भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Saturday, February 27, 2010

'विदेह' ५३ म अंक ०१ मार्च २०१० (वर्ष ३ मास २७ अंक ५३)- PART I

'विदेह' ५३ म अंक ०१ मार्च २०१० (वर्ष ३ मास २७ अंक ५३)

वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (अन्तिम खेप)

२.२.जगदीश प्रसाद मंडल- -कथा- नवान
२.३.होरीके परिवर्तित रुप जनकपुरमे महामूर्ख सम्मेलन- सुजीतकुमार झा
२.४.१.बेचन ठाकुर, नाटक- ‘छीनरदेवी’ २. राधा कान्त मंडल ‘रमण’-कने हमहूँ पढ़व

२.५.कथा- ऋषि बशिष्ठ-पूत कमाल
२.६.१. एक टा पत्र एक टा संस्मरण- डॉ. शेफालिका वर्मा २. बिपिन झा-पर्वक ’औचित्यक उपेक्षा’ सर्वथा चिन्तनीय।

२.७.१.सोच- सरोज ‘खिलाडी’-नेपालके पहिल रेडियो नाटक संचालक २. दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी

२.८.१. नागेन्द्र कुमार कर्ण-मिथिला पञ्चकोशी परिक्रमा २. मनोज झा मुक्ति- महाशिवरात्री मेला आ गाँजाक व्यापार,मिडिया सेन्टरक स्थापना


३. पद्य

३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ

३.२. गंगेश गुंजन:अपन-अपन राधा १९म खेप

३.३. किछु रंग फगुआकः धीरेन्द्र प्रेमर्षि
३.४. शिव कुमार झा-किछु पद्य

३.५.कोशी- -प्रो. कपिलेश्वर साहु

३.६.साहेब- -महाकान्त ठाकुर


३.७.स्वागत गीत- -राधा कान्त मंडल ‘रमण’
३.८. राजदेव मंडल-दूटा कविता १.युग्मक फाग-पत्र २.आगमन

४. मिथिला कला-संगीत-कल्पनाक चित्रकला

५. गद्य-पद्य भारती अन्नावरन देवेन्दर-अंतिम शब्द (तेलंगानाक किसान द्वारा आत्महत्यासँ पहिने पत्नीसँ कहल)-(तेलुगु कविता: तेलुगुसँ अंग्रेज पी. जयलक्ष्मी द्वारा, अंग्रेजीसँ मैथिली गजेन्द्र ठाकुर द्वारा)

६. बालानां कृते-१.. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक कथा २.. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)३.कल्पना शरण-देवीजी

७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.NAAGPHAANS-PART_III-Maithili novel written by Dr.Shefalika Verma-Translated by Dr.Rajiv Kumar Verma and Dr.Jaya Verma, Associate Professors, Delhi University, Delhi

8.2.Original Poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy of New York.-The Sun And The Moon Witness

9. VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION (contd.)


विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।



गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय
भालचन्द्र झाजी केँ २००९ क साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार हुनकर मराठीसँ मैथिली अनुवाद बीछल बेरायल मराठी एकाँकी ( मराठी सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी) लेल देल गेल अछि। एहि पुरस्कारमे पचास हजार टाका आ ताम्रपत्र देल जाइत अछि।

भालचन्द्र झा, ए.टी.डी., बी.ए., (अर्थशास्त्र), मुम्बईसँ थिएटर कलामे डिप्लोमा। मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दी, मराठी, अग्रेजी आ गुजरातीमे निष्णात। १९७४ ई.सँ मराठी आऽ हिन्दी थिएटरमे निदेशक। महाराष्ट्र राज्य उपाधि १९८६ आऽ १९९९ मे। थिएटर वर्कशॉप पर अतिथीय भाषण आ नामी संस्थानक नाटक प्रतियोगिताक हेतु न्यायाधीश। आइ.एन.टी. केर लेल नाटक “सीता” केर निर्देशन। “वासुदेव संगति” आइ.एन.टी.क लोक कलाक शोध आऽ प्रदर्शनसँ जुड़ल छथि आऽ नाट्यशालासँ जुड़ल छथि विकलांग बाल लेल थिएटरसँ। निम्न टी.वी. मीडियामे रचनात्मक निदेशक रूपेँ कार्य- आभलमया (मराठी दैनिक धारावाहिक ६० एपीसोड), आकाश (हिन्दी, जी.टी.वी.), जीवन संध्या (मराठी), सफलता (रजस्थानी), पोलिसनामा (महाराष्ट्र शासनक लेल), मुन्गी उदाली आकाशी (मराठी), जय गणेश (मराठी), कच्ची-सौन्धी (हिन्दी डी.डी.), यात्रा (मराठी), धनाजी नाना चौधरी (महाराष्ट्र शासनक लेल), श्री पी.के अना पाटिल (मराठी), स्वयम्बर (मराठी), फिर नहीं कभी नहीं( नशा-सुधारपर), आहट (एड्सपर), बैंगन राजा (बच्चाक लेल कठपुतली शो), मेरा देश महान (बच्चाक लेल कठपुतली शो), झूठा पालतू(बच्चाक लेल कठपुतली शो),टी.वी. नाटक- बन्दी (लेखक- राजीव जोशी), शतकवली (लेखक- स्व. उत्पल दत्त), चित्रकाठी (लेखक- स्व. मनोहर वाकोडे), हृदयची गोस्ता (लेखक- राजीव जोशी), हद्दापार (लेखक- एह.एम.मराठे), वालन (लेखक- अज्ञात)।लेखन-बीछल बेरायल मराठी एकांकी(अनुवाद), सिंहावलोकन (मराठी साहित्यक १५० वर्ष), आकाश (जी.टी.वी.क धारावाहिकक ३० एपीसोड), जीवन सन्ध्या( मराठी साप्ताहिक, डी.डी, मुम्बई), धनाजी नाना चौधरी (मराठी), स्वयम्बर (मराठी), फिर नहीं कभी नहीं( हिन्दी), आहट (हिन्दी), यात्रा ( मराठी सीरयल), मयूरपन्ख ( मराठी बाल-धारावाहिक), हेल्थकेअर इन २०० ए.डी.) (डी.डी.)। थिएटर वर्कशॉप- कला विभाग, महाराष्ट्र सरकार, अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद, दक्षिण-मध्य क्षेत्र कला केन्द्र, नागपुर, स्व. गजानन जहागीरदारक प्राध्यापकत्वमे चन्द्राक फिल्मक लेल अभिनय स्कूल, उस्ताद अमजद अली खानक दू टा संगीत प्रदर्शन।श्री भालचन्द्र झा एखन फ़्री-लान्स लेखक-निदेशकक रूपमे कार्यरत छथि।



साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली

१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)

साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार

१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
२००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)

प्रबोध सम्मान

प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )


यात्री-चेतना पुरस्कार


२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा


कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान


२००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झाकेँ कविता संग्रह “एना त नहि जे”
२००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”केँ नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश

लघु राज्यक सार्थकता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
राष्ट्रीय संगोष्ठी :

दिनांक १४.०२.२०१० केँ प्रयागमे लघु राज्यक सार्थकता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न भेल।
संगोष्ठीक आयोजन श्री विधुकान्त मिश्र, मैथिली अकादमी आ मिथिला सांस्कृतिक संगमक सहयोगसँ भेल। मुख्य वक्ता रहथि- राँचीसँ डॉ. धनाकर ठाकुर, अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद। भाषिक, भौगोलिक एवं सामाजिक आधारपर लघु राज्य विशेष कऽ मिथिलांचलक गठन पर जोर देलखिन्ह। संगोष्ठीमे ई. प्रदीप झा, कर्नल देवकान्त झा, डॉ. ए.के. झा, श्री अखिलेश झा, श्री सुधीर मिश्र, संजीव झा आदि गोटे सभ अपन विचार प्रकट कयलन्हि। समारोहक अध्यक्षता कर्नल डी.के. झा कएलन्हि।
सुभाषचन्द्र यादवजीक बहिनक मृत्यु आ नवेन्दु जी केँ मातृशोक: सुभाषचन्द्र यादवजीक बहिनक मृत्य आ श्री नवेन्दु कुमार झा जीक माताक मृत्यु एहि पक्षमे भऽ गेलन्हि। हुनकर सभक आत्माक शान्तिक लेल ईश्वरसँ प्रार्थना।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ २७ फरबरी २०१०) ९६ देशक १,१५३ ठामसँ ३९,१६० गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,२८,९६७ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।


सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद (proof file at http://www.box.net/shared/75xgdy37dr and detailed article and reactions at http://groups.google.com/group/videha/web/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%95+%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8+%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE?hl=en ) बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि।

गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com

२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (अन्तिम खेप)

२.२.जगदीश प्रसाद मंडल- -कथा- नवान
२.३.होरीके परिवर्तित रुप जनकपुरमे महामूर्ख सम्मेलन- सुजीतकुमार झा
२.४.१.बेचन ठाकुर, नाटक- ‘छीनरदेवी’ २. राधा कान्त मंडल ‘रमण’-कने हमहूँ पढ़व

२.५.कथा- ऋषि बशिष्ठ-पूत कमाल
२.६.१. एक टा पत्र एक टा संस्मरण- डॉ. शेफालिका वर्मा २. बिपिन झा-पर्वक ’औचित्यक उपेक्षा’ सर्वथा चिन्तनीय।

२.७.१.सोच- सरोज ‘खिलाडी’-नेपालके पहिल रेडियो नाटक संचालक २. दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी

२.८.१. नागेन्द्र कुमार कर्ण-मिथिला पञ्चकोशी परिक्रमा २. मनोज झा मुक्ति- महाशिवरात्री मेला आ गाँजाक व्यापार,मिडिया सेन्टरक स्थापना
प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी (१५ फरबरी १९२१- १५ मार्च १९८५) अपन सम्पूर्ण जीवन बिहारक इतिहासक सामान्य रूपमे आ मिथिलाक इतिहासक विशिष्ट रूपमे अध्ययनमे बितेलन्हि। प्रोफेसर चौधरी गणेश दत्त कॉलेज, बेगुसरायमे अध्यापन केलन्हि आ ओ भारतीय इतिहास कांग्रेसक प्राचीन भारतीय इतिहास शाखाक अध्यक्ष रहल छथि। हुनकर लेखनीमे जे प्रवाह छै से प्रचंड विद्वताक कारणसँ। हुनकर लेखनीमे मिथिलाक आ मैथिलक (मैथिल ब्राह्मण वा कर्ण/ मैथिल कायस्थसँ जे एकर तादात्म्य होअए) अनर्गल महिमामंडन नहि भेटत। हुनकर विवेचन मौलिक आ टटका अछि आ हुनकर शैली आ कथ्य कौशलसँ पूर्ण। एतुक्का भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता ई सभटा मिथिलाक इतिहासक अंग अछि। एहिमे सम्मिलित अछि राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म, दर्शन आ साहित्य सेहो। ई इतिहास साहित्य आ पुरातत्वक प्रमाणक आधारपर रचित भेल अछि, दंतकथापर नहि आ आह मिथिला! बाह मिथिला! बला इतिहाससँ फराक अछि। ओ चर्च करैत छथि जे एतए विद्यापति सन लोक भेलाह जे समाजक विभिन्न वर्गकेँ समेटि कऽ राखलन्हि तँ संगहि एतए कट्टर तत्त्व सेहो रहल। हुनकर लेखनमे मानवता आ धर्मनिरपेक्षता भेटत जे आइ काल्हिक साहित्यक लेल सेहो एकटा नूतन वस्तु थिक ! सर्वहारा मैथिल संस्कृतिक एहि इतिहासक प्रस्तुतिकरण, संगहि हुनकर सभटा अप्रकाशित साहित्यक विदेह द्वारा अंकन (हुनकर हाथक २५-३० साल पूर्वक पाण्डुलिपिक आधारपर) आ ई-प्रकाशन कट्टरवादी संस्था सभ जेना चित्रगुप्त समिति (कर्ण/ मैथिल कायस्थ) आ मैथिल (ब्राह्मण) सभा द्वारा प्रायोजित इतिहास आ साहित्येतिहास पर आ ओहि तरहक मानसिकतापर अंतिम मारक प्रहार सिद्ध हएत, ताहि आशाक संग।-सम्पादक
मिथिलाक इतिहास (अन्तिम खेप)

(अंग्रेजी आ मैथिलीमे मैथिली आ मिथिलाक इतिहास देबाक उद्देश्य पाठककेँ अपन जड़िसँ जोड़बाक रहए। ई साहित्यकार लोकनिक लेल आर बेशी जरूरी छल। Courtesy:For earlier articles on VIDEHA,MITHILA,TIRBHUKTI and TIRHUT in English and for these articles in Maithili to Yogendra Yadav, Sunil Kumar Jha, Ramavtar Yadav, Vijaykant Mishra, Yogendra Jha, Y. Mishra, Radha Krishna Choudhary,Makhan Jha, Prabhat Kumar Chaudhary M/s Shruti Publication and Videha http://www.videha.co.in/ editorial staff and volunteers and to Wikipaedia. No commercial use permitted Strictly for academic use.)
अध्याय–18
धर्म आर दर्शन

धर्म:- वैदिक युगहिसँ मिथिला धर्म आर दर्शनक प्रधान केन्द्र रहल अछि। प्रारंभमे एकेश्वर वादी मत बड्ड प्रचलित छल आर ऋगवेदमे एकर विशद विश्लेषण भेल अछि। वेदक प्रारंभिक कालमे यज्ञक महत्व विशेष छल मुदा पाछाँ जे हमरा लोकनि प्रजापतिक कथा–पिहानी पढ़ैत छी ताहिसँ इहो ज्ञात होइछ जे ‘अवतारवाद’क सिद्धान्त सेहो जोर पकड़ि रहल छल। ब्राह्मण साहित्यमे प्रजापति ‘पुरूष’क रूपमे ठाढ़ भेल छथि आर एहेन बुझि पड़ैत अछि जेना की विश्वक भार सम्हारवाक कार्य हुनके माथपर पड़ि गेल हो। ‘आत्मा’ आर ‘ब्रह्म’क विकास उपनिषदक युगमे भेल। हिन्दू धर्मक दार्शनिक विश्लेषण उपनिषदमे भेटैत अछि आर एहिमे विशिष्ट भागक विश्लेषण मिथिला भूमिमे राजा जनकक दरबारमे भेल छल।
अखिल भारतीय धर्मक रूपमे जैन धर्म आर अखिल विश्व धर्मक रूपमे बौद्ध धर्मक उत्थान प्रसार आर प्रचार मिथिलहिक अंगनामे भेलैक। जनक सेहो अपना युगक विद्रोही छलाह आर प्राचीन नियमक उलंघन कए यज्ञ सम्बन्धी अपन कर्त्तव्य कए एहि बातकेँ सिद्ध केने छलाह जे मनुष्य अपन कर्त्तब्य कए अहि बातकेँ सिद्ध केने छलाहजे मनुष्य अपन कर्त्तव्य कए एहि बातकेँ सिद्ध केने छलाह जे मनुष्य अपन कर्त्तव्यसँ किछु प्राप्त कऽ सकइयै। ओहि परम्पराक अनुरूप आर प्राचीन कट्टरता एवँ अन्धविश्वासकेँ कहैत तथा वेदक अपौरूषेयतामे अविश्वास करैत मिथिला आङनमे अवतीर्ण भेल छलाह वर्द्धमान महावीर आर गौतम बुद्ध। वर्द्धमान महावीरक जन्म वैशालीमे भेल छलन्हि– कुंडग्राममे जाहिठाम ज्ञात्रिक लोकनि रहैत छलाह। महावीरकेँ विदेह, वैदेहीदत्ता, विदेह जात्य, विदेह सुकुमार, वैशालीक एवँ वैशालिए इत्यादि कहल गेल छन्हि। आ चारांगसुतमे तँ साफ लिखल अछि–
– “समणस्सणं भगवओ महावीरस्स अम्मा
वासिट्ठत्स गुता तीरोणं तिन्नि ना. तं–
तिसला इव विदेह दिना इव पियकारिणी इवा”।
महावीरक माए त्रिशलाकेँ वैदेही कहल जाइत छलन्हि। २१म तीर्थंकर नेमीनाथक जन्म सेहो मिथिलेमे भेल छल। महावीर १२टा वर्षावास वैशालीमे आर ६टा वर्षावास मिथिलामे बितौने छलाह। विदेह आर वैशालीमे महावीर बहुत रास शिष्य छलथिन्ह आर एहि सब क्षेत्रमे हिनक प्रतिपादित धर्मक विशेष प्रचार भेल छल। जैन साहित्यमे मिथिलाक प्रचुर वर्णन भेटैत अछि जाहिसँ ई स्पष्ट होइछ जैन आर मिथिलाक बीच घनिष्ट सम्पर्क छल आर मिथिलाक साँस्कृतिक परम्परा जैन विद्वान लोकनिक ध्यान अपना दिसि आकृष्ट केने छलन्हि। प्रारंभिक अवस्था बुद्ध सेहो जैन धर्म दिसि आकृष्ट आर प्रभावित भेल छलाह मुदा से मात्र किछु दिनक हेतु। बौद्ध धर्मक उत्थान आर प्रसारक पूर्व विदेह आर वैशाली जैन धर्मक एकटा प्रधान केन्द्र छल। महावीर वर्ण व्यव्स्थाक विरोधी छलाह तथापि ओ त्रिवर्णक एक प्रकारे समर्थक सेहो छलाह। जैन धर्म निर्वाणपर जोर देने अछि। हरिभद्र अपन ‘षड़दर्शन समुच्च्य’मे लिखने छथि–“आत्यांतको वियोगस्तु देहादे र्मोक्ष उच्च्यते”–महावीरक विश्वास छलन्हि जे मनुष्य अपन कर्मसँ वर्ण–व्यवस्था रूपी जालकेँ तोड़ि सकइयै। चाण्डालोमे सद्गुण भऽ सकैत जे ओ उचित कर्त्तव्यक पालन करए। मनुष्यक आस्था हुनक अपूर्व विश्वास छलन्हि आर बहुत ब्राह्मणो हुनक मतकेँ महत्व दैत छलथिन्ह। कल्पसूत्रक सुखवोधिका टीकामे लिखल अछि–
– “प्रभु अपापापुर्या....जगाम, तत्र बहवो ब्राह्मणाः मिलिताः....
चतुश्चत्वारिंशच्छा तानि द्विजाः प्रवजिताः”।
जैन लोकनि दर्शन आर न्यायक क्षेत्रमे सेहो बड्ड पैघ योगदान देने छथि।
महावीरक इतिहास मिथिलाक प्राचीन इतिहाससँ जुटल अछि आर जैन साहित्यक अनुसार मिथिलाक राजा निमि जैन धर्म स्वीकार केने छलाह आर श्रमण भऽ गेल छलाह। उत्तरा ध्ययनसूत्रमे लिखल अछि–
– “नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ
चइऊण गेट चं वेदेहि सामण्णे पञ्जुवट्ठिऔ”।
एहिठाम स्मरण रखबाक अछि बौद्ध परम्परामे एहने किछु बात एहि राजाक सम्बन्धमे सेहो अछि जेना कि महाजनक जातकक कथासँ ज्ञात होइछ। विदेहमे महावीरक पर्याप्त समर्थक रहल हेतन्हि एहिमे संदेह नहि। वैशालीमे तँ हिनक विशेष प्रभाव रहबे करैन्ह। एहिठामसँ जैन धर्मक प्रसार सबतरि भेल। हियुएन संगक समय धरि एहिठाम ‘निग्रंथ’ लोकनिक पर्याप्त संख्या छल। जैन लोकनि सेहो स्तुपक निर्माता होइत छलाह आर ओहन एक स्तुप वैशालीमे सेहो छल तकर प्रमाण जैन साहित्यमे भेटैत अछि।
बौद्ध धर्मक दृष्टिकोणे सेहो मिथिला महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। ई. पू. ६ठम शताब्दी तँ समस्त विश्व इतिहासक द्रष्टिकोणसँ सहजहि महत्वपूर्ण अछि, मिथिलाक हेतु तँ आर विशेष रूपें। वैदिक कर्मकाण्डक विरोध तँ उपनिषदक युगहिसँ स्पष्ट भऽ चुकल छल मुदा ओहि विरोधक परिणति भेल जैन आर बौद्ध धर्मक उत्थानसँ। मुण्डक उपनिषदक विरोध तीव्रतासँ भेल छल। विरोध तीव्रता भेलेसँ जँ काज चलितै तँ से बात नहि। एक दिसि तँ ओ लोकनि वैदिक कर्मकाण्डक विरोध केलन्हि आर दोसर दिसि एहन गहन दर्शनक प्रतिपादन केलन्हि जकरा सामान्य लोक बुझबामे असमर्थ छल। एहना स्थितिमे सामान्य लोकक हेतु सुधारक अपेक्षा छल आर बुद्धक अवतीर्ण भेनाइ ओहि अपेक्षाक पूर्ति मात्र छल। ब्राह्मण धर्मक कर्मकाण्ड आर कुरीतिसँ लोग तंग आबि चुकल छल आर एकटा निदानक खोजमे छल। विदेह आर वैशालीमे बौद्ध धर्मक पर्याप्त प्रभाव रहल हैत एकर सबसँ पैघ प्रमाण ई अछि जे मनु लिच्छविये जकाँ विदेह लोकनिकेँ व्रात्य कहने छथिन्ह। विदेह–भेलाह ओ जनक पिता वैश्य आर माता ब्राह्मण हेथिन्ह।
बौद्ध धर्मक प्रभाव मिथिलामे रहल होइत एकर प्रमाण जातक कथा साहित्यसँ सेहो भेटैत अछि। जातक कथामे एहि सम्बन्धमे बहुत रास प्रसंग अछि। सभ किछु होइतहुँ मिथिलापर बौद्ध धर्मक कोनो स्थायी प्रभाव नहि पड़ल कारण हम देखैत छी जे बौद्ध धर्मक तुरंत बाद ओहिठाम पुनः सनातन धर्मक तुती बाजए लगैत अछि। बुद्ध वैशालीक सब तरहे प्रशंसा केने छथि आर अशोक बौद्ध धर्मक प्रसारक हेतु किछु उठा नहि रखलन्हि मुदा तइयो मिथिलाक समस्त भूमि एकरा प्रभावमे स्थायी रूपे नहि आबि सकल। मिथिलाक विभिन्न क्षेत्र बौद्ध धर्मक केन्द्र आर प्राचीन अवशेष अछि मुदा धर्मक प्रभाव कोनो अवशेष नहि देखबामे अवइयै। जँ बौद्ध धर्मक प्रचार–प्रसार भेलो हैत तँ मिथिलामे शूंग–कण्व कालीन शासनक समय ब्राह्मण लोकनि ओकरा नीप–पोतिके एक कऽ देने होयताह। कनिष्क बुद्धक भिक्षापात्र लेबाक हेतु वैशाली धरि आएल छलाह आर ओहियुगक गणेशक एकटा मूर्त्ति करिऔनसँ भेटल अछि जे एहि बातक प्रमाण दैत अछि जे कनिष्कक युग धरि बौद्ध धर्मक प्रभाव एम्हर घटि चुकल छल। हियुएन संग लिखैत छथि जे सातम शताब्दीमे मिथिला वैशालीक क्षेत्रमे बौद्ध धर्मक प्रभाव घटि चुकल छल। ब्राह्मण धर्म पुनः अपन प्राचीन सत्ता प्राप्तक चुकल छल। बौद्ध धर्म एहिठाम स्थानीय सम्प्रदायमे मिलिकेँ लुप्त भऽ गेल छल।
मैथिल परम्परामे एकटा कथा सुरक्षित अछि जे पम्मार(परमार) विक्रमादित्यक राज्य मिथिला धरि छल। मिथिलामे विक्रमादित्यक एबाक कारण इ जे हरिहर क्षेत्रमे बौद्ध संघ तथा मैथिल वर्गकेँ शास्त्रार्थ भेल परञ्च बौद्ध सब राजाक बलसँ मैथिल क्रुद्ध भए वररूचि मिश्रक पुत्र जयादित्य मिश्रकेँ विक्रमादित्यक ओतए पठौलन्हि। ओतए शिप्रानदीक तटस्थ महाकाल शिवमन्दिरमे पूजाक समय भेंट भए गेलैन्ह–तखन दुनू गोटएक बीच श्लोक बद्ध प्रश्नोत्तर भेल–
– “के यूयं, कुत आयाता, अत्र वक्तव्यमस्तिकिम्?
मैथिला मिथिला तोऽत्र शकादित्येन पीड़िताः॥
आसजीवति कुत्रासि? नेपाले बौद्ध संकुले।
इतोभ्रष्टस्ततो भ्रष्टः सोऽचिरेणभर्विष्यति”॥
तखन विक्रमादित्य मिथिला मण्डल आबिकेँ दखल कैल आर बौद्ध लोकनिकेँ पराजित केलक। हुनके वंशक राजपूत एहिठाम गन्धवरिया कहबैत छथि। बौद्ध धर्म एहिठाम हिन्दूधर्ममे मिम्झर भऽ गेल आर सनातनधर्मी हुनका विष्णुक नवम अवतार मानि लेलथिन्ह–गीत गोविन्दमे लिखल अछि–
– “निन्दसि यज्ञ विधेरहह श्रुतिजातम्।
सदय हृदय दर्शित पशु घातम्।
केशव विधृत बुद्ध शरीर।
जय जगदीश हरे”।
मिथिला मौलिक रूपे सनातनी मानल जाइत अछि आर एहिठाम वर्णाश्रमक प्रतिष्ठा अति प्राचीन कालहि चलि आबि रहल अछि। उपनिषद युगमे एतए आत्मा आर ब्रह्मक विश्लेषण भेल–राजा जनक अपन कर्त्तव्य पत्रसँ जे एकटा मार्ग संकेत केलन्हि सेहो बहुत दिन धरि चलि नहि सकल आर जैन धर्मतँ सहजहि अन्हर–बिहाड़ि जकाँ आएल आर चलि गेल। ओ वसात ककरो लगलैक ककरो नहिओ लगलैक। बुद्ध मध्यम मार्गक समर्थक छलाह। हुनक कथन छलन्हि जे आत्मा निरोधक माध्यमसँ आत्माक उन्नति भऽ सकइयै। शील, समाधि आर प्रज्ञाकेँ इ लोकनि उत्कृष्ट यज्ञ कहलन्हि। वैशालीमे बौद्धधर्मक प्रधानता विशेष छल आर ओतए बौद्ध लोकनिक दोसर संगीति भेल छल। ओहिमे किछु क्रांतिकारी निर्णय सेहो लेल गेल छल। महायज्ञ गीतासँ प्रभावित कहल जाइत अछि। बौद्ध धर्मक उत्थानक पाछाँ वैदिक परम्पराकेँ मिथिलामे किछु चोट लगलैक। मिथिला शीघ्रहि ओहि घातक आक्रमणसँ हटिके पुनः अपना पैरपर ठाढ़ भेल।
पूर्वी भारतमे आर्य संस्कृतिक प्रथम मान्य केन्द्र रहल। उत्तरो मिथिलामे धार्मिक क्षेत्रक प्रधानता छल शिव, शक्ति आर विष्णुक। त्रिपुण्ड चाननक प्रतीक इएह तीनु देवता छथि। मिथिलाक सर्वश्रेष्ठ ईश्वर शिव छथि जनिका भैरव सेहो कहल जाइत छन्हि आर एहेन शायदे मिथिलामे कोनो गाम हैत जतए शिवमन्दिर अथवा भैरव मन्दिर नहि हो। एकमुख लिंगसँ चतुर्मुख लिङ्गक अवशेष मिथिलाक कोन–कोनसँ भेटल अछि। प्राचीन अभिलेखमे सेहो शिव माहेश्वरक विवरण अछि। संग्राम गुप्तक अभिलेखमे शिवक वाहन नन्दीक विवरण सेहो अछि। मिथिला कवि लोकनि सेहो शिवक महिमाक गुण–गान कएने छथि–विद्यापतिसँ चंदा झा धरि।
शक्तिक प्रधानता सेहो मिथिलामे ओतवे रहल अछि। शक्तिक संगहि संग एतए तंत्रक प्रचार सेहो विशेष रूपें भेल अछि आर मध्यकालीन मिथिलाक देवादित्य, वर्धमान, मदन उपाध्याय आदि शाक्त आर तांत्रिक छलाह। मिथिलामे नेना सभकेँ जे पहिल पाठ देल जाइत अछि ताहुसँ तंत्रक झलक भेटइयै आर अरिपन इत्यादिक आधार तँ तंत्र अछिये। मात्रिका पूजा शक्ति पूजाक प्रतीक थिक। पाग बनेबाक कला तंत्रसँ प्रभावित अछि। मिथिलाक एहेन कोनो धार्मिक अवसर नहि अछि जाहिमे शक्तिक उपासना नहि होइत हो। खोजपुरसँ एकटा दुर्गाक प्रतिमा (अभिलेख सहित) सेहो भेटल अछि। नेपालक तुलजादेवीक स्थापनाक श्रेय मैथिलेकेँ देल जाइत छन्हि।
एवँ प्रकारे मिथिलामे शिव शक्तिक प्रभाव तँ छलाहे आर अहुना अछिये। मुदा मध्ययुगमे मिथिलामे वैष्णव धर्मक प्रभाव सेहो ओतबे छल। भागवत, हरिवंश आर ब्रह्मवैवर्त्त पुराणसँ मिथिलाक वैष्णव धर्म प्रभावित छल। कृष्णक प्रभाव मिथिलामे कोनो रूपे कम नहि छल। प्राक्–विद्यापति युगसँ एकर प्रभाव देखबामे अवइयै। उमापति भवानी, हति आर शिवक उल्लेख अपन परिजात हरणमे केने छथि। चण्डेश्वर अपन कृत्यरत्नाकरमे गौरी आर शंकरीक संगहि संग मतस्य आर कच्छप अवतारक उल्लेख सेहो केने छथि। पूजा रत्नाकरमे तँ शिव, विष्णु, दुर्गा आर सूर्यक पूजाक तांत्रिक विधिक वर्णन अछि। ज्योतिरीश्वर धूर्तसमागममे अपना शिवक पक्षधर कहने छथि। विद्यापति सब देवी–देवतापर गीत बनौने छथि। हुनक दुर्गाभक्ति तरंगिणीमे दुर्गापूजाक विधि अछि, शैव सर्वस्वसारमे शिवक महिमा अछि, ब्याढ़ि–भक्तितरंगिणीमे सर्पपूजाक विधान अछि आर वर्षकृत्यमे वर्फ बारिक कृत्यक विवरण। जतेक साहित्यकार आर दार्शनिक मिथिलामे भेल छथि सब कोनोने कोनो रूपे शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य आदि देवी–देवताक बन्दना केने छथि तैं ककरो कोनो सम्प्रदायमे बान्हिकेँ राखब उचित नहि बुझना जाइत अछि। हरपति आगमाचार्य अपन मंत्र प्रदीपमे शैव–शाक्त आर वैष्णव देवी देवताक उल्लेख कएने छथि। विष्णुपुरीक विष्णु पूजा कल्पलता एवँ भक्ति रत्नावली वैष्णव धर्मक एकटा प्रधान स्तंभ थिक।
वैष्णव धर्मक प्रसार–प्रचारमे गीत गोविन्दक विशेष हाथ रहल अछि। कृष्ण अवतारक संगहि संग सर्वश्रेष्ठ देवतो मानल जाए लग लाहे। ११–१२म शताब्दीमे नान्यदेवक मंत्री श्रीधर दास कमलादित्य (विष्णु)क एकटा मन्दिर बनौलन्हि। प्राचीन मिथिलामे विष्णुपूजाक तिथि सेहो निश्चित् रहैत छल। विष्णु पूजा होइत छल। भागीरथपुर अभिलेखपुर अभिलेखपुरसँ ज्ञात होइछ रानी अनुमतिक आज्ञासँ माधवक मन्दिर बनाओल गेल छल। विष्णुक प्रभाव मिथिलामे कतेक छल से एहिसँ बुझल जा सकइयै जे उमापति अपन पारिजात हरणमे हरिसिंह देवकेँ विष्णुक दशम अवतार मनैत छथि आर विद्यापति शिवसिंहकेँ एकादशम अवतार। नरसिंह ठाकुर कष्णक उल्लेखक संदर्भमे वंशीवट एवम मुरलीक उल्लेख सेहो केने छथि। विद्यापति स्वयं भागवतसँ अवगत छलाह। विद्यापतिक पूर्व आर विद्यापतिक वादो वैष्णव धर्म आर पदावली धार बहिते रहल आर एकर प्रमाण ई अछि जे विद्यापतिक बहुत दिन बादो मनबोध अपन प्रसिद्ध काव्य “कृष्ण जन्म” (हरिवंश)क रचना केलन्हि।
तंत्रक प्रधानता मिथिलामे प्राचीन कालसँ रहल अछि। तंत्रक माध्यमे मिथिलामे हवनि धरि बहुतो साधक भऽ गेल छथि। तंत्रक विकासक भूमि मिथिलोकेँ मानल गेल अछि–
– “गौड़े प्रकाशिता विद्या मैथिलैः प्रबलीकृता।
क्वचित् क्वचित्महाराष्ट्रे गुर्जरं प्रलयं गताः”॥
बंगालमे उत्पन्न भेलोत्तर तंत्र मिथिलोमे आबिकेँ दृढ़ भेल। नवन्यायक जन्मदाता गंगेशक सम्बन्धमे किंवदंती अछि जे ओ कालीक साधना ककए ओतेक पैघ विद्वान भेल छलाह। तंत्रपर मिथिलामे बहुत रास पोथी सेहो लिखल गेल अछि। देवनाथ ठाकुरक तंत्र कौमुदी एहि दृष्टिकोणे बड्ड महत्वपूर्ण अछि। हुनक दोसर पोथीक नाम अछि मंत्र कौमुदी आर ई दुनू पुस्तक तांत्रिक विधिमे ज्ञान प्राप्त करबाक हेतु महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। नरसिंहक लिखल ताराभुक्ति सुधार्णव सेहो महत्वपूर्ण पोथी मानल गेल अछि। एहिमे केवल तारेक नहि अपितु समस्त शक्तिक पूजा विधि अछि आर एकर ग्यारहम अध्यायमे काली भक्ति सुधार्णव सेहो अछि। ताराक संग कालीकेँ अनबाक औचित्यपर विचार करैत लिखल गेल अछि।-
-“यथा काली तथा तारा या तारा कालिकैव सा।
उभयोर्नहि भेदोऽस्ति।
इति गन्धर्वतंत्र वचनात् काली विधि रपि निरूप्यते”॥
हरिपति आगमाचार्य मंत्र प्रदीपक रचना केलन्हि। कुमार गदाधर शारदा तिलकपर टीका लिखलन्हि आर ओहि ग्रंथक नाम रखलैन्ह तंत्र प्रदीप। वामाचार आर कुलाचारक दृष्टिये साधक मण्डन आर भवानी भक्ति मोदिका महत्वपूर्ण पोथी मानल जाइत अछि। कहल गेल अछि जे कलियुगक तंत्रे प्रधान अछि आर शूद्र–शोलकन्हिमे एकर विशेष प्रचलन रहत। निम्नलिखित श्लोकसँ एकर स्वरूप बुझबामे आओत–
-“यद्धप्येते प्रयोगाः कालीं तारां वाधिकृत्य प्रोवताः तमागम।
यथा काली तथा नीला यथा नीला तथान्मुखौ॥
यथोन्मुखी तथा दुर्गा नाम्ना भेदोऽस्ति कुत्रचित्॥
प्रणम्य पार्वतीनाथं स्वगुरूंच विनायकम्
इशान्नाथः करोत्येनां भवानी भक्ति मोदकम्।
कुलर्णिवे
सर्वेभ्यश्चोत्तमा वेदा वेदोभ्यो वैष्णवं परम्।
वैष्णवादुतमं कौलं कौलइत् परतरं नहि॥
कौलं कुलधर्म प्रति पादकं शास्त्रं भवानी भक्ति युक्तमित्यर्थः।
विहाय सर्वधर्मांश्च नानागुरू मतातिच।
जपार्चामेव जानीयान्नान्य चिंता विधीयते”॥
घनानंद दास नामक एकटा मैथिल कर्ण कायस्थ प्रख्यात तांत्रिक मिथिलामे भऽ गेल छथि।
सूर्यपूजाक विधान सेहो मिथिलामे छल आर एकर प्रचार सेहो। गुप्त युगक बादसँ सूर्यपूजाक प्रधानता मिथिलामे बढ़ल छल आर मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ सूर्य मूर्त्तिक भग्नावशेष सभ भेटल अछि जाहिमे बरौनीसँ प्राप्त एकटा मूर्त्ति अखनो बेगूसरायक संग्रहालयमे राखल अछि। कलात्मक आर धार्मिक दुनू दृष्टिकोणसँ ई मूर्त्ति महत्वपूर्ण अछि। एकर अतिरिक्त सबसँ महत्वपूर्ण वस्तु इ जँ ओइनवार शासक नरसिंह देव सहरसा जिलाक कन्दाहा गाममे एकटा सूर्यक मन्दिर बनबौलन्हि जे अहुखन विराजमान अछि आर जाहिपर एकटा अभिलेख सेहो अछि। भवादित्यक मन्दिरक नामे अखनो ओ मन्दिर ओतए प्रसिद्ध अछि। मिथिलाक चारूकातसँ प्राप्त अभिलेख मिथिलाक धार्मिक एवँ सामाजिक आर्थिक जीवनपर पूर्ण प्रकाश दैत अछि आर ओहिसँ इहि बुझना जाइत अछि जे हिन्दू धर्मक विभिन्न सम्प्रदायक मान्यता एहि क्षेत्रमे छल। पालशासक लोकनि कक्ष विषय (कौशिकी कक्ष)मे शिवमन्दिरक निर्माण हेतु दान देने छलाह। एहि सभसँ स्पष्ट होइछ जे कोनो विशेष संप्रदायक प्रति आकृष्ट नहि भए एहिठामक लोग सभ देवी देवता अर्चना करैत छलाह आर धार्मिक दृष्टिकोणमे ओहि अर्थे उदार छलाह।
महिषीक महत्व:- तांत्रिक दृष्टिकोणसँ मिथिलामे महिषीक उल्लेख करब आवश्यक भऽ जाइत अछि। गामसँ बाहर आग्नेय कोणमे पश्चिमाभिमुख एकटा मन्दिर अछि। ताहि मध्य एकटा नील सरस्वती अक्षोभ्य ऋषि सहित तारामूर्ति विराजित छथि। एहिठाम दूर–दूरसँ लोक अमुलानार्थ अबैत छथि। नवरात्रमे विशेष उत्सव होइछ। ओहिठाम तारा, नील सरस्वती, एकजला, लक्ष्मीनारायण, त्रिपुरा सुन्दरी, सीतला, तारानाथ आदि देवी–देवताक मूर्त्ति अछि आर ६टा कुंड सेहो तकर नाम क्रमशः अछि–ताराकुंड, ताराकंचुकीकुण्ड, वशिष्ट कुण्ड, गौतम कुण्ड, अक्षोभ्यकुण्ड, आर मानसरोवर कुण्ड। एहि सभ कुण्डक वर्णन चीनाचार तंत्रमे पाओल जाइत अछि –
-“वशिष्ट कुण्डं पापदनं, कुण्डं च गौतमर्मिधां
अक्षोभ्यकुण्डं सफलं, चैत ज्जाभ्य दिशिस्मित।
तत समीपे महेशाजि सरोमानससंज्ञकम्
माहिष्म त्याश्चमहात्मश्रृणु साध्वि बरानने।
वशिष्ठं समानिता तारणी चीन देशतः
नारिभ्येन जटाशक्ति तथा नील सरस्वती
अक्षोभ्य गरूणायुक्ता स्थापिता यत्रसुन्दरी”॥
कहल जाइत अछि जे चीनाचार तंत्र नामक पोथी दरभंगा राजक पुस्तकालयमे अछि।
मैथिली परम्पराक अनुसार दक्ष एकटा यज्ञक आयोजन केलन्हि जाहिमे ओ ने शिव आर ने पार्वतीकेँ आमंत्रित केलन्हि। ओतए सती पार्वती अपन बापक ओतऽ यज्ञक कथा सुनि पहुँचलीहे आर ओतए अपन पतिक अपमान देखि यज्ञ कुण्डमे कुदि पड़लीहे। शिवकेँ जखन एहि बातक भान भेलन्हि तँ ओ ओतए पहुँचलाह आर सतीक शरीरकेँ अपना कन्हापर उठौलन्हि। शिवकेँ एहेन तमतमाएल देखि विष्णुक चिंतित हैव स्वाभाविके छल आर तैं ओ अपन चक्र घुमौलन्हि जाहिसम सतीक देह कटि–कटिकेँ ठाम–ठाम खसए लागल। सतीक आँखि महिषीमे खसल आर तहियेसँ महिषी तंत्रक एकटा प्रधान केन्द्र बनि गेल।
एकटा दोसर परम्पराक अनुसार अति प्राचीन कालमे महिषीमे असूर लोकनिक अड्डा छल आर ओकरे नियंत्रित करबाक हेतु वशिष्ट चीनसँ शक्तिकेँ अनने छलाह। महिषीकेँ महिषासुरक राजधानी सेहो कहल गेल अछि। सभ ठामक आर सभ तरहक तांत्रिक लोकनिक जमघट एहिठाम प्राचीन कालहिसँ होइत अछि। महिषीक नील सरस्वतीकेँ तांत्रिक लोकनि महानील सरस्वती मनैत छथि जकर अप्रत्यक्ष उल्लेख हमरा लोकनिकेँ पाल अभिलेखमे “उरूनील पद्मा”क रूपमे भेटैत अछि। महिषीकेँ सिद्धपीठ सेहो मानल गेल छैक - “कमला विमला चैव तथा महिष्मतीपुरी
वाराही त्रिपुरा चैव वाग्मती नील वाहिणी”।
मिथिला महात्मय आर शक्तिपीठमे सेहो एकर विवरण भेटइत अछि। ओहि क्षेत्रमे वाणेश्वर महादेव सेहो अछि जकर स्थापनाक श्रेय वाणासूरकेँ देल जाइत छैक। तारा, भवादित्य आर वाणेश्वर महिषीक त्रिकोण तंत्र थिक जाहिसँ महिषीक तंत्रिक केन्द्र होएबाक प्रमाण पुष्ट होइत अछि।
एकटा लोकगीत अछि-
-“भवा भवादित्य देवना महेश
बनगाँव दुर्गा मिटे कलेश
बोलेरे मधुरी वाणी दुर्गा”।
महिषीसँ थोड़ेक दूरपर मधेपुरामे प्रसिद्ध सिंहेश्वरक मन्दिर सेहो अछि। महिषीमे मण्डन–शंकराचार्य विवाद भेल छल।
ताँत्रिक केन्द्रक हिसाबे मिथिलामे कात्यायनी स्थान आर जयमंगलागढ़क सेहो बड्ड महत्व अछि। प्राचीनकालमे संभवतः जयमंगला गढ़ तांत्रिक बौद्धक केन्द्र रहल होएत। जयमंगला गढ़क उल्लेख मैथिली परम्परामे सेहो अछि आर पुरातात्विक दृष्टिकोणसँ तँ ओ पुराण स्थान अछिये। मिथिलामे तंत्रक प्रचारक जे रूप रहल हो से अलग बात मुदा एतवा धरि मिश्चित अछि जे एहिठाम आदि कालहिसँ शक्ति पूजाक बड्ड महत्व रहल अछि आर अहुखन मिथिलामे घरे–घर गोसाउनिक पूजा होइते अछि। मैथिल तांत्रिक विशेष कए वामाचारक पक्षधर होइत छलाह। मिथिलामे कौल आर दशमहार्विद्याक प्राधान्य छल। काली, तारा, भुवनेश्वरी, दुर्गा, पार्वती, आदिशक्तिकेँ विशेष महत्व एल जाइत छल। मिथिलाक तांत्रिकमे वामाचार आर दक्षिणाचार दुनू पाओल जाइत छथि। तंत्रक फलहि एहिठाम अभिचारकर्मक प्रारंभ भेल। लक्ष्मीधर ६४तंत्रक नाम गिनौने छथि। शूद्र आर मिश्रित जातिक लोगक हेतु वामाचारमे विशेष स्थान छल। ओना तंत्रक साधनामे जाति–पातिक कोनो विशेष महत्व नहि छल। तंत्रक मिथिलाक धार्मिक जीवन एकटा मुख्य अंग छल आर अध्ययन–अध्यापनक अतिरिक्त मिथिलामे एकर साधना सेहो कैल जाइत छल। दक्षिणाचार प्रतिष्ठित बुझल जाइत छल। कहल जाइत अछि जे तंत्र लकए मिथिला आर चीनक सम्पर्क भेल छलैक। मिथिलामे अहुखन नवरात्रक विशेष महत्व अछि आर अहुँसँ एकर तंत्रसँ प्रभावित हैव सिद्ध होइत अछि।
दार्शनिक पृष्ठ भूमिमे मिथिलामे जे धार्मिक विकास भेल ताहि फले मिथिलामे कर्मकाण्डक अभिवृद्धि भेल आर ई मिथिलाक साँस्कृतिक जीवनक एकटा प्रधान अंग बनि गेल। कर्मकाण्डक विकास एहिठाम प्राचीन कालमे भेल आर एखनो हमरा लोकनिक जीवन एवँ संसारपर एकर प्रभाव देखबामे अवैत अछि। वर्णाश्रमक विकासक संगहि संग कर्मकाण्डो अपना लोकनिक जीवन संस्कारक एक प्रमुख अंग बनि गेल अछि। कर्मकाण्डपर अनेकानेक ग्रंथ मिथिलामे लिखल गेल अछि आर कर्णाट कालमे वीरेश्वर, गणेश्वर आर रामदत्त एहिपर कतेको पोथी लिखने छथि। चण्डेश्वरक गृहस्थ रत्नाकर आर कृत्यरत्नाकर तथा ‘पूजा रत्नाकर’ एहि दष्टिकोणसँ बड्ड महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक मुख्य संस्कार जे सभ वर्णमे देखल जाइत अछि से भेल नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन आर विवाह। इ सभ कार्य मिथिलामे अपना पद्धतिक अनुसार होइत छल। प्राचीन मिथिलामे जैमिनीय कर्म मीमाँसा समाहृत छल आर एखनो एकरे प्रधानता अछि। कर्मकाण्डक पुष्टिकरणक हेतु तँ महाराज भैरवसिंहक शासन कालमे जरहटिया गाममे १४००मीमाँसक एक महान सम्मेलन भेल छल। जरहटियामे सभसँ पैघ पोखरि अछि जकर यज्ञ बड्ड उत्साहसँ भेल छल जाहिमे देश देशांतरक राजा आर विद्वानकेँ बजाओल गेल छल। लंकाक राजाकेँ आमंत्रित करबाक हेतु चौहान संग्राम सिंह आर केसरी सिंहकेँ पठाओल एल छलन्हि।
मैथिल लोकनि श्रौत, स्मार्त आर आगम तीनू कर्मकाण्डक अनुष्ठानक विधि लिखने छथि। एहि दृष्टिकोणसँ गोकुल उपाध्यायक कुण्डकादम्बरी महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। एकर अतिरिक्त संध्या तर्पण आर एकोदिष्टसँ पार्वनक नियम सेहो मैथिल लोकनिक ओतए प्रचलित अछि। मैथिल श्रीदत्तक ‘आह्निक’क प्रचलन एखनहुँ देखबामे अबैछ। विद्यापतिक ‘वर्षकृत्य’ सेहो एहि दृष्टिकोणसँ महत्वपूर्ण अछि। कर्मकाण्डपर अनेकानेक ग्रंथक प्रणयन भेल छल जाहिमे देशकर्म पद्धतिक बड्ड नाम छल। पूर्व–मीमाँसक लोकनिक ध्यान सेहो एहि दिशि गेल छलन्हि। श्राद्ध कर्मपर सेहो अनेकानेक ग्रंथक रचना भेल।
शिव शक्ति आर विष्णु पूजाक विधानपर सेहो पोथी लिखल गेल। नारायण पालक अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे कौशिकी कक्ष क्षेत्रमे एक हजार शिव मन्दिर बनल छल। मिथिलामे त्रिमूर्त्ति (ब्रह्मा–विष्णु–महेश)क कल्पना बड्ड पुरान रहल अछि। मुदा व्यवहारमे देखबामे इएह–अवैत अछि जे मिथिलामे शिव आर शक्तिक जनप्रियता विशेष रहल अछि। तंत्रक प्रधानता ताहु दिनमे छल आर एखनो अछि। तांत्रिक केन्द्र होएबाक कारणे मिथिलाक प्रसिद्धि विशेष छल आर बाहरोसँ लोक एहिठाम अबैत जाइत छलाह। शक्ति पूजाक विराट रूप अखनहुँ मिथिलामे देखल जाइत अछि। नवरात्रक महत्व अखनो एतए बड्ड अछि। तंत्रक प्रभाव तँ एहिठामक वेश भूषा आर साधारण जीवनमे अखनो देखबामे अवइयै जेना अइपन, साँवर पूजा, पाग, त्रिपुण्ड इत्यादि। मातृकापूजाक प्रथा प्राचीन कालसँ अद्यावधि विराजमान अछि। वर्णरत्नाकरमे विभिन्न प्रकारक सम्प्रदायक उल्लेख अछि आर ओहिसँ इहो ज्ञात होइछ जे एहिठाम नाथ पंच आर अन्यान्य मतक विकास सेहो भेल छल। धर्मस्थान आर सिद्ध लोकनिक वर्णन सेहो ओहि पोथीमे अछि। ज्योतिरीश्वर ‘बौद्ध पक्ष’क व्यवहार केने छथि आर ओहि संगे उदयनक उल्लेख सेहो।
पावनितिहारक उल्लेख हमरा लोकनिकेँ चण्डेश्वरक कृत्यरत्नाकरसँ भेटइत अछि। फागुन मासमे होलीक उल्लेख भेल अछि। प्रत्येक मासमे कोनो ने कोनो उत्सव होइते छल। कार्तिकेयक व्रतक बड्ड महत्व छल। हिन्दोल चैत्र, मदन द्वादशी, वसंतोत्सव, अक्षयतृतिया, गौरीव्रत, गंगा दशहरा, मत्स्य–द्वादशी, दुर्गाक रथयात्रा, पितृपक्ष, नवरात्र, देवोत्थान एकादशी, कोजागरा, शिव चतुर्दशी, आदि पावनिक नाम चण्डेश्वर लिखने छथि। मिथिलामे बिहुला पूजा, इन्द्रपूजा, कृष्णाष्टमी, गणेश चतुर्थी, जीतिया, धन्वन्तरी पूजा, दीपावली, सामाचकेबा, मधुश्रावणी, नेवान्न आदिक विधान सेहो बनल अछि। हरिहर क्षेत्रक स्थान सेहो बनल अछि। हरिहर क्षेत्रक स्थान सेहो प्राचीन कालहिसँ प्रसिद्ध रहल अछि।
मिथिलामे मुसलमानक एलाक बाद दुनू संप्रदायक बीच क्रमेण समन्वय स्थापित भेल आर मिथिला क्षेत्र सूफी लोकनिकेँ विशेष रूपें आकृष्ट केलक। ज्योतिरीश्वर आर विद्यापतिमे जे अरबी–फारसी शब्द भेटइयै ताहिसँ स्पष्ट भऽ जाइछ जे मिथिलामे मुसलमानक सम्पर्क पूर्वहिसँ रहल होइत। इस्लामी संस्कृतिक प्रभाव मिथिलाक धर्म आर संस्कृतिपर पड़ल होएत एहिमे कोनो सन्देह नहि। सत्यनारायण पूजा एकर एकटा प्रमाण देल जा सकइयै। मिथिलाक मुसलमानोपर एहिठामक संस्कृतिक प्रभाव पड़ल। तजिया दाहामे मैथिल लोकनि सेहो सक्रिय भाग लैत छथि। अकबरक चलाओल फसली संवतक व्यवहार मिथिलामे विशेष अछि। मैथिलीरागमे इमान आर फिरदौस मुसलमानी संपर्कक देन थिक। मुसलमान लोकनि मिथिलामे रहि मैथिल संस्कृतिसँ प्रभावित भेलाह आर सूफीक अप्रत्यक्ष प्रभाव तँ मिथिलाक भक्ति भावनापर देखले जा सकइयै। लोरिक कथापर आधारित दाउद अपन प्रेमकाव्य चन्दायन लिखने छथि। एवँ प्रकारे साँस्कृतिक समन्वय दुनू संस्कृतिमे भेल। अंग्रेजक आवागमनसँ अहुस्थितिमे परिवर्त्तन भेल मुदा मिथिलाक कट्टरता मिथिलामे ईसाइ धर्मक दालिकेँ गले नहि देलकन्हि। ओना ठाम–ठाम गिरिजाघरक फूजल मुदा ताहिसँ कोनो प्रभाव मिथिलाक जनजीवनपर नहि पड़ल। धर्ममे एहिठाम अखनो कर्मकाण्डी लोकनिक संख्या विशेष अछि आर कट्टर मैथिल अखनो सहजहि अपन अधिकार छोड़बा लेल प्रस्तुत नहि होइत छथि। ओ क्रिया कर्मकेँ विशेष महत्व दैत छथि आर अपन पद्धतिक अनुसार सभ काज करबाक पक्षपाती होइत छथि।
दर्शन:- मिथिला प्राचीन कालहिसँ दर्शनक एकटा प्रधान केन्द्र रहल अछि। ब्रह्मविद्याक जन्मदाता जनक जाहि दर्शनक श्रीगणेश केलन्हि तकर अभिवृद्धि दिनानुदिन होइत गेल आर मिथिला अपन न्याय आर दर्शनक हेतु जगत्प्रसिद्ध भऽ गेल। “तत् त्वंअसि”क मूलमंत्र हमरे लोकनि देने छी जकर विश्लेषण बादक प्रकाण्ड पण्डित लोकनि विभिन्न रूपे कएने छथि। माया, कर्म, मुक्ति, आत्मा सभहिक विश्लेषण राजा जनकक ओहिठाम भेल छल। धर्म मनुष्यक आन्तरिक सुखानुभूतिक वस्तु थीक–एहु सिद्धांतक विवेचन मिथिलेमे भेल अछि आर शतपथ ब्राह्मणमे कहल गेल अछि–“मनश्चहं वैवाकच भुजो देवभ्यो यज्ञः बहतः”–स्मरण रखबाक वस्तु ई अछि जे प्राचीन परम्पराक अवहेलना राजा जनक यज्ञ करबाक अधिकारक घोषणासँ कैलन्हि आर यज्ञ सेहो बिना पुरोहित वर्गक हस्तक्षेपकेँ। ओहि युगक हिसाबे ई एक महान क्रांतिकारी बात छल जकर नेतृत्व कए जनक पूर्वी भारतमे एकटा नव कीर्त्तिमानक स्थापना केलन्हि आर भविष्यक हेतु मार्ग दर्शन सेहो। जखन ओ ई काज सफलता पूर्वक कऽ लेलन्हि तखन हुनक अभिलाषा तँ पूर्ण भेवे केलन्हि मुदा एकरा संगहि संग इहो मान्य भेल जे कर्मक माध्यमसँ सभकेओ सभ किछु भऽ सकइयै। उपनिषद साहित्य मिथिलाक एहि गुण गौरवसँ भरल–पुरल अछि। जनकक एहि प्रतिज्ञासँ मिथिलामे एकनूतन युगक आविर्भाव भेल।
आत्माक तत्वज्ञक हेतु संसारमे कोनो बाधा नहि रहि जाइत छैक। एहि सत्यक विवेचन मिथिलहिमे भेल अछि–“तरति शोकं आत्मवित्”–आओर एकरहि संगहि संग इहो कहल गेल अछि जे ब्राह्मण कहबैत अछि। बृहदारण्यक उपनिषदमे एहि सभ बातक स्पष्टीकरण भेल अछि। राजा जनकक ओहिठाम दूर–दूरसँ दार्शनिकक भूमिए कहल गेल अछि। साँस्कृतिक दृष्टिकोणसँ तँ ओहुना उपनिषद युग भारतीय संस्कृतिक चरमोत्कर्ष मानल गेल अछि। मिथिलामे प्रारंभहिसँ छात्र लोकनिकेँ दार्शनिक शिक्षा देल जाइत छलन्हि आर एहि प्रकारे दार्शनिक शिक्षाक पृष्ठभूमि बनाओल जाइत छल। एहिठाम कुरू–पाँचाल धरिसँ लोग दार्शनिक शिक्षा लेबए अबैत छलाह। जनक स्वयं अपने पैघ–पैघ विद्वानसँ शिक्षा प्राप्त केने छलाह। हुनका दरबारमे पैघ–पैघ विद्वान सेहो रहैत छलथिन्ह। ओ अश्वमेघ यज्ञ सेहो केने छलाह।
ब्रह्मवैवर्त्तमे कहल गेल अछि जे निमी आर हुनक उत्तराधिकारी जनक वैदेह आयुर्वेदपर सेहो लिखने छलाह। एहि युगमे गौतम आर कपिल आयुर्वेद शास्त्रपर सेहो लिखने छलाह। चक्रपाणि शुश्रुतक हीरामे कपिलक उल्लेख केने छथि। व्यास निदान ग्रंथक टीकामे गौतमक उल्लेख केने छथि। मिथिला गयायुर्वेद (गाय बड़दक आयुर्वेद)पर सेहो एकटा ग्रंथ एहियुगमे लिखल गेल छल मुदा ओकर कोनो प्रमाण अखन नहि भेट रहल अछि। शुश्रुत अपन पोथी उत्तरतंत्रमे विदेह राज्यक वर्णन कएने छथि–“शाकल्य शास्त्रायिहिता विदेहाधिप कीर्तितः”। न्यायशास्त्रक प्रणेता महर्षि गौतम मैथिल छलाह। गौतमक अक्षपादक उल्लेख चीनी यात्रीक विवरणमे सेहो भेटैत अछि। राहुलजीक अनुसार अक्षपादक, वात्साययन आर उधोतकर मैथिल छलाह। याज्ञवल्म्यक जीवन चरित्र तँ सहजहि मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक जीवन चरित्र थीक। केओ केओ हुनका योगदर्शनक अगुआ सेहो मनैत अछि। “योगीश्वरं याज्ञवल्म्यं संपूज्य मुनयोऽब्रुवन्”। याज्ञवल्म्यक सामाजिक ओ सांस्कृतिक विचार उदार छल। गौतम, कपिल, ऋषि श्रृंग्य (मधेपुराक स्थित श्रृंगेश्वरक संस्थापक), विभाण्डक, सतानन्द, वेदवती आदि विद्वान–विदुषी मिथिलाक गौरवकेँ उठौने छथि।
सामान्यतया दर्शनक संख्या मानल गेल अछि। नास्तिक दर्शन विश्वक प्रत्यक्ष रूपकेँ निरूपण केनिहार शास्त्र थिक। नाम, रोप, कर्मवाला पदार्थक (प्रत्यक्ष जगतक) नास्तिक दर्शन जतेक गंभीरतापूर्वक विचार केलक अछि ततेक आस्तिक दर्शन दृश्य जगतपर नहि। एहि तथ्यकेँ दृष्टिमे राखि नास्तिक दर्शनक अवहेलना नहि कैल जा सकइयै। ओकर ज्ञान राखब आवश्यक। वेदांत निर्गुण आत्मा मानैत अछि। जैन दर्शनक मुक्तिक तीन प्रधान मार्ग अछि–सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान आर सम्यग् चरित्र। वैशेषिकक उद्देश्य प्रधान तथा विश्व थिक। वैशेषिक दर्शन ईश्वरक द्वारा साक्षात सृष्टिक उद्भवनहि मानि इश्वरक इच्छासँ सृष्टिक प्रवृति मानैत अछि। अणुवाद एहि तंत्रक प्रिय धरातल थिक। महामुनि कपिल वैशेषिक तंत्र संमत परमाणुवादसँ संतुष्ट नहि छलाह। वैशेषिक दर्शनक प्रधान लक्ष्य अधिभूत प्रपंच थिक–द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय–जकर आधि भौतिक जगतसँ सम्बन्ध मानल गेल अछि। साँख्य एहि सभसँ अतिरिक्त एक पुरूष सत्ता आर मनलक अछि। कपिलक दर्शन साँख्य नामे विख्यात अछि। साँख्यतंत्र प्रकृति जगतक कर्त्री थिकीह।
– “प्रकृतिः कर्त्री, पुरूषस्तु पुष्करपलाशवत् निर्लेपः किंतु चेतनः”।
वैशेषिक परमाणुसँ विश्वक उत्पत्ति मानैत अछि। ई दर्शन स्थूल शरीर सम्बन्धी भूतक व्याजसँ सांसारिक पदार्थक सार्ध्म्य एवँ वैधर्भ्यक निरूपण केलक अछि। नास्तिक दर्शनकेँ शास्त्रार्थ द्वारा परास्त करबाक उद्देश्यसँ तर्कशास्त्रक निर्माण भेल।
विदेहक राज्य सभामे एवँ याज्ञवल्म्यक सभापतित्वमे ब्राह्मण ग्रंथक निर्माणेटा नहि भेल अपितु गूढ़ धर्मतत्वक निर्णय सेहो। कर्मक अनुष्ठान करबामे कृष्ण विदेह राज जनककेँ ओ सर्वश्रेष्ठ मनने छलाह आर ओकरे आदर्श मनैत छलाह। न्यायशास्त्रक उद्गम स्थल मिथिले अछि। गौतम एवँ कणाद मैथिल छलाह। भारतीय गूढ़ दर्शनक तत्वक विवेचना मिथिलामे प्रारंभ भेल छल आर ओहि परम्पराकेँ बादमे मण्डन, वाचस्पति, मदन, उदयनाचार्य, गंगेश, पदाधर, आर शंकर मिश्र बढ़ौलन्हि। मिथिलामे पूर्व मीमाँसा आर वेदांत (उत्तर मीमाँसा)क पूर्ण रूपेण विकास भेल छल। कर्मकाण्ड (पूर्व मीमाँसा) आर ज्ञान काण्ड (उत्तर मीमाँसा)पर एहि ठाम विशद् विश्लेषण कैल गेल। वेदांतक माध्यमसँ ब्रह्म–जिज्ञासापर जोर देल गेल अछि। वेदांत उपनिषद, गीता आर वादनारायणक ब्रह्मसूत्रपर आधारित अछि। वेदांतक विश्लेषण बादमे बहुतो गोटए अपना–अपना ढ़ँगे केने छथि। न्याय आर मीमाँसाकेँ मिथिलाक अपूर्व देन मानल जाइत अछि। गौतमसँ गंगेश धरि दर्शनक इतिहास मिथिलाक एकटा स्वर्णिम पृष्ट मानल गेल अछि। मीमाँसाकेँ प्रखर केनिहार छलाह कुमारिल, प्रभाकर आर मुरारी।
मिथिलाक दर्शनक इतिहासमे कुमारिल आर शंकरक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल गेल अछि। ब्रह्मसूत्रपर टीका लिखि शंकर वेदांतकेँ आर जगजिआर केलन्हि। कुमारिल जैमिनीक मीमाँसा सूत्रक आलोचना केने छथि। हुनका भट्टक पदवी छलन्हि आर तै हुनक मतकेँ भट्टमत सेहो कहल जाइत छन्हि। मैथिल लोकनि हिनका मिथिलाकेँ मनैत छथि आर आनन्दगिरी शंकर दिग्विजयमे मण्डन मिश्रकेँ कुमारिलक भगिनीपति कहने छथि। भट्टपुराक निवासी कुमारिलकेँ मानल गेल अछि आर हुनका मतकेँ भट्टमत कहल गेल अछि। बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्तिसँ सेहो हुनका वाद–विवाद भेल छलन्हि। हिनक प्रसिद्ध पुस्तक अछि श्लोक वार्त्तिक, तंत्र वार्त्तिक, वृहत टीका, मध्यम टीका इत्यादि। तंत्र वार्त्तिक स्वर भाष्यपर टीका थिक। श्लोकवार्त्तिकपर बहुत रास मैथिल विद्वान सभ टीका लिखने छथि। भट्टमतक संस्थापकक रूपेँ ओ मिथिलामे प्रख्यात छथि।
पूर्व मीमाँसा आर वेदांतक क्षेत्रमे मिथिलाक इतिहासमे मण्डन मिश्रक नाम अग्रगण्य अछि। एक परम्पराक अनुसारवाद विवादमे मण्डन शंकराचार्य द्वारा पराजित भेलाह आर शंकराचार्यक मत ग्रहण केलाक बाद ओ सुरेश्वराचार्यक नामे प्रसिद्ध भेलाह। अपन रचनासँ ओ बौद्ध दार्शनिक लोकनिकेँ धतौलन्हि। मण्डन–सुरेश्वराचार्यक मिलौनाई विद्वानकेँ ग्राह्य नहि छन्हि। मैथिल परम्पराक अनुसार मण्डन महिषीक रहनिहार छलाह आर शंकर जखन वाद–विवादक हेतु आएल छलाह तखन ओ काफी बृद्ध भऽ गेल छलाह। ओ कुमारिलक बहनोई छलाह आर हुनक पत्नी भारती अद्वितीय विदुषी छलथिन्ह। मण्डन भट्टमतक विशेषज्ञ आर व्याख्याता छला आर कुमारिलक तंत्र वार्त्तिकपर टीका लिखने छलाह। मण्डनक प्रसिद्ध पुस्तक अछि विधि विवेक, भावना विवेक, विभ्रम विवेक इत्यादि। अपन रचनाक आधारपर ओ अद्वैतक प्रवर्त्तक कहल जा सकैत छथि। हुनक अद्वितीय विद्याक हेतु शंकरकेँ एतए आबए पड़ल छलन्हि आर दुहुक बीच जे वार्त्तालाप भेल छल ताहिमे भारती सभापतित्व केने छलीह। मण्डनक ब्रह्म सिद्धि प्राक्–शंकर वेदांतक प्रसिद्ध ग्रंथ मानल गेल अछि। “स्वतः प्रमाण” (मीमाँसा वेदांत) आर “परतः प्रमाण” (त्यायादि) शब्द हुनक दार्शनिक ज्ञानक परिचय दैत अछि। ‘ब्रह्मसिद्धि’क “ब्रह्मतत्व समीक्षा”क अंशपर वाचस्पति टीका लिखने छलाह।
मीमाँसाक क्षेत्रमे गुरूमतक प्रवर्त्तक प्रभाकर मिश्रक उल्लेख करब आवश्यक बुझना जाइत अछि। एहिमतकेँ प्रभाकर स्कूल सेहो कहल जाइत अछि। मीमाँसाक लोकनि हिनका गुरूक पदवी देने छथिन्ह। ई मण्डन मिश्रक सहपाठी छलाह। शबर भाष्य हिनको एकटा टीका छन्हि–‘बृहतिः’। प्रभाकरक मतकेँ गुरूमत, कुमारिलक मतकेँ भट्टमत आर मुरारि मिश्रक मतकेँ मिश्र मत कहल जाइत छैक। मुरारिक पत हिनका दुनूसँ भिन्न छल मुरारिक पथ ‘तृतीय पथ’ कहल गेल छैक।
वाचस्पति मिश्रक नाम मिथिलाक दर्शनक इतिहासमे अद्वितीय अछि। ओ पूर्वी मिथिलाक निवासी छलाह आर ओम्हुरकेँ राजाक दरबारमे रहैत छलाह। राहूल जीक अनुसारे वाचस्पतिक प्रसादे मिथिलाक दार्शनिक ज्ञान बाँचल, बढ़ल आर बौद्ध दार्शनिकक आक्रमणसँ बचि सकल। बौद्ध दर्शनक खण्डन कए ओ आदर्शवादी दर्शनक रक्षा केलन्हि। उद्योतकरक न्यायवार्त्तिकपर हुनक टीका प्रसिद्ध अछि। वाचस्पतिकेँ षड़दर्शनवल्लभ, सर्वतंत्र स्वतंत्र आर द्वादश दर्शन टीकाकारक संज्ञा भेटल छलन्हि। हुनका तात्पर्चाचार्यक पदवी सेहो छलन्हि। शंकर भाष्य ब्रह्मसूत्र ओ जे अपन टीका लिखने छलाह तकर नाम छल भामती (अपना पत्नीक नामपर) जकर विशद विश्लेषण अखनो अपेक्षिते अछि। वेदांत साहित्यमे भामतीक स्थान अद्वितीय अछि आर ओहिमे ओ बौद्ध सिद्धांत ‘प्रतीत्य समुत्पाद’क उल्लेख सेहो केने छथि। तात्पर्य टीकामे ओ दिङ्नागक उक्ति देने छथि। षडदर्शनक सभ अंशपर ओ अपन विवेचन उपस्थित केने छथि आर ईश्वर कृष्णक साँख्यकारिकापर हुनक टीका साँख तत्व कौमुदी साँख्य साहित्यमे अद्वितीय स्थान रखैत अछि। मण्डन मिश्रक विधि विवेक आर ‘ब्रह्मसिद्धि’पर ओ क्रमशः न्यायकणिका एवँ तत्वसमीक्षा, तत्व बिन्दू नामक टीका लिखलन्हि। अपना युगमे ओ समस्त उत्तर भारतमे वेदांतपर एक मात्र अधिकारी विद्वान मानल जाइत छलाहे। न्यायकणिका न्यायक अपूर्व पुस्तक मानल गेल अछि। दृष्टिश्रृष्टिवाद एवँ जीव श्रृष्टि अविधापक्षाक हुनका संस्थापक मानल गेल अछि। योगदर्शनक टीका रूपे ओ तत्ववैशारदी लिखलन्हि। एहिसँ ई प्रत्यक्ष भऽ जाइछ जे दर्शनक एहेन कोनो शाखा नहि छल जाहिपर ओ नहि लिखने होथि। हिनकहि प्रयाससँ समस्त न्यायशास्त्रपर मिथिलाक एकाधिपत्य भेल। ई बौद्ध दार्शनिक वसुबन्धुक उल्लेख सेहो कएने छथि।
मीमाँसाक इतिहासमे पार्थसारथी मिश्रक नाम सेहो उल्लेखनीय अछि। शास्त्र दीपिका नामक पोथी हिनक प्रसिद्ध अछि। ई कुमारिलक समर्थक छलाह आर सालिकनाथ मिश्र प्रभाकरक श्लोकवार्त्तिकपर पार्थसारथी मिश्रक टीका न्यायरत्नाकरक नामे प्रसिद्ध अछि।
एक बार मिथिलामे अवतीर्ण भेलाह प्रसिद्ध नैयायिक उदयनाचार्य। ई न्याय शास्त्रक अद्वितीय विद्वान छलाह। किरणावली, कुसुमाँजलि, न्याय परिशिष्ट, न्याय वार्त्तिक, तात्पर्य परिशुद्धि, आत्मतत्वविवेक आदि हिनक लिखल प्रसिद्ध पुस्तक सभ अछि। न्यायक क्षेत्रमे ओ अद्वितीय मानल गेल छथि आर अपन तर्क प्रणालीसँ ओ बौद्ध लोकनिकेँ परास्त कए पूर्ण यश प्राप्त केने छलाह। मैथिली परम्परामे तँ एतेक धरि कहल गेल अछि जे ओ बौद्धसँ ततेक दूर रहए चाहैत छलाह जे ओ मिथिलासँ दूर जाके राजा आदिसूरक धर्माधिकरणिक बनि गेलाह। हुनक ग्रंथ लक्षणावलीसँ ज्ञात होइछ जे ९८४ई.मे जीवित छलाह। आत्मतत्वविवेक चारि परिच्छेदमे बटल अछि–
i) प्रथम परिच्छेदमे संसारक अस्थायित्वपर विचार भेल अछि।
ii) दोसर परिच्छेदमे ओ आदर्शवादीक व्यक्तिगतक विश्लेषण करैत छथि।
iii) तेसर परिच्छेदमे गुणसँ फराक ओ द्रव्यकेँ नहि मनैत छथि।
iv) चारिम परिच्छेदमे ईश्वरक हेबाक पक्षमे पूर्ण नैयायिकक तर्क उपस्थित केने छथि।
–ई हुनक सभसँ प्रसिद्ध ग्रंथ मानल गेल अछि आर एहिमे ओ बौद्ध लोकनि पूर्ण आलोचना केने छथि आर बौद्धक अनात्मवादक विरूद्ध एहिमे आत्माक प्रतिष्ठाकेँ पुनर्स्थापित कैल गेल अछि। न्यायकुसुमाञ्जलिमे सेहो ईश्वरक स्तित्वपर विचार कैल गेल अछि आर बौद्धक दृष्टिकोणक आलोचना सेहो। तेरहम शताब्दीमे वर्द्धमान ‘प्रकाश’क टीका आर रूचिदत्त ‘मकरन्द’ नामक टीका एहिपर लिखलन्हि। वैशेषिकक दृष्टिकोणसँ उदयन अपन न्याय पद्धतिक स्थापना केने छलाह। नव–न्यायक प्रमुख संस्थापकमे हुनक नाम आएब स्वाभाविके। हुनका नामपर निम्नलिखित श्लोक प्रचलित अछि–
– “एश्वचर्य मदमलोऽसि माम वज्ञाय वर्त्तसे
पुनबौद्धे समायते मदधीना तवस्थितिः” –
मीमाँसाक अतिरिक्त मिथिलाक महत्वपूर्ण योगदान नव–न्यायक क्षेत्रमे रहल अछि। एहि नव–न्यायक क्षेत्रमे रहल अछि। एहि नव न्यायक संस्थापक छलाह गंगेश उपाध्याय। उदयनाचार्य बौद्धक विरूद्ध जे तर्कपूर्ण विवाद प्रारंभ केने छलाह तकर स्वागत बंगालक रघुनाथ शिरोमणि तथा मिथिलाक शंकर मिश्र आर भगीरथ ठाकुर, अत्रेय नारायणाचार्य आदि बादमे ओकर विशद विश्लेषण सेहो केने छलाह। उदयनाचार्यक पूर्वहिसँ मिथिलामे मण्डन–वाचस्पति दर्शनक जे एकटा अविच्छिन्न श्रृंखला चलौने छलाह तकर परिणति भेल गंगेशक नव–न्यायक स्थापनामे। करिऔनमे ताहि दिनमे दर्शनक अध्ययन–अध्यापनक एकटा प्रधान केन्द्र छल आर ओतहि भेल छलाह उदयनाचार्य आर ओहि केन्द्रक छात्र छलाह गंगेश उपाध्याय।
पुरनका न्याय आर वैशेषिककेँ जन्मदाता छलाह गंगेश। नव–न्यायपर श्रीहर्षक खण्डन–खण्ड–खाद्यक प्रभाव सेहो देखबामे अवइयै। गंगेश अपन तत्वचिंतामणिमे श्रीहर्षक मतक आलोचना केने छथि। गंगेशमे हमरा मीमाँसा आर वेदांतक आलोचना सेहो भेटैत अछि। ओ मात्र चारिटा प्रमाणकेँ मनैत छथि–i) प्रत्यक्ष, ii) अनुमान, iii) उपमान, आर iv) शब्द। पुनः प्रत्यक्षकेँ बारह वादमे, अनुमानकेँ सत्रह वादमे, आर शब्दकेँ सोलह वादमे बाँटल गेल अछि। बादमे चलिकेँ नवद्वीपक लोग सभ अनुमानपर विशेष जोर देलन्हि। ताहि दिनसँ अद्यावधि तत्वचिंतामणि अद्वितीय न्यायक ग्रंथ मानल गेल अछि आर नव–न्यायक तँ ई मूल श्रोते भेल। मिथिलासँ पढ़िकेँ गेलाक बाद जखन रघुनाथ शिरोमणि नादियामे नव–न्यायक स्थापना केलन्हि तखन ओहिठाम गंगेशक ग्रंथपर बहुत रास आलोचना लिखल गेल। मिथिलामे पक्षधर मिश्र एहि ग्रंथपर ‘आलोक’ नामक टीका लिखलन्हि आर बंगालमे हुनक शिष्य रघुनाथ शिरोमणि ‘दीघिति’ नामक टीका आर मथुरा नाथ तर्कवागिश ‘प्रकाश’ नामक टीका लिखलन्हि। पुनः ‘दीघिति’पर जागदीशी आर गदाधरी टीका लिखल गेल। गंगेश तँ एहिरूपक नव–न्यायक सृष्टि केलन्हि जे आगँ चलिकेँ विशेष विद्वत–प्रिय भेल आर प्राचीन न्याय शास्त्र पठन प्रणालीमे आमूल्य परिवर्त्तन अनलक। युग युगांतरसँ भारतमे मैथिल लोकनि श्रेष्ठतम नैयायिक भेल छथि। नव–न्यायक स्थापना तँ मिथिलामे भेल मुदा एकर प्रस्फुटन नादियामे (देखु–इंगल्स नामक अमरीकी विद्वानक पोथी–“मटेरियल्स फार द स्टडी आफ नव–न्याय”)। गंगेशक पुत्र वर्द्धमान सेहो पैघ नैयायिक भेलाह। ओ गंगेशक सभ पोथीपर टीका लिखने छथि। ‘प्रकाश’नाम टीकाक रचयिता ओ छलाह। लीलावती प्रकाशमे ओ अपन पिताक सम्बन्धमे कहने छथि–
– “न्यायाम्भोज पतङ्गाय मीमाँसा पार दृश्यने
गंगेश्वराय गुरवेपित्रेऽत्र नमः”
एहिठाम ई स्मरण रखबाक अछि जे वर्द्धामान धर्माधिकारिण वर्द्धमानसँ भिन्न छलाह। बड्ड प्रतिष्ठाक संग सर्वदर्शन संग्रहमे हिनक उल्लेख भेल अछि। नव–न्यायक क्षेत्र्मे मिथिलामे निम्नलिखित व्यक्ति प्रसिद्ध भेल छथि–पक्षधर (जयदेव) वासुदेव, रूचिदत्त, भगीरथ ठाकुर, महेश ठाकुर, शंकर मिश्र, वाचस्पति मिश्र (अभिनव), मिसारू मिश्र, दुर्गादत्त मिश्र, देवनाथ ठाकुर, मधुसुदन ठाकुर इत्यादि।
वाचस्पति मिश्र न्याय, मीमाँसा धर्मशास्त्र आदिक प्रकाण्ड पण्डित भेल छथि। हुनक पुत्र नरहरि मिश्र सेहो महान विद्वान छलथिन्ह। अयाची मिश्रक पुत्र शंकर मिश्रक पिता भवनाथ मिश्र सेहो पैघ नैयायिक छलाह। शंकर मिश्रक सम्बन्धमे कहबी अछि जे जखन ओ नेना छलाह तखन मिथिलाक कोनो राजा ओहि बाटे जा रहल छलाह जे हिनक सौन्दर्यसँ अत्यंत मुग्ध भऽ गेलाह आर बालककेँ बजाकेँ कोनो श्लोक सुनेबाक हेतु कहलथिन्ह। शंकर मिश्र निम्नलिखित श्लोक सुनौलन्हि–
– “बालोऽहं जगदानन्द नमे वाला सरस्वती
अपुर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्रयम्”।
महाराज कहलथिन्ह जे अपन आनक मिश्रित कए श्लोक पढ़ू–तखन शंकर मिश्र पढ़लन्हि–
– “चलित श्चकितश्छन्नः प्रयाणेत्व भूपते
सहर्षशीर्षा पुरूषः सह श्राक्षः सहस्त्रपात्”।
महाराज प्रसन्न भए दान देलथिन्ह। शंकर मिश्र महाराज भैरव सिंहक कनिष्ठ पुत्र राजा पुरूषोत्तम देवक आश्रित रहैथ। शंकर अपना समयक अद्वितीय विद्वान छलाह आर बहुत रास पोथीक प्रणेता सेहो रहल छथि।
पदाधर मिश्र (जयदेव–पीयूष वर्ष) विद्यापतिक समकालीन व्यक्ति छलाह आर मिथिलाक नव–न्यायक एक प्रकाण्ड सेहो। उहो भैरव सिंहक समयमे विराजमान छलाह। न्याय–शास्त्र ओ अदभूत विद्वान छलाह। मैथिली परम्परामे ई बात सुरक्षित अछि जे जतय कतहु कोनो विषयमे शास्त्रार्थ अथवा वाद–विवाद होमए लगैक आर ओहिमे जकर पक्ष लचल होइक तकरे पक्ष धय उपपादन करेऽलागैथि पक्षधर आर एवँ प्रकारे सर्वत्र विजयी हेबाक कारणे लोक हुनका ‘धक्षधर’ कहए लागल। हुनका सम्बन्धमे निम्नलिखित श्लोक प्रचलित अछि–
– “शंकर वाचस्पत्योः शंकर वाचस्पति सदृशौ।
पक्षधर प्रतिपक्षी लक्षी (क्षयी) भूतो नवर्त्तते जगति”॥
कवि समाजमे ओ ‘पीयूष वर्ष’क नामे प्रसिद्ध छलाह आर चन्द्रालोकमे ओ अपन एहिनामक व्यवहार सेहो केने छथि–
“चन्द्रालोकंममुं स्वयं वितनुते पीयूषवर्षः कृती”॥
पक्षधर मिश्रक हाथक लिखल विष्णुपुराणमे निम्नलिखित श्लोक भेटैत अछि। तड़िपतपर लिखल ई पोथी भट्टपुरा गाममे अछि (पोथी जोगियार गामक केशव झा नैयायिकक ओतए छलन्हि)।
– “वाणैर्वेद युतैः सशंभुनयनैः संख्या गते हायने
श्रीमदगौड़मही भुको गुरूदिने मार्गेच पक्षसिते।
षष्ठयांताममरावती मधिवसन् या भूमिदेवालया
श्रीमत पक्षधरः सुपुस्तकमि दं शुद्धं व्यलेखीदद्रुतम्॥
=(लं.सं.–३४५)
पक्षधर मिश्रक सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ मानल गेल अछि ‘आलोक’ आर एहि ‘आलोक’ आरो कतए गोटए बादमे टीका लिखलन्हि। रघुनाथ शिरोमणि मिथिला विजयार्थ आएल छलाह परंतु पक्षधर मिश्रक विद्यार्थी सभसँ परास्त तृतीय श्रेणीक छात्रक संग हुनकासँ पढ़ए लगलाह आर थोड़ेक दिन अपन प्रतिभासँ उत्तम विद्वान भए स्वदेश गेलाह आर वंग देशमे न्याय विद्याक प्रचार आअ उन्नति केलन्हि।
’आलोक’ गंगेशक तत्व चिंतामणिपर टीका थिक। हिनक लिखल दोसर ग्रंथ अछि चन्द्रालोक–ई ग्रंथ अलंकार विषयपर अछि आर एकरे आधारपर अधयजी दीक्षित कुवलयानन्द नामक अलंकार ग्रंथ बनौलन्हि। ई एकटा प्रसन्न–राघव नाटक सेहो लिखने छलाह। हिनक आरो बहुत रास पुस्तक सभ अछि।
शंकर मिश्रक समय धरि मैथिल विद्वान लोकनि बौद्ध मान्यताकेँ कहैत रहलाह अपन आदर्शवादी दर्शनक विश्लेषणमे व्यस्त रहलाह। बौद्ध धर्मक दूटा शाखा भऽ गेल छल–हीनयान आर महायान। महायानक प्रभावे वज्रयान–तंत्रयानक विकास सेहो भेल आर मिथिलाक तंत्रहुँपर बौद्ध तंत्रक प्रभाव पड़ल हो तँ कोनो आश्चर्य नहि। कुमाइल भट्ट आर शंकराचार्यक प्रभावसँ बौद्ध धर्मक ह्रास भेल। ‘शंकर दिग्विजय’मे कुमारिलक मुँहसँ शंकराचार्यकेँ निम्नलिखित वाक्य कहाओल गेल अछि–
– “श्रुत्यर्थ धर्म विमुखान सुगतान् निहंतुं
जातं गुहं भुवि भवंतमहं नु जाने”॥
एहिमे तथ्य कहाँ धरि से कहब कठिन मुदा ई तँ निश्चित अछि जे कुमारिल, शंकराचार्य, मंडन आर वृद्ध वाचस्पतिक प्रयासे मिथिलामे बौद्ध धर्मक अंकुश नहि जमि सकल आर एहिठाम हिन्दूधर्मक प्रधानता बनल रहल। अद्वैत वेदांतक इतिहासमे शंकराचार्य एक नवीन धाराक प्रवर्त्तक मानल जाइत छथि। बड्ड सूक्ष्म ढ़ँगसँ ओ अपना ग्रंथमे बौद्धमतक खण्डन केने छथि। माधवक शंकर दिग्विजयक अनुसार सुधन्वा नामक एक राजा शंकराचार्यक कहलापर हजारो बौद्धकेँ नदीमे डुबा देलन्हि। मुदा एहिमे तथ्यक कतबा अछि से कहब असंभव। शंकरा चार्य आर मंडनसँ विशेष श्रेय बृद्ध–वाचस्पतिकेँ भेटबाक चाही जे अपन युक्तिसंगत तर्क आर दार्शनिक कुशलतासँ बौद्ध लोकनिकेँ परास्त करबामे सफल भेलाह। वाचस्पति मिश्रसँ शंकर पक्षधर मिश्र धरि दर्शनक क्षेत्रमे ई बाद–विवाद चलैत रहल।
एहि सभ वाद–विवादक बाबजूदो मिथिलामे कर्णाट आर ओइनवार वंशक समयमे हम देखैत छी जे धार्मिक सहिष्णुताक भावना विराजमान छल। १२३४–३६धरि तिब्बती यात्री धर्मस्वामी (बौद्ध) भारतमे छलाह आर राजा रामसिंह देवसँ हुनका विशेष प्रेम छलन्हि। रामसिंह स्वयं तँ ब्राह्मण धर्मक समर्थक छलाह तथापि ओ धर्मस्वामी केने छथि। कट्टर मैथिल लोकनि बौद्ध–विरोधी छलाह आर उपेन्द्र ठाकुरक मते मैथिल ब्राह्मण बौद्धकेँ मुसलमानसँ बेसी घृणा करैत छलाह। ज्योतिरीश्वर ठाकुर बौद्धकेँ पतीत आर खतरनाक कहने छथि आर बौद्ध विरोधी भावनाकेँ प्रखर करबाक हेतु उद्ययनक प्रशंसा केने छथि। सप्तरी इलाकामे बौद्ध आर हिन्दूक बीच बरोबरि संघर्ष होइते रहैत छल।
मिथिलामे ताराक प्रधानता प्राचीन कालहिसँ अछि तकर प्रमाण हमरा धर्मस्वामीसँ भेटैत अछि। ‘तारा’केँ ताहि दिनमे बौद्ध देवीक रूपमे मानल जाइत छल। मुदा तंट्रक विकास भेलासँ ‘तारा’ तांत्रिक देवीक रूपमे सेहो स्वीकृत भेल आर मिथिलामे एकर जनप्रियता बढ़ि गेलैक। १२–१३म शताब्दीमे वैशालीकेँ तीरभुक्तिक अंतर्गत राखल गेल अछि। बौद्ध धर्मक सम्बन्धमे चण्डेश्वरक कृत्य रत्नाकरमे कहल गेल अछि जे बुद्धक पूजा चैत्र शुक्ल प्रति पदाकेँ होयबाक चाही। वैशाख आर श्रावण सेहो बौद्ध पूजाक बिधान बताओल गेल अछि। एहिसँ बुझि पड़इयै जे बौद्ध लोकनिक किछु संख्या मिथिलामे अवश्य रहल होएत आर चण्डेश्वर सन समंवयवादी ओकरो ध्यानमे राखि अपन विधान बनौने होएताह।
मिथिलामे सूफीसंत लोकनिक प्रभाव सेहो विशेष छल आर प्रोफेसर सैयद हसन असकरीक निबन्ध सभमे एकर विशद विश्लेषण भेल अछि। सूफी लोकनिक प्रभावे एहि क्षेत्रमे रहस्यवादक विकास भेल। मिथिलामे शेख फतु, शेख बुरहान आर इसमाइल, सैयद मुहम्मद, सैयद अहमद, अबुल फतेह, हियायतुब्लाह, मीर इब्राहिम चिस्ती, शेख हुसैन, शाह ताजनुदीन शेख शमशुद्दीन, शमन मदारी, पीर शाह नजीर, आर शेख ताजुद्दीन मदारी आदि प्रमुख सूफी संत सभ भऽ गेल छथि। बिहारी लालक ‘आयनी–तिरहूत’मे मिथिलाक बहुत रास मुसलमानी परिवारक इतिहास सुरक्षित अछि। शताब्दीक सम्पर्क आर संघर्षक उपरांत तँ आब मिथिलाक माँटि–पानिमे ई लोकनि एहेन मिल गेल छथि जे ओहिसँ हिनका लोकनिकेँ फराक करब असंभव। हिनका लोकनिक ‘मरसिया’ मैथिली साहित्यक एकटा प्रमुख अंग बनि चुकल अछि।





अध्याय–19
मिथिलामे शिक्षाक विकास

उपनिषद एहि बातक प्रमाण अछि जे मिथिलामे अति प्राचीन कालहिसँ शिक्षाक प्रचार बेस रहल अछि। विद्या व्ययसनी एहि ठामक लोग सभ दिनसँ होइत आएल छथि आर विद्वानक प्रतिष्ठाक स्वीकृति सर्वश्रेष्ठ एवँ सर्वप्रथम उदाहरण हमरा जनकक राजसभासँ भेटैत अछि। उपनिषदसँ ई ज्ञात होइछ जे ताहि दिनमे लोक शिक्षापर विशेष ध्यान दैत जाइत छलाह। याज्ञवल्म्यक मत छन्हि जे गुरूकेँ विद्यार्थी ताधरि कोनो प्रकारक दान इत्यादि नहि ग्रहण करबाक चाही जाधरि ओ अपन शिक्षा समाप्त नहि कलैत छथि। एकर अर्थ ई भेल जे गरीबसँ गरीब विद्यार्थी सेहो गुरूक ओतए जाए शिक्षा प्राप्त कऽ सकैत छल। शिक्षा प्राप्त करबाक मार्गमे अर्थक कमीकेँ बाधक नहि बुझल जाइत छल। शिक्षको निस्वार्थ भावे समाजक सेवा करैत छलाह। शिक्षककेँ राज्यसँ पूर्ण सहयोग भेटैत छलन्हि आर हुनक सम्मान आर प्रतिष्ठाक तँ कोनो कथे नहि। यज्ञमे राजा ब्राह्मणकेँ गाय आर सोना दानमे दैत छलथिन्ह। विद्वान कखनो कोनो स्थिति कोनो सहाय्यकहेतु राज दरबारमे निःसकोच आ सकैत छलाह। आचार्य लोकनिक सभ प्राकरक दिक्कतकेँ दूर करबाक कार्यकेँ शासक अपन धर्म बुझैत छलाह कियैक तँ हुनका लोकनिक जीवन विद्याध्यनक हेतु समर्पित छल। चारि वेदक अतिरिक्त इतिहास, पुराण, विद्या, उपनिषद, श्लोक, सूत्र, अनुव्याख्यात, व्याख्यान आदिक पठन–पाठन होइत छल। ऋषिक आश्रम विद्यालयक काज करैत छल आर आश्रमेकेँ प्रसिद्ध विद्या केन्द्र मानल जाइत छल। विदेहमे ताहि दिनमे पढ़ल–लिखल लोगक संख्या विशेष छल।
बलिकेँ सर्वप्रथम तँ अपना घरेमे शिक्षा भेटैत छलैक। ताहि दिनमे बालक–बालिकामे कोनो भेद नहि छल आर दुहुकेँ शिक्षा देबाक प्रथा छल। वैदिक स्कूलमे (चरण)मे बालिकाक प्रवेश सेहो होइत छल। कथ–सम्प्रदायमे शिक्षित बालिकाकेँ कथी कहल जाइत छल। ताहिदिन गार्गी, मैत्रेयी, सुलभा सन विदुषी छलीहे। उपनयनक बाद अध्ययनक विशेष कर्म शुरू होइत छल। विद्यार्थी जीवन बारह वर्षक होइत छल आर बारह वर्ष विद्यार्थी अपन गुरूक संग रहि विद्याध्ययन करैत छलाह। विद्यार्थीकेँ आचार्य कुल वासिन आर अंतेवासिन कहल जाइत छलन्हि। दिनमे सुतव निषेध छल। गैर–ब्राह्मणकेँ शिक्षाक एतेक सुविधा नहि रहल हेतैन्ह। एक लव्यक कथासँ एहि बातपर प्रकाश पड़ैत अछि। उद्धालक, आरूणी, स्वेतकेतु, आदि तहि दिनक प्रसिद्ध विद्वान छलाह। भ्रमणशील रहितहुँ किछु गोटए विद्याक उपार्जन करैत छलाह आर एहेन भ्रमणशील विद्यार्थीसँ जनककेँ भेट भेल छलन्हि–स्वेतकेतु आरूणेय, सोमशुष्म, सत्ययज्ञी आर याज्ञवल्म्य। एहि क्रममे जनक–याज्ञवल्म्यकेँ विवादो भेल छलन्हि आर एकर बादहिसँ जनक ‘ब्रह्मवादिन’क कोटिमे आवि गेल छलाह। प्रसिद्ध क्षत्रिय विद्वानमे काशीक अजातशत्रु, प्रवाहन जैवाली, केकैयक अश्वपति, विदेहक जनक, तथा प्रतर्दन आदिक नाम उल्लेखनीय अछि।
उपनिषद उगमे मिथिला विद्याक प्रधान केन्द्र छल। जनक ‘ब्रह्म’क सम्बन्धमे निम्नलिखित ६शिक्षकसँ अपन ज्ञान पाप्त केने छलाह–जित्वन, उदंक, बरकु, गर्दभी विपीत, सत्यकाम, साकल्य। याज्ञवल्म्यसँ ओ उपनिषदक ज्ञान प्राप्त केने छलाह। जनकक उदारतासँ काशीक अजातशत्रु तबाह रहैत छलाह। जनकक अश्वमेघ यज्ञक अवसरपर निम्नलिखित दार्शनिक लोकनि उपस्थित छलाह। उद्धालक, आरूणि, अश्वल, जारूतकाख आर्त्त भाग, भुज्युलाहयायनि, अशष्ट चाक्रायण, कहोड़, कौषितकेय, विदग्ध शाकल्य एवँ गार्गी आर एहिमे याज्ञवल्म्य विजयी भेल छलाह। जनक प्रभावित भए अपन समस्त विदेह राज्य याज्ञवल्म्यकेँ अर्पित केने छलाह।
शिक्षाक प्रगतिक क्रम ओकर बादो चलिते रहल आर बौद्ध युगमे तँ वैशाली अति प्रसिद्ध केन्द्र भऽ गेल। तक्षशिला विश्वविद्यालयमे मिथिला आर वैशालीक विद्यार्थी पढ़बाक हेतु जाइत छलाह। महिला सेहो विदुषी होइत छलीहे। ओ लोकनि पढ़बाक हेतु तक्षशिला जाइत छली कि नहि से कहब कठिन कारण जातकमे एकर एहेन कोनो उल्लेख नहि भेटइत अछि। चाण्डालकेँ शिक्षासँ वर्जित राखल जाइत छल। वैशाली सेहो शिक्षाक एकटा प्रधान केन्द्र मानल जाइत छल। बुद्ध एहिठाम अपन कैकटा सार गर्भित प्रवचन देने छलाह। धार्मिक आर दार्शनिक वाद–विवादक हेतु लिच्छवी लोकनि एत्तए एकटा कूटागार प्रशाल बनबौने छलाह। तकर बादसँ जखन समस्त भारत एक राजनैतिक सूत्रमे बन्हि गेल तखन एहिमे एकरूपता आबए लागल। मौर्य–गुप्त–हर्ष आर पाल युगमे सेहो मिथिलाक अपन वैशिष्टय सुरक्षित रहल। उत्तर बिहारमे सेहो कैकटा बौद्ध बिहार छल जकर प्रमाण भेटैत अछि आर एहने एकटा बौद्ध बिहारमे बौद्ध संत नरोपत रहैत छलाह जे ओतएसँ विक्रमशिला गेल छलाह। नौलागढ़सँ एकटा जे अभिलेख भेटल अछि ताहु आधारपर ई कहल जाइत अछि जे ओहि क्षेत्रमे एकटा बिहार छल।
मिथिलामे कर्णाटवंशक स्थापनाक बाद मिथिलाक अपन व्यक्तित्व बिकसित भेल आर ताहि दिनसँ साँस्कृतिक एवँ सामाजिक क्षेत्रमे मिथिलाक अपूर्व योगदान रहल अछि। कर्णाट, ओइनवार आर खण्डवला कुल शासक लोकनि स्वयं पण्डित छलाह आर ओ लोकनि विद्या–प्रसार नीक व्यवस्था केलन्हि आर अपना–अपना शासनकालमे विद्या–प्रसारक प्रचीन परम्पराक पुनर्स्थापन केलन्हि। एहियुगमे विभिन्न विषयपर मिथिला पोथी लिखल गेल आर प्राचीन पोथी सभपर असंख्य टीका। प्रत्येक मुख्य बातक हेतु निबन्धक निर्माण भेल आर विद्याक विभिन्न पक्षपर विस्तृत रूपेण ग्रंथक रचना कैल गेल। कर्णाट युगकेँ एहि दृष्टिकोणसँ स्वर्ण युग कहल गेल छैक। समस्त मिथिलामे शिक्षा केन्द्रक जेना जाल बिछा देल गेल।
व्याकरणक क्षेत्र पद्मनाभ दत्तक नाम चिरस्मरणीय रहत कारण ओ अपन ‘सुपद्म’क रचना कए एहि दिशामे बड्ड पैघ योगदान देलन्हि। चन्द्रशास्त्रपर भानुदत्त मिश्रक रचना महत्वपूर्ण अछि आर ‘सरस्वती कण्ठा भरण’पर रत्नेश्वरक टीका सेहो प्रशंसनीय अछि। कामशास्त्रपर भानुदत्तक अतिरिक्त ज्योतिरीश्वरक पंचशापक एवँ रंगशेखर महत्वपूर्ण ग्रंथ मानल गेल अछि। भवदत्त प्रणीत नैषधचरितमक टीका एखनो धरि पढ़ाओल जाइत अछि। पृथ्वीधर आचार्य मृच्छकटिकपर टीका लिखलन्हि। अमरकोशपर श्रीकर आचार्यक टीका संस्कृत साहित्यक एक अमूल्य निधि मानल जाइत अछि। ज्योतिरीश्वरक ‘वर्णरत्नाकर’ अपना ढ़ँगक अपूर्वग्रंथ अछि जाहिसँ मैथिली साहित्य गौरवान्वित अछि। दार्शनिक क्षेत्रक लेखक उल्लेख हम पूर्वहि कऽ चुकल छी तै दोहरायब उचित नहि बुझना जाइत अछि। श्रीदत्त उपाध्याय, हरिनाथ उपाध्याय, भवशर्मण, इन्द्रपति, लक्ष्मीपति आर चण्डेश्वर, विद्यापतिक परिवारक योगदान एहि युगमे विशेष रहल अछि। मिथिला न्याय–मीमाँसाक हेतु अत्यंत प्रसिद्ध छल अर देश–देशांतर लोक ई दुनु विषय पढ़बाक हेतु एहिठाम अबैत छलाह।
ताहि कालमे मिथिलेटा एहेन अंचल छल जाहिठाम देशक कोन–कोनसँ विद्वान लोकनि आबिकेँ शरण लैत छलाह। साँस्कृतिक दृष्टिकोणसँ मिथिलाक महात्मय बड्ड बढ़ि गेल छल। नालन्दा–विक्रमशिला जखन नष्ट भऽ रहल छल तखन बहुत पण्डित जे पोथी लऽ कए भागि रहल छलाह ताहिमे बहुतोकेँ मिथिलेमे शरण भेटलन्हि। उत्तर भारतमे आर जतए कतहु उथल–पुथल होइक तखन ओतहुँसँ विद्वान लोकनि मिथिला दिसि चल अवइत छलाह कियैक तँ एहिठाम विद्वान लोकनिक समादर होइत छल। मण्डन मिश्रक समयसँ मिथिलाक प्रसिद्धि समस्त भारतमे प्रसारित भए चुकल छल आर तकर बाद तँ एकापर एक एहेन विद्वान एहिठाम होइत गेलाह जाहिसँ मिथिलाक प्रसिद्धि समस्त भारतमे प्रसारित भए चुकल छल आर तकर बाद तँ एकापर एक एहेन विद्वान एहिठाम होइत गेलाह जहिसँ मिथिलाक प्रसिद्धि समस्त दिनानुदिन बढ़िते चल गेल। मध्य–युगमे न्याय–वैशेषिक–मीमाँसा वेदांतक हेतु मिथिला भारतमे प्रसिद्ध भए गेल छल आर मुसलमानी आक्रमणक फलस्वरूप वर्णाश्रमक जे डोरी ढ़ील भेल जाइत छल ताहु हेतु मिथिलामे निबन्ध आर कर्मकाण्डपर ग्रंथक रचना एवँ ओकर अध्ययन–अध्यापन प्रारंभ भए चुकल छल। एहि सभमे योग्यता प्राप्त करबाक हेतु बाहरसँ विद्वान लोकनि एतए पढ़बा लेल अबैत छलाह आर विशेष कऽ कए न्यायक अध्ययनक हेतु मिथिला–विश्वविद्यालय समस्त भारतमे अद्वितीय छल। जखन मगधक अवसान भेलैक तखन मिथिला विश्वविद्यालयक चरमोत्कर्ष भेल आर पक्षधर मिश्रक अनुमतिसँ रघुनाथ शिरोमणि जखन नादियामे नव–न्यायक केन्द्र खोललन्हि तखनसँ नादियाक प्रभुत्व बढ़ल। ताहि दिन मिथिलाक विद्वानक महत्व तँ एतबेसँ बुझना जाइत जे बंगालक विद्वान लोकनि मैथिल निबन्धकार लोकनिक मतकेँ महत्व दैत छलथिन्ह आर बंगालक नैयायिक मैथिल नैयायिकक वाक्यकेँ प्रमाण मनैत छलाह। ओहि युगक मिथिलाक प्रत्येक विद्वान अपना आपमे एकटा संस्थे होइत छलाह। मिथिलाक संस्कृत एवँ भाषा साहित्यक हेतु एकरा स्वर्णयुग मानल गेल अछि।
मिथिलामे कर्णाट–ओइनवार कालमे उदयन, गंगेश, वर्द्धमान, पद्मनाम, जगद्धर, शंकर वाचस्पति, पक्षधर आदि जे विद्वान भेल छथि ताहिसँ कोनो देश आर कोनो काल गौरवान्वित भऽ सकैछ। विद्यापतिकेँ तँ सहजहि सभ केओ एकस्वरसँ भारतीय भाषाक सर्वश्रेष्ठ गीतकार मनैत छथि। गीतकाव्यक दृष्टिकोणसँ कालिदास आर जयदेवक बाद विद्यापतियेक स्थान अबैत अछि। ओनातँ विद्यापति मैथिली पदावली लऽ कए प्रसिद्ध छथि मुदा स्मरण रखबाक विषय ई जे एहेन कोनो विषय नहि अछि जाहिपर विद्यापति नहि लिखने होथि। लखिमा रानी सेहो प्रथम कोटिक विदुषी छलीहे। स्वयं महेश ठाकुर अपन विद्याक बले मिथिलाक राज्य प्राप्त केने छलाहे अर ओहि खण्डवला वंशमे आरो कतेक अद्वितीय विद्वान लोकनि भेल छथि। महेश ठाकुर स्वयं अकबर नामाक संस्कृत अनुवाद सेहो केने छलाहे आर हेमागंद ठाकुर ज्योतिषपर अपूर्व ग्रंथ लिखने छलाह। महेश ठाकुर तँ प्रसिद्ध विद्वानक कोटिमे गिनल जाइत छथि आर हुनक वाक्यकेँ प्रमाणो मानल गेल अछि।
कविन्द्रचन्द्रोदयमे विश्वंभर मैथिलोपाध्याय, बदरी नाथ उपाध्याय मैथिल, दामोदर उपाध्याय मैथिल आदिक उल्लेख अछि। शाहजहाँक दरबारमे सेहो दूटा मैथिल विद्वान अपन विद्वता प्रदर्शित केने छलाह आर एहि पाँतिक लेखकक पूर्वज सेहो कोनो मुगल बादशाहसँ अपन विद्वता प्रदर्शित कए, जमीन्दारी प्राप्त केने छलाह आर एहि पाँतिक लेखकक पूर्वज सेहो कोनो मुगल बादशाहसँ, अपन विद्वता प्रदर्शित कए, जमीन्दारी प्राप्त केने छलाह आर चौधराई सेहो। ओ मूल ताम्रपत्र गत सौ वर्ष पूर्वहि भीषण अग्निकाण्डमे स्वाहा भऽ गेल। खण्डवला शासक विद्वान लोकनिकेँ जागीर दैत छलाह जकर प्रमाण अछि।
ताहि दिनमे मिथिलामे गामे–गाम विद्यालय छल आर जाहिठाम जाहि विषयक पण्डित रहैत छलाह ताहिठाम सैह विषय नीक जकाँ पढ़ाओल जाइत छल। राजा महराजाक दिसिसँ विद्वानकेँ प्रोत्साहन भेटइत छलैक। मिथिला विश्वविद्यालयमे ताहि दिन अन्य विषयक अतिरिक्त नव–न्यायपर विशेष ध्यान देल जाइत छल। नव–न्याय पढ़बाक हेतु भारतक कोन–कोनसँ एहिठाम विद्यार्थी गण अबैत छाअह। विद्वता एवँ विद्याक क्षेत्रमे मिथिलाक स्थान अग्रगण्य छल आर मध्य युगमे नालन्दाक स्थान बुझु जे मिथिलेकेँ प्राप्त भऽ गेल छलैक। नालंदा जकाँ मिथिला विश्वविद्यालयकेँ अट्टालिका बाला भवन नहि छलैक, कारण एहिठाम तँ टोल आर चोपाड़िक व्यवस्था छल। मिथिला विश्वविद्यालयक आन वैशिष्ट्य छलैक। स्नातकत्व प्राप्त करबाक जे कसौटी एहिठाम छल ताहिसँ यदि अझुका स्नातक लोकनिकेँ मिलाओल जाइन्ह तँ एक्को गोटए अहुना स्नातक नहि कहा सकलाह। मिथिला विश्वविद्यालयमे जे परीक्षा पद्धति छल तकरा शलाका–परीक्षा कहल जाइत छलैक। ई परीक्षा बड्ड कठिन छलैक। एहिमे शास्त्रार्थक व्यवस्था छल आर ओहि शास्त्रार्थ प्रकाण्ड पण्डित लोकनि सेहो बैसैत छलाह। ‘शलाका’क अर्थ भेल जे पाण्डुलिपिक पृष्ट सभ जे सुईसँ घोपल जाइत छल ताहिमे सँ कतहुँसँ कोनो विषयपर शास्त्रार्थक सूत्रपात्र भऽ सकैत छल। जखन पाठ्यक्रमक पढ़ाई समाप्त होइत छल तखन सभ छात्र एकठाम बैसैत छलाह आर ओहिमे गुरूजन सेहो सम्मिलित होइत छलाह आर तकर बाद शास्त्रार्थ प्रारंभ होइत छल आर ओहि शास्त्रार्थक पश्चात् स्नातकत्वक प्रमाण पत्र देल जाइत छलन्हि। ओहुसँ एक कठिन परीक्षा प्रणाली छल जकरा ‘षडयंत्र’ कहल जाइत छल। एहि प्रणालीमे छात्र लोकनिकेँ अपन विद्वताक प्रदर्शन जनताक मध्य करए पड़ैत छलन्हि। ओहि परीक्षामे केओ हुनकासँ कोनो प्रकारक प्रश्न कए सकैत छल आर जखन ओहन लोग हुनका उत्तरसँ संतुष्ट होइत छलथिन्ह तखने हुनका प्रमाण पत्र भेंट सकैत छलन्हि। प्राध्यापक लोकनिकेँ उपाध्याय, महोपाध्याय, महामहोपाध्याय कहल जाइत छलन्हि। मिथिला विश्वविद्यालयमे चारूवेद, मीमाँसा, न्याय, दर्शन, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद आदि विषयक शिक्षा देल जाइत छल।
मिथिला विश्वविद्यालयक सबन्धमे एकटा किवदंती प्रचलित अछि–जकर उल्लेख एहिठाम आवश्यक बुझना जाइत अछि। पक्षधर मिश्रक एकटा बंगाली शिष्य छलथिन्ह रघुनाथ शिरोमणि। परीक्षाक अवसरपर किछु एहेन बात भेल जाहिसँ रघुनाथ शिरोमणिक विद्वतापर किछु चोट पहुँचल। सन्ध्या भेलापर पक्षधर मिश्र अपन आगंन गेला आर पूर्णिमाक इजोरियामे बैसि ओ अपन पत्नीकेँ कहइत रहथिन्ह जे आई हमरासँ एक बड्ड पैघ गलती भऽ गेल अछि। शास्त्रार्थ कालमे रघुनाथ बेचारा ठीके बजने छल मुदा हम ओकरा काटि देने छलियैक जाहिसँ ओकरा प्रतिष्ठापर अवस्से चोट पहुँचल हेतैक। हम तँ उचित बुझैत छी जे हम ओकरा बजाकेँ ई बात स्पष्ट कहि दियैक। एम्हर रघुनाथ तरूआरि नेने गुरूपर आक्रमण करबाक हेतु झोंझहिमे नुकाएल अपन गुरूक सभ बात सुनि रहल छल। पक्षधर मिश्र जहिना अपन स्वीकारोक्ति अपन पत्नीक समक्ष केलन्हि तहिना रघुनाथ अपन तरूआरि फेकि अपन गुरूक चरणपर खसि पड़ल। ओ अपन मूर्खताक हेतु माँफी मंगलक आर उदगार प्रगट केलक जे अहाँ सन गुरूसँ हमरा इएह आशा रखबाक चाहैत छल। रघुनाथ शिरोमणि मिथिला विश्वविद्यालयक एक प्रख्यात छात्र छल आर ओ मिथिलाक इतिहासक एकटा अंग बनि चुकल अछि। मैथिली परम्परामे सेहो ओकरा सम्बन्धमे एकटा प्रवाद छैक जकर उल्लेख करब आवश्यक। जरहटिया गाममे भैरवसिंह देवक खुनाओल पोखरिक प्रसंगक उल्लेख हमरा लोकनि पूर्वहि कऽ चुकल छी। ओहिमे पाथरक जाठि लंकासँ बनिकेँ आएल छल मुदा ओहिमे शर्त्त ई छल जे यज्ञमे कोनो ‘काण’ अथवा ‘विकलांग’ व्यक्ति नहि उपस्थित रहैथ। शुभ लग्नमे यज्ञ प्रारंभ भेल। जखन जाठि बैसेबाक बेरि भेलैक तखन मृदंग ध्वनि छोड़लक–
“भादिक भादिक भादिक भा भैरव भूपति देव सभा”
यज्ञ देखबाक हेतु कोनो कोनमे रघुनाथ शिरोमणि जे ‘काण’ (काना) छलाह सेहो बैसल छलाह। हुनका उपरोक्त अपूर्ण वाक्य सुनिकेँ रहल नहि गेलैन्ह आर वोतत्काल बाजि उठलाह–
-“सारवती कथिता कविना पण्डितराज (रत्न) शिरोमणि ना”-
एहि श्लोकहिसँ हुनक परिचय स्पष्ट भऽ गेल आर लंकावासी काना व्यक्तिकेँ देखि पोखरिमे जाठि फेक भागि गेलाह।
रघुनाथ शिरोमणिसँ प्रसन्न भए पक्षधर मिश्र हुनका बंगालमे स्वतंत्र रूपें नव –न्याय विश्वविद्यालयक स्थापना देलथिन्ह आर तखनहिसँ नादिया नव– न्यायक अध्ययनक प्रधान केंस्द्र बनि। नादियाक स्थापनाक उपरान्त मिथिलाक महत्व घटए लागल तथापि स्मृतिक क्षेत्रमे चण्डेश्वर, हरिनाथ, भवशर्मण, इन्द्रपति, वाचस्पतिक कारणे मिथिलाक प्रभुत्व बनल रहल। मिथिला विश्वविद्यालयक प्रतापे संस्कृत साहित्य सुरक्षित रहि सकल। घरे–घरे मिथिलामे ताहि दिन पाण्डुलिपि तरिपत लिखल जाइत छल। महामहोपाध्याय पी.वी.कणे ठीके कहने छथि जे याज्ञवल्म्यक समयसँ आई धरि मिथिला अपन विद्वताक परम्पराकेँ सुरक्षित रखने अछि। महेश ठाकुरक समयसँ मिथिला विश्वविद्यालयक परीक्षा पद्धतिमे एक नवीन पद्धतिक श्रीगणेश भेल जकरा ‘धौत परीक्षा’क नामे हमरा लोकनि जनैत छी। जनिका विद्वान कहेबाक शौख छलन्हि हुनका लेल ई परीक्षा पास करब आवश्यक कारण एहिमे बिनु परीक्षोतीर्ण भेने केओ विद्वान नहि कहा सकैत छलाह। एहि परीक्षाक नियम ई छल जे प्रत्येक वर्ष एकर घोषणा कैल जाइत छल आर इच्छुक संस्कृत पण्डित लोकनि ओहिमे उपस्थित भए लैत छलाह। परीक्षोतीर्ण भेलापर नैयायिक लोकनिकेँ एक जोड़ लाल धोती आर वैदिक एवँ वैयाकरण लोकनिकेँ एक जोड़ पीअर धोती विदाई भेटैत छलन्हि। एहिमे मिथिलाक बाहरोसँ विद्वान अबैत छलाह। एहिमे मिथिलाक बाहरोसँ विद्वान अबैत छलाह। एहिमे सफल भेल विद्वान अपनाकेँ सगौरव “धौत परीक्षोतीर्ण” कहैत छलाह। दरभंगा राजक अंत भेलाक पूर्व धरि मिथिलामे ई व्यवस्था छल। एम्हर आबिकेँ स्वर्गीय डाक्टर गंगानाथ झा एहि परीक्षाक सिलेबस (पाठ्यक्रम) सेहो निर्धारित कऽ देने छलाह। खण्डवाल कुलक समयमे संस्कृत आर मैथिली साहित्यक रचनामे अभिवृद्धि भेल। महेश ठाकुरक वंशज सभ एकापर एक विद्वान छलाह–स्वयं पोथी लिखलन्हि आ उतारलन्हि आर विद्वान लोकनिकेँ प्रश्रय दए पोथी लिखबौलन्हि। नरपति ठाकुरक समयमे लोचन अपन राग तरंगिणी नामक पोथी लिखलन्हि। मैथिलियोसँ विशेष खण्डबला कुलक समयमे संस्कृत साहित्यक अभिवृद्धि भेल आर महिनाथ ठाकुरक समयमे तिरहुति गीतक प्रचार सेहो। हेवानि धरि मिथिलामे संस्कृत विद्वानक कोनो अभाव नहि छल आर बहुतोकेँ दरभंगा राजसँ वृति भेटैत छलन्हि।
ताहु दिनमे मैथिल विद्वान बाहर जाके अपन नाम कमाइत छलाह। ब्राह्मण मुख्यतः दानपर आधारित रहैत छलाह आर जखन मिथिलासँ बहराए बाहरो जाए लगलाह। ओना अपन विद्वताकेँ प्रदर्शित करबाक हेतु सेहो ओ लोकनि मिथिलासँ बाहर जाइत छलाह। भवनाथ मिश्र अयाचीक शिष्यगण भारतक कोन–कोनमे पसरल छलथिन्ह। एहिमे सँ बहुतो प्रवासेमे रहियो गेलाह जकर प्रमाण अखनो अछि। भारतक कोन–कोनमे ब्राह्मण लोकनिक टोली अखनो देखल जा सकइयै जे अपनाकेँ मैथिल कहैत छथि। काव्य प्रदीपक रचयिता गोविन्द ठाकुर कृष्ण नगरक राजा भवानंद रायक ओतए रहैत छलाह। हुनक वंशज दिनाजपुरमे बसि गेलथिन्ह। मालदहमे सेहो ओइनवार वंशक शाखा एखनो विराजमान छथि आर ओहिवंशक स्वर्गीय अतुल चन्द्र कुमर (हमर प्रिय मित्र) बंगाल सरकारक पार्लियामेंट्री सचिव सेहो रहल छलाह। हुनक देल ओइनवार वंशक वंशवृक्ष परिशिष्टमे भेटत। भवनाथ मिश्र अयाचीक प्रपौत्र एवँ रसमंजरीक सुप्रसिद्ध लेखक कविराज भानुदत्त मध्य भारतकेँ कैक राज्यमे भ्रमण केलन्हि आर हुनक लेखनीसँ गढ़मण्डलाक राजा संग्राम सिंह, बन्दोगढ़क बघेल राजकुमार (रेवा), अहमद नगरक राजा निजाम शाह आर राजा शेरखाँक पता लगइयै। हिनके पुत्रक नाति गंगानंद बिकानेर धरि गेल छलाह। महामहोपाध्याय गोकुलनाथ उपाध्याय आर हिनक भ्राता महामहोपाध्याय जगन्नाथ गढ़वालक राजा फतेहशाहल ओतए छलाह।
भवानी नाथ मिश्र (उर्फ सचल मिश्र) एक प्रसिद्ध न्यायाधीश भेल छथि जे १८म शताब्दीमे पूनामे पेशवा माधव रावक ओतए रहैथ। ओहिठाम पेशवासँ हुनका जबलपुरमे दूटा गाम भेटलन्हि जतए हुनक वंशज अखनो छथिन्ह। हुनका ओतए अद्वितीय सम्मान भेटल छलन्हि। कृष्ण दत्त मैथिल नागपुरक भोंसलाक प्रधानमंत्री देवजी पुरूषोत्तमक ध्यान आकृष्ट केने छलाह। ई बहुत पैघ नाटक कार छलाह आर हिनका सम्बन्धमे हमर निबन्ध फराके प्रकाशित अछि।
महेश ठाकुरक भ्राता गढ़मण्डलाक संग्रामशाहक पुरोहित छलाह आर हुनक वंशज बहुत दिन धरि महिष्मतीनगरमे बसल छलाह। अखनो मैथिल ब्राह्मणक बहुत रास शाखा ओम्हर छथि। शाहजहाँक दरबारमे सेहो दूटा मैथिल अपन विद्वताक परिचय देने छलाह। हुनका दुनुकेँ शाहजहाँसँ इनाम भेटल छलन्हि आर दूटा गाम दानमे सेहो। रघुदेव मिश्र शाहजहाँक प्रशंसामे एकटा ‘विरूदावली’ सेहो बनौने छलाह। संस्कृत शिक्षाक सम्बन्धमे ‘हरिहरसूक्ति मुक्तावली’मे विशेष बात भेटैत अछि।
मिथिलामे विद्याक किछु प्रसिद्ध केन्द्र छल–जजुआर (यजुर्वेदक शिक्षाक हेतु प्रसिद्ध), रीगा (ऋगवेदक हेतु), अथरी (अथर्ववेदक हेतु), माउबहेट (माध्यनन्दिनी शाखाक हेतु), कुथुमा (कौयुमी शाखाक हेतु), शकरी (शकारी शाखाक हेतु), भट्टसिम्मरि एवँ भट्टपुर (मीमाँसाक भट्ट स्कूलक हेतु) इत्यादि। मिथिलामे तँ कुम्भकारकेँ सेहो पण्डिते कहल जाइत छैक (कुम्भकारोऽपि पण्डितः)। टोल आर चौपाड़ि तँ अखनहुँ मिथिलाक गाम–गाममे पसरल अछि। एहिठामक शिक्षा परम्पराकेँ देखि १८–१९म शताब्दीमे एहिठामक भूमिकेँ विश्व–विद्यालयक हेतु उपयुक्त मनने छलाह। १९७२मे मिथिला विश्वविद्यालयक स्थापना भेल आर १९७५मे ललित बाबूक परोक्ष भेलापर ओकर नाम ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय कऽ देल गेल।
कला:- शिक्षाक संगहि संग मिथिलामे कलाक विकास सेहो युग–युगांतरसँ होइत आबि रहल अछि। उत्खननक अभावमे ई कहब कठिन अछि जे प्राचीन कालमे मिथिलाक कलाक स्वरूप कि छल आर कोना छल। पुरातात्विक साधनक अभावमे ओहि पक्षपर किछु कहब असंभव। मिथिला–महात्मयमे जे मिथिलाक वर्णन भेटैत अछि ताहि आधार ई अनुमान लगाओल जा सकइयै जे मिथिला नगरी सुनियोजित ढ़ँगसँ योजनाबद्ध रूपेँ बनल छल आर देखबा सुनबामे सर्वोत्तम रहल होएत। मिथिला–महात्मय तँ जे वर्णन अछि तकरा जाधरि पुरातत्व सिद्ध नहि कऽ दैत अछि ताधरि तँ ओकरा काल्पनिके माने पड़त। जातक कथा सभमे सेहो मिथिला नगरीक विशिष्ट विवरण भेटैत अछि आर ओहुसँ ई सिद्ध होइत अछि जे मिथिला एकटा सुनियोजित नगर छल जे देखबामे सुन्दर छल आर एकर सीमा वेश विस्तृत छलैक। जातकमे राज दरबार आर किलाक विवरण सेहो भेटैत अछि।
विदेह, वैशाली, अंगुतराय क्षेत्रक प्राचीन इतिहास पुरातात्विक अंवेषणक अपेक्षा अखनो रखैत अछि। एहि सभ क्षेत्रसँ प्राक्–बौद्धकालीन अवशेष प्रचुर मात्रामे भेटैत अछि आर नादर्न ब्लैक पालिश्डवेयर (एन.बी.पी.)क प्राप्ति एहि बातकेँ सिद्ध करैत अछि जे बौद्ध युगमे एहि सभ क्षेत्रमे कलात्मकताक रूप निखरि गेल हैत। एन.बी.पी.क संगहि संग ताहि दिनक सिक्का सभ सेहो भेटल अछि। मिथिलाक गामहि गाम गढ़ सभसँ भरल अछि आर तैं ई निर्विवाद रूपे कहल जा सकइयै जे किलाबन्दीक क्षेत्रमे एहिठामक लोक प्रसिद्धि प्राप्त केने छल। बलिराजगढ़सँ प्राप्त ईंटा एहिबातक सबुत अछि। गढ़क निर्माण सुनियोजित ढ़ँगसँ होइत छल आर मौर्यकालमे गढ़ निर्माणक सम्बन्धमे कौटिल्यक मत स्पष्ट अछि। किलाक निर्माण रक्षात्मक दृष्टिकोणसँ होइत छल। मिथिलाक गढ़ सभसँ माँटिक गोलक प्रचुर संख्यामे भेटल अछि। मौर्यकालीन अवशेष पुर्णियाँ, सहरसा, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, बेगूसराय, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली आदि स्थानसँ प्राप्त भेल अछि आर ताहुमे मृण्मूर्त्ति सभ भेटल अछि से तँ सर्वथा अद्वितीय अछिये। शूंगकालक अवशेष सभ सेहो भेटल अछि। वैशालीक अतिरिक्त अशोक कालीन एकटा मौर्यकालीन स्तंभ धरहरा (पुर्णियाँ)सँ सेहो प्राप्त भेल अछि। जयमंगलागढ़सँ मौर्यकालीन एकटा काष्ट पुलक अवशेष भेटल अछि। पाटलिपुत्रक बाद उत्तर बिहारमे इएह एकटा काष्ठपुलक नमूना मौर्यकालीन भेटल अछि।
ई निश्चित रूपें कहि सकैत छी जे अशोक कालमे उत्तर बिहारमे सेहो किछु भवनादि, स्तंभादिक निर्माण भेल आर वैशालीमे थोड़ बहुत चैत्य इत्यादि बनल। चम्पारण आर जयमंगलागढ़मे सेहो एहेन प्राचीन अवशेषक उदाहरण भेटल अछि आर चम्पारणसँ तँ सहजहि पृथ्वीक एकटा मुर्त्तिये। पालि–साहित्यमे बैशालीक सम्बन्ध बहुत रास वर्णन अछि आर चैत्यक विवरण सेहो। वैशालीक पोखरिक लिच्छवी लोकनिक समयमे कलात्मक छल। गुप्तकालीन अवशेष सेहो मिथिलाक सभ क्षेत्रसँ प्राप्त भेल अछि आर ओहिमे सँ विशेष भाग काशी आर आन–आन नदीक बाढ़िमे भासि गेल अछि। एक अत्युतम गुप्तकालीन मृण्मूर्त्ति नौलागढ़सँ भेटल छल आर संगहि किछु सिक्का साँचा सेहो। आरो कतेक रास गुप्तकालीन सामग्री एम्हर–आम्हरसँ भेटल अछि। बरौनीसँ प्राप्त एकटा सूर्यक मुरूत (कारी पाथरमे) उल्लेखनीय अछि कारण ओहिमे पैरमे जूता आर देहमे जनेउ सेहो अछि।
एम्हर आबिकेँ पाल कालीन अवशेष वैशाली, उचैठ, बलिराजगढ़, नौलागढ़, जयमंगलागढ़, अलौलीगढ़, महिषी, पुर्णियाँ, आओर सहरसा तथा बेगूसरायसँ भेटल अछि। कलाक दृष्टिसँ युग अत्यंत महत्वपूर्ण मानल गेल अछि आर बेगूसराय जिलाक गामे गाम पालमूर्त्तिसँ भरल अछि। बीहट, रजौरा, बरौनी, संहौल, नौला, जयमंगला, वीरपुर, आदि जतहि देखु सभ पालकालीन मुरूतसँ भरल अछि। नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर आदिसँ प्राप्त पालकालीन मूर्त्ति विधित्सा एवँ अभिकल्पना सभ तरहे विलक्षण अछि। पालयुगमे बौद्ध कलाकेँ प्रश्रय तँ भेटवे कैल मुदा हिन्दू कला शैलीक अवहेलना नहि भेल से निश्चित। एहि युगमे मिथिलामे आकाशचारी गन्धर्वक प्रचुरता एवँ ऐन्द्रियिक विस्तारक दुनु सीमांतक बीच जे संतुलन देखाओल गेल अछि से सर्वथा प्रशंसनीय आर स्तुत्य अछि। धार्मिक वस्तुकेँ कलात्मक वस्तुमे रूपांतरित कए देल गेल अछि। मुख्य मुरूत सभहिक दुनु पार्श्वमे सेवारत देवतागण एवँ अनुगत मूर्त्तिकेँ पृथक कमलाशनपर राखल गेल अछि जे निरूपित देवताक वाहनकेँ प्रदर्शित करैत अछि। शारीरिक बल एवँ पौरूषकेँ चारूता आर लालित्यमे परिवर्त्तित कए देल गेल अछि। मध्यकालीन कलाक पूर्वी स्कूलक रूपमे एहि युगमे मिथिलाक योगदान रहल होएत से बुझि पड़इयै। बाराह, सूर्य, गंगा, शिव–पार्वती, दुर्गा आदिक पालकालीन मुरूतक अवशेष सौसे मिथिलामे छिड़िएल अछि। बाराह मूर्त्ति विष्णुक बाराह अवतारक चित्रणक प्रतीक थिक। जयमंगलागढ़क सुखासन पोजमे शिव–पार्वतीक मूरूत अद्वितीय अछि। अपन दहिना हाथकेँ शिवक दहिना कन्हापर राखि पार्वती महादेवक बामा जाँघपर एहि मुरूतमे बैसल छथि। शिव अपन बामा हाथसँ पार्वतीक संग गाढ़ा लिङ्गान बद्ध भेल छथि आर शिवक हाथ पार्वतीक स्तनकेँ छुएत छन्हि। एहि प्रकारक मुरूत तांत्रिक क्षेत्रसँ विशेष भेटल अछि। एहेन टुटल–फुटल मुरूत महिषीमे सेहो बहुत रास अछि आर तारा (खदिरवणी)क मुरूत सेहो पालकालीने थिक। जयमंगला आर महिषी दुनु प्रसिद्ध तांत्रिक केन्द्र मानल जाइत अछि। तांत्रिक साधक लोकनि सुखासन पोजमे बैसल शिवक कोरामे पार्वतीकेँ अपना मोनमे केन्द्रित कए साधना करैत छथि। नारायण पालक अभिलेखसँ स्पष्ट अछि जे कौशिकी कच्छकेँ क्षेत्रमे एक हजार शिव मन्दिरक स्थापनाक हेतु दान देल गेल छल। निश्चित रूपें एहि सभ क्षेत्रमे स्थापत्य कलाक पूर्ण विकास भेल होएत। सुन्दर रीतिसँ अभि कल्पित स्तंभ हमरा लोकनि नौलागढ़, जयमंगलागढ़ आर संहौलसँ भेटल अछि जाहिसँ स्थापत्यक सम्बन्धमे ज्ञान प्राप्त होइत अछि। इमादपुर (मुजफ्फरपुर)सँ धातुक मूर्त्ति सेहो भेटल अछि। पालयुगमे तीरभुक्तिमे बौद्ध आर तांत्रिक संप्रदायक प्रभाव परिलक्षित होइत अछि।
कलाक दृष्टिकोणसँ मिथिला कहियो कोनो रूपे बाँझ नहि रहल आर सभ युगमे किछुने किछु कलात्मक वस्तुक निर्माण एहिठाम होइते रहल। मूर्त्तिकला आर स्थापत्यमे सेहो मिथिला पछुऐल नहि छल। स्पूनर तिरहूतक किछु मन्दिरकेँ मिथिला आ तिरहूतक शैलीक मानैत छथि–
- i) बगहाक हरमंदिर (चम्पारण)
- ii) त्रिवेणीक कमलेश्वरी नाथक मंदिर (चम्पारण)
- iii) सौराठक महादेव मंदिर (मधुबनी)
- iv) अटियारीक रामचन्द्रक मंदिर (दरभंगा)
- v) सुबेगढ़क भगवती मंदिर (मुजफ्फरपुर)
- vi) शिवहरक शिवमंदिर (मुजफ्फरपुर)
- vii) मुजफ्फरपुरक राम मंदिर
- viii) सिमराँव गढ़क कंकाली देवीक मंदिर।
एम्हर जे बहेड़ामे उत्खनन भेल अछि ताहुसँ एकटा मंदिरक अवशेष भेटल अछि जकर विवरण हम आनठाम प्रकाशित करौने छी।
बहेड़ाक उत्खननसँ मंदिरक मिथिला शैलीपर प्रकाश पड़इयै। स्पूनरक ध्यान कंदाहाक सूर्यमंदिर दिसि नहि गेल छलन्हि जाहिसँ हुनका ई बुझनामे आबतन्हि जे ओइनवार लोकनिक समयमे स्थापत्य कलाक स्वरूप कि छल। भगीरथपुर उत्खननसँ सेहो बुझना जाइत अछि जे ओहिठाम एक मंदिरक निर्माण भेल छल जे काल–क्रमेण टुटि गेल मुदा जकर अवशेष उत्खननसँ प्राप्त भेल अछि। श्रीधरदास (कर्णाट काल)क कमलादित्यक मंदिर बनेबाक क्षेत्रमे मिथिला निश्चितरूपे अपन एकटा अलग शैलीक निर्माण केलक।
शिल्प एवँ वास्तुकलामे सेहो मिथिला पछुऐल नहि छल आर वेलवा (सारण)सँ भीठ भगवानपुरक अवशेषक अध्ययन केलासँ एहि बातक पुष्टि होइत अछि। बेलबा आर भीठ भगवानपुरक कलापर कामशास्त्रक प्रभाव स्पष्ट अछि आर एहिसँ इहो साफ देखबामे अवइयै जे कलाक क्षेत्रमे ओ लोकनि वस्तुस्थितिकेँ नहि बिसरने छलाह। मूर्त्तिकलाक क्षेत्रमे सेहो प्रचुर सामग्री भेटल अछि। हाजीपुरसँ पुर्णियाँ धरि मूर्त्तिकला (पाथर आर माँटि)क असंख्य अवशेष भेटल अछि। वैशाली, लौरिया नंदन गढ़, अरेराज, पुनौरा, जनकपुर, दरभंगा, भगीरथपुर, देकुली, बहेड़ा, बलिराजगढ़, लदहो, बौराम, बाउर, भीठ भगवानपुर, बरौनी, जयमंगलागढ़, नौलागढ़, असुरगढ़, अलौलीगढ़, बीहट, वीरपुर, संहौल, पटुआरा, महिषी, बलबागढ़ी, परसरमा, अन्हराठाढ़ी, श्रीनगर, पुरैनिया, सिकलीगढ़, आदि स्थानसँ प्राप्त विभिन्न युगक मूर्त्तिकला उपलब्ध अछि। लौरिया नंदनगढ़सँ स्वर्ण मूर्त्ति (मातृ देवता=पृथ्वी) भेटल अछि। भीठ भगवानपुरक मुरूत सभसँ विद्यापति गीतक साकार रूप मानल जा सकइयै। मैथिल शासक मूर्त्तिकला शैलीकेँ यथाशति जीवित रखबाक प्रयास केलन्हि मुदा पालयुगीन सफलता हुनका लोकनिकेँ नहि भेट सकलन्हि। प्राचीन कालसँ अद्यावधि मिथिलामे कखनो मूर्त्तिकलाक नेऽ तँ ह्रास भेल आर नेऽ लोपे। एखनो मिथिलाक माँटिक मुरूत देखबा योग्य होइछ। संहौलसँ प्राप्त एक मुरूत कारी पाथरक (पत्रलेखन मुद्रामे नायिका) बेगूसराय काँलेजक संग्रहालयमे राखल अछि जे कोनो अर्थे खजुराहो आर भुवनेश्वरक तुलनामे कम नहि अछि। ओहने एक शाल भंजिकाक मुरूत सेहो अछि। सूर्यक मुरूत सेहो अछि। सूर्यक मुरूतक उल्लेख तँ कइये चुकल छी। बहेड़ासँ एकटा काँसाँक मुरूत सेहो भेटल अछि जकर बनाबट कुर्किहारक मूर्त्तिकला सन छैक। भवन निर्माण कलाक क्षेत्रमे मिथिलाक अपन गौरवक निर्वाह केने छल। मुजफ्फरपुरक मंदिरक सम्बन्धमे स्पूनर साहेब कहने छथि जे ओ ‘नवरत्न टाइप’क विशिष्ट उदाहरण थिक। सिमरौनगढ़क अवशेषसँ कर्णाट कालीन भवन निर्माणक उदाहरण भेटैत अछि। सिमरौनगढ़ कर्णाट लोकनिक राजधानी छल आर ओतहि रामसिंहक समयमे तिब्बती यात्री धर्मस्वामी आएल छलाह। ओ सिमरौनगढ़क जे वर्णन उपस्थित कएने छथि ताहिसँ बुझि पड़इयै जे सिमरौन संगठित एवँ सुनियोजित नगर छल आर ओकरा चारूकात विशाल किलाबंदी छलैक। सिमरौनसँ प्राप्त अवशेषसँ ई प्रतीत होइत अछि जे नीचाँ मे पहिने पाथरक आधार देल जाइत छल आर ताहिपर सँ चिक्कन ईंटाक नींव दऽ कए भवन बनैत छल। पाथर आर ईंटापर तरह–तरहक नक्कासी सेहो होइत छल आर बलिराजगढ़सँ प्राप्त ईंटापर मनुक्खक तरहथीक छाप देखल गेल छैक। नक्कासीदार ईंटा बहेड़ासँ सेहो प्राप्त भेल अछि। एकटा ईंटापर अश्वमेघ घोड़ाक छाप अछि आर दोसरपर कोनो तांत्रिक चक्रक। मैथिल संस्कारक अध्ययन एहेन–एहेन कलात्मक वस्तुक उपलब्धिसँ सेहो भऽ सकैछ। जतवा धरि जे अखनो धरि मिथिलामे प्राप्त भेल अछि तकरा कलात्मक दृष्टिसँ अन्यतम कहि सकैत छी।
मिथिलाक अपन वैशिष्ट ओकर भित्तिचित्र, अइपन, कोहवर,मे छैक जे अद्यावधि “मिथिला पेंटिङ्गस”क नामे प्रसिद्ध भए देश – विदेशमे नाम अर्जन केलक अछि। अरिपनक आधार तँ ओना पुराणमे सेहो अछि मुदा तंत्रसँ ई कम प्रभावित नहि अछि। अइपन – कोहवर लिखब एक विशिष्ट कला बुझल जाइत छल आओर मिथिलाक प्रत्येक नारीमे एहिमे सिद्धहस्थ होएब आवश्यक बुझना जाइत छल। कोबरा–मड़बाक चित्र सेहो बनइत छल आर एकटा पाण्डुलिपिक मुख्य पृष्ट मड़बाक चित्र हमरा बरौनीसँ प्राप्त भेल अछि। ओहि चित्रमे वरपक्ष आर कन्यापक्षक लोग पाग पहिरने मड़बापर बैसल देखल जाइत छथि। एहि चित्रकेँ हम विशेष महत्वपूर्ण मनैत छी कारण एहेन पाण्डुलिपि हमरा आर कतहु देखबामे नहि आएल अछि। ई पाण्डुलिपिक पृष्ट छान्दोग्य विवाह पद्धतिक पाण्डुलिपिक एक पृष्ट थिक। कागजपर चित्र बनाएब सेहो मिथिलाक पुरान कला थिक आर बारहम शताब्दीक एक पाण्डुलिपिपर एक ताराक चित्र बनल अछि जाहिमे तीरभुक्ति आर वैशाली दुहुक उल्लेख अछि। भित्तिचित्र, कोहबर, अइपन, आदिमे दुर्गा, सीत, काली, राधा, रामकृष्ण, शिव, आदिक चित्र बनैत अछि आओर मिथिलामे एहेन कोनो उत्सव नहि होइत अछि जाहिमे चित्रादि नहि बनैत हो। सभ अवसरक हेतु निर्धारित चित्रमाला अछि। सूर्य, चन्द्रमा, बाँस, कमल, तोता, मैना, माँछ इत्यादिक प्रयोग सेहो एहि चित्र सभमे होइत अछि। चित्र बनेबाक पाछाँ एक विशिष्ट कथा साहित्य एहिमे जूटल अछि जकर संग्रह आर अध्ययन अपेक्षित बुझना जाइत अछि। आर्थर सेहो एहि क्षेत्रमे किछु काज केने छथि आर आबतँ सहजहि एहि कलाक अंतराष्ट्रीय प्रसार भऽ गेल अछि। मिथिलामे करण कायस्थ आर ब्राह्मणक परिवार एकरा एखनो धेने अछि। सिक्की, मौनी, सूप, डाभा, कोनिया आदिपर सेहो चित्र बनेबाक प्रथा अछि। सिक्कीक तँ बहुत रास कलात्मक वस्तु बनाओल जाइत अछि। एहि सभ कलाकेँ गृहकला कहल गेल छैक आर मिथिलामे अति प्राचीन कालहिसँ ई सभ प्रथा चलि आबि रहल अछि। एहिमे तरह–तरहक रंगक व्यवहार होइत अछि जेना गुलाबी, पीअर, हरिअर, लाल, सुगा पाँखिक रंग इत्यादि। एक प्रकारक माँटि सेहो ओहन होइत छल जाहिसँ रंग तैयार कैल जाइत छल।
संगीतक क्षेत्रमे मिथिलाक योगदान ककरोसँ कम नहि रहल अछि। कर्णाटवंशक संस्थापक नान्यदेवक शासन कालमे संगीतमे बहुत रास नवीन राग आर भासक प्रयोग शुरू भेल। नान्यदेव स्वयं एक महान संगीतज्ञ छलाह। सारंगदेव अपन संगीत रत्नाकरमे एहि बातक उल्लेख केने चथि। नान्यदेव स्वयं ‘सरस्वती हृदया लंकार’ नामक एक प्रसिद्ध ग्रंथक रचयिता छलाह। श्रीधर दासक अन्धरा ठाढ़ी अभिलेखमे कहल गेल अछि जे नान्यदेव ‘ग्रंथमहार्णव’ नामक पोथीक रचयिता सेहो छलाह। नान्यदेव संगीतमे 160राग सभहिक वर्णन केने छथि। नान्यदेवक स्थापित कैल परम्परा संगीतक क्षेत्रमे मिथिलामे सदति व्याप्त रहल। मिथिलामे एकपर एक संगीतज्ञ सभ युगमे भेल छथि। पुरूष परीक्षाक एक कथासँ ज्ञात होइछ जे हरिसिंह देव स्वयं सेहो एकटा पैघ संगीतज्ञ छलाह। ज्योतिरीश्वर ठाकुर, सिंह भूपाल, जगज्योतिमल्ल, आर लोचन प्रसिद्ध संगीतज्ञ भऽ चुकल छथि। विद्यापति आर लखिमाक नाम सेहो एहि क्षेत्रमे अमर अछि।
पूर्व समयमे भवभूति नामक एक ब्राह्मण रहैथ जे नवीन धुनि (ध्वनि) सभमे गीत बनौलन्हि। ओहि समयमे सुमति नामक कायस्थ पश्चिमसँ आबिकेँ हुनकासँ सभ कला सिखलन्हि आर राजसभामे ओकर प्रदर्शन केलन्हि आर ताहियासँ ओ कलावान, कथक, कलाओत आदिक नामे प्रसिद्ध भेला। हुनक संततिमे कतेको व्यक्ति “मल्लिक”क उपाधि धारण केलन्हि। सुमतिक पुत्र छलाह उदय आर हुनक पुत्र जयत भेलाह। जयत सुश्वर गायक छलाह तैं शिवसिंह हुनका विद्यापति ठाकुरक समीप शिक्षार्थ समर्पण कैल। विद्यापति हुनका हेतु नवीन–नवीन धुनि सभहक कल्पना कए गीत बनौलन्हि जकर अग्रगायक राज सभामे जयत भेला। जयतक पुत्र कृष्ण देशी रागमे गान करैथ। हुनक पुत्र भेला हरिहर मल्लिक आर हुनक पुत्र घनश्याम विशिष्ट गायक भेलाह। घनश्यामक पुत्र सभ देशी सम्प्रदायक गानमे निपुण भेलाह। तदनुसारहिं लोचन कवि एवँ नरपति ठाकुर तिरहूत राग सभहिक प्रचार केलन्हि। रागतरंगिणीमे गीतक अनिता अछि ताहिमे नरपति आर महिनाथक उल्लेख अछि।
संगीतक क्षेत्रमे मिथिलाक अपन अलग शैली छैक। संगीतमे ओ लोकनि कतेक पारखी होइत छलाह तकर पता वर्णन रत्नाकरक भाट वर्णनासँ लगैत अछि। ओहिमे सात प्रकारक गायन दोष आर १४प्रकारक गीति दोषक उल्लेख अछि। पेशेवर गबैयाकेँ विद्यांवित कहल जाइत छल। वर्णरत्नाकरमे नृत्यवर्णनाक उल्लेखक संगहि संग लोरिक नाचक उल्लेख सेहो अछि। ढ़ोलकक विभिन्न प्रकारक रस आर तालक वर्णन सेहो अछि। जगद्धर अपन संगीत सर्वस्वमे सेहो मैथिल संगीत शैलीक विशद विश्लेषण केने छथि। मिथिला संगीत शैलीक क्षेत्रमे घनश्यामक श्रीहस्त मुक्तावली सेहो प्रसिद्ध मानल गेल अछि। संगीतक क्षेत्रमे वंशमणि झाक नाम सेहो उल्लेखनीय अछि। लोचन अपन रागतंरगिणीमे मैथिल रागक सम्बन्धमे निम्नलिखित उद्गार प्रगट केने छथि–
- “श्री मद्दिधरपति कवियितुः काव्यार्णानु वद्दौस्ततत्प्रायान–थतदनु गरव्यात गीतैविद्वान।
रागानेभ्यः कथमपित्तथा वर्तुलीकृत्य धीमाना प्रेम्णाक्षी मंतापरितो लोचन स्तांल्लिलेख”॥
ओ प्रसिद्ध राग सभहिक उल्लेख सेहो केने छथि।
रागक उल्लेख:-
ललिता विभासी तदनु भैरव्यहिरानि वराड़ीच।
गोपीवल्लभ गुजरी रामकली कापशारंगी॥
कौशिक कोरा राख्यो वसंतो धनछीतथा।
असावारी चश्रीरागो गौड़ा मालव मालवौ॥
भूपाली राज विजयनायः कामोद देशाखौः।
केदारोऽथ मलारी इत्येते मैथिलाः कथिताः॥
मैथिल रागक प्रचार ओहिकालमे नेपाल, गोरखपुर, बंगाल आर आसाम धरि भेल छल। संगीत आर नृत्यकला मिथिलामे एक समयमे अपन चरमोत्कर्षपर छल। शुभंकर ठाकुर नृत्य विद्यापर एकटा महान ग्रंथ लिखने छलाह। मैथिल गवैयाक बजाहटि त्रिपुराक राजाक ओतएसँ होइत छलन्हि। संगीतमे मिथिला शैलीक विकासक हेतु लोचनक रागतंरगिणी आनिवार्य ग्रंथ बुझना जाइत अछि। हेवनि धरि मिथिला संगीतक प्रधान केन्द्र छल आर पचगछियाक स्वर्गीय रायबहादुर लक्ष्मीनारायण सिंहक दरबार समस्त भारतीय गायक लोकनिक हेतु एकटा बड़का आश्रय छल। हुनके एहिठाम माँगन खबास, प्रसिद्ध गबैया छल आर माँगनक शिष्य रघु झा सेहो। लक्ष्मीनारायण सिंह अखिल भारतीय स्तरक प्रसिद्ध संगीतज्ञ छलाह आर अपन जमीन्दारीकेँ संगीतक पाछाँ बिलहा देलन्हि।
अध्याय–20
मिथिलाक सस्कृति
I. बिषय–प्रवेश

मिथिला एकटा भौगोलिक इकाई छल अति प्राचीन कालसँ। यजुर्वेदक समयसम ‘मैथिल’ शब्द एक संस्कृतिक परिचायक छल आर मिथिलाक भौगोलिक इकाईक अंतर्गत जे केओ रहैत छलाह से ‘मैथिल’ कहबैत छलाह। अहुना एकर अर्थ दोसर लेल जाइत अछि परञ्च प्राचीन कालमे से बात नहि छल। मैथिल संस्कृतिक विकास काल क्रमेण होइत गेलैक आर ‘मैथिलत्व’ जे अपन एकटा व्यक्तिगत छैक तकर पूर्णोत्कर्ष विद्यापतिमे आबिकेँ भेल।
प्राचीन कालक मिथिक संतान माथव कहौलन्हि आर ओहिसँ ‘मैथिल’ शब्दक आविर्भाव भेल। अर्जुन आर श्रीकृष्णक मध्ये भेल गप्पसँ ‘मैथिल’क चित्र स्पष्ट होइछ। एहिठाम विदेह जनकक कर्मानुष्ठानपर बल देल गेल अछि। शतपथ ब्राह्मणक निर्माण मैथिलक हाथे भेल सेहो कहल जाइछ। याज्ञवल्म्यकेँ एकर श्रेय देल जाइत छन्हि–“याज्ञवल्म्योहि मैथिलः”। ब्राह्मण युगमे विदेहक राज्य सभामे याज्ञवलम्यक स्भापतित्वमे वेदमहर्षि गूढ़ धर्मतत्वक निर्णय करैत छलाह। मिथिलेकेँ न्यायशास्त्रक उदगम–स्थल मानल गेल अछि आर परम्परानुसार गौतम एवँ कणावकेँ मैथिल कहल गेल छन्हि। मिथिलामे राजर्षि विद्या, सिद्ध विद्या, राज विद्या, एवँ आर्षविद्याकेँ क्रमशः बैज्ञान, ज्ञान, ऐश्वर्य एवँ धर्मक नामसँ सम्बोधित कैल गेल अछि। मिथिलामे बुद्धियोगक प्राधान्य रहल अछि। श्रीकृष्ण कमानुष्ठानक रूपमे विदेह जनककेँ आदर्श मनने छथि। विद्याकेँ मिथिलाक बैभव मानल गेल अछि।
उपनिषद कालमे मिथिला विदेहक नामे ज्ञात छल। बृहदारण्यमे जनककेँ विदेहक राजा कहल गेल छन्हि। विद्या आर दानक हेतु ओ सुप्रसिद्ध छलाह। अपन समकक्षीक मध्य ओ अद्वितीय छलाह। भौतिक दृष्टिकोणसँ सेहो विदेह एकटा औसंपन्न राज्य छल आर एहिठाम आध्यात्मिक एवँ विद्वतपूर्ण विकासक संभावना विशेष छल। जनक बहुदक्षिणा यज्ञ केने छलाह जाहिमे दूर–दूर देशसँ ब्राह्मण लोकनिकेँ आमंत्रित कैल गेल छलन्हि आर ओहिठाम कुरू–पाँचालक ब्राह्मणकेँ गाय आर सोना दानमे दैत छलाह। ब्रह्मविद्याक गूढ़ तत्वक विश्लेषणक हेतु हिनका दरबारमे एकटा बृहत् जमघट भेल छल विद्वानक जाहिमे ताहि दिन सबटा प्रसिद्ध विद्वान सम्मिलित भेल छलाह। जनक स्वयं एक पैघ दार्शनिक छलाह। एहि जमघटमे याज्ञवल्म्य, आर्तभाग, लाह्यायनी, भुज्य, चाक्रायण, उषस्त, कौषितकेय कहोल, गार्गी, आरूणी उद्धालक एवँ शाकल्य आदि विद्वान उपस्थित छलाह। बेरा–बेरी याज्ञवल्म्य एहिमे सभकेँ पराजित केलन्हि। जनक याज्ञवल्म्यक विद्वतासँ प्रभावित भेल। आर हुनका अपना ओतए रखलन्हि। याज्ञवल्म्यक दूटा पत्नी छलथिन्ह मैत्रेयी आर कात्यायनी। विदेहक लोग विशेष विद्या प्रेमी होइत छलाह। स्त्री शिक्षा सेहो बड्ड प्रचलित छल। मैत्रेयी विदुषी छलीहे। गार्गीक विद्वताक प्रशंसा तँ बृहदारण्यमे अछिये। गार्गी याज्ञवल्म्यक संग विवादमे भाग लेने छलीहे। याज्ञवल्म्य स्मृतिमे कहल गेल अछि –
“मिथिलास्थः सयोगीन्द्रः क्षणंध्यात्वा व्रवीन्मुनीन्”
जनक वंशक राजा सभ योगीश्वर याज्ञवल्म्यक प्रसादे ब्रह्मज्ञानी भेलाह –
“एते वै मैथिला राजन्नात्म विद्या विशारदः
योगीश्वर प्रसादेत द्वन्यैमुक्ता गृहेष्वपि”
व्यासक पुत्र शुक्रदेव जी मिथिलेमे ब्रह्मविद्याक शिक्षा प्राप्त केने छलाह। गीतामे श्रीकृष्ण कहने छथि–
“कर्मणैवहि संसिद्धि मास्थिता जनकादयः”
एहि सभ तथ्यसँ मात्र एतबे संकेत देल गेल अछि जे मैथिल संस्कृतिक नींव वैदिक युगमे पड़ल आर ओकर बहुमुखी विकास भेल। एक सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्रक भौतिक सुविधाक आधारे ई विकास संभव भेल होयतैक एहिमे सन्देह नहि कारण जाधरि चारूकात सुरक्षा एवँ शांति नहि रहैत छैक ताधरि आध्यात्मिक चिंतनक हेतु वातावरण उपयुक्त नहि बुझल जाइत छैक। समस्त ब्राह्मण साहित्य एवँ उपनिषद मैथिलक कृतित्वक प्राचीन कालक गवाही थिक जकर अवहेलना मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक अध्ययनक क्रममे नहि कैल जा सकइयै। मिथिलाक सीमाक सम्बन्धमे विवाद भनेऽ हो मुदा मैथिली संस्कृतिक प्रवाह जे आविच्छिन्न चलैत रहल अछि आर जकर चरमोत्कर्ष विद्यापति भेलैक ताहिमे सन्देहक कोनो गुंजाइश नहि अछि। अति प्राचीन कालसँ एखन धरि मिथिलाक भूमि संस्कृतिक एक विशिष्ट केन्द्र रहल अछि आर संस्कृतिक ओहि पातर डोरीसँ बान्हल अझुको मिथिलावासी निर्वाहक रहल छथि। ओहि संस्कृति अपन जे वैशिष्टय छैक तकर निखार अखनो धरि पूर्ण रूपेण नहि भेल छैक। एकर बैशिष्टयक विस्तृत विवरण महाभारतमे भेल अछि–
“मैथिलस्य”–शब्दक व्यवहार एहि कथनकेँ पुष्ट करैत अछि। बौद्ध आर जैन साहित्यमे सेहो मैथिलक विशिष्टता सुरक्षित अछि। अश्वघोष अपन बुद्धचरितमे लिखने छथि–
“ध्रुवानुजौ यौ बलिबज्रबाहु बैभ्राजमाषाढ़ मथांतिदेवम्।
विदेह राजं जनकं तथैव (रामं द्रुमं सेनजित स्वराज्ञः)”
बृहदारण्यक उपनिषदमे अछि–
“सहो वाचाजातशत्रु सहस्त्रमेतस्यां वाचिदध्मो।
जनको जनक इति वैजना धावंतीति”॥
पाणिनिमे ‘मैथिल’ शब्दक उल्लेख मैथिल संस्कृतिक व्यापकता एवँ प्राचीनताक धोतक थिक। मैथिल आर तैरहूतक एक्के संग व्यवहार भविष्य पुराणमे सेहो भेल अछि–
“निमेः पुत्रस्तु तत्रैव मिथिनमि महानस्मृतः
प्रथमं भुजूबलैर्येन तैरहूतस्य पार्श्वतः॥
निम्मितं स्वीय नाम्ना च मिथिला पुरमुतमम्।
पुरीजनन सामर्थ्याज्जनकः सचकीर्तितः”॥
श्रीमद् भागवतमे कहल गेल अछि–
“जन्मना जनकः सोऽभूद्वैदेहस्तु विदेहजः।
मिथिलो मथनाज्जातो मिथिला येन निर्मित्ता”॥
”एते वै मैथिला राजन्नात्म विद्या विशारदाः
योगेश्वर प्रसादेन द्वन्दै र्मुक्ता गृहेष्वपि”।
मिथिलाक जनक एहि परम्पराक स्थापना करबामे समर्थ भेल छलाह जे लोग गृहस्थ रहितहुँ जीवन्मुक्त भऽ सकैत छल आर अपनाकँू ‘विदेह’ कहि सकैत छल। मिथिलाक ई एकटा विशिष्ट देन संस्कृतिक क्षेत्रमे मानल गेल अछि जकर एहेन उदाहरण दोसर ठाम नहि भेटैत अछि। जखन ब्यास जीक पुत्र शुक्तदेवजी अपन पितासँ तपश्चर्याक हेतु आज्ञा मंगलन्हि तखन व्यासजी हुनका योगिराज जनकक दृष्टांत रखैत कहलथिन्ह जे अहाँ घरोमे रहिकेँ तपस्या कऽ सकैत छी। अहिसँ जखन ओ संतुष्ट नहि भेला तखन हुनका राजर्षि जनक ओतए उपदेश ग्रहण करबाक हेतु पठाओल गेलैन्ह। देवी भागवतमे एहि प्रसंगक उल्लेख अछि। मिथिला पहुँचलापर शुक्रदेवजी जनकक द्वारपालक प्रश्न “किं सुखं, किं दुखम्” प्रश्नसँ आश्चर्य चकित भऽ गेलाह। एहि प्रश्नक समीचीन उत्तर देने बिना ओ भीतर नहि जा सकैत छलाह परञ्च जखन जनकजी हुनक आगमनक सूचना भेटलन्हि तखन ओ हुनका स्वागतक संग भीतर लऽ गेलथिन्ह। शुकदेव जी ज्ञान प्राप्त कए मिथिलासँ घुरलाह। कहल जाइछ जे कृष्ण सेहो जनकसँ ज्ञान चर्चाक हेतु मिथिलामे आएल छलाह। महाभारत, ब्रह्मपुराण, प्द्मपुराण, रामायण, आदि ग्रंथमे मिथिलाकेँ ज्ञान भूमि कहल गेल छैक। मिथिलाक धर्मव्याधक उल्लेख महाभारतमे भेल अछि जे एक क्रोधी ब्राह्मणकेँ गृह तपस्याक शिक्षा दए गृहस्थ बनौने छलाह।
आनन्द रामायणक अनुसार रावण (त्रिलोक सुन्दरी लक्ष्मीरूपा पद्मा)क रूप गुणक प्रशंसा सुनि ओकरा प्राप्त करबाक हेतु उताहुल भऽ गेल छलाह आर अंततोगत्वा रत्नरूपमे परिणत पद्माकेँ प्राप्त कए अपना ओतए आनि पूजाक पेटीमे रखलन्हि। दोसर दिन जखन मन्दोदरीकेँ देखेबाक हेतु पेटी खोलल गेल तँ ओहिमे एकटा विकराल सहस्त्रमुखी पद्माकेँ देखि रावण मस्त भऽ गेल तखन पद्मा रावणकेँ कहलन्हि–“अहाँ एहिठाम आनिकेँ हमर जे अपमान कैल अछि ताहिमे अहाँक नष्ट निश्चित अछि। अहाँ अविलंब हमरा अपना ओतए धऽ आउ गेऽ आर ओतहि हमरा माँटिमे गारि दियह। हजार वर्षक पछाति ओहि पवित्र भूमिसँ जखन हम ओपुनः उत्पन्न होएब तखन अहाँ अपन नाशकेँ अवश्यम्भावी बुझि लेब”। अएह सीता भऽ कए जन्म लेलथि।
मिथिलाक धार्मिक महत्व विवरण निम्नलिखित उद्धरणसँ स्पष्ट होइत अछि–
देवी भागवतक छः(6)ठम स्कन्धमे मिथिलाक सम्बन्धमे कहल गेल अछि–
“एवँ निमिसुतो राजा प्रथितो जनकोऽभवत्
नगरी निर्मिता तेन गंगातीरे मनोहरा।
मिथिलेति सुविख्याता गोपुराहाल संयुता
धनधान्य समायुक्ता हट्टशाला विराजिता”॥
बृहद्विष्णुपुराण:-
“तत्रयात्रा महापुण्या सर्वकामस्मृद्धिनी
इयंतु मिथिला पुण्या स्वयं रामस्वरूपिणी॥
मिथिला सर्वतः पुण्या सुराणामपि दुर्लभा।
अतस्तीर्थेषु सर्वेषु मिथिला पूज्यते सदा॥
माया पुर्जादिकाः प्रोक्ताः सामान्येन विमुक्तिदाः।
यैषा तु मिथिला राजन् विष्णु सायुज्य कारिणी”॥
यामलसारो द्वार:- (शिवंजनक संवाद=‘बृहदविष्णुपुराण’)
”बैकुण्ठगान पुरस्कृत्य लोकाल्लंक्ष्मी खातरम्।
बैकुण्ठस्तु निजांशेन मिथिला भूमिमाविशत्॥
अतोनिवास भूमिस्ते सर्वस्थाना द्विषिष्यते।
बैकुण्ठान्नकला न्यूना दृश्यते मिथिला मया॥
मिथिला बासामोसाध्य जीवन्मुक्तो भवेन्नरः।
देहांते राघवं प्राप्य तद् भक्तैः सह नोदते”॥
मिथिलाक तीर्थ सभहिक नामक विवरण सेहो रामायण, विष्णुपुराण, स्कन्दपुराण आदि ग्रंथ सभमे भेटैत अछि। अगस्त्य रामायणमे निम्नांकित वर्णन अछि–
“वैदेहो पवन स्यांते दिश्यैशान्यां मनोहरम्।
विशालं सरस्तीरे गौरीमंदिरमुतमम्॥
वैदेही वाटिका तत्र नाना पुष्पसुगुम्फिता।
रक्षिता मालिकन्याभिः सुर्वर्तुसुखदाशुभा॥
प्रभाते प्रत्यहंतत्र गत्वा स्नात्वालिभिः सह।
गौरीमपूजयत्सीता मात्राज्ञप्ता सुभलितः”॥
स्कन्दपुराण:-
“आसीद् बह्मपुरी नाम्ना मिथिलायाँ विराजिता।
तस्यां लसति धर्मात्मा गौतमोनाम् तापसः॥
अहल्यानाम तत्पली पतिभक्ता प्रियंवदा।
सर्वलक्षण सम्पन्ना सासीत्सर्पांगसुन्दरी”॥
बृहद विष्णुपुराण:-
“गौतमस्या श्रमे याम्ये पाता लोस्थित पाथसि।
स्तात्वाकुण्डेनमेभदक्तया ययुः पाठफलंलभेत्”॥
”बिभाण्डको महायोगी दक्षिणो निवसत्यसौ।
गौतमस्याश्रमात्पुण्याधाम्य पश्चिम कोणकेँ”॥
एहिसँ स्पष्ट अछि जे बिभाण्डक मुनिक आश्रम गौतमाश्रमसँ सटले छल। मिथिला मात्र अध्यात्म विघेटामे नहि अपितु शस्त्र आर शास्त्र दुहुक हेतु प्रसिद्ध छल। पराशर मैत्रेय संवादमे कहल गेल अछि जे सभ ठाम आर सभ समयमे जाहिठाम शत्रुक महन होइत हो उएह जनक निर्मित्त मिथिला थिक।
”अंतोवहिश्च सर्वत्र मध्यंते रिपवः सदा।
मिथिला नाम सा ज्ञेया जनकैश्च कृता मही”॥
एहि पक्षपर रामायणमे सेहो विशद् विश्लेषण भेल अछि। जनक विषय विरागी रहितहुँ राज–काज किंवा साँसारिक कर्तव्यसँ कथामपि विमुख नहि रहैत छलाह। तैं तँ हुनका राजर्षि, जीवन्मुक्त, योगी आर विदेह कहल गेल छन्हि। रामायणमे कहल गेल अछि जे राजा सुधत्वा मिथिलापर घेरा डालिकेँ शिवधनुष जनकक ओहिठाम पठाकेँ पद्माक्षी सीताक याचना केलन्हि। जनक एहिबातकेँ नहि मानलन्हि जकर नतीजा भेल युद्ध। राजा सुधंवाकेँ मारि ओ साँकाश्चमे अपन वीर भ्राता कुशध्वजक अभिषेक केलन्हि। एहिसँ स्पष्ट अछि जे जनक व्यावहारिक सेहो छलाह। वैशाली अपन गणतांत्रिक शासन पद्धतिक हेतु विश्वविख्यात छल एवँ जैन धर्म आर बौद्ध धर्मक प्रसार केन्द्रक हेतु सेहो। बैशालीक गरिमासँ स्वयं गौतमबुद्ध एतेक प्रभावित छलाह जे एहि स्थानकेँ ओ तावतिंश देवसँ तुलना कएने छथि। वैशाली लोकनि नागरिकताक कलामे अपना समयमे अपूर्व छलाह आर ताहि दिनमे चारूकात हिनक यश छिड़िऐल छल। चम्पारण तँ सहजहि वैदिक कालहिसँ प्रसिद्ध साँस्कृतिक केन्द्र छल। लौरिया नंदनगढ़मे 80फीट उँच्च स्तुप भेटल अछि आर ओहिठाम वैदिक समाधिभूमिक टिलहासँ एकटा स्वर्णपत्रपर अंकित पृथ्वीमाताक चित्र भेटल अछि जे कैकमानेने अपूर्व अछि। ओहिठाम एकटा अशोकक स्तंभ सेहो अछि जाहिपर अशोकक धर्मोपदेश अंकित अछि। आधुनिक युगोमे महात्मा गाँधी अपन अहिंसात्मक संघर्षक प्रयोग सेहो एहिठामसँ प्रारंभ केने छलाह। ‘हरिहर क्षेत्र’ मिथिलाक एकटा महान धार्मिक केन्द्र मानल गेल अछि आर पुराणक अनुसार गजग्राहकक युद्ध एतहि भेल छल। धार्मिक आर्थिक आर सामाजिक बिकासक क्रममे मिथिलाक विशिष्ट योगदान रहल अछि। एहिठाम ई उल्लेख करब आवश्यक बुझना जाइत अछि जे दरभंगाक महाराज स्वर्गीय रामेश्वर सिंहक सत्प्रयासे हरिद्वारमे गंगा नहरक बाँधकेँ कहबाओल गेल आर गंगाक रूकल प्रवाहकेँ पुनः भगीरथ–खातमे आनल गेल जाहिसँ हमरा लोकनिकेँ गंगाक दर्शन भरहल अछि। मिथिलामे हुनका ‘अपर–भगीरथ’ कहल जाइत छन्हि। जखन खादीक आन्दोलन प्रारंभ भेल तखन अखिल भारतीय खादीक केन्द्र मधुबनीमे स्थापित भेल आर अद्यावधि ओ चलल आबि रहल अछि आर खादीक प्रामाणिकताक हेतु मधुबनीक नाम आवश्यक मानल जाइत अछि। ओना मधुबनीक नाम आवश्यक मानल जाइत अछि। ओना मधुबनी हस्तशिल्प आर कुटिरशिल्पक हेतु सेहो प्रसिद्ध अछि।
मिथिलाक संस्कृतिक विकास कोनो एक दिनमे अथवा एक ठाम नहि भेल छल। मिथिलाक सीमा काफी विस्तृत छल आर एकर सभ क्षेत्र सारणसँ महानंदा धरि कोनो ने कोनो रूपें मैथिल संस्कृतिक विकासक श्रोत छल। जैन आर बौद्ध साहित्यक अतिरिक्त आरो बहुत रास साहित्यिक साधन अछि जाहिमे मिथिलाक संस्कृतिक विवरण भेटैत अछि आर जकर मूल्याँकन अद्यावधि नहि भऽ सकल अछि। मैथिल संस्कृतिक विशिष्ट अध्ययनक हेतु एक एहेन दलक हेतु अपनाकेँ समर्पण कऽ दैथि आर तखने एकर सर्वांगीण अध्ययन संभव भऽ सकत। सोमदेवक ‘यश स्तिलक चम्षू’मे हमरा लोकनि ‘तिरहूत रेजिमेंट’क उल्लेख भेटइयै जाहिसँ बुझना जाइत अछि जे एहिठामक निवासी युद्ध विद्यामे सेहो निपुण होइत छलाह आर एहिठामक ‘रेजिमेन्ट’क विशेष महत्व रहैत छल। साहित्यक क्षेत्रमे ‘मैथिल रीति’क उल्लेख भेटैत अछि जे एहि बातक द्दोतक थिक जे गौडीय आर ‘वैदर्भी रीति’क अतिरिक्त एकटा ‘मैथिल रीति’ सेहो एकटा स्कूलक प्रतिनिधित्व करैत छल। कलामे मिथिलाक अपूर्व योगदान रहल अछि। हस्तकला, शिल्पकला, चित्रकला, आदि जे हेवनिमे अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त केलक अछि। मैथिलत्वक अपन विशेषता तँ एहने छलैक जे विद्यापति बाध्य भए एहि गुणकेँ अपन ‘पुरूष परीक्षा’मे वर्णन केने छथि। ‘विद्यापति’मे आबिकेँ मैथिल संस्कृति अपन चरमोत्कर्षपर पहुँचल आर मैथिलक व्यक्तित्वक शुद्ध रूपें निखार ओहिठाम आबिकेँ भेल।
बिहारक आन भागक अपेक्षा मिथिलेटा एकटा एहेन क्षेत्र अछि जकर अपन साँस्कृतिक वैशिष्ट्य अखन धरि बनल छैकि आर जकर एकटा साँस्कृतिक खण्ड कहल जा सकैत अछि–अपन लिपि, अपन कला, अपन सामाजिक संस्कार, अपन भौगौलिक इकाई, अपन साहित्य एवँ अपन कानूनक स्कूल तथा परम्परा एकरा एखनहुँ अपन व्यक्तित्व प्रदान केने छैक जे आन कोनो क्षेत्रमे नहि देखबामे अवइयै। रहन–सहन, खान–पान, बिधि–व्यवहार, नियम–परिनियम, सामाजिक दृष्टिकोण, आर्थिक समानता आर भाषा एवँ साहित्यक श्रृखंलाबद्ध विकास क्रम तथा साँस्कृतिक गतिविधिक अविच्छिन्न प्रवाह एवँ एकरूपता मिथिलाक साँस्कृतिक परम्पराक द्दोतक थिक आर इएह कारण थिक जे एकर व्यक्तित्वक वैशिष्टय अखनो धरि सुरक्षित अछि। ‘मिथिल’, ‘मैथिल’ शब्दसँ एकटा संस्कृतिक बोध होइत अछि आर एहि नामसँ हम अखिल भारतमे कतहु समाद्धृत भऽ सकैत छी आर व्यक्तिगत रूपें हमएलो छी। ई दुनु शब्द मात्र एकटा भौगौलिक क्षेत्रक द्दोतक नहि अपितु एकटा संस्कृतिक द्दोतक थिक जकर विकासक क्रमक प्रारंभ हमरा यजुर्वेदमे देखबामे अवइयै आर चरमोत्कर्ष विद्यापतिमे।
II. मिथिलाक संस्कृतिक विशिष्टता। - अइपन
अइपन
मिथिलाक चित्रकला:- मिथिलाक अरिपन आब एकता विश्वकलाक रूपमे परिवर्त्तित भए स्वीकृत भऽ चुकल अछि आर मैथिली कलामे दक्ष लोकनिकेँ आब सरकारी उपाधि सेहो भेटए लागल छन्हि। ‘अरिपन’ शब्दक विकास आलेपन अथवा आलिम्पणसँ भेल अछि–‘आलेपन’ 64कलामे सँ एक कला मानल गेल अछि जकरा हमरा लोकनि चित्र अथवा शिल्पकला कहि सकैत छी। अरिपन देबाक प्रथा तँ प्राचीन कालहिसँ चलि आबि रहल अछि। प्रत्येक सुभ कार्यमे कोनो ने कोनो रूपें अरिपन देबाक प्रणाली प्राचीन कालहुँमे छल। शुभ कर्मक अवसरपर ‘सर्वतोभद्र’, ‘स्वस्तिक’, ‘षोड़सदल’, ‘अष्टदल’, आदि एकरे प्रभेद मानल गेल अछि आर एकर प्रमाण हमरा प्राचीन साहित्यमे सेहो भेटैत अछि। निम्नलिखित उद्धरण सभसँ प्रमाण भेटत।
ब्रह्माण्ड पुराण:-
“विवाहो सवयज्ञेषु प्रतिष्ठादिषुकर्मषु।
निर्विघ्नार्थ मुनिश्रेष्ठ न थोद्वेगाद्भतेषुच॥
बासुदेव कथाभिश्च स्तो त्रैरन्यैश्चे वैष्णवैः।
सुभाषितैरिन्द्र जालै र्भूमिंशोभाभिरैवः च”॥
भूमि शोभाक विवरण एहिठाम देखबामे अवइयै। इएह भूमि शोभाकेँ हमरा लोकनि अपना ओतए ‘अरिपन’ कहैत छी।
संस्कार रत्नमाला (भट्ट गोपीनाथ कृत):-
“लग्नाहेमातृकाः पूज्याः पूज्या गौरी हरांविता।
पीठे वै त दलाभे तु सुश्लाक्षणे तण्डुलांविते॥
पंकज कारयित्वा तु तंत्र गौरी हरौ यजेत्”॥
संस्थाप्य गणपं गौरी काञ्चनी काण्चने गजे।
कृत्वोपवासनियमं गजं गौरीञ्च पूजयेत्”॥
एहिठाम “सुश्लक्षण”, ‘ताण्डुलात्वित’ आदिसँ ई मान होइछ जे अरिपनक हेतु चाउर पीसिकेँ चौरठ बनाओल जाइत छल आर तखन ओकरा घेरिकेँ अरिपन देल जाइत छल। स्वनिर्मित गजक उपर गौरी आएअ गणपतिक पूजनक प्रसंगक विवरण भविष्यपुराण आदि अन्याय ग्रंथमे सेहो भेटैत अछि। एहि सभ साधनक आधारपर ई कहल जाइत अछि जे भूमिकेँ बढ़िया जकाँ नीपिकेँ ओहिपर मंडल आलेपन कए (अरिपन दए) नवघटक स्थापना करबाक चाही।
चण्डेश्वर कृत्यरत्नाकरमे लिखने छथि–
“पूजयेन्मंगलां तत्र मण्डले विधि वत्सदा”–अर्थात् अरिपन दऽ कए सदैव विधिपूर्वक मंगला देवीक पूजाकरी। एहि प्रसंगमे निम्नलिखित ग्रंथ सेहो उल्लेखनीय बुझना जाइत अछि–
पूजा प्रकाश (वीर मित्र मिश्र):-
“पद्माष्ट दलं तत्र कर्णिका केसरोज्ज्वलम्।
उमाम्याँ वेदतंत्राम्याँ मध्ये तुभय सिद्धर्य”॥
पूजा प्रदीपमे गोविन्द ठाकुर लिखने छथि–“यंत्राधारमाश्रित्यैव पूजा विहिता”
एकर आरो कतेक रास उदाहरण देल जा सकइयै मुदा स्थानाभावक कारणे एहिठाम ओतेक उद्धरण देब संभव नहि। पर्व भेदसँ नाना प्रकारक अरिपन मिथिलामे स्त्रीगण दैत छथि। अपन चिरंतन संस्कृतिक प्रभावक फलें एहिठाम स्त्रीगणमे ई कलाक विलक्षणता देखबामे अवइयै। प्रत्येक अवसरक फराक–फराक आलेपनक (अरिपन)क विधि छैक। विवाहोत्तर महुअकक शुभ अवसर जे दूटा पुरैनी पातक आकारक अरिपन देल जाइत अछि से भेल वर–वधुक आविच्छिन्न सम्बन्धक प्रतीक। ठीक ओहिना कोजागराक अवसरपर लक्ष्मीपूजासँ सम्बन्धित अरिपन मखानक तीन पातक आकारक बनाओल जाइत अछि। पृथ्वी पूजाक अवसरपर त्रिकोण मंत्राकार देवोत्थानमे प्रवोधिनी, साँझक, ‘मंदिराकार’ आर तुलसी पूजाक अरिपनक अलग विधान अछि। सभ पर्वपर अलग–अलग अरिपन देबाक परिपाटी मिथिलामे अध्यपर्यंत अछि। सत्यनारयण पूजाक अवसरपर जे ‘चौशंख’ अरिपन देल जाइत अछि से बड्ड मार्मिक अछि–‘चौशंख’ चतुर्भूज भगवानक द्दोतक थिक। पष्ठी देवीक पूजाक अवसर ‘कमलाकार’ अरिपन देबाक प्रणाली अछि। देवोत्थान (प्रवोधिनी)क सम्बन्धमे चण्डेश्वर लिखैत छथि–
“वासुदेव कथा भिश्च स्तोत्रैरन्यैश्च वैष्णवैः।
सुभाषितैरिन्द्र जालै र्भूमि शोभामि रेवच”॥
’भूमि शोभा’क अर्थ भेल अरिपन।
कुल देवताक सम्बन्धमे रूद्रधरक मत छन्हि–
“ततः कतैक मुक्ता ब्राह्मणी तण्डुल चूर्णेनोपलेपनं
विधाय तत्समीपे पूर्व भागो परिफलके पट्टकेँ
वा तथैवोपलेपयेत।...एवँ सुन्दरं महावेदि मण्डलं कृत्वैशान्यां ग्रहवैद्यां श्वेत वर्णिकयाऽऽष्टादशदलं पद्मं विलिरव्य....”
हेम्रादि सेहो अरिपनक उल्लेख केने छथि आ श्रीहर्षक नैषधीय चरितमे सेहो एकर विवरण एवँ प्रकारे अछि–
“धृत लाञ्छन गोमयाञ्चनं विधुमालेपनपाण्डरं विधि।
भ्रमयत्युचितं विदर्भजाऽऽनननीराजनवर्द्धमानकम्”॥
एकर टीकामे नारायण लिखने छथि–
“आलेपनम्=पिष्टोदकम्=अईपण–इति लोके प्रसिद्धम्”। आगाँ ओ पुनः लिखने छथि–“चतुष्कोण निर्माणार्थ हरिद्राचूर्ण मिश्रितं तण्डुल पिष्टं तस्यदाने=आलेपवरणे पंडिताः=चतुराः”॥
विवाह, श्राद्ध, पूजा आदि अवसरक हेतु विविध प्रकारक अरिपन लिखबाक व्यवस्था मिथिलामे प्राचीन कालकाँ चलि आबि रहल अछि। विवाहक सप्तपदी प्रकरणक प्रसंगमे सेहो आलेपनक उल्लेख भेटइत अछि। आलेपन शब्दक व्याख्या शब्दकल्प द्रूममे सेहो भेल अछि। विद्यापति एकर उल्लेख एवँ प्रकारे केने छथि।
“ललातरूअर मंडप जीति, निरमल ससधरधवलए भीति।
हरि जब आओब गोकुलपुर, घरे–घरे नगर बाजए जयतूर।
अलिपन देओब मोतिमहार, मंगलकलसक करब कुचगर”॥
वैदिक युगहिसँ मिथिलामे सभटा मांगलिक कार्य सर्वतोभद्रादिमंडलेपर होइत छल। ओना अरिपनक परिपाटी तँ समस्त भारतमे कोनो ने कोनो रूपें अछिये मुदा एहिकलामे मिथिलाक अपन एकटा वैशिष्ट्य छैक। हरिद्रा–कुंकुम–केसर आदिक संग सिन्दूरक संग अरिपन देबाक परिपाटी मिथिलेटामे अछि। मिथिलाक लोक चित्रकलामे अपन एकटा सादगी अछि। ई कला सनातन कालसँ प्रवाहित होइत आएल अछि। मिथिलाक एहिकलामे उन्मुक्त भावना एवँ परिष्कृत शैली, नैसर्गिक अभिव्यंजना एवँ सुरूचिक जे समत्वय देखबामे अवइयै से आनठाम भेटल असंभव। लोक संस्कृतिक एहेन प्राँजल प्रसाद आर कत्ते भेटत? कहल जाइत अछि जे स्वास्तिक अरिपनक प्रारंभ वैदिक युगहिमे भेल छल। ‘सर्वतोभद्र’ आर ‘स्वस्तिक’केँ एक्के मानल गेल अछि। मिथिलामे प्रचलित ‘अरिपन’ आर अन्यान्य चित्रशैलीकेँ ‘मिथिला शैली’क नामसँ सेहो जानल गेल अछि। एकरा आधुनिक विद्वान लोकनि “मिथिला स्कूल आफ पेन्टिङ्ग” सेहो कहैत छथि आर अहुना एहि धरोहरकेँ संयोगिकेँ रखने छथि मैथिल करण कायस्थ आर ब्राह्मण ललना लोकनि। आर्थर महोदय एहि कलाक विशिष्ट अध्ययन केने छथि आर एहि सम्बन्धमे अपन मतो प्रकाशित केने छथि। एहि चित्रक अध्ययनसँ सामाजिक धार्मिक आदिक ज्ञान सेहो होइत अछि। अरिपन आर भित्ति चित्र कालजदी भए एखनो मिथिलाक घर–घरमे व्याप्त अछि।
एहिमे दू प्रकारक भेद अछि। भीति चित्र आर भूमि चित्र। भूमि चित्र अइपनक नामे प्रसिद्ध अछि। मिथिलाक सबटा शुभकार्यमे अइपन लिखबाक प्रथा अहुखन बनल अछि। वीरेश्वर एवँ रामदत्तक लेख सभसँ सेहो एहिबातपर प्रकाश पड़ैत अछि। अइपनपर तंत्रक प्रभाव स्पष्ट अछि आर एकर कारण ई थिक जे मिथिला तंत्रक प्रधान केन्द्र छल आर अइपन ओकर यांत्रिक प्रकाश थिक। मैथिल निबन्धकार लोकनि एकर महत्वक विश्लेषण अपना लेख सभमे केने छथि।
अरिपनमे मूलतः तुसारी पूजा, पृथिवी, साँझ, मौहक, मधुश्रावणी, द्वादशा, गवहा संक्रान्ति, कोजागरा, सुखरात्रि, षड़दल, अष्टदल, स्वस्तिक आदि प्रसिद्ध अछि। भित्ति चित्रमे हरिसौ पूजाक चित्र, सरोवर, नयनायोगिन, बाँस, पुरैन, देहरिपरक चित्र, दहीक भरिया, माँछक भरिया, गोपी चीरहरण लीला आदि प्रसिद्ध अछि। डाला, हाथी, कोहवरक घरक हाथी, चुमाओनक डाला, रंग–बिरंगक पहिया आदिक चित्र सेहो प्रसिद्ध मानल गेल अछि। मिथिलामे एखनो उपरोक्त चित्रशैलीक व्यापकता देखबामे अवइयै।
संगीत:- संगीत मैथिल संस्कृति एकटा अभिन्न अंग मानल गेल अछि। प्राचीन कालहिसँ मिथिलामे संगीतक पद्धति चलि आबि रहल अछि। १४हम शताब्दीमे मिथिलामे संगीतपर सिंह भूपाल “संगीत–रत्नाकर–व्याख्या” नामक ग्रंथ लिखने छलाह। १६हम शताब्दीमे जगद्धर ‘संगीत सर्वश्व’। नामक ग्रंथ लिखलन्हि आर ओकर तुरंत बाद खङ्गराम आर कल्लीराम “लच्छिराघव” नामक ग्रंथक रचना केलन्हि। लोचनक रागतरंगिणी तँ सर्व प्रसिद्ध अछिये जकर उल्लेख पूर्वहि भेल अछि।
मिथिलामे संगीतक प्रारंभ वैदिक गानसँ मानल जाइत अछि। गौतम, भृगु, विश्वामित्र, याज्ञवल्म्य आदिक आश्रममे वैदिक यज्ञ आर गान सदैव होइत रहैत छल आर ओ परम्परा मिथिलामे बहुत दिन धरि बनल रहल। जनक विदेहकेँ राजदरबार तँ सहजहि एकर आश्रय केन्द्र छल। वैदिक गानमे ऋगवेदक मंत्रसमूह गाओल जाइत छल। नामवेदक गानक निर्माणमे मिथिलाक अपूर्व योगदान अछि। याज्ञवल्म्य संगीत विद्याकेँ मुक्तिमार्गक साधन मनैत छलाहे–“वीणा वादन तत्वज्ञः श्रुतिजातिविशारदः। तालज्ञश्चा प्रयासेन मुक्तिमार्गेनिगच्छति”॥ वैदिक गानमे जकरा स्वरमण्डल कहल गेल अछि ओहि समूहक सात स्वरकेँ (स,री,ग,म,प,ध,नी) सप्तक कहल गेल अछि। संगीतक ई सात स्वर अपन–अपन स्थानपर निश्चित बनल अछि। एहि सात स्वरक फेर अलग–अलग समूह सेहो होइछ। १६म–१७म शताब्दीमे दामोदर मिश्र छटा रागक स्थापना केलन्हि एक–एक रागक पाँच–पाँचटा रागिणी एवँ हुनक आठ–आठ पुत्र आर आठ–आठ पुत्रवधु। ओ राजाकेँ पुरूष आर रागिणीकेँ स्त्री मनलन्हि। भैरव, मालकोष, हिंडोल, दीपक, मेघ आर श्री–ई छटा राग भेल। ‘गीत गोविन्द’केँ प्रबन्ध काव्यक गानक रूपमे मानल गेल अछि।-“वाग्देवता चारित्रचित्रित चित्रसद्मा....करोति जयदेव कवि प्रबन्धम्”।
ओकर बाद एहि श्रेणीमे विद्यापति ठाकुरक पद्मावली सेहो अबैत अचि। विद्यापति स्वयं एक पैघ संगीतकार छलाह। मिथिलामे ‘नचारी’ आर ‘लगनी’ अहुखन प्रसिद्ध अछि। मिथिलामे संगीतक मुख्य केन्द्र रहल अछि दरभंगा। आईन–ए–अकबरीमे विद्यापतिक नचारीक उल्लेख अछि आर संगहि ६रागक ६–६रागिणीक उल्लेख सेहो अछि। पचगछिया मिथिला संगीतक एकटा प्रधान केन्द्र अद्यावधि मानल जाइत अछि। एहिठामक रायबहादुर लक्ष्मीनारायण सिंहक दरबारमे माँगन खबास सन प्रसिद्ध गबैया रहैत छलाह। एहि सम्बन्धमे हम पहिने बहुत किछु लिखि चुकल छी तैं ओकरा एहिठाम दोहरैब आवश्यक नहि बुझना जाइत अछि।
III. – मैथिल संस्कृतिक स्तंभ
मैथिल संस्कृतिक किछु प्रमुख स्तंभ:-
- i) गौतम – मिथिलाक ब्रह्मपुर गाँवक रहनिहार छलाह। गौतम कुण्ड एवँ अहिल्या स्थानसँ हुनक सम्बन्ध बनाओल जाइत अछि।
- ii) याज्ञवल्म्य – हिनका सम्बन्धमे मतभेद अछि मुदा हिनको मैथिल कहल गेल अछि। महाराज जनकक समकालीन आर योगी छलाह। ई अपनाकेँ “मिथिलास्तस्स योगीन्द्रः” कहने छथि। हिनक पत्नी मैत्रेय वेदांतक विदुषी छलथिन्ह।
- iii) कपिल – मिथिलामे साँख्यक निर्माता मानल जाइत छथि।
- iv) मण्डन मिश्र – न्याय आर मीमाँसाक अद्वितीय विद्वान सहरसा जिलाक महिषी ग्रामक निवासी छलाहे। शंकराचार्यसँ हिनक शास्त्रार्थ भेल छल जाहिमे हिनक पत्नी भारती(शारदा) अध्यक्षता केने छलीहे। हिनक पनिभरनी शंकराचार्यकेँ बाट देखबैत कहने छलथिन्ह–
“स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं शुकाङ्गनायत्र विचारस्थांति।
शिष्योप शिष्यैरूपगीय मानम वेहि तन्मण्डनमिश्रधाम॥
जगद ध्रुवं स्याज्जगद् ध्रुवं आ कीराङ्गनायत्र गिरोगिरांति।
द्वारस्थनीडाङ्गणसान्नेरूद्दा जा नीहि तन्मण्डन मिश्र धाम”॥
- v) वाचस्पति – अद्वितीय दार्शनिक जनिक ‘भामती’ दर्शनक क्षेत्रमे अपूर्व ग्रंथ मानल गेल अछि। ई सर्वतंत्र स्वतंत्र विद्वान छलाह आर पूर्वी मिथिलाक निवासी छलाह।
- vi) उदयनाचार्य – ओना तँ करिऔनक निवासी कहल जाइत छथि मुदा पूर्वी मिथिलाक निवासी हेबाक प्रमाण सेहो हिनका सम्बन्धमे भेटैत अछि। ओ पैघ दार्शनिक छलाह आर हिनक निम्नोक्त गर्वोक्ति प्रसिद्ध अछि–
“वयमहि पदविद्यां तर्क मात्वी क्षिकींवा
यदि पथि विपथे आ वर्त्तयामस्सपंथा॥
उदयति दिशि यस्यां भानुमान् सैव पूर्वा
नहि तारणिरूदीते दिक्पराधीन वृत्तिः”॥
हिनक लिखल अनेक ग्रंथ उपलब्ध अछि आर ओ एक विश्वविख्यात दार्शनिक छलाह। मिथिलाक प्रसिद्धिक प्रसारमे हिनक योगदान ककरोसँ कोनो हालतमे कम नहि अछि। कहल जाइत अछि जे जगन्नाथ धाम जेबाक कालमे हिनका मोनमे ईश्वर सम्बन्धी संकल्प–विकल्प होमए लागल आर जगदीशपुरी नामक स्थानमे जखन ओ एक मंदिरमे प्रवेश केलन्हि तखन एकाएक मंदिरक केबार बन्द भऽ गेल। ईश्वरक प्रति हुनक आस्था बढ़ि गेलन्हि आर ओ लिखलन्हि–
-उपस्थितेषु बौद्धेषु मदधीना तवस्थितिः
ऐश्वर्य्य मदमत्तस्सवं माम वज्ञाय वर्त्तसे॥
- vii) गंगेश उपाध्याय – मंगरौनी निवासी गंगेश न्याय–शास्त्र दुधर्ष विद्वान भेल छथि आर हिनक प्रसिद्ध ग्रंथ “तत्वचिंतामणि” अपना विषयक अद्वितीय ग्रंथ मानल गेल अछि। नव–न्यायक जन्मदाता ई छलाह जाहि हेतु मिथिला जगत्प्रसिद्ध भेल।
- viii) अभिनव वाचस्पति – धर्मशास्त्रज्ञ आर दार्शनिक छलाह आर मिथिलाक धर्मशास्त्र साहित्य एवँ न्याय आर कानूनक सुदृढ़ करबामे हिनक अपूर्व योगदान रहल छन्हि।
- ix) पक्षधर मिश्र – तार्किकक संगहि संग न्याय–शास्त्रक अद्वितीय विद्वान छलाह। गंगेशक तत्व चिंतामणिपर हिनक टीका ‘आलोक’ सर्व विदित अछि। हिनके अनुमतिसँ रघुनाथ शिरोमणि नादियामे ‘नव–न्याय’क केन्द्रक स्थापना केने छलाह। तकरा बादहिसँ नादिया नव–न्यायक प्रसिद्ध केन्द्र भेल। ई ‘प्रसन्न राघव’ (नाटक) आर ‘चन्द्रालोक’ रचयिता सेहो छलाह आर हिनका सम्बन्ध कैक प्रकारक किवदंती मिथिलामे अहुखन प्रचलित अछि–
-“शंकर वाचस्पत्योह शंकरवाचस्पतीसदृशौ।
पक्षधर प्रतिपक्षी लक्षीभूतो नचकृपि”॥
- x) शंकर मिश्र – भवनाथ मिश्र अयाचीक पुत्र शंकर मिश्र मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक एकटा कीर्त्तिस्तंभ मानल गेल छथि। पाँच वर्षक अवस्था निम्नलिखित श्लोक सुनाकेँ मिथिलाक शासककेँ ई चका चौंध कऽ देने छलाह–
-“बालोऽहं जगदानन्दनमे बाला सरस्वती
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्रयम्”॥
जखन मिथिलाक शासक एकरा वर्णन करे कहलथिन्ह तखन ओ पूछलथिन्ह जे लौकिक अथवा वैदिक कोन रूपें–तखन महाराज कहलथिन्ह जे दुहु रूपें वर्णन कए–
-“चकितश्चलितश्छन्नः प्रयाणे तव भूपते
सहस्त्रशीर्षा पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्रपात्”॥
एहिमे पहिल पांति स्वनिर्मित लौकिक संस्कृत थिक आर दोसर पांति वैदिक मंत्र थिक।
- xi) विद्यापति ठाकुर – मिथिलाक संस्कृति चरमोत्कर्ष भेल महाकवि विद्यापति जे हमरा लोकनिकमे रक्तमे अद्यतन समाहित छथि आर जिनका बिना मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक कल्पनो करब असंभव अछि। मैथिल जनजीवनक एहेन कोनो अंश नहि अछि जाहिमे विद्यापति व्याप्त नहि होथि आर ई गौरव एहि रूपें संसारक आन कोनो कविकेँ प्राप्त नहि भेल छन्हि। जन्मसँ मृत्यु धरिक सामाजिक संस्कारोपर विद्यापति अद्यावधि व्याप्त छथि आर मैथिल संस्कृतिक विशिष्ट तत्वमे जे किछु एखनो बाँचल अछि तकर एकमात्र श्रेय विद्यापतिकेँ छन्हि। मैथिली संस्कृति ओ एहेन कीर्तिस्तंभ छथि जकर मूल्याँकन करब अखनो धरि संभव नहि भेल अछि।
ओ मैथिलकेँ ‘पुरूषार्थ’क पाठ पढ़ौलन्हि आर ‘सुपुरूष’क कल्पनाकेँ साकार करबामे समर्थ भेलाह। ‘पुरूष’क चरित्रक विभिन्न पक्षक विश्लेषण करैत ओ कहने छथि जे विद्या, बुद्धि आर विवेककेँ समुचित रूपें उपयोग केनिहार व्यक्तिये मानल कहा सकैत छथि। पुरूषार्थक अर्थे भेल मनुक्खक संतुलित विकास। परम्परावादी होइतहुँ। विद्यापति युग पुरूष छलाह आर भविष्यक हेतु संकेत देनिहार सेहो। अपना समयक हिसाबे ओ प्रगतिशील कहल जा सकैत छथि आर विचारमे वस्तुनिष्ठ आर धर्मनिरपेक्ष सेहो। ‘विभागसार’ नामक कानूनी ग्रंथ लिखि विद्यापति अपन राजनैतिक पटुता आर ज्ञानक परिचय तँ देने छथिये, संगहि एहि पुस्तकक माध्यमसँ ओ ओइनवार वंशक एकताकेँ सुदृढ़ रखबामे सेहो सफल भेल छलाह।
विद्यापति मूलरूपेण तीन प्रकारक मैथिली गीतक रचना कए अपनाकेँ अमर कऽ गेलाह आर मैथिल संस्कृतिकेँ नव–जीवन प्रदान कऽ गेलाह। मैथिलीमे एहि तीनू प्रकारक गीतक रचना कए ओ मैथिली भाषा, मिथिलाक संस्कृति माध्यमकेँ सेहो अमरत्व प्रदान केलन्हि। प्रथम कोटिक गीत भेल विभिन्न देवी–देवताक प्रति गाओल गीत सभजे अद्यावधि मिथिलामे ओहिना प्रचलित अछि जेना ताहि दिनमे रहल होएत। सभ प्रकारक सामाजिक उत्सवपर ई गीत सभ गाओल जाइत अछि आर एहिसँ मैथिल संस्कृतिक एकरूपता देखबामे अवइयै। एकरा सामान्यतः व्यवहार गीत कहल जाइत अछि। दोसर प्रकारक गीत भेल–शिवगीत जाहिमे नचारी आर महेशवाणीकेँ राखल जा सकइयै आर जाहि माध्यमसँ विद्यापति मिथिलाक शोषित–पीड़ित मानव व्यथाकेँ चित्रित करबामे सफल भेल छथि। तेसर प्रकारक गीत भेल सामान्य स्थितिक जीवन–यापन करैत जीवनक उपभोग करैत प्रेम गीत–प्रेमी आर प्रेयसीक मिलन, विरह, संभोग सम्बन्धी गीत जाहिमे राधाकृष्णकेँ आनि चित्रित कैल गेल अछि। एहि दिशामे ओ जयदेवसँ प्रभावित देखना जाइत छथि। प्रेमी–प्रेमिकाक हेतु तँ विद्यापति नहि केने होथि।
शिव गीतक सेहो तीन रूप देखबामे अवइयै– i) शिवक स्तुति किंवा प्रार्थना; ii) शिव–विवाह, आर iii) शिवक पारिवारिक जीवन सम्बन्धी गीत। साहित्यक इतिहास दृष्टिकोणे विद्यापतिक शिव गीत साहित्यक क्षेत्रमे एकटा अपूर्व देन कहल जा सकइयै जकर दोसर उदाहरण हमरा देखबामे नहि अवइयै। नचारीक हेतु विद्यापति समस्त भारतमे प्रसिद्ध छथि। एकर प्रभाव आनोठाम देखल जाइत अछि खास कए नेपालमे।
त्रैमाषिक नाटक कऽ रचना कए विद्यापति जे आदर्श स्थापित केलन्हि तकरा मिथिलामे हेवानि धरि लोग अनुसरण करैत रहलाह आर हर्षनाथ धरि त्रैमाषिक नाटकक रचना होइत रहल।
मैथिल संस्कृति एकटा अन्यतम उदाहरण जे हमरा विद्यापति गीतसँ भेटैत से भेल शिव–विवाहक गीत–एकटा अपूर्व महेशवाणी जाहिमे पाँचगोट मैथिल विवाह विधिक उल्लेख अछि आर ई गीत भाषा गीत संग्रह (संख्या ६६)मे संग्रहित अछि। प्रथमहि एहि संग्रहमे प्रकाशित भेल अछि–एहिमे परिछन, तकरबाद पटिआपर बैसब, महुअक, सासु द्वारा बेदीपर घुमोनाई, आर पाँचम गौरीक सखी सभ द्वारा महादेवकेँ काजर करब आदि विद्याक उल्लेख अछि जे अहुखन मिथिलामे प्रचलित अछि–एहि महेशवाणीकेँ एतए उद्धृत कैल जाइत अछि–
-“दोलातरनबइते ससि पसि परू, बाघछाल गेल छिड़िआई।
तेहि अमि अरसे मृगरिदुजिबिउठु, भागें मोए अएलाहुँ पड़ाई॥
दोसर विधि पड़िचाँ चढ़िबैसलाहे, जषने दिगंबर आइ रे।
लाजक लेल गोरि नहि आबए, सखि सभे गेल पड़ाई॥
माई हे माड़ब मए नहि जेबए, जहाँ बस उमत जमाई॥
पएर धोअए षने दूध पिअल फणि, हर लागल तसु चोरी।
सभे सभतहु करताल बजाबए, मधुरहासे हँस गोरी॥
सासुहि शंकरवदन उगारल, आँचर छानल ग्रिमपासे।
देखि गिरिभाने भोगि कुच चढ़लाह, आओर कि कहब उपहासे॥
गोरि साखि मिलि ईस सीर धरि, नयन आँजल मन मेहि।
एकहाथ नयनानल डाढ़ल, दोसर गिड़ल गंगा गोहे॥
भनइ विद्यापति सुनह मन्दाइनि, ओवर सहजक भोरा।
गोरि सहित हरदेथु अभयवर, पुरत मनोरथ तोरा”॥
महादेवक स्वरूप एवँ वेषसँ अदभुत स्थिति उत्पन्न भगेल छल। एहिमे विद्यापति कालीन विवाहक लौकिक विधिक विवरण भेटैत अछि जाहिसँ तत्कालीन मैथिली संस्कृतिक सामाजिक रूपक दर्शन होइछ। एकरा परिछनक गीत सेहो कहि सकैत छी। एहि क्रममे एकटा आर गीत द्रष्टव्य अछि–
-“कौन वर आनल तपसिया,
गोरि मुगुध भेलि देखि रंगरसिया॥
नयन अनल काजर कहाँ लगाओब।
जटा गांग–गोट कैसे कए चुँमाओब॥
भुत बरिआती कत्तए जेमाओब।
पाँचवदन महुअक कहा पाओब॥
पानि पिनाक मुसरे सरे गाबए।
बाघ छाल ओढ़न किछु न सोहाबए॥
भनइ विद्यापति ओवर दायक।
देथ अभय वर ओ जुग नायक”॥
आँखि आगि रहलाक कारणे काजर कत्तए करबैन्ह, जटामे गंगाक मोनि रहलाक कारणे चुमाओन कोना करबैन्ह, भूत–प्रेत बरिआतीकेँ भोजन कत्तए करबैन्ह, पाँचटा मुँह छन्हि महुअक कोन मुँहे करबैन्ह। हाथक पिनाकसँ अठोङ्गर कुटैत–
अहुठाम मैथिल विवाहक विधक विवरण भेटैत अछि आर विद्यापतिक सामाजिक व्यापकताक सेहो। जाहि दृष्टिये देखबा हो देखु। मुदा ई मानए पड़त जे विद्यापति मैथिली संस्कृतिक व्यापकताकेँ जीवंत रखलन्हि आर प्राचीन कालहिसँ चल अबैत परम्पराकेँ एकटा समेटिकेँ मैथिलत्वक वैशिष्टयकेँ शिखरपर चढ़ौलन्हि। तैं तँ विद्यापति हमरा लोकनिक संस्कृतिक आलोक स्तंभ छथि।
IV. मैथिल संस्कृतिक उत्कर्ष=मैथिली भाषा:- कोनो संस्कृतिक एकरूपताक द्दोतक होइछ भाषा आर बिहारमे मिथिलेटा एकटा एहेन साँस्कृतिक क्षेत्र अछि जकर एकरूपताकेँ द्दोतित केनिहार मैथिली भाषा अद्यपर्यंत जीवित अछि। मिथिला उपनिषद युगहिसँ प्रसिद्ध विद्याकेन्द्र रहल अछि आर जखन मगधक प्रबल प्रताप सूर्य डुबियो गेल छलैक तखनहुँ मिथिला अपन संस्कृति आर विद्याकेँ सुरक्षित रखने छल। इतिहासक क्रममे सभ्यता ओ संस्कृतिक जत्तेक अंग–उपांग अछि ताहि सभमे मिथिला अपन स्वतंत्र स्थान बनालेने अछि। अहुना भारतीय सभ्यता मध्य मैथिल संस्कृति एवँ भाषाक विशिष्ट स्थान अछि। मिथिलाक विधा, संस्कृति एवँ भाषासँ समस्त उत्तरभारत अनुशासित प्रभावित भेल अछि आर ब्रजलोकसँ आसाम धरि एकर प्रत्यक्ष–अप्रत्यक्ष प्रभाव देखल जा सकइयै।
अति प्राचीन होइतहुँ मैथिली एक जीवन भाषा थिक। बिहारमे मैथिलीक प्रभेद भेल दक्षिण भागलपुरक ‘छिकाछिकी’, चम्पारणक ‘मधेशी’ तथा छोट लोकक ‘जोलहा’ बोली आदि। मैथिलीक प्राचीनताक सम्बन्धमे एतबे स्मरण राखब आवश्यक अछि जे ‘ललितविस्तार’ नामक बौद्ध ग्रंथमे जे ६४लिपिक विवरण भेटइयै ताहिमे एकटा ‘वैदेही’, लिपिक उल्लेख सेहो अछि। मिथिलाक नाम प्रसिद्ध भेलापर उएह लिपि ‘मैथिली’ आर ‘तिरहूत’क प्रसिद्ध भेलापर ‘तिरहूता’क नामे प्रसिद्ध भेल। मिथिलासँ असम धरि इएह लिपि प्रचलित अछि। बृद्ध वाचस्पतिसँ अद्यावधि जतबा जे संस्कृतक पंडित, मनीषि एवँ विद्वान भेल छथि से सभ केओ मैथिली लिपि आर भाषाकेँ जीवित रखबाक प्रयास केने छथि आर ओहिमे योगदान सेहो देने छथि। रूचिपति जगद्धर, चण्डेश्वर, विद्यापति आदि व्यक्ति अपन संस्कृत रचनादिमे मैथिली शब्दक प्रचुर मात्रामे व्यवहार केने छथि जाहिसँ बुझना जाइत अछि जे भाषाक रूपमे मैथिलीक स्वीकृति अति प्राचीन कालहिमे भऽ गेल छल। वाचस्पति मिश्र ‘भामती’मे मैथिली शब्द ‘हड़ी’क व्यवहार केने छथि।
मैथिलीक प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ अछि ज्योतिरीश्वर ठाकुरक ‘वर्णन रत्नाकर’ जे अपना ढ़ँगक अद्वितीय ग्रंथ मांला गेल अछि आर अपूर्व गद्यग्रंथक हिसाबे पूर्वी भारतीय भाषाक प्राचीनतम ग्रंथ थीकि। एहेन अदभूत ग्रंथ भारत वर्षक आन कोनो भाषामे अद्यावधि उपलब्ध नहि भेल अछि। ज्योतिरीश्वर, उमापति, विद्यापति, अमृतकर, अमियकर, गोविन्द दास, केशनारायण आदि कबि–मनीषिक प्रयासे मैथिली १३–१४–१५म शताब्दी धरि समस्त उत्तर पूर्वी भारत एवँ नेपालक एकमात्र साँस्कृतिक भाषा छल आर ई समस्त क्षेत्र एक साँस्कृतिक सूत्रमे बान्हल छल। चारिसे वर्ष धरि नेपालक राजा ओ हुनका सभसँ प्रोत्साहित धुरन्धर विद्वान मैथिल लोकनि मैथिलीमे सहस्त्र काव्य ओ नाटकक रचना केलन्हि। प्राचीन शिलालेख ओ अन्यान्य एतिहासिक साधनसँ ई स्पष्ट होइछ जे एक समयमे मैथिली उत्तर भारतवर्ष आर नेपालमे पूर्ण रूपें व्याप्त छल आर नेपालमे गोरखा शासनक पूर्व धरि एक प्रकारक राष्ट्रभाषे छल।
विद्यापतिक लिखनावलीसँ सामाजिक स्थितिक ज्ञान होइछ। मिथिलामे बहिथा–बहिकिरनीक क्रय–विक्रय होइत छल आर एकर बहुत रास प्रमाणो मिथिलामे यत्र–तत्र भेटल अछि आर एहि प्रश्नकेँ लऽ कए मर मुकदमा सेहो होइत छल। भेष–भाव–भाषा एवँ लिपिपर कोनो जाति आर देशक मर्यादा निर्भर करैत अछि आर एहि दृष्टिये मिथिला–मैथिलीक जे आविच्छिन्न प्रवाह 8–9म शताब्दीमे प्रारंभ भेल छल से अद्यावधि प्रवाहित अछिये जाहिसँ मैथिल संस्कृतिक स्वरूप परिलक्षित होइछ। जाहि मैथिलीक उद्भव एवँ विकास हमरा लोकनि अखन देखि रहल छी तकर उत्पत्ति बौद्ध–गान आर दोहा आदिक कालसँ भेल अछि जे कि निम्नलिखित विवरणसँ स्पष्ट होएत।
8म शताब्दीसँ १२मशताब्दी धरि बौद्ध भिक्षु लोकनि जाहि चलित भाषामे अपन स्फुट दोहा, गीत आदिक रचना केलन्हि तकरे साहित्यमे ‘सिद्धगान’क संज्ञा देल गेल अछि। एहिमे सँ बहुत रास सिद्ध लोकनि बिहारेक निवासी छलाह। सिद्ध लोकनि भाषाकेँ महान भाषाविद लोकनि अपना–अपना ढ़ँगे लेने छथि आर केओ ओकरा हिन्दी, बंगला, असमी, उड़िया आदिक प्राचीन रूप मनने छथि। एहिठाम स्मरण रखबाक अछि जे प्रातः स्मरणीय राहुल सांकृत्यायन एहि सिद्धगानक भाषाकेँ मैथिली मगहीक प्राचीन रूप कहने छथि। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण रत्नाकरमे सेहो एहि सिद्ध सभहिक नाम भेटैत अछि। सिद्ध गानक भाषाक उदाहारणसँ सेहो ई स्पष्ट होएत जे इएह मैथिलीक आदि रूअप थिक–
सरहपाद (८–९म शताब्दी)–
जह मन पवन न संचरइ रवि शशि नाह पवेश
तहिं वह चित्त विसाम करू सरहे कहिअ अवेश।
विरूपा (९म शताब्दी)–
दशम दुआइत चिन्ह देखइया,
आइल गराहक अपणो बहिआ।
चउसठि धड़िये देह पसारा,
पइठल गराहक नाहि निसारा।
कम्बलपाद (९म शताब्दी)–
खुण्टी उपाड़ी मेलल कच्छि,
वाहतु कामलि सदगुरू पुच्छि।
कुक्कुरी पाद–
दिवसे विहुड़ी काइड़ भाअ राति भइले कामरू जाअ।
अइसन चर्य्या कुक्कुरी पाएँ गाइड़ केड़ि मज्झें एकुड़ी एहि सनाइड़।
भानो थे कुक्कुरी पाए भवा थेरा जे एथु बुझएँ सो एथुवीरा।
उपरोक्त गीतमे संचाइ, करू, भाअ, जाअ, अइसन आदि ठेठ मैथिली शब्द जकर प्रयोग अहुखन मैथिलीमे व्याप्त अछि। एहि प्रकारक प्रयोग ज्योतिरीश्वर आर विद्यापति सेहो केने छथि। वर्णन रत्नाकर कीर्तिलता आर पदावलीमे एहेन सभ प्रंयोग आर भाषाक साम्य देखबामे अवइयै। सिद्धगानक भाषा वर्णन रत्नाकर आर कीर्तिलताक भाषासँ विशेष भिन्न नहि अछि। एहि कोटिमे प्राकृत पैंगलमकेँ सेहो राखि सकैत छी। लोरिक आर डाकवचनावली सेहो प्राचीन अछि।
शंकरदत्त, उमापति आर विद्यापतिक प्रयासे मैथिलीक प्रगति विशेष भेल। उमपतिक मैथिली गीत कोनो साहित्यक शोभा भऽ सकैत अछि। उमापति आर विद्यापति ज्योतिरीश्वरक अपेक्षा चलित मैथिलीक प्रयोग विशेष केने छथि। विद्यापति ‘देसिल बअना’क व्यवहार कए अपनाकेँ गौरवांवित बुझैत छलाह। उमापति आर विद्यापतिक मैथिलीक रूपक बानगी देखब आवश्यक–
उमापति:
अनगुन परिहरि हरखि हेरू धनिमानक सभथि विहाने।
हिमगिरि कुम्मरि चरण हृदय, धरि सुमति उमापति भाने॥
विद्यापति:
साँझक वेरां जमुनाक तीरां कदवेरी वनतरूतरा
अकमि कानरा कि कहब काला सोझांहि बुझल सखि कुसुमसरा
कण्ठ गरल नहि मृगमद चारू फणिपति मोरा नहि मुकुताहारू।
भनहि वियापति सुन देवंकामा एक दोस अछि ओहि नामक रामा॥
गोविन्द दास:
कोटि कुसुमसर वरिसय जे पर तेहिकि जलदजल लागि
प्रेम दहन कर हृदय जकर पुनि ताहि कि वज्रक आगि।
जसु पद तल हम जीवन सौंपल ताहि कि तनु अनुरोध।
गोविन्द दास कहए धनि अभिसरू सहचरि आओल बोध॥
गोविन्द दासक एकाक्षर अनुप्रासक एकटा अन्यतम उदाहरण देखब आवश्यक–
काँचा कंचन कांति कमलमुखी कुसुमित कानन जोइ।
कुंज कुटीर कलावती कातर कान्हु कान्हु की रोइ॥
कि कहब कितब कत जे कुल कामिनी कठिन कुसुम सर सहइ।
करहि कपोल केश कत कुंनचत कालिन्दीकूल से रहइ॥
लोचनक रागतंरगिणीमे ३७मैथिल कविक गीत सभ संग्रहित अछि। लोचन वज्रभाषाकेँ मध्यदेशी भाषा आर विद्यापतिक भाषाकेँ देशी भाषा कहने छथि। लोचन स्वयं व्रजभाषा आर मैथिलीमे गीत बनौने छलाह। लोचनक एकटा मैथिली गीतक नमूना निम्नांकित अछि–
साँवर वदन विहुसिया, मधुवन जाइते मिलल तोर रसिकया।
सुनासि न मधुर मुरली रव, सुकृत सफलकर सभे समुचित नव।
लोचन मन बुझ सरस विमलपति, मधुमति पति महिनाथ महीपति।
मध्यकालीन मैथिली गद्यक एकटा नमूना–
“हमरा वहियाक हराइक बेटी पदुमी नाम्नी गौरवर्णा जे तोहरे बेटा ञे श्रीकृष्णा ञे बिहायाले से हमे एक टका लए तोहरा हमे देलियाबे। ताहि सँ हमरा कञो लञे सम्बन्ध नहि”।
एवँ प्रकारे हम देखैत छी जे मैथिलीक विकास क्रम बरोबरि बनल रहल अछि। एकर प्रगति कहिओ अवरूद्ध नहि भेल। हिन्दीमे क्रियाक रूप कर्त्ताक कर्मकेँ अनुसार परिवर्त्तित होइत अछि, आर लिंगभेद प्रधान रहैत अछि, मुदा मैथिलीमे से बात नहि अछि। मैथिलीमे लिंगभेदक क्रम गौण रहैत अछि आर क्रिया कारकक अनुसार बदलैत अछि। आदर, अत्यादर, अनादर, आदि भावक संगहि क्रियाक रूप भिन्न होइछ जे आन ठाम देखबामे नहि अवइयै।
१७–१८म शताब्दीमे आबिकेँ मैथिलीक रूपमे परिवर्तन देखबामे अवइयै आर ओहि दृष्टिये मनबोधक कृष्णजन्ममे मैथिलीक ठेठ रूप देखबामे अवइयै–
“कतओक दिवस जखन बितिगेल,
हरि पुनि हथगर गोटगर भेल।
से कोन ठाम जतय नहि जाथि,
कय वेरि आङ्गनहु सँ बहराथि”॥
एहि मैथिलीक रूपक साम्य आधुनिक मैथिलीसँ अछि। मनबोधक पछाति हर्षनाथ, चन्दा झा, जीवन झा, रघुनन्दन दास, लाल दास आदिक नाम उल्लेखनीय अछि। हिनका लोकनिक उद्धरण देव आवश्यक–
चन्दा झा–
“पड़ा पड़ा बड़ा बड़ा गृहाद्द जारि देलकौ–
विदेह कन्यका विपति जानि, कानि लेलकौ
बहुत छोट बानरे सभैक हाल कैलकौ
प्रचण्ड दण्ड देनिहार दूत चोर धेलकौ”।
हर्षनाथ–
“रमनि हे सुनिय वचन दय कान।
जे ओ मोर मानिय दोष दोष करि.
करू धनि दण्ड विधान”।
लाल दास–
“खसल निशुंभ महा बलबान, संज्ञालुप्त सुतल हतज्ञान।
देखि निशुंभ को महिमे पड़ल, आएल शुम्भ क्रोध अति भरल।
जीवन झा–
“विरह व्यथा अति आकुल रमनी,
सकल कलेबर केवल धमनी।
सहजहि पातर लकलक हियकर,
धक धक रे की”॥
अन्यान्य भाषा जकाँ मैथिलीक अपन लिपि सेहो छैक जे अद्यावधि जीवित छैक आर ठेठ मिथिलामे जकर अखनो सभ कार्यक अवसरपर व्यवहार होइत छैक। मैथिलीक विकास २०म शताब्दीमे सभसँ बेसी भेल अछि आर ताहुमे स्वतंत्रता प्राप्तिक पछाति तँ आरो बेसी। अहिठाम मैथिली साहित्यक इतिहास लिखब हमर अभीष्ट नहि अछि–एहि विषयपर कतेक पुस्तक उपलब्ध अछि आर कतेक गोटए लिखिओ रहल छथि। हमर कथ्य एतबे जे मैथिली भाषा मिथिलाक सांस्कृतिक एकरूपताक सर्वश्रेष्ठ साधन रहल अछि आर ७००–८००वर्ष सँ मैथिलीक माध्यमसँ मिथिलाक राजनैतिक आर साँस्कृतिक एकताक निर्माणमे साहाय्य भेटल अछि। भाषाकेँ संस्कृतिक संबलक रूपमे उपस्थित कैल गेल अछि आर मैथिलीक प्राधान्य एहि बातक स्पष्ट सबूत अछि।
V. मैथिल संस्कृतिक निजी वैशिष्ट:- जेना बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, कर्णाटक, केरल आदि प्रांत भाषिक, साँस्कृतिक, भौगौलिक, ऐतिहासिक आदि दृष्टिये प्रांत कहल जाइत अछि ठीक तहिना बिहारमे मिथिलेटा एहेन एकटा साँस्कृतिक क्षेत्र अछि जे सभ दृष्टिये प्रांत कहल जा सकैत अछि। भौगोलिक ऐतिहासिक, साँस्कृतिक एवँ भाषिक दृष्टिये मिथिला एकटा महान केन्द्र अति प्राचीन कालसँ रहल आर एकर अपन साँस्कृतिक वैशिष्टक महत्ता सेहो वैदिक कालसँ अद्यावधि अविच्छिन्न रूपें चलि आबि रहल अछि। उत्थान–पतन इतिहासक एकटा अकाट्य नियम आर तैं मिथिला एकर कोनो अपवाद नहि परञ्च एकर साँस्कृतिक एकता सभ दिन बनल रहल छैक आर इतिहास एकर साक्षी अछि। एकर क्षेत्र विस्तीर्ण अछि आर मिथिला एकटा भौगौलिक इकाई मानल गेल अहि जे सम्प्रति तीन प्रमण्डल (तिरहूत, दरभंगा आर कोशी)मे विभक्त अछि। उत्तरमे नेपाल, पूर्वमे पश्चिम बंगाल, दक्षिणमे मगध, आर पश्चिममे बिहार आर उत्तरप्रदेशक अंश अछि। नदीक द्वारा सिञ्चित हेबाक कारणे एकरा ‘तीरभुक्ति’ सेहो कहल गेल अछि। ‘तीरभुक्ति’क रहनिहार क गवोक्तिक उल्लेख विद्यापति अपन ‘पुरूष परीक्षा’मे कएने छथि।=“अहो तीर भुक्तीयाः स्वभावाद् गुण गर्विणो भवंति”–(तिरहुतिया स्वभावतः गुणगवित होइ अछि)”। विद्यापतिक इ उक्ति मैथिल सँस्कृति एक विशेषताक द्दोतक थिक। परिवर्त्तनशील सृष्टिमे अपरिवर्त्तित रूपें डटल रहिकेँ मिथिला अपन वैशिष्टयक जे परिचय देलक अछि तकर उदाहरण स्वरूप ई कहल जा सकइयै जे अपन आङनमे जन्मल, पोसल आर बढ़ल जैन धर्म आर बौद्ध धर्मकेँ ई कहियो अंगीकार नहि केलक आर वैदिक धर्म आर कर्मकाण्डकेँ अपनौने रहल। जहिना जैन–बौद्ध मैथिलक वैदिकत्वकेँ पलटि नहि सकलाह तहिना बादमे मुसलमान लोकनि एहिठामक कट्टरताक निर्वाहक हेतु शास्त्र पुराणक अध्ययनपर विशेष बल देल गेल आर कर्मकाण्डक समर्थनक हेतु ‘निबन्ध’क रचना भेल। सनातन समाज रूपी स्तम्भकेँ जेना बौद्ध मुसलमान अथवा अंग्रेजी प्रभाव सर्वतो भावेन हिलेबामे समर्थ नहि भेल। मिथिलामे सनातन धर्मक प्रति जनताक प्रगाढ़ प्रेम अछि आर ओकरा अहुखन डिगैब असंभव। एम्हर आबिक जे अखिल भारतीय स्तरपर सुधार आन्दोलनो भेल तकरो कोनो प्रभाव मैथिलपर नहि भेल। एतावता मैथिल संस्कृतिक धार अक्षुण्ण रूपें प्रवाहित होइत चलल आबि रहल अछि भनेऽ आजुक दृष्टिये हम ओकरा अनुदार कही से दोसर कथा। मिथिला आदर्शवादी दर्शनक जन्मभूमि मानल गेल अछि। दर्शनक दिग्गज आचार्य लोकनि मिथिलाक धरतीकेँ अपन विद्वतासँ चमत्कृत कएने छथि। एहिठामक देन थिक “स्वतः प्रमाणं” (मीमाँसा वेदांत) आर ‘परतः प्रमाणं’ (न्याय)। मण्डन मिश्र मीमाँसक छलाह। आनन्दगिरि कुमारिल भट्टकेँ सेहो मैथिल कहने छथि। मैथिलक आदर्श रहल अछि जीवन्मुक्त रहब। श्री शुकदेव जी एहिठाम आबि जनकसँ उपदेश लए अपन मोह भंग केने छलाह। योगवशिष्ठ आर गर्गसंहितामे एहि प्रसंगक कथा अछि। शनैः शनैः मिथिलामे धार्मिक कर्मकाण्डी लोकनिक संख्यामे वृद्धि भेल। विष्णु, शिव, शक्ति आदिक पूजा नियमित रूपें शास्त्राकुल ढ़ँगे अहुखन मिथिलामे होइत अछि।
कर्मकाण्ड शरीरक संस्कारसँ सम्बन्ध रखैत अछि। संस्कार कर्म पूर्व कालमे अनेक रूपक रहितहुँ एम्हर आबिकेँ दश प्रकारक कर्ममे ६काव्य तथा ४नित्य मानल गेल अछि–नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन आर विवाहक हैछ, जे यथायोग्य नहि केने वर्णाश्रमक विलोप मानल जाइत अछि। एकर विधि एखनहुँ मिथिलहिमे यथासमय ओ यथाशास्त्र होइत देखल जाइत अछि। मिथिलामे जैमिनीय कर्म मीमाँसा शास्त्रक अधिक प्रभाव छल ओ अछिओ। श्रोत–स्मार्त–आगम तीनू कर्मकाण्डक यथा वदनुष्ठान ओ लोकमे आविष्कार मैथिल विद्वानहिक कैल भेटैत अछि। ‘कुण्ड कादम्बरी’मे गोकुलनाथ उपाध्याय ग्रह योगसँ लय कए अश्वमेघांत कर्मकलापक कुण्ड निर्माण कए गेल छथि। मैथिल एखन धरि संध्यातर्पण एवँ एकोदिष्ट पार्यण करैत छथि। पंचदेवोपासक मैथिल अहुखन होइते छथि। एकर प्रचार मिथिलहिमे सर्वतोभावेन देखल जाइत अछि। मिथिलामे मनुक अतिरिक्त याज्ञवल्म्य निर्भिष्ट आचारक विशेष प्रचार अछि। मैथिल विद्वानक विश्वास छन्हि जे आचारक संग धर्मक जाहि तरहक सम्बन्ध छैक आरोग्य शास्त्रसँ कम नहि। प्रातः कृत्यादिसँ शयन पर्यंत, व्रत आदिसँ लए साधारण आचमन सभ वैज्ञानिक तत्वसँ भरल अछि। विचार स्वातंत्र्यक उदाहरण निम्नलिखित वाक्यसँ भेटत–
“यस्तर्केणानुसन्धते सधर्म वेद नेलएः”–विद्यापतिक ‘पुरूष परीक्षा’मे अपन–अपन कर्तव्यक समुचित ढ़ँगसे करबकेँ धर्म कहल गेल अछि। ‘बृहदारण्य कोपनिषद’ जकर रचना मिथिलामे भेल छल ताहिमे यौनधर्मक सम्बन्धमे स्पष्ट रूपे कहल गेल अछि–“सर्वेषा मानन्दा नामुपुष्यं एकायतननम्” मनुष्यकेँ संसार युक्त कर्म करबाक अधिकार मिथिलामे देल गेल छैक। संस्कार एवँ कर्मक सम्बन्धमे मनुक मत अछि–
-“स्वाध्यायेन व्रतैर्होमैस्त्रै विध्जेनेज्यया सुतै।
महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियतेतनुः”॥
वेदक अध्ययन, ब्रह्मचर्य अवस्थाक पालन, सायं प्रातः केर होम, देव ओ ऋषिक तर्पण, संतानक उत्पत्ति, पाँच महायज्ञ (ब्रह्मयज्ञ–अध्यापन, पितृयज्ञ–तर्पण, देवयज्ञ–देवप्रीत्यर्थ अग्निमे होमक आहूत देव, भूतयज्ञ–बलिविश्वेदेवक, नृयज्ञ–अतिथि केर पूजन) तथा आन ज्योतिष्टोमादिक काम्ययज्ञक द्वारा शरीरकेँ पवित्र करब मानल गेल अछि। एकर सभकेँ संस्कार कहल गेल अछि। संस्कार कुलाचारक अनुसार होइत अछि। संस्कारानुसार सभ जातिक कर्म सेहो निर्धारित अछि। करण कायस्थ कोनो वर्णगत नहिआ रहला उत्तर मिथिलामे सम्मानित रहला अछि। हिनका लोकनिक आचार–विचार तथा व्यवहार कोनो रूपें द्विजसँ कम नहि कहल जा सकैत अछि। ब्राह्मणे जकाँ सभ संस्कार हिनको लोकनि ओतए होइत अछि आर संगहि धार्मिक तथा सामाजिक कार्यकलाप सेहो–वैवाहिक सम्बन्धो अहुखन धरि हरि सिंह देवीय पद्धतिसँ होइत छन्हि। कायस्थहुक हेतु प्राचीन कालमे वैवाहिक सभाक व्यवस्था मधुबनी आर जगतपुरमे छल। मिथिलामे सत शूद्रकेँ ‘सोलकन्ह’ आर असत् शूद्रकेँ “अछोप” कहल गेल छैक।
मिथिलामे संस्कारक पालन पूर्णरूपेण होइत आर अहुखन प्राचीन परम्परा देहातमे विराजमान अछि। पाँचम वर्षमे एहिठाम विधारम संस्कार शुरू होइत अछि–आर ओहि अवस्थामे बालककेँ ‘खड़ी’ अथवा ‘भट्टा’ धराओल जाइत अछि। धार्मिक कर्म केला उत्तर गुरूजी बालकक हाथ धकए “आँजी सिद्धिरस्तु” लिखबैत छथिन्ह। आँजीकेँ केओ प्रणवक भष्टरूप, गणेशक अंकुश, सूढ़क प्रतीक अथवा त्रिशूलक चेन्ह कहैत छथि। विद्या प्रारंभक पूर्वहिसँ बालककेँ संस्कृत श्लोक इत्यादि सिखाओल अथवा रटाओल जाइत छन्हि आर ओहिमे सर्वप्रसिद्ध श्लोक निम्नांकित अछि–
“साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी।
उग्रेण तपसा लब्धो यथा पशुपतिः पतिः॥
बालोऽहं ‘जगदानन्द’ नमे वाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत् त्रयम्॥
मा निषाद प्रतिष्ठानवमगमः शाश्वतीः सभा।
यत्क्रौञ्च मिथुना देकम वधीः काममोहितम्॥
सा रमा न वरारोह नगे भगमनाहि या॥
याहिन तामगभागेन हारो रावण मारसा”॥
मिथिलामे विवाह संस्कार सेहो एकटा महत्वपूर्ण संस्कार मानल गेल अछि आर मैथिल व्यवस्थाक अनुरूप बारह वर्ष धरि विवाह भए जाएब आवश्यक बुझना जाइत अछि। शास्त्रमे कन्यासँ त्रिगुण अथवा अढ़ाए गुण पैघ वरक हैव उचित मानल गेल छैक। विवाहक हेतु कन्याक गुण, कुल आदिपर सेहो विचार कैल जाइत छैक। वैवाहिक सभा समोल, सौराठ, परतापुर, भखराइन, बनगाँव आदि स्थानमे पूर्वमे होइत छल अखन आब मात्र सौराठ सभा रहि गेल अछि जाहिठाम शुद्धक समयमे एक विशाल लगैत अछि आर जकरा देखबाक हेतु दूर–दूरसँ लोग सभ अबैत छथि। शास्त्रीय अनुमति देबाक हेतु पञ्जी प्रबंधक सभ सामग्री सहित पञ्जियार लोकनि सेहो एहिठाम उपस्थित रहैत छथि। जखन दुनु पक्षकेँ (वरपक्ष–कन्यापक्ष) सवथा सम्बन्ध करबाक निश्चय भऽ जाइत छन्हि तखन ‘अश्वजन पत्र’ लए कन्या पक्षक लोक लौकिक व्यवहारानुसार ‘हथधरी’ कए अपन गाम जाइत छथि। ‘अश्वजन पत्र’केँ गोसाउनिक सिरामे समर्पित कैल जाइत अछि। सिद्धांत भऽ गेलापर दुनु पक्ष निश्चित भऽ जाइत छथि। तकर बाद विवाह निश्चित बुझल जाइत अछि।
धर्मक क्षेत्रक हम विवेचन कऽ चुकल छी जे मिथिलामे पंचदेवो पासनाक पद्धति बड्ड प्राचीन अछि आर मैथिलक वैशिष्ट्यक हिसाबे एकर महत्व एखनो बनले अछि। एहिठाम स्मरण रखबाक अछि कि सभ किछु रहितहुँ एहिठाम कहिओ कोनो प्रकारक साम्प्रदायिक कलह नहि भेल अछि आर सभ प्रकारक धार्मिक विचारक लोग एहिठाम अपन–अपन धर्मक पालन करैत आएल छथि। एक्के ठाम अथवा एक्के परिवारमे शैब शाक्त, आर वैष्णव देखल जा सकैत छथि। वस्तुतः साम्प्रदायिकतामे जाहि प्रकारक सामंजस्य एहिठाममे देखबामे अवइयै तेहेन अन्यत्र भेटब बड्ड दुर्लभ। सभ सभहिक धार्मिक कार्यकलापमे सक्रिय रूपेण भाग लैत छथि। भारतीय संस्कृतिक इएह मूलमंत्र रहल अछि आर मिथिलामे एकरा चरितार्थ होइत हम देखि सकैत छी। मिथिला तांत्रिक सम्प्रदाय अपन एकटा स्थान भारतक संदर्भमे रखैत अछि तैं ओकर विवेचन अपेक्षित।
तांत्रिक संप्रदाय आर मिथिला–शिव आर शक्तिक प्रधानता मिथिलामे प्राचीन कालहिसँ चलि आबि रहल अछि। शिवक पूजाक हेतु मिथिलामे शिवमंदिरक कोनो अभाव नहि अछि आर सभ वर्णक लोग शिवक पूजा करैत छथि। शिवकेँ आशुतोष सेहो कहल गेल छन्हि आर मिथिलाक गामक गाममे विद्यापति रचित नचारी आर महेशवाणी केओ कखनो सुनि सकैत अछि। शिवक संगहि संग मिथिलामे शक्तिक उपासनो होइछ आर सभ घरमे गोसाउनिक पूजा नियमित रूपें प्रतिदिन हेवे करैत अछि–मिथिलामे कुल देवी सभ घरमे पाओल जाइत अछि। स्मृतिक अनुसार शिवतत्वक ज्ञान प्राप्त करबाक हेतु शक्तिक उपासना आवश्यक मानल गेल अछि। तैं तँ कहल गेल अछि–“शिवोहि शक्ति राहतः शक्तः कर्तुन किंचन”। एकर समर्थन शंकराचार्यक सौन्दर्य लहरीमे सेहो भेल अछि–
“शिवः शक्तयायुक्तो यदि भवति शक्तः प्रभाषितुम्।
नचेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि”॥
शिव तत्वक ज्ञान प्राप्तिक हेतु शक्तित्त्वक ज्ञान अपेक्षित अछि आर मिथिलाक संस्कृतिमे एहि दुहु तत्वकेँ बुझब अत्यावश्यक मानल गेल अछि।
श्रुति तीन भागमे विभक्त अछि–कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड, आर ब्रह्मकाण्ड। कर्मकाण्डक प्रवर्त्तक भेल छथि जैमिनीय (पूर्व मीमाँसा), ब्रह्मकाण्डक प्रवर्त्तक ब्रह्मसूत्रकार व्यास रचित उत्तर मीमाँसाकार आर उपासना काण्डक प्रवर्त्तक भेल छथि नारद। आगम शास्त्र ज्ञानी उपासना काण्डकेँ महत्व दैत छथि। ज्ञान आर उपासना श्रुति मूलक मानल गेल अछि आर ई दुनु मत अद्वैतक समर्थक अछि। सकल साधारणक सुविधाक हेतु आगम मार्गक उपस्थान केनिहार छलाह ब्रह्माक चारू पुत्र–सनक, सनन्दन, सनातन, आर सनत कुमार–जेहि महादेवसँ प्रार्थना कए एहि मार्गक सूत्रपात केलन्हि। चारू गोटएकेँ महादेव जे उपदेश देलथिन्ह सैह ‘आगम’ कहाओल आर इएह ‘आगमशास्त्र’ तंत्रक नामे प्रसिद्ध भेल। ‘वैदिक’ आर ‘आगम’ भिन्न पद्धति अछि। एकरे हमरा लोकनि अहुना ‘निगम’ (वेद–वेदांग) आर ‘आगम’ (तंत्र–मंत्र)क नामे जनैत छी। कुलार्णवमे लिखल अछि–
“कृते श्रुत्युक्त आचारस्त्रेतायां स्मृति संभवः।
द्वापरेतु पुराणोक्तः कलवागमसम्मतः”॥
कलियुगमे आगमशास्त्रक प्रधानता रहबाक गप्प एहिठाम कहल गेल अछि। महानिर्वाणतंत्रमे शिव पार्वतीकेँ कहने छथि जे आगम मार्गक बिना अनुशरण केने कलियुगमे सिद्धिक प्राप्ति असंभव। वाराही तंत्रमे आगमक निम्नाकिंत लक्षण बताओल गेल अछि–
“सृष्टिश्च प्रलयश्चैव देवतानांतर्थाचनम्।
साधनञ्चैव सर्वेषां पुरधरणमेव च॥
षट्कर्मसाधनञ्चैव ध्यानयोगश्चतुर्विधः।
सप्तर्यिलक्षणैयुक्तमागमं तद्धिदुर्बुधाः”॥
आगम उएह कहबैत अछि जाहिमे सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, कार्यसाधन, पुरश्चरण षट्कर्म आदि वाधा दूरकरबाक एवँ शांति स्थापनाक हेतु वशीकरण, विद्वेषण, उच्चाटन आर सारणक विधान योगी छी। आगमशास्त्र शिव शक्तिसँ सम्बन्धित मांला गेल अछि। आगमक तीन मुख्य भेद भेल डामर (तमस्), यामल (रजस्), आर तंत्र (सत्व)। पुनः एहि सभक प्रभेद एवँ प्रकारे अछि–
डामर– योग, शिव, दुर्गा, सारस्वत, ब्रह्म, एवँ गन्धर्व।
यामल– आदि यामल, ब्रह्मयामल, विष्णुयामल, गणेश यामल, आदित्ययामल, तथा रूद्रयामल।
तंत्रक विभिन्न प्रभेदक विवरण वाराही तंत्रमे भेटैत अछि।
मिथिलामे शक्तिक प्रधानताक कारणे शाक्ततंत्रक प्रचार अछि–कौलमत एवँ दशमहार्विद्याक प्रचार एत्तए बेसी भेल अछि। कौलमत्तावलम्बरी वामाचारक प्रवर्त्तक भेलाहे कारण अछि मार्गमे सिद्धिक प्राप्ति शीघ्र होइछ। काली एवँ ताराक प्रधानता मिथिलामे विशेष रूपें छल। वशिष्ट ताराक उपासक भेल छथि। बौद्ध धर्मक प्रभाव भने मैथिलपर नहि रहल हो से संभवे मुदा बौद्ध तंत्रक प्रभाव तँ स्पष्ट रूपें मिथिलाक तंत्रक इतिहासपर पड़ल अछि आर चीन तिब्बतसँ मिथिलाक साँस्कृतिक सम्बन्ध एहि माध्यमसँ भेल अछि। दश महाविद्या प्रथाक समुचित आदर अहुखन मिथिलामे अछि। वामाचार एवँ कौलमतक प्रचार सामान्यतः मिथिलाक निम्नवर्गक लोगमे भेल। ओना ग्रंथादिमे तँ 64तंत्रक नाम भेटैत अछि। चन्द्रकला, ज्योतसनावती, कलानिधि, कुलार्णव, कुलेश्वरी, भुवनेश्वरी, बाहर्स्पत्य ओ दुर्वासामतमे ब्राह्मणादि चारू वर्णकेँ ओ वर्णसंकरहुक समान अधिकार देल गेल छैक। प्रथमतीन वर्गकेँ दक्षिणाचार मार्गे आर शूद्रादि आर वर्णसंकरकेँ वामाचार मार्गे साधना करबाक अधिकार प्राप्त छैक। मिथिलामे तांत्रिक स्थान सभमे विशेषकए छोटलोककेँ भगताक रूपमे एखनो देखल जाइत अछि। अखनो मिथिलामे कैकटा प्रधान तांत्रिक केन्द्र अछि आर ओहिसभ ठाम जाँति–पाँतिक कोनो बन्धन नहि देखबामे अवइयै। तांत्रिक धर्मक उत्थानक पाछाँ सेहो किछु आर्थिक आर सामाजिक तथ्य छल जकर अनुसंधान एखनो पूर्णरूपेण नहि भऽ सकल अछि। पूर्वी भारतमे मैथिली, असमी, आर बंगाली, संस्कृतिमे तंत्र एकटा महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह केने अछि। मिथिलामे घनानंद दास नामक एकटा प्रसिद्ध कायस्थ तांत्रिक भेल छलाह।
तंत्र व्यापक अछि आर लौकिक पार लौकिक दुहु मार्गक बताओल गेल अछि। मोक्ष प्राप्तिक मार्गमे भोगकेँ नहि त्यागे पड़ए सैह विधान तंत्रमे बताओल गेल अछि। सर्वप्रथम आदि शक्ति प्रकृतिक पूजा प्रारंभ भेल आर ताहि दिनसँ मिथिलामे तंत्रक परम्परा चलि आबि रहल अछि। ब्रह्मस्वरूप प्रकृतिक प्राप्तिक हेतु तंत्रमे पंचमकारक विधान सेहो बताओल गेल अछि–पंचमकारक नाम एवँ लक्षण एवँ प्रकारे अछि–
“आनन्दं परमं ब्रह्ममकारा स्तस्य सूचका
मतस्यं, मांसं तथा मद्यं मुद्रा मैथुनेव च। एते पंचमकाराः स्युमोक्षदा हि युगे–युगे”॥
कुलार्णव तंत्रमे एकर विश्लेषण एवँ प्रकारे अछि–
मतस्यः–
मायाम लादिशमनान्मोक्षमार्गनिरूपणात्।
अष्ट दुःखादि विरहान्मत्स्येतिपरिकीर्तितः॥
माँसः–
मांगल्य जननाद्देवि। संविदानंददानतः।
सर्वदैव प्रियत्वाच माँस इत्यभिधीयतः॥
मद्यः–
सुमनः सेवितत्वाच्च राजत्वात्ससर्वदाप्रिये।
आनन्द जननाद्देवि। सुरेतिपरिकीर्तितः॥
मुद्राः–
मुदं कुर्वंतु देवानां मनांसि द्रावयंतिच
तस्मान्मुद्रा इतिख्याता दर्शिता व्याकुलश्वरी॥
मैथुनः–
सर्वद्रोहं विनिभुक्ता तवप्राणप्रिय भवेत्।
एकाकारो भवे द्देवि। त्वयि ब्रह्माणि मैथुनम्॥
मिथिलामे तांत्रिक साधनाक आधारपर पैघ–पैघ तांत्रिक अपन सिद्धि द्वारा लोककेँ चकित केने छथि। इएह कारण थिक जे अहुखन मिथिलामे तंत्रवादक मर्म सुरक्षित अछि।
स्त्रीगणक स्थिति:- मिथिलाक सामाजिक–साँस्कृतिक वैशिष्ट्यमे स्त्रीगणक स्तित्व महत्वपूर्ण रहल अछि आर एहिठाम हमरा सभ प्रकारक स्त्रीगणक विभेद देखबामे अवइयै। ओना भारतीय संस्कृतिमे तँ स्पष्ट कहल गेल अछि जे स्त्रीकेँ कहियो कोनो अवस्था स्वच्छन्द रहब अपेक्षित नहि अछि–
“पिता रक्षति कौमारे भर्त्ता रक्षति यौवने।
पुत्रश्च स्थाविरे रक्षित् न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति”॥
स्त्रीकेँ कुल, जाति, समाज एवँ देशक गौरव बुझल गेल अछि। स्त्री शिक्षाक आधुनिक परिपाटी ताहि दिनक मिथिलामे नहि छल ओना रानी–महारानी लोकनि विदुषी होइत छलीहे से देखबामे अवइयै। ‘मैत्रेयी’ ब्रह्मवादिनी भेल छलीहे आर ‘मल्ली’ नामक एक मैथिलानी जैन लोकनिक एक तीर्थकंर भेल छथि। मंडन मिश्रक पत्नी ‘भारती’ तँ सर्वविदीत छथिये। लखिमा ठकुराइन आर विद्यापतिक कुलवधु तथा ‘विश्वास देवी’क नाम तम प्रख्यात अछिये। मुदा एहिसँ ई अनुमान नहि लगेबाक चाही जे मिथिलाकेँ सामान्य नारि लोकनिकेँ सेहो एहने शिक्षा देल जाइत छलन्हि। परम्परागत रूपें परिवारमे जे किछु सिखाओल जाइत छलैक सैह हुनक शिक्षा भेलैन्ह। पर्दा प्रथाक संकेत तँ मनुक कालहिसँ देखबामे अवइयै। मेघातिथि अपन मनुभाष्य (4144)मे कहने छथि–“अवगुण्ठितामेव हि विशेषे स्पृहयंति”। मिथिलामे स्त्री पर्दाक हिसाबे घोघ काढ़ैत छथि आर ई प्रथा एखनो धरि विराजमान अछि। मिथिलामे नारीक सौन्दर्य, कोमलता, माधुर्य, पवित्रता आर सीलक रक्षार्थ पर्दाकेँ आवश्यक बुझल गेल अछि। मध्ययुगमे मिथिलामे एहिप्रथाक विशेष प्रचार भेल छल। अहु प्रथाक प्रचलन पैघ लोकमे जतवा अछि ततवा छोट लोकमे नहि कारण छोट लोककेँ तँ बाल–बच्चा समेत सदति बाहर–भीतर काज करए पड़िते छैक। मिथिलामे कुमारि ब्राह्मणकेँ पवित्र मानल गेल छैक आर कुमारि भोजनक प्रथा अद्यतन प्रचलित अछिये। अविवाहित कन्या मिथिलामे माँथ नहि झपैत अछि। मिथिलामे कोजागरा पूर्णिमा, सुखरात्रि आर कार्तिकमे शामा–चकेबाक प्रचलन स्त्रीगणक मध्य प्रसिद्ध अछि।
एहिठामक सामाजिक संगठन अद्यावधि जीवन अछि आर सामाजिक नियमक उलंघन केनिहारकेँ दण्ड देल जाइत छैक। बाल–विवाह आर अनमेल विवाहक प्रणाली पहिने जेहेन छल ताहिसँ आब किछु बदलल अछि। स्त्री शिक्षामे प्रगति भेल अछि आर पर्दा प्रथा सेहो कम भेल अछि। कट्टर मैथिल लोकनि (चाहे ओ कोनो वर्णक किऐक ने होथि) अखनो स्पर्शा स्पर्शक सम्बन्धमे बड्ड विचार रखैत छथि आर चमैन जे घरक ओतए महत्वपूर्ण काज करैत अछि तकरा अखनो अछापक गिनतीमे राखल गेल अछि। सभठाम परिवर्त्तन भेला उत्तरो मिथिलाक गाम घरमे अहुखन कट्टरता आर अन्धविश्वास जनित प्रलाप देखल जा सकइयै। रघुनंदन दास ‘मिथिला नाटक’मे तथ्यपूर्ण सामाजिक चित्रण अछि।