भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, July 17, 2008

पुनः स्मृति

पुनः स्मृति

बितल बर्ख बितल युग,
बितल सहस्राब्दि आब,
मोन पाड़ि थाकल की,
होयत स्मृतिक शाप।

वैह पुनः पुनः घटित,
हारि हमर विजय ओकर,
नहि लेलहुँ पाठ कोनो,
स्मृतिसँ पुनः पुनः।

सभक योग यावत नहि,
होएत गए सम्मिलन,
हारि हमर विजए ओकर,
होएत कखनहु नहि बन्द।

मोनक जड़िमे

मोनक जड़िमे
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल।

पर्वत शिखर सोझाँ अबैत हियाऊ गमाबथि,
बल घटल जेकर पार दुःखक सागर करैत।
करबाक सिद्धि सोझाँ छथि जे क्यो विकल,
भोथलाइत प्यासल अरण्यपथ मे हँ बेकल।

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल,
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल।

हाथ दए तीर आनि दए करोँट तखन तत,
मनसिक अन्हारक मध्य विचरणहि सतत।
प्रकाशक ओतए कए उत्पत्ति ठामहि तखन,
विपत्तिक पड़ल क्यो आब नञि होएत अबल।

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल,
पंक्त्तिबद्ध कए पुनः किञ्च जानि किए सेजल।

करबाक अछि लोक कल्याणक मन वचन कर्महि ,
नञि अछि अपन अभिमान छोड़ब अधः पथ ई।
घुरत अभिमान देशक तखन अभिमानी हमहुँ छी,
नञि तँ फुसियेक अभिमान लए करब पुनः की।
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रमक ई,
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च जानि कए सेजल छी।

अखण्ड भारत

अखण्ड भारत
धीर वीर छी मातु बेर की,
अबेर होइत सङ्कल्पक क्षण ई,
बुद्धि वर्चसि पर्जन्य बरिसथि,
सभा बिच वाक् निकसथि,
औषधीक बूटी पाकए यथेष्ठा,
अलभ्य लभ्यक योग रक्षा।
आगाँ निश्चयेण कार्यक क्रमक,
पराभव होए सभ शत्रु सभक,
वृद्धि बुद्धिक होऽ नाश शत्रुत्वक,
मित्रक उदय होऽ भरि जगत।
नगर चालन करथि स्त्रीगण,
कृषि सुफल होए करू प्रयत्न।
वृक्ष-जन्तुक संग बढि आब,
ठाढ होऊ नहि भारत भेल साँझ,
दोमू वर्चसिक गाछ झहराऊ पाकल फलानि,
नञि सोचबाक अनुकरणक अछि बेर प्राणी।
वर्चस्व अखण्ड भरतक मनसिक जगतमे,
पूर्ण होएत मनोरथ सभक क्यो छुटत नञि।

सपना

सपना

सपना,
सपना सुन्दर सुन्दर?

नञि, नञि छल ओतेक सुन्दर,
बच्चामे ई खूब डरओलक तोड़ैत,
आँखिसँ छिनैत सुतबाक उत्सुकता ,
जखन मोन उखड़ैत छल घबड़ाइत।

देश कालक सीमा बन्हलहुँ,
पुरखाक भ्रमकेँ अपनओने,
मुदा प्रथम बीजी-पुरुषक छद्म,
नहि छल जाइत मोनक भ्रम।

बचहनक मोनक-छाती धक-धक,
करैत छल खोज जगक जन्मक,
नहि पओने कोनो प्रश्नोत्तर,
छोड़ैत ईश्वर पर ई शाश्वत।

मुदा ईश्वरक मोन आ’ शाश्वत स्वरूपक,
नहि सोझ भेल ससरफानी पड़ल गिरह,
छाती-मोनक करैछ, बढ़ल जे धकधकी,
सपना सेहो नञि, जौँ अबैछ निन्न बेशी।

संसारकेँ सहबाक ईहो अछि प्रहेलिका,
बिनु समस्या समाधानक करैत छी,
हँसैत बिहुँसैत बनबैत सर्वोपरि भाग्यराजकेँ,
करैत छी सभटा अपने, आ’ ई छी कहैत,
कहैत जे हम छी भाग्यराजक कठपुतली।
ईश्वरक ई लीला? अछि मोनक छातीक संग,
भौतिक छातीकेँ सेहो, जे धकधकी ई बढ़बैत।

सपना सुन्दर आकि डरओन नहि कोनो,
अछि आब अबैत।

के छथि

के छथि
के छथि जिनकर हस्त-रेखमे,
अछि परिश्रमसँ बढ़ब लिखल।
के छथि जिनका ललाट मध्य,
परिश्रमक गाथा रहैछ सकल।
जे छथि सुस्त तकरे चमकैत,
अछि हाथक रेखा बुझूँ सखा,
जिनका घाम नहि खसन्हि,
छन्हि ललाट चमकैत,
नहि बेजाय।।

होली

होली
धुरखेलक कादो-माटिसँ रहथि अकच्छ,
रंग अबीर भने आयल मुदा लगैछ टका,
साफ-सुथड़ा बुझैत छलहुँ एकरा मुदा,
निबंध निकलैत अछि रंगक केमिकलक,
विषय अछि पुरनके छल ठीक यौ कका।

दारू पिनहार सोमरसक चर्चा करैत नहि अघाइत छथि,
देवतो पिबैत रहथि ओकरा पुरनका नामसँ,
अछि होली,
मित्रता बढ़ेबासँ बेशी घटा रहल अछि आइ काल्हि ई।

मोन पाड़ैत

मोन पाड़ैत
मोन अछि नहि पड़ि रहल,
पाड़ि रहल छी मोन।
लिखना कड़ची कलमसँ लिखैत,
फेर फाउन्टेन पेनक निबमे बान्हि ताग,
छलहुँ लिखाइकेँ मोटबैत,
मास्टर साहब भ’ जाइथ कनफ्यूज।
केलहुँ अपने अपकार ठाढ़े-ठाढ़,
अक्षर अखनो हमर नहि सुगढ़।
फेर मोन पाड़ैत छी,
दिनमे बौआइत रही,
कलममे बाँझी तकैत,
दोसर ठाढ़ि तोड़ने पड़ैत छल,
बुरबक होयबाक संज्ञा,
ईहो छी नहि बुझैत,
मोजर होइत तँ खैतहुँ आम,
अगिला साल।
बाँझीमे नहि कोनो आस,
घूरमे होइछ मात्र काज।
फेर छे पाड़ैत,
अंडीक बीया बीछब,
पेराइ कटबाय अनैत छलहुँ तेल,
ओहिमे छनल तिलकोड़क स्वाद,
राजधानीक शेफकेँ करैछ मात।
तेलक कमीसँ भभकैत कबइक स्वाद,
’की नीक बनल’ केर मिथ्यावाद।
महिनामे आध किलो करू तेलक खर्च,
भ’ जायत एक किलो,
पाइक माश्चर्ज।
कंजूसी नहि,
जबरदस्ती ठूसी।
मोन पाड़ैत छी धानक खेत,
झिल्ली कचौड़ी,
लोढ़ैत काटल धानक झट्ठा,
ओहि बीछल शीसक पाइसँ कीनल लालछड़ी।
‘जकरे नाम लाल छड़ी’ आ’ सतघरियाक खेल,
आमक जाबी,
बंशीसँ मारैत माछ,
खुरचनसँ सोहैत आम काँच।
चूनक संग काँच आमक मीठ स्वाद,
बडका दलान,
दाउन,
बाढ़िक पानि सँ डूबल शीस होइत खखड़ी,
धानमे मिला देला पर पकड़ैत छल कुञ्जड़नी।
भैरव स्थानक काँच बैरक स्वाद,
बिदेसरक रवि दिनक बूझल,
फूल_लोटकीसँ बिदेसर पूजल।
चूड़ा लय जाइत रही गामसँ,
दही-जिलेबी कीनि घुरैत भोजन कय।
जमबोनीक बनसुपारीक स्वाद,
पुरनाहाक धातरीमक गाछ।
साहर दातमनिक सोझ नीक छड़,
जे अनैछ छी बुधियारी तकड़।
तित्ती खेलाइत बाल,
गुल्ली डंटा, गोलीक खेल,
अखराहाक झमेल।
हुक्का लोलीक बाँसक कनसुपती,
फेर कपड़ाक गेनी मटियातेलमे डुबाय,
छलहुँ रहल जराय।
छठिक भोरमे फटक्का फोड़ल,
जूड़िशीतलक धुरखेल खेलेल।
आयल बाढ़ि दुर्भिक्ष,
छोड़ल गाम यौ मित्र।
मोन नहि पड़ैछ,छी पाड़ैत,
बैसि बैसि बैसि।

काल्हि

काल्हि
भोरे उठि ऑफिस जाइत छी,
आ’ साँझ घुरि खाय सुतैत छी।
कतेक रास काज अछि छुटैत,
अनठाबैत असकाइत मोन मसोसैत।
जखन जाइत छी छुट्टीमे गाम,
आत्ममंथनक भेटैत अछि विराम।
पबैत छी ढ़ेर रास उपराग,
तखन बनबैत छी एकटा प्रोग्राम।
कागजक पन्ना पर नव राग,
विलम्बक बादक हृदयक संग्राम।
चलैत छल बिना तारतम्यक,
बिना उद्देश्यक-विधेयक।
कनेक सोचि लेल,
छुट्टीमे जाय गाम।
विलम्बक अछि नहि कोनो स्थान,
फुर्तिगर, साकांक्ष भेलहुँ आइ,
जे सोचल कएल, नित चलल,
जीवनक सुर भेटल आब जाय।

चोरकेँ सिखाबह

चोरकेँ सिखाबह
यौ काका छी अहाँ खाटकेँ,
धोकड़ी किएक बनओने,
खोलि नेवाड़ फेर घोरिकेँ,
बनाऊ खाट फेर नवीने।
कहलन्हि काका तखन जे हौ,
देखह आयत रातिमे जे चोर,
पटकत लाठी खाट पर
आ’ चोट नहि लागत मोर।
परञ्च काका जौँ ओ’ चलबय,
लाठी नीचाँ बाटे,
वाह बेटा कहि दिहह चोरकेँ,
ई गप तोहीँ जा कय।

चोरि

चोरि
गेलहुँ गाम आ’ एम्हर,
आयल फोन,
समाचार चोरिक।
छुट्टी होयबला छल समाप्त,
मुदा चोरक गणना छल ठीक।
आबयसँ एक्के दिन पहिने,
लगेलन्हि घात।
तोड़ि कय केबाड़,
उधेसल घर-बार।
नहि पाबि कोनोटा चीज,
घुरल माथ पीटि।
भोरमे पड़ोसी कएलन्हि डायल सय,
पुलिस आयल हारि थाकि कय।
पड़ोसीसँ किनबाय दू टा अतिरिक्त ताल, (पुलिस महराज अपन घरक हेतु),
चाभी लेलन्हि अपन काबिजमे।
चोर हड़बड़ीमे छल चलि गेल,
मुदा एहि महाशयक हाथ चाभी गेल,
आ’ शो-केशक चानीक नर्त्तकी गुम भेल।
चोरकेँ छल डर गेटक दरबानक,
से छलाह ओ’ गहनाक आ’ नकदीक ताकक।
मुदा पुलिस महाराज दय राब दौब दरबानहुँकेँ,
निकललाह चोरि कय बरजोड़ीसँ।

तक्षशिला

तक्षशिला
तक्षशिला अछि पाकिस्तानमे,
इतिहासक उनटबैत पन्ना,
चक्र घूमल टूटल हमर देश,
अराड़ि ठाढ़ कएलक दियाद।
मुदा सोचैत छी।
जे भने दियाद अछि समीप,
आ’ कएने अछि अराड़ि,
ताहि बहन्ने छी हम सजग,
करैत रहैत छी तैयारी।
1962 धरि हिमालयकेँ बुझल बेढ़,
जेना 1498 धरि छल समुद्र,
द्वार खोलैत छल खैबर दर्रा।
प्ड़ोसीयो पर आक्रमण होइत छल,
दूर-दूरसँ अबैत छल अत्याचारी,
भने दियाद अछि कएने अराड़ि,
जे करैत रहैत छी तैयारी।

बिसरलहुँ फेर

बिसरलहुँ फेर
खूब ठेकनेने जाइत,
जे नहि बिसरब आइ,
मुदा गप्प पर गप्प चलल,
कृत्रिमता गेल ढ़हाइत।
फेर काजक बेर मोन,
नहि पड़ल पड़ैत-पड़ैत मोन,
कर्णक मृत्युक छोट- छीन रूप,
आ’ तकरा बाद मसोसि कय
रहि जाइत छी गुम्म।

वेदपाठी

वेदपाठी
वेद वाक्य परम सत्य,
संस्कृत साहित्य अति उत्तम।
करैत छी अहाँ वक्त्तव्य,
मुदा अहाँ की अहाँक पुरखा,
मरि गेलाह बिन सुनने,
वेद वाक्य,
बिन पढ़ने संस्कृत।
यौ अहाँ नहि पढ़लहुँ अहाँ,
अनका अनधिकार बनेबाक चेष्टा,
कएलहुँ अहाँ।
छी वेदक अप्रेमी,
नहि अछि क्षमता,
वेदक पक्ष की विपक्षमे बजबाक ।
वेद वाक्य सत्य एकरा बनेने छी,
अहाँ फकड़ा।

प्रवासी

प्रवासी
संगहि काटल घास,
महीस संगे चड़ेलहुँ,
पुछैत छी गहूम ई,
पाकत कहिया?
दू दिन दिल्ली गेलहुँ,
सभटा बिसरेलहुँ,
ईहो बिसरि गेलहुँ,
जे धान कटाइछ कहिया।

चित्रपतङ्ग

चित्रपतङ्ग
उड़ैत ई गुड्डी,
हमर मत्त्वाकांक्षा जेकाँ,
लागल मंझा बूकल शीसाक,
जेना प्रतियोगीक कागज-कलम।
कटल चित्रपतङ्ग,
देखबैत अछि वास्तविकताक धरा।
जतयसँ शुरू ओतहि खत्म,
मुदा बीच उड़ानक स्मृति,
उठैत काल स्वर्गक आ’,
खसैत काल नरकक अनुभूति।

रिक्त

रिक्त
पाँचम वर्गसँ सातम वर्गमे,
तड़पि गेल छलहुँ हम।
छट्ठा वर्गक अनुभव अछि रिक्त।
बा’ आ’ बाबा जन्मक पहिनहि,
प्राप्त कएलन्हि मृत्यु,
वात्स्ल्यक अनुभव भेल रिक्त।
माँ एके बहिनि छलि तेँ,
मौसी-मौसाक अनुभवो नहि,
ईहो रहल रिक्त।
क्यो कहैत अछि जे छठामे पढ़ैत छी,
बा’ आ’ बाबाक संग घुमैत छी,
मौसी-मौसाक काज उद्यममे जाइत छी,
तँ हम कहैत छी,
जे ई कोन संबंध,
कोन वर्ग अछि,
छोड़ि सकैत छी।
उत्तर भेटैछ,
अहाँ नहि बुझब।
मुदा नव संबंध,
नब नगर,
नव भाषा,
नवीन पीढ़ीकेँ,
कोना बुझायब, ओ’ कोना बुझत।
ओ’ तँ नहि बूझि सकत काका-काकी,
नहि बूझत दीया-बाती,
खटैत दौड़ैत आ’ नहि घुरि आओत,
ककरा बुझायब आ’ के बूझत।

बुद्ध

बुद्ध
हृदय लग अछि जेबी,
से जखन रहय खाली,
मोन कोना रहत प्रसन्न।
बुद्ध सेहो कहि गेल छलाह ई।
मुम्बइमे सूप मँगलहुँ,
पुछलक अहाँमे जैनी कैकटा छी।
देत लहसुन की नहि रहय तात्पर्य,
आपद्काले रहि गेल अछि आइ काल्हि सदिखन।
सेल टैक्समे करैत छी भरि दिन काज,
तैँ प्रोननशियेशन भेल अछि मराठी,
एक्साइज तँ अछि केन्द्रीय सरकार,
संपर्क बाहरीसँ बेशी।
छत्तीसगढ़क छत्तीस घंटाक यात्रा,
उत्तर-मध्य क्षेत्रक स्तूपकेँ देखल,
बंगाल घूमल पंजाब घूमल,
बंगाली कहलन्हि सुनि जे जौँ,
बंगाली जायत संग करत कानूनी बात\
सरदारजी कहलन्हि रोड पर,
रेड लाइट रहलो क्रॉस करू,
सोझाँसँ अबैत छल एकटा सरदार,
कहल करत आब ई झगड़ा।
सक्सेना कहलक एक मैथिलकेँ,
मैथिल अछि मैथिलक परम शत्रु।
हम कहल सक्सेनाकेँ,हे
जुनि करू हुनका दूरि।
काज सभटा झट कराऊ जुनि भड़काऊ।
बुद्धक भूमिसँ घुरि आयल छथि,
दिल्लीक सड़क पर एहि बेर।
पाटलिपुत्र रहय राजधानी,
हम छलहुँ ततय पुन फेर,
दिल्ली बनल राजधानी भारतक,
कोन जुलुम हम कएल।
कणाद कपिल गौतम जेमिनी देतथि
जौँ नहि काज,
कहलन्हि ई ठीके हृदय लग,
जेबी देने अछि सीबि।
हृदय कोना प्रसन्न रहत जखन,
पेट रहत गय खाली।
जेबीमे पाइ नहि रहत,
उपासे करब हम भाइ।
बुद्ध सेहो कहि गेलाह ई।

नव-घरारी

नव-घरारी

साँप काटल नन्दिनीकेँ,
नव घरारी लेलक खून।
टोलक घरारी छोड़ू जुनि।
ई विशाल जनसंख्या एतय,
छल बनल एकटा काल,
ई नव-घरारी लेलक प्राण,
टोलक घरारी साबिकक डीह,
परञ्च अछि छोट आब की।
खून लेलक आब ई बनि गेल अख्खज,
नव घरारी होयत छोट किछु काल अन्तर।

भ्रातृद्वितीया

. भ्रातृद्वितीया
कय ठाँऊ बैसलि,
आसमे छलि,
भाय आयत,
बीतल,
साँझ आयल।
आँखि नोर छल सुखायल,
चण्डाल कनियाँक गप पर,
सालमे एक बेर छल अबैत,
सेहो क्रम ई टूटल।
कय ठाँऊ बैसलि,
धोखरि अरिपन विसर्जित,
छल साँझ आयल।

चोरुक्का विवाह

चोरुक्का विवाह
सिखायब हिस्सक छूटत,
नहीं आनब कनियाँकेँ,
भायक माथ टूटत।
भेल धमगिज्जर सालक साल बीतत,
युवक-युवती दुनू भेल चोर विवाहक कैदी,
नहीं छल कोनो हाथ परंच,
छल सजा पबैत।
भागल घरसँ युवक आब पछतायल घरबारी,
मुदा की होयत आब,
ओ’ समाजक व्यभिचारी।
एलेक्शनक झगड़ामे भाय-भायकेँ मारल,
चोरुक्का विवाहक घटनामे ओकरा दोहरायल।

थल-थल

थल-थल
कतबो दिन बीतल,
गद्दा जेकाँ थलथल,
पट्टी टोलक ओ’ रस्ता,
भेल आइ निपत्ता।
मटि खसा कय लगा खरंजा,
पजेबाक दय पंक्ति,
नव-बच्चा सभ कोना झूलत,
ओहि गद्दा पर आबि।
थल-थल करैत ओ’ रस्ता,
लोकक शोकक कहाँ भेल बंद,
माँ सीते की अहाँ बिलेलहुँ,
ओहि दरारिमे अंत।

पाँच पाइक लालछड़ी

पाँच पाइक लालछड़ी
परिवार छल चला रहल,
बेचि भरि दिन, पाँच पाइक लालछड़ी,
दस पाइमे कनेक मोट लपेटन।
देखैत नहाइ साँझमे,
ठेला चला कय आयल,
बेटाकेँ पढ़ायल,
आइ.आइ.टी.मे पढ़ि,
निकलल कएलक विवाह,
जजक छलि ओ’ बेटी।
पिता कोन कष्टसँ पढाओल,
गेल बिसरि,
पिताक स्मृतिसँ दूर।
नशा-मदिरामे लीन,
कनियाँ परेशान,
लगेलन्हि आगि, झड़कलि,
ओकरा बचेबामे ओहो गेला झड़कि।
कनियाँतँ गुजिरि गेलीह ठामे,
मुदा ओ’ तीन मास धरि,
कष्ट काटि पश्चात्ताप कए,
मुइलाह बेचारे ।

राजा श्री अनुरन्वज सिंह

राजा श्री अनुरन्वज सिंह
एक सुरमे बाजि देखाऊ,
नहि अरुनन्वन,
नहि सिंह,
पूरा एकहि बेर बताऊ,
राजा श्री अनुरन्वज सिंह।

पिण्डश्याम

पिण्डश्याम
दहेज विरोधी प्रोफेसर,
केर सुनू ई बात,
पुत्री विवाहमे कएल,
एकर ढेर प्रचार।
पुत्रक विवाहमे बदलि सिद्धांत,
वधू रहय श्याम मुदा,
मारुति भेटय श्वेत,
सिद्धांतक मूलमे,
छोड़ू विवेक।

बाजा अहाँ बजाऊ

बाजा अहाँ बजाऊ
मेहनति अहाँ करू,
फल हमरा दिय।
चित्र अहाँ बनाऊ,
आवरण सजाऊ,
हमर किताबक।
नृत्य हम करू,
बाजा अहाँ बजाऊ।
कृति हमर रहत,
मेहनति करब अहाँ,
आइसँ नहि ई बात,
अछि जहियासँ शाहजहाँ।

मुँह चोकटल नाम हँसमुख भाइ

मुँह चोकटल नाम हँसमुख भाइ

मुँह चोकटल नाम छन्हि हँसमुख भाइ,
बहुत दिनसँ छी आयल करू कोनो उपाय,
मारि तरहक डॉक्युमेंट देलन्हि देखाय,
पुनः-प्रात भ’ जायत देल नीक जेकाँ बुझाय,
शॉर्ट-कट रस्ता सुझाय देलन्हि मुस्काय,
मुँह चोकटल नाम हँसमुख भाय।

रबड़ खाऊ

रबड़ खाऊ

रबड़ खाऊ आ’ वमन करू चट्टी,
अपचनीय तथ्य सभ देखल भ्रात,
बड़ छल बुधियार,केलक घटकैती,
शुरू जखन भेल सिद्धांत, विवाद,
विवाहठीक भेलाक बादक दोसर सिद्धांत,
लड़का विवाह कालमे बिसरलाह भाषण,
नव सिद्धांतक सृजन कय केलन्हि सम्मार्जन।

अतिचार

अतिचार
तीन साल छल अतिचार,
नहि होयत एहि कारण।
पंडितबे सभ बुझथुन्ह,
छन्हि पत्रा सभ बिकाइत,
पकड़त सभ बनारसी पत्राकेँ,
सेहो नहि बिकायत ,
समय अभावेँ होयत ई,
जौँ अतिशय भ’ जायत।

खगता

खगता
गोर लागि मौसीकेँ निकलैत,
पूछथि अछि किछु खगता,
आइ नहि पूछल जखन,
बैसल फेर ओ’ तखन।
फेर उठल फेर नहि पुछलन्हि,
सोचि जे रहैत नहि छन्हि काज।
जाइ कोना पाइक बड्ड अभाव।
लोक कहैछ,
आयल छथि खगते,
ओना दर्शनहुँ दुर्लभ,
अहीँ कहू,
खगतामे अछि पुछैत क्यो आगूसँ।

शव नहि उठत

शव नहि उठत

गामक कनियाँ मूइलि शव अँगनामे राखल,
सभ युवा कएने अछि नगर दिशि पलायन,
जे क्यो रहथि से घुमैत रहथि ब्लॉक दिशि,
साँझमे अयलाह देखल कहल गेलथि मुइल।
गामपर क्यो नहि उठेलक शवकेँ किएक,
हम कोना छुबितहुँ भाबहु ओ’ होयतीह ।
मुइल पर भाबहु की भैसुर केलहुँ अतत्तह,
समय बदलल नहि बदलल ई गाम हमर।

इटालियन सैलून

इटालियन सैलून
घर भेल समस्तीपुर,
दिल्लीमे छी आयल,
खोलि सैलून इटालियन,
अयलहुँ कमायले’।
पुलिसक रोक देखि कय गेलहुँ गाम घुरि,
पुनः छी आयल, सैलून कतय बानाओल?
ईटा पर जे छी अहाँ बैसल,
सैह कहबैछ, इटालियन,
रोक अहू पर अछि पुलिसक,
सेहो अखनो धरि नहि बूझल यौ अहाँ।

दीया-बाती

दीया-बाती

आयल दीया बाती,
कतेक अमावस्या अछि बीतल,
जकर अन्हारमे लागल चोट,
कतेक जीव थकुचायल पैरहि,
अन्हारक छल थाती।
दीया बाती अनलक प्रकाश,
ज्ञान-ज्योतिक अकाश,
नमन करय छी हम एहि बातक,
अंधकार-तिमिर केर होबय नाश।

अल्हुआ

अल्हुआ
खाइत भेलहुँ हम अकच्छ तखन,
ई अकाल छल भेल भारि।
वेदपाठक सुनि कय आग्रह,
अएलहुँ हरिद्वार भुखालि।
भरि दिन मंत्र भाखि सोचल,
खीर पूड़ी सभ खायब।
मुदा ओतुक्का पंडित सभ,
खा’ ई सभ छल अघायल।
कएलक मेनू परिवर्त्तन कहलक,
आइ अल्हुआ अहि लायब।
बूझल नहि छल हमरा ई,
हाथ धोने छलहुँ बैसल।
आयल अल्हुआ देखि कर जोड़ि,
विनती कए हम पूछल (अल्हुआसँ),
हमतँ छी ट्रेनसँ आयल,
अहाँ कथीसँ अयलहुँ।
हमरासँ पहिने अहाँ एतय,
कोन सवारी सँ पहुँचलहुँ।

एस.एम.एस.

एस.एम.एस.
कहू एहिमे अहाँ छी,
सहमत आ’ की छी अहाँ असहमत,
दुनू रूपमे दिय’ अहाँ,
अपन विचार कय एस. एम.एस.।
आहि कमाऊ अहाँ रुपैय्या,
हम बूरि छी भाइ,
न्यु टेक्नोलोजी छी ई सभ,
बूरि क्यो नहि आइ।

क्लासमे अबाज

क्लासमे अबाज
दुनू दिशक बेंचकेँ उठाकय पुछलन्हि,
आयल कोन कातसँ अबाज।
पकड़ल एक कातकेँ छोड़ल,
फेर कएल दू फारि।
आधक-आध करैत पहुँचलाह,
फेर जखन लग लक्ष्य,
दुइ गोट मध्य जानि नहि सकलाह,
अबाज केलक कोन वत्स।
रैगिंगमे सेहो अहिना कए,
सभकेँ कहल उठि जाऊ,
जखन क्यो नहि उठल कहल,
अहाँ अहाँ अहाँ एकाएकी उठैत जाउ।

नौकर

नौकर
फोन करि कय घरमे पूछल,
छथि फलना घरमे आकि,
आगू पुछितथि ओ’ ब्अजलाह,
दय कय एक धुतकारी।
एहि फोनक हम बिल भरैत छी,
नहि करू अहाँ पुनः बात,
मैसेज अहाँक देब हम पुत्रकेँ,
से छी के अहाँ लाट?
नौकर नहि अहाँक ने छी,
से हम अपन पुत्रक,
कनिया कहि टा छी हम नौकर,
बुझू ई यौ अफसर।

बूढ़ वर

बूढ़ वर
कतय छी आयल आइ,
ताकि रहल छी वर,
20-20 वरखक दूटा,
अछि कतहु अभड़ल।
रंग सिलेबी सिंघ मुठिया,
अद्ंत तकैत छी अहाँ,
से भेटत कहिया।
की चाही एकटा पैघ,
20-2- केर दू गोटक बदला,
40 केर जौँ एकटा,
लय ली तँ छी हम तैयारे,
काज खतम करू सभटा।

फैक्स

फैक्स
फैक्टरी पहुँचि कहल,
करू सर्च वारंट पर साइन,
मालिक कहल रुकू किछु काल धरि,
फोन करय छी आइ।
ट्रांसफरक ऑर्डर आयल,
रिलीविङगक संगहि,
अफसर निकलल ओतयसँ,
वारंट बिना एक्सीक्यूट केनहि।

गैस सिलिण्डरक चोरि

गैस सिलिण्डरक चोरि
गेलहुँ रपट लिखाबय,
भेल छल सिलिण्डरक चोरि।
मोंछ बला थानेदार बजलाह,
बूरि बुझैत छी हमरा सभकेँ,
डबल सिलिनडर चाही,
एफ. आइ. आर. सस्ता नहि,
अछि एतेक हे भाइ।
हम कहल डबल सिलेण्डर,
तँ अछिये हमरा,
अच्छा तँ
तेसर सिलेण्डर लेबाक अछि देरी।
तकल कतय चोरकेँ अहाँ,
अहाँक तकनाइ अछि जेना,
चैत अछि कोल्हूक बरद।
भरि दिन घुमैछ नहि बढ़ैछ,
एको डेग,अहँ नहि करू सैह,
प्रगतिक नाम पर एहि बेर।
स्कूटरक चोरिक बेर कहलक,
इंस्योरेंसक पाइ चाही,
कहू अहाँसँ कोर्टमे भ’ पायत,
देल अहाँसँ गबाही।
फेरी पड़ि जायत अहाँकेँ,
पुनः कोर्टमे जायब,
उलटा निर्णयो भ’ जायत,
बूझि फेर से आयब।
संग गेल ड्राइवर कहलक नोकरी,
छैक एकरे ठीक,
पाइयो अछि कमाइत करि,
रंगदारी,फेकैत पानक पीक।

जोंकही पोखरिमे भरि राति

जोंकही पोखरिमे भरि राति
सुनैत छलहुँ जे बड़बड़ियाबाबू साहेबक,
लगान देलामे जौँ होइत छल लेट।
भरि राति ठाढ़ कएल जोंकही पोखरिमे,
बीतल युग अयलाह फेर जखन हाथी पर,
लेबाक हेतु लगान-लहना जहिना,
गारि-गूरि दैत हाथी पर,
छूटल, टोलक-टोल,
मुँह दुसना,
जमीनदारी खतम भेलो पर सोचल,
किछु ली असूलि,
मुदा लोक सभ बुधियारी कएल,
नहि अएलाह ओ’ घूरि।

जूताक आविष्कार

जूताक आविष्कार
जखन गड़ल एक काँट,
राजा कहलक ओछाउ,
बना माटिक हमर ई,
राजधानी निष्कंटक बनाऊ।

जखन सभटा चर्म आनि कय,
नहि कए सकल ओछाओन,
एक चर्मकार आओल आ’,
राजाकेँ फरिछाय बुझाओल।
पैर बान्हि ली चर्मसँ आकि,
पृथ्वीकेँ झाँपी ओहिसँ,
निष्कंटक धरती नहियोतँ,
मार्ग निष्कंटक होयत।

रौह नहि नैन

रौह नहि नैन

हँ यौ नैन अछि ई,
मुदा शहरक लोक की बुझय,
सभ ताकैत अछि रौह,
नैन कहबय तँ क्यो नहि कीनय।
छागर खस्सी आ’ बकरीक,
अंतर जौँ जायब फरिछाबय,
बिकायत किछु नहि बिनु टाका,
एहि नगरमे किछु नहि आबय।

दरिद्र

दरिद्र
आठ सय बीघा खेत,
कतेक पोखरि चास-बास।
मुदा कालक गति बेचि बिकनि,
झंझारपुरसँ धोती कीनि,
घुरैत काल देखल माँच।
धोती घुरा कय आनल,
आ’ कीनल माँछ,पूछल,
हौ माछ ई काल्हि कतय भेटत,
धोतीतँ जखने पाइ होयत,
जायब कीनि लायब तुरत।
दरिद्रताक कारण हम आब बूझि गेल छी
, एक दिनुका गप नहि ,
सभ दिनुका चरित्र छी।

गंगा ब्रिज

गंगा ब्रिज
यादि अबैत अछि मजूर सभक मृत्यु,
चक्करि खाति खसैत नीचाँ पानिमे,
पचास टा मृत्युमे सँ दस टाक भेल रिपोर्ट,
चालीस गोटेक कमपेनसेसन गेल खाय,
नेता ठीकेदार आ’ अफसर।
एहि खुनीमा ब्रिजक हम इंजीनियर,
कहैत छी हमरा ईमानदार,
घूस कोना लेल होइत छैक ककरो,
देखैत गुनैत ई सभ यौ सरकार।

सादा आकि रंगीन

सादा आकि रंगीन
ब्लैक एण्ड ह्वाइटक गेल जमाना,
सादा कि रंगीन।
दरिभंगा काली मंदिर लगक,
लस्सी बलाक ई मेख-मीन।
जखन बूझि नहि सकलहुँ,
तखन कहल एकगोट मीत,
सादा भेल सादा आ’
भांगक संग भेल रंगीन।

जेठांश

जेठांश
छोट भायकेँ देल परती,
आ’ राखल सेहो जेठांश,
मरल जखन कनियाँ तखन,
भोजक कएल वृत्तांत।
कहल नमहर भोज करू,
पाइ नहि तकर न बहन्ना।
जकरे कहबय से दय देत,
चीनी चाउर सलहाना।
खेत बेचि कय हम कएलहुँ,
श्राद्ध पिताक ओहि बेर।
अपना बेरमे नहि चलत बहन्ना,
फेर बुझू एक बेर।

केवाड़ बन्द

केवाड़ बन्द

बाहरसँ आबयमे भेल लेट,
छोट भाय कएल केवाड़ बन्द,
किछु कालक बाद जखन खुजल,
भैय्या कहल हे अनुज,
दुःखी छी हम पाड़ि ई मोन,
अहिना जखन छलहुँ हम सभ बच्चा,
पिता कएलन्हि घर बन्द।
कनेक देरी होयबाक कारण,
पुछलन्हि नहि ओ’ तुरंत।
तुरंत काका सेहो बुझाओल,
बाल विज्ञानक द्वंद,
जे भेल से बिसरि शुरू,
करू नव जीवन स्वाच्छंद।

नानीक पत्र

नानीक पत्र
पत्र आयल मोन ठीक नहि,
लक्ष्मी अहाँ देखि जाउ,
एहि बेर नहि बाँचब नहि,
ई गप भुझु बाउ।
पेटक अलसर अछि खयने,
चटकार सँ खाओल जेन मसल्ला।
अंतिम क्षण देखबाक बड्ड अछि मोन,
चिट्ठी लिखबाले अयलाह तेहल्ला।
क्यो नहि पहुँचेलकन्हि लक्ष्मीकेँ,
कहल चिट्ठीमे अछि भारभीस कएल,
एक आर चिट्ठी आएल जे,
माय गेलीह देह छोड़ि।
लक्ष्मीक बेटा बोकारि पारि कानय,
कहलक छी हम सभ असहाय।

नहि अयतीह हमर लक्ष्मी,
मायक मुँह देखय अंतिम बेर,
नाम रटैत अहाँक ई बूढ़ि,
गुजरि गेलि जग छोड़ि।
अपन घरक हाल की कहू,
भगवाने छथि सहाय,
घरघुस्सू सभ घरमे अछि,
दैव कृपा हे दाय।

ऑफिसमे भरि राति बन्द

ऑफिसमे भरि राति बन्द

साँझ परल सभ उठल,
गेल अप्पन-अप्पन घर।
बाबूजी रहथि फाइलमे ,
करैत अपनाकेँ व्यस्त।
कौकिदार नहि देलक ध्यान,
केलक बन्द ओहि राति।
हमरा सभ चिंतित भेलहुँ,
कएलहुँ चिंतित कछ्मछ धरि प्राति।
भोरमे जखन दरबान खोलि,
देखलक हुनका ऑफिसमे,
माफी माँगि औँघायल,
पहुँचेलक घर जल्दीसँ।
एक बूढ़ी हमर पड़ोसी,
कहलन्हि कोना रहल भेल,
हमरा सभतँ नहि तकितहुँ बाट,
राति भरिमे भय जयतहुँ अपस्याँत।
बेटा सभ लजकोटर, मुँहचूरू,
छन्हि हिनक हे दाइ (हमर माइ)।

हॉलीक्रॉस स्कूल दरभंगामे,
भेल छल घटित एक बात,

गर्मी तातिलमे बच्चाकेँ,
बन्द कएल दरबान।
महिना भरि खोजबीन भेल,
नहि चलल पता कथूक,
स्कूल खूजल देखल बच्चाक,
लहाश सभ हुजूम।
बाप ओकर मुँहचुरू छल,
स्कूलसँ जौँ बच्चा नहि आयल,
सुतले छोटि गएल तखन,
गेल रहय पछ्तायल।
बच्चा देबाल पर लिखने रहय,
अपन कष्टक बखान,
पानि भोजन बिना,
भेलय ओकर प्राणांत।

तीने टा अछि ऋतु

तीने टा अछि ऋतु
पुछल स्कूल किएक नहि अयलहुँ।

मास्टर साहेब होइत छल बर्खा,
जाइतहुँ हम भीगि।
बर्खामे जायब अहाँ भीगि,
गर्मीमे लागत लू-गर्मी,
आ’ जाड़क शीतलहरीमे,
हाड़-हाड़ होइत जायब यौ,
बौआ होइत अछि ई तीनियेटा ऋतु,
सालमे पढ़ाई-पढय कहिया जायब यौ।

नौकरी

नौकरी

नौकरी नहि करी तखन,
भेटय तनखा तन खायत,
वेतन भेटत बिना तनहि,
आब कते बुझायब।
गाम घूरि जौँ जायब,
खायब की कमलाक बालू,
औ गुलाब काका पहिने,
हमरा ईएह बुझाऊ।
भरि दिनका ठेही अछि जाइत,
जखन जाइत छी सूइत।
भोर उठला संता अखनहुँ,
समस्यासँ अछि नहि छूटि।

नरक निवारण चतुर्दशी

नरक निवारण चतुर्दशी
भुखले भरि दिन दिन बिति गेल,
नरक निवारण लय हम रहलहुँ,
साँझमे मंदिर विदा सभ भेल।
दुर्गापूजा लगमे आयल,
सिंगरहार केर चलती भेल।
माटि काटि गोबरसँ नीपि कय,
भोरे-भोर फूल लोढ़ि लेल।
सरस्वती पूजाक समय बैर,
अशोकक-गाछ-पात गोलीक लेल,
बोने-बोन महुआक फरक लेल,
घूमि-घामि अयलहुँ भेल-भेर।
अण्डीक बीया तेलहानीमे दय कय,
तरुआ ओकर तेलक खएल,
कुण्डली मिरचाइक फरमे अंतर,
बुझैत-बुझैत दिन कत’ गेल।
सुग्गोकेँ ई खोआय रामायण,
सुनला कत्तेक दिन भय गेल।

हर आ’ बरद

हर आ’ बरद

मोन गेल भोथियायल,
जोति बरद सोचिमे पड़लहुँ,
एतय-ओतय केर बात,
हर जोतने भेल साँझ,
हरायल बरद ताकी चारू कात।
कहबय ककरा ई गप्प,
सुनि हँसत हमरा पर आइ,
मोने अछि भोथियायल,
अप्पन सप्पत कहय छी भाय।

आँखि

आँखि
दादा पहुँचलाह डॉक्टर लग,
पुछल होइछ की बाबा,
मर्र डॉक्टर अहाँ छी,
बताऊ भेल की हमरा।
औँठासँ कय शुरू,
बताऊ पहुँचा धरिक समचार,
कहल पहिने करू ठीक,
आँखिकेँ ओ’ सरकार।
कोनो चश्मा नहि फिट पड़ल,
दूरबीनक शीशा जखन लगाओल,
कहल हँ अछि आब कोनहुना,
भाखय अक्षर चराचर।
सड़ही आम देखि बजलाह,
बूढ़ भेलहुँ हम अहाँ बुझय छी बच्चा,
बैलूनसँ खेलायब हम से वयस नहि अछि अच्छा।
यौ दादा ई सड़ही छी,
हम पड़ि गेल छी सोँचहि,
सड़ही आम अहाँ की देखब,
चश्माक नंबरे गलत पड़ल अछि।

टी.टी.

टी.टी.

मजिस्ट्रेट चेकिङ भेल।
वीर सभ भागल बाधे-बाधे,
खेहारलक पुलिस जखन।
चप्पल छोड़ल ओतय बेसुध तन।
मुदा बुरबक लाल एकटा,
चप्पल लेलक उठाय,
दोसर चप्पल छोड़ि पड़ायल,
आयल गाम हँफाइत।
सभ हँसि पुछलक हौ बाबू,
एकटा चट्टी लय कय,
कोन पैरमे पहिरब एकरा,
दोसर खाली होयत।
ई बुरबकहा बुरबके रहल।
हँसि भेड़ सभ भेल।
दोसर दिन बाध सभ गेल ओतय,
देखल सबहक दुनू चट्टी भेल निपत्ता,
बुरबकहाक एक चट्टिये छल बाँचल,
नहि लेलक सोचि करब की एकटा।
मुँह लटकओने सभ घूरल आ’
नाम बदललक बुरबकहाक,
टी.टी. बाबूकेँ ठकलक ई,
नाम होयत सैह एकर आब।

अभ्यास

अभ्यास

पूछल गुरूसँ मृदंगक गति,
भय रहल अछि मंद,
गुरु कहलन्हि से करू तखन,
अभ्यास तखन प्रतिदिन।
प्रतिदिनतँ करितहि छी,
हम एकर सदिखन अभ्यास,
तहुखन हमर घटय अछि,
गति आ’ टूटय लय औ तात।
करू भोर साँझ अहाँ,
अभ्यास बिना करि नागा।
भोर करब अभ्यास जखन,
साँझमे टूटत नहि लय,
साँझमे करब पुनराभ्यास,
होयत भोरमे हाथ गतिमय।
गुरुसँ पूछल कोना जड़,
एहि पाथरसँ हम बनायब,
घोटक गतिमय बनबयमे,
हम माह जखन लगाओल।
कहल गुरू तखन देखू,
एहि जड़-पाथरमे घोटक,
जे बेशी लागय एहिमे,
तोड़ि हटाऊ अहाँ फटाफट।
कहल शिष्य ई काज,
अछि पहिलुक्का काजसँ हल्लुक।
कहल गुरू काज वैह अछि,
सोचबाक अछि ई फेर।
पहिने बेशी काज पड़ल छल,
आब थोड़ अछि भेल।

दूध

दूध
प्रथम जनवरी देखल एक,
भोरे-भोर दूधक लेल,
लागि लाइन जखन आयल बेर,
खुशी-प्रफुल्लित पाओल फेर।
मुदा रस्ताक बीचहि खसल दूध,
ओह भेल अपशकुन बहुत।
सुनि खौँजाइ कहल नहि से,
पता नहि शकुने होअय जे।
कहल हँ-हँ शकुने थीक,
माँ पृथ्वीकेँ लागल अर्घ्य,
प्रथमे पायल प्रथमक भोग,
हरतीह सभटा दुःख आ’ रोग।

गुड-वेरी गुड

गुड-वेरी गुड
भारतीय वाङमय केर,
व्याख्या एहि तरहेँ भेल,
जौँ किछु नीक भेल तँ नीक,
आ’ जौँ उलटा तँ सेहो ठीक।
प्रारब्धक भेल मेल,
आ’ लिखलहाक भेटबाक बात,
नीक भेल तँ गुड आ’
वेरी गुड जौँ भेल अधलाह।

अंध विश्वास

अंध विश्वास

सुमेर पर्वतक चारू-कात,
निशान देखाय कहलक गाइड,
सर्पक चेन्ह ई जे,
भेल समुद्र-मंथन एहिसँ,
सर्प-रस्सा अछि चेन्ह छोड़ि गेल,
चारू-कात तहीसँ।

संगी हमर हँसल कहलक,
कोनो पहाड़ पर जाऊ,
पहाड़ ऊपर चढ़य लेल,
गोलाकार रस्ता बनबाऊ।
नहितँ सोझे ऊपर चढ़ब,
सोझे खसय नीचाँ लय,
हओ गाइड तोहूँ विश्वासक,
छह अंध-काण्ड सुनेबा लय।

रिपेयर

रिपेयर
ऑफिसक तालाक रिपेयर केलक,
बिल मोटगर जखन देलक कारीगर,
हम पूछल एहि ड्रॉवरक तँ,
ताला नहि मह्ग छल,
रिपेयरसँ सस्तमे तँ,
नव ताला आयत गय।
औ’ बाबू तखन कमीशन,
अहीं जाय आऊ द’।

लंदनक खिस्सा

लंदनक खिस्सा
लन्दनक साउथ हॉलमे शहीद भिंडरा,
लेस्टरमे शहीद सतवंत-बेअंत,
नहि मानब हम गुरुकुलकेँ,
होयत खिधांश सुनू तखन।
लेस्टरमे सभ अपने लोक,
नहि भेटैछ अंग्रेज एकोटा।
भेटने हमही मँगैत जाइत छी
, वीसा,पासपोर्ट सेहो सभटा।

कंजूस

कंजूस
तीमन माँगल भनसियासँ,
सूँघा रहल छल गमक।
कहियोतँ अयबह हमरा लग,
देबह तखन उत्तर।
शहर भगेलग पाइ कमेलहुँ,
माँगल पाइ किछु दैह,
बदला पाइक झनक सुनाबह,
गमकसँ नहि अछि मोन भरैत।

दोषी

दोषी

दोषी छह तोँ।
नहि छी मालिक।
देलक दू सटक्का।
हम छी दोषी बाजल,
तखन बता संगीक पता।
साँझ धरि पड़ल मारि,
परञ्च नहि बता सकल ओ’
नाम सङ्गीक। कारण छल नहि ओ’दोषी,
नाम बतायत तखन कथीक।

मजूरी नहि माँगह

मजूरी नहि माँगह
भरि दिन खटि हम गेलहुँ,
माँगय अपन मजूरी।
कहलन्हि जौँ मजूरी मँगबह,
मारि देबह हम छूरी।
कहल नहि बरू दिय मजूरी,
मारू नहि परञ्च ई छूरी।
जियब जखन हम करब काज,
कय आनो ठाम जी-हजूरी।

भारमे माटि

भारमे माटि

काबिल ठाकुर कहल जोनकेँ,
भारमे माटि उघि लाऊ।
दुहु दिशि भार रहततँ,
बोझ दुनू दिशि जायत।
कम थाकब अहाँ आ’,
माटि सेहो बेशी आओत।
दियाद कलामी ठाकुर देखि ई,
सोचल ओ’ नोकसानक भाँज।
भरिया तोरा जान मारतह,
एके बोनिमे दोबर काज!
पटकि भार भरिया पड़ायल,
काबिल ठाकुर रहलाह मसोँसि।
लंघी मारि पैर खींचि कय,
अप्पन कोन भल भेल हे भाइ।

शो-फटक्का

शो-फटक्का
की यौ बाबू शो-फटक्का,
बड्ड देने छी आइ।
पहिने कोनो दिन आबि बुझायब,
नहि जायब पड़ताय।
दहो-दिशा दस दिन काज,
देत चालि संग चालिस साल।
बड़ा देने छी शो-फतक्का,
करू पहिने किछु काज।

अटेंडेंस

अटेंडेंस
लेट किए अएलहुँ अहाँ,
अटेंडेंस लगाऊ।
लाल बहादुर अयलाह जखन,
देखल छल क्रॉस लगायल।
नहि देल ध्यान साइन कएल,
पूछल अफसर लेट छी आयल।
ऊपरसँ कय हस्ताक्षर,
क्रॉस नुकयने नहि अछि मेटायल।
लाल बहादुर कहल सुनू ई,
के करत निर्णय तखन,
हम कएल हस्ताक्षर पहिने,
क्रॉस लगाओल अहाँ तखन।

ट्रांसफर

ट्रांसफर

नॉर्म्सक हिसाबे ट्रांसफर,
कएल हम अहाँक,
कहल छल एकर कोन,
छल महाशय जरूरति।
कएल सेवा हम अहाँक,
राति-दिन भोर धरि।
अप्पन घरक काज छोड़ल,
अहाँक काजकेँ आगू राखल।
ताहिमे नहि हम लगायल,
नॉर्म्स केर नहि गप्प छल आयल।
ट्रांसफरमे ई कतयसँ,
आबि गेल श्रीमान।
तखनहि रोकल हुनक,
ट्रांसफर, औफिसर तत्काल।

फलनाक बेटा

फलनाक बेटा
भोज देलन्हि रेंजरक बाप।
आह कमेने अछि तँ
फलनाक बेटा।
भोज समाप्ति पर लय,
पान सुपारी लय देखल,
रेंजरकेँ जे लोक।
अओ कहू कोन बोनकेँ,
साफ कएल एहि भोजक लेल।

गप्प-सरक्का

गप्प-सरक्का

नहि गेलथि घूमय बूरि,
बुझैत अछि बड्ड छैक काज।
आइ-काल्हितँ अहाँक चलती अछि,
हमरा सभतँ करैत छी बेकाजक काज।

महीस पर वी.आइ.पी.

महीस पर वी.आइ.पी.

छलहुँ हम सभ जाइत,
आर मारि लोकसभ पैरे-पैरे।
दुर्गास्थानमे छल कोनो मेला,
देखि हमरा सभकेँ बाट देल।
मारि लोक छल ओतय छलहुँ,
महीस पर हम चारिटा वी.आइ.पी.ये,
ओकर सभक बात छल लौकिक जौँ,
हमरा लोकनिक आध्यात्मिक तेँ,
मूल-गोत्रक प्रभावे!

पेटार १

अपन समांग
गंगेश गुंजन

बच्चे सभटाकेँ नइं, हुनका पत्नीकेँ सेहो ई प्रस्ताव तेहन नव आ आकर्षक लगलनि जे ओ लोकनि चैंकि उठलीह।
-की सत्ते अपना सभ घूम’ जाएब बाबूजी?-दोसर बेटाकेँ जेना विश्वासे नइं भ’ रहल छलै। ओ पिताकेँ बड़ मनोरथसँ देखि रहल छल जेना।
-हँ सत्ते, तोरा विश्वास नइं होइत छौ?-ओ बड़ दुलारसँ बेटाकेँ देखैत बजला। ओना एहि बीच बेटाक संग आनो बच्चा आ पत्नी सभक आँखि उत्सुकतामे गणेश शंकर बाबूक मुँहें पर गड़ल छलै। गणेश बाबू ई अनुभवो क’ रहल छलाह। जखन ओ अपन बेटाक प्रश्नक उत्तर द’ चुकल छलाह, तखन हुनका ई बात बड़ अधलाह लगलनि। जे आखिर सभ गोटाकेँ हुनकर ई प्रस्ताव एना विचित्रा किऐ लागि रहल छै। हिनका सभकेँ विश्वास किऐ नइं भ’ रहल छनि। हुनकर मोन भीतरसँ क्षण भरि लेल खौंझा गेलनि।
-की बात छै पार्वती?-ओ पत्नी दिस तकैत पुछलखिन।
-नइं, बात की रहतै। मुदा की सत्ते चलबै?-पत्नी पुछलखिन।
-विचित्रा बात अछि! किऐ पुछैत छी? जखन कहलहुँ तँ हँसी किऐ बुझि पड़ैत अछि?-ओ अपन खौंझाहटिकेँ दबैत बजला।
-कत’ जएबै?-पत्नी कने बिहुँसैत पुछलखिन। ओ सोचए लगलाह। ताबत बच्चा सभक उत्साह चलैत पंखा जकाँ एकाएक स्थिर भ’ गेल। ओ सभ दम सधने ओहि परिणामक आशंकामे माइ-बापकेँ देखैत रहए, कि बस एतहि आबि क’ गप्प कटि जाइत छै आ फेर सभ कटु भ’ जाइत छै। ओकर बादो घरमे सभ घण्टो चुप्प रहै अछि। मुन्नी, मुकेश अपन-अपन किताब कापी ल’ क’ एक दिस बैसि जाइत अछि। बड़का दुनू बच्चा सेहो घरक कोनो काजमे व्यस्त भ’ जाइत अछि। पार्वती अपन सुइया-डोराक नारिकेर तेल वला डिब्बा आ पुरान कपड़ा निकालैत छथि। फेर कोनो फ्राॅकक रफ्फू कर’ वा ढील भ’ गेल बटनकेँ मजबूतीसँ टाँक’मे व्यस्त भ’ जाइत छथि। अपनो गणेश बाबू अपन जेबीसँ मोचरल-तोचरल सिकरेटक डिब्बा तकैत बहार करैत छथि आ फेर ककरो दीयासलाइ द’ जएबाक लेल कहि, सिकरेट जरा क’ बिना कपड़ा बदलने बैसि जाइत छथि।
बच्चा सभ एहि आशंकामे स्तब्ध छल। गणेश बाबू एक-एक बच्चाक मुँह निहारैत जेना पढ़लनि आ बहुतो दिनक बाद एतेक स्नेह आ ममत्वसँ बिहुँसैत बजला-तोरा सभकेँ नइं जएबाक छौ की? तैयार किऐ नइं होइत छें फटाफट? देरी भ’ जएतौ तँ सभ चैपट।-हुनक वाक्य समाप्तो नइं भेल छल कि सभ बच्चा ओही अन्दाजमे कुदैत-फानैत छिरिया गेल, जेना सर्कसमे अपन कबाइत देखौला पर सुन्नर-सुन्नर पोसुआ जानवर।
गणेश बाबू जखन अपन बच्चा सभक ई उल्लास देखलनि तँ मोनेमोन भीजि गेलाह। हुनकर मोनक एहि प्रतिक्रियाक बड़ सूक्ष्म लक्षण हुनक आँखिक कोनमे उमरि गेलनि, जकरा पत्नी पार्वती बुझि गेलखिन आ लग जाए हुनक बाँहि पकड़ि बजलीह-अहाँ एना किऐ भ’ गेलहँु। कोन जरूरत छल घूम’ जएबाक। हाथमे पाइ अबितैक तँ देखल जएतैक, जेना एतेक दिन नइं, तँ किछु दिन आरो नइं घुमितहुँ, तँ की भ’ जएतैक। ओहुना एकर दुनूक परीक्षा हेतै।
-की भेलै आइए घूमि ली तँ? भला कहू कतेक दिनसँ कहने छिऐक आ एकटा ई छोट-छिन कार्यक्रम नइं बना सकलहुँ। हम एहि शहरमे अपन सम्बन्धीओ सभसँ भेंट करए नइं ल’ जा सकलिऐ। बच्चो सभ आखिर चाहैत हेतै जे एहि घरसँ निकली। कतहु घूमी-फिरी। से हमरा बड़ जरूरी बुझाएल। चाहे जे होउ। आइ एकरा सभकेँ ल’ क’ बहराएब अवश्य।
-कत’ जएबै से तँ निश्चय हेबाक चाही।-पतिक मध्यवर्गीय आकस्मिक मूड चिन्हैत पत्नी समर्पित भ’ क’ पुछलखिन। एहि बेर पति फेर तोतरएला। कोनो खास स्थानक नाम नइं कहि सकलखिन।
ओम्हर उत्साह आ खुशीसँ कुदैत बच्चा सभ भीतर जा क’ तैयारी कर’ लागि गेल आ जहिना माइ-बापक ई छोट सन विचार विमर्श कानमे पड़लैक तँ सभ ठमकि गेल। छोटकी मुन्नी, जे पूछि रहल छलै-दीदी हम कोन फ्राॅक पहिरब?-ओ चुप्प भेल ठाढ़ि छल, किऐ तँ ओही काल दीदी ठोर पर आँगुर द’ चुप्प रहबाक इशारा कएलकै-गप्प सुन’ दिअ’।-मुकेश कपड़ाक जूता पैरमे पहिरि नेने छल, मुदा ओहिमे एकटा फीता गायब छलै। पेन्ट-शर्ट, जे शरीर पर छलै, ओएह पहिरने रहल। दोसर ओहिसँ नीक छलैे नइं।
दीदी एहि परिस्थिति सभकेँ नीक जकाँ जनैत छलै, तें आशंकित भ’ गेल-कोनो आश्चर्य नइं, जे ओ सभकेँ तैयार क’ दिअए आ माइ-बापक एहि विचार-विमर्शक परिणाम ई बहराइ जे-आब छोड़ ू, फेर कहिओ चलब।
एहि आकस्मिक बाधासँ मुन्नी कान’ पर भ’ गेल। किऐ तँ ओकरो बुझा गेलै जे फेर आइ घूम’ जाएब पार नइं लागत। ओम्हर हुनका सभक गप्प कानमे पड़ि रहल छलै। मुन्नी अधिकतर माइ पर बाल सुलभ क्रोधमे कचकचा रहल छल, जे माँ कोनो ने कोनो तेहन बखेड़ा ठाढ़ क’ दैत छै जे सभटा बनल बनाओल कार्यक्रम बिगड़ि जाइत अछि। परंच तखने किछु ऊँच स्वरमे पिताक चेतौनी कानमे पड़लै।
-की भेल’? तोरा सभ जल्दी तैयारी किऐ नइं क’ रहल छह?-सभक मुँह पुनः पसरि गेलै। फेर तेजीसँ सभ तैयार हेबामे लागि गेल। मुन्नी फेर अपन समस्या दोहरौलकै। दीदी किछु असमंजसमे पड़ि गेल। फेर बुझौलकै-की हेतै? ओएह पहिर ले। खूब नीक लगैत छौ।-ओ ओकरा आगाँ जे फ्राॅक बढ़ौलकै से खूब पुरान भ’ गेल छलै। कतेक ठामसँ ओकर कशीदा उघरि गेल छलै। दोसर, जे ओएह पहिरि क’ घरोमे काज चलबैत छल, आ बाहरो जाएत?-से ओकर बाल मोनकेँ पसिन्न नइं पड़ैत छलै। ओ थोड़ेक नाकुर नुकुर कएलक मुदा दीदीक ई बुझौला पर जे-कपड़ा लत्तासँ की होइत छै, कपड़ा नीक नइं रहलासँ मनुष्य नीक नइं रहि जाइत अछि की? मनुष्य पोशाकसँ थोड़े चीन्हल जाइत छै।-कैक बर्खसँ दीदी, माँक ई गप सुनैत आ मानैत आबि रहल छल, से ओ बहिनोकेँ बुझा-सुझाकेँ कहए लागल-तांे तँ अपने तेहन सुन्दरि छें, जे तोरा नीक कपड़ा पहिरबाक आवश्यकता नइं। नीक कपड़ा तँ ओकरा चाहिऐ जे देखबामे नकपिच्ची होअए।-ओ बुझा-सुझा क’ ओकरा फ्राॅक पहिरा देलकै। मुदा मुन्नीक ओ प्रफुल्लित चेहरा झमाएले रहि गेलै।
-देख मुन्नी, तों यदि कपड़ा ल’ क’ दुखी हेबें तँ बुझि जो! फेर ओएह हेतौ जे हरदम होइत छै। बाबूजी दुखी भ’ क’ घूम’ जाएब छोड़ि देथुन।-दीदी बुझेबाक ढंगें चेतौलकै-देख हमर कुर्ती किछु छोट अछि। निचुलका सीअनि खोलि देब’ पड़लैए। अधलाह लगैत छै। तँ की भेलै, कपड़ा तँ छै। हम इएह पहिरिकेँ बहराएब। मुकेशोक कपड़ाक तँ इएह हाल छै। मनुक कपड़ाक सेहो इएह हाल छै; कपड़ासँ की होइत छै। कपड़ासँ थोड़े मनुष्य बड़का भ’ जाइत छै वा नीक भ’ जाइत छै।
दीदी वयसक हिसाबसँ किछु अधिके गम्भीर आ सोझराएल भाषामे ओकरा सभकेँ बुझा रहल छलै। आब मुन्नीक मुखाकृति देखलासँ साफ पता चलि रहल छलै जे ओ मनोसँ जएबा लेल तैयार भ’ रहल अछि। ताबत, एकटा जुत्ताक फीत्ता कसने दोसर खुजले छोड़ने, मुकेश दौड़ि क’ दीदीकेँ पाँजमे पकड़ि पुछलकै-हम सभ आइयो नइं जएबै दीदी?
-के कहलकौ नइं जएबै? तों तैयार भेलें? देख तों केश नइं फेरलें। थकरि ले।
ओ उत्साहित भ’ क’ चलि गेल। मनु आ दीदी सभ अपन-अपन पुरनका कपड़ामे सँ नीक बीछि क’, पहिरि क’ जुलूसक रूपमे बिहुँसैत माइ लग आएल, ओकरा सभकेँ देखि माइक मोन प्रसन्न होएबाक बदलामे भीतरसँ टूटि गेलै। ई हुनक आँखि कहि देलकनि। बड़की बेटी आँखि पढ़ब जानि गेल छै।
माइ रोज पहिर’ बला साड़ीमे सँ नीक बिछबामे कठिनताक अनुभव करैत छलीह। बड़की बेटी ताकिकेँ कहलकनि-इएह पहिर सकैत छें माँ! आर कोनो दोसर काजक नइं छै।-माइ बिना किछु सोचने साड़ी हाथमे लेलक आ पहिर’ लागल। बेटी हुनकासँ आँखि नइं मिलौलक।
ओहि घरमे एहिसँ किछु मिनट पहिने नचैत खुशी, जेना टांगमे मचोर पड़ि गेलाक कारणें एक कोनमे बैसल काहि काट’ लागल।
दू कोठलीक एहि घरमे जेना सभ घटना गप्प-सप्पसँ जुटल रहए। तैओ किछु जोरसँ दोसर चेतौनी दैत पिता बजलाह-लगैए तों सभ चैपट्ट करबें। कतेक देरी लगैत छौक तैयार होब’मे!
एहि चेतौनी पर सभ फुर्तिगर भ’ गेल। माँ बड़की बेटीसँ पुछलखिन-केश ठीक छै?-ओ साधारण रूपें अपन घनगर नमगर केशक जुट्टी लपेटलनि आ चप्पल पहिरि तैयार भ’ गेलीह। अएना ओहि कालमे नइं भेटलै। पता नइं कोन बच्चा राखि देलकै, जकरा तकबामे घण्टो लागि जाएत। ओ अपन बेटिएकेँ अएना बना लेलनि। ओ अधिक काल, बिना अएनाक एहिना काज चला लैत छथि।
दोसर कोठलीमेे गणेश बाबू किछु सोचमे बैसल छलाह। चेतौनी द’ क’ बैसि गेल छलाह। सभक पैरक आहट सुनि उत्साहित भ’ ठाढ़ भ’ गेलाह।
हुनका देखितहि सभ हतप्रभ भ’ गेल-ई की, तों सभ एखनो धरि तैयार नइं भेल छें?
-आब की, सभ तैयार छै, चलू।-पत्नी हुनक आश्चर्यक अर्थ बुझैत कहलखिन। मुदा गणेश बाबूकेँ ठकमूड़ी लागि गेलनि। सभ बच्चाकेँ मूड़ीसँ पैर धरि निहारलनि आ फेर पत्नीकेँ, आ चुप्पे ठाढ़ रहलाह। पत्नी एहि दृष्टिसँ परिचित छलीह। गणेश बाबूक मोनक ई हाहाकार ओ कतेको बेरि एकान्तमे सुनि चुकल छलीह, बच्चाक सूतल रहला पर।
-की बात छै? आब अहीं देरी क’ रहल छी।-पार्वती बजली आ बेटीकेँ आदेश देलनि जे ओ केवाड़मे ताला लगाबए।
गणेश बाबूक आँखि जेना बेचैनीसँ सभ लोक पर दौड़ रहल छलनि-बेटाक पैर पर नजरि द’ क’ बजलाह-ई एही बगएमे जाएत?-हुनक स्वर टूटल आ पस्त छल। पत्नी देखलखिन आ अत्यन्त हड़बड़ा गेलीह। बजलीह-की करू ई छौंड़ा छैहे विचित्रा। खूब जोर-जोरसँ बान्हि क’ फीताकेँ तोड़ि देलकै आ एकटा फेकियो देलकै कतहु, आ आब एखन...?-पत्नी विवशतासँ भरि गेलीह। फेर एकाएक बजलीह-मुन्नी कनी तों अपन जूतामे देख त’, जूता तँ बेकार छौ। भरिसक फीता होइ।-आर संयोगवश जे फीता निकलल से काजक फीता छल। फेर फीता लगाओल गेल।
मुदा गणेश बाबूक मुँह एतेक बिगड़ल छल जे लगैत छल जेना ओ दुखिताह होथि। ओ एक गिलास जल मँगलनि आ बैसि गेलाह। बेटी घर बन्द करबाक बदलामे हुनका जल आनि क’ देलकनि। ओ गट-गट क’ पीबि गेलाह आ निरीह ढंगसँ पत्नीकेँ देखलनि। पत्नी हुनक नजरिकेँ चिन्हलखिन। आ फेर ओ दोसर दिस ताकए लगलीह।
-कतेक दयनीय लगैत छै सभ किछु, नइं?-ओ पत्नीकेँ पुछलखिन।
-कतेक दयनीय लगैत छै? ठीक तँ छै। चलू उठू। मुदा आबो अहाँ कहि नइं रहल छी जे जएबाक कत’ अछि। बीच बाटमे जा क’ तँ निश्चित नइं करब?-पत्नी वातावरणकेँ हल्लुक करबाक प्रयासमे कहलखिन।
-हमर तँ मोन बैस गेल पार्वती। भला कहू, एहि ड्रेसमे हिनका सभकेँ ल’ क’ जाहि घरमे जाएब से की सोचतैक।
-अहाँ तँ अनेर गप्पमे ओझरा गेलौं। हम जँ जाएब, तँ अनकर घर थोड़बे जाएब? जतए जाएब से अपने सम्बन्धी लग जाएब। जँ हमर सम्बन्धी छथि तँ हमर हालति अवश्य बुझैत हेताह। एहन महगीमे एतेक कम दरमाहा, एही पाइमे तँ सभ किछु करए पड़ैत अछि, बच्चा सभक पढ़ाइ लिखाइ, मकान भाड़ा... सभ टा एही दरमाहासँ। आ दोसर जे कपड़ा लत्ताक कोनो अन्त छै। कतबो नीक पहिरए लोक, मुदा ओहूसँ नीक आ दामी कपड़ा भेटि जाइत छै बजारमे।
-सभटा ठीक छै। परन्तु जीवनमे, समाजमे रहि क’ एहि गप्पकेँ छोड़ि नइं सकैत छी। कोन ठेकान, हमरा आ हमर बच्चा सभकेँ एहि ड्रेसमे देखि क’ हमर सम्बन्धियोकेँ हीनताइ बुझाइनि। तखन उनटे एकटा समस्या।-ओ बजलाह।
-वाह, सम्बन्धी कपड़ासँ थोड़के चिन्हल जाइत छै। अहाँ आब ई सभ छोड़ ू, उठू।
मुदा ओ नइं उठलाह। बच्चा सभ ओहिना एहि गप्पसँ आशंकित भ’ गेल छल। कोनो आश्चर्य नइं जे एहि ठाम आबि क’ जएबाक कार्यक्रम रद्द भ’ जाए। किऐ तँ एहन हैब कोनो नव गप्प नइं थिक, से ओ सभ बाहर निकलि क’ परिणामक प्रतीक्षा करए लागल।
-हिनका सभकेँ एहि हालतमे देखि मोन होइत अछि जे अपन मुँह अपने नोचि ली। हम अहाँ लोकनिकेँ नीक सन कपड़ा तक नइं द’ सकैत छी। हम सभ मनुख सन कपड़ा पहिरि क’ निकलि नइं सकैत छी।-ओ उत्तेजित होइत बजला।
पत्नी बुझौलकनि-बच्चा सभ की सोचतै? उठू चलू। एतेक उत्साहसँ बच्चा सभ तैयार भेल अछि। नइं गेलासँ एकर सभक मन हूस भ’ जेतै। उठू।
गणेश बाबू लगभग मोने मोन निश्चय क’ चुकल छलाह, जे एहि दशामे ओ हुनका लोकनिकेँ बाहर ल’ जएबाक गप्प छोड़ि देथि। मुदा ओहि क्षण हुनका ई मनमे अएलनि जे एहि तरहें कोनो ने कोनो समस्याक कारणें ओ कतेको बेर बच्चा सभकेँ तैयार करवा क’ फेर बाहर घुमै लेल जएबाक कार्यक्रम रोकि देने छथिन। बच्चा सभ तँ जेना एहि गप्पक लेल अभ्यस्त भ’ गेल अछि। ओकरा सभकेँ आश्चर्य होइत छै, घूम’ जएबाक गप्पसँ। ई गप्प ठीकसँ बुझैत छै। एक बेर तँ ओ अपन कानेसँ सुलनखिन। बच्चा सभ अपनामे गप्प करैत छलनि जे बाबूजीक घूम’ ल’ जएबाक कार्यक्रम जखने भ’ जाए तखने बुझू। कहैत तँ ओ कतेक बेर छथिन।
सुनि क’ हुनका तामस नइं, दया अएलनि। ताहि द्वारेँ आइ तँ जेना होएत बच्चा सभकेँ घुमएबै जरूर। बहरीमे बच्चा सभ आशा आ निराशामे उगैत डुबैत प्रतीक्षा क’ रहल छल। मुदा ई लोकनि एखन धरि बहराएल नइं छलाह। गप्पे करैत छलाह। आब बच्चा सभ खौंझा रहल छलनि।
तखन जा क’ ई लोकनि बहरएलाह। घरमे ताला लगाओल गेल। पार्वती पूर्ण सावधानीकेँ ध्यानमे राखि पुछलखिन-पानि भरि क’ राखल अछि की नइं? एहन ने हो जे ओतेक रातिकेँ घूरी आ पानिए नदारद। एहि क’लक कोनो भरोस नइं।
-सभटा देखि लेलिऐ। बर्तन बासन धोल-धाएल छै। आबि क’ कोनो तरद्दुत नइं करए पड़तौ।-बच्ची बाजल।
ओ लोकनि धीरे-धीरे सड़क पर बढ़लाह। बेटा अपन पिताक बामा हाथ आ छोटकी दहिना हाथ धएने खुशीसँ चिचिआए लागल। पाछू-पाछू पार्वती ओ दुनू टा बड़का बच्चा।
-किछु सोचलहुँ, कतए जएबाक अछि?-पार्वती अपन पतिसँ पुछलनि।
-चलू बस स्टैण्ड पर बिचारि लेब।-ओ बजलाह तँ बड़की बेटी आँखि दाबि क’ अपन माइकेँ देखलक आ पिताक स्वभाव पर बिहुँसल। पत्नी सेहो बिहुँसलनि।
ओ लोकनि पाँच मिनट चललाक बाद बस स्टैण्ड पहुँचलाह। कोनो बस नइं छलै। एकटा बसक अएबाक समय भ’ गेल छलै। दुपहरियाक समय। गर्मीक मौसम। उमससँ भरल। ओत’ गाछो नइं छलै! कोनो छाँह नइं छलै! से कोनो दोकान आदिक छाहमे भ’ क’ ओ लोकनि आर लोक सभक संग, प्रतीक्षा करए लगलाह।
-सोचैत छी बससँ सोझे चितकोहरा चलल जाए, रामेश्वर भाइ ओत’। बहुत दिनसँ नइं गेलहुँ अछि। भेटल छलाह तँ उपराग दैत छलाह। मुकेशकेँ तँ ओ देखनहुँ नइं छथिन।-एकाएक गणेश बजला तँ पार्वती सेहो उत्साहित भ’ गेलीह।
-हँ बड़ नीक स्वभाव छनि। बहिनो दाइ बड़ स्नेही स्वभावक छथिन। नीक रहत।
आर तखन फेर सभ बस अएबाक प्रतीक्षा करए लागल। लगभग बीस मिनटक बाद बस आएल आ सभ बच्चा बड़ उत्साहसँ ओहि पर सवार भ’ गेल। सभसँ पाछू पति पत्नी। भीड़ बड़ कम छलै। टिकट कटौलाक बाद कण्डक्टर बस चलएबाक लेल कहलकै। बस धीरे-धीरे ससरब शुरू भेल, तखने लोक सभ भागि क’ पौदान पर लटक’ लागल। देख क’ बच्चा सभकेँ अहूमे आनन्द अबैत छलै।
ओ बस कतेको स्थान पर रुकैत आखिर चितकोहरा पहुँचल। ओ लोकनि उतरि रामेश्वर भैयाक घर दिस चलि पड़लाह। ओ जाइत छलाह बड़ा उत्साहमे, तैओ लगैत छलै, जेना डेगमे उत्साह नइं होअए। उत्साह जेना सेरा गेल होअए। फेर चलैत-फिरैत दस मिनटक बाद ओ सभ बंगलानुमा घरमे पहुँचलाह। खूब खूजल जगह छलै। बड़ पैघ हाता। पश्चिम लोहानीपुरक ओकरा सभक अपन दमघोंटू गन्दा गली सन नइं।
रामेश्वर भैया गणेश बाबूक पिसियौत भाइ छथिन। बिहार सरकारमे कोनो अफसर छथिन। गेट लग पहुँचि क’ जखन ई काफिला रुकल तँ थोड़े काल जेना भीतर जएबाक साहसे नइं होइत छलै। तैयो ओ लोकनि धीरे-धीरे अहातामे जा क’ बरण्डा पर पहुँचलाह। सोर कएलखिन। एकटा चपरासी सन आदमी आएल। ओ सभकेँ एँड़ीसँ मूड़ी धरि देखैत पुछलकनि-की अछि? साहेब घर पर नइं भेंट करैत छथिन।
-जनैत छी। जा क’ कहुन गणेश शंकर आएल छथि।-ओ किछु रोषसँ कहलखिन। आ ओ घुमि गेल। लगभग दू-तीन मिनटक बाद एकटा सज्जन बहरएलाह। भुट्ट सन, बड़ भव्य। बच्चा सभ ताबत ठाढ़ छल आ अगुता रहल छल। पार्वती माथ पर आँचर ध’ क’ एक दिस ठाढ़ भ’ गेलीह। ओ साहेब जखन अएलाह तँ गणेश बाबू प्रणाम कएलखिन। बच्चा सभ सेहो प्रणाम कएलकनि। साहेब जेना अशौकर्यसँ चिन्हैत बजला-ओ! गणेश, एम्हर कोना अएनाइ भेल’? आब’।-आ भीतर मुड़ि गेलाह। हुनका पाछू पाछू बच्चा समेत इहो सभ भीतर गेलाह, एकटा भव्य ड्राइंग रूममे हुनका बैसा क’ ओ आरो भीतर चलि गेलाह।
नइं जानि किऐ गणेश शंकरक सम्पूर्ण परिवारकेँ बुझाए लगलनि जे किऐ अएलाह? एत’ सभ गोटाक आँखि साहेबक व्यवहारकेँ देखने छल आ किछु नीक नइं लागल छलै। बच्चा सभ जेना बड़ असुविधाक अनुभव क’ रहल छल। ओ स्वयं अपन गन्दा पैर आ चट्टी समेत ओहि सजल, सजाओल ड्राइंगरूममे जएबासँ घबरा रहल छलाह, बच्चा सभ तँ आर धकमका रहल छलै।
-बाबूजी हम सभ किनका ओत’ आएल छियनि? के छथिन ई?-मुकेश अचानक पुछलकनि अपन पितासँ, बड़ धीरेसँ फुसफुसाइत। मुँहसँ बुझाइत छलै जेना ओकरा विश्वास नइं भ’ रहल छलै। ओ कोठलीमे चारू कात तकैत छल।
-कक्का!-मुन्नी धीरेसँ जेना अविश्वास करैत पुछलकै-हम सभ प्रणाम कएलिअनि तँ कनिको नइं कहलनि नीके रहू!
पिता बेटीक माथ पर हाथ फेरैत बजला-कोनो बात नइं।
-बाबूजी कखन चलब एतएसँ?-बड़की बेटी अगुताइत पुछलखिन, तँ पिता एकाएक चिन्तित भ’ गेलाह आ बजला-एखने चलै छी।
तखने साहेब फेर ड्राइंगरूममे अएलाह आ कनी असमंजस देखबैत बजलाह-असलमे टी. वी. पर बड़ नीक प्रोग्राम द’ रहल छै, से सभ ओकरे घेरने बैसल अछि।-आ बिना संकेाचके बेधड़क कहि गेलाह।-ताहि परसँ एतेक लोक सभ आबि गेल अछि अड़ोस पड़ोसक। बैसबाक जगह सेहो नइं बाँचल छै, नइं तँ अहूँ लोकनि ओतए चलि क’ बैसितौं...।
-जी नइं भैया, एखन हमरा सभ चलिते छी। एम्हर आएल छलौं। बच्चा सभकेँ सेहो बहुत दिनसँ कहने रहिऐक लेकिन मौका नइं भेटैत छल। आइ मौका भेटल, से घूम’ लेल निकललौं।
-एम्हर आबी तँ फेर आएब कहियो।-ओ बजलाह।
गणेश बाबू प्रणाम कएलखिन। बच्चो सभ बिन मोने प्रणाम कएलक। अहातामे बहुत रास फूलक गाछ छलै। ओ फूल देखि क’ दुनू छोटकाक मोन बड़ खुशी भेल छलै। लोभा गेल छल। मुदा जएबा काल घुरियोकेँ नइं देखलक ओ सभ। जल्दीसँ निकलि क’ ओ सभ सड़क पर अएलाह। आ चल’ लगलाह।
तखने गणेश बाबूक कानमे आवाज पड़लनि-मुकेश दीदीसँ पुछि रहल छलै-दयनीय माने की होइत छै दीदी?-दीदी टारि देलखिन। किछु नइं बजलीह।
-बाजू ने दीदी, दयनीय माने की होइत छै?-ओ दोबारा पुछलकै।
-दयनीय माने जकरा पर दया आबए।
-दया आबए माने?
-गरीब।-दीदी कहलकै आ पुछलकै-किऐ पुछै छें?
-हम सभ गरीब छी?-ओ पुछलकै-बाबूजी जे घरमे कहैत छलखिनहें!-आउर दीदीकेँ घटना मोन पड़लै।
गणेश बाबू सुनलनि। चलैत-चलैत पत्नीकेँ देखि क’ दुनू गोटा अपमानक अनुभव करैत छलाह। बजैत किछु नइं छलाह। आ बीच-बीचमे बच्चा सभक बाँहि पकड़ि क’ सड़कक काते कात चलबा लेल कहैत छलखिन।
-बाबूजी पानि पीब!-मुन्नी बजलै। ओकर मुँह रौद आ पसीनासँ लाल भेल छलै।
-अखने थोड़े कालमे बस स्टैण्ड पर पहुँच जाएब। ओतए पीबि लेब।
-बड़ प्यास लागल अछि।
-बस, आबि गेलहुँ।
ओ लोकनि तेजीसँ चलए लगलाह। बस स्टैण्ड पहुँचलाह, क’ल बन्द छलै। पानिक कोनो प्रबन्धो नइं छलै। बगलमे एकटा पानि बेचए बला छल। पन्द्रह पाइए गिलास दै छलै। पानिक भाव बुझि गणेश बाबू क्रोधमे बड़बड़एलाह-अन्हेर छै। मुदा पानि देखि बच्चा सभहक प्यास जेना आरो बढ़ि गेलै। पियास ओना तँ लगभग सभकेँ लागि गेल छलै। पन्द्रह पाइए प्रति गिलास पानि, मात्रा बच्चे सभकेँ पिया क’ बसक प्रतीक्षा करए लगलाह।
गणेश बाबू, पार्वती, आ दीदी... अपन-अपन मोनसँ पन्द्रह तिया पैंतालीस पाइक बचतक चक्करमे अपन प्यास खतम क’ लेलनि। भ’ सकैत अछि रस्तामे काज दिअए। सम्भव इहो, जे बस तसमे कतहु काज द’ दिअए, कतहु कम नइं पड़ि जाए। इहो सम्भव भ’ सकैत अछि। पार्वती अपन पति आ दीदी अपन पिताक आदतिसँ बड़ परिचित अछि। एहि द्वारेँ बुद्धिसँ परिस्थितिक मोकाबिला करबाक लेल सदिखन तैयार रहै अछि।
-अहाँकेँ अधलाह लागल ओतए जा क’ ने?-पार्वती पुछलखिन।
-स्वाभाविक अछि। विकट जमाना छै। अपने आग्रहसँ बजौलनि। हम की जनैत छलहुँ जे एहने आग्रह आ हमर एहने भाइ।-ओ क्षुब्ध भ’ क’ बजला।
-जाए दियौ। हमरामे आ हुनकामे भाइक सम्बन्ध भ’ओ नइं सकैछ। दू भाइमे, माने, ममिऔत पिसियौतमे एतेक अन्तर कोना हेतै? ओ तँ कोनो आन लोक लगैत छथि?-पत्नी बजलीह।
-हँ अफसर छथि। अफसरकेँ पाइ छै, रुतवा छै। सभ छै। हम तँ निर्धन छी। मामूली काज करैत छी, कोनो तरहें बच्चा सभक संग निर्वाह करैत छी।-ओ बजलाह।
-हमरा विचित्रा लागल जे बहिनदाइ एको बेर हुलकियो देब’ नइं अएलीह। बड़ कोनादन लागल। टी. वी.मे बड़ नीक प्रोग्राम भ’ रहल छलै, तै सँ की।
-छोड़ ू चर्चा। आब एकर चर्चा हरदम लेल बन्द।-ओ संयत क्रोधमे बजला।
-बाबूजी अहाँ कहलहुँ जे काका छथि। मुदा ओ तँ एको बेर पानिओ द’ नइं पुछलनि। हमरा कतेक जोरसँ प्यास लागल छल। हम सभ तँ क्यो अबैत अछि तँ तुरन्त पानि द’ पुछैत छिऐ, जे भरिसक रस्तामे चललासँ प्यास लागि गेल होइ!-मुन्नी पुछलकनिर्।
-हँ बाबूजी, आ पूरा घरमे देबाल पर कतहु सरस्वतिओक फोटो छलै एकोटा? आकि विद्यापतिक, तुलसी दास आ कबीर दासक कोनो फोटो छलनि? केहन काका छथि?-मुकेश आश्चर्य व्यक्त कएलक, तँ गणेश बाबू आ हुनक पत्नीक मुँह पसरि गेलनि।
-हँ बेटा। गड़बड़ छलै। ताही द्वारेँ तँ ओतएसँ अपना सभ जल्दी चलि अएलहुँ। आब चलू दोसर ठाम चलैत छी घुम’ फिर’।
पत्नीसँ ओ परामर्श कएलनि जे ओ लोकनि अपन भातिज ओतए चलताह। रस्तामे बससँ उतरि क’ मस्किलसँ एक मिनट पड़त। ओतए सुभीतासँ बैसब। बहुत दिन भेंटो भेना भ’ गेल। ओ लोकनि दू बेर घर आबि चुकलाह अछि। पत्नी सहमति देलखिन।
बस अएला पर ठसाठस भीड़। तैओ ओ लोकनि कहुना क’ चढ़ैत गेलाह, अपेक्षित स्टाॅप पर उतरलाह। फेर गेलाह भातिजक घर। बाहरसँ सभ किछु शान्त छल। काॅलबेल पर आँगुर देलनि। दू-तीन प्रयासक बाद केबार खोलि क’ जे व्यक्ति बाहर भेलाह से स्वयं हुनक भातीजे छलाह।
-अरे अहाँ कक्का?-ओ कहलखिन।
-हँ, हम सभ गोटए छी। आइ घूम’ निकललहुँ। बहुत दिनसँ हिनका सभकेँ एक प्रकारेँ परतारि रहल छलियनि।-ओ बजलाह।
-आउ ने।-ओ सामान्य ढंगसँ स्वागत करैत अएबाक आग्रह कएलखिन।
ओ लोकनि धीरे-धीरे केबार लग पहुँचलाह। आ भीतर जे हुलकी देलखिन तँ ओतए ठाढ़े रहि गेलाह। कोठली कसमकस भरल छलै। बीचोमे स्त्राी-बच्चा बैसल।
-टी. वी. पर सिनेमा चलि रहल छै ने! से लोक जमल अछि, आब ककरा मना करियै?-लाचारी ओ तारतम्यमे पड़ैत, जेना संकोचसँ बजलाह।
गणेश बाबू आ हुनक स्त्राी जेना आँखिएमे निश्चय कएलनि। बच्चा सभ एतहु ओहिना थोड़े काल असमंजसक स्थितिमे ठाढ़ रहल फेर अगल-बगल चल’ फिर’ लागल। भातिज बेचारे धर्म संकटमे पड़ि गेलाह। की करथि? बजलाह-देखू, एतेक दिनक बाद अहाँ लोकनि अएबो केलहुँ, तैओ बैसा तक नइं सकलहुँ।-ओ क्षमा प्रार्थी सन लगैत छलाह।
-नइं-नइं, कोनो गप नइं। हम सभ फेर कहियो आबि जाएब। एखन चलैत छी।-गणेश बाबू जेना भातिजकेँ संकटसँ उबारलनि।
बच्चा समेत ओ चलए लगलाह, तँ भातिज सीढ़ी धरि छोड़ए अएलखिन।
परंच पुतहु एतहु अनुपस्थित छलखिन। पार्वतीकेँ एहि गप्पक धक्का लगलनि। ओ बजैत किछु नइं छलीह परन्तु भीतरसँ कानि रहल छलीह-की परिस्थिति छै! हिनकर इएह भातिज! आइ हिनका लग टी. वी अथवा दुनियाँक आन कोनो नीक उपयोगी साधन... की उपलब्ध नइं छनि? कतएसँ? नोकरीयो तँ ई ओएह बला करैत छथि। मुदा एतेक रुपैया एतेक साधन कतएसँ भ’ गेलनि?
ओ लोकनि सड़कक काते कात चलि रहल छलाह आ चुप्प छलाह। बच्चा सभ अपेक्षाकृत निश्चिन्त भ’ चलि रहल छल। जकरा देखि क’ पति-पत्नी अपनाकेँ आर अपराधी आ दुखी अनुभव क’ रहल रहथि।
एतेक दिनक बाद तँ बच्चा सभकेँ घुमएबाक अवसर भेटल छल। जेबीमे पाइ नइं छल तैओ ई सोचि निकलहुँ जे बहुतो दिनसँ बच्चा सभकेँ मनोरंजनोक लेल घरसँ बाहर कतहु नइं ल’ जा सकलियै अछि। एकरा सभकेँ कतहुँसँ घुमा-फिरा अनबाक चाही।-आ अएलहुँ तँ इएह सभ भ’ रहल अछि। की विचित्रा संयोग छै।
-आब अपना सभ कतए जाएब बाबूजी?-मुन्नी पुछलकनि तँ पिताकेँ व्यंग्य सन लगलनि। ओ ओकर मुँह देखलनि फेर ओ अपन पत्नीक मुँह देखलनि आ पुछलखिन-आब!
-हम की कहू!-पत्नी कहलखिन।
फेर थोड़े सोचि क’ ओएह बजलाह-की हर्ज टहलि क’ पहुँच’ योग तँ दूरी छै। कमलेक घर पर चलैत छी। ओकरोसँ बहुत दिनसँ भेंट नइं भेल अछि। बेचारीक पति कतेको माससँ ससपेंड छलखिन। भेंटो क’ लेबनि।
बच्चा सभ ऊबि चुकल छल। मुदा जएबाक छलै तैं ओ सभ ओही दिस जाए लागल। बच्चा सभ थाकि गेल छल। कखनो-कखनो पति पत्नी ओकरा सभक उत्साहकेँ बढ़बैत आगू बढ़ल जा रहल रहथि।
ओतए जखन पहुँचलाह तँ वातावरणमे कोनो फर्क नइं छलै। ओतहु सभ टी. वी. घेरने छल, मुदा ओत’ पार्वतीकेँ दोसरे प्रकारक किछु आर विचित्रा लगलनि। हिनका लग एतेक पाइ कत’सँ अएलनि! कत’ ई ससपेंड छलाह! खैर जे होइ। पहुँचलाह तँ कमला बैसौलखिन, अपने लगमे, आ अपन पति आ बच्चा सभहक संग टी.वी.मे व्यस्त भ’ गेलीह। कुशल क्षेमो नइं पुछलखिन-जे कोना छी! कोना अएलहुँ एम्हर! बच्चा सभ कोना अछि!
ओ सभ बैसलाह थोड़े काल। बच्चा सभ तँ खास क’ कछमछ कर’ लागल। अगुता गेल छल।
-माँ चल ने जल्दी। चल ने माँ एत’सँ। आ तखन सभ उठि क’ चलए लगलाह। एक गिलास पानिओ तक लेल नइं पूछल गेलनि। ओ सभ चोटा गेला। निकललाह तँ बच्चा सभकेँ फेर प्यास लागि गेल छलै।
धीरे-धीरे साँझ भ’ रहल छलै। घूम’ बला मूड बच्चा सभक मिझा गेल छलै। तैओ अन्तिम रूपसँ गणेश बाबूकेँ अपन एकटा अभिन्न स्मरण अएलनि। ओकरा ओ बहुत स्नेह करैत छलखिन। आइ काल्हि सचिवालयमे कोनो विभागमे किरानी अछि। भेंट भेना कतेक वर्ष भ’ गेल। एकहि नगरमे रहिओ क’...। ओकरो देखिए लेल जाए। मुदा किछु सोचि क’ अनठा देलखिन।
सम्बन्धी-यात्राक ई अनुभव बड़ विचित्रा छल हुनका सभक लेल। ओ लोकनि पैरे सड़क पर चलए लगलाह। साँझ हेबाक कारणें सड़क किछु व्यस्ततासँ भरल लागि रहल छलै। बच्चा सभकेँ संगमे ल’ क’ चलबामे कने बेसी सतर्क भ’ क’ चलए पड़ि रहल छलनि। पार्वती आ गणेश भीतरसँ दबि गेल रहथि आजुक एहि यात्राक अनुभवसँ।
बच्चा सभ भुखलो छल थकलो छल, मुदा बाजि नइं रहल छल किछु। पति-पत्नी सोचैत रहथि जे ई केहन घुमनाइ भेलै। एहिसँ एकरा सभकेँ की मजा भेटल हेतै। मनोरंजनक नाम पर घुमबहु एलिऐ तँ बेचारा सभकेँ भुखले पेटें पैरे-पैरे सड़क नाप’ पड़ि रहल छै। ओ आत्मग्लानिसँ भरि गेलाह। कोना परतारिऐ?
-भूख लागल-ए बाबूजी।-मुकेश बाजल।
-हमरो लागल-ए बाबूजी।-मुन्नी बाजल।
दुनूकेँ आश्वासन दैत कहलखिन-एखने किछु कीन दैत छी, कनेक थम्हू।-आ फेर चलए लगलाह। ओ जनैत छलाह जे जेबीमे कतबा पाइ अछि। सभक मिला क’ बसक किरायो टा नइं निकलि सकत। मुदा किछु ने किछु करहि पड़त। बच्चा सभ भुखाएल अछि। पत्नीकेँ देखलनि तँ ओ चलैत-चलैत मूड़ी झुका लेलखिन। भरिसक मोने-मोन कानि रहल छलीह।
-एहन लगैत अछि पार्वती, जेना एहि पूरा शहरमे अपना सभ बाहरी आदमी छी। एतए जेना क्यो नइं अछि अप्पन। हमरा सब कतए जाएब आब, भला अहीं सोचू।-ओ बजलाह तँ स्वर काँपि रहल छलनि। पतिक गप जेना पार्वतीकेँ आब मोने-मोन तैयार क’ देने होइन। बजलीह-यदि एतबहि गोटाकेँ सम्बन्धीक मानल जाए तँ ठीके अपन क्यो नइं अछि। लेकिन ई कोना भ’ सकैत अछि। बहुतो हेेताह अपन। हमरा जकाँ हमर, परिस्थितिमे हमरे सन, मिलैत जुलैत, लाचारीमे जे जीवन बिता रहल हेताह, ओ हमर अप्पन छथि। बहुत अछि एहन।-जेना बुझौलखिन।
-हम सम्बन्धीक गप करैत छलहुँ। आब तँ ककरो घर जाएब कठिन अछि एहि टी. वी.क द्वारे।-पति, जेना हताश भ’ कहलखिन।
-एतेक पाइ पर्यन्त नइं अछि जे एकरा सभकेँ किछु खुआ सकिऐ। सिनेमा देखबाक तँ सपनो नइं देखल जा सकैत अछि।-पति अपन आर्थिक विपन्नतासँ दुखी होइत बजलाह।
-नइं, सिनेमा नइं। अपना लोकनि एकरा सभकेँ कतहु तेहन मनलग्गू ठाम ल’ जइबैक।-पत्नी कहलखिन।
पतिकेँ ई विचार नीक लगलनि आ चलि पड़लाह। बामा कात बला सड़क पर। ओ लोकनि चलल जा रहल रहथि।
बच्चा सभ थाकल आ हताश छल। चलैत-चलैत पत्नीक चप्पलक औंठा बला चमड़ा टूटि क’ खसि पड़लै, ओ पैरकेँ घिसिया-घिसया क’ चलए लगलीह। ओ प्रयास करैत छलीह, जे पतिकेँ पता नइं चलनि। ओ गुमसुम चलि रहलि छलीह। गणेशक मोनमे अएलनि जे किऐ नइं शहीद पार्कमे चलि क’ थोड़ेक काल बैसी बच्चा सभक संग। ई विचार एकाएक मोनमे अएलनि।
-एतेक पैघ शहरमे हमरा लगैत अछि जे हमर अपन बहुत लोक अछि। आइ भ्रम टूटि गेल। वास्तवमे हमर अपन क्यो नइं अछि। सभ दोसर सन, दोसरा लोक। हम तँ असगर छी।-पति फेर बजलाह दुखसँ।
-फेर ओएह भ्रम। सोचबैक तँ बहुत लोक अछि अप्पन। हम भनहि जकरा अप्पन बुझैत छलिऐ ओ अप्पन नइं भेलाह, ने धन, ने पद, ने प्रतिष्ठा... कोनोमे नइं। तैं हुनका सम्बन्धी मानलासँ पैघ मूर्खता आर की होएत।
-ई टी. वी. सबटा सम्बन्धकेँ खण्ड खण्ड क’ राखि देतैक अगिला पाँच-सात बरखमे। देखैत रहब अहाँ।-ओ बजलाह।
-टी. वी. किऐ! आदमी अपने एना क’ रहल अछि। सम्बन्ध खतम हेबाक जड़ि टी. वी. कहाँ छी! ओ तँ छी सम्बन्धीक विचार, ओकर स्थिति, जे ओकर आर्थिक सामाजिक सुरक्षा आ सुविधा उत्पन्न करैत अछि, जाहिमे बहुतो लोक ओकर उपयोगिताक परिधिसँ बाहर रहि जाइत अछि। सम्बन्धकेँ आब एहि प्रकारेँ बुझ’ पड़त, नइं तँ तकलीफ आर बढ़त। हम आर कष्ट काटब, हमर बच्चा हमरोसँ बेसी कष्ट काटत।
ओ लोकनि पार्कमे पहुँचि गेल रहथि। ओतुका दृश्य देखि क’ पति पत्नीक हृदय विचित्रा उल्लाससँ भरि गेलनि। ओतए बहुत रास हुनके सनक माइ-बाप अपन बच्चा सभक संग गप्प सप्प क’ रहल छल। मैले कुचैले कपड़ा बला विपन्न बच्चा सब निर्विकार भावसँ खेला रहल छल, सभ खुशी छल।
मुन्नी आ मुकेश अपने तुरक बच्चा सभक संग खेलाए लागल। एतुका फूलक गाछ सभकेँ देखि क’ भूख-प्यास सभटा बिसरि गेल छल। दीदीकेँ दुलारसँ छिड़िआइत कह’ लागल-दीदी ओम्हर ओहि दिस चल ने, देख केहन सुन्दर-सुन्दर फूल छै ओम्हर।-दीदी ओकरा सभकेँ ल’ क’ ओहि दिस चल गेल।
बच्चा सभकेँ एहि तरहें मुग्ध देखि पति-पत्नी एकटा गाढ़ तृप्तिक अनुभव कएलनि एहि पार्कमे। बच्चा सभ उन्मुक्त भ’ दौड़ि रहल छल, खेला रहल छल।
ओ लोकनि चारू दिस आँखि दौड़ौलनि। ओतए उपस्थित लोकक कपड़ा-लत्ता देखि क’ मोनमे एहन विश्वास होइत छलनि जे ओ सभटा हिनके सन परिवारक लोक अछि। एहन लोक, जे बुझि नइं पड़ैत छल जे अप्पन नइं छी। एना लगैत छल जेना एक्के गामे टाक नइं, प्रत्युत बराबरिक स्थिति बला आदमी अछि सभ। एहि अनुभवसँ हुनका सभकेँ बड़ शान्ति भेटलनि। आब दुनू गोटे एक कात हरियर आ मोलायम दूबि पर सोझाँ-सोझी बैसल रहथि।
-हमरा तँ लगैत अछि पार्वती, जेना एखन अपना सभ जाहि दुनियाँमे रहै छी, जाहि शहरमे रहै छी, ताहिमे भरिसक दू दुनियाँक लोक अछि। एकटा दुनियाँक लोक बड़का-बड़का भव्य घरमे अछि, आ एहि दुनियाँक लोक, अपने घरमे बन्द भ’ टी. वी. देखि रहल अछि, आ दोसर दुनियाँमे अछि अपना सभ सन लोक जे एतए पार्कमे वा एही प्रकारक, कतहु खाली जेबी, भारी मोन नेने बाहर मनोरंजन क’ रहल अछि, अपन थाकल बाल-बच्चा संग। आ एहि दुनू दुनियाँक विभाजन कतेक साफ-साफ देखाइत छै। नइं?
-हमरा सभ तखनसँ ओहि दुनियाँमे भटकि रहल छलहुँ जे हमर अछिए नइं। हमर दुनियाँ तँ ई अछि-हमर लोक ई लोकनि छथि, आ हमर बच्चाक संगी ई बच्चा सभ छै, जेकरा संग ओ खेला रहल अछि।
बच्चा सभ खेलाइत दोसर दिस निकलि गेल छल। गणेश अपन स्त्राीकेँ आवेशसँ देखलनि आ दूबि पर राखल हुनकर हाथ पर अपन दहिना हाथ रखैत पुछलनि-की सोचि रहल छी पार्वती?
साँझ बेसी भ’ गेल छल। एक-दू क’ लोक सभ पार्कसँ जा रहल छल। गणेशो बच्चा सभकेँ सोर पारलनि। ओ सभ दौड़ैत आएल। बड़ खुशी छल।
ओ जेबीसँ हँसोथि क’ निकाललनि। पचहत्तरि टा पाइ बहरएलनि। सोझाँ द’ क’ ‘चना जोर गरम’ बला जा रहल छल। सोर कएलखिन। पत्नी टोकलखिन-जे पाइ अछि, रखने रहू। अनेरो एहिमे किऐ खर्च करैत छी?
-वाह, इहो भाइ तँ हमरे एहि दुनियाँक अंग छथि। हमर पाइमे हिनको हिस्सा होइत छनि। हमरा एकरा बाँटि क’ जएबाक चाही। पत्नी बिहुँसलीह, जेना गणेशक आँखि अन्हारोमे देखल जा सकैत अछि।
-बच्चा सभ भुखले अछि पार्वती।-गणेश बजलाह। चना जोर गरम बला लग आएल आ फकड़ा पढ़ैत पुड़िया बनबए लागल।
-आब दुनिया बदलतै भैया
सबहक घरे घर रुपैया,
भुखले क्यो ने आब रहबैया,
पढ़तै बुतरू तेहन पढ़ैया,
तेहने लहरि भरल छै हम्मर चनाचूर गरम।
भरिसक चारि-चारि दानाकेँ सभहक हिस्सामे बदाम पड़ल हेतनि। सभ पार्कमे पानि पीअ’ लागल।
ओतएसँ दू किलोमीटर पैरे चलबामे बच्चा सभ थाकल नइं, खुशीसँ दौड़ल चलल जा रहल छल आगुए-आगू।
मुन्नी अपन दीदीकेँ कहि रहल छल-आब अपना सभ एतए सभ छुट्टीमे आएल करब दीदी? आएब ने? एत’ हमरा दू तीन टा दोस्तो बनि गेल आइ। बाजू आएब ने?-माँ आ पिता सभटा सुनि रहल छलखिन आ आनन्द आबि रहल छलनि।

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गणनायक
साकेतानन्द

एकटा आदंकक लहरि हुनकर ढोंढ़ी लग देने ऊपर चढ़’ लगलनि। अपन माथ पर चुहचुहा आएल पसेनाकेँ अपन गमछीसँ पोछि क’ ओ एक बेर काल-वैसाखीक बिड़रो सन चलि जाइत एहि गाड़ीकेँ देखलनि। लगलनि छीतन सदाकेँ जे जँ बेसी काल धरि ओ खिड़कीक बाहर तकैत रहला त’ जरूर हुनकर माथ घूमि जेतनि आ बादहोसी घेर लेतनि। ओ आँखि मूनि लेलनि। आँखि मुनिते चारि रातिक जगरना आँखिमे कटकटाए लगलनि। भरिसक चारि मास भेल हेतै जमीन पर झँझट भेना। तहियासँ भूखो पियास तिरोहित छनि, त’ निन्नक के लेखा करैत अछि। ...हुनका मोन पड़लनि, घराड़िक सटले पश्चिम चारि कट्ठाक बाड़ी। हुनका मोन पड़लनि ओकरा हासिल करबामे भेल नतीजा। पूरा जोआनी गुदस्त भ’ गेलनि ओकरा अपन बनाब’मे। ओ चरिकठवा हुनकर जवानीक निशानी छिअनि। ओही जमीन लए कैक बर्ख धरि ओ दरभंगामे रिक्शा चलौलनि... नरे बाबूक बाप दिग्विजय बाबूक खबासी केलनि... राति-दिन, भरला-भादो आ सुखला चैतमे सब बापे-पूते ओकरामे लागल रहला। तखन जा क’ खाधि आ झौंखीसँ भरल ओहि चरिकठवाक मुँह-कान बहरेलै। एकटा परती आ उस्सर धरतीक टुकड़ा तखन गलि क’ राँग बनल छल, आर जखन ओ धरती सोनाक टुकड़ा बनि गेलै अछि त’ सबहक गृद्ध-दृष्टि आब ओही पर लागल छै।
बड़ी काल बीत गेल। ओना ओ गाड़ीमे बैसल छल, जे काल-वैसाखीक बिड़रो सन दिल्ली दिस भागल जा रहल छलै, मुदा हुनकर मोनमे ओएह चरिकठवा अहुड़िया काटि रहल छलनि। मुदा समय ककर प्रतीक्षा करैत छै? छीतन जी नई दिल्ली प्लेटफार्म पर छलाह। हुनका मोन पड़लनि-कामेसर कहैत रहए, कहाँ दन पनिजाब डिल्लिये भेने जाइ छै? ओ स्टेशन स’ बाहर आबि जाइत छथि। आगाँ जनसमुद्रकेँ अवाक देखैत ओ नई दिल्ली स्टेशनक बाहर ठाढ़ छथि। फेर आगाँ बढ़ि ई जनसमुद्रक अंग बनि जाइत छथि। फुटपाथ पर बढ़ल चल जाइत हुनका मोन भेलनि जे कत्तौ चूड़ा-दीहक दोकान भेटतनि त’ भरि पेट खैतथि। जेबीसँ चून-तमाकू बाहर कएलनि। ...नइं, जा धरि नरे बाबूसँ भेंट क’ सविस्तर कहि-सूनि नइं लेता, ताबे अन्न-जल नइं करता। छीतन सदाक चालिमे तेजी आबि गेलनि। तिलक ब्रिज धरि ओ खैनी चुनबिते आबि गेला। रामबरन सिंहक नंगटपनीक सजाइ दिएबाक सप्पत मोनमे अहुड़िया काट’ लगलनि। ओकर इशारा पर कोना हुनकर बेटा भातिज मारि खेलक, बेइज्जत भेल! कोना क्षणहिमे भरि ठेहुन तमाकूकेँ जोति क’ माँटिमे मिला देल गेल। फेर ओकरे इशारा पर कोना गामक दू टा लबरा नेता बनि क’ पंचैती करै लए आएल। कोना मामला कायम क’ लेलक। सब बात नरे बाबूकेँ खोंइचा छोड़ा क’ कहथिन। रामबरन सिंहकेँ की नरे बाबू नइं चिन्है छथिन? केहन जालिया आदमी अछि से सभकेँ बुझल छै की। नरे बाबू जरूर एहि समयमे ठाढ़ हेथिन। फेर मोन पड़लनि वोट। हिनकर मेहनति देखि क’ नरे बाबू दस लोकक सोझाँमे कहने रहथिन जे अहि परोपट्टामे पिछड़ल जनताक माइन्जन छीतन जी छथि। हिनके राय विचारसँ काज हेतै। आखिर खान्दानी लोक कहलकै ककरा? जमीन्दार घरानाक पढ़ल-लिखल लोकक इएह त’ गुन छै। असली लोककेँ परेखबाक। ओहि बेर नरे बाबू ढेर वोटसँ जितला! आ तहियासँ सब चुनाव जितैत अएलाह, सब चुनावमे सबटा छोटकाक वोट हिनके भेटैत अएलनि। ई सत्य, जे ओहि चुनावक बादसँ छीतनक एकबाल बढ़लनि। लोक राय-विचार पूछ’ लगलनि, पंचैतीमे बजाओल जाए लगला। ओहो खखसि क’ कहैत रहथिन जे हमरा सबहक असली नेता छथि नरे बाबू। ऊँच जातिमे जनमलासँ की हेतनि, हमरा सबहक सब हाल ओएह टा जनैत छथि आ ओएह एकरा सोझराइयो सकैत छथि। हुनका मोन छनि जे ओइ चुनावमे ओ कोना बाझल छला। ओही बीच करिक्की बाछी मरि गेलनि... कनकिरबीक सर्दी-जर निमोनियाँ बनि गेलनि... खेती पछुआ गेलनि। ऐ धरानिएँ जकरा लए एत्ते कएलखिन, से एखन नइं सहाय हेता त’ कखन हेता?
...छीतन सदा बाँचि गेल रहथि। आगाँक गाड़ीमे बहुत जोरसँ ब्रेक लागल रहै आ गाड़ी जोरसँ किकिया उठल रहै। सड़क पर चलैत लोक उनटि-उनटि क’ ओम्हरे देख’ लागल रहए। जाहि ठाम जनपथ, राजपथकेँ कटैत छै, ठीक ओही चैबटिया पर गाड़ीसँ बाल-बाल बचल रहथि, काँख त’र पोटरी नेने... रस्ताक गन्दा धोती आ गोल गला पहिरने बनकट्टाक छीतन सदा। एक दिस संसद दोसर दिस सचिवालय आ तकर सामने चलैत धर्रोहि लागल कारक पतियानीकेँ बड़े कातर दृष्टिएँ देखि रहल छला ओ। पहिल बेर हुनका बुझि पड़लनि जे एहि ठाम ककरो दोसरा लए एक्को मिनटक समय नइं छै। अहि ठाम समस्या लाज बचेबाक नइं, जान बचेबाक छै। अनचोकेमे सही, बीच चैबटिया पर ठाढ़ भ’ क’ यातायातकेँ छन भरि लए रोकबाक गलती त’ हुनकासँ भ’ए गेल छनि। तैं हुनकर दुनू हाथ जुटलनि आ सामने रुकल कारसँ गुड़रैत आँखिकेँ कहलखिन-गलती।-आ झटकि क’ सड़क टपि गेला। हुनका सन्देह भेलनि जे की ई डिल्लियो अपने देशमे छै? राष्ट्रपति भवन, संसद, सचिवालय, कनाट प्लेस ओही डिल्लीमे छै जाहिमे कमेसरा कमाइ छै? जे अबै छै त’ तीन मासे देह जुटै छै, तेहन दुहै छै देहकेँ दिल्लीमे। आ पाइ कत्ते अनै छै? जँ पाइ कमाइ के ढेरियन मौका छै दिल्लीमे त’ पाइ गमबै के सेहो ओतबे उपाय छै। हँसी लगलनि छीतन सदाकेँ। एतबो नइं ओ बुझै छथिन जे ई दिल्ली मातबर लोकक दिल्ली छै। अपन दिल्ली त’ पुरानी दिल्ली छै, कि जमुना पारक दिल्ली। जत’सँ संसदक गोलार्ध सबसँ नीक लगै छै, ऐन ओही ठाम रुकि गेला ओ। करीबन आधा घण्टासँ जाहि तमाकूकेँ ओ रगड़ि रहल छला ओकरा आरामसँ ठोरमे द’ क’, बड़ी काल धरि संसदक भव्य गोलार्धकेँ, ओहि पर धीरे-धीरे फहराइत तिरंगाकेँ देखैत रहला। हुनका एहि दृश्यक भव्यताक कारणें आदंक त’ भेल छलनि, मुदा ओ आगाँक भव्य-दृश्यकेँ मोन राख’ चाहै छला, तैं बड़ा एकाग्र भ’ क’ ओकरा देख रहल छला। एकरा ओ सभ दिन लए स्मृति-पटल पर आँकि लेब’ चाहै छला...
-ओए, किथ्थे जाणा?
-आँइ?-अकचकाइत छीतनक मुँहसँ बहराएल। घूमि क’ देखलनि, सामने एकटा अधवयसू, अधपाकल दाढ़ी बला सरदारजी रहथि। देखि क’ भेलनि, एकरासँ बाबा खड़ग सिंह मार्गक पता पूछल जा सकैत अछि।
-हमरा नरे बाबू कन जएबाक है।
-कौण से बाबू के लग?-सरदार जी अपन खिचड़ी दाढ़ीमे बिहुँसल रहए।
-नरे बाबू दरिभंगा का नामी नेता हींया बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर रहते हैं...।-सरदारक मुँह देखि क’ बुझएलनि छीतन सदाकेँ जे ओ आधे बात बुझलकनि। सत्ते सरदार जी कने काल असमंजसमे ठाढ़ रहल आ फेर अपन बाट धएलक। ओकरा बिनु किछु उत्तर देने जाइत देखि हुनका बड़ आश्चर्य भेल रहनि-मर बहिं, एहनो लोक होइ छै? ने गप्प ने सप्प, ने परणामे-पाती, सोझे बिदा? बाह रे लोक दिल्ली के! फेर हुनकर हाथ डाँड़मे बान्हल नोटकेँ टोहि क’ देखलनि। सब किछु ठीक छलनि। बस ई टा पता लागि जैतनि जे बाबा खड़ग सिंह मार्ग कोम्हर छै। ओ संसद मार्ग भेने फेर कनाट प्लेस अएला। भरि रस्ता ओ लोकक मुँह निहारैत हियासैत एलखिन। मुदा क्यो एहन नइं बुझेलनि जे पलखतिमे हो आ हिनका बाबा खड़ग सिंह मार्ग देखा दनि। तैं ओ बढ़ैत गेला। रीगल सिनेमासँ बामा घूमि क’ ओ किछुए दूर बढ़ल हेता कि देखलखिन एकटा छौंड़ा एकटा मेसीनसँ पानि बाहर क’ बेचैत अछि। चारि आने गिलास, ठंढा पानि! पियास हुनको लागि गेल छलनि। कत्तौ पानि पियैक दौरे ने लगै छलनि। एहि पानि पियाब’ बलाक क’ल दिस ध्याने ने गेल छलनि। पानि पीबि ओ गिलास देलखिन आ ओ छौंड़ाकेँ पुछलखिन-बुच्ची! बाबा खड़ग सिंह मार्ग कौन है?-ओ छौंड़ा हिनका ऊपरसँ नीचा धरि देखलकनि आ फेर मैल कुचैल दस सालक छौंड़ा भभा क’ अपन कच्चा दाड़िम सन दाँत बहार करैत कहलकनि-ओए शाहजी। तुम कौण से मारग पर पाणी पी रहे हो? यही है खड़ग सिंह मारग।
एतबा सुनैत माँतर जेना छीतन सदाकेँ बिरनी बीन्ह लेलकनि। पाइ दैत ओ पैर झटकारने बिदा भेला। आ फेर हुनकर मोनमे ओ चरिकठवा नाच’ लगलनि। तैं ओ बिना बामा-दहिना देखने बमरिए फुटपाथ देने जा रहल छला कि गुरुद्वारासँ निकलल भीड़मे घेरा गेला। चारू कात मुरेठे-मुरेठा, कारे पर कार, लोके पर लोक। भीड़मे कोनहुना रस्ता बनबैत निकलैक चेष्टा केलनि त’ बड़ी जोरसँ कोनो मंसुगरि पंजाबिनक देहसँ दबि क’ चेहा उठला। हुनका ओना चेहाइत देखि ओ पंजाबिन ठिठिया देने छलनि। जेना छीतन जी सन भरल-पुरल लोकक भीतर एत्ते भीरु हृदयकेँ परखि क’ हँसल हो। ओ ओकरा भरि नजरि देखिए क’ रहि गेला, ताबए भीड़ आगाँ बढ़ि गेल रहए।
बाबा खड़ग सिंह मार्ग, तकर दुनू दिस पतियानी स’ लागल गाछ, जे फुटपाथ पर निहुँड़ल छै, ताही पर पैर झटकारने जा रहल छला, चैदह लम्बर-चैदह लम्बर रटैत बनकट्टाक छीतन सदा।
कोठीक नम्बर पढ़ियो क’ ओहि हत्तामे पैसैक हिम्मति नइं भेलनि हुनका। ओ बड़ी काल धरि फुटपाथ पर ठाढ़ भेल गेट पर लटकल बोडमे नरे बाबूक नाम आ कोठीक नम्बर पढ़ैत रहला। ठीक ओएह कोठी छै, नरे बाबूक नामो छनि। अपन ठेहुन धरि ससरि आएल धोतीकेँ ओ फेर सम्हारलनि, एक बेर फेर अपन धुरियाओल पैरकेँ पटकि क’ धूरा झाड़लनि आ डराइत-धखाइत गेट खोललनि।
कोनो विदेशी संगीतक लहरि ग्रिलक परदाक ओइ पारसँ आबि रहल छल। ओकरेसँ छनाइत प्रकाशक थक्का लौनक घास पर पड़ि रहल छल। एक बेर ई सब देखि मोन भेलनि जे घूरि चली। मुदा फेर मोन पड़लखिन नरे बाबू... वोट मँगै लए आएल रहथिन, ओ कोना ओकर जौड़खट्टा पर बैस रहल रहथिन? सब दिनसँ जमीन्दार नरे बाबूक मोन केहन नेनु सन? टुनटुनक बापकेँ कोना इलाजक वास्ते सौ रुपैया झटसँ द’ देने रहथिन? सब मोन पड़लनि छीतन सदाकेँ। वोटक समय गामे-गाम घुमनाइ, जँहि-तँहि, जैह-सैह खेनाइ, सब स्मरण छनि हुनका। तैं ओ आगाँ बढ़ला। लौनक मोलायम घास पैर तर बड़ी कालक बाद जे पड़लनि से बड़ नीक लगलनि। ओ असमंजसमे ठाढ़े रहथि कि नरे बाबू दरबाजा पर ठाढ़ भेला आ जमीन्दारी रोब भरल आवाजमे गरजला-रौदिया! रौदिया!! कत’ गेलें? देख त’ लौनकेँ के धंगने जा रहल अछि?
-हैये सरकार।-कहैत रौदिया छीतन सदा दिस लपकल रहए।
-कौन है तुम?
-हम छीतन छी, बनकट्टाक छीतन सदा!
-त’ ओम्हर लौन किऐ धंगने जाइ छ’?
-घास नइं धंगाइ छै-छीतन जी रौदी दिस सहटला।-हमरा नरे बाबूसँ भेंट करा दैह भाइ; बड़ उपकार मानब’!
-उपकार मानब’ पछाति, पहिने लौनसँ बाहर आब’। नइं त’ एखने थाना पुलिस भ’ जेत’।-रौदीक रौद्र रूप देखि क’ सकपकेला छीतन सदा।-हम बनकट्टा के छी। नरे बाबूक इलाकाक लोक!-रौदी ओकर कातर स्वर सुनि क’ ठमकल। त’ छीतनकेँ साहस बढ़लनि।-परोपट्टाक सब भोंट हमहीं दियेने रहिअनि नरे बाबूकेँ, हमरा नीक जकाँ चिन्है छथिन।-फेर ओ रुकला। सोचलनि जे असली बात त’ कहिए ने रहलखिन अछि।-हे बड़ सतेलक अछि दरोगा। बेकसूरकेँ पेमाल क’ रहल अछि गामक लबरा-लुच्चा, त’ गोहारि करै लए बड़ी दूरसँ आएल छी।-छीतन सदाकेँ अपनहिं स्वर रेरिएनाइ सन लगलनि। मुदा हुनका बुझल छनि जे ई आखिरी मौका छनि। जँ नरे बाबू ठाढ़ नइं भेलखिन त’ क्यो हुनका बचा नइं पौतनि। तैं एकरा ओ कोनो तरहें गमाब’ नइं चाहै छथि। रौदीकेँ भेलै जे ओ जँ, हिनकर गपमे बाझत त’ साहेबक कमरामे स्नैक्स समय पर नइं पहुँचा सकत। एक घंटा पहिनेसँ साहेब किछु सांसद सब संगें बियर पीबि रहल छला। कोनो बान्ह बन्हैक योजना पर घनघोर बहस चलि रहल छलै। आब त’ ह्निस्कियो खूजि गेल हेतै! तैं छीतन सदाकेँ कहलकनि-जाह, सामने कोठलीमे एक पतियानीसँ कुरसी राखल छै, ओही पर बैस रह’। हम थोड़े कालक बाद आबि क’ कहै छिय’।-कहैत रौदी अलोप भ’ गेल। छीतन सदा आब कने सुस्थिर भेला। कुर्सी पर बैस गेला। सामने एक पतियानीसँ लागल गोड़ दस-पन्द्रह टा कुर्सी, एक कात दिवान, नीचामे गलीचा जाहि पर अपन लकुटिया नेने गांधी बाबाक फोटो। हुनका एबासँ पहिने कोठलीमे आर दू गोटे बैसल छलै। हिनका अबितहिं दुनू चुप भ’ गेल। दुनू माने एकटा धवल जटाजूट बला बबाजी आ हुनके संगें आएल एकटा पम्हउट्ठा छौंड़ा। कनेक काल धरि दुनू चुप रहल, फेर बबाजी पुछलखिन-की हौ, रौदी की कहलक’? आइयो नेताजीसँ भेंट हैत कि नइं?-फेर अपन धवल दाढ़ी पर हाथ फेर’ लगला, एना जेना ओकरा चुचकारि रहल होथि। एकाएक पुनः साकांक्ष होइत बजला-बाप रे बाप! तीन दिनसँ दर्शन लए कुसोथ्थरि देने छी।-छीतन सदाकेँ बाबाक ई उक्ति सूनि आदंक भेलनि।-की गाय चरवाहियेमे बिका जेतनि? हुनका जिम्मा तीने साँझक चूड़ा छनि! पाइयो गनले-गूथल सबील क’ सकला! तीन माससँ लधल एहि रगड़ामे सब जमा-जथा सोख्त भ’ गेल रहनि। तैं हुनका ड’र भेलनि। जँ, हुनको तीन-चारि दिन लगलनि भेंट करबामे, तहन त’ गेल महींस पानिमे। कत’ रहता, की खेता-पीता? कथुक त’ जोगाड़ नइं छनि। तैं ओ बड़ सम्हरि क’ बजला-आइ भेंट नइं करथिन की? हम त’ बड़ी दूरसँ आएल छी!
-देखियौ। ओही भरोसे त’ हमहूँ बैसल छी।-बबाजी अपन भरि दाढ़ीमे बिहुँसल रहथि... छीतन सदा कतहु असोथकित भ’ गेल रहथि... बड़का बेटा सूरोकेँ की कहथिन... भातिज रमेशकेँ कोन जवाब देथिन? काल्हि वंश बढ़तनि, कत’ बसतनि? इएह त’ एकटा चरिकठबा छलनि अपन अरजल, अपन जुआनीक निशानी, नरे बाबूक बाप दिग्विजय बाबूक निशानी, जे पछिला पच्चीस वर्षसँ हुनकर दखल-कबजमे छनि। ओकरे बचबै लए ओ आइ एत’ दिल्लीमे छथि, जकरा छीतन सदा डिल्ली कहि दै छथिन। रामबरन सिंह परोपट्टामे आतंक मचेने अछि। हुनका बूझल छनि, नरे बाबू तक ओकर शिकाइत पहुँचि गेल हेतै। ओएह आइ छीतन सदाकेँ पानि पिया रहल छनि। अपन बढ़ैत परिवारकेँ बसबै लए रामबरन चुप्पे-चाप जमीन्दारक पुरना रसीद उपरेलक। फेर जालसाजी क’ क’ दाखिल खारिजो करा लेलक। छीतनकेँ भनक तक नइं लगलनि। फेर एक दिन अनचोकेमे जमीन पर चढ़ि बैसल। हिनक केवाला, दाखिल खारिजक रसीद, पछिला पचीस वर्षक लगानक रसीद कोनो काज नइं देलकनि। ठेहुन भरिक तमाकू छनहिमे धंगाएल सामनेमे छलनि। आब ओकरा हड़पैमे कैक दिन लगतै? जखनहिं पुलिस ओकर जाली कागजकेँ मोजर द’ चैआलिस क’ देलकै, तखनहिं रामबरन सिंहक हाथ ऊपर भ’ गेलै। मुदा? मुदा नरे बाबूक एकटा इशारा दूधकेँ दूध आ पानिकेँ पानि क’ देतै। हुनकर मोंछक लाज रहि जएतनि! ...ओह, आगाँ-आगाँ रामबरन सिंह पाछाँ-पाछाँ ओकर हाथी सन-सन चारि टा बड़द आ सभसँ पाछाँ चानीक मूठि बला लाठी हाथमे नेने रामबरन सिंह। दस टा ज’न लगा क’ कोना तमाकू जोति गेलनि? ...नइं, छीतन सदा रहता, भुखलो रह’ पड़तनि त’ रहता दिल्लीमे, मुदा कोनो नौ छौ कइए क’ घुरता। ओ पलथी बदलि क’ बैसैत छथि। रौदी भीतर जे बिलाएल से बिलाएले अछि। आब राति भ’ गेलै अछि। आठ-नौक अमल। भितरीसँ एखनहुँ कोनो विदेशी धुनक लहरि एत्त’ धरि आबि जाइत छै। ताबे सामनेक केबाड़ खुजैत छै। इएह अठारह-बीसक रहल हेतै! छीतन सदा अंटकर लगबै छथि। ओकर एक झलक देखलाक बाद फेर ओइ दिस नइं देखल गेलनि हुनका। ओ देहसँ सट्टल एकटा जीन्स आ ऊपरमे तहिना गंजी मात्रा पहिरने छल। ओकर ई रूप देखल नइं गेलनि हुनकासँ। ओइ कपड़ासँ ओकर देह जत्ते झँपाएल नइं छलै, ओइसँ बेसी ओकरा उघाड़ करैत रहै। तैं छीतन सदा देबाल दिस ताक’ लगला। मुदा बबाजी आ पम्हउट्ठा छौंड़ाक गंथाइत नजरिक बिनु एक्को रत्ती परवाहि केने ओ ठसकासँ बाहर लौन दिस गेल आ फेर ओहने ठसकासँ वापस भ’ क’ भीतर अलोप भ’ गेल। की ई नरे बाबूक परिवारक क्यो छनि? छीतन सदा एकटक ओकरा जाइत देखैत रहलाक बाद अंटकर लगा रहल रहथि। भ’ सकैत अछि क्यो अड़ोसिया पड़ोसिया कि क्यो दोसर... मुदा से के कहतनि?
भीतरसँ अबैत विदेशी धुन एकाएक बन्न भ’ गेल। डेरा कने निसबद्द भेल। किछु काल धरि सब शान्त रहल। शान्ति भंग केलक रौदी, जे अही बीचमे कोनो दरवाजा खोलि क’ प्रगट भ’ गेल छल। कुर्सी पर बैसल धवल जटाजूटबला बबाजी ताबे अपन समाधिमे लीन भ’ गेल छला आ कि निन्नमे झुकि रहल छलाह। बगलमे बैसल पम्हउट्ठा छौंड़ा कोनो फिल्मी पत्रिका अपन कोरामे खोलि क’ तेना मूड़ी निहरौने रहए जे बगलमे ज’ बमो फुटितै त’ ओकर ध्यान टूट’ बला नइं रहै। तैं रौदी जीक नजरि सभसँ पहिने छीतने जी पर पड़लनि-साहेबसँ आइ भेंट नइं हैत!-रौदीक उद्घोषणा हुनका गोली सन लगलनि। ओ किछु पुछतथिन तइसँ पहिने बबाजी धड़फड़ा क’ अपन समाधि, कि निन्न तोड़लनि-हौ जी रौदी।-रोज-रोज एक्के बात। आइ कि भेलै हौ?
-की कही हम? हमरा हाथमे कुच्छो है? भेंट त’ ओएह करता।-रौदी अपन असहायता प्रगट करैत बाजल। बबाजी अपन धवल दाढ़ी पर तीन-चारि बेर हाथ फेरलनि। फिल्मी पत्रिकाक अध्ययन करैबला पम्हउट्ठा छौंड़ा ठाढ़ भ’ क’ अँगेठी-मोचाड़ केलक।
-अँए हौ?-बबाजीक स्वर कने तेज भेल-हमरा सबहक समयक कोनो मूल्य नइं?
-आब से हमरा की कहि रहल छी?
-सामनेमे त’ तोंही छ’ त’ कहियौ ककरा, देबालकेँ? सुनह, बात जानी हम सफा-सफी। पूछि क’ बताब’ जे भेंट करता कि नइं? नइं त’ एहन नेता सभ गोड़ पचासेक परमानन्द झाक जेबीमे रहै छथिन... मुदा बात त’ बुझिऐ, जे हमरा सबकेँ भेंट किऐक नइं होइत अछि?
-से साहेब हमरा नइं कहलनि अछि। ओ एखन फाइल देखबामे लागल छथि। अपने लोकनि काल्हि आबी। हमरा इएह हुकुम भेटल अछि!-रौदी अपना भरि कोमल भ’ क’ बाजल।
-त’ जाह! अपन साहेबकेँ कहि दहुन, परमानन्द झा चललाह। आब कहियो फेर ई देह एत’ पैर धरि नइं देत। हह... हद्द भ’ गेल साहेब! तीन दिनसँ कुसोथ्थरि देने एत’ बैसल छी आ हिनका लेखें धन-सन। कहै लए हमरा लोकनिक प्रतिनिधि छथि...।
बाबाक बात बिच्चहिमे रुकि गेल। फाटकक आवाजक संग ड्राइंगरूमक दरबाजा खुजल। सामने गहुमनक खूनल पोआ जकाँ लहलह करैत, एक हाथमे जरैत सिगार आ दोसर हाथे साँची सम्हारने नेता जी, माने नरे बाबू छलाह। ओ एकटक बबाजी दिस तकैत बजला-की बाजि रहल छलहुँ एखन?
बबाजी असमंजसमे चुप्पे रहला।-अहाँ हमरे घर आबि क’ हमरे गारि पढ़ि रहल छी। एत्ते हिम्मति अहाँकेँ? के छी यौ अहाँ?-नरे बाबूक स्वर बाबा खड़ग सिंह मार्गक यातायातक स्वरसँ ऊपर उठि चुकल छल।-जी हमरा लोकनि तीन दिनसँ घूमि रहल छी।-बबाजी अपन दाढ़ी पर हाथ फेरैत बजला।
-त’ की भेलै! अहाँ तीन कि तीस दिनसँ अबैत होइ। ई झोंटा-दाढ़ी बढ़ा क’ हमरा प्रभावित करए चाहैत छी। हम सात दिन धरि भेंट नइं करब। अहाँ कि कोनो पार्लियामेन्ट छी जत’ हमरा जाइए पड़त?-नरे बाबू चश्मा उतारि क’ हाथमे लेलनि। एतबे गरजलासँ हुनकर ब्लड प्रेशर बढ़ि गेल रहनि। ओ बबाजीकेँ गीरि जाइबला नजरिसँ देखि रहल छलखिन। बबाजीकेँ सनाका लागल रहनि। छीतन जी आ ओ पम्हउट्ठा छौंड़ा एखन धरि विमूढ़ जकाँ ठाढ़ भ’ ई सभ चकित भेल देख रहल छल। किछु काल त’ क्यो किछु नइं बाजल। नरे बाबू स्वयं एहि नातिदीर्घ अन्तरालकेँ तोड़लनि आ बबाजीकेँ डपटैत पुछलखिन-की काज अछि अहाँकेँ?
-जी हमरा नइं, हिनका छलनि। ई अपने इलाकाक सुरेन्द्र झाक बालक आइ. आइ. टी. मे प्रवेश चाहैत छथि। अपनेक अनुशंसा चाहैत छथि!-बबाजी धखाइत बजला।
-हम ने हिनका चिन्हैत छिअनि आ ने जनैत छिअनि, तखन अनुशंसा कोना करबनि!
-जी कुशेश्वरक सुरेन्द्र झाक बालक छथि ई।-बबाजीक ई उत्तर सुनिते नरे बाबू फेर तिड़ंगला।
-हम कुशेश्वर स्थानक ककरो नइं चिन्है छिऐ। कोनो सुरेन्द्रक दर्शन धरि नइं भेल अछि आ ने होएत।
-जी ओ अपनेक चुनावमे जी-जान लगौने छला। ओतुक्का प्रमुख छथि। एकबाली लोक छथि!
-एकबाली रहथु कि सिकन्दर। लाउ कत्त’ अछि फौर्म! लाउ लिखि दैत छी जे ने हम हिनका चिन्है छिअनि आ ने हिनकर बापेकेँ। इह, पूरा परोपट्टाकेँ लोकक जनबा-चिन्हबाक जेना हम कोनो ठीका नेने रही!-नरे बाबू एतबा बजैत-बजैत पस्त भ’ गेल रहथि। बबाजीक जवाब हुनका आर उत्तेजित क’ देने रहनि। ई चिकड़ा-भोकड़ी सूनि ओ पैंट आ गंजी वाली कत’सँ पहुँचि गेलै क्यो ने देखलकै। ओ थरथराइत आ घुमड़ैत नरे बाबूकेँ अपन पाँजमे ध’ नेने छलनि। ओहि छौंड़ीक ढेसा नेने नरे बाबू दिवान पर बैस रहला। हुनकर आँखि बन्न छलनि, शरीर निढाल। ठोरक दुनू कोर पर फेन आबि गेल छलनि। ई तीनू सामने ओहिना इतस्ततःमे ठाढ़ छला... दाढ़ी पर हाथ फेरैत धवल जटाजूट बला बबाजी... हाथक फिल्मी पत्रिकाकेँ मचोडै़त पम्हउट्ठा छौंड़ा, आ काँख तर पोटरी दबौने छीतन सदा।
छौंड़ीसँ टेक नेने नरे बाबू माथकेँ ग’र लगेबाक प्रयास केलनि आ हुनकर आँखि खूजि गेलनि। आगूमे पूर्ववत ठाढ़ ई तीनू गोटेकेँ देखि ओ फेर चिचिएलाह-जाउ अहाँ सभ!-नजरि पाछाँ ठाढ़ छीतन पर पड़लनि, त’ ठहरि गेलनि-तोरा की छियौ रौ?
-जी हमरा जे बुढ़ा मालिक जमीन देने रहथिन तइ पर रामबरन...
-जी हमरा जमीन पर रामबरन...-नरे बाबू मुँह दुसैत छीतनक बात दोहरेलनि। बनकट्टाक माइन्जन छीतन सदाकेँ एतबे बाजि भेलनि। नरे बाबू ओहिना गरजि क’ कहलखिन-जमीन पर झँझट छौ त’ कोट-कचहरी जो। थाना पुलि कर ग’। हमरा लग की करै लए अएलें? खाली तंग करै लए? भरि दिन तोरे सबहक काजमे लागल रहै छी से क्यो देखनिहार नइं।-एतबा बाजि ओ ओहिना ओलरल आँखि फेर बन्न क’ लेलनि। असोथकित नरे बाबू। किछु काल इहो लोकनि जकथक ठाढ़ भेल रहला कि ओ छौंड़ी एकबाइग कोरामे पड़ल नरे बाबूक बन्न आँखिकेँ देखि हिनका सभकेँ बाहर चल जाइक इशारा केलकनि।
ओना रातिक दस बजैत हेतै, मुदा बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर यातायात पूर्ववते छल।

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करमी झील
जीवकान्त

रातिमे पानि पड़ए लगलै। बड़का-बड़का बुन्न। चारू कात झीलमे पानिक बुन्न शब्द करए लगलै, जेना हजार टा बजनियाँ अपन-अपन मिरदंग ल’ क’ एक सम बन्हने होइ।
बीकोक आँखिमे निन्न कहाँ? ओकरा बरखाक डर होइत छलै। बरखा जोर करतै तँ ओकर छहर टूटि जेतै, ओकर दरबज्जा आ बाड़ीक माटि खँघरि जेतै। ओकर पूँजी भासि जेतै। परुकाँ बीच साओनमे कदाचित् एहने बरखामे ओकर छहर टूटि गेल रहै। पचीसो गाड़ी माटि ल’ क’ पानि भागि गेल रहै।
गोहालीक मचानसँ ओ उठल। मचानक खुट्टामे लटकाओल रहै ओकर चारि बैटरी बला टाॅर्च। तकरा कातमे रहै ओकर फरसा। बरसाती रहै, से माथ पर लेलक आ दरबज्जा पर आबि एक बेर ओ छहर पर इजोत देलक। पानि पड़ैत रहै। छहर जेना सीझल जाइत रहै। छहरक उत्तरमे जोड़ल पजेबाक देबाल पर बुन्न खसै, तँ सहस्सर टुकड़ीमे टूटि छोटका बुन्न भ’ ऊपर मुँहें उड़ि जाइ...।
बीकोकेँ सन्तोख भेलै। कोनो आदमी नइं, कोनो मूस-तूस नइं। छहर सुरक्षित। ओकर माटि सुरक्षित।
एक बेर ओ झीलक पानि पर टाॅर्चक इजोत देलक। बुन्नसँ पानि पर छिटका छुटै। हलुआइ जेना बुनियाँ छनैत होइ, आ कड़ाहीक तेल जेना छन-मन करैत होइ।
आ, जेना एक सए मिरदंग ल’ बजनियाँ सभ सम बन्हने होइ।
किसनीगंजसँ देवघारा गाम होइत रमपुरा धरि झील बनि जाइत छै, तीन मास, चारि मास। छहर नइं टुटलै, तँ एहि बेर छओ मास झीलमे पानि नइं सुखएतै। कतहु-कतहु करमीक लत्ती चतरि जाइत छै। जाड़मे बेसी ठाम सेमार ध’ लैत छै। ओ एहि झीलकेँ देखि मुग्ध होइत अछि। ओकर नाम ओ देने छै-करमी झील। तीन गामक एहि बाधमे धान नइं होयतै, करमी होयतै। लोक कहैत छै बीको पानि बन्हने छै। पानि ओ ठीके बन्हने छै। मुदा, ओ की करतै? धान नइं होयतै, तँ ओ की करतै?
बुन्न किछु कालक बाद बन्न भेलै। ओ अपना मचान धरि आएल। घोघी उतारि क’ मचानक एक खुट्टा पर ध’ देलक। टाॅर्च एक कातमे रखलक। ओ करओट देलक।
आँखि मुना जाइ आ ओ आँखि भक् द’ ताकि दिअए। ओकरा होइत छै जे चोर लागल छै, बान्ह काटि देतै। बान्हल पानि हहुआ क’ बह’ लगतै। ओकर दरबज्जा आ बाड़ीक माटि पानि संगें बहि जेतै।
ओकरा मोन पड़ैत छै। नेना रहए, तँ एहि ठाम द’ तीन मास पानि बहैत रहै। पानि हेलि कए लोक अद्भुतनाथ महादेवक मन्दिर जाए, गामक पछबरिया बाध जाए। से आब लोक सुखले जाइत अछि।
पश्चिममे छै महादेवक मन्दिर। अद्भुतनाथ महादेव। चकरडीहा बजारक सेठ ओहि ठाम गौरी मन्दिर बना देलकै अछि। एक टा धर्मशाला से जोड़बा देलकै अछि। दू-तीन गामक भगत एहि ठाम अबैत छै। पूजा-पाठ करैत छै। सालमे तीन बेर अष्टयाम आ नवाह कीर्तन होइत छै।
मन्दिर छै ऊँचका टिहुली पर। त’रमे पुरना छोटका ईंटा भेटैत छै। कहैत छै कोनो राजाक गढ़ छलै।
मन्दिरसँ नीचाँ कोनो धार छलै। तकर नासी तीन साल पहिने धरि बहैत रहै। नासी पर पुल नइं रहै। भदवारिमे नासीमे पानि बहैक। बाट पर झबका भ’ जाइक।
नासीक बाद रहै टोल। ओकर टोल किसनीगंज। टोलक बाद पूबमे रहै कोसीक बान्ह। बान्हक पूब भुतही बलानक एकटा नासी बहैत रहै। बान्हमे फाटक रहै, सुलूस गेट। किछुए दिनमे भुतही बान्हक भीतर भरि क’ बाधकेँ ततेक ऊँच क’ देलकै जे सुलूस गेट बन्न। सभ दिन लेल जाम।
टोलक बीच देने रेलबी सड़क। दरभंगासँ रेलगाड़ी अबैक आ निरमली जाइक।
तीन गामक पानि एहि नासी दने बहैक। देवघाराक पानि, फेर रमपुराक पानि, ओहिसँ पहिने बेलहीक पानि। लोक कहैत छै बेलहीमे आर तीन गामक पानि एकट्ठा होइ, आ किसनीगंजक एहि नासीक बाटें रेलबी खत्तामे खसि पड़ै। रेलबी खत्ता देने ओ देवघारा गामक पश्चिम पी. डब्लू. डी.क सड़कक पुलमे खसैत छलै आ आगाँ ओ रेलबी पुल तर दने भगैत छलै। तकरा आगाँ ओ गहुमा नासीक पानिमे मिलि जाइत छलै। ई सभटा आगाँ जा क’ कमला बलानमे खसैत छलै।
एहि साल ई पानि बन्न छै।
किसनीगंजक बाध, देवघाराक एकटा बड़का बाध पानिमे डूबल छै।
बीको करौट फेरि लेलक।
तीन सालमे एहि बाधमे बहुत परिवर्तन भ’ गेल छै। चालीस बर्ख पहिने कोसी बान्ह बन्हने रहै। एहि बाधक पानि बहबा लेल कोसीक इंजीनियर सभ एकटा फाटक देने छलै, सुलूस फाटक। बान्हक भीतर बहैत रहै भुतही बलान। से ओकरा जाम क’ देलकै। एहि कात छोटकी नासीसँ पानि बहैत छलै। तकरा ओ बन्न कएलक अछि। जे छल बाधक सोंसा, से बन्न भ’ गेलै। एहि तीन सालमे जनमलैक अछि एकटा झील। करमी झील।
बीकोक टोलक लोक महीस पोसैत अछि। खेतीक बाद महीस रहै छै आ पाड़ाक पैकारी रहै छै। ओ समर्थ भेल, तँ पाड़ा ल’ क’ आसाम गेल। पाड़ा कीन’ लागल आ बेच’ लागल। बहुत कारबार पसरि गेलै।
फेर देखलक आसाममे तंग कर’ लगलै। पाइ छीन’ लगलै। लोककेँ बन्हकी बना लै। आसाममे कमाइ बेस रहै। मुदा, क्यो देखनिहार नइं। ओ आसाम छोड़ि देलक।
गाममे जमीन लेलक। गाममे देखनिहार छै। सोचलक गरीबो रहत, तँ आब गाममे रहत।
फेर ओकर ध्यान गेलै एहि नासी पर। एहि टोलक लोककेँ पानि हेलि क’ मन्दिरक पच्छिम बला गाछी आ परती दिस आब’ पड़ैक।
नासी बला जमीन भरि साल खसल रहै। कोनो साल किछु भ’ जाइत रहै, सएह बहुत। परते रहै, से कहब ठीक हेतै।
ओ खोज कएलक तँ ओ पाँच कट्ठा नासी रहै देवघारा गामक माल बाबूक। ओहि गाममे माल बाबूक बहुत जमीन रहै। सभ बाधमे जमीन रहै। एहने दोग-दागमे, खसल-पड़ल, परती-पराँट जमीन बेसी रहै। एहेन जमीन किनबा काल सस्तमे भ’ जाइत छै। ओ लेबाक बात कएलक। ओ जमीन ओकरा भ’ गेलै। ओकरा आश्चर्य भेलै जे जमीन ओकरा पैरि लागि गेलै।
सत्ते, ओहि जमीनक लेबाल नइं रहै। नइं तँ बस्तीक कातमे, बाटक कातमे, ई जमीन ओकरा नइं होइतै।
माल बाबू मरि गेल रहै। ओकर ओलादि सभ जमीन बेचि देलकै। पैसा ल’ लेलकै। जमीन रजिस्ट्री क’ देलकै।
फेर ओ साले-साल ओकरा भरओलक। दू साल पहिने ओ ओहि ठाम गोहाल ल’ अनलक। सतरह हाथक घर छै। पाड़ा कीनि क’ अनैत अछि। रखैत अछि, फेर बेच दैत अछि। आब अपने सिंहेश्वर थान मेला धरि जाइत अछि। आसाम नइं जाइत अछि।
ओकरा आँखिक आगाँ सभटा बात घुमैत छै। नासीक पानि। डुबलहा रस्ता। आसामक जंगल आ पहाड़। रजिस्ट्री आफिस। एहि जमीनक माटि भराइ। पछिला साल छहरक टूटब। माटिक भासब।
फेर रेलगाड़ीक इंजिन पुक्की देलकै। भदबारीमे रेलक आवाज बढ़ि जाइत छै। आश्चर्य छै, गाड़ी कोना चलैत छै। पानि लागल छै दुबगली। कतोक बेर लाइन टुटि जाइत छै। गाड़ी बन्न भ’ जाइत छै।
तीन बजे भोरुका पसिन्जर गाड़ी थिकै ई। आब जाग भ’ जएतैक। उबेर... चरवाह महीसकेँ पस्सर चराबए बहार करतैक। जाग भेल छै।
भोरुकबा उगल छै। आब के चोर अओतैक? के बान्ह कटतैक?
बीकोक आँखि लागि गेलै। भोरुका हवा ओकरा ठोकि-ठाकि क’ सुता देलकै।

पछिला साल एक्के बरखामे बाध डूबि गेलै। झलक’ लगलै बाध। कोसी बान्हक पच्छिम रेलबी लाइनसँ किसनीगंज, देवघारा आ रमपुराक बाध धरि चानी पीटि देलकै।
ओकर भरलहा माटि पर पानि चढ़ल नइं रहै, मुदा लगै जेना आब चढ़लै, तब चढ़लै। भरलाहा माटिक उत्तरमे पजेबाक देबाल जोड़ा देने रहै, आ ओ चैनसँ देखैत रहए।
ओकर पित्ती बीदो काका आबि क’ कहने रहै-बिकरम्मा, ई पानि बड़ कड़गर छौ, अदौसँ ई पानि एही बाटें बहैत छै। ई पानि मानतै? ई पानि नइं मानतै।
ओ कहने रहै-पानियोक बान्ह-छेक होइत छै बीदो काका।
बीदो कहने रहै-पानि बन्न भ’ जेतै। एतेक टा बाध खसल रहि जेतै। हजारो आदमीक मुँहमे जाबी लागि जेतै।
बीको जवाब नइं देने रहै। ओ माटिकेँ सरिअबैत रहए, जे भरलहा बाड़ी पर पानि नइं चढ़ै।
एक राति साँझसँ भोर धरि मेघ झहरैत रहलै। ओहो बुझैत रहए, जे दसोटा जन रखने पानिकेँ बान्हल नइं जा सकैत छलै। पछबारी कातसँ पानि चढ़ब शुरू भेलै। ओ उठि-उठि क’ देखैत रहल। पानि अपन बाट बना लेलक। पानि बह’ लागल रहै। फेर पानि वेग ध’ लेलकै।
एक बेर आवाज भेलै। उठि क’ ओ देखलक पजेबाक देबाल कटि क’ खसल रहै।
भोरमे उठि क’ देखने रहए, पानि बहैत रहै, ओकरा संग माटि खँघरैत रहै। बहुत रास पजेबा पानि संग घिचा गेल रहै। लगै जेना पजेबाकेँ जन लगा क’ छिटबा देने होइ।
बाट ओ जे बना देने रहै, से टुटि गेल रहै। फेर अद्भुतनाथ महादेवक मन्दिर धरि जेबाक बाटमे पानि रहै, झबका रहै।
ओ बुझने रहए जे ईंटाक देबाल गिलेबा पर जोड़ल छल, तैं टुटि गेल रहै। ओ पछिला साल निश्चय कएने रहए जे ओ आगाँ सिमटी पर पजेबा जोड़ओत। आ जँ गिलेबे पर जोड़ाओत, तँ सिमटीक टिपकारी जरूर करा देत।
पछिला साल ओ बहुत बात देखने रहए। कतबा पानि अबैत छै, आ कोना अबैत छै। सभटा देखने रहए।
जखन ओकर बाड़ीमे भरलाहा माटि बहुत धोखड़ि गेल रहै, आ पानि नासीमे दिन-राति बहए लगलै, तँ ओ बात अनठा देने रहए। ओहि बीच देवघारा गामक दू गोट छोट-छोट गिरहत एहि दने टपल रहै। साइत घासक बोरा माथ पर नेने टपैत रहै। ओ दुनू गोटे बात करैत टपैत रहै। बादमे जखन ओकर ध्यान गेलै, तँ ओ बुझलक जे ओ दुनू गोटे ओकरे बारेमे बात करैत छलै।
जागे बाबू कहने रहै-ई जमीन जा धरि अपना गामक माल बाबूक पल्लामे रहै, ओ पानिक बहनारि रहए देने रहै।
ओकरा जवाबमे भाले पण्डित कहने रहै-जागे बाबू, पहिलुका लोकक विचार दोसर रहै। माल बाबू बूझथि जे पाँच कट्ठा जमीनमे कतेक उपजा हेतै? पानिक निकासी जँ छूटल रहतैक, तँ पाँच सए बीघामे एहि च’रमे धान उपजतै आ हजारो गोटाकेँ आहार भेटतै।
जागे बाबू कहने रहै-समय बदलि गेल छै। जे धरती माल बाबूक पल्लामे रहै, से धरती आब खढ़भुसिया लोकक हाथमे आबि गेल छै। लोक आब एहिना बाट-घाट बन्न क’ देतैक। फड़फड़ा क’ सभ मरत।
भाले पण्डित कहलकै-लोक एखन की चण्डाल भेल अछि, आगाँ आर चण्डाल हैत। लोक लोककेँ खा जाएत।
गपक क्रममे जागे बाबू कहने रहै। नासी टपि गेलाक बाद कदाचित् बाजल रहै। भ’ सकैछ जीह दाबि क’ बाजल होइ। कहने रहै-भगवान कतहु गाम गेलखिन-ए? महादेव उद्भूतनाथ अपन महिमा देखा देलखिन। राता-राती पानिक बाट खोलि देलखिन आ डूबल बाधकेँ जगा देलखिन।
बीको सुनने रहए आ कठुआ गेल रहए।

फेर एहि साल जेठ मासक बात थिकैक। बीको ज’न लगा क’ माटि भरबैत रहए। पछिला सालसँ हाथ-दू हाथ ऊँच क’ माटि भरा देने रहए। फेर नव पजेबा मँगा क’ देबाल जोड़ौलक। सिमटी-बालु पर देबाल देलक।
बीदो काका आबि क’ बैसल रहै, बड़ी काल धरि बैसल देखैत रहलै। कहने रहै-बीको एहि बेर खूब भरले हें।
-एहि बेर सिमटी पर पजेबा जोड़बा देलिऐ, काका।
-आर सभ तँ ठीक छौ बीको, पानिक बहनारि बन्न भ’ जेतै।
बीको चुप भ’ गेल।
बीदो काका जखन जाए लगलै, तखन बीको परास्त भावसँ कहने रहै-बीदो काका, तों छह, तैं कहैत छियह-किसनीगंजक लोक, की देवघारा गामक गिरहत सभ कत’ गेल अछि? ककरो किऐ ने देखाइत छै ई देबाल, एहि देबालक सिमटी?
एहि साल फेर बेसी काल रातिकेँ पानि होअए लगलै। एहिना ओ राति भरि जागि क’ आ दिनमे ओगरि क’ पहरा देअए। बीकोकेँ प्रसन्नता होइ जे एहि बेर एखन धरि देबाल पानिकेँ अड़ओने छै।
भोरमे ओ अबेर दबा क’ उठल रहए। बीदो काका आएल रहै। ओ देखने रहै जे ओकर पित्ती बहुत उदास आ बौक रहै।
ओ पुछने रहै-बीदो काका, आइ देखैत छियह, बहुत उदास छह।
-पुछलें, तँ कहैत छिऔ, बिकरम! पछिला राति हमर उतरबरिया घर खसि पड़ल।
-पुरान भीत छलै, कका।
-नइं हौ, पानि फूलल जाइत छै। से पानि भीतक दाबामे लागि गेल छलै।
कनेक काल बीको चुप रहल।
थोड़बा काल बीदो कका चुप रहलै। बीदो कका फेर गप शुरू केलकै-बीको, पछिला दू दिनमे अपना टोलमे पाँच-सात टा भितघरा खसलै-ए।
बीको चुप रहि गेल।
फेर बीदो कका कहलकै-मलहटोली वला बान्ह छै, जे बड़का बान्ह पर जाइत छै, ताहि पर ठेहुन भरि पानि लागि गेल छै।
बीको मसखरीसँ बाजल-कका, एहि ठामसँ ओहि ठाम धरि पानिए पानि देखाइत छै। एहि झीलक नाम हम रखलिऐ अछि, करमी झील।
कका फेर बजलै-देवघारा गाम दिस जाए वला जे बान्ह छै, कोसी बान्हसँ निच्चाँ से ढहि-ढहि क’ कटि गेल छै। ह’र-ज’नकेँ हेला भ’ रहल छै।
बीको सुनलक आ चुप भ’ गेल।
कनेक काल बीदो कका चुप रहलै। फेर ओ गप शुरू केलकै-देवघारा गामक गिरहत सभ चाहक दोकान पर चर्चा करैत छै। कलक्टरकेँ दरखास्त देतै। सी. ओ.केँ पकड़ि क’ अनतै।
बीको गोहालीमे पैसल आ अपन फरसा उठा क’ बाहर अनलक।
बाँसक फट्ठाकेँ पट क’ रखलक, ओहि पर बालु देलक आ फरसाकेँ पिजाब’ लागल।
ओ सोचैत रहल आसाममे ओकरा देखनिहार क्यो नइं छलै। ओ आसाम छोड़ि भागि आएल। एहि ठाम ओकरा देखनिहार छै। कमी नइं छै। मुल्की लोक छै। एक टोल गोतिया छै। सात टोलमे ओकरे जाति छै जे जह-जह करैत छै।
ओ फरसा उठा क’ गोहालीमे मचान पर ध’ आएल आ ओकरा गमछासँ झाँपि देलक।
बीदो कका करमी झील दिस बौक भेल तकैत रहै। ओ बाजल-कका, एक बात कहिय’, आसाममे लोक छै से दोसर रंगक छै। साँझ होइ, की अन्हार होइ, चारि गोटे अबै छै, चारू कातसँ घेरि क’ किछु कहै छै... कोनो दसगर्दा काज लेल कहै छै। जरूरी भेल, तँ कपनटीमे बन्दूक सटा दै छै। एम्हरुका लोकसँ ओ सभ सात कच्छे नीक छै।

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झालि
सुभाष चन्द्र यादव

दिन लुकझुक करैत छै। रामा धान काटि क’ सबेरे आबि गेलै। ओना बोझ खरिहान लगबैत-लगबैत राति भ’ जाइत छै। आइ ओ हरे रामकेँ खेतमे छोड़ि देलकै। धाप पर खूब मोटगर क’ पुआर बिछएलक। बरहका भैया सरजुग कहलकै त’ घूरमे करसी सेहो द’ देलकै। रामाकेँ आइ नहा नइं भेलै तैं एतेक अगते जरौन लाग’ लागलै। धाप आ पुआर जबदाह छै। पिन्हनामे डोरिया पैंट रहलासँ तरबा लोह भ’ गेलै आ जाँघ-हाथक रोइयाँ भुटकल छै। चद्दरि नइं छै। भानस हेबा धरि घूर तापैत अछि। राति क’ हरे राम, गंगबा, बरहका भैया, आ ओकरा लेल एकटा मोटिया छै। सब एक पतियानीसँ ओंघरा जाइत अछि, त’ माइ एकटा पटिया ऊपरोसँ द’ दैत छै।
बिन्दुआ आ सुनरा कतहुसँ आबि पुआर पर बैसैत छै। सरजुग कहैत छै-कोने, कोनेसँ रे...
-एह, अहिना घुरिते-फिरते की।-बिन्दुआ कहैत छै।
-घूरमे आगि दही ने रामा रे।-सुनरा आग्रहक स्वरमे कहैत छै।
रामा कोनो उत्तर नइं दैत छै, आ पुआर खड़रैत रहै छै।
-हइ इएह गंगबाकेँ कहक ने।-देबलरयना अबैत-अबैत कहैत छै।
-लाबि ने दही गंगबा रे।-रामा हाथ बारि गंगबा पर तमसाइत छै।
-लाबि ने दही तोंही। हमहीं टा देखल रहै छियौ, नइं?-गंगबा खूब जोरसँ चिकरैत अछि।
-भने अइ सालाकेँ खेनाइ काल्हि बन्न क’ देने छलै। किछु कहलक तँ काने-बात नइं देलक।-रामा फेर दमसाबैत छै।
-माल छै की?-देबलरयना सरजुगसँ पुछैत छै।
सरजुग बुझैत अछि जे माल ककरा कहैत छै-डेढ़ टाकाके लेलियै रहए। सबटा सठि गेलै। आब जेबी झाड़ैत छियौ। निकलि जाउ तँ निकलि जाउ।
-ओएह त’ छौ एकटा जट्टा।-बिन्दुआकेँ भरोस होइत छै। गंगबा आगि लाबि घूरमे दैत छै। देबलरयना फूकि क’ सुनगाबए लगैत अछि।
-सरजुग एकदम भकुआएल अछि।-बिन्दुआक एहि बात पर सभ सरजुगकेँ देखैत अछि, आ हो-हो क’ हँसि दैत अछि।
रामा हाथ-गोर धो क’ अबैत छै।-हे रे, हँट-रामा गंगबाकेँ घुसकाबैत घूर पँजेठि लेब’ चाहैत अछि। ओकर टाँग आ हाथसँ भाफ उड़ैत रहै छै।
-हमरा की केलकै, वीरपुरमे अड़तालीस टाकाके पटुआ खरीद आ छिआलीसेमे बेचि लेलकै आ अइ ठिन छै बाबन।-देबलरयना गुल पजारैत कहैत छै।
-रौ तोरी, से किऐ?-सुनराकेँ परौसरामक बेकुफी पर छगुनता होइत छै।
-से नइं बुझलहक? हम घोड़ा ल’ क’ चलि एलिऐ आ अइ ठिन हमरा अरजुन पकड़ि लेलकै बियाहमे। चारि दिन बरदा गेलिऐ। आ जा-जा ओत’ गेलिऐ ता तक बेच देने रहै। हम कहि देलिऐ-हम हिस्सा-तिस्सा नइं देबौ।
-बेसी खैनी नइं दहक। कड़ा भ’ जाइ छै।-बिन्दुआ सरजुगकेँ बरजैत छै।
-गाजा कड़े ठीक होइ छै।-सरजुग लटबैत कहैत छै।
-बाप रे, पिरथी जे कड़ा पीबैत छै! पीलहक ए ओकर लटाएल?-सुनरा अतीतमे भटकि जाइत अछि।
-भाइजी, दुसधटोलीमे जे एक दिन लरमाहा पिलिअ’ रहए! मरदे, कचहरीसँ चोटाएल घुरल रहिऐ, चारि चिलम फूकि देलिऐ। से कहै छियह तुरन्ते ल’ क’ उड़ि गेलै। सनजोगसँ ओइ दिन संगमे एकटा पचटकिया रहए। सोचलिऐ साला उड़ि जो। लगले-लागल चारि कप चाह ढारि देलिऐ। से कहै छियह घुमरा कात अबैत-अबैत लागए जे चित्त भ’ जाएब। आबि क’ सूति रहलिऐक। भाइ उठबए एलै जे टिशन पढ़ब’ नइं जेबही? कहलिऐ, आइ नइं जेबै। बड़ थाकि गेल छियौ।-बिन्दुआ कहैत रहै छै आ सभ सुनैत रहै अछि।
-एह उ दुसधटोलियो कमाल छै-सुनरा कहैत छै तँ सभ हँसि दैत छै।
-दुसधटोली! दुसधटोली के की बिजनेस छै से सुनलहक? मौगी-छौंड़ी सभ, दिन आ भिनसुरको क’ कोइला बिछैत छै। मरद सभ दिनमे गाजा बेचैमे रहत आ छौंड़ी सभ राति क’।
सभ एके बेर भभा क’ हँसि दैत छै। बिन्दुआ हँसीमे जोग देलाक बाद कहैत छै-एकदिन दुसधटोलियेमे रहिअ’ भाइजी, आकि ओनएसँ छिनरो भाइ दरोगा पहुँचि गेलह। सबकेँ सर्च करए लगलै। हमरा पुछलक तँ हम कहलिऐ जे हमरा रुपैया बाँकी है, सो ही माँगने आए हैं।-तब पुछलक जे कैसा रुपैया? कहलिऐ सरबेमे काम किया था।-तब हमरा नइं किछु कहलक। दुसधाकेँ कनिएँ टा पकड़लकै, से छिनरो भाइ पचास टाका चट सिन ल’ लेलकै।
-ओइमे एकेटा छौंड़ी नीक छै, की हौ बिन्दु?-सुनरा एक सोंट मारैत कहैत छै।
-हँ, उ गोरकी छौंड़ी। उ सैनियाँक सारि छिऐ।
चिलम तीन-चारि रौन चलैत छै।
-जट्टा बाला गाजामे निशाँ बड़ जल्दी चढ़ैत छै।
बिन्दुआ चिलम दैत कहै छै-हे लैह!
तँ देबलरयना कहैत छै-ई तँ कुबेरक खजाना भ’ गेलह।
-तह-सरजुग पुष्टि करैत छै। कने काल सभ दार्शनिक जकाँ भ’ जाइत अछि।
-आइ-काल्हि घूरे लोककेँ जान बचबै छै।
-त, घूर नइं रहए तँ लोक कठुआ क’ मरि जाए!
-ठार खसब अखनेसँ शुरू भ’ गेल छै। सगरे धुइयाँ जकाँ पसरल छै।
कुहेसक पछारी नुकाएल चिन्ता कुहेस फाड़ि क’ निकलैत छै-केना चलतै, आँइ बिन्दुआ?-सरजुग टूटल स्वरमे पुछैत छै।
-बिन्दुआकेँ की छै? केहन टीशन पढ़बै-ए।
-नइं हौ, आइ-काल्हि बड़ा मुसकिल छै। बाबू ओतएसँ लिखलकै, जेना-तेना परिवार चला। पढ़ौनीबला एक डेढ़ मोन धान तसिललिऐ। लोक सभ देबे ने करैत छै हौ।-बिन्दुआ कहैत छै।
-आइ पढ़बए जेबही की?-सरजुग पुछै छै।
-हँ, हँ।-बिन्दुआ तेजीमे कहैत छै।
-रबियोकेँ बन्दी नइं?
-रबि-तबि बूझैत छै ओ सभ?
ता ओनयसँ छेदी चैधरी अबैत छै। ओकर अगिला दू-तीन टा दाँत टूटल छै। दाढ़ीक नमहर-नमहर खुट्टी सभ कोना दनि लगैत छै। घूर लग बैसिते ओ देबलरयनासँ पुछैत छै-अच्छा बोल, बेचबिही घोड़ा तों?
-हाय रौ बा, बेचबै नइं? बेगरता छै तँ।
-अच्छा एक्के बेर निस्तुकी दाम बोल।
-हमहुँ एक्के बेर निट्ठाह दाम कहि दैत छियह, पचपन टाका।
-बहुत कहै छिही। सुन! घोड़ाकेँ भरि पीठ घा छौ, आ चलै छौ त’ लापट लगै छौ। लोगो देखत तँ हँसत। कहतै घोड़ा झालि बजबैत छै।
गंगबाकेँ सभसँ पहिने हँसी लागि जाइत छै। ओकरे संगे सभ ठहाका लगबैत अछि।
-हम लगा देलियौ पैंतीस टाका। हँटा। भ’ गेलौ।-छेदी दाम पटएबामे तेज छै।
-ओतेमे नइं हेतह।
-सुन, हमरा उ घोड़ा नइं बिकत। कोइ लै ले जल्दी तैयारे नइं हेतै। पैंतीस वाजिब कहलियौ-ए। सरजुग, घोड़ाकेँ भरि पीठ घा छै।
-हे, घोड़ाकेँ घा कत’सँ एलै। कनियें टा पपड़ी ओदरल छै। उ जे कहबहक कोनो तरका घा छिऐ से नइं छै।
-अच्छा घा चोखेलै-ए की ओतबे छै?
-एह, आब कहाँ छै। एक्के रत्ती रहि गेलै-ए।
-घोड़ा अलगसँ देखैमे नीक लगै छै, मगर चीज नइं छै। हमरा तों द’ देबें ने, आ नहिओ बिकत तँ बुझबै दुआरे पर छै।
-खूब बढ़िया चीज छै। हम तँ कहै छियह दू-अढ़ाइ मन धरि लादि दै छिऐ।
-अच्छा, दामक-दाममे द’ दही। कतेमे नेने रही? पैंतालीसमे? छेदी! पैंतालीस द’ दहक आ ल’ लैह।-सरजुग तसफिया क’ दैत छै।
-अच्छा, जे ई सभ कहि देलकौ से भ’ गेलौ। हमरा भोरेमे घोड़ा द’ दे। जिनिस लादि क’ ल’ जेबौ आ बेचि क’ टाका द’ देबौ।
-नइं, से नइं हेतह। टाका भोरे द’ दहक। हमरा ओतए जाइके नइं रहितिए त’ हम घोड़ा बेचितिऐ कथी ले।-देबलरयनाकेँ शंका होइत छै जे ओ जल्दी टाका नइं देत।
-त तब कोना हेतै?
-सुनह, तों हमरा पहिने कहने रहित’ ने, तँ हम टाका पनरहो दिन छोड़ि देतिअ’। तों हमरा हटिया करए दैह आ ताबै टाकाक कोनो बनोबस करह।
-अच्छा तों काल्हि हटिया अबै छ’ ने?
-हँ-हँ, काल्हि हटिया नै करबै तँ काम चलतै?
-अच्छा तों हटिए पर आ।-छेदी कहैत चलि जाइत छै।
बात फरिछेलै नइं, से बिन्दुआ, सुनरा आ सरजुगकेँ बोझ-सन बुझाइत रहलै। घूर पझाएल जाइत छै। करसीमे खाली माँटिए छै। तरका गोइठामे एखन नइं धेलकै-ए।
-भूख लागि गेलै। कने मुरही-तुरही रहितै, नइं हौ भाइ जी?-बिन्दुआ कहैत छै।
-गाँजा पीने छहक तैं बुझाइ छ’। आन दिन बेरहट नइं खाइत रहक तइयो बुझाइत रह’ भूख?
-हँ, से ठीके कहै छहक।
बिन्दुआ उठि जाइत छै। सरजुग पुछैत छै-चलि देलें। बन्दी नइं?
-जाह, खरहू सब लग तोहूँ झालि बजबिहह।-गंगबा चैल करैत छै।
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कैलेण्डर
महाप्रकाश

ओना कही तँ बात किछु नइं-एकटा कैलेण्डर रहै।
एकसँ एक कैलेण्डर, दिनांक कि चित्रा बनैत अछि, आ कतेक तँ महीना कि वर्ष समाप्त हेबासँ पूर्वहि फेका जाइत अछि। लोक ने दिनांक मोन राखि पाबैत अछि, ने चित्रा, ने फोटो...। मुदा कौखन, किछु बात होइत अछि जे अपनामे एकटा दिनांक... एकटा चित्रा बनि जाइत अछि।
असलमे सुमन सिंह डेरामे आबिते बाजि उठल छल-सर फस्र्ट क्लास डेरा अछि... रूम सेहो हवादार अछि। ई भेल क्वार्टर। ओना त’ सभ सुविधा एक संगे भेटब मोस्किल... तैयो... वाह...।
सत्ते... एकटा बड़का मोस्किल अछि लैट्रीनक...। चारि कट्ठाक पैघ प्लाॅट। चारू कात नारियरक सघन गाछ। पश्चिमसँ एकटा ‘मैन होल लैट्रीन’ खूनल रहै। सेहो मकान-मालिक हुनके सभहिक सुविधा लेल खुनौने छल। ओना तँ कहने छल जे... अहाँ सब हमरे लैट्रीन व्यवहार करू... मकान जेना नारियलक गाछसँ घेराएल आकर्षित करैत छल... तहिना लैट्रीनक अभाव उदास आ विरत करैत छल।
चाह पीबैत काल धरि शहर, मकान, आ भाड़ाक मादे अनेक तरहक गप्प होइत रहल। ओना जयवर्द्धन बूझैत रहथि जे अपना बूते जे भेटल अछि से बहुत थिक... दूरसँ देखू तँ महल... लग आउ तँ मात्रा परदा...।
सुमन उठैत बाजल-सर एहि घर लेल, असलमे अहाँ लेल एकटा एहेन वस्तु रखने छी जे... बुझू जे तकर असली आ वाजिब मालिक हमरा बुझने अहीं टा भ’ सकैत छी... हम ईहो कहि दैत छी जे अहाँ कतोक वर्ष धरि ओकरा अपनासँ अलग नइं राखि सकब...।
सुमन सिंह जाहि वस्तुक रहस्यमय चर्चा विस्तारसँ कएने छल तकरा देखबाक किंवा ल’ अएबाक उत्सुकता आ इच्छा रहलाक बादो जयवर्द्धनकेँ जीवन निर्वाहक छोट-छोट चिन्ता आ व्यवस्ततामे पलखति नइं भेलनि। बिसरियो जइतथि जेना। कतोक रास इच्छा कामना आ आवश्यक बात हुनका सन लोक बिसरि जाइत अछि।
जेना अपनामे हेराएल, कि थाकल, कि घरक रस्ता मोन पाड़ैत घुमैत छलाह कि सुमन बीच रस्तामे आबि टोकलकनि-सर, अहूँ सरकारी आश्वासन जकाँ समय पर बिला जाइत छी।
ओ मात्रा हँसलाह। बाजि नइं सकलाह। गत भेंट-वार्ताक निहित अर्थ छल जे आबी आ ‘वस्तु’ ल’ जाइ से हुनका मोन पड़लनि।
सुमन सिंह हाथ पकड़ि अपना ओत’ ल’ गेल। ड्राइंग रूममे सोफा पर प्रायः ठेलैत बाजल-सर... किछु भ’ जाइ...
सुमनक ‘सरस सलिल’ लेल संकेत ओ बुझलनि किन्तु ओ ट्यूब-लाइटक रोशनीमे जे... जेना देखलनि, ओहिसँ चैंकि गेलाह। देबाल पर एकटा प्राचीन दुनलिया बन्दूक टाँगल छल आ ओकर दहिना कात छल दक्षिणी कालीक एकटा पैघ ‘ब्लो अप’। समस्त संस्कृतिमे इएह टा नांगट मौगी पसरल अछि जत’ ककरो मूड़ी नइं उठैत अछि। जयवर्द्धन बजलाह-ई देखैत छी...?
-छोड़ ू ने... राजपूतक घर छिऐ... कतेक विचित्रा आ विशिष्ट वस्तु सभ देखबैक...-सुमन बाजल-की...?
-नइं, आब अखन नइं... रातुक नौ बजैत अछि... ओहिना अबेर भ’ गेल अछि चित्त शान्त नइं हो तँ पीबाक कोन आनन्द...।-जयवर्द्धन कहलनि।
-दिल तोड़ने वाली बात?
-नइं आश्वासनसँ जोड़’ बला बात...।-प्रायः दुनू गोटे हँसलाह।
सुमन उठल आ आलमारीसँ एकटा रंगीन पत्रिका सन वस्तु हुनका थम्हा देलक। पहिने तँ हुनका भेलनि जे कोनो साप्ताहिक थिक... पाछाँ देखलनि जे कैलेण्डर रहए, रूसी कैलेण्डर-सेहो चारि सालक एक संग...।
-देखियौ...-सुमन सिंह हाथ पर टाँगक मुद्रामे उठौलक आ पात उनटा क’ देखाब’ लागल-निचला पात पर दिनांक आ ऊपरका पर फोटो, पहाड़ पर बर्फ... ग्लेसियर... उज्जर आ नील रंग... पानि नइं, मात्रा उज्जर आ नील... गलेसियरक अनेक रूप, पहाड़क अनेक मुद्रा... कतहु जएह रूप जमीन पर सएह आकाशमे।
-सत्ते ‘...इंचै नाटिंग’ अछि... वाह।-हुनका मुँहसँ निकललनि।
-राखू, एज ए टोकेन आॅफ माइ रेस्पेक्ट एण्ड रिगार्ड।
कोठरीसँ निकलि अएलाह जयवर्द्धन। दुनू कात तेमहला, गलीमे, पछबा हवाक दाब आ आवाज तेज बुझना गेलनि। चैत मासक अन्तिम इजोरिया ठंढसँ प्रायः, भीजल छल। गली पार करैत ओ सड़क पर आबिते डेग तेज क’ देलनि।
कैलेण्डर पाबि ओ सत्ते प्रसन्न छलाह। सुमन सिंहक आदर आ स्नेह सेहो चिन्हबामे अएलनि। मोन पड़लनि सदैव अपन कान्ह पर कैमराक थैला लटकौने, मन्नू भैया। एहि खन ओ रहितथि तँ कैलेण्डर देखि कहितथि-अमुक तरहक कैमरा... अमुक-अमुक लेंस... जूम की टेली... फलां तरहक ‘फिल्टर’सँ कोना आबजेक्टक स्टेटमेंट बदलि जाइत छै...।
कैलेण्डरक फोटो, कि मन्नू भैयाक फोटोग्राफीक ज्ञान, कि प्राप्तिक उत्तेजनामे ओ हर्रफ चलल जाइत रहथि... कि बुझबामे अएलनि जे क्यो हुनके हाक द’ रहल अछि। ओ ठमकलाह। प्रोफेसर आर. एन. सिंह लग अबैत बजलाह-बड़ बेसुध रहै छी... कातो करौटवलाकेँ देखल करियौ...-फेर ओ अपन आदतिसँ हँसलाह-खूब पढ़ैत छी... कोन पत्रिका छी...?
-पत्रिका नइं... कैलेण्डर छी... दिने निकलल रही...-जयवर्द्धन विलम’सँ अपन असमर्थता प्रकट कएलनि।
किन्तु हुनका दिस बिनु ध्यान देने प्रोफेसर सिंह बजलाह-अरे देखहु दिअ’-आ हाथ आगाँ बढ़ा देलनि। ओ कैलेण्डर हुनका हाथमे दैत अनिच्छुक रहलाह।
प्रोफेसर सिंह इजोरिया रातिमे सड़क पर ठाढ़ कैलेण्डर उनटबैत विस्मित होइत रहलाह। जयवर्द्धन कौखन प्रो. सिंहकेँ देखैत आ क्षणहि कैलेण्डरकेँ। इजोरियामे ग्लाॅसी पेपरक कैलेण्डर... नील आ उज्जर फोटोग्राफी... ठीके एकटा विशेष अर्थ द’ रहलैए।
-अदभुत... विलक्षण... अहाँ ई ल’ क’ की करब... द’ दिअ’ हमरा... क’त’ टाँगब अहाँ... हमरा ओत’ लोको देखतैक तँ कहतैक-वाह!-प्रो. सिंह कैलेण्डरक पात उनटबैत बाजैत रहलाह।
जयवद्ध्र्रनकेँ लगलनि ई कोनो प्रोफेसरक स्वर नइं, कोनो ‘बूचर’क स्वर थिक। प्रो. सिंहक मंशा बुझि ओ अवाक रहि गेलाह। एहि स्थितिसँ बहराइत बजलाह-से त’ किन्नहु नइं देब...! ई एकटा स्नेही व्यक्तिक उपहार थिक।-ओ प्रायः झपटि लेबाक प्रयास कएलनि। किन्तु अनेकानेक छात्रा सभहिक बीच रहबााक अनुभव आ उम्र हुनके रहनि।
एतबहिमे डाक्टर के. के. झा अभरलाह-डाक्टर साहेब... अहाँ... जयवर्द्धन जी! कत’ रहै छी... दर्शनो नइं...
डाक्टर झा, प्रोफेसर सिंहक पड़ोसी छथिन। अगले-बगलमे क्वार्टर छनि। दुनू गोटे एक दोसरकेँ ‘डाक्टर साहेब’ कहि सम्बोधित करैत छथि। कान्ह पर तौलिया रखने, एहि खन, भोजनोपरान्त सड़क पर हवाखोरी लेल आबि गेल रहथि।
प्रो. सिंह बजलाह-देखू... जयवर्द्धन जी कतेक सुन्दर कैलेण्डर उपरौलनि अछि...।
-देखू...-बजैत डा. झा हाथ बढ़ौलनि, आ प्रो. सिंह हुनका हाथमे कैलेण्डर थम्हा देलखिन।-अजगरसँ छूटल; गहुमन लग गेल-जयवर्द्धनकेँ एहने लगलनि।
डाक्टर झा इजोरियामे कैलेण्डर पसारि देखैत बजलाह-सत्ते डाक्टर साहेब, फोटोग्राफक विषय-वस्तु विरल अछि... धन्य कही फोटोग्राफरकेँ... वाह रे वाह.... यौ, जयवर्द्धन जी... अहाँ दोसर उपरा लेब... डा. झा जयवर्द्धनक प्रायः हाथ पकड़ैत बजलाह।
-सर एकटा मित्रा ‘प्रेजेंट’ कएलक अछि... नइं द’ सकब।
हुनका स्वरमे किंचित क्षोभ आ आक्रोशक मिश्रण रहनि।
प्रो. झा जयवर्द्धनक भाव प्रायः बुझैत बजलाह-डाक्टर साहेब... आउ, एक बेर पान भ’ जाए... रोशनीमे कैलेण्डर सेहो देखब... नीकसँ...-ओ जयवर्द्धनक हाथ धएने रहलाह।
विवशता आ शालीनताक बीच पिसाइत दुनू प्रोफेसरक व्यक्तित्वसँ आक्रान्त जयवर्द्धनकेँ डाक्टर झाक आग्रह मानहि पड़लनि।
डा. झाक कोठलीमे चारू कात मोट-मोट पोथीक टाल, देबाल पर साहित्यक महारथी सभहिक पैघ-पैघ फोटो आ टेबुल पर रंगीन टी. वी., एक दिस ऐतिहासिक होइत सोफा सेट आ मध्यमे एकटा पलंग। डा. झा स्वयं पलंग पर बैसैत कैलेण्डर पसारलनि। आँखि पर चश्मा चढ़बैत बेटीकेँ आदेश देलनि-अलका... तीन टा चाह बनाउ... आ पानक बासन दिअ’।
विवश, जयवर्द्धन कटल गाछ जकाँ प्रो. सिंहक संग सोफा पर खसलाह। टी. वी. पर चलैत कोनो ऐतिहासिक सीरियलकेँ बुझबाक प्रयासमे अनायास लागि गेलाह। प्रोफेसर झा बजलाह-हमरा सभ कमला-कोशी-बलानक लोक... पानिकेँ तँ बुझि सकैत छी... बर्फ... ग्लेसियर आ पहाड़क... बोध किताबी अछि... आ ई कैलेण्डर, बुझलहुँ डाक्टर साहेब... हिमनद आ हिम पहाड़क बोध... बुझू जे पकड़ि क’ दिमागमे घुसा दैत अछि...।
-से ठीक कहलहुँ डाक्टर साहेब, रूसी सभ होइतो अछि बड़ विशेष! जेहने कर्मठ... तेहने कलाकार सभ... एकटा बड्ड पैघ कलाकार रहै... देखू ने नाम बिसराइत अछि... अरे... हिमालय पर बहुत रास... पेंटिंग बनौने अछि-प्रो. सिंह अपन विशाल खल्वाट माथ पर हाथ फेरैत रहलाह।
जयवर्द्धनक इच्छा भेलनि बाजथि-निकोलाई रोरिक। जे सम्भवतः देविकारानीसँ विवाह कएने रहथि-किन्तु प्रायः ईष्र्या, प्रायः क्षुब्धतासँ ग्रस्त भ’ हुनका बाजल नइं भेलनि।
परदा पकड़ि अलका, कोठलीमे बैसल लोककेँ देखलनि आ पानक बासन पिताक सोझाँमे राखि, उपस्थित जनकेँ सस्मित प्रणाम कएलनि। डाक्टर झा बेटीसँ बजलाह-देखू केहेन कैलेण्डर अछि... हिनकर छियनि...। अलका निमिष मात्रा लेल जयवर्द्धनकेँ देखलनि। जयवर्द्धन असंदर्भित बनल रहलाह। अलका कैलेण्डर नेने गेलीह। प्रोफेसर सिंह रूसी कलाकारक नाम मोन पाड़ैत रहलाह।
जयवर्द्धन अलकाकेँ जनैत छथि। अलका बी. ए. कएलनि अछि। दुपहरियाक अशान्त समय जयवर्द्धनक पत्नी लग बैसि क’ कथा पिहानी गीत नादमे बितबैत छथि। एक दुपहरिया, कोनो अवकासक दिन, दोसर कोठलीमे पड़ल-पड़ल ओ सुनने रहथि-चन्दा जनु उगु आजुक राति...।-अलकाक बुद्धि आ स्वर संस्कारी बुझना गेलनि। मोन भेल रहनि जे उठी, आ जा क’ सुनी... कोनो दोसर गीत। किन्तु ओ जनैत छलाह, हुनका सन लोक लेल अलका कोनो गीत नइं गौतीह।
किन्तु एहिखन जयवर्द्धनकेँ मोन पड़ैत छनि जया बाबू। राजधानीक महत्वपूर्ण अँग्रेजी अखबारक महत्वपूर्ण संवाददाता रहथि ओ। मित्रा लोक। एकटा दीर्घ अन्तराल पर भेटल छलाह। विगत भेंटसँ अधिक स्वस्थ आ सुन्दर... आकर्षक पैंट शर्टमे सज्जित। कुशल क्षेमक उपरान्त जयवर्द्धन बाजि उठल छलाह-कत’ सियौलहुँ, बहुत सुन्दर रंग आ फिटिंग अछि... भाइ आब की ई शर्ट हम अहाँकेँ पहिर’ देलहुँ...।
जयाबाबू चुप रहलाह, हाथक सामान रिक्शा पर रखलनि। दोकानदारकेँ पाइ देलाक उपरान्त जयवर्द्धनकेँ किछु क्षण लेल देखैत रहलाह। अन्ततः बजलाह-की... खाली छी? बजारमे कोनो काज?
-नइं कोनो काज नइं-जयवर्द्धन उत्तर देलनि। जया बाबू रिक्शा पर बैसलाह। संकेत पाबि ओ सेहो रिक्शा पर बैसलाह। प्रायः एक किलोमीटरक दूरी जवदाह मौनमे बीतल। ओ नियोन लाइटक साइन बोर्ड पढ़ैत रहलाह। जया बाबू मौन नइं तोड़लनि। अन्ततः जयवर्द्धन जिज्ञासा कएलनि-कत’ चलि रहल छी अपना सभ...?
कतोक क्षणक उपरान्त जया बाबू मौन तोड़लनि-की हम अहाँक नीक मित्रा नइं... की हम अहाँक नजरिमे नीक पत्राकार नइं... की हम अहाँक नजरिमे एकटा नीक आदमी नइं...???-ओ जेना दुखसँ भरल छलाह।
जयवर्द्धनकेँ जेना ठकमुड़ी लागि गेलनि। एतेक रास प्रश्न... एहेन प्रश्नक कोनो कल्पना नइं रहनि। प्रश्नक प्रयोजन आ संगति बुझबामे नइं अएलनि। अटकैत-अटकैत बजलाह-से की... यू आर वेरी मच अ’ रेस्पेक्टेड फ्रेंड...!
-नइं, से त’ अहाँ नइं बाजल छी... अहाँ हमर मित्रा छी त’ हमर नीक अहाँकेँ सोहाइत किऐ नइं अछि... किऐ अहाँ हमर शर्ट ल’ लेब? हमरा देखि क’ अहाँ सन हमर मित्राक मुँहसँ ईष्र्याक शब्द निकलए... से कोन नीक बात...?-प्रचण्ड वेग जेना कोनो बांध तोड़ने हो...!
-नइं भाइ... हमर अभिप्राय मात्रा प्रशंसा छल। शर्ट लेबाक मंशा तँ कथमपि नइं।-जयवर्द्धन स्पष्टीकरण देलनि।
-हँ यौ... जँ अहाँक अभिप्राय मानियो ली तँ प्रशंसाक शब्द... भाषा कतेक खराप अछि... ह्नाई शुड आई एक्सपेक्ट सच अ’ पूअर लैंग्वेज फ्राॅम अ’ परशन लाईक यू... तखन अहाँमे आ आजुक राजनीतिज्ञमे की अन्तर? हम की... हमरा सन क्यो एकटा शर्ट की पैंट आजुक समयमे कोना सिअबैत अछि... तकर ज्ञान-अनुमान अहाँकेँ कोना नइं अछि...? मित्रा भ’ क’ अहाँ मित्राकेँ लूटब... ठकब... शिट...।
जया बाबू कतेक देर धरि नइं जानि की सभ बाजैत रहलाह। जयवर्द्धनक सुनबाक सामथ्र्य शून्यमे चलि गेलनि। रिक्शा शहरसँ बाहर मत्स्यगन्धा परिसरमे मन्दिरक सोझाँ रुकल। चैदह नदीक यात्रा जेना समाप्त भेल। जयवर्द्धन मन्दिरसँ, किंचित भगवतीसँ निरपेक्ष रहलाह। साँझमे झील परिसरमे रंग बिरंगक कपड़ामे लोक, हुनका लोकसँ अधिक रंगक थक्का जकाँ उधियाइत बुझबामे अएलनि। ओ सभ अपनाकेँ झीलक कछेरमे एकटा उनटल नाहक सोझाँ ठाढ़ पौलनि। झीलमे पानि ओरा’ गेल अछि। पानि पर इजोरिया हुनका, कोनो अलवटाहि छौंड़ीक बेसम्हार हँसी सन लगलनि। एक्को बेर मूड़ी उठा ऊपर आकाश दिस, चान दिस देखबाक इच्छा नइं भेलनि। जया बाबू ओहिना चुप-शान्त पैंटक जेबमे दहिना हाथ देलनि। जयवर्द्धन अकस्मात भयसँ काँपि गेलाह। आब... आब ओ पिस्तौल तानता... वा चक्कू...। हठात ओ उठलाह। जया बाबू सिकरेटक डिब्बा निकाललनि आ लाइटर...। जयवर्द्धनकेँ ओ साँझ स्मरण छनि। गेट पर रिक्शा ठाढ़ छल।
अलका चाह राखि गेलीह। कैलेण्डर नइं छल। प्रो. के. के. झा आ प्रो. आर. एन. सिंह कैलेण्डरक चर्चासँ आगाँ यूनिवरसिटीमे वेतन वृद्धि, बकाया राशिक गप्पमे बाझल, चाह लैत रहलाह। जयवर्द्धन सोचलनि, की ओ अलका लेल कैलेण्डर सप्रेम-सस्नेह छोड़ि देताह। की सोचताह प्रो. सिंह... कैलेण्डरक मादे बुझि क’ सुमन सिंहकेँ केहेन लगतनि? नइं, कैलेण्डर छोड़ल नइं जा सकैत अछि। जँ अलका नइं देलनि त’ एक बेर तँ कहले जा सकैत अछि। खाली पेटमे चाह बताह घोड़ा जकाँ दौड़ैत रहल।
हठात् प्रो. सिंह जर्दा फाँकैत उठलाह-भेल-आब विदा दिअ’ डाक्टर साहेब... ओ प्रोफेसर झाकेँ नमस्कारमे हाथ जोड़लनि-आह... अहाँ अखन धरि चाह खतम नइं कएलहुँ अछि...?
जयवर्द्धन उठलाह, पान-सुपाड़ी आ जर्दा तरातर मुँहमे देलैन। डाक्टर झा जाँघ परसँ तकिया हटबैत ठाढ़ भेलाह। जयवर्द्धनक पैर लोथ आ दिमाग कैलेण्डरक सोचसँ भारी रहनि। डाक्टर झा आगाँ तकरा बाद डाक्टर सिंह आ तकरा पाछाँ सुस्त भेल जयवर्द्धन कोठरीसँ बहराइत गेलाह। नहुएँ नहुएँ बढ़ैत सभ सीढ़ी उतरलाह। अलका अएलीह, जयवर्द्धनक हाथमे कैलेण्डर दैत घूमि गेलीह। डाक्टर सिंह हुनका एक नजरि देखलनि। किन्तु चुप रहलाह। कैलेण्डर लैत जयवर्द्धन एना चलैत रहलाह, जेना किछुओ महत्वपूर्ण घटित नइं भेल हो।
ओ नेपालमे रहि राजशाहीक दिन देखलनि अछि। ओ अपन देशमे आपातकालक मानसिक दबाब सेहो भोगलनि अछि... केहेन जवदाह आ मारुख रहै ओ दिन...। किछु-किछु एहने भयाक्रान्त। प्रोफेसर झाक कैम्पस पार करैत हुनका लगलनि जेना जनतंत्राक विशाल आ मुक्त कालखण्डमे आबि गेल छी।
सड़क पर अबिते बजलाह-बेश आब, प्रणाम...।-एहि संक्षिप्त शब्दक संग ओ अपन क्वार्टर दिस त्वरित डेग बढ़ौलनि। प्रायः तीन फर्लांग पर हुनक क्वार्टर हेतनि, मुदा गति स्फुतनिक के रहनि। पत्नी बाहर ओसार पर कुर्सी पर बैसलि प्रतीक्षामे स्वाभाविक रूपें ओंघाइत रहथिन। ओ नइं टोकलनि। घर जा’ प्रायः उच्च स्वरेँ बजलाह-सुनै छी... एकटा काँटी आ हथौड़ा देब त’...।-ओ कैलेण्डर पसारने ठाढ़ रहलाह।
-आब रातिकंे कत’ काँटी आ हथौड़ा ताकू-अन्यमनस्क भावें पत्नी आबि ठाढ़ि भेलीह।
पत्नीकेँ अकबकाएल देखि पुनः बजलाह-एतेटा घरमे एकटा काँटी नइं ताकल अछि... हथौड़ो नइं देखल अछि...?-ओ डिब्बा-डिब्बी पसारि एकटा काँटी हेर लेलनि।
-आइ आबिते-आबिते की भेल... एना किऐ बजैत छी...-पत्नी भनभनाइत गेलीह आ कोयला फोड़’बला हथौड़ा उठौने अएलीह। अपन पढ़बा-लिखबाक टेबुलक ऊपर, माँझ देबाल पर काँटी ठोकि कैलेण्डर टाँगि, कुर्सी पर बैसल जयवर्द्धनकेँ लगैत छनि जे ओ एकटा दुर्ग ढाहि देलनि अछि।
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सिम्मरक फूल
उपेन्द्र दोषी

आ बहादुर चुप्प भ’ गेल। एम्हर-ओम्हर ताक’ लागल। मने, कोनो वस्तुकेँ नुकाब’ चाहैत हो। हमरा एकटक अपनहि दिस देखैत बुझि, ओ फेर अपन आँखि एम्हर-ओम्हर नचाब’ लागल। तकरा बाद उठल। दहिना हाथमे अपन ठेंगा आ बामा हाथमे हुसिल ल’ क’ सड़क दिस पूब मुँहें विदा भ’ गेल। हम टोकलिऐ-बहादुर कत्त’ जाइ छ’। बैस’।-चलिते-चलिते ओ बाजल-नइं बाबू! आब नइं। आब जाइ छी, टेम भ’ गेलै।
हम फेर टोकलिऐ-एह एखन त’ साते बाजल छै। ड्यूटी त’ दस बजेसँ शुरू हेतह।-बहादुर थकमका गेल। जेना ओकर चोरि पकड़ा गेल होइ। घुरल आ’ हमर एकदम लग चल आएल। ठेंगा पर देहक भार टेकैत हमरा दिस नमरि गेल आ’ नहुँएँ-नहुएँ बाज’ लागल, जेना कनफुसकी क’ रहल हो...
-पुलिससँ सभ डेराइत अछि। दोषी आ निर्दोष दुनू। पुलिस ककरो छोड़ैत नइं छै। बापोकेँ नइं। दूहि लैत छै। नट्ठा, बिसुखल आ लगहरि... सभकेँ। पुलिससँ, लाल टोपीसँ लोक पहिनहुँ डेराइत छल। आबहु डेराइत अछि। ओ जे कोनमे सुटकल ध’रमे मूड़ी घोसिअओने अछि, सेहो डेराइत अछि। बहादुर, मने डेक बहाुदर नेपाली सेहो डेराइत अछि।-बहादुर अपन मूड़ी नीचा झुका लेलक, बजैत-बजैत। जेना डरेँ सहमि गेल हो।
की कहलहुँ-नइं चिन्हैत छिऐ। धुरजी! खुक्ख भेल दूहल एहि प्रजातंत्राक बहादुरकेँ नइं चिन्हैत छिऐ! ओएह यौ। जे माथ पर नेपाली टोपी पहिरने, डाँड़मे खुंखरी टँगने, सूती बंडी आ चपकनमे अनेक नेक चिल्लड़ पोसने आएल रहए आ दँतखिसरी कएने रहए दरबानीक हेतु।
डेक बहादुर, नेपालक कोन कोनसँ आएल रहए, से त’ बुझल नइं अछि, मुदा जखन दरबानी भेटलै, तखन बाजल रहए-साब नोकरी और छोकड़ी बड़ा भाग से मिलता हए।-बड़ प्रसन्न भेल रहए बहादुर। मुदा आब बहादुरकेँ बिनु तेल बला डिबियाक बाती जकाँ उसकाब’ पड़ैत अछि। पझाएल घूर जकाँ बहादुरकेँ कोड़’ पड़ैत अछि। आ हम बहादुरकेँ टोकरा दैत पुछलिऐ-चुप किऐ भ’ गेल’ हौ।
-साब, एहि ठामसँ गोरखपुर कतेक दूर हेतै?
बहादुर गप्पकेँ टारबाक नियतिएँ हमरासँ पुछलक।
-से त’ बुझल नइं अछि। मुदा एहि ठामसँ मुजफ्फरपुर, ओत’सँ छपरा आ तकरा बाद गोरखपुर।-हम कहलिऐ।
-ओहि ठामसँ देस जएबामे सुविधा होइ छै। गोरखपुरसँ नौतना तक बस जाइत छै, आ तकरा बाद दू दिनका रस्ता छै पैदल। पहाड़े-पहाड़। हमर गाम जोराहाटी-बाजल ओ।
एम्हर आबि क’ बहादुर मैथिलिएमे गप्प करैत अछि। कहैत अछि-बाबू! हमरा ओत’ त’ नेपाली आ मैथिली दुनूमे लोक बजैत छै, लिखैत छै, पढ़ैत छै। मुदा एहि ठाम से कहाँ?
बहादुर दरबानी कर’ लागल रहए, आ सेहो बैंकमे। तहिया खूब प्रसन्न भेल रहए। नोकरी आ ताहिसँ प्रसन्नता... से त’ बूझ’मे आएल रहए, मुदा छोकड़ीक बात बूझ’मे नइं आएल रहए। से, बहादुर बैंकमे दरबानी कर’ लागल रहए। बन्दूक सेहो भेटि गेल रहै। मुदा दुर्योग एहन भेलै जे बैंकमे डकैती भ’ गेलै। बहादुर अपन बहादुरीसँ बाज नइं आएल। डकैत पकड़ल गेल रहै। एक-दू टा पुलिसक आदमी सेहो रहै ओहिमे। बहादुरकेँ दहिना बाँहिमे पेस्तौलक गोली लागल रहै। बचि गेल रहए बहादुर। छानबीन, मोकदमा आदिक प्रकरणसँ इएह सिद्ध भेलै जे एहिमे बहादुरोक हाथ छै। बहादुरक नोकरी छुटि गेल रहै।
मुदा भगवानक सपथ खाइत बहादुर अपन दहिना हाथ देखौने रहए, कने टेढ़ भेल आ घावक दागबला दहिना हाथ। बहादुर बाजल-चिन्हि गेल रहिऐक बाबू। कोर्टमे साफ कहि देलिऐक। हाथसँ छू-छू क’ डकैतबा (पुलिस)केँ चिन्हा देलिऐक। मुदा साँच कहए से मारल जाए, झूठा जग पतिआए। हमर बात के बुझैत अछि? बहादुर जेना झमा क’ खसल हो। अपन ठेंगा सरिआब’ लागल आ हाफ पेन्टक जेबीमे भिसिल ताक’ लागल। से, बहादुरक दरबानी-बैंकक दरबानी छूटि गेलै। बहादुर ओ इलाका छोड़ि देलक। आदिवासी बहुल क्षेत्रामे, कोल्हानमे जंगलक रखबारी कर’ लागल आ ‘हो’ जातिक एकटा छौंड़ी, सोमबारीसँ बिआह क’ लेलक। बहादुरक चैकसी मुस्तैदी आ सोमबारीक जंगल प्रदेशक जन्मजात संस्कारक कारणे जंगल निरापद रहै। मुदा कतेक दिन? कसाइ ठीकेदारक राक्षसी प्रवृत्ति से रह’ नइं देलकै। पहिने चोरा नुका क’ आ बादमे अधिकार बुझि जबरदस्ती जंगल कटाइ आरम्भ भ’ गेलै। बहादुर अपन दहिना बाँहि पर घावक गँहीर चेन्ह आ टेढ़ भेल हाथ देखबैत अछि-बाबू जा धरि ई हाथ काज कएलक ता धरि भीड़ल रहलिऐक। मुदा अन्तमे दरोगा, आ डी. एस. पी. क मारिक कारणें देह थौआ भ’ गेल। सोमबारी जे दरोगाक जीपमे जबरदस्ती चढ़ाओल गेल, से घुरि’ नइं आएल। डी. एस. पी.क धुरखुड़क माटि, बुझू हमरा पैरेँ गरदा बनि गेल। सिपाहीक बेंत टुटैत रहल हमरा देह पर आ हम अपन सुन्नरि, गस्सल बान्ह-काटवाली सोमबारीकेँ तकैत रहलहुँ। आ अन्तमे एक सप्ताहक बाद भेटल जंगलमे सोमबारीक लहास। छाती पीटि क’ रहि गेलहुँ। की बाजू, ककरा कहियौ? जखन रक्षके...-बजैत-बजैत आवेगें जेना बहादुरकेँ बकौर लागि गेलै। हमरा भेल जेना बहादुर आब कान’ लागत। मुदा बाह रे बहादुर! सम्हरि गेल।
-पुलिसक डरेँ गाम घरक आदिवासी क्यो ने किछु बजलै बाबू। हमहूँ चुपचाप आदिवासी सभकेँ बजा सोमबारीक सभटा संस्कार सम्पन्न करा देलिऐ। जा हे भगवती! ओत’ नीकेँ रहिह’। एहि ठाम त’ दुखे-दुक्ख!-बजैत-बजैत बहादुर जेना दार्शनिक भ’ गेल।
तकरा बाद ई इलाका सपाट भ’ गेलै बाबू। सपाट। खल्वाट-एनमेन अहींक माथ सन। बहादुरक व्यंग्य विद्रूप मुखमण्डल हम पढ़बाक चेष्टा कर’ लगलहुँ। ओहि ठाम मोन नइं लागल। होअए जे भागि जाइ आकि जहर खा ली। मुदा से तँ पाप होइत। तैं ओहि ठामसँ सभक दुआ-सलाम ल’ एहि ठाम चल अएलहुँ। राति क’ दरबानी करै छी। एहि मोहल्लामे दस बजे रातिसँ पाँच बजे भारे धरि घुमैत छी। सड़क पर लाठी पटकैत छी। सीटी बजबैत छी। मुदा सेहो पुलिसकेँ मंजूर नइं छै। जहियासँ एहि मोहल्लामे दरबानी करैत छी, चोरि नइं भेलै अछि। पुलिसकेँ कहाँदन चोर सभसँ शेयर नइं भेटि रहल छै। से सभ पकपकाएल अछि। आब नइं बाबू, आब ई सभ हमर जान नइं छोड़त। लगैए आब मारिए देत। आब चल जएबै बाबू। देसे चल जएबै।-बजैत-बजैत बहादुरक मोन घृणासँ भरि गेलै।
बहादुर हँसमुख स्वभावक अछि। ओकरासँ बतिअएबामे हमरा मोन लगैत अछि। ओकर चुटिकट्टा स्वभाव हमरा प्रभावित करैत अछि। हँसैत-हँसैत बिच्चहिमे एकटा एहन मारुख आ कटाह बात कहि देत जे अहाँ अचम्भित रहि जाएब। ललका गंजी, उजरा हाफ पैन्ट पहिरने, चपटी नाक आ गोरका मुँहबाला बहादुर, साँचे बड़ मनलग्गू लोक अछि।
ओ जे ओहि दिन पार्कमे लहास भेटल रहै, आ थानामे सूचना देने रहिऐ। मोन अछि किने? ओहू हत्यामे बड़का-बड़काक हाथ छलै। मुदा जकरा सरकारी लाइसेन्स मने पुलिसक वरदान प्राप्त छै, तकरा लेखें धन सन-बजैत-बजैत बहादुर कने आर लग चल आएल-जनै छिऐ, हम खुद देखने रहिऐ खून करैत। जखन थानामे लिखाब’ गेलिऐ कि दरोगा हमरे पोन पर बेंत ध’ देलक आ बाजल-साला बहादुर! तुम सीटी बजाता है। बजाते रहो। अन्धा बन जाओ। साला इमानदारी देखाता है। अरे! खून नहीं होगा, मारपीट नहीं होगी, दंगा फसाद नहीं होगा, तो पुलिस विभाग क्या करेगा? अल्हुआ पकड़ेगा? सुथनी तौलेगा? क्राइम होगा तब न’ पुलिस कुछ करेगी।
-कहू त’, पुलिस कहै-ए अन्धा बन जाओ। ...बाबू, आँखि रहैत कोना आन्हर भ’ जाउ। आर तँ आर, ई नवकी दरोगनी जे आएल अछि, ओहो तेहने। इहो मौगिया धूनि देने रहए हंटरसँ।
-से आब नइं बाबू, आब देसे चल जाएब। बड़ आस लगा क’ आएल रही। जे भारतसँ भारतीय रुपया (भा. रु.) पठाएब अपना माइ-बापकेँ। एहि ठाम भारतमे नौकरी करब। खुशहाल रहब। जेना मनुक्ख रहैए। नेपालक राजनीतिक उथल-पुथलसँ प्रभावित भ’ भारत भागल रही। मुदा भारतमे शान्ति कत’? शान्तिक दूत भारत, अशान्त भ’ गेल अछि।-बजैत-बजैत उग्र भ’ गेल बहादुर।
-तँ नहिए मानबह। चल जेबह?-हम पुछलिऐ।
-हँ बाबू चल जेबै-ओ एक्के साँसमे उगलि देल।
-बहादुर एहि ठामसँ की ल’ जेबह माइ-बाप लेल?-हमर प्रश्न छल।
-किछु नइं! किछु नइं। भारतक पुलिससँ डेंगाओल आ बाँचल अपन देह।-बहादुर दीर्घ साँस लेलक आ चुप्प भ’ गेल।

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त्याग पत्रा
उषा किरण खान

विलास बाबा आइ पैंतीस बरिसक उपरान्त मुखिया नइं रहलाह। मुखियाक पद ओ स्वेच्छासँ त्यागि देलनि। आब मोन घोर भ’ गेल छलनि। गामक समस्या सुरसाक मुँह जकाँ बढ़ल चल जा रहल छलै। दस गामक मुखिया तँ छलाहे, दिशान्तरमे सेहो पर-पंचैती कर’क लेल बजाओल जा रहल छलाह। अपन हित-कुटुमक बाँट बखरा होइ, कि जाति बन्हनक कोनो मामिला, विलास बाबाक गप्प लोक सुनै; लछुमन-रेखा जकाँ तीन डरीर पाड़ि क’ ओ जे कहथिन से लोक हँसी-खुसी मानि लै।
बाल बच्चा सभटा कब्जामे छलनि विलास बाबाकेँ, पत्नी कहलमे रहनि। पाँच टा बेटामे सभसँ छोटका बेटा बालुक पैकारी करैत छलनि, अपने पर-पंचैती आ गामक डाक्टरी करैत छलाह। आर. एम. पी. के सर्टीफिकेट छलनि। माँझिल बेटा आ जमाइ ताहिमे संग-साध देब’ लागल छलखिन। साँझिल दू टा सहायक संगें ल’ क’ बेनीपुरमे गाय महीसक बथान खोलि नेने छलाह। नीक कमाइ होइ छलनि। ताहिसँ पैघ भाइ गूड़क व्यापार करैत रहनि, आ सभसँ पैघ बेटा अमीन छलनि, जे कतहु दक्खिनमे सरकारी क्वार्टरमे रहै रहनि। सभक परिवार गामेमे रहनि। चैघरा हवेली छलनि। दुआरि पर माल-महीस, कथूक कमी नइं। गामक स्कूलमे पोता-पोती पढ़ैत रहनि। विलास बाबाकेँ बूझल छलनि जे अजुका समयमे बेटीकेँ सेहो पढ़ाएब जरूरी छै। नइं तँ ब’र-घ’र नहिएँ टा भेटतै।
एके रंग समय विधना कहाँ ककरो लिखने रहै छथिन। विलास बाबाक सरकारी अमीन बेटा बीमार पड़ि गेलखिन। पहिने तँ अधिक ख्याल नइं करै गेलखिन। पछाति भेलनि कि कोनो असाध्य रोग छै। तखन बड़का डाक्टरसँ देखौलखिन। तावत रोग हाथसँ बहार भ’ गेल छलै। रुपैया पैसा आ डाक्टर वैद्य काज नइं अएलनि। बेटा हाथसँ चल गेलनि। विलास बाबाक शोक सांघातिक छलनि, मुदा ओ दीन-दुनिया देखने छलाह, बुझनुक लोक छलाह। सभटा काज छोड़ि सरकारी आॅफिसक चक्कर काटए लगलाह। अनुकम्पाक आधार पर अमीन साहेबक बेटाकेँ सरकारी नोकरीक कागज भेटि गेलै। एकटा काज सम्पन्न भेलनि। सवा बरिसक दौड़ा-दौड़ी काज देलकनि। बहुतो दिन बाद कतेक काल धरि विलास बाबा दलानक चैकी पर अपन आश्वस्त मुद्रामे चितंग भेल पड़ल रहलाह। मोनमे जड़िआएल पीड़ा आँखि बाटे बहए लगलनि। जाहि पैघ बेटा पर हिनका सभसँ बेसी भरोस छलनि, से एना चैरस्ता पर छोड़ि क’ चल जेतनि, कहाँ जनै छलाह! गामे-गाम डाक्टरी करैत रहै छलाह, आ अपना करेजक टुकड़ीक गोर रंग पीयर भेल जा रहल छलनि, से नइं बुझल भेलनि। दलानक एक मुँह आँगनमे सेहो छलै। ताहि दुरूखा बाटे अमीन साहेबक जेठकी बेटी प्रकट भेलनि आ कहलकनि-बाबा, खाइ ले आँगन चलबै, कि एत्तहि आनू?
कने काल धरि बेबूझ जकाँ पोतीकेँ तकैत रहलखिन। फेर कहलखिन-चलह, आइ आँगनेमे खाएब।
आँगन जेना अनभोआड़ भ’ गेल छलनि। दुआरि पर बैसल विलास बाबा देखलखिन-बूढ़ी बड़ लटि गेल छथिन। नेना सभ पैघ भ’ गेल छै आ ई अमीनक दुनू बेटी चम्पा आ चमेली समर्थ भ’ गेल छै। आब तँ एकर सभक कन्यादानक सेहो जोगाड़ कर’क हैत।
-ई भानस के केलक?-बाबा पोतीसँ पुछलखिन।
-छोटकी आ नबकी काकी।
-तों सभ नइं करै छह?
-ई सभ इसकूल जाइ छै। लिखिया पढ़ियासँ पलखति हेतै तखन ने।-बूढ़ी बजलखिन।
-तइयो, घर आश्रमक काज सीख’क चाही।
पोती सभ नजर नीचाँ कएने ठाढ़ि रहलनि। बाबा एखन ने कतहु पंचैतीमे बैसथि आ ने दवाइक दोकान पर। राति दिन पोती सभक बियाहक चिन्ता करैत रहथि। नव-नव तथ्य सभ बाबाक सोझाँ उजागर होमए लगलनि। जेठकी चम्पा, अइ बेर मैट्रिकक परीक्षामे बैसलनि। पास सेहो क’ गेलनि।
-बाबा, हमरा काॅलेजोमे नाम लिखा दैह।
-कत’ हए?
-किऐ, बेनीपुरमे।
-कोना जएबह?
-बहुत लोक जाइ छै। पछबारि टोलक तीन टा लड़की जाइ छै। अइ बेर फेर दू टा जएतै।
-अच्छा?-बड़ अचरज भेलनि विलास बाबाकेँ। ई तँ नइं खेआल केलखिन कहियो। अपना गामक कामति आ पासवानक बेटी सभ काॅलेज जाए लगलै? नीक भेलै। जौं चम्पा जाए चाहैत अछि, तँ कोन बेजाए। बेटाकेँ कहलखिन चम्पाक नाम काॅलेजमे लिखा देब’ लेल।
-किऐ, कोन काज छै आगू पढ़बाक? कह’क सिलाइ स्कूलक ट्रेनिंग लेतह।-छोटका बेटा विचार देलकनि।
-एकरा आगाँ पढ़बाक मोन छै, पढ़ए दहक। की हेतै।
-नइं बाबू, काॅलेजमे की पढ़ाइ होइ छै आ कोन फस्र्ट डिविजनसँ पास केलक अछि। थर्ड डिवीजन बाली की करतइ आगाँ पढ़ि कए। घरमे काज सीखए आ सिलाइक ट्रेनिंग ल’ लिअए।
-तों तँ बड़ विचित्रा गप्प कहै छह। तोहूँ बी. ए. पास क’ कए बालुक बेपारी भेल छह कि नइं? ई बी. ए. क’ घरमे रहतै तँ की?
-बाबू काॅलेज सभ फार्स छै। पढ़ाइ नइं होइ छै। खाली विद्यार्थी सभ एक ठाम जमा भ’ अड्डाबाजी करैत छै।
-नेना कहलक अछि। बाप नइं छै। आइ रहितै तँ अपना संग राँची ल’ जैतै। हमरा उचित नइं बुझि पड़ैत अछि बरजब। नाम लिखा दहक। पछवारि टोलक बचिया सभक संगें जएतै।
पिताक तर्कक सोझाँ बेटा चुप भ’ गेल। चम्पाक नाम काॅलेजमे लिखा गेलै। चम्पा बेनीपुरक काॅलेज जाए लागल। एम्हर विलास बाबा गामे गाम ब’र तकैत घूरि रहल छलाह। एक ठाम एक टा ब’र पसिन पड़लनि। प्राइमरी स्कूलमे ओ मास्टर छलै। सरकारी नोकरी छलै। बेटा सभकेँ बजा पठौलनि।
-बाबा-चम्पा छलैन।
-की?
-हम एखन बियाह नइं करब।
-किऐ?
-ओहिना!
-बताहि नहितन, तोहर बियाह करब तँ हमर कत्र्तव्य अछि।
-बाबा हम आगू पढ़ब। बी. ए. पास करब।
-तँ पढ़िते छें, के मना करै छौ?
-बियाह करब तखन...।
-पढ़ुआ वर छौ, मास्टरी करैत छौ। तोरा पढ़’मे कोनो बाधा नइं रहतौ।
-ताहिसँ की, हम किन्नहुँ नइं करब।-पैर पटकैत चम्पा चल गेलै।
विलास बाबा अवाक।
-हूँ, ई छौंड़ी बड़ जिद्दी अछि। ककरो कहल की बूझै छै। जे कहलक से कहलक, हिनको बुझेने नइं बुझतनि। आब की करताह।-बूढ़ी दुरूखामे ठाढ़ि सभटा सुनैत रहथिन से बजलखिन।
-ऐं?-विलास बाबा सोचमे पड़ि गेलाह। अपन अति व्यस्त जिनगी आ सद्यः सोग हिनका ककरो दिस तकबाक पलखति नइं देने छलनि। आब की करताह? बेटा सभकेँ बजौने छथि। ओएह सभ किछु विचार देन्हि तँ देन्हि। कका सभ बेसी नीक जकाँ बुझा सकै छै। ई ब’र छूटि जेतै तँ फेर भेटनाइ मसकिल। पीठहि पर चमेली छै। ओहो अइ बेर काॅलेज जाए लागल अछि। राति भरि नीन नइं अएलनि। दोसर दिन बेरूक पहर तक चारू बेटा आ जेठका पोता दन-दन क’ जूमि गेलनि। बाबाक चिन्तित चेहरा देखि बेटा सभ कने ठमकि गेलाह। फेर मोनमे अएलनि, आइ पहिले पहिल बेटा सभसँ मंत्राणाक बेर उपस्थित भेलनि अछि, आ ताहिमे जेठ जन नइं छथिन, से विचारि बाबू उदास छथि।
-बाबू की गप्प छै?-छोटका पुछलखिन।
-हँ, ताही लेल तँ बजौलियह। कुसीपुर गामक ब’र तकने छी। दस बीघाक जोत छै बापकेँ। छह बहिनिक बियाह भ’ गेल छै। सरकारी प्राइमरी स्कूलमे मास्टर छै। विचार करह, की करबह?
-जे ब’र-घ’र अहाँकेँ पसिन भेल, ओ कोनो काटैबला हेतै? अहाँ हमरा सभकेँ आज्ञा करिऔ। जे कहबै-माझिल छलै।
-बाउ, हमरा बूझल छल। तोरा लोकनि इएह गप्प कहब’। तैयो बजाएब हमर कत्र्तव्य छल, मुदा आब एकटा आर समस्या ठाढ़ भ’ गेल अछि।
-की बाबू-छोटका मुहलगुआ छलनि।
-चम्पा कहैत अछि जे ओ बियाहे ने करत, ओ बी. ए. पास करत।-छोटकाकेँ छोड़ि सभ बेटा भकुआ जकाँ मुँह ताकए लगलनि। छोटका हँसए लगलनि।
-हौ बाबू, हम तोरा पहिने कहने रहियह। ओकरा गामसँ बाहर काॅलेज कथी लए पठौलह। आब भोगह।
-मत्तोरी, काॅलेज तँ नितदिन जाइत अछि आ चल अबैत अछि, ताहिमे कोन...।
-इएह ने तों नइं बुझबहक।

ओम्हर चम्पा चमेलीक गप्प भ’ रहल छलै। चम्पा मुँह चढ़ओने छल। चमेली पुछलकैक-आब? आब तँ सभटा काका आबि गेलै। छोटका काकाकेँ जखन किछु-किछु बूझल हेतै, ओ तोहर भेद खोलि देतौ। रहि जएबें मुँह बबैत।
-चमेलिया, तों हमर संग देबें से नइं, उनटे कपार खाइ छें।
-की संग दिअउ?
-बाबू आ कका सभकेँ कहि दही जे मुखियाक बेटा विजयसँ चम्पाकेँ बियाह करक मोन छै।-चमेलीक सगर शरीर बसातमे डोलैत भालरि भ’ गेलै। कने काल बकार नइं फुटलै।
-कहि अबै छही की नइं।
-नइं।
-किऐ?
-हमरा लाज होइत अछि आ डर सेहो।
-तोरा किऐ लाज होइ छौ? चम्पाक सोझाँ चमेली दबल-दबल रहै। ओकरा किछु नइं फुरैत रहै। विजय संगें चम्पाक मेल जोल देखि ई तेहन ने ठिसुआएल रहए, जेना चोरनी हो। चम्पा, अपन प्रेमक व्याख्या भाँति-भाँति सुनबए, चमेलीकेँ। आ स्वयं ओ ई सब विजयसँ सीखए। भारी स्वरमे चम्पा पर विजयक कएल प्रेम रसक आलेपन तेहन भ’ गेल छलै जे ओ आगाँ-पाछाँ नइं विचारै। ओकरा विजयक अतिरिक्त कहाँ किछु बुझाइत छलै।
-तों जा क’ बाबाकेँ कहुन। नइं तँ हम स्वयं जा क’ कहबनि।-चम्पा आवेशमे आबि गेल छल।

बाबा, सभ बेटाक मुखाकृति एका एकी देखि बुझि गेलाह जे हिनका सभसँ कोनो समाधानक आशा नइं कएल जा सकैत अछि। ई सभ आइ धरि कोनो स्वतंत्रा निर्णय नइं नेने छथि। मुदा छोट जन बाजल-बाबू, चम्पासँ पुछहक बजा क’, किऐ जिद धएने छह।
चम्पा संग चमेली दलानमे आबि जूमल। साओनक बरखा अपन सुर-ताल पर छम-छम बरसि रहल छलै। चमेली थर-थर कँपैत ठाढ़ि छलै।
चम्पा सोझे-सोझे बाबा आ कका सभ दिस तकैत बाजल-कोन अतराहति बीति रहल अछि हमरा बियाहक। एखन हम अठारहम बरिस पार नइं कएलहुँ आ अहाँ सब बैलाबए चाहै छी। दू बरिस आर अपन घरमे रहए नइं देब बाबा-छओ मुण्ड आ बारह आँखि चम्पाक मुँह पर ताकए लागल। निर्वाक्। चमेलीक थरथरी थम्हि गेलै; ओ निसाँस छोड़लक। चम्पा काते-कात निमहि गेल।
-आब जखन तों एहन गप कहलह तँ हम तोरा दू बरिस नइं टोकबह।-सब हरे हरे क’ उठि गेलाह। मुदा छोट जन अपना मोपेडसँ बेनीपुर काॅलेजक जखन-तखन चक्कर काटए लगलाह। चम्पा आ विजयक प्रेम काॅलेजक हत्तामे कहाँ भेल छलै। ओ तँ गामहिमे, नेनहिसँ फुलाइत छलै। विजय चम्पासँ दू बरिस पहिनहि मैट्रिक पास कएने छलै, मुदा काॅलेज पढ़ए नइं गेलै। गंजक गंज किताब पढ़ए, गामे गाम मिटिंग करैत घुरए। चम्पाकेँ कहैक जे तोंहूँ दिन-दुनियाक खबरिक वास्ते नीक जकाँ प’ढ़-लिख। किछु अपन पढ़एबला किताब ओकरा दै, मुदा चम्पा लेखें ओ किताब जेना अरबी-फारसी होइ। एक्कोटा शब्दक अर्थ ओकरा नइं बुझाइ। ओकरा विजय नीक लगै आ विजयकेँ चम्पा।
-विजय, देख त’, हमर ई नब कर्णफूल केहन लगलौ।-चम्पा कहैक। विजय देखि क’ हँसि दै।
-हँसै किए छें?
-नीक छौ, चम्पा खूब पढ़ि-लिखि क’ डिग्री ले, आ अपनाकेँ तैयार कर। हमरा संग चल’क छौ तँ अपना पर ठाढ़ हो। तखन दुनू गोटा संग भ’ क’ असमानता समाप्त करबै समाजक।
-धुर, से कतौ भेलै अछि।
-हेतै, सभटा हेतै।-विजय उत्साहमे जे किछु कहै से अइ सम्पन्न विलास बाबाक पोतीकेँ नइं बुझाइक। ओकरा ओकर मुद्रा, भंगिमा आ ओजपूर्ण स्वर नीक लगै। सम्पूर्ण अस्तित्व रोमांचित भ’ जाइ।
-विजय-एक दिन चम्पा ओकरा कहलकै-बाबा आ कका सब हमर विवाह करएबाक तैयारीमे छथि।
-हूँ, ककरासँ?
-अपनामे गप करैत रहथि, हम सेहो बीचहिमे जूमि गेलिअनि तँ हमरोसँ गप भेलनि।
-की गप्प?
-हम कहलिअनि जे हम बी. ए. पास कएलाक बाद बियाह करब।
-ठीक, सही कहलें।
-विजय, तोहूँ तावत कोनो रस्ता पकड़ि लेबें।
-हम? हम कोन नब रस्ता पकड़ब? हमर तँ सुनिश्चित गन्तव्य अछि। आ से तुरत कत्तए भेटए बला? हमरा स्वयं सम्पूर्ण जीवने संघर्ष बुझि पड़ै अछि। बुझलें?-चम्पाकेँ नाक पकड़ि डोला देलकै विजय।
-तखन बियाह कहिया करबें?
-कहियो नइं चम्पा, कहियो नइं। हमरा लेल बियाह बनले नइं छै।
चम्पाक आगाँ धरती आकाश घुमए लगलै। ओकरा मोन भेलै जे ओ विजयकंे भरि पाँजकेँ ध’ लिअए आ कहै-तों एहन गप्प किऐ करैत छें। हम तँ तोरे बल पर अपना बाबाक सोझाँ ठाढ़ भ’ गेलौं। हम तँ जागल, सूतल तोरे सपना आँखिमे बन्न कएने रहै छी।-चम्पा एकटा सोझ गामक कन्या, ओकर सपना बिछिया-पायल पहिरि मात्रा बियहुती होमक। ओ की जानए गेलै, जे बनैया आगिक उड़ैत चिनगीसँ स्थायी प्रकाश नइं होइत छै। ओकरा आँचरमे समटल नइं जा सकैत अछि।
-चम्पा की भेलौ, बड़ गुम-सुम छें।-चमेली ओकर मन्हुआएल चेहरा देखि पुछए लगलै। चम्पा चुप्पे रहल। कोनो ने कोनो लाथ लगाए काॅलेज सेहो नइं जाए। विलास बाबा कैक बेर पुछलखिन, किछु जवाब नइं। चमेलीकेँ बजा क’ पुछलखिन। ओहो जवाब नइं देलकनि। पोखरि पर जामुन गाछ तर बैसि क’ गप्प करैत कैक दिन छोटका कका विजय आ चम्पाकेँ देखने छलै, मुदा विजयक प्रकृति जानि ओ कोनो प्रकारक भाव नइं बुझि सकल छलै। एक दिन चमेलीकेँ नइं रहल गेलै, आ ओ कहि देलकै, जे चम्पा विजयसँ बियाह करए चाहै’ए। एखन की भेलै’ए से ओ नइं जनै अछि। छोटका ककाकेँ तरबाक लहरि मगज पर फेकि देलकै। ओ सोझे दलान पर जूमि गेलै।
-बाबू, आर सहकाबहक छौंड़ीकेँ, ओ ओइ दहियरबासँ बियाह करत’।
-ऐं?
-ऐं की?
-ऐं की के की मतलब? कहबह तखन ने बुझबै।
-की कहब’, ओइ सुमिरन दहियारक बेटा विजइया, चम्पासँ बियाह करत। किसनौतमे की लड़िकाक अकाल भ’ गेल छै। सिनेमा बुझि लेलक गामकेँ?
-हूँ-विलास बाबा मूड़ी नीचा क’ कए विचारए लगलाह।
-की विचारै छह, बाप दुधीक दही बेचि गुजर करैत छै आ बेटा गामे गाम कमैटी बैसौने रहै अछि। जाइ छिऐ आइ हम ओकर कपार...।
-हौ बाउ, एना आगुताबह जुनि; तों आइ काल्हुक लोक छह, हम पुरान भेलहुँ। एहन कतोक पंचैती कैने छी। चम्पाकेँ बुझा सुझा क’ देखहक। ओ जिद्दी अछि। जिदपनीमे कोनो ऊंच-नीच भ’ जेतैक। अपयश होएतहु।
-तों करह पूछा-पूछी, हम ओइ छौंड़ाकेँ देखए जाइ छी।
-सुनह, अगुताह नइं।
-चम्पा कहतह आ जिद करतह तँ ओकरासँ बियाहि देबहक।
-की हेतै, दहियार छै तँ। आइ-काल्हि तँ किसनौत सभमे बियाह करैत अछि। सुुकुर मनाबह, जौं परजाति होइतै तखन?
-बाबा, तोहूँ जुलुम कैलह। ओइ विजैयाक ओतए सुपारी ल’ क’ जेबह!
-की हेतै?
-बाबा-चम्पा आबि क’ ठाढ़ि भ’ गेलै। उदास आ पीयर मुखसँ। सभक दृष्टि ओम्हरे चल गेलै।
-बाबा, ई चमेली अनेरे कहलक। हम विजयसँ बियाह कर’ लेल उताहुल रही, ओ नइं। ओ तँ कहलक जे ओ कहियो बियाह नइं करतै, ओकर रस्ता अलग छै।
-बाबा, हमर बियाह जत्त’ ठीक करै छलौं तत्तहि क’ दिअ’, अही शुद्धमे।-नहूँ नहूँ मुरछल सन चम्पा आँगन चल गेलै। बियाह दान हेबाक छलै, भेलै। चम्पा सासुर गेल।
एहन केस? बिनु वादी-प्रतिवादीक, बिनु फैसलाक केस मरि गेलै। विलास बाबा मुखियागिरीसँ त्यागपत्रा द’ देलनि। आब ओ खाली छथि।

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फयदा
मनमोहन झा

-बेरतेन बासोन!-बासनबलाक टेर पर पत्नी हमरा दिस तकलनि। हुनका बुझल छनि जे ओ हमरा फुटलो आँखिएँ नइं सोहाइत अछि आ तैं कृत्रिम रोष देखबैत बजलीह-जरलाहा काजेक बेरमे अबैत अछि। ...कहिए डोंगा लाबए कहने रहिऐ, से आइ मोन पड़लै अछि।-पत्नी स्वरमे ‘पान पसन्द’ बला मधुरता आनि हमरा फुसिअएबाक चेष्टा करए लगलीह, जाहिसँ हम खौंझाइ नइं।
हमरा अनेरे तामस नइं होइत छल। एक त’ ओकर मुँह टेढ़ क’ ‘बेरतेन बासोन’ बाजब अनसोहाँत लगैत छल। सभ बेचनिहारक मुँह ऐंठि क’ परिवर्तित स्वरमे बाजब जेना स्थायी गुण बनि जाइत छै। भरिसके कोनो बेचै बला अपन स्वाभाविक स्वरमे बजैत अछि। किछुकेँ त’ जेना ई गलतफहमी भ’ जाइत छै जे जतेक आवाज बिगाड़ल जाइ ततेक बिक्री हेतै। ओना हमरा हिसाबें हेबाक चाही उनटे, किऐ त’ कए बेर त’ टाहिसँ ईहो नइं बुझाइत रहै छै जे ओ बेचि रहल अछि। ...जे हो, बासनबला सेहो ओही तर्ज पर रेघा क’ टेरैत छल जे हमर झरकी बढ़ा दैत छल।
देखलो सन्ताँ ओकरा पर पित्त चढ़ैत छलए। ओकर रूप ओ हाव-भाव नटुआबला छलै। जानि नइं किऐ हमरा ओहन माउगमेहर लोककेँ देखि बेसम्हार क्रोध ओ जुगुप्सा होइत अछि। कतेककेँ त’ नचनियाँ सन मनोरंजन, ओ मजाक करैत देखैत छिऐक, हमरा लेल त’ तकबो असह्य होइत अछि। ...भ’ सकैत अछि मौगियाह स्वभावक कारणें बासनबला स्त्राीगण सभक बीच लोकप्रिय होअए!
ओकरा पर बिगड़बाक एकटा कारण ईहो छल जे ओ दुपहरिएमे चोर जकाँ अबैत छल। ओहो गमने छल जे पुरुष वर्ग ओकरा पसिन नइं करैत छै, तैं ओ तेहने बेरमे अबैत छल जे सभ बाहर रहै छल। एक बेर पत्नीकेँ हम सावधानो कएने रहियनि, जे ओ थाहि क’ मर्दक अनुपस्थितएमे अबैत अछि, एहने स्थितिमे कए बेर छुरा देखा सभ समान निपत्ता क’ दैत छै। ओ हमर गम्भीर संकेतकेँ हँसीमे टारैत बजलीह-ओ मौगा हमरा सभकेँ की करत! हमहीं सभ ओकरा नोचि खएबै।
भनहि छुरा देखा समान लुटबाक साहस ओ नइं करए, किन्तु ठकि क’ त ओ लइए जा रहल छल। कए बेर पत्नीकेँ बुझबए चाहलिअनि जे जौं ओकरा फायदा नइं हेतै त’ ओ एहन कारोबारे किऐ करैत! जाहि कपड़ा-लत्ताकेँ बेकार बुझि क’ दैत छिऐक तकरा ओ बेचैत अछि। कतेक एहन अछि जे नव साड़ी नइं कीनि सकैत अछि, से इएह किनैत अछि। गुदड़ी-चिथड़ी सेहो मशीन पर साफ करबा लेल फैक्टरी नीक दाम द’ किनैत अछि। पत्नी मुदा नइं मानैत छलीह। हुनका अपन बुधियारी पर दाबी छलनि, जे फाटल-चिक्कट कपड़ाकेँ धोआ क’, तहदर्ज बना क’, बासनबलाक आँखिमे धूरा झाोंकैत छथि।
केदन कहैत रहै जे महिला काॅलेज लग किछु रिक्शाबला खाली जनानी सवारी लेल बैसल रहै अछि। खाली रहत किन्तु दोसर सवारी ओ नइं उठाओत। सुन्दर सवारी चढ़ा ओ एकटा तृप्तिक अनुभव करैत अछि, मोनक सन्तोष, आर किछु नइं। किछु हासिल नइं होइतहु लगैत छै जे ओ फयदामे रहल। आ दोसर दिस जनानी सवारी सहजहि लाभक स्थितिमे रहै अछि। दुनू अपना-अपना ढंगें फयदाक अनुभव करैत अछि।
पत्नीक ईहो तर्क, जे निरर्थक फेक दै बला वस्तुक बदलामे जँ थोड़बो किछु भेटि जाइत अछि त’ ओ घाटाक सौदा कोना कहाओत, सही नइं छल। नीको कपड़ा जहाँ कने पुरान भेल कि ओ ओकरा अलग छाँटि क’ राखि दैत छलीह। पत्नी हमरा सामने कपड़ा देबएसँ हिचकैत छलीह। कहियो काल तैं ओ दोसर दिन अएबा लेल कहि दैत छलखिन। एकाध बेर पुरान कुर्ता-कमीज नइं भेटने हमरा बुझबामे भांगठ नइं होइत छल, जे ओ बासनबलाक भेंट चढ़ि गेल हैत।
-कतए छी? एहि थारी लेल पाँच टा नूआ मँगैत अछि।-बगलवाली पत्नीक खोजमे पहुँचलखिन।
-हेइए अएलहुँ। ई लोहिया खाली माँजि लैत छी। रहू ने, दू गोटसँ बेसी नइँ देबै।-पत्नी मोल-मोल्हइमे माहिर मानल जाइत छलीह आ सभ खरीददारी हुनके नेतृत्वमे होइत छल। बासनोबला पत्नीक एहि शक्तिसँ परिचत छल आ तैं हुनका ओ कहुना नाखुश नइं करए चाहैत छल। पत्नीक नाराजगीक अर्थ छलै सम्पूर्ण फ्लैटसँ ओकर उखड़ब। आ उचिते ओ पत्नीक बोहनीकेँ शुभ मानैत छल। पत्नी एहीमे फुच्च भ’ बोहनी करैत रहै छलखिन।
अकस्मात हमर जिज्ञासा बढ़ि गेल, जे देखा चाही कतेकमे सौदा पटैत छै! बासनबला पाँच टा मँगैत छै आ पत्नी दुइए टा देबा लेल तैयार... देखी के जीतैत अछि। कोठरीसँ बाहरक गप्प साफ सुना पड़ैत छलै, आ हम सुतबाक लाथें दम साधि सुनए लगलहुँ। अनायासे आइ जासूसी करबाक अवसर हाथ लागि गेल छल, आ हमरा एहिमे आनन्द आबए लागल छल।...
सार मुदा अछि भागमन्त! स्त्राीगण सभ फिदा रहै छै ओकरा पर। पत्नीकेँ कए बेर बेकलतासँ ओकर प्रतीक्षा करैत देखने रहिअनि। फ्लैटक महिला लोकनि बासनबलाक हाँक पर तहिना जमा भ’ जाइत छलीह, जेना मुरलीक टेर पर गोपी सभ।
बाहरमे महिला लोकनिक बीच कृष्ण बनल बैसल बासनबला रंग-रभस क’ रहल अछि। नोक-झोंक त’ कखनो मान-मनुहार आ कखनो संकेत-कटाक्ष चलैत रहै। मोन त’ भेल बासनक छिट्टा समेत ओकरा नीचाँ फेकि दी।...
-अँए यौ, एते पातर थारी लेल पाँच टा नूआ? ठकए लेल हमहीं सभ भेटलहुँ अछि?-पत्नी उपालम्भ देलखिन।
-नइं, ठकइ नइं छी। ईमान जनैत अछि, एहिमे कोनो फयदा नइं ल’ रहल छी। अहाँ आउर सए माँगि क’ लेब। ठकि क’ कहाँ जाएब?...
बासनबला घाघ बुझाएल, गप्प करबामे माहिर। झूठ-फूस बात बना स्त्राीगण सभकेँ ठकैत छै। सार, क्यो कहि क’ ठकैत छै?... आ फयदा नइं छौ त’ छोड़ि किऐ नइं दैत छें ई काज! दोसरे काज कर, फयदाबला... बरू नचबे कर!...
-दू टा नूआसँ फाजिल नइं देब एकर। कहि देलहुँ से कहि देलहुँ।-पत्नी कमान कसि तनल छलीह।
-दू कपड़ामे एतेगो थारी के देत! मोला लिउ तब कहब।
-मोलौने छिऐ। एहि थारीमे कोनो ओजन छै! पचकै छै, तते पातर छै।-पत्नी जेना अपन समर्थनमे थारीकेँ दू बेर पचका ‘ठक-ठुक’ बजएलीह।
-थारी त’ बीच से पचकबे करतै, केतनो मोटा हो।
-की बात करै छी! देखा दिअ’ हम थारी। अहाँकेँ त’ बुझाइ अछि जे हमरा सभकेँ किछु बुझले नइं अछि।
-नइं मलकीनी, से बात नइं छै। ठकी करै हइ ओ जकरा एके दफे बिक्री करबाक रहै हो। हमरा त’ बराबर ईहे दरबज्जा पर आबे के हए। आज ठकि क’ जाएब त’ काल्हे अहाँ दस जुत्ता देब।-बासनबला पत्नीकेँ पोल्हबैत बाजल।
-एना नइं बाजू। अहाँकेँ हम सभ एतेक मानैत छी। ...कहू त’ भला! दियौ दू टा नूआमे। पत्नी परतारैत कहलखिन।
नइं मलकीनी। नइं परता पड़ैत छै।-ओ खेखनाए लागल।
-परता कोना नइं पड़त? अहीं दुआरे हम सभ बजारसँ नइं लैत छी।-बगलवाली पर ओकर कोनो असरि नइं भेलै।
-दू गो कपड़ामे त’ ई कटोरा दैत छिऐ। थारी त’ चारगो मे देबे ने केलिऐ।...
-भेल-भेल। आब बेसी मोल्हइ नइं करू। ठीक छै एकदम।-पत्नी निर्णयात्मक स्वरमे बजलीह।
-घट्टी लागि जाएत। अहाँ आउर सए माँग क’ लेब। अपने सब त’ नोकर-दाइ कए बँटिते रहै छिऐ। एगो दिऔ ने हमरो घरबाली लेल!
बासनबला शृंगार रसक उद्दीपन क’ देने रहै, आ सभ रस लेबए लगलीह।
-से अहीमे सँ द’ दियौ। देखियौ एकदम द’ढ़ छै। कतहु कनिको फाटल नइं। ई अहाँ घरबालीकेँ द’ दियौ।-पत्नी कहलखिन।
-घरबालीक कते ध्यान रखै छै बासनबला।-बगलवाली चुटकी लेलखिन।
-रखथिन नइं? ओहो तहिना मानैत हेतनि की।-ई दोसर पड़ोसिनक स्वर रहै।
-हँ, से मलकीनी कोनो शिकाइत नइं करै हइ। गाय हइ।-पता नइं बासनबला भसिआए लागल छल कि नाटक क’ रहल छल!
-घरबालीकेँ त’ साड़ीक कोनो कमी नइं रहै हेतै।-पड़ोसिन टिपलखिन।
-त’। एकटा हम सभ छी।-पत्नीक फोरन पर सभ भभा क’ हँसल।
-ओकरे दे देबै त’ कमाइ की करबै? ओ त’ अहाँ आउर सए माँग क’ दैत छिऐ-बासनबला सफाइ दैत बाजल।
-देखैत केहन छौह?-पत्नी खोदलखिन।
-ठीके हइ, हिनके बला रंग हइ।-बासनबला पता नइं ककरा देखा क’ कहलकै, जाहि पर सभ हँसैत-हँसैत लोट-पोट होबए लगलीह। हमर क्रोध बर्दाश्तसँ बाहर होबए लागल। सार खच्चरइ क’ रहल छल।...
-कतबो कहै हिअइ जे अबेर हो जाए त’ खा लेबे लेल, से बइठल रहत। हम जेबइ तबे खाएत।-बासनबला आब हदसँ बेसी बहकि रहल छल।
-धीया-पुता सेहो अछि?-जानि नइं कोन बेगरते पत्नी पुछलखिन।
-हइ, दू गो बच्ची।
-देखैएमे बासनबला तेहन बुझाइए...।-पता नइं गम्मेसँ के बजलै जाहि पर सभ ठहक्का लगौलक।
-एगो होनिहारो छै।-बासनबला ढीठ भ’ आएल छल।
-कै मासक छै?-पत्नी पुछलखिन त’ फेर हँसी भेलै।
हमरा बरतनबलासँ बेसी पित्त पत्नी पर चढ़ल। छोट लोकसँ मुँह लगौलाक इएह परिणाम होइत छै! पत्नीकेँ अपन स्तरक ध्यान रखबाक चाहिअनि। हमरा आश्चर्य भेल जे पत्नी छोट-मोट फयदा लेल कोना एहि हद धरि नीचा उतरि आएलि छलीह।
कए बेर कहलिअनि जे दोकानमे एकसँ एक चीज भेटै छै। जे किनबाक हो ओही ठामसँ लिअ’। किन्तु नकद दाम द’ किनबामे हिनका आँखि लगैत छनि। किछु महग जँ भेबो कएलै त’ वेराइटी त’ भेटतै! ई जेना मँगनिएमे दैत हो। जौं किछु सस्तो पड़ै त’ एहि तरहक घटियापन!...
हमर ध्यान मूल विषयसँ घूमि दोसर दिस चलि गेल रहए। उत्सुकता एखनो रहए जे बूझी जे सौदा कतेकमे पटलै? कान फेरसँ काज करए लागल। मोल-भाव एखन चलिए रहल छलै।
-हटाउ, तीन टा नूआ दे दिऔ।-बासनबला पैंतरा देखा रहल छल।
-नइं, तीन टा मे हमरा डोंगा द’ दिअ’।-पत्नी कनेको कमजोर नइं पड़लीह।
-चारो गो त’ लम्हर कपड़ा दिऔ।-बासनबला पस्त नइं भेल छल।
-पहिने ई थारी फरियाउ ने।
-थारी तीन गो से कममे नइं होत, आखरी।
-नइं, तीन टा त’ नइं देब।
-अहीं लेल तीन गो लगा देलिऐ। दोसरासे चार गो से कम नइं लितिऐ।- बासनबला पत्नीकेँ थाहबाक अन्तिम प्रयास कएलक आ हुनका नइं डिगैत देखि मने मन निर्णय क’ लेबाक स्थितिमे आबि गेल छल।
-छोड़ू-छोड़ू! देबाक हो त’ दिअ’ नइं त’ जाउ।-पत्नी निर्लिप्तताक ढोंग करैत बजली।
-अच्छा, चलू अहीं के बात। एगो कमीज लाउ।
-नइं, कमीज त’ नइं अछि। बच्चीक फ्राक द’ देब।
मामिला पटि गेल रहै। बगलवाली दूटा नूआ आ एकटा फ्राकमे थारी ल’ लेलखिन। लगभग अधियामे सौदा भेल रहै। दोसरासँ मुदा रगड़ियल चारि टा तक नम्हर कपड़ा ऐंठि लितै। गिरहकट्ट सार!...
ई बासनबला बहुत दिनसँ परिकल अछि। पत्नीकेँ एकरेसँ पटितो छनि। दोसर बासनबालीसँ ओ नइं लैत छथि। मारते रास बासन ओ जमा कएने छथि आ तैयो कोनो ने कोनो फरमाइश क’ ओकरा बजबैते रहै छथिन। कतेक बेर त’ हमरा पतो नइं चलैत छल। ई पहिल बेर छल जे हुनका सभक गप्प सुनबाक मौका लागल छल।
हमरा जतबे ई पसिन्न नइं छल, पत्नीकेँ बासन लेबाक धुन चढ़ल छलनि। ओ नैहरसँ सेहो पुरान कपड़ा सभ आनए लागल छलीह। बासनोबलाकेँ एकटा नीक मुल्ला भेटि गेल रहै।...
-देखियौ कते टा डोंगा तीने टा साड़ीमे द’ देलक... एकटा त’ एकदम्मे फाटल रहै।-पत्नीक आँखिमे बासनक चमक सन्हिया आएल छलनि।
-बजारमे पैंतालिस टकासँ कममे नइं दितए।-पत्नी तरह-तरहसँ बुझाबए लागल रहथि, जे ओ फयदामे रहलीह अछि। परन्तु हमर भीतरक धाह कम नइं भेल रहए।
-अहाँक मुँह देखि क’ द’ देने हैत।-हम चोट कएलिअनि, किन्तु आन समय जकाँ ओ आहत नइं भेलीह।
-से ठीके। बोली देला पर ई बहुत सस्ते द’ दै छै। हँसि-बाजि क’ एकरा पोटि लै छिऐ।-पत्नी हमर भावसँ अनभिज्ञ अपनहि धुनमे छलीह।
-कनेक आर आगाँ बढ़ि जाउ त’ मँगनियोमे द’ देत।-हम कटाक्ष कएलिअनि। हमर आशाक विपरीत ओ तुनुकबाक साँती सोआद’ लगलीह-कोन हर्ज। अहींक घर भरत... फयदे-फयदा।...
पत्नी बाजि क’ चलि गेलीह मुदा हम तखनेसँ सोचि रहल छी। तय नइं क’ पबैत छी जे ओ वस्तुतः सस्त अछि कि नइं!...

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जंगलक हरीन
विनोद बिहारी लाल

ट्रेनमे चढ़िते जोरगर ठहक्का सुनएलै। उद्दण्ड ठहक्काक कान-फाड़ स्वर। नजरि गेलै ओम्हर तँ ओहि कातक सीट पर दू-तीन टा नवतुरिया बैसल देखएलै। सभ एक्के हुलियाक। ‘सलमान कट’ केश आँखि पर करिया चश्मा। छापबाला बुश्शर्ट। चुस्त, पोन आ जांघसँ सटल पैन्ट। गट्टामे मोट चकरगर कारा। आँगुरमे फसल, धुआँइत सिकरेट। हुलुकबानर सन दाँत चियारने सभ तेना हिहिया रहल छल जे बुझएलै, एकदम अशिष्ट, निर्लज्ज अछि ओ सभ।
ट्रेन पुक्की देलकै आ ससर’ लगलै।
ओ सीट तकबा लेल आगू ससर’ लागल। कोनो बेंच पर कतहु जगह नइं। सभ पर बैसल, कोंचाएल यात्राी सभ। नजरि घुमैत फेर ओही कातक सीट दिस गेलै तँ तीनू नवतुरियाक सोझाँवला सीट पर एकटा किशोरी देखएलै। चैदह-पन्द्रह बर्खक। ओकर आँखि तेहन कोसगरि, तते पैघ-पैघ छलै जे किछु छन धरि ओकरा देखैत रहल। भरल-पुरल दीप्त निर्दोष मुखमण्डल पर छूरी सन नाक, पूआ सन गाल आ पातर ललकी ठोर। किशोरी अत्यन्त आकर्षक छल। तकर एक कात बैसल एकटा वृद्ध आ दोसर कात एकटा वृद्धा। दीन-हीन सन देखाइवला ओहि दम्पतिक किशोर बेटी छलै साइत-अटकर कएलक। ओकरा सभक सोझाँक सीट पर बैसल तीनू नवतुरिया ओहिना कचर-वचर करैत ठिठिया रहल छल। ओ ग’रसँ तीनूकेँ देख’ लागल। ओकरा सभक बीच चलैत गपसपकेँ सुनि ठकमूड़ी लागि गेलै। ओ सभ एकटा फिल्मी हिरोइनक गरम वेडसीनक गप बड़ निर्लज्ज ढंगसँ क’ रहल छल। तते वीभत्स रूपें जे आश्चर्य भेलै, एते यात्राीक बीच कोना हिम्मति भ’ रहल छलै। तीनू सत्ताधारी पार्टीक छुटभइया नेता सभक जहरबीया छलै, ई ओकर सभक गपसपसँ ज्ञात भेलै। तीनू हद दरजाक लम्पट आ धृष्ट देखाइ छलै। ओकर सभक गप घूमि क’ एकटा ओहन नचार लड़िकी पर जमि गेल छलै, जे पाँच दस टाकाक मोल पर देह बेचै छल। ओहि लड़िकीक हाओ-भाओ आ चेष्टा आ देह समर्पणक वर्णन तीनू रस ल’ क’ रहल छल।
डिब्बाक यात्राी सभ चुप्प। मुँह घुमौने खिड़की बाटे बाहर तकैत।
आ, किछु छनक बाद ओहि तीनूक दुस्साहस आर बढ़लै। बीच महक छौंड़ा, जकरा दहिना भाग नाकसँ गाल धरि गहिंर घाओक दाग रहै, किशोरीक आँखिमे निःसंकोच अपन नजर भेंसैत हाहि काट’ लागल-किया चीज हइ... किया माल हइ..., हाय-हाय!
बेटीक प्रति एहन टीका सुनिते वृद्धक आँखि अंगोर भ’ गेलनि। ओही आँखिएँ नकचिर्रा दिस तकैत रहला ओ। फेर नजरि घुमा क’ बेटी संग गप कर’ लगलाह। ओकरा सभसँ मुँह लगाएब ओ ठीक नइं बुझलनि साइत।
डिब्बाक यात्राी सभक नजरि किछु छन लेल आपस भीतर अएलै, फेर बाहर चल गेलै। सभ गुम्म।
ओ आँखि चियारने ओहि तीनू दिस तकैत, ओकर सभक दुस्साहस पर चकराइत रहल। बुझबामे भांगठ नइं रहलै, लोक लाजकेँ घोंटि गेल ओ सभ। ओहन बाहुबली जुआन छल, जकरा समाज, पुलिस, कानून आ जेलक डर नइं रहै छै। चैक-चैराहा हो कि सड़क-बाजार-सभ ठाम एहन उच्छृंखल सभ घुरघुराइत देखाइए, निर्भीक, छुट्टा साँढ़ जकाँ निद्र्वन्द्व घुमैत। प्रतिदिन अखबार रंगल रहैए एहन तत्वक किरदानीक कथासँ। लूटि-पाटि, छीना झपटी, अपहरण, बलात्कार, हत्या आ नइं जानि की-की।
ओकरा घृणा भेलै ओहि लफांड़ि सभ पर, आ वृद्धक प्रति सहानुभूति। ओहि तीनू दिससँ ध्यान हटल रहौ, वृद्ध भरिसक तैं पत्नी आ बेटीकेँ गपमे ओझरौने रहथि। ओकरा मन भेलै जे कहै, कनियो लाज संकोच कर’। तोहर सभक माइ-बहिनक सोझाँ एहन खिस्सा पसारि देल जाए त’ केहन लागत’! मुदा से मानलकै नइं मोन। लगलै, ओकर बातक घातक असरि पड़तै ओकरा सभ पर। जकरा एतबा होस नइं छै जे ओ की बाजि रहलए, कत’ बाजि रहलए-निश्चित ओ बेहोस अछि, मदमत्त अछि आ मदमत्तक देह अधीनमे नइं रहै छै। ओकरा पर दानव सवार रहल करै छै आ दानव, दानव होइए। ओकरा विवेकसँ कोन सरोकार? ओकर बात ओकरा सभकेँ कटाह लगतै। भड़कि उठत सभ। चक्कू, छुड़ी, पेस्तौल-किछु चमक’ लगतै ओकरा सभक हाथमे आ मोनसँ ओहि विचारकेँ ओ झटकि देलक।
डिब्बाक यात्राी सभ ओहि तीनूक गतिविधिसँ ओहिना निरपेक्ष रहए। ओकरा मोनमे अएलै, सभ ओकरे जकाँ सोचि-सोचि मूक बनि गेल छै। उदासीन आ तटस्थ।
तीनू ओहिना हिहिया रहल छल। ओकर सभक मुँहक दुर्गन्ध डिब्बामे पसरल छलै। यात्राी सभ उबिया रहल छल, मुदा ओहि तीनूक रंग ढंग देखैत किछु कहब क्यो ठीक नइं बुझि रहल छल। ट्रेन हड़हड़ाइत भागल जा रहल छल-काकरघाटी, तारसराय, आ आब सकरी...
डिब्बाक बाहर आ भीतर साँझक झोलअन्हारी पसर’ लागल रहै। बल्ब बारि देबाक विचारसँ ओ स्वीच बोर्ड ताक’ लागल। मुदा तखने छत दिस नजरि गेलै आ बोर्ड दिस बढ़ैत हाथ ठमकि गेलै। छतमे लोहक सुरक्षा जाली टूटल रहै आ बल्ब नदारद। मोन भिनभिना उठलै। बुझएलै ई काज एहने लफांड़ि सभक भ’ सकै छै। ओना, भारतीय रेले दुर्दशाग्रस्त छै। ताहूमे दरभंगा-निर्मली शाखाक ट्रेन सभक क्यो माइ-बाप नइं। गाट झण्डी डोलबैत रहैए आ डरेवर टी-स्टाल पर केहुनी टिकौने ठाठसँ चाह सुड़कैत रहैए। तहिना ट्रेन खोलबाक आदेश लेब’ लेल डरेबर सीटी पर सीटी बजबैत रहैए आ गाट साहेब गरीब कुजरनी, निरीह तरकारी वाली सभक आंगीक जेबी झोड़’ पाछू अपस्याँत देखाइए। उच्छृंखल तत्व सभकेँ तँ अपन पुश्तैनी सम्पत्तिए बुझाइत छै डिब्बाक वस्तुजात सभ। जकरा जे हाथ लगै छै, उठौने जाइए घर। सीटक गद्दा, रेक्सिन, बल्ब, पंखा, चेन कतहु साइते कोनो डिब्बामे देखाइ छै। टोले-टोल वैक्युम करैत जाएत आ आरामसँ उतरि क’, सिकरेट धुकैत घर विदा हैत। क्यो किछु कहनिहार नइं।
हठात् ओ चैंकल। नकचिर्रा घुसकि क’ किशोरीक ठेहुनसँ अपन ठेहुन सटा देने छल आ गीत गाब’ लागल छल। एकटा गन्दा फिल्मी गीत। दोसर, खिड़की पर थाप देब’ लागल छलै। तेसर, आँगुरकेँ मुँहमे ढुका क’ सीटी बजाब’ लागल छल। तीनूक गतिविधि लंगटपनीक सीमाकेँ नाँघ’ लागल छलै। तीनूक आँखि लाल टुह-टुह।
किशोरी डेरा गेल छल। पैरकेँ ऊपर मोड़ि ओ माइक पाँजरमे सटि गेल छल। वृद्ध तामससँ कपकपाए लागल छलाह। वृद्धाक आँट मोन हुहुआ उठलनि। तीनूकेँ ओ सराप’ लगलीह, मुदा तकर ओकरा सभकेँ कनियों परवाहि नइं।
सोझाँक सीट पर बैसल एकटा प्रौढ़केँ जखन बरदाइस नइं भेलनि, तँ बाज’ लगलाह-केहन लोक सभ छी अहाँ सभ यौ, कनेको विचार नइंए-जनानी जातिक सोझाँ एना करै जाइ छी... छिया... छिया...!-ओ बाजि क’ मुँह तुरछा क’ चुप्प भेले छलाह कि तखने बूढ़ा चिकरैत उत्तेजनामे ठाढ़ भ’ गेलाह आ नकचिर्राक थुथुन पर कड़गर चाट लगौलनि-गुण्डपनी करै जाइ छ’... की बुझै छ’ अपनाकेँ... आ हुनकर दोसर चाट उठबासँ पूर्वे सीटी बजाब’ वला तेहन घुस्सा पेटमे मारलकनि जे छिलमिला क’ पेट पकड़ने ठामहि बैसि रहलाह। ओम्हर नकचिर्राक थापर प्रौढ़क कनपट्टी पर तड़कि उठल। प्रौढ़ हाकरोस कर’ लगलाह। डिब्बामे यात्राी सभक बीच खुसुर-फुसुर होब’ लगलै।
ओ जंजीर घिचबा लेल हाथ नमरौलक। मुदा ओकर दुर्गति देखि क’ हाथ ठमकि गेलै। जंजीर टूटल झूलि रहल छलै नीचाँ। यात्राी सभ गल्ल-गल्ल कर’ लगलै-अन्हेर करै जाइए... देखू त’ बदमासी... गुण्डा सभ छी ई सभ...।
तखने सीटी बजाब’ वला पेस्तौल घुमब’ लागल। यात्राी सभ दिस आँखि गुड़रैत गुम्हड़ लागल-क्यो सीटसँ नइं उठए... खबरदार! जे उठत मारल जाएत।-थाप देब’बला छूरी फनकाब’ लागल-खबरदार! ...खबरदार!
गल्ल-गल्ल बन्न भ’ गेलै। डिब्बा शान्त आ सकदम।
वृद्ध सीटक नीचाँ ओंघराएल कुहरि रहल छलाह।
बूढ़ी बेटीकेँ पजियौने चिचिआए लागल छलीह।
सहयात्राी आँखि चियारने साँस रोकने तीनूक गुण्डागर्दी देखि रहल छल।
अगिले छन नकचिर्रा लपकि क’ किशोरीक बाँहि ध’ लेलक। ओकरा घिसियबैत गेट दिस विदा भेल ओ।
किशोरी बपहाड़ि तोड़’ लागल। बूढ़ी छाती पीटए लगलीह। नीचा ओंघराएल बूढ़ा चीत्कार कर’ लगलाह-बचाउ यौ बाबू सभ... हमर बेटीकेँ बचाउ यौ।-मुदा यात्राी सभ अपन अपन सीट पर माटिक मुरूत जकाँ थोपल चुप। टुकुर-टुकुर, खन छटपटाइत किशोर दिस तकैत, खन फनकैत छूरी आ पेस्तौल दिस।
ओकर दिमागमे अएलै, सभ यात्राी उठि एक्के बेर दुनूकेँ गछाड़ि क’ सकपंज क’ दौ तँ... मुदा एहन सोचबे व्यर्थ, ओ असकरो ई काज क’ सकैए, ओ सोचलक आ तेजीसँ नजरि खिरौलक। जाहि बर्थ लग ओ ठाढ़ रहए, ओहि पर एकटा मोड़ल छत्ता धएल रहै, बेस मजगुत, ठोस। ओहिसँ तड़ातड़ि दुनूक गट्टा पर प्रहार क’ निहत्थ कएल जा सकैए, ओकरा मोनमे ई विचार छिटकलै आ ओ छत्ता उठब’ लागल। किन्तु ओकर लक्ष्यकेँ साइत पहिनहि भाँपि गेल रहै पेस्तौलधारी। ओ उनटि क’ ठनाक द’ मारलकै पेस्तौलक मूठ कप्पार पर आ ओकर आँखिक आगू तरेगन छिटक’ लगलै। अन्हार पसरि गेलै। देह ढनमना क’ एकटा सहयात्राीक ऊपर खसलै। सहयात्राी ओकरा धकेलि क’ नीचा खसा देलकै तँ अनायास चेतना आपस आबि गेलै। ओ देखलक नकचिर्राक फानसँ छुटबा लेल किशोरी हाथ-पैर झमारैत किलोल क’ रहल छल। ओ औनाए लागल... की करए... कोना रोकए ओकरा सभकेँ।
बूढ़ा ओहिना गर्द क’ रहल छलाह-यौ, हमर बेटीकेँ बचबै जाउ।-बूढ़ी ओहिना छाती पिटैत-गइ दाइ सभ गइ दाइ सभ...
यात्राी सभ ओहिना माटिक मुरूत जकाँ सीटे-सीट थोपल।
बूढ़ाकेँ बुझा गेलनि जे हुनक बेटीक इज्जति आ जान आब नइं बचतनि, तँ जानि नइं, कत’सँ ओहि देहमे ओते तागति आबि गेलनि। ओ पेस्तौलबला आ छूरीबलाक नीचाँसँ सुरुक्का मारि क’ नकचिर्रा धरि पहुँच गेलाह। ओकरा जाँघकेँ गछाड़ि क’ हांइ-हांइ हबक’ लगलाह। तखने छूरीबला हुनकर गरदनि दिस झपटल, आ दोसरे छन हुनकर हाथ ढील भ’ गेलनि। गरदनिसँ शोणितक फुचुक्का छुटलनि। कण्ठसँ गों... गोंक ध्वनि।
यात्राी सभक आँखि फाट’ लगलै। कैक टा जनानी जाति चिचिया उठल। आ, तखने किशोरीकेँ पजिया क’ ट्रेनसँ कूदि गेल नकचिर्रा। ओकरा पाछू छूरीबला। तकरा पाछू पेस्तौलबला। ओही बीच बूढ़ी बताहि जकाँ गेट दिस दौड़लि। ओकर लक्ष्य भाँपि क’ एकटा युवक ओकर डेन पकड़ि क’ घिचैत सीट पर बैसब’ लगलै तँ बूढ़ी किलोल करैत ओकर मुँह भम्होड़ि लेलकै-छोड़... छोड़ हमरा... हमरो कूद’ दे... मरि जाए दे हमरो... हम की करब आब जीबि क’ रौ जनपिट्टा! रौ दैव रौ दैव...
ओ निहुरि क’ बूढ़ाक नाड़ी टोबलक। नाड़ीक गति क्षीण भेल जा रहल छलै। धीरे-धीरे।
डिब्बामे, बूढ़ीक विलापक संग सीटे-सीट बैसल गीदड़, भेंड़, बकरी आ फकसियार सभक ‘हुआ-हुआ’ आ ‘में-में’क ध्वनि मिज्झर भ’ गेल छलै। कोलाहलसँ डिब्बा गनगनाइत...
सकरी आबि गेलै। ट्रेनकेँ रुकिते ओ नीचाँ कूदल आ सुरक्षा सिपहीकेँ तकबा लेल डिब्बे-डिब्बे हुलकी देब’ लागल। गाटक डिब्बामे दूटा सिपाही देखएलै। दुनू खिड़की लग बैसल ओंघा रहल छल। ओ डिब्बामे ढुकि क’ दुनूकेँ जगौलक आ घटनाक सूचना द’ अपहृत किशोरीकेँ बचएबाक प्रार्थना कएलक।
दुनू सिपाहीक भक् टुटलै। हड़बड़ाइत आँखि खोललक-अएँ! अपहरण... कब?
-इएह सात आठ मिनट पहिने...
-कहाँ
-तारसराय आ सकरीक बीचमे... चलैत गाड़ीसँ कूदि गेल ओ सभ!
-हुहँ! स्साला मूरख सब...!
जानि नइं, सिपहिया ककरा पर झुझुआइत उठल आ ओकरा संग विदा भेल।
ओहि डिब्बाक भीतर आ बाहर लोक सभक करमान लागि गेल रहै। शोणितमे नहाएल ओ बूढ़ाकेँ देखबा लेल आ घटनाक विवरण बुझबा लेल लोक आफन तोड़ि रहल छल। ओकरा सभकेँ कतियाबैत दुनू सिपाही डिब्बामे ढूकल। फर्श पर निश्चेष्ट पड़ल बूढ़ पर नजरि फेकलक आ बगलमे ओंघराएलि बताहि बनल बूढ़िक पीठ पर डंडा गोंजि क’ कड़कल-ऐ बुढ़िया! कहाँ घर बा?
बूढ़ी आँखि खोललक। सिपाहीकेँ देखिते ओकर पैर गहिया लेलक आ अपन बेटीकेँ बचएबाक गोहारि कर’ लागल।
सिपहिया झटकि क’ पैर छौड़ौलक आ ठनकल-घूम... आर घूम...। सीयान बेटी के साथ घूमत बरे त’ का होई... अभी छाती-कपार पीट’ तर’... स्साला! जमाना कइसन खराब बा, ई जान के भी जुआन बेटी के साथ टंडेली करे खातिर घूमत बरे... त’ बूझ’... भोग’...।-बूढ़ीकेँ फटकारि क’ ओ डिब्बासँ बहरा गेल।
लोक सभ फेर मुड़ियारी देब’ लागल। हो-हल्ला आ घोल-फचक्कासँ ओकर माथक पीड़ा आर बढ़ि गेल छलै। कंठ सूखि गेल रहै। पैर जेना लोथ भ’ गेल रहै। भरिआएल मोनसँ डेगकेँ घिसियाबैत प्लेटफार्मक चाहक दोकान पर आएल आ एक गिलास पानि मंगवा लेल दोकानदार दिस मूड़ी उठौलक। तखने दोकानक देबाल पर टाँगल एकटा फोटो पर नजर पड़लै। फोटो एकटा जंगलक छलै। ओहि जंगलमे एकटा उन्मत्त बाघ ऐंचल नांगरि अमठने मुँह चियारने छल, आ ओकर जबड़ामे गंथाएल छटपटाइत एकटा हरीन छलै।
ओ फोटो दिस तकैत रहल-कठुआएल।

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रिटायरमेंट
विभूति आनन्द

नवनिर्मित अपन गामक मकानमे पड़ल रहथि डाक्टर साहेब। एकदम्म शान्त वातावरण। नान्हि टा एहि घेरल-बेढ़ल आँगनमे आन क्यो नइं। उदासीक राग दिन-प्रतिदिन मुखर होइत चल जाइत। दू प्राणीक पेट। कनीकाल हलचल। चाउर-दालि-तरकारी, बर्तन-बासन। फेर सभ शान्त। उसरल पेठिया सन।
डाक्टर साहेब बामसँ दहिन करोट भ’ गेलाह पलंग पर। निमुठ हाथ मोट ई तुराइ गड़ैत बुझएलनि। तीन दिन पुरान दैनिक आर्यावत्र्तकेँ सिरमा दिससँ टारलनि, आ दहिना हाथ पर माथ राखि ओहि पर बामा हाथ राखि कतहु हेरा सन गेलाह। पत्नी भरिसक कोनो फरीकक आँगन बहरा गेल रहथिन।
समय कतेक शीघ्र अपन बोरिया-बस्तर समेटि लैत अछि! हिनका बीस बर्ख पाछूक अपन परिवार मोन पड़लनि। दू बीघामे पसरल छल हवेली। चैघरा हवेली। नीचा भीत, ऊपर खपड़ा। तीन भाइक भैयारीक अतिरिक्त दू फरीक आर रहथि एहि हवेलीमे। सभ तरहक लोक, सभ ठामक लोक, मुदा बात-विचार एक। घर-परिवारक मामिलामे मास्टर साहेबक बात सर्वोपरि होइत छलनि। किनको मोनमे पाप नइं छलनि, ककरो कथुक रोष नइं छलनि। मास्टर साहेब रहथिन अन्तर्यामी। सभक इच्छा-आकांक्षा, समस्या, फरमाइश स्वतः पूर होइत रहै छलनि। सए बीघा खेत सेवा पाबि झूमि क’ उपजैत छल, आ सभ आनन्दपूर्वक रहै छल।...
एही तरहक साझी वातावरणमे ई डाक्टर भेल रहथि। एम.बी.बी.एस.। तहिया परोपट्टामे एक्का-दुक्का क्यो भेल भेल, नइं भेल। तकर धाही कोनो कलक्टरसँ कम नइं होइ छलै।
डाक्टरो साहेबक धाही देखैबला रहनि। गाम अबैत रहथि, त’ परिवारमे जेना हरबिड़रो मचि जाइत रहै। पूरा परिवार सावधान मुद्रामे। बहुत कम बजैत रहथि डाक्टर साहेब। हिनका दलान पर पैर दीतहिं सभ उठि क’ ठाढ़ भ’ जाइत रहथि। छोट-पैघ सभ। ई सभकेँ प्रणाम क’ बैसि जाइत रहथि, तखन सभ बैसथि।
एहन गप नइं जे हिनका अबितहि सम्पूर्ण परिवार आतंकित भ’ जाइत छल। ई एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहथि, जे पूरा परिवार लेल आदरणीय रहथि। तैं एक तरहें सभ अनुशासित आ आनन्दित भ’ उठैत रहथि। ई छोटसँ पैघ धरि, सभक कुशल-क्षेम लेथि। लोक धखाइत उत्तर देथि आ हिनक सान्निध्य सुख पाबि स्वयंकेँ धन्य बुझथि। बहुत अचरजसँ लोक हिनक बोली-बानीसँ ल’ क’ चालि-ढालि, उठब-बैसब, सुटकेश, ओकर कुंजी, कपड़ा-लता आदिकेँ देखथि।
हिनकर ई दौरा एकसँ दू दिनुक लेल मात्रा होइत छलनि। एहि बीच अपन परिवार-प्रमुख मास्टर साहेबसँ गप कएलनि आ अपन प्रतिक्रिया, जे अन्तिम निर्णय जकाँ भेल करैत छलै, द’ बिदा भ’ जाइत रहथि।
डाक्टर साहेब शुरूमे सरकारी नोकरीमे नइं गेलाह। ‘प्राइवेट प्रैक्टिस’ पर जोर देलनि। ताही बदौलति परिवारक करीब बीस-पच्चीस कन्यादान बड़ सुगमतासँ कएलनि। आ सएह कारण भेलनि जे अपन भैयारीमे सभसँ छोट रहितो सभसँ प्रमुख भ’ क’ रहलाह।
जखन बयस लौटानी पर अएलनि त’ इच्छा भेलनि जे नोकरी करी। तहिया एतेक दिक्कति नइं रहै। आवेदन देलनि आ चुनि लेल गेलाह। फेर त’ हिनक जीवन-चर्ये बदलि गेलनि। बौआइत रहलाह, एहि शहरसँ ओहि शहर, एहि ब्लाॅकसँ ओहि ब्लाॅक-मनीगाछी, दरभंगा, जोगबनी, पूर्णियाँ, पूसा... पूसा आबि डाक्टर साहेब थमि गेलाह। पियास लागि गेलनि। पड़ले-पड़ल हाक देलनि-सुनै छी!
मुदा सुनै लेल ओत’ क्यो नइं रहनि। माथ उठौलनि। घरकेँ देखैत आँगन दिस देखलनि। कतहु क्यो नइं। खाली-खाली। भम्ह पड़ैत सन। उखरल-उखरल। बसात टा आँगन-घरमे टहलि रहल छलनि। सोचलनि, हिनको जेना अपन आँगन कटै छनि। एत’ हमर सेप सुखा रहल अछि आ ई अँगने-अँगने टहलान मारि रहलि छथि!
फेर अपनहि पर खौंझ उठलनि। ककरा पर तामस करैत छी! अहू बेचारीक कोन दोख। हमरे जकाँ हिनको त’ आँगन रुक्ख लगैत हेतनि। जे भरि जीवन...
आगू नइं सोचि भेलनि। आँखि नोरा गेलनि। पलंगसँ उतरि अएलाह। टेबुल परसँ गिलास उठा लोटासँ पानि ढारलनि आ पीब’ लगलाह-एक... दू... तीन। फेर कनीकाल ओहिना ठाढ़ रहलाह। आब की कएल जाए? स्वयंसँ पुछलनि।
कोनो टा उत्तर नइं भेटलनि। आब की करथि। कोनो टा काज नइं रहनि। अगत्या पुनः पलंग पर जा क’ पड़ि रहलाह। पूसामे आबि क’ अँटकि गेल रहथि...। मुदा परिवार नइं अँटकि सकल रहनि। सभसँ पहिने पड़ा गेलखिन मास्टरसाहेब। फेर दोसर फरीक विजय बाबू। आ सभसँ पाछू ई अपने तीन भाइ। आरम्भमे कनेट दुख त’ भेबे केलनि, मुदा पछाति संतुष्ट एहि ल’ क’ भेलाह जे लगभग पचीस टा यज्ञक आयोजन सम्पन्न कएल। एहिसँ पैघ संतुष्टि आर की भ’ सकैत अछि। एहि लघु जीवनमे! मुदा भीतरे-भीतर दुख जरूर भेलनि जे सभक काज निमाहि देलहुँ, मुदा जखन हमर बेर आएल त’ सभ एसगर छोड़ि पड़ा गेल। मुदा एहि मानसिक यंत्राणासँ बहुत शीघ्रे मुक्त भ’ गेलाह आ स्वयंकेँ अपन चारि पुत्रा आ एक मात्रा पुत्राीमे समेटि लेलनि। पुत्राीक विवाह केलनि। ओ अपन सासुर बसैत छथिन। जेठ बेटा बैंकमे। ताहिसँ नीचा फाॅरेस्टर। तेसर मैरिन इंजीनियर। अन्तिम दिल्लीमे प्रतियोगिता परीक्षा सभक तैयारीमे बाझल।
-सूति रहलिऐ?
-नः-डाक्टर साहेब पत्नीक आवाज पर हड़बड़ा उठल रहथि। फेर सुभ्यस्त भेलाह।
-भोजन नइं करबै!-पलंग पर बैसैत पत्नी पुछलखिन।
-भूखे नइं बुझाइए।-डाक्टर साहेब पड़ले-पड़ल उत्तर देलखिन।
-कनिको त’ खा लितौं!
-अहाँ खएलौं?
-नइं, हमरा ब्रत अछि।
-ककरा लेल ब्रत करै छी!
पत्नी एक बेर हुनका दिस तकलखिन, आ आँखिसँ ढब-ढब नोर खस’ लगलनि-ठीके, ककरा लेल करैत छी, त’ ककरो लेल नइं...
डाक्टर साहेब शून्यमे तकैत रहलाह। आँखिमे नहूँ-नहूँ नोर बढ़ैत गेलनि। शून्यमे तकैत परिवारक नक्शाकेँ दोसर बेर फटैत देखलनि। आँखि नइं सम्हारि सकलनि नोरकेँ।
फेर एके बेर जेना बाँचल नोरकेँ आँखिए बाटे पीबि गेलाह आ एकटा पैघ निसास लैत पत्नीकेँ कहलनि-लाउ, भोजन कैए ली!
पत्नी उठि क’ भनसा घर दिस बिदा भ’ गेलखिन, आ ई पुनः सोच’ लगलाह-रिटारयमेंटक बाद एना भ’ क’ एकाकी जीवन बितब’ पड़त, तकर कल्पनो नइं छल। जेठ जन अपन परिवार ल’ क’ दरभंगामे छथि। श्यामबाबूक पत्नी नैहरमे रहै छथिन। अपनो हुनके पाछू बेहाल रहै छथि। सुनैत छी जे सासुरेमे बसताह। कन्हैयाजी हमरा सभक मोनसँ बहुत आगूक लोक भ’ गेल छथि। कहैत छिअनि बियाह क’ लिअ’ आब, त’ उत्तर दैत छथि जे की करब एखने विवाह क’ क’ बाबूजी! बैजू सहजहि नेन्ने छथि। कहैत छथि, अपन कैरियर देखू, कि अहाँ सभकेँ ओगरि क’ बैसू!
डाक्टर साहेब अपन जीवनक हिसाब जोड़’ बैसै छथि त’ हासिल किछु नइं बचै छनि। सभ बेर हिसाब गड़बड़ा जाइत छनि। एतेक त’ कमजोर नइं रही! तखन चूक कत’ भ’ रहल अछि? ओ सोचै छथि त’ सोचिते रहि जाइत छथि...
डाक्टर साहेबकेँ ऊब होब’ लागल रहनि। हमरे दुनू प्राणीक कारण पूरा परिवार व्यस्त अछि। बहुआसिनकेँ एको क्षणक पलखति नइं भेटैत छनि। धिया-पुता, बाबा-बाबीक दुलारमे पढ़ाइ-लिखाइ छोड़ने सन अछि। अपने डिपार्टमेंटल परीक्षाक तैयारी छोड़ि कोन गुनि-धुनिमे लागल रहै छथि से नइं कहि...
आ एक दिन ठीके ऊबि क’ गाम चलि आएल रहथि। मुदा... एतहु अएला पर ओएह रामा, ओएह खटोला-बच्चा कोना रहैत होएत! बहुआसिन कोना रहैत हेतीह! धिया-पुता पढ़ैत हैत, कि ओहिना खेलाइत-धुपाइत हैत...
भोजन क’ क’ उठलाह त’ पुनः पलंग पर आबि पड़ि रहलाह। कोनो दोसर काज नइं। ऐ लौटानी बयसमे प्रैक्टिस कर’मे मोन नइं लगैत छनि। की जीवन भरि इएह सभ करैत रहू! मोन एहि पेशासँ ऊबि गेलनि अछि। ककरो देख’मे, अथवा दवाइ लिख’मे डर होब’ लगलनि अछि। किनसियाति...! तैं प्रैक्टिस नइं करताह।
तखन की करताह?
टेबुल दिस नजरि खिरौलनि। डेढ़ बजैत रहै। पत्नी दिस तकलनि। ओ निर्विकार भावें हुनका जाँति रहल छलखिन। बजलाह-सुनै छी!
-की?
-एखन कन्हैयाजी अमरीकामे हेताह ने?
-हँ। मुदा कतौ रहथु, देहे-समांगें नीके रहथु।
-अधलाह लागि गेल की?
-नइं, अधलाह किए लागत। मुदा...
-मुदा की?
-किछु नइं।
पत्नीक आँखि डबडबा गेलनि। आँचरसँ तकरा पोछि लेलनि। डाक्टर साहेब फेर टोकलखिन-कनने की हैत!
-एते ककरा लेल कएलौं, त’ ककरो लेल नइं।
-ऐ जुगक इएह रीति भ’ गेलैए त’ की करबै!
-हँ, से सएह!
-हमरा लोकनिकेँ बुढ़ा-बुढ़ी कहियो भारी नइं लगला!
-अपनासँ किए जोड़ै छिऐ?
-कथी?
-हमरा लोकनिक एहन संस्कार नइं छल...!
-त’ एकरा सभक संस्कार खराप छै?
-कह’ पड़ैए।
-अहाँ जे कहियौ, हमरा नइं कहू ई बात!
-किऐ?
-सैह।
-मोहभंग नइं भेलए?
-कहलौं ने, हमरा नइं कहू ई सभ बात...
आ पुनि एकटा गुम्मी पसरि गेलै घरमे। कनी काल सभ किछु जकथक रहलै। फेर डाक्टर साहेब सोच’ लगलाह। जेठ जन त’ कहियो नइं कहलनि जे गाम चलि जाउ! ई त’ हमर अपने निर्णय छल। बहुआसिन कते खियाल रखैत छलीह! धीया-पुताक संगे खेलाइत रहै छलहुँ। मोन बहटल रहै छल...।
धीया-पुता मोन पड़िते बाजि उठलाह-सुनै छी।
-कहू ने!
-गुड़िया के ल’ आउ!
-किऐ?
-एकटा दोसराइत रहत घरमे त’ मोन एना उड़ल-उड़ल सन नइं लागत।
-ओकर पढ़ाइमे हरजा हेतै। अपन स्वार्थमे ओकर जिनगी किए जियान करबै!
-से त’ ठीके कहै छी।
-पुबारि बाधक डेढ़बिघबा कहिया जोतैत?-पत्नी बातकेँ मोड़बाक चेष्टा कएलखिन।
-पहिने दुरगन्नी कोठी आ बसदेबा जोतैत, तखन ने!
-एकटा बात कहू?
-की?
-एना बटैया कोना चलत!
-से की?
-हमर त’ विचार अछि, एक जोड़ बरद कीनि अपने खेती करितौं!
-से त’ बटैयामे खेतक कोनो गति नइं रहि जाइ छै।
-बटेदार सभ महाबैमान भ’ गेलए।
-आ जने-हरबाह कोन दूधक धोल अछि!
-तैयो...।
-तैयो ऐसँ नीक रहत। कमसँ कम मोन त’ बहटल रहत।
-से त’ ठीके। देखियनु दुनू भैयाकेँ! फराक भेल रहथि त’ की रहनि!
-मेहनति जे करतै, तकरा फल भेटबे करतै। मुदा मूल बात छै जे खेती क’ क’ करब की!
-किऐ?
-चारिमे सँ, ने किनको गामसँ मतलब छनि, ने खेतसँ
...
-चुप किए भ’ गेलौं?
-कहै छी त’ ठीके। किनको कोनो मतलब नइं छनि।
-फुसिए हम सभ मोहकेँ ओगरि रहल छी!
आ तकर बाद दुनू गुम्म भ’ गेलाह। दुनूक हृदयमे एके टा बात रहनि-एतेक ककरा लेल केलहुँ, त’ ककरो लेल नइं। लोक जिनगी भरि खटैए, अरजैए, एही लेल ने जे बुढ़ारीमे सुख होएत। मुदा आइ सएह अरजल कष्ट द’ रहल अछि। की केलहुँ जिनगी भरि? बेटा सभक मुँह देखना बर्खक बर्ख बीति जाइए। पोता-पोतीक बोल सुनबा लेल कान कुकुआइत रहैए। किछु नइं, सभ मिथ्या थीक।
जहिया सम्मिलित परिवार छल, अपन निष्ठासँ, अपन पाइसँ सभक बेटीकेँ बियाहि देलिअनि, आ जखन अपन धी-बेटी छेटगरि भेलि, बेटा सभ पढ़’ लिख’ जोग भेलाह, त’ सभ औंठा देखा देलनि। सरिपहुँ, ई सभ किछु नइं थीक। सभ मिथ्या थीक।...
-सूति रहलिऐ की?-बड़ी कालक बाद पत्नी पुछलखिन।
-नः!-हड़बड़ा गेलाह डाक्टर साहेब। ठीके भक्क लागि गेल रहनि।
-हमर की विचार अछि!
-की?
-काल्हि चलितौं कनी दरभंगा! एक-दू दिन रहितौं, फेर...
-कोन काज अछि?
-नइं, एक रती धीया-पुताकेँ देखि लितिऐ। फेर...
-चलू।
-मुदा चलि जाएब त’ फेर काल्हि खेत नइं जोतैत!
-से त’ लेटो भ’ रहल छै!
-त’ छोड़ ू। रधिया माइ जे सूदि पर रुपैया ल’ गेल छल, से कल्हुके ना कहने रहए। बेटा मनिआर्डर पठेलकैए।
-हँ, छोड़ ू। फेर कहियो देखल जेतै। एखन हमरा कनी आँखियो लागि रहल अछि!

एके बेर साँझमे जा क’ निन्न फुजलनि। घरमे अन्हार पसरि गेल रहै। आँगनमे कने-मने इजोत रहै। पैर लग पत्नी नइं रहथिन। डर बुझएलनि। घरसँ बहरएलाह। पूरा सुन्न-मसान सन। तुलसी चैरा दिस नजरि गेलनि। एकटा टेमी टिमटिमा रहल छलै। मोने-मोन प्रणाम केलनि। तखने बुझएलनि, बाहरमे क्यो गप करैए। डर कमलनि।
बहरएलाह त’ देखलनि, पत्नी कोनो महिलासँ गप-सप क’ रहल छथि। हिनका पहुँचिते वार्ता भंग भ’ गेलै। नजरि पड़िते पत्नी पुछलखिन-उठि गेलिऐ? -हँ।-डाक्टर साहेब ओतहि बैसबाक उपक्रम केलनि।
-चलू अँगने।-पत्नी उठैत सन कहलखिन।
-आँगनमे डर लगैए।
-अँए!-पत्नी बैसि गेलखिन।
-हँ। बहुत डर लागि रहल अछि!
-दरभंगा नइं चलब?
-हम त’ कहने रही। अपने...
-नइं, चलू!
-एखन?
-हँ। हम रामवृक्षकेँ कहै छिऐ, रिक्शा बजा आनत। सतबजिया गाड़ी पकड़ि लेब।
-काल्हि चलब से नइं हैत?
-नइं, एखने चलू! गुड़ियाकेँ देखिए क’ आब अन्न-ग्रहण करब! आइ बहुआसिने हाथक रान्हल भोजन करब।-रिक्शा जखन कमतौल स्टेशन पर पहुँचलै, त’ पता लगलनि जे टेªन आधा घंटा लेट छै। दुनू प्राणीकेँ जान-मे-जान सन अएलनि-आब धीया-पुताक भेंट निश्चित! एह, की यात्रा बना क’ चलल रही!
-सुनै छी?-मोसाफिरखानाक बेंच पर बैसैत डाक्टर साहेब कहलखिन।
-की?
-बउआ किछु अनर्गल त’ ने सोचता?
-कोना कहू!
-ककरो द्वारा समादो पठा देने रहितिअनि!
-हँ, से त’ गलती भ’ गेलै।
फेर दुनू चुप भ’ गेल रहथि। रंग-रंगक लोक अबैत जाइत रहल। धीरे-धीरे त’ भीड़ सेहो बढ़ल जा रहल छलै। दुनू टुकुर टुकुर करैत अपना-अपनामे हेराएल सन रहथि।
बड़ी काल बाद डाक्टर साहेब बजलखिन-हे, गाम आब ओ गाम नइं रहल!
-से की?-पत्नीक सेहो गुम्मी टुटलनि।
-पहिने गाम आबी त’ हरदम लोक घेरने रहै छल-कोना छी? कोना रहै छी? केहन चलैए प्रैक्टिस?-पुछैत-पुछैत लोक सभ आजिज क’ दिअए। आब त’ नजरि पड़िते बाट काटि लैए। परोछमे ‘चाटू लोक’ कहैए। एक दिन अपनामे दू गोटे बतिआइत रहए जे अपनो गाममे एकटा फालतू आबि गेलए! अँए ऐ, रिटायर लोक ठीके फालतू भ’ जाइए?
-हमरोसँ कहाँ क्यो गप कर’ चाहै अए। ओ त’ जकरा दू पाइक खगता छै, सएह...
-सएह...। लोक कते स्वार्थी भ’ जाइए! ओएह देयादबाद! किनका लेल की नइं केलिअनि, आ आइ बिनु बातेक ढूसि लड़’ लेल तनतनाइत रहै छथि। हमरा बैखड़ कहै छथि। कहाँ दन हम बड़ बजै छी आब!
-छोड़ ू, किऐ अनेरे ई सभ सोचै छी! आब ‘राम-राम’ करू। ओएह अइ भवसागरसँ पार लगौता...।
-हँ, से सएह। फुसियेक माया-मोह थिक सभ।
आ पुनि एकटा शान्ति दुनू गोटेक बीच व्यापि गेलनि। कोनो टा संवाद नइं। मुदा से बेसी काल धरि नइं। पुनि डाक्टर साहेब मौन-भंग केलखिन-की सोचै छी?
-इएह, जे एना जे छटपटाइ छी, से किछु दिनुक लेल बेटीकेँ अना लितौं! बेटा सभ जकाँ एना ओ लिलोह नइं ने करत!
-आब ओकरा कत’ पलखति भेटै छै!
-हम समाद देबै त’ एबे करत!
-अपन काज हर्ज क’ क’ के आओत! एक दिन दरभंगा टीसन पर भेटल रहथि जमाइ, त’ बिदागरीक प्रस्ताव रखने रहिअनि। कहलनि-आब कते दिन लोक नैहरे सेबत! अपनो दीन-दुनियाँ छै। एना करथु जे किछु दिन लेल बेटिए ओत’ चलथु! बेटा-बेटीमे कोन फर्क! आब से जुग रहलै...
...
-चुप किऐ भ’ गेलौं?
-चुप कहाँ भेलौं! सोच’ लगलौं जे एते ककरा लेल कएलौं, त’...
-बेटी ओत’ जा क’ रहबासँ नीक थीक मृत्यु...
-हम की कहै छी!
-की?
-फेर प्रैक्टिस किऐ ने शुरू करै छी! बाझल रहब, त’...
-आब छोड़ ू ओ गप। अरुचि भ’ गेल अछि। ओ एकटा ‘फेज’ छल, समाप्त भ’ गेल।
-तखन की करब?
-हमरा त’ होइए काशी-बास करितौं!
-मुदा गाम परक घर-द्वार, धन-सम्पत्ति?
आ फेर एकटा मौन पसरि गेलै। कोनो संवाद नइं। कोनो टा निर्णय नइं। दुनू कात ऊब। आ तैं औनाहटि। आ तैं अनिर्णय।
एकाएक दुनू गोटे चैंकि पड़लाह। रिक्शावला रहनि। हाथमे टिकट ल’ क’ ठाढ़। मने गाड़ी आबि रहल अछि। दुनू गोटे हड़बड़ा उठल रहथि।

दरभंगा डेरा पर पहुँचलाह त’ सभ धीया-पुता सूति रहल रहनि। जेठ जन दुनू प्राणी सुतबाक उपक्रममे रहथिन। एना अप्रत्याशित आगमन पर दुनू गोटेकेँ डर सन भेलनि। जेठ जन पुछलखिन-कोनो प्रयोजन की? एना...! एकाएक...?
-नइं, ओहिना। डाक्टर साहेब उत्तर देलखिन। मुदा एना पूछब नीक नइं लगलनि।
-गुड़िया सभ कत’ छ’?-माँ जिज्ञासा केलखिन।
-सूति रहलौ सभ। ...अरे, तों सभ एना... बैसै जो ने ठीकसँ...
मुदा बुढ़ीक मात्सर्य नइं थम्हलनि। ओ अन्दर जाए लगलीह। बेटा पुनः रोकि देलकनि-बैसै ने चुपचाप! एखने सुतलौए। काँच निन्नमे जगौने स्वास्थ्य पर पड़ै छै कहाँ दन! ठीके ने बाबूजी?
डाक्टर साहेब मुस्किया क’ रहि गेलखिन। आ पलंग पर आबि बैसि रहलाह। पत्नीकेँ त’ जेना ठकमूड़ी लागि गेलनि। कनी काल ओहिना ठाढ़ि रहलीह। फेर ओहो पलंग पर पैर लटका बैसि रहलीह। दुनूमेसँ किनको दिमाग काज नइं क’ रहल छलनि। जेठ जनक संग बतिअएबाक नाट्य क’ रहल छलाह। मुदा की बतिया रहल छलाह, अपनो नइं बूझि पाबि रहल छलाह। बेर-बेर नोर डबडबा अबनि, आ दुनू एके टा गप सोचथि जे एखन जँ कोनो ट्रेन रहितै त’ गाम चलि जइतहुँ।

ऽऽऽ