ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ७२ म अंक १५ दिसम्बर २०१० (वर्ष ३ मास ३६ अंक ७२)
एहि अंकमे अछि:-
३.६.१. संजय कुमार मंडल- कविता- मीता हमरा मोन पड़ैए २. राजदेव मंडल-कविता- नेहाइपर लेखनी
३.७.१शिवकुमार झा टिल्लू- कविता- साहित्यक विदूषक २ रूपेश कुमार झा 'त्योंथ'- हम छी आजुक नेता
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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१. संपादकीय
मैथिली नाटकक एकटा समानान्तर दुनियाँ
रामखेलावन मंडार- गाम कटघरा, प्रखण्ड- शिवाजीनगर, जिला समस्तीपुर। हिनके संग बिन्देश्वर मंडल सेहो छलाह। उठैत मैथिली कोरस आ - माँ गै माँ तूँ हमरा बंदूक मँगा दे कि हम तँ माँ सिपाही हेबै- एखनो लोककेँ मोन छन्हि। एहि मंडली द्वारा रेशमा-चूहड़, शीत-बसन्त, अल्हा-ऊदल, नटुआ दयाल ई सभ पद्य नाटिका पस्तुत कएल जाइत छल।
मैथिली-बिदेसिया- पिआ देसाँतरक टीम सहरसा-सुपौल-पूर्णियाँसँ अबैत छल।
हासन-हुसन नाटिका होइत छल।
रामरक्षा चौधरी नाट्यकला परिषद, ग्राम- गायघाट, पंचायत करियन, पो. वैद्यनाथपुर, जिला- समस्तीपुर विद्यापति नाटक गोरखपुर धरि जा कऽ खेलाएल छल। एहि मंडली द्वारा प्रस्तुत अन्य नाटक अछि- लौंगिया मेरचाइ, विद्यापति, चीनीक लड्डू आ बसात।
सूचना: रंगकर्मी प्रमिला झा नाट्यवृत्ति 2010- ज्योति झा- दिल्ली, किरण झा, कोलकाता आ रितु कर्ण, पटनाकेँ देल गेल अछि।
मैलोरंग द्वारा घोषित पहिल ज्योतिरीश्वर सम्मान श्रीमति प्रेमलता मिश्र प्रेम केँ देबाक घोषणा भेल अछि जे स्वागत योग्य अछि। मुदा आगाँसँ मैथिली नाटकक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित आ सम्मानित कएल जएबाक प्रयास होएबाक चाही।
मैथिली-समीक्षा विशेषांक: विदेहक हाइकू, गजल, लघुकथा, बाल-किशोर विशेषांक आ नाटक-एकांकी विशेषांकक सफल आयोजनक बाद विदेहक 15 जनवरी 2011 अंक मैथिली-समीक्षाक विशेषांक रहत। एहि लेल टंकित रचना, जकर ने कोनो शब्दक बन्धन छै आ ने विषएक, 13 जनवरी 2011 धरि लेखक ई-मेलसँ पठा सकै छथि। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।
(विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १,६२७ ठामसँ ५३, १८३ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,८०,०३२ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा।)
गजेन्द्र ठाकुर
किशन कारीगर आब मानि जाउ ने। (एकटा हास्य रेडियो नाटक)
परिचय पात:-
1 राजेश - नायक।
2 कमला - नायिका-राजेशक पत्नी उर्फ पाही वाली।
3 मनोहर - राजेशक लंगोटिया दोस्त।
4 विमला - मनोहरक पत्नी उर्फ ठारही वाली।
5 नीलू - विमलाक सहेली।
6 सोनी - नीलूक सहेली।
7 मदन - दोस्त ।
नोट:-भारतीय कॉपीराइट अधिनियम के तहत सर्वाधिकार लेखक कें अधिन सुरक्षित। लेखकक लिखित अनुमतिक बिना नाटकक कोनो अंशक प्रसारण व प्रकाशन नहि केल जा सकैत अछि।
। प्रथम दृश्य।
ध्वनि संगीत
कमलाः- (कनेक तमसाएल भाव में) मारे मुहॅ धकेए आब बाट तकैत-तकैत मोन अकछा गेल। हिनका किछू अनबाक लेल नहिं कहलियैन कि एकटा आफद मोल लए लेलहॅू।
तखने राजेशक प्रवेश।
राजेश:- (दारूक निशा में बरबराइत) हे यै पाही वाली कतए छी यै एम्हर आउ ने यै पाही वाली।
कमला:- (खूम खिसियाएल भाव मे) लगैत अछि जेना पूरा अन्धरा बजारे खरीदने आबि रहल छथि। तहि द्वारे अन्हराएल छथि।
राजेशः- हे यै पाही वाली अहॉ जूनी खिसियाउ एकबेर हमर गप सुनू ने।
कमलाः- हम कि खाक सुनू अहॉ के तए हमर कोनो फिकिरे नहि रहैए।
राजेशः-( निशा में मातल गबैत अछि) भिजल ठोर अहॉके।
कमलाः- हे दैब रै दैब अहॉक एहेन अवस्था देखि तए हमर ठोर मुहॅ सुखा गेल आ अहॅा कहैत छी जे भिजल अछि।
राजेशः- अहॉ फुसियाहीं के खंउजा रहल छी गीत सुनू ने। प्यासल दिल ल..ल हमर।
कमलाः-( खउंजा के) हे भगवान एतेक पीबलाक बादो अहॉके पियास लगले अछि तए हैए लिअ घैला मेहक ठंढ़ा पानि।
राजेशः- (हॅंसैत बरबराएत अछि) अहॅू कमाले कए रहल छी पहिने गीत सुनि लियए ने।
राजेशः- कियो हमरा संगे भिंसर तक रहतै तकरा हम करबै खूम प्यार ओ...हो...ओ हो...हो...ओ..हो...हो।
कमलाः- आब कि खाक प्यार करब । आब एक पहर बाद भिंसरो भए जेतैए।
राजेशः- (गीत गबैत गबैत सूतबाक प्रयास) आ सिटी बजा रहल अछि।
कमला:- हे महादेव एहेन गबैया के नींद दए दिऔय।
राजेशः- आब हयिए हम नानी गाम गेलहॅू आ अहॉ अपना गाम सॅ जलखै नेने आउ।
कमला:- अच्छा आब बूझनूक बच्चा जेंका चुपेचाप कले-बले सूति रहू ने।
राजेश:- ठीक छै पाही वाली जॅं अहॉं कहैत छी तऽ हम सूति रहैत छी मुदा जलखै बेर मे हमरा उठा देब।
राजेश सूति रहैत अछि।
।दृश्य समाप्त।
दृश्य-2 प्रारंभ।
चिड़ैय चुनमून के चूं...चूं कें ध्वनी
कमला:- (राजेश के उठबैत) हे यै आब उठि जाउ ने भिंसर भए गेलैए।
राजेश:- पाही वाली अहॉं ठीके कहैत छी की?
कमला:- ठीके नहिं तऽ की झूठ कनेक अपने ऑंखि सॅ देखू भिंसर भऽ गेलै।
राजेशः- हॅं यै ठीके मे भिंसर भऽ गेलैए अच्छा तऽ आब हम मॉर्निंग वॉक माने घूमि फिरी कऽ अबैत छी।
कमला:- अच्छा ठीक छै त जाउ मुदा जल्दीए घूमी क चली आएब। ताबैत हम चाह बना के रखने रहैत छी।
राजेशः- बेस तऽ आब हम घूमने अबैत छी। ओ के बाई-बाई।
राजेशक घर सॅं प्रस्थान।
पार्क में बातचीत करबाक ध्वनी प्रभाव।
मनोहर:- (दौगि रहल अछि आ हॉफि लैत) भाई आई काल्हि राजेश लंगोटिया देखबा मे नहि आबि रहल अछि।
मदन:- (खैनी चुनेबाक पटपट) से तऽ ठीके मे भाई हमरा तऽ बूझना जाइए जे ओ तऽ सासुर मे मंगनीक तरूआ तोड़ी रहल अछि।
मनोहर:- से जे करैत हुए मुदा भेंट तऽ करबाक चाहि।
मदन:- (हरबड़ाइत) हई ए ए ई लियअ नाम लैत देरी राजेश सेहो आबिए गेल।
दौगल अबैत राजेशक प्रवेश।
मनोहर:- (राजेश के देखैत) ओई-होई हमर दोस कि हाल चाल छौ।
राजेशः- हम तऽ ठीके छी भाई तू अपन कह कि समाचार।
मदन:- राम राम यौ लंगोटिया भाई।
राजेशः- (हॅसैत) आहा हा हा राम राम यौ चिकनौटिया भाई।
मदन:- राजेशक हाल तऽ हमरा सॅं पूछू बेचारा चिंता सॅं सनठी जेंकॉं सूखा गेल।
राजेश:- कि भेलैए एकरा से कहब ने कोनो दुख तकलीफ आफद विपैत।
मदन:- (राजेश स)ॅ हमरा सॅ त निक जे राजेश भाई अपने कहिए दहक तखन इहो बकलेल छौड़ा बूझिए जेतैए।
मनोहर:-( उदास भऽ कें) भाई कि कहियौअ जहिया सॅ ठारही वाली रूसि कें अपना नैहर चैल गेलैए हमरा तऽ एक्को कनमा निक्के नहि लगैत अछि।
राजेश:- किएक तूं भाउजि के मनेलही नहि?
मनोहर:- हं रौ भाई कतबो मनेलियैए मुदा ओ नहि मानलकै।
राजेशः- से किएक एहेन कि भऽ गेलैए जे भाउजी मुहॅ फूलौने ठारही चलि गेलौह।
मनोहरः- हमरा दारू पीबाक हिसक छल एहि द्वारे हमर ठारही वाली सपत देलक मुदा हमर हिसक छूटल ने।
राजेशः-( किछू सोचैत) हमरो पाही वाली हमरा सॅ रूसल रहैत अछि किएक तऽ ओकर फरमाईश जे पूरा नहि केलियै।
मदनः- (खैनी चूनेबाक पटपट अवाज) हें हें हा हा हम तऽ कहैत छी दूनू गोटे अपना-अपना कनियॉ ंके मना लियअ आ झगरे खतम।
मनोहरः- अहॉ ठीके कहलहूॅं मदन भाई। आब हम अपना ठारही वाली के मनाएब।
मदन:- हर हर महादेव तऽ झट सॅं निकालू हमर सवा रूपैया दक्षिणा।
मनोहरः- ओकरा सामने सपत खाएब जे आब हम दारू के मुहॅं नहि लगाएब।
राजेशः- तऽ देरि किएक? चल ने ठारही वाली भाउजी के मनेबाक लेल अंधराठारही चलैत छी।
मनोहरः- ठीके रौ भाई चल। मुदा जाइ सॅ पहिने तूं अपना पाही वाली के फोन कऽ दहि ने।
राजेश:- तूं ठीके कहि रहल छें हम एखने फोन लगबैत छी।
मोबाइल सॅं फोन लगेबाक ध्वनी प्रभाव
स्वर:- महिलाक अवाज़ हेल्लो ।
राजेश:- हम आई घर नहिं आएब। किएक तऽ हम मनोहर संगे ओकर सासुर जा रहल छी।
स्वरः- अहॉं के तऽ एक्को रति हमर फरमाईश मोन नहि रहैए।
राजेशः- पाहि वाली अहॉ जूनि रूसि हम अहॉ लेल किछू ने किछू नेने आएब।
स्वर:-ठीक छै तऽ जाउ मुदा जल्दीए चलि आएब। बाई- बाई।
राजेशः- बेस त बाई-बाई।
फोन कटबाक ध्वनी।
राजेशः- पाही वाली तऽ मानि गेलैए चल आब ठारही वाली के मनबैत छी।
मनोहरः- हॉफैत हं हॅं हं किएक नहि? जल्दी दौगल चल।
मदनः- भ भ भाई हमर द द दक्षिणा।
हॅसैत हॅसैत मनोहर आ राजेशक प्रस्थान।
मदन:- (हॅसि क) ई दूनू गोटे त सासुर चलि गेल त आब हमहू जाइत छी बाबूबरही अपना पंडिताइन के भेंट कए आबि। हें हें हें।
दृश्य -3
लड़की के जोर सॅं हॅसबाक अवाज़
(नीलू आ सोनी दूनू गोटे गीत गाबि हॅसी मजाक करै मे लागल अछि)
नीलूः- गीत गबैत आबि जाउ एके बेर आबि जाउ।
सोनीः- केकरा बजा रहल छीहि गे आ आ आबि जाउ।
नीलू-( मुस्कि मारैत) केकरो नहि तोरा ओझा के।
सोनी:-(गीत गबैत) तऽ कहि ने सोझहा आबि जाउ एक बेर आबि जाउ।
ताबैत मनोहर आ राजेशक प्रवेश।
नीलूः- दूनू गोटे के देखी क) दूल्हा बाबू आबि जाउ एक बेर आबि जाउ।
मनोहर:- अहॉ बजेलहूूॅं आ हम हाजिर। कहू समाचार।
सोनीः- ठीके मे गै बहिना देखही गे एहेन धरफड़िया दूल्हा देखल ने।
नीलूः- प्रणाम यौ पाहुन। रस्ता मे कोनो दिक्कस तऽ नहि भेल ने?
मनोहरः- दिक्कस कि खरंजा आ टूटलाहा पिच पर साइकिल चलबैत काल हार पांजर एक भऽ गेल।
सोनी:- त आब मजा आबि रहल अछि।
राजेशः- मजा तऽ आबि रहल अछि मुदा हमरा भाउजी सॅं भेट करा दितहॅू तए ठीक्के मे मजा आबि जेतैए।
नीलू:- अहॉं के नहिं चिन्हलहूॅं यौ हरबड़िया पाहुन।
राजेशः- हॅंसि क हा हा हा हमरा नहि चिन्हलहूॅ हम अहॉ पाहुनक लंगोटिया दोस राजेश छी।
(सभ गोटे ठहक्का लगबैत)
सोनीः- अहॉं कतेक नीक बजैत छी। चलू ने घूमैए लेल।
नीलूः- हॅ यौ पाहुन चलू चलू गाछी कलम आ खेत पथार सभ देखने अबैत छी।
राजेशः- हॅं हॅं किएक नहि चलू ने तीनू गोटे घूमने अबैत छी।
ठहक्का लगबैत तीनू गोटेक प्रस्थान।
मनोहर:- वाह रे किस्मत। सासुर हमर मुदा मान-दान एक्कर। हाई रे किस्मत के खेल।
तखन गीत गबैत विमलाक प्रवेश।
(गीतक ध्वनी- पिया परदेश सॅ पजेब नेने एब यौ पिया)
विमलाः- आश्चर्य भाव सॅं अ अ अहॉं।
मनोहरः- हॅ अहॉ बजेलहूॅ आ हम हाजिर छी। कहू कुशल समाचार।
विमलाः- (रूसि क बजैत) अहॉं के बजेलक के? जाउ हम अहॉ सॅ नहि बाजब।
मनोहरः- अहूॅं त कमाले करैत छी। देखू तऽ हम अहॉक लेल कि सभ अनने छी।
विमलाः- (आश्चर्य भाव सॅ) क क कि अनने छी हमरा लेले??
मनोहरः- (प्यार सॅ) ट...ट...ट टॉफी।
विमला:- अहॉ के टॉफी छोरी आरो किछू बजार मे नहि भेटल की?
मनोहरः- जिलेबी सिंहारा तऽ किनने छलहॅू अॅहिंक लेल मुदा रस्ते मे भूख लागि गेल तऽ अपने खा लेलहॅू।
विमलाः- (उदास भऽ के) अहॉं के तऽ एक्को रति हमर चिंते नहिं रहैयए।
मनोहरः- चिंता रहैयए तहि द्वारे तऽ आब हम दारू पिअब छोड़ि देलहूॅ।
विमलाः-( अकचका के) ठीके मे
मनोहरः- हॅं हॅं हम सपत खेने छी की आब हम दारू कहियो ने पिअब।
विमलाः- ई त बड्ड निक गप। आब हम किछू फरमाईश करी त?
मनोहरः- (हॅसैत) अहॉं फरमाईश त करू हम पूरा अंधरा बजारे घर उठौने चलि आएब।
तखने निलू सोनी आ राजेशक प्रवेश।
नीलू:- दीदी-दीदी चल ने आई पाहुन संगे बजार घूमने अबैत छी।
मनोहरः- हं हं चलू-चलू देरि भए जाएत आई अहॉं सभ कें अंधरा बजार घूमा दैत छी।
ठहक्का लगबैत सभहक प्रस्थान।
दृश्य-4
बजारक दृश्य बिक्रेता सभ के विभिन्न अवाज़।
बिक्रेताः- घड़ी लऽ लियअ, रेडियो लऽ लियअ।
बिक्रेता:- (डूगडूगी बजबैत) हे धिया पूता लेल डूगडूगी ल लियअ डूग-डूग।
राजेशः- भाई हमरा एकटा रेडियो किनबाक रहै।
बिक्रेताः- हईए लियअ ने एहि ठाम भेटत कम दाम मे निक रेडियो।
मनोहरः- लगैए तोहर दिमाग कतौह हरा गेलौ। घर मे टी वि छौ तइओ?
राजेशः-( अफसोस करैत) तोरा केना कहियौ की।
विमलाः- कहू तऽ सी. डि. टी. वि. के युग में कहू तऽ कियो आब रेडियो किनतैए।
राजेशः- (हॅसि क) इ हमरा पाही वाली के पसीन तऽ छियै तहि द्वारे त किनि रहल छियै।
मनोहर:- तखन तऽ एखने खरीद ले।
राजेशः- हे भाई एकटा बढ़िया क्वालिटी के रेडियो दिहअ।
बिक्रेताः- ई लियअ भाई साहेब।
राजेश:- हईए ई लियअ पाई। पाई देबाक ध्वनी प्रभाव।
मनोहर:- तऽ चल आब चलैत छी अपना गाम तोरा पाही वाली के मनेबाक लेल।
नीलूः- यौ पाहुन आ हम सभ।
राजेश:- अहॅू सभ चलू ने हमर गाम घर देखि क आपिस चलि आएब।
सोनीः- नहि यौ पाहुन पहिने हमरा सभ के घर तक छोडि दियअ। फेर कहियो अहॉ गाम मेला देखै लेल हम दूनू बहिन आएब।
मनोहरः- ठीक छै तऽ चलू अहॅा सभ कें गाम पर दए अबैत छी तकरा बाद हम सभ अपना गाम चल जाएब।
विमला:- ई भेल ने बुझनुक मनुक्ख वला गप।
ठहक्का लगबैत सभहक प्रस्थान।
दृश्य-5
रसोई घरक दृश्य। कमला गीत गुनगुना रहल अछि।
तखने राजेश मनोहर विमलाक प्रवेश।
राजेश:- सुनू ने सुनू ने सुन लियअ ने.हमर पाही वाली सुनू ..ने।
कमला:- हमरा अहॉक कोनो गप नहि सूनबाक अछि।
राजेशः- हे यै जूनि रूसू सुनू ने.....सुनू ने।
कमला:- कहलहूॅ तऽ नहि सूनैत छियैअ।
राजेशः- अहिं के सुनबाक लेल त बजार सॅं अनलहॅू। देख तऽ लियअ।
कमला:- (खिसियाअ के) हम कि कोनो अहॉं जंेका बहिर छी??
राजेश:- (अफसोस करैत) पाही वाली के हम केना बुझबई जे इ कोनो फरमाईश केने रहैए।
विमला आओर मनोहर एक दोसर सॅ कनफूसकीं कऽ गप करैत।
मनोहर - (विमला सॅं) लगैए कमला के किछू बूझहेबाक चाहि।
विमला - कमला बहिन एतेक खिसियाएल किएक छी। हमरा त कैह सकैत छी।
कमला - हिनका की कहियैन बहिन। पहिल सालगीरह के दिन हिनका सॅ किछू फरमाईश केने रहियैन मुदा हिनका तऽ कोनो धियाने नहिं रहैत छनि?
विमला - कहू तऽ एतबाक लेल एहेन खिसियाएब। पहिने देखियौ तऽ सही ओ अहां लेल कथी अनने छथि।
कमला - कथी इहे ने अंधरा बजारक मेथी।
विमला - नहि यै बहिन अहॉ एक बेर देखियौ त सही।
कमला - (आश्चर्य भाव सॅं) हे भगवान ठीके मे
कमला- राजेश सॅं हमरा लेल कथी अनने छी से देखाउ ने।
राजेश - हे भगवान आई अहॉ बचा लेलहॅू नहिं त...त आई फेर सॅ।
कमला - की भेल अहॉ के?
राजेश - (हरबराईत बजैत अछि) अहॉ बैग खोलि क क देखू ने हम कथि नेने एलहॅू अहॉ लेल स्पेशल मे।
बैग खोलबाक ध्वनी प्रभाव।
कमला- (हॅसि क) र...र....रेडियो। आब त हम मजा सॅं कांतिपूर एफ.एम जनकपूर एफ.एम. दरभंगा विविध भारती रेडियो सुनैत रहब।
राजेश- अहॉक मोन जे सुनबाक अछि से सुनैत रहू मुदा आब मानि जाउ ने।
कमला - (रूसि कें) रेडियो त अनलहॅू मुदा झुमका किएक नहि अनलहूॅं?
मनोहर- हे भगवान फेर सॅ एकटा नबका मुसिबत तूहिं बचबिहअ।
राजेश - हे यै पाही वाली हम अहॉं लेल बरेलीवला झूमका सेहो अनने छी। आब मानि जाउ ने।
सभ गोटे ठहक्का लगबैत। हॅसबाक ध्वनी प्रभाव।
मनोहर - वाह-भाई मानि गेलहॅू । रूसल कनियॉं कें मनाएब तऽ कियो राजेश सॅं सीखेए।
सभ गोटे एक संगे ठहक्का लगबैत हा...हा...।
।समाप्त।
रविभूषण पाठक नाटक ‘रिहर्सल’
‘रिहर्सल’ नाटक मिथिला मे व्याप्त सांस्कृतिक संकट क’ एकटा छोट रूपक अछि ।मिथिला मे जाति बदलल मुदा जाति क’चालि नहि बदलल ।जाति अपन बदरंग भूमिका क’ साथ जीवित अछि । जाति ,धर्म,राजनीति आ साहित्य क’ कॉकटेल एकटा गेन्हायल आ कुत्सित दृश्य उपस्थित करैत अछि।’रिहर्सल’ नाटक एहि दृश्य के ने ग्लेमराइज करैत अछि ने रूपांतरित करैत छैक ।एहि ठाम टी एस एलियट क’ओहि विचार के महत्वपूर्ण नहि मानल गेल अछि कि भोक्ता आ रचयिता क’ बीच मे दूरी रचनात्मकता क’ लेल अनिवार्य अछि ।गाम मे मंचन क’ समय एहि विकट तथ्य सॅ अवगत भेलहूॅ कि नाटकीय अभिरूचि क’ परिष्कार एखनहु अपरिहार्य अछि ।गाम में नवतुरिया छौराछपाठी सॅ जे सहयोग भेटल ,ओ गदगद क’ देलक ।नाटक मे संशोधन-परिवर्धन क’ तमाम गुंजाइश के बावजूद ई अपन मूल रूप मे अछि ।उदयनाचार्य मिथिला पुस्तकालय क’ प्रथम वर्षाब्दी क’ अवसर पर आयोजित कार्यक्रम क’ लेल एकर लेखन दू-तीन दिन मे संपन्न भेल छल ।ई नाटक शुरूए सॅ कचकूह रहि गेल ।मुदा कचरस क’ अपन आनन्द होइत छैक । ई हमर लेखन सॅ बेशी अहॉ क’ धैर्य क’ परीक्षा छी ।मिथिला क’ रंग परम्परा क’शत-शत नमन।प्रथम मंचन क’सब कलाकार आ दर्शक के सहयोग क’ लेल धन्यवाद ।नाटक केर एकटा प्रतिभाशाली अभिनेता क’ अनुपस्थिति हरदम खलत ।ओ अपन पारिवारिक तनाव क’ चलते एहि दुनिया क’ रंगमंच सॅ विदा भ’गेलाह ।मात्र पचीस वर्ष क उम्र मे आत्महत्या क’चयन सॅ हुनकर मानसिक तनाव व व्यथा क’अनुमान लगायल जा सकैत अछि । नाटक मे जाति सब क नाम काल्पनिक लिखल गेल अछि । मुदा नाटक मे तथाकथित छोटका आ बड़का के संघर्ष सॅ समाज क’ संरचना आ प्रवृत्ति स्पष्ट अछि ।
प्रथम अंक
प्रथम दृश्य
;एकता सम्भ्रंात व्यक्ति क’घर ।चारिटा कुरसी राखल ।बिछावन लागल ,दीवाल पर विद्यापति , रवीन्द्र नाथ ,निराला ,प्रसाद ,मोहन राकेश ,हरिमोहन झा आ यात्री क’ फोटो । चौकी पर एकटा सूतल व्यक्ति रेडियो सॅं भैरवी गीत क’ प्रसारण। व्यक्ति परमेश बैसि के झूमि रहल छथि । गीत बन्द आ केओ किवाड़ खट -खटा रहल अछि । परमेश हड़बड़ाइत छथि आ ओढ़ना ओढ़ि लैत छथि )
नेपथ्य सॅ आवाज -(हेमचन्द्र क आवाज ) परमेश बाबू छी अओ....... परमेश बाबू कत’ चलि गेलाह ....... परमेश बाबु छी अओ । केवाड़ मे धक्का मारैत छथि आ केवाड़ खुलि जाइत अछि।
हेम चन्द्र - परमेश बाबू सूतल किएक छी ?
परमेश - (मंॅुह पर सॅ ओढ़ना हटबैत) हमर तबियत खराब अछि, बुखार अछि ।
हेमचन्द्र - चलु डाक्टर सॅ देखवा लिय’। आइ सॉझ मे नाटक अछि, स्वस्थ नहि रहब त’ मंचन कोना हेतइ।
परमेश - हम मंचन योग्य नहि छी, हमर भूमिका दोसर के द’ दियऊ।
हेमचन्द्र - बहुत नीक ! आइ नाटक क’ दिन अहॉ ई बात कहि रहल छी ,बुझि पडै़छ बात दोसर अछि....... साफ साफ बाजू ने कि बात ?
(खवास दू गिलास शरबत आ एक हत्था केरा क’ संग प्रवेश करैत अछि। परमेश पहिले केरा खाइत छथि फेर शरबत पी के ढ़करैत छथि ।
हेमचन्द्र - हद कएलहॅु परमेश बाबु । कहैत छी जी बुखार अछि आ एक हत्था केरा गीलि गेलहु ।
परमेश - देखू हेम चन्द्र बाबू हम अहॅा संग दस वरिस सॅ काज क’ रहल छी ‘‘रंग चेतना मंच ‘‘ क’ क्रिया कलाप में आब देख रहत छी जे आन लोक क’ भागीदारी बड्ड बेसी बढि गेल। पुरान लोक सब नेपथ्य मे जा रहल छथि आ चोर- चुहार सब के मलाईदार रोल मिलि रहल अछि ।
हेमचन्द्र - जे दस क’ संस्था अछि, ओहि मे एहिना कमी बेसी होइत छैक, एकरा मून सॅ निकालू परमेश बाबू।
परमेश - कोना निकालू मोन सॅ, ई जे रामप्रवेश अछि से हमर बराबरी कर’ चाहैत अछि। विसार जाति के एतेक हिम्मत । ओ आब कालीदास आ विद्यापति क’ रोल करत।
हेमचन्द्र - मतलब ?
परमेश - देबा क’ छल त’ कोनो खबास वला रोल द’ देतिअइ । बड्ड बेसी त’ उगना क रोल द’ दियओ, एना जे लीड रोल राम प्रवेश के देबइ त हम ,,,,,,,,,,,,,,,
हेमचन्द्र - औ परमेश बाबू । नाटक मे ई सब बात घुसेबए त’ कोना काज चलत। ठीक छैक हम देखैत छी ,,,,,,,,,
(हेम चन्द जी जाइत छथि आ प्रकाश मद्ध्रिम होइत अछि। )
अंक - प्रथम
दृश्य - द्वितीय
(राम प्रवेश क’ घर ।दीवाल पर तुलसी, कबीर, मार्क्स, नागार्जुन क’ फोटो ।किछु राजनीतिक दल क’ पोस्टर सेहो एक टा कोन मे दू टा लाठी । जमीन पर दरी बिछाओल । राम प्रवेश आ हुनकर दू टा साथी हरमुनिया ढोलक झालि क’ संग उपस्थित ।कोनो धुन बाजि रहल अछि।
(हेमचन्द्र क’ प्रवेश)
हेमचन्द्र - राम प्रवेश जी छी अओ? बड्ड टॉसगर धुन बाजि रहल अछि ।
राम प्रवेश -- आबू कक्का जी बैसू ।
ओ नथिया वाली क प्रेम में
नाक हमर कटि गेल...........
(हेम चन्द्र जी । किछु कह’ चाहैत छथि )
हेमचन्द्र - राम प्रवेश जी आइए नाटक अछि ।
हम त’ बुझलहुॅ अहॉ संवाद यादि करति होएब ।
रामप्रवेश - आब त’ दस वरिस भ’ गेल इएह सब क’ रहल छी आबहु संवादे रटाएब ?
हेमचन्द्र - संवाद रटनए कोनो कुकार्य त’ नहि अछि ।
रामप्रवेश - हम सब वरिष्ठ कलाकार भेलहुॅ। आब एते अनुभव त’ अछिए जे कतहु अटकब त मोनो सॅ जोड़ि़ सकैत छी ।
(पुनः गाबैत छथि
‘‘हमर नेता जी
बड़ निम्मन लगै छथि
कुरता आ टोपी
सुरेबगर लगै अछि ‘‘)
हेमचन्द्र अपन मूड़ी नीचा केने बैसल छथि
रामप्रवेश - बात ई जे चुनाव नजदीक आबि गेल ।एहि बेर हम विधायक जी क’ तरफ सॅ प्रचार करब ।बूझू जे हम, महेन्द , देवनाथ आ बौआझा मतलब कि पूरा मंडली ।
(प्रसन्न मुद्रा़ मे गरदनि हिला हिला क’ बाजि रहल छथि )
‘‘हमर नेता देवदूत
ओ छथि मिथिला के पूत
हमर नेता के ़़़़़़.............
जिताबियौ ओ लोक सब
जिताबियौ ओ लोक सब ........
(हेमचन्द्र क’ चेहरा पर क्रोध आबि रहल छन्हि)
हेमचन्द्र - राम प्रवेश अहॉ हमरा बेइज्जत क’ रहल छी । हम अहॅा क’ दुआरि पर दू घंटा सॅ बैसल छी आ अहॅा तेसरे राग अलापने छी ।राति मे नाटक कोना हेतए एकर अहॅा के कोनो चिन्ता नहि ।
रामप्रवेश - हम चिन्ता क’ के कि करब ?जखन चिन्ता क’ के हम अप्पन ईच्छा पूरा नहि क’ सकइ छी त’ दोसर के चिन्ता क’ के कि द’ देबए ।
हेमचन्द्र - कि मतलब ?
रामप्रवेश क’ साथी - गायक जी असंतुष्ट छथि । हिनका वौसिओन्ह ।
रामप्रवेश - अहॅा चुप रहू । देखियौ कक्का जी हमर व्यक्तिगत समस्या त’ व्यक्तिगते अछि ,ओहि क’ लेल हमरा ककरो सॅ शिकायत किएक रहत? मुदा, जहॉ तक नाटक क’ बात छैक ,,,,, (दू सेकेण्ड चुप भ’ के बाजैत छथि ) अहॉ त’ जानैत छी जे हमर की स्तर अछि आ’ परमेश क’ की ? ई गलती त देवता सॅ भेलेन्ह जे ओ हमरा बीकू जाति मे जन्म नहि देलाह ।धर्म आ समाज त’ पहिले गीलि गेलाह आब साहित्य आ नाटको के गीलि के बैसताह । सब प्रमुख भूमिका त’ बीकूए सब डकारि रहल अछि।
प्रथम अंक
दृश्य - तीन
(हेमचन्द्र क’ घर, विद्यापति,शेक्सपीयर ,कालिदास ,जयशंकर प्रसाद, नार्गाजुन क’ फोटो दीवाल पर टांगल अछि । दीवाले पर किछु विशिष्ट पोशाक,मुखौटा सेहो राखल अछि । हेमचन्द्र माथ पर हाथ राखि बैसल छथि )
धीरेन्द्र क प्रवेश ।
धीरेन्द्र - कक्का गोड़ लगैत छी,बीस किलो राहड़ि क दालि भेजि देलहुॅ । खबास आनलक कि नहि?
हेमचन्द्र -- दालि के मॉगने छल ?
धीरेन्द्र -- मॅगबा क की प्रयोजन ?हमर घर अहॉ क’ घर ।
हेमचन्द्र -- घर त’ ठामे अछि । सत सत बाजू राहड़ि भेजलहुॅ ,कोनो रोल करवा क’ अछि की?
धीरेन्द्र -- हें हे ह...... देतिअई त’ नीके छल ।
हेमचन्द्र - कोन रोल चाहैत छी ?
धीरेन्द्र -- हें हे हें विद्यापति बला रहतए रे तखन........
हेमचन्द्र -- लाज धरम उठा क’ पी गेलऊॅ? अपन राहड़ि अपने संग राखू आ भागू एहि ठाम सॅ उठू़..... उठू ।
धीरेन्द्र -- (कनैत)- कक्का जी गोड़ पकड़ैत छी । एक बेर विद्यापति बला रोल द दिअओ । अहॉ क पुतहू के सेहो कहि देलिएन्ह। दरभंगा वाली त’ आइ राति मे देखवा क’ लेल अओतीह ।
हेमचन्द्र -- कनिया के कहि देलिएन्ह ,,,,,से ककरो सॅ पुछलिअइ?
धीरेन्द्र --रातु क’ बात छलइ यौ कक्का जी । आब जे नहि देबइ रोल त नाक कटि जायत । (नेपथ्य सॅ महिला आवाज - हेमचन्द्र जी क पत्नी मानिनि)
मानिनि -- धीरेन्द्र बाबू छथि । हुनका रोकब, एकटा सूइया लेवा क’ अछि ।
हेमचन्द्र --कोन सूइया क’ बात करैत छथि (धीरैन्द्र सॅ)
धीरेन्द्र -- काल्हि माथ मे दर्द छलन्हि । एकटा सूइया त काल्हिए द’ देने छलियइ दोसर आइ देबइ ।
हेमचन्द्र -- ई सूया कहिया सॅ द’ रहल छी ।
धीरेन्द्र -- एक हपता भ’ गेल । काकीए सॅ बोहिनी कएलहुॅ । दिन मे दू-तीन टा सूइया ककरो ने ककरो जरुरे घोपि दैत छिअइ।
हेमचन्द्र -- ( धीरेन्द्र के डेनियाबैत )
हमरा कनिया क तू सूइया भोकबहक त’ तोरा हम भाला भोकि देब’ । चल’ निकल’ एहि ठाम सॅ । (नेपथ्य सॅ - हेमचन्द जी छी अओ)
हेमचन्द्र -- आबू - आबू महेश जी ।
महेश -- नाटक क’ व्यवस्था त’ सब भ’ गेल होयत ।
हेमचन्द्र -- औखन तक किछु नहि भेल अछि आ असंभव लागि रहल अछि जे किछु होयत ।
महेश -- चलू बाहर चलू सब व्यवस्था भ’ जेतइ ।
(दूनू प्रस्थान करैत छथि, रस्ता मे दिगम्बर सॅ भेंट भ’ जाइत छैक)
हेमचन्द्र -- दिगम्बर जी हम आदमी के भेजि रहल छी तीन - चारि टा चौकी भेजि देबइ ।
दिगम्बर - एहि बेर चौकी नहि देब ।हमरा ओहि ठाम पाहुन आबि रहल छथि ।
हेमचन्द्र -- पाहुन त’ चारि दिन बाद अओताह।
दिगम्बर - तैयो एहि बेर नहि देब ।
(पुनः आगू बढैत छटि)
महेश - ई बिसार जति क’ आदमी सभ नाटक कि बूझत असभ्य !नीच !देखियौ कोनो बीकू जाति क’ आदमी भेटत आ काज भ’ जायत ।देखियौ पीताम्बर कक्का आबि रहल छथि (पीताम्बर सॅ ) कक्का सुनब..... ई - तीन टा छौरा -छपाठी जा रहल अछि चौकी द’ देबए ।
पीताम्बर - अओ बाबू । सभ चीज त’ बड्ड नीक मुदा चौकी टूिट जायत तखन ? । एहने नाटक करैत छी अहॉ सब । सब पात्र दुर्बासा आ विश्वामित्र जॅका कूदैत रहैत अछि । पछिला बेर चौकी क’ पच्चड़ टूटि गेल छल।
( हेमचन्द्र आ महेश प्रस्थान करैत छथि)
हेमचन्द्र -- देखलिअइ बीकू जाति क’ क्रिया कर्म ।
चौकी नहि देताह । पच्चड़ टूटि गेलेन्ह... । राखह चौकी अपना,,,,, ओहि में ।
महेश -- लागैत अछि एहि बेर जात्रा खराब भ’ गेल । सुनु ने ,,,,, चलू हनुमान जी क’ प्रणाम क’ के पहिने चन्दा वला काज शुरु क’ दैत छी ।
( दूनू प्रस्थान करैत छथि )
अंक - प्रथम
दृश्य चारि
मन्दिर क’ प्रॉगन। ओहि मे पॉच सात आदमी बैसि के तास खेला रहल छथि । चारि टा मुख्य खिलाड़ी आ प्रत्येक के पाछू मे तीन तीन आ चारि चारि टा आदमी बैसल अछि । भदेश एकता पत्ती दैत अछि एहि पर दू टा जोड़ सॅ हॅसि पड़ैत आछि )
भदेश - नहि नहि हम ई नहि दिय’ चाहैत छलहूॅ ,ई गलती सॅ गिर पड़ल ।
कलेश -- अहॅा बड्ड चालू छी । बीबी लागि गेल त’ गलती सॅ गिरि पड़ल ।(कुद्ध भ’ के ) एना पत्ता उठाएब त हाथ तोडि देब।
भदेश -- रौ बहि !चुप रह, काल्हि तीन तीन बेर बीबी लगेने छलियउ।यादि छओ कि नहि ,आई फेर लगेबओ।
‘बीबी को लगाया जाएगा’ ।(सस्वर)
कलेश -- ‘फॅासी पर चढाया जाएगा’ । (सस्वर )
भदेस-- बीबी को लगाया जाएगा ।
हेमचन्द्र -- कि अओ बाबू सब । एना जे एक दोसर बीबी लगबैत रहबए त’ शेष काज कोना हेतए।
(कलेश भदेस क’ दिसि ताकैत छथि,दुनू बेशर्म जॅका मुसकिया दैत छैक )
कलेश -- अओ भदेस जी ताबत एक बेर चूने-तमाकू चल दिअओ । हेमचन्द्र जी सेहो अएलाह, कनेक हिनको बात सुनि लेल जाओ ।
महेश - आई नाटक अछि । आ बात ई जे रुपया के व्यवस्था एकदमे नहि अछि से हमसब सोचलहूॅ जे गाम सॅ किछु चन्दा चुटकी भ जाए ।
भदेश -- एखन त हमसब एतहि छी ।
खेल बड्ड क्रिटिकल स्टेज मे अछि । औखन नहि जाएब। कलेश जी के पानि छोड़एवा क’ अछि । सॉझ मे अहॉ सॅ भेट क’ लेब ।
कलेश - ई कि पनि छोड़एताह? । औखन त’ एके बेर लगेलिएन्ह ,,,,,,,,,,,बेस अहॉ हमरो साथी द’ दिअओ । नाटक क’ बाद हम मिलि लेब ।
हेमचन्द्र -- ठीक छैक अहॉ सॅ हम बाद मे ल’ लेब मुदा आओर व्यवस्था सब कोना हेतए । आई छोडू तास-वास । आउ चलू मंचे क’ पास ।
कलेस - हमसब सॉझ मे ओहि ठाम पहुॅच जायब । अॅहा सब चलै-चलू। ( ठोर मे तम्बाकू राखैत छी ) ( हेमचन्द्र आ महेश विदा होइत छथि । रास्ता मे एकटा शराबी - सुदर्शन सॅ भेंट होइत अछि, सुदर्शन लट पटा क बाजि रहल अछि।
सुदर्शन -- हयौ हेमचन्द्र बाबू । चलि जाउ घर बैसू। आब के नाटक करत आ के नाटक देखत । जाउ चलि जाउ .......।सभ अपन अपन काज मे मगन अछि आ अहॉ नाटक लेल फिफिया रहल छी । जाउ चलि जाऊ।
महेश - चलू कक्का जी चलू।
हेमचन्द्र -- ओ एकदम सत्त कहि रहल अछि ।
(हेमचन्द्र आ महेश प्रस्थान करैत छथि । किछु आगॉ बढला पर दू टा युवक मजीत आ मदन मिलैत अछि । मजीत मुॅह लटकेने एकात भ’ गेल अछि आ मदन नजदीक भ’ जाइत अछि।
मदन -- चचा बात ई जे मजीत कहलक जे हम रोल नही करब।
हेमचन्द्र -- किएक ने करत ओ रोल ?।
मदन -- ओ कहैत अछि जाबत एक बोतल क’ व्यवस्था नहि हेतइ । हमर कंसेंट्रेशन नहि बनत ।
हेमचन्द्र -- बनइ वा नहि बनए। बोतल त’ नहिए एतए।
महेश -- अरे रुकू चचा जी । सुनह मदन ,एमहर आब’ । मजीत कें कहि दहक जे सॉझ मे व्यवस्था भ जेतइ। (हेमचन्द्र ओहि ठाम सॅ प्रस्थन करैत छथि )
महेश - आर कि दिक्कत छैक बताबह ।
मदन -- यदि दू टा बाई जी भ’ जेतइ तखन आर बेसी आनन्द...... । बेसी मजा..... अहॉ बूझिते छी ।
महेश -- बाई जी आब एहिखन कत’ सॅ आएत ।
मदन -- अहॉ पैसा दिअ हम आ मजीत बखरी चलि जाएब । चारि घंटा क’ अन्दर दू टा टंच बाइ जी क’ व्यवस्था भ’ जायत।
महेश -- हमरा मून होइत अछि हमहॅू चली।
मदन -- एकदम चलू । आहूॅ अपन पसन्द बताएब । (महेश,मदन आ मजीत जाइत छथि )
हेमचन्द्र(स्वगत)-ई कोन नाटक भ’ रहल अछि हमरा गाम मे । एहि नाटक सॅ दूरे-दूर रहल जाए ।क्षमा करथु विद्यापति आ उगना । आब स्थिति हमरा नियंत्रण मे नहि अछि ।
अंक - द्वितीय
प्रथम दृश्य
(बखरी बजार क’ रौनक । दू टा पान वला घूमि घूमि पान बेचि रहल अछि तीन टा शराबी बैसि के कानि रहल अछि।)
दलाल -- कैसा चाहिए बताईए ? पंजाबी, सिन्धी ,बंगाली बिहारी, गुजराती ,यूपी वाली बताईए ,,,,बताईए ,,,,,,,शर्माइए नही ।
महेश -रौ बहि ई कि भ’ रहल छैक ?
हमरा त’ डर भ’ रहल अछि ।
मदना -- डरबा क’ कोन बात । हम सॅंग छी ने, हम एहि ठाम चारि साल सॅ आबि रहल छी ।
महेश -- वाह भतीजा वाह ।
दलाल -- अरे बताब’ भइ । शरम काहे लें हो जेहन पैसा ओहन मजा । फुल मजा ,फ्री मजा ।
मदन -- चलू ने देखैत छिऐक ।
महेश -- तू जाह । हम एतइ छि । हमरा आबि कॅे बताबह।
( मदन अन्दर जाइत अछि आ महेश अन्दर दिस कान आ ऑखि गड़इबा क प्रयास करैत छथि)
मदन -- आर केओ नहि अछि की?
दलाल -- अरे इस पीक टाइम में जो मिल रहा है बस बुक कर लीजिए और फिर हमारी जानों में क्या कमी है।
कमर देखिए....... देखिए
(बाहर ई सुनि महेश उछलि पडै़त अछि)
मदन -- अहॉ क’ नाम ?
नर्तकी प्रथम -- मेमामालिनी ।
(बाहर महेश खूब प्रसन्न होइत छवि )
मदन -- अहॉ क’ की नाम ?
नर्तकी द्वितीय -मेश्वर्या राय
(बाहर मे महेश उछलि पडैत अछि)
मदन -- अहॉ क
नर्तकी तृतीय-- नीना कुमारी ।
मदन - अच्छा हम बाहर जा रहल छी । पूछि के बताएब ।
दलाल -- सुन’ एडवांस द’ के बाहर निकल’ नहि त’फेर हमर दोष नहि ।
मदन -- ठीक छैक ई लिय’ ।
(मदन बाहर आवैत अछि )
महेश -- ओ सभ कत’ रूकि गेलीह।
मदन -- तैयार भ’ रहल छथि।
महेश - आर सभ ठीक ने ।
मदन-मतलब ?
महेश-मतलब ई जे -----(बजबा में लटपटाइत छथि )
मदन -- हॉ ठीके अछि । मुदा मेश्वर्या राय क’ ऑखि कने कमजोर छन्हि । मेमामालिनी के बच्चे मे लकवा मारि देलकन्हि, तेॅ ओ नाचि नहि पाबैत छथि ।
महेश -- आ नीना कुमारी ?
मदन -- हुनका लेल स्पेशल रुमाल चाही । ओ बात -बात मे कान’ लागैत छथि । कानैत - कानैत पोटा बह’ लागैत छैक ।
महेश-जखन ई नाचवे नहि करतीह,तखन ओहिठाम कथी ल’ जेतीह ।
दलाल- अरे भाई । एतना देखिएगा तब तो हो गया । हमसेे कोपरेट करिए हम भी आपसे कोपरेेट करेंगे । जो चाहिएगा हम भी पीछे नही हटेंगें ।
(तीनू नर्तकी: एकटा हारमोनियम वला , एकटा ढोलक बला, बडकी पेटी क साथ बाहर निकलैत अछि)
मेमामालिनी - ( महेश के कनखी मारैत )
न’ न’ नियौ।(नकियाबैत) सब का समान उठा लीजिए। (तीनू ग्रमीण तीनू नर्तकी क समान उठबैत अछि )
अंक -द्वितीय
दृश्य-द्वितीय
उद्घोषक -- आइ ‘चीनी क लड्ड’ू नाटक मंचित होमए वला छल। आइ लड्डू रसगुल्ला में बदलि गेल अछि । आशा अछि रस कनि कनि अहॉ सब के मुॅह मे जायत ।
मदन - कि नाटक भैरवी गीत सॅ शूरु कएल जाए?
मजीत -- अरे आइ त’ तीन - तीन टा भैरवी आइल छथि । आइ भैरवी गीत क’ कोन काज ।
महेश -- एना करबहक त’ गाम क’ लोक सब बिगड़ि जएथुन्ह । तखन फेर चन्दा चुटकी कोना हेतए ?
मदन -- ठीक छैक । धीरेन्द्र सॅ कहियौ जल्दी सॅ ओ भैरवी गीत समाप्त करए ।
( धीरेन्द्र गावैत छथि । भैरवी गीत क’ बाद मेमामालिनी मेश्वर्या राय आ नीना कुमारी आबैत छथि आ बेतरतीब नाच आ गाना गाब’ लागैत छथि ।नाच मे अश्लील मुद्रा क’ खास विनियोग ।)
हेमचन्द्र -- दैखियौ त’ महेश हमरा गाम मे केहन नर्तकी के उठा आनलक ।ताल -मात्रा सॅ एकरा कहियो भेंट नहि छैक ।
कलहेस -- एना नहि कहियौ हेमचन्द्र जी । मेमामालिनी क’ ऑखि क’ चंचलता बेजोड़ अछि ।
भदेस -- मेश्वर्या राय हमरा ह्रदय मे विक्षोभ उत्पन्न क’ रहल छथि। लागैत अछि जे ओ हमरे लेल नाचि रहल छथि, ओ हमरा बजा रहल छथि ।
मदन -- कि कक्का ? ठीक रहल नें ,खूब डोलि रहल छी ।
भदेस -- हॅ बौआ मस्त क देलहुॅ।
मदन -- किछू ईनामो - बकसीस भ’ जाइ।
भदेस -- ई लिय’ एक सौ एक ।
( हेमचन्द्र तमतमा क’ उठि जाइत छथि )
डदृघोषक -
एहन कुशल नृत्यांगना क नृत्य देखि कलेस जी भाव - विभोर भ’ गेल छथि आ भदेस जी आह्लाद सॅ बेहोश । बेहोशी सॅ पहिलेे ओ एक सौ एक टका द’ गेल छलाह । कलेस जी आ भदेस जी के नृत्यबोध क’ अभिनंदन - बन्दन ।
रंजिश करो जो हमसे भी
गुलाब को ना मायूस करो
हम उठते गिरते रहते हैं
ये दो दिन में मुरझाते हैैं।
(दर्शक में से एकटा उठि के नीना कुमारी क’ उठा के भाग’ चाहैत अछि ।
म्ंाच पर अव्यवस्था क’ माहौल ।
उद्घोषक -- दर्शक क’ उत्साह उफान पर अछि आ दर्शक सेंट परसेंट प्रतिक्रिया द’ रहल छथि । अर्थ ई जे गुलाब के मायूस हेबा क जरुरी नहि छैक । मीना कुमारी कें मंच पर सॅ बाहर ल’जाए वला उत्साही दर्शक क’ पहचान भ’ गेल अछि । घबराउ जूनि, नाटक एहिना चलति रहत । )
दलाल उद्धोषक सॅ - देखिए सर हमको कोपरेट करिए ,हम भी पूरा - पूरा करेंगें । आपको जो चाहिए हम पूरा देंगें ।
उद्घोषक -- हमरा अहॉ सॅ किछु नहि चाही । अहॉ अपन काज करु आ हम त कए रहल छी ।
(तावते मंच दिस तीन टा मोंट - डॉट युवक क प्रवेश । पीके ,खाके, जाके गाम क’ तीन टा उद्दण्ड युवक)
मजीत -- कि माई ?
पी के -- गॉव में ई नया -नया बात विचार सभ शुरु भ’ गेल आ हमरा जानकाारिये नहि ।
मजीत-- भाई अचानक वयवस्था भ’ गेल ।
खाके -- बन्द कर ई ताम -झाम आ उतार हरमजादी सब के। गॉव के रण्डी -खाना बना के राखि देलक।
मजीत -- सुनु जाके भाई हिनका सभ के ल जाउ।काल्हि सब बात - व्यवस्था भ’ जेतई।हिनका सब के दू दिन राखल जेतइ (तीनू कान मे किछु बतियाइत अछि)
(ओमहर सॅ धीरेन्द्र क’ प्रवेश)
धीरेन्द्र--महेश जी वाह । बड्ड नीक व्यवस्था ।
हेमचन्द्र जी की करताह वयवस्था । अहॉ क व्यवस्था मे जे झंकार अछि से पहिले एहि गॉव क मंच पर कहियो नहि रहल।
महेश-- अहॉ कोन रोल करब ?
धीरेन्द्र -- जे खूब टॉसगर होइ सएह देब । अहॉ क’ भाबहु सेहो देख’ आएल छथि । आ दू किलो घी हम काल्हि भेज देब ।
उद्धोषक -- आब मंच पर रंग चेतना मंच क प्रसिद्ध गायक हरिशचन्द्र जी आबि रहल छथि ।
(हरिशचन्द्र जी गीत गाबि रहल छथि । हुनका सॅ मनीत ,महेश आ मदन धक्का-मुक्की करैत छथि । )
अंक- द्वितीय
दृश्य-तृतीय
( नर्तकी सब के ठहराबए वला घर । अव्यवस्थित बिछावन सब । बिछावने पर हरमुनिया ढोलक राखल अछि । तीनू नर्तकी निकास क’ लेल जेबा क’ तैयार छथि । हुनका संग लोटा ल’के जेबा क’ लेल तीनू किशोर मे संघर्ष होइत छैक)
अग्रेश -- हम पहिने लोटा पकड़लहुॅ तें हम ल’ जायब ।
धरमेश -- तीनू के हमरे पपा आनलाह तें हमही ल’ जायब ।
रत्नेश -- हमर बाबू सभ सॅ बेसी चन्दा देने छथि तें हमर सोलिड हक ।
दलाल - देखिये भाइयों आप लोग लड़िए मत एक - एक ठो तीनो के साथ चले जाइए । आखिर आप के मॉ के उमर की है तीनांे ।
तीनों एक साथ - कि बाजलें रे हरामखोर (दलाल दिसि झपटैत अछि )
तीनू नर्तकी तीनू किशोर क’ सामने आबि जाइत अछि आ गाल - केश पर हाथ दैत अछि । तीनू किशोर शांत भ जाइत छथि आ एक -एक टा लोटा उठा विदा भ’ जाइत छथि । ओहि ढाम महेश आवैत छथि आ व्यग्रता सॅ घूमि रहल छथि )
महेश -- कत’ चलि गेलीह।
( ओमहर सॅ मदन आ मजीत सेहो आवैत छथि ।)
महेश -- अरे मदन अहॉ कि कर’ आयल छी । अहॉ हमर भतीजा भेलहुॅ । जाउ एत सॅ । जखन हम छी त अहॉ क’ कोन काज ।
मदन -- अहॉ क दू-तीन बेर देखलहुॅ अछि भतीजा -भतीजा करति । जी सम्हारि क’ बाजू।
महेश -- अहॉ त व्यर्थे नाराज भ’ रहल छी रहल छी । अहॉ क बाबा हमर कक्का लागैत छथि ।
मंज्ीत - सुनु महेश जी ई कक्का -भतीजा फरियाएब: जखन मदन कें वियाह हेतेन्ह ।औखन हम सब पार्टनर छी , तीन - चारि दिन शांते रहू । एखन हम सभ एक छी ।
मदन -- बूझू त बखरी में कंठ सॅ बकार नहि खुलैत छलन्हि एत’ कक्का बनि बैसल छथि ।
मजीत -- अहुॅ चुप रहू मदन । ठीक छैक अहॉ केेेेेे जे बतियेबा क’ अछि से बतिया लिय’ महेश जी । हमसब दस मिनट बाद आबैत छी ।
(तीनू नर्तकी आ तीनू किशोर आवैत छथि । महेश जी मुसकियाबैत छथि । )
महेश -- ठीक रहलए ने । कोनो दिक नहि ने मेल । बौआ सब अहॉ सब जाउ ।
धरमेश-- आ अहॉ कि करब ?
महेश --हमरा एकटा काज अछि ।
तीनू -- ठीक छैक अहॉ काज करु, हम बाद मे करब ।,,,,,,नहि नहि बाद मे आयब ।
( तीनू जाइत छथि )
महेश -- सुनू हेमा जी । अहॉ के हमही आनने छी । अगिलो बेर आनब । ई मदनबा आ मजीत क बात मे नहि आयब ।,,,,, गॉव मे सबसे बेसी जमीन हमरे......तीन टा हाथी आ बारह टा घोड़ा अलगे.....
( नेपथ्य सॅ - रे महेशबा, रे महेशबा केवार खोल । पीके,खाके आ जाके क’ प्रवेश । तीनहूॅ आबिते महेश पर टूटि पड़ैत अछि,नर्तकी भगबा क’ प्रयास करैत अछि ) ।
खाके - हमरा सॅ बिना पूछने तू एहि ठाम किएक बैसल छें ।
पीके -- आजुक व्यवस्था जल्दी कर ।
जाके -- जल्दी सॅ भाग नहि त’ हड्डी तोडि देबओ ।
महेश -- भाई बिसरि गेलियइ ,हमहूॅ आही संगे बैद्यनाथपुर हाईस्कूल में पढ़ने छलियइ एक बेर ,,,,
खाके -- चुप बेहूदा । बात सॅ तौं नहि मानवें ।
मेमामालिनी -- अच्छा महेश जी आप बाद में आइएगा।
अंक-तृतीय
प्रथम -दृश्य
(राम प्रवेश क’ घर। ओहि ठाम हरिश्चन्द्र सेहो वैसल छथि )
राम प्रवेश - जखन बूझले छल जे लुच्चा - लफंगा सब रण्डी नचा रहल अछि तखन अहॉ क जेबा क चाही ?
हरिश्चन्द्र -- अपन गॉव छल सोचलहुॅ जे हमरा के बजाओत। अपन घर छी ,अपन मंच छी ।
राम प्रवेश - किएक ने बिसार, हिमार, बकबल, समरल सब जाति क’ संघ बना के एकटा संस्था बनाओल जाए ।
हरिश्चन्द्र - संस्था कि करत ?
राम प्रवेष -- ओ सब दुर्गा पुजा करैत छथि, किएक ने हमसब काली पूजा करी ।
हरिश्चन्द्र -- बीकू आ छीकू के एकदम छॉटि देबइ ?
रामप्रवेश -- एखन बजेबइ ;तैयो नहि आयत
( नेपथ्य सॅ -- रामप्रवेश चा छी यौ )
राम प्रवेश -- हॅ हॅ मनोज आवह ।
मनोज -- गोड़ लागैत छी । पंजाब जा रहल छी, सोचलहुॅ जें भेट करैत जाउ । आब
माए - बाबू कें देखनिहार आहीं सब ने छी
राम प्रवेश --
ग्राम सॅ जा रहल छी । जाउ । जे धरती पेट भरए ओएह मॉ थिक । हमसब त’ सौचैत रही एकता संस्था बनबी जाहि में अहॉ क’ प्रमुख भूमिका रहए । मुदा अहॉ त जा रहल छी ।
( मनोज प्रस्थान करैत अछि )
राम प्रवेश -- जनार क’ भजन आ कठघोड़वा नाच मे मनोजवा क’ जोड़क कलाकार एहि परोपट्टा मे नहि छैक । मनोज क’ बाद रामेसर क’ स्थान छैक ।
हरिचन्द्र -- रामेसर सेहो जा रहल छवि ।
रामप्रवेश -- हे मॉ मिथिले । अपन धिया- पुता के कहिया घरि बिलमाबैत रहब ।
हरिश्चन्द्र -- समस्या त’ अछिए ।
( चारि - पॉच टा युवक क’ लाठी डंडा क’ साथ प्रवेश )
राम प्रवेश -- कि हौ मुक्खन , कथी क’ तैयारी छैक ?
मुक्खन -- हमसब चाहैत छी जे अपन सब जाति मिलि के एकटा यूनियन बनाबी । हमसब काली पूजा करी जे हमरा काली जी दिसि देखत, ओकर ऑखि निकाल लेवए । राम प्रवेश -- हओ मुक्खन एखन ऑखि - कान निकलवा क’ जरुरी नहि छैक ।
(अन्य युवक सब मुक्खन जिन्दाबाद क’ नारा लगब’ लागैत अछि । रामप्रवेश अपन मॅुह नीचा क लैत छथि)
मुक्खन -- दीपावली दिन हमसब शोले नाटक करब । हम पात्र क’ चुनाव क’ रहल छी ।
हरिश्चन्द्र -- शोले कोने नाटक भेल । विद्यापति नाटक राखू ।
मुक्खन -- विद्यापति खेलत बीकू सब । विद्यापति के हमसब नहि जानी ।
अंक-तृतीय
दृश्य -द्वितीय
( मुक्खन क’ घर ओहि ठाम पात्र - परिचय आ रिहर्सल भ रहल अछि )
मुक्खन -- गब्बर सिह क’ रोल हिमेश तोरा दैत छियओ ।
रमेश -- हॅ हॅ बकवल जाति क’ लोक सब आब गबबर क’ रोल करत ।
हिमेश-- मॅुह सम्हारि क बाज । कि बिसारि जाति क औरत सब कलाकारे जनमाबैत अछि । ( रमेश आ हिमेश गुत्थमगुत्थी भ’ जाइत छथि । बड्ड मुश्किल सॅ हुनका हटाओल जाइत अछि )
परेश -- मुक्खन जी कक्का एकता चिट्ठी देने छथि । ( मुक्खन चिट्ठी पढ़ि रहल अछि )
मुक्खन -- तों कतें चन्दा देबहक ?
परेश -- बाबू एक सौ एकावन देने छथि ।
मुक्खन -- तौं यदि दू सौ एक देबहक त’ हम तोरे गब्बर क’ रोल देब’ । ( धीरे सॅ कान मे )
परेश -- ठीक छैक हम द’ देब ।
मुक्खन -- रे मतरु , बसन्ती क’ रोल तू कर ।
रमेश -- हॅ हॅ हिमार जति क छोरा सब रण्डी क’ रोल में बड फिट बैसैत दैक ।
मतरु -- रइ रमेशबा मुॅह सम्हारि क’ बाज तूॅ त’ अपने गॉया छें । थियेटर क’ हरमुनिया मास्टर तोरा राखने रहओ । सब जनैत छैक ........
( रमेश आ मतरु हाथम - हाथा क’ रहल छथि तखने धीरेन्द्र क’ प्रवेश )
धीरेन्द्र -- बीस किलो राहड़ि क’ दालि नेने आयल छी । नीचा मे राखल अछि ( मुक्खन क कान मे )
मुक्खन -- कोन रोल लेब ?।
धीरेन्द्र -- हम जय बनब ।
मुक्खन -- जाउ जय बनू आ विजय करु ।
( एकटा और व्यक्ति प्रवेश करैत छथि ।)
ओ मुक्खन के ईशारा सॅ बजबैत अछि ।
समरेश -- कक्का कहलनि जे ठाकुर क’ रोल हमरा दिय’ । एकटा चिट्ठी भेजने छथि ।
( मुक्खन चिट्ठी ल’ के पढ’ लागैत छथि )
प्रिय मुक्खन !
शुभाशीष । समरेश के भेजि रहल छी । आगॉ चुनाव आबि रहल अछि ओहि मे अहॉ क लेल समरेश खूब काज करताह । सब छीकू जाति क’ बोट अहीं के मिलत । छीकू हजारों साल सॅ युद्वप्रिय जाति रहल अछि । आशा अछि समरेश के व्यक्तित्व क’ अनुकूल रोल अहॉ देबइ । हमरा विचार सॅ ओ ठाकुर क’ रोल में फिट रहत ।
अहॉ कें
धन्येश
म्ुाक्खन -- ठीक अछि समरेश बाबू अहॉ के हम ठाकुर क’ रोल देलहॅु ।
(अन्य कलाकार सॅ) -- ठीक छैक रिहर्सल कएल जाओ ।
( पहिने ठाकुर आ गब्बर आबैत छथि )
अपन - अपन संवाद यादि क’ लिय’
दूनू -- संवाद त’ यादे अछि ।
गब्बर -- हम बूझिते रही ,तों जरूर एबही.......तू कि तोहर बापो अइतओ ।
ठाकुर-तू बूझैत छें ने हम किएक आएल छी,हम तोरा बाप सॅ भेंट करेबओ ।
गब्बर -- फड़फड़ा जूनि ठाकुर । सब फरफरी एके लाति मे तोरा निकालि देबओ ।
ठाकुर -- रौ बहि ! समरल जाति क’ कलाकार हमर फरफरी निकालत ।
(दूनू एक - दोसर कें पकड़ि लैत छैक आ मुक्कम - मुक्की शुरु भ’ जाइत छैक )
मुख्खन -- कि भेल समरेश ?एना किस्क किएक क्रोध में आबि गेलहुॅ ।
समरेश -- ई हमरा स्कुले सॅ परेशान क’ रहल अछि । स्कूल मे कहैत छल फड़फड़ा जूनि ठाकुर ।
मुख्खन -- ठीक छैक रिहर्सल क’ कोनो काज नहि । हम पर्दा क’ पाछू सॅ बाजब आ अहॉ सब ओकर नकल करब ।
अंक -तृतीय
दृश्य- तृतीय
( हेमचन्द्र क’ घर । ओहि ठाम परमेश वैसल छथि । तखने मदन आ महेश प्रवेश करैत छथि )
महेश -- कक्का गोड़ लगैत छी ।
हेमचन्द्र -- भगवान ़अॅहा के सदबुद्वि देहि ।
महेश -- कक्का सुनलियई कि नइ , काल्हि सब ओ सब मिलि के शोले खेलि रहल अछि ।
परमेश -- त’ कोन अनर्थ भेल ?
मदन -- बूझू त’ एहि विद्वान क’ गाम मे जकरा जे मून होइत छैक से क’ रहल अछि ।
हेमचन्द्र -- अहॉ क’ रण्डी सब अनर्थ नइ केने छल ?
महेश -- मुदा नाटक त’ विद्यापति भेल छलए ने । ओ त’ बीच बीच में कनेक मोन बहलेवा क’ लेल छल ।
परमेश -- दोसर लोक सब मून बहला रहल अछि त’ अहॅा किएक परेशान छी ( एहि बीच में खाके ,पीक,े जाके आवैत छथि )
खाके -- अहॉ सब चूड़ी पहिरने रहू ,मुदा हम ई नहि होमए देबए ।
परमेश -- कि करबए अहॉ ?
जेके -- हम मंच के रक्त रंजित क देबए ।
हेमचन्द्र -- जकरा अहॉ रक्त रंजित करबए से अहॉ के छोड़त ?
जाके -- चलू भाइ ओतइ चलू । देखैत छियइ के माई क’ लाल स्टेज गाड़ई क लेल आवैत अछि
( कलेश आ भदेस प्रवेश करैत छथि )
कलेश -- बूझलहूॅ हेमचन्द्र बाबू ई बकवल सब भरि राति नाच करत आ सेर - सेर भरि मूतत।
भदेश -- बूझू जे जखन जखन पूवरिया हवा बहत ने, ई भरि अगहन तक महकैत रहत । हमरो इएह विचार जे नाटक नहि होई ।
प्रमेश -- अहॉ क’ कि विचार जे कसकव्ता सॅ रण्ड़ी आवए?
कलेस -- हॅ नजदीको सॅ काज चलत ।
हेमचन्द्र -- चुप रहू । बारहो महीना ताश खेलि के पखेरी - पसेरी भरि भूतैत छी केओ टोकलक अहॉ के ?
भदेश -- हओ ! कलेश जी चलू ई सब हारि मानि लेलाह । चलू जे भ’ रहल छैक ओहिए मे किछु जुगाड़ पानी कएल जाए।
(कनि दूर हटला क’ बाद कलेश -भदेश बतियाति छैक )
कलेश -- चलू ने मुक्खने के कहबए ।
जे करब से कर , मुदा आन तीन-चारि टा भगजोगनी के ।
भदेेश -- आर की ?
कम सॅ कम बखरी वला त’ निश्चिते आबए क’ चाही ।
अन्हरी ,बहिरी सब चलतय ।जतेक चन्दा चुटकी हेतए हम सब द’ देब ।
अंक -तृतीय
दृश्य-चारि
रामप्रवेश क’ घर । अकेले मे किछु गुनगुना रहल छथि ।
डूबल भॅवर मे नैया
सम्हारु मॉ
केओ नजर नहि आबए
सम्हारु मॉ
राति विकट अछि
बाट न सूझए
आबू दीप देखाबू
सम्हारु मॉ,,,,,,,,,,,
( हेमचन्द्रक’ प्रवेश )
हेमचन्द्र - के सम्हारताह । जगत जननी त’ मिथिला के बिसरि गेलखिन्ह । गरीबी त’ पहिनहु छल मुदा एहन सांस्कृतिक हैजा कहियो नहि फैलल ।
रामप्रवेश -- कक्का क्षमा करु । ककरा पता छल जे कनि कनि टा बात एते विषबेल बनत ।
हेमचन्द्र अहॉ जागि गेलहुॅ, तखन हमरा के रोकत ?
रामप्रवेश -- कक्का आब जे आदेश देबए से हम करब ।
(परमेश प्रवेश करैत छथि )
परमेश -- रामप्रवेश छी अओ ?
रामप्रवेश ‘-- परमेश आबह । आइ चारि साल बाद तों हमरा दलान पर अइलह। तोरा देखि हम फेर जबान भ’ गेलहुॅ ।
परमेश -- पुरनका बात सब बिसरु । हमरो ध्यान नहि रहल आ अमुख्य चीज मुख्य बनइत चलि गेल
हेमचन्द्र -- छोड़ू पछिला बात सब । आब ई बाजू जे कोन नाटक खेलल जाइ ।
रामप्रवेश -- ‘‘उदयनाचार्य’’ नाटक खेलल जाइ ।
हेमचन्द्र -- अहॉ कोन रोल लेब ।
रामप्रवेश -- हमरा जे देब से हम करब , ओना आचार्य क’ भूमिका मे परमेश फिट छथि, हमरा सारंग बला रोल द’ दिय । बड़ तेजस्वी बौद्ध भिक्षु अछि ।
परमेश -- आब हमरो रोल क मोह नहि अछि । सब सॅ बेसी महत्वपूर्ण अछि ओकरा जीनए ।
(रामप्रवेश उठि के परमेश के गला लगबैत छथि हेमचन्द्र उठि के दूनू मे मिलि जाइत छथि । ओमहर धीरेन्द्र हॉफैत आबैत छथि ।)
धीरेन्द्र -- कक्का - कक्का मुक्खन आ खाके मे जबरदस्त मारिपीट भ रहल अछि ।
हेमचन्द्र-- होमए दियओ ।
रामप्रवेश -- मर’ दियओ सब के ।
परमेश-- धीरेन्द्र जी जनचेतना मंच फेरि जीवित भ गेल अछि । खूब तैयारी करु ।
धीरेन्द्र -- हमरो तैयारी पूरा अछि । एहि बेर राहडि खूब फरल अछि । एक मून राहड़ि भेज देब ।
(तीनू हॅसि दैत छथि । रामप्रवेश गीत गावैत छथि आ प्रकाश धीरे धीरे क्षीण होइत अछि।)
१.शिवकुमार झा टिल्लू- मैथिली नाटकक विकासमे आनंद जीक योगदान २. गजेन्द्र ठाकुर- चारिटा अंग्रेजी नाटक- डॉक्टर फॉस्टस, सैमसन एगोनिस्टेस, मर्डर इन द कैथेड्रल आ स्ट्राइफ १
शिवकुमार झा टिल्लू
मैथिली नाटकक विकासमे आनंद जीक योगदान
जखन-जखन मैिथली भाषा साहित्यमे नाट्य विधाक चर्च होइत अछि तँ हठात् पंडित जीवन झासँ लऽ कऽ झिझिरकोना आ तालमुट्ठी सन नाटकक नाटककार अरविन्द कुमार अक्कू जीक विवेचन स्वभाविक भऽ जाइछ। एहि एक सय छ: बरखक नाट्य रचनमे बहुत रास नाटककार विविध शैलीक साहित्यिक नाटकक संग-संग लोकप्रियताक लेल चलन्त आ ओछ नाटक सेहो लिखलनि। किछु रचनाकार तँ नाटककारेक रूपेँ वेस चर्चित छथि संग-संग हुनका सभकेँ पुरस्कृत सेहो कएल गेल अछि। उदाहरणस्वरूप श्री महेन्द्र मलंगिया मैथिली साहित्यक प्रतिष्ठित सम्मान प्रबोध सम्मानसँ सम्मानित कएल गेल छथि। मलंगिया जी बहुत रास नाटक लिखलनि- लक्ष्मण रेखा : खण्डित, जुअाएल कनकनी, एक कमल नोरमे, ओकरा अॉगनक बारहमासा, कमलाकातक राम, लक्ष्मण ओ सीता आर काठक लोक। एहि नाटक सभमे 'एक कमल नोरमे' साहित्यक समग्र बिन्दुकेँ विम्बित करएबला नीक नाटक मानल जाइत अछि। मुदा 'काठक लोक' पढ़लासँ पाठक स्वयं िनर्णय सुनाबथि जे कतए धरि एकरा 'मैथिली नाटक' मानल जाए। बिम्व लोकगाथा आ विवेचन मैथिलीसँ बेसी हिन्दीमे। ओना सभ साहित्यिक कृतिमे आन भाषाक प्रयोग ठाम-ठाम कएल जाइत अछि मुदा मात्र पात्रक दशा आ परिस्थितिमे तारतम्य स्थापित करबाक लेल। मलंगियाजी एहि पोथीमे हिन्दीक प्रयोग कोन रूपेँ कएने छथि ई गप्प झारखंडक अंत:स्थ कक्षाक (मैथिली भाषी जौ उपलब्ध होथि) छात्र-छात्रासँ पुछल जा सकैत अछि किएक तँ 'काठक लोक' झारखण्ड अधिविद्य परिषद्क मैिथली पाठयक्रममे सम्मिलित अछि।
मैिथलीक संग दुर्भाग्य मानल जाए वा विडम्वना किछु कथाकथित साहित्यकार आ समीक्षकक दलपुंज भाषापर अपन अधिकार चमौकनि जकाँ जमौने छथि। 'अहाँक सोहर हम गाएब आ हमर डहकन अहाँ बिदबिदाउ' एहि परिपेक्ष्यमे किछु प्रतिभा झॉपले रहि गेल, कतहु कोनो चर्च नहि।
एहि बज्र पातक टटका शिकार छथि आधुनिक पिरहीक सनसनाइत युगान्कारी नाटककार- 'श्री आनंद कुमार झा' आनंद जीक एखन धरि पॉच गोट नाटक प्रकाशित भेल अछि 'टाकाक मोल (2000), 'कलह (2001), 'बदलैत समाज (2002), धधाइत नवकी कनियाँक लहास (2003) आ हठात् परिवर्त्तन 2005ई.मे। एहि नाटकक संग-संग आनंदजीक अप्रकाशित नाटकक गणना दू अंक धरि पहुँचि गेल अछि।
आनंद जीक जन्म 1977ई.मे मिथिलाक सांस्कृतिक सेहंतित भूखण्ड 'मधुबनी जिला'क मेंहथ गाममे भेल। जौं समस्तीपुर खगड़िया आ बेगूसराय जिलाक लाल रहितथि तँ उपेक्षाक दंश स्वाभाविक छल मुदा ठामक वासी उपेक्षित भेलाह कनेक संत्रास जकाँ लगैछ। गाम-गामसँ लऽ कऽ कोलकाता शहर धरि मंचित एहि नाटकक कोनो समीक्षा नहि भेल, ई सभ मात्र मैथिली भाषामे संभव छैक। जौं बिम्वक उपयोगिताकेँ केन्द्र बिन्दु मानल जाए तँ मैथिली साहित्यक प्रवीण नाटक कारक समूहमे आनंद जीक स्थान निश्चित अछि।
टाटाक मोल : आर्य भूमिक एकटा पैघ व्याधि काटर प्रथाक दु:स्थितिपर केन्द्रित एहि नाटकमे मिथिला संस्कृतिक कोढ़िक चित्रण नीक ढंगसँ कएल गेल अछि। कन्याक पिता नाओ गरीवनाथ संग-संग दरिद्र सेहो। अपन धर्मपत्नी सुमित्राक आश पूर्ण करवाक लेल 'पुत्र कामनार्थ' पॉच गोट कन्याकेँ जन्म देलनि। पहिल बेटीक विवाहमे डॉड़ टुटि गेलनि सभटा खेत बिका गेलनि। दोसर बेटीक कन्यादानक लेल आतुर छथि मात्र बारह कट्ठा जमीन बॉचल छन्हि। बेटी प्रभा कॉलेजमे पढ़ैत छथि, विवाह अपना मोने नहि करए चाहैत छथि- मात्र समाजक हेय दृष्टिसँ बचवाक लेल बेटीक विआह एहि शुद्धमे करवाक लेल परेशान छथि। हमरा सबहक समाजक कतेक कलुष रूप अछि अप्पन टेटर नहि देखि कऽ लोक सभ दोसरक फुसरीपर काग-दृष्टि लगौने रहैत छथि। कुमारि बेटी छन्हि गरीब झाक घरमे आ परेशान छथि समाजक लोक। एहि लेल नहि जे मिथिलाक बेेटीक उद्धार कएल जाए मात्र बारह कट्ठा जमीन लिखएबाक लोभमे। प्रभा अपन बहिनक देअर प्रभाकरसँ सिनेह करैत छथि लेकिन आंडबरधर्मी समाज एहि सिनेहक मंजूरी नहि देत तँए चुप्प।
गरीव झा दलाल काकासँ संपर्क करैत छथि। जेहन नाअो तेहने कार्य। हुनक चेला कक्कासँ बेसी पारखी। दुनूक जोड़ी शुभ्म निसुम्भ जकाँ दुष्ट आ धृष्ठतासँ भरल। हर्षदमेहताक दलाली हिनका लग ओछ पड़ि जाइत। बालकक पिता लीलाम्बर बाबू वास्तवमे लीलाधारी छथि। भातिज सभसँ कम कैंचा पुत्रक विआहमे कोना लेतथि तँए पचहत्तरि हजारसँ कम टाका नहि चाही। दलाल काकाक मोहिनी मंत्रक जादूमे आबि पैंसठ हजारमे विआह करबाक िनर्णय सुनौलनि। शर्त्त छनि जे समाजमे पचहत्तरि हजारक उद्धोष कएल जाए। दलाल काकाक कलिजुगी उगना एहि उद्धोषणक लाभ लेवाक प्रयासमे सफल भेलनि।
दलालीक दस हजार कमीशन दुनू चेला गुरूक पेटमे। गरीब झा अपन वॉचल जमीन 50 हजारमे बेिच लेलनि। मित्र गुणानंद जीसँ दस हजार टाकाक मदति भेटलनि, शेष प्रश्न ओझराएल पंद्रह हजार आव कोना हएत? येन केन प्रकारेन वरियाती दलान लागल। फेर धमगिज्जड़ि। माथक पाग खसि पड़लनि मुदा वरियाती आपिस। अंतमे प्रभाकरक संग प्रभाक विआह होइत अछि। लीलांवर जी काटरक टाका पचास हजार कन्यागतकेँ आपिस कएलनि। मुदा नाटककार ई स्पष्ट नहि कऽ सकलनि जे दलाल काका दलालीक दस हजार कन्यागतकेँ देलनि वा नहि। कथानकक किछु तथ्य वास्तविकता नहि भऽ कऽ कल्पना मात्र लागल। गरीब नाथक बेटी प्रभा काॅलेजमे पढ़ैत छथि आ छोट मांगल-चांगल भाए महीस चरबैत छन्हि। ओना तँ पुत्रक आकांक्षामे पॉच गोट पुत्रीक जन्म देमएबला माए-बापक अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित हएव स्वाभाविक अछि। परंच मैथिल संस्कृतिक ग्रामीण व्यवस्थामे रहनिहार माता-पिताक जीवनमे संतानक रूपेँ पुत्रसँ पुत्रीक बेसी महत्व देव कल्पना मात्र छैक, वास्तवमे तँ बेटी जन्महिसँ आनक धरोहरि मानल जाइत अछि तँए बेटा महीस चराबथि आ बेटी कॉलेजमे पढ़तीह, आश्चर्य जनक लागल।
कथानकक बीच-बीचमे अंग्रेजी शब्दक प्रयोग कऽ नाटककार आधुनिकता लेपन करवाक प्रयास कएलनि ई उचित अछि वा नहि, पाठकपर छोड़ि देवाक चाही। एकटा अनसोहॉत अवश्य लागल जे मैथिलीमे 'चुकल' शब्दक प्रयोग कहिया धरि रहत। निष्कर्षत: ई नाटक मंचनक योग्य अछि।
कलह : कलह आनंदजी लिखित दोसर नाटक थिक। समाजमे जीवन्त धटना सभकेँ एक सूत्रमे जोड़ि कऽ एहि नाटकक सृजन कएल गेल। आकाश एकटा बेरोजगार नौजवान छथि। टाकाक लोभमे पिता सुरेश्वर हिनक विआह करा दैत छथिन्ह। आकाश सुरेश्वर बाबूक पहिल पत्नीक संतान छथि तँए विमाता सुमित्राक दृष्टिमे हिनक कोनो स्थान नहि। सुमित्रा तँ अपन कोखिसँ जनमल पुत्र राजीव आ ओकर कनियाँ कोमलक लेल ज्येष्ठ पुत्रक संग यातनाक सभटा बान्ह लॉधि देलनि। प्रौढ़ पिता मूक परिस्थितिक मारल मात्र दर्शक बनि कऽ रहि गेलाह। कालक मारिसँ भटकैत-भटकैत दुनू परानीक िनर्मम अंत होइत अछि। एकटा अबोध नेनाक जन्म भेल जे आकाशक अंतरंग मित्र योगेशक कोरमे कथाक अंत धरि.....।
नाटककार एहि नाटकक रचना भऽ सकैत अछि जे कथानकमे संत्रास भरबाक संग-संग दर्शकक मध्य लोकप्रिय बनएवाक लेल केने होथि मुदा एहि सभसँ नाटकक प्रासंगिकतापर प्रश्न चिन्ह नहि लगाओल जा सकैत अछि। कतहु-कतहु बिम्व विश्लेषण चलंत आ हिन्दी भाषाक व्यवसायिक चलचित्र जकाँ लागल मुदा मैथिलीमे नवल प्रयोगकेँ किओ झॉपि नहि सकैत छथि, जतए-जतए एहि नाटकक िचत्रण होएत अवश्य छाप छोड़त।
बदलैत समाज : बदलैत समाज नाटकक आरंभ एकटा ब्लड कैंसर पीड़ित बालकक अपन पत्नीक संग वार्तालापक संग होइत अछि।
कर्जसँ मुक्तिक लेल घूरन जी अपन बीमार पुत्रक विआह करा दैत छथि। हुनका ओना बूझल नहि छलनि जे पुत्र अवधेश ब्लड-कैंसरसँ पीड़ित अछि। भजेन्द्र मुखियाक पुत्र दीपक अवधेशक बाल संगी छथि। ओ पहिनेसँ जनैत छलाह जे अवधेशक मृत्युक दिवस नजदीक छन्हि। तथािप ओ खुलि कऽ नहि बजलनि किएक तँ घूरन बाबू स्वयं बूढ़ लोक छथि। एकटा पिता अपन कान्हपर पुत्रक लाशक कल्पना मात्रसँ सिहरि सकैत छथि, वास्तविकता.........।।
विविध घटनाक्रममे अवधेशक मृत्युक भऽ गेलनि। समाज हुनक विधवा शोभापर चरित्रदोष सेहो लगौलक। समाज की जाहि अवलापर ओकर सासुक विश्वास नहि हुअए ओकरापर आन के विश्वास करत। नाटकक अंतमे सबहक भ्रम टुटैत अछि जखन शोभा दीपककेँ 'भैया' कहि कऽ अश्रुलाप करैत छथि। अंतमे विधवा शोभाक एकटा सच्चरित्र युवक वीजेन्द्रसँ पुर्नविवाहक कल्पना कएल गेल। ओना तँ एहि नाटकमे जात-पातिक कोनो चर्च नहि मुदा प्रसंगसँ स्पष्ट होइत अछि जे सवर्ण परिवारक पृष्ठभूमिमे नाटक केन्द्रित अछि। नाटककारक ई कल्पना नीक लागल जे सवर्ण घरक विधवा युवतीक पुनर्विवाह भऽ सकैत अछि। नाटकक संवादमे ठाम-ठाम अलंकार आ लोकोक्तिक लेपन नीक लागल। 'सम्भावनाक आधारपर मनुष्य कल्पना करैत अछि। मुदा प्रकृतिक शास्वत नियमकेँ किओ नहि बदलि सकैत अछि' एहि संवादक माध्यमसँ अवधेश अपन मृत्युक संकेतकेँ बूझि रहल छथि। हुनक दोसर संवादमे- 'हम मृत्युसँ भयभीत नहि छी। भय अछि ओइ निस्सहाय अवला नारीक असीम दु:ख, पीड़ा आ वेदनासँ। भय अछि अनजानमे हमरासँ भेल गलतीसँ।' श्रंृगारक प्रवल लालसा रहितहुँ परिस्थिति मनुक्खकेँ वैरागी बना दैछ। जनतंत्रक कुटिल व्यवस्थापर सेहो एहि नाटकमे कटाक्ष कएल गेल। भजेन्द्रजी सन कुटिल गामक मुखिया छथि तँ विपक्ष हुनकोसँ बेसी कुटिल। तँए ने फुराइतो छन्हि हुनका 'ओ बनियाँ बुड़िवक होइत अछि जे पलड़ापर बटखड़ा रखलासँ पहिने समान चढ़ा दैत अछि।''
आनंदजीक चारिम नाटक धधाइत नवकी कनियाॅक लहास : कोनो काटक प्रथाक नाटक नहि। मात्र किछु गहनाक खातिर शिखाक आत्महत्याक प्रयास अजीव कहल जा सकैछ।
हठात् परिवर्त्तन : देशभक्ति मूलक नाटक थिक।
निष्कर्षत: ई कहल जा सकैत छथि जे आनंद जीक नाटक शैलीमे गोविन्द झाक हास्य समागम, ईशनाथ झाक अलंकार, जगदीश प्रसाद मंडल जीक साम्यवाद, अक्कूजीक आधुनिकता, लल्लन ठाकुर जीक मंचन शैली आ शेखर जीक जनभाषा कलकल अछि।
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गजेन्द्र ठाकुर चारिटा अंग्रेजी नाटक- डॉक्टर फॉस्टस, सैमसन एगोनिस्टेस, मर्डर इन द कैथेड्रल आ स्ट्राइफ
एहि निबन्धक आधार अछि परशुराम झाक “डाइमेन्शन्स ऑफ पीस इन इंग्लिश ड्रामा- स्टडीज इन डॉक्टर फॉस्टस, सैमसन अगोनिस्टेस, मर्डर इन द कैथेड्रल एण्ड स्ट्राइफ”। परशुराम झा १९३८- गाम- मेंहथ (मधुबनी), कृति- डाइमेन्शन्स ऑफ पीस इन इन्गलिश ड्रामा,क्रिश्चियन पोएटिक ड्रामा। परशुराम झा अंग्रेजी साहित्यक आजीवन अध्यापन केने छथि। डॉक्टर फॉस्टस एलिजाबेथ युगक, सैमसन एगोनिस्टेस एज ऑफ रीजनक, मर्डर इन द कैथेड्रल आधुनिक युगक नाटक अछि। ई तीनू मुख्यतः धार्मिक नाटक अछि। स्ट्राइफ आधुनिक धर्मनिरपेक्ष नाटक अछि, ई सिद्ध करैत अछि जे धर्मनिरपेक्षता धर्मसँ निकलल अछि, कमसँ कम धर्मक नैतिक सन्दर्भसँ।
डॉक्टर फॉस्टस (द ट्रैजिकल हिस्ट्री ऑफ द लाइफ एण्ड डेथ ऑफ डॉक्टर फॉस्टस) क्रिस्टोफर मारलोवे (१५६४-१५९३) लिखित अछि। क्रिस्टोफर मारलोवे सेक्सपियर(१५६४-१६१६) क समकालीन छलाह। क्रिस्टोफर मारलोवेकेँ कोनो आपत्तिजनक पाण्डुलिपि लेल प्रिवी काउन्सिल द्वारा वारन्ट जारी कऽ बजाओल गेल आ तकर दस दिन बाद हुनकर चक्कू मारि हत्या कऽ देल गेल, जखन ओ मात्र २९ बर्खक छलाह। ओ जँ अपन सम्पूर्ण जिनगी जिबितथि तँ सेक्सपियरसँ पैघ नाटककार होइतथि वा नै से इतिहासक गर्भमे नुकाएल रहि गेल। ई नाटक ब्लैंक वर्स आ गद्य मिश्रित अछि। ब्लैंक वर्समे मीटर रहै छै मुदा लय नै। मारलोवेक जीवन कालमे एकर मंचन भेल मुदा एकर प्रकाशन हुनकर मृत्युक एगारह बर्खक बाद भेल।
सैमसन अगोनिस्टेस (सैमसन, प्रतियोगी-योद्धा)जॉन मिल्टन (१६०८-१६७४) लिखित दुखान्त क्लोजेट पद्य-नाटक अछि। क्लोजेट नाटक तकरा कहल जाइत छै जे मंचन लेल नै वरन असगर पढ़बा लेल लिखल जाइ छै वा किछु गोटे संगे जोर-जोरसँ पढ़ि कऽ सुनबा-सुनेबा लेल।
मर्डर इन द कैथेड्रल टी.एस. इलियट (१५६४-१५९३) लिखित पद्य-नाटक अछि।
स्ट्राइफ(कटु संघर्ष) जॉन गाल्सवर्दी (१८६७-१९३३) लिखित नाटक अछि।
डॉक्टर फॉस्टस - क्रिस्टोफर मारलोवे
१५९२ ई. मे “इंग्लिश फाउस्ट बुक”मे किछु घटोत्तरी-बढ़ोत्तरी कऽ “डॉक्टर फाउस्टस” नाटक रचित भेल, जे ओहि युगक वास्तविकताकेँ देखबैत अछि।
डॉक्टर फॉस्टस “मेडिएवल मिस्ट्री प्ले”, मोरेलिटी प्ले” आ “इन्टरल्यूड”सँ सम्बन्धित अछि- कथ्य आ रूप दुनूमे। फेर फॉस्टसक “असीमित ज्ञान”, “लौकिक आनन्द” आ “शक्ति”क लेल अदम्य लालसा एहि नाटककेँ पुनर्जागरणक आत्माक निकट लऽ जाइत अछि।
फॉस्टसक पहिल प्रवेश ओकरा लेल दूटा विकल्प लऽ अबैत अछि। ओकरा आध्यात्मिक जीवन चुनबाक छै आकि लौकिक। ओकरा नै खतम होअएबला आनन्द चाही आकि आध्यात्मिक अंधकूप आ मुत्यु। ओकरा अपन इच्छाक पालन करबाक छै आकि भगवानक। ओ ज्ञानी अछि, एरिस्टोटलक तर्क चिन्तन ओ पढ़ने अछि, रोग-व्याधि दूर करैबला चिकित्साशास्त्र ओ जनैत अछि। ओ धर्मशास्त्रमे डॉक्टरेट अछि। मुदा ई सभ ज्ञान ओकरा शान्ति आ आनन्द नै दै छै। मुदा ओ चुनैए जादू आ लौकिक इच्छाक तृप्तिक रस्ता।
एहि जादूक चयन कऽ ओ “भरोस”पर भरोस छोड़ि दैए।
फॉस्टसक लौकिक इच्छा छै वेस्ट इंडीजक आ अमेरिकाक (जे मारलोवेक समएमे इंडिया कहल जाइ छल) सोना, पूर्वक मोती, नीक फल। ओकर इच्छाक लेल जादूगर वाल्डेस आ कॉरनेलियस छै।
नाटकक बादक भागमे मेफिस्टोफिलिसक आगमन होइ छै- फॉस्टस ओकरासँ कहैत अछि जे ओ लूसीफरकेँ सूचित करए जे फॉस्टस अपन आत्माक बदलेन लौकिक भोग लेल करबाक लेल तैयार अछि। “नीक दूत”क फॉस्टसकेँ सुझाव जे ओ स्वर्ग आ स्वर्गीय वस्तुक विषयमे सोचए, फॉस्टस “खराप दूत”क सलाह मानि धनक इच्छा करैए।
अपन आत्माक निलामीक बंधकपत्र अपन खूनसँ लिखैत अछि फॉस्टस। लूसीफरकेँ अपन आत्मा समर्पित कऽ दैत अछि ओ। मेफिस्टोफिलिस ओकरा नर्कक विषयमे कहैत अछि मुदा ओ ओहिपर ध्यान नै दऽ “सुतनाइ”, “खेनाइ” आ “चलनाइ”पर ध्यान दैत अछि। बहस केनाइ, ज्ञानक संचय, खगोलशास्त्र आ वनस्पतिशास्त्रक ज्ञान आ सौन्दर्यशास्त्र ई सभ मेफिस्टोफिलिसक सहयोगसँ फॉस्टस प्राप्त करैत अछि।
फॉस्टसक लैंगिक इच्छाक पूर्तिक पहिने मेफिस्टोफिलिस ओकरा बुझबैत अछि मुदा फेर एकटा “खराप आत्मा”केँ स्त्री बना फॉस्टसक पत्नीक रूप दैत अछि।
“खराप आत्मा” कोनो मृत व्यक्तिक अनुकरण कऽ सकैए मुदा स्वयं जीवित नै भऽ सकैए। से तकर परिणाम ई भेल जे ओकर ठोढ़ फॉस्टसक आत्माकेँ चूसि लैत छै। “खराप आत्मा”सँ संसर्गक पाप फॉस्टस करैए आ परिणाम छै ओकर आध्यात्मिक मृत्यु।
ओ भगवानसँ दूर भऽ जाइए आ ओ “खराप आत्मा” संगे चौबीस बर्ख बितेबाक लेल रस-रंगमे डूमि जाइए।
मुदा जखन ओकर मृत्युक बॉन्डक समए निकट अबै छै, ओ कहैए- “हम जे जिबितौं एकरा सभक संग तँ स्थिर जीवन जिबितौं मुदा आब मरब तँ सदा लेल मरि जाएब”।
आ ओकर अन्तिम क्षण- जखन ओकर मृत्यु होएबाक छैक तकर पूर्व- बारह बजेक घड़ीक टिकटिक। ओ दुखी भऽ कहैए- “ओकर आत्मा अखनो जीबए नर्कमे रहबाक लेल” मुदा...
ओ विद्वान् सभकेँ कहैए- ओ साँप जे ईवकेँ प्रलोभित केलक से बचि सकैए मुदा फॉस्टस नै।
ओ पश्चातापो नै कऽ सकैए, ओकरा क्षमा नै कएल जा सकै छै, पवित्र नै कएल जा सकै छै। ओ स्वीकार करैए जे ओ भगवानकेँ अपमानित केने अछि।
सैमसन एगोनिस्टेस- जॉन मिल्टन
नाटकक प्रारम्भमे सैमसनकेँ आन्हर कऽ गाजाक जेलमे श्रम मजदूरी लेल होएबाक आ एक गोटे द्वारा जेलक सोझाँक चमकैत किनारपर लऽ जएबाक दृश्य अछि। ई एकटा छुट्टीक दिन छल, कारण छल फिलिस्तीनक भगवान डेगोनक, जे अदहा मनुक्ख आ अदहा माँछ छथि, भोज छै। बसात लगलासँ सैमसन अपनामे ऊर्जाक संचार पबैए। ओकरामे स्वर्गसँ भेटल शक्ति छै जे फिलिस्तीनक परतंत्रतासँ इस्रायलकेँ मुक्ति दिएबा लेल छै। मुदा तखने ओकरा लगै छै जे भगवान ओकरा जतेक शक्ति देलन्हि ततेक बुद्धि नै देलन्हि, नै तँ ओ ओतेक जल्दी अपन शक्तिक रहस्य डेलिलाकेँ नै बतबितै। मुदा भगवानक बुद्धिपर ओ कोनो बहस कोना कऽ सकैए, जे की इच्छा छै ओकर।
ओकर पिता मनोआ सैमसनकेँ जेलसँ बाहर निकालबाक एकटा योजना लऽ अबैत अछि। ओकर योजना जे फिलिस्तीनक सामन्तकेँ पाइ दऽ सैमसनकेँ छोड़बाबी, ई सैमसनकेँ नीक नै लगै छै, नै मानै अछि ओ।
मनोआ ओकरा कहै छै जे फिलिस्तीन सभ भोजक क्रममे डेगनक प्रशंसा करत आ इस्रायलक भगवानक अपमान। ई सुनि सैमसन दुखी भऽ जाइए। ओ मनोआकेँ कहै अछि जे ओकरा कोनो आशंका नै छै जे इस्रायलक भगवान डेगोनपर विजय करत। मनोआक गेलापर ओ कोरसमे मुदा ई कहैए जे मुदा ओ कोना भगवान लेल काज कऽ सकत?
डेलीला अबैए आ सैमसनकेँ कहैत अछि जे ओ फिलिस्तीनी सामन्तकेँ कहि ओकरा छोड़बाओत मुदा सैमसन ओकरा रहस्यकेँ खोलैवाली कहैए।
हराफा सैमसनकेँ कहैत अछि जे भगवान सैमसनकेँ छोड़ि देने छथि।
अधिकारी अबैत अछि आ ओ फिलिस्तीनक सामन्तक आदेश अनैत अछि जे सैमसनकेँ अपन करतब डेगनक भोजक अवसरपर देखेबाक छै। पहिने ओ मना करैए फेर किछु सोचि कऽ मानि जाइए। मिल्टन फिलिस्तीनीकेँ लौकिक आनन्दमे खसल आ डेगनकेँ ओहि लौकिक आनन्दक देवताक रूपमे देखबैत छथि। सैमसन दूटा खाम्हक बीचमे जाइत अछि, प्रार्थना करैत अछि आ भवनकेँ खसा दैत अछि।
दूतक एहि वर्णनसँ सैमसनक पितामे शान्त प्रतिक्रिया होइत अछि। ओ कहैत छथि- दुखी होएबाक समए नै अछि। ओ अपन मुत्युसँ इस्रायल लेल सम्मान आ स्वतंत्रता अनने छथि।
मर्डर इन द कैथेड्रल- टी.एस. इलियट
मर्डर इन द कैथेड्रल कैंटरबरीक महिलाक कोरस स्वरसँ प्रारम्भ होइत अछि जाहिमे प्रकृतिक स्वरूपक हितकारी नै होएब आ सुरेब नै होएब वर्णित अछि।
दूत आर्कबिशपक इंग्लैंड आगमनक सूचना दैत अछि। बेकेट फ्रांसमे सात बर्ख रहलाक बाद कैंटरबरी घुरैत छथि। एतए हुनका लेल बाहरी आ आन्तरिक दुनू स्तरपर संघर्ष छै। राज्यक आ धर्मक, राजा आ आर्कबिशपक संघर्ष तँ छैहे, आन्तरिक संघर्ष सेहो छै जे भीतरक इच्छा छै। ओ अपन भूतकालकेँ, जाहिमे बैरन सभक मित्रता आ चान्सलरशिप अबैत अछि, केँ “छाह” कहै छथि, एहिसँ सेहो हुनका संघर्ष करबाक छन्हि।
बेकेटक बाहरी शत्रु चारिटा “नाइट” तरुआरि भँजैत अबैत छथि। बेकेट तावत अपन आन्तरिक शत्रुपर विजय प्राप्त कऽ लेने छथि आ ओ शान्तिसँ “नाइट” सभकेँ कहै छथि- “अहाँ सभक स्वागत अछि, चाहे अहाँक उद्देश्य जे हो”।
ओ कहै छथि जे हुनका कहियो इच्छा नै भेलन्हि जे ओ राजाक पुत्रक मुकुट छीनि लेथि।
नाइटक राजाक आदेश सुनेलापर जे ओ देश छोड़ि देथि, बेकेट कहै छथि जे आब नै, सात साल ओ अपन लोकसँ दूर रहलाह।
ओ अपन हत्या कएल जएबासँ पूर्व नाइट सभसँ कहै छथि- “हमर अहाँ जे चाही करू मुदा हमर लोक अहाँकेँ छूबो नै करताह”।
पुरोहित सभ हुनका इच्छाक विरुद्ध हुनका जबरदस्ती कैथेड्रलक भीतर लऽ जाइ छथि आ चर्च बन्द कऽ दै छथि। मुदा बेकेट कहै छथि-
“चर्च सर्वदा खुजल रहबाक चाही, शत्रुक लेल सेहो”।
जखने चर्चक दरबज्जा खुजैत अछि मातल “नाइट” सभ बेकेटक हत्याक उद्देश्यसँ पैसि जाइ छथि।
बेकेटक हत्या भऽ जाइ छन्हि, पुरहित सभ भगवानकेँ धन्यवाद दै छथि जे ओ कैंटरबरीमे एकटा आर सन्त देलन्हि।
स्ट्राइफ- जॉन गाल्सवर्दी
ट्रेनार्था टिन प्लेट वर्क्समे एकटा औद्योगिक विवादक कारण अक्टूबरसँ श्रमिकक हड़ताल प्रारम्भ भेल। चारि मासक बाद ७ फरबरीकेँ एकटा विशेष बोर्ड मीटिंग एहिपर भेल, मैनेजर फ्रांसिस अंडरवुडक, जे कम्पनीक चेयरमेन जॉन एन्थोनीक जमाए छथि, डाइनिंग रूममे। एहि मीटिंगमे डाइरेक्टर फ्रेडरिक एच. वाइल्डर, विलियम स्कैंटलबरी, ओलीवर वैंकलिन आ एंथोनीक छोट पुत्र एडगर सेहो छथि।
एडगर श्रमिकक दशासँ आहत छथि। मुदा वाइल्डर उग्र छथि कम्पनीक शेयर नीचाँ गेलासँ आ पचास हजारसँ बेशी घाटासँ ओ चिन्तित छथि। स्कैंटलबरी अहिंसाक पथिक छथि तँ वैंकलिन मध्यमार्गी छथि।
एंथोनी मुदा श्रमिकक लेल कोनो सहानुभूतिक विरुद्ध छथि।
वाइल्डर सुझाव दै छथि जे सेंट्रल यूनियनक हारनेसकेँ विवाद दूर करबा लेल कहल जाए मुदा एंथोनी मना करै छथि।
वर्कमेन कमेटीक आन सदस्यक संग छथि रॉबर्ट्स, ओ एंथोनीक विरोध करै छथि। हारनेसक विपरीत ओहो उग्र छथि।
एंथोनीक पुत्री एनिड पिताक वर्गान्तरक विरुद्ध छथि। हुनकर खबासनी एनी रोबर्ट्ससँ बियाहल छनि, एनीक सहायता एनिड करऽ चाहै छथि। एनिडक भेँट रॉबर्ट्ससँ ओकर झोपड़ीपर होइ छन्हि। ओ ओकरा समझौता लेल कहै छथि मुदा ओ एंथोनीकेँ आततायी कहै छथि। कहै छथि जे एंथोनी मरैत रहत आ रॉबर्ट्सक हाथ उठेलासँ जे ओकर जान बचि जेतै तँ रॉबर्ट्स अपन कंगुरिया आँगुरो नै उठाओत।
श्रमिक मीटिंगमे रॉबर्ट्सक समर्थक इवान्स आ जॉन बलगिनमे झगड़ा भऽ जाइत छै। हेनरी थॉमस आगू अबैए आ कहैए – “लाज होइए तोहर ’स्ट्राइफ’पर”।
बेरू पहरक मीटिंगमे ओ श्रीमती रॉबर्ट्सक मुत्युक सूचना दैत अपन सदस्यतासँ इस्तीफा देबाक गप करैत अछि।
मुदा एंथोनी कहैए- युद्ध तँ युद्ध होइ छै।
रॉबर्ट्स बोर्ड मीटिंगमे कनेक देरीसँ अबैए, ओकरा पता लगै छै जे ओकर श्रमिक सभ ओकरा हटा देलकै। आ एंथोनीकेँ सेहो निदेशक सभ हटा देलकै।
हारनेसक नेतृत्वमे समझौताक गप आगाँ बढ़ैत छै। हेनरी टेक, कंपनीक सचिव संतुष्ट छथि।
प्रकाश चन्द्र प्रयोग एकांकीक रंगमंचीय प्रयोग
फरवरी 2010के 14 तारिख क’ दरभंगाक ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालयक नाटक एवं संगीत विभागक प्रेक्षागृहमे सांझक 4 बजे स’ आयोजित छल प्रबोध साहित्य सम्मान – 2010 । एहि आयोजनमे स्वस्ति फाउण्डेशन द्वारा कुणाल जीक निर्देशनमे नचिकेता जीक लिखल प्रयोग एकांकीक मंचन सेहो राखल गेल छलैक । संयोग स’ हमहू मधुबनीमे रही तेँ एहि सूअवसर केँ लाभ उठयबाक हेतु एहि आयोजनमे उपस्थित भेनाइ जरूरी लागल । एक संग कतेको लाभ छल । एहि स’ पहिने सेहो कुणालजी प्रयोग के मंचित क’ चुकल छ्लाह । ई हुनकर दोसर प्रस्तुति छल, तेँ कनि आरो महत्वपूर्ण । कहल जाइत अछि जे कोनो नाटक बेर बेर मंचित भेलाक बाद आरो निखरैत अछि संगहि ओ अपन कथ्य आ मंचनमे परिपक्वता सेहो ग्रहण करैत अछि ।
सात बजे साँझमे प्रयोग एकांकीक मंचन शुरू भेल । लगभग 45 मिनटक एहि एकांकीक शुरुआत अन्हार स’ छल जाहिमे कोनो महिलाक आवाजमे काव्य पाठ भ’ रहल छल । धीरे धीरे प्रकाश अबैत अछि आ मंचपर एकटा लकड़ीक गेट देखाइत छै । नाटककार एकरा फ्रेम कहलथि अछि मुदा मंचपर हमरा ई गेटक अनुभूति देलक । ई गेट कनी उँचाई ग्रहण केने अछि आ ओहि तक पहुँचबाक लेल तीन-चारिटा स्टेप बनल अछि जाहि स’ ई कोनो कोठरीक प्रेवेश द्वार प्रतीत होएत छैक । मुदा, नाटककार एहि स्टेपके सीढ़ी कहने छथि । आब ई कहनाइ कनी कठिन अछि जे नाटककार नचिकेता जीक सीढ़ी आ निर्देशक कुणाल जीक ई स्टेपमे कतेक समानता छनि । मुदा नाटककारक फ्रेम आ निर्देशकक गेट त’ जरूरे भिन्न अछि । नाटकक अनुसारे सीढ़ी आ फ्रेममे कोनो संबंध नहि देखाओल गेल अछि । मुदा, एहि ठाम स्टेप आ फ्रेमके एना संयोजित कयल गेल अछि जे ई कोनो कोठरीक प्रवेश द्वार बुझना जाइत छैक । एही स्टेपपर ठाढ़ रहैत छथि नाटकक मुख्य कलाकार नवीन मिश्र । मंचक बामा कात (दर्शक दिस स’) एकटा कुर्सी अछि जे दर्शक दिस पीठ क’ क’ राखल रहैछ । संगहि एकटा बक्सा सेहो एकर बगलमे राखल गेल अछि । हाँ, नाटकक अनुसार ई लकड़ीक अछि आ उलटा राखल गेल अछि मुदा एखन मंचपर ई चदराक आ ओहिना राखल अछि जेना कोनो ब्लॉक राखल जाइत अछि । दाहिना कात (दर्शक दिस स’) एकटा गाछक किछु डारि देखार परैत अछि । कुर्सीक बेसी उपयोग अमृत करैत छथि आ गाछक डारिक तरमे प्राय: नाटकक एक मात्र महिला पात्र श्रुति रहैत छथि । बस । हाँ ! ई कहि दी जे ई मंच विन्यास एहि नाटकक निर्देशक कुणाल जीक मानल जेबाक चाही । कारण, प्रयोग नाटकमे एकर लेखक नचिकेताजी स्वयं मंच विन्यासक निर्देश देने छथि, जकरा थोड़ बहुत बदलल गेल अछि ।
आजुक एहि मंचनक लेल तैयार मंच विन्यास कनि कंफ्यूज करैत अछि । कुर्सी आ बक्सा स’ लगैत अछि जे ई कोनो नाट्य संस्थाक पूर्वाभ्यासक कक्ष अछि मुदा गाछक डारि आ गेटक आगू बनाओल गेल स्टेप स’ लगैत अछि जे ई कोनो कोठरीक आगूक भाग थिक । तेँ एहि तरहक मंच विन्यासपर गंभीरता स’ विचार करबाक आवश्यकता छल नाटकक कथ्यके स्थापित करबाक लेल ।
आब नाटकमे अभिनेताक वस्त्र विन्यास दिस सेहो ध्यान देल जाय । मुख्य अभिनेता नवीन मिश्रकेँ निर्देशक रूपमे टोपी, सीटी, कुर्ता, पेंट आ पैरमे जूता ठीक अछि मुदा बाकी दुनू पात्र खाली पैरे छथि से कियेक ? पैरक पहिरनमे भिन्नता भ’ सकैत अछि मुदा कियो पहिरने आ कियो खाली पैरे कनि त्रुटि पूर्ण लगैत अछि । श्रुतिके सेहो साड़ी स’ बेसी नीक हुनका सलबार फ्राक होइतनि जाहि स’ ओ अभिनय करबा काल मूवमेंट करबामे फ्री महसूस करितथि । नाटकमे सेहो ई नहि पता चलैत अछि जे श्रुति विवाहल छथि वा कुमारि । एहना स्थितिमे हुनका कुमारि मानल जेबाक चाही छल । हुनका कांख तर लटकल पर्स नीक अनुभूत दैत अछि । मुदा प्रियंका नीक जेना अपन अभिनयमे पर्सक उपयोग नहि क’ सकलीह । अमृतक ड्रेस सेहो कोनो बेसी आकर्षक नहि मानल जयबाक चाही । कारण, मंच पर कतेको तरहक प्रकाश अबैत जाएत रहैत छै आ तेँ प्राय: कारी आ उज्जर रंगक उपयोग कोनो विशेषे परिस्थितिमे करबाक चाही । एहि ठाम अमृत नामक कलाकार कारी पेंट आ उज्जर शर्ट पहिरने छथि । कारी पेंट होबाक कारण अमृत जखन ओहि स्टेपपर बैसैत छथि कि स्टेप पर परल सभटा गर्दा हुनका पेंटमे लागि जाइत छनि जे नीक नहि लगैत अछि । हाँ ! एहन स्थितिक जँ माँग करैत अछि नाटकक कथ्य तखन त’ नीक, मुदा प्रयोगक संदर्भमे ई कहनाइ उचित नहि होयत । एहि तरहें मात्र नवीन मिश्र जीक वस्त्र सज्जा नाटकक तदनुरूप मानल जायत ।
एहि प्रस्तुतिमे प्रकाश व्यवस्थाके नीक मानल जयबाक चाही । प्रकाश परिकल्पना चन्द्रभूषण झाक छनि आ संचालनो स्वयं क’रहल छथि । नाटकक शुरुआत अन्हारमे होइत अछि आ धीरे धीरे प्रकाश नवीन मिश्रपर परैत छनि । एहि प्रेक्षागृहमे कोनो तरहक सूनियोजित प्रकाश व्यवस्था नहि अछि, तैयो प्रकाशक एतेक विभिन्न सेड उत्पन्न केनाई प्रशंसनीय अछि । हाँ ! कलाकार आ प्रकाशपुँज दुनूक बीच तदात्मक अभाव देखाइत अछि । कखनो कखनो कलाकार प्रकाश स’ दूर भ’ जाइत छथि त’ कखनो कखनो प्रकाश कनि देरी स’ प्रकट होइत अछि । मंच छोट हेबाक कारण प्रकाश बिम्बमे ऑभरलेपिंग भेनाइ निश्चित छल से भेबे कयल । अंतिम दृश्यक प्रकाश संयोजन अति सुन्दर बनल अछि । एहि दृश्यमे नाटकक कथ्यक अनुसार दृश्य आ ओकरा उभारैत प्रकाश संयोजन जबरदस्त बनल अछि ।
अभिनेताक मुख्य सज्जा पूर्ण रूपेण यथार्थवादी राखल गेल छैक । कोनो तरहक बदलाव नहि । नाटकक अनुरूपे ई बेसी नीक । मेक-अप मात्र मंचक अनुसार कयल गेल अछि ।
मिथिलाक कोनो एहन प्रेक्षागृह नहि अछि जाहिमे ध्वनि व्यवस्था रंगमंचक अनुरूप हो । मिथिले कियेक बिहारमे आरा स्थित रेनेशांक प्रेक्षागृह छोड़ि कोनो प्रेक्षागृह एहन नहि अछि । तेँ सभ प्रस्तुतिकर्ताके स्वयं ध्वनि व्यवस्था क’र’ पड़ैत छनि । एहू ठाम एहने व्यवस्था छल । मुदा, मंच पर ततेक नीक जेना माइक संयोजन कयल गेल जे अभिनेता कोनो कोन स’ बजथि हुनकर आवाज सम्पूर्ण प्रेक्षागृहमे नीक जेना सुनाइ पड़ैत छलनि ।
नाटकमे संगीत सेहो पर्याप्त राखल गेल अछि ओहो पहिने स’ रिकार्डिंगके रूपमे । संगीतक संयोजन सीताराम सिंह जीक छन्हि । संगीतक संग अनेको तरह ध्वनिक प्रयोग सेहो कयल गेल अछि । संगीत प्राय: सभटा अत्याधुनिक अछि । ओना नाटकमे एहि तरहक संगीतक प्रयोग निर्देशकक अप्पन छनि । ई संगीत नाटकके प्रभावी बनेबामे सहयोग करैत अछि । संगीत संचालन संजीव पांडेक’ रहल छलाह, मुदा संगीतक संचालन कनी आर पूर्वाभ्यास माँगैत अछि ।
प्रयोग एकांकीक मुख्य अभिनेता छथि नवीन मिश्र । एहि पात्रके कुमार गगन जीव रहल छथि । कुमार गगन बहुत साल स’ मैथिली रंगमंच पर छथि । शुरूए स’ भंगिमा, पटना स’ जुड़ल छथि । कुणाल जीक निर्देशनमे कतेको नाटकमे अभिनय क’ चुकलाह अछि आ कुणालजी द्वारा पहिल बेर निर्देशित प्रयोग नाटकमे सेहो गगनजी एहि भूमिकाके क’ चुकल छथि । एहि प्रस्तुतिमे गगनजी नवीन जीक रूपमे अपन सोलो लॉगी संग अबैत छथि । मुदा पूराके पूरा वक्तव्यमे कोनो विशेष आकर्षण नहि छोड़ि पबैत छथि । मंचपर नवीन मिश्र कम आ गगनजी बेसी देखाइत छथि । सम्पूर्ण प्रस्तुतिक अंत तक जाइत जाइत गगनजी एकटा पारसी रंगमंचक कलाकारक रूपमे अपन प्रभाव बना पबैत छथि । संवादक बीच उतार चढ़ाव, शब्दक संप्रेषण स्वाभाविक नहि बनि परल अछि । संगहि हिनकर मंच पर गति आ बैसबाक स्थान सेहो उचित नहि । कियेक त’ जखन जखन ई मंचपर अपन अभिनेताके आदेश दैत छथि प्रयोग करबाक लेल आ पाछू जा क’ बैसैत छथि त’ श्रुति स’ झँपा जाइत छथि तेँ प्रेक्षक हिनकर अभिव्यक्ति देखबा स’ बंचित रहि जाइत छथि । अपन दुनू अभिनेताके प्रयोग करबाक आदेश देलाक बाद कखनोक’ हुनका दुनू के अपन दुनू हाथस’ एकटा फ्रेम बनाक’ देखनाइ अत्यंत अनर्गल मुद्रा मानल जायत । कारण, ई नवीन मिश्र एकटा नाटक मंडलीक निर्देशक छथि नै कि कोनो फिल्म कम्पनीक निर्देशक । गगनजी मैथिली रंगमंचक वरीष्ठ अभिनेता छथि आ अनुभवी सेहो तेँ हिनका स’अपेक्षो हमरा सभकेँ कनी बेसी अछि । कनी आरो पूर्वाभ्यास आ विमर्श कयल गेल रहितै त’ बेसी नीक परिणाम अबैत ।
श्रुति नामक भूमिका निभेनिहारि प्रियंका सेहो आब मैथिली रंगमंचक परिचित अभिनेत्री भ’ चुकल छथि । प्रियंका नीक अभिनेत्री छथि तकर प्रमाण ओ पिछला कतेको प्रस्तुतिमे द’ चुकल छथि । इहो भंगिमा, पटना स’ जूड़ल छथि आ वरीष्ठ रंग निर्देशक कुणाल जीक संग कतेको नाटक केलीह अछि । एहि प्रयोग प्रस्तुतिमे हिनकर आत्मविश्वास अति प्रसंसनीय अछि । मंचपर हिनकर गति आ अपन स्थानक लेल सचेतताक संग दर्शक आ अपन सहयोगी अभिनेताक बीच आँखिक मिलान (आइ कंटेक्ट) नीक प्रभाव देलक अछि । मुदा प्रियंकाके सेहो अपन मुखाभिनय (फेस एक्टिंग) पर कनी आरो काज क’र’ पड़तनि । एहि नाटकमे हिनका द्वारा कयल गेल संवाद अदायगी खासक’ जे कविताक अंश अछि ओहिमे दू शब्दक बीच काफी समय लेल गेल अछि जकरा निर्देशकके कनि कम क’र’ पड़तनि । ई कहबामे कनियो संदेह नहि जे एहि तीनू अभिनेतामे प्रियंका सब स’ बेसी प्रभाव छोड़लीह अपन अभिनयमे ।
अमृत नामक पात्रके अभिनय क’ रहल छलाह आशुतोष अनभिज्ञ । आशुतोष मैथिली रंगमंच स’ अनभिज्ञ नहि छथि । मुदा, अभिनय दृष्टिए हिनका अखन काफी मेहनत करबाक आवश्यकता छनि । हिनक कोनो अभिव्यक्ति पात्रक अनुरूप नहि छनि । हिनका पर प्रियंका काफी भारी परि रहल छथि । हिनकर अभिनयमे एखन हेजिटेशन बहुत अधिक छनि ।
प्रस्तुतिक अति महत्वपूर्ण अंग थिक मंच । एहि प्रेक्षागृहक मंच कोनो कोण स’ एहि नाटकक अनुरूप नहि अछि । अभिनेता, मंच संयोजन, प्रकाश संयोजन, ध्वनि संयोजन, प्रेक्षकक बैसबाक स्थिति आदि सभमे समझौता क’र’ पड़ल अछिसे ओहिना देखार होइत छै ।
प्रेक्षागृहमे दर्शक अति प्रबुद्ध वर्गक छलाह । मुदा, नाटक देखबाक लेल जे अनुशासन दर्शकमे होबाक चाहियनि से अत्यंत कम छल । बिना मतलबे थोपड़ी पीटब, मोबाइल मौन करब त’ दूर, बीच नाटकमे मोबाइल पर गप्प करब, नाटकक ऑनलाइन समीक्षा देब, बीच बीचमे जोर स’ आपसी गप्प क’ लेब, बीच बीचमे उठिक’ बाहर भीतर करब आदि कार्यकलाप स’ बंचित नहि छल प्रेक्षागृह । एहि कारण नीक प्रेक्षक के अत्यंत परेशानी भेल हेतनि एहन कठिन नाटकके देखबामे से निश्चित । हमर दर्शक वर्ग के ई बूझक चाहियनि जे नाटकक दर्शक भेनाई कोनो दोसर विधाक दर्शक स’ अत्यंत फराक होइत अछि ।
हम प्रयोग पढ़ने छी । एक बेर नहि कतेको बेर । एहि पर हमर आलेख “प्रयोग एकांकीक रंगमंचीय दृष्टि” सेहो प्रकाशित अछि विदेह ई पत्रिकाक अंक 51 (01 फरवरी 2010 ; पृष्ट सं. 112)मे । तेँ हमरा एकर मंचन देखब अति महत्वपूर्ण छल । मुदा पढ़लाक बाद जे कोनो बिम्ब हमरा दिमागमे उचरैत अछि एहि प्रस्तुतिके ल’क’ तकर लगभग पच्चीस प्रतिशत मात्र एहि प्रस्तुतिमे हमरा भेटल । एहि प्रस्तुतिक अंतिम दृश्यक अंतिम भाग नीक परिकल्पित भेल अछि जे बेर बेर हमरा दिमागमे आबि जाइत अछि । कुणालजी हमर सभहक श्रेष्ठ निर्देशक छथि । सीतायन, कुसमा सलहेस, पारिजात हरण आदि प्रस्तुति हुनकर नाम लैत देरी मोनमे घुमर’ लगैत अछि । हुनका स’ हमरा सभके हरदम किछु विशेषक अपेक्षा अछि । संगहि ओ अपन प्रस्तुतिमे नव नव प्रयोगक लेल विख्यात सेहो छथि । हुनक एहि प्रस्तुतिमे पूर्वाभ्यासक अभाव नीक जेना खटकैत छल आ कोनो तरहक निर्देशकीय कुशलताक प्रयोग सेहो नहि देखायल । आदरणीय कुणालजी आजुक समयमे हम सभ रंगकर्मीक लेल पथ प्रदर्शक व्यक्तित्व छथि आब हुनका स’ एहन अपरिपक्व प्रोजेक्टक आशा नहि अछि ।
- प्रकाश चन्द्र ; नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ; भगवान दास रोड, नई दिल्ली – 110001
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