भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

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Saturday, July 30, 2011

'विदेह' ८७ म अंक ०१ अगस्त २०११ (वर्ष ४ मास ४४ अंक ८७)- PART I



                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ८७ म अंक ०१ गस्त २०११ (वर्ष ४ मास ४ अंक ८७)NEPALINDIA 
                                                     
 वि  दे   विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine   नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own script Roman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
ऐ अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य


 









३. पद्य








३.६.गजेन्द्र ठाकुर- गजल



४. मिथिला कला-संगीत- १.ज्योति सुनीत चौधरी २.श्वेता झा (सिंगापुर) ३.गुंजन कर्ण

 

५. गद्य-पद्य भारती: रवि भूषण पाठक निरालाःदेहविदेह -2 (निराला हिन्दीसँ मैथिलीमे)


 

७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]



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example

भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।

example

गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय

फजलुर रहमान हासमीक आइ २०-०७-२०११ केँ मृत्यु भऽ गेलन्हि। जन्म -पटना जिलाक बराह गाममे। वृत्ति अध्यापक। हिन्दी कविता संग्रह "रश्मि राशि" आ मैथिली कविता संग्रह "निर्मोही" प्रकाशित। १९९६मे अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दूसँ मैथिली अनुवादपर साहित्य अकादमीक मैथिली अनुवाद पुरस्कार।

(हिनकर एकटा कविता)

हे भाइ

हे भाइ
हमरा जुनि मारह
तोँ हमरा
दोसर जाति
दोसर धर्म्मक बूझि रहल छह-
मुदा हम छी
तोरे भ्राता
अग्रज वा अवरज!
हमरा सभकेँ एके माता
नहि मारह
गैर जानि कऽ
संसारक दृष्टिमे
तोँ पार्थ
आओर
हम “राधेय” बनल छी
मुदा “पृथा” जानि रहल अछि
हदय कानि रहल अछि
चुप अछि
मजबूरीसँ
बेवसीसँ
हे भाइ हमरा नहि मारह...।

दोहा/ रोला/ कुण्डलिया
दोहा
दोहा मात्रिक छन्द अछि। दोहामे दू पाँती आ चारि चरण होइत अछि। पहिल चरणमे १३,दोसर चरणमे ११,तेसर चरणमे १३आ चारिम चरणमे ११ मात्रा होइत अछि। पहिल आ तेसर चरणक आरम्भ जगणसँ (जगण UU) नै हएत आ दोसर आ चारिम चरण अन्त हएत दीर्घ-ह्रस्वसँ।
रोला
रोला सेहो मात्रिक छन्द अछि। रोलामे चारि पाँती आ आठ चरण होइत अछि। पहिल चरणमे ११, दोसर चरणमे १३, तेसर चरणमे ११ आ चारिम चरणमे १३ मात्रा, पाँचम चरणमे ११, छअम चरणमे १३ मात्रा होइत अछि। सभ पाँतीक पहिल चरणक अन्तमे दीर्घ-ह्रस्व, वा ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व होइत अछि। सभ पाँतीक दोसर चरणक अन्तमे चारिटा ह्रस्व, वा दूटा दीर्घ, वा दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व (भगण U U), वा ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ (सगण U U ।) होइत अछि। रोलाक प्रारम्भ ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्वसँ नै करू।  

कुण्डलिया
दोहा आ रोलाक कुण्डली (मिश्रण) भेल कुण्डलिया। दोहा लिख दियौ, फेर दोहाक अन्तिम चरणकेँ (११ मात्रा बला) रोलाक पहिल चरण बना दियौ (पुनरावृत्ति) आ फेर रोला जोड़ू। खाली ई ध्यान राखू जे दोहाक पहिल चरणक पहिल शब्द आ रोलाक अन्तिम चरणक अन्तिम शब्द एक्के रहए। कुण्डलियाक पहिल शब्द आ अन्तिम शब्द एक्के होइए। कुण्डलियाक चारिम आ पाँचम चरण सेहो एक्के होइए।
कुण्डली
छत्ता घुरछा पल्लौसँ, भेल दिने अन्हार।
दिन बितलापर घर घुरी, काल भेल विकराल॥
काल भेल विकराल, पोरे-पोर सिहरैए।
सुनत केओ सवाल, बोल बगहा लगबैए।
ऐरावत बेहाल, बोल कतऽ भेल निपत्ता।
घुरियाए बनि काल, पैसि बिच घोरन छत्ता।।
छन्द विचार
साहित्यक दू विधा अछि गद्य आ पद्य।छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल-एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए।

छन्द दू प्रकारक अछि।मात्रिक आ वार्णिक।
मात्रिक गणना
मैथिलीक उच्चारण निर्देश आ ह्रस्व-दीर्घ विचारपर आउ।
शास्त्रमे प्रयुक्त गुरुलघुछंदक परिचय प्राप्त करू।

तेरह टा स्वर वर्णमे अ,,,,लृ - ह्र्स्व आर आ,,,,ए.ऐ,,औ- दीर्घ स्वर अछि।

ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ गुणिताक्षरबनैत अछि।

क्+अ= क,

क्+आ=का ।

एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक अक्षरकहल जाइत अछि। कोनो व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना अवाक्शब्दमे दू टा अक्षर अछि, , वा ।


१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर लघुमानल जाइत अछि। एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।

२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर गुरुमानल जाइत अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।

३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।

४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।

जेना कहल गेल अछि जे अनुस्वार आ विसर्गयुक्त भेलासँ दीर्घ होएत तहिना आब कहल जा रहल अछि जे चन्द्रबिन्दु आ ह्रस्वक मेल ह्रस्व होएत।
माने चन्द्रबिन्दु+ह्रस्व स्वर= एक मात्रा

संयुक्ताक्षर: एतए मात्रा गानल जाएत एहि तरहेँ:-
क्ति= क् + त् + इ = ०+०+१= १
क्ती= क् + त् + ई = ०+०+२= २
क्ष= क् + ष= ०+१
त्र= त् + र= ०+१
ज्ञ= ज् + ञ= ०+१
श्र= श् + र= ०+१
स्र= स् +र= ०+१
शृ =श् +ऋ= ०+१
त्व= त् +व= ०+१
त्त्व= त् + त् + व= ० + ० + १
ह्रस्व + ऽ = १ + ०
अ वा दीर्घक बाद बिकारीक प्रयोग नहि होइत अछि जेना दिअऽ आऽ ओऽ (दोषपूर्ण प्रयोग)। हँ व्यंजन+अ गुणिताक्षरक बाद बिकारी दऽ सकै छी।
ह्रस्व + चन्द्रबिन्दु= १+०
दीर्घ+ चन्द्रबिन्दु= २+०
जेना हँसल= १+१+१
साँस= २+१
बिकारी आ चन्द्रबिन्दुक गणना शून्य होएत।
जा कऽ = २+१
क् =०
क= क् +अ= ०+१
किएक तँ क केँ क् पढ़बाक प्रवृत्ति मैथिलीमे आबि गेल तेँ बिकारी देबाक आवश्यकता पड़ल, दीर्घ स्वरमे एहन आवश्यकता नहि अछि।


U- ह्रस्वक चेन्ह
।- दीर्घक चेन्ह

एक दीर्घ । =दूटा ह्रस्व U

वार्णिक गणना
संयुक्त्ताक्षरकेँ  एक गानू आ  हलन्तक/ बिकारीक/ इकार आकार आदिक गणना नहि करू। वार्णिक छन्दक परिचय लिअ। एहिमे अक्षर गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ नहि गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि।द्विमानक कोनो अक्षर नहि होइछ।मुख्य तीनटा बिन्दु यादि राखू-

1.हलंतयुक्त्त अक्षर-0
2.संयुक्त अक्षर-1
3.अक्षर अ सँ ह -1 प्रत्येक।

आब पहिल उदाहरण देखू
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=1+5+2+2+3+3+1=17 मात्रा

आब दोसर उदाहरण देखू
पश्चात्=2 मात्रा

आब तेसर उदाहरण देखू
आब=2 मात्रा

आब चारिम उदाहरण देखू
स्क्रिप्ट=2 मात्रा

मुख्य वैदिक छन्द सात अछि-गायत्री,उष्णिक् ,अनुष्टुप् ,बृहती,पङ् क्त्ति,त्रिष्टुप् आ  जगती। शेष ओकर भेद अछि अतिछन्द आ  विच्छन्द। छन्दकेँ अक्षरसँ चिन्हल जाइत अछि। यदि अक्षर पूरा नहि भेलतँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादमे बढ़ा लेल जाइत अछि।य आ
व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ  उ लगा कय अलग केल जाइत अछि।जेना-
वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः
गुण आ वृद्धिकेँ अलग कयकेँ सेहो अक्षर पूर कय सकैत छी।
ए= अ + इ 
ओ= अ + उ
ऐ= अ/आ + ए
औ= अ/आ + ओ 


सरल वार्णिक छन्दमे ह्रस्व आ दीर्घक विचार नै राखल जाइए। मुदा वार्णिक छन्दमे ह्रस्व आ दीर्घक विचार राखल जा सकैत अछि, कारण वैदिक वर्णवृत्तमे बादमे वार्णिक छन्दमे ई विचार शुरू भऽ गेल छल:- जेना
तकैत रहैत छी ऐ मेघ दिस
तकैत (ह्रस्व+दीर्घ+दीर्घ)- वर्णक संख्या-तीन
रहैत (ह्रस्व+दीर्घ+ह्रस्व)- वर्णक संख्या-तीन
छी (दीर्घ) वर्णक संख्या-एक
(दीर्घ) वर्णक संख्या-एक
मेघ (दीर्घ+ह्रस्व) वर्णक संख्या-दू
दिस (ह्रस्व+ह्रस्व) वर्णक संख्या-दू

मात्रिक छन्दमे द्विकल, त्रिकल, चतुष्कल, पञ्चकल आ षटकल अन्तर्गत एक वर्ण (एकटा दीर्घ) सँ छह वर्ण (छहटा ह्रस्व) धरि भऽ सकैए।
द्विकलमे- कुल मात्रा दू हएत, से एकटा दीर्घ वा दूटा ह्रस्व हएत।
त्रिकलमे कुल मात्रा तीन हएत- ह्रस्व+दीर्घ, दीर्घ+ह्रस्व आ ह्रस्व+ह्रस्व+ह्रस्व; ऐ तीन क्रममे।
चतुष्कलमे कुल मात्रा चारि; पञ्चकलमे पाँच; षटकलमे छह मात्रा हएत।
वार्णिक छन्द तीन-तीन वर्णक आठ प्रकारक होइत अछि जे “यमाताराजसलगम्” सूत्रसँ मोन राखि सकै छी।
आब कतेक पाद आ कतऽ यति,अन्त्यानुप्रास देबाक अछि; कोन तरहेँ क्रम बनेबाक अछि से अहाँ स्वयं वार्णिक/ मात्रिक आधारपर कऽ सकै छी, आ विविधता आनि सकै छी।
वर्ण छन्दमे तीन-तीन अक्षरक समूहकेँ एक गण कहल जाइत अछि। ई आठ टा अछि-
यगण  U।।
रगण U
तगण ।। U
भगण U U
जगण UU
सगण U U
मगण ।।।
नगण U U U

एहि आठक अतिरिक्त दूटा आर गण अछि- ग / ल
ग- गण एकल दीर्घ ।
ल- गण एकल ह्रस्व U
एक सूत्र- आठो गणकेँ मोन रखबा लेल:-
यमाताराजभानसलगम्
आब एहि सूत्रकेँ तोड़ू-
यमाता U।। = यगण
मातारा  ।।। = मगण
ताराज ।। U = तगण
राजभा U। = रगण
जभान UU = जगण
भानस U U = भगण
नसल U U U = नगण
सलगम् U U । = सगण


( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि ११ देशक १,८८४ ठामसँ ६,३० गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,१३,७४४ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )

गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.com
 

http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html

 

२. गद्य








महाप्रकाश 1946-
जन्म: बनगांव, सहरसा, बिहार । वरिष्ट कवि ओ कथाकार। प्रकाशित कृति: कविता संभवा, संग समय के (कविता संग्रह)। कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान २०१० ई.- श्री महाप्रकाश (कविता संग्रह “संग समय के”)।
                                         संभावना
ओ आबिते तपाकसँ पुछलनि- “हाथी देखने छह” अर्थ बूझल छह?
ओ अपन एहि प्रश्नक संग टेबुलपर झुकि आएल रहथि। हुनकर चानिपर उम्र आ अनुभव केर चमक रहनि। गज्जोभायक एहि प्रश्नसँ कनेक अकबका गेल रहथि जयवर्द्दन। हुनक आँखिमे देखैत उतारा देलनि जयवर्धन- हँ हौ... हाथीकेँ के पूछय, हम तँ ऐरावत सेहो देखने छी- अर्थ सेहो बूझल अछि।
उत्तर सुनैत गज्जोभायक आँखि जेना फाटि गेलनि। विस्मय आ अविश्वाससँ भरि अयलाह- ऐरावत! कतऽ देखलह?
-किएक वड़द देखऽ लेल अहाँ पशुपतिनाथक ओतऽ जाउ से भऽ सकैत अछि आ हम ऐरावत देखऽ इन्द्रक ओतऽ जाइ से संभव नै!
-इन्द्र तोरा कतऽ भेटलह?
गज्जोभायक अविश्वास अस्वभाविक नै रहनि।
-“इन्द्र तँ अहाँकेँ कत्तहु भेटत... ध्यानसँ देखहक ने... नै भेटतह तँ विष्णु! वि-शिष्ट अणु –वि-शेष अणु-विलक्षण अणु- बिष्णु नै भेटतह- इन्द्र तँ आब जतऽ ततऽ“ - जयवर्द्धनक स्वरमे विश्वास रहनि।
गज्जोभाय जोरसँ हँसलाह- तोँ ज्ञानी लोक छह, आब जँ तोँ इन्द्रकेँ चीन्हैत छह तँ राजाकेँ चीन्हैत छह, जमीन्दार-सरकारकेँ सेहो चीन्हैत छह.. नीक बात..तोहर यएह गुण हमरा विवश करैत अछि जे हम तोरा एकटा कथा सुनाबी.. समय देबहक?
बाहर विकट रौद रहैक। कार्यालयसँ अधिकांश कर्मचारी जा चुकल छल। रौदमे थोड़बे काल चललासँ जयवर्द्धनकेँ पेशाब रुकि जाइत छनि। वीर रहथि । अतएव हुनका कथा सुनबेक छल ।
बजलाह- समय अछि, समय हमरा लेल पोस्ट कार्ड थिक जे जतबा लिखि..।
“बस्स-बस्स भऽ गेलैक”.. गज्जोभाय बजलाह- “राजाक मूल होइत अछि भय आ शंका..बूझल छह? ओ उपरका हो अबैत मोंछ राशिकेँ दूअ दिससँ सम्हारैत हाथ फेरलनि- मुस्टंड गवरू छौंड़ा रोज देखैत छल, जमींदारक हाथी सबार, परोपट्टामे घुमैत, दर्पसँ धधकैत जमींदार ओकर हाथीक मस्तान चालि....वाम-दहिन मूड़ी आ झारैत। ओ देखय आ मोन मसोसि कए रहि जाए। ओकरा रहि-रहि कए जमींदारक सूनल, देखल-मोगल कथा वृत्तान्त व्यथित करैक...। मुदा एक दिन...
बाहर रौद अखनो प्रचण्ड रहैक आ हवा सेहो उद गेल रहैक, जयवर्द्धन खिड़कीसँ बाहर देखलनि। विमछैत बजलाह-“खिस्सामे मोन नै लागैत छह, ध्यान नै देबहक तँ कहबाक कोन प्रयोजन कोन..
-    नै-नै, ....एहेन कोनो बात नै- हबरब नै देखैत छहक.. केना आ कतेक गोंगिया रहल छै.. जयवर्द्धन किंचित म्लान मुख भेलाह।
-    धूः बुड़ि- हवाक रुख आकि बिगड़ैत पर्यावरणकें की तोँ बदलि देबहक..की हम बदलि सकै छी समयक गतिकेँ, अकानैत रहऽ आ वस्स..पे आ भोगैत रहऽ। वस्स..।
जयबर्द्धन के राजनीतिक पर्यावरणक सेहो स्मरण, मुदा आब ओ कथा रसमे व्यतिक्रम नै चाहैत रहथि- आगू कहह...
“मुदा एक दिन ओइ गवरु मुस्टंडकेँ नै रहल गेलैक, जहिना ओ हाथीपर सवार दर्पसँ धधकैत जमीदार-सरकारकेँ देखलक,... ओकरा छातीमे जेना लहरि उठलैक...ओकर पहिल इच्छा भेलैक जे ओ सीधे जमींदारपर छड़पय आ हौदाक संगे जमीनपर पटकए.. मुदा एतेक ऊँच ओ फानि नै सकैत छल..अथच ओ हाथीक नाङरि पकड़ि अपन पएर जमीनपर अंगद जकाँ रोपि देलक...वाम दहिन, आजू बाजू देखैत...हाथीपर सवारकेँ आघात भेलैक, हाथीक मस्तान चालिमे व्यवधान अयलैक..हाथी चिंघाड़ कयलक ....महावत जोरसँ बमकल...गज लए छौड़ापर उठल....”
भयाक्रान्त जयवर्द्धनक मुँह खुललनि, एकदम्मे अंतिम  प्रश्न कयलनि- “छौड़ा बजलैक की नै?”
-हँ हौ, जमींदार पढ़ल लिखल लोक रहथि शिक्षित लोक.. हनकर पुरखा सभ सेहो विदेशी विद्यालय आ विश्वविद्यालय सभमे पढ़ने रहनि...अपनो कैबरिज कि हावर्डमे पढ़ने रहथि... हुनका भाषाक महिमा आ वाणीक प्रभावक विशेष ज्ञान रहनि। अतएव क्रोधकेँ घोंटलनि आ शांत स्वरेँ महावतकेँ वरजलनि- “छोड़ह अवूझ छैक..नेदरमति छैक”।
किलु हुनक चित्त अशांत रहलनि। किछुए कालक उपरान्त , राज्यक सीमा रेखाकेँ दूरेसँ देखैत, चिंतितमना राजमहलमे घूमि अयलाह।
प्रात:काल ओ अपन दीवानसँ पुछलनि –“किनक बालक छल ओ ...? दीवान साहेवकेँ समग्र कथा बूझल छलनि। बजलाह- “श्रीमन् ओतऽ फल्लामांक बेटा थिक- बजाऊ की?
किछुए कालक उपरान्त फल्लांमाकेँ उपस्थित काएल गेल। भयाक्रान्त..थरथर कांपैत..धोती प्रायः तीतल। जमींदार साहेवकेँ देखिते मूलुंबित , किंवा शाष्टांग दैत, निहोरा करैत बाजल- “सरकार... अपराध क्षमा कैल जाऊ”।
“नै..नै कोनो अपराध नै... बहुत करेजगर छथि अहाँक बालक... बहादुर... वाह रे वाह संभावनासँ भरल... अपार संभावना अछि अहाँक बालकमे...”, जमींदार साहेब शांत किन्तु गम्भीर स्वरमे बजलाह ।

 
फल्लांमाकेँ किंचित भरोस भेलैक । हाथ जोड़ने ठाढ़ भेल— “छौड़ा उकपाती छैक.. निश्चये कोनो अपराध केने हएत..हम ओइ अबंडसँ तंग छी सरकार.. जे सजा हो हुकुम...ओ धौना खसौने ठाढ़ रहल।
“ नेना सँ कियो तंग हुअए! कोनो अपराध नै कयलक अछि अहाँक बालक, किन्तु आब ओ विहनजोग भेल..ओकर ब्याह कऽ दियौ... व्याह कऽ देबै तँ घर गृहस्थीमे लागत.. चित्त शान्त रहतैक। शांत किन्तु आदेशात्मक स्वरमे बजलाह जमींदार साहेब।
“सरकार... के करतैक ओइ अवंडसँ ब्याह... की हैतैक ओकर ब्याह करा कऽ... करमे फूटल छैक...”, विलाप कयलक फल्लामां मर-।
“आब अहाँ जाउ, व्याहक मोन बनाउ ..हम देखैत छिऐक-”, जमींदार सरकार आदेश कयलनि।
फल्लांमाक गेलाक उपरान्त जमीन्दार साहेब उपस्थित  दीवानसँ पुछलनि— “ककर बेटी छैक रानी मुखर्जी आ कैटरीना सन, पता करु तँ... ओकरासँ ऐ छौड़ाकेँ व्याहि देबाक छैक ..।”
जयवर्द्धनकेँ अपन हँसी रोकि नै भेलनि... गरीबक बेटी की रानी मुखर्जी आ कैटरीना सन होइत छैक- ओ चकित रहथि ।
“ऐमे हँसबाक कोन बात... जकरा जे बूझल रहतैक से सएह ने बाजत...तोँ रोटी कहबह ओ ब्रेड बाजत... ओना तोँ बिसरि रहलह अछि जे महाराज शान्तनुकेँ मल्लाहेक बेटी पसिन्न पड़ल रहनि...।” गज्जो भायक उत्तरसँ जयवर्द्धन निरुत्तर भेलाह।
चिल्लामांक बेटी बड़ सुन्नरि। बड़ दिव्य। पाकल धान सन-ए। अगहनक दुपहरिया सन चमक। कोशीक धार सन चंचल। प्रायः सभकेँ बूझल रहैक। तेँ...
दरबारमे चिल्लामांकेँ बजाओल गेल। अपराध बोघक बोझसँ ठाढ़ नै रहि पावैत छल। हवोढेकार कानैत बाजल— “से बिनु मायक बेटी छैक... जरुरे कोनो अपराध कएने छैहएत, लोकक झाड़ी फानब ओकर आदति भऽ गेलैक अछि.. अवस्से कोनो दिन कएने हएत... हम सरकारेक सोझाँमे ओकरा दोखरि देबैक..चिल्लामांक नोरक कोनो छोर नै रहैक।
सरकार ओकरा अपन पाँजमे भरि कऽ उठौलनि। बजलाह- “कोनो बात नै छैक... पहिने नोर पोछह चित्त शांत करऽ, बात किछु नै छैक... हम सुनलहुँ जे तोहर बेटी आब वियाह जोग छह, फल्लांमाक बेटा पट्ठा जवान... कहलक क्यो जे नीक जोड़ी हेतै, तँ से नीक बात... तोँ व्याह लेल तैयार हुअ तेँ खरचाब कोनो चिन्ता नै...हम सभ देखबैक... हम छी..सभटा मददि करबह.. ।
चिल्लामां किछु बाजऽ चाहलक। मुदा, बाजि नै भेलैक। कदाच जमींदार सरकारक उदारता अ दान सभक स्मरणसँ ओकर कंठनली अवरुद्ध भऽ गेल रहैक।  
गज्जोभाय आगाँ कहलनि— “भेल... फल्लामांक आ चिल्लामांक बेटीक ब्याह सभहिक सहज सहमतिसँ भेल। सरकार—जमींदार ओकरा सभहिक समाजिक स्थिति अनुकुल खैयाल रखलनि। समाज कतोक बर्ख धरि हुनकर ऐ कथा-व्यवहारक सोहर गावैत रहल। क्यो जमीन्दारक सवारी रोकबाक कोनो हिम्मति नै कयलक। लोक तँ आइयो सरकार जमींदारसँ बहुत रास आस राखैत अछि। संभावनाक आस आकि आसक संभावनामे समाप्त नै होइत छैक.. किछु कुकुर भुकैत अछि, मुदा किछुए.., अधिकांशक गरमे पट्टा लागि गेलैक अछि... कतोककेँ गरदनिमे तँ सोनाक जींजीर छैक, किछु भुकैत मारलो गेल... जानि नै कतेक... ”
“ अंय हौ भाय ....ओइ छौड़ा आ छउड़ीक की भेलैक? जयवर्द्धन जिज्ञासा कयलनि ।
गज्जोभाय एतवा सुनिते क्रुद्ध भऽ गेलाह..? यएह छियह तोहर पाखण्डी रुप.. तोरा की नै बूझल छह।”
“हमरा किए बूझल रहत... कथा तोहर..कहलऽ तोँ आ बूझल रहत हमरा?” जयवर्द्धन गज्जोभायकेँ लपेटलनि।   “हेतैक की ..दुहू छौड़ा छउड़ीक एक आश्रम भेलैक- आगाँ कालक लीला—विसरा गेल रंग  रभस, विसरा गेल छउंड़ी.. तीन चीज यादि रहल, नोन-तेल लकड़ी, से दुनू नोन तेलमे लागल रहल.. बाजारमे व्योपार ये, चौअन्नी-अठन्नीकेँ के पूछय...टाका पचटकही धरि प्रमुख भऽ गेलैक... समय एकदम्मे बदलि गेलैक..देश-काल। मन मोहनी छतरी तर आबि गेलैक... टोपी पर टोपी.... टोपी टोपी... लोक टोपीक रंगे देख कऽ नेहाल, किछु दिनक उपरान्त सुनल जे छौड़ा रोजी रोटीक खोजमे दिल्ली कि हरियाणा कि कुरुक्षेत्र चलि गेलैक, आइ धरि नै घूमलैक-ए।”
“कतेक बर्ख भेलैक?”, जयवर्द्धनक स्वर म्लान रहनि।
“किएक... हम बड़ बकलेल जे जिनगीक कैलेंडर राखी? तोरे सन मूर्ख जिनगीक कैलैंडर राखैत अछि”, गज्जोभाय किंचित उत्तेजित आ खिन्न भेलाह”
“एम्हर फल्लामां आ चिल्लामां बान्ह जे टुटलैक ओही बाढ़िमे कतहु बहि गेल... आब छउंड़ीक दिन पहाड़ भेलैक आ राति प्रेतग्रस्त .हेमनिमे सूनल अछि जे छउड़ी, प्रतिदिन राष्ट्रीय राजयार्ग १९४७ पर जाइत छैक- जतऽ दुनियां जहानक बस-ट्रक आबि कऽ रुकैत छैक छौउड़ी जाइत छैक, ऐ आस आ सम्भावनामे जे ओ छौड़ा औतैक.. कोनो दिन, कोनो दिशासँ औतेक ..”
गज्जोभाय अन्ततः मौन भेलाह। जयवर्द्धनकेँ कोनो प्रश्न नै फुरलनि।

(गजेन्द्र ठाकुर लेल सस्नेह)
                                                                                                 
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शि‍वकुमार झा ‘टि‍ल्‍लू’
कथा कि‍रणमे यथार्थवोध ओ नारी वि‍मर्श

मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे समग्र वि‍धाक रचनाक आधारपर डाॅ. ब्रज-कि‍शोर वर्मा मणि‍पद्मकेँ पहि‍ल सम्‍पूर्ण साहि‍त्‍यकार मानल जाइत अछि‍। मुदा जौं जन्‍म क्रमांकक आधारपर ि‍नर्णए कएल जाए तँ काॅचीनाथ झा ‘कि‍रण’ पहि‍ल सम्‍पूर्ण साहि‍त्‍यकार छथि‍। मणि‍पद्म जकाँ कि‍रणजी सेहो साहि‍त्‍यक समग्र वि‍धा उपन्‍यास, वालकथा, एकांकी, नाटक, कवि‍ता संग्रह, महाकाव्‍य, ि‍नबंध संग्रह आ कथा संग्रहक रचना कएलनि‍। पराशर महाकाव्‍य लेल साहि‍त्‍य अकादमी पुरस्‍कार आ ‘कथा कि‍रण’ कथा संग्रहक लेल वैदेही सम्‍मानसँ सम्‍मानि‍त कएल गेलनि‍।

मूलत: काव्‍यात्‍मक प्रवृति‍ ओ अभि‍रूचि‍ राखएबला ऐ साहि‍त्‍यकारक पहि‍ल कथा संग्रह ‘कथा कि‍रण’ सन् 1988ईं.मे भाखा प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त भेल। सन् 1989ईं.मे कि‍रण जीक देहावसान भऽ गेलनि‍। सन् 1991-92 ईं.मे बि‍हार सरकार द्वारा मैथि‍लीकेँ बि‍हार लोक सेवा आयोगसँ नि‍कालि‍ देल गेल। जइसँ ऐ भाषाक वाचक ओ पाठक लोकनि‍क मध्‍य अस्‍ति‍त्‍व डगमगाए लागल। फलस्‍वरूप महावि‍द्यालय स्‍तरपर मैथि‍ली पढ़एबला छात्रक कमी भऽ गेल। जकर परि‍णाम ई भेल जे ऐ अवधि‍क कि‍छु आगाँ-पाछाँ प्रकाशि‍त रचनाक ओ महत्‍व नै भेटल जकर ओ अधि‍कारी छल।
’कथा कि‍रण’ सम्‍बन्‍धत: ऐ अर्न्‍तद्वन्‍द्वक सभसँ बेशी शि‍कार भेल। कि‍एक तँ हि‍नक ऐ संग्रहसँ पहि‍ने प्रकाशि‍त कि‍छु रचनाकेँ छोड़ि‍ समाजक वि‍भि‍न्न ऊँच-नीच, सि‍नेह-द्वेष आ समन्‍वयवादकेँ स्‍पर्श करएबला कथा साहि‍त्‍य मैथि‍लीमे नै लि‍खल गेल छल। जौं कि‍छु कथाकार ऐ परि‍धि‍सँ ऊपर उठबाक प्रयासमे सफल भेलथि‍ तँ मात्र कि‍छुए कथामे। सम्‍पूर्ण समाजक जर्जर व्‍यवस्‍था दि‍स कि‍नको नजरि‍ पड़बो केलनि‍ तँ कतौ-कतौ। सम्‍पूर्ण कथा संग्रहमे मानवीय मूल्‍यक अवलोकन कथा ि‍करणसँ पहि‍ने हरि‍मोहन झाक चर्चरी, मनमोहन झाक अश्रुकण, ललि‍तक प्रति‍नि‍धि‍, रामदेव झाक एक खीरा तीन फाँक, रमानन्‍द रेणुक कचोट, रमेश नारायणक पाथरक नाव, धूमकेतुक अगुरवान, शेफालि‍का वर्माक अर्थयुग आदि‍मे भेटैत अछि‍ परंच ऐ सभ कथा संग्रहक सभटा कथाकेँ ऐ दृष्‍टि‍सँ सेहो प्रासंगि‍क नै मानल जाए। प्रयोगवादी कथाकार राजकमल जीक ि‍कछु कथा जेना ललका पाग, सॉझक गाछ, उपराजि‍ता आदि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे अपन बेछप्‍प आधुनि‍क रूप नेने प्रवेश तँ कएलक मुदा हुनको कि‍छु कथा मैथ्‍ज्ञि‍ली साहि‍त्‍यकेँ शि‍ल्‍प आ प्रयोगवादक वि‍श्लेषणक क्रममे अन्‍हार घर नेने चलि‍ गेल।

कथा कि‍रणमे 19 गोट कथा संकलि‍त अछि‍, अलग-अलग कालमे ि‍लखल गेल ऐ कथा सभकेँ शि‍वशंकर श्रीनि‍वासक प्रयाससँ 1988ईं.मे भाषा प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त कएल गेल अछि‍। आमुख शि‍वशंकरजी लि‍खने छथि‍, जइमे एकटा चर्चित समीक्ष समीक्षक द्वारा आमुखसँ बेसी कि‍रण जीक मनोदशा आ रचना प्रकाशन करएबाक क्रममे कथाकारपर श्री नि‍वास जीक उपकार परि‍लक्षि‍त भेल। वास्‍तवमे समीक्षा वा आमुख ऐ रूपेँ नै लि‍खबाक चाही। आमुखमे एकटा कमी आर देखएमे आएल जे श्रीनि‍वास लि‍खैत छथि‍- कि‍रण जीक प्रारंभि‍क कथा कथ्‍यक स्‍तरपर जतेक धारदार ओतेक सुन्‍दर शि‍ल्‍प नहि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यक संग ई दुर्भाग्‍यपूर्ण वि‍डंम्‍बना रहल जे मानसि‍क वि‍लासि‍ताकेँ स्‍पर्श करएबला कथाकारकेँ अइठाम शि‍ल्‍पी मानल जाइत छन्‍हि‍। वास्‍तवमे कथाक दू गोट प्रमुख तत्‍व ि‍थक- बि‍म्‍ब आ शि‍ल्‍प। बि‍म्‍बक अर्थ कोनो घरक नेआें आ शि‍ल्‍पक अर्थ ओकर चार, कोरो आ श्रंृगार- चून पालि‍श। जौं बि‍म्‍ब काल्‍पनि‍क तँ शि‍ल्‍प कल्‍पनाशील अवश्य हएत। जखन कल्‍पने करबाक हएत तँ गामक खोपड़ीक कल्‍पना नै कऽ कऽ आगराक ताजमहलक कल्‍पना कएल जाए। कि‍रणजी मात्र यएह अपराध कएने छथि‍ जे आगराक ताज महलकेँ छोड़ि‍ मि‍थि‍लाक गामक मचानपर अपन रचनोमे जीवंत रहलाह, तँए ‘शि‍ल्‍पी’ नै छथि‍। साहि‍त्‍यकार कल्‍पनाशील होइत छैक, मुदा जौं कखनो मोनकेँ धरातलपर आनि‍ कऽ लि‍खैत अछि‍ तँ यथार्थवोधक बि‍म्‍ब समाजक सत्‍यकेँ वृति‍चि‍त्रक रूपमे देखैत अछि‍। कि‍रणजी संभवत: वएह श्रेणीक ययार्थवोधी कथाकार छथि‍।

पहि‍लुक कथा ‘करूणा’ करूणाक नैहरमे स्‍वच्‍छन्‍द जीवनसँ प्रारंभ होइत ओइठाम तक पहुँच जाइत अछि‍ जतए धरि‍ साधारण शि‍ल्‍पी नै पहुँच सकैत छथि‍। यामि‍नीकान्‍त बाबूक सुकन्‍या करूणाक वि‍वाह सुन्‍दरबाबू सँ भेल। नैहरक भगजोगि‍नी कर्त्तव्‍य पथपर भाटक संग सासुरमे आगाँ बढ़ैत छलि‍, वृद्ध पि‍तामही सासु आ मातृ पि‍तृ वि‍हीन जाउत नरेन्‍द्रक संग....। तीन मासक भीतर अजि‍या सासुक देहावसान आ ओकर दू मास बाद श्वसन ज्‍वरसँ पति‍क देहान्‍तक पश्चात करूणा टूटि‍ गेलीह। प्राचीन आर्य संस्‍कृति‍ जकरा जनभाषामे सनातन कहल जाइछ, रूढ़ि‍वादि‍ताक आवरणसँ अखन धरि‍ ओझराएल अछि‍। जे लोक समाजक मुख्‍य धारासँ कात लागल छथि‍, ओ ऐ कथा कथि‍त सनातन संस्‍कृति‍क आधारपर संस्‍कार तँ करैत छथि‍, मुदा ओइमे ओझराएल नै‍। ऐ दृष्‍टि‍सँ समाजक पछाति‍क लोककेँ बेसी वि‍चारवान मानल जाए। अगि‍ला लोकमे बाहरी आडंवरकेँ मनवाक क्रममे कि‍छु कुव्‍यवस्‍था उत्‍पन्न भऽ गेल। संभवत: ई कथा सनातनधर्मी ब्राह्मण परि‍वारकेँ धि‍यानमे राखि‍ कऽ लि‍खल गेल। भऽ सकैछ कथाकारक र्इ कल्‍पना हुअनि‍, मुदा ऐ प्रकारक घटना वास्‍तवमे एखन धरि‍ होइत अछि‍ जे सवर्ण परि‍वारक वाल वि‍धवा सुकन्‍याकेँ सेहो पुनर्विवाह करबाक समाजमे मान्‍यता नै गेल, जइ समैमे ई कथा लि‍खल गेल ओइ समैमे स्‍थि‍ति‍ तँ आर दयनीय छल।

‘करूणा’ कथा वि‍षम पि‍रस्‍थि‍ति‍मे आगाँ बढ़ैत अछि‍। एकटा वालि‍का नरेन्‍द्रकेँ तकैत करूणा घर पहुँचलि‍। नरेन्‍द्र अपन मातृकमे छल। करूणा एकसरि‍ छली। वालि‍का चकि‍त होइत प्रश्न कएलनि‍, ‘एकसरि‍ डऽर नहि‍ लगैत अछि‍। अपन जीवनकेँ जीवन्‍त लहासक रूपमे करूणा वाजलि‍- ककर डऽर वास्‍तवमे भूत-परेत एकटा भावनात्‍मक रूपसँ शून्‍य प्रणीक लेल डरक साधन नै बनि‍ सकैछ। की छन्‍हि‍ जे चोर आओत? मुदा बालि‍का प्रश्न कएल जे जौं अपने उठा लि‍ए?  प्रकारक प्रश्नसँ करूणा स्‍तब्‍ध भऽ गेली। एकटा नारीक मर्यादा समाजक दृष्‍टि‍मे जे महत्‍व राखए, मुदा ओकरा लेल सर्वोपरि‍। समाजक उदाहरण यएह लेल जे ऐ समाजक नीच लोकसँ लऽ कऽ वि‍चारवान वर्गक कि‍छु लोक सेहो अवलाक चरि‍त्र हननसँ वाज नै आएल अछि‍। करूणा भवि‍ष्‍यक डरसँ काँपि‍ अपन सुन्नर रूपकेँ भयावह बनएबाक लेल उद्धत भऽ गेली। परि‍स्‍थि‍ति‍ सेहो संग देलकनि‍ जे बच्‍चाबाबूक माथ परक चाम उज्‍जर देख करण पुछलनि‍ तँ पता चललनि‍ जे सल्‍फ्यूरि‍क एसि‍ड अर्थात् तेजाप प्रयोगशालामे पड़ि‍ गेल।

बच्‍चाबाबूकेँ अपन घरसँ वि‍दा करैत देरी तखापर राखल स्‍ल्‍फ्यूरि‍क एसि‍ड अपन मुँहपर ठाढ़ि‍ करूणा रूपवतीसँ जीवि‍त पि‍चाशक रूपमे आबि‍ गेलीह?
आब प्रश्न उठैत अछि‍ जे करूणाकेँ एना कएलासँ की भेटल? भेटबाक प्रश्न तँ नै मुदा हुनक चरि‍त्रहरणक आशंका हुनका मोने समाप्‍त भऽ गेल। जौं एकटा मातृ-पि‍तृ वि‍हीन बालकक दायि‍त्‍व नै रहतनि‍ तँ आत्‍महत्‍या सेहो कऽ सकैत छलीह। यएह थि‍क देवी भक्‍ति‍क केन्‍द्र मि‍थि‍लामे देवीक दशा। नारी ि‍वमर्शक एकरूपक यथार्थचि‍त्रण कि‍रणजी कएलनि‍। कनेक कमी जे कथाक प्रारम्‍भ सरल शब्‍दमे सेहो कएल जा सकैत छल मुदा साहि‍त्‍यक पुरा रूपक शब्‍दमे कथाकेँ प्रवेश करा कऽ कि‍रणजी ओइ वि‍चारवान समीक्षकक दृष्‍टि‍मे अपन स्‍थान बनएलनि‍ जनि‍क मान्‍यता छन्‍हि‍ जे भाषा उच्‍च कोटि‍क हुअए, जकर अर्थ सभ मैथि‍ल नै लगा सकथि‍ ओ वास्‍तवि‍क रचना थि‍क। भऽ सकैत अछि‍ जे कथाकार ऐ प्रकारक शब्‍द सभसँ कथाक सहज रूपेँ कएने होथि‍, वा मूलत: कवि‍ रहनि‍हार कि‍रण अपन काव्‍यात्‍मक प्रवृति‍केँ नै झाँपि‍ कवि‍ताक बि‍म्‍बकेँ कथाक रूप दऽ देने होथि‍। जौं ई कथा काव्‍य रहि‍तए तँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वि‍स्‍मयकारी क्षण होइतए जखन करूणा.... महाकाव्‍यक नायि‍का बनि‍ मि‍थि‍लाक मानस पटलपर वि‍चरण करि‍तथि‍। दोसर जे कनेक नकारात्‍मक वि‍न्‍दु भेटल ओ अछि‍ करूणाक अपन आभा नष्‍ट करबाक दृष्‍टि‍कोण। यथार्थबोधी कथाकारकेँ अइठाम क्रांति‍वादी दृष्‍टि‍कोण स्‍पष्‍ट करबाक चाहि‍यनि‍, मुदा कि‍रणजी सन सि‍द्धहस्‍त रचनाकारक सोच सेहो समाजमे क्रांति‍ नै सोचि‍ सकल।

हम सम मि‍थि‍लामे रहैत छी, एकटा उतर आधुनि‍क सोच की कहल जाए आधुनि‍क दृष्‍टि‍कोणसँ दूर मि‍थि‍ला.... जइठाम एखनो वि‍धवाकेँ पुनर्विवाह की कहल जाए कोनो आन कन्‍याक वि‍वाह संस्‍कारक ऐहब नै बनाओल जाइत अछि‍। फ्रांसक राज्‍यक्रांति‍ हुअए वा यूरोपक धर्म सुधार आन्‍दोलन सभमे साहि‍त्‍यक अपन महत्‍व अछि‍, मुदा ई आर्यावर्त्त थि‍क अइठाम साहि‍त्‍य मनोरंजन मात्रक साधन मानल जाइत अछि‍, प्रेरणाक स्रोत नै। वास्‍तवि‍कता सेहो छैक जे साहि‍त्‍यकारकेँ अपन लेखनीक दृष्‍टि‍कोणकेँ अपन जीवनमे सेहो जोड़ि‍ देवाक चाही, नै तँ समाज मान्‍यता कोना देतनि‍ वा ओ साहि‍त्‍य प्रेरक कोना हएत? कि‍रणजी करूणा सन दृष्‍टि‍कोण रखैत हेताह कि‍एक तँ हुनकाे जन्‍म अही समाजमे तँए क्रांति‍वादी नै बनि‍ ‘करूणा’क नाश देखा देलनि‍। ओइ प्रकारक नाश जे जइसँ नीक मृत्‍यु। मुदा सम्‍यक सोचबला कि‍रणजी केँ अइठाम कनेक क्रांति‍वादी बनि‍ करूणाक पुनर्विवाह देखएबाक चाहि‍यनि‍। यथर्थादोषी साहि‍त्‍यकारकेँ सेहो समाजमे वि‍चार उत्पन्न करएबाक लेल क्रांति‍वादी बनब साहि‍त्‍यक लेल अनि‍वार्य नै तँ आडंवरकेँ समर्थन करएबला ऐ प्रकारक साहि‍त्‍यकेँ पढ़नि‍हार लोक दोष साहि‍त्‍यकारेपर देत।

दोसर कथा ‘एहि‍ चारि‍ खूनक खोज केनि‍हार के?’ अर्थनीति‍केँ धि‍यानमे राखि‍ कऽ लि‍खल गेल। कथाक प्रारंभमे कथाकार ब्राह्मणवादी व्‍यवस्‍थापर कनेक कटाक्ष कएलनि‍, ‘पंडि‍त जे कहथि‍ से करी मुदा जे करथि‍ से नहि‍ करी’ अर्थात् अग्रसोची समाजक धर्मपालक जाति‍क कर्म आ कथनमे भि‍न्नता अछि‍। वास्‍तवि‍कता सेहो अछि‍‍ पंडि‍त वि‍द्याध्‍ययन आ नीति‍ अध्‍ययनक आधारपर उचि‍त वचन तँ अपन मुखसँ वजैत छथि‍, मुदा मात्र होसराक लेल अपन लेल नै।
एे कथामे सेहो एकटा सत्‍कर्मी परेमा अपन स्‍वाभि‍मानक संग जीवन तँ प्रांरभ कएलक मुदा सम्‍पति‍यासँ वि‍वाहक वाद साधनहीन परेमाक स्‍वाभि‍मान परि‍स्‍थि‍ति‍वश डगमगा गेल। अपन नेनाकेँ जीवि‍त रखबाक लेल हलुआइक दोकानमे कि‍छु भोजन सामग्री तकैत पकड़ल गेल। पुलि‍स अपन काज कएलक एकटा भोजन चोरि‍ करबाक प्रयास करैबला चोरकेँ डकैत बना कऽ सातवर्ष कठोर कारावास दि‍आ देलक। न्‍यायालयमे परेमाकेँ न्‍याय नै भेटल कि‍एक तँ ओकर गप्‍प सुनत के?

परेमा जहलसँ छूटल तँ अर्थहीन परि‍वारक सभ जन समाप्‍त......।
अर्थनीति‍क ई कथा समाजक अंति‍म व्‍यक्‍ति‍पर प्रारंभ भऽ ओकर अंतसँ समाप्‍त भेल। कि‍रण जीक ई कथा यथार्थबोधी मानल जा सकैत अछि‍। अइमे क्रांति‍क कोनो गुंजाइश नै कि‍एक तँ शि‍क्षा आ भौति‍क साधनसँ वि‍हीन मानब सरकारी तंत्रक वि‍रूद्धमे कोना आन्‍दोलन करए, वादमे परेमा कतए जाए कि‍एक तँ ओ वि‍क्षि‍प्‍त भऽ गेल।
‘काल ककरो छोड़त’ एकटा राजपरि‍वारक कथा थि‍क। महाराज दीर्घवाहु अपन मृत्‍युकालमे अपन राज्‍य आ अपन पाँच वर्षक वालक सुन्‍दर अपन छोट भाए वीरवाहुकेँ सौंपि‍ ऐ संसारसँ वि‍दा भेलनि‍। कालान्‍तरमे वीरवाहु अपने वास्‍तवि‍क राजा कहएबाक लेल अपन भाति‍जकेँ मारि‍ देलनि‍। ई दृश्य वीरवाहुक पुत्र शंकर देखलक आ पि‍तृहन्‍ता बनि‍ गेल। शंकरक स्‍त्री राधा दोसर पड़ोसी युवक रमेशसँ प्रेम करैत छलि‍, ओ सेहो ‘महाजनोयेन गत: स पंथा’क आधारपर शंकरक हत्‍या कऽ देलथि‍न। अंतमे कथाकार ई प्रश्न छोड़ि‍ कथाक इति‍श्री कएलनि‍- ‘काल की राधाकेँ छोड़तनि‍? वास्‍तवमे एकरा कथा नै मानल जाए ई थि‍क कथाकारक वि‍राट जीवन दर्शन ओ शैक्षणि‍क योग्‍यताक एकटा चि‍त्र। इति‍हास साक्षी अछि‍ धनलोलुपता ओ राजपदक आशमे कतेक शासक संबंधक मर्यादाकेँ ि‍वसरि‍ गेल छलथि‍। लोभ पापक कारण होइछ। लोभ माली अपन फूलवारीक फूलसँ सेहो करैत अछि‍, एकटा पति‍ अपन पत्नीक सौन्‍दर्यसँ सेहो करैत अछि‍ मुदा ओ ि‍थक मर्यादापूर्ण अधि‍कारक लोभ। अमर्यादि‍त ओ अवांछि‍त लोभक परि‍स्‍थि‍ति‍मे लोक अपने नाश करैत अछि‍। प्रलाप, समाजक चि‍त्र, धर्मरत्नाकर, चनटा, जाति‍ पाँति‍क जाड़ू आदि‍ कथा सेहो समाजक अग्रआसनपर बैसल लोकक समाजक अंति‍म व्‍यक्‍तक प्रति‍ दृष्‍टि‍कोणकेँ स्‍पष्‍ट करबैत अछि‍। ऐ प्रकारक कथा जइमे सम्‍पूर्ण समाजक स्‍थि‍ति‍क चर्च हुअए ललि‍त आ जगदीश प्रसाद मंडलकेँ छोड़ि‍ कि‍रण जकाँ केओ नै कएलक। मुदा सभटा कथा यथार्थचि‍त्रण तँए श्रीनि‍वासजी हि‍नका शि‍ल्‍पीक संज्ञा दइमे संकोच कएलनि‍। वास्‍तवि‍कता अर्थात् इजोतसँ डर कल्‍पना अर्थात अन्‍हारसँ प्रेम मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रवृति‍ रहल छैक तँए कि‍रणकेँ ओ स्‍थान नै भेटल जकर ओ अधि‍कारी छथि‍। ऐ संग्रहक सभसँ वि‍लक्षण कथा थि‍क- मधुरमनि‍। अपन साहि‍त्‍यक ि‍कछु चर्चित कथामे एकर स्‍थान अछि‍। एकटा नि‍म्नवर्गीय समाजक मुँहजोरि‍ मुदा स्‍वस्‍थ आ कर्मशील नारी मधुरमनि‍ अपन शरीरसँ असमर्थ पति‍क प्रति‍दायि‍त्‍व रखैत अछि‍। मधुरमनि‍क कठोरवाणीसँ उद्वि‍ग्‍न भऽ ओकर पति‍ मोचन घरसँ पड़ा गेल। मधुरमनि‍ पोटि‍ कऽ फेर ओकरा घरमे आनि‍ लेलक। सतना माय जखन मोचनक आलोचना मधुरमनि‍ लग करैत अछि‍ तँ मधुरमनि‍ सतना मायपर तीक्ष्‍ण शब्‍दवाण चला कऽ ओकरा चुप करा दैत अछि‍। ‘पि‍ट्ठा पहलमान लऽ कऽ हम की करब जे भरि‍ दि‍न डेङवि‍ते रहत।’ वास्‍तवमे सतना मायक शरीरसँ मजगूत पति‍ खूब पि‍टाइ करैत छल। यएह थि‍क हमरा सबहक समाजक नारीक पति‍क प्रति‍ सि‍नेह ओ अपन पति‍केँ कि‍छु कहि‍ सकैत छथि‍, मुदा दोसर कि‍ए कहत? अइमे अधि‍कार आ सि‍नेह दुनू भेटैत अछि‍।

ऐ प्रकारे वि‍हनि‍ कथाक ऐ संग्रहकेँ युगान्‍तकारी तँ नै मानल जा सकैत अछि‍ मुदा समाजक वास्‍तवि‍क दशाक वि‍वेचन आ तर्कपूर्ण शैलीसँ ई संग्रह अपन अलग स्‍थान रखैत अछि‍।


पोथीक नाअाें- कथा कि‍रण
रचनाकार- डाॅ. कान्‍चीनाथ झा ‘कि‍रण’
प्रकाशक- भाषा प्रकाषन पटना
वर्ष- 1988ईं.     



 
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१.बेचन ठाकुर- दूटा विहनि कथा २. किशन कारीगर- टाई माने रस्सी- एकटा हास्य कथा
बेचन ठाकुर
दूटा विहनि कथा

नोमीनेशन

रामपुर पंचायतमे मानटूनक नाम नवका सत्रमे सरकार दि‍ससँ अत्‍यन्‍त पि‍छड़ी जाति‍क लेल महि‍ला आरक्षणक तहत आरक्षि‍त कऽ देल गेल। अइ आरक्षणसँ लाभ पबैक मादे अति‍ प्रसन्न भऽ मानटून घरवाली रामबतीसँ पूछलक- गै, हमर वि‍चार अछि‍ जे अइ बेर तँू मुखि‍यामे ठाढ़ होइतें। ई मौकी नै छोड़ि‍तें।
रामबती खीसि‍या कऽ बाजलि‍- र्इ बात बजैमे तोरा कनि‍को संकोच नै भेल। हम आइ तक कोट-बेलौक नै गेलौं आ कोनो हाकि‍म-हुकुमसँ गप-सप्‍प नै केलौं। एत्ते तक जे कोनो बाहरी लोकक आगू मुँह नै उठौलौं। से जनानी जतऽ-ततऽ बौआइत! ई ि‍कनो नै मानब।
बेचारा मानटून गुम्‍म पड़ि‍ गेल। फेर कि‍छु कालक पछाति‍ हि‍म्‍मत कऽ पुचकाइर कऽ कहलक- तूँ ही कह, जखन सरकार अपना सभकेँ आगू बढ़ैक अधि‍कार देलक तँ ओइसँ फायदा कि‍अए नै उठाबी। मुखि‍याक काज समाज सेवा छी। सौंसे पंचायत प्रति‍ष्‍ठा भेटतौ।
ई बात सुनि‍ बेचारी तत-मतमे पड़ि‍ गेली। कि‍छु काल पछाति‍ बेचारी मुस्‍की दैत बाजलि‍- तोहर कहल काटि‍यो तँ नै सकै छी। चलऽ देखल जेतै, जे हेतै से हेतै। काल्हि‍ नोमीनेशन कराए दए।


छल-बल

मदनपुर पंचायतमे चुनावक सरगर्मी बड़ जोरपर छलै। मुस्‍की दैत मनोज बाजला- मुनीलाल भाय, अपन समाजमे मुखि‍या पदक लेल अहीं जकाँ कर्मठ आ इमानदार लोकक खगता छै।
अइपर खीसि‍या कऽ मुनीलाल बजला- से कि‍अए यौ? सभसँ बुरबक दीनेनाथ। मनोज मुस्‍का देलनि‍ आ बाजल- खीसि‍या गेलौं भाय। सच्‍चो कहै छी। अपन पंचाइतमे अहाँसँ योग्‍य आर कि‍यो लोक कहाँ छै। खाली गरीबेटा ने छी।
मुनीलाल गि‍ड़गि‍ड़ा कऽ बजला- भाय, अहीं ठाढ़ होउ। तन-मनसँ मदति‍ करब। अहाँसँ बुजुर्ग अइ पंचायतमे आर के?”
मनोज मुसकि‍यो देलनि‍ आ बजला- हमरा सभकेँ आरक्षण नै अछि‍ तँए। नै तँ ि‍नश्चि‍ते ठाढ़ होइतौं। मुनीलाल भाय, अहाँकेँ ठाढ़ नि‍श्चि‍त हेबाक अछि‍। तन-मन धनसँ मदति‍ करब।
कि‍छु सोचि‍ कऽ मुनीलाल बजला- भाय, अपने गामक मालि‍क छि‍ऐ। अपनेक कहल हमरा मानए पड़त, जौं अहाँ सहाय छी।
ओही पंचायतक पाँच सए पोलबला सतना गामक प्रत्‍याशी मनोजक खानगी दोस सोमन आ एकटा आन प्रत्‍याशी सुकन  चुनावसँ एक दि‍न पहि‍ने राति‍मे चोरा कऽ भरि‍ पंचायतमे ख्ूब पाइ बँटलनि‍। चुनावक पछाति‍ परि‍णाम आएल। सोमनकेँ दू हजार भोंट भेटलनि‍, मुनीलालकेँ दू सए आ सुकनकेँ उन्नैस सए।
वि‍हान भने पंचायत भवनपर आयोजि‍त सभागारमे ि‍नर्वाचि‍त मुखि‍या सोमन प्रसन्न मने कहलनि‍- धनि‍ बाइस सए पोलबला चन्‍दनपुर गाम आ मनोज मालि‍क जे आइ मुखि‍या बनलौं।
अपन वार्ड सदस्‍य मोहि‍तसँ ई बात सुनि‍ घरपर मुनीलालकेँ बोम पाड़ि‍ कना कऽ बजा गेलै- बि‍ना छल-बलक एलेक्‍शन जीतनाइ असंभव।
किशन कारीगर
टाई माने रस्सी ।
           एकटा हास्य कथा ।

ओना त रस्सी जीवन मे बड्ड उपयोगी होइत छैक। गरीब लोक लेल त आओर बेसी टाट फरक बन्है स लके घर छारै माल जाल बन्है स ले के खोपड़ी बन्है तक। मुदा जखन इह रस्सी गाराक फॉस भए जायत अछि तखने लोक बुझहैत अछि रस्सीक महिमा। जेकर गारा फॅसैत अछि वैह बैझहैत अछि जे कि भाव पड़ैत छैक। आई एहने चक्करफॉस मे फॅसल अधमरू भेल रंजन बजलाह। हम पुछलियैन जे कहू टाई माने कथी वो बजलाह रस्सी।
  एक दिन भिंसरे भिसंरे रंजन फोन केलैन किशन अहॉ के त जे ने से रहता है । हम ओंघाएले रही मोन त भेल जे खूम जोर स गारि परही मुदा ज्येष्ट भ्राता के गारि कोना परिहतौ तहि दुआरे कुशल छेमक गप भेलाक बाद रंजन फेर बजलाह हमरा कहिया से सासुर जाइ लेल मोन छटपटा रहा है आ अहॉ कोनो ओरियान ने नहि करता है। हम बजलहूॅ भैया अहा मंगरौना आउ ने सब ओरियान एक्के मिनट मे हो जाएगा। ई सुनि ओ हरबराएल बजलाह अच्छा किशन हम एक हप्ता बाद  गाम आबि रहा है। हम कहलियैन ठिक छैक आ फोन राखि के नित क्रिया मे लागि गेलहू।
 हमरे पितियौत भाए छथि रंजन पूणे विश्वविद्यालय स इंजीनियरिंग केने रहैथ। परदेश मे जनम आ ओतए प्रारंभिक शिक्षा स उच्च शिक्षा धरि पढ़लाह। एकदम शहरी ठाठ बाठ मैथिलक कोनो दरश नहि हुनका अंग्रेजी मराठी बेसी बजैत छलाह। ओना त हमरो जनम परदेश मे भेल मुदा गाम आबि मैथिली सीखि गेलहु। हमरा जतबाक स्नेह अपना माटि पानि स रंजन के ततबेक बेसी अलगाव एहि सॅ। हमर कक्का बच्चा बाबू के केंद्रिय विद्यालय मे प्राचार्य रहैथ तहि दुआरे परदेश मे धिया पूता के पढौलैन। ओ मैथिली बजैत जहि स रंजनो कने मने मैथिली बुझहैत बाजल त तेरहे बाइस होइत रहैन। बच्चा बाबू के केंद्रिय विद्यालय मे नोकरी भेलैन त कहियो घूरि के मंगरौना नहि एलाह। एबो कोना करितैथ ओ सभ पूर्णिया मे जगह जमीन किनी बसि गेल रहैथ। हुनका घियो पूतो के गाम घर सॅ कोनेा मतलब नहि एकदम अनचिनहार रहैथ ओ सभ। रंजन कोनो अमेरिकी कंपनी मे सॉफटवेयर इंजीनियर रहैथ तहि दुआरे हमरा कक्का के मोन गद गद । संयोग स हुनकर बियाह दरभंगा जिलाक मब्बी गाम मे भेल। लड़की शिक्षामित्र के नोकरी मे रहथिहिन आ हमरा भैयाक ससुर सेहो प्रखणड कृषि पदाधिकारी रहैथ। तहि दुआरे मोन माफिक लेबो देबो भेलैक। लड़की वला सेहो एहि कुटमैति स खूम प्रसन्न रहैथ तहि दुआरे चैनो उड़ल पर दस लाख गनने रहैथ मुदा बियाहक बाद जमाई के सासुर बजौताह से बिसैर गेल रहैथ। एम्हर रंजन सासुर जाइ लेल छटपरटाइत रहैथ मुदा गाम घरक भंाज भुज हुनका एकदम नहि बुझहल तहि दुआरे ओ हमरा डेनवाह बनौलैन।
ठीक सातम दिन सात बजे सांझ मे रंजन हमरा गाम मंगरौना अएलाह सूट बूट टाई पहिरने कियो हुनका चिनहैथ नहि। गामक कतेक लोक स पूछैत पूछैत ओ हमरा दरवज्जा पर अएलाह। एम्हर हम गाछि कात स धनरोपनी कए के आएल रहि कि हुनका देखैत मातर स्नेह बस भरि पाज के गारा मिलान केलौह मुदा रंजन रूष्ट होइत बजलाह अहा हमरा टाई मे मिट्टी लगा दिया आब हम सासुर कोना जाएगा। हुनका खिसियाअैत देखि हम बजलहु अहा चिन्ता किएक करता है हमरो लग टाई है ओहि स अहा के काम हो जाएगा। ई सुनि ओ खुशि स मोने मोन नाचए लगलाह जे टाई पहिर के जाएब त सासुर मे खूम मान दान होएत। कुशल छेमक गप भेलाक बाद दूनु गोठे हाथ मुह धो के बैसलहुॅ त माए हमर खाना परोसलीह। भोजन भात कए के राति मे विश्राम केलहु। दोसर दिन भिंसरे पहर फटफटीया पर बैसी क हम आ रंजन हुनकर सासुर मब्बी जाई लेल बिदा भेलहु। हम फटफटिया चलबै मे अपस्यात रहि मुदा रंजन टाई समहारै मे फिरिशान रहैथ। पछिया हबा खूम जोर स बहैत जहा बलुआहा बान्ह लक पहुचलहु की ठक्कन भेंट भए गेलाह आ रंजन के देखि बजलाह अहाक गारा महक रस्सी उधिया रहल अछि बान्हि लियअ नहि त उरिया जाएत। ई  सुनि रंजन डरे टाई मे क्लीप लगा लेलैन आ किछू नहि बजलाह। ठक्कन हमरा पुछलैन यौ किशन इ अनठिया के छथि आ एतेक थाल खिचार मे कतए जा रहल छी। हम हुनका कहलियैन हिनका नहि चिन्हलियैन हमरे पूण्रिया वला पितिऔत भाए छथि। एखन हिनके सासुर मब्बी जा रहल छी। ठक्कन बजलाह से त ठीक मुदा कहू त गारा मे एतेक टा रस्सी बन्हबाक कोन काज ज कोनो खूरलूच्ची धिया पूता रस्सी बूझहि एकरा घिची देतै त लगले प्राण सेहो छुटि जेतैन। हम बजलहु यौ महराज इ टाई पहिरने छथि रस्सी नहि। ओ बजलाह धू जी महराज गाम घरक लोक त एहि टाई के रस्सीए बुझहत ने बेस जाउ सासुर अहू बुझिए जेबै जे टाई माने कथि हम बजलहु रस्सी।
     ठीक 2 बजे दुपहर मे हम आ रंजन मब्बी पहुचलहु ओतए पहुचलाह पर आगत बात भेल मुदा सभ घुरि घुरि के हमरे दिस तकैत किएक त हम धोति कुर्ता पहिरने रहि कतेक के हम अनठिया लगियै किएक त पहिल बेर भैयाक सासुर मब्बी आएल रही। रंजनक बियाह मे हमर कक्का नहि बजौलैन त बियाह मे नहि आएल रहि। एकटा बुरहि दाए बजलीह इ के छेथहिन डेनवाह हम बजलहु सेह बुझियौअ। ताबैत मे रंजन के सारि नीलू अनिला सोन  सभ गोटे  हेंर बान्हि के हसि मजाक  करै लेल एलीह। नीलू बजलीह डूल्हा की हाल चाल अछि त रंजन हसैत बजलाह हाल ठीक नहि है सौंसे देह मे खूम थाल लग गया। एतबाक मे अनिला टाई छुबि बजलीह यौ पाहुन इ कोन अंगरेजिया आंगि अछि। ओकरा हाथ मे माटि सेहो लागल रहै वैह कादो वला माटि टाई मे लागि गेलै। टाई मे माटि लागल देखि रंजन के मोन भिन्न भिना गेलैन आ तामसे अघोर भेल बजलाह हम अखने चलि जाएगा आब। नीलू बजलीह पाहुन अहा एतेक दिन बाद सासु अएलहु त अहा के आई रहैए परत। अहा नहि रहब त हम सौसे देह आ मुहे मे  माटि लगा देगा। ई सुनि रंजन सकपक्का गेलाह हम चुपचाप सभठा गप सुनैत रही। खान पिअन भेलाक बाद राति मे ओतए रहलहु मुदा रंजन के आपिस पूर्णिया अबै के रहैन तहि दुआरे भिंसरे पहिर मब्बी स बिदा भेलहु। हम दलान पर सूतल रहि भिंसरे पहर मैदान दिस स आबि मुह हाथ धो के तैयार रहि। मुदा शहरी बाबू रंजन के नीन 7 बजे टूटलैन सेहो हम अंगना जा के हरबरौलियैन तखन उठलाह आ हरबड़ी मे ब्रश केलैन आ तकरा बाद दुनू गोटे जलखै कए बिदा भेलहु मेघौन सेहो लागल रहैक। रस्ता पेरा गुफ अनहार लगैत बरखा सेहो भेल रहैए थाल खिचार सेहो रहैए। सभ स बिदा लैत सासुर स बिदा भेले रही फटफटिया स्टार्ट केने रही रंजन बैसी गेलाह की ताबैत मे  केम्हरो स रंजन के छोटकी सारि सोनम दौगल अएलीह यौ पाहुन अहा के एटाइची त छुटिए गेल। ओ बजैत आ दौगल अबैत रहै जहा गाड़ि लक पहुचल की धरफरी मे ओकर पाएर पिछैर गेलैए आ अछैर पिछैर के खसैए लगलै आ हरबरी मे टाई पकरा गेलैए। टाई ततेक जोर स घिचेलैए कि रंजन फटफटिया पर स धबाक दिस खसि परलाह ततेक जोर स पंजरा मे चोट लगलैन जे कुहैर उठलाह । एम्हर हमरा हसी स रहल ने गेल। रंजन कुहरैत बजलाह हमरा एतेक चोट लगा कि देह टूट गया आ अहॉ खाली हॅसने मे लगा है। अहा  किछ करेगा की नहि। हम बजलहु करेगा त एक्के मिनट मे मुदा पहिले ई कहिए टाई माने कथि। रंजन कुहरैत बजलाह किशन अहा ठीके कहता था गाम घर मे टाई माने रस्सी।

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नवेंदु कुमार झा- रिपोर्ताज
१.अपन कूनबा बचबऽ लेल मैदान मे उतरलाह सुप्रीमो तीरक निषान पर अछि लालटेन।

छओ मासक मौनक बाद राष्ट्रीय जनता दलक अध्यक्ष लालू प्रसाद अपन दलक पदाधिकारी आ कार्यकर्ताक संग बैसक कऽ प्रदेष में स
Ÿाारूढ़ नीतीष सरकारक विरूद्ध आंदोलन पर करबाक घोषणा कएलनि अछि। सŸाारूढ़ जदयू द्वारा राजदक सहयोगी लोक जनषक्ति पार्टी मे सेधमारी कएलाक बाद अपन दलक एकजूट करबाक लेल श्री प्रसाद क सक्रियता सँ प्रदेष राजनीतिक पारा चढ़बाक संकेत भेटि रहल अछि। दरअसल बिहार विधान परिषद् मे लोजपाक अस्तित्व समाप्त होएब आ बिहार विधान सभा मे लोजपाक अस्तित्व पर संकट के देखि लालू प्रसाद अपन कूनबा बचैबाक लेल डैमेज कंट्रोल अभियान प्रारंभ लऽ कएलनि मुदा हुनक एहि अभियान के हुनक विष्वसनीय दूटा सांसद डा0 रघुवंष प्रसाद सिंह आ जगदानंद हवा निकालि देलनि। दूनू सांसद एहि बैसक मे अनुपस्थित रहि ई संकेत देलनि जे दलक भीतर एखन सभ किछु ठीकठाक नहि अछि। जखन कि तेसर सांसद उमाषंकर सिंह एहि बैसक सूचना नहि होएबा बहाना बना दलक नेतृत्व क सोझा खुलल चुनौती देलनि अछि। लोकसभा चुनाव में राजदक खराब प्रदर्षनक बाद दलक कतेको वरिष्ठ नेताक दल छोड़बाक जे सिलसिला प्रारंभ भेल छल जे विधान सभा चुनाव सँ पहिने धरि चलैत रहल आ ई सिलसिला एखनो जारी अछि। हालहि मे लालूक विष्वसनीय बुझल जाए बाला दल महासचिव राम वचन राय आ प्रवक्ता शकील अहमद खानक राजद के छोड़बाक घटना सँ दलके नोकषान भेल अछि। एहि क्रम मे हुनक सहयोगी लोजपाक अस्तित्व पर आएल संकट के देखि स्थिति के भापि लालू प्रसाद अपन कूनबा के बचैबाक लेल अपन दिल्ली मोह के त्यागि बिहारक रूख कएलनि अछि।
श्राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद आ लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवानक दिल्ली प्रेम सँ दूनू दलक कार्यकर्ताक उत्साह ठंढा पड़ि गेल छल। एकर असरि विधान परिषद् मे लोजपाक जदयू मे विलयक रूप सोझा आएल। प्रदेष मे राजक कतको कार्यक्रम आ चर्चित फारबिसगंज काण्ड मे राजद सुप्रीमोक निष्क्रियता सँ सरकारक विरूद्ध राजदक हमला कमजोर पड़ल तऽ बियाडा जमीन आवंटन मामिला मे विपक्षक कड़गर रूखक बाद जदयू लोजपा आ झामुमो पर डोरा डालि विपक्षक हमलाबर धार के भोथर बना देलक अछि। राजदक वरिष्ठ नेता सभक मध्य बढ़ैत दूरी सँ दलक संकट गहिर भ्ऽ गेल अछि आ पटना मे भेल बैसक लालू प्रसाद स्वयं संकट मोचकक रूपम े उपस्थित भऽ दलके एकजूट करबाक प्रयास तेज कऽ देलनि अछि। केन्द्र मे मंत्री पदक कुर्सीक जोड़तोड़ मे लागल श्री प्रसाद आ श्री पासवानक स्थिति एखन ‘‘माया मिलि न राम ’’ बाला भऽ गेल अछि। दूनू नेता के कांग्रेस दिल्ली दरबार सँ रास्ता देखा देलक आ इम्हर प्रदेष मे दूनू दलक ऊपर संकटक मेघ घुमि रहल अछि। विधान परिषद् मे बग्ला उजरि गेल अछि तऽ विधानसभा मे जदयूक बिहारि सँ बंग्ला के बचैबाक प्रयास भऽ रहल अछि। दोसर दिस लालू प्रसाद अपन राजनीतिक कौषलक मटिया तेल सँ लालटेन क लौ के तेज करबाक प्रया समे मैदान मे उतरि गेल छथि।
श्राजदक आत्मचिंतन बैसक मे कार्यकर्ताक पैघ उपस्थितिक मध्य कतेको वरिष्ठ नेताक अनुपस्थिति सँ पहिल बेर राजद सुप्रीमो के खुलल चुनौती भेटल अछि। लालू प्रसादक परिवार पहिनहि छिरिया गेल अछि आ आब दल पर छिरियैबाक संकट आबि गेल अछि। लालू प्रसादक एहि सक्रियता सँ संभव अछि जे लालटेनक लौ किछु दिन धरि स्थिर रहए मुदा ई कखन मिझा जाएत से नहि कहल जा सकैत अछि। लालू प्रसाद आ राम विलास पासवानक नव दिल्ली मे कांग्रेस सँ दोस्ती बढ़ैबाक छोड़ मे प्रदेष ये दूनू दलक जड़ि हिलि गेल अछि। दूनू नेता अपन ढजनमनाएल घरके सम्हारऽ मे कतेक सफल भऽ सकताह से तऽ आबऽ बाला मे पता चलत।
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२.जदयूक वार सँ भोथर भेल विपक्षक धार

बिहार विधान सभा मे लोक जनषक्ति पार्टीक अस्तित्व पर संकट बढ़ि गेल अछि। पार्टीक तीनटा सदस्य मे सँ टूटा सदस्य प्रमोद कुमार सिंह आ नौषाद आलम बिहार विधान सभाक अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के चिट्ठी लिखि पार्टीक जदयू मे विलयक सूचना देलनि अछि। हालांकि नौषाद आलम पार्टी अध्यक्ष राम विलास पासवान सँ गपषप कएलाक बाद लोजपा मे अपन आस्था व्यक्त करैत विलयक अपन सूचना आपस लऽ लोजपा केऽ राहत देलनि अछि। विधान सभा अध्यक्ष एखन विदेषक यात्रा पर छथि। तेँ एहि पर एखन धरि कोनो निर्णय नहि भेल अछि मुदा राजनीतिक क्षेत्र मे चलि रहल चर्चाक अनुसार एकर संभावना एखनो बनल अछि जे विधानसभाध्यक्षक आपस अएलाक बाद विधान परिषद जका विधान सभा मे सेहो लोजपा क बंग्ला उजरि सकैत अछि। चर्चा तऽ इहो अछि जे आबऽ बाला समय मे राजदक संकट सेहो बढ़ि सकैत अछि। एकर संकेत सेहो भेटि रहल अछि। पछिला दिन नव दिल्ली मे बाबा रामदेव पर भेल पुलिसिया कार्रवाई पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसादक स्टैण्डक विरोध मे राजदक विधान पार्षद नवल किषोर यादवक बयान एहि बाद क संकेत अछि जे दलक भीतर फुलि रहल। विद्रोहक बैलून कखनो फूटि सकैत अछि।
बियाडा जमीन आवंटन मामिला मे विपक्षक एकजूटताक बाद सक्रिय भेल जदयू नेतृत्व विपक्षक हवा निकालबाक जे रणनीति बनौलक ओकर परिणाम तत्काल सोझा आएल अछि। लोजपाक एकटा चक्का पम्चर (विधान परिषद् सँ सफाया) आ दोसर चक्काक हवा (विधानसभा मे संकट) निकलि गेल अछि जे कखनो पम्चर भऽ सकैत अछि तऽ राजदक लालटेन टिमटिमा रहल अछि। जदयूक विपक्षक सर्जरीक अभियान मे ज्यों कांग्रेसक सेहो ऑपरेषन भऽ गेल तऽ कोनो आष्चर्य नहि होएत।
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३.सरकारक राष्ट्रीय विरूद्ध आंदोलन करत राजद

प्रदेष मे राष्ट्रीय जनता दलक अस्तित्व बनाएल रखबाक लेल राजद अपन संगठन के मजगूत करबा अभियान मे लागि गेल अछि गोटेक छओ मासक मौनक बाद अपन चुप्पी तोड़ैत राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद नीतीष सरकारक विरूद्ध आंदोलनक कएलनि अछि। राजद एहि क्रम मे लोक नायक जय प्रकाषक जयंतीक अवसर पर 11 अक्टूबर के पटना मार्चक घोषणा कएलक अछि। एहि सँ पहिने 1 सँ 30 सितम्बर धरि सभ जिला आ प्रमंडल मुख्यालय मे कार्यकर्ता सम्मेलन होएत जाहि मे लालू प्रसाद सेहो उपस्थित रहताह। 1 अक्टूबर मास मे पार्टीक कार्यकर्ताक प्रषिक्षण षिविर बोध गया मे आयोजित कएल जाएत आ नवम्बर-दिसम्बर मास मे सभ प्रखण्ड मुख्यालय मे दू दिवसीय कार्यकर्ता षिविर आयोजित करबाक निर्णय सेहो लेल गेल अछि।
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४.डेयरी उद्योग मे रूचि देखौलक इंडियन पोटाष लिमिटड

इंडियन पोटाष लिमिटेड प्रदेष मे डेयरी उद्योग लगैबाक प्रति रूचि देखौलक अछि। कम्पनीक अध्यक्ष गोविंद नैयर मुख्यमंत्री नीतीष कुमार सँ भेट कऽ कम्पनी भावी योजना जनतब देलनि। श्री नैयर मुख्यमंत्री भेटक क्रम मे मुजफ्फरपुरक मोतीपुर चीनी मिलक पुर्न संरचना आ विस्तार क जनतब दैत जनौलनि जे एहि मिल मे बिजलीक सह उत्पादन आ बाटलिंगक संग डिस्टलरी प्लांट लगाओल जाएत। एहि पर 350 करोड़ टाकाक निवेष होएत। कम्पनी मुजफ्फरपुर मे अपन कारखानाक एकटा ईकाई केऽ सेहो पुनर्जीवित कएलक अछि जतए प्रतिदिन सय टन सिंगल सुपर फास्पेटक उत्पादन कएल जा रहल अछि। श्री नैयर भेटक दरमियान बिहार मे कम्पनीक डेयरी उद्योग लगैबाक प्रति सेहो रूचि देखौलनि।

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बिपिन झा

 [एहि लेख केर लेखक बिपिन कुमार झा (Senior Research Fellow), IIT मुम्बई मे संगणकीय भाषाविज्ञान (संस्कृत) क्षेत्र मे शोध (Ph. D.) कय रहल छथि। मैथिली वर्डनेट समाजहितार्थ वैयक्तिक रूप सँ शुरू कयल गेल एकटा कार्य छन्हि जाहि मे समस्त मैथिलीप्रेमी केर सहयोग अपेक्षित अछि। प्रस्तुत लेख केर उद्देश्य अछि एक जनवरी २०१० अंक मे चर्चा कयल गेल मैथिली शब्द तन्त्र केर दिशा मे की प्रगति भेल एकर जानकारी देब आओर एहि कार्य के कोना आगू बढायल जाय एहि सन्दर्भ मेचर्चा करब।]

Maithili Word net: - आवश्यकता, कार्यान्वयन आओर तद्गत समस्याक समीक्षा।

मैथिली वर्डनेट बनेबाक उद्देश्य अछि एकटा एहेन Lexical Database तैयार करब जे चयनित मैथिली भाषा केर शब्द के अर्थ, आण्टोलोजी (हैरार्की), एहि संग समस्त (चयनित) भारतीय भाषा मे ओहि शब्दक अर्थ, पर्यायपदगण आदि सहजता सँऽ उपलब्ध करा सकय।
प्रश्न उठत एहि सँऽ  लाभ की होयत? एहि सन्दर्भ कें विविध दृष्टि सँऽ देखल जा सकैत अछि –
१.    जनसामान्य मैथिलीप्रेमी हेतु
२.    संगणकीय भाषाविज्ञान हेतु
समस्त मैथिल प्रेमी एहि स्वतन्त्र साफ्टवेयर/विकसित टूल द्वारा मैथिली के कोनो शब्द के अर्थ संगहि ओकर विविध भाषा मे अर्थ ओकर आण्टोलोजी[1], विविध भाषा मे ओकर अर्थ विविधता आओर पर्यायपदसमूह सहजता सँऽ देखबा मे समर्थ हेताह।
संगणकीय भाषाविज्ञान हेतु ई विशेष उपादेय होयत कियाक तऽ मैथिली आ अन्य भारतीय भाषाक पारस्परिक यान्त्रिक अनुवाद मे ई सहयोग करत।
उक्त तीन बिन्दु पर चर्चा करबाक अनन्तर अखनि धरि जे किछु उपलब्ध श्रोत अछि ओकर समीक्षा करब उचित होयत-
१.    कल्याणी कोश
२.    विविध शोधपत्र/लेख
३.    विदेहक आनलाइन शब्दकोश
४.    विविध अन्तर्जाल, विशेष कर संस्कृत वर्डनेट
कल्याणी कोश केर उपलब्धता स्क्राइब पर नागेशजी केर सहयोग सँऽ भेटल। ई कोश एकटा मानक ग्रन्थ अछि। यद्यपि एहि शब्दकोश के अपन सीमा छैक, ई शब्दतन्त्र बनेबाक मार्ग मे विशेष उपादेय अछि।
विविध शोधपत्र गूगल आ आदरणीय श्री सदन झा द्वारा (एशियाटिक के किछु अंश pdf मे) प्राप्त भेल जे चिन्तन के नवीन दिशा देलक।
विदेह मैथिली शब्दकोश  केर दिशा मे नीक कार्य अछि मुदा एकर अपन उद्देश्य आ सीमा छैक। ई सेहो एहि कार्य हेतु उपादेय अछि।
विविध अन्तर्जाल एहि कार्य के गति प्रदान केलक संगहि प्रस्तुतीकरण के दिशा देलक।
अखनिधरि की काज कयल गेल-
सम्प्रति डाटा संकलन केर कार्य चलि रहल अछि। संगहि तत्समकोश के प्रारूप आ अपन Ph. D. कार्य के अनुरूप मैथिली शब्दबन्ध/शब्दतन्त्र के संरचना केर प्रारूप बनाओल जा रहल अछि।
पाठक सँऽ सहयोगक अपेक्षा-
एहि तथ्य सँऽ अपने सभ परिचित होयब जे मैथिली केर क्षेत्र विविधता केर संग उच्चारण (टोन) विविधता विद्यमान अछि। एहि संग अहू तथ्य सँ परिचित होयब जे कारण जे हो एतय (मैथिली भाषी केर मध्य) दू प्रकारक पूर्वाग्रह विद्यमान अछि- पहिल मैथिली बजनाइ पिछडापन के प्रतीक अछि अस्तु बच्चा सभ के तथाकथित पिछडापन सँऽ बचबैत छथि। दोसर मैथिली के उत्थान केर हेतु योगदान करबाक क्रम मे ई बिसरि जाइ छथि जे भाषा केर अन्तर्सम्बन्ध बहुत महत्त्वपूर्ण होइत अछि कोनो भाषा कोनो अन्य भाषा के अहित नहिं करैत छैक।
एतय सभ सँऽ निवेदन जे उक्त दुनू पूर्वाग्रह सँऽ ऊपर उठि मैथिली के वास्तविक रूप मे अन्तर्जाल पर उपादेय बना एहि भाषा के सहज बनाबी आ एकर क्षेत्र के बृहत् करी न कि एकर क्षेत्र मे संकुचन आनी।
यदि अपने मैथिली वर्डनेट सन्दर्भ मे कोनो सुझाव/श्रोतकेर जानकारी/ अथवा कोनो टिप्पणी दिअ चाहैत छी तऽ kumarvipin.jha@gmail.com पर मेल करू अथवा +9757413505 पर काल करू, ताकि मैथिली वर्डनेट निर्विघ्न एवं परिष्कृत रूप मे यथाशीघ्र लोकार्पित भय सकय।
परिशिष्ट
इष्ट[2]>संज्ञा
1. ऐसे कर्म जो धर्म से संबंधित हों
§      सामाजिक कार्य (Social) ( SCL उदाहरण:- विवाह,यज्ञ,तर्पण इत्यादि )
§      कार्य (Action) ( ACT उदाहरण:- दौड़,पढ़ाई,चिंतन इत्यादि )
§      अमूर्त (Abstract) ( ABS उदाहरण:- मन,हवा,गुण इत्यादि )
§      निर्जीव (Inanimate) ( INANI उदाहरण:- पुस्तक,घर,धूप इत्यादि )
§      संज्ञा (Noun) ( N उदाहरण :- गाय,दूध,मिठाई इत्यादि )
2.     वह जो सब बातों मे सहायक और शुभचिन्तक हो   
§      संज्ञा (Noun) ( N उदाहरण :- गाय,दूध,मिठाई इत्यादि )
3.     एक पौधा जिसके बीजों से तेल निकाला जाता है  
§      वनस्पति (Flora) ( FLORA उदाहरण:- शैवाल,लता,वृक्ष इत्यादि )
§      सजीव (Animate) ( ANIMT उदाहरण:- मानव,जानवर,वृक्ष इत्यादि )
§      संज्ञा (Noun) ( N उदाहरण :- गाय,दूध,मिठाई इत्यादि )
4.      वह विचार जिसे पूरा करने के लिए कोई काम किया जाए  
§      अमूर्त (Abstract) ( ABS उदाहरण:- मन,हवा,गुण इत्यादि )
§      निर्जीव (Inanimate) ( INANI उदाहरण:- पुस्तक,घर,धूप इत्यादि )
§      संज्ञा (Noun) ( N उदाहरण :- गाय,दूध,मिठाई इत्यादि )
5.      वह देवता जिसकी पूजा किसी कुल मे परंपरा से होती आई हो 
§      पौराणिक जीव (Mythological Character) ( MYTHCHR उदाहरण:- बकासुर,पांडु,द्रौपदी इत्यादि )
§      जन्तु (Fauna) ( FAUNA उदाहरण:- गाय,मानव,सर्प इत्यादि )
§      सजीव (Animate) ( ANIMT उदाहरण:- मानव,जानवर,वृक्ष इत्यादि )
§      संज्ञा (Noun) ( N उदाहरण :- गाय,दूध,मिठाई इत्यादि )
6.      ढला हुआ मिट्टी का विशेषकर चौकोर लम्बा टुकड़ा जिसे जोड़कर दीवार बनाई जाती है
§      मानवकृति (Artifact) ( ARTFCT उदाहरण:- पुस्तक,कुर्सी,नाव इत्यादि )
§      वस्तु (Object) ( OBJCT उदाहरण:- पुस्तक,छाता,पत्थर इत्यादि )
§      निर्जीव (Inanimate) ( INANI उदाहरण:- पुस्तक,घर,धूप इत्यादि )
§      संज्ञा (Noun) ( N उदाहरण :- गाय,दूध,मिठाई इत्यादि )
विशेषण
1.      जिसकी इच्छा की गई हो
§      संबंधसूचक (Relational) ( REL उदाहरण :- चचेरा, मौसेरा, बनारसी इत्यादि )
§      विशेषण (Adjective) ( ADJ उदाहरण:- सुंदर,लिखित,अमर इत्यादि )
2.      बहुत निकट का या बहुत करीबी  
§      अवस्थासूचक (Stative) ( STE उदाहरण :- सूखा, तर, जवान इत्यादि )
§      विवरणात्मक (Descriptive) ( DES उदाहरण :- लाल, पाँच, सुंदर इत्यादि )
§      विशेषण (Adjective) ( ADJ उदाहरण:- सुंदर,लिखित,अमर इत्यादि )

 

[1] उदाहरण हेतु- परिशिष्ट देखू।
[2] Hindi word net IITB

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