ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ९० म अंक १५ सितम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४५ अंक ९०)
ऐ अंकमे अछि:-
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.अक्षय कुमार चौधरी- दियाद बलजोर
३.७. १.डॉ॰ शशिधर कुमर २ आनंद कुमार झा ३नवीन कुमार "आशा"
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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१. संपादकीय
मैथिली गजलक पहिल दुर्भाग्य तखन देखा पड़ैत अछि जखन एतए गजलकेँ मुस्लिम धर्मसँ जोड़ि कऽ देखल जाए लगलै आ मुस्लिम धर्म आ ओकर साहित्यकेँ अछोप मानि लेल गेलै। गजलक प्रारम्भ इस्लामक आगमनसँ पूर्वक घटना अछि आ अवेस्ता आ वैदिक संस्कृत मध्य ढेर रास साम्य अछि। दोसर दुर्भाग्य मायानंद मिश्रक ओ कथन भेल जाहिमे ओ घोषणा केलथि जे मैथिलीमे गजल लिखले नै जा सकैए, हुनकर तात्पर्य दोसर रहन्हि मुदा लोक अही तरहेँ ओकरा प्रस्तुत करए लागल, कारण ओ स्वयम् गीतल नामसँ गजल लिखलन्हि। मैथिली गजलमे "अनचिन्हार आखर" सन ब्लाग उपस्थित भेल जतए बहर (छन्दयुक्त) गजल आ गजलकारक लाइन लागि गेल। मुदा सभसँ बड़का दुर्भाग्य ई भेलै जे मैथिलीक किछु तथाकथित शाइर सभ रामदेव झा द्वारा बहर संबंधी विचारकेँ नकारि देलन्हि ( देखू- लोकवेद आ लालकिलामे देवशंकर नवीन जीक आलेख)। जँ वर्तमानमे गजलक परिदृश्यकेँ देखी तँ मोटामोटी दूटा रेखा बनैत अछि (जकरा हम दू युगक नाम देने छी) पहिल भेल "जीवन युग" आ दोसर भेल "अनचिन्हार युग"। आब कने दूनू युग पर नजरि फेरल जाए।
1) जीवन युग- ऐ युगक प्रारंभ हम जीवन झासँ केने छी जे आधुनिक मैथिली गजलक पिता मानल जाइ छथि मुदा ओ कम्मे गजल लीख सकला। मुदा हुनका बाद मायानंद, इन्दु, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, सरस, रमेश, नरेन्द्र, राजेन्द्र विमल, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, रौशन जनकपुरी, अरविन्द ठाकुर, सुरेन्द्र नाथ, तारानंद वियोगी आदि गजलगो सभ भेलाह। रामलोचन ठाकुर जीक बहुत रचना गजल अछि मुदा ओ अपने ओकर क्रम-विन्यास कविता-गीत जकाँ बना देने छथिन्ह मुदा किछु गजलक श्रेणीमे सेहो अबैए। ऐ “जीवन युग”क गजलक प्रमुख विशेषता अछि बे-बहर अर्थात बिन छंदक गजल। ओना बहरकेँ के पूछैए जखन सुरेन्द्रनाथ जी काफियाक ओझरीमे फँसल रहि जाइ छथि। एकर अतिरिक्त आर सभ विशेषता अछि ऐ युगक। आ जँ एकै पाँतिमे हम कहए चाही तँ पाँति बनत---" गजल थिक, ई गजल थिक, आ इएह टा गजल थिक"।
2) आब कने आबी " अनचिन्हार युग" पर। ऐ युगक प्रारंभ तखन भेल जखन इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल गजल आ शेरो-शाइरीकेँ समर्पित ब्लाग "अनचिन्हार आखर" ( http://anchinharakharkolkata.blogspot.com ) क जन्म भेल।आ ऐ अन्तर्जालक “अनचिन्हार आखर” जालवृत्तक नामपर हम ऐ युगक नाम "अनचिन्हार युग" रखलहुँ अछि। ऐ युगक किछु विशेषता देखल जाए-
· गजलक परिभाषिक शब्द आ बहरक निर्धारण---- ई सौभाग्य एकमात्र "अनचिन्हारे आखर"केँ छैक जे ओ हमरासँ १३ खंडमे (एखन धरि १३ खण्ड) "मैथिली गजल शास्त्र" लिखेलक। आ ई मैथिलीक पहिल एहन शास्त्र भेल जइमे गजलक विवेचन मैथिली भाषाक तत्वपर कएल गेलै। तकरा बाद आशीष अनचिन्हार सेहो "गजलक संक्षिप्त परिचय" लीख ऐ परंपराकेँ पुष्ट केलथि। आ एकरे फल थिक जे सभ नव-गजलकार बहरमे गजल कहि रहल छथि।
· स्कूलिंग ---- "अनचिन्हार आखर" गजल कहेबाक परंपरा शुरू केलक आ तइमे सुनील कुमार झा, दीप नारायण "विद्यार्थी", रोशन झा, प्रवीन चौधरी "प्रतीक", त्रिपुरारी कुमार शर्मा, विकास झा "रंजन", सद्रे आलम गौहर, ओमप्रकाश झा, मिहिर झा, उमेश मंडल आदि गजलकार उभरि कए अएलाह।
· गजलमे मैथिलीक प्रधानता----"अनचिन्हार युग" सँ पहिने गजलमे उर्दू-हिन्दी शब्दक भरमार छल आ मान्यता छल जे बिना उर्दू-हिन्दी शब्दक गजल कहले नै जा सकैए। मुदा "अनचिन्हार आखर" ऐ कुतर्ककेँ धवस्त केलक आ गजलमे १००% मैथिली शब्दक प्रयोगकेँ सार्वजनिक केलक।
· गजलक लेल पुरस्कार योजना--- "अनचिन्हार आखर" मैथिली साहित्य केर इतिहासमे पहिल बेर गजल लेल अलगसँ पुरस्कार देबाक घोषणा केलक। ऐ पुरस्कारक नाम "गजल कमला-कोसी-बागमती-महानंदा" पुरस्कार अछि।
· उपर चारू विशेषताक आधारपर एकटा अंतिम मुदा सभसँ बड़का विशेषता जे निकलल ओ थिक मायानंद मिश्रक ओइ कथनक खंडन, जकर अभिप्राय छल जे मैथिलीमे बहरयुक्त गजल लिखल नै जा सकैए। "अनचिन्हार आखर" सरल वार्णिक, वार्णिक आ मात्रिक छन्दक अतिरिक्त फारसी/ उर्दू बहरमे सेहो मैथिली गजल लिखबाक शास्त्र ओ उदाहरण खाँटी मैथिली शब्दावलीमे प्रस्तुत केलक।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
जगदीश प्रसाद मण्डल जन्म- ५.७.१९४७- पिताक नामः स्व. दल्लू मण्डल, माताक नामः स्व. मकोबती देवी, मातृक- मनसारा, घनश्यामपुर, जिला- दरभंगा। गाम-बेरमा, भाया- तमुरिया, जिला-मधुबनी, (बिहार) ८४७४१० Email- jpmandal.berma@gmail.com मो. ०९९३१६५४७४२
प्रकाशित कृति- १ गामक जिनगी (कथा संग्रह), २ मिथिलाक बेटी (नाटक), ३ तरेगन (बाल प्रेरक लघुकथा संग्रह), ४ मौलाइल गाछक फूल (उपन्यास), ५ जिनगीक जीत (उपन्यास), ६ उत्थान-पतन (उपन्यास), ७ जीवनमरण (उपन्यास), ८ जीवन संघर्ष (उपन्यास)।
ई-प्रकाशित कृति- १ त्रिफला (एकांकी संग्रह), २ इन्द्रधनुषी अकास (कविता संग्रह), ३ मइटुग्गर (दीर्धकथा संग्रह), ४ कम्प्रोमाइज (नाटक), ५ झमेलिया वियाह (नाटक), ६ ‘अर्द्धांगिनी....सरोजनी....सुभद्रा....भाइक सिनेह इत्यादि’’ कथा संग्रह।
कथा-
भबडाह
चहकैत चिड़ैक चलमली कानमे पड़िते नित्यानन काकाक नीन छिटकलनि। कोनो काज करैसँ पहिने तर्क-वितर्क ओहने महत्व रखैत जेहने निरजन आँखिये दिनमे चलब होइत। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल नजरि आजुक समैपर गेलनि। काल्हि शनि, राखी पाबनि छी। परसू रवि, विदेसर स्थानमे ठसम-ठस मेला हएत। हएबो उचित, एक तँ बैद्यनाथ बाबा साओनक पूर्णिमा विदेसरेमे बितबै छथि, दोसर कमलो उमड़ल अछि, एक संग दुनू काज। भैयारी रहितो जहिना भविष्यद्रष्टा युगद्रष्टासँ उपरक सीढ़ी होइत, तहिना ने औझुकेपर काल्हि ठाढ़ होएत। काल्हुक सुरज केहन उगत ई तँ प्रश्न अछिये। चारिम दिन पनरह अगस्त। भारतक स्वतंत्रताक चौसठिम वर्षगॉठ। साठि बरखक उपरान्त अनाड़ियो-धुनाड़ी लोक वरिष्ट नागरिकक उपहार पबैत तेहनाठाम स्वतंत्रता की आ देश कतए! मुदा लगले मन घुरि गाम दिस बढ़लनि। हिन्दु-मुसलमानक गाम। पनरहियासँ हिन्दु राधा-कृष्णक झूलासँ लऽ कऽ भोला बाबाक जलधरीमे व्यस्त तँ तहिना मुसलमानो दस दिन उपरेसँ रोजा-नबाजमे। एको पाइ लोक नै बाॅचल। सभ धरमक काजमे हृदैसँ जुटल। जखन सोलहन्नी लोक पवित्र मने धरमक काजमे जुटले छथि तखन निश्चित गामक काल्याण हेबे करत! प्रेमिकाक आगू जहिना प्रेमी दुनियाँकेँ निच्चा देख ऊपर भ्रमण करैत तहिना नित्यानन काकाक मन कल्याणक संग टहलए लगलनि। उत्साह जगलनि! फुड़-फुड़ा कऽ ओछाइनसँ उठि कलपर जा माइटियेसँ चारि घूसा दाँतमे लगा, आंगूरेक जीभिया कऽ हाँइ-हाँइ चारि कुड़ा मारि चारि घोंट पानियो पीब लेलनि। आँखि उठा वाड़ी दिस देखलनि तँ पत्नीकेँ मचानपर चठैल तोड़ैत देखलनि। आँखि उताड़ि गाम दिस विदा भेलाह।
दरबज्जापर सँ आगू बढ़िते हियाैलनि तँ बुझि पड़लनि जे घर-दुआर छोड़ि लोक चौके दिस आबि गेल हेता तँए नीक हएत जे चौके दिस जाइ। सोचि नित्याननकाका आगू बढ़ैक विचार केलनि। डेग उठिते मन सिहरलनि। भाए-बहीनक ओहन पर्व काल्हि छी जइमे दुनूक प्रगाढ़ प्रेमक, सिनेह-सिक्त जलक उदय हएत। आशाक संग जिनगीक विसवासो जगलनि। डेग बढ़लनि।
पनरह-बीसटा डमहाएल चठैल खोंइछामे लेने सुचिताकाकी मुस्की दैत, गद्-गद् होइत जे महीना दिन तँ चलबे करत, तेकर पछाति ने दौंजी हएत। सालमे जँ एक्को पनरहिया चठैलक तरकारी खा लेब तँ कि चीिनया बेमारी लागत। लफड़ल आबि पछबरिया ओसारपर सूपमे चठैल उझलि पुतोहूकेँ पुछलखिन- “कनियाँ, दोकानक काज अछि?”
डिब्बा-डूब्बी हड़बड़बैत पुतोहू बजली- “हँ।”
“की सब लेब?”
“नोन, हरदी।”
पुतोहूक साँस किछु गर्म सुचिताकाकीकेँ बुझि पड़लनि। मुदा अनठा देलनि। नोनक पौकेट दस रूपैयामे देत, हरदियो कि कोनो सस्ता अछि। ओकरो पौकेट दस रूपैयासँ कममे कहाँ दइ दइ छै। हाथमे तँ पनरहेटा रूपैया अछि। केना दुनू चीज लेब। मन फुनफुनेलनि। बड़बडाए लगली, केहेन बढ़ियाँ खुदरा-खुदरी नून विकाइ छलै, जतबे जकरा सकड़ता रहै छलै से ततबे लइ छलए। आब तँ तेहेन पोलीथीन पौकेटमे रहैए जे कमो रहत तँ बनियाँ कहत जे घमि गेल हएत। खाएर एक चुटकी नूने ने कम देत। एक-ने-एक दिन सैरियत दिअए पड़तैक। जहिना बच्चा लगले कनैए, लगले हँसैए तहिना सुचिताकाकीकेँ मन लहड़ए लगलनि। जे नून हाथीकेँ गला दइए ओ प्लास्टिककेँ कि नै गलबैत हएत। आब की कोनो नून खाइ- छी आकि प्लास्टिकक रस पीबै छी। हे भगवान तोड़े हाथ-बाठ छह। जते दिन जीबए दइक हुअ से जीबह दिहह, नै जे लऽ जाइक हुअ तँ लऽ जहिहह। कहू जे प्लास्टिके कलमे पानि पीबै छी, दोकानक चीज-वौस अनै छी, खाइ-पीबैक समान रखै छी। जूत्ता-चप्पल, कपड़ा-लत्ता पहिरै छी। मुदा....?
लगले मन पुतोहू दिस घुरलनि। कहू जे चारिटा गाछ घरोक दावापर हरदी रोपि लेब तँ साल भरि कीनए पड़त। जाबे माल-जाल नै छलए ताबे बाड़ी झाड़ी करै छलौं। आब तँ मालोक नेकरमसँ नहाइयो-खाइयोक पलखति नै होइत रहैए। कनियाँ सहजहि कनिये छथि। कोनो लूरि-ढंग बाप-माए सिखा कऽ पठौलखिन आकि सोलहो आना सासुरे भरोसे छोड़ि देलखिन। मदुा गलती बुढ़होक छन्हि। कोन दुरमतिया चढ़ि गेलनि चारि कोसी पारक पुतोहू उठा अनलनि। एकेटा वस्तुक चरि-चरि, पँच-पँच तरहक िवन्यास बनैए, जरूरतक हिसावसँ रूप-बदलि उपयोग करब। तइ कालमे कहती जे खाली, अल्लूक, तरूआ, भुजुआ, भुजिया टा बनबैक लूरि अछि। अपसोच करैत बजलीह- “जा हे भगवान, जे पुत हरबाहि गेल, देव-पितर सभ से गेल। कोनो मनोरथ रहए देलह। जखन मनोरथे नै तखन सतयुग, त्रेता, द्वापरे कि।”
तइ बीच मोख लागल ठाढ़ पुतोहू बजलीह- “आइ शुक्रवारी छिऐ। जखन चौक दिस जाइते छथि तँ अंगूरो आ केरो फलहार ले लेने अबिहाथि।”
पुतोहूक बात सुनि सुचिताकाकी छगुन्तामे पड़ि गेली। मनमे हुअए लगलनि जे एक हजार बात एक्केबेर कहि दियनि मुदा कतौ-कतौ नहियो टोक देब नीक होइत अछि। तँए, किछु नै बजैसँ परहेज केलनि। मुदा, जहिना आगिपर चढ़ल पाइनिक बर्तनमे ताओ लगिते तरसँ बुलकरा उठए लगैत तहिना काकीक मनमे उठए लगलनि। कहू जे अखन पनपिआइक बेर छै, पहिने तेकर ओरियान कऽ पुरूख-पात्रकेँ खुआएब अपने खाएब आकि सौझुका फलहारक ओरियान करब। बीचमे कलौ सेहो अछिये। भगवानो टेबिये कऽ पुतोहू देलनि। एहेन-एहेन गिरथानि बुते कते दिन घर-परिवार चलत। काकीकेँ चुप देख पुतोहू दोहरबैत बजलीह- “नै सुनलखिन। जखन चौक दिस जेबे करती तँ अंगूरो आ केरो नेनहि अबिहाथि।”
पुतोहूक बात सुनिते काकीक मनमे तरंग उठलनि। तरंगि कऽ बजए लगली- “अहाँ सब कोन उपास करै छी जे सहैसँ पहिनहि फलहारेक ओरियान करए लगै छी। कहुना-कहुना तँ सातटा हरिबासय केने छी। कहाँ कहियो पहिने फलहारेक ओरियान करै छलौं।”
शब्द-वाण जकाँ काकीक बात पुतोहूक हृदैमे लगलनि। तीर बेधल चिड़ै जकाँ छटपटाइत पूतोहू बजलीह- “अपना जे मन फुड़ै छन्हि करै छथि से बड़बढ़िया मुदा हमरा बेरमे भबडाह हुअ लगै छन्हि?”
भबडाह सुनि काकियोक मन बेसम्हार भऽ गेलनि। कहलखिन- “कनियाँ, हम भबडाहि नै छी जे ककरोसँ भबडाह करब। अखन आँखि तकै छी तँए चिन्ता अछि। अखने आँखि मूनि देब, घर सम्हारए पड़त। तखन अहूँ यएह बात बुझबै।”
भनडार कोणक जेठुआ गड़ै जकाँ दुनूक बीच रसे-रसे अन्हर-विहाड़ि पकड़ए लगल। कियो पाछू हटैले तैयार नै। दुनूक सीमा-सरहद टूटि-एकबट्ट भऽ गेल। एक्के-दुइये धीयो-पूतो आ जनिजातियो सभ अबए लागलि। आंगन भरि गेल।
चौकसँ किछु पाछुए नित्याननकाका रहथि कि मनमे उठलनि, चौरंगी हवा बहैक समए अछि। कखन कोन हवा केम्हरसँ उठत आ घर-दुआर खसबैत केम्हर मुहेँ चलि जाएत तेकर ठेकान नै। ठोर बिदकि गेलनि। हुलकी दैत मुस्की बहरेलनि- “एह, अजीब-अजीब करामाती मनुक्खो सभ भऽ गेल। कनिये गलती विधातोक भेलनि जे सींग-नाङरि काटि लेलखिन।”
तहिकाल लाडस्पीकरक आवाज कानमे पड़लनि। राधा-कृष्ण मंदिरपर झूला चलि रहल अछि। आवाज सुनि मन पसीज गेलनि। साओन मास। सुहावन। मन भावन। विशाल वसुंधरा, रंग-रंगक वस्त्र पहीिर मधुमय वातावरणक बीच, विहुँसि रहल अछि। कृष्णक कदमसँ कदम मिलबैत राधा विहुँसैत झूला झूलए कदमक गाछ दिस जा रहल छथि। असीम उल्लास। अदम्य साहस दुनूक बीच। कातेसँ गाछमे गोल-गोल, लाल-पीयर झुमका लगल फल-फूलसँ लदल देख राधा कृष्णकेँ पुछलखिन- “डोरी लगा डारिमे झूला लगाएब आकि डारियेपर बैस झूलब?”
राधाक प्रश्न सुनि कृष्ण आँखियेक इशारासँ उत्तर देलनि- “जेहेन समए तेहेन काज।”
चौकक गनगनाइत अबाज, नित्याननकाकाक धियान अपना दिस खिंचलकनि। तखने एकटा नवयुवककेँ स्कूलमे भेटल बहिनीक साइकिलपर ‘रेशम की डोर’ गुनगुनाइत सुनलनि। चिप्पी सजल विदेशी वस्त्रमे युवक। जहिना दिन-रातिक मध्य जाड़-गरमीक मध्यक संग जिनगियोक मध्य मधुआएल होइत, तहिना काकाक मन सेहो भेलनि। युवककेँ पुछि देलखिन- “बाउ, परिवारमे के सभ छथि?”
युवक- “बाबा, हिनका सबहक चरणक दयासँ सब छथि। माइयो-बाबू आ दूटा बहिनो अछि। एक बहीन सासुर बसैए, जतए जा रहल छी आ दोसर पढ़ैए। सोलहम बर्ख छिऐ। दू-तीन साल बाद िवआहो करब।”
काका- “अपने?”
युवक- “बाबा, ई देवतुल्य छथि, झूठ नै बाजब। अपना खेत-पथार नहिये जकाँ अछि मुदा खेतबला सभकेँ बहरा गेने बटाइ खेत पर्याप्त अछि। एक जोड़ा बड़द रखने छी। बाबू-माए खेते-पथारमे खटै छथि, अपने बम्बईमे रहै छी।”
काका- “राखी पावनि तँ काल्हि छिऐ, आइये किअए जाइ छी?”
युवक- “साल भरिपर बम्बईसँ एलौंहेँ। एको दिन पहिने जँ बहिनक ऐठाम नै जाएब, से केहेन हएत? भागिनो-भगिनियो ले आ बहीनो-बहनोइले सालो भरिक कपड़ा नेने जाइ छियनि। काल्हि बेरमे घुमब तखन छोटकी बहिनक हाथे राखी पहिरब। अच्छा अखन जाइ छी बाबा। काल्हि फेर घुमती बेर भेँट करब।”
काका- “काजे जाइ छी। जाउ?”
जेना-जेना ओ युवक साइकिलसँ आगू बढ़ल जाइत तेना-तेना नित्याननोकाकाक मन दौगए लगलनि। मनमे एलनि पैछला सालक मोवाइलिक घटना। कनी मन खुशी भेलनि। बुदबुदेलथि- “अजीव-अजीव मदारी सभ अछि। गर लगा-लगा नचबैए।” मन रूकलनि। पहिनेसँ ने लोक किअए बुझैए जे एहेन-एहेन घटनाकेँ बढ़ए नै देत। मुदा मन ठमकलनि। घटना भेल। राखी पावनि दिन, दस बजे रातिमे बम्बैसँ एक गोटेकेँ मोवाइलसँ समाचार आएल जे बौआ सबहक हाथक राखी जल्दी खोलि दियौ नै तँ अनहोनी घटना हएत! इमहर मुहेँ-मुँह समाचार पसरब शुरू भेल ओमहरसँ मोवाइलिक समाचार दिल्ली, कल्कत्ता, बंगलोर इत्यादिसँ अकासमे गनगनाए लगल। हाँइ-हाँइ राखी हाथसँ उतड़ए लगल। भरि रातिक हलचल दिनक दस बजे धरि चलिते रहल। राति भरिक नीनो दिनेमे बौआ गेल। मुदा दस बजेक पछातिक तीखर रौद पाबि वातावरण शान्त भेल। मनमे उठलनि बाल-बच्चाक संग माए-बापक संबंध। केना मनुष्यक वंश आगू मुहेँ ससरत जतए माइये-बाप दुश्मन बनि ठाढ़ भऽ रहल अछि। तहूमे जिनगीक अंतिम बेलामे नै, उदयक तीनिये मासमे हथियार लऽ आगूमे ठाढ़ भऽ जाइत अछि! मन तुड़छए लगलनि। थूक फेक मन हल्लहुक केलनि। मन पड़लनि भाए-बहीनिक ओ पुरान बात। भाए-बहिन ऐठाम पहुँचल तँ बहिन भायकेँ कहलकनि- भैया जखन अकासक डगर उत्तरे दछिने हएत तखन आएब। मन पड़िते उठलनि सालो भरि तँ प्रकृतक संग खेल होइते रहैत अछि, जिनगीसँ कतेक लग धरि संबंध बनि सकैए, ततबे ने।
जना मेघौनमे हवा-सिहकी लगने घुसकैत-फुसकैत तहिना नित्यानन कक्काक मन घुसकलनि। देखलनि जे चकेबा कोन तरहेँ बहिन समाकेँ जरैत वृन्दावनमे संग दऽ रहल छथि। जे मनुष्य चित्ती कौड़ी फेक नागसँ दोस्ती करैत, बाघ-सिंह, भाउल सहित गाए-महींस, बकरीक संग मुनियासँ हंस धरि प्रेमसँ एकठाम रहैत ओकरा मनुष्यसँ एते घृणा किएक छै। जे धी-जमाए-भगिनाक लेल कहल जाइत, ओइमे कियो अपन नै! तहिना भाए-बहिनकेँ महींसक सींग सदृश्य कहल जाइत। एक जातिक संहार कऽ बगीचाक काँट हटाएब कहल जाइत अछि! मन तरंगि गेलनि। तखने एकटा बेदरा आबि कहलकनि- “बाबा, अंगनामे विरड़ो उठल अछि।”
बेदरासँ किछु पुछब उचित नै बुझलनि। उड़ैत अकासमे कौआ अपन टाहि थोड़े दोहरबैए। ओ तँ समैक घड़ी छी। मन आंगन पहुँचलनि। पत्नीपर नजरि पड़िते विचार उठलनि। झगड़ी की रगड़ी ओहो छथि। बूढ़ भेलौं, एतबो होश नै रहै छन्हि। होशो केना रहतनि जइ परिवारकेँ फुलवाड़ी सदृश्य जिनगीक कमाइसँ बनौने छथि तेकरा जँ कियो उजाड़ए चाहत से केना उजाड़ए देथिन। मुदा रगड़ी रहितो एकटा गुण तँ छन्हि जे, ने रग्गड़ ठाढ़ करैमे देरी लगै छन्हि आ ने सीढ़ीक भीतर फड़यबैमे। नजरि पुतोहू दिस बढ़लनि अजीव-अजीव लोको सभ फड़ि गेलहेँ। कहत जुगे बदलि गेल। कि जुग बदलल से कहबे ने करत आ कहत जे जुगे बदलि गेल। तहमे तेहेनठाम देखाएत जे अनेरे देहमे झड़क उठत। सासुकेँ उनटा-पुनटा पुतोहू कहथिन तइकाल जुग बदलि गेल। मुदा सासुक लगाओल फुलवाड़ीकेँ कते समृद्ध बनेलौं तइ काल...। जहिना अपन बाप-माए लगसँ कानि कऽ एलौं तहिना अहू परिवारकेँ कनाएब। अनठा चौकपर पहुँचलथि।
चौकपर पहुँचते चाहक दोकानमे गदमिशान होइत रहए। चाह पीबनिहार अपना धुनिमे आ दोकानदार अपन धुनिमे। चाहबला आगि-अगोंड़ा होइत जे सभटा फोकटिया आबि बैस पँूजी बुड़बै पाछु अछि। गिलासपर गिलास चाह ढारने जाइए आ पाइक कोनो पते नै। मुदा खुलि कऽ ऐ दुआरे नै बजैत जे अखन दोकानपर सँ थोड़े चलि गेल जे बुझबै पाइ बुड़ि गेल। तँए दम कसि लिअए। ओना भीतर शंका पुन: उठि जाइ। चेहरा मिलानी करै तँ वएह चेहरा बुझि पड़ै जे अधासँ बेसी ओहन अछि जे सौ-पचास पीब-पीब कऽ दोसर दोकान पकड़ि लेने अछि। किछु जे अछि ओकरासँ कोनो नै कोनो काज हेबे करत। तँए पहिलुके उपकार ने पछाति जुआ कऽ नमहर भऽ जाइए। तँए मुस्की दऽ मन माड़ि लिअए।
मुदा चाह पीबनिहारक उत्साह भिन्ने रहए तँए चाहबला दिस कियो तकबे ने करैत। खाली एतबे कहैत जे दूध जरा कऽ स्पेशल बनाएब। गप्पोक धारा एहेन रहै जे, जहिना जुलूशमे लोक पएरमे लगैत गंदगीकेँ रास्तापर आरो चारि बेर रगड़ि आगू बढ़ैए। एक संग अनेको पर्व। लोक भलहिं लोकसँ जते हटि जाए, मुदा पावनि थोड़े हटत। कम-बेसी भलहिं भऽ जाए। अजीव-सिनेहक संग राधा-कृष्ण बाँहि-मे-बाँहि जोड़ि झूला झूलैत छथि। भाए-बहिनक बीच एहेन पर्व दोसर कहाँ अछि। भरदुतिया तँ भरदुतिये छी। कमलाक जल सेहो बैद्यनाथ बाबाकेँ विदेसरमे भेटबे करतनि। अजीव उमंग-उत्साहसँ हँसिते-हँसिते महिना दिनक संकल्प निमाहि लैत छथि। नित्यानन काकापर नजरि पड़िते प्रेम कुमार चाहेक दोकानपर सँ कहलकनि- “काका, एतै आउ। सभकेँ-सभ छथि।”
मुस्की दैत नित्याननकाका कहलखिन- “खाली लोकेटा नै ने फगुआक रमझौआ होइए। ऐ मे की सुनब आ की बाजब। तइसँ नीक बाहरेमे आबह। चौसठिम स्वतंत्रता दिवसक बरखी छी, नै पान तँ पानक डंटियो लऽ कऽ सुआगत करबे करबनि।”
तहीकाल अंगनाक समाचार नेने बेटा पहुँचलनि। हाथसँ आँखि मलि-मलि बलौसँ ललिया-करिया नोर बहबए चाहैत। बेटाकेँ बजैसँ पहिने पूछि देलखिन- “किअए मन मन्हुआएल छह?”
“दुनू-गोटे -सासु-पुतोहू- अंगनामे झगड़ा करै छथि।”
“झगड़ा शान्त करितह िक कहए एलह?”
“हमर बात के सुनत।”
मुस्की दैत नित्याननकाका घर दिस विदा भेला। जते घर लग आएल जानि तते झगड़ो नरमाएल जाइत रहए। सुनै दुआरे कक्को छोटकी डेग बनबैत। मुदा जहिना-जहिना डेग छोट होइत जानि तहिना-तहिना अछियाक मुरदा जकाँ झगड़ा शान्त भऽ गेल।
दुआरपर पहुँचते देखलनि जे जहिना भारी काज केलापर वा रौदाएल एलापर छाहरिमे ठाढ़ भऽ नमहर-नमहर साँस लैत तहिना अंगना-दलानक कोनचर लग ठाढ़ भऽ साँस छोड़ि रहल छथि। आगू आँखि उठा देखलनि तँ पुतोहू थारी-लोटा मँजैबला ओचौन लग ठंठाइते साँस छोड़ि रहलीहेँ। बजैत कियो नै। जहिना मुकदमाक खलीफा मुद्दालह बनि लड़ैमे प्रतिष्ठा बुझैत, तहिना दुनू गोटे। मनमे उठलनि ककरो प्रतिष्ठाक सीमामे नै जेबाक चाहिऐक।
१.जवाहर लाल कश्यप २.रामदेव प्रसाद मण्डल झारूदार३. लक्ष्मी दास ४.उमेश मण्डल ५.मिथिलेश मण्डल १
जवाहर लाल कश्यप (१९८१- ), पिता श्री- हेमनारायण मिश्र , गाम फुलकाही- दरभंगा। एक टा विहनि कथा
हम्मर माय तोहर माय
बेमार बुढ मायक ठीका अहीं लेने छी, औरो बेटा छन्हि ने, हुनकर कनियाँ सभ चैनसँ रहथि आ हम बुढ आ बच्चामे परेशान रहू। ई नै हएत।
कनियाँक बात सुनि हम सोचलहुँ जे छोटकाकेँ फोन कऽ कहि देब जे मायकेँ छ महिना अपना लग राखि लहक ,तोरो तँ माय छथुन्ह्।
तखने बचपनक एकटा बात मोन पड़ि गेल ,बच्चामे दुनु भाय झगड़ा करैत छलहुँ जे हम्मर माय-हम्मर माय आ आब ओकरासँ पिन्ड छोड़ा रहल छी तोहर माय -तोहर माय।
२.रामदेव प्रसाद मण्डल झारूदार
अल्लूक चुमौन
निरमली बाजारसँ डेढ़ियापर पहुँचले रही कि दुनमाकाका पुछलनि- “झारू, बड़ चलती देखै छियह। कि बात छिऐ?”
गोसाँइ डूमि गेल मुदा अन्हार नै भेल रहए। एक तँ, नहेनौ ने रही से खौंत दैत रहए दोसर, चाइनिक झमारसँ सेहो पस्त रही। विचार रहए जे नहा कऽ किछ खाएब तखने मन असथिर हएत। कहलियनि- “कक्का, बजारेसँ अबैमे अबेर भऽ गेल। बरियाती जेबाक अछि।”
महिना अजमबैत दुनमाकाका कहलनि- “केकर?”
कहलियनि- “अल्लू भायकेँ।”
“ओकरा तँ परोड़ियाहीवाली काकी छेबे करै तखैन दोहरा कऽ करत।”
“नामे ले ने छन्हि। पकि गेलखिन किनेे?”
“पकि गेने क्यो छोड़ि दइ छै?”
“से कहलियनि। मुदा ओ मानैले तैयारे नै छथि। कहै छथि जे पुरूखक हड्डी छी किने। चमड़ा घोकचने कि हेतै। अखनो उसैन खोंइचा सोहि कोबीक महफामे बैसा दिअ। तखन जँ उन्नैस भऽ जाएब तब जे कहब मानि लेब।”
३
लक्ष्मी दास अपन सन मुँह
नीन टूटि गेल रहए, मुदा विछानपर पड़ले रही आकि मैझला बेटा उठबैत कहलक- “बाबू चितकबरा काकाकेँ खस्सी चोरि भऽ गेल।”
पुछलिऐ- “तूँ केना बुझलिही।”
कहलक- “एँह, सौंसे गामक सभ बुझलकै।”
सगरे यएह गप-सप्प होइ छै। घटनो आ जिगेसोक खियालसँ बिदा भेलौं। चोर-मोट सभ सोझेमे।
घटना भेल कते गोटे केसमे फँसल।
शुरूमे जमानत-तमानत करा सभ निचेन भऽ गेलौं।
बीस बर्ख बाद वारंटक संग चौकीदार पहुँच गेल।
बहुत दिन भेने केस फड़ियबैक विचार भेल। विचार इहो भेल जे जेकर घटना छिऐ ओ जँ अपन बूझि खर्च करए तँ नीक बात।
अपना सबहक दौड़-बड़हा ओकर खर्च।
चितकबड़ाकेँ पुछल गेल। ठोकल मुँहे बाजल- “हमहीं कहने रहिहह।”
अपन सन मुँह लेने चलि एलौं।
४
उमेश मण्डल
१
कनफेड़सँ मुँहफेड़
बरसपतिबाबाकेँ एहेन दुख जिनगीमे नै भेल छलनि जेहन आइ भेलनि।
जखन हुबगर छलाह तखन परोपट्टाक लोक उचित वक्ता मानि ओझराएलसँ ओझराएल पनचैती करबैत छल। मुदा हुबा घटने एहेन दिन देखए पड़लनि।
कृष्णदेव मधुबनी कोर्टमे किरानीक नोकरी करैत। जे कियो काजे ओइ ऑफिस गेल सभ बुझैत जे कृष्णदेव केहेन घुसखोर अछि। रेलवे टिकट जकाँ सभ काजक रेट बनौने। संयोगसँ बरसपतिबाबा सेहो एक िदन एकटा काजे गेलाह। मुदा बुझि नै सकलथि जे घुस दऽ कऽ काज भेल। भेलनि जे सरकारी फीस लगल हएत।
ऑफिससँ निकलिते एक गोटे पुछि देलकनि- “कते घुस लागल।”
“घुस किअए लागत। सरकारी फीस लागल।”
एक्के-दुइये जखन चारि-पाँच गोटे कहलकनि तखन मन मानि गेलनि जे फीस नै घुस लागल। मुदा आब उपाए की? कोनो सबूत तँ नै अछि। एकटा उपाए फुड़लनि। ओ ई जे अखनेसँ बाजब शुरू कऽ देब जे कृष्णदेव घुसखोर अछि। सएह केलनि। खूब बदनाम केलनि।
समए मोड़ लेलक। बरसपतिबाबाक हूबा सेहो कमलनि। सौ रूपैयाक बेगरता भेलनि। गाममे कृष्णदेवक महाजनी चलैत।
बरसपतिबाबा कृष्णदेवकेँ कहलखिन- “किसुन, एक साए रूपैयाक बेगरता अछि, सम्हारि दाए।”
मौका पाबि, जहिना बगड़ापर बाझ झपटैत तहिना कृष्णदेव ठोकले मुँहेँ उत्तर देलकनि- “बाबा, जँ अहाँकेँ बजैऐक छल तँ हमरो पुछि लइतौं। हम लेलिऐ तँ चौरासी परचार केलौं आ डेढ़ लाख लऽ कऽ जे नोकरी भेल, आ तइपर सँ महीना-महीने भरए पड़ैए, से के बाजत?”
कृष्णदेवक बात सुनि बरसपतिबाबा मने-मन विचार करए लगलथि। ठीके कनफेड़सँ मुँहफेड़ भऽ गेल।
२
कुसियारक मारि
चैत मास। तीनू गोटे सखरा जाइत रही। तीनू गोटे बच्चेक संगी मुदा तीन जातिक छी। एक सिंहजी दोसर रायजी तेसर अपने। तीख रौद मुदा पूर्वा सह दैत। रास्ता कातेमे कुसियारक खेत। डमहाएल कुसियार रससँ तड़तड़ करैत। पियासो लगि गेल रहए। कुसियार देख मोन डोलि गेल। हुनका दुनू गोटेकेँ कहलियनि एक छड़ कुसियार खाइक मोन होइए। मन हुनको दुनू गोटेकेँ रहनि मुदा आगू भऽ कऽ बजलौं हमहीं। तीन छड़ कुसियार तोड़ैक सहमति भऽ गेल। एक तँ जुआन दोसर तीन गोटे छी। असगर दुसगर बगबार रोकत तँ मारियो खएत। तीनू गोटे तीन छड़ तोड़ि लेलौं।
शुरूमे जँ बुझितिऐ जे असगरोमे तागत होइ छै तँ एहन काजे नै करितौं। पछाति बुझलिऐ। कुसियारक खेतसँ निकलिते रही आकि बगबार आबि कऽ आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। हियौलक मुदा बाजल किछु नै। रस्तापर आबि गाछक छाहरिमे तीनू गोटे कुसियार खाए लगलौं। बगबारो आबि, कनी हटि कऽ ठाढ़ भऽ सिंहजीकेँ इशारा देलक। कुसियार खाइते सिंहजीक कानमे फुसफुसा कऽ किदैन कहि देलक। तहिना राइयोजीकेँ केलक। हम असगरे छुटि गेलौं। सनकल आबि कुसियार छीनि पच्चीस कुसियार मारलक आ पचास बेर कान पकड़ि कऽ उठौलक बैसौलक। माइरिक चोट ओते नै लागल जेतैक संगीक किरदानी। रूष्ट भऽ असगरे विदा भऽ गेलौं। थोड़े आगू बढ़ि पाछू घुरि तकलौं तँ रायजीक उपरमे तड़ातड़ि कुसियार बरिसति देखलिऐ।
हमर मारि तँ सभ देखनहि छल। तँए कहैक जरूरते नै मुदा रायजीक मारि तँ हम नहि देखने। कनैत देख पुछलियनि- “भाय, किअए ठुनकै छी?”
मुदा तैयो सोझ डारिये नै चिक्कारियेमे कहलनि- “जएह गति अहाँक सएह अपनो।”
एते गप होइते छल आकि फटाक-फटाकक अबाज हुअए लगल। सिंहजी आ बगबारो गाड़ि गड़ौबलि आ ललका-लककी सेहो करैत छल। हम दुनू गोटे वामा कानक बगलमे हाथ लगा ठीकसँ सुनए लगलौं। गाड़ि पढ़ि बगबार बाजल- “बापेक खेत छलह?”
सिंहजी जबाब देलखिन- “जेकरा बात नै ओकरा बाप नै। मुँह चुकरियबैत की बाजल रहह?”
जहिना मारि खेलापर चोट लागल रहए आ दुखी भेल छलौं तहिना सबहक देख कऽ खुशियो भेल। हँसी-मजाक करैत तीनू गोरे सखरा भगवतीक दर्शन कऽ घुमलौं।
५
मिथिलेश मण्डल मरनी बेटी
जिनगीमे पहिल खेप रविया माएकेँ बृद्धा पेन्सन भेटलनि। मन खुब खुशी भेलनि जे सरकारमे हमरो हिस्सा अछि। विडियो सहाएब अपने हाथे बँटता तँए घूस-पेंचक डरे नै। तहुमे गामेक स्कूलपर आबि कऽ बँटता। पता लगल जे विडियो सहाएब बेरादरे छथि। तँए ओढ़ि-पहिर कऽ जाएब जरूरी अछि। पुतौहूबला चपलो आ साड़ियो पहिर विडियो सहाएबक सोझमे बैसलौं। नाओं पुकार भेल। सहाएबक आगूमे ठाढ़ भेलौं। पुछलनि- “कि नाम?”
कहलियनि- “मरनी।”
सुनिते कहलनि- “समए बदलि रहल छै, नाम बदलि लिअ।”
कहलियनि- “हाकिम, ननीक पोसलो छी आ नानीऐक देल नाउअों छी।”
चकोना भऽ विडियो सहाएब पुछलनि- “कि नानिक देल?”
कहलियनि- “हाकिम, जन्मे दिन माए मरि गेलि। आेही दिनसँ नानीये पोसबो केलनि आ मरनी बेटी कहि नाउओं रखि देलनि। सियान भेलौं। आब लोक मरनियेटा कहैए।”
युवा पीढ़ीक दृष्टि फरीछ निश्शन विहनि कथाकार एवं निबन्धकार श्री मिथिलेश कुमार झासँ हुनक साहित्यिक यात्रा मादेँ मुन्नाजीक भेल गप्प सप्पक मुख्य अंशकेँ अहाँ सबहक सोझाँ राखल जा रहल अछि। मुन्नाजी- अहाँ सक्रियताक संग मैथिली विहनि कथाकेँ अपन रचनाक आदर्श मानि रचनारत छी, कहू जे अपन साहित्यिक रचनाक प्रारम्भ कोना कएल?
मिथिलेश कुमार झा- सतमामे पढ़ैत रही । हिन्दी सहित्यक कोनो कविताक अंतमे प्रश्नमालाक बाद भाषा-विस्तारक गतिविधिमे एकटा शीर्षक देल रहै-‘आँधी आई-आँधी आई ’ आ ताहिपर कविता बनेबाक रहै। ततहिसँ हमर साहित्यिक रचनाक आरम्भ अछि। नवम-दशममे आबि मातृभाषाक रूपमे मैथिली रखलहुँ आ रचनाक भाषा स्वभावत: मैथिली भऽ गेल ।
मुन्नाजी- अहाँ विहनि कथाक अतिरिक्त सुन्दर बाल साहित्य सृजन आ निबन्ध लेखन करैत छी। सभसँ बेशी संतुष्टि कोनो विधाक कोन प्रकारक रचनासँ भेटैछ?
मिथिलेश कुमार झा- कोनहु रचनाकारकेँ संतुष्टि तखन भैटै छै जखन ओ अपन मोनक बात ठीक-ठीक अपन रचनामे कहबामे सफल भऽ जाइत अछि आ ओहि बातकेँ पाठक ठीक ओही रूपमे बुझि जाइत छैक । विधाक बात कही तँ हमरा बुझने भिन्न-भिन्न बातक हेतु भिन्न-भिन्न विधाक खगता होइत छै । सभटा बात एकहि टा विधामे कहब मोसकिल। तैं, कोन विधा हमरा संतुष्टि दैए से कहब कठिन । हँ तखन , कविता हमर प्रिय विधा अवस्स थिक । ओना हम बहुत कम कविता लिखि पबैत छी।
मुन्नाजी- अहाँ वर्तमानमे बांग्ला परिवेशमे गुजर कऽ रहल छी, तँ कहू जे बांग्ला मध्य मैथिलीक की अस्तित्व लगैछ, दुनूमे की घटी बढ़ी देखाइछ?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली आ बांग्ला दुनू बहिनि थिकीह । पहिने बंगलाकेँ मैथिलीसँ प्राण भेटल छलै । एखन मैथिलीकेँ बंगलासँ प्रेरणा भेटै छै । सम्प्रति रचनाक मात्राक स्तर पर , पाठकक संख्याक स्तरपर , पत्र-पत्रिकाक संख्याक स्तरपर , मातृभाषाक हेतु समर्पित व्याक्तिक संख्याक स्तरपर बंगला मैथिलीसँ बड्ड बेसी आगाँ ठाढ़ अछि। बंगभाषी आनहु ठाम बसि गेने अपन भाषा नहि छोड़ैत अछि। मैथिलीभाषी अपनहु घरमे हिन्दी छकरै छथि। भाई , कतेक कहब…. बड़ अन्तर छै ।
मुन्नाजी- अहाँ अपन एकान्त सृजनमे सृजनरत छी, जखन की मैथिली साहित्य मध्य समूहबाजी डेग-डेगपर देखा पड़ैछ। एनामे अहाँक एतेक निश्शन रचना देबाक पछातियो साहित्यपट सँ हेरा जेबाक वा वेरा देबाक सम्भावनाक शंका नै देखाइए?
मिथिलेश कुमार झा- हमरा ने तँ गोलैसी करऽ अबैत अछि आ नै ओइमे विश्वास अछि। एकटा सुच्चा रचनाकारकेँ अपन रचनाकर्मसँ सरोकार राखक चाही सन्तकेँ सन्त कहक चाही-बस्स। हेरा जेबाक किंवा वेरा देल जेबाक मादें कोनो शंका हमरा नहि अछि । किएक तँ जे सुच्चा लोक छथि से तँ एना नहिए टा करताह । आ जे गोलैसी केनिहार आ तबेदारी प्रकृतिक स्वार्थी लोक छथि से ककरो नहि, कोन गड़े कखन केम्हर बैसताह से बूझब ब्रह्मो लेल असंभव । तैँ हुनकर चिंता बेकार !
मुन्नाजी- महानगरक व्यस्त जिनगी मध्य अहाँक सोच सामाजिक उकस-पाकसकेँ बड्ड गहींरसँ नापि सृजन करबामे सफल होइत देखार भेल अछि। एकर कोनो विशेष मूल-मंत्र तँ नै अछि।
मिथिलेश कुमार झा- महानगरमे रहितो हमर आत्मा गामेमे बसैए । संगहि जीवन-संघर्ष आ सामाजिक सरोकारक अनेक तीत-मीठक अनुभवकेँ हमर मूल-मंत्र अहाँ कहि सकैत छिऐ।
मुन्नाजी- अहाँ पत्रकारितामे सेहो अपनाकेँ अजमेलौं मुदा आब ओइसँ विमुखता देखाइछ, ओकर की मूल कारण अछि?
मिथिलेश कुमार झा- हम पत्रकारितामे अपनाकेँ एखनहु अजमा रहल छी । के कहलक जे हम ओइसँ विमुख भऽ गेलहुँ ? ‘मिथिला चैम्बरक सनेस’, ‘श्री मिथिला’, ‘मिथिला समाद’, मिथिला दर्शन’, ‘कर्णामृत’ आदि मैथिलीक पत्र-पत्रिकामे हमर आलेख आ रिपोर्ट सभ पत्रकारिता नहि तँ आर की थिक? हँ , तखन वृत्तिक रूपमे सहायक संपादक , रिपोर्टर आदि क्षेत्रमे (हिन्दी पत्रकारितामे) हम फिट नहि भऽ सकलहुँ । श्री संतोष सिंह झा हमरा गौहाटी बजेबो केलाह तँ कतिपय कारणे हम नहि जा सकलहुँ , से बात फराक ।
मुन्नाजी-मैथिली पत्रकारिताक वर्तमान दशा आ भविष्यक दिशा अहाँक नजरिमे केहेन देखाइछ?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिलीमे साहित्यिक पत्रिका सभक संगहि ‘समय-साल’ सन समाचार केन्द्रित पत्रिका आ ‘मिथिला दर्शन’ सन पारिवारिक पत्रिका बहार भऽ रहलए । किंतु , बहुत रास रुचि ओ विषय छैक जाहिपर पत्रिका बहार कएल जेबाक चाही –से धरि कोना हो , विचारणीय। सर्वाधिक आवश्यक बाल-पत्रिका अछि जे नहि बहार भऽ रहल अछि । माने, पत्रिकाक स्तरपर पत्रकारिता एक-भगाह अछि । दैनिक पत्रक नाम पर ‘मिथिला समाद’ निकलि तँ रहलए अवस्स उदा मजगूत नहि भऽ सकलए । सभ मिला कऽ मैथिली पत्रकारिताक वर्तमान संतोषजनक नहि कहल जाए । तखन, एकर भविष्यक प्रति आशा राखि सकैत छी ।
मुन्नाजी- मैथिली विहनि कथा (लघुकथा)पर वर्तमान क्रियाकलापेँ एकर वर्तमान आ भविष्य केहेन देखा पड़ैछ। एकरा फरीछ हेबा लेल आओर की सभ कमी देखाइछ?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली विहनिकथाक मोजर आरंभ भऽ गेल अछि । वर्तमानमे ई विधा जड़ि जमा लेलक अछि । एकर भविष्य खूब नीक छै आ ई सर्वाधिक पढ़ल जाएबला साहित्यिक विधि बनि जाएत से हमरा पूर्ण विश्वास अछि । एहि विधाकेँ आओर लोकप्रिय बनेबाक लेल आ निस्सन करबाक लेल रचनाकार लोकनिकेँ सचेत भऽ कऽ मेहनति करक चाहियनि। एकर एक-एकटा शब्दक अपन ओजन होइत छैक, तैं धरफरा कऽ विहनि कथा नहि लिखल जेबाक चाही । धरफरी मे रचना कएने ई चुटुक्का बनि जा सकैछ आकि निंगहेस भऽ फेका जा सकैछ।
मुन्नाजी- विहनि कथापर पूर्वक पीढ़ी (पुरान आ मध्य) द्वारा कएल गेल काजकेँ अहाँ कोन रूपेँ मूल्यांकन करब। ओकर निरन्तरतामे नवका पीढ़ीक योगदानकेँ कोना सोझाँ आनऽ चाहब?
मिथिलेश कुमार झा- विहनि कथापर पुरनका पीढ़ी जे काज कएलनि से आरंभिक काज छलै। ओ लोकनि न्यो तैयार कएलनि, दाबा जतलनि आ ताहिपर नवका पीढ़ी देबाल ठाढ़ कऽ रहल छथि। आबऽ बला खाढ़ी ओइपर महल बनाओत । पुरनका पीढ़ीक समय आ परिवेशसँ एखनुका पीढ़ीक समय आ परिवेशमे बेस अन्तर एलैए। आ तै’, ई अन्तर विहनिकथाक कथ्यक विविधताक रूपमे सोझाँ देखार भऽ रहलए । एना कही जे एखन एकर कथ्य ओ शैलीमे स्वाभाविक रूपें नवीनता ओ विविधता एलैए । जीवन ओ अनुभवक प्रत्येक क्षेत्रमे हुलकी दैत सन लगैए वर्तमानक विहानिकथा।
मुन्नाजी- मैथिली बाल साहित्यक स्थिति केहेन देखाइछ। अकादेमी द्वारा बाल साहित्यक घोषणासँ एकर भविष्य कतेक प्रभावित हएत (घटी-बढ़ी दुनू दृष्टिएँ)?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली बाल साहित्यक स्थिति दयनीय ओ चिंतनीय अछि। तथापि एहि क्षेत्रमे ऋषि वशिष्ठ, महाकान्त ठाकुर, जीवकान्त, अनमोल जी, वियोगी जी आदि नीक काज कऽ रहलाहेँ। बाल-साहित्यक क्षेत्रमे हम अपनहुँ सचेष्ट रहैत छी। आर अधिक प्रयासक बेगरता अछि। साहित्य अकादेमी द्वारा बाल साहित्य पुरस्कारक घोषणासँ बाल साहित्यकार प्रोत्साहित होएताह। पोथी सभ प्रकाशित होएत। बाल साहित्यक मोजर बढ़त । बाल साहित्यक रचनाकार अपनाकेँ अबडेरल नहि बुझताह । किंतु ,पुरस्कारक लोभमे बाल साहित्यक नामपर अँकटा-मिसिया ने छपय लागय से चिंता स्वाभाविक रूपें उभरि आयल अछि । एहि हेतु सभ गोटे सतर्क रही ।
मिथिलेश कुमार झा 1970-
पिता- श्री विश्वनाथ झा, जन्म-12-01-1970 केँ मनपौर(मातृक) मे पैतृक-ग्राम-जगति, पो*-बेनीपट्टी,जिला-मधुबनी, मिथिला, पिन*- 847223 शिक्षा :प्राथमिक धरि- गामहिक विद्यालय मे। मध्य विद्यालय धरि- मध्य विद्यालय, बेनीपट्टी सँ। माध्यमिक धरि- श्री लीलाधर उच्च विद्यालय,बेनीपट्टीसँ इतिहास-प्रतिष्ठाक संग स्नातक-कालिदास विद्यापति साइंस काँलेज उच्चैठ सँ, पत्रकारिता मे डिप्लोमा-पत्रकारिता महाविद्यालय(पत्राचार माध्यम) दिल्ली सँ, कम्प्युटर मे डी.टी.पी ओ बेसिक ज्ञान। रचना: कविता, गजल, बाल कविता, बाल कथा,साहित्यिक ओ गैर-साहित्यिक निबंध, ललित निबंध, साक्षात्कार, रिपोर्ताज, फीचर आदि।
२
मिथिलेश कुमार झा
पजुआरिडीह टोलमे रंगमंच
मधुबनी जिलाक पजुआरिडीह टोलमे १५० ई. मे श्री कृष्ण नाट्य समितिक स्थापनाक संग नाट्य मंचन प्रथाक सुदृढ़ परम्पराक प्रारम्भ भेल जे श्री कृष्ण चन्द्र झा "रसिक"क नेतृत्वमे होइत रहल। १९६६ ई. मे "बसात" आ तकर बाद "चिन्नीक लड्डू" १९७० ई. सँ श्री शिवदेव झा एकरा आगाँ बढ़ेलन्हि जे विद्यापति (१९६७), उगना (१९७०), सुखायल डारि नव पल्लव (१९७५), काटर (१९८०), कुहेस (१९८५)सँ आगाँ बढ़ल।
१९९० ई.सँ गाममे काली पूजा प्रारम्भ भेल, ओतए चारि रातिमे एक राति मैथिली नाटक श्री गंगा झा क निर्देशनमे हुअए लागल।
१९९०- बड़का साहेब - लल्लन प्रसाद ठाकुर
१९९२- लेटाइत आँचर- सुधांशु शेखर चौधरी
१९९३- कुहेस- बाबू साहेब चौधरी
१९९४- समन्ध- कृष्णचन्द्र झा "रसिक"
१९९५- बकलेल - लल्लन प्रसाद ठाकुर
१९९६- उगना- ईशनाथ झा
१९९७- अन्तिम गहना- रोहिणी रमण झा
१९९८- आतंक- अरविन्द अक्कू
१९९९- प्रायश्चित- मंत्रेश्वर झा
२००१- फाँस- मूल बांग्ला एस. गुहा नियोगी, अनुवाद- रामलोचन ठाकुर
२००२- राजा शैलेश- कृष्णचन्द्र झा "रसिक"
२००३- अन्तिम गहना-- दोहरायल गेल
२००४- उगना- - दोहरायल गेल
२००५- किशुनजी- किशुनजी- मूल बांग्ला श्री मनोज मित्र अनु. रामलोचन ठाकुर
२००६- कालिदासक बखान- ?
२००७-लौंगिया मिरचाई- लल्लन प्रसाद ठाकुर
२००८- पहिल साँझ- सुधांशु शेखर चौधरी
२००९- कुहेस- - दोहरायल गेल
२०१०- ताल मुट्ठी- अरविन्द अक्कू
१.उमेश मण्डल- सगर राति दीप जरए, हजारीबाग २.पूनम मंडल- १.दिल्लीमे गूंजल मैथिली कविता २.५१ साझा पुरस्कारक घोषणा
१
उमेश मण्डल सगर राति दीप जरए, हजारीबाग
10 सितम्बर साँझ 7बजेसँ 11 सितम्बरक भिनसर 6बजे धरि ‘सगर राति दीप जरय’क 74म कथा गोष्ठी श्री श्याम दरिहरे जीक संयोजकत्वमे सिन्दूर कैम्प हजारीबाग (झारखण्ड) मे सु-सम्पन्न भेल। गोष्ठीक अध्यक्षता केलनि- श्री रमानन्द झा ‘रमण’ आ मंच संचालन श्री कमल मोहन चुन्नूजी।
झारखण्ड आ बिहार दुनू ठामक कथाकार अपन-अपन नूतन कथा/लघुकथाक पाठ केलनि यथा- सुन्दर भेल मधाई (प्रदीप बिहारी), अपन सन मुँह (लक्ष्मी दास), कचोट (शशिकान्त झा), अल्लूक चुमौन (रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’), मरनी बेटी (मिथिलेश मण्डल), कनफेरसँ मुँहफेर आ कुसियारक मारि (उमेश मण्डल), सुगन्धा (चौधरी जयंत तुलसी), भवडाह (जगदीश प्रसाद मण्डल), अधिकार (बेचन ठाकुर), एकरा की कहबै (रामविलास साहु), मदिराक प्रभाव (शिवकुमार मिश्र), पोस्टमार्टम (संतोष कुमार झा), महादुखी वा महासुखी (धनाकार ठाकुर), बौआइत मनोभाव (गिरजानन्द ठाकुर), टीश (अशोक) आ गामक सुगंध इन्टरनेट (श्याम दरिहरे)। पठित कथा आ लघुकथापर दू-टप्पी समीक्षा सेहो भेल।
ऐ अवसरपर पाँच गोट मौलिक आ दू गोट अनुदित पोथीक लोकार्पण भेल यथा- (1) मिथिलाक इतिहास (प्रो. राधाकृष्ण चौधरी) लोकार्पण श्री जगदीश प्रसाद मण्डल द्वारा। (2) A survey of Maithili literature (प्रो. राधाकृष्ण चौधरी) लो.- श्री अशोक। (3) कलानिधि (कालीकान्त झा ‘बूच’) लो.- श्री प्रदीप बिहारी। (4) रहए चाहैए गाछ (जीवकान्त) लो.- श्री तुलानन्द मिश्र। (5) धूंध के बावजूद (अजीत कु. आजाद) लो.- श्री जगदीश सिंह। (6) कठिन समय मे शब्द, हिन्दीक मैथिली अनुवाद (अजीत कु. आजाद) लोकार्पण- श्री जीवेन्द्रनाथ झा। (7) परती टूट रही है, मैथिलीक हिन्दी अनुवाद (अजीत कुमार आजाद) लोकार्पण- श्री रमानन्द झा ‘रमण’ द्वारा।
सगर राति दीप जरय'क 75म आयोजन श्री अशोक जीक संयोजकत्वमे पटनामे 10 दिस्मबर 2011केँ होएबाक संभावना।
२
पूनम मंडल - १
दिल्लीमे गूंजल मैथिली कविता
देशक राजधानी दिल्लीमे साहित्यिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक संस्था 'मिथिलांगन" द्वारा आयोजित कवि गोष्ठीमे मैथिली कविता आ गीत खूब गूंजल। अवसर छल साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित डॉ. ब्रजकिशोर वर्मा 'मणिपद्म" क जयंतीक। आयोजन रविवार, 11 सितम्बर, 2011 केँ राजघाट स्थित सत्याग्रह मंडपमे कएल गेल।
विशाल मैथिली कवि गोष्ठीमे मैथिली भाषाक युवासँ लऽ कऽ मूर्धन्य कवि अप्पन विशिष्ट कविताक पाठ कऽ उपस्थित श्रोताकेँ मंत्रमुग्ध कऽ देलन्हि। कवि गोष्ठीक अध्यक्षता पटनासँ पधारल वरिष्ठ हिन्दी-मैथिली कवि डॉ. ललित कुमुद आ संचालन प्रख्यात कवि-नाटककार कुमार शैलेन्द्र केलनि। ऐ कवि सम्मलेनमे कविता पाठक आरंभ युवा कवि विनीत उत्पल अप्पन दू टा कवितासँ केलखिन। एक्कर बाद युवा कवि किशन कारीगर, स्तुति नारायण, विनीता मल्लिक, रमण कुमार सिंह, गीतकार मानवर्धन कंठ, शारदा नन्द दास 'परिमल", 'तुरंता" लेल जानल जाएबला वरिष्ठ कवि रवींद्र लाल दास 'सुमन", रवी-वीन्द्र-महेंद्रक जोड़ीक रवींन्द्र नाथ ठाकुर, कुमार शैलेन्द्र आ शेफालिका वर्मा अप्पन कविताक पाठ पढ़लनि। ब्रह्मदेव लाल दासक मोन ठीक नै छल तेँ ओ उपस्थित नै भऽ सकलाह आ हुनकर कविताक पाठ हुनकर पुतोहु सरिता दास केलनि।
समारोहक आरंभ प्रसिद्ध मैथिली गायक सुंदरमक नेतृत्वमे मिथिलांगन सांस्कृतिक दलक स्वागत गानसँ भेल। तकर बाद डॉ. शेफालिका वर्मा आ डॉ. ललित कुमुद मणिपद्मजीक व्यक्तित्व आ कृतित्व केँ लोकक आगू राखलखिन। समारोहमे मैथिली भाषाक विशिष्ट साहित्यकार रमानंद रेणु, मार्कण्डेय प्रवासी, फजलुर रहमान हासमी हिनका सभक निधन केँ लऽ कऽ शोक व्यक्त सेहो कएल गेल। संगे-संग दिल्ली उच्च न्यायालय लग भेल बम विस्फोटमे घायल भेल आ मारल गेल निर्दोष लोकक आत्माक शांति लेल दू मिनटक मौन सेहो राखल गेल।
कवि गोष्ठीमे शामिल सभटा कविकेँ मिथिलांगनक स्मृति चिन्ह देल गेल आ हुनका सभसँ संस्थाक सचिव अभय कुमार लाल दास आभार व्यक्त केलनि।
२
५१ साझा पुरस्कारक घोषणा
नेपालक साझा प्रकाशन २०६७ सालक विभिन्न विधाक पुरस्कारक घोषणा केलक अछि।
-“ थारू लोककथा १’ कृति लेल रु. १५ हजार राशिक लोक-साहित्य पुरस्कार लेखक कृष्णराज सर्वहारीकेँ
-रु १५ हजार राशिक “‘नयाँ साझा लोक संस्कृति पुरस्कार “‘तराईको फाँटदेखि हिमालको काखसम्म” कृति लेल “रामभरोस कापडी “‘भ्रमर”केँ
- २०६७ सालक रु १५ हजार राशिक साझा बाल-साहित्य पुरस्कार- “अन्तरिक्ष र गाउँघरका कथा” कृति लेल साहित्यकार विजय चालिसेलाई केँ
-रु. १०–१० हजार राशिक गरिमा सम्मान पुरस्कार–२०६७ पद्य विधा “ ‘समर्पण” शीर्षक कविताक लेल कवि निभा शाह, गद्य विधा “युग” शीर्षक कथाक लेल कथाकार वैजयन्ती मिश्र आ “‘चकछिन्ना” शीर्षक कथाक लेल कथाकार इन्द्रिस सायललाई केँ।
- प्रकाशनक अध्यक्ष तथा महाप्रबन्धक ममता झाले जानकारी देलन्हि।
चन्द्रेश रचनात्मक बिमर्शक अयनामे ‘चिड़ै’
सुजीत कुमार झाक कथा संग्रह ‘चिड़ै’ पढलहुँ । जुआनीक उन्मादमे भावुक रोमानीपनक गन्ध नेने कतिपय कथा आएल अछि । अल्हड़ जुआनी आ प्रेमक उन्मादमे लिखल गेल कथा अबस्से युवा मोनकेँ गुदगुदी लगबैत छुवैत अछि, तन–मनकेँ झंकृत करैत अछि । सहज सहानुभूतिमे उपजैत हृदयक टीस मोनमे उभरि अवैत अछि । एक दिस व्यथा–कथाक उपजामे टीसैत करुणा अछि तँ दोसर दिस पीड़ित ताप । खौंझाइत मोनक बौद्धिक चेतना जाग्रतावस्थामे अपन दम–खम रखैत अछि । मानबीय मूल्य बोधक प्रति कथाकार सतर्क, सचढ ओ सम्वेदनशील छथि । निस्सन्देह कथाक दुआरि पर सुजीतकुमार झा क ‘चिड़ै’ कथा–संग्रहक स्वागत अछि ।
स्वागत एहि द्वारे नहि जे ओ भावुक मोनक कथाकार छथि । ओ अवस्से भावुक मोनक कथाकार छथि । भावुकतामे प्रवहित होइत हिनक कथा आवेशी स्वर नेने अछि । मुदा, जतेक दूर धरि ओ भाव प्रवणतामे संवेदनशील मोनक संवेदनाकेँ छुवैत छथि से हमरा नीक लगैत अछि । संगहि, सरलता ओ सहजतामे वैचारिक भाव–भूमि पर उतरैत स्त्री–पुरुष दूनु वर्गक संकुचित दृष्टिकोणकेँ बेरबैत छथि से विशेष कऽ आह्लादित करैत अछि । भनहि हिनक अजोह मोनमे भोगबादी दृष्टिकोणक प्रति आक्रोशक ज्वारि किएक नेँ वेसिए छिटकैत होअय ।
ओ लिखैत छथि सिखवाक चाही । अहिमे परिपक्वता चाहवे करी । जेना जेना लेखन–संसारमे ओ कलम चलओताह तेना–तेना शिल्प आ कथ्यमे तालमेल होयवे करत, ठोस बैचारिकतामे सूक्ष्मताक संगे नव दृष्टि प्रदान करवे करत । सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. धीरेन्द्र सँ प्रभावित भऽ नेपालक आधुनिक मैथिली साहित्य अवश्य भरखार भऽ रहल अछि ।
अहिमे निर्विवाद रुपे कथाक क्षेत्रमे सर्वश्री रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’, डा. रेवती रमण लाल, डा. राजेन्द्र प्रसाद ‘बिमल’, अयोध्यानाथ चौधरी, भुवनेश्वर पाथेय आदि अपन औकादि देखा चुकल छथि । इ हम गछि ली जे डा. धीरेन्द्रक दू कोटिक रचना अछि । उत्मकोटी आ निम्न कोटीक । ओ जँ निम्नकोटीक रचना करवो कएलन्हि तँ ओहनो रचना आइ रचनाकारक हेतु चुनौती थिक । डा धीरेन्द्रक रचना संसारकेँ कखनो अवडेरल नहि जा सकैत अछि । जेकी सुजीत कुमार झाक कथाकार विशेषतः प्रेम ओ काम वासना विषयक कथावस्तुकँे आधार बनौलन्हि अछि से हिनक डा. धीरेन्द्र ओ हुनक परवर्ती कथाकार भ्रमर, विमल आ थोड़ अंशमे रेवती रमण लालक परम्परामे लऽ अवैत अछि । ओना सुजीत कुमार झा सँ पूर्वक पीढीक कथाकार यथा सुरेन्द्र लाभ, श्यामसुन्दर कामति ‘शशि’ रमेश रञ्जन आदिक रचनात्मक धारा निर्विवाद रुपे डा. धीरेन्द्रक परम्परा सँ प्रभावित होइतो अछिए किछ हटि कऽ अपन विषय बस्तुकेँ प्रतिपादित करैत अछि जे भरिसक भुवनेश्वर पाथेयक परम्परामे कहि सकैत छी जे अनैत अछि । जेकी सुजीत कुमार झा संघर्षरत कथाकार छथि । तएँ हिनक ठोस आ सूक्ष्म दृष्टिक प्रतीक्षा अछि जे कोन धार लऽ भविष्यमे अपनाकेँ प्रतिष्ठापित करताह । ओना परम्परा सँ उद्धृत भऽ आधुनिकताक संग नव दिशा दृष्टि सँ कऽ आयव अवश्य स्वागत योग्य थिक ।
आजुक युगमे कथा वेस पढल जाइत अछि । कथा लिखब ततेक सहज ओ सरल नहि अछि । आर किछु नहि तँ कथाकारकेँ एतेक ध्यान रखैये पडैत अछि जे कथा मूल्यबोध बनय । मुदा, देखवाक थिक जे मूल्य सोझे कथ्य पर ने हावी भऽ जाय । तएँ परिवेश ओ वातावरणक माध्यमे कालगत चेतनाक संग जँ मूल्यबोध कथ्यमे रचि–पचि कऽ आवय तँ निश्चिते कथाक चमक किछ खास होयत अछि । एकर अर्थ ईहो नहि लेवाक अछि जे परिवेश ओ वातावरणक धोन्हि लगा कऽ तेनाकऽ बोझिल बनाओल जाय जे ओहि तरमे कथ्य दवि कऽ रहि जाय अर्थात खुजि ने पावय ।
प्रेम जीवनक अहम हिस्सा थिक जकरा नकारब सरासर बेइमानी होयत । प्रेमक दंश ततेक मारुक होयत अछि जे आत्महत्या धरि करबाक लेल लोक उद्यत भऽ जाइत अछि, करितो अछि । अर्थात अहि दंशमे पीड़ित लोककेँ एको घोंट जलो पीबक सुअवसर नहि भेटैत अछि । कतिपय प्रेम परक कथा उदाहरण परक थिक । तएँ प्रेम अमर थिक । प्रेमक अनुभूति स्वतः होइत अछि । प्रेम ओ बासना दूनु दू बस्तु थिक, एक दोसर सँ अलगहे फराक । एहि बातकेँ सुजीत कुमार झाक कथाकार नीक जकाँ जनैत–बुझैत अछि । ओ ‘चिड़ै’ कथामे प्रेमक सार्थक अनुभूति करवैत अछि । एहिमे त्रिशंकु बनल ‘मनोज’ क चित्रण कऽ प्रेमक रुपकेँ बासना सँ फुटकाओल अछि । मोनकेँ बहटारबाक हेतु मोन मिलानी करब फरक बात थिक तएँ सिद्धान्तकेँ व्यावहारिकतामे उतारब दोसर बात । कारण, सामाजिक मर्यादा ओ व्यवस्थाक अंकुश लगले रहैत अछि । तएँ तऽ उषाक कामुकताकेँ अनदेख कऽ ‘नलिनी’ क मर्यादित छविमे अपनाकेँ समंजस्य स्थापित कऽ मनोजक व्यवहारिक वुद्धि जे अपन असली छवि प्रकट कयलक अछि से अवस्से उषा सन नारीक लेल सबक थिक । ‘प्रियंका’ मे दैहिक भोग आ नाम ओ यशक लेल ‘प्रियंका’क मृग मरीचिकामे बौआइत – भटकैत रहब अवस्से नारीक चरित्रगत सामाजिक पतन थिक । ‘बरखीक भोज’ मे माधुरीक अपन पिता सदृश बुढकेँ खुआयव से पिताक बरखी पर आत्मतृप्ति मूलक थिक । ‘बाबाजी’ मे अपन माय–बापक जीवैतमे तिरस्कार आ मृत्योपरान्त बेटा–पुतहुक नोर चुआवय आम बात थिक । एकरे कथाकार आधार बना कऽ ‘रुवी’ अर्थात पोतीक सूक्ष्म दृष्टि ओ बुद्धिक माध्यमे अपन बातकेँ आगा रखलन्हि अछि । रुवी सभ किछ जनै बुझैत अछि तएँ बजैत अछि जे ‘बेकारमे सभ गोटे अपन नोर बरवाद कऽ रहल अछि ’ । ‘बंश’ मे बेटीक महत्ता पर जोर दऽ चरित्रगत संस्कार पर विशेष बल देलगेल अछि । एहिमे कथाकार ओहि बनल–बनाओल धारणाकेँ तोड़ल अछि जे आजुक समाजमे जतय बेटी आभिशाप बनल अछि से बात शत–प्रतिशत असत्य थिक । नारीक चेतनापरक कथाकेँ उभारल गेल अछि । ‘बनैत–बिगरैत’ मे शिक्षक ‘महेन्द्र बाबु’ क माध्यमे हिनक स्थिति–परिस्थितिगत चित्रण कऽ मानसिक ऊहा पोहकेँ उभारल गेल अछि । हिनक दूनु पुत्र ‘नागेश्वर’ आ ‘सुरेश्वर’क बीचक भैयारीगत मनोमालिन्यकेँ उभारैत बीचक सम्वन्ध देखाओल गेल अछि । जेठ पुत्र ‘नागेश्वर’ केँ महत्वकाँक्षा कहैत छैक तँ सुरेश्वरक व्यवहारिक वुद्धि फलित होइत छैक तकर चित्रण भेल अछि ।
नागेश्वरक स्त्री ‘हिरा’ केँ तीक्ष्ण बुद्धि ओ चातुरीक कुशलताक संग चित्रित कऽ कथाकार कोनो परिवारमे सामंजस्य राखवामे नारीक वुद्धि ओ कौशलक महता प्रतिपादित कयल अछि । ‘ढोल’ मे तएँ नारी व्यथाक चिक्कन–चुनमुन चित्रण भेल अछि । इज्जतिक खातिर डलीक
स्थानपर ‘प्रतिमा’ कनियाँ बनलि ओहि कर्नलक जे जीवन भरि पतिक गारि–मारि सहैत रहलि । नारीक विवशताकेँ उदघाटिक कऽ ओकर औनाइत–छटपटाइत मोनक भावकेँ प्रकट कएल अछि । ‘शुन्यताक प्रवेश’ मे आत्मग्लानिवोध देखाओल गेल अछि । ‘भौजी’ मे नारी मोनक पीडा उभरि कऽ ओकर मोनक सार्थक परिणिति देखाओल गेल अछि । ‘धधकैत आगि ः फुटैत कनोजरि’ मे बलात्कारक रंगीन सपना देखव–देखयवाक माध्ययमे सपनाक सत्यता पर प्रश्न चिन्ह लगवैत सपनाकेँ पूmसि मानल गेल अछि । ‘एकटा अधिकार’ मे प्रेमक महता देखा कऽ ओहि अनुभूतिक आँच सँ जीबन आ संघर्षकेँ देखाओल गेल अछि । खास कऽ अन्तिम परिणतिमे देहक रोइया भुटका की दैत अछि जे स्वभाव, बुद्धि आ ऐन्द्रिकताक संगम धरि पहुँचा कऽ अमिट प्रभाव छोडि जाइत अछि । जँ कथाकार कनेक साकांक्ष रहितथि आ साधल कलम सँ लिखल जाइत तँ निश्चिते इ कथा रोमानीयपन चेतनाक उदाहरण बनि अपन स्वरुप महत्तम ऊँचाइ धरि अनबामे सफल होइतय जकर बीज तत्व अहिमे सन्निहित अछि । तैयो ई कथा अबस्से अपन दम–खमक बुत्ता पर फराक स्थान ठमिअवैत अछि । इहो कहि सकैत छी जे हमरा जनैत संग्रहक ई नीक कथा थिक जे नेपालीय मैथिली कथा–साहित्यमे अपन भूमिका निःसन्देह निमाहत ।
आइ जखन की नेपालमे राजनीतिक उथल–पाथल मचल अछि, हिसां ओ जनक्रान्तिक इतिहास रचल गेल अछि ताहि संकटापन्न विषम परिस्थितिमे सुजीत कुमार झाक कथाकार जे पे्रम ओ सिनेहकेँ जोगा कऽ रखवाक प्रयास भेल अछि से प्रशंसनीय थिक । कारण स्थिति–परिस्थिगत विषम दुःस्थितिमे एहि परिवेशक साहित्यकार क्रान्ति विशेष कऽ रचनामे तल्लीन भऽ एकरे मुख्य धाराक विषय बनयबामे सक्रिय छथि ततय हिनक कथाकार मानवीय प्रेमकेँ बचयबाक प्रयासमे समानान्तर धारा रचवामे तल्लीन भऽ ‘चिड़ै’ कथा संग्रह सृजित कयल अछि ।
मात्र आशा नहि विश्वास अछि जे सुजीत कुमार झा नेपालक आधुनिक मौथिली साहित्यक एकटा एहन युवा हस्ताक्षर छथि जे समयक संग अनुभवक परिपथ्तामे निश्चिते जटिल यथार्थकेँ आरो गतिशील बना कऽ पाठकक सोझामे प्रस्तुत करताह । निश्चिते भविष्य हिनक छन्हि आ कथाक कुन्जी हाथहिमे छन्हि ।
हमरा तँ सुजीत कुमार झाक कथाकार पर खौँझी उठैत अछि जे ‘एकटा अधिकार’ सन कथा लिख कऽ कनेक हडवडी किएक केलन्हि ? एहन कथा कहियो काल लिखाइत अछि जे नेपालीय मैथिली कथा साहित्यमे प्रेम जगतक निम्मन उदाहरण बनितय आ बनिते अछि । हमरा जनैत एही एक कथाक बुता पर सुजीत कुमार झा कथाकारक रुपमे जानल –पहचानल जयताह । जखन की हिनकामे जे ऊर्जा छन्हि से आरो कथा लिखवाक उत्स जोगाओले छन्हि ।
तैयो जाहिया कहियो वा जखन कखनो नेपाली मैथिली कथा साहित्यक चर्चा होयत, कथा जगतक विमर्श होयत, हठात् सुजीत कुमार झाक कथा कोनो ने कोनो रुपमे चर्चाक केन्द्र विन्दु बनवे करत । ओ अपन संगतुरिया कथाकारक रुपमे तँ सहजहि जे अग्रिम पीढीक कथाकारक रुपमे भनहि आइ अचर्चित छथि से अहि पोथी ‘चिड़ै’ केँ लऽ कऽ अपन सार्थक भूमिका निमाहवे करताह । अहि आशा ओ विश्वासक संग हम एतेक अवश्य कहबन्हि जे सीमित अनुभव क्षेत्रकेँ विस्तृत बना कऽ युगक आहटिमे बेस परिपक्वता ओ सन्तुलित ढङ्गे कथा–सृजन करथि । कथा लिखायत, चर्च होयवे करत आ दोसर पोथी नीक, आरो नीक भऽ प्रकाशित होयत । एखन तँ जीरा खसवे कएल अछि, हिलकोर उठवे कएल अछि आ विस्तृत आकाशकेँ हिलोरित करवाक अछिए तँ किएक ने जटिल यथार्थक युगमे नव सनेष लेने सत्यताक दस्तावेज प्रस्तुत कऽ कथा साहित्यक दस्तावेजी साक्ष्य बनी ? यैह बनवाक जे सम्भावना एहि संग्रहमे आएल अछि तएँ हमरा विशेष आह्लादित करैत अछि ।