भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Saturday, October 25, 2008

बहुत महत्त्व अछि - मदन कुमार ठाकुर

जिंदगी मेs सभ चीजक सदिखन बहुत महत्व होइत अछि ! चाहे मानव हुअए या कुनू दानव या स्वर्गक भगवान ! ओही शब्द कs याद कराबय लेल हम आइ मैथिल आर मिथिला (मैथिली ब्लॉग) पर "बहुत महत्वक जे अछि, से" एकगोट छोट सन् शब्द कोस डिक्सनरी लऽsकऽs पाठकगण के समक्ष उपस्थित छी !


प्रेमक संग कहू जय मैथिली, जय मिथिला.....


~~~* बहुत महत्त्व अछि *~~~



फल मेs आम के, नशा मेs भांग के, भगवान मेs श्री राम के, बहुत महत्व अछि .....

तरकारी मेs आलू के, नाच मेs भालू के, मंत्री मेs लालू के, बहुत महत्व अछि ......

विषय मे, इतिहास के, ज्ञान मेs वेदव्यास के, मूर्ख म्मेs काली दास के, बहुत महत्व अछि ....

जेल मेs सिपाही के, सड़क पर राही के, कोट मेs गवाही के, बहुत महत्व अछि ......

शहर मेs लंदन के, मस्तक पर चंदन के, पर्व मेs रक्षाबंधन के, बहुत महत्व अछि .....

कार मेs सेंट्रो के, दिल्ली मेs मेट्रो के, बैंक मेs कैश काउन्टर के, बहुत महत्व अछि ....

बिहार मेs कुर्ता के, पान मेs जर्दा के, समसान मेs मुर्दा के, बहुत महत्व अछि ....

लाइफ मेs टेंसन के, वृद्धावस्था मे पेंसन के, ऑफिस मेs सेक्शन के, बहुत महत्व अछि .....

आदमीक बोल के, भोजन मेs ओल के, गाँव मेs पट्टीटोल के, बहुत महत्व अछि .....

घर मेs टीवी के, मेला मेs बीवी के, मिठाई मेs जिलेवी के, बहुत महत्व अछि .....

रांची मेs मेन्टल के, डॉक्टर मेs डेन्टल के, आदमी मेs जेन्टल के, बहुत महत्व अछि ....

सहर मेs नाली के, झगरा मेs गाली के, ससुराल मेs साली के, बहुत महत्व अछि ...

जार मेs हिट के, गाड़ी मेs सिट के, भोजन मेs मिट के, बहुत महत्व अछि ....

साड़ी मेs कोटा के, पानि पिबय मेs लोटा के, स्कूल मेs सोटा के, बहुत महत्व अछि ....

नाचैय मेs मोर के, बेलमोहन मेs चोर के, समय मेs भोर के, बहुत महत्व अछि ....

भोजन मेs दाँत के, गहूम पिसय मेs जाँत के, पूजा-पाठ मेs भोले नाथ के, बहुत महत्व अछि...

अनाज राखै मेs कोठी के, माछ मेs पोठी के, पेटख़राब मेs गोटी के, बहुत महत्व अछि ....

प्रेमिका मेs राधा के, नारी मेs सीता के, सभ ग्रन्थ मेs गीता के, बहुत महत्व अछि .....

नदी मेs गंगा के, स्वर्ग मेs रम्भा के, हिरोईन मेs प्रियंका के, बहुत महत्व अछि .....

दही मेs लेषन के, पंच्चर मेs सुलेषन के, लड्डू मेs बेषन के, बहुत महत्व अछि .....

सड़क पर धुल के, झंझारपुर मेs पुल के, बगान मेs फूल के, बहुत महत्व अछि .....

पाँव मेs जूता के, गेट पर कुत्ता के, भाषण मेs नेता के, बहुत महत्व अछि .....

गाँव मेs हाट के, चौपाल मेs खाट के, सफाई मेs धोबी घाट के, बहुत महत्व अछि ....

नॉएडा मेs सेक्टर के, फिल्म मेs एक्टर के, गाँव मेs टेक्टर के, बहुत महत्व अछि ....

ब्लोक मेs अमिन के, किरकेटर मेs सचिन के, विश्व मेs सुन्दर हसीन के, बहुत महत्व अछि ....

व्यापार मेs मंदी के, जेबर मेs चांदी के, भारत मेs महात्मा गाँधी के, बहुत महत्व अछि .....

सुइया दै मेs सिरिंच के, बच्चा मेs प्रिन्स के, पेंट मेs जिन्स के, बहुत महत्व अछि .....

सेंसेक्स मेs रेटिंग के, मिथिला मेs पेंटिंग के, फिल्म मेs एक्टिंग के, बहुत महत्व अछि ....

घर मेs सरभेंट के, महिला मेs प्रगनेन्ट के, दिल्ली मेs गर्लफ्रेंड के, बहुत महत्व अछि .....

रसोई मेs चावल के, बिल्डिंग मेs मारवल के, दरबारी मेs बीरबल के, बहुत महत्व अछि....

बन्दूक मेs गोली के, पूजा मेs रोली के, कमिटी मेs बोली के, बहुत महत्व अछि .....

गाछ मेs नीम के, संगीत मेs नादिम के, कसाई मेs जालिम के, बहुत महत्व अछि .....

मुम्बई मेs सेठ के, दिल्ली मेs इंडिया गेट के, शरीर मेs पेट के, बहुत महत्व अछि .....

फौजी मेs बर्दी के, सिलाई मेs दर्जी के, हस्ताक्षर मेs फर्जी के, बहुत महत्व अछि ......

पितरपक्ष मेs तर्पण के,मूह देखै मेs दर्पण के,जीवन मेs आत्मसमर्पण के बहुत महत्व अछि....

दीवाली मेs गिप्ट के, नौकरी मेs सिप्ट के, बिल्डिंग मेs लिप्ट के, बहुत महत्व अछि .....

बारीष मेs बरसाती के, पूजा मेs आरती के, विवाह मेs बरयाती के, बहुत महत्व अछि .....

केश मेs सेम्पू के, सर्कश मेs तम्बू के, अमिताभ बच्चनक लम्बू मेs बहुत महत्व अछि ....

कथा मेs समाप्त के, सामान मेs पर्याप्त के, बहुत महत्व अछि ..........



जय मैथिली, जय मिथिला
मदन कुमार ठाकुर, कोठिया पट्टीटोल, झंझारपुर (मधुबनी) बिहार - ८४७४०४,
मोबाईल +919312460150 , ईमेल - madanjagdamba@rediffmail.com

पोसपुत (भाग - १) -सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू

भवानीशंकरकेँ बुढ़ारीमे पुत्रसोग देखऽ पड़लनि ओहो सबसँ छोट बेटाक । रहि–रहिकऽ ओ बेहोश भऽ जाइछ, किए तँ आओर किछु नहि, मुदा ओते कम समयमे मुसमात पुतहू आ...।... दूटा पोती जाहिमेसँ एकटा दस बर्षक आ दोसर पाँच बर्षक...स‍ंगमे एकटा पोता सेहो छलै, जे दूइयो बर्षक नहि । हम जखन हुनकालग बैसलहुँ तँ ओ कानि–कानि कऽ अप्पन घटना सुनाबऽ लगलथि आ हम एकटा कागजमे नोट करऽ लगलहुँ । ओना ई बात सुनिकऽ ककरो रोंआ ठाढ़ भऽ जएतै, जे ओ आई हमरा लग बैसिकऽ सुना रहल छथि । हुनक अप्पन ओ दिन जे बाबुजी जुवानीएमे घर परिवारसँ मतलब छोरिकऽ धार्मिक क्रियाकलाप अपनौलथि । आ, तिनु भाईकेँ अपने कष्ट कइयो कऽ पोसि–पाइलकऽ निक बाटपर चलऽके सिखौलथि ।

एक दिनक बात छैक– साँझक समय रहै । पुरा अन्हार नइं भेल रहै तै लालटेमक ईजोत सेहो भकइजोत बुझाइ । भवानीशंकरक माय चारु बेटाक संगे बैसिकऽ भानस बनबैत रहथिन । ताबते हुनक दूनु बटिदार जोगिया आ नगिना ‘मलिकिनी– मलिकिनी’ करैत आंगनमे अएलै । एते साँझक समयमे ई सभ कहियो नइ आबऽबाला आदमीके देखिते भवानीशंकरके बुझऽमे चलि अएलै जे पक्का किछु अनिष्ट भेल । हुनक माय सेहो अचरामे हाथ पोछैत बाहर अएली । ताबते भवानीशंकर पुछिदेलखिन –

‘कि रे जोगिया, कि भेलौ ?....आइ बड़ अबेर धरि एमहर घुमि रहल छे ।’

जोगिया मुड़ी निहुरएने पुछलकै–

‘ बड़का मालिक कहाँ छथिन ?’

बहुत दिन भऽगेल छलनि हुनका आंगन अएला । पुरे गौंआके बुझल छलनि जे ओ मन्दिरे पर रहै छथि । आ, आब सभ किछु हुनक पुजापाठ मात्र छनि नहि कि घर–परिवार । माय भवानी कने रोखाइएकऽ कहलखिन–

‘जँ तोरा बड़के मालिकसँ भेटवाक छौ त जो ........पुरे गौंआके बुझल छैहे जे ओ कतऽ रहै छथि, .....पुछिलीहे ।’

एते बाजिकऽ ओ पित्तसँ थुक धोटऽ लगलथि । ई देखकऽ नगिना कने डेराइएकऽ पुछलकै–

‘आइ मालिक पैतिस बिग्घा खेत ओमप्रकाशक हाथे बेचलेलखिन.........से कि कोनो बिशेष छलैक ।’

ई सुनिते त भवानीक देह पित्तसँ काँपऽ लगलनि । किछु देरक बाद ओ माय पर ताकि कऽ कहलखिन–

‘एखन त हुनका कोनो चिजक कम्मी नहि छलनि.....तैयो एना किए ?’

पुरा घरक भार हुनके पर होबऽके कारणसँ माय आ बाँकी तिनू भाइ सब सेहो हुनका इज्जत करनि । सबहे कातपर निक बिचार कैनिहार भवानीपर घरसँ गाम धरि केओ नाखुस नहि रहै छलैक । तैं माय कहलखिन –

"एखन छोड़ि दिअ, काल्हि भोरे मन्दिरपरसँ बजाकऽ पुछबनि ।’

घरक बात बाहर तक नहि पहुँचे से सोचि ओ दूनु बटिदारके कहलखिन–

"अहूँ दूनुगोटे भोजन कऽ लिअ तखन चलि जाएब ।’

ई सुनिते दूनु पोन्ह झारैत उठल आ नगिना बाजल –

"नइं मलकिनी, हमर भनसिया भानस बना लेने हैतै ...... बल्की अपने हमरो सभके बिदा देलजाए ।’

बिदा हेबऽलेल त ओ कहनहि रहथि, माय सकारात्मक मुरी हिलाकऽ कहलखिन –

"ठिके छै ।’

तखन ओ दूनु ओतऽ सँ बिदा भेल । दूनु बटिदारक गेलाक बादो हुनका पित्तसँ भोजन नहि घोटानि। माय ओ हाथ धोकऽ अप्पन कोठरीमे चलि गेलाह । हँ एते बात तँ हमरो कहवाक अछि जे ओ बाबा–दादा वा बाप बड़ नमहर पापी रहैए जे अप्पन बाल–बच्चाक लेल किछु सम्पत्ति नहि मुदा कर्जा जरुर धऽकऽ जाइए । भवानीके एते अवश्य बुझल छलैक जे लोक दू पाइ केनाकऽ कमाइ छैक । कते मेहनति आ कष्ट कऽकऽ लोक किछु अर्जन करैछ । ओहुना जँ ई बुझल नहि रहितनि त सतरह–अठारह बर्षक समयमे एते केना करऽ सकैत । राति भरि निन्न नइं परलनि हुनका, अप्पन बाबूजीक बारेमे सोचैत–सोचैत । ई आठ घण्टाक समय एकटा जुग बनि गेल रहैक । मुदा समयके अप्पन गती होइ छैक । भोरमे जखन कछमछिया बजलै, ओ कोठरीसँ निकलि सबसँ छोट भाइ बिश्वनाथके जगएलन्हि । हुनकर आवाज सुनिकऽ माय सेहो बाहर निकललीह आ प्रश्न कएलन्हि –

"बौआ, कि बात ? सबेरे जागि गेले......... ? कि आइ निन्न नइ परलौ ?’

ओ मायके बातक कानो जबाब नहि देलकै । ताबते बिश्वनाथ सेहो उठिकऽ अएलै आ, अबिते ओकरा कहलखिन–

"जो कुरुर कऽकऽ आ ।’

माय बुझि गेलीह जे ई एखनो धरि पिताएले अछि । माय ओ भवानीक हाथ पकरिकऽ कहलन्हि–

"चल भन्सा घरमे .......... चाह बनबैछी ।’

बिना किछु बजने ओ माय संगे भन्सा घर गेल । माय चाह बनएलीह।भवानी आ बिश्वनाथकेँ चाह दऽकऽ दोसर कोठरीमे सुतल दूनु बेटा छेदिलाल आ ओमप्रकाशकेँ चाह देबऽ चलि गेलीह । चाह दऽकऽ जखन ओ पुनः भन्साघर अएलीह तँ छोटका चाह पी लेने रहै । ओकरा कहलनि –

"जो रे, मन्दिरपरसँ बाबुके बजाकऽ ला गऽ ।’ ओ बाबुके बजाबऽ लेल प्रस्थान कएलनि । ओ जखन मन्दिरपर पहुँचल तँ देखलक जे बाबुजी पुजामे ब्यस्त छथि । ओ मन्दिरक असोरापर बैसिकऽ हुनक प्रतिक्षा करऽ लागल । कर्रीब दू घण्टाक बाद जखन पुजा समाप्त कऽकऽ ओ बाहर निकललाह तँ छोटकाकेँ देखिकऽ आश्र्यमे परिगेलाह । सबसँ पहिने ओकरे हाथक प्रसाद दैत पुछलन्हि–
"कि बात, केम्हर अएले ?’

ओ प्रसाद मुहँमे धरैत, मुँह लटपटबैत जबाब देलकै –

"अहाँके माय आ बड़का भैया बजौलनि अछि ।’

ई सुनिते ओ प्रसादक थारी दोसर पूजारीक हाथमे दैत कहलाह –

"हम कने देरीसँ आएब ।’

एते कहिकऽ ओ छोटकासंगे बिदा भेलाह । मुदा बाट भरि एक्कहिटा बात सोंचैत गेलाह–

"किए बजौलक ?"

आ, सोचिते–सोचिते कखन आंगन पहुचलाह से हुनका पते नहि चललनि । जखन ओ आंगन पहुँचलाह तखने हुनक कनिञा पुछलिह–

"जमिन बेचऽके कोन प्रयोजन छलैय ?’

ओ कनी हँसिएकऽ कहलाह–

"ओना पैतिसे बिगहा बेचलिययए, जाहिसँ अहाँसभके कोनो प्रकारक कष्ट नहि होबऽ के चाहि ......... हम एहि पाइसँ पाठशाला बनाएब, ...... धर्म कर्ममे खर्च करब ...... भन्सा बनि गेल अछि तँ हमरो दिअ...... भुख लागि गेल अछि ।’

भानसमे कने देर रहै तैँ हुनक कनिञा कहलखिन –

"कनिक देर रुकु तरकारी बरकैछै ।’

फेर, भवानी पिताएले मुद्रामे पुछलखनि –

"आब त अहाँके किछु नहि चाहि जँ चाहि त एखने बाजि लिअ........ किए त बाल–बच्चाके कष्ट देब पाप छैक, धर्म नहि ।’

कनिक देर धरि चुप भऽ ओ फेर कहलनि–

"बाहर कतबो पूजा कऽ लिअ, जँ घरक लोक खुशी नहि अछि त अहाँ धर्म, ....... अँह सोचबे नहि करु ।’

बेटाके पिताएल देखिकऽ ओ कने स्थिरेसँ सफाइ दैत कहलाह–

"हमरालग जे अछि ताहिसँ एकटा बिद्यालयके लेल मकान, एकटा पोखरि आ किछु जगेड़ा कोषमे पाइ धऽकऽ समाप्त भऽ जएतै । हमरा भोजन आ अन्य आवश्यकता पुरा करऽलेल अलगसँ पाई चाही ।’

फेर ओ भवानी दिश ताकिकऽ कहलाह –

"तहूँ अठारह बर्षक भेले ..... जे करबे से कर ।"

हुनका आओर किछुके डर नहि मुदा सम्पति बिकएला बाद होबऽबाला बेइज्जतीसँ डर रहै । माय फेर ओ बाबूजीसँ कहलनि –

"अहाँके भोजन एतहि आबिकऽ करऽपरत । आ, खर्च जते महिनाबारी चाही लऽलेब मुदा जमिन नहि बेचु ।"

ताबते भवानीक माय भोजन लकऽ अएली बाबू भोजन कएलनि आ तौनीमे हाथ पोछैत बिदा भऽगेलाह । हुनका बिदा भेलाक बाद भवानीक माय एकटा माटिके चुकिया बाहर लाबिकऽ फोरली आ पाइ उठाकऽ भवानीके गनऽ लेल कहली । भवानी ओ पाइ गनलकै । पाई अठाहृ हजार तिन सय संतानबे रहै । फेर हुनक माय सोनाके पहूँची आ, करिब एक किलोके कसुली दऽकऽ कहली –

"ई तोरा पूजी देलीयौ ..... तों केना करबे ...... कि करबे तोही जान, ...... तोरासँ छोट तिन भाइ सेहो छौ सेहो बुझिले ।’

मायके बातके ध्यानमे रखैत भवानी ई सोचलक जे एहि क्षेत्रमे कि कएलासँ निक होएत आ करिब एक हप्ता घुमफिर कएलाक बाद एहि क्षेत्रमे कपड़ाक दोकान करब उचित बुझि काज सुरु कएलनि । गामसँ कनिके हटिकऽ नेपाल आ भारतक सिमा छैक । साइकिलसँ समान सिमा पारसँ लाबऽ लगलाह । कनिक–कनिक समान लैनिहारके भंसारपर सेहो केओ किछु नहि कहै । लगनसँ काज करैत गेलाह । हुनक भोर चारि बजे आ राति बारह बजेक बाद होइ छलैक । इमान्दारीसँ ब्यापार करऽके कारण गामक प्रायः सबहे आ अराश–परोशक गामक लोक ओकरे लग समान किनै । समय अप्पन गतिसँ चलैत रहलै । सेकेन्ड मिनटमे, मिनट घण्टामे, घण्टा दिनमे, एवं प्रकारे दिन महिनामे आ महिना सालमे परिबर्तन होबऽलगलै । भवानीसँ छोट भाइसब सेहो नमहर भेलै । माझिल भाइ छेदिलाल ईन्जिनियरिङ्ग पढ़ऽलेल बेङ्गकक गेल । छात्र–बृती भेटलै मतलब पढ़ऽमे निक रहै । साझिल भाइ एम.बि.ए.करऽ दिल्ली गेलै आ छोटका बिद्यार्थीए समयसँ नेतगिरी (राजनिति) करऽ लगलै ।भवानीक बियाह भेलै । निक होनहार लड़िका रहै तैं सबहक नजरिमे गरले रहे । माय बियाह धरि निक इज्जतदार घरमे भेलनि ।एहि क्रममे नेपालमे राजनिति परिबर्तनक समय अएलै । २००७ सालमे प्रजातन्त्रक स्थापनाक लेल एकटा जबरदस्त क्रान्ति एकतन्त्रिय राणाशासनक बिरुद्धमे भेलै । द्वितिय बिश्व युद्धके बाद नेपालमे सेहो एसिया आ अप्रिकामे आएल नवजागरणके प्रभाव पड़लै । नेपाली जनतामे स्वतन्त्रताक अनुभूति भेलै आ ओ सब स्वतन्त्रताक लेल आवाज उठाबऽ लागल । जाहि क्रममे गंगालाल, धर्मभत्त, शुत्रराज आ दशरथचन्द्र सन सपूतके मृत्युदण्ड देल गेलै । जाहिसँ जनतामे सेहो एकटा आक्रोशक भावना जागृत भेलै । २००७ साल कार्तिक ११ गते जखन राजा त्रिभुवन शिकारक बहाना बनाकऽ भारतिय राजदुताबासमे जाकऽशरण लेलखिन आ बादमे भारत निर्वासित सेहो भेलखिन । राजा त्रिभुवनके दिल्ली सवारीसँ प्रजातन्त्रक क्रान्तिमे बल पहुँचलै । भारत सरकार द्वारा राणा आ त्रिभुवन बिच समझौताक बातचित चलाओल गेलै । आ, फागुन ४ गते त्रिभुवनके फिर्ति सवारी । फागुन ७ गते शाही
घोषणासँ देशमे एकटा नया भोर भेलै । तत् पश्चात् राणा शासनके मनोमानी खतम भऽ कानूनपूर्ण राज्यक स्थापना भेलै । देशमे किछु परिवर्तन होइक ताहिसँ भवानीशंकरके कोनो मतलव नहि । अप्पन नियमितता कहियो नहि तोरलक । भगवानक इच्छासँ हुनका पाँचटा बेटा आ एकटा बेटी भेलनि । ओतबे निक ब्यापारी छलैथ ओतबे निक बेटा, ओतबे निक पति, ओतबे निक भाइ आ बहुत निक बाप सेहो ।लोक किछु कऽले मुदा नेपालमे राजनितिक स्थिरता आबऽके त नहि । बि।सं. २०१७ साल पुस महिनाक १ गते राजा महेन्द्रद्वारा कोइरालाक मन्त्रिमण्डलके आ संसदके बिघटन कऽकऽ देशक शासन भार अपनेमे लऽलेलक । ताहिके बाद दलसभ प्रतिबन्धित भऽगेलै । नेतासभक भागा–भाग भेलै । बिरोध कैनिहारके बिभिन्न सजाय भेटलै । जाहिमे बिश्वनाथके दश–पन्दरह गोली लगलै । मुदा ओ बाँचिगेल । एमहर छेदीलाल सेहो जखन इन्जिनियरिङ्ग कऽकऽ आबिगेल त हुनका काठमाण्डूक त्रिभुवन अन्तराष्टिय बिमान स्थलमे नोकरी भऽगेलै । ओ सेहो पूर्ण इमन्दारीसँ काज करऽलगलाह ।


क्रमशः

पोसपुत (भाग - २)- सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू

छेदीलाल जखन अप्पन आमदनी पूर्णरुपसँ देख लेला तखन हुनका अप्पन बड़का भैया प्रति मदति करबाक भावना मोनमे जागृत भेलनि । माय ओ अप्पन भतिजा निरंजनके अपनेसंग राखऽलगलखिन । त्रिचन्द्र कौलेजमे नमांकन सेहो करा देलखिन आ, ओ निकसँ अध्ययननमे लागि गेल। मुदा घरक स्त्रीक कारणसँ मर्दक सब कएल–धएल सभ पानिमे चलि जाइ छैक । सेहे भेलै, छेदीलालक कनिञा निरंजनसँ भोजनक बरतनि धोबऽसँ घर–आंगन सभ किछु करबऽबनि । आ, जखने ओ अप्पन पतिक मोटरसाइकलक अवाज सुनिलैथि त ओछाएनपर जाकऽ सुतिरहै आ कुहरऽ लगै । जखन हुनका डाक्टरलग जचाबऽ लेल कहल जाए त ओ कहथिन –

"एँह, ......... अहिना ठिक भऽजएतै कि ।"

समय एहिना चलैत रहलै । एक दिन किछु बिदेशी हुनका घरपर अएलै आ किछु कागज–पत्र पर हस्ताक्षर कऽकऽ सहमति जना देबऽलेल कहलकै । छेदीलाल बैसकऽ ओहि कागज सबके अध्ययन करऽ लगलाह । ओहिमे पन्द्रह हजारक मसिनके अठारह लाखक बिजक तैयारी कएल गेल रहैक । ई देखिकऽ ओ एहि बातक बिरोध कएलनि । तैं बिरोध करैत देखिकऽ ओ बिदेशी सब हुनका तिन लाख रुपैया दऽकऽ कहलकनि –

"राखू।"।

तैयो ओ हस्ताक्षर नहि कऽ ओकरा सबके डाँटिकऽ भगा देलाह । ओकरा सब मे एकटा आदमी बाजलो रहै –

"तोहर भविष्य कारी छौ ।’

मुदा ओ एहि बातपर ध्यान नहि देलन्हि । आ, करिब एक सप्ताहक बाद एकटा पत्र हुनक नामसँ अएलै जाहिमे हुनकर अवकास पत्र छलैक । एहिके अलाबा भवानीक बेटासबमे एकटा बेटा सतीश होटल मेनेजमेन्ट, बिनोद कमर्स, गोपाल एम.बि.बि.एस करऽ बनारस गेलै । सबसँ छोट बेटा दिनेश पढ़ऽमे बड भुसकौल रहै । कहुना घुसकुनिया काटिकऽ एस.एल.सी. पास कएलकै आ आइ. कम. पढ़िते छोड़ि देलकै । भवानी एकटा निक आ कुशल बाप रहथि तैं धियापुताक जिम्मेबारी निकसँ निर्वाह कएलनि । अप्पन बालबच्चाक बियाहक सम्बन्धमे गोपालक बियाह झंझारपुर, निरंजनक बियाह मोतिहारी, सतिसक बियाह पटना आ बिनोदक बियाह सितामढ़ि कएलनि । मुदा दिनेशक बियाहक बात जखन चलै तखन ओ एक्कहिटा बात कहथि–

"एखनधरि किछु नहि कएलहूँ । किछु आर्जन कऽलैछी तखन बियाह करब ।’

दिनेश अप्पन लगन आ मेहनतिसँ बिभिन्न काजक शुरुवात कएलनि । हुनक कहब छलनि जे एहि दुनियामे कोनो काज खराब नहि होइत अछि, निर्भर करऽके तरिका आ करनिहारके सोंचपर फरक परैछ । जे जते मेहनति करत ओकरा ओतबे फल भेटतै । हुनका आगु जे काज अएलनि ओ छोरलखिन नइ । लकड़ि ढुवानीसँ लऽकऽ सड़क निर्माणक ठेक्का तक हुनका जे काज भेटलनि सबटा लेलनि आ, भाग्य सेहो साथ देलकनि । समयक गति अपने हिसाबसँ चलैत रहलै । गोपालके एकटा बेटी रिना आ दूटा बेटा जँहिमेसँ जेठकाके नाम राजा आ छोटकाके नाम छोटु परलै । दिनेश राजाके बड मानै । ओकर पढ़ाइ–लिखाइसँ लऽकऽ आओर सब किछुपर ओबिचार कऽ देथिन्ह । आ, दिनेश सब दिन एकहि बात कहथिन्ह –

"राजा हमर बेटा छै ।’

एकबेर निरंजन दिनेशक बियाहक प्रस्ताव रखलकै । दिनेशक पएर स्थिर भऽ गेल रहै । ओ अप्पन पएरपर ठाढ़ऽ भऽगेल रहे । तैं ओ बियाहक लेल तैयार भऽ गेलै । निरंजन अपने ससुरारिमे निक आ खानदानी लड़की पिंकी संग बियाह कऽ देलकै । बियाहक बाद त बहुतो लोक स्थिर भऽजाइए । मुदा दिनेशक ब्यापारिक क्रियाकलाप रुकलै नहि । बल्कि आओर तेज भऽ गेलै । सच कहथिन हमर बाबूजी –

"मरदाबा उपजाबे धान त मौगी लक्षणमान ।’

सबहक कहब छलनि जे हुनक कनिञा लक्ष्मीपात्र छथि । एकबेर ओ अप्पन कनिञासँ बिचार कएलनि जे भैयारीमे सबके पूँजी दऽ ब्यापार सञ्चालन कराबऽ परलै । कनिञा सेहो सबहक निक सोचि सकरात्मक जबाब देली । एहि बातपर बिचार कऽकऽ ओ बड़का भैया गोपालके बजाकऽ कहलखिन –

"भाइ, अहाँ कोनो ब्यापार सुरु कऽलिअ ।’

गोपाल कोनो प्रकारक उत्तर नहि देलकै तैं ओ फेर कहलनि –

"अहाँके जाहि क्षेत्रमे ज्ञान अछि ताहि क्षेत्रक ब्यापार करु ........ पूँजी हम देब ।’

ओना सच कही त गोपाल बनारस जाकऽ पढ़ल नहि, नक्कली प्रमाण–पत्र लऽकऽ आएल छलथि । दिनेश हुनका एक सप्ताहक समय दैत कहलखिन –

"एक सप्ताह भितरमे बिचार कऽकऽ कहु अहाँ कि करब ?"

एक सप्ताह ठिकसँ बितलो नहि रहै कि दिनेशलग जाकऽ गोपाल कहलकै–

"हमरा फिल्मके सम्बन्धमे निक ज्ञान अछि तै हम फिल्म डिस्ट्रीब्यूसनके काज करऽचाहैछी ........ मुदा एहि काजक लेल कम सऽ कम तिस लाख रुपैया चाही ।"

आमदनीक बारेमे पुछलापर ओ जबाब देलखिन –

"भाग्य जौ साथ दऽदे त साल भरिमे पूँजी निकलि जाएत ।’

दिनेश तिने–चारि दिनमे तिस लाख रुपैया गोपालके देलखिन आ चेताबनी सेहो देलखिन –

"निकसँ काज करऽब, प्रतिष्ठा नहि खसए ।’

गोपाल शुरुमे बड निकसँ काज कएलनि । मेहनति, लगन आ धैर्यतासँ काज कएलासँ सबके सफलता भेटैत छैक, हुनको भेटलनि । जाहिके देखिकऽ निरंजनके सेहो ब्यापार सञ्चालन करबाक इच्छा भेलनि आ दिनेशलग इच्छा जाहिर कऽकऽ प्रेशवला काजक शुरुवात कएलनि । फिल्मके सम्पूर्ण जिम्मेवारी गोपाल आ प्रेशक जिम्मेवारी निरंजनके सौंपल गेल रहै । साझिल भाइ बिनोदक कनिञा सब दिन बिमारे रहऽके कारणे ओ काठमाण्डूएमे रहिके ब्यवस्था कएलनि । आ ओतै ब्यावसाय करऽ लगलाह । शायद बिष्णु लोकसँ लक्ष्मी आबिकऽ ओहि घरमे बास लऽ लेने छलखिन तैं सबहक ब्यापार निके रहै ।

एक दिन बिनोद अप्पन कनिञाके लऽकऽ डाक्टर लग गेलाह । हुनक कनिञाक बिभिन्न जाँच कएलाक बाद डाक्टर हुनका एकान्तमे बजाकऽ कहलकनि जे हुनक कनिञा कहियो माय नहि बनि सकती । ई सुनिते हुनका पर पहाड़ खसि पड़लनि । जखन ओ डाक्टर लगसँ अएला तखनेसँ ओ त किछु बजबे नहि करथि । हुनक कनिञा हुनकासँ बेर–बेर पुछबो कएलखिन मुदा ओ कोनो प्रकारक जबाब नहि देथिन्ह । ओइ दिन हुनका दिनोमे अन्हार जकाँ महसुस होइत छलनि । ओ घर कटाओन लगै छलनि । मुदा कि ...........। करिब पाँच बजे एकटा झोड़ा लऽकऽ ओ कालीमाटी दिश तरकारी किनऽके बहानासँ निकललाह । किछुए दूर आगू हुनक परम मित्र रामकिशन हुनका भेटलनि । अप्पन मित्रके देखियोकऽ आन दिन जकाँ हुनका चेहरापर मुस्कान नहि अएलनि तैं हुनका बुझऽमे चलि अएलनि जे पक्का कोनो मुस्किलमे अछि । तेँ ओ बिनोदक हाथ पकरिकऽ कहलकै –

"रे, चल दारु पिबै छी"।

दुनू ओतैके भठ्ठिमे गेल आ ब्रिन्चिपर बैसिगेल । काउन्टरपर बैसल युबकके रामकिशन एक बोतल दारु ल्ऽ कऽ आबऽ लेल आदेश देलकै । कनिक देरक बाद एकटा पच्चिस–तिस बर्षक महिला एकटा बोतलमे दारु, दूटा गिलास आ एकटा थारीमे मुरही, दालबुट आओर किछु लाबिकऽ टेबुलपर धऽ देलकै । रामकिशन दूनु गिलासमे दारु धएलकै आ एकटा गिलास अपने उठएलकै आ दोसर मिताके उठाबऽलेल आग्रह करैत ’चियर्स’ कहलकै । दारु पिबऽके क्रममे करिब आठ बजे धरि चलैत रहलै । रामकिशनके त कम मुदा बिनोदके कने बेशिए निशा लागि गेल रहए। तखन मूँह लरबरबैत बिनोद अप्पन मितसँ कहलखिन–

"आइ हमरा डाक्टर कि कहलकऽ से तोरा बुझल छौक ..... नइ होतौ बुझल ........ कैला त तु ओतऽ नहि छलेहऽ ....... आ ओकर बात हमरा सिधा दिलपर लागल । ........ ओ हमरा कहलक जे हमर कनिञा कहियो माय नहि बनिसकैए । ..... ओकरा कहियो बालबच्चा नहि होएतै ।’

एते बाजिकऽ ओ भोकासी पारिकऽ लागल कानऽ । बिनोदके कनैत देखिकऽ रामकिशन ओकरा सम्झाबऽ लागल । अन्ततः ओ सम्झा बुझाकऽ बिनोदके ओकर घर पहुँचाकऽ अप्पन घर दिश चलल । ताहि दिनसँ बिनोद प्रायः सब दिन पिबऽ लागल । एहि बातक चर्चा प्रायः सब दिन घरमे चलै मुदा कारण किनको बुझल नहि छलनि । एक दिन निरंजन, दिनेश आ बिनोदक कनिञा लक्ष्मीसंग बैसकऽ बिनोदके दारु पिबऽके कारण प्रति बिचारबिमर्श करऽलेल बैसल मुदा कारण किनको बुझल नहि छलनि । बिभिन्न बातसभक सम्भावना भऽसकैए कहिकऽ ओ सब चर्चा करैत रहे । ताबते लक्ष्मी बजलिह –

"पहिल दिन दारु पियलमे घर पहुचाबऽ रामकिशन आएल रहै । ...... एहि सम्बन्धमे पूर्ण जानकारी ओकरा होएत ..... ।"

ई बातक बाद दिनेश आ निरंजन दूनु भाइ रामकिशन लग पहुचल । बहुत देरक बिचार-बिमर्शक बाद ओ घटना पूर्ण रुपसँ कहलकै । तखन दूनु भाई ओतऽसँ घुरि आएल । आब बात अएलै समस्याक समाधानके । आखिर कि कएल जाए । दोसर बियाह कऽदेलासँ घरमे मात्र कल्लह बढ़ि जएतै आओर किछु नहि । एहि समस्याक समाधान बड कठिन भऽ गेलै आ जौँ एहिना रहत त भाइसँ हाथ धोबऽ परत । ओ त एकटा आओर नमहर समस्या भऽजाएत । बहुत देर धरि बिचार बिमर्श कएला बाद निरंजन कहलकै –

"हम अप्पन जेठ बेटाके दऽ दै छी ।"

तकर बाद दिनेश कहलकै –

"बेटी चाही त हम अप्पन बेटीके दऽदैछी ।"

आ सेहे भेलै । एकटा पूजाके आयोजना कऽकऽ निरंजन अप्पन आठ बर्षक बेटा आ दिनेश अप्पन तिन महिनाक बेटी सदाकऽ लेल दऽ देलकै । फेर, समय निकसँ चलऽ लगलै । नहि त कोनो कष्ट आ नहि त कोनो झंझट । दिनेश अप्पन बडका भाइके बेटा अभिषेकके बड मानै । ओ अभिषेकके प्रेमसँ राजा कहिकऽ बजाबै । आ ओकरे सभ दिन आगु बढाबऽमे प्रयासरत रहै छलाह । दिनेशक मोनमे रहै जे ओकरा निक बनाबी आ बेटा ओहे बनि जाए । दिनेशक ब्यापार खुब निकसँ चलै । तैं ओ अप्पन ब्यावसायके खुब निकसँ बिस्तार करऽ लेल राजधानीमे कार्यालयक स्थापना कएलनि । जे प्रमुख कार्यालय रहलै आ शाखा कार्यालय सभ बिभिन्न जगह । ब्यापार ओतहू निके गतिमे चलैत रहलै । मुदा काठमाण्डू एकटा खर्चाक प्रमुख बाट सेहो छैक । आ एकटा आओर बात जे लगभग सबहक मुँहसँ सुनैछीऐ–

"काठमाण्डू बाबा पशुपतिनाथक एहन धाम छैक जतऽ निक काज कैनिहारके शरण भेटै छैक आ अधलाह काज कैनिहार जतऽ सँ आएल रहैए ओ ओतहू निकसँ नहि रहऽपबैए ।"

ठिक ओहिना भेलै ओकरा अमृत नामक ब्यत्तिसँ परिचय भेलै । जे बिभिन्न ब्यत्ति सभसँ दिनेशक परिचय करौलकै । एहि क्रममे भारतिय ब्यापारी गुप्ताजीसँ परिचय भेलै आ लगले किछु दिनक बाद सोना–चाँदीक ब्यापारी दिपकसँ परिचय भेलै । सबहक बात बुझि ओ अप्पन कनिञा आ एकटा फेर बेटी भेल रहै ओकरा आ राजाके लऽकऽ काठमाण्डूए चलि आएल । ओ समय, ब्यापारक बड निक समय रहै । बहुतो लोकके इच्छा छलनि जे दिनेशक पार्टनर बनिकऽ काज करी । आ, एहि क्रममे एकटा बिरगंजक ब्यापारी अशोक हुनका लग ब्यापारक लेल प्रस्ताव रखलाह । दिनेश सकरात्मक जबाव देलखिन । मुदा एकटा कहबी छैक –

"सब दिन होत न एक समाना ।"

ब्यापार आओर बिस्तारक क्रममे हुनक किछु साथी सभ सोनाक ब्यापार करऽ लेल हुनका बिचार देलकनि । नाफा त खुब रहै । दिनेश करऽ लेल तैयार भऽ गेल । सोना हङकङसँ अबै आ नेपाल होइत भारत । एक टिपमे दू सँ तिन लाखक बचत । एहि काजमे दिनेश अप्पन टोल परोसक साथी भाइ सभके काज देलखिन । सभके एकबेर–दूबेर हङकङ जएबाक मौका भेट जाइ छलनि । मुदा एकटा कहबी हमर मा हमेशा कहै छलखिन –

"कुकूरके घी नइ पचै छैक ।"

नहि जानि किए नहि पचै छैक । भऽ सकैए ओकरा खाएके लुरि नहि होए । दिनेश ब्यापारसभ देखभाल करऽलेल अप्पन माझिल भाइ निरंजनके जिम्मा दऽ देलक । आ, अपने क्यासिनो आ बिभिन्न जुवाक अड्डासभ घुमऽ लागल । दिनेश एकटा आओर ब्यापार सुरु कएलकै । जखन नेपालमे भ्याट (भेल्यू एडेड टेक्स) बि।सं. २०५२सालमे अएलै आ तकर नियमावली २०५३ क बाद सम्पूर्ण ब्यपारी सभके दर्ता होबऽजाए परलै । ताहि समयमे बहुतो ब्यापारीलग समान त रहै मुदा ओकर बिल त नहि रहै । आन्तरिक राजश्व कार्यालयद्वारा सर्बेक्षण सुरु भेलाक बाद बिलक श्रृजना करब शुरु होबऽ लगलै । ई ब्यापार बड चलै । ओ अप्पन टोलक साथी–भाइसभक नाममे फर्म आ कम्पनी दर्ता कराकऽ बिल बेचब चालू कयलक । आ, आम्दनीसँ क्यासिनो जाएब, दारु पियब आदी–इत्यादि । एहि सन्दर्भमे एकटा संस्कृतमे बड सुन्दर कहबी छैक –

"भाग्यं फलतु सर्वत्रः न च बिद्या न च पौरुषः"

अर्थात एहि दुनियामे जे किछु होइछ भाग्यसँ नहि त बिद्या आ नहि त तागतसँ । भाग्य खराब जौ भऽ जाए त ककरो किछु नहि लगैछ । ओकर भाग्य खराब तहिएसँ सुरु भेलै जहिया ओ ब्यापारक देखभाल निरंजनके हाथमे दऽ देलकै । बि.सं. २०५७ साल जेष्ठमे हम काठमाण्डू अएली आ २०५८ साल जेष्ठ १० गते दिनेशक अफिसमे एकाउन्टेन्टक पदपर हमरा नोकरी भेल । बि.सं. २०५९ साल जेष्ठ १९ गते राज परिवारक हत्या पश्चात देशमे अशान्ति फैलल रहै । तकर बादक तात्कालिन प्रधान मन्त्रि शेरबहादुर देउवा द्वारा देशमे संकटकालक घोषणा भेलाक बाद नेपालक ब्यापारमे मन्दि आबऽ लगलै । आ, सुरक्षाक जाँचक प्रभावसँ ब्यापार प्रभावित होबऽ लगलै । जाहिमे दिनेश अपने गामपर रहऽ लागल । ओतै होटल आ फैक्ट्रीके देखभालमे लागि गेल । काठमाण्डूमे अशोक कहियोकाल अबै मुदा पुरा देखभाल राजाक हाथमे रहै ।एहि क्रममे एकबेर फैक्ट्रीक अडिट चलैत रहै । हमरा ओतऽ एक्सपर्ट बनिकऽ जएबाक मौका भेटल । मुदा हमरा ओतऽ फैक्ट्रीक हिसाब–किताब कम आ सोना चाँदीवाला हिसाब देखऽलेल बेशी आग्रह कएल गेल । छ बर्षक पहिलेके हिसाब रहै । ओ हिसाबमे की देखाओल गेल छैक से हमरा किछु बुझऽमे नहि आबे । तिन दिन हम लगातार ओकर अध्ययन करैत रहली । बादमे ई बुझऽमे आएल कि ओ हिसाब गलत रहै । ओहिमे अरसठि लाख नाफा होबऽचाही मुदा मुदा छेहतर लाख घाटा देखाओल छलैक । हम अपना अनुसार ओ रिपोर्टके ठिक बनाकऽ दिनेशक कनिञाक हाथमे दऽ देलियइ । दोसर दिन साँझक समय रहै । दिनेश हमरा बजाबऽ लेल हमर कोठरीके नोकरके पठौलक । हम तुरत ओतऽ गेलीऐ । सम्मान पूर्वक ओ हमरा बैसऽ लेल आग्रह कएलक । हम ओतऽ सोफापर बैसि गेलिऐ । नोकरके ओ ओतऽसँ जाएके लेल आदेश देलकै । ओकरा ओतऽसँ गेलाक बाद दिनेश आ हुनक कनिञा बातक शुरुवात कएलखिन । पहिने दिनेश हमरासँ पुछलक –

"हँ सन्तोष, जे कागज तोहर चाची हमरा देखऽ देलकौ से ....... कि ठिक छौ । तों कतेक बिश्वस्त छे, अप्पन काज प्रति ?"

"जी" –हम जबाब देलिऐ ।

"एतऽके नामी अडिटरके हाथसँ बनाओल ब्यालेन्स शिटके तों गलत कहिरहल छही .. एहि लेल तों बिचार कऽले .......आ, अडिटर संगैह हमर बाप समान भाइ सेहो बदनाम भऽरहल अछि ....... एहि बातक बिचार कऽले ।"

हम कने मुस्कैत कहलीऐ –

"एकाउन्टमे चचा ई कतौ नहि लिखल छैक जे नामी आदमी बनएतै त गलत नहि होएतै आ नहि तऽ कतौ लिखल छै जे कोनो बडका आदमी बदनाम हुए त चुप भऽजाइ । ....... आ ओहुना हमर गुरुजी पढ़ऽएने छथि जे अडिटक काम गल्ती आ जालसाजी पत्ता लगाउ आ ओकर रोकथाम करु ।"

हुनक कनिञा हमरासँ फेर पुछलखिन –

"अहाँके अप्पन हिसाबपर भरोशा अछि कि नहि ?"

सकरात्मक मुरी हिलाकऽ हम जबाब देलिऐ । फेर ओ सभ अडिटर आ भाइसाहेबके बजाबऽके बात कएलनि । हम फेर कहलियनि –

"जी हमरा एकटा अनुभव अछि जौं ओ अडिटर दोसरके कहलपर हस्ताक्षर कएने होएत त ..... नहि आओत ।"

"हेतै, ....... अहाँ जाउ, अराम करु ।" –हुनक कनिञा हमरा कहलखिन ।

हम ओतऽसँ अप्पन कोठरीमे अएलहुँ । किछु देरक बाद खाना त खएली, मुदा निन्न नहि आबे । रातिमे कखन निन्न परल से धरि बुझबे नहि कएलिऐ । भोरमे करिब आठ बजे नोकर चाह लऽकऽ उठाबऽ आएल । आ, चाह हाथमे दैत कहलक–

"निरंजन भैया सेहो आएल छथि, ........ किछु पिताएल जकाँ बुझाइछथि ।"

हम ओकरा हाथसँ चाह लऽलेलिऐ । चाह पिलाक बाद ओतै राखल लोटामेका पानिसँ हम मुँह धोएलिऐ आ रुमालसँ मुँह पोछैत निच्चा उतरलिऐ । हमरा देखिते निरंजन पिताकऽ बाजल –

"कि रे, तों तऽ हिरो भऽगेले ?"

तखने दिनेशक कनिञा निरंजनके कहलखिन –

"आप उसको कुछ मत बोलिए ....नहि तो ठिक नहि होगा .....’।

एतबे बात पर ओ शान्त भऽगेलै । तखन दिनेश हुनकासँ पुछलकनि –

"भैया, ओ अडिटरके कि भेलै ?"

एकदम शान्त भऽ बिनम्र आवाजमे निरंजन जबाब देलकै –

"ओ त बाहर गेलछै ।"

"त ....... अहाँ सन्तोष जे हिसाब निकाललकैए से देखलिए, कि नहि ....?"

"हँ, देखलिए ।"

"कि बुझाइए ?"

दिनेशक प्रश्न सुनिते निरंजन बजलै –

"गँरि धोबऽके त लुरि छैहे नइ, ..... ओ कथी हिसाब निकालतै ।"

हमरा बेइज्जत कऽकऽ बजैत सुनिकऽ दिनेशक कनिञाके बरदास्त नहि भेलनि आ ओ निरंजनके डटैत बजलिह –

"माइन्ड योर ल्याङ्गवेज ........ आप मुँह सम्हालकर बोलिए ....... एक अफिसर रैंकके आदमीको आप इस तरह बोलते आपको शरम आनी चाहिए ।"

जहिना ओकरा डाँट परलै ओ मुहसँ गारि निकालिते ओतऽसँ चलि गेलै । हमहुँ अप्पन काठरीमे जाकऽ कपड़ासभ जे बाहरमे रहे ओहिके बैगमे धऽकऽ बाहर निकलैत रहि । ई देखकऽ दिनेश हमरा हाथसँ बैग लऽलेलक । आ, हाथ पकड़िकऽ अप्पन कोठरीमे लऽ जाकऽ सोफापर बैसऽ लेल कहलक । ताबते हुनक कनिञा सेहो निरंजनके गारि पढ़िते ओहि घरमे अएलखिन । जखन ओ सेहो बैस गेलखिन तखन दिनेश गम्भिर भऽ हमरा कहलनि –

"देख सन्तोष, लोक जीवनके छोट कहै छैक, मुदा जीवन छोट नहि छैक । एहिमे लोक जस–अपजस, ...... धर्म–पाप, ...... प्रेम–घृणा, आदि बिभिन्न चिजक भागिदार बनैछ । हालाकि केकरो किछु लऽलेलासँ किछु नहि बिगड़ैछैक ।..... एकटा चोरके बारेमे जौ कहऽ परै त ओ केहन केहन घरमे चोरी करैछ, मुदा पुरी त नहिए परैछ । ....... माय हमर कहबाक आशय ई अछि जे भेलै भऽ गेलै । ...... जहिना तों रातिमे कहले जे ओ अडिटर नहि आओत तहिना नहि आएल .... जखन की ओ हमरा भोरमे भेटले छल । ..... खैर, तों ई अडिट कऽकऽ हमर आँखि खोलि देले माय एमकी बेरके सभहेसँ नमहर प्रमोशन तोरे भेटतौ । ..... हँ, आब कह तों ई बेग लऽकऽ कतऽ चलले ?"

हम मुरी गोतनहि कहलियइ –

"मुड अफ भऽ गेल जनकपुर जाकऽ चलि अबै छी ।"

ताबते हुनक कनिञा बजलिह–

"भोजन कऽलिअ, तखन चलि जाएब ।"

बात काटब उचित नहि रहे माय हम भोजन करऽ बेर तक रुकि गेली । भोजन कएला बाद दिनेश हमरा एकटा लिफाफ देलक । तकर बाद हम ओतऽसँ जनकपुर चलि देली । काठमाण्डू अफिसक परोशमे एकटा अडिटक अफिस रहै । आ ओतऽ सुजाता नामक एकटा लड़िकि काज करै । देखऽमे मूँह–कान त निके रहै मुदा ओ लोभी प्रबृतीके रहै । राजाके अप्पन मुँह–कान त निक रहै नहि मुदा काका वाला पाइ त रहै जाहिके बलपर बराबर स्पेशल नास्ता आओर बिशेष ब्यवस्था करै । ओ लोभसँ ओकरा पाछु पड़लापर राजाके अनुभव होइक जे ओ ओकरासँ प्रेम करऽ लगलीह । माओवादीक चन्दा आतंकके प्रभावसँ दिनेश अप्पन अफिसके घरमे लऽगेल मुदा राजाके सुजातासँ भेटऽबाला क्रममे चलैत रहलै । बजारमे ब्यापारीसभ लग पाइ बाँकी त रहबे करै आ ख्याती सेहो । जेकरा कहै केओ नहि नइ कहै । ओ जतऽसँ चाहै पाइ उठऽबै आ सुजाता जे कहै किनदइ .... । किछु दिन बाद दिनेश बिमार भऽगेल । काठमाण्डूसँ दिल्ली धरि इलाज चललै । ओमहर अशोकक लगानी सबटा डुबि गेलै । क्यासिनोक प्रभाव पड़िते रहै । दोसर दिश राजा सबहे पार्टी सभसँ अग्रिम पैसा उठाकऽ सुजातामे खर्च करऽ लागल । रोकऽवाला केओ रहै नहिए । एक दिश स्टाफ सभके तलब नहि आ दोसर दिश चालिस–पचास लाख रुपैया चारिए महिनामे राजा खर्च कऽ देलकै । दिनेश बेटा कहिक पालने जे पोशपुत रहै जेकरा ओ प्रेमसँ राजा कहथि से साँप रहै से हुनका बुझल नहि छलनि । ओ त सोचथि जे हुनका बाद हुनक ब्यापार आ परिवारक देखभाल राजा करत मुदा ओ .......। दिनेशके दवाइसँ किछु दिन ठिक रहै आ फेर जहिनाके तहिना । दारुक कारण किडनी खराब भऽ गेल रहै । एहिना एकबेर हुनका बड़जोर मोन खराब भऽ गेलनि त एम्बुलेन्ससँ पटना लजाइते बेर ओ अप्पन पत्निके कोरामे ई संसारके छोरिकऽ सदाके लेल चलि गेला । ओतैसँ सतिश फोन कएलकै । हमरा सभके मालुम भेल । राजा संगहि ओकर परिवारके अन्य सदस्यसभ सोल्टि होटलके गाड़ी लऽकऽ गेलथि । आ हम आ रंजन बससँ गेलीयइ । बसमे हमरा त कनी देर निनो परल मुदा रंजन भाइजीके निन्न साफे नहि पड़लनि । किए त हुनको नामक एकटा कम्पनीसँ कारोबार बहुत भेल रहै मुदा आयकर एक्कहुटा रुपैया बुझाओल गेल नहि रहै । सायद स्टाफसभमे सभसँ बेशी ओहे बेचारा दुःखी रहे । मुदा दिनेशक अप्पन ब्यबहारक कारणे ओ हमरा कहलनि –

"सन्तोष भाइ जिवनमे कहियो हमरा लग कने बेशी पाइ अएलै त हम दिनेश भैयाके नामके धर्मशाला वा बिद्यालय जरुर बना देबै ।"

प्रातः स्थानिय बजार सोगमे एक दिनक लेल बन्द भेलै । आ करिब चालिस प्रतिशत परिवारमे कन्नारोहट । दिनेशके मरलाक बाद राजा आ ओकर बाबू गोपालके त लौटरीए पड़िगेलै । लोकके देखाबऽ लेल कानऽ लगै आ फेर आपसमे खुसी बाँटऽ लगै । राजा जे दिनेशक पोशपुत रहै ओकरा अप्पन धर्मक मायसँ ताबते मतलब रहै जाबे ओ दिनेशक ब्रास्लेट, औंठी, लकेट आ अन्य गहना सभ लेबऽके रहै । ओकरा हम एकबेर रोकबो कएलियइ मुदा माय त बुझे जे बेटे त अछि । आखिर ओ गहना की होइक, कतऽ जाइक ? त अकसर राजा गहनाके बैंकमे धऽकऽ पाइ निकालै आ सुजाताके कहियो नगरकोट, त कहियो धुलिखेल, कहियो दामन आ कहियो कतौ त ....... । ई क्रम चलैत रहलै । दिनेशके देहान्तक बाद सुरेन्द्र आ रंजन दुनु नोकरी छोड़ि देलकै मुदा हम नोकरी नहि छोड़ने रही । कहबी छैक –

"कौआ भेल भण्डारी त गुँहे–गुँह टार ।" सेहे भेलै । दिनेशक मरला बाद अफिसक कार्यभार सतिश, गोपाल आ निरंजनके हाथमे चलि गेलै । पहिलेके बितल घटना सबहक कारणसँ हमरासंगे सेहो किछु निक ब्यबहार नहि होए। हमहुँ छोडि देलियइ । मुदा, ओहि परिवारसँ हम अखनो नजदिक छियइ । ई कथा लिखऽसँ किछु दिन पहिने दिनेशक कनिञाके एते ओसभ दुःख देबऽ लगलै कि ओ नैहर चलि गेलि !


समाप्त

एकटा ब्यथा पत्रमे - सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू

एकटा ब्यथा पत्रमे

आदरणीय गुरुवरप्रणाम । अहाँक आर्शीवाद छैक हम शारीरिक रुपसँ स्वस्थ छी । आइ जीवनमे पहिलबेर अहाँक लेल एकटा पत्र लिखबाक मोन करैए । जखन कि हमरा बड़ निक जकाँ बुझल अछि जे अहाँ हमरासँ एते दूर छी जे ई पत्र पहूँचऽ के बाते नहि । मुदा हम अप्पन मोनके बुझाबऽ के प्रयास कऽ रहल छी । एखन निश्बद्ध राति छै । सब गोटे सुति रहल छैक । आ हमरा निन्न नहि आबि रहल अछि माय। हम कोठरीसँ बाहर निकलल छलहुँ । अकाशक तारा आपसमे आँखि झिमकौअल खेल रहल छैक । आ, चन्द्रमा त अप्पन रुपक बजार पसारने छैहे । बाहर कुकुर सेहो आन दिनक अपेक्षा बेसी भुकि रहल छैक । आ कुकुर नढ़ियाक आवाज सुनिकऽ हमरा एते डर लागल जे हम फेर घरेमे आबि कऽ बैसि गेलहुँ ...... आ समय किछु कटा जाए से सोचिकऽ ई पत्र अपनेके नाम लिखऽ के प्रयास कऽ रहल छी । नहि जानि आइ किए नहि किए हमरा निन्न नहि परि रहल अछि । दिन भरिके सोंच एकटा घुटन बनि गेल अछि । ...... नहि जानि एखन कि–कहाँक बात हमरा मोनमे आबि रहल अछि । आ, फेर बेर–बेर हमरा एकहि बात मोन परैए– जहिया हम गाम आएल रही त मोने मन सोंचने छलौ जे आबऽ के खबर सुनि काका–काकी आ, पड़ोशी सभ भेटत । समय सभ ठामक बदलि गेलाक बाबजुदो ओहे पुरान यादके ताजा कऽकऽ सुख–दुःख बाँटव, गाँममे खुशियाली होएतै । मुदा जखन हम केवार ढकढकएने रही— त माय खोललखिन । बाबूजीके खोकीके आवाज मद्धिम–मद्धिम अबैत रहै । आंगन आ असोरा खढ़–पतार आ गर्दासँ भरल रहैक । सन्दुक, अनवारी आ पेटी संगहि सब सरसमान अस्त–ब्यस्त परल रहैक । आ, देवालक स्थिति देखकऽ अनुभव भेल छल जेना कोनो भूत बंगला ।
बाबूजीक देह त एहि बेर पहिलेके तुलनामे आधा भऽ गेल छलनि । बुझाए जेना मात्र हड्डी । हम जखन पएर छुकऽ प्रणाम कैलियनि त हकहकाति कहलैथ –

"के ? ........ बौआ, खुश रहा । "

आन बेर जकाँ एहि बेर हुनका चेहरा पर नहि त खुशीक रोशनी छलनि आ नहि त ममता । माय पिढ़ी लऽ कऽ बैसि गेलखिन । घरक सब बस्तु पर नजरि गड़ौलहुँ फेर माय आ बाबूजीक मुँहपर तकलहुँ । देखकऽ अनुभव भेल जेना ई अप्पन घरे नहि । ओहि घरक सुनापन देखिकऽ हमरो मोनमे डर लागल रहए । ओही घरक चारु दिशसँ मृत्युक कारी छाँही, श्मशानसँ बेशी चुप्पी आ बिधवाक आँखिक नोरक ब्यथा नुकाएल छलैक । घरमे मुर्दाक बसेरा बुझाए परइ । एतऽ जिनगी सभ दिनक लेल सुति रहल बुझाइ । एतऽ कखनो कुकुरके कानल आवाज त कखनो नढ़ियाक आवाज सुनाइ परै । एहन हमर घर त नहि रहे जेहन एखन लागि रहल अछि । जाहि घरमे हमर हंसीके अवाज गुन्जैत रहै छलैक आइ ओहि घरमे हम कानियों नहि सकै छी । घरक कण–कणमे जीवनक मुस्की रहै ..... मुदा ई ओ घर नहि अछि । माय–बाबूजी मात्र हमर मुँह तकैत रहथि । आ, आँखिमे सँ गंगाजी बहैत रहै । कनिक देर हमहुँ बाबूजीक कातमे बैसि गेली । किछु महक संड़ल जकाँ सेहो अनुभव होए । ई सभ देखिकऽ मोने मन होबऽ लागल जे ई मोटाएल देह ककरो नहि देखाबी । हम खाट परसँ उठि गेली । देवालपर जे घड़ी लटकाओल रहै ओकरो अवाज एनाक टकटक अबै जे सुनिकऽ आओर डर लगै । ओतऽ बैसले–बैसल आओर पुरान बात सभ हमरा दिमाग पर नाचऽ लागल । गामसँ शहर हम किछु आर्जन करऽ गेल रही । बेरोजगारीक समस्या त कतऽ नहि छैक मुदा ई किछु आतंककारी लोभी पार्टी सब देशके सत्यानास कऽ कऽ बैसल छैक । मुदा तैयो, जे काज जतबे दिन लेल भेटै ओ करी आ, संगी सभसं नुकाकऽ जतबे बचै ओ नुकाकऽ राखी । सभ दिन गाम मोन परए । आ, गामक मोन परिते माय–बाबूजी आँखिक सामने भऽ जाथिन । बाबूजीक धोती आ मायक नुआ जे मोन परे त अपनेसँ लाज लागि जाए । अप्पन जवानीमे ओ सभ कहियो दुःख नहि कटलनि । चाहे अठारह बिगहा बिका गेलनि त कि ? आब त रहऽ लेल मात्र घर । .... जा मुदा ओ कहाँ छै ? ओकरा त हम तकबो नहि कैलिए— जेकरा हाथसँ मेहदीक रंग मेटाएलो नहि रहै आ हम छोड़िकऽ चलि गेलिए । हमरा हमर प्राणप्रिय पर ध्यान जाइते हम छटपटा गेलहुँ । लगलहुँ आगु–पाछु, एमहर–ओमहर देखऽ । हम त अग्निक साक्षि मानि सात फेरा लगौने रही । लोह, पाथर, पानि आ आगि छुकऽ सप्पत लेने रही । ओ कहाँ छथि ? फेर, हमर नजरि हुनकापर पड़ल । ओ त ओहे नुआ पहिरने छथि जे दुरागमनमे पहिरने रहथि । हुनका देखिकऽ बुझाए परे जेना ओ आगु आबिकऽ पाछु चलि जाथि । हमरा एहने बुझाए जे ओ हमरा बजारहल छथि । स्वभाविक छैक । नव कनिञा, आ सासु–ससुर एतऽ बैसल । केना अएतै । लाजो लागऽके त स्वभाविके छैक । हम एकदमे स्थिरसँ हुनका दिश बढ़ऽलिऐ ।

मुदा, जखने ओहि घरमे पैसली त एकबेर बड़ जोरसँ इजोत बड़लै । आ, फेर अन्हार । हम अप्पन प्राणप्रिय जीवन संगीनिके ताकि रहल छी । हमरा पएरमे किछु गुजगुज जकाँ सटल । हमरा जेबमे लाइटर रहे । निकालिकऽ बारलहुँ .. ईजोत होइते देखलहुँ ... माय, ... बाबुजी, .... आ हमर ओ सेहो सभ एतऽ । निचा बैसिकऽ देखलहुँ ........... सबहे गोटा एकही ठाँम सुतल । जखन छुकऽ देखलहुँ त सबहे गोटा मरि गेल रहै । हमरा छुकऽ देखला बादो विश्वास नहि भेल आ हम जल्दीसँ बाहर निकललहुँ । बाहर त केओ नहि । त फेर ओ सभ के छलै ? फेर भितर आबिकऽ देखलिए त कनिञाक पेट चिरल आ अतरी बाहर निकलल, बाबुजीक आँगुर काटल, मायके हाथ–पएर डोरीसँ बान्हल । कि एहने होबऽचाही । सबहे लासमे किरा फरि गेल रहै । एत जिवन बड कठिन छैक । एतऽ जीवऽके लेल अपनेक आशीर्वादक आवश्यकता अछि । ई गाम हमरो छोड़िकऽ जाए परत या त फेर हमरो मारिदेत से धरि ठेकान नहि छैक । बिशेष कि लिखु ।

अहाँक शिष्य
सन्तोष

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