भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Wednesday, March 14, 2012

'विदेह' १०२ म अंक १५ मार्च २०१२ (वर्ष ५ मास ५१ अंक १०२)PART I

                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १०२ म अंक १५ मार्च २०१२ (वर्ष ५ मास ५१ अंक १०२)NEPALINDIA 
                                               
 वि  दे   विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal  नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own script Roman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi

ऐ अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य









३. पद्य









३.७.डॉ॰ शशिधर कुमर
 ३.८.श्यामल सुमन-कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ


४. मिथिला कला-संगीत१.वनीता कुमारी २.राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) ३. उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)

 

भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]


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example

भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।


example

गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'



मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"

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 ऐ बेर मूल पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
Thank you for voting!
श्री राजदेव मण्डलक अम्बरा” (कविता-संग्रह)  13.88%   
 
श्री बेचन ठाकुरक बेटीक अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक)  9.61%   
 
श्रीमती आशा मिश्रक उचाट” (उपन्यास)  6.41%   
 
श्रीमती पन्ना झाक अनुभूति” (कथा संग्रह)  5.69%   
 
श्री उदय नारायण सिंह नचिकेतानो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक)  5.69%   
 
श्री सुभाष चन्द्र यादवक बनैत बिगड़ैत” (कथा-संग्रह)  5.69%   
 
श्रीमती वीणा कर्ण- भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह)  5.69%   
 
श्रीमती शेफालिका वर्माक किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा)  7.83%   
 
श्रीमती विभा रानीक भाग रौ आ बलचन्दा” (दूटा नाटक)  6.76%   
 
श्री महाप्रकाश-संग समय के (कविता संग्रह)  6.05%   
 
श्री तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह)  5.69%   
 
श्री महेन्द्र मलंगियाक छुतहा घैल” (नाटक)  7.12%   
 
श्रीमती नीता झाक देश-काल” (कथा-संग्रह)  6.41%   
 
श्री सियाराम झा "सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि (गजल संग्रह)  7.12%   
 
Other:  0.36%   
   
 
   
 

ऐ बेर बाल साहित्य पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक तरेगन”(बाल-प्रेरक कथा संग्रह)  52.94%   
 
श्री जीवकांत - खिखिरक बिअरि  25.49%   
 
श्री मुरलीधर झाक पिलपिलहा गाछ  19.61%   
 
Other:  1.96%   
 
 

 

ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?

Thank you for voting!
श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक अर्चिस” (कविता संग्रह)  27.06%   
 
श्री विनीत उत्पलक हम पुछैत छी” (कविता संग्रह)  7.06%   
 
श्रीमती कामिनीक समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह)  5.88%   
 
श्री प्रवीण काश्यपक विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह)  5.88%   
 
श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल संग्रह)  21.18%   
 
श्री अरुणाभ सौरभक एतबे टा नहि” (कविता संग्रह)  5.88%   
 
श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै (कविता संग्रह)  7.06%   
 
श्री आदि यायावरक भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह)  5.88%   
 
श्री उमेश मण्डलक निश्तुकी” (कविता संग्रह)  11.76%   
 
Other:  2.35%   
 
   
 
 
 

 

 

ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?

Thank you for voting!
श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर)  37.5%   
 
श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन" (कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो)  12.5%   
 
श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास श्री दिव्येन्दु पालित)  13.89%   
 
श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ" (नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा)  11.11%   
 
श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत)  11.11%   
 
श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास)  12.5%   
 
Other:  1.39%   
 
 
 

 

 

फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य अकादेमी, दिल्ली

Thank you for voting!
श्री राजनन्दन लाल दास  53.7%   
 
श्री डॉ. अमरेन्द्र  20.37%   
 
श्री चन्द्रभानु सिंह  24.07%   
 
Other:  1.85%   
 
 

 

१. संपादकीय

आधुनिक  मैथिली नाटकक प्रारम्भ (गुणनाथ झा, जगदीश प्रसाद मण्डल, बेचन ठाकुर आ आनन्द कुमार झा) , मैथिली रंगमंच संस्था आ निर्देशक
गुणनाथ झा
"लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकाक संचालन- सम्पादन केने छथि। मैथिलीमे आधुनिक नाटकक प्रणयन। हुनकर नाटक कनियाँ-पुतरा, पाथेय, ओ मधुयामिनी, सातम चरित्र, शेष नञि, आजुक लोक आ जय मैथिली सभक बेर-बेर मंचन भेल अछि। बाङ्गला एकाङ्की नाट्य-संग्रह- ऐमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा नाटकक संकलन ओ सम्पादन अजित कुमार घोष केने छथि आ तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद श्री गुणनाथ झा द्वारा भेल अछि।
कनियाँ-पुतरा- गुणनाथ झा जीक ई पहिल पूर्णाङ्क नाटक थिक। नाटक बहुदृश्य समन्वित करैबला घूर्णीय मञ्चोपयुक्त अछि। कथा काटर प्रथापर आधारित अछि आ तकर परिणामसँ मुख्य अभिनेता आ मुख्य अभिनेत्री मनोविकारयुक्त भऽ जाइत छथि, तइ मनोदशाक सटीक चित्रण आ विश्लेषण भेल अछि।
मधुयामिनी: एकाङ्क नाट्य शैलीमे दूटा पात्र, पुरुष संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहार आ स्त्री तकर विरोधी। संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहारक सामंजस्यपूर्ण विजय होइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित।
पाथेय: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित, मुदा पूर्णाङ्कक सभ विशेषता ऐमे भेटत। मुख्य अभिनेता मिथिलाक अधोगतिसँ दुखी भऽ गामकेँ कर्मस्थली बनबैत छथि, स्वजन विरोध करै छथि। मुदा बादमे पत्नी हुनकर संग आबि जाइ छथिन्ह। भाषा मधुर आ चलायमान अछि।
लाल-बुझक्कर: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। दाही रौदीसँ झमारल निम्न आ मध्य-निम्न वर्ग स्वतंत्रताक पहिनहियो आ बादो जीविकोपार्जन लेल प्रवास करबा लेल अभिशप्त छथि। माता-पिता विहीन लाल बुझक्करजी कनियाँकेँ नैहरमे बैसा कऽ आ सन्तानहीन पित्ती पितियैनकेँ छोड़ि नग्र प्रवास करै छथि।
सातम चरित्र: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। मैथिली रंगमंचपर महिला अभिनेत्रीक अभाव, सातम चरित्रक प्रतीक्षामे पूर्वाभ्यास खतम भऽ जाइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित।
शेष नञि: आधुनिक सामाजिक पूर्णाङ्क नाटक। पिता-माताक मृत्युक बाद अग्रजक अनुजक प्रति पितृवत व्यवहार। अनुज चाकरी करै छथि, परिवर्तनशील सामाजिक परिस्थितिक शिकार भऽ अचिन्तनीय कार्यकलाप करै छथि आ अग्रज प्रतारित होइ छथि। मुदा अग्रज मरणासन्न पत्नीक प्राणरक्षार्थ साहसपूर्ण डेग उठा लैत छथि।
आजुक लोक: पूर्णाङ्क नाटक। विषय निम्नमध्यवर्गीय बेरोजगारी आ बियाहक दायित्वक बोझ।
जय मैथिली: पूर्णाङ्क नाटक। मिथिलाक भाषिक-सांस्कृतिक समस्या एकर कथावस्तु अछि।
महाकवि विद्यापति: विद्यापतिक नव विश्लेषण।

उदयनारायण सिंह नचिकेता
नायकक नाम जीवन : नवल नव विचारक अछि, शक्तिराय धनिक, कलुषित अछि आ अपन सहयोगी विनयपर चोरिक आरोप लगा ओकर बेटीक अपहरण आ बलात्कार करबैए। विनय आत्महत्या कऽ लैए। नवल आ ओकर मित्र प्रकाश आ दीपक सभटा भेद खोलैए। ओकर प्रेमिका बलात्कारक परिणामस्वरूप आत्महत्या करैए। नवल विक्षिप्त भऽ जाइए। एक छल राजा: एकटा राजा अभिमान कुमार देवक दिन मदिरा आ वैश्याक पाछाँ खराप भेलै। ओकरा एक्केटा बेटी मोहिनी छै, टकाक अभावमे ओकर बियाह नै भ्हऽ पाबि रहल छै। मुंशी विरंची, सेवक चतुरलाल आ धर्मकर्मवाली पत्नी संगे नाटक आगाँ बढ़ैए। मोहिनी आ शिक्षक शुभंकरक बीच प्रेम होइ छै। नो एण्ट्री: मा प्रविश: पोस्टमोडर्न ड्रामा, जकर एबसर्डिटी एकरा ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागम लग घुरबै छै। स्वर्ग आकि नर्कक द्वारपर मुइल सभ अबै छथि आ खिस्सा-खेरहा सुनबै छथि, बादमे पता चलैए जे चित्रगुप्त/ धर्मराज सभ नकली छथि आ द्वारपर लागल अछि ताला, नो एण्ट्री।

जगदीश प्रसाद मण्डल
मि‍थि‍लाक बेटी-प्रथम दृश्‍य- महगीक वि‍रोधमे कर्मचारीक हड़ताल। महगीक कारण- नोकरी दि‍स झुकने, खेतीक ह्रास। भू-सम्‍पत्ति‍क ह्रास, दान दहेज झर-झंझटक बढ़ोतरी। वि‍याहक लाम-झाम। पैसाक दुरूपयोग। कला प्रेमी धन सम्‍पत्ति‍केँ तुच्‍छ बुझैत। कौरनेटि‍याक संग कओलेजक लड़की, जे नाच-गान सि‍खैत, चलि‍ गेलि‍। झर-झंझटमे पोकेटमारी सेहो।सरकारी पदाधि‍कारीकेँ बाजैपर रोक। अपहरणक बढ़ोत्तरी, रंग-वि‍रंगक अपहरणोक कारण ि‍सर्फ पाइये नै जानोक खेलवाड़। सरकारी अफसरक नैति‍क ह्रास। चम्‍मछक घटना। सरकारी तंत्र कमजोर भेने असुरक्षाक वृद्धि‍।समाजक वि‍घटनमे जाति‍, सम्‍प्रदाय इत्‍यादि‍क योगदान, जइसँ इज्‍जत-आवरू धरि‍ खतरामे।सि‍नेमा, खेल-कूदक प्रभावसँ नव पीढ़ी अपन सभ कि‍छु- कुल, खनदान, वेवहार, छोड़ि‍, वाहरी हवाक अनुकरणमे पगला रहल अछि‍। ढहैत सामंतमे संस्‍कारक छाप। इनार-पोखरि‍ स्‍त्रीगणक झगड़ाक अड्डा। मि‍थि‍ला नारी शक्‍ति‍क प्रतीक सीता। दहेजक मारि‍मे जाति‍-पाँति‍क नास। धन-सम्‍पत्ति‍ आचार-वि‍चार नष्‍ट करैत कोट-कचहरीक चपेटमे समाज, आपसी झगड़ाक कुप्रभाव। नवयुवकमे आत्मवलक अभाव नारीक बीच असीम धैर्य-वाल-वि‍धवा मनुष्‍यपर समाजक प्रभाव। पढ़लो-ि‍लखल कारगरो लड़कीक मोल दहेजक आगू चौपट अछि‍। ओना पुरूषक अपेक्षा नारीक महत्‍व, पुरूष प्रधान व्‍यवस्‍थामे कम रहल गहना-जेबर सेहो अहि‍तकर। नव पीढ़ीक नारीमे नव उत्‍साहक जरूरत। नव-नव काज सि‍खैक हुनर। दोसर अंक- सामंती व्‍यसन- भाँग। नव पीढ़ी सेहो प्रभावि‍त। श्रम चोर मि‍हनतसँ मुँह चोराएब। भाग्‍य-भरोसपर वि‍सवास। धनक प्रभावसँ परि‍वारक वि‍खरब। पि‍ता-पुत्रक बीच मतभेद बलजोरी वा फुसला कऽ लड़का-लड़की वि‍याह...। खेतक लेन-देनमे घोखाधड़ी। जबूरि‍या, दोहरी रजि‍स्ट्री। घुसखोरी कमाइ प्रति‍ष्‍ठा। माइयो-वापक इच्‍छा रहैत जे बेटा घुस लि‍अए। नोकरीक वि‍रोध... पुरूष प्रधान व्‍यवस्‍थामे नारीक रंग-वि‍रंगक शोषण। पढ़ौने आरो समस्‍या। तेसर अंक - बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनीक कृषि‍पर दुष्‍प्रभाव, देशी उत्‍पादनक अभाव। दहेज समर्थक समाज आ दहेज वि‍रोधी समाज दू तरहक समाज। परम्‍परा आ परम्‍परा वि‍रोधी नव जाग्रत समाज। खण्‍ड-पखण्‍डमे समाज टूटल। नव मनुष्‍यक सृजन नव तकनीक नव सोच आ नव काज पकड़ने बहुराष्‍ट्रीय प्रभावसँ परि‍वार, समाज आ कला संस्‍कृति‍पर दुष्‍प्रभाव, बेबस्‍था बदलने समाज बदलत। चारि‍म अंक- पाइ भेने वि‍चारोमे बदलाव। जाहि‍सँ नव समाजक सूत्र पात-जन्‍म सेहो होइत। रामवि‍लास (मि‍स्‍त्री) मनुष्‍यक महत्‍व दैत जइसँ दहेजकेँ धक्का लगैत। पहि‍नेसँ मि‍थि‍लांचलक लोक वंगल, असाम, नेपाल, ढाका, धरि‍ ध्‍न कटनी, पटुआ कटनीक लेल जाइत छल। शि‍क्षाक वि‍संगति‍। ओकरा मेटाएब। पाँचम अंक- आदर्श वि‍याह। नव चेतनाक जागरण जे बेबस्‍था बदलत।

कम्‍प्रोमाइज- सामंती समाजमे टुटैत कृषि‍ आ कि‍सानी जीवन, नब पूँजीवादी समाजमे कृषि‍केँ पूँजी बनेबाक बेबस्‍था, बुद्धि‍जि‍वी आ श्रमिकक पलायनसँ गामक बि‍गड़ैत दशा, समन्‍वयवादी वि‍चार-दर्शन।
झमेलि‍या बि‍आह- मि‍थि‍लाक समाजमे अबैत बि‍आह-संस्‍कारक प्रक्रि‍यामे रंग-बि‍रंगक बाहरी प्रभाव, बाहरी प्रभावसँ रंग-बि‍रंगक वि‍वाद, झमेलक जन्‍म, झमेलि‍याक रूपमे बि‍आह प्रक्रि‍यामे होइत वि‍वादक वि‍षद चर्च।
बि‍रांगना- ग्रामीण जीवनक बजारोन्‍मुख हएब, सस्‍ता श्रम-शक्‍ति‍ भेटलासँ पूँजीपति‍ वर्ग द्वारा शोषण, श्रमक लूटसँ ग्रामीण लोक जानवरोसँ बत्तर जि‍नगी जीबए लेल मजबूर, रूपैयाक लालचमे नीच-सँ-नीच काज करबाक लेल तैयार लोक।
तामक तमघैल- ढहैत सामंती समाजमे छि‍न्न-भि‍न्न होइत परि‍वार, रीति‍-नीति‍ एवं परि‍वारि‍क सम्‍बन्‍ध, छि‍न्न-भि‍न्न होइत परि‍वारक आर्थिक आधार।
सतमाए- कोनो संबंध दोषपूर्ण नै होइत छै बल्‍कि‍ मनुष्‍यक बेबहार आ वि‍चारमे दोष होइत छैक तही बेबहार आ वि‍चारक सम्‍यक चर्च करैत सतमाएक आदर्शरूप प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍।
कल्‍याणी- दि‍न-देखारे होइत अन्यायक प्रति‍ सजगताक उल्लेख करैत नारी जागरणक चि‍त्रण, बुनि‍यादी समस्‍या दि‍स इशारा करैत समस्‍याक समाधान हेतु पैघ-सँ-पैघ दाम चुकबए पड़ैत अछि, तेकर चि‍त्रण।
समझौता- समाजमे कृषि‍केँ पूँजी बनेबाक लेल टुटैत कृषि संस्‍कृति‍क बुनि‍यादी समस्‍याक वर्णन आ तकर नि‍दान लेल समझौता हेतु सम्‍यक सोचक जरूरति‍पर प्रकाश दैत ओकर महत्व ओ आवश्‍यकताक वर्णन।

बेचन ठाकुर
बेटीक अपमान आ छीनरदेवी: भ्रूण हत्या, महिला अधिकार आ अन्धविश्वासपर आधारित दुनू नाटक मैथिली नाटककेँ नव दिशा दैत अछि।
अधिकार: इन्दिरा आवास योजनाक अनियमितताकेँ आर.टी.आइ.(सूचनाक अधिकार) सँ देखार करैबला आ रिक्शासँ झंझारपुरसँ दिल्ली जाइबला असली चरित्र मंजूरक कथा अछि।
विश्वासघात: नेशनल हाइवेक जमीनक मुआवजामे ढेर रास पाइ देल जाइ छै आ ओकरा हड़पै लेल पारिवारिक सम्बन्धक बलि चढ़ि जाइ छै।
आनंद कुमार झा
टाटाक मोल : काटर प्रथापर आधारित नाटक। गरीबनाथ आ सुमि‍त्राक 'पुत्र कामनार्थ' पॉच गोट कन्‍या‍। पहि‍ले बेटीक वि‍वाहमे हुनकर बहुत खेत बि‍का गेलनि‍। दोसर बेटीक कन्‍यादानक लेल मात्र बारह कट्ठा जमीन बॉचल छन्‍हि‍। बेटी प्रभा कॉलेजमे पढ़ैत छथि‍, अपन बहि‍नक देओर प्रभाकरसँ सि‍नेह करै छथि‍, छोट मांगल-चांगल भाए महीस चरबैत छन्‍हि‍।
कलह :  आकाश बेरोजगार छथि‍। वि‍भाता सुमि‍त्रा अपन पुत्र राजीव लेल ज्‍येष्‍ठ पुत्रक संग यातना दैत छथि। एकटा अबोध नेनाक जन्‍म भेल.....।
बदलैत समाज :  एकटा ब्‍लड कैंसर पीड़ि‍त घूरन जी अपन बीमार पुत्रक वि‍आह करा दैत छथि‍। हुनका ओना बूझल नहि‍ छलनि‍ जे पुत्र अवधेश ब्‍लड-कैंसरसँ पीड़ि‍त अछि‍। भजेन्‍द्र मुखि‍याक पुत्र अवधेशक मृत्‍युक भऽ गेलनि‍। अंतमे वि‍धवा शोभाक एकटा सच्‍चरि‍त्र युवक वीजेन्‍द्रसँ पुर्नवि‍वाहक कल्‍पना कएल गेल।
धधाइत नवकी कनि‍याॅक लहास :  कि‍छु गहनाक खाति‍र शि‍खाक आत्‍महत्‍याक प्रयास।
हठात् परि‍वर्त्तन : देशभक्‍ति‍ नाटक।

नाट्य रंगमंच समिति सभ
भंगिमा, पटना ; चेतना समिति, पटना, जमघट-, मधुबनी; मिथिला विकास परिषद, कोलकाता; अखिल भारतीय मिथिला संघ, कोलकाता; मिथिला कला केन्द्र, कोलकाता; मैथिली रंगमंच, कोलकाता; कुर्मी-क्षत्रिय छात्रवृत्ति कोष, कोलकाता; आल इण्डिया मैथिल संघ, कोलकाता; कर्ण गोष्ठी:जयन्त लोकमंच, कोलकाता; मिथिला सेवा संस्थान, कोलकाता; मिथि यात्रिक, कोलकाता; वैदेही कला मंच, कोलकाता; कोकिल मंच, कोलकाता;  मिथिला कल्याण परिषद, रिसरा, कोलकाता (निर्देशन मुख्य रूपसँ श्री दयानाथ झा द्वारा १९८२ ई.सँ। सम्प्रति श्री रण्जीत कुमार झा निर्देशन कऽ रहल छथि, ०८.०१.२०१२ केँ हुनकर निर्देशनमे तंत्रनाथ झा लिखित उपनयनक भोज मंचित भेल।) ; झंकार, कोलकाता; मिथिला सेवा समिति बेलुर, कोलकाता; उदय पथ, कोलकाता। मिथिला नाट्य परिषद (मिनाप), जनकपुर; रामानन्द युवा क्लब, जनकपुरधाम; युवा नाट्य कला परिषद (युनाप), परवाहा, धनुषा; आकृति (उपेन्द्र भगत नागवंशी), जनकपुर; रंग वाटिका, नेपाल; चबूतरा, शिरोमणि मैथिली युबा क्लब, गांगुली, भैरब, मैथिली सांस्कृतिक युबा क्लब, बौहरबा, श्री सरस्वती सांस्कृतिक नाट्य कला परिषद, गाम तिलाठी (सप्तरी, नेपाल); अरुणोदय नाट्य मंच, राजबिराज; सरस्वती नाट्य कला परिषद, मेंहथ, मधुबनी; मैथिली लोकरंग (मैलोरंग), दिल्ली; मिथिलांगन, दिल्ली। मधुबनीक पजुआरिडीह टोलमे श्रीकृष्ण नाट्य समिति श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ झा आ गंगा झाक निर्देशनमे मैथिली नाटक मंचित होइत रहल अछि। सांस्कृतिक मंच, लोहियानगर, पटना; चित्रगुप्त सांस्कृतिक केन्द्र, जनकपुर; गर्दनीबाग कला समिति, पटना; मिथिलाक्षर, जमशेदपुर; मैथिली कला मंच, बोकारो; उगना विद्यापति परिषद, बेगूसराय; मिथिला सांस्कृतिक परिषद, बोकारो स्टील सिटी; भानुकला केन्द्र, विराटनगर; आंगन, पटना; नवतरंग, बेगूसराय; भारतीय रंगमंच, दरभंगा; भद्रकाली नाट्य परिषद, कोइलख, मिथिला अनुभूति दरभंगा, विदेह अंतर्राष्ट्रीय ई-जर्नलक नाट्य उत्सव।
मैथिली नाटकक निर्देशक: श्री कमल नारायण कर्ण (चीनीक लड्डू-ईशनाथ झा/ चारिपहर- मूल बांग्ला किरण मैत्र, मैथिली अनुवाद- निरसन लाभ), श्री श्रीकान्त मण्डल (चन्द्रगुप्त मूल बांग्ला डी.एल.राय, मैथिली अनुवाद- बाबू साहेब चौधरी/ पाथेय- गुणनाथ झा/ नायकक नाम जीवन- नचिकेता); श्री विष्णु चटर्जी आ श्री श्रीकान्त मण्डल (निष्कलंक- जनार्दन झा); प्रवीर मुखोपाध्याय; वीणा राय, मोहन चौधरी, बाबू राम सिंह, गोपाल दास, कुणाल, रवि देव, दयानाथ झा, त्रिलोचन झा, शम्भूनाथ मिश्र, काशी झा, अशोक झा, गंगा झा, गणेश प्रसाद सिन्हा, नवीन चन्द्र मिश्र, जनार्दन राय, श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ झा, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अखिलेश्वर, सच्चिदानन्द, रमेश राजहंस, मोदनाथ झा, विभूति आनन्द, जावेद अख्तर खाँ, कौशल किशोर दास, प्रशान्त कान्त, अरविन्द रंजन दास, मनोज मनु, रोहिणी रमण झा, भवनाथ झा, उमाकान्त झा, लल्लन प्रसाद ठाकुर, रघुनाथ झा किरण, महेन्द्र मलंगिया, कुमार शैलेन्द्र, विनीत झा, किशोर कुमार झा, कुमार गगन, विनोद कुमार झा, के.अजय, छत्रानन्द सिंह झा, नीलम चौधरी, काजल, मनोज कुमार पाठक, आशनारायण मिश्र, श्री श्रीनारायण झा, प्रमिला झा, तनुजा शंकर, केशव नन्दन, ब्रह्मानन्द झा, संजीव तमन्ना, किसलय कृष्ण, प्रकाश झा, मुन्नाजी संजय कुमार चौधरी, कमल मोहन चुन्नू, अंशुमान सत्यकेतु, श्याम भास्कर, प्रेम कुमार, संगम कुमार ठाकुर, एल.आर.एम. राजन, भास्करानन्द झा, आशुतोष कुमार मिश्र, आनन्द कुमार झा, मनोज मनुज, संजीव मिश्र, स्वाति सिंह, स्वर्णिम, आशुतोष यादव अभिज्ञ, अशोक अश्क, दिलीप वत्स, तरुण प्रभात, माधव आनन्द, नरेन्द्र मिश्र, भारत भूषण झा, किशोर केशव, बेचन ठाकुर, उपेन्द्र भगत नागवंशी, अनिल चन्द्र झा, अंशुमान सत्यकेतु, आनंद कुमार झा, हेमनारायण साहू, रामकृष्ण मंडल छोटू, धीरेन्द्र कुमार,उत्पल झा, अभिषेक के. नारायण, चन्द्रिका प्रसाद


गजेन्द्र ठाकुर

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२. गद्य







 कामिनी कामायनी
शाश्वत कथा


पार्टी सम्पन्न होबैत होबैत. . . राति के बारह बाजिए गेलए. . .।भरि पेट खा पीबि कलोकवेद तजाईत रहल . . .मुदा घनश्याम गार्डन के कनि कात मे जेबा लेल ठाढ केदारनाथक हाथ कसिक पकडि बड करूण स्वर मे बाजल. . . आय अहॉ नहि जाऊ भाय. . . मन बड उदास लगैत अछि. ।
उदास. .’ . केदारनाथ के हॅसी नहिं लगलैन्ह. . . एतेक बडका धूमधाम . लाईट साउंड़ . ...पौप .. . .. फिल्म स्टार वाला पार्टी. . .सुरा .. सुन्दरि. . . .के बावजुदो जीनगी के ओ रस नहि प्रदान कयल .. .जेकरा लेल. . .किंस्यात हुनक मोन चातक पाखी सन लालायित रहैन्ह. . .।लिफ्ट सॅ दुनू सीधे टॉप फ्लोर के अपन भव्य ड्राईंग रूम मे जाकए दरवज्जा बंद करि संपूर्ण संसार सॅ
ओझल भगेलथि ।
की गप करू. . . . आफिसक़ . . .स्त्रीक .. . प्रॉपर्टीक़ . .शहरक़. . . .
नै ......नै. . .किछु आन .. . फुसियाही. . . खिस्सा कहॅ..ु।
आन कोन. . .बीतलाहे आब खिस्सा छैक़ . यर्थाथ . . .भोगल. . .”.
शहरक खिस्सा मे की छै. . .कोन सुआद. . .खाली भटकाव. . .निरासा. . .भय .. .आतंक़ . .। .
बेस. . तखन गामक खिस्सा सुनब. . .।
कोन गामक।
कोनो गामक . . . नाम मे की राखल छै. . . चरित्र त सबहक एकरंग .. . .माटि पानि के गमक तएक .. . . आ मष्तिष्क मे बसल सुसुप्त आकांक्षा. .. अतीत के फेर सॅ जीबाक चाह .. . हॅ गामे के कहू. . . . हालाकि गामक जीनगी बड कम दिन बीतैलहु. . .. बड अभिलाष छल समस्याग्रस्त गाम सबहक उत्थान लेल . . .अवस्स किछु विशेष काज करब. . . मुदा सामर्थवान भैयौ कतेहेन नै जीनगी के मकडजाल मे ओझरा गेलहु. . .जे मोन अहुरिया काटि करहि जाएत अछि. . . देखाबटि मे पानि जकॉ. .पाय बहा देल जाय छै. . .अहि सॅ अपन मातृभूमि. . के. . .कतेक हाथ. . .के काज़ . .कतेक के रोटी. . . .आदरि सॅ भेंट सकैत अछि. . .आस नहि छूटल अछि . ..एखनो. . आब भगवानक कीरपा जहिया. . . . .तखन सुरू करू खिस्सा .. . .।
खिडकीसॅ दूर. . .अन्हार समुद्र मे. . .चमकैत लाईट. . .कोस्ट गार्ड. . वा व्यसायिक जहाज के निहारैत . .. कनि काल धरि मौन रहला. . .हुनको ऑखि किछु भरभरायल सन छल. . . .जेना अतीत क ताप सॅ दग्ध भसीमा विहिन होमय लेल बाट ताकैत छल. . .नहुॅ नहु. . करि कमुॅह खोलला. . राजा जनकक जुग के सुनब की. . .लखिमा ठकुराईन जुगक .. .की
सोनिया गॉधी के जुगक़ . ।
वाह. . . ईतिहासक की काल विभाजन कयल अपने. . .अदभुत. . .। इंदिरा आ सोनिया के मध्य समयक खिस्सा कहू।’ “ खिस्सा मे काल के बड महत्व छैक़ ।अहि सॅ अहॉ ओहि कालक राजनैतिक आर्थिक़ . सामाजिक आ मनोवैज्ञानिक स्थिति के अवलोकन करि सकैत छी ।सुनु. . ..
गामक स्त्री.. समाजक खिस्सा. . पोस्ट इंदिरा गॉधी पीरियड .. . ..
एकटा छली सोनदाय एकटा चानदाय ।दुनु एकदोसरा लेल साक्षात जमराज .. .जौं एकटा के अवसरि भेटतैन्ह तदोसरा के सदेह जमलोक पहुचा दैतैथि. . .मुदा .. .मनुक्खक मजबूरी. . . .ताहि लेल कतेको दशक सॅ एक दोसरा के सहि रहल छलथि. . .।ओना दुनु अपन अपन बल देखेबा सॅ बाज नहि आबैथ .एकटा अपन घरक बल .. दोसरि समाजक़ . .।
अहि धमगज्जरि मे आनंद उठाबैत समाज .. .।
ओही दिन आंगन मे उसीनिया भरहल छल. . .धानक़ . .जाड मास .. .सोनदाय खबासिन लग मोडहा प बैसल देखि रहल छली. . . .कि ताबैत चानदाय डगरा मे कनी चाऊर आ बूट नेने अयलथि।डगरा कनि कात मे ओसारा दिस राखि मिझैल एकचुल्हिया पराखल खापडि उठा ककहलखिन्ह. . गै .. मरदन्नी बाली .. . .ई खापडि चढा कओय चुल्ही पहम्मर चाउर आबूट भूजि दे।धान उसिना गेल रहै. . हॉय हॉय कनस्तर उतारि कमरदन्नी बाली आंगन मे उझीलए लागल. . . ।जरैत ऑच देखिक चानदाय खापडि चढा देलथि आगि प।ई देखि कसोनदाय के सौंसे देह मे खौंता फुकि देलकन्हि. . .।चट सॅ मोढा सॅ तमैकउठि धीपल खापडि हुनक देह पफेंकैत धधकैत अंगार सन बोल बजली बड शौख अर्ररेलन्हि अछि भुज्जा खायक े .. तकनसार मे भूजा लौथ नै दरवज्जे लग तछै. . . अन्हार भरहल छै. . .हिनका सूझै नै छन्हि .. ।ओ मुडि कडगरा उठबैत छलीह . . ....धीपल .खापडि हुनक पीठ पखसलैन्ह. . .ओ चिचिया कदलान दिस भागल छलीह .. ।पीठ पर का नूआ कारी सॅ रंगेबाक क्रम मे कनि लहकियो गेल रहै ..।
सोनदाय एहेन चंठ किएक़ . . .कि चान दाय हुनक सौतिन छलीह।
ओह अहॉ की बाजि गेलौं ।आय के जुग मे सैोतिन के बॉटि खूटि कसरकारे भिन्न करि दैत छै .. .तै ओ दूनू सौतीन तनहिए टा छलीह .. ।
खैर .. .जे. . .से. . .चान दाय कुहैर कुहैर क ओ राति कटली .. .जेना विगत मे अनेको अवस्से कटल हेतैन्ह. . ।आ भिनसरे कियो आंगन मे सोनदाय सॅ कहय एलैन्ह जे तीन पहरि राति मे . . .एकपेडिया सॅ बाध दिस हुनका जायत देखल गेल ।
सोन दाय दस ठाम सॅ मुॅह बिचुका कअपन अनंत घृणा
देखाबए चाहली. . .मुदा क्षण मात्र मे अपना के रोकि कएकगोट मॉजल कूटनीतिज्ञक जेकॉ अडोसिया पडोसिया के सुना क चिकरैत अपन छाति पीटय
लगली ई हमरा कत्तो के नहि छोडलथि. . आब तई की की नाच नै नचौती।दैव रौ दैव ।आब हम करू तकी करू .. .क़त्तेक पैघ ई फसादी छथि गै म्या। मुदा के गेलय धडफडायल पोखरि . . .तालाब. . .रेलक पटरी पताक़ . . . .।
दिन चढैत. . . बीतैत .. . .ई खबरि टोल की सौंसे गाम मे बूलए टहलए लगलै. . . आराति देखि सबहक संग खबरि सेहो निफिकिर भसूति रहल. . .छल ।
दिन .. सप्ताह. . .महीना बीत गेलै. .टोल समाजक दिनचर्या ओहिना चलैत रहल. . . ।आफेर एक दिन. . . .चानदाय. . ओहि गाम की. . .ओहि टोलक अपन ओही दलान क चौकी पबैसल देखाय पडली बहिन बजेने छल. . . .. दुखित छै. . .के जेतै देखय .. . शोणितक हिलकोर हमरा रोकि नहि सकल छल. . .छोट बहिन . .बेटी दाखिल. . .कोरा कॉख कखेलौने छियै. . . ।
सोनदाय आंगन सॅ चारिटा सोहारी . आकनि भाटा अदौडी के तरकारी. . .एकटा .. . कनकट्टा अलमुनिया के झॅपना मे राखि .. .. .जखन की हुनक भनसा मे स्टीलक थारी बाटी भरल छल . . . . ..भातिजक हाथे पठा देने रहैथ .. .।
ई कोन खिस्सा भाय. . .एहनो कोनो खिस्सा होय छै. . . ई तविशुद्व रूप सॅ त्रिया चरित्र के बखान करि रहल छी. . .जेकरा शास्त्र सेहो नेति नेतिकरि निषेध कयने अछि ।
त्रियाचरित्र कत्त. . . .ई त मानव मनोविज्ञानक रहस्यमय वर्णन थीक़ . .. .अब्बल आबलमानक’ .. दीया आतूफानक़ . .खिस्सा छै .. . शाश्वत कथा. . . .जुग जुग सॅ चलैत एलैए. . . .की दरिद्र .. .की मातवर .. . की पढल . .की मूरूख .. .की शहरि .. की गाम. . .सब ठाम एकरे तांडव .. .मुदा आधुनिक समाज आब एकर विश्लेषण करय लागल. . कि आखीर एना किएक़ . . ।तअपने कनि अपन वाणी के विराम दियौ आहमर श्रवणामृत वाणी सॅ अपन कर्ण कुटीर के गुंजायमान करू ।
सोनदाय चानदायक संघर्ष ककथा अपन चरमोत्कर्ष पचढल चलल जाइत रहलै आहिनका हुनका .. बडका छोटका .. सबके भावनात्मक धरातल पसब प्रकारक रस प्राप्त होबैत रहल .. . ।
मुदा खिस्सा तखिस्सा नहिं भजीबनक अंग बनि गेल छल ताहि लेल लोकवेद के तेहेन कोनो उत्सुकता नहि बॉचल छलै . .।
उत्सुकता भेलय .. . . मुदा तखन .. .जखन हंसा एसगरे जायत रहलै . .. .कलपैत. . . .कनैत. . .बोकरैत .. . पेटकुनिया . . .देने. . .उपस्थित समाज सॅ कजोरि कमाफी मॉगैत. .. . .
एकला चलो रे. .. एसगरे जाए रहल छली. . . .मान अपमान सॅ भिन्न. . . भूख पियास सॅ मुक्त. . .अपन आन. . .नीक बेजाय सॅ पृथक़ . . .।
. .. कोठरी फोलल गेल. .तऊपर चार मे . लाले लाल. .सुखैल जारैन खोंसल. . .निकालल गेल तकरीब मन भरि. . . .
मटकुडी सब मे . .सरबा सॅ मूॅह बंद करि राखल. . . चीनी. . . चाहक पत्ती. . .अचार .. .दालि. . . आमिल. . . सत्तु. . .अदौरी .. .चाऊर. . .घीऊ. . . .नहि जाने कत्त्ोक चीज पतियानी सॅ लगा कराखल. . . .चौकी के नीचा .. टुटलहिया बाकस मे .. .एगारक जोड नूआ. . .चारि टा शॉल. . .पॉच टा . . साया .. चारि टा आंगि ..दू टा स्वेटर. . . . . . चानी के हॅसुली.. . . .पनरसै टाका .. .बीस पैसाही .. .एक टा मटमैल सन बटुआ मे मूह बान्हि कराखल .. ।.. . कतेक रास अठन्नी .. चौअन्नी पॅचपैसाही. . .एक टा लत्ता मे लटपटायल. . . .। ओकरा ऊपर मे नीमक पात. .बाकस के ऊपर गोईठा .खडही. . बोरा. . .केथरी. . ।.
ई एत्ते टा . . .राज पाट .. .लोकक ऑखि ढाबूस बेंग जकॉ बहरायल. . . टोलक लोक संगे भरि गामक लोक ई रानी महारानी के साज समान देखए लेल आबैत काल अपना मुॅह मे किसीम किसीम के गप सप्प भरने. आबै. . .आ .. पागुर करैत . . .गप के उनटैत पनटैत अपन विचार के परम सत्य मानैत. . .जाईत रहैत छल ।
घोर आश्चर्य नै मदन भाय. . . .जेकरा की नै .. .।’ “जौं पहिनहिं सॅ बूझल रहितै. . .नबका घरक सीमटी बाला सीढी पबैसल आन आन लोकक संग ..सोन दाय के पच्छ मे समय जेना ठाढ भगेल छलै .. .सहस्त्रो जिव्हा सॅ बाजय के मौका दईत से सएह अहॉसब कहै जाईयौ. . .बडका बाबू .. .तखन हमर कोन दसा बाकी रखने छलीह .. .ईरनी बिरनी सन बगै बनौने. . .फाटल पुरान पहिरने . . .हिनका हुनका दरवज्जा पबैसल पहरि धरि. . . .नोर बहाबैत. . .खिधांस करैत. . .अपन दुखक फकरा पढैत. . . . .कोन गिन्जन नहि कयलथि हम्मर .. . .हुनका गेला के बाद तजेना आर सॉड बनि गेल छलथि .. . बज्जर खसौ ई सरकार के खैरात की बॅटनाय सुरू कयल .. .नीक नूकूत घरक नककटौन जनानी सब लाज धाक तजि कपॉत ीमे जाकए ठाढ़ . . . . ।’’
जाए दियौ. . .ई काल. . .अहि सब तरहक हिसाब किताबक लेल नहि अछि. . . .आब सोचू जे की कयल जाय. . .।बेर त सरासरि ससरल जा रहल छैक .।मझॅला कका आगॉ बढि कसोनदाय के व्यतीत सॅ वर्तमान मे तीर तारि क अनला .तओ हडबडा गेलीह. . . गै म्या. . . .केना की हेतै . . .।’ .’हुनक ऑखि भटभट चूबए लगलैन्ह .. . ताबैत भीमनाथ आबि क बाजल तोंही जे कनबीही तखन कोन काज हैतै. . .भायजी सब बाहरे. . .ओ धडफडा कऑचरिक खूॅटी सॅ ऑखि मीडैत बजली. . हॅ मझिला बौआ .. .आगि त हुनका भीमे देतैन्ह .. . जीवितौ एयह सेवा सुश्रुषा कयने छलैन्ह. . . तखन आब. . की. . ...
उम्हर हुनके स्ांजोगल लकडी घी आदि ल
हुनक आखिरी काज लेल लोक वेद प्रस्थान करैत गेल ।
कहुना करि कराति कटल. . .तीन दिन मे अहि सॅ उग्रास भ। एकाध नोर कानि सोनदाय अपन दलान पबैसली. . गेली बेचारो. . . .अही लेल दुनिया मे अतेक छल कपट. . . अतेक हाय हाय. .आध्यात्म संग बैराग्य सेहो हुनका ग्रसित करि लेलकैन्ह.. कहै छै लोक . . .करनी देखीह मरनी बेर. . . चटपट मे उडि गेलीह. . . हम्मर की गति होयत. . .।

केहेन खिस्सा अपने पसारि रहल छी श्रीमान. . . जेकर नै कोनो ओर नै छोर. . . .ई की बॉचल जा रहल छै. . .अहि मे कोन मनोविज्ञानक झलकि .. . . ।
मनो विज्ञानक झलक़ . . . .एके बेर थोडबै झलकि उठतै .. आकास मे पूरनमासी के चान सन . . . .संच मंच भक बैसू सोमरस कआस्वादन करैत रहू .. . कनि मनन करू तखन नै मरम धरि पहुॅचब।
तखन किछु दिन टोलक चर्च कविषय सोनदाय. . . . सोनदाय .. . सोनदाय .. .।आब हुनक सब हीत एतय .. .आमहान बैरी. . .अधर्मी सासुर बाला. . मार बाढनि .. झॉट बाढैन .. ओहि नगरक लोक के. . .देखियौ तकरेज़ . .समाद पसमाद पठाओल गेलै. . .तखनो नै कियो धुरि कअयलै. . . हिस्सा बॅटवा काल सत्तासोढे पैलवार छै. . .जाऊत सब पहिने खोजो पुछारि करैत छलै. . .”. . .
जाय देथुन्ह बहिन. . .ओ बेचारी के जे गति लीखल छल से गति भेलय ।
मुदा सोनदाय के हुनक गति वा र्दुगति सॅ कोनो तेहेन फिकीर नै छल .. .ओ तअपने चिन्ता मे डूबल. . . .ओहि दिन सॅ. . .अहुरिया कटैत छलीह .. .दू बजे दिन सॅ चारि बजे धरि सब लोकवेद ओही काज मे ओझरायल आओ मौका देखि ओही कोठरी मे पैसि . . . ढकना ढकनी गेरूआ सीरक . .मटकुडी .. . पेटीए टा नहि .. .छोटसन ठेंगा सॅ चार के कोन कोनसॅ झॅमारि कअलगा कदेखलथि. . .मुदा क़त्तौ नै भेटलै. . . .पहसौल वाली के बजा कघर ओसारा नीपबैत काल. . .सेहो अपने मुस्तैद रहली. . . कत्तौ ककरो हाथ नै लागि जाए .. .।मुदा कोन फल .. . ।
भीमनाथक माय पुछलखिन्ह. . पाय के की करथिन्ह बहिन. .’ .हम अपन हाथ उठाककिछु नै करबै .. .अहॉ सब के जेकरा देबा तेबा के अछि . नूआ फट्टा. . सब बॉटि दियौ .. .हम की करबै राखिक।
सोनदायक प्रवासी पूत सब अयलन्हि. . . ओहि रहस्यमय
वातावरण के चीरबा के क्रम मे व्यथित भबजली बौआ रौ. . .ओ त. घर सॅ पडा कराधेश्यामक दरवज्जा पजा बैसलखून. . . .. भरि गामक लोककें कहने फिरथि. . .जे फलनामा के बौह हमरा खाय लै नहि दैत अछि. . .।राधेस्यामक घरवाली सोहाडी पका कचारि सांझ खुऔलकैन्ह तबाडी झाडी सॅ तीमन तरकारी .. .लताम केरा .. न्ो .बो. . .अररनेबा . . चोरा चोरा कओकरा दअबथिन्ह. . .।की पाबनि की तिहार सब मे भंगट. . ..छठियो मे अहिना कयलन्हि. . . परना के परात सीताराम कहलेन्हि जे काकी .. .अहॉ हुनका खाय लेल किएक नहिं दै छियैन्ह .बाजय पडल जे बौआ आंगनि मे पॉच परकारक अन्न सुखाति रहैत छै .. .ओ उठा कलैथ .. हम हाथ पकडबै तखन नै. . . .।मुदा बौआ .. हमरा बड बेनग्गन कएने रहैथ छथि .. . .भात रोटी पठेबै तककरा दलान प’ . . . कोनो ठेकान हिनकर .. . ।
बेटा .. .. .तौं हुनका दू सौ अढाई सौ टाका ददहुन. . .जे सब हुनका खुएने छलखिन्ह. . .।
ई कही ओ अपन महान उदारता के परिचय देलथि तबेटा एक पहर सोच मे पडि गेलाह. . .जीबैत हुनका चोरा कपाय दी . . तैयो माय हुनका आने माने सॅ गरियाबै. .. अपन पैलवारक दू बरखक नेना के सेहो हुनका लग ठाढ नै होमय दैथ ..जौं कोनो पुतौह माथ मे कनि तेल कुड ददैन्ह ..वा पएरजॅतबा के दुस्साहस करैथ.. पकडा गेलीह .. .हुनका वा हुनक धिया सबहक नजरि सॅ तखन फेर ओकर गंजन गंजन. . . तखन चोरा नुका ककियो किछु समान .किछु पाय देबा सॅ नहि चूकै .. .. .आय एहेन उच्च विचार ।
खिस्सा के अंत एयह अछि जे पचासो वरखक अपन रोआब .. कूटनीति .. .बदला .. .ईष्र्या.. . द्वेष पपरदा देनाय सोनदाय के समाजक संग अ.पनो नजरि मे आवश्यक भगेल रहै .. .किएक तचानोदाय आब बेचारी बनि कसबहक सहानुभूति हसोथि नेने रहैथ. . . आब हुनक सबहक मुॅह बन्न करबाक जरूरति अहि लेल पडि रहल छलैन्ह जे आब ओहो एसगरूआ भगेल छलथि. . . धिया पुत्ता बालिग भअपन अपन लोल मे तिनका लएक गोट नव घोसला के निर्माण हेतु उडि चुकल छल. . . .असहनीय एकांत .. . भातीज भीमनाथ. . पीसे काल सॅ आबि कनागनाथ जकॉ शरण लनेने छलाह. .मुदा ओकर अपन स्वारर्थ . ।तखन उठबा बैसबा लेल लोकक आवश्यकता तपडिते छै. . .चाहै .. कतबो भरल पेट वाला होथु .. . ।
चरखा मे पूनी जकॉ गप कटैत किछु लोकक जीवन कटैत रहैत छैक़ . .आब अपन पच्छ मे लोक समाज के करबाक छलैन्ह . ..तदलान पबैसारी मे चाह पानि सेहो आंगन सॅ पठबए लागल छलीह. . .।
कथा के क्रम मे किछु उटपटांग तथ्य सोझा आयल अछि. . . जेना सोनदाय बेकल भकी तकैत रहल छलीह. . .।
अहिरेबा. . . .अहॉ एखन धरि ओहि सूत्र के गहिएने बैसल छी. . . . .बेस. . . ..तभेलय की जे चानदाय के कान मे सोनक मोटगर माकडी छलैन्ह. . .दप दप पीयर . . . .ओ गत भेला सॅ पहिनहीं सॅ हुनक कान सॅ गुम भगेल छलै. . . ठोस. . एकदम दू भरि के. . .गरा मे सोनक सीकडी. . .।सोनदायके नजरि ओहि पगीद्व जकॉ गडल छल. . . भॉति भॉति के आसंका मोन मे घेरने. . .कतहु अपन बहिन के तनहि ददेलथि. . . .वा राधेस्यामक घरवाली चारि सांझ रान्हि कखुओलकन्हि . . .वएह तठकि फुसिया कनहि ललेलकैन्ह. . . ।
ओ मनोविज्ञानबला कोन गप. . .एखन धरि तहमरा पकडि मे तनहि आएल अछि ।
नहिं आयल तसुनु .. .अब्बल दुब्बर सेहो अपन भविष्यकलेल कतेक चिन्तित रहैत अछि . . . . ।जखन चान दाई के कोठरी सॅ जारनि अन्नपानि सब निकसल. . .तकिछु लोकक कहबा छल जे भरिसक संभावित बाढिक आसंका सॅ ओ अपन सबटा चाक चौबन्द बन्दोबस्त कए नेने छलीह .. जे कम सॅ कम कोठरी मे पडल पडल दू टा सोहारी तपेट मे जायत. . .। किछु आओर लोकक कहबा छल जे ओ अप्पन आखिरी कर्मक तैयारी अपने सोझा करि चुकल छलीह. . . . . .जानैत छलीह जे आगॉ नाथ नै पाछॉ पगहा के आगि देत .. . के क्रिया कर्म करत. . कोना कपैठ होयत .. से सबटा ब्योंत करि करखने छलीह. . . । मर्मक गप ई भेलय जे भरि जीनगी ईलटल बिलटल सन रहियो कहुनका अपन अगिलका जनमक चिन्ता छल. . . .सोनदायक पैलवारक लोक नूका चोरा ककिछु पाय टाका सदिखन दईतै रहैन्ह .. . आ ओ अन्तत .. गहन रूप सॅ एकरा ओकरा माध्यम सॅ चीज वोस्त मे बदलति रहली. . .मुदा ककरो कानो कान खबरि नै भसकलै. . ।
बेस. . . .आब त फरीछाऊ .. जे सोनदाय आचानदाय मे कोन तरहक संबंध छल. . .।किएक ओ एक दोसराकशोणितक पियासल छलीह. . . ।
एखन धरि अहॉ बूझि नहि पयलहु. . .तहमरे मुॅह सॅ सुनु. . .सोनदाय भाऊज छलथि चानदायक .. . ।
खिस्सा सुननिहार व्याकुल भ कानय लगला. भाय .. .ई त अहॉ हमरे पैलवारक कथा कहलहूॅ. . . चानदाय हमर पीसी छलीह .. ।
खिस्सा कहनिहार के नशा सेहो चढि चुकल छल ।ओहो विहृवल भकानय लगला. . . चानदाय हमरे काकी छलीह .. . जमीन जायदाद ककागद पऔंठा तलगबा लेलथि . . बाप पित्ति. . .मुदा कहियो घुरि कझॉकय नहि गेलथि जे पति विहिन अब्बल नारि भाऊजक खोरनाठी के ताप सहि कोना जीबैत अछि .. .।दूनू धनाढय मित्र नवी मुंबई नरूल के ओही एन आर आई बिल्डिंगक बारहवीं मंजिल के अपन पैंट हाऊस मे फफकि फफकि कएक पहरि धरि कानैत रहि गेल रहैथ ।

 
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ओमप्रकाश झा

कथा

निर्मोहिया
हुनकर नाम छल सदानन्द मंडल। माता-पिता हुनका सदन कहैत छलखिन्ह। हुनका नेनपने सँ नाटक-नौटंकी सब मे पार्ट लेबाक शौक छलैन्हि। कनी कऽ कविता शेर सब मे सेहो हुनका मोन लागैत रहैन्हि। ओ अपन उपनाम निर्मोही राखि लेने छलैथ। नाम पूछबा पर अपन नाम सदन निर्मोही बताबैत छलाह। शनैः-शनैः हुनकर नाम निर्मोही जी, निर्मोही आ निर्मोहिया प्रसिद्ध भऽ गेल छलैन्हि। घर-परिवारक लोकक अलावे दोस्त महिम सब हुनका निर्मोही नाम सँ जानऽ लागल छल। हुनकर एकटा बाल सखा छलैथ जिनकर नाम छल घूरन सदा। घूरन सेहो निर्मोही जकाँ नाटक कविताक शौकीन छलाह आ एहि सब मे भाग लैत छलाह। ओ अपन नाम दीवाना राखने छलाह। निर्मोही-दीवानाक जोडी पूरा परोपट्टा मे प्रसिद्ध छल। दुर्गा पूजा मे गाम मे नाटक बिना निर्मोही-दीवाना केर सम्भव नै छल। कोनो आयोजन हुए वा ककरो एहिठाम बरियाती आबै आ की कतौ अष्टजाम होय, सबठाँ निर्मोही आ दीवानाक उपस्थिति परम आवश्यक रहै। निर्मोही-दीवाना गामक लेल नौशाद, खैय्याम, रफी, मुकेश, किशोर आदि सब छलाह। जखने गाम मे कोनो सान्स्कृतिक कार्यक्रम होय की लोक जल्दी सँ जा कऽ अगिला सीट लेबाक कोशिश करैत छल जाहि सँ निर्मोही-दीवानाक नीक जकाँ देख सकल जाइ। कहै केर इ तात्पर्य की निर्मोही आ दीवाना सबहक मनोरंजनक पूर्त्ति करैत छलाह। नाटकक आयोजन मे उद्घोषक जखने कहै की आब निर्मोही दीवाना मन्च पर आबि रहल छथि की तालीक गडगडी सँ पूरा आकाश बडी काल धरि गनगनाईत रहै छल। मन्च पर आबैत देरी दुनू गोटे जनता केँ नमस्कार कऽ कए शुरू करैत छलाह- "हम छी निर्मोही-दीवाना, सब दुख सँ अनजाना, लऽ कए आबि गेल छी, मनोरंजनक खजाना।" आ की लोक ताली बजबय लागै। तकर बाद फिल्मी गाना, पैरोडी, कविता, शाईरी आदि सँ ओ दुनू गोटे पूरा मनोरंजन करैत छलखिन्ह। तहिना गाम मे कोनो बरियाती आबै तऽ इ दुनू गोटे ओहि दरबज्जा पर पहुँचि जाइ छलाह। हुनकर सबहक इ सेवा निशुल्क रहैत छल। कियो भोजन करा दैत छल, तऽ ठीक, नै तऽ कोनो बात नै। हिनकर सबहक कोनो माँग नै छलैन्हि। नेनपने सँ हमरा मोन मे हिनका सबहक प्रति बड्ड आदर छल। हिनकर सबहक निस्वार्थ सेवा देखि हमरा सदिखन यैह लागल जे इ सब सही मे साधु छथि। हिनका सबहक परिवारक खर्चा कहुना कऽ चलैत छल। कखनो माता-पिताक हुथनाइ आ कखनो कनियाँक बात कथा। मुदा हिनका सब पर कोनो असर नै छल। साँझ होइत देरी दुनू मुखियाजीक पोखरिक भिंडा पर आबि जाइत छलाह, जतय पहिने सँ छौंडा आ जुआन सब हिनकर सबहक प्रतीक्षा मे बैसल रहैत छलाह। तकर बाद शुरू भऽ जाइत छल मुशायरा इ शायर-द्वय केर।

समयक गाडी तेजी सँ भागैत रहल। हम पढि कऽ किरानीक नौकरी करऽ लागलौं। गाम एनाई कम भऽ गेल। शुरु मे तऽ नियम बना कऽ होली, दुर्गा पूजा, छठि मे आबैत रहलौं। बाद मे इहो एनाई जेनाई बड्ड कम भऽ गेल। गाम मे धीरे धीरे सब किछ बदलि गेल। नाटकक चलन सेहो खतम भेल जाईत छल। ओकर बदला मे थेटर आ बाईजीक चलन बढल जाईत छल। बरियातीक स्वागत सत्कार मे अपनैतीक स्थान पर यान्त्रीकरण जकाँ बेबहार हुए लागल छल। निर्मोही आ दीवानाक पूछनिहारक संख्या सेहो घटल जाईत छल। घूरन सदा अपन परिवारक दारूण स्थिति देखि नौकरीक जोगाड मे लागि गेलाह आ कहुना कऽ एकटा प्राइवेट प्रेस मे दरिभंगा मे नौकरी करऽ लागलाह। ओ अपन बाल सखा सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही केँ सेहो लऽ जेबाक प्रयास केलखिन्ह, मुदा निर्मोही नहि गेलथि। निर्मोहीक स्थिति आरो खराप भेल गेल आ तमाकूलक खर्ची तक निकलनाई भारी हुअ लागल। मुदा निर्मोही अपन कविता शाईरीक शौक नै छोडलैन्हि। एक बेर दुर्गा पूजा मे गाम एलहुँ। साँझ मे मेला घूमै लेल गेलौं। पता चलल जे एहि बेर एकटा पैघ थेटर आयल अछि। हम कक्का सँ निर्मोहीजी दिया पूछलियैन्हि। कक्का कहलथि जे ओ बताह भऽ गेल छथि। कतौ कोनटा मे ठाढ भऽ कऽ अपन बडबडाईत हेताह। हम चारू कात ताकऽ लागलौं। देखलौं जे मेलाक एकटा अन्हार कोन मे ओ वीर रसक कविता पूरा जोश मे पाठ करैत छलाह आ बच्चा सब हुनकर चारू कात घेरा बना कऽ ताली बजबैत छल। हम लग गेलौं। निर्मोहीजीक दाढी पूरा बढल छल। आँखि मे काँची, उजडल केश, फाटल कुरता.... हमर मोन करूणा सँ भरि गेल। हम गोर लागलियैन्हि आ पूछलियैन्हि- "कक्का चिन्हलौं?" ओ हमरा धेआन सँ देखि बजलाह- "अहाँ ओम थीकौं ने।" हम- "अहाँ अपन की हाल बना लेने छी। काकी आ बच्चा सबहक की हाल?" निर्मोही- "यौ सब कहुना कऽ जीबि रहल छै। खेनाईक जोगाड कहुना भऽ जाईत अछि।" हम- "कविता शाईरीक की हाल?" निर्मोही- "कियो पूछनिहार तऽ रहल नै। बस अपने रचना करैत छी आ नित्य साँझ मे पोखरिक भिंडा पर जा कऽ असगरे पाठ करैत छी। लोक बताह कहैत ए। सब बुडिबक छथि। साहित्य आ रचनाक महत्व की बूझताह।" हम- "कोनो नौकरी नै केलियै अहाँ?" निर्मोही- "हमर जन्म नौकरी करबा लेल नै भेल अछि। हम अपन जिनगी गीत-संगीत आ शाईरीक नाम लिख देने छी।" हम- "इ तऽ ठीक अछि। मुदा काकी आ बच्चा सभक तऽ सोचियौ।" निर्मोही- "अरे सभक देखनिहार भगवान छथि। भगवान सभक जोगाड करथिन्ह।" हमरा रहल नै गेल आ हम किछ आर्थिक मदति करबाक कोशिश केलौं, मुदा ओ लेबा सँ मनाही कऽ देलथि। कहलथि- "अहाँक चाह पीबि लेलौं, बस वैह बहुत अछि। हमरा कोनो मदति नै चाही।" हम हुनका सँ अनुमति लऽ कऽ मेला सँ गाम दिस चललहुँ। सोचऽ लागलहुँ जे इ कोन बतहपनी भेल। परिवारक विषय मे नै सोचबाक छलैन्हि तऽ बियाह किया केलाह निर्मोही जी। फेर इहो सोचऽ लागलौं की समाजक लोक मनोरंजन तऽ चाहै छथि, मुदा मनोरंजन पर पाई नै खर्च करऽ चाहै छथि, से किया। नीक सँ नीक कलाकार जँ अपन कोनो रोजगार नै करै तऽ भूखले मरि जाईत ए। समाज एहन निर्मोही कियाक अछि। जे कहियो सबहक तालीक केन्द्र रहैत छलाह, से आब सब केँ बताह किया बूझा रहल छथिन्ह। यैह सब सोचैत हम निर्मोहीजीक आंगन पहुँचि गेलौं। आंगन मे हुनकर कनियाँ बैसि कऽ तरकारी काटै छलीह। हम गोर लागैत कहलियैन्हि- "काकी की हाल चाल?" ओ फाटल आँचर सँ अपन माथ झाँपैत कहलथि- "कहुना कऽ जीबि रहल छी बउआ। तेहेन निर्मोही सँ बाबू बियाह करा देलथि, जिनका पर-परिवारक कोनो मोह नै छैन्हि।" हम- "काकी, कक्का तऽ साहित्य संगीत मे लागल छथि। हुनका एना निर्मोही जूनि कहू।" काकी- "जँ एहन गप अछि तँ साहित्ये संगीत सँ बियाह किया नै कऽ लेलथि? दू टा बेटा जुआन भऽ कऽ कतौ पलदारी करैत छैन्हि। बेटी केँ बियाहक कोनो चिन्ता नहि। एहन कोन साहित्य प्रेम? हमर ससुर बीमार भऽ कऽ दवाईक अभाव मे तडपि तडपि कऽ मरि गेलाह। हुनकर मरलाक बाद ओ केश आ दाढियो नै कटेलथि। इ कोन बतहपनी भेलै?" हम ओतय सँ चलि देलहुँ। सोचऽ लागलौं जे सब लेल ओ निर्मोही आ हुनका लेल सब निर्मोही।

समयक पहिया घूमैत रहल। १० बरख बीत गेल। गरमी छुट्टी मे बच्चा सब केँ लऽ कऽ गाम आयल छलहुँ। एक दिन दलान पर बैसल छलहुँ की रमन भाई कहैत अयलाह- "निर्मोही गोल भऽ गेलाह। किछ दिन सँ बिछौन धेने छलाह। कोनो गम्भीर रोग सँ पीडित भऽ गेल छलाह।" हम रमन भाईक संग निर्मोही जीक दलान पर गेलौं। ओतुक्का दृश्य बड्ड कारूणिक छल। काकी उठा उठा देह पटकै छलीह आ कानैत छलीह इ बाजि बाजि जे जिनगी भरि निर्मोहिया रहलौं आ आइयो निर्मोहिया बनि उडि गेलौं। हम आंगन मे पडल लहाश केँ देखलहुँ। बाँसक चचरी पर सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही उर्फ निर्मोहिया शांति सँ पडल छलथि। एकदम शांत, बिना कोनो मोह केँ दीर्घ विश्राम मे छलाह निर्मोही जी। पूरा गाम ओतय जुटल छल आ निर्मोहीक संगीत कविताक चर्चा करैत छल। हम दलानक कोठरी मे गेलहुँ जतय निर्मोही रहै छलाह। एकटा टूटलाहा काठक अलमीरा मे हुनक हाथ सँ लिखल ढेरी पाण्डुलिपि पडल छल। किछ दीमक सँ खाएल छल आ किछ कागतक सियाही पसरि गेल छलै। हुनकर सिरमा तर मे एकटा कागत छल जै पर किछ लिखल छल। इ हुनकर अन्तिम रचना छल, जे पूरा नै छल। ऐ मे लिखल छलः-
इ जग छै निर्मोही, बन्धन तोडि कऽ उडि जाउ।
आब नै घूमू, कियो कतबो कहै जे घुरि जाउ।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
रवि भूषण पाठक
झमेलि‍या बि‍आह

जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक तेसर नाटक। ऐ सँ पहिले मिथिलाक बेटीकम्‍प्रोमाइज। तीनू नाटक अपन औपन्‍यासिक विस्‍तार आ काव्‍यात्‍मक दृष्टिसँ परिपूर्ण। लेखक समकालीन विश्व आ गद्यक पारस्‍परिकतासँ नीक जकाँ परिचित छथि, तँए हिनकर संपूर्ण रचना-संसारमे समकालीनताक वैभव पसरल अछि, जत्ते वैचारिक, ओतबे रूपगत। समकालीनताक प्रति हिनकर झुकाव झमेलिया बि‍आहक एकटा विशेष स्‍वरूप दैत छैक। बारह सालक नेनाक बि‍आहक ओरियाओन करैत माएबापक चित्र जत्ते हँसबै छैक, माएक बेमारी ओतबे सुन्न। लेखकक रचना संसारमे काल-देवताक लेल विशेष जग्‍गह, तँए ई नाटक प्रहसनक प्रारंभिक रूपगुण देखाबितो किछु आर अछि। पहिले दृश्‍यमे सुशीला कहैत छथिन राजा दैवक कोन ठेकान..., अगर दुरभाखा पड़तै तँ सुभाखा किअए ने पड़ै छै...। आ राजा, दैवक कर्तव्‍यक प्रति ई उदासीनताक अनुभव समस्‍त आस्तिकता आ भाग्‍यवादिताकेँ खंडित करैत अछि।

सभ नाटकमे भरत मुनिकेँ खोजनाइ जरूरी नइ, ओना उत्‍साही विवेचक अर्थ-प्रकृति, कार्यावस्‍था आ संधिक खोज करबे करता, आ कोनो तत्‍व नइ मिलतनि‍ तँ चिकडि़ उठता। यद्यपि लेखकक उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट अछि। शास्‍त्रीय रूढ़ि‍ जेनानान्‍दी पाठ, मंगलाचरण, प्रस्‍तावना, भरतवाक्‍यक प्रति लेखक कोनो आकर्षण नइ देखबैत छथिन। एतबे नइ पाश्चात्‍य नाट्य सिद्धांतकेँ हूबहू (देकसी) खोजएबलाकेँ आलस सेहो लागतनि‍। तँए झमेलिया बि‍आह नाटकमे स्‍टीरियोटाईप संघर्ष देखबाक ईच्‍छुक भाय लोकनि कनेक बचि बचा के चलब। विसंगति आ समस्‍या नाटकक फार्मूलाकेँ नाटकमे खोजएबलाकेँ सेहो झमेला बुझा सकैत छनि, किएक तँ लेखक कोनो फार्मूलाकेँ स्‍वीकारि के नइ लिखैत छथिन ।
सीधा-सीधी अंक-बि‍हीन झमेलिया बि‍आह नओ गोट दृश्‍यमे बँटल अछि: अनेक दृश्‍यस्‍य एकांकी। ने बहुत छोट आ ने नमहर। तीन चारि घंटाक बिना झमेलाकेँ झमेलिया बि‍आह। एकेटा परदा या बॉक्‍स सेटपर मंचित होमए योग्‍य। मात्र घर वा दरबज्‍जाक साज-सज्‍जा। तेरहटा पुरुष आ चारिटा स्‍त्री पात्रक नाटक। छोट-छोट रसगर संवाद, संघर्ष आ उतार-चढ़ावक संभावनासँ युक्‍त। ने केतौ नमहर स्‍वगत ने नमहर संवाद। असंभव दृश्‍य, बाढि़, हाथी-घोड़ा, कार जीपक कोनो योजना नइ। संवादक द्वारा विभिन्‍न बरियाती या यात्राक कथासँ जिज्ञासा आ आद्यांत आकर्षण। क‍थामे चैता केर रमणीयता आ मर्यादा, तँए जोगीराक दिशाहीनता आ उद्दाम वेग नइ भेटत। गंभीर साहित्‍य सर्वदा अपन समैक अन्‍न, खून पसेनाक गंधसँ युक्‍त होइत अछि। आ झमेलिया बि‍आह सेहो पावनि-तिहार, भनसा घरक फोड़न-छौंक, सोयरी, श्‍मशान आ पकमानक बहुवर्णी गंधसँ युक्‍त अछि, एकदम ओहिना जेना पाब्‍लो नेरूदा विभिन्न कोटिक गंधकेँ कवितामे खोजैत छथिन।

झमेलिया बि‍आहक सामाजिक आ सांस्‍कृतिक आधारपर कनेक विचार करू। ई ओइ ठामक नाटक अछि, जतए कर्मपर जन्‍म, संयोग आ कालदेवताकेँ अंकुश छैक, जइठामक लोक मानैत छथिन जे कखनो मुँहसँ अवाच कथा नै निकाली। दुरभक्‍खो विषाइ छै। सामाजिक रूपेँ ओ वर्ग जेकर हँसी-खुशी माटिक तरमे तोपा गेल अछि। लैंगिक विचार हुनकर ई जे पुरुख आ स्‍त्रीगणक काज फुट-फुट अछि। आ विकासक उदाहरण ई कि जइठीन मथ-टनकीक एकटा गोटी नै भेटै छै तइठीन साल भरि पथ-पानिक संग दवाइ खाएब पार लागत?
मुदा जगदीशजी केवल सातत्‍य आ निरंतरताक लेखक नइ छथिन, परिवर्तनक छोट-छोट यतिपर अपन कैमरासँ फ्लैश दैत रहैत छथिन। तँए यथास्थितिवादक लेल अभिशप्‍त होइतो यशोधर बुझैत छथिन जे मनुक्‍खक मनुखता गुणमे छिपल छै नै कि रंगमे। आ सुशीला सामाजिक स्थितिपर बिगड़ैत छथिन कि विधाताकेँ चूक भेलनि जे मनुक्‍खोकेँ सींघ नांगरि किअए ने देलखिन। आ ई नाटक कालदेवताक ओइ खंडसँ जुड़ैत अछि जतए पोता श्‍याम तेरह के थर्टिन आ तीन के थ्री कहैत छथिन। ऐठाम अखबार आबैत छैक आ राजदेव देशभक्तिक परिभाषाकेँ विस्‍तृत बनेबाक लेल कटिबद्ध छथिन। खेतमे पसीना चुबबैत खेतिहर, सड़कपर पत्‍थर फोड़ैत बोनिहार, धारमे नाव खेबैत‍ खेबनिहार सभ देश सेवा करैत अछि, आ राजदेव सभकेँ देशभक्‍त मानैत छथिन।

झमेलिया बि‍आहक झमेला जिनगीक स्‍वाभाविक रंग परिवर्तनसँ उद्भूत अछि, तँए जीवनक सामान्‍य गतिविधिक चित्रण चलि रहल अछि कथाकेँ बिना नीरस बनेने। नाटकक कथा विकास बिना कोनो बिहाड़ि‍क आगू बढ़ैत अछि, मुदा लेखकीय कौशल सामान्‍य कथोपकथनकेँ विशिष्‍ट बनबैत अछि। पहिल दृश्‍यमे पति-पत्नीक बातचितमे हास्‍यक संग समए देवताक क्रूरता सानल बुझाइत अछि। दोसर दृश्‍यमे झमेलिया अपन स्‍वाभाविक कैशोर्यसँ समैकेँ द्वारा तोपल खुशीकेँ खुनबाक प्रयास करैत अछि। पहिल दृश्‍यमे व्‍यक्ति परिस्थितिकेँ समक्ष मूक बनल अछि, आ दोसर दृश्‍यमे व्‍यक्तित्‍व आ समैक संघर्ष कथाकेँ आगू बढ़बैत‍ कथा आ जिनगीकेँ दिशा निर्धारित करैत अछि। तेसर दृश्‍य देशभक्ति आ विधवा विवाहक प्रश्नकेँ अर्थ विस्‍तार दैत अछि, आ ई नाटकक गतिसँ बेशी जिनगीकेँ गतिशील करबाक लेल अनुप्राणित अछि ।
चारिम दृश्‍यमे राधेश्‍याम कहैत छथिन जे कमसँ कम तीनक मिलानी अबस हेबाक चाही। आ, लेखक अत्‍यंत चुंबकीयतासँ नाटकीय कथामे ओइ जिज्ञासाकेँ समाविष्‍ट कऽ दैत छथिन कि पता नइ मिलान भऽ पेतै आ कि‍ नइ। ई जिज्ञासा बरियाती-सरियातीक मारिपीट आ समाजक कुकुड़ चालिसँ निरंतर बनल रहैत छैक। आ पांचम दृश्‍यमे मिथिलाक ओ सनातन खोटिकरमा पुराण। दहेज, बेटी, बि‍आह आ घटकक चक्रव्‍यूह! आ लेखकक कटुक्ति जे ने केवल मैथिल समाज बल्कि समकालीन बुद्धिजीवी आ आलोचनाक लेल सेहो अकाट्य अछि: कतए नै दलाली अछि। एक्‍के शब्‍दकेँ जगह-जगह बदलि-बदलि सभ अपन-अपन हाथ सुतारैए ।
आ घटकभायकेँ देखिअनु। समैकेँ भागबा आ समैमे आगि लगबाक स्‍पष्‍ट दृश्‍य हुनके देखाइ छनि। अपन नीच चेष्‍टाकेँ छुपबैत बालगोविन्‍दकेँ एक छिट्टा आर्शीवाद दैत छथिन। बालगोविन्‍दकेँ जाइते हुनकर आस्तिकताक रूपांतरण ऐ बि‍न्‍दुपर होइत अछि भगवान बड़ीटा छथिन। जँ से नै रहितथि तँ पहाड़क खोहमे रहैबला केना जीबैए। अजगरकेँ अहार कतए सँ अबै छै। घास-पातमे फूल-फड़ केना लगै छै....... बातचितक क्रममे ओ बेर-बेर बुझबैक आ फरिछाबैक काज करैत छथि। मैथिल समाजक अगिलगओना। महत्‍व देबै तँ काजो कऽ देत नइ तँ आगि लगा कऽ छोड़त !!!!!

छठम दृश्‍यमे बाबा आ पोतीक बातचित आ बरियाती जएबा आ नइ जएबाक औचित्‍यपर मंथन। बाबा राजदेव निर्णय नइ लऽ पाबै छथिन। बरियाती जएबाक अनिवार्यतापर ओ बिच-बिचहामे छथिन छइहो आ नहियो छै। समाजमे दुनू चलै छै। हमरे बि‍आह मे मामेटा बरियाती गेल रहथि। मुदा खाए, पचबै आ दुइर होइक कोनो समुचित निदान नइ भेटैत छैक। बरियाती-सरियातीक व्‍यवहार शास्‍त्र बनबैत राजदेव आ कृष्‍णानंद कथे-बि‍हनिमे ओझरा कऽ रहि जाइत छथि। दस बरिखक बच्‍चाकेँ श्राद्धमे रसगुल्‍ला मांगि-मांगि कऽ खाइबला हमर समाज बि‍आहमे किएक ने खाएत? तँए कामेसर भाय निशाँमे अढ़ाय-तीन सए रसगुल्‍ला आ किलो चारिएक माछ पचा गेलखिन आ रसगुल्‍लो सरबा एतए ओतए नइ आंतेमे जा नुका रहल !!!

सातम दृश्‍य सभसँ नमहर अछि, मुदा बि‍आह पूर्व वर आ कन्‍यागतक झीका-तीरी आ घटकभाय द्वारा बरियाती गमनक विभिन्‍न रसगर प्रसंगसँ नाटक बोझिल नइ होइत छैक। आ घटक भायपर धि‍यान देबै, पूरा नाटकमे सभसँ बेशी मुहावरा, लोकोक्ति, कहबैकाक प्रयोग ओएह करैत छथिन। मात्र सातमे दृश्‍यकेँ देखल जाए खरमास (बैसाख जेठ) मे आगि-छाइक डर रहै छै (अनुभव के बहाने बात मनेनइ)..... पुरूष नारीक संयोगसँ सृष्टिक निर्माण होइए (सिद्धांतक तरे धि‍यान मूलबि‍ंदुसँ हटेनइ)...... आगूक विचार बढ़बैसँ पहिने एक बेर चाह-पान भऽ जाए (भोगी आ लालुप समाजक प्रतिनिधि) ...... जइ काजमे हाथ दइ छी ओइ काजकेँ कइये कऽ छोड़ै छी (गर्वोक्ति)....... जिनगीमे पहिल बेर एहेन फेरा लागल (कथा कहबासँ पहिले धि‍यान आकर्षित करबाक सफल प्रयास).... खाइ पीबैक बेरो भऽ गेल आ देहो हाथ अकड़ि‍ गेल...... कुटुम नारायण तँ ठरलो खा कऽ पेट भरि लेताह मुदा हमरा तँ कोनो गंजन गृहणी नहिये रखतीह। (प्रकारांतरसँ अपन महत्‍व आ योगदान जनबैत ई ध्‍वनि जे हमरो कहू खाए लेल)

आठमो दृश्‍यमे बालगोविन्‍द
, यशोधर, भागेसर, घटकभाय बि‍आह आ बरियातीकेँ बुझौएल के निदान करबा हेतु प्रयासरत् छथि, आ लेखक घटकभायकेँ पूर्ण नांगट नइ बनबैत छथिन, मुदा ओकर मीठ-मीठ शब्‍दक निहितार्थकेँ नीक जकाँ खोलि दैत छथिन। ऐ दृश्‍यमे बाजल बात, मुहावरा, लोकोक्ति आ प्रसंग, उदाहरणक बले ओ अपन बात मनबाबए लेल कटिबद्ध छथिन। हुनकर कहबैकापर धि‍यान दिओ- जमात करए करामात..., जाबत बरतन ताबत बरतन....., नै पान तँ पानक डंटियेसँ....., सतरह घाटक सुआद......., अनजान सुनजान महाकल्‍याण।
मुदा घटकभायकेँ ऐ सुभाषितानिक की निहितार्थ? ई अर्थ पढ़बाक लेल कोनो मेहनति‍ करबाक जरूरी नइ। ओ राधेश्‍यामकेँ कहै छथिन जखन बरियाती पहुंचैए तखन शर्बत ठंडा गरम, चाह-पान, सिगरेट-गुटका चलैए। तइपर सँ पतोरा बान्‍हल जलपान, तइपर सँ पलाउओ आ भातो, पूड़ि‍ओ आ कचौडि़यो, तइपर सँ रंग-बि‍रंगक तरकारियो आ अचारो, तइपर सँ मिठाइयो आ माछो-मासु, तइपर द‍हियो, सकड़ौड़ि‍ओ आ पनीरो चलैए।

नाटकक नओम आ अंतिम दृश्‍य। बाबा राजदेव आ पोती सुनीताक वार्तालाप, आखिर ऐ वार्तालापक की औचित्‍य? जगदीश जी सन सिद्धहस्‍त लेखक जानै छथिन जे बीसम आ एकैसम सदीक मिथिला पुरुषहीन भऽ चुकल छैक। यात्री जीक कवितापर विचार करैत कवयित्री अनामिका कहैत छथिन बिहारक बेशी कनियाँ विस्‍थापित पतिगणक कनियाँ छथि। सिंदूर तिलकित भाल ओइ ठाम सर्वदा चिंताक गहींर रेखाक पुंज रहल छैक।
....भूमंडलीकरणक बादो ई स्थिति अछि जे मिथिला, तिरहुत, वैशाली, सारण आ चंपारण यानी गंगा पारक बिहारी गाम सभ तरहेँ पुरुषबि‍हीन भऽ गेल छैक। ......सभ पिया परदेशी पिया छथि ओइठाम। गाममे बचल छथि वृद्धा, परित्‍यक्‍ता आ किशोरी सभ। एहन किशोरी, जेकर तुरते तुरत बि‍आह भेलै या फेर नइ भेल होए, भेलए ऐ दुआरे नइ जे दहेजक लेल पैसा नइ जुटल हेतैक।बि‍आह आ दहेजक ऐ समस्‍याक बीच सुनीताकेँ देखल जाए। एक तरहेँ ओ लेखकक पूर्ण वैचारिक प्रतिनिधि अछि। यद्यपि कखनो-कखनो राजदेव, कृष्‍णानंद आ यशोधर सेहो लेखकक विचार व्‍यक्‍त करैत छथिन। सुनीता, सुशीला आ राजदेव मिथिलाक स्‍थायी आबादी, आ घटकभाइक बीच रहबाक लेल अभिशप्‍त पीढ़ी। कृष्‍णानंद सन पढ़ल-लिखल युवकक स्‍थान मिथिलाक गाममे कोनो खास नइ। आ लेखक बिना कोनो हो-हल्‍ला केने नाटकमे ऐ दुष्‍प्रवृत्तिकेँ राखि देने छथि। जीवन आ नाटकक समांतरता ऐठाम समाप्‍त भऽ जाइत छैक आ दूटा अर्द्धवृत्‍त अपन चालि स्‍वभावकें गमैत जुड़ि पूर्णवृत्‍त भऽ जाइत अछि।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
शि‍वकुमार झा टि‍ल्‍लू
इन्‍द्रधनुषी अकासमे सामाजि‍क वि‍मर्श ::

इंद्रधनुषी अकास आधुनि‍क मैथि‍लीक चर्चित गद्यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डलक पहि‍ल पद्य संग्रह अछि‍‍। जगदीशजी सन् 2008सँ पूर्व मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल अनचि‍न्‍ह नाओं छलाह, मुदा गत तीन-चारि‍ बरखक भीतर हि‍नक वि‍वि‍ध बि‍म्‍बक उपन्‍यास, कथा संग्रह, नाटक, बाल गद्य साहि‍त्‍य आदि‍सँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ उतर आधुनि‍क युगमे प्रवेशक अवसरि‍ भेटि‍ गेलनि‍।

मूलत: कथाकार आ उपन्‍यासकार जगदीश प्रसाद मण्‍डल कोनो चन्‍दा झा सन प्राचीनता ओ नवीनताक सन्‍धि‍क कवि‍ नै आ ने हि‍नक रचनामे परम्‍परावादी प्रीति‍क कतहु दर्शन होइछ। भुवनेश्वर सिंह भुवन जकाँ ने जगदीश नवीन प्रगीत काव्‍यक व्‍याख्‍याता छथि‍ आ ने आरसी प्रसाद सिंह जकाँ आशु कवि‍।

110 कवि‍ताक संग्रह इंद्रधनुषी अकासमे जे ई वैशि‍ष्‍ट्यता प्रमाणि‍त कएलनि‍ ओ अछि‍ सम्‍पूर्ण समाजक लेल समन्‍वयवादी दृष्‍टि‍कोणक दार्शनि‍क अवलोकन आ अर्थनीति‍क सम्‍यक वि‍श्लेषण। अनचोकेमे कवि‍ता सबहक रूपेँ हि‍नक वि‍राट सरल जीवन दर्शन प्रदर्शित होइत अछि‍।
मणि‍ वि‍षधर साँपकेँ सेहो मनोरम बना दैत जकर लोभमे सपेरा सबहक अंत भऽ जाइछ। ओ मणि‍ तँ वैज्ञानि‍क दृष्‍टि‍कोणसँ काल्‍पनि‍क थि‍क, मुदा मणि‍ कवि‍तामे कवि‍ अपन मनक मनोभावकेँ मढ़ि‍-मढ़ि‍ मणि‍क रूप रेखाक संदेश दैत छथि‍। भाववाचक संज्ञा थि‍क-मणि‍ मुदा जाति‍ आ व्‍यक्‍ति‍क रचनाक लेल भावक आवश्‍यकता प्रासांगि‍क होइछ। जखन अर्न्‍तमनमे दि‍व्‍य ज्‍योति‍ जागत तँ तन अवश्‍य प्रज्‍जवलि‍त हएत। लक्ष्‍मी  तखने औतीह जखन कर्मपथ उज्‍ज्‍वल हएत। कर्मपथकेँ प्रकाशि‍त करबाक लेल स्‍वस्‍थ मोनक आवश्‍यक्‍ता  होइत छैक। पहि‍ने ई अवधारना छल जे स्‍वस्‍थ शरीरमे स्‍वस्‍थ मनक नि‍वास होइत छैक, मुदा आधुनि‍क वैज्ञानि‍क दृष्‍टकोणे ई मि‍थ्‍या प्रमाणि‍त भ्‍ाऽ रहलैक। व्‍यस्‍त जीवन शैलीमे मोन अस्‍थि‍र भऽ गेल छैक। बि‍नु कर्मक अधि‍क प्राप्‍ति‍क तृष्‍णासँ मनमे वि‍चलन स्‍वाभावि‍क जइसँ मोन अस्‍वस्‍थ। जखन मोन अस्‍वस्‍थ तँ शरीरक अस्‍वस्‍थ हएब कोनो अजगुत नै। चि‍न्ह बि‍ना औषधि‍ भारी वैज्ञानि‍क दृष्‍टि‍कोणसँ अक्षरश: सत्‍य  मानल जाए। सोडि‍यम कार्बोनेट धोवि‍या सोडर थि‍क आ सोडि‍यम बाइकार्वोनेट पेटक अम्‍लीयताकेँ दूर करैत अछि‍। मात्र वाइशब्‍द हटलासँ जौं उलटा सेवन हएत तँ जीवन वाइ-वाइ भऽ सकैत अछि‍।

मुदा सामाजि‍क जीवनमे धोवि‍यो सोडर अनि‍वार्य कि‍एक तँ मात्र पेटक अम्‍लीयता दूर कएलासँ शरीरक मोइल नै धोअल जा सकैछ। तँए जीवनमे सबहक लेल समायुसार स्‍थान देल जाए। श्रेष्‍ठ जीवन मानव कहबै छै मानवता उद्देश्‍य जकरऐ पॉति‍सँ रचनात्‍मक समन्‍वयवादी न्‍याय दर्शन प्रदर्शित होइत छैक। समाजक आगाँ पॉति‍क लोक जखन कात लागल वर्गकेँ मर्मािहत करैत अछि‍, तखन कातक लोक सेहो उग्रता प्रदर्शित करैत अछि‍। ऐ प्रकारक अदला-बदलाक भाव जगदीश जीक ऐ कवि‍तामे नै भेटल। ई तँ सकारात्‍मक सोचक आशावादी दार्शनि‍क जकाँ अपन कवि‍ताक इति‍ श्री करैत छथि‍-
मनुखक भेद वि‍भेद
मेटबैक छी धर्म ओकर
संभवत: ब्रह्माक वरद पूत सभकेँ आदर्शवादी बनबाक संदेश देलनि‍ अछि‍। ओना अलंकार मि‍लएबाक क्रममे एकठाम चूकि‍ गेल छथि‍
जखने मन मणि‍ बनत छि‍टकत ज्‍योति‍ धरतीपर
अपने बाट अपने देखब हँसैत चलब पृथ्‍वीपर
ऐठाम पृथ्‍वी परक स्‍थानपर परतीपरजौं लि‍खल रहि‍तए तँ शब्‍द सामंजस्‍य भऽ सकैत छल। ओना कवि‍क दृष्‍टि‍कोण भऽ सकैत छैक जे कि‍छु आर होन्‍हि‍।

गंभीर आशु काव्‍यक मान्‍यता समाप्‍त होइत मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे वि‍चार मूलक पद्य बि‍रले भेटैत अछि‍। जीवन आ आध्‍यात्‍मक संबंध चलन्‍त समाजक बीच देखैमे आबि‍ रहल छैक। सभ दि‍श भागमभाग सोचबाक लेल फुरसत नै। मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे छायावादक काल ि‍नर्धारण तँ नै कएल गेल अछि‍, मुदा अनचोकेमे कि‍छु साहि‍त्‍यकार ऐ काव्‍य वि‍धापर समए-समैपर रचना कऽ दैत छथि‍।चल रे जीवनकवि‍ता आध्‍यात्‍मि‍क दर्शनसँ कर्मशील जीवनक संधि‍ करबामे पूर्णत: सफल मानल जा सकैछ। महाकवि‍ आरसीक कहब छलन्‍हि‍ जे सभ लोकमे आशुत्‍व होइत छैक मुदा लेखनीसँ अभि‍व्‍यक्‍त करबाक लेल अर्न्‍तमन आ आत्‍माक मि‍लन जि‍नकामे हएत वएह आशु कवि‍ मानल जएताह। जगदीश तँ आशुकवि‍ नै छथि‍, मुदा चल रे जीवनहि‍नक क्षणि‍क अर्न्‍तमन आ आत्‍मीय मि‍लनक परि‍णामे आशु कवि‍ता अवश्‍य भऽ गेल। जीवनमे गति‍ सर्वाधि‍क उपयोगी आ सम्‍प्रभु-सर्वशक्‍ति‍ मान तत्‍व थि‍क। जइ वसुन्‍धराक माथपर हमर अस्‍ति‍त्‍व अछि‍ ओ कखनो ने रुकैत छथि‍। ग्रह-नक्षण सभ सदि‍खन गति‍मान, अंति‍म काल धरि‍ जीवन गति‍मान, मुइलापर प्राण गति‍मान होइत अदृश्‍य चक्रमे प्रवेश कऽ जाइत अछि‍।
यात्रीकेँ आराम कहाँ छै
यात्रा पथ वि‍श्राम कहाँ छै।
जे अभागल छथि‍ ओ सुतले रहथि‍ मुदा हुनको शरीरमे क्षि‍ति‍, जल, पावक, समीर, रुधि‍रक संग सभ अंग मौलि‍क रुपसँ गति‍मान रहैत अछि‍।सूर्य-तरेगन सेहो चलै छैवैज्ञानि‍क मान्‍यतासँ सर्वथा अनुचि‍त मानल जाइत अछि‍। सूर्य नै तँ उगैत अछि‍ आ ने डुमैत अछि‍। तँए कवि‍क एक पाॅति‍केँ मात्र उत्‍साह वर्धनक लेल कवि‍त्‍वक कि‍छु मंद वात मानल जाए। वास्‍तवि‍क रूपसँ ई असत्‍य मात्र कवि‍तेमे क्षम्‍य जौं कथा रहि‍तए तँ अप्रासंगि‍क मानल जा सकैत छल।
जेना जगदीश कथामे शब्‍द समंजन कऽ लैत छथि‍ ओना कवि‍तामे कतहु-कतहु ओझरा जाइत छथि‍न्‍ह।
समए संग चल, ऋूतु संग चल
गति‍ संग चल मति‍ संग चल।
सभठाम संगउदेश्‍य आ कथोपकथनक लेल सर्वथा उचि‍त, मुदा स्‍वरात्‍मक पद्यमे कथोपकथनक संग-संग अलंकार आ छंदक सम्‍मि‍लन सेहो आवश्‍यक होइत अछि‍। ई कवि‍ता कोनो अतुकांत कवि‍ता नै तँए छंदमे आबद्घ करबाक लेल कवि‍केँ वि‍शेष धि‍यान देबाक छलनि‍। जगदीशक शब्‍द-कोषमे मैथि‍लीक खॉटी शब्‍द सभ भरल छन्‍हि‍ तँए हि‍नकासँ आर आशा कएल जा सकैत अछि‍।
बाल मनोवि‍ज्ञानक दृष्‍टि‍सँ ई पद्य उपयुक्‍त मानल जाए। जे बाल आ युवावस्‍थाक संधि‍ भऽ सकैत अछि‍ कि‍एक तँ ऐ अवधि‍मे जीवनक गति‍-चक्रकेँ बूझब वि‍शेष अनि‍वार्य होइछ। ऐसँ भाषा-साहि‍त्‍य वि‍कास सेहो होइत छैक। आरसी प्रसाद सि‍ंह, सोहन लाल द्वि‍वेदी, सुमि‍त्रा नंदन पंत आ हरि‍वंश राय बच्‍चन सन हि‍न्‍दी  साहि‍त्‍यक आशुकवि‍ लोकनि‍क ऐ प्रकारक पद्य प्रारंभि‍क आ माध्‍यमि‍क शि‍क्षामे वि‍शेष लोकप्रि‍यता प्राप्‍त कएने अछि‍।
टुटए ने कहि‍यो सुर-तार
हुअए ने कहि‍यो जि‍नगी बेहाल।
जखने जीवनमे गति‍ मति‍ आ नि‍यति‍क त्रि‍वेणी अलग-अलग भऽ जाइत अछि‍ तँ जीवन उदासीन आ परि‍णाम कष्‍टदायी, तँए कवि‍क ऐ उक्‍ति‍केँ वि‍चारक संग-संग शि‍क्षा मूलक सेहो मानल जाए। गति‍ बि‍नु पहि‍ने जि‍नगी अक्रि‍य फेर अकर्मण्‍यता आ परि‍णाम जि‍नगी बेहाल, अंकगणि‍तीय आधारपर दृष्‍टि‍कोणकेँ प्रमाणि‍त कएल गेल जे सर्वथा उपयुक्‍त लगैत अछि‍।

जीवन जीवाक कलासँ संबंध काव्‍यमे प्राय: कवि‍ लोकनि‍ स्‍वयंकेँ नायक बना कऽ कवि‍ता लि‍खैत छथि‍। हि‍न्‍दी  साहि‍त्‍यमे जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री आध्‍यात्‍म दर्शनक सम्‍मि‍लन- मेरे पथ में न वि‍राम रहा सँ कएलनि‍ तँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे कालीकान्‍त झा बूच- मृगी जकाँ हम कॉपि‍ रहल छी, झॉखुरसँ तन झॉपि‍ रहल छी रूपेँ समाजक रुग्‍न दशासँ बचि‍ कऽ जीबए चाहैत छथि‍। मुदा जगदीश ऐ समाजक मैलकेँ साफ करबाक लेल उद्वि‍ग्‍न छथि‍।धोब घाटकवि‍ता कोनो मैल वस्‍त्रक मूल नै, वरन समाजक कृत-कृत्‍यपर लागल कुचक्रकेँ साफ कऽ कऽ ऐ सँ वचबाक प्रेरणा थि‍क-
धोइब घाट ओ घाट छी,
पाप धुआ पुन बनैत रहैत
अज्ञान-ज्ञान राति‍ दि‍न
रगड़ि‍ सान चढ़बैत रहैत
मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे रीति‍क त्रि‍भाषीय नाटक, प्रीति‍क महाकाव्‍य अर्थहीन वैरागी काव्‍य शास्‍त्र कखनो वि‍नोदी, कखनो चलन्‍त कवि‍ता आ कखनो नाम-गाम आ ठामक पद्यसँ भरल पद्य संग्रहक प्रधानता अछि‍ कि‍एक तँ भलमानुस जे लि‍खत वएह कोसक पाथर मानल जाएत। तँए अभावक ऐ साहि‍त्‍यमे नीति‍शास्‍त्रसँ सन्नि‍हि‍त पद्याभावकेँ धोब घाटसन कवि‍ता पूरा करैत अछि‍-
उला-पका राति‍केँ
साले साल सूर्ज सुड़कैए
सुख आरामक पहर छीि‍न
हँसि‍-हँसि‍ राति‍ दि‍न झाड़ैए।
कोनो आवश्‍यक नै जे जाज्‍वल्‍यमान नक्षत्रक कर्मसँ नि‍कसैत प्रभावक सभटा परि‍णाम उत्तमे हएत। सूर्य ज्‍योति‍क प्रतीक छथि‍, मुदा कखनो तँ हि‍नको कि‍रण जीव-अजीवकेँ उला-पका दैत अछि‍ तत्‍पश्चात् अन्‍हार। हि‍नक प्रति‍भा आ कर्मपर कवि‍केँ कोनो संदेह नै तँए भलमानुसोक अधलाह कर्मक वि‍रोध करबाक चाही। ऐसँ समाजमे दृष्‍टि‍कोणक वि‍जय प्रासंगि‍क हएत। वृक्ष मात्र गगनगामी..... एकर एक दृष्‍टि‍ एकटा उद्देश्‍य होइछ परंच शोर वि‍चलनसँ भरल लक्षण रखैत अछि‍। एक ध्‍वनि‍ अकास आ दोसर पताल प्रकृति‍क रंग बॉसक गि‍रह जकाँ प्रत्‍येक दृश्‍यपर पटाक्षेप। नाटकक अंकमे एकसँ बेसी दृश्‍य होएबाक चाही, मुदा प्रकृति‍ अर्थात् वि‍धाता अपन प्रत्‍येक अंककेँ अलग-अलग दृष्‍यसँ आबद्घ कऽ वि‍वि‍ध नाटकीय परि‍दृश्‍यक मंचन करैत अछि‍। ऐ पद्यक प्रत्‍येक छंदमे वि‍शेष अर्थ झॉपल अछि‍ जे पाठकक मस्‍ति‍ष्कपर ज्‍यामि‍ति‍क दबाब अवश्‍य बनाएत-
जहि‍ना डारि‍ करोटन लीची
खोंधि‍‍ते खोंइचा पकड़ैए
नि‍च्‍चाँ-ऊपर ससरि‍-ससरि‍
अपन-अपन बाट पबैए
भारतीय संस्‍कृति‍क संग ई दुर्भाग्‍य रहल जे परम्‍परावादी दृष्‍टि‍कोणक कि‍छु अवांक्षि‍त तत्‍वसँ लोक परेशान तँ छथि‍ मुदा कि‍यो ओकरा समाप्‍त होमए देबए नै चाहैत छथि‍।काटर प्रथाऐ रूपेमे सभसँ ि‍नर्घिष्‍ठ मानल जाए। सासु-पुतोहु वार्तामे कवि‍ ओना स्‍पष्‍ट रूपेँ काटरक परि‍णाम स्‍वरूपक उद्वोधन नै कएने छथि‍, मुदा परक बेटीकेँ बेटीक रूपमे स्‍वीकार करब सुसंस्‍कृत समाजक नारी लेल असहज होइछ। ई वि‍डंवना जे अपन संतानक संग जे सि‍नेह रहैछ ओ  दोसराक संतान जे आब आत्‍मसात भऽ गेल छथि‍ ति‍नका लेल असंभव। ओना एकरा स्‍वार्थ सेहो नै मानल जा सकैछ कि‍एक तँ पुतोहुक आवश्‍यकता व्‍याहुत बेटीसँ बेसी होइत छैक। ऐमे प्रति‍द्वन्‍द्वताक भाव रहैत अछि‍‍। मनुक्‍खकेँ अपन अधि‍कार तँ मोन रहैत अछि‍ मुदा कर्त्तव्‍यवोधक ज्ञान जि‍नकामे नै रहत हुनका पारि‍वारि‍क शांति‍क स्‍पप्‍न देखनाइ सर्वता अनुचि‍त आ भ्रामक।
प्रति‍द्वन्‍द्वि‍ता ऐ खेलमे सासु-पुतोहु दुनू दोषी मुदा सासुक दोख बेसी कि‍एक तँ आनक बेटी अपन घरमे अनलाक बाद हास-परि‍हास सासुएक मुखसँ पहि‍ने नि‍कलबाक संभावना रहैत छैक-
ओसार पुवरि‍या बैस सासु
पड़ल पुतोहुकेँ देल धाही
अकड़ि‍ कऽ मकड़ि‍ बाजलि‍
देहक पानि‍ लऽ गेल हाही।
ककरोपर जौं झूटका फेंकब तँ प्रत्‍युत्तरमे पाथर अवश्‍य भेटत, कि‍एक तँ कि‍यो-ककरोसँ कम नै। अधलाह देखौंस संस्‍कार मनुक्‍खमे पहि‍ने अबैछ तँ नवकी कनि‍याँ कोना चुप रहतीह-
पानि‍ये तँ पसरि‍ देहमे
पीब गेल सभटा पाणि‍
की करब, फुरि‍ते कहाँ अछि‍
कहाँ पड़ल छी जानि‍....।
ऐ प्रकारक आरोप-प्रत्‍यारोप ग्रामीण समाजमे बरोबरि‍ देखए मे अबैत अछि‍। परि‍णाम परि‍हासक संग-संग अपन दैनन्‍दि‍नीमे लागलि‍ पुतोहु सासुरमे बसलि‍ ननदि‍केँ बीचमे सेहो लऽ अबैत छथि‍।
कवि‍क कहबाक उद्देश्‍य छन्‍हि‍ जे स्‍वस्‍थ जड़ि‍सँ स्‍वस्‍थ वृक्षक वि‍कास हएब प्रासंगि‍क तँए सासुकेँ अपन मर्यादाक स्‍मरण राखि‍ पुतोहुक संग ओहने बेबहार करबाक चाहि‍यनि‍ जेना बेटीक संग करैत छथि‍। पुतोहुकेँ सेहो सासुमे अपन माइक छबि‍ देखबाक आवश्‍यकता छैक।

प्रयोगात्‍मक रूपेँ आब ऐ प्रकारक अनटेटल क्रि‍या-कलापक संभावना क्षीण भऽ रहलैक कि‍एक तँ पलायनवादी समाजमे सासु-पुतोहु एक संग रहतीह, बि‍रले अवसरि‍ भेटैछ। जगदीशजी गाममे रहि‍ कऽ साहि‍त्‍य साधना कऽ रहल छथि‍ तँए ऐ प्रकारक घटना गाम-घरमे घटि‍त होइत देखानाइ कवि‍क लेल कोनो अजगुत नै। कवि‍ताक बि‍म्‍ब आ शि‍ल्‍पसँ बेसी महत्‍वपूर्ण अछि‍ कवि‍क उद्देश्‍य। एे दृष्‍टि‍सँ जौं देखल जाए तँ कवि‍ता नीक छैक। भाषा वि‍ज्ञानक रूपमे अद्भुत कि‍एक तँ अपन गद्य जकाँ एेठाम जगदीश धाही, अकड़ि‍, मकड़ि‍, हाही, लसि‍या, नि‍चेन सन लुप्‍त होइत शब्‍द सभसँ पद्यकेँ वांछि‍त रूपेँ बोरि‍ कवि‍ता श्रवणीय बना देलनि‍‍।

बौड़ाएल बटोही शीर्षक कवि‍ता ऐ संग्रहक सभसँ नीक बि‍म्‍बकेँ केन्‍द्रि‍त कऽ कऽ लि‍खल गेल अछि‍। जीवन दर्शन आ आध्‍यात्‍मक तात्वि‍क वि‍वेचन अत्‍यन्‍त वि‍स्‍मयकारी छायावादसँ भरल मानल जा सकैछ। परदामे ओझराएल जि‍नगी जकाँ वर्त्तमान मनुक्‍खक जीवन भऽ गेल अदि‍। प्रयोगात्‍मक रूपेँ आब कोवरक कनि‍याँक ओ रूप कतए जकर कल्‍पना कवि‍ कएने छथि‍, मुदा गामक समाजमे एखनो कोवरमे नुकाएल कनि‍याँ भेटैत अछि‍। कोवरक कनि‍याँ तँ मर्यादाक अनुपालनक लेल नुकाएल छथि‍ मुदा कर्म पथपर वि‍चरण करैबला मनुक्‍ख कटि‍ कऽ कि‍एक रहि‍ रहल अछि‍? जे कि‍छु नै जानि‍ रहल अर्थात् अशि‍क्षि‍त मूक अनभुआरसँ सामर्थ्‍यशील मनुक्‍ख कि‍एक तकरार कऽ रहल छथि‍? अपन-अपन कर्मक संग-संग माए-बापक कर्म ओ धर्म संतानक सफलताक बाट उज्‍ज्वल करैत अछि‍। ऐठाम धर्मक भाव संप्रदाय नै अपि‍तु मानवीय मूल्‍यक सम्‍यक अनुपालन मानल जाए। वि‍लगि‍त पथपर जौं चरण राखल जाए तँ बुइध बि‍‍लेनाइ स्‍वाभावि‍क आ जखन बुइध बि‍ला जाएत तँ बाट कलुष अवश्‍य भऽ जाएत-
बाटे बि‍ला वुइध
बाटे बि‍सरि‍ गेल
जेम्‍हर जे चलल
तेम्‍हरे पहुँचि‍ गेल...।
कर्मक बीआ जाैं सत्‍व तम ओ रज रस रससँ बोरल नै जाएत तँ मनोकामनाभ्रम बनि‍ अपन सि‍द्धि‍क आशमे लुप्‍त अवश्‍य भऽ जाएत।
कोनाे रचनाकार जौं स्‍वयं नायक बनि‍ कवि‍ता लि‍खैत छथि‍ तँ कोनो अचरज नै, मुदा बेसीठाम कवि‍ स्‍वयंकेँ रीति‍ ओ प्रीति‍क नायक बना कऽ कवि‍ता लि‍खलाहेँ ई बरोबरि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे देखएमे अबैत अछि‍। अपन आलोचना करब सबहक लेल संभव नै, ओना कतौ-कतौ हास्‍य रसक कवि‍तामे कवि‍ लोकनि‍ अपन मजाक अवश्‍य उड़बैत छथि‍ मुदा एना करब कवि‍ताकेँ लोकप्रि‍य बनाएब मात्र मानल जाए। अपनेपर हँसै छीशीर्षक कवि‍ता मूलत: वर्त्तमान शि‍क्षा प्रणालीपर कविक‍ आलोचनात्‍मक काव्‍य शैलीमे प्रहार थि‍क। स्‍वयंकेँ नायक बना कऽ चोरि‍क डि‍ग्रीक आधारपर शि‍क्षा मि‍त्रक नौकरी प्राप्‍त करबामे हेर-फेर देखाओल गेल अछि‍। गाममे रहि‍ कऽ बि‍हारक शैक्षणि‍क प्रणालीपर कटु टि‍प्‍पणी न्‍यायोचि‍त। शासन तंत्र कतबो मजगूत मानल जाए मुदा जखन बेबस्‍थे भ्रष्‍ट, तखन इमानदारीक दाबा केनाइ भ्रामक सि‍द्ध होइत छैक। साम्‍यवादी वि‍चारधाराक अक्षरश: सम्‍पोषक कवि‍ कोनो राजनैति‍क दल वि‍शेषपर टि‍प्‍पणी नै केने छथि‍। अर्थनीति‍ जौं भ्रामक हुअए तँ ऐ लेल सम्‍पूर्ण समाजकेँ दोख देल जाए। लोक जखन स्‍वयं भ्रष्‍ट भऽ गेल छथि‍ तँ प्रजातंत्र वा शासन तंत्रपर दोख देब अनुचि‍त-
लाखे रूपैयामे
दशो कट्ठा जमीन गमेलौं
गुरु दक्षि‍ना देने बि‍ना
गुरु भाइक भार उठेलौं....।
ओना भारतीय परि‍दृश्‍यमे बि‍हारक राज्‍य बेबस्‍था भलहि‍ं स्‍तरीय मानल जा रहल मुदा शैक्षणि‍क बहालीमे योग्‍यतमक उत्तरजीवि‍कामे धन बल आ कुचक्रबल बेसी भारी पड़लैक, ज्ञानक मोजर एखनों नै भेटि‍ रहल। पाँच हजारक नौकरीक लेल मूल्‍यवान वसुन्‍धराकेँ बेचि‍ लोक लौटरी लगा रहल छथि‍। एकर दू गोट कुपरि‍णाम- पहि‍ल कृषि‍ कार्य जे हमरा समाजक रीढ थि‍क तकर महत्‍व समाप्‍त भऽ रहलैक आ दोसर प्रति‍भाक पलायन अवश्‍यभावी कि‍एक तँ साधनहीन प्रति‍भा सम्‍पन्न व्‍यक्‍ति‍ ऐ भ्रष्‍ट मंचपर कोना आसीन होथि‍-
बि‍नु धनक धनि‍क जहि‍ना
ताम-झाम देखबैए
देखि‍-देखि‍ आँखि‍ करूआए
लाजे आँखि‍ मुनै छी
अपने पर हँसै छी.....।

वि‍चारमूलक पद्य देशकालक दशाक एक रूपेँ सत्‍यश: चि‍त्रण करैत अछि‍। चारूकातक परि‍दृश्‍य हेहर भऽ गेलैक, ऐ दशामे सोझ बाट अकल्‍याणकारी लगनाइ कोनो अनुचि‍त नै। चोटगर तीक्ष्‍ण वान चला कऽ भ्रष्‍ट लोक अपनाकेँ सत्‍य साबि‍त करबामे कोनो अर्थे नै हुसैत अछि‍ कि‍एक तँ धनक संग गालक जमाना एक तँ चोरि‍ आ दोसर सीना जोरि‍। ऐ कटु सत्‍यकेँ साहि‍त्‍यमे कोना स्‍वीकार कएल जाए ई तँ भवि‍ष्‍यक गप्‍प मुदा यात्री आ आरसी जकाँ अपन लेखनीक संग जीवनमे सम्‍यक साम्‍यवादी जगदीशक ई कवि‍ता समाजक लेल दि‍शा ि‍नर्देश कऽ रहलैक‍। ओना ई अलग बात जे वर्त्तमान परि‍दृश्‍य फ्रांसक राज्‍यक्रांति‍ जकाँ नै जखन रूसो आ वाल्‍टेयरक आखर-आखरसँ समाजमे क्रांति‍ आबि‍ गेल छल।
आशावादी दृष्‍टि‍सँ जौं सोचल जाए तँ साहि‍त्‍य समाजक दर्पण अवश्‍य प्रतीत हएत, मुदा प्रत्‍येक पाठक एकर सम्‍यक् तत्‍वकेँ जौं अपन जीवनमे उतारि‍ लेथि‍ तखने ई संभव मानल जा सकैछ।

समाजक माने सबहक दृष्‍टि‍कोण आ आचार-वि‍चारक सभ गोट रूप व्‍यापक अर्थमे मंथन कएल जाए। जगदीशजी धोब घाटकवि‍ताक बाद धोबि‍ घाटकवि‍ता सेहो लि‍खने छथि‍।दर्शनकोनो पोथी पढ़ि‍ नै उत्पन्न कएल जा सकैछ, ई तँ जीवनकेँ देखबाक अपन दृष्‍टकोण होइत अछि‍। उदयनाचार्य कोनो काशी आ प्रयागमे रहि‍ न्‍याय कुसुमांजलि‍ सन पोथी नै लि‍खने रहथि‍। राजपूत कालक करि‍यनहुनक साहि‍त्‍य सृज्‍नताक गहवर छलनि‍। तँए जगदीशसँ टेम्‍स नदीक सभ्‍यताक आधुनि‍क बि‍म्‍बक आश केनाइ सर्वथा अनुचि‍त हएत कि‍एक तँ मि‍थि‍लाक खॉटी गाम बेरमाहि‍नक साहि‍त्‍य साधनाक केन्‍द्र बि‍न्‍दु छन्‍हि‍। दर्शनक तीन वयस होइत अछि‍- नीति‍, श्रृंगार ओ वैराग्‍य। सामाजि‍क जीवनमे रहनि‍हार मनुक्‍खक लेल तीनूक सम्‍यक काल ओ भाव होइत छैक। जीवन क्रममे संतुलन बनएबाक लेल तीनू वयससँ अलग-अलग सत्‍व रज ओ तमो गुण टपकैछ। सात्‍वि‍क भावकवि‍ता सत्‍व गुणकेँ आधार बना कऽ लि‍खल गेल अछि‍। सात्‍वि‍क भाव वि‍रासतपर आधारि‍त होइत छैक। जाहि‍ ठामक भूमि‍ सात्‍वि‍क, हवा पानि‍ सात्‍वि‍क माने नैसगि‍क संस्‍कार सात्‍वकतासँ भरल होइछ ओइठाम एकर प्रभाव अवश्‍यंभावी होइत छैक। लक्ष्‍य, संकल्‍प आ दृष्‍ता सेहो मनुक्‍खकेँ सम्‍यक शाश्‍वत कर्म दि‍श लऽ जाइछ, मुदा ऐ लेल संस्‍कार अनुवंशि‍की आदि‍पर व्‍यक्‍ति‍त्‍वक वि‍चार ि‍नर्भर होइछ। सुभाव-कुभाव आदि‍ संगहि‍ चलैत अछि‍ मुदा ऐ लेल दृष्‍टि‍कोणकेँ जाहि‍ रूपसँ देखल जाए वएह रूप दृष्‍टि‍गोचर हएत। कवि‍ताक भाव दर्शनपर आधारि‍त सरल शब्‍दमे मुदा वि‍चार बोधक लेल गूढ़ अछि‍ तँए एकरा बेशी लोकप्रि‍य नै मानल जाए परंच साहि‍त्‍यि‍क वि‍कासक लेल आ जीवन-दर्शनक लेल युक्‍ति‍संगत कवि‍ता थि‍क।

दि‍व्‍य पुरुष ओ जे सोलह कलासँ परि‍पूर्ण होथि‍।दि‍व्‍य शक्‍ति‍ शीर्षक पद्य सरल रूपेँ पढ़लाक बाद कि‍छु वि‍शेष नै देखबामे अबैछ मुदा जेना कवि‍क व्‍यक्‍ति‍त्‍व अर्न्‍तमुखी तहि‍ना पद्यमे गूढ़ रहस्‍य झॉपल छैक। दि‍व्‍य शक्‍ति‍सँ पूर्ण होएबाक बाद मनुजमे प्रखर ज्‍योति‍क आवरण पनकि‍ जाइत अछि‍। नीक-अधलाह वि‍चार संस्‍कारसँ उत्‍पन्न होइत अछि‍ मुदा गंगा माने पवि‍त्रताक परि‍चायक संस्‍कृति‍सँ आबद्घ् जलधाराक कोखि‍मे सबहक लेल समान स्‍थान। जइ भूमि‍पर वसुदेव वि‍राजथि‍ वएह वसुधा.......।
नन्‍द आ वसुदेवक प्रसंग तँ वर्तमान सामाजि‍क परि‍दृश्‍यमे उपहासजकाँ भऽ गेल अछि‍ मुदा कवि‍ आशावादी छथि‍.....
पाँचम कला बनि‍ जे बीआ
मनुज मन वि‍रजैए
डेगे-डेगे डगरि‍-डगरि‍
सोलहम कला पबैए...
जगदीश जीक जे काव्‍य सृजनता ओ व्‍यंगनाक वि‍शेषता छन्‍हि‍ ओ थि‍क हि‍नक आशावादी सकारात्‍मक दृष्‍टि‍कोण। अपन पद्यमे कतौ कवि‍ सामाजि‍क दशासँ नि‍राश नै छथि‍। कालक अकालकेँ अपन पद्यमे देखबैत तँ छथि‍ मुदा ओहि‍सँ उदि‍ग्‍न नै।
उड़ि‍आएल चि‍ड़ै कवि‍तामे वर्त्तमान मानवक मनोवृत्ति उझलि‍ लेखनीसँ कवि‍ताक रूपेँ उद्धृत कऽ कवि‍ पलायनवादपर तीक्ष्‍ण प्रहार कएलनि‍ अछि‍। ऐ पलायनमे मात्र अपन माि‍टसँ पलायन नै अपि‍तु संस्‍कार आ मानवीयमूल्‍यक पड़ाइन सेहो देखाएल गेल अछि‍।चि‍ड़ैक उदाहरण मात्र कवि‍क छायावादी दृष्‍टि‍कोण छन्‍हि‍, कचोट तँ संस्‍कृति‍क पराभवकेँ मानल जाए। जे चि‍ड़ै अपन डीहो-डबरकेँ बि‍सरि‍ स्‍वार्थ आ कृत्रि‍मताक लहरि‍मे जतऽ घोघ भरतै ओतहि‍ रास करत ओहि‍ चि‍ड़ैक मधुर स्‍वरसँ मूल समाजकेँ कोन काज-
ओहन स्‍मृति‍ स्‍मृते की
जे मने मन घुरि‍आइत रहैत
पसरि‍ नै पबैत जे कहि‍यो
तरे-तर खि‍आइत रहैत....।
कवि‍सँ बेशी समाजक लेल वि‍डंबना जे बाटसँ भटकल बाटोही अपन मूल बाटपर श्रद्धा तँ व्‍यक्‍त करैत अछि‍, मुदा जइ पथमे पहि‍ल बेर उदयायल आदि‍ि‍लक दर्शन होइत अछि‍ ओइ पथपर फेर धुरब पथ भ्रष्‍टक लेल असंभव जकाँ लगैत अछि‍। अपन मूल संस्‍कारक पराभव करब उचि‍त नै मात्र स्‍मृति‍सँ मूल माटि‍मे मातृत्‍व कोना उत्पन्न हएत। तँए पलायनकोनो रूपेँ उचि‍त नै।

मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍सँ फलैत-फूलैत हि‍न्‍दीक चर्चित उपन्‍यासकार फनीश्वर नाथ रेणु आंचलि‍क बनि‍ गेलनि‍। जौं मैथि‍लीक गप्‍प करी तँ कथाकार तँ कथा जगतमे ललि‍त, राजकमल, धूमकेतु, कुमार पवन आ कमला चौधरी सन प्रांजल आंचलि‍क कथाकार भेल छथि‍ मुदा आंचलि‍क काव्‍य जगतमे समग्र सामाजि‍क दैनन्‍दि‍नीककेँ छूबैत कवि‍मे यात्री (चि‍त्रा) ओ आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी)क पश्चात् जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ मानल जाए। सान-धार-धारा कवि‍ता कोनो कैंचीक शानपर आधारि‍त काव्‍य बून नहि‍ ई तँ मानवीय मूल्‍य ओ संवेदनाक शानपर आधारि‍त पद्य अछि‍-
जे धारा सि‍रजए गंगा
कमला कोशी ओ महानन्‍दा
ओ धार कहि‍या धरि‍ ठमकि‍
मानैत रहत फंदा?
गंगा, कमला आ कोसीक कि‍छेरमे बसल गाम सभ मि‍थि‍लाक परि‍धि‍क भीतर अबैछ ऐ तरहक उल्‍लेख तँ बहुत रास कवि‍तामे भेटैत अछि‍, मुदा ऐठाम महानन्‍दाक चर्च कऽ कवि‍ पुबरि‍या बि‍हारक क्षेत्र कि‍शनगंजसँ आगाँ धरि‍क लोककेँ आश्वस्‍त कऽ देलन्‍हि‍ जे अहूँ मैथि‍ले थि‍कौं? मात्र पद्यमे लयात्‍मकता भरबाक लेल एना नै कएल गेल। कवि‍ मोन भावुक होइत छैक, भावमे बहनाइ कवि‍क प्रवृत्ति‍ मुदा मि‍थि‍लाक संस्‍कारसँ भरल रहलाक बादो ई क्षेत्र साहि‍त्‍यमे अपच जकाँ छल, तँए कवि‍क भावनाकेँ सम्‍मान करबाक चाही।
जहाँ न जाए रवि‍ वहाँ जाए कवि‍’- ई वाक्‍य जे कि‍यो लि‍खने होथि‍ मुदा ई सर्वथा वि‍चारमूलक अछि‍। ऐ संग्रहक कि‍छु पद्य जेना पपीहाक गीत, वि‍खधरक बीख, नंगरकट घोड़ा आदि‍ पढ़लासँ स्‍पष्‍टत: बुझना गेल जे छायावादी दृष्‍टि‍कोण रचनाकारकेँ छोड़ि‍ सबहक लेल पूर्णत: बुझबामे नै अबैत छैक। कोइलीशीर्षक कवि‍तामे कवि‍ चन्‍द्रभानु सिंह मैथि‍लीक सरसताकेँ स्‍पष्‍ट रूपेँ पाठक वा श्रोता लग परसि‍ देने छथि‍ मुदा पपीहा गीत शीर्षक पद्य कोनो चि‍ड़ै-चुन्‍मुन्नीक स्‍वरपर आधारि‍त संस्‍कृति‍ गीत नै ई तँ सम्‍पूर्ण दर्शन थि‍क- जीवन-मरणक दर्शन। धरती अकाश, जल-थल कानि‍-अकानि‍ सन सहचाी विपरीतार्थक जीवन दर्शन.........‍  


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
 शि‍वकुमार झा टि‍ल्‍लू
मि‍थि‍लाक लोक देवता ::

कोनो साहि‍त्‍यक समृद्धि‍क आधार महाकाव्‍य, प्रवेध काव्‍य उपन्‍यास वा कथाक उत्तर आधुनि‍क वि‍वेचनकेँ मानल जाइत अछि‍। ऐ दि‍शामे मैथि‍ली एखन बड़ पाछू अछि‍ कि‍एक तँ समग्र साहि‍त्‍य वि‍धाक परम्‍परागत रूपसँ ई भाषा बाझल मानल जा सकैछ। साहि‍त्‍यक वि‍कास तखने संभव जखन भाषाक दीर्घकालीन संभावना परि‍लक्षि‍त होएत। पुरना पि‍ढ़ी झखड़ि‍ रहल छथि‍ आ नवका पि‍ढ़ीमे शि‍क्षाक माध्‍यम अंग्रेजी तखन मैथि‍लीक अस्‍ति‍त्‍वपर अपने आप प्रश्‍नचि‍न्‍ह लागब दर्शनीय। गाम-घरक नेना-भुटकाकेँ जौं छोड़ि‍ देल जाए तँ मैथि‍ल परि‍वारक शैशवक मातृभाषा नि‍श्चि‍त रूपेँ बदलि‍ रहल।
प्रारंभि‍क शि‍क्षाक माध्‍य अंग्रेजी आ हि‍न्‍दी थि‍क। ऐ दशामे साहि‍त्‍यसँ बेशी आवश्‍यक अछि‍ भाषाकेँ बचाएब। मैथि‍ली तखने अपन आस्‍ति‍त्‍वकेँ दृढ़ रूपेँ राखि‍ सकतीह जखन नवका पि‍ढ़ीमे मातृ आ वात्‍सल्‍य सि‍नेहक वेदना हुअए। एे लेल आवश्‍यक अछि‍ बाल मनोवि‍ज्ञानकेँ स्‍पर्श करएबला बाल साहि‍त्‍यक प्रोत्‍साहन।

ऐ दि‍शामे कहबाक लेल तँ बहुत रास कार्य भेल अछि‍ परंच वास्‍तवि‍क बाल साहि‍त्‍यमे आधुनि‍क पि‍ढ़ीक रचनाकारक समूहमे अग्रगन्‍या छथि‍ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर। हि‍नक तेसर पोथी मि‍थि‍लाक लोक देवताश्रुति‍ प्रकाशनक सौजन्‍यसँ 2010ईं.मे बहार भेल।
टी.एस. इलि‍यटक Tradition and the individual talent (1917 AD) क अनुसार कोनो कवि‍, कथाकार वा कलाकार स्‍वयंमे पूर्ण अर्थ नै स्‍पष्‍ट करैत छथि‍। हुनक कलाक तुलना मृत कवि‍ वा कलाकारक रचनासँ कएलाक बादे हुनक मूल्‍यांकन कएल जा सकैछ। जौं ऐ मतकेँ प्रासंगि‍क मानल जाए तैयो प्रीति‍जी अतुलनीय छथि‍ कि‍एक तँ हि‍नकासँ पूर्व ऐ प्रकारक चि‍त्रात्‍मक आ लयात्‍मक शैलीमे बाल गद्य पहि‍ने मैथि‍लीमे लि‍खल नै गेल। ई अक्षरश: सत्‍यो थि‍क कि‍एक तँ आदि‍ पुरुषक माथपर पाग रखबाक साहस कि‍यो नै कऽ सकल। संगहि‍ ऐ तथ्‍यकेँ जानब सेहो आवश्‍यक जे अन्‍य भाषा समूहसँ तुलनाक बाद प्रीति‍जी कतए छथि‍?
सामा चकेबा परम्‍परागत जनश्रुति‍ आ पौराणि‍क कथाक आधारपर मि‍थि‍लाक गाम-गाममे प्रचलि‍त कार्तिक पूर्णमासीक पावनि‍ ि‍थक। ऐ कथाकेँ ऐ पोथीमे सम्‍मि‍लि‍त कऽ प्रीति‍जी कोनो नव रचनात्‍मक कार्य नै कएलनि‍ परंच अनचोकेमे नवका पि‍ढ़ीकेँ अपन संस्‍कृति‍सँ अवश्‍य अवगत करा देलखि‍न। अनचाेेके शब्‍दक प्रयोग ऐ दुआरे कएलौं कि‍एक तँ बहुत रास गामसँ ई पावनि‍ लुप्‍त भऽ रहल अछि‍ शहरमे तँ एकर अस्‍ति‍त्‍वक कल्‍पना करब सेहो असंभव। आन ठाम जकाँ मि‍थि‍लामे सेहो पलायनवाद हाबी भऽ गेल छैक। कोनो आवश्‍यक नै जे पलायनक बाद लोक अपन संस्‍कृि‍तकेँ दड़भंगि‍या प्रभावमे झाँपि‍ कऽ राखि‍ सकथि‍। तँए एहेन पावनि‍क चर्च आधुनि‍क पि‍ढ़ी लग आवश्‍यक। जखन चर्च हएत तँ भऽ सकैछ जे प्रवासी नेनामे ऐ प्रकारक संस्‍कृति‍सँ जुड़ल रहबाक प्रेरणा जागए। मधुश्रावणी वा कोजगराक सदृश सामा चकेबा कोनो जाति‍ वि‍शेषक पावनि‍ नै थि‍क वरन् ई सम्‍पूर्ण मि‍थि‍लाक प्रति‍नि‍धि‍त्‍व कएने अछि‍।
साहि‍त्‍यानुरागी लोकनि‍ ऐ पोथीकेँ रचनात्‍मक कथा (creative story) नै मानताह ई ध्रुव सत्‍य कि‍एक तँ एकर कथा सभा नूतन कल्‍पना नै भऽ कऽ परम्‍परागत शैली आ कथाक प्रति‍रूप थि‍क। ऐ दुआरे रचनाकारक आलोचना सेहो संभव अछि‍। मुदा ई धि‍यान राखब सेहो आवश्‍यक जे अबोध नेनाकेँ क्‍लि‍ष्‍ट साहि‍त्‍यसँ कोनो सि‍नेह नै होइछ। आे तँ महाकाव्‍यक पाँति‍सँ बेसी आनी-मूनी हम नै जानीसदृश अर्थहीन पाँति‍सँ सि‍नेह रखैत अछि‍। तँ चालनि‍ बाढ़नि‍ डेढ़ बि‍तना, जेहन करनी, चारि‍ बटोही बगि‍याक गाछ आदि‍ जनश्रुति‍सँ संबंधि‍त कथानककेँ बाल मनोवि‍ज्ञानसँ संबंधि‍त माननाइ उचि‍त हएत। लेखि‍का पहि‍नहि‍ इमानदारीसँ ई स्‍वीकार कएने छथि‍ जे बाल कालमे बूढ़-पुरानक मुखसँ जे सुनने छलीह तकरा अपन शब्‍दमे कथाक रूप दऽ देलखि‍न।
ऐ पोथीक सबल पक्ष अछि‍ कथा चि‍त्रात्‍मक वि‍वेचन। मोती सायर, लालवन बाबा, गरीबन बाबा, बि‍हुला, सीता आ सुग्‍गा, आयाची मि‍श्र, पक्षधर मि‍श्र आ उगना सन कथा चि‍त्रकेँ तैयार करबामे कतेक मेहनति‍ आ समए लागल हेतनि‍ ओ तँ लेखि‍के कहि‍ सकैत छथि‍। परंच ई चि‍त्र अपन वि‍वि‍ध मूक शैलीमे नेना-भुटकाक संग अवश्‍य वार्तालाप करत। आलोचनात्‍मक पक्षसँ जौं देखल जाए तँ एकरा आन भाषा साहि‍त्‍यक कॉमि‍क्‍ससँ बेसी नै मानल जाएत। मुदा एहेन दीर्घसूत्री आलोचके कऽ सकै छथि‍। कि‍एक तँ ई कोनो कम्‍प्‍यूटरक खेल नै अपन मस्‍ति‍ष्‍कमे उपजल बालउद्वोधनक चि‍त्रात्‍मक शैली थि‍क जे समालोचनाक भयसँ मुक्‍त रहैत लेखि‍का मात्र नेनाक लेल कएने छथि‍।
रंग समंजन सेहो नीक लागल। अंति‍म कि‍छु चि‍त्र श्वेत-स्‍याम रूपेँ देल गेल जइमे नेना स्‍वयं रंगरोगन कऽ सकैत छथि‍।
ऐ पोथीक कथानक परम्‍परागत अछि‍ मुदा शैली आ चि‍त्रांकन नव तँए अपन उद्देश्‍यमे रचनाकार सफल छथि‍।
दुर्बल पक्ष जे चि‍त्रक संग जे कि‍छु कथा देल गेल अछि‍ ओकरा आर वि‍स्‍तृत कएल जा सकैत छल। जेना मोती सायरसँ लऽ कऽ मीरा साहेब धरि‍क चि‍त्रकथामे कथानक एकाएक बदलि‍ जाइत अछि‍। जे सारंश जकाँ लगल। मुदा आशा करैत छी जे नेना सभकेँ नीक लागि‍ रहल होएतनि‍। 



ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
नवेंदु कुमार झा/ १.एस एच जीक माध्यम सॅ आगा बढ़त बिहार प्रदेश मे गठित होयत दस लाख एच एच जी २.राज्य सभा चुनाव-भाजपा जदयू मे उम्मीदवारक भीड़ तऽ राजदक अस्तित्वक संकट

 
एस एच जीक माध्यम सॅ आगा बढ़त बिहार प्रदेश मे गठित होयत दस लाख एच एच जी

बिहार मे महिला आ ग्रामीण क्षेत्रक विकासक लेल स्वयं सहायता समूह (एस एच जी) के मजगूत हथियार बनाओल जा रहल अछि। एहि वास्ते राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशनक अंतर्गत दस लाख स्वयं सहायता समूह गठित कयल जायत। एहि समूह सॅ अगिला दस वर्ष मे गोटेक एक करोड़ महिला सभके जोड़बाक लेल तैयार कार्य योजना के राज्य सरकार मंजूरि दऽ देलक अछि। मिशनक कार्यान्वयनक लेल बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति गठित कयल गेल अछि। ई व्यवस्था गरीबी रेखा सॅ नीचा रहय वाला (बीपीएल) परिवार के आर्थिक रूपें मजगूत करबाक लेल लागू कयल जा रहल अछि। तैयार कार्य योजनाक अंतर्गत जीविका, ग्रामीण विकास विभाग आ महिला विकास निगम द्वारा चलाओल जा रहल एसएचजी एकहि मॉडल पर काज करता मिशनक अंतर्गत चालू वित्तीय वर्ष 2011-12 सॅ वित्तीय वर्ष 2021-22 धरि प्रति वर्ष एक-एक लाख स्वयं सहायता समूहक गठन कयल जायत। एहि तरहे एहि दस वर्षक दरमियान दस लाख एसएचजीक गठनक समूह मे महिला सभ के स्वरोजगारक वास्ते बैंक सभ सॅ आर्थिक मदति दे आओल जायत। एहि लेल 9200.23 करोड़ टाकाक उपबंध कयल गेल अछि। संगहि समूह द्वारा उत्पादित सभ जिला मे दू-दू टा हाट विकसित कयल जायत। देखबा मे आयल अछि जे महिला सभ एस एच जीक उपयोग गरीबी सॅ लड़बाक हथियारक रूप मे कऽ रहल छथि। केरल आ तमिलनाडू आदि आन प्रदेश सभ मे सेहो एस एच जीक नीक परिणाम सोझा आयल अछि। एहि माध्यम सॅ महिला सभ घरक चेहरा बदलि देलनि अछि। एहि के ध्यान मे राखि बिहार मे सेहो गरीबी उन्मूलन आ महिला सशक्तिकरण के बढ़ाबा देबाक उद्देश्य सॅ पैघ संख्या मे महिला सभके एस एच जी सॅ जोड़ल जायत। उल्लेखनीय अछि जे जीविका, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आ महिला विकास निगम द्वारा संचालित एस एच जी गरीब महिला सभक आर्थिक उन्नति मे महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलक अछि। एहि माध्यम सॅ महिला सभ बैक सॅ कर्ज लऽ उत्पादनक काज प्रारंभ कयलक अछि। जाहि सॅ हुनक जीवन खुशहाल भेल अछि।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशनक काज गामक सभ सॅ निर्धन टोला सॅ प्रारंभ होइत अछि। एकर अंतर्गत मात्र समूहक गठन नहि कयल जाईत अछि बल्कि हुनका सभके खेतीक उपज बढ़ायब, श्री विधि सॅ खेती करब, सभ नेता के विद्यालय पढ़ायब आ अपन दस्तखत करबाक लेल प्रेरित कयल जायत। बिहार मे मिशनक क्रियान्वयनक लेल जीविका के नोडल एजेन्सी बनाओल गेल अछि। एहि माध्यम सॅ एस एच जी गठित कयल जायत। संगहि बेरोजगार सभके रोजगारक सृजनक लेल प्रशिक्षित सेहो कयल जायत। आजीविका मिशन मे जीविकाक कतेको प्रारूप के सम्मिलित कयल गेल अछि। मिशनक अंतर्गत जीविका प्रदेशक सभ 534 प्रखंड मे स्वयं सहायता समूह गठित करत। प्रदेश मे जीविकाक प्रारंभ वर्ष 2006 मे 42 प्रखंड मे कयल गेल छल। बाद मे वर्ष 2010 मे कोसी क्षेत्रक 13 प्रखंड मे एकर विस्तार कयल गेल छल। जीविकाक माध्यम सॅ महिला सभ अपन पयर पर ठाढ़ होयत। एहि समूहक माध्यम सॅ महिला सभ मे जागृति आओत आ आधा आबादी अपन हुनक तथा ज्ञानक प्रयोग कऽ बिहार के आगां बढ़ौतीहा जीविकाक मुख्य लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रक अर्थव्यवस्था के मजगूत कऽ बिहार के आगा लऽ जयबाक अछि। जीविकाक प्रबंध निदेशक अरविन्द कुमार चौधरीक कहब छनि जे प्रदेश मे स्वयं सहायता समूह महिला सभक तकदीर बदलि देलक अछि। एस एच जीक माध्यम सॅ बिहार मे नव कहानी लिखल जा रहल अछि। जीविकाक कार्यक्रम महिला सशक्तिकरणक दिशा मे बेसी प्रभावित साबित भेल अछि। आब महिला सभ घर सॅ बाहर निकलि रहल छथि आ दस्तखत कऽ बैकक संग कारोबार सेहो कऽ रहल छथि।
जीविकाक अंतर्गत प्रत्येक समूहक सफलताक अपन कहानी अछि। एहि कहानी के मीडिया मे सेहो जगह देबाक आवश्यकता अछि जाहि सॅ ई आन महिलाक लेल प्रेरणाक अस्त्र बनि सकय। बिहार मे गठित उठाओल पैघ डेंग होयत। बिहार सरकार द्वारा चलाओल जा रहल जीविकाक अनुकरण कऽ भारत सरकार एकरा देश भरि मे लागू करबाक निर्णय लेलक अछि आ एकर नाम आजीविका राखल गेल अछि। जीविकाक माध्यम सॅ महिला सभ मे जागृति आओत आ ओ गरीबी सॅ मुक्तिक कारगर हथियारक रूप मे एकर अपनाओत। महिला सभक आर्थिक उन्नति मे एकर महत्वपूर्ण भूमिका होयत। प्रदेश मे ग्रामीण विकास विभाग महिला विकास निगम आ जीविका द्वारा गोटेक एक लाख स्वयं सहायता समूह संचालित कयल जा रहल अछि। गोटेक पचास हजार एस एच जी के बैक सॅ मदति दे आओल गेल अछि। महिला सभ बिना डर समूह सभक संचालन कऽ रहल छथि।

राज्य सभा चुनाव-भाजपा जदयू मे उम्मीदवारक भीड़ तऽ राजदक अस्तित्वक संकट

प्रदेश मे राज्य सभाक छह सीटक लेल होमय वला मतदानक लेल नामांकन पत्र भरबाक काज प्रारंभ होयबाक संगहि भाजपा आ जदयू मे राजनीतिक गतिविधि मे तेजी आबि गेल अछि। नामांकन पत्र 19 मार्च धरि भरल जायत आ मतदान 30 मार्च के कराओल जायत। विधानसभा मे संख्याक समीकरण राजगक पक्ष मे अछि आ छओ सीट पर भाजपा आ जदयूक कब्जा होयबाक संभावना अछि। पछिला 22 वर्ष मे पहिल बेर राष्ट्रीय जनता दल अपन एकटो उम्मीदवार के उच्च सदन मे पठैबाक स्थिति मे नहि अछि। छह सीट पर भाजपा आ जदयूक मध्य एखन धरि सीटक बॅटवारा पर अंतिम निर्णय नहि भेल अछि।
राज्य सभाक एहि द्विवार्षिक चुनाव मे जदयूक चारि आ भाजपाक दू उम्मीदवारक जीत सुनिश्चित अछि मुदा भाजपाक तेसर सीटक दाबा कयला पर जदयू विधान परिषद चुनाव मे बेसी सीट राखि सकैत अछि। हालांकि भाजपा मे उम्मीदवारक बढ़ैत संख्या के देखि भाजपा नेतृत्व तेसर सीटक प्रति एखन धरि कोनो सक्रियता नहि देखौलक अछि आ दू सीटक लेल 16 उम्मीदवारक पैनल केन्द्रीय नेतृत्व के पठा देलक अछि जाहि पर 14-15 मार्च के नव दिल्ली मे पार्टीक केन्द्रीय चुनाव समितिक बैसक मे अंतिम निर्णय लेल जायत। प्रदेश इकाई द्वारा पठाओल गेल नाम मे पार्टी प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद, राष्ट्रीय कार्य समितिक सदस्य आर.के. सिन्हा, प्रदेश महामंत्री मंगल पाण्डेय, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुनीलाल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह, विधान पार्षद गंगा प्रसाद, बालेश्वर सिंह भारती आ किरण घई, मृदुला सिन्हा, बिन्दा प्रसादक नाम प्रमुख अछि। ओना राष्ट्रीय महामंत्री धर्मेन्द्र प्रधान आ अरूण जेटलीक नामक चर्चा सेहो चलि रहल अछि। हालाकि श्री जेटलीक नाम गुजरात सॅ सेहो चर्चा मे अछि आ झारखंड से निवर्तमान सदस्य एस एस अहलुवालियाक समीकरण झारखंड मे फिर नहि बैसला पर ओ बिहारक बार धऽ नव दिल्ली जा सकैत छथि ओना ज्यो पार्टी दू सीटक लेल अपन उम्मीदवार देलक तऽ रवि शंकर प्रसाद, आर.के. सिन्हा आ धर्मेन्द्र प्रधान मजगूत दावेदार छथि। उम्मीदवारक एहि भड़ मे ज्यो पार्टी के तेसर सीट हाथ लगैत अछि तऽ ओहि स्थिति मे विधान पार्षद संजय झाक मजगूत दावेदारी भऽ सकैत अछि। श्री झाक नाम पर जदयू सेहो सकारात्मक रूख देखा सकैत अछि।
दोसर दिस, जदयूक संभावित दावेदार मुख्यमंत्री नीतीश कुमारक आशीर्वाद प्राप्त करबाक लेल एड़ी-चोटी लगौने छथि। जदयू उम्मीदवार पर अंतिम मोहर मुख्यमंत्री स्वयं लगौताह। उम्मीदवारक चयन मे जदयूक राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादवक भूमिका औपचारिक भऽ सकैत अछि। विधान परिषद्क भेल चुनाव मे जाहि तरहे जदयू कोनो सदस्य के दोबारा अवसर नहि देलक ज्यों एहि फार्मुला पर राज्य सभाक उम्मीदवार तय भेल तऽ दलक निवर्तमान सदस्यक उम्मीदवारी पर तलवार लटकि सकैत अछि। दलक सूत्र सॅ भेटल जनतबक अनुसार जदयू चारि सीट पर चुनाव लड़बाक तैयारी कयने अछि जाहि लेल कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह, ग्रामीण कार्य मंत्री डा. भीम सिंह, पूर्व मंत्री राम नन्दन सिंह, राष्ट्रीय महासचिव के सी त्यागी पत्रकार फरजंद अहमद, पूर्व मंत्री रामनाथ ठाकुर, आ शकील अहमद प्रदेश वशिष्ठ नारायण सिंह मजगूत दावेदार छथि। संगहि प्रदेशक आन कतेको नेता एहि मजगूत दावेदारक खेल मे अपन गोटी लाल करबाक जुगत भिड़ा रहल छथि। सूत्र सॅ भेटल जनतबक अनुसार आंध्र प्रदेश सॅ कांग्रेसक पूर्व राज्य सभा सदस्य गिरीश कुमार संघी सेहो संभावनाक द्वार खूजल अछि तऽ निवर्तमान सदस्य महेन्द्र सिंह उर्फ किंग महेन्द्र सेहो उच्च सदन मे अपन स्थान सुरक्षित रखबा मे सफल भऽ सकैत छथि। राज्य सभाक ई द्विवार्षिक चुनाव जदयूक अनिल सहनी, अली अनवर आ महेन्द्र सिंह, भाजपाक रविशंकर प्रसाद आ राजदक राजनीति प्रसाद आ जाबिर हुसैनक कार्यकाल समाप्त होयबाक कारण कराओल जा रहल अछि। राजदक एक वर्ग एहि चुनाव मे राजदक दिस सॅ मजगूत उम्मीदवार देबाक मे अछि मुदा पार्टी नेतृत्व फजीहत सॅ बचबाक लेल एखन धरि मौन अछि।

 
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शि‍वकुमार झा टि‍ल्‍लू
 मैथि‍ली कथा साहि‍त्‍यक वि‍कासमे राजकमलक योगदान ::(आगाँ)

सन् 1954 मे अपराजि‍ता कथाक संग राजकमल जीक मैथि‍ली कथा साहि‍त्‍य जगतमे प्रवेश भेल। हि‍नक मूल नाओं मनीन्‍द्र नारायण चौधरी छन्‍हि‍। 1929मे जनमल ऐ साहि‍त्‍यकारक लेखनीसँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ लगभग 36 गोट कथा भेटल। मात्र 38 बरखक अपन जीवनकालमे राजकमल मैैथि‍ली गद्य साहि‍त्‍यकेँ कि‍छु एहेन कृति‍ दऽ देलनि‍ जइसँ प्रयोगकेँ बादक धरातलपर प्रति‍ष्‍ठि‍त करबाक श्रेय साहि‍त्‍यक समालोचक लोकनि‍ ऐ साहि‍त्‍यकारकेँ ि‍नर्विवाद रूपेँ दऽ रहल छथि‍‍।

हि‍नक तीन गोट कथा संग्रह ललका पाग, एक आन्‍हर एक रोगाह आ ि‍नमोही बालम हम्‍मर पुस्‍तकाकार प्रकाशि‍त छन्‍हि‍। एकर अति‍रि‍क्‍त हि‍नक एक गोट पोथी कृति‍ राजकमलक मैथि‍ली अकादेमीसँ प्रकाशि‍त भेल अछि‍ जइमे 13 गोट कथा आ एकटा उपन्‍यास आन्‍दोलन संकलि‍त अछि‍। ओना कृति‍राजकमलक छओ गोट कथा ललका पागमे सेहो छपल अछि‍।

रमानाथ झाक मतेँ राजकमलक कथा मूल उद्देश्‍य मनोवि‍श्लेषणत्‍मक प्रणालीसँ आरोपि‍त मर्यादा ओ आदर्शक पाछाँ नुकाएल आन्‍हरकेँ नाङट करब अछि‍। डॉ. डी.एन. झा सेहो ऐ मतसँ सहमत छथि‍।
ललका पाग कथा हि‍नक लि‍खल कथा सभमे अपन वि‍शि‍ष्‍ट स्‍थान रखैत छन्‍हि‍। ऐ कथाकेँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक कि‍छु श्रेष्‍ठ कथामे स्‍थान देब सर्वथा न्‍यायोचि‍त अछि‍। कथाक आरंभमे मैथि‍ली स्‍त्रीक चि‍न्‍हबाक वि‍श्‍लेषणमे कोनो अचरज नै। त्रि‍पुराक तुलना जइ वर्गक मैथि‍ली नारि‍सँ कएल गेल कथाक भूमि‍कामे ओइ वर्गक स्‍पष्‍ट उल्‍लेख तँ नै कएल गेल मुदा ओ ब्राह्मण परि‍वारक कन्‍या छथि‍। अल्‍पायुमे पण्‍डि‍त पि‍ताक मृत्‍युक पश्चात् ति‍रू अपन माइक संग गाममे रहैत छलीह। अग्रज झि‍ंगुरनाथ बाहर धन उपार्जन लेल चलि‍ गेलाह। कि‍छुए वर्षमे ति‍रू युवती वयसमे प्रवेश कऽ गेलीह। दस-एगारह वर्षक बाद जखन झि‍ंगुरनाथ अपन गाम घुरि‍ अएलनि‍ तँ मातृसि‍नेहक संग-संग ति‍रूक हाथ पीअर करबाक जि‍म्‍मेदारीक आभास भेलनि‍। वास्‍तवि‍कतो छैक जे जखन ई कथा 1955मे वि‍देह वि‍शेषांकमे देल गेल ओइ कालकेँ के कहए वर्तमान समैमे सेहो अपना सबहक समाजमे कन्‍याक जन्‍म कालहि‍सँ बि‍याहक चि‍न्‍ता अभि‍भावककेँ सतबए लगैत छन्‍हि‍। ति‍रू तँ माघमे 14मे वर्षमे प्रवेश कऽ जेतीह। उद्देश्‍य जौं सार्थक हुअए तँ सफलता नि‍श्चि‍त भेटबे करैत अछि‍। चण्‍डीपुरक राम सागर चौधरीक सुपुत्र राधाकान्‍तसँ स्‍व. पण्‍डि‍त हेकनाथ झाक पुत्री त्रि‍पुराक बि‍याह सम्‍पन्न भेल। सासुर आबि‍ ति‍रू कनेको स्‍तब्‍ध नै छथि‍ कि‍एक तँ जीवन शैलीक कोनो ज्ञाने नै छन्‍हि‍। अज्ञानतामे बाड़ीक पछुआरमे पोखरि‍ देखि‍ अपन बेमात्र सासुसँ हेलबाक कलाक जि‍ज्ञासा कएलनि‍। यएह जि‍ज्ञासा हुनक जीवनक लेल काल भऽ गेलनि‍। चननपुरवाली सासु भोरे-भोर समस्‍त गाममे अफवाह पसारि‍ देलखि‍न जे राति‍मे नवकी कनि‍याँ पोखरि‍मे चुभकि‍ रहल छलीह। राधाकान्‍त ऐ घटनासँ मर्माहि‍त भऽ गेलाह। आब प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे चननपुरवाली एना कि‍अए कएलीह? ओ अपन पि‍ति‍औत भाय डाॅ. शंभूनाथ मि‍सरक सुपत्रीसँ राधाकान्‍तक बि‍याह करबए चाहैत छलीह। ऐठाम कथाकार कनेक चुकि‍ गेल छथि‍। ऐ उद्देश्‍यकेँ कतौ स्‍पष्‍ट नै कएल गेल। माए जौं अपन बेटाक बि‍याह कोनोठाम करबए चाहैत छलीह तँ त्रि‍पुरासँ कोना भऽ गेलनि‍। जखन की चननपुरवाली परि‍वारक अभि‍भावि‍का छलखि‍न। हुनक पति‍क हुनकापर कोनो वि‍शेष अनुशासन सेहो नै छलनि‍ आ ने राधाकान्‍त त्रि‍पुरासँ प्रेम बि‍याह केलखि‍न तँ कथानकमे एहेन परि‍वर्त्तनकेँ सोझे-सोझ आत्‍मसात् करब कनेक कठि‍न लागि‍ रहल अछि‍। गाममे तँ कूटनीति‍ चलि‍ते अछि‍ कि‍एक तँ छद्म रोजी रोजगारपर बेरोजगारी भारी। तँए भोलामास्‍टर आ बंगट चौधरी सन परि‍वार वि‍ध्‍वंसक केँ राधाकान्‍त सन संवेदनशील लोककेँ दोसर बि‍याह करबाक प्रेरणा देबएमे यथार्थ बोध होइत अछि‍। ई सभ घटना चक्रसँ कथा रोचक होइत अछि‍। मुदा कथाकेँ आकर्षक बनेबाक क्रममे राजकमल बि‍सरि‍ गेलाह जे त्रि‍पुरा मात्र 13-14 वर्षक बालि‍का छथि‍। जखन पोखरि‍मे चुभकबाक जि‍ज्ञासा सासुरोमे छन्‍हि‍ तखन सौति‍न अएबाक संभावनाक मध्‍य अपन सकल गृहस्‍थ कार्यमे कोना लागल रहलीह? एक दि‍स चंचल रूपक उद्बोधन आ दोसरा रूपमे परि‍पक्‍व नारी, एकरा प्रयोगवाद तँ कहल जा सकैत अछि‍ मुदा प्रयोगात्‍मक रूपसँ वास्‍तवि‍कतासँ बहुत दूर। राधाकान्‍त सेहो शि‍क्षि‍त छथि‍, मात्र अपन स्‍त्रीकेँ पोखरि‍मे स्‍नान करबाक सजाक रूपेँ दोसर बि‍याह। ओना मि‍थि‍लामे पहि‍ने गप्‍पे-गप्‍पमे बि‍याह करबाक इति‍हास रहल अछि‍ परंच ऐ प्रकारक बि‍याहक कारण समीचीन नै लागल। अंतमे अपन बि‍याह कालक राखल ललका पाग जखन त्रि‍पुरा राधाकान्‍तकेँ दोसर बि‍याहक लेल प्रस्‍थानकालमे दैत छथि‍न तँ राधाकान्‍तक हृदए परि‍वर्तन भऽ जाइत अछि‍ आ पहि‍लुक ललका पागक मर्यादा रखबाक लेल ओ चुप्‍प भऽ आंगनमे आबि‍ कुर्सीपर बैस जाइत छथि‍। एहू घटनकाक्रममे कथा वास्‍तवि‍कतासँ बेसी कल्‍पवृक्षक पुष्‍प प्रतीत होइत अछि‍। जे राधाकान्‍त मात्र पोखरि‍ स्‍नानक दंडमे त्रि‍पुरासँ नारीक अधि‍कार छीनि‍ लेबाक ि‍नर्णए केलनि‍ ओ अंगुलि‍माल जकाँ क्षणहि‍मे कोना बदलि‍ गेलाह। ई ध्रुव सत्‍य अछि‍ जे मैथि‍ल ब्राह्मण परि‍वारमे ललका पागक स्‍थान वि‍शेष छैक आ ओइ पागकेँ सहेजि‍ कऽ त्रि‍पुरा धएने छलीह। भगवत परीक्षा जकाँ सौति‍न अनबाक लेल पति‍क हाथमे पाग देबाक ि‍नर्णएमे अंगुलि‍माल रूपी राधाकान्‍तकेँ बुद्धसँ दर्शन भेलनि‍। जौं एकरा संभवो मानल जाए तैयो कनेक कमी ई जे राधाकान्‍त त्रि‍पुराक तुलनामे कामाख्‍या दाइक संस्‍कारकेँ सोचि‍-वि‍चारि‍ वि‍शि‍ष्‍ट मानि‍ दोसर बि‍याह करबाक ि‍नर्णए कएलनि‍। कोनो क्षणहि‍मे नै। ऐ बि‍याहक सूत्रधार हुनक बेमात्र माए छलथि‍न। चननपुरवालीकेँ अछैत राधाकान्‍त माथपर बि‍नु पाग धएने कोना वि‍दा भऽ रहल छलाह, ई तँ सद्य: कथाक बहुत कमजोर पक्ष अछि‍।
भाषा वि‍ज्ञानक आधारपर जौं मूल्‍यांकन कएल जाए तँ कथाकार परम्‍परावादी मैथि‍ल साहि‍त्‍यकार जकाँ गद्यकेँ अधोषि‍त श्रृंगारक रूप देबाक प्रयास कएलनि‍।
ति‍रूक तुलना वाण भट्टक श्‍यामांगी नायि‍कासँ करए काल ई उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍। मुदा जखन लि‍खैत छथि‍ जे मि‍थि‍लाक छौड़ी सभ अहि‍ना करैत अछि‍। तँ स्‍पष्‍ट भऽ जाइत छन्‍हि‍ आत्‍मि‍क रूपसँ कि‍छु आर कहए चाहैत छथि‍। ऐठाम छौड़ीक स्‍थानपर कन्‍याशब्‍दक प्रयोग सेहो कएल जा सकैत छल जे बेसी नीक लगि‍तए। कामाख्‍या दाइक वि‍षयमे राधाकान्‍तक मौन सि‍नेहमे मि‍आ आ आ जाऽ....... लि‍खबाक उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट नै भऽ सकल।

ई सत्‍य अछि‍ जे राजकमल मैथि‍लीक संग-संग हि‍न्‍दीमे सेहो लि‍खैत छलाह, मुदा हि‍न्‍दीक प्रति‍ झॉपल सि‍नेह मैथि‍ली कथामे परि‍लक्षि‍त भऽ गेल‍। ई मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल दुर्भाग्‍यक गप्‍प जे ऐ भाषाकेँ दुभाषी रचनाकार मात्र अपन नाओं-गाओंक लेल हथि‍यार बनेलनि‍ मातृभाषा सि‍नेहसँ साहि‍त्‍यि‍क रचनाक कोनो संबंध नै। ओना ऐ प्रकारक कथ्‍य यात्री आ आरसीक रचनामे नै भेटैत अछि‍। कथोपकथनमे वि‍रोधाभास देखलाक बादो एकरा नीक रचना मानल जा सकैछ कि‍एक तँ कथा बड्ड आकर्षक छन्‍हि‍। जौं बि‍म्‍बक वि‍श्लेषणकेँ शि‍ल्‍पक रूपमे देखल जाए तँ राजकमलजी स्‍थापि‍त शि‍ल्‍पी छथि‍ ई ललका पाग प्रकट भऽ गेल।

दमयन्‍ती हरण- दमयन्‍ती हरणभरल सभामे कोनो वि‍वश नारीक चि‍र-हरणक वृत्ति‍ चि‍त्र नै। ई तँ समाजक पाग-चानन- ठोपधारी कि‍छु कथाकथि‍क भलमानुषक वास्‍तवि‍क झाॅपल चरि‍त्रकेँ नाङट करबाक कथा थि‍क। कथा नायि‍का छथि‍ तेइस-चौबीस बरखक- दमयन्‍ती दुलरैति‍न दम्‍मो अथवा समाजक कोप भाजन बनलि‍ दमि‍आँ। ऐ नायि‍काकेँ गामक रक्षक लोकनि‍ खलनायि‍का बना देलनि‍, जे दोसरक शोषण तँ नै करैत अछि‍ मुदा अपन चरि‍त्र हनन कऽ ग्राम्‍य समाजकेँ वि‍गलि‍त कऽ रहलीह जे कोनो अर्थमे उचि‍त नै। ऐ लेल दोष ककरा देल जाए? सामर्थ्‍यहीन मायकेँ वा ओहि‍ लेल दोष ककरा देल जाए? सामर्थ्‍यहीन मायकेँ वा ओहि‍ समाजकेँ जकर छाहरि‍मे नेनपनसँ सोझे अग्राह्य नारीक अवस्‍थामे प्रवेश कऽ गेली- दमि‍याँ।

मि‍थि‍ला समाजक वर्णन कोनो कवि‍तामे जतेक घृतगन्‍धा हुअए मुदा ई अक्षरश: सत्‍य अछि‍ जे जइ समैमे ई कथा लि‍खल गेल ओइ समैमे परीक्षा समाप्‍ति‍ आ नव कक्षामे प्रवेशक मध्‍यक समय छात्रक लेल मस्‍ताएल साँढ़सँ बेशी कि‍छु नै छल। जौं रहि‍तए तँ फूलबाबू रामपुरमे कि‍अए बौआइत रहि‍तथि‍। फूल भैया ओइपार जएबह?” वेदव्‍यासक मत्‍स्‍यगंधा इत्‍यादि‍ संवादसँ नारी वि‍मर्शक वि‍ह्वल ररूप प्रदर्शित होइत छैक। कथाकार तँ कथाक प्रारंभेमे अवश्‍ये ई नि‍श्चय केने हेताह की कथा नायि‍काकेँ वैश्याक रूपमे प्रदर्शित कऽ कथाक इति‍श्री कएल जाए। मुदा आदर्शवादी वि‍चारधारासँ एकटा वैश्‍याक भूमि‍का वॉधव बड़ कठि‍न कार्य भेल हएत। शनै:-शनै: गाड़ीमे भीख मांगैत छौड़ीसदृश दमयन्‍तीक रूपक वि‍श्लेषणमे नारी जाति‍क अपमानसँ बेशी समाजक कटु सत्‍य इजोतमे आबि‍ गेल।
स्‍वेच्‍छासँ अमर्यादि‍त आचरणक आवरणमे दमि‍याँ नै गेलीह। हे महादेव, चारि‍दि‍नसँ हमरा ऑगनमे चूल्‍हा नहि‍ जरल अछि‍ सन संवारसँ ई परि‍लक्षि‍त होइत छैक।

गूढ़ मंथन कएलासँ कथामे कि‍छु वि‍शेष नै।
अपन बेटीक भरण-पोषणक लेल देह व्‍यापारकेँ केन्‍द्र वि‍न्‍दु बना कऽ लि‍खल गेल कथामे कोनो सम्‍यक समाज वि‍मर्श नै। कोनो आदर्श पथ नै मात्र मथभ्रष्‍ट समाजकेँ पाठक धरि‍ परसल गेल। यायावरी जीवन चक्रमे घुमैत जयद्रय आ कथाकारक संवाद कोनो समाजक लेल आदर्श प्रस्‍तुत नै कएलाक। देलक तँ समाजकेँ ई संदेश जे जौं कोनो अवला मि‍थि‍लाक गाममे रामबाबू सन दु:खि‍ता पति‍ताक कथाकथि‍क रक्षक लग अपन आत्‍मरक्षाक ऑचर पसारतीह तँ ओ ऑचर खींच लेबामे कोनो संकोच नै करतथि‍।
मायसँ कोन काज अछि‍’- नायि‍का कथाकारकेँ देखि‍ हुनको ग्राहके बुझली। ई कोनो भ्रम नै। अस्‍तत्‍व वि‍हीन नारी लग देहलोलुपे मनुक्‍ख पहुँचैत छथि‍।
हम स्‍त्री नै छी, फूल भैया। हम तँ माटि‍क फूटलि‍ हाँड़ी छी। हमरापर दया करबाक कोनो प्रयोजन नहि‍’- मर्माहि‍त करबाक लेल चेतनाशील मनुक्‍खकेँ ई वाक्‍य भारी पड़त। छप्‍पन बरख पूर्व ई कथा लि‍खल गेल। ओइ समैमे समाजक ई दशा छल? तखन तँ वर्त्तमानकालक जीवन शैलीकेँ दोष देब उचि‍त नै। जखन जड़ि‍ए पथभ्रष्‍ट तँ छीपक वि‍षयमे नीक कल्‍पना करब सेहो भ्रामक अछि‍।
सम्‍पूर्णकथामे झाजी आ चौधरीजी, मात्र पंचैती कालमे स्‍कूलक प्रधानाध्‍यापक यादबजी आ एकठाम खबास कुंजा धानुक अन्‍या वर्गक पात्र छथि‍। तखन ब्रह्मो जानति‍ ब्राहण:कोना कलि‍युगमे प्रासंगि‍क मानल जाए। समाजमे नीति‍ शि‍क्षाक आचार्य जौं कुनीति‍क प्रधानाचार्य भऽ जाथि‍ तँ व्‍यवस्‍थे चौपट्ट कि‍एक नै हएत।
बेर-बेर जखन-जखन नारी वा शूद्रक चर्च होइत अछि‍ तँ तुलसीदासक टोल गॅवार शूद्र पशु नारीकउद्धरण देल जाइत अछि‍। महाकाव्‍यक रचनामे कोनो वि‍षेष पागक मुखसँ नि‍कसल ऐ वाणी द्वारा मानस पुरुषक चरि‍त्र..
सकैत छथि‍। चौधरीजी बजलाह घोर कलि‍युग आबि‍ गेल अछि‍ तुलसीदास ठीके लि‍खने छथि‍...ई उचि‍त नै लागल। तुलसीदास तँ एकठाम लि‍खने छथि‍ जे धीरज धर्म मि‍त्र अरू नारी, आफत काल परेखहुँ चारीएकर उल्‍लेख कि‍एक नै कएल जाइत छैक? ओना ऐ कथामे नारी आ धर्ममे सहचरी बनेबाक कोनो गुंजाइश नै छल। मुदा तुलसीक वि‍षयमे लि‍खबाक काल ई धि‍यान रखबाक चाही जे रामचरि‍त मानस जनभाषाक कृति‍ अछि‍ जइसँ सम्‍पूर्ण हि‍न्‍दू संस्‍कृति‍ प्रभावि‍त भऽ रहल, कोनो वि‍षेष जाति‍क आधि‍कारि‍क भाषा संस्‍कृति‍मे लि‍खल नै गेल। तँए बाल्‍मि‍कि‍ रामायणसँ बेशी पाठक धरि‍ एकर पहुँच रहल।

कथाक बि‍म्‍ब वि‍श्लेषण रूचि‍गर लागल, जे राजकमलक वि‍शेष कथा लि‍खबाक कलाक परि‍णाम मानल जाए। हि‍नक कथामे कोनो हास्‍य समागम नै रहि‍तहुँ जनप्रि‍य रहल। तकर मौलि‍क कारण थि‍क गद्य काव्‍यात्‍मक वि‍श्‍लेषण। वाणि‍ज्‍यक छात्र रहि‍तहुँ राजकमल अंकगणि‍तीय वा सांख्‍यि‍क लेखा जोखामे नै पड़लाह कि‍एक तँ आशुकथाकारछथि‍। कथाक अंतमे वएह पंचैतीक ि‍नर्णए जे हमरा सबहक समाजक व्‍याधि‍ छल। कानूनकेँ चनौती देबाक लेल पंच परमेश्‍वर बनि‍ कि‍छु लोक पान चि‍बा कऽ इति‍श्री कऽ रहल छलाह। वर्त्तमान समैमे ई संभव नै छैक कि‍एक तँ मनुख सेहो चेतनाशील भऽ रहल आ प्रजातंत्र दीर्घ सूत्री समाजक पागधारीसँ भरि‍गर भऽ गेल। मुदा अंतमे कथाकार बि‍सरि‍ जाइत छथि‍ आ मत्‍स्‍यगंधाक हँसि‍ प्रश्ने रहि‍ गेल। राजकमलक प्रश्नसँ कथाक इति‍श्री करब पाठकेँ भ्रमि‍त कऽ दैत अछि‍, मुदा रूचि‍पूर्ण। ि‍नर्णए तँ हमरा सबहक समाजमे ओझराएले रहि‍ गेल छल तँए संभवत: प्रश्नेसँ कथाक इति‍श्री कएल गेल भऽ सकैत अछि‍ ।
अाकाश गंगा- मैथि‍ली साहि‍त्‍यक संग सदि‍खन ई भ्रांति‍ रहल जे जौं कोनो साहि‍त्‍यकारक एक गोट कृति‍ साहि‍त्‍यकेँ आर सुवासि‍त कऽ देने अछि‍ तँ आगाँक रचनामे कथ्‍य ओ शि‍ल्‍पसँ बेशी कथाकारक नाओं मूल्‍यांकन केन्‍द्र बि‍न्‍दु भऽ जाइछ। ऐ अन्‍तद्वन्‍द्वसँ राजकमल सेहो नै अछोप रहलाहेँ। आकाश गंगाश्रैगांरि‍क बि‍न्‍दुकेँ स्‍पर्श करैत समाजक अंतव्‍यथाक चि‍त्रण करबामे सफल कथा थि‍क, ऐमे कोनो संदेह नै। मुदा जौं अंत:करणसँ अवलोकन एकल जाए तँ बऽर दुआरि‍पर उतरल नहि‍ की छींकक ध्‍वनि‍ जकाँ कथाक प्रारंभे छायावादी शैलीमे कएल गेल। वि‍वेकानन्‍द चौधरी नहि‍ मि‍थ्‍या कहलहुँ, आब जमीन्‍दार नहि‍ साधारण नागरि‍क। नागरि‍को नहि‍ साधारण गामीणसन शब्‍दकोशसँ वाक्‍य बनाएब अप्रासंगि‍क मानल जाए। कथाकार स्‍वयं दृग्‍भ्रमि‍त तँ नै छथि‍ कि‍एक तँ हि‍नक प्रति‍भापर संदेह नै। तखन पाठककेँ दृग्‍भ्रमि‍त करबाक उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट नै। कथाकारकेँ एकबेर स्‍पष्‍ट कऽ देबाक चाही जे वि‍वेकानंद की छथि? जौं ई काव्‍य रहि‍तए तँ क्षम्‍य छल, मुदा कथाक ऐ रूपकेँ की मानल जाए? सचार तखने नीक लगैत छैक जखन मूल खाद्य पदार्थ अक्षत हुए। मङुआक संग गाही साग तरकारी परसबाक बादो भोजनमे वि‍शेष स्‍वाद नै भेटत। कथोपकथनपर शि‍ल्‍पक भार एक नि‍श्चि‍त सीमाने तक शोभायमान लगैछ। वि‍वेकानंद चौधरी अपन अर्द्धांगि‍नी मदालसासँ संबंध समाप्‍त भऽ गेलनि‍। वि‍वेकानन्‍द अपन बेटी अन्‍नपूर्णा संग रहए लगलाह। एकटा जमीन्‍दारक बेटी अन्‍नपूर्णा पि‍तृ आशाक वि‍परीत गरीब बालक राधाकान्‍तक संग वि‍आह कऽ लैत छथि‍। बाप-बेटीक संबंध समाप्‍त भऽ गेलनि‍। कालान्‍तरमे बेटी अन्‍नपूर्णा एक बालक अशोकक माए भऽ गेलीह। पति‍क देहावसानक बाद दरि‍द्रासँ लड़ैत माय अन्‍नपूर्णाक चरि‍त्र चि‍त्रणमे कथाकारक सबल दृष्‍टि‍कोण झलकैत अछि‍। नारी-वि‍मर्शक दृष्‍टि‍सँ कथा रोचक मुदा नारीक जीवन दशा समाजमे उदासी छैक, ई प्रमाणि‍त करब उचि‍त मुदा अगि‍ला पी‍ढ़ीक लेल उदासीन तँए रचनाकारकेँ ऐमे परि‍वर्त्तन करबाक चाही छल। अंतमे वि‍वेकानन्‍दक हृदए पझि‍जैत अछि‍ आ ओ बेटीक वि‍दागरीक लेल उद्यत भऽ जाइत छथि‍। ललका पाग जकाँ अहू कथामे परि‍णाम स्‍पष्‍ट नै भऽ सकल। श्रैंगारि‍क जीवनक परि‍धि‍मे घुमैत कथा परि‍णाम वि‍हीन, एेसँ एकटा कथाकारक पलायनवादी वैरागी प्रवृत्ति‍क द्योतक मानल जा सकैत अछि‍।
कादम्‍री उपकथा- वैधव्‍य जीवनक अवि‍रल चि‍त्रणसँ भरल ऐ कथामे नायि‍का कादम्‍बरीवि‍धवा छथि‍। पति‍ वश्‍वनाथक मरलाक बाद नैहर चलि‍ जाइत छथि‍। कि‍छु दि‍नक बाद देओर दुखि‍त भऽ गेलखि‍न तखन सासुर आबि‍ गेलीह। सासुरक लोकक कल्‍पना छल जे कादम्‍बरी ब्राह्मण संस्‍कृति‍क अनुकूल श्‍वेत वस्‍त्र धारि‍णी अवला बनि‍ अएलीह। मुदा सौन्‍दर्य सुन्‍नरि‍ कादम्‍बरी अंग-वस्‍त्रसँ वि‍पदा-मारलि‍ नै अएलीह। फेर धमगि‍ज्‍जरि‍। अपन केओ नै कि‍एक तँ जीवनक एक पहि‍या धसि‍ गेल छलनि‍। तँए ने दोसरक नेनामे शि‍क्षाक दि‍व्‍य संस्‍कार जगएबाक क्रममे परि‍हासक पात्र भऽ गेलीह। गायत्री देवी छोट दि‍आदि‍नी छलीह। शि‍क्षि‍त नारी कादम्‍बरीक महत नेना-सभक मध्‍य बेसी छल। कि‍एक तँ हुनकामे संतानहीन रहि‍तो मातृत्‍व छलनि‍। नेना आ मूक पालतू पशु सि‍नेहक भुक्‍खल होइत अछि‍। ई सभ गायत्रीकेँ सोहाइत नै छलनि‍। अपना तँ ऊक देबाक लेल एकटा अल्‍लुओ पेटसँ नै उखड़लनि‍ गायत्रीक ऐ प्रति‍घातसँ कादम्‍बरी पाषाण भऽ गेलीह। आङनक पाठशाला बन्न कऽ देलखि‍न कि‍एक तँ गायत्रीक छोटकी बेटी नि‍रमलाक मृत्‍यु भेलापर डाइनशब्‍दसँ सेहो वि‍भूषि‍त कएल गेलीह। जखन की नि‍रमला सर्प दंशसँ जहान छोड़ि‍ वि‍दा भेलीह।
कथाक अंति‍म चक्र बड़ नीक अछि‍। लुब्‍धा खबासक स्‍त्री प्रसव पीड़ासँ व्‍यथि‍त कादम्‍बरीक आङनमे छटपटाइत छथि‍। एकटा गरीब समाजक कात लागल वर्गक नारीक व्‍यथा कादम्‍बरीकेँ कर्त्तव्‍य परायणताक भावुक प्रवाहमे लऽ गेलनि‍। हास-परि‍हास आ परि‍तापक भयसँ मुक्‍त भऽ  ओइ नारीक संग-संग संसारमे आबए बला नेनाक लेल भगवतीसँ छागर कबुला केलखि‍न। जखन ई गप्‍प बादमे गायत्री कादम्‍बरीक मुखसँ सुनलनि‍ एवं प्रायश्चि‍तमे अश्रुकण बाहर भऽ गेलनि‍। ग्‍लानि‍ भरल समाजक वैधव्‍य जीवनक वृति‍ चि‍त्र अंतमे सि‍नेहसँ समाप्‍त भेल।
आकार्षणमे कथा चुम्‍बकीय प्रभाव जकाँ पाठककेँ झपटि‍ लैत अछि‍, मुदा की समाजक ऐ अनि‍श्‍चयवादी बेवस्‍थाकेँ नारी-वि‍मर्शकदृष्‍टि‍सँ उचि‍त मानल जाए। जइ कालमे ई कथा लि‍खल गेल, भारतवर्षमे सेहो धर्म सुधार आन्‍दोलन भऽ रहल छल, मुदा मैथि‍ल ब्राह्मण समाज ओहि‍कालकेँ के कहए एखन धरि‍ वैधव्‍य जीवनसँ मुक्‍ति‍क आन्‍दोलनकेँ जाति‍-संस्‍कार वि‍रोधी मानैत अछि‍। ऐ मतेँ ई कथा लि‍खब कोनो अनुचि‍त नै। मुदा प्रयोगधर्मिति‍क रूपेँ जौं धि‍यान देल जाए तँ राजकमल क्रान्ति‍दूत भऽ सकैत छलाह। परि‍णाम मि‍श्रि‍त देखए सकैत छलथि‍ परंच कादम्‍बरीकेँ रूढ़ि‍वादि‍तासँ मुक्‍ति‍ करबाक प्रयास कथाकारकेँ ओइ शि‍खरपर स्‍थापि‍त कऽ सकैत छल जतए धरि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍य एखन तक नै पहुँचल अछि‍।
नि‍ष्‍कर्षत: व्‍यवस्‍था फेर नाङट भेल से उचि‍त कि‍एक तँ संकीर्ण मानसि‍कताक समाजक मध्‍य ई कथा घुमैत अछि‍। 


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