भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

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Sunday, October 31, 2010

'विदेह' ६९ म अंक ०१ नवम्बर २०१० (वर्ष ३ मास ३५ अंक ६९)- PART I



                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' म अंक ०१ नवम्बर २०१० (वर्ष ३ मास ३ अंक ६)NEPAL       INDIA                                                                               
                                                     
 वि  दे  ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य








 

 

३. पद्य






३.६.१.चन्‍द्रशेखर कामति- दूटा गीत २.राजेश मोहन झा- पद्य ३.किशन कारीग़र- गलचोटका बर
३.७.गंगेश गुंजन- ३ टा गजल-पद्य

  


४. मिथिला कला-संगीत-१.श्वेता झा चौधरी-काली माँ २.ज्योति सुनीत चौधरीश्वेता झा (सिंगापुर)

 

5. बालानां कृते-राजेश मोहन झा- कवि‍ता- मूड़नक भोज

 

 

 


6. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]




विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.

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example

भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।

example

गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय

पञ्जी-प्रबन्धमे उपलब्ध किछु आधिकारिक आ सामाजिक शब्दावली-

सांधिविग्रहिक
धर्माध्‍यक्षक
चतुर्वेदाध्‍यायी
याज्ञिक
पार्णागारिक
वार्तिक
महामत्तक
भाण्‍डागारिक
स्‍थानान्‍तरिक
राजवल्‍लभराजवल्‍लभ
स्‍थानान्तरिक
राउल, खनतरी, कापनि, फूलहर
सन्धि बिग्रहिक
पुरोहित
कुल छेत्रोपार्यक
आवस्थिक
कन्टकोद्धार्कारक
ज्‍योतिविर्वद
पदांकित
पण्डित राज पदांकित
उपाय कारक
एकान्तरिक

माण्‍डर सँ वैदिक विश्‍वम्भर
सिहौली माण्‍डरसँ पुरन्‍दर सुत वैदिक गोनू झा
नर वलि. सँ घनश्याम सुत वैदिक गणपति मिश्र
खौआलसँ कमल सुत म. गुणाकर वैदिक पिताम्‍बर
सिंहौलि माण्‍डरसँ वैदिक विश्‍वम्‍भर सुत म. कुलपति म.चतुर्भुज
दरिहरासँ रघुनाथ सुत म. माधव वैदिक विरेश्‍वर
दरिहरासँ म. माधव सुत वैदिक भगीरथ
दरिहरासँ कीर्तिनाथ सुत वैदिक धननाथ
दरिहरासँ रामसुत वैदिक भगीरथ
सकराढ़ीसँ नकटू सुत वैदिक चन्दरक्त
माण्‍डर सँ वै. अच्‍छपति सुत वैदिक जीवपति
सोदरपुरसँ वैदिक होरी
दरिहरा सँ राम द्दौo विभाकर सुतौ वैदिक विश्‍वम्‍भर
सकराढ़ीसकराढ़ी सँ हरिश्‍वर द्दौo वैदिक:विश्‍वम्‍भर
माण्‍डर सँ वैदिक विश्‍वम्‍भर
कमल सुतो कृष्‍णदेव महो गुणाकरौ (१०९//०४) वैदिक (१०९/०४) पीताम्‍बरा:
माण्‍डरसँ माण्‍डरसँ भैरव द्दौo वैदिक विधूप्रo
वैदिक युदनाथ:
वैदिकवैदिक विरेश्‍वर
वैदिकवैदिक भगीरथ
वैदिक विश्‍नाथ
वैदिक घननाथ
वैदिक चन्‍द्रदत्त
दरिहरा सँ वैदिक जीवनाथ
वैदिक अच्‍छपति
वैदिकवैदिक बलदेव
दरिहरा सँ वैदिक जीवनाथ दौहित्र दौ
वैदिकवैदिक कलाघर
दरिहरा सँ राम सुत वैदिक भगीरथ दौ
वैदिक राजा महो गोशाई
वैदिक मुकुन्‍द
बेचू सुतो वैयाकरण धरनीघर वैदिक वनखण्‍डीकौ
वैदिक नित्‍यानन्‍द
वैदिक सोनी
वैदिक बद्रीनाथ
वैदिकवैदिक विधु
हरिअम सँ मुक्तिनाथ द्दौoवैदिक तुलानन्‍द
वैदिक चन्‍द्रदत्त प्रेमदत्त
सोदरपुरसोदरपुर सँ चित्रधर द्दौo वैदिक धननाथ
वैदिकवैदिक अमोदयानाथ
वैदिक हेमागंद
वैदिक गणपति वैदिक कुलपतिको
बैदिक गुणपति सुता आँखी वैदिक कलाघर
अपरा वैदिक कुलमणि
वैदिकवैदिक आदिनाथ
वैदिक कुलपति‍
ज्‍यो.
वैयाकरणवैयाकरण भैरवदत्तौ
वैयाकरण अमृतनाथ बुद्धिनाथ देवनाथ
वैयाकरण राम:
वैयाकरणवैयाकरण राधनाथ
वैयाकरण परमेश्‍वर
सरिसबसरिसब सँ झोटह द्दौoवैयाकरण नन्‍दीपति
वैयाकरण गौरीशंकर
वैयाकरणवैयाकरण रज्‍जे
खण्‍डबला सँ भगीरथ द्दौ. महा वैयाकरण दिनबन्‍धु सुता वैया. जीवनाथ
वैयाकरणवैयाकरण मतिनाथ
सकुरीपाली सँ वैयाकरण श्रीदत्त सुत वै. मनभरन दौ
वैयाकरण रूपनाथ
वैयाकरणवैयाकरण मतिनाथा:
कविकवि हेमनाथ सुता वैयाकरण महिनाथ
वैयाकरण रामनाथ उँमानाथ:
वैयाकरणवैयाकरण खुशिहाल
वैयाकरण भवानीदत्त देवीदत्ता
वैयाकरण हेमनाथ दौ
वैयाकरण हरिनाथा:
वैयाकरणवैयाकरण ऋद्धि
छक्‍कनछक्‍कन वैयाकरण
महो चण्‍डेश्‍वर सुतो वैयाकरण (२७६//०७) शिवेश्‍वर:
खौआल सँ वैयाकरण मोदनाथ दौ
वैयाकरण (२०१/०४) मोदनाथ
वैयाकरण गोपाला:
वैयाकरणवैयाकरण मेघनादौ
वैयाकरण चंलल:
वैयाकरण ईश्‍वरीदत्त सुतो
वैयाकरणवैयाकरण हर्षनाथ दौ
वैयाकरण (०४/०६) ब्रजगोपाल जयगोपाल
वैयाकरण प्राध्‍यापक (Calcutta university Maithily Deptt.) खूद्दीका महिषी पाली सँ    दिनानाथ सुत शक्तिनाथ दौ

वैयाकरणवैयाकरण महावीर
वैयाकरण हरिनारायणा
वैयाकरण नन्‍दीपति
वैयाकरण एकनाथ
कुजौली सँ गंगादत दौ वैयाकरण रघुनाथ
हरिअम सँ तुलसीदत्त द्दौ वैयाकरण खुद्दी
अपरावैयाकरण सुता वैयाकरण भैये सुग्‍गे
वैयाकरण चिन्‍तामनि
देयाम सँ वैयाकरण मधुकर
पिताम्‍बर सुतो वैयाकरण पद्मनाम:
वैयाकरणवैयाकरण रवूदीका
हरिअम सँ हिंगु द्दौ वैदिक सोनी सुता वैदिक कुलमणि वैदिक वंशमणि कमलमणि परशमणि (२८०/०१) हर्षमणिका: दरिहरा सँ वैदिक जीवनाथ दौ
पाली सँ श्रीनाथ द्दौ पुरन्‍दर सुतो वैदिक गोनू वैदिक हेमाड्गदो
वैदिक घनश्‍याम
खौआलसँ काशीपति द्दौ वैदिक घनश्‍ययाम (१६०/०५) सुतो वैदिक गणपति वैदिक ब.
वैदिक गणपति सुता ऑंखी वैदिक कलाधर (२६८/०९) रकनी कविभानु वैदिक
वैदिक केशव
वैदिक गोशाइका:
वैदिकवैदिक गोशाँई
सरिसब सँ चतुर्भूज द्दौo वैदिक गिरधारी

आदिनाथा: ब.
माण्‍डरसँवैदिकविश्‍वम्‍मर

आगमाचार्यक मo o उपाo (९६//०४) देवनाथ
आगमाचार्यक देवनाथ
एकहरा सँ आगमाचार्यक महो मुकुन्‍द
कन्टकोद्धार्कारक मōō मधुसूदन
तर्क पत्र्चानन मo o उपाo गोपीनाथ
विरेश्‍वर कविशेखर इति प्रसिद्व
कटाइ सँ कवि केशरी मōō भीम
माण्‍डर सँ कविराज शुभंकर
वलियास सँ कविशेखर पदांकित चन्‍द्रनाथ
सोदरपुरसोदरपुर सँ ढाका कवि महामहो गणपति
कुजौली सँ महो कृष्‍ण दाशसुत कवि गंगादाश
करमहा सँ कविन्‍द्र पदांकित रति देव
दरिहरा सँ कविराज विसव
करमहा सँ कविन्‍द्र पदांकित रतिदेव
टकवाल सँ कविराज लक्ष्‍मीपाणि
पाली सँ कविशेखर पदांकित यदुनाथ
विस्‍फी सँ कवि भूपति पदांकित सोमेश्‍वर
माण्‍डर सँ कविशेखर पदांकित महो यशोधर
जगति सँ महामहोकवि रत्न पदां. होरे
पाली सँ घौघे सुत कविराज कृष्‍णपति
वलियास सँ कविशेखर पदांकित चन्‍द्रनाथ
वलियास सँ कवि मणि पदांकित पशुपति
गंगोली सँ कविराज गयन
ए सुतो महामहो विद्यापति गंगोली सँ मानकुढ़ वासी कविराज गणेश्‍वर
सोदरपुरसँ कविराज महो भानुदत्त
सोदरपुरसोदरपुर  सँ कवि जयराम
तपोवन सँ कवि धनेश्‍वर
अलय सँ शान्तिकरणीक रूद
नरवाल सँ शान्तिकरणीक मधुकर
कलिगाम सँ शान्तिकरणीक भोगीश्‍वर
माण्‍डरसँ शान्तिकरणीक पाँखू
दानाधिकारी मोदी हल्‍लेश्‍वर
जगतिसँ मिमांशक म.म. मिरुस
(मिमांशक) हरि देवधरापत्‍य-सिंघिया
मिश्रा (मिमांशक) सुधाधरपत्‍य उसरौली
मिश्र (मिमांशक) लाखू भूड़ी गणेश्‍वर-परमगढ़
मिमांशक विभू
मिमांशक माधव
भवेश्‍वर सुता मिमांशक रूद
नोने सुता मि‍मांशक मिसरू
राम सुतो मिमांशक योगदत्त:
मिमांशक मेघानाथ
मिमांशक मणि
मिमांशक जयदेव
मिमांशक धरनी
मिमांशक योगदत्त:
करमहा सँ मिमांशक योगदत्त
जगतिसँ मिमांशक म.म. मिरुस
जनार्दन सुत नैयायिक दुर्गाघर
नैयायिक महौ दुर्गाधर
षट्शास्‍त्री नैयायिक दर्शनशास्‍त्रज्ञ उदयकान्‍तो
दिघो सँ देवागारिक बाटे
दिघो सँ देवागारिक बटेश्‍वर
पार्णागारिक विरेश्वर
दिघोयसँ पार्णागारिक जानू दत्त
पार्णा गारिक स्थितिदत्त
धर्माधिकरणिक जानुदत्त
पबौली सँ धर्माधिकरणिक रूद
गंगोली सँ धर्माधिकरणिक जान्‍हव
धर्माधिकरणिक महामहो नरहरि
धर्माधिकरणिक गदाधर
सुरगन सँ धर्माधिकरणिक भास्‍कर
करिअमसँ म.म. धर्माधिकरणिक मरथ
खौआलसँ शर्म्‍मा धर्माधिकरणिक म.म. उ.हरिशर्म्‍मा
दिघोयसँ जयदत्त सुत धर्माधिकरणिक भट्टजीवे
धर्माधिकरणिक म.म. (२३/०१०) नरसिंह
धर्माधिकरणिक महोमहोपाध्‍याय गदाघर
धर्माधिकरणिक वाटू

नैवंधिक- नैवंधिक वीरेश्‍वर, नैवंधिकधीरेश्‍वर
मुद्राहस्‍तक गुणीश्‍वर
सुत म.म. आभो एसुत
मुद्राहस्‍तक कुल छेत्रोपार्यक राउल
गढ़बेलउँच सँ मुद्राहस्‍तक गुणीश्‍वर
मुद्राहस्‍तक लक्षपति
मुद्राहस्‍तक लक्ष्‍मीदत्त

आर्यभट्ट वैज्ञानिक 476-550
पञ्जीमे आर्यभट्टक विवरण- (२७) (३४/०८) महिपतिय: मंगरौनी माण्डैर सै पीताम्ब र सुत दामू दौ माण्ड्र सै वीजी त्रिनयनभट्ट: ए सुतो आर्यभट्ट: ए सुतो उदयभट्ट: ए सुतो विजयभट्ट ए सुतो सुलोचनभट (सुनयनभट्ट) ए सुतो भट्ट ए सुतो धर्मजटीमिश्र ए सुतो धाराजटी मिश्र ए सुतोब्रह्मजरी मिश्र ए सुतो त्रिपुरजटी मिश्र ए सुत विघुजटी मिश्र ए सुतो अजयसिंह: ए सुतो विजयसिंह: ए सुतो ए सुतो आदिवराह: ए सुतो महोवराह: ए सुतो दुर्योधन सिंह: ए सुतो सोढ़र जयसिंहर्काचार्यास्त्रस महास्त्र विद्या पारङगत महामहोपाध्या य: नरसिंह:।।
..गोनू झा 1050-1150
करमहे सोनकरियाम गोनू झाक वर्णन पञ्जीमे अछि- महामहोपाध्याय धूर्तराज गोनू। पञ्जीक अनुसार पीढ़ीक गणना कएलासँ गोनूक जन्म (गोनूक सोनकरियाम करमहे-वत्समे २४म पीढ़ी चलि रहल अछि) आर्यभट्टक बाद (आर्यभट्टक माण्डर-काश्यपमे ३९ म पीढ़ी चलि रहल अछि) आ विद्यापतिक पहिने (विद्यापतिक विषएवार बिस्फी-काश्यपमे १४म पीढ़ी चलि रहल अछि) लगभग १०५० ई.मे सिद्ध होइत अछि। कारण एहि तरहेँ एक पीढ़ीकेँ ४० सँ गुणा केला सँ आर्यभट्टक जन्म लगभग ४७६ ई. आ विद्यापतिक जन्म लगभग १३५० ई. अबैत अछि जे इतिहाससम्मत अछि।गोनू झाक गाम भरौड़ाक राजकुमार, "बहुरा गोढिन नटुआ दयाल" लोककथाक मलाह कथानायक। भरौड़ामे एखनो हिनकर गहबर छन्हि।
महाराज हरसिंहदेव : मिथिलाक कर्णाट वंशक। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह। 1294 ई. मे जन्म आ 1307 ई. मे राजसिंहासन। घियासुद्दीन तुगलकसँ 1324-25 ई. मे हारिक बाद नेपाल पलायन। मिथिलाक पञ्जी-प्रबन्धक ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय मध्य आधिकारिक स्थापक, मैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक लेल शंकरदत्त, आ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त एहि हेतु प्रथमतया नियुक्त्त भेलाह। हरसिंहदेवक प्रेरणासँ- आ ई हरसिंहदेव नान्यदेवक वंशज छलाह, जे नान्यदेव कार्णाट वंशक १००९ शाकेमे स्थापना केने रहथि- नन्दैद शुन्यं शशि शाक वर्षे (१०१९ शाके)... मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके १२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे पञ्जी-प्रबन्धक वर्तमान स्वरूपक प्रारम्भक निर्णय कएलन्हि। पुनः वर्तमान स्‍वरूपमे थोडे बुद्धि विलासी लोकनि मिथिलेश महाराज माधव सिंहसँ १७६० ई. मे आदेश करबाए पञ्जीकारसँ शाखा पुस्तकक प्रणयन करबओलन्हि। ओकर बाद पाँजिमे (कखनो काल वर्णित १६०० शाके माने १६७८ ई. वास्तवमे माधव सिंहक बादमे १८०० ई.क आसपास) श्रोत्रिय नामक एकटा नव ब्राह्मण उपजातिक मिथिलामे उत्पत्ति भेल।
मंत्री गणेश्वर: मिथिलाक कर्णाट वंशक नरेश हरसिंहदेवक मंत्री। सुगतिसोपानमे मिथिलाक सांवैधानिक इतिहासक वर्णन
महाराज नान्यदेवमिथिलाक कर्णाट वंशक 1097 ई. मे स्थापना। 1147 ई. मे मृत्यु। मल्लदेव मिथिलाक कर्णाट वंशक संस्थापक नान्यदेवक पुत्र। मिथिलाक गंधवरिया राजपूत मल्लदेवकेँ अपन बीजीपुरुष मानैत छथि।

मालद्वार पंचप्रवर- करमहे नरुआर वत्सगोत्री, राजा रामलोचन चौधरी-मालद्वार- २५०० वर्ष पूर्व- राजा दुर्गा प्रसाद चौधरी-
-राजा बुद्धिनाथ चौधरी(मालद्वार)-कुमार वैद्यनाथ चौधरी
- छत्रनाथ चौधरी (दुर्गागंज)-टंकनाअथ चौधरी-कर्मनाथ/ शेषनाथ/ रुद्रनाथ


एक छलि महारानी- डॉ. मदनेश्वर मिश्र
सुरगणे लौआम- गोत्र पराशर
लौआम गाम मूलतः बसैठीसँ पूर्णियाँक बीचमे- आब नहि छैक।
तिलैबार मूलक शाण्डिल्य गोत्री
बनैली गाम- अगरू राय- हिनकर जमाए सुरगणे लौआम मूलक प्राणपति- हिनक बालक समर झा
१५७५-१६२५ (लगभग १६म शताब्दी), दिल्ली सल्तनतसँ जमीन्दारी किनलन्हि आ समर चौधरी भऽ गेलाह, महाराज भऽ गेलाह।
लौआमक दू शाखा
-महाराज कृष्णदेव (पहसरा बसैटी)
-महाराज भगीरथ- सौरिया (कटिहार-सोनालीक बीचमे)- एकटा स्थान दण्डखोड़- एतए अपराधीकेँ सजा देल जाइत छल (सौरिया शाखा द्वारा)।

पाँच वंश बाद पहसरा बसैटी- कृष्णदेव-देवनारायण-वीरनारायण-रामचन्द्र नारायण (जॉन बुकानन पूर्णियाँ गजेटियरमे हुनकर वर्णन किंग ऑफ पूर्णियाँक रूपमे कएने छथि)- इन्द्रनारायण (बिना सन्तान) रानी इन्द्रावती(सासुरक नाम- असल नाम लीलावती) हिनकर मृत्युतिथि १५-११-१८०३ मृत्युस्थान पूर्णियाँ, समए- मध्याह्ण काल, श्राद्ध खर्चक हेतु पूर्णियाँ जजसँ प्राप्ति- रु.५०००/- माँग रु.१५,६७०/-( बोर्ड ऑफ रेवेन्यु, फोर्ट विलियममे २९.११.१८०३ ई. केँ कार्यवाही)। इन्द्रनारायणक समकालीन सौरिया दिश राजा राजेन्द्रनारायण आ राजा महेन्द्रनारायण। महाराज इन्द्रनारायणक मृत्यु १७७६ ई. मे, तकर बाद २७ बर्ख धरि रानी इन्द्रावती राज कएलन्हि।
राज बनैली- रामनगर/ श्रीनगर/ गढ़बनैली/ सुल्तानगंज/ चंपानगर।

श्यामा मन्दिर बनारसमे संस्कृत पढ़बाक वृत्ति- रानी चन्द्रावती- कोइलख (राजा पद्मानन्द सिंह, पुतोहु-कुमार चन्द्रानन्द सिंहक पत्नी)- रामनगर।
विशेश्वर झा बैगनी नवादासँ पहसरा नोकरी करबा लेल अएलाह। हिनकर बेटा दीवान देवानन्द फेर चातुर्धरिक मनसबदार परमानन्द- संध्यागायत्रीसँ लोप बनैली समर सिंहकेँ मानि लेलन्हि। दुलार चौधरी/ फेर सिंह (बनैली राज), बुकानन हिनका चौधरी कहि सम्बोधित करैत छथि, मात्र एक बेर सिंह कहै छथि।
१६८०-१७०० ई.-दरभंगा राज, कन्दर्पीघाटक लड़ाई, राजा नरेन्द्र सिंह- दिल्ली सल्तनत आ जनताक बीचमे, बागमती तटपर समस्तीपुर ब्रह्महत्याक आरोपी नरेन्द्र सिंहकेँ बारि ब्राह्मण सभ पूर्णियाँ सुरगणे लौआम महाराज समर सिंह सन्तति महाराज नरनारायण, पहसरा बसैटी (कोशीक पूर्व)- फारबिसगंजसँ दण्डखोड़ा कटिहार तक बसाओल गेलाह। फेर माधव सिंहक समएमे दरभंगा आपस भेलाह।
खुद्दी झा/ परमेश्वर झाकेँ आशुतोष मुखर्जीक समए दरमाहा राज बनैली देलकैक।

पञ्जीमे दरभंगा राजक विरुद्- विविध विरुदावली विराजमान् मानोन्नतमान् प्रतिज्ञापदर्योधिक परशुराम समस्त प्रक्रिया विराजमान् नृपराज महोग्रप्रताप मिथिलाङ्कार महाराजाधिराज माधव सिंह बहादुर कामेश्वर सिंह।
धकजरीक नवलक्षाधिपति लक्ष्मीपति मिश्र कोदरिये मूल शाण्डिल्य पाञ्जि भेटि गेलन्हि, रमेश्वर सिंहकेँ १ १/२ लाख टाकाक चन्दा देलन्हि, पिण्डारुछक चौधरी सभकेँ सेहो पाँजि भेटलन्हि (नित्यानन्द चौधरी)।

गुणाकर झा हरसिंहदेवक समकालीन ई.१३२६ ततैल ग्राम- १० खाढ़ी पाछाँ ककरौड़ गाम-जिला मधुबनी रघुदेव झा- आनन्द झा- देवानन्द प्रसिद्ध छोटी झा दरभंगा नरेश माधव सिंहक (शाखा पुस्तकक प्रणयन आदेश) समकालीन १६५० ई.क आसपास- मित्रानन्द प्रसिद्ध झोंटी झा- गोपीनाथ झा प्रसिद्ध होरिल झा- हरखानन्द प्रसिद्ध हरखी झा- एखसँ १५९ वर्ख पूर्क दिनकर टिपणी (जन्म) रसाढ़ पूर्णियाँ बनमनखी लग- श्री भोलानाथ प्रसिद्ध भिखिया झा- श्री मोदानन्द झा- पञ्जीकार विद्यानन्द झा प्रसिद्ध मोहनजी- मूल पड़ुआ(पण्डुआ) महिन्द्रपुर, गोत्र काश्यप त्रिप्रवर।
खाँ- कुजिलवार उल्लू- कात्यायन गोत्र
उतेढ़- सिद्धांत लिखबाक पहिने वर ओ कन्या पक्षक अधिकार ताकल जाइत छैक आ ई मात्र मूलक आधारपर बनाओल जाइत अछि आ समगोत्री विवाह नहि होअए ताहि लेल गोत्र आ प्रवर सेहो देखल जाइत अछि। मूलसँ गोत्र सामान्यतः पता चलि जाइत अछि, किछु अपवादो छैक। जेना ब्रह्मपुरा मूल- काश्यप/ गौतम/ वत्स/ वशिष्ठ (सात टा), करमहा- शाण्डिल्य (गौल शाखा)/ बाकी सभ वत्सगोत्री, दुनु करमहामे विवाह संभव।
चन्दा झा- माण्डर रजौरा

रामोऽवेत्ति नलोऽवेत्ति वेत्ति राजा पुरुरवा।
अलर्कस्य धनं प्राप्य नान्यदेवोनृप भविष्यति॥

नान्यदेव घोड़ापर चढ़ल हकासल-पियासल अएलाह, गाछतरमे घोड़ा बान्हलन्हि, घोड़ा लेल खाद्य छीलए लगलाह तँ फन काढ़ि साँप नाग आएल, किछु लिखल जे नान्यदेव मिथिलाक भाषा नहि पढ़ि सकलाह। कामेश्वर ठाकुर जे गाममे रहथि पढ़ि बतओलन्हि जे अहाँ मिथिला राजा नान्यदेव छी।
कामेश्वर ठाकुर संतति चण्डेश्वरकेँ हरसिंहदेव राज लिखितमे सौंपि पलाएन कएल। चण्डेश्वरक पाछाँ सिपाही आएल। एकरापर जल फेंकि ठाढ़ भऽ गेल, दोसर खेहारलक, ओकरापर जल फेकलन्हि ओ आन्हर भऽ गेल (अन्हरा ठाढ़ी)।
वर्षकृत्य- अयलीह बिहुला देलन्हि पसारि,
गेलीह सामा लेलन्हि ओसारि।

पञ्जी- अधिकारक नियमावली- पञ्जी अयाची मिश्रक पौत्र ढाका कवि- ढाकामे जागीर भेटलन्हि। हल्ली झा तांत्रिक आ शिव कुमार शास्त्रीक बीच शास्त्रार्थ- प्रत्याहार वाक तंत्र द्वारा हल्ली शिवकुमार शास्त्रीक वाक् बन्न कए देलन्हि।


घोड़ी चिलम पीबि ओहिपर चढ़ि निकललाह पञ्जीकार, गाम पहुँचि घोड़े परसँ पुछलथिन्ह, यौ फलना, हमर बौआकेँ जमीन किनबाक लेल कहल अछि, वापस करू। पञ्जीकार एखने नीचाँ कए देताह, से तुरत्ते घुरा देलखिन्ह आ ओ २ टाका बएन घुराए घुरि अएलाह। ७०० टाका लड़कीबलाकेँ दए बेटाक विवाह कराए पाँजि बनाओल।

तस्कर केशव, मंगरौनी नरौने सुल्हनी- पराशर गोत्र माण्डर सिहौल मूलक काश्यप गोत्री खगनाथ झा- गाम जमसम। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह लेल लड़की निहुछल गेल, गाममे पोखरि खुनाओल, मन्दिर बनल जे राजा दोसराक मन्दिरमे कोना पूजा करताह। केशव झा लड़कीकेँ लए गाम आबि गेलाह। धोती रंगाइत छल। पता केनिहार जे आएल तकरा पकड़ि कन्यादान करबाओल। तकर बाद राजा की करताह, पञ्जीकारकेँ बजा कऽ ओकर नाममे तस्कर उपाधि लगबाओल। खगनाथ झा- श्रीकान्त झा पाँजि, तस्कर केशव श्रोत्रिय ओहिठाम विवाह कएलापर श्रोत्रिय श्रेणी विराजमान रहितन्हि। पाञ्जि आ पानि अधोगामी, पछबारि पारक प्रथम श्रेणी आब नहि अछि।
शालिग्राममे छिद्र होइत अछि, कारी पाथर मात्र नर्मदामे भेटैत अछि। शाण्डिल्य- ४३ मूल, वत्स-४० मूल, काश्यप-२७ मूल, सावर्ण- ७ मूल, कात्यायन- ५ मूल, पराशर- ७ मूल, भारद्वाज- ५ मूल, गर्ग- ३ मूल

सूर्य- सिंह राशिमे (१६ अगस्त सँ १६ सितम्बर), किछु सुखेबाक होअए तँ सभसँ कड़ा रौद।
पाँ रघुदेव झाक लिखल माण्डर मूलक पोथी- अंकित तिथि- १७म शताब्दीक अन्तिम दशक आ १८म शताब्दीक पहिल दशक, हुनकर पौत्र पाँ छोटी प्रसिद्ध देवानन्द झाक लिखल शाखा पुस्तक १७६०-१७७६ई.। ताल पत्रपर।
पाँ भिखिया झा शाखा पुस्तक क्वैलख वासी हरिअम्ब मूलक पाँ डोमाई मिश्रक लिखल । पाँ हर्षानन्द झा बला शाखा पुस्तक  जे पाँ झोंटी झा प्रसिद्ध मित्रानन्द झाक लिखल अछि। पाँ. झूलानन्द झा (पाँ भिखिया झाक भ्राता) बला शाखा पुस्तक, पाँ मोदानन्द झाक शाखा पुस्तक जे हुनकर मौसा पाँ लूटन झा आ मसियौत पाँ निरसू झा बला शाखा पुस्तक जे १९२५ ई.सँ १९३५ ई. धरि सौराठमे लिखल गेल। एहि सभ शाखा पुस्तकक, गोत्र पञ्जी जाहि मध्य गोत्र ओ मूलक विवरण, पत्र पञ्जी जाहि मध्य अपत्यक ज्ञान ओ मूलग्रामक विवरण भेटैत अछि, जाहिसँ वासस्थान परिवर्तनक ज्ञान होइत अछि, दूषण पञ्जी जाहिसँ वंशमे आएल कथित दोषक- कट्टरताक विरुद्ध प्रमाण सेहो- ज्ञान होइत अछि। तत्तत पुस्तकमे वर्णित तत्कालीन प्रचलित उपाधिक ज्ञान होइत अछि।
पारिभाषिक शब्दावली:- कोनो वंशक उल्लेखसँ पूर्व ओहि वंशक मूलक उल्लेख जाहि शब्दक बादसँ लागल हो ओ भेल मूल- तकर बाद व्यक्तिक नाम तखन ओहि व्यक्तिक पुंपत्यक उल्लेख- से सुतः वा सुतौ वा सुताः लिखल गेल भऽ सकैए। ओहि व्यक्तिक एकोटा पुत्र नहि परञ्च पुत्री तँ सुता वा सुताश्च लिखल भेटत- सुतः सुतौ सुताक बाद पुत्रक नाम तखन ओहि व्यक्तिक श्वसुरक मूल ग्रामक संगे मूलक उल्लेख। कतहु-कतहु मूलग्राम नहियो लिखल भेटत, पुस्तकमे आगाँ बढ़लापर मूलक संकेताक्षर बिन्दु सहित जकर आगाँ सँनहि भेटत परञ्च पढ़ैत-पढ़ैत पाठक मूलसँ परिचित भऽ गेल रहताह। श्वसुरक नामक पहिने विशेष ठाम श्वसुरक पिताक नाम, कत्तहु-कत्तहु पितामहक नाम सेहो, श्वसुरक नामक बाद दौ लिखल भेटत अर्थात् अर्थ भेल जनिक नामक आगाँ दौ. लिखल अछि ताहि व्यक्तिक दौहित्र भेलाह सुतः सुतौ सुताक उल्लेखक बाद लिखल नाम अर्थात् सुतादिक मातामह भेलाह दौ. लिखलसँ पूर्व नाम- तदुपरान्त श्वसुरक उल्लेख मूल सहित भेटत आ नामक बाद शब्द भेटत दौहित्र दौहित्र जे संकेताक्षरमे द्दौ. रहत, परञ्च ई बुझब आवश्यक जे शाखा पुस्तकक कोनो पृथक विषय सूची नहि रहि विषय-अनुक्रमणिका संगे रहै छै।
सूचना १: अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन काठमाण्डौ मे २२ आ २३ दिसम्बर २०१० केँ श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"क संयोजकत्वमे आयोजित भऽ रहल अछि। श्री कापड़ि नेपाल प्रज्ञा संस्थानमे मैथिलीक प्रतिनिधित्व कऽ रहल छथि आ ई साहित्य क्षेत्रमे नेपालक सभसँ पैघ प्रतिष्ठाबल पद अछि ओहिना जेना भारतमे "साहित्य अकादमीक फेलो" होइत अछि।
२२ दिसम्बर २०१० केँ ई आयोजन नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी, काठमाण्डौ आ २३ दिसम्बर २०१० केँ अग्रवाल सेवा केन्द्र, कमल पोखरी, काठमाण्डौमे आयोजित होएत। दुनू दिन आवस आ भोजनक व्यवस्था ग्रवाल सेवा केन्द्र, कमल पोखरी, काठमाण्डौमे रहत।

सूचना:२: मैलोरंग वर्ष 2010 सँ रंगशीर्ष ज्योतिरीश्वर जीक नाम पर "ज्योतिरीश्वर रंगकर्मी सम्मान"
कोनो एकटा सुपरिचित युवा रंगकर्मी के प्रदान करत । एहि सम्मान मे सम्मानित रंगकर्मी केँ 5100/- टाका आ स्मृति चिह्न संग सम्मान पत्र सेहो प्रदान कयल जेतनि । ई सम्मान समारोह वर्षक अंतिम महीना मे आयोजित करबाक योजना अछि ।


बाल-किशोर विशेषांक/ नाटक-एकांकी विशेषांक/ मैथिली-समीक्षा विशेषांक: विदेहक हाइकू, गजल आ लघुकथा अंकक बाद विदेहक 15 नवम्बर 2010 अंक बाल-किशोर विशेषांक, 15 दिसम्बर 2010 अंक नाटक-एकांकी विशेषांक आ 15 जनवरी 2011 अंक मैथिली-समीक्षा विशेषांक रहत। एहि लेल लेखक टंकित रचना, जकर ने कोनो शब्दक बन्धन छै आ ने विषएक, 13 नवम्बर 2010 धरि बाल-किशोर विशेषांक लेल; 13 दिसम्बर 2010 धरि नाटक-एकांकी विशेषांक लेल13 जनवरी 2011 धरि मैथिली-समीक्षा विशेषांक लेल ई-मेलसँ ठा सकै छथि। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।


(विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १
,५७१ ठामसँ ५१,०७७ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,७२,०८२ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा।)
 

गजेन्द्र ठाकुर

२. गद्य








 

 विहनि कथा (लघुकथा)-परि‍श्रमक भीख





देवशंकर नवीन- १.एकटा विहनि (लघु) कथा -बिलाड़ि आ एकटा कथा २. मोटर साइकिल
 
देवशंकर नवीन 1962-
ओ ना मा सी (गद्य-पद्य मिश्रित हिन्दी-मैथिलीक प्रारम्भिक सर्जना), चानन-काजर (मैथिली कविता संग्रह), आधुनिक (मैथिली) साहित्यक परिदृश्य, गीतिकाव्य के रूप में विद्यापति पदावली, राजकमल चौधरी का रचनाकर्म (आलोचना), जमाना बदल गया, सोना बाबू का यार, पहचान (हिन्दी कहानी), अभिधा (हिन्दी कविता-संग्रह), हाथी चलए बजार (कथा-संग्रह)।

बिलाड़ि

हम जइ घरमे सुतै छी, तकर पछिला देबालमे बड़ी टा खिड़की अछि। ताहिसँ बाहर एक टा छहरदेवाली। ओइ छहरदेवाली पर कैक टा मैना एक संगे क्रिक्-क्रिक् करैत चहचहा उठल। हम गाढ़ नीनसँ सूतल रही। एक टा अत्यन्त मनोहर सपना देखैत रही। नीन टूटि गेल। सपना भखरि गेल।
हमर नीन बड़ दुलारू अछि। बहुत रास मान-मनौवलि केला पर अबैत अछि। तें ककरहु कोनो आचरणसँ काँच नीन टुटै, तँ ओकरा पर बड़ तामस होइए। नीन टूटि गेल, सपना टूटि गेल। ओइ भोर बड़ जोर तामस चढ़ल। नीन नँइ टुटितए तएखन आधेक घण्टा आओर सुतितौं। नीनों पूर भजइतए, आ सपनो पूर भजइतए।
ई जनितो, जे सपना, सपने होइ छै, वास्तविकतासँ ओकरा कोनो सरोकार नँइ रहै छै, अहू वयसमे हमरा सपनासँ तरुणाइए जकाँ आकर्षण रहैत अछि। वास्तविक जीवनमे तँ वस्तुतः लोक विपत्तिक पहाड़ उघैत रहैए। सत्य पूछी तँ ओ विपत्ति मनुष्यक स्वप्नलोक धरि पर राज करल अबैत अछि। एहेन विकराल समयमे मनोहर सपना देखब कोनो उपलब्धिसँ थोड़ कहाँ होइत अछि!...
से कहैत रही नीन टूटि गेल। सपना टूटि गेल। मैना-मैनी किलोलह मचा कए नीन तोड़ि देलक, सपना छीन लेलक। बड़ जोर रंज चढ़ल। मुदा ककरा पर तमसबितहुँ? मैनाकें की कहितिऐ? ओकरा हमर, आकि हमर नीन टूटि जेबाक कोनो खबरिओ कहाँ रहल हेतै? हमर रंजसँ ओकरा कोनो भय कहाँ होइत हेतै?
क्रिक्-क्रिक्...के ताबड़तोड़ ध्वनिसँ धड़फड़ा कउठलहुँ। आँखि मीड़ि कखिड़कीक ओइ पार देखलहुँ। अचानक तामस निजा गेल, आ दृश्य नीक लागए लागल। कैक टा मैना रहै। हठात चहचही बन्द भगेलै। सबटा मैना एकाएकी ओतएसँ सहटि गेल। मात्रा दू टा रहि गेल। दुनूक आवाज क्रमे-क्रमे मधुर होअए लगलै। दुनू अपन-अपन लोलसँ एक दोसरकें गुदगुदी लगबए लगलै। पक्षी-विज्ञानी तनँइ छी, तें सामान्यतया पक्षीमे नर-मादाक ज्ञान हमरा नँइ होइत रहै, मुदा एक टा भ्रम हमरा सदति काल बनल रहै, जे मनुष्यक अलावा समस्त जीवमे, सोहनगर आ मोहक बगए-बानि प्रायः नरे के होइ छै। पता नँइ, हमारा ई भ्रम किऐ होइए।...ओहू दिन अही भ्रमक आधार पर बुझाएल छल जे अइ दुनूमे सँ एक टा नर थिक, एक टा मादा। दुनू प्रेमी-प्रेमिका थिक भरिसक। प्रेम करहलए। बेरा-बेरी दुनू एक दोसरकें गुदगुदी लगबैक अवसर दरहल छलै। एक के गुदगुदीसँ दोसर हँसैत-हँसैत कनेक दूर धरि कुदकि कए पड़ा जाए; फेर दोसर सोह लगा कआबए आ पहिलकें गुदगुदी लगाबए। विलक्षण दृश्य लगै छल।...
कतेक उन्मुक्त होइत अछि पक्षी। जखन चाहैत अछि, जतए चाहैत अछि, प्रेम कलैत अछि! कते नीक होइत अछि पक्षी समाज, जखन दू टा पक्षीकें प्रेम करैत देखलक, बाकी सब आस्ते-आस्ते टहलि गेल। अइ दुनूकें नीरव एकान्त दस्वच्छन्द प्रेम करबाक अवसर ददेलक। मुदा केहन होइत अछि मनुक्खक समाज, दू गोटए प्रेम करै, तेसरकें खौंत बाड़ए लगै छै; कुल-मर्यादा, मान-सम्मानक नाम पर, जाति-धर्मक नाम पर ओकर हत्या कदैए। पहिलुका जमाना जकाँ आजुक मनुक्ख इच्छा रूपधारी होइतए, तँ अवस्से ओ प्रेम करबा लए क्रौंच-क्रौंची बनि जइतए, आ अही मैना-मैनी जकाँ रमण करितए। क्रौंच-क्रौंचीकंे तँ नँइ देखने छी। मुदा अइ दुनूक रासलीला देखि कए लगैए ओहो अहिना करैत रहल होएत, आ दोसर दिशसँ व्याधा आबि गेल होएतै। दुनूक अनुराग लगातार बढ़ल जा रहल छलै। आब दुनू गुदगुदीक खेल, मखौल, हास-परिहास छोड़ि कए निकट भगेल छल। साँस रोकि कए हम एकटक देखलागल रही। दुनू एक दोसरसँ गरदनि मिला रहल छल...प्रायः दुनूक उत्तेजना तीव्र होइत जा रहल छलै...
छपाक्...! ज्जाः! रंगमे भंग भगेलै!
अचानक बगलबला मकानक छज्जीसँ एक टा बिलाड़ि झपट्टा मारलक। मुदा ओइ दुष्ट बिलाड़िक दुष्टता पूर्ण नँइ भेलै। एकटा प्रेमकथाकें देखबाक हमर तल्लीनता अइ वज्राघातसँ टूटि कए बिखरि गेल छल; मुदा मैना-मैनीक सतर्कतासँ अत्यन्त प्रसन्नता भेल। ओही प्रसन्नताक कसोहमे हम अपन सपनामे घुरि आबए चाहैत रही। मुदा सपना देखलेल तँ फेरसँ नीन चाही, से तँ अछिए नँइ...!
मैना-मैनीक प्रेमकें लाख-लाख शुभकामना, ओइ बिलाड़िकें परम धिक्कार!...
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मोटर साइकिल

पहिले बेर जहिया भौजीकें देखलिअनि, हमर आँखिक आकार ओही दिनसँ बढ़ि गेल। ओइसँ पहिने एते सुन्नरि स्त्री हम कोनो फोटोओमे नँइ देखने रही। तकिते रहि गेल रही थोड़े काल धरि--बाप रे! ई सौन्दर्य! ई नाक-नक्श, एहन केश, एहन भौंह, एहन आँखि, एहन ठोर, एहन बाँहि, एहन अँगुरी! छूबि कदेखतिअइ कने!...
मुदा एहि तरहें अखियासि कए देखबाक हमर करतबकें भौजी लक्ष्य कगेल रहथि, से हम गर केने रही। कोनो हाट-बजार रहितै तँ थोड़े काल भरिसक आओर हम देखैत रहि जैतौं। मुदा हम तँ अपन बरिष्ठ सहकर्मीक घरमे बैसल छलहुँ, आ हुनकर पत्नीकें देखि रहल छलहुँ। सन्तृप्त सौन्दर्यसँ तराशल भौजीक रूप-राशि भूख-पियास हरण करैबला छल। प्रसन्न होइथ तसिंगरहारक फूल बरसए, बिहुँसथि तबिजलौका चमकि जाए, हँसथि तजलतंरगक रागिनी पसरि जाए, सन्तूरक ध्वनि उमरि उठए, चलल आबथि तलागए जेना दुनियामे कोनो शुभ मुहूर्त्तक प्रवेश भरहल अछि। लगमे ठाठ होथि, लागए जेना कोनो अनन्त सुखक झमटगर छाहरिमे बैसल छी, आँखि उठा कताकि देथि तओइमे डूबि ककलमच सूति रहबाक इच्छा करए। तपस्वी, मनस्वीक समाधि हिला देबवला देह सौष्ठव, आ कान्तिमय मुखमण्डल गढ़मे विधाताकें कते समय लागल हेतनि! विधाता भरिसक बड़े मनोयोगसँ फुरसतिक क्षणमे हिनकर रचना केने हेताह। बाघ-सिंह सन खूँखार जानवर धरि हिनकर सौन्दर्य आ हिनकर व्यक्तित्वक सम्मोहनसँ वशीभूत भजा सकैत अछि।
एहने सौन्दर्य आ एहने व्यक्तित्वक सुकामा स्त्रीकें एक बेर पटनामे गाँधी मैदान बस स्टैण्ड पर देखने रही। वियोगीक संगें हम सहरसा जाइवला बसमे चढ़ल रही। एकटा स्त्री आबि कए हमर अगिला सीट पर बैसल। दुइए पल बाद ओ उठि गेल, बससँ उतरि गेल। हम कोनो जादूक अधीन बिना किछु बजने ओकर पाछू लागि गेलौं। वियोगी हमर अनुशरण केलक। बादमे वियोगी सबटा खेरहा सुनौलक। ओइ काल ओ हमरा बाधित नँइ करए चाहै छल। ओ स्त्री राँची जाइबला बसमे बैसि गेल। हम बगल बला सीट पर बैसि कए ओहि स्त्रीकें एकटक निहारैत रहलहुँ। मन्त्रमुग्ध भेल। पता नँइ ओइ स्त्रीकें देखि की की सोचैत रहलहुँ। बस स्टार्ट भेल, राँची दिश विदा भगेल। वियोगी हाथ पकड़ि कघिचैत बाजल--ओकरा संगें राँची जाइ के छौ?...
हमर भक्क टूटल। लजा गेलहुँ, फेर दुनू गोटए हँसैत पानक दोकान दिश गेलहुँ। कतोक दिन धरि वियोगी चौल करैत रहल...। सोचै छी, ओ स्त्री भैजिए तने रहथि...! हिनको नैहर राँचीयेमे छनि।
भौजीक मतलब हमर कोनो सहोदर अथवा अन्य पारम्परिक सम्बन्धें जेठ भाइक पत्नी नँइ! तइ अर्थें देखी तहम परम अभागल। सौंसे कुल-खानदानमे अपना पीढ़ीमे सबसँ जेठ हमही छी। कोनो पितियौत, पिसियौत, मसियौत, ममियौत हमरासँ जेठ नँइ छथि। तें हमरा जीवनमे अइसँ पहिने दीयर-भाउजक सम्बन्धक रंग ओतबे छल, जतबा अनुमान कएल जा सकै छल, अथवा यारी-दोस्तीमे लोकक मुँहें सुनल छल। एतए आबि कहमरा लेल भौजीक अर्थ बड्ड विराट भगेल। भौजीक मतलब भौतिक विज्ञानक परम यशस्वी अध्यापक प्रोफेसर तापस चक्रवर्तीक सुकामा, नयनयभिरामा पत्नी सुवर्णा।
प्रोफेसर तापस चक्रवर्ती विलक्षण लोक छथि, जेहने सुयोग्य अध्यापक, तेहने श्रेष्ठ मनुष्य। कर्मनिष्ठ एहेन जे आइ धरि कोनो छात्रकें हुनकासँ कोनो शिकाइत नँइ भेलनि। धुरझार ट्यूशन चलै छनि, मुदा तें शहरमे कियो ई नँइ कहताह जे ट्यूशनक कारणें कॉलेजमे गैरहाजिर रहै छथि, अथवा क्लासमे पढ़बै काल कोताही करै छथि। वयसमे हमरासँ दसेक बर्ख पैघ हेताह, मुदा से कहिओ बोध नँइ होअए देलनि। कोनो तरहक अहंकार हुनका स्पर्श धरि नँइ कसकल छल। सर्वदा, आ सर्वथा प्रसन्नचित रहै बला लोक। सौंसे कॉलेजक अध्यापक वर्ग हुनका दादा कहनि। हम शुरुह-शुरूमे सर कहैत रहिअनि। बादमे आन लोकक तर्ज पर हमहूँ कौखन दादा कहलगलिअनि।
सम्पर्क बढ़ल तबूझि सकलहुँ जे हुनकर समस्या हमरासँ विपरीत छलनि, हुनका जेठ हेबाक अपार सेहन्ता छलनि। बहुत अनुरागसँ एक दिन कहने रहथि--देब! अहाँसँ सम्पर्क भेलाक बाद हमरा होअलागल अछि, जेना पछिला जनममे हमरा लोकनि सहोदर भाइ रहल होइ। एकदमसँ हमर अनुज जकाँ लगैत रहै छी अहाँ!
हम हुनकर अनुरागक आदर करैत कहलिअनि--सर! नेह-प्रेम लेल कोनो पारम्परिक, वैधानिक अथवा रक्त सम्बन्धक अनिवार्य प्रयोजन थोड़े पड़ै छै! नेह लेल तँ मोनक मिलानी चाही, खानदानक मिलानीसँ प्रेमक अनिवार्य संगति कहाँ सम्भव होइ छै! ई तहमर सौभाग्य थिक जे अहाँ सन जेठ भाइक उदात्त स्नेह हमरा एते सहजतासँ भेटि गेल अछि।
प्रोफेसर तापस चक्रवर्ती कहलनि--ततय रहल जे आइ दिनसँ अहाँ हमरा सरनँइ कहब? तापस दाकहब?
हम कहलिअनि--तय रहल!
ताबत ओम्हरसँ प्रोफेसर साहेबक पत्नी चाह नेने, आ प्रसन्नताक अम्बार नेने उपस्थित भेलीह--तखन तँ हमरहु अहाँ आइ दिनसँ मैडम नँइ कहब?
नोकरी ज्वाइन करिते देरी अइ कॉलेजक जते अध्यापक लोकनिसँ पहिल किस्तमे परिचय भेल, ताहिमे प्रोफेसर तापस चक्रवर्ती प्रमुख छथि। धीरे-धीरे ओ हमर शिक्षा-दीक्षाक पृष्ठभूमि जानलगलाह। पता लगलनि जे हम अगबे मैथिली नँइ, शुरुआती दौरमे साइन्सक छात्र रही, फलस्वरूप आपकता बढ़लगलनि। साँझ कसंगें टहल’-बुलचलबाक नोत देबलगलाह। कॉलेज परिसरक सरोकार डेरा धरि आबि गेल।
पहिल दिन, जहिया हुनकर डेरा पर चाह पीलौं, मोन गद्गद भउठल। अलबत्त चाह बनबै छलीह हुनकर गृहिणी। भव्य व्यक्तित्व, अनिन्द्य सौन्दर्यक स्वामिनी, आ अपूर्व अनुरागमयी तँ ओ रहबे करथि, सम्पूर्ण पाक कलामे सेहो दक्ष रहथि। एहेन डेरामे बरमहल अबरजात राखब, हमरा सन पेटू आ चटोर लोक लेल कोनो अनकुरबी बात नँइ छल। बादमे तँ हम अपनहँु प्रयासें चाह, जलखै लेल ओम्हर टघरि जाइ, भनसा घरक अही प्रशंसाक दौरमे तापस दाक पत्नीसँ परिचय बढ़ल, क्रमे-क्रमे हमहूँ हुनका संगे सहज होअलागल रही। दुइए-तीन भेंटमे ओ हमर जनम-कुुण्डलीक सम्पूर्ण जानकारी जुटा लेलनि। कतए घर छी, रमे के-के छथि, कोना पढ़ाइ-लिखाइ केलहुँ, कोना नेनपन बीतल, कोना किशोरावस्था, ख-सेहन्ता-स्वादक सीमा की अछि, केहन पुरुष पसिन पड़ै छथि, केहन स्त्री नीक लगै छथि, की पढ़बामे बेसी रुचिशील रहै छी, जीवनक की उद्देश्य अछि...सब प्रश्नक उत्तर ओ हमरासँ पूछि लेलनि। हम मुदा किछु नँइ पूछि सकिअनि। मात्र हुनकर प्रश्नक जवाब दिअनि, आ निरन्तर हुनका आ हुनकर व्यवहार-अनुरागकें देखी, मी। हुनका सन स्त्रीसँ प्रश्न करब ने उचित छल, ने सम्भव। आँखि उठा कताकि देथि तसब टा प्रश्न हेरा जाइ छल। तें हम कोनो प्रश्न नँइ करिअनि। हुनकर परम सौम्य आ सभ्य व्यक्तित्वक अछैत हुनका लग खुजैमे हमरा थोड़े समय लागि गेल छल।
से, एहेन स्त्री जँ एकटा अन्यार्थक सम्बोधन त्यागि कभौजी कहलेल प्रेरित करथि, के एहेन अभागल हएत, जे मना करत! हम तत्काल उत्तर देलिअनि--आब तापस दास्पष्टे कदेलनि! ओहुना अहाँकें मैडम कहैत हमरा नीक नँइ लगै छल। आइ दिनसँ अहाँ हमर भौजी भेलहुँ!
तापस दाप्रसन्नतापूर्वक भौजीकें कनखी मारैत कहलखिन--लिअएहेन सुरेबगर दीयर भेटलाह अछि, तैयो छुच्छे चाह! किछु नीक-निकुइत होइ एकरा संग!
भौजी बजलीह--अहाँ हमर पावरकें चुनौती दरहल छी?
-नँइ यै! हम कोनो बताह छी? अहाँ सन स्त्रीक पावरकें हम जनै नँइ छी की!
-जनैत रहितहुँ, बाते किछु आओर रहितए!
पति-पत्नीक ई षट्राग आगू नँइ बढ़ल। भौजी भनसा घर गेलीह, आ जल्दिए थोड़े रास मिठाइ-निमकीक संग आपस आबि गेलीह। पति दिश कनेक विजयी भावसँ तकैत हमरा दिस तकलनि--देव! अहाँ तएखन अपन भाइ संगे उपदेशक जकाँ गप करैत रही!
-नँइ भौजी! दादाकें हमरा सन प्रोबेशनर उपदेश की देतनि! साहित्यक अध्येता छी, पढ़ैत-लिखैत इएह अनुभव होइत रहैए जे सम्बन्धक मूल आधार मोन हेबाक चाही; जाति, धर्म, वंश, परम्परा, धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, देश आदि किछु नँइ! आजुक समयमे हमरा लोकनि जाहि सामाजिक संरचनामे जीबए लागल छी, ताहिमे सम्बन्धक कोनो नब व्याकरण तय हेबाक चाही। सम्बन्धक प्राचीन व्याख्या आब निरर्थक भगेल अछि। अहीं देखिऔ ने, अपना ओतए पहिने बियाह होइ छै, तखन प्रेम! माने? ओही व्यक्तिसँ प्रेम करबा लेल आब ओ विवश अछि। बर-कनियाँकें कहियो भेंट नँइ, एकट्ठे दुनू पति-पत्नी भगेल! हद्द अछि!
-से नँइ कहियौ देब! हमरा सभक बियाह तेना नँइ भेल अछि। बकायदा हमर फोटो देखा कहिनकर इच्छा पूछल गेल छलनि। ई हाँ कहलखिन, तखनहि बात आगू बढ़लै--तापस दाबजलाह।
-दादा, अहाँक फोटोमे अहाँक चालि-चलन, शील-स्वभावक उल्लेख नँइ रहल हेतै! ओ तअहाँ दुनू गोटए भागमन्त रही जे एहेन जोड़ी बनि गेल।
भौजी बजलीह--हमरा सभक भाग्यकें एखन छोड़ू! ई कहू, जे अहाँक भाग्य एखन कोन मन्दिरमे अहाँ लेल साधना करहल छथि?
अचानक हमर आवेश पर रोक लागि गेल, हम लजा गेलहुँ। कहलिअनि--एखन चलै छी। देरी भरहल अछि।
भौजी बजलीह--एखन लाज भगेल तजाउ, मुदा काल्हि कहि देब! हमरा कोनो हड़बड़ी नँइ अछि!
अइ ठामसँ सम्बन्ध गाढ़ होअए लागल। ओइ डेरा पर सहे-सहे हमर आबाजाही बढ़लागल। कौखन तीनू गोटए, कौखन हम आ तापस दागप-शपमे लीन होअए लगलहुँ। भौजी भनसा घर चल जाइथ, चाह जलखै बनबैलेल। कौखन हम आ भौजी बैसि जाइ टाइम पास करमे आ तापस दाट्यूशन पढ़बैमे व्यस्त भजाइथ। भौजी संग शतरंज खेलएबामे सेहो खूब सोहनगर लागए। ओना बेसी काल जीतथि भौजिए। बादमे बुझाए लागल जे हमरा प्रसन्न करलेल कखनहुँ-कखनहुँ ओ अरबधि कए हारि जाइथ। अर्थशास्त्रमे ओ एम.ए. केने छथि, मुदा इतिहास, राजनीति, सामाजिक आन्दोलन आ साहित्य सम्बन्धी मान्यता पर तर्कपूर्ण बहस करै छथि। तापस दाकें तँ मिनटे-मिनटे धोबिया पछाड़ दै छथिन। मुदा ताहि सँ तापस दाक पुरुषवादी अहं अनेरे आहत नँइ होइ छनि। ओ अपन अपढ़पन सहजतासँ स्वीकारि लै छथि। कहै छथि--भाइ, हम तफिजिक्ससँ बाहर कहिओ भेलहुँ नँइ। फिजिक्स पढ़लहुँ आ सिनेमा देखलहुँ। आ आब फिजिक्स पढ़बै छी, आ उपन्यास पढ़ि कए मनोरंजन करै छी। आब अइ सब बहस लेल तअहाँकें एकटा पाटनर ताकिए देलहुँ अछि, हिनकहिसँ बहस कएल करू! कान्ही मिलान हएत। हम अइ मामिलामे अजोह लोक छी।
तापस दाउपन्यास खूब पढै़ छथि, मुदा सस्तौआ, फुटपाथी।
भौजी कहलनि--अहाँक भाइ साहेब पाथर छथि! उपन्यास पढ़ै छथि, किऐ पढ़ै छथि, नँइ बुझल छनि। जाहि पोथीकें पढ़लाक बाद पाठक स्वयंकें नव नँइ बुझलागए, ओकर आन्तरिक भव्यता विकसित नँइ होइ, पोथी ओकर विचार शृंखलामे नव फुनगी नँइ जोड़ए, ओइ पोथीकें पढ़ि कए लोक की करत? टाइम पास लेल लोक किऐ पढ़त? ओइसँ बेसी नीक तँ बाड़ी-झाड़ीमे फूल-पत्ती लगाउ, लत्ती-फत्ती लगाउ! फूल फुलाएत, खीरा-सजमनि फड़त, आँखि जुड़ाएत, मोन हर्षित होएत!
रूप-रंगसँ बाइस बर्खक युवती लगनिहारि भौजीक वयस हमर बराबरीक अथवा हमरासँ दू-चारि बर्ख बेसी अवश्य हेतनि, ई अन्दाज लगाएब अइ लेल सम्भव अछि, जे ओ हमरासँ दशक भरि पैघ पुरुखक पत्नी छथि, आ एम.ए. पास कचुकल छथि! अन्यथा असम्भव छल। मुदा सांसारिक ज्ञान आ तर्कमे हमरासँ दशक भरि पैघ छथि। जीवन जीवाक कतोक रास बात हमरा ओएह सिखौने छथि। पाप-पुण्यक परिभाषा ओ कोनो शास्त्रीय फारमूलासँ नँइ जीवन-संग्राममे अरजल तर्कक आधार पर दै छथि। मान्यतादिक कतोक बन्धनसँ हमरा ओएह मुक्त करौने छथि।
असलमे भौजी सन जीवन्त आ रसवन्ती स्त्रीक संगति बनि गेलनि तापस दासन भौतिक विज्ञानक प्रोफेसरसँ। तापस दासौंसे कॉलेजक विलक्षण अध्यापक मानल जाइ छथि। बेहिसाब ट्यूशन चलै छनि। कॉलेजक क्लास पूरा ककए अबै छथि, आ ट्यूशन पढ़बए बैसि जाइ छथि। बैच पर बैच खतम होइ छानि, ओएह सस्तौआ उपन्यास लकए बैसि जाइ छथि। भौजी लेल समय बचिते नँइ छनि। साँझक बेलामे हमरा संग थोड़े काल सड़क पर घुमै-फिरै छथि। चौक पर हमरा पान खुआ कए, अपने सिगरेट पीबि कए घुरि अबै छथि। फेर ट्यूशनियाँ चेला सब प्रतीक्षा करैत रहै छनि। ओ हमरा बैसबाक आग्रह करैत, पत्नीकें चाहक आदेश दैत ट्यूशनमे लीन भजाइ छथि। भौजीसँ हमर निकटता बढ़ैत जेबाक स्रोत इएह चाह छल, जे क्रमे-क्रमे जलखै, भोजन, आ शतरंजक बिसात धरिमे परिणत भगेल, भौजी धीरे-धीरे तापस दाक संगें हमर डेरो पर आबए लगलीह। बादमे तँ कहिओ-काल एसगरो आबए लगलीह। बेर-कुबेर तँ भौजी हमर अल्हड़पन पर डाँट-डपट सेहो करए लागल छलीह--समय पर नहाएल करू, समय पर खाएल करू, बेसी चाह नँइ पीबू, जर्दा खाएब पुरुख लेल नीक बात नँइ थिक, केस किऐ उजरल-पुजरल रहैए...हम सम्मान भावसँ सबटा बात सुनैत घसकि जाइत रही। तापस दामधुर परिहास करैत कहथि--आइ बढ़ियाँ धुनाइ भेल अछि देब! नीन बढ़ियाँ आओत!...आ जोरसँ ठहाका मारथि...।
पढ़बा लेल किताबक चयन पर भौजीक एहन प्रतिक्रिया प्रशंसनीय छल। मुदा तें तापस दाक निन्दा कोना सूनि लितहुँ! हम कहलिअनि--भौजी! रातिमे कोनो खट-पट भेल अछि की? खौंझाएल देखै छी!
भौजी दाँत किचैत, बनावटी तामस करैत, हमरा पर आँखि गुरारैत बजलीह--रहसू नँइ! रसगर लोक छी अहाँ से तहमरा पहिले दिन बुझा गेल छल! अबिते देरी अहाँ जाहि तरहें अटकर लगा कहमरा देखलागल रही...! खेला रहल छी शतरंज, आ ध्यान अछि रंग-रभस पर। सम्हरि कचलू! जीवनो एक टा शतरंजे होइ छै देब! प्रतिपक्षक चालि के मर्मकें बुझबाक प्रयास करैक चाही!
हम फेरसँ लजा उठलहुँ, अपन ओइ दिनक आचरण पर अफसोच होअलागल छल। हम लजाइत कहलिअनि--भौजी! ओ तँ एक टा अपरिचित व्यक्तिक नजरि छल! ओइ घटनाकें बिसरि जाउ ने! खेलमे तँ बुझले अछि, जे अहाँकें पछारब हमरा लेल आसान नँइ होएत! मुदा अहाँ दादाक मादे जे कहै छिअनि, से उचित नँइ थिक।
-ओइ घटना आ ओइ नजरिकें तहम जीवन भरि नँइ बिसरि सकब! खेलोमे पराजित हेबाक प्रतीक्षा हम करहल छी। हमर पराजये हमर असली विजय हएत देब! मुदा हम देखि रहल छी जे अहूँकें हुनकर हवा लागल जा रहल अछि। ओ तँ वस्तुतः सूखल काठ भगेलाह अछि। काठकें पोनका कहरियरी आनब कठिन अछि। अभिज्ञान शाकुन्तलम, अनामदास का पोथा, गोदान, कर्मभूमि...सब तरहक पोथी हुनका दकए देखि लेलहुँ; ओ खून भरी माँग, अन्धकार की चीख... सन-सन किताबसँ बहराइ बला नँइ छथि!
भौजीक वाक्य-खण्ड जीवन भरि नँइ बिसरि सकब!हमरा भयभीत कदेने छल। ग्लानि होइ छल अपन ओइ आचरण पर। अपन आचरणकें लगातार पवित्र करैत अपन छवि सुधारबाक छल। दोसर दिश हुनका दुनू प्राणीक बीच लास्यमय आ जीवन्त सम्बन्ध देखल छल। मुदा, भौजी सन बुधियारि, सुन्नरि आ व्यावहारिक स्त्री अपना मुँहें पतिक सम्बन्धमे एहेन कठोर वचन बाजि रहल छथि, बजबा काल भौजीक मुखमण्डल पसरल खौंझ सेहो स्पष्ट रूपें रेखांकित छल। अचरज लागल छल। सोचलगलहुँ--वस्तुतः भौजी प्रसन्नताक फुलवारी नँइ छथि, फूजल किताब नँइ छथि, चानक शीतल इजोते टा नँइ छथि, झमटगर गाछक छाहरिए टा नँइ छथि, भौजी बिहारि अनबाक मोखा छथि, बिहारिसँ पहिनेक चुप्प वातावरण छथि, चुपचाप सुनगैत दावानल छथि। हम भौजीक खौंझक कारण तकबाक प्रयास करए लगलहुँ। आ भौजीकें कहलिअनि--भौजी! हमरा पन्द्रह दिनक समय दिअ। दादा ट्यूशन पढ़ाएब छोड़ताह, से तहमरा कठिन लगैत अछि, मुदा सस्तौआ उपन्यास छोड़ि कअहाँक मनोनुकूल पोथी पढ़ए लगताह से हम वचन दै छी। पढ़बाक आदति जँ रहए, तँ व्याक्ति खराब चीजसँ नीक चीज पढ़ए लगैत अछि।
दू सप्ताह बाद भौजीकें सूचना देलिअनि--देखू भौजी, आइ हम हुनका तेसर किताब दरहल छिअनि, श्रीलाल शुक्लक रागदरबारी।
-पहिल दुनू किताब कोन छल?
-पहिल छल भगवती चरण वर्माक चित्रलेखा, आ दोसर फेर हुनके रेखा!
-ई दुनू पोथी हम नँइ पढ़ने छी। देब पढै़ लेल? आइए दिअने! हमरा लग पर्याप्त समय रहैए। अहाँक भाइ साहेबकें नेनपनमे पाइक अभाव ततेक सतेलकनि, जे पाइए टा कमाएब हुनकर जीवनक परम-चरम उद्देश्य भगेल छनि।
-भौजी! पाइ कमेबा लेल भाइ साहेब कोनो अवैध काज नँइ करै छथि, कॉलेजमे फाँकी नँइ मारै छथि। मेहनति, आ पवित्र रस्तासँ पाइ कमबै छथि, ताहिसँ अहाँकें गौरव नँइ होइए?
-हाँ, पवित्रतासँ पाइ कमाएब नीक बात थिक, मुदा, मनुष्यकें कते पाइ चाही? पाइ कथी लेल चाही? जीवनक सुख सौरभ लेल ने! जीवनक एक-एक साँस पाइ जुटेबामे लगा देब तजीवनक की करब!...जाए दिऔ, हम तआब अही जीवनकें अवधारि नेने छी। भरि दिन मशीन जकाँ अपन ऊर्जा ट्यूशनमे लगबै छथि, साँझमे काटल गाछ जकाँ निस्पन्द भेल ओछाओन पर खसि पड़ै छथि। हमहूँ करौछ, छोलनी, टी.वी. अखबार संगे दिन काटि लै छी! एसकरे घरमे पड़ल रहै छी। अहूँ बेर-कुबेर आएब, से नँइ होइए। शतरंज खेला कए थोड़ेक समय बिता लेब!
-अहाँ सन तेजस्विनी स्त्री संगे शतरंज की खेलाएब? हरदम तँ पछाड़िए दै छी।
-मौगी जातिसँ हारब अधलाह लगै? मौगी तँ पुरुष जातिसँ हारि जेबा लेल मोन प्राण ओछौने रहैत अछि। हम तबिसात ओछा कए पछाड़ खेबा लेल सदति काल तत्पर रहै छी! किऐ नँइ पछाड़ै छी? ‘शहके पहचान समय पर किऐ नँइ होइए? एतेक बोधगर लोक तछी अहाँ!
-भौजी! हमर बोध अहाँक तेजस्विता लग पछड़ि जाइए। आन ठाम तजीत जाइ छी। अहाँकें पछाड़ब सम्भव नँइ होइए।
-देब! हम अपन हरेक चालि अहाँसँ पछाड़े खेबा लेल चलै छी। मुदा हमर अभाग, जे अहाँ मैदान छोड़ि दै छी। देखी, कहिया अहाँ हमरा पछाड़ै छी। लगैए अहाँकें विशेष ट्रेनिंग देबपड़त।
चित्रलेखा, आ रेखा पढ़लाक बाद एक दिन भौजी कहलनि--देब! की हाल अछि अहाँक भाइ साहेबक? चित्रलेखा, अथवा, रेखाक किछु असर भेलनि कि नँइ?
-हाँ भौजी! भेलनि अछि, आब तओ गोदान, सुनीता, मछली मरी हुई धरि पढ़ि गेल छथि। नदी के द्वीप पढ़ि रहलाह अछि।
-मुदा हम कहब, जे ओ किछु नँइ पढ़ि सकलाह अछि। पढ़नाइ कोनो यान्त्रिक क्रिया नँइ होइत अछि। अध्ययनशीलता मनुष्यकें भिजाबए नँइ, ओ अध्ययन नँइ भेल। या तअध्ययनक उद्देश्यमे दोष अछि, या फेर अध्येताक मूल बनावट दोखावह अछि। सुखाएल गाछमे पानि ढारलासँ ओ हरियर नँइ होएत। सुखाएल गाछकें पोनकबाक आशा हम त्यागि देने छी। हरियर गाछकें भकरार आ विकासोन्मुख हेबाक प्रतीक्षा करै छी।
भौजी पढ़लि-लिखल स्त्री छथि। मुदा हुनकर एहन दार्शनिक बात सब सोझ रस्तें हमरा समझमे नँइ अबै छल। भौजी किछु संकेत तने दरहल छथि! फेर होअए--नँइ, एहेन पापिष्ठ बात नँइ सोचबाक चाही। तापस दासन पतिक रहैत, ओ एना कोना सोचतीह? मुदा किऐ नँइ सोचतीह, ओएह तकहलनि, जे साँझ कओछाओन पर काटल गाछ जकाँ खसि पड़ै छथि। अर्थात् भौजी हमरासँ किछु आओर चाहै छथि। ओ हमरा बड़ मानै छथि। किऐ मानै छथि? की कारण?...नँइ, एना नँइ सोचबाक चाही। ई पाप थिक। विश्वासघात थिक। सम्बन्धक पवित्रता आ नैसर्गिकताक हत्या थिक। मुदा भौजी ओइ दिन पाप, पुण्यक बहसमे मारिते रास उदाहरण देने छलीह। कहने छलीह, सबसँ पैघ पाप थिक मनुष्यक जीवनी शक्तिमे अवरोध लगाएब। छिड़हड़ा खेलाएब भने व्यभिचार हो, मुदा यौन-लिप्साकें दाबन देब पैघ पाप थिक, यौन-लिप्सासँ निर्लिप्त हएब अशक्य व्यक्ति लेल आसान होइत अछि। पुंशत्वपूर्ण पुरुख आ स्त्रीत्व धारण केनिहारि स्त्री एहिसँ मुक्त नँइ भसकैत अछि!...तकी भौजी हमरा नोत दरहलीए। की भौजी व्याभिचारिणी छथि? कथमपि नँइ। से रहितथि तअइ दुनियामे पुरुखक कमी छै?...
भौजी की छथि? की चाहै छथि? ओ फूजल किताब जकाँ हमरा सोझाँ पसरल छथि, हम किऐ नँइ पढ़ि पाबै छी। एहेन विलक्षण, एहेन सुन्नरि, एहेन कलावती, एहेन वाग्विदग्ध स्त्रीकें चिन्हबामे हमरा किऐ तरद्दुत भरहल अछि?
एक बेर भौजी कहने छलीह--मनुक्खक कैक टा रूप होइ छै देब! सब रूपमे ओकर अलग पहचान होइ छै। अहाँक भौजी हेबासँ पहिने हम एकटा सम्पूर्ण स्त्री छी। जेना पुंशत्वक बिना कोनो पुरुष निरर्थक, तहिना स्त्रीत्वविहीन स्त्री सेहो निरर्थके होइछ!
मोन कोनादन करए लगैए। अइ निर्णयक संग सूति रहै छी जे काल्हि भौजीकें स्पष्ट पुछबनि, हमरा कोन ट्रेनिंग देबए चाहै छी अहाँ, आ कहिआसँ देब?
अगिला दिन तापस दाकॉलेजमे भेटलाह, कहलनि--अहाँक भाउज हमरा आदेश देलनि अछि, जे खाइक समयमे हम अहाँकें संग नेने डेरा घुरी। आइ ओ अहाँक पसिन के किछु भोजन बना रहल छथि। एकटा क्लास समाप्त ककए अबै छी, तखन चलब! ठीक ने?
हम की कहितिअनि? काल्हि भौजी तेहन-तेहन गप केने छलीह, जे कैक तरहक आशंकासँ मोन तबाह छल! भौजीक ओइ बात, आ भोजनक निमन्त्रणमे ताल-मेल नँइ बैसै छल। तथापि कहलिअनि--मुदा अहाँ तँ घर पहुँचैत देरी चटिया सभमे लागि जाएब!
ओ मुस्किआइत बजलाह--ई न्यायपूर्ण बात नँइ भेल। अहाँ एतबहि दिनमे भाउजक गुलाम बनि गेल छी। हुनकहि जकाँ अहाँ हमरा पर निशाना तनने रहै छी।
क्लास समाप्त भेलाक बाद हमरा लोकनि डेरा पहुँचलहुँ। डाइनिंग टेबुल पर भोजन लगाओल गेल। थाड़ीमे परसल सोहारीमे चोपरल घी देखि तापस दास्पष्ट लक्ष्य केलनि। बजलाह--देखिऔ देब, अहाँ अपन भाउजक न्याय! अहाँक सोहारीमे घी चोपरल अछि, आ हमर सोहारीमे औंसल अछि!
अचक्केमे हम सकदम्म भगेलहुँ। की-की ने आशंका मोनमे उपजए लागल।
भौजी मुदा परम सुजान। ओ कनेक दोमि कए बजलीह--देखिअनु! लाज-धाख उठा कए पीबि गेल छथि। पेट लदरल जाइ छनि, आ घी खाइ लेल लेर चुबै छनि।
तापस दाबजलाह--अरे हम तअहाँक प्रशंसा शुरुहे केने रही, अहाँ बीचेमे टपकि गेलहुँ। हम सएह तकहैत रही, जे अइ सिकिया पहलमानकें अहाँ तन्दुरुस्त बनबए चाहै छिअनि। अहाँकें तँ प्रशंसो सुनबाक धैर्य नँइ रहैत अछि।
-हाँ से बात तँ सत्य थिक। छओ फिट्टा जवान छथि। छब्बीसक वयस छनि। पचास किलो ओजन छनि। स्वास्थ्यक प्रति सावधान तँ रहबाके चाही। कहै छिअनि घरनी आनि लिअसे नँइ करताह। स्वच्छन्दता एतेक प्रिय छनि जे भोजन धरिक अभेला करै छथि।
-आ तै स्वास्थ्य पर अहाँ कहै छिअनि बुलेट मोटर साइकिल चलबै लए!
हम चौंक उठलहुँ। ई कोन सुर लागि गेल। हँसुआक बियाहमे खुरपाक गीत! बेरा-बेरी दुनू प्राणीक मुँह ताकए लगलहुँ। सोचए लगलहुँ--सब किछु तसामन्ये छल। एना थाड़ी पर बैसा कए दुनू प्राणी कोन गोत्राध्यायमे लागि गेल छथि। की बात थिकै आखिर! कोनो सूत्र तकबाक ब्यांेतमे हम तापस दादिश तकलहुँ।
तापस दाबजलाह--देब! हमर कथनकें अन्यथा नँइ मानब। हम अहाँकें अपन सहोदर छोट भाइसँ कनेको कम नँइ बुझै छी। सुवर्णा लेल सेहो अहाँ परम प्रिय दीयर छिअनि। बेकूफीमे हमरासँ ई मोटर साइकिल किना गेल। हमरा बुतें ई निके नाँ चला नँइ होइए। हम निर्णय लैत रही जे एकरा बेच दी। अहाँक भाउजक आदेश भेल अछि, जे जेठ भाइक समस्त बखरामे छोटक अधिकार होइ छै। अहाँ पछिला किछु दिनसँ मोटर साइकिल कीनए चाहैत रही। अहाँकें अधलाह नँइ लागए तँ ई अहाँ लजाउ। नबे छै, से तँ अहाँ जनिते छी!
-मुदा दादा! हम सोचैत तअवश्य रही। किन्तु हमरा एखन पाइ कहाँ अछि?
-ओह्! तकर चिन्ता अहाँ छोड़ू! पाइ लगबे कते करतै! ऑनरशिप ट्रान्सफर करैमे ततेक खर्च नँइ होइ छै। हम छी ने! अहाँकें तँ भगवान सुवर्णा सन लछमीपात्र भाउज देने छथि! अहाँकें कोन कमी अछि?--फेर पत्नी दिश तकैत बजलाह--की यै! ऑनरशिप ट्रान्सफरक खर्च अहाँ गछै छिअनि कि नँइ?
आब भौजी बजलीह--मुदा तकर आवश्यकता की? अहाँक अनुजकें अहाँ पर एतबो विश्वास नँइ छनि, जे अहाँ मोटरसाइकिल आपस नँइ मँगबनि? आ कि अहाँकें अपन अनुज पर विश्वास नँइ अछि जे ओ अहाँक चीज-वस्तु ओ सम्हारि कराखि सकताह! ई ऑनरशिपक बखेरामे किऐ पड़ल छी?
तापस दाफेर परिहास मिश्रित रंज केलनि--अहाँ तँ गजब स्त्री छी। सदति काल हमरा पर सींघमे माटि लगौने रहै छी! अहाँक दीअर जे कहलनि, हम तकर रस्ता निकालि देलहुँ। आब हम कतए दोषी छी?
-से कोन हम साँढ़ छी, जे सिंघमे माटि लागएब!
-नँइ, अहाँ गाय छी। मुदा सिंघ तगाइयो कहोइ छै!
-मतलब हम झगराही छी?
-अरे बाबा, अहाँ परम सुशील छी। मुदा मूल बात सँ किऐ भटकि रहल छी। अहींक प्रस्ताव छल ने, जे मोटरसाइकिल जुनि बेचू। देबकें किनबाक छनि, से किनता किऐ, मूल काज तचढ़बाक छै! से चढ़थु अही पर! तबुझाउ ने अपन स्वाभिमानी दीयरकें, हमरासँ कथी लए ढूसि लै छी?
-से हम कहलहुँ तँ कोन बेजाए केलहुँ। हमर तविश्वास अछि जे अहाँक चीज-वस्तुक सम्मान देब निके नाँ करताह। हुनका सुख-भोग करैत देखि अहूँकें नीक लागत, आ हमरहु आत्मा तृप्त होएत।
हमरा आब बाजपड़ल--दादा! हम ऑनरशिप ट्रान्सफरक गप नँइ करैत रही। हम तमोटरसाइकिलक दामक गप करैत रही!
तापस दाक आँखिमे व्यथा उपजलनि...नम्हर सन साँस घिचैत बजलाह--अहाँ ई कोना सोचलहुँ देब?
भौजी बजलीह--देब! जेठ भाइक सम्पतिक दाम नँइ लगाओल जाइ छै। दाम लगौला पर ओ पड़ोसिया भजाइ छै। ई वस्तु नँइ थिकै देब! ई ममता थिकै, अनुराग थिकै!
तापस दाबजलाह--सुवर्णा! हम हिनका बुट्टी-बुट्टी चिन्है छिअनि! हम ई बात जनै छलहुँ। तें कहने रही, जे अहाँक सोझाँमे गप करब। हमर विद्यार्थी सब बैसल अछि। हम हाथ धो कए आब चलै छी पढ़बै लए। अहाँ हिनका भोजन कराउ, आ हिनकर माथमे बैसल भूतकें भगाउ। देखी आइ अहाँक चतुराइ!
तापस दाहाथ धो कट्यूशन पढ़बै लेल सीढ़ी चढ़लगला।
समूचा घर आब तीन घण्टा लेल निस्पन्द रहत। भौजीकें सिपुर्द रहत। भौजी रहतीह, आ हुनकर चारू कात निःशब्द वातावरण रहत। तापस दागदह बेर धरि ट्यूशनमे लागल रहताह।
भौजी थोड़े आओर खाइ लेल आग्रह केलनि। हमरा माथमे घुरिआइत आशंका सब समाप्त भचुकल छल। सुभस्त होइत कहलिअनि--भौजी! अहाँ तअन्ने-तीमनमे ततेक स्नेह मिला देने रहै छिऐ, जे हाथ चाटैक मोन करए लगै छै, आग्रहक गुंजाइश बचल कहाँ रहै छै!
-ककर हाथ, अपन, कि बनेनिहारिक?
हम फेर गुम्म भगेलहुँ। भौजीक बात पर निरुत्तर हेबाक हमरा लेल ई कोनो पहिल घटना नँइ छल। हाजिर जबाबी, आ बोल्डनेशमे भौजीक कोनो जवाब नँइ छल। केहनो बात केहनो परिवेशमे कहि देबाक हुनकर चतुराइ, आ हुनकर साहस विलक्षण छल। बोल्ड तहमहूँ कम नँइ रहल छी, मुदा पता नँइ किऐ, हुनका सोझाँ हमर सम्पूर्ण बोल्डनेस बिला जाइ छल। कहि नहि ई हुनकर व्यक्तित्वक प्रभाव छल, कि हुनकर आभामय रूप-सौन्दर्यक, आ कि दीयर भाउजक सम्बन्धक, हुनका सोझाँ पड़िते जेना हम हुनकर अधीनस्थ भजाइ छलहुँ।
अपन कोमल हाथक दसो अँगुरीसँ हमर दुनू गालकें चुटकियबैत भौजी बड़े अह्लादसँ बजलीह--अहाँ तमौगी जकाँ लजाइ छी देब! पुरुखकें कतौ एते लाज हो! उठू हाथ धोउ!
हाथ धोअगेलहुँ, बेसिनमे हाथ धोइते रहि गेलहुँ। सोचए लगलहुँ--भौजी सत्ते बड़ मानै छथि हमरा। कते भागमन्त छी हम! अइ दुनियामे जकरा भाउज नँइ छै, से जीवनमे कते तरहक नेहसँ वंचित रहि जाइए।...मुदा इएह भौजी एते दिनसँ प्रेम करै छथि, कहियो एना कहाँ बुझाइ छल हमरा! आइ एना किऐ लागि रहल आछि! बेर-बेर अपन दुनू गाल छूबै छी, लगैए जेना ओतए चम्पा-बेली फुला गेल हो! एना किऐ लागि रहल अछि!... भौजी आबि कबगलमे ठाढ़ि भेलीह, बामा हाथें टैप बन्द केलनि, दहिना बाँहि हमरा कन्हा पर आर-पार रखैत बामा हाथें आँचरसँ हमर हाथ पोछलनि, आ कान लग मुँह अनैत कहलनि, मोनमे किछु होअनँइ लागल अछि?...आ खिलखिला कए हँसए लगलीह। खिलखिलाहटिसँ छूटल हुनकर गर्म साँस हमर कनपट्टीसँ कन्हा पर आएल, आ कमीजक तर बाटें पीठ आ छाती दिश पिछड़ि गेल। सौंसे देहमे झुनझुनी उठि गेल। भौजीक दहिना हाथक चूड़ी हमर दहिना कानमे गरलागल छल। मुदा बाँहिक ओ ऊष्मा आ चूड़ीक ओ प्रहार नीक लागि रहल छल। हम भौजीक छाहरि दिश सहटि जाए चाहै छलहुँ, मुदा संकोच भेल।...भौजी फेर धोपलनि--फेर लाज! मन्दबुद्धि! चलू, मोटर साइकिल निकालू। डेरा पहुँचा दै छी!
मोटरसाइकिलसँ डेरा विदा भेलहँु। बैचलर डेरा। भौजीक की सत्कार करिअनि! खा-पीबि कतुरन्ते आएले छी। पुछलिअनि--भौजी, की सत्कार करू अहाँक? पानि पियाबी?
भौजी कहलनि--पिआसल तछीहे! पिआ सकब?
...
थोड़े काल बाद भौजी बजलीह--हमरा पहुँचा दिअबौआ!
-पहुँचा दिअ’?
-राखियो तनँइ सकब? हम मोटर साइकिल नँइ छी ने? सजीव आ निर्जीवमे इएह अन्तर होइ छै देब!