भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Tuesday, September 01, 2009

पेटार २९

गामक जिनगी



























































गामक जिनगी






जगदीश प्रसाद मण्डल

















































Ist edition 2009 collection of Maithili Short Stories Gamak Jingi by Sh. Jagdish Prasad Mandal published by M/s SHRUTI PUBLICATION, 21/8, Ground Floor, New Rajendra Nagar, New Delhi-110008 Tel.: (011) 25889656-58 Fax: 011-25889657


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1.दूटा पाइ

हलहोरि मे फेकुओ दिल्लीक रैलीमे जाइक विचार केलक। सभ परसू सौझुका गाड़ी पकड़त। दिल्लीक लड्डूक बात फेकुओ केँ बुझल रहै। तेँ खाइक मन रहै।अबसर भेटल छलै से किऐक त’ ने गाड़ीमे टिकट लागत आने संगबेक कमी, मात्र चारि दिनक खेनाइ टा अपन खर्च। गाड़ीमे लोक बेसी खाइतो नहि अछि किऐक त पेशाव-पैखानाक समस्या रहै छै। फेकुआ मायके कहलक- ‘‘माय, परसू दिल्ली जेबउ। बटखरचाक ओरियान क’ दिहें?’’ माय बाजलि- ‘‘की सभ लेबही?’’ फेकुआ कहलक- ‘‘दू सेर चूड़ा ल क’ डाॅक्टर सहाएव (नागेद्र जी) चलै ले कहलथिन हेँ। हमरो दू सेर चूड़ा कुट्टि दिहेँ।’’ फेकुआक बातक बिश्वास मायके नहि भेलै। मने-मन सोचलक जे दू सेर चूड़ा त’ एक दिन मे लोक खाइत अछि। चारि दिन कोना पुड़तै? फेरि मन मे अयलै जे दू सेर चूड़ो आ चारि-दुना आठ टा रोटियो पका क’ द’ देबै। कहुना भेलइ त रोटी सिद्ध अन्न भेलइ। गाड़ी अबै स’ पहिनहि जुलूसक संग फेकुआ स्टेशन पहुँचल। जिनगीक पहिल दिन फेकुआ गाड़ीमे चढ़त। प्लेटफार्म पर भीड़ि देखि फेकुआक मन घबड़ेबो करै आ उत्साहो जगै जे एत्ते लोक चढ़त से हेतै आ हमरा वुत्ते कि नहि चढ़ि हैत। निरमली-सकरीक बीच छोटी लाइन। गाड़ियो छोटकिये। मुदा सकरी स’ दिल्ल्ीक लेल गाड़ियो बड़की आ लाइनो बड़की। गाड़ीमे चढ़ि फेकुआ सकरी पहुँचल। दिल्लीक गाड़ी लगले रहै। हाँइ-हाँइ क’ सभ निरमलीक गाड़ी स’ उतड़ि दिल्ली गाड़ीमे चढ़ल।गाड़ी खुजलै। ओना सकरी स’ दिल्ली जाइक लेल चैबीस घंटा लगैत छै। मुदा आइ से नहि भेल। चालीस घंटा मे पहुँचल। मुदा चालीस घंटा कोना बीतल से फेकुआ बुझबे ने केलक। हलहोरियेमे पहुँचगेल। ने एक्को बेरि खेलक आ ने पानि पीलक। मुदा तइओ भूख बुझिये ने पड़ै। गाड़ी स’ उतड़ै काल फेकुआ खिड़की देने प्लेटफार्म दिशि तकलक त जेरक-जेर सिपाही घुमैत देखलक। मुदा फेकुआक नजरि, कतौ नहि अँटकि, मोटका सिपाही पर अँटकल। ओकर मनही पेट पर नजरि गेलै। तइ पर से छओ आंगुर चाकर ललका बेल्ट। जे बेरि-बेरि निच्चा ससरैत। चाइन पर स’ घामक टघार। दस किलोक बन्दुक सेहो कान्ह मे लटकल। मुदा तखने नागेन्द्र जी सेहो अपन छबो संगीक संग हाथ स’ सबकेँ उतड़ैक इशारा देलथिन। धड़फड़ा क’ फेकुओ उतड़ल। प्लेटफार्म टपि जहाँ फेकुआ मुसाफिर खाना प्रवेश करै लागल कि ममिओत भाइ पर नजरि गेलै। ममिऔत भाइ (रतना) चरिपहिया गाड़ीक ड्राइवर। अपना मालिकके गाड़ी पकड़वै ले आयल रहय। भाइ पर नजरि पड़ितहि लग मे जा फेकुआ गोड़ लगलक। गोड़ लागि लालकिला मैदान दिसक रास्ता धेलक। पाछू स’ झटकि क’ आगू बढ़ि रतना फेकुआ स’ घरक कुशल क्षेम पूछलक। कुशलक जबाव नहि द’ फेकुआ कहलक- ‘‘काल्हि साँझ धरि लाल किला मैदान मे रहब तेँ ओतइ अबिहह। अखैन नै रुकबह।’’ ‘‘कनी चाहो पीबि ने ले?’’ ‘‘नै अखैन कुछो नै पीवह।’’ फेकुआ बढ़ि गेल। मुदा रतनाके पाछू घुमैक डेगे ने उठै। फेकुऐ दिशि तकैत रहय। मने-मन विचारै लगल जे हो न हो काल्हि भेटि नहि हुअए। ओत्ते लोक मे के कत्त’ रहत, तेकर कोन ठीक। तहू मे सौझुका बात कहलक। दिल्ली छियै। कोन ठीक जे बिजलीक इजोत रहतै की नहि। एत्ते लोकमे त’ दिनो मे अन्हार रहत। एक्को दिन मेजमानियो ने करौलियै। गाममे दीदी सुनत ते की कहत? उ(ओ) की कोनो दिल्ली क’ दिल्ली बुझैत हैत। ओ त गामे जेँका बुझैत हैत। जहिना गाममे सभके सभ चिन्है छै, तहिना। मुदा ई त दिल्ली छी। भाड़ाक एक कोठरीमे सोहर गाओल जाइत छैक आ दोसर मे कन्नारोहट होइ छै। विचित्र स्थिति मे रतना पड़ि गेल। आइ घरि रतनाक बुद्धि पर एहेन भार कहियो नहि पड़ल रहै। एकाएक मन मे अयलै जे कौल्हुका छुट्टी ल’ क’ भोरे फेकुआक भेटि करब। भेटि होइतहि लालकिला, जामा मस्जिद देखा देबइ। दोसर दिन भोरे रतना फेकुआक भेटि करै विदा भेलि। लाल किला मैदान पहुँचते भेटि भ’ गेलइ। भेटि होइतहि दुनू भाइ गामेक बसिया रोटी खा पानि पीलक। भरि दिन संगे रहि, रैली समाप्त क’ रतना अपना डेरा पर आयल। पैध सेठक ड्राइवर रतना, तेँ डेरो नीक। सब सुविधा। मुदा रतनाक डेरा सँ फेकुआक मनमे खूब खुशी नहि भेलइ। मन पड़ि गेलइ मायक ओ बात जे सदिखन बजै- ‘‘अनकर पहीरि क’ साज-बाज, छीनि लेलक त बड़ लाज।’’ अपना जैह रहए ओहि स सबुर करी। मुदा मायक बात फेकुआक मनमे बेसी काल नहि अँटकल। किऐक त’ तीनि दिन सँ नहाएल नहि छल। जहि स’ देहमे लज्जतिये ने बुझि पड़ै। रतनाके कहलक- ‘‘भैया, पहिने हम नहेबह। बिना नहेने मन खनहन नै हैत। ओना ओंघियो लागल अछि। तेँ नहा क’ खेबह आ भरि मन सुतबह।’’ फेकुआके रतना बाथ रुम देखा देलक। बिजली जरैत। पानि चलैत। बाथ रुम देखा रतना गैस चुल्हि पजारि भानस करै लगल। भरि मन फेकुआ नहाएल। मन शान्त भेलइ। मन मे उठलै, जखन दिल्ली आबि गेलहुँ तँ किछु लइये क’ जायब। रतना लग आवि फेकुआ बैसल। भानस मे विलंब देखि रतना कहलकै- ‘‘बौआ देखही, ई दिल्ली छियै। एहिठाम लोक सोलह-सोलह घंटा खटैत अछि। दरमाहाक संग ओभर टाइमोक पाइ भेटइ छै। मुदा जिनगी-जीबैक लुरि नहि रहने सब चलि जाइ छै। ने गामक कर्ज स मुक्ति होइ छै आ ने अहीठाम चैन स’ रहैत अछि। भुतलग्गु जेँका सदिखन बुझि पडै़त छै। तोरा एहि दुआरे कहि दइ छिऔ जे तू अपन छोट भाइ छियें।’’ रतना बात सुनि कने-काल गुम रहि फेकुआ कहलक- ‘‘भैया, तू सभ तरहे पैघ छह। जखन तोरा लग छी त’ तोंही ने हमर नीक-बेजाय बुझबहक।’’ फेकुआ बात स’ रतनाके अपन जिम्माक भार बुझि पड़लै। बाजल- ‘‘देखही बौआ, एखन जे कहलिऔ से स्टील फैक्ट्रीक स्टाफक बात कहलिऔ। मुदा सब ऐहने अछि सेहो बात नहि छै। ऐहनो लोक अछि जे अपन मेहनत आ लुरि स’ गरीब रहितो अमीर बनि गेल। अपने इलाकाक ढ़ोरबा छी। जेकरा हम त’ ढ़ोरबे कहै छिअए मुदा ओ ढ़ोढ़ाई बाबू बनि गेल। जखन गाम स’ आयल, त’ बौआ-ढ़हना क’ चारि दिनक बाद एहिठाम आयल। ओकरा शैलूनमे नोकरी लगा देलियै। किछु दिन त काज करै मे लाज होइ। किऐक त’ ओ धानुक छी। मुदा किछुऐ दिनक उपरान्त(पछाति) तेहेन हाथ बैसि गेलइ जे नउओ क’ उन्नैस करै लगल। अपनो खूब मन लगै लगलै। दरमहो बढ़ि गेलइ। तीनि सालक बाद जेना ओकरा एहिठाम स’ मन उचटि गेलइ। सोचलक जे जखन लुुड़ि भ’ गेल अछि तखन कतौ कमा क’ खा सकै छी। से नहि त’ गामेक चैक पर दोकान खोलब। अपना जे दू पाइ कम्मो हैत तइ स’ की समाजक उपकार त’ हेतइ। सैह केलक। ले बलैया, गामक लोक कियो ठाकुर त’ कियो नौआ त’ कियो हजमा कहै लगलै। घरक जनिजाति के नौआइन कहै लगलै। सभसँ दुखद घटना तखन भेलै जखन कथा-कुटुमैती आ जातिक काज स’ अलग कयल गेलइ। मुदा ओहो कर्म-योगी। गाम केँ प्रणाम क’, अपन परिवारक संग दिल्ली (शहर) चलि आयल। वाह रे वनक फूल, ऐहिठाम आबि क’ अपन कारोवार(शैलून) ठाढ़ क’ लेलक। छह टा स्ठाफ रखने अछि। बहिनीक विआह इंजीनियर स’ केलक। हमहूँ विआह मे रहियै।’’ फेकुआ बाजल- ‘‘हमरो कोनो लाज-सरम नै हैत। जे काज मे लगाा देबह, हम पाछु नै हटबह।’’ रतना कहलक- ‘‘परसू रवि छिअए। हमरो छुट्टी रहत। तावे दू दिन अरामे कर।’’ फेकुआ बाजल- ‘‘हमरा ओते सुतल नीक नै लगतह। चलि जेबह बुलै ले।’’ रतना कहलक- ‘‘रौ बुड़िबक! गाममे लोक खिस्सा कहै छै जे फल्लां तेहेन काबिल छै जे एक्के पाइ मे बेचि लेतउ। मुदा अहिठाम सभ काबिले छै। तैं देखविही जे अहिठाम सभ से पैघ कारबार मनुक्खेक खरीद-विक्रीक छैक। देहाती बुझि केओ ठकि क’ बेचि लेतउ। कहतौ जे हवा-जहाजक नोकरी धड़ा देबउ आ चलि जेमए आन देश।’’ रतनाक बात सुनि फेकुआ क्षुब्ध भ’ गेल। मुदा मन मे अयलै जे जना हम बेदरा रही तहिना भैया कहैए। मुदा किछु बाजल नहि। दम साधि क’ रहि गेल। तीनि दिनक उपरान्त फेकुआ कपड़ा सिलाइक दोकानमे काज शुरु केलक। दू हजार रुपैया दरमाहा। भिनसर छओ बजे स’ राति नओ बजे धरिक डयूटी। बीचमे एक बेर अधा घंटा जलखै करै ले आ एक घंटा खाइ बेरि छुट्टी। फेकुआक मनमे उठल जे ड्यूटी त’ बीसो घंटा क’ सकै छी मुदा सुतैक जे आठ घंटा छै से केना पुड़त। मुदा फेरि मनमे एलै जे जखन दू पाइ कमाइ चाहै छी तखन त’ सब सुख-भोग कमबै पड़त। दोकानमे आठ टा कारीगर। आठो नोकरे। फेकुआ अनाड़ी, तेँ दोकानक झाड़-बहार(झाडू़-बहारु) स’ काज शुरु केलक। कपड़ा चलैत रहै। पान-छओ गोटेक संग रामसुनरि (फेकुआके काटब आ मशीन(सिलाइ मशीन) चलौनाइ सेहो कने-कने माय) धन-रोपनी करै विदा भेलि। किछुए आगू बढ़ला पर सीखए लगल। डाक-प्यून के देखलक। मुदा आन स्त्रीगण जेँका रामसुनरि दुइये माय-बेटा फेकुआ। दस साल पहिनहि बाप नहि जे दिन मे दू बेरि मोबाइल स’, तीनि पन्नाक चिट्ठी मरि गेल। अपने दिल्ली धेलक आ माय गाम मे। मुदा आ तइ पर स’ जे समदिया भेटलै ओकरा दिअए समाद मायो थेहगरि। पुरुखे जेँका बोनि-बुत्ता करैत। नोकरी पठौत। मन मे कोनो हल-चल नहि। रामसुनरिक आगू मे होइतहि फेकुआ के माय मन पड़लै। मायो टा नहि गामो आबि हँसैत डाकप्यून कहलक- ‘‘काकी, फेकुआक चिट्ठी मन पड़लै। मन पड़लै गामक स्मृति। माइक ममता जगि ऐलौ हेन।’’ मन क’ खोरै लगलै। मन मे उठै लगलै-परदेशियाक कहि झोरा स निकालि पोस्ट कार्ड देलक। छबो परिवारमे गेटक-गेट कपड़ा.....राशि-राशिक चीज-बस्तु.स्त्रीगण डाकप्यून क’ चारु भाग स’ घेरि क’ ठाढ़ भेलि। ....रेडियो, घड़ी, टी. वी., मोबाइल इत्यादि। ककरा नहि हाथ मे पोस्ट-कार्ड अबितहि रामसुनरिक मन, बिहाड़ि मे नीक वस्तुक सेहन्ता होइत छै। मुदा ओहन सिहन्ते की उड़ैत ओहि सुखल पात जेँका जे सरंगोलिया उठि अकास जेकरा पुरबैक ओकातिये ने रहै। दू हजार महीना रुपैआक मे उड़ैत, तहिना उड़ि गेल। जिनगीक पहिल पत्र। मन मे गरमी फेकुआक मनमे तरे-तर चढ़ि गेलै। कोना नहि अयलै जे पहिने ककरो स’ पत्र पढ़ा ली। ओना डाकप्यून चढ़ितै? मुदा आमदनिऐक गरमी चढ़ल खर्चक पानि पड़बे लग मे से चलि गेल। मुदा तेकर अफसोस नहि भेलै। ने कयल। सोचलक जे सबसँ पहिने माएके चिट्ठी लिखि किऐक त जाधरि प्यून लग मे छल ताधरि पत्र पढ़ेवाक जना दिअए। विचार मनमे आयलो नहि छलैक। फेरि मन मे अयलै जे आठ दिनक बाद फेकुआ रतनाके कहलक- ‘‘भैया, काज कामै नै करब। अखन खूँट मे बान्हि क’ रखि लइ हमरा तँ लिखल-पढ़ल नै होइए। मुदा जखन नोकरी लागि छी आ जखन निचेन हैब तखन पढ़ा लेब। सैह केलक। गेलौं त’ मायके जनतब देब जरुरी अछि। किऐक त’ गोसाइ डूबैत रामसुनरि निचेन भेलि। निचेन ओकरा होइत हेतै जे कत्त’ बौआइ-ढ़हनाइए। रतनोक होइतहि चिट्ठी पढ़ाबए श्याम ओहिठाम विदा भेलि। श्यामोक मन मे जँचलै। वी. आइ. पी. बैग स पोस्ट-कार्ड निकालि घर लगे। पोस्ट-कार्ड हाथ मे ल’ श्याम सत्यनारायण कथा रतना चिट्ठी लिखय ले तैयार भेल। पुछलक- ‘‘बाज की जेँका पढ़ै लगल। मुदा दोसरे पाँती, ‘दू हजार रुपैआ सब दीदी क’ लिखबीही?’’महिना तलब, मे रामसुनरि ओझरा गेलि। मने-मन सोचए फेकुआ लिखवै लगल- लागलि जे छैाँड़ाके(फेेकुआ) घरक सोह एलै। बुद्धियो स्थान- दिल्लीफुटैक उमेर भेलि जाइ छै। आब कहिया चेतन हैत। ता0- 5.6.2007अगिला साल तक बियाहो कइये देवइ। असकरे राकश माय, गोड़ लगै छिऔ जेँका अंगनामे रहै छी। लगले विचार बदलि गेलइ। बुदबुदा भगवानक दया आ तोरा-सबहक(समाज) असीरवाद लागलि, कोना(कना) लोक कहै छै जे मसोमातक बेटा से तेहेन नोकरी भेटल जे कहियो मन मे नै आयल छल। दुइर भ’ जाइ छै। विचार मे डूबल रामसुनरि। तहि बीच दू हजार रुपैआ महीनाक तलब। अपना कते खर्च हैत। श्याम बाजल- ‘‘सब बात बुझलियै ने काकी?’’ जे उगड़त से मासे-मास पठा देबउ। बेंगबा कक्का के श्यामक पुछब स’ रामसुनरिक भक्क खुजल। कहिअनि जे चिमनी पर जा क’ ईंटाक दाम बुझि अबै ले। बाजलि- ‘‘बौआ, चिट्ठी पढ़ल भ’ गेलह। की सब छौड़ा पहिने घर बना लेब। अपना कलो(चापाकल) नै छौ, सेहो लिखने अछि?’’ गड़ा लेब। घरक आगू जे मलिकाबाक चैमास छै, ओहो काकीक मनक बात नहि बुझि श्याम खौंझा गेल। मुदा कीनि लेब।’’ किछु बाजल नहि। पत्र क’ निच्चा मे रखि श्याम ओहिना(मुह तोहर बेटा फेकुआ जबानिये) कहै लगलनि। मुदा कार्ड क’ निच्चा मे राखल सात बजे भिनसर। मेघौन। कखनो क सुरुज देखि बेचारी(रामसुनरि) केँ भेलि जे अपने दिशि स कहै देखि पड़ै आ फेर झपा जाइ। झिहिर-झिहिर पुरबा हबा अए। जहि स’ विश्वासे ने भेलइ। मुदा झगड़ो करब उचित नहि बुझलक। किऐक त बेटाक पहिल पत्र छी तेँ अशुभ व्यवहार नीक नहि। दोसर दिन एकटा पोस्टकार्ड कीनि रामसुनरि पत्र पढ़बैइयो आ लिखबैयो ले सोहन ऐठाम गेलि। दुनू पोस्टकाड (लिखलहो आ सौदो) रामसुनरि सोहनके दैत कहलक- ‘‘बौआ, पहिने पढ़ि क’ सुना दैह। तखन लिखियो दिह’।’’ पत्र पढ़ि क सोहन सुनादेलक। समाचार सुनि रामसुनरिक मन खुशी स’ उत्साहित भ’ गेलै। बाजलि- ‘‘बौआ आब चिट्ठी लिखि दिऔ। सोहन चिट्ठी लिख’ लागल- परमानपुर ता0 3.7.2007 फेकू। असीरवाद। अखन हम अपने थेहगर छी, तेँ हम्मर चिन्ता जुनि कर। रहै ले घरो अछिये। एक घैल पानि इसकूलबला कल पर स’ ल’ अबैत छी, ओइह भरि दिन चलैत अछि। तेँ पानियोक दिक्कत नहिये अछि। नहाइ ले धारो आ पोखरियो अछि। कहियो-काल बरखो मे नहा लै छी। तइ सब ले तू चिन्ता किअए करै छैं? एखन खाइ-खेलाइक उमेर छौ। तेँ कमा क’ जे मन फुड़ौ से करिहें। अगिला साल धरि अबिहें, वियाहो क’ देबउ। असकरे अंगना मे नीक नै लगैए।’’ माए (रामसुनरि) साल भरि बीति गेल। जहिना गाम मे रामसुनरि अपना काज मे हरा गेलि तहिना दिल्ली मे फेकुओ। साले भरि मे फेकुआ कपड़ा सिलाइक कारीगर बनि गेल। अपना देहक कपड़ा-लत्ता कीनतै-कीनैत फेकुआक सालो भरिक दरमाहा सठि गेलै। माइक जिनगी त’ जहिना के तहिना रहलि मुदा फेकुआक जिनगीमे बदलाब आयल। दुब्बर-दानर फेकुआ फुटि क’ जुआन भ’ गेल। कपड़ा सिआइक लुरि भेने आत्मबलो मजबूत भेलै। मुदा गामक जिनगी आ दिल्लीक जिनगीक बीचक संघर्ष फेकुआक मन मे चलितहि रहलै। रवि दिन। रतनो आ फेकुओके छुट्टी रहै। सुति उठि दुनू ममियौत-पिसियौत विचारलक जे साल भरि स’ बगेरी नहि खेलहुँ। से नहि त’ आइ बगेरिये आनब। ताहि बीच रोड पर देखलक जे पुलिसक गाड़ी इम्हर स ओम्हर क’ रहल छै। दुनू भाइके कोनो भाँजे नहि लगै। कोठरी स’ निकलि रतना चाहवला सँ पुछलक। चाहवला स भाँज लगलै जे महल्ला सँ एकटा जुआन लड़की आ एकटा सेठक बेटाक अपहरण राति मे भ’ गेलइ। समाचार सुनि दुनू भाइ डरा गेल। बगेरीक विचार छोरि गामक गप-सप करै लगल। रतना बाजल- ‘‘बौआ, तोरा साल लागि गेलह। एक बेरि गाम जा सबकेँ भेंटि केेने आबह।’’ गामक नाम सुनितहि फेकुआक मन उड़ि क’ दोसर दुनियाँ पहुँच गेलै। मन पड़लै-चिमनीक ईंटा....चापाकल....घरक आगूक चैमास। मन गामक सीमा पर अटकि गेलइ। सीमा पर स अंगना पहुँचैक साहसे ने होइ। किऐक त’ बाटे पर मायके ठाढ़ भेलि देखए। की कहैत हैत माय? साल भरि भ’ गेलइ ने एक्कोटा पाइ पठौलक आ न एक्को खण्ड साड़ी। कहियो काल जे अस्सक पड़ैत हैत त’ दवाइयो आनि क’ के दैत हेतइ? पौरुकाँ जे चिट्ठी आयल, तइ दिन स’ दोसर चिट्ठियो ने अयल हेँ। हमहूँ त’ नहिये पठौलियै। छुछे चिट्ठिये लिखिने की हेतइ। मने-मन बुढ़िया(माए) सरापैत हैत। कहैत हैत जे छौंड़ा ढ़हलेलक ढ़हलेले रहिय गेल। मुदा हमहीं की करब? छुछे हाथे गामे जा कऽ की करब? टिकटो जोकर पाइ नइ अइ। चिन्ता आ सोग स’ फेकुआक मन दबा गेलै। कोनो बाटे ने सुझै। मनक भीतर बिरड़ो उठि गेलइ। बिरड़ोक हवा मे फेकुआक मन सोगक तर स’ निकलि गेलै। मन मे अयलै, गाम त गाम छी। गामक लोक माघक शीतलहरी आगि तापि कऽ काटि लैत अछि। बिना कम्मल-सीरक क जाड़ बीता लैत अछि, गाछ तर जेठक रौद काटि लैत अछि। मुदा दिल्ली मे से हैत? साल भरिक कमाइ साल भरिक(मौसमक अनुकूल) कपड़े मे चलि गेल। नहि लइतहुँ त’ सेहो नहि बनैत। लेलहुँ त’ गाम छुटि गेल। जहिना घनघोर बादलक फाँट सँ सूर्जक रोशनी छिटकैत तहिना फेकुओक मन मे भेल। रतनाके कहलक- ‘‘भैया, एकटा चिट्ठी लिखि दैह।’’ लगे मे रतना क सभ किछु छलै। पोस्ट-कार्ड निकालि लिखै ले तैयार भेल। फेकुआ लिखबै लगल- दिल्ली ता0 11.8.2008 माय, गोड़ लगै छिऔ मनमे बहुत छलै जे तोरो बेटा दिल्ली मे नोकरी करैत छओ। मुदा सब हरा गेल। सिर्फ एक्के टा चीज बँचल जे एहिठाम(दिल्ली) स’ ओहिठाम(गाम) धरि जीवैक रास्ता धड़ा देत। तेँ खुशी अछि। हाथ खाली अछि। गाम कोना आयब? तोहर फेकुआ चारिये दिन मे चिट्ठी मायक हाथ पहुँचल। चिट्ठी के हाथ मे अबितहि राम सुनरि निग्हारि-निग्हारि देखै लागलि। छैाँड़ा कतौ रहए, भगवान ओकरा नीके रखथुन। बेटा धन छी। कतौ रहय। आब त’ फुटि क’ जुआन भ’ गेल हैत। जहिना चाह-पान खा-पी बड़का लोक केँ धोधि फुटि जाइ छै तहिना त’ फेकुओके भेलि हेतै। किऐक त’ ओहो ने चाह-पान खाइत-पीबैत हैत। गोराइयो गेल हैत। मोछो-दाढ़ी भ’ गेल हेतै। जहिना भगवान घर स’ पुरुख उठा लेलनि तहिना त फेरि दइयो देलनि। जुआन बेटा पर नजरि पहुँचतहि रामसुनरिक मन खुशी स नाचि उठलै। मने-मन बुद-बुदा लगलीह-दस बर्ख स’ घर मे पुरुख नइ छल तेँ कि कोना पुरुखक घर से हमर घर अधला चलल। संतोषे गाछमे मेबा फड़ैत छै। परसुका बात मन पड़लै। चाहक दोकान पर परसू पंडी जी कहैत रहथिन जे एहिबेरि शुरुहे अगहन स’ घन-घनौआ(गन-गनौआ) लगन अछि। हमहूँ फेकुआक वियाह कइये लेब। बियाह मन मे अबिते सोचै लागलि-बहुत दिन स’ पाँच गोटे क’ अंगनामे हाथो नै धुऐलौ। सेहो कइये लेब। समाजक भोज मे त’ नै सकब मुदा जहाँ धरि सकड़ता हैत, तइमे पाछुओ नै हटब। लोक ई नै बुझै जे मसोमातक बेटाक बियाह होइ छै। डफरा-वौसली, हवागाड़ी सेहो लइये जायब। अनका जेँका एक ढ़किया क’ मुह नै पसारव। अपना बेटी-जमाय केँ जे देत से देत। हम किअए मंगिऔ। जे आदमी पोसि-पालि क’ एकटा मनुक्ख देबे करत तेकरा स’ फेरि की मंगिऔ? किछु ने मंगबै। लुरि रहत त कामधेनु बना क’ राखब नहि त माटिक मुरुत रहत। एकाएक रामसुनरिक नजरि चिट्ठी पर पहुँचल। पोस्ट-कार्ड निकालि, हियसि-हियासि देखै लगलीह। फुटा-फुटा करिया अक्षर त’ नहि बुझैत, मुदा कृष्ण जेँका कारी मुरुत जरुर बुझि पड़ै। चिट्ठी पढ़ाबै रामसुनरि विदा भेलि। अंगना स’ निकलितहि मन मे उठलनि आब कि कोनो पहिलुका जेँका लोक के बारह बर्ख कटिया सोन्हबै पड़ै छै। आब त साले भरि मे लोक के धिया-पूता भ’ जायत छैक। कहुना भेलि त’ हमरो फेकुआ शहरे-बजारक भेल की ने। एते बात मन मे अबितहि(अबिते) मँुह स’ हँसी निकलल। असकरे। तेँ कान क’ सुनै दुआरे तेना रामसुनरि जोर स बाजलि जेना दोसर क’ कहैत होअय। फुसिओहोक बेटी युग जीतिलक। भाग त’ मुह-कान नीकि नइ छै। नइ ते युग मे भूर करैत। वियाहक आठमे मास मे बेटी भ’ गेलइ। ई त धन्यवाद अइ(एहि) समाज के दी जे एक सूरे सब बाजल जे सतमसुआ बच्चा छिअए। जँ ऐना वियाहक विदागरी मे हैत त केहेन हैत(होएत)? मुदा ओ बच्चा सतमसुआ नहि। समाज झूठो बाजि ओकरा सतमसुआ बच्चाक पालन-पोसन स’ बँचैलक। रविक दरबज्जा लग अबितहि रामसुनरिक नजरि (ध्यान) चिट्ठी पर पहुँचल। रवि दरबज्जे पर बैसि किछु लिखैत छल। रामसुनरि क लग अवितहि रबि उठि क चैकी पर बैसबैत, पुछलक- ‘‘काकी फेकू भाइक वियाह कहिया करबीही? हमहूँ बरिआती जेवउ?’’ रविक बात सुनितहि रामसुनरिक मन बृन्दाबनक रास लीला पर पहुँच गेलनि। कनिये काल कृष्णक रास-लीला देखि, धुरि क’ आबि चिट्ठी पढ़वो आ लिखबो ले रबि क कहलक। पत्र पढ़ि क रबि सुना देलकनि। पत्र लिखै ले तैयार होइत, बाजल- ‘‘की सब लिखब?’’ रामसुनरि लिखवै लागलि- ‘‘ परमानपुर ता0 15.8.2008 बौआ फेकू। हम तोरा कमाइक कोनो आशा केने छी, जे पाइ नै छौ(छओ) ते गाम कोना आयब? ककरो स’ पैंच-खांेइच ल’ क’ चलि आ। तीनि भुरकुरी धान-गहूम रखने छी, वैह(ओइह) बेचि क’ द’ देवइ। आब तोहूँ चेतन भेल-ए। लोक कलंक जोड़त। हमरो आब अइ दुनियामे नीक नै लगै अए। तेँ सोचै छी जे अपन काज जल्दी पूरा ली। अगते अगहन मे चलि अबिहें। ताबे कनियाँ ठेमा क रखबौ। एखैन हमहूँ थेहगर छी, मुदा अइ जिनगीक कोन ठेकान छै। आब ई परिवारो आ दुनियों तोरे सबहक ने हेतउ। टेम पर चलि अविहेँ, जइ से काज बिथुत ने होउ।’’ माए, रामसुनरि। मायक पत्र सुनि फेकुआ मने-मन खुब खुशी भेल। मन मे भेलइ जे हमरो काज एहि दुनियाँ, एहि समाज मे छैक(अछि)। मुदा मन मे खुशी बेसी काल टिकल नहि। लगले माघक कुहेस जेँका बुद्धि अन्हरा गेलइ। कोन मुह ल क’ गाम जायब। साल भरिक कमाइ माययक हाथ मे की देबइ। ई बात सत्य जे हमरा भरोसे ओ नहि जीवैत अछि। मुदा हमरा ओकर कोनो दायित्व नहि अछि, सेहो त नहि। हे भगवान कोनो गर(उपाय) सुझावह। पनरहे दिनक पछाति एकटा घटना घटल। जहिमे फेकुओक नोकरी छुटि गेल। ओना नओ गोटेक संग फेकुआ काज करैत। मुदा आठो गोटे(पुरना कारीगर) समयानुसर अपना क’ बदलैत जायत (नव-नव डिजाइनिक कपड़ा सिबैक लूरि सिखैत जायत)। फेकुआ अनाड़ी, तेँ शुरुह स’ काज(सिलाइक) सिखै पड़लै। साल भरि मे कहुना क’ दिल्लीक(पुरना दिल्लीक) कारीगर बनल। मुदा फैशन मे बिहाड़ि ऐने फेकुआ उड़ि क’ कात मे खसल। ओना मालिकोक(दोकानदार) मन मे बेइमानी घोसिआइल रहै। बेइमानीक कारण छल पाइवलाक चसकल मन। एकटा अट्ठारह बर्खक लड़की कारीगर दू हजार मे भेटि गेलै। सवा बर्ख स शहर मे रहैत-रहैत फेकुओक सुतल बुद्धि जगि क करबट बदलै लगलै। जहि स’ आत्मबलोक जन्म भ’ चुकल छलैक। मुदा खिच्चा। सक्कत बनिये रहल छलैक। जहिना मालिक नोकरी स’ हटैक बात कहलकै तहिना फेकुआ हिसाब मंगलक। हिसाब ल’ फेकुआ डेरा विदा भेल। पाइ रहवे करए। रस्ते मे काॅफी पीबि डेरा आयल। डेरा आबि पंखा खोलि पलंग पर ओंघरा गेल। ओंघराइते मन मे अबै लगलै ई शहर छी, गाम नहि। शहर मे जहि तेजी स मशीन, फैशन आ जीवन-शैली बदलि रहल अछि, ओहि मे हमरा सन-सन मुरुखक कोन बात जे पढ़लो-लिखल लोक ओंघरनिया देत। नवका मशीन पुरना इंजीनियर केँ धक्का देत। पुरना बुद्धि के नवका बुद्धि धक्का देत। मुदा नीक-अधलाह के बुझत? सब भोग-विलासक जिनगीक पाछु आन्हर बनि गेल अछि। बाप रे, इ त भुमकमक लक्षण बनि रहल अछि। फेरि मन मे एलै, भरिसक हमर माथ, नोकरी छुटने, ते ने चढ़ि गेल हेँ। ओह, अनका विषय मे अनेरे ओझराइ छी। जेकरा भोगए पड़तै ओकरा सुआस बुझि पड़ै छै, त’ हमरे की। ठनका ठनकै छै ते कियो अपना माथ पर हाथ ल’ साहोर-साहोर करैत अछि। फेरि मन मे अयलै जे हमहूँ त जूड़िशीतलक नढ़ि़ये जेँका भेलि छी। एक दिशि चारु भाग स कुकूर दाँत स पकड़ि-पकड़ि तीड़ैत अछि त दोसर दिशि शिकारी सब लाठी बरिसवैत अछि। गामक लूरि सीखिलहुँ नहि, सीखि लेलहुँ शहर लूरि। त’ आब लिअ। क्वीन्टलिया बोरा मे भरि-भरि रखने जाउ। फेकुआक मन औना गेल। दुबट्टिये मे हरा गेल। तीनिबट्टिया-चरिबट्टिया त बाकिये अछि। माए पर तामस उठलै। बुदबुदा लागल- ‘‘इ बुढ़िया(माए) गछा लेलक जे शुरुहे अगहन मे चलि अबिहेँ। कनियाँ ठेमा क’ रखबौ। बियाह कइये देबउ।’’ एक दिशि केँचुआइल कनियाँक बदलैत रुप त’ दोसर दिशि मायक सिनेह। समुद्रक पानि जेँका फेकुआक मन केँ अस्थिर क’ देलक। सोचै लगल जे माय नीक छोड़ि कहियो अधलाह नहि केलक आ ने कहियो सोचलक, ओकरा पर आँखि उठाएव अनुचित छी। काल्हिये गाम चलि जायब। बियाहो कइये लेब। दू टा(पति-पत्नी) ओहन लोक एकठाम होएव, जे किछु क’ सकैत छी। ‘दू पाइ’ क’ आशा हृदय मे समेटि सौझुका गाड़ी पकड़ि, तेसर दिन गाम पहुँच गेल। 2.बहीन ‘आब अधिक दिन माय नहि खेपतीह। ओना उमेरो नब्बे बर्खक धत-पत हेबे करतनि। तहूँ मे बर्ख पनरह-बीसेक स’ कहियो बोखार के कहे जे उकासियो नहि भेलनि अछि। एक त’ ओहिना पाकल उमेर तहि पर स देहक रोगो पछुआयल, तेँ भरिसक एहिबेरि उठि क’ ठाढ़ हेवाक कम भरोस। किऐक त’ एक न एक उपद्रव बढ़िते जाइत छैन्हि। अन्नो-पानि अरुचिये जेँका भेलि जाइ छनि।’’ -‘भखरल स्वरमे राधे-श्याम पत्नी क’ कहलथिन। पतिक बात सुनि, कने काल गुम्म रहि, रागिनी बाजलि- ‘‘ककरो औरुदा त’ कियो नहिये द’ सकैत अछि। तहन त’ जाधरि जीवैत छथि ताधरि हम-अहाँ सेबे करबनि की ने?’’ ‘हँ, से त सैह क’ सकैत छियनि। मुदा जिनगीक कठिन परीक्षाक घड़ी आबि गेल अछि। एते दिन जे केलहुँ, ओकर ओते महत्व नहि जते आबक अछि। किऐक त’ कखनो पानि मंगतीह वा किछु कहतीह, तहिमे जँ कनियो विलंब हएत आ कियो सुनि लेत त अनेरे बाजत जे फल्लांक माय पानि दुआरे किकिहारि कटैत रहैत छथिन। मुदा बेटा-पुतोहू तेहन जे घुरि क’ एको-बेरि तकितो नहि छैन्हि। ककरो मुंह मे ताला लगेबै। देखिते छियै जे गाम मे कोना लोक झुठ बाजि-बाजि झगड़ो लगबैत आ कलंको जोडै़त अछि। तेँ चैबीसो घंटा ककरो नहि ककरो लग मे रहए पड़त। जँ से नहि करब त’ अंतिम समयमे कलंकक मोटरी कपार पर लेब।’’ ‘‘कहलहुँ त’ ठीके, मुदा बच्चा सबहक हिसाबे कोन, तहन त’ दू परानी बचलहुँ। बेरा-बेरी दुनू गोटे रहब। अन्तुका काज अहूँ छोड़ि दिऔ। किऐक त’ अंगनेक काज बढ़ि गेल। बहीनो सभ के जनतब दइये दिअनु।’’ ‘‘अपनो मन मे सैह अछि। जँ तीनू बहीनि आबि जायत त काजो बँटा क’ हल्लुक भ’ जायत। ओना अंगना स’ दुआरि धरि काजो बढ़बे करत। किऐक त जखने सर- संबंधी, दोस्त-महिम बुझताह त’ जिज्ञासा करै अयबे करताह। जखन दरबज्जा पर औताह त’ सुआगत बात करै पड़त।’ मूड़ी डोलबैत रागिनी बजलीह- ‘‘हँ, से त हेबे करत।’’ ‘‘एखन निचेन छी आ काजो करैऐक अछि। तेँ अखने तीनू बहीनियो आ मामो केँ जानकारी दइये दैइत छिअनि।’’ आन कुटुम्ब केँ एखन जानकारी देब जरुरी नहि छै। मोबाइल मे मामाक नम्बर लगौलक। रिंग भेलै। ‘‘हेलो, मामा। हम राधेश्याम।’’ ‘‘हँ, राधेश्याम। की हाल-चाल?’’ ‘‘माय, बड़ जोर दुखित पड़ि गेलीह।’’ ‘‘एखन हम एकटा जरुरी काज मे बँझल छी। साँझ धरि आबि रहल छी।’’ मोबाइल बन्न क’ राधेश्याम जेठ बहीनि गौरीक नम्बर लगौलक। ‘‘हेलो, बहीनि। माए दुखित पड़ि गेलथुन।’’ ‘‘एखन हम स्कूले मे छी, आ अपनहुँ(पति) कओलेजे मे छथि। छुट्टीक दरखास्त दइये दैत छिअए। साँझ धरि पहुँच जायब।’’ मोबाइल बन्न क’ छोटकी बहीनिक नम्वर लगौलक। ‘‘सुनीता। हम राधेश्याम।’’ ‘‘भैया, माय नीके अछि की ने?’’ ‘‘एखन की नीक आ कि अधलाह। तीनि दिन स ओछाइन धेने अछि। तेँ किछु कहब कठिन।’’ ‘‘हम अखने छुट्टीक दरखास्त द’ आबि रहल छी।’’ ‘‘बड़बढ़िया’’ कहि मझिली बहीनि रीता क नम्बर लगौलक। ‘‘हेलो, रीता। हम राधेश्याम। माए, बड़ जोर दुखित छथुन।’’ ‘भैया, हम त अपने तते फिरीसान छी जे खाइक छुट्टी नहि भेटैत अछि। काल्हिये स’ दुनू बच्चाक प्रतियोगिता परीक्षा छियै।’ बिना स्विच आॅफ केनहि राधेश्याम मोबाइल रखि अकास दिशि देखए लगल। ठोर पटपटबैत- ‘बच्चाक परीक्षा......, मृत्यु सज्जा पर माय....! केकरा प्राथमिकता देल जाय? एक दिशि, जे बच्चा एखन धरि जिनगी मे पैरो नहि रखलक, सौंसे जिनगी पड़ल छैक। दोसर दिशि कष्टमय जिनगी मे पड़ल बृद्ध माय। खैर, सभकेँ अपन-अपन जिनगी होइ छैक आ अपना-अपना ढ़ंग स’ सभ जीबै चाहैत अछि। हम चारि भाइ बहीनि छी तेँ ने दोसर पर ओंगठल छी। मुदा जे असकरे अछि, ओ कोना माए-बापक पार-घाट लगबैत अछि। किछु सोचितहि छल कि नव उत्साह मन मे जगल। नव उत्साह जगितहि नजरि पाछु मुहे ससरल। चारु भाइ-बहीनि मे माय सबसँ बेसी ओकरे(रीता) मानैत छलि आ सेबो केलक। कारणो छलैक जे बच्चे स’ ओ(रीता) रोगा गेल छलि। मुदा आश्चर्यक बात त’ ई जे जेकरा माय सभसँ बेसी सेवा केलक वैह सभसँ पहिने बिसरि रहलि अछि। गोंसाइ डूबैत-डूबैत मामो आ दुनू बहीनि-बहिनोइ पहुँच जाइ गेल थिन। अबितहि डाॅ. सुधीर(छोट बहिनोइ) आला लगा माए(सासु) के देखि कहलखिन- ‘‘भैया, माए बँचतीह नहि। मुदा मरबो दस दिनक बादे करतीह। तेँ एखन ओते घबड़ेबाक बात नहि अछि। अखन हम जाइ छी, मुदा बहीनि(डाॅ. सुनिता) रहतीह। ओना हमहूँ दू दिन-तीन दिन पर अबैत रहब।’’ डाॅ. सुधीरक बात सुनि सभकेँ क्षणिक संतोष भेलनि। मामा कहलखिन- ‘‘भागिन, ओना हम ककरो छींटा-कस्सी नहि करैत छिअनि मुदा अपन अनुभवक हिसावे कहैत छिअह जे भरि दिन त स्त्रीगण सब मुस्तैज रहथुन मुदा राति मे नहि। ओना हमरो गाम बहुत दूर नहिये अछि। एखन त’ धड़फड़ाइले चलि एलहुँ। तेँ एखन जाइ छी। काल्हि स साँझू पहर केँ अयबह आ भोर क’ चलि जेवह। भरि राति दुनू माम-भगिन गप-सप करैत ओगरि लेब।’’ दुनू बहिनोइयो आ मामो चलि गेलखिन। ‘‘आइ सातम दिन माए केँ अन्न छोड़ब भ’ गेलनि। दू-चारि चम्मच पानि आ दू-चारि चम्मच दूध, मात्र अधार रहि गेल छनि।’’ -आंगन स’ दरवज्जा पर आबि रागिनी पति के कहलथिन। पत्नीक बात सुनि राधेश्याम मने-मन सोचै लगलाह। मन मे उठलनि चारु भाइ-बहीनिक पारिवारिक जिनगी। कतेक आशा स’ दुनू गोटे(माए-पिता) हमरा चारु भाइ-बहीनि के पोसि-पालि, पढ़ा-लिखा, वियाह-दुरागमन करा परिवार ठाढ़ क’ देलनि। जहिना गौरी(जेठ बहीनि) एम.ए. पास अछि। तहिना एमए. पास बहिनोइयो छथि। हाई स्कूल मे बहीन नोकरी करैत अछि त कौलेज मे बहिनोइ। परिवारक प्रतिष्ठा, समाजो मे बढ़वे केलनि जे कमलनि नहि। तहिना छोटकियो बहीनि अछि। बहीनो डाॅक्टर आ बहिनोइयो डाॅक्टर। तहिना त’ पिताजी मझिलियो बहीनि के केलनि। दुनू परानी इंजीनियर। बम्बई मे दुनू गोटे नोकरी करैत। जहिना तीनू बहीनि पढ़ल-लिखल अछि तहिना बहिनोइयो छथि। अजीव नजरि पितोजीक छलनि। मनुष्यक पारखी। तेँ ने बहीनिक विआह समतुल्य बहिनोइक संग केलनि। एक माए-बापक तीनू बेटी, पढ़ल-लिखल, एक परिवार मे पालल-पोसल गेलि, मुदा तीनूक विचारमे एते अंतर कोना अबि गेलै। एहि प्रश्नक जबाव राधेश्याम के बुझैमे अयबै नहि करनि। मन-घोर-घोर होइत। एक दिशि माइक अंतिम अवस्था पर नजरि त’ दोसर दिशि मझिली बहीनिक व्यवहार पर। विचारक दुनियाँ मे राधेश्याम औनाय लगलाह। प्रश्नक जबाब भेटिबे ने करनि। अपन परिवार पर स नजरि हटा बहीनि सभक परिवार दिशि नजरि दौड़ौलनि। गौरीक ससुर(श्वसुर) उमाकान्त हाई स्कूलक शिक्षक रहथिन। अपने बी.ए. पास मुदा पत्नी साफे पढ़ल-लिखल नहि। नामो-गाम लिखल नहि अबनि। ओना पिता पंडित रहथिन। मुदा बेटी क’ परिवार चलबैक लूरि के बेसी महत्व देथिन। जाहि स’ कुशल गृहिणी त’ बनि जाइत, मुदा ने चिट्ठी-पुरजी पढ़ल होइछै आ ने लिखल। ओना जरुरतो नहि रहै। किऐक त’ ने पति-पत्नीक बीच चिट्ठी-पुरजीक जरुरत आ ने कुटुम्ब-परिवारक संग। मुदा दुनू परानी(उमाकान्त आ सरिताक) क बीच असीम स्नेह। मास्टर सैहब के अपन बाल-बच्चा स’ ल’ क’ विद्यालयक बच्चा सभकेँ पढ़बै-लिखबैक मात्र चिन्ता। जहि पाछू भरि दिन लगलो रहथि। जखन कि सरिता(पत्नी) परिवारक सभ काज सम्हारैत। एखनुका जेँका लोकक जिनगियो फल्लर नहि, समटल रहै। गौरीक परिवार पर स’ नजरि हटा राधेश्याम छोटकी बहीनिक(डाॅ. सुनिताक) परिवार पर देलनि। जहिना बहीनि डाॅक्टरी पढ़ने तहिना बहिनोइयो। जोड़ो बढ़ियाँ। सुनिताक ससुर बैद्य रहथिन। जड़ी-बुट्टीक नीक जानकार। जहिना जड़ी-बुट्टीक जानकार तहिना रोगो चिन्हैक। जहि स समाज मे प्रतिष्ठो नीक आ जिनगियो नीक जेँका चलनि। तेँ अपन वंश क’ (चिकित्साक) जीवित रखैक दुआरे बेटा क’ डाॅक्टरी पढ़ौलनि। पत्नियो तेहने। अंगनाक काज सम्हारि, बाध-बोन स’ जड़िओ-बुट्टी अनैत आ खरल मे कुटबो करैत रहथि। दवाइ बैद्यजी अपने बनाबथि किऐक त’ मात्राक बोध गृहिणी केँ नहि रहनि। छोटकी बहीनिक परिवार पर स’ नजरि हटा मझिली बहीनि क परिवार पर देलनि। रीताक ससुर मलेटरिक इंजीनियरिंग विभाग मे हेल्परक नोकरी करैत। अपनहि विचार स’(लभ-मैरिज) मलेटरिऐक बेटी स विआहो केने। मलेटरिक नोकरी, तेँ पाइयो आ रुआबो। हाथ मे सदिखन हथियार तेँ मनो सनकल। मुदा बेटा-वेटी केँ नीक जेँका पढ़ौलनि। जहिना रीता इंजीनियरिंग पढ़ने तहिना घरोवला। दुनू बम्वईक कारखाना मे नोकरी करैत। कमाइयो नीक खरचो नीक, तहिना मनक उड़ानो नीक। एकाएक राधेश्यामक मन मे उठल जे आब त माइयक अंतिमे समय छी तेँ एक बेरि रीता क’ फेेरि फोन क’ क’ जानकारी द’ दिअए। मोवाइल उठा रीताक नम्वर लगौलनि। रिंग भेल। -‘‘हेलो, हम राधेश्याम।’’ -‘‘हेलो, भैया। अखन हम स्टाफ सबहक संग काज मे व्यस्त छी।’’ रीताक जबाव सुनि राधेश्याम सन्न रहि गेलाह। रातिक दस बजैत। इजोरियाक सप्तमी अन्हार-इजोतक बीच घमासान लड़ाइ छिड़ल। किछु पहिने जहि चन्द्रमाक ज्योति अन्हार पर शासन करैत, वैह चन्द्रमा पछड़ि रहल अछि। तेज गति स अन्हार आगू बढ़ि रहल अछि। तहि बीच डाॅ. सुनीता(छोटकी बहीन) आंगन स आबि भाइ (राधेश्याम) क’ कहलक- ‘‘भैया, हम त भगवान नहि छी, मुदा माइयक हालत(दशा) जहि तेजी स बिगड़ि रहल छनि, तहि स अनुमान करैत जे काल्हि साँझ धरि प्राण(परान) छुटि जेतनि।’’ एक दिशि माइक अंतिम दशा आ दोसर दिशि रीताक बिचारक बीच राधेश्यामक धैर्यक सीमा डगमग करै लगलनि। विचित्र स्थिति। जिनगीक तीनिबट्टी पर वौआइ लगलाह। तीनिबट्टीक तीनू रस्ता तीनि दिस जाइत। एक रास्ता देवमंदिर दिशि जाइत त’ दोसर दानवक काल कोठरी दिशि। बीचक रास्ता पर राधेश्याम ठाढ़। एकाएक निर्णय करैत राधेश्याम बहीनि सुनिता क’ कहलखिन- ‘‘कने गौरियो क’ बजाबह।’’ आंगन जा सुनिता गौरी क’ बजौने आयलि। दुनू बहीनिक बीच राधेश्याम बजलाह- ‘‘बहीनि, जहिना हमर बहीन रीता तहिना त’ तोड़़ो सबहक छिअह। तेँ, तोहूँ सब एक बेरि फोन लगा मायक जानकारी द’ दहक। हम निर्णय क’ लेलहुँ जे जहिना एहि दशा मे मायक रहनहुँ, ओकरा अपन धिया-पूता सँ अधिक नहि सुझैत छैक तहिना हमहूँ ओकरा भरोसे नहि जीबैत छी। तेँ जँ माय के जीवित मे नहि आओत त’ मुइलाक बाद नहो-केश कटबैक जानकारी नहि देबइ। हमरा-ओकरा बीच ओतबे काल धरि संबंध अछि जते काल मायक प्राण बँचल छैक। कहलो गेल छैक ‘‘भाइ-बहीनि महीसिक सींग, जखने जनमल तखने भिन्न।’’ मन त होइत अछि जे भने ओ एखन स्टाफ सभक बीच अछि, तेँ एखने सभ बात कहि दियै। मुदा कहनहुँ त’ किछु भेटत नहि, तेँ छोड़ि दैत छियै।’’ जहिना अकास मे उड़ैत चिड़ै के बंश रहितहुँ परिवार नहि होइछै तहिना जँ मनुक्खोक होइ त अनेरे भगवान किऐक बुद्धि-विवेक दइ छथिन। किऐक नहि मनुक्खो केँ चिड़ैइये-चुनमुनी आ कि चरिटंगा जानवरेक जिनगी जीबए देलखिन।’ बजैत-बजैत राधेश्यामोक आ दुनू बहीनियोक करेज फाट’ लगलनि। आंखि स’ नोर टघरै लगलनि। भाइ-बहीनिक टूटैत संबंध स’ सभ अचंभित हुअए लगलथि। सभहक हृदय मे रीता नचै लगलनि। बच्चा स’ वियाह धरिक रीताक जिनगी सभहक आंखिमे सटि गेलनि। एक दिशि रीता बम्बईक घोड़दौड़ जिनगीक प्रतियोगितामे आगू बढ़ै चाहैत छलि त’ दोसर दिशि देवाल मे टांगल फोटो जेँका सबहक हृदय मे चुहुट क’ पकड़ने। जहिना बाँसक झोंझ स बाँस काटि निकालै मे कड़चीक ओझरी लगैत तहिना ध् ि ाया-पूताक ओझरी मे रीता। ‘तीनू ननदि-भौजाई(गौरि, सुनिता आ रागिनी) माय लग बैसि मने-मन सोचै लगलीह। कियो-ककरो टोकैत नहि। तीनू गुमसुम। सिर्फ आंखि नाचि-नाचि एक-दोसर पर जाइत। मुदा मन श्वेतबान रामेश्वरम् जेँका। एक दिशि जिनगी रुपी भूमि(स्थल) जेँका विशाल भूभाग देखैत त दोसर दिशि मृत्यु रुपी अथाह समुद्र। यैह थिक जिनगी आ जिनगीक खेल। जहि पाछु पड़ि लोक आत्मा क’ बलि चढ़वैत। तहि बीच माय बाजलि- ‘रीता.....।’ रीताक नाम सुनि तीनूक हृदय मे ऐहेन धक्का लगलनि जहि स तीनू तिलमिला गेलीह। रातिक एगारह बजैत। गामक सब सुति रहल। इजोरियो डुबै पर। झल-अन्हार। दलानक आगू मे, कुरसी पर बैसि राधेश्याम आंखि मूनि अपन वंशक संबंध मे सोचैत रहथि। मन मे अयलनि जे आइ सप्तमीक चान डुबि रहल अछि, अन्हार पसरि रहल अछि, मुदा कि कल्हुका चान आइ स’ कम ज्योतिक होएत? की अगिला ज्योति पैछला अन्हारक अनुभव नहि करत? सब दिन स’ अन्हार-इजोतक बीच संघर्ष होइत आयल अछि आ होइत रहत। फेरि मन मे उठलनि जे आजुक राति हमरा लेल ओहन राति अछि जे भरिसक मायक जिनगीक अंतिम राति होएत। जनिका संग हजारो राति बीतल ओहि पर विराम लगि रहल अछि। विचारक दुनियाँ मे उगैत-डूबैत राधेश्याम। तहि काल शबाना पोतीक संग पहुँचलीह। दलान-आंगनक बीच रास्ता पर दुनू गोटे चुपचाप ठाढ़ि। दुनू डेरायल। राधेश्याम आंखि मुनने तेँ नहि देखैत। परोपट्टा मे हिन्दु-मुसलमानक बीच तना-तनी। जहि डर स शबाना दिन के नहि आबि अन्हार मे आयलि। किऐक त सरोजनीक स्नेह खींचि क ल’ अनलकें। रेहना शबाना क’ कहलक- ‘‘दादी, अइठीन किअए ठाढ़ छीही, अंगना चल ने?’’ रेहनाक अवाज सुनितहि राधेश्याम आंखि तकलनि त दुनू गोटे क’ ठाढ़ देखलनि। पुछलथि- ‘‘के?’’ शबाना बाजलि- ‘‘बेटा, राधे।’’ ‘‘मौसी।’’ ‘‘हँ’’ ‘‘एत्ती राति क’ किऐक अलेहें?’’ ‘‘बौआ, से तू नै बुझै छहक जे गाम-गाम मे केहेन आगि लागि रहल छैक। पाँचम दिन सुनलौ जे बहीनि बड़ जोड़ अस्सक छथि। जखने सुनलहुँ तखने मन भेल जे जाइ। मुदा की करितौ? मन छटपटाइ छलै। बेटा क’ पुछलियै त कहलक जे से तू नै देखै छीही रस्ता-बाटमे इज्जत-आवरुक लुटि भ’ रहल अछि। मार-काट भ’ रहल अछि। ऐहन स्थिति मे कोना जेमए। मुदा मन नै मानलक। जिनगी भरि दुनू बहीनि संगे रहलौ, आइ बेचारी मरि रहल अछि त मुहो नै देखब? जी-जाँति पोती के संग केने एलौ।’’ कुरसी पर स उठि राधेश्याम शबानाक बाँहि पकड़ि आंगन दिशि बढ़ैत बहीनि क’ कहलथिन- ‘‘मौसी अयलखुन। पाएर धोय ले पानि दहुन।’’ राधेश्यामक बात सुनि दुनू बहीनियो(गौरी आ सुनिता) आ रागिनियो घर स निकलि आंगन आइलि। गौरी बजलीह- ‘‘मौसी, शबाना मौसी!’’ शबाना बजलीह- ‘‘हँ।’’ दुनू गोटे(शबानो आ रेहनो) पाएर धोय सोझे बहीनि(सरोजनी) लग पहुँच दुनू पाएर पकड़ि कनै लगलीह। कनैत देखि सरोजनी पुछलथिन- ‘‘कनैइ किअए छेँ। हम कि कोनो आइये मरब? एत्ती राति क’ किअए एलैहें?’’ शबाना बाजलि- ‘‘बहीनि, रस्ता-पेरा बन्न अछि। दू बर्ख स’ भौरियो-बट्टा(घुमि-घुमि बेचनाइ) बन्न भ’ गेल। जखैन से अहाँ द’ सुनलहुँ, तखैन स’ मन मे उड़ी-बीड़ी लगि गेल तेँ दिन-देखार नै आबि चोरा क’ अखैन ऐलौहें।’’ सरोजनी बहुत कठीन सँ बाजलि- ‘‘धिया-पूता नीके छौ की ने?’’ शबाना कहलकनि- ‘‘शरीर से ते सब नीके अछि, मुदा कारबार बन्न भ’ गेल अछि।’’ ‘‘गामो(नैहर) दिशि गेल छलेहें?’’ ‘‘नै। कन्ना जायब....। तेसर सालक बाढ़ि मे अहूँक गाम कटि क’ कमला पेट मे चलि गेल आ हमरो गाम कोसी मे।’ हमरो गाम भरना पर बसल हेँ आ अहूँक गाम कमलाक पछबरिया छहरक पछबरिया बाध मे। घनश्यामपुर तक त’ रस्ता छइहो(छहिहो) मुदा ओइ से आगू रस्ते सब पर मोइन फोड़ि देने अछि। पौरुका जे जाइत रही त लगमा लग मे डूबै लगलौ।’ सरोजनी गौरी के इशारा सँ कहलक- ‘‘दाइ, बड़ राति भेलइ। मौसी के खाइ ले दहक।’’ शबाना बाजलि- ‘‘बहीनि, पहिने हम कना खाएब? पहिने बौआ (राधेश्याम) के खुआ दिऔ। खा क’ सुति रहत। हम भरि राति बहीन से गप-सप करब। बहुत दिनक गप पछुआइल अछि।’’ शबानाक बात सुनि राधेश्याम मने-मन सोचै लगल जे दुनियाँ मे बहीनिक कमी नहि अछि। लोक अनेरे अप्पन आ बीरान बुझैत अछि। ई सब मनक खेल छिअए। हँसी-खुशी स जीवन बितबै मे जे संग रहए, ओइह अप्पन। शवाना क’ कहलक- ‘‘मौसी, माए त ने सिर्फ हमरे माए छी आ ने अहींक बहीनि। सबहक अप्पन-अप्पन छिअए, तेँ कियो अप्पन करत की ने?’’ पूबरिये घरक ओसार पर राधेश्याम सुतल। बाकी सभ पूबरिया घर मे बैसि गप्प-सप करए लगलीह। गौरी पुछलनि- ‘‘मौसी, अहाँ दुनू बहीनि त दू गामक छिअए। दुनू गोरे मे चीन्हा-परिचय कहिया भेलि?’’ शबाना बाजनि- ‘जइहे(जहिहे) से ज्ञान-परान भेलि, तेहिये से अछि। हमरा बाप आ तोरा नाना(कका) क’ दोसतियारै रहनि। कोस भरि पूब हमर गाम(झगड़ुआ) अछि आ कोस भरि पछिम बहीनिक। अखन त’ दुनू गाम उपटि क’ दोसर ठीन बसल अछि। मुदा पहिने बड़ सुन्दर दुनू गाम छलै। गौरी बाजलि- ‘‘मौसी, हम त बच्चे मे, बहुत दिन पहिने गेल रही। तइ दिन मे त’ बड़ सुन्दर गाम रहए।’’ शवाना बजलीह- ‘‘हँ, से त रहबे करए। मुदा आब देखवहक ते बिसबासे ने हेतह जे अइह गाम छिअए। हँ, त कहै छेलिहह, काका केँ(गौरीक नाना) बहुत खेत-पथार रहनि। चारि जोड़ा बड़द खुट्टा पर, चारि-पाँच टा महीसियो रहनि। मुदा हमरा बाप के खेत-पथार नै रहै। गामे मे खादी-भंडार रहए। सौंसे गामक लोक चरखोे चलबै आ कपड़ो बीनए। सबसँ नीक कारीगर रहए हमर बाप। घरक सब कियो सुतो काटी आ कपड़ो बनबी। सलगा, चद्देरि, गमछी आ धोती बीनएमे हमरा बापक हाथ पकड़िनिहार कियो नहि। बहीनिक गामक सब हमरे बाप स’ कपड़ा कीनए। सौंसे गाम से अपेछा रहए। पाँचे-सात वर्खक रही तहिये से बहीनिक(ऐठाम) अइठीन जेबो करियै आ खेबो करियै।’’ शबानाक बात सुनि गौरी क अचरज लगलै। मने-मन सोचै लगली जे एक त’ गरीब तहू मे मुसलमान। तहि बीच दोस्ती। मुस्की दैत रागिनी बाजलि- ‘‘कोन पुरना खिस्सा मौसी जोति देलखिन। ई कहथु जे दुनू बहीनिक बिआह एक्के दिन भेलनि?’’ शबाना बाजलि- ‘धूर्र कनियाँ! अहाँ की बजै छी। हमरा स’ बहीनि दू-तीन बरख जेठ छथि। बहीनिक वियाह से दू वर्ख पाछु क’ हमर वियाह भेल। कक्का हमरा बाप के कहलखिन जे पूबरिया आ दछिनवरिया इलाका कोशिकन्हा भ’ गेल तेँ आब कथा-कुटुमैती उत्तरेभर करब नीक हैत।’ कन्ने गुम रहि, शबाना बाजलि- ‘‘बेटी, कपारक दोख भेल। आब अपनो बुझै छी जे नैहरक काजक जे महौत(महत्व) छेलै से अइ काजक(भौरीक) नै अछि। मुदा की करितियै? अइ ठीन(सासुर) उ काज अछिये नहि। ने खादी-भंडार छै आ ने कारोवार अछि।’’ मुस्की दइत रागिनी बाजलि- ‘‘मौसी, अपना वियाह मे तँ हम कनिये टा रही। सब गप मनो ने अछि। हिनका त मन हेतनि, विआह मे झगड़ा किअए भेल रहए?’’ कने काल गुम रहि शबाना ठाहाका मारि हँसि, बजै लगलीह- ‘‘अहाँक बावू बड़ मखौलिया रहथि। हँसी-चैल मे ककरो नइ जीतए देथिन। घरदेखी मे अयलथि। हम दुनू बहीनि खूब छकौलिएनि। पीढ़ी तर मे खपटा, झुटका आ रुइयाँ तरि क’ सेहो देलिएनि। खा क’ जहाँ उठलाह कि एक डोल करिक्का रंग कपार पर उझलि देलिएनि। मुदा हुनका लिये धनि सन। तहिना बरिआती मे ओहो छकौलकनि। सबहक धोती मे चारि-पाँच दिनक सड़लाहा खैर(खइर) लगा देलकनि। पहिने त बरिआती सब अपन मे रक्का-टोकी केलक। मुदा जखन भाँज लगलै जे घरवारी सबकेँ सड़लाहा खइर लगा देलक। तखन बरिआतियो सब टूटल। मुदा कहे-कही भ’ क’ रहि गेलइ। मारि-पीटि नहि भैल।’’ कहि हँसै लागलि। सभ हँसल। राधेश्याम ओसार पर सुतल रहथि। मुदा एक्को बेरि आंखि बन्न नहि भेलनि। किऐक त मन मे शंका होइत जे अनचोके मे ने माय मरि जाय। खिस्से-पिहानी मे राति कटि गेल। भोर होइतहि शबाना राधेश्याम क’ कहलक- ‘‘बौआ, अपन मन अछि जे आब बहीनि क’ एक काठी(लकड़ी) चढ़ाइये क’ जायब। मुदा गामे-गाम जे आगि लगल देखै छिअए तइ से डर होइ अए।’’ राधेश्याम बजलाह- ‘‘मौसी, एहिठाम कियो किछु नहि बिगाड़ि सकैत छओ। जहिया तक तोरा रहैक मन होउ, निर्भीक स’ रह।’’ शवाना बाजलि- ‘‘बौआ, मन होइ अए जे बहीनिक सब नुआ-बिस्तर हम खीचि दिअए। फेरि ई दिन कहिया भेटत’’ राधेश्याम- ‘‘दुनू बहीनिक बीच हम की कहबौ। जे मन फुड़ौ से कर।’’ इम्हर आब राधेश्यामक माय सरोजनीक टनगर बोलो मद्धिम भेल जा रहल छलनि। प 75.अमानत अ अअअअअमानतक दिन। चारि बजे भोरे स पूड़ी-जिलेबी, तरकारीक सुगंध गामक हवा मे पसरि गेल। सैाँसे गामक लोक कऽ बुझले, तेँ ककरो सुगंध स आश्चर्य नै होय। भोरे श्रीकान्तोक पत्नी आ मुकुन्दोक पत्नी फूल तोड़ि, नहा ब्रह्मस्थान पूजा करै गेलि। हलुआइ दू-चुल्हिया पर तरकारियो बनवैत आ जिलेबियो छनैत। कुरसी पर बैसल श्रीकान्त मने-मन ब्रह्मबावा कऽ कबुला केलक जे जँ हमरा मनोनुकूल नापी भेल त तोरा जोड़ा छागर चढ़ेवह। तहिना मुकुन्दो। गामक सुगंधित हवा मे सबहक मन उधिआइत। चाह बनवै वाला चाह बनवै मे व्यस्त। पान लगबैवला पान मे। दुनू दिशि कट्ठा-कट्ठा भरिक टेंट लागल। दड़ी आ जाजीम विछाओल। एक भाग मे गाँजा पीनिहारक बैसार आ दोसर भाग मे दारुक। जहिना बुचाइ कूदि क कखनो हलुआइ लग जा देखैत त कखनो दारुवलाक बैसार मे जा दू-गिलास चढ़ा दइत। तहिना सरुपो। सब कथूक ओरियान काल्हिये दुनू गोटे, दुनू दिशि कऽ नेने तेँ अनतै जेबाक जरुरते नहि ककरो। चाह-पानक इत्ता नै। जकरा जते मन हुअए से तत्ते खाउ-पीवू। जलखै मे पूड़ी-जिलेबी डलना आ कलौ मे खस्सीक माँस आ तुलसीफुलक भात। तेँ भरि दिनक चिन्ता सबहक मन स पड़ाएल। जीविलाह सब दुनू दिशि टहलि-टहलि खाइत-पीवैत। श्रीकान्तो आ मुकुन्दो इंजीनियर। दुनू एक्के वंशक। दुनूक परदादा सहोदरे भाइ। पाँच कट्ठाक घरारी, जहि मे दुनू गोटेक अधा-अधा हिस्सा। जहिये स दुनू गोटे नोकरी शुरु केलनि, तहिये से गाम छोड़ि देलनि। एक पुरिखियाह वंश, तेँ परिवार मे दोसर नहि। पेंइतीस सालक नोकरीक बीच कहियो, दुनू मे से कियो, गाम नहि आयल। जहि स पहिलुका, बापक बनाओल, घर दुनूक गीरि पड़ल। गामक स्त्रीगण सब ठाठ-कोरो, ध् ारनि कऽ उजाड़ि-उजाड़ि जरा लेलक। ढ़िमका ढ़िमकी कऽ सरिया गामक छैाँड़ा सब फील्ड बना लेलक। गामक जते खेलवाड़ी छैाँड़ा सब छल ओ सब अपन-अपन खेलक जगह बाँटि लेलक। एकटा फील्ड कबडीक, दोसर गुड़ी-गुड़ीक, तेसर चिक्का -चिक्काक, चारिम गुल्ली-डंटाक आ पाँचम रुमाल चोरक बनि गेलि। उकट्ठी छैाँड़ा सब एक दोसराक फील्ड मे, राइत कऽ, झाँड़ा फीरि दइ। मुदा खेल शुरु करै स पहिने दस-बीसि टा गारि पढ़ि सब अपन-अपन फील्ड चिक्कन बना लिअए। ओना दुनू गोटे (श्रीकान्तो आ मुकुन्दो) बाहरे घर बना नेने रहथि, मुदा मरै बेरि मे दुनू केँ गाम मन पड़लनि। साले भरिक नोकरी दुनूक बाचल तेँ तीनि मासक छुट्टी ल-ल गाम ऐलाह। गाम अबै स पहिने दुनू गोटे, फोनक माध्यम स, अबैक दिन निर्धारित कऽ नेने रहथि। किऐक त परोछा-परोछी नापी करौला स आगू झंझटक डर, दुनूक मन मे रहनि। घरारी नापी होइ स दस दिन पहिने श्रीकान्त गाम ऐलाह। अपना त घरो नहि, मुदा अबैेकाल एकटा रौटी, सुतै-वैइसैक समानक संग भानसो करैक सब कुछ नेने ऐलाह। गाम आबि पितिऔत भाइ क कहि सब बेवस्था केलनि। सब गर लगला वाद भाइ कऽ पूछलखिन- ‘बौआ, गाम मे के सब मुहपुरखी करै अए?’ भाइ कहलकनि- ‘गाम मे त कियो राजनीति नहिये करै अए, मुदा बुचाइ आ सरुप सव धंधा करैत अछि।’ ‘की सब धंधा?’ ‘जना कियो खेत कीनै अए वा बेचइ अए, ओहिक बीच मे पड़ि किछु कमा लइ अए। तहिना गाइयो-महीसि मे करै अए। भोट-भाँट से लऽ कऽ कथा-कुटुमैटी धरि मे किछु नहि किछु हाथ मारिये लइत अछि।’ भाइक बात सुनि इंजीनियर सहायव कने काल गुम्म भऽ गेलाह। मने-मन सोचि-विचारि कहलखिन- ‘कनी बुचाइ कऽ बजौने आबह?’ ‘बड़वढ़िया’ कहि भाइ बुचाइ कऽ बजवै विदा भेल। मने-मन श्रीकान्त सोचै लगलथि जे गाम मे तऽ सबहक हालत तेनाहे सन अछि। देखै छियै जे जेहने घर-दुआर छै तेहने बगए बानि। दू चारि टा जे ईंटो घर देखै छियै सेहो भीतघरे जेँका। तेँ, गाम मे ओहन घर बना कऽ देखा देवइ जे गामक कोन बात, इलाकाक (परोपट्टाक) लोक देखै आओत। पुरान लोक सबहक कहब छनि जे जेहेन हवा बहै ओहि अनुकूल चली। युग पाइक अछि। जकरा पाइ रहतै ओ बुद्धियार। जेकरा पाइ नै रहतै ओ किछु नहि। असकर बरसपतियो फूसि। जकरा पाइ छै ओइह नीक घर बनवैत अछि, नीक गाड़ी मे चढ़ैत अछि। ओकरे धिया-पूता नीक स्कूल-कओलेज मे पढ़ैत अछि। ओकरे परिवारक लोक नीक-लत्ता-कपड़ा पहिरैत अछि। बेटा-बेटीक विआह नीक परिवार मे होइ छै। आइक जे सुख-सुविधा, विज्ञान करौलक हेँ, ओकर सुख भोगैत अछि। यैह ने युगक संग चलब थिक। समाजक बीच प्रतिष्ठा बनाएव त वामा हाथक काज छी। अधला-स अध् ालाह काज कऽ कऽ पाइ कमा लिअ आ समाज कैंऽ भोज खुआ दिऔ, वस जसे-जस, प्रतिष्ठे-प्रतिष्ठा। हाथ मे पाइ अछि, सब कुछ कऽ कऽ गैाँआ कऽ देखा देवइ। बेटो-बेटी कऽ पढ़ा-लिखा, विआह-दुरागमन करा कऽ निचेने छी। तखन तऽ एकटा काज मात्र पछुआइल अछि, ओ अछि सामाजिक प्रतिष्ठा। सेहो बनाइये लेब। मने-मन श्रीकान्त विचारिते रहति कि बुचाइक संग भाइ पहुँचलनि। लग मे अबिते वुचाइ दुनू हाथ जोड़ि- ‘गोड़ लगै छी कक्का। अहाँ तऽ गाम कऽ बिसरि गेलियै। सरकारक एयर कंडीशन मकान भेटिले अछि, ते किअए थाल-कादो मे अबि मच्छर कटाएव?’ अपना कऽ छिपबैत श्रीकान्त- ‘नै बौआ , से बात नै अछि। जखने नोकरीक जिनगी शुरु केलहुँ तखने दोसराक गुलाम बनि गेलहुँ। जे-जे हुकूम देत से से करै पड़त। तू सब कम उमेरक छह तेँ नइ देखलहक, मुदा हम त अंग्रेजक शासन देखने छी की ने! शासन तरे-तर चलैत छै, जे सब थोड़े बुझै अए। अंग्रेजक पीठिपोहु छल अइठामक राजा-रजबाड़ आ ओकरा सबहक फाँड़ी थिक जमीनदार सब। ओ सब जे एहिठामक लोकक संग बेबहार करैत छल आ करैत अछि से त तोहू सब देखते छहक। मुदा अइ सब गप कऽ छोड़ह। तोरा जे बजौलिहह से सुनह। साले भरि आब नोकरी अछि। नोकरी समाप्त भेला बाद गामे मे रहब। तेँ तीनि मासक छुट्टी लऽ कऽ एलहुँ हेँ जे घरारीक अमानत करा घर बनाएब। बिना घरे रहब कतऽ।’ वुचाइ- ‘हँ, इ त जरुरिये अछि। मुदा हमरा किअए बजेलहुँ?’ पासा बदलैत श्रीकान्त- ‘मुकुन्द जी केँ सेहो खबड़ि दऽ देने छिअनि। ओहो काल्हि स परसु धरि ऐबे करताह। ऐठाम त दुइये गोटेक घरारी खाली अछि, तेँ दुनू गोटे कऽ रहब जरुरी अछि। तोरा त नइ बुझल हेतह, हमर परबावा आ मुकुन्दक परवाबा सहोदरे भाइ छलाह। अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठाक हिस्सा जमीन दुनू गोरे कऽ अछि। तेँ कोनो पेंच लगावह जे हमरा तीनि कट्ठा हुअए।’ श्रीकान्तक पेटक मइल (मैल) वुचाइ देखि गेल। मुस्कुराइत बाजल- ‘ऐँ, अही ले अहाँ एते चिन्तित छी। इ त वामा हाथक काज छी। अमीन क मिला लेब, सब काज भऽ जायत। किऐक त अमीनक गुनिया-परकाल मे पाँच-दस धुर जमीन नुकाइल रहै छै। मुदा अइ ले खरचा करै पड़त। हम तऽ जोगारे ने वैसाइब, खर्च त अहीं कऽ करै पड़त।’ पाइक गरमी श्रीकान्त कऽ रहवे करनि। मन मे इहो बात रहनि जे भलेही मुकुन्दो इंजीनियर छथि, दुनू गोटेक दरमहो एक्के रंग अछि मुदा पाइ मे बरावरी कऽ लेता, से कोना हेतइ। मुस्की दइत कहलखिन- ‘तोहर मेहनत आ हम्मर पाइ। सैह ने। जते खर्च हैत-हैत। मुदा मैदान स जीति कऽ अबैक छह।’ श्रीकान्तक बात सुनि वुचाइ मने-मन खुश भेल। मन मे एलै जे नीक मोकीर हाथ लागल। भरिसक राशि घुमल हेँ। ओह, बहुत दिन से अखवारो नै पढ़लौ जे कने राशि देखि लैतियै। खैर नहियो पढ़लौ तइओ शुभ राशि वुझि पड़ै अए। जोश मे बाजल- ‘कक्का, रुपैया पूत पहाड़ तोड़ै अए। इ त मात्र अमानते छी। जे चाहबै, से हेतइ। मुदा अहाँ कंजूसी नै करबै।’ कंजूसीक नाम सुनि श्रीकान्त कहलखिन’ ‘मरदक बात छियै। जे बाजि देव ओ बिना पुरौने छोड़ब।’ बैग स पाँच हजार रुपैया निकालि श्रीकान्त बुचाइ कऽ देलखिन। रुपैया जेबी मे राखि वुचाइ प्रणाम कऽ विदा भेल। गामक पेंच-पाँच मे बुचाइ माहिर, मुदा समाज मे अनुचित हुअए, से कखनो नहि सोचय। जहिया कहियो उकड़ू काज अवै तखन गुरुकक्का स पूछि लइत। मने-मन रस्ता मे, सोचै लगल जे अइबेरि हिनका तेहेन सिखान सिखेवनि जे मरै काल तक मन रहतनि। जहिना सरकारी खजाना स लऽ कऽ ठीकेदार धरि स समेटलाहा रुपैया केहेन होइ छै, से सिखताह। आंगन पहुँच, बुचाइ चारि हजार पत्नीक हाथ मे आ एक हजार अपना हाथ मे रखलक। जहिना अगहन मे धानक ढ़ेरी देखि, दुनू परानी किसानक मन खुशी स गद-गद होइत, तहिना दुनू परानी बुचाइ कऽ भेल। मुदा दुनूक खुशी मे अन्तर होइत। किसानक खुशी मेहनतक फल देखि होइत जबकि वुचाइक खुशी दलालीक। मुस्की दइत वुचाइ घरवाली कऽ कहलक- ‘खिड़की पर एकटा शीशी अछि, कने नेने आउ?’ मुह चमकवैत घरवाली बाजलि- ‘खाइ-पीवै राति मे शीशी की करब?’ वुचाइ- ‘शीशियो नेने आउ आ खेनाइयो नेने आउ। दुनू संगे चलतै। जाबे भरि मन नै पीअब तावे मूड नै बनत। बहुत बात सोचैक अछि। अहाँ नै ने हमर बात बुझबै?’ पत्नी- ‘अहाँक बात बुझैक जरुरत हमरा कोन अछि। हमरा त अपने मन कोनादन करैत अछि। देह भसिआइ अए। ‘अच्छाा ठीक अछि, अहूँ दू घोट पीवि लेब।’ भोरे वुचाइ चैक पर पहुँचल। गामक वीच मे चैवट्टी। जहि चैबट्टी पर चारु भर स तीस-पेंइतीस टा छोट-छोट दोकान। दस-बारह टा दू-चारी घर, बाँकी कठधरा। ओना एक्कोटा नमहर दोकान नहि, मुदा सब कथुक दोकान। जहि स गामक लोक कऽ हाट-बजार जेबाक जरुरत कम पड़ैत। जहिया कहियो कोनो परिवार मे नमहर काज होइत-जना विआह, सराध इत्यादि, तखने बजार जेवाक जरुरत पड़ैत। ओना भरि दिन चैकक दोकान खुजल रहैत, मुदा गहिकीक भीड़ साँझे-भिनसर होइत। भरि दिन लोक अपन-अपन काज-उदम करैत आ साँझू पहर कऽ दोकानक काज कऽ लइत। सिर्फ चाहे-पानक बिकरी भिनसरु पहर कऽ बेसी होइत। चैक पर पहुँच वुचाइ दुनू चाहवला कऽ एक-एक सय रुपैया दऽ, दोकान पर बैसलि सबकेँ चाह पीअबै ले कहलक। गाँजा पिआकक सेहो तीनि ग्रुप चलैत। चाह पीबि पान खा बुचाइ चिलमक ग्रुप मे पहुँच, दू दम लगा, तीनू ग्रुप मे पचास-पचास रुपैया गाँजा ले दऽ देलक। सबहक मन खुशी भऽ गेलइ। मुस्कुराइत वुचाइ अमीन ऐठाम विदा भेल। गाम मे तीनि टा अमीन। रामचन्द्र, खुशीलाल आ किसुनदेव। कहै ले ते तीनू अमीन, मुदा पढ़ि कऽ अमीन रामचन्द्रे टा भेल। मिड्ल (मिडिल) पास केलाक बाद रामचन्द्र हाई स्कूल मे नाम नहि लिखा सकल। आब त लगे मे हाई स्कूल खुजि गेल मुदा ओहि समय मे एक्कोटा हाइ स्कूल परोपट्टा मे नहि छल, जहि स रामचन्द्र आगू नहि पढ़ि सकल। बाहर जा कऽ पढ़ैक ओकाइत रामचन्द्रक पिता कऽ नहि। सर्वे अबै स दस-पनरह बर्ख पहिने, मुजफुरपुरक एकटा अमीन गाम मे आबि अमानतक स्कूल खोललक। छह मासक कोर्स। चारि विषयक- पैमाइस, क्षेत्रमिति, कानून आ चकबन्दी-पढ़ाई। ओना समानो सब- गुनिया, परकाल, मास्टर स्केल, लेन्स, राइटऐंगिल, प्लेन टेबुल, कंघी, टाँक, थ्याजो रैटर, जंजीर, फीता रखने। पाँच रुपैया महीना फीस लइत। मधुकान्तक दरवज्जे पर स्कूल खोललक। मधुकान्ते खाइओ ले दइ। जकरा बदला मे मधुकान्त कऽ सेहो पढ़ा देलक। ओना गामोक आ गामक चारु भरक गामक विद्यार्थी सेहो पढ़लक। कुल मिला कऽ पनरह गोरे पढ़लक। मुदा जमीनक नापी-जोखी कम होइत, तेँ रामचन्द्र छोड़ि सब अमीनी छोड़ि देलक। सर्वे अबै स महीना दिन पहिने बेगूसरायक एक गोटे आबि पँच-पँच सौ मे अमानतक सर्टिफिकेट बेचइ लगल। ओकरे स खुशीलालो आ किसुनदेवो सर्टिफिकेट कीनि लेलक। गामे-गाम सर्वेक काज शुरु भेल। अमीन सबहक चलती आयल। नक्शा बनब शुरु होइतहि दलाली शुरु भेल। पाइ दऽ दऽ लोक अपन-अपन खेतक नक्शा बढ़वै लगल। लोकक दलाल अमीन आ सरकारक सर्वेयर। खुशीलालो आ किसुनदेवो उठि वैसल। मुदा रामचन्द्र कात रहल। गाय-महीसि, गाछ-बिरीछ बेचि-बेचि लोक (किसान) रुपैया बुकै लगल। रामचन्द्र दबि गेल मुदा खुशीलाल आ किसुनदेव नाम कमा लेलक। जिमहर निकलैत तिमहर लोक सब चाहो-पान करवैत आ अमीन सहाएव, अमीन सहाएव कहि परनामो करैत। दुनू गोटे सर्वेक नांगड़ि पकड़ि, किस्तवार स ल कऽ तसदीक खानापुरी, दफा-3, दफा- 6, 8, 9 धरि दौड़ि-बड़हा करैत रहल। जहि स मोटर साइकिल मेन्टेन करै लगल। खुशीलाल ऐठाम पहुँच वुचाइ श्रीकान्त दिशि स नापीक अमीन मुकर्रर क लेलक। नापीक फीसक अतिरिक्त पक्ष लेवाक फीस सेहो गछि लेलक। दोसर दिन मुकुन्द जी सेहो गाम पहुँचलाह। रहैक सब ओरियान केनहि ऐलाह। गाम अबिते दू टा जन रखि परती छिलवा रौटी ठाढ़ करौलनि। जखन जन जाइ लगल तखन पूछलखिन- ‘गाम मे के सब नेतागिरी करै अए?’ मुकुन्दजीक बात सुनि एक गोटे वुचाइक नाम कहलकनि। वुचाइक नाम सुनि बजा अनै ले कहलखिन। दुनू गोटे विदा भेल। दुनू कोदारि लऽ एक गोटे घर पर गेल आ दोसर गोटे वुचाइ एहिठाम। मुकुन्द जी पत्नी कऽ कहलखिन- ‘कने चाह बनाउ? पत्नी चाह बनवैक ओरियान करै लगली। गैस चुल्हि पर ससपेन चढ़ा, बजलीह- ‘ककरा ले तीनि महला मकान बनेलहुँ।’ पत्नीक बात सुनि मुकुन्दजीक करेज चहलि गेलनि। करेज कऽ दहलितहि आखि मे नोर आबि गेलनि। आखि उठा पत्नी दिशि दिखि, आखि निच्चा कऽ लेलनि। रुमाल स नोर पोछि मुकुन्द जी मने-मन सोचै लगलथि जे अपन हारल ककरा कहवै। सपनो मे नइ सपनाइल रही जे पढल़-लिखल मनुक्ख एत्ते नीच होइत अछि। कत्ते मेहनत स बेटा कऽ पढ़ेलहुँ, नोकरी दिऐलहुँ। नीक घर नीक कन्याक (पढ़ल-लिखल) संग विआह करेलहुँ। मुदा फल उल्टा भेटल। पढ़ल-लिखल लोक जे अपन सासु-ससुरक संग ऐहेन बरताव (बर्ताव) करै, त लोक जीविये के की करत? अइ सऽ नीक मरनाइ। मुदा मृत्युओ त ओते असान नहि होइत। तखन त जे भाग्य-तकदीर मे लिखल अछि, से भोगब। अगर जँ बुढा़ढ़ी मे गनजने लिखल रहत ते कियो बाँटि लेत। ओ त विधाताक रेख छी। के बदलि देत? मूड़ी गोतने मुकुन्द घुनघुना कऽ बजैत। पत्नीक आखि त ससपेन पर रहनि मुदा करेज पीपरक पात जेँका, जे बिनु हवोक डोलैत रहैत, डोलैत। आखि स, समतल भूमिक पाइन जेँका, नोर टधरैत। चाह बनल। दुनू गोटे आमने-सामने वैसि चाह पीबै लगलथि। एक घोंट कऽ चाह पीबि, दुनू गोटे दुनू गोटेक मुह दिशि देखैत। मुदा कियो किछु बजैत नहि। जना हृदयक भीतर दुनू केँ विरड़ो उठैत। दुइये घोट चाह पीलनि, बाकी सब सरा कऽ पाइन भ गेल। तेहि काल वुचाइ पहुँचल। अबिते वुचाइ, दुनू हाथ जोड़ि, दुनू गोटे कऽ प्रणाम कऽ बैसल। बुचाइ कऽ देखितहि, मुकुन्द मन कऽ थीर करैत पत्नी कऽ कहलखिन- ‘भरि दिनक थकान देह कऽ खण्ड-खण्ड तोड़ैत अछि। मन कोनादन करै अए। कने एटैची स एकटा बोतल नेने आउ। जावे पीबि नहि ताबे कोनो बाते ने कयल हैत।’ पतिक बात सुनि पत्नी एटैची स एकटा किलो भरिक ब्राण्डीक बोतल आ दू टा गिलास निकालि कऽ आनि आगू मे रखि देलक। तीनू गोटे- मुकुन्द, पत्नी राधा आ बुचाइ- त्रिकोण जेँका तीनू दिशि स बैसल। बीच मे मोड़़़ूआ टेबुल लोहाक। टेबुल पर गिलास बोतल। बोतलक मुन्ना खोलि मुकुन्द दुनू गिलास मे ब्राण्डी देलखिन। एक गिलास अपनो लऽ एक गिलास वुचाइ दिशि बढ़ौलनि। ब्राण्डी देखि बुचाइक मन त चटपटाइ लगल, मुदा अनभुआर लोकक संग पीवैक परहेज करैत बाजल- ‘कक्का जी, इ सब हम नै पीबै छी। गाम मे हमरा कतऽ इ चीज भेटत। गरीब-गुरवा लोक छी, जँ कहियो मनो होइ अए त एक दम चीलम मे लगा लइ छी। नै ते पीसुआ भाँगक एकटा गोली चढ़ा दइछियै।’ जिद्द करैत मुकुन्द कहलखिन- ‘इ त फलक रस छियै। कोनो कि मोहुआ दारु आ कि पोलीथिन छियै जे अपकार करतह।’ मुकुन्दक मन मे रहनि जे शराब पीआ वुचाइ स सब बात उगलवा लेब। जाबे गामक तहक बात नै वुझवै ताबे किछु करब कठिन हैत। दुनू गोरे एक-एक गिलास पीलक। गिलास रखि मुकुन्द सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकालि, एकटा अपनो हाथ मे लेलनि आ एकटा वुचाइयो के देलखिन। दुनू गोटे सिगरेट पीवै लगल। सिगरेटक धुँआ मुह स फेकैत मुकुन्द कहलखिन- ‘बुचाइ, हम त आब बुराहा गेलहुँ, तू सब नौजवान छह। तोरे सब पर ने गाम स ल कऽ देश तक कऽ दारोमदार अछि। शहर मे रहैत-रहैत मन अकछा गेल। साले भरि नोकरियो अछि। तेँ, चाहैै छी जे जल्दी नोकरी समाप्त हुअए जे गाम आबि अपन सर-समाजक बीच रहब। मुदा गाम मे त अपना किछु अछि नहि। लऽ दऽ कऽ थोड़े घरारी अछि। जेकरा नपा कऽ घर बनवै चाहै छी। तहि मे तू कने मदति कऽ दाय।’ वुचाइ- हमरा बुते जे हैत से जरुर कऽ देब। अहाँ त अपने तत्ते कमा कऽ टलिया नेने छी जे अनकर कोन जरुरत पड़त?’ मुकुन्द- तू त जनिते छहक जे सब दिन नीक घर (एयर कंडीशन) मे रहै छी, नीक गाड़ी मे चढै़ छी, नीक लोकक बीच आमोद-परमोद करै छी, से कोना हैत? वुचाइ- अहाँ की कोनो खेती-पथारी करब आ कि माल-जाल पोसब, जे तइ ले खेत-पथार चाही। लऽ दऽ कऽ रहैक घर चाही। से त घरारी अछिये। मुकुन्द- कहलह ते ठीके, मुदा रहै ले ते घर बनाबै पड़त। बिजली गाम मे नइ छै तइ ले जेनरेटर वैसबै पड़त, पाइनिक टंकी नै छै तइ ले कलक संग-संग मोटर सेहो लगबौ पड़त। गाड़ी रखै ले घर आ साफ करै ले सेहो जगहक जरुरत हैत। पैखाना, नहाइ ले सेहो घर चाही, घरक आगू मे दसो धुरक फुलवारी, बैइसै ले चवुतरा सेहो चाही। चारु भर छहर-देवाली बनवै पड़त। सब ले ते जमीने चाही।’ वुचाइ- ‘हँ, से त चाहबे करी। मुदा हमरा की कहै चहै छी? मुकुन्द- तोरा यैह कहै छिअह जे अपना अढ़ाइये कट्ठा घरारी अछि, तइ मे सब कुछ कोना हैत? कहुना कऽ दसो धुर आरो बढ़वैक गर लगावह।’ मुकुन्दक बात सुनि वुचाइक मन मे हँसी उठल। हँसी कऽ दबैत बाजल- ‘देखियौ कक्का, पान-दस ध् ाुर जमीन अमीनक हाथ मे रहै छै, मुदा ओ त तखने हैत जखन पंचो आ अमीनो पक्ष मे रहत।’ मुकुन्द- तेही ले ने तोरा बजेलियह। हमरा त ककरो से जान-पहचान नै अछि। मुदा तोरा त सबसे छह, तेँ, तू हमरा अप्पन बुझि मदत करह।’ मने-मन बुचाइ सोचलक जे पनहाइल गाय जेँका छथि, तेँ सरिया कऽ हिनका सिखवैक अछि। चपाडा़ दइत बाजल- ‘देखियौ कक्का, गामक लोक गरीब अछि, ओ जे पक्ष लेत से ओहिना किअए लेत? गैाँआक लिये जेहने अहाँ तेहने श्रीकान्त कक्का। तखन त कियो जे नेत घटाओत से बिना मीठ खेने किअए घटौत? मुकुन्द- ‘तइ ले हमहुँ तैयारे छी। जना जे तू कहवह से हम देबह।’ बुचाइ- ‘अच्छा हम भाँज-भूज लगबै ले जाइ छी। मुदा काल्हि खन श्रीकान्त कक्का सेहो कहने रहथि। ओना हम हुनका कहि देने रहिएनि जे अमानतक दिन हमहूँ रहब। तेँ, थोड़े दिक्कत हमरा जरूर अछि। मुदा तइयो दिन-देखार त हम अहाँक भेटि नहि करब, साँझ मे (अन्हार) जरूर करब। जना जे हेतइ से सब बात अहाँ कऽ कहैत रहब आ ओहूँ ओहि हिसाब स अपन गर अँटबैत रहब। ओना, गाम मे अखन सरूपक संग बेसी लोक छै, तेँ अहाँ कऽ ओकरा स भेटि करा दइ छी। ओ जँ तैयार भऽ जायत ते कियो ओकरा रोकि नहि सकतै।’ ‘बड़वढ़िया’ कहि मुकुन्द बैग स दस हजार रूपैया निकालि वुुचाइ कऽ दए देलखिन। रूपैया गनि वुचाइ बाजल- ‘अइ से की हैत? हम ने गामक पेंच-पाँच बुझै छियै। काजो त उकड़ू-ए अछि।’ ‘एते ताबत राखह। जना-जना काज आगू बढै़त जायत तना-तना कहैत जहिहह।’ ‘बड़बढ़िया’ कहि वुचाइ प्रणाम कऽ विदा भेलि। मने-मन मुकुन्द सोचै लगल जे भलेही श्रीकान्तो इंजीनियरे छथि मुदा जते पाइ हम कमेलहुँ तते हुनकर नन्नो ने देखने हेतनि। भऽ जाय पाइयेक भिड़ंत। मने-मन सोचबो करति आ खुशियो होइत। मुुकुन्द ऐठाम स निकलला बाद रस्ता मे वुचाइ विचारै लगल। आ-रौ बहिं, आइ धरि ऐहेन-ऐहेेन बुढ़बा चोट्टा नइ देखने छलौ। जिनगी भरि पाइये हँसोसथि रहल मुदा सबुर नै भेलइ। अच्छा, अइबेरि दुनू सिखताह। जइ गामक लोक, आइ धरि सहि-मरि अपन बाप-दादाक गाम आ घरारी धेने रहल, समाजक बेरि-बिपत्ति मे संगे प्रेम स रहल ओहि गाम मे जँ ऐहेन-ऐहेन चोट्टा आबि कऽ रहत, त क-ए दिन गाम केँ सुख-चैन से रहए देत। सबके टीक मे टीक ओझरा नाश करत की नहि?’ दोसर दिन, सबेरे सात बजे वुचाइ सरूप ऐठाम पहुँचल। दुनू कऽ बच्चे स दोस्ती, तेँ, ध् ि ायो-पूतो भेलो पर दुनूक बीच रउऐ-रउ चलैत। सरूप कऽ दरवज्जा पर नहि देखि बुचाइ सोर पाडै़ लगल- ‘दोस छेँ रौ, रौ दोस।’ सरुप अंगनाक दछिनबरिया ओसार पर बैसि दारुक बोतलक मुन्ना खोलैत। वुचाइक अवाज सुनि, कहलक- ‘दोस रौ, आ-आ। अंगने आ।’ घरक कोनचर लग अवितहि वुचाइ सरुपक घरवाली कऽ देखि बाजल- ‘दोस रौ, दोसतिनीक थुथुन बड़ लटकल देखै छिओ। रौतुका झगड़ा अखैन तक फड़िऐलौ हेँ नइ रौ। हम त रौतुका झगड़ा रातिये मे उठा-पटक कऽ फड़िया लइ छी आ तू अखैन तक रखनहि छेँ।’ वुचाइक बात सुनि सरुप कहलक- धुर-बूड़ि, सब दिन एक्के रंग रहि गेलै। कहियो तोरा बजैक ठेकान नै हेतउ।’ कहि पत्नी कऽ कहलक- ‘एकटा गिलास नेने आउ? एकटा गिलास आनि पत्नी सरुपक आगू मे रखलक। दुनू गोटे एक-एक गिलास दारु पीलक। बोतल कऽ डोला कऽ देखि सरुप फेरि दुनू गिलास मे ढ़ारलक। तहि बीच वुचाइ बाजल- ‘एक गिलास दोसतिनो कऽ दहुन?’ वुचाइक बात सुनि कला (सरुपक पत्नी) बाजलि- ‘हम नै गाइयक गोत पीवै छी। वुचाइ- ‘कनी पी के देखियौ जे केहेन तौ (ताव) चढै़ अए।’ सरुप- ‘भोरे-भोर दोस किमहर एलै?’ जेवी स पाँच हजार रुपैयाक गड्डी निकालि वुचाइ सरुपक आगू मे रखैत बाजल- ‘ले, इ तोहर हिस्सा छिऔ। गाम मे दू टा मोकीर फँसलौ हेँ। तेँ, सरिया कऽ दुनू कऽ सिखबैक छौ। एकटा कऽ हम संग देबइ आ दोसर कऽ तू देही। जहिना धिया-पूता दू टा मुसरी कऽ नंाग्रि पकड़ि लड़बैत अछि तहिना दुनू गोटे दुनू कऽ लड़ा।’ सरुपक आगू मे रुपैया देखि कलाक मुह स हँसी निकलल। हँसी देखि वुचाइ बाजल- ‘एकटा बात वुझै छियै दोसतिनी, लछमी दुइये टा होइत अछि। एकटा घरवाली आ दोसर रुपैया। दोस, तोहर भाग बड़ जोरगर छौ। किऐक ते दुनू तोरा लगे मे छौ। वुचाइक बात सुनि कला पाछु दिशि मुह घुमा लेलक। कला कऽ पाछु मुहे घुरल देखि वुचाइ कहलक- ‘मुह घुमौने नै हैत दोसतिनी। अही मे से रुपैया लिअ आ दोकान स अंडा नेने आउ। भुजल चूड़ा आ अंडाक कोफ्ता खुआउ।’ एकटा पचसटकही लऽ कला अंडा आनै दोकान विदा भेलि। खाली अंगना देखि वुचाइ सरुप कऽ फुसफुसा कऽ कहै लगल- ‘दोस, दू टा जुऐलहा चोर गाम ऐलौ हेँ। दुनू जेहने ‘चोर’ तेहने ‘लोभी’। दुनू अपन-अपन घरारी नपौत। दुनू कऽ अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठा जमीन छै। जे खतिआनी छिअए। किऐक ते दुनू एक्के वंशक छी। एक पुरखियाह अछि तेँ दोसर-तेसर नै छै। दुनू चाहै अए जे हमरा तीनि कट्ठा हुअए त हमरा तीनि कट्ठा हुअए। दुनू कऽ पाइयक गरमी, तेँ एक-दोसर कऽ निच्चा देखबै चाहै अए। गामक लोक त, दुनूक नजरि मे, बोन झाँखुर छी। से थोड़े हुअए देवइ। पाइयो खा जेवइ आ सुपत-सुपत बँटवरो करा देवइ।’ कने काल गुम्म रहि सरुप बाजल- ‘आँइ रौ दोस, अपने सब कोन नीक लोक छेँ, रौ। भरि दिन झूठ-फूसि बजै छी, ताड़ी-दारु पीवै छी, तखैन नीक कना भेलै रौ।’ वुचाइ- ‘धुर बूड़ि, तोरा निंशा चढ़ि गेलउ, तेँ नै वुझै छीही। तोँही कह जे गाम मे कोनो जाइतिक लोक किअए ने हुअए, मुदा जखन मरै अए ते कठिआरी जाइ छियै की नै? गरीब से गरीब लोक किअए ने हुअए, कियो बिना कफने जराओल गेल हेन। अपना हाथ मे जँ पाइ नहियो रहल ते दू-चारि गोरे स मांगि-चांगि पुरा दइ छियै। तेसर सालक गप मन छौ की नै। देखने रही की ने जे मखनाक गाय बाढ़ि मे भसल जाइत रहै ते भरि छाती पाइन मे से पकड़ि अनलौ। मोतिया बेटीक विआह कोन पेंच पर करा देलियै से बिसरि गेलही। खंजनमाक (डोम) घर मे जे आगि लगल रहै ते देखने रही की नइ जे अपन घैलची परक घैल लऽ कऽ सबसे पहिने आगि मिझवै ले गेलि रहियै। हमरा देखलक तखन पाछु से सब गेल। जइ कऽ चलैत माए कते दिन तक गरिअबैत रहल जे तोहूँ छुवा गेलै आ घइलौ छुबा गेल। आँइ रौ, गाइरियो-फज्झति सुनि कऽ जे सेवा करै छी उ धरम नै भेल रौ।’ मूड़ डोलबैत सरुप- ‘हँ, से ते ठीके कहै छेँ। बुचाइ- ‘हम श्रीकान्त कक्काक पक्ष (पछ) ल कऽ रहब आ तू मुकुन्द कक्का कऽ संग दहुन। जहिना इलेक्शन मे परचार करैक, आॅफिस चलवैक, चाह-पानक खर्च, लाउडस्पीकर आ सवारीक, बूथ पर दस टा कार्यकत्र्ता रखैक, एजेंटक, नेता सबहक सुआगतक लेल मेहराओ बनवैक खर्च नेता से लइ छिअए तहिना अखैन से जाबे तक नापी हेतइ ताबे तकक खरचा दुनू गोटे से दुनू गोटे लेब। हेतइ त उचिते मुदा ठक सऽ ठकब, कोनो पाप थोड़े छी।’ सरुप- ‘कना-कना पाइ लेबही से त प्लानिंग कऽ लेमे की ने?’ वुचाइ- ‘घवड़इ छैँ किअए, इलेक्शनो से वेेसी लेवइ। अमीनक घूस, पंचक घूस, चैक-चैराहाक चाह-पान, गाँजा-भाँग, ताड़ी-दारुक, लठैतक, कते कहबो। जना-जना काज अबैत जेतइ तना-तना टनैत जेबइ। अखैन जे आयल हेँ ओ सगुन छी। साझ मे जखन खूब अन्हार (तेसरि साझ) भऽ जेतइ तखन चलिहें। तोरा-दुनू गोरे कऽ मुह-मिलानी करा देबउ। चैक पर दू टा चाहक दोकान छेबे करै, एकटा पर साँझ-भिनसर तू बैसिहेँ आ एकटा पर हम बैसब। तू मुकुन्द जी दिशि से बजिहेँ जे हुनका तीनि कट्ठा घरारी छनि आ दोसर पर हम वैसि बाजव। मुदा एकटा बात मन रखिहेँ जे जखैन श्रीकान्त कक्का चैक पर आवथि, तखन अपने दिशि स चाह-पान खुआ, हुनके बात बजिहेँ आ जखन मुकुन्द कक्का औताह त हमहू बाजब। जइ से हुनका सब कऽ हेतनि जे सैाँसे गैाँआ हमरे दिशि अछि। अखैन त गैाँआ सब के चाहे-पान, गाँजा, ताड़ी पइर लगतै मुदा नापी दिन पूड़ी-जिलेबी जलखै आ माँस-भात भोजन करा देवइ।’ सरुप- ‘बड़बढ़ियाँ प्लानिंग छौ।’ वुचाइ- हम श्रीकान्त कक्का दिशि स खुशीलाल अमीन कऽ ठीक केलहुँ हेँ, तू मुकुन्द कक्का दिशि स किसुनदेव अमीन कऽ ठीक करिहेँ। दुनू अमीन त दुनू पार्टीक हैत की ने, मुदा मध्यस्त अमीन त सेहो चाही। तइ ले रामचन्द्र भाइ कऽ पकड़ि लेब। तहिना गामक लोक त दुनू दिशि स बँटाइल रहत की ने, मुदा एक्कोटा त तेहल्ला पंच चाही। तेइ ले गुरुकक्का कऽ पकड़ि लेब। जखने गुरुकक्का पंच आ रामचन्द्र भाइ अमीन रहताह तखने एक्को तिल जमीन इमहर-ओमहर थोड़े हैत।’ दोसर दिन, दुनू गोटे (वुचाइयो आ सरुपो) गुरु कक्का लग पहुँचल। गुरुकक्का दलाने पर। दुनू गोटे प्रणाम कऽ बैसल। दुनू गोटे केँ देखि गुरु कक्का पूछलखिन-‘की बात छियै हौ बुचाइ? दुनू भजार कऽ संगे देखै छिअह?’ वुचाइ- ‘अहीं लग तऽ एलौ हेँ कक्का। श्रीकान्तो काका आ मुमुन्दो काका घरारी नपौताह। तेही मे अपनो रहबै। ’ गुरुकाका- ‘की करताह ओ सब घरारी नपा कऽ। केहेन बढ़िया त धिया-पूता सब खेलाइ अए।’ सरुप- रिटायर केला बाद गामे मे रहताह। नोकरियो लगिचाइले छनि। तेँ अखने नपा कऽ घर मे हाथ लगौता। गुरुकक्का- ‘सुनै छी जे दुनू गोटे शहरे मे घर बनौने छथि, तखन गाम मे बना कऽ की करताह। हुनका सब कऽ गाम मे थोड़े वास हेतनि। जिनगी भरि त बड़का-बड़का होटल देखलखिन, नीक रोड पर नीक सवारी मे चललथि, दामी-दामी वेश्यालय देखलनि, से सब गाम मे थोड़े भेटितनि। अनेरे गाम मे आबि कऽ किअए थाल-कादो मे चलता आ मच्छर कटौताह।’ गुरुकाकाक बात सुनि लपकि कऽ वुचाइ बजै लगल- ‘से नै वुझलियै कक्का, दुनू गोटे भारी चोट खा चोटाइल छथि। तेँ गाम दिशि झुकलाह।’ से की?’ वुचाइ- ‘तेसर सालक घटना छियै। श्रीकान्त काकाक पत्नी डाªइवरकऽ संग केने बजार गेली। बजार स समान कीनि जखन घुमली त दोसर गाड़ी सेहो पछुअवैत। जखन फाँक (पाँतर) मे गाड़ी पहुँचलनि त पछिला गाड़ी आगू आबि रोकि देलकनि। गाड़ी स चारि गोटे उतड़ि हिनका गाड़ी मे वैसि ड्राइवर कऽ ‘दोसर रस्ता से गाड़ी बढ़वै ले कहलक। वेचारा की करैत। बढ़ल। थोड़े दूर गेला पर गाड़ी रोकि, काकी कऽ उताड़ि ड्राइवर कऽ कहलक- ‘मालिक कऽ जा कऽ कहिअनु जे पाँच लाख रुपैया नेने आबथि आ पत्नी कऽ ल जाइथि। दू घंटाक समय दइत छिअह।’ ड्राइवर विदा भेल। इमहर काकी कऽ चारि-पाँच ठूसी मुह मे लगा देलकनि। जहि स अगिला चारि टा दाँतो टुटि गेलनि। ठोह फाड़ि कऽ कानै लगली। कनिते काल मोवाइल द कहलकनि जे पति कऽ कहिअनु जे जल्दी रुपैया ल कऽ आउ, नइ ते हम नहि बँचव। तावे ड्राइवरो पहुँच कऽ कहलकनि। अपना हाथ मे दुइये लाख रुपैया, जे हालक आमदनी रहनि, वाकी रुपैया सब वैंक मे। ओइह दुनू लाख रुपैया लऽ कऽ गेला आ पाएर-दारही पकड़ि कऽ पत्नी कऽ छोड़ा अनलनि।’ वुचाइक बात सुनि ठहाका मारि हँसि, गुरुकाका- ‘मुकुन्द किअए औताह?’ मुस्की दइत वुचाइ- ‘हुनकर त आरो अजीव बात छनि। एक दिन एकटा ठीकेदारक पार्टी चललै। जते बड़का-बड़का हाकीम आ ठीकेदार सब छल, सब रहए। इहो (मुकुन्द) अपन पुरना गाड़ी छोड़ि नवका गाड़ी, जे बेटा कऽ सासुर मे देने रहनि, ल कऽ गेला। जखन पार्टी स घुमि कऽ ऐला ते पुतोहू कहलकनि- ‘पुतोहूक गाड़ी पर चढ़ैत केहेन लागल?’ अइ बातक चोट हुनका खुब लगलनि। बेटा-पुतोहू स मोह टूटि गेलनि। तेँ गामे मे रहताह।’ वुचाइक बात सुनि गुरुकक्का गुम्म भऽ गेलाह। कने काल गुम्म रहि, मने-मन बिचारि, कहलखिन- ‘गाम त गामे छी। शुद्ध मिथिला। भारत। जे स्वर्गो स नीक अछि। मुदा सब गामक अपन-अपन चरित्र आ प्रतिष्ठा छैक। जे चरित्र आ प्रतिष्ठा गामक कर्मठ, तियागी लोकनि बनौने छथि। अपन कठिन मेहनत आ कर्तव्य स सजौने छथि। ओकरा जीवित राखव त अखुनके लोकक कान्ह पर भार अछि कि ने? नोकरीक जिनगी मे किछु कियो केलनि तइ स समाज कऽ कोन मतलव। अपना ले केलनि। समाजक एक अंग होइक नाते हुनको सभक कान्हा पर किछु भार छेलनि जे अखन धरि नहि कऽ सकलाह। मुदा तइओ जँ-समाज मे आबि, समाज रुपी फुलवारी मे फूल लगवै चाहताह तहि दिन से कवि गोष्ठी मे आमंत्रित हुअए लगल। बंगाल सरकार दस हजारक पुरस्कार आ प्रशस्तिपत्र स सम्मानित केलकनि। तहिना भेलि कारी खलीफा। जेकरा, इलाकाक लोक खलीफा मानैत। बड़का-बड़का दंगल मे पहँुच ओ आन-आन जिलाक कतेको खलीफा कऽ पटकलक। ओकरा चलैत, गाम मे कियो ककरो बहू-बेटी कऽ खराव नजरि से नहि देखैत। ऐक बेरि एकटा घटना, जमीनदारक सिपाही संग घटलै। एक सौ लाठी, सिपाही कऽ समाजक बीच मे मारलक। तेही दिन से जमीनदार दू बीधा खेत ओहिना द देलकै। ऐहेन-ऐेहेन पंडित, कलाकारक बनाओल गाम छी, तेकरा हम सब, अपना जीवैत कोना दुइर कऽ देबइ। आइ जँ गाम दुइर हैत ते अगिला पीढ़ि ककरा गारि पढ़तै। तेँ, जँ दुनू गोटे मनुक्ख बनि गाम मे रहै चाहताह त बढ़बढ़ियाँ नहि त गाम मे रहने कियो समाज त नहि बनि जाइत।’ अमानत भेल। कोनो बेसी झमेल रहवे नै करै। पाँच कट्ठा कऽ दू भाग केनाइ। बँटवारा करैत रामचन्द्र (अमीन) कहलखिन- ‘जिनका संदेह हुअए ओ चाहे कड़ी स, वा फीता स, वा लग्गी स वा डेग स भजारि लिअ।’ 76.अनेरुआबेटा ते तेतेतेतेतेसरि साँझ। अन्हरियाक चैठ रहने, चान त’ नइ उगलछै, मुदा पूब दिशि धाही छिटकै लगल छलै। सुनसान अन्हार देखि, किछु क्षण पहिनहि एकटा कुमारि, समाज मे लोक-लाज बँचबैक खियाल स’, दस दिनक जनमल बच्चाके रस्ताक किनछरि मेे राखि अढ़े-अढ़ आंगन चलि गेलि। बच्चाक नओ दिन त’ झाँपि-तोपि क’, बीमारीक बहाना बना, रखलक। मुदा घटना खुलैक दुआरे दसम दिन, जी-जाॅति कऽ फेकलक नहि रस्ताक कातमे ओरिया क’ रखि देलक। पाँचे-सात मिनटक पछाति गंगाराम हाट स’ घर अबैत रहय। जनमौटी बच्चाक जे रुदन गंगाराम सुनलक। एकाएक ओकर पैर अस्थिर भ’ गेलै। बीच बाट पर ठाढ़ भ’ ओ अवाज अकानै लगल। इ’ अवाज त’ कोनो जानवर बा जन्तुक वा चिड़ैक त’ नहि थिक। मनुक्खक बच्चाक बोली बुझि पड़ैत अछि। मुदा एहिठाम मनुक्खक बच्चाक बोली भ’ कोना सकैत अछि? तहू मे ककरो देखबो ने करै छियै। बाँसक गारल खूँटा जेँका गंगाराम बीच बाट पर ठाढ़। कने काल ठाढ़ रहि ओ आस्ते-आस्ते बच्चा दिशि पैर बढ़बै लगल। झल-अन्हार रहने अधिक दूर देखबो ने करैत छल। खेत मे जेना कीड़ी-मकोड़ी, क्यो अपन माए-बाप के सोर पाड़ैत त’ क्यो अराम स’ गीत गबैत। तहि स’ सौँसे बाध अनघोल होइत रहै। बच्चाक लग पहुँच गंगाराम बैंसि क’ बच्चा केँ निहारै लागल। एकटा मन कहलकै, ‘ई त’ मनुक्खक बच्चा छी। मुदा दोसर मन कहलकै,- एहिठाम बच्चा आयल कोना? तरकारीक झोरा दूबि पर रखि, दहिना हाथ बच्चाक देह पर द’ हसोथै लगल। देह सिहरि गेलै। रोंइयाँ-रोंइयाँ ठाढ़ भ’ गेलै। मुदा मन मे खुशी उपकलै। मन थीर क’ बच्चाके दुनू हाथे उठा लेलक। उठा क’ बच्चाके पेट मे साटि, वामा हाथे बच्चाके थाम्हि दहिना हाथे खढ़-पात पोछै लगल। बच्चा ओहिना (पूर्ववते) कनैत रहय। खढ़ पोछि गंगाराम कान्ह पर स गमछा उताड़ि बच्चाके लपेट लेलक। तरकारीक झोरा कान्हमे टाँगि छाती लगौने बच्चाके अपना ओहिठाम अनलक। आंगन आबि गंगाराम हँसैत घरवाली केँ कहलक- ‘‘आइ भगवान खुश भ’ एकटा बेटा देलनि।’’ पतिक बात सुनि अकचकाइत भुलिया लगमे दौड़ल आबि पतिक कोरा सँ बच्चा अपना कोरा मे लैत पुछलक- ‘‘कत’ ई बच्चा भेटल? आ-हा-हा, बच्चा त बड़ दीव अछि।’ ‘हाट स घुमैत काल बाट पर भेटल। एकरा सेवा करु। जँ अप्पन बनि क’ आयल हैत त जीवे करत नइ त जहिना रस्ते-रस्ते आयल तहिना चलि जायत।’’ पतिक बात सुनि भुलिया मने-मन सोचै लागलि जे अपना त’ ने गाय अछि आ ने बकरी, जेकर दूध पीया बच्चा क’ पालितहँु। अपने ते दूध हेवे नइ करत किऐक त’ बुढ़ाढ़ीमे सब अंग सुखा गेल। निराश मन मे भुलियाक आशा जगलै। मन मे अयलै जे अपन ने छाती सुखि गेल मुदा पितिऔत दियादनी त’ चिलकौर अछि। मन पड़ितहि भुलिया भगवानके धन्यवाद दैत बाजलि- ‘‘जहिना भगवान सुखैल बोन मे फूल फुलौलनि तहिना ओकर अहारोक ओरियान त’ वैह करथिन।’’ पचास बर्खक गंगाराम। अड़तालीस बर्खक भुलिया। मुदा जते थेहगर गंगाराम तहि स’ कम भुलिया। अड़तालीस बर्खक भुलिया साठि वर्ख स’ उपर के बुझि पड़ैतछलि। झुनकुट बूढ़ि जेँका। बूढ़िक सब लक्षण भूलियामे आबि गेल छलै मुदा कोरा मे बच्चा देखि भूलियाक शरीर मे जुआनीक खून दौड़ै लगलै। नव उत्साह, नव-जीवन। आनन्द स’ विह्वल नजरि स’ भुलिया पति के देखैत आ गंगाराम पत्नी केँ। दुनूक मन मे खुशीक हिलोर उठैत रहै। पानिक गुंबारा जेँका खुशी मँुह स’ निकलै चाहैत रहै। बच्चा के चुप रहै दुआरे भुलिया अपन छाती मे बच्चा के लगा लेलक। कनी काल बच्चा छाती मे लगि मुह बन्न केलक, मुदा दूध नहि भेटिने फेरि ओहिना कनै लगल। गंगारामक घरक बगले मे पितिऔत भाइ रुपलालक घर। बच्चा क’ छाती लगौने भुलिया रुपलालक आंगन पहुँचलि। रुपलालक स्त्री कबूतरी अपना बच्चा के दूध पीअबैत रहय। तीनि मासक बच्चा रहै कबूतरीक। भुलियाक कोरा मे बच्चाके कनैत देखि अपना बच्चाके ओछाइन पर सुता भुलियाक कोरा स’ बच्चाके कोरा मे लैत दूध पीअबै लागलि। भुखल बच्चा, हपसि-हपसि दूध पीबै लागल। बच्चा क’ दूध पीबैत देखि भुलिया कबूतरी (दियादनी) के कहलक- ‘‘भगवान तोरा सात गो बेटा आउरो देथुन।’’ भुलियाक बात केँ हँसि मे उड़बैत कबूतरी बाजलि- ‘‘चारिये टा मे ते अकछि गेलौ आ सात टा आरेा पोसब पार लागत। अपन असिरवाद घुमा लोथु। जेतबे अछि तेकरे निमरजना होय, तेही सँ बहुत हैत। (बात बदलैत) दीदी, बुढ़ाढ़ियो मे जे हिनका बेटा भेलनि से केहेन पोरगर छनि। हिनके जेँका आखि, मुँह, नाक लगै छनि। भैया जेँका किछु ने बुझि पड़ैए।’’ भुलिया- ‘‘सब दिन तू एक्के रंग रहि गेलैं। कहियो तोरा बजै-भुकैक लूरि नइ भेलौ। जेठ-छोटके विचार ते वुझबे ने करै छीही। ककरो किछु कहि दइ छीही। कोनो गत्तर मे लाज-सरम ते छोउहे नै।’’ हँसैत कबूतरी दोहरबैत बाजलि- ‘‘ऐँह दीदी, हिनका अखन की भेलनि हेँ, एकटा के कहे जे जोड़ो लगि जेतनि।’’ कवूतरीक बात स’ भुलियाके तामस नै उठै। बच्चाक आनन्द हृदयके पानि जेँका कोमल बना देने छलै। भुलिया- ‘तोरे भैया के हाट स अबै काल रस्ता मे ई बच्चा भेटिलै।’’ कबूतरी- ‘‘भेटुआ बच्चाक मँुह हिनका मुह सँ किअए मिलै छै। ई हमरा स’ छिपबै छथि।’’ खौंझा क’ भुलिया बाजलि - ‘‘अच्छा हो, हमरे भेलि। आब त मन मे सबुर भेलौ।’’ बात बदलैत कबूतरी बाजलि- ‘दीदी, जहिना एकटा बच्चा के दूध पीअबै छी तहिना अहू बच्चा क’ दूध पीया देबनि। कोनो कि हमरा घर मे मौसरी नै अछि जे बच्चा के दूधकट्टू हूअए देबनि। लोकेक काज समाज मे लोक क’ होइ छै किने। हिनका अन्हार घर मे दीप जरलनि। तइ से कि हमरा खुशी नइ होइए।’’ कवूतरीक बात सुनि भुलियाक मन गद-गद भ’ गेलि। भुखाइल बच्चा क’ पेट भरिते निन्न आबि गेलइ। बच्चाके बिछौन पर सुतवैत कवूतरी बाजलि- ‘‘दीदी, बच्चा के एतै रहै देथुन। राति-विराति जखैन भुख लगतै पीया देवइ।’’ ‘‘बड़बढ़िया’’ कहि भुलिया अपना आंगन आबि पति क’ कहलक- ‘‘आब बच्चा जीबे करत। बड़ दूध गोधनपुर वाली क’ होइ छै। दुनू बच्चा के पाइल लेत।’’ बच्चाक लेल गंगारामक मन कनैत। मुदा भुलियाक बात सुनि मन हरिया गेल्ैा। मन मे एकटा शंका जरुर उठलै- ‘‘बच्चा के अपना अंगना किअए ने नेने अयलहुँ? आन त’ आने छी।’’ पति क’ चोहटैत भुलिया बाजलि- ‘‘अहाँ पुरुख छी, ते की बुझबै? मायक की मासचर्ज होइ छै से स्त्रीगणे बुझि सकै अए। जे माय एक दिन बच्चा के छाती स’ लगा लेति ओ जिनगी मे कहियो ओहि बच्चा क’ अधला नै सोचत।’’ गंगाराम चुप भ गेलि। मुदा एकटा बात मन पड़लै। बाजल- ‘‘अपने दुनू गोरे ने ओकर बाप-माए हेबइ, तेँ कोनो नाम ते रखि देबइ कि ने।’’ पतिक बात सुनि भुलियाक मन मे छंठियारक दृश्य आबि गेलि। मुस्की दइत बाजलि-‘‘आन बच्चा के ते स्त्रीगण सब मिलि के नौं रखै छै। मुदा से ते अइ बच्चा के नै भेलइ। अपने दुनू गोरे मिलि के नाम रखि दियौ।’’ भुलियाक विचार सुनि पति विहुँसति बाजल- ‘‘मंगल नाम रखि दिऔ।’’ सात मासक उपरान्त बच्चाक मुह मे दाँतो जनमै लगल आ ठाढ़ भ’ क’ डेगा-डेगी चलौ लगल। अन्न सेहो चटै लागल आ पानि सेहो पीबै लगल। बच्चाक सिनेह एते अधिक दुनू परानी मे रहै जे कखनो आँखिक परोछ होअय से नहि चाहय। भुलिया बोइन करब छोड़ि देलक। अंगना-घरक काज सम्हारि साबेक जौर ओसारे पर बैसि बँटै लागलि। ओकरे बेचि-बेचि दू पाइ कमा लैत छलि। अपना त’ साबे नहि रहै मुदा अधिया पर बँटैक लेल गाममे साबे भेटै। दुनू परानी गंगारामके एते उत्साह बढ़ि गेलइ जते दस बर्ख पहिने छलै। भरि-भरि दिन काज करैत मुदा थाकनि बुझिये ने पड़ै। भुलिया के जैखन मंगल माए कहए तैखन आनन्द स’ ओ उन्मत भ’ जाय। पाँच बर्खक अवस्थामे मंगलक नाम पिता स्कूल मे लिखा देलक। मंगल पढ़ै लगल। पाँचे किलास तक पढ़ाइ गामक स्कूल मे होइत रहै। पाँचमा तक मंगल पढ़ि लेलक। दस बर्खक भइयो गेल। मुदा दुनू परानीमे गंगारामक देह एत्ते अव्वल भ’ गेलइ जे काज करे ले लोक अढ़ौनाइ छोड़ि देलकै। कहुना-कहुना दुनू परानी जौर बाँटि-2 गुजर करय। जिनगी भारी लाग’ लगलै। मुदा दसे वर्खक मंगल मे ज्ञानक उदय कनी-मनी भ’ गेलै। जहिना बच्चे मे हनुमान वाल सुर्ज के गीरि गेल छलाह, तहिना। मंगल बाप केँ कहलक- ‘‘बाबू अहाँ दुनू गोरे काज करै जोकर नै रहलौ। हमरा मन होइ अए जे चाहक दोकान खोली। अपने डेढ़िया पर एकटा एकचारी बान्हि दिअ’, ओहि मे हम दोकान खोलब।’’ गंगारामक मन मे जँचलै। मुदा चाह त’ गामक लोक पीबैत नहि अछि, तखन दोकान चलतै कोना? मुदा तइयो एकचारी बान्हि देलक। बाड़ी मे एकटा जीमरक गाछ रहै ओकरा पच्चीस रुपैया मे बेचि, चाह बनवैक बरतन-वासन मंगल कीनि लेलक। चाहक दोकान मंगल शुरु केलक। नव वस्तुक दोकान गाम मे। मुदा पहिल दोकान के तेँ मोनोपोली (एकाधिकार) होइछै। शुरु मे त गामक लोक नव चीज (पेय) बुझि सेहन्ते पीनाइ शुरु केलक। मुदा धीरे-धीरे दोकान जमि गेलइ। जइ स’ एत्ते कमाइ हुअए लगलै जे कहुना-कहुना गुजर चल’ लगलै। तीन साल बीतैत-बीतैत दुनू परानी गंगाराम मरि गेल। जाधरि गंगाराम जीवैत छल ताधरि गाम मे मंगलक प्रति कोनो तरहक धृणा (धिरना) नइ छलै, मुदा गंगारामक मरला वाद लोक मे धिरना जाग’ लगलै। मुदा तइयो दोकानक बिकरी मे कमी नइ अयलै, किऐक त समाजक (गामक) लोक चाह-पानि पीबि शुरु क’ देने छल। चाहक दोकान केलाक उपरान्तो मंगलक मन मे पढ़ैक जिज्ञासा जीविते रहै। खाइ-पीबै स’ जे पाइ उगड़ै, ओइ स ओ किताब, कागज, कलम कीनि-कीनि पढ़बौ करै आ लिखबो करै। मरै काल गंगाराम मंगल के जन्मक इतिहास सुना देने रहै। जाहि स’ मंगल मे समाजक कुरीति, कुव्यवस्था, जे करमी लत्त्ी जेँका छपने अछि, ओहि विन्दु पर नजरि पहुँच गेल छलै। तेँ किताबक अध्ययनक दोकान चलबैत तेँ दस गोटेक संग गप-सप करैक लूरि सेहो सीखि लेलक। ततबे नहि, रुपचन गामक खिस्सकर। मुदा बड़ गरीब। साँझू पहर के एक झोक चाहक बिकरी खूब होइ, बाद मे गहिकी पतरा जाइ। जखन गहिकी पतरा जय तखन रुपचन मंगलक दोकान पर अबै। दू गिलास चाह पीया मंगल रुपचनक दिमाग साफ क दै। दू-चारि टा पछुऐलहा गहिकियो रहै, तहि बीच रुपचन पुरना खिस्सा उठाबे। एक घंटा, दू घंटा, तीनि-तीनि घंटा तक रुपचन खिस्सा कहै। खिस्सा सभ दिन बदलि-बदलि क’ कहै। कहियो राजा-रानी, त’ कहियो रानी सरंगा त कहियो रजनी-सजनीक। कहियो गोनू झा त’ कहियेा डाकक। कहियो अल्हा-रुदल त’ कहियो दीना-भद्री। कहियो लोरिक त कहियो सलहेसक। एहि रुपे मंगलक बुद्धिक बखारीमे किताबक ज्ञान, समाजक ज्ञान आ खिस्साक ज्ञान जमा हुअए लगलै। राति मे जे खिस्सा सुनै ओ दिन मे, जखन समय भेटै, लिखि लिअए। लिखैत-लिखैत पाँतियो सोझ-साझ हुअए लगलै आ जिज्ञासो बढ़ै लगलै। एक दिन, बेरि टगैत, एक गोटे मंगलक ऐठाम चाह पीबै आयल। देह-दशा स बिल्कुल साधारण। हाथ मे एकटा चमड़ाक बैग। ओ आदमी ‘भारत जागरण’ पत्रिकाक सम्पादक। गामक दशा-दिशाक अध्ययन करैक लेल गाम दिशि आयल छल। मंगल स’ गप-सप करैत ओ (सम्पादक) हरा गेल। उन्मत्त भ गेल। जेना मंगलक हृदय आ सम्पादकक हृदय (आत्मा) एक ठाम भ’ कतौ सफर मे निकलल हुअए, तहिना। भक्क टुटितहि दुनू गोरे हँसै लगल। सम्पादक कहलखिन- ‘बौआ, अहाँ चाह बनाउ। एखन धरि हमहुँ आइ चाह नै पीने छलौ। आइ हम रहब। निचेन स गप-सप करब।’ मंगल चाह बनबै लगल। चाह बनल। दुनू गोटे पीलक। खेला-पीलाक बाद, राति मे दुनू गोटे एक्के बिछान पर बैसि गप-सप करै लगल। जे किछु खिस्सा-पिहानी मंगल लिखने छल ओ हुनका (सम्पादक केँ)आगू मे रखि देलक। उनटा-पुनटा सम्पादक जी देखै लगलथि। भाषा-शैली त नहि जँचलनि मुदा विषय-वस्तु हृदय क’ पकड़ि लेलकनि। हँसैत बजलाह- ‘‘बड़ सुन्दर संग-संग समाजोक बेबहारक अध्ययन करै लागल। चाहक वस्तु सब अछि। एकरे तकै ले हम आइल छी।’’ कहि बैग खोलि किछु पत्रिका आ किछु किताब दइत कहलखिन- ‘‘एहि मे लिखैक तौर-तरीका निर्धारित कएल अछि। एकरा ठीक स’ पढ़ि जे अधार निर्धारित अछि, ओहि अधार पर लिखब। हम सम्पादक छी। मासिक पत्रिका चलबैत छी। अहाँक एक-एक कथा सब मासक पत्रिका मे छापब। एक काँपी अहूँ क’ पठा देल करब।’ तीनि-चारि घंटा धरि सम्पादक जी मंगल क’ बुझवैत रहलखिन। भोरे सुति उठि, चाह पीबि ओ चलि गेलाह। मंगलक कथा पत्रिका मे मासे-मास छपै लगल। मंगलक अनेको पाठकमे एकटा लड़की सेहो। नाम सुनायना। दर्शन शास्त्र स एम.ए. मे पढैत। पाँचम मासक पत्रिकामे सम्पादक जी मंगलक परिचय मे एकटा उपन्यासक चरचा सोहो क’ देलखिन नाम छलै ‘मरल गाम’। सुनायनाक पिता वकील। सुनयनाक मन ‘मरल गाम’ पढ़ि नचै लागलि। मन मे अबै लगलै जे हमर देश त गामक देश छी। जखन गामे मरल अछि तखन देश क’ की कहबै? ई विचार सुनायनाक मन मे उड़ी- बीड़ी लगा देलक। जे सुनयना पिताक सोझामे भरि मँुह बजैत नहि, ओ सुनायना आइ पिता स’ डिस्कस करै ले तैयार भ’ गेलि। कोर्ट स आबि वकील सैहब चाह पीवि टहलै ले गेलाह। टहलि-बूलि क’ दोसर साँझ मे आबि कौल्हुका केसक तैयारीक लेल फाइल निकाललनि। पत्नी चाह आनि क देलखिन। चाह पीबि, पान खा वकील सहाएव फाइल खोलैत रहति कि सुनयना आबि क’ आगूक कुरसी पर बैसि बाजलि- ‘‘बावूजी, एकटा सवाल मन मे घुरिया रहल अछि। ओ कने बुझा दिअ?’’ ‘‘की?’’ ‘‘आइ पत्रिका मे पढ़ने छलहुँ जे सचमुच गाम मरल अछि? जँ गाम मरल अछि त देश गामक छी।देश कऽ की कहबै?’’ सुनयना प्रश्नक गंभीरता पर नजरि नहि द’ वकील सैहब कहलखिन- ‘‘ई साहित्यकार लोकनिक समझ छिअनि, तेँ एहि पर किछु नहि कहि सकै छिअह।’’ ‘‘साहित्यकारो त’ अही समाजक लोक होइ छथि। हुनको आने लोक जेँका जिनगी छनि। तखन ओ ऐहन विचार किअए लिखलनि?’’ ‘‘साहित्यकारक बात साहित्यकारे बुझि सकैत छथि। हम त बकील छी कानूनक बात वुझै छियै। एखन तू जा हम एकटा केसक तैयारी करब।’’ सुनयना उठि क’ चलि गेल। अपना कोठरी मे बैसि क’ विचार करै लागलि। जहि देशक गाम मे ने पानि पीवैक ओरियान छै, ने खाइक लेल सभकेँ संतुलित भेाजन भेटय छै, ने भरि देह कपड़ा भेटय छै, ने रहैक लेल घर छै। ओहि देश क’ मरल नै कहबै त की कहबै। एखनो लोक सड़ल पानि पीबैत अछि, कहुना क’ किछु खा दिन कटैत अछि, गाछक निच्चामे आगि तापि समय बितवैत अछि, हजारो रंगक रोग-व्याधि स’ घेरल अछि ओहि देश क’ की कहबै? हजारो बर्खक मनुक्खक इतिहास मे, एखनो धरि सरस्वतीक आगमन सभ मनुक्ख धरि नै भेल अछि, ओहि देशक की कहबै? ढेरो प्रश्न सुनयनाक आगू मे ठाढ़ भ’ गेल रहय। मन घोर-घोर हुअए लगलै। अचेत जेँका सुनयना कुरसी पर ओंगठि सोचै लागलि। सोचैत-विचारैत अंत मे एहि प्रश्न पर आबि अटकि गेलि जे किताबक भाँज लगा क’ पढ़ी। मुदा किताव भेटत कत्त’। फेरि मन एलै जे किताब लिखनिहारे लग पहुँचि किताबक भाँज लगाबी। पत्रिका निकालि लेखकक पता, पुरजी पर लिखलक। दोसर दिन सुनयना मंगल क’ भाँज लगबै विदा भेलि। नओ बजेक समय। भिनसुरका गहिकी क’ सम्हारि मंगल केतली, टोपिया, ससपेन, गिलास इत्यादि बरतन दोकानक आगु मे रखि, चुल्हि स’ छौर निकालि चुल्हि निपैत। सुनयना चाहक दोकान पर, एहि दुआरे पहुँचल जे एहिठाम स’ सौंसे गामक लोकक भाँज लगि सकै अए। दोकान पर पहुँचि मंगल के पूछलक- ‘‘एहि गाम मे मंगल नामक एक व्यक्ति छथि, हुनकर घर बता दिअ।’’ अपन नाम सुनि मंगल चैंकि गेल। मुदा चुपे रहल। जेना मने-मन गाम मे मंगल के तकैत रहय। सुनयनो सैह बुझलक। कनी काल गुम्म रहि बाजल- ‘‘बहीन जी, अगर मंगल एहि गाम मे हैत त जरुर भाँज लगा देब। मुदा एखन हमरा ऐठाम आयल छी, तेँ बिनु खेने-पीने कोना जायब? इ त’ मिथिला छियै। जहिना घरवारीक लेल स्वागत करब अनिवार्य अछि तहिना त’ अतिथियो लेल।’’ मंगलक बात सुनि सुनयनाक मन मे, जना पियासल के शीतल पानि भेटि जाइत, तहिना भेलि। बाँसक फट्ठाक बनौल बेंच पर सुनयना बैसि गेलि। हाथ धोय मंगल सस्पेन अखारि, चुल्हि पजारि चाह बनबै लगल। बेंच पर स’ उठि सुनयना चुल्हि लग जाय चाहलक कि कुर्तीक नीचला कोन फट्टी मे फँसि गेलै, जइ स’ फटि गेलइ। मुदा तेकर चिन्ता नहि क’ सुनयना मंगल लग बैसि गेलि। लग मे सुनयना के बैइसैत देखि पूछलक- ‘‘मंगल स’ कोन काज अछि?’’ सुनयना- ‘‘मंगल साहित्यकार छथि। हुनकर लिखल एकटा उपन्यास ‘मरल गाम’ छनि। ओहि पोथीक भाँज हम बजार मे लगेलहुँ, मुदा कतौ नहि भेटल। तेँ लिखि -निहारेक भाँज लगबै एलहुँ।’’ सुनयनाक बात सुनि मंगल नमहर साँस छोड़ि, बाजल- ‘‘मंगलके अहा कोना जनैत छी?’’ सुनयना- ‘‘हुनकर लिखल कथा हम ‘भारत जागरण’ मे पढ़ैत छी ओहि मे ‘मरल गाम’ उपन्यासक चरचा देखलिऐक। जकरा पढ़ैक इच्छा मनमे भेलि। तेँ, एलहुँ हेँ।’’ मंगल बुझि गेल। खुशी स’ मन ओलरि गेलै। मन मे अयलै जे पियासल के पानि देब ओहने आवश्यक होइत अछि जेना भूखल क’ अन्न। मुदा हमरा त एक्के काॅपी अछि जे लिखने छी। अगर जँ ई काॅपी द’ देवइ त’ अपन साल भरिक मेहनत चलि जायत। मुदा नहि देव त आरो महापाप हैत। फेरि मन मे अयले जे अपना ऐठाम पढ़ै ले द’ दिअए आ कहि दिअए जे जहिया हमर दिन-दुनियाँ धुरत तहिया छपायब। छपेलाक उपरान्त अहाँ के देब। ताबे एहिठाम रहि पढ़ि लिअ।’’ तहि बीच चाह बनल। दुनू गोटे पीलक। चाह पीबि सुनयना बाजलि- ‘‘मंगलक भाँज लगा दिअ।’’ विस्मित भ’ मंगल बाजल- ‘‘हमरे नाम मंगल छी। हमही उपन्यास लिखने छी। मुदा छपाओल नहि अछि। सिर्फ लिखलेहे टा अछि। ‘तेँ हम आग्रह करब जे एहिठाम रहि पढ़ि लिअ। जहिया छपाएब तहिया अहाँ के एक काॅपी जरुर देब।’’ मंगलक बात सुनि सुनयना अचंभित भ’ गेलि। पैर स’ माथ धरि मंगलक निंग्हारै लगल। आगिक धुँआ, चुल्हिक कारीख स मंगल बेदरंग भेल। देहक वस्त्र परसौतीक वस्त्र जेँका। सौँसे देह स गरीबी झक-झक करैत। मंगलक बगए देखि सुनयनाक आखि नोरा गैले। नोर पोछैत सुनयना बाजलि- ‘‘एहिठाम रहि कऽ हम उपन्यास नहि पढ़ि सकब। किऐक त कोनो पोथी पढ़ैक मतलब होइत अछि जे ओहि पोथिक विषय-वस्तु के नीक जेँका बुझब। से धड़-फड़ मे कोना संभव अछि?’’ सुनयनाक विचार मे गंभीरता देखि मने-मन मंगल सोचै लगल। आत्माक उत्साह बढै़ लगलै। सुनयना दिशि तकलक। सुनयनाक आँखिमे पढ़ैक भूख जोर पकड़ने देखलक। मनमे एलै जे हमहुँ त’ अनके लेल लिखने छी। तखन छपौला सँ हजारो हाथ जेतइ, मुदा एखन त’ एक्के हाथ जा रहल अछि। मन मे सबुर अयलै जे कम स कम एक्को टा पढ़निहारक हाथ त’ जायत। ‘तहि बीच सुनयना बाजलि- ‘‘जहिना हम काॅपी एहिठाम स लऽ जायब तहिना पढ़लाक बाद घुमा देब। तेँ पोथी हरेबाक कोनो संभावने नै अछि। एहिठाम रहि पढ़ै मे हमरो लाचारी अछि। लाचारी ई अछि जे भरि दिन त’ हम कतौ रहि सकै छी मुदा सूर्यास्तक बाद घर पहुँचब जरुरी अछि।’’ मंगलक विचार मे कने स्नेह अएलैै। बाजल- ‘‘बड़बढ़ियाँ, हम अहाँ के पोथी द’ दै छी। आगूक बात अहाँ जानी।’’ हाथ मे पोथी अबिते सुनयनाक मनमे खुशी अयलै। एक टक स’ पोथी देखि मंगल दिशि ताकि मुस्किया देलक। मने-मन मंगल सुनयना क’ पढैत आ सुनयना मंगल के। सुनयना हँसैत विदा भ’ गेलि। सुनयना, एम.ए. नीक जेँका पास केलक। नारी अधिकारक सर्मथक वकील साहेब। मुदा मन ओतए ओझरा जाइन जत्ते देखथि जे नारी सिर्फ एक्के-आध बिन्दु पर नहि, जीवनक हर क्षेत्र मे जकड़ल अछि। जेकरा मेटाएव (तोड़ब) धिया-पुताक खेल नहि। कठिन संघर्ष स हैत। कतौ बैचारिक संधर्ष करै पड़त त’ कतौ बलक। एहि विचार मे बकील साहब, कुरसी पर बैसि, सोचति रहथि। साँझक समय। पत्नी चाह बनौने अयलथिन। टेबुल पर चाह राखि, बगलक खाली कुरसी पर बैसि कहलथिन- ‘‘अपना सबहक (पढ़ल-लिखल समाजक) परिवार मे सुनयना अछि तेँ ने, मुदा ज ऐहेन बेटी किसानक घर मे रहतै त लोक ओकरा एना उन्मुक्त रह’ दैतै!’’ चाहक चुसकी लइत वकील साहेब पुछलथिन- ‘‘अहाँ की कहै चाहैत छी, कने खोलि क बाजू।’ ‘सुनयनाक वियाह क’ लिअ। तखन त’ मनोज रहत की ने, ओ त बेटा घन छी।’’ बेटा-बेटीक बिआह करब माए-बापक अनिवार्य कर्तव्य छी। मुदा हमरा मन मे एकटा नव विचार अछि। ओ ई जे सुनयना के सेहा पूछि लियै।’ सुनयना स’ पूछैक बात सुनि पत्नी ढोढ़ साँप जेँका हनहनाइत बाजलि- ‘‘लोक की कहत? आइ धरि ककरा देखलियै जे माए-बाप बेटा-बेटी सँ पूछि क’ वियाह करैत अछि।’’ पत्नीक विचार सुनि वकील साहेव मने-मन सोचै लगलाह जे नारी के मात्र पुरुखे नहि नारियो दाबि कऽ रखै चाहैत अछि। अजीव घेरा-बंदी मे नारी फँसल अछि। मुदा अपन विचार क मने मे राखि, सुनयना के सोर पाड़लथिन। अपना कोठरी स’ निकलि सुनयना आयलि। कुरसी पर बैसलि। सुनयना माए दिशि देखए लागल। तामसे माए पति दिशि देखैत। वकील साहेव सुनयना के कहलथिन- ‘‘बाउ, आब तू एम. ए. पास कइये लेलह। माए-बापक दायित्व होइत छैक बेटा-बेटीक बिआह करब। तेँ हमहूँ अपन भार उताडै़ चाहै छी। तोरो किछु बजैक छह।’’ पिताक बात सुनि सुनयनाक देह मे कँप-कँपी आबि गलि। मन मे थोड़े ओज। मुदा असथिर स बाजलि- ‘‘बाबूजी, वियाह त’ सभ पुरुष-नारीक’ लेल अनिवार्य प्रक्रिया छियै। जाहि सँ सृष्टिक विकास प्रक्रिया मे सहयोग होइछै। रहल बात जे विवाह केहेन होअय। एखन जे देखि रहल छी ओ नब्बे-पनचानवे प्रतिशत अनमेल विवाह होइत अछि। कतौ धनक मिलानी स’, त’ कतौ दहेजक चलैत, कतौ कुल-मूलक चलैत त’ कतौ किछु। मुदा हमरा विचार स’ वियाह हेबाक चाही मनक मिलानी स’। जे टिकाउऐ टा नहि आनन्दमय सेहो हैत।’’ सुनयनाक बात सुनि माए उत्तेजित होइत बाजलि- ‘‘बेटी, हमरा सबहक (मिथिलाक) परम्परा रहल अछि जे ई (विवाह) काज माए-बापक विचार स’ होइ नै कि बेटा-बेटीक विचारे। किन्तु जँ बेटा-बेटीक विचार स’ वियाह हैत त समाज ढ़नमना जायत।’’ सुनयना बाजलि- ‘‘बड़ सुन्नर बात कहलीही माय, मुदा परम्पराक भीतर जे दुरगुण छैक, ओहू पर नजरि देमए पड़तौ।’’ मुहँ पर हाथ देने वकील सहाएव चुप-चाप सुनैत रहथि। सुनयना तर्कक आगू माय कमजोर पडैत गेलीह। मुदा तइयो चुप होइ ले तैयारे नहि छलीह। सामंजस्य करैत वकील सैहब सुनयना के कहलखिन- ‘‘बाउ, तू अप्पन विचार दैह?’’ सुनयना बाजलि- ‘‘अहाँ खर्च कत्ते करए चाहै छी पिताजी?’’ खर्चक नाम सुनि वकील सैहब चैंकि गेलाह। मुदा अपना के स्थिर राखि कहलखिन- ‘‘बाउ, अप्पन की ओकाइत अछि, से तोहू जनिते छह। मुदा जे ओकाइत अछि ओहि मे हम कंजूसी नै करबह। दू भाइ-बहीनि छह। ई सम्पत्ति त’ तोरे सबहक छिअह।’’ सुनयना बाजलि- ‘‘बाबूजी, मनुक्ख देहे आ धने पैघ नहि होइए, पैघ होइए ज्ञान आ कर्तव्ये। सब स्त्री चाहैए जे हमर जीवन-संगी बुद्धियार आ कर्मठ हुअए। एखन हम अहाँ के अंतिम निर्णय नहि द’ रहल छी, मुदा एते जरुर कहब जे सोनपुर मे मंगल नामक एकटा चाहक दोकानदार अछि। ओकरा कियो ने छै। मुदा ओकर जे काज आ बुद्धि छैक, ओ ओकरा एक दिन महान साहित्यकार रुप मे दुनियाँक बीच अनतै। एखन ओकरा गरीबी जर-जर बनौने छै। गरीबीक जाल मे ओ ऐना ओझरा गेल अछि जहि स’ निकलब कठिन छैक। किन्तु जँ ओकरा ओहि गरीबीक जाल सँ निकालल जाय त ओ जरुर उगैत सूर्य जेँका अकास मे चमकै लगत।’’ वकील सहैब कहलथिन- ‘‘बाउ, यदि तू हृदय स’ ओकरा चाहैत छह, तँ हमरा दिशि सँ कोनो आपत्ति नहि। मुदा एखन समय रहैत विचारि लैह।’’ सुनयना बाजलि- ‘‘अनेक विषमता रहितो हमरा दुनू गोटेक बीच आत्माक समता अछि। हमहूँ नारीक संबंध मे किछु लिखै चाहै छी। किऐक त अपना एहिठाम नारीक प्रति जे, अदौ सँ अखन धरि, अन्याय होइत रहल अछि ओ हमरा हृदय क’ दलमलित कए देने अछि। दुनियाँक सुन्दर सँ सुन्दर वस्तु, हमरा फीका लगि रहल अछि।’’ वकील सहैब कहलथिन- ‘‘बाउ, हम तोरा विचार के मानि लेलियह। तू अपने स’ जा क’ देखि आबह जे कते मदति सँ ओ (मंगल) उठि क’ ठाढ़ हैत। हम ओते मदति क’ देवइ।’’ पिताक विचार सुनि सुनयना हँसैत अपना कोठरी दिखि विदा भेलि। सुनयनाक विचार पर वकील सहाएव मने-मन गौर करै लगलथि। मुदा पत्नीक मनक तामस आरो बढ़िते गेलनि। 77.भैयारी मै मैमैमैमैमैट्रिक परीक्षा दऽ दीनानाथ आगू पढ़ैक आशा स, संगियो-साथी आ शिक्षको ऐठाम जा-जा विचार-विमर्श करैत। बिनु पढ़ल-लिखल परिवारक रहने, कॅालेजक पढ़ाइक तौर-तरीका नहि बुझैत। ओना ओ हाई स्कूल मे थर्ड करैत, मुदा क्लास मे सबसँ नीक विद्यार्थी। सब विषयक नीक जेँका परीक्षा मे लिखने, तेँ फेल करैक चिन्ता मन मे एक्को मिसिया रहबे ने करए। मूर्ख रहितो माए-बाप बेटा कऽ पढ़बै मे जी-जान अरोपने। ओना घरक दशा नीक नहि, मुदा पढ़बैक लीलसा दुनूक हृदय मे कूट-कूट कऽ भरल। जखन दीनानाथ परीक्षा दिअए दरभंगा सेन्टर (मैट्रिक परीक्षाक सेन्टर) जाइक तैयारी करै लगल, तखन माए अपन नाकक छक, जे छअ पाइ भरि (डेढ़ आना) रहए, बेचि कऽ देलकै। अगर जँ माए-बापक मन बेटा-बेटीक पढ़वैक रहत आ थोड़बो मेहनत स ओ पढ़त त लाख समस्योक बावजूद ओ पढ़बे करत। तेहि मे स एक दीनानाथो। काल्हि एगारह बजिया गाड़ी से परीक्षा दिअए जायत तेँ आइये साँझ मे रामखेलावन (पिता) पत्नी (सुमित्रा) कऽ कहलक- ‘काल्हि एगारह बजे बौआ गाड़ी पकड़त तेँ, अखने ककरो स आध सेर दूध आनि कऽ पौड़ि दिऔ। दहीक जतरा नीक होइ छै।’ माइयोक मन मे जँचलै। आध सेर दूध पौड़ैक विचार माए केलक आ मने-मन, ब्रह्म-बाबा कऽ, कबुला केलक जे अहाँ हमरा बेटा कऽ पास करा देब त कुमारि भोजन कराएब। संगे हाँइ-हाँइ कऽ चिकनी माटि लोढ़ी स फोड़ि, अछीनजल पानि मे सानि, दिआरी बना, साफ पुरना कपड़ाक टेमी बना, दिआरी मे करु तेल दऽ साँझ दिअए ब्रह्म स्थान विदा भेलि। रस्ता मे मने-मन ब्रह्म-बाबा केँ कहैत जे हे ब्रह्मबाबा कहुना हमरा बेटा कऽ पास कए दिहक। तोरे पर असरा अछि। स्कूल मे सबसँ नीक विद्यार्थी दीनानाथ, मुदा नीक रहितहुँ क्लास मे थर्ड करैत। एकर कारण रहए जे हाई स्कूल सेेक्रेट्रीक मातहत चलैत। जहि स स्कूलक सर्वेसर्वा सेक्रेट्रिये। इज्जतोक दुआरे आ फीसोक चलैत स्कूल मे फस्ट सेक्रेट्रिऐक लगुआ-भगुआ करैत। जँ कहीं सेक्रेट्रीक समांग नइ रहैत तखन हेडमास्टरक सवांग फस्ट करैत। मुदा एहि बैच मे सेक्रेट्रियोक सवांग आ हेडमास्टरोक सवांग। तेँ सेक्रेट्रीक सवांग फस्ट करैत आ हेडमास्टरक सवांग सेकेण्ड, आ दीनानाथ थर्ड। जे फस्ट करैत ओकरा पूरा फीस आ सेकेण्ड-थर्ड कऽ आधा फीस माफ होइत। ओना आन शिक्षक सभ केँ एहि बातक क्षोभ होइन मुदा कइये की सकैत छथि। किऐक त आन शिक्षक सभहक गति कोठीक नोकर स नीक नइ रहनि। सात घंटी पढ़ौनाई आ डेढ़ सय रुपैया महीना पौनाई, मात्र रहनि। मुदा तइयो ओ सब इमानदारी स काज करैत। असिसमेंटक चलनि सेहो रहए। बीस नम्बरक हिसाब स सब विषयक असिसमेंट होइत। सिर्फ समाजे-अध्ययनक हिसाव अलग रहए। असिसमेंटक नम्वर परीक्षाक नम्बर मे जोड़ि कऽ रिजल्ट होइत। जे नम्बर (असिसमेंटक) सेक्रेट्री आ हेडमास्टरक हाथक खेल रहए। परीक्षाक तीनि मासक उपरान्त रिजल्ट निकलै। मास दिन परीक्षाक बीति गेल। दू मास रिजल्ट निकलै मे बाकी। माघक अंतिम समय। सरस्वती पूजा पाँच दिन पहिने भऽ गेल। शीतलहरी चलैत। जहि स मिथिलांचल साइबेरिया बनि गेल। दिन-राति एक्के रंग। बरखाक बून्न जेँका ओस टप-टप खसैत। सुरुजक दरसन दू मास स कहियो ने भेल। दिन-राति कखन होय, ओ लोक अन्हारे स वुझैत। सब अपन-अपन जान बँचवै पाछू लागल। खेती-पथारीक काज सबहक बन्न। रब्बी-राई ठंढ़ स कठुआइल। बढ़बे ने करैत। बोराक झोली ओढ़ोलाक बादो माल-जाल थर-थर कपैत। जहिना महीसिक बच्चा तहिना गाइयक बच्चा कठुआ-कटुआ मरैत। बकरीक त फौतिये आबि गेल। गाछ सब परहक घोरन सूड्डाह भ गेल। चिड़ै-चुनमुनी स लऽ कऽ नढ़िया, खिखिर, साप मरि-मरिजहाँ-तहाँ महकैत। माघक पूर्णिमा स दू दिन पहिने रामखेलावन कऽ लकबा लपकि लेलक। सौंसे देहक एक भाग (अधा भाग) सुन्न भऽ गेलइ। क्रियाहीन। बिठुओ कटला पर किछु नहि बुझैत। चिड़ैक लोल जेँका टेढ़ मुह भऽ गेलइ। ओना उमेरो कोनो बेसी नहि, चालीस वर्ख स भीतरे। रौतुका समय। शीतलहरीक चलैत अन्हारेा बेसी। ओना इजोरिया पख रहए। मुदा भादबक अन्हार जेँका अन्हार। पिताक दशा देखि दीनानाथक मन घवड़ा गेलइ। तहिना माइयोक। मुदा तइयो मन कऽ थीर करैत दीनानाथ डाॅक्टर ऐठाम विदा भेलि। किछु दूर गेला पर पाएर तेना कठुआ गेलइ जे चलिये ने होय। मन मे भेलइ जे बावू से पहिने अपने मरि जाएब। घरो पर घुरि कऽ नइ जाइल हैत। बीच पाँतर मे दीनानाथ असकरे। दुनू आखि से दहो-बहो नोर खसै लगलै। मन मे एलै, आब की करब? मुदा फेरि मन मे एलै जे हाथ से ठेहुन रगड़ला पर पाएर हल्लुक हैत। सैह करै लगल। जाँघ हल्लुक भेलइ। हल्लुक होइते डाॅक्टर ऐठाम चलल। डाॅक्टर ऐठाम पहुँचते रोगीक भीड़ देखि दीनानाथ फेरि घबड़ा गेल। मन मे एलै, जे सौंसे दुनियाँक रोगी एतै जमा भऽ गेल अछि। असकरे डाॅक्टर सहाएव छथि आ दू टा कम्पाउण्डर छनि, कोना सबकेँ देखथिन। मुदा रोगो एकरंगाहे, तेँ बेसि मत्था-पच्ची डाॅक्टर कऽ करै नै पड़नि। धाँय-धाँय इलाज करति जाथि। मुदा मेले जेँका रोगी ऐबो करै। थोडे़ काल ठाढ़ भऽ कऽ देखि दीनानाथ सिरसिराइते डाॅक्टर लग मे जा बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, कनी हमरा अइठीन चलियौ। हमर बावू एते बीमार भऽ गेलि छथि जे अबै जोकर नइ छथि।’ दीनानाथक बात सुनि डाॅक्टर कहलखिन- ‘बौआ, ऐठाम त देखिते छी कोना एते रोगी छोड़ि कऽ जाएब? जे ऐठाम पहुँच गेलि अछि ओकरा छोड़ि कऽ जाएव उचित हैत।’ ‘समय रहैत ज हमरा ऐठाम नै जायब त बाबू मरि जेताह।’ ‘अहाँ घबड़ाउ नै तत्खनात दू टा गोली दइ छी। हुनका खुआ देवनि आ एतै नेने अबिअनु।’ दीनानाथक मन मे पिताक मृत्यु नचै लगल। मन मसोसि दुनू गोलि लऽ विदा भेल। मुदा घर दिशि बढ़ैक डेगे ने उठए। एक त ठंढ़ दोसर मन मे निराशा, आ तेसर शीतलहरी स रातिओ अन्हार। मुदा तइयो जिबठ बान्हि कऽ विदा भेल। कच्ची रस्ता रहने जहाँ-तहाँ मेगर आ तइ पर स कते ठाम टुटलो। जइ स कए बेरि खसबो कएल मुदा तइयो हूबा कऽ उठि-उठि आगू बढ़िते रहल। घर पर अबिते दुनू गोली पिता कऽ खुऔलक। तहि बीच माए गोइठाक घूर कऽ सौंसे देह सेदैत। अपना खाट नहि। एते राति मे ककरा कहतै। मुदा पितिऔत भाइक खाट मन पड़लै?’ मन परिते पितिऔत भाइ लग जा कहलक- ‘भैया खाटो दिअ आ संगे चलबो करु। ऐहेन समय मे आनका ककरा कहबै। के जायत?’ दीनानाथक बात सुनिते पितिऔत भाइ धड़फड़ा कऽ उठि खाट नेनहि बढ़ल। खाट पर एक पाँज पुआर विछा सलगी विछौलक। दुनू पाइस मे बरहा बान्हि खाट तैयार केलक। खाट तैयार होइते दुनू गोरे रामखेलावन कऽ उठा ओहि पर सुतौलक। बरहा मे बाँस घोसिया दुनू गोरे कान्ह पर उठा विदा भेलि। पाछु-पाछु सुमित्रो (माइयो) विदा भेलि। थोड़े काल त दीनानाथ किछु नहि वुझलक मुदा थोड़ेकालक बाद कान्हा भकभका लगलै। कान्ह परक छाल ओदरि गेलइ। जइ स बाँस कान्ह पर रखले ने होय। लगले-लगले कान्ह बदलै लगल। मुदा जिबट बान्हि डाॅक्टर ऐठाम पहुँच गेल। डाॅक्टर एहिठाम पहुँचते डाॅक्टर सहाएव देखलखिन। बीमारी देखारे रहए। धाँय-धाँय पाँच टा इन्जेक्शन लगा देलखिन। इन्जेक्शन लगा डाॅक्टर दीनानाथ केँ कहलखिन- ‘हिनका खाटे पर रहए दिअनु। बेसी चिन्ता नै करु। तखन त नमहर बीमारी पकड़नहि छनि। किछु दिन त लगबे करत। रामखेलावन कऽ नीन आबि गेल। खाटक निच्चा मे तीनू गोटे (दीनानाथ, पितिऔत भाइ आ सुमित्रा) बैसल। सुमित्रा मने-मन सोचति जे समय-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे बेटा-पुतोहू ककरा देखइ छै। जाबे पति जीबैत रहै छै ताबे स्त्रीगण गिरथाइन बनल रहैत अछि। पुरुख कऽ परोछ होइतहि दुनियाँ अन्हार भऽ जाइ छैक। बिना पुरुखक स्त्रीगण ओहने भऽ जाइत अछि जेहने सुखायल गाछ। कहलो गेल छै जे साँइक राज अप्पन राज बेटा-पुतोहूक राज मुहतक्की। मुदा की करब? अपन कोन साध। इ त भगवानेक डाँग मारल छिअनि। हे माए भगवती कहुना हिनका नीक बना दिअनु। जँ से नइ करबनि त पहिने हमरे ल चलू। दोसर दिन डाॅक्टर रामखेलावन कऽ देखि कहलखिन- ‘हिनका घरे पर लऽ जैअनु। (जइअनु) ऐठाम स नीक सेवा घर पर हेतनि। बीमारी आब आगू मुहे नहि बढ़तनि, मुदा इलाज बेसी दिन करबै पड़त। हमर कम्पाउण्डर सब दिन जा-जा सुइयो देतनि आ देखबो करतनि। तइ बीच जँ कोनो उपद्रव बुझि पड़त त अपनो आबि कऽ कहब।’ कहि दू टा सुइयाँ फेरि डाॅक्टर सहाएव लगा देलखिन। दवाईक पुरजा बना देलखिन। एकटा सूइयाँ आ तीनि रंगक गोली सब दिन दइ ले कहि देलखिन। गप-सप सब कियो करिते छलाह कि तहि बीच रामखेलावन पत्नी कऽ कहलक- ‘किछु खाइक मन होइ अए।’ खाइक नाम सुनिते दीनानाथक मुह स हँसी निकलल। लगले देाकान स दूध आ विस्कूट आनि कऽ देलक। दूध-बिस्कुट खुआ दुनू भाय खाट उठा विदा भेल। घर पर अबिते टोल-परोस सऽ लऽ गाम भरिक लोक देखै अबै लगल। शीतलहरी रहबै करै मुदा तइओ लोक अबैक ढ़बाहि लगल। दू घंटा धरि लोक अबैत रहल। दीनानाथ माए कऽ कहलक- ‘माए, बड़ भूख लगल अछि। पहिने भानस कर। भुखे पेट मे बगहा लगै अए।’ दीनानाथ बात सुनि माए भानस करै बिदा भेलि। भूख त आपनो लागलि मुदा कहती ककरा। बेर-विपत्ति मे ते एहिना होइते छैक। दीनानाथक बात पितिआइन सेहो सुनलक। वेचारी (पितिआइन) सोचलक जे सब भुखाइल अछि। बेरो उनहि गेलइ। आब जे भानस करै लगत ते साँझे पड़ि जेतैक। तहूँ मे सब भुखे लहालोट होइ अए। से नइ ते घर मे जे चूड़ा अछि ओ दऽ दइ छियै, जइ से तत्खनात त काज चलि जेतइ। सैह केलक। दीनानाथ आ सुमित्रा चूड़ा भिजा कऽ खाइते छल कि माम (सुमित्राक भाए) आयल। भाए कऽ देखितहि सुमित्राक आखि मे नोर आबि गेल। बिना पाएर धोनहि मकशूदन (भाय) बहिनोइ लग पहुँच देखै लगल। बहिनोइक दशा देखि दुनू आखि स दहो-बहो नोर खसै लगलनि। नोर पोछि, वेचारा सोचै लगल जे हम त सियान छी तहू मे पुरुख छी। जँ हमही कानबै त बहीनि आ भागिनक दशा की हेतइ। धैर्य बान्हि बहीनि कऽ कहलक- ‘दाइ, ई दुनियाँ एहिना चलै छै। रोग-व्याधि सह-सह करैत अछि। जइ ठीन गर लगि जाइ छै पकड़ि लइत अछि। अपना सब सेबे करबनि की ने मुदा.......। रुपैयाक लेल दवाइ-दारु मे कोताही नइ होनि। आइ भोरे पता लागल। पता लगिते दौड़ल एलहुँ। अपने गाय बिआइल अछि। काल्हि गाइयो आ जहाँ धरि हैत तहाँ धरि रुपैइयो आनि कऽ दऽ देवउ। अखन हम जाइ छी, काल्हि आयब।’ चारि दिनक बाद रामखेलावनक मुह सोझ भऽ गेल। उठि कऽ ठाढ़ सेहो हुअए लगल। मुदा एकटा पाएर नीक नहि भेल। कनी-कनी झखाइते डेग उठबै लगल। सब दिन, भोरे आबि कऽ कम्पाउण्डर सूइयो दइत आ चला-चला (टहला-टहला) देखवो करैत। दू मासक बाद दीनानाथक रिजल्ट निकलल। फस्ट डिबीजन भेलइ। नम्बरो नीक। छह सौ तीन नम्बर। हेडमास्टरक सवांग कऽ सेहो फस्ट डिबीजन भेलइ। मुदा नम्बर कम। पाँच सौ पेंइतालिस आइल छलै। सेक्रेट्रीक सवांग कऽ सेकेण्ड डिवीजन भेलइ। मुदा नम्बर बढ़िया, पाँच सय चैंतीस। आगू पढै़क आशा दीनानाथ तोड़ि लेलक। किऐक त घर मे कियो दोसर करताइत नहि। एक त पिताक बीमारी, दोसर घरक खर्च जुटौनाइ तइ पर स छोट भाइ आठमा मे पढै़त। मुदा दीनानाथ कऽ अपन पढ़ाई छोडैैैैै़क ओते दुख नै भेलइ जते परिवार चलौनाइ सऽ लऽ कऽ पिताक सेवा करैक सुख भेलइ। जे बेटा बाप-माइक सेवा नै करत ओ बेटे की? अपन पढ़ैक आशा दीनानाथ छोट भाइ (कुसुमलाल) पर केन्द्रित कऽ देलक। अधिक काल मकशूदन बहीनेक ऐठाम रहै लगल। गाइयोक सेवा आ खेतो-पथारक काज सम्हारै लगलै। अपना ऐठाम से अन्नो-पानि आनि-आनि दिअए लगलै। अपना घर जेँका भार उठा लेलक। अपन दशा देख रामखेलावन मकशूदन कऽ कहलक- ‘हम त अबाहे भऽ गेलौ। जाबे दाना-पानी लिखल अछि ताबे जीवै छी। मरैक कोनो ठीक नहि अछि, तेँ अपना जीवैत कतौ दीनानाथ कऽ विआह करा दिओै। बेटा-बेटीक विआह-दुरागमन कराएब त माए-बापक धरम छियै। मुदा हम ते कोनो काजक नै रहलौ। कम स कम देखियो त लेबइ।’ बहनोइक बात सुनि मकशूदन गुम्म भऽ गेल। मने-मन सोचै लगल जे समय-साल तेहने खराब भ गेल अछि जे नीक मनुख घर मे आनव कठिन भ गेल अछि। सब खेल रुपैइया पर चलि रहल अछि। मनुखक कोनो मोले ने रहलै। ऐहेन स्थिति मे नीक कन्या कोना भेटत? तखन एकटा उपाय जरुर अछि जे रुपैया-पैसाक भाँज मे नहि पड़ि, गुनगर कन्याक भाँज लगाबी। जइ से घरक कल्याण हेतइ। पाहुन जखन हमरा भार देलनि त हम दान-दहेज नहि आनि नीक कन्या आनि देबनि। बहिनोइ कऽ कहलक- ‘पाहुन, रुपैयाक पाछू लोक भसिआइत अछि। अगर अहाँ हमरा भार दइ छी ते हम रुपैया भाँज मे नहि पड़ि नीक मनुक्ख आनि कऽ देव। से की विचार?’ मकशूदनक बात सुनि बहीनि धाँय दऽ बाजलि- ‘भैया, रुपैया मनुक्खक हाथक मैल छिअए। मुदा मनुक्ख तपस्या स बनैत अछि।’ तेँ, हमरा नीक पुतोहू हुअए। रुपैयाक भुख हमरा नै अछि।’ बहीनिक बात सुनि मकशूदनक मन मे सबुर भेल। बाजल- ‘बहीनि, जहिना तोरा सबहक पुतोहू तहिना त हमरो हैत की ने। के ऐहेन अभागल हैत जे अपन घर अबाद होइत नै देखत?’ अपन पढ़ाइक आशा तोड़ि दीनानाथ मने-मन अपना पाएर पर ठाढ़ होइक बाट तकै लगल। संकल्प केलक जे जहिना नीक रिजल्ट पबैक लेल विद्यार्थी जी-तोड़ि मेहनत करैत अछि तहिना हमहूँ परिवार कऽ उठवैक लेल जमि कऽ मेहनत करब। बिऔहती लड़कीक भाँज मकशूदन लगवै लगल। मुदा मन मे एलै जे हम त बड़ पक्ष छी तेँ, लड़की ऐठाम पहिने कोना जाएब? कने काल गुनधुन करैत सोचलक जे बेटा-बेटीक विआह परिवारक पैध काज होइत अछि तेँ, ऐहेन-ऐहेन छोट-छीन बेवहार पर नजरि नहिये देव उचित हैत। तहू मे त हम लड़काक बाप नहि, माम छी। पाहुन जखन भार देलनि त नहियो करब, उचित न हैत। अपना गामक बगलेक गाम मे लड़कीक भाँज मकशूदन कऽ लगल। परिवार त साधारणे, मुदा लड़की काजुल। काज मे तपल। किऐक त माए सदिखन ओकरा अपने संग राखि खेत-पथारक, घर-आंगनक काज सऽ लऽ कऽ अरिपण लिखब, दुआरि मे पूरनि, फूलक गाछ, कदमक फुलाइल गाछक संग-संग पावनि-तिहार मे गीत गौनाइ सब सिखबैत। बड़द कीनैक बहाना स मकशूदन भेजा विदा भेल। पहिने दू-चारि गोटेक ऐठाम पहुँच बड़दक दाम करैत कन्यागतक दुआर पर पहुँचल। कन्यागत दुआर पर नहि। मुदा लड़की बाल्टी मे पाइन भरि अंगना अबैत। लड़की कऽ देखि मकशूदन पुछल- ‘बुच्ची, घरवारी कत्ते छथि?’ बाल्टी रखि सुशीला बाजलि- ‘बाड़ी मे मिरचाइ कमाइ छथि। अपने चैकी पर बैसिऔ। बजौने अबै छिअनि।’ बाल्टी अंगना मे रखि सुशीला बाड़ी स पिता केँ बजौने आइलि। पड़ोसी होइ दुआरे दुनू गोटे दुनू गोटेक चेहरा स चिन्हैत, मुदा मुहा-मुही गप नै भेने, अनचिन्हार। कन्यागत पूछल- ‘किनका स काज अछि?’ मुस्कुराइत मकशूदन- ‘अखन दुइये गोरे छी, तेँ मनक बात कहै छी। हमरो घर बीरपुरे छी। हमरा भागिन अछि। काल्हि खन पता चलल जे अहाँ कऽ विऔहती बच्चिया अछि, तेँ ओइठाम कुटुमैती कऽ लिअ।’ कुटुमैतीक नाम सुनि कन्यागत गुम्म भ गेलाह। कनी-काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘हम गिरहस्त छी। सेहो नमहर नै छोट। अइठीनक गिरहतक की हालत अछि से अहाँ जनिते छी। तेँ, अइबेरि बेटीक विआह नै सम्हरत।’ कन्यागतक सुखल मुह देखि मकशूदन बाजल- ‘मन मे जे दहेजक भूत पकड़ने अछि, ओ हटा लिअ। अहाँ कऽ जहिना सम्हरत तहिना विआह निमाहि लेब।’ मकशूदन विचार सुनि कन्यागतक मुह हरिआइ लगल। दरवज्जे पर स बेटी केँ सोर पाड़ि कहलक- ‘बुच्ची, सरबत बनौने आवह?’ बड़का लोटा मे सरबत आ गिलास नेने सुशीला दरवज्जा पर आबि चैकी पर रखै लागलि। तहि बीच पिता बाजल- ‘बुच्ची, इहो कियो आन नहि छथि। पड़ोसिये छिआह। बीरपुरंे रहै छथि। दहुन सरबत।’ दुनू गोटे सरबत पीलनि। सरबत पीबि पिता कहलखिन- ‘बुच्ची, चाहो बनौने आबह।’ सुशीला चाह बनबै गेलि। दरवज्जा पर दुनू गोरे गप-सप करै लगलाह। मकशूदन- ‘जेहने अहाँक कन्या छथि तेहने हमर भागिन। अजीब जोड़ा बिधाता बना कऽ पठौने छथि। काल्हिये अहूँ लड़का कऽ देखि लिओ। संयोग नीक अछि तेँ शुभ काज मे विलंब नहि करक चाही।’ मकशूदनक विचार स जते उत्साहित कन्यागत कऽ हेबाक चाहिएनि तते नहि होइत। कियेक त मन मे घुरिआइत जे कहुना छी त बेटीक विआह छी। फुसलेने काज थोडे़ चलत। मुदा कन्याक माए, दलानक भीतक भुरकी देने अढ़े से गप्पो सुनैत आ दुनू गोटे कऽ देखबो करैत। मने-मन उत्साहितो होइत, जे फँसल शिकार छोड़ब मुरुखपाना छी। माए-बापक सराध आ बेटीक विआह मे ककरा नै करजा होइ छै। जानिये कऽ तऽ हम सब गरीब छी। गरीबक जनम स लऽ कऽ मरै धरि करजा रहिते छै। तइ ले एते सोचै विचारैक कोन काज। करजो हाथे बेटीक विआह कइये लेब। फस्ट डिवीजन स मैट्रिक पास लड़का अछि। ऐहेन पढ़ल-लिखल लड़का थोड़े भेटत। कहबियो छै जे पढ़ल-लिखल लोक ज हरो जोतत तऽ मुरुख से सोझ सिराओर हेतइ। आइक युग मे मूर्खो बड़क बाप पचास हजार रुपैया गनबैत अछि। खुशी सऽ मन मे होय जे छड़पि कऽ दरवज्जा पर जा कहिअनि जे अगर अहाँ आइये विआह करै चाही त हम तैयार छी। मुदा स्त्रीगणक मर्यादा रोकि दइत। तेँ बेचारी अढ़े मे अहुरिया कटैत। मुदा पतिक मन बदलल। ओ मकशूदन कऽ कहलक- ‘देखू , हम भैयारी मे असकरे छी, मुदा गृहिणी त छथि। हुनका स एक बेरि पूछि लइ छिअनि। किऐक त हम घरक बाहरक काजक गारजन छी ने, घरक भीतरी काजक गारजन त वैह छथि। जँ कहीं बेटी विआहक दुआरे किछु ओरिया कऽ रखने होथि त कइये लेब।’ भोला (कन्यागत) उठि कऽ आंगन गेल। आंगन पहुँचते पत्नी झपटि कऽ कहै लगलनि- ‘दुआर पर उपकैर कऽ लड़कावला ऐला हेँ, तेँ अहाँ अगधाइ छी। जखैन लड़का भाँज मे घुमैत-घुमैत तरबा खियाइत आ बेमाइ स खूनक टगहार चलत, तखन बुझवै। तीनि-तीनि साल बेटीवला घुमै अए तखन जा कऽ कतौ गर लगै छै। जा कऽ कहि दिअनु जे अखैन हमर हालत नीक नइ अछि, मुदा जँ अहाँ तैयार छी त हमहूँ तैयार छी। बड़ देखैक दिन कौल्हुके दऽ दिअनु। पत्नीक बात स उत्साहित भऽ भोला आबि कऽ बाजल- ‘पत्नीक विचार सोलहो आना छनि। मुदा कहबे केलहुँ जे अखैन हमर हालत बढ़ियाँ नै अछि।’ मकशूदन- ‘काल्हि अहाँ लड़का देखि लिऔ। जँ पसिन्न हैत त जहिना कुटुमैती करै चाहब तहिना कऽ लेब। असल मे हमरा लोकक जरुरत अछि नै की रुपैया-पैसाक।’ आठे दिनक दिन मे विआह भऽ गेल। भोलाक बहिनो आ साउसो नीक जेँका मदति केलकनि। अपना घर स सिर्फ एकटा सोनाक सुक्की (नअ टा चैवन्नीक छड़) भोला कऽ, निकलल।’ पनरह दिनक उपरान्त दीनानाथ पूबरिया ओसार पर बैसि, पिता स छीपि कऽ, माए कऽ कहलक- ‘माए, घरक दशा जे अछि से तोहूँ देखते छीही। जेना घर चलै अए तेना कते दिन चलत। साले-साल खेत बिकाइत। जइ से किछुए सालक बाद सब सठि जायत। छोड़ैवला काज एक्को टा नइ अछि। जहिना कुसुमलालक पढै़क खर्च, तहिना बावूक दवाइ आ पथ्यक। मुदा आमदनी त कोनो दोसर अछि नहि। लऽ दऽ कऽ खेती। सेहो डेढ़ बीघा। तहू मे ने पाइनिक जोगार अपना अछि आ ने खेती करैक लूरि। एते दिन तऽ बाबू कहुना-कहुना कऽकरैत छलाह, आब तऽ सेहो ने हैत। हमहूँ ज कतौ नोकरी करै जायब सेहो ने बनत, किऐक त बावूक देखभाल सेहो करैक अछि। तखन तऽ एक्के टा उपाय अछि जे घरे पर रहि, आमदनीक कोनो काज ठाढ़ करी।’ बेटाक बात सुनि माए गुम्म भऽ गेलीह। जइ घर मे आमदनी कम रहत आ खरचा बेसी हैत, ओ घर कोना चलत। एते बात मन मे अबिते माइक आखि स दहो-बहो नोर खसै लगलनि। आँचर स नोर पोछि बाजलि- ‘बौआ, हम त स्त्रीगणे छी। घर-अंगना मे रहैवाली। तू ज बच्चो छह ते पुरुखे छह। जखैन भगवाने बेपाट भेल छथुन तखन त किछु करै पड़तह।’ दुनू गोटेक (माइयो आ बेटोक) मुह निच्चा मुहे खसल। ने बेटाक नजरि माए दिशि उठैत आ ने माइक नजरि बेटा दिशि। जहिना मरुभूमि मे पियासल लोकक दशा होइत, तहिना दुनूक दशा होइत। केबाड़ लग ठाढ़ सुशीला दुनू कऽ देखैत। जोर स कियो अहि दुआरे नहि बजैत जे रोगाइल, पिता वा पति ज सुनताह ते सोग स आरेा दुख बढ़ि जेतनि। केबाड़ लग स घुसकि ओसार पर आबि सुशीला बाजलि- ‘माए चिन्ता केला से दुख थोड़े भगतनि। दुख कऽ भगवै ले किछु उपाय करै पड़तनि। छोटका बौआ बच्चे छथि, बाबू रोगाइले छथि, मुदा अपने तीनू गोरे त खटैवला छी। खटला सऽ सब कुछ होइ छै।’ सुशीलाक बात सुनि सासु बजलीह- ‘कनियाँ, कहलियै त बड़बढ़िया, मुदा ओहिना त पाइन नै डेंगाएब।’ सासुक बात सुनि पुतोहू बाजलि- ‘हमर एकटा पित्ती धानक कुट्टी करै छथि। जहिना अपन परिवार अछि तहू स लचड़ल हुनकर परिवार छलनि। तइ पर स चारि-चारि टा बेटिओ छलनि। मुदा जइ दिन से धानक कुट्टी करै लगलथि तइ दिन से दिने-दुनिया घुरि गेलनि। चारु बेटिओक विआह केलनि, बेटेा के पढ़ौलनि। ईंटाक घरो बनौलनि आ पाँच बीघा खेतो कीनि लेलनि। अखन हुनकर हाथ पकडै़वला गाम मे कियो ने अछि।’ पत्नीक बात सुनि दीनानाथक भक्क खुजल। भक्क खुजिते दीनानाथ खुशी स उछलि अंगना मे कूदल। दरबज्जा पर आबि कागज-कलम निकालि हिसाब जौड़े लगल। डेढ़ सेर (किलो) धान मे एक सेर चाउर होइत अछि। ओना धानक बोरा अस्सिये किलोक होइत अछि, जबकि चाउरक सौ किलोक। चारि सय रुपैये बोरा धान बिकैत अछि। त पान सौ रुपैये क्वीन्टल भेल। एक क्वीन्टल धानक सड़सठि किलो चाउर भेल। दू-चारि किलो खुद्दियो हैत। जेकर रोटी पका कऽ खाएब। एक किलो चाउरक दाम साढ़े दस रुपैया सऽ एगारह रुपैया होइत। अइ हिसाब स एक क्वीन्टल धानक चाउर कऽ लगभग सात सौ रुपैया भेल। पान सउक पूँजी स सात सउक आमदनी भेल। तइ पर स तीस किलो गुड़ो भेल। जेकर दाम साठि रुपैया भेल। खर्च मे खर्च सिर्फ जरना, कुटाइ आ गाड़ीक भाड़ा भेल। बाकी सब मेहनतक फल भेल। अगर जँ एक बोराक कुट्टी सब दिनक हिसाव स करब त पाँच हजारक महीना आमदनी जरुर हैत। हिसाव जोड़ैत-जोड़ैत दीनानाथक मन मे शंका उठल जे हिसावे ते ने गलती भ गेल। कागज-कलम छोड़ि उठि कऽ टहलै लगल। मने-मन हिसाबो जोड़ैत। मन मे कखनो हिसाव सही वुझि पड़ैत ते कखनो शंका होइत। आंगन जा पानि पीलक। दू-चारि बेरि माथ हसोथलक। फेरि आबि कऽ हिसाब जोड़ै लगल। मुदा हिसाव ओहिना कऽ ओहिना होय। मन मे बिसवास जगलै। जहि स काजक प्रति आकर्षण सेहो भेलइ। फेरि आंगन जा माए कऽ पूछलक- ‘एक बोरा धान उसनै मे कते समय लगतौ?’ माए बाजलि- ‘एक बोरा धान त दसे टीन भेल। दूचुल्हिया पर पाँच खेप भेल आ चरिचुल्हिया पर अढ़ाइये खेप भेल। एक्के घंटा मे उसनि लेब।’ माइक बात सुनि दीनानाथ तय केलक जे हमहूँ यैह रोजगार करब। पूँजीक लेल पत्नीक सोना सुक्की मे स पाँच टा निकालि (सबा भरि) बेचि, धान कीनि कुट्टी शुरु केलक। जहि स परिवार मे खुशहाली आवि गेलइ। कुशुमलाल बी. ए. पास कऽ, मधुबनी कोर्ट मे किरानीक नोकरी शुरु केलक। केार्टेक बड़ाबाबूक बेटी स विआह सेहो केलक। मधुबनिये मे डेरा राखि दुनू परानी रहै लगल। तीनि-चारि वर्ख त संयमित जीवन वितौलक। सिर्फ वेतने पर गुजर करैत। मुदा तेकर बाद पाइ कमाइक लूरि सीखि लेलक। जहि स खाइ-पीवैक संग-संग आउरो लूरि भऽ गेलइ। घरोवाली पढ़ल-लिखल। जहिना कमाई तहिना खर्च। शहरक हवा मे उधियाइ लगल। सिनेमा देखैक, शराब पीबैक, नीक-नीक वस्तु कीनैक आदति बढ़ैत गेलइ। एक दिन पत्नी कहलकै- ‘गाम मे जे खेत अछि, ओ अनेरे किअए छोड़ने छी। ओहि से की लाभ होइ अए। ओकरा बेचि कऽ अहीठाम जमीन कीनि अपन घर बना लिअ।’ स्त्रीक बात कुसुमलाल कऽ जँचल। रवि दिन, छुट्टी रहने गाम आबि भाय (दीनानाथ) कऽ कहलक- ‘भैया, हम अपन हिस्सा खेत बेचि लेब। मधुबनिये मे दू कट्ठा खेत ठीक केलहुँ हेँ। ओ कीनि ओतइ घर बनाएब। भाड़ाक घर मे तते भाड़ा लगै अए जे एक्को पाइ बँचवे ने करै अए जे अहूँ सब कऽ देब।’ कुसुमलालक बात सुनि दीनानाथ कहलक- ‘बौआ, अखन बावू-माए जीविते छथुन, तेँ, हम की कहबह? हुनके कहुन।’ दीनानाथक जबाब सुनि कुसुमलाल पिता सऽ कहलक। रोगाइल रामखेलावन, खिसिया कऽ कहलक- ‘डेढ़ बीधा खेत छौ। दस कट्ठा हमरा दुनू परानीक भेल, दस कट्ठा दीनानाथक भेलइ आ दस कट्ठा तोहर भेलउ। अपन हिस्सा बेचि कऽ लऽ जो।’ खेत कीनै-बेचैक दलाल गामे-गाम रहिते अछि। ओ (कुसुमलाल) जा कऽ एकटा दलाल कऽ कहलक। पाँच हजार रुपैये कट्ठाक हिसाव स दलाल दाम लगा देलक। कुसुमलाल राजी भऽ गेल। मुदा बेना नै लेलक। तरे-तर दीनानाथो भाँज लगबैत। साझू पहर, जखन कुसुमलाल मधुबनी विदा भेल तखन दीनानाथ कहलकै- ‘बौआ, जते दाम तोरा आन कियो देतह तते हमही देबह। बाप-दादाक अरजल सम्पत्ति छी, आन कियो जे आबि कऽ घरारी पर भट्टा रोपत ओ केहेन हैत? मुदा, दीनानाथक बात कुसुमलाल मानि गेल। पचास हजार मे जमीन लिखि देलक। मधुबनिये मे कुसुमलाल घर बना लेलक। अपना गामक लोक स ओते संबंध नहि रहलै जते सासुरक लोक स। सासुरक दू-चारि गोटे सब दिन अबिते-जाइत रहैत। आदरो-सत्कार नीक होय। बीस बर्ख बाद, दीनानाथक बेटा मेडिकल कम्पीटीशन मे कम्पीट केलक। बेटी आइ. एस. सी मे पढ़िते। पढै़ मे दुनू भाइ-बहीनि उपरा-उपरी। तेँ, परिवारक सभकेँ आशा रहै जे बेटिओ मेडिकल कम्पीट करबे करत। माए-बापक सेवा आ बेटा-बेटीक पढ़ाई देखि, दुनू परानी दीनानाथक मन खुशी स गद-गद। परिवारोक दशा बदलि गेल। मुदा तइयो दीनानाथ धानक कुट्टी बन्न नइ केलक। आरो बढ़ा लेलक। मन मे इहो होय जे धनकुट्टिया मिल गड़ा ली, मुदा सवांगक दुआरे नहि गड़वैत। टायरगाड़ी कीनि लेलक। जहि स खेतिओ करै आ भड़ो कमाय। कुसुमलाल कऽ सेहो दू टा बेटा। दुनू पब्लिक स्कूल मे पढ़ैत। जेठका आठवँा मे आ छोटका छठा मे। मधुबनिये मे डेरा रहितहु दुनू होस्टले मे रहैत। तइ पर स सब विषयक ट्यूशन सेहो पढ़ैत। तेँ, नीक खर्च होय। शराब पीवैत-पीबैत कुसुमलालक लीभर गलि गेलइ। किछु दिन मधुबनिये मे इलाज करौलक, मुदा ठीक नहि भेने दरभंगाक अस्पताल मे भर्ती भेल। चारि मास दरभंगो मे रहल मुदा ओतहुँ लीभर ठीक नै भेलइ। तखन पटना गेल। पटनो मे ठीक नै भेलइ, संगहि शरीर दिनानुदिन खसिते गेलइ। अंत मे दिल्लीक एम्स मे भर्ती भेल। ओतह ठीक नइ भेलइ। शरीर एते कमजोर भ गेलइ जे अपने स उठियो-वैसि नइ होय। हारि-थाकि क मधुबनीक डेरा पर आबि गेल। मुदा एते दिनक बीमारीक बीच दीनानाथ कऽ जानकारीयो ने देलक। सारे-सरहोजिक संग घुमैत रहल। ओछाइन पर पड़ल-पड़ल सैाँसे देह मे धाव भऽ गेलइ। ढ़ाकीक-ढ़ाकी माछी देह पर सोहरे लगलै। कतबो कपड़ा ओढ़बै तइओ माछी घुसि-2 असाइ द दइ। दिन-राति दर्द स कुहरैत। सदिखन घरवालीक मन तामसे लह-लह करैत। गरिऐवो करैत। दुनू बेटा मे से एक्कोटा लग मे रहै ले तैयार नहि। जेठका बेटा कहए- ‘पप्पा जी, महकता है।’ जखन कखनो लग मे अबैत त नाक मूनि क अवैत। छोटका बेटा सेहो तहिना। सदिखन बजैत-‘पप्पा जी, अब भूत बनेगा। लग मे रहेंगे तो हमको भी पकड़ लेगा।’ जइ आॅफिस मे कुसुमलाल काज करैत ओहि आॅफिसक एकटा स्टाफ दीनानाथ कऽ फोन स कहलक- ‘कुसुमलाल अंतिम दिन गनि रहल अछि तेँ, आबि कऽ मुह देखि लिऔ।’ फोन सुनि दीनानाथ सन्न भऽ गेल। जना दुनियाँक सब कुछ आखिक सोझ स निपत्ता भऽ गेलइ। सुन-मशान दुनिया लगै लगलै। मन मे एलै, कियो ककरो नहि। दुनू आखि स नोर टधरै लगलै। नोर पोछि सोचै लगल जे कियो झुठे ने ते फोन केलक। फेरि मन मे एलै जे ऐहेन समाचार झूठ किअए हैत? अनेरे कियो, पैसा खर्च कऽ, फोन किअए करत? ऐहेन अवस्था मे कुसुमलाल पहुँच गेल मुदा आइ धरि किछु कहबो ने केलक। खैर, जे होय। मुदा हमरो त किछु धर्म अछि। अपना कर्तव्य स कियो मनुख एहि दुनिया (धरती) मे जीवैत अछि। अखन त अबेर भऽ गेल। काल्हि भेारुके गाड़ी सऽ मधुबनी जाएब। एते विचारि माए कऽ कहलक- ‘माए, एक गोटे मधुबनी से फोन केने छेलाह जे कुसुमलाल बहुत दुखित छथि तेँ, आबि कऽ देखिअनु।’ दीनानाथक मुहक बात सुनिते माए कऽ देह मे ुँ आगि लगि गेलनि। जरैत मने बाजलि- ‘कुसुमा, हमर बेटा थोड़े छी जे मुह देखबै। उ ते ओही दिन मरि गेल जइ दिन हमरा दुनू परानी (बाप-माए) कऽ छोड़ि चलि गेल। जँ अइ धरती पर धरमक कोनो स्थान हेतइ त ओइ मे हमरो कतौ जगह भेटत। जँ कोनो शास्त्र-पुराण मे पतिब्रता स्त्रीक चरचा हेतइ, त हमरो हैत। आइ बीस वर्ख स, एहि (अइ) हाथ-पाएरक बले, बीमार पति कऽ जीबित राखि अपन चूड़ी आ सिनुरक मान रखने छी।’ माइक बात सुनि दीनानाथ मने-मन सोचलक जे कुसुमलाल अगर हमरा कमा कऽ नहिये देलक ते की हमर बिगड़ल। माइयो-पिताक दर्शन भोरे-भोर होइते अछि, बालो-बच्चा आनंदे स अछि। तखन ते एक-वंशक छी जा कऽ देखि लिअए। दोसर दिन भोरुके गाड़ी स मधुबनी पहुँच, कुसुमलालक डेरा पर पहुँचल। बाहरेक कोठरी मे कुसुमलाल। चद्दरि स सौँसे देह झापल। मुह उधारितहि कुसुमलाल बाजल- ‘भ-इ-अ-अ।’ कहि सदाक लेल अखि मूनि लेलक। दीनानाथ- ‘बौआ कुसुम, वौआ.....बौआ..... बउआ।’ 78.भेंटकलावा पछिला बाढ़ि। मोन पड़ितहि देह भुटुकि जाइत अछि। रोंइयाँ-रोंइयाँ ठाढ़ भ’ जाइत अछि। बाइढ़िक विकराल दृश्य आँखिक आगू नचै लगैत अछि। घोड़ो स’ तेज गति स’ पानि दौड़ैत। बाढ़ियो छोटकी नहि, जुअनकी नहि, बुढ़िया। बुढ़िया रुप बना ताण्डव नृत्य करैत। ककरा कहू बड़की धार आ ककरा कहू छोटकी, सभ अपन-अपन चिन्ह-पहचिन्ह मेटा समुद्र जेँका बनि गेल। जिम्हर देखू तिम्हर पाँक घोड़ाएल पानि, निछोहे दछिन मुहँे दौड़ल जाइत। कतेक गाम, घर पजेबाक नहि रहने, घर बिहीन भ’ गेल। इनार, पोखरि, बोरिंग चापाकल पानिक तर मे डुबकुनिया कटै लगल। ऐहन भयंकर दृश्य देखि, लोक केँ डरे छने-छन पियास लगलो पर, पीबैक पानि नहि भेटैत। जीवन-मरण आगू मे ठाढ़ भ’ झिक्कम-झिक्का करैत बूझाय। घर गिरल, घरक कोठी गिरल, कोठीक अन्न भसल। जेहने दुरगति घरक तेहने गाइयो-महीसि, गाछो-बिरीछ आ खेतो-पथारक। घरक नूआ-बिस्तर, आनो-आन समानक मोटरी बान्हि माथ पर ल’, अपनो डाँड़मे दू भत्ता खरौआ डोरी बान्हि आ बेटोक डाँड़ मे बान्हि, आगू-आगू मुसना आ पाछू-पाछू घरवाली जीवछी बेटी दुखनी क’ कोरामे ल’ कन्हा लगौने पोखरिक ऊँचका महार दिशि चलल। एखन धरि ओ मोहार बोन-झाड़ आ पर-पैखानाक जगह छल। जहि मे साप-कीड़ा बसेरा बनौने, बाढ़ि ओकरा घरारी बना देलक। जहिना इजोत मे छाँह लोकक संग नहि छोड़ैत तहिना बरखा बाढ़िक संग छोड़ै ले तैयार नहि। निच्चा पानिक तेज गति आ उपर स बरखाक नमहर बुन्न। मोहार पर मुसना क’ पहुँचै स पहिने बीस-पच्चीस गोटे अप्पन-अप्पन धिया-पूता, चीज-बस्तु आ माल-जालक संग पहुँच चुकल छल। मोहार पर पहुँच मुसना रहैक जगह हियाबै लगल। शौच करैक ढ़लान लग खाली जगह देखि, मुसना मोटरी रखलक। मोटरी रखि बिसनाइरिक डाढ़ि तोड़ि खर्ड़ा बनौलक। ओहि खर्ड़ा स खरड़ै लागल। एक बेर खरड़ि क’ देखलक त’ मन मे पड़पन नइ भेलइ। फेर दोहरा क’ खरड़ि चिक्कन बनौलक। चिक्कन जगह देखि दुनू बेकतीक मन मे चैन भेलइ। मोटरी खोलि मुसना एकटा बोरा निकालि चारि टा बत्तीक खूँटा गाड़ि, खरौआ जौर स’ चारु खूँट बान्हि, बत्तीमे बान्हि क’ घर बनौलक। दोसर बोरा निच्चा मे बिछा धियो -पूतो क’ बैसौलक आ मोटरियोक सामान रखलक। चिन्ता स’ दुनू परानीक मुह सुखैल रहै। एक दिशि दुनू बच्चा के मुसना देखए आ दोसर दिशि गनगनाइत बाढ़ि। माथ पर दुनू हाथ द’ जीवछी मने-मन कोसी-कमला महरानी क’ गरिऐबो करै आ जान बँचबै ले निहोरो करै। दुनू बच्चो, कखनो क’ बाढ़ि देखि हँसैत त कखनो जाड़े कनैत। बाढ़िक वेग मे एकटा घर भसैत अबैत देखि मुसना बाँसक टोन आ कुड़हरि ल’ दौड़ल। पानि मे पैसि हियाबें लगल जे कोन सोझे घर आओत। ठेकना क’ हाँइ-हाँइ पाँचटा खूटा ठोकलक। आस्ते-आस्ते घर आबि कऽ खूटामे अड़कल, खूटा मे अड़ल घर देखि घरवालीक’ सोर पाड़ि कहलक- ‘‘हाँसू नेने आउ। घरक समचा सब उघि- उघि ल जाउ।’’ घरक उपर मे एकटा कूकूर सेहो भसैत आयल। ओ लोकक सुन-गुन पाबि कुदि क’ महार पर चलि गेल। ठाठक बत्ती मे जहाँ मुसना हाँसू लगौलक कि एकटा साप लप द’ हाथे मे हबक मारि देलकै। घरक भार थाल मे गरल खूटा नहि सम्हरि सकल। पाँचो खूँटा पानि मे गिर पड़लै। घर भसि गेलै। खूब जोर स मुसना कनबो करैत आ हल्लो करैत जे, हौ लोक सभ दौड़ै जाइ जा हौ, हमरा साँप काटि लेलक। मुसना क कानब सुनि घरवाली सेहो बपहारि कटै लागलि। बपहारि कटैत घरवालीके मुसना कहलक- ‘‘हे, गए दुखनी माय नाग डसि लेलकौ। छाती लग बीख आबि गेल। कनिये बाकी अछि कंठ छुबै ले। घिया-पुताके सोर पाड़ि कनी मुह देखा दे। आब नै बँचवौ।’’ जीबछी हल्लो करै आ घरबलाक बाँहि पकड़ि उपरो करै लागलि। महारक किनछरि मे पहुँच जहाँ उपर हुअए लगल कि दुनू गोटे पीछड़ि क’ तरे- उपरे निच्चा मे खसल। दुनू परानी भीजल रहबे करए आरो नहा गेल। मुदा तइयो ओरिया-ओरिया क’ उपर भेल। महार पर आबि जीबछी चूनक कोही स’ चून निकालि दाढ़ मे लगौलक। सापक बीख झाड़निहार गाम मे एकोटा नहि। मुदा रौदिया एहि बेरि दसमी मे चनौरा गहबर मे चाटीं सीखने छल। सब कियो रौदियाक खोज करै लगल। ओ (रौदिया) माछ मारै ले, सहत ल क’ बाध दिशि गेल छल। एक गोरे ओकरा बजा अनलक। अबिते रौदिया सहत कात मे रखि हाथ-पाएर धोय मुसना लग आबि बाजल- ‘‘हौ भाइ, हमर चाटी सिद्ध नहि भेलि अछि किऐक त हम एखन धरि गंगा स्नान नइ केलहुँ हेँ। मुदा तइयो बिसहाराके सुमरि देखै छियै।’’ मुसनाके आगूमे बैसा रौदिया हाथे स’ जगहके झाड़ि चाटी रखलक। सब रौदिया दिशि देखैत। मुदा चाटी चलबे ने कयल। बाढ़िक दुआरे आन गाम स’ झाड़निहार आ चट्टिवाहके बजाएब महाग मोसकिल रहै। सभ निराश भ गेल। छाती पीटि-पीटि जीबछी कनबो करै आ देवी-देवताके कबुलो करै। मुदा ढ़ोढ़ साप कटने रहए तेँ बीख लगबेने केलइ। गोसाइ लुक-झुक करै लगल। गामक ढ़ेरबा, बूढ़ि आ जुआन स्त्रीगण, चंगेरीयो आ चंगेरो मे, काँच माटिक दिआरी ल’, पोखरिक घाट लग जमा भ’ कमला महरानीक साँझ द’, गीति गबै लागलि। बच्चा सभ जय-जयकार करैत। तहि बीच लुखिया, कमला महरानीके, पाठी कबुला केलक। सुबधी एक सेर मधुर। दोसरि साँझ धरि गीति-गाबि सब घुरि क’ आंगन आयलि। एक्क रफ्तारमे बाढ़ि पाँच दिन रहल। मुदा पौह-फटितहि छठम दिन पानि कमै लागल। बाढ़िक पानि, जहिना हू-हू-आ क’ अबैए तहिना जाइए। बेर झुकैत-झुकैत घर-अंगनाक पानि निकलि गेलइ। मुदा थाल- खिचार रहबे करै। सातम दिन स’ लोक घर ठाढ़ करै लगल। बाढ़ि सटकितहि लोक परदेश दिशि पड़ाय लगल। गाम मे ने एक्कोटा धानक गब बँचल आ ने खेत रोपै ले बीरार। नारक टाल सब कत’ भसि क’ गेल तेकर ठेकान नहि। गहुमक भूस्सी भूसकाँरेमे सड़ि-सड़ि गोबर बनि गेल। मनुक्ख स’ बेसी दिक्कत माल-जालकेँ भ’ गेलै। आमक पात, बाॅसक पात आन-आन गाछ सबहक पात काटि-काटि माल-जालके खुआबै लगल। आन-आन गाम स’ नार, भूस्सी कीनि-कीनि अनै लागल। मुदा माल-जाल तइयो अन-धुन मुइलै। जे बँचल रहै, ओहो सुखा क’ संठी जेँका भ गेलै। तइ पर स रंग-बिरंगक बीमारी सब सेहो आबि गेलै। ककरो खुरहा त ककरो पेटझड़्ड़ी। किछु गोटे अपन सभ मालके कुटुमैती सभ मे द’ आयल। चारिक अमल। भाँग (पीसुआ) पीबि श्रीकान्त मैदान दिशि स’ आबि, दलान पर बैसि चाह पीवति रहथि। सोग स’ अधमरु जेँका भ’ मने-मन सोचथि जे महाजनी त’ चलिये गेल जे अपनो साल भरि की खायब? अगते धान सबाइ लगा देलहुँ। बड़ पैध गलती भेल जे एक्को बखारी पछुआ क’ नहि रखलौं। मुदा एक बखारी रखनहि की होइत। के ककरा मदति करत। ठीके कहब छै जे सबकेँ अपना भरोसे जीवाक चाही। भने दुआर परक बखारीक धान सठि गेल। कियो दरवज्जा पर आअेात त’ देखा देबइ। मुदा अपनो त’ जरुरत अछि, से कत’ स आनब। ल’ द’ क’ घरक कोठी मे चाउर अछि; ओतबे अछि। एक्को धुर धान नइ बँचल अछि जे अगहनोक आशा होइत। आब अबाद कएल नै हैत। आगू रब्बीयेक आशा। जे सब दिन कीनि-बेसाहि क’ खाइत अछि ओकरा त’ कोनो नै, मुदा हमरा लोक की कहत? चाह पीविते-पीबिते श्रीकान्तके चैन्ह अबै लगलनि। मन पड़लनि जे बाबा कहने रहथि जे दरवज्जा पर जँ क्यो दू-सेर वा दू-टका मंगै ले आबए त ओकरा ओहिना नहि घुमबिहक। ओहि स’ लछमी पड़ाइ छथि। जीबछीके अबैत देखि श्रीकान्त सोर पाड़लथिन। सालो भरि जीबछी हुनके कुटाउन क’ गुजर करैत छलि। चाउर-चूड़ा कुटै मे जीबछी गाम मे सभसँ बेसी लुड़िगर। श्रीकान्त लग आबि जीबछी हँसैत कहलकनि- ‘‘एत्ते किअए सोगाइल छथि कक्का, हिनका एत्ते छनि तखन एते दुख होइ छनि, हमरा त किछु ने अछि, तेँ कि मरि जायब।’’ जीबछीक बात सुनि भखरल स्वर मे श्रीकान्त कहलथिन- ‘‘जहिना सभ किछु वाढ़ि मे दहा गेल तहिना जँ अपनो सभ तुर भसि जइतहुँ, से नीक होइत। जाबे परान छुटैत, ततबे काल ने दुख होइत। आगू त दुख नहि काटै पड़ैत।’’ मुस्की दइत जीबछी बाजलि- ‘‘एक्केटा बाढ़िमे एत्ते चिन्ता करै छथि काका, कनी नीक की कनी अधलाह दिन त’ बीतवे करतनि।’’ चीलम पीबैत मुसना ओसार पर बैसल। कसि क’ दम खींचि मुसना मने-मन सोचए लगल, जे दू मास, अगहन-पूस, मुसहनि खुनि-खुनि गुजर करै छलहुँ। दस सेर जम्मो भ’ जाइ छल आ गुजरो क’ लइत छलहुँ। ओहो चलि गेल। ने एक्को गब कतौ धान बँचल आ ने गाममे एकोटा मूस। दोसर दम खींचि धूँआके धोटतहि मनमे अयलै जे मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भात जँ जाड़क मास भेटए त’ एहि स’ नीक दोसर की हैत। ऐहेन खेनाइ त’ रजो-महरजो केँ सिहिन्ते लागल रहत। ओ-हो-हो, भगवान गरीबेक सुख छीनि लेलनि। मुसनाक पहिलुका नाम मकशूदन छल। मुदा मूस आ मुसहनि स’ बेसी सिनेह रहने लोक ओकरा मुसना कहै लगल। जीबछी, आंगनक चुल्हि पर रोटी पकबैत। इनार पर हाथ-पैर धोय मुसना लोटामे पानि नेने आंगन आबि जलखै करै ले बैसल। टीनही छिपलीमे रोटी-नून नेने जवछी घरवालाक आगूमे देलक। अंगना मे दुखबाके नहि देखि मुसना जोर स शोर पाड़लक। पिताक अवाज सुनितहि दुखबा दौड़ल आबि धुराइले हाथे-पाएरे खाइ ले बैसि रहल। दुनू बापूत खाइ लगल। चुल्हिये लग स’ मुस्की दइत जीबछी बाजलि- ‘‘ककरो किछु होउ, जकरा लूरि रहतै ओ जीवे करत। ऐठाम त’ देखै छियै जे एक्के दहार मे किदनि बहारक खिस्सा अछि। सब हाकरोस करै अए।’’ मुहक रोटी मुसना हाँइ-हाँइ चीबा, जीवछी दिशि देखि क’ बाजल- ‘‘तते ने माछ भसि-भसि आयल अछि जे खत्ता-खुत्ती मे सह-सह करैए। कने पानि त’ कम होउ। जखने पानि कमि क’ उपछै जोकर भेलि कि मछबारि शुरु क’ देब। खेबो करब आ बेचवो करब। ‘सदिखन दू पाइ हाथेमे रहत।’’ अपन नहिराक बात मन पड़ितहि, जीवछी कहै लागलि- ‘‘हमरा नैहर मे पूब स’ कोशी आ पछिम स’ गंडकक बाढ़ि सभ साल अबैत छल। एहि बीचक जे धार अछि ओकर पानि त’ घुमैत-फिरैत रहिते छल। सगरे गाम साउने स’ जलोदीप भ’ जाइ छल। टापू जेँका, एकटा परती टा सुखल रहैत छल। ओहि पर सौँसे गामक लोक खेत सभ जगै लगैत छलै। तकर बाद लोक खेती करैत छलै। गहीरका खेत आ खाधि-खुधिमे भेंटक गाछ, सोहरी लागल जनमै छल। अगहन बीतैत-बीतैत ओ तोड़ैवला हुअए लगैत छल। हम सभ ओहि भेंटके तोड़ि-तोड़ि आनी ओकरे दाना निकालि, सुखाके लावा भुजी। तते लावा हुअए जे अपनो खाइ आ बेचवो करी। काल्हि गिरहत कक्का ओहिठाम जायब आ कहबनि जे चैरी मे मनसम्फे भेंटि जनमल अछि, ओ हमरा द’ दिअ।’’ एखन धरि दुनू परानी मुसना चाउर आ चूड़ाक कुट्टी करैत छल। सेहो ढ़ेकी मे। किऐक त’ गाममे एक्कोटा छोटको मशीन धनकुटियाक नहि छल। अधिकतर परिवार अपन-अपन ढेकी-उखड़ि रखैत छल। मुसना सेहो कुट्टीक दुआरे अपन ढे़की-उखड़ि रखने अछि। नीक चाउर बनबैमे जीवछीक लोहा सब मानैए। एहि बेरि त’ धनकुट्टी चलत नहि। मुदा बाढ़िमे आन गाम स’ तते भेंट दहा क’ चैरी मे आयल जे सापरपिट्टा गाछ सौँसे चैरीमे जनमि गेल अछि। तेँ जीवछी मने-मन चपचपाइत। दोसरके भेंटिक भाँज बुझले नहि छलै। सभ दिन नहाइ बेरिमे जीवछी चैरी जा भेंटि देखि-देखि अबैत छलि। चैड़गर-चैड़गर पात सौँसे चैरीके छेकने। गोटि-पंग्रा फूल हुअए लगलै। फूल देखि जीवछीक मन मे होइ जे एत्तेटा फुलवारी इन्द्रो भगवानके, हेतनि की नहि। पाँचे दिन मे सौँसे चैरी फूल फूला गेल। अगता फूलक पत्ती झड़ि-झड़ि खसै लागल फूलमे नुकाइल फड़ निकल’ लागल। गोल-गोल, हरियर-हरियर। फड़ देखि जीवछी आमदनी बुझि, चैरी कात मे बैसि, नव-नव योजना मने-मन बनबै लागलि। अइ बेर एकटा खूब निम्मन महिस कीनब। जँ महीसि जोकर आमदनी नै हैत त’ दू टा गाये कीनि लेब। अप्पन त’ सम्पति भ’ जायत। ओकरे खूब चराएब-बझाएव। ओही स’ त’ चारु परानीक गुजर चलत। जिनगी भरि त’ कुटौने करैत रहलहुँ मुदा अहि बेरि कमलो महरानी आ कोशियो महरानी दुख हेरि लेलथि। मने-मन जीवछी दुनूके गोड़ लगलकनि। अपन धन हैत तइ पर स’ मेहनत करब त’ कोन दरिदराहा दुख आबि क’ हम्मर सुख छीनि लेत? मजगूत घर बान्हब, बेटा-वेटीक बिआह करब। नाति-पोता हैत, बाबा-दादी बनि क’ जते दिन जीवि, ओ कि देवलोक स’ कम भेलै। अही ले ने सब हेरान अछि। कयला स सभ किछु होइ छै, बरसाती घर बना कऽ रहैत छल। कातिक अबैत-अबैत 3बिनु केने पतरो फुसि। घनगर गाछ देखि जीवछीक मनमे अयलै जे बीच-बीचमे सँ जँ गाछ उखारि देबै त’ सौरखियो, करहर भ’ जायत आ छेहर गाछ रहने फड़ो नमहर हैत। जइ स दानो नीक हैत। एखने स’ आमदनी शुरु भ’ जायत। उत्साहित भ’ जीवछी कमठौन शुरु केलक। मुदा करहर उखारैमे तते डाँड़ दुखाइ जे हूबा कमि गेलै। कमठौन छोड़ि देलक। देखते-देखते फड़ मे लाली पकड़ै लगलै। अगता फूल अगता फड़ भेल। नमहर-नमहर, पोछल-पोछल, गोल-गोल, पुष्ट। रंगल फड़ देखि जीवछी बुझि गेल जे आब ई तोड़ैवला भ’ गेल। दोसर दिन स’ फड़ तोड़ैक विचार जीवछी मने-मन क’ लेलक। दोसर दिन, भोरे जीवछी रोटी पका, दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खा, प्लास्टिकक बोरा ल’ फड़ तोड़ै ले विदा हुअय लगल कि धक द’ मन पड़लै जे बोरा मे त’ फड़ राखब, मुदा पानि मे तोड़ि-तोड़ि कत्त’ राखब। फड़ तोड़ै ले त’ झोराक जरुरत हैत। झोरा त’ अपना अछि नहि! आब की करब? लगले जीवछी पुरना साड़ी के फाँड़ि दू टा झोरा सीलक। झोरा सीबि, बोरो आ झोरोके चैपेत एकटा झोरामे राखि, दुनू बच्चो आ दुनू गोटे अपनो चैर दिशि विदा भेलि। फड़क रुप-रंग स जीवछीक मन गद-गद। मुदा अनभुआर काज बुझि मुसना तर्क-वितर्क करैत। चैरक कात पहुँच, उपरका खेत, जे सुखैल छल, मे दुनू बच्चो, बोरो आ रोटी-पानिके रखि, दुनू परानी भेंट तोडै़ ले पानि मे पैसल। पानि मे पैसितहि, जीवछीक नजरि भेंटक फड़क उपरे-उपर नाचय लगल। जहिना ककरो रुपैआक थैली भेटला स’ खुशी होइ छै तहिना जीवछीक मन मे भेलै। एक टक स’ देखि जीवछी दुनू हाथे हाँइ-हाँइ फड़ तौड़ै लागलि। खिच्चा फड़ देखि जीवछी पतिके कहलक- ‘‘जुऐलके फड़ टा तोड़ब। अजोहा एखन छोड़ि दिऔ। पछाति तोड़ब।’’ झोरा भरिते जीबछी उपर आबि-आबि बोरा मे रखैत। मुसनो सैह करैत। दुनू बोरा भरि गेल। उपर आबि जीवछी पतिके कहलक- ‘‘कनी काल सुसता लिअ। पानि मे निहुड़ल-निहुड़ल डाँड़ो दुखा गेल हैत। अहाँ एतइ रहू, हम एक बेरि अंगना स’ रखने अबै छी।’’ कहि जीबछी एकटा बोरा उठा आंगन विदा भेलि। एक त’ पानिक भीजल दोसर ओजनगर बस्तु। मुदा जीबछी भारी बुझबे ने करए। किऐक त सम्पत्तिक मोटरी रहै किने। दिशि रमकल विदा भेलि। चैर पहुँच पतिके कहलक- ‘‘हम बोरा लइ छी, अहाँ दुनू बच्चो आ डोलो क’ सम्हारने चलू।’’ आगू-आगू मुसना बेटीके कोरा मे, दोसर हाथमे डोल आ बेटा के ल’ चलल। पाछू-पाछू जीवछी माथ पर बोरा लेने। थोड़े दूर बढ़ला पर जीवछी पतिके कहलक- ‘‘भगवान दुख हेरि लेलनि।’’ मुदा, स्त्रीक बात सुनि मुसनाके ओ खुशी नइ अयलै जे जीवछीके रहै। आंगन आबि जीबछी पहिलुके बोरा लग दोसरो बोरा रखि भानसक ओरियान करै लागलि। चारिम दिन, पहिलुके खेप भेंट तोड़ै काल मुसना के एकटा ठेंगी बाँहि मे पकड़ि लेलकै। जे ओ देखबे ने केलक। मुदा जखन ठेंगी भरि पोख खून पीबि भरिया गेलै, तखन मुसनाक नजरि पड़लै। ठेंगी क’ देखितहि ओकर परान उड़ि गेलइ। थर-थर कपै लगल। खूब जोर स’ घरवालीके कहलक- ‘‘बाप रे बाप! देहक सबटा खून ठेंगी पीबि लेलक। कोन पाप लागल जे अइ मौगियाक भाँज मे पड़लौ। एक त’ बाढ़िक मारल छी जे भरि पोख अन्न नै होइए। सुखा क’ संठी भेल छी। तइ पर जेहो खून देह मे छलै सेहो ठेंगिये पीबि गेल। झब दे आउ, ने-ते हम पानिये मे खसि पड़ब।’’ मुसनाक बातके अनठबैत जीवछी हाँइ-हाँइ फड़ो तोड़ैत आ मने-मन बजबो करैत- ‘‘जना नाग डसि नेने होइ, तहिना अड़ड़ाइ अए। भभटपन ने देखू। एहने-एहने पुरुख बुते परिवार चलत?’’ दुन झोरा भरिते जीवछी मुसना लग आबि हाथे स’ ठेंगी पकड़ि एकटा चिचोर मे बान्हि देलक। मुदा जइ ठाम ठेंगी पकड़ने रहै तइ ठाम स’ छड़-छड़ खून बहैत। अपन दहिना औंठा स’ जीवछी दाबि देलक। कनिये कालक बाद खून बन्न भ’ गेलइ। जीबछी फेरि फड़ तोड़ै पानिमे पैसल। कने काल तोड़ि जीवछी कहलक- ‘‘आउ ने, आब किछु ने हैत।’’ जीबछीक बात सुनि मुसना आँखि गुड़रि क’ बाजल- ‘‘ई मौगिया जान मारै पर लागल अछि। जे कहुना मरि जाय। हमरा की, दुनिया मे सँयक कमी छै? दोसर क’ लेब। मुदा (दुनू बच्चा दिशि देखैत) अइ टेल्हुक सभ क’ की हेतइ? बिलटि क’ मरत की नहि?’’ पति दिशि देखि पत्नी मुस्की दैत बाजलि- ‘‘नइ तोड़ब त’ नइ तोरु। ओतइ बैसि बच्चा आंगन आबि ओसार पर बोरा रखि पुनः जीवछी चैर 4सभके खेलाउ।’’ दुनू बोरा भरि जीवछी आंगन अनलक। सबकेँ सम्हारने मुसना सेहो आयल। आंगन आबि जीबछी चुल्हि पजारि, भानस क’ दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खेलक। खा क’ जीवछी हाँसू ल’ भेंटक फड़ चीरि-चीरि दाना निकालै लागलि। लाल-लाल, गोल-गोल। मुसना सेहो दाना निकालै लगल। दुनू बच्चा दुनू भाग बैसि दू टा फड़के गुड़कबैत। दाना क’ एकटा चटकुन्नी पर थोपि-थेापि रखैत जाय। मुदा कनिये काल बाद मुसनाके चीलम पीबैक मन भेलइ। ओ उठि क’ चुल्हि लग जा आगियो तपै लगल आ चीलमो पीबए लगल। दानाक ढ़ेरी देखि जीवछी गर अँटवै लागलि जे एत्ते कत्त’ के राखब। गुनधुन करैत। एकाएक नैहरक बात मन पड़लै। मन पड़िते मुह स हँसी फुटलै। जीवछी क’ हँसैत देखि मुसना अह्लादित भ’ कहलक- ‘‘आँइ गै(ऐँ गे), कोन सोनाक तमधैल तोरा भेटि गेलउ हेँ, जे ऐना खिखिआइ छेँ।’’ मुदा पाशा बदलैत जीवछी बाजलि- ‘‘एखैन ते अन्हार भ गेलइ, काल्हि भोरे एकटा खाधि, टाटक कात अंगने मे खुनि देबइ।’’ भोरे मुसना ढ़क (ठेक) जेँका गोल-मोल खाधि खुनलक। जीबछी दू-लेब क’ क’ लेबि, सुखौलक। ओहि मे भेंटक दाना सुखा-सुखा रखैत गेल। उपर स’ टाटक झँपना बना मुसना द’ देलक। मास दिनक मेहनत स’ जीवछीक आंगन भेंटक दाना स भरि गेल। अनभुआर चीज, तेँ चोरी-चपाटीक डरे नहि। भरल आंगन देखि जीवछीक मनमे समुद्रक लहरि जेँका खुशी हिलकोर मारै लगलै। कनडेरिये आखिये मुसना दिशि देखि जीवछी मुस्किया देलक। घरवालीक मुस्की देखि मुसना खिसिया क’ बाजल- ‘हमरा देख-देखि तोरा हँसी लगै छौ। हँसि ले जते हँसमे से हँसी ले। जाबे जीबै छियौ ताबे। भगवान केलखुन आ मरलियौ तखैन तोहर हँसी नगरक लोक देखितौ।’’ मुदा जीवछीक लेल धैन-सन। किऐक त खुशी स’ मन एते भरल रहै जे घरवलाक बात ओहिमे पैसिबे ने केलइ। मने-मन जीवछी लावा भुजैक विचार करै लागली। लावा भुजै ले एकटा नम्हर खापड़ि चाही। वाउल रखै ले एकटा कोहा चाही। लारनि त अपनो खरही स’ बना लेब। बाउलो नदी कात स’ ल’ आनब। जखन कुम्हनि ओहिठाम जायब त’ कचकुह ताकि क’ एकटा नमहर तौला ल’ लेब। ओकरे खापड़ि बना लेब। वाउलधिपबै ले मझोलको काज सेहो पड़त। किऐक त वाउल जे देवइ से त’ हाथ स’ नइ हैत। ओइ मे एकटा बत्तीक डाँट लगवै पड़त। लगा लेब। मुसनाके कहलक- ‘‘लाबा भुजै ले जारनक ओरियान करै पड़त।’’ लावा नाम सुनि मुसनाक मनमे खुशी भेल। मुस्कुराइत उत्तर देलक- ‘‘एखन टेंगारी सुढ़िया लइ छी। बेरु पहर गिरहत कक्काक गाछी स’ बाँझियो आ सुखल ठौहरियो सब आनि देब।’’ भरि दिन मे दुनू परानी जीवछी सब कथूक ओरियान क’ लेलक। लावा भुजब जीबछी शुरु केलक। दू चुल्हिया चुल्हि। एक मँुह मे खापड़ि, दोसर मे कोहा। खापड़ि मे भाटिक दाना भुजैत आ कोहा मे वाउल धिपैत। पहिल घानी भुजि जीवछी एक चुटकी चुल्हिमे द’ दोसर घानी भुजब शुरु केलक। दोसर घानीक लावा देखि जीवछीक मन तर-उपर करै लागलि। पहिलुका घानीक लावा चंगेरी मे ल’ दुनू बच्चो आ घरोवलाक आगू मे देलक। आगू मे लावा देखि मुसना मने-मन सोचै लगल जे ई मौगिया बड़ लुरिगर अछि। एहन स्त्री भगवान सभकेँ देथुन। कहू जे एखैन तक हम जे बुझितो ने छेलौ से आइ खाइ छी। धिया-पुताके पोसब कोन बड़का भारी बात छियै जे समाजो ले लोक बहुत किछु क’ सकैत अछि। लावाक गमक पूरबा हवा मे मिलि गामके सुगंधित क’ देलक। सुगंध पाबि टोलोक आ गामोक स्त्रीगण सब लावा कीनैक लेल एक्के-दुइये जीवछी क आंगन अवै लागलि। मुदा एक्के टा जबाव जीवछी सबकेँ दइत- ‘पहिने गिरहत कक्का क’ खुऐबनि, तखन ककरो देब। भरि दुपहर जीवछी लाबा भुजलक। दू छिट्टा। दुनू छिट्टा लावा घर मे रखि ओहि मे से एक मुजेला ल’ साड़ी सँ झाँपि जीवछी मुसनाके कहलक- ‘‘हम गिरहत कक्का ओहिठाम जाइ छी। अहाँ अंगने मे रहब।’’ कहि जीवछी माथ पर मुजेला लेने श्रीकान्त ऐठाम विदा भेल। जीवछीक माथ पर मुजेला श्रीकान्त गौर स’ देखि मुस्कुराइत कहलथिन- ‘‘बड़ खुशी देखै छी लछमी महरानी। मुजेला मे की चोरा क’ अनलहुँ हेँ। कने हमरो देखए दिअ?’’ अनसुनी करैत जीवछी मुस्की दइत आंगन जा गिरहतनीक आगू मे मुजेला रखि कहलकनि- ‘‘काकी, थोड़े क’ लाइ बना लिहथि। अखन थोड़े नोन-मरीच-तेल मिला क’ कोहा स’ काज चलि जायत। एकटा सरबाक देथु। जे कक्काके द’ अबै छियनि।’’ छिपलीमे लावा नेने जीवछी दरवज्जा पर जा श्रीकान्तक आगू मे देलकनि। ओ छिपलीमे उज्जर-उज्जर रमदानाक लावा जेँका, लावाके निहारि-निहारि देखए लगलाह। जीवछी कहलकनि- ‘‘काका, की निग्हारै छथिन, पहिने एक मुट्ठी मँुह मे द’ क’ देखथुन ने। भेंटक लावा छियै।’’ एक मुट्ठी उठा श्रीकान्त मुँहमे देलखिन। लावाक कोमलता आ सुआद वुझि श्रीकान्त पत्नीके सोर पाड़ि कहलथिन- ‘‘एते सुन्नर वस्तुके एखन धरि जनितहुँ नहि छलहुँ। धन्य अछि जीबछीक ज्ञान आ लूरि जे ऐहेन सुन्नर हराएल बस्तुके उपर केलक। साक्षात् देवी छी जीवछी। जाउ, सन्दुक मे से एक जोड़ साड़ी आ आंगी निकालने आउ। जीवछीके अपना ऐठाम स’ पहिरा क’ विदा करब। गरीब-दुखियाक देवी छी जीवछी।’’ सभ दिन जीवछी लावा भुजैत छलि आ अंगने सँ लोक सब कीनि-कीनि ल’ जाइत। पनरह दिनक जमा कएल रुपैयो आ फुटकुरियो जीवछी मुसनाके गनै ले आगू मे देलक। पाइ देखि मुसनाक मन उड़ि गेल। मँुह स’ ठहाका निकलल। एक टक सँ मुसना जीवछी दिशि देखि, कैँचा गनै लगल। 79.भैयारी मैट्रिक परीक्षा दऽ दीनानाथ आगू पढ़ैक आशा स, संगियो-साथी आ शिक्षको ऐठाम जा-जा विचार-विमर्श करैत। बिनु पढ़ल-लिखल परिवारक रहने, कॅालेजक पढ़ाइक तौर-तरीका नहि बुझैत। ओना ओ हाई स्कूल मे थर्ड करैत, मुदा क्लास मे सबसँ नीक विद्यार्थी। सब विषयक नीक जेँका परीक्षा मे लिखने, तेँ फेल करैक चिन्ता मन मे एक्को मिसिया रहबे ने करए। मूर्ख रहितो माए-बाप बेटा कऽ पढ़बै मे जी-जान अरोपने। ओना घरक दशा नीक नहि, मुदा पढ़बैक लीलसा दुनूक हृदय मे कूट-कूट कऽ भरल। जखन दीनानाथ परीक्षा दिअए दरभंगा सेन्टर (मैट्रिक परीक्षाक सेन्टर) जाइक तैयारी करै लगल, तखन माए अपन नाकक छक, जे छअ पाइ भरि (डेढ़ आना) रहए, बेचि कऽ देलकै। अगर जँ माए-बापक मन बेटा-बेटीक पढ़वैक रहत आ थोड़बो मेहनत स ओ पढ़त त लाख समस्योक बावजूद ओ पढ़बे करत। तेहि मे स एक दीनानाथो। काल्हि एगारह बजिया गाड़ी से परीक्षा दिअए जायत तेँ आइये साँझ मे रामखेलावन (पिता) पत्नी (सुमित्रा) कऽ कहलक- ‘काल्हि एगारह बजे बौआ गाड़ी पकड़त तेँ, अखने ककरो स आध सेर दूध आनि कऽ पौड़ि दिऔ। दहीक जतरा नीक होइ छै।’ माइयोक मन मे जँचलै। आध सेर दूध पौड़ैक विचार माए केलक आ मने-मन, ब्रह्म-बाबा कऽ, कबुला केलक जे अहाँ हमरा बेटा कऽ पास करा देब त कुमारि भोजन कराएब। संगे हाँइ-हाँइ कऽ चिकनी माटि लोढ़ी स फोड़ि, अछीनजल पानि मे सानि, दिआरी बना, साफ पुरना कपड़ाक टेमी बना, दिआरी मे करु तेल दऽ साँझ दिअए ब्रह्म स्थान विदा भेलि। रस्ता मे मने-मन ब्रह्म-बाबा केँ कहैत जे हे ब्रह्मबाबा कहुना हमरा बेटा कऽ पास कए दिहक। तोरे पर असरा अछि। स्कूल मे सबसँ नीक विद्यार्थी दीनानाथ, मुदा नीक रहितहुँ क्लास मे थर्ड करैत। एकर कारण रहए जे हाई स्कूल सेेक्रेटीªक मातहत चलैत। जहि स स्कूलक सर्वेसर्वा सेक्रेट्रिये। इज्जतोक दुआरे आ फीसोक चलैत स्कूल मे फस्ट सेक्रेट्रिऐक लगुआ-भगुआ करैत। जँ कहीं सेक्रेट्रीक समांग नइ रहैत तखन हेडमास्टरक सवांग फस्ट करैत। मुदा एहि बैच मे सेक्रेट्रियोक सवांग आ हेडमास्टरोक सवांग। तेँ सेक्रेट्रीक सवांग फस्ट करैत आ हेडमास्टरक सवांग सेकेण्ड, आ दीनानाथ थर्ड। जे फस्ट करैत ओकरा पूरा फीस आ सेकेण्ड-थर्ड कऽ आधा फीस माफ होइत। ओना आन शिक्षक सभ केँ एहि बातक क्षेाभ होइन मुदा कइये की सकैत छथि। किऐक त आन शिक्षक सभहक गति कोठीक नोकर स नीक नइ रहनि। सात घंटी पढ़ौनाई आ डेढ़ सय रुपैया महीना पौनाई, मात्र रहनि। मुदा तइयो ओ सब इमानदारी स काज करैत। असिसमेंटक चलनि सेहो रहए। बीस नम्बरक हिसाब स सब विषयक असिसमेंट होइत। सिर्फ समाजे-अध्ययनक हिसाव अलग रहए। असिसमेंटक नम्वर परीक्षाक नम्बर मे जोड़ि कऽ रिजल्ट होइत। जे नम्बर (असिसमेंटक) सेक्रेट्री आ हेडमास्टरक हाथक खेल रहए। परीक्षाक तीनि मासक उपरान्त रिजल्ट निकलै। मास दिन परीक्षाक बीति गेल। दू मास रिजल्ट निकलै मे बाकी। माघक अंतिम समय। सरस्वती पूजा पाँच दिन पहिने भऽ गेल। शीतलहरी चलैत। जहि स मिथिलांचल साइबेरिया बनि गेल। दिन-राति एक्के रंग। बरखाक बून्न जेँका ओस टप-टप खसैत। सुरुजक दरसन दू मास स कहियो ने भेल। दिन-राति कखन होय, ओ लोक अन्हारे स वुझैत। सब अपन-अपन जान बँचवै पाछू लागल। खेती-पथारीक काज सबहक बन्न। रब्बी-राई ठंढ़ स कठुआइल। बढ़बे ने करैत। बोराक झोली ओढ़ोलाक बादो माल-जाल थर-थर कपैत। जहिना महीसिक बच्चा तहिना गाइयक बच्चा कठुआ-कटुआ मरैत। बकरीक त फौतिये आबि गेल। गाछ सब परहक घोरन सूड्डाह भ गेल। चिड़ै-चुनमुनी स लऽ कऽ नढ़िया, खिखिर, साप मरि-मरिजहाँ-तहाँ महकैत। माघक पूर्णिमा स दू दिन पहिने रामखेलावन कऽ लकबा लपकि लेलक। सौंसे देहक एक भाग (अधा भाग) सुन्न भऽ गेलइ। क्रियाहीन। बिठुओ कटला पर किछु नहि बुझैत। चिड़ैक लोल जेँका टेढ़ मुह भऽ गेलइ। ओना उमेरो कोनो बेसी नहि, चालीस वर्ख स भीतरे। रौतुका समय। शीतलहरीक चलैत अन्हारेा बेसी। ओना इजोरिया पख रहए। मुदा भादबक अन्हार जेँका अन्हार। पिताक दशा देखि दीनानाथक मन घवड़ा गेलइ। तहिना माइयोक। मुदा तइयो मन कऽ थीर करैत दीनानाथ डाॅक्टर ऐठाम विदा भेलि। किछु दूर गेला पर पाएर तेना कठुआ गेलइ जे चलिये ने होय। मन मे भेलइ जे बावू से पहिने अपने मरि जाएब। घरो पर घुरि कऽ नइ जाइल हैत। बीच पाँतर मे दीनानाथ असकरे। दुनू आखि से दहो-बहो नोर खसै लगलै। मन मे एलै, आब की करब? मुदा फेरि मन मे एलै जे हाथ से ठेहुन रगड़ला पर पाएर हल्लुक हैत। सैह करै लगल। जाँघ हल्लुक भेलइ। हल्लुक होइते डाॅक्टर ऐठाम चलल। डाॅक्टर ऐठाम पहुँचते रोगीक भीड़ देखि दीनानाथ फेरि घबड़ा गेल। मन मे एलै, जे सौंसे दुनियाँक रोगी एतै जमा भऽ गेल अछि। असकरे डाॅक्टर सहाएव छथि आ दू टा कम्पाउण्डर छनि, कोना सबकेँ देखथिन। मुदा रोगो एकरंगाहे, तेँ बेसि मत्था-पच्ची डाॅक्टर कऽ करै नै पड़नि। धाँय-धाँय इलाज करति जाथि। मुदा मेले जेँका रोगी ऐबो करै। थोडे़ काल ठाढ़ भऽ कऽ देखि दीनानाथ सिरसिराइते डाॅक्टर लग मे जा बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, कनी हमरा अइठीन चलियौ। हमर बावू एते बीमार भऽ गेलि छथि जे अबै जोकर नइ छथि।’ दीनानाथक बात सुनि डाॅक्टर कहलखिन- ‘बौआ, ऐठाम त देखिते छी कोना एते रोगी छोड़ि कऽ जाएब? जे ऐठाम पहुँच गेलि अछि ओकरा छोड़ि कऽ जाएव उचित हैत।’ ‘समय रहैत ज हमरा ऐठाम नै जायब त बाबू मरि जेताह।’ ‘अहाँ घबड़ाउ नै तत्खनात दू टा गोली दइ छी। हुनका खुआ देवनि आ एतै नेने अबिअनु।’ दीनानाथक मन मे पिताक मृत्यु नचै लगल। मन मसोसि दुनू गोलि लऽ विदा भेल। मुदा घर दिशि बढ़ैक डेगे ने उठए। एक त ठंढ़ दोसर मन मे निराशा, आ तेसर शीतलहरी स रातिओ अन्हार। मुदा तइयो जिबठ बान्हि कऽ विदा भेल। कच्ची रस्ता रहने जहाँ-तहाँ मेगर आ तइ पर स कते ठाम टुटलो। जइ स कए बेरि खसबो कएल मुदा तइयो हूबा कऽ उठि-उठि आगू बढ़िते रहल। घर पर अबिते दुनू गोली पिता कऽ खुऔलक। तहि बीच माए गोइठाक घूर कऽ सौंसे देह सेदैत। अपना खाट नहि। एते राति मे ककरा कहतै। मुदा पितिऔत भाइक खाट मन पड़लै?’ मन परिते पितिऔत भाइ लग जा कहलक- ‘भैया खाटो दिअ आ संगे चलबो करु। ऐहेन समय मे आनका ककरा कहबै। के जायत?’ दीनानाथक बात सुनिते पितिऔत भाइ धड़फड़ा कऽ उठि खाट नेनहि बढ़ल। खाट पर एक पाँज पुआर विछा सलगी विछौलक। दुनू पाइस मे बरहा बान्हि खाट तैयार केलक। खाट तैयार होइते दुनू गोरे रामखेलावन कऽ उठा ओहि पर सुतौलक। बरहा मे बाँस घोसिया दुनू गोरे कान्ह पर उठा विदा भेलि। पाछु-पाछु सुमित्रो (माइयो) विदा भेलि। थोड़े काल त दीनानाथ किछु नहि वुझलक मुदा थोड़ेकालक बाद कान्हा भकभका लगलै। कान्ह परक छाल ओदरि गेलइ। जइ स बाँस कान्ह पर रखले ने होय। लगले-लगले कान्ह बदलै लगल। मुदा जिबट बान्हि डाॅक्टर ऐठाम पहुँच गेल। डाॅक्टर एहिठाम पहुँचते डाॅक्टर सहाएव देखलखिन। बीमारी देखारे रहए। धाँय-धाँय पाँच टा इन्जेक्शन लगा देलखिन। इन्जेक्शन लगा डाॅक्टर दीनानाथ केँ कहलखिन- ‘हिनका खाटे पर रहए दिअनु। बेसी चिन्ता नै करु। तखन त नमहर बीमारी पकड़नहि छनि। किछु दिन त लगबे करत। रामखेलावन कऽ नीन आबि गेल। खाटक निच्चा मे तीनू गोटे (दीनानाथ, पितिऔत भाइ आ सुमित्रा) बैसल। सुमित्रा मने-मन सोचति जे समय-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे बेटा-पुतोहू ककरा देखइ छै। जाबे पति जीबैत रहै छै ताबे स्त्रीगण गिरथाइन बनल रहैत अछि। पुरुख कऽ परोछ होइतहि दुनियाँ अन्हार भऽ जाइ छैक। बिना पुरुखक स्त्रीगण ओहने भऽ जाइत अछि जेहने सुखायल गाछ। कहलो गेल छै जे साँइक राज अप्पन राज बेटा-पुतोहूक राज मुहतक्की। मुदा की करब? अपन कोन साध। इ त भगवानेक डाँग मारल छिअनि। हे माए भगवती कहुना हिनका नीक बना दिअनु। जँ से नइ करबनि त पहिने हमरे ल चलू। दोसर दिन डाॅक्टर रामखेलावन कऽ देखि कहलखिन- ‘हिनका घरे पर लऽ जैअनु। (जइअनु) ऐठाम स नीक सेवा घर पर हेतनि। बीमारी आब आगू मुहे नहि बढ़तनि, मुदा इलाज बेसी दिन करबै पड़त। हमर कम्पाउण्डर सब दिन जा-जा सुइयो देतनि आ देखबो करतनि। तइ बीच जँ कोनो उपद्रव बुझि पड़त त अपनो आबि कऽ कहब।’ कहि दू टा सुइयाँ फेरि डाॅक्टर सहाएव लगा देलखिन। दवाईक पुरजा बना देलखिन। एकटा सूइयाँ आ तीनि रंगक गोली सब दिन दइ ले कहि देलखिन। गप-सप सब कियो करिते छलाह कि तहि बीच रामखेलावन पत्नी कऽ कहलक- ‘किछु खाइक मन होइ अए।’ खाइक नाम सुनिते दीनानाथक मुह स हँसी निकलल। लगले देाकान स दूध आ विस्कूट आनि कऽ देलक। दूध-बिस्कुट खुआ दुनू भाय खाट उठा विदा भेल। घर पर अबिते टोल-परोस सऽ लऽ गाम भरिक लोक देखै अबै लगल। शीतलहरी रहबै करै मुदा तइओ लोक अबैक ढ़बाहि लगल। दू घंटा धरि लोक अबैत रहल। दीनानाथ माए कऽ कहलक- ‘माए, बड़ भूख लगल अछि। पहिने भानस कर। भुखे पेट मे बगहा लगै अए।’ दीनानाथ बात सुनि माए भानस करै बिदा भेलि। भूख त आपनो लागलि मुदा कहती ककरा। बेर-विपत्ति मे ते एहिना होइते छैक। दीनानाथक बात पितिआइन सेहो सुनलक। वेचारी (पितिआइन) सोचलक जे सब भुखाइल अछि। बेरो उनहि गेलइ। आब जे भानस करै लगत ते साँझे पड़ि जेतैक। तहूँ मे सब भुखे लहालोट होइ अए। से नइ ते घर मे जे चूड़ा अछि ओ दऽ दइ छियै, जइ से तत्खनात त काज चलि जेतइ। सैह केलक। दीनानाथ आ सुमित्रा चूड़ा भिजा कऽ खाइते छल कि माम (सुमित्राक भाए) आयल। भाए कऽ देखितहि सुमित्राक आखि मे नोर आबि गेल। बिना पाएर धोनहि मकशूदन (भाय) बहिनोइ लग पहुँच देखै लगल। बहिनोइक दशा देखि दुनू आखि स दहो-बहो नोर खसै लगलनि। नोर पोछि, वेचारा सोचै लगल जे हम त सियान छी तहू मे पुरुख छी। जँ हमही कानबै त बहीनि आ भागिनक दशा की हेतइ। धैर्य बान्हि बहीनि कऽ कहलक- ‘दाइ, ई दुनियाँ एहिना चलै छै। रोग-व्याधि सह-सह करैत अछि। जइ ठीन गर लगि जाइ छै पकड़ि लइत अछि। अपना सब सेबे करबनि की ने मुदा.......। रुपैयाक लेल दवाइ-दारु मे कोताही नइ होनि। आइ भोरे पता लागल। पता लगिते दौड़ल एलहुँ। अपने गाय बिआइल अछि। काल्हि गाइयो आ जहाँ धरि हैत तहाँ धरि रुपैइयो आनि कऽ दऽ देवउ। अखन हम जाइ छी, काल्हि आयब।’ चारि दिनक बाद रामखेलावनक मुह सोझ भऽ गेल। उठि कऽ ठाढ़ सेहो हुअए लगल। मुदा एकटा पाएर नीक नहि भेल। कनी-कनी झखाइते डेग उठबै लगल। सब दिन, भोरे आबि कऽ कम्पाउण्डर सूइयो दइत आ चला-चला (टहला-टहला) देखवो करैत। दू मासक बाद दीनानाथक रिजल्ट निकलल। फस्ट डिबीजन भेलइ। नम्बरो नीक। छह सौ तीन नम्बर। हेडमास्टरक सवांग कऽ सेहो फस्ट डिबीजन भेलइ। मुदा नम्बर कम। पाँच सौ पेंइतालिस आइल छलै। सेक्रेट्रीक सवांग कऽ सेकेण्ड डिवीजन भेलइ। मुदा नम्बर बढ़िया, पाँच सय चैंतीस। आगू पढै़क आशा दीनानाथ तोड़ि लेलक। किऐक त घर मे कियो दोसर करताइत नहि। एक त पिताक बीमारी, दोसर घरक खर्च जुटौनाइ तइ पर स छोट भाइ आठमा मे पढै़त। मुदा दीनानाथ कऽ अपन पढ़ाई छोडैैैैै़क ओते दुख नै भेलइ जते परिवार चलौनाइ सऽ लऽ कऽ पिताक सेवा करैक सुख भेलइ। जे बेटा बाप-माइक सेवा नै करत ओ बेटे की? अपन पढ़ैक आशा दीनानाथ छोट भाइ (कुसुमलाल) पर केन्द्रित कऽ देलक। अधिक काल मकशूदन बहीनेक ऐठाम रहै लगल। गाइयोक सेवा आ खेतो-पथारक काज सम्हारै लगलै। अपना ऐठाम से अन्नो-पानि आनि-आनि दिअए लगलै। अपना घर जेँका भार उठा लेलक। अपन दशा देख रामखेलावन मकशूदन कऽ कहलक- ‘हम त अबाहे भऽ गेलौ। जाबे दाना-पानी लिखल अछि ताबे जीवै छी। मरैक कोनो ठीक नहि अछि, तेँ अपना जीवैत कतौ दीनानाथ कऽ विआह करा दिओै। बेटा-बेटीक विआह-दुरागमन कराएब त माए-बापक धरम छियै। मुदा हम ते कोनो काजक नै रहलौ। कम स कम देखियो त लेबइ।’ बहनोइक बात सुनि मकशूदन गुम्म भऽ गेल। मने-मन सोचै लगल जे समय-साल तेहने खराब भ गेल अछि जे नीक मनुख घर मे आनव कठिन भ गेल अछि। सब खेल रुपैइया पर चलि रहल अछि। मनुखक कोनो मोले ने रहलै। ऐहेन स्थिति मे नीक कन्या कोना भेटत? तखन एकटा उपाय जरुर अछि जे रुपैया-पैसाक भाँज मे नहि पड़ि, गुनगर कन्याक भाँज लगाबी। जइ से घरक कल्याण हेतइ। पाहुन जखन हमरा भार देलनि त हम दान-दहेज नहि आनि नीक कन्या आनि देबनि। बहिनोइ कऽ कहलक- ‘पाहुन, रुपैयाक पाछू लोक भसिआइत अछि। अगर अहाँ हमरा भार दइ छी ते हम रुपैया भाँज मे नहि पड़ि नीक मनुक्ख आनि कऽ देव। से की विचार?’ मकशूदनक बात सुनि बहीनि धाँय दऽ बाजलि- ‘भैया, रुपैया मनुक्खक हाथक मैल छिअए। मुदा मनुक्ख तपस्या स बनैत अछि।’ तेँ, हमरा नीक पुतोहू हुअए। रुपैयाक भुख हमरा नै अछि।’ बहीनिक बात सुनि मकशूदनक मन मे सबुर भेल। बाजल- ‘बहीनि, जहिना तोरा सबहक पुतोहू तहिना त हमरो हैत की ने। के ऐहेन अभागल हैत जे अपन घर अबाद होइत नै देखत?’ अपन पढ़ाइक आशा तोड़ि दीनानाथ मने-मन अपना पाएर पर ठाढ़ होइक बाट तकै लगल। संकल्प केलक जे जहिना नीक रिजल्ट पबैक लेल विद्यार्थी जी-तोड़ि मेहनत करैत अछि तहिना हमहूँ परिवार कऽ उठवैक लेल जमि कऽ मेहनत करब। बिऔहती लड़कीक भाँज मकशूदन लगवै लगल। मुदा मन मे एलै जे हम त बड़ पक्ष छी तेँ, लड़की ऐठाम पहिने कोना जाएब? कने काल गुनधुन करैत सोचलक जे बेटा-बेटीक विआह परिवारक पैध काज होइत अछि तेँ, ऐहेन-ऐहेन छोट-छीन बेवहार पर नजरि नहिये देव उचित हैत। तहू मे त हम लड़काक बाप नहि, माम ै छी। पाहुन जखन भार देलनि त नहियो करब, उचित न हैत। अपना गामक बगलेक गाम मे लड़कीक भाँज मकशूदन कऽ लगल। परिवार त साधारणे, मुदा लड़की काजुल। काज मे तपल। किऐक त माए सदिखन ओकरा अपने संग राखि खेत-पथारक, घर-आंगनक काज सऽ लऽ कऽ अरिपण लिखब, दुआरि मे पूरनि, फूलक गाछ, कदमक फुलाइल गाछक संग-संग पावनि-तिहार मे गीत गौनाइ सब सिखबैत। बड़द कीनैक बहाना स मकशूदन भेजा विदा भेल। पहिने दू-चारि गोटेक ऐठाम पहुँच बड़दक दाम करैत कन्यागतक दुआर पर पहुँचल। कन्यागत दुआर पर नहि। मुदा लड़की बाल्टी मे पाइन भरि अंगना अबैत। लड़की कऽ देखि मकशूदन पुछल- ‘बुच्ची, घरवारी कत्ते छथि?’ बाल्टी रखि सुशीला बाजलि- ‘बाड़ी मे मिरचाइ कमाइ छथि। अपने चैकी पर बैसिऔ। बजौने अबै छिअनि।’ बाल्टी अंगना मे रखि सुशीला बाड़ी स पिता केँ बजौने आइलि। पड़ोसी होइ दुआरे दुनू गोटे दुनू गोटेक चेहरा स चिन्हैत, मुदा मुहा-मुही गप नै भेने, अनचिन्हार। कन्यागत पूछल- ‘किनका स काज अछि?’ मुस्कुराइत मकशूदन- ‘अखन दुइये गोरे छी, तेँ मनक बात कहै छी। हमरो घर बीरपुरे छी। हमरा भागिन अछि। काल्हि खन पता चलल जे अहाँ कऽ विऔहती बच्चिया अछि, तेँ ओइठाम कुटुमैती कऽ लिअ।’ कुटुमैतीक नाम सुनि कन्यागत गुम्म भ गेलाह। कनी-काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘हम गिरहस्त छी। सेहो नमहर नै छोट। अइठीनक गिरहतक की हालत अछि से अहाँ जनिते छी। तेँ, अइबेरि बेटीक विआह नै सम्हरत।’ कन्यागतक सुखल मुह देखि मकशूदन बाजल- ‘मन मे जे दहेजक भूत पकड़ने अछि, ओ हटा लिअ। अहाँ कऽ जहिना सम्हरत तहिना विआह निमाहि लेब।’ मकशूदन विचार सुनि कन्यागतक मुह हरिआइ लगल। दरवज्जे पर स बेटी केँ सोर पाड़ि कहलक- ‘बुच्ची, सरबत बनौने आवह?’ बड़का लोटा मे सरबत आ गिलास नेने सुशीला दरवज्जा पर आबि चैकी पर रखै लागलि। तहि बीच पिता बाजल- ‘बुच्ची, इहो कियो आन नहि छथि। पड़ोसिये छिआह। बीरपुरंे रहै छथि। दहुन सरबत।’ दुनू गोटे सरबत पीलनि। सरबत पीबि पिता कहलखिन- ‘बुच्ची, चाहो बनौने आबह।’ सुशीला चाह बनबै गेलि। दरवज्जा पर दुनू गोरे गप-सप करै लगलाह। मकशूदन- ‘जेहने अहाँक कन्या छथि तेहने हमर भागिन। अजीब जोड़ा बिधाता बना कऽ पठौने छथि। काल्हिये अहूँ लड़का कऽ देखि लिओ। संयोग नीक अछि तेँ शुभ काज मे विलंब नहि करक चाही।’ मकशूदनक विचार स जते उत्साहित कन्यागत कऽ हेबाक चाहिएनि तते नहि होइत। कियेक त मन मे घुरिआइत जे कहुना छी त बेटीक विआह छी। फुसलेने काज थोडे़ चलत। मुदा कन्याक माए, दलानक भीतक भुरकी देने अढ़े से गप्पो सुनैत आ दुनू गोटे कऽ देखबो करैत। मने-मन उत्साहितो होइत, जे फँसल शिकार छोड़ब मुरुखपाना छी। माए-बापक सराध आ बेटीक विआह मे ककरा नै करजा होइ छै। जानिये कऽ तऽ हम सब गरीब छी। गरीबक जनम स लऽ कऽ मरै धरि करजा रहिते छै। तइ ले एते सोचै विचारैक कोन काज। करजो हाथे बेटीक विआह कइये लेब। फस्ट डिवीजन स मैट्रिक पास लड़का अछि। ऐहेन पढ़ल-लिखल लड़का थोड़े भेटत। कहबियो छै जे पढ़ल-लिखल लोक ज हरो जोतत तऽ मुरुख से सोझ सिराओर हेतइ। आइक युग मे मूर्खो बड़क बाप पचास हजार रुपैया गनबैत अछि। खुशी सऽ मन मे होय जे छड़पि कऽ दरवज्जा पर जा कहिअनि जे अगर अहाँ आइये विआह करै चाही त हम तैयार छी। मुदा स्त्रीगणक मर्यादा रोकि दइत। तेँ बेचारी अढ़े मे अहुरिया कटैत। मुदा पतिक मन बदलल। ओ मकशूदन कऽ कहलक- ‘देखू , हम भैयारी मे असकरे छी, मुदा गृहिणी त छथि। हुनका स एक बेरि पूछि लइ छिअनि। किऐक त हम घरक बाहरक काजक गारजन छी ने, घरक भीतरी काजक गारजन त वैह छथि। जँ कहीं बेटी विआहक दुआरे किछु ओरिया कऽ रखने होथि त कइये लेब।’ भोला (कन्यागत) उठि कऽ आंगन गेल। आंगन पहुँचते पत्नी झपटि कऽ कहै लगलनि- ‘दुआर पर उपकैर कऽ लड़कावला ऐला हेँ, तेँ अहाँ अगधाइ छी। जखैन लड़का भाँज मे घुमैत-घुमैत तरबा खियाइत आ बेमाइ स खूनक टगहार चलत, तखन बुझवै। तीनि-तीनि साल बेटीवला घुमै अए तखन जा कऽ कतौ गर लगै छै। जा कऽ कहि दिअनु जे अखैन हमर हालत नीक नइ अछि, मुदा जँ अहाँ तैयार छी त हमहूँ तैयार छी। बड़ देखैक दिन कौल्हुके दऽ दिअनु। पत्नीक बात स उत्साहित भऽ भोला आबि कऽ बाजल- ‘पत्नीक विचार सोलहो आना छनि। मुदा कहबे केलहुँ जे अखैन हमर हालत बढ़ियाँ नै अछि।’ मकशूदन- ‘काल्हि अहाँ लड़का देखि लिऔ। जँ पसिन्न हैत त जहिना कुटुमैती करै चाहब तहिना कऽ लेब। असल मे हमरा लोकक जरुरत अछि नै की रुपैया-पैसाक।’ आठे दिनक दिन मे विआह भऽ गेल। भोलाक बहिनो आ साउसो नीक जेँका मदति केलकनि। अपना घर स सिर्फ एकटा सोनाक सुक्की (नअ टा चैवन्नीक छड़) भोला कऽ, निकलल।’ पनरह दिनक उपरान्त दीनानाथ पूबरिया ओसार पर बैसि, पिता स छीपि कऽ, माए कऽ कहलक- ‘माए, घरक दशा जे अछि से तोहूँ देखते छीही। जेना घर चलै अए तेना कते दिन चलत। साले-साल खेत बिकाइत। जइ से किछुए सालक बाद सब सठि जायत। छोड़ैवला काज एक्को टा नइ अछि। जहिना कुसुमलालक पढै़क खर्च, तहिना बावूक दवाइ आ पथ्यक। मुदा आमदनी त कोनो दोसर अछि नहि। लऽ दऽ कऽ खेती। सेहो डेढ़ बीघा। तहू मे ने पाइनिक जोगार अपना अछि आ ने खेती करैक लूरि। एते दिन तऽ बाबू कहुना-कहुना कऽकरैत छलाह, आब तऽ सेहो ने हैत। हमहूँ ज कतौ नोकरी करै जायब सेहो ने बनत, किऐक त बावूक देखभाल सेहो करैक अछि। तखन तऽ एक्के टा उपाय अछि जे घरे पर रहि, आमदनीक कोनो काज ठाढ़ करी।’ बेटाक बात सुनि माए गुम्म भऽ गेलीह। जइ घर मे आमदनी कम रहत आ खरचा बेसी हैत, ओ घर कोना चलत। एते बात मन मे अबिते माइक आखि स दहो-बहो नोर खसै लगलनि। आँचर स नोर पोछि बाजलि- ‘बौआ, हम त स्त्रीगणे छी। घर-अंगना मे रहैवाली। तू ज बच्चो छह ते पुरुखे छह। जखैन भगवाने बेपाट भेल छथुन तखन त किछु करै पड़तह।’ दुनू गोटेक (माइयो आ बेटोक) मुह निच्चा मुहे खसल। ने बेटाक नजरि माए दिशि उठैत आ ने माइक नजरि बेटा दिशि। जहिना मरुभूमि मे पियासल लोकक दशा होइत, तहिना दुनूक दशा होइत। केबाड़ लग ठाढ़ सुशीला दुनू कऽ देखैत। जोर स कियो अहि दुआरे नहि बजैत जे रोगाइल, पिता वा पति ज सुनताह ते सोग स आरेा दुख बढ़ि जेतनि। केबाड़ लग स घुसकि ओसार पर आबि सुशीला बाजलि- ‘माए चिन्ता केला से दुख थोड़े भगतनि। दुख कऽ भगवै ले किछु उपाय करै पड़तनि। छोटका बौआ बच्चे छथि, बाबू रोगाइले छथि, मुदा अपने तीनू गोरे त खटैवला छी। खटला सऽ सब कुछ होइ छै।’ सुशीलाक बात सुनि सासु बजलीह- ‘कनियाँ, कहलियै त बड़बढ़िया, मुदा ओहिना त पाइन नै डेंगाएब।’ सासुक बात सुनि पुतोहू बाजलि- ‘हमर एकटा पित्ती धानक कुट्टी करै छथि। जहिना अपन परिवार अछि तहू स लचड़ल हुनकर परिवार छलनि। तइ पर स चारि-चारि टा बेटिओ छलनि। मुदा जइ दिन से धानक कुट्टी करै लगलथि तइ दिन से दिने-दुनिया घुरि गेलनि। चारु बेटिओक विआह केलनि, बेटेा के पढ़ौलनि। ईंटाक घरो बनौलनि आ पाँच बीघा खेतो कीनि लेलनि। अखन हुनकर हाथ पकडै़वला गाम मे कियो ने अछि।’ पत्नीक बात सुनि दीनानाथक भक्क खुजल। भक्क खुजिते दीनानाथ खुशी स उछलि अंगना मे कूदल। दरबज्जा पर आबि कागज-कलम निकालि हिसाब जौड़े लगल। डेढ़ सेर (किलो) धान मे एक सेर चाउर होइत अछि। ओना धानक बोरा अस्सिये किलोक होइत अछि, जबकि चाउरक सौ किलोक। चारि सय रुपैये बोरा धान बिकैत अछि। त पान सौ रुपैये क्वीन्टल भेल। एक क्वीन्टल धानक सड़सठि किलो चाउर भेल। दू-चारि किलो खुद्दियो हैत। जेकर रोटी पका कऽ खाएब। एक किलो चाउरक दाम साढ़े दस रुपैया सऽ एगारह रुपैया होइत। अइ हिसाब स एक क्वीन्टल धानक चाउर कऽ लगभग सात सौ रुपैया भेल। पान सउक पूँजी स सात सउक आमदनी भेल। तइ पर स तीस किलो गुड़ो भेल। जेकर दाम साठि रुपैया भेल। खर्च मे खर्च सिर्फ जरना, कुटाइ आ गाड़ीक भाड़ा भेल। बाकी सब मेहनतक फल भेल। अगर जँ एक बोराक कुट्टी सब दिनक हिसाव स करब त पाँच हजारक महीना आमदनी जरुर हैत। हिसाव जोड़ैत-जोड़ैत दीनानाथक मन मे शंका उठल जे हिसावे ते ने गलती भ गेल। कागज-कलम छोड़ि उठि कऽ टहलै लगल। मने-मन हिसाबो जोड़ैत। मन मे कखनो हिसाव सही वुझि पड़ैत ते कखनो शंका होइत। आंगन जा पानि पीलक। दू-चारि बेरि माथ हसोथलक। फेरि आबि कऽ हिसाब जोड़ै लगल। मुदा हिसाव ओहिना कऽ ओहिना होय। मन मे बिसवास जगलै। जहि स काजक प्रति आकर्षण सेहो भेलइ। फेरि आंगन जा माए कऽ पूछलक- ‘एक बोरा धान उसनै मे कते समय लगतौ?’ माए बाजलि- ‘एक बोरा धान त दसे टीन भेल। दूचुल्हिया पर पाँच खेप भेल आ चरिचुल्हिया पर अढ़ाइये खेप भेल। एक्के घंटा मे उसनि लेब।’ माइक बात सुनि दीनानाथ तय केलक जे हमहूँ यैह रोजगार करब। पूँजीक लेल पत्नीक सोना सुक्की मे स पाँच टा निकालि (सबा भरि) बेचि, धान कीनि कुट्टी शुरु केलक। जहि स परिवार मे खुशहाली आवि गेलइ। कुशुमलाल बी. ए. पास कऽ, मधुबनी कोर्ट मे किरानीक नोकरी शुरु केलक। केार्टेक बड़ाबाबूक बेटी स विआह सेहो केलक। मधुबनिये मे डेरा राखि दुनू परानी रहै लगल। तीनि-चारि वर्ख त संयमित जीवन वितौलक। सिर्फ वेतने पर गुजर करैत। मुदा तेकर बाद पाइ कमाइक लूरि सीखि लेलक। जहि स खाइ-पीवैक संग-संग आउरो लूरि भऽ गेलइ। घरोवाली पढ़ल-लिखल। जहिना कमाई तहिना खर्च। शहरक हवा मे उधियाइ लगल। सिनेमा देखैक, शराब पीबैक, नीक-नीक वस्तु कीनैक आदति बढ़ैत गेलइ। एक दिन पत्नी कहलकै- ‘गाम मे जे खेत अछि, ओ अनेरे किअए छोड़ने छी। ओहि से की लाभ होइ अए। ओकरा बेचि कऽ अहीठाम जमीन कीनि अपन घर बना लिअ।’ स्त्रीक बात कुसुमलाल कऽ जँचल। रवि दिन, छुट्टी रहने गाम आबि भाय (दीनानाथ) कऽ कहलक- ‘भैया, हम अपन हिस्सा खेत बेचि लेब। मधुबनिये मे दू कट्ठा खेत ठीक केलहुँ हेँ। ओ कीनि ओतइ घर बनाएब। भाड़ाक घर मे तते भाड़ा लगै अए जे एक्को पाइ बँचवे ने करै अए जे अहूँ सब कऽ देब।’ कुसुमलालक बात सुनि दीनानाथ कहलक- ‘बौआ, अखन बावू-माए जीविते छथुन, तेँ, हम की कहबह? हुनके कहुन।’ दीनानाथक जबाब सुनि कुसुमलाल पिता सऽ कहलक। रोगाइल रामखेलावन, खिसिया कऽ कहलक- ‘डेढ़ बीधा खेत छौ। दस कट्ठा हमरा दुनू परानीक भेल, दस कट्ठा दीनानाथक भेलइ आ दस कट्ठा तोहर भेलउ। अपन हिस्सा बेचि कऽ लऽ जो।’ खेत कीनै-बेचैक दलाल गामे-गाम रहिते अछि। ओ (कुसुमलाल) जा कऽ एकटा दलाल कऽ कहलक। पाँच हजार रुपैये कट्ठाक हिसाव स दलाल दाम लगा देलक। कुसुमलाल राजी भऽ गेल। मुदा बेना नै लेलक। तरे-तर दीनानाथो भाँज लगबैत। साझू पहर, जखन कुसुमलाल मधुबनी विदा भेल तखन दीनानाथ कहलकै- ‘बौआ, जते दाम तोरा आन कियो देतह तते हमही देबह। बाप-दादाक अरजल सम्पत्ति छी, आन कियो जे आबि कऽ घरारी पर भट्टा रोपत ओ केहेन हैत? मुदा, दीनानाथक बात कुसुमलाल मानि गेल। पचास हजार मे जमीन लिखि देलक। मधुबनिये मे कुसुमलाल घर बना लेलक। अपना गामक लोक स ओते संबंध नहि रहलै जते सासुरक लोक स। सासुरक दू-चारि गोटे सब दिन अबिते-जाइत रहैत। आदरो-सत्कार नीक होय। बीस बर्ख बाद, दीनानाथक बेटा मेडिकल कम्पीटीशन मे कम्पीट केलक। बेटी आइ. एस. सी मे पढ़िते। पढै़ मे दुनू भाइ-बहीनि उपरा-उपरी। तेँ, परिवारक सभकेँ आशा रहै जे बेटिओ मेडिकल कम्पीट करबे करत। माए-बापक सेवा आ बेटा-बेटीक पढ़ाई देखि, दुनू परानी दीनानाथक मन खुशी स गद-गद। परिवारोक दशा बदलि गेल। मुदा तइयो दीनानाथ धानक कुट्टी बन्न नइ केलक। आरो बढ़ा लेलक। मन मे इहो होय जे धनकुट्टिया मिल गड़ा ली, मुदा सवांगक दुआरे नहि गड़वैत। टायरगाड़ी कीनि लेलक। जहि स खेतिओ करै आ भड़ो कमाय। कुसुमलाल कऽ सेहो दू टा बेटा। दुनू पब्लिक स्कूल मे पढ़ैत। जेठका आठवँा मे आ छोटका छठा मे। मधुबनिये मे डेरा रहितहु दुनू होस्टले मे रहैत। तइ पर स सब विषयक ट्यूशन सेहो पढ़ैत। तेँ, नीक खर्च होय। शराब पीवैत-पीबैत कुसुमलालक लीभर गलि गेलइ। किछु दिन मधुबनिये मे इलाज करौलक, मुदा ठीक नहि भेने दरभंगाक अस्पताल मे भर्ती भेल। चारि मास दरभंगो ुँ मे रहल मुदा ओतहुँ लीभर ठीक नै भेलइ। तखन पटना गेल। पटनो मे ठीक नै भेलइ, संगहि शरीर दिनानुदिन खसिते गेलइ। अंत मे दिल्लीक एम्स मे भर्ती भेल। ओतह ठीक नइ भेलइ। शरीर एते कमजोर भ गेलइ जे अपने स उठियो-वैसि नइ होय। हारि-थाकि क मधुबनीक डेरा पर आबि गेल। मुदा एते दिनक बीमारीक बीच दीनानाथ कऽ जानकारीयो ने देलक। सारे-सरहोजिक संग घुमैत रहल। ओछाइन पर पड़ल-पड़ल सैाँसे देह मे धाव भऽ गेलइ। ढ़ाकीक-ढ़ाकी माछी देह पर सोहरे लगलै। कतबो कपड़ा ओढ़बै तइओ माछी घुसि-2 असाइ द दइ। दिन-राति दर्द स कुहरैत। सदिखन घरवालीक मन तामसे लह-लह करैत। गरिऐवो करैत। दुनू बेटा मे से एक्कोटा लग मे रहै ले तैयार नहि। जेठका बेटा कहए- ‘पप्पा जी, महकता है।’ जखन कखनो लग मे अबैत त नाक मूनि क अवैत। छोटका बेटा सेहो तहिना। सदिखन बजैत-‘पप्पा जी, अब भूत बनेगा। लग मे रहेंगे तो हमको भी पकड़ लेगा।’ जइ आॅफिस मे कुसुमलाल काज करैत ओहि आॅफिसक एकटा स्टाफ दीनानाथ कऽ फोन स कहलक- ‘कुसुमलाल अंतिम दिन गनि रहल अछि तेँ, आबि कऽ मुह देखि लिऔ।’ फोन सुनि दीनानाथ सन्न भऽ गेल। जना दुनियाँक सब कुछ आखिक सोझ स निपत्ता भऽ गेलइ। सुन-मशान दुनिया लगै लगलै। मन मे एलै, कियो ककरो नहि। दुनू आखि स नोर टधरै लगलै। नोर पोछि सोचै लगल जे कियो झुठे ने ते फोन केलक। फेरि मन मे एलै जे ऐहेन समाचार झूठ किअए हैत? अनेरे कियो, पैसा खर्च कऽ, फोन किअए करत? ऐहेन अवस्था मे कुसुमलाल पहुँच गेल मुदा आइ धरि किछु कहबो ने केलक। खैर, जे होय। मुदा हमरो त किछु धर्म अछि। अपना कर्तव्य स कियो मनुख एहि दुनिया (धरती) मे जीवैत अछि। अखन त अबेर भऽ गेल। काल्हि भेारुके गाड़ी सऽ मधुबनी जाएब। एते विचारि माए कऽ कहलक- ‘माए, एक गोटे मधुबनी से फोन केने छेलाह जे कुसुमलाल बहुत दुखित छथि तेँ, आबि कऽ देखिअनु।’ दीनानाथक मुहक बात सुनिते माए कऽ देह मे आगि लगि गेलनि। जरैत मने बाजलि- ‘कुसुमा, हमर बेटा थोड़े छी जे मुह देखबै। उ ते ओही दिन मरि गेल जइ दिन हमरा दुनू परानी (बाप-माए) कऽ छोड़ि चलि गेल। जँ अइ धरती पर धरमक कोनो स्थान हेतइ त ओइ मे हमरो कतौ जगह भेटत। जँ कोनो शास्त्र-पुराण मे पतिब्रता स्त्रीक चरचा हेतइ, त हमरो हैत। आइ बीस वर्ख स, एहि (अइ) हाथ-पाएरक बले, बीमार पति कऽ जीबित राखि अपन चूड़ी आ सिनुरक मान रखने छी।’ माइक बात सुनि दीनानाथ मने-मन सोचलक जे कुसुमलाल अगर हमरा कमा कऽ नहिये देलक ते की हमर बिगड़ल। माइयो-पिताक दर्शन भोरे-भोर होइते अछि, बालो-बच्चा आनंदे स अछि। तखन ते एक-वंशक छी जा कऽ देखि लिअए। दोसर दिन भोरुके गाड़ी स मधुबनी पहुँच, कुसुमलालक डेरा पर पहुँचल। बाहरेक कोठरी मे कुसुमलाल। चद्दरि स सौँसे देह झापल। मुह उधारितहि कुसुमलाल बाजल- ‘भ-इ-अ-अ।’ कहि सदाक लेल अखि मूनि लेलक। दीनानाथ- ‘बौआ कुसुम, वौआ.....बौआ..... बउआ।’

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