँ चारि गो बेटा छै। चारू बेटा गामेमे रहै छै। जेठका डाक्टर छै। मझिला खेती-वाड़ी सम्हारै छै। सझिला धनकुटिया मशीन चलबै छै। छोटका दबाइ दोकान करै छै। सभ तूर मिलि कऽ रहै जाइए। दसगो धियो-पुतो छै केहेन मिलानी छै भैयारीमे। माए-बापकेँ धिया-पुता तरहत्थीपर रखने छै। गाममे प्रतिष्ठा छै। तीनटा जरसी गाए पोसने अछि। ठाठसँ गुजर करैत अछि।
सुलोचना बजली-
सएह देखि कऽ तँ हमरो छगुन्‍ता लगैए। हमरा बेटा सभकेँ तँ मौगी सभ नून चटा देने छै।
महाकान्त अपन आँखिक नोर पोछैत बजला-
ऐमे हमरो गलती अछि। बेवहारिक ज्ञान कहियो नै देलिएे। सभ दिन सपने देखैत रहलौं जे बौआ सभ हाकिम बनत तँ हमरो सभकेँ प्रतिष्ठा भेटत। भेल उलटा। मोह छल आखिर बेटा छी ने। मुदा आब नै मोन होइए गाममे बैसार करी आ तेहन काज कऽ दिएे जे सभकेँ सूख हएत आ हमरो अहाँकेँ जे-जे बेथा सभ अछि से दूर भऽ जाएत।
सएह केलनि। रबि‍ दिन स्कूलपर गामक प्रतिष्‍ठि‍त लोक सभकेँ आ मूखिया-सरपंचक बैसार केलनि। बैसारमे महाकान्त बजला-
हम दुनू परानी बेटा पुतोहुसँ तंग भऽ गेल छी। ओ सभ आब गाममे नै रहत। किएक तँ सभ अपन-अपन घरवालीक संग घर बना-बना दिल्ली मद्रास जायपूरमे रहए लगल। बेटा पुतोहु कियो हमरा सभकेँ देखैबला नै। तँए, हम अपन सम्‍पति सार्वजनिक कऽ रहल छी अहाँ सबहक जे विचार हुअए कएल जाउ।
मुखियाजीकेँ विचार भेलनि, हाइ स्कूल खोलल जाए। सरपंचक विचार भेलनि, अस्पताल खोलल जाए। तहि‍ना कियो कहनि जे मंदिर बनाएल जाए। तँ कियो कहनि, काैलेज खोलल जाए। सभकेँ सभ तरहक विचार। अंतमे, मुखियाजी महाकान्तेपर छोड़ि पुछलखिन-
अहाँकेँ अपन विचार की अछि से बाजू?”
महाकान्त बजला-
हमरा सन गति समाजमे बहुतो गोटेकेँ होइत हेतनि। केतेक गरीब दबाइ बिना मरैत हएत। केतेक पथक बिना। तँए हमर वि‍चार अछि जे वृद्धा आश्रम सह अस्पताल दुनू संगे खोलल जाए।
थोपड़ी पड़ए लगल।
उत्‍साहित भऽ महाकान्‍त बिच्‍चेमे बजला
सुनै जाउ, भीठामे दू बीघा दस कठ्ठाक एकटा कोला अछि, ओतै ई संस्था खोलल जाए। ताबत एक लाख रूपैआ खोलैले दइ छी। अहाँ सभ देहसँ आ बुधिसँ मदत दियौ।
गरीब आ वृद्ध सभ जखनि ई समाचार सुनलक तँ खुशीक ठेकाना नै रहलै। सभ महाकान्त आ सुलोचनाकेँ धन्य कहए लगल। विहान भेने काज शुरू भऽ गेल। कियो बाँस काटैत तँ कियो देबाल जोड़ैत तहि‍ना  कियो जाफड़ी बनबैत। बूढ़ सभ डोरीए बाँटैत। सभ अपना-अपना वैभवक अनुरूप काज करए लगल। खूब नमहर एकटा बोर्ड महाकान्त सुलोचना वृद्धा आश्रम सह अस्पतालक लगौल गेल। मास दिनमे घर तैयार भऽ गेल। गामेक एकटा मल्लीक डाक्टर दरभंगा मेडिकलमे छला ओ सपताहमे दू दिन अही अस्पतालमे योगदान देबाक मन बनेलनि। गामैया डाक्टर सेहो दू दिनक समए ओतै निशुल्‍क देबए लगला। महाकान्त आ सुलोचनाकेँ जे मनक बेथा छेलनि से आश्रमपर अबिते आँखिसँ खुशीक नोर बहए लगलनि। मनमे एकेटा भावना जगलनि हम सबहक छी सभ हमर छी।mm



कि‍सानक पूजी


मंगल भोरे धान काटए गेल से दूपहरियामे घरपर आएल। घरपर अबि‍ते रौदेलहा धानक दौनी लेल खोह छि‍टि तैयारीमे मोस्‍तैज भऽ गेल।
जहि‍ना सरकार लेल मार्च महिना हि‍साब-कि‍ताव आ आमद-खर्चक होइ छै तहि‍ना बनिया लेल दि‍वाली, पंडि‍त-पुरोहि‍त लेल यज्ञ आ दूर्गापूजा तहि‍ना गृहस्‍तक लेल अगहन होइए। खन धान काटू तँ खन धान तैयार करू, खन गहुमक खेत जोत-कोर करू तँ खन गाए-महिंस-बरदकेँ सानी-कुट्टी लगाउ। चन तरहक काज रहने मंगल परेसान रहै छला।
साझू पहर मंगल जोगि‍न्‍दरक ओइठाम अागि‍ तपैले गेल। गप-सप्‍प चलए लगलै। मंगल बाजल-
हौ जोगि‍न्‍दर भाय, गप-सप्‍प कि‍ करब, काजे तेतेक अछि जे परेशान-परेशान रहै छी। झरो फिरेक फुरसति‍ नै रहैत अछि‍। तहूमे अगहन मास।‍
जोगि‍न्‍दर बाजल-
एतेक परेशान होइक कोन काज छै, आब तँ धान खेतक जोताइसँ लऽ कऽ दौनी तकक लेल थ्रेसर, ट्रेक्‍टर, गहुम बागु करैले मशीन आबि गेलै आरो चन तरहक‍ मशीन सभ भऽ गेलैहेँ। तँए परेशान हेबाक कोनो जरूरत नै छै। एकटा कहबी छै जे, जे पूत परदेश गेल देव पि‍तर सभसँ गेल। से नै ने करए दि‍मागसँ काज लैह आ सभ दि‍सि‍ नजरि‍ राखह।
मंगल बाजल-
से तँ ठीके कहै छहक। एकटा परेशानी रहए तब ने। लऽ दऽ कऽ एकटा बेटा अछि सेहो अवण्‍ड भऽ गेल अछि। केतनो कहै छि‍ऐ जे मन लगा कऽ पढ़-ि‍लखि जे दू अक्षरक बोध हेतो तँ अपने काज देतो से करि‍ते ने अछि। एकटा मोबाइल कीनि लेलकहेँ आ हरि‍दम गीत-नादक पाछाँ अपसि‍यात रहैए‍। की‍ कहब गहुमक बि‍आ ८० कि‍लो एकटा कोठीमे रखने रही से की केलक तँ कखनि-ने-कखनि सभटा बीआ बेचि लेलक आ एकटा मोबाइल कीनि आनलक। तुहीं कहए आब खेती केना करब। छौड़ा बदमास भऽ गेल।‍
जोगि‍न्‍दर बाजल-
ई तँ बड़ खराब काज भेलै। जखनि पूजीए चोरा कऽ बेचि लेत तँ कोनो परि‍वारकेँ गुजर-वसर आकि‍ उन्नति‍ केना हेतै। एक कोठी अनाज तँ पूजी नै ने होइत छै, पूजी तँ बीआक लेल जे राखल जाइ छै सएह ने होइ छै। जइसँ अधि‍क उपजा आकि‍ आमदनी होएत सएह ने पूजी भेल। जँ पूजीए कि‍यो खा गेल तँ सभटा वस्‍तु खा गेल।‍
मंगल खैनी झारैत आगू बाजल-
एक तँ रौदीक मारल छी दू बीघामे धान छल, ऊपरका खेतक धान तँ मारल गेल, नि‍चला खेतक धान कि‍छु भेल। तैपरसँ छोड़ा बीए बेच लेलक। आब बीआ खरिदू कि‍ खाध खरिदू कि‍ खेत जोताउ। अही सबहक सोचमे पड़ल छी।‍
जोगि‍न्‍दर कहलकै-
खैर परेशान हेबाक जरूरत नै छै। एकटा कहबी छै जे चि‍न्‍तासँ चतुराइ घटे शोकसँ घटे शरीर, पापसँ लक्ष्‍मी घटे कह गये दास कवीर। तँए हमरा लगमे गहुमक बीआ अछि पौरूकेँ साल उन्नति‍ कि‍समक बीआसँ खेती केने छेलौं। एक साल तकमे बीआ नै ने खराप होइ छै। तँए जे बीआक जरूरत हेतह से हम दऽ देबह। जँ अपना लग नै टाका हुअ तँ हम कहबए जे उन्नति कि‍सिमक बीआसँ खेती करह। खेतमे जँ हाल नै होइ तँ पटा कऽ खेती करि‍हऽ। नै तँ धानोक खेती मारल गेल आ गहुमोक चलि‍ जेतह। एकटा बात कहऽ जे तरकारी-फरकारीओ सबहक खेती केने छह कि‍ने?
हँ हौ भाय, तरकारीमे अल्‍लू, मुरै आ फरकारीमे कोबी, भाटा, टमाटरो सबहक खेती केने छी।‍
जोगि‍न्‍दर-
से तँ नीक बात छह, नै तँ ऐ बेरका सन खराब समैमे लोक बौआइऐ कऽ ने मरैत। कि‍सानक तँ यएह सभ ने पूजी होइत छै। समए-साल, आगाँ-पाछाँ देखि‍ कऽ खेती-बाड़ी करक चाही। जइ‍सँ कखनो मुँह मलीन नै हएत। तँए...। कहबीओ छै मन हरखि‍त तँ गाबी गीत।‍mm



छूआ-छूत

दूर्गापूजाक समए रहए। सभ अपन-अपन उमंगमे मस्त छल। सभ कियो नव-नव परिधानमे सजल छल। कियो पूजामे मस्त तँ कि‍यो नाच देखैमे मस्त, कियो दारू पीबैमे मस्त। तहि‍ना कि‍यो स्टेजक आगूमे लग्धी-विरती कऽ देखैमे मस्त, कियो कुमारि‍ भोजन करबैमे बेस्त। कि‍यो ब्राह्मण भोजनमे मस्त। एक-एकटा कुमारि‍ आ ब्राह्मण पचँ-पँच गोटेक नोत खाइले तैयार छल। तखने शंभू मंडल लड्डू लऽ कऽ भगवतीकेँ चढ़बैले गेल। ओकरा मंदिरक भीतर जाइसँ पंडितजी रोकैत कहलखिन-
सोलकन सभ भगवतीकेँ अपने हाथे लड्डु नै चढ़ा सकै छेँ आ ने प्रणाम कऽ सकै छेँ।
ऐ बातपर थोड़े काल हल्ला-गुल्ला सेहो भेल। अंतमे फैसला भेल जे पुजेगरी आ पुरहित छोड़ि‍ कि‍यो भीतर नै जा सकैत अछि। चाहे कोनो जातिक रहए। एहेन फैसलाक मुख्‍य कारण छल एक विचरिया पंच।
जखनि चौकपर एलौं तँ एकटा दोसरे नाटक पसरल छल। एकटा डोम चाहक दोकानपर बेंचपर बैस कऽ चाह पीबैले तैयार छल दोकानदार रोकि रहल छेलै। अन्तमे बलजोरी ओ बेंचपर बैस गेल आ दोकानदारसँ सवाल पुछलक-
हम हिन्दु छी आकि नै छी। जखनि सभ जाि‍तक अहाँ आइठ धोइ छी तँ हमर आइठ किए नै धुअब। एक तँ अहाँ बबाजी छी, कंठी बन्हनै छी तखनि अहाँ सबहक आइठ धोइ छी से धोनाइ छोड़ि दियौ आ से नै तँ बबाजीबला आडम्बर छोड़ि दियौ।
तीनू प्रश्न विचारनीय छेलै। सुनिते हम सोचमे पड़ि गेलौं।mm



कलि‍युगक नि‍र्णए

सतयुग-त्रेता बीत गेल छल। द्वापरक समए पुरा भऽ गेल छेलै। कयुगक प्रवेश होइएबला छेलै। कलि‍युग अपन राज-पाट चलबैले सोचि‍ रहल छल। बिच्‍चेमे तीनू युगक देवता सभ कलयुग लग आबि‍ हाथ जोड़ि‍ ठाढ़ भऽ गेला आ कलि‍युगो हाथ जोड़ि‍ ठाढ़ भेल। जखनि‍ वि‍चार-वि‍मर्श शुरू भेलै तँ तीनु युगक देवता सभ कहलखि‍न-
हम सभ तँ कहुना तीन युगक राज-पाट चलेलौं आब अहाँक पारी अछि‍ तँए चि‍न्‍तामे छी जे अहाँ केना कऽ राज-पाट चलाएब। कि‍एक तँ हमसभ देवासुर संग्राम, वृतासुर संग्राम कोन-कोन ने केलौं। स्‍वर्ग-नरकक फेरा सभ केलौं। मुदा लोक सभ आर उडण्‍ड होइते गेल। अही‍ले अहाँ लग एलौं। अपने केना चलाएब?”
कलि‍युग कहलकनि‍-
हे देवगण, हम अहाँ सभ जकाँ फाइल नै राखब। मुन्‍सी-पेसकार नै‍ राखब। हमर फैसला तुरंते हेतै। जे जेहेन काज करता ति‍नकर भोग हुनका तुरंते भोगए पड़तनि‍।‍ अगुआएल-पछुअाएल जनमक फेरा नै राखब। स्‍वर्ग-नरकक फेरा नै‍ रहए देबै।
तीनू युगक देवता कलि‍युगक वि‍चार सुनि‍ गुम्‍म भऽ गेला। फेर कलि‍युग कहलकनि‍-
हम कृष्‍णक कि‍छु अंश लए कऽ चलब आ लोक सभकेँ कहबै जे कर्म केलहा फलक इच्‍छा नै करब इंसान, जेहेन कर्म करब तेहेन फल देता भगवान।‍
  ई सुनि‍ तीनू युगक देवता अपन-अपन लोक वि‍दा भऽ गेला।mm

 विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन  
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष  प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।

१.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली .मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम

.नेपाल भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

१.१. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक
  उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, , , न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ : ढक उच्चारण र् हजकाँ होइत अछि। अतः जतऽ र् हक उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ लिखल जाए। आन ठाम खाली ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ = पढ़ाइ, बढब, गढब, मढब, बुढबा, साँढ, गाढ, रीढ, चाँढ, सीढी, पीढी आदि।
उपर्युक्त शब्द सभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ अबैत अछि। इएह नियम ड आ डक सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहि सभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु क उच्चारण जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएबला शब्द सभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, यावत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ क प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खडयन्त्र), षोडशी (खोडशी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमे सँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढए (पढय) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पडतौक।
अपूर्ण रूप : पढगेलाह, लेल, उठपडतौक।
पढऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पडतौक।
(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग) स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ) वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ) क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च) क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटि कऽ दोसर ठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु (माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्द सभमे ई निअम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्द सभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषा सम्बन्धी निअम अनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरण सम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्ष सभकेँ समेटि कऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनीकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽबला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषी पर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पडि रहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषता सभ कुण्ठित नहि होइक, ताहू दिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

१.२. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

१. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि
, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर, तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन, अखनि, एखेन, अखनी
ठिमा, ठिना, ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर। (वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

२. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैकल्पिकतया अपनाओल जाय: भऽ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। करगेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

३. प्राचीन मैथिलीक न्हध्वनिक स्थानमे लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

४. तथा ततय लिखल जाय जतस्पष्टतः अइतथा अउसदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

५. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह, सैह, इएह, ओऐह, लैह तथा दैह।

६. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

७. स्वतंत्र ह्रस्व वा प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ वा लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

८. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढैआ, विआह, वा धीया, अढैया, बियाह।

९. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

१०. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। मेमे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। क वैकल्पिक रूप केरराखल जा सकैत अछि।

११. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद कयवा कएअव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

१२. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

१३. अर्द्ध ओ अर्द्ध क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ’ , ‘’, तथा क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

१४. हलंत चिह्न निअमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

१५. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा कलिखल जाय, हटा कनहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

१६. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रापर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

१७. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

१८. समस्त पद सटा कलिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोडि क’ ,  हटा कनहि।

१९. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

२०. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

२१.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा
' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

  २. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
२.१. उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-   
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग
गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ (उच्चारण)
छथि- छ इ थ  – छैथ (उच्चारण)
पहुँचि- प हुँ इ च (उच्चारण)
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ऐ सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा ऐमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री  रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- ऐ लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव  http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ / कऽ हटा कऽ। ऐमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना
छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नै। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए-
रहै मुदा सकैए (उच्चारण सकै-ए)।
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा। पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए
छलै, छलए मे सेहो ऐ तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- (उच्चारण संजोगने)
केँ/  कऽ
केर- (
केर क प्रयोग गद्यमे नै करू , पद्यमे कऽ सकै छी। )
क (जेना रामक)
–रामक आ संगे (उच्चारण राम के /  राम कऽ सेहो)
सँ- सऽ (उच्चारण)
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नै। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- (उच्चारण राम सऽ)  रामकेँ- (उच्चारण राम कऽ/ राम के सेहो)।

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ , तऽ , , केर (गद्यमे) एे चारू शब्द सबहक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना, के कहलक? विभक्ति क बदला एकर प्रयोग अवांछित।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ, नइं ऐ सभक उच्चारण आ लेखन - नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नै) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नै- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नै)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नै)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नै)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/ पोछै लेल/ पोछए लेल
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन) पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नै)
ओइ/ ओहि
ओहिले/
ओहि लेल/ ओही लऽ
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक/ (देखिऔक नै- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ / जेकाँ
तँइ/ तैँ/
होएत / हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ/ नै
सौँसे/ सौंसे
बड /
बडी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि), मुदा गाइक दूध (गाएक दूध नै।)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलौं/ समझलौं/ बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नै)
होइन/ होनि
जाइन (जानि नै, जेना देल जाइन) मुदा जानि-बूझि (अर्थ परिव्र्तन)
पइठ/ जाइठ
आउ/ जाउ/ आऊ/ जाऊ
मे, केँ, सँ, पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेसी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ। जेना ऐमे सँ ।
एकटा , दूटा (मुदा कए टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नै। आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नै (जेना दिअ
, आ/ दिय’ , ’, आ नै )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एतए सेहो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नै दैत अछि वरन जोडैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे/ ऐमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ, नै)
सँ ( सऽ स नै)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)
 तै/तइ जेना- तै दुआरे/ तइमे/ तइले
जै/जइ जेना- जै कारण/ जइसँ/ जइले
ऐ/अइ जेना- ऐ कारण/ ऐसँ/ अइले/ मुदा एकर एकटा खास प्रयोग- लालति‍ कतेक दि‍नसँ कहैत रहैत अइ
लै/लइ जेना लैसँ/ लइले/ लै दुआरे
लहँ/ लौं

गेलौं/ लेलौं/ लेलँह/ गेलहुँ/ लेलहुँ/ लेलँ
जइ/ जाहि‍/ जै
जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम
एहि‍/ अहि‍/
अइ (वाक्यक अंतमे ग्राह्य) /
अइछ/ अछि‍/ ऐछ
तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍
ओहि‍/ ओइ
सीखि‍/ सीख
जीवि‍/ जीवी/ जीब 
भलेहीं/ भलहि‍ं 
तैं/ तँइ/ तँए
जाएब/ जएब
लइ/ लै
छइ/ छै
नहि‍/ नै/ नइ
गइ/ गै 
छनि‍/ छन्‍हि ...
समए शब्‍दक संग जखन कोनो वि‍भक्‍ति‍ जुटै छै तखन समै जना समैपर इत्‍यादि‍। असगरमे हृदए आ वि‍भक्‍ति‍ जुटने हृदे जना हृदेसँ, हृदेमे इत्‍यादि‍।  
जइ/ जाहि‍/
जै
जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम
एहि‍/ अहि‍/ अइ/
अइछ/ अछि‍/ ऐछ
तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍
ओहि‍/ ओइ
सीखि‍/ सीख
जीवि‍/ जीवी/
जीब 
भले/ भलेहीं/
भलहि‍ं 
तैं/ तँइ/ तँए
जाएब/ जएब
लइ/ लै
छइ/ छै
नहि‍/ नै/ नइ
गइ/
गै 
छनि‍/ छन्‍हि‍
चुकल अछि/ गेल गछि
२.२. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
नीचाँक सूचीमे देल विकल्पमेसँ लैंगुएज एडीटर द्वारा कोन रूप चुनल जेबाक चाही:
बोल्ड कएल रूप ग्राह्य:  
१.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
२. आ’/आऽ
३. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
४. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए
गेल
५. कर’ गेलाह/करऽ
गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
६.
लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
७. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करैबला/क’र’ बला /
करैवाली
८. बला वला (पुरूष), वाली (स्‍त्री) ९
.
आङ्ल आंग्ल
१०. प्रायः प्रायह
११. दुःख दुख १
२. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
१३. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
१४.
देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
१५. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
१६. चलैत/दैत चलति/दैति
१७. एखनो
अखनो
१८.
बढ़नि‍ बढइन बढन्हि
१९. ओ’/ओऽ(सर्वनाम)
२०
. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
२१. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
२२.
जे जे’/जेऽ २३. ना-नुकुर ना-नुकर
२४. केलन्हि/केलनि‍/कयलन्हि
२५. तखनतँ/ तखन तँ
२६. जा
रहल/जाय रहल/जाए रहल
२७. निकलय/निकलए
लागल/ लगल बहराय/ बहराए लागल/ लगल निकल’/बहरै लागल
२८. ओतय/ जतय जत’/ ओत’/ जतए/ ओतए
२९.
की फूरल जे कि फूरल जे
३०. जे जे’/जेऽ
३१. कूदि / यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/
यादि (मोन)
३२. इहो/ ओहो
३३.
हँसए/ हँसय हँसऽ
३४. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/ नौ वा दस
३५. सासु-ससुर सास-ससुर
३६. छह/ सात छ/छः/सात
३७.
की  की’/ कीऽ (दीर्घीकारान्तमे ऽ वर्जित)
३८. जबाब जवाब
३९. करएताह/ करेताह करयताह
४०. दलान दिशि दलान दिश/दलान दिस
४१
. गेलाह गएलाह/गयलाह
४२. किछु आर/ किछु और/ किछ आर
४३. जाइ छल/ जाइत छल जाति छल/जैत छल
४४. पहुँचि/ भेट जाइत छल/ भेट जाइ छलए पहुँच/ भेटि‍ जाइत छल
४५.
जबान (युवा)/ जवान(फौजी)
४६. लय/ लए ’/ कऽ/ लए कए / लऽ कऽ/ लऽ कए
४७. ल’/लऽ कय/
कए
४८. एखन / एखने / अखन / अखने
४९.
अहींकेँ अहीँकेँ
५०. गहींर गहीँर
५१.
धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
५२. जेकाँ जेँकाँ/
जकाँ
५३. तहिना तेहिना
५४. एकर अकर
५५. बहिनउ बहनोइ
५६. बहिन बहिनि
५७. बहिन-बहिनोइ
बहिन-बहनउ
५८. नहि/ नै
५९. करबा / करबाय/ करबाए
६०. तँ/ त ऽ तय/तए
६१. भैयारी मे छोट-भाए/भै/, जेठ-भाय/भाइ,
६२. गि‍नतीमे दू भाइ/भाए/भाँइ  
६३. ई पोथी दू भाइक/ भाँइ/ भाए/ लेल। यावत जावत
६४. माय मै / माए मुदा माइक ममता
६५. देन्हि/ दइन दनि‍/ दएन्हि/ दयन्हि दन्हि/ दैन्हि
६६. द’/ दऽ/ दए
६७. (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
६८. तका कए तकाय तकाए
६९. पैरे (on foot) पएरे  कएक/ कैक
७०.
ताहुमे/ ताहूमे
 ७१.
पुत्रीक
७२.
बजा कय/ कए / कऽ
७३. बननाय/बननाइ
७४. कोला
७५.
दिनुका दिनका
७६.
ततहिसँ
७७. गरबओलन्हि/ गरबौलनि‍/
  गरबेलन्हि/ गरबेलनि‍
७८. बालु बालू
७९.
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
८०. जे जे’
८१
. से/ के से’/के’
८२. एखुनका अखनुका
८३. भुमिहार भूमिहार
८४. सुग्गर
/ सुगरक/ सूगर
८५. झठहाक झटहाक ८६.
छूबि
८७. करइयो/ओ करैयो ने देलक /करियौ-करइयौ
८८. पुबारि
पुबाइ
८९. झगड़ा-झाँटी
झगड़ा-झाँटि
९०. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
९१. खेलएबाक
९२. खेलेबाक
९३. लगा
९४. होए- होहोअए
९५. बुझल बूझल
९६.
बूझल (संबोधन अर्थमे)
९७. यैह यएह / इएह/ सैह/ सएह
९८. तातिल
९९. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ/ एनाइ
१००. निन्न- निन्द
१०१.
बिनु बिन
१०२. जाए जाइ
१०३.
जाइ (in different sense)-last word of sentence
१०४. छत पर आबि जाइ
१०५.
ने
१०६. खेलाए (play) –खेलाइ
१०७. शिकाइत- शिकायत
१०८.
ढप- ढ़प
१०९
. पढ़- पढ
११०. कनिए/ कनिये कनिञे
१११. राकस- राकश
११२. होए/ होय होइ
११३. अउरदा-
औरदा
११४. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
११५. बुझएलन्हि/बुझेलनि‍/ बुझयलन्हि (understood himself)
११६. चलि- चल/ चलि‍ गेल
११७. खधाइ- खधाय
११८.
मोन पाड़लखिन्ह/ मोन पाड़लखि‍न/ मोन पारलखिन्ह
११९. कैक- कएक- कइएक
१२०.
लग ल’ग 
१२१. जरेनाइ
१२२. जरौनाइ जरओनाइ- जरएनाइ/
जरेनाइ
१२३. होइत
१२४.
गरबेलन्हि/ गरबेलनि‍ गरबौलन्हि/ गरबौलनि‍
१२५.
चिखैत- (to test)चिखइत
१२६. करइयो (willing to do) करैयो
१२७. जेकरा- जकरा
१२८. तकरा- तेकरा
१२९.
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
१३०. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/ करबेलहुँ करबेलौं
१३१.
हारिक (उच्चारण हाइरक)
१३२. ओजन वजन आफसोच/ अफसोस कागत/ कागच/ कागज
१३३. आधे भाग/ आध-भागे
१३४. पिचा / पिचाय/पिचाए
१३५. नञ/ ने
१३६. बच्चा नञ
(ने) पिचा जाय
१३७. तखन ने (नञ) कहैत अछि। कहै/ सुनै/ देखै छल मुदा कहैत-कहैत/ सुनैत-सुनैत/ देखैत-देखैत
१३८.
कतेक गोटे/ कताक गोटे
१३९. कमाइ-धमाइ/ कमाई- धमाई
१४०
. लग ल’ग
१४१. खेलाइ (for playing)
१४२.
छथिन्ह/ छथिन
१४३.
होइत होइ
१४४. क्यो कियो / केओ
१४५.
केश (hair)
१४६.
केस (court-case)
१४७
. बननाइ/ बननाय/ बननाए
१४८. जरेनाइ
१४९. कुरसी कुर्सी
१५०. चरचा चर्चा
१५१. कर्म करम
१५२. डुबाबए/ डुबाबै/ डुमाबै डुमाबय/ डुमाबए
१५३. एखुनका/
अखुनका
१५४. लए/ लिअए (वाक्यक अंतिम शब्द)- लऽ
१५५. कएलक/
केलक
५६. गरमी गर्मी
१५७
. वरदी वर्दी
१५८. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
१५९. एनाइ-गेनाइ
१६०.
तेना ने घेरलन्हि/ तेना ने घेरलनि‍
१६१. नञि / नै
१६२.
डरो ड’रो
१६३. कतहु/ कतौ कहीं
१६४. उमरिगर-उमेरगर उमरगर
१६५. भरिगर
१६६. धोल/धोअल धोएल
१६७. गप/गप्प
१६८.
के के’
१६९. दरबज्जा/ दरबजा
१७०. ठाम
१७१.
धरि तक
१७२.
घूरि लौटि
१७३. थोरबेक
१७४. बड्ड
१७५. तोँ/ तू
१७६. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
१७७. तोँही / तोँहि
१७८.
करबाइए करबाइये
१७९. एकेटा
१८०. करितथि /करतथि
 १८१.
पहुँचि/ पहुँच
१८२. राखलन्हि रखलन्हि/ रखलनि‍
१८३.
लगलन्हि/ लगलनि‍ लागलन्हि
१८४.
सुनि (उच्चारण सुइन)
१८५. अछि (उच्चारण अइछ)
१८६. एलथि गेलथि
१८७. बितओने/ बि‍तौने/
बितेने
१८८. करबओलन्हि/ करबौलनि‍/
करेलखिन्ह/ करेलखि‍न
१८९. करएलन्हि/ करेलनि‍
१९०.
आकि/ कि
१९१. पहुँचि/
पहुँच
१९२. बत्ती जराय/ जराए जरा (आगि लगा)
१९३.
से से’
१९४.
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
१९५. फेल फैल
१९६. फइल(spacious) फैल
१९७. होयतन्हि/ होएतन्हि/ होएतनि‍/हेतनि‍/ हेतन्हि
१९८. हाथ मटिआएब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटियाएब
१९९. फेका फेंका
२००. देखाए देखा
२०१. देखाबए
२०२. सत्तरि सत्तर
२०३.
साहेब साहब
२०४.गेलैन्ह/ गेलन्हि/ गेलनि‍
२०५. हेबाक/ होएबाक
२०६.केलो/ कएलहुँ/केलौं/ केलुँ
२०७. किछु न किछु/
किछु ने किछु
२०८.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ/ घुमेलौं
२०९. एलाक/ अएलाक
२१०. अः/ अह
२११.लय/
लए (अर्थ-परिवर्त्तन) २१२.कनीक/ कनेक
२१३.सबहक/ सभक
२१४.मिलाऽ/ मिला
२१५.कऽ/
२१६.जाऽ/
जा
२१७.आऽ/
२१८.भऽ /भ’ ( फॉन्टक कमीक द्योतक)
२१९.निअम/ नियम
२२०
.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२२१.पहिल अक्षर ढ/ बादक/ बीचक ढ़
२२२.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
२२३.कहिं/ कहीं
२२४.तँइ/
तैं / तइँ
२२५.नँइ/ नइँ/  नञि/ नहि/नै
२२६.है/ हए / एलीहेँ/
२२७.छञि/ छै/ छैक /छइ
२२८.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२२९. (come)/ आऽ(conjunction)
२३०.
आ (conjunction)/ आऽ(come)
२३१.कुनो/ कोनो, कोना/केना
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि-गेलनि‍
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ-कएलहुँ/केलौं
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)- (conjunction-and)/आ। आब'-आब' /आबह-आबह
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ- घुमेलाें
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/ होन्हि/
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५
.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौं
/ ज्योँ/ जँ/
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो/ कोनहुँ/
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कोना/ केना/ कन्‍ना/कना
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलनि‍/
गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि/ केलनि‍/
२५८.लय/ लए/ लएह (अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक/कनी-मनी
२६०.पठेलन्हि‍ पठेलनि‍/ पठेलइन/ पपठओलन्हि/ पठबौलनि‍/
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नै/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह (बिकारी) क प्रयोग उचित
२६५.केर (पद्यमे ग्राह्य) / -/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत/
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१
.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक/पि‍येबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह/ औताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जइ/ जै/
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जअए/ जए (लालति‍ जाए लगलीह।)
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै/ तइ
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलौं/ कहै छलौं- अहिना चलैत/ पढैत
(पढै-पढैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित) - आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझै छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/ सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/ बिन। रातिक/ रातुक बुझै आ बुझैत केर अपन-अपन जगहपर प्रयोग समीचीन अछि‍। बुझैत-बुझैत आब बुझलि‍ऐ। हमहूँ बुझै छी।
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट/ भेँट
२९१.
खन/ खीन/  खुना (भोर खन/ भोर खीन)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/ गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नै अछि। वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८
.वाली/ (बदलैवाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
३००. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (
भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६. (come)/ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, यथासंभव बीचमे नै।
३०९.कहैत/ कहै
३१०.
रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच/ कागत
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय
DATE-LIST (year- 2013-14)
(१४२१ फसली साल)
Marriage Days:
Nov.2013- 18, 20, 24, 25, 28, 29
Dec.2013- 1, 4, 6, 8, 12, 13
January 2014- 19, 20, 22, 23, 24, 26, 31.
Feb.2014- 3, 5, 6, 9, 10, 17, 19, 24, 26, 27.
March 2014- 2, 3, 5, 7, 9.
April 2014- 16, 17, 18, 20, 21, 23, 24.
May 2014- 1, 2, 8, 9, 11, 12, 18, 19, 21, 25, 26, 28, 29, 30.
June 2014- 4, 5, 8, 9, 13, 18, 22, 25.
July 2014- 2, 3, 4, 6, 7.
Upanayana Days:
February 2014- 2, 4, 9, 10.
March 2014- 3, 5, 11, 12.
April 2014- 4, 9, 10.
June 2014- 2, 8, 9.
Dviragaman Din:
November 2013- 18, 21, 22.
December 2013- 4, 6, 8, 9, 12, 13.
February 2014- 16, 17, 19, 20.
March 2014- 2, 3, 5, 9, 10, 12.
April 2014- 16, 17, 18, 20.
May 2014- 1, 2, 9, 11, 12.
Mundan Din:
November 2013- 20, 22.
December 2013- 9, 12, 13.
January 2014- 16, 17.
February 2014- 6, 10, 19, 20.
March 2014- 5, 12.
April 2014- 16.
May 2014- 12, 30.
June 2014- 2, 9, 30.

FESTIVALS OF MITHILA (2013-14)
Mauna Panchami-27 July
Madhushravani- 9 August
Nag Panchami- 11 August
Raksha Bandhan- 21 Aug
Krishnastami- 28 August
Kushi Amavasya / Somvari Vrat- 5 September
Hartalika Teej- 8 September
ChauthChandra-8 September
Vishwakarma Pooja- 17 September
Anant Caturdashi- 18 Sep
Pitri Paksha begins- 20 Sep
Jimootavahan Vrata/ Jitia-27 Sep
Matri Navami-28 Sep
Kalashsthapan- 5 October
Belnauti- 10 October
Patrika Pravesh- 11 October
Mahastami- 12 October
Maha Navami - 13 October
Vijaya Dashami- 14 October
Kojagara- 18 Oct
Dhanteras- 1 November
Diyabati, shyama pooja-3 November
Annakoota/ Govardhana Pooja-4 November
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja- 5 November
Chhathi -8 November
Sama Poojaarambh- 9 November
Devotthan Ekadashi- 13 November
ravivratarambh- 17 November
Navanna parvan- 20 November
KartikPoornima- Sama Visarjan- 2 December
Vivaha Panchmi- 7 December
Makara/ Teela Sankranti-14 Jan
Naraknivaran chaturdashi- 29 January
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 4 February
Achla Saptmi- 6 February
Mahashivaratri-27 February
Holikadahan-Fagua-16 March
Holi- 17 March
Saptadora- 17 March
Varuni Trayodashi-28 March
Jurishital-15 April
Ram Navami- 8 April
Akshaya Tritiya-2 May
Janaki Navami- 8 May
Ravi Brat Ant- 11 May
Vat Savitri-barasait- 28 May
Ganga Dashhara-8 June
Harivasar Vrata- 9 July
Shree Guru Poornima-12 Jul
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११.विदेह फाइल : 

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१२. विदेह: सदेह : पहिल तिरहुता (मिथिला़क्षर) जालवृत्त (ब्लॉग)
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१३. विदेह:ब्रेल: मैथिली ब्रेलमे: पहिल बेर विदेह द्वारा
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१४.VIDEHA IST MAITHILI  FORTNIGHTLY EJOURNAL ARCHIVE

१५. विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मैथिली पोथीक आर्काइव
 
१६. विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऑडियो आर्काइव
१७. विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका वीडियो आर्काइव
१८. विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मिथिला चित्रकला, आधुनिक कला आ चित्रकला
१९. मैथिल आर मिथिला (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
२०.श्रुति प्रकाशन
२३.गजेन्द्र ठाकुर इ‍डेक्स
 २४. नेना भुटका
२५.विदेह रेडियो:मैथिली कथा-कविता आदिक पहिल पोडकास्ट साइट
२६. Videha Radio
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२८. विदेह मैथिली नाट्य उत्सव
२९.समदिया
३०. मैथिली फिल्म्स
३१.अनचिन्हार आखर
३२. मैथिली हाइकू
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३३. मानक मैथिली
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३४. विहनि कथा
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३५. मैथिली कविता
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३६. मैथिली कथा
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३७.मैथिली समालोचना
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 विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन

(c)२००४-१४. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतए लेखकक नाम नहि अछि ततए संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा, राम वि‍लास साहु आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: ज्योति झा चौधरी आ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डा. जया वर्मा आ डा. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल आ प्रियंका झा। सम्पादक- अनुवाद विभाग- विनीत उत्पल।

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(c) २००४-१४ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.com पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल ५ जुलाई २००४ केँ http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.htmlभालसरिक गाछ”- मैथिली जालवृत्तसँ प्रारम्भ इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर  ई प्रकाशित होइत अछि। आब भालसरिक गाछ जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
                                                      सिद्धिरस्तु