भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Sunday, June 07, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी ( एग्यारहम कड़ी )

बोमडिला पहुँचलहुं तs साँझ भs गेल छलैक। जीप सs उतरि कs माँ हमरा सब के लs आगू बढि गेलिह आ बाबुजी सामान सब उतरवाबय लगलाह। हम जहिना सीढी पर चढि ऊपर अयलहुं, लकडी के घर सब देखाई परय लागल। बाहर सs सब घर देखय मे एकहि जेना बुझि परैत छलैक। सब घरक छत हरियर, मुदा दू घर सs बेसी एक समतल जमीन पर नजरि नहि आयल। ऊपर आ नीचा सब ठाम जएबाक लेल सीढी बनल रहैक।ऊपर नीचा करैत हम सब अपन घर पहुँचि गेलहुँ।

हम सब ततेक थाकल रही जे चाय आ जलखई केलाक बाद कखैन्ह नींद आबि गेल, हम नहि बुझलियैक। माँ के बोली पर हमर नींद खुजल। माँ कहि रहल छलथि " उठु नय भोजन केलाक बाद फेर सुति रहब"। उठलहुँ तs, मुदा जारक चलते हमरा भोजनो करबाक मोन नहि भs रहल छलs।माँ हमरा बिछोना सs उतरय लेल मना कs देलथि आ हमर भोजन बिछाओन लग मँगा देलिह। भोजनक बाद हम कोहुना उठि कs हाथ धोए लेल बिछाओन सs उतर कs गेलहुँ।

हमर आँखि खुजल तs माँ बाबुजी आ एक आओर व्यक्ति के अपना सोझा मे देखि हम हरबरा कs उठय लगलहुँ। माँ कहलिह "किछु नहि भेल अछि परल रहू। असल में अहाँ हाथ धोअय लेल गेलहुँ तs ओहि ठाम बेहोश भs खसि परल रही। की भेल छलs? डॉक्टर साहेब कहैत छथि ऊंचाई के चलते भेलैक अछि। एके बेर ओतेक नीचा सs ८ हजार फीट पर पहुँचि गेलहुँ ताहि केर असर छैक आओर किछु नहि"। तखैन्ह हमरा याद आयल जे हमरा चक्कर जेना बुझायल छलs आओर किछु याद नहि छलs। डॉक्टर इ कहि चलि गेलाह जे आराम करू भोर तक एकदम ठीक भs जायत।

बेर बेर उठि मुदा बुझाइत छल एखैन्ह भोर नहि भेलैक आ फेर सुति जाइत छलहुँ। मोन मे आयल जे घड़ी देखि लेत छी। जओं घड़ी दिस नजरि गेल तs आठ बाजैत छलs, हरबरा कs उठलहुँ आ बाहर दिस निकलि गेलहुँ। राति मे एक तs ठंडा आ ताहि पर ततेक थाकल रही जे घर मे घुसलाक बाद बाहर निकलबाक हिम्मत नहि भेल। बाहर आबितहि बुझि गेलहुँ जे हमरा कियाक होयत छलs जे भोर नहि भेलैक अछि। धुंध तेहेन छलैक जे अपन घर छोरि कs सामने वाला घर सेहो नहि देखाइत छलs। किछुए कालक बाद बौआ सेहो बाहर पहुँचि गेलाह। धुंध बेसी काल नहि रहलैक आ हटैत के सँग प्राकृतिक रूप साफ साफ देखाई परय लगलैक।किछु काल तक ठाढ़ भs हम प्रकृतिक ओहि रूप के देखैत रहि गेलहुँ। जतय तक नजरि गेल, सब घरक सोंझा मे सुंदर सुंदर फूल नजरि आयल जे देखि मोन प्रसन्न भs गेल। हम ठाढ़ भs देखैत छलहुँ कि अचानक एक झुंड लड़ाकू विमान (mig) बुझायल जेना हमर घरक ठीक पाछू सs निकलल अछि आ आसमान मे एम्हर सs ओम्हर करय लागल। ओ कखनहु बुझाइत छलs आब खसि परतैक मुदा फेर तुंरत ऊपर आबि जायत छलs। ओहि विमानक झुंड देखैत देरी हम दुनु भाई बहिन अपन बरामदा सs उतरि जओं पाछू गेलहुँ तs पहाड़ के सुन्दरता देखि किछु काल ओहि ठाम ठाढ़ रहि गेलहुँ। बुझाइत छल जेना पहाड़ घरक ठीक पाछू मे अछि। हम आ बौआ घरक चारू कात घुमि घुमि कs सब वस्तु देखय लगलहुँ। एक सs एक सुंदर फूल घरक सामने आ कात वाला फुलवारी मे लागल छलैक।फूलक रंग आ आकर देखि हम आश्चर्य चकित रही गेलहुँ।

बाबुजी ऑफिस जएबाक लेल बाहर अयलाह त हम दुनु भाई बहिन बाहर छलहुँ। ओ बतेलाह जे बोमडिला मे बहुत सैनिक छैक, मुदा ओ सब नजरि नहि आयत कियाक तs सब बंकर(bunkar) मे रहैत छैक। अहि ठाम भारतीय सेनाक जेट,(jet) मिग(mig) आ सब तरहक लडाकू विमान देखय भेटत। सैनिक सब बराबरि अपन अभ्यास करैत रहैत छैक। भारत चीनक बोर्डर सेहो बोमडिला सs लग १४ हजार फीटक ऊंचाई पर एकटा जगह छैक सेलापास ताहि ठाम छैक। ओतय तs आओर बेसी ठंढा रहैत छैक।

जुलाई, अगस्त मास मे एतेक जाड़ हम नहि देखने रहियैक। एक तs अहि ठाम हमरा आ बौआ दुनु गोटे के मोन नहि लागैत छलs ताहि पर जाड। हम आ बौआ सब दिन सोचैत छलहुँ घुमय लेल जायब मुदा जाड़क चलते नहि जायत छलहुँ। बाबुजिक ऑफिस घर सs बहुत नीचा रहैन्ह आ सीढी सs उतरय आ चढ़य परैत छलैन्ह जे १०० सs बेसी छलैक। एक दिन हम आ बौआ बिचारि कs स्वेटर पहिरि घुमैत घुमैत बाबुजी के ऑफिस देखय लेल गेलहुँ। जाइत काल मे उतरय के छलैक, ओ तs बड नीक लागल आ दुनु गोटे सीढ़ी पर कूदैत कूदैत उतरि गेलहुँ। चढ़ैत काल दुनु गोटे के हालत ख़राब भs गेल। आपस अयलाक बाद बौआ कहलाह "ठाकुर जी अओताह तs हम हुनका अवश्य बाबुजी के ऑफिस लs जयबैन्ह"।

अन्नू आ छोटू तs बहुत छोट छलथि, सोनी आ बिन्नी दिन मे स्कूल चल जाइत छलिह, बौआ आ हम दुनु गोटे बेसी घर मे रहैत छलहुँ। साँझ मे बाबुजी अयलाह, हम सब बैसि कs बोखारी लग चाह पिबति रहि आ गप्प सप्प होयत छलैक। गप्प के बीच मे माँ बाबुजी सs कहलिह "मुन्नी बौआ के कतहु कतहु घुमा दियौक नञ। इ सब कतहु नहि जायत छथि भरि दिन घर में रहैत छथि। दुनु गोटे के मोन नहि लागि रहल छैन्ह"। इ सुनतहि बाबुजी कहलाह"बुझाइत अछि आब हमर बदली जल्दिये भs जायत। आजु हम ठाकुर जी के लेल परमिट बनवा कs पठा देलियैन्ह आ जल्दिये आबय लेल लिखि देने छियैन्ह। हुनको आबि जाय दियौन्ह तs तीनू गोटे एकहि संग घूमि लेताह। बाद मे तs एहि ठाम आबय मे थोरेक झंझट छैक"। इ सुनी हमरा नीक लागल, सच मे हमरा मोन नहि लागि रहल छल।

जहिया सs बाबुजी कहलाह ओ हिनका लेल परमिट पठा देने रहथि ताहि दिन सs हम आ बौआ सब दिन हिनक बाट देखैत छलियैन्ह। बौआ सब दिन बैसि कs हमरा सs गप्प करैथ जे हिनका अयला पर हम सब कतय कतय घुमय लेल जायब। ओ सब पता कs कs राखने रहथि जे कोन कोन ठाम घुमय वाला छैक।

बोमडिला बड छोट जगह छलैक आ ओहि ठाम बाबुजी के ऑफिस(CPWD) केर लोक सब के छोरि किछु प्रशानक लोक आ केंद्रीय विद्यालय के किछु शिक्षक सब सेहो रहैत छलथि। माँ सब के किछु लोक के घर एनाई गेनाइ छलैन्ह हमरा अयला सs सांझ मे बराबरि कियो नहि कियो भेंट करय के लेल आबैत छलथि या नहि तs हमरा सब के लs कs माँ, बाबुजी भेंट कराबय लेल जायत छलथि।

बोमडिलाक मोसमक एकटा विशेषता देखय के लेल भेंटल। ओहि ठाम जोर सs पानी नहि परैत छलs मुदा भरि दिन झिसी होइत रहैत छलैक आ बीच बीच मे थोरे थोरे समय के लेल रोउद निकलैत रहैत छलैक। बाबुजी के ऑफिस केर एक गोटे भेंट करय लेल आयल छलथि आ हुनका सब के पानि के चलते जेबा मे देरी भs गेल छलैन्ह। हुनका सब के गेलाक बाद माँ जल्दी जल्दी सतमन(नौकर) सs खेनाई के व्यवस्था करवाबय मे लागि गेलिह। पूरा बोमडिला के लोक के पनबिजली (hydroelectricity) द्वारा बिजली भेटति छलैक आ राति के १२ बजे के बाद सs बत्ती नहि रहैत रहैक। माँ के प्रयास रहैत छलैन्ह जे १० बजे तक रतुका भोजन भs जाय, मुदा आजु किछु देरी भs गेल छलैक। माँ भोजनक व्यवस्था मे लागल छलिह। हम आ बौआ बिछाओन मे घुसि कs अपन गप्प करैत छलहुँ, बाकी चारु भाई बहिन सब खेलाइत रहथि आ खूब हल्ला करैत छलथि। बाबुजी अपन ऑफिसक काज करैत छलाह। अचानक बुझायल जेना कियो केबार खट खटा रहल छथि। सोनी बिन्नी बाहर वाला घर मे खेलाइत छलिह केबारक आवाज सुनी दुनु गोटे केबार खोलय लेल दौड़ गेलिह। केबार खोलैत के सँग ओहि ठाम सs ठाकुर जी ठाकुर जी करैत भागि कs भीतर आबि गेलिह। हिनक नाम सुनैत देरी माँ बाबुजी सब बाहर वाला घर दिस आबि जाय गेलथि।

हिनका अयला सs माँ आ सतमन के आओर काज बढि गेलैक। ओ सब जल्दी जल्दी आओर किछु किछु खेनाई मे बनाबय लगलथि। चाह पिलाक बाद माँ हिनका कहलथिन "इ जल्दी स तैयार भs जाओथ थाकल हेताह, भोजनक बाद गप्प करिहैथ"। कोहुना भोजन बिजली जाय सs पहिने भs गेलैक आ सब कियो सुतय लेल चलि गेलथि।

बौआ हम आ इ बैसि कs गप्प करैत छलहुँ। इ अपन यात्राक वर्णन करैत कहलाह "आइ तs हम बचि गेलहुँ। चारद्वार पहुँचि पता केलहुँ तs लोक सब सs पता चलल आब बोमडिला के लेल एकहि टा बस छैक जे बेसी राति मे पहुँचायत। दिन वाला बस के लेल चाराद्वर मे राति भरि रहय परत इ सोचि चलि देलहुं। एहेन खतरनाक आ भयावह सड़क पर बस ड्राईवर तेनाक चला कs आनलक अछि जे हमर तs प्राण उपरे छल। बोमडिला आबि कs सेहो नीचा मे दुकान लग छोरि देलक। ओहि ठाम एकटा लोक नजरि नहि आबैत छल। संयोग सs एक गोटे भेंट गेलाह जे बाबुजी के ऑफिस के छलाह। ओ हमरा झरना लग पहुँचा कs गेलाह। झरना के बाद ऊपर चढि पहुँच तs गेलहुँ घर तक, मुदा होयत छल एहि राति मे ग़लत घरक केबार नहि खट खटा दियैक। पहिने घर लग आबि किछु काल ठाढ़ भs कs भीतरक गप्प सुनबाक प्रयास कयलहुँ। हल्ला सs बुझि गेलहुँ यैह घर हेबाक चाहीं मुदा मोन आगु पाछु होयत छल केबार खट खटाबी कि नहि कि अचानक मैथिलि मे बाजय के आबाज आयल आ तुंरत हम केबार खट खटा देलहुं"। हिनकर गप्प सुनि बौआ खूब हँसलाह आ कहलाह "बिना खबरि केने अहाँ बोमडिला आयब तs अहिना होयत नञ"। राति बड भs गेल छलैक हम सब उठि सुतय लेल आबि गेलहुँ।

हम हिनका सs कहलियैन्ह अहाँ तs कालिदास भs गेलहुँ। इ हमरा दिस देखि हँसैत बजलाह "कि करितौंह अचानक अहाँ सs भेंट करबाक मोन भs गेल आ बिना किछु सोचनहि चलि देलहुं। राति मे मोन भेल आ भोरे तैयार भs हम निकलि गेलहुँ। हम स्टेशन के लेल निकलति रही ओहि समय मे हमरा बाबुजी के चिट्ठी भेंटल जाहि मे परमिट भेजने रहथि। परमिट के एतेक महत्व छैक हमरा से नहि बुझल छलs। ओ तs संजोगे सs हमरा परमिट भेंट गेल नहि तs बड दिक्कत होइत। टिकट से, स्टेशन पर आबि कs लेलहुँ ओहो संयोगे सs भेंटल"।

क्रमशः