भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Wednesday, October 14, 2009

'विदेह' ४३ म अंक ०१ अक्टूबर २००९ (वर्ष २ मास २२ अंक ४३)-part-ii

बालानां कृते-
१.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
२.कल्पना शरण: देवीजी

देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग”प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा पचीस

नताशा छब्बीस

कल्पना शरण:देवीजी:
देवीजी : कोलम्बस दिवस
देवीजी बच्चा सबके इतिहास पढ़ा रहल छलैथ।प््रासंग छलै कोलम्बस के अटलांटिक महासागरमे पहिल समुद्री यात्रा के ।देवीजी कहलखिन जे पहिने अमीर व्यापारी सब समुद्री यात्रा पर निकलै छलैथ आ अनेको जोखिन उठा जहाज सऽ रोमांचकारी यात्रा बाद अविकसित सभ्यता बला भूमि स खूब धनार्जन कऽ लौटै छलैथ। क्र्रीस्टोफर कोलम्बस सेहो एहेने मे सऽ एक छलैथ लेकिन हुनकर यात्रा एतिहासिक छलैन कारण हुन्का सऽ नब स्थल के जानकारी भेटल छलैन।
क्रिस्टोफर कोलम्बस के पहिल समुद्रीयात्रा यूरोपके उत्तरी अमेरिका सऽ जोड़ैमे बहुत महत्त्वपूर्ण छै।यद्यपि अहि सऽ पहिनेहो किछु यात्री ओहि दिस जा चुकल छलैथ।किन्तु हुन्कर यात्रा बेसी सफल छलैन। कोलम्बस अपन तीन टा जहाज नीना. पिण्टा. आ सैण्टा मारिआ लऽ कऽ दक्षिणी स्पेन स ऽ विदा भेला।स्पेन के पश्चिमतम टापू ‘कैनेरी आइलैण्ड’ मे अपन जहाज के मरम्मत लेल रूकला। फेर ओतय सऽ विदा भऽ करीब सवा महिनाक यात्रोपरान्त 12 अक्टूबर 1492 ईसवी कऽ बहामस टापू पर विराम लेला।बहामस द्विप फ्लोरिडा ह्यसंयुक्त राष्ट्र अमेरिका के एक राज्यहृ. क्युबा ह्यउत्तरी अमेरिका के देशहृ. तथा पोत्रो रिको ह्यकैरेबियन सागर मे स्थित संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के एक भागहृ के बीच स्थित छै। 12 अक्टूबर के दिन के अहि कारणसऽ अमेरिकामे कोलम्बस दिवस के रूपमे मनाओल जायत छै।
कोलम्बस जखन क्यूबा दिस बढ़ला तऽ हुनकर एक जहाज पिण्टाक कप्तान मार्टिन एलोन्सो पिन्सोज बिना अनुमति के एक द्विप ‘बाबिक्यु’ दिस बढ़ि गेल कारण ओकरा खबरि छलै जे ओत बेसी धनोपार्जन भऽ सकैत छै।इम्हर कोल्म्बस अपन दुनु जहाज संगे हिस्पानिओला दिस गेलैथ। ओतय जहाजक असमर्थता सऽ मजबूर भऽ अपन 40टा कर्मचारी के छोड़ि कऽफेर स्पेन दिस विदा भेला। लौटऽ काल पिन्सोज भेटलैन। कोलम्बस के तामस अपन जहाजके सुरक्षित देखि समाप्त भऽ गेलैन। दुनु गोटय उत्तरी अटलांटिक सागर के एक तूफान मे फेर अलग भऽ गेला आ पुनः पेलोस बन्दरगाह मे पहिने कोलम्बस आ किछुए घण्टाक बाद पिन्जोज पहुँचला।कोलम्बस के हिरो के खिताब भेटलैन।
कोलम्बस चारि टा समुद्रीयात्रा केने छलैथ एशिया महादेश दिस लेकिन सफल नहिं भऽ सकला। ओ दक्षिण अमेरिका सेहो अपन तेसर यात्रा मे पहुँचला। विडम्बना ई छै जे हुन्को अपन गलती के एहसास बहुत देर सऽ भेलैन।अपन पहिल यात्राक खोज के एशिया बुझिलेने रहैथ।मुदा यूरोप के अमेरिका सऽ जोड़ैमे हुन्कर बहुत पैघ योगदान छलैन जे कि बाद मे यूरोप आ अमेरिकाके बीच व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करैमे बहुत सहायक साबित भेल ।



बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
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विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.मैथिलीक नूतन वैज्ञानिक कोश आ २.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

१.मैथिलीक नूतन वैज्ञानिक कोश (वाक्य-प्रयोग सहित)-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा।
चरम; cərəmə; चरम; अंतिम; əⁿt̪imə; अंतिम; Last, final; adj राजाक अत्याचार चरम पर पहुँचि गेल अछि।; adj rɑːɟɑːkə ət̪jɑːcɑːrə cərəmə pərə pəɦuⁿci geːlə əcʰi।; adj राजाक अत्याचार चरम पर पहुँचि गेल अछि।
चरण; cərəɳə; चरण; पएर, डेग, प्रक्रम, पद्यक पाँति; pəeːrə, ɖeːgə, prəkrəmə, pəd̪jəkə pɑːⁿt̪i; पएर,डेग, प्रक्रम, पद्यक पाँति; foot, leg, stage, line of verse; n चरण रज धोबि पीबू हिनक पएर; n cərəɳə rəɟə d̪ʰoːbi piːbuː ɦinəkə pəeːrə; n चरण रज धोबि पीबू हिनक पएर
शरण; ɕərəɳə; शरण; आश्रय; ɑːɕrəjə; आश्रय; shelter, refuge; adj अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥; adj ət̪i d̪əjɑːlu suːni əɦɑːⁿkə ɕərəɳə əjələɦuⁿ ɟɑːni॥; adjअति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
शरण्यn; ɕərəɳjə; शरण्य; आश्रय देबा योग्यə; ɑːɕrəjə d̪eːbɑː joːgjə; आश्रय देबा योग्य; Fit for support; adj; adj; adj
शरण्युम; ɕərəɳju; शरण्यु; रक्षक,मेघ, बिहारि; rəkʂəkə,meːgʰə, biɦɑːri; रक्षक,मेघ, बिहारि; protector, cloud, wind; n; n; n
चरपट; cərəpəʈə; चरपट; दुष्टु; d̪uʂʈə; दुष्ट; mischievous; adj; adj; adj
चरफर; cərəpʰərə; चरफर; ऊर्जायुक्त, चलबा-फिरबामे पटु, चतुर; uːrɟɑːjukt̪ə, cələbɑː-pʰirəbɑːmeː pəʈu, cət̪urə; ऊर्जायुक्त, चलबा-फिरबामे पटु, चतुर; energetic, prompt, clever; adj; adj; adj
चरसा; cərəsɑː; चरसा; चाम, खाल; cɑːmə, kʰɑːlə; चाम, खाल; leather, hide; n नेताजीक हाथ थरथरा गेलनि मुदा मुँह चालू “मुँह सम्हारि क’ बाज मौगी नइँ त’ चरसा घीचि लेबौ ।; n neːt̪ɑːɟiːkə ɦɑːt̪ʰə t̪ʰərət̪ʰərɑː geːləni mud̪ɑː muⁿɦə cɑːluː “muⁿɦə səmɦɑːri kə’ bɑːɟə maːugiː nəiⁿ t̪ə’ cərəsɑː gʰiːci leːbaːu ।; n नेताजीक हाथ थरथरा गेलनि मुदा मुँह चालू “मुँह सम्हारि क’बाज मौगी नइँ त’ चरसा घीचि लेबौ ।
चरस; cərəsə; चरस; गाजाक रस जकर धूमपान कएल जाइत अछि; gɑːɟɑːkə rəsə ɟəkərə d̪ʰuːməpɑːnə kəeːlə ɟɑːit̪ə əcʰi; गाजाक रस जकर धूमपान कएल जाइत अछि; a type of smoking, hashish; n; n; n
चराँत; cərəॉⁿt̪ə; चराँत; चरबाक हेतु सुरक्षित परती; cərəbɑːkə ɦeːt̪u surəkʂit̪ə pərət̪iː; चरबाक हेतु सुरक्षित परती; land for grazing; n; n; n
चरी; cəriː; चरी; चरबा जोग घास; cərəbɑː ɟoːgə gʰɑːsə; चरबा जोग घास; vegetation required for grazing; n; n; n
शरीर; ɕəriːrə; शरीर; देह; d̪eːɦə; देह; body; adj कतय छन्हि हुनकर मृत शरीर।; adj kət̪əjə cʰənɦi ɦunəkərə mɹ̩t̪ə ɕəriːrə।; adj कतय छन्हि हुनकर मृत शरीर।
चरिबघिआ; cəribəgʰiɑː; चरिबघिआ; चारि रस्सीसँ घोरल खाट; cɑːri rəssiːsⁿ gʰoːrələ kʰɑːʈə; चारि रस्सीसँ घोरल खाट; cot netted with four fold string; adj; adj; adj
चरिष्णुr; cəriʂɳu; चरिष्णु; गतिशील, कर्मठ; gət̪iɕiːlə, kərməʈʰə; गतिशील, कर्मठ; Moveable, active; adj;adj; adj
चरित; cərit̪ə; चरित; जीवनी, आचरण; ɟiːvəniː, ɑːcərəɳə; जीवनी, आचरण; biography, behaviour; adjनहि, कतहु फेर सँ त्रिया चरित देखाओत त ने ई...।; adj nəɦi, kət̪əɦu pʰeːrə sⁿ t̪rijɑː cərit̪ə d̪eːkʰɑːoːt̪ə t̪ə neː iː...।; adj नहि, कतहु फेर सँ त्रिया चरित देखाओत त ने ई...।
चरित्र; cərit̪rə; चरित्र; चालि, चर्या, वैशिष्ट्यi; cɑːli, cərjɑː, vaːiɕiʂʈjə; चालि, चर्या, वैशिष्ट्य; character, conduct, disposition; n ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि।; n ʈreːɟeːɖiːmeː kət̪ʰɑːnəkə keːrə sⁿgə cərit̪rə-cit̪rəɳə, pəd̪ə-rəcənɑː, vicɑːrə t̪ət̪və, d̪ɹ̩ɕjə vid̪ʰɑːnə ɑː giːt̪ə rəɦaːit̪ə əcʰi।; n ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि।
चर्या; cərjɑː; चर्या; करनी, चालि, आचरण, अनुसरणीय पद्धति; kərəniː, cɑːli, ɑːcərəɳə, ənusərəɳiːjə pəd̪d̪ʰət̪i; करनी, चालि, आचरण, अनुसरणीय पद्धति; deed, conduct, routine; n पञ्जीकारजीक दैनिक चर्या कलम ओ खुरपीक संग सम्पन्न होइत छलन्हि।; n pəɲɟiːkɑːrəɟiːkə d̪aːinikə cərjɑː kələmə oː kʰurəpiːkə sⁿgə səmpənnə ɦoːit̪ə cʰələnɦi।; n पञ्जीकारजीक दैनिक चर्या कलम ओ खुरपीक संग सम्पन्न होइत छलन्हि।
शर्करा; ɕərkərɑː; शर्करा; शक्कəर, चिन्नी, साँकड़, खाँड़; ɕəkkərə, cinniː, sɑːⁿkəɽə, kʰɑːⁿɽə; शक्कर,चिन्नी, साँकड़, खाँड़; Sugar; n पञ्चामृत- दही, दूध, घृत, मधु, शर्करा; n pəɲcɑːmɹ̩t̪ə- d̪əɦiː, d̪uːd̪ʰə, gʰɹ̩t̪ə, məd̪ʰu, ɕərkərɑː; n पञ्चामृत- दही, दूध, घृत, मधु, शर्करा
शर्मा; ɕərmɑː; शर्मा; शर्मन, ब्राहाणक एक उपनाम; ɕərmənə, brɑːɦɑːɳəkə eːkə upənɑːmə; शर्मन,ब्राहाणक एक उपनाम; a surname of Brahmins; n; n; n
चर्म; cərmə–mənə; चर्म; चमड़ी, खाल; cəməɖə़ी, kʰɑːlə; चमड़ी, खाल; Skin, hide, leather; n एहि गपक चर्चा अछि, जे आर्य चर्म वस्त्र पहिरैत छलाह; n eːɦi gəpəkə cərcɑː əcʰi, ɟeː ɑːrjə cərmə vəst̪rə pəɦiraːit̪ə cʰəlɑːɦə; n एहि गपक चर्चा अछि, जे आर्य चर्म वस्त्र पहिरैत छलाह
चर्मकार; cərmərə , cərmɑːrə , cərməkɑːrə; चर्मकार; चमराक समान बनबएबला; cəmərɑːkə səmɑːnə bənəbəeːbəlɑː; चमराक समान बनबएबला; shoemaker, cobbler; n एक चर्मकार आओल आ', राजाकेँ फरिछाय बुझाओल।; n eːkə cərməkɑːrə ɑːoːlə ɑː', rɑːɟɑːkeːⁿ pʰəricʰɑːjə buɟʰɑːoːlə।; n एक चर्मकार आओल आ', राजाकेँ फरिछाय बुझाओल।
चर्पटी; cərpəʈiː; चर्पटी; सोहारी; soːɦɑːriː; सोहारी; Thin loaf; n; n; n
चर्र; cərrə; चर्र; वस्त्र फटबाक ध्व नि; vəst̪rə pʰəʈəbɑːkə d̪ʰvəni; वस्त्र फटबाक ध्वनि; sound of tearing cloth; nछोटगर-सन गेट, जाहिपर स्पष्ट रूपसँ ब्रेगेन्जा विला लिखल छलैक, अपन कब्जा पर झुलल चर्र-चर्र केर आवाज भेलैक; ncʰoːʈəgərə-sənə geːʈə, ɟɑːɦipərə spəʂʈə ruːpəsⁿ breːgeːnɟɑː vilɑː likʰələ cʰəlaːikə, əpənə kəbɟɑː pərə ɟʰulələ cərrə-cərrə keːrə ɑːvɑːɟə bʰeːlaːikə; nछोटगर-सन गेट, जाहिपर स्पष्ट रूपसँ ब्रेगेन्जा विला लिखल छलैक, अपन कब्जा पर झुलल चर्र-चर्र केर आवाज भेलैक
चरुआ; cəruːɑː; चरुआ; पीनी रखबाक बासन; piːniː rəkʰəbɑːkə bɑːsənə; पीनी रखबाक बासन; a pot for keeping processed tobacco; n; n; n
चरुभर; cəruːbʰərə; चरुभर; दानासँ भरल धानक सीस; d̪ɑːnɑːsⁿ bʰərələ d̪ʰɑːnəkə siːsə; दानासँभरल धानक सीस; paddy sheath full of corn; adj; adj; adj
चरुङ्गा; cəruːɖə़्gɑː; चरुङ्गा; चतुरङ्ग, शतरंज; cət̪urəŋgə, ɕət̪ərⁿɟə; चतुरङ्ग, शतरंज; chess; n; n;n
चर्वण; cərvəɳə; चर्वण; चिबाएब; cibɑːeːbə; चिबाएब; chewing; adj; adj; adj
चसचरा; cəsəcərɑː; चसचरा; चोरा कए आनक फसिल चरओनिहार; coːrɑː kəeː ɑːnəkə pʰəsilə cərəoːniɦɑːrə; चोरा कए आनक फसिल चरओनिहार; one who let one's cattle to graze other's crop; adj; adj; adj
शस्य; ɕəsəjə; शस्य; प्रशंसनीय; prəɕⁿsəniːjə; प्रशंसनीय; admirable; adj; adj; adj
शस्य; ɕəsəjəmə; शस्य; अनाज; ənɑːɟə; अनाज; Corn, grain; n; n; n
चसकाएब; cəsəkɑːeːbə; चसकाएब; परिकाएब; pərikɑːeːbə; परिकाएब; embolden, tempt; v.i.; v.i.; v.i.
चषक; cəʂəkə , cəʂəkəmə; चषक; कप, मदिरा पात्र; kəpə, məd̪irɑː pɑːt̪rə; कप, मदिरा पात्र; A cup, the pot for drinking wine; n; n; n
चसकब; cəsəkəbə; चसकब; परिकब; pərikəbə; परिकब; addicted, tempted; v.i.; v.i.; v.i.
चसमा; cəsəmɑː; चसमा; दृष्टिवर्धक सीसा; d̪ɹ̩ʂʈivərd̪ʰəkə siːsɑː; दृष्टिवर्धक सीसा; spectacle; nदेबलरैना फुलपेन्ट पेन्हि कऽ, चसमा पेन्हि कऽ बाबू-भैया नाहित जे रिक्शापर बैठिकऽ रिक्सा चलबइ हइ तऽ सिनेमाके गोबिना माउत कऽर हइ।; nd̪eːbələraːinɑː pʰuləpeːnʈə peːnɦi kəऽ, cəsəmɑː peːnɦi kəऽ bɑːbuː-bʰaːijɑː nɑːɦit̪ə ɟeː rikɕɑːpərə baːiʈʰikəऽ riksɑː cələbəi ɦəi t̪əऽ sineːmɑːkeː goːbinɑː mɑːut̪ə kəऽrə ɦəi।; nदेबलरैना फुलपेन्ट पेन्हि कऽ, चसमा पेन्हि कऽ बाबू-भैया नाहित जे रिक्शापर बैठिकऽ रिक्सा चलबइ हइ तऽ सिनेमाके गोबिना माउत कऽर हइ।
चसमदिल; cəsəməd̪ilə; चसमदिल; प्रत्येक्ष द्रष्टा-; prət̪jəkʂə d̪rəʂʈɑː; प्रत्यक्ष द्रष्टा; eye-witness; n;n; n
चसना; cəsənɑː; चसना; इनार कोड़बामे माटि उघबाक बासन; inɑːrə koːɖə़bɑːmeː mɑːʈi ugʰəbɑːkə bɑːsənə; इनार कोड़बामे माटि उघबाक बासन; pan used for carrying soil coming out while digging well; n; n; n
शस्त; ɕəsət̪ə; शस्त; प्रशंसनीय; prəɕⁿsəniːjə; प्रशंसनीय; admirable, praiseworthy; adj; adj; adj
शस्त्र; ɕəsət̪rə; शस्त्र; हथिआर, आयुध; ɦət̪ʰiɑːrə, ɑːjud̪ʰə; हथिआर, आयुध; weapon, arms; nतावत शस्त्र सेहो ताहि द्वारे राखल अछि, प्रसन्न भए इन्द्र अपन असल रूप धरल।; nt̪ɑːvət̪ə ɕəst̪rə seːɦoː t̪ɑːɦi d̪vɑːreː rɑːkʰələ əcʰi, prəsənnə bʰəeː ind̪rə əpənə əsələ ruːpə d̪ʰərələ।; nतावत शस्त्र सेहो ताहि द्वारे राखल अछि, प्रसन्न भए इन्द्र अपन असल रूप धरल।
शताब्दीअ; ɕət̪ɑːbd̪iː; शताब्दी; सए वर्षक खण्डt; səeː vərʂəkə kʰəɳɖə; सए वर्षक खण्ड; century, centenary; nएहि मूर्तिक रचनाकाल तेरहम चौदहम शताब्दी आंकल गेल अछि।; neːɦi muːrt̪ikə rəcənɑːkɑːlə t̪eːrəɦəmə caːud̪əɦəmə ɕət̪ɑːbd̪iː ɑːⁿkələ geːlə əcʰi।; nएहि मूर्तिक रचनाकाल तेरहम चौदहम शताब्दी आंकल गेल अछि।
चटाएब; cəʈɑːeːvə; चटाएब; चटबाएब; cəʈəbɑːeːbə; चटबाएब; get someone lick; vदही-चीनी चटाएब;vd̪əɦiː-ciːniː cəʈɑːeːbə; vदही-चीनी चटाएब
चटाइ; cəʈɑːi; चटाइ; खड़क पटिआ; kʰəɖə़kə pəʈiɑː; खड़क पटिआ; straw-mat; nदलान पर चटाइ ओछा देल गेल रहै ।; nd̪əlɑːnə pərə cəʈɑːi oːcʰɑː d̪eːlə geːlə rəɦaːi ।; nदलान पर चटाइ ओछा देल गेल रहै ।
चटकाएब; cəʈɑːkɑːeːbə; चटकाएब; डराएब, धमकी देब; ɖərɑːeːbə, d̪ʰəməkiː d̪eːbə; डराएब, धमकी देब; threaten; vt; vt; vt
चटाक; cəʈɑːkə; चटाक; टकरएबाक ध्वानि; ʈəkərəeːbɑːkə d̪ʰvəni; टकरएबाक ध्वनि; smacking sound; advचटाक!...मनसा उठिकए एक चाट देलकै।; advcəʈɑːkə!...mənəsɑː uʈʰikəeː eːkə cɑːʈə d̪eːləkaːi।; advचटाक!...मनसा उठिकए एक चाट देलकै।
चटान; cəʈɑːnə; चटान; शिला; ɕilɑː; शिला; rock; n; n; n
शतावधानी; ɕət̪ɑːvəd̪ʰɑːniː; शतावधानी; अद्भुत स्मरण शक्तिबला; əd̪bʰut̪ə smərəɳə ɕəkt̪ibəlɑː; अद्भुत स्मरण शक्तिबला; having miraculous power of memory; adj; adj; adj
शतावरी; ɕət̪ɑːvəriː; शतावरी; एक वनौषधि; eːkə vənaːuʂəd̪ʰi; एक वनौषधि; a herb, Asparagus recemosus; n; n; n
चट; cəʈə; चट; कड़ा वस्तु टुटबाक सन ध्वएनि, तुरत; kəɖə़ा vəst̪u ʈuʈəbɑːkə sənə d̪ʰvəni, t̪urət̪ə;कड़ा वस्तु टुटबाक सन ध्वनि, तुरत; crackling sound, promptly; adv चट दय ठाढ़ भ’ कए। डिबियाक बाती कखनो चट–चट कऽ कऽ चरचराइक तथा बातीक मुँहपर कारी गिरह बनि जाइक ।; adv cəʈə d̪əjə ʈʰɑːɖʰə़ bʰə’ kəeː। ɖibijɑːkə bɑːt̪iː kəkʰənoː cəʈə–cəʈə kəऽ kəऽ cərəcərɑːikə t̪ət̪ʰɑː bɑːt̪iːkə muⁿɦəpərə kɑːriː girəɦə bəni ɟɑːikə ।; adv चट दय ठाढ़ भ’ कए। डिबियाक बाती कखनो चट–चट कऽ कऽ चरचराइक तथा बातीक मुँहपर कारी गिरह बनि जाइक ।
शत; ɕət̪ə; शत; सए; səeː; सए; hundred; nओना ई सब ठाम शत-प्रतिशत सत्ये नही भ' सकैय।; noːnɑː iː səbə ʈʰɑːmə ɕət̪ə-prət̪iɕət̪ə sət̪jeː nəɦiː bʰə' səkaːijə।; nओना ई सब ठाम शत-प्रतिशत सत्ये नही भ' सकैय।
चटेनी; cəʈeːniː; चटेनी; पटिआ; pəʈiɑː; पटिआ; sitting mat; n; n; n
शतभिषा; ɕət̪əbʰiʂɑː; शतभिषा; चौबीसम नक्षत्र; caːubiːsəmə nəkʂət̪rə; चौबीसम नक्षत्र; 24th constellation consisting of 100 stars; n; n; n
शतचण्डीi; ɕət̪əcəɳɖiː; शतचण्डी; दुर्गासप्तिशती; d̪urgɑːsəpt̪əɕət̪iː; दुर्गासप्तशती; a narrative poem on the life of Goddess; n; n; n
चटचटाएब; cəʈəcəʈɑːeːbə; चटचटाएब; बेर-बेर चाट मारब; beːrə-beːrə cɑːʈə mɑːrəbə; बेर-बेर चाट मारब; slap repeatedly; v.t.; v.t.; v.t.
चटचट; cəʈəcəʈə; चटचट; तड़ातड़,तेलाह; t̪əɖə़ाt̪əɖə़,t̪eːlɑːɦə; तड़ातड़,तेलाह; hurriedly and repeatedly, greasy; advनॊर संऽ चटचट गाल। चटचट मारब।; advnəॊrə sⁿऽ cəʈəcəʈə gɑːlə।cəʈəcəʈə mɑːrəbə।; advनॊर संऽ चटचट गाल। चटचट मारब।
शतधा; ɕət̪əd̪ʰɑː; शतधा; सए प्रकारसँ; səeː prəkɑːrəsⁿ; सए प्रकारसँ; in hundred ways; adv; adv;adv
शतघ्नीा; ɕət̪əgʰniː; शतघ्नी; बंदूक, तोप; bⁿd̪uːkə, t̪oːpə; बंदूक, तोप; a kind of firearm; n; n; n
चटका; cəʈəkɑː; चटका; बड़ी जेकाँ एक तीमन, चटकन, थापड़; bəɖə़ी ɟeːkɑːⁿ eːkə t̪iːmənə, cəʈəkənə, t̪ʰɑːpəɖə़; बड़ी जेकाँ एक तीमन, चटकन, थापड़; curry of pulse, slap; n; n; n
चटका; cəʈəkɑː, cəʈikɑː; चटका; चिड़ै; ciɽaːi; चिड़ै; A hen-sparrow; ; ;
चटकैती; cəʈəkaːit̪iː; चटकैती; चलाकी, चतुरता; cəlɑːkiː, cət̪urət̪ɑː; चलाकी, चतुरता; cleverness; n;n; n
चटकार; cəʈəkɑːrə; चटकार; स्वादिष्ट वस्तु खएलापर जिह्वाक चटुलता; svɑːd̪iʂʈə vəst̪u kʰəeːlɑːpərə ɟiɦvɑːkə cəʈulət̪ɑː; स्वादिष्ट वस्तु खएलापर जिह्वाक चटुलता; smack, clacking of tongue while relishing some spicy dish; nचटकार सँ खाओल; ncəʈəkɑːrə sⁿ kʰɑːoːlə; nचटकार सँ खाओल
चतकार; cət̪əkɑːrə; चतकार; जनैत रहलोपर विस्मय देखाएब; ɟənaːit̪ə rəɦəloːpərə visməjə d̪eːkʰɑːeːbə; जनैत रहलोपर विस्मय देखाएब; feigned surprise; adj; adj; adj
चटकारी; cəʈəkɑːriː; चटकारी; शीघ्रता; ɕiːgʰrət̪ɑː; शीघ्रता; swiftness; n; n; n
चटक; cəʈəkə; चटक; पक्षीक विष्ठाह, शीघ्रता, शोभा, चटकलासँ भेल खाधि; pəkʂiːkə viʂʈʰɑː, ɕiːgʰrət̪ɑː, ɕoːbʰɑː, cəʈəkəlɑːsⁿ bʰeːlə kʰɑːd̪ʰi; पक्षीक विष्ठा, शीघ्रता, शोभा, चटकलासँ भेल खाधि; bird's excrement, quickness, splendour, scratch caused by splitting; adjनिर्मला जीक चटक-मटक कतए जइतनि? एक दिन एकटा योगीक माथपर कौआ चटक कए देलकैक; adjnirməlɑː ɟiːkə cəʈəkə-məʈəkə kət̪əeː ɟəit̪əni? eːkə d̪inə eːkəʈɑː joːgiːkə mɑːt̪ʰəpərə kaːuɑː cəʈəkə kəeː d̪eːləkaːikə; adjनिर्मला जीक चटक-मटक कतए जइतनि? एक दिन एकटा योगीक माथपर कौआ चटक कए देलकैक


२.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश,बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश,वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी,जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत,योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु,तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले,चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन),पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६



VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
8.2. where lies the fault- maithili story by shyam darihare translated by Praveen k jha


DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22 Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
Original poem in Maithili by Gajendra Thakur
Translated into English by Lucy Gracy from New York

Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in

The Concrete Pillar Of The Pond
The heated bank of the pond in the hot day
The trees, plants bushes all the way
look so faded like sprinkled with warm water
Every pond has a wooden pillar in its centre
The Concrete Pillar Of The Pond, this is the first one
The green deposits depicting its old age

The other part of the village
Has only that ditch, ponds are none
Without any pillar as no rituals done
He died who was the owner and non-consecrated single
Before the sacred ceremony of establishing pillar, people mumble
He desired to get a pond when became rich
How can fame come through merely a ditch?
Look at this Concrete Pillar Of The Pond
It is learnt that concrete becomes harder while in water
It is not like wooden pillar
Whose life is shorter

(where lies the fault- maithili story by shyam darihare translated by Praveen k jha)


High school started from grade eight but there was no high school in my village. Most would study until grade seven but one would have to walk four miles to another village for any further education. You had to cross the same creek twice and the same canal thrice or take a detour of another four miles. So no gals from my remote hamlet would ever go beyond grade seven. Nor many lads. After seven it was mostly farming. But that year I found myself among the few lucky ones who got admitted. If I visualize today how I used to look then in my class, it would be a picture of a ragbag. A corded pant and a namesake shirt. Didn't even think of any footwear. Books bound with farm strands and notepapers sewed with threads.

The first day I was amazed to see so many students in the class. We had only thirteen in my last class in my village but look here, a hundred and three! There was a girl as well sitting in the front. Students grouped themselves as per their villages. Kerwar's student in one, Itahar-Ajnauli in another and Barha's the third one. Tisi Balia was fourth and Simri-Rupauli-Nahas were fifth and sixth. But the group from Persauni and Muralia Chak had the maximum clout. Being local they had the largest numbers.

The first topic of introductory talks was who has topped in which villages and who will top this joint class. My village fellows were trying to intimidate me saying that the girl on the front bench was the topper of Persauni middle school and will undoubtedly break my run at the top. But I was lost somewhere else. The photo of Mrs. Chatterji in the seventh grade english book 'Free India Reader' had exactly the same look as this girl. Same beauty and the long hair. I named her Mrs. Chatterji in my mind. Howsoever those guys tried to provoke me, I didn't feel any jealousy or competition with her. Oh, only if she could befriend me.....! Then I thought of my own dereliction and how I would just look like dirt in front of her. Whatever.

When the B.Sc. Mastersaab Fekan Thakur was teaching in a chemistry class about the three states of matter – solid, liquid and gas, my mind got fixed on the liquid. And when he said, ' In liquid state, the matter takes the shape of its container. It doesn't have its own shape. Put it in a glass, and it becomes like glass, in a bottle, like a bottle and in a bucket, like a bucket.'.
Immediately the thought came in mind, ' yeah, like my mother, aunties et al – My mother like my father, the elder auntie like my uncle, the auntie from Uchhal like Lutti uncle, and my maami (maternal auntie) like my maama. No shape of their own. Shaped as whoever they are married to.'
If there is any shape of their own, its hidden. Lest 'He' would see. Lest 'He' would come to know that she did anything on her own. Or her chastising will be there for all to see. So I concluded that they are all liquids and my uncles their containers.

This thought followed me to the college. When I read about liquid's 'Bhiscosity' in college, again I was reminded of my aunties. If the husband was a muscleman, the wife's stature was of a hustler. A timid's wife was bullied by everyone. A rich one's wife was a celebrity and a poor one's place was in the corner. Means more viscid the husband, more acclaimed the wife. Viscosity. Whatever.

In the annual of eighth, that girl Champa gave me the drubbing. She was first and I came second. Just by two marks. But then first was first. Her roll no. in the ninth became one and mine, two. Now I was jealous. At the same time a little happy. I was closer to her. Oh, Mrs. Chatterjee. At least my name will be written just under yours!

A year gone had taken out all shyness and formalities. All groups disbanded and it was now one class. Village identities were gone.
I started sitting in front. Champa 's right behind. Even if I was late, folks would give me the seat. There was now great competition between the two of us. I didn't know about her, I was dying of jealousy and competition and the fact that a girl beat me.


In the semi-annual of Ninth, I turned the table and snatched the top position. And that remained my position since. Until the very board exam of eleventh.

Her face was so shining that I was like a faint shadow compared to her. My clothes were not even shreds compared to her dresses. Overall she pretty much fit in the frame of Mrs. Chatterjee in my mind.

Anyway, she had become friends with me after I topped the class in ninth. I wasn't that bitter either, I was already the topper.
We remained friends for two more years. Being local, she used be before time and I was always late. Champa would keep a seat for me right behind hers. However, our friendship remained only friendship till the very end. Being close to someone like her was good enough for me. I told her about Mrs. Chatterjee. She burst out in laughter. I wouldn't ever forget that laughter. Every once in a while I used to call her Mrs. Chatterjee. I thought she felt good.
Unlike today, the schoolkids those days weren't so savvy. We were no exceptions. After the matriculation she had been married. To who and where I don't know. Nor did I need to.
By the time I landed in the officialdom of Bihar Government, it was sixteen years since my matriculation. About five years in service, I got an opportunity to visit Calcutta in on the occasion of Durgapooja. The kids were excited about visiting Calcutta and my wife about Durgapooja. On reaching Calcultta to my brother's house, I found his in-laws also there. I advised my sister-in-law,'My orderly can help in cooking.'
'Why? Don't I have my own hands.' Said she.
'No, no, I just proposed. So many people are there. If all you do is cooking, when will you enjoy the festival?' I insisted.
'Get out of your chieftanship mind here. I don't have your orderly any other day around, do I?. If I have invited you over I have made arrangements as well. I am not siting here waiting for your help.' Said she again.
'Alright! Do as you wish. God!' I looked at my brother.
My brother explained,'There is Munni's mom, someone from our place only. She will assist. Which is why so much aplomb. Or else alone what can she...''
'Yeah, right. Its you who does everything around here.' she murmured again.
Anyway, everything was going as planned. Ritual sacrifice was performed on the eighth day of the pooja. Mahaprasad (preparation of the sacrificial goat) was being cooked in the backyard. That Munni's mom was swamped with work. My wife was instructing her.

I went in and asked my wife,'how longer for dinner?'
'Just a little. I will bring you guys some fried liver in the meantime.' she replied.
'What's this covered in this corner?' I asked turning the caisson over.
'Oh, leave it alone, would you? Why do you have to look at everything anyway. Men don't need to poke their noses in everyhting now, do they? Go and wash your hand. Its impure now.' wife boasted.
'What is in it anyway?' Dithering I asked again promptly putting the cover back on.
'There is no treasure trove. There is the skin and some Mahaprasad. For Munni's mom. She asked for the skin. So its put aside for her. She will take it after we are done here.'
While my wife was explaining, Munni's mom brought water for me to wash my hand. Seeing her veiled, I whispered to my wife,'she is veiling herself from me as if she is a newcomer bride in the house.'
Wife whispered back,'just go away. Don't...'

When dining, commented my brother,'Munni's mom's hands are some kind of machine, eh! What a great Mahaprasad!'
I nodded in agreement.
Munni's mom had left with the skin for her home. I asked my sister-in-law,'What would she do with the skin?'
'What else? She would carve a drum out of it and send it to you to play!' she got irritated.
'Why can't you answer anything straight?'
'You talk rubbish, that's why. The skin will be boiled. Hair peeled out and they will cook and eat it for a couple of a days. I can't believe what kind of officer you are if you don't understand such trivia.'
Tipped my brother,'why, is he a leather department officer.'
Everybody burst out laughing.
Changing the topic I asked my sis-in-law,'So have you engraved this bedsheet yourself or bought it somewhere. Its nice.'
'You can take it if you want it. I will get another one done. Very skillful is Munni's mom. She has done it all.'
'Wow! Look's like you got yourself a genie in her.'
'That's actually right. She is always ready to do whatever is told. No greed she has. So nice. Its just her devil husband...'
'Why, what does he do?'
'What can he do? I have fixed him as an bookkeeper with a contractor. He is alright now. Earlier he had wrecked it all in drugs. Luckily my driver got to know and told me everything and so I could act in time.' explained my brother.
'What had happened?'
'He started a shop in Shyam bazaar in partnership with his in-law. Invested a lot. Business was good too. But then came the bad company and drugs and he ruined it all. They fought among themselves, him and in-law. Brawls, litigation, everything. Lastly, the in-law took hold of the shop and threw him out. He came virtually on the street with his family. Didn't even have a day's meal. From there, he has finally improved a lot. Quit the drugs. Somehow he is managing. I give clothes for all in his family like my own in the time of festivals. This lady is very admirable. Like the beauty in the hands of beast. She maintained her dignity even in the face of great adversity. No greed for anything at all. Works her back out to earn.' Listening to my brother's story, I was feeling sympathy and admiration at the same time.
I wasn't feeling well on the day of Dashhara (the tenth and final day of the pooja). When everyone else left for the festival, I bolted the door and fell asleep. I woke up on the sound of the ring-bell. Looked at the watch- it was half past five. Lying on my bed, I said, 'who's there?' No response. The bell rang again. I got up murmuring and opened the door. Munni's mom was standing. For the first time I had seen her from the front. Very exhausted looking face. Hair looked thin. The lips looked blackened. She was wearing a bengali shred saari. Hastily she covered her face. But behind this battered face, I could see what a stunning beauty she could have been once.

Moving aside , I said,'No one is there. Everyone is out to the festival'
'Yes, I know, Sir. Sister had told me to make tea for you on time. Can I?' Munni's mom said.
Her voice gave me an electric shock. I felt like I would fall down. I didn't say anything just down on the chair right on the patio. I couldn't notice when she went inside, made tea and brought it over. I was absorbed in investigating that voice.

'Tea is getting cold.' She said from inside the house.
Now I came round. Instead of taking tea, I asked her,'Could you come here in front of me?'
She came and stood on the patio.
'Where are you from'? Asked I.
'Jagati'.
'And native place?'
She didn't respond.
My suspicion increased.
'Where is your native place?' I asked again.
'Why would you want to know, Sir?'

'Don't call me 'Sir', Champa! I recognized you!' I screamed.

She sat down right there. I thought she was crying. I remained quiet for a few moments. I was stunned. Her ruinous story I already knew. I just had one question,'Champa, didn't you recognize me?'
'I could recognize you the very first day.'
'So why didn't you come out to me'?
'I don't have the capability anymore to equal with you.'
My courage was failing. I had no energy left to say or ask anything. She rose and left for her home.
I remembered the two lessons of school – 'Free India reader's Mrs. Chatterjee and the shapeless state of liquid. Put it in whichever vessel and it will take its shape. Marry Mrs. Chatterjee off to whoever and her 'viscousity' becomes like him.

The very next day, I left Calcutta.
(1994)




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फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
पेपरबैक संस्करण

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
मैथिली पोथी

विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क भा.रु.2100/-चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका प्रकाशन” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे भा.रु. 30/- अतिरिक्त जोड़ू।
बया, हिन्दी तिमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क रु.5000/- चेक/ ड्राफ्ट/ मनीआर्डर द्वारा “ अंतिका प्रकाशन” के नाम भेजें। दिल्ली से बाहर के चेक में 30 रुपया अतिरिक्त जोड़ें।
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15%और उससे ज्यादा की किताबों पर 20%की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन


अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन,एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
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मोबाइल नं.9868380797,
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादवमूल्य: भा.रु.१००/-
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते,महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुरमूल्य भा.रु.१००/-(सामान्य) आ$४० विदेश आ पुस्तकालय हेतु।
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशरमूल्य भा.रो.१००/-
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आ पेपरबैक(ISBN No.978-81-907729-1-4मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-)
१२.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
१३. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संभस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: :देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
१४. गामक जिनगी (कथा संेग्रह)- जगदीश प्रसाद मंzडल): मूल्य भा.रु. ५०/- (सामान्य), $२०/- पुस्तकालय आ विदेश हेतु)ISBN978-81-907729-9-0 COMING SOON:
1.मिथिलाक बेटी (नाटक)- जगदीश प्रसाद मंडल
2.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरनमैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल।पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
3.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
4.मिथिलाक इतिहास – स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी
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विदेह:सदेह:१ (तिरहुता/ देवनागरी)क अपार सफलताक बाद विदेह:सदेह:२ आ आगाँक अंक लेल वार्षिक/ द्विवार्षिक/ त्रिवार्षिक/ पंचवार्षिक/ आजीवन सद्स्यता अभियान।
ओहि बर्खमे प्रकाशित विदेह:सदेहक सभ अंक/ पुस्तिका पठाओल जाएत।
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दू बर्ख(२०१०-११ ई.):: INDIA रु.३५०/- NEPAL-(INR 1050), Abroad-(US$50)
तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)


२. संदेश-

[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]

१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।

२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।

३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।

४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।

५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।

६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।

७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।

८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।

९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।

१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।

११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।

१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।

१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।

१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।

१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।

१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रिं‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाई। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस प‍ंक्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- दास जी द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। मैथिलीमे उपरझपकी पढ़ि लिखबाक जे परम्परा रहल अछि तकर ई एकटा उदाहरण अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोगक हम भर्त्सना करैत छी-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जे अपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि..(स्पष्टीकरण-क्यो नाटक लिखथि आ ओहि नाटकक खलनायकसँ क्यो अपनाकेँ चिन्हित कए नाटककारकेँ गारि पढ़थि तँ तकरा की कहब। जे क्यो मराठीमे चितपावन ब्राह्मण समितिक पत्रिकामे-जकर भाषा अवश्ये मराठी रहत- ई लिखए जे ओ एहि पत्रिकाक माध्यमसँ मराठी भाषाक सेवा कए रहल छथि तँ ओ अपनाकेँ मराठीभाषी पाठक मध्य अपनाकेँ हास्यास्पदे बना लेत- कारण सभकेँ बुझल छैक जे ओ मुखपत्र एकटा वर्गक सेवाक लेल अछि। ओना मैथिलीमे एहि तरहक मैथिली सेवक लोकनिक अभाव नहि ओ लोकनि २१म शताब्दीमे रहितो एहि तरहक विचारधारासँ ग्रस्त छथि आ उनटे दोसराक मादेँ अपशब्दक प्रयोग करैत छथि-सम्पादक)...ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।( स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ- विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।

१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।

१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।

१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।

२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।

२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।

२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।

२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।

२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।

२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक हमर उपन्यास स्त्रीधनक विरोधक हम विरोध करैत छी। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।

२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।

२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।

२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।

२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।

३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।

३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।

३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।

३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।

३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।

३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।

३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।

३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।

३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।

३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।

४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।

४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।

४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।

४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।

४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।

४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।

४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।

४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।

४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रश‍ंसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।

४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।

५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।

५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।

५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।

५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।

५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।

५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।

५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।

५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।

५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।

५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।

६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।

६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।

६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।

६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।

६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि।

६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।

६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।

६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।

६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।

६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।

७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)

७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।



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