भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Thursday, May 14, 2009

विदेह' ३४ म अंक १५ मई २००९ (वर्ष २ मास १७ अंक ३४) -part i

'विदेह' ३४ म अंक १५ मई २००९ (वर्ष २ मास १७ अंक ३४)

वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
२.१. हास्यशव्यंeग्यa सम्राट प्रोफेसर हरिमोहन झा प्रेमशंकर सिंह

२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-नदी
२.३. प्रत्यावर्तन - चारिम खेप- कुसुम ठाकुर

२.४ कामिनी कामायनी -कथा- चुट्टा लेमे की चुट्टी़
२.५ डा. कल्पना मिश्र-मातृभाषा
२.६. कथा-मर्यादाक हनन- कुमार मनोज कश्यप
२.७.भाषा आ प्रौद्योगिकी (संगणक,छायांकन,कुँजी पटल/ टंकणक तकनीक) , अन्तर्जालपर मैथिलीआ विश्वव्यापी अन्तर्जालपर लेखन आ ई-प्रकाशन- गजेन्द्र ठाकुर
२.८.बनैत-बिगड़ैत-सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रहक समीक्षा - गजेन्द्र ठाकुर
३. पद्य
३.१. कामिनी कामायनी: आतंकी गाम
३.२. विवेकानंद झा-तीन टा पद्य
३.३. सतीश चन्द्र झा-सोनाक पिजरा

३.४. अओताह मन भावन- सुबोध ठाकुर
३.५.मणिकान्त मिश्र “मनिष”- मिथिला वन्दना
३.६. ज्योति-हम एक बालक मध्य वर्गके

४. गद्य-पद्य भारती -नागपंचमी
मूल कोंकणी कथा : नागपंचम
लेखक : श्री वसंत भगवंत सावंत

हिन्दी अनुवाद : नागपंचमी
अनुवादक : श्री सेबी फर्नानडीस
,मैथिली रूपान्तरण : डॉ. शंभु कुमार सिंह


५. बालानां कृते-१. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ२. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी


६. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)
THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili NovelSahasrabadhani translated by Jyoti.


विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
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१. संपादकीय
आ जे समाज बदलत तँ सामाजिक मूल्य सनातन रहत? प्रगतिशील साहित्यमे अनुभवक पुनर्निर्माण करब, परिवर्तनशील समाज लेल। जाहिसँ प्राकृतिक आ सामाजिक यथार्थक बीच समायोजन होअए। आकि एहि परिवर्तनशील समयकेँ स्थायित्व देबा लेल परम्पराक स्थायी आ मूल तत्वपर आधारित कथाक आवश्यकता अछि। व्यक्ति-हित आ समाज-हितमे द्वैध अछि आ दुनू परस्पर विरोधी अछि। एहिमे संयोजन आवश्यक। विश्व दृष्टि आवश्यक। कथा मात्र विचारक उत्पत्ति नहि अछि जे रोशनाइसँ कागतपर जेना-तेना उतारि देलियैक। ई सामाजिक-ऐतिहासिक दशासँ निर्दिशित होइत अछि।
रामदेव झा जलधर झाक “विलक्षण दाम्पत्य”(मैथिल हित साधन, जयपुर,१९०६ ई.) केँ मैथिलीक आधुनिक कथाक प्रारम्भ मानलन्हि । पुलकित मिश्रक “मोहिनी मोहन” (१९०७-०८), जनसीदनक “ताराक वैधव्य” (मिथिला मिहिर, १९१७ ई.), श्रीकृष्ण ठाकुरक चन्द्रप्रभा, तुलापति सिंहक मदनराज चरित, काली कुमार दासक अदलाक बदला आ कामिनीक जीवन, श्यामानन्द झाक अकिञ्चन, श्री बल्लभ झाक विलासिता, हरिनन्दन ठाकुर “सरोज”क ईश्वरीय रक्षा, शारदानन्द ठाकुर “विनय”क तारा आ श्याम सुन्दर झा “मधुप”क प्रतिज्ञा-पत्र, वैद्यनाथ मिश्र “विद्यासिन्धु”क गप्प-सप्पक खरिहान आ प्रबोध नारायण सिंहक बीछल फूल आएल। हरिमोहन झाक कथा आ यात्रीक उपन्यासिका, राजकमल चौधरी, ललित, रामदेव झा, बलराम, प्रभास कुमार चौधरी, धूमकेतु, राजमोहन झा, साकेतानन्द, विभूति आनन्द, सुन्दर झा “शास्त्री”, धीरेन्द्र, राजेन्द्र किशोर, रेवती रमण लाल, राजेन्द्र विमल, रामभद्र, अशोक, शिवशंकर श्रीनिवास, प्रदीप बिहारी, रमेश, मानेश्वर मनुज, श्याम दरिहरे, कुमार पवन, अनमोल झा, मिथिलेश कुमार झा, हरिश्चन्द्र झा, उपाध्याय भूषण, रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”, भुवनेश्वर पाथेय, बदरी नारायण बर्मा, अयोध्यानाथ चौधरी, रा.ना.सुधाकर, जीतेन्द्र जीत, सुरेन्द्र लाभ, जयनारायण झा “जिज्ञासु”, श्याम सुन्दर “शशि”, रमेश रञ्जन, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, परमेश्वर कापड़ि, तारानन्द वियोगी, नागेन्द्र कुमर, अमरनाथ, देवशंकर नवीन, अनलकान्त,श्रीधरम, नीता झा, विभा रानी, उषाकिरण खान, सुस्मिता पाठक, शेफालिका वर्मा, ज्योत्सना चन्द्रम, लालपरी देवी एहि यात्राकेँ आगाँ बढ़ेलन्हि। मैथिलीमे नीक कथा नहि, नीक नाटक नहि? मैथिलीमे व्याकरण नहि? पनिसोह आ पनिगर एहि तरहक विश्लेषण कतए अछि मैथिली व्याकरण मे वैह अनल, पावक सभ अछि ! मुदा दीनबन्धु झाक धातु रूप पोथीमे जे १०२५ टा एहि तरहक खाँटी रूप अछि, रमानथ झाक मिथिलाभाषाप्रकाशमे जे खाँटी मैथिली व्याकरण अछि, ई दुनू रिसोर्स बुक लए मानकीकरण आ व्याकरणक निर्माण सर्वथा संभव अछि। मुदा भऽ रहल अछि ई जे पानीपतक पहिल युद्धक विश्लेषणमे ई लिखी जे पानीपत आ बाबरक बीचमे युद्ध भेल। रामभद्रकें धीरेन्द्र सर्वश्रेष्ठ मैथिली कथाकारक रूपमे वर्णित कएने छथि मुदा एखन धरि हुनकर कएक टा कथाक विश्लेषण कएल गेल अछि।
विदेह:सदेह:1 (विदेह वर्ष 2: मास:13 :अंक:25) छपि कए आबि गेल मिथिलाक्षर आ देवनागरी दुनू वर्सनमे- विदेह ई-पत्रिकाक पहिल 25 अंकक चुनल रचनाक संग। विशेष जानकारी प्रिंट फॉर्मक स्पॉनसर प्रकाशक साइट http://www.shruti-publication.com/ पर उपलब्ध अछि। संगहि आर्काइवमे विदेह:सदेह:1 केर दुनू वर्सन डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि। ब्रेल स्वरूप सेहो (पचीस अंकक आ बादक सभ अंकक सेहो) देवनागरी आ मिथिलाक्षर वर्सनक संग आर्काइवमे डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि। विदेह:सदेह:2 जनबरी 2010 मे ई-पत्रिकाक 26-50 अंकक चुनल रचनाक संग प्रिंट फॉर्ममे छपत।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १३ मई २००९) ७९ देशक ७९६ ठामसँ २१,८१७ गोटे द्वारा विभिन्नआइ.एस.पी.सँ १,७४,१६६ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।




गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in

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1

सुरेश चौपाल said...
eke ta shabd achhi prashansa me, bah
Reply05/15/2009 at 11:28 PM
2

Dr Palan Jha said...
34m ank bahut nik sankalanak sang, sadhuvad
Reply05/15/2009 at 08:47 PM

२. गद्य
२.१. हास्य4व्यंdग्यध सम्राट प्रोफेसर हरिमोहन झा प्रेमशंकर सिंह

२.२. कथा- सुभाषचन्द्र यादव-नदी
२.३. प्रत्यावर्तन - चारिम खेप- कुसुम ठाकुर

२.४ कामिनी कामायनी -कथा- चुट्टा लेमे की चुट्टी़
२.५ डा. कल्पना मिश्र-मातृभाषा
२.६. कथा-मर्यादाक हनन- कुमार मनोज कश्यप
२.७.भाषा आ प्रौद्योगिकी (संगणक,छायांकन,कुँजी पटल/ टंकणक तकनीक) , अन्तर्जालपर मैथिलीआ विश्वव्यापी अन्तर्जालपर लेखन आ ई-प्रकाशन- गजेन्द्र ठाकुर
२.८.बनैत-बिगड़ैत-सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रहक समीक्षा - गजेन्द्र ठाकुर




डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक,मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण,मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि,स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।

कृति-
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७। सम्पादन-
गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका,महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल,कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन,भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
हास्यकव्यं३ग्यू सम्राट प्रोफेसर हरिमोहन झा
आधुनिक जीवन निश्च३ये विभिन्नल प्रकारक विसंगति एवं विषमता द्वारा खंडित भेल जा रहल अछि। एहन स्थितिमे अभिव्य्क्तिमे तिक्त ता आयब अस्वांभाविक नहि। गंभीर रूपेँ आहत भेल मनुष्यह जखन बाजत तखन ओ व्यंमग्येध बाजत, जखन ओ किछु करत तखन प्रहारे करत। इऐह कारण अछि जे जखन रचनाकार आन्तयरिक एवं बाह्य रूपेँ अपनाकेँ आहत अनुभव करैत छथि तखनओ व्यंेग्याकार बनि जाइत छथि। व्यंयग्यएकारक उत्तरदायित्वह भ’ जाइत छनि जे समसामयिक युगक समस्तइ विसंगतिक आलोचना प्रस्तुनत करथि। वस्तुंत: व्यं्ग्यअ एक एहन साहित्यिक अभिव्यमक्ति अछि जाहिमे व्यक्ति तथा समाजक दुर्बलता, करनी-कथनीक अन्तुरक समीक्षा वा निन्दातकेँ वऋभगिमा दए वार्णत: स्पाष्टि शब्द क माध्यामे प्रहार कयल जाइत अछि। व्यंिग्यो र्णत: अगंभीर रहितहुँ गंभीर भ’ सकैछ, निर्दय रहितहुँ दयालु भ’ सकैछ, प्रहारात्म क होइतहुँ तटस्थ‍ लागि सकैछ, मखौल लगितहुँ वौद्विक भ’ सकैछ, अतिश-योक्ति एवं अतिरंजनाक आभास देवाक बदला पूर्णत: सत्य‍ भ’ सकैछ। व्यंगग्यवमे आक्रमणक मुद्रा तँ अनिवार्य अछि। प्राय व्यिग्यजकेँ उपहास, उपालभ्मत, परिहास, प्रहसन, वाकू-वैदग्य्् एवं वऋवित आदिसँ पृथक क’ देखबाक प्रचलन नहि अछि, किन्तुँ हास्य‍ एवं व्यं ग्यँम किछु विपनता अछि। हास्य निप्प्रवयोजन मुक्त एवं बाह्य धरातलक वस्तुन होइछ तेँ ओ विशिष्टप नहि भ’सकैछ, परन्तुि व्यंतग्म कहियो निप्प्रजयोजन नहि होइछ। व्यंाग्य क प्रयोजन वस्तुशत: गुढ़ एवं मार्तिक अछि।
हास्या मनकेँ सतेज एवं प्राणकेँ सजीव करैत अछि। प्राकृत-हास्यं मानव स्वअभावक उज्जतवल गुण थीक। एहिमे घृणा वा विरक्तिक लेशो नहि रहैत छैक। सिद्वान्त।, व्यतवहार, धारणा एवं वस्तु स्वहरूपक बीचक असंगति हमरा हँसवाक हेतु बाध्यह करैछ। प्राकृत-हास्य कटुताक बोध नहि करबैत अछि, प्रत्सु त असीम सामान्यहता एवं असंगति वा अन्तकविरोध ‘हास्या-कर’ होइछ। गंभीर स्ततर पर तँ ओ दु:ख, पीड़ा, वेदना उत्प्न्न् करैछ।
प्राकृत-हास्यवमे एहि हेतु एक प्रकारक वृहत् अनुभतिक आशा रहैत अछि आ सामान्य अनभिज्ञता वा उपलब्धि सेहो। उच्चातम हास्यससँ कोमलता एवं करूणाचाक अभद संबंध रहैत अछि। हास्यअसँ हमर अभिप्राय ओहि प्रत्येचक मन: स्थि‍तिसँ अछि जकरा हास्यं व्यंसग्यस, हँसी-ठट्टा कौतुक, विनोद-रसिकता आदि शब्दनसेँ साहित्य्मे व्यतक्तम कयल जाइत अछि। अंग्रैजीमे ह् युमर शब्दरमे आअँरँनि, रौटाइअँ, फन, जोक्स , प्लेवजन्ट्रि जेस्ट्, विट, फारस, पैरडि, रिड्-इक्यूजल, आदि द्वारा व्त्् सम्पू्र्ण मन:
स्थिति कोनो ने कोनो रूपसँ मिश्रित अछि। अतएब अंग्रेजीकहू युमर धारणसँ अर्वाचीन साहित्य‍ अत्यटधिक प्रभावित अछि।
रसमयी रचनाक सिद्वहस्तू प्रर्ण हास्यबरसावतार प्रोफेसर हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली कयलनि अपन अद्वितीय प्रतिभाक परिचय देलनि अछि। एकरे फलस्व रूप ओ एतेक लोकप्रियता अजित कय‍‍लनि। एहिसँ सिद्व भ’ गेल अछि जे मिथिलाक पावन भूमि एहि क्षेतमे विद्यापतिक जन्मत द’ सकैछ। हिनक उपलब्ध रचनामे गद्यक प्रधानता अछि हिक प्रदृत्ति कथा-साहित्य दिस विशेष रहल। हिनक पूर्ववर्ती कथाकार कथामे गद्यक उत्प न्नन क’ अन्त मे पातक हत्याि क’ दैत छलाह। अवसाद एवं निराशाक वातावरणसँ संपूर्ण मैथिली कथा साहित्यन तिमिराच्छअन्न‍ भ’ रहल छल। मैथिली साहित्य मे ई श्रेय प्रो. हरिमोहन झाकेँ छनि जे सर्वप्रथम एहि प्रवृत्तिकेँ चिन्हालनिआ आ एहिसँ पृथक भ’हास्यह-व्यंहग्यमक नव प्रवृत्तिक अवलम्बमन कयलनि। मैथिलीक पाठककेँ अवसादमय वातावरणसँ फराक क’ हास्या व्यंथग्यिक एक नवीन मागेक रश्मि प्रदान कयलनि। मौथिलीमे हिनह हास्यम-व्यंँग्यासं युक्त रचनाम कन्यािदान, द्विरागमत, प्रणम्यम देवता, रंगशाला, खट्टर ककाक तरंग, चर्चरी, एवं एकादशी, पुस्त काकार प्रकाशित अछि। एहिसँ अतिरिक्तो‍ किछु कथा तथा स्फुतट कविता समय-समय पर पतिकादिमे यत-तत प्रकाशित अछि जाहिमे हास्यअ-व्यं‍ग्घछक अजस्त्रद धारा बहाओल गेल अछि। जीवनक प्रत्यगक्ष देखल अनुभवगम्यण रूपकेँ हास्यि-व्यं‍ग्य्क माध्यघमे चितित करब हिनक वैशिष्ट्य अछि। समकालीन मैथिल समाजक कुरूचिपूर्ण एवं सामाजिक विकृति पर कुठाराघात करैत-करैत ई अतिरजनाक आश्रय सेहो लेलनि अछि। जीबनमे अतविरोध, असंगति, क्षुद्र प्रव़त्ति, मूर्खतापूर्ण संघर्ष, बाबा वाक्यि प्रमाणमूक हठधर्मिता, दम्भन, पाखण्डी, ढोंग, मिथ्याघ बड़प्पंन, स्वाखर्थ-परता आदि हिनक हास्य।-व्यं्ग्य क प्रमुख आलम्ब न रहल अछि। हिनक रचनामे आचार, अनुष्ठािन एवं धार्मिक वाह्याडम्बगरक प्रति तीव्र आत्रोश भेटैत अछि। ई अपन रचनामे मानव मनक मोद, मोह, शोक, वेदनाकेँ एक मनोवैज्ञानिक जकाँ पर्यवेक्षण कयलनि अछि। वस्तुपत: ग्राम्यण परिवेशक यथार्थक अवतारणामे ई सिद्वहस्त छथि।
’कन्यावदान’ एवं ‘द्विरागमन’ हिनक बहुचर्चित उपन्या्स थीक। मैथिली उपन्यातसमे‘कन्याूदान’ क विशेष महत्व अछि। एहिमे अनमेल विवाहक समस्या केँ उठाओल गेल अछि। पति-पनीक क ई बेमेल ओकर अवस्थाी वा रूपक कारणे नहि, प्रत्युात शिक्षा दीक्षाकेँ ल’ कय अछि। एक एम.ए. पास युवकक विवाह ए.बी.सी. पर्यन्त् नहि जननिहारि कनियाक संग होइत छैक। एहि प्रकारक विवाहकेँ उपन्यापसकार नाटक काहेकद्ध भर्त्समना करैत छथि। अतएव स्त्री -शिक्षा ‘कन्यापदान’ क प्रमुख स्व्र थीक। एतय उपन्या सकार मैथिल समाजमे प्रचलित वैवाहिक विपमताकेँ अपन हास्यक पृष्ठिभूमि बनौलनि।
एकर नायक सी.बी. मिश्र अत्याकधुनिक पाश्चादत्या सभ्य्ताक प्रती।क थिकाह जे ग्रामीण परिवेशसँ अनभिज रहलाक कारणेँ अपन आतृभाषा पर्यन्त्सँ अपरिचित भ’ जाइत छथि। नायिका बुच्चीव दाइ प्राचीन मैथिल संस्कृातिक प्रतीक थिकीह जनिका पर पाश्चाँत्यि सभ्यइताक कोनो छाप नहि छनि। नायक-नायिका संधर्षमय परिस्थितिक चिद्रण कय उपन्याकसकार हास्यच-ध्यंयग्यतसेँ ओत-प्रोत वातावरएणक निर्माण पाठकक हेतु कयलेनि अछि। कन्या दानक अवसर पर जखन नायकस नाम पुछल जाइत छनि तखन ओ उत्तर दँत छथि—‘हमर नाम छय सी. सी. मिश्रा।‘1 एहन उत्तर सुनि मिथिलाक अशिक्षित महिलावृन्दमक अट्टहाससँ सम्पूरर्ण वातावरण गुंजित भ’ जाइत अछि। एहि पर एक तरूणी जे अपनाकेँ सबसेँ कुधियारि बुझैत छवि ओ छथि ओ टिप्पाणी करैत छथिन—‘नखन तँ बोतल मिसर हिंनक बापे होइथिन।द्धद्ध वस्तुतत: एहि प्रकारक कथोपकथन उपन्याथसमे अनेक स्थनल पर आयल अछि, जतय उपन्याइसकार हास्य‍-रससँ युक्तर वातावरणक निर्माण करबामे सफल भेलाह् भेलाह् अछि, ओतडि अशिक्षित मैथिलानी पर व्यंाग्यत सेहो कयलनि अछि।
एकर किछु चरितकँ व्ययग्यं्कार एहि प्रकारेँ प्रस्तुरत कयलनि अछि जे पाठक पर अपन अमि‍ट छाप छोड़ैत छथि। ‘कन्या दान’ क घटकराज टुन्नीप झाक स्वतरूप, बजबाक शैली एवं उच्चापरण प्रऋियासँ लोक चीन्हि जाइत अछि जे घटकैती करबामे पूर्ण अनुभवी भ’ गेला पर कथा तीन प्रकारेँ स्थिर करैत छथि ‘’एकटा खनखनौआ जाहिमे कन्याकगत खनखनाके टाका हँसोथि लैत छथि। दोसर मानि लिय टनटनौआ जाहिमे बर पक्ष टनटनाक’ हजार पाँच शैक तोरा गनबैत छथि। तेसर मानि लिय ठनठनौआ जाहिमे वर कन्याकगत दुह ठनठन गोपाल भए काज करैत छथि। हिनक खनखनौआ, टन-टनौआ, ठनठनौआ बलाघटकैतीक वृत्तान्तठ सुनितहि पाठक हँसैत-हँसैत लोट-पोट भ’ जाइत अछि। घटक-राज अपन वाक्-पटुतासे सेहो मनोरंजन करैत छथि। घटकराजकेँ घटकैतीक प्रति ई वैज्ञानिक दृष्टिकोण देखाय उपन्यातसकार हनका अपूर्व क्षमता प्रदान कयलनि अछि। जनैत एहिसै सफल चरिख कन्याा-दानमे आर कोनो नहि अछि तकर कारण जे टुन्नीर झा जकाँ अपन पक्षक प्रतिपादन बुते नहि भेलनि। ओ सामाजकि दोप तिलक-प्रथाक स्ततम्भे स्वकरूप थिकाह। एकरे फलस्वकरूप मैथिल समाज दिन प्रतिदिन जजेरित भैल जा रहल अछि।
’कन्यावदान’ एवं द्विरागमन अविस्मभरणीय चरिख झारखण्डीकनाथक क्रिया-कलाप, बाजब-भुकब, चलब-फिरब, खायब-पीयब सभमे हल्लुसक हास्या भेटैत अछि। झारखण्डीखकेँ वास्तावसे एतबा ज्ञान नहि छनि जे लाल काकीक तारक विपयमे ककरो आगूमे चर्चा नहि करबाक प्रतिज्ञा क’ एकर पालन करी। डाक्टारक संग हुनक कथोपकथनक एक अंश थवणीय अछि ‘’हमरा आङनमे कव्जियत बूझि पाता है। रामजीक परतापसँ कहियो-कहियो पेटो फूलि जाता है और लोक बेद नीके रहता है।‘’ जतेक बेर‘कन्याजदान’ पाठक द्वारा बयम पुछला पर हुनक उत्तर तँ सुनू—‘’ सरकार ! हमरा लोक सभ दुलारसँ ‘खट्टर’ कहता है, लेकिन असल नाम झारखण्डीन माय-बाप राखि दिया। और उमिरमे सरकार सब भाईसँ छोट है।‘’ ‘द्विरागमन’ मे झारखण्डीवनाथ लाल ककाक ओतय बुच्ची् दाइक शिक्षिका मेम साहेबक स्वा गत करबाक हेतु प्रस्तुैत होइत छथि। मेम साहेब हुनकासँ जिज्ञासा करैत छथिन—‘’ बाथ एहि ठामसँ बहुत दूर है। कोस छबेक-सातेकसँ कम नहि पड़ेगा। बाथ (गाम) मे आपका के रहता है ?‘6
बहवाँडि उत्तर तथा अपरिचित भाषाक नकलसँ एहिठाम हँसी लगैत अछि। उपन्या सकार हास्यस उत्प न्ना करबाक हेतु कतिपय चरित केँ अवलम्बन बनौलनि अछि। पुरोहित, जनिका लेल शुद्व उच्चा रण करब गुण नहि, प्रत्युेत आवश्य क छनि ; तोतराइत छथि। एहन पुरोहितक प्रसंगमे उपन्यागसकार कहैत छथि—‘’ पंडित नवोनाथ झा तोताराइत-तोतराइत कंठरूपी बोरासँ उभड़-खाभड़ मंतक रोड़ा गड़गड़ा कए उझिलय लगलाह।‘’; मोहरिर जे लिखाइ-पढ़ाइ करैत-करैत बूढ़ भ’ गेल छथि, किन्तुि तारक ‘क’ अक्षर पढ़बाक परिश्रममे परिश्रममे असफल भ’ जाइत छथि। बड़का गामवाली एवं बटुक जी प्राचीन परंपरागत रूढि़क झुंडमे रहितहुं शुद्व ओहि पक्षक पक्षपाती नहि छथि। हिनका सभक चरित्रमे साधारण बुद्वि उपन्याचसक अन्यू पात्रक अपेक्षेँ अधिक मात्रामे छनि। बटुक जी मूर्ख रहितहुँ अदूषित बुद्विक छथि। हिनक वार्तालय पाठकक मनोरंजन करैत अछि। एहि दृष्टिसँ सी. सी. मिश्रक प्रसंग हिनक कथ्यर विलेक्षण अछि —‘’ हमरा लेखेँ त कुछ न छथ। ‘शंशकीरित’ मे हमरा साथ न बोल सकँ छथ। एगी कनी गो ‘जोतिश’के बाम पूछ देलिएन ता‍हीमे ढोकार हो गेलन। शीशूबोध के एगो इशलोक पूछलिऐन त चूड़ा अमौट दुन्नू खसे लगलैन। कुछ न छथ। मङनीमे महग छथ’’ ग्रामीण परिवेशमे रहितहुँ बड़का गामबाली पाश्चा त्यङ सभ्य ताक प्रतीक थिकीह जे सी. सी. मिश्रकेँ अपन हाथक कठपुतरी बना लैत छथि। हिनकेमे सी. सी. मिश्र अपन भावी पत्नीयक मधुर कल्पतना करय लगैत छथि जकर वास्तनविकताक रहस्योसदघाटन चतुर्थीक राति भ’जाइत अछि। उपर्युक्त नरित्र उपन्याथसमे ‘कौमिक वातावरण उत्पदन्न करबामे सहायक भेल अछि। भेल अछि। एहन-एहन पात्रक वृत्तान्तज पढि़ क’ हँसी तँ लगबे करैछ, संगहि इही अनुभव होइछ जे समाजक प्रत्येछक अंगमे सुधारक प्रयोजन अछि।
‘प्रणम्यर-देवता काटाक्ष-पूर्ण रेखा-चित्र अछि जे प्रधानत: सामाजिक आलोचना प्रस्तुयत करैत अछि। एहिमे ओ प्राचीन कथा-पद्वतिकेँ ग्रहण क’ गंभीर सँ-गंभीर विषयकेँ सरस-सुस्वािदु बना क’ जनमन-रंजनक संग रूढि़-ग्रस्तत जीर्ण-शीर्ण, विचारधारा परआधात‍ कय नवीन प्रगतिक प्रेरणा दैत छथि। हिनका ने तँ प्राचीन अन्धब-विश्वामसक प्रति निष्ठार छनि आने नवीनताक प्रति आसक्ति। एहिमे हास्यप-व्यंछग्य क सबसँ उपयुक्ता स्थाल तखन अवैत अछि जखन ओ भोजन अथवा धर्माचरणक प्रसंगकेँ ल’ कय कथाक पुष्ठिभूमि बनबैत छथि। जेना ‘विकट-पाहुन’ क चित्रणमे भोजन-प्रियता एवं अव्यथवहार-कुशलताक कारणेँ हिनका सभकेँ दोसराक असौकर्यक कोनो ध्यानन नहि रहैत छनि। पाहुनलोकनि अपन परिचय प्रोफेसर साहेवक लग कोना दैत छथि से देखू—‘’हें-हें-हें-हें अपने जे किने से हमरा चिन्हनने हैब1 चीन्हसब कोना ? कहियो देखने रही तखन ने ! हम अपनेक मसियौतक जे किने से-साढ़ू क पिसिऔत भाय होयबैन्हि।‘’ एहि प्रकारक परिचये वास्तखवमे हास्याोस्पनद भ’ जाइत अछि। अध्रपक्कस कटहर, एक हत्थान पाकल केरा, एक बोतल धृत, माल्टेनड मिल्कय, एक पसेरी दालमोट एवं एक धरिका अमोटसँ गजेन्रटद्र नाथ, ब्रजेन्द्रल नाथ, भीमेन्द्र नाथ एवं दिसम्बलर नाथक पनरिआइ होइत छनि। आब भोजनक सूची दिस दृकूपात करू— ‘’किन्तु् हमर सरबेटा दिगम्बोर नाथ—हें-हें-हें बिनु सोजने भात कोना खैताह ? हिनका लेल छनुआ सोहारी, अनोन तरकारी बना देबँन्ह । मधुरक संग खा लेताह। हमरालोकनि तँ- हेँ-हेँ-हेँ-हेँ धरे थिक। भोजनमे जे किने से भात, दालि, तरकारी, धृत, दही, चीनी, सब, आर की। हमरा संगमे एकटा जमीरी नेबो अछि से दूरि भेल जाइत अछि। तेँ थोड़ँ क मोछो मंगा लेब।‘’ मैथिलक भोजनप्रियताक एलबम एहिमे भेटि जाइत अछि जे हास्यत उत्पोन्नो करबामे सहायक सिद्व होइछ।
’प्रणम्यक-देवता’ मे धार्मिक आचरणक उल्ले्ख ‘धर्मशास्त्रइचार्य’ एवं ‘ज्यो,तिषाचार्य मे विशेष रूपेँ भेल अछि। धर्मशास्त्रकचार्य महामहोपाध्या य धुरन्ध र शास्त्रीं अपन धार्मिक एवं आडम्बथर ततेक ने पसारैत छथि जे पहिने ओ गामक लोक पर हँसैत छलाह; किन्तुा बाह्याडम्बररक विरोध भेला पर आब हुनके पर संपूर्ण गाम हँसय लगैत अछि।‘ज्योततिपाचार्य ‘क अन्त्र्गत ज्योकतिप जनित आडम्बसर पर व्यं ग्य कयल गेल अछि। एहि दोपपूर्ण कारणेँ आदिस्योनाथ एवं मार्त्तण्डानाथक बीच टीका-‍टिकोअलि सेहो भ’ जाइत छनि।
एहिमे सामाजिक समस्या क अतिरिक्तड पारिवारिक समस्याज पर सेहो व्यंबग्या कयल गेल अछि। ‘साझी आश्रम’ मे जे चित्र प्रस्तुसत कयल गेल अछि ओहि आधार पर परिवार सुख-साधनक बदला दु:खक अपार सागर बनि गेल अछि। वस्तुतत: साझी आश्रयक जे दुर्दशा होइत छैक तकर एलबम भगीरथ झाक परिवारमे भेटैत अछि।11
व्य।ग्य कार अत्यालधुनिक युगमे फैशनक बढ़ैत स्वकरूप पर दृष्टिगम करैत छथि तँ हुनक लेखनी अत्ययधिक प्रखर भ’ जाइत छनि। एहि, प्रकारक फैशनक अत्यकधिक प्रभाव समकालीन नवयुवक समुदाय पर पड़ल अछि। अत्य’धिक बनने दुर्घटना भ’ जैबाक संभावना रहैत छैक। आइ काल्हुमक अप-टुडेट लेडी’ क प्रतीक थिकीहु ‘मंजुला देवी।‘’12‘नकली लेडी’ कोना सहजहि गमा जाइत छथि से ‘प्रणम्य् देवता’ क ‘अंगरेजिया बाबू’क पत्नीु ‘चमेली दाइ छथि।13 हुनक नकली स्वलरूप तँ देखू—‘’ हे भगवान ! ई की !श्रीमती जी सबटा चौपट कैलैन्हि। नाक पर ‘स्नोी’ लागल। कनपटद्यटी पर ‘पाउडर’पोतल ! गाल पर ‘लिपिस्टिक’ ढेउरल ! ठोर पर ‘नेल पालिश लेभरल ! हाय ! हाय !बहुरूपियाक वेश बना लेलन्हि ।‘’ जे ‘हिन्दुलस्तापनी साहेब’ अंग्रेजक ‘प्रियतम सम्बपन्धीक बनय चाहैत छथि तनिक झलक मधुकान्तो चारत्रमे भेटैत अछि।
’रंगशाला’ क प्रत्ये क कथा ओना तँ हास्य।-व्यंनग्सँत ओत-प्रोत अछि, किन्तुस एकरा हिनक अन्याउन्यं रचना सदृश लो‍कप्रियता नहि भेटलैक। एहि प्रसंगमे ओ लिखैत छथि—‘’ई तेहन मनोनुकूल नहि भेल आ ततबा लोकप्रियो नहि भ’ सकल। तथापि एकरा द्वारा एक ढर्रा कायम भ’ गेलँक और गोटा नव-नव पर कथा-कहानी लिखय लगलाह।‘’15एकर प्रत्येएक कथा एक वर्ग विशेषक प्रतिनिधित्वट करैछ। हास्य -व्यंगगक माध्यसमे कथाकार सामाजिक दुर्नीतिसँ समाजकेँ पथक करबाक प्रयास कयलनि अछि। पात्रक चयनमे कथाकारकेँ बीआय नहि पड़लनि कथाकार स्वँयं एहि तथ्य केँ स्वीिकार करैत छथि—‘’ हँसि, हँसि कऽ आनन्द कियेक ने लेल जाय ? क्षणिके विनोद सही, रसक छिटका तँ भेटत। कोन ठेकान, कदाचित एतबे मात्र सत्या होइक।‘’16
हास्यि व्यं ग्यिक अत्यरन्ता सजीव ‘खट्टर तरंग’ मे उपलब्धक होइछ। एकर कधा नायक खट्टर कका पूर्णत विनोदी प्रकृतिक व्ययक्ति छथि। हिनक प्रत्येरक बात विनोदपूर्ण होइत छनि। ई अपन प्रत्यु्त्पान्नममतित्व्क कारणेँ सदिखन काव्यत-शास्त्रथ:विनोदक धारा प्रवाहित करैत्‍ छथि। हिनक विनोदपूर्ण वार्तामे व्यंबगयकार व्यरक्ति, समाज धर्म, दर्शन आदिक कटू आलोचना करैत छथि। थैकरे जकरा ‘राउण्डि एबाउट पेपर्स’ कहलनि तकरा व्यंमग्यमकार खट्टर ककाक समक्ष परम्पकर-के केन्द्र विन्दुर बनबैत छथि। ओकर चारू भाग नवीन विचार-धारा प्रस्तुयत करैत छथि। आधुनिक परिप्रेक्ष्यमेक प्राचीन मान्य ता कोनो अर्थ नहि रखैत अछि। ‘खट्टर ककाक तरंग’ मे वणित विषय विचारात्मिक, सरस एवं मनोरंजक अछि। हिनक वात लुती सन होइत छनि। ई देशक मूर्खताक श्रेय पंडितकेँ दैत छथि। एहि कमये ई असली एवं नकली पंडितक सम्पजक् विश्लेलषण कयलनि अछि—‘’ असली पंडित विद्याक अन्वेकषणमे रहैत छथि, नकली पंडित विदाइक अन्वेलषणमे। असली ज्ञानक विस्तालर करैत छथि, नकली पंडित धोधिक विस्ताईर असली पंडित सूर्खताक संहार करैत छथि, नकली पंडित केवल मधुरक।‘’ हिनका अनुसारे वैह वासतवमे पाडित्य प्राप्ता कयने छाथे जे अपन बुद्विक प्रयोग नित-नूतन आविष्का‍र हेतु करैत छथि। क
वेद-पुराण, कमेकांड-धर्मशास्त्रय गीता-वेदान्तो, रामाण-महाभारत, ज्यो।तिष-आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र, देवी-देवता स्व र्ग-नरक, पुनर्जन्मै-मोक्ष, पाप-पण्य‍ सभकेँ ई कोना लैत छथि से देखबाक एवं हँसबाक अवसर एहीमे भेटँत अछि। एकर मर्मस्प शी व्यंषग्या अन्त्स्तयलमे पहुँचि सुरसुरी लगा दैत अछि। ओ अन्धर-विश्वामस, धार्मिक पाखण्डर दोंग, रूढि़ आदिक प्रति व्यंशग्य क माध्ययमे भयानक विद्रोह करैत छथि। एहि प्रकारक मतक खण्ड नमे हिनका ततवा रस भेटँत छनि जे सामाजिक रूढि़ वा अन्धंविश्वानस पर प्रहार करबाक हेतु ई संदिखन भंगघोटना लेने तत्पहर रहैत छथि। जा‍धरि पाश्चावत्यक-प्राच्यप सभ्यतता एवं संस्कृकतिक समन्व्य नहि हैत ताधरि जीवनक कोनो मूल्या नहि। अतएव एहन समन्वाय कोन प्रकारेँ होमक चाही ? युगक अनुसारेँ समन्व य अनिवार्य प्रतीत होइत अछि। एहि प्रसगमे खट्टरककाक दावा छनि जे ओ गोनू एवं गंगेश दुनूक वंशज थिकाह तखन पाश्चामत्यं सभ्ययताक प्रतीक बूझब भ्रम थीक। हुनक कथन छनि जे ‘’ही इयैह बात तँ बुझबामे नहि अबैत अछि। कोन प्रकारेँ सम्व्क बथ करै कहैत छह ? आबसँ शिवजीक माथ पर ‘सोडा वाटर’ ढारि दिऐन्हह ? भगवती केँ औचरक बदला ‘गाउन’ ओढ़ा दिऐन्हं? कुल देवताकेँ लिपिस्टिक लगा दिऐन्हड ? श्राद्वमे ‘केक’ ल’ कए पिंड दी? ब्राह्यण भोजन करा क’ ‘बिल’ द’ दिएन्ह ? जनउ धोबक हेतु ‘लोण्ड्री ’ मे द’ दिऐक ? तारा काकीकेँ अंग्रेजीमे समदाउन गाबय कहिऐन्हब।‘18
एहि प्रकारेँ परम्पउरावादिताक जालमे ओझरयल समाज एवं व्य क्ति पर ओ जे व्यं स्यव कयलनि अछि ताहिमे शाश्त्रक क माधुर्य्य एवं कुनैनक तिक्तताक प्राचुर्य अछि। हुनक कथन छनि ‘’हमर बात् होइत अछि ओलक टोंटी कतेक गोटाकेँ भक द’ लगतँन्हन। कतेक गोटाकेँ अमाँशय उखडि़ जेतँन्ह ।‘’19 हिनक विनोदपूर्ण विचार-पाठक विशेष रूपसेँ मनोरंजन करबे करैत अछि संगहि स्थेल-स्थ़ल पर व्यंऐग्यह रूप तेहन झँसिगर भऽ गेल अछि जे औखि-नाकसँ पानि सेहो बहय लगैत । एहिसँ स्पथष्टअ जाइछ जे हिनक व्यंंयक अत्एंतत स्पऽष्टि रूप एहिमे उपलब्धू होइछ।
चर्चरी हिनक विविध रूपक रचना संग्रह थीक। एहिमे कथा-पिहानी, एकांकी-प्रहसन, गप्प -सप्प किछु संगृहीत ओछ जाहिमे प्राचीनता एवं आधुनिकता पर समान रूपेँ व्यंँग्यी कयल गेल अछि। परम्प-रावा एवं अन्धोविश्वाेसी मैथिल संस्कृरतिक प्रतीक थिकाह भोल बाबा, जे अपन वाक् चातुर्य्यसँ हास्या एवं व्यंअग्यवक धारा बहौलनि अछि। ओ पुरातनताक पृष्ठतभूमिमे अर्वाचीनताक जन्म, मानैत छथि। उपर्युक्तँ परिप्रेक्ष्पवमे हिनक‘दलान परक गप्प ’, ‘चौपाडि़ परक’, ‘धूर तरक गप्प्’ एवं ‘पोखरि परक गप्पा’ विशेष उल्लेुखनीय अछि। हिनक मान्येता छनि जे प्राचीन महापुरूष लोकनिक आदर्शमय जीवन छलनि। ओ स्वा,भिमान, मर्यादा एवं मनस्विताक सुरक्षार्थ सतत तत्प्र रहैत छलाह। भोल बाबाक अनुसारेँ आधुनिक सभ्यतास प्राचीन पृष्ठरभूमिमे कोनो अर्थ नहि रखैछ। ई प्राचीनकेँ आदर्श-मानि आधुनिकता पर व्यंआग्यं करैत कहैत छथि जे आधुनिक समयमे सब प्राचीन वस्तुै समाप्तप भेल जा रहल अछि—‘’हाथीकेँ मोटर खयलक, धोड़ाकेँ साइकिल खयलक, रामलीलाकेँ सिनेमा खयलक, भोज केँ पार्टी खयलक, भाँगकेँ चाह खयलक तथा संस्कृ्तिकेँ अंग्रजी खयलक।‘’20’’
हरिमोहन झा हास्यह-व्यंचग्यसक माध्यकमे नारी जागरणक शंखनाद कयलनि। चर्चरीक अनेक कथाक माध्य मे ओ मिथिलाक तारीमे दुर्गाक रूप प्रतिष्ठिन करय चाहैत छलाह। ग्रेजुएट पुतोहु’21 मेमे जाग्रत नारीक प्रति समाजमे उत्पलन्नु प्रति‍कियासँ परिचय करबैत छथि। ‘ ग्राम सेविका’22 मे ओ जाग्रत नारीक मंजुल मंगलमयी मूर्तिकेँ प्रतिष्ठित करैत छथि। नारी जागरणक फलस्वकरूप ओहो सब आब काटरक विरोधमे नारा लगबैत छथि। ‘एहि बाटे आबै छथि सुरसरि धार’23 मे मिथिलाक नारी अनमेल विवाह एवं तिलक दहेजक विरोधमे आवाज उठौलनि। ओ सब कहैत छथि जे ‘’ बिकी बला वर जाथु अपन घर। जे मँगताह हजार से रहताह कुमार। जे गनताह ओ कनताह। घटक पजियार होठ होशियार आब ने चलत ई रोजगार।‘24
किछुए दिनक पश्चा।त् नारीक एतेक बेशी जागरण भेल जे ओ सब आदर्श-विवाहक हेतु आन्दोरलन प्रारंभ कयलनि। समाजक एहन कांति देखि व्यंीग्यजकार कहैत छथि ‘’ हरब तिलक ने तँ रहब कुमारि। जे नहि करताह द्रव्य क माँग, सैह भरता कन्यााक माँग। तिलक करू दूर तखन दिअ सिन्दूँर।‘’25 एहन परिवर्तित परिस्थितिमे नारी पुरूषक संग चलब प्रारंभ कयलनि तकरा देखि भोल बाबा चिन्तित भऽ जाइत छथि। ओ कहैत छथिि जे नारी जागरणक फलस्व रूप ‘’पुरूषक संग बैसि क’ दौड़ैत अछि, कुदैत अछि, फनैत अछि, हेलैत अछि, नचैत अछि।‘’26
हिनक हास्ये व्यंैग्य’क प्रतिभाक वास्तदतिवक प्रस्फुगटन हिनक काव्य़मे भेल अछि। हिनक हास्यग व्यंछग्यैक रूप अधिक स्प्ष्टय तखन होइत अछि जखन ओ समकालीन समाजमे प्रचलित अवस्था क कारणेँ अनमेल विवाहक समस्या् पर प्रहार करैत छथि। मिथिलाक सामाजिक जीवनमे ई मान्य्ता प्रचलित रहल अछि जे पुरूष कतबो विवाह किऐक ने करथु, किन्तु नारी एकहि विवाहक अधिकारिणी छथि। एकरे फलस्वषरूप वृद्व व्याक्ति अपन कुलीनताक आधार पर अनेक विवाह करैत छथि। व्यंाग्यह-‍कवि एहि पृष्ठए भूमिक व्यंवग्यावत्म क शब्दि चित्र अपन प्रसिद्व कविता ^ढालाझा’27 मे प्रसतुत कयलनि अछि। ढाला झाक स्वफरूपक चित्रण करैत कहैत छथि जे हुनक माथ पर फाटल पुरान पाग तथा कान्हि पर गोबनौर सन अंगपोछा, माथ खल्वा ट, त्रिपुण्डाछक तीन ठोप तथा पैध रूद्राथ टीकमे बान्हथल छनि। इऐह थिकाह ढाला झा, लुट्टी झाक प्रणैत्र, नरहा पौजि, ककड़ौड़क वासी एवं बेलौंचेक वंशज। हिनक यथार्थ स्वइरूप कार्टून सदृश अछि जकरा देखतहि पाठकक हास्यडक कोनो अन्ते नहि रहैछ। औ बहुविवाहमे विश्वासस रखनिहार ओहि प्राचीन परम्प राक अनुमो‍दक तथा कुलीन प्रथाक प्रतीक थिकाह जे सासुरकेँ आर्थिक आयक अजस्त्र स्त्रोत मानैत छथि। समय-समय पर ओ ओतय ओहिना प्रस्तुीत होइत छथि जेना महाजन लहना-तगादाक हेतु खदुकाक ओतय जाइछ। ओ अपन श्व सुरक प्रसंगमे जिज्ञासा करैत छथि—
कहाँ गेलाह फल्लाँ झा कन्याञदानी श्वुशुर हुमर
हुनकासँ जरूरी खानगीमे गप्पँ करबाक अछि22
कुलीनताक कारणेँ ढाला झा अपन श्वकसुरक प्रति एहन संबोधत दैत छथि। मैथिल समाज विभिन्न प्रकारक पाँजि एवं जातिक नाम पर विभाजित अछि। ओ श्वसशुरसँ भरना छोड़ैबाक हेतु टाकाक मांग करैत छथिप, किन्तुए हुनक अस्वीभकारात्मसक उत्तर पाबि बमकि उठैत छथि—
सासुरक अछि कोन कमी, जाइत छी दोसर ठाम
जे नहि रूपेया देत, भोगत भरि जन्मो फल
बेटी हकन्ने रहतइ कनैत ओकर जीवन भरि
हमरा की ? जेम्हकरे जैब, सार कोनो भेटिए जैत।
ई कहि फराठी लैत, लग्गाी सन डेग दैत
मैल किट्ट फाटल पुरान पाग माथ पर
लैत अङपोछा कान्हु, कुद्व कठकोंकाँडि़ जकाँ
विदा भेलाह ढाला झा पित्ते थर-थर कपैत 29
एतय हास्यहमे सन्निहित व्य-ग्यक द्वारा ओ सामाजिक दोष दिस सर्वसाधारणक दृष्टिकेँ आकृष्टर करैत छथि।
मिथिला मध्यढ एहि प्रकारक वैवाहिक प्रचलन मुख्य त: जाति-पाँति पर अवलंबित अछि। मैथिलके गर्व छनि जे ओ श्रीकान्तढ झा, महादेव झा, यजुआड़ै एवं बेलौचेक वंशज थिकाह। वस्तुषत: मूल आर गोत्र पर समाज ततेक विश्वाढस करैत अछि जे ओहि वितण्डाझवादक फलस्वडरूप ओकर अध: पतन शनै-शनै भेल जा रहल अछि। एहि प्रकारक परंपरावादीद वैवाहिक कुरीतिसँ जर्जरित समाजक पाँजि’ पाटि, सिद्वान्तअ पतड़ा, हरिसिंह देवी व्य वस्थाैओ कर्मकाण्डक पर व्यं ग्यर कवि कहैत छथि जे आधुनिक परिप्रेक्ष्य मे ओ सब ‘आगि’ मे धू-धू क’ जरि रहल अछि—
रातिमे हम स्वाप्न‍ देखल, आगि लागल घर जरैये।
चार सभ पुरना धधकि कय जोर सँ धू-धू करैये।।31
जहिना जहिना आधुनिकताक अग्नि अत्यँधिक प्रज्वेलित भेल जा रहल अछि तहिना पुरातन-ताक धज्जी्-धज्जीर उडि़ रहल अछि। एतय ओ अन्ध्विश्वा्स, असमर्थता, आडम्ब र, धर्म-नीति एवं संस्कृसति पर निर्ममता र्वक व्यं ग्य कयलनि अछि जतय फोंका पर्यन्त बहरा जाइत अछि।
अर्थाभावक कारणेँ समकालीन मैथिल समाजमे कन्याक-विकयक प्रथा सेहो प्रचलित अछि। कन्याध-विकयक कारणेँ अनमेल विवाहकेँ प्रोत्सा हन भेटल अछि। एकरे परिणाम थीक जे कोमल कलीकेँ कोकनल ढेंगक संग विर्वाह करय पडैत छनि। व्यंतग्याकार‘कन्यामक नीलामी डाक’32 मे अध: पतित कुलीन प्रथा एवं समाज पर कुठारधात करैत छथि। वर पक्ष एवं कन्याय पक्षक घटक उपस्थित भ’ कोना परस्पंर वर्तालाप करैत छथि, कथा स्थिर करैत छथि, तकर रूप तँ देखू—
वर पक्षक घटक—
सिंह लग्नघ मे जन्म भेल छन्हि, वयस तीनिये श्रीस।
टीपनि अपने मिला लिय, संवत उनैस सै तीस।
कलम चारि बीधा अपन छन्हि, हर बड़द दुइ जोड़।
डेढ़ पाइ मासो किनलन्हि अछि, टका छैन्हि नहि थोड़।
बेस किमतिगर छथि पनिगर हिनका सन भेटत ने आन।
(कानमे कहैत छथि)
तीस टका अपनहु के भेटत, खैब सुपारी पाम।
दुनू पक्षक घटकक पारस्पहरिक वार्तालापक कममे विवाह स्थिर भ’ जाइछ, कारण कन्याैक पिता कन्या बिकी हेतु उताहुल छथि। व्यंपग्यवकार एहन कन्या क पिता पर व्यंजग्यप करैत छथि—
करब कथा पहिने जौँ हम्महर सभटा कर्ज सधावी
चारि सौ जे गनि दिय’ व्य वस्थान झट सिद्वान्त लिखाबी 31
एहि पर वरक उत्तर छनि—
तावत तिन सै आनल, बाँकी देब सधाय 35
एहि पर कन्याआक पिता उत्तर दैत छथि—
‘हैण्ड् नोट लिखि देल जाय, अपनेकेँ कयल जमाय’ 36
जाहेना कोनो वस्तु क बिकीक हेतु बजारमे त्वंनचाहंच होइछ तहिना वर एवं कन्याीपक्षक घटक बीच सेहो होइछ। आश्चोर्य तँ तखन होइछ जखन कन्यारक पिता निर्ल ज्जइतापूर्वक घोषणा करैत छथि जे जैह कर्ज सधा सकताह सैह कन्यायक अधिकारी हेताह। समाजक आर्थिक दशा सुदृढ़ नहि रहलाक कारणेँ मिथिलामे एहि प्रकारक अनमेल विवाह प्रचलित अछि। एतय हास्यज एवं व्यंदग्यल दुनूक रूप अत्य न्तक तीव्र अछि।
मैथिल लोकनिक भोजनप्रियता जगतलसिद्व अछि। एहन भोजलन-विन्यागस पर प्रो. झा निश्चित रूपेँ व्यं्ग्यर कयलनि अछि। मिथिलामे जमायक स्वातगतार्थ कतेक विन्यानस कयल आइद तकर स्पपष्ट चित्र ‘ढाला झा’ मे भेटैछ :—
रातिमे सचार लागल ढाला झाक आर्गामे
बाटी अठारह टा हुनका आगाँ लगाओल गेल
बड़ बड़ी भटबड़ कदीमा तिलकोड़ और
पापड़ तिलौरी ओ दनौरी आदौरी भाँटा
एक बट्टा छल्हिगर दही एक बट्टा खोआ गाढ़
चीनी पर्याप्ति, मालभोग केरा पाकल खूब
डेढ़ सेर मेही भात, जाँति कऽ छलैन्हि परसल
धृतसँ कँल चिक्कान तथा बाटीमे राहडि़ दालि
आमिल देल, ऊपर खूब घृत छह छह करैत
एहि प्रकारक भोजन-विन्यातसक वर्णन सुनितहिँ निश्चंये क्षुधाग्नि भऽ जाइछ। एतय व्यंटग्यवकार प्रचलित परंपरा पर प्रहार क’ हास्येत नहि, व्यंचग्य्क पर्याप्ता सामग्री पाठककेँ देबाक प्रयास कयलनि अछि।
समाजक अन्या न्यप अपेक्षा ढोंगी-पोंगा-पथी पंडित लोकनि हिनक हास्यत-व्यंीग्याक सबसँ बेशी शिकार भेलाह। तन्त्रअ-मन्त्रअ, शास्त्रं-पुराणक वितण्डयवादक कारणेँ सामाजिक जीवन दिन-प्रति-दिन विषम भेल जा रहल अछि। एहना स्थितिमे व्यंनग्यरकार कोना चुप्पत बैसि सकैत छथि ? धर्मक नाम पर विषम भेल जा रहल अछि। एहना अपनाकेँ अग्रदूत बुझनिहार पाखंडी ‘पंडित लोकनि’ पर व्यंोग्यत कय व्यं ग्य कार हुनक भंडा फौड़लनि अछि। यथार्थत: ओ लोकनि अपन ज्ञानक दुरूउपयोग निष्प्रवयोजन शास्त्रा र्थक चकमे समाप्त‍ क’ दैत छथि। आधुनिक संदर्भमे पंडितलोकनिक किया-कलाप ठप पडि़ गेल, किएक तँ युग परिचतित भ’ गेल अछि। परिवत्तित परिस्थितिकेँ देखि पंडितलोकनिमे आत्रोशक भावना स्वाुभाविक अछि। एहना हुनका सभक विलापक अतिरिक्तर आन कोनो उपाय नहि रहि जाइछ1 ‘पंडित’ मे पाठकेँ प्रचूर सामग्री भेटँत छनि—
जमाना बदलि गेलैक, उनउलै बात सब पुरना।
उठै अछि पित्त तँ बहुतो करू की वृद्व अथबल छी
जहाँ बट्टाक धृत पड़ै छल भोजमे आगाँ
तहाँ आब डालडासँ दालि छौंकल देखि छी 35
‘बुचकुन बाबा’ केँ आधुनिक नारीक पहिरब-ओढ़ब, चलब-फिरब, लिखन-पढ़ब एवं उन्मुभक्तै जीवन फुटलो नहि सोहाइत छनि। हुनका अनुसार नारी सतत दासताक बेड़ीमे जकड़ल रहथि, सँह उत्तम। हुनकर कथन छनि जे लोक केचुआकेँ फूँकि-फूँ कि साँपक सर्जन रहल छथि। एहन परिस्थितिमे ओ हफीम खा क’ अपन प्राणान्तच करय चाहैत छथि। व्यंँग्यलकार वस्तुित: एहन पण्डितक अन्ते् चाहैत छथि।
पाश्चानत्य सभ्यिता एवं संस्कृ तिक रगमे सँगाक’ नारी ग्रामीण परिवेशमे अत्यनन्त उपहासात्म्क बनि जाइछ। एकर स्प्ष्टय चित्रण व्यंतग्यृकार 'अँङरेजिया लड़कीक समदाउन’ मेकयलनि अछि—
आङनक बाहर घुमय नाह जयबैक
भैसुर जैताह पड़ाय
देब पितर किनको नहि हँसबैन्हि
सभ जँताह तमसाय
ओहिठाम जा अण्डान नहि मङबैक
तकर ने छैक उपाय
जो मन हो कहबैन्ह‍ चुपचाताहे
आनि देताह हमर जमाय 39
पाश्चातत्यय सभ्यातामे लालित-पालित कन्यासकेँ चेतावनी दैत छथि; किन्तुि हुनक व्यावहार पर व्यंइग्याकारक आक्षेप एकदम स्पष्टव‍ अछि।
आधुनिक सभ्या‍तामे प्रो. झा केँ जे दोष परिलक्षित होइत छनि तकरी ई व्यंतग्येक माध्यतम बनबैत छथि। हिनक प्रसिद्व कविता ‘टी-पार्टी विशुद्वा हास्यल-रसक रचना थीक। टी-पार्टी आधुनिक सभ्य ता एवं संस्कृहतिक प्रतीयक थीक। एहि कवितामे कृत्रिमताक अभाव् अछि व्यंरग्यवकार कोनो अलंकरणक चेष्टा नहि कयलनि अछि। एकर भाषामे अद्भभुत प्रवाह अछि। हास्य्-रसक पुष्टिक हेतु जेहन भाषा आवश्यषक अछि ताहि रूपक भाषाक प्रयोग एहिमे कयल गेल अछि। ‘टी-पार्टी’ क बाह्यडम्बआरक प्रति कवि उपहास करैत छथि—
दूरे सँ देखँत छी जे अपूर्व अछि समारोह
कुर्सी ओ टेबुल कतार सँ सजाओल अछि
उज्जसर दपादप श्वेात चादर ओछाओल और
नाना प्रकारक फुलदान अछि शोभायमान40
पार्टीक साज-सज्जाो तथा अल्पा भोजनकेँ देखि कवि व्यंआग्यर करैत छथि—
एकटा सिहारा और एक फक्काज दालमोट
एक रसगुल्ला और बुनिया एक चौठी मात्र
तोला भरि सेबइ समतोला दुइ फाँक
एक चुटकी किशमिश तथा सोहल केरा टा41
पार्टीक पश्चाित् व्यं ग्यीकारक मनमे आधुनिक सभ्य ताक प्रति जे भावना जागत भेल ओ निश्च ये उपहासात्मंक थीक।

बस पार्टीक ने नाम लिय
सोझे जाड भानसमे पजारू गऽ आँच शीघ्र
खीचडि़ और साना बनाउ जतेक जल्दी् हो
आर ई कार्ड लऽ कऽ चूल्हिमे झोंकि दिअ42
प्रोफेसर हरिमोहन झाक उपर्युक्ति रचना समूहक विश्लेनषणसँ एतबा एतब। निश्चित रूपेँ कहल जा सकैछ जे ई मैथिली हास्यह-व्यं‍ग्यू-साहित्यएक उज्जतवल भविष्य क सूचक भेलाह। हिनक हास्यं-व्यंरग्यं रचनाक प्रभाव मैथिली समाज पर तीन रूपेँ पड़लँक। प्रथम तँ ई मैथिलीमे पाठक वर्गक निर्माण कयलनि। द्वितीय, मिथिलाक कन्यापलोकनिक व्य।क्तिगत जीवन प्रभावित भेल जकर फलस्वलरूप हजारक हजार शिक्षित भ’ रहलि छथि। तेसर प्रभाव मैथिलीक परवर्ती साहित्यतकारलोकनि पर पड़लनि ये एहि मे उन्मुपख भेलाह जहिना सुस्वाईदु, चर्व्यस चोष्यप, लेह्य, पेय भोजनकेँ प्राप्त़ कयला पर हौइत छनि तहिना हास्या-व्यं ग्यरमे अभिरूचि रखनिहार पाठककेँ हिनक रचनाक पारायणोत्तर हिनक रचनाक लोकप्रियताक अनुमान तँ एही सँ लगाओल जा सकैछ जे उपन्याचस ‘चन्द्रलकान्ताम सं‍तति’ केँ पढ़बाक हेतु अनेक अहिन्दी भाषी पाठक प्रोफेसर हरिमोहन झाक चित्ताकर्षक हास्या-व्यं‘ग्यप-रचनाक रसास्वाादनक लेल हिनक विभिन्ऩ रचना समय-समय पर विभिन्नठ भारतीरय एवं मासिक पित्रकादिमे अनूदित भ’ प्रकाशित होइत रहल अछि। श्रेय हिनके छनि सर्वाधिक रचना विभिन्न् भाषामे सेहो अनूदित

प्रसंग-निर्देश
1. कन्यािदान, पृष्ठ 18
2. तत्रैव, पृष्ठश- 19
3. तत्रैव, पृष्ठश— 21
4. तत्रैव, पृष्ठश— 37
5. तत्रवै, पृष्ठश — 38
6. द्विरागमन, पृष्ठश— 158
7. कन्याादान, पृष्ठ — 104
8. तत्रैव, पृष्ठश — 59
9. प्रणम्यम देवता, पृष्ठ —3
10. तत्रँव, पृ — 12
11. तर्त्रव, पृष्ठ — 53
12. तत्रैव, पृष्ठ —232-245
13. तत्रँव, पृष्ठ —270
14. तत्रँव, पृष्ठ —274
15. प्रथम अखिल भारतीय मैथिली लेखक सम्मे्लन, कथा विभागीय सभापतिक भाषण, वैदेही समिति, लाल बाग, दरभंगा-1853पृष्ठ -3
16. रंगशाला एक-झलक, पृष्ठे—‘ख’
17. खट्टर ककाक तरंग पृष्ठृ- 293
18. तत्रँव भूमिका, पृष्ठ -छ
19. तत्रँव — पृष्ठृ-ग
20. चर्चरी, पृष्ठृ-220
21. तत्रैव, पृष्ठृ-1
22. तत्रैब पृष्ठ, -24
23. तत्रव, पृष्ठ -189
24. तत्रै व, पृष्ठृ-189
25. तत्रै व, पृष्ठृ-129
26. तत्रै व, पृष्ठ - 248
27. मासिक स्व देश, वर्ष-1 अंक 4 विकास संवत् 2005 चैत्र, पृष्ठा-
28. तत्रैव, पृष्ठृ-153
29. तत्रैव, पृष्ठृ-153
30. वैदेही, अक्तूृबर 1253, पृष्ठि-155
31. तत्रै व
32. मिथिला, वर्ष-1 अंक-4 जेठ, सन् 1336 पृष्ठ - 99.
33. तत्रै व
34. तत्रै व
35. तत्रै व
36. तत्रै व
37. मासिक स्वादेश, पृष्ठ -154.
38. मिथिला-दर्शन मार्च पृष्ठृ- 1260, पृष्ठ -2
39. वैदेही विशेषांक-सन् पृष्ठृ 1350 पृष्ठे 9.
40. मासिक स्वशदेश, वर्ष-1 अंक 4, -वैशाख, विकम 2005र्सवत् पृष्ठ - 391
41. तत्रै व पृष्ठं- 220
42. तत्रै व, पृष्ठ - 222
(हरिमोहन झा अभिनन्दवन ग्रन्थृ 1983)।


1

Kundan Jha said...
प्रेमशंकर सिंह जीक हरिमोहन झाजीपर लेख बहुत रास कथ्यकेँ देखार कएलक।
Reply05/15/2009 at 08:35 PM
2

preeti said...
premshankar singh jik aalek bad nik
Reply05/05/2009 at 02:05 PM
कथा-नदी

सुभाषचन्द्र यादव-

चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द

सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।



नदी
बिहारी परसू आयल रहय । एहि शहरमे गगनदेव केँ छोड़ि ओकर अओर क्यो परिचित नहि रहैक। तेँ ओ तत्काल गगनदेव लग टिक गेल छल । एहि शहरमे ओकरा एक साल रहय पड़तैक। एतेक दिन धरि गगनदेव लग टिकनाय व्यावहारिक दृष्टि सँ ठीक नहि रहै तेँ एतय अबिते बिहारी केँ किराया पर एकटा कोठली तकबाक चिन्ता लागि गेलै आ अगिले दिन ओ तलाशमे निकलि पड़ल । शहरसँ अपरिचित रहबाक कारणे ओ गगनदेवो केँ संग कऽ लेलक । दुनू काल्हिए सँ भटकि रहल छल आ अखनधरि कोनो ढँगगर कोठली नहि भेटल छलैक । पैदले एम्हर सँ ओम्हर भटकैत रहलाक कारणे ओ दुनू थाकि गेल छल आ मनमे निराशा पसरल रहैक । कनेक काल सुस्तयबाक लेल ओ दुनू चाहक दोकान दिस बढ़ि गेल ।
ओ इलाका ऊँच आ गाछ – बिरिछसँ भरल रहैक । एक घंटा पहिने भेल बरखामे हरेक चीज धोआ – पोछा कऽ साफ आ चमकदार भऽ गेल रहै आ पूरा प्रकृति आकर्षक आभामे दमकैत रहय। पीपरक विशाल गाछक नीचा सड़कक दुनू कात देहाती जनानी सभ ढकिया-पथियामे सामान लऽ कऽ बैसल छलै आ लोक सभ दैनिक वस्तुजात बेसाहयमे लागल छल ।
ओ दुनू दोकान पर बैसल चाह पीबि रहल छल । तखने नौ-दस सालक एकटा लड़की गगनदेवक बगलसँ गुजरलै । दुनूक आँखि मिललै आ सरल जिज्ञासा मे एक-दोसर पर स्थिर भऽ गेलै । फेर ओ लड़की आगू बढ़ि गेलै । गगनदेव चाह पिबैत-पिबैत ओहि लड़कीकेँ बिसरि गेल। बिहारी चिन्तित आ उदास बुझाइत रहय । चाह पीलाक बादो ओ दुनू कने काल धरि दोकान पर बैसल थकनी मेटबैत रहल । फेर उठि कऽ पानक दोकान पर चलि गेल ।
पानक दोकान पर आबि कऽ गगनदेवकेँ परम आश्चर्य भेलै । ओ लड़की ओत्तहि ठाढ़ छलै । लड़कियो गगनदेवकेँ देखलकै । दोकान पर भीड़ रहै । नहि जानि ओहि लड़की कें की लेबाक छलै । ओ दुब्बर-पातर छलै आ अन्तर्मुखी लागि रहल छलै । ओकर कोमल चेहरा पर बाल-सुलभ निश्छलता आ सहजता रहै । ओ गगनदेवकेँ एकटक तकैत चल जाइत रहै । गगनदेवक नजरि कतहु आओर छलैक लेकिन एहि बातक प्रति ओ सचेत छल जे लड़की ओकरा एकटक देखि रहल छैक । गगनदेव बूझि नहि पाबि रहल छल जे लड़की कियैक ओकरा देखि रहल छैक आ ओकरामे ऐहन की छैक जे ओ ताकि रहल छैक । ओकर तीक्ष्ण दृष्टिसँ गगनदेव आहत आ बेचैन छल । ओ बड़ी मुश्किल सँ लड़की दिस ताकलक । लड़की अखनो ओकरा पर नजरि टिकौने ठाढ़ रहैक । ओकर दृष्टिक रहस्य बूझब गगनदेवकेँ असंभव बुझा रहल छलै । भरिसक ओकर पूरा व्य क्तित्वस लड़की लेल स्पृहणीय भऽ उठल होइ’। गगनदेव ओकर गाल छुलकै । लड़की विडुँसलै आ लाजेँ मूड़ी गोंति लेलकै ।
ओहिठाम सँ विदा होइते गगनदेव केँ बुझयलै आब ओकरा सँ फेर कहियो भेंट नहि हेतैक । लेकिन एहि बातक लेल ओकरा दुख नहि भेलै । ओ उल्लास आ प्रेमक अनुभूति सँ भरि गेल रहय ।

1

Anand Priyadarshi said...
ओहिठाम सँ विदा होइते गगनदेव केँ बुझयलै आब ओकरा सँ फेर कहियो भेंट नहि हेतैक । लेकिन एहि बातक लेल ओकरा दुख नहि भेलै । ओ उल्लास आ प्रेमक अनुभूति सँ भरि गेल रहय |
bah ki kahal aa ki ham bujhal, muskurahat nikali gel
Reply05/15/2009 at 08:55 PM
2

Dr Palan Jha said...
chhota katha, lagal hamare varnan kathakar kay delanhi.
Reply05/15/2009 at 08:48 PM
उपन्यास
-कुसुम ठाकुर

प्रत्यावर्तन - (चारिम खेप)
१०

हम माँ के सँग आय अरुणाचल जा रहल छी। माँ आयल तs रहथि हमर द्विरागमन करबाक लेल मुदा हमर सास ससुर नहि मानलथि। काका के बदली राँची सs कहियो भs सकैत छलैन्ह। इ सोचि हिनकर इच्छा आ जोर छलैन्ह जे द्विरागमन भs जायत तs हमरो नाम मुजफ्फरपुर मे लिखवा दितथि आ हम ओहि ठाम पढितहुं। माँ सब के सेहो चिंता नहि रहितियैन्ह आ हिनको नीक रहितियैन्ह। बाबुजी के चिट्ठी लिखि कsएहि लेल इ मना लेने रहथि। जहिया सs हमर मोन ख़राब भेल छल तहिया सs इ लगभग सब मास एक बेर राँची आबि जायत छलाह। मुदा हमर सास एकही बेर कहि देलथिन "आय धरि हमरा सब ओहिठाम पहिल साल मे द्विरागमन नहि भेल अछि, आ नहि धारति अछि"। अंत मे जखैन्ह हमर सास ससुर तैयार नहि भेलथि तs माँ हमरा कहलथि "चलु अहाँ अरुणाचल गेलो नहि छी, घूमि कs चलि आयब। जओं एहि बीच मे काका के बदली भs गेलैन्ह तs फेर सोचल जायत जे की कायल जाय"। हमर कॉलेज गरमी के छुट्टी लेल बंद छलैक।

दू दिन पहिनहि हमर विवाहक पहिल वर्षगाँठ छलs आ आय हम अरुणाचल जा रहल छी। हमर मोन इ सोचि कs उदास छलs कि ओतेक दूर जा रहल छी। फेर कतेक दिन पर हिनका सs भेंट होयत से नहि जानि। हमरा एको रत्ती माँ के सँग जयबाक खुशी नहि छलs। हमर चेहरा देखि कs कियो कहि सकैत छलथि जे हमर मोन बहुत दुखी अछि। हिनको मोन उदास छलैन्ह आ चुप चाप हमरे लग ठाढ़ छलथि। हम हिनक मोनक गप्प सेहो बुझि रहल छलियैन्ह मुदा की करी से नहि बुझय मे आबि रहल छलs। हम सब वेटिंग रूम मे ट्रेनक प्रतीक्षा मे छलहुँ जाहि केर अयबा मे अखैन्ह बहुत देरी छलैक। हम बेर बेर देखाबय चाहि रहल छलियैक जे हमर आंखि मे किछु परि गेल अछि आ हम अपन रुमाल सs निकालय के प्रयास कs रहल छी, मुदा सत्यता किछु आओर छलैक। इ हमर मोनक गप्प बुझि गेलाह आ माँ के कहलथि "अखैन्ह तs ट्रेन आबय मे देरी छैक हम सब चाह पीबि कs थोरेक काल मे अबैत छी"। इ कहि आ बौआ के बुझा हमरा चलय लेल कहलथि। जहिना हम सब बिदा भेलहुँ कि हिनकर मित्र धनेश जी, चलि आबैत छलाह। हुनका देखि हम सब रुकि गेलहुँ। जखैन्ह ओ माँ कs गोर लागि लेलथि तs हुनको सँग लs आगू बढ़ि गेलहुँ।

माँ के लेल चाय इ वेटिंग रूम मे पठा देलथि। हम दुनु गोटे आ धनेश जी रेलवे केर जलपानगृह मे बैसि कs चाय पिबय लगलहुं। धनेश जी हिनकर अभिन्न मित्र छलथि आ दुनु गोटे एकहि कॉलेज मे सेहो पढैत छलाह। विवाहक बाद ओ पहिल बेर हमरा सs भेंट करय के लेल आयल छलाह। हम ओहिना बेसी नहि बजैत छलहुँ दोसर आय होयत छल जे बाजब तs पता नहि कना नहि जाय। इ हमर मोनक गप्प बुझि गेलाह आ हुनक बेसी प्रश्नक जवाब दs रहल छलथि। किछु किछु तs ओहि मे हमरा हंसेबाक लेल आ ध्यान दोसर दिस करबाक लेल सेहो छलैक।

धनेश जी आ इ गप्प कs रहल छलथि, हम बीच बीच मे माथ तs डोला रहल छलहुँ मुदा हमर ध्यान कतहु आओर छल। हमर मोन एकदम बेचैन लागि रहल छल आ बेर बेर हम घड़ी देखि रहल छलहुँ। राँची मे रहैत छलहुँ तs कम सs कम मास मे एक बेर इ आबि जायत छलाह। चिट्ठी से सब दिन अबैत छलs । अरुणाचल जा तs रहल छलहुँ इ सोचि कs जे घूमि कs चलि आयब मुदा काका के बदली लs कs चिंता होयत छलs । राँची मे रही तs जखैन्ह मोन होयत छलैन्ह आबि जायत छलाह अरुणाचल एक तs दूर छलैक दोसर ओहि ठाम जेबाक लेल परमिट बनाबय परैत छैक। हमर की किस्मत अछि नहि जानि जहिया हमरा माँ सँग रहबाक मोन होयत छलs, हम माँ सs अलग रहलहुं। आब हिनका सँग रहबा मे नीक लागैत छलs आ रहबाक मोन होयत छलs तs आब हिनको सs एतेक दूर जा रहल छलहुँ, इ सोचि कs हमर मोन दुखी छलs । तथापि धनेश जी सोझा मे छलथि तs मुँह पर हँसी अनबाक प्रयास करैत छलहुँ। अचानक हिनकर बोली कान मे आयल "आब समय भs गेल छैक चलु माँ के चिंता होयत हेतैन्ह", इ सुनतहि हम सब उठि कs चलि देलहुं।

हम सब जखैन्ह पहुँलहुं तs माँ के ठीके हमरा सब कs आबे मे देरी देखि चिंता होयत छलैन्ह। देखैत देरी बजलीह "अखैन्ह तक कुली सब नहि आयल अछि, आब ट्रेन आबय वाला छैक"। एतबा माँ कहिते छलिह की दुनु कुली आबि गेलैक।

हम सब ट्रेन मे बैसि गेलहुँ, सामान सब जगह पर रखवेलाक बाद इहो हमरा सब लग बैसि गेलाह। सोनी बिन्नी दुनु गोटे एक एक टा खिड़की वाला सीट लs कs बैसि गेलीह, बेचारी अन्नू आ छोटू के कात मे बैसा देने रहथि। माँ आ बौआ अपना हिसाबे सामान सब ठीक करबा मे लागल छलथि। इ एक टक हमरे दिस देखैत छलाह। बुझि परैत छ्लैन्ह जेना आब कहताह अहाँ नहि जाऊ। हम अहाँक बिना नहि रहि सकैत छी। हम लाचार दृष्टि सs हुनका दिस देखि रहल छलहुँ आ मोने मोन भs रहल छलsकियो हमरा कहि दितैथ अहाँ के आब नहि जयबाक अछि। मुदा से नहि भेलैक आ अचानक धनेश जी खिड़की लग आबि कs कहलाह "यौ आब नीचा आबि जाऊ गाड़ी के सिग्नल भs गेल छैक"। एतबा सुनतहि इ हरबरा क उठि गेलाह आ कहलाह "पहुँचैत देरी चिट्ठी अवश्य लिखि देब।" इ कही माँ के गोर लागि उतरि गेलाह। हम घुसकि कs बिन्नी लग बैसि गेलहुँ आ फेर हिनका दिस लाचार भs देखय लागलियैन्ह। अचानक बुझायल जेना हमर किछु एहि ठाम छुटि रहल अछि ।

ट्रेन धीरे धीरे स्टेशन सs आगू बढ़ि रहल छलैक, मुदा हमर दुनु गोटे के नजरि एक दोसर पर छलs । हम सब एक दोसराके देखि रहल छलहुँ। धीरे धीरे दूरी बढ़ल जा रहल छलs, जखैन्ह आँखि सs ओझल भs गेलाह तs हम फेर अपन जगह पर आबि कs बैसि गेलहुँ। बौआ, सोनी बिन्नी अन्नू आ छोटू सब खुश छलथि। माँ अपन खाना वाला पेटार खोलि सब के ओहि मे सs निकालि कs खेबाक वस्तु सब के देबय लागलीह।

गाड़ी सिलिगुरी पहुँचि गेल तs माँ हमरा आ बौआ के स्टेशन दिस देखा कs कहलिह "अहाँ सब के तs याद नहि होयत, एहि ठाम तक हम सब ट्रेन सs आबि, ओकर बाद गाड़ी सs सिक्किम जायत छलहुँ"। बाबुजी सिक्किम मे सेहो तीन बरख रहल छलथि।

करीब चौबीस घंटा सs हमर सबहक ट्रेन न्यू बोगाई गाँव स्टेशन सs आगू आबि,एकटा छोट सन स्टेशन पर रुकि गेलैक। एतेक छोट स्टेशन की एहि ठाम किछु खेबा पिबाक सेहो नहि भेटैत छलैक। आगू कोनो ट्रेनक दुर्घटना भs गेल छलैक जाहि चलते सब ट्रेन एहि ठाम आबि कs रुकल रहैक। ओहि ठाम तेहेन स्थिति भs गेलैक जे बाद मे स्टेशन पर पानि सेहो खतम भs गेलैक। माँ के आदति छलैन्ह दूरक यात्रा करबाक आ ओ अपना सँग खेबा पिबाक ततेक नहि सामन रखने रहथि जे हमरा सब के ओहि मे कष्ट नहि भेल, मुदा सब गोटे परेशान भs गेलहुँ। एक तs एहिना अरुणाचल जेबा मे तीन दिन लागैत छलैक, ताहि पर चौबीस घंटा एक ठाम रुकलाक चलते आओर सब परेशान भs जाय गेलौन्ह।

ट्रेन चारद्वार जहिना पहुचलैक हमरा सब केर जान मे जान आयल। बाबुजी स्टेशन पर ठाढ़ छलथि। करीब तीस घंटा देरी सs हमर सबहक ट्रेन पहुँचल छलैक। स्टेशन सsसीधा हम सब गेस्ट हाउस पहुँच गेलहुँ, ओहि ठाम हमरा सब के राति भरि रहबाक छल।

हम सब तैयार भs आ जलखई करला कs बाद बोमडिला (अरुणाचल) के लेल सरकारी जीप सs बिदा भs गेलहुँ। बाबुजी हमरा बतेलाह अरुणाचल मे भारत केर १/३ सेना रहैत छैक। बॉर्डर पर परमिट देखाबय परलैक आ परमिट देखेलाक बाद बाबुजी कहलथि "अहाँ पहिल बेर आयल छी, बौआ तs एक बेर आयल छलथि। अहाँ जीप मे हमरा सँग आगू बैसि जाऊ, देखय मे बड नीक लागत। हम बाबुजी सँग आगू बैसि गेलहुँ।

ओना तs आसाम सेहो नीक लागल, मुदा अरुणाचल मे प्रवेशक सँग बुझायल जेना प्रकृति एकरे कहैत छैक। कश्मीर तs हम नही देखने छलियैक जाहि केर तुलना लोग स्वर्ग सs करैत छैक।अरुणाचल मे प्रवेश करैत घाटिक घुमावदार सड़क आ चढाई आरम्भ भs गेलैक। सड़क सब नीक मुदा पातर देखय मे आयल। कहुना दू गाड़ी जएबाक जगह छलैक। बाबुजी बतेलाह जे सब सड़क सेना के छलैक।

जीप जहिना जहिना आगू बढैत गेलैक,चढाई तहिना तहिना बढ़ल जा रहल छलैक। सोनी बिन्नी सब तs ओहि ठाम माँ बाबुजी लग रहैत छलथि आ कैयेक बेर आयल गेल रहैथ सब गोटे गप्प मे व्यस्त छलिह। हमर ध्यान मात्र प्राकृतिक सुन्दरता देखय मे छल। पहाडी नदी के विषय मे सुनने आ कविता मे पढ़ने रही। मुदा आय साक्षात देखि रहल छलहुँ।जतेक सुनने रही ताहू सs सुंदर छल इ पहाडी नदी। झरना देखय लेल दूर दूर जायत छलहुँ, आ अहि ठाम तs रास्ता मे कैयेक टा झरना भेट रहल छलs।

बाबुजी हमरा सब ठामक नाम आ ओहि जगहक महत्व बताबैत जा रहल छलाह। बाबुजी कहलाह "आब इ जगह ठीक सs देखू, इ छैक तवांग वैली (Tawang Valley)। चीन सँग सन ६२ केर लड़ाई मे एकर बड महत्व छैक"। एहि ठाम सsबोमडिला बड लग छैक। ६२ मे सब सs बेसी लड़ाई बोमडिला मे भेल छलैक। बाम दिस जओं हमर नजरि गेल तs नीचा मे नदी बहैत छलैक, ओ देखा कs कहलाह " इ नदी देखैत छी, पहाडी नदी रहितो लड़ाई समय मे इ पूरा खून सs लाल भs जाइत छलैक। एहि ठामक लोग सब कहैत छैक जे लड़ाई केर बाद इ नदी सs कतेको लाश निकलल छलैक।


बाबुजी जहिना कहने रहथि बोमडिला लग छैक तहिना किछुयैक दूरी गेलाक बाद घर सब नजरि आबय लागल। एकटा झरना आयल आ बाबुजी कहलाह लिय बोमडिला पहुँचि गेलहुँ। जीप झरना सs किछुए आगू आबि कs रूकि गेलैक।


बोमडिला पहुँचलहुं त साँझ भs गेल छलैक। जीप सs उतरि कs माँ हमरा सब के लsआगू बढि गेलिह आ बाबुजी सामान सब उतरवाबय लगलाह। हम जहिना सीढी पर चढि ऊपर अयलहुं, लकडी के घर सब देखाई परय लागल। बाहर सs सब घर देखय मे एकहि जेना बुझि परैत छलैक। सब घरक छत हरियर, मुदा दू घर सs बेसी एक समतल जमीन पर नजरि नहि आयल। ऊपर आ नीचा सब ठाम जएबाक लेल सीढी बनल रहैक।ऊपर नीचा करैत हम सब अपन घर पहुँचि गेलहुँ।

हम सब ततेक थाकल रही जे चाय आ जलखई केलाक बाद कखैन्ह नींद आबि गेल,हम नहि बुझलियैक। माँ के बोली पर हमर नींद खुजल। माँ कहि रहल छलथि " उठु नय भोजन केलाक बाद फेर सुति रहब"। उठलहुँ तs, मुदा जारक चलते हमरा भोजनो करबाक मोन नहि भs रहल छलs।माँ हमरा बिछोना सs उतरय लेल मना कs देलथि आ हमर भोजन बिछाओन लग मँगा देलिह। भोजनक बाद हम कोहुना उठि कs हाथ धोए लेल बिछाओन सs उतर कs गेलहुँ।

हमर आँखि खुजल तs माँ बाबुजी आ एक आओर व्यक्ति के अपना सोझा मे देखि हम हरबरा कs उठय लगलहुँ। माँ कहलिह "किछु नहि भेल अछि परल रहू। असल मे अहाँ हाथ धोअय लेल गेलहुँ तs ओहि ठाम बेहोश भs खसि परल रही। की भेल छलs?डॉक्टर साहेब कहैत छथि ऊंचाई के चलते भेलैक अछि। एके बेर ओतेक नीचा सs ८ हजार फीट पर पहुँचि गेलहुँ ताहि केर असर छैक आओर किछु नहि"। तखैन्ह हमरा याद आयल जे हमरा चक्कर जेना बुझायल छलs आओर किछु याद नहि छलs। डॉक्टर इ कहि चलि गेलाह जे आराम करू भोर तक एकदम ठीक भs जायत।

बेर बेर उठि मुदा बुझाइत छल एखैन्ह भोर नहि भेलैक आ फेर सुति जाइत छलहुँ। मोन मे आयल जे घड़ी देखि लेत छी। जओं घड़ी दिस नजरि गेल तs आठ बाजैत छलs, हरबरा कs उठलहुँ आ बाहर दिस निकलि गेलहुँ। राति मे एक तs ठंडा आ ताहि पर ततेक थाकल रही जे घर मे घुसलाक बाद बाहर निकलबाक हिम्मत नहि भेल। बाहर आबितहि बुझि गेलहुँ जे हमरा कियाक होयत छलs जे भोर नहि भेलैक अछि। धुंध तेहेन छलैक जे अपन घर छोरि कs सामने वाला घर सेहो नहि देखाइत छलs। किछुए कालक बाद बौआ सेहो बाहर पहुँचि गेलाह। धुंध बेसी काल नहि रहलैक आ हटैत के सँग प्राकृतिक रूप साफ साफ देखाई परय लगलैक।किछु काल तक ठाढ़ भs हम प्रकृतिक ओहि रूप के देखैत रहि गेलहुँ। जतय तक नजरि गेल, सब घरक सोंझा मे सुंदर सुंदर फूल नजरि आयल जे देखि मोन प्रसन्न भs गेल। हम ठाढ़ भsदेखैत छलहुँ कि अचानक एक झुंड लड़ाकू विमान (mig) बुझायल जेना हमर घरक ठीक पाछू सs निकलल अछि आ आसमान मे एम्हर सs ओम्हर करय लागल। ओ कखनहु बुझाइत छलs आब खसि परतैक मुदा फेर तुंरत ऊपर आबि जायत छलs। ओहि विमानक झुंड देखैत देरी हम दुनु भाई बहिन अपन बरामदा सs उतरि जओं पाछू गेलहुँ तs पहाड़ के सुन्दरता देखि किछु काल ओहि ठाम ठाढ़ रहि गेलहुँ। बुझाइत छल जेना पहाड़ घरक ठीक पाछू मे अछि। हम आ बौआ घरक चारू कात घुमि घुमि कsसब वस्तु देखय लगलहुँ। एक सs एक सुंदर फूल घरक सामने आ कात वाला फुलवारी मे लागल छलैक।फूलक रंग आ आकर देखि हम आश्चर्य चकित रही गेलहुँ।

बाबुजी ऑफिस जएबाक लेल बाहर अयलाह त हम दुनु भाई बहिन बाहर छलहुँ। ओ बतेलाह जे बोमडिला मे बहुत सैनिक छैक, मुदा ओ सब नजरि नहि आयत कियाक तs सब बंकर(bunkar) मे रहैत छैक। अहि ठाम भारतीय सेनाक जेट,(jet)मिग(mig) आ सब तरहक लडाकू विमान देखय भेटत। सैनिक सब बराबरि अपन अभ्यास करैत रहैत छैक। भारत चीनक बोर्डर सेहो बोमडिला सs लग १४ हजार फीटक ऊंचाई पर एकटा जगह छैक सेलापास ताहि ठाम छैक। ओतय तs आओर बेसी ठंढा रहैत छैक।

जुलाई, अगस्त मास मे एतेक जाड़ हम नहि देखने रहियैक। एक तs अहि ठाम हमरा आ बौआ दुनु गोटे के मोन नहि लागैत छलs ताहि पर जाड। हम आ बौआ सब दिन सोचैत छलहुँ घुमय लेल जायब मुदा जाड़क चलते नहि जायत छलहुँ। बाबुजिक ऑफिस घर सs बहुत नीचा रहैन्ह आ सीढी सs उतरय आ चढ़य परैत छलैन्ह जे १०० सs बेसी छलैक। एक दिन हम आ बौआ बिचारि कs स्वेटर पहिरि घुमैत घुमैत बाबुजी के ऑफिस देखय लेल गेलहुँ। जाइत काल मे उतरय के छलैक, ओ तs बड नीक लागल आ दुनु गोटे सीढ़ी पर कूदैत कूदैत उतरि गेलहुँ। चढ़ैत काल दुनु गोटे के हालत ख़राब भs गेल। आपस अयलाक बाद बौआ कहलाह "ठाकुर जी अओताह तs हम हुनका अवश्य बाबुजी के ऑफिस लs जयबैन्ह"।

अन्नू आ छोटू तs बहुत छोट छलथि, सोनी आ बिन्नी दिन मे स्कूल चल जाइत छलिह, बौआ आ हम दुनु गोटे बेसी घर मे रहैत छलहुँ। साँझ मे बाबुजी अयलाह, हम सब बैसि कs बोखारी लग चाह पिबति रहि आ गप्प सप्प होयत छलैक। गप्प के बीच मे माँ बाबुजी सs कहलिह "मुन्नी बौआ के कतहु कतहु घुमा दियौक नञ। इ सब कतहु नहि जायत छथि भरि दिन घर मे रहैत छथि। दुनु गोटे के मोन नहि लागि रहल छैन्ह"। इ सुनतहि बाबुजी कहलाह"बुझाइत अछि आब हमर बदली जल्दिये भsजायत। आजु हम ठाकुर जी के लेल परमिट बनवा कs पठा देलियैन्ह आ जल्दिये आबय लेल लिखि देने छियैन्ह। हुनको आबि जाय दियौन्ह तs तीनू गोटे एकहि संग घूमि लेताह। बाद मे तs एहि ठाम आबय मे थोरेक झंझट छैक"। इ सुनी हमरा नीक लागल, सच मे हमरा मोन नहि लागि रहल छल।

जहिया सs बाबुजी कहलाह ओ हिनका लेल परमिट पठा देने रहथि ताहि दिन सs हम आ बौआ सब दिन हिनक बाट देखैत छलियैन्ह। बौआ सब दिन बैसि कs हमरा सsगप्प करैथ जे हिनका अयला पर हम सब कतय कतय घुमय लेल जायब। ओ सब पता कs कs राखने रहथि जे कोन कोन ठाम घुमय वाला छैक।

बोमडिला बड छोट जगह छलैक आ ओहि ठाम बाबुजी के ऑफिस(CPWD) केर लोक सब के छोरि किछु प्रशानक लोक आ केंद्रीय विद्यालय के किछु शिक्षक सब सेहो रहैत छलथि। माँ सब के किछु लोक के घर एनाई गेनाइ छलैन्ह हमरा अयला सs सांझ मे बराबरि कियो नहि कियो भेंट करय के लेल आबैत छलथि या नहि तs हमरा सब के लs कs माँ, बाबुजी भेंट कराबय लेल जायत छलथि।

बोमडिलाक मोसमक एकटा विशेषता देखय के लेल भेंटल। ओहि ठाम जोर सs पानी नहि परैत छलs मुदा भरि दिन झिसी होइत रहैत छलैक आ बीच बीच मे थोरे थोरे समय के लेल रोउद निकलैत रहैत छलैक। बाबुजी के ऑफिस केर एक गोटे भेंट करय लेल आयल छलथि आ हुनका सब के पानि के चलते जेबा मे देरी भs गेल छलैन्ह। हुनका सब के गेलाक बाद माँ जल्दी जल्दी सतमन(नौकर) सs खेनाई के व्यवस्था करवाबय मे लागि गेलिह। पूरा बोमडिला के लोक के पनबिजली (hydroelectricity)द्वारा बिजली भेटति छलैक आ राति के १२ बजे के बाद सs बत्ती नहि रहैत रहैक। माँ के प्रयास रहैत छलैन्ह जे १० बजे तक रतुका भोजन भs जाय, मुदा आजु किछु देरी भs गेल छलैक। माँ भोजनक व्यवस्था मे लागल छलिह। हम आ बौआ बिछाओन मे घुसि कs अपन गप्प करैत छलहुँ, बाकी चारु भाई बहिन सब खेलाइत रहथि आ खूब हल्ला करैत छलथि। बाबुजी अपन ऑफिसक काज करैत छलाह। अचानक बुझायल जेना कियो केबार खट खटा रहल छथि। सोनी बिन्नी बाहर वाला घर मे खेलाइत छलिह केबारक आवाज सुनी दुनु गोटे केबार खोलय लेल दौड़ गेलिह। केबार खोलैत के सँग ओहि ठाम सs ठाकुर जी ठाकुर जी करैत भागि कs भीतर आबि गेलिह। हिनक नाम सुनैत देरी माँ बाबुजी सब बाहर वाला घर दिस आबि जाय गेलथि।

हिनका अयला सs माँ आ सतमन के आओर काज बढि गेलैक। ओ सब जल्दी जल्दी आओर किछु किछु खेनाई मे बनाबय लगलथि। चाह पिलाक बाद माँ हिनका कहलथिन "इ जल्दी स तैयार भs जाओथ थाकल हेताह, भोजनक बाद गप्प करिहैथ"। कोहुना भोजन बिजली जाय सs पहिने भs गेलैक आ सब कियो सुतय लेल चलि गेलथि।

बौआ हम आ इ बैसि कs गप्प करैत छलहुँ। इ अपन यात्राक वर्णन करैत कहलाह "आइ तs हम बचि गेलहुँ। चारद्वार पहुँचि पता केलहुँ तs लोक सब सs पता चलल आब बोमडिला के लेल एकहि टा बस छैक जे बेसी राति मे पहुँचायत। दिन वाला बस के लेल चाराद्वर मे राति भरि रहय परत इ सोचि चलि देलहुं। एहेन खतरनाक आ भयावह सड़क पर बस ड्राईवर तेनाक चला कs आनलक अछि जे हमर तs प्राण उपरे छल। बोमडिला आबि कs सेहो नीचा मे दुकान लग छोरि देलक। ओहि ठाम एकटा लोक नजरि नहि आबैत छल। संयोग सs एक गोटे भेंट गेलाह जे बाबुजी के ऑफिस के छलाह। ओ हमरा झरना लग पहुँचा कs गेलाह। झरना के बाद ऊपर चढि पहुँच तsगेलहुँ घर तक, मुदा होयत छल एहि राति मे ग़लत घरक केबार नहि खट खटा दियैक। पहिने घर लग आबि किछु काल ठाढ़ भs कs भीतरक गप्प सुनबाक प्रयास कयलहुँ। हल्ला सs बुझि गेलहुँ यैह घर हेबाक चाहीं मुदा मोन आगु पाछु होयत छल केबार खट खटाबी कि नहि कि अचानक मैथिलि मे बाजय के आबाज आयल आ तुंरत हम केबार खट खटा देलहुं"। हिनकर गप्प सुनि बौआ खूब हँसलाह आ कहलाह "बिना खबरि केने अहाँ बोमडिला आयब तs अहिना होयत नञ"। राति बड भs गेल छलैक हम सब उठि सुतय लेल आबि गेलहुँ।

हम हिनका सs कहलियैन्ह अहाँ तs कालिदास भs गेलहुँ। इ हमरा दिस देखि हँसैत बजलाह "कि करितौंह अचानक अहाँ सs भेंट करबाक मोन भs गेल आ बिना किछु सोचनहि चलि देलहुं। राति मे मोन भेल आ भोरे तैयार भs हम निकलि गेलहुँ। हम स्टेशन के लेल निकलति रही ओहि समय मे हमरा बाबुजी के चिट्ठी भेंटल जाहि मे परमिट भेजने रहथि। परमिट के एतेक महत्व छैक हमरा से नहि बुझल छलs। ओ तs संजोगे सs हमरा परमिट भेंट गेल नहि तs बड दिक्कत होइत। टिकट से, स्टेशन पर आबि कs लेलहुँ ओहो संयोगे सs भेंटल"।

(अगिला अंकमे)
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Anand Priyadarshi said...
charim khep khoob nik,हम हिनका सs कहलियैन्ह अहाँ तs कालिदास भs गेलहुँ।
Reply05/15/2009 at 08:56 PM


कामिनी कामायनी: मैथिली अंग्रेजी आ हिन्दीक फ्रीलांस जर्नलिस्ट छथि।

कथा-चुट्टा लेमे की चुट्टी़।
गुडगाव क’ बड़का भव्यतम मालमे एक गोट बड़ सुन्नरि जेना कुम्हारक चाक पॅ बड़ प्रेम सॅ गढल कोनो भव्य प्रतिमा सन स्त्री केपरी पहिरने दू तीन गोटे संग खरीदारी करैत छल़ आ’
फर्राटेदार अंगरेजीक मध्य एक गोट एहेन आखर बाजल छल कि स्निग्धा चौंकिक’ ओकरा दिस तकलक ‘दिस टूहटूह रेड बकलेल कलऱ ।’
‘अवस्से ई मैथिल अछ़ि।’ स्निग्धा अपन बेटी सॅ बाजल छल। ओकरा दिस तकैत़़ओकर गोर गोर हाथ पर कलाइ लग करीब एक इंच क’ कारी चेन्ह
“हमर एक गोट संगी छल गुलाब़ तेकरो हाथ पर एहने चेन्ह छलै टैटू के ओहि जमानामे गोदना कहल जाइ छलै़। दूनू गोटे गुलाब लगा क’हाथ पर गोदना गोदबेने रहिए़ हमर त’ लिखा गेल मुदा ओ दर्द सॅ चिकरए लगलै़ आ’ अपन हाथ छोपि लेलकै़, एहेन लमगर चेन्ह भ गेल रहै़।’ओ अपन बेटी सॅ गप्पथ करैत छलीह़़ कि ओ हुनका घूरय लगलैन्हि। कनि अनसोहाति सन स्निग्धा दोसर स्टाल दिस बढय लगलीह़ कि ओ बड़ सुन्नरि स्त्री केपरी पहिरने पाछासॅ बड़ तेज चलैत एक हाथ सॅ पर्स पकड़ने आ’दोसर मे अपन धूपक चश्मा़ एकम्मे ल’ग आबि क’ कनि धखाति सऩ अनचिन्हार सन टोन मे अटकि अटकि हुनका टोकलकन्ह़ि- ‘गुलाब पुरनी पोखऱि के़ ।’
‘हॅ हॅ’ आ’ स्निग्धा जेना चिहुकि क’ ओकर गरा लागि गेल रहथि ई केहेन चमत्त्काैर भ’ गेलए़।
‘तू गुलाब।’ ‘हॅ गुलाब ।’ स्निग्धा के बेटी आ’ ओहि सुन्नरि स्त्री के संगी सब मूह बौने ठाढ़ । ई की तमासा़ जेना कुंभक मेला मे बिछुड़ल दू बहिनी भेंटल होय़।
‘तू कोना चिन्हलै’ प्रीति स्निग्धा सॅ पुछलक ।
‘तोहरि हाथक करीया चेन्ह़ आ तू़’ अवाक स्निग्धा कनि विलमैत बाजल़-‘तोहर हाथ पर लिखल गुलाब आ’ आ’ परोड़क फाकि सनक आखि तोरा बिसरलै कहिया छलियौ आ’ कत्तो बैसि क’
बीतलाहा दिन मोन पाड़ैत छी ।’
आ’ सब गोटए चमचमाइत सीसा के दरवज्जा वला हल्दीराम मे एक टा कोन ताकि क’ आबि बैसली़।
ओतए भीड़ सॅ ठसाठस भरल रेस्त्रामे कुरसी पर बैसल बैसल
जेना करीब तीस बरखि पाछाक’ समय फेर सॅ पूरनी पोखरिक’ महाड़ पर धमाचौकड़ी
मचबए लागल छल । ‘तोहर ददिहरै छलौ नै़’।
‘आ’ तोहर ममहरि ।’ आ’ दुनु भभा क’ हॅसलक जेना दुनु के हेरायल कोनो बड़ प्रिय खेलौना हाथ लागि गेल होय ।बड़ दिनक बाद एना बजनाए हृदय सॅ जेना प्रसन्नताक’फौव्वारा छुटए लगलै ।प्रेम सॅ ऊब डूब होइत दूनू के मूह एक गोट अजीब चमक सॅ भरि गेल छल ।
नेपाल तराई के एक गोट गाम टोल मे बड़ विवाह मूड़न आ’ उपनैन छल ताहि लेल दूर दूर सॅ लोक वेद सब ओतए आयल छल। अपन अपन सर संबंधी के ओतए । सबहक कुटुम सॅ सब दलान भरल। धिया पुत्ता सॅ खरिहान गाछी चारो दिस जेना खचबचिया सब उछलम कूद करि रहल होय ।स्त्रीगण सब अपन अदौड़ी दनौरी पाड़ैत| हॅस्सी ठठ्ठामे लागल चारो कात लाल पियर रंग सॅ रंगल नूआ़ धोती सब टांगल बांसक डाला चंगेरा पुड़हिल पातिल सब रंगल टीपल। गीत नाद होय। कत्तो बारहमासा कत्तो सोहरि। क़त्तो ‘शुभ के लगनमा शुभे हो शुभे’ कत्तो कत्तो सॅ समदौन आ डहकन सेहो सुनाय पड़ैत छल।
आ गामक पूबारि टोलक पुरनि पोखरि क’ भीड़ पर जखन आठ बरखक दूनू संगी गुलाब लगौने छल तए पूबरिया महाड़ पर शिव मंदिरमे जाकए जल चढौने छल।
‘हे महादेव हमर दूनूक संग नहि छूटै ।’ ओत्तए पीपरक गाछ पर बैसल कार कौआ तखने काव काव करैत उड़ि गेल छलै|
प्रीतिक दलान स्निग्धाक दलान सॅ कनि हटि कए पछाैति दिस छलै|बसबीट्टीक पाछा़ आ’ टोलक सब धिया पुत्ता प्रीतिए के खरिहान मे खेलय जुटै़। फागुनक मास़़।
प्रीति नेने सॅ बड़ बियापक। आलथी पालथी मारि क’ नीचा मे गोबर सॅ नीपल खरिहान मे बैसि रहै आ’ सब धिया पुत्ता अपन अपन तरहत्त्थीि ओकरा सोझामे रोपने बैसल। ओ पूंगबय लागै। मुदा जखने सुरू होय़ “अटकन मटकऩ दहिया चटकऩ”मूनमा जोर जोर सॅ हिलए लागै। पूनमी ठिठिया दैक आ’ सत्तो बिदकि क’ भागि जाए़। मोहनजी ओकरा पकड़ि क’ आनय आ फेर सॅ पुंगबए के क्रम मे प्रीति पीत्त सॅ माहुर होइत कानए लागै़ “आब तोरा सब संगे कहियो नहि खेलबौ।” तखन सब ओकरा मना तना क’ फेर सॅ खेला सुरू करै “केरा कूस़ महागऱ जागर पूरनी पत्ता हिलै डोलै माघ मास करेला फूलै। ओय करेला नाम की आमून गोटी जामुन गोटी तेतरी सोहाग गोटी़ बाँस काटे ठाँय ठाँय नदी गुंगुएल जाए कमलक फूल दूनू अलगल जाए बड़ी रानी छोटी रानी गेली नहाए” अहि बीच भोलबा कुन मुनाए किछु उकठ्ठी करै लेल कि शांति ओकरा आखि तरेर क’ दबाड़े त’ ओ संच मंच भ’ क’ बैसल रहि जाए़।
प्रीति सबहक हाथ पर नजरि गड़ौने पूंगबैत रहै।
“गहना गुरिया ल’ गेलन्हि चोर आब कि पहिरती कौआ के ठोर कौआ के ठोर त’ कारी आब की पहिरती साऽऽऽऽऽऽड़ी चूट्टा लेमे की चूट्टी।”
स्निग्धा सदिखन चुट्टे कहै़ आ’ ओकरा ओ ततैक जोर सॅ मौसमे नैाह गड़ा क’बिठ्ठू
काटै जे ओकर मूह लाल आ’ आखि सॅ भट भट नोर खसए लागै मुदा तैयो ओ हॅसैत़ एक मुठ्ठी काख तर आ’ एकटा माथ पर नेने खेलक’ नियमक’ मुताबिक शुद्व होमए लेल नहाए चलि जाए़ फुसिए़।
“कत्त सॅ नहा क’ एलैं हैं ” कखनो डबरी क’ पानि सॅ कखनों खत्ता के पानि सॅ़ कखनों नाली के पानि सॅ आ’ जज क’ आसनि पर बैसल प्रीति खौझात़ि खौझात़ि ताबैत धरि सबके घुरबैत रहै जाबे धरि ओ सब गंगाजी के जल सॅ नहा क’ शुद्व भ’क’ नहि आबए ।
दूनू गुलाब गाछ पर चढै पोखरि मे कूदै इम्हर लताम तोङै़ उम्हर इमली तोड़ै इम्हर उम्हर बूलैत़ कखनो एक दोसर क’ आंगन मे जाकए भोजनोभात करि लैत छल ।गोटरस लुक्काइ छिपी डोला पाती़ दादी कहैथ ‘दुनु छौड़ी बड़ खुरलुच्ची लुक्खी। जका फुदकैत रहैत अछि भरि दिन दूनू के एके गाम मे विवाह करबा देबए सासुरोमे उधम मचेतै ।’
“तू कोना लतामक गाछ पर सॅ खसल छलीह डोला पाती खेलबा काल़।’
“हॅ गै़ एखनो बथैत रहैत अछि ओ चोट़ ।” ओ केहेन दनि अपन मूह बनाक अपन बामा बाहि छुबए लागल जेना ओ चोट टटका होए ।
‘ओकरा जे मारने छलही़।’
‘केकरा गै ’
‘ठेठरा के नाति थेथ्थर लछमनमा के़’।
‘हॅ हॅ बड़का बड़का आखि सॅ कोना गुरेर गुरेर क’ ताकए जखन हम सब एक्ककट दूक्कुट खेलाए़ । हम सब जतए खेलाए़ ओहि ठाम घुरियाबए लागै ‘हमरो खेलाउ न यै दाय सब़ ।’ कहियै जो कमल कक्काठ के बाड़ी सॅ लताम तोड़ने आ़ त’ कोना खी़ खी करि क’ हॅसय लागैत छल हेहरबा़।’
‘मुदा ठेठरा के नाति आब एकदम्मे बदलि गेलए़ देख भी त’ आखि चोन्हरा जेतौ।’
‘कि भ’ गेलै चारि टा हाथ आ’ चारि टा पएर भ’ गेलै की।’
‘हॅ गै आब ओ पुलिसक बड़का औैफिसर बनि गेलए माए ओकर नैहरे मे रहैत छल़ ओहि गामक आधा सॅ बेसी जमीन आब लछमन परसाद खरीद क’ बैसल अछि बड़का बड़का लोक आब ओकरा सलाम करैत छै। एक टा पएर सॅ गाम नापै छै आ’ एक टा सॅ सहरि सौंसे गामक लोक आब डेराए छै ओकरा सॅ।’
‘तोरा के कहलकौ।’
प्रीति अधीर भेल छल़ आखि मे अविश्वासक भाव सेहो़। ‘मौसी कहैत छलीह़। बड़का नेता के बेटी सॅ विवाह सेहो करि लेलक । ओकर माए सेहो महरानी बनि गेल अछ़ि गाड़िए पर घुमैत रहैत अछि आब़ ।’
‘छोड़ लछमनमा के़ मुदा छौड़ा छलै बड़ पीत्तमरू़ आ’ तेजगर सेहो। कत्तेक थकुचने रहिए दुनु मिलक’ चाटे चाट गाल प मारने रहिए मुदा एकोबेर केकरो नहि कहलकै । हमरा त’ बड़ दिन धरि प्राण डरै सुखाएल छल़। कत्तहु बाबा के नहि ओकर नाना उपराग दै़ ।’ प्रीति स्निग्धा के घुरैत बाजल। ‘आ ओ भूत वला खिस्सा़ ।’ स्निग्धा मोन पाड़लकै प्रीति के एक गोट काकी के भूत लागि गेल रहै़ ‘तोहरि एक गोट काकी के जे भूत लागल रहै लोक सब बाजै़ जे झलफल सांझ मे बाड़ी मे जतए पीपरक गाछ छलैक़ चूल्हीक’ छौड़ फेंकए गेल छलथ़ि कि बड़का गाछक’ भूत धए लेलकन्ह़ि कि कहां नहि भेल रहै । कोन दन गाछ क’ टूस्सी मॅगाओल गेल बड़ लोक वेद सब जुटि गेल छल़। करीया कपड़ा पहिरने़ माथ पर सेहो करिया वस्त्र बन्हने । हाथ मे किदन किदन नेने़ लाल टरेस आखि वला कोनो ओझा आबि क’ भूत भगौने रहै़ ।’
‘भूत की हाेइत छै कोना उनटा पएरे चलैत छै कोना नकिया क’ बजैत अछ़ि ई सब खिस्सा बड़ दिन धरि आंगन मे चलैत रहलै़ आ’ नेना भुटका सब बड़का टा के मूह बेने बड़ धियान सॅ ई सब गप्पं सुनि अपन ज्ञान बढा क’ दाेसर दिऩ संहतिया सब के सेहाे बतबै ओहाे सब कतेक रास एहेन गाछ के चेन्ह लगोने छल जाहि पर लोक कहैक भूत रहै छै ।भूऽऽत कतेक ड’र लागै राति मे हम त’ कतेक बेर नींद मे चिकरए लगिए़ ‘भूत़ भूऊत़हमरा पकड़ि लेलक माेकने जाइत अछि घेंट़ ।’
‘कत्तए छै भूत ’मा हमरा चुप्पे कराबति कहैथ़ ‘ सगरे दिन नै जानि कत्त कत्त छिछियाबैत रहैत अछि कोन बाध कोन बोऩपएर धो क’ सूतल छलैं’ हम डराति डराति कहियै ‘हॅ’। ‘बजरंग बली के नाम ल’ क’ सूत़ भूत प्रेत किछु नै बिगाड़ै छै़ ।’आ’ हम जै हनूमान जी करैत फेर सॅ सूइत रहि ।’स्निग्धा भरि पेट छोले बटोरे खाइत बाजि रहल छल।
‘आ’ भूत प्रेतक पोटरी नेने मॅझली माैसी के बेटी जे राज विराज मे रहैत छल़ पहिने त’ खेल सुरू करै किछु आओऱ ‘डांग डूंग डांग डूंग ताले को आयाे हामी हरू
‘के ना़ राजा
को छोरो को विवाह को फरसी लीनू ।
’मुदा खेल छोड़ि क’ कहए लागै अपन इसकुलक बड़का गाछक खिस्सा़ जतए एक गोट नकियाति भूत ओकरा बरदान देदो छलैए ।ई सब खिस्सा तू कत्तेक धियान सॅ सुनही प्रीति जेना एको आखर छुटला कोनेा दोख नै लागि जाए़ वा’ परीच्छा मे पूछए वला उत्तर हाेक़ ।’
“गाम त’ बड़ पहिने छूटि गेल हमर सबहक पप्पाू सहरि मे मकान बना लेलथ़ि आ’ धीरे धीरे सब भाय बहिनी के विवाह दान हाेइत माता पिता अपन आखिरी यात्रा पर न्किलि गेला़ तखन ओ सहरियाे छुटि गेल़ ़सब भाए बहिन एक दाेसरि सॅ हजाराे मील दूऱ ़ एकटा पृथ्वी के एक छोर पर त दाेसर
दाेसर छोर प ।’प्रीति सुना रहल अछि ।
“आय काल्हि लोक सब बड़ ज्ञानी भ’ गेलए नै एक ठाम कोना रहतैक़ चरैवैती चरेवैती ’अपन आदि मानव जका फेर विश्व के कोना कोना छानि रहल अछि दुनिया देखय के उद्दाम लालसा़।’ आ’ जोर जोर सॅ ठहाका मारैत प्रीति अपन चश्मा के माथ पर स’ उतारि आंगुर सॅ कटलाहा केश सोझराबए लागल छल़ ।
समय जेना महानगर सॅ पड़ाऽऽ क’ ओहि गाम मे नूका गेल छल आ’ ओ दुनु बहिनपा ओकरा खिहारय निकलल छलीह। ओहिना गाछी सॅ बहैत बसात पुआरक बड़का बड़का टाल दलान पर बैसल पुरूष आ’ आंगनि मे स्त्रीगणक
राज़ आ’ दुनु के आखि सॅ बचैत़ उत्त्पा त मचबैत धिया पुत्ता ।
अहि बेर प्रीति उछलल़ ‘ओहि महफा लागल बैलगाड़ी के पाछा तू कोना
भागल छलही़ ‘अनिया से मनिया दड़िभंगा वाली कनिया ’ कहैत गाड़ी के पीछा मे लटकल़ आ’ कोन एकटा फकड़ा पढै छलही़ देख नै़ एकदम बिसरि रहल छी़ कि छलै कि छलै ’अपन बिचला आंगुर सॅ माथ ठाेकैत बाजल़ ‘हॅ़ लाल भैया ल’क’ एला़ लाले लाले कनिया़ किछु एहने सन छलै नै़ ” प्रीति अपन विलक्षण स्मृति के परिचए दइत बाजल छल़ ओ बड़प्पछन जे नेना मे छलै आ’ अपना के काबिल बूझए वला गप्पि से एखनि धरि छइए छलैक़।
अचानक अपन घड़ी पर तकैत बाजल़ ‘गुलाब आब चली छाै बाजि गेलए़ राैतुका फ्ला‍इट सॅ हमरा वाशिंगटन डी सी जेबा के अछ़ि बेटा अछि ओतए घरवला सेहाे ओहि ठाम पाेस्टेड छथि ’।
हड़बड़ा क’ ओ अपन समान उठाैलक फेर समान टेबुल पर राखि पर्स खाेलि विजिटिंग कार्ड पर अपन व्यक्ति गत माेबाइल नंबर लिखिक स्निग्धा के देलकै “माेन त’ नै करैत अछि तोरा छोड़ए के मुदा जिनगी छै आए तीस बरखक बाद व्यतीत आॅखिक सोझा ठाढ भ’ गेल आब नै बिसरिहै ‘छोटी सी है दुनिया पहचाने रास्ते है तुम कभी तो मिलोगे़ कहीं तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल़’ गाबैत फेर कनि हड़बड़ा क बाजल़ ‘अतीते मे हम सब भ्रमण करैत रहि गेलौ नबका किछु नै पूछलै किछु नै कहलियौ मुदा आब फेर भेंट हाेयत त’ खाली नबके गप्पक करब़ बेस़ ।’
दुनु लिफ्टे सॅ उतरि अपन अपन गाड़ी दिस चलि आएल छली़ ़ ़प्रीति के ड्राइवर गाड़ी लग आनि लेलकै ओ गला मिलैत बाए बाए करैत चलि गेल ।
स्निग्धा ड्राइविंग करए सॅ पहिने ओकर विजिटिंग कार्ड अपन पर्स सॅ निकालि कए नहि जानि की सोचि कए देखए लागलै़।
“श्री शान्ति भूषण़ विदेश विभाग भारत सरकाऱ’ ।ओकर करेज जोर जोर सॅ लोहरबा के भाॅति जकां धड़कए लागल छल हाथ सेहो थर थर कांपय लगलै़ अपन पाप के छुपबए लेल़ ओकर पति पर बेबुनियाद आराेप लगा क’ सस्पैंड करबए बला व्यक्तिल यएह छल सी़ बी आई जाचक मांग के ठुकरा बए वला यएह थीक अप्प’न लोक जे ओकर घर उजाड़ए के भरिसक प्रयास केने छल । विदेशे विभाग मे उच्च पदस्थ ओकर पति यएह नाम कहने छलैन्ह़ मुदा सरनेम नहि लिखबा सॅ ई पता नहि छल केकराे की ओ कत्तए के छथि ।
प्रीति जेना कसि क’ ओकर हाथ पर नैाह गड़ाैने पुछि रहल छल ‘चुट्टा लेमे
की चुट्टी़’ ओकर मुह लाल भ’ गेलै़ ।आखि सॅ पानियो बहि गेलय़ । मुदा अहि बेर ओ हॅसि नहि सकल । ओकरा भेलए जे फेर नहि जानि कत्तेक अवधि धरि डबरा़ नाला पोखरि तलाब खत्ता खुत्ती मे नहाति नहाति प्रीति के नजरि मे शुद्व होबए लेल गंगा के तलाश मे भटकैत रहत़ । मुदा गंगा नहेलोपरान्त आब ओकरा नजरि मे पवित्र भ’सकत वा’ नहि किएक त’ दुनु के दुनिया बदलि गेल छल ।
आखि सॅ बहैत धार देखि बेटी बुझलक संगी के याद मे मां विहृवल भ’ गेल छथि ।हुनका ड्राइविंग सीट सॅ हटा अपने गाड़ी चलबए लागल छल।
कामिनी कामायनी
8।5।09


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ज्योति वत्स said...
gam ghar me bahina sabh aab katay karait hetih ena, aab te sabh hi-fi dekhbait chhathi.
Reply05/15/2009 at 09:07 PM
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Dr Palan Jha said...
kamini jik bahinapa bala katha , puran phakra sabh khoob nik
Reply05/15/2009 at 09:05 PM
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vivekanand jha said...
majedaar katha!
khoob neek likhal
Reply05/15/2009 at 06:15 PM

डा. कल्पना मणिकान्त मिश्र,पिता डा शिव कुमार झा,गाम राटी,सासुर-गजहारा। विगत ३०-३२ बरस सँ मुम्बईवासी।मेडिकल शिक्षा जे.जे.होस्पीट्ल/ग्रान्ट मेडिकल कॉलेज सँ सम्पन्न कए स्त्री-रोग विशेषज्ञ रुपमे कार्यरत।


मातृभाषा

मातृभाषाक प्रेम,बहुत किछ पढल आ सुनल अछि। अहूँ सब सुनने होयब कतेक बेर मुदा स्वयम अनुभव करबाक अवसर किछुयेक लोक के भेटैत छन्हि।हम सब बम्बई आएले रही। ओना तँ एहि गप्पक एक युग सँ बेसी भए गेल मुदा बिसरबाक हिम्मत नहि करि सकैत छी। आर कियैक बिसरु? महानगरीक चकाचौन्धमे हरायल रही,कतौउ भटकि नहि जाइ से चिन्ता रहए। १९८० दशक मे संजय गाँधीक एकटा योजना आएल छल, बेरोजगार ग्राजुएट लेल बैंकसँ किछु सुविधा २०,००० रुपया देबए लेल। हमहुँ बेरोजगार डाक्टर रही। आवेदन केलहुँ तँ लोन तुरते भेट गेल। मुदा आब ओहि पैसाक हम की करु? अपन रोजगार जेना दवाईखाना,कोनो छोटसन घर आदि भविष्यमे अपन क्लीनिक खोलि सकी, जे कि ओहि समयमे अति सुलभ आर सम्भव छल, आब तँ सपना रहि गेल। ओही पाइसँ निवेश करि हम अपन भविष्य सुरक्षित करि सकैत छ्लहुँ, गहना-गुड़िया बना अपन सोख-सेहनता पूरा करि सकैत छलहुँ वा भारत भ्रमण करि सकै छलहुँ। मुदा नहि ! हमर पतिक (डा. मणिकान्त मिश्र) इच्छा छ्लन्हि जे मैथिली भाषाक पत्रिका निकाली। हम दुनु गोटे मिली क ’विदेह’ नामक मैथिली पत्रिकाक शुरुआत केलहुँ। पत्रिका तँ छपए मुदा के कीनत आर के पढत ई बड पैघ समस्या छ्ल। कोनाहु करि कए अपन घरक पूँजी लगा कए २ बरख तँ पत्रिका चलेलहुँ। फ़ेर हमरा सभकेँ बन्द करए पडल किएक तँ दुनु गोटे डाक्टरी व्यवसाय मे लागल रही, घर-अस्पताल-पारिवारिक झन्झट सम्हारैत बड मुश्किल छ्ल। बम्बई मे नबे- नबे रही।

तहूमे एतेक दुस्साहस कोनो साधारण आदमी नहि करि सकैत अछि सिर्फ आर सिर्फ डा मणिकान्त मिश्रा करि सकैत छ्लाह। किएक तँ मैथिलीक प्रति हुनका जुनूनी लगाव छ्लन्हि। बम्बईक आपाधापी भरल जीवन एवम स्वास्थ्यक उतार-चढाव किछु हुनकर मैथिली प्रेमक उत्साह केँ कम नहि कए सकलन्हि आर बीस-बाईस बरखक पश्चात ओ अपन सबटा पूँजी शरीर-समांग समेत मैथिलीक फिल्म "आउ पिया हमर नगरी"बनौलनि। फिल्म बड सुन्दर बनलै, अहाँ सभ देखने होएब। यदि नहि तँ एक बेर अवश्य देखी। फिल्म बनाबए मे जे कष्ट आर अनुभव भेल से हम एखन वर्णन नहि करि सकै छी। आर कखनो।।।।!
मुदा एहिसब प्रकरण मे माँ मैथिली अपन लायक पुत्र सँ हरदम लेल बिछुडि गेली। अछि कोनो मात्रभाषा भक्त-पुत्र जे अपन माँ-मैथिलीक हृदयक पीडाक अनुभुति करि हुनका लेल अपन सब किछु समर्पित करि दिअए।


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www.google.com/accounts/o8/id?id=AItOawnfdWWeKghW5vw2SndwaYt0nMuZlEe_-H0 said...
Didi ,
Bahut neek lagal paedh ka ...ahaan neek Doctor aa didi chi se ta bujhal chalaik ......Ati Uttam likhal aich !!!
Ahina likho !!!

Binny
Reply05/29/2009 at 06:24 AM
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Dr. Dileep Kumar said...
Respected Mam,
I know you because, I am from 'Pilakhwar' and I met you in my villege when you were in pilakhwar for making your film "Aau piya hamar nagari". Very nice film, and more than that, I just inspired by you n your husband (Dr. Manikant mishra)affection & love with mithila culture n language. I am respecting you from my inner heart for doing all such thing to promote mithila culture, tradition, & language.
With regard:
Dr. Dileep Kumar ( Sree Chitra Inst., Trivandrum).
dr.dileep08@gmail.com
+91 9633463050.
Reply05/25/2009 at 03:00 PM
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सुशांत झा said...
मिथिला और मैथिलीके उत्थान के लेल एखनों कतेको लोक लागल छथि। लेकिन दुर्भाग्य के गप्प जे नवका पीढ़ी अपन भाषा सं कटि रहल अछि। आ ई मैथिलिए संगे नहि..बल्कि सब भाषा संगे भ रहल अछि। हमसब अंग्रेजी आ हिंन्दी के भाषाई साम्राज्यवाद के शिकार भ रहल छी। एकर कोनो रास्ता नहि सूझि रहल अछि सिवाय अई बात के जे कम स कम अपन घर में त हमरालोकनि अप्पन भाषा बाजी। नहि त एकटा दिन एहन आयत जे जेना जेना शहरीकरण बढ़ल जायत, हमर भाषा खतम भेल जायत। अपन भाषा बजनाई हीनता नहि, स्वाभिमान के प्रतीक थिक।
Reply05/22/2009 at 01:31 PM
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vivekanand jha said...
दाय
हम तऽ एतबे कहब जे प्रेम छलन्हि
आ ओ हम सब एखनॊ देखि सकैत छी
एहिना बहुतॊ लॊक छथि जे
मैथिली लेल मरैत-जीवैत छथि
एहन लॊकक संख्या ओना हरदम कमे हॊइत छैक
प्रेमक निर्वाह करऽ वला कम आ सतत श्रद्धेय हॊइत छथि
Reply05/17/2009 at 04:12 PM
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अंशुमाला सिंह said...
विदेह अहाँ आ अहाँक पति शुरू कएने रहथि से देखि नीक लागल। एहि विदेहमे अहाँक संस्मरण आ ई जानि जे आउ पिया हमर नगरी अहाँक पति बनेने छलाह से सुखद, कारण ई फिल्म हम देखने छी। अपन पतिक फोटो सेहो एहि आलेखक संग दी आ हुनकर संग बिताओल अपन स्मरण राखी से आग्रह।
Reply05/15/2009 at 09:22 PM
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ज्योति वत्स said...
videha 30 sal bad dekhi ahank prasannata ahak photo aa aalekh me dekhai paral,
ahan se sabh ank me rachna aabay aa ham sabh dekhi tahi aasha sang.
Reply05/15/2009 at 09:19 PM
कथा-मर्यादाक हनन

कुमार मनोज कश्यप
जन्‌म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प््रासारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प््राकाशित। सम्प््राति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।

मर्यादाक हनन

मुख्य-आभयंता सन उच्च पद पर रहितो गंगाबाबूक सादगी, निश्छलता आ सेवा भावना उल्लेखनिय रहल आछ । हुनका लोक देवता बुझैत छनि। कोनो लोक एहि परोपट्टा मे नहिं भेटत जे कहि दिअय जे कोनो काज पड़ल होईक आ गंगाबाबू मना कऽ देने होथि । एहि परोपट्टाक जतेक जे लोक सिंचाई विभाग मे नोकरी करैत आछ से सभ गंगेबाबूक रखायल । ककरो नोकरी चाहियै तऽ सीधा सम्पर्क करय गंगाबाबू सँ । अपना ओहि ठाम रखबो करथिन आ नोकरियो रखा देथिन । गंगाबाबू पाई तऽ नहि कमैला मुदा यशक कोनो कमी नहिं । परोपट्टाक लोक हुनकर गुणगान करय, मुदा हुनकर अपने बेटा के छोड़ि कऽ।

कोन माय-बापक ई ईक्षा नहि रहैत छैक जे ओकर संतान सुसभ्य, सुशिक्षित, सुसंस्कृत बनय; उच्च पद पर जा माय-बाप, गाम-घर, देश-जयवारक पाग ऊँच करय। गंगोबाबू यैह आकांक्षा लय अपन एकमात्र पुत्र प्रभास कें सभ साधन उपलब्ध करबैत रहलखिन जे कहुना मनुक्ख बनि जाय । हमरा सँ आगू नहिं बढ़य, तऽ कम-स-कम सम्मानजनक स्तर धरि तऽ जरुरे पहुँचय । मुदा कुसंगति मे पड़ि बेटा नेन्हपने सँ पढ़ाईक जगह पान, सुसंसकारक जगह शराब-सिगरेट आ भलमानुषक जगह भांग अपना लेलकैन । कोना-कोना कऽ घिचैत-घिचैत ओकरा बी०ए० के डिग्री देयाओल गेलैक । एहना मे कोनो नीक नोकरीक तऽ आशा केनाई व्यर्थे छलैक । आ एतेक पैघ आधकारीक संतान कोनो छोट नोकरी करय तऽ प्रतिष्ठा कतऽ रहतै ! अंततोगत्वा बड़ सोचि-विचारि कऽ प्रभास के गंगाबाबू व्यवसाये मे लगायब उचित बुझलनि । मुदा भाग्य ओतहु पाछाँ काहाँ छोड़लकनि ओहो डुबि गेलनि ।

प्रभास के एक दिन ओहिना बौआईत देखि हम पुछि देलियै, 'आहाँ मे प्रतिभा के तऽ कोनो कमी नहि; एकर सदुपयोग कऽ आहाँ शिखर तक पहुँचि सकैत छी। मानल जे आब सरकारी नोकरीक उम्र नहिं बाँचल आछ ; मुदा आजुक युग मे तऽ प्राईवेटे सेक्टर सरकारी सँ आगू जा रहल आछ । आहाँ ओतऽ ट्राई कऽ सकैत छी । ' प्रभास मुँह मे भरल गुटकाक पीक कें पीच्च सँ फेकैत बाजल, 'कक्का ! आहाँ कोन दुनियाँ मे छी? प्राईवेट सेक्टर के चाहियैक यंग, इनरजेटिक, क्वालिफाईड, प्रोमीसिंग़़ हमरा सन भकलोल नहिं । ' गुटका के महीन कऽ चिबबैत ओ फेर बाजल, 'सत्य पुछू तऽ हमर नाकामीक जिम्मेवार हमर बापे छथि । जखन ओ जनैत छलाह जे हम भुसकौल छी, तखन सालक साल फार्म भरबाक पास करेबाक बदला मे जौं कतहु नोकरी रखा देने रहितैथ तऽ हमर आई ई दशा नहिं रहैत। मुदा एहि मे तऽ हुनकर झूठ मर्यादा आगू आबि गेलैन । आब आहं कहू जे मर्यादाक हनन कतऽ छै--पुत्र के छोट नोकरी करेबा मे वा दर-दर के ठोकर खाई लेल छोड़ि देबा मे?' हम निरुत्तर बगल दिस ताकऽ लगलहुँ। सोझाँक ख़िडकी सँ ताकि रहल गंगाबाबू अढ़ भऽ जेबाक कोशिश कऽ रहल छलाह।


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মোহন said...
lok bachcha par anavashyak davab banbai ye, okar pratibha ke tare jamin dekhi viksit karoo
Reply05/15/2009 at 09:30 PM
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अंशुमाला सिंह said...
नीक समस्या उठेलहुँ मनोज जी। कथाक कसावट नीक।
Reply05/15/2009 at 09:28 PM
भाषा आ प्रौद्योगिकी (संगणक,छायांकन,कुँजी पटल/ टंकणक तकनीक) ,अन्तर्जालपर मैथिली आ विश्वव्यापी अन्तर्जालपर लेखन आ ई-प्रकाशन- गजेन्द्र ठाकुर



गूगल आ वर्डप्रेस द्वारा जालवृत्त खोलबाक लेल बहुत रास बनल बनाएल परिकल्पित नमूना स्थल निर्माण लेल उपलब्ध अछि आ ओतए लेखन, संदेश आ टिप्पणीक लेल असीमित दत्तांशनिधि उपलब्ध अछि जतए जालोद्वहन मँगनीमे देल जा रहल अछि। ई सभ जालवृत्त निर्माण स्थल उपभोक्ता केन्द्रित अछि आ एतए सरल लेखन-पद्धतिक व्यवस्था सेहो कएल गेल अछि मुदा जे अहाँ संविहित पृच्छन भाषा (एस.क्यू.एल.) आधारित जालस्थलक निर्माण आ प्रबन्धन करए चाहैत छी तँ ओहि लेल ई निबन्ध अहाँक लेल उपयोगी रहत। पहिने मिथिलाक्षर आ देवनागरीक यूनीकोडमे लिखल जएबाक प्रक्रम दए रहल छी आ से अन्तर्जालपर पढ़ल जा सकबा योग्य कोना होएत तकरो चरचा होएत। तकर बाद जालस्थल निर्माण पद्धतिपर विस्तृत चरचा होएत।


देवनागरी लिपिकेँ रोमन टाइपराइटरपर कोन टाइप करी-
पहिने www.bhashaindia.com पर जा कए हिन्दी IME V.5 अवारोपित (डाउनलोड) करू । एहि विधि (प्रोग्राम) केँ अपना संगणक (कंप्युटर) पर प्रतिष्ठापित (इंस्टॉल) करू । फेर नियन्त्रण पटल (कंट्रोल पैनल) मे क्षेत्रीय आ भाषा (रेजनल आ लंग्वेज) पर जा कए लंग्वेज प्लावक (टैब) केँ दबाऊ । देखू जे कॉम्प्लेक्स स्क्रिप्ट/ राइट टू लेफ्ट लैंगुएज पर सही केर निशान लागल छैक आकि नहि । नहि छैक तँ करू आ संगणक ( कंप्युटर) ताहि लेल जे जे कहैत अछि से करू । एकरा बाद लंग्वेज प्लावक (टैबकेँ) आ डिटेल्स केँ दबाऊ । फेर ओतए ऐड क्लिक करू आ ओतए लंग्वेज मे हिन्दी आ कीबोर्ड मे HINDI INDIC IME 1[V.5.1] सेलेक्ट कए अप्लाइ दबाऊ । कंप्युटरकेँ रीस्टार्ट करू । आब वर्ड डोक्युमेंट खोलू । वाम Alt+Shift केँ सम्मिलित दबेला उत्तर H कुँजीपटल (कीबोर्ड) आओत नहि तँ नीचाँ लंग्वेजक़ेँ क्लिक करू आ हिन्दी चुनि लिअ । कुँजीपटलमे हिन्दी transliteration आ आन तरहक विकल्प जेना रेमिंगटन/ इन्सक्रिप्ट कुँजीपटल उपलब्ध अछि । चुनि कए टाइप शुरू करू ।
आब transliteration कुँजीपटलपर राम टाइप करबा लए raama टाइप करए पड़त । क् (हलन्त सहित) टाइप करबाक हेतु k दबाऊ आ माउसक लेफ्ट बटन क्लिक करू अन्यथा स्पेस पिञ्जक आकि एंटर पिञ्जक दबेला पर हलंत उड़ि जाएत ।


विकीपीडिया पर मैथिली पर लेख तँ छल मुदा मैथिलीमे लेख नहि छल,कारण मैथिलीक विकीपीडियाक स्वीकृति नहि भेटल छल । हम बहुत दिनसँ एहिमे लागल रही आ ई सूचित करैत हर्षित छी जे २७.१०.२००८ केँ मैथिली भाषामे विकी शुरू करबाक हेतु स्वीकृति भेटल छैक । एतए संगणक शब्द सभक स्थानीयकरणमे बहुत रास अंग्रेजी शब्दक अनुवाद हम कएने रही आ ताहिसँ एह क्रयमे रुचि बढ़ल आ मदति सेहो भेटल ।
देवनागरीमे टाइप करबाक हेतु एकटा आर तन्त्रांश साधन (सॉफ्टवेअर टूल) उपलब्ध अछि टूल अछि जे http://www.baraha.com/BarahaIME.htm लिंक पर उपलब्ध अछि । एकर विशेषता अछि एकर संस्कृत कुञ्जी फलक जे आन कोनो तन्त्रांशमे उपलब्ध नहि अछि । एहिमे उदात्त,अनुदात्त स्वरित आ किछु आन संस्कृत अक्षर उपलब्ध अछि मुदा एतहु स्वास्तिक, ग्वाङ, अञ्जी इत्यादि उपलब्ध नहि अछि । स॑ , स॒ , स॓ , सऽ केँ स लिखलाक बाद सिफ्ट ३,२,४ आ ७ दबेलासँ लिखि सकैत छी ।
तिरहुता लिपि लिखबाक हेतु एहि लिंक पर जाऊ।
http://www.tirhutalipi.4t.com/
मुदा एकरा हेतु एहि लिंक पर जे प्रीति फॉंन्ट छैक तकरा सेहो अवारोपित कए प्रतिकृति करू आ दुनू केँ ध्रुववृत्त चालक (हार्डडिस्क ड्राइव) C/windows/fonts मे लेपन करू । एहिमे जे फॉन्ट अछि से Ascii मे अछि । क्रुतदेव , शुशा ई सभ फॉण्ट सेहो एहि तरहक अछि, पहिने उपयोगी छल मुदा आब सर्च इंजिनमे यूनिकोड-यू.टी.एफ.8 केर सर्च होइत छैक आ Ascii मे लिखल देवनागरीक सर्च नहि भए पबैत अछि । विन्डोजमे मंगल वर्णमुख (फॉन्ट) अबैत छैक से यूनीकोडमे छैक आ एहिमे लिखल देवनागरी सर्च भए जाइत अछि । मिथिलाक्षरक यूनीकोड रूपक आवेदन (अंशुमन पाण्डेय द्वारा देल गेल) लंबित अछि जाहिमे बर्कले विश्वविद्यालयक प्रोफेसर डेबोराह एन्डरसन, Project Leader, Script Encoding Initiative, Dept. of Linguistics,UC Berkeley क आग्रहपर हमहुँ योगदान देने रही ।
आब किछु बात यूनीकोड आ जालस्थल (वेबसाइट) केर संबंधमे ।
कोनो फाइलकेँ पढ़बाक हेतु कंप्युटरमे आवश्यक फॉंट होएब जरूरी अछि, नहि तँ सभसँ सरल उपाय अछि, शब्द-संसाधकमे बनल लेख (वर्ड डोक्युमेंट) केँ पी.डी.एफ. फाइलमे परिवर्त्तित करू । एहिमे नफा नुकसान दुनू अछि । नफा जे बिना कोनो फांटक झंझटिक पी.डी.एफ.फाइल जाइ काँटा/ वर्णमुख/ लिपिमे लिखल गेल अछि, ताहिमे पढ़ल जा सकैत अछि । एकर नुकसान जे जखने फाइलमे जा कए सेव एज टेक्स्ट करब तँ अंग्रेजीतँ सेव भए जाएत मुदा देवनागरी तेहन सेव होएत जे पढ़ि नहि सकी । दोसर यूनीकोडक मंगलमे टाइप कएल लेखकेँ एडोब अक्रोबेटसँ पी.डी.एफ.मे परिवर्त्तित करबामे दिक्कत होए तँ संपूर्ण फाइलकेँ खोलि कए सभटा चयन करू, यूनीवर्सल यूनीकोड एम.एस.फांट ड्रॉप डाउन मेनूसँ सेलेक्ट करू फेर प्रिंटमे जा कए प्रिंटर (मुद्रक) एडोब एक्रोबेट सेलेक्ट करू । आब ई फाइल परिवर्त्तित भए जाएत पी. डी. एफ.मे । माइक्रोसॉफ्ट वर्डसँ pdf मे परिवर्त्तनक सोझ तरीका अछि, फाइल, प्रिंटमे जाऊ, आ फेर प्रिंटरमे एक्रोबेट डिस्टीलर सेलेक्ट कए प्रिंट कमांड दए दिअ । मुदा एहिमे कखनो काल pdf डॉक्युमेंट नहि बनैत छैक । तखन प्रिंटर एक्रोबेट डिस्टीलर सेलेक्ट कए प्रोपर्टीज मे जाऊ । ओतए अडोब pdfसेटिंग सेलेक्ट करू । ओतए ऑपशन डू नॉट सेंड फॉन्ट्स टू डिस्टिलर मे टिक लगाएल होएत । ओकरा अनचेक करू । आ से कए बाहर आऊ आ प्रिंट कमांड दिअ । आब pdf डॉक्युमेन्ट बनि जाएत । एहि फाइलमे कखनो काल घ हलन्त आ ज कखनो काल चतुर्भुज रूपमे नञि पढ़बा योग्य अबैत अछि ।
पी.डी.एफ. स्प्लिटर आ’ मर्जर सॉफ्टवेयर ( जेना फ्रीवेयर सॉफ्टवेयर ‘पी.डी.एफ. हेल्पर/ सैम) केर मदतिसँ आसानीसँ पी.डी.एफ. फाइल जोड़ि आ तोड़ि सकैत छी।



आब वेबसाइट बनेबाक पूर्व किछु मुख्य बातकेँ देखि लिअ । पाँच तरहक अन्तरजाल गवेषक (इंटरनेट ब्राउजर) अछि, शेष सभटा एकरा सभकेँ आधार बना कए रचित अछि । तखन सभसँ पहिने ई चारू अपना कंप्युटरमे प्रतिष्ठापित (इंस्टॉल) करू-
१.ओपेरा , २.मोजिल्ला , ३. माइक्रोसॉफ्टक इंटरनेट एक्सप्लोरर (ई तँ होएबे करत) , ४. गूगल क्रोम आ ५. एपलक,अखन धरि ई मेकिनटोसक लेल छल आब विन्डो लेल सेहो अछि, सफारी । आब जखन जाल पृष्ठ (वेब पेज) उपारोपित (अपलोड) करू वा पहिनहुँ तँ एहि सभपर खोलि कए अवश्य देखि लिअ ।
देवनागरी लिखबामे बराह आइ.एम.ई. केर योगदान विशिष्ट अछि । एहिमे संस्कृतक उदात्त , अनुदात्त आ स्वरित केर संगे बिकारी, देवनागरी अंक आ किछु संगीतक स्वरलिपि लिखबाक सुविधा अछि । विदेहक संगीत शिक्षा स्तंभ बिना एकर सहयोगक संभव नहि छल । मंद्र सप्तक, तीव्र आ कोमल स्वरक नोटेशन एहिमे अछि । ऋ,ॠ आ ऌ,ॡ आ ऍ, ऎ अ, ~ हलन्तक बाद जोड़क सुविधा एहिमे सुविधा छैक । अनुदात्त क॒ उदात्त क॑ आ स्वरित क॓ सेहो उपलब्ध अछि । ई विस्टामे सेहो कार्य करैत अछि । आ यूनीकोड फॉंटमे रहबाक कारण इंटरनेट पर पठनीय अछि ।
अ सँ ह तक वर्णमाला अछि । क्ष, त्र ,ज्ञ ओनातँ संयुक्त्त अक्षर अछि मुदा बच्चेसँ हमरा सभ अ सँ ज्ञ तक वर्णमालाक रूपमे पढ़ने छी । श्र सेहो क्ष, त्र, ज्ञ जेकाँ संयुक्त अक्षर अछि । ज्ञ केर उच्चारण ताहि द्वारे हमरा सभ ग आ य केर मिश्रण द्वारा करैत छी से धरि गलत अछि । ई अछि ज आ ञ केर संयुक्त । ऋ केर उच्चारण हमर सभ करैत छी, री । लृ केर उच्चारण करैत छी, ल, र आ ई केर संयुक्त्त । मुदा ऋ आ लृ स्वयं स्वर अछि, संयुक्ताक्षर नहि । विदेहक आर्काइवमे शुद्ध उच्चारणक आवश्यकताकेँ देखि कए अ सँ ज्ञ तक सभ वर्णक उच्चारण देल गेल अछि । भारतीय अंकक अंतर्राष्ट्रीय रूपक प्रयोगक देवनागरीमे चलन भऽ गेल अछि । भारतीय संविधानक अनुच्छेद 343(1) कहैत अछि जे संघक राजकीय प्रयोजनक हेतु प्रयुक्त होमए बला अंकक रूप, भारतीय अंकक अंतर्राष्ट्रीय रूप होएत। मुदा राष्ट्रपति अंकक देवनागरी रूपकेँ सेहो प्राधिकृत कऽ सकैत छथि ।

http://www.bhashaindia.com पर tbil converter सॉफ्टवेयर डाउनलोड करू । मंगल फॉंटमे आन फॉटसँ परिवर्त्तन करबाक अछि तँ डॉक्युमेन्ट .doc चयन करू इनपुट भाषामे हिन्दी आ ascii फॉन्टमे फॉन्ट चयन करू । आउटपुटमे भाषा हिन्दी आ फॉन्ट Unicode mangalचयन करू । आब ब्राउज कऽ कए फाइल सेलेक्ट करू । अहाँक कम्प्युटर मे ऑफिस २००७ अछि आ वर्ड डॉक्युमेन्ट .docx एक्सटेंशन अछि , तखन एक्सटेंशनकेँ रिनेम करू .docआब ब्राउजमे डॉक्युमेन्ट आबि जाएत । अहाँक कम्प्युटर मे ऑफिस २००७ नहि अछि तखन रिनेम केलासँ कोनो फाएदा नहि । आब कंवर्ट क्लिक करू । नूतन फाइल Unicode Mangalफॉन्टमे बनि जाएत । अहाँक शब्द संसाधक सञ्चिका )(वर्ड डॉक्युमेन्ट फाइल) मे यूनीलोड आascii वर्णमुख (फॉन्ट) मिलल अछि, तखन अंदाजीसँ ascii वा बेशी प्रयुक्त होएबला ascii केर चयन करू । कंवर्ट क्लिक करू कन्वर्ट भऽ जाएत यूनीकोड मंगल वर्णमुखमे।


जालस्थल निर्माण
पहिने कोनो ऑनलाइन प्रतिष्ठित संस्थासँ प्रदेश नाम (डोमेन नेम) कीनू । उदाहरणस्वरूप रिडिफ डॉट कॉम पर जाऊ आ रिडिफ होस्टिंगपर क्लिक करू । ओतए बुक यूअर डोमेन पर जा कए इच्छित नाम ट्कित कए देखू जे ओ उपलब्ध अछि आकि नहि । अहाँ अपन जालस्थलक हेतु उपयुक्त डोमेन नेम क्रेडिट कार्डसँ ऑनलाइन कीनि सकैत छी । ई सस्ता छैक दश डॉलर प्रतिवर्ष एकर अधिकतम मूल्य छैक । तकरा बाद जालोद्वहन सेवा (वेब होस्टिंग सर्विस) केर लिंकपर जाऊ । ५ वा दस साल लेल १०० एम.बी. स्थानक संग जालोद्वहन सेवा लिअ आ एकरा संग माय एस.क्यू.एल. सेवा मुप्त छैक मुदा ओहिमे लाइनक्सपर काज करए पड़त जे कनेक कठिनाह/ तकनीकी भए सकैत अछि से माइक्रोसॉफ्ट एस.क्यू.एल. सेवा किछु आर पाइ लगा कए अहाँ कीनि सकैत छी । आब अहाँ लग २० एम. बी. केर एस.क्यू.एल. दत्तनिधि (डाटाबेस) आ ८० एम.बी.केर साइट लेल जगह बाँचत (माने पूरा १०० एम.बी.) आ से पर्याप्त अछि। आर स्पेसक जोगार मँगनीमे भए जाएत, तकर चरचा आगाँ होएत। माइक्रोसॉफ्ट एस.क्यू.एल. सेवा लेबाक उपरान्त अहाँ अपन माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल सञ्चिका ओतए चढ़ा सकैत छी आ तकर उपयोग अपन जालस्थलपर एकटा मध्यस्थ (इन्टरफेस) बना कए अहाँ कए सकैत छी ।

आब जालस्थल (वेबसाइट) बनेबाक विधिपर विचार करी।
माइक्रोसॉफ्ट फ्रन्टपेज ऑफिस एक्स.पी. क संग अबैत अछि । ऑफिस २००३ मे सेहो ई अलग सँ उपलब्ध अछि ।
प्रन्टपेजमे बनल-बनाओल वेबसाइट विजार्ड चलाऊ । मोटा-मोटी पाँच पृष्ठक जाल-स्थल बनि जाएत। एहिमे वाम कात राइट क्लिक कए पृष्ठक संख्या बढ़ा सकैत छी । ऊपरमे स्थित थीमसँ अपन इच्छा मोताबिक बनल-बनाओल डिजाइन सेहो लए सकैत छी । साइटक कोनो पृष्ठकेँ अहाँ फोटो एलीमेन्ट द्वारा फोटो गैलरीमे परिवर्तित कए सकैत छी आ ३-४-६ स्तम्भमे फोटो सभ सजा सकैत छी । ओहि पृष्ठपर डबल क्लिक कए अपन संगणकसँ फोटोकेँ आनू आ यूनीकोड टाइपराइटर द्वारा वर्णन टंकित करू । पृष्ठ सुरक्षित करबा काल चित्रक गुणवत्ता जे.पी.जी. फोटोमे १ सँ १०० धरि चुनबाक विकल्प छैक । जतेक पैघ फाइल चुनब ततेक बेशी जगह छेकत ।वाम आ नीचाँमे लिक लेल चिल्ड्रेन सेटिंग विकल्प चयन कएला उत्तर जालस्थलक सभ पृष्ठक सूचना ओतए आबि जाएत । बेशी पृष्ठ भेला उत्तर कोनो पृष्ठक भीतर पृष्ठ सभक श्रृंखला दए सकैत छी । आब अहाँक संगणकमे अहाँक जालस्थल माय डोक्युमेन्ट्स/ माय वेबमे सुरक्षित अछि ।
अपन वेबसाइटक वास्तविक स्वरूप प्रीव्यू विकल्प द्वारा ऊपर वर्णित ५ प्रकारक गवेषकमे देखू । किछु आवश्यक परिवर्तन प्रन्टपेजपर कएला उत्तर एहि साइटकेँ अपन सर्वरपर उपारोपित कए दियौक। एहि लेल फाइलजिला डॉट कॉम पर जाऊ जे मुफ्त तंत्रांश उपलब्ध करबैत अछि । एतए क्लाइन्ट आ सर्वर मे सँ क्लाइन्ट विकल्प चुनू आ तंत्रांश अपन कम्प्यूटरमे प्रतिष्ठापित करू । एकरा बाद यूजर नेम आ पासवर्ड दिअ आ एफ.टी.पी. डॉट डोमेन नेम पर पूर्ण जालस्थल वितरक (सर्वर) केर मूल फोल्डरमे पर उपारोपित कए दिअ। अहाँक जालस्थल अन्तरजालपर नियत जालस्थल पतापर देखाइ पड् लागत।
अपन अपन दत्तसङ्ग्रह कोनो तन्त्रांश जेना ई.एम.एस. एस.क्यू.एल.मैनेजर केर माध्यमसँ अपन वितरकपर चढ़ाऊ आ एहि लेल अपन सेवा प्रदातासँ दूरभाषपर गप कए किछु विशेष ओर्टक जानकारी लिअ। सभटा सामग्री चढ़ि गेलाक बाद अपन जालस्थलक पृष्ठपर बनाओल मध्यस्थ पृष्ठपर कोडमे यूजर नेम आ पसवर्ड देनाइ नहि बिसरू।
कोनो पृष्ठपर पृष्ठसँ संगीत अन्बाक लेल कम्प्यूटरसँ ओहि पृष्ठपर संगीतक सञ्चिका आयात करू मुदा आइ काल्हि मात्र ओपेरा आ इन्टरनेट एक्सप्लोररपर प्रन्टपेजसँ बनल जालस्थलमे संगीत बजैत अछि।
आब किछु गप पृष्ठ शैली (स्टाइल शीट) पर।
अहाँ सम्पूर्ण जालस्थलक डिजाइन जे एक्के रंगक राखए चाही तँ एहि लेल सभ पृष्ठमे एकर विधिलेख दए दियौक आ एकटा फोल्डरमे डिजाइन राखि दियौक। एहिमे पृष्ठभूमिमे बाजए बला संगीत सेहो रहि सकैत अछि । एहिसँ ई फायदा अछि जे सभ पृष्ठ खुजबा काल फेरसँ तागति नहि लगबए पड़त मात्र एक बेर डिजाइन आ संगीत खुजबामे जे समय लागत सएह टा। दोसर पृष्ठपर जे लिखित अंश वा फोटो आदि रहत ताहिमे जतेक देरी लागत सएह समय मात्र लागत। माने अहाँक जालस्थल हल्लुक भए जाएत आ जल्दीसँ खुजत।

आब आर.एस.एस.फीडक विषयमे जानकारी ली।
जालस्थल तँ बनि गेल आब एकर प्रचार प्रसार सेहो होएबाक चाही। आर.एस.एस. फीड अछि रिअल सिम्पल सिन्डिकेशन फीड केर संक्षिप्त रूप। एकटा वा कैक टा .xml फाइल बना कए अहाँ अपन वितरकपर चढ़ा दियौक। अहाँ .css डिजाइन तकर बाद ई एक तरहेँ जालस्थलक नक्शा बना दैत अछि आ जखने एहिमे कोनो परिवर्तन अबैत छैक तँ फीड-रीडर/ एग्रीगेटरकेँ जालस्थलपर नव सामग्री अएबाक सूचना भेटि जाइत छैक। एहिमेमे मुख्य घटनाक/ लेखक सारांश रहैत छैक जे लिंकसँ जुड़ल रहैत अछि। ओहि लिंककेँ क्लिक केला उत्तर अहाँ विस्तृत जानकारी प्राप्त कए सकैत छी। .xml युक्त पृष्ठकेँ जालवृत्त (ब्लॉग) पर ऐड गाडजेट/ फीड/ मे पताक रूपमे लिखि कए ५ सँ २० धरि नूतन सामग्रीक (क्रमशः गूगल आ वर्डप्रेस ब्लॉगमे) अद्यतन जानकारी लेल जालवृत्त (ब्लॉग) पर राखल जा सकैत अछि। एकर आर उपयोग छैक जेना फीडबर्नर केर माध्यमसँ ई-पत्र द्वारा सदस्यकेँ सूचना देब, हेडलाइन एनीमेटर जालस्थल/ जालवृत्तपर लगाएब/ ई-पत्र द्वारा इच्छित सामग्रीक लिंक संगीकेँ पठाएब आ गवेषक वा फीड/ न्यूज रीडरक माध्यमसँ पढ़ब।
तकर बाद अपन जालस्थकेँ गूगल, याहूसर्च, लाइव सर्च आ आस्क डॉट कॉमपर सबमिट युअर साइट केर अन्तर्गत दए दियौक जाहिसँ ई सभ अन्वेषण यन्त्र अहाँक साइटकेँ ताकि सकए। .xmlफाइलबला विश्वव्यापी अन्तर्जाल पता/ संकेत तकबामे एहि यन्त्र सभकेँ आर सुविधा होएतैक से अहाँ साइटक मुफत प्रचार होएत। .xml फाइल .htm केर स्थान लेत से नहि छैक मुदा एहिसँ फीड एग्रीगेटर/ अन्वेषण यन्त्र सभकेँ जालस्थलपर नव सामग्री तकबामे सुविधा होइत छैक। जखन अहाँक जालस्थलमे परिवर्तन आबए तँ अपन मूल .xml फाइलकेँ परिवर्तित कए वितरकपर चढ़ाऊ, शेष कार्य फीड एग्रीगेटर/ अन्वेषण यन्त्र स्वयं कए लेत। अहाँक अन्तर्जाल गवेषक सेहो साइटमे फीड रहला उत्तर विकल्प चुनलाक बाद जालस्थलक पृष्ठकेँ रिफ्रेश कए लैत अछि, कारण कखनो काल कऽ टेम्परोरी फाइल संगणकमे रहने पुरनके सामग्री इन्टरनेटपर देखाएल जाइत रहैत अछि। मुदा एहि लेल सभ पृष्ठमे एकटा कूटसंकेत देमए पड़त।
आब किछु चरचा ४०४ एरर पृष्ठक। अहाँक जालस्थपर कोनो फोटो/ लिंक जे पहिने छल मुदा आब नहि अछि केँ टाइप कएला उत्तर ४०४ एरर संकेत अन्तर्जाल गवेषक दैत अछि। अपन सेवा प्रदातासँ कन्फ्युगरेशन सम्बन्धी जानकारी लऽ कए अपन जालस्थलक स्टाइलसीटक हिसाबसँ एरर पृष्ठ बनाऊ जतए किछु व्यक्तिगत संदेश जेना- अहाँ द्वारा ताकल सामग्री आब उपलब्ध नहि अछि केर संग जालस्थलक दोसर लिंक सभ राखू। मुदा एकर ध्यान राखू जे एहि पृष्ठपर एहन कूटसंकेत रहए जाहिसँ अन्वेषण यन्त्र ओकरा सर्च नहि करए।
अपन जालस्थलपर girgit.chitthajagat.in वा google translate गाडजेट राखि सकैत छी जाहिसँ मैथिलीक सामग्री दोसरलिपि सभमे एक क्लिकमे परिवर्तित भए जाए।
साइटक प्रचार अपन ब्लॉग/ ग्रुप बना कए आ ऑनलाइन कमेन्ट सबमिशन लेल सेवा प्रदातासँ डॉट नेट सुविधा लए-जाहिसँ वितरक कमेन्ट अहाँक ई-पत्र संकेतपर पाठकक कमेन्ट प्रेषित कए सकए आ फीड एग्रीगेटरमे अपन फीड पंजीकृत कराए पाठकक संख्या बढ़ाओल जा सकैत अछि। कमेन्ट सबमिशन टाइपपैड डॉट कॉम (पेड ब्लॉगर सेवा प्रदाता) सँ सेहो प्राप्त कएल जा सकैत अछि, ई ब्लॉग लेल तँ पाइ लैत अछि मुदा प्रोफाइल बनबए लेल नहि आ ओहि संगे ब्लॉग आ साइट लेल कमेंट फॉर्मक कोड आ सुविधा दुनू उपलब्ध करबैत अछि, एहिमे अहाँ जालस्थलपर कमेंटक एक पृष्ठपर सँख्या, कमेंटपर आपसी वार्तालाप, आ कमेंट मॉडेरेशन विकल्प चुनि सकैत छी।
अपन जालस्थलक आर्काइव लेल गूगल साइट आ वर्डप्रेस १० आ ३ जी.बी. क्रमशः स्थान मुफ्त दैत अछि। फाइल ओतए अपलोड करू मुदा अपन साइटपर ओकर लिंक दए दियौक। एहिसँ अहाँ अपन बजट ठीक कए सकैत छी।
ब्लॉगक यू.आर.एल. यदि नीक नहि लागए तँ मोनमाफिक यू.आर.एल. सुविधा १० डॉलर सालानापर उपलब्ध अछि, मुदा ब्लॉगक सुविधाक अतिरिक्त कोनो आर सुविधा एहिसँ नहि भेटत। मुदा जे अहाँक बजट बहुत कम अछि तँ एकर उपयोग करू।
अहाँ लग जे पूर्ण साइट अछि तँ ओकर एकटा पृष्ठ पर एफ.टी.पी. अपलोडसँ डिसकसन फोरम आदि अपन साइटक ऊपर राखि सकैत छी आ ब्लॉगकेँ अपन साइटमे सम्मिलित कए सकैत छी। ब्लॉगरक भीतर प्रकाशनक अन्तर्गत यू.आर.एल. सुविधा १० डॉलर सालानापर आ एफ.टी.पी. अपलोड ई दुनू सुविधा उपलब्ध छैक।
आब चरचा फेव आइकनक। अपन लोगो ब्राउजरक पताक संग देबाक लेल .ico प्रारूपमे लोगोक चित्र बनाऊ आ अपलोड करू, संगमे स्टाइलसीटपर एकर विवरण दए दियौक।
अपन ई-पत्रमे सिगनेचर, माय स्पेस, फेसबुक, ओरकुट, ट्विटर,यू ट्यूब, पिकासा, याहूग्रुप आ गूगलग्रुप केर माध्यमसँ, आर.एस.एस.फीड आ हेडलाइन एनीमेटर जे ई-पत्र सिगनेचरमे सेहो राखल जा सकैत अछि केर माध्यमसँ सेहो एकर प्रचार कए सकैत छी।
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जितेन्द्र नागबंशी said...
bahuta raas jankari, aa seho maithili me,
technical nahi simple aa practical aalekh
Reply05/15/2009 at 09:36 PM
2

মোহন said...
bahut ras nav jankari bhetal, hamro san avsikhua aab internet use kay sakait achhi
Reply05/15/2009 at 09:34 PM

बनैत-बिगड़ैत-सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रहक समीक्षा - गजेन्द्र ठाकुर
सुभाषचन्द्र यादवजीक “बनैत बिगड़ैत” कथा-संग्रहक सभ कथामे सँ अधिकांशमे ई भेटत जे कथा खिस्सासँ बेशी एकटा थीम लए आगाँ बढ़ल अछि आ अपन काज खतम करितहि अन्त प्राप्त कएने अछि। दोसर विशेषता अछि एकर भाषा। बलचनमाक भाषा ओहि उपन्यासक मुख्य पात्रक आत्मकथात्मक भाषा अछि मुदा एतए ई भाषा कथाकारक अपन छन्हि आ ताहि अर्थेँ ई एकटा विशिष्ट स्वरूप लैत अछि। एक दिस कथाक उपदेशात्मक खिस्सा-पिहानी स्वरूप ग्रहण करबाक परिपाटीक विरुद्ध सुभाषजीक कथाकेँ एकटा सीमित परिमितिमे थीम लऽ कए चलबाक, भाषाक शिल्प जे खाँटी देशी अछि पर ध्यान देबाक आ एहि सम्मिलित कारणसँ पाठकक एक वर्गकेँ एहि संग्रहक कथा सभमे असीम आनन्द भेटतन्हि तँ संगे-संग खिस्सा-पिहानीसँ बाहर नहि आबि सकल पाठक वर्गकेँ ई कथा संग्रह निराश नहि करत वरन हुनकर सभक रुचिक परिष्करण करत।
किछु भाषायी मानकीकरण प्रसंग- जेना ऐछ, अछि, अ इ छ । जाहि कालमे मानकीकरण भऽ रहल छल ओहि समय एहिपर ध्यान देबाक आवश्यकता रहए। जेना “जाइत रही” केँ “जाति रही” लिखी आ फेर जाति (जा इ त) लेल प्रोनन्सिएशनक निअम बनाबी तेहने सन ऐछ संगे अछि। मुदा आब देरी भऽ गेल अछि से लेखको कनियाँ-पुतरामे एकर प्रयोग कए दिशा देखबैत छथि मुदा दोसर कथा सभमे घुरि जाइत छथि। मुदा एहिसँ ई आवश्यकता तँ सिद्ध होइते अछि जे एकटा मानक रूप स्थिर कएल जाए आ “छै” लिखबाक अछि तँ सेहो ठीक आ “छैक” लिखबाक अछि तँ “अन्तक ’क’ साइलेन्ट अछि” से प्रोनन्सिएशनक निअम बनए। मुदा से जल्दी बनए आ सर्वग्राह्य होअए तकर बेगरता हमरा बुझाइत अछि, आजुक लोकके “य” लिखल जाए वा “ए” एहिपर भरि जिनगी लड़बाक समय नहि छैक, जे ध्वनि सिद्धांत कहैत अछि से मानू, आ नहि तँ प्रोनन्सिएशनक निअम बनाऊ। “नहि” लेल “नञि” लिखब तँ बुझबामे अबैत अछि मुदा नइँ(अन्तिका), नइं (एन.बी.टी.) आ नँइ (साकेतानन्द - कालरात्रिश्च दारुणा) मे सँ साकेतानन्दजी बला प्रयोग ध्वनि-विज्ञान सिद्धांतसँ बेशी समीचीन सिद्ध होइत अछि आ से विश्वास नहि होअए तँ ध्वनि प्रयोगशाला सभक मदति लिअ। एहि पोथीक ई एकटा विशेषता अछि जे सुभाषचन्द्र यादवजी अपन विशिष्ट लेखन-शैलीक प्रयोग कएने छथि जे ध्वन्यात्मक अछि आ मानकीकरण सम्वादकेँ आगाँ लए जएबामे सक्षम अछि।

कथाक यात्रा- वैदिक आख्यान, जातक कथा, ऐशप फेबल्स, पंचतंत्र आ हितोपदेश आ संग-संग चलैत रहल लोकगाथा सभ। सभ ठाम अभिजात्य वर्गक कथाक संग लोकगाथा रहिते अछि।
कथामे असफलताक सम्भावना उपन्या-महाकाव्य-आख्यान सँ बेशी होइत अछि, कारण उपन्यास अछि “सोप ओपेरा” जे महिनाक-महिना आ सालक-साल धरि चलैत अछि आ सभ एपीसोडक अन्तमे एकटा बिन्दुपर आबि खतम होइत अछि। माने सत्तरि एपीसोडक उपन्यासमे उन्हत्तरि एपीसोड धरि तँ आशा बनिते अछि जे कथा एकटा मोड़ लेत आ अन्त धरि जे कथाक दिशा नहिए बदलल तँ पुरनका सभटा एपीसोड हिट आ मात्र अन्तिम एपीसोड फ्लॉप। मुदा कथा एकर अनुमति नहि दैत अछि। ई एक एपीसोड बला रचना छी आ नीक तँ खूबे नीक आ नहि तँ खरापे-खराप।

कथा-गाथा सँ बढ़ि आगू जाइ तँ आधुनिक कथा-गल्पक इतिहास उन्नैसम शताब्दीक अन्तमे भेल। एकरा लघुकथा, कथा आ गल्पक रूप मानल गेल। ओना एहि तीनूक बीचक भेद सेहो अनावश्यक रूपसँ व्याख्यायित कएल गेल। रवीन्द्रनाथ ठाकुरसँ शुरु भेल ई यात्रा भारतक एक कोनसँ दोसर कोन धरि सुधारवाद रूपी आन्दोलनक परिणामस्वरूप आगाँ बढ़ल। असमियाक बेजबरुआ, उड़ियाक फकीर मोहन सेनापति, तेलुगुक अप्पाराव, बंगलाक केदारनाथ बनर्जी ई सभ गोटे कखनो नारीक प्रति समर्थनमे तँ कखनो समाजक सूदखोरक विरुद्ध अबैत गेलाह। नेपाली भाषामे “देवी को बलि” सूर्यकान्त ज्ञवाली द्वारा दसहराक पशुबलि प्रथाक विरुद्ध लिखल गेल। कोनो कथा प्रेमक बंधनक मध्य जाति-धनक सीमाक विरुद्ध तँ कोनो दलित समाजक स्थित आ धार्मिक अंधविश्वासक विषयमे लिखल गेल। आ ई सभ करैत सर्वदा कथाक अन्त सुखद होइत छल सेहो नहि।
वाद: साहित्य: उत्तर आधुनिक, अस्तित्ववादी, मानवतावादी, ई सभ विचारधारा दर्शनशास्त्रक विचारधारा थिक। पहिने दर्शनमे विज्ञान, इतिहास, समाज-राजनीति, अर्थशास्त्र, कला-विज्ञान आ भाषा सम्मिलित रहैत छल। मुदा जेना-जेना विज्ञान आ कलाक शाखा सभ विशिष्टता प्राप्त करैत गेल, विशेष कए विज्ञान, तँ दर्शनमे गणित-विज्ञान मैथेमेटिकल लॉजिक धरि सीमित भए गेल। दार्शनिक आगमन आ निगमनक अध्ययन प्रणाली, विश्लेषणात्मक प्रणाली दिस बढ़ल। मार्क्स जे दुनिया भरिक गरीबक लेल एकटा दैवीय हस्तक्षेपक समान छलाह, द्वन्दात्मक प्रणालीकेँ अपन व्याख्याक आधार बनओलन्हि। तँ आइ-काल्हिक “डिसकसन” जाहिमे पक्ष-विपक्ष, दुनू सम्मिलित अछि, दर्शनक (विशेष कए षडदर्शनक- माधवाचार्यक सर्वदर्शन संग्रह-द्रष्टव्य) खण्डन-मण्डन प्रणालीमे पहिनहिसँ विद्यमान छल।
से इतिहासक अन्तक घोषणा कएनिहार फ्रांसिस फुकियामा -जे कम्युनिस्ट शासनक समाप्तिपर ई घोषणा कएने छलाह- किछु दिन पहिने एहिसँ पलटि गेलाह। उत्तर-आधुनिकतावाद सेहो अपन प्रारम्भिक उत्साहक बाद ठमकि गेल अछि। अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद, रोमेन्टिसिज्म, समाजशास्त्रीय विश्लेषण ई सभ संश्लेषणात्मक समीक्षा प्रणालीमे सम्मिलित भए अपन अस्तित्व बचेने अछि। साइको-एनेलिसिस वैज्ञानिकतापर आधारित रहबाक कारण द्वन्दात्मक प्रणाली जेकाँ अपन अस्तित्व बचेने रहत।
आधुनिक कथा अछि की? ई केहन होएबाक चाही? एकर किछु उद्देश्य अछि आकि होएबाक चाही? आ तकर निर्धारण कोना कएल जाए।
कोनो कथाक आधार मनोविज्ञान सेहो होइत अछि। कथाक उद्देश्य समाजक आवश्यकताक अनुसार आ कथा यात्रामे परिवर्तन समाजमे भेल आ होइत परिवर्तनक अनुरूपे होएबाक चाही। मुदा संगमे ओहि समाजक संस्कृतिसँ ई कथा स्वयमेव नियन्त्रित होइत अछि। आ एहिमे ओहि समाजक ऐतिहासिक अस्तित्व सोझाँ अबैत अछि।
जे हम वैदिक आख्यानक गप करी तँ ओ राष्ट्रक संग प्रेमकेँ सोझाँ अनैत अछि। आ समाजक संग मिलि कए रहनाइ सिखबैत अछि। जातक कथा लोक-भाषाक प्रसारक संग बैद्ध-धर्म प्रसारक इच्छा सेहो रखैत अछि। मुस्लिम जगतक कथा जेना रूमीक “मसनवी” फारसी साहित्यक विशिष्ट ग्रन्थ अछि जे ज्ञानक महत्व आ राज्यक उन्नतिक शिक्षा दैत अछि।
आजुक कथा एहि सभ वस्तुकेँ समेटैत अछि आ एकटा प्रबुद्ध आ मानवीय(!) समाजक निर्माणक दिस आगाँ बढ़ैत अछि। आ जे से नहि अछि तँ ई ओकर उद्देश्यमे सम्मिलित होएबाक चाही। आ तखने कथाक विश्लेषण आ समालोचना पाठकीय विवशता बनि सकत।
कम्यूनिस्ट शासनक समाप्ति आ बर्लिनक देबालक खसबाक बाद फ्रांसिस फुकियामा घोषित कएलन्हि जे विचारधाराक आपसी झगड़ासँ सृजित इतिहासक ई समाप्ति अछि आ आब मानवक हितक विचारधारा मात्र आगाँ बढ़त। मुदा किछु दिन पहिनहि ओ एहि मतसँ आपस भऽ गेलाह आ कहलन्हि जे समाजक भीतर आ राष्ट्रीयताक मध्य एखनो बहुत रास भिन्न विचारधारा बाँचल अछि। तहिना उत्तर आधुनिकतावादी विचारक जैक्स देरीदा भाषाकेँ विखण्डित कए ई सिद्ध कएलन्हि जे विखण्डित भाग ढेर रास विभिन्न आधारपर आश्रित अछि आ बिना ओकरा बुझने भाषाक अर्थ हम नहि लगा सकैत छी। मनोविश्लेषण आ द्वन्दात्मक पद्धति जेकाँ फुकियामा आ देरीदाक विश्लेषण संश्लेषित भए समीक्षाक लेल स्थायी प्रतिमान बनल रहत।
सुभाष चन्द्र यादवक कथा-संग्रह बनैत बिगड़ैत: स्वतन्त्रताक बादक पीढ़ीक कथाकार छथि सुभाषजी। कथाक माध्यमसँ जीवनकेँ रूप दैत छथि। शिल्प आ कथ्य दुनूसँ कथाकेँ अलंकृत कए कथाकेँ सार्थक बनबैत छथि। अस्तित्वक लेल सामान्य लोकक संघर्ष तँ एहि स्थितिमे हिनकर कथा सभमे भेटब स्वाभाविके। कएक दशक पूर्व लिखल हिनक कथा “काठक बनल लोक” क बदरिया साइते संयोग हंसैत रहए। एहु कथा संग्रहक सभ पात्र एहने सन विशेषता लेने अछि। हॉस्पीटलमे कनैत-कनैत सुतलाक बाद उठि कए कोनो पात्र फेरसँ कानए लगैत छथि तँ कोनो पात्र प्रेममे पड़ल छथि। किनकोमे बिजनेस सेन्स छन्हि तँ हरिवंश सन पात्र सेहो छथि जे उपकारक बदला सिस्टम फॉल्टक कारण अपकार कए जाइत छथि। आब “बनैत बिगड़ैत” कथा संग्रहक कथा सभपर गहिंकी नजरि दौगाबी।
कनियाँ-पुतरा- एहि कथामे रस्तामे एकटा बचिया लेखकक पएर छानि फेर ठेहुनपर माथ राखि निश्चिन्त अछि जेना माएक ठेहुनपर माथ रखने होए। नेबो सन कोनो कड़गर चीज लेखकसँ टकरेलन्हि। ई लड़कीक छाती छिऐ। लड़की निर्विकार रहए जेना बाप-दादा वा भाए बहिन सऽ सटल हो। लेखक सोचैत छथि, ई सीता बनत की द्रौपदी। राबन आ दुर्जोधनक आशंका लेखककेँ घेर लैत छन्हि।
कनियाँ-पुतरा पढ़बाक बाद वैह सड़कक चौबटिया अछि आ वैह रेड-लाइटपर गाड़ी चलबैत-रोकैत काल बालक-बालिका देखबामे अबैत छथि। मुदा आब दृष्टिमे परिवर्तन भऽ जाइत अछि। कारक शीसा पोछि पाइ मँगनिहार बालक-बालिकाकेँ पाइ-देने वा बिन देने, मुदा बिनु सोचने आगाँ बढ़ि जाएबला दृष्टिक परिवर्तन। कनियाँ-पुतरा पढ़बाक बाद की हुनकर दृष्टिमे कोनो परिवर्तन नहि होएतन्हि? बालक तँ पैघ भए चोरि करत वा कोनो ड्रग कार्टेलक सभसँ निचुलका सीढ़ी बनत मुदा बालिका। ओ सीता बनत आकि द्रौपदी आकि आम्रपाली। जे सामाजिक संस्था, ह्यूमन राइट्स ऑरगेनाइजेशन कोनो प्रेमीक बिजलीक खाम्हपर चढ़ि प्राण देबाक धमकीपर नीचाँ जाल पसारि कऽ टी.वी.कैमरापर अपन आ अपन संस्थाक नाम प्रचारित करैत छथि ओ एहि कथाकेँ पढ़लाक बाद ओहि पुरातन दृष्टिसँ काज कए सकताह? ओ सरकार जे कोनो हॉस्पीटलक नाम बदलि कए जयप्रकाश नारायणक नामपर करैत अछि वा हार्डिंग पार्कक नाम वीर कुँअर सिंहक नामपर कए अपन कर्त्तव्यक इतिश्री मानि लैत अछि ओ समस्याक जड़ि धरि पहुँचि नव पार्क आ नव हॉस्पीटल बना कए जयप्रकाश नारायण आ वीर कुँअर सिंहक नामपर करत आकि दोसरक कएल काजमे “मेड बाइ मी” केर स्टाम्प लगाओत? ई संस्था सभ आइ धरि मेहनतिसँ बचैत अएबाक आ सरल उपाय तकबाक प्रवृत्तिपर रोक नहि लगाओत?
असुरक्षित- ट्रेनसँ उतरलाक बाद घरक २० मिनटक रस्ताक राति जतेक असुरक्षित भऽ गेल अछि तकर सचित्र वर्णन ई कथा करैत अछि। पहिने तँ एहन नहि रहैक- ई अछि लोकक मानसिक अवस्था। मुदा एहि तरहक समस्या दिस ककरो ध्यान कहाँ छैक। पैघ-पैघ समस्या, उदारीकरण आन कतेक विषयपर मीडिआक ध्यान छैक। चौक-चौराहाक एहि तरहक समस्यापर नव दृष्टि अबैत अछि, एहिमे स्टेशनसँ घरक बीचक दूरी रातिक अन्हारमे पहाड़ सन भऽ जाइत अछि। प्रदेशक तत्कालीन कानून-व्यवस्थापर ई एक तरहक टिप्पणी अछि।
एकाकी- एहि कथामे कुसेसर हॉस्पीटलमे छथि। हॉस्पीटलक सचित्र विवरण भेल अछि। ओतए एकटा स्त्री पतिक मृत्युक बाद कनैत-कनैत प्रायः सुति गेलि आ फेर निन्न टुटलापर कानए लागलि। एना होइत अछि।मानव जीवनक एकटा सत्यता दिस इशारा दैत आ हॉस्पीटलक बात-व्यवस्थापर टिप्पणी तेना भऽ कए नहि वरण जीवन्तता देखा कए करैत छथि।
ओ लड़की- एहि कथामे हॉस्टलक लड़का-लड़कीक जीवनक बीच नवीन, एकटा लड़कीक हाथमे ऐंठ खाली कप, जे ओहि लड़कीक आ ओकर प्रेमीक अछि, देखैत अछि। लड़की नवीनकेँ पुछैत छैक जे ओ केम्हर जा रहल अछि। नवीनकेँ होइत छैक जे ओ ओकरा अपनासँ दब बुझि कप फेंकबाक लेल पुछलक। नवीन ओकरा मना कऽ दैत अछि। विचार सभ ओकर मोनमे घुरमैत रहैत छैक।ई कथा एकटा छोट घटनापर आधारित अछि...जे ओ हमरा दब बूझि चाहक कप फेकबाक लेल कहलक? आ ई कहि दृढ़तासँ नहि कहि आगाँ बढ़ि जाइत अछि। एकाकी जेकाँ ई कथा सेहो मनोवैज्ञानिक विश्लेषणपर आधारित अछि।
एकटा प्रेम कथा- पहिने जकरा घरमे फोन रहैत छल तकरा घरमे दोसराक फोन अबैत रहैत छल जे एकरा तँ ओकरा बजा दिअ। लेखकक घरमे फोन छलन्हि आ ओ एकटा प्रेमीकाक फोन अएलापर ओकर प्रेमीकेँ बजबैत रहैत छथि। प्रेमी मोबाइल कीनि लैत अछि से फोन आएब बन्द भऽ जाइत अछि। मुदा प्रेमी द्वारा नम्बर बदलि लेलापर प्रेमिकाक फोन फेरसँ लेखकक घरपर अबैत अछि। प्रेमिका, प्रेमीक ममियौत बहिनक सखी रितु छथि आ लेखक ओकर सहायताक लेल चिन्तित भऽ जाइत छथि। एहि कथामे प्रेमी-प्रेमिका, मोबाइल आ फोन ई सभ नवयुगक संग नव कथामे सेहो स्वाभाविक रूपेँ अबैत अछि।
टाइटल कथा अछि बनैत-बिगड़ैत। तीन टा नामित पात्र । माला, ओकर पति सत्तो आ पोती मुनियाँ ।गाम घरक जे सास-पुतोहुक गप छैक, सेहन्ता रहि गेल जे कहियो नहेलाक बाद खाइ लेल पुछितए, एहन सन। मुदा सैह बेटा-पुतोहु जखन बाहर चलि जाइत छथि तँ वैह सासु कार कौआक टाहिपर चिन्तित होमए लगैत छथि। माइग्रेशनक बादक गामक यथार्थकेँ चित्रित करैत अछि ई कथा। सत्तोक संग कौआ सेहो एक दिन बिला जाएत आ मुनियाँ कौआ आ दादा दुनूकेँ तकैत रहत।प्रवासीक कथा, बेटा-पुतोहुक आ पोतीक कथा, सासु-पुतोहुक झगड़ा आ प्रेम!
अपन-अपन दुःख कथामे पत्नी, अपन अवहेलनाक स्थितिमे, धीया-पुताकेँ सरापैत छथि। रातिमे धीया-पुताक खेनाइ खा लेबा उत्तर भनसाघरक ताला बन्द रहबाक स्थितिमे पत्नीक भूखल रहब आ परिणामस्वरूप पतिक फोंफक स्वरसँ कुपित होएब स्वाभाविक। सभक अपन संसार छैक। लोक बुझैए जे ओकरे संसारक सुख आ दुःख मात्र सम्पूर्ण छैक मुदा से नहि अछि। सभक अपन सुख-दुःख छैक, अपन आशा आ आकांक्षा छैक। कथाकार ओहन सत्यकेँ उद्घाटित करैत छथि जे हुनकर अनुभवक अंतर्गत अबैत छन्हि। आत्मानुभूति परिवेश स्वतंत्र कोना भए सकत आ से सुभाष चन्द्र यादवजीक सभ कथामे सोझाँ अबैत अछि।
आतंक कथामे कथाकारकेँ पुरान संगी हरिवंशसँ कार्यालयमे भेँट होइत छन्हि। लेखकक दाखिल-खारिज बला काज एहि लऽ कऽ नहि भेलन्हि जे हरिवंशक स्थानान्तरणक पश्चात् ने क्यो हुनकासँ घूस लेलक आ ताहि द्वारे काजो नहि केलक। हरिवंशक बगेबानी घूसक अनेर पाइक कारण छल से दोसर किएक अपन पाइ छोड़त? लेखक आतंकित छथि। कार्यालयक परिवेश, भ्रष्टाचार आ एक गोटेक स्थानांतरणसँ बदलैत सामाजिक सम्बन्ध ई सभ एतए व्यक्त भेल अछि। आइ काल्हि हम आकि अहाँ ब्लॉकमे वा सचिवालयमे कोनो काज लेल जाइत छी तँ यैह ने सुनए पड़ैत अछि जे पाइ जे माँगत से दए देबैक आ तखन कोनो दिक्कत होअए तँ कहब ! आ पाइक बदला ककरो नाम वा पैरवी लए गेलहुँ तँ कर्मचारी ने पाइये लेत आ नहिये अहाँक काज होएत।
एकटा अन्त कथामे ससुरक मृत्युपर लेखकक साढ़ू केश कटेने छथि आ लेखक नहि, एहिपर कैक तरहक गप होइत अछि। साढ़ू केश कटा कऽ निश्चिन्त छथि। ई जे सांस्कृतिक सिम्बोलिज्म आएल अछि, जे पकड़ा गेल से चोर आ खराप काज केनिहार जे नहि पकड़ाएल से आदर्शवादी। पूरा-पूरी तँ नहि मुदा अहू कथामे एहने आस्था जन्म लैत अछि आ टूटि जाइत अछि। हरियाणामे बापो मरलापर लोक केश नहि कटबैत अछि तँ की ओकर दुःखमे कोनो कमी रहैत छैक तेँ ? पंजाबक महिला एक बरखक बाद ने सिनूर लगबैत छथि आ ने चूड़ी पहिरैत छथि मुदा पहिल बरख कान्ह धरि चूड़ी भरल रहैत छन्हि तँ की बियाहक पहिल बरखक बाद हुनकर पति-प्रेममे कोनो घटंती आबि जाइत छन्हि?

कबाछु कथा मे चम्पीबलाक लेखक लग आएब, जाँघपर हाथ राखब। अभिजात्य संस्कारक लोकलग बैसल रहबाक कारणसँ लेखक द्वारा ओकर हाथ हटाएब । चम्पीबला द्वारा ई गप बाजब जे छुअल देहकेँ छूलामे कोन संकोच। जेना चम्पीवला लेखककेँ बुझाइय रहन्हि जे हुनका युवती बुझि रहल छलन्हि। लेखककेँ लगैत छन्हि जे ओ स्त्री छथि आ चम्पीबला ओकर पुरान यार। ठाम-कुठाम आ समय-कुसमयक महीन समझ चम्पीवलाकेँ नहि छइ, नहि तँ लेखक ओतेक गरमीयोमे चम्पी करा लैतए। चम्पीवलाक दीनतापर अफसोच भेलन्हि मुदा ओकर शी-इ-इ केँ मोन पाड़ैत वितृष्णा सेहो। फ्रायडक मनोविश्लेषणक बड्ड आलोचना भेल जे ओ सेक्सकेँ केन्द्रमे राखि गप करैत छथि। मुदा अनुभवसँ ई गप सोझाँ अबैत अछि जे सेक्ससँ जतेक दूरी बनाएब, जतेक एकरा वार्तालाप-कथा-साहित्यसँ दूर राखब, ओकर आक्रमण ततेक तीव्र होएत।
कारबार मे लेखकक भेँट मिस्टर वर्मा, सिन्हा आ दू टा आर गोटेसँ सँ होइत अछि। बार मे सिन्हा दोस्ती आ बिजनेसकेँ फराक कहैत दू टा खिस्सा सुनबैत अछि। सभ चीजक मोल अछि, एहिपर एकटा दोस्तक वाइफ लेल टी.वी. किनबाक बाद फ्रिजक डिमान्ड अएबाक गप बीचेमे खतम भऽ जाइत अछि। दोसर खिस्सामे एकटा स्त्री पतिक जान बचबए लेल डॉक्टरक फीस देबाक लेल पूर्व प्रेमी लग जाइत अछि। पूर्व प्रेमी पाइ देबाक बदलामे ओकरा संगे राति बितबए लेल कहैत छैक। सिन्हा कथामे ककरो गलती नहि मानैत छथि, डॉक्टर बिना पाइ लेने किएक इलाज करत, पूर्व प्रेमी मँगनीमे पाइ किएक देत आ ओ स्त्री जे पूर्व प्रेमी संग राति नहि बिताओत तँ ओकर पति मरि जएतैक।
आब बारसँ लेखक निकलैत छथि तँ दरबानक सलाम मारलापर अहूमे पैसाक टनक सुनाइ पड़ए लगैत छन्हि।
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कुश्ती मे सेहो फ्रायड सोझाँ अबैत छथि, कथाक प्रारम्भ लुंगीपरक सुखाएल कड़गर भेल दागसँ शुरू होइत अछि। मुदा तुरत्ते स्पष्ट होइत अछि जे ओ से दाग नहि अछि वरन घावक दाग अछि। फेर हाटक कुश्तीमे गामक समस्याक निपटारा , हेल्थ सेन्टरक बन्द रहब, ओतए ईंटाक चोरिक चरचा अबैत अछि। छोट भाइ कोनो इलाजक क्रममे एलोपैथीसँ हटि कए होम्योपैथीपर विश्वास करए लगैत छथि, एहि गपक चरचा आएल अछि। लोक सभक घावक समाचार पुछबा लऽ अएनाइ आ लेखक द्वारा सभकेँ विस्तृत विवरण कहि सुनओनाइ मुदा उमरिमे कम वयसक कैक गोटेकेँ टारि देनाइ, ई सभ क्रम एकटा वातावरणक निर्माण करैत अछि।
कैनरी आइलैण्डक लारेल कथामे सुभाष आ उपिया कथाक चरित्र छथि। एतए एकटा बिम्ब अछि- जेना निर्णय कोसीक धसना जकाँ। ममियौत भाइक चिट्ठी, कटारि देने नाहपर जएबाक, गेरुआ पानिक धारमे आएब, नाहक छीटपर उतारब, छीटक बादो बहुत दूर धरि जाँघ भरि पानिक रहब। धीपल बालुपर साइकिलकेँ ठेलैत देखि क्यो कहैत छन्हि- “साइकिल ससुरारिमे देलक-ए? कने बड़द जकाँ टिटकार दियौक”। दीदी पीसा अहिठाम एहि गपक चरचा सुनलन्हि जे कोटक खातिर हुनकर बेटीक विवाह दू दिन रुकि गेल छलन्हि आ ईहो जे बेसी पढ़ने लोक बताह भऽ जाइत अछि।सुभाष चाहियो कऽ दू सए टाका नहि माँगि पबैत छथि, दीदीक व्यवहार अस्पष्ट छन्हि, सुभाष आस्वस्त नहि छथि आ घुरि जाइत छथि।
तृष्णा कथामे लेखककेँ अखिलन भेटैत छन्हि। श्रीलतासँ ओ अपन भेँटक विवरण कहि सुनबैत अछि। पाँचम दिन घुरलाक बाद ट्रेनमे ओ नहि भेटलीह। आब अखिलन की करत, विशाखापत्तनम आ विजयवाड़ाक बीचक रस्तामे चक्कर काटत आकि स्मृतिक संग दिन काटत।
छोट-छोट भावनात्मक घटनाक विश्लेषण अछि कथा “कैनरी आइलैण्डक लारेल” आ “तृष्णा”।
दाना कथामे मोहन इन्टरव्यू लेल गेल अछि, ओतए सहृदय चपरासी सूचित करैत छैक जे बाहरीकेँ नहि लैत छैक, पी.एच.डी. रहितए तँ कोनो बात रहितए। मोहनकेँ सभ चीज बीमार आ उदास लगैत रहए। फुद्दी आ मैना पावरोटीक टुकड़ीपर ची-ची करैत झपटैत रहए।प्रतियोगी परीक्षाक साक्षात्कारमे बाहरी आ लोकल केर जे संकल्पना आएल अछि तकर सम्वेदनात्मक वर्णन भेल अछि।
दृष्टि कथामे पढ़ाइ खतम भेलाक बाद नोकरीक खोज , गाममे लोकसभक तीक्ष्ण कटाक्ष। फेर दक्षिण भारतीय पत्रकारक प्रेरणासँ कनियाँक विरोधक बावजूद गाममे लेखकक खेतीमे लागब। ई सभ गप एकटा सामान्य कथ्य रहलाक बादो ठाम-ठाम सामाजिक सत्य उद्घाटित करैत अछि। एतए गामक लोकक कुटीचाली अछि, जे काजक अभावमे खाली समय बेशी रहलाक कारण अबैत अछि। संगमे आइ-काल्हिक स्त्रीक शहरी जीवन जीबाक आकांक्षा सेहो प्रदर्शित करैत अछि।
नदी कथामे कथ्य कथाक संगे चलैत अछि आ खतम भए जाइत अछि। गगनदेवक घरपर बिहारी आएल छैक। शहरमे ओकरा एक साल रहबाक छैक। गगनदेवकेँ ओकरा संग मकान खोजबाक क्रममे एकटा लड़कीसँ भेँट होइत छैक। ओकरा छोड़ि आगाँ बढ़ल तँ ई बुझलाक बादो जे आब ओकरासँ फेर भेँट नहि हेतइ ओ उल्लास आ प्रेमक अनुभूतिसँ भरि गेल।
परलय बाढिक कथा थिक, कोसीक कथा कहल गेल अछि एतए। बौकी बुनछेकक इन्तजारीमे अछि। मुदा धारमे पानि बढ़ि रहल छैक। कोशीक बाढ़ि बढ़ल आबि रहल छैक आ एम्हर माएक रद्द-दस्तसँ हाल-बेहाल छैक। माल-जाल भूखसँ डिकरैत रहै। रामचरनक घरमे अन्नपानि बेशी छैक से ओ सभकेँ नाहक इन्तजाम लेल कहैत छैक। बौकूक घरसँ कटनियाँ दूर रहै। मृत्यु आ विनाश बौकूकेँ कठोर बना देलकैक, मोह तोड़ि देलकैक। मुदा बरखा रुकि गेलैक। बौकू चीज सभकेँ चिन्हबाक आ स्मरण करबाक प्रयत्न करए लागल।
बात कथामे सेहो कथाकार अपन कथानककेँ बाट चलिते ताकि लैत छथि आ शिल्पसँ ओकरा आगाँ बढ़बैत छथि। नेबो दोकानपर नेबोवला आ एकटा लोकक बीचमे बहस सुनैत लेखक बीचमे बीचमे कूदि पड़ैत छथि। नेबोवलासँ एक गोटे अपन छत्ता माँगि रहल अछि जे ओ नीचाँ रखने रहए।दुखक गप, लेखकक अनुसार, बेशी दिन धरि लोककेँ मोन रहैत छैक।
रंभा कथामे पुरुष-स्त्रीक बीचक बदलैत सम्बन्धक तीव्र गतिसँ वर्णन भेल अछि। पुरुष यावत स्त्रीसँ दूर रहैत अछि तँ सभ ओकरा मेनका आ रम्भा देखाइ पड़ैत छैक। मुदा जे सम्वादक प्रारम्भ होइत अछि तँ बादमे लेखक केँ लगैत छन्हि जे ओ बेटीये छी।रस्तामे एक स्त्री अबैत अछि। लेखक सोचैत छथि जे ई के छी, रम्भा, मेनका आकि...। ओकरा संग बेटा छैक, ओतेक सुन्नर नहि, कारण एकर वर सुन्दर नहि होएतैक। ओ गपशपमे कखनो लेखककेँ ससुर जकाँ, कखनो अपनाकेँ हुनकर बेटी तुल्य कहैत अछि। पहिने लेखककेँ खराप लगलन्हि। मुदा बादमे लेखककेँ नीक लगलन्हि। मुदा अन्तमे ओकर पएर छूबए लेल झुकब मुदा बिन छूने सोझ भऽ जाएब नहि बुझिमे अएलन्हि।
हमर गाम कथामे लेखकक गामक रस्ता, कटनियाँ सँ मेनाही गामक लोकक छिड़िआएब आ बान्हक बीचमे अहुरिया काटैत लोकक वर्णन अछि। कोसिकन्हाक लोक- जानवरक समान, जानवरक हालतमे। कटनियाँमे लेखकक घर कटि गेलन्हि से ओ नथुनियाँ एहिठाम टिकैत छथि। मछबाहि आ चिड़ै बझाबऽ लेल नथुनी जोगार करैत अछि। जमीनक झगड़ा छन्हि, एक हिस्सेदारक जमीन धारमे डूमल छैक से ओ लेखकक गहूमवला खेत हड़पए चाहैत अछि। शन आ स्त्रीक (!) पाछू लोक बेहाल अछि। स्त्रीक पाछू बिन कारण लेखक पड़ि गेल छथि जेना विष्णु शर्मा पंचतंत्रमे कथा कहैत-कहैत शूद्र आ महिलाक पाछाँ पड़ि जाइत छथि। यावत सभ कमलक घूर लग कपक अभावमे बेरा-बेरी चाह पिबैत छथि, फसिल कटि कऽ सिबननक एतए चलि जाइ-ए। झौआ, कास, पटेरक जंगल जखन रहए, चिड़ै बड्ड आबए, आब कम अबैत अछि। खढ़िया, हरिन, माछ, काछु, डोका सभ खतम भऽ रहल छैक- जीवनक साधन दुर्लभ भऽ गेल अछि। साँझमे जमीनक पंचैती होइत अछि।सत्तोक बकड़ी मरि गेलैक, पुतोहु एकर कारण सासुक सरापब कहैत अछि। सासु एकर कारण बलि गछलोपर पाठीसभकेँ बेचब कहैत छथि। सत्तोक बेटीक जौबनक उभारकेँ लेखक पुरुष सम्पर्कक साक्षी कहैत छथि आ सकारण फेरसँ महिलाक पाछाँ पड़ि जाइत छथि,कारण ई धारणा लोकमे छैक। सत्तोक बेटी एखन सासुर नहि बसैत छैक। सुकन रामक एहिठाम खाइत काल लेखककेँ संकोच भेलन्हि, जकरासँ उबरबाक लेल ओ बजलाह- आइ तोरा जाति बना लेलिअह। कोसी सभ भेदभावकेँ पाटि देलक, डोम, चमार, मुसहर, दुसाध, तेली, यादव सभ एके कलसँ पानि भरैत अछि। एके पटियापर बैसैत अछि।
ककरा लेल कथा लिखी? वा कही? कथाक वाद: जिनका विषयमे लिखब से तँ पढ़ताह नहि। कथा पढ़ि लोक प्रबुद्ध भऽ जाएत? गीताक सप्पत खा कए झूठ बजनिहारक संख्या कम नहि। तेँ की एहन कसौटीपर रचित कथाक महत्व कम भए जाएत? सभ प्रबुद्ध नहि होएताह तँ स्वस्थ मनोरंजन तँ प्राप्त कऽ सकताह। आ जे एकोटा व्यक्ति कथा पढ़ि ओहि दिशामे सोचत तँ कथाक सार्थकता सिद्ध होएत। आ जकरा लेल रचित अछि ई कथा जे ओ नहि तँ ओकर ओहि परिस्थितिमे हस्तक्षेप करबामे सक्षम व्यक्ति तँ पढ़ताह। आ जा ई रहत ताधरि एहि तरहक कथा रचित कएल जाइत रहत।
आ जे समाज बदलत तँ सामाजिक मूल्य सनातन रहत? प्रगतिशील कथामे अनुभवक पुनर्निर्माण करब, परिवर्तनशील समाज लेल। जाहिसँ प्राकृतिक आ सामाजिक यथार्थक बीच समायोजन होअए। आकि एहि परिवर्तनशील समयकेँ स्थायित्व देबा लेल परम्पराक स्थायी आ मूल तत्वपर आधारित कथाक आवश्यकता अछि। व्यक्ति-हित आ समाज-हितमे द्वैध अछि आ दुनू परस्पर विरोधी अछि। एहिमे संयोजन आवश्यक। विश्व दृष्टि आवश्यक। कथा मात्र विचारक उत्पत्ति नहि अछि जे रोशनाइसँ कागतपर जेना-तेना उतारि देलियैक। ई सामाजिक-ऐतिहासिक दशासँ निर्दिशित होइत अछि।
तँ कथा आदर्शवादी होअए, प्रकृतिवादी होअए वा यथार्थवादी होअए। आ एहिमे सँ मानवतावादी, सामाजिकतावादी वा अनुभवकेँ महत्व देमएबला ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवादी होअए? आ नहि तँ कथा प्रयोजनमूलक होअए। एहिमे उपयोगितावाद, प्रयोगवाद, व्यवहारवाद, कारणवाद, अर्थक्रियावाद आ फलवाद सभ सम्मिलित अछि। ई सभसँ आधुनिक दृष्टिकोण अछि। अपनाकेँ अभिव्यक्त कएनाइ मानवीय स्वभाव अछि। मुदा ओ सामाजिक निअममे सीमित भऽ जाइत अछि। परिस्थितिसँ प्रभावित भऽ जाइत अछि। तँ कथा अनुभवकेँ पुनर्रचित कए गढ़ल जाएत। आ व्यक्तिगत चेतना तखन सामाजिक आ सामूहिक चेतना बनि आओत। शोषककेँ अपन प्रवृत्तिपर अंकुश लगबए पड़तन्हि। तँ शोषितकेँ एकर विरोध मुखर रूपमे करए पड़तन्हि। स्वतंत्रता- सामाजिक परिवर्तन । कथा तखन संप्रेषित होएत, संवादक माध्यम बनत। कथा समाजक लेल शस्त्र तखने बनि सकत, शक्ति तखने बनि सकत। जे कथाकार उपदेश देताह तँ ज्ञानक हस्तांतरण करताह, जकर आवश्यकता आब नहि छैक। जखन कथाकार सम्वाद शुरू करताह तखने मुक्तिक वातावरण बनत आ सम्वादमे भाग लेनिहार पाठक जड़तासँ त्राण पओताह।
कथा क्रमबद्ध होअए आ सुग्राह्य होअए तखने ई उद्देश्य प्राप्त करत। बुद्धिपरक नहि व्यवहारपरक बनत। वैदिक साहित्यक आख्यानक उदारता संवादकेँ जन्म दैत छल जे पौराणिक साहित्यक रुढ़िवादिता खतम कए देलक। आ संवादक पुनर्स्थापना लेल कथाकारमे विश्वास होएबाक चाही- तर्क-परक विश्वास आ अनुभवपरक विश्वास, जे सुभाषचन्द्र यादवमे छन्हि। प्रत्यक्षवादक विश्लेषणात्मक दर्शन वस्तुक नहि, भाषिक कथन आ अवधारणाक विश्लेषण करैत अछि से सुभाषजीक कथामे सर्वत्र देखबामे आओत। विश्लेषणात्मक अथवा तार्किक प्रत्यक्षवाद आ अस्तित्ववादक जन्म विज्ञानक प्रति प्रतिक्रियाक रूपमे भेल। एहिसँ विज्ञानक द्विअर्थी विचारकेँ स्पष्ट कएल गेल।
प्रघटनाशास्त्रमे चेतनाक प्रदत्तक प्रदत्त रूपमे अध्ययन होइत अछि। अनुभूति विशिष्ट मानसिक क्रियाक तथ्यक निरीक्षण अछि। वस्तुकेँ निरपेक्ष आ विशुद्ध रूपमे देखबाक ई माध्यम अछि। अस्तित्ववादमे मनुष्य अहि मात्र मनुष्य अछि। ओ जे किछु निर्माण करैत अछि ओहिसँ पृथक ओ किछु नहि अछि, स्वतंत्र होएबा लेल अभिशप्त अछि (सार्त्र)। हेगेलक डायलेक्टिक्स द्वारा विश्लेषण आ संश्लेषणक अंतहीन अंतस्संबंध द्वारा प्रक्रियाक गुण निर्णय आ अस्तित्व निर्णय करबापर जोर देलन्हि। मूलतत्व जतेक गहींर होएत ओतेक स्वरूपसँ दूर रहत आ वास्तविकतासँ लग। क्वान्टम सिद्धान्त आ अनसरटेन्टी प्रिन्सिपल सेहो आधुनिक चिन्तनकेँ प्रभावित कएने अछि। देखाइ पड़एबला वास्तविकता सँ दूर भीतरक आ बाहरक प्रक्रिया सभ शक्ति-ऊर्जाक छोट तत्त्वक आदान-प्रदानसँ सम्भव होइत अछि। अनिश्चितताक सिद्धान्त द्वारा स्थिति आ स्वरूप अन्दाजसँ निश्चित करए पड़ैत अछि। तीनसँ बेशी डाइमेन्सनक विश्वक परिकल्पना आ स्टीफन हॉकिन्सक “अ ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” सोझे-सोझी भगवानक अस्तित्वकेँ खतम कए रहल अछि कारण एहिसँ भगवानक मृत्युक अवधारणा सेहो सोझाँ आएल अछि, से एखन विश्वक नियन्ताक अस्तित्व खतरामे पड़ल अछि। भगवानक मृत्यु आ इतिहासक समाप्तिक परिप्रेक्ष्यमे मैथिली कथा कहिया धरि खिस्सा कहैत रहत। लघु, अति-लघु कथा, कथा, गल्प आदिक विश्लेषणमे लागल रहत?
जेना वर्चुअल रिअलिटी वास्तविकता केँ कृत्रिम रूपेँ सोझाँ आनि चेतनाकेँ ओकरा संग एकाकार करैत अछि तहिना बिना तीनसँ बेशी बीमक परिकल्पनाक हम प्रकाशक गतिसँ जे सिन्धुघाटी सभ्यतासँ चली तँ तइयो ब्रह्माण्डक पार आइ धरि नहि पहुँचि सकब। ई सूर्य अरब-खरब आन सूर्यमेसँ एकटा मध्यम कोटिक तरेगण- मेडिओकर स्टार- अछि। ओहि मेडिओकर स्टारक एकटा ग्रह पृथ्वी आ ओकर एकटा नगर-गाममे रहनिहार हम सभ अपन माथपर हाथ राखि चिन्तित छी जे हमर समस्यासँ पैघ ककर समस्या?
होलिस्टिक आकि सम्पूर्णताक समन्वय करए पड़त ! ई दर्शन दार्शनिक सँ वास्तविक तखने बनत।
पोस्टस्त्रक्चरल मेथोडोलोजी भाषाक अर्थ, शब्द, तकर अर्थ, व्याकरणक निअम सँ नहि वरन् अर्थ निर्माण प्रक्रियासँ लगबैत अछि। सभ तरहक व्यक्ति, समूह लेल ई विभिन्न अर्थ धारण करैत अछि। भाषा आ विश्वमे कोनो अन्तिम सम्बन्ध नहि होइत अछि। शब्द आ ओकर पाठ केर अन्तिम अर्थ वा अपन विशिष्ट अर्थ नहि होइत अछि। आधुनिक आ उत्तर आधुनिक तर्क, वास्तविकता, सम्वाद आ विचारक आदान-प्रदानसँ आधुनिकताक जन्म भेल मुदा फेर नव-वामपंथी आन्दोलन फ्रांसमे आएल आ सर्वनाशवाद आ अराजकतावाद आन्दोलन सन विचारधारा सेहो आएल। ई सभ आधुनिक विचार-प्रक्रिया प्रणाली ओकर आस्था-अवधारणासँ बहार भेल अविश्वासपर आधारित छल। पाठमे नुकाएल अर्थक स्थान-काल संदर्भक परिप्रेक्ष्यमे व्याख्या शुरू भेल आ भाषाकेँ खेलक माध्यम बनाओल गेल- लंगुएज गेम। आ एहि सभ सत्ताक आ वैधता आ ओकर स्तरीकरणक आलोचनाक रूपमे आएल पोस्टमॉडर्निज्म। कंप्युटर आ सूचना क्रान्ति जाहिमे कोनो तंत्रांशक निर्माता ओकर निर्माण कए ओकरा विश्वव्यापी अन्तर्जालपर राखि दैत छथि आ ओ तंत्रांश अपन निर्मातासँ स्वतंत्र अपन काज करैत रहैत अछि। किछु ओहनो कार्य जे एकर निर्माता ओकरा लेल निर्मित नहि कएने छथि। आ किछु हस्तक्षेप-तंत्रांश जेना वायरस, एकरा मार्गसँ हटाबैत अछि, विध्वंसक बनबैत अछि तँ एहि वायरसक एंटी वायरस सेहो एकटा तंत्रांश अछि जे ओकरा ठीक करैत अछि आ जे ओकरो सँ ठीक नहि होइत अछि तखन कम्प्युटरक बैकप लए ओकरा फॉर्मेट कए देल जाइत अछि- क्लीन स्लेट!
पूँजीवादक जनम भेल औद्योगिक क्रान्तिसँ आ आब पोस्ट इन्डस्ट्रियल समाजमे उत्पादनक बदला सूचना आ संचारक महत्व बढ़ि गेल अछि, संगणकक भूमिका समाजमे बढ़ि गेल अछि। मोबाइल, क्रेडिट-कार्ड आ सभ एहन वस्तु चिप्स आधारित अछि। एहि बेरुका कोसीक बाढ़िमे अनलकान्तजी गाममे फाँसल छलाह, भोजन लेल मारि पड़ैत रहए मुदा क्रेडिट कार्डसँ ए.सी.टिकट बुक भए गेलन्हि। मिथिलाक समाजमे सूचना आ संगणकक भूमिकाक आर कोन दोसर उदाहरण चाही?
डी कन्सट्रक्शन आ री कन्सट्रक्शन विचार रचना प्रक्रियाक पुनर्गठन केँ देखबैत अछि जे उत्तर औद्योगिक कालमे चेतनाक निर्माण नव रूपमे भऽ रहल अछि। इतिहास तँ नहि मुदा परम्परागत इतिहासक अन्त भऽ गेल अछि। राज्य, वर्ग, राष्ट्र, दल, समाज, परिवार, नैतिकता, विवाह सभ फेरसँ परिभाषित कएल जा रहल अछि। मारते रास परिवर्तनक परिणामसँ विखंडित भए सन्दर्भहीन भऽ गेल अछि कतेक संस्था।

एहि परिप्रेक्ष्यमे मैथिली कथा गाथापर सेहो एकटा गहिंकी नजरि दौगाबी।
रामदेव झा जलधर झाक “विलक्षण दाम्पत्य”(मैथिल हित साधन, जयपुर,१९०६ ई.) केँ मैथिलीक आधुनिक कथाक प्रारम्भ मानलन्हि । पुलकित मिश्रक “मोहिनी मोहन” (१९०७-०८), जनसीदनक “ताराक वैधव्य” (मिथिला मिहिर, १९१७ ई.), श्रीकृष्ण ठाकुरक चन्द्रप्रभा, तुलापति सिंहक मदनराज चरित, काली कुमार दासक अदलाक बदला आ कामिनीक जीवन, श्यामानन्द झाक अकिञ्चन, श्री बल्लभ झाक विलासिता, हरिनन्दन ठाकुर “सरोज”क ईश्वरीय रक्षा, शारदानन्द ठाकुर “विनय”क तारा आ श्याम सुन्दर झा “मधुप”क प्रतिज्ञा-पत्र, वैद्यनाथ मिश्र “विद्यासिन्धु”क गप्प-सप्पक खरिहान आ प्रबोध नारायण सिंहक बीछल फूल आएल। हरिमोहन झाक कथा आ यात्रीक उपन्यासिका, राजकमल चौधरी, ललित, रामदेव झा, बलराम, प्रभास कुमार चौधरी, धूमकेतु, राजमोहन झा, साकेतानन्द, विभूति आनन्द, सुन्दर झा “शास्त्री”, धीरेन्द्र, राजेन्द्र किशोर, रेवती रमण लाल, राजेन्द्र विमल, रामभद्र, अशोक, शिवशंकर श्रीनिवास, प्रदीप बिहारी, रमेश, मानेश्वर मनुज, श्याम दरिहरे, कुमार पवन, अनमोल झा, मिथिलेश कुमार झा, हरिश्चन्द्र झा, उपाध्याय भूषण, रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”, भुवनेश्वर पाथेय, बदरी नारायण बर्मा, अयोध्यानाथ चौधरी, रा.ना.सुधाकर, जीतेन्द्र जीत, सुरेन्द्र लाभ, जयनारायण झा “जिज्ञासु”, श्याम सुन्दर “शशि”, रमेश रञ्जन, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, परमेश्वर कापड़ि, तारानन्द वियोगी, नागेन्द्र कुमर, अमरनाथ, देवशंकर नवीन, अनलकान्त,श्रीधरम, नीता झा, विभा रानी, उषाकिरण खान, सुस्मिता पाठक, शेफालिका वर्मा, ज्योत्सना चन्द्रम, लालपरी देवी एहि यात्राकेँ आगाँ बढ़ेलन्हि। मैथिलीमे नीक कथा नहि, नीक नाटक नहि? मैथिलीमे व्याकरण नहि? पनिसोह आ पनिगर एहि तरहक विश्लेषण कतए अछि मैथिली व्याकरण मे वैह अनल, पावक सभ अछि ! मुदा दीनबन्धु झाक धातु रूप पोथीमे जे १०२५ टा एहि तरहक खाँटी रूप अछि, रमानथ झाक मिथिलाभाषाप्रकाशमे जे खाँटी मैथिली व्याकरण अछि, ई दुनू रिसोर्स बुक लए मानकीकरण आ व्याकरणक निर्माण सर्वथा संभव अछि। मुदा भऽ रहल अछि ई जे पानीपतक पहिल युद्धक विश्लेषणमे ई लिखी जे पानीपत आ बाबरक बीचमे युद्ध भेल। रामभद्रकें धीरेन्द्र सर्वश्रेष्ठ मैथिली कथाकारक रूपमे वर्णित कएने छथि मुदा एखन धरि हुनकर कएक टा कथाक विश्लेषण कएल गेल अछि। नचिकेताक नाटक आ मैथिलीक सेक्सपिअर महेन्द्र मलंगियाक काजक आ रामभद्र आ सुभाष चन्द्र यादवक कथा यात्राक सन्दर्भमे ई गप कहब आवश्यक छल।
आ एतए ईहो सन्दर्भमे सम्मिलित अछि जे सुभाषचन्द्र यादवजीक ई संग्रह धारावहिक रूपमे अन्तर्जालपर ई-प्रकाशित भए प्रिंट फॉर्ममे आबि रहल अछि, कथाक पुनः पाठ आ भाषाक पुनः पाठ लए।
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राहुल मधेसी said...
subhash ji ke estimate nik kelahu,
gahir adhyayan ker parinam etek nik samiksha,
chhichla knowledge se te panipat aa babar madhya yudh machat matra
Reply05/15/2009 at 09:41 PM
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जितेन्द्र नागबंशी said...
bahut ras ideolism clear bhel,
subhash jik samiksha lel dhanyavad
Reply05/15/2009 at 09:39 PM

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