ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह' १२५ म अंक ०१ मार्च २०१३ (वर्ष ६ मास ६३ अंक १२५)
ऐ अंकमे अछि:-
३.८.१.बिन्देश्वर
ठाकुर "नेपाली"- प्रेम / गजल २.सुमित मिश्र- गजल १-२
विदेह
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विदेह
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती
प्राचीन कालहिसँ महान
पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक
पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२००
वर्ष पूर्वक) अभिलेख
अंकित अछि। मिथिलाक
भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़
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मिथिला, मैथिल आ
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विदेह जालवृत्तक
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"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक
सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
पर जाउ।
१. संपादकीय
विदेह: लोगो:: विद्यापति:उगना:मिथिला:मैथिली
I.
महाभारतमे
उल्लेख अछि, जे
इन्द्र-ध्वजा गाढ़ नील रंगक होइत छल। रामक ध्वजा लाल-गेरुआ रंगक छलन्हि आ’ एहि पर कुलदेवता सूर्यक चित्र अंकित छल। महाभारतमे अर्जुनक
ध्वजा पर वानरराजक चित्र छल। नकुलक ध्वजा पर सरभ पशुक चित्र छल। अथर्ववेदक अनुसार
सरभ पशु दू माथक , दूट सुन्दर पंख बला, एकटा नमगर पुछी बला आ’ सिंहक समान आठ नोकगर पैरक आँगुर युक्त्त होइत छल।अभिमन्युक
द्वजा पर सारंग पक्षी छल। दुर्योधनक ध्वजा सर्पध्वजा छल। द्रोणक ध्वजा पर मृगछाल आ’ कमण्डल छल।कर्णक ध्वजा पर हाथीक पैरक जिंजीर छल, आ’ सूर्य सेहो छलाह।
भगवान
विष्णुक ध्वजा पर गरुड़ अंकित अछि। शिवक ध्वजा पर नंदी वृषभ अंकित अछि।
दुर्गा
मण्डपमे शस्त्र,ट्क्का,पटह,मृदंग, कांस्यताल(बाँसुरीकेँ छोड़ि), वाद्य ध्वज,कवच आ’ धनुष केर पूजन होइत अछि। एहिमे सर्वप्रथम खड्गक पूजा होयबाक
चाही। तकरा बाद चुरिका, कट्टारक, धनुष, कुन्त आ’ कवच केर पूजा आ’ फेर चामर,छत्र,ध्वज,पताका,दुन्दुभि,शंख, सिंहासन आ’ अश्व केर पूजा होइत अछि। हमरा हिसाबे मिथिलाक कोनो झंडा
बिना एहि सभक सम्मिलनक संपूर्ण नहि होयत।
I.
इन्द्रस्येव
शची समुज्जवलगुणा गौरीव गौरीपतेः कामस्येव रतिः स्वभावमधुरा सीतेव रामस्य या।
विष्णोः श्रीरिव पद्मसिंहनृपतेरेषा परा प्रेयसी विश्वख्यातनया द्विजेन्द्रतनया
जागर्ति भूमण्डले॥9॥
उपर्युक्त
पद्य विद्यापतिकृत शैवसर्वस्वसारक प्रारम्भक नवम श्लोक छी। एकर अर्थ अछि- उत्कृष्ट
गुणवती, मधुर स्वभाववाली, ब्राह्मण-वंशजा, नीति-कौशलमे विश्वविख्यातओ’ महारानी विश्वासदेवी सम्प्रति संसारमे सुशोभित छथि, जे पृथ्वी-पति पद्मसिंहकेँ तहिना प्रिय छलीह जहिना
इन्द्रकेँ शची, शिवकेँ
गौरी, कामकेँ रति , रामकेँ सीता ओ’ विष्णुकेँ लक्ष्मी॥9॥ II.
मधुबनी
जिला मुख्यालयसँ दक्षिण पण्डौल रेलवे-स्टेशनक निकट भवानीपुर ग्राम बसल अछि। एहि
गामक निकट छह फीट नीचाँ जमीनमे एकटा शिव-लिंग अछि, जे उग्रनाथ महादेवक नामसँ प्रसिद्ध अछि। एहन विश्वास लोकमे
छैक जे पन्द्रहम शाब्दीक आरंभमे हुनकर सहचर उगना, जखन महाकवि प्यासे अप्स्याँत छलाह, हुनका अपन जटासँ गंगाजल निकालि कय पियओने रहथि। एहि पर
कविकेँ शंका भेलन्हि, आ’ ओ’ कविसँ असली परिचय पुछलन्हि। तकर बाद एहि स्थान पर शिव हुनका
अपन असली रूपक दर्शन देलन्हि।
एहि कथा
पर विश्वास तखने भ’ सकैत अछि, जखन तर्क आ’ विज्ञानक संग श्रद्धाक मिश्रण होय। शंकराचार्यक विष्यमे कहल
गेल जे ओ’ अपन कमंडलमे धार
भरि लेलन्हि। भेल ई जे बाढ़िमे बेचेमे पहाड़ रहलाक कारण एक दिशि बाढ़ि अबैत छल आ’ एक दिशि दाही। बीचक गुफाकेँ शंकर अपन शिष्यक सहयोगसँ तोड़ि
जखन कमण्डल लेने बहरओलाह तँ लोक देखलक जे दोसर कात पानि आबि रहल अछि। सभ
शंकराचार्यक स्तुति कएलन्हि, जे अहाँ अपन कम्मंडलमे धार आनि हमरा सभकेँ दाही सँ आ’ दोसर कातक लोककेँ बाढ़िसँ मुक्त्त कराओल। अहाँ कमण्डलमे
पानि आ’ धार अनलहुँ।
बादमे अवसरवादी लोकनि एकरा क्मत्कारसँ जोड़ि देलक। आशा अछि जे अहाँ सेहो अपन लेखमे
उगनाक कथाक तर्क आ’ श्रद्धासँ विवेचना करब।
बीस
मार्चकेँ १४ दिनुका मिथिला क्षेत्रक गृही परिक्रमा, आइ काल्हि जनकपुरक, दू टा डालाक संग- १.मिथिला बिहारी जी आ किशोरीजी आ आर
मारिते रास ढेर मन्दिरक/ भक्तक डाला सभक संग कुआ रामपुर दऽ कऽ जनकपुरमे प्रवेश
करैत छथि। कतेक भक्त तँ अपन पशुक संगे परिक्रमा करैत छथि। ई परिक्रमा कचुरी मठ, धनुषासँ शुरू होइत अछि आ अमावस्याक रातिमे पहिल विश्राम
हनुमान नगर आ चतुर्दशी दिन पन्द्रहम विश्राम जनकपुरमे होइत अछि। २१ मार्चकेँ फागुन
परिक्रमा दिन ई यात्रा जनकपुर नगरपालिकाक परिक्रमाक अंतरगृह परिक्रमा (लगभग 8 किलोमीटर) क संग होइत अछि। २२ मार्चकेँ जनकपुर आ आसपासमे
होली मनाओल जाइत अछि।
जनकपुर
मध्य परिक्रमाक १५ स्थल आऽ ओतुक्का मुख्य देवता १. हनुमाननगर- हनुमानजी
२.कल्याणेश्वर- शिवलिंग ३.गिरिजा-स्थान- शक्ति ४.मटिहानी- विष्णु मन्दिर
५.जालेश्वर- शिवलिंग ६.मनाई- माण्डव ऋषि ७. श्रुव कुण्ड- ध्रुव मन्दिर ८.कंचन वन-
कोनो मन्दिर नञि मात्र मनोरम दृश्य ९.पर्वत- पाँच टा पर्वत १०.धनुषा- शिवधनुषक
टुकड़ी ११.सतोखड़ी- सप्तर्षिक सात टा कुण्ड १२.हरुषाहा- विमलागंगा १३. करुणा- कोनो
मन्दिर नहि मात्र मनोरम दृश्य १४. बिसौल- विश्वामित्र मन्दिर १५.जनकपुर। अन्तमे
फेर जनकपुरमे खतम भऽ जाइत अछि। भक्त सभ बारहबीघा मैदान आ धर्मशाला सभमे ठहरैत छथि।
लघु
परिक्रमा आठ कि.मी. , मध्य परिक्रमा 40 कोसक (128 कि.मी.) आ वृहत परिक्रमा 268 कि.मी. होइत अछि।
१.उग्रतारा
स्थान- मण्डन मिश्रक कुलदेवी/ गोसाउनी महिष मर्दिनी भगवती, महिष्माती। १४म शताब्दीमे राजा शिव सिंहक ज्येष्ठ रानी
पद्मावती एतए एकटा मन्दिर बनबेलन्हि। खण्डवला राजवंश कालमे सेहो एतए मन्दिरक
रख-रखाव होइत छल आ राजा आसिन नवरात्रमे एतए पूजा आ रहबाक लेल अबैत रहथि।
तारा
भक्त लोकनि दुर्गापूजाक समयमे एतए खूब मात्रामे अबैत छथि !
२.कपिलेश्वर
स्थान- मधुबनीसँ पाँच किलोमीटर पश्चिम माधव मन्दिर आ पुरान शिवलिंग, सांख्य दर्शनक जनक कपिल एतए मन्दिरक स्थापना करबओलन्हि।
एखुनका मन्दिर दरभंगा महाराज राघव सिंह द्वारा २५० वर्ष पहिने बनबाओल गेल। प्राचीन
कालमे समुद्र हिमालय धरि पसरल छल आ फेर जमीन पसरल। जखन बंगालक खाड़ीक निकट
गंगासागर तीर्थ लग कपिल सगरक ६०००० पुत्र / सैनिककेँ जरा देलन्हि तखन ओ कपिलेश्वर
अएलाह। एखन गंगासागर सेहो समुद्रसँ कनेक हटि कए अछि।
जानकी
नवमी- वैशाख शुक्ल नवमी- मानुषी। रामनवमी- चैत्र शुक्ल नवमी। विद्यापतिक मृत्यु
तिथि कार्तिक धवल त्रयोदशी-देसिल बयना ।
विवाह
पंचमी- अगहन शुक्ल पंचमी। शतानन्द पुरहित-राम सीताक विवाह। मरवापर मिथिला चित्रकला
आ परिचन, गोसाउन गीत आ
नैना जोगिन ओहिना जेना जुगल सरकारक विवाहमे भेल रहए, आइयो।
मिथिला
प्राचीन कालमे मैथिलक भूमि विदेहक नामसँ- जकर राजधानी मिथिला रहए- स्थापना मिथी
(भविष्य पुराण) द्वारा। दोसर नाम विदेह, मिथिला, तीरभुक्ति, तिरहुत, तपोभूमि, साम्भवी, सुवर्णकानन, मँतिली। मिथिला माहात्म्य (वृहद विष्णु पुराण)- वृहद
परिक्रमा- सम्पूर्ण मिथिलाक परिक्रमा एक सालमे। 268 कि.मी.। कौशिकीसँ शुरू भए सिघेश्वर स्थान, ओतएसँ सिमरियाघाट, फेर हिमालयक फुटहिल्स, फेर कौशिकी होइत सिँघेश्वरस्थान। मध्य परिक्रमा- 40 कोस (128 कि.मी) 5 दिनमे, मुदा आइ-काल्हि 15 दिनमे। फाल्गुन शुक्ल पक्षक पहिल तिथिकेँ (अमावस्या) दिन
शुरू होइत अछि आ पूर्णिमा दिन खतम होइत अछि। फागुनक परिक्रमा सभसँ बेशी प्रसिद्ध
अछि मुदा परिक्रमा कातिक आ बैशाखमे सेहो कएल जा सकैत अछि।
पाणिनी-
मिथिला ओ नगरी छी जतए शत्रुक मर्दन कएल जाइत अछि। जनक- जन (विश)सँ व्युत्पत्ति।
निमी द्वारा वैजयंती (जनकपुर) आ मिथी द्वारा मिथिला नगरक स्थापना।
शरभ
नकुलक झंडापर रहए, मिथिकल जानवर जकरा दू टा माथ, दू टा पाँखि, एकटा नमगर पुच्छी, आ सिँह जकाँ 8 टा नह होइत अछि। जखन भगवन विष्णु नरसिंह अवतार लेलन्हि तखन
हुनका प्रसन्न करबाक लेल शिव शरभक रूपमे जन्म लेलन्हि। मिथिला चित्रकलाक पाँच रंग-
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरक द्योतक। अंकुश- दू फेँरक बरछा- स्पीयर जाहिसँ हाथीकेँ
नियंत्रित करैत छी, गणेश जीक अंकुश मूसकेँ नियंत्रित करैत अछि।
यूनीकोड-
1200 साल
पुरान फिगराइन आ 500 साल पुरान पाण्डुलिपि। संयुक्ताक्षर- कोष्ठकक संख्या जे
बंगालीमे नहि अछि वा बिल्कुल अलग अछि- कवर्ग (10), खवर्ग (4), गवर्ग (8), घवर्ग (4), ङ वर्ग (4) चवर्ग (6), ज वर्ग (5), झ वर्ग (4) ट वर्ग (3), ठ वर्ग (2), ड वर्ग ( 2), ढ वर्ग (3), ण वर्ग (6), त वर्ग (6) , थ वर्ग (3), द वर्ग (8), ध वर्ग (3), न वर्ग (6) प वर्ग (8), फ वर्ग (2), ब वर्ग (4), भ वर्ग (3), म वर्ग (11) अंत-संयुक्ताक्षर य वर्ग (2), र वर्ग (2), ल वर्ग (4), व वर्ग (4), श वर्ग (9), ष वर्ग (8), स वर्ग (8), ह वर्ग (8) तीन वर्णक संयुक्ताक्षर- (49) चारि वर्णक संयुक्ताक्षर (1) बिकारी (1), ग्वंग ह्रस्व-दीर्घ (2), अंजी एक टाइप अंशुमन पाण्डे द्वारा वर्णित (5) प्रकार आर।
संस्कृत-अवह्ठक विद्यापतिक नेपाल लखिमाक संग पलायन-
घुरलाक बाद अंतिम रचना दुर्गा भक्ति तरंगिणी ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापति झूमर, नचारी, महेशवाणी, जोग उचिती, बटगवनी, परिछनि, कोबर, पराती, बारहमासा, मान, तिरहुत, दृश्यकूट, शिव, भगवती आ गंगा, विष्णु, शक्ति, हर-गौरीक विषयमे गीत लिखलनि|
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
उमेश
मण्डल
जगदीश प्रसाद मण्डलक रचना संसार- संक्षिप्त परिचय
जगदीश प्रसाद मण्डल जीक जन्म 05 जुलाई 1947 ई.केँ मधुबनी
जिलाक लखनौर ब्लौकक बेरमा गाममे भेलन्हि। साहित्य लेखन 2000 ई.क पछातिसँ करए
लगलाह। शिक्षा- एम.ए. (राजनीति शास्त्र आ हिन्दी)। जीविकोपार्जन- कृर्षि।
बेरमा गामक कृर्षि-कार्यमे, सामाजिक आन्दोलनमे बढ़ि-चढ़ि कऽ भाग लऽ
अपन एक गोट विशिष्ट ओ फराक छवि बनौने छथि।
जगदीश
प्रसाद मण्डलक साहित्य विधाक विविध क्षेत्रमे योगदान छन्हि। हिनक गद्य
एवं पद्यमे प्रकाशित िनम्नांकित रचना अछि-
गद्य साहित्य-
कथा संग्रह- “गामक
जिनगी”, “सतभैंया पोखरि”, “तरेगन”,
“बजन्ता-बुझन्ता”, “उलबा चाउर”, “शम्भु दास” एवं “अर्द्धांगिनी...,
सरोजनी..., सुभद्र...., भाइक
सिनेह.... इत्यादि...”,
उपन्यास- “मौलाइल
गाछक फूल”, “उत्थान-पतन”, “जिनगीक
जीत”, “जीवन-मरण”, “जीवन-सघर्ष” “सधवा-विधवा” तथा
“बड़की बहिन”
नाटक- “मिथिलाक
बेटी”, “कम्प्रोमाइज” आ “झमेलिया बिआह”
एकांकी- “पंचबटी”
पद्य साहित्य-
कविता संग्रह- “इन्द्रधनुषी
अकास”, “राति-दिन” और “सतबेध”
गीत संग्रह- “गीतांजलि”, “तीन जेठ एगारहम माघ”, आ “सरिता”
समाजक
कल्याणमे अपन कल्याण देखब, बूझब आ विश्वास करब तथा ओइ
पथपर सतत् डेगे-डेग, समए परिस्थितकेँ धियानमे राखि आगू
मुहेँ चलब, चलैत रहब जगदीश जीक अपन सर्वविदित पहिचान रहल
छन्हि। काज (शारीरिक श्रम), भोजन आ आरामकेँ एक सहतपर लऽ
कऽ चलब, हिनक जीवनक क्रिया-कलापक महत्वपूर्ण हिस्सा रहल
अछि। ओना सामाजिक आन्दोलनक परिपेक्ष्यमे कतेको बेर जेल-यात्रा सेहो करए
पड़लन्हि। हिनकर साहित्यमे ग्राम्य लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण
दृष्टिगोचार होइत अछि।
हिनक
रचना करबाक कला-कौशल मैथिली साहित्यमे फराक स्थान रखैए। हिनका विषयमे प्रख्यात
साहित्यकार श्री गजेन्द्र ठाकुर लिखै छथि-
“जगदीश प्रसाद मण्डल शिल्पी छथि, कथ्यकेँ
तेना समेटि लैत छथि जे पाठक विस्मित रहि जाइत अछि। मुदा हिनका द्वारा कथ्यकेँ
(कथा, उपन्यास, नाटक, विहनि कथा, प्रेरक-कथा, कविता
सभमे) उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह आ क्षमता हिनका मैथिली साहित्यमे ओहि स्थानपर
स्थापित करैत अछि, जतएसँ मैथिली साहित्यक इतिहास “जगदीश प्रसाद मण्डलसँ पूर्व” आ “जगदीश प्रसाद मण्डलसँ” एहि दू खण्डमे पाठित
होएत। समाजक सभ वर्ग हिनकर कथ्यमे भेटैत अछि आ से अलंकारिक रूपमे नहि वरन्
अनायास, जे मैथिली साहित्य लेल एकटा हिलकोर अएबाक समान
अछि। हिनकर कथ्यमे कतहु अभाव-भाषण नहि भेटत, सभ वर्गक
लोकक जीवन शैलीक प्रति जे आदर आ गौरव ओ अपन कथ्यमे रखैत छथि से अद्भुत। हिनकर
कथ्यमे नोकरी आ पलायनक विरूद्ध पारम्परिक आजीविकाक गौरव महिमा मंडित भेटैत
अछि। आ से प्रभावकारी होइत अछि हिनकर कथ्य आ कर्मक प्रति समान दृष्टिकोणक
कारणसँ आ से अछि हिनकर व्यक्तिगत आ सामाजिक जीवनक श्रेष्ठताक कारणसँ। जे
सोचैत छी, जे करैत छी सहए लिखैत छी- ताहि कारणसँ। यात्री आ
धूमकेतु सन उपन्यासकार आ कुमार पवन आ धूमकेतु सन कथा-शिल्पीक अछैत मैथिली
भाषा जनसामान्यसँ दूर रहल। मैथिली भाषाक आरोह-अवरोह मिथिलाक बाहरक लोककेँ सेहो
आकर्षित करैत रहल अा ओही भाषाक आरोह-अवरोहमे समाज-संस्कृति भाषासँ देखाओल
जगदीशजीक सरोकारी साहित्य मिथिलाक सामाजिके क्षेत्र टामे नहि वरन् आर्थिक
क्षेत्रमे सेहो क्रान्ति आनत।”[1] “हिनक
गामक जिनगीक सभटा कथा उत्कृष्ट अछि, रिक्त स्थानक
पूर्ति करैत अछि आ मैथिली साहित्यक पुनर्जागरणक प्रमाण उपलब्ध करबैत अछि।”[2]
गामक जिनगी- (लघुकथा संग्रह) प्रकाशन वर्ष-
2009, ISBN- 978-81-90772-94-5.
ऐ कथा संग्रहमे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक मौलिक आ अकृत्रिम
छवि अभिव्यक्त भेल अछि। आजुक संक्रमणकालिक युगमे मिथिलाक गाम कोन तरहेँ
परम्परित जीवन पद्धति, आस्था एवं विश्वासक संग प्रबल जिजीविषाक
बलेँ संघर्ष पथपर आरूढ़ अछि तेकर सूक्ष्म विश्लेषण भेल अछि। श्रमपर विश्वास,
इमानदारी प्रयास, कर्मण्यता एवं चातुर्यक
संबलसँ विपन्नतापर विजयक ई गाथा सभ मिथिलाक जन-जीवनमे व्याप्त उत्साह ओ
संघर्षक मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत करैत अछि। उन्नैस गोट कथाक ई संकलन अछि।
कथाक शीर्षके बहुत किछु स्पष्ट करैत अछि- “भैंटक लावा”, “िबसाँढ़”, “पीरारक फड़”, “अनेरुआ बेटा”, “दूटा पाइ”, “बोिनहािरन मरनी”, “हािर-जीत”, “ठेलाबला”, “जीिवका”, “िरक्साबला”, “चुनवाली”, “डीहक बटबारा”, “भैयारी”, “बहीन”, “घरदेिखया”, “पछताबा”, “डाक्टर हेमन्त”, “बाबी” एवं “कािमनी”।
अर्द्धांगिनी..., सरोजनी...,
सुभद्र...., भाइक सिनेह.... इत्यादि...
(लघुकथा संग्रह) प्रकाशन वर्ष- 2012, ISBN :
978-93-80538-42-6. ऐ संग्रह कथा सभमे नोकरिहाराक संत्रास, नारी विमर्श, दलित विमर्श, परिश्रमी
कृषकक उल्लास, पावनि-तिहारमे पैसल अन्धविश्वास,
ग्राम जीवनमे जातीय व्यवसाय केर महत्व, टुटैत
सम्बन्ध-बन्ध, मिथिलाक सामाजिक आर्थिक ओ राजनीतिक
जीवनमे होइत परिवर्त्तन, सामाजिक आर्थिक धार्मिक शोषण,
नागर जीवनक चाक चिक्य, जीवनक सौहार्दपूर्ण
वातावरणक प्रति आकर्षन इत्यादि बिन्दु सभपर अति सूक्ष्म विश्लेषण भेल अछि।
20 गोट कथाक ई संग्रह अछि यथा- “दोहरी मारि”, “केना जीब?”, “नवान”, “तिलासंक्रान्तिक लाइ”, “भाइक िसनेह”, “प्रेमी”, “बपौती सम्पति”, “डंका”, “संगी”, “ठकहरबा”, “अतहतह”, “अर्द्धांगिनी”, “ऑपरेशन”, “धर्मनाथ”, “सरोजिनी”, “सुभद्रा”, “सोनमा काका”, “दोती बिआह”, “पड़ाइन” और “कतौ नै”।
सतभैंया पोखरि- (लघुकथा संग्रह) प्रकाशन वर्ष-
2012, ISBN : 978-93-80538-80-8. ऐ संग्रह कथाक शीर्षक अछि- “बिहरन”, “मायराम”, “गोहिक शिकार”, “मातृभूमि”, “भबडाह”, “परिवारक प्रतिष्ठा”, “फागु”, “लफक साग”, “तिलकोरक तरूआ”, “एकोटा ने”, “धोतीक मान”, “साझी”, “सतभैंया पोखरि”, “न्याय चाही”, “पनियाहा दूध”, “कर्ज”, “परदेशी बेटी”, “मान” आ “मनोरथ” कथाक एक अनुपम संग्रह थिक। एे संग्रहमे उन्नैस गोट कथा संग्रहित अछि।
श्रद्धा, भक्ति, बन्धुत्व,
अन्धविश्वास, समाजमे मनुखक खरीद-विक्री,
गाए-महिंस, खेत-पथार, समाजक
बुुनाबटिपर वैदिक प्रभाव, नीक तँ किएक, अधला तँ किएक आ केहेन इत्यादि विभिन्न विषयपर लिखल कथा-कृर्ति अछि।
तरेगन- (बाल प्रेरक विहनि कथा संग्रह) पहिल
प्रकाशन- 2009 आ दोसर- 2012 ई.मे। ISBN : 978-93-80538-25-9.
110 गोट बाल प्रेरक विहनि कथाक संग्रह थिक तरेगन। जहिना
मेघमे तरेगन अपन-अपन चमकसँ सम्पूर्ण आकासकेँ जगमगेने रहैत तहिना ऐ संग्रहक
छोट-छोट कथा सम्पूर्ण संग्रहकेँ जगमगा देने अछि। अनेक विषयकेँ समेटने अछि ई
संग्रह। एकर शीर्षकहिसँ बहुत किछु बूझल-परखल जा सकैए- “उत्थान-पतन”, “प्रतिभा”, “मर्म”, “अधखड़ुआ”, “समैक बरबादी”, “पहिने तप तखन ढलिहेँ”, “खलीफा
उमरक सिनेह”, “जखने जागी तखने परात”, “अस्तित्वक समाप्ति”, “खजाना”, “उग्रघारा”, “जाति नै पानि”, “ऊँच-नीच”, “पागलखाना” इत्यादि-इत्यादि।
बजन्ता-बुझन्ता- (विहनि कथा संग्रह) ISBN : 978-93-80538-89-1. प्रकाशन- 2012 ई.मे। 67 गोट विहनि
कथाक ई संग्रह थिक। अहू संग्रहक कथा सभ अनेकानेक विषय-बिम्बपर लिखल अछि।
जइमे नारी विमर्श, दलित विमर्श, साम्प्रदायिक
सौहार्द, महिला सशक्तीकरण, प्रकृति
वर्णन इत्यादि विषय-वस्तु सहजाक संग रूपायित भेल अछि। 67 गोट
महत्वपूर्ण विहनि कथाक ई संग्रह अछि। एक नजरि किछु शीर्षकपर देल जाए- “बुधनी
दादी”, “अकास दीप”, “खिलतोड़”, “मुँह-कान”, “अनदिना”, “अपन काज”, “पुरनी भौजी”, “छूटि गेल”, “अप्पन हारि”, “कनफुसकी”, “मुँहक बात मुँहेमे”, “गति-गुद्दा”, “बिसवास”, “कचहरिया-भाय”, “गुहारि”, “पनचैती”, “कचोट”, “अजाति”, “चौकीदारी”, “मुसाइ पंडित”, “भरमे-सरम”, “देखल दिन”, “पहाड़क बेथा”, “उमकी”, “बजन्ता-बुझन्ता”, “चर्मरोग”, “शंका”, “ओसार”, “रमैत जोगी बहैत पानि”, “कोसलिया”, “हूसि गेल”, “पोखला कटहर”, “सरही सौबजा”, “तेरहो करम”, “डुमैत िजनगी”, “चोर-सिपाही”, “दूधबला”, “समदाही”, “बुढ़िया दादी” इत्यादि।
उलबा चाउर- (लघुकथा संग्रह) ISBN : 978-93-80538-95-6.
सामंती संस्कार, सभ्य समाज, शुद्धतावादी सोच, प्रगतिशील चेतना, विलुप्त होइत मिथिलाक व्यंजन, हहरैत वैदिक
परम्परा, शब्दजाल, सुतर्कक वैशिष्टय,
पूजीवादी होरमे भँसिआइत लोक इत्यादि अनेक विषय-वस्तु ऐ संग्रहक
कथा सभमे सहजता पूर्वक देखल गेल अछि। किछु महत्वपूर्ण शीर्षकपर दृष्टिपात कएल
जाए-
“सूदि भरना”, “जन्मतिथि”, “इमानदार घूसखोर”, “पटियाबला”, “सनेस”, “उलबा चाउर”, “कलंक”, बलजोर”, “दोस्ती नै धारैए” इत्यादि।
शंभुदास- (दीर्घ कथा संग्रह) ISBN :
978-93-80538-74-7. पहिल प्रकाशन- 2012 ई.मे।
तीन गोट दीर्घकथाक संग्रह अछि। “शंभुदास”, “मइटुग्गर” एवं “फाँसी” शीर्षक अछि।
शंभुदास- कथाक विषय-वस्तु बड़ व्यापक अछि।
मिथिलाक गाम-गाममे पसरल कला-प्रेमीक, कलाकारक खिस्सा ऐ कथा
मध्य कहल गेल अछि।
मइटुग्गर- मइटुग्गर अर्थात जन्महि काल धीरज आ
घुरनीक जौआँ बच्चाक माए मरि जाइ छथिन। पिता तपेसर आ दादी संग पल्हलनिक बदौलति
बच्चाक पालन-पोसन होइ छैक। क्रमश: दुनू बच्चाक जीवन-लीलाक प्रारम्भ होइत छै आ
कथा सेहो आगू बढ़ैत अछि।
फाँसी- संग्रह तेसर दीर्घकथा छी। मनुखमे अपराध
वृत्ति केना पनपैत अछि आ तकर प्राय: छोट-छोट अनेक कारकक छोट-छोट तन्तुपर विचार
करैत बहुत दूर धरि कथा-यात्रा होइत अछि।
मौलाइल गाछक फूल- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-02-0. प्रकाशन- 2009 ई.मे।
लेखकक ई पहिल उपन्यास छियन्हि। आदर्शवादी विचारधारासँ
ओतप्रोत ऐ उपन्यासमे हिनक उदात्त सामाजिक चिन्तनक प्रक्षेपण भेल अछि। उपन्यासक
केन्द्रिय पात्र रमाकान्तक ई अवधारणा छन्हि जे संसारक सभ मनुक्खकेँ जीबाक
अधिकार छै। सभकेँ सभसँ सिनेह हेबाक चाहिऐक।
सिनेह, तियाग, संघर्ष,
प्रकृतिक विपदा, खेत-पथार, पोखरि-झाखरि इत्यादिक संग मिथिलाक विभिन्न पहलूपर नजरि दैत
मद्रासक सेहो बहुत अद्भुत चित्रण भेल अछि। द्वैतवाद, धर्म,
सम्प्रदाय, अध्यात्म इत्यादि विषयक चिन्तन
अति सूक्ष्मताक संग ऐ उपन्यासमे ठाम-ठाम सरल-भाषा आ हल्लुक बिम्बमे परिणति
कएल गेल अछि।
उत्थान-पतन- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-11-2. प्रकाशन- 2009 ई.मे।
श्री राजदेव मण्डल ऐ उपन्यासक आमुखकार छथि। ओ लिखै छथि-
“गामक जड़ता, रीति-रिवाज, पावनि-तिहार,
मूर्खता, विद्वता, अड़ि
जाइबला भाव आ सहज स्वभाव आदि सहज रूपमे ऐ उपन्यासमे आएल अछि।
कथावस्तुमे बिच्छिन्न होइत गाम-घर आ टुटैत परिवार, सबहक समस्याक मार्मिक ढंगसँ अभिव्यक्ति कएल गेल अछि। उपन्यासक
प्रारम्भ होइत अछि- ‘गामे-गाम, कतौ
अष्टयाम-कीर्तन तँ कतौ नवाह, कतौ चण्डी यज्ञ तँ कतौ सहस्त्र
चण्डी
यज्ञ होइत। जइठाम एगारहटा ग्रह एकत्रित भऽ गेल अछि। तइठाम तँ अनुमानो कम्मे हएत।
परोपट्टा भगवानक नामसँ गदमिसान होइत। जाधरि लोक कीर्तन मंडलीक संग मंडपमे कीर्तन
करैत ताधरि घरक सभ सुधि-बुधि बिसरि मस्त भऽ रहैत। मुदा घरपर अबितहि... बच्चाकेँ
बाइस-बेरहट लेल ठुनकब सुनि व्यथाकेँ दबैत सभ आँखिर नोर होइत बहबैत।’ सामाजिक उत्थान करऽ बला बेकतीकेँ गामक एहि
परम्परा आ धार्मिक आडम्बरसँ संघर्ष करऽ पड़ैत अछि। लेखक अपना पात्रक द्वारा
अंधविश्वासकेँ तोड़ि परिवर्त्तन अनबाक प्रयास कएने छथि।”[3]
ऐ उपन्यासक भाषा गाम-घरक बोल-चालक भाषा अछि। साधारण जनक
बोली आ नूतन शब्दक प्रयोग ऐ उपन्यासमे प्रचुरताक संग देखल जा सकैत अछि।
जिनगीक जीत- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-10-5. प्रकाशन- 2009 ई.मे।
अदौसँ मिथिला श्रमजीवी, तियागी
महापुरुषक राज रहल अछि। व्यक्तिक विकास समाजक मौलिक काजक श्रेणीमे अबैत अछि।
एकर चित्रण लेल उपन्यासकार देवन नामक पात्रक अवतारणा करैत अछि। सोन तँ कान
नै..., बला संकटपर सजग िमथिलानी सुमित्राक बेवहार आ विचार
सहजताक संग सहज बनबैत अछि। जेकर चित्रण अत्यन्त रोचक आ मार्मिक ढंगे प्रस्तुत
कएल गेल अछि, जे उपन्यासमे पठनीयताक स्तर बढ़बैत अछि।
सुमित्रा आ हुनक पुत्र बच्चे लाल जे शिक्षक छथि तिनका संग अच्छेलाल जे बोनिहार
रहै छथि, दुनू परिवारक सम्बन्ध ऐ तरहेँ स्थापित होइए
जेकर एकटा नव आधार-आर्थिक आधार-क परिकल्पना सुमित्रा द्वारा कएल गेल। तकर सफलता
उपन्यासकार ऐ तरहेँ देखौलनि जे आजुक विचारणीय बिन्दु अछि।
जीवन-मरण- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-26-6. पहिल प्रकाशन- 2009 आ
द्वितीय- 2012 ई.मे।
चिड़ै सदृश जीवन-पद्धति संयुक्त परिवारक महत्वकेँ
तहस-नहस कऽ देने अछि। उपन्यासक पात्र डॉ. देवनन्दन जे मिथिलासँ बाहर रहै छथि,
माए-पिताजीकेँ सेहो ओतहि रखने छथि। पिता-रघुनंदनक मृत्यु भऽ जाइ छन्हि।
मेडिकलमे पढ़ैत दुनू पुत्र सलाह दइ छन्हि ओही शवदाह गृहमे दाह-संस्कार होन्हि।
गाम जेबाक कोनो प्रयोजन नै! मुदा डाक्टर देवनंदन कहै छथिन-
“बच्चा, सभ जीव-जंतुकेँ अपन-अपन जिनगी
होइत अछि। जे जइ जिनगीमे जीबैत अछि ओकरा लेल वएह जिनगी आनन्ददायक होइत अछि....।”[4]
पिताक बात सुनि दयानन्द पुछलखिन-
“ई तँ बड़ आश्चर्यक बात कहै छी, बाबू?”
दयानन्दक जिज्ञासा देखि देवनन्दन कहलखिन-
“कोनो आश्चर्य नै। गामक दोसर नाओं समाजो छिऐ। जे शहर-बजारमे नै
अछि। समाजमे बंधन अछि जइ अनुकूल लोक चलैत अछि जेकरा सामाजिक बंधन कहल जाइत छै। एे
बंधनक भीतर धर्मक काज छिपल अछि जेकरा सभ मिलि निमाहैत अछि। मुदा शहरमे से नै छै।
कानून-कायदाक हिसाबसँ चलैत अछि जइमे दया-प्रेम नै अछि। प्रतिदिन बुढ़ाकेँ दस गोटेक
जिनगीक बात सुनब आ दस मिनट बजैक जे अभ्यास लगि गेल छन्हि से एेठाम केना हेतनि। सभ
अपने पाछू बेहाल रहैए। के केकर सुख-दुख, जीवन-मरण सुनत। भरि
पेट नीक अन्ने-तीमन खुऔने लोकक मन अस्थिर थोड़े रहि सकैए। जाधरि आत्माक संतुष्टि
नै हेतैक?”[5]
अही तरहेँ उपन्यासक आरम्भ होइत अछि। ऐ उपन्यासक केन्द्रिय
पात्र रघुनंदन छथि। जिनकर कथा-व्यथा आदिक शुरूआत हुनक मृत्यु दिनसँ शुरू
होइत अछि।
जीवन-संघर्ष- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-27-3. पहिल प्रकाशन- 2009 ई. आ दोसर 2012 ई.मे।
ऐ उपन्यासमे ग्रामीण समाजक एक-एक तन्तुकेँ दृष्टिपात
करैत विकासक बाधक ओझरीकेँ सोझरेबाक सफल प्रयास भेल अछि। सामाजिकताकेँ कमजोर
करबाक जे कोनो कारक अछि तकर चित्रण करैत यथोचित नव बाट देखेबाक सफल प्रयत्न
उपन्यासकार केलन्हि अछि।
“सभ गाममे दस-बीसटा लुच्चा-लम्पट रहिते अछि। जे सदिकाल िकछु
ने िकछु उकठ समाजमे करिते रहैत अछि ताड़ी-दारू पीब अनेरे ककरो गरियबैत रहैत
अछि। माए-बहिनकेँ देखि पीहकारी भरैत रहैत अछि। झुठ-फुस िसखा लकठी लगबैत रहैत
अछि ओहन-ओहन वृत्ति केनिहारक वृत्तिकेँ रोकब समाजक दायित्व बनि जाइत अछि
हमहूँ सएह ने केलौं जँ दुर्गा-पूजामे रामेश्वरम् नै गेल रहितौं तँ एहेन घटना
थोड़े गाममे होइत...।”[6]
“...बैसारेमे िकछु चक-चुक भऽ गेलै। समाजोकेँ धन्यवाद दी जे
गलत काजक िवरोधमे एकजुट भऽ ठाढ़ भेल। मुदा गलतियो केनिहार तँ बेवस्थेक फूल-फड़
छी, तँए ओहो कमजोर नहिये अछि।”[7]
प्रो. दयानन्दक बात सुिन प्रो. कमलनाथ कहलखिन-
“देखियौ, कोनो स्थानपर पहुँचैले रस्तो
अनेक आ सबारियो अनेक तरहक होइ छै मुदा चलनिहार जँ यएह सोचैत रहि जाए जे ई नीक िक
ओ, तहन ओ पहुँचि केना सकैत अछि अपना इलाकाक दुर्भाग्य रहल
अछि जे िवचारक क्षेत्रमे पैघ-पैघ विचार कऽ लइ छी मुदा कर्मक बेरमे शिथिल भऽ
जाइ छी। कोनो िवचार ताधरि महत्वक नै बनैत जाधरि कर्मरूपमे नै अाओत...।”[8]
विकासवादी प्रक्रियामे प्रगतिशील चेतनाकेँ जोड़ि ओइमे
नव गति आनि मिथिलाक सुदूर गाम सिसौनी आ बँसपुराक जनजीवनक अत्यंत मार्मिक चित्र
प्रस्तुत भेल अछि। महिला संग होइत अन्यायक चित्रण, बाढ़ि-रौदीसँ त्रस्त जन-जीवन, धर्मभिरू लोकक
कारनामा, प्राकृतिक विपदा, इत्यादि
अनेक विषयक दृष्यावलोकन करैत उपन्यासकार सुन्दर चित्रण कलन्हि अछि।
सधबा-विधबा- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-92-8.
नव युग नारीक नव-नव सन्दर्भक संधान केलक अछि। आधुनिक
चकाचौंधसँ अपरिचित महिला, गरीबीक जालमे फँसल महिला, पलायनसँ टुटैत सम्बन्धक सुन्न भेल कोठरीमे औनाइत महिला, विधवा आ सधवा नारीक समस्या इत्यादि-इत्यादि प्रकारक नारीक बुनियादी
समस्या सबहक चित्रण कएल गेल अछि। सरोजनी-मैयाँ आ रूक्मिणीक किछु कथोप-कथनपर
नजरि देल जाए-
“रूक्मिणी, मनमे उठि गेल छल जे
पेंइतीसे बर्खक अवस्थामे विधवा भेल रही आ अहँूकेँ देखै छी जे अही उमेरमे पतिसँ
सम्बन्ध विच्छेद भेल।”
मैयाँक बात सुनिते रूक्मिणी चमकि कऽ चमचमेली-
“मैयाँ, हिनकर अखन कते उमेर छन्हि?”
“सत्तरिम छी।”
“परिवारमे के सभ छन्हि?”
“कियो ने। असकरे।”
मैयाँक असकर सुनि रूक्मिणीक मनमे ठहकल अपनो जिनगी तँ
भरिसक तहिना अछि। बाजलि- “असकर लेल लोक घर-दुआर बना किअए रहत,
ओ परिवार केना भेल?”[9]
बड़की बहिन- (उपन्यास) ISBN : 978-93-80538-93-5.
मनोविज्ञानक घात-परिघात और अन्तर्विरोधमे कुहाइत-पिसाइत
नारीक अत्यन्त संवेदनशीलताक वर्णन ऐ उपन्यासक मध्य भेल अछि। नारीक ओहन-ओहन
समस्या जे प्राय: चिन्हित नै भेल अछि। तकर सबहक चित्रण ऐ उपन्यासमे देखल जा
रहल अछि। बसमतिया दीदी आ सुलोचना बहिन जे दुनू एक उमेरिये छथि। बसमतिया
दीदीकेँ देखिते सुलोचना बहिन पुछै छथिन-
“साले भरिमे एते लटैक गेलैं?”
दुनूक जिनगी बच्चेसँ एकठाम बीतने बजैमे कोनो कमी रहबे ने
करए। निधोक भऽ बसमतिया दीदी बजली- “तूँ ने भाए-भातिजक
कमेलहा खा कऽ गेंड़ा बनि गेलैं, हमरा के देत?”
सुलोचना- “किअए भगवान तोरा थोड़े बेपाट छथुन जे
नै देनिहार छौ?”
बसमतिया- “हँ से तँ अछिये, मुदा जएह कमाएत तेहीमे ने देत। अच्छा, कह जे
टुटलाहा लग कज्जी ने तँ रहलौं। नीक जकाँ हड्डी जूटि गेलौं किने?”
“हँ। आब तँ बाल्टीनो उठबै छी, पोतोकेँ
कोरो-काँखमे लऽ कऽ खेलबै छिऐ। अपने गाड़ियो छी, आब गामेमे
रहब।”
“ऐ उमेरमे असकरे रहि हेतौ?”[10]
इन्द्रधनुषी अकास- (कविता
संग्रह) ISBN : 978-93-80538-46-4. प्रकाशन 2012
ई.।
लोक मिथिलासँ बाहर पलायन करैत छथि तँ मण्डलजीकेँ कचोट
होइत छन्हि। मुदा जखन लोक मिथिलासँ साफे रिश्ता-नाता समाप्त कऽ आनठाम बैसि जाइ
छथि तँ मण्डल जीक हृदए जेना भोकारि पाड़ि-पाड़ि कानए लगैत छन्हि। ऐ बातक सहज
अनुभूति उड़िआएल चिड़ैमे परिलक्षित होइत अछि :
“उड़िआएल चिड़ैक ठेकाने कोन
उड़ि कतऽ जा बास करत।
भरि पोख घोघ भरतै जतऽ
दिन-राति जा रास करत।
ओहन चिड़ैक आशे कोन
जे बिसरि जाएत डीहो-डावर।”[11]
“देखू! देस परदेस कतौ जाऊ मुदा अपन माटि आ अपन संस्कृतिसँ
अपनाकेँ बिमुख नै करू। शायद यएह बात थिक ऐ कविताक मूल। अगर आँखि मूनि पलायन
करैत रहब आ अवसर एवं सफलता मात्र पेबाक कारणे अपन डीह-डावर सदाक लेल त्यागि लेब
तँ भला अहाँ केहेन मनुक्ख! अहाँक केहेन संस्कार? छोट कविताक
माध्यमसँ कतेक पैघ आ मर्मक
बात बजैत अछि जगदीश प्रसाद मण्डल केर कवि मोन! समाजशास्त्रक push आ pull factor अतए स्वत: आबि जाइत अछि।
एक आर कविता- “चल रे जीवन” अहाँकेँ रोकि लेत। कविता पढ़ु, ओकर शब्दक युग्मकेँ
देखू आ कविताक संग अपने-अापकेँ गतिमान बना लीअ। ने कविता रूकत आ ने अहाँ। कविता
पढ़ैत जाऊ कल्पना संसारक दुनियामे घुमैत जाऊ। अलंकारसँ मतभिन्नता भऽ सकैत अछि
मुदा कविताक प्रवाहमे तँ प्रवाहित भइये टा जाएब। वाह रे वाह! एहेन आसाधारन सम्बन्ध
कविता आ पाठकक बीच! जीवन गतिशील थिक। ई बात अनेको कवि अनेको भाषा आ कालमे
अपना-अपना ढंगसँ कविताक माध्यमे कहने छथि। मुदा अही बातकेँ सर्वहाराक शब्दावलीसँ
कहब। कहब की चलैत पहियापर एना बैसाएब कि पाठककेँ जोश आबि जाइक। ई कला मण्डल
जीमे छन्हि। कविताक किछु अंश देखू :
‘किछु दैतो चल किछु लैतो चल
किछु कहितो चल किछु सुनितो चल
किछु समेटतो चल किछु बटितो चल
किछु रखितो चल किछु फेकितो चल
बिचो-बीच तँू चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।
समए संग चल
ऋृतु संग चल
गति संग चल
मति संग चल।
गति-मति संग चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।”[12]
“हँ, कवि केवल गतिमान होमाक प्रेरणा टा
नै दैत छथि। ओ कहैत छथि जे जोश संगे होशमे रहू : गति संग चल/ मति संग चल/ गति-मति
संग चलिते चल।
अही तरहेँ जाल आ गालक उपमा लऽ कवि लोककेँ अगाह करै छथि :
जहिना जाल सभ तरहक माँछकेँ पकड़ैत अछि, परन्तु अगर मल्लाह
जालकेँ ठीकसँ नै ओछेलक आ काबूमे नै केलक तँ जाल फाटि जाइत छैक, माँछ भागियो जाइत छैक। तहिना मनुष्यकेँ अपन बोलीपर संयम करक चाही-
शब्दजाल छी महाजाल
जइमे समटल महाकाल
देखैमे जहिना विकराल
तहिना अछियो महाकाल।
सभ किछु भेटत आँखियेमे
सभ लटकल अछि जालेमे
सभ किछु छै गालेमे...।”[13]
जाल कविता छायावाद आ याथार्थवादक बीचक कविता अछि। जालक अनेक
यंत्र तथा जालसँ माँछ मारबाक प्रक्रियाकेँ मूल मानि एक देसी कविताक विन्यास करबाक
अनुपम क्षमता कविमे छन्हि।
राति-दिन- (कविता संग्रह) ISBN : 978-93-80538-73-0. पहिल प्रकाशन 2012 ई.मे।
मैथिलीक नव कविताक निरन्तर विकासमे श्री जगदीश प्रसाद
मण्डल पूर्ण निष्ठा आ तल्लीनताक संग ऐ विकास कर्ममे संलग्न छथि। दोसर कविता
संग्रह ‘राति-दिन’ थिक। ऐ पोथीमे 52 गोट कविता
संकलित अछि।
कविता भाव, बुधि कल्पना आर शैलीक
समन्वित परिणाम थीक।
ऐ गुण आदिसँ अलंकृत मानस सृजनक गम्भीर, सचेत प्रक्रियासँ संचालित भऽ सकैत अछि। तइ कारणे कवि अत्यधिक
सवेंदनशील होइत अछि। हरेक कालावधिमे मनुखक अन्तस मनमे अभीप्सा पालित-पोषित
होइत रहै छै आ ओइपर जखन तुषारापात होइ छै तँ जन मानस आन्तरिक वेदनासँ भरि जाइत
छै। मोह भंग भऽ जाइत छै। व्यक्तिक अन्तसँ उपजै छै। विद्रोह, कंुठा, आक्रोश, संत्रास,
क्षुब्धता, आत्म रक्षाक सबालादि। अही सबहक
अभिव्यक्ति मैथिलीक नव कविता थीक।
मण्डलजी सन सवेंदनशील कवि जे ऐ यथार्थकेँ भोगने छथि से
केना चुप्प रहि सकैत छथि। हुनका लेखनीसँ तँ संघर्षक स्वर निकलबे करतैक।
“जिनगीक होइत संघर्ष।
सीमा बीच जखन अबैत
मचबए लगैत दुर-घर्ष...।”[14]
मनुखक रीत-नीत आ बेवहारमे कतेक परिवर्त्तन भऽ गेलैक अछि।
बदलैत जुग-जमानापर हिनकर कहब छन्हि-
“जुग बदलल जमाना बदलल
बदलि गेल सभ रीति-बेवहार।
चालि-ढालि सेहो बदलि गेल
बदलि गेल सभ आचार-विचार...”[15]
अंग्रेजी भाषापर शब्दक प्रहार करैत कहैत छथि-
“अंग्रेजी पढ़ि अंग्रेजिया बनि-बनि
पप्पा-मम्मी आनत घर।
बाप-दादाक कि भेद ओ बुझत
अड़ि-अड़ि बाजत निडर।”[16]
सतबेध- (कविता संग्रह) ISBN : 978-93-80538-94-2. पहिल संस्करण- 2012 ई.मे।
मण्डलजीक अनेक कविता संग्रह मध्य सतबेध कविता संग्रह
सेहो एक अनुपम काव्य संग्रह अछि। मनुक्खक ई स्वभाव रहलैक अछि जे नीकक जिम्मा
लेइमे तैयार रहत मुदा अधलाक भार से चाहे ओकरे केलहा किएक ने होउ, ओइसँ कात भऽ जाएब पसन्द करैत अछि। ऐ परिपेक्ष्यमे कवि कहैत छथिन-
“अपने हाथक खेल मीत यौ
अपने हाथ खेल।
संगे-संग दुनू चलैए।
इजोत-अन्हार बनैत रहैए।
हँसि-हँसि कानि-कानि
पटका-पटकी करैत रहैए।”[17]
मनुक्खक जिनगीमे व्याप्त जे कोनो नीक-बेजाए होइछ तकर जिम्मा
कवि स्वयं मानवपर केन्दित करैत छथिन्ह। आगू ईहो कहैत छथिन जे-
“के केकर हित के केकर मुद्दै
दिन-राति देखैत रहै छी।
गरदनि पकड़ि जे कानए कलपए
पकड़ि गरदनि तोड़ैत देखै छी...।”[18]
यथार्थवादी चित्रणमे ओ कतेक सजग इमानदार छथि तेकर उदाहरण
स्पष्टत: करैत कहै छथि-
“हित बनि मिलि संग चलैए
मुद्दै बनि-बनि लड़ैत रहैए।
सोझमतिया चालि पकड़ि-पकड़ि
झाँखुर-बोन ओझराइत रहैए...।”[19]
गीतांजलि- (गीत संग्रह) ISBN : 978-93-80538-72-3, पहिल संस्करण- 2012 ई.।
51 गोट गीतक संचयन थिक गीतांजलि। गीतांजलिक एक-एक गोट
गीतमे भेल शब्दक प्रयोगसँ सहजहि बुझाइत अछि जे एक गोट विशिष्ठ शब्द-साधक
रूपमे श्री मण्डलजी स्थापित भेल छथि। विषय-बिम्ब तँ बेस सम्हरि कऽ अख्तियार
करै छथि जेना-
“डगडगाएल हाल पाबि उस्सर
फूल उस्सर सिरजैत रहै छै।
घूरि ताकि नै भरमए भौरा
दिवा रसराज कहबैत रहै छै।
हाल-बेहाल देखि राग-रागनिक
तीन जेठ एगारहम माघ- (गीत संग्रह) ISBN : 978-93-80538-88-4, पहिल संस्करण- 2012 ई.मे।
74 गोट गीत-काव्यक समायोजन “तीन जेठ एगारहम
माघ” पोथीमे केने छथि। ऐ पोथीक समर्पणकेँ देखल जाए-
“मिथिलाक वृन्दावनसँ लऽ कऽ बालुक ढेरपर बैसल
फुलवाड़ी लगौनिहारकेँ एवं नव विहान अननिहारकेँ समर्पित।”[21]
समर्पणक भावसँ सेहो बहुत किछु स्पष्ट सहजे भऽ जाइत अछि।
प्राकृति वर्णनमे हिनक नव प्रतीक एवं बिम्ब द्रष्टव्य अछि-
“थल-कमल जकाँ कहियो
गाढ़-लाल-उज्जर बनै छै।
तहिना फूल-फल कोढ़ि जकाँ
झरि-झरि कोनो फलो बनै छै।
गाछक रंग बदलि रहल छै
मौसम संग...। ”
“...बिनु तनने घोकचि-मोकचि जौं
जाड़ माघ अबैत रहै छै।
चैतक चेत चेतौनी ओहिना
सिर जेठ धड़ैत रहै छै।
सरिता- (गीत संग्रह) ISBN : 978-93-80538-94-9. पहिल संस्करण- 2013 ई.।
ऐ पोथीमे 51 गोट गीत संकलित अछि। संकलित गीतमे “आजादी”, “समाज”, “अबिते अगहन”, “मोनेमन”, “अबिते आंगन”, “चालनि-सूप” इत्यादि गीतमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक
रचना-वैविध्य सहज द्रष्टव्य होइत अछि। आजादिक गरमाहटि, सामाजिक विद्रुपता, प्रकृति सौन्दर्य, मानवीय मनोविज्ञानक संग-संग मानवीय त्रासदीक रूप-वैविघ्य ऐ संग्रहक विशिष्टता
अछि। अगहनक सुषमा द्रष्टव्य अछि-
“अबिते अगहन ओस ओसा धड़ धरती धड़ए लगै छै।
चर-चाँचर आँचर पकड़ि उजाहि सिल्ली चरए लगै छै।”[23]
मिथिलाक बेटी- (नाटक) ISBN : 978-93-80538-03-7 पहिल संस्करण-
2009 ई.मे।
“मिथिलाक बेटी नाट्क ‘कर्म प्रधान विश्व
करि राखा’ सिद्धान्तक आधारपर लिखल गेल अछि। एकटा कर्मठ
आ इमानदार व्यक्तिकेँ समाजमे की-की सहय पड़ैत अछि, ओइ
परिपेक्ष्यक मार्मिक चित्रण कएल गेल अछि। कथाक मूलमे कर्मनाथक विआह क्रममे
आएल एकटा गरीब (चमेलीक पिता) व्यक्तिक मनोदशाक प्रस्तुति नीक अछि। ओ व्यक्ति
गरीब छथि मुदा ‘चार्वाक दर्शन’क पालक।
‘पेटमे खढ़ नै सिंहमे तेल’ जेबीमे
कैंचा नै मुदा नअ हन्नाक बटुआ जइमे भोगक वस्तु छलिया सुपारी पान आ तमाकू।
हमरा सबहक गाममे एेना होइत अछि, भोजन नै मुदा, पान अवश्य। पग-पग पोखरि माछ मखान... मधुर बोल मुस्की मुख पान... नेना
पढ़लक, नै पता, कनियाकेँ पथ्य भेटल
नै जनै छी, बेटीक लेल दूध अछि... नै। मुदा! पान अतिआवश्यक,
हाथी मरि गेल, सिक्करि लऽ कऽ बौआ रहल छी।
कर्मनाथक अपन पत्नी चमेलीक संग वार्तालापमे ‘खट्टर ककाक तरंग’क दर्शन होइत अछि। गाममे प्रचलित लोकोक्तिक हास्य मुदा, सत्य प्रस्तुति।”
“रामविलास जीवनक अंतिम पड़ावमे माधुरीसँ माने अपन पत्नीसँ अपन
जीवन-यात्राक व्याख्यान करैत छथि, आश्चर्यमे पड़ि
गेलहुँ। जिनका संग चालीस बर्खक यात्रा कएलनि ओ हिनक जीवन दर्शन नै जनैत छलीह।
हमरा सबहक समाजमे एे प्रकारक घटना होइते अछि। गरीव नेनपनक बाद सोझे प्रोढ़ भऽ
जाइत छथि। जे कर्मवादी छथि हुनक अंतिम अवस्था सुखमय नै तँ......। अपन कर्मक
नावकेँ कलकत्तामे मजगूत कऽ सोझे गाम आबि जाइत छथि। मातृभूमिक प्रति सिनेह,
गामेमे गैरेज खोलवाक योजना अछि। चौघारा घर बनाएव, दलान अवश्य रहत, किएक तँ दलान समाजक मर्यादा थिक
गामक जीवन शहरसँ सुखमयी अछि। एे पोथीमे पलायनवादक विरोध कएल गेल अछि।”[24]
कम्प्रोमाइज- (नाटक) ISBN :
978-93-80538-44-0 पहिल संस्करण- 2012 ई.मे।
अंक विहिन 13 दृश्यमे विभक्त ई नाटक अछि। ऐ नाटकमे
बेस सम्हरि कऽ नाट्य-कथाक समायोजन केलन्हि अछि। पलायनसँ भेल मिथिलांचलक
कृषि-कार्यक मध्य बाधापर नव चेतनाक संग नव बाट अख्तियार केलन्हि अछि। ऐ
नाटकक पात्र छथि नसीवलाल- किसानक अगुआ, सुकदेव, मनचन, सोमन आ रामरुप- बटेदार, कर्मदेव-
बी.ए. पास युवक, प्रो. कृष्णदेव, िदनेश-
मैट्रिकक छात्र, शिवशंकर- बोरिंग-दमकल एजेंट, घनश्याम- बैंक मैनेजर, बहादुर- नौकर, मनमोहन- इंजीनियर, संतोष- एग्रीकल्चर ग्रेजुएट,
डाॅ. रघुनाथ- सेवा निवृत डाॅक्टर। नारी पात्र- अनुराधा- डाॅ.
रघुनाथक पत्नी, सुधा- कृष्णदेवक बेटी,
शान्ती- पंचायत मुखिया, आभा- शिक्षिका एवं सोनिया-
सुकदेवक पत्नी।
झमेलिया बिआह- (नाटक) ISBN :
978-93-80538-45-7, पहिल
संस्करण- 2012 ई.।
झमेलिया बिआह’क झमेला जिनगीक स्वाभाविक
रंग परिवर्तनसँ उद्भूत अछि, तँए जीवनक सामान्य गतिविधिक
चित्रण चलि रहल अछि कथाकेँ बिना नीरस बनेने। नाटकक कथा विकास बिना कोनो बिहाड़िक
आगू बढ़ैत अछि, मुदा लेखकीय कौशल सामान्य कथोपकथनकेँ विशिष्ट
बनबैत अछि।
“नाटकक सातम दृश्य सभसँ नमहर अछि, मुदा
बिआह पूर्व वर आ कन्यागतक झीका-तीरी आ घटकभाय द्वारा बरियाती गमनक विभिन्न रसगर
प्रसंगसँ नाटक बोझिल नै होइत छैक। आ घटक भायपर धियान देबै, पूरा
नाटकमे सभसँ बेशी मुहावरा, लोकोक्ति, कहबैकाक
प्रयोग वएह करैत छथिन। मात्र सातमे दृश्यकेँ देखल जाए-
“खरमास (बैसाख जेठ) मे आगि-छाइक डर रहै छै।” (अनुभव के बहाने बात मनेनइ).....।”
“पुरूष नारीक संयोगसँ सृष्टिक निर्माण होइए।” (सिद्धांतक तरे धियान मूलबिंदुसँ हटेनइ)......।
“आगूक विचार बढ़बैसँ पहिने एक बेर चाह-पान भऽ जाए।” (भोगी आ लालुप समाजक प्रतिनिधि)......।
“जइ काजमे हाथ दइ छी ओइ काजकेँ कइये कऽ छोड़ै छी।” (गर्वोक्ति).......
“जिनगीमे पहिल बेर एहेन फेरा लागल।” (कथा
कहबासँ पहिले धियान आकर्षित करबाक सफल प्रयास)....।
“खाइ पीबैक बेरो भऽ गेल आ देहो हाथ अकड़ि गेल......”[25]
पंचवटी- (एकांकी संचयन) ISBN : 978-93-80538-41-9 पहिल संस्करण- 2012 ई.मे।
पाँचटा एकांकी संग्रह थिक। संभवत: तँए पंचवटी नाओं राखल
गेल अछि। सतमाए, कल्याणी, समझौता,
तामक तमघैल आ बिरांगना नामक एकांकीक संचयन अछि।
सतमाए शब्दसँ सामान्य जनमे जइ भावनाक रेखांकन होइत अछि
तइसँ भिन्न ओकर विशेषतापर दृष्टिपात “सतमाए” एकांकीमे कएल गेल अछि।
“तामक तमघैल” प्राचीन एवं नवीन नारी जीवनक
दस्तावेज अछि। पतिक मृत्युक पश्चात अपन एवं सन्तानक जीवन हेतु संघर्षरत पत्नी
तथा मैथिल समाजमे विधवा एवं सासु-पुतोहुक बीचक खाधि अादिक मर्मस्पर्शी चित्र
ऐ एकांकीमे चित्रित अछि। पंचवटी वास्तवमे मैथिली एकांकी विधाक अविस्मरणीय
संग्रह अछि।
संक्षिप्त परिचयक क्रममे हमरा लोकनि
हिनक अखन तकक सृजित-प्रकाशित साहित्यपर दृष्टिपात कएल। लक्षित भेल जे श्री
मण्डल जीक अखन तकक गद्य-एवं-पद्य साहित्यक श्रीवृद्धिमे अहम याेगदान छन्हि।
गद्य साहित्यमे, लगभग सात दर्जन लघुकथा, लगभग पन्द्रह दर्जन विहनि कथा तीन गोट दीर्घ कथा, सात गोट उपन्यास, तीनटा नाटक तथा पाँचटा एकांकी अखन
तक प्रकाशमे अछि।
तहिना पद्य साहित्यमे सेहो बेस योगदान छन्हि। “इन्द्रधनुषी
अकास”, “राति-दिन”, “सतबेध”, “गीतांजलि”, “तीन जेठ एगारहम
माघ” तथा “सरिता” नामक पद्य संग्रहमे 31 दर्जन कविता तथा गीत संग्रहित अछि। एकर अतिरिक्त
उत्कृष्ट विषय
जेना “अवतारवाद”, “संस्कार
गीत”, “उपन्यास साहित्यमे गामीण चित्रण” पर कएक गोट निबंध सेहो प्रकाशित छन्हि। श्री मण्डल जीक धारणा छन्हि
जे जाबे धरि मनुक्ख सुपत कमाइ कमा अपन जीवन िनर्धारित नै करता ताबे धरि
हवा-विहाड़िमे भँसबे करता जइसँ जिनगी पूर्णतासँ हटिते रहतैक। तँए अपन जिनगीकेँ
अपना हाथमे लऽ कऽ जे जीवन-यात्रा करता वएह जिनगीक सही रस पीब विहारी बनि कुन्ज
विहार करता। “विदेह प्रथम पाक्षिक मैथिली ई-पत्रिका (www.videha.co.in)”
पर हिनक सभ रचना श्री गजेन्द्र ठाकुर जीक बाएबे होइत रहल अछि, तही आशाक
संग हम सभ आशान्वित छी जे अही गतिसँ श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, जे हमरा सबहक बीच जाज्वल्यमान नक्षत्रक रूपमे छथि, आगूओ अहिना रचनारत् रहता तथा श्रुति प्रकाशन, नई
दिल्ली, अहिना हिनक रचना सभकेँ सोझा अनैत रहए।
सम्पर्क-
ग्राम-पोस्ट- िनर्मली, वार्ड- नं. 06
जिला- सुपौल
मोवार्इल- 8539043668
[1] मौलाइल गाछक फूल उपन्यासक पछिला कवर
पृष्ठ- अतिम
[2] गामक जिनगी कथा संग्रहक पछिला कवर पृष्ठ-
अतिम
[3] उत्थान-पतन उपन्यासक आमुख, पृष्ठ- 5
[4] जीवन-मरण उपन्यास, पृष्ठ- 7
[5] जीवन-मरण (उपन्यास), पृष्ठ- 07
[6] जीवन-संघर्ष उपन्यास, पृष्ठ- 48
[7] जीवन-संघर्ष उपन्यास, पृष्ठ- 48
[8] जीवन-संघर्ष उपन्यास, पृष्ठ- 48
[9] सधबा-विधबा,
उपन्यास, पृष्ठ- 05
[10] बड़की बहिन- उपन्यास, पृष्ठ-05
[11] इन्द्र धनुषी अकास (कविता संग्रह), पृष्ठ- 30
[12] इन्द्रधनुषी अकास (कविता संग्रह) आमुख
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र, पेज- 07
[13] इन्द्रधनुषी अकास (कविता संग्रह) आमुख
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र, पेज- 08
[14] राति-िदन (कविता संग्रह), “कविता-संघर्ष”, पृष्ठ-11
[15] राति-िदन (कविता संग्रह), “जुग बदलल जमाना बदलल”, पृष्ठ-12
[16] राति-िदन (कविता संग्रह, कविता- “घरक लोटिया बुड़ले अछि”, पृष्ठ-13
[17] सतबेध कविता संग्रह, “अपने हाथक खेल मीत यौ”, कवितासँ, पृष्ठ- 13
[18] सतबेध कविता संग्रह, “किछु ने बूझै छी” कवितासँ, पृष्ठ-
7
[19] सतबेध कविता संग्रह, “किछु ने बूझै छी” कवितासँ, पृष्ठ-
8
[20] गीतांजलि गीत संग्रह, पृष्ठ- 08
[21] तीन जेठ एगारहम माघ (गीत संग्रह), पृष्ठ- 05
[22] तीन जेठ एगारहम माघ (गीत संग्रह), पृष्ठ- 11
[23] सरिता गीत संग्रह, गीत- अबिते अगहन, पृष्ठ- 15
[24] “अंशु” (प्रबन्ध
संग्रह) शिवकुमार झा टिल्लू, पृष्ठ- 53
[25] झमेलिया बिआह (नाटक) आमुखकार श्री रवि
भूषण पाठक, पृष्ठ- 5
जगदीश
प्रसाद मण्डल
बड़की बहिन
(उपन्यास)
आगाँ...
साल भरि पछाति मुनेसरक दुरागमन भेल।
दुरागमन भेला पछाति साधना सासुर एली। सासुरक रहन-सहन, घर-दुआर देखि मनमे
जबरदस धक्का लगलन्हि। जे स्वाभाविको छलै। कतए अफसरक परिवार आ कतए एकटा छोट-छीन गामक किसान
परिवार। मुदा एहेन खाली साधनेक भेलन्हि से नै, धनेरोकेँ भेलो छन्हि आ होइतो छन्हि।
ओना साधनाक अपनो (नैहर) परिवार गामेक
छलन्हि मुदा नोकरी भेने परिवारकेँ संगे राँचीमे रखैत छला। राँचीयेमे जमीन कीन
मकानो बना नेने छथि। अफसर-एस.डी.ओ रहने दोसो-महिम आ सरो-सम्बन्धी
अगुआएल तँ छन्हिहेँ। ओना परिवारमे तीन भाए-बहिनक बीच
साधना सभसँ जेठ (पहिल
संतान) रहने
दोसर-तेसरक
लेल अभिभावके सदृश रहथिन। मुदा बेटी तँ बेटी होइत, बिआह-दुरागमनसँ पहिले
धरि माए-बापक
घरकेँ अपन घर बुझैत। अपना गामसँ श्यामानन्द (साधनाक पिता) सम्बन्ध तोड़िये
जकाँ लेलन्हि। कहैले तँ घर-घराड़ी छन्हिहेँ मुदा रहैक घर नै। साधारण घर छलन्हि
जे किछु दिन पछाति गिर पड़लन्हि, दोहरा कऽ बनबैक खगता नहियेँ बुझलन्हि।
दुरागमनसँ पूर्व धरि मुनेसर परिवारक
भारक बीच नै पड़ल छला, मुदा
पछाति पत्नी एने किछु जबावदेही तँ भइये गेलन्हि। अपना ओते खेत-पथार नै जे गिरहस्तीसँ
जीविकोपार्जन कऽ सकैत छला,
तइ संग समाजमे पढ़ल-लिखल संग हँसैक जबरदस समस्या तँ जन्म लइये नेने छल जे जँ
पढ़ल-लिखलकेँ
नोकरी नै भेलन्हि तँ समाजमे पीहकारीक पात्र बनियेँ जाइत छथि। गाम-घरमे प्रचलित
अछि ‘पढ़ए
फारसी, बेचए
तेल देखू भाइ करमक खेल’ बिनु
खेतबला जँ गिरहस्त बनि गिरहस्ती अपना लेत सेहो बात नहियेँ छै। जीविकोपार्जन
लेल केहेन गिरहस्ती चाही ओ तँ सबहक लेल संभव नै। खेतक खरीद-विकरी होइ छै; सम्पति छिऐ।
ओना जेठ भाय जुगेसर नोकरी करैत छेलखिन। लोअर प्राइमरीक शिक्षक छला, मुदा अखुनका
जकाँ ने सरकारी छल आ ने तेहेन वेतन। दुनू भाँइ मिला परिवार नमहर छेलन्हिहेँ।
जहिना सभ पढ़ल-लिखल
वेरोजगारकेँ होइ छै तहिना मुनेसरकेँ सेहो होइत छलन्हि जे एतए नोकरीक आवेदन करू, ओतए नोकरीक इन्टरभ्यू
दिऔकक स्थिति तँ रहबे करन्हि। ओना समाजमे (ग्रामीण इलाका) गनल-गूथल पढ़ल-लिखलक संख्या
मुदा जतबो छल ओकरो नोकरीक अाशा तँ नहियेँ छलै। आ ने अखुनका जकाँ सरकारी कार्यालय
छलै। ओना अखनो कम अछि। नमहर-नमहर पंचायत छल, चालीस-चालीस, पचास-पचास पंचायतक बीच ब्लौक थाना छलै। तइ संग सरकारी
कामो-काज कम छल
जइसँ सरकारी काजमे प्रवेश करब कठिन तँ छेलैहे। ब्लौकमे अफसरक नाओंपर एकटा बी.डी.ओ. रहैत छला। काजो
कम, अन्नक
अभाव रहने खैरातक बॅटवारा आ कोटाक माध्यमसँ अमेरिकन गहुमक विक्री। चीनीक कोटा
नै बनल छल। एक तँ चीनीक उत्पादन नीक, दोसर खेनिहार कम। तहिना स्कूलो-कओलेजक संस्था
सएह, ‘गनल
कुटिया नापल झोर’ सदृश
छल। जे शिक्षक काज करैत छला ओ सेवा-निवृत्त हेता तेकर पछातिये नव चेहराक प्रवेश हेतन्हि।
बैंकक लोक नाओंएँ टा सुनैत छल जे ओइमे रूपैआक लेल-देन होइ छै।
दुरागमनक किछुए-दिन पछाति
साधना नैहर गेली। अखन धरि पिता-श्यामानन्द बेटी-जमाइक घर-दुआर नै देखने।
बी.एस.सी. लड़का, शरीरसँ स्वस्थ
सुनि बेटीक बिआह केलन्हि। तइ समए बेटिओ (साधना) मैट्रीक पास
केनहि रहन्हि। बिआहो समैसँ भेल छलन्हि। नैहर आपसीक पछाति साधना जखन सासुरक
सभ हाल माए-पिताकेँ
कहलन्हि तखन पिताक मनमे जमाइक नोकरीक प्रश्न उठलन्हि। मुनेसरकेँ राँचीये बजा
लेलन्हि। जमाइक नोकरीक चर्च संगियो-साथी आ सरो-सम्बन्धीक बीच गप-सपक क्रममे करए
लगला। राँची विश्वविद्यालयक केमेस्ट्रीक हेडक सोझा सेहो चर्च केलन्हि। दुनूक
बीच घनिष्ठ दोस्ती। डेरो अगले-बगलमे रहन्हि। हुनकर (हेडक) ससुर हाइ स्कूल
पलामूमे बनौने छथि। ओना जंगल-झाड़क इलाका पलामू, मुदा छोट-मोट कसबा जकाँ
तँ छेलैहे। हुनका बूझल छलन्हि जे स्कूलमे जे साइंस-टीचर छला, ओ छोड़ि कऽ
दोसर नोकरी करए चलि गेला जइसँ साइंस टीचरक अभाव छै। ओ फोन कऽ ससुरकेँ पुछलखिन।
विद्यालयमे शिक्षकक अभाव रहबे करै, मुनेसरकेँ नोकरी भऽ गेलन्हि। दिनांक 1-10-1969 ई.केँ िनयुक्ति
भेलन्हि। विद्यालयो सरकारी नहियेँ भेल छल, मुदा कोठारी कमीशनक मंजूरी तँ भइये गेल छलै। एक सए
पाँच रूपैआक महीनाक नोकरी मुनेसरकेँ भऽ गेलन्हि। नोकरीक समए पत्नी कओलेजमे पढ़ैत
रहथिन, तँए पिते
ऐठाम रहितो छेलखिन। अपने असगरे पलामूमे रहैत छला आ छुट्टीमे राँची अबै-जाइ छला। ओना
साइंस शिक्षककेँ सभठाम ट्यूशन चलिते अछि जे मौका मुनेसरोकेँ भेटलन्हि। एक तँ
ग्रामीण जिनगीक जीवन स्तर, तइपर अविकसित इलाकाक नोकरी, बचत नीक होइत छलन्हि। किछुएँ दिन
पछाति राँिचयेमे जमीन कीन अपन घर सेहो बना लेलन्हि। मकानसँ किछु किरायो आबए
लगलन्हि। अपन पैतृक गाम मुनेसर छोड़िये जकाँ देलन्हि। कहियो काल बहिन-सुलोचनाकेँ
कपड़ो आ रूपैओ पठा दइ छेलखिन मुदा आबा-जाही नहियेँ जकाँ छलन्हि।
हाइ स्कूल शिक्षकक लेल ट्रेनिंग करब
जरूरी छल। ट्रेंड-आ-अनट्रेंड शिक्षकक
बीच वेतनोक अंतर छलै आ बिना ट्रेंड शिक्षककेँ स्थायी हेबामे सेहो बाधा छलै।
मुनेसरक नियुक्तिक दू साल पछाति मारवाड़ी कओलेज दरभंगामे ट्रेनिंगक पढ़ाइ
शुरू भेल। दसे मासक कोर्स। डोनेशनपर एडमीशन होइत। जे पढ़ाइक समए (सेशन शुरू भेला
बादो छह मास धरि एडमीशन होइते रहल।) चारि मास पछाति मुनेसरो एडमीशन लेलन्हि। छबे
मासमे ट्रेंड भऽ पुन: पलामू ज्वाइन कऽ लेलन्हि।
ओना ओइ समए झारखंड लगा बिहार छल। राज्योक
स्थिति दू भागमे विभाजित। उत्तर-बिहार आ दछिन बिहारक स्पष्ट अन्तर अछि। दछिन-बिहार (झारखंड) मे खेती-पथारी कम होइ
छै। खेती जोकर माटियो कम छै। कम क्षेत्र उपजाऊ अछि। पहाड़ी-जंगलक इलाका।
ओना खनिज सम्पदा प्रचूर मात्रामे अछि। कोयलासँ लऽ कऽ अबरख धरिक खान अछि। जखन
कि उत्तर बिहार गंगा-ब्रह्मपुत्रक तलहटी मैदान छी। पहाड़ जंगल नहियेँ जकाँ छैक।
ओना गाछी-बिरछी
पर्याप्त अछि मुदा पहाड़ी लकड़ीक नै।
खनिज सम्पदा रहने दछिन बिहारमे देशी
विदेशी पूँजीपति आ सरकारियो कारोबार पर्याप्त मात्रामे छै। रंग-रंगक खनिज-सम्पदा, तँए विस्तृत
रूपमे कारोबार चलैत अछि। देशी-विदेशी पूँजीपति आ सार्वजनिक (सरकारी) कारोबार रहने
रोजगारो बहुतायत अछि। मुदा जंगली-पहाड़ी इलाका रहने स्थानीय मूल वासीक बीच शिक्षाक
प्रचार-प्रसार
कम भेल अछि। साधारण-सँ-कुशल श्रमिकक सृजन नहियेँ जकाँ अछि। साधारण मजदूरक
रूपमे रहल अछि। मुदा उत्तर बिहार पढ़ै-लिखैमे अगुआएल। जइसँ कुशल श्रमिकोक
संख्या बेसी। तँए उत्तर-बिहारक पढ़ल-लिखल लोक दछिन बिहार जा नोकरी करए लगला आ घरो-दुआर बना बसि
गेल छथि। अगिलो पीढ़ीक लेल जीविकोपार्जनक उपाए बनियेँ गेल छन्हि।
उत्तर बिहारक अर्थात् मिथिलांचलक ईहो
दुर्भाग्य रहल जे कृषि प्रधान क्षेत्र होइतो पहाड़ी नदी ततेक अछि जे क्षेत्रकेँ
नष्ट कऽ देने अछि। ओना तीन रूपमे धार प्रवाहित होइत अछि। किछु धार एहेन अछि
जे मात्र बरसातक मौसममे प्रवाहित होइत अछि आ पछाति सूखि जाइत अछि। प्रवाहित
होइत किछु धार एहेन अछि जे असथिरसँ बहैत अछि, काट-छाँट नहियेँ
जकाँ करैत अछि। हजारो बर्खसँ एके स्थानपर बहैत अछि। किछु धार एहनो अछि जे
काटो-छाँट
बेसी करैए आ उपजाऊ माटिकेँ बालुसँ भरि नष्टो करैत अछि। जइसँ गाम-गामक खेतिओ नष्ट
होइ छै आ घरो-दुआर
नष्ट होइ छै। जीवन-यापनक मूल आवश्यकता उत्पादित पूँजी नष्ट भेने पड़ाइन तँ
लगले छल आ लगले रहत।
ओना मिथिलांचलक माटि-पानि, हवाकेँ अनुकूल
रहने उर्वर शक्ति तँ छइहे। जइसँ केतबो लोक गामसँ पड़ा देश-विदेशक कोण-कोणमे बसला मुदा
अखनो गाम-घरक
आवादी सघन तँ अछिये।
गामसँ तीन कोस हटि जुगेसरो नोकरी करैत
छला आ डेराे बाहरे रखने छला। कारणो छल जे ने अखुनका जकाँ गाड़ी-सवारी छलै आ ने
बान्ह-सड़कक
दशा नीक छलै। शहर-बजार
छोड़ि ने पीच (पक्की
सड़क) गाम दिस
बढ़ल छल आ ने बिजली। मुदा तैयो 1947 इस्वीक अंग्रेज भगा अपन स्वतंत्र देश
बनेबाक विचार तँ जन-जनक मनमे छलन्हिहेँ। गुलामीक शोषणसँ देशक स्थिति बिगड़ि
गेल अछि, जइसँ
देशक विकास अवरूद्ध भऽ गेल अछि। स्वतंत्र भेला पछाति विकासक रास्ता देश जरूर
पकड़लक। मुदा तते असथिरसँ जे आजादीक साठि-पँइसठि बर्ख पछातियो, जनकेक हरसँ खेतियो
होइत अछि आ करीने-ढोसिसँ
पटौनी। कृषि-प्रधान
देश (जइ
देशमे अस्सी प्रतिशतसँ ऊपर आवादी कृषि आधारित अछि) रहितो पाछू
पड़ि गेल। किछु पूँजीपति सत्ता हथिया शहरे-बजारक विकास
धरि देशक अर्थ-बेवस्थाकेँ
समेटि लेलक। तइ संग ईहो नै नकारल जा सकैत अछि जे जे मिथिलांचलवासी आन-आन देशक उन्नतिमे
अपन शक्ति बेचि सेवा करै छथि ओ मिथिलांचलसँ, अपन मातृभूमिसँ आँखि सेहो मूनि लेलन्हि।
देशक सत्ता किसानक समस्यासँ हटि जाति-धर्मक एहेन वातावरण बना देने अछि जे
वास्तविक विकासकेँ अवरूद्ध कऽ देने अछि। मिथिलांचलक पानि-माटि आ मौसममे
एहेन अनुकूलता अछि जे साइयो रंगक अन्न, फल, तरकारी संग साइयो रंगक चिड़ै, पशु लेल अनुकूल
अछि। मुदा सभ किछु रहितो कि अछि से सबहक सोझे अछि!
ओना अठबारे (शनि-रवि) जुगेसर गाम अबिते
छला तइ संग पावनिक छुट्टी आ अनदिनोक छुट्टीमे सेहो अबिते छला। स्थितियो एहेन
नै छलन्हि जे साइकिलो कीन सकितथि। ओना परिवारो तेहेन नमहर नहियेँ छलन्हि।
तहूमे अपने अन्तै रहै छला। जइठाम डेरा रखने छला ओइ परिवारक बच्चा सभकेँ पढ़बैत
छला। बदलामे भोजन आ रहैक बेवस्था छलन्हि। ने बाइली ट्यूशन छलन्हि आ ने दरमाहा
छोड़ि दोसर आमदनी। शनिचरा प्रथा समाप्त भऽ गेल छल।
जुगेसरक सासुर मुंगेर जिला। गंगा दियाराक
गाम। तीन भाँइक भैयारीमे ससुर जेठ रहथिन। संयोग एहेन भेलन्हि जे छोट दुनू
भाएकेँ बेटो भेलन्हि, हिनका
(जुगेसरक
ससुरकेँ) दूटा
बेटियेटा। बहुत बेसी जमीनबला परिवार तँ नहियेँ छलन्हि मुदा पच्चीस-तीस बीघा तँ
छलन्हिहेँ। भैयारीक सम्पतिक प्रश्न भैयारीमे टकराएल। दुनू छोट भाएक कहब छलन्हि
सभ दिन अबैत-जाइत
रहती। मुदा से जेठ भाय रमानन्दकेँ मान्य नै। रमानन्दक विचार छलन्हि जे हम
अपन हिस्सा बेटियेकेँ देबै। भैयारीमे जमीन लऽ कऽ विवाद ठाढ़ भेल। छोट दुनू
भाँइ विचार केलन्हि जे किछु होउ, जमीन तँ गामेमे रहत। ओ तँ ससरि कऽ नै जाएत। तखन गामक
लोक कीन लेत आ रूपैया उठा कऽ दऽ औथिन्ह। गामे-गाम तँ तीन तसियो
चालिक लोक अपन चािल चलैबते छै। मुदा किछु होशियारी भेल। दुनू भाँइ साैंसे गामक
लोककेँ खास कऽ तीन तसियाबलाक बैसार केलन्हि। बैसारमे अपन प्रस्ताव देलखिन जे
जखन भैयाकेँ बेटा नै छन्हि तखन बुढ़ाड़ीक सेवा भेलन्हि से भातीजे सभ करतथि, जइसँ कुलो-खनदानक इज्जत
बचल रहल आ सेवो हेतन्हि। किअए अनेरे बुढ़ाड़ीमे ऐगाम-सँ-ओइगाम बौएता।
समाजोकेँ जँचल। मुदा रमानन्द सेहो अपने मनक लोक। परिवारसँ समाज धरिक किनको बात
सुनैले तैयारे नै। अकछि कऽ समाजक सभ दुनू भाँइकेँ कहि देलखिन जे भैयारीक झंझट
अछि समाज ऐमे नै पड़त। मौका पाबि दुनू भाँइ पूछि देलखिन-
“जँ कियो चोर-नुकबा लिखा लथि, तखन?”
जते गोटे बैसल रहथि पंच-परमेश्वरक रूपमे
रहथि, अनुकूल
विचार देखि अनुकूलतामे भँसि हरे-हरे एक्के शब्दमे बाजि उठला-
“जे
समाजसँ बाहर हएत, ओ
बेटीचोद हएत।”
बजैकाल तँ सभ बाजि गेला मुदा पछाति अपनेपर तामस उठए लगलन्हि
जे सस्त चीज हाथसँ निकलि गेल।
जहिना आगिक
ताउपर लोहियाक जिलेबी,
कचड़ी पेनीसँ उठि ऊपर अलगि जाइत तहिना रमानन्दकेँ भेलन्हि। गंगाकातक गाम
जकाँ गामक लोक सोझे-सोझी रमानन्दकेँ दुतकारए लगलन्हि। अखन धरि समाजमे
अहाँकेँ लोक कोन नजरिये देखैत रहल आ अहाँ कि करैपर उताहुल छी। मुदा तेकर कोनो
असरि रमानन्दकेँ नै भेलन्हि।
1940 ई.क लगातिमे रमानन्द मैट्रिक पास केने
छला। जइ समए हजारो विद्यार्थी स्कूल-कओलेज छोड़ि आजादीक आन्दोलनमे कूदि अपन सर्वस्व
नास केलन्हि। ओइ समैक उत्पादित मनुख रमानन्द सेहो छथि, अंग्रेजी धुर-झार बजै छला।
रेल-तार इत्यादि
सरकारी सेवाक कतेको गोटे नोकरी छोड़ि अपन आहुत देलन्हि। मध्यम किसान परिवारक
रमानन्द। पिताक देख-रेखमे परिवार चलैत, तँए घरक छुट्टा आदमी। एतए-ओतए घुमनाइ आ
गुलछर्ड़ा छोड़नाइ जिनगीक काज छलन्हि। मुदा जहिना शरीरमे रोगक आगमसँ धीरे-धीरे शरीरक
शक्ति ग्रसित हुअए लगैत तहिना रमानन्दकेँ परिवारसँ समाज धरिमे हुअए लगलन्हि।
जे भातीज बड़का बाबू कहै छलन्हि ओ मुँहपर गारि पढ़ए लगलन्हि। मनुष्योक तँ
अजीव स्वभाव होइ छै। घनिष्ठ-सँ-घनिष्ठ मित्र जँ कोनो अधला वृत्तिमे फॅसि जाइत
अछि तखन जे स्थिति पैदा लैत सएह रमानन्दोकेँ भेलन्हि। समाजक लोक ने कियो
दरबज्जापर बैसए कहन्हि आ ने गप-सप करैले तैयार। जहिना खुला जहल होइत, तहिना रमानन्दकेँ
भेलन्हि।
भैयारीमे विवाद उठने मुकदमाबाजी सेहो
उठल। समांगसँ पातर रहने रमानन्द कमजोर पड़ए लगला। सोझेमे भाए सभ खेतक जजाति, गाछ-बाँस उजाड़ए-काटए लगलन्हि।
दुनू भाँइ अबधारि लेलन्हि जे जते मुकदमा करता करथु। थानो आमदनी बुझलक, तँए हिसाब मिला
कऽ चलैत। दुनू बेटी-जमाएकेँ बजा अपन सभ दुखरा सुनबैत रमानन्द कहलखिन-
“जहिना, हम अपन सभ सम्पति अहाँ सभकेँ दिअए चहै छी तहिना तँ अहूँ
सभकेँ चाही जे ओकरा बँचा कऽ लऽ जाइ।”
दुनू बेटी-जमाएक बल जहिना
रमानन्दकेँ भेटलन्हि तहिना ओहू दुनू भाँइकेँ समाजक लोक मुकदमामे संग दिअए
लगलन्हि।
धीरे-धीरे रमानन्दक
मन टुटए लगलन्हि। एक तँ साठि बर्खक उमेर टपि गेेल तइपर कोट-कचहरीक दौड़सँ
लऽ कऽ बेटी-जमाए
ओइठामक दौड़-बरहा
तते बढ़ि गेलन्हि जे गामसँ बेसी अन्तै गुजरए लगलन्हि। असगरे पत्नी घरमे
सकपंज भेल छलन्हि आ अपने बौआइत-बौआइत फिरिसान।
किछु दिन पछाति पत्नी अस्सक पड़लखिन।
ने दियादवाद आ ने गामक कियो एको बेर पुछाड़ि करए आबनि दुनू बेटिओ-जमाए लगमे नै, मधुबनी जिलाक
गाममे। ने उचित समैपर डॉक्टरी देख-भाल होन्हि आ ने दवाइ-दारू। किछु दिन
पछाति मरि गेलखिन। पत्नीक मुइला पछाति रमानन्दक जिनगी आरो जटिल भऽ गेेलन्हि।
गाममे जखन रहथि तखन भानसो-भातक ओरियान अपने करए पड़न्हि। आमदनी सेहो भाए सभ
रोकि देलखिन। अन्ना-गाँहिस देखि दुनू जमाइयो हाथ-मुट्ठी सक्कत
केलन्हि। फटो-फनमे
रमानन्द पड़ि गेला। जिनगीक कोनो सोझराएल बाट देखबे ने करथि।
जिनगीक अंतिम पाँच बर्ख रमानन्दक एहेन
बितलन्हि जेकरा लोक नरकक बास कहै छै। हारि-थाकि किछु दिन
बाद अपनो (रमानन्द) मरि गेला।
जमाइयो सभ आवाजाहीक संग केसो-मुकदमा देखब छोड़ि देलन्हि। अंत-अंत एकतरफा केस
भऽ गेल।
जुगेसरक गाममे दियादिक दोसर परिवारमे
वेमात्रेय भैयारीक बीच विवाद उठल। एक भाएकेँ एक बेटा आ दोसरकेँ चारिटा। चारू
भैयारी मिलि पाँचम भाएकेँ (वेमात्रेय) उपद्रव कऽ गामसँ भगा देलकन्हि। किछु
दिन तँ ओ (पाँचम
भाए) सर-सम्बन्धीसँ लऽ
कऽ समाजक बीच चक्कर लगौलन्हि, मुदा किछु हाथ नै लगलन्हि। अन्तमे खिसिया कऽ पिताक
सम्पतिक (जमीनक) कागज-पत्तर कलक्ट्रीएटसँ
निकालि कहि देलखिन जे अपन हिस्सा घराड़ी तक बेचि लेब। बीघाक लगभग हिस्सा
पड़ैत रहन्हि। मुफ्तक माल खाइबला सभ समाजमे रहिते अछि। तीन-चारिटा परिवार
खेत लिखबैक विचार कऽ लेलन्हि। मुदा विवाद तँ बीचमे छेलैहे। लेबालक बीच प्रश्न
उठैत जे जमीन-जयदादक
विवाद छी, मारियो
हेबे करत आ थाना-फौदारी
सेहो हेबे करत। ने मारिक ठेकान अछि आ ने कते दिन झंझट रहत तकर ठेकान। तँए
दुनूकेँ नजरिमे रखि लेन-देन करब। तहिना जमीनबलाक (पाँचम भाय) बीच प्रश्न उठल
जे जँ सस्तमे लिखि देबै,
तइसँ लाभ कि हएत? तखन तँ
नीक अछि जे अपने भैयारी सभ खाथि। कम-सँ-कम एक परिवारक तँ छथि। मुदा चालियो देनिहारक तँ
कमी नहियेँ अछि। उनटा-सीधा मंत्रक तते डाकनि पड़ल जे बैहरा करकरेतक बीख जकाँ निच्चा
मुहेँ ससरल।
अन्तमे फड़िआएल जे अधिया (खेत लिखौनिहार) तैयार भेला।
बेचिनिहारकेँ (पाँचम
भाएकेँ) तते
चारू भाँइ गंजन केने जे तामस कमबे ने करैत। होइत-हबाइत अधिया
दाममे जमीनक लेन-देन भऽ
गेल। ओही लेबालमे एकटा जुगेसरो। मुदा संयोग नीक रहलन्हि जे जुगेसर अपने स्कूलक
नौकरी दुआरे बाहरे रहथि तही बीचमे गाममे दाेसर लेबालक संग मारि भऽ गेल। जबरदस
मारि भेल। दुनू दिस कपार फुटल, बाँहि टुटल। सौंसे गाम सना-सनी पसरि गेल।
अनेको भागमे समाज विभाजित भऽ गेल। किछु गोटे खुलि कऽ दुनू गोटेक (दुनू पार्टीकेँ) केसमे गवाही
दइले तैयार भऽ गेला। किछु गोटे मारियोमे संग देलकन्हि। किछु गोटे व्यक्तिगत
पूँजी देखि अपनाकेँ दुनूसँ अलग रखलन्हि। मुदा समाजोक लत्ती तँ एहेन सकबेधने अछि
जे नहियोँ विचार भेने परिस्थितिवश मजबूरीमे ‘हँ’ कहए पड़ै छै। सेहो भेल। ततबे नै लत्तीक सोर एहेन अछि
जे गामेमे लोक सासुर-मातृक सेहो ठाढ़ कऽ लइए।
ओही झंझटमे जुगेसर आठ कट्ठा जमीन कीनैक
विचार केलन्हि। ओना दुनू परानीक विचार जे मुनेसरकेँ ऐ जमीनमे संग नै करब। मुदा
परिवारक तँ विधिवत् बटबारा भेल नै अछि तखन जेठ भाय छिऐ, छोट भाएक हिस्सा
तँ भइये जाएत। तँए कहि देब जरूरी अछि। जँ अाधा खर्च देत तँ ठीके छै नइ तँ अपन
दोख तँ मेटा लेब। विचारक पाछू पेटमे रहन्हि जे मुनेसरक आमदनी ततबे छै जे कहुना
कऽ परिवार चलै छै। तखन रूपैया कतए सँ आनत? तइ बीच मनमे ईहो जे गुप-चुप दाम भेल अछि
किने, बढ़ा
देबै। कहुना (अधिया
दाम भेने) चारि
कट्ठा तेफैसला (तीन फसिला) खेतक भैलू कम नै
भेल।
पोस्ट कार्डक माध्यमसँ जुगेसर
मुनेसरकेँ जनतब देलखिन। स्कूलक दरमाहा तँ जुगेसरकेँ बूझल, मुदा ट्यूशनक
आमदनी तँ नै बूझल। तइ संग पत्नियो (मुनेसरक) विचार देलखिन जे नैहरमे देल बरतन-वासन जे अछि ओ
अनेरे घरमे ढनमनाइत रहैए,
ओकरा बेचि कऽ जमीन कीन लिअ। अखन धरि दुनू भाँइ -जुगेसर-मुनेसरक- बीच पहिलुके
सम्बन्ध जीवित छल। मुनेसर आधा खर्च दइले तैयार भऽ गेला।
जमीनक रजिष्ट्री जुगेसर दुनू भाँइक
नाओंसँ करा लेता। अपन कमजोर पाशा देखि जुगेसर दुनू परानी विचार केलन्हि जे नीक
हएत बेटा नाओंसँ जमीन लिखौल जाए। मुनेसरकेँ कोनो पता नै। तइ समए रजिष्ट्रियो
आॅफिसमे अखुनका जकाँ नै छल जे लिखौनिहारोकेँ उपस्थित रहए पड़ैत। कियो केकराे
नाओंसँ जमीन लिखा सकैए। तइ संग पान-सात बर्ख पछाति दस्ताबेज भेटै छै, ताबे बातो पुरना
जाइत। तहूमे कागजक खोज जखन हएत तखन ने जँ नै हएत तँ के बूझत? ने भिनौज भेल
अछि आ ने खेती-पथारी
बँटल अछि। तखन तँ गाममे रहै छी जेना-तेना जनक हाथे खेती कऽ लइ छी। बात खुजबे ने करत, तँ मुहाँ-ठुट्ठी आकि हल्ला-फसाद हएत किअए।
जहिया भीन हएब तहिया बूझल जेतै। अनुकूल विचार बूझि जुगेसर अपना बेटाक नाओंसँ
आठो कट्ठा जमीन लिखा देलन्हि। जे पछाति दुनू भाँइक बीच विस्फोटक भऽ गेल।
किछु साल पछाति रजिष्ट्रीक भेद खूगल।
भेद खूगिते दुनू परिवारमे अनोन-विसनोन शुरू भेल। दू तरहक अनोन-विसनोन उठल। एक
तरहक भेल जे मुनेसर दुनू बेकतीक बीच आ दोसर तरहक भेल जुगेसरक बीच। जुगेसरक पत्नी
पिताक सम्पतिक खेल देखि चुकल छली जे अछैते हिस्से हिस्सा नै भेल। तँए पतिपर
दबाव बनौने जे जे भेल माने बेटा नामे रजिष्ट्रीसँ नीक भेल। मुदा जुगेसरकेँ सद्य: भाइक संग
बेइमानी आ समाजक बीच दोखी हेबाक डर मनमे नचैत रहन्हि। मुदा बेटो जुआन भऽ गेल
रहन्हि। अपन खास हिस्सा बूझि ओहो माइयेक पीठपोहू बनल। तहिना दोसर दिस
मुनेसर अपन आमदनी देखि सबुर करैत। आमदनियोँ नीक बनि गेल रहन्हि। सरकारीकरण भेने
नीक दरमाहा, तइ संग
ट्यूशनो फीस बढ़ने अधिक आमदनी, राँचीक मकान भाड़ा सेहो जोर दैत। मुदा साधनाक भूख (सम्पतिक भूख) आरो उग्र भऽ
गेलन्हि। तहूमे अपन बाप-माइक देल बरतन-बासन बिकाएल रहन्हि। दुनू परानीक बीच
खुलि कऽ मतभेद शुरू भऽ गेल। गप-सपक क्रम एना भेलन्हि। मुनेसर पत्नीकेँ बुझबैत
कहलखिन-
“देखियौ, राँची सन शहरमे
अपन मकान भऽ गेल, गाममे
रहैक कोनो प्रश्ने ने अछि। तखन तँ ओहए (भैया) खेतियो करै छथि, खेबो करता।”
मुनेसरक विचारकेँ कटैत साधना अपन अर्थशास्त्रीय तर्क देलखिन-
“जखन
गाममे नै रहब तखन गामक पूँजीकेँ मार पूँजी किअए बनौने रहब। ओकरा बेचि कऽ बैंकमे
जमा कऽ लेब तैयो सूदि आओत। नै जँ घरे आरो बना लेब तैयो भाड़ा एबे करत।”
पाशा बदलैत मुनेसर तर्क देलखिन-
“बाप-पुरखाक जँ
घराड़िये बेचि लेब तखन कोन मुँह लऽ कऽ जिनगी जीब। कोनो कि पेट जरैए जे बेचब।”
होइत-हबाइत ई भेल जे
गामक खेत भरना लगा बैंकमे जमा कऽ लेब। मुदा विवाद तँ बीचमे भैयारीक रहबे करन्हि।
किछु दिन
पछाति दुनू बेकती (मुनेसर-साधना) गाम आबि अपन डीह-डावरसँ लऽ कऽ
बाध धरिक बँटबारा करैक विचार जुगेसरक सोझामे रखलन्हि। विवादी जमीन (जे रजिष्ट्री
भेल रहए) छोड़ि
सभ किछु बँटैले तैयार भऽ गेला। नइ मामासँ कनहा मामा नीक। विवादी जमीन छोड़ि
बाकि बाँटि लेलन्हि।
हरिहरक
भैयारीमे अढ़ाइ कट्ठा घराड़ी। जे बँटाइत पाँच धूरपर आबि गेल।
जइ समए सुलोचना
सासुरसँ नैहर आएल छली ओ समए देशक आन्दोलनक तूफानी दौड़ छल। सन् 1942क दमनचक्र
प्रारम्भ भऽ गेल छल। परोपट्टाक (झंझारपुर इलाकाक) लोक अंग्रेजी
हुकुमतक खिलाफ सड़कपर उतरि गेल छल। गोरा-पलटनक उड्डा झंझारपुर बनल छल। कतेको
गाममे आगि लगाओल गेल। कतेको गोटे गुप्तवासमे काज करैत छला। कतेको गोटे मारि खा-खा जहलमे बन्न
छला। मुदा लाजिमी बात ईहो रहल जे ऐठामक कतेको परिवार गोरा सरकारक संग देलक। रहै-खाइक बेवस्थाक
संग-संग सम्पतिक
लूट सेहो केलक।
ओना गाममे
सुलोचना बहिन सन कतेको गोटे छथि जे सासुरसँ भगाओल छथि। अपन माए-बाप, भाए-भाैजाइक संग
सेहो रहै छथि आ असगरो बोनि-बुत्ता कऽ जीवन-यापन सेहो करैत
छथि। किछु गोटेकेँ सन्तानो छन्हि आ किछु गोटेकेँ नहियोँ छन्हि।
अदौसँ एक पुरुष
एक नारी सम्बन्धक विधानो आ बेवहारो तँ बनल रहल मुदा परिवारकेँ आगू बढ़ैक लेल
किछु कमी तँ छेलैहे। ओ कमी अछि जे मनुष्यक शरीरक बनाबटि समान नै होइत अछि।
बहुलांशमे सन्तानोत्पत्तिक शक्ति समान रहैत आएल अछि तँ तइ संग कमी-बेसी सेहो रहल
अछि। कतौ कोनो पुरुखमे शक्तिक कमी तँ कतौ कोनो महिलामे। तहिना कतौ कोनो
पुरुखमे बेसी रहल अछि तँ कतौ कोनो महिलामे। शक्तिहीन पुरुख रहने क्षेत्रज सन्तानक
चलनि सेहो रहल अछि। मुदा शक्तिहीन नारी भेने तँ परिवारकेँ आगू बढ़ैमे बाधा
उपस्थित भाइये जाइत अछि। तइठाम दोसर नारीक सहारा जरूरी भऽ जाइत अछि। जँ से नै
हएत तँ परिवारक अन्त हएत। अन्ते नै हएत बुढ़ाड़ी आ बीमारीक अवस्था सेहो कष्टकर
हएत। मुदा आवश्यक-आवश्यकता
तखन आराम आ विलास दिस बढ़ैत अछि जखन भो-विलासक मनोवृत्ति जोर मारैत अछि। जइक
चलैत समाज-परिवारमे
िवकृतताक रूप पकड़ैत अछि। से भेल। समाजक अगुआएल (खास कऽ आर्थिक
रूपे) आ मध्य
वर्गीयो परिवारमे एक-सँ-अधिक बिआह करब नीके जकाँ चलनिमे आबि गेल। जइसँ एक
पुरुख एक नारीक प्रथापर जबरदस चोट पड़ल। मुदा केतबो जबरदस चोट किअए ने पड़ल, तैयो सोलहन्नी
नष्ट नै भेल। ओना निम्न वर्गमे सेहो बीमारी पैसल मुदा दोसर रूपमे। ओना राजशाही
बेवस्थामे ऊपर-सँ-नीचाँ धरिक किछु
परिवार जोड़ाएल छल, तइ परिवारक
बीच भोगी-विलासी
मनोवृत्तिक परिणाम छल, जखनकि
गरीबमे पेटक दर्द कारण भेल। एहेन पुरुखोक संख्या कम नै जे कामचोर, आलसी, नशाखोर इत्यादिक
कारणे पत्नीकेँ नै राखि पबैत छल। नै रखैक माने ई जे पत्नीक भरण-पोषण नै कऽ पबैत
छल। मुदा सेहो सोलहनी नै भेल। एहेन बहुतो महिला छली जे पुरुखे जकाँ श्रम करैत
छली। जिनका मनमे पतिक प्रति असीम श्रद्धा आ मजगूत संकल्प छलन्हि। अपन जिनगीक
सभ सुख पतिमे अरोपि नेने छली।
एकसँ अधिक बिआह
करैक रूप दिनानुदिन बदतर होइत गेल। अनेको रंगक कुत्सित रोगक जन्म होइत गेल।
पुरुखोक विचार एते घिनौना रूप पकड़ि लेलक जे दर्जनक-दर्जन बिआह करए
लगला। तइ संग ईहो भेल जे पुरुखक उमेरोक ठेकान नै रहल। जे उमेर बिआहक नहियो छल
तहू उमेरमे बिआह करए लगला। जइसँ अपने किछुए दिन पछाति मरि जाइत छला आ जुआनियेँसँ
महिला वैधव्य रूपमे बदलि जाइ छली। विधवा जिनगीक बीच एहेन परिस्थिति पैदा
लऽ लैत छल जे समाजमे रोग बनि गेल।
ओना नारीक प्रति
पुरुख सोलहो आना अन्याइये केलन्हि सेहो नै। लड़का-लड़कीक (पुरुख-नारी) बीच दुनू तरहेँ
रोगक प्रवेश भेल। कतौ बलक प्रयोग भेल तँ कतौ पुरुख-नारीक बीचक आंगिक
सम्बन्ध सेहो भेल।
प्रश्न उठैत जे
अदौक परम्परा (वैदिक
परम्परा) पर एते
भारी चोट पड़ल आ सभ पुरुख-महिलाक मुँह देखैत रहि गेला। नै, ऐठाम ईहो बात देखए
पड़त जे ने सभ गामक एक रंग चालि-ढालि, खान-पान, बात-विचार अछि आ ने सामाजिक विकासक प्रक्रिया एक रंग
अछि।
एक रंग नै होइक
अनेको कारण अछि। एक तँ छोट-छोट राज्यमे विभाजित छल। जइ तरहक राज्य छल ओइ
तरहक रजो छला। ओना मिथिलांचल सेहो कतेको जमीन्दारीक संग राज्योमे विभाजित
छल। सभकेँ अपन-अपन
शासनक संग सामाजिक बेवस्थाे संचालित करैक अलग-अलग ढर्ड़ा छल।
ओना क्षेत्रक हिसाबसँ सेहो अंतर छेलैहे। खान-पानक संग उपारजन
करैक सिस्टमोमे अंतर पहिनौं छल अखनौं अछि। अखनो एहेन क्षेत्र अछि जइठाम ने
बाढ़िक कोनो प्रभाव (धारक काट-छाँट) तेहेन पड़ल जइसँ ओइठामक खेत-पथार, वास भूमि
प्रभावित भेल। मुदा एहनो क्षेत्रक कमी नै जइठाम उपजाऊ भूमि धारो बनि गेल आ
बालुओसँ भरि गेल अछि। जे कहियो सुन्दर गाम (वासक हिसाबे) छल ओ उजड़ि
गेल। बिनु अन्न-पानिसँ
मनुख जीब केना सकैए? ई तँ
प्रश्न तहियो छल आ अखनो अछिये।
एकटा आरो भेल। ओ
ई जे जइठाम पुरुख-नारीक
बीच परिवार ठाढ़ भेल ओइठाम पुरुख प्रधान बेवस्था रहने अनेको तरहक अबलट लगा
नारीकेँ घरसँ भगाएब। केकरो सन्तानोत्पत्ति शक्ति नै रहने, तँ केकरो चरित्रहीन
कहि इत्यादि-इत्यादि, लट जोड़ि घरसँ
अलग कऽ देल जाइत छल अखनो कऽ देल जाइए।
गामक समस्या (भाइक बेवहार) दुनू परानी
मुनेसरक सम्बन्धमे खाधि बनैत गेल। दुनू भाँइक भिनौजी सुलोचनाकेँ सेहो बाँटि
देलकन्हि। एते दिन सुलोचना दुनू भाँइक बीच छली मुदा भीन भेने जुगेसरसँ हटि
मुनेसरक संग भेली। जुगेसर मुनेसरक खेती छोड़ि देलकन्हि। भाइक खेती छोड़ने खेतीक
समस्या मुनेसरकेँ उठलन्हि। कारणो स्पष्टे अछि। अपने दुनू
परानी बाहरे रहितो छला आ गामक आवाजाही सेहो नहियेँ जकाँ छलन्हि। गाममे नै रहने
माले-जाल
केना पोसि सकै छला, जइसँ
खेती करितथि। ओना बाहरोमे दुनू बेकती मुनेसर एकठाम नहियेँ रहैत छला। बाल-बच्चाक संग
पत्नी-साधना
राँचीमे रहितो छली आ हाइ-स्कूलमे नोकरियो करैत छली जखन कि मुनेसर पलामूमे
रहैत छला। एक तँ दुनूक दूरी अधिक अछि दोसर जँ स्कूलमे छुट्टियो होइत छलन्हि
तैयो ट्यूशन रहिये जाइत छलन्हि। तँए राँचीयोक आबा-जाही कमे-सम रहैत छलन्हि।
जिनगीक दूरी विचारोक
दूरी बनौने रहलन्हि। जइठाम साधनाकेँ अपन परिवारक चिन्ह-पहचिन्हमे कमी
छलन्हि तइठाम मुनेसर भाइक आगू सम्पति-जमीनकेँ गौण बुझैत छला। स्पष्ट दुनूक
मतभेद होइत गेलन्हि। अपन हक-हिस्सापर साधना अड़ली तँ मुनेसर आगू बढ़ैसँ हिचकिचाइ
छला। होइत-हबाइत
भेल ई जे दुनू गोटे एक दिन िनर्णयक लेल तैयार भेला। दुनूक बीच प्रश्न-उत्तर एना भेलन्हि।
साधना- “जखन खेत
कीनैमे आधा खर्च भैयाकेँ देलियनि तखन ओ किअए अपना बेटा नामे लिखा बेइमानी
केलन्हि?”
साधनाक मजगूत तर्कसँ मुनेसर सहमि गेला। मुदा अपनाकेँ उदार
बनबैत उत्तर देलखिन-
“ओ (भैया) जँ बेइमािनयेँ
केलन्हि तइसँ हमर की बिगड़ल?”
(क्रमश: जारी...)
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर
पठाउ।
साक्षात्कार
श्री
राजदेव मण्डलक संग-
उमेश
मण्डल- सभसँ
पहिने विदेह साहित्य सम्मान लेल अपनेकेँ बहुत-बहुत बधाइ...।
राजदेव
मण्डल- धन्यवाद।
उमेश
मण्डल- अहाँक
नजरिमे साहित्यक उद्देश्य की अछि?
राजदेव मण्डल-
साहित्यक उद्देश्य होइत अछि- लोक कल्याणक भावना। समाजक कल्याण करब साहित्यक
परम अभीष्ट अछि। मात्र अभिव्यक्ति नै जेकर सम्बन्ध जिनगीसँ हुअए सहए सुच्चा
साहित्य अछि।
उमेश
मण्डल- अहाँक
साहित्यमे इतिहास/संस्कृति (खास कऽ मिथिलाक) केना वर्णित
होइत अछि?
राजदेव मण्डल-
सामाजिक यर्थाथक अभिव्यक्ति जँ हेतै तँ इतिहास आ संस्कृतिक समावेश भ’ जेनाइ स्वाभाविके
छै। जिनगीकेँ जनबाक लेल युगक चित्र आवश्यक अछि, सँगहि प्राचीण आ नवीन संस्कृति आ
संस्कारक समावेश होइते रहै छै।
उमेश
मण्डल- दिनानुदिनक
अनुभवक अहाँक साहित्यमे कोन तरहेँ विवेचन होइत अछि?
राजदेव मण्डल- यएह
अनुभव तँ काव्यक हेतुमे मदति करै छै। जगतकेँ अनुभव आ अध्ययनसँ अनुभवक प्राप्ति
होइ छै आ रचना करैत काल ओकर रूप प्रगट होइ छै।
उमेश
मण्डल- साहित्यक
शक्तिक विषएमे अपनेक की कहब अछि?
राजदेव मण्डल-
साहित्यक शक्ति तँ असीम अछि। एक दिस क्रान्तिक चिनगी अछि तँ दोसर दिस
शान्तिक बीज अछि। सामाजिक परिवर्त्तनमे ऐ शक्तिक अहम भूमिका रहैत अछि।
उमेश
मण्डल- अहाँक
साहित्यमे पाप-पुण्यक
विश्लेषण केना होइत अछि?
राजदेव मण्डल-
मानव हर क्षण परिस्थितिक कड़ीसँ बान्हल रहैत अछि। परिस्थिति वश नीक-अधलाह, पाप-पुण्य होइत रहै
छै। ओना ऐ शब्दक सम्बन्ध साहित्यक अपेक्षा धर्मसँ बेसी अछि।
उमेश
मण्डल- कल्पना
आ यथार्थक समन्वय अहाँ अपन साहित्यमे केना करैत छी?
राजदेव मण्डल-
तीव्रगतिसँ बढ़ैत कालचक्र। आइ जेकरा कल्पना कहैत छी काल्हि यर्थाथ बनि
जाइत अछि। साहित्य लेल कल्पना आ यर्थाथक सम्मिलन आवश्यक होइते छै।
उमेश
मण्डल- अहाँक
साहित्यमे पात्र जीवन्त भऽ उठैत अछि, तेकर की रहस्य?
राजदेव मण्डल-
पात्र तँ समाजेसँ बिछल जाइत अछि। ओकरा सँगे जीअब, जाँचब, परखब आवश्यक
अछि। पश्चात जँ ओकरा अभिव्यक्त करब तँ ओ जीवन्त हेबे करतै।
उमेश मण्डल- साहित्य लेखन, विशेष कऽ मैथिली साहित्य लेखन अहाँ लेल कोन तरहेँ
विशिष्ट अछि आ एकर प्राथमिकताकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छी?
राजदेव मण्डल-
ऐठाम आमजनक भाषा अछि मैथिली। जन-जन तक अपन अभिव्यक्तिकेँ संप्रेषण करबाक लेल ऐ
भाषाकेँ प्राथमिकता देमहि पड़त।
उमेश
मण्डल- की अहाँ
कोनो तथ्यक झँपलाहा भाग उघारैत छिऐक? अगर हँ तँ केना आ नै तँ किएक?
राजदेव मण्डल-
कोनो भाग ने उघड़ल अछि आ ने झाँपल। सभटा सोझेमे अछि। लिखबाक आ देखबाक अपन-अपन दृष्टिकोण
अछि।
उमेश मण्डल- अहाँ
कहियासँ लेखन प्रारम्भ केलौं, केकरा लेल लिखलौं, आइ-काल्हि केकरा लेल लिख रहल छी?
राजदेव मण्डल-
बून-बूनसँ
सरोवर भरि जाइ छै। दीर्घ काल तक अभ्यास अनवरत चलैत रहल। कल्पनाक मुरुत तँ पहिने
मनेमे बनै छै। पुरान छिटफुट पाण्डुलिपि सभमे 1986 ई. तथा कोनोमे 1987 ई. अंकित अछि।
समाजक लेल लिखलौं
आ आइयो हुनके लेल लिख रहल छी।
उमेश मण्डल- की
अहाँकेँ ई लगैत रहल अछि जे मुख्य धारासँ अहाँ कतियाएल गेल छी? अहाँक रचनामे
समाजकेँ बाहरसँ देखबाक प्रवृतिक की कारण?
राजदेव मण्डल-
धारा तँ अन्तरसँ फुटैत छै। अपन-अपन धारा होइ छै। मुख्य आ कतिआएल कहि की ओकरा रोकि
देब संभव छै?
समाजकेँ मात्र
बाहरसँ देख गंभीर रचना केना भ’ सकैत अछि। एक हृदए दोसरसँ निवेदन केना करतै।
िवदेह- अपन साहित्य आ रचनामे की स्वयंकेँ पूर्णरूपसँ
इमानदार राखब आवश्यक छै?
राजदेव मण्डल-
साहित्य आ रचनामे जँ इमानदारी सुरक्षित नै रहतै तँ फेर ओ कतए आ केना बँचतै।
उमेश मण्डल-
मैथिली
साहित्य आइक दिनमे की ई सभ (साहित्यकार)क सामुहिक दोष स्वीकृतिक रूप नै बुझना
जाइत अछि?-
राजदेव मण्डल-
आइक दिनमे जे मैथिली साहित्यक स्थिति छै तेकरा लेल जे सभ दोषी छथि
हुनका सभकेँ स्वीकार करबाक चाहियनि। पैघ लोकक तँ यएह पहिचान अछि जे अपन दोषपर
स्वीकारोक्तिक भाव प्रदर्शनमे कोनोटा झिझक नै देखबए। हमहूँ ओही श्रेणीमे आइक
साहित्यकार छी। तँए कि हमहूँ दोषी नै छी?
उमेश मण्डल-
की
अहाँकेँ लगैत अछि जे अहाँक पोथीकेँ हिन्दी, बंग्ला, नेपाली, अंग्रजी आदि भाषामे अनुवाद कएल जाएत? तइ स्थितिमे
ओतए एकर कोन रूपेँ स्वागत हेतैक? की अहाँक साहित्य ओइ भाषा आ संस्कृति सभ लेल ओतबे महत्वपूर्ण
रहतै जते ओ मैथिली भाषा आ संस्कृति लेल छै? अहाँक लेखन भाषा-संस्कृति निर्पेक्ष
किअए नै भऽ सकल?
राजदेव मण्डल-
दीर्घ काल तक प्रतीक्षाक उपरान्त तँ कहुना पाथी प्रकाशित भेल। भाषांतर वा
अनुवादक विषएमे कि सोचब। ओना हृदएस्पर्शी, सुच्चा साहित्य सभ भाषाक लेल महत्वपूर्ण होइ अछि
आ सभठाम आदृत होइत अछि।
भाषा-संस्कृतिसँ
िनरपेक्ष भ’ रचना
केना होएत।
उमेश मण्डल-
अहाँक
भाषा तँ मैथिली अछि मुदा अहाँक लेखनपर बाहरी भाषा, संस्कृति, विचारधाराक
प्रभाव पड़ल अछि, कतौ-कतौ ई स्पष्ट
अछि मुदा बेसी ठाम नै, एकर की
कारण?
राजदेव मण्डल-
भाषा तँ बहैत नीर अछि। एकरा बान्हसँ घेरि क’ राखब ठीन नै। बेकती आ स्थान सभमे परिवर्त्तन
भ’ रहल छै
आ हेबक सोहो चाही। परिवर्त्तन आ नित-नूतनता आवश्यक छै।
उमेश मण्डल-
अहाँक
रचनाक प्रचार ऐ पुरस्कारक बाद भयंकर रूपसँ भेल अछि, अहाँकेँ ऐसँ
केहेन अनुभव भऽ रहल अछि?
राजदेव मण्डल-
प्रसन्न छी ऐ बातसँ जे समाज आ खास क’ वुद्धिजीवी पाठक वर्ग हमरापर अनुग्रह केलथि। सभकेँ
हृदएसँ नमन।
ऐ रचनापर
अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
जगदीश प्रसाद मण्डल
रत्नाकर डकैत (एकांकी)
पहिल दृश्य-
(मोजेलाल गरदनिमे
ढोल, हाथमे
लकड़ीक बजौना नेने आगू-अागू आ भजन लाल पाछू-पाछू।)
मोजे लाल-
(डंका जकाँ बजबैत, कनी काल
ढोल बजा, बन्न
करैत) नगर-नगर, डगर-डगरसँ गाम-गामक, समाज-समाजक भाए-बहिन, काका-काकी, दादा-दादी इत्यादि
सभसँ कहै छी, सुनै- जाउ। भजन-लाल भाय बीच छथि
ओ कहता।
भजन लाल- गाम-समाजक जे भाए-बहिन छी कान
खोलि सुनू। जँ नै सुनब आ पछाति कहब जे तेना कान गुजिया गेल जे से सुनबे ने
केलौं। से नै हुअए।
मोजे लाल- (पुन: जागब ध्वनिमे
ढोल बजा) भजन भाय, अपन विचार कहियौ।
भजन लाल- काल्हि भाेरेसँ रत्नाकर भैया ऐठाम पुण्योत्सव छियनि
छपुआ कार्डक आशा नै करब।
मोजे लाल- भाय सहाएब, छपुआ कार्ड कि कहलिऐ?
भजन लाल- आब देखै
छी जे गामसँ, परिवारसँ
एते तक कि बाप-माएसँ
करोड़ो योजन दूर छी मुदा बेटा-बेटीक जन्मोत्सव मना हजारो-लाखाे कार्ड जतए-तजए बिलहि दइ
छिऐ। मुदा...।
मोजे लाल- मुदा कि?
भजन लाल- यएह जे
पहिने छँटिआबए पड़त जे कोन काड हकार सदृश अछि आ कोन भारक संग भोजनक अछि। ई तँ
नै जे ‘जान ने
पहचान, हमर
तोहर मेहमान’।
मोजे लाल-
(एक धुन ढोल बजबैत नचबो करैत आ गेबो करैत)
नोत एलै हौ भैया, हकार एलै हौ
बेन डोलबैत बेना
एलै, पीपहीक
मुस्कान हौ।
फड़-अहिवर फड़ बिलहि
बाँटि
जोगी-ज्ञानी रत्नाकर
डकैत भैया हौ।
(दोहरा-तेहरा, ढोलो बजबैत आ
गेबो करैत।) असथिर
होइत-
भजन भाय, नोत-हकारक ढोलहो छी, तँए दोहरा-तेहरा कऽ कहियौ?
भजन लाल- से की?
मोजे लाल-
जहिना सोना भेटनौं आ हरेनौं प्राश्चित करबए पड़ै छै तहिना ने नतो-हकार छी। सरही
आमक पीपही नीक-नीक
कलमी जौड़क जोड़ पाबि नाता जोड़ि सरही-सँ-कलमी बनि जाइत
अछि तहिना ने नतो जोड़ल जाइत अछि। ई तँ नै ने जे फुर्सत दुआरे ए.टी.एम.क माध्यमसँ सम्बन्ध
जोड़ि लेब।
भजन लाल- से की?
मोजे लाल-
यएह जे कोनो बिआह छै आकि मूड़न आकि कोनो आन छोट-पैघ काज, जखने काज परिवारसँ
ऊपर उठैत अछि तखने ने परिवारसँ उठल सोच-बुधिक जरूरत पड़ैत अछि, तखन अहाँकेँ
अपनेसँ छुट्टी नै अछि, केना
पछुआएल लोक अहाँ संग सम्बन्ध बना रहत।
भजन लाल- जहिना
तूँ मोजे लाल, बिनु
खतिआनक मालिक तहिना हम भजना हरक लागनिसँ लऽ कऽ खौजरा-खैजरी चटकबैत
वीणाक ओहन स्वर समुद्रमे पहुँच जाइ छी जे घंटा भरि पटरी दबने एकटा मकै फुटि कऽ
खापड़िसँ कूदि माटिपर अबैत अछि।
मोजे लाल-
भाय सहाएब, अहाँक
बात नै बुझलौं?
भजन लाल- जहिना
भट्टा गाछमे लटकि जीवन यात्रा करैत तहिना मुड़ै माटिक तरेमे जीवन यात्रा करैत
अछि, तँए
ओकर जिनगीक कोनो महत नै? की ओ
जीवनदाता नै छी?
मोजे लाल-
भाय सहाएब, बूढ़
भेने अहाँ भँसिया जाइ छी?
भजन लाल- से केना?
मोजे लाल-
हम तँ गाम-देहातसँ
शहर बजार धरि ने घुमै छी। जाबे बजार नै बनत ताबे चौकीदार केना फड़त। देखै छिऐ
बड़का-बड़का
बरिआतीमे इंजन गाड़ीक पतिआनी लगल, तइमे छौड़ा-छौड़ी सभ अपन गाड़ी सटा देत आ भरि राति
खा-पी उमैक
लेत।
(ढोलक अवाज सुनि
गामक मिसर लाल आ रमण लाल अबैत, दुनूकेँ देखिते पाशा बदलैत)
नोत एलै हो भैया, हकार एलै हो....
(मोजे लालकेँ चुप
होइते भजन लाल मिसर लाल दिस तकलक। भावात्मक दृश्य। केना मिसर लालक थरथर कपैत
मन किछु बाजए चाहैत, तहिना
भजन लालक पियासल पथिकक दृश्य इत्यादि...।)
भजन लाल- (मिसर
लालसँ, आेंगरी
तानि बाँहि उठा)
अहाँ किछु बाजए चाहै छी?
मिसर लाल- हँ।
भजन लाल- तखन
मुँह किअए चोरौने छी। जाबे अपन बात काज रूपमे दुनियाँक बीच नै राखब तँ के केकर
कि केलकै से तँ बुझए पड़त। मन असथिर कऽ बाजू। ओना अखन उत्सवक समए लगिचाएल अछि
तँए नीक हएत जे अहूँ सभ कपड़ा-लत्ता साफ कऽ ली, केश-दाढ़ी, जुत्ता-चप्पल ठीक-ठाक करैमे जते समए लागत तइसँ बेसी समए नै
अछि।
मिसर लाल- (कँपैत) भाय-सहाएब, अहाँक उत्सवमे
तेहेन मंच बनत जे श्रीमान्-श्रीमती होइत-होइत बजैक समैये ओरा जाएत तखन तँ जहिना
भोजमे सभ दिन धकिआइत-धकिआइत एेँठार लग पहुँच गेलौं।
(बिच्चेमे मोजे
लाल डिगरी चालिमे ढोल बजबए लगैए)
भजन लाल- भाय, ने तोहर बात
हमरा धऽ लेत आ ने धड़ैक डर होइए मुदा पैघ काजक आगू छोट काजकेँ किछु विलमा देब
नीक होइ छै। नइ, जँ तूँ
बड़ धड़फड़ाएल छह तँ चलह रस्ता पकड़ि संगे-संग। काजो चलतै
आ भजनो-कीर्तन
चलतै।
(तइ बीच रमण लाल
मिसर लालकेँ डपटैत बाजल)
बजैले जे सतमसुआ
बच्चा जकाँ पेटमे उधकै छौ से दाबि कऽ राख नै तँ कहि दइ छिऔ।
मिसर लाल- कि
कहमे, जे कहैक
छौ से भने तेहल्लाक बीच छँहेँ बाज?
रमण लाल-
अपन बाप-पुरखाक
नाआें बूझल छौ? अपन किछु
बुझले ने छौ तँ दस गोरेमे की बजबीही।
मिसर लाल- जखन
दुनू गोरे संगे रहै छी तखन तूँ पहिने ने किअए चेता देने छेलेँ?
रमण लाल-
तूँ पुछलेँ कहिया?
मिसर लाल- अँइ रौ, बिनु पुछनहि
भरि दिन संगे रहै छी। तहूमे जे नजरिपर चढ़बे ने कएल से केना पुछबो।
रमण लाल-
अँइ रौ, कि
तोरा बूझि पड़ै छौ जे जहिना आरती घुमा लोक भगवानकेँ ठकि भरि राति अन्हरेमे
रखै छन्हि, से हम
तोरा केलिऔ।
भजन लाल- देखू, अहाँ सभ बड़
अल्ला करै छी। कौल्हुका काज कि सभ अछि से मन पाड़ए दिअ।
(सभ जाइत अछि)
दोसर दृश्य-
(भजन लाल, मिसर लाल आ
रमण लाल अबैत अछि।)
भजन लाल- भाय, दुनियाँक खेल
अजीब छै। जेना समुद्रमे जाइठ-सीमा नै होइ छै तहिना ने अछि। ऐ अथाह माटि-पानि बीच टपैक
तीनू बाट तेहेन भऽ गेल जे...?
मिसर लाल- भाय, चुप किअए भेलह?
रमण लाल-
भजन भाय, दिलेरक
संग दिलाक जखन भेँट होइ छै तखन एकटा नव अएनाक रंग चढ़ै छै। तँए मुँहक बात घोँटी
नै, नइ पचए
तँ उगलि दिऐ।
भजन लाल- (विस्मित होइत) भाय, एकटा बाट, तेना बनरा गेल
जहिना गाछ-विरीछमे
होइ छै जे कोढ़ियो-बाती देब बन्न भऽ गेल। दोसर दोगलाइये गेल। तेसर बेटाक
रगड़ामे बुढ़ाड़ी धरि वस्त्रधारिये रहला सुखदेव जकाँ आड़वन-कोपीन नै लेलनि।
खएर, जे होउ...। पहिने बैसैक
ओरियान करू।
(मिसर लाल सतरंजी मोटरी खोलि पसारए लगैत, तीनू गोटे तीन
काेण पकड़ि बीछा, जाजीम
बिछबैत अछि। बिछान तैयार होइते रत्नाकर मंचपर अबैत अछि।
माथमे तीन भीरी केश बान्हल, चानिपर तीन
लकीर, दुनू दिस
उजड़ा बीचमे लाल। दाढ़ी-मोछ भयंकर। बाँहि गरदनिमे रूद्राक्षक माला, दहिना हाथमे
कमंडल, पीढ़ीपर
लंगोटामे बान्हल पुरान कमलक मोटरी।
मंचपर रत्नाकरकेँ अबिते तीन गोटे पाछू-पाछू सेहो नारा
लगबैत-
“रत्नाकर भैया,
जिन्दावाद।
रत्नाकर भैया
जिन्दावाद।”
रत्नाकर- (पाछू घुमि) सोझे हल्ला
केने आ नारा लगौने नै हेतह। चुप-चाप सभ भऽ जाह। बेरा-बेरी अपन-अपन जिनगीक बात-विचार समाजकेँ
सुना दहुन। धर्मराजक न्याय भेटत, नै कि यमराजक।
महेश- भाय सहाएब, अपनेक जीवन
यात्रा बहुत नमहर अछि ओते सुनैले ओते निचेनियोँ चाही ने, से भूखल पेट
कतेकाल सुनि अमल करत। जइ इलाकामे साले-साल रौदी, दाहीक संग उपजाउ माटि नष्ट भऽ गेल अछि
तइ इलाकाक यात्री कते दूर जीवन यात्रा कऽ सकैए?
रत्नाकर- कि मतलब?
महेश- भूखे भजन ने होइ
गोपाला।
लिअ रखि गुरु
कण्ठी माला।
रत्नाकर- महेश, अहाँक प्रश्न
जेहने सुन्दर अछि तेहने कठिन। मुदा समुद्रसँ रत्न निकालब आ जंगलसँ सिर-शिरोमणि आनब, दुनू दू दिशा
छी।
गणेश- एना नै हएत, कनी ओंगरीपर (ओंगरीपर जेना हिसाब
जोड़ल जाइत) हिसाब
बैसा कऽ बुझा दिअ।
रत्नाकर- गणेश बाउ, कान खोलि सुनि
लिअ। ई धरती विशाल रंगमंच छी। माटि-पानिक बीच रंगमंच सजल अछि। जे जेहेन यात्री छथि ओ
ओहेन अपन बाट पकड़ि पाड़ करै छथि।
गणेश- कि मतलब?
रत्नाकर- मतलब यएह जे कियो
अपन जिनगी हवन दैत अछि तँ कियो दोसराक हवन लैत अछि। खएर, जे होउ...।
(बिच्चेमे, मिसर लाल अपन बात उठबए चाहलक आकि सुरेसर ललकि बाजल) अनेरे...।
रत्नाकर- तखन पहिने फरिया
लिअ पड़त जे खाइले जीबै छी आकि जीबैले खाइ छी। दान देब नीक आकि लेब नीक। आकि
लेब-देब
नीक। आकि देब-देब
नीक।
गणेश- लेब-देब नीक छी।
दुनू नीक छी कोनो ने नीक ने अधला छी।
भजन लाल- तखन?
गणेश- बेवहारिक
धरातलपर जे अधिक नीक हुअए?
भजन लाल- अधिकोक दू दिशा
छै?
गणेश- से की?
भजन लाल- अधिक लोकक शब्दिक
विचार आ अधिक लोकक जिनगीक विचार।
रत्नाकर- भजन जेहने तूँ
साँझ भोर राति-दिन लय-धुन बदलि-बदलि एके
बातकेँ औंटै-पौड़ै
छह तेहने गणेश अछि। भारी देखि हाथी चढ़ब नीक बुझलनि, मुदा हाथी केना
पोसाइत अछि से लूरिये ने भेलनि।
गणेश- (खिसिया कऽ, दहिना हाथ ऊपर
घुमबैत) तीन
लकीर हम दइ छी, ताधरि
हम नै मानब जाधरि ओहन भोगी नै आनि देखा देब।
रत्नाकर- हकार दिअए
तोहीं ने गेल छेलह, तँए
तोरे ने ओहेन हकरियासँ भेँट भेल हेतह?
भजन लाल- भैया, बुढ़ोमे अहाँ
ओहने अगुताह रहि गेलौं जेहने समरथाइमे छेलौं।
रत्नाकर- (मुस्की दैत) हे बुड़िवक, केतबो धड़फड़ा
कऽ काज करबह, तँए कि
काज पहिने थोड़े भऽ जाइए। काजक जे अपन समए छै ओइ अनुकूल जे करैत अछि, ओ कुशल भेल।
मुदा...।
सुरेसर- मुदा की?
रत्नाकर- यएह जे जँ
धड़फड़ा कऽ करब तैयो आ अलुरिये करब तैयो या तँ आरो गजपटा जाएत वा उबाणि भऽ जाएत।
सुरेसर- सुवाणियो
तँ भऽ सकैए किने?
रत्नाकर-
संयोगवश, निश्चित
नै।
भजन लाल- (धड़फड़ाइत) भैया, अहाँ अनेरे कोन
घंघौजमे लगि गेलौं, मोतीबला
सितुआ दोसर होइ छै भलहिं नाओं कियो रखि लिअए।
(भाव दृश्य) ने किछु रत्नाकर बजैत, मुदा चेहरा कहैत
समुद्रक सितुआ आ बरसाती डबराक सितुआ एक वियान केना करत। एक अजर-अमर बीच जीवन-यापन केनिहार, दोसर तीन मास
ढेनुआर तीन मास रखलाहा, मिला
छह मास। (भजनलाल
हराएल मुद्रामे बड़बड़ाइत)
‘मनमे रहितो साँझ-भाेर ओहए गबै छी।’
(सबहक मुद्रा अपन-अपन विचारानुकूल।
सभसँ भिन्न मिसरलालक। जेना किछु बजैले मुँह लुस-फुस करैत, तहिना।)
मिसर लालकेँ लुस-फुसाइत देखि
सुरेसर बजलाह-
मिसर लाल अहाँ किछु बाजए चाहै छी?
मिसर लाल- (दुनू हाथ जोड़ि) हँ, भाय सहाएब। हमरा
सन लोककेँ बजैक एहेन समए कहिया भेटत?
गणेश- (बिगड़ि कऽ) मिसर लाल बजैक
छह तँ जल्दी बाजह, अखन धरि
चाहो ने भेल अछि। एना जे तेलिया-फुलिया लगेबह तँ घोंच-घाँचमे दू-चारि कड़ी अमीन
खाइये जाइ छै।
भजन लाल- माने?
गणेश- माने यएह जे जखन
बाँसक सोझका लग्गा छलै तखन नमहर धुर-कट्ठा छलै। जखन चास-बास घटलै तखन
इंच-फीटमे
पहुँच गेल। मुदा नपैक यंत्र तेहेन स्प्रींगदार भऽ गेल जे केमहर कि भऽ जाएत जे...।
रत्नाकर- समैपर धियान
रखू। भजन देरी किअए होइ छह?
मिसर लाल- भाय सहाएब, दुनियाँक रीतिक
अनुसार दुरागमनक अपनो कर्तव्य बुझलिऐ। तीनियेँ सालमे दूटा बेेटी भऽ गेल।
गणेश- अपरेशन किअए ने
करा लेलौं, जखन
दुइये बच्चाक कोटा छै?
मिसर लाल- भाय सहाएब, सुनै छिऐ
समलौंगिक सम्बन्ध। ओइ कटौतीसँ कोटा नै पुरतै?
रत्नाकर- आगू बाजू?
मिसर लाल- भाय सहाएब, मन अपनो दुनू
परानीक सएह भेल। देखै छी जे एकटा बेटी-बिअाहमे जिनगी भरिक कमाइसँ पारो नै लगै छै, तइठाम दूटाक भार
तँ बेसी भेबे कएल।
रत्नाकर- (मुड़ी डोलबैत) हँ से तँ भेल।
तखन...।
मिसर लाल- (अठन्नी हँसी
हँसैत) दूटा
ओही बीच भऽ गेल, जइ बीच
फड़िएबे ने कएल जे दुनूमे के अपरेशन करबी।
भजन लाल- एक गण्डा भेल?
मिसर लाल- गाहीमे एक कमे
अछि।
रत्नाकर- पछाति?
मिसर लाल- माएक कानमे
अपरेशनक समाचार पहुँचते मधुमाछीक गीत जकाँ गबैत दिन-राति एके सोखर
गबैत हमरा मौसीकेँ तेरहटा बेटी रहै से पार-घाट लगबे केलै आ एकरा सभकेँ चारिये टामे
ढट्ठा ढील होइ छै।
सुरेसर- (मुस्की दैत) से तँ ठीके।
पछाति की भेल?
मिसर लाल- तत्काल भाइक
बात मानि गेलौं। अपनो दुनू परानी विचारलौं जे जँ कहीं माइयो-बापक असीरवादसँ
आगू बेटे बेटा हुअए।
गणेश- (खिसिया कऽ) ईह बूड़ि कहीं
केँ, हम एते
दिन-राति
तबाह रहै छी से धिया-पुता डरे बिआहो ने केलौं आ हिनका मुनहरक मुँह खुजि गेलनि।
(गणेशीकेँ क्रोधित देखि मिसर लाल ठहाका दैत)
मिसर लाल- (धुनधुना कऽ) बपजेठ जकाँ
केहेन गरमी छन्हि। मुदा जोरसँ किछु नै बजलाह।
भजन लाल- मिसर भाय, एना जे ितलकेँ
तार बनेबह तते समए नै छल। जल्दीमे अपन बात अन्त करह?
िमसर लाल- हकार दइले जे
गेल छेलह से कहने छेलह जे अपन बात धड़फड़ा कऽ बाजी।
रत्नाकर- देखू विचार दू
ढंगे लोक करैए, औपचारिक
आ अनौपचारिक। अनौपचारियो औपचारी बनैए मुदा बीचमे शासकीय सूत्र आबि जाइत अछि।
अच्छा आगू...।
मिसर लाल- हिसाब जोड़ि
लेलिऐ किने। दूटा दुनियाँ रीतिक अनुसार, दूटा दुनू परानीक झगड़ा-मिलान, मिलान-झगड़ामे।
गणेश- जते कुल-खनदानक खतिआन-बही छह से अखने
उन्टा दहक। रसगुल्लाक आसामे कचौरियो सुखि कऽ टाँट भऽ गेल हएत।
मिसर लाल- गणेश बाबू, अपने लग नै बाजब
तँ बाजि कतए पाएब। कनी धियानसँ सुनि दृष्टि-कूट खोलियौ।
तखन ने भाँज पेबै।
भजन लाल- मिसर भाय, तों तते ने
मेठनि करै छह जे कुशियारो रसकेँ मिसरी बनाइये कऽ छोड़बहक।
मिसर लाल- अच्छा हुनडे
भेल। अखन धरि सात बेटी बला सत बेटिया नाओं ग्रहण कऽ नेने छलौं।
रत्नाकर- पछाति?
मिसर लाल- (जेना बिढ़नी
कटलापर छटपटाहि होइत) एह भाय सहाएब, की कहब। (दुनू हाथ माथपर लैत) भोरे-भोर एकटा एकरंगा
आएल।
भजन लाल- के रहए?
मिसर लाल- कहलक जे घर तँ
अही इलाका अछि मुदा कामाख्या सीख छी। हमहूँ एक बेर कामाख्या गेल छी। रूपैया
हाथे महरानीक दर्शन होइ छै ओतए।
रत्नाकर- आगू बढ़ू।
मिसर लाल- भाय सहाएब, सबा सए रूपैयाक
रसीद काटि हाथमे थमहा देलनि। हाथमे एकोटा पाइ नै। बिनु खेवाक यात्री जकाँ घरवार
लग विनती केलौं।
गणेश- (झोकमे) कि विनती
केलौं?
मिसर लाल- कहलियनि, बाबा महराज, बेटीक मारिसँ
मरि गेल छी केना अहाँकेँ खुश कऽ कऽ दरबज्जापरसँ विदा करब।
गणेश- तखन कि केलौं?
मिसर लाल- ओ जेना बूझि
गेला। लगले आँखि-ताँखि
उनटबैत-पुनटबैत
कहलनि। जते तोरा बेटी छह तते तोरा एक्केबेर बेटा देबह, बाजह मंजूर छह?
गणेश- पछाति कि केलह?
मिसर लाल- मन पघिल कऽ
राँग-राँग भऽ
गेल। मुदा घरवाली धरि कहि देलक जे ई ठकहरबा छी।
गणेश- पछाति कि भेल?
मिसर लाल- जे तकदीरमे लिखि
देने छेलिऐ, से भेल।
गणेश- हमहीं लिखि
देने छेलियह।
मिसर लाल- सभ दिन भागवत
बचै छी अहाँ आ नाओं लगेबे दोसरकेँ।
भजन लाल- उत्सव शुरू
होइक समए करीब आबि गेल। जाबे तैयार हएब ताबे समैओ आबि जाएत।
क्रमश: जारी...
ओम
प्रकाश
गजलक लेल (समीक्षा)
श्री विजय नाथ झाजीक गीत-गजल संग्रहक
पोथीक नाम अछि "अहींक
लेल"। ऐ
पोथीमे गीत आ गजलक फराक-फराक दूटा प्रभाग छै। हम ऐ पोथीक गजल प्रभागक संबंधमे ऐठाँ
किछु चर्चा करऽ चाहब। ऐ पोथीमे गजलकार श्री विजय नाथ झाजीक अठहतरिटा गजल प्रकाशित
भेल अछि। पोथीक गजल पढलासँ ई पता चलैत अछि जे किछु गजल केँ छोडिकऽ बेसी ठाँ काफिया
आ रदीफक निअमक पालन कएल गेल अछि। पृष्ठ संख्या ४७, ५०, ५४, ५५,
५६, ६७, ७१, ७४, ७५, ८२, ९४, १०१, ११०, ११४ पर छपल
गजलमे काफिया गडबडाएल अछि। ऐठाँ ई धेआनमे राखबाक चाही जे बिना दुरुस्त काफियाक
रचना गजल नै भऽ सकैए। तखनो अधिकांश गजलक काफिया दुरुस्त अछि, जे गजलक विकास
यात्राक हिसाबेँ एकटा नीक लक्षण अछि। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक निअम पालन करबाक हिसाबेँ गजलकार
ओहि गजलकार सभसँ फराक श्रेणीमे छथि जे गजलक व्याकरणकेँ नै मानबाक सप्पत खएने छथि।
ऐ गजल संग्रहक गजल सब कोन बहरमे लीखल गेल अछि, ऐ पर गजलकार मौन
छथि। गजलक नीचाँमे बहरक नाम जरूर लीखल जएबाक चाही। बहरक ज्ञान नब पीढीक गजलकार
सभमे बढेबामे ई महत्वपूर्ण डेग हएत। ओना तँ गजलकार कोनो गजलक नीचाँमे बहरक नाम नै
लीखने छथि, मुदा
गजल सभकेँ पढलासँ ई पता चलैत छै जे ऐ संग्रहक ढेरी गजल एहन अछि जाहिमे अरबी बहरक
निअमक पालन करबाक नीक प्रयास कएल गेल अछि। ई स्वागत योग्य गप अछि। ऐसँ इहो पता
चलैत अछि जे गजलकार अरबी बहरसँ नीक जकाँ परिचित छथि आ जँ ई बात अछि तँ हुनका बहरक
नाम गजलक नीचाँमे फरिछाकेँ लीखबाक चाही। ऐ संदर्भमे हम पोथीक सबसँ पहिलुक गजलक (पृष्ठ संख्या ४५) मतलाकेँ उद्धृत
करऽ चाहै छी-
हमर पूजा, हमर परिचय, हमर शृंगार छी अपने
सकल सौभाग्य, मन, काया, रुधिर-संचार छी अपने
आब एकर मात्रा संरचना पर धेआन दिऔ, तँ पता चलै छै
जे ऐमे मूल ध्वनि मफाईलुन माने "ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ" सब पाँतिमे चारि
बेर प्रयोग कएल गेल अछि। माने ई शेर बहरे-हजजमे कहल गेल छै। ऐ गजलक आनो शेरमे
मोटामोटी किछु गलतीकेँ छोडि बहरे-हजजक प्रयोग अछि आ किछुठाँ वर्ण दुरुस्त कऽ देला पर ई
गजल अरबी बहर बहरे-हजजमे
अछि। ई एकटा उदाहरण अछि,
एहन आरो गजल ऐ संग्रहमे छै जे वर्ण आ मात्रामे किछु परिवर्तन भेला पर अरबी
बहरमे कहल मानल जाएत। हमरा ई आस अछि जे गजलकार अपन अगिला गजल संग्रहमे ऐ बातक धेआन
राखताह आ अरबी बहर युक्त गजल कहिकऽ मैथिली गजलकेँ समृद्ध करताह। शेरक पाँतिक अंतमे
पूर्ण विराम वा कोनो विराम चिन्ह नै लगेबाक निअम अछि, मुदा पोथीक गजलक
शेर सभक पाँतिक अंतमे पूर्ण विराम लगाओल गेल अछि, जे निअमानुकूल नै अछि आ एकर धेआन राखल
जएबाक चाही छल।
संवेदनाक स्तरपर ई गजल संग्रह बड्ड नीक अछि आ गजलकारक
विद्वताकेँ प्रकट करैत अछि। मुदा कएकठाँ भारी भरकम तत्सम आ संस्कृतक शब्दक प्रयोग
गजलकेँ बूझबामे भारी बनबैत छै, जाहिसँ बचल जा सकैत छल। गजलमे क्लासिकल भाषाक प्रयोग नहिए
हेबाक चाही, अपितु
आम प्रयोगक भाषाक प्रयोग गजलक लेल बेसी नीक होइत छै। शेरमे एहन शब्दक प्रयोग जे आम
बेबहारमे नै छै, गजलकारक
शब्द सामर्थ्यकेँ तँ जरूर देखाबैत छै, मुदा शेरकेँ आम जनसँ दूर सेहो करैत छै। तैं शेर कहबाक
काल हमरा हिसाबेँ बेसी क्लिष्ट भाषाक प्रयोगसँ बचबाक चाही।
अंतमे ई कहल जा सकैए जे "अहींक लेल" पोथीक गजल
प्रभाग मैथिली गजलक विकसित होइत रूपकेँ अस्पष्टे रूपेँ, मुदा देखबैत
जरूर अछि। ई पोथी गजलक व्याकरणक हिसाबेँ किछु गलतीकेँ छोडिकऽ नीक प्रयास अछि। ऐ
संग्रहक कएकटा शेरमे अरबी बहरक पालनक प्रयास महत्वपूर्ण आ नोटिस करबाक जोग अछि।
कएकठाँ क्लिष्ट आ संस्कृतनिष्ठ शब्दक प्रयोगकेँ जँ कात कए कऽ देखल जाइ तँ
संवेदनात्मक स्तरपर सेहो ई संग्रह नीक अछि। मैथिली गजलक विकास यात्रामे ई पोथी
गजलक भविष्यक लेल नीक डेग अछि।