भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Friday, August 01, 2008
'विदेह' १५ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १४ )कथा सुभाषचन्द्र यादवसाहेबरामदास-डॉ.पालन झामैथिलीपुत्र प्रदीप-दैनिकी ज्योति
अ.१.कथा सुभाषचन्द्र यादव २.प्रबन्ध (साहेबरामदास-डॉ.पालन झा)
आ.१. मैथिलीपुत्र प्रदीप- आध्यात्मिक निबन्ध २.दैनिकी ज्योति
इ. सहस्रबाढ़नि
ई. शोध लेख संगहि मायानन्द मिश्रजीसँ डॉ शिवप्रसाद यादव जीक लेल गेल साक्षात्कारक पहिल भाग
१. कथा- श्री सुभाषचन्द्र यादव २. प्रबन्ध डॉ. पालन झा (साहेब रामदास)
१.श्री सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। सम्प्रति अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। छह टा पोथी प्रकाशित। मैथिलीमे लगभग सत्तरिटा कथा प्रकाशित। मिथिली, बंगला तथा अंग्रेजीमे परस्पर अनुवाद प्रकाशित। भूतपूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी मैथिली परामर्श-मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकार सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
कथा कनियाँ-पुतरा
जेना टांग छानै छञि, तहिना ऊ लड़की हमर पएर पाँजमे धऽ लेलक आ बादुर जकाँ लटकि गेल। ओकर हालत देख ममता लागल। ट्रेनक ओइ डिब्बामे ठाढ़ भेल-भेल लड़की थाकि कऽ चूर भऽ गेल रहय। कनियें काल पहिने नीचेमे कहुना बैठल आऽ बैठलो नञि गेलए तऽ लटकि गेल।
डिब्बामे पएर रोपएके जगह नञि छञि। लोग रेड़ कऽ चढ़ए-ए, रेड़ कऽ उतरए-ए। धीया-पूता हवा लय औनाइ छै, पाइन लय कानए छै। सबहक जी व्याकुल छञि। लोग छटपटा रहल-ए।
हम अपनो घंटो दू घंटा सऽ ठाढ़ रही। ठाढ़ भेल-भेल पएरमे दरद हुअय लागल। मन करय लुद सिन बैठ जाइ। तखैनियें दू टा सीट खाली भेलै, जइ पर तीन गोटय बैठल। तेसर हम रही जे बैठब की, बस कनेटा पोन रोपलौं। ऊ लड़की ससरि कऽ हमरा लग चलि आयल। पहिने ठाढ़ रहल, फेर बैठ गेल। फेर बैठले-बैठल हमर टांगमे लटकि गेल। जखनि ऊ ठाढ़ रहय तऽ बापक बाँहिमे लटकल रहय। ओकरा हम बड़ी काल लटकल देखने रहिऐ। ओकर बाप अखैनियों ठाढ़े छञि। छोट बहीन आ भाय ओकरे बगलमे नीचेमे बैठल औंधा रहल छञि।
ऊ जे टांग छानने अछि, से हमरा बिदागरी जकाँ लागि रहल-ए। जाइ काल बेटी जेना बापक टांग छानि लञि छञि, तेहने सन। ने ऊ, कानञि-ए, ने हम कानञि छी। लेकिन ओकर कष्ट, ओकर असहाय अवस्था उदास कऽ रहल-ए। हम निश्चल-निस्पंद बैठल छी। होइए हमर सुगबुगी सऽ ओकर बिसबास, ओकर असरा कतौ छिना नञि जाइ। हाथ ससरि जाइ छञि तऽ ऊ फेर टांग पकड़ि लञि-ए।
लड़की दुबड़-पातर आऽ पोरगर छञि। हाथमे घड़ी। प्लास्टिकक झोरामे राखल मोबाइल। लागै छञि नौ-दस सालक रहय। मगर कहलक जे बारह सालके अछि। सतमामे पढ़ै-ए आऽ ममिऔत भाइक बियाहमे जा रहल-ए।
बेर-बेर जे हाथ ससरि जाइत रहए से आब ऊ हमर ठेंहुन पर मूड़ी राखि देलक-ए। जेना हम ओकर माय होइअइ। ओकर माय संगमे नञि छञि। कतय छञि ओकर माय? जकर कनहा पर, पीठ पर, जाँघ पर कतओ ऊ मूड़ी राखि सकैत रहय। हम ओकर माथपर हाथ देलिऐ। ऊ अओर निचेन भऽ गेल जेना।
एक बेर गाड़ीक धक्का सऽ ऊ ससरि गेल; सोझ भेल आऽ आँखि खोललक। एक गोटय कललकए- “दादा कय कसि कय पकड़ने रह”।
अंतिम टीशन आबि रहल छञि। सब उतरै लय सुरफुरा लागल-ए। अपन-अपन जुत्ता-चप्पल, कच्चा-बच्चा आऽ सामान कय लोग ओजियाबय लागल-ए। राति बहुत भऽ गेल छञि। सब कय अपन-अपन जगहपर जाइके चिन्ता छञि। बहुत गोटे ठाड़ भऽ गेल अछि। ऊ लड़कियो। हमहूँ ठाढ़ भऽ कऽ अपन झोरा ऊपर सऽ उतारै छी। तखैनियें नेबो सन कोनो कड़गर चीज बाँहि सऽ टकरायल। बुझा गेल ई लड़कीक छाती छिऐ। हमर बाँहि कने काल ओइ लड़कीक छाती सऽ सटल रहल। ओइ स्पर्श सऽ लड़की निर्विकार छल; जेना ऊ ककरो आन संगे नञि, बाप-दादा या भाय-बहीन सऽ सटल हो।
ओकर जोबन फूइट रहल छञि। ओकरा दिस ताकैत हम कल्पना कऽ रहल छी। अइ लड़कीक अनमोल जोबनक की हेतै? सीता बनत की द्रौपदी? ओकरा के बेचतै? हमरा राबन आ दुर्जोधनक आशंका घेरने जा रहल अछि।
टीशन आबि गेलै। गाड़ी ठमकि रहल छञि। लड़की हमरा देख बिहुँसै—ए; जेना रुखसत माँगि रहल हो। ई केहन रोकसदी अछि। ने ऊ कानञि छञि, ने हम कानञि छी। ऊ हँसञि-ए, हमहूँ हँसञि छी। लेकिन हमर हेँसीमे उदासी अय।
२.डॉ पालन झा , ग्राम-हरौली, कुशेश्वरस्थान।
एम. ए. ( मैथिली ), सन्त साहेब रामदास पर डॉ दुर्गानाथ झा ’श्रीश’ केर निर्देशनमे पी.एच.डी.। संप्रति बी. डी. जे. कॉलेज, गढ़बनैलीमे मैथिली विभागाध्यक्ष।
सन्त साहेब रामदास
साम्प्रदायिक अर्थें मैथिली साहित्यमे सन्त कविक रूपमे साहेब रामदासक प्रमुख स्थान अछि। पचाढ़ी स्थानक महंथ बंशीदासजीक सानिध्यमे कवीश्वर चन्दा झा हिनक पदावलीक संकलन कए १९०१ ई. मे प्रकाशित कएने छथि। एहि पदावलीमे परिचयक क्रममे कवीश्वर चन्दा झा लिखैत छथि:
“शिवलोचन मुख शिव सन जखन, साहेब रामदास तिथि तखन।
प्रबल नरेन्द्र सिंह मिथिलेश, शासित छल भल तिर्हुत देश॥“
अर्थात् ११५३ साल (१७४६ ई.) मध्य महाराज नरेन्द्र सिंहक राज्यकालमे ई रहथि।
छादनसँ न्याय-तत्त्व-चिन्तामणि कर्ता गंगेश उपाध्याय वंश कुलोद्भव साहेब रामदास “कुसुमौल” ग्रामक ( जरैल परगना, जिला- मधुबनी ) एक मैथिल ब्राह्मण छलाह।हिनक छोट भाइक नाम कुनाराम ओऽ एकमात्र प्राणसमप्रिय पुत्र ’प्रीतम’ छलनि। हिनक पूरानाम साहेब राम झा छलनि, मुदा अन्य सन्त कवि जकाँ ईहो अपन नामक आगाँ भक्ति-भावनासँ ’दास’ शब्द जोड़ि लेलनि। साहेब रामदासक पदावलीमे लगभग ४७८ टा पद संकलित अछि। एहि कविता मध्य ई अपन नाम साहेबराम, साहेबदास, साहेब, साहेबजन सेहो रखने छथि।
साहेब रामदास आरम्भहिसँ भक्ति-प्रवण विचारक लोक छलाह। ई सदिखन ईश्वरहिक ध्यान-चिन्तनमे लीन रहैत छलाह। सन्यास ई बादमे ग्रहण कएलनि। एहि पाछाँ एकटा दुखद घटना घटित भेल- हिनका एकमात्र पुत्र ’प्रीतम’ छलनि। ओऽ अधिक समय दुखित रहए लगलाह। उवावस्था छलनि। एकबेर प्रीतम अधिक दुखित भए गेल छलाह। हिनक जीवनक अन्तिम कालक भान भए जएबाक कारणेँ साहेबरामदासविकल भए कानए लगलाह। मरण शय्या पर रहितहुँ प्रीतमकेँ एहन दुःखद दृश्य देखि नहि रहल गेलनि आऽ ओऽ अपन पितासँ पुछैत छथिन, “बाबूजी! अपने एतेक विकल किएक भए रहल छी? पिता उत्तर दैत छथिन “पुत्रक आवश्यकता एहि चतुर्थ अवस्थामे होइत छैक, से तँ अपने हमरा पहिने छोड़ि कए जाए रहल छी, तैँ ई सोचि-सोचि खिन्न चित्त भए व्याकुल भए रहल छी”। पुत्र प्रीतम प्रत्युत्तर दैत कहैत छथिन, “ई संसार असार थिक, क्षणभंगुर थिक, एहिमे स्त्री-पुत्र-पुत्री केओ अपन नहि थिक, ई सभटा अनित्य थिक, माया-मोह थिक। सभटा स्वार्थमूलक थिक तेँ एहि सभसँ माया-मोह रखनाइ अनुचित थिक। हम तँ अपनेक भगवन्-भजनमे विघ्न मात्र छलहुँ, आब अपने निर्विघ्नपूर्वक भगवन्-भजनमे लागि जाऊ”। एतेक बात कहैत देरी प्रीतमक प्राण-पखेरू उड़ि गेलनि। साहेब रामदास विकल भए कानि-कानि कए गाबए लगलाह-
“प्रीतम प्रीति तेजि भेल परदेसिआ हो”
साहेब रामदासकेँ प्रीतमक देहावसानसँ बड़ आघात लगलनि, प्रीतमक उपदेशकेँ धारण कए परिवार-समाजकेँ तिलाञ्जलि दए सन्यास ग्रहण कए लेलनि।
१. मैथिलीपुत्र प्रदीप- आध्यात्मिक निबन्ध २. ज्योति झा चौधरी-दैनिकी
१. श्री मैथिली पुत्र प्रदीप (१९३६- )। ग्राम- कथवार, दरभंगा। प्रशिक्षित एम.ए., साहित्य रत्न, नवीन शास्त्री, पंचाग्नि साधक। हिनकर रचित "जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर’ आऽ ’सभक सुधि अहाँ लए छी हे अम्बे हमरा किए बिसरै छी यै" मिथिलामे लेजेंड भए गेल अछि।
ॐ (मा)
एकटा प्रश्न उठि सकैछ, जे मोक्ष कामीक लेल वैदिक कर्मक प्रयोजन? एकर उत्तर ई भऽ सकैछ जे यज्ञ यागादि कर्मक फलश्रुतिमे स्वर्ग प्राप्त करबाक बात कहल गेल अछि। मुदा जे व्यक्ति स्वर्ग नहि चाहैत होथि, मोक्षेटा चाहैत होथि, हुनका लेल वैदिक कर्मक आवश्यकता, ई वृहदारण्यकोपनिषद केर वचनसँ पुष्ट होइत अछि। यथा- “ तमेतं वेदानु वचनेनं ब्राह्मणाः विविदिषन्ति यज्ञेन, दानेन तपसा नाशकेन”।
अर्थात्- ब्राह्मणगण वेदाध्ययनसँ कामनारहित यज्ञ, दान एवं तपसँ ओहि ब्रह्मकेँ चिन्हबाक इच्छा करैत छथि। एहि वचनमे अनाशकेन अर्थात् कामनारहित “यज्ञ, दान, तप” विशेष महत्त्व रखैत अछि।
तात्पर्य जे वेदोक्त यज्ञादि कर्म जखन आशक्तिक संग कएल जाइत अछि, तखन ओहिसँ मात्र स्वर्गक भोग प्राप्त होइत अछि। परन्तु जखन बिना आशक्ति रखने निःस्वार्थ भावसँ कयल जाइत अछि, तखन काम-क्रोधसँ मुक्त भऽ कऽ कार्य केनिहारक चित्त शुद्ध भऽ जाइत अछि। ओऽ मोक्षक अधिकारी भऽ जाइत छथि।
श्रीमद्भगवदगीतामे भगवान् श्रीकृष्णक उक्ति अछि- अध्याय १८ (५-६)
यज्ञदान तपः कर्म न साज्यं कार्यमेव तत।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्॥
एतान्यापित कर्माणि संगं त्यक्त्वा फलानि च।
कार्व्यानीति मे पार्थं निश्चितं मतमुत्तमम॥
अर्थात्- यज्ञ, दान, तप आदि कर्मक त्याग नहि करबाक चाही। मुदा ई समस्त कर्म निष्काम भावसँ करबाक चाही। अतएव उपनिषदक ’अनाशकेन’ एहि पदकेँ एहिठाम गीताक संगं त्यक्त्वा फलानि च पुष्ट करैत अछि।
अतएव जे मनुष्य अपन आन्तरिक कल्याण चाहैत छथि अर्थात् जन्म-मृत्युक बन्धनसँ मुक्त हेबाक इच्छा करैत छथि, हुनका वैदिक कर्मकाण्डक फलस्वरूप स्वर्गक भोग केर इच्छा नहि राखि कऽ निष्काम भावसँ भगवानक प्रसन्नताक लेल मात्र कार्य करबाक चाही। ई बात मुण्डकोपनिषदमे सेहो आयल अछि। १,२,७.
मनुष्यक चित्त अनेक प्रकारक कुकर्मसँ मलिन भऽ गेल रहैत अछि। एहि सभ मैलकेँ हटेबाक लेल सत् कर्म करब आवश्यक अछि। एहि सत्कर्मकेँ करबाक उद्देश्य होइत अछि वैदिक कर्म काण्ड। वेदोक्त कर्म कएलासँ चित्त शुद्ध होइत अछि। जकर बाद ब्रह्म विद्या अथवा ज्ञानक बात सुनलासँ सुफल भेटैत छैक।
उपनयन संस्कारक बाद वेदोक्त कर्म करबाक लोक अधिकारी होइत छथि। वेदक अन्तिम लक्ष्य मोक्षे प्राप्त करब थीक। ईश्वरक उपासना योगक अभ्यास, धर्मक अनुष्ठान, विद्या प्राप्ति, ब्रह्मचर्य व्रतक पालन तथा सत्संग आदि मुक्तिक साधन गानल गेल अछि। कर्मफलक प्राप्तिक हेतु पुनर्जन्मक प्रतिपादन आत्मोन्नत्तिक लेल संस्कारक निरूपण, समुचित जीवन-यापन हेतु वर्णाश्रमक व्यवस्था एवं जीवनक पवित्रता हेतु भक्ष्या-भक्ष्यक निर्णय करब वेदक मुख्य विशेषता थीक। कर्मकाण्ड, उपासना-काण्ड तथा ज्ञान-काण्ड एहि तीनूक वर्णन मुख्यतया वेदमे भेटैत अछि। यज्ञान्तर्गत देवताक पूजा, ऋषि-महर्षिक सत्संग तथा दान ई तीनू क्रिया एक संग होइत अछि। तहिना ब्रह्मचर्य पालनसँ ऋषि-ऋण, यज्ञ द्वारा देव-ऋण तथा संतानोत्पत्तिसँ पितृऋण मुक्त हेबाक आदर्श वाक्य वेदेमे प्राप्त होइत अछि।
(अनुवर्तते)
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
शिक्षा मानवसभ्यताक मूलमंत्र होइत अछि। मुदा प्रतियोगिताक समयमे पढ़ाईक नामपर मोट-मोट पोथीक भारसॅं विद्यार्थी सबहक जीवन कारावासमे पराधीन जीवन काटैत कैदी सनक भऽ जाइत अछि। अहि बातक ध्यान राखि हमरा सभकेँ शैक्षणिक यात्रामे पठायल जाइत छल। एहि यात्रामे हमरा सभकेँ दैनिकी सभ दिन लिखऽ पडै़त छल आऽ कतबो थाकल रहैत छलहुँ हमरा सभकेँ ओहिये दिन संगे जायवला शिक्षक - शिक्षिका सॅं हस्ताक्षर करबाबऽ पड़ैत छल। टिस्कोक दस विद्यालयमे कक्षा छह, सात, आठ आऽ नौमे प्रथम स्थान पाबवला एवम् प्रत्येक विद्यालयसॅं एकटा बहुमुखी प्रतिभाशाली छात्र-छात्राकेँ ई सुअवसर प्राप्त होइत छल। हमरा ई सौभाग्य चारू कक्षामे भेटल। चारिम बेर सुअवसर तऽ भेटल किन्तु ६ दिसम्बर १९९२ क राजनैतिक हलचलक कारण हमर सबहक कार्यक्रम रद्द- भऽ गेल। पहिल बेर जून १९८९ मे उत्तर भारतक महत्वपूर्ण स्थान गेलहुँ लेकिन दैनिकी हेरा गेल। दोसर बेर दिसम्बर १९९० मे कोलकाता आऽ आसपासक जगह घूमलहुँ। जाहिमे निम्नलिखित स्थानक दर्शन भेल
१. मेट्रो रेल
२ अलीपुर जू़
३ विक्टोरिया हाउस
४ बिरला प्लानेटोरियम
५ बिरला टेकनिकल एण्ड इण्डस्ट्रियल म्यूज़ियम
६ नेहरू चिलड्रेन्स म्यूजियम
७ दक्षिणेश्वर मन्दिर
८ बॉटेनिकल गार्डेन
९ इण्डियन म्यूज़ियम
१० तारकेश्वर
११ शान्ति निकेतन
१२ तारापीठ
१३ बकरेश्वर
१४ दिग्घा
पहिल दिन :
२५ दिसम्बर १९९० मंगलवार :
आइ ठीक आठ बजे भोरे हमर सबहक यात्रा एक बसमे प्रारंभ भेल। सबहक अभिभावक आयल रहथि आऽ बड चिन्तित बुझाइत छलथि। हमसभ अपन खुशी नहि नुका पाबि रहल छलहुँ लेकिन खुलि कऽ तहन हॅंसलहुँ जहन बस शहर पार कऽ पहाड़ी आ जंगलाह रस्ता पकड़लक। रस्ता भरि एक दोसराक परिचय एवम् अपन-अपन स्कूलक टॉप स्कोरक तुलना करैत रहलहुँ। दुनु तरहे –एग्रीगेट(पूर्णांक)आऽ अलग-अलग विषयमे। फेर गाना बजाना अंतराक्षरीक अंतर्गत सेहो भेलै। करीब 1 बजे दुपहरियामे खड़गपुर पार केलहुँ। अढ़ाई बजे कोलाघाट पर ठहरि भोजन केलहुँ। विशाल हावड़ा ब्रीजकेँ पार करैत जहन बस कोलकाता शहरमे प्रविष्ट केलक हम सभ खिड़कीपर भीड़ लगेने छलहुँ, ओहि शहरक मकान सभकेँ देखऽ लेल। मकान सभ ब्रिटिश स्टाइलक बेसी देखायल। सड़कक भीड़ तऽ अतिशय छल। हम सभ ६ बजे सॉंझमे अग्रसेन स्मृति भवन नामक लॉजमे अपन घर जमेलहुँ। ओकर पॉंचम महलापर सभ लेल पॉंचटा कक्ष अनुबंधित छल। बालिका सभ लेल दू टा कक्ष देल गेल। ओतऽ अपन समान पाती व्यवस्थित कऽ अगिला दिनक इंतजाम कऽ हमसभ रातिक साढ़े आठ बजे भोजन लेल होटल दिस विदा भेलहुँ। एतेक बड़का टोलीकेँ देखि सभ चौकि जाइत छल। भोजनोपरान्त दैनिकी लिखि शिक्षकसँ हस्ताक्षर करा सुइत गेलहुँ।
दोसर दिन :
२६ दिसम्बर १९९० बुद्धवार :
२.शोध लेख
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
१. पहिने साक्षात्कारक पहिल भाग
साहित्य मनीषी मायानन्द मिश्रसँ साक्षात्कार
-डॉ शिव प्रसाद यादव द्वारा।डॉ. श्री शिवप्रसाद यादव, मारवाड़ी महाविद्यालय भागलपुरमे मैथिली विभागाध्यक्ष छथि।
भागलपुरक नामी-गामी विशाल सरोवर ’भैरवा तालाब’। जे परोपट्टामे रोहु माछक लेल प्रसिद्ध अछि। कारण एहि पोख्रिक माँछ बड़ स्वादिष्ट। किएक ने! चौगामाक गाय-महींसक एक मात्र चारागाह आर स्नानागार भैरबा पोखड़िक महाड़। दक्षिणबड़िया महाड़ पर मारवाड़ी महाविद्यालय छात्रावास। छात्रावासक प्रांगणमे हमर (अधीक्षक) निवास। आवासक प्रवेश द्वार पर लुक-खुक करैत साँझमे बुलारोक धाप। हॉर्नक ध्वनि सुनि दौड़ि कए घरसँ बहार भेलहुँ। दर्शन देलनि मिथिलाक त्रिपूर्ति, महान विभूति- दिव्य रूप। सौम्य ललाट। ताहि पर चाननक ठोप, भव्य परिधान। ताहि पर मिथिलाक पाग देखितहि मोन भेल बाग-बाग। नहुँ-नहुँ उतरलनि- साहित्य मनीषी मायानन्द, महेन्द्र ओऽ धीरेन्द्र। गुरुवर लोकनिक शुभागमनसँ घर-आँगन सोहावन भए गेल। हृदय उमंग आऽ उल्लाससँ भरि गेल। मोन प्रसन्न ओऽ प्रमुदित भए उठल। गुरुवर आसन ग्रहण कएलनि, यथा साध्य स्वागत भेलनि। तदुपरान्त भेंटवार्ताक क्रम आरम्भ भए गेल। प्रस्तुत अछि हुनक समस्त साहित्य-संसारमे समाहित भेंटवार्ताक ई अंश:-
प्र. ’मिथि-मालिनी’ केँ अपने आद्योपान्त पढ़ल। एकर समृद्धिक लेल किछु सुझाव?
उ. ’मिथि मालिनी’ स्वयं सुविचारित रूपें चलि रहल अछि। स्थानीय पत्रिका-प्रसंग हमर सभ दिनसँ विचार रहल अछि जे एहिमे स्थापित लेखकक संगहि स्थानीय लेखक-मंडलकेँ सेहो अधिकाधिक प्रोत्साहन भेटक चाही। एहिमे स्थानीय उपभाषाक रचनाक सेहो प्रकाशन होमक चाही। एहिसँ पारस्परिक संगठनात्मक भावनाक विकास होयत।
प्र. ’मिथिला परिषद’ द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोहमे अपनेकेँ सम्मानित कएल गेल। प्रतिक्रिया?
उ. हम तँ सभ दिनसँ मैथिलीक सिपाही रहलहुँ अछि। सम्मान तँ सेनापतिक होइत छैक, तथापि हमरा सन सामान्यक प्रति अपने लोकनिक स्नेह-भाव हमरा लेल गौरवक वस्तु भेल आऽ मिथिला परिषदक महानताक सूचक। हमरा प्रसन्न्ता अछि।
प्र. अपने साहित्य सृजन दिशि कहियासँ उन्मुख भेलहुँ?
उ. तत्कालीन भागलपुर जिलाक सुपौलमे सन् ४४-४५ मे अक्षर पुरुष पं रामकृष्ण झा ’किसुन’ द्वारा मिथिला पुस्तकालयक स्थापना भेल छल तकर हम सातम-आठम वर्गसँ मैट्रिक धरि अर्थात् ४६-४७ ई सँ ४९-५० ई.धरि नियमित पाठक रही। एहि अध्ययनसँ लेखनक प्रेरणा भेटल तथा सन् ४९ ई. सँ मैथिलीमे लेख लिखऽ लगलहुँ जे कालान्तरमे भाङक लोटाक नामे प्रकाशितो भेल सन् ५१ ई. मे। हम तकर बादे मंच सभपर कविता पढ़ऽ लगलहुँ।
प्र. अपने हिन्दी एवं मैथिली दुनू विषयसँ एम.ए. कएल। पहिल एम.ए. कोन विषयमे भेल?
उ. मैट्रिकमे मैथिली छल किन्तु सन् ५० ई. मे सी.एम. कॉलेज दरभंगामे नाम लिखेबा काल कहल गेल जे मैथिलीक प्रावधान नहि अछि। तैँ हिन्दी रखलहुँ। तैँ रेडियो, पटनामे काज करैत, सन् ६० ई. मे पहिने हिन्दीमे, तखन सन् ६१ ई. मे मैथिलीमे एम. ए. कएलहुँ।
प्र. हिन्दी साहित्यमे प्रथम रचना की थीक आऽ कहिया प्रकाशित भेल।
उ. हिन्दीक हमर पहिल रचना थिक, ’माटी के लोक: सोने की नया’ जे कोसीक विभीषिका पर आधारित उपन्यास थिक आऽ जे सन् ६७ ई. मे राजकमल प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेल।
प्र.अपनेक हिन्दी साहित्यमे १. प्रथम शैल पुत्री च २. मंत्रपुत्र ३. पुरोहित ४. स्त्रीधन ५. माटी के लोक सोने की नैया, पाँच गोट उपन्यास प्रकाशित अछि। एहिमे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपन्यास कोन अछि आओर किएक?
उ. अपन रचनाक प्रसंग स्वयं लेखक की मंतव्य दऽ सकैत अछि? ई काज तँ थिक पाठक आऽ समीक्षक लोकनिक। एना, हिन्दी जगतमे हमर सभ ऐतिहासिक उपन्यास चर्चित रहल अछि। अधिक हिन्दी समीक्षक प्रशंसे कएने छथि। गत वर्षसँ हिन्दीक सम्राट प्रो. नामवर सिंह जी हिन्दीक श्रेष्ठ उपन्यास पर एकटा विशिष्ट कार्य कऽ रहल छथि, जाहिमे हमर प्रथम शैल-पुत्री नामक प्रगैतिहासिक कालीन उपन्यास सेहो संकलित भऽ रहल अछि। एहि उपन्यास पर विस्तृत समीक्षा लिखने छथि जयपुर युनिवर्सिटीक डॉ शंभु गुप्त तथा हम स्वयं लिखने छी एहि उपन्यासक प्रसंग अपन मंतव्य। ई पुस्तक राजकमल प्रकाशनसँ छपि रहल अछि। असलमे प्रथम शैलपुत्री’ मे अछि भारतीय आदिम मानव सभ्यताक विकासक कथाक्रम- जे कालान्तरमे हड़प्पा अथवा सैंधव सभ्यताक निर्माण करैत अछि जकर क्रमशः अंत होइत अछि। हम स्वयं एकरा अपन सफल रचना मानैत छी, समीक्षको मानि रहलाह अछि। एना, पुरोहित अपना नीक लगैत अछि। ’स्त्रीधन’ मिथिलाक इतिहास पर अछि।
(अनुवर्तते)
२. आब धारावाहिक शोधलेखक आगूक भाग।
मायानन्द मिश्र जीक इतिहास बोध
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
स्त्रीधन
ई ग्रन्थ मायानन्द बाबूक इतिहास बोधक अन्तिम कड़ी (अखन धरिक) अछि। प्रागैतिहासिक “प्रथम शैलपुत्री च”, ऋगवेदिक कालीन “मंत्रपुत्र”, उत्तरवैदिककालीन “पुरोहित” केर बाद ई पुस्तक सूत्र-स्मृतिकालीन अछि, ई ग्रंथ हिन्दीमे अछि। आऽ ई उपन्यास सूत्र स्मृतिकालीन मिथिला पर आधारित अछि। ई पोथी प्रारम्भ होइत अछि मायानन्दजीक प्रस्तावनासँ जकर नाम एहि खण्डमे “पॄष्ठभूमि” अछि। एतए मायानन्दजी रामायण-महाभारत केर काल गणनाक बाद इतिहासकार लोकनिक एकमात्र साक्ष्य शतपथ ब्राह्मणक चर्च करैत छथि।
मिथिलाक प्राचीनतम नाम विदेह छल, जकर प्रथम वर्णन शतपथ ब्राह्मणमे आयल अछि। सार्थ-गमनक प्रक्रियाक विस्तृत वर्णन एहि ग्रन्थमे अछि, से मायानन्द जी कहैत छथि।
ई ग्रन्थ प्रथम आऽ द्वितीय दू अध्यायमे अछि आऽ अन्तमे उपसंहार अछि। प्रथम अध्यायमे प्रथमसँ नवम नौ टा सत्र अछि। द्वितीय अध्यायमे प्रथमसँ अष्टम ई आठ टा सर्ग अछि।
प्रथम अध्याय
प्रथम सत्र
एहिमे सृंजय द्वारा कएल जाऽ रहल धर्म-पश्चात्तापस्वरूप भिक्षाटनक, पत्नी-त्यागी होएबाक कारण छह मास धरि निरन्तर एकटा महाव्रत केर पालन करबाक चरचा अछि।
“द्वितीय वर” केर सेहो चरचा अछि।
द्वितीय सत्र
राजा बहुलाश्व जनकक ज्येष्ठ पुत्र कराल जनककेँ राजवंशक कौलिक परम्पराक अनुसार सिंहासन भेटलन्हि, तकर वर्णन अछि।
तृतीय सत्र
एतए पुरान आऽ नवक संघर्ष देखबामे अबैत अछि। वारुणी एक ठाम कहैत छथि जे जखन पूज्य तात हुनकर विधिवत उपनयन करबओलन्हि, ब्रह्मचर्य आश्रममे विधिवत प्राचीन कालक अनुसार श्रुतिक शिक्षा देलन्हि, तँ आब हमहूँ भद्रा कन्या बनि अपन वरपात्रक निर्वाचन स्वयं कए विवाह करए चाहैत छी।
चतुर्थ सत्र
एतए कराल जनकक विरुद्ध विद्रोहक सुगबुगाहटिक चरचा अछि। कृति जनक आऽ बहुलाश्व जनकक कालमे भेल न्यायपूर्ण आऽ प्रजाहितकारी कल्याणकारी कार्यक चरचा भेल अछि, तँ सँगहि सीरध्वज जनकक समयसँ भेल मिथिलाक राज्य-विस्तारक चरचा सेहो अछि। बहुलाश्व मरैत काल अपन पुत्र करालकेँ आचार्य वरेण्य अग्रामात्य खण्डक उपेक्षा-अवहेलना नहि करबाक लेल कहने छलखिन्ह, मुदा कालान्तरमे वैह कराल जनक अग्रामात्यक उपेक्षा-अवहेलना करए लगलाह। आचार्य वरेण्य-खण्ड मिथिलासँ पलायन कए गेलाह।
पंचम सत्र
प्रणिपात, आशीर्वचन आऽ कुशल-क्षेमक औपचारिकताक वर्णन अछि आऽ स्त्रीधनक चरचा सेहो गप-शपक क्रममे आयल अछि। ईहो वर्णन आयल अछि, जे वैशाली किछु दिन कौशलक अधीन छल, आऽ भारत-युद्धमे ओऽ मिथिलाक अधीन छल। वन्य भूमिकेँ कृषि-योग्य बनेबाक उपरान्त पाँच बसन्त तक कर-मुक्त करबाक परम्पराकेँ राजा कराल जनक द्वारा तोड़ि देबाक चरचा अछि।
षष्ठ सत्र
पांचाल-जन द्वारा अंधक वृष्णिक नायक वासुदेव कृष्णकेँ जय-काव्यक नायक मानल जएबाक चरचा अछि। जय-काव्य आऽ भारत-काव्यक पश्चिमक उच्छिष्ट भोज मायानन्दजीक मोनसँ नहि हटलन्हि, आऽ जय-काव्यमे मुनि वैशम्पायन व्यास द्वारा बहुत रास श्लोक जोड़ि वृहतकायभारत काव्य बनाओल जएबाक मिथ्या तथ्यक फेरसँ चरचा अछि। जयकाव्यक लेखक कृष्ण द्वैपायन व्यासकेँ बताओल गेल अछि। आऽ एकर बेर-बेर चरचा कएल गेल अछि, जेना कोनो विशेष तथ्य होए।
फेर देवत्वक विकासपर सेहो चरचा अछि। सरस्वती धारक अकस्मात् सूखि जएबाक सेहो चरचा अछि।
सरस्वतीक मूर्तिपूजनक प्रारम्भक आऽ मातृदेवीक सेहो चरचा भेल अछि।
सप्तम् सत्र
सरस्वतीकेँ मातृदेवी बनाकए काल्पनिक सरस्वती प्रतिमा-पूजनक चरचा अछि। मिथिलामे पतिक नाम नहि लेबाक परम्पराक सेहो चरचा भेल अछि।
अष्टम् सत्र
राजाक अत्याचार चरम पर पहुँचि गेल अछि। अपूर्वा द्वारा विवशतापूर्वक गार्हस्थ्य त्याग आऽ स्त्रीधन सेहो छोड़बाक चरचा भेल अछि।
नवम् सत्र
सएसँ बेशी ग्राम-प्रमुख द्वारा सम्मेलन-उपवेशनक चरचा अछि।
पाँच वसन्त धरि कर-मुक्ति आऽ ताहिसँवन्यजन आऽशूद्रजनक सम्भावित पलायनक चरचा अछि।सीरध्वज जनकक पश्चात् धेनु-हरण राज्याभिषेकक बाद मात्र एकटा परम्परा रहि गेल, तकर चरचा अछि। मुदा करल द्वारा अपन सगोत्रीय शोणभद्रक धेनु नहि घुमेबाक चरचा अछि। कराल द्वारा बीचमे प्रधान पुरहितकेँ हटेबाक चरचा अछि।चिकित्साशास्त्र नवोदित चिकित्सक बटुक कृतार्थकेँ राजकुमारीक चिकित्साक लेल बजाओल जाइत अछि संगमे राजकुमारीक सखी आचार्य कृतक पुत्री वारुणीकेँ सेहो बजाओल जाइत अछि, ओऽ अपन अनुज बटुकक संग जाइत छथि आऽ कराल बलात् अपन कक्ष बन्द कए हुनकासँ गांधर्व-विवाह कए लैत छथि। प्रजा विद्रोह आऽ राजाक घोड़ा पर चढ़ि कए पलायनक संग प्रथम अध्यायक नवम आऽ अन्तिम सत्र खतम भए जाइत अछि।
द्वितीय अध्याय
प्रथम सर्ग
सित धारक चरचा अछि। वारुणिकेँ वरुण सार्थवाह सभक संग अंग जनपद चलबाक लेल कहैत छन्हि
। आऽ संगे वरुण ईहो कहैत छथि जे अंग जनपदक आर्यीकरणक कार्य अखनो अपूर्ण अछि।
द्वितीय सर्ग
सार्थक संग धनुर्धर लोकनि चलैत छलाह, अपन श्वानक संग। सार्थक संग सामान्य जन सेहो जाइत छलाह।वरुण आऽ वारुणी हिनका सभक संग अंग दिहि बिदा भेलाह, एहि जनपदक राजधानी चम्पा कहल गेल अछि, आऽ एकरा गंगाक उत्तरमे स्थित कहल गेल अछि।
तृतीय सर्ग
अंग क्षेत्रमे धानसँ सोझे अरबा नहि बनाओल जएबाक चरचा अछि, ओतए उसीन सुखा कए ढेकीसँ बनाओल अरबाकेँ चाउर कहल जएबाक आऽ ब्रीहिकेँ धान कहबाक वर्णन भेल अछि। पूर्वकालक श्रेष्ठी द्विज वैश्य आऽ अद्विज नवीन वैश्यक चरचा भेल अछि।
चतुर्थ सर्ग
आर्यीकरणक बेर-बेर चरचा पाश्चात्य विद्वानक मायानन्दजी पर प्रभाव देखबैत अछि। आर्य आऽ द्रविड़ शब्द दुनू पाश्चात्य लोकनि भारतमे अपन निहित स्वार्थक लेल अनने छलाह। कोशल आऽ विदेहक प्रसारक, देवत्वक विकासक सम्पूर्ण इतिहास एतए देल गेल अछि।मिथिलाक दही-चूड़ाक सेहो चर्च आएल अछि।
पञ्चम सर्ग
दिनमे एकभुक्त आऽ रातिमे दुग्धपान मिथिला आऽ पांचाल दुनू ठाम छल। तथाकथित आर्य आऽ स्थानीय लोकनिक बीच छोट-मोट जीवनशैलीक अन्तर आऽ मायानन्दजी आर्यीकरण कहैत छथि ओकरा पाटब।
षष्ठ सर्ग
अंगक गृह आर्यग्राम जेकाँ सटि कए नञि वरन् हटि-हटि कए होएबाक वर्णन अछि। हुनकासभ द्वारा छोट-छोट वस्त्र आऽ पशुचर्म पहिरबाक सेहो वर्णन अछि। वन्यजनक बीचमे नरबलि देबाक परम्पराक संकेत आऽ निष्कासित वन्यजनसँ भाषाक आदान-प्रदान सेहो मायानन्दजी पाश्चात्य प्रभावसँ ग्रहण कए लेने छथि।
विक्रय-थान खोलबाक जाहिसँ भविष्यमे नगरक विकास संभव होएत,तकर चर्च अछि।
सप्तम सर्ग
उसना चाउरक अधिक सुपाच्य आऽ ताहि द्वारे ओकर पथ्य देबाक गप कएल गेल अछि।लौह-सीताक लेल लौहकार, हरक लेल काष्ठकार, बर्तन-पात्रक लेल कुम्भकार इत्यादि शिल्पीक आवश्यकता आऽ ताहि लेल आवास-भूमि आऽ भोजनक सुविधा देबाक गप आएल अछि।
अष्टम सर्ग
कृषि उत्पादनक पश्चात् लोक अन्नक बदला सामग्री बदलेन कए सकैत छथि, वृषभ-गाड़ीसँ सामग्रीक संचरण, एक मास धरि चलएबला यज्ञक व्यवस्था भूदेवगण द्वारा कएल जएबाक प्रसंग सेहो आयल अछि। भाषा-शिक्षण क्रममे ब्राह्मणगामक अपभ्रंश बाभनगाम आऽ वनग्रामक वनगाम भए गेल। भाषा सिखा कए घुरैत काल वारुणीपर तीरसँ आक्रमण भेल आऽ फेर वारुणिक मृत्यु भए गेल।
उपसंहार
दोसर वसन्त अबैत मिथिलामे गणतंत्रक स्वरूपक स्थापना स्थिर भए गेल।वैशाली आऽ मिथिलाक बीच परस्पर सम्वाद एक गणतांत्रिक सूत्रमे जुड़बाक लेल होमए लागल। सितग्राम स्थित राजधानीमे पूर्वमे मिथिलाक सीमा-विस्तारक चरचा भेल। राजधानी सितग्राम आऽ पूर्वी मिथिलाक जितग्रामक बीच एकटा महावन छल। एकरा ब्राह्मणग्राम आऽ त्रिग्राम द्वारा मिलिकए जड़ाकए हटाओल गेल।
(अनुवर्तते)
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Monday, July 28, 2008
'विदेह' १५ जून २००८ ( वर्ष १ मास ६ अंक १२ )३.उपन्यास/ सहस्रबाढ़नि -गजेन्द्र ठाकुर
सहस्रबाढ़नि -गजेन्द्र ठाकुर
नन्दक दुनू बेटा वर्गमे प्रथम अबैत छलन्हि। किछु दिन धरि सभटा ठीक-ठाक चलैत रहल। पुरनका सभटा चिन्ता-फिकिर लगैत छल जेना खतम भए गेल होए। गामक एक दू गोटे सेहो पटनामे रहैत छलाह। महिनामे एकटा रवि निश्चित छल, जाहि दिन सभ गोटे कतहु घुमए लेल जाइत छलाह। एक रवि कोनो गौँआक अहिठाम तँ कोनो आन बेर चिड़ियाखानाक यात्रा। एक बेर चिड़ियाखाना गेल रहथि सभ गोटे तँ आरुणि नन्दकेँ पुछलखिन्ह- “हमरा सभ आयल छी चिड़ियाखाना, बाहरमे बोर्ड लागल अछि बोटेनिकल गार्डेनक आऽ गेटक ऊपरमे लिखल अछि बायोलोजिकल गार्डेन”।
“पहिने सोनपुरमेला सभमे अस्थायी चिड़ै सभक प्रदर्शन होइत छल आऽ लोकक जीह पर ओकरा लेल चिड़ियाखाना शब्द आबि गेल। मुदा एतए तँ कताक बीघामे वृक्ष सभ लागल अछि, प्रत्येक वृक्ष पर ओकर नाम आऽ वनस्पतिशास्त्रीय विवरण सेहो लिखल अछि, आऽ ताहि द्वारे एकर नाम अंग्रेजीमे वनस्पति उद्यानक लेल बोटेनिकल गार्डन पड़ि गेल। मुदा बादमे अनुभव कएल गेल जे जन्तु आऽ वनस्पतिक रूपमे दू तरहक जीवविज्ञान अछि। एहि उद्यानमे वनस्पति, चिड़ै आऽ बाघ-सिंह इत्यादि सेहो प्रदर्शित अछि। ताहि द्वारे एकर नाम बायोलोजिकल गार्डन वा जैविक उद्यान दए देल गेल। पुरनका बोर्ड जतए-ततए रहिये गेल”।
एक बेर सभ गोटे गेल रहथि एकटा गौँआक अहिठाम। ओतए चर्चा चलए लागल जे गंगा पुल केर उद्घाटन दू तीन सालसँ एहि साल होयत, अगिला साल होयत एहि तरहक चरचा अछि।
नन्दसँ ओऽ लोकनि पुछलखिन्ह, “अहाँक बुझने कहिया धरि एहि पुलक उद्घाटन भए जएतैक। मुख्यमन्त्री तँ कहने छथि जे एहि साल एकर उद्घाटन भए जएतैक”।
“कहियो नहि होएतैक। दू-तीन सालसँ तँ सुनि रहल छियैक। यावत एकटा पाया बनैत छैक, तँ ओहिमे ततेक न बालु देने रहैत छैक जे किछु दिनमे दरारि पड़ि जाइत छैक। फेर राता-राती ओकरा तोड़ि कए फेरसँ नव पाया बनेनाइ शुरू करैत जाइत अछि”।
गंगा पुलक चरचा सुनि नन्दक सोझाँ पाया परसँ गंगाजीमे खसैत जोन-मजदूर सभक चित्र नाचि जाइत छलन्हि। नन्दक विवाद ओहि समय ठिकेदार आऽ संगी अभियन्ता सभसँ काजक संबंधमे होइत रहैत छलन्हि। एकटा पायाक कार्यक संबंधमे नन्द अपन विरोध प्रकट कएने छलाह, किछु दिनुका बाद ओऽ पाया फाटि गेल, एकटा पैघ दरारि पड़ि गेल छल बीचो-बीच। राता-राती ठिकेदार-अभियन्ता लोकनि ओकरा तोड़बेलन्हि। रातिमे कतहुसँ ओतेक विशाल पाया टूटि सकैत छल? से अगिला दिन दरारिक स्थान पर तिरपाल बिछाओल गेल, जे ककरो नजरि नहि पड़ि जाइ।
(अनुवर्तते)
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'विदेह' १५ जून २००८ ( वर्ष १ मास ६ अंक १२ )/ ५कथा/1. गंगेश गुंजन -गोबरक मूल्य/2. गजेन्द्र ठाकुर- पहरराति
1. गंगेश गुंजन -गोबरक मूल्य
2. गजेन्द्र ठाकुर- पहरराति
1. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
गोबरक मूल्य
भागलपुर मे एकटा उनटा पुल कहबैत छैक। उनटा पुलसँ दक्षिण मुँह जे सड़क जाइत छैक, तकरा बौंसीे रोड कहल जाइत छैक। बौंसी रोड पर कएक टा बस्ती-मोहल्ला लगे-लग पड़ैत छैक। बहुत रास दोकान आ लोकक, ट्रक-बस, टमटम, रिक्शा सभक खूब घन आवाजाही। सुखायल मौसम मे भरि ठेहुन ध्ूरा आ भदवारि मे भरि ठेहुन पानि-कादो। शहरी नाला सभक कारी गंदगीसँ सड़क भरल-पूरल। कैक समय तं पयरे आयब-जायब कठिन ।
मुदा सड़क छैक पीच। मोजाहिदपुर मिरजान हाट चौक, हबीबपुर आ हुसैनाबाद तथा अलीगंज। कैक जाति आ पेशाक लोक । काठ गोदामसँ ल क तसरक उद्योगी ध्रि आ जानवरक गंध् तोड़ैत हड्डीक टालसँ ल क हरियर टटका तरकारी सभक हाट ध्रि । तहिना टिक टिक घोड़ासँ ल क बड़दोसँ बत्तर ठेलासँ छातीतोड़ श्रम करैत घामे-पसेने तर माल उघैत मजूर सेहो। बच्चा, सियान सभक भीड़ भेटत । कतहु दोकानमे लागल पफलकल कोबीक छत्ता जकाँ कतहु अलकतराक उनटल पीपा जकां। ई दृश्य थिक सड़कक दुनू कातक उनटा पुलसँ ता अलीगंज।
अलीगंजसँ किछुए आगाँसँ सड़क खूब पकठोस छैक। चिक्कन कारी। तेहन जे कैक टा परिवार ओहिपर मकै-गहूम पर्यन्त पथार द क सुखबैत भेटत।
ओही इलाकाक एकटा घटना थिक। आने बीच सड़क परक अलीगंज बस्ती जत खतम होइत छैक ताही ठाम सड़कक कातमे एकटा आर कल छैक जे हरदम अबन्ड छौँड़ा जकाँ छुरछुरबैत रहैत छैक। यद्यपि भागलपुर मे पीबाक पानिक कष्ट बड़ सामान्य बात अछि, मुदा एत पानिक उदारता देखिक से समस्या अखबारी पफूसि बनि जाइत छैक। खैर, ताहू दिन खूब तेजीसँ पानि छुरछुरा रहल छलैक। क्यो भरनिहार नहि रहैक। खूब रौद रहैक। चानि खापड़ि जकाँ तबैत। तेहन सन जे चानि पर यदि बेलिक रोटी ध् देल जाइक तँ पाकि जयतैक।
एहना मौसम मे कलसँ सटले दस गोटे बीस गोटे अपन चानि तबबैत यदि घोलिमालि करैत ठाढ़ हो तँ ध्यान जायब स्वाभाविके। हमहूँ अपनाके ँ रौद, लू आ उमसमे उलबैत पकबैत ओहि द क ल जाइत रही। एकटा उपयुक्त कारण बुझायल सुस्तयबाक। भने किछु लोक
घोँघाउज क रहल छलैक। लगमे कलसँ ओतेक प्रवाह सँ जल झहरि रहल छलैक से एकटा मनोवैज्ञानिक शीतलता पसारि रहल छलैक मने।
जखन ओहि गोल लग पहुँचलहुँ तँ ईहो देखबा योग्य भेल जे ओहि घोँघाउजि मण्डलीसँ आगाँ एक टा मिनी बस ठाढ़ छैक। सन्देह नहि रहल जे कोनो दुर्घटना सँ पफराक किछु बात नहि छैक। एहन दुर्घटना मे सड़कपर ककरो मृत्यु सामान्य बात थिक। डेग अनेरे किछु झटकि गेल। लग पहुँचलहुँ आ ओहि घरेलू घोंघाउजिक कन्हापरसँ हुलकि क देखलहुँ तँ बीचमे दू पथिया गोबर हेरायल बीच सड़कपर। एक टा छौंँड़ा हुकुर-हुकुर करैत...। घोंघाउजि खूब जोरसँ चलि रहल छल। ओही लोकक गोलमे एक कात करीब १०-१२ बर्षक दूठा छौंड़ी आदंकेँ चुप्प ठाढ़ि आ कनैत... खरफकी पहिरने खूजल देह, छिट्टा सन केश...। ओहिमे सँ एक टा छौंड़ीक जमड़ी लागल अगंिह मे पफाटल पैंट, ताहिपर टटका गोबर लेभरल। दुनू छौँड़ीक गालपर हाथमे, सौँसे देहपर गोबर लागल आ दुर्घटनाग्रस्त छौँड़ाक छातीपर गोबर लागल । दू टा नान्हि टा हाथक छाप यद्यपि ओहि कड़ा रौदमे सुखा गेल रहैक, मुदा स्पष्ट रहैक।
आदंकमे पड़लि दुनू छौँड़ी, अंदाज करैत छी, गोबरबिछनी छैक। बाट-घाट जाइत अबैत गाय-महींसक गोबर जमा अछि, भरि दिन तकर गोइठा थोपैत अछि, माय वा परिवारक क्यो लोक तकरा सुखबैत अछि आ बड़का पथियामे सजाक शहर जाक बेचैत अछि । जीविकाक एक साध्न यैह गोइठाक आमदनी। गोइठा जाहिसँ बनय से गोबर आबय कतसँ एहिना अनिश्चित। कहियो एको पथिया कहियो किछु नें। तेेँ एहि सड़कपर गोइठा बिछनी छौँड़ी सभक आपस मे होइत झोंटा-झोंटीक दृश्य बड़ आम घटना रहैत छैक। आ ओकरा माय-बाप केँ गारि-सराप देलक, ओ ओकरा माय बहिनके ँ घोड़ासँ वियाह करौलक... एकहि दिन पहिने दूटा छौँड़ी बीच सड़कपर तेना पटकम-पटकी करैत रहय आ एक दोसराक झोंटाके ँ तेना नोचि रहल छल जे दया आ क्रोध् दुनू आबय मनमे, मुदा समाधन की। गोबर जकर जीविका छैक ताहि परक आपफत तँ ठीके नै सहल हेतैक ओकरा ताहूमे एक दिन हम एकटा छौँड़ी के ँ पुछने रहिऐक-÷तोरा सिनी केहने एना झगड़ा करै छे ँ, जरी टा गोबर के वास्ते?'
- ÷जरी टा छलै? एतना छलै, हम्मे जमा करी क रखलिऐ आरू ई रध्यिा मोटकी-ध्ुम्मी ने अपने छिट्टामे ध्री लेलक। आय हमरा केतना मारतै माय ? माय तँ इहे ने कहतै जे हम्मे गोबर नहि बीछय छलियै, कहीं दिन भर खेली रहल छलियै? की खयतै लोगें?'
हमर प्रश्न हमरे खूब भारी चमेटा जकाँ बुझायल, हम चोट्टहि ससरि गेल रही।
मुदा ओहि दिनुका दृश्य बड़ भार्मिक छलैक। आदंके ँ चुपचाप दहो-बहो कनैत दुनू छौँड़ी एक बेर चारू कातक लोकके ँ एक बेर शोणित बहैत बच्चाके ँ देखैत ठाढ़ि रहैक।
- ÷की होलै भाइ जी?' हम एकटा सज्जनसँ पुछलियनि।
- ÷अरे कलियुग छौं भाई जी। बताब जरी टा गोबर के वास्ते एकरा सिनी मे आपसे मे झगड़ा होलै आरू हौ छौ ँड़ी एकर छोट भाइके ँ ध्केली देलकै मिनी बसके आगूमे। देखै नै छहौ जे घड़ी मे दम टुटल छै छौँड़ाके आहा...
- ÷जरी टा गोबर छलै उफ? माय किरिया खा के कही तँ लछमिनियाके ँ जे हमर एक चोत गोबड़ छलय कि नै ?' अचानक जेना खूब साहस करैत आदंकित एक टा छौंड़ी कनिते बाजलि-
हमरा अकस्मात लोकसभपर खासक ओही भाइ साहेबपर क्रोध् उठल।
- ÷विचित्रा बात तोरा की नहि देखाइ रहल छ जे ई बुतरू मरि रहल दै आ अस्पताल पहुँचाबै के पिफकिर नै करीक दबकि बनल खाड़ छ ध्क्किार।'
सभ जेना हमरेपर गुम्हर लागल।
- ÷आब की ई बच पाड़तै? की पफयदा लय गेलासँ।'
- ÷तैयो लै जायमे की हर्जा? भाइ-साहेब ठीके तँ कही रहल छै हौ।' एक गोटे अपन विचार देलकैक।
मुदा तकर कोनो प्रयोजन नहि भेलैक। घोल-पफचक्का मचिते रहलैक, ओ दुनू गोबरबिछनी छौंड़ी आदंके ठाढ़िए रहलि लोकसँ घेरायलि। बीच बाटपर ओहि घायल नेनाक प्राण छुटि गेलैक। एक चुरफक पानियो ने देलकै क्यो।
एहि संदर्भमे एकटा लेखकक टिप्पणी प्रस्ताव करैत छी जे ई दृश्य छल एकटा नहि, कैकटा गोबर पर जिनहार परिवारक बच्चाक संघर्षक। एक बहिन ककरो एक चोत गोबर चोरा लेलकै तँ तामसमे ओ चौरौनिहारक छोट भाइके ँ सड़कपर ध्क्का द देलकै आ मिनीबस ओकरा पीचि देलकै। पीचपर शोणित आ गोबर बराबरि दामक भेल जे रौदमे सुखाइत रहलैक।
बौंसी रोडक ई दृश्य जे देखने होयता सैह बुझने होयता - एतबे कहब।
हमरा तँ ईहो नहि बुझल अछि जे मुइल छौंड़ाक मायो-बाप छलैक कि नहि? छलैको तँ ओकरा कखन खबरि भेल होयतैक जे ओकर बेटा मिनीबसमे पिचा क मरि गेलैक। वा मिनीबसक ड्राइवर कोन थानामे जाक कहने होयतैक जे हम एकटा निरीह छौंड़ाके ँ खून क क आबि रहल छी?
हमरा तँ नहि बूझल अछि ओहि दुनू छौंड़ियो क, मुदा ओहि घटनाक बादसँ मनमे एहि बातक अंदेशा अवश्य होइत रहैत अछि जे कतहु दुनू छौंड़ी पफेर ने एहि बौंसी रोडपर गोबर बीछैत भेटि जाय... कतहु पफेर ने भेटि जाय।.....
आ, सत्य पूछी तँ आब हमरा सभटा गोबर बिछनी एक्के रंग लगैत अछि।
2.. गजेन्द्र ठाकुर-
पहरराति
“सुनू। प्रयोगशालाक स्विच ऑफ कए दियौक”। चारि डाइमेन्शनक वातावरणमे अपन सभटा द्वि आऽ त्रि डाइमेन्शनक वस्तुक प्रयोग करबाक लेल धौम्य प्रयोगशालामे प्रयोग शुरू करए बला छथि। हुनकर संगी-साथी सभ उत्सुकतासँ सभटा देखि रहल छथि।
“दू डाइमेन्शनमे जीबए बला जीव तीन डाइमेन्शनमे जीबए बला मनुक्खक सभ कार्यकेँ देखि तऽ नहि सकैत छथि, मुदा ओकर सभटा परिणामक अनुभव करैत छथि। अपन एकटा जीवन-शैलीक ओऽ निर्माण कएने छथि। ओहि परिणामसँ लड़बाक व्यवस्था कएने छथि। तहिना हमरा लोकनि सेहो चारि डाइमेन्शनमे रहए बला कोनो सम्भावित जीवक, वा ई कहू जे तीनसँ बेशी डाइमेन्शनमे जिनहार जीवक हस्तक्षेपकेँ चिन्हबाक प्रयास करब”। धौम्य कहैत रहलाह।
एक आऽ दू डाइमेन्शनमे रहनहारक दू गोट प्रयोगशालाक सफलताक बाद धौम्यक ई तेसर प्रयोग छल।
“एक विमीय जीव जेना एकटा बिन्दु। बच्चामे ओऽ पढ़ैत छलाह जे रेखा दू टा बिन्दुकेँ जोड़ैत छैक। नञि तऽ बिन्दुमे कोनो चौड़ाइ देखना जाइत अछि आऽ नहिये रेखामे। रेखा नमगर रहैत अछि, मुदा बिन्दुमे तँ चौड़ाइक संग लम्बाइ सेहो नहि रहैत छैक। एक विमीय विश्वमे मात्र अगाँ आऽ पाछाँ रहैत अछि। नञि अछि वान दहिनक बोध नहिये ऊपर नीचाँक। मात्र सरल रेखा, वक्रता कनियो नहि। आब ई नहि बुझि लिअ जे अहाँ जतय बैसल छी, ओतए एकटा रेखा विचरण करए लागत। वरण ई बुझू जे ओऽ रेखा मात्र अछि, नहि कोनो आन बहिः।
“द्वि बीमीय ब्रह्माण्ड भेल जतए आगू पाछूक विहाय वाम दहिन सेहो अछि, मुदा ऊपर आऽ नीछाँ एतए नहि अछि। ई बुझू जे अहाँक सोझाँ राखल सितलपाटीक सदृश ई होयत, जाहिमे चौड़ाइ विद्यमान नहि अछि।“
“ मुदा श्रीमान् ई चलैत अछि कोना। गप कोना करत एक दोसरकेँ संदेश कोना देत”।
“आऊ। पहिने एक विमीय ब्रह्माण्डक अवलोकन करैत छी”।
धौम्य एक विमीय प्रयोगशालाक लग जाइत छथि। ओतए बिन्दु आऽ बिन्दुक सम्मिलन स्वरूप बनल रेखा सभ देखबामे अबैत अछि। ई जीब्व सभ अछि। एक विमीय ब्रह्माण्डक जीव, जे एहि तथ्यसँ अनिभिज्ञ अछि जे तीन विमीय कोनो जीव ओकरा सभकेँ देखि रहल छैक।
“देखू। ई सभ जीव एक दोसराकेँ पार नहि कए सकैत अछि। आगू बढ़त तँ तवत धरि जाऽ धरि कोनो बिन्दु वा रेखासँ टक्कर नहि भए जएतैक। आऽ पाछाँ हटत तावत धरि यावत फेर कोनो जीवसँ भेँट नहि होयतैक। एक दोसराकेँ संदेश सेहो मात्र एकहि पँक्त्तिमे दए सकत, कारण पंक्त्तिक बाहर किछु नहि छैक। ओकर ब्रह्माण्ड एकहि पंक्त्तिमे समाप्त भए जाइत अछि।
“आब चलू द्वि बीमीय प्रयोगशालामे”।
सभ क्यो पाछाँ-पाछाँ जाइत छथि।
“एतय किछु रमण चमन अछि। पहिल प्रयोगशाला तँ दू तहसँ जाँतल छल, दुनू दिशिसँ आऽ ऊपरसँ सेहो। मात्र लम्बाइ अनन्त धरि जाइत छल। मुदा एतय ऊपर आऽ नीचाँक सतह जाँतल अछि। ई आगाँ पाछाँ आऽ वाम दहिन दुनू दिशि अनन्त ढरि जा रहल अछि। ताहि हेतु हम दुनू प्रयोशालाकेँ पृथ्वीक ऊपर स्वतंत्र नभमे बनओने छी। एतुक्का जीवकेँ देखू। सीतलपाटी पर किछुओ बना दियौक। जेना छोट बच्चा वा आधुनिक चित्रकार बनबैत छथि। एतय ओऽ सभ प्रकार भेटि जायत। मुदा ऊँचाइक ज्ञान एतए नहि अछि। एक दोसरकेँ एक बेरमे मात्र रेखाक रूपमे देखैत अछि ई सभ। दोसर कोणसँ दोसर रेखा आऽ तखन स्वरूपक ज्ञान करैत जाइत अछि। लम्बाइ आऽ चौड़ाइ सभ कोणसँ बदलत। मुदा वृत्ताकार जीव सेहो होइत अछि। जेना देखू ओऽ जीव वाम कातमे। एक दोसराकेँ संदेश ओकरा लग जाऽ कए देल जाइत अछि। पैघ समूहमे संदेश प्रसारित होयबामे ढ़ेर समय लागि जाइत अछि”।
“श्रीमान, की ई संभव अछि, जेना हमरा सभक सोझाँ रहलो उत्तर ओऽ सभ हमरा लोकनिक अस्तित्वसँ अनभिज्ञ अछि तहिना हमरा सभ सेहो कोनो चारि आऽ बेशी विमीय जीवक अस्तित्वसँ अनभिज्ञ होञि”।
“हँ तकरे चर्चा आऽ प्रयोग करबाक हेतु हमरा सभ एतए एकत्र भेल छी। अहाँने सँ चारि गोटे हमरा संग एहि नव कार्यक हेतु आबि सकैत छी। ई योजना कनेक कठिनाह छैक। कतेक साल धरि ई योजना चलत आऽ परिणाम कहिया जाऽ कए भेटत, तकर कोनो सीमा निर्धारण नहि अछि”।
पाँच टा विद्यार्थी श्वेतकेतु, अपाला, सत्यकाम, रैक्व आऽ घोषा एहि कार्यक हेतु सहर्ष तैयार भेलाह। धौम्य पाँचू गोटेकेँ अपन योजनामे सम्मिलित कए लेलन्हि।
“चारि बीमीय विश्वमे तीन बीमीय विश्वसँ किछु अन्तर अछि। तीन बीमीय विश्व भेल तीन टा लम्बाइ, चौड़ाइ आऽ गहराइ मुदा एहिमे समयक एकटा बीम सेहो सम्मिलित अछि। तँ चारि बीमीय विश्वमे आकि पाँच बीमीय विश्वमे समयक एकसँ बेशी बीमक सम्भावना पर सेहो विचार कएल जायत। मुदा पहिने चारि बीमीय विश्व पर हमरा सभ शोध आगाँ बढ़ायब एहिमे मूलतः समयक एकटा बीम सेहो रहत आऽ ताहिसँ बीमक संख्या पाँच भए जायत। समयकेँ मिलाकए चारि बीमक विश्वमे हमरा सभ जीबि रहल छी। जेना वर्ण अन्धतासँ ग्रसित लोककेँ लाल आऽ हरियरक अन्तर नहि बुझि पड़ैत छैक, ओहिना हमरा सभ एकटा बेशी बीमक विश्वक कल्पना कए सकैत छी, अप्रत्यक्ष अनुभव सेहो कए सकैत छी”। धौम्य बजलाह।
सभा समाप्त भेल आऽ सभ क्यो अपन-अपन प्रकोष्ठमे चलि गेलाह। सैद्धांतिक शोध आऽ तकर बाद ओकर प्रायोगिक प्रयोगमे सभ गोटे लागि गेलाह। त्रिभुज धरातल पर खेंचि कए एक सय अस्सी अंशक कोण जोड़ि कए बनएबाक अतिरिक्त्त पृथ्वीकार आकृतिमे खेंचल गेल त्रिभुज जाहि मे प्रत्येक रेखा एक दोसरासँ नब्बे अंशक कोण पर रहैत अछि, मुदा रेखा सोझ नहि टेढ़ रहैत अछि। ओहिना समय आऽ स्थानकेँ तेढ भेला पर एहन संभव भए सकैत अछि जे हमरा सभ प्रकाशक गतिसँ ओहि मार्गे जाइ आऽ पुनः घुरि आबी। प्रकाश सूर्यक लगसँ जाइत अछि तँ ओकर रस्ता कनेक बदलि जाइत छैक।
श्वेतकेतु आऽ रैक्व एकटा सिद्धान्त देलन्हि- जेना कठफोरबा काठमे वृक्षमे खोह बनबैत अछि, तहिना एकटा समय आऽ स्थानकेँ जोड़एबला खोहक निर्माण शुरू भए गेल। अपाला एकटा ब्रह्माण्डक डोरीक निर्माण कएलन्हि, जकरा बान्हि कए प्रकाश वा ओहूसँ बेशी गतिसँ उड़बाक सम्भावना छल। सत्यकाम एकटा एहन सिद्धान्तक सम्भावना पर कार्य शुरू कएने छलाह, जकर माध्यमसँ तीन टा स्थानिक आऽ एकटा समयक बीमक अतिरिक्त्त कताक आर बीम छल जे बड़ लघु छल, टेढ छल आऽ एहि तरहेँ वर्त्तमान विश्व लगभग दस बीमीय छल। घोषा स्थान समयक माध्यमसँ भूतकालमे पहुँचबासँ पूर्व देशक विधिमे ई परिवर्त्तन करबाक हेतु कहलन्हि जाहिसँ कोनो वैज्ञानिक भूतकालमे पहुँचि कए अपन वा अपन शत्रुकेँ जन्मसँ पूर्व नहि मारि दए। घोषा विश्वक निर्माणमे भगवानक योगदानक चरचा करैत रहैत छलीह। जौँ विश्वक निर्माण भगवान कएलन्हि, एकटा विस्फोट द्वारा, आऽ एकरा सापेक्षता आऽ अनिश्चितताक सिद्धांतक अन्तर्गत छोड़ि देलन्हि बढ़बाक लेल, तँ फेर समयक चाभी तँ हुनके हाथमे छन्हि। जखन ओऽ चाहताह फेरसँ सभटा शुरू भए जायत। जौँ से नहि अछि, तखन समय स्थानक कोनो सीमा, कोनो तट नहि अछि, तखन तँ ई ब्रह्माण्ड अपने सभ किछु अछि, विश्वदेव, तखन भगवानक कोन स्थान? घोषा सोचैत रहलीह।
आब धौम्यक लेल समय आबि गेल छल। अपन पाँचू विद्यार्थीक सभ सिद्धांतकेँ ओऽ प्रयोगमे बदलि देलन्हि। आऽ आब समय आबि गेल। पहरराति।
पुष्पक विमान तैयार भेल स्थान-समयक खोहसँ चलबाक लेल। ब्रह्माण्डीय डोरी बान्हि देल गेल पुष्पक पर। धौम्य सभसँ विदा लेलन्हि। प्रकाशक गतिसँ चलल विमान आऽ खोहमे स्थान आऽ समयकेँ टेढ़ करैत आगाँ बढ़ि गेल। ब्रह्माण्दक केन्द्रमे पहुँचि गेलाह धौम्य। पहरराति बीतल छल। आगाँ कारी गह्वर सभ एहि समय आऽ स्थानकेँ टेढ़ कएल खोहमे चलए बला पुष्पकक सोझाँ अपन सभटा भेद राखि देलक। भोरुका पहरक पहिने धौम्यक विमान पुनः पृथ्वी पर आबि गेल। मुदा एतए आबि हुनका विश्व किछु बदलल सन लगलन्हि। श्वेतकेतु, अपाला, सत्यकाम, रैक्व आऽ घोषा क्यो नहि छलाह ओतए। विमानपट्टी सेहो बदलल सन। विश्वमे समय-स्थानक पट्टी सभ भरल पड़ल छल।
“यौ। समय बताऊ कतेक भेल अछि”।
“कोन समय। सोझ बला वा स्थान-समय विस्थापन बला। सोझ बला समय अछि, सन् ३१०० मास...”।
ओऽ बजिते रहि गेल छल मुदा धौम्य सोचि रहल छलाह जे स्थान-समय विस्थापनक पहररातिमे हजार साल व्यतीत भए गेल। ककरा बतओताह ओऽ अपन ताकल रहस्य। आकि एतुक्का लोक ओऽ रहस्य ताकि कए निश्चिन्त तँ नहि भए गेल अछि?
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Sunday, July 27, 2008
विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक ११ ५. कथा११.संगीत
११.
संगीत
“गबैया परिबार छैक। तान जँ चढ़ैत छैक तँ उतरिते नञि छैक”।
“एकसँ एक कबिकाठी सभटा, परिबारमे क्यो गप छोड़बामे ककरोसँ कम नहि”।
“से की कहैत छियैक। परिबारक कोन कथा, सौँसे टोल मे सभटा कबिकाठिये भेटत”।
उदितक हारमोनियमक तानक विवेचन सौँसे गाम कए रहल छल।
उदितक बाबू आऽ काका दुनू गोटे बड्ड पैघ गबैय्या रहथि। खानदानी गायन आऽ वादन प्रतिभा हुनका लोकनिक रक्त्तमे छलन्हि। उदित पाँचे वर्षसँ संगीत सीखय लागल छलाह, हुनकर स्वरक स्वाभाविक उदात्त आऽ अनुदात्त स्वरूपसँ पिता मुग्ध भए जाइत छलाह। मुदा गामक लोकक संगीतक ज्ञान अष्टजाममे मृदंग, झाइल आऽ हारमोनियम बजेबा तक आऽ निर्दिष्ट वाक्यकेँ गएबा तक सीमित छल, आऽ से प्रायः सभ गोटे सहज रूपेँ कए लैत छलाह। आङ्ल लोकनिक राज्य छ्ल, मैकाले महोदय संस्कृत शिक्षाक स्थान पर आङ्ल भाषा अनबा पर उतारू छलाह। उदितक पिताजी एहिसँ संबंधित एकटा कथा कहैत छलाह। मैकाले महोदय जखन भारत अएलाह तँ एकटा गेस्ट हाउसमे ठहरल छलाह। खिड़कीसँ बाहर देखि रहल छलाह तँ देखलन्हि जे गेस्ट हाउसक मैनेजर परिसरमे प्रवेश कए रहल छलाह, आऽ प्रवेश कएला उत्तर गेस्ट हाउसक दरबानकेँ पैर छुबि कए प्रणाम कएलन्हि। बादमे जखन मैकाले हुनकासँ पुछलन्हि, जे अहाँ मैनेजर छी आऽ तखन सामान्य दरबानकेँ पैर छुबि किएक प्रणाम कए रहल छलहुँ। एहि पर हुनका प्रत्युत्तर भेटलन्हि, जे ओऽ सामान्य दरबान नञि छल वरन् संस्कृतज्ञ सेहो छल। ताहि दिन मैकाले सोचि लेलन्हि जे भारतकेँ पराजित करबाक लेल भारतक संस्कृतिकेँ नष्ट करए पड़त। आऽ एहि लेल संस्कृतकेँ नष्ट करबाक प्रण लेलन्हि, जकर अछैत भारतीय कला संगीत आऽ संस्कृतिसँ पराङमुख भए जएताह। अस्तु तावत, उदित एहि तरहक वातावरणमे आगाँ बढ़ए लगलाह। अङरेज लोकनि द्वारा पाश्चात्य सङ्गीतकेँ अनबाक प्रयासक पलुस्कर, भातखण्डे आऽ रामामात्य द्वारा देल गेल समीचीन उत्तर शिक्षाक क्षेत्रमे किएक नञि भए सकल, उदितक बाल मोन अकुलाइत छल। अस्तु तावत उदित संगीतोद्धारक भातखण्डेकेँ आदर्श बनाए आगाँ बढ़ए लगलाह। लोक गबैय्या कहए तँ कोनो बात नहि, एक दिन आएत जखन एहि गबैय्याक सोझाँ समस्त अखण्ड भारतक मनसि श्रद्धासँ देखत, अस्तु तावत।
काका आऽ पिताक संरक्षणमे गामक रामलीला मंडली द्वारा प्रस्तुत कएल जायबला नाटकमे सेहो उदित भाग लैत छलाह, हुनकर गाओल गीत गाममे सभक ठोर पर आबि गेल छल। मुदा खेती बारी तेहन सन नहि छलन्हि। एक बीघा बटाइ करैत जाइत छलाह, सेहो सुनए पड़न्हि जे गबैय्याजी बुते की खेती कएल होएतन्हि, मुँहसँ गओनाइ आऽ हाथसँ काज करबामे बड्ड अंतर छैक।
जीवनक रथ आगाँ बढ़ैत रहैत मुदा विदेशीक शासनमे सेहो धरि संभव नहि होइत छल। कखनो हैजा तँ कखनो प्लेग तँ कखनो मलेरिआ। अहिना एक बेर गाममे प्लेग पसरल। लोक एक गोटाकेँ डाहि कए आबय तँ गाम पर दोसर व्यक्ति मृत पड़ल रहैत छल। उदितक मायकेँ सेहो पेट आऽ नाक चलय लगलन्हि, देह आगि जेकाँ जड़ैत रहन्हि, मुदा बेटाकेँ लग नहि आबय देथिन्ह जे कतहु हुनको प्लेग नहि भए जाइन्ह। दू दिनुका बाद बेचारी दुनियाँ छोड़ि देलन्हि। दुनू-बाप बेटा दाह संस्कार कए अएलाह। दुनू गोटेक आँखिमे नोर जेना सुखा गेल छलन्हि। पिता गुम-सुम रहए लगलाह। कण्ठसँ स्वर नहि निकलन्हि, मुदा हस्त परिचालनसँ बेटाकेँ अभ्यास कराबथि। दू-तीन बर्ष बीतल उदितक बयस वैह १०-११ साल होएतन्हि आकि पिताकेँ मलेरिआ पकड़ि लेलकन्हि।
रातिमे निन्द नहि होइन्ह। सिरमामे भातखण्डे स्वरलिपि रहैत छलन्हि, ताहि आधार पर बेटाकेँ किछु गाबि सुनाबए कहैत छलखिन्ह। उदितकेँ आभास भए गेलन्हि जे माताक संग पिता सेहो दूर भए जएताह। ई सोचि कोढ़ फाटि जाइन्ह। कुनैनक प्रभाव सेहो आब पिता पर नहि होइत छलन्हि। रातिमे थरथरी पैस जाइत छलन्हि। उदित सभटा केथरी-ओढ़ना सभ ओढ़ा दैत छलखिन्ह, मुदा तैयो थरथरी नहि जाइत छलन्हि। लोक सभ दिनमे आबि खोज-पुछाड़ी कए जाइत छलन्हि। गामक नाटक मण्डली सेहो बन्दे छल कारण मुख्य कार्यकर्त्ता हर्षित नारायण छलाह आऽ ओऽ बनारस चलि गेल छलाह कोनो नाटक मण्डलीमे। ओऽ गाम आयल छलाह आऽ जखन सुनलन्हि, जे उदितक पिताक मोन खराप छन्हि तँ पुछाड़ी करए अएलाह।
“हर्षित। हम तँ आब जाऽ रहल छी। उदित नेना छथि। काका पर बोझ बनताह ताहिसँ नीक जे अपन पैर पर ठाढ़ भए जाथि, संगीत साधना करथि। ई देवक लीला अछि जे एहि समय पर अहाँ गाम आबि गेलहुँ। गामक हबामे जेना रोगक कीटाणु आबि गेल छैक। एतए मत्यु टा निश्चित छैक आर किछु नहि। एहना स्थितिमे संगीतक मृत्यु भए जाए ताहिसँ नीक जे उदित अहाँक संग बनारस नाटक मण्डलीमे चलि जाथि। अहाँ बुते ई होएत हर्षित”?
“की कहैत छी गुलाब भाइ। उदित अहाँक पुत्र छी आऽ हमर क्यो नहि? मुदा संगीतक पारखीक प्रतिभा नाटक मण्डलीमे कुण्ठित नहि भए जएतैक। नाटक मण्डली तँ हमरा लोकनिक सनक अल्प ज्ञानीक लेल छैक”।
“नहि हर्षित। ओतए उदितकेँ हनुमानक आऽ रामक आशीर्वाद भेटतन्हि। संगीतक कतेक रास पक्ष छैक। नव-नव बाधा पार करताह आऽ अल्प समयमे संगीत फुरेतन्हि। ओतएसँ हिनकर साधना आगाँ बढ़तन्हि”।
गुलाब जेना हर्षितक बाट जोहि रहल छलाह। बजिते-बजिते प्राण जेना उखड़ए लगलन्हि। बेटाक माथ पर थरथराइत हाथ रखलन्हि, तँ दौगि कए हर्षित गंगा जल आनि मुँहमे एक दिशिसँ देलन्हि मुदा जल मुँहक दोसर दिशिसँ टघरि कए बाहर आबि गेल।
काशीक तट पर विद्यापतिक बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे सँ लऽ कए भिन्न-भिन्न धार्मिक आऽ लौकिक गीत गाबथि ओकर सुर बनाबथि आऽ ताहि लेल उदितकेँ प्रशंसा सेहो भेटन्हि। आयुक न्यूनता सेहो कहियो काल उपलब्धिक मार्गकेँ रोकि दैत छैक। उदित मात्र ११ वर्षमे काशी गेलाह आऽ ताहि द्वारे हुनकर स्वरक आऽ सुरक बहुत गोटे ग्राहक बनि गेलन्हि, ग्राहक नञि शोषक कहू। सभटा परिश्रम हिनकासँ करबाए लैत छलन्हि आऽ नाम अपन दऽ दए जाइत छलाह। मुदा उदित समय, आयु आऽ गुरुक आसमे दिन काटि रहल छलाह। दिन बड़ मुशकिलसँ कटैत छैक मुदा फेर लागए लगैत छैक, मुदा जौँ एकहि ढर्रा पर चलैत जाइत छैक तँ लागए लगैत छैक जे सालक साल कोना बीति गेल। उदित ११ वर्षसँ २६ वर्ष धरि नाटक कम्पनीमे काज करैत रहलाह।
“शास्त्री जी। ई सुर तँ हमही बनओने छी, मुदा मोन कनेक विचलित अछि ताहि द्वारे दोसर सुर नञि बनि पाबि रहल अछि। उदितकेँ बजाऽ लैत छी। ओहो हमरासँ किछु सिखने अछि, किछु समाधान निकालि लेत”। महान संगीत उपासक भट्ट जीक सोझाँ हर्षित बाजि रहल छलाह।
“हँ हँ। अवश्य बजा लिऔक”। भट्ट जी बजलाह।
मुदा उदित जखन आबि कए संगीतकेँ जाहि सरलतासँ सिद्ध कए सुर गाबि देलन्हि, ताहिसँ भट्टजीकेँ बुझबामे भाँगठ नहि रहलन्हि, जे वास्तविक कलाकार हर्षित नहि उदित छथि। भट्ट जी एकटा एहन शिष्यक ताकिमे छलाह जे प्रतिभावान आऽ साधक होथि, जिनका भट्टजी अपन सभटा कला सौँपि निश्चिन्त भए दए सकथि। आइ से शिष्य भेटि गेलन्हि हुनका। उदितकेँ अपना आश्रममे चलबाक जखन ओऽ नोत देलन्हि तँ उदित दौगि कए अपन प्रकोष्ठ चलि गेलाह, आऽ पिताक फोटोकेँ निकालि कए जे कननाइ शुरू कएलन्हि, तँ १५ सालसँ रोकल धार छहर तोड़ि बहराए लागल।
नाटक कम्पनीमे जेहन एकरूपता छल, तकर विपरीत गुरुआश्रममे वैविध्यता छल। सभ दिन उदित सूर्योदयसँ पूर्व उठैत छलाह आऽ संगीत साधनामे लीन भए जाइत छलाह। शिष्य गुरुकेँ पाबि धन्य छल आऽ गुरु शिष्यकेँ पाबि कए। दिन बीतए लागल मुदा भातखण्डे आऽ पलुस्कर महाराज द्वारा संस्कृत साहित्यक आधार पर संगीतक कएल गेल पुनुरोद्धार तँ गङ्गाक धार जेकाँ निर्मल आऽ चिर छल। जतेक गँहीर उदित ओहि धारमे उतरथि, मोन करन्हि जे आर गँहीर जाइ। २५ साल धरि गुरुक आश्रममे उदित रहलाह। ५१ वर्षक जखन भेलाह तँ गुरु ई कहि बिदा कएलन्हि जे उदित आब अहाँ शिष्य नहि गुरुक भूमिका करू। संगीतशास्त्रक पुनरोद्धार भए चुकल छैक, आङ्ल लोकनिक पाश्चात्य संगीत पद्धति अनबाक प्रयास विफल भए चुकल अछि, आऽ आब भारत स्वतंत्र सेहो भए चुकल अछि। जाऊ आऽ शास्त्र द्वारा प्रदत्त संगीतक दोसर पुनर्जागरणक योद्धा बनू।
५१ वर्षक आयुमे स्वतंत्र भारतमे उदित नोकरी तकनाइ शुरू कएलन्हि। काशीक एकटा संगीत विद्यालय सहर्ष हुनका स्वीकार कए लेलकन्हि। मुदा ३६ वर्षक संगीत साधनाक साधल स्वर काशी विश्वविद्यालय तक पहुँचि गेलैक। शिष्यक पंक्त्ति लागए लगलन्हि। श्रद्धाक प्रतीक, मुदा भारतक नव स्वरूपमे कतेको गोटे शास्त्रीय संगीतक व्यापार सेहो शुरु कएलन्हि, मुदा प्रचारसँ दूर मात्र गुरु शिष्य परम्पराकेँ आधार बनाऽ कए आगू बढ़बैत रहलाह् उदित। हुनकर शिष्य सभ देश विदेसमे नाम करए लागल। तखन काशी विश्वविद्यालय शिक्षक रूपमे हिनका नियुक्त्त कए लेलकन्हि। मुदा ओतए नियम छल जे बिना पी.एच.डी. कएने ककरो विभागक अध्यक्ष नहि बनाओल जाऽ सकैत अछि। मुदा विभागमे उदितसँ बेशी श्रेष्ठ तँ क्यो छल नहि। जेना आङ्ल जन कए गेल छलाह, गुरुकुलसँ पढ़निहारकेँ कोनो डिग्री नहि भेटैत छल आऽ ओऽ सरकारी नोकरीक योग्य नहि होइत छल। उदितक लगमे सेहो ताहि प्रकारक कोनो औपचारिक डिग्री नहि छलन्हि। विश्वविद्यालयक सीनेटक बैसकी भेल आऽ ताहिमे विश्वविद्यालय अपन नियमकेँ शिथिल कएलक, आऽ उदितकेँ संगीतक विभागाध्यक्ष बनाओल गेल। ओतए सेवानिवृत्ति धरि उदित अपन प्रशासनिक क्षमताक परिचय देलन्हि। भातखण्डेक अनुरूप कतेक खण्डमे संगीतक शास्त्रक परिचय देलन्हि उदित। उदितक शिष्य सभक दृश्य-श्रव्य रेकार्ड बहरा गेल छलन्हि, मुदा उदित स्टुडियो आऽ जनताक समक्ष अपन कार्यक्रमसँ अपन साधना भंग नहि करैत छलाह। भोरक साधनासँ साँझक सुर भेटन्हि आऽ साँझक साधनासँ भोरक। हुनकर शिष्य सभ उदितकेँ बिना कहने एकटा अभिनन्दन कार्यक्रम रखलन्हि। ओतए रेकार्डिङ्ग केर व्यवस्था छल। उदित अभिनन्दन कार्यक्रममे अएलाह। आयु ७५ वर्षक छलन्हि हुनकर। श्रोता रहथि देशक सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय संगीतकार लोकनि आऽ उदितक शिष्य-मण्डली। जखन उदित शुरू भेलाह तखन हुनकर शिष्य लोकनि चारू दिशि ताकि रहल छलाह। हुनकर लोकनिक गुरुक स्वर हुनका सभकेँ छोड़ि सद्यः आर क्यो नहि सुनने छल। मुदा शिष्य लोकनिकेँ सुनला उत्तर सभकेँ अभिलाषा छलैक जे जखन शिष्य लोकनि एहन छथि तखन गुरु केहन होएताह। ७५ वर्षक एहि योद्धाकेँ सुनैत सुनैत सगीतक महारथी नव रसक संग हँसथि आऽ कानथि, मुदा शिष्य लोकनि विभोर भए मात्र कानथि।
c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
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Saturday, July 26, 2008
विदेह 01 अप्रैल 2008 वर्ष 1 मास 4 अंक 7 4. कथा हम नहि जायब विदेश
हम नहि जायब विदेश
“यौ भैय्या। कनेक काकासँ भेँट नहि करा देब”।
“काका छथि अहाँक। आ’ भेँट करा दिअ हम”।
“यौ। ओ’ तँ हमरा सभकेँ चिन्हितो नहि छथि। बच्चेमे गामसँ निकलि गेलथि , से घुरि कए कहाँ अएलाह”।
“बेश। तखन चलू भेँट करबा’ दैत छी। मुदा कोनो पैरवी आकि काज होय तँ पहिने कहि दैत छी, से ओ’ नहि करताह”।
“नहि। कोनो काज नहि अछि। मात्र भेँट करबाक इच्छा अछि। भारत वर्षमे एतेक नाम छन्हि, सभ चिन्हैत छन्हि, मुदा नहिये हमरा सभ चिन्हैत छियन्हि , आऽ नहि वैह चिन्हैत छथि”।
लाल गेल छलाह दस दिन पहिने, द्विजेन्द्र जीक घर पर। जाइते देरी लालक कटाक्ष शुरू भ’ जाइत छन्हि। गामकेँ बिसरि गेलियैक। घुरि क’ देखबो नहि कएलहुँ। खोपड़ीकेँ घर त’ बना लैतहुँ।आ’ जबाबो भेटन्हि, ओहिना बनल बनाओल।जे जा’ कय की करब। एक कट्ठाक घरारी आ’ ताहि पर कतेक बाबूक कतेक भाँय। आ’ फेर वामपंथी विचारधाराक चिन्तन शुरू भ’ जाइत छलन्हि। गाम अछि धनीकक लेल। यावत गामक जनसंख्या कम नहि होयत तावत धरि तँ अवश्ये। गरीबीमे लोककेँ लोक नहि बुझैत अछि क्यो। मुदा नगर मात्र दिल्ली, कलकत्ता नहि अछि। यावत मधेपुर, मधेपुरा, बनैली आ’ झंझारपुरक विकास नहि होयत, शोषित वर्ग रहबे करत। तावत द्विजेन्द्र जीक कनियाँ चाह राखि गेलथि।
द्विजेन्द्रजी गामेमे प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कएलन्हि।झंझारपुरमे मिड्ल स्कूल आ’ हाइ स्कूल पैरे जाथि। पिताजी राँचीमे ठिकेदारी करैत छलखिन्ह। माय पढ़ल-लिखल छलीह। लोक कहैत छल जे उपन्यास सेहो पढ़ैत छलीह।
दरभंगासँ सोझे प्रयाग पहुँचि गेलाह द्विजेन्द्र। पिता छलाह नबका बसातक लोक। खूब कमाथि आ’ खूब खर्च करथि। गामसँ कोनो सरोकार नहि। कनियाँक खोजो-खबरि नहि लैत छलाह। लोक कहैत छल जे दोसर बिआह क’ लेने छलाह राँचीमे। लोक ईहो कहैत अछि, जे यावत गाममे छलाह ओ’ तावतो वैह हाल छलन्हि। बेरू पहर तीन बजेसँ कनियाँ हुनका लेल भाङ पीसब प्रारम्भ क’ दैत छलीह। मुदा बड़का बेटाकेँ खूब मानैत छलाह। छोटका बेटा हुनके पर गेल छलन्हि। नाम छल हरेन्द्र आ’ लोक कहैत अछि, जे पटनाक कोनो गैराजमे काज करैत रहथि। द्विजेन्द्र गुरु-गम्भीर, पढ़बामे तेज, सभ विषयमे पितासँ विपरीत। आ’ ताहि द्वारे पिता हुनकर खर्च पठेबामे कोनो विलम्ब नहि करैत छलाह। एहि पठाओल पाइसँ द्विजेन्द्र छोट भाइकेँ सेहो नुकाकेँ पाइ पठा दैत छलाह। मायक सुधि मुदा हुनको नहि रहैत छलन्हि, आकि भ’ सकैत अछि जे ओतेक पाइ आ’ समय नहि रहैत होयतन्हि।
माय बेचारीकेँ क्यो कहि दएन्हि, जे बेटाकेँ फेर फर्स्ट डिवीजन भेल छन्हि, आकि पतिकेँ हाइवे केर ठेका भेटि गेल छन्हि, तँ ओ’ तिरपित भ’ जाइत छलीह। गाममे बटाइदार सभ जे किछु द’ दएन्हि ताहिसँ कोनो तरहेँ गुजर चलि जाइत छलन्हि। नील रंगक नूआ, रुबिया वाइल कहैत छल कोटाक दोकान बला सभ ओहि नूआकेँ, सेहो सस्तमे भेटि जाइत छलन्हि, ओहि कोटा बला दोकानसँ। रने-बने गाछीमे घुमय पड़ैत छलन्हि जारनिक हेतु। गाममे सभक गुजर कोहुनाकेँ भ’ जाइत छैक ।
आ’ एम्हर ठेकेदार साहेब पैघ बेटाकेँ समय पर पाइ पठेबाक अतिरिक्त्त अपन सभ कर्त्तव्य बिसरि गेल छलाह। कमाउ आ’ खाउ छल मात्र हुनकर मंत्र। गाम-घरसँ कोनो मतलबे नहि।
द्विजेन्द्र इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे सभक आदर्श बनि गेल छलाह। इतिहास विषयक तिथि सभ हुनकर संगी बनि गेल छल। विश्वविद्यालयमे सर्वप्रथम तँ अबिते रहथि, संगहि हुनकर चालि-चलन, गुरु-गम्भीर स्वभाव, परिपक्व मानसिकता एहि सभसँ सभ क्यो प्रभावित रहैत छल। संगी-साथी सेहो कम्मे छलन्हि। एकटा संगी छलन्हि उपेन्द्र आ’ एकटा आलोक। महिला संगी कोनोटा नहि। ओ’ सभ कहितो छलीह जे द्विजेन्द्र तँ घुरि कय तकितो नहि छथि। ओहिमे एकटा छलीह अरुन्धती।पढ़बामे तेज, राजनीति विज्ञानक विद्यार्थी। प्रतियोगी स्वभावक छलीह। बापक दुलारू, आ’ पिताकेँ हुनका पर सेहो असीम विश्वास छलन्हि।एडवान्स कहि सकैत छी। द्विजेन्द्रसँ बहुत बिन्दु पर सुझावक आकांक्षी छलीह। मुदा द्विजेन्द्र बाबू तँ दोसरे लोक छलाह। घरक कोनो गप तँ ककरो बुझल नहि रहैक। मुदा से कारण छल जे द्विजेन्द्र सभक प्रति निरपेक्ष रहैत छलाह।
“यौ उपेन्द्र। राजनीति विज्ञानमे तँ हमरा कोनो दिक्कत नहि अछि, मुदा इतिहासमे तिथि आ’ दृष्टिकोणसँ बड्ड दिक्कतिमे पड़ि गेल छी”।अरुन्धती उपेन्द्रसँ पुछलन्हि।
आ’ दुनू गोटे इतिहास पर अपन- अपन दृष्टिकोण एक दोसरकेँ देबय लगलथि।रासबिहारी बोस आजाद हिन्द फ्औजक स्थापना कएलन्हि सुभाष चन्द्र बोस नहि आ’ नीलक खेतीक हेतु सरखेज जे गुजरातमे छल बड्ड प्रसिद्ध छल, धोलावीर सभसँ पैघ सिन्धु घाटी आकि सरस्वती नदी सभ्यताक स्थल छल आ’ दारा शिकोहकेँ सभसँ पैघ मनसब देल गेल छल, उपेन्द्र ई सभ गप द्विजेन्द्रसँ पूछि कए आबथि आ’ फेर अरुन्धतीसँ वार्त्तालाप करथि।एहिमे समयक हानि होइत छल। से उपेन्द्र कहलन्हि, जे किएक नहि द्विजेन्द्रकेँ सेहो अपन समूहमे शामिल कए लेल जाय।
” मात्र द्विजेन्द्रकेँ शामिल करू। बेशी गोटेकेँ आनब तँ पढ़ाइ कम आ’ गप सरक्का बेशी होयत”।
उपेन्द्रक कहलासँ द्विजेन्द्र आबय लगलाह, सामूहिक अध्ययनमे।
तावत एक दिन समाचार आयल जे पिताक मोन बड्ड खराब छन्हि। पहुँचलाह तँ लीवर खराब होयबाक समाचार भेटलन्हि। सतमायसँ सेहो भेँट भेलन्हि।गाम-घर पर कोनो खबरि नहि। फेर 15 दिनमे मृत्यु भ’ गेलन्हि पिताक। गाम पर तखन जा’ कय खबरि भेल। नहि तँ कोनो पता,नञ तँ कोनो फोन। माय बेचारी कनैत रहि गेलीह। बेटा दाह-संस्कारक बाद सोझे प्रयाग चलि गेलाह। गाम घुरियो क’ नहि गेलाह।
मायक खिस्सा यैह अछि, जे फेर ओ’ गुम-शुम रहय लगलीह। कोनो चीजक ठेकान नहि रहन्हि। एक बेर तँ डिबिया सँ चारक घरमे तेहन आगि लागि गेल जे सौँसे टोल जरि गेल। ओहि समयमे सभकेँ चारक घर रहैक। सभ घर एक दोसरसँ सटल। पूरा टोल जरि गेल। सभ कहय जे द्विजेन्द्रक माय उपन्यास पढ़ैत-पढ़ैत सुति गेलीह आ’ डिबियामे हाथ लागि गेलन्हि।सौँसे टोल जरैत रहय, आ’ ओ’ भेर भेल सूतल छलीह। ककरो फुरेलइ तँ हुनका उठा-पुठा क’ बाहर कएलक। बादमे हुनकर आरो अवहेलना होमय लागल। लोक गारि सेहो पढ़ि देने छलन्हि कताक बेर। ओहिनामे एक बेर जारक झपसीमे गुजरि गेलीह। द्विजेन्द्रक पता सेहो नहि छलन्हि ककरो लग। घरारीक लोभमे एक गोट समाङ आगि देलकन्हि। द्विजेन्द्रक निकटता अरुन्धतीसँ बढ़य लगलन्हि। उपेन्द्रकेँ अरुन्धती एक बेर कहियो देलखिन्ह जे अहाँ सीढ़ी छलहुँ हमर आ’ द्विजेन्द्रक बीचमे। अरुन्धतीक माय सेहो बच्चेमे गुजरि गेल छलीह। पिताक दुलरी छलीहे ओ’। अरुन्धतीक कहला पर द्विजेन्द्र आबि गेलाह हुनका घर पर रहबाक लेल। संगे पढ़लन्हि, आ’ फेर दुनू गोटे प्रयाग विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर बनि गेलाह।विवाह सेहो भ’ गेलन्हि। मात्र मधुबनीक एक गोट पीसाकेँ बुझल छलन्हि हिनकर विवाहक बात।पीसा छलाह पत्रकार आ’ मधुबनीक कोनो हॉस्पीटलमे काज केनहारि केरलक नर्स सँ ताहि जमानामे विवाह कएने छलाह।घर परिवार हुनका बारि जेकाँ देने छलन्हि। मुदा छलाह बड्ड नीक लोक।द्विजेन्द्रकेँ वैह बेर-बखत पर कहियो काल मदति करैत छलाह।मुदा विवाहमे ओहो नहि अयलाह।अपन सलाहो देने छलाह एहि विवाहक विरुद्ध। अपन उदाहरण देलन्हि, जे कतेक दिक्कत भेलन्हि।मुदा संगमे ईहो कहलन्हि, जे अहाँकेँ तँ बाहर रहबाक अछि। हम तँ मधुबनीमे रहैत छलहुँ, कहियो कनियाकेँ गामो नहि ल’ जा’ सकलहुँ।
द्विजेंन्द्रकरिसर्च पर रिसर्च प्रकाशित होइत गेलन्हि। देश-विदेशमे सेमीनार पर जाथि। अरुन्धती जेना बेर पर मदति कएने छलीह, तकरा बाद द्विजेन्द्र अपना पर भरोस कएनाइ छोड़ि देने छलाह। वामपंथी इतिहासकारक रूपमे छवि बना’ कय मात्र इतिहास आ’ पुरातत्त्व सँ सम्पर्क बनओने छलाह। सालक-साल बितैत गेल। गामक लोकमे मात्र लाल छलाह जे ओहि नगरमे रहैत छलाह आ’ ताहि द्वारे कहियो काल भेँट क’ अबैत छलखिन्ह। लालक गप पर अनुत्तरित भ’ जाइत छलाह द्विजेन्द्र। मायक कोनो चर्चा पर नोर पीबि जाइत छलाह। सोचने रहथि जे किछु बनि जयताहतँ मायकेँ संग आनि रखितथि आ’ सभ पापक पश्चाताप क’ लितथि। मुदा यावत अपन खर्चा नहि जुमन्हि तवततँ ओ’ जीवित रहलीह आ’ जखन किछु बनलाह तँ तकर पहिनहि छोड़ि गेलीह। कोन मुँह ककरा देखेतथि।
आ’ जखन लाल पहुँचलाह हुनका लगमे ई बजैत जे लियह, भातिज आयल छथि भेँट करबाक हेतु, अहाँ तँ कोनो सरोकार ककरोसँ रखबे नहि कएलहुँ, तँ पहिल बेर बजलाह द्विजेन्द्र-
“कोन सरोकार मायसँ पैघ छल यौ लाल, जे अहाँ कहैत छी जे हम ककरोसँ सरोकार नहि रखने छी”।
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Thursday, July 24, 2008
विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
गणेष- ई अध्याय 4000 वर्ष पूर्वसँ शुरू होइत अछि। स्त्री-पुरुष संबंध आ’ पितृ कुलक आरंभक चर्चा शुरू भेल। नून अनबाक आ’ खेबाक प्रारंभ भेल। नून अनबासँ कुलक नाम नोनी पड़ल। जव आ’ गहूमक खेतीक प्रारंभाअ’ दूध दुहबाक आरंभ देखाओल गेल अछि। हाथीक पालनक प्रारंभाअ’ अदल-बदलीसँ विनिमयक प्रारंभ सेहो शुरू भेल।शिस्न देव पर जल आ’ पात चढ़ेबाक प्रारंभ सेहो भेल। यवकेँ कूटब आ’ बुकनी करबाक प्रारंभ भेल। गहूमकेँ चूरब आ’ पानिमे भिजा कय आगिमे पकायब प्रारंभ भेल। पक्षिपालन करयबला एकटा भिन्न दल छल। मृतक-संस्कार आ’ मृत्यु पर कनबाक प्रारंभ सेहो भेल।लिपिक प्रारंभ सेहो भेल।
हर- एहि अध्यायक प्रारंभ 3500 ई.पू. देखायल गेल अछि। नूनक व्यापार आ’ सुगढ़ नावक निर्माण प्रारंभ भेल। पैलीक कल्पना नपबाक हेतु भेल। हर-आ’ बरदक सम्मिलन प्रारंभ भेल। इनार खुनबाक प्रारंभ आ’ जनक लंबवतक अतिरिक्त चौड़ाइमे बसबाक प्रारंभ सेहो भेल। घर बनएबाक प्रारंभ सेहो भेल।कारी, गोर आ’ ताम्रवर्णी कायाक बेरा-बेरी आगमन होइत रहल।
विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 2.उपन्यास सहस्रबाढ़नि
सहस्रबाढ़नि
दोसर साल फेर वैह मीटिंग, दुनू गामक स्कूलक मध्य, मुदा एहि बेर दोसर गाम बला टीम रस्ता बदलि लेलक। मारि बझब गाममे एकटा पर्वक जेकाँ छल। दुर्गास्थानमे चॉकलेटक बुइयाम फूटब, आ’ कोनो कटघरा किंवा टाटक खुट्टा उखाड़ि कय मारि-पीट शुरू भय जाइत छल। आ’ बादक जे गप्प होइत छल से मनोरंजक। एक बेर एकटा अधवयसू एक गोट नव-नौतारकेँ दू-चारि चमेटा मारि देलन्हि। बादक घटनाक हेतु हम कान पथने रही तँ हमर पितियौत ओहि गौआँकेँ पुछलखिन्ह जे वैह बात रहय ने। सभ क्यो एकमत रहथि जे वैह बात रहय। एहि बेर हम हारि कय पुछलियन्हि, जे वैह कोन बातअछि जे सभकेँ बूझल अछि, मुदा हमरा नहि बूझल अछि। ओ’ कहलन्हि जे एहि युवा पर बचियाक घटकैतीक हेतु ओ’ अधवयसू गेल रहथि, मुदा कथा नहि सुतरलन्हि। ओहि युवकक विवाह दोसर ठाम भय गेलन्हि, से तकरे कैन ल’ कय कोनो फुसियाहीक लाथ लय आइ ओकरा कुटलन्हि अछि। हम पुछलियन्हि जे जौँ विवाह भ’ जाइत तँ ससुर जमायक संबंध रहैत। तखन एहि फुसियाही गप प मारि बजरैत। सभ कहथि जे अहाँ तँ तेसरे गप पर चलि गेलहुँ। रातिमे नाटक देखैत अकाशमे डंडी-तराजू देखब, खाली डंडी छैक तँ तराजू कियैक कहैत छियैक? फेर ओहि नाटकोमे अनगौँआ सँ मारि बझेबाक हमर संगीक एकटा चालि। भेल ई जे नाटक केखय काल ओ’ एकटा अनगौँआकेँ खौँझा रहल छलाह। मारि अंट-शंट बकैत छलाह। आ’ ओ’ किछु बाजय तँ कहैत छलाह जे अखने नरेण भैयाकेँ बजायब। ताहि पर ओ’ कहलन्हि जे जाओ अहाँक नरेण भैयाक डर हमरा नहि अछि। आब आगू सुनू। हमर मित्र अनायासहि जोरसँ कानय लगलाह, दहो-बहो नोर निकलि गेलन्हि। भोकारि पाड़ैत नरेण लग पहुँचलाह जे एकटा अनगौँआ मारलक अछि, आ’ कहैत अछि जे के नरेण ओकर हमरा कोनो डर नहि अछि आरो अण्ट-शण्ट। आब नरेण भैया पहुँचलाह जे बता के छी। जखने टॉर्च ओहि व्यक्ति पर देलन्हि, बजलाह, भजार यौ। अहाँ छी। जरूर एही छौड़ाक गल्ती छी। अनका विष्यमे कहैत तँ पतिया जयतहुँ। मुदा अहाँक विषयमे। आ’ ईहो नहि जे तमसयलाह अछि, वरन् ई जे मारलन्हि अछि। आ’ नेप की चुआ रहल छल जेना कतेक मारि पड़ल होय। हमरा सँ पुछलन्हि जे भार किछु एकरा कहबो कएलन्हि, तँ हम कहलियन्हि जे नहि। एहि पर हमर मित्रक नोर जतयसँ आयल छलन्हि, ततहि चलि गेलन्हि। फज्झति मूरि झुका कय सुनलन्हि आ’ नरेण भाइक गेला पर सभकेँ कहलन्हि, जे ई नरेण काकाक संगी छथिन्ह, क्यो हिनका किछु कहथिन्ह तँ बेजाय भ’ जायत। आ अस्थिरसँ कहलथि जे बचि गेल आइ ई। (अनुवर्तते)
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