भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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गंगा गण्डकी संगमसँ पश्चिम सुप्रसिद्ध सोनपुर टीसनक समीप जे हरिहर क्षेत्र अछि तकरो उल्लेख भृंगदूतमे भेटइत अछि। एहि भृंगदूतमे गाण्डवीश्वर स्थान, ब्रह्मपुर, वाग्वती (वाग्मती) एवँ कमला नदीक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। कहबी छैक जे गाण्डवीश्वर महादेव राजा जनकक दक्षिणक द्वारपाल रहथिन्ह आ ओ स्थान सम्प्रति जोगिआरा टीसनक समीप अछि। ओना मिथिला नामसँ प्राचीन जनक राजक राजधानीक बोध होइछ परञ्च एतए स्मरण राखबि आवश्यक जे मिथिला, तीरभुक्ति, विदेह, आदि शब्द एक एहन भौगोलिक इकाइक द्योतक थिक जे गंगाक उत्तरमे छल आ विभिन्न छोट-छोट गणराज्यमे बटल छल। प्राचीन कालक बिहारमे गंगाक दक्षिणमे छल अंग आ मगध आ उत्तरमे छल मिथिला जकरा अंतर्गत कैकटा छोट–छीन राज्य सब छल। जातक कथा आ जैन साहित्यक अतिरिक्त वृहद विष्णुपुराणक मिथिला महातायमे मिथिलाक जे वर्णन अछि ताहिसँ एकर महत्व एवँ जनप्रियताक पता लगइयै। एहि मिथिलाक अंतर्गत छल तँ प्राचीन कालक वैशाली जकर विस्तृत विवरण रामायण, रामायण चम्पू एवँ भृंगदूतमे भेटइत अछि। प्राचीन ‘विशाला’ नगरिये बौद्ध कालक वैशाली थिक। विशालाक नामक अद्यतन “बिसारा” परगनासँ होइत अछि। एहि क्षेत्रमे एकटा भैरव स्थान सेहो छल जकर चर्च भृंगदूतमे भेल अछि। बाल्मिकीय रामायणक बालकाण्डमे गौतमाश्रम अहल्यास्थानक उल्लेख भेल अछि। अहियारी गाँव (कमतौल टीसन)सँ अधुना एकर बोध होइछ। भृंगदूतमे “सरिसव” ग्राम आ कोटिश्वर महादेवक उल्लेख सेहो भेटइत अछि।
iii.नाम एवं मिथिलाक भौगोलिक सीमा:-शतपथ ब्राह्मणक अनुसार नदीक बहुलताक कारणे मिथिलाक भूमि दलदल जकाँ छल। कहल जाएछ जे अग्निदेवक आज्ञासँ माथव विदेघ आ गोतम राहुगण सदानीरा (गण्डकी)क पूबमे जाकऽ बसलाह आ उएह क्षेत्र इतिहासमे मिथिला, विदेह, तीरभुक्ति एवँ तिरहुतक नामसँ प्रसिद्ध भेल। दलदल भूमिकेँ अग्निदेव सुखाकेँ कठोर बनौलन्हि आ जंगलकेँ जराकेँ एहि पूर्वी भूमिकेँ रहबा योग्य स्थान सेहो। आर्य ऋषि लोकनि ओहिठाम अगणित यज्ञक आयोजन केलन्हि आ असंख्य यज्ञ आ होम होयबाक कारणे ओहिठामक भूमि रहबा योग्य बनि सकल। नदीक बाहुल्यक कारणे संभव जे एहि क्षेत्रकेँ तीरभुक्ति कहल गेल छल। प्राचीन कालमे तीरभुक्ति समस्त उत्तरी बिहारक द्योतक छल आ एकर सीमा पश्चिममे श्रावस्तीभुक्ति आ पूबमे पुण्ड्रवर्धनभुक्तिसँ मिलैत–जुलैत छल आ एकर एहि विशालताक परिचय हमरा आयनी–अक्बरीमे वर्णित तिरहुत सरकारक महालक नाम सभसँ सेहो भेटइत अछि।
परंपरागत साधनमे मिथिलाक जे विवरण उपलब्ध अछि तकर सिंहावलोकन करब अपेक्षित। ओहि वर्णनमे ऐतिहासिकताक पुटकतबा दूर धरि अछि से नहि कहि सकैत छी तथापि पौराणिक आख्यानक महत्व तँ ऐतिहासिक दृष्टिये अछिये एहिमे संदेहक कोनो गुंजाइश नहि।
भविष्य पुराणक अनुसार अयोध्याक महाराज मनुक पुत्र निमि एहि यज्ञ भूमिमे आवि अपनाकेँ कृत्य–कृत्य बुझलन्हि आ ओहिठामक ऋषि लोकनिक तप आ यज्ञसँ लाभान्वित भेलाह। निमिक पुत्र ‘मिथि’ एक शक्तिशाली शासक भेलाह आ ओ अपन पराक्रमक प्रदशनार्थ एहिठाम एकटा नगरक निर्माण केलन्हि जे ‘मिथिला’क नामसँ प्रसिद्ध भेल। एहिमे कहलगेल अछि जे पुरी निर्माता होएबाक कारणे ‘मिथिला’क दोसर नाम ‘जनक’ पड़ल।
भविष्य पुराण:-
निमेः पुब्रस्तु तत्रैव मिथिर्नाम महान स्मृतः।
प्रथमं भुजबलैर्येन तैरहूतस्थ पार्श्वतः॥
निर्म्मितस्वीयनाम्ना च मिथिलापुरमुनमम्।
पुरीजनन सामथ्यज्जिनकः सच कीर्तितः॥
वाल्मीकीय रामायण:- राजाऽभूतिषु लोकेषु विश्रुतः स्वेनकर्मणा निमिः परमधर्मात्मा सर्वतत्व वतांवरः। तस्य पुत्रो मिथिर्नाम जनको मिथिपुत्रक कथन अछि जे जखन वशिष्ठ यज्ञाभिलाषी निमिक निमंत्रण अस्वीकार कए इन्द्रक पुरोहिताइ करबाक हेतु स्वर्ग गेलाह तखन वशिष्ठक अनुपस्थितिमे भृगु आदि अन्यान्य ऋषि मुनि लोकनिक साहाय्यसँ निमि अपन यज्ञक संपादन केलन्हि। वशिष्ठ स्वर्गसँ घुरलापर जखन यज्ञकेँ सम्पादन भेल देखलन्हि तखन क्रुद्ध भए ओ राजा निमिकेँ “विदेह” भजेबाक श्राप देलन्हि। वशिष्ठक एहि श्रापसँ चारूकात हाहाकार मचि गेल। प्रजा लोकनि घबरा उठलाह। अराजकताक स्थिति देखि उपस्थित ऋषिगण निमिक मृत शरीरकेँ मथेऽ लगलाह आ मथला उत्तर जे शरीर उत्पन्न भेल तकरे “मिथिल” अथवा “विदेह”क संज्ञा देल गेल। इ लोकनि “जनक” नामसँ सेहो प्रसिद्ध भेलाह।
श्रीमदभागवत:-
जन्मना जनकः सोऽभूद्धैदेहस्तुः विदेहजः।
मिथिलोमथनाज्जातो मिथिला येन निर्म्मिता॥
देवी भागवतसँ ज्ञात होइछ जे निमिक उन्नैसम पीढ़ीमे राजर्षि सीरध्वज जनक भेल छलाह और श्रीमदभागवतसँ इ बुझल जाइत अछि जे जनक वंशक शासक लोकनि एहेन वातावरण बना देने छलाह जे हुनक पार्श्ववर्ती गृहस्थ सेहो सुख दुःखसँ मुक्त भऽ गेल छलाह। ‘विदेह’ जे कि महत्वपूर्ण कल्पना छल आ जकर प्राप्तिक हेतु लोग ललायत रहैत छल से ओहि देशक नामक संकेत सेहो दैत अछि जाहिठाम जनक वंशक लोग अपन राज्यक स्थापना कएने छलाह। शुकदेव जी (व्यासक पुत्र) जखन अपन पितासँ तपचर्याक हेतु आज्ञा माँगलन्हि तखन हुनका योगिराज जनकक दृष्टांत दैत इ कहल गेलन्हि जे ओ घरोमे रहिकेँ तपस्या कऽ सकैत छथि। शुकदेवजीकेँ असंतुष्ट देखि व्यास हुनका राजर्षि जनकक ओतए पठा देलथिन्ह।
देवी भागवत–
वंशेऽस्मिन्येऽपि राजानस्ते सर्वे जनकास्तथा।
विख्याता ज्ञानिनः सर्वे वेदेहाः परिकीर्तिताः॥
वर्षद्वयेन मेरूंच समुल्लङ्घ्य महामतिः।
हिमालये च वर्षेण जगाम मिथिलां पति॥
प्रविष्टो मिथिलांमध्ये पश्यंसर्वर्द्धिमुतम्।
प्रजाश्चः सुखिता सर्वाः सदाचाराः मुखंस्थिताः॥
श्रीमद् भागवत–
एते वै मैथिला राजन्नात्म विद्याविशारदाः
योगेश्वरं प्रसादेन द्वन्दैमुक्ता गृहष्वेपि॥
मिथिलाक सीमाक सबंधमे देवी भागवतमे निम्नांकित विवरण अछि।
एवं निमिसुतो राजा प्राथतोजनकोऽभवत्।
नगरी निर्मिता तेन गंगातीरे मनोहरा।
मिथिलेति सुविख्याता गोपुराट्टाल संयुता
धनधान्य समायुक्ताः हर्हेशाला विराजिता॥
शक्तिसंगम तंत्र:-
गण्डकी तीरमारभ्य चम्पारण्यांतंग शिवे।
विदेहभूः समाख्याता तीरभुक्त्यमिधः सतु॥
स्कन्द पुराण:-
गण्डकी कौशिकी चैव तयोमध्ये वरस्थलम्।
बृहद् विष्णुपुराण:-
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै।
योजनानि चतुर्विशंद् व्यायामः परिकीर्त्तितः॥
गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतंवनम्।
विस्तारः षोडश प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन।
मिथिलानाम नगरी तत्रास्ते लोक विश्रुता॥
अगस्त्य रामायण:-
वैदेहोपवनस्यांते दिश्यैशान्यां मनोहरम्।
विशालं सरसस्तीरे गौरीमंदिर मुत्तमम्॥
वैदेही वाटिका तत्र नाना पुष्प सुगुम्फिता।
रक्षितमालिकन्याभिः सर्वतु सुखदा शुभा॥
मिथिलाक उत्तरमे हिमालय, दक्षिणमे गंगा, पूबमे कौशिकी आ पश्चिममे गण्डकी अछि।
चन्दा झा:-
गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि,
पूर्व कौशिकी धारा
पश्चिम बहथि गण्डकी,
उत्तर हिमवत बल विस्तारा।
प्राचीन मिथिलामे आधुनिक दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, (दरद–गण्डकी देश), सहरसा, पुर्णियाँ, बेगूसराय, कटिहार, विहपुर, एवँ नेपालक दक्षिणी भाग सम्मिलित छल। नदीक प्रधानता हेवाक कारणे मिथिलाकेँ तीरभुक्ति सेहो कहल गेल छैक–
वृहद् विष्णु पुराण:-
गंगा हिमवतोर्मध्ये नदी पञ्च दशांतरे।
तैरभुक्तिरिदति ख्यातो देशः परम पावनः॥
तीरभुक्ति नाम होएबाक निम्नलिखित कारण बताओल गेल अछि।
i.) शाम्भकी, सुवर्ण एवँ तपोवनसँ भुक्तमान
होएबाक कारणे इ तीरभुक्ति कहाओल।
ii.) कौशिकी, गंगा आ गण्डकीक तीरधरि
एकर सीमा छलैक तैं एकरा तीरभुक्तिक संज्ञा देल गेलैक।
iii.) ऋक्, यजु आ साम तीनहुक वेद सभसँ
आहुति देवऽबला ब्राह्मण समूहक निवाससँ
त्रि–आहुति अर्थात तिरहुतक नामसँ
इ स्थान प्रख्यात भेल।
१६–१७म शताब्दीक तिब्बती यात्री लामा तारनाथक विवरणमे तिरहुतकेँ “तिराहुति” कहल गेल अछि। आ आयनी अकबरीमे तँ सहजहि एक विस्तृत विवरण भेटिते अछि। ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ भुक्ति शब्द प्रयोग गुप्त युगसँ प्रारंभ भेल आ शिलालेखमे एकर उल्लेख भेटइत अछि। वैशालीसँ प्राप्त कैकटा मोहरपर तीरभुक्ति शब्दक उल्लेख अछि आ संगहि कटरासँ प्राप्त अभिलेख, नारायण पालक भागलपुर अभिलेख, वनगाँव ताम्रपत्र अभिलेख आदिसँ ‘तीरभुक्ति’पर प्रकाश पड़इयै आ इ बुझि पड़इयै जे ताहि दिनमे तीरभुक्ति समस्त उत्तर बिहारक द्योतक छल जकरा पश्चिममे छल आधुनिक उत्तर प्रदेश और पूबमे बंगाल। महानंदाक पश्चिम आ गण्डकीक पूबक समस्त भूमि तीरभुक्ति कहबैत छल, एहिमे कोनो संदेह नहि। जातकमे मिथिलाक क्षेत्र जे वर्णन अछि आ आयनी अम्बरीमे वर्णित तिरहुत सरकारक विवरण हमर उपरोक्त मतक समर्थन करइयै। देशक भूगोल आ सीमा राजनैतिक उथल-पुथलक कारणे बदलैत रहैत छैक आ मिथिलाक राजनैतिक इतिहासमे सेहो एहेन कतेक परिवर्तन भेल छैक तथापि एकर जे एकटा साँस्कृतिक स्वरूप अछि से आविच्छिन्न रूपें चलि आवि रहल अछि आ उएह रूप एकर भौगोलिक सीमाक स्पष्ट आभास दैत अछि। प्राचीन साहित्यमे मिथिला आ जनकपुर नाम भेटैछ परञ्च गुप्तयुगसँ तीरभुक्ति नाम प्रशस्त भऽ गेल।
प्राचीन मिथिलाक पुरातात्विक विश्लेषण एवँ अध्ययन अखनोधरि अपेक्षिते अछि। नेपालक सीमा जे सम्प्रति जनकपुर अछि तकरे प्राचीन विदेह मानल गेल अछि। सुरूचि आ गाँधार जातकमे विदेह एवँ मिथिलाक भौगोलिक सीमाक विवरण भेटइत अछि। विदेहक चारू मुख्य फाटकपर चारिटा बाजार छल। महाजनक जातकमे तँ विदेहक राजधानी ‘मिथिला’क भव्य वर्णन अछि–मिथिलाक नगरीक सोभा, बाजार आ राज दरबारक शोभा, सामान्य लोगक पहिरब–ओढ़ब, खान–पान, रहन–सहन, सैनिक–संगठन, रथ, हाथी, घोडा, आदि एहेन कोनो अंश छुट्ल नहि अछि जकर वर्णन ओहिमे नहि भेटइत हो। अयोध्यासँ मिथिला पहुँचबामे विश्वामित्रकेँ चारि दिन लागल छलन्हि परञ्च राजा दशरथक ओतए जनक जाहि दूतकेँ पठौने छलाह तकरा मात्र तीन दिन लगलैक। दशरथ चारि दिनमे अयोध्यासँ मिथिला पहुँचल छलाह। महावीर एवँ बुद्धक समयमे विदेहक सीमा एवँ प्रकारे छल–
___ लम्बाइमे कौशिकीसँ गण्डक धरि २४ योजन।
___ चौड़ाइमे हिमालयसँ गंगा धरि १६ योजन।
___ मिथिलासँ वैशाली ३५ मील उत्तर पश्चिम दिसि छल।
___ जातकक अनुसार विदेह राज्यक सीमा ३००० लीग छल आ राजधानी मिथिलाक ७ लीग।
___ मिथिला जम्बुद्वीपक एकटा प्रधान नगर छल।
___ सदानीरा नदी बुढ़ी गण्डकक द्योतक छल।
___ तीरभुक्ति नामक संदर्भमे भृंगदूतमे कहल गेल अछि–
“गंगा तीरावधिरधिगता यदभुओ
भृङ्गभूर्क्तिनामा सैव त्रिभुवन तले विश्रुताः तीरभुक्ति”
आ शक्तिसंगम तंत्रमे–
गण्डकीतीरमारभ्य चम्पारण्यांतकं
शिवे विदेहभूः समाख्याता तीरभुक्तिमिधोर्मनु।
’भुक्ति’ शब्दसँ प्रान्तक बोध होइछ आ गुप्त युगमे समस्त मिथिला तीरभुक्ति नामसँ प्रसिद्ध छल आ एहिसँ समस्त उत्तर बिहारक बोध होइत छल। भोगौलिक दृष्टिये मिथिलाक निम्नलिखित नाम सेहो महत्वपूर्ण अछि–विदेह, तीरभुक्ति, तपोभूमि, शाम्भवी, सुवर्णकानन, मन्तिली, वैजयंती, जनकपुर इत्यादि परञ्च एहि सभमे विदेह, मिथिला, तीरभुक्ति आ तिरहुत विशेष प्रचलित अछि। चारिम शताब्दीमे तीरभुक्ति नाम प्रसिद्ध भऽ चुकल छल। त्रिकाण्डशेष, गुप्त अभिलेख आ बारहम शताब्दीक एकटा अभिलेख एवँ अन्यान्य अभिलेख सभमे ‘तीरभुक्ति’क नाम भेटइत अछि।
iv.मिथिला भूमि:-सम्प्रति जे मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, पूर्णियाँ, बेगूसराय, आदि क्षेत्र अछि सैह प्राचीनकालमे मिथिला, विदेह, तीरभुक्ति, कहबैत छल आ वैशाली एकर अंतर्गत छल। गण्डकीसँ महानंदा आ हिमालयसँ गंगाधरक क्षेत्रक अंतर्गत मिथिला छल। मिथिलाक सीमा लगभग २५००० वर्ग मील छल। हियुएन संग जे ‘पूरा भारत’क वर्णन कैने छथि ताहिमे मिथिलोक उल्लेख अछि। मिथिलाक नाम उत्पत्तिक सम्बन्धमे निम्नलिखित श्लोक प्रसिद्ध अछि–
“निमिः पुत्रस्तु तत्रैव मिथिनर्मि महान स्मृतः
प्रथमं भुजबलेर्येन त्रैहूतस्य पार्श्वतः।
निर्म्मितंस्वीय नाम्नाच मिथिलापुरमुत्तम्
पुरीजनन सामर्ध्यात् जनकः सच कीर्तितः॥
(शब्दकल्पद्रूम-iii.७२३)
वृहद विष्णुपुराणक मिथिला महात्म्य खण्ड–
मिथिला नाम नगरी नमास्ते लोक विश्रुता
पंचभिः कारणैः पुण्या विख्याताजगतीत्रये॥
पाणिनिः-
मन्थते शत्रवोयस्यां=मथ+“मिथिलादयश्च”
इतिदूलच अकारस्येत्वं निपात्यते स्वनाम
ख्यातनगरी। सातु जनकराज पुरायथा। विदेहा
मिथिलाप्रोक्ता। इति हलायुधः-
मिथिला भूमिक विशेषता इ अछि जे एहिठाम नदीक बाहुल्यक कारणे जमीन उपजाउ अछि आ सभ प्रकारक अन्नक खेती एतए होइत अछि। एहिठामक जनसंख्याक विशेष भाग अहुखन खेतीपर निर्भर करैत अछि। प्रतिवर्ष एहिठाम नदीक बाढ़ि अबैत अछि, गाम घर दहा जाइत अछि, लोग वेलल्ला भऽ जाइत अछि तथापि अपन माँटि-पानिक प्रति एहिठामक लोककेँ ततेक प्रेम आ आसक्ति छैक जे ओ एकरा तैयो छोड़वा लेल तैयार नहि अछि आ ओहि माँटि-पानिसँ सटिकेँ रहब अपन जीवनक सार बुझैत अछि। गण्डक, वाग्मती, बलान, लखनदेइ, कमला, करेह, जीवछ, कोशी, तिलयुगा, गंगाक मारि मिथिलाक लोग जन्म-जन्मांतरसँ सहैत आबि रहल अछि। नदीक बिना मिथिलाक भूमिक कल्पने नहि भऽ सकइयै। नदीक कारणे तँ मिथिलाक नामो तीरभुक्ति पडल छल कहियो। नदीमे सप्तगण्डकी आ सप्तकौशिकीक उल्लेख अछि आ एकर स्त्रोत नेपालमे अछि। आब दुनू नदीकेँ नियंत्रित करबाक हेतु कोशी आ गंडक योजना बनल अछि आ आन-आन नदीकेँ पालतु बनेबाक प्रयास भऽ रहल अछि।
मिथिला भूमिक बनावट एकरा कैक अर्थमे सुरक्षा प्रदान करैत छैक। एक दिसि हिमालय पर्वत छैक तँ तीन दिसि नदी आ तैं एहिठामक लोक किछु विशेष स्वभावक होइत छथि जकर संकेत विद्यापतिक पुरूष परीक्षामे अछि। नदीक पूजा एहिठाम ओहिना होइछ जेना कोनो देवी देवताक आ सभ नदीक पूजाक गीत सेहो उपलब्ध अछि। पावनि तिहारपर नदीमे स्नान करब आवश्यक बुझना जाइत अछि। अक्षय-तृतीया (वैशाख शुक्ल)क दिन नदीमे स्नान करबाक परम धार्मिक मानल गेल अछि। मिथिलाक लोग अपन देश, संस्कृति, भाषा आ संस्कारक प्रति बड्ड कट्टर होइत छथि। भौगोलिक दृष्टिये मिथिलाक क्षेत्र एकटा राजनैतिक इकाइक रूपमे प्राचीन कालहिंसँ बनल रहल अछि आ तैं एकर सांस्कृतिक वैशिष्टय अखनो बाँचल छैक।
v.मिथिलाक निवासीः- जे केओ मिथिला अथवा मैथिल संस्कृतिसँ अपरिचित छथि हुनका ‘मिथिला’सँ मात्र मैथिल ब्राह्मणक बोध होइत छन्हि परञ्च इ बोध हैव भ्रामक थिक, कारण मिथिला एकटा भौगोलिक सीमाक द्योतक थिक आ ओहि सीमाक अंतर्गत रहनिहार प्रत्येक ओहि भौगोलिक इकाइक अंग भेलाह चाहे हुनक जाति, वर्ण, अथवा वर्ग जे हो। मिथिलाक रहनिहार प्रत्येक व्यक्ति मैथिल कहौता एहिमे कोनो संदेह नहि रहबाक चाही। धार्मिक क्षेत्रक प्रधान आ आध्यात्मिक रूपें प्रभुत्व रहलाक कारणें ब्राह्मणक प्रधानता रहलन्हि आ लगातार ७००–८०० वर्ष ब्राह्मण राजवंशक शासन रहबाक कारणें ब्राह्मणक राजनैतिक महत्व सेहो बनल रहल। इ फराक कथा जे सामान्य ब्राह्मण गरीब छथि परञ्च इ बातक सोंच जे ब्राह्मणक राज्य रहलासँ राजनीतिमे ब्राह्मणकेँ विशेष प्राधिकार भेटलन्हि आ ओ लोकनि सामंतवादी युगसँ अद्यावधि सभ क्षेत्रमे नेतृत्व केलन्हि। स्मरणीय जे आनवर्णक तुलनामे मिथिलामे ब्राह्मणक जनसंख्या बहुत कम अछि।
ब्राह्मणक अतिरिक्त मिथिलामे क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र (सभ प्रकार), कायस्थ, मुसलमान, इसाइ आदि सब वर्णक लोग रहैत छथि। मिथिलाक विशाल क्षेत्रमे सूरी, तेली, कलवार, यादव, राजपूत, वर्णसँ कम धनी आ शक्तिशाली नहि छथि। मिथिलामे कतेक वर्णक लोग मध्य युगमे रहैत छलाह तकर विश्लेषण ज्योतिरिश्वर ठाकुरक वर्णरत्नाकरसँ भेटैछ। मुसलमानोमे सैयद, पाठान, मोमिन, शेख, आदि शाखा सम्प्रदायक लोगक वास छन्हि। जमीन्दारमे ब्राह्मणक अतिरिक्त, भूमिहार ब्राह्मण, राजपूत, आ यादव लोकनि एक्को पैसा कम नहि छथि। यत्र-तत्र कायस्थ लोकनिकेँ सेहो जमीन्दारी छलन्हि मुदा ओ लोकनि आब विशेषतः कलमफरोसीमे रहि गेल छथि। मिथिला क्षेत्रमे मुसलमानो जमीन्दार कैकटा छलाह।
वर्गक हिसाबे मिथिलामे मूलरूपेण दूटा वर्ग अछि–गरीबक वर्ग आ धनिकक वर्ग। जे केओ धनमान छथि (चाहे जाति कोनो होहि) ओ धनी वर्गमे छथि–आ गरीबक वर्ग। दुनू वर्गक बीच संघर्ष चलि रहल अछि। जमीन्दारी उठलाक उपरांत इ संघर्ष आ तीव्र भऽ गेल अछि कारण आर्थिक हिसाबें मिथिला तुलनात्मक दृष्टिये विशेष शोषित आ पीड़ित अछि। उत्तर भारतक अन्नागारक पदवीसँ विभूषित रहितहुँ मिथिलाक सामान्य लोगकेँ अहुँखन पावभरिक अन्न आ पाँच हाथक वस्त्र नहि भेटइत छैक आ ओ अपन पेट भरबाक लेल चारू कात बौआइत रहैत अछि। मिथिलाक निम्नवर्गक सामाजिक श्रृखंला करीब-करीब टुटि चुकल अछि आ ओ शोषण यंत्रमे नीक जकाँ पीसा रहल अछि। इ स्थिति आब क्रांतिक आह्वान जहिया करे।
मिथिलाक उत्तरी आ उत्तर-पूर्वी सीमापर इण्डो-मंगोलाइड जातिक लोग सेहो बसैत छथि जे थारू कहबैत छथि। हुनका लोकनिकेँ रहन-सहन अहुँखन पुराने छन्हि यद्यपि ओ लोकनि परिश्रम करबामे ककरोसँ कम नहि छथि। शूद्रमे शुद्ध आ अशुद्ध (अछूत) दुनू तरहक लोग अबैत छथि। डोम, चमार, दुसाध, मुशहर, हलालखोर, धानुक, अमार्त, केओट, कुरमी, कहार, कोइरी आदि सेहो पर्याप्त संख्यामे मिथिलामे बसैत छथि। जनसंख्याक हिसाबे यादव सभसँ आगाँ छथि। दुसाध, कोइरी, चमार, कुरमी आदिक जनसंख्या जोड़ि देलासँ तथाकथित पिछड़ावर्गक जनसंख्या तथाकथित अगुआवर्गक जनसंख्यासँ बेसी अछि। जनगणनाक आधारपर निम्नलिखित जातिक ज्ञान होइछ–
भारतीय इतिहासक अध्ययनक हेतु जतवा जे स्त्रोत उपलब्ध अछि तकर शतांशो मिथिलाक इतिहासक हेतु नहि अछि। मिथिलाक दुर्भाग्य इहो जे पुरातत्ववेत्ता लोकनिक ध्यान आर्य सभ्यताक पूर्वी सीमाक प्राचीनतम केन्द्र दिसि अद्यावधि नहि गेल छन्हि। पता नहि जेतैन्ह अथवा नहि। मिथिलाक प्राचीन भौगोलिक सीमा, जाहिमे जनकपुर आ सिमराँवगढ सेहो सम्मिलित अछि, कविशेष भाग सम्प्रति नेपाल तराइमे पड़इत अछि आ ओतए सरकारक दिसिसँ एहि क्षेत्रक प्राचीन ऐतिहासिक तत्वक पता लगेबाक हेतु अखन धरि कोनो सशक्त प्रयास नहि भेल अछि। मोतिहारी, वैशाली, गोरहोघाट, पुर्णियाँ, आदि क्षेत्रक यदा–कदा पुरातत्वक खोज भेला उत्तरो एहि दिसि ध्यान नहि देल गेल अछि। आ तैं मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक जे एकटा महत्वपूर्ण स्त्रोत होएबाक चाही से सम्प्रति अपूर्णे अछि।
आन–आन क्षेत्रक हेतु जतबो साधन उपलब्ध भेल छैक ततओ मिथिलाक हेतु नहि भऽ सकल अछि कारण एहि दिसि मैथिल-अमैथिल इतिहासकारक ध्यान नीक जकाँ आकृष्ट नहि कैल गेल अछि। मिथिलाक प्राचीन गौरव आ साँस्कृतिक देनक अध्ययनक हेतु हमरा लोकनि अहुँखन मात्र साहित्यिक साधनेपर निर्भर करए पड़इत अछि जकर नतीजा इ होइयै जे कोनो प्राचीन प्रश्नपर हमरा लोकनि एकटा निर्णयात्मक मत नहि दऽ सकैत छी। प्रत्येक प्रश्न विवादास्पद अछि आ निर्विवाद रूपें हम अखनो इ कहबाक स्थितिमे नहि छी जे अमूक बात किंवा घटना अमूक समयमे घटित भेले हैत। इ अनिश्चितताक स्थिति अखन मिथिलाक इतिहासमे बहुत दिन धरि बनले रहत।
यूनान जकाँ हमरा ओतए नञि कोनो हिरोडोटस आ थुसीडाइड्स भेल छथि आ नञि मुसलमान शासकक इतिहासकार जकाँ कोनो इतिहासकारे। विदेशी यात्रियो लोकनि जे विवरण एहि क्षेत्रक देने छथि से मात्र सामान्ये कहल जा सकइयै आ ओहिसँ स्थितिमे कोनो परिवर्तन नहि अवइयै। एहना स्थितिमे एहि प्राचीन क्षेत्रक इतिहासक निर्माण करब एकटा जटिल समस्या बनल अछि आ ओहि समस्या मध्य हमरा लोकनिकेँ ऐतिहासिक साधन खोजिकेँ संकलित करबाक अछि।
मिथिलामे पैघसँ पैघ दार्शनिक एवँ तात्विक विषयपर ग्रंथक रचना भेल अछि जाहिसँ इ प्रमाणित होइछ जे एहिठामक लोग विज्ञ एवँ विद्वान छलाह परञ्च अपना संबंधमे किछु लिखबाक क्रममे ओ लोकनि राजर्षि जनकक विदेह नीतिये अपनौलन्हि अछि एहिमे कोनो सन्देह नहि। ‘मैथिल’ शब्द “वैदिक” युगसँ व्यवहृत होइत आएल अछि आ एहिसँ इ स्पष्ट होइत अछि जे ताहि दिनसँ मिथिलाक भौगोलिक इकाइ स्वीकृत अछि आ एहि भौगोलिक क्षेत्रमे रहनिहार मैथिल कहबैत छलाह–बिहारमे एतेक प्राचीन गौरव आ कोनो क्षेत्रकेँ प्राप्त नहि छैक तथापि एकर इतिहास अखनो एतेक संदिग्ध आ अनिर्णयात्मक स्थितिमे अछि से एकटा विचारणीय विषय।
प्राचीन मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु मुख्य साधन अछि वेद, उपनिषद्, ब्राह्म साहित्य, अरण्यक, महाभारत, रामायण, पुराण, स्मृति, पाणिनि, पतञ्जलि, आदिक रचना एवँ तत्कालीन बौद्ध आ जैन साहित्य। मिथिलाक सम्बन्धमे सूचना हमरा लोकनिकेँ यजुर्वेद एवँ अथर्ववेदसँ भेटए लगैत अछि यथापि अप्रत्यक्ष रूपें मिथिलाक ऐतिहासिक घटनाक विवरण ऋग्वेदमे सेहो देखल जा सकइयै। शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, पंचविंश ब्राह्मण, बृहदारण्यकोपनिषद्, एवँ छन्दोग्योपनिषद्मे मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, एवँ धार्मिक अवस्थाक विस्तृत विवरण भेटइत अछि। एहिमे सभसँ महत्वपूर्ण विवरण शतपथ ब्राह्मणक अछि जाहिमे जनककेँ सम्राट कहल गेल अछि आ संगहि याज्ञवल्क्यक संरक्षक सेहो। साँस्कृतिक स्थितिक अध्ययनक हेतु तँ उपरोक्त साधन अद्वितीय अछि आ एहि बातकेँ विदेशी विद्वान सेहो मानैत छथि। एहिमे संदेह नहि जे एहि युगमे ब्राह्मण वर्गक प्रधानता छल तथापि परीक्षितक बादसँ जनक वंशक इतिहासक हेतु उपरोक्त साधनक अध्ययन अत्यावश्यक मानल जाइत अछि। एतरेय ब्राह्मणसँ तत्कालीन अवस्थाक विवरण भेटइत अछि आ उपनिषद् तँ सहजहि दार्शनिक विचार-विमर्शक खान अछिये। ओहिमे जाहि ढंगे वाद–विवाद अछि से सर्वथा अद्वितीय कहल जा सकइयै। पाणिनि, पतञ्जलि एवँ अर्थशास्त्र (कौटिल्यक)सँ सेहो प्राचीन मिथिलाक इतिहासक विभिन्न अंशपर प्रकाश पड़इत अछि।
बौद्ध आ जैन साहित्यक संबंधमे इ साँचि कहल गेल अछि जे जखन कोनो आन साधन मिथिलाक इतिहासक हेतु नहि प्राप्त होइत अछि तखन बौद्ध आ जैन साधन हमरा लोकनिक साहाय्यक हेतु प्रस्तुत होइत अछि। दीपवंश, महावंश, अशोकविद्वान, अश्वघोषक, बुद्धचरित, बुद्धघोषक रचना सभऽ, धम्मपद्दद्ठ कथा, असंग, वसुवन्धु, दिगनाग, धर्मकीर्ति, आदिक रचनासँ मिथिलाक सांस्कृतिक एवँ दार्शनिक इतिहासक निर्माणमे बहु साहाय्य भेटइत अछि। बौद्ध दार्शनिक लोकनिकेँ कहबाक क्रममे मिथिलामे नव–न्यायक जन्म भेल छल आ तैं ७–८ शताब्दीसँ १५–१६म शताब्दी धरि जे बौद्ध एवँ मैथिल दार्शनिकक मध्य वाद–विवाद भेल अछि से मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक अध्ययनक हेतु परमाश्वयक मानल जाइत अछि। वाचस्पति मिश्र (वृद्ध)सँ लऽ कऽ शंकर मिश्र धरिक समस्त ग्रंथ आ नालंदा विक्रमशिलाक महान पंडित लोकनिक रचित ग्रंथक अध्ययन एहि हेतु सर्वथा अपेक्षित।
ओना बौद्धकालीन मिथिलाक सर्वांगीन इतिहासक हेतु समस्त जातकक अध्ययन आवश्यक बुझना जाइछ। महापदानक जातक, गाँधार जातक, सुरूचि जातक, महाजनक जातक, निमि जातक, महानारदकस्प जातक इत्यादि तत्कालीन मिथिलाक राजनैतिक समाजिक एवँ साँस्कृतिक इतिहासपर वृहत् प्रकाश पड़इयै– जाहिसँ सामान्य लोकक दैनन्दिनीक ज्ञान सेहो होइत अछि। जातकमे जे राजनैतिक श्रृंखला बताओल गेल अछि ताहिसँ पुराण वर्णित अवस्थामे काफी मतभेद अछि तैं राजनैतिक इतिहासक निर्माणमे जातकक अध्ययनमे सतर्कताक आवश्यकता अछि। सामाजिक–साँस्कृतिक–आर्थिक अवस्थाक अध्ययनक हेतु जातक प्रमुख साधन मानल गेल अछि। जैन स्त्रोतमे सेहो मिथिलाक विभिन्न स्थितिक विशद् विश्लेषण भेटइत अछि आ ओहि दृष्टिकोणसँ उतराध्यायनसूत्र, उवासगदसाओ, कल्पसूत्र, स्थविरावलीचरित्र (परिशिष्ट पर्वन) एवँ त्रिशस्तिशलाकापुरूष आदि ग्रंथक अध्ययन अपेक्षित अछि। कखनो कखनो जैन एवँ बौद्ध उपाख्यानमे समता सेहो देखबामे अवइयै। जैन–बौद्ध साहित्य आ अन्यान्य साधन मिथिलाक सामाजिक–आर्थिक इतिहासक अध्ययनक हेतु बहु लाभदायक मानल गेल अछि कारण ओहि सभ विवरणमे सामान्य लोकक जीवनपर सेहो प्रकाश पड़इत अछि। जातक आदिसँ इहो ज्ञात होइछ जे कोना ताहि दिनक मैथिल अपन घर दुआ छोड़िकेँ व्यापार–व्यवसायक हेतु देश–विदेश जाइत छलाह आ ओहिमे बहुत गोटए ओहिठाम बैसिओ जाइत छलाह। ओ लोकनि वेस उद्यमी आ परिश्रमी होइत छलाह आ समुद्र यात्राक हेतु कोनो संकीर्णता हुनका लोकनिमे नहि छलन्हि।
महाभारत, रामायण, आ पुराणमे मिथिलाक सबंधमे प्रचुर सामग्री अछि परञ्च एहि तीनूमे वैज्ञानिकताक हिसाबें कतहु कोनो साम्य नहि छैक। पुराणक विभिन्न खण्डमे जतवा जे नामावली अथवा राजाक सूची भेटइत अछि ताहिमे एकरूपता नहि देखबामे अवइयै आ एहि विरोधाभाससँ इतिहासक सामान्य विद्यार्थी अगुताकेँ घबरा जाइत अछि। ब्रिटिश विद्वान पारजीटर महोदय आ बंगाली विद्वान प्रधान महोदय बड्ड परिश्रम कए पुराण रूपी जंगलसँ मिथिलाक राजवंशक इतिहासक एकटा रूपरेखा प्रस्तुत करबामे समर्थ भेल छथि तथापि ओकरा सर्वसम्मत अखनो नहि मानल जाइत छैक। प्राचीन–कालमे इतिहास–पुराण एकटा अध्ययनक महत्वपूर्ण विषय छल आ अध्ययनक दृष्टिकोणसँ एकरा पंचमवेद सेहो कहल गेल छैक तथापि एकरा अध्ययनमे जे एकटा वस्तुनिष्ठताक अपेक्षा छल से प्राचीन विद्वान लोकनि नहि राखि सकलाह आ पुराणमे ततेक रास एम्हर–ओम्हरक बात घुसिया गेल जे एकर ऐतिहासिकतामे लोगकेँ संदेह होमए लगलैक। एहिठाम एतवा स्मरणीय जे एतवा भेला उत्तरो पुराण, रामायण आ महाभारतक एतिहासिक महत्वकेँ काटल नहि जा सकइयै। परंपरागत इतिहासक जे अपन महत्व छैक ताहि हिसाबे उपरोक्त साधनक अध्ययन कऽ कए हमरा लोकनि मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे एहिसँ साहाय्य लऽ सकैत छी।
मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु लिगिटमे मैनुस्कृप्ट सेहो आवश्यक बुझना जाइत अछि। एहिसँ मिथिला आ वैशाली दुनूक इतिहासपर प्रकाश पड़इत अछि। एहिमे कहल गेल अछि जे जखन वैशालीमे गणराज्य छल तखन मिथिलामे राजतंत्र आ मिथिलामे ताहि दिनमे एकटा प्रधानमंत्री छलाह जिनक नाम खण्ड छलन्हि आ हुनका अधीनमे ५०० अमात्य रहथिन्ह।
संस्कृत साहित्यक विभिन्न अंशसँ मिथिलाक इतिहासक अध्ययनमे सहायता भेटइत अछि। कालिदास, भवभूति, दण्डिन, राजशेखर, आदिक रचनासँ मिथिलाक इतिहासक विभिन्न पक्षपर प्रकाश पड़इयै। लक्ष्मीधरक कृत्यकल्पतरू, श्रीनिवासक भद्दीकाव्यटीका, जयसिंहक लिंगवार्त्तिक, श्रीधर ठक्कुरक काव्यप्रकाशविवेक, नारायणक छांदोग्यपरिशिष्ट एवँ मिथिला आ भारतक अन्य भागसँ प्राप्त मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपि आदिसँ मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे सहायता भेटइत अछि। विल्हणक विक्रमाँकदेवचरित, विद्यापतिक समस्त रचना, वर्धमानक दण्डविवेक, अभिनव वाचस्पति मिश्रक समस्त रचना, गणेश्वरक सुगति सोपान, चण्डेश्वरक आठो रत्नाकर, ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्णनरत्नाकर आदि ग्रंथ मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे उपादेय सिद्ध भेल अछि। बिहार रिसर्च सोसायटी द्वारा प्रकाशित “कैटलोग आफ मिथिला मैनुस्कृप्ट” (४ भाग), हरिप्रसाद शास्त्री द्वारा संपादित “कैटलोग आफ नेपाल दरबार मैनुस्कृप्ट” इत्यादिसँ सेहो मिथिलाक इतिहासक सभ पक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै। मिथिलामे सुरक्षित तालपत्रपर ब्राह्मण आ कायस्थक पाञ्जि सेहो मिथिलाक सामाजिक इतिहासक एकटा मूलि स्त्रोत मानल गेल अछि।
ओना पुरातात्विक साधनक अभाव तँ मिथिलामे अछि तथापि मोतिहारीसँ बंगालक सीमा धरि जे विभिन्न पुरातात्विक महत्वक स्थान अछि तकर सर्वेक्षणसँ मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे सहायता भेटत। मिथिलाक प्रमुख क्षेत्रक उत्खनन अखनो नहि भेल अछि तैं ओहिठामसँ पर्याप्त मात्रामे शिलालेख, सिक्का, आदि नहि भेटल अछि। एम्हर मोतिहारीसँ कैकटा ताम्रलेख प्रकाशित भेल अछि, मुजफ्फरपुरक कटरा थानासँ जीवगुप्तक एकटा अभिलेख भेटल अछि जाहिसँ पता लगैत अछि जे तीरभुक्तिमे चामुण्डा नामक एकटा विषय छल। इमादपुरसँ पाल कालीन अभिलेख भेटल अछि जाहिसँ इ सिद्ध होइछ जे पाल लोकनिक शासन मिथिलापर छल। नौलागढ (बेगुसराय)सँ दूटा पालकालीन अभिलेख भेटल अछि– जाहिमे एकटा क्रिमिला विषयक आ दोसरमे एकटा बिहारक उल्लेख अछि। एहिठाम इहो स्मरणीय जे एहि क्षेत्रसँ गुप्तकालीन मोहर एवँ ‘रक्षमुक्त विषय’क एकटा गुप्तकालीन मोहर सेहो भेटल अछि जाहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे मिथिलाक इ क्षेत्र शासनक प्रधान केन्द्र छल। बनगाँव (सहरसा)क गोरहोघाट, पटुआहा, आदि स्थानसँ पंचमार्क्ड सिक्का तँ बहुत पूर्वहिं भेटल छल आ एम्हर विग्रहपाल तृतीयक एकटा प्रमुख ताम्रलेख बहरायल अछि जाहिमे इ कहल गेल अछि जे तीरभुक्तिक अंतर्गत हौद्रेय नामक एकटा विषय छल। इएह हौद्रेय आधुनिक हरदीथिक। एहिसँ पूर्व हमरा लोकनिकेँ तीरभुक्तिमे मात्र एक्केटा विषयक ज्ञान छल आ ओ छल ‘कक्ष’ विषय जकर उल्लेख नारायण पालक भागलपुर ताम्रलेखमे भेल अछि। इ कक्षविषयक सम्बन्धमे अखनो धरि इतिहासकार एकमत नहि भेल छथि मुदा हमर अपन विचार इ अछि जे इ ‘कक्ष’ विषय प्राचीन अंगुतरापमे छल आ महाभारतमे वर्णित ‘कौशिकी कक्ष’क प्रतीक छल। नारायण पालक ताम्रलेखमे एहि कक्ष विषयक विवरण भेटइत अछि। चामुण्डा विषय पश्चिममे, हौद्रेय केन्द्रमे आ कक्ष विषय तीरभुक्तिक पूर्वी सीमाक संकेत छल। एकर अतिरिक्त पंचोभसँ प्राप्त ताम्रपत्र सेहो मिथिलाक इतिहासक अध्य़यनक हेतु अत्यावश्यक। अन्धराठाढी़सँ प्राप्त श्रीधरक अभिलेख, कन्दाहासँ नरसिंह देव ओइनवारक अभिलेख, भगीरथपुरसँ प्राप्त ओइनवार कालीन अभिलेख, मुहम्मद तुगलकक अभिलेख, वेदीवनक तुगलक कालीन अभिलेख, इब्राहिम शाह शर्कीक अभिलेख, शिवसिंहक सिक्का, ओइनवार शासक भैरव सिंह देवक चाँदीक सिक्का आदिसँ मिथिलाक इतिहासक विभिन्न पक्षपर प्रकाश पड़इत अछि। नेपाल वंशावली आ नेपालसँ प्राप्त अभिलेख जाहिमे सिमराँवगढ स्थित नान्यदेवक तथाकथित अभिलेख एवँ प्रताप मल्लक शिलालेख महत्वपूर्ण अछि। एम्हर आबिकेँ वैशाली, बलिराजगढ, करिऔन आदि स्थानक उत्खननसँ जे सामग्री प्राप्त भेल अछि सेहो मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे सहायक सिद्ध भेल अछि। महेशवारा (बेगूसराय)सँ प्राप्त रूकनुद्दिन कैकशक अभिलेख तँ अन्यान्य दृष्टिकोणसँ महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक विभिन्न भागसँ मुसलमानी सिक्का पर्याप्त मात्रामे भेटल अछि जाहिसँ राजनैतिक इतिहासक निर्माणमे सहायता भेटइत अछि। मटिहानी (बेगूसराय)सँ बंगालक सुल्तान नसरत शाहक अभिलेख सेहो भेटल छल आ कहल जाइत अछि जे बेगूसरायक समीप नूरपुरगाँवमे मीरजाफरक पुत्रक एकटा अभिलेख अछि।
विदेशी यात्री लोकनि सेहो मिथिलामे आएल छलाह आ एहिमे चीनसँ आयल यात्री लोकनिक विशेष महत्व अछि कारण ओ लोकनि एतए बौद्धधर्मक अध्ययनार्थ अबैत छलाह। फाहियान, हियुएनसंग, सूंगयुन, इंसिंगआदि यात्रीक नाम उल्लेखनीय अछि। इ लोकनि मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रक भ्रमण कएने छलाह आ ओ लोकनि जे अपन विवरण लिखने छथि ताहिसँ एहि क्षेत्रपर विशेष प्रकाश पड़इयै। वृज्जी, लिच्छवी एवँ तीरभुक्तिक प्रसंग हिनका लोकनिक लेख उपादेय अछि। विदेशी यात्रीमे सर्वप्रमुख व्यक्ति, जे मिथिलाक हेतु सर्वतोभावेन महत्वपूर्ण कहल जा सकैत छथि, भेलाह तिब्बती यात्री धर्मस्वामी जे १३म शताब्दीक पूर्वार्द्धमे मिथिला होइत नालंदा गेल छलाह। तखन मिथिला राजगद्दीपर कर्णाटवंशीय रामसिंह देव विराजमान छलाह। धर्मस्वामी मिथिलाक संबंधमे बहुत रास बात लिखने छथि। बहुत दिनधरि ओ रामसिंहक दरबारमे सेहो रहल छलाह आ रामसिंह हुनका अपन पुरोहित बनबाक हेतु आग्रहो केने छलथिन्ह परञ्च ओकरा ओ स्वीकार नहि केलन्हि। ताहि दिनमे मिथिलापर मुसलमानी आक्रमण प्रारंभ भऽ चुकल छल तकर विवरण ओ दैत छथि कारण जखन वैशाली बाटे जाइत छलाह तखन ओ अपना आँखिये इ सभ घटना देखलन्हि। धर्मस्वामी मिथिलाक इतिहासक हेतु एकटा आवश्यक स्त्रोत भेला। एकटा दोसर महत्वपूर्ण साधन भेल वसातिलुनउंस जकर लेखक छलाह मुहम्मद सद्र उला अहमद हसन दाबिर इदुसी (उर्फ ताज) आ ओ इखतिसान उद देहलवीक नामे सेहो विख्यात छलाह। ओ गयासुद्दीन तुगलकक संगे बंगाल आक्रमणमे गेल छलाह आ घुरती कालमे मिथिला पर गयासुद्दीन तुगलकक आक्रमणक समयमे हुनके संग छलाह। तैं इहो एकटा आँखि देखल साधन भेल आ ओहि हिसाबे महत्वपूर्ण सेहो। फोलियो १२ (एकर सम्पूर्ण पटनाक काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थानमे सुरक्षित अछि आ ४टा फोलियो जकर संबंध मिथिलाक इतिहाससँ छैक, हमर हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहुतमे छपल अछि)पर लिखल अछि जे हरिसिंह देव ककरो कोना सलाह नहि सुनलन्हि आ पराकेँ पहाड़ दिसि चलि गेलाह। गयासुद्दीन तुगलकक तिरहूत आक्रमणक संबंधमे एहिसँ प्रामाणिक दोसर कोनो साधन उपलब्ध नहि अछि। तिरहुत ताहि दिन विस्तृत आ सुखी संपन्न राज्य छल आ अखन धरि ककरो अधीन नहि छल तैं गयासुद्दीन बंगालसँ घुरबा काल अपना अधीनमे करबाक प्रयास केलक। इसामी अपन फुतुह–सालातीनमे लिखने छथि जे गयासुद्दीन तिरहुतक कर्णाटवंशक अंतिम राजापर आक्रमण केँलन्हि आ ओ बिना कोनो प्रकारक विरोध केने पहाड़–जंगल दिसि भागि गेलाह। सुल्तान तीन दिन धरि ओतए ठहरलाह आ जंगलकेँ काटिकेँ सम्पूर्ण क्षेत्रकेँ साफ करौलन्हि। तेसर दिन ओ मिथिला राज्यक विशाल किला जकर दिवाल गगनचुम्बी छल आ जे सात टा गहिर खाधिसँ चारू कातसँ घेरल छल, पर आक्रमण केँलन्हि आ ओहिपर विजय प्राप्त केला उत्तर ओहि किलामे दू या तीन सप्ताह रूकला आ चारू दिसक विरोधकेँ दबैलन्हि आ एवँ प्रकारें मिथिलापर अपन प्रभुत्व स्थापित केलन्हि। जेबासँ पूर्व ओ तवलिघाक पुत्र धर्मात्मा अहमदकेँ तिरहुतक प्रधान बनौलन्हि। एवँ प्रकारे एक–दू मासक बाद गयासुद्दीन अपन राजधानी दिसि चलि गेलाह। फरिस्ता आ मुल्लातकिया जे राजाक गिरफ्तारीक गप्प लिखैत छथि से गलती बुझि पड़इयै। वसातिनुलउंसक अनुसार तिरहुतक राजा समृद्धशाली छलाह, आ हुनका सैनिकक कोनो अभाव नहि छलन्हि। विराट राजभवन छलन्हि आ सभ तरहें ओ सुखी आ सम्पन्न छलाह। अपन अजेय दूर्ग–किलाबंदी आ सेनापर अटूट विश्वास छलन्हि आ आइ धरि कतहु हुनक माथ झुकल नहि छलन्हि। गयासुद्दीनक पहुँचबाक समाचार सुनितहिं ओ एतेक भयभीत भऽ गेलाह जे हुनक सब घमण्ड धूल–धूसरित भऽ गेल। अपन प्रतिष्ठा बचेबाक हेतु ओ अपन तेज घोड़ापर चढ़िकेँ भागि गेलाह। वसातिनुलउंसक लेखकक विचार अछि जे जँ राजा मेलसँ चाहतैथ तँ गयासुद्दीन हुनका संग बढ़िया व्यवहार करितथिन मुदा ओ बिनु कोनो प्रकारक वार्ता कएने भागि गेला। अपन स्वतंत्रताक रक्षाक हेतु ओ पहाड़क कोरामे नुका रहलाह। गयासुद्दीन ओहिठाम थोड़ेक दिन ठहरि समस्त राज्यक शासनक व्यवस्था अपने निर्देशनमे केलन्हि। ग्राम मुखिया (मकोद्दम) लोकनिक संग नीक व्यवहार दर्शौलन्हि आ तकर बाद सब प्रबंध केला उत्तर ओहिठामसँ अपन राजधानी दिसि बढ़लाह।
एकर अतिरिक्त एकटा आ महत्वपूर्ण साधन अछि मुल्ला तकियाक वयाज। मुल्ला तकियाक वयाज पटनाक मासिक (पटना–१९४६)मे छपल अछि आ ‘मिथिला’ साप्ताहिकमे सेहो एकर मुख्य साराँश मैथिलीमे छपल छल बहुत दिन पूर्वहिं जे आब उपलब्ध नहि अछि। मुल्ला तकिया मुगल कालीन रइस छलाह। आसाम जेबाक क्रममे मिथिला होइत गेल छलाह आ ताहि दिनमे एहिठाम जत्तेक जे किछु छल तकर विस्तृत विवरण संकलित कए ओ मिथिलाक एकटा व्योरेवार इतिहास बनौने छलाह। एकर अतिरिक्त फरिता, अलवदाओनी, अबुल फजल, अब्दुल सलिम आ गुलाम होसेन हुसेनक पोथी सभसँ सेहो मिथिलाक इतिहासपर पर्याप्त प्रकाश पड़इत अछि।
मुसलमानी साधनक अतिरिक्त इस्ट इण्डिया कम्पनीक रेकार्डस, कलक्टरेटक कागज पत्र, अंग्रेज कर्मचारी लोकनिक मध्य भेल पत्राचार, जमीन्दारीक कागज आ दरभंगा राजक सचिवालय एवँ रेकार्डस रूममे सुरक्षित पुरान कागज सभ सेहो मिथिलाक इतिहासक निर्माणक हेतु सहायक सिद्ध होएत। मिथिलामे जे बहुत रास जमीन्दारी छल ओहि सभ जमीन्दारक ओतए विभिन्न प्रकारक सरकारी गैर सरकारी कागज उपलब्ध अछि आ ओहि सभसँ मिथिलाक आधुनिक इतिहासक निर्माणमे काफी सहायता भेट सकइयै। एहि सभ कऽ संकलन एवँ प्रकाशन आवश्यक अछि– दरभंगा राज्यक इतिहासक निर्माणमे एहिसँ बड्ड सहायता भेटल अछि। दरभंगा, बनैली, नरहन, बेतिया, सुरसंड, गंधवरिया, चक्रवार आदि राजवंशक वृहद एवँ वैज्ञानिक इतिहास नहि लिखल जा सकल अछि। दरभंगा राज्यक अतिरिक्त बाँकी राज्य सभहक संबंध हमरा लोकनिकेँ पूर्ण जानकारियो नहि अछि कारण साधनक अभाव अछि।
एहि सभ साधनक वैज्ञानिक अध्ययन केलासँ मिथिलाक प्रामाणिक इतिहासक निर्माण भऽ सकइयै। सब साधनक समीचीन व्याख्या केला उत्तरे हमरा लोकनि मिथिलाक समीक्षात्मक सर्वेक्षण कऽ सकैत छी। ओना आन प्रांतक तुलना एहिठाम साधनक सर्वथा अभावे कहल जाएत तथापि जतवा जे उपलब्ध अछि ताहिपर वैज्ञानिक रूपें अध्ययन करब आवश्यक। मिथिलाक हेतु मैथिली साधनपर विशेष निर्भर करए पड़त। एहि प्रसंगमे एकटा उदाहरण देव अप्रासंगिक नहि होइत। विद्यापति कवि होइतहुँ इतिहासक नीक ज्ञाता छलाह जकर प्रमाण हमरा हुनक ग्रंथ सभसँ भेटइत अछि। पुरूष परीक्षा जाहि सिल–सिलेवार ढंगसँ ओ ऐतिहासिक व्यक्तित्वक विवेचन कएने छथि ताहिसँ हुनक ऐतिहासिक बोध एवँ वस्तुनिष्ठताक पता लगइयै। (एहि सबंधमे द्रष्टव्य–हमर लेख–विद्यापतिज पुरूष परीक्षा–जे हमर ‘हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहुत’क परिशिष्टमे छपल अछि।) ज्ञातव्य जे पुरूष परीक्षाक अध्ययन केला उपरांत स्वर्गीय चन्दा झा मिथिलाक इतिहासक अध्ययन दिसि आकृष्ट भेल छलाह आ ओहि संबंधमे बहुत रास सामग्री सेहो जमा केने छलाह। कीर्तिलता, कीर्तिपताका, लिखनावली आदि ग्रंथ सेहो ओतवे महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक इतिहासक लेल मैथिली साधनक हेतु खोज करए पड़त कारण एकर एकटा अविच्छिन्न प्रवाह वैदिक कालसँ अद्यावधि बनल अछि। यशस्तिलकचम्पूमे तिरहुत रेजिमेंटक विवरण मिथिलाक स्वतंत्र व्यक्तित्वकेँ स्पष्ट करइत अछि जकर स्पष्टोक्ति विद्यापतिमे भेल अछि। मिथिलाक इतिहासक निर्माणक हेतु उपरोक्त सभ साधनक वैज्ञानिक अध्ययन एवं ओकर समीक्षात्मक विश्लेषण अपेक्षित अछि।
अघ्याय–३
जनकवंशक इतिहास
कुरू–पाँचालमे कुरूवंशक अंत भेला उत्तर भारतक जे सर्व प्रसिद्ध राज्यवंश छल तकरे हमरा लोकनि जनक वंशक नामसँ जनैत छी। एहि वंशक सर्वश्रेष्ठ एवँ सर्व प्रसिद्ध राजा छलाह जनक जनिक दरबार दर्शनक प्रसिद्ध केन्द्र छल आ ओहि हेतु मिथिलामे जनक वंशक एतेक प्रसिद्धियो अछि। कुरू लोकनिक अवसानक कालमे पूर्वी भारतमे जनक वंश उत्थानक पथपर छल। एकर सभसँ पैघ प्रमाण इ अछि जे ब्राह्मण साहित्यमे ताहि दिनमे कुरू राजकुमार लोकनिकेँ ‘राजन’क संज्ञासँ सम्बोधित कैल जाइत छलन्हि आ जनक राजवंशक लोककेँ ‘सम्राट’क संज्ञासँ। शतपथ ब्राह्मणमे सम्राटकेँ राजनसँ पैघ मानल गेल अछि।
पौराणिक चाकरायन आ निचक्षुक समयमे कुरू लोकनिक पतन भेल छलन्हि। राजा परीक्षितक अवसान भऽ चुकल छल परञ्च हुनक स्मृति अखनो लोकक मध्य विराजमान छल आ मिथिलाक राजदरबारमे ओ अहुँखन श्रद्धाक संग चर्चित छलाह। जनकक सभामे जे दार्शनिक विचार–विमर्श एवँ चिंतनक क्रम चलैत छल ताहुठाम राजा परीक्षित एकटा विचारणीय विषय बनल छलाह जेना कि भुज्यु लाह्यायनि एवँ याज्ञवल्क्यक विवादसँ स्पष्ट होइछ। सम्प्रति हमरा लोकनिक समक्ष जे साधन मिलल अछि ताहि आधार इ कहब कठिन अछि जे जनमेजेय आ जनक वंशक मध्य कोनो प्रकारक सम्पर्क छल अथवा नहि। पुराण एवँ महाकाव्यमे जनक आ परीक्षित वंशकेँ सम–सामयिक कहल गेल छैक। जनककेँ उद्दालक आरूणि आ याज्ञवल्क्यक सम–सामयिक कहल गेल छैक। महाभारतमे वर्णित अछि जे जनमेजेयक सर्पसत्रमे उद्दालक आरूणि एवँ हुनक पुत्र श्वेतकेतु उपस्थित छलाह। विष्णुपुराणमे तँ एतवा धरि कहल गेल अछि जे जनमेजेयक पुत्र एवँ अधिकारी शतानीक याज्ञवल्क्यसँ वेदक शिक्षा ग्रहण केलन्हि।
उपरोक्त कथनकेँ प्रामाणिक मानव असंभव कारण वैदिक साहित्य, पुराण आ महाकाव्यक मध्य तिथि निर्धारण एवँ राजवंशक साक्ष्यक सम्बन्धमे एकटा विरोधाभास अछि आ तैं अद्यावधि एहि सभ शासक लोकनिक काल निर्धारण एकटा समस्ये बनल अछि। देश–विदेशमे एहि प्रश्नपर वेस विवाद भेल अछि परञ्च तइयो प्रामाणिकताक लेशमात्र कतहु देखबामे नहि अवइयै। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार दैवापशौनक जनमेजेयक सम–सामयिक छलाह। जैमिनी उपनिषद एवँ वंश ब्राह्मणक अनुसार दैवाप शौनकक शिष्य छलाह दृति एन्द्रोत आ एन्द्रोतक शिष्य छलाह पुलुष प्राचीन योग्य। पुलुषक शिष्य छलाह पौलुषी सत्ययज्ञ। छान्दोग्य उपनिषदक अनुसार सत्ययज्ञ उद्दालक आरूणि एवँ बुडिल आश्वतराश्वीक समकालीन छलाह आ एहि हिसाबे तँ ओ जनकक समकालीन सेहो रहल हेताह। एहिसँ स्पष्ट होइछ जे एन्द्रोत जनमेजेयक समकालीन रहल हेताह आ सातयज्ञि जनकक। जनक जनमेजेयसँ पाँच–छह पीढ़ी बादमे भेल होथि से संभव।
विदेह राजक सर्वप्रथम उल्लेख हमरा लोकनिकेँ यजुर्वेदक संहितामे भेटइत अछि। वाल्मीकि रामायणक अनुसार एहि राजवंशक मूल संस्थापक छलाह राजा निमि। हुनके पुत्र छलाह मिथि आ मिथिक पुत्र जनक प्रथम। ओहि वंशक जे सीताक पिता छलाह उएह भेलाह जनक द्वितीय आ हुनक भ्राता कुशध्वज साँकास्यक शासक छलाह। वायु एवँ विष्णुपुराणमे निमिकेँ इक्ष्वाकुक पुत्र कहल गेल अछि आ ओहि निमिकेँ विदेहक संज्ञा सेहो देल गेल अछि। ओहि ‘विदेह’सँ ओहि क्षेत्रक नाम विदेह सेहो पड़ल। वायुपुराणमे वशिष्ठक जाहि श्रापक उल्लेख अछि तकर वर्णन हमरा लोकनिकेँ बृहद्देवतामे सेहो भेटइत अछि। उपरोक्त दुनू पुराणक अनुसार निमिक पुत्र ‘मिथि’केँ जनक प्रथम सेहो मानल जाइत अछि आ ओहि क्रममे सीताक पिताक नाम सीरध्वज जनक सेहो भेटइत अछि। इएह सीरध्वज संभवतः रामायणक द्वितीय जनक भऽ सकैत छथि। पुराणक अनुसार एहिवंशक अंतिम राजा कृति छलाह। रामायण, महाभारत आ पुराणक अध्ययनसँ इ स्पष्ट होइछ जे जनक, व्यक्ति विशेषक नामक अतिरिक्त, वंशक नाम सेहो छल। एहि प्रसंगमे इ स्मरण राखब आवश्यक जे एहि वंशक क्रममे जनकानाम, जनकै आदि शब्दक जे प्रयोग भेल अछि ताहुसँ उपरोक्त कथन प्रमाणित होइत अछि।
वैदिक साहित्यमे नमिसाप्य नामक एकटा विदेहक राजाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। मुदा एहिठाम इ स्मरणीय जे नमिसाप्य कतहु कोनोठाम मिथिलाक राजवंशक संस्थापकक रूप नहि उपस्थित कैल गेल अछि। शतपथ ब्राह्मणक कथासँ एतवा धरि स्पष्ट अछि जे विदेघ माथव मिथिलाक राजवंशक ऐतिहासिक संस्थापक छलाह। ओ सरस्वती नदीक तटसँ सदानीरा (गण्डकी)केँ तट धरि आएल छलाह। हुनका संग हुनक पुरोहित गोतम राहुगण। सरस्वतीक तटसँ जंगलकेँ जरबैत ओ लोकनि मिथिला धरि पहुँचलाह। एहिसँ पूर्व कोनो ब्राह्मण एम्हर एतए दूर धरि नहि आएल छलाह कारण ताधरि एहि क्षेत्रकेँ अग्नि वैश्वानर द्वारा जराओल नहि गेल छल। एम्हुरका जमीन दल–दल छल आ किछु उपजा वारी नहि होइत छल। अग्निदेव जखन एहि भूमिकेँ जराकेँ पवित्र केलन्हि तखन माथव हुनकासँ पूछलथिन्ह जें हम आब कोम्हर जाइ ताहिपर अग्निदेव कहलथिन्ह जे अहाँ पूर्व दिस जाउ आ ओतहि अपन वास स्थापित करू तदुपरांत माथव विदेघ अथवा मिथि विदेह ओहिना काज केलन्हि आ उत्तर पूर्वी भारतमे एकमात्र आर्य राज्यक स्थापना संभव भेल। जँ हमरा लोकनि शतपथ ब्राह्मणक एहि कथाक ऐतिहासिकताकेँ स्वीकार करैत छी तखन तँ इ स्पष्ट भऽ जाइछ जे ‘निमि साप्य’ मिथिलाक संस्थापक नहि छलाह आ नञि हुनका इ प्रतिष्ठे देल जा सकैत छन्हि। मज्झिम निकाय आ निमि जातकमे मखादेवकेँ मिथिलाक राजवंशक संस्थापक कहल गेल छैक। जनक वंशक सम्बन्धमे एवँ प्रकारे ततेक रास नञि मतभेद अछि जे ओहि प्रसंगमे कोनो निर्णयात्मक उत्तर देव असंभव। बृहद्देवतामे उल्लेख अछि जे विदेह लोकनि सरस्वती तटसँ मिथिला पहुँचला उपरांतो अपन वंशसँ सरस्वती नदी संबंध बहुत दिन धरि बनौने रहलाह आ एहि बातक पुष्टि तखन आ होइछ जखन हमरा लोकनि पंचविंश ब्राह्मणक निमि साप्य प्रकरणपर दृष्टिपात करैत छी। बौद्ध साहित्यमे मिथिलामे निमिकेँ प्रथम शासक नहि मानि बादक शासक मानल गेल अछि। मिथिलाक राजवंशकेँ सामान्यतः जनक वंश कहल गेल अछि तैं कोन जनक ‘महान जनक’ छलाह जनिक पुत्री सीता छलथिन्ह अथवा जनिक दरबारमे विद्वदजनक गोष्ठी भेल छल से कहब असंभव। ओकर प्रामाणिकता सिद्ध करब सेहो असंभव।
विभिन्न स्त्रोतसँ उपलब्ध सामग्रीक अध्ययन केला संता हमरा लोकनि एहि निष्कर्षपर पहुँचैत छी जे सीताक पिताक नाम छल सीरध्वज जनक। पुराणमे जनक राजवंशक जे सूची अछि ताहि आधारपर हमरा लोकनि उपरोक्त निर्णयपर पहुँचैत छी। अयोध्याक भरतक माम छलथिन्ह केकेयीक राजा अश्वपति आ सीरध्वज जनक हुनके समकालीन छलाह। उद्दालक आरूणि आ बुडिल एहि दुनू राजाक दरबारमे बरोबरि जाइत छलाह। भवभूति सेहो एहिमतक समर्थक छथि जे सीरध्वज जनक सीताक पिता छलाह। जातक नं ५३९मे जाहि महाजनकक चर्च अछि सैह संभवतः सीरध्वज जनक छलाह आ हुनके दरबार विद्वानक हेतु विश्वविख्यात छल। एहि महाजनकक सम्बन्धमे कहबी अछि–
“ मिथिलायाम् प्रदिप्तायाम्
न मे दहयति किञ्चन्।
अपिच भऽवति मैथिलेन गीतम्
नगरम् उपाहितम् अग्नि नाभिविक्ष्य,
न खलु मम हि दह्यतेत्र किञ्चित्
स्वयमिदमाह किलस्म भूमिपालः”
एहिसँ तँ स्पष्ट रूपे जनक विदेहक बोध होइछ।
महाभारत, शतपथ ब्राह्मण एवँ वृहदारण्य कोपनिषदमे जनककेँ सम्राटक संज्ञा देल गेल छैक। सम्राट जनकक महानताक द्योतक कहल जा सकइयै कारण बिनु वाजपेय यज्ञ केने केओ सम्राट नहि कहा सकैत छल। आश्वलायन स्त्रोत सूत्रमे जनककेँ महान यज्ञकर्ताक रूपमे वर्णन कैल गेल छन्हि। सम्राटक हिसाबें कम आ चिंतक एवँ दार्शनिक हिसाबें बेसी इ महान जनक इतिहासमे विशेष प्रसिद्ध छथि आ मिथिलाक अहुना जतवा जे सांस्कृतिक प्रतिष्ठा अछि ओकर जड़िमे छथि इएह राजा जनक आ हुनक राजदरबार। ताहि दिनमे मिथिलाक राजदरबार संस्कृति आ दर्शनक प्रधान केन्द्र छल आ एहिठाम विजय प्राप्त करबाक अर्थ होइत छल समस्त भारतमे यश प्राप्त करब। कुरू पाँचाल, मद्र, कौशल आदि स्थानक विद्वान लोकनि जनकक दरबारकेँ सुशोभित करैत छलाह। किछु प्रसिद्ध विद्वानक नाम एवँ प्रकार छन्हि–अश्वल, जारतकारव आर्तभाग, भुज्यु लाहयायनि, उषस्त चाकरायण, कहोड़ (कहोल) कौषीतकेय, गार्गी वाचक्नवी, उद्दालक आरूणि, आ विदग्ध शाकल्य इत्यादि। कुरू–पाँचालक ब्राह्मण संग जनकक सम्बन्ध विलक्षण छलन्हि आ ओहिठामसँ तरह–तरहक विद्वानकेँ ओ अपना ओतए बजबैत छलाह। राजा जनकक संबंधमे ऐतिहासिकताक जतवा जे अभाव हो मुदा ओकर साँस्कृतिक महत्वक सम्बन्धमे ककरो कोनो प्रकारक सन्देह नहि छन्हि।
जेना कि उपर कहल जा चुकल अछि जनक वंशक प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करब एकटा कठिन समस्या अहुँखन बनले अछि आ सम्प्रति एकर कोनो निदानो देखबामे नहि अवइयै। जाहि ‘कृत’केँ कुलक्षणसँ तुलना कैल गेल अछि से संभवतः कराल जनक रहल हेताह कारण ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ हमरा लोकनि जनैत छी जे कराल जनक अजातशत्रुक समकालीन छलाह आ हुनके शासन कालमे जनक वंशक अंत भेल। इहो संभव जे ‘कृति’ आ ‘कराल’ दुनू जनक वंशक अंतिम शासक होथि।
वैदिक साहित्यमे माथव आ जनकक अतिरिक्त दू आ विदेह वंशक उल्लेख भेटइत अछि–निमि साप्य आपर आहलारक। किछु विद्वानपर कोशलक शासकपर आतणारसँ मिलबैत छथि। पंचविंश ब्राह्मणमे निमि साप्यकेँ एक महान यज्ञकर्ता कहल गेल अछि आ तैं किछु गोटए हुनका जनकसँ मिलबैत छथि। वैदिक निमि साप्यक तुलना उतराध्यायन सूत्रक राजा निमिसँ। विष्णुपुराणक नेमीसँ, मज्झिम निकायक मखादेव सुत्तक निमिसँ तथा कुम्भकार एवँ निमिजातकमे वर्णित ओहि नामक राजासँ करैत छथि। एकर प्रत्यक्षीकरण अखनो एकटा ऐतिहासिक समस्या बनल अछि। निमिजातकक अनुसार ओ मैथिल राजवंशक अंतिम शासक छलाह आ संगहि पाँचालक राजा द्विमुख, गाँधारकनग्गति आ कलिंगक करण्डुक समकालीन सेहो। मज्झिम निकायक उपरोक्त सुत्तमे कराल(कलार) जनककेँ निमिक पुत्र कहल गेल अछि। कौटिल्यक अर्थशास्त्रमे एहि कराल जनककेँ ‘वैदेह’ कहल गेल अछि। एहि राजाक संग ‘वैदेह’ वंशक अंत भेल। वैदेह वंशक अंत होइतहि एहिठाम कुलीनतंत्री गणतंत्रक स्थापना भेल आ इ वैशाली कुलीनतंत्र अथवा वृज्जिसंघक एकटा प्रमुख अंग बनि गेल। प्राचीन परंपरासँ एहिबातक सबूत भेटइत अछि जे विदेहक पतनमे काशीक हाथ सेहो छल। अजातशत्रु विदेह राज्यक यश–प्रतिष्ठाकेँ देखि इर्ष्या करैत छलाह। काशी आ विदेहमे बरोबरि संघर्ष होइत रहैत छलैक। महाभारतक अनुसार काशीक प्रतरदन आ विदेहक जनकक मध्य संघर्ष भेल छल। परमथ्थजोतिक नामक बौद्ध ग्रंथमे कहल गेल अछि जे जनक वंशक अंत भेलापर उत्तर बिहार अथवा मिथिलामे लिच्छवी लोकनिक शक्तिशाली शासन प्रारंभ भेल। लिच्छवीक सम्बन्ध सेहो काशीसँ बताओल जाइत अछि। किछु स्त्रोत सभ एहि बातक दिसि संकेत कैल गेल अछि जे वैशाली विदेहपर प्रत्यक्ष वा प्रत्यक्ष रूपें काशीक प्रभाव छल।
यजुर्वेद संहिताक अध्ययनसँ ज्ञात होइछ जे ब्राह्मण युगमे विदेहक राजनैतिक आ साँस्कृतिक महत्व एक्के रंग छल। ताहि दिनमे विदेहक गाय समस्त उत्तरी भारतमे प्रसिद्ध छल। पश्चिममे जे स्थान कुरू–पाँचाल लोकनिक छलन्हि से पूर्वमे कोशल–विदेह लोकनिक। कोशल आ विदेहक निवासी विदेघ माथवकेँ अपन पूर्वज अथवा संस्थापक मनैत छथि। एहिठाम इ स्मरण रखबाक अछि जे विदेघ माथव (विदेह माधव) अपना मुँहमे अग्निवैश्वानरकेँ लऽ कऽ चलल छलाह। एहिसँ इ स्पष्ट अछि जे पूर्वी भारतक इ समस्त हिस्सा जंगल आ दलदल छल आ अग्नि वैश्वानरक प्रतापें ओहि जंगलकेँ जराकेँ विदेघ माथव एकरा रहबा योग्य भूमि बनौलन्हि। विदेह आर्यक प्रसारक पूर्वी सीमारेखा बनल। एकटा प्राचीन परंपरामे तँ इहो कहल गेल अछि जे विदेहक आर्यीकरण भेलाक पछाति शतपथ ब्राह्मणक रचना विदेहेमे भेल। एहि सम्बन्धमे विद्वानक मध्य काफी मतभेद अछि। एतवा धरि निश्चित एवँ निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे विदेहक साँस्कृतिक मान्यता समस्त उत्तर भारतमे छल। उपनिषदक युग विदेहक ब्राह्मणक प्रतिष्ठा कुरू–पाँचालक ब्राह्मणसँ विशेष छल। विदेहक महत्व एतेक छल जे बादोमे एकर चर्च विभिन्न साहित्य इत्यादिमे होइत रहल। जातक, बौद्ध साहित्य, अध्यात्म रामायण, रामायण आदि ग्रंथ सबमे विदेहक वैशिष्ट्यक विश्लेषण भेटइत अछि।
अपन दिग्विजयक क्रममे भीम विदेहक राजाकेँ पराजित कएने छलाह। विदेहक राजधानी मिथिलापर कर्ण अपन दिग्विजयक क्रममे अपन आधिपत्य स्थापित कएने छलाह। शांति पर्वमे एक स्थलपर जनक–याज्ञवल्क्यक वार्तालापक प्रसंग आएल अछि। एकर अतिरिक्त महाभारतमे विदेह राज जनकक प्रसंगमे निम्नलिखित बातक उल्लेख भेटइयै–
______ i) जनकक आध्यात्मिकताक विवरण;
______ ii) पंचशिख आ शुलभक संग जनकक वार्तालाप;
______ iii) शुककेँ जनक द्वारा शिक्षा देबाक प्रसंग;
भीम आ अर्जुनक संग जखन कृष्ण इन्द्रप्रस्थसँ राजगीर जाइत छलाह तखन ओ मिथिला सेहो आएल छलाह आ एहेन बुझि पड़इयै जे ताहि दिनमे राजगीर जेबाक बाट मिथिले दऽ कए छल। भीष्म पर्वमे विदेह लोकनिक विश्लेषण अछि। भीष्म पर्वक एक स्थान पर विदेह लोकनिक उल्लेख एक बेर मगध लोकनिक संग आ दोसर बेर ताम्रलिप्तक लोकनिक संग भेल अछि। ‘विदेह’ शब्दक उत्पत्तिक विवरण विशद् रूपेण विष्णु पुराणमे भेटइत अछि। विदेह निमिसँ उत्पन्न मिथि जे नगर बसौलन्हि सैह मिथिला कहाओल। दीघनिकायक महागोविन्द सुत्तांतमे कहल गेल अछि जे गोविन्द नामक एक व्यक्ति मिथिलाक संस्थापक छलाह। विभिन्न स्त्रोतसँ विदेहक विभिन्न राजा लोकनिक नाम भेटइत अछि–सागर देव, भरत, अंगीरस, रूचि, सुरूचि, पताप, महापताल, सुदश्शन, नेरू, महासम्मत, मुचल, महामुचल, कल्यानद्वय, सतधनु, मखादेव, साधीन इत्यादि। स्वप्नवास्वदत्तम् (अंक–६)मे सेहो उदयनकेँ ‘वैदेहीपुत्र’ कहल गेल छन्हि। बिम्बिसारक पत्नी वासवी (अजातशत्रुक माय) सेहो ‘विदेहपुत्री’ छलीहे। वर्धमान महावीर विदेहपुत्री विदेहदत्ताक पुत्र छलाह आ ओ स्वयं बहुत दिनधरि मिथिला–विदेहमे रहल छलाह। छह टा वर्षावास ओ विदेहमे बितौने छलाह। महावीर आ बुद्धक समयमे जे वृज्जि संघ छल तकर दूटा प्रमुख सदस्य छलाह लिच्छवी आ विदेह लोकनि। एहि वृज्जि संघकेँ कौटिल्य राजशब्दोपजीवी संघ कहने छथि।
विदेहक वन सम्पत्ति महत्वपूर्ण छल आ एहिठामक प्राकृतिक साधन सेहो समृद्ध छल। धन, जन, पशुक कतहु कोनो अभाव नहि छल। जातकक अनुसार विदेहमे १६००० गाँव छल आ १६००० नाचैवाली छौड़ी। रथ, घोड़ा, हाथी, बरद, गाय, माल आदिक तैं कथेऽ नञ। चीनी यात्री लोकनि सेहो मिथिला–विदेह आ वृज्जीक विवरण उपस्थित कएने छथि आ ओहि आधारपर किछु विद्वान मिथिलाक राजधानी जनकपुरकेँ मानैत छथि। जातकमे एवँ जैन ग्रंथ सभमे विदेह संबधी असंख्य कथा सभ सुरक्षित अछि। एक कथामे कहल गेल अछि जे विदेहक राजाकेँ गान्धार राज वोधिसत्वक संग मित्रताक सम्बन्ध छलन्हि। दुनू अपन राजकेँ छोड़ि तपस्या करबाक हेतु हिमालय गेल छलाह। मखादेव, साधीन, सुरूचि आदिक सम्बन्धमे सेहो कैक प्रकारक कथा जातकमे सुरक्षित अछि। साधीन एक पवित्र आत्मा छलाह जनिक न्यायप्रियतासँ इश्वर लोकनि सेहो प्रभावित छलाह। सुरूचिक पत्नीक नाम सुमेधा छलन्हि आ उहो दुनू गोटए परम धर्मात्मा छलाह।
वैदिक युगमे काशी, कोशल आ विदेह प्रधान आर्य केन्द्र छल। मगध आ अंगक निवासीकेँ वाक्य बुझल जाइत छलैक आ वाक्यक अर्थ होइत छल ‘पतित’। प्राच्यक सबटा आर्य केन्द्र सभमे विदेह सर्व प्रधान छल। गौतम, याज्ञवल्क्य, भृगु, वामदेव, कण्व, अगस्त, भार्गव, भारद्वाज, इत्यादि ऋषिगण विदेहमे एकत्र भेल छलाह आ सत्प्रयाससँ ओ निमिकेँ जीवित केँलन्हि। मिथिला–विदेहक शासक लोकनि जनक आ “वैदेह” पदवीसँ विभूषित होइत छलाह। राजा जनक ‘ब्रह्मज्ञान’क अंवेषणार्थ कुरू पाँचालसँ बहुत रास ब्राह्मणकेँ बजौलन्हि आ ओहिक्रम ओ याज्ञवल्क्यसँ ब्रह्मविद्याक उपदेश पऔलनि। याज्ञवल्क्य जनकक राजगुरू बनलाह आ विदेहमे ब्रह्मविद्याक केन्द्र स्थापित भेल। विदेह आ अयोध्यामे वैवाहिक संबंध स्थापित भेल। महाभारत युद्धमे मिथिलाक राजा क्षेमधूर्त्ति दुर्योधनक पक्षमे छलाह किएक तँ पाण्डुवंश एक बेर मिथिलापर आक्रमण कएने छलाह।
दुर्योधन मिथिलेमे बलभद्रक ओतए गदा सिखने छलाह आ तखनहिसँ मिथिलेश आ दुर्योधनमे बेस मित्रता भऽ गेल छलन्हि। महाभारत युद्धक समयमे मिथिलामे विराट नामक एकटा शासक छलाह। दरभंगा जिलाक बराटपुर आ सहरसा जिलाक बराटपुर दुनू एहि राजाक राजधानी कहल जाइयै। सहरसाक वराटपुरसँ साबिकक वस्तु सेहो प्राप्त भेल अछि ओ जाहिमे मध्य युगक एकटा शिलालेख सेहो अछि। नेपाल क्षेत्रमे सेहो एकटा विराटनगर छैक।मिथिला स्थित विराटनगरमे युधिष्ठिर राजा विराटक ओतए बहुत दिन धरि अज्ञातवासमे रहल छलाह। कहल जाइछ जे वराटपुर आ कीचकगढ़ प्रांत सहरसा जिलाक धर्मपुर परगनामे छल आ पचपड़रिया ग्राममे पाण्डव लोकनि अपन अज्ञातवासक समय बितौने छलाह।
विदेहक सम्बन्धमे सामग्री उपलब्ध अछि ताहि आधारपर निर्णयात्मक इतिहासक निर्माण करब असंभव अछि। प्राच्यमे रहनिहार काशी, कोशल, मगध, आ विदेहक लोगमे विदेह वासीकेँ विशिष्ट स्थान देल गेल छैक। मनुस्मृतिमे वैश्य पिता आ ब्राह्मण मातासँ उत्पन्न व्यक्तिकेँ “वैदेह” कहल गेल छैक। मनुस्मृति ब्रह्मर्षि देशकेँ विशेष महत्व देल गेल छैक जतए भरत लोकनि रहैत छलाह। एकर अर्थ इ भेल जे मनु पूर्वी क्षेत्रकेँ बहुत पवित्र नहि मानैत छलाह। लिच्छविक संग ओ विदेह लोकनिकेँ सेहो व्रात्यक कोटिमे रखने छथि। मनु चाहे एहि क्षेत्रकेँ जाहि हिसाबे देखने होथि, महाभारतमे मिथिलाकेँ विशेष प्रतिष्ठा देल गेल अछि। शखदेव तँ जनकसँ ब्रह्मविद्या सिखबाक हेतु मिथिला आएल छलाह। ‘जनक’ पदवीक प्रारंभऽ राजा मिथिलाक समयसँ भेल छल।
I.जनक वंशक राजाक नामावली
____ निमि (विदेह)
____ मिथि
____ अरिष्टनेमि
____ सीरध्वज–(जनक द्वितीय), सीताक पिता (छोट भ्राता कुशध्वज)
(हिनका सँकाश्य जीतलापर सीरध्वज ओतुका राजा बना देलन्हि।)
____ भानुमंत
____ सतद्युम्न– (प्रद्युम्न)
____ शुचि (मुनि)
____ उर्जवह
____ सुतध्वज (सत्वध्वज, सनध्वज)
____ शकुनी (कुणी)-(एहिठामसँ जनक वंश दू भागमे बँटि गेल)
II. (पुराणक अनुसार बनाओल सूची)
____ निमि
____ मिथि
____ उदावसु
____ नन्दिवर्धन
____ सुकेतु
____ देवराट्
____ बृहद्रथ (बृहदुक्त)
____ महावीर
____ सुधृति
____ धृष्टकेतु
____ हरयाश्व
____ मरू
____ प्रतिन्धक
____ कीर्तिरथ
____ देवमिढ़
____ विबुद्ध
____ महिधक्र
____ कीर्तिराट
____ महारोमा
____ स्वर्णरोमा
____ हृस्वरोम
____ सीरध्वज जनक (जनक द्वितीय)
III. (सीरध्वजक वंशज)
____ कृतिजनक (अपना समयक महान शासक आ चिंतक)
(बहुलाश्वक पुत्र)
उग्रायुध
IV. साँकाश्चमे
____ कुशध्वज–(भरत आ शत्रुघ्नक ससूर)
धर्मध्वज कृतध्वज आ मितध्वज
____ खाण्डिक्य–(हिनका केँशीध्वजसँ युद्ध भेल छलैन्ह)
____ पुराणमे साँकाश्यक जनक वंशक अंत एहिठाम भऽ जाइत
अछि।
पार्जिटर महोदय अपन डायनस्टीज आफ द कलि एजमे लिखने छथि
कलिंगाश्चैव द्वात्रिंशद् अश्मकाः पंचविंशतिः
कुरवश्चापि षट्–त्रिशद् अष्टाविंशति मैथिलाः॥
महापद्मनन्द मैथिल राज्यकेँ पराजित कएने छलाह–ताहि दिन पुराणक अनुसार २४टा इक्ष्वाकु, २७टा पाँचाल, २४टा काशी, ३६टा कुरू आ २८टा मैथिल शासक क्षत्रिय वंशमे शासन कऽ चुकल छलाह।
V.जातक सूची:-
सुरूचि
सुरूचि कुमार
महापणाद
VI.संदिग्ध:-
विदेह
महाजनक
अरित्थ जनक, पोल जनक
महाजनक द्वितीय
दिघावु कुमार
VI.अन्यान्य राजाक नाम–(जातकसँ)
_ कलार अथवा कराल जनक
_ अंगति
_ साधीन
_ पर अहलार
VII.विदेह राजतंत्रक अवसान
अर्थशास्त्र मे–
दाण्डक्यो नाम भोजः कामाद
ब्राह्मणकान्यामभिमन्यमानः
सुबन्धुराष्ट्रो विनाशकरालश्च वैदेहः।
एहिसँ स्पष्ट अछि जे कराल जनकक समयमे मिथिलाक राजतंत्रक अंत भेल। राजा कराल व्यभिचारी छलाह आ अपन चरित्रक चलते हुनका राजगद्दीसँ हाथ धोमए पड़लन्हि। अश्वघोष अपन बुद्धचरितमे सेहो एहि प्रसंगमे लिखने छथि–
“कराल जनकश्चैव हृत्वा ब्राह्मणकन्यकाम्
अवापभ्रंशमप्येवं न तु से जे न मन्मथम्”
कहल जाइत अछि जे कराल जनकक प्रजा राजाक दुर्व्यहारसँ तंग आबि विद्रोह केलन्हि आ राजाकेँ मारिओ देलन्हि आ विदेह राजतंत्रक ओहि दिनसँ अंत भऽ गेल। विदेह राजतंत्रक अवसानमे भीतरे–भीतर काशीक हाथ सेहो रहल होएत एहन अन्दाज लगाओल जा सकइयै। सुरूचि जातकक अनुसार काशीक राजा ब्रह्मदत्त अपन पुत्री सुमेधाक विवाह विदेहक राजकुमारसँ करेबा लेल तैयार नहि भेला आ तकरा चलते विदेह राज काशीपर खिसिया गेलाह। आरो बहुत रास बात लऽ कए काशी मिथिलाक उन्नति नहि देखए चाहैत छल आ तरे–तर मिथिलाकेँ नष्ट करबाक कुचक्र करैत रहैत छल। काशीक अतिरिक्त कुरू–पाँचालसँ सेहो मिथिलाकेँ मतभेद रहैत छलैक। कुरू–पाँचालक महत्व घटलाक बाद मिथिलाक प्रगतिसँ कुरू–पाँचालकेँ इर्ष्या होइत छलैक। कुरू–पाँचालसँ पैघ विद्वानोंकेँ एहिठाम बजाओत जाइत छलैक। महाउमग्ग जातकसँ ज्ञात होइछ जे उत्तर पाँचालक राजा ब्रह्मदत्तसँ मिथिलाक राजाकेँ लड़ाइ भेल छलैक आ एहि सभसँ दिनानुदिन मिथिलापर परेशानी बढ़ले जाइत छलैक।
मिथिलाक राज्यमे सेहो आपसी संघर्ष होइते रहैत छलैक जाहिसँ ओहिठाम चारूकात असंतोष पसरल छल। इएह कारण छल जे खण्ड सन सुयोग्य महामंत्री विदेह छोड़िकेँ वैशाली चलि गेल छलाह आ ओहिठाम सम्मानित भेल छलाह।
बुद्धघोषक अनुसारे जनक वंशक शासनक अंत भेला उपरांत लिच्छवी लोकनि ओकर उत्तराधिकारी भेलाह परञ्च एहि प्रश्नकेँ लऽ कए विद्वानक बीच अखनो मतभेद बनल अछि। पौराणिक आधारपर कहल जाइये जे वैशालीमे इक्ष्वाकु वंशक अंत भेलापर वैशाली मिथिलामे मिलगेल परञ्च अहुपर विद्वान लोकनि एकमत नहि छथि।
विदेह वृज्जीगणराज्यक (जाहिमे आठ गणराज्य सम्मिलित छल) एक प्रमुख सदस्यक रूपमे छल। संघक रूपमे पतञ्जलि विदेहक वर्णन केने छथि–“संघान्माभूत् पंचालानाम पत्यम् विदेहा नामपत्यमिति”। विदेह आ वैशालीमे इ.पू. ६ठम शताब्दी गणराज्य छल से मानल जाइत अछि। कराल जनकक बाद संभवतः मिथिलामे गणराज्यक स्थापना भेला उत्तरो ओहिठाम शासककेँ राजा कहल जाइत होन्हि से संभव। उवासगद साओ (५म शताब्दीक)मे मिथिलाक वर्णन अछि। १२म शताब्दीक अभिधानप्पदीपिकामे २४ प्रसिद्ध नगरक नाममे मिथिला आ वैशालीक नाम अछि। जैन आ बौद्ध साहित्यमे मिथिलाकेँ गणराज्यक रूपमे वर्णन कैल गेल छैक आ ओहिसँ ओकर प्रसिद्धि छलैक से स्पष्ट अछि। वैशाली समेत जे दशटा गणराज्यक उल्लेख पालि साहित्यमे अछि ताहिमे मिथिलोक स्थान छल जाहिसँ बुझना जाइत अछि जे कराल जनकक पतनक बाद वैशाली समेत विदेहमे गणराज्यक स्थापना भऽ गेल। बुद्धक समयमे विदेहक गणना गणराज्यक रूपमे कैल गेल अछि। अजातशत्रुक आक्रमणसँ वैशालीक अंत भेल आ महापद्मनन्दक आक्रमणसँ मिथिलाक। वैशालीक पतनक बादो लगभग २५० वर्ष धरि मिथिला अपनाकेँ मगध साम्राज्य बादक चाङुरसँ मुक्त रखबामे सफल रहल छल। नंदवंशक बाद भारतमे मौर्यक तत्वावधानमे एकटा अखिल भारतीय साम्राज्यक स्थापना भेल आ मिथिला ओकरे अंग भऽ गेल।
अध्याय–४
वैशालीक इतिहास
i.)भौगोलिक विश्लेषण:- अति प्राचीन कालमे भौगोलिक क्षेत्रक हिसाबे वैशाली विदेह राज्यक अंतर्गत छल, आ विदेह जकाँ वैशालीमे सेहो पहिने राजतंत्र छल आ तत्पश्चात् गणतंत्र भेल। वैशाली गण्डकसँ पूर्व अछि आ एकर आर्यीकरण विदेहक संग भेल छल। प्राचीन उत्तर बिहारक वैशाली आ विदेह दुनू महत्वपूर्ण राज्य छल आ दुनूक अपन अलग–अलग ऐतिहासिक महत्व छैक। अति प्राचीन विदेहक अंग होइतहुँ, वैशालीक सेहो अपन एकटा निर्धारित क्षेत्र छैक। प्राचीन वैशालीक अंतर्गत चम्पारण आ मुजफ्फरपुर जिलाक विशेष भाग छल आ विदेहक अंतर्गत छल दरभंगा, कटिहार, समस्तीपुर, मधुबनी, सहरसा, पूर्णियाँ, अररिया, बेगूसराय, मूँगेरक उत्तरी भाग, भागलपुरक उत्तरी भाग आ नेपालक तराइ सेहो विदेह वैशालीक अंश छल।
विदेह शब्दक अर्थ ताहि दिनमे वेस व्यापक छल–विदेह एकटा जातिक नामक संकेत सेहो दैत छल। विदेह एकटा भौगोलिक सीमाक प्रतीक छल एवँ विदेह एकटा राज्य छल जकरा अंतर्गत ताहि दिनमे गण्डकीक पूवसँ महानंदा धरिक समस्त क्षेत्र सम्मिलित छल। आधुनिक उत्तर बिहारक द्योतक छल विदेह। इएह कारण थिक जे एहि व्यापकताक कारणे महावीरक जन्मस्थान कुण्डग्रामकेँ विदेहमे मानल गेल अछि, अजातशत्रुकेँ वैदेही पुत्र कहल गेल अछि। विदेहक व्यापकताक प्रभाव पाछाँ धरि बनल रहल कारण हम देखैत छी जे ‘ललित विस्तार’मे विदेहक संगहि पूर्व विदेहक वर्णन सेहो अछि।
शक्ति संगम तंत्रमे जे मिथिला क्षेत्रक वर्णन भेल अछि ताहिमे कहल गेल अछि गण्डकीक तीरसँ चम्पाक जंगल धरिक जे क्षेत्र अछि उएह क्षेत्र विदेह अथवा तैरभुक्ति कहबैत अछि। चम्पाक जंगलसँ एहिठाम बहुत गोटए चम्पारणक उत्तरी जंगली भागक अर्थ लैत छथि मुदा जखन हम एकर सीमाक विश्लेषण आन ठाम देखैत छी तखन हमरा इ बुझि पड़इयै जे इ विश्लेषण समीचीन नहि अछि कारण विदेहक सीमा एतबेटा नहि भऽ सकइयै। चम्पाक जंगल धरिक अर्थ भेल ओ क्षेत्र जे चम्पाक उत्तरी भागमे छल आ जकरा बौद्ध साहित्यमे अंगुतराप कहल गेल अछि। चम्पा आ विदेहक सीमा कोनो एक खास बिन्दु पर मिलैत छल एहिमे संदेह नहि।
पुरूषोत्तम देव अपन त्रिकाण्डशेषमे एवं वामन अपन लिंगावुशासनमे विदेह आ तीरभुक्तिकेँ पर्यायवाची शब्द मानने छथि। बारहम शताब्दीक एकटा शिलालेखमे वैशालीकेँ तीरभुक्तिक अंतर्गत बताओल गेल अछि। जीनप्रभासूरी अपन विविध तीर्थकल्पमे सेहो किछु एहि प्रकारक संकेत दैत तीरभुक्तिक विवरण देने छथि। शक्ति संगम तंत्रमे सेहो विदेह आ तीरभुक्तिकेँ पर्यायवाची शब्द मानल गेल अछि। बौद्ध लोकनि विदेह आ वैशालीकेँ दू अलग–अलग राज्यक रूपमे वर्णन कएने छथि। बौद्ध साहित्यमे वैशाली आ वृज्जिकेँ पर्यायवाची मानल गेल अछि।
मूँगेर आ भागलपुरक उत्तरी भागकेँ बौद्ध साहित्यमे अंगुतराप कहल गेल अछि जकर सीमा कोनो समयमे लिच्छवीक राज्यसँ मिलैत छल। अंगुतरापक सीमा कमला–कोशीक बीच छल। प्राचीन अंगक उत्तरी सीमा छल कोशी आ पश्चिममे एकर क्षेत्र बेगूसरायक गण्डकी धरि पसरल छल। वैशालीक लिच्छवी लोकनिक अधिकार कमला नदी धरि बढ़ि गेल छलन्हि आ तकर बाद मिथिलाक राज्य शुरू होइत छल जाहिमे ताहि दिनक अंगुतराप आ पुण्ड्रवर्धनभुक्तिक किछु अंश समाहित छल। तैं हमरा बुझने शक्ति संगम तंत्रमे जे चम्पाक जंगल धरिक गप्प अछि तकरासँ चम्पारण नहि बुझि अंगुतराप एवँ ओकर ओहि क्षेत्रक बोध होइछ जाहिठाम ताहिठाम खाली जंगले–जंगल छल आ जमीन सेहो दलदले छल। गण्डकीसँ अंगक जंगलक सीमा धरि विदेहक राज्य पसरल होएत इ वेसी तर्कसंगत बुझि पड़इयै आ तैं अखनो इ परिभाषा एकटा विचारणीय विषय बनल अछि।
ii.)ऐतिहासिक विवरण (राजतंत्र धरि):- विदेहक प्राचीन इतिहास जकाँ वैशालीक प्राचीन इतिहास ओझरैले अछि। यद्यपि पौराणिक स्त्रोतसँ वैशालीक विवरण भेटइत अछि परञ्च वैदिक साहित्यमे वैशालीक कोनो श्रृंखलाबद्ध विवरण उपस्थित नहि अछि। यत्र–तत्र एहन एकाधटा नाम वैदिक साहित्य अथवा वेदमे भेटइत अछि जकर सम्पर्क वैशालीसँ रहल हो परञ्च एहि आधारपर वैशालीक कोनो इतिहास निर्माण करब असंभव। अथर्ववेदमे तक्षक वैशालेयक उल्लेख अछि आ हुनका विशालान्मज विराजक पुत्र कहल गेल छन्हि। पंचविंश ब्राह्मणमे हुनके (वैशालेय)केँ एकटा सर्पयज्ञक पुरोहितक रूपमे वर्णन कैल गेल अछि।
पुराणमे वैशालीक इतिहासक सम्बन्धमे बहुत रास सामग्री अछि परंतु ओहिमे ततेक नञि विरोधाभास अछि जे ओहिमे सँ कोनो ठोस सत्यक निर्माण करब एकटा कठिन कार्य। मार्कण्डेपुराणमे मनु आ हुनक पुत्र प्रियव्रत तथा उत्तानपादक कथा अछि। प्रियव्रतक संतानक घनिष्ठ सम्बन्ध वैशाली एवँ हिमालय क्षेत्रसँ छलन्हि। वृद्धावस्थामे अग्निध्र (प्रियव्रतक पुत्र)गण्डकीपर अवस्थित शालग्राम (हिमालय) गेल छलाह। हुनक पुत्र नाभि तपस्याक हेतु वैशाली आएल छलाह। ताहि दिनमे वैशाली विशालाक नामसँ प्रसिद्ध छल। नाभिक पुत्र छलाह ऋषभ (संभवतः प्रथम जैन तीर्थकर इएह छलाह) आ हुनक पुत्र भेला भरत जिनका नामपर एहि देशक नाम अछि। भारतवर्षक पूर्वक नाम छल हिमवर्ष। भरत अपन राज्य सुमतिकेँ दए तपस्यामे चलि गेलाह। मार्कण्डे, भागवत्, विष्णु आदि पुराणमे वैशालीक इतिहास जे विवरण अवइयै ताहिमे तत्तेक नञि संशयात्मक बात सभ अछि जे हमरा लोकनि कोनो एकटा निर्णयात्मक सत्यपर नहि पहुँचि सकैत छी तथापि ओहि स्त्रोतक आधारपर एकटा वैज्ञानिक इतिहासक रूपरेखा ठाढ़ करबाक प्रयास कैल गेल अछि।
गजेन्द्र मोक्षक प्रसंग सेहो वैशालीक इतिहासक प्रसंगमे अवइयै। गज–ग्राहक संघर्ष वैशालीक गण्डकी क्षेत्रमे भेल छल आ कहल गेल अछि जे विष्णु गजकेँ ग्राहकक चाङ्गुरसँ बचाकेँ एहि क्षेत्रकेँ एकटा तीर्थक स्थान बना देलन्हि। इ घटना गंगा–गण्डकक संगमपर भेल छ्ल आ तैं एकरा गजेन्द्र मोक्ष तीर्थ, हरिहर क्षेत्र, हरि क्षेत्र कहल गेल अछि आ पुराणमे एहि स्थानकेँ विशाला क्षेत्रक अधीन राखल गेल अछि। दितिक तपस्याक क्षेत्र सेहो वैशाली छल। दितिक पुत्र मरूत लोकनि जे समुद्रमंथनक कार्य कएने छलाह ताहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे अति प्राचीन कालहिसँ वैशालीक लोक समुद्रसँ परिचित छलाह। हिन्दू, जैन आ बौद्ध धर्मक दृष्टिये सेहो वैशालीक इतिहास महत्वपूर्ण मानल जाइयै।
विदेह–वैशालीक प्राक्–इतिहासक सम्बन्धमे हमरा लोकनिक ज्ञान एकदम स्वल्पोसँ कम अछि तथापि जे किछु हम जानतो छी से रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रंथक आधारपर। ओहु सभ साधनमे सभमे अलग–अलग विवरण अछि। विदेहक आर्यीकरणसँ वैशालीक इतिहास प्रारंभ होइत अछि आ प्राचीन ग्रंथक आधार इ बुझना जाइत अछि जे मनुवैवस्वतकेँ ९टा पुत्र छलथिन्ह आ एकटा पुत्री जिनक नाम छलन्हि इला। नओ पुत्रक नाम अछि–इक्ष्वाकु, नाभाग (नृग), धृष्ट, शरयाति, नरिष्यंत, प्रांशु, नाभानेदिष्ठ, कारूष आ पृषधर। मनु भारतकेँ १० भागमे बटलन्हि। एहि ९ओ पुत्रमे नाभानेदिष्ठ वैशाली राज्यक संस्थापक भेलाह। हिनका वंशमे ३४टा शासक भेलथिन्ह जाहिमे सबसँ अंतिम छलाह सुमति। सुमति अयोध्याक दशरथ आ विदेहक सीरध्वज जनकक समकालीन छलाह।
नाभानेदिष्ठक सम्बन्धमे सेहो प्राचीन साहित्यमे एकमत नहि छैक। रामायण महाभारत एहि नामपर गुम्म छथि। एहन बुझि पड़इयै जे पाछाँ चलिकेँ लोग एहि नामकेँ बिसैर गेल छल। राजा विशालकेँ वैशालीक संस्थापक मानल गेल छन्हि। रामायणमे वैशालीक राजा सुमतिक शासन क्षेत्र सम्बन्धमे कहल गेल अछि जे हुनक गण्डकसँ पुर्व आ विदेहसँ दक्षिण पश्चिम दिसि छल। एहिसँ स्पष्ट अछि जे नाभानेदिष्ठ जाहि राज्यक स्थापना वैशालीमे केने छलाह तकर सीमा ताहि दिनमे बड्ड छोट छल। हुनक पुत्र भेला नाभाग, जे वैश्य कन्यासँ विवाह केलाक कारणे, गद्दीसँ वंचित रहलाह। कृषि आ व्यवसायमे ओ वेसी रट रटएलगलाह आ हुनका भाइ सभसँ सेहो नहि पटलाक कारणे बरोबरि टंट–घंट लगले रहैत छलन्हि। नाभाग अपनि पत्नी प्रेमक चलते राजगद्दीकेँ त्यागलन्हि आ क्षत्रियत्व छोड़ि वैश्यत्व ग्रहण केलन्हि। हुनका तीनटा पुत्र छलथिन्ह जाहिमे एकटाक नाम भालचंद छलन्हि आ दू भाइ ब्राह्मणत्व प्राप्त कएने छलाह। नाभागक अथक परिश्रमक कारणे वैशाली क्षेत्रमे कृषि आ व्यवसायकेँ प्रोत्साहन भेटलैक आ अति प्राचीन कालहिसँ वैशाली कृषि एवँ उद्योगक प्रधान केन्द्र बनि गेल। एक विद्वानक तँ इहो मत छन्हि जे नाभागक वैश्यत्व ग्रहण करब वैशालीक नामक उत्पत्तिसँ सम्बन्ध रखइयै। नगरक हिसाबें नाभाग अपना क्षेत्रकेँ वैश्य लोकनिक हेतु सभसँ प्रमुख नगर बनैलन्हि आ उएह नगर बादमे ‘वास्यु लोकनिक नगर’ अथवा वैशालीक नामसँ प्रसिद्ध भेल। विदेह ब्रह्मविद्या आ आर्य संस्कृतिक केन्द्र बनल आ वैशाली कृषि, उद्योग, वेद–विरोधी धर्म आ कुलीनतंत्र शासन पद्धतिक केन्द्र। ओहि युगमे मात्र पत्नीक हेतु राजगद्दीक त्याग करब एवँ ब्राह्मण व्यवस्थाक परित्याग कए वैश्यत्व ग्रहण करब एक महान–क्रांतिकारी कदम छल। एहि विवाहक एकटा दोसरो असर पड़ल सामाजिक व्यवस्थापर जकरा चलते वैशालीमे बादक राजा सबकेँ “आयोगव” कहल गेल अछि। एहिसँ एक एहेन जातिक बोध होइछ जकर माय वैश्य आ पिता शूद्र रहल हो। शतपथ ब्राह्मणमे राजा मरुत्तकेँ आयोगव कहल गेल अछि। नाभागक वैश्य पत्नीक नाम सुप्रभा छलन्हि।
सुप्रभासँ उत्पन्न पुत्रक नाम छल भलंदन। ओ राजर्षि निप (काम्पिल्त)सँ सहायता लय अपन पैत्रिक राज्यकेँ प्राप्त करबाक प्रयत्न केलन्हि आ एहि क्रम ओ सफल भेलाह आ अपन सर संबन्धीकेँ पराजित कए ओ राज्य प्राप्त केलन्हि आ राजमुकुट अपना पिताक देलन्हि मुदा पिता ओ ग्रहण करबासँ अस्वीकार केलथिन्ह। तखन भलंदन स्वयं शासक भऽ गेलाह। न्यायपूर्वक ढंगसँ ओ शासन केलन्हि आ अपन कर्तव्य पथपर चलैत रहलाह। हुनका वत्सप्रि नामक एकटा योग्य पुत्र छलथिन्ह। वत्सप्रिक पत्नीक नाम छल मुदावती (सुनंदा)। अपना पिताक बाद वत्सप्रि शासक भेलाह। हुनक दोसर नाम अजवाहन सेहो छलन्हि। ओ मालवाक राजाक संग वैवाहिक सम्बन्धक कारणें ओ एक पुश्तधरि मालवापर सेहो शासन केलन्हि। हुनक शासन काल शांतिप्रिय छल आ ओ अपन उदारता एवँ महानताक हेतु प्रसिद्ध छलाह। सुनन्दा (मुदावती)सँ १२टा पुत्र छलथिन्ह–प्रांशु, प्रचीर, सूर, सुचक्र, विक्रम, क्रम, बालीन, बलाक, चण्ड, प्रचण्ड, सुविक्रम, स्वरूप। पौराणिक स्रोतसँ इहो ज्ञात होइछ जे वेदक तीनटा वैश्य मंत्रकर्त्ता लोकनि वैशालियेक शासक छलाह जनिक नाम छलैन भलंदन, वत्सप्रि (वाशव) आ संकील।
प्रांशु अपन पिताक पछाति वैशालीक शासक भेलाह। ओ एकटा सशक्त शासकक छलाह। ओकर बाद प्रजानि, (प्रजापति, प्रमति) हुनक पुत्र, शासक भेलाह। एहि समयमे वैशाली राज्यमे किछु आपसी संघर्ष शुरू भेल। प्रजानिक पाँच पुत्रमे खनित्र महत्वपूर्ण भेलाह आ अपन पिताक बाद शासक सेहो। ओ बहुत वीर आ बुधियार छलाह। अपना प्रजाक हेतु ओ सभ किछु करबाक लेल प्रस्तुत रहैत छलाह। अपना भाइ सबहिक प्रति ओ दयावान आ विचारवान छलाह। ओ अपन सभ भाइकेँ अपना अधीनमे छोट–छोट राजा बना देने छलाह। अंतमे हुनके एकटा छोट भाइ हुनका विरोधमे विद्रोह कए राज्यक शांतिकेँ नष्ट कए देल। खनित्रक पछाति हुनक पुत्र क्षुप शासक भेलाह। हुनका चाक्षुश सेहो कहल जाइत छन्हि। ओ ब्राह्मण लोकनिकेँ प्रचुर दान दए यशक भागी बनलाह। हुनका बाद हुनक पुत्र विविंश राजा भेलाह। हुनक दोसर नाम वीर छल। तीर चलेबामे ओ बड्ड निपुण छलाह आ संगहि ओ एक शक्तिशाली शासक सेहो छलाह। हुनका बाद हुनक पुत्र विविंश शासक भेलाह। हुनका समयमे जनसंख्याक वृद्धिक कारण अन्याय बढ़ि गेल छल। स्थितिक सुधारक हेतु ओ कैक प्रकारक यज्ञ सेहो केलन्हि। विविंशकेँ १५टा पुत्र छलथिन्ह जाहिमे सबसँ पैघक नाम छलन्हि खनीनेत्र। हुनका पुराणमे धार्मिक शासक कहल गेल छन्हि। ओ ब्राह्मणकेँ उदारतापूर्वक दान दैत छलाह। हुनका पुत्र नहि छलन्हि तँ पुत्र प्राप्तिक हेतु ओ पशुयज्ञक त्याग केलन्हि। गोमतीक तटपर पापहारिणी यज्ञक आयोजन केलन्हि। एकर फलस्वरूप हुनका एकटा पुत्र भेलन्हि जकर नाम बलाश्व छल। वैशालीक इक्ष्वाकु–मानव क्षेत्रमे बलाश्वक राज्यारोहणसँ ऐतिहासिक स्तरपर आर्यक तत्वक विस्तार भेल। एहि राजाकेँ बलाश्व–करनधम सेहो कहल जाइत अछि। खनीनेत्र आ करनधमक बीचमे एकटा विभूति राजाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि।
करनधम वैशालीक एकटा महत्वपूर्ण शासक छलाह। ओ बहुत रास क्षेत्रकेँ जीतलन्हि आ अपन राज्यक अंतर्गत केलन्हि। नव–नव प्रकारक कर पराजित राज्यपर लगौलन्हि। वीरा नामक कन्यासँ स्वयंवरक माध्यमे हुनक विवाह भेल छलन्हि आ ओहिसँ उत्पन्न पुत्रक नाम छल अविक्षित। अविक्षित एतेक निपुण एवँ योग्य छलाह जे सात ठाम स्वयंवरमे हुनके जयमाल पड़लन्हि। जयमाल पहिरौनिहार कन्याक नाम एवँ प्रकार अछि–
उपरोक्त सूची एहिबातक द्योतक अछि जे वैशालीक सम्पर्क ताहि दिनमे सभ प्रसिद्ध राज्य सभसँ छल आ एहिसँ वैशाली राज्यक महत्वक संकेत भेटइत अछि। अंग, वंग, विदर्भ, मालवा आदि राज्यक संग सम्पर्क तत्कालीन अंतर राज्य सम्बन्धक प्रतीक मानल जा सकइयै। ताहि दिन हैहेय राज्यक शासक लोकनि विदेह एवँ वैशालीपर आक्रमणक सूरसारमे लागल रहैत छलाह परञ्च हुनका लोकनिकेँ एहिमे कोनो सफलता नहि भेटलन्हि कारण करनधम, अविक्षित, एवँ मरुत्त सन्–सन् शासक वैशालीक राजगद्दीपर छलाह। करनधम अपना युगक एकटा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व छलाह जे वैशाली एवँ समस्त उत्तर भारतक इतिहासपर एकटा अमिट छाप छोड़ने छथि। महाभारतमे जे पाँचटा तीर्थक वर्णन अछि ताहिमे कारन्धमतीर्थक महत्वपूर्ण स्थान अछि। आन तीर्थक नाम अछि अगस्त्य, सौभद्र, पौलोम एवँ भारद्वाजीय। महाभारतमे करन्धमकेँ एकटा प्राचीन धर्मात्मा राजाक रूपमे वर्णन कैल गेल छैक। स्कन्धपुराणमे करन्धमकेँ राजर्षि कहल गेल छैक। करन्धम एक महान शासक छलाह आ अपना राज्यक सभ विद्रोही तत्वकेँ दबाकेँ एक सशक्त राज्यक स्थापना कएने छलाह आ बहुत दिन धरि तक शासन कएने छलाह। वैशालीक साम्राज्यवादी परंपराक जन्मदाता करन्धमकेँ मानल जाइत अछि। हुनक पुरोहित छलथिन्ह अंगीरस। हुनके शासन कालसँ वैशालीक राजदरबारमे अंगीरस पुरोहित लोकनिक प्रभाव बढ़लन्हि।
करन्धमक बाद हुनक पुत्र अविक्षित शासक भेला। ओहैहेयआक्रमणकेँ रोकबामे समर्थ भेलाह। विदिशाक संग सेहो हुनका किछु खटपट भेल छलन्हि। तकर बाद हुनक पुत्र मरुत्त शासक भेला। पुराणमे मरुत्तकेँ चक्रवर्त्तीक संज्ञा देल गेल छैक। महाभारतमे मरुत्तकेँ भारतक १६ राजामे सँ एक प्रमुख राजा मानल गेल छैक। मरुत्तक तुलना विष्णु, वाँसव आ प्रजापतिसँ सेहो कैल गेल छैक। महाभारतमे मरुत्तक हेतु सम्राट शब्दक व्यवहार भेल छैक। एक किंवदंती छैक जे न्यायक तरूआरि मुचुकुन्दसँ लकए मरुत्त रैवतकेँ देलथिन्ह आ एहिसँ इ ज्ञात होइत अछि जे ओ एक न्याय–प्रिय शासक छलाह। हुनक अंगिरस पुरोहितक नाम छल सम्वर्त। ओ बड्ड पैघ–पैघ यज्ञ कएने छलाह आ धर्मप्रिय शासकमे हुनक नाम अग्रगण्य छन्हि। मरुत्त अपन पुत्रीक विवाह संवर्तक संग केलन्हि। हिनका शासन कालमे ‘एन्द्रमहाभिषेक’क आयोजनक उल्लेख भेटइयै आ अश्वमैघ यज्ञक श्रेय हुनका देल जाइत छन्हि। विभिन्न स्थानपर पैघ–पैघ यज्ञ करबाक आ करेबाक श्रेय सेहो हिनका देल जाइत छन्हि। स्कन्द पुराणक अनुसार गण्डकी उपत्यकाक राजा मरुत्त यज्ञ करबाक हेतु एक बेर जय आ विजयकेँ आमंत्रित कएने छलाह आ हुनका लोकनिकेँ प्रचूर दक्षिणा देने छलाह। कोनो अघटित घटनाक चलते हिनका दुनू गोटएकेँ श्राप पड़लन्हि आ इएह दुनू गोटए ग्रज आ ग्राहमे एहि क्षेत्रमे परिवर्त्तित भऽ गेलाह आ बादमे इएह स्थान हरिहर क्षेत्रक नामसँ प्रसिद्ध भेल। मरुत्त नाग आ हैहेय लोकनिकेँ सेहो पराजित केलन्हि। मरुत्तकेँ सात टा पत्नी छलथिन्ह–
एहि वैवाहिक सम्बन्धसँ वैशालीक स्थिति सुदृढ़ छल आ भारतक विभिन्न राज्यक संग एकर सम्बन्ध सेहो नीक छल। मरुत्तक अठारह पुत्रमे ज्येष्ठ पुत्रक नाम छल नरिष्यंत।
नरिष्यंत एक प्रमुख शासक छलाह आ उहो वैवाहिक सम्बन्धक माध्यमे अपन ताकत बढ़ौलन्हि। ओकर बाद हुनक पुत्र दम शासक भेलाह। दमक बाद राज्यवर्द्धन आ ओ दक्षिणापथसँ अपन वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित केलन्हि। एकर बाद पुनः वैशालीक इतिहास अंधकारपूर्ण अछि आ तृणबिन्दुक राज्यारोहणसँ पुनः हमरा लोकनि एकटा लीखपर पहुँचैत छी।
तृणबिन्दुक सम्बन्धमे कोनो विशेष जानकारी हमरा लोकनिकेँ नहि अछि। संभव जे ओ कोनो स्थानीय शासक रहल होथि आ राजनैतिक अस्थायित्वक स्थितिसँ लाभ उठा कए एकटा संशक्त राज्यक स्थापनामे समर्थ भेल होथि। पुराण सभमे तृणबिन्दु महिपति आ राजर्षि दुनू कहल गेल छैक। हिनक पत्नीक नाम छल अलभवुषा आ हिनका लोकनिककेँ तीनटा पुत्र छलैन्ह–विशाल, शून्यबंधु आ धूम्रकेतु। विशाल वैशाली नगरक संस्थापक मानल जाइत छथि। हिनक पुत्री इलाविलाक विवाह पुलस्त्य (दक्षिणक राक्षसवंश)सँ भेल छल। एवँ प्रकारे एहि बेर क्षत्रिय कन्याक विवाह ब्राह्मणसँ भेल। बुझि पड़इयै जे वैशालीक शासक लोकनि विवाहक मामलामे उदार छलाह। एहिसँ उत्पन्न पुत्र विश्रवस मुनिक आश्रम नर्मदा तटपर छल। दक्षिणक पौलस्त्य वंशक उत्पत्ति वैशालीक राजवंशसँ भेल छल।
तृणबिन्दुक पुत्र विशाल प्राचीन भारतीय इतिहासक प्रसिद्ध मील स्तंभ मानल जाइत छथि। ओ अपना नामपर अपन राजधानीक नाम विशाला रखलन्हि जे कालक्रमेण वैशालीक नामसँ प्रसिद्ध भेल। मार्कण्डेपुराणमे सेहो एकटा विशालग्रामक उल्लेख भेटइत अछि आ अथर्ववेदमे वर्णित तक्षक वैशालेयक उल्लेख तँ हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। राजा विशालकेँ विशालाक प्रभु, आ विशालापुरीक संस्थापकक रूप से बताओल गेल अछि। ओहि समयमे गया आ वैशालीक बीच घनिष्ठ सम्पर्क छल। राजा विशाल पितृपूजा आ पिण्डदानकसमर्थक छलाह आ ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ हुनका पिण्डदानक प्रवर्त्तको कहल जा सकइयै। ब्रह्माण्डपुराणमे राजा विशालकेँ धर्मात्मा पुरूष कहल गेल अछि। मार्कण्डेपुराणमे विशाल नामक एकटा ब्राह्मण आ हुनक पुत्र वैशालीक उल्लेख भेटइत अछि। वैशालीमे एकटा महावन छल जे गौतमबुद्धक समय धरि विराजमान छल। विशाल बहादुरीक द्योतक सेहो बुझल जाइत अछि। आ संभवतः अहु अर्थमे ‘वैशाली’ शब्दक उद्भव भेल हो। सम्प्रति ‘राजा विशालक गढ’ प्राचीन वैशालीक खण्डहरक रूपमे विराजमान अछि जकर उत्खननसँ ताहि दिनक बहुत रास सामग्री उपलब्ध भेल अछि। विशालक बाद हेमचन्द्र शासक भेलाह, तखन क्रमिक रूपें सुचन्द्र, धूम्राश्व, श्रृंजय, सहदेव, कृशाश्व, सोमदत्त, जनमेजेय, आ सुमति। वैशालीक इतिहासमे सुमतिक शासन बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। अपनावंशक ओ सभसँ अंतिम राजा मानल गेल छथि। विश्वामित्र जखन राम लक्ष्मणक संग वैशाली पहुँचल छलाह तखन एहिठाम सुमति शासन करैत छलाह। वैशालीकेँ ‘उत्तमपुरी’ कहल गेल अछि। देखबामे ओ एतेक सुन्दर एवँ स्वर्गीय छल जे सामान्य लोगकेँ बुझि पड़इत होइक जे जेना इ स्वर्गे हो। सुमति आदरपूर्वक विश्वामित्र, राम एवँ लक्ष्मणक ठहरबाक प्रबंध केलथिन्ह आ यथायोग्य स्वागत सेहो। ओहिठामसँ मिथिला पहुँचबाक बीचमे ओ लोकनि गौतमाश्रम सेहो रूकल छलाह। सुमतिक बाद वैशालीक इतिहास पुनः अंधकारपूर्ण भऽ गेल आ एकर जे स्थिति रहल तकर कोनो ज्ञान हमरा लोकनिकेँ नहि अछि। राजतंत्रक अंत आ कुलीनतंत्रक प्रगति जे कोना एहि क्षेत्रमे भेल तकरा संबन्धमे अखनो विशेष बात संदिग्ध एवँ अनिश्चिते अछि।
iii.)सुमतिक पछाति आ वज्जीकुलीनतंत्रक स्थापना धरिक इतिहास:- सुमतिक शासनक अंत भेला पर लगभग ६०० वर्षक पछाति वैशालीमे कुलीनतंत्रीय शासनक विकास भेल आ क्रमेण वृज्जीसंघ सेहो। एहि ६०० वर्षकेँ वैशालीक इतिहासमे अन्धकार युग कहल गेल अछि। साहित्य एवँ पौराणिक परंपरामे सुमतिक बाद कोनो राजाक नामक संकेत नहि अछि। महाभारत युद्धक समयमे विदेह, कोशल एवँ मल्लराष्ट्रक विवरण तँ भेटइत अछि परञ्च वैशालीक सम्बन्धमे कोनो सूचना उपलब्ध नहि होइछ। एहेन बुझि पड़इयै जे सुमतिक अवसानक पछाति विदेहक पराक्रम बढ़ि गेल छल आ वैशालीक विशेष भागपर संभवतः विदेहक आधिपत्य भऽ गेल छल। उत्तर बिहारक विदेह आ मल्लक उल्लेख महाभारत युद्धक प्रसंगमे अबैत अछि तँ संभव जे वैशालीक विशेष भागपर विदेहक आधिपत्य (वैशालीपर विदेह राज्यक आधिपत्य) भऽ गेल हो आ किछु अंशपर मल्ल लोकनिक। वैशालीक स्वतंत्र सत्ता समाप्त रहलाक कारणे वैशालीक स्वतंत्र उल्लेख नहि भेटल स्वाभाविके बुझि पड़इत अछि। किछु विद्वानक मत छन्हि जे राजा सुमतिक पछाति वैशालीपर किछु दिनक हेतु कोशलक आधिपत्य भऽ गेल छल। कोशलक कमजोर भेलापर विदेह राज्य ओहि परिस्थितिसँ लाभ उठाकेँ वैशालीकेँ अपना अधीन कऽ लेलन्हि। ताहि दिनमे रामक सार भानुमंत मिथिलामे शासक छलाह। वैशालीक प्रभुत्व घटि चुकल छल। विदेहक आधिपत्य भेला संता वैशालीक अपन जे स्वतंत्र संबन्ध यादव अथवा पाण्डव लोकनिसँ रहल हेतन्हि सेहो गौण भऽ गेल हेतन्हि आ इ लोकनि अपन अधीनस्थ स्थितिक कारणें गुम–सुम भए अपन समय कटइत हेताह। भऽ सकइयै जे विदेहक राजतंत्रक अंत भेने दुनू ठाम एक्के बेर कुलीनतंत्रीय गणतंत्रक स्थापना भेल हो।
सुमतिक पछाति मिथिलाक इतिहासक जे क्रम उपलब्ध अछि ताहि आधार पर इ उचित बुझना जाइत अछि जे मिथिला अपन साम्राज्यवादी प्रसारक क्रममे वैशालीकेँ पराजित कए अपना अधीन कऽ लेने होएत। साम्राज्यवादी प्रवृतिक प्रारंभ सीरध्वज जनक धरि जीवित छल आ ओ साँकास्य धरि अपन राज्यक सीमाक विस्तार कएने छलाह। महाभारत युद्धक पश्चात जे एकटा अनिश्चितताक स्थिति उत्पन्न भेल ताहिसँ लाभ उठाके जनकवंशक शासक गण, उग्रसेन, जनदेव, धर्मध्वज, तथा आयुस्थन, अपन साम्राज्यवादी परंपराकेँ आगाँ बढ़ौलन्हि आ करीब बारह पुस्त धरि एकरा जारी रखलन्हि। अयोध्याक राज्यक छिन्न–भिन्न भेल उत्तरो मिथिलाक राज्यक विस्तार होइते रहल। कोशल–काशीमे बरोबरि खटपट होइत रहल। वैशालीक वस्तुस्थितिक सम्बन्धमे कोनो ठोस ज्ञान हमरा लोकनिकेँ एहि समयमे नहि अछि।
महाभारतमे प्राचीन भारतीय गणतंत्र एवँ विभिन्न जातिक विवरण भेटइत अछि परञ्च ओहु सूचीमे वैशाली अथवा ओहिठामक गणतंत्रक कोनो उल्लेख नहि अछि। एकमात्र उल्लेख जे वैशालीक सम्बन्धमे अछि से विशालाक पुत्री भद्रा–वैशाली–जाहि राजकुमारीक हेतु द्वारावतीक वासुदेव, वेदिक शिशुपाल, एवँ कारूषक शासक लालायित रहैत छलाह। वैशालीमे नाग प्रधानक उल्लेख सेहो भेटइत अछि आ कहल जाइत अछि इ लोकनि अर्जुनक साहायता कएने छलथिन्ह। वैशालीमे नाग लोकनिक प्रधानताक विवरण दीर्घनिकाय आ महावंशमे सेहो भेटइत अछि। अथर्ववेदमे तक्षक वैशालेयक उल्लेख तँ हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। वैशालीसँ गुप्तकालीन अवशेषमे बहुत रास सर्प मूर्ति भेटल अछि जाहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे एहिक्षेत्र नाग लोकनिक प्रधानता रहल हेतन्हि।
कहल जाइत अछि जे भीमसेन अपन दिग्विजयक क्रममे गण्डक लोकनिकेँ पराजित कएने छलाह। अहुँठाम वैशाली नाम नहि दए गण्डक लोकनिक (गण्डकक समीप रहनिहार) नाम अछि आ अहुँसँ बुझि पड़इयै जे वैशालीक राजनैतिक महत्व ताहि दिन धरि समाप्त भऽ चुकल छल। ओहि दिग्विजयक क्रमक जे सूची अछि ताहिमे विदेहक पूर्वहि गण्डक लोकनिक विवरण अछि। भीमसेन उत्तरी कोशल, मल्ल, जलोद्भव, जनक वैदेह, शक, वर्बर, एवँ सातटा किराल प्रधानकेँ पराजित कएने छलाह आ शरमक, वर्मक आ गोपालकक्ष लोकनिकेँ सेहो। किछु गोटएक मत छन्हि जे इ तीनू वर्ग वैशालीक निवासी छलाह आ ओतहिक ब्राह्मण, क्षत्रिय आ वैश्यक द्योतक सेहो। मुदा ठोस साधनक अभावमे इ सब एकटा अंदाज मात्र थिक आ तैं एहिपर पूर्ण विश्वास करब असंभव। सुमतिक बादसँ लिच्छविक उत्थान धरिक इतिहास अंधकार पूर्ण अछि आ ओहिमे जे कोनो एकटा मान्य तथ्य अछियो तँ से मात्र इएह एहि ६०० वर्षक अभ्यंतरमे वैशाली कैक टुकड़ामे बटि गेल छल आ मुख्य रूपसँ विदेह एवँ मल्ल लोकनि एकर विशेष भागपर अपन आधिपत्य स्थापित कऽ लेने छल।
iv.)मिथिलामे गणराज्यक स्थापनाक इतिहास:- अन्धकार युगसँ जखन वैशाली अवतीर्ण होइछ तखन हम देखैत छी जे वैशालीक नेतृत्वमे समस्त उत्तर बिहारमे एकटा कुलीनतंत्रीय गणराज्यक परंपराक स्थापना होइत अछि। इ.पू. छठी शताब्दी समस्त विश्वक इतिहासमे अपन एकटा महत्वपूर्ण स्थान रखइयै आ भारतमे तँ सहजहि इ युग एकटा युगांतकारी युग छल–राजनैतिक आ साँस्कृतिक दृष्टियें। मिथिलाक इतिहास दृष्टियें सेहो इ युग युगांतकारी कहल जा सकइयै। राजनीतिमे राजतंत्रक उत्तराधिकारी गणतंत्र भेल आ विचारक क्षेत्रमे वर्धमान महावीर आ गौतमबुद्ध एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केलन्हि। वैशालीमे कहिया आ कोना गणराज्यक स्थापना भेल एकर ठीक–ठीक पता हमरा लोकनिकेँ नहि अछि मुदा एतवा हम सब जनैत छी जे महावीर आ बुद्धक समयमे वैशालीमे कुलीनतंत्रीय गणराज्यक प्रभुत्व छल। बुद्ध जाहि शब्दमे वैशालीक गणराज्यक प्रशंसा कएने छथि ताहिसँ बुझना जाइत अछि जे बुद्धसँ १००–२०० वर्ष पूर्वहिंसँ इ गणराज्य रहल हो। कराल जनकक अत्याचारी शासनसँ तंग आबि जखन प्रजा विद्रोह कए विदेह राज्यमे क्रांति मचौलक तखन ओहिठाम राजतंत्रक अवसान भेल आ गणराज्यक स्थापना। कहल जाइत अछि जे एहि घटनाक फलस्वरूपें समस्त उत्तर बिहारमे गणराज्यक परंपरा प्रारंभ भेल आ चूँकि वैशाली विदेहक अंग छल तै वैशालियोमे गणराज्यक स्थापना भेल। कराल जनक विदेहक जनक वंशक अंतिम राजा छलाह आ हुनक अवसानक पछातियेसँ मिथिलामे गणतंत्रक स्थापना मानल जाइत अछि। कहल जाइत अछि महाभारत युद्धक २२ पुस्त कऽ बाद बौद्ध धर्मक उत्थान भेल आ एहि बीचमे मिथिलामे गणतंत्रक स्थापना भेल होएत। पुराणमे एहि बीच २८ मैथिल राजाक उल्लेख भेटइत अछि।
बौद्ध धर्मक उत्थानक बहुत पूर्वहिं मिथिलामे गणतंत्रक स्थापना भेल होएत तकर संकेत हम उपर दए चुकल छी। पुराणमे २८ मैथिल राजाक विवरण अछि आ जातकमे मात्र १५ राजामे २८ सँ जे १५ घटा देल जाइक तें १३ राजा बचि जाइत छथि आ महाभारत युद्ध आ गणराज्यक स्थापनाक बीच संभवतः इएह १३ राजा मिथिलामे राज्य कएने होएताह। एहि १३मे अंतिम राजा कराल जनक रहल हेताह। जातकमे मखादेवकेँ मिथिलाक राजतंत्रक संस्थापक मानल गेल अछि। मिथिलामे जातक सूचीक अनुसार राजाक नाम एवँ प्रकारे अछि–
वर्द्धमान महावीरसँ २५० वर्ष पूर्व मिथिलामे निमि नामक एकटा शासक भेल छलाह जे जैन धर्म ग्रहण कएने छलाह। इ. पू. ७५० क आसपास मिथिलामे जनक वंशक अंतिम शासकक राज्यक अवसान भेल आ तकराबादे ओहिठाम गणतंत्रक स्थापना भेल। मिथिलामे गणराज्यक स्थापनाक संगहि वज्जी गणराज्यक स्थापना सेहो भेल। मिथिलामे राजतंत्रक पश्चात गणतंत्रक स्थापना एकटा मह्त्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। कौटिल्यक अनुसार वज्जी (वृज्जी) आ लिच्छवी अलग–अलग छल। महापरिनिवान्नसुतमे बुद्ध वज्जी लोकनिक गुणगाथा कएने छथि आ पाणिनि सेहो वृज्जी लोकनिक विवरण देने छथि। वज्जी गणराज्यक संदर्भमे अष्टकुलकक उल्लेखसँ ज्ञात होइत अछि जे एहिमे आठकुलक लोग संगठित रहल होइत। तथापि एहिठाम लिच्छवियेक प्रधानता रहल होइत। लिच्छवी लोकनि वैशालीक रहनिहार छलाह आ अष्टकुलकक सर्वशक्तिमान सदस्य सेहो। ज्ञात्रिक नामक जाति सेहो वज्जी गणराज्यमे प्रसिद्ध छल। एहि कुलमे वर्धमान महावीरक जन्म भेल छलन्हि। सूत्रकृतांगमे ज्ञात्रिकक सम्पर्क उग्र, भोज, इक्ष्वाकु, कौरव, लिच्छवी आदिसँ बताओल गेल अछि। एहिसँ बुझि पड़इत अछि जे इ सब एक दोसराक समीपे रहैत छलाह आ उत्तर बिहारक विभिन्न क्षेत्रपर हिनका लोकनिक अधिकार छलन्हि। इ सब गणराज्यक सदस्य छलाह अथवा नहि से कहब असंभव। मिथिलामे जे वज्जी गणराज्य छल तकर दूटा प्रमुख महारथी रहैथ वैशाली आ विदेह।
v.) गणराज्यक सदस्य जाति:- लिच्छवी वज्जी गणराज्यक सर्वश्रेष्ठ अंग रहैथ। बौद्ध साहित्यमे लिच्छवीक विशद विश्लेषण भेल अछि। हुनका लोकनिक प्रधान केन्द्र छल वैशाली आ राजनैतिक रूपे ओ वैशाली आ नेपालपर अपन अधिकार स्थापित कएने छलाह। चारिम शताब्दीमे जे गुप्त साम्राज्यक स्थापना मगधमे भेल छल ताहुमे लिच्छवी लोकनिक विशेष हाथ छलन्हि। लगभग ८०० वर्ष धरि बिहार आ नेपाल इतिहासकेँ लिच्छवी लोकनि प्रभावित कएने छलाह।
लिच्छवी जातिक उत्पत्तिक सम्बन्धमे अद्यतन विद्वान लोकनिक बीच मतभेद बनले अछि। लिच्छवि, निच्छवि, लिच्चिकि, लेच्छवी, लेच्छाइ, लेच्छकी, आदि शब्द लिच्छविक द्योतक मानल जाइत अछि। पालि साहित्य, सिक्का, अभिलेख, आ अन्यान्य साधन सबमे लिच्छवी शब्दक प्रयोग भेटइत अछि जाहिसँ इ ज्ञात होइछ जे इयैह शब्द इतिहासमे जनप्रिय भए स्वीकृत भऽ गेल। कौटिल्य, मेधातिथी, गोविन्दराज आदि लिच्छवी शब्दक व्यवहार कएने छथि।
बहुत रास विद्वानक कहब छैन्ह जे लिच्छवी लोकनि विदेशी छलाह–आ हुनक सम्बन्ध तिब्बत, कोलारियन, सिथियन, तथा फारससँ छलन्हि। किछु विद्वानक मत छैन्ह जे लिच्छवीक सम्बन्ध यूची जातिसँ छलन्हि। तिब्बती उत्पत्तिपर विशेष जोर देल जाइत अछि। लिच्छवीक आचार–विचार आ सामाजिक नियम आदिक आधार इ कहल गेल अछि जे हुनका लोकनिक उत्पत्ति तिब्बती स्रोतसँ भेल होएत। एहिमतक समर्थकक विचार छन्हि जे प्रागैतिहासिक कालमे किछु मंगोलियन–तिब्बती जाति एहि क्षेत्रमे आबिकेँ बसल हेताह आ ओहिसँ लिच्छवी लोकनिक उत्पत्ति भेल होएतैन्ह। भारतीय विद्वान लोकनि लिच्छवीकेँ भारतीय मनैत छथि परञ्च अपनहु सबमे किछु एहनो विद्वान छथि जनिक विचार छन्हि जे लिच्छवी लोकनिक उत्पत्ति परसिया (फारस)सँ भेल होएत। निच्छवि शब्दक उत्पत्ति फारसक ‘निसि विस’ नगरसँ भेल अछि आ ओहिसँ लिच्छवीक उत्पत्ति सेहो फारसक इतिहास विवरणमे कतहु एहेन उल्लेख नहि भेटइत अछि जाहि आधारपर इ कहल जाए जे फारसक लोग पूर्वी भारतमे आबिकेँ कहियो बसल छलाह अथवा पूर्वी भारतसँ कहियो हुनका लोकनिकेँ कोनो प्रकारक सम्पर्क रहल होन्हि।
प्राचीन भारतीय साहित्यमे लिच्छवी लोकनिकेँ क्षत्रियक रूपमे वर्णन भेल छैक। महापरिनिर्वाणसुतसँ ज्ञात होइछ जे ओ लोकनि क्षत्रियक हिसाबे बुद्धक शवक अवशेष प्राप्त करबा लेल इच्छुक छलाह। सिगालजातकमे लिच्छवी कन्याकेँ क्षत्रिय कहल गेल छैक। महाली नामक लिच्छवी अपनाकेँ बुद्ध जकाँ क्षत्रिय घोषित करैत अछि। जैनकल्प सूत्रमे वैशालीक लिच्छवी नेता चेतकक बहिन त्रिशलाकेँ क्षत्रियाणी कहल गेल छैक। लिच्छवीक उत्पत्तिक सम्बन्धमे बुद्धघोषक मत छन्हि जे ओ लोकनि क्षत्रिय छलाह। नेपाल वंशावलीमे लिच्छवी सूर्यवंशी क्षत्रिय कहल गेल छैक। मनु लिच्छवीकेँ व्रात्य–क्षत्रिय कहैत छथि। वज्जि आ लिच्छवीक मध्य कोन सम्बन्ध छल अथवा दुनूक बीच कोनो सीमा रेखा छल अथवा नहि से कहब असंभव। वृज्जी–वज्जी गणराज्यक सर्वश्रेष्ठ सदस्य लिच्छविये लोकनि छलाह। बुद्ध लिच्छवीक तुलना तावतिंशदेवसँ कएने छथि। वृज्जि (वज्जिका) आ लिच्छवी दुनू दू शब्द छल परञ्च लिच्छवीक प्रधानताक कारणे वज्जीसँ लिच्छवीक बोध होइत छल।
नेपाल अभिलेखमे लिच्छवीकुलकेतु, लिच्छवीकुलांबरपूर्णचन्द्र, लिच्छवीकुलानंदकार, लिच्छवीकुलतिलको आदि शब्दक व्यवहार भेल अछि। चीनी आ तिब्बती स्रोतसँ ज्ञात होइछ जे इ लोकनि लिच्छवीक नामसँ प्रसिद्ध छलाह। एक परंपराक अनुसार तिब्बतक राजवंश लिच्छवीक वंशज छलाह। प्राचीन कालमे संभव जे नेपालक बाटे तिब्बत आ मिथिलाक सम्बन्ध घनिष्ठ रहल हो आ राजनैतिक–साँस्कृतिक आदान–प्रदान होइत हो। हिमालयक तराइमे किरात लोकनिक वास छल आ इ लोकनि बरोबरि पहाड़क आ पार जाइत आवैत छलाह आ दुनू दिससँ हिनका लोकनिकेँ सम्पर्क छलन्हि। एहि क्रम तिब्बत आ मिथिलाक संपर्क घनिष्ठ भेल हो से संभव आ दुनूक बीच साँस्कृतिक आदान–प्रदान सेहो। लिच्छवी लोकनि विचारसँ प्रगतिशील छलाह आ तै जँ हिनक विचार तिब्बती विचारधाराकेँ ताहि दिनमे प्रभावित केने हो तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि। एहिठामक संस्कृतिसँ प्रभावित होएब हुनका लोकनिक लेल स्वाभाविक छल कारण मिथिला तिब्बती नेपाली व्यापारीक बाटपर पड़इत छल।
लिच्छवीकेँ विदेशी नहि कहल जा सकइयै। लिच्छवी आ विदेह दुनू क्षत्रिय छलाह आ हुनका लोकनिकेँ कोनो जातिगत विभिन्नता देखबामे नहि अवइयै। अहुयुगमे वैशालीकेँ विदेहक अंगे बुझल जाइत छल आ तैं तँ त्रिशलाकेँ वैदेही कहल गेल अछि। लिच्छवी लोकनि देखबा सुनबामे सुन्दर होइत छलाह आ हुनकर पहिरब ओढ़ब अत्यंत सुन्दर होइत छलन्हि। अंगुत्तर निकायमे आन क्षत्रिय शासक जकाँ लिच्छवी लोकनिकेँ अभिषिक्त मानल गेल छन्हि। हियुएनसंग लिच्छवीकेँ क्षत्रिय कहने छथि। लिच्छवी लोकनि ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, कार्तिकेय, वासुकी, लक्ष्मी आ विजयश्रीक पूजा करइत छलाह आ अहुसँ इ स्पष्ट अछि जे ओ विदेशी नहि छलाह। वैशालीमे जैन, बोद्ध आ ब्राह्मण धर्मक प्रधानता छल आ नेपालमे सेहो इ लोकनि ओहि सब धर्मक पालन करइत छलाह। लिच्छवीक अतिरिक्त आ कैकटा जाति वैशालीमे रहैत छलाह जकर विवरण निम्नांकित अछि।
ज्ञात्रिक जाति ओहिमे सबसँ प्रसिद्ध छल आ एहि कुलमे जैनधर्मक संस्थापक वर्द्धमान महावीरक जन्म भेल छलन्हि। ज्ञात्रिक लोकनिक प्रधान केन्द्र छल कुन्द ग्राम आ कोलाग्ग। बौद्ध साहित्यमे महावीरकेँ नात (नाट) पुत्र कहल गेल छन्हि। इ लोकनि काश्यप गोत्रक छलाह। वज्जी गणराज्यक विकासमे हिनका लोकनिक विशेष योगदान छलन्हि। राहुल साँकृत्यायनक अनुसार आजक जथरिया भूमिहार ब्राह्मण एहि ज्ञात्रिकक वंशज छथि। राहुलजीक एहि मतकेँ सब केओ नहि मानैत छथि।
उग्र लोकनि सेहो एक प्रसिद्ध जाति छलाह। वैशालीसँ हिनका लोकनिकेँ घनिष्ठ सम्पर्क छलन्हि। ‘हत्थीगाम’क समीप इ सब रहैथ होथि से संभव। बृहदारण्यकोपनिषद एवँ धम्मपद्दठीकामे उग्र लोकनिक विवरण भेटइत अछि मुदा ओ लोकनि इएह उग्र छलाह अथवा नहि से कहब असंभव। विदेह आ काशीमे उग्र लोकनिक प्रभुता आ सैन्यबलक चर्च भेटइत अछि। बुद्ध सेहो उग्र लोकनिक शहरमे गेल छलाह। सूत्रकृतांगमे उग्रकेँ बड्ड पैघ स्थान देल गेल छन्हि आ ललितविस्तारमे जे ६४ लिपिक विवरण अछि ताहिमे एकटा उग्र लिपिक विवरण सेहो अछि। ओहि ६४ मे एकटा पूर्व विदेहक लिपिक वर्णन सेहो भेटइत अछि। उग्रकेँ मिश्रित जाति सेहो कहल गेल अछि।
जैन साहित्यमे उग्र जकाँ भोगकेँ सेहो क्षत्रिय कहल गेल छैक। इ लोकनि प्रथम जैन तीर्थकंर ऋषभक वंशज छलाह महापरिनिव्वानसुत्तसँ ज्ञात अछि जे वैशालीसँ पावा जेवाक रास्तामे भोगनगर, जम्बुगाम, अम्बगाम, हत्थिगाम, भण्डगाम आदि भेटइत छल आ एहि सबसँ भोग लोकनिक घनिष्ठ सम्पर्क छलन्हि।
सूत्रकृतांगमे इक्ष्वाकु लोकनिक विवरण अछि आ इहो लोकनि वज्जी क्षेत्र रहैत छलाह। संभवतः इ लोकनि सुमतिक वंशज होथि। चूँकि विदेह लोकनि इक्ष्वाकुक पुत्र निमिक वंशज छलाह तैं इहो संभव अछि जे इहो लोकनि अपनाकेँ इक्ष्वाकु कहैत होथि। इहो संभव जे अयोध्याक इक्ष्वाकु एम्हर आबिकेँ बसि गेल होथि।
वज्जी संघमे कौरव लोकनिक उपस्थिति एकटा समस्याक प्रश्न बनि गेल अछि। एहि सम्बन्धमे निम्नलिखित तथ्यकेँ स्मरण राखब आवश्यक। महाभारतक अनुसार पाण्डु मिथिला जाकए विदेहकेँ पराजित कएने छलाह। भीम गण्डक लोकनिकेँ पराजित केला उत्तर वैदेहक जनककेँ पराजित केलन्हि। ओ विदेहपर आधिपत्य स्थापित कए ओहिठाम अपन खुट्टा गारि अपन साम्राज्यवादी अभियानकेँ आगाँ बढ़ौलन्हि आ कौशिकी कच्छक राजाकेँ पराजित केलन्हि। इ क्षेत्र सम्प्रति विहपुर–पूर्णियाँ क्षेत्रक संकेत दैत अछि। कौशिकी क्षेत्र आ एहिसँ पूर्वक क्षेत्रपर एकटा कौरव राजकुमारकेँ लादि देल गेल। एम्हर विदेहमे जे कौरव बचि गेलाह से एहिठामक वासी बनिकेँ रहि गेला। हस्तिनापुरक अंत भेलापर सेहो कौरव लोकनि एहि क्षेत्रमे आबिकेँ बसलाह। राजा जनक दरबारमे तँ प्रारंभहिसँ कुरू पाँचालक ब्राह्मण लोकनिक अबरजात बनले छल।
वज्जी गणराज्यक अंतर्गत बहुत तरहकेँ लोग रहल होएत एहिमे संदेह नहि। त्रिकाण्डशेषमे लिच्छवी, वैदेह आ तैरभुक्तकेँ पर्यायवाची शब्द मानल गेल छैक आ वज्जी संघक अगुआ इएह सब छलाह। कुछ विद्वानक कथन अछि जे कराल जनकक मृत्युक पश्चातो विदेहमे राजतंत्र बनल रहल आ महापद्म नंद जखन मिथिलाकेँ जीतलैन्ह तकर बादे मिथिलामे गणराज्य भेल मुदा हमरा इ बात मान्य नहि बुझि पड़इयै कारण कराल जनकक मृत्यु भेला उपरांत मिथिलामे विद्रोहक आगि भभकि उठल आ ओतए राजतंत्रकेँ समाप्त कऽ कए गणतंत्रक स्थापना कैल गेल। बुद्धक समयमे विदेह एकटा गणतांत्रिक राज्य छल। अजातशत्रुक वैशाली आक्रमणक पछाति एहि क्षेत्रक सूर्यास्तक संकेत भेटए लागल। पतंजलि एहि बातक साक्षी छथि जे विदेहमे गणराज्य छल। एहिमे आठ कुलक संघ छल। मल्ल, विदेह, उग्र, भोग, इक्ष्वाकु, ज्ञात्रि, कौरव एवँ लिच्छवीकेँ मिलाकेँ एकटा शासन छल–जकरा हमरा लोकनि लिच्छवी, विदेह अथवा वज्जीसंघक नामसँ जनैत छी।
vi.) बौद्ध साधन आ मिथिलाक इतिहास:- अंगुत्तर निकायमे वज्जी संघक विवरण अछि मुदा विदेहक नाम नहि अछि। इहो संभव जे वज्जी संघक सदस्य रहलाक कारणे एहिमे एकर नाम नहि देल गेल हो। दीपवंशमे वर्णित परंपराक अनुसार कराल जनकक पुत्र छलाह समङ्कर आ हुनका बाद राजा भेलाह अशोक। ओहि परंपरामे इहो कथा अछि जे चम्पानगरक राजा नागदेवक वंशज कैक पुस्त धरि मिथिलापर शासन केलन्हि। एहिमे सबसँ अंतिम राजा भेलाह बुद्धदत्त। दीपवंशक कथासँ इ सिद्ध होइत अछि जे कराल जनकक बादो मिथिलामे राजा द्वारा शासन होइत रहल आ मिथिला नगरमे २५ टा राजा तकर बादो शासन केलन्हि जाहिमे बुद्धदत्त अंतिम छलाह। तकर बाद राज्य मगधक अंतर्गत चल गेल। एकर अतिरिक्त मिथिलामे अंगति, सुमित्र आ विरूधक नाम सेहो भेटइत अछि। अंगतिक शिक्षक छलाह गुणकस्सप/गुणकस्सपक विचार पुराणकस्सप आ मखलि गोसाल्लक विचारसँ मिलैत–जुलैत अछि आ इ सब बुद्धक समकालीन छलाह। राजा सुमित्रक सम्बन्धमे ललितबिस्तरमे वर्णन भेटइत अछि। ललितविस्तरमे मिथिलाक सौन्दर्यक वर्णन अछि–आ ओहिमे इहो कहल गेल अछि जे सुमित्रकेँ हाथी, घोडा, रथ आ पैदल सेनाक कोनो अभाव नहि छलन्हि। सबतरहे सुखी सम्पन्न रहैतहुँ राजा बड्ड बूढ़ छलाह आ शासन क्षमता हुनक घटि चुकल छलन्हि। विदेहक तुलनामे ललितविस्तरमे वैशालीक गणराज्यक विशेष प्रशंसा अछि। इहो सूचना भेटइत अछि जे राजा विरूधक मंत्री सकलकेँ विदेह छोड़िकेँ वैशाली भागे पड़ल छलिन्ह कारण विदेह राज दरबारमे तरह–तरहकेँ षडयंत्र चलि रहल छल। आन मंत्री सब हिनकासँ इर्ष्या करैत छलाह। सकल वैशालीमे आबिकेँ प्रख्यात भेलाह आ एहिठाम नायकक पदपर निर्वाचित भऽ गेलाह। गिलगिट मैन्युसक्रिप्टमे सेहो मिथिलाक कोनो एक अनामा राजाक प्रधानमंत्री खण्डक उल्लेख भेटइत अछि। खण्ड ५०० अमात्यक प्रधान छलाह। हुनक जनप्रियतासँ आन–आन मंत्री घबड़ा उठलाह आ हुनका समाप्त करबाक प्रयास करे लगलाह। ओ लोकनि राजाकेँ इ कहिकेँ भरकावे लगलाह जे ‘खण्ड’ अपनाकेँ राजा बुझि रहल छथि आ तदनुसार काज कऽ रहल छथि। खण्ड एहि सबसँ तंग आबि वैशाली (जे कि गणराज्य छल) चल गेलाह जाहिठाम लिच्छवी लोकनि हुनक स्वागत केलथिन्ह।
एहि सबसँ स्पष्ट होइत अछि जे वैशाली विदेहसँ पूर्वहि गणराज्य भऽ चुकल होएत।
vii.) वज्जी गणराज्यक राजनैतिक सम्बन्ध:- इ. पू. छठी शताब्दीक १६ महाजनपदमे वज्जीक विवरणकेँ सम्मिलित करब एहि बातक द्योतक थिक जे ताहि काल तक एकर राजनैतिक प्रतिष्ठा स्थापित भऽ चुकल छल। अंगुत्तर निकायमे सेहो एकर विवरण अछि। वज्जीसंघक स्थापना ताहि दिनमे भेल छल जखन ने तँ काशीपर कोशलक अधिकार भेल छल आ ने अंगपर मगधक। वज्जीसंघ आ बिम्बिसारक राज्यक सीमा मिलैत–जुलैत छल। दुनूक बीच युद्ध भेल छल तकरो उल्लेख यदा कदा भेटइत अछि। दुनूक बीच युद्धक कारण कि छल से कहब असंभव अछि। संभव अछि जे मगध जखन अंगपर आक्रमण केलक तखन मगधक नजरि अंगक उत्तरी भाग अंगुतरापपर सेहो छलैक। अंगुतरापक सीमा वज्जीसंघक सीमासँ मिलैत–जुलैत छलैक आ तै वज्जीसंघकेँ सतर्क रहब आवश्यक छलैक। एहि अंगुतराप प्रश्न लऽ कए दुनूक बीच मतभेदक संभावना भऽ सकैत छैक। अंगुतराप एक महत्वपूर्ण जनपद छल आ बौद्ध धर्मक केन्द्र सेहो। एहिठाम बुद्ध कैक बेर गेल छलाह आ आपण ग्राममे एकाध मास रहलो छलाह। अंग जीतलाक बाद बिम्बिसार अंगुतरापपर अपन आधिपत्य स्थापित करए चाहैत हेताह जकर विरोध करब वैशालीक हेतु स्वाभाविक छल। एहि क्रममे जे संघर्ष भेल होएत ताहिमे संभवतः लिच्छवी लोकनि अंगुतराप क्षेत्रपर अधिकार कऽ लेने हेताह जे बिम्बिसार मानबा लेल तैयार नहि भेल हेताह आ एहि कारणे दुनूमे युद्ध भेल हेतन्हि। झगड़ाक एकटा आओर कारण अम्बपाली सेहो छल। बिम्बिसार चुपेचाप वैशालीमे आबिकेँ एकाध सप्ताह रहल छलाह आ अम्बपालीसँ बिम्बिसारकेँ एकटा पुत्रो छलन्हि जकर नाम छल अभय। संघर्षक चाहे जे कारण अथवा स्वरूप रहल हो परञ्च अंतमे जा कए वैशालीक संग बिम्बिसार वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित केलन्हि आ एकर फलस्वरूप दुनू राज्यक बीच युद्धक अंत भेल। तखनसँ मगधक संग वैशालीक सम्बन्ध अजातशत्रुक आक्रमणक समय धरि ठीके रहल।
मल्ल आ लिच्छवीक बीचक सम्बन्ध सेहो बढ़िया छल। दुनूक ओतए गणराज्यक व्यवस्था छल आ दुनूकेँ जैन आ बौद्ध धर्मक प्रति आस्था छलन्हि। मनु दुनूक वर्णन व्रात्य कहिकेँ केने छथि। अजातशत्रुक आक्रमणक समयमे दुनू सम्मिलित रूपें हिनक विरोध कएने छलाह। महावीरक मृत्युक अवसरपर सेहो ओ लोकनि सम्मिलित रुपें काज कएने छलाह। कोशल राजाक सेनापति बन्धुल मल्ल रहथिन। कोशल राज्यक संग सेहो लिच्छवी लोकनिक सम्बन्ध बढ़िये छलन्हि। लिच्छवी महाली आ राजकुमार प्रसेनजित तक्षशिलामे संगे पढ़ैत छलाह। दुनूमे खूब दोस्ती छलन्हि। वत्सक संग सेहो वैशालीक वैवाहिक सम्बन्ध छल। वत्सराज सतानिकक विवाह चेतकक पुत्री मृगावतीसँ भेल छल। उद्यन ओहि दुआरे वैदेही पुत्र कहबैत छथि।