भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, September 26, 2009

नताशा 26 (चित्र-श्रृंखला पढ़बाक लेल नीचाँक चित्रकेँ क्लिक करू आ आनन्द उठाऊ।)

झालि- सुभाष चन्द्र यादव



दिन लुकझुक करैत छै। रामा धान काटि क’ सबेरे आबि गेलै। ओना बोझ खरिहान लगबैत-लगबैत राति भ’ जाइत छै। आइ ओ हरे रामकेँ खेतमे छोड़ि देलकै। धाप पर खूब मोटगर क’ पुआर बिछएलक। बरहका भैया सरजुग कहलकै त’ घूरमे करसी सेहो द’ देलकै। रामाकेँ आइ नहा नइं भेलै तैं एतेक अगते जरौन लाग’ लागलै। धाप आ पुआर जबदाह छै। पिन्हनामे डोरिया पैंट रहलासँ तरबा लोह भ’ गेलै आ जाँघ-हाथक रोइयाँ भुटकल छै। चद्दरि नइं छै। भानस हेबा धरि घूर तापैत अछि। राति क’ हरे राम, गंगबा, बरहका भैया, आ ओकरा लेल एकटा मोटिया छै। सब एक पतियानीसँ ओंघरा जाइत अछि, त’ माइ एकटा पटिया ऊपरोसँ द’ दैत छै।
बिन्दुआ आ सुनरा कतहुसँ आबि पुआर पर बैसैत छै। सरजुग कहैत छै-कोने, कोनेसँ रे...
-एह, अहिना घुरिते-फिरते की।-बिन्दुआ कहैत छै।
-घूरमे आगि दही ने रामा रे।-सुनरा आग्रहक स्वरमे कहैत छै।
रामा कोनो उत्तर नइं दैत छै, आ पुआर खड़रैत रहै छै।
-हइ इएह गंगबाकेँ कहक ने।-देबलरयना अबैत-अबैत कहैत छै।
-लाबि ने दही गंगबा रे।-रामा हाथ बारि गंगबा पर तमसाइत छै।
-लाबि ने दही तोंही। हमहीं टा देखल रहै छियौ, नइं?-गंगबा खूब जोरसँ चिकरैत अछि।
-भने अइ सालाकेँ खेनाइ काल्हि बन्न क’ देने छलै। किछु कहलक तँ काने-बात नइं देलक।-रामा फेर दमसाबैत छै।
-माल छै की?-देबलरयना सरजुगसँ पुछैत छै।
सरजुग बुझैत अछि जे माल ककरा कहैत छै-डेढ़ टाकाके लेलियै रहए। सबटा सठि गेलै। आब जेबी झाड़ैत छियौ। निकलि जाउ तँ निकलि जाउ।
-ओएह त’ छौ एकटा जट्टा।-बिन्दुआकेँ भरोस होइत छै। गंगबा आगि लाबि घूरमे दैत छै। देबलरयना फूकि क’ सुनगाबए लगैत अछि।
-सरजुग एकदम भकुआएल अछि।-बिन्दुआक एहि बात पर सभ सरजुगकेँ देखैत अछि, आ हो-हो क’ हँसि दैत अछि।
रामा हाथ-गोर धो क’ अबैत छै।-हे रे, हँट-रामा गंगबाकेँ घुसकाबैत घूर पँजेठि लेब’ चाहैत अछि। ओकर टाँग आ हाथसँ भाफ उड़ैत रहै छै।
-हमरा की केलकै, वीरपुरमे अड़तालीस टाकाके पटुआ खरीद आ छिआलीसेमे बेचि लेलकै आ अइ ठिन छै बाबन।-देबलरयना गुल पजारैत कहैत छै।
-रौ तोरी, से किऐ?-सुनराकेँ परौसरामक बेकुफी पर छगुनता होइत छै।
-से नइं बुझलहक? हम घोड़ा ल’ क’ चलि एलिऐ आ अइ ठिन हमरा अरजुन पकड़ि लेलकै बियाहमे। चारि दिन बरदा गेलिऐ। आ जा-जा ओत’ गेलिऐ ता तक बेच देने रहै। हम कहि देलिऐ-हम हिस्सा-तिस्सा नइं देबौ।
-बेसी खैनी नइं दहक। कड़ा भ’ जाइ छै।-बिन्दुआ सरजुगकेँ बरजैत छै।
-गाजा कड़े ठीक होइ छै।-सरजुग लटबैत कहैत छै।
-बाप रे, पिरथी जे कड़ा पीबैत छै! पीलहक ए ओकर लटाएल?-सुनरा अतीतमे भटकि जाइत अछि।
-भाइजी, दुसधटोलीमे जे एक दिन लरमाहा पिलिअ’ रहए! मरदे, कचहरीसँ चोटाएल घुरल रहिऐ, चारि चिलम फूकि देलिऐ। से कहै छियह तुरन्ते ल’ क’ उड़ि गेलै। सनजोगसँ ओइ दिन संगमे एकटा पचटकिया रहए। सोचलिऐ साला उड़ि जो। लगले-लागल चारि कप चाह ढारि देलिऐ। से कहै छियह घुमरा कात अबैत-अबैत लागए जे चित्त भ’ जाएब। आबि क’ सूति रहलिऐक। भाइ उठबए एलै जे टिशन पढ़ब’ नइं जेबही? कहलिऐ, आइ नइं जेबै। बड़ थाकि गेल छियौ।-बिन्दुआ कहैत रहै छै आ सभ सुनैत रहै अछि।
-एह उ दुसधटोलियो कमाल छै-सुनरा कहैत छै तँ सभ हँसि दैत छै।
-दुसधटोली! दुसधटोली के की बिजनेस छै से सुनलहक? मौगी-छौंड़ी सभ, दिन आ भिनसुरको क’ कोइला बिछैत छै। मरद सभ दिनमे गाजा बेचैमे रहत आ छौंड़ी सभ राति क’।
सभ एके बेर भभा क’ हँसि दैत छै। बिन्दुआ हँसीमे जोग देलाक बाद कहैत छै-एकदिन दुसधटोलियेमे रहिअ’ भाइजी, आकि ओनएसँ छिनरो भाइ दरोगा पहुँचि गेलह। सबकेँ सर्च करए लगलै। हमरा पुछलक तँ हम कहलिऐ जे हमरा रुपैया बाँकी है, सो ही माँगने आए हैं।-तब पुछलक जे कैसा रुपैया? कहलिऐ सरबेमे काम किया था।-तब हमरा नइं किछु कहलक। दुसधाकेँ कनिएँ टा पकड़लकै, से छिनरो भाइ पचास टाका चट सिन ल’ लेलकै।
-ओइमे एकेटा छौंड़ी नीक छै, की हौ बिन्दु?-सुनरा एक सोंट मारैत कहैत छै।
-हँ, उ गोरकी छौंड़ी। उ सैनियाँक सारि छिऐ।
चिलम तीन-चारि रौन चलैत छै।
-जट्टा बाला गाजामे निशाँ बड़ जल्दी चढ़ैत छै।
बिन्दुआ चिलम दैत कहै छै-हे लैह!
तँ देबलरयना कहैत छै-ई तँ कुबेरक खजाना भ’ गेलह।
-तह-सरजुग पुष्टि करैत छै। कने काल सभ दार्शनिक जकाँ भ’ जाइत अछि।
-आइ-काल्हि घूरे लोककेँ जान बचबै छै।
-त, घूर नइं रहए तँ लोक कठुआ क’ मरि जाए!
-ठार खसब अखनेसँ शुरू भ’ गेल छै। सगरे धुइयाँ जकाँ पसरल छै।
कुहेसक पछारी नुकाएल चिन्ता कुहेस फाड़ि क’ निकलैत छै-केना चलतै, आँइ बिन्दुआ?-सरजुग टूटल स्वरमे पुछैत छै।
-बिन्दुआकेँ की छै? केहन टीशन पढ़बै-ए।
-नइं हौ, आइ-काल्हि बड़ा मुसकिल छै। बाबू ओतएसँ लिखलकै, जेना-तेना परिवार चला। पढ़ौनीबला एक डेढ़ मोन धान तसिललिऐ। लोक सभ देबे ने करैत छै हौ।-बिन्दुआ कहैत छै।
-आइ पढ़बए जेबही की?-सरजुग पुछै छै।
-हँ, हँ।-बिन्दुआ तेजीमे कहैत छै।
-रबियोकेँ बन्दी नइं?
-रबि-तबि बूझैत छै ओ सभ?
ता ओनयसँ छेदी चैधरी अबैत छै। ओकर अगिला दू-तीन टा दाँत टूटल छै। दाढ़ीक नमहर-नमहर खुट्टी सभ कोना दनि लगैत छै। घूर लग बैसिते ओ देबलरयनासँ पुछैत छै-अच्छा बोल, बेचबिही घोड़ा तों?
-हाय रौ बा, बेचबै नइं? बेगरता छै तँ।
-अच्छा एक्के बेर निस्तुकी दाम बोल।
-हमहुँ एक्के बेर निट्ठाह दाम कहि दैत छियह, पचपन टाका।
-बहुत कहै छिही। सुन! घोड़ाकेँ भरि पीठ घा छौ, आ चलै छौ त’ लापट लगै छौ। लोगो देखत तँ हँसत। कहतै घोड़ा झालि बजबैत छै।
गंगबाकेँ सभसँ पहिने हँसी लागि जाइत छै। ओकरे संगे सभ ठहाका लगबैत अछि।
-हम लगा देलियौ पैंतीस टाका। हँटा। भ’ गेलौ।-छेदी दाम पटएबामे तेज छै।
-ओतेमे नइं हेतह।
-सुन, हमरा उ घोड़ा नइं बिकत। कोइ लै ले जल्दी तैयारे नइं हेतै। पैंतीस वाजिब कहलियौ-ए। सरजुग, घोड़ाकेँ भरि पीठ घा छै।
-हे, घोड़ाकेँ घा कत’सँ एलै। कनियें टा पपड़ी ओदरल छै। उ जे कहबहक कोनो तरका घा छिऐ से नइं छै।
-अच्छा घा चोखेलै-ए की ओतबे छै?
-एह, आब कहाँ छै। एक्के रत्ती रहि गेलै-ए।
-घोड़ा अलगसँ देखैमे नीक लगै छै, मगर चीज नइं छै। हमरा तों द’ देबें ने, आ नहिओ बिकत तँ बुझबै दुआरे पर छै।
-खूब बढ़िया चीज छै। हम तँ कहै छियह दू-अढ़ाइ मन धरि लादि दै छिऐ।
-अच्छा, दामक-दाममे द’ दही। कतेमे नेने रही? पैंतालीसमे? छेदी! पैंतालीस द’ दहक आ ल’ लैह।-सरजुग तसफिया क’ दैत छै।
-अच्छा, जे ई सभ कहि देलकौ से भ’ गेलौ। हमरा भोरेमे घोड़ा द’ दे। जिनिस लादि क’ ल’ जेबौ आ बेचि क’ टाका द’ देबौ।
-नइं, से नइं हेतह। टाका भोरे द’ दहक। हमरा ओतए जाइके नइं रहितिए त’ हम घोड़ा बेचितिऐ कथी ले।-देबलरयनाकेँ शंका होइत छै जे ओ जल्दी टाका नइं देत।
-त तब कोना हेतै?
-सुनह, तों हमरा पहिने कहने रहित’ ने, तँ हम टाका पनरहो दिन छोड़ि देतिअ’। तों हमरा हटिया करए दैह आ ताबै टाकाक कोनो बनोबस करह।
-अच्छा तों काल्हि हटिया अबै छ’ ने?
-हँ-हँ, काल्हि हटिया नै करबै तँ काम चलतै?
-अच्छा तों हटिए पर आ।-छेदी कहैत चलि जाइत छै।
बात फरिछेलै नइं, से बिन्दुआ, सुनरा आ सरजुगकेँ बोझ-सन बुझाइत रहलै। घूर पझाएल जाइत छै। करसीमे खाली माँटिए छै। तरका गोइठामे एखन नइं धेलकै-ए।
-भूख लागि गेलै। कने मुरही-तुरही रहितै, नइं हौ भाइ जी?-बिन्दुआ कहैत छै।
-गाँजा पीने छहक तैं बुझाइ छ’। आन दिन बेरहट नइं खाइत रहक तइयो बुझाइत रह’ भूख?
-हँ, से ठीके कहै छहक।
बिन्दुआ उठि जाइत छै। सरजुग पुछैत छै-चलि देलें। बन्दी नइं?
-जाह, खरहू सब लग तोहूँ झालि बजबिहह।-गंगबा चैल करैत छै।

भक्ति गीत - दयाकांत

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |

हम छी मुरख बड़ अज्ञानी
नहीं जप-तप-पूजा पाठ जानी
बस आस अहींक अछि अम्बे
मुरख बुझी सबटा माफ करू

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |

हम फसल छी बीच भ्रमर माता
नहि अछि कोनो एकर अता-पता
अहि बिपत्ति सं आब अहीं माता
अबला जानी उधार करू |

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |

छी मायाजाल में हम ओझरल
नहि जपि अहांक नाम बिरल
यदि अहाँ माय बिसरी जेबै
और ककर हम आस करू|

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |

पुत कपूत ते होय माता
नहि मात कुमाता होय कौखन
अहि पातकी पुत के हे माता
आब अहि बेरा पार करू |

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |