भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Saturday, March 31, 2012

'विदेह' १०३ म अंक ०१ अप्रैल २०१२ (वर्ष ५ मास ५२ अंक १०३) PART_ 1


                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १०३ म अंक ०१ अप्रैल २०१२ (वर्ष ५ मास ५२ अंक १०३)  

 वि  दे  ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal  नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own script Roman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi

ऐ अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश



२. गद्य





२.१.किशोरीकान्त मिश्र जी सँ नबोनारायण मिश्र जी द्वारा लेल साक्षात्कार


  


२.२.ओमप्रकाश झा-१. बहुरूपिया रचना मे २. घोघ उठबैत गजल






२.३.१.नवेंदु कुमार झा- केन्द्रीय विश्वविद्यालयक लऽ कऽ राज्य आ केन्द्र मे बढ़ि रहल हार/ उत्साहक संग समाप्त शताब्दी समारोह- डा॰ सच्चिदानंद उपेक्षा पर निधन परिषद् भेलाह नाराज। २. सुजीत कुमार झा - राम जन्मोत्सवपर विशेष/ मिथिलाक कण कणमे रामसीता ३. किशन कारीगर- अकछ भेल छी।/(एकटा हास्य कथा)








२.४.विहनि कथा-१.ओमप्रकाश झा २.अमित मिश्र ३.चंदन कुमार झा ४.आशीष चौधरी





२.५.१.रवि भूषण पाठक- ओक्कअर तोहर हम्म्र सपना २.शि‍व कुमार झा ‘टि‍ल्लू ’- बहि‍रा नाचए अपने ताल





२.६.गजेन्द्र ठाकुर- शब्दशास्त्रम् / दिल्ली





२.७.१.आशीष अनचिन्हार- "सगर राति दीप जरय"केर अन्त आ साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठीक उदय २.प्रियंका झा- सगर राति दीप जरय पर साहित्य अकादेमीक कब्जा/ सरकारी पाइपर भेल बभनभोज/ साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त- रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल- ७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली ३.सुमित आनन्द- सोसाइटी टुडेक लोकार्पण





२.८.१.जगदीश प्रसाद मण्डुलक कथा-फागु २.अतुलेश्वर- मातृभाषा दिवस क बहन्ने






३. पद्य





३.१.१.शि‍व कुमार झा ‘टि‍ल्लू२’ २.स्व. लल्लन प्रसाद ठाकुर ३.श्यामल सुमन





३.२.१.ओमप्रकाश झा २.कमल मोहन चुन्नू ३.प्रेमचन्द्र पंकज ४.रुबी झा





३.३.१.अमित मिश्र २.मिहिर झा ३.उमेश पासवान





३.४.१.जगदीश प्रसाद मण्डाल २.अनिल मल्लिक ३.कुसुम ठाकुर








३.५.१.चंदन कुमार झा २.पवन कुमार साह





३.६.१. आनन्द कुमार झा २.निशान्त झा








३.७.डॉ॰ शशिधर कुमर





३.८.१.राम वि‍लास साह २. प्रभात राय भट्ट






४. मिथिला कला-संगीत१.गणेश ठाकुर २.राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) ३. उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)



५. गद्य-पद्य भारती: मंगलेश डबराल- हिन्दीसँ मैथिली अनुवाद विनीत उत्पल  
६.बालानां कृते-बाल गजल १.मिहिर झा २.अमित मिश्र ३.चंदन कुमार झा ४.जगदानन्द झा 'मनु' ५.रूबी झा ६.डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”-नेनपन (बालगीत)

७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]





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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।









गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'







मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"


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 ऐ बेर मूल पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
Thank you for voting! 
श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा” (कविता-संग्रह)  13.84%   

श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक)  10.03%   

श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट” (उपन्यास)  6.57%   

श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति” (कथा संग्रह)  5.54%   

श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक)  5.54%   

श्री सुभाष चन्द्र यादवक “बनैत बिगड़ैत” (कथा-संग्रह)  5.54%   

श्रीमती वीणा कर्ण- भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह)  5.54%   

श्रीमती शेफालिका वर्माक “किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा)  7.61%   

श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ आ बलचन्दा” (दूटा नाटक)  6.92%   

श्री महाप्रकाश-संग समय के (कविता संग्रह)  5.88%   

श्री तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह)  5.54%   

श्री महेन्द्र मलंगियाक “छुतहा घैल” (नाटक)  6.92%   

श्रीमती नीता झाक “देश-काल” (कथा-संग्रह)  6.57%   

श्री सियाराम झा "सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि (गजल संग्रह)  7.27%   

Other:  0.69%   


ऐ बेर बाल साहित्य पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक “तरेगन”(बाल-प्रेरक कथा संग्रह)  50%   

श्री जीवकांत - खिखिरक बिअरि  28.57%   

श्री मुरलीधर झाक “पिलपिलहा गाछ  19.64%   

Other:  1.79%   
  


ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?
Thank you for voting! 
श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस” (कविता संग्रह)  25.53%   

श्री विनीत उत्पलक “हम पुछैत छी” (कविता संग्रह)  6.38%   

श्रीमती कामिनीक “समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह)  6.38%   

श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह)  5.32%   

श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल संग्रह)  24.47%   

श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा नहि” (कविता संग्रह)  5.32%   

श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै (कविता संग्रह)  7.45%   

श्री आदि यायावरक “भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह)  5.32%   

श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी” (कविता संग्रह)  11.7%   

Other:  2.13%   
  
ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?
Thank you for voting! 
श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर)  36.84%   

श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन" (कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो)  11.84%   

श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास श्री दिव्येन्दु पालित)  13.16%   

श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ" (नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा)  13.16%   

श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत)  10.53%   

श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास)  13.16%   

Other:  1.32%   
  
फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य अकादेमी, दिल्ली
Thank you for voting! 
श्री राजनन्दन लाल दास  53.45%   

श्री डॉ. अमरेन्द्र  22.41%   

श्री चन्द्रभानु सिंह  22.41%   

Other:  1.72%   
  


१. संपादकीय
I





यूनीकोड पर साहित्य अकादेमीक कथागोष्ठीमे पर्चा वितरण





डॉ. रमानन्द झा रमण जी द्वारा यूनीकोड पर साहित्य अकादेमीक कथागोष्ठीमे पर्चा वितरण कएल गेल। ऐसँ मात्र ई स्पष्ट भेल जे पर्चा लिखिनिहारकेँ नहिये यूनीकोडक विषयमे कोनो जानकारी छन्हि आ नहिये वेस्टर्न वा यूनीकोड दुनू फॉन्टक निर्माण कोनो प्रारम्भिक ज्ञान छन्हि। हँ ऐ परचाक ओइ सभ लोक लेल महत्व छै जे सीखय चाहै छथि जे पूर्वाग्रहपूर्ण आ पक्षपातपूर्ण मैथिली साहित्यक इतिहास कोना लिखल जाए।


ऐसँ पहिने चेतना समितिक स्मारिकामे यूनीकोड लेल चेतना समितिक योगदानक चर्चा देखैत छी! तिरहुता यूनीकोड आवेदनकर्ता अंशुमन पाण्डेय जखन पटना गेल रहथि तँ हम हुनका कहने रहियन्हि जे विद्यापति भवनमे शिव कुमार ठाकुरक दोकान छन्हि, ओतऽ सँ अहाँ मैथिलीक किताब कीनि सकै छी, मुदा दू तीन दिन ओ दोकान आ समिति बन्द रहलाक कारण ओतऽ सँ घुरि गेला, बादमे ओतए एक गोटे कहलकन्हि जे सभ दिन अहाँ अबै छी, से ई समिति अखन कमसँ कम १४-१५ दिन आर बन्द रहत कारण दू ग्रुपमे झगड़ा-झाँटी भऽ गेल छै। ई अनुभव लऽ कऽ ओ घुरल रहथि आ से समिति अपन स्मारिकामे यूनीकोड लेल ओ जे योगदान देलक तकर चर्चा करैत अछि! गोविन्द झा जीक पता मँगलापर एक गोट विद्वान् (!) हुनका कहलखिन्ह जे धुर ओ की बतेता, आ गोविन्द झा जीक पता नै देलखिन्ह आ तखन दोसर ठामसँ हुनका पता उपलब्ध करबाओल गेल।








विहनि कथा


०६ फरबरी १९९५ मे सहयात्री मंचक, लोहना, मधुबनीक बैसारमे मुन्नाजी द्वारा विहनि कथाक शब्दावलीक अवधारणा प्रस्तुत कएल गेल जकर समर्थन श्री राज केलन्हि। एकर समर्थन सर्वश्री शैलेन्द्र आनन्द, भवनाथ भवन, प्रेमचन्द्र पंकज, ललन प्रसाद, प्रभु कुमार मण्डल, मलयनाथ मंडन, अतुलेश्वर, अखिलेश्वर, कुमार राहुल आ सच्चिदानन्द सच्चू केलन्हि। पहिल विहनि कथा गोष्ठी २० फरबरी १९९५ केँ हटाढ़ रुपौलीमे भेल, जइमे विहनि कथाक स्वरूपपर चर्चा आ विहनि कथाक पाठ भेल। ऐ मे शैलेन्द्र आनन्द, श्रीराज, उमाशंकर पाठक, मुन्नाजी, यंत्रनाथ मिश्र, मतिनाथ मिश्र, श्यामानन्द ठाकुर, ललन प्रसाद, भवनाथ भवन, प्रेमचन्द्र पंकज, प्रभु कुमार मण्डल, मलयनाथ मंडन, कुमार राहुल, सच्चिदानन्द सच्चू, विजयानन्द हीरा, सुनील कर्ण, सुश्री मीरा कर्ण, करनजी, विजय शंकर मिश्र, कमलेश झा आदि भाग लेलनि।





विदेहक विहनि कथा विशेषांकमे विहनि कथाक स्वरूप आ ओकर समीक्षाशास्त्रपर ढेर रास चर्चा भेल आ कथाक लम्बाइ आ विहनि कथापर विस्तृत चर्च भेल।


किछु गोटेकेँ “विहनि कथा” शब्दावलीपर आपति अछि। ओ आध पन्नाक कथाक लेल लघुकथा शब्दक प्रयोग करबापर बिर्त छथि। मुदा तखन ३-४ पन्नाक कथा लेल कोन शब्द प्रयोग करब? लघुकथा तँ तइ लेल प्रयुक्त होइ छै। तँ की “अति लघु कथा” शब्दावली विहनि कथा लेल प्रयोग कएल जाए? ऐपर जे तर्क साहित्य अकादेमीक दिल्ली कथा गोष्ठीमे देल गेल से हास्यास्पद अछि। ओ लोकनि ३-४ पन्नाक कथा लेल “कथा”; आ “विहनि कथा” लेल “लघुकथा”; शब्दावलीक प्रयोग करबाक इच्छुक रहथि। मुदा कथा, खिस्सा, पिहानी तँ विहनि कथा, लघु कथा, दीर्घ कथा, उपन्यास सभ लेल प्रयुक्त एकटा शब्दावली अछि, महाकाव्यमे सेहो कथा होइ छै। ऐपर हमरा अपन स्कूल दिनक एकटा खिस्सा (ई विहनि कथा भऽ सकैए) मोन पड़ैत अछि- हिसाबक कक्षामे साइन थीटा बट्टा कौस थीटा बराबड़ की, ई कहलापर एकटा विद्यार्था उत्तर देलक; साइन बट्टा कॉस, कारण थीटा-थीटा कटि जेतै; से ओइ विद्यार्थीक कहब रहै। मास्टर साहैब तमसेलखिन्ह नै, कहलखिन्ह जे बारह बटा सत्रह बराबड़ दू बटा सात हेतै? विद्यार्थी कहलक नै। किए? एक-एक कटि गेलै तँ दू बटा सात भेलै ने।– मास्टर साहैब कहलखिन्ह। विद्यार्थी कहलकै- नै। बारह आ सत्रह तँ स्वतंत्र अस्तित्व बला अछि। तखन मास्टर साहैब कहलखिन्ह- तहिना साइन थीटा आ कौस थीटा स्वतंत्र अस्तित्व बला अछि।


ऐ डिसकसनक बाद “विहनि कथा” शब्दावलीपर आपति करैबला लोकनि बात बुझि जेता से आशा अछि।


विहनि कथाक अतिरिक्त आर सभ विधापर जे डिसकसन जरिऐल छल, तइ सभकेँ विदेह गोष्ठी सभ द्वारा अन्तिम रूप देल जा चुकल अछि।








विदेह गोष्ठी: (परिचर्चा आ प्रैक्टिकल लैबोरेटरीक प्रदर्शन। किछु विचार डाक आ ई-पत्रसँ सेहो आएल।)- http://esamaad.blogspot.in/p/blog-page_05.html


मैथिली नाटक रंगमंच फिल्मपर: २८-२९ जनवरी २०१२ स्थान चनौरागंज,झंझारपुर। निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा आधुनिक मैथिली नाटक आ रंगमंचपर: १७-१८ सितम्बर २०११ आ २४-२५ सितम्बर २०११केँ।





मैथिली गजल, कता, रुबाइपर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा: २६-२७ नवम्बर २०११ आ ०३ आ ०४ दिसम्बर २०११








मैथिली हाइकू, टनका,शेर्न्यू, हैगा, हैबून पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; १२-१३ नवम्बर २०११ आ १९-२० नवम्बर २०११





मैथिली बाल साहित्यपर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; १५-१६ अक्टूबर २०११ आ २२-२३ अक्टूबर २०११





मैथिली विहनि, लघु, दीर्घ कथा आ उपन्यास पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; २९-३० अक्टूबर २०११ आ ०५-०६ नवम्बर २०११





मैथिली प्रबन्ध, निबन्ध, समालोचना, अनुवाद, मानक मैथिली आ शब्दावली पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०१-०२ अक्टूबर २०११ आ ०८-०९ अक्टूबर २०११





मैथिली महिला आ फेमिनिस्ट लेखन पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०३-०४ सितम्बर २०११ आ १०-११ सितम्बर २०११





मैथिली कला-शिल्प-संगीत पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; २०-२१ अगस्त २०११ आ २७-२८ अगस्त २०११





मैथिली हास्य-व्यंग्य पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०६-०७ अगस्त २०११ आ १३-१४ अगस्त २०११





मैथिली गूगल ट्रान्सलेटर टूलकिट, गूगल ट्रान्सलेट, गूगल लैंगुएज टूल, मैथिली विकीपीडिया, कैथी आ तिरहुता यूनीकोडक एनकोडिंग  पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०६-०७ दिसम्बर २००८, १३-१४ दिसम्बर २००८, ०५-०६ दिसम्बर २००९, १२-१३ दिसम्बर २००९, ०४-०५ दिसम्बर २०१०, ११-१२ दिसम्बर २०१०, १७-१८ दिसम्बर २०११, २४-२५ दिसम्बर २०११


  


मैथिली मे प्राथमिक आ मध्य विद्यालयी शिक्षा मैथिली माध्यमसँ मिथिलामे करेबा लेल निर्मली, जिला सुपौलमे परिचर्चा; ०३ फरबरी २०१२


 [मैथि‍लीमे ई-पत्रकारि‍ता :: उमेश मंडल


ई-पत्रकारि‍ताक प्रारम्भप भेने लेखक ओ पाठक वर्गमे काफी वृद्धि‍ देखल जाइत अछि‍। एकर अनेक कारणमे महत्विपूर्ण अछि भौगोलि‍क दूरीक अंत। जइसँ वि‍श्वमे पसरल मैथि‍ली भाषी, साहि‍त्य१ प्रेमी सभ सोझा एलाह। ऐठाम अपन वि‍चार व्यमक्तछ करबाक पूर्ण स्वेतंत्रा लेखको आ पाठकोकेँ भेटैत छन्हिे‍। रचनापर त्वणरि‍त टि‍प्पतणी-समीक्षा-समालोचनाक सुवि‍धा सेहो इन्टवरनेटपर अछि‍।


इन्टरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक रूपमे विदेहक पूर्व-रूप "भालसरिक गाछ" ५ जुलाइ २००४ सँ http://gajendrathakur.blogspot.com/  लिंकपर उपलब्ध अछि। ओना याहू जियोसिटीजपर २००० ईं.सँ ई साइट रहए, जे याहू द्वारा जियोसिटीज बन्द कऽ देलाक बाद आब उपलब्ध नै अछि। मैथिली ई-पत्रकारिताक आरम्भक श्रेय विदेहकेँ छै आ तँए एकर नाओं अछि‍ ‘वि‍देह प्रथम मैथि‍ली पाक्षि‍क ई-पत्रि‍का’ वर्तमानमे १०३ टा अंक ई-प्रकाशि‍त अछि‍। गूगल एनेलेटिक्स डेटा केर मोताबि‍क ‘विदेह ई पत्रिका’केँ ५ जुलाइ २००४ई.सँ अखन धरि ११६ देशक १,५०२ ठामसँ ७२,०४३ गोटे द्वारा ३५,४५२ विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,३६,७०७ बेर देखल गेल अछि।


 विदेह मैथिली पोथी डाउनलोड  http://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi  पर उपलब्ध अछि। लगभग २०० सँ बेशी मैथिली पोथी देवनागरी, तिरहुता आ ब्रेल तीनू लिपिमे जे पी.डी.एफ. फाइलमे फ्री डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि अनेक रचनाकारक अलाबे जगदीश प्रसाद मंडलक 2टा कथा संग्रह, 2टा एकांकी संग्रह, 3टा नाटक, 2टा कवि‍ता संग्रह, पाँचटा उपन्याासक सेहो उपलब्धट अछि‍। एकर अतिरिक्त ११००० सँ बेशी, तिरहुतामे लिखल, ५०० बर्ख पुरान तालपत्र, विदेह द्वारा स्कैन कऽ ओकर देवनागरी लिप्यंतरणक संग ऐ साइटपर डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि। सरकारी आ गएर सरकारी संस्था सभ द्वारा अखन धरि कएल समस्त प्रयाससँ ई लगभग १०० गुणा बेसी अछि। ऐ समस्त कार्यमे लगभग १०,००० घण्टाक श्रम लगाओल गेल अछि आ एतए तिरहुता, ब्रेल आ अन्तार्राष्टी य फोनेटिक अल्फा बेट (आइ्. पी. ए) सिखबाक सेहो बेबस्थाश कएल गेल छै आ तइ संबंधी पोथी जे श्री गजेन्द्र  ठाकुर द्वारा ि‍लखित अछि‍ ओ फ्री डोनलोड लेल सेहो उपलब्ध् अछि। 


विदेह मैथिली ऑडियो संकलन http://sites.google.com/a/videha.com/videha-audio , एतए विविध विधाक ऑडियो जेना कथा, कवि‍ता, गजल, हाइकू, टनका, हैबून, हैगा इत्याmदि‍, देल गेल अछि। ऐठामक मुख्य आकर्षण अछि ५० घण्टाक ऑडियो संकलन जे मिथिलाक सभ जाति आ धर्मक संस्कार, लोकगीत आ व्यवहार गीत जे मैथिलीकेँ जाति आधारित भाषा हेबाक अवधारणापर मारक प्रहार सिद्ध कए रहल अछि।


मैथिली वीडियोक संकलन http://sites.google.com/a/videha.com/videha-video , एतए नाटक, सेमीनार, वर्षकृत्य, रसनचौकी, सामा-चकेबा, कवि-सम्मेलन, विदेहक नाट्य आ साहित्य उत्सवक वीडियो, मिथिलाक खोज, गीत-ंसंगीत, मैथिली वीडियो, वोकल आर्काइव, सगर राति दीप जरए, साक्षात्कार, विद्यापति पर्व, मैथिली गजल आदिक वीडियो उपलब्ध अछि। ऐठामक मुख्य आकर्षण अछि, मिथिलाक सभ जाति आ धर्मक संस्कार, लोकगीत आ व्यवहार गीतक वीडियो, आ पहिल बेर विदेहक सौजन्यसँ सतमा कक्षाक दीक्षा भारतीक गाओल ‘गोविन्ददास’क गीत। ऐमे लगभग ५००० घण्टाक मेहनति विदेहक सदस्यगण द्वारा लगाओल गेल अछि।


विदेह मिथिला चित्रकला/आधुनिक चित्रकला आ चित्र- http://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/    लिंकपर उपलब्ध अछि ‘मिथिला चित्रकला, आधुनिक चित्रकला, रंगमंच, चौबटिया-सड़क नाटक सहित कएक हजारसँ ऊपर फोटो अछि जइमे २०० सँ ऊपर ि‍मथि‍लाक वनस्पति, १०० सँ ऊपर मि‍थि‍लाक जीव-जन्तु आ १०० सँ ऊपर मिथिलाक जनजीवनक किसानी आ कारीगरी संस्कृतिक फोटो सेहो अछि‍ जइमे ५००० घण्टाक मेहनति वि‍देह सदस्यगण द्वारा लगाओल गेल अछि।


 विदेह मैथिली जालवृत्त एग्रीगेटर : http://videha-aggregator.blogspot.com/  पर मैथिलीक सभ वेबसाइटक विवरण सहजताक लेल उपलब्ध अछि।


विदेह द्वारा मैथिली साहित्य अंग्रेजीमे अनूदित कए http://madhubani-art.blogspot.com/  साइटपर राखल गेल अछि। एतए सत्तरि‍टा पोस्ट अछि जकरा माध्यमसँ मैथिलीक श्रेष्ठ साहित्य विश्वक समक्ष राखल गेल अछि। ऐ अनुवादमे लगभग ७०० घण्टासँ बेसी समैक श्रम खर्च कएल गेल अछि।


विदेह:सदेह- पहिल तिरहुता (मिथिला़क्षर) जालवृत्त (ब्लॉग) http://videha-sadeha.blogspot.com/  ई मैथि‍ली भाषाक मि‍थि‍लाक्षरमे सज्जिm‍त पहि‍ल वेबसाइट अछि‍।


विदेह:ब्रेल- मैथिली ब्रेलमे : पहिल बेर विदेह द्वारा http://videha-braille.blogspot.com/  पर मैथिलीक पहिल साइट अछि जे क्रमश: मिथिलाक्षर आ ब्रेलमे अछि जेकारा स्पेहशल स्क्रीछन टच माॅनि‍टरसँ संबंधि‍त आदमी पढ़ि‍ सकै छथि‍ तहि‍ना स्पेरशल प्रि‍ंटरसँ प्रि‍ंट सेहो नि‍कालि‍ सकै छथि‍। जइ दुनूमे लगभग हजार-हजार (१०००-१०००) घण्टाक मेहनति लागल अछि।


नेना भुटका साइट मैथिलीमे बच्चा सबहक लेल एक मात्र साइट अछि जे संगीतज्ञ माँगनि खबासक नामपर- http://mangan-khabas.blogspot.com/  राखल गेल अछि। बाल साहि‍त्यत जेना बाल कथा, प्रेरक कथा, बाल कवि‍ता आदि‍ समस्तथ बाल साहि‍त्य.केँ आधुनि‍क-वैज्ञानि‍क दृष्टेकोणसँ लि‍खल श्री जगदीश प्रसाद मण्ड लक १२५ गोट प्रेरक कथाक अलाबे वि‍भि‍न्न लेखक केर साहि‍त्य  ऐपर सहजताक संग उपलब्धब अछि‍ जेकरा वि‍श्वमे पसरल नेना, बढ़ैत नेना आ कि‍शोरक लेल फ्री डॉनलोड हेतु उपलब्धज अछि‍।


विदेह रेडियो: मैथिली कथा-कविता आदिक पहिल पोडकास्ट साइट- ऐठामसँ मैथि‍लीमे गीत-संगीत, कथा-कवि‍ता, गजल-हाइकू, टनका-हैबूनक संग अनेक परि‍चर्चा प्रसारि‍त कएल जाइत अछि‍। साइटक नाओं अछि‍- http://videha123radio.wordpress.com/


विदेहक फेसबुक चौबटिया-फरबरी २००८सँ अछि जे पुरान फॉर्मेटमे छल https://www.facebook.com/groups/10299304978/  आ http://www.facebook.com/groups/7436498043/  पर, नव फॉर्मेटमे एतए http://www.facebook.com/groups/videha/  उपलब्ध अछि, आ फेसबुकपर मैथिलीक सभसँ पुरान चौबटिया अछि। ऐ चौबटि‍यापर ८४००सँ बेसी मैथिली भाषी सदस्य द्वारा गत साल १०,००० पोस्ट आ ११०० सँ बेसी फोटो पोस्ट कएल गेल अछि। प्रति‍दि‍न १५० टासँ ऊपर कॉमेट पोस्टल सभपर अबैए जइमे मि‍थि‍ला-मैथि‍ली वि‍कासपर स्व स्य्र अ परि‍चर्चा होइए।


विदेह मैथिली नाट्य उत्सव- मैथिली रंगमंचकेँ वैश्विक स्तर प्रदान केलक अछि जे श्री बेचन ठाकुरजी द्वारा http://maithili-drama.blogspot.com/  पर उपलब्ध अछि। एतए मैथिली आ अंग्रेजीमे मैथिली रंगमंचक चित्र-आ वीडियोक माध्यमसँ विस्तारसँ वर्णन १७५ पोस्टमे देलगेल अछि, ई मैथिलीक अखन धरिक  “स्लैपस्टिक ह्यूमर” बला रंगमंचक विरुद्ध विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंचक प्रारम्भ केलक अछि। लगभग २००० घण्टाक मेहनति ऐ वेबसाइटपर अखन धरि भऽ चुकल अछि। एतए मिथिलाक गम-गाममे होइत मैथिली रंगमंचक अतिरिक्त, कोलकाता, जनकपुर, राजबिराज, पटना, दिल्ली आदिक रंगमंचक विवरण सेहो उपलब्ध अछि।


समदिया- http://esamaad.blogspot.com/  पर पूनम मण्डल आ प्रियंका झा द्वारा २००४ ई.मे शुरू भेल, साहित्यिक पत्रकारिताक लीकसँ हटि कऽ न्यूज पोर्टलक वा ई-पेपरक रूपमे मैथिली पत्रकारिताकेँ एतएसँ प्रारम्भ भेल। अखन धरि ५२५ सँ बेसी पोस्ट ऐठाम भेल अछि। सर्वश्रेष्ठ न्यूजकेँ मासक समदिया पुरस्कार देल जाइत अछि। अगस्तव २०१२मे सर्वश्रेष्ठ् मैथि‍ली पत्रकारकेँ ‘विदेह मैथिली पत्रकारिता सम्मान’सँ सम्मानित करबाक घोषणा अछि‍ जे आब साले-साल सेहो देल जाएत। ऐ वेबसाइटपर अखन धरि ५५०० घण्टाक मेहनति पूनम मण्डल आ प्रियंका झा टाइपसँ लऽ कऽ समाचार अपलोड करबाक कार्यमे कऽ चुकल छथि आ ई साइट श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमरक सीरियल चोरिक भण्डाफोड़क अतिरिक्त ढेर रास उद्घाटन कऽ साहसिक सोद्देश्य मैथिली पत्रकारिताक परिचए दऽ चुकल अछि।


मैथिली फिल्म्स http://maithilifilms.blogspot.com/  श्री गजेन्द्र ठाकुर, श्री बेचन ठाकुर, श्री विनीत उत्पल, श्री सुनील कुमार झा आ श्री आशीष अनचिन्हार द्वारा संचालित साइट अछि, ऐपर मैथिली, अंगिका, वज्जिका आ सुरजापुरीक पूर्ण विवरण उपलब्ध अछि। एतए अखन पचाससँ ऊपर पोस्ट उपलब्ध अछि।


अनचिन्हार आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.com/ - एेपर ४८१टा गजल, २२टा कता, बन्द, नात, १२४टा रुबाइ, ७०टा करीब आलेखक अलाबे शेरो-शाइरीसँ संबंधित विडियो सेहो उपलब्ध  अछि‍।


मैथिली हाइकू http://maithili-haiku.blogspot.com/ - ऐ वेबसाइट मैथिलीक साहित्यिक पत्रकारिताक प्रतिमान प्रस्तुत करैत अछि। मैथिली हाइकू (प्राकृत दृश्यतपर ५/७/५) टनका (प्राकृत दृश्यमपर ५/७/५/७/७) हैबून (प्राकृत दृश्यलपर गद्यक एक-दू या तीन अनुच्छेथदक अंतमे ओतबे हाइकू या टनका) हैगा (तत् संबंधी चि‍त्र), शेनर्यू आदिक थ्योरी आ प्रैक्टिस सभ एतए भेट जाएत।


मानक मैथिली http://manak-maithili.blogspot.com/ - ऐ वेबसाइटपर मैथिलीक अन्तर्जालपर मानकीकृत स्वरूप नेपाल आ भारतक मैथिली भाषाशास्त्री लोकनिक मतक अनुसार। मैथिलीक साहित्यिक पत्रकारिताक प्रतिमान प्रस्तुत करैत अछि।


विहनि कथा http://vihanikatha.blogspot.in/ पर, मैथिली कविता http://maithili-kavita.blogspot.in/ पर, मैथिली कथा http://maithili-katha.blogspot.in/ पर आ मैथिली समालोचना http://maithili-samalochna.blogspot.in/ पर उपलब्ध अछि।


विदेह गोष्ठी: (परिचर्चा आ प्रैक्टिकल लैबोरेटरीक प्रदर्शन। किछु विचार डाक आ ई-पत्रसँ सेहो आएल।)- http://esamaad.blogspot.in/p/blog-page_05.html


 मैथिली नाटक रंगमंच फिल्मपर: २८-२९ जनवरी २०१२ स्थान चनौरागंज,झंझारपुर। निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा आधुनिक मैथिली नाटक आ रंगमंचपर: १७-१८ सितम्बर २०११ आ २४-२५ सितम्बर २०११केँ।


 मैथिली गजल, कता, रुबाइपर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा: २६-२७ नवम्बर २०११ आ ०३ आ ०४ दिसम्बर २०११


 मैथिली हाइकू, टनका,शेर्न्यू, हैगा, हैबून पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; १२-१३ नवम्बर २०११ आ १९-२० नवम्बर २०११


मैथिली बाल साहित्यपर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; १५-१६ अक्टूबर २०११ आ २२-२३ अक्टूबर २०११


मैथिली विहनि, लघु, दीर्घ कथा आ उपन्यास पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; २९-३० अक्टूबर २०११ आ ०५-०६ नवम्बर २०११


मैथिली प्रबन्ध, निबन्ध, समालोचना, अनुवाद, मानक मैथिली आ शब्दावली पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०१-०२ अक्टूबर २०११ आ ०८-०९ अक्टूबर २०११


मैथिली महिला आ फेमिनिस्ट लेखन पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०३-०४ सितम्बर २०११ आ १०-११ सितम्बर २०११


 मैथिली कला-शिल्प-संगीत पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; २०-२१ अगस्त २०११ आ २७-२८ अगस्त २०११


 मैथिली हास्य-व्यंग्य पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०६-०७ अगस्त २०११ आ १३-१४ अगस्त २०११


 मैथिली गूगल ट्रान्सलेटर टूलकिट, गूगल ट्रान्सलेट, गूगल लैंगुएज टूल, मैथिली विकीपीडिया, कैथी आ तिरहुता यूनीकोडक एनकोडिंग  पर निर्मली, जिला सुपौलमे अन्तिम परिचर्चा; ०६-०७ दिसम्बर २००८, १३-१४ दिसम्बर २००८, ०५-०६ दिसम्बर २००९, १२-१३ दिसम्बर २००९, ०४-०५ दिसम्बर २०१०, ११-१२ दिसम्बर २०१०, १७-१८ दिसम्बर २०११, २४-२५ दिसम्बर २०११


 मैथिली मे प्राथमिक आ मध्य विद्यालयी शिक्षा मैथिली माध्यमसँ मिथिलामे करेबा लेल निर्मली, जिला सुपौलमे परिचर्चा; ०३ फरबरी २०१२-०४-०८ 


नि‍ष्कलर्षत: ऐ ई-पत्रकारितामे साहित्यिक आ राजनैतिक दुनू पत्रकारिता शामिल अछि जतए, दृश्य आ श्रव्य माध्यमक प्रचुर प्रयोग कएल गेल अछि।]





साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीकेँ सगर राति दीप जरए कहल जाए?


अजित आजाद- प्रभास कुमार चौधरी द्वारा बनारसमे आयोजित सगर राति दीप जरय मे हिन्दी कहानीक पाठ भेल छल। पटनामे आयोजित सगर राति दीप जरयमे सेहो हिन्दीमे कहानी पाठ भेल छल। कथाकार रहथि हृषकेश सुलभ आ संतोष दीक्षित, उर्दू भोजपुरी आ मगहीमे सेहो कथा पाठ भऽ चुकल अछि। महिषी कथा गोष्ठी (१३ अप्रैल १९९७) एक संस्था द्वारा प्रायोजित छल। पूर्णियाँ गोष्ठीकेँ सेहो एक प्रायोजक भेटल छल। पटनामे हम स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, लाइफ इन्स्योरेन्स कॉरपोरेशन आ सुधा द्वारा प्रायोजित करेने छी। एहिमे हर्ज की छैक? सगर राति दीप जरयक मंच सभ लेल खुजल छैक मुदा मैथिलीक शर्तपर नै।


रूपेश कुमार झा त्योंथ: आइ जे ज्ञात भेल अछि मैथिली हेतु शर्मनाक छैक। मैथिली कथा गोष्ठीक नामपर ई सभ की भऽ रहल अछि? छी..।


सभ बइमनमा सभ बैसल अछि मैथिली केर ठिकेदार बनि कऽ एकरा सभसँ यएह आशा कएल जा सकैत अछि। 


विनीत उत्पल: रमानंद झा रमण जी जे परचा वितरण करबैने रहथिन हम ओकरा तखने देखने रही, परचासँ लागल जे हुनकर ज्ञान इंटनेटकेँ लऽ कऽ नहि करे बराबर अछि। अप्पन बड़ाइ सभ कियो कऽ सकैत अछि, दोसराक करी तखन कोनो गप होएत। परचा छपायब कोनो पैघ वा छोट गप नहि अछि मुदा ओइमे जे छपल अछि ओकरा लऽ कऽ गंभीर हेबाक चाही। इंटरनेट/ तिरहुता यूनीकोड केँ लऽ कऽ के कत्ते काज कऽ रहल अछि तकरा लेल ठीक तथ्यक कोनो परचा छपबैक चाही। तखन विश्व्वनीयता बनल रहत। रमणजी एहन विद्वान आ आदरणीय लोकसँ ई उम्मीद नहि छल। मैथिलीक विस्तारसँ मिथिला बढ़त।
अजित आजाद जी केँ स्पष्टीकरण देबाक चाही। मामला गंभीर अछि. हम सभ मैथिली भाषाक लेल काज कऽ रहल छी नहि कि कोर्टमे। एक गलती केँ पुख्ता करैक लेल पहिलुका गलतीक उदहारण नहि देल जा सकैत अछि। ई कहय मे कोनो संकोच नहि जे अजित आजादजी बड़ स्टेमिनाबला आ कर्मठ लोक अछि। बारह घंटा धरि मंच संचालन सामान्य लोक नहि कऽ सकैत अछि, जे हम दिल्ली गोष्ठीमे देखलहुं। हुनकामे किछु दिव्य शक्ति तँ अछि ताहि सँ ओ बड़ गंभीर भऽ कऽ मंच संचालन कऽ सकलखिन। मुदा कनी-कनी गपक वा अनर्गल गपक कारण हुनकर स्तर नीचाँ आबि जाइत अछि। हुनका अहि पर ध्यान देबाक चाही।


जौं टी.ए/ डी.ए क गप अछि तँ प्रकाश जी/ नवीन जी/ अजित आजाद जी सँ अनुरोध जे अहि गप केँ स्पष्ट कएल जाय जे टी.ए/ डी.ए देल गेल अछि वा नै। दिल्लीमे रहैबला लोक तँ ओहिना पहुँचबे कएल, मुदा जे बाहर सँ आयल छल ओकर की हिसाब-किताब छल। जौं ई तीनू गोटेमे कियो अहि मामलाकेँ स्पष्ट करय तँ ठीक नहि तँ अहि मामले मे तीनू गोटेक मौन सहमति बुझल जाय।


उमेश मण्डल:‎ ''मिथिला विश्वविद्यालयक “मैथिली” पत्रिकामे वीणा ठाकुर जगदीश प्रसाद मण्डल आ शिव कुमार झा जीक आलेख मंगबेलन्हि मुदा डिपार्टमेन्टक एकटा प्राध्यापक दुनू गोटेक आलेख हटा देलन्हि।'' हमरे सँ मंगबेने रहथि।


गजेन्द्र ठाकुर:


अजित आजाद जी अही तरहक लूज टाक करैत रहै छथि/ हमरा लग सगर रातिक रजिस्टर क कोपी अछि, की अहाँ ओइ कथा सभक पन्ना बता सकै छी ?


अरविन्द ठाकुर जीक सुपौल गोष्ठीमे सेहो हिन्दी कथाक पाठक सूचना अछि। तँ की सगर राति केँ हिन्दीक गोष्ठी बना देल जाए? बैजू कबिलपुर मे मिथिला राज्य लेल बाजल रहथि तँ की सगर राति केँ मिथिला राज्यक मंच बना देल जाए ? अजित आजाद केँ बुझल छनि जे एल.आइ. सी. आ स्टेट बैंकक एडवर्टीजमेन्टक की पालिसी छै?  की साहित्य अकादेमीक लोगो मात्र एडवर्टीजमेन्ट छल?  नै, ओ स्वामित्व छल जे दिल्लीक कथा गोष्ठीकें सागर राति नै हेबऽ देलकै/अजित आजाद जी अही तरहक लूज टाक करैत रहै छथि/ ओ कबिलपुरेमे यंत्रनाथ जीक सुतबाक चर्चा करैत कहने रहथि -"कहि देल गेलन्हि गेट आउट" तँ की ई सगर रातिक अंग भऽ गेल? सुपौलमे ओ की केने रहथि? उमेश मंडल जी केँ ओ कहलनि जे ऐ बेरुका टैगोर साहित्य सम्मान जगदीश प्रसाद मंडल केँ भेटतनि, मुदा फेर शंकरदेव झाक फोन एलनि उमेशजीकेँ जे अजित आजाद टैगोर साहित्य सम्मानक ग्राउंड लिस्ट बनेलनि आ जगदीश प्रसाद मंडलक पोथीक नाम ग्राउण्डे लिस्टमे  ओ नै देलनि ? ई कथनी करनीमे फर्क किए? “कथा पारस” मे शिव कुमार झा जीक कथा सम्पादक अशोक अविचल देलनि मुदा सहायक सम्पादक अजित आजाद जातिवादी मानसिकताक चलते काटि देलनि (जेना अशोक अविचल कहै छथि)? तहिना मिथिला विश्वविद्यालयक “मैथिली” पत्रिकामे वीणा ठाकुर जगदीश प्रसाद मण्डल आ शिव कुमार झा जीक आलेख मंगबेलन्हि मुदा डिपार्टमेन्टक एकटा प्राध्यापक दुनू गोटेक आलेख हटा देलन्हि। शिव कुमार झा आ जगदीश प्रसाद मण्डलक क समीक्षाक दलित विमर्शसँ सभ घबड़ा गेल छथि? सीरियस डिस्कसन मे अजित आजाद जी ऐ तरहक लूज टाक की साहित्य अकादेमीक इशारा पर कऽ रहल छथि, जे अपन गोष्ठी मे मैथिली पोथीक प्रदर्शनक अनुमति नै देलक?


जगदीश प्रसाद मण्डल, बेचन ठाकुर, कपिलेश्वर राउत, राजदेव मण्डल, उमेश पासवान, अच्छेलालशास्त्री, दुर्गानन्द मण्डल, झाड़ूदारजी आदि श्रेष्ठ कथाकार लोकनिकेँ एकटा पोस्टकार्डो नै देबाक आयोजन मण्डलक निर्णय अद्भुत अछि, ओना तै सँ ऐ लेखक सभक स्टेचरपर कोनो फर्क नै पड़तन्हि। भऽ सकैए ७५म गोष्ठीक आयोजक अशोक आ कमलमोहन चुन्नू वर्तमान आयोजककेँ हुनकर सभक पता सायास वा अनायास नै देने हेथिन्ह आ वर्तमान आयोजक केँ से सुविधाजनक लागल हेतन्हि। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक आयोजनमे सभ धोआधोतीधारी आ चन्दन टीका पाग धारी भोज खा आएल छथि, मुदा बजेबा कालमे अपन आयोजनकेँ बभनभोज बनेबापर बिर्त छथि।ओना ई आयोजन साहित्य अकादेमीक फण्डसँ आयोजित भेल आ एकरा साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी मात्र मानल जाए। मैथिली साहित्यक इतिहासमे ७६ म सगर राति दीप जरयक रूपमे ऐ जातिवादी गोष्ठीकेँ मान्यता नै देल जा सकत। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक जातिवादी चेहरा एक बेर फेर सोझाँ आएल अछि जखन ओ मैथिलीक एकमात्र स्वायत्त गोष्ठीकेँ तोड़ि देलक।





II


जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी...गजेन्द्र ठाकुर द्वारा ........शीघ्र


दि‍नांक ५-७-१९४७ ई.केँ जन्मग ।


भरल-पुरल परि‍वार।


तीन पीढ़ीसँ एक ‍पुरुखि‍याह परि‍वार चलि‍ अबै छल।


जहि‍ना बाबा तहि‍ना पि‍ता छलखिन्ह।


घर लग पोखरि‍-इनार रहने पानि‍क सुवि‍धा छलन्हि।


माता-पि‍ताक संग दीदीयोक परि‍वारक संग मि‍लल-जुलल परि‍वार।


तइ संग अपनो कि‍छु जमीन…


आ गामक जे बहरबैया मालि‍क रहथिन्ह‍ हुनकर खेतो बटाइ करैत छलाह जइसँ खेबा-पीबाक अभाव सेहो नै। एक तँ वंशगतो आधार दोसर पि‍तोक ऊपर पारि‍वारि‍क-समाजि‍क प्रभाव पड़ल छलनि‍ जइसँ कि‍छु अगुआएल वि‍चार रहनि‍।


जहि‍ना भतभोजमे बरी पड़ि‍ते पंच बूझि‍ जाइत अछि जे भोज अंति‍म दौड़मे आबि‍ गेल तँए आब इन्तिजार नै करबाक चाही।


जँ इन्तआजार करब तँ भुखले उठब।


तइसँ नीक जे मारि‍-धूसि‍ झब दऽ कसि‍ ली नै तँ दोख केकर हेतै।


तहि‍ना अंग्रेजी शासन अपन सभ कि‍छु समेटि‍ रहल छल।


१९४२ईं.मे जे तूफानी आन्दोतलन उठल ओ कमल नै, उग्रसँ उग्रतरे भेल जाइत छलै, जेकर परि‍णाम १५ अगस्त  १९४७ईं. छी।


मुदा देशोक दशा एकमुड़ि‍या नै, अपनोमे खटपट होइते छलै।


कतौ जातीय उन्माएद तँ कतौ साम्प्रािदायि‍क उन्मालद।


कतौ धन-सम्पमति‍क तँ कतौ इज्जकत-आवरूक।


जहि‍ना स्व्तंत्रता संग्राम जोर पकड़ने तहि‍ना बंगालक अकाल, बि‍हारक भूमकम (१९३४)क प्रभावसँ प्रभावि‍त छल। स्ववतंत्रताक लड़ाइमे मि‍थि‍लांचलक योगदान देशक कोनो भागसँ कम नै रहल।


एक दि‍सि‍ पुस्तैंनी सोचक मुँहपुरुख तँ दोसर १९४०ईं.क बाद सोशलि‍स्टक पार्टी आ कम्युतनि‍स्टद पाटी राजनीति‍क सोच पैदा करैत रहल।


समाजोक बीच जागरूकताक लहरि‍ चलैत रहल।


जहि‍ना सोशलि‍स्टी पार्टी अपन कि‍छु कार्यक्रम लऽ ठाढ़ छल तहि‍ना कम्युकनि‍स्टा पार्टी।


दरभंगा जि‍लाक पहि‍ल टीम (१९३९-४०) पार्टीक सदस्यहता ग्रहण कऽ चुकल छलाह।


वफादार कार्यकर्ता बनि‍ उतरि‍ चुकल छलाह।


तहि‍ना सोशलि‍स्टोउ पार्टी, गाम-गाम पहुँच चुकल छल।


१९४२ ईं.क जन-आन्दो लन पुस्तैानी सोचमे धक्काप मारलक।


धक्कासँ वि‍चारमे टूट-फाट भेल।


धक्कासँ टूटि‍ नव सोचक संग सेहो ऐल।


सामाजि‍क परि‍वेश पैदा कऽ चुकल जे जमीन्दाारी समाप्तु हेबे करतै, राजा-रजबार ढहबे करतै।


आइ धरि‍क जे जमीन नि‍लामीक प्रथा छल आ मालगुजारी असुलक जुल्मि छल ओ मेटेबे करतै।


नव वि‍चार जन-गणक बीच पैदा लऽ चुकल छल।


मि‍थि‍लांचक बीच झंझारपुर इलाकाक अप्पान प्रति‍ष्ठा‍ रहल अछि‍।


जहि‍ना शि‍क्षाक क्षेत्रमे तहि‍ना आर्थिक क्षेत्रमे।


देशक पैमानामे इलाका पछुआएल नै छल अगुआएल छल।


एकसँ एक महान पुरुष पैदा लऽ चुकल अछि‍।


आजादीक लड़ाइमे खून बहौनि‍हार क्षेत्र छी।


झंझारपुर अंग्रेजक मुख्यि अड्डामे छल।


दमन नीति‍ कतौ चलल तँ अहू क्षेत्रमे चलल।


मि‍थि‍लांचलक बीच झंझारपुर इलाका ओ क्षेत्र छी जइमे मि‍थि‍लाक इति‍हास दर्शन, अखनो झलकि‍ रहल अछि‍।


अखनो पाथरमे फूल, माटि‍-पानि‍मे सुगंध जीवि‍त अछि‍‍।


क्षेत्रक गाम-समाजमे दर्जनो जाति‍ दर्जनो सम्प्रजदाय, अदौसँ अखन धरि‍ मि‍लि‍-जुलि‍ एकठाम बास करैत एलाह अछि‍।


भूमि‍योक शक्तिम‍ ओहने उर्वर अछि‍ जे देशक पहिल श्रेणीक सघन अवादीबला क्षेत्र अछि‍।


बीसम सताब्दीेक पाँचम दशक देशकेँ ऐ रूपे आन्दोरलि‍त कऽ देलक जे लोक जन-गण घर-परि‍वारसँ आगू बढ़ि‍ देशक लेल अपनाकेँ अर्पित कऽ देलक।


जहि‍ना दशकक पूर्वाद्ध आन्दोेलि‍त केलक तहि‍ना एक संग अनेको प्रश्न  उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल।


ओना एकसंग खुशी आइ धरि‍क देशक इति‍हासमे कहि‍यो नै भेल छल जते भेल।


जेना-जेना आजादीक झंडा फहरबैक दि‍न लगि‍चाइत गेल तेना-तेना खुशीमे बढ़ोतरी होइत गेल।


अाधा दशक जहि‍ना जगैमे लगल तहि‍ना अाधा दशक रंग-रंगक सपना देखैमे खुशीसँ बीतल। समाजक बीच तँ नै मुदा देशक राजनीति‍मे आर्थिक मुद्दा स्पँष्टश वि‍भाजि‍त कऽ देने छल।


कि‍यो देशक पूर्ण आजादी देखैत छलाह तँ कि‍यो नेङरा आजादी बुझैत छलाह।


ओना देशक भीतर रौदी, भुमकम, जाति‍-सम्प्र दायक उन्मा द एते जोर पकड़ि‍ लेने छल जे भीतर-बाहरक लड़ाइमे राजनीति‍क दल ओझराएल छल।


ओना तेलांगना लड़ाइ देशक नक्शममे आबि‍ चुकल छल।


भारत-पाकि‍स्ताकन वि‍भाजनक एक-एक जनमानसकेँ झकझोरि‍ रहल छल।


दसो बर्खक जेलक जुड़ल हृदए संगी सभक बीच टुटि‍ रहल छलनि‍।


काला-पानी जहलमे संगे छलाह मुदा गाम-समाज वि‍भाजि‍त भऽ गेलनि‍। १५ अगस्तम (१४ अगस्ताक बारह बजे राति‍क उत्तर)केँ ि‍तरंगा झंडा फहराएल।


अंग्रेजी शासक अन्त  भेल।


जन-मानसक हृदैमे खुशीक लहरि‍ असथि‍रो नै भेल छल आकि‍ गाँधीजीकेँ राजधानीमे दि‍न-दहार गोली लगलनि‍, जे शासनक स्प ष्टक चि‍त्र प्रस्तुेत करैत अछि‍।


संवि‍धान सभामे संवि‍धान बनब शुरू भेल।


संवि‍धान बनल 1952 ई.सँ आम चुनाअो प्रक्रि‍या शुरू भेल। राज्यँ आ केन्द्रँ सरकार बनैक चुनाव भेल।


नव सरकारक गठन भेल। ओना देशक वि‍स्ता रो अंग्रेजी शासनसँ भेल, मुदा हजारो समस्यानक बीच पटकि‍ देलक।


नव सरकारक बीच हजरो समस्याो उपस्थिा‍ति‍ भऽ गेल।


गाम-गाममे वकास्ता जमीनक लड़ाइ पसरि‍ गेल छल।


राजनीति‍क सभ पार्टीक एकमुँहरी समर्थन रहने लड़ाइ सफलो भेल। ……..


…………..


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१९५०ईं.मे पि‍ताक नि‍धन भेलनि‍।


जखन तीन बर्खक रहथि।


दू भाँइक भौयारीमे छह बर्खक भाय (भैया) रहथिन्ह‍।


पि‍ताजी करीब एक मास बेमार रहलाह।


इलाजोक नीक बेवस्थार नै, ताबत दरभंगा अस्परताल नै बनल छलै।


झाड़-फूकसँ लऽ कऽ जड़ी-बुटीक इलाज समाजमे चलैत छल।


आजुक परि‍वार जकाँ नै जे ने बेटा बाप-माएकेँ देखैत अछि आ ने माए-बाप बेटा-पुतोहुकेँ।


कारण अनेक अछि‍ मुदा अपनो परि‍वारक जँ जि‍म्मा  नै लऽ चलब तँ अनेरे हम सभ मातृभूमि‍, देश महान कहै छि‍ऐ।


इमानदारी पूर्वक हृदैपर हाथ रखि‍ कऽ कहै पड़त जे देलि‍ऐ की‍ आ लेलि‍ऐ की?


हमरा नै भेल तेकर दोखी हम नै?


एक तँ अपनो परि‍वारमे समांग दोसर गामक कोनो जाति‍ एहन नै जइ जाति‍सँ पारि‍वारि‍क संबंध नै छलन्हि।


तइ संग जाति‍यो नमहर टोल।


गामक चारू कातक गाममे कुटुमैती सेहो छलन्हि आ अखनो छन्हि।


ओहो सभ अपनामे समए ि‍नर्धारि‍त कऽ अबैत-जाइत रहैत छलाह।


कान्ही  सेहो नीक बनौलनि‍।


एकसँ एक खि‍स्स कर आ एकसँ एक गप केनि‍हार।


तँए दि‍न-राति‍मे कोनो अंतर नै।


अभाव परि‍वारमे नहि‍ये छलन्हि तँए अनुकूल परि‍स्थिा‍ति‍ बनल छल।


अनुकूल परि‍स्थिि‍ति‍ बनने परि‍वारक भवि‍ष्यट दि‍सि‍ सेहो नजरि‍ पड़लनि‍।


भैयाक बि‍आह भऽ गेल रहनि‍।


चारि‍-पाँच बर्खमे बि‍आह होइत छल। तहूमे मौसी (सात-भाए बहि‍नमे सभसँ जेठ मौसी आ सभसँ छोट माए।) वि‍धवा भऽ गेलीह।


मौसीकेँ मात्र दुइयेटा बेटी, परि‍वार अन्त। भऽ गेलनि‍।


मौसीक प्रभाव माइक ऊपर, तँए जेठ-भायक बि‍आह पाँचे बर्खमे भऽ गेलनि‍।


भवि‍ष्य दि‍सि‍ दृष्टिय‍ पड़ि‍ते हिनकापर नजरि‍ पड़लनि‍।


ओछाइन पकड़ल रोगि‍क अवस्थात ओहेन होइत जेकर कोनो नि‍श्तुखकी नै।


जीवि‍यो सकै छथि‍ मरि‍यो सकै छथि‍।


तँए एहेन अवस्थािमे वि‍चारोमे इमानदारी अबै छै।


मछधी (ददि‍या ससुर) परि‍वार सुभ्यैस्तख।


ददि‍या ससुरक कुटुमैती गोधनपुर मौसीक परि‍वारमे।


मौसीक आवाजाही बेरमा बहि‍न ऐठाम।


ददि‍या ससुर सुराग भीड़ा गोधनपुरक मौसाक छोट भाए संग अाबए-लगलाह।


छल-प्रपंच वि‍हीन मौसी माएकेँ कहि‍ देलखि‍न।


जेठ-छोटक वि‍चार रखैत माए आश्वासन दऽ देलखि‍न जे अखन तँ अपने अछोइन धेने छथि‍, राजा-दैवीक कोनो ठेकान नै छै, तँए अखन कि‍छु नै, बुझल जेतै।


मछधीक परि‍वार बेवहारि‍क दृष्टि-‍ये दब।


ताड़-खजुरक गाछ बेसी।


एक-लगाइत बुढ़ा (ददि‍या ससुर) अपन पल्लोत भरि‍ धोती आ चद्दैर नेनहि‍ पहुँचि‍ मृत्युटक आखि‍री समए तक बेरमामे रहि‍ गेला।


मृत्युपक अंति‍म राति‍, डि‍बि‍या जरि‍ते सभकेँ अन्हातर बूझि‍ पड़ए लगलनि‍।


जे बोल जीवि‍त छल, बन्न भऽ गेल।


हाथ-पएरक डोलब बन्न भऽ गेल।


माएकेँ लगमे बजा बुढ़ा (ददि‍या ससुर) गोधनपुरबला मौसाकेँ सम्बोँधित करैत कहलखि‍न- “समधि‍, ई बच्चाज हमरा दऽ दि‍अ। गोवर पाथैले पोती देबनि‍।”





मि‍टि‍ंगक प्रस्तालव जकाँ गोधनपुरबला मौसा समर्थन करैत कहलखि‍न ई तँ घर कथा भेल, ऐमे कि‍ हँ-हूँ कहल जाएत।’





तही बीच मौसी टपकि‍ गेली- “बहि‍न, अखन बाल-बोध अछि‍ हि‍नका बच्चा  देलि‍यनि‍। तीनि‍ये बर्खमे बि‍आहक बात पक्का भऽ गेल।”





अखन धरि‍ परि‍वारमे अपनासँ गाए दुहैक, हर जोतैक आ खुटापर बच्छार बधि‍या करेबाक चलनि‍ नै रहए।


पि‍ताक परोछ भेनहुँ समैपर स्कूचल पहुँचलथि। गाममे लोअर प्राइमरी स्कूाल छल।





भीतघर रहने भुमकम (१९३४) ई.मे खसि‍ पड़ल।


राजा-दैव भेने जहि‍ना लोक घराड़ी बदलि‍ लइए तहि‍ना स्कूचलक घराड़ी बदलल।


ओइ समैमे तीनटा कचहरी बेरमामे छल।


दछि‍नबरि‍या कचहरीक घरमे स्कू़ल चलए लगल।


पछाति‍ ओहो बदलि‍ अखुनका जगहपर पहुँचल।





बेरमा पंडि‍तक गामक श्रेणीमे गनल जाइत अछि‍।


परोपट्टाक लोक गेठरी झाकेँ जनैत छन्हिा‍, जि‍नका सात सए बीघा जमीन राज-दरभंगासँ भेटल छलनि‍।


ओना ओ जमीन बेरमा सीमामे नै पड़ैत अछि‍ मुदा दू कोस हटि‍ कऽ छल।


आब नै छन्हिब‍।





दोसर बैचमे चारि‍ गोटे, वेद, व्या करण साहि‍त्य सँ आचार्य केलनि‍।


दू गोटेकेँ मेडल भेटलनि‍।


ओना तीन गोटे गामसँ बाहर वि‍द्यालय पकड़ि‍ लेलनि‍, मुदा एक गोटे (मेडलधारी) गाममे नून-तेलक दोकान कऽ लेलनि‍।


‘पढ़े फारसी बेचए तेल’ चरि‍तार्थ भऽ गेल।


मुदा अपन लगन आ मेहनति‍सँ तीनू गोटेकेँ आर्थिक क्षेत्रमे पछुआ देलनि‍।


समाजपर बहुत अधि‍क प्रभाव पड़ल।


मेहनती गाम तहि‍यो छल अखनो अछि‍।


आन गाममे कमो पढ़ल-लि‍खल लोककेँ लोक चुटकी लैत अछि‍, से बेरमा नै अछि‍।


झंझारपुर बाजारसँ माथपर वस्तु‍-जातक (दोकानक) मोटरी बैशाखक रौदमे अनैत छलाह, जे सभ देखैत छल।


गाममे एक्केटा दोकान।


सबहक लाट दोकानसँ।


ओना एकटा झंझारपुरक बनि‍या सेहो आबि बेरमामे‍ दोकान खोलने‍ रहथि‍।


झंझारपुरक बनि‍याक परि‍वार भुमकममे नष्टम भऽ गेलनि‍।


ईटाक घर रहने सभ दबा कऽ मरि‍ गेलनि‍।


वएह बेरमा आबि‍ बसि‍ गेलाह।





पि‍ताक मृत्यु क कि‍छुओ नै यादि‍ छन्हि‍, ि‍सर्फ गाछीमे जरैत अछिया टा.....। ओना अंग्रेजी शि‍क्षा सेहो गाममे कम प्रति‍शतमे पहुँचि‍ चुकल छल।


गामक उत्तर नवानी वि‍द्यालय आ दछि‍न दीप वि‍द्यालय चलि‍ रहल छल।


तमुरि‍या हाई स्कूंल आ झंझारपुर हाई स्कूील सेहो बनि‍ गेल छल।


गामक जे तीनू पंडि‍त बाहर रहैत छलाह हुनको सबहक परि‍वार गामेमे रहैत छलनि‍।


अपनो छुट्टी गाममे बि‍तबैत छलाह।


एकडोरि‍मे तीनू गाम (नवानी, बेरमा, दीप) रहि‍तो सामकजि‍क वातावरणमे बहुत अधि‍क भि‍न्ननता अछि‍।


एक तँ परगन्नाक प्रभाव दोसर सामाजि‍क बनाबट।


जइ नवानी दीपमे ताड़-खजूरक गाछ सेहो भरपुर अछि‍ तइठाम बेरमामे एक्कोटा गाछ नै अछि‍।


दोसर कारण इहो अछि‍ जे मध्य  वर्गीय जाति‍ बहुसंख्यगक अछि‍।


सन् सैंतालीस...


भारतक स्वतंत्रताक त्रिवार्णिक झण्डा फहरा रहल छल।


मुदा कम्यूनिस्ट पार्टीक माननाइ छल जे भारत स्वतंत्र नै भेल अछि।


असली स्वतंत्रता भेटब बाँकी छै...


मिथिलाक एकटा गाम…


जन्म होइत अछि एकटा बच्चाक.. ओही बर्ख ...


ओइ स्वतंत्र वा स्वतंत्र नै भेल भारतमे...


पिताक मृत्यु...गरीबी..


केस मोकदमा...


वंचितक लेल संघर्षमे भेटलै स्वतंत्र भारतक वा स्वतंत्र नै भेल भारतक जेल....


आइ बेरमामे पाँच-दस बीघासँ पैघ जोत ककरो नै..


ओइ गाम मे आइ जीवित अछि आइयो किसानी आत्मनिर्भर संस्कृति...


पुरोहितवादपर ब्राह्मणवादक एकछत्र राज्यक जतऽ भेल समाप्ति..


संघर्षक समाप्तिक बाद जिनकर लेखन मैथिली साहित्यमे आनि देलक पुनर्जागरण...





जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी...गजेन्द्र ठाकुर द्वारा ........शीघ्र



 गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com

http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html 



२. गद्य
२.१.किशोरीकान्त मिश्र जी सँ नबोनारायण मिश्र जी द्वारा लेल साक्षात्कार


  


२.२.ओमप्रकाश झा-१. बहुरूपिया रचना मे २. घोघ उठबैत गजल






२.३.१.नवेंदु कुमार झा- केन्द्रीय विश्वविद्यालयक लऽ कऽ राज्य आ केन्द्र मे बढ़ि रहल हार/ उत्साहक संग समाप्त शताब्दी समारोह- डा॰ सच्चिदानंद उपेक्षा पर निधन परिषद् भेलाह नाराज। २. सुजीत कुमार झा - राम जन्मोत्सवपर विशेष/ मिथिलाक कण कणमे रामसीता ३. किशन कारीगर- अकछ भेल छी।/(एकटा हास्य कथा)








२.४.विहनि कथा-१.ओमप्रकाश झा २.अमित मिश्र ३.चंदन कुमार झा ४.आशीष चौधरी





२.५.१.रवि भूषण पाठक- ओक्क र तोहर हम्म्र सपना २.शि‍व कुमार झा ‘टि‍ल्लू.’- बहि‍रा नाचए अपने ताल





२.६.गजेन्द्र ठाकुर- शब्दशास्त्रम् / दिल्ली





२.७.१.आशीष अनचिन्हार- "सगर राति दीप जरय"केर अन्त आ साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठीक उदय २.प्रियंका झा- सगर राति दीप जरय पर साहित्य अकादेमीक कब्जा/ सरकारी पाइपर भेल बभनभोज/ साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त- रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल- ७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली ३.सुमित आनन्द- सोसाइटी टुडेक लोकार्पण





२.८.१.जगदीश प्रसाद मण्ड लक कथा-फागु २.अतुलेश्वर- मातृभाषा दिवस क बहन्ने  






ओमप्रकाश झा
१. बहुरूपिया रचना मे २. घोघ उठबैत गजल
१. बहुरूपिया रचना मे








गजल मे हम रूचि राखैत छी। संगहि मैथिली मे थोड बहुत गजल सेहो लिखै छी आ गजलक पोथी सब पढबाक इच्छा रहै ए। मैथिली मे बहुत कम गजल संग्रह अछि आ ओहो सुलभ नै होइत रहै ए। एहन परिस्थिति मे हमरा श्री अरविन्द ठाकुरजीक सद्यः प्रकाशित मैथिली गजल संग्रह "बहुरूपिया प्रदेश मे" पढबाक अवसर भेंटल आ हम एहि पोथी केँ आद्योपान्त पढलहुँ।





सबसे पहिने हम श्री अरविन्द ठाकुरजी केँ मैथिली गजलक पोथी लिखबाक लेल बधाई दैत छियैन्हि। मैथिली गजलक उत्थान लेल प्रत्येक डेग हमरा महत्वपूर्ण लागै ए। पोथीक गेट अप बड्ड सुन्नर अछि। टाईप आ कागतक कोटि सेहो उत्तम अछि। पोथीक भूमिका गजलकार अपने लिखने छथि आ ओहि मे गजल आ एहि संग्रहक सम्बन्ध मे बहुत रास गप सब कहने छथि। जेना पृष्ठ संख्या सातक दोसर पारा मे गजलकार कहैत छथि जे "मैथिलीक मिजाजक सीमा (इ मैथिलीक नहि, हमर अपन सीमा भऽ सकैत अछि) केँ देखैत गजलक व्याकरण (रदीफ, काफिया, मिसरा, मतला, मकता आदि)क स्थापित मापदंडक कसबट्टी पर हमर सभ गजल खरा उतरत तकर दाबी तऽ नहिए टा अछि बल्कि हम तँ इ सकारय चाहै छी जे--------------------------------- हमर सीमाक कारणेँ प्रस्तुत गजल मे कएक जगह सुधि पाठक लोकनि केँ त्रुटि भेटि सकैत छनि।" एहि पाराक अन्त मे ओ कहै छथि जे बहरक दोख किछु शेर मे भेटि सकैत अछि। हम गजलकारक सराहना करैत छी जे ओ भूमिका मे अपने कएक ठाम बहरक आ आन दोख हएब स्वीकार कएने छथि। पोथी केँ आद्योपान्त पढला पर हमरा इ नै बुझाएल जे एहि संग्रहक गजल सब कोन-कोन बहर मे लिखल गेल अछि। अरबीक कोनो टा बहर मे कोनो गजल नहिए अछि, मैथिली मे आइ-काल्हि प्रयुक्त होइ बला सरल वार्णिक बहर मे सेहो कोनो गजल नै अछि। गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे इ लिखबाक चाही छल जे कोन बहर मे गजल लिखल गेल अछि। जँ इ "आजाद-गजल"क संग्रह थीक, तँ हुनका एहि बातक उल्लेख करबाक चाही छल। भूमिकाक उपरोक्त पाराक शुरू मे गजलकार कहै छथि जे मैथिलीक मिजाज केँ देखैत एहि मे उर्दू-हिन्दी गजलक मिजाजक नकल करबाक प्रयास कएल जाइत तँ एकरा बुधियारी नहिए टा कहल जायत आओर सफलता सेहो नहि भेंटत। हम हुनकर गप सँ सहमत छी जे नकल करब उचित नहि। मुदा एकटा गप हम कहऽ चाहैत छी जे प्रत्येक विधाक एकटा नियम होइत छै आओर जाहि क्षेत्र मे ओहि विधाक उदय भेल रहैत छै ओहि क्षेत्र मे स्थापित भेल नियमक पालन केने बिना कोनो रचना मूल विधा मे कोना भऽ सकैत अछि। जेना मैथिली मे समदाउन आ सोहरक परम्परा छैक आ जँ पंजाबी मे वा गुजराती मे वा की कोनो आन भाषा मे समदाउन आ सोहर गाबऽ चाही तँ नियम कोना बदलि जेतैक। जँ नियम बदलतै तँ ओ दोसर चीज भऽ जेतैक। तहिना गजल अरब क्षेत्र मे जन्म लेलक आ इ स्वाभाविक छै जे एकर नियम (व्याकरण) ओहि क्षेत्रक स्थापित मानदण्डक आधार पर बनल। स्थापित मानदण्डक पालन करब नकल नहि कहल जा सकैत अछि। आ जे नकलक गप करी तँ 'गजल' कहब अरबी-हिन्दीक नकल थीक। एक दिस गजलकार 'गजल' कहबाक लोभ नै छोडि रहल छथि आ दोसर दिस गजलक व्याकरणक नियम पालन केँ नकल कहै छथि, इ उचित नै बुझाएल। गजल स्थापित मानदण्ड पर जँ नै कहल गेल तँ रचना केँ गजलक स्थान पर दोसर नाम देल जा सकैत अछि।





पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए। जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु, इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छैन्हि।





गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधार पर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि। बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै भऽ सकैत अछि।





भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग स्थान राखत।











घोघ उठबैत गजल


मैथिली गजलक पहिलुक प्रकाशित पोथी "उठा रहल घोघ तिमिर" पढबाक सौभाग्य भेंटल। ऐ गजल संग्रहक गजलकार श्री विभूति आनन्द छथि। एहि पोथी मे कुल चौंतीस गोट गजल अछि। पूरा पोथी केँ एकहि बैसार मे पढि गेलहुँ आ बेर-बेर पढलहुँ। सबसे पहिने हम श्री विभूति आनन्दजी केँ मैथिली गजलक पहिलुक संग्रह प्रकाशित करबा लेल धन्यवाद दैत छियैन्हि। 


एहि पोथीक भूमिका मे गजलकार कहै छथि जे "मैथिलीक गजल सोझे-सोझ हिन्दी सँ प्रभावित अछि मुदा हिन्दी जकाँ जमल नञि अछि एखनो धरि।" आगू हुनकर कहनाई छैन्हि- "पारम्परिक व्याकरण सम्बन्धित अगणित त्रुटि सभ ठाम लक्षित होएत। ओना हम दुस्साहसपूर्वक साहस करैत रहलहुँ अछि जे कथ्य-सामंजस्य लए व्याकरण दिस सँ यदि मूँहो घूमा लेल जाए तँ कोनो हर्ज नञि। किए तँ हम मानैत छी जे ई पाठ्यक्रमक वस्तु नञि अछि। विद्यार्थी मूर्ख नञि बनत। तैं की ------------------------ व्याकरण सँ भयभीत भऽ नञि लिखल जाए।" गजलकारक पहिलुक कथनक सम्बन्ध मे हमर निवेदन अछि जे गजलक परम्परा अरबी-फारसी सँ शुरू भेल अछि आ ओतहि सँ आन भारतीय भाषा मे पसरल अछि। हिन्दी-उर्दू मे गजल कहबाक परम्परा मैथिली सँ पहिने शुरू भेल, तैं बहुसंख्य लोक दिग्भ्रमित भऽ जाइत छथि जे मैथिलीक गजल हिन्दी गजलक नकल छी वा ओइ सँ प्रभावित भेल अछि। गजलकार सेहो एहि मिथ्या धारणा सँ प्रभावित छथि। आब गजलक व्याकरण थोड-बहुत समन्जनक संग सब भाषा मे तँ एक्के रहत। ऐ स्थिति केँ हमरा हिसाबेँ "प्रभावित भेनाई" कहबाक कोनो औचित्य नै अछि। गजलकारक दोसर कथन देखि हम निराश भेल छी। पता नै किया एखन धरि जे दुनू गजल संग्रह (सबसँ पहिलुक आ सबसँ अंतिम प्रकाशित) पढलहुँ, एहि दुनू मे गजलकार कथ्य-सामंजस्यक आगू व्याकरण केँ कोनो मोजर नै देबऽ चाहैत छथि। एकटा गप मोन रखबाक चाही जे साहित्यक निर्माण वैयाकरणिक अनुशासनक बादे सफल भेल अछि। इ फराक गप अछि जे समय-काल आ स्थानक हिसाबेँ सर्वमान्य परिवर्तन व्याकरण मे होइत रहल छैक। बिना वैयाकरणिक अनुशासनक भाषा पढबा, लिखबा आ बाजबा जोग रहत? जिनका मे साहित्य निर्माणक माद्दा छैन्हि, हुनका मे व्याकरण केँ पालनक साहस अबस्स हेबाक चाही।


आब हम एहि संग्रहक गजलक सम्बन्ध मे किछु गप कहऽ चाहब। इ गजल संग्रह ओहि समय मे लिखल गेल अछि जखन मैथिली गजलक व्याकरण आ बहरक सम्बन्ध मे बहुत बेसी जनतब सार्वजनिक नै छल। हम एकरा एना कहऽ चाहब जे इ गजल संग्रह "अनचिन्हार आखर" जुग सँ पूर्वक गजल अछि जखन बहर, रदीफ आ काफियाक नियमक पालनक विषय मे बहुत रास गप सर्वजन सुलभ नै छल। एहि हिसाबेँ जँ ऐ संग्रहक गजल सभ मे बहरक दोख छैक तँ इ स्वभाविक बुझाईत अछि। एहि संग्रहक कोनो टा गजल कोनो बहर मे नै अछि। तैं ऐ संग्रहक वैध गजल (जाहि मे काफियाक नियमक पालन भेल हुए) सभ केँ "आजाद-गजल"क श्रेणी मे राखल जा सकैए। आब गजलक काफिया आ रदीफक सम्बन्ध मे किछु गप। एहि संग्रहक बहुत रास गजल मे काफिया आ रदीफक नियमक पालन भेल अछि। मुदा कएक गजल मे रदीफ आ काफियाक गलती अछि। जेना पृष्ठ चौदह पर मतला देखला पर बुझाईत अछि जे "इ मौसम" रदीफ अछि आ "लागैए" आओर "उलाबैए" काफियायुक्त शब्द अछि। मुदा दोसर शेर आ आगूक आन शेर मे एकर पालन नै भेल अछि आओर शेर सभ बिना रदीफक "अ" काफियायुक्त अछि। पृष्ठ पन्द्रह पर सेहो यैह दोख अछि, जाहि मे मतला मे रदीफ "कहाँ रहल"क प्रयोग अछि आ आन शेर सभ बिना रदीफक "अल" काफियायुक्त अछि। एहने दोख पृष्ठ सोलह मे देखल जा सकैत अछि, जतय मतला मे "करै छह" रदीफ मानल जयबाक चाही। ओना ऐ गजलक आन शेर सभ मे दू टा काफियाक सुन्नर प्रयोग अछि, जे नीक लागैए। हमरा हिसाबेँ काफियाक दोख पृष्ठ बीस, बाईस, चौबीस, पचीस, अट्ठाईस, उनतीस(संयुक्ताक्षर काफियाक नियमक दोख), बत्तीस आ सैंतीस मे सेहो अछि। एकर सबहक विस्तृत वर्णन देब हम अपेक्षित नै बूझि रहल छी, कियाक तँ इ हमर उद्देश्य कथमपि नै अछि। गजल संग्रहक सब गजलक विषय-वस्तु नीक अछि आ गजलकार अपन भावना नीक जकाँ प्रकट केने छथि।


किछु गजलक काफिया आ रदीफक दोख जँ कात कऽ कऽ देखी, तँ इ गजल-संग्रह एकटा नीक गजल-संग्रह अछि। गजलकारक गजल कहबाक क्षमता सेहो नीक बुझाईत अछि। हमरा ई अचरज लागि रहल अछि जे ऐ संग्रहक बाद गजलकारक दोसर गजल-संग्रह किया नै आएल अछि। एकर कारण तँ गजलकारे केँ पता हेतैन्हि, मुदा अपन अनुभवक आधार पर हम कहऽ चाहै छी जे श्री विभूति आनन्द नीक गजल लिख सकैत छथि। जँ बहरक विचार नै करी, तँ २०१२ मे आएल श्री अरविन्द ठाकुरजीक गजल-संग्रह सँ करीब एकतीस बर्ख पहिने १९८१ मे लिखल गेल एहि संग्रहक गजल सब उम्दा कहल जा सकैत अछि। एकर कारण इ जे एहि संग्रहक गजल सब मे काफियाक नियम-पालनक प्रतिशत वर्तमान समयक संग्रह सब सँ बेसी अछि। कथ्यक मजबूती सेहो नीक कोटिक अछि। खाली कुहरल तुकमिलानी केने गजल नै कहल जा सकैत अछि, इ गप एहि संग्रह केँ पढलाक बाद एखुनका गजलकार सभ केँ सेहो बुझेतन्हि, इ आशा अछि। इहो एकटा अचरजक विषय अछि जे जखन मैथिली मे नीक गजल एतेक साल पहिनो कहल गेल छल, तखन एकर बाद गजलक विकास-यात्रा पचीस-तीस बर्ख धरि कतऽ आ किया ठमकि गेल। बीचक अवधि मे मैथिली गजलक विकासक धार मे बान्ह किया बनि गेल छल, इ विचारणीय गप अछि। ओना आब इ बान्ह टूटि रहल अछि आ आशाक नब जोति मे मैथिली गजलक घोघ उठि रहल अछि।





ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.नवेंदु कुमार झा- केन्द्रीय विश्वविद्यालयक लऽ कऽ राज्य आ केन्द्र मे बढ़ि रहल हार/ उत्साहक संग समाप्त शताब्दी समारोह- डा॰ सच्चिदानंद उपेक्षा पर निधन परिषद् भेलाह नाराज। २. सुजीत कुमार झा - राम जन्मोत्सवपर विशेष/ मिथिलाक कण कणमे रामसीता ३. किशन कारीगर- अकछ भेल छी।/(एकटा हास्य कथा)








नवेंदु कुमार झा


केन्द्रीय विश्वविद्यालयक लऽ कऽ राज्य आ केन्द्र मे बढ़ि रहल हार


बिहार मे केन्द्रीय विश्वविद्यालयक स्थापनाक लऽ कऽ केन्द्र आ राज्य सरकारक मध्य बनल गतिरोध समाप्त नहि भऽ रहल अछि। एक दिस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोतीहारी मे केन्द्रय विश्वविद्यालयक स्थापित करबा पर अड़ल छथि तऽ दोसर दिस केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल गया मे स्थापित करबा पर जोर दऽ रहल छथि। एहि मामिला मे तीन दिन पहिने मुख्यमंत्री श्री सिब्बल के चिट्ठी लिखि मोतीहारी मे विश्वविद्यालय स्थापित करबाक मांग दोहरौलनि अछि। एहि मध्य जनतब भेटल अछि जे गया मे विश्वविद्यालय स्थापित करबाक लेल केन्द्र सरकार के मंत्रालय जमीन उपलब्ध करा देलक अछि। केन्द्रीय विश्वविद्यालयक कुलपति डाक्टर जनक पाण्डेय एकर पुष्टि करैत कहलनि अछि जे ई सूचना भेटल अछि जे गया मे जमीनक संदर्भ मे मानव संसाधन विकास मंत्रालय आ रक्षा मंत्रालयक मध्य सहमति बनि गेल अछि। उल्लेखनीय अछि जे केन्द्रीय विश्वविद्यालयक मामिला दू वर्ष सॅ श्री कुमार आ श्री सिब्बलक मध्य चिट्ठी का आदान-प्रदान मे उलझि कऽ रहि गेल अछि। विश्वविद्यालयक स्थापना गया, मोतीहारी आ पटना मे सॅ कोनो जगह पर हो एहि पर एखन धरि कोनो सहमति नहि बनि सकल अछि। हालांकि श्री सिब्बल एहि मामिला पर एखनो राज्य सरकारक संग सामंजस्य स्थापित करबाक प्रयास कऽ रहल छथि।
प्रदेश मे उच्च शिक्षक विकासक लेल प्रस्तावित केन्द्रीय विश्वविद्यालयक जगह कऽ लऽ कऽ प्रदेश मे राजनीति सेहो गर्मा रहल अछि। मोतीहारी आ दूनू ठाम विश्वविद्यालयक स्थापनाक लेल आंदोलन चलि रहल अछि। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एहि सॅ पहिने 29 फरवरी 2012 के सेहो श्री सिब्बल के चिट्ठी लिखि मोतीहारी मे विश्वविद्यालयक स्थापित करबा पर जोर दैत गया मे विश्वविद्यालय स्थापित करबाक विरोध कराने छलाह। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री जनतब देने छलाह जे गयाक पायनपुर मे प्रस्तावित जगह ऐतिहासिक आ सांस्कृतिक केन्द्र अछि जे गयाक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सॅ 25 किलोमीटर दूरी पर अछि। श्री सिब्बल खेद व्यक्तिक कयलनि जे राज्य सरकार केन्द्रीय विश्वविद्यालयक स्थापनाक लेल मोतीहारीक अलाबा कोनो विकल्प नहि देलक। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री गया मे विश्वविद्यालयक स्थापनाक प्रस्ताव स्वीकार करबाक अनुरोध करैत कहलनि जे बिहार मे केन्द्रीय विश्वविद्यालयक अपन अस्थायी परिसर के बदलबाक दबाब अछि। पहिनहि उचित जगहक खोज मे किछु वर्ष गमा देल गेल अछि। ओ छात्र सभके गुणवतापूर्ण शिक्षा देबाक राष्ट्रीय काज मे सहयोग करबाक अपील कयलनि अछि। श्री सिब्बल बिहारक मुख्यमंत्रीक ओहि शिकायत के निर्मूल जनबैत कहलनि अछि जे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु, बिहार आ हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेश मे विश्वविद्यालय स्थापित करबा मे एक मापदंड अपनाओल गेल अछि। श्री कुमार शिकायत कयने छलाह जे विभिन्न प्रदेश मे केन्द्रीय विश्वविद्यालयक स्थापनाक लऽ कऽ फराक-फराक मापदंड अपनाओल जा रहल अछि।
श्री सिब्बल किछु दिन पहिने मुख्यमंत्री के चिट्ठी लिखि एहि बात पर जोर देने छलाह जे बिहार मे केन्द्रीय विश्वविद्यालय हन ठाम स्थापित कयल जाय जे हवाई मार्ग आ आन यातायात सम्पर्क सॅ जोड़ल रहबाक संगहि वास्तविक आ आधारभूत संरचना सॅ परिपूर्ण हो। मुख्यमंत्री तीन दिन पहिने चिट्ठी लिखि मोतीहारी मे विश्वविद्यालय स्थापित करबा पर जोर दैत कहने छलाह जे मोतीहारी ऐतिहासिक जगह अछि। एहि ठाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधीक स्मरण जुड़ल अछि। ओ स्पष्ट कयलनि अछि जे मोतीहारी केन्द्रीय विश्वविद्यालयक स्थापनाक लेल उपयुक्त जगह अछि आ सरकार सभ तरहे सुविधा आ आधारभूत संरचना उपलब्ध करैबाक लेल तैयार अछि।

उत्साहक संग समाप्त शताब्दी समारोह


डा॰ सच्चिदानंद उपेक्षा पर निधन परिषद् भेलाह नाराज।
बिहारक स्थापनाक सय वर्ष पूरा होयबाक अवसर पर प्रदेश भरि मे आयोजित कयल गेल बिहार शताब्दी समारोह समाप्त भऽ गेला। तीन दिनक एहि समारोहक दरमियान राजधानी पटना सहित पंचायत स्तर धरि कतेको र्काक्रम सम्पन्न भेल। तीन दिन धरि सम्पूर्ण प्रदेश में पाबनि बिहार जकां वातावरण बनल रहल। जिला, प्रखंड आ पंचायत सभ मे सेहो सरकारी आ गैर सरकारी स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कयल गेल। राजधानी पटना मे सम्पन्न तीन दिनक समारोह मे विभिन्न क्षेत्रक कतेको नामी गिरामी व्यक्ति भाग लऽ प्रदेशवासीक उत्साह मे सहभागी बनलाह। पटनाक ऐतिहासिक गांधी मैदान मे लोकप्रिय कार्यक्रम आ श्री कृष्ण स्मारक भवन मे शास्त्रीय संगीत समारोहक आनंद लोक सभ उठौलनि। 24 लाख वर्ग फीट मे बनल मुख्य समारोह स्थल पर विभिन्न विभागक स्टॉल पर प्रदेशक विकासक लेल सरकार द्वारा चलाओल जा रहल विकास योजनाक जनतब लोक सभ के देल गेल। बिहारक गौरवपूर्ण इतिहास, विकासक वर्तमान गति आ लोकहित मे सरकार द्वारा प्रदेशक विकासक बनाओल गेल योजनाक प्रदर्शन सेहो कयल गेल। प्रदेश सांस्कृतिक विरासत जनतब सेहो लोक सभ के देल गेल। लेजर शोक माध्यम सॅ प्रदेशक सभ वर्षक यात्राक प्रदर्शन आ छाया चित्रक माध्यम सॅ बिहारक इतिहास आ वर्तमान सामाजिक सांस्कृतिक स्थितिक प्रदर्शन करैत अंजलि सिन्हा, चंदन कुमार, दिनेश दिवाकर आ शैलेन्द्र कुमारक फोटो गैलरी लोक सभक आकर्षण केन्द्र बनल रहला।
शताब्दी समारोहक दरमियान गांधी मैदान मे गायक उदित नारायण, ऋचा शर्मा, कैलाश खेर, रब्बानी बंधु, बाबुल सुप्रियोक सुमधुर आवाज पर झुमैत रहलाह तऽ शास्त्रीय संगीत समारोह मे पंडित जसराजा उस्ताद राशिद खान, गुलाम मुस्तफा खान आ अमजद अली खानक गायिकी सॅ भारतीय संगीत जीवंत भऽ रहल। एहि अवसर पर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक प्रकाश झा द्वारा बिहार पर बनाओल सिनेमाक प्रदर्शन सेहो कयल गेल। गीत-संगीत आ आन मनोरंजक, कार्यक्रमक मध्य एहि अवसर पर आयोजित व्यंजन मेला मे बिहारी भोजन, दही चुड़ा, माछ चुरा, लिट्टी-चोखा, बालुशाही, जलेबी, सतू, लीचीक जूस आदिक संगहि पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात आ दक्षिण भारतीय व्यंजनक मनायोग सॅ स्वाद लेलनि।
ओना तऽ ई बिहारक शताब्दी समारोह छल मुदा ई पूरा समारोह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर केन्द्रित छल। समारोह मे भाग लेबऽ वला सभ प्रमुख लोक मुख्यमंत्रीक प्रशंसा करब अपन दायित्व बुझलनि। वर्ष भरि धरि चलल शताब्दी कार्यक्रमक सफलतापूर्वक सम्पन्न भेला पर सरकार राहत सांस लेलक अछि। एहि समारोहक श्रेय मुख्यमंत्रीक देबाऽ मे पूरा सरकारी अमल लागल रहल। समारोहक दरमियान विपक्षक उपेक्षा पर सरकारक सहयोगी भाजपाक विधान पार्षद हरेन्द्र प्रतापक विद्रोही तेवर सेहो सोझा आयल। बिहारक बॅटवारा मे प्रमुख भूमिका के निर्वाह कऽरय वाला सच्चिदानंद सिन्हाक एहि समारोहक दरमियान भेल उपेक्षा पर सरकार के कठघरा मे ठाढ़क देलनि। एहि संदर्भ मे हरेन्द्र प्रताप मुख्यमंत्रीक चिट्ठी सेहो लिखलनि मुदा सरकार दिस सॅ एहि पर कोनो प्रतिक्रिया नहि भेल। समारोह प्रारंभ भेलाक बाद एहि दिस हुनक सक्रियताक बादो सरकार निश्चित रहल। ओना विवाद तऽ राज्य प्रार्थना कऽ लऽ कऽ सेहो उठि रहल अछि। एहि मामिला मे एकटा जनहित याचिका सेहो भाजपाक वरिष्ठ नेता चन्द्र किशोर परासर पटना उच्च न्यायालय मे दायर कयलनि अछि। राज्यगीत मे मिथिलांचलक उपेक्षा पर सेहो सरकार चुप्पी लदने अछि। खैर, समारोहक दरमियान एहि तरहक विवाद समारोहक उत्साह मे दबल रहल।





सुजीत कुमार झा


राम जन्मोत्सवपर विशेष
मिथिलाक कण कणमे रामसीता


जनकपुरमे मात्र नहि पुरे मिथिलाञ्चलक घर घरमे सोहर गाओल जा रहल अछि । सभकेँ घरमे एक्के रंगकेँ उत्साह अछि । भगवान रामक रविदिन जन्म दिवस रहल अछि ।
उत्साहकेँ वर्णन करैत जनकपुर ७मे रहल मधुवनी वाली कहैत छथि भगवानक जन्म भलेही अयोध्यामे भेल होइक मुदा उत्सव हुनकर ससुरारिमे सेहो कम नहि । ओ सोहरकेँ एक पाँति सुनबैत कहैत छथि जँ जन्मल रघुनन्दन वन्धन टुटल रे, ललना हरि देलक दन्त गराई तुतना भेल मुरझाइृ......।
जनकपुरक दू टा दरवारकेँ ओहिना सजाओल गेल अछि जेना विवाहपञ्चमी कालमे सजाओल जाइत अछि । सजाबएमे मिथिला दरवार आ अयोध्या दरवारमे प्रतिस्पर्धा देखल गेल अछि ।
अयोध्या दरवार अर्थात राम मन्दिरकेँ सजावएमे ओतएकेँ महन्थ एतेक व्यस्त छथि जे पते नहि चललन्हि शुक्रक राति कोना वित गेल । जन्मक उत्साह वर्णन करैत राम मन्दिरक महन्थ राम गिरी कहैत छथि जेना लागि रहल अछि हमरा घरमे भगवानकेँ जन्म भऽ रहल होइक । भगवानक जन्म त्रेता युगमे किए नहि भेल होइक यदि किछु आकर्षण नहि रहितैक तऽ आखिर एतेक लोक राम नवमीमे जनकपुर कोना अबैत ।
जनकपुर नगर पालिका ४ क पण्डित विद्यानन्द झा कहैत छथि औजी जँ रेल ठीक रहितैक, बस जीप आबएकेँ भारत सँ जनकपुरधरिकेँ नीक सुविधा रहैत तऽ देखितहुँ कतेक लोक जनकपुर अबैत अछि । भगवान राममे जे शक्ति अछि ओ कतए पाओत ।

राम नाम उरमे गहिओ जा कै सम नहि कोइ ।
जिह सिमरथ संकट मिटै दर्शु तुम्हारे होइ ।।


जिनकर सुन्दर नामकेँ हृदयमे बसा लेला मात्र सँ सम्पूर्ण कार्य भऽ जाइत अछि । जिनकर समान कोनो दोसर नाम नहि अछि । जिनकर स्मरण मात्र सँ पुरे संकट समाप्त भऽ जाइत अछि ।
कलयुगमे नहि योग, नहि यज्ञ आ नहि ज्ञानक महत्व अछि । एक मात्र रामक गुणगाने सम्पूर्ण जीवकेँ उद्धार कऽ सकैत अछि ।
सन्तसभक कहब अछि । प्रमु श्री रामक भक्तिमे कपट, देखावा नहि आन्तरिक भक्ति मात्र आवश्यक अछि ।
गोस्वामी तुलसी दास कहैत छथि ज्ञान आ वैराग्य प्रभुकेँ पेवाक लेल मार्ग नहि अछि । वल्की प्रेम भक्ति सँ पुरे मैलि धोवा जाइत अछि ।
प्रेम भक्ति सँ मात्र श्री राम भेटैत अछि ।


छुटहि मलहि के धोएं ।
धूत कि पाव कोइ वारि विलोए ।।
प्रेम भक्ति जल विनु रघुराइ ।
अभि अन्तर मैल कबहुँ न जाइ ।।


अर्थात मैलिकेँ धोला सँ कि मैलि छुटि सकैत अछि । जलकेँ मथला सँ कि कोनो घी भेट सकैत अछि । अहिना पे्रम भक्तिरुपी निर्मल जलक विना भितरक मैलि कहियो नहि छुटि सकैत अछि । प्रभुकेँ भक्ति विना जीवन निरस अछि अर्थात रसहिन । प्रभु भक्तिक स्वाद, एहन स्वाद अछि जे एहि स्वादकेँ बुझि गेल ओकरा संसारक सभ स्वाद फिका लागत । भक्ति जीवनमे ओतवे महत्वपूर्ण अछि जतेक स्वादिष्ट भोजनमे नुन ।


भगति हीन गुण सव सुख ऐसे ।
लवन विण बहु व्यञ्जन जै से ।।
अर्थात जेना नुनकेँ विना बढिया सँ बढिया भोजन स्वाद हीन होइत अछि ओहिना प्रभुकेँ चरणक भक्ति विना जीवनक सुख समृद्धि सभ फिका होएत अछि ।


रामक ऐतिहासिकता


चैत महिनाक शुक्ल पक्षक नवमी तिथिक दिन भगवान रामक जन्म भेल अछि ।
भारतक चेन्नईकेँ एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान कतेको वर्षक शोध सँ ई पत्ता लगौलक अछि जे रामक जन्म ५११४ ई.पू. १० जनवरीक भेल छल । रामक विषयमे ई शोध मुम्बईमे कतेको वैज्ञानिक, विद्वान, व्यावसाय जगतक आगु प्रस्तुत कएल गेल छल ।
एहि शोधक तथ्यपर प्रकाश पारैत एकर संस्थापक ट्रष्टी डिके हरि कहलन्हि एहि शोधमे वाल्मीकि रामायणकेँ मूल आधार मानैत अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय आ पुरातात्विक तथ्यकेँ सहयोग लेल गेल अछि ।


रामक मिथिला संगक सम्बन्ध


भगवान रामकेँ मिथिला संग सम्बन्ध सेहो प्रगाढ अछि ।
भगवान रामक विवाह मिथिला नरेश जनकक पुत्री सीता संग भेल रहय ।
मिथिलाक कण कणमे राम सीता रहल अछि ।
जनकपुरमे मात्र नहि पुरे मिथिलाञ्चलमे कोनो उत्सव होइक राम सीताक गुणगान विना ओ उत्सव पूर्णे नहि होइत अछि ।
जनकपुरक जानकी मन्दिरक महन्थ राम तपेश्वर दास वैष्णव कहैत छथि मन्दिरमे हरेक समय रहैत छी हरेक समय ई बुझाइत रहैत अछि भगवान राम जानकी एहिठाम छथि । ई स्थिति मिथिलाञ्चलक कतहुँ जाइत छी तऽ बुझाइत अछि । फेर जँ मिथिलाञ्चल सँ बाहर गेलहुँ तऽ कतहुँ नहि अनुभव होइत अछि ओ कहलन्हि ।








 किशन कारीगर


अकछ भेल छी।


      (एकटा हास्य कथा)





आई दस वर्षक बाद किछु काज स दरभंगा आएल रही। भींसरे भींसरे टेन स दरभंगा स्टेशन उतरले रही कि ने की फुराएल टहलैत टहलैत विश्वविद्यालय कैंपस आबि गेलहुँ। ओतए आबिते मातर सभटा पुरना संस्मरण कॉलेजक पढ़ाई विद्यार्थी जीवनक सभटा हँसी ठीठोला श्यामा माए मंदिर के चक्कर लगाएब जस के तस मोन परि गेल। ओई दिन सोमवार रहै तहू मे सावन महीनाक सोमवारी भक्त लोकनिक भिड़ भिंसरे स बढ़ि गेल रहै की कॉलेज के विद्यार्थी धीया-पूता जवान बुढ़ पुरान सभ पूजा करै लेल अपसियाँत भेल। विशेष कऽ माधवेश्वरनाथ महादेव मंदिर मे और बेसी भीड़। श्यामा माए मंदिर लग पोखरि अछि ओतए माधवेश्वर महादेवक मंदिर सेहो छैक। ओही ठाम श्यामा माए के दर्शन कए बाबाक पूजा लेल महादेव मंदिर अएलहुँ। बाबा के जल बेलपात चढ़ा पूजा केलाक बाद मंदिर स बाहर निकैल बैग पीठ पर लए बिदा भेल रही। कैमरा गारा मे लटकले रहए बिदा होइते रही की पोखरी घाट लक बाबा भेंट भए गेलाह। ओ बजलाह हौ बच्चा के छियह कारीगर एम्हर आब। बाबाक लग मे जा हुनका प्रणाम केलियैन त ओ बजलाह नीके रहअ। अईं हौ कारीगर इ कहअ दारही कटा लेबह से नहि अहि दुआरे त चिन्हैअ मे धोखा भए गेल। गारा मे कैमरा लटकल देखलिय त मोन परल जे कहीं तू दरभंगा आएल हेबह। आब ज तूं दरभंगा आबिए गेल छह त हमर पंचैती कए दैए हौ बच्चा कि कहियअ हम त अकऽक्ष भेल छी।


           बाबाक गप सुनी हमरा हँसी स रहल नही गेल। हँसैत हँसैत हम बजलहुँ अइ यौ बाबा अहाँ किएक अकऽक्ष भेल छी आ कथिक पंचैयती। बाबा तामसे अघोर भेल बजलाह अईं हौ कारीगर हम अकऽक्ष भेल छी आ तू दाँत चिआरै मे लागल छह। हम बजलहु यौ बाबा अहाँ जुनि खिसियाउ एकटा गप कहू त अहू सन औधरदानी महादेव ज अकऽक्ष भेल अछि त हमरा सभहक केहेन हाल हेतै। बाबा अपने त सौंसे दुनियाक पंचैयती करैत छी हम एकटा छोट छीन भक्त अहाँक पंचैती कोना करब। बाबा फेर बजलाह हौ बच्चा अप्पन सप्पत कहैत छियैह सत्ते मे हम बड्ड अकऽक्ष भेल छी। हम बजलहुँ यौ बाबा अकऽक्ष त हम मीडियावला सभ भेल छी ख़बर लिखैत आ संपादित करैत, एक चैनल के नोकरी छोरि दोसर चैनल के नाकरी पकड़ैत, मीर्च मसल्ला वला ख़बर बनबैत सुनबैत, चैनल मालिक के दवाब  रूआब सहैत, बौक जेंका चुपचाप अकऽक्ष भेल छी।


    हमर गप सुनि बाबा बजलाह आब हमरो गप सुनबहक की अपने टा कहबहक। हम बजलहुँ नहि यौ बाबा इहेए बात त पुछै लेए छलहुँ जे अहाँ किएक अकऽक्ष भेल छी। बाबा डमरू डूगडूगबैत बजलाह हइए लेए सुनह सबटा राम कहानी जे हम किएक अकऽक्ष भेल छी। हौ बच्चा पहिने एकटा फोटो खीच दैए ने भने चैनलो पर ब्रेकिंग न्यूज़ चला दिहक जे बाबा अकछ भेल छथि। लोको त बुझतै ने जे हम केहेन कष्टमय जिनगी जीबि रहल छी। हम बजलहुँ ठीक छैक बाबा अहाँ बजैत जाउ आ हम रेकड केने जाइत छी आ फोटोओ खीच दैत छी मुदा इ कहू जे आई अहाँक त्रिशूल कतए रहि गेल। बाबा अंगोछा स मुँह पुछैत बजलाह हौ कारीगर की कहियअ हौ हम जिबैत जिनगी  अकछ भेल छी। गणेश कार्तिक दुनू टा खूरलुच्ची हरदम लड़ाई करैत रहैए एकटा कहैत छै जे हम त्रिशूल ल के नाचब त दोसर कहैत छै जे हम डमरू बजा के नाचब। अहि कहा कही मे इ दुनू टा मुक्कम-मुक्की घिच्चा-तिरी क हमर डमरू सेहो फोरि दैत अछि। एकरा दुनू टा दुआरे हम अकछ छी। हौ बच्चा ततबेक नही कि कहियअ हौ नहा धोहआ के बघम्बर पसारि दैत छियैक मुदा कार्तिक के मयूर ओकरा ओई गाछ पर स ओई गाछ पर ल जा के लेरहा घोरहा दैत अछि। तै पर स गणेशक मूस ओकरा कूतैर फूतैर दैत अछि। तूही कहअ त बिना बघम्बर के कोना हम रहब कियो देखनिहार नै कोइ ने टहल टिकोरा क दैत अछि हम त तहु दुआरे अकछ भेल छी।


          तूहीं कहअ ने आबक धीया-पूता के लिखा पढ़ा के कि हेतै। हम बजलहुँ आब की भेल यौ बाबा। हमर गप सुनी ओ बजलाह हौ बच्चा तूं बरि खाने बुझहैत छहक कहलियअ त जे हम अपने घरक लोक स अकछ भेल छी। हौ बच्चा तोरा सभटा गप की कहियअ जहिया स गणेश के शिक्षामित्र के नोकरी भेटलै आ कार्तिक के पुल बनबै के सरकारी ठिकेदारी भेटलै दुनू गोटे एक्को बेर घूइरो के ने देखैत अछि जे हम जीबैत छी आ की मूइल। तही दुआरे तूंही कहअ ने एहेन धीया-पूता  कोन काजक जे बूढ़ माए बाप के बुरहारी मे मरै लेल  गाम मे असगर छोड़ि दैत अछि आ अपने नोकरी मे मगन भेल सभटा आचार-विचार बिसरैत  सामाजिक कर्तव्य सँ मुह मोड़ि लैत अछि।


      ई गप कहैत-कहैत बाबाक आखि नोरा गेलैन ओ आंखिक नोर पोछि हिंचकैत बजलाह हौ बच्चा आब बुरहारी मे गौरीए दाए टा एकमात्र सहारा। मुदा आब हुनको अवस्था भेलैन ओकरो की दोष। कहैत छियैए जे भांग पीस दियअ त गौरी दाए बजैत छथि आब हमरा भांग पीसल नहि होएत बेसी छौंक लागल अछि त चलि जाउ विश्वविद्यालय कैंपस, शंकरानंद ओइ ठाम भरि छाक भांगक लस्सी पीबि लेब। ओइ ठाम सीएम सांइस आ मारवाड़ी कॉलेज के विद्यार्थी सभ भांग खाई लेल सेहो अबैत छैक। हौ बच्चा हम त तहू दुआरे अकछ भेल छी। आब हम एक्को मीनट दरभंगा मे नहि रहब तूं हमरा नेने चलह अपने संगे दिल्ली। हम तोरे साउथ एक्स वला डेरा पर रहब ज जारो बोखार लागत त ओही ठाम एम्स मेडिकल लग्गे मे छै ओतए देखाइओ दिहअ। हम बजलहुँ हं हं बाबा चलू ने इ त हमर सौभाग्य जे अहाँक टहल टिकोरा करबाक हमरा अबसर भेटत।


बाबा बजलाह हौ बच्चा एकटा गप तोरा कहनाइ त बिसैरे गेलियै रूकह कनि, हइए मोन परि गेल। कारीगर सभटा गप तू की सुनबहअ हौ हम की कहियअ ई भागेसर पंडा दुआरे सेहो हम अकछ भेल छी। हम हुनका स पुछलियैन से किएक यौ बाबा। त ओ बजलाह हौ कि कहियअ आब महादेव मंदिर मे बोर्ड लगा देलकैयै। हम जिज्ञासावस पुछलहु कथिक बोर्ड यौ बाबा। ओ फेर बजलाह हौ बच्चा श्यामा माए मंदिर मे एकटा बोर्ड लागल छैक मुंडन-51रू, यज्ञोपवित-151रू, विबाह-251रू, आ बलिप्रदान-501रू तही के देखा देखी भागेसरो हमरा मंदिर मे एकटा बोर्ड लगा देलकैए जे बाबाक स्पेशल पूजा-501रू, डमरू बजा के पूजा करब-201, दूध चढ़ाएब-151 आ भांगक स्पेशल परसादी-101रू। देखैत छहक जहिया स ई बोर्ड लगलैह तहिया स त हम और बेसी अकछ भेल छी।


         हम बजलहुँ से किएक यौ बाबा त ओ बजलाह कि कहियअ विद्यार्थी सभ भांगक परसादी दुआरे मंदिरे मे मुक्कम मुक्की, घिच्चम-तिरी, देह हाथ तोरा-फोरी कए लैत अछि। ततबेक नहि पिछुलका सोमवारी दिन त कि कहियअ एकरा सबहक झग्गरदन मे हमर त्रिशूल टुटि गेल हम त आब तहु दुआरे अकछ भेल छी। ओ सभ नीक नहाति पढ़तह नहि आ परीक्षा मे फेल भेला पर वा कम नम्बर अएला पर हमरो गरिअबैत अछि। जे हे जरलाहा महादेव केहने बेईमान छह पास करा दैतह से नहि हौ बच्चा हम त आब तहू दुआरे अकछ भेल छी।





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विहनि कथा १.ओमप्रकाश झा २.अमित मिश्र ३.चंदन कुमार झा ४.आशीष चौधरी





१ 


ओमप्रकाश झा


विहनि कथा





स्पेशल परमिट


एक दिन सिनेमा देखबा लेल सिनेमा हाल सपरिवार गेल रही। ओतय सिनेमाघरक मैनेजर गाडी सँ उतरैत देरी स्वागत मे लागि गेल। ओ हमरा चिन्हैत छल। सिनेमा शुरू हएबा मे किछु देरी छल। ओ हमरा अपन कक्ष मे बैसा कऽ चाह-पान करबऽ लागल। सिनेमाक शो शुरू भेलाक बादो हाल मे बीच बीच मे नाश्ता पानी पूछैत रहल। हमर छोटकी बेटी इ सब अचरज सँ देखैत छल। सिनेमा समाप्त भेलाक बाद मैनेजर आदरपूर्वक हमरा गाडी तक अरियाइति देलक। डेराक बाट मे हमर छोटकी बेटी हमरा पूछलक- "पापा, इ मैनेजर अहाँक एतेक खातिर बात कियेक करै छल? ओतय तँ आरो लोक सब छल, मुदा ककरो दिस ताकबो नै करैत छल।" हम बजलहुँ- "बेटी, अहाँ नै बूझब। हमरा स्पेशल परमिट अछि।" छोटकी बाजल- "तखन तँ अहाँ केँ आरो ठाम इ स्पेशल परमिट भेंटैत हएत।" हम अपन बहादुरी मे कहलौं- "हाँ-हाँ, आरो ठाम भेंटैए।" ऐ पर छोटकी बाजल- "तखन काल्हि सँ हमरा अहाँ इसकूलक भीतर तक गाडी सँ छोडू। प्रसून नित्य गाडी सँ भीतर तक आबै छै आ बड्ड शान देखाबै छै। अहाँ तँ हमरा बाहरे गाडी सँ उतारि दैत छी।" हम सकपकाईत बजलौं- "बेटी प्रसून कलक्टरक बेटा अछि। कलक्टर केँ हमरा सँ पैघ स्पेशल परमिट भेंटल छैक। हमरा अहाँक इसकूलक स्पेशल परमिट नै भेंटल अछि।" छोटकी रूसि गेल आ कहलक- "नै अहाँ हमरा फूसि कहै छी। हमहुँ गाडी सँ इसकूलक भीतर तक जायब।" हम आब ओकरा की बूझैबतियेक। हम चुप रहि गेलौं।





 २


ढेपमारा गोसाईं


मोबाईलक अलार्मक घर-घरी सुनि कऽ मिश्राजीक निन्न टूटि गेलैन्हि। ओ मोबाईल दिस तकलाह आ अलार्म बन्न करैत फेर सुतबाक उपक्रम करऽ लागलाह। आ की कनियाँक कडगर आवाज कान मे ढुकलैन्हि- "यौ किया अनठा कऽ पडल छी? साढे पाँच बजै छै। उठू, नै तँ बच्चा सभ केँ इसकूल लेल के तैयार करओतैक। हम नस्ता बनाबै लेल जा रहल छी। भरि दिन तँ अहाँ आफिस मे कुर्सी तोडबे करै छी, कनी घरो पर धेआन दियौ।" मिश्राजी बिना कोनो विरोध केने पोस माननिहार माल जाल जकाँ चुपचाप बिछाओन सँ उतरि बाथरूम मे ढुकि गेलाह। निवृत भेलाक बाद बच्चा सब केँ उठाबऽ लगलाह। बच्चा सब हुनकर कुशल नेतृत्व मे इसकूल जयबा लेल तैयार हुए लागल। एकाएक बडका बेटा राजू बाजल- "पापा अहाँ हमर कापी आनलहुँ?" मिश्राजी- "नै, बिसरि गेलहुँ। काल्हि आफिस मे बड्ड काज छल।" राजू बाजल- "अहाँ तीन दिन सँ बिसरि रहल छी। रोज आफिसक काजक लाथे हमर कापी नै आबि रहल अछि। अहाँ केँ हमर काज मोन नै रहैए।" ओम्हर सँ कनियाँक स्वर भनसाघर सँ बहराएल- "इ तँ हिनकर पुरान आ पेटेण्ट बहाना अछि। घरक कोनो काज मे हिनकर कोनो अभिरूचि नै छैन्हि। आइ हम अपने तोहर कापी आनि देबह।" कहुना बच्चा सब केँ तैयार करा मिश्राजी बस-स्टाप धरि बच्चा सब केँ छोडि डेरा अएलाह तँ कनियाँ एकटा नमहर लिस्ट हाथ मे थमा देलखिन्ह। सब्जी, आटा, दूध आ आन वस्तु सबहक लिस्ट। मिश्राजी बजलाह- "कनी दम धरऽ दियऽ। हम बडद जकाँ भरि दिन लागल रहै छी, तइयो अहाँ सब केँ हमरे सँ सिकाईत रहैए।" कनियाँ कहलखिन्ह- "बियाहि कऽ अहाँ आनलहुँ आ सिकाईत करै लए भाडा पर लोक ताकी हम?" बेचारे मिश्राजी चुपचाप बाजार दिस ससरि गेलाह। बाट मे बाबूजीक फोन मोबाईल पर एलेन्हि- "हौ, मकानक देबाल नोनिया गेलैक। रंग करबाबै लए पाई कहिया पठेबहक?" मिश्राजी बिहुँसैत बजलाह- "अगिला मास पाई पठा सकब।" पिताजी खिसियाईत कहलखिन्ह- "कतेको मास सँ तौं अगिला मासक गप कहै छह। इ अगिला मास कहियो आओत की नै।" मिश्राजी केँ अपन गामक सीमान परहक ढेपमारा गोसाईं मोन पडि गेलैन्हि, जकरा पर सब कियो आबैत जाईत एकटा ढेपा फेंकि दैत छलै। हुनका बुझाइ लगलैन्हि जे ओ ढेपमारा गोसाईं भऽ चुकल छथि।


दस बजे मिश्राजी आफिस पहुँचलाह। कनी काल मे आफिसर अपना कक्ष मे बजा कऽ पूछलखिन्ह- "काल्हि एकटा अर्जेण्ट फाईल नोटिंग लए देने छलहुँ आ अहाँ बिना काज केने भागि गेलहुँ।" मिश्राजी- "सर, बिसरि गेलियै। एखन कऽ दैत छी।" आफिसर- "नित यैह बहाना रहैए। किछो यादि रहैए अहाँ केँ?" मिश्राजी सोचऽ लागलाह- "इहो नै छोडलक। कुर्सी पर बैसल अछि तँ हुकूमत देखबैए।" आफिसर हुनका चुप देखि कहलैथ- "की कोनो नब बहाना सोचै छी की? जाउ काज कऽ कऽ दियऽ।" मिश्राजी- "सर, कहलौं ने बिसरि गेल रही। तुरत कऽ दैत छी।" आफिसर- "अच्छा, रोज तँ यैह बहाना रहैए। किछो मोन रहैए की नै? अपन नाम तँ मोन हैत ने। की नाम अछि अहाँक श्रीमान विनय मिश्राजी।" मिश्राजीक मूँह सँ हरसट्ठे निकलल- "ढेपमारा गोसाईं।"








अमित मिश्र


विहनि कथा





चोरि


विद्याधर बाबू । साहित्यकार ।जीभ पर साक्षात सरस्वती कए बास । साहित्यक
सब विधा पर एक समान पकड़ छलनि मुदा पाइ कए अभाव मे एको टा पोथी छपल नहि
छलनि । एक दिन साँझ मे बजार दिश जाइ छलाह । पहुँच गेलाह पुस्तक महल ।
एकटा सुन्नर काँभर वला पोथी आकर्षित केलकनि तेँए किन लेलाह । घर पर आबि
पढ़ै लए बैसलाह , जेना-जेना पन्ना उलटाबैत गेलाह तेना-तेना आँखिक गोलाइ
पैघ होइत गेलै । काँभर कए पाछु लेखक कए नाउ पढ़लन्हि ,आँखि और पैघ भ' गेलै
। सोच' लागलन्हि टका , मनुख-जानवर .गाड़ी-घोड़ा कए चोरी त' देखने छलौँ मुदा
शब्दक चोरी पहिल बेर देखलौह । आन चिजक चोरी मे त' पता चलि जाइ छै मुदा
मुँह सँ निकलैत बोल कए चोरी मे कनिको पता नहि चलै छै । धन्य छथि एहन चोर
आ धन्य छेँन चोरी कए स्टाइल . . . । ।





चंदन कुमार झा


सररा, मदनेश्वर स्थान


मधुबनी, बिहार





विहनि कथा


अनकर दुर्गति


हाथ मे झोड़ा नेने, मोने मोन किछो गुनधुन मे पड़ल हम बजार दिस चलि जाइत रही. एतबे मे हमर लंगोटिया भजार भुटकून सोझाँ मे आबि गेलाह. ओ बम्बई सँ घर घुमल छलाह.दहिना हाथ मे अटैची रहैन्ह आ' बामा कान्ह पर बेश भरिगर बैग.नीक कमाइ छथि से सुनैत छलहुँ मुदा आइ हुनकर पहिरन-ओढ़न देख सबुत भेट गेल. लगीच अबितहि भरि पाँज पकडी लेलाह...की हाल-समाचार छौ रौ भजार..बाप रे कतेक दिनुका बाद भेँट भेल अछि..एह धन्य भए गेलहु..बजलाह. हमरो मोन हुनकर एहि मित्रता आ' हमरा प्रति स्नेह देखि गद-गद भ' गेल.पुछलियैन्ह ..की हाल छह..बहुत दिनुक बाद गाम मोन पड़लह. बिहुसैत बजलाह, काज-राज मे व्यस्त रहैत छी..समये नहि भेटैत अछि जे गाम आयब. ई त' आठम दिन बियाह छी तँइ आबय पडल. हम पुछलियैन्ह-ठीके ? ओ गंभीर होइत बजलाह-हाँ एहिठाम बगले मे रखबारी...फेर पुछलाह-मुदा तोँ एना किएक पुछलैह -"ठीक्के"?. हम कने अनमनस्क होइत बजलहुँ-नहि..नहि..अहिना..हमरा त' बिसबासे नहि भ' रहल अछि...ओना ई साल बड्ड शुभ छै देखहक ने बिदेसराक सेहो बियाह भ' गेलै. आब ओ' हम्मर बात बुझिगेल रहय.बिहुँसैत बाजल-ऐ रौ तु हमरा बुढ़ बुझैत छैह जे हमर गिनती ओहि  पैतालिस बरखक बिदेसरा से करैत छैँ. हम हसैँत कहलियन्हि-नहि...नहि ..अरे हमरा कहने हेतै त' हम त' तोरा एखनो एहू पैतिस बरखक अवस्था मे अठारह बरिखक छौडा कहबह मुदा ई त' गौआ सभ कहैत रहैत छह. भुटकुन हँसैत बाजल-हाँ...हाँ..ठीके कहबी छै ने जे अप्पन बियाह भ' गेल त' लगने खतम. हम कहलियैन्ह - नहि..नहि ई कहबी विल्कुल गलत अछि. हमरा बुझने कोनो विवाहित व्यक्ति ई नहि चाहैत होयत जे अनकर विवाह नहि हो. भुटकुन आश्चर्यचकित होइत बाजल-से कियेक ? दोसरक दुर्गति के नहि देखय चाहैत अछि ?-हम कहलियैन्ह.ओ भभा के हँसय लगलाह.


 ४




• आशीष चौधरी


विहनि कथा


ठक




किछु दिन पहिने जखन हम पूर्णियाँसँ पटनाक लेल बस पकड़लौं तँ हमर एकटा मित्र सेहो पटना परीक्षा दै लेल जाइ छल, संयोगसँ हमरा दुनू गोटेक सीट मीरा ट्रेवल्स नामक बसमे छल जे बस बिहार राज्य पथ परिवहन निगमक अधीन आबै छल जकर पटनामे लागैक जगह गांधी मैदानसँ सटल इलाका छल। तँ हम दुनू गोटे एकटा टेम्पूसँ पहुँचलौं महावीर मन्दिरक पाछाँमे एकटा बड निक सनक चाहवलाक दोकान छलै जकर दोकानमे चाह पीबए बलाक भीड़ लागल रहै छलै, से हमहुँ दुनू गोटे चाह पीबए लेल गेलौं। किए तँ हमरो दिल्ली आबैक छल आ हमर मित्रकेँ दिनक २ बजेसँ परीक्षा छलै से हम दुनू गोटे सोचलौं जे किए नै पटना घुमी। हम दुनू गोटे पहिल शुरूआत महावीर मन्दिरसँ शुरू केलौं, ओना तँ पटना हम बहुतो बेर घुमल छी मुदा हमर मित्र कहलक जे चलू दुनू गोटे आइ घुमी। शुरूआत भगवानक दर्शनसँ भेल। ओकर बाद स्टेशन परिसरमे लागल पुरान कोयलाक मशीन छलै, से हम दुनू गोटे ओतए घुमऽ लगलौं। जखन चारू कातसँ घुमल भऽ गेल तँ एकटा कोनामे देखलौं, एकटा महिला बड जोरसँ कानै छल, से हम दुनू गोटे ओतए गेलो तँ दंग रह गेलौं किए तँ ओतए एकटा महिला एकटा मुर्दाक संग लिपटि-लिपटिकऽ कानै छलै आ कहै छलै जे हमरा पासमे कफन लेल पैसा नै छल से अहाँ सभ हमर मदद करू। लोक सभ ओकरा किछु ने किछु पाइ देबऽ लागल। हमरो इच्छा भेल जे किछु पाइ हमहुँ दिऐ, से हम अपन पाकेटसँ २० टाकाक एकटा नोट निकालिकऽ ओकरा देलौं, से ओ हमरा आर्शीवाद देलक आ कहलक जे अहाँ ढेरो दिन जीबू। हमरा ओकरापर दया आबि गेल मुदा हमर दोस्त हमरा कहलक जे अहाँ ठका गेलौं। हम ओकरा कहलो एना कोना तँ ओ कहलक जे अहाँ एकर स्थिति देखू तँ अहूँकेँ एकरापर शक भऽ जाएत। हमरा ऐ बातपर यकीन नै भेल मुदा हमर दोस्तक कहब तँ ठीके छलै। फेर ओतए एकटा लोककेँ सेहो पुछलौं तँ ओहो सएह बात कहलक आर तँ आर ओ तँ इहो कहलक जे एकरा लहाश जानै छिऐ के दै छै। हमरा सेहो मोन भेल जे बताउ के दै छलै। ओकर मुँहसँ जखन सुनलौं तँ पएर लगक माइट खसकि गेल किए।
ओकरा पुलिस बला एक सए टकामे लावारिस लहाश दऽ दैत छलै, ई ओकरासँ कमा कऽ लाश गंगामे नै तँ कतौ आन ठाम लऽ जा कऽ फेकि दैत छलै।
हमरो ता तक ट्रेनक समए भऽ रहल छल से हमहूँ अपन ट्रेन पकड़ैले स्टेशनक अन्दर चलि गेलौं। ठक तँ पुलिस छलै, बेचारी बुढ़िया की ठकत, ओकरासँ ठका कऽ हमरा नीके लागल।


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.रवि भूषण पाठक- ओक्कdर तोहर हम्मरर सपना २.शि‍व कुमार झा ‘टि‍ल्लूक’- बहि‍रा नाचए अपने ताल








 रवि भूषण पाठक


ओक्करर तोहर हम्म‍र सपना


नाम:सूर्यकांत


उमेर :बयालिस वर्ष


रंग:गोर


लंबाई:पांच फीट नओ इंच


वामा आंखिक ऊपर मे आ दहिना बांहि पर चोटक निशान




समस्तींपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ,करियन शाखा क’ एकटा खाता नम्मतर (हम नम्मार सार्वजनिक नइ क’ रहल छी)




पहिले पहिल मात्र यैह सूचना फैक्सम क’ माध्य म सँ दिल्ली) सँ राजीव झा जी भेजला ।राजीव झा दिल्लीण पुलिस मे उपनिरीक्षक छथिन ,आ हुनका पता छलनि जे सूर्यकांत हमर पिसियौत भाय छथि ...........दिन छलै सोलह अगस्तह दू हजार दस ।जखन हमरा बूझा गेल जे सूर्यकांते भाय ई डायरी लिखला तखन हम कहलियेन जे ई डायरी भेज दियअ । ई डायरी अजीब तरीका सँ लिखल गेल छैक ।जत्तेभ दिलचस्पीर अपना प्रति ओतबे समाजक प्रति ।ओना डायरी क’ बहुत रास बात हमरा अनसोहांत लागल .........कखनो कखनो एत्तेद कि सूर्यकांत अप्पसन मर्यादा धोए देने हो..........मुदा ऐ विषय मे हम किछु नइ कहब किएक त’ गजेंद्र जी कहला कि डायरी के मूले रूप मे छापल जाय ,तें डायरी क’ कंटेंट पर हमरा किछु नइ कहबा के अछि .......ओहुना मरल आदमी के विषय मे की कहल जाए   ?  


हमरा तऽ  ईहो नइ बूझबा मे आबि रहल अछि कि ऐ डायरी मे किछु साहित्यिक तत्वब अछि वा नइ ? कखनो डायरी तथ्यद आ समै कऽ संदर्भ स्वीवकारैत छैक आ कखनो नइ ,कखनो –कखनो तऽ डायरी अप्प न रूप के छोड़ैत संस्ममरण ,कथा ,कविता दिसि भागऽ चाहैत अछि ।कखनो –कखनो सपना कऽ रूपक मे समाहित हेबऽ लागैत अछि ।डायरी लिखलो छैक मिथिलाक्षर मे आ हमर मिथिलाक्षर रहबो करए कमजोरे ,तें एकटा ईहो मेहनत बढि़ गेल । मुदा गजेंद्र जी कऽ ई कहतब छनि जे एगो –दूगो पृष्ठ़ के नित्याप्रति सुलेखित करैत भेजैत रहू ।




डायरी कें प्रस्तु त करैत सभ सँ पहिले हम राजीव बाबू कें धन्यीवाद दैत छिएन जे ओ अप्प न व्यजस्ते दैनंदिनी कऽ बीच सूर्यकांत कऽ डायरी मे दिलचस्पी  देखेलैथ आ एहियो सँ आगू बढि़ हेरायल डायरी कें खोजि निकालला । ई डायरी सूर्यकांत भायकऽ मकान मालिक राखि लेलकइ आ कोनो साहित्यिक वस्तुय बूझि बेचबा के फिराक मे रहए ।ऐ डायरी कऽ तथ्य  के प्रस्तुूत करैत हम सूर्यकांत भाय कऽ आत्माड सँ क्षमा मांगैत छी ,किएक तऽ डायरी मे कतेको एहन चीज छैक ,जइ सँ विवाद उत्पीन्ा्िएक होयत आ मृतात्मात कऽ संबंध मे भ्रांति उत्प न्नप भऽ सकैत छैक । मुदा ऐ धन्यतवाद आ क्षमाप्रार्थना कऽ प्रासंगिकता तखने ,जखन डायरी मे कोनो सत्वा हो ।डायरी मे कतहु कतहु शीर्षक छैक आ कतहु नइ ।सबसॅं नमहर शीर्षक छैक ‘ओक्ककर हम्म र तोहर सपना ‘ ।आ डायरी कऽ पहिल पृष्ठछ पर एकटा छोट शीर्षक रहै ‘सोयरी आ सपना ‘।ऐ खेप मे ‘सोयरी आ सपना’ प्रस्तुरत अछि ।





                           सोयरी आ सपना






ई कोनो अद्भुत सपना नह रहै ।सभ लोक अपन अपन बच्चाक क' लेल एहिना सपना देखै छैक ,आ ई ओकर पहिलो सपना नइ छलै ।पहिलो नइ ,दोसरो नइ ,तेसर ........ ,मुदा आइ सँ तीस-चालीस साल पहिने तीन टा बच्चाो बहुत सधारण बात छलै ,से दम्पसति अपन सपना के देखबा ,सपना के अगोरबा ,पोसबा के सब उपक्रम करैत गेल ।सपना मे पानि देनइ ,सपना के हवा लगेनइ ,सपना मे सँ आकुट बाकुट कें साफ केनए ,सपना के चोर-शैतान सँ बचाबैत ,लोक-वेद के कहैत गुणैत ।सपना के हाथ-पैर ,मुंह-कान सब बनलए ।ऐ मे लगभग नओ महीना लागि गेलइ ।आ ई नओ महीना कोना बीतलइ दम्पओति के पते नइ चललै ।





 एक दिन मिथिला क एकटा गाम मे सपना के धरती पर उतारबाक व्यमवस्थाा प्रारंभ भेल । तीन -चारि टा जनानी ,एकटा चमैन ,आगि-पानि ,तेल-मौध,साबुन-कपड़ा आ गीत-नाद । आ वौआ रे अलगे समै छलै ,ओइ समै मे ,बच्चाौ जनमै काल एकटा खास भूमिका लेल किछु जनाना कें बजाओल जाइत छलै ,ऐ मे सबसँ प्रशिक्षित जनाना ओइ वर्ग सँ होइत छलखिन जे मिथिले नइ समस्त  भारतवर्षक जाति-विचार मे अछोप मानल जाइत छलै ,मतलब सबसँ महत्वरपूर्ण काज आ काज केनिहार क दरजा अछोपक ।ई सब बात बाद मे ,पहिले सपना कऽ स्पकर्श ,गंध सँ मोन के भिजा तऽ लेल जाए । आ सपना कें जमीन पर उतारबा क जिम्मेपवारी ओइ वर्ग के हाथ मे जेकरा सपना देखबा कऽ मनाही हो । मुदा ‘लैंडिंग ऑफ ड्रीम्सप’ कऽ मजबूत पायलट सभ अपन-अपन अनुभव कऽ बलें अभियान कें सफल दिशा दैत रंगबिरही बात ,कखनो टोल पड़ोस कखनो धर्म पुराण कखनो शरीर विज्ञान आ यौन विज्ञान सेहो ...... जनी-जातिक मजाक स्वञप्नाटगमन मे निहित वेदना के कम करैत । आ सपना के छोट छोट हाथ छलै ,छोट छोट पएर ....आंखि कान सब छोट छोट ।आब सपना स्वछयं अपना लेल सपना देख सकैत छलै ................


मुदा सपना के नून नइ चटाएल गेलै , ई दम्पटति कनि अलग रहै यैह बात नइ ,बच्चा  ‘बच्चाप’ रहै ,बच्चीद नइ ।आ सपना एखन सीधा-सीधी बाट चलैत रहै ,भूख ,प्याचस ,गरम-ठंड केवल सपना मे आबै ,आ ईहो कोनो सपना देखए के उमेर छलै...............जे बाप माए क’ सपना सएह बच्चाउ क’ । आ छोट-छोट सपना के पूरा करए लेल माए-बाप रहबे करथिन ,से अपन सुविधा के समेटैत वौआ कऽ आवश्यहकता पर केंद्रित भऽ गेलै घर ।





एखन तक सपना मे सपना कऽ मथफुटौएल नइ भेलै । से किएक? त’ एखन छोटका सपना के हाथ पएर नइ भेल छलै ,ओकर आंखि नइ फुटलै छल एखन ,तें ओकरा देखाओल गेलै जे वौआ रे सपना एहिना देखबा कऽ चाही आ सपना मे मात्र यैह सब देखबा के चाही ।से तीन –चारि साल तक ककरो ई बात दिमागो मे नइ एलै जे ऐ परिवारक प्रत्येीक सदस्यक के कोन मात्रा मे सपना देखबा कऽ चाही ।एखन तक खाए-पीबए ,पहिरनइ-ओढ़नए ,गीत-गानक सीमित बाईस्कोएप छलै ..... आ ओइ समै मे गाम मे बाईस्कोमप देखबै वला आबैत छलै आ ओकर चकरका पेटी मे आठ-दस टा खिड़की रहैत छलै आ घूमैत फोटो कऽ साथ गीत सेहो सुनाइत छलै ।फोटो आ गीत मे सामंजस्यै हेबाक चाही से वौआ के ओइ समै मे नइ बुझेलए । आ वौआ नइ चिन्है‍त छलै तें एके सिनेमा मे मरलका पृथ्वीौ राजकपूर सँ लऽ के सरलका गोविन्दे प्रधान तक के फोटो अजीबे आकर्षक लागै ।फोटो कऽ मुद्रा ,जइ मे मारनए-पीटनए ,हँसेनए ,दौड़ेनए तऽ रहबे करए छौड़ा-छौड़ी एक दोसर के पकड़ने सेहो रहै ।आ वौआ कें ओइ समै मे ई बूझऽ आबि गेल छलै जे वौआ अलग होइ छइ आ बुच्चीइ अलग ..............




आ वौआ कऽ जखन नाम लिखेलइ तऽ वौआ एगो झोरा आ एगो बोरा नेने ईसकुल पहुंचि गेलइ । ईसकुलो मे वौआ अप्परन बोरा कें छौड़ा सभक बोरा मे सटा के राखए ।ईसकुल कऽ वातावरण वौआ के बेसी नइ नीक लागलै ।ऐ ठाम मरसैब सब हिंदी बाजैत छलखिन आ हाथ मे मोटका सटक्की  राखैत छलखिन । वौआ के तऽ ईहो पता नइ रहै जे हिंदी कोनो भाषा होइत छैक ,हां ओ सब जे बाजैत छलखिन से गाम मे केओ नइ बाजैत रहै ...........मुदा नइ ऊ जे नीरस भैया आबै छथिन कहियो कहियो गाम ,आ ऊ जे कुमल भैया छथिन्‍ा ,ऊ दूनू गोटे गामो मे हिंदी बजैत छथिन ,तऽ की हिंदी बहरिया भाषा भेलै ,गाम परक नइ रोड परक ,ईसकुलक भाषा ।मुदा ओइ बात सभक लेल ओइ समै कोनो अवकाश नइ छलै ,ई कोनो सपना नइ छलै ,तें झोरा ईसकुल तक राखि बहुतो बच्चा। मंदिर दिसि निकलि जाइ आ वौओ सएह करए ।मंदिर पर ,पोखरि दिसि ,गाछी मे ओ सभ समान मिलैत छलै ,जेकरा सपना मे देखल आ सोचल जा सकैत छैक । कनैलक फूल ,कक्काे कऽ ललका लताम ,हुनकर बँसबीट्टी ,उत्तछरबाय टोलक ईमली आ पवितरा आ डोमा कऽ तार आ तरकुल मे बहुत नशा छलै ।आ ईसकुलक सर्वमान्य  मुद्रा पिनसिल छलै ,मतलब पिनसिलक कनी टा टुकड़ा मे तार कऽ कनी गो हिस्साप मिलबा कऽ गारंटी छलै । ओइ समै मे वौआ के बूझल नइ छलै जे पवितरा दुसाध छैक आ पवितरा के छुइ देला सँ हड्डी तक छुआ जाइत छैक ! ओइ समै ईहो नइ बूझल छलै जे डोमा डोम जाति कऽ बच्चाै नइ कुम्हामर छैक आ डोमा नाम राखि एगो जोगटोम कएल गेल रहै ,आ ईसकुल मे डोमा कऽ माए –बाप कें ई साबित करबए मे दम लगब’ पड़लै जे डोमा कऽ असली नाम सुकुमार छैक ।


मुदा वौआ रे हम्मपर स्थिति किछु अलग रहै ,आइ तक घर मे हमरा केओ नइ सुनलकै हमरा जन्म्क कहानी ।ने माए ने बाबू ने भाय-बहिन सब ।हम विशुद्ध पुरहिति‍या घर मे जनम लेलियइ ।घरक पूरा अर्थव्यसवस्थाध बाबू के द्वारा सांझ मे आबइ वला सीदहा पर निर्भर रहै ,तें घरक पूरा राजनीति जजिमनिका पर केंद्रित छलै ।भोर मे बाबू नहा-सोना पूजा कऽ लेला के बाद सीधे भागथिन गयघट्टा ।आ ई गायघाट गाम हुनकर समस्तऽ योग्यधता आ विद्वता कऽ मंच छलै ।ऐ ठाम हुनका लेल कोनो कंपटिशन तऽ नइ रहै ,तें साबित करबा आ नइ करबा सन किछु नइ रहै  मुदा ई जे निर्दन्द्वब संभावना छलै से कतेको संभावना कें नून चटा के मारि देलकए ।एकर धरती एको डेग नइ छलै ने अकाश एको हाथ के तें वामन कें वामने रहि मरबा के छलै ,ऐ ठाम विष्णु  मात्र सत्यवनारयण कथे मे रहथिन ,हुनकर दस टा पचास टा रूप कहियो सपना मे आयल ,विराट रूपक बाते छोड़ू । ऐ ठामक विष्णुस लक्ष्मी  सहित आबैत रहथिन आ कहियो चौबन्नी  ,कहियो अठन्नीस ,कहियो सवा रूपैया आ कहियो ‘बाद मे दऽ देब’ कऽ पुनरूक्ति सुनाबैत गौलोक चलि जाइत छलखिन ........................





क्रमश:





शि‍व कुमार झा ‘टि‍ल्लू.’





बहि‍रा नाचए अपने ताल





प्रस्तु.त शीर्षक हमर कोनो अपन रचनात्मकक क्रि‍याशीलता नै बाल-कालमे “मि‍थि‍ला मि‍हि‍र” पढ़ैत छलौं। साप्तालहि‍क मि‍हि‍रक सभ गोटे अंकमे ऐ शीर्षकसँ एकटा स्था यी स्तं्भ छपैत छल।


बड़ बेथा भऽ रहल अछि‍ जे भारत वर्षक प्रमुख भाषा सभ उत्तर आधुनि‍क साहि‍त्य क रूपेँ अपन-अपन संस्कृशति‍सँ भाषामे ओझाराएल छी। ई सर्वथा सत्यिसँ बौद्धि‍क प्रभाव बेशी रहैत अछि‍, परंच एकटा आर गप्प पर जौं आत्मीिय भऽ कऽ धि‍यान देल जाए तँ सामाजि‍क स्‍ांरचनाक मध्यम सामंजस्यर होइछ। सनातन संस्कृपति‍मे “जाति‍”क वि‍भेद बेशी रहल मुदा सभ वैदि‍क संस्कासरमे अछोपक महतकेँ संहो नकारि‍ नै सकैत छी। हमरे पूर्वज लि‍खने छथि‍ “कर्म प्रधान वि‍श्व करि‍ राखा” प्राचीन भलमानुष शब्दे टा मे सही एकरा स्वीाकार तँ कएलनि‍। तँए सभकेँ जाति‍सँ अपन उठि‍ कऽ सोचबाक चाही। आन जाति‍केँ के कहए मि‍थि‍लामे तँ ब्राह्मणोक मध्यक बड़का वि‍देह छैक, जौं ई वि‍भेद मात्र वैवाहि‍क संस्कामर धरि‍ सीमि‍त रहि‍ते छल तँ येन-केन प्रकारेण स्वीौकारर्य, मुदा “पि‍परी” जे हमर भोज्यर संस्कृयति‍ वि‍शेष चि‍न्ह थि‍क ओकरो देबएमे बड़ भारी खाधि‍ भऽ गेल छैक। अन्तजद्वन्द्वर मात्र एतबे धरि‍ नै भलमानुष वर्गक कोनो कवि‍ तँ एतए धरि‍ लि‍खने छथि‍-


अड़ड़ि‍ए कोदड़ि‍ए आ मुसवरय,


ई मरय तँ मौथि‍लक पाप टरय


अड़ड़ि‍ए मैथि‍ल ब्राह्मणक एकटा मूल होइछ, ऐ श्रेणीक ब्राह्मण दड़ि‍भंगा जि‍लाक “नेहरा” आ समस्तीनपुरक भि‍ड़हा गाममे भरल छथि‍। वएह नेहरा जकरा कहि‍यो “मि‍थि‍लाक पोरि‍स” कहल गेल अछि‍। आब कहल जाए “मैथि‍ल” ऐ दोहामे कवि‍ ककरा मनने छथि‍? मात्र श्रोत्रि‍य, भलमानुष आ उच्चशमूलक जयवार ब्राह्मण। जौं एहेन कवि‍ लेल आन ब्राह्मणों अछोप तँ आन जाति‍केँ की कहल जाए? वि‍द्यापति‍ स्मृिति‍ पर्व समारोह वा कोनो मंच हुअए हास्यलपर थपड़ी बजएबाक लेल ऐ प्रकारक दोहा मि‍थि‍लाक पहि‍चान मानल जाइ रहल अछि‍-


रैनी भैनी ओ रौति‍नि‍याँ


दीप गोधनपुर कैथि‍नि‍याँ


पाँच गाम पचही परगन्ना


उत्तम गाम ननौर


तेली सूरी बसए मधेपुर


लंठक ठठ्ठ लखनौर’


जौं मधुबनी जि‍लाक मात्र ऊपर ि‍लखल कि‍छुए गाम भलमानुषक गाम तँ गोपेश, सरस, गजेन्द्र  वा आनंद भलमानुष्ज्ञक नै?


समस्ती पुर जि‍लामे भलमानुषक तात्वि‍‍क वि‍वेचन तँ आर वि‍चि‍त्र ढंगे कएल गेल अछि‍-


“श्रोत्रि‍य सलमपुर रानी टोल


कि‍छु घर टभका आर सभ चोर”


धन्यशवाद देबाक चाही एहेन प्रसंगक व्या्ख्या  जे ई बि‍सरि‍ गेल छथि‍ जे “चोर”क कोनो जाति‍ नै होइत छैक, ओ कथाकथि‍क भलमानुषक परि‍वारमे सेहो जन्मज लऽ सकैत छथि‍ वा लैत छथि‍।


केओ नै सोचलथि‍ जे हरि‍वंश तरूण सन प्रांजल साहि‍त्यछकार मात्र एक्केटा मैथि‍ली रेडि‍यो नाटक “उगना रे मोर कतए गेलैं” कि‍एक लि‍खलथि‍? एकबेर समस्तीतपुरक लब्ध प्रति‍ष्ठत शैल्य  चि‍क्‍ि‍त्सलक डॉ. आर.पी.मि‍श्रा हि‍न्दुरस्तालन दैनि‍कमे अपन आलेख लि‍खने छलाह जे अधि‍कार देबए काल हमरा सभकेँ दक्षि‍नाहा कहल जाइत अछि‍ तखन मैथि‍लीकेँ आगाँ बढ़एबाक आशा हमरासँ कि‍ए करैत छथि‍? फनीश्वथरनाथ रेणु, पोद्दार रामावतार अरूण सन रचनाकारक केओ मैथि‍लीमे लि‍खबाक प्रेरणा कि‍एक नै देलकनि‍?


गजेन्द्र  ठाकुर, उमेश मण्डरल आ शि‍वकुमार झा सन साधारण लोक समाजक सभ वर्गक रचनाकारकेँ प्रत्सामहि‍त कऽ सकैत छथि‍ तँ प्रवीण साहि‍त्येकारसँ की हमर आश रखनाइ अपराध?


भुवनेश्वार सि‍ंह भुवनकेँ अर्न्त मनसँ श्रद्धांजलि‍ दैत छि‍यनि‍ जे एकटा हि‍न्दीवक महाकवि‍ आरसी प्रसाद सि‍ंहकेँ मैथि‍लीमे लि‍खबाक प्रेरणा देलनि‍।


जखन समस्तीिपुरमे मैथि‍लीक अस्ति ‍त्वलक रक्षार्थ आन्दोीलन होइत अछि‍ तँ डाॅ. नरेश कुमार वि‍कल सभसँ आगाँ रहैत छथि‍। 1960-70मे हि‍नक कवि‍ता सभ मि‍थि‍ला मि‍हि‍रमे छपैत छल तखन मैथि‍ली साहि‍त्यकक इति‍हासमे डॉ. दुर्गानाथ झा श्रीश हि‍नक नाओं कि‍एक नै देलन्हिै‍? हमर कहब ई नै जे सबहक दृष्टि्‍मे सभलोक रहि‍ते छथि‍, मुदा जौं आत्मी य भऽ कऽ सोचल जाए तँ सभ प्रश्नाक समाधान छैक। “मि‍थि‍लामे रहनि‍हार सभ लोक मैथि‍ल” ई उल्लेकख सभ मंचपर कएल जाइत अछि‍। ऐ तरहक उल्लेहखसँ भ्रम उत्पमन्न भेनाइ स्वाएभावि‍क। जेना अपना चारि‍ बेटामे सँ कोनो बेटाकेँ बेर-बेर माए कहैत छथि‍ जे “तौं हमरे बेटा छेँ।” तँ ओहि‍ पुत्रक दि‍मागमे नि‍श्चि‍त उत्पन्न हएत जे शायद हम दोसर नारीक पुत्र छी।


अंतमे, हमर आग्रह यएह जे सम्य क् दृष्टिन‍कोण राखब अनि‍वार्य आ संस्कृैति‍क रक्षार्थ सबल तत्वय मानल जाए, नै तँ समानांतर धार बहबे करतीह आ साहि‍त्यकक लेल ओ क्षण आत्मघाती सेहो हएत।














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