भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Sunday, June 14, 2009

'विदेह' ३६ म अंक १५ जून २००९ (वर्ष २ मास १८ अंक ३६)

'विदेह' ३६ म अंक १५ जून २००९ (वर्ष २ मास १८ अंक ३६)


वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय

२. गद्य
२.१. चेतना समिति ओ नाट्यमंच(दोसर भाग) प्रेमशंकर सिंह

२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-बात
२.३. प्रत्यावर्तन - छठम खेप- कुसुम ठाकुर

२.४ गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पर डॉ. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"
२.५ राजमोहन झासँ गजेन्द्र ठाकुरक साक्षात्कार
२.६. कथा-ओ तऽ बताह अछि कुमार मनोज कश्यप

२.७. अमरनाथ झा-१.हाँ ई तँ कहियो नहि देखने रही २.विष्णु प्रभाकर जी सादगीक प्रतिमूर्ति छलाह। ३. पूर्वजक जन्मभूमिकेँ शत-शत प्रणाम ४. पंकज जी

२.८.फील्ड-वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत
३. पद्य
३.१. आशीष अनचिन्हार

३.२.गीत-अशोक चौधरी
३.३.बुढ़वा- उपेन्द्र भगत नागवंशी
३.४. विनीत ठाकुर: उठू मैथिल भेलै भोर
३.५. सतीश चन्द्र झा-चानक प्रेम

३.६. डा. सुरेन्द्रा लाभ-इतिहास
३.७.सम्बन्धक नव सूत्रक खोजिमे- सरस्वती चौधरी ‘रचना’

३.८. ज्योति-जीवन सोपान

४. मिथिला कला-संगीत- तूलिकाक चित्रकला

५. बालानां कृते-१. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ २. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी ३.
३.स्वास्तिका-कक्षा २
६. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

7. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)

7.1.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili NovelSahasrabadhani translated by Jyoti.



विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions
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१. संपादकीय
श्री ताराकान्त झाकेँ २००८ केर साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार "संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र"-गोपीचन्द नारंग, उर्दूसँ मैथिली अनुवादपर प्रदान कएल गेल छन्हि।

श्री ताराकान्त झा पत्रकारितासँ जुड़ल छथि। पत्र-पत्रिकामे निबन्धक अतिरिक्त बंगलासँ हिन्दी आ बंग्लासँ मैथिलीमे एकाधिक पोथी प्रकाशित भेल छन्हि।

श्री ताराकान्त झा संप्रति मैथिली दैनिक "मिथिला समाद"क सम्पादक छथि।


साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार

१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु,बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १३ जून २००९) ८० देशक ८२२ ठामसँ २३,६६१ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ १,७९,९५४ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।





गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in


२. गद्य
२.१. चेतना समिति ओ नाट्यमंच(दोसर भाग) प्रेमशंकर सिंह

२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-बात
२.३. प्रत्यावर्तन - छठम खेप- कुसुम ठाकुर

२.४ गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पर डॉ. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"
२.५ राजमोहन झासँ गजेन्द्र ठाकुरक साक्षात्कार
२.६. कथा-ओ तऽ बताह अछि कुमार मनोज कश्यप

२.७. अमरनाथ झा-१.हाँ ई तँ कहियो नहि देखने रही २.विष्णु प्रभाकर जी सादगीक प्रतिमूर्ति छलाह। ३. पूर्वजक जन्मभूमिकेँ शत-शत प्रणाम ४. पंकज जी

२.८.फील्ड-वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत



डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक,मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण,मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि,स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।

कृति-
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७। सम्पादन-
गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका,महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल,कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन,भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
चेतना समिति ओ नाट्यमंच (दोसर भाग)
विगत शताब्दा् क नवम दशक में संचित एकांकी/नाटक: तिथि नाटक नाटककार अमिनीत स्था न अवसर निर्देशक 22 फरवरी1961 पाथेय गुणनाथ झा आइ. एम. ए. हॉल अमरनाथझा जयन्तीत रमेश राज हंस 11 नवम्ब9र 1981 अागिधधाक रहल छै अरविन्दक अक्कू बाल उदद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व मादनाथ झा 22 फरवरी चौबहियापर/बुधिबधिया गंगेश गंजन आइ. एम. ए. हॉल अमरनाथझा जयन्ती् विभूति आनन्दब 28 नवम्बौर1982 अन्तिम प्रणाम गोविन्दि झा बाल उद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व जावेद अखतर खाँ 28 नवम्बौर 1982 बेचारा भगवान अनुवादक शैलेन्द्र पटनिया बाल उद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व कौशलदास दास 28 नवम्बौर 1983 भर्तृहरि अनुवादक शारदानन्द् झा बाल उद्यान प्रांगण विद्यापतिपर्व जावेद अख्त र खाँ 8 नवम्बवर1984 प्रायश्चित छात्रानन्दरसिंह झा बाल उद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व विनोद कुमार झा 8 नवम्बवर 1984 नवतुरिया उषाकिरण खाँ बान उद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व त्रिलोचन झा 8 नवम्बवर 1984 टूलेट रवीन्द्र नाथ ठाकुर बाल उद्यान प्रागंण विद्यापति पर्व रवीन्द्र नाथ ठाकुर 26 नवम्बथर 1985 रनाकतेदिन ? अरविन्दर अक्कू बाल उद्यान प्रांगण अमरनाथ झा जयन्तीब प्रशान्तर कान्त 5 नवम्ब्र 1907 जादूजंगल अनुवादक रोहिणी रमण झा बाल उद्यान प्रांगण विद्यापतिपर्व अरविन्दर रंजनदास 23 नवम्बरर 1988 विद्यापति बैले सरोजा वैद्यनाथ बालउद्यान प्रांगण विद्यापतिपर्व सरोजावैद्यनाथ 23 नवम्बरर 1988 जखते कहल कक्काक हो रवीन्द्र नाथ ठाकुर बालउद्यानक प्रांगण विद्यापतिपर्व मनोज मनु 23 नवम्बार 1988 रूकमिणी हरण गोविन्दह झा बाल उद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व कुणाल 18 सितम्बपर 1989 अयाची मिश्र हरिमोहन झा विद्यापति भवन हरिमोहन झा जयन्तीण रोहिणी रमण झा
पॉंच पत्र हरिमोहन झा विद्यापति भवन हरिमोहन झा जयन्तीह 13 नवम्बहर 1989 आतंक अरविन्दज अक्कून बाल उद्यानक प्रांगण विद्यापतिपर्व त्रिलोचनझा 2 फरवरी1990 अपनयनाकभोज तन्त्रिनाथ झा विद्यापति भवन ललितनारासणमिश्र जयन्तीच भवनाथ झा 4 मार्च 1990 तितिरदाइ रूपकार विभूति आनन्दझ विद्यापति भवन जयनाथ मिश्र जयन्तीन किशोर कुमार झा 18 सितम्बनर1990 आदर्श कुटुम्ब रूपकार छात्रानन्दण सिंह झा विद्यापतिभवन हरिमोहनझा जयन्ती् उमाकान्तआ झा 2 नवम्ब्र 1990 राजा सल्हेकस रोहिणी रमणझा मिलरहाइस्कूणल प्रांगण विद्यापतिपर्व प्रशान्ततकान्तज अपन अस्तित्ववक एक दशक पूर्ण कमलाक पश्चाुत् नाट्यमंच द्वारा 26 नवम्बूर 1984 ई. में ई एक नाट्य प्रतियोगिताक आयोजन कमलक जाहि में प्रतिभागी नाट्यसंस्थावहि नाट्याभिनय कमलक। पटनामे प्रादुर्भुत रंगकर्मी सहमागी बनल। भंगिमाक प्रस्तुितिछल प्रायश्चित छात्रानन्दमसिंह झा द्वारा लिखित आ विनोद कुमार झा द्वारा निर्देशन ई नाटक अति प्राचीन कथ्‍‍थक संग झा मंचस्थल भेल। सीताक पाताल प्रवेश चिरपरिचित कथानन् केँ नारी-मुक्ति-आन्दो लन चश्साभ सँ देखला पर एहि नाटकक कथानक प्रासंगिक छल अन्यनथागीत गाओत्व् छल। नाटकक सम्वाचद अतयधिक सशक्तप रहलाक कारणेँ रांग शरीर निर्देशकक राम-कथाक स्प।ष्टा अघ्यययन दिस प्रश्नर चिंहृ उपस्थित करैछ। एहि नाटक केँ दर्शनीय बनयबाक पाछॉं विशिष्ट चमत्का‍रिक संवाद-योजना। प्रकाश-परीकल्पँना आ प्रभावोत्पािदक घ्वतनिक माघ्यस से सीताक जताल प्रवेश देखाओज गेल। एकर मंच-सज्जा पटना में अद्यावि मंचित मैथिली नाटक मंा सर्वोत्कृतष्ट् छल। अरिपनक प्रस्तुीति छल वैद्यनाथ मिश्र यात्रीक उपन्यामस नवतुरिया (1954) कनाट्य रूपान्तपरण कयने छलीह उषाकिरण खॉं जकर निर्देशन कयने रहथि त्रिलोचन झा। मृतपाय समस्याुवला कथ्यउ आ छोट-छोट रेडियो टाइप दृश्य क रहितहुँ निर्देशक अपन प्रतिभाक बलेँ नीक प्रस्तु ति कयने छनहि। अभिनेता लोकति में चुनि-चुनि क’संवाद बजबाक प्रवृति छल। किछु कलाकार क अभिनय अतीब प्रभावशाली छल,किन्तुझ शेष कलाकार पिछडि गेजाह, मंच-सज्जाश नाटकक अनुरूप छल तथा पार्श्व -संगीत तथा प्रकाशव्यछवस्था सामान्यअ छल। नवनिर्मित नाटय-संस्था अभिनव भारतीक प्रस्तुनति छन टूलेट जकर लेखक आ निर्देशक रहथि रवीन्द्र नाथ ठाककुर,निर्देशक केँ कलाकार लोकति पर कोनो नियंत्रण नहि छलनि आ ओ सभ मंच पर क फूलदान सँ अत्यठन्तप हल्लुँक हास्य उत्पतन्नर करबा से सफल भेलहि। एकर प्रस्तुफति ग्रामीण मंच सदृश प्रहसनक श्रेणी में आबि गेल। उपर्युक्तल प्रतियोगिता में भंगिमा केँ प्रथम, अरिपन केँ द्वितीय आ अभिनव भारती केँ तृतीय घोषित क’ कए क्रमश: दूहजार एक सह, एकहजार पॉंच सम आ एकहजार एकसभक पुरस्का र चेतना समिति प्रदान कयने छल जे नाटक आ रंगमंचक क्षेत्र में एक साहसिक प्रयास कहल जा सकैछ। बिगत शताब्दीरक अन्तिम दशक में मंचित एकांकी/नाटक तिथि नाटक नाटककार अभिनीत स्थामन अवसर निर्देशक 21 नवम्बार 1991 रक्तं अरविन्दक अक्ककम मिलर हाइ स्कूदल प्रांगण विद्यापतिपर्व मनोजमनु 10 नवम्बनर 1992 लीडर वनदेवी पुत्र भवनाथ मिलर हाइ स्कूएल प्रांगण विद्यापति पर्व रघुनाथ झा किरण 28 नवम्बनर 1993 ओरिजन काम महेन्द्र मलंगिया मिलर हाई स्कूाल प्रांगण विद्यापति पर्व महेन्द्र मलंगिया 17 नवम्बनर 1994 अथ अद्भुतानन्दे संजय कुन्दलन मिलर हाइ स्कूिल प्रांगण विद्यापति पर्व कुमार शैलेन्द्र4 6 नवम्बवर 1995 एकरा चिनसा विनोद कुमार मिश्र बन्धुर मिलर हाइ स्कूिल प्रांगण विद्यापति पर्व प्रशान्त कान्त 29 नवम्बार 1996 केकर ? अरविन्दा अक्कूर मिलर हाइ स्कूिल प्रांगण विद्यापति पर्व कौशन किशोरदास 27अगस्ति 1997 बारहे हम आ बाहरे हमर नाटक अरविन्द् अक्कूह विद्यापति भवन स्वततंत्रातक स्व र्णजयन्तीद विनीतझा 14 नवम्ब्र 1997 पदुआ कक्का् आण्लात गाम अरविन्दइ अक्कूव भारतीय नृत्यनकला मंदिर विद्यापति पर्व विनीतझा 4 नवम्बवर 1988 गुलाबछडी अरविन्द् अक्कूद मिलर हाइ स्कूसल प्रांगण विद्यापति पर्व विनीत झा 2 फरवरी 1999 गुलाब छडी अरविन्दर अक्कूा विद्यापति-भ्वकन ललित जयन्तीण विनीतझा 23 नवम्बार 1999 अग्निपथक सामा कुमारशैलेन्द्रद कृष्णस में मोरियल हॉल विद्यापतिपर्व किशोरकुमारझा 11 नवम्बिर 2000 सेहन्तार रोहिणीरमण झा भारत स्का्उट एण्डिगाइड प्रांगण विद्यापतिपर्व-रघुनाथझा किरण नाटक ओ रंगमंचक प्रगतिक प्रारूप भेरैछ बिगत शताब्दीरक अन्तिम दशक में प्रदर्शित नाटकादि में। यद्यपि एहि दशाब्दै में मात्र बारह नाटकक प्रस्तु ति भेल। भारतीय स्वकतन्त्र्ताक पचास वर्ष पूर्ण भेला पर विहार सरकारक कला संस्कृतति एवं युवाभ विभाग 15 अगस्तक सँ 1 सितम्बार 1977 धरि विद्यापति भवन में नाट्य समारोह क आयोजन कयलक जाहि से चेतना समितिक नाट्य मंच केँ प्रतिभागीक रूप में आमंत्रित कयलक जाहि ई प्रतिभागी भ’ मैथिली नाटकक प्रस्तु ति कयलक वाहरे हम आ वाहरे हमर नाटका एहि सँ प्रमाणित होइछ जे सरकारी स्तार पर सेहो चेतनाक नाट्य मंचक स्वीककृति प्राप्तह अछि। आधुनिक समाज में ब्याेप्त विभिन्न समस्यासदिक परिप्रेक्य्स में नाटक कार लोकति कथानक संयोजन कयलनि जकरा जनमानसक हृदय केँ स्पकर्श कयलक। एकैसम शताब्दी् क प्रथम दशक में मंचिंत नाटक: 30 नवम्बरर 2001 नवघर उठे कमल मोहल चुन्नूा भारत स्कािउट एण्ड गाइड प्रांगण विद्यापति पर्व रघुनाथ झा किरण 19 नवम्बार 2002 शपथग्रहण कुमार गगन भारत स्काहउट एण्डर गाइड प्रांगण विद्यापतिपर्व किशोरकुमार झा 8नवम्बपर 2003 राज्याथभिषेक अरविन्दा अक्कूत भारत स्काडउट एण्डि गाइड प्रांगण विद्यापति पर्व उमाकान्त‍ झा 26 नवम्बिर 2004 छूतहा छैल महेन्द्र मलंगिया भारत स्कासउट एण्डए गाइड प्रांगण विद्यापति पर्व किशोर कुमार झा 15 नवम्बार 2005 जय जय जनता जर्नादन कुमार गगन विद्यापति भवन विद्यापति पर्व कुमार गगन 2 नवम्बवर 2006 नदी गुगिआयलजाय मनोज मनु कॉपरेटिभफेडरेशन प्रांगण विद्यापतिपर्व मनोजमनु 24 नवम्बनर2007 अलख निरंजन अरविन्दु अक्कूर कॉपरेटिभफेडरेशन प्रांगण विद्यापति पर्व कौशल किशोरदास वर्तमान शताब्दी में अद्यापि सात नाटकक मंचन भेल अछि जाहि में सभक प्रस्तुूति दिनप्रतिदिन प्रगतिक पथ पर अग्रसर अछि। प्रत्येमक नाटक अपन कश्यकक नवीनता सँ अनुप्राणित अछि सथा ओकर प्रस्तुिति में शनै: शनै: विकास भ’ रहल अछि जकर सपरिणाम भेलैक जे अलख निरंजनक प्रस्तुतति एतेक आकर्षक आ कथानकक नवीनता आ समसामियक रहबाक कारणेँ जनमानसक हृदय केँ स्पर्शककश्लर का एहि प्रस्तुसतिक सफलता सँ अनुप्राणित भ’ समितिक पदाधिकारी नोति प्रतिभागी कलाकार लोकति केँ पुरस्कृँत करबाक निर्णय कयलका ई आयोजन 14 दिसम्बार 2007 केँ विद्यापति भवन में आयोजित कयल गेल छल तथा नाटक ओ रंगमंचक लव्धतप्रति विद्वान प्रोफेसर प्रेमशंकर सिंह द्वारा प्रतिभागी कलाकार लोकति केँ नगदराशि एवं प्रमाण पत्र सँ सम्माशनित कमल गेलनि जे हुनका सभक मनोबल केँ बढयबाक दिशा में अंहभूमिकाक निर्वाह कयलक आ भविष्स क हेतु पाथेय सिद्ध हैदत। प्रकाशन: रंगमंचक क्षेत्र से चेतना समितिक नाट्यमंच प्रभाग एक प्रतिमान प्रस्तुअत कयलक जे अद्यपि कुलमिलाक’ सनतावन एकांकी/नाटक अपन तस्वारवधान में मंचित करौलक अछि जे उपर्युक्तस विवरण सँ स्पंष्टन अछि। नाट्य मंचक तत्वामवधान में जतेक नाटक अद्यपि मंचित भेज अछि तकर सूची वृहतर अछि जकरा देखला सँ अनुमान कयल जा सकैछ जे समिति नाट्य प्रेमीक समक्ष एक कीर्तिमान स्थासपित करबामें पुर्ण सफल भेल अछि। समिति कई प्रभाग द्वारा नवोदित नाट्यकारक नाट्य-कृति केँ प्रकाशित कयलक अछि यथा दिगम्ब्र झा क टूटैत लोक (1974), सुधांशु शेखर चौधरी क भफाइत चाहक जिनगी (1975) एवं दहैत देवाल/लेटाइत ऑंचर (1976),महेन्द्र मलंगिया क ओकरा आडव्न(क बारह मासा (1980), अरविन्द अक्कूधक आगिधधकि रहल छै (1981), एनाकते दिन ? (1985), अन्हाकर जंगल (1987),आतंक (1994), केककर ? (1986), बाह रे हम बाह रे हमर नाटक (1998), पटुआ कक्कार अएला गाम (1994), केककर ? (1986), बाह रे हम वाह रे हमर नाटक (1998), पटुआ कक्काम अएला गाम (1998), गुलाब छडी (1982) गोविन्दा झाक अन्तिम प्रणाम (1982) एवं रूक्मिणी हरण (1989), रोहिणी रमण झाक अन्तिम गहना (1929) एवं राजा सलहेस (1990), विभूति आनन्द, का तितिर दाइ (1994) वनदेवी पुत्र भवनाथ क लीडर (1994), कुमार शैलेन्द्रा क अग्नि पथक सामा (2000),कमल मोहन चुन्नू्क नव घर उठे (2001), कुमार गगनक शपथग्रहण (2003) एवं विनोद कुमार मिश्रक एकटा चिनमा (2006) आदि। चेतनाक नाट्यमंच पर निम्न)स्थर एकांकी/नाटक क मंच पर तँ अवश्यन मंचित भेल, किन्तु ओ पुस्त्काकार रूप में पाठक क समक्ष नहि आबि सकल अछि तकर एकमात्र कारण आर्थिक दवाब समितिक समक्ष रहलवा अन्यांन्य् भाषा सँ अनूदित वा उपन्याकस केॅा रूपान्तदरित क’ कए मंच स्थन कयल गेल हो सथा सीताराम झा श्या‍मक एकदिन एक राति, जनार्दन रायक एकटा अन्त र्याया एवं इन्टलरव्यूा, रवीन्द्र नाथ ठाकुरक रिहर्सल. टूलेट, एवं जखने कहल कक्काक हो, दमनकान्तल झा क ओझा जी, सच्चिदानन्दए चौधरी हॉस्टतलक गेस्टख, उषाकिरण खाँ क चानोदाइ एवं नवतुरिया, शैलेन्द्रच पटनियॉं क बेचारा भगवान, शारदा नन्दह झा क भर्तृहरि, रोहिणी रमण झा क जादू जंगल एवं सेहन्ताच,छात्रानन्द्सिंह झढा क आदर्श कुटुम्ब्, संजय कुन्द नक अथ अद्भुदानन्द्, कुमार गगनक जयजय जनार्दन, महेन्द्र मलंगियाक छूतह। छैल, मनोज मनुक नदी गोंगिआयल जाय एवं अखिनन्दन अक्कूनक अलख निरंजन आदि। समिति द्वारा मंख्थ्अक किछु नाटक एहनो उपलब्धय भ’ रहल अछि जकर प्रकाशन में निरर्थक विलम्बा देखि नाटक कार ओकरा अन्या न्यउ संस्थाधदि सँ प्रकाशित करयबाक सयत्नथ प्रयास कयलनि यथा सुधांशु शेखर चौधरी क पहिल सॉझ (मैथ्रिली अकादमी. पटना 1989) अरविन्दस अक्कूर क रक्त् (शेखर प्रकाशन, पटना 1992) महेन्द्र मलंगिया क ओरिजन काम (ललित प्रकाशन, मलंगिया 2000) एवं छात्रानन्दँ सिंह झा क प्रायश्चित/सुनूजानकी (शेखर प्रकाशन, पटना 2007) आदि। चेतनाक नाट्य प्रभाग नाट्यमंच द्वारा प्रस्तुरति एतेक बेसी लोक प्रियता अर्जित कयलक, जनमानस केँ आकर्षित कयलक जे नाटक से भाग लेनिहार अभिनेता कर अभिनेत्री केँ पुरस्कृकत करबाक घोषणा नाट्यप्रेमी जनमानस द्वारा भेल जाहि सँ नाट्ययोजना से प्रतिभागी कलाकार लोकति केँ प्रोत्सारहन भेरब प्रारम्भज भेलनि तथा ओ सभ अत्यभन्त मनोसोग पूर्वक एहि में प्रतिभागी बनब प्रारम्भप कयलनि। एहि प्रकरक दू पारितोषिक चेतनाक मंच सँ घोषित भेल जकर आर्थिक भार ओवहन कयलनि जनिक स्मृ।ति में एकर स्थांपना कयलनि। शैलवाला मिश्र स्मृपति पारितोषिक: मधुमती जिलाक चानपुरा ग्रास निवासी साइन्सव कॉलेज पटनाक प्राक्तमन प्रधानाचार्य एवं विश्वीविद्यालय सेवा आयोग क प्राक्तनत अघ्य्क्ष सूर्यकान्ता मिश्र अपन दिवंगता धर्मपत्नीलक स्मृवति में हुनक सांस्कृेतिक नाट्य प्रभाग नाट्य मंच द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृिति पर्वोत्सृव पर अभिनीत नाटकक अभिनय में सर्वोतम अभिनय क लेल शैलवाला स्मृमति परितोषिकक घोषणा कयलनि। एहि निमित 1984 वर्षक लेल एक सय एक एवं भविष्यृक हेतु एक हजार एक टाका फिक्सह डिपो जिट में रखबाक हेतु समिति समर्पित कयलनि। तदनुसार चेतना समिति क नाट्य प्रभाग नाट्यमंच द्वारा शैलवाला स्मृपति पारितोषिक योजना प्रारम्भय कयलक जकरा अन्तार्गत निम्नमस्थआ सर्वोतम कलाकारकेँ सर्वोतम अभिनयक हेतु प्रस्तु त कयल गेल अछि, यथा वर्ष नाटक नाटककार पुरस्कृपत कलाकार 1984 नवतुरिया नाटयरूपकार उषाकिरण खॉं हेमचन्द्रे लाभ 1985 एनाकते दिन? अरविन्दि अक्कूच त्रिलोचन झा 1986 अन्हाेर जंगल अरविन्दख अक्कू् अशोक चौधरी 1987 जादू जंगल रोहिणी रमण झा प्रशान्त‍ कान्त 1988 रूकमिणी हरण गोविन्दि झा प्रेमलता मिश्र प्रेू 1990 राजा सलहेस रोहिणी रमण झा सुनील कुमार झा 1991 रक्त अरविन्दर अक्कूु शारदा सिंह 1992 लीडर वनदेवी पुत्र भवनाथ शरारदा सिंह 1993 ओरिजनलकाम महेन्द्र मलंगिया सुभद्रा कुमारी
1994 अथ अद्भुदानन्दव संजय कुन्देन लक्ष्मीानारायण मिश्र 1995 एकटा चिनमा विनोद कुमार मिश्र शारदा सिंह 1996 के केकर ? अरविन्दु अक्कूद रघुवीर मोची 1997 पठुआ कक्का अएलागाम अरविन्दद अक्कूव अनीता मन्नूश 1998 गुलाबछडी अरविन्दअ अक्कूि अनीता मन्नूम 1999 अगिनपथक सामा कुमार शैलेन्द्रि रश्मि 2000 सेहन्ताप रोहिणी रमण झा रश्मि 2001 नवघर उठे कमल मोहन चुन्नूर कुमार गगन 2002 शपथ ग्रहण कुमार गगन मिथिलेश कुमार मिश्र 2003 राज्यारभिषेक अरविन्द अक्कूग कुमार गगन 2004 छूतहाछैल महेन्द्र मलंगिया रामश्रेष्ठम पासवान 2005 जय जय जनता जनार्दन कुमार गगन उमाकान्तर झा 2006 नदी गोगिंआयल जाय मनोजमनु रामश्रेष्ठे पासवान 2007 अखख निरंजन अरविन्दज अक्कूष रामश्रेष्ठझ पासवान कामेश्वेरी देवी पुरस्कामर: मिथिलाक सर्वांगीन विकासर्श अपन जीवनक आहूति देनिहार मिथिलाक वरदपुत्र ललित नारायण मिश्र क धर्मपत्नीअ कामेश्व री देवीक निधनोपरान्तल हुनक स्मृशति में हुनक ज्येयष्ठ पुत्र विजयकुमार मिश्र चेतना समितिक वर्तमान अघ्यनक्ष एवं हुनक परिवार क सहयोग सँ नाट्यभिनय में प्रतिभागी कलाकार केँ विद्यापति स्मृिति पर्वोत्स व पर अभिनीत नाटकक लेल सर्वश्रेष्ठभ अभिनयक लेल पुरस्कृरत करबाक परम्पषराक शुभारम्भ भेल एकैसम शताब्दीसक प्रथम दशक में। 2002 शपथ ग्रहण कुमार गगन आरती 2003 राजयभिषेक अरविन्दग अक्कू गुडिया 2004 छूतहा छेल महेन्द्र मलंगिया गुडिया 2005 जय जय जनताजलार्दन कुमार गगन स्वा‍ती सिंह 2006 नदी गुगुआएल जाय मनोज मनु सपनाकुमारी 2007 अलचानिरंजन अरविन्दा अक्कूा विजय लक्ष्मी मैथिली रंगमंच केँ व्यावस्थित स्वुरूप प्रदान करबा में चेतना समिति क मालनस पुत्र नाट्यमंच प्रभाग वर्तमान परिप्रेक्ष्यस में मिलक पाथर बनिगेल अछि जे जाहि दिशा से एकर प्रयास प्रारम्भत भेलैक आ ओकरा मूर्तरूप प्रदान करैत गेल तकर श्रेय आ प्रेय एकर समर्पित कलाकार लोति केँ छनि। समिति क ई प्रयास कतेक सार्थक भेलैक जे नाट्य मंचक स्थाकपनोपरान्त। नव-नव तकनिक सँ संयुक्तन कथ्‍‍थक नवीनतासॅा संयुक्तय एक सँ एक कलाकार केँ मंच पर आनि हुन्तकान अपन यथार्थ प्रतिभाक प्रदर्शनार्थ स्वसर्णिम अवसर प्रदान कयल। चेतना द्वारा नाटक ओ रंगमंच क विकास यात्राक मार्ग केँ प्रशस्ता करबाक हेतु जे अभियान चलौलक ओ साहि त्येंतिहास से स्व्र्णक्षर में अंकित होयबाक योग्य थिक। एकरा इहो श्रेय आ प्रेय छैक जे एकर समिर्पित कलाकार लोकति अपन अभिनय कौशलक प्रदर्शनार्थ समितिक नाट्यमंच सँ अनुप्राणित भ’ कतिपय नव-नव नाट्य-संस्था्दि स्थामपित भेलैक अरिवन (1982), भंगिमा (1984), कलासमिति, आडव्नल, भाव तरंग, अभिनव भारती आदि-आदि रंगकर्मी संस्थाअदिक जन्ममक मूल से चेतना समितिक नाट्य मंच प्रभाग अछि। चेतना क नाट्यमंचक नियमित प्रदशनिक फलस्वंरूप जनमानस केँ नाटक देखबाक लुतुक पडि गेलैक अछि जाहि सँ दर्शकक संख्याव में अपार वृद्धि भेलैक ताहि में सन्देपह नहि। मैथिली रंगमंचीय गतिविधिक ब्यौ रा अछि जे रंग कर्मक क्षेत्र से चेतनाक नाट्यमंच प्रभाग क अवदान सँ हमरा परिचय करबैत अछि जे इति हासक दृष्टिऍं उल्लेमखनीय अघ्यासय थिक। एहि में सन्देगह नहि जे मैथिली रंगजगत केँ चेतनाक देनक चर्चा-अर्थ रंगमंचक इतिहास में सतत स्मिरणीय रहत, कारण एकरा स्थाेयित्वक प्रदान करबाक दिशा में ई एहन ठोस कार्य कयलक अछि एकर नाट्य प्रभाग आ करैत आबि रहल अछि आ आशा कयल जाइत अछि जे भविष्यर में से हो उज्जआवल आ कर्मरत हैत से विश्वा स अछि। वस्ंातुत: चेतना समिति नाटक ओ रंगमंचक माघ्यआम में मिथिलाक सांस्कृयतिक, साहित्यिक आ कलाक प्रचार-प्रसारक सुकार्य करैत आबि रहस अछि। समिति रंगमंचक माघ्य् में सांस्कृ तिक आ साहित्यिक आन्दोपलन चलौलक ले जन चेतना जगयबा में सहायक सिद्ध भेल। एकर प्रयासक फलस्वतरूप नाट्य-लेखन आ मंचनक विकासक दिशा में लोकक प्रतिवद्धता बढलैक। निजी निर्देशक, निजी तकनिशियन आ विशुद्ध मैथिल अभिनेता-अभिनेत्रीक सहयोग सँ नाट्य-प्रस्तुीति करबा में निजी व्यअक्तित्वय निर्माण कयलक अबि संगहि अपन प्रदर्शन सँ राष्ट्री्य स्ततरक कतिपय कलाकार बनलहि। समितिक सत्प्रियासक फलस्वषरूप नवनाटक, नव-शैली आ नव-कश्ययक जन्मा द’ कए नव जागरण क शंखनाद कयलक अछि। एकरासँ प्रेरित भ’ नव-नव संस्थाैदिक उदय आविकास रंगमंच केँ निस्सअन्देरह स्मृ द्धि कयलक अछि। एकरा ई श्रेय आ प्रेय छैक जे नाट्यान्दोमलन में तीव्रता अनलक आ रंगमंच केँ स्थाीयीतत्वय प्रदान करबाक निमित अत्यााधिक क्रियाशील अछि।
कथा-
बात

सुभाषचन्द्र यादव-

चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द

सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।

बात
हरेक बातक पाछू कोनो ने कोनो खिस्सा होइत छैक ।लेकिन सब बात खिस्सा नहि होइत अछि । जे बात हम कहब से नहि जानि खिस्सा हैत कि नहि, तखन ई गप्प अबस्स जे खिस्सो मे कोनो ने कोनो बाते होइत छैक आ हमहूँ बाते कहब । सुनलाक बाद भऽ सकैत अछि अहाँ कही धुर ईहो कोनो बात भेलै !
अहाँ लेल ई कोनो बात नहि हो, मगर हमरा लेल तऽ बड़ भारी बात भऽ गेल रहय । जँ साँच कही तऽ ओहि बात सँ हम बहुत डेराय गेल रही । बात की रहत । कोनो बात नहि । बिन बातक बात । लेकिन ओ तेहन तूल पकड़ि लेलक जे ओकरा सँ पिंड छोड़ायब मोसकिल भऽ गेल आ हमरा अदंक समाय गेल ।
कहियो काल एना होइत छैक, जे अनचोक्के अहाँ कोनो एहन बात बोलि दैत छी जइमे फँसि जाइ छी । फँसबाक अंदाज जँ पहिनहि सँ रहैत तँ अहाँ ओहन बात किन्नहुँ नहि बजितहुँ । हमरो संग एहिना भेल ।
हम घरसँ खुशी-खुशी तरकारी बेसाहय निकलल छलहुँ । साँझ पड़ैत रहैक । दिनमे बरखा भेला सँ मौसम सोहाओन लगैत रहैक । हम नेयारने रही जे झटपट तरकारी कीनि कऽ घर घूरि जायब । मगर भाग्य देखू; या भाग्य की, परिस्थितिक संजोग कहू । ओहि दिन घर घुरबामे हमरा बड्ड देरी भऽ गेल । देरी जे भेल, से भेल । देरी तऽ कतेको बेर कतेको मामला मे भऽ जाइत अछि । रच्छ रहल जे हम बचि गेलहुँ । नहि तऽ पिटा जइतहुँ या हमर हत्यो भऽ सकैत रहय ।
तऽ भेल ई जे हम साइकिलसँ जाइत रही । सब्जी बजार आबि गेल तऽ साइकिल पर सँ उतरि गेलहुँ । बरखा भेलासँ बजारमे थाले-थाल रहैक । थालमे चप्पल फँसि जाइ । साइकिल सम्हारैत, सम्हरि-सम्हरि पयर रखैत आ लोकबेद सँ बचैत जखन हम नेबोवला लग पहुँचल रही तऽ देखलहुँ जे ओ एकटा आदमीसँ बकझक कऽ रहल अछि ।
नेबोवला चौदह-पन्द्रह सालक गोर आ सुन्दर लड़का छल । ओ बीच सड़क पर ठाढ़ छल । नीचाँ छिट्टामे एक दिस धनिया पत्ताक छोट-छोट मुठ्ठी आ दोसर दिस नेबो राखल छलैक । बगलमे आठ-नौ सालक एकटा आर लड़का रहैक जे ओही लड़काक संगी लगैत रहैक आ चुपचाप ठाढ़ रहैक । लड़का जकरा संग बकझक करैत रहैक से चालीस-पचास सालक अधेड़ आदमी छल । ओकर हाथमे फाइल रहैक आ किछु छोट-मोट सामान, जेना नेबो, गमछी इत्यादि ।
लड़का कोन बात लऽ कऽ बकझक कऽ रहल अछि, ताहि पर ध्यान नहि दऽ कऽ हम ओकरा दू-तीन बेर जल्दी-जल्दी टोकलिऐक आ नेबोक भाव पुछलिऐक । लड़का हमरा देखलक, मुदा किछु बाजल नहि । हमरा तखने ओतयसँ चलि देबाक चाही छल । बाजारमे नेबोक कमी नहि रहैक । कतहु लऽ सकैत रही । लेकिन से भेल नहि । हम ओत्तहि ठमकल रहलहुँ । जानि ने किएक। आब सोचैत छी तऽ लगैत आछि आदमीक अन्दर जे जन्मजात जिज्ञासा होइत अछि, भरिसक तकरे कारणे ठमकि गेल होयब । फेर अपन एहि सोचलहा पर संदेह हुअय लगैत अछि । ई कोनो जरूरी नहि जे हम ओतए जिज्ञासावश रूकि गेल होइ । दोसरो कारण भऽ सकैत अछि । कैक बेर एहन होइत छैक जे ककरो वाक् चातुरी, ककरो सुधंगपनी, ककरो सुन्दरतासँ अहाँ बन्हा जाइत छी । साइत हमरो ओहि लड़काक सुन्दरता बान्हि लेने छल । ओकर चेहरा पर परेशानी आ चिन्ताक भाव रहै । भरिसक हम ओतय सहानुभूतिवश बिलमि गेल रही ।
ओहि आदमीकेँ हम गौरसँ देखल आ ओकर गप्प सुनय लगलहुँ ।आदमी ओहि लड़काकेँ कहि रहल छल—तोंही लेने छें ।
- लेलिऐ तऽ कहाँ छै ? छै हमरा लग ?—लड़का बाजल ।
- कतौ राखि देने हेबही ।
- कतय राखबै ? एतय छै कोय हमर?
- नइँ छै तऽ कतय चलि गेलै ? बोल कतय छै ?
- हम लेलिऐ जे कहबह कतय छै ?
- नइँ लेलही तऽ ओतयसँ भागि किऐ एलही ?
- भागबै किऐ ? हम तऽ एतहि रहिऐ ।
बस, इएह ओ क्षण रहै जखन हम बातकेँ लोकि लेने छलहुँ । गप्प तऽ बुझा गेल रहए, मुदा मामला पूरा स्पष्ट नहि भेल । पुछलिऐ – भाइसाहेब, बात की छिऐ ?
ओ आदमी बाजल- अरे, ई लड़का अखने दोसर ठाम छल । एकरा सँ हम नेबो किनलिऐ आ जेबी सँ पाइ निकाल ऽ लेल छत्ता नीचा राखि देलिऐ । पाइ दऽ कऽ हम चल गेलिऐ । छत्ता निच्चे रहि गेलै । तुरन्ते मन पड़ल आ घुरलिऐ तऽ देखै छी ई ओतयसँ गायब ।
ओहि आदमीक गप्प सुनि कऽ हम कहलिऐ — ई सभ तऽ एहिना घूमि-घूमि कऽ सामान बेचैत अछि । हम तऽ रोजे देखै छिऐ । अहाँक छत्ता कतहु दोसर ठाम छूटल होयत ।
ओ आदमी हमर गप्प सुनैत रहल आ जहिना हम चुप भेलहुँ, तहिना ओ ओहि लड़का सँ छत्ता मांगब शुरू कऽ देलक । जँ हम चाहितहुँ तऽ एहि लफड़ा सँ तखनहुँ छुट्टी छोड़ा लैतहुँ । की रहै ! ओतय सँ चलि दैतहुँ आ सामान किनैत घर घूरि अबितहुँ । लेकिन हमरो जिद देखू । हम नेबो कीनय चाहैत रही आ ओही लड़कासँ कीनय चाहैत रही । हमरा होइत रहय जे बस आब मामला खतमे होइ बला छैक । मगर ओ आदमी छत्ता मंगैत जा रहल छल आ ओ लड़का अपन दोकनदारी रोकने नासकार करैत जा रहल छल । आदमी लड़का पर दबाव बढ़ेने जाइत रहय । अनाड़ी आ अनुभवहीन हेबाक कारणे लड़काकेँ बुझाइत नहि रहै जे ओ की करय । ओ नचार आ बेबस देखाइत रहय ।
ओहि आदमीक लक्षण हमरा नीक नहि बुझाइत रहय् । ओ नीक लोक नहि बुझाइत रहय । ओहि आदमी मे ने तऽ छत्ता हरेबाक दुख रहैक, ने ओहि लड़का पर तामस । ओकर चेहरा पर चलाकी आ धूर्त्तताक भाव रहैक आ स्वरमे कठोरता रहैक । फेर छत्ता भुइयाँ पर रखबाक ओकर बातो हमरा जँचल नहि रहय । निच्चाँ मे ततेक थाल रहैक जे कोनो चीज रखबाक बात सोचल नहि जा सकैत रहय ।
देर हेबाक कारणे हम खौंझा गेल रही । हमर धैरज टूटि गेल । बमकि उठलहुँ —देखू, एकरा कमजोर बूझि केँ ठकिऔक नहि ।
- हम एकरा ठकै छिऐ ? – ओ आदमी विरोध करैत बाजल — अहाँ कोना बुझै छिऐ जे हम एकरा ठकि रहल छिऐ ?
- हम ई नहि कहैत छी जे अहाँ एकरा ठकि रहल छिऐ । लेकिन जँ अहाँ एहन सोचैत होइ तऽ ई ठीक बात नहि अछि । ई सभ सीधा – साधा आ गरीब लोक अछि आ एहि सभक धंधा चोरी नहि छैक ।
- आ हमर धंधा ठकपनी अछि ?
- हम कहाँ कहैत छी जे अहाँक धंधा ठकैती अछि ।
- तखन ?
- तखन की ? किछु नहि ।
- तऽ अहाँ बीचमे पड़ैत किएक छी ?
- हम बीचमे किएक पड़ब । हम तऽ एतने कहैत छी जे अहाँ एकरा तंग नहि करियौ ।
- ई अहाँक के होयत ?
- हमर ? हमर के होयत ! कोय ने ।
- तऽ अहाँ किएक नाक घोसियाबै छी ?
- एहि लेल जे हम एतय छी आ ई सब हमरा सोझा भऽ रहल अछि । अहाँ बाहरसँ आबि कऽ एकरा तंग कऽ रहल छिऐक । कतय घर भेल ?
- हम बाहरक छी ? कोना बुझलिऐ हम अनतौका छी ?
- किऐक तऽ अहाँ एतुक्का भाषा नहि बजैत छी ।
- हम एत्तहि रहैत छी ।
- कतऽ ? कोन ठाम ?
- चाँदनी चौक । चलू हमरा संग । देखा दैत छी ।
- देखबाक कोनो बेगरता नहि अछि ।
- नहि-नहि, चलू देखाइए दैत छी ।
- हम देखि कऽ की करब ?
- देखऽ तऽ अहाँकेँ पड़बे करत – कहि कऽ ओ हमर साइकिल पकड़ि लेलक । हमरा लागल डेरा लऽ जा कऽ ओ अपन संगी सभसँ पिटबायत आ संगमे जे किछु अछि,छीनि लेत । विरोध कयला पर ओ हमर हत्यो कऽ सकैत अछि । ई सभ सोचि कऽ हम डरि गेलहुँ । मुदा ओ डर क्षणिक छल । लोक जखन संकट मे पड़ि जाइत अछि तऽ ओकर डर भागि जाइत छैक आ ओकरामे साहसक संचार होइत छैक । हमरो हिम्मत आबि गेल । हम कड़कि कऽ कहलिऐक—हमरा कोन गरज अछि घर देखबा के?
- तऽ बीचमे टपकलहुँ किएक ?
- एहि लेल जे तों ओकरा संग अन्याय करैत छलह ।
- न्याय करैत रही कि अन्याय, तों दखल दै बला के ?
- अच्छा ! तों ठकबहक, अपराध करबहक आ लोक चुप रहतैक ?
- ठीक छै । चलह घर देखि लएह । पता चलि जेतह, हम के छी !
- तोहर घर देखै के हमरा समय नहि अछि; ने कोनो बेगरता । साइकिल छोड़ह आ अपन रस्ता धरह ।
- आ हमर छत्ता के देतै ?
- छत्ता हम देबह?
- तब के देतै ? तों रोकलहक किऐ ?
- ठीक छै, रोकलियह । लेकिन पकड़ने तऽ नहि छियह । छत्ता लेने छह, तऽ जा वसूलह गय । दिमाग नहि चाटह ।
फेर पता नहि ओ की सोचलक । साइकिल छोड़ि देलक । कहुना जान छूटल । हम आगू बढ़ि गेलहुँ । हमरा लागल ओ घूरि कऽ लड़का लग जायत । लेकिन आश्चर्य! ओ लड़का लग नहि गेल । कने आगू जा एकटा तरकारी बालासँ जखन हंम मोल-मोलाय करैत रही तऽ देखलहुँ ओ हमरे दिस आबि रहल अछि । हमर जी सन्न सिन रहि गेल । पता नहि आब ओ की करय आबि रहल अछि । हम ओकरा पर नजर टिकेलहुँ । ओहो हमरे ठिकिऔने रहय । हमर मोनमे आशंका आ भय समा गेल । हम चौचंक भेल ओकरा देखलहुँ । ओकर चेहरा पर हमरा कठोरता आ घृणाक भाव देखायल । लागल हमरा जल्दीसँ निकलि जेबाक चाही ।
बजार अबैत काल हम कतेक प्रसन्न रही ! आब घर घुरैत काल खिन्न आ दुखी छी । बात दुख के हो या सुख के, गुजरिए जाइत अछि । आदमी सुखबिसरि जाइत अछि,दुख मोन रहैत छैक । हमहुँ ओहि आदमी केँ बिसरि नहि पबैत छी । जखन कखनहुँ ओकर मोन पड़ैत अछि तऽ उदास आ खिन्न भऽ जाइत छी आ सोचय लगैत छी, की ओ ठीके ठक रहय ?
उपन्यास
-कुसुम ठाकुर,सामाजिक कार्यमे (स्त्री-बच्चासँ विशेष) , फोटोग्राफी आ नाटकमे रुचि । अन्तर्जाल पता:-http://sansmaran-kusum.blogspot.com/

प्रत्यावर्तन - (छठम खेप)
१२

घर मे ततेक लोक जमा भs गेल छथि जे दिक्कत तs होयते छैक हॉस्पिटल सेहो सब कियो एक सँग नही जा सकैत छी।मोन रहितो सभ दिन गेनाई सम्भव नही भs रहल छैक। बाबुजी आ मौसी के बेसी समय हॉस्पिटल मे बीति रहल छैन्ह। हिनका गेलाक बाद सँ हम काका के देखय के लेल नहि गेल छी। आय सोचि लेने रही किछु भs जाय हम हॉस्पिटल जेबे करब। बाबुजी के कहि हम हुनके सँग हॉस्पिटल पहुँचलहुँ मुदा काका के देखि मोन बड दुखी भs गेल। दिन दिन ओ कमजोर भेल जा रहल छथि आ हुनकर पेट फूलल जा रहल छैन्ह। बाबुजी डॉक्टर सँ भेंट करय के लेल चलि गेलाह,काका लग हम आ मौसी छलहुँ। जहिना बाबुजी गेलाह काका इशारा सँ हमरा अपना दिस बजेलाह। हम हुनके विषय मे सोचि रहल छलहुँ तुंरत लग मे गेलियैन्ह। ओ हाथ देखा हमरा अपना बगल मे बैसय के लेल कहलाह आ हम जहिना बैसलहुँ तुंरत हँसय के प्रयास करैत कहलाह " तोरा बुझल छौक आय काल्हि तोहर मौसी भइया सँ गप्प करय लगलिह"। हम किछु नहि बजलियैन्ह मुदा भीतर सँ हमरा ततेक तकलीफ भेल जे कहु एहेनो लोक होयत छैक जे अपन जीवनक अंत समय छैन्ह आ ओ हमरा आ मौसी दुनु गोटे के चेहरा देखि हँसेबाक प्रयास कs रहल छथि। असल मे बियाहक बाद दादी हमर मौसी केईकहि गप्प नहि करय देलथिन्ह जे लोक भैंसुर सँ गप्प नहि करैत छैक। अपन विवाह सँ पहिने मौसी बाबुजी सँ गप्प तs करिते रहथि सारि जे छलथि बाबुजी के। आब एहेन परिस्थिति छलैक जे मौसी के बाबुजी सँ गप्प करला बिना गुजर चलय वाला नहि छलैन्ह।

भोरे सँ कियो मन्दिर गेल छलथि कियो मौनी बाबा लग तs कियो तांत्रिक लग घर मे हम आ माँ छी। हमर सबहक एक गोटे परिचित रोटी दs गेलथि आ पता चलल जे ओ रोटी पानि मे रहैत छैक आ ओकर पानि देला सँ केहेनो बिमारी कियाक नहि होय ठीक भs जाइत रहैक। एकटा कहबी छैक "डूबते को तिनके का सहारा" एकदमईएहि ठाम लागू होयत छैक। माँ ओ हुनका सँ लs कs भगवान लग राखि देलथि।

तीन चारि दिन सँ सब गोटे परेशान आ चिंतित छलथि मौसी लग किछु कहबाक लेल सब के मना छैन्ह तथापि बुझाइत छैक मौसी के सब किछु बुझल छैन्ह। राति राति भरि ओ नहि सुतय छथिन्ह आ नहि ठीक सँ भोजन करैत छथि। साँझ मे छोटू आ हमरा चारु बहिन के छोरि बाकी सभ गोटे हॉस्पिटल चलि गेलाह। हमरा साहस नहि भेल जे कहितियैन्ह जे हमरो लs चलु। करीब नौ बजे राति मे छोटका मामा के छोरि सब आबि गेलथि मुदा हाव भाव बता रहल छलैन्ह जे काका केर स्थिति ठीक नहि छैन्ह। हमरा पुछय के हिम्मत नहि भs रहल छल जे हम किनको सँ पुछबैन्ह मुदा भरि राति नींद नहि भेल।

भोर मे उठलहुँ त बाबुजी ओहि सँ पहिनहि हॉस्पिटल जा चुकल रहथि। दादी, मौसी,पीसी, सभ गोटे मन्दिर मोनी बाबा लग गेल छलिह। अचानक देखलियैन्ह छोटका मामा परेशान जल्दी जल्दी आबि रहल छलाह आ आबिते पुछलाह "माँ सब कतs छथुन्ह "। हम कहितियैन्ह ताबैत माँ बाहर निकलि अयलीह आ माँ के देखैत तुंरत मौसी आ दादी के विषय मे पुछलाह। माँ जहिना कहलथि जे ओ मन्दिर गेल छथिन,ईसुनतहि मात्र एतबहि कहलाह "आब ओकर कोनो काज नहि छैक हम हुनका सब के लेने आबैत छियैन्ह"आ तुंरत घर सँ चलि गेलाह। माँ तs तुंरत कानय लगलिह मुदा हमरा किछु नहि फुरा रहल छल जे की करी। एतबा तs बुझिये गेलहुँ जे काका नहि रहलाह।

काका के दाह संस्कार जमशेदपुर मे भेलाक बाद सब के विचार भेलैंह जे काज गाम पर कयल जाय मुदा भारत बंद रहलाक चलते हम सब साँझ मे गाड़ी सँ निकलि गेलहुँईसोचि जे भोर तक गाम पहुँची जायब। बाबा के किछु नहि बुझल छलैन्ह।

सिमरिया मे अस्थि प्रवाह कs हम सब गाम के लेल प्रस्थान कs गेलहुँ।

एक तs सब दुखी ताहु मे बैसय के से दिक्कत छलैक मुदा जेना तेना हम सबईसोचैत जा रहल छलहुँ जे आब तs गाम लग आबि गेल। सब के झपकी तs आबिये रहल छलैक। बाबुजी आ छोटका मामा आगू बैसल छलाह। अचानक हमर आँखि खुजल तsदेखैत छी बाबुजी पूरा खून सँ लथ पथ छथि आ सीट पकरि पाछू एबाक कोशिश कsरहल छथि। ताबैत नजरि गेल एक बोझा कुसियार(गन्ना ) पूरा के पूरा अगुलका शीशा तोरि भीतर घुसल छलैक। हमरा किछु नहि बुझायल तs हम बाबुजी के पकरि कsअपना दिस खिँचय लगलहुँ । ताबैत छोटका मामा अयलाह ओ अपनहि खून सँ लथ पथ छलाह आ बाबुजी के कोहुना कs बाहर निकललाह हम सब सब गोटे गाड़ी सँ बाहर भेलहुँ । बाहर पहुँचि जे देखय मे आयल से वर्णन करय वाला नहि छैक। कुसियार सँ लदल बैल गाड़ी हमर सबहक गाड़ी के मारि देने छलैक। सोनू के माथ मे चोट छलैन्ह आ मामा के हाथ नाक दुनु ठाम सँ खून नजरि आयल। बाबुजी के सड़क कात मे एकटा गाछ तर सुतायल गेलैन्ह। गाड़ी केर ड्राईवर भागि गेल छलैक।

बुझाइत छलैक पूरा के पूरा गाम उठि के आबि गेल छलैक। पुछला पर पता चलल चकिया गाम लग मे छैक। विपत्ति पर विपत्ति हमरा सब पर परल छल मुदा गाम वाला सब मे सँ कथि लेल एको गोटे मदद करताह उलटा ओ सब सामन लs कsभगबाक प्रयास करय छलाह। ओ तs मामा छलाह जे ओहनो स्थिति मे बाबुजी आ हमरा सब के सँग सामान पर सेहो ध्यान देने छलाह। गामक एक आदमी मात्र एतबा मदद केलैथ जे ओ हमरा सब के कहलथि जे आब ट्रेनक के समय भs गेल छैक आ पॉँच मिनट मे अहि ठाम पहुँचत जओं ट्रेन रुकि जाय तs अहाँ सब ओहि सँ मोतिहारी जा सकैत छी। जतय हम सब छलहुँ ओहि केर बगल मे ट्रेनक लाइन छलैक माँ जहिनाईसुनलथि तुंरत बाबुजी के छोरि सीधे लाइन तरफ़ दौडि के पहुँचि गेलिह आ हुनका देखि मौसी सेहो। मामा मना करैत रहि गेलाह कथि लेल सुनतिह। हम बाबुजी के पकरि कs बैसल रहि। मामा की करितथि हुनको पाछू सँ जाय परलैन्ह।जखैन्ह ट्रेन नजरि आबय लागलय तs देखलियैन्ह मामा दौडी कs अयलाह। मामा के आबितहि हम माँ सब लग चलि गेलहुँ। कतबो कहिये लाइन पर सँ हटि जो माँ कथि लेल हटतिह। जओं जओं ट्रेन लग आबय हमर डर बढैत जाय। गाँव वाला सब कात मे ठाढ़ भsतमाशा देखि रहल छल। एक तs भारत बंद ताहु पर हम सब लाइन पर ठाढ़ भs गाड़ी रोकय छलहुँ। गाड़ी किछु दूर पर ठाढ़ भs गेलय आ ओहि के बाद धीरे धीरे हमरा सब दिस बढ़य लागल। ट्रेन एकदम धीरे धीरे चलय छल। सब गेट पर सिपाही सब ओहिना नजरि आबैत छल। माँ जहिना देखलथि जे गाड़ी आब लग आबि गेल छैक कि जोर जोर सँ चिल्लाबय लागलिह "गाड़ी रोको, मदद करो पूरे परिवार का एक्सिडेन्ट हुआ है"। गाड़ी लग मे आयल तs हम सब बगल भs गेलहुँ। पहिने तs बुझायल गाड़ी नहि रुकत मुदा किछु आगू जा रुकि गेल। हम सब सबस पहिने बाबुजी के ऊपर चढेलहुँ आ आराम सँ एकटा सीट पर सुता देलियैन्ह ओकर बाद सब कियो ट्रेन पर चढि बैसि गेलहुँ।

कोहुना मोतिहारी स्टेशन तक पहुँचलहुँ। पूरा स्टेशन लोक सँ भरल छलैक। असल मे गार्ड खबरि दs देने रहैक जे एक्सिडेन्ट वाला सब के आनि रहल छी। ओहि ठाम सँ हॉस्पिटल तक सब इंतज़ाम पुलिस वालाक छलैक। संयोग सँ ओहि ठामक एक गोट रेलवे के पैघ अधिकारी हमर परिवार के चिन्हैत छलाह ओ हमर बड़का काका आ एकटा हमर पितिऔत काका के जे कि रेलवे मे छलाह खबरि कs देलैथ।

बाबुजी के डॉक्टर कहि देलकैन्ह अछि तुंरत सीतापुर या अलिगढ लs जएबाक लेल हुनकर एक आँखि मे बहुत चोट छैन्ह। बाकी सब के घाव छलैक जे ठीक होयबा मे दू चारि दिन और लागि जयतैक।

मोतिहारी करीब करीब हमर पूरा परिवारक लोक पहुँचि गेल छलथि विचार भेलय जे लाल मामा आ माँ के छोरि सभ गोटे गाम जायब।

माँ लाल मामाक सँग बाबुजी के लs कs अलिगढ चलि गेलिह, छोटू के तs सँग लsगेलिह मुदा बाकि तीनू बहिन के हमरा पर छोड़ि कs गेल रहथि। हम सब बड़का काका काकी सँग मोतिहारी सँ गाम आबि गेलहुँ। दादी मौसी मधु निक्की पप्पू आ सोनू सेहो संगे आबि गेलाह। गाम पहुँचलहुँ, ई समाचार सुनि बाबा बड दुखी छलाह। एकटा बेटा के गेलाक दुःख तs रहबे करैन्ह दोसर बेटा के दुघॅटनाक समाचार हुनका आओर तोड़ि देलकैन्ह। इम्हर सब बच्चा सब डरल सहमल रहथि। मधु सब तs मौसी लग रहैत रहथि दादी से, अपन दोसर दोसर काज मे रहैत छलिह मुदा हमर तीनू बहिन हमरा एको मिनट लेल नहि छोरथि। हमरा अपने किछु नहि फुरैत छल की करी। डरल तs हमहू रही मुदा हुनका सब केर सोंझा मे साहस केने रही। बौआ सेहो गाम पर छलथि हुनकर परीक्षा भs गेल रहैन्ह।

दोसर दिन भरि दिन लोकक एनाई गेनाई लागल रहलै आ भरि दिन कन्ना रोहटि सेहो होयत रहैत छलैक। जतेक कन्ना रोहटि होय ततेक बच्चा सब और डरि जैत छलथि। साँझ होयत देरी सब हमरा पकरि कs बैसि जाय गेलिह। अचानक हम जाहि कोठरी मे रही ताहि मे बड़की काकी अयलीह आ बच्चा सब के पकड़ि क किछु जलखई करेबाक लेल लs गेलिह। हम चुप चाप घर मे बैसि क असग़र कानैत छलहुँ आ भगवान सँ कहैत छलहुँ हे भगवान माँ नहि छैथ बाबुजी के की होयतैन्ह नहि जानि एखैंह कम सँ कम हिनका पठा दियौन हम असग़र कोना तीनू के सम्भारब। मौसी आ मधु सब सँग तs सब गोटे के सहानुभूति छलैन्ह मुदाईतीनू बहिन के देखय लेल हमही टा छलियैन्ह। ई सोचिये रहल छलहुँ कि देखलियैक एकटा जन बैग लेने आयल आ राखि कs चलि गेल। देखला सँ हिनके बैग जेहेन छलैक मुदा जा धरि हम किछु पुछतिए ओ चलि गेल। हमरा मोन मे पचास तरहक बात आबि रहल छल कि देखलियैन्हईघर मे घुसि रहल छथि।ईसीधे हमरा लग अयलाह आ जहिना पुछलाह अहाँ कोना छी कि हमरा नहि रहि भेल आ हम हिनका पकरि कs खूब कानय लगलहुँ। इहो पाछु कथि लेल रहताह आ दुनु गोटे एक दुसरा के पकरि कs कानैत छलहुँ। हमरा सब केर मुँह सँ एको शब्द कथि लेल निकलत।

अचानक हमरा बुझायल जे तीनू बहिन आबि रहल छथि। हम अपना के सम्हारैत हिनका सँ पुछलियैन्ह अहाँके कोना बुझल भेल। कहलाह हम तs मोतिहारी आयल छलहुँ अपन कॉलेजक काज सँ ओझाजी ओहिठाम गेलहुँ तs पता चलल। हम पहिने हॉस्पिटल गेल रहि बाबुजी आ मामा के देखि हमर मोन ख़राब भs गेल। ओहि ठाम सँ भागल एहि ठाम आयल छी। हम सब गप्प करिते छलहुँ कि तीनू बहिन आबि गेलिह आ आबिते सोनी हिनका पकरि कs कानय लगलीह। बिन्नी अन्नू से लग मे आबि गेलिह। ओ दृश्य हम नहि बिसरी सकैत छी। बौआ तs लड़का छलाह आ बाबा सँ हुनका बड लगाव छलैन्ह मुदा हमरा सब के मोन मे असुरक्षा के भावना छल ओ हिनका देखि खतम भेल।

काका केर काज खतम भेलाक बाद सब चलि गेलाह हम चारु भाई बहिन, बाबा दादी आ मौसी अपन चारु बच्चा सब सँग रहि गेलिह। इहो चलि गेलाह, हमरा एको रत्ती गाम पर मोन नहि लागैत छल, मुदा मजबूरी मे रहय परल। अचानक एक दिन तार आयल जे नानी सेहो नहि रहलिह। काका के देहान्तक खबरी सुनि ओ खाना पीना छोरि देने रहथि आ हुनक देहांत भs गेलैन्ह। तार अयलाक एक दू दिन बाद मामा अयलाह ओ अपना सँग मौसी आ हुनक चारु बच्चा सब के सेहो लs कs चलि गेलाह मुदा ओ एक बेर हमरा सब के कहबो नहि केलाह जे अहुँ सब चलु। हम ओ दिन नहि बिसरी सकैत छी मौसी सब केर गेलाक बाद मात्र हम पाँच भाई बहिन आ बाबा दादी रहि गेलहुँ एक तs हम सब कहियो गाम असग़र नहि रहल रही ताहु परओहेन परिस्थिति मे। राति राति भर हम डर सँ नहि सूती। सोनी तs राति मे हमारा पकडि कs सुतथि आ ताहू पर कैयक बेर डर सँ चिल्ला उठैथ।

एक तs हम अपनहि डरपोक ताहि पर सब भाई बहिन के जिम्मेदारी हमरा पर रहैक। दादी बाबा तs बुढ छलथि। माँ बाबुजी के कोनो समाचार से बुझय मे नहि आबि रहल छल। हम राति राति भर सूती नहि आ सोचैत रहैत छलहुँ।

नहि जानी कियैक करीब पन्द्रह दिन भs गेलैक माँ बाबूजी के कोनो समाचार नहि भेटल छलईसोचि सोचि हमरा बड चिन्ता होयत छल। राति के निन्द तs नहिये होय उलटे चारि पाँच दिन सँ हमर छाती मे जोर सँ दर्द होमय लागल । पहिने तs दादी के हम नहि कहलियैन्ह मुदा बाद मे कहय परल। दादी के से चिन्ता होमय लागलैंह, ओ अपना भरि किछु किछु सँ मालिश करथि मुदा ठीक नहि भेल। अंत मे दादी कहलथि ठाकुर जी के चट्ठी लिखि दहुन आबि जयताह। मुदा ओ अपनहि हमरा सब केर देखय लेल पहुँची गेलाह आ दादी के कहला पर हमरा लs क पटना डॉक्टर सँ देखाबय लेल लs गेलाह। पटना मे हमर मौसी रहैत छलिह हुनके ओहि ठाम रही इलाज करेबाक विचार भेलैक। सब गोटे के जेबा मे तs झंझट छलैक मुदा हम अन्नू के नहि छोरलियैन्ह आ हुनका अपना सँग लेने गेलियैन्ह। सोनी बिन्नी के दादी राखि लेलथिन्ह आ कहलथि कोनो चिन्ता नहि करय के लेल।

हम सब साँझ मे पटना पहुँचलहुँ आ मौसी के डेरा गेलहुँ, ओहि ठाम बाबुजी पहिनहि सँ रहथि।ओ सब भोर मे पहुँचल रहथि। माँ सँ पता चलल जे बाबुजी के कोहुना एकटा आँखि बाचि गेलैन्ह दोसर नहि बचायल जा सकलैन्ह। दोसर दिन हम सब जमशेदपुर आबि गेलहुँ ।

(अगिला अंकमे)
गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पर डॉ. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"
गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डमे विभाजित कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एकहि संग कठिनसँ कठिन विषयपर सुचिन्तित विश्लेषण भेटत आ उपन्यासक जटिल कथा केर गुत्थी सेहो भेटत सुलझाएल आ संगहि प्रेमक कविता आ प्रकृतिक गीत सेहो । सात खण्ड एहि प्रकार छन्हि-

खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना

खण्ड-२ उपन्यास-सहस्रबाढ़नि

खण्ड-३ पद्य-संग्रह-सहस्त्राब्दीक चौपड़पर

खण्ड-४ कथा-गल्प सग्रह-गल्प गुच्छ

खण्ड-५ नाटक-संकर्षण

खण्ड-६ महाकाव्य- १.त्वञ्चाहञ्च आ २.असञ्जाति मन

खण्ड-७ बालमंडली /किशोर जगत

सभसँ महत्त्वपूर्ण बात ई जे सभ विषयक पाठकक आ पाठिकाक लेल एतए किछु ने किछु भेटबे करत । पुछलियन्हि जे एहन संरचना किएक तँ जे किछु कहलन्हि ताहिसँ लागल जे ई हिन्दी केर तार-सप्तक आ तमिलक कुरुक्षेत्रम् केर बीच मे कतहु अपन जगह बनेबाक प्रयास कऽ रहल छथि । फराक एतबे जे हिन्दी आ तमिल मे कएक गोटे मिलि कए सन्कलित भेल छथि एकटा जिल्दमे, आ एतए कएक लेखकक द्वारा विभिन्न विधा केर रचना नहि रहि हिनके अपन रचना पोथीमे उपलब्ध कराओल गेल अछि ।

कतेको पंक्ति भरिसक पाठकक मोनमे ग्रंथित-मुद्रित भऽ जएतन्हि , जेना कि –

“ढहैत भावनाक देबाल

खाम्ह अदृढ़ताक ठाढ़

आकांक्षाक बखारी अछि भरल

प्रतीक बनि ठाढ़”।

अथवा , निम्नोक्त पंक्ति-येकेँ लऽ लिअ :

“सुनैत शून्यक दृश्य

प्रकृतिक कैनवासक

हहाइत समुद्रक चित्र

अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द

क्यो नहि देखत हमर ई चित्र अन्हार मे...”

मिथिलेक नहि अपितु भारतक कतेको संस्कृतिक प्रभाव देखल जा सकैछ हिनक कथा कवितामे । एहिसँ मैथिली क्रियाशील रचनाक परिदृश्य आर बढ़ि जाइछ , आ नव-नव चित्र , ध्वनि आ कथानक सामने आबि जाइत अछि ।

कवि कोन मन्दाकिनी केर खोजमे छथि जे कहैत छथि-

“मन्दाकिनी जे आकाश मध्य

देखल आइ पृथ्वीक ऊपर...”

अपन विशाल भ्रमणक छाप लगैछ रचनामे नीक जकाँ प्रतीत होइत अछि । आ आर एकटा बात स्पष्ट अछि – कोषकार गजेन्द्र ठाकुर आ रचनाकार गजेन्द्र ठाकुर भिन्न व्यक्ति छथि , व्यक्तित्त्वमे सेहो फराक... जतए कोशकारितामे सम्पादकत्व तथा टेक्नोलोजी –सँ सम्बन्धित व्यक्तिक छाया भेटिते अछि , मुदा सृजनक मुहुर्तमे से सभटा हेरा जाइत छथि ।

एहिमे सँ कतेको टेक्स्ट ओ रखने छथि इन्टरनेटमे मैथिलीक बढ़ैत पाठककेँ ध्यानमे राखए , जेना कि विदेह-सदेह अछि

http://videha123.wordpress.com/- मे , आ देवनागरी आ तिरहुता – दुन्नु लिपिमे । जे क्यो मिथिलाक्षरक प्रेमी छथि तनिका सब लेखेँ तँ ई विरल उपहारे रहत ।

अनेको रचनामे मात्र गोल-मटोल कथे नहि , राजनीतिक भाष्य सेहो लखा दैत अछि । ताहिमे हिनका कोनो हिचकिचाहटि नहि छन्हि । ओना देखल जाए तँ कुरुक्षेत्र क कतेको महारथी छलाह = प्रत्येक वीर-योद्धा अपन-अपन क्षेत्र आ विधाक प्रसिद्ध पारंगद व्यक्ति छलाह – क्यो कतेको अक्षौहिणी सेनाक संचालनमे , तँ क्यो तीरन्दाजीमे , आदि आदि । सभ जनैत छलाह जे धर्म आ अधर्मक भेद की होइछ मुदा तैयो सभ क्यो जेना आसन्न विपर्यायक सामने निरुपाय भऽ गेल छलाह । आजुक सन्दर्भमे सेहो कथा मे तथा व्याख्यामे एहन परिस्थितिक झलक देखल जाइत अछि । सैह एहि महा-पाठ– क (मेटाटेक्सट) खूबी कहब । नहि तँ ओ कियेक लिखताह –

“देखैत देशवासीकेँ पछाड़ैत

मन्त्रतंत्रयुक्त दुपहरियामे जागल, गुनधुनी बला स्वप्न

बनैत अछि सभसँ तीव्र धावक, अखरहाक सभसँ फुर्तिगर पहलमान

दमसैत मालिकक स्वर तोड़ैत छैक ओकर एकान्त

कारिख-चित्रित रातिक निन्न,

टुटैत-अबैत-टूटैत निन्न आ स्वप्नक तारतम्य...”

एहि महापाठकेँ एकटा एक्सपेरीमेन्ट केर रूपमे देखी तँ सेहो ठीक , आ सप्तर्षि-मंडलक निचोड़ अथवा सप्त-काण्डमे विभाजित आधुनिक महा काव्य रूपमे देखी तँ सेहो ठीक हएत। जेना पढ़ी , सामग्री एहिमे भरपूर अछि, भरिसक किछु अतिउच्च मानक लागत, आ किछु किनको तत्तेक नहि पसिन्न परतन्हि । मुदा एहि ग्रन्थ निचयकेँ पाठक अवश्य स्वागत करताह , आ नवीन लेखक वर्गकेँ एकटा नव दिशा सेहो भेटतन्हि ।
राजमोहन झासँ गजेन्द्र ठाकुरक साक्षात्कार
गजेन्द्र ठाकुर:मैथिलीक जन सामान्यसँ दूर भऽ मैथिली साहित्यकार सभ मैथिलीकेँ प्रदर्शनक वस्तु बना देलखिन्ह, साहित्यसँ लोक किएक दूर होइत गेल?
राजमोहन झा:एहि लेल अहाँ साहित्यकारकेँ कोना दोषी कहैत छियन्हि?
गजेन्द्र ठाकुर:ओ साहित्य धरि सीमित रहलाह? समाजसँ कोनो मतलब नहि रहलन्हि? अपन लिखलथि आ गोष्ठी आ कवि सम्मेलन धरि सीमित रहलाह? गाम-घर छोड़ि देलन्हि। मैथिली साहित्यकार समाज आ राजनीतिसँ दूर रहलाह। फैशन जेकाँ साहित्य लिखल गेलै, पढ़ल गेलै आ सुनल गेलै?
राजमोहन झा:से तँ आब भऽ रहल छै। पहिनुका साहित्यकार तँ एना नञि करथि।
गजेन्द्र ठाकुर: एकटा हरिमोहन झाकेँ छोड़ि कऽ गाममे लोक कोनो दोसरक रचनाकेँ नहि पढ़ने-सुनने छथि। मिथिला मिहिर गाम-गाम जाइत छलै , बन्द भऽ गेलै, । हरिमोहन झाकेँ छोड़ि कऽ गामक लोक कोनो दोसर साहित्यकारक नामो नहि सुनने छथि। दोसर साहित्यकार हरिमोहन झा जेकाँ काज किएक नहि कऽ सकलाह?
राजमोहन झा:ई तँ एकटा मिस्ट्री जेकाँ छैक। हरिमोहन झाक साहित्य एतेक पोपुलर कोन कारणसँ भेलन्हि आ दोसर साहित्यकारक किएक नहि भेलन्हि। ओ गुण दोसर साहित्यकार सभमे किएक नहि अओलन्हि। एकर ओनो रेडीमेड सोल्युशन नहि भेटल अछि। जखन कि हरिमोहन झाक साहित्यक सेहो आलोचना होइत छैक जे साहित्यमे जै समाजकेँ ओ पेन्ट केलन्हि से सम्पूर्ण समाज नहि छै।एकटा विशेष वर्गकेँ लऽ कए ओ साहित्य रचलन्हि। दलित समाज हुनकर साहित्यसँ वंचिते जेकाँ छन्हि। तकर बावजूद एतेक पोपुलर कोना रहथि आ छथि से एखनो धरि नीक जेकाँ एक्सप्लेन नहि भेल छैक। कहल जाइत छैक जे हुनके साहित्यसँ पाठक वर्ग तैयार भेलैक पाठक रूप मे जे वर्ग एग्जिसटेन्समे आएल से हुनके साहित्यसँ।
गजेन्द्र ठाकुर:साहित्य उद्देश्यपूर्ण होएबाक चाही वा एकर उद्देश्य मात्र मनोरंजन होएबाक चाही।
राजमोहन झा:सैह सेल्फ एनेलाइज करबाक छै। मनोरंजन तँ रहबाके चाही नहि तँ क्यो पढ़बे नहि करत मुदा अन्तिम उद्देश्य मनोरंजन नहि होएबाक चाही। विभिन्न स्तरक लोकक लेल विभिन्न स्तरक साहित्य, जकर जे आवश्यकता छै तकर पूर्ति होएबाक चाही।
गजेन्द्र ठाकुर:बेर-बेर सुनबामे आबए छै जे मैथिली भाषा मरि रहल अछि। माइग्रेशन नीक चीज छियैक मुदा एक जेनेरेशनमे जाहि समाजक नब्बे प्रतिशत जनसंख्या माइग्रेट कए गेल ओहिमे तँ एहि प्रकारक वस्तु तँ अवश्य आएत। भारतसँ बाहर जे जाइत छथि हुनकर भाषा अंग्रेजी आ जे भारतमे दोसर ठाम जाइत छथि अदहा गोटे हिन्दी बाजए लगैत छथि।
राजमोहन झा:लोक मे भाषा प्रेम घटल अछि। पहिने ई नहि रहैक।लोक मैथिली छोड़ि रहल अछि।
गजेन्द्र ठाकुर: ई भारतक मैथिली भाषी प्रदेशक विषयमे तँ सत्य अछि मुदा नेपालमे हिन्दी विरोधक कारण अप्रत्यक्ष रूपसँ मैथिलीकेँ लाभ भेल छै।
राजमोहन झा:भारतमे स्थिति खराप छै।पहिलुका लोक जेना समर्पण आब लोकमे नहि छै।
गजेन्द्र ठाकुर:बबुआ जी झा “अज्ञात”केँ साहित्य अकादमी पुरस्कार देबाक अहाँ विरोध कएने रहियन्हि...
राजमोहन झा:हम विरोध नहि कएने रहियन्हि। दिल्लीमे आन-आन सभ कएने रहथि।
गजेन्द्र ठाकुर:आरम्भक तीसम अंकमे अहाँक सामूहिक वक्तव्य आएल छल। ओहिमे २००१क साहित्य अकादमी पुरस्कार बबुआजी झा “अज्ञात”क “प्रतिज्ञा पाण्डव” आ अनुवाद पुरस्कार सुरेश्वर झाकेँ देल जएबाक विरोध भेल छल। आरम्भ तँ आब लगैए बन्द भऽ गेल अछि।
राजमोहन झा:हँ।.....आरम्भ बन्द नहि भेल अछि स्थगित अछि।
गजेन्द्र ठाकुर:भालचन्द्र झाक “बीछल बेराएल मराठी”एकांकी जे मूलभाषासँ सोझे अनूदित छल, सुभाष चन्द्र यादव जीक बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद) सेहो एहि तरहक सोझे अनूदित कृति छल तकरा पुरस्कार नहि भेटल। ओहि समय मे कोनो विरोध नहि भेल। मुदा अनचोक्के सभ क्यो बबुआजी झा “अज्ञात”क पाछाँ पड़ि जाइ गेलाह, हुनका बिनु पढ़ने ककरो इशारापर आ क्षुद्र उद्देश्य पूर्तिक लेल तँ ई नहि कएल गेल? जखन कि मूल समस्या मैथिलीक अछिये, पाठक शून्यता आ साहित्यक जनसँ दूर होएब आ भाषाक मृत होएबाक खतरा, तकर विरोध किएक नहि कहियो भेल?
राजमोहन झा:शैलेन्द्र कुमार झाक अनूदित संस्कार सेहो सोझे अनुवाद छल तकरो पुरस्कार नहि भेटलैक। विरोध तँ होइत अछि, मुदा लोक परवाह नहि करैत छथि।
गजेन्द्र ठाकुर:तकर कारण पाठकक कमी तँ नहि अछि? जूरी आ साहित्यकारो जखन दोसराक अनूदित आ लिखित रचनाकेँ नहि पढ़ैत छथि? सिद्धार्थ राईक नेपाली कविता संग्रहक मैथिली अनुवाद “ओ लोकनि जे नहि घुरलाह” मेनका मल्लिक द्वारा कएल गेल, २००६ ई. मे प्रकाशित भेल, मनप्रसाद सुब्बाक नेपाली कविता संग्रहक अनुवाद“अक्षर आर्केष्ट्रा” नामसँ प्रदीप बिहारी कएलन्हि, ई २००७ ई.मे प्रकाशित भेल। मुदा जे जूरी एहि पोथी सभकेँ देखबे नहि करताह तँ फेर अपन लगुआ-भिरुआकेँ अनुवाद पुरस्कार दिअओताह, भने सोझे कएल अनुवाद रहए वा नहि। ओना अकादमी द्वारा२००७ मे अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली) केँ अनुवाद पुरस्कार देबाक प्रशंसा होएबाक चाही। मुदा चयन प्रक्रियामे नीक चीजक निरन्तरता किएक नहि रहैत अछि?
राजमोहन झा:नञि विरोध तँ होइत रहैत छैक, होएबाक चाही। सोझे अनुवाद कएल पोथी पुरस्कारक पात्र अछि।
गजेन्द्र ठाकुर:मुदा जूरीमे तँ सभटा पुरने लोक सभ छथि । पुरना लोकमे पहिल कथा, पहिल कविता, पहिल नाटक, पहिल पत्र-पत्रिका आदिक उपधि लेल घमासान होइत रहैत अछि। कोनो पत्र-पत्रिका जे छपलक सएह पढ़लक ताहिसँ कोनो मतलब नहि। पुरना लोकमे अहाँक हिसाबे भाषा प्रेम बेशी रहए।
राजमोहन झा:नञि एहि तरहक जूरीक विरोध होइत रहल छैक। आइ काल्हिक साहित्यकारमे गुटबन्दी बेशी भेल अछि। पहिने नहि रहए।
गजेन्द्र ठाकुर:एहि बेर फ्रेंच भाषाक जीन मेरी गुस्ताव ली क्लाजियोकेँ नोबल पुरस्कार भेटलन्हि। मेरिकाक न्यू जर्सीक फिलिप रॉथ पिछड़ि गेलाह। कहल गेल जे अमेरिकामे जे आत्ममुग्धताक स्थिति अछि ताहि कारणसँ ओतए अनुवादपर ध्यान नहि देल जाइत अछि आ ताहि कारणसँ ओकर साहित्य पाछाँ भए गेल अछि। ई आत्ममुग्धता मैथिलीक सम्दर्भमे कतेक अछि।
राजमोहन झा:टांशलेशन तँ बहुत जरूरी छैक। तखने तँ कम्पेरीजन कए सकब।जीवनानुभवसँ लोक लिखैत अछि, जरूरी छै, तकरा अनुवाद आर विस्तार प्रदान करत।
कथा-
ओ तऽ बताह अछि

कुमार मनोज कश्यप
जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।

ओ तऽ बताह अछि

देवनारायण सत्ये बताह भऽ गेलई ....लोक के विखिन्न-विखिन्न के गारि पढ़ैत छै़.... बेछोहे मारै लै दौड़ैत छै़ .....अंट-संट किदन बड़-बड़ाईत रहैत छै। आँखि क़डजनी सन लाल़़भयाओन चेहरा । सुकना बेटा के ओहि दिन तेहन कऽ ठोंठ दबेलकै जे छौंड़ा के प्राण उपरे रहि गेलै़.... ओ तऽ लोक सभ दौड़ कऽ छोड़ेलकै; नहि तऽ ओहि दिन ओकर मरबा मे कोन भाँगठ छलै !

ओना तऽ देवनारायण गुम-शुम रहै.... ककरो किछु नहि कहै ; मुदा जखने मोबाईल किंवा फोनक घंटी बजै कि ओ आक्रामक भऽ उठै़... ग़ारि बाजय लगै़.... मारै लै छुटै। किछु दिन तक तऽ चललै ; मुदा जखन एकर आक्रामकता दिन पर दिन बढ़िते गेलै;तऽ एक दिन नोकरियो सँ निकालि देल गेलै। सुनै छियै जे एक दिन ओ अपन अफसरे पर पानिक गिलास उठा कऽ फेक देने छलै । केयो कतेक दिन बर्दाश्त करितै ! बर्दाश्त तऽ ओकर घरो के लोक नहि कऽ सकलै़....क़तऽ घरक लोक सुख सँ दिन बितबैत छल; से नोकरी सँ निकालल जेबा सँ नूनो-रोटी पर आफत आबि गेलै ।...से देवनारायण के हाथ-पैर मे लोहा के क़डी पहिरा कऽ जिंजीर सँ बान्हि देल गेलै कतका घर मे़...घुप्प अन्हार । ककरो मोन पड़ै तऽ खेनाई ओकरा लेल राखि अबैक ; सेहो दूरे सँ....आन खन केयो घुरियो कऽ देखय नहि जाई ....कनियाँ तक नहि।

देवनारायण जिला कोर्ट मे बड़ा बाबू छल़....बड़ चलती छलैक ओकर। ऑफीसक नियम सभ जेना ओकर जीहे पर छलै़क़ाज मे तऽ भूत। कतबो काज होऊ, ओ बिनु निपटेने घर नहि जाईत छल़़़क़तबो अबेर कियैक ने भऽ जाऊ।

लोक कहैत छै जे देवनारायण के ऑफीसक कोनो किरानी वा चपरासी सँ कोनो बात के लऽ कऽ मुँहा - ठुट्ठी भऽ गेल छलै । ओ आदमी तकर बदला लई लै एकरा खौंझबई हेतु जखन-तखन फोन करई - 'नोचनी के दवाई भेटत आहाँ लग ? ' फोन कोनो बुथ सँ कैल करई जाहि सँ भंडा ने फुटि जाई । शुरू मे तऽ ओ 'रौंग नम्बर' कहि कऽ फोन पटकि देल करई । मुदा जखन ई बढ़िते गेलै आ सुतली रातियो मे फोन कऽ कऽ तंग करय लगलै ; तखन खौंझी सँ ओकरा मुँह सँ छोट-मोट गारि सेहो बहराय लगलई ....ओ चिड़चिड़ाह भऽ गेलै । लोक एकर एहि आकस्मिक स्वभाव परिवर्तनक कारण नहि बुझि सकलै आ पागल कहऽ लगलै---देवनारायण मजाकक वस्तु बनि गेल । लोक ओकरा दिक्क करई आ जखन ओ खौंझी मे अनाप-शनाप बाजय तऽ लोक ठहक्का मारि कऽ हँसय । एहि काज मे ओकर घरो के लोक कहाँ पाछु छलै़....ओहो सभ ओकरा चौल करऽ लगलै। एक दिन राति मे भगजोगनी के उड़ैत देखा कऽ ओकर बेटा कहने रहै - 'देखियौ, चिड़ै आगि लऽ कऽ उड़ि गेलै।' ताहि पर जे ओ चिक़डय लागल रहय - 'दौड़ै जा हऊ, चिड़ै आगि लऽ कऽ उड़ल जा रहल छै । ककरो घर ने जरा दई ।' ओकर पुरा परिवार समेत देखनाहर लोक ओकर एहि मति पर हँसैत-हँसैत लोट-पोट भऽ गेल छल।

जखन ओकर विक्षिप्तता बढ़िते गेलै तऽ परिवारोक लोक आजिर भऽ कऽ सर्वसम्मत निर्णय लेलकै ...अनेरे परेशान भेला सँ नीक जे एकरा काँके पठा कऽ एहि गाड़ाक घेघ सँ मुक्ति पाओल जाय । सैह भेलै । आई देवनारायण के काँके मानसिक आरोग्यशाला मे भर्ती करेबाक हेतु पठाओल जा रहल छै़...क़ंकाल सन शरीऱ....बेतरतीब बढ़ल केश-दाढ़ी, फाटल- मैल-कुचैल कुर्ता-पायजामा....क़डीक दाग सँ स्याह भेल पैर-हाथ़..। कतेक महिना बाद कोठली सँ निकलि कऽ ईजोत मे आयल छल ! ओकर आँखि चोन्हरा गेलैक़....आई ओ पत्नि-बेटा-बेटी़..क़करो नहि चिन्हि पेने हेतै़...चिन्हबो कियैक करतै़....ओ तऽ बताह अछि।
अमरनाथ झा,दिल्ली वि.वि.


१.हाँ ई तँ कहियो नहि देखने रही २.विष्णु प्रभाकर जी सादगीक प्रतिमूर्ति छलाह। ३. पूर्वजक जन्मभूमिकेँ शत-शत प्रणाम ४. पंकज जी

हाँ ई तँ कहियो नहि देखने रही
हाँ ई तँ कहियो नहि देखने रही ....
" हमरा मोन नहि पड़ि रहल अछि जे एतेक रुचि कोनो पछुलका चुनावमे लोकक रहल अछि”। ई शब्द अछि हिन्दुस्ताम समाचार पत्रमे खुशवन्त सिंह जीक आइ काल्हिक चुनावपर।
अनायास एहन लागल जेना क्यो एहि परिस्थितिकेँ बुझबाक लेल एकटा पुरान चित्र राखि देने होअए।
आइ.बी.एन ७ केर प्रबन्ध सम्पादक आशुतोषक निबन्धक पक्तिकेँ एहि सन्दर्भमे एतए राखि रहल छी:
"ई कहल जा सकैत अछि जे जखन देशक राजनीतिक दिशा बदलि रहल अछि आ वोटर बुधियार भऽ रहल छथि, एकटा नव सिविल सोसाइटी ठाढ़ भऽ रहल अछि जे नेता लोकनिक लेल एकटा जिम्मेदारी तैयार कए रहल अछि। ..." ।
माने आब चुनावक परिदृश्य बदलि रहल अछि, एहि गपमे किछु सत्यता अछि। हमरा १९७४ केर पछुलका दौराक स्मृति नहि अछि। १९७१ क भारत-पाक युद्धक कालमे गामक चौबटिया पर ठरल साँझमे घूर तापैत किछु बूढ़-पुरान लोककक गर्वित ललाटक छाहक स्मृति अछि जे भारतीय सैनिकपर गर्व कए रहल रहथि।
फेर १९७४ क आसपासक जे.पी.आन्दोलनक मोन पड़ैत अछि जे कोना सभ युवा न्यायवादी-आन्दोलनकारी भए गेल रहथि। हमर पैघ भाए आ छोट बहनोइ दुमकामे प्रदर्शनमे भाग लेने रहथि आ पुलिस द्वारा पकड़ल जएबापर बाबूजीक नाम लए कऽ अपन जान बचेने रहथि।
हमर पितियौत भाए आ हुनकर तीन टा संगीक मैट्रिकक परीक्षा बड्ड खराप गेल छलन्हि से ओ आन्दोलनकारी बनि गेल रहथि आ जेल गेल रहथि। एहिमेसँ एक गोटे कहियो कांग्रेस तँ कहियो बी.जे.पी.क शरणमे जाइत छथि मुदा हाथ कतहु नहि मारि पबैत छथि, दोसर शुरूसँ कांग्रेसी रहलथि आ चौअनिया नेता बनि जिनगी गुजारि देलन्हि तँ तेसर राजनीतिसँ हाथ जोड़ि अलग भए गेल छथि।
मुदा कहियो हिनको चलती रहन्हि। हमरा सन छठम-सातम कक्षाक लोक सेहो आन्दोलित होइत रहथि आ इन्कलाब-जिन्दाबादक नारा लगबैत रहथि। १९७५-७६ मे तँ हमहूँ अपनाकेँ पैघ क्रान्तिकारी बुझए लागल छलहुँ ओना तहिया हम कक्षा ७-८ मे पढ़ित रही। आपात कालक विरोधमे हम अपन पहिल कविता सेहो लिखने रही। जकरा हमर माझिल भाए हँसीमे फाड़ि कए उड़ा देलन्हि।
फेर १९७७ क चुनावमे किछुकेँ छोड़ि सभ गोटे जनता पार्टीक संग देलन्हि। एतए धरि जे हमर परिवारक कुलगुरु सेहो आएल रहथि आ कहए लगलाह जे एहि बेर जनते पार्टीकेँ भोट देल जाए।
नारा लागए लागल अन्न खाऊ कौरवक ,गुण गाऊ पांडवक। हमर १४ वर्षीय किशोर मन तँ पूर्ण क्रांतिकारी भऽ गेल रहए। हँ ई नहि बिसरब जे हम आइक झारखण्डक संताल परगनाक एक गामक खिस्सा कहि रहल छी। हम ओहि हाई स्कूलक गप कहि रहल छी जकर माटिक धरतीकेँ गोबरसँ निपबाक हेतु हमरा सभकेँ १ किलोमीटर सँ पानि आनए पड़ैत छल आ लग-पासक जंगलसँ २-३ किलोमीटरसँ गोबर आनए पड़ैत छल।तँ अहाँ आब बुझि गेल होएब जे हम ओहि ठामक आ ओहि समयक गप कहि रहल छी जतुक्का विषयमे अहाँ आइयो कहब जे ओहि ठाम तँ भूखाएल-आ नंगटे रहनिहार निवास करैत छथि। पहिने ओतए रोटी दियौक आ तखन फेर राजनीतिक गप करब।

तखन ओहू समयमे जनसाधारण मात्र नहि वरन् धर्मगुरु धरि हस्तक्षेप कएने रहथि(आइ-काल्हि बला धर्मगुरु नहि बुझि लेब)। आ ओहि समएक राजनीतिक अर्थ ओ नहि छल जे आइ भए गेल अछि। आशुतोषक प्रारम्भिक पंक्ति शाइत परिस्थितिक स्वाभाविक अभिव्यक्ति अछि जखन ओ कहैत छथि जे गरि-गूरिक बीच ई धारणा बनैत अछि जे राजनीति अपन योग्य नहि अछि... आ जनधारणा सएह तँ सामाजिक सत्य अछि। तखन हम की करी? हम तँ विशिष्ट लोक छी ने। ई कोन गप भेल जे हम करोड़ो खरचि कए टिकट नहि कीनि सकैत छी आ पढ़ाईमे भुसकौल भए नेता नहि बनि सकैत छी? तेँ की? छी तँ हम कलमक जादूगर। हमर कलमसँ जादू चलि रहल अछि आ दुनियाँ बदलि रहल अछि।


पटना, भोपाल आ रायपुर सभ बदलि रहल अछि। हिन्दुस्तान पत्रक संपादिकाक भावुकता पूर्ण ललित निबंध होअए वा अहाँक-हमर एहन स्वयम्भू चिंतकक लेख ,हम सभ बदलि रहल छी। अरे भाइ ककरा बुरबक बना रहल छी। टी.वी.मे आबि गेल छी आ जे मोन से करबाक अनुमति भेटि गेल अछि।
अखबार हाथमे आबि गेल अछि ,लिखबाक-छापबाक छूट भेटि गेल अछि तखन विचारक बनबामे की हरज? कहियो लिखब तखन अपन मालिकक विरुद्ध.....

विष्णु प्रभाकर जी सादगीक प्रतिमूर्ति छलाह। .
१९९० क वर्ष हमरा लेल आब एहन लगैत अछि काफी महत्वूर्ण छल। ओहि समय हमरामे सकारातमक उर्जाक प्रबल आवेग हिलोर ल’ रहल छल. हम जे किछु समाजकेँ देलहुँ या सामजिक ऋण सँ उरिण होएबाक लेल जाहि कार्यकेँ सम्पन्न कएल ओहिमे बहुतोक शुरुआत ९० सँ भेल।ठीकसँ मोन नहि आबि रहल अछि जे की हम कोना आ ककरा संग सबसँ पहिने मोहन पैलेसक छत पर चलए वाला काफी हाउस मे पहुँचलहुँ .शाइत प्रो. राजकुमार जैन जीक संग गेल रही। ओ शनिक दिन रहए. ओतहि दिल्लीक चर्चित लेखक आ कलाकार-मंडली लागल छल. ओहि उस मंडलीक मध्य वयोवृद्ध खादी धरी,गाँधी टोपी पहिरने विष्णु प्रभाकर जी सुशोभित भ’ रहल छलाह। ओहि वातावरणमे हमरापर गजबक असर भेल.फेर हम सभ साँझ शनिकेँ ओहि शनिवारी गोष्ठीमे बैस’लगलहुँ। ई सिलसिला १९९५ तक चलल,जखन विश्वविद्यालय परिसरका रीड्स लाइन हमर निवास रहल. एहि वर्षो मे नहि जानि कतेक नामी -गिरामी लेखक,कवि,कलाकार आ पत्रकारक साहचर्य रहल.पता नहि कतेक साहित्यिक गोष्ठिमे समीक्षक या वक्ताक हैसियतसँ शामिल भेलहुँ.ओहि समयमे हम दाढी रखैत छलहुँ आ पाईप पीबैत छलहुँ। ओहि समयमे उप-कुलपति प्रो.उपेन्द्र बक्षी साहब सेहो पाईप पीबैत रहथि। अतः लोक हमरापर कखनो-कखनो व्यंग्य सेहो करैत रहथि। “एक बक्षी साहब हैं की एक झा साहब हैं-दूर से पहचाने जाते हैं”. हमहुँ खादीक कुर्ता पायजामा पहिरैत छलहुँ। से हमर कोनो बैठकमे उपस्थिति अलग अंदाजमे होइत रहए। पढबैत इतिहास छी ,परन्तु ओहि दिनमे सेहो लोक हमरा हिन्दीक शिक्षक बुझैत रहथि। काफी हाउस सेहो एकर अपवाद नहि छल। हमर कॉलेजक डॉक्टर हेमचंद जैन अक्सर हमरा कहैत रहथि –अहाँ अपन बौद्धिक लुकसँ आतंकित करैत छी .देव राज शर्मा पथिक सेहो कहैत रहथि- “झा साहब आपमे स्पार्क है” .खैर हम एहि सभ गपक आदी भेल जा रहल छलहुँ.लेकिन काफी हाउस हम बस साहित्यिक मंडलीक साहचर्य सुख लेबा लेल जाइत रही। ओतए हमर एहन अदना सन व्यक्ति बड्ड बजैत रहए परन्तु वाह रे विष्णुजीक महानता , हमरा हमर छोटपनक कखनो अहसास तक नहि होमए देलन्हि । वल्कि हमरा लगैत रहए जे हमरा काफ़ी गंभीरतासँ ओ सुनैत रहथि.बहुत गर्वोन्नत महसूस करैत छलहुँ हम। हम एक-दू बेर हाथ पकड़ि कए भीड़ भरल सड़क पार करेबाक बहने हुनकर स्नेहिल स्पर्श आ सान्निद्ध्य प्राप्त करबाक अवसर प्राप्त केलहुँ। एकर संतोष अछि .१९९४ मे भारतीय भाषा लेल संघर्ष करबाक क्रम मे संघ लोक सेवा क बाहर धरना-स्थल सँ पुष्पेन्द्र चौहान समेत कतेको साथीक संग हमरो पुलिस गिरफ्तार कए तिहाड़ जेल भेज देलक .ज्ञानी जेल सिंह,अटल बिहारी वाजपेयी विशानाथ प्रताप सिंह,मुलायम सिंह यादव आर अन्य कतेक पैघ नेता आ साहित्यकार-पत्रकार,समाज सेवि एवं आन्दोलनकारिक दबाब मे एक सप्ताहक बाद हमारासभ उपर लादल सभ केस हटा हमरासभकेँ बिना शर्त रिहा कएल गेल। एकर बाद तँ काफी हाउसमे सेहो हमरासभ प्रति साथिसभक आदर भाव बढ़ि गेलन्हि। मुदा अपन आवारा स्वाभावक कारण हम १९९५ क बाद काफी हाउस जएबाक सिलसिला चालू नहि राखि सकलहुँ. एकर हमरा आइयो अफ़सोस अछि .आवारा मसीहाक लेखक केँ एकर भान धरि नहि भेल होएतन्हि जे एक यायावरी आवारा कोनो दोसर धुन मे उलझि रहल हएत। आइ हमर बीच नहि रहबाक बादो हुनकर स्मृति एतेक मृदुल अछि जे लगैत अछि कि विष्णु जी अखनो काफी हाउसक मंडलीक बनेने छथि .हुनकर स्मृतिकेँ कोटि-कोटि प्रणाम।


पूर्वजक जन्मभूमिकेँ शत-शत प्रणाम-

३५० बरस पहिल हमर पूर्वज मिथिला जरूर छोड़ने छला किंतु मैथिल होबाक गर्व हम सब सब दिन महसूस केने छि.हम सब ओतने गर्वोन्नत मैथिल छि जेतना कौनो दोसर मैथिल होता।लगभग ३५० बरस स हमर परिवार आधुनिक झारखण्ड क देवघर जिला अंतर्गत सारथ थाना के खैरबनी ग्राम मे रही रहल छे
३०० साल पहिने एक सिद्ध ज्योतिषी मिथिला सँ चलि आज के देवघरजिलाक सारथ,जकरा पहिने सरहद कहल जाइत छल ,क राजदरबारमे राज ज्योतिषीक स्थान ग्रहण केलन्हि .ध्यान देबा योग्य बात ई अछि जे राज दरबार मुस्लिम नबाबक रहए आ राज ज्योतिषी मैथिलब्राह्मण बनलाह.तखनसँ आइ धरि ओ परिवार ओतहि रहि गेल जेना आइ हम दिल्लीक भेल जा रहल छी। मुदा ई तँ एक सामजिक आरऐतिहासिक प्रक्रिया अछि .विस्थापन तथा परिभ्रमण इतिहासकअति महत्त्वपूर्ण घटना रहल अछि .लेकिन अपन धरती अपन देश--देसिल बयना ,सब जन मिट्ठा--क स्मृति हमरा आइयो मैथिलबनेने अछि .हमसभ अपन इलाकामे अपनाकेँ मैथिल ब्राह्मण कहैत छी मुदा एहिमे ब्राह्मण गौण रहैत अछि मैथिल प्रमुख भ' जाइत अछि। दोसर लोक हमरा सभक लेल मैथिल शब्दक प्रयोग करैत छथि। माने मैथिल शब्द हमर अस्मिता हमर अस्तित्वक द्योतकअछि .


आचार्य पंकज

पंकज जी
हम अमरनाथ झा,दिल्ली विश्वविद्यालयक स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज मे इतिहास विभाग मे अससोसिएत प्रोफ़ेसर छी । हम अहाँकेँ संताल परगना (झारखण्ड) मे हिंदी साहित्य आ हिंदी कविताक अलख जगेनिहार सैकड़ामे साहित्यकार पैदा करएवला ओहि महान साहित्यकार एवं हुनकर रचनासँ अवगत कराबए चाहैत छी जे अपन बहुमुखी प्रतिभाक बलपर समस्त संताल परगनाकेँ शिक्षाक लौ सँ रौशन केलन्हि। १९१९ मे जन्म लेल श्री ज्योतींद्र प्रसाद झा "पंकज" नामक एहि महामना द्वारा १९३४ मे देवघरक हिंदी विद्यापीठमे अध्यापनक कार्य शुरू कएल गेल आ अपन प्रकांड विद्वताक बलपर तत्कालीन हिंदी जगतक धुरंधरक ध्यान अपन दिस खिचलन्हि। १९४२ क भारत छोड़ो आन्दोलनक कमान एक शिक्षकक हैसियतसँ सम्हारलन्हि १९५४ मे ओ संताल परगना महाविद्यालय दुमका (ओहि समय भागलपुर विश्वविद्यालयक अंतर्गत )क संस्थापक शिक्षक एवं हिंदी विभागक अध्यक्ष बनि गेलाह। एहि बीच तत्कालीन पत्र-पत्रिकामे ओ "पंकज" क उपनामसँ कविता ,समीक्षा आ एकांकी लिखैत रहलाह ,जकर चर्चा होइत रहल। १९५८ मे हुनकर कविता संग्रह "स्नेहदीप" क नाम सँ छपल। १९६४ मे हुनकर दोसर कविता संग्रह"उदगार" क नामसँ छपल। १९६५ मे संताल परगनाक साहित्यकार सभ मिलि क’ एक बहुत पैघ साहित्यिक संगठनक निर्माण कएलन्हि जकर अध्यक्ष "पंकज"जी केँ बनाओल गेल आ एहि संगठनक नाम सेहो हुनके नाम पर "पंकज-गोष्ठी" राखल गेल। १९६५ सँ १९७५ धरि पंकज गोष्ठी संपूर्ण संताल परगनाक असगर आ सबसँ पैघ साहित्यिक आन्दोलन छल। सत्य तँ ई अछि जे ओहि दौर मे ओतए पंकज गोष्ठीक मान्यताक बिना कोनो साहित्यकारहि नहि कहाइत रहथि। पंकज गोष्ठी द्वारा प्रकाशित कविता संकलनक नाम छल "अर्पण" तथा एकांकी संकलनक नाम छल "साहित्यकार"। लक्ष्मी नारण "सुधांशु ",जनार्धन प्रसाद मिश्र "परमेश",बुद्धिनाथ झा"कैरव" क समकालीन एहि महान विभूति--प्रोफ़ेसर ज्योतींद्र प्रसाद झा "पंकज' क विद्वता,रचनाधर्मिता एवं क्रांतिकारिता सँ तत्कालीन महत्त्वपूर्ण हिंदी रचनाकार जेना--रामधारी सिंह"दिनकर",द्विजेन्द्र नाथ झा "द्विज",हंस कुमार तिवारी,सुमित्रानंदन"पन्त',जानकी वल्लभ शास्त्री नलिन विलोचन शर्मा आदि भली भांति परिचित छलाह । आत्मप्रचारसँ कोसो दूर रहए वाला "पंकज"जी केँ भले आइ हिंदी जगत बिसारि देलक अछि परन्तु ५८ साल कि अल्पायु मे १९७७ मे दिवंगत एहि आचार्य कविकेँ मृत्यक ३२ वर्षो बादो संताल परगनाक साहित्यकारे टा नहि वरन लाखों लोक अपन स्मृतिमे आइयो महान विभूतिक रूपमे जिन्दा रखने छथि। संताल परगनाक एहन कोनो गाम या शहर नहि अछि जतए "पंकज"जी सँ सम्बंधित किम्वदंति नहि प्रचलित होअए। की अहाँ हुन्अका आ हुनकर कृतिक ब्रिहद्तर हिन्दी जगतक समक्ष प्रस्तुत करबामे हमर सहायता करब ?
लगभग ३५० बरस स हमर परिवार आधुनिक झारखण्ड क देवघर जिला अंतर्गत सारथ थाना के खैरबनी ग्राम मे रही रहल छी.परिणाम स्वरुप हम सब घर म मैथिलि नै बजे छी.हम सब विशुद्ध अंगिका सेहो ने बजे छी.हमर बोली मे किछु मैथिली आर किछु अंगिका के सम्मिश्रण छे.ते दुआरे मैथिलि लिखे मे जे किछु त्रुटी होए ओकरा क्षमा करू। आशा छे ई सम्बन्ध समय क संग आर प्रगाढ़ होयत।
फील्ड-वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत
-गजेन्द्र ठाकुर(गाम,मेहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी) विशेष सहयोग श्री केशव महतो (बहादुरगंज, जिला किशनगंज, बिहार)

एहि क्षेत्रकार्यक सूचक श्री केशव महतो सीत बसंतक फील्डवर्कमे विशेष सहयोगक कारण एहि प्रबन्धक सह-लेखक छथि।सीत बसंतक कथाक कैक टा विभिन्न रूप पाओल गेल आ ओहि सभक विवरण यथास्थान देल गेल अछि। समाज आ संस्कृतिकेँ बुझबामे लोक कथाक बड्ड महत्व अछि, मुदा बिना फील्ड-वर्क कएने लिखल लोककथा अपन उद्देश्य प्राप्तिमे असमर्थ रहैत अछि। श्री सुभाषचन्द्र यादवजीक हम सेहो आभारी छी जिनकर एहि विषयक आलेख (फील्डवर्क आ लोककथापर) एकटा सेमीनारमे सुनलाक बाद हम आर तन्मयतासँ एहि कार्यमे लागि गेलहुँ। एहि क्षेत्रकार्यमे आधुनिक फील्डवर्क तकनीक केर उपयोग कएल गेल आ सहभागिता, प्रेक्षण, साक्षात्कार,प्रश्नावलीक इत्यादिक आधारपर ई लोककथा निर्मित भेल अछि। लोककथा-कविताक कोनो स्वरूपमे कोनो परिवर्त्तन अवैज्ञानिक अछि आ तकर ध्यान एतए राखल गेल अछि ।


मणीपुर नगरक राजा महेश्वर सिंह छलाह।
ओ बड्ड प्रतापी राजा छलाह। ओ बड्ड निकेनासँ राज्य चला रहल छलाह।
किछु दिनुका बाद ओहि राजाकेँ दू टा बेटा जन्म लेलक।
ओकर रानी सेहो बड्ड सुशील आ स्वाभिमानी छलीह।
एक बेरुका गप अछि।
रानी अपन महलमे रहैत छलीह आ बहुत दिनसँ ओहि महलमे दू टा पौरकी चिड़ै खोता बना कए रहैत छल। एक दिन ओ अपन खोतामे दू टा अंडा देलक। अंडासँ दू टा बच्चा बहार भेल। एक दिन अनचोक्केमे ओहि बच्चा सभक माए मरि गेल। तकर बाद पौरकी सभकेँ बड्ड कष्ट होमए लगलैक। ओकर बाप किछु दिनुका बाद एकटा बोनसँ एकटा पौरकी संग बियाह कए अनलक। तकर बाद दू-चारि दिन कोनो तरहेँ बीतल। तकर बाद एक दिन पौरकी ओहि दुनू बच्चाकेँ खेनाइ खुअएला काल मुँहमे काँट धऽ देलक। ओ दुनू बच्चा ओही काल मरि गेल। मरलाक बाद खोतासँ दुनू बच्चाकेँ लोलसँ धकेल कऽ नीचाँ खसा देलक। ओहि समय रानी महलमे छलीह आ बच्चा सभकेँ खसबैत ओ देखलन्हि। ओही दिनसँ रानीकेँ शंका भऽ गेलन्हि आ सभ दिन हुनका चिन्ता घेरि लेलकन्हि।
राजाकेँ रानी कहलन्हि -– हे राजा। देखू। अपना महलमे दू टा पौरकी रहैत रहए। ओ दू टा बच्चा देलक। बच्चाक माए मरि गेल। तकर बाद ओ दोसर बियाहि कए अनलक। दू चारि दिनुका बाद ओ दुनू बच्चाकेँ मारि देलक। से हे राजा, कतहु हमहूँ मरि जाइ तँ अहाँ दोसर बियाह कए लेब तखन हमरो दुनू बच्चाक ईएह हाल ने भऽ जाए।
राजा बाजल- यै रानी। एखन अहाँ जीवित छी, तखन एहि गपक अहाँ किएक चिन्ता कए रहल छी।
रानी बजलीह - नहि राजा। यदि हम मरि गेलहुँ तँ अहाँ बियाह तँ नहि कए लेब?
राजा उत्तर देलक – नहि । हम दोसर बियाह नहि करब।
ई कहि राजा अपन दरबज्जामे आपस चलि गेल।
ओही दिनसँ रानी दुखित रहए लगलीह आ अनचोक्के एक दिन मरि गेलीह।
आब एहि गपकेँ लए राजा बड्ड चिन्तामे पड़ि गेल। आब दुनू भाए सीत आ बसन्त सेहो दिक्कतमे पड़ि गेलाह।
राजाकेँ राजाक खबासिनी, मन्त्री, मुंशी आ मारते रास लोक सभ बुझाबए लागल।
राजासँ कहए लगलाह- राजा यदि अहाँ बियाह नहि करैत छी तखन एहि दुनू बच्चाक की दशा होएत। ने एकरा सभक खेनाइक कोनो ठेकान रहत आ नहिये पढ़ाइक। ताहि द्वारे अहाँ एकटा बियाह करू।
एहि तरहेँ बुझओलापर राजा बाजल - ठीक अछि। जखन अहाँ सभक यैह विचार अछि तखन जाऊ , कोनो गरीबक लड़की भेटत तँ हम ओकरा संग बियाह कए लेब।
एहि तरहेँ राजाक सभटा गप बुझि-गुणि मुन्शी दीवान सभ क्यो लड़की ताकए लगलाह। एकटा लड़की राजाक नगरमे भेटल। ओ लड़की महागरीबक बेटी छलीह। राजा शुभलग्न बना कए ओहि लड़कीकेँ बियाह कए आनि लेलक। किछु दिन धरि ओ लड़की घरमे रहलीह। किछु दिनुका बाद ओकर ममता ओहि दुनू भाएपर कम होमए लागल। दुनू भाए स्कूलसँ पढ़ि कए घर आबथि आ अपन दरबज्जापर गेन्द लए खेलाइमे लागि जाथि। एक दिन अनचोक्केमे गेन्द आँगनमे जा कए खसि पड़ल।
ओहि समयमे ओकर सभक सतमाए आँगनमे छलीह। गेन्द खसलाक संग ओ गेन्दकेँ उठा कए अपन कोरामे राखि लेलन्हि।ओ दुनू भाए गेन्द तकैत आँगनमे अएलाह आ कहलन्हि जे माए गेन्द हमरा सभकेँ दए दिअ। हम दुनू भाए खेला रहल छी। माँ कहलखिन्ह जे हमरा लग गेन्द नहि अछि, अहाँ सभ चलि जाऊ। गेन्दकेँ दुनू भाए मायक कोरामे देखलन्हि। फेर कहलन्हि - माँ हमरा सभकेँ गेन्द दिअ। हम सभ खेलाएब। एहि तरहेँ दुनू भाए मँगैत-मँगैत माँक कोरासँ गेन्द लए लेलन्हि । गेन्द लऽ लेलाक बाद रानीक हृदयमे बड्ड तामस अएलैक। रानी तामसे भेर भेल कोचपर आबि पड़ि रहलीह आ खेनाइ-पिनाइ त्यागि देलन्हि। खबासिनी सभ बुझा कए थाकि गेलीह जे रानी चलू, हमरा सभ खा ली। मुदा रानी कोनो उत्तर नहि देलन्हि। ओ कहलन्हि जे आब हम मरि जाएब। एतेक गप सुनि खबासिनी राजा लग जा कए कहलक जे रानी बड्ड दुखित छथि। आब बचबा योग्य नहि छथि। अहाँ जा कए देखू। राजा एतेक गप सुनि कए अपन महलमे गेलाह आ रानीसँ पुछलन्हि। रानी कहलन्हि जे तोहर एहन हालत कोना भेलह जल्दी बताबह।
रानी कहलन्हि-अहाँ हमरासँ पुछैत छी तँ पहिने अहाँ हमरासँ सत करू तँ हम कहब। नहि तँ हम मरि जाएब। राजा किछु नहि सोचलन्हि। ओ रानीक संग सत कए लेलन्हि। सत केलाक बाद रानी कहलन्हि- हमर ई दशा अहाँक दुनू बेटा कएने अछि। हमर बिमारीक यैह एकटा उपाय अछि नहि तँ हम नहि बचि सकैत छी - अहाँ ओहि दुनूकेँ मारि ओकर करेज निकालि हमरा दिअ। तखन हम बचि सकैत छी। राजा एतेक गप सुनि कए बड्ड तमसा गेल। ओ दुनू बेटाकेँ बजा कए बड्ड मारि मारलक आ तकर बाद जल्लादक हाथसँ मरबएबा लेल पठा देलक। जल्लाद दुनू भाएकेँ मारैत-पिटैत बोनमे लए गेल। दुनू भाए बड्ड कानि रहल छलाह। जखन जल्लाद सभ ओकरा दुनू गोटेकेँ मारए लागल तँ ओ सभ कहलन्हि जे हमरा सभकेँ नहि मारू। हमरा सभकेँ छोड़ि देब तँ हम सभ घुरि कए नगर नहि जाएब। अहाँ सभ कोनो माल-जानवरकेँ मारि ओकर करेज जा कए दए दियौक। आ ई कहि दुनू भाए संगमे जतेक पाइ छलन्हि सेहो जल्लाद सभकेँ दए देलन्हि। एक जल्लाद कहलक जे मारि दियौक। दोसर कहलक जे नहि मारू। ई सभ घुरि कए जएबो करत तँ हम सभ कहबैक जे हम सभ की करू। हम सभ तँ करेज आनि कए देने छलहुँ। मरलाक बाद जीबि गेल होएत।
जल्लाद ओहिना कएलक आ दुनू भाएकेँ छोड़ि देलक।

कथा रूप १: जल्लाद ओहिना कएलक आ दुनू भाएकेँ छोड़ि देलक।
दुनू भाए ओहि बोनमे भटकए लगलाह। रातुक मौसममे दुनू भाए एकटा गाछक नीचाँ सूति गेलाह। किछु कालक बाद दुनू भाए उठि गेलाह आ गाछक ऊपर एकटा साँपकेँ चढ़ैत देखलन्हि। ओहि गाछपर दू टा हंसक बच्चा रहैत छल। हंस चरबाक लेल गेल रहए। ओहि साँपकेँ देखि कए हंसक बच्चा बाजए लागल।
दुनू भाए सोचलक- देखू। ई साँप बच्चाकेँ खा जाएत। एतेक सोचलाक बाद तलवारसँ मारि कए साँपकेँ ओ सभ नीचाँ खसा देलक। बच्चा बजनाइ बन्न कए देलक। जखन भोर भेल तँ हंस-हंसिनी चरि कए आएल आ बच्चा लेल खेनाइ अनलक। बच्चाकेँ आहार खुआबए लागल तँ बच्चा आहार नहि खएलक आ कहलक जे माँ हमरा ई बताऊ जे एहि गाछपर हम पहिल देल बच्चा छी आकि अहाँ पहिनहियो एहि एहि गाछपर बच्चा देने छी । माए कहलकै जे हम पहिनहियो देने छी मुदा आइ धरि मात्र अहाँ दुनु गोटेक मूँह देखि रहल छी।

कथा रूप २: बेशी लोकप्रिय आ पसरल क्षेत्रमे: जल्लाद ओहिना कएलक आ दुनू भाएकेँ छोड़ि देलक।
दुनू भाए ओहि बोनमे भटकए लागल, खूब बौआएल। रातुक समय दुनू भाए एकटा गाछक तरमे सूति गेल। भोरे बोनसँ बहराइत दोसर देश जाए लागल। दुनू भाए भूखल पिआसक मारे व्याकुल भऽ गेल। जा कए एकटा गाछक नीचाँ बैसि कए सुस्ताए लागल। ओ सभ सोचए लागल जे आब कोन उपाय करू। ओही समय ओहि गाछपर दू टा मएनाक बच्चा रहए। ओहिमेसँ एकटा कहैत अछि जे हमर जे काँचहि मौस खा जाएत तकरा बड्ड शीघ्र राज्य भेटि जएतैक। आ दोसर कहलक जे हमरा जे आगिमे पका कए खाओत तँ किछु दिनुका बाद ओ राज पाबि जाएत। एतेक गप दुनू भाए सुनलक आ हाथमे एकटा लाठी लए ओकरा सभकेँ मारि कए नीचाँ खसा देलक आ लऽ कए बिदा भेल। किछु दूर आगाँ गेल तँ देखलक जे गाए-महीस चराबए बला चरबाहा सभ एकटा बएरक काँटक बोन - झाँखुरकेँ जरा रहल छलाह। ओ दुनू भाए सोचलक जे अही अगिनवानमे पका कए एकरा खाएब। ओहि आगिमे दुनू गोटे मेनाक बच्चाकेँ पका कए खएलक। काँटमे जे ओ सभ पका कए खएलक तँ ओकर सभक भाग्यमे सेहो काँट लागि गेलैक।
ओतएसँ दुनू भाए बिदा भेल। किछु दूर गेलाक बाद ओकरा सभकेँ आमक एकटा गाछी भेटलैक।
बसन्त चलैत-चलैत थाकि गेल रहए आ ओकरा आर चलल नहि भऽ पाबि रहल छलए।
सीत कहलक-भाइ, तूँ एतए बैस, हम ओहि गामसँ किछु माँगि कए अनैत छी आ तखन खा कए हमरा सभ आगाँ चलब। सीत मँगबा लेल गाममे चलि गेल। सीत जाहि गाममे (कथा रूप ३ गामक नाम हस्तिनापुर सेहो कतहु-कतहु कहल जाइत अछि) मँगबाक लेल गेल ओहि गाममे राजाक बेटीक स्वयम्बर रचाओल गेल छल। ओहि स्थान पर जन सम्मर्द छल। ओतए भीड़ देखि सीत अटकि गेल आ देखए लागल। सीत अपन भाएक सुरता बिसरि गेल । स्वयम्बरमे लड़की जयमाल लए सभामे घुरए लागलि आ माला सीतक गरदनिमे पहिरा देलक। ओहीठाम सीतक बियाह ओहि लड़कीक संग भए गेल।
(रूप ४) बियाहक पहिने ओतुक्का लोक सभ बाजए लागल जे ई राजाक बेटी होइतो एकटा भिखमंगाक गरदनिमे माला पहिरा देलक। आ ईहो जे ओ लड़की बताहि भऽ गेल अछि। ओकर गरदनिसँ माला निकालि कए ककरो दोसराक गरदनिमे माला पहिराऊ नहि तँ बियाह नहि होमए देब। ई गप सुनि लड़की बाजलि जे हमर भाग्यमे ईएह भिखमंगा लिखल अछि तँ हमरा राजा कतएसँ भेटत ? हम एकरे संग बियाह करब। ई गप सुनि सभ राजा अपन-अपन घर चलि गेलाह आ कहलन्हि जे एहि लड़कीकेँ एहि गामसँ निकालि दिअ आ कोनो दोसर ठाम पठा दिअ। राजा ओनाही कएलक। ओहि दुनू गोटेकेँ अपन गामसँ बाहर पठा देलक। ओ ओही नगरमे रहए लागल। किछु दिनुका बाद लोक सभ राजाकेँ कहए लागल जे अहाँ ओहि लड़काक संग लड़कीसँ छोड़ा दियौक आ कोनो दोसर लड़काक संग ओकर बियाह कराए दियौक।
सभक कहलापर राजा एकटा कुटनी बुढ़ियाकेँ जहर-माहुर संगमे दए पठेलक जतए सीत आ राजाक बेटी रहैत छल। ओ बुढ़िया ओकरा सभक संगे रहए लागल। किछु दिन धरि ओ ओतहि रहल। दुनू गोटेकेँ कोनो गपक चिन्ता नहि भेलैक। एक दिन सीतकेँ अनचोक्केमे बड्ड पियास लगलैक। ओ अपन रानीसँ बाजल-हमरा पानि पिया दिअ। बुढ़िया फटाकसँ उठि कए गेल आ एक गिलास पानिमे जहर घोरि सीतकेँ देलक। सीतकेँ बड़ जोरसँ पियास लागल रहैक से ओ खटसँ पानि लऽ कए पीबि गेल। पानि पीबिते सीतकेँ किछुए कालक उपरान्त बड्ड निशा अएलैक। स्थिरे-स्थिरे निसाँ बढ़ैत गेल। निसाँमे सीत ओन्घरा गेल। बुढ़िया बाजल जे कोनो गप नहि। चिन्ता नहि करू। सभ ठीक भऽ जाएत। कनेक कालक बाद सीत मरि गेल। रानी खूब हाक्रोस कए कानए लागलि। ओहि ठाम कोनो गाम नहि छल। सीतकेँ धारक कात लऽ जा कए गारि देल गेल। बुढ़िया कहलक- देखू चिन्ता नहि करू। आब हम सभ असनान कए ली। असनान करए गेल तँ एकटा नाह किनारमे लागल छल। बुढ़िया बाजल जे चलू, ओहि नाहपर बैसि कए स्नान कए लेब। तखन दुनू गोटे ओही नाहपर बैसिकए नहाए लागल। तखन आस्ते-आस्ते नाह आगाँ जाए लागल। जखन नाह बीच धारमे गेल तँ (रूप ५: एतए रानीक नाम फुलवन्ती सेहो अबैत अछि) रानी देखलक जे नाह बीच धारमे आबि गेल अछि। तखन ओकरा बुझबामे अएलैक जे ई बुढ़िया ओकरा ठकि कए लए जा रहल छैक। ओ रानी अपन पत्नीक बियोगमे छलीह। ओ हृदयमे सोचलक जे ओकर पति मरि गेल छैक तँ ओ जीवित रहि कए की करत। ई सोचि कए नाहसँ कूदि कऽ ओ धारमे फाँगि गेल। भँसैत-भँसैत ओ बड्ड दूर चलि गेल आ ओतए ओ कात लागि गेल।


आब बसन्तक खिस्सा:
बसन्त ओहि गाछीमे भाएक आस तकैत रहए। दिन साँझमे बदलए लागल। ओहि गाछीमे कुम्भकार लोकनि गाछीक पात बहारि रहल रहथि। तखने बसन्त कनैत-कनैत ओहि कुम्भकार लग गेल। कुम्भकार पुछलक-अहाँ किएक कानि रहल छी। बसन्त सभ गप बतेलक। कुम्भकार कहलक-अहाँ चिन्ता नहि करू। अहाँ हमरा घरपर चलू। अहाँ हमरा घरपर रहब। बसन्त कुम्भकार लग चलि गेल आ रहए लागल। ओतए रहैत-रहैत एक बेर एकटा बनिजारा अपन जहाज लए वाणिज्य करए लेल जा रहल छल आकि बीच धारमे ओकर जहाज बीचमे ठाढ़ भए गेलैक।
जहाजक इन्जीनिअरसँ (रूप ६ एतए बनिजाराक नाम नैका बनिजारा सेहो कहैत सुनल गेल) बनिजारा पुछलक जे की जहाज एतएसँ आगाँ नहि जा रहल अछि। इन्जीनिअर कहलक-जहाज बलि माँगि रहल अछि। कोनो मनुक्खक बच्चाक बलि देलाक बाद जहाज आगाँ जाएत। एतेक गप ओ बनिजाराकेँ कहलक तँ बनिजारा तीन लाख रुपैया लए एकटा बच्चाक तलाशमे गेल। ताकैत-ताकैत ओ ओही गाममे गेल जाहि गाममे बसन्त रहैत छल। बनिजारा अबाज लगबैत जा रहल छल जे, जे क्यो एकटा बच्चा देत ओकरा हम तीन लाख रुपैया देब। एहि प्रकारसँ ओ अबाज लगबैत जा रहल छल। क्यो गोटे नहि बाजल। जखन ओ कुम्भकारक दरबज्जाक सोझाँ गेल तँ कुम्भकार कहलक-हँ हम एकटा लड़का देब। हमरा पाइ चाही। बनिजारा ओहि कुम्भकारकेँ तीन लाख टाका देलक आ ओतएसँ ओ बसन्तकेँ लए अपन जहाजक लग गेल।
बसन्त ओकरासँ पुछलक-बनिजारा। अहाँ हमरा कतए लए जा रहल छी।
बनिजारा बाजल-हम अहाँकेँ बलि चढ़एबा लेल लए जा रहल छी। किएक तँ हमर जहाज धारक बीचमे ठाढ़ भऽ गेल अछि। ताहि द्वारे अहाँक बलि हम चढ़ाएब। एतेक गप सुनि कए बसन्त बाजल जे हे बनिजारा। हमरा ओतए गेलाक बाद, जहाज छूलाक बाद जे जहाज खुजि जाएत तँ अहाँ हमरा छोड़ि देब ने?
बनिजारा कहलक-हमर जहाज जे खुजि जाएत तँ हम अहाँकेँ छोड़ि देब।
बसन्त बीच धारमे जा कए हाथसँ जहाजकेँ छूबि कए बाजल। जहाज अहाँ जाऊ तँ हमर जान बाँचि जाएत।
एतेक कहबाक देरी रहए आकि जहाज ओतएसँ बिदा भऽ गेल।
इन्जीनिअर बनिजाराकेँ कहलक-एकरा बैसा लिअ जहाजमे। कतहु आन ठाम ठढ़ भऽ जाएत तखन?
बसन्त बाजल-हमरा मारि देने रहितहुँ तँ फेर जहाज ठाढ़ भेलाक बाद हमरा कतएसँ अनितहुँ?
बनिजारा बाजल-छोड़ि दिअ एकरा।
बसन्त ओतएसँ धारक काते-काते बिदा भेल आ ओतए पहुँचि गेल जतए सीतक स्त्री कानि रहल छलीह।
बसन्त पुछलक-अहाँ किएक कानि रहल छी ?
एतबा सुनितहि ओ कानब बन्द कए चुप भए गेलीह।
बसन्त कहलक-हमहूँ दुखक मारल छी। हम दू सँ बिछुड़ि कए एक भए गेल छी।
स्त्री पुछलक-अहाँक की नाम छी आ अहाँक भाएक की नाम छी?
बसन्त बाजल-हमर नाम बसन्त छी आ हमर भाएक नाम सीत छल।
ई बात सुनैत स्त्री फेरसँ कानए लागल आ कहलक जे अहाँक भाए स्वर्गवासी भए गेलाह। हुनके वियोगमे हम कानि रहल छी। ई गप सुनि कए (रूप:७ एतए नाम दिल बसन्त सेहो अबैत अछि) बसन्त कहलक जे आब हमरो जीवित नहि रहबाक अछि।
ई गप सुनितहि सीतक स्त्री मरि गेलि आ बसन्त ओही समय बोनमे जा कए एकटा पैघ गाछपर चढ़ि कए अपन जान देबाक लेल तैयार भऽ गेल। ओही समय एकटा आकाशवाणी ओकरा अबाज देलक-बसन्त तूँ अपन जान नहि गमा। तोहर भाए जीवित छौक। जो जतए तोहर भाएक सारा छौक ओहिपर अपन दहिन हाथक कंगुरिया आँगुर काटि कए ओहिपर छीटि दे। तोहर भाए जीवित भए जएतौक। एतेक गप सुनि कए बसन्त गाछसँ नीचाँ उतरि गेल आ जतए ओकर भाएक सारा छल ओहिपर ओहिना कएलक। सीत राम-राम बजैत उठि गेल। दुनू भाइ गरा मिलल। ओहि ठामसँ दुनू भाए बिदा भेल। दिनसँ साँझ पड़ि गेल आ दुनू भाए एक ठाम गाछक नीचाँ अटकि गेलाह।
सीत कहलक-भाए बसन्त एतहि रुकैत छी। भोर भऽ जाएत तखन फेर हम सभ बिदा होएब।
दुनू भाए ओहि गाछक नीचाँ रात्रि व्यतीत करए लगलाह।

खिस्सा रूप ८: रात्रिक बारह बाजल तँ बोनसँ एकटा साँप बहार भेल आ गाछपर चढ़ए लागल। ओही गाछपर हंसक खोता रहए। ओहि हंसक खोतामे दू टा हंसक बच्चा रहए। साँपकेँ देखि कए दुनू बच्चा अबाज देमए लागल। ई अबाज दुनू भाए सुनलक आ साँपकेँ गाछपर चढ़ैत देखलक आ सोचलक जे ई साँप बच्चा सभकेँ खा जाएत से एकरा जे मारि दी तँ बच्चा सभक जान बचि जाएत। ओ सभ साँपकेँ मारि देलक।
तावत हंस दहमे चरए लेल गेल रहए। हंस ओहि खोतामे कतेक बेर बच्चा देने रहए मुदा एकोटा बचा उठा नहि सकल रहए। भोरे सकाले हंस दहसँ चरि कए आएल। बच्चा सभकेँ जीवित देखि बड्ड प्रसन्न भेल। बच्चाकेँ अहार देमए लागल। बच्चा मुँह घुमा लेलक आ पुछलक-माँ अहाँ एहि गाछपर कतेक बच्चा पाड़लहुँ आकि हमही पहिल बच्चा छी।
माँ बाजलि-नहि एहि गाछपर कएक बेर हम बच्चा देलहुँ मुदा मुँह अहीं दुनूक हम आइ देखलहुँ।
बच्चा बाजल जे हमरो मुँह अहाँ नहि देखि सकितहुँ , जे ई मुसाफिर नहि रहितए। नीचाँ देखू की पड़ल अछि।
हंस देखलक जे नीचाँ मे एकटा साँप पड़ल छैक आ दू टा मुसाफिर फिरि रहल अछि।
बच्चा बाजल-ओहि साँपकेँ यैह दुनू मुसाफिर मारलक अछि। पहिने जा कए ओही मुसाफिरकेँ खएबा लेल दियौक। ओ खाओत तँ हम खाएब।
हंस नीचाँ उतरि कए आएल आ कहलक- मुसाफिर, जखन अहाँ नहि खाएब तँ ई दुनू बच्चा सेहो नहि खाएत।
ई दुनू भाए कहलक-माँ खेनाइसँ प्रेम पैघ अछि। माँ हमहूँ सभ परिस्थितिक मारल छी। हमर सभक के सहायता करत ?
हंस बाजल-हमर सहायता अहाँ कएलहुँ से अहाँक सहायता हम करब। लिअ एकटा बच्चा हम अहाँ सभकेँ दैत छी। ई अहाँक सहायता करत। सियान भेलापर ई अहाँ दुनू भाएकेँ अपन पाँखिपर बैसा कए उड़ि सकैत अछि। जतए मोन होएत ओतए जा सकैत छी। ई वरदान हम दैत छी जे अहाँ दुनू भाए सफल रहब। दुनू भाए प्रणाम कए ओतएसँ बिदा भेलाह। ओ सभ जतए कतहु बिलमैत रहथि ओतए हंस अपन दुनू पाँखि पसारि छाह कए दैत छल। एहि प्रकारेँ किछु दिन बीतल। हंसक बच्चा पैघ भऽ गेल। ओ आब दुनू भाएकेँ चढ़ा कए लऽ जाए योग्य भऽ गेल।
हंस बाजल-भाए। आब तोँ दुनू भाए हमर ऊपर बैसि जाह। अहाँ जतए कतहु कहब हम अहाँ सभकेँ लए चलब।
दुनू भाए ओतएसँ हंसपर सवार भए आगू बिदा भेलाह आ जा कए कंचनपुर शहर पहुँचलाह। नगरक बाहर एकटा बरक गाछ छल। ओही गाछक लग ओ सभ डेरा खसेलक आ रहए लागल आ शहरमे जा कए काज करए लागल। साँझ भेला उत्तर ओही गाछक लग खेनाइ खा कए ओ सभ सूति जाथि। हंस भरि राति दुनू भाएक देख-रेख करैत छल। किछु दिनुका बाद ओहि कंचनपुर शहरक राजाक कंचना नाम्ना बेटीसँ सीत प्रेम करए लागल।
ओहि लड़कीक प्रत्येक दिन फूलसँ ओजन कएल जाइत छल। प्रेम कएलाक बाद लड़कीक ओजन बहुत बढ़ए लागल। राजाकेँ खबर भेल जे लड़कीक ओजन किएक बढ़ए लागल अछि। राजा अपन महलक चारू कात सिपाहीक पहरा दिआ देलक। ताहूपर सीत हंसपर सवार भए महलमे चलि जाइत छलाह। सम्पूर्ण शहरमे हिलकोर उठि गेल जे के ई लोक अछि जे हमर राजाक महलमे चोरिसँ चलि जाइत अछि। एक दिन संजोगसँ सीत गेल आ कोचपर बैसि दुनू गोटे हँसी मजाक करए लागल आ अहीमे दुनू गोटेकेँ निन्न लागि गेलैक। हंस बेचारा घुरि कए आपस अपन डेरापर आबि गेल आ भोरमे दुनू गोटेकेँ एक्के संग महलमे पकड़ि लेल गेलैक।

राजा सभटा गप पुछलक। सीत सभटा गप बतेलक।
लड़की कहलक जे हमर भाग्यमे यैह अछि आ यैह रहत।
राजा सोचि कए कहलक-अहाँ अपन भाएकेँ लए आऊ आ हंसकेँ सेहो।
बसन्त आ हंसकेँ सीत लए अनलक। हंसकेँ देखि कए राजा बड्ड प्रसन्न भेल।
राजा कहलक-हमर मन्त्री लग एकटा आर बेटी छैक। दुनू भाएक एकहि बेर बियाह कए देल जाएत।
बड्ड धूम-धामसँ दुनू भाएक बियाह भेल।
सीतकेँ कंचनपुरक राज भेटल कारण राजाक तँ एकेटा बेटी रहए। ताहि द्वारे सीत किछु दिन बितलाक बाद कहलक जे आब हम अपन शहर जाएब।
राजा खुशीक संग ओहि चारू गोटे बेटी-जमाएकेँ बिदा कएलक। सीत-बसन्त दुनू भाए अपन देश बिदा भेल। किछु दिनुका बाद ओ सभ अपन नगर पहुँचल तँ ओतुक्का हालत बड्ड गम्भीर देखलक। अपन राजक एक कोनमे ओ सभ अपन घर बनेलक आ रहए लागल। सीतक माए आ पिता दुनू गोटे आन्हर भए गेल रहथि। सभ दिसनसँ विपत्ति आएल छलन्हि। एक दिन हुनका पता लगलन्हि जे हुनकर राज्यक एक कोनमे कोनो दोसर राजा घर बना कए रहि रहल अछि। चलू ओकरासँ भेँट कए आबी।
ओ सभ जखन अएलाह तँ दरबज्जापर सीत-बसन्त दुनू गोटे चीन्हि गेलथि जे यैह हमर माए-बाप छथि। दुनू भाए अपन-अपन स्त्रीकेँ इशारा कएलन्हि। एहि दुनू गोटेकेँ भीतर लए जइयन्हु आ नीक जेकाँ असनान करबाऊ, नीक कपड़ा पहिराऊ आ खूब आ नीक खेनाइ खुआऊ आ तकर बाद एतए आनू आ मंचपर बैसाऊ।
तकर बाद सीत आ बसन्त दुनू भाए माँ-पिताक आगाँ ठाढ़ भए कहलन्हि-ई तँ बताऊ जे अहाँकेँ कैकटा बेटा अछि।
राजा महेश्वर सिंह कहलन्हि-हमरा दू टा बेटा रहए मुदा आब एकोटा नहि अछि। हमर भाग्यक दोख अछि। नहि जानि ओ सभ जीवित अछि आकि मरि गेल? हम तँ मरबा देने रहियैक।
सीत-बसन्त बाजल-नहि। अहाँक दुनू बेटा जीवित अछि। एतेक कहैत ओकरा सभक आँखि नोरा गेलैक।
-–पिताजी वैह सीत-बसन्त हम सभ छी।
ओही समय राजाक आँखि खुजि गेलैक आ दुनूकेँ अँकवारमे भरि पकड़िकेँ ओ कानए लागल आ अपन गल्ती स्वीकार कएलक। धन्य लाला, अहाँक अउरदा बढ़ए। अमर रहू ।
गजेन्द्र ठाकुर,जन्म ३० मार्च १९७१ ई.,गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी,“विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ ,क सम्पादक जे आब प्रिंटमे सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि।१.छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, २.उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) ,३. पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर),४.कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ),५.नाटक(संकर्षण), ६.महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन)
आ ७.बाल-किशोर साहित्य (बाल मंडली/ किशोर जगत ) कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड १ सँ ७ ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ) आ संस्कृतमे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण। अंतर्जाल लेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएकटा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएकटा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com
३. पद्य
३.१. आशीष अनचिन्हार

३.२.गीत-अशोक चौधरी
३.३.बुढ़वा- उपेन्द्र भगत नागवंशी
३.४. विनीत ठाकुर: उठू मैथिल भेलै भोर
३.५. सतीश चन्द्र झा-चानक प्रेम

३.६. डा. सुरेन्द्रा लाभ-इतिहास
३.७.सम्बन्धाक नव सूत्रक खोजीमे- सरस्वती चौधरी ‘रचना’

३.८. ज्योति-जीवन सोपान
आशीष अनचिन्हार

गजल ५
इहो अहाँक प्रेम छल पछाति जानल हम
खाली मूहँक छेम छल पछाति जानल हम

आगि लागल घर मे चिन्ताक गप्प नहि
कारण अपने टेम छल पछाति जानल हम

सड़ैत देखलिऐक किच्छो के कादो मे
अपने घरक हेम छल पछाति जानल हम

पिबैत रहलहुँ सदिखन विदेशी शीतल पानि
तैओ गरमी कम्म छल पछाति जानल हम

किछु तत्व कए दैत छैक अनचिन्हार सभ के
कथन मे दम्म छल पछाति जानल हम
गजल ६
अहाँ निरोध करु
अहाँ विरोध करु

लोक बढ़त आगाँ
अहाँ अवरोध करु

सुखी हएत गरीब
अहाँ क्रोध करु

धनी बनए धनी
एहने शोध करु

जनतंत्र अपने जन्मल
खूब ओध-बाध करु

सत्ता-सुरक्षा अपने
खूब अपराध करु

खाएब अहाँ फास्ट-फूड
बरबाद बाध करु
गजल ७
इजोतक दर्द अन्हार सँ पुछियौ
धारक दर्द कछेर सँ पुछियौ

नहि काटल गेल हएब जड़ि सँ
काठक दर्द कमार सँ पुछियौ

समदाउनो हमरा निर्गुणे बुझाएल
कनिञाक दर्द कहार सँ पुछियौ

सभ पुरुषक मोन जे सभ स्त्री हमरे भेटए
अवैध पेटक दर्द व्यभिचार सँ पुछियौ

करबै की हाथ आ गला मिला कए
अनचिन्हारक दर्द चिन्हार सँ पुछियौ
गजल ८
बेमार छी मुदा बेमार नहि लगैत छी
दवाइ खाइ से कहिओ ने चाहैत छी

हमरा अहाँ नीक लगलहुँ सभ दिन सँ
मुदा प्रेम अछि से कहि नहि पबैत छी

विसर्जनक पछाति बला मूर्ति छी हम
भसा देल गेलहुँ मुदा नहि डुबैत छी

सभ दिन हमरा लेल मधुश्रावनिए थिक
टेमी दगेलाक पछातिओ नहि कुहरैत छी

(अगिला अंकमे जारी)
गीत-
अशोक चौधरी


कहिया अहाँसँ होयत आब मिलन
एकहु घड़ी नहि मोनमे होइय चएन
अपन प्रेमके याद पारू प्रियतम
तरसि खून रहल छी, तरसिते रहबै अहाँके विना
कहिया अहाँसँ ..................

हमर सभटा अपराध माफ करब
जे हमरासँ भूलमे भेल हो
दुनियाक सभे खुसी, अहाँके भेटए
हमर अहाँ प्राण जीवन आ धन
अहीकेँ चरणमे लागल अछि लगन
हमरो हृदयपर विचारू प्रियतम
ई जेना बरसै, बरसिते रहत, अहाँके विना
कहिया अहाँसँ .......................

विरहके अनेको उठैत अछि तरंग
आउ उठाउ लगाउ अंगसँ अंग
अपना वियोगेमे नहि मारू प्रिय
भटकिते रहल मन भटकिते रहत, अहाँके विना
कहिया अहाँसँ ...................
बुढ़वा

उपेन्द्र भगत नागवंशी

बुढ़बा बड़बड़ाइत रहैत छल
टण्डेाली नइ कर,
एहिसँ की होतौ
देखै नइ छही समय
कमो खटो पाइ कमो
नइ तँ भुक्खेा मरबेँ ।

की करू
चोरी करू, डकैती करू
आ कि पाकेटमारी करू
नइ, मेहनति कर
इमानदारीसँ कमो
भुक्खेर नइ मरबेँ ।।

चलू अहीँक बात मानि लेलौँ
बड़ मोसकिलसँ भेटल काम
करऽ लगलौं मेहनति
कमाय लगलौं टका
बड्ड नीक,
मुदा कहाँ भरैत अछि
पाँचो परानीके पेट ।

गलल जाइय देह
धीया–पुता हमरा कहैत अछि
बुढबा ..... हमरालए की कएलह ?
हे, दीनानाथ ...........
हमहूँ आब बड़बड़ाइत छी ।
गीतकार : विनीत ठाकुर

गीत : उठू मैथिल भेलै भोर
जय जय मैथिल जय मिथिला
हर–हर गङ्गे जय कमला

उठू यौ मैथिल भेलै भोर
चुनमुन चिरैया करैय शोर
कोशि कमला अमृत जल धारा
आलश छोरु कहे भुरुकवा तारा

माईट पानिके लगाक छाती
बुढिया दादी गावे पराती
गाई महिश खोललक चरवाहा
हर लऽ विदाह भेल हरवाहा

मन्दिर मस्जिद मिथिलाके शान
रुप अनेक एकही भगवान
जनक शलहेशक ई कर्मभूमि
स्वर्ग समान वनाऊ मात्रिभूमि

सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेजमे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।


चानक प्रेम
नहि उतरल छल चान गगन सँ
छलै आइ भारी जिद ठनने।
जागि गेल छल प्रात निन्न सँ
उदयाचल सिन्दुर सन रँगने।

विश्मित पवन आँखि के मलि-मलि
देखि रहल छल दृष्य ठाढ़ भ’।
उगतै सुरुज चान जड़ि मरतै
आवि रहल छै किरण गाढ़ भ’।

मुशकि रहल छल चान, ठोर पर
छलै अपन स्नेहक शीतलता।
ताकि रहल छल बाट, मिलन कँे
छलै हृदय मे मधुर विकलता।

बनल नियम छै कालचक्र के
के जानत की हैत अशुभता।
के बाँचत, के भागत नभ सँ
हैत नष्ट किछु आइ अमरता।

प्रखर अग्नि सँ आइ सामना
करतै शीतल प्रभा चान केँ।
प्रेम समर्पण मे जीवन के
द’ देतै आहुति प्राण कँे।

अंग - अंग मे अग्नि पूँज सँ
फुटतै फोँका लाल-लाल भ’।
काँच देह नहि सहतै पीड़ा
सुन्दरता जड़तै सुडाह भ’।

पलक झपकिते घटित भेल किछु
सुखद् दृष्य नभ केँ प्राँगन मे।
शीश झुकौने सुरुज चान केँ
बाँधि लेलक निज आलिंगन मे।

भेल चान परितृप्त अंक मे
पूर्ण भेलै मोनक अभिलाषा।
पिघलि गेल छल सुरुज मिझेलै
कुटिल अग्नि के अहं पिपाशा।

मौन भेल छल दिनकर नभ मे
नव आनंद अपार उठा क’।
चान भेल किछु लज्जित,हर्षित
उतरि गेल अपने ओरिया क’।
डा. सुरेन्द्र। लाभ-
इतिहास

इतिहास

अवाजक समुद्र
हल्ला क ज्वासरभाटा
अनन्त ..............
अनन्त कालसँ होइत पुनरावृत्ति
पुनरावृत्ति बनैछ इतिहास
हल्लावक इतिहास ।

ध्वलनिक अंकमे
समाहित लोक
मुक्त होएबाक हेतु
व्यातकुल लोक !

आवाजहीनता !
शब्दहहीनता !
मौनता !
स्ततब्धोता !
एकटा स्व‍प्न
दिवास्ववप्न भऽ गेल अछि ।

इतिहास–सिंहासनक हो
वा हो संघर्षक
इतिहास दानवक हो
वा हो मानवक
सभ इतिहास
हँ प्रत्येकक इतिहास
हल्लारक इतिहास थिक ।

हल्लेरहल्लाहसँ भरल
जतए शून्येताक अभाव थिक
शान्तिनक अभाव थिक
हँ, प्रत्येकक इतिहास
हल्लािक इतिहास थिक ।
सम्बन्धक नव सूत्रक खोजिमे

सरस्वती चौधरी ‘रचना’

सम्बन्धक कोनो सूत्र
नहि राखऽ चाहै छी बान्हल अहाँक संग
रत्ती–रत्ती छहोछित्त कऽ
मुक्त होएबाक होइछ इच्छा
एकटा खूजल परिसरमे
विचरणक अप्पन फूट आनन्द होइछ ।
मुदा अहाँक संग हमर सम्बन्धक
नव–नव परिभाषा खोजबाक हमर इच्छाक ।
हमरा फेरसँ झटिआ देलक अछि
हम अपने घरक बाट
बिसरल जा रहल छी ।
कि अछि अहाँक संग सम्बन्ध क सूत्र
जतेक तोड़बाक कएल जाइछ प्रयत्न, प्रयास
ततबए झमटदार भऽ आँखिक आगू
भऽ जाइछ ठाढ़
आ देखलो बाट हेरा जाइछ
आगू रहि जाइछ अहाँक
मात्र अहाँक मुह आ
राग–अनुरागसँ तर–बतर भेल
सम्बन्धक मजबूत सूत्र
आब तँ लाज लागल अछि
मुक्तिक हमर इच्छो
मात्र लौलक रूपेँ कएल प्रयास अछि ।
हम तँ कहिया नहि
मन्दिरमे भजन करबा लेल
स्वयंकेँ प्रस्तुत क' चुकल छी ।
ज्योति
जीवन सोपाण
कखनो तीव्रता स गन्तव्योन्मुख
कखनो रस्ता रोकने बाधा
कखनो थम्हल कखनो दौगैत
कखनो गति भेल आधा
असंतोष जन्मल आ बढ़ैत रहल
जखन अभिलाषा रहल अपूर्ण
मोन छल अखनो आरोही
शरीर भने होयत गेल जीर्ण
एहेन आन्दोलनक प्रतीक्षा रहल
आन्तरिक कौतुहल के शान्ति हेतु
जाहिमे निर्मित भऽ सकय
आकांक्षा आर प्राप्ति के सेतु
एक-एक डेग सऽ टपैत रहब
जीवनक अन्तहीन सोपाण
लक्ष्य तऽ ओतहि मानब
जतय त्यागब अपन प्राण
तूलिका(दहिनासँ पहिल)साभार:दैनिक जागरण-फोटोग्राफर-दीपूराज

तूलिका:
विदेह:सदेह:१ मे विदेह ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक ११३ गोटेक रचना प्रकाशित भेल जाहिमे १४ वर्षीय तूलिकासँ लए ८८ वर्षीय श्री आद्याचरण झा धरि छलाह। तूलिका एहि बरख सी.बी.एस.ई.क १०म कक्षाक तैयारीमे लागल रहबाक कारण अपन रचना किछु दिनसँ नहि पठा रहल छलीह। आब ओहि परीक्षाक परिणाम आबि गेल अछि आ डी.ए.वी.,बी.एस.ई.वी.,पटनाक एहि छात्राकेँ ९६.८ प्रतिशत अंक भेटल अछि आ ओ आब इन्जीनियरिंगक तैयारीमे लागल छथि। विदेह लेल हुनकर रचना पुनः आएल अछि जे पाठकक समक्ष अछि।:-सम्पादक






बालानां कृते-
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी;३.स्वास्तिका-कक्षा २
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)

देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्र्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा: मैथिलीक पहिल-चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
नीचाँक दुनू कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा नौ

नताशा दस

नताशा एगारह


2.
मध्य प्रदेश यात्रा- ज्योति
बारहम दिनः
3 जनवरी 1992 शुक्रदिनः
उज्जैन सऽ विदा लऽ कऽ हमसब इन्दौर पहुँचलहुँ।ओतय हमसब दिलीप लाॅजमे रूकल छलहुँ।आई 12 घंटा सऽ कम समयमे हमसब अन्नपूर्णा मंदिऱ बड़ा गणपत़ि गीर्ताभवऩ मेघदूत पार्क़ इन्दौर चिड़ियाखाना आदिक भ्रमण टैक्सीन सऽ केलहुँ।
अन्नपूर्णा मंदिरमे देवी अन्नपूर्णाक तीनटा प्रतिमा छल आर चारू दिस भगवानक अवतारके मूर्त्ति स्वरूप दऽ कऽ राखल गेल छल।अहि मंदिर सऽ कनिके दूरी पर बड़ा गणपति मूर्त्ति छल जे इन्दौरके सबसऽ पैघ मूर्त्ति छल।गीताभवनमे मूर्त्तिकलाके सराहनीय नमूना सब राखल छल।मेघदूत पार्क इन्दौरके सबसऽ पैघ पार्क छै जाहिमे बच्चा सबहक र्उचिके विशेष रूपसऽ ध्यान राखल गेल छल। अतुक्काौ गुलाब बगान बहुत आकर्षक छै।
चिड़ियाखानामे सिंह़ नीलगाय़ ऊॅंट़ मृग़ बंदऱ रीछ इत्याबदि पशु छलै।जतय उज्जर मोऱ हंस एवम् बगुला सेहो भेटल।अहि सबहक अतिरिक्तब अतय साप आर माछ सब सेहो छल।
इन्दौरक शीघ्रता पूर्वक अवलोकनक बाद हमसब 9:30 बजे राति कऽ इन्दौर- भोपाल एक्स्प्रेस सऽ भोपाल दिस विदा भेलहुँ।
देवीजी : ज्योति

देवीजी : पिता दिवस
पिता सेहो माता जकाँ पूजनीय मानल गेल छैथ।यद्यपि भारत मे विश्वके सबसऽ बेसी प्रोफेशनल महिला छथि। अतबै नहिं भारतमे विश्वके सबसऽ बेसी कार्यरत महिला छैथ तैयो ओ पुरूषक बराबरीमे नहिं छैथ आ ज्यादातर घर पुरूषक आमदनी पर आश्रित छै।ताहि अनुसारे पिता मात्र जन्मदाता नहि वरन् पालनकर्ता सेहो होयत छैथ।दुर्भाग्यवश महिलाके ममता स्वरूप मानल गेल छै आ पुरूषके अहिमे पाछाँ राखल गेल छै।जखन कि पुरूषोमे अपन बच्चा लेल ओतबै मोह होयत छै जतेक कि महिलामे।मुदा बेसी पुरूषसब बाहरी काजमे ततेक व्यस्त रहैत छथिजे घरमे हुनकर महत्ता लोकके केवल पाइ बेरमे बुझाइत छै।
ताहि द्वारे आन देश जकाँ भारतोमे पिता दिवस मनाबक प्रथा प्रचलित भऽ चुकल अछि जे कि बहुत तर्क संगत लागैत छै।अहि दिन सब अपन पिताके प्रति आदर आ स्नेह प्रस्तुत करै छैथ।अही बहाने सबके सोचैके मौका भेटैत छैन जे हुनकर पिता हुनका लेल कतेक करै छथिन आऽ कतेक महत्त्व।पूर्ण छथिन।जॅं एक वयस्क पुत्रके लेल ओकर पिता मित्रवत् भऽ जायत छैथ तऽ ओ अपन पुत्रके बढ़िया मार्गदर्शन कऽ सकै छैथ।ओकर विपरीत अपन अभिभावक संगे सामञ्जस्य नहिं रहला पर बच्चा सब गलत रस्ता पकड़ैत अछि जेना कि ड्रग्स लेनाइ चोरी केनाइ इत्याजदि।सामान्यतः बेटाके माँ सऽ आ बेटीके बाप सऽ बेसी स्नेह रहै छै आ पैघ भेला पर बेटा पिताके मित्र बनै छै आ बेटी मायके मुदा अनेको एहेन उदाहरण छैथ जाहिमे बेटी पैघ भऽ अपन पिताके कार्यपथ पर सहायिका बनल छैथ।जेनाकि स्वतंत्रता सेनानी तथा भारत के प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी जिनका पिता जेल सऽ जतेक पत्र लिखैत छलखिन से एक पुस्तकके रूपमे प्रकाशित भेल छै। विश्वसुन्दरी प्रियंका चोपड़ा के कहब छैन जे ओ अपन पिता सऽ बहुत मित्रवत् छैथ।तहिना बॉलीवुडमे पूजा भट्ट तथा महेश भट्ट के पिता पुत्रीक जोड़ी बहुत प्रसिद्ध छल।
पौराणिक कथामे सेहो पिर्तापुत्र के प्रेमक अद्भुत किस्सा सब छै।उदाहरणार्थ श्रवणकुमार जे अपन आन्हर मार्तापिताके कान्ह पर उठा कऽ घुमैत छलैथ।राजा दशरथ जे अपन पुत्र के वन जाइत देखि हुन्कर वियोगमे प्राण त्या गि देला।वासुदेव जे अपन पुत्रक रक्षा हेतु आंधी तूफानमे यमुना नदी पार केला।
ताहि अर्थ सऽईबहुत नीक प्रचलन छै जे सालमे एक दिन पिताके सम्मान के नाम कैल जाय। अहि दिन प्रत्ये क ओहि बातके लेल पिता के धन्यवाद दियौन जकरा अहाँ मोजर नहिं देलियै लेकिन ओ बहुत महत्त्वतपूर्ण छल आ अहाँक पिता बहुत परिश्रम केलैथ ओ जुगारैमे। ओना तऽ माता पिताक कैलके कियो नहिं चुका सकैत अछि ।तकर अतिरिक्त जे अपन छैथ तिन्का लेल की बनावटी व्यवहारिकता।सच तऽईछै जे अपना सब मे मार्तापिताके धन्यवाद देनाइ बड्ड हास्यास्पद लागैत छै कारण अपना सब हुनका पर जतेक अधिकार बुझैत छियैन ततेक तऽ आर ककरो पर नहिं बुझायत अछि। तैयो कखनो कऽ किछु बातके शब्द आ उपहार मे व्यक्तन केनाइ सम्बन्धके आर मधुर बना दैत छै।
अहि प्रकार सऽ पिता दिवस पर विचार विमर्स केलाक बाद देवीजी सभाके समापन केलैथ। आहि के हुन्कर संभाषण हुन्कर महिलावादी विचारधारा सऽ कनि हटिकऽ छलैन तैं गामक पुरूषवर्ग विशेष प्रसन्न छलैथ।

३.स्वास्तिका:
कक्षा २ (माउन्ट कार्मेल, पटना)


बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली

1. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली आऽ 2.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली

मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।

कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६


VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS
DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22 Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul

Guru Poornima-25 Jul



English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed athttp://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title“KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in

Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.

The Comet



English Translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary


It was the impact of busy life that her son was getting any time to think only when he was on bed. Aaruni was working in a paper printing press before being successful in the business. He agreed to work on percentage in stead of salary with the owner of the press who was also his friend. After getting customer’s order he used to make binding and printing work done. He had started his own printing work gradually. Some people used to print material in his press and then they were selling it outside so Aaruni applied a trick. He started including a calendar with his press name printed on it in each bundle. When the ultimate consumers came to know that they were giving place for the mediator unnecessarily then they started contacting Aaruni. Aaruni was hardly hearing his name at his home. The name printed on the book was name of a company and he never found that name very associable. His father died because of crookedness of the world but by virtue of his intelligent brain he was winning the battle of business.
The name Aaruni was heard many times after mother came. When his friends used to narrate the stories of success of Aaruni in business to his mother Aaruni used to feel very shy and he always tried to divert the topic.
His mother was determined to arrange his marriage. When his mother became crabby then he was very uncomfortable like it was his monopoly to be stubborn. But mother was sure that her son was changed to be practical and no crabbier. On the other hand Aaruni thought that it was time to pay as he used to trouble his parents in his childhood because of his obstinate nature. Marrige then child.....Mother saw the face of her husband in her grandson. Her son was turned very practical and adjustable before death of her husband. But now it would not continue. Her grandson would not believe in compromise. He would do whatever his grandfather and father desired to do and couldn’t. So she kept her grandson’s name as a combination of her husband’s name and son’s name that was Aaruni Nand. Again the same sequence of life begun..........beginning of study with the same Shloka – Sate Bhavatu Supreeta........... Her son was taught by her husband, she was busy in looking after her family in that time but currently her daughter-in-law was looking after domestic works and son was too busy to give time to child so she started teaching her grandson.
“Utpatsyet himam kopi samandharma kalohyam nirvadhir vipula cha prithvi”
The earth is very big and time is endless so I have faith that someone will make my efforts fruitful.

Aaruni felt an unusual distance from his mother. He was little bit ill and lost in analysing his past while studying alone in an apartment near the Woodland Nursing Home. He was young enough to be eligible in sit in the competitive exams for the government job so he sat in exams and very soon he became the Central Government’s grade ‘B’ officer wearing uniform. Even if it was not class one job mother was happy that he left business and joined a government job.
“Come, have some food, you cannot live like that”, his younger maternal uncle admonished him. The rituals of funeral were completed. It was time to recrudesce to profession as well as family life.
November, 1995:
Aaruni with complete shaved head returned to Patna via Darbhanga by bus. He confronted many hawkers on the bus. First of all one bookseller came and distribute many books among the travellers. He narrated names and qualities of the books with a few rhyming sentences- stories, first aid tips, foolan devi, manohar pothi etc. Some of his books were bought by the passengers after some bargaining and rest were collected by the seller. While returning he had some argument with the bus conductor. Next was inventor of lemon juice extractor who demonstrated his instrument and left the bus after having argument with the bus conductor. The comb seller, pen seller, schrew seller etc. visited the bus and left as well.
(continued)


महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट संस्करणक विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२): 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. प्रकाशित कएल जा रहल अछि: लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website:http://www.shruti-publication.com

महत्त्वपूर्ण सूचना:(३). पञ्जी-प्रबन्ध विदेह डाटाबेस मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण- श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत। पञ्जी-प्रबन्ध (शोध-सम्पादन, डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- तीनू पोथीक शोध-संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा Combined ISBN No.978-81-907729-6-9

महत्त्वपूर्ण सूचना:(४) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)-लेखक गजेन्द्र ठाकुर Combined ISBN No.978-81-907729-7-6विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे ।

महत्त्वपूर्ण सूचना (५): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित। विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।

महत्त्वपूर्ण सूचना (६):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे

नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
(add courier charges Rs.50/-per copy for Delhi/NCR and Rs.100/- per copy for outside Delhi)

For Libraries and overseas buyers $40 US (including postage)

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DISTRIBUTORS: AJAY ARTS, 4393/4A,

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विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:1)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुर (1971- ) छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) ,पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण),महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड 1 सँ7 ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद संस्कृत आ अंग्रेजी(द कॉमेट नामसँ)मे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन-आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण। अंतर्जाललेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com

सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा
श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा (1962- ), पिता श्री सुरेन्द्र प्रसाद सिन्हा, पति श्री दीपक कुमार। श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा इतिहास आ राजनीतिशास्त्रमे स्नातकोत्तर उपाधिक संग नालन्दा आ बौधधर्मपर पी.एच.डी.प्राप्त कएने छथि आ लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर आलेख-प्रबन्ध सेहो लिखने छथि।सम्प्रति “विदेह” ई-पत्रिका(http://www.videha.co.in/ ) क सहायक सम्पादक छथि।
मुख्य पृष्ठ डिजाइन: विदेह:सदेह:1 ज्योति झा चौधरी
ज्योति (1978- ) जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी।ज्योतिकेँ www.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) ज्योतिकेँ भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि।
विदेह ई-पत्रिकाक साइटक डिजाइन मधूलिका चौधरी (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस), रश्मि प्रिया (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस) आ प्रीति झा ठाकुर द्वारा।
(विदेह ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ http://www.videha.co.in/ पर ई-प्रकाशित होइत अछि आ एकर सभटा पुरान अंक मिथिलाक्षर, देवनागरी आ ब्रेल वर्सनमे साइटक आर्काइवमे डाउनलोड लेल उपलब्ध रहैत अछि। विदेह ई-पत्रिका सदेह:1 अंक ई-पत्रिकाक पहिल 25 अंकक चुनल रचनाक संग पुस्तकाकार प्रकाशित कएल जा रहल अछि। विदेह:सदेह:2 जनवरी 2010 मे आएत ई-पत्रिकाक26 सँ 50म अंकक चुनल रचनाक संग।)
Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)
विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)
विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
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अथ निषाद कथा : भवदेव पाण्डेय प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.180.00

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु.125.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
बडक़ू चाचा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कविता-संग्रह



या : शैलेय प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 160.00
जीना चाहता हूँ : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 300.00
कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
पेपरबैक संस्करण

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
मैथिली पोथी

विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

अंतिका, मैथिली त्रैमासिक,सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क भा.रु.2100/-चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका प्रकाशन” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे भा.रु. 30/- अतिरिक्त जोड़ू।
बया, हिन्दी छमाही पत्रिका,सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क रु.5000/- चेक/ ड्राफ्ट/ मनीआर्डर द्वारा “ अंतिका प्रकाशन” के नाम भेजें। दिल्ली से बाहर के चेक में 30 रुपया अतिरिक्त जोड़ें।
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15%और उससे ज्यादा की किताबों पर 20%की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन


अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन,एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
फोन : 0120-6475212
मोबाइल नं.9868380797,
9891245023
ई-मेल: antika1999@yahoo.co.in,
antika.prakashan@antika-prakashan.com
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता” प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-)
९/१०/११ 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर१.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
१२.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
१३. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संभस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1:तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु.100/-
श्रुति प्रकाशन, DISTRIBUTORS: AJAI ARTS, 4393/4A, Ist Floor,AnsariRoad,DARYAGANJ. Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107.Website: http://www.shruti-publication.com
e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com
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२. संदेश

१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।

२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।

३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।

४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।

५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|

६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।

७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।

८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।

९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।

१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।

११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।

१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।

१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।

१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।

१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।

१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।

१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
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