भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

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Sunday, November 13, 2011

'विदेह' ९४ म अंक १५ नवम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४७ अंक ९४) PART-I



                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ९४ म अंक १५ नवम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४७ अंक ९४)NEPALINDIA              
                                               
 वि  दे   विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine   नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own script Roman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
ऐ अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य














३. पद्य













३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमर २ नवीन कुमार "आशा"




४. मिथिला कला-संगीत-१.ज्योति सुनीत चौधरी २.श्वेता झा (सिंगापुर) ३.गुंजन कर्ण ४.इरा मल्लिक ५.राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) ६. उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)

 


 

बालानां कृते-डॉ॰ शशिधर कुमर

भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]





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example

भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।


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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'



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१. संपादकीय

 बेचन ठाकुर जी द्वारा शुरू कएल गेल मैथिली समानान्तर रंगमंचक विवरण।
सरस्‍वती पूजा १९९५ केर अवसरपर नाटक मंचन नाओं- रमेश डीलर
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज
ि‍नर्माता ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
पात्र, कलाकार, पि‍ता आ गामक नाओं  

 
1. रमेश प्रधान          रामबाबू साह,          पि‍ता स्‍व. वि‍श्वनाथ साह, गाम- चनौरागंज
2. सीताराम तेली      वि‍जय कुमार पासवान    पि‍ता स्‍व. कारी पासवान चनौरागंज
3. सुकन पासवान      बुद्धदेव कुमार          श्री पंचू महतो   .....    बेरमा
4. ढोलहा            रामकुमार पंजि‍यार      स्‍व. गोपाल पंजि‍यार     चनौरागंज
5. भोलाराम मण्‍डल     नवीन कुमार          श्री कामेश्वर मण्‍डल      चनौरागंज
6. मो. वासील        रामस्‍वरूप पासवान      श्री कपि‍लेश्वर पासवान    चनौरागंज
7. गुलाव चन्‍द्र ठाकुर    केशव कुमार          श्री हेमनारायण साह     नरहि‍या
8. श्‍याम मण्‍डल       चन्‍द्रदेव महतो         स्‍व. लक्ष्‍मी महतो        बेरमा
9. एम.ओ            रामनारायण राउत       श्री जागेश्वर राउत      चनौरागंज

 
मंचनक सहयोगकर्त्ता-

 
हारमोनि‍यम संगतकर्ता-   श्री भीखन महतो       चनौरागंज
ढोलकि‍या-            श्री कारी पासवान       चनौरागंज
मनोज कुमार पुर्वे       श्री रामावतार पुर्वे             चनौरागंज
अमरेन्‍द्र कुमार         श्री ब्रज कि‍शोर साह    चनौरागंज
शत्रुध्‍न प्रधान          श्री लक्ष्‍मी प्रधान        चनौरागंज
गणेश ठाकुर          श्री लक्ष्‍मी ठाकुर       चनौरागंज
वि‍जय कुमार महतो     स्‍व. परमेश्वर महतो      चनौरागंज
कृष्‍ण देव ठाकुर        श्री रामखेलावन ठाकुर    मझौरा

 
वि‍शेष सहयोगकर्त्ता व प्रेरक...
सामान्‍य पढ़ाइक गुरू-          श्री शुभ चन्‍द्र झा (मोहना)
संगीत गुरू.............          श्री रामवृक्ष सि‍ंह (फुलबरि‍या)
साहि‍त्‍य गुरू.........            श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल (बेरमा)
नाट्यकलाक गुरू.....          प्रो. पुलकि‍त कामत (पौराम)
रचना प्रकाशन प्रश्रय............     श्री गजेन्‍द्र ठाकुर

नि‍जी वि‍द्यालयक सलाहकार...     श्री अजय कुमार मण्‍डल (बि‍शौल)
वि‍द्यालय एवं कोचि‍ंग मकान दाता... श्री महावीर साह (चनौरागंज)
कार्यक्रम अभि‍भावकत्‍व................ श्री ब्रज कि‍शोर साह (चनौरागंज)

सरस्‍वती पूजा 1996 केर अवसरपर मंचि‍त एकांकी- महावीरलाल
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज

 
नाटककार- बेचन ठाकुर
ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
    पात्र           कलाकार,            पि‍ता           गाम
1. महावीरलाल        रामबाबू साह          पि‍ता स्‍व. वि‍श्वनाथ साह,  चनौरागंज
2. हनुमान           संजीव कुमार मण्‍डल     श्री रामवि‍हारी मण्‍डल     चनौरागंज
3. वासील           अाफताब आलम        मो. मुखतार आलम       चनौरागंज
4. पुरहीत           अमरेन्‍द्र कुमार मि‍श्र     श्री वि‍नोद मि‍श्र          बेरमा
5. छब्‍बीस नम्‍बर      मोहन कुमार ठाकुर      श्री महाकान्‍त ठाकुर      चनौरागंज

 

 
सहयोगकर्त्ता-

 
हारमोनि‍यम संगतकर्ता-   श्री भीखन महतो       चनौरागंज
ढोलकि‍या-            श्री कारी पासवान       चनौरागंज
राम कि‍शोर पासवान     श्री कपि‍लेश्वर पासवान    चनौरागंज
पवन कुमार           श्री रामबहादुर ठाकुर     चनौरागंज
इन्‍दू कुमारी           श्री राजेन्‍द्र यादव       चनौरागंज
प्रति‍मा कुमारी         श्री ब्रज कि‍शोर साह    चनौरागंज
राहुल कुमार          श्री शत्रुघ्‍न साह        चनौरागंज
अशोक कुमार राउत     स्‍व. जगदीश राउत     चनौरागंज
बेचन पासवान         श्री ति‍रपि‍त पासवान     चनौरागंज
रामनाथ मण्‍डल        श्री वि‍न्‍देश्वर मण्‍डल      चनौरागंज

सरस्‍वती पूजा १९९७ केर अवसरपर मंचि‍त एकांकी- कि‍सुन बम 
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज जि‍ला- मधुबनी (बि‍हार)  
नाटककार- बेचन ठाकुर
ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
     पात्र            अभि‍नय कर्ता       पि‍ताक नाओं        पता 

1. कि‍सुन बम         श्रवन कुमार पासवान     पि‍ता स्‍व. भोला पासवान   चनौरागंज
2. राजेन्‍द्र महतो       साकेत वि‍हारी राउत     श्री रामसेवक राउत       चनौरागंज
3. शि‍वकारक         रामबाबू साह          स्‍व. वि‍श्वनाथ साह        चनौरागंज
4. मो. इंताज         नदीम आलम          मो. वकील हक          चनौरागंज
5. पहि‍ल घटक       रहबरे आजम          मो. ईषा आलम          चनौरागंज
6. दोसर घटक       रामकि‍शोर पासवान      श्री कपि‍लेश्वर पासवान     चनौरागंज


 
सहयोगकर्त्ता-

 

हारमोनि‍यम संगतकर्ता-    श्री भीखन महतो       चनौरागंज
ढोलकि‍या-            श्री कारी पासवान       चनौरागंज
भगीरथ प्रधान               श्री महावीर प्रधान       चनौरागंज
अशोक कुमार पोद्दार     श्री रामसेवक पोद्दार      चनौरागंज
पवन कुमार           श्री रामवहादुर ठाकुर     चनौरागंज
राहुल कुमार          श्री शत्रुघ्‍न साह        चनौरागंज
आफताब आलम        मो. मुखतार आलम      चनौरागंज
बैजू कुमार मण्‍डल      श्री जगदीश मण्‍डल      चनौरागंज
इन्‍दू कुमारी           श्री राजेन्‍द्र यादव       चनौरागंज
रामानन्‍द प्रसाद        श्री बैद्यनाथ प्रसाद साहु   चनौरागंज
राम नारायण राउत      श्री जागेश्वर राउत      चनौरागंज
शमशाद आलम        मो. ईषा आलम        चनौरागंज
अजय कुमार          प्रो. पुलकि‍त कामत      पौराम

सरस्‍वती पूजा १९९८ केर अवसरपर मंचि‍त चारि‍म एकांकी- लक्ष्‍मी मण्‍डल   
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज
दि‍नांक- ०१/ ०२/ १९९८ (रवि‍ दि‍न)
नाटककार- बेचन ठाकुर
ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
  पात्र      कलाकार       पि‍ता       गाम
1. लक्ष्‍मी मण्‍डल       संजीव कुमार         श्री योगेन्‍द्र प्रधान        चनौरागंज
2. राजेन्‍द्र मण्‍डल      आफताब आलम      मो. मुखतार आलम      चनौरागंज
3. जोगी प्रधान         राहुल कुमार          श्री शत्रुघ्‍न साह         चनौरागंज
4. मो. ईषा आलम      रहबरे आजम        मो. ईषा आलम        चनौरागंज

 
मंचनक सहयोगकर्त्ता-

 
हारमोनि‍यम संगतकर्ता-   श्री भीखन महतो       चनौरागंज
ढोलकि‍या-                श्री कारी पासवान      चनौरागंज
पुष्‍पा कुमारी             श्री लक्ष्‍मण साह        चनौरागंज
सुलेखा कुमारी          श्री भरत साह         चनौरागंज
दि‍गमंबर यादव          श्री जीबछ यादव       चनौरागंज
समीम आलम            मो. वकील हक        चनौरागंज
अर्जुन कुमार राम       श्री सीयाराम राम        चनौरागंज
राजराम पासवान        श्री लक्ष्‍मी पासवान      चनौरागंज

 
सरस्‍वती पूजा १९९९ केर अवसरपर मंचि‍त पाचि‍म एकांकी- भाए-बहि‍न   
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज
दि‍नांक- २२/ ०१/ १९९९ (शुक्र दि‍न)
नाटककार- बेचन ठाकुर
ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
पात्र, कलाकार, पि‍ता आ गामक नाओं...

1. अमर            हीरा कुमारी     श्री दयाकान्‍त पोद्दार     गाम- चनौरागंज
2. बनबारी           गुंजा कुमारी    श्री भरत साहु         चनौरागंज
3. हेमन्‍त            कि‍रण कुमारी   श्री नारायण प्रधान      चनौरागंज
4. मोहन            कंचन कुमारी    श्री गौड़ी शंकर राउत    चनौरागंज
5. सोहन            अर्चना कुमारी   श्री रामसेवक राउत     चनौरागंज
6. श्‍याम            पि‍ंकी कुमारी    श्री सोहन दास        कनकपुरा
7. सोनू             सुधा कुमारी    श्री महेन्‍द्र पोद्दार        चनौरागंज
8. रेखा             कि‍शोरी कुमारी श्री कपि‍लदेव यादव     चनौरागंज


 
मंचन केर सहयोगकर्त्ता-


 
हारमोनि‍यम संगतकर्ता-   श्री परमानन्‍द ठाकुर     जगदर
ढोलकि‍या-            श्री बुच्‍ची महतो       नवानी
धीरेन्‍द्र कुमार          श्री ब्रज कि‍शोर साहु    चनौरागंज
संजीव कुमार          श्री चेत नारायण साह    चनौरागंज
रंजीत कुमार          श्री भरत साह         चनौरागंज
शशि‍ रंजन           श्री नन्‍द कि‍शोर गुप्‍ता    चनौरागंज
रामस्‍वरूप पासवान      श्री कपि‍लेश्वर पासवान    चनौरागंज
रामाशीष यादव        श्री तीरथ यादव        चनौरागंज
कुमुद रंजन          श्री नागेश्वर कामत      पौराम
पवन कुमार मण्‍डल      श्री राजेन्‍द्र मण्‍डल      चनौरागंज
छोटे कुमार यादव      श्री सुकन यादव        चनौरागंज
गणेश कुमार यादव      श्री उत्तम लाल यादव    कनकपुरा

 
सरस्‍वती पूजा २००० केर अवसरपर मंचि‍त छठीम एकांकी- कौआसँ गेल्ह बुधि‍यार   
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज
दि‍नांक- १०/ ०२/ २००० (वृहस्‍पति‍ दि‍न)
नाटककार- बेचन ठाकुर  
ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
पात्र,             कलाकार,          पि‍ता             पता-...

1. सोमन            हीरा कुमारी           श्री दयाकान्‍त पोद्दार      गाम- चनौरागंज
2. बुधन             सुनीता कुमारी         श्री रघुवीर यादव       चनौरागंज
3. भूखन            रूकमि‍नी कुमारी        श्री दि‍नेश झा (पंडीजी)   कनकपुरा
4. शोभा            संजीत कुमार पासवान    श्री भोला पासवान       चनौरागंज
5. राधा             वीभा कुमारी          श्री उपेन्‍द्र कामत       पौराम
6. गोपी             संजय कुमार          श्री महावीर कामत      पौराम
7. रीता             कंचन कुमारी          श्री गौड़ी शंकर राउत    चनौरागंज
8. कि‍शन            श्रीराम पासवान         श्री लक्ष्‍मी पासवान      चनौरागंज
9. मखना            रवि‍न्‍द्र कुमार साफी     श्री लक्ष्‍मी साफी        चनौरागंज
10. बच्‍चा सुनील       पि‍ंकी कुमारी          श्री सोहन दास        कनकपुरा
11. जुआन सुनील      रामकरण यादव        श्री हरेराम यादव       चनौरागंज

 
मंचन केर सहयोगकर्त्ता-

हारमोनि‍यम संगतकर्ता-    श्री परमानन्‍द ठाकुर     जगदर
ढोलकि‍या-            श्री बुच्‍ची महतो       नवानी
संतोष कुमार महतो      श्री सूरत महतो       चनौरागंज
पवन कुमार दास       श्री दया कान्‍त दास     कनकपुरा
मुरली कुमार मण्‍डल     श्री कामेश्वर मण्‍डल      चनौरागंज
मुकेश कुमार पासवान    श्री बौधू पासवान       चनौरागंज
कमलेश कुमार        श्री उपेन्‍द्र साह         चनौरागंज
रामबाबू यादव         श्री बि‍लट यादव        चनौरागंज
अनील कुमार पासवान    श्री सुशील पासवान      चनौरागंज
रामकुमार यादव        श्री अबध यादव        चनौरागंज
रामआशीष महतो        श्री कुशेश्वर महतो       चनौरागंज

 
सरस्‍वती पूजा 2005 केर अवसरपर मंचि‍त छठीम एकांकी- राखीक लाज   
स्‍थान- न्‍यू लोटस इंग्‍लि‍श स्‍कूल परि‍सर- चनौरागंज
दि‍नांक- 13/ 02/ 2005 (रवि‍ दि‍न)

 
नाटककार- बेचन ठाकुर 

 
ि‍नर्देशक- बेचन ठाकुर

 
पात्र, कलाकार, पि‍ता आ गामक नाओं...

1. उदयशंकर         अनि‍ता कुमारी         प्रो. पुलकि‍त कामत     पौराम
2. श्‍याम सुन्‍दर        सावि‍त्री कुमारी         श्री सूर्यनारायण कामत    पौराम
3. मालती           ज्‍योति‍ कुमारी         श्री वि‍पीन कुमार साह    चनौरागंज
4. प्रि‍यंका           अनुराधा कुमारी        श्री नन्‍दकि‍शोर गुप्‍ता     चनौरागंज
5. सुन्‍दरलाल         मुन्‍नी कुमारी          श्री शंभू मण्‍डल        चनौरागंज
6. मोनू             संगीता कुमारी         श्री सत्‍यनारायण महतो   चनौरागंज
7. टोनू            प्रीती कुमारी          श्री रमेश प्रधान         चनौरागंज
8. शंकर            मीना कुमारी          श्री उपेन्‍द्र कामत        पौराम
9. प्रेमनाथ           रानी कुमारी          श्री बैद्यनाथ साह        सि‍मरा
10. मोहन           शीला कुमारी          श्री परमेश्वर साह       चनौरागंज
11. रामलाल         पूजा कुमारी          श्री लालबहादुर यादव     चनौरागंज
12. मदनलाल        सुलेखा कुमारी         श्री हरेराम यादव        चनौरागंज
13. कमलकांत       रेखा कुमारी          श्री अशर्फी महतो         चनौरागंज
14. गजानंद          गुड़ि‍या कुमारी         श्री देवेन्‍द्र महतो       चनौरागंज
15. राम दुलारी       अनि‍ता कुमारी         स्‍व. लखन महतो       चनौरागंज

 

 
मंचन कार्यक सहयोगकर्त्ता-
वि‍जय कुमार          श्री बैद्यनाथ साह        सि‍मरा (मधुबनी)
कन्‍हैया कुमार         श्री कामेश्वर मंडल      चनौरागंज
प्रदीप कुमार          श्री शत्रुध्‍न साफी       चनौरागंज
मुरली कुमार मण्‍डल     श्री कामेश्वर मण्‍डल      चनौरागंज
सि‍द्धार्थ सौरभ         श्री जगदीश मण्‍डल     चनौरागंज

साहित्य अकादेमी, दिल्लीक महत्तर सदस्यता श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमरकेँ देल गेलन्हि। मैथिली लेल ई पहिल बेर देल गेल। ऐसँ पहिने नागार्जुनकेँ (मैथिलीक यात्रीजी) हिन्दी आ मैथिली कविक रूपमे साहित्य अकादेमी, दिल्लीक महत्तर सदस्यता देलगेल छलन्हि।

साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता स्वीकृति वक्तव्य श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमर (संक्षिप्त)
पहिल:क्षण आ कणक सदुपयोगकेँ हम अपन जीवन दर्शनक अंग बना लेलौं।
दोसर:स्वाध्याय, स्वावलम्बन, स्वच्छताकेँ आदर्श मानलौं।
तेसर:मातृभाषा मैथिलीक चतुर्मखी विकासकेँ अपन लक्ष्य निर्धारित केलौं।
चारिम: मैथिली साहित्यक इतिहासमे पसरल किछु भ्रान्तिकेँ पत्रिकारिताक इतिहास द्वारा निराकरण केलौं।
पाँचम:विद्यापति गोष्ठीक माध्यमसँ मैथिलीक भाषात्वकेँ लऽ कऽ सामंजस्य आ समरसता अनबाक सफल प्रयास केलौं।

साहित्य अकादेमीक प्रशस्ति
PANDIT CHANDRANATH MISHRA'AMAR' Pandit Chandranath Mishra 'Amar' on whom Sahitya Akademi is conferring its Fellowship today is an outstanding poet, playwright, novelist and critic in Maithili language whose stellar contributions have distinguished him as a major writer in Maithili.

 
Pandit Chandranath Mishra 'Amar' was born in 1925 in Khojpur village of Madhubani district, Bihar. 'Amar', who was dumb till four years of age, was a cause of concern for his father, the reputed scholar Pandit Muktinath Mishra and his devoted mother Daijee Devi. Muktinath Mishra was especialy concerned about his son's deep distaste for learning, and decided to'send him to the town of Narhi for education. But Amar' was not to be tamed so easily and he returned to Khojpur by foot four days later. He was forcefully sent to Narhi again, and this time he took to studies seriously and did not return to his native place for the next three years.                                                                                                                                                                                                                                                                                                             It was a turning point in the life of Amar,' and this boy who couldn't speak for the first four years of his life, began to show all the signs of the master of erudition and eloquence he was to become. But life was not easy for young 'Amar': his studies got interrupted due to frequent illness, difficult circumstances and family tragedies. But he completed his education in flying colours and passed the Acharya degree in grammar and Shastri degree in literature with distinction. For the next couple of years he frequently found himself unemployed as he moved from one school to another as a teacher. His search finally ended in 1947, the year of India's Independence, when he joined M.L. Academy School at Darbhanga which he served till his retirement in 1983, leaving an indelible imprint as a model teacher and a strict disciplinarian.                  

 
Even if his formative years were full of domestic and employment-related hassles they were not formidable enough to stop him from rising into prominence. He was barely twenty one when his first poetry collection Gudgudi (1946) was published and turned out to be a huge' success for its punching humour. He soon became a household name and began to read his poems at numerous poetry meets. His humour mellowed and led to some serious satirical poems like 'Yugchakra' which was greatly acclaimed when it was published in the daily Swadesh. Though he immediately joined the prestigious league of satirists like Sitaram Jha and Hari Mohan Jha he did not stereotype himself. His other popular poetry collections, Ritupriya (1963), Unta Pal (1972), Asha-Disha (1975) and Thahi-Pathahi dealt with the beauty of nature, the mystery of human sensibility and exhibited the sympathetic understanding and deeply felt emotions of a man closely interacting with his milieu and society. And the rhythmic and musical nature of his poems went a long way in popularising his poems among the masses. Amar' is also the author of the acclaimed novels VeerKanya (1950) and Bidagari (1963); the popular short fiction collections Jalsamadhi (1972); Zero Power (2006) and Dahik Khueichaa (2007) and the one-act plays Samadhaan (1955) and Khajwaa Topee (2005). He has also authored the essay collection Maithili Andolan: Ek Sarvekshan (1968), the memoir Kanyadan Filmak Nepathya Katha (2003) and the autobiography Ateet Manthan (2010). He has also written a book each on the history of Maithili literature, Maithili jounalism and Maithili Mahasabha besides editing numerous short story and poetry anthologies and books on theatre and folklore. His translated works include Vidyapati's Neeti Tarangini, monographs on Bankimchandra Chatterjee and Harinarayan Aapte and Parashuramak Beechal Beryaal Kathaa. He has also served as the editor of numerous periodicals including Swadesh, Janak, Nirmaan and Vaidehee.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          Amar' is the recipient of numerous awards including Harinandan Singh Memorial Trust Award (1963), Kaviratnam Award (1969), Sahitya Akademi Award (1983), Lt. Ramanath Jha Memorial Award (1990), Sri Triloknath Jayakant Devi Maithili Sahitya Memorial Award (1990), Sahitya Akademi Translation Award (1998), Bihar Government's Vidyapati Award (1998-99) and the Lifetime Achievement Award (2010) by the All India Maithili Mahasabha. He has also been honoured by numerous organizations including Chetna Samiti (1984), Sanskar Bharati (1994), Sahitya Parishad, Madhubani, Mithila Sanskritik Sangam, Vidyapati Samiti (1999) and KSD Sanskrit University.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                From being a classicist in literature to being a campaigner for the cause of Maithili, Amar' has taken on numerous roles and has seriously explored the storehouse of tradition at a time when rapid industrialisation and globalization have brought disillusionment. Bringing the depth of insight, sensitivity and the deliberate craft of the master, 'Amar' has articulated the stirrings of an age, a life and a society with profundity and vision. Writing over a period spanning more than six decades he has made his mark as a writer par excellence. Today he stands at a juncture where the past, present and future of Maithili literature converge as he continues his journey of expanding the frontiers of literature. Sahitya Akademi feels proud to confer its highest honour of Fellowship to this doyen who stands tall as the highest pillar of modern Maithili literature.



( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ अखन धरि ११६ देशक १,९६० ठामसँ ७०,११५ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,३०,९५० बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )


गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.com
 
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html

 

२. गद्य














 बहुआयामी युवा श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि जी सँ विहनि कथाकार मुन्नाजीक भेल गपशप २.डॉ कलाधर झासँ डॉ. शेफालिका वर्माक साक्षात्कार
बहुआयामी युवा श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि जी सँ विहनि कथाकार मुन्नाजीक भेल गपशपक प्रमुख अंश प्रस्तुत अछि।
मुन्नाजी: धीरेन्द्र जी नमस्कार। स्वागत अछि विदेहक आंगनमे। मैथिली साहित्यमे प्रवेश कोना केलहुँ। कोनो विशेष कारण वा किछु आओर।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: सर्वप्रथम धन्यवाद अछि मुन्नाजी जे हमरा विदेहक आङनमे आमन्त्रित कएलहुँ। ई प्रश्न हमरा नीक लागल जै मैथिली साहित्यमे प्रवेश कोना कएलहुँ? असलमे हमर साहित्यमे प्रवेश लौलसँ भेल छल। सेहो नेपाली भाषाक माध्यमे। ई लगभग वि.सं. २०४४ साल अर्थात् १९८७ ईस्वीक समय छल। लौल ई जे हमरो नाम पत्र-पत्रिकामे छपए। ओना मात्र किछु लिखनाइकेँ जँ साहित्य कहल जाए तँ हमर कलमसँ जिनगीमे सभसँ पहिल कोनो रचना मैथिलीएमे लिखाएल छल, जे एकटा फटीचर टाइप गीत रहए। छोटे वयससँ सरकारी नोकरीमे प्रवेश कऽ चुकल हम जखन बदली भऽ कऽ जनकपुर गेलहुँ तँ अपन गीत-सङ्गीतक प्रेमकेँ मूर्त्त रूप देबाक लेल कोनो जगहक खोज करबाक क्रममे मिथिला नाट्यकला परिषद् पहुँचलहुँ। ओहिठाम जखन डा. धीरेन्द्र, महेन्द्र मलङ्गिया, डा. राजेन्द्र विमल, योगेन्द्र साह नेपालीसन विभूति सभसँ भेट भेल तखन जा कऽ असलमे हमरा मैथिली भाषाक अवस्था आ महत्ताक बोध भेल। तकरा बाद हमहूँ अपन लेखन प्रतिक लौलकेँ मैथिली साहित्यक अभियान दिस मोड़ि देलहुँ। वि.सं. २०४६ सालमे मिनाप द्वारा आयोजित मैथिली विकास दिवसक कविगोष्ठीक लेल कन्हि-कूथिकऽ एकटा कविता लिखलहुँ। ओहिमे डा. धीरेन्द्र द्वारा लाल रोसनाइवला कलमसँ जे सुधारात्मक परिवर्तन-चिह्न सभ लगाएल गेल छल, सएह हमरा लेल मैथिली वर्ण विन्यासक गुरुमन्त्र बनि गेल आ हम मैथिलीमे लिखैत चलि गेलहुँ।
 
मुन्नाजी: अहाँक सभ तरहक रचनामे तीक्ष्ण नजरिया जगजिआर होइछ। एकर की स्रोत वा ऐलेल रचनात्मक ऊर्जा कतऽ सँ वा कोना प्राप्त होइए?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: एकर जवाबमे हम अपने गजलक एकटा शेर कहऽ चाहब
मनमे ने कनियोँ चोर अछि
तेँ गजलो हमर अङोर अछि
देश, समाज आ अपना प्रति इमान्दारी लोकमे सहजहिँ तीक्ष्णता आनि दैत छैक। हम 'खुर्पी छुआ बोनि हुआ' मे कहियो विश्वास नहि कएलहुँ। हमर रचनात्मकताक स्रोत अपन समाजे अछि। खास कऽ समाजमे रहल छद्मवेषी परिपाटी हमरा बेसी झकझोड़ैत अछि आ उएह हमरा लिखबितो अछि। एखनो विशुद्ध कर्मशीलतापर विश्वास कएनिहार जे किछु लोक छथि तिनका सभक निष्ठा आ लगनशीलता हमरा सृजनात्मक ऊर्जा दैत अछि।
मुन्नाजी: की मैथिलीक अतिरिक्त आनो भाषामे रचना केलहुँ अछि? मैथिली आ अन्यान्य (विशेष कऽ नेपाली) भाषा मध्य मैथिलीक अस्तित्व केहेन वा कोन ठाम नजरि अबैए।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: हँ, हम मैथिलीक अतिरिक्त नेपाली भाषामे सेहो यथेष्ट मात्रामे लिखैत छी। नेपालक स्नातक स्तरक अनिवार्य नेपालीक पाठ्यपुस्तकमे हमर गजल सेहो पढ़ाओल जाइत अछि। छिटफुट हम हिन्दीमे सेहो लिखैत छी। खास कऽ नेपाली साहित्यक सङ्ग जखन हम मैथिलीक तुलना करैत छी तँ सोच, संवेदना आ शैलीगत रूपमे हमरा मैथिली कनेको झूस नहि बुझाइत अछि। मुदा सङ्ख्यात्मकता आ व्यापकताक हिसाबेँ मैथिली सीमित अछि। नेपाली साहित्यमे मैथिलीजकाँ व्यापक गोलैसीक वातावरण सेहो नहि छैक, जाहिसँ ओकर विकास-गति तीव्रतर बुझाइत छैक। ओ सभ वर्तमानकेँ उपलब्धिपूर्ण बनएबामे अधिक दत्तचित्त बुझाइत अछि मुदा हम सभ इतिहासक झुनझुन्ना बजबैत मस्त रहबामे बेसी आनन्दित होइत छी।

मुन्नाजी: अहाँ रचनाक अलाबे सम्पादनमे सेहो सक्रियता देखा चुकल छी। अहाँक नजरिये सृजनकर्ता आ सम्पादकक मध्य की फरक हेबाक चाही।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: हम पल्लव, मैथिल समाज, कामना सिनेमासिक (नेपाली) आदि पत्रक सम्पादन सेहो कऽ चुकल छी। रचनाकार आ सम्पादक दुनूमे फरक की होएबाक चाही से हम नहि कहि सकैत छी। मुदा समान की होएबाक चाही से हम अवश्य कहब। दुनूमे मातृगुण अनिवार्य रूपेँ होएबाक चाही। हँ, मुदा मुखरताक दृष्टिएँ रचनाकार देवकी रहए आ सम्पादक यशोदा तँ सृजनरूपी सन्तान नीक जकाँ फौदएतैक, से निश्चित।

मुन्नाजी: सम्पादनमे भाइ-भैयारीबला नजरिया देखाइत रहल अछि। जखन की सम्पादककेँ निरपेक्ष आ दृष्टि फरीछ हेबाक चाही, की कहब अहाँ?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: सम्पादनमे भाइ-भैयारीवला नजरियाक बात जे अहाँ उठौलहुँ अछि से सही भऽ सकैत अछि। मुदा एकर सापेक्षता देखब जरूरी अछि। मैथिली पत्रकारिता एहन नहि अछि जे साधन-स्रोतसँ सम्पन्न भऽ कऽ चलैत होइक। लोक अनेक तरहक भाँज भिड़ा कऽ मैथिलीमे पत्रकारिता करैत अछि। एहनमे बाहरसँ स्वतन्त्र रूपेँ यथेष्ट सहयोग नहि भेटि पएबाक कारणे सेहो सम्पादककेँ भाइ-भैयारीक सहयोग लेबऽ पड़ैत होएतनि। मुदा सम्पादन जेँ कि समीक्षा, समालोचना आदि कार्यक दायित्व सेहो निमाहैत चलैत अछि, तेँ यथासम्भव एहिसँ एकरा दूर राखब उचित। कचोट तँ तखन होइत अछि जखन समालोचना भाइ-भैयारीवला नजरियासँ कएल जाइत छैक।

मुन्नाजी: अहाँ विभिन्न तरहक कार्यक्रम (आकाशवाणी वा दूरदर्शन) माध्यमे प्रस्तुति दैत रहलौं, की ऐमे रोजगार छै। अपनाकेँ ऐमे कतऽ पबै छी।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: नीकजकाँ समर्पित भऽकऽ लगलापर आजुक समयमे सभ क्षेत्रमे रोजगारी छैक। तखन आकाशवाणी वा दूरदर्शन तँ आओर बहुतो लोकक स्वप्न-संसार सेहो छियैक आ आजुक समयक सर्वाधिक सशक्त हथियारो। एहिमे रोजगारी नहि होएबाक बाते नहि अबैत अछि। हम पूर्ण रूपेँ एहिसभ क्षेत्रमे कहियो आश्रित नहि रहलहुँ। हम नेपालक सरकारी आकाशवाणी रेडियो नेपालमे १३ वर्ष धरि मैथिली, हिन्दी आ नेपालीक समाचार वाचनमे संलग्न रहलहुँ। तहिना पछिला एक दशकसँ नेपालक सभसँ पैघ रेडियो नेटवर्क रेडियो कान्तिपुरसँ जुड़ल छी आ हेल्लो मिथिला सहित किछु कार्यक्रमक सञ्चालन करैत आएल छी। तहिना समय-समयपर टेलिभिजनक विभिन्न कार्यक्रम आ सिरियल सेहो करैत आएल छी। हमर रेडियो नेपालसँ जुड़ाव तँ एकटा सरकारी नोकरीक रूपमे छल। मुदा एहि सभ काजमे हमर अभीष्ट मैथिली भाषा-संस्कृतिक सम्मान आ सम्बर्द्धन रहैत अछि। एकरे ध्यानमे राखि १० वर्ष पहिने हम सभ रेडियो कान्तिपुरमे हेल्लो मिथिलाक शुरुआत कएने रही। एहिमे हमर आवद्धता लगभग स्वयंसेवकीय छल। मुदा हम लागल रहलहुँ। तकर परिणाम ई छैक जे हमर रोजगारीमे आंशिक सहायक तँ ओ भेले अछि, आइ नेपालमे कमसँ कम पाँच सय गोटे खालि मैथिलीएमे बाजिकऽ रोजीरोटी कमा रहल छथि। तेँ एहि मादे हम एतबए कहब जे पूर्ण लगनशीलताक सङ्ग जँ हमसभ बालुओ पेरैत रहब तँ एक ने एक दिन ओहिमेसँ तेल बहरएबे करतैक।

मुन्नाजी:अहाँ विभिन्न प्रकारक क्रियाकलाप वा गतिविधिमे लागल रहैत छी। अपनाकेँ समेटि रखबामे किछु बाधक तँ नै होइछ?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: कहियो काल अवस्था एहन अवश्य भऽ जाइत अछि जे पीठकेँ झँपैत छी तँ माथा उघार आ माथा झँपैत छी तँ पीठ उघार। मुदा समयक सीमित चादरिक व्यवस्थापन करैत माथ आ पीठ दुनू झाँपि लेबामे जे आनन्द अबैत छैक से वर्णनातीत होइत अछि। तेँ बेसी दिस छिड़िअएनाइकेँ सेहो हम अपन सफलताक द्योतक मानैत छी। हँ, एहिदिस साकांक्ष जरूर रहैत छी जे बेसीदिस छिड़िआकऽ कहीँ हमर अभियान तँ लचर नहि भऽ रहल अछि! हम ओ सभ काज करैत रहैत छी जाहिसँ बुझाइत अछि जे ई काज कएलासँ हमर मैथिली एको डेग आगाँ ससरत। जहिया हमरा ई बुझबामे आएत जे ई काज कएने हमर मैथिलीकेँ क्षति भऽ रहल छैक तँ ओ काज हम ठामहि रोकि देबैक। हमरा एखन धरि किछु विशुद्ध पूर्वाग्रही वा अपरोजक-अपाटक सभकेँ छोड़ि केओ एहन सङ्केतो नहि देने अछि, तेँ अपनाकेँ चहुँदिस सक्रिय रखने छी।

मुन्नाजी:रूपा भौजी, धीरेन्द्र भैयाक कार्यक्रम सभमे सेहो अर्द्धांगिनी बनि देखार भेलीह अछि। एकर सभक अतिरिक्त अहाँसँ स्वतंत्र कोन-कोन गतिविधिमे सक्रिय रहैत छथि।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: स्वतन्त्र रूपेँ सभसँ प्रमुख तँ रूपा एक कुशल गृहिणी छथि। कविता-कथा लिखैत छथि। कम लिखैत छथि, मुदा हुनकामे समाज आ संवेदनाकेँ धरबाक जे कला आ सामर्थ्य छनि से विलक्षण। गीत गबैत छथि, सेहो हुनक स्वतन्त्र क्षेत्र छनि। नेपालक वर्तमान राष्ट्रगानक एक गायिका रूपा सेहो छथि। मैथिल महिला समाजक सचिव आ विभिन्न महिला समाजक सल्लाहकार भऽ कऽ ओ अनेक काज कऽ रहल छथि। नारी जागृति सम्बन्धी कतेको काजमे ओ नेतृत्वदायी भूमिका निर्वाह कऽ रहल छथि।

मुन्नाजी: मिथिला (बिहार) आ नेपालमे कोनो मैथिली गतिविधिक रासि अगड़ा जातिक हाथमे रहल अछि। मुदा नवम सदीमे पिछड़ल जातिक धर्रोहिक सक्रिय प्रवेश भेल अछि। एकरा भविष्यमे कोन नजरिये देखै छी।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: अहाँ बिहारक नजरियासँ देखैत ई बात कहने होएब। मुदा नेपालक अवस्था किछु भिन्न अछि। नेपालक मैथिली गतिविधिक जँ बात करब तँ एहिठाम अगड़ी-पछड़ीवला बात हमरा बेतुका बुझाइत अछि। नेपालमे तँ बहुत पहिनहिसँ मैथिली गतिविधिक रासि अहाँक आशय रहल तथाकथित पछड़ी जातिक डा. रामावतार यादव, डा. योगेन्द्रप्रसाद यादव, डा. रामदयाल राकेश, डा. गङ्गाप्रसाद अकेला, रामभरोस कापड़ि भ्रमर’, योगेन्द्र साह नेपाली’, परमेश्वर कापड़ि, रामाशीष ठाकुर, मदन ठाकुर, रामनारायण ठाकुर, महेन्द्र मण्डल वनवारीसँ लऽकऽ नवतुरियोमे अमरेन्द्र यादव, अमितेश साह, नित्यानन्द मण्डल, शीतल महतो सदृश लोकक हाथमे छनि। जँ संस्थागत गतिविधिक बात करब तँ मात्र सप्तरी जिलामेटा पचाससँ अधिक मैथिलीसँ सम्बन्धित सङ्घ-संस्था भेटत, जकर पदाधिकारी सभ कथित पछड़ा वर्गक छथि। प्रायः इएह कारण छैक जे नेपालक मैथिली गतिविधि जतबए छैक, जड़ि धएने छैक। प्रायोजित नहि बुझाएत एहिठामक मैथिली गतिविधि। अधिकांश भारतीय मैथिली अभियानी सभ जकाँ नहि जे कहब मैथिलीक कार्यकर्ता आ हिन्दीक कनेक अक्षत भेटि जाए तँ ओहीपर तर-उपर होइत रहनिहार वा घरमे हिन्दीक प्रयोगकेँ प्रतिष्ठा बुझनिहार।
रहल बात एहि सदीमे जँ बिहारो दिस ब्राह्मण आ कायस्थेतर जाति जँ मैथिली गतिविधिमे आगाँ आबि रहल छथि तँ ई मिथिला-मैथिलीक लेल सौभाग्यक बात छियैक। कारण यथार्थमे जँ देखबैक तँ कथित अगड़ीसभ तँ मैथिलीकेँ रङ्गटीप मात्र करैत आएल छथि, अपन दैनन्दिनीमे मैथिलीकेँ यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रयोग करैत यथार्थमे एकरा जीवन देनिहार तँ कथित पछड़े सभ छथि। ओ सभ जँ पूर्ण सचेष्ट भऽ कऽ लागि जाथि तखन तँ मैथिलीक लेल ककरो नोर बहबैत रहबाक कोनो प्रयोजने नहि रहि जएतैक।

मुन्नाजी: अहाँ द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम सभ सतही वा व्यावसायिक पूर्ति मात्रकेँ इंगित करैए, की कहब अहाँ?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: अपन गायकी वा सङ्गीत, अभिनय वा कार्यक्रम सभकेँ हम साहित्य वा रचना मानैत छी आ ताही भावसँ ओकरा हम कार्यरूप सेहो दैत छियैक। एहनमे हम अहाँक प्रश्नसँ कने असमञ्जसमे पड़ि गेल छी। दोसर नम्बर प्रश्नमे अहाँ ई कहैत छी जे अहाँक सब तरहक रचनामे तीक्ष्ण नजरिया जगजियार होइत अछि। फेर किछु आगाँ चलिकऽ अहाँ कहैत छी जे अहाँक कार्यक्रम सतही होइत अछि। चलू जँ सतहीयो होइत अछि तैयो हम एहि बातसँ प्रसन्न छी जे अहाँ सन गम्भीर व्यक्ति एक सतही कार्यक्रम चलबैत मात्र व्यावसायिक पूर्ति करऽ वलाकेँ एहन गूढ़ प्रश्न पुछबाक योग्य व्यक्ति मानलहुँ। हमरा लेल इएह सभसँ पैघ उपलब्धि अछि।
 
मुन्नाजी: अपन अगिला योजना की अछि? कोनो विशेष क्रियाकलापक योजना हुअए तँ उल्लेख करी।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: निकट भविष्यक मूलतः तीनटा प्रमुख योजना अछि। पहिल पल्लव पत्रिकाक पुनर्प्रकाशन। दोसर नेपालमे महाकवि विद्यापतिकेँ राष्ट्रिय विभूति घोषणा करएबाक लेल अभियानक सञ्चालन आ तेसर अपन मैथिली गजलसङ्ग्रहक प्रकाशन।

मुन्नाजी:मैथिली क्रिपाकलापसँ जुड़ल युवा/ युवतीक लेल की सन्देश देबऽ चाहब।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: जे युवा मैथिली क्रियाकलापसँ जूड़ि गेल छथि तिनका किछु कहबाक प्रयोजने नहि अछि। किएक तँ वर्तमानमे बाँकी सभ दिस अवसरक झमाझम वर्षा भऽ रहल समयमे सेहो जँ केओ स्वेच्छासँ मैथिली सन सूखाग्रस्त क्षेत्र चुनैत छथि तँ अनेरे नहि किछु सोचिए कऽ, किछु बूझिए कऽ। ओहुना एखनुक युवा बहुत बुझनुक अछि। हँ, किनको-किनकोमे ई देखबामे अबैत अछि जे सोचल सन उपलब्धि चटपट हासिल नहि भेलापर कने निराश भऽ जाइत छथि। बस अहीठाम कने हिम्मत बन्हने रहबाक जरूरति छैक। हम सभ मैथिलीमे जँ लागल छी तँ अपन माटिक प्रबल प्रेमसँ वशीभूत भऽ कऽ। एहि प्रेममे सरिपहुँ आन कोनो प्रेमसँ बेसी डूबि जाइ। मुदा प्रेम शब्द सुनबामे जतेक सहज छैक, निमाहऽ मे ओतेक किन्नहु नहि छैक। तेँ ने एकटा हिन्दी गीतमे कहल गेल छैक¬
ये इश्क नहीं आसाँ  इतना तो समझ लीजै,

एक आग का दरिया है  और डूब के जाना है।

बस एतबा बात जँ बूझि गेलहुँ आ एतबा धीरज सेहो धारि लेलहुँ तँ हम सभ तरहत्थीमे सेहो दूभि जनमा सकैत छी।

मुन्नाजी:धन्यवाद धीरेन्द्रजी अपन स्वतंत्र विचार देबाक लेल।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि: एहि अवसरक लेल मुन्नाजी अहाँक सङ्ग-सङ्ग विदेह परिवारक सेहो हम आभारी छी।

२.
डॉ कलाधर झासँ डॉ. शेफालिका वर्माक साक्षात्कार
(हम हेरोगेट, इंग्लॅण्ड . मे हड्डी रोगक शल्य चिकित्सक डॉ. कलाधर झा एवं हुनक पत्नी डॉ. पूनम झा ओतए बैसल छलौं..कलाधर झाजीक पिता श्री जगधर झा जी पटना सायंस कॉलेजक प्रथम ३ टा विद्यार्थी मे सँ छलाह . श्री जगधर झा, डॉ.शीतल प्रसाद, जे दरभंगा मेडिकल कॉलेजक गोड फादर मानल जाइत छलाह आ श्री वाई एन झा  ऐ तीन टा विद्यार्थी सँ पटना सायंस कॉलेज खुजल छल. डॉ. पूनम झा जे जीपी छलीह ,हुनक नाना श्री सी. एस. झा आइ.सी.एस. छलाह,आ पिता श्री महानंद झा इंजीनियर छथि....)
शेफालिका वर्मा:अपने मिथिला राज्यक विषयमे की सोचैत छी, हेबाक चाही कि नै ?
कलाधर झा (चौंकैत) -हं किएक नै, जरुर हेबाक चाही ,मुदा ,एखन नै, ...
शेफालिका वर्मा: से किएक ?
कलाधर झा (हमर प्रश्न पर ओ छुटतहि बाजि उठलाह):.जाधरि मिथिलांचलकेँ आर्थिक स्वाधीनता नै हेतैक ताधरि नै..
शेफालिका वर्मा:जेना..
कलाधर झा:(हमर प्रश्न पर ओ कनिक काल हमर मुंह देखैत रहलाह , फेर बाजि उठलाह )..हम अपना सँ किछु निर्भर भऽ जाइ, सीधे सरकारक सोझा मुंह बाबि ठाढ़ भऽ जाइ ई तँ कोनो नीक बात नै..अलग राजसँ घाटा फाएदा दुनु छैक ,सत्ताक विकेंद्रीकरण लेल मिथिला योग्य नै...आर्थिक स्वाधीनता जेना अहाँ पहिने कृषिकेँ उन्नत करू, चीनी मिल, पेपर मिल, यानि नेचुरल रिसोर्सेसकेँ देखू , अहाँ अपनासँ की सभ कऽ सकैत छी..देखू शेफालिका जी, लोग हमरा एंग्री मैन कहैत अछि , किन्तु हम नीक जकां जनैत छी जे सरकार हमर कोनो मदद ऐमे नै करत.
शेफालिका वर्मा- तं सरकार हमर की करत से बाजू,---
कलाधर झा(हमर बात पर ओ चोट्टे जबाब देलाह): हँ किएक ने, सुनु, सरकारसँ हम तीन बातक मदति लऽ सकैत छी ..कानून आ व्यवस्था , परिवहन, एनेर्जी , यदि ऐ तीनूक आपूर्ति सरकार कऽ दैक तँ बंद मिल की मिथिलामे एतेक शक्ति छैक जे नव नव मिल खोलि देत,फैक्ट्री खोलि देत, मिथिलाक माछ आ मखानक खेतीसँ तँ मिथिला विश्वक सम्पदा कीनि लेत...............

           
                                      
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१.परमेश्वर कापड़ि-मानकताक बात विखपाद अछि ! २.अतुलेश्वर- किछु विचार टिप्पणी



१. प्रा.परमेश्वर कापड़ि
जनकपुरधाम नेपाल
मानकताक बात विखपाद अछि !
टिप्पणीमे दम आ सोंच सहितक पकिया ओजह अछि । बहुत बढ़ियाँँ लागल आ एहिसमैथिली मुर्दा हअबँचत । हम नेपालक छी तएँ नेपालक बात करब आ कहब जे नेपाल नव निमार्ण आ संघीय संरचना विकासक क्रममे अछि । एहि ठामक लोक अपन संघीय राज भाषा,संस्कृति, जातीयता, क्षेत्रीयता, सांीकृतिकता आ एतिहासिकौराणिकताक बाहुल्य एवं प्रभुत्वक प्रभावपर चाहैत अछि । सौंच छै जे एहिसहमर अस्मिताक पहचान बनत आ स्वायतताक वोध होएत । ई बाएहिलोकलेखेप्रजातन्त्र आगणतन्त्रोसपहिनेक चाहना अछि । हमरासबके भाषा संस्कृतिक बाहुल्यता संघीयराज, सांस्कृतिक पहचान आ राजनीतिक पहुच दिअएतै आ दिअबितो छै! हमरासबकेभाषिाक सांस्कृतिक चेतना अस्मीता आ स्वाततावोधसआवद्ध रहनेएहिपर राजनीतियो खूब भरहल छैआ आरो होएतै । एहनमे ईमानकताक बात पद बराइ विद्वताक बात अछि आ एहिसएहि सालक नेपालक जनगणनामे कैथिलीके बडघाटा भेल छै । छेंट धघेंट काटबलासबके कहब छै जेहमसब अछि, छथि, छथिनबला नै छी। हए हब हैहुइ बजैछी तै बजिका बजैछी । बजिका कहि भाषिक लाभ लभगरसहोएतै आ एकर राजनैतिक सन्दर्भ अलगे छै । पूर्वीतराइमे थारुभाषा अपन अलगेपहचान आ संस्कार बना लेने अछि सेहे नइ,हमरा सबकेसर्लाही, बाड़ा पर्सा जिलासबकेलोक जैंकि छथि अछि नइ बजैत अछि तैंअपनाके मैथिलीभाषी नहि कहि पाबि रहल अछि ।
जेकोइ मानकताक हुड़फेर फेरचाहैत छथि से ई बात किए ने बूझैत छथिन जेमैथिली भाषा असलमे लोकभाषा अछि, मैथिली संस्कृति लोकसंस्कृति अछि । ईएह हाल लोककला, लोकसंगीत लोकसाहित्य, लोकगीत, लोकगाथा लोकचित्रकलाक अछि । जे सुधार विकास आ निखार आएल अछि ओबहुत एक्हर आबिकसेहोहफनियाबदफनियाबआ भाषासंस्ककृतिपर राज करवास्ते। मिथिलेमे रहिकब्राह्मणकायस्थेतर लोक अपनाके मैथिल आ अपना भाषाके मैथिली भाषा नै कहि सकल अछि । आनक भाषाके सम्पर्कमे अएलासआनो लोक ओ भाषा सिखि जाइए। हमरा जनितेएकहि गाम समाजमे रहियोकतथाकथित सोलकन आ छोटवर्णाअछि छथि छथिन नै बजलखिन्ह आ जतकतौ बजलोहोतै तसेबहिया खबास, नोकरनी बहिकिरनीसब । मनोविज्ञान देखल जाय जेविरुद्धमेजालोक वहिष्कार केना करैछै। वाभन पहचानक अछि छथि,छलह आ जनौकेब्राह्मणेतरवर्गभूलियोक लवजपर नइ लएलखिन्ह ! परिणाम भेलै जे अपने मिथिलामेमैथिलीकेप्रचारमे कहजाय पड़लै जे अहूँ मैथिल छी आ अहाँक भाषा मैीथली भाषा अछि, अहाँक संस्कृति मैथिली संस्कृति अछि । आइ किछु लोक कत्तकहाँकेधोतीकुत्र्ता आ बभनौटी पागकेमैथिली संस्कृतिक पहचानसङे जोड़के घृस्टता कए रहलाह अछि । हमरा जनिते सय बरख तबहुत भगेल, भल पचास वर्ष पहिने धरि अपनासबके पुरुख मानुष विद्यापतिसनके चौन्ही पेन्हैत छलाह । चौवन्ही पेन्हनिहारकेएखन तेसर पुस्ता ठीकसअएबो नै कएलैए आ समाजमेबाभन छोड़ि आन केओपाग पहिरते नै छै। जे जाति विशेषसआवद्ध अछि सेपाग जँ मैथिली संस्कृतिक प्रतीक बनत तनै लगैए जे ई बात फेरु हमरेबाभनके थीक से भजएतै?
कोनो भाषा समाज आ संस्कृतिसजुड़ले रहैत अछि । हमसब ब्राह्मणेतर छी तै हमरासबके बाउ माइ रहे, माताजी पिताजी नै रहथि ! बाउए सब दिन हर जोतलकै, कोदारि पाड़लकै, करीन पटएलकै घर बन्हलकैखेती गिरहस्तीके सब काज कएलकै। जैंपिताजी वाभनके छलनि तैं ओअएलाह गेलाह पुरहिती पण्डितारेकएलन्हि लौटा सेहो चलौलन्हि । हमरासबके घरमे तिमना बनल , हुनकासबके घरमेभोजन आ तरकारी बनलनि । ई लोक नुआ घोती, जमा पेन्हलक ओ लोकनि संस्कृतक वस्त्र पहिरलथि । संस्कृतेमेकाल्हिघरि पतरपाँति भेजबलाके मैथिली दांवेघावे ने अप्पन रहनि ? हमरासबमेबाउ हरजोतैहै। भात खाइ है माइ धास छिलै है उसुन बनिहारी खबासी करै हैसे जे कहै छै तओकर सम्प्रेषणमे,कोनोमानकताक गैंचीमोड़ आदर्थीअनादर्थीकेमान
÷अपमान लगिते नै छै तआनलोक टिप धऐमे भाषिक विष किए पादत ?
फेरु नेपालक सन्दर्भमे कहब जे एखुनका समय सन्दर्भमे मानकताक नइ सबकेसमेटबाक आवश्यकता छै सेहोपोल्हा पनियाँक’ ! जनगणनामे एहि विषयलकहमरासबकेबहुते पापड़ बेलपड़ल अछि आ धन्यवाद एतिुका राजनैतिक दल आ कार्यकत्र्तासबके जे ओहोलोकनि जे जेहन मार्तभाषा बजैत होथि अपन मार्तभाषा लखा मैथिलीक हकमै बड़ पैघ योगदान देलन्हि अछि । मानकता वर्गभेद, जातिभेद भाषाक राजनीति आ संस्कृतिकेहिसाबे विखण्डनक काज करैत अछि । एहिसमैथिलीक विशाल बड़गदकेसोझे पाङि दकड़िठुठ एकपोड़िया बनाएब तअछिए, लोकगीत, लोककथा ,लोकगाथा आलोकभाषासंस्कृतिपर सोझे लात मारि कात करब अछि ।



अतुलेश्वर
किछु विचार टिप्पणी
पंडित गोविन्द झा, मैथिली आ अध्ययन
आम पाठककें गोविन्द झाक नाटक, कथा आ हुनक लिखल विद्यापतिक आत्मकथा आकर्षित करैत अछि। मैथिली भाषाक अध्ययन कएनिहारकें हुनक साहित्य तँ आकर्षित करितहिं अछि, सबसँ बेशी आकर्षित करैत अछि हुनक भाषा पर कयल कार्य। हुनक साहित्यिक रचना आ भाषा वैज्ञानिक कार्य दुनू एक्के गति सँ चलैत अछि निरंतर गतिशील आ चिंतनशील।  हेमनिमे हुनक एक गोट पोथी आयल अछि, मैथिली व्याकरण(अंग्रेजी सँ मैथिलीमे अनुवाद), जकर मूल रचयिता छथि अंग्रेज लोकनिक ग्रिर्यसन साहेब, मैथिलक गिलेसन साहेब आ गोविन्द झाजीक अनुसार मैथिलीक पाणिनी। प.जीक मैथिली भाषाक प्रति ई काज हुनक जिजीविषाकें देखबैत अछि, कारण जे काज युवा वर्ग आ मैथिली अध्यापककें करबाक चाहिएनि ओ काज पंडित जी अपन नब्बे बरिसमे कतेक मनोयोगसँ कएलनि अछि, तकर अनुभव सभ सहृदयी कए सकैत छथि। हुनक एहि कार्यक हेतु हमरा लग कोनो शब्द नहि अछि, जाहिसँ हुनक अभिवादन-अभ्यर्थना कएल जाए सकए। कारण मैथिली भाषाक  भाषावैज्ञानिक कार्य बहुत सीमित भेल अछि, जे भेल अछि ओ आंगुर पर गानल जा सकैछ, जखनि कि ओकर अध्ययन आ विवेचना स्वतंत्र भारत सँ पूर्व भ चुकल छल। एतए प्रश्न उठैत अछि जे आखिर एहि अन्तरक कोन कारण? एतेक दिन भेलाक बादो आइओ बहुतो तकला पर उचित मैथिली व्याकरण भेटब मोश्किल अछि, जाहिसँ सभ अध्यवसायीक शंकाक समाधान भए सकनि। आइ हमरासभकेँ छोट सँ छोटो व्याकरणीय समस्या लेल बहुत बेशी कसरत करए पड़ैत अछि। मैथिली भाषा वैज्ञानिक अध्ययनक शिथिलताक एकटा नमूना हम सद्य: देखल अछि। जखनि कतहु मैथिली भाषाक चर्चा होइछ तँ ओ कखनो एकरा बिहारी भाषा कहि तँ कखनहुँ हिन्दीक बोली कहि सोचल जाए रहल अछि। सोचबाक विषय अछि जे एहि भाषा क एहन गति कियाक? हमरा लोकनि मात्र शुद्ध आ अशुद्ध क झगड़ा मे लागल रहलहुँ। ई कखनो नहि सोचलहुँ जे भाषा क वैश्विक विकास लेल साहित्यक रचनाक संग-संग ओकर भाषा वैज्ञानिक अध्ययन सेहो होयबाक चाही , ओना किछु कार्य भेल, मुदा  ओकर निरन्तरता नहि रहल जकर कारण भेल मैथिली भाषा हिन्दी क माँझमे दबाइत गेल। ओना ई अनुभव हमरा हेमनिमे आर बेशी भेल  जखनि सम्पूर्ण भारतीय भाषा जे संविधानक अष्टम अनुसूची मे  सम्मिलित अछि ओकर एकटा कार्यशाला छलैक आ कार्यशाला अपन-अपन क्षेत्र मे हेबाक चाही एहि प्रकारक निर्देश छलैक। मुदा मैथिली क कार्यशाला  मिथिला कि बिहार तक मे नहि भेल, एकर एक मात्र कारण देखाओल गेल जे मैथिलीमे भाषाविज्ञ नहि छथि। किन्तु कारण किछु आन छलैक आ ओ कारण छलैक मैथिलीकेँ हिन्दी क बोलीक रूपमे स्थापित करबाक एकटा षडयंत्र। ई षडयंत्रमे जतेक दोषी ओ लोकनि नहि छलाह ओहि सँ बेशी हम मैथिल छी, कारण मैथिलीक नाम पर जे विज्ञ बजाओल जाइत छथि ओ बेर-बेर एतबहि कहताह जेना हिन्दी मे होइत छैक ओहिना मैथिलीमे सेहो होयत। आ मैथिली अपन स्वतंत्र अस्तित्वक लड़ाई लड़बा सँ पहिने हारि जाईत अछि। ई भ रहल अछि अक्षरकट्टु मैथिली विज्ञ लोकनिक कारणेँ। नाम लेब एहि कारणें उचित नहि जे ओ सभ बिन वजह कें प्रसिद्धि पाबि लेताह। हम एहि ठाम ई प्रसंग एहि कारणें देलहुँ अछि जे पंडितजी कें ई आभास छनि जे भाषाक लेल साहित्य जतेक आवश्यक छैक ओहिना ओकर भाषा वैज्ञानिक अध्ययन सेहो, जकर कारण छल ओ सुविधाक अभावों मे मैथिली भाषा क वैज्ञानिक अध्ययन करैत रहलाह अछि । मुदा ई एकटा प्रश्न उठैत अछि जे विश्‍वविद्यालय मे चाकरी कएनिहार आ मैथिली भाषाक विज्ञ कहौनिहार ई अध्यापक लोकनि कें कियाक नहि एहि विन्दु दिश ध्यान जाइत छनि, ओ सभ मात्र सुविधा पएबाक जोगाड़मे कियाक लागल रहलाह आ आइओ छथि। एतेक वर्ष मैथिलीक अध्ययनक आरम्भ भेलाक बादो ई महानुभाव लोकनिकें ई आवश्यकता कियाक नहि देखा पड़ि रहल छनि । एकर कारण अछि हुनका लग एतेक अथाह पानिकें उपछबाक समय नहि छनि, हुनका लग समय मात्र छनि अपन गोंटीके ब्योंत धरएबाक। पुस्तकक प्रकाशन करताह मात्र एहि लेल जे प्रोन्नतिक लाभ भेटतन्हि भलsहि ओ पुस्तक कोनो उपयोगी सिद्ध हुअए वा नहि । मुदा पंडित गोविन्द झाकें नहि तँ ओहि सँ प्रोन्नतिक लाभ होइत छनि आ आने कोनो आने लाभ। हँ, लाभ होइत छनि- यश लाभ, जे हुनक एहि काजक माध्यमेँ मैथिलीकें एकटा स्वतंत्र अस्तित्वक संग-संग मैथिली भाषा क विशेषता देखि आनो प्रबुद्ध वर्ग आकर्षित होएताह। यदि मैथिली भाषाकेँ पूर्ण देखय चाहैत छी तँ ओकरा लेल सर्वप्रथम हमरा लोकनिकें मैथिलीक अध्ययनक विस्तृतताकें बढ़बय पड़य नहि तँ हमरा लोकनि अपन भाषा क विशेषताकेँ प्रतिष्ठित नहि कए सकब। एकरहि परिणाम होएत जे हमर भाषाक विशेषता नुकायले रहि जायत आ दोसर जे केओ हमर भाषाक विषयमे कहत ओएह संसार मानत आ हम सभ ओहिना मूंह तकैत रहि जायब।
उजरैत गाम बसैत शहर........
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इ काल्हि मैथिली साहित्यमे गामसँ जा रहल लोक , आ उजड़ैत गामक विषयमे बहुत चिन्तन कयल जाईत देखल जा रहल अछि । कतहु गामक बदलैत परिदृश्य तँ कतहु गामसँ पलायन करैत लोक। ओना ई चिन्तन सही अछि कहल तँ जा सकैछ जे ई चिन्तन बहुत पहिने सँ भऽ रहल अछि । कारण गामक बदलैत परिदृश्य गाम टाकें नहि अपितु गामसँ जुड़ल सभ किछु कें परिवर्तित कएने जा रहल अछि । काल्हि धरि गाममे ध्वनि प्रदुषण नहि छल आई ओ विकट रुप धारण कए चुकल अछि । एहि सँ बेशी गाममे अपन डारि पसारि रहल अछि शहरक संस्कार  आ ताहूसँ बेशी संवेदनहीनताक स्थिति। गामक चिन्ता बहुत नीक जेकां अंतिकाक सम्पादकीयमे अनलकान्त जी केने छथि जे कोना क गाम मे परिवर्तन भ रहल अछि आ ई परिवर्तन मानवीयताक क्षरण दिश ल जा रहल अछि। ओ अपन सम्पादकीय मे कहने छथि जे ई परिदृश्य मात्र हमर गामक नहि छी सम्पूर्ण मिथिलाक गामक थिक । हुनक ई कहब सौ प्रतिशत सत्य अछि। रोजगार क शिलशिलामे घर सँ बाहर होइत मिथिलाक लोक बहुत दिन धरि अपन भीतर गामकें नहि राखि पबैत अछि , कारण जहिना-जहिना ओ गामसं दूर होइत जाइत अछि गामक प्रति ओकर मोह सेहो ओहिना दूर होइत जाइत छैक । हेमनिमे हम दुर्गा पूजा मे गाम जयबाक लेल सोचैत छलहुं कारण गाम मे मां छथि मुदा परिस्थिति गाम नहि जाए देलक । ई क्रम हमरा एहि बेर नहि कतेक बेर सँ भऽ रहल अछि मां छथि मुदा तइयो गाम नहि जा पबैत छी । आ गाम हमरा सँ अखैन मात्र दूर भेल जा रहल अछि, भए सकैछ जे काल्हि तक गाम हमर अतीत भ जाए। मां छथि तँ गाम बचल अछि आ माँक पश्‍चात गाम? कारण गामकें हम संजोगिकें राखब से भ नहि सकत आ संजोगिकें नहि रखैत छी तं ओ हमरा अपना सं दूर केने जा रहल अछि । दोसर आई गामक परिस्थिति सेहो ओहने छैक, अपन आलोचनाक पुस्तक ....मे शिवशंकर श्रीनिवास लिखने छथि जे गाम मे युवा नहि छैक मात्र बूढ़ बांचल छथि। से ठीके, जे बांचल छथि ओहि मे दू वर्ग अछि एकटा जे अपन परिवारक संग बाहर जा नहि पबैत छथि, दोसर किछु गोटें शहर सं उबियाक गाममे रहि रहल छथि । ओ गाममे रहैत तं छथि मुदा गामकें शहर मे बदलि क । हमर एकटा मित्र छथि जिनकर पिता अपन शेष जीवन गाममे बितबय चाहैत छथिन , मुदा जीवनक महत्वपूर्ण क्षण ओ शहरमे बितौने रहबाक कारणेँ गाम मे हुनका बहुत असकौर्य देखबामे अबैत छनि, तैं ओ गाममे एकटा छोट छीन शहरक निर्माण करैत छथि । एहि सं हुनका तँ सहज होइत छन्हि मुदा गामक अर्थ समाप्‍त भ जाइत छैक । आ किछु दिनक पश्‍चात गाम मात्र ओ सरकारी फाईल मे नामकें रुपमे रहि जायत एकर आशंका बढ़ैत अछि । कारण गामक अर्थ छल कम सेँ कम सुविधामे रहब मुदा आई ओकर अभाव देखल जा रहल अछि। एकर कारण अछि गाममे शहर जेकां अपना-अपना मे जीबाक संस्कार नहि छलैक मुदा आई ओतहु ई संस्कार द्रुतगति सँ बढ़ि रहल अछि । काल्हि धरि सभ सभक कुशल क्षेम, ओकर खोज खबरि लैत छलैक मुदा आई ओ समाप्‍त भ रहल छैक। सभ अपनामे सीमित। जे गामक परिदृश्यकें बदलि देलक। हमरा कखनो कखनो होइत अछि जे यदि गाममे ई स्थिति एहिना बढ़ैत गेल तं हमरा लोकनिकें अपन गामकेँ खिस्सा मे ताकय पड़त । हमरा जनैत हम सभ मात्र गामसं पलायन नहि भ रहल छी अपितु हमरालोकनि अपन गामकें उजारि रहल छी । तैं तं भोरे भोर जतऽ पराती सुनाईत छल आई हिन्दी क भजन लाउडीस्पीकर मे सुनाइछ जाहि सं कखनो ई नहि बुझाइत अछि जे ई हमर गामक आत्मा बाजि रहल अछि, लगैत अछि जेना ई गामक प्रेत बाजि रहल अछि जे अपन आत्माक शान्ति लेल गामक लोकसं अनुरोध क रहल अछि । अन्तमे मांक ई पांति जे मोबाइल पर कहने छलीह यात्रादिन जे जयन्ती तँ काटि लेलहुँ, गोसाउन के सेहो चढ़ा देलयन्हि मुदा एतय तँ केओ नहि अछि, कि करु? मुदा ई सोचिकें रखैत छी जे यदि अहां सभ गाम आयब तँ द देब । आ हम सोचय लगैत छी जे ई मात्र हमर माँक भावना नहि सम्पूर्ण मिथिलाक मायकें होइत हेतनि ।

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मुन्नाजी

अनमोल झाक समयकेँ साक्षी राखि ....!
विहिन कथा (लघु कथा) माने बीज कथा।
ई कथा, एकटा बीयाक समान अछि। जेना कोनो बीयामे एकटा गाछ हेबाक समग्र गुण विद्यमान होइछ तहिना विहनि कथा अपनामे एकटा संपूर्ण कथाक समग्रता समेटने रहैछ। मैथिली कथाक किछु बानगीकेँ विलगा देल जाए तँ ओकर स्तर अन्यान्य कथा साहित्यक  स्तरक सोझाँ खसल बुझाएत । मुदा गद्य विधाक  एक प्रतिरूप  विहनि कथाक वर्तमान परिदृश्य वैश्विक स्तरक समकक्ष आबि ठाढ़ अछि। एना मात्र तुलनात्मक रूपेँ अछि। किएक तँ एखन ई अपन सहजताकेँ एक सीमा मात्रमे समेटने संकुचित अछि। मैथिली साहित्य मध्य कथा जेना आन भाषाक कथाक तुलनामे अबेरसँ अपन अस्तित्व पौलक, ओइसँ दुर्लभ स्थिति विहनि कथाक अछि।
अन्यान्य भाषाक लधु-कथा सेहो प्रारंभ मे मैथिली विहनि-कथा जकाँ एकपेड़िया बाट धऽ आगाँ बढ़ल मुदा ओइ सभ भाषाक सरकारी गैर सरकारी संस्था, प्रकाशक एवं रचनाकारक समग्र बल एकरा अपन फराक नाम आ अस्तित्व दऽ फरिछेबामे संग देलक, तकरे परिणाम स्वरूप बांग्लामे ए मिनिटेर कथा”, पंजाबीमे मिन्नी कथाआदि नामे ई जानल जाए लागल। मुदा विहनि कथा आइयो डुब्बा पानि मध्य उगि डुबि रहल अछि, साहित्य अकादमी (दिल्ली), मैथिली-भोजपुरी अकादमी (दिल्ली सरकार), सी.आइ.आइ.एल. मैसूर वा अन्यान्य संस्था वा ऐपर पलथी मारि बैसल महंथ सभ एकर प्रकाशन , सेमिनार आयोजन वा ऐ मादे स्वतंत्र क्रियाकलापक पक्षेँ आइ धरि सोझाँ नै आबि सकलाह। किछु भाषाक लघुकथामे स्वतंत्र शोध सेहो शुरू भेल अछि। मैथिलीयो अइमे पछुआएल नै अछि। जकर श्रेय अही रचनाकारकेँ जाइछ। परती-पराँत सन पड़ल जमीनकेँ अपन सर्वस्व ऊर्जा श्रोतेँ उपजा हरियरी अनैबला ऐ रचनाकारक प्रत्येक रचना विहनि कथाकेँ विलगा कऽ स्थान दियाओत। समुन्द्रमे हथोरिया देबै तँ प्रायः मुट्ठीमे पानिये टा आओत। ओहो शुद्द वा साफ नै माटिओसँ लेपटाएल सन। मैथिलीक गद्य विधाक एकटा प्रकार विहनि-कथाक स्थिति सेहो एहनाहेँ जकाँ रहल अछि। मैथिलीक गद्य संसारमे विहनि-कथा सेहो एहि मध्य लहरिक बीच-बीचमे उगैत डुबैत रहल। किछु रचनाकार सभ अपन लेखनीये डुबकी लगेबाक प्रयासो करैत रहलाह। परञ्च ओ ओइ लहरिकेँ सहबाक सामर्थ्य नै राखि लहरिक संग बिलाइत गेलाह। एहेन दुरूह परिस्थिति मध्य जे लेखक सभ किछु सहैत अपन सर्वस्व रचना शक्तिक ऊर्जा ऐमे लगबैत रहलाह ओ छथि श्री अनमोल झा।
श्री  झा समय साक्षी थिक”, अपन पहिल विहनि-कथा संग्रह लऽ सोझाँ एलाह अछि। ऐ संग्रहमे सत्य कही तँ समयान्तर अनुरूप रचना-संयोजन कएल गेल अछि जे हिनक कएक दशकक भोगल यथार्थक परिणाम थिक।
ऐ संग्रह मध्य समाजक  गम्भीर होइत परिस्थितिकेँ उजागर केलनि अछि। ऐमे क्षण-क्षण घटैत सामाजिक घटना, ओकर अधलाह असरिकेँ महीन गढ़निये उजागर करबामे सक्षम भेलाह अछि। ऐमे प्रकाशित अधिकांश रचना सभमे सामाजिक मूल्यक अवमूल्यन, संबंधक दोहन, तकनीकी परिवर्तने प्रभावित होइत सामाजिक अस्तित्वक सुंदर चित्रण परिलक्षित होइछ। ऐमे सङ्गोर भेल अधिकांश रचनाक धारदार समायोजन हिनक विहनि-कथा उद्देश्यकेँ सोझाँ  अनबामे सक्षम  बुझाइत अछि। किछु पारंपरिक कथानक आधारकेँ सेहो नव-नव परिवर्तन वा आकलनक संग जोड़ि देखवामे समर्थ भेल बुझना जाइछ ।

 
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