भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Sunday, April 09, 2006
मैथिली भाषा SAHASRABADHANIhttp://www.videha.co.in/
शुरुमे त’ लागल जेना ऑफिसमे क्यो चिन्हत की नहि। मुदा जखन हम ऑफिस पहुँचलहुँ त’ लागल जेना हीरो जेकाँ स्वागत भेल हो। मुदा एहिमे ई बात संगी-साथी सभ नुका लेलक जे हमर छडी सँ चलनाई हुनका सभमे हाहाकार मचा रहल छन्हि। सभ मात्र हमर हिम्मतक प्रशंसा करैत रहैत छलाह। जखन हम छडी छोडि कय चलय लगलहुँ आ जीन्स शर्ट-पैंट पहिरि कय अयलहुँ, तखन एक गोटे कहलक जे आब अहाँ पुरनका रूपमे वापस आबि रहल छी। एहि बातकेँ हम घर पर आबि कय सोचय लगलहुँ।अपन चलबाक फोटोकेँ प्तनीक मदति सँ हैण्डीकैम द्वारा वीयोडीग्राफी करबयलहुँ।एकबेर तँ सन्न रहि गेलहुँ। चलबाक तरीका लँगराकय दौरबा सन लागल। बादमे घरक लोक कहलक जे ई त’ बहुत कम अछि, पहिने त’ आर बेसी छल। तखन हमरा बुझबामे आयल जे संगीसभ आ ओ’ सभ जे हमरासँ लगाव अनुभव करैत छलाह, तनिका कतेक खराब लगैत होयतन्हि। तकराबाद हमरा हुनकरसभक प्रोत्साहन आ’ हमर हिम्मतक प्रशंसा करैत रहबाक रहस्यक पता चलल । अपन प्रारम्भिक जीवनक एकाकीपनक बादमे नौकरी-चाकरी पकड़लाक बाद सार्वजनिक जीवनमे अलग-थलग पड़ि जयबाक संदेह , आशा , अपेक्षा किंवा अहसास-फीलिंगक बाद जे एहि तरहक अनुभव भेल से हमर व्यक्तित्वक भिन्न विकासकेँ आ’र दृढ़ता प्रदान केलक।
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सन~~ 1885 ई.। झिंगुर ठाकुरक घरमे एक बालकक जन्म भेल।एहि वर्षमे कांग्रेस पार्टीक स्थापना बादक समयमे एकटा महत्त्वपूर्ण घटनाक रूपमे वर्णित होमयवला छल। अंग्रेजी राज अपनाकेँ पूर्णरूपसँ स्थापित कए चुकल छल।राजा-रजवाड़ासभ अपनाकेँ अंग्रेजक मित्र बुझवामे गौरवक अनुभव करैत छलाह।शैक्षिक जगतमे कांग्रेस शीघ्रअहि उपद्रवी तत्वक रूपमे प्रचारित भय गेल। मिलाजुलाकेँ कांग्रेसी लोकनि अंग्रेजीराज आ’ भारतीय रजवाड़ा सभक सम्मिलित शासनकेँ स्थायित्व आ’ यथास्थिति निर्माणकर्त्ताक रूपमे स्थान भेटि चुकल छल। कांग्रेस अपन यथास्थितिवादी स्वरूपकेँ बदलबाक हेतु भविष्यमे एकटा आन्दोलनात्मक स्वरूप ग्रहण करयबला छल। संस्क़ृतक रटन्त विद्याक वर्चस्व छल। परंतु सरकारी पद बिना आङ्ल-फारसी सिखलासँ भेटब असंभव छल।सरकारी पदक तात्पर्य राजा-रजवाड़ाक वसूली कार्यसँ संबंधित आ’ ओतबहि धरि सीमित छल। मुदा किछु समयापरान्त अंग्रेजक किरानीबाबू लोकनि सेहो अस्तित्वमे अयलाह।
तखन बालककेँ संस्क़ृत शिक्षाक मोहसँ दूर राखल गेल। मैथिल परिवारमे फारसी आ’ अंग्रेजीक प्रवेश प्रायः नहियेक बराबर छल आ’ ताहि कारणसँ अधिकांश परिवार एक पीढ़ी पाछू चलि गेल छल। मुदा झिंगुर बाबू अपन पुत्रक हेतु मौलवी साहबकेँ राखि शिक्षाक व्यवस्था कएल। तदुपरांत दरिभङ्गामे एकटा बंगालीबाबू बालककेँ अंग्रेजीक शिक्षा देलखिन्ह। बालक कलित शनैः शनैः अपन चातुर्यसँ मंत्रमुग्ध करबाक कलामे पारंगत भ’ गेलाह। जाहि बालककेँ झिंगुरबाबू अन्यमनस्क पड़ल आ’ मात्र सपनामे हँसैत देखलखिन्ह, तकर बाद ठेहुनिया मारैत, फेर चलैत से आब शिक्षा-दीक्षा प्राप्त क’ रहल छथि। हुनका अखनो मोन पड़ि रहल छलन्हि जे कोना ठेहुनिया दैत काल, नेनाक हाथ आगू नहि बढैक आ’ ओ’ बेंग जेंकाँ पाछू सँ सोझे आगू फाँगि जाइत छलाह। पूरा बेंग जेकाँ-अनायासहि ओ’ मुस्कुरा उठलाह। पत्नी पूछि देलखिन्ह जे कोन बात पर मुस्कुरेलहुँ, तँ पहिने तँ ना-नुकुर केलन्हि फेर सभटा गप कहि देलखिन्ह। तखनतँ गप पर गप निकलय लागल।
“एक दिन कलितकेँ देखलहुँ जे ठेहुनियाँ मारने आगू जा’ रहल छथि। आँगनसँ बाहर भेला पर जतय अंकर-पाथर देखल ततय ठेहुन उठा कय, मात्र हाथ आ’ पैर पर आगू बढ़य लगलाह” , पत्नीकेँ मोन पड़लन्हि।
“एक दिन हम देखलहुँ जे ओ’ देबालकेँ पकड़ि कय खिड़की पर ठाढ़ हेबाक प्रयासमे छथि। हमरो की फूड़ल जे चलू आइ छोड़ि दैत छियन्हि। स्वयम प्रयास करताह। दू बेर प्रयासमे ऊपर जाइत-जाइत देवालकेँ पकड़ने-पकड़ने कोच पर खसि गेलाह। हाथ पहुँचबे नहि करन्हि। फेर तेसर बेर जेना कूदि गेलाह आ’ हाथ खिड़की पर पहुँचि गेलन्हि आ’ ठाढ़ भ’ गेलाह” , झिंगुर बाबूकेँ एकाएक यादि पड़लन्हि।
“एक दिन हम ओहिना एक-दू बाजि रहल छलहुँ। हम बजलहुँ एक तँ ई बजलाह, हूँ। फेर हम बजलहुँ दू तँ ई बजलाह, ऊ। तखन हमरा लागल जे ई तँ हमर नकल उतारि रहल छथि”।
“ एक दिन खेत परसँ एलहुँ आ’ नहा-सोना भोजन कय खखसि रहल छलहुँ। अहाहा’ केलहुँ तँ लागल जेना कलित सेहो अहाहा’ केलथि। घूरि कय देखलहुँ तँ ओ’ गेंदसँ बैसि कय खेला रहल छलाह। दोसर बेर खखसलहुँ तँ पुनः ई खखसलाह। हम कहलहुँ किछु नहि, ई हमर नकल कय रहल छथि। दलान पर सभ क्यो हँसय लागल। फेर तँ जे आबय, कलित ऊहुहूँ, तँ जवाबमे ईहो ऊहूहूँ दोसरे तरीकासँ कहथि। उम्र कतेक हेतन्हि, नौ-वा दस महिना”।
“ हम जे सुनेलहुँ ताहि समय कतेक वयस होयतन्हि, छ’ आ’ कि सात मास”। पत्नी सासु-ससुर वा बाहरी सदस्य नहि रहला पर सोझे-‘गप सुनलहुँ’ वा’ ई करू वा’ ओ’ करू बजैत छलीह। मुदा सासु- ससुरक सोझाँ तृतीया पुरुषमे-सुनैत छथिन्ह, फलना कहैत छलैक-। आ’ फेर झिंगुर बाबू की कम छलाह. ओहो ओहिना गीताक काजक लेल काजक अनुकरणमे तृतीया पुरुषमे जवाब देथि। मुदा एकांतमे फेर सभ ठीक। पुनः मुस्कुरा उठलाह झिंगुर बाबू, ई प्रण मोने-मोन लेलथि जे कलितकेँ एहि जंजालसँ मुक्त करेतथि, ओहो तँ बूझताह जे पिता कोनो पुरान-धुरान लोक छथि। पनी पुनः पुछलथिन्ह जे आब कोन बात पर मुस्की छूटल। मुदा एहि बेर झिंगुर कन्नी काटि गेलाह। मुस्की दैत दलान दिशि निकलि गेलाह, ओतय किछु गोटे अखड़ाहाक रख-रखाबक बात क’ रहल छलाह। भोरहाकातक अखड़ाहाक गपे किछु आर छल। भोरे-भोर सभ तुरियाक बच्चा सभ, जवान सभ पहुँचि जाइत छल। एकदम गद्दा सन अखड़ाहा, माटि कय कोड़ि आ’ चूरि कय बनायल। बालक कलितकेँ छोड़ि सभ बच्चा ओतय पहुँचैत छल। झिंगुर बाबू कचोट केलन्हि तँ आन लोक सभ कहलखिन्ह जे से की कहैत छी। अहाँ हुनका कोनो उद्देश्यक प्राप्ति हेतु अपनासँ दूर रखने छी, तँ एहिमे कचोट कथीक। एकौरसँ ठाकुर परिवार मात्र एक घर मेंहथ आयल आ’ आब ओहिसँ पाँचटा परिवार भ’ गेल अछि। डकही माँछक हिस्सामे एकटा टोलक बराबरी ठकुरपट्टीकेँ भेट गेल छैक। कलितक तुरियाक बच्चाकेँ ल’ कय आठटा परिवार अछि ठकुरपट्टीमे। अखनेसँ बच्चा सभकेँ मान्यता द’ देल गेल छैक। तखने एकौरसँ एकटा समदी एलाह आ’ भोजपत्रमे तिरहुतामे लिखल संदेश देलखिन्ह। झिंगुर बाबू अँगनासँ लोटा आ’ एक डोल पानि हुनका देलखिन्ह आ’ पत्र पढ़य लगलाह। प्रायः कोनो उपनयनक हकार छलन्हि। ‘परतापुरक सभागाछी देखि कय जायब’ , ई आदेशपूर्ण आग्रह झिंगुर बाबू समादीकेँ देलखिन्ह, एकटा पूर्वजसँ मूल-गोत्रक माध्यमसँ जुड़ल दियादक प्रति अनायासहि एकत्वक प्रेरणा भेलन्हि। फेर आँगन जाय पत्र पढ़ब प्रारंभ कएल।
॥श्रीः॥
स्वस्ति हरिवदराध्यश्रीमस्तु झिंगुर ठाकुर पितृचरण कमलेषु इतः श्री गुलाबस्य कोटिशः प्रणामाः संतु। शतम~ कुशलम। आगाँ समाचार जे हमर सुपुत्र श्री गड़ेस आ’ चन्द्रमोहनक उपनयन संस्कारक समाचार सुनबैत हर्षित छी। अहाँक प्रपितामह आ’ हमर प्रपितामह संगहि पढ़लथि। अपन गोत्रीयक समाचार लैत-दैत रहबाक निर्देश हमर पितामह देने गेल छलाह। हर्षक वा’ शोकक कोनो घटना हमरा गामसँ अहाँक गाम आ’ अहाँक गामसँ हमरा गाम नहि अयने अशोचक विचार नहि करबासँ भविष्यक अनिष्टक डर अछि। संप्रति अपने पाँचो ठाकुर गुरुजनक तुल्य पाँच पांडवक समान समारोहमे आबि कृतार्थ करी। अहींकेँ अपन ज्येष्ठ पुत्रक आचार्य बनेबाक विचार कएने छी। परतापुरक सभागछीक पंचकोशीमे अपने सभ गेल छी, तेँ बहुत रास लोक गप-शपक लालायित सेहो छथि। अगला महीनाक प्रथम सोमकेँ जौँ आबि जाइ तँ सभ कार्य निरन्तर चलैत रहत। बुधसँ प्रायः प्रारम्भिक कार्य सभ शुरु भ’ जायत। इति शुभम~।
बलान धारक कातमे परतापुरक चतरल-चतरल गाछ सभ आ’ तकर नीचाँ सभागछी। बलानक धार खूब गहींर आ’ पूर्ण शांत। ई तँ बादमे हिमालयसँ कोनो पैघ गाछ बलानमे खसल आ’ हायाघाट लग सोझ रहलाक बदला टेढ़ भ’ एकर धारकेँ रोकि देलक आ’ एकटा नव धार कमलाक उत्पत्ति भेल। बलान झंझारपुर दिशि आ’ कमला मेंहथ , गढ़िया आ’ नरुआर दिशि। बलान गहींर आ’ शांत, रेतक कतहु पता नहि; मुदा कमला फेनिल, विनाशकारी। बाढ़िक संग रेत कमला आनय लगलीह। ग्रीष्म ऋतुमे बलान पूर्वे रूप जेकाँ रहैत छथि, बिना नावक पार केनाइ कठिन, किंतु कमलामहारानीकेँ पैरे लोक पार करैत रहथि। सभटा सभागछीक चतरल गाछ बाढ़िक प्रकोपमे सुखा गेल। चारूदिश रेत आ’ सभागाछी उपटि गेल। चलि गेल सभटा वैभव सौराठ। मुदा झिंगुर बाबूक कालमे परतेपुरक ध्रुवसँ पंचकोशी नापल जाइत छल, से बादहुमे परम्परारूपमे रहल।
कलित दरिभङ्गासँ परसू आबि जयताह
मैथिली भाषा BHALSARIhttp://www.videha.co.in/
1.इच्छा-मृत्यु
हे भीष्म अहाँक कष्टक बखान,सुनल छल खाइत पान-मखान,मुदा बुझलहुँ नहि ई बात ,ईच्छा-मृत्यु किए कै तात!
भीषणताक’ कथा नहि थोड़, भूख,अत्यचार गरीब पर जोड़, हरिजन शोलकन्ह थोड़हि-थोड़,
केलन्हि भयावह क्षत्रिय तोर, घोषनि-ब्राह्मण सभ मोर, केलन्हि रटन्ता विद्या तोर। एक युधिष्ठिरपर छोरिकय राज, छोड़ल अ’हाँ निसास।
हमर युधिष्ठिर पाँच सय चालीस, पहिरथि खादी-रेशमी खालिस, बुझल भीष्म हम आब ई बात, पेलहुँ इच्छे-मृत्युएँ अहाँ निजात।
2.वार्ड नं 29 बेड नं. 32 सँ
सफदरजंग हॉस्पीटलसँ,आइ देखल हम मीत,डॉक्टर-पेशेंट फ्री इलाजक,दंभ भरइ छथि,हा’ इष्ट। साबुन-तेल सभपर टैक्स, भरइ छथि सभ वासी, लैटरीन गंदा अछि पुछने,नर्स बिगरि देखबइ छथि अपोलोक पगपाती।जाऊ अपोलो गंदगी जौँ लागय,टैक्सक बात फिनान्स मिनिस्टरेकेँ जाऊ बूझाबय।
3.ट्रेन छल लेट
जायब दिल्ली कोना,अस्पतालक भर्ती कक्ष,ट्रेन अछि लेट,डॉक्टर अछि व्यस्त।पहुँचलहुँ दिल्ली,दिल्ली दूर अस्त,दिल्लीक सरकारी डॉक्टर,आइ,काल्हि,परसू,भेलहुँ पस्त।युग बदलल,गणतंत्र आयल,मुदा ट्रेन दिल्ली जायबला,आ’ डॉक्टर दूनू फुर्र,दिल्ली अखनहुँ अछि दूर।
4.सूर्य-नमस्कार
ॐ मित्राय नमः।।1॥
आँखि करताह ठीक मह,हिनकर लाली’ कत्था-पान,दाँतक त’रमे जखन चबान,हनूमानक सूर्यक ग्रहण पड़ल मोन,लाली देखल चढ़िकय मचान।सूर्य-ग्रहणक वर्ण अछि,नहि ई राहुक ग्रास,विज्ञानक छैक सभ बात,कहलन्हि कुलदीप काक।पृथ्वी घुमैछ पश्चिम सँ पूर्व,आÝ,सूर्य केँ घूमबैत अछि पूर्व सँ पश्चिम।मुदा कहू जे गर्मीमे उत्तर-पूर्व आÝ
जाड़मे उत्तर-पश्चिम कियै छथि सूर्य।
की नहीं चलैत छथि अपन अक्ष,ग्रहणक हेतु राहुक नहि काज,चन्द्रमा बीचमे किरणक करै छथि ग्रास।सभ गणना कय ठामे देल,बूड़ि पंडित केलक अपवित्रक खेल।
खेल-खेलमे देश गेल पाछू,आबहुतँ सभ आगू ताकू।
पुनि-पुनि करि दण्ड हम देल,स्थिरचित्त नेत्र ई सभक लेल;राहू-केतु सभक दिन आब गेल।
गंगामे गोदावरी तीरथमे प्रयाग,धन्यभाग कौशल्यामायकेँ राम लेल अवतार।स्नानक बादक मंत्रक ई भाग,खोलत भरत प्रगति-एकताक द्वार।
शक्ति देहु हे भानु मामहः;ॐ रवये नमः।।2॥
मेरुदण्ड-पग होयत सबल,सूर्य-नमस्कारक परञ्च पाठ प्रबल।सूर्यवंशीयोक अहह अभाग,कर्ण-तर्पणक नहि करू बात।जाति-कर्मक ज्ञानक ओर,छल ओतय, नहि किएक पकड़ल।राहू-ग्रासक बातक मर्म, अहह;ॐ सूर्याय नमः॥3॥
सात अश्व-रथक उमंग,रथमूसल अजातशत्रूक संग,महाशिलाकंटकक जोड़,केलक मगध काज नहि थोड़।जर्मनी-इटलीक एकताक प्रयास,दुइ सहस्त्राब्दी पहिनहि काश,रश्मिक सात-अश्वक रहस्य,बूझल मगध ताहिये पहर।छोड़ल भाव पकड़लहूँ अर्थ,हाÝ भरतपुत्र केलहुँ अनर्थ।
भरु शक्ति हे सूर्य अहाँ; ॐ भानवे नमः।
श्वासक-कुंभक केलहूँ अभ्यास,यादि पड़ल कुन्तीक अनायास।सूर्यमेल सुफल भÝ गेल,कवच-कुण्डल भेटल,सेहो इन्द्रहि संगे गेल।एकलव्य पहिनहि द्रोण केलन्हि फेल,अर्जुन, कर्ण-विजय कय लेल?अखनहुँ ई प्रतियोगितामे अछि भेल,प्रतिभाक रूप छय विकृत कैल,अखनहूँ धरि की तू ई सहबह !! ॐ खगाय नमः॥5॥
सूर्या आश्विन गमनमे फेर,अछि परस्पर द्वंदक देरि,गुरु बृहस्पति ठाढ़े-ठाढ़ ,करतथि ई सभक उद्धार।
अखनहुँ गुरु छथि गूड़,शूल दैत जोड़ पर हमारा ऋणी,कहैत जे बनओताह हमरा चिन्नी,रहताह स्वयं कुसियारक गूड़,गुरुक-गुरुत्व उष्ण-सुड्डाह हह, ॐ पूष्णे नमः॥6॥
जकर अंकसँ निकलल विश्व
विश्वक प्राण,आÝh तकर श्वासोच्छवास,गुरुत्वक खेलकेँ बनेलहूँ अहाँ,काछुक, सहस्त्रनागक फनि जानि कि-की?एकटा रहस्य आर गहिरायल,भरत-पुत्र गेल हेरायल।
तकर ध्यान हेयास्तदवृत्तयः; ॐ हिरण्यगर्भाय नमः॥7।।
सूर्यकिरण पसरि छय गेल,कतेक रहस्य बिला अछि गेल,तिमिरक धुँध भेल अछि कातर,मुदा ई की अद्भुत भेल।रात्रि-प्रहर देखलहुँ सप्त-ऋषिगण,दिनमे सभ-किछु स्वच्छ अछि भेल,मुदा नहीं तरेगणक लेल ई भेल।सत्यक परत तहियायल बनल खेल,हाÝ विश्ववासी शब्दक ई मेल,अहाँक दर्शनक स्तंभ किए भेल।ते व्यक्तसूक्ष्मा गुणात्मानः। ॐ मरीच्ये नमः॥8।।
अहँक तेजमे हे पतंग प्रभाकर,सागराम्बरा अछि जे नहायल,सौर ऊर्जाक नव-सिद्धांत,नहीं की देलक कनियोटा आस,मेघा-मास नहि अहाँक अछि जोड़,तखन मनुक्खक बात की छोड़।पढ़ल ग्रंथ ब्रह्मांडक बात,तरणि सहस्त्र एकरा पार,अंशुमाली तपनसँ पैघगर गाल।तकर ऊष्णता की हम सहब;
ॐ आदित्याय नमः॥9॥
पिताक बात अछि आयल मोन,बिना सावित्रीक गायत्रीक की मोल,दुइ वस्तुक मेल कखनहुँ नीक,कहुखन परिणाम भेल विपरीत।कटहर-कोआ खेलाह तात,देलन्हि ऊपर पानक पात।पेट फूलल भेल भिसिण्ड,परल मोन रसायन-शास्त्र।तीव्रसंवेगानामासन्नः;ॐ सवित्रे नमः॥10॥
मोन पड़ल चोरी केर बात,चोरक आँखिमे आकक पात,पातक दूध पड़ला संता चोर,सोचलक आब आँखि गेल छोड़ि।कहलक मोने बुद-बुद्काय,करु तेल नहि देब मोर भाय।अर्कक दूधक संग करु तेल,बना देत सूरदासक चेल।गौवाँ केलन्हि बुरबकी एहि बेर,चोरक बुनल जालक फेर।तेल ढ़ारि पठौलन्हि चोरकेँ गाम।
मुदा रसायन भेल विपरीत,चोरक आँखि बचि गेल हे मीत।गौआँक काजक हम लेब नहि पक्ष,बस सुनायल रटन्त विद्याक विपक्ष।ध्यान धरह आ’ ई कहह;ॐ अर्काय नमः॥11॥
पोथीक भाष्य आ’ भाष्यक भाष्य, अलंकारक जाल-जंजाल, विज्ञानक पाखंड, ऋतम्भरा बुद्धि कतय छल गेल। योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः; ॐ भास्कराय नमः॥12।।
करु स्वीकार हमर ई कविता,हे दुःखमोचन हे, हे सविता।दूर करू विकार संपूर्ण;केलहुँ सूर्य-नमस्कार हम पूर्ण।
5.सनT सत्तासीक बाढ़ि
कमलामहारानीकेँ पार कएल पैरे, बलानकेँ मुदा नाउक सहारे। मुदा आइ ई की भेल बात, दुनू छ’हरक बीच ई पानि, झझा देत किछु कालमे लियÝ मानि।
चरित्रक ई परिवर्तन देलक डराय,
नव विज्ञानक बात सुनाय।बाँध-बाँधि सकत प्रकृति की?भीषण भेल आर अछि ई। हृदयमे देलक भयक अवतार, देखल छल हम गामक बात।बड़का क’लम आ’ फुलवारीमे,बड़का बाहा देल छल गेल;पानिक निकासी होइत छल खेल।नव विज्ञानी ई की केलथि,बाहा सभटा बन्न भÝ गेल।फाटक लागल छहरक भीतर,बालु मूँहकेँ बन्न कय देल।एक पेड़िया पर छलहुँ चलल हम,आरिये-आरिये, देखल रुक्ष।पहिने छल अरिया दुर्भिक्ष,आब दुर्भिक्ष अछि छुच्छ।सिल्ली, नीलगाय सभटा सुन्न,उपनयनमे शाही काँट अनुपलब्ध।जूड़िशीतलक भोगक छल राखल,गाछक नीचाँ सप्ताह बीतल।नहि क्यो वन्यप्राणी आयल खाय,चुट्टीक पाँत पसरायल जाय।
छहरपर ठाढ़ अभियन्ताक गप,छलहुँ सुनैत हम निर्लिप्त।मुदा जाहि धारकेँ कएल पैर पार,तकर रूप अछि ई विस्तार।नवविज्ञानिक चरित्रानुवाद होयत एहन नहि छल हम जानल,मुदा देने छल ओकरा दुत्कार,कुसियारक किछु गाछ,पानिक बीचमे ठाढ़।माटिक रंगक पानि,आ’ हरियर कचोड़ गाछ,छहरक ऊपरसँ झझायल पानि,लागल काटय छहरकेँ धारक-धार।ठाम-ठाम क़टल छल छहर,ऊपरसँ बुन्नी परि रहल।सभटा धान-चारु,भीतक कोठी,टूटि खसल,पानिक भेल ग्रास।हेलिकॉप्टरसँ खसल चूड़ा-गूड़,जतय नहि आयल छल बाढ़ि,किएकतँ पानिमे खसाकय होयत बर्बाद।हेलीकॉप्टरक नीचाँ दौड़ैत छल भीड़,भूखल पेट, युवा आ’ वृद्ध।
ओ’ बूढ़ खाÝ रहल छथि चूड़ा-गूड़,बेटा-पुतोहुक शोक की करि सकत पेटक क्षुधा दूर?
एकटा बी.डी.ओ.क बेटा छल मित्र,कहलक ई सरकार अछि क्षुद्र,ओकरा पिताकेँ शंटिंग केलक पोस्टिंग,गिरीडीह सँ झंझारपुरक डिमोशन, कनिंग।मुदा भाग्यक प्रारब्ध अछि जोड़,आयल बाढ़ि पोस्टिंग भेल फिट।सोचलहुँ जे हमरेटा प्रारब्ध अछि नीच,शनियो नीच, सरस्वती मँगेतथि की भीख?पहुँचलहुँ गाम, पप्पू भाइक मोन छोट,विकासक रूपरेखा, जल-छाजन,निकासी..,...
बात पर बात फेर सरकारक घोषणा,बाढ़ि राहत, एक-एक बोरा अनाज,सभ बोरामे पंद्रह किलो निकाललथि ब्लॉकक कर्मचारी।बूरि छी पप्पू भाई अहूँ,मँगनीक बरदक गनैत छी दाँत,पिछला बेर ईहो नहीं प्राप्त।हप्ता दस दिनक बादक बात,क्यो गेल बंबई,क्यो धेलक दिल्लीक बाट;गाममे स्त्री,वृद्ध आ’ बच्चा,बंबईमे तँ तरकारी बेचब,बोझो उठायब;सभ क्यो केलक ई प्रण,मायक स्वप्न अछि कोठाक होय घर,अगिलहीक बाद फूस आ’’ खपड़ा,पुनः बनायल बखाड़ी जखन भेल बखड़ा।भने भसल बाढ़िमे भीत,बनायब कोठाक घर हे मीत।खसल लागल ईंटा गाममे,कोठा-कोठामे भेल ठाम-ठाममे।पुरनका कोनटा सभ गेल हेराय,जतय हेरयबाक नुक्का-छिप्पी खेलायल ह’म भाय।आब सुनु सरकारक खटरास,आर्थिक स्थिति सुधारल ह’म मेहथमे क’ खास।आदर्श ग्राम प्रखंडक एकरा बनाओल,कहैत छी जे ह’म बंबई दिल्लीमे कमाओल,
सुनु तखन ई बात,जौं रहैत अस्थिर सरकार,तँ रहैत नहीं दिल्ली नहि बम्मई,विजयनहरम साम्राज्यक हाल,पुरातात्विककेँ अछि बूझल ई बात।धन्यभाग ई मनाऊ, हमरा जितबिते रहू हे दाऊ।प्रगति-परिश्रम अहाँ करू,हमर समस्यासँ दूर रहू।बाढ़ि आयल सत्तासीमे,तबाही देखलहूँ,मुदा कहैत छी हम,देखू आबाजाहीकेँ।
धन्यभाग हे नेता भाई,अहीसँ तँ मनोरंजन होइत अछि,मेला-ठेला खतम भय गेल,हुक्कालोली भेल दिवाली,आ’ जूड़िशीतलक थाल-कादो-गर्दा भेल होली।तखन अहूँक बात सुनने दोष नहि ,कमायलेल हमहूतँ दिल्ली-बंबई आयल छी,कमसँ कम अहाँक ई बड़कपन,जे गामकेँ नहि छोड़ल,मनोरंजनो करैत छी,कमाइतो छी,खाइतो छी।आ’ दिल्ली बंबइ सेहो घुमैत छी।
6. महाबलीपुरममे
असीम समुद्रक कातक दृश्य,हृदय भेल उमंगसँ पूरित।सूर्य-मंदिर पांडव-रथ संग,आकश-द्वीपक दर्शन कयल हम।नूनगर पानि जखन मुँह गेल,भेलहुँ आश्चर्यित,गेलहुँ हमारा हेल।लहरिक दीवारिसँ हमारा टकराय,अंग-अंग सिहरि-सिहराय।देखल सुनल समुद्रक बात,बिसरल मन-तन लेलहुँ निसास।सुनेलक ‘मणि’ गाइड ई बात,एलथि विदेशी खोललथि ई सत्य,पल्लव वंशक ई छल देन,भारतवसी बिसरल तनि भेर।मोन पडल अंकोरवाटक मंदिर,राजा खतम भेल बिसरल जन,हरि-हरि।टूटल इतिहासक तार जखन,स्वाति भेल ह्रास अखन;कास्पियन सागरक पानिक भीतरक मंदिर,भारतीय व्यापारीक द्वारा निर्मित।
आब एखन अछि हम्मर ई हाल,गामक बोरिंग पम्पसेट अमेरिकन इंजीनियरक खैरात।छोडू भसियेलहुँ कतय अहाँ फेर,प्रीति,पत्नी,हँसि-हँसि भेलथि भेड़।
7.स्मृति-भय
शहरक नागरिक कोलाहल्मे,बिसरि गेलहुँ कतेक रास स्मृति,आ’ एकरा संग लागल भय,भयाक्रांत शिष्यत्व-समाजीकरणक।समयाभाव,आ’कि फूसियाहिंक व्यस्तता,स्मृति भय आ’कि हारि मानब,समस्यासँ,आ’ भय जायब,स्मृतिसँ दूर,भयसँ दूर,सामाजिकरणसँ दूर-खाँटी पारिवारिक।
मुदा फेर भेटल अछि समय,युगक बाद, बच्चा नहि,भ’ गेलहुँ पैघ; फेरसँ उठेलहुँ करचीक कलम, लिखबाक हेतु लिखना,मुदा दवातमे सुखायल अछि रोशनाइ, युग बीतल,स्मृति बिसरल,भेलहुँ एकाकी।
सहस्त्रबाढ़नि जेकाँ दानवाकार,घटनाक्रमक जंजाल,फूलि गेल साँस,
हड़बड़ाकÝ उठलहुँ हम,आबि गेल हँसी,स्वप्नानुशासन,लट्पटाकेँ खसलहुँ नहि,धपाक;भÝ गेलहुँ अछि पैघ।
बच्चामे कहाँ छल स्वप्नानुशासन, खसैत छलहुँ आ’ उठैत छलहुँ, शोनितसँ शोनितामे भेल, उठिकय होइत घामे-पसीने नहायल, स्मृति-भयक छोड़ नहि भेटल, ब्रह्मांडक कोलाहल, गुरुत्वसँ बान्हल, चक्कर कटैत,करोड़क-करोड़मील दूर सूर्य, आÝ तकर पार कैकटा सूर्य। के छी सभक कर्ता-धर्ता, आÝ जौं अछि क्यो,तÝ ओकर
निर्माता अछि केÝ, ओह! नहि भेटल छोड़। लेलहुँ निर्णय पढ़िकेँ दर्शन, नहि करब चिन्तन,तोड़ल कलम, करची आÝ दवात।
के छी ई सहस्त्रबाढ़नि,घूमि रहल अछि एकटा परिधिमे,
शापित दानव आकि कोनो ऋषि,ताकैत छोड़ समस्याक,आÝ समस्यातँ वैह,के ककर निर्माता आÝ तकर कतय अंतिम छोड़,के ककड़ स्वामी आÝ सभक स्वामी के?आÝ तकरो के अछि स्वामी!
भेटल स्वप्नानुशासन,टूटल शब्दानुशासन, तकबाक अछि समाधान, फेर गेलहुँ स्वप्नमे लटपटाय, खसब नहि धपाक,तकबाक अछि छोड़।
शंका-समाधान ल’ग,
डगमग होमय लागल अपना पर विश्वास।
जेना कोनो भय,कोनो अनिष्ट,बढ़ा देलक छतीक धरधरी,आÝकि नेनत्वक पुनरावृत्ति!जन्म-जन्मांतरक रहस्य,आत्माक डोरी?आÝकि किण्वन आ’ विज्ञान केलक सृष्टिक निर्माण!
पीयूष आ’ विषक संकल्पना,स्वाद तीत,कषाय,क्षार,अम्ल कटु की मधुर!खाली बोनमे उठैत स्वर,षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद!खोजमे निकलि गेलथि अत्रि, अंगिरा, मरीचि,संग लेने पुलऋतु,पुलस्त्य आ’ वशिष्ठ।प्राप्त करबालेल अष्टसिद्धि अण्मिक,महिमाक, गरिमाक, लघिमाक, प्राप्तिक, प्राकाम्यक,ईशित्व आकि वशित्व,सप्तऋषिक अष्टसिद्धि।नौ निधिक खोज-पद्म,महापद्म,शंख,मकर,कच्छप, मुकुन्द,कुन्द, नील आ’ खर्व,बनल आधार दशावतारक।मत्स्यावतार बचेलन्हि वेद, सप्तर्षिकेँ,आ’ संगे मनुक परिवार।कूर्मावतार संग मंदार-मेरु आ’वासुक व्याल, आनल सुधा-भंडार।वाराहावतार आनल पृथ्वीकेँ बाहर,चारि अंबुनिधिक कठोर छल जे पाश,मारल हिरण्याक्ष।
नरसिंह भगवान बचाओल प्रह्लाद,मारिकय हिरण्यकश्यप,
वामन मारल बालि नापल,दू पगमे पृथ्वी आ’ तेसरमे दैत्यराज।परशुराम, राम आ’ कृष्ण;केलन्हि असुरक संहार,आ’ बुद्धि बदललन्हि तकर विचार।तैं की जे हुनक प्रतिमा,खसौलक देवदत्तक संतान।छिः।क्यो रोकि नहि सकल बामियान।नहि कल्कि नहि मैत्रेय,जल्दीसँ आऊ श्वेत-सैंधव सवारि,चौदह भुवन आ’ तेरह विश्वक,अनबा युग-कलधौत।अर्णवक कोलाहलमे जाय छल,नेनत्व डराय।
मुदा अखन विज्ञान टोकलक मोन,ई तँ अछि किण्वनक सिद्धांत।दशावतारे तँ छथि,उत्पत्तिक आधुनिक सिद्धांत।मत्स्य, कूर्म, तखन वाराह,फेर नरसिंह, तखन वामन।एकसँ दोसर कड़ी मनुष्यक रंग-रूपक,ताकय लेल छल निकलल।दÝ देलन्हि अवतारक नाम,भरत-तनय रोकलन्हि वैज्ञानिक सोच,कड़ी गेल टूटि, ताकयमे कल्कि,ओ’ ताहि द्वारेतँ नहीं एलाह मैत्रेय।लागि रहल अछि भेटल सूत्रक ओर आर,फूसिये छलहुँ डरायल करब षोडषोपचार।
वेद, पुराण, महाभारत,रामायण,अर्थशास्त्र ओ’,आर्यभट्टीय,लीलावती, भामती,राजनीति,गणित,भौतिकी केर समग्र चरित्र।कर्मक शिक्षा गेल ऊधियाय, बिहारिमे अंधविश्वासक।दर्शन भेल जतय अनुत्तरित,आ’ विज्ञान देलक किछु समाधान,तँ पकरब छोर एकर गुरुवर,जे केलक समस्या दूर।एकर परिधि भने अछि छोट,यदि परिधि करब पैघ,तँ फेर बदलताह दर्शनक कांट्रेक्टर,दर्शनकेँ धर्ममे आ’ धर्मकेँ नरक-स्वर्गक प्रकार-प्रकारंतरमे।
भौतिकी आ’ एस्ट्रोनोमीकेँ बनेलथि एस्ट्रॉलोजी
विज्ञान बनल अंधविश्वास।
जखन नेति-नेति बनत उत्तर। तखन भने रहय दियौक प्रश्ने अनुत्तरित।
सभ गेलथि आगू, मुदा भरत-तनय छथि पाछू।लीलावतीयोमे,भानुमतीयोमे कोना तकताह जातिगत भेद,एकलव्यक प्रशंसामे व्यासजीक लेख मुदा कार्य नहि क्यो बढ़ेलक आगू।सहस्त्राब्दीक अंतराल देलक जातिगत करताल।विज्ञान आ’ कला,भूख आ’ अन्न;भेलाह जातिगत छोड़ताह की स्वाछन्न।यादि पड़ल गामक भोज,ब्राह्मण आ’ शोलहकन्हक फराक पाँति,पहिल पाँतिमे खाजा-लड्डू परसन पर परसन,दोसर पाँतिमे एक्के बेर देल।रोकल कला-विज्ञानक भागीरथीक धार,भेटल राहूक ग्रास।यादि पड़ैछ पिताक श्राद्धकर्म,भरि दिन कंटाहा ब्राह्मणक अत्याचार,आ’ साँझमे गरुड़ पुराणक मारि।
सौर-विज्ञानक रूपांतर आ’ ग्रहणक कलन,दक्षिणाक हेतु भेल कलुषित।रक्षा-विज्ञानक रामायणक पाठ,कखन सिखेलक भीरुताक अध्यात्म।ब्यास्जीक कर्ण-एकलव्य-कृष्णक पाठ सामाजिक समरसताक;अखनहु धरि अछि जीवंत, नहीं भेल खतम;दू-सहस्त्राब्दी पहिनेक उदारवादी सोच;सुखायल किएक विद्या,सरस्वती-धार जेकाँ भेल अदिन;
तखनहि जखन विद्या-देवी छोड़लन्हि,सुखा गेलीह बिनपानिक बिन बुद्धिक।फेर अओतीह कि घुरि कए बदलि भेष,एतय, हम्मर भारत देश?
हजार बर्षक घोँघाउज,कि होयत बंद?आ’कि एकलव्य-कर्ण-कृष्णक पाठ छोड़ि,युधिष्ठिर-शकुनिक एक्का-दुक्का-पंजा-छक्काक पढ़ब पाठ।कच्चा बारहकेँ शकुनि बदलताह पक्का बारहमे,आ’ करताह अपन पौ-बारह।तीनटा पासा आ’ चारि रंगक सोरे-भरि गोटी, करत भाग्यक निर्माण?चौपड़क चारि फड़ आ’ एक फड़मे चौबीस घर,की ई फोड़त भारतक घर?युधिष्ठिर जौं भेटताह तँ कहितियन्हि,जे चारि लोकक सोझ केला पासाक,खेलयतहुँ जकर नियम होइछ हल्लुक।
दू व्यक्तिक रंगबाजी खेलकेँ अहाँ ओझरेलहुँ,खेला खेलक संग नहि वरनT खेलेलहुँ देश आ’ प्त्नीक संग।तैं दैत छी ह’म ई उपराग,शकुनियोसँ पैघ कैल अहँ अपराध।
जकरे नाम लालछड़ी सैह चलि आबय ठोकर मारि पड़ाय,सतघरिया;ती-ती –तीतार तार मेना बच्चा अंडा पार;
बच्चामे खेलाय छलहुँ आमक मासमे ई खेला;
पासाक खेल सेहो खेलेलहुँ द्विरागमनक बाद भड़फोड़ी तक कनियाक संग।वासर-रैन हे युधिष्ठिर-रूपी भरत-तनय नहि खेलाऊ ई खेल,सभकेँ दियÝ ई शिक्षा,दिअऊ संगीतक मेल;स्मृति भय तोड़ल सुर,दियह सुमति वर हे अय गोसाञुनि,गाबि सकी हमारा गीत।कज्जल रूप तुअ काली कहिअए,मात्र ईएह नहि सत्य हे मीत,उज्जल रूप तुअ वाणी कहिअए;सएह होयत हमर परिणीत।झम्पि बादर दूर भेल भय,गगन गरजि उठेलक हुतासन कए,हृदय मध्य बाउग कए,मौलि-मउल छाउर दए।शंख-फूकब वीर रससँ,करब शुरु भय-भंजन;स्मृति-स्वप्नक दंडसँ,खनहि तोड़ब खन-खन, करब मंथन।
सागर-द्वारि पर आनब भुजदंडसँ,गामक दूटा पाँतिक भोजनक आस्वादन।खोलब बंद बुद्धि-विवेक, रुण्डमालमसानीसँ,तोड़ब पाँति नहितँ करब नगरकेँ पलायन।गाम गाम रहत नहितँ,डुबायब भागीरथीक धारसँ;जे रोकलथि एकर धार प्रलय-सन,डूबताह-डूबेताह दू पाँतिबला गामकेँ अपन कुकर्मसँ।
भेल भूमि विलास कानन,निविल बोन विहसि आनल;कण्टक मध्य कुसुम विकल छल,दर्शन-घोषनि-ब्राह्मण ओझरल।धरणि विखिन छल,गंगा-तनु झामर,नहि कल-कल।विज्ञान गणितक कोमल-गल,अभाग्य तापिनि केल’क छल।
बुद्धक नगर बसायब हम भल,अहाँ देव रहब स्वर्ग करि-केलि,गामक लोकहि बजायब ठाम,सोंपलि गाम,पाँति तोहाऊ,चलब दर्शन-अद्वैत मोहाऊ,गामेमे रहब हम मीत,गायब नव-दर्शनक गीत।अपन दर्शनक लेल जे देलक,अहाँकेँ गामक वनवास,लेब तकर बदला हमारा जा कय,कष्ट सहब देब अहाँकेँ निसास।
अपन दर्शनक लेल,दुइ सहस्त्राब्दिक खेल केलेलन्हि जे,तनिकर गामक स्वरूप हम करब कानन,बुद्धक नगर बनेलन्हि जे कण्टक,कुसुम ततय आनब हम आनब।सयमे दूटा दर्शनलेल फाजिल,पासा फेकब सहस्त्राब्दीक चौपड़ चारि युग पर,जे अज्ञात तकरो ताकब हमारा तात,परञ्च जे ज्ञात,तकर त’ करए दियÝ हिसाब-किताब।
मैथिली भाषा MAHABHARAThttp://www.videha.co.in/
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पाराशर पुत्र भगवान व्यासकेँ,नमन-नमन शत नमन।केलन्हि चारू वेद लिपिबद्ध,आ’ जय संहिता सम्मिलन॥ध’ कय ध्यान ब्रह्माकेँ पूछल,पूछल के करत आब निबद्ध।ई नव ग्रंथ जे आयल अछि,अछि आयल मानस पटल समक्ष॥ब्रह्मा अति प्रसन्न भय कहल,करू प्रसन्न अहँ प्रसन्नवदनकेँ।वैह लिखि सकैत छथि पल,पल नित पल एहि ग्रंथ सकलकेँ॥केलन्हि ऋषि ध्यान गणेशक,आग्रह कएल प्रसन्नवदनकेँ।लिपिबद्ध करू भारतकेँ देववर,जाहिने छूटल किछु एहि जगकेँ॥कहल विनायक करब हम लिपिबद्ध ई,करू मुदा ई काज।रुकय नहि अहाँक वाणी हमर शर्त्त ई,नहि तँ रुकत ई काज॥व्यास से स्वीकारि कहल,मुदा राखू हमरो ई बात।लिखू अनवरत हे विनायक,मुदा बूझि सभ बात॥हँसि विनायक कहल फेर,शुरु करू ई भारत।बढ़ैत-बढ़ैत जे भेल जे,महा-महा महाभारत॥
गणेशक गति अति तीव्र,देखि व्यास कएल श्लोक जटिल।
श्लोकक भाष्य बूझि शीघ्र,विघ्नकर्ता लिखल सकल।।
वैदिक प्रार्थना
ॐ संगच्छध्वं संवदध्यं संवो,मनांसि जानताम~~
। देवा भागं यथा पूर्वेसंजानाना उपासते॥समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वःसमानमस्तु वो मनो यथ वः सुसहासति॥
व्यास सुनाओल कंठस्थ कराओल,पुत्र शुकदेव आ’ अन्य शिष्यकेँ।देवगण सुनल नारदमुनिसँ,गंधर्व राक्षस यक्ष सुनल शुकसँ॥व्यास शिष्य वैशंपायन,केलन्हि एकर प्रसार।कहि सुनाओल यज्ञ बिच,जे परीक्षित पुत्र जनमेजय कएल निस्तार॥पौराणिक सूतजी रहथि,तत मध्य।करि ऋषिसभा नैमिषारण्यमे,महर्षि शौनक अध्यक्ष॥सूतजी कएल शुरु,संहिता सतसहस्त्र।जय-भरत आ’ महाभारत,ऋषि-गणक मध्य॥
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हस्तिनापुर सम्राट शांतुनु,गंग तट भ्रमण करि रहल।युवती बनि देवि गंगा,तट जकर छलि ठाढ़ निश्चल॥भय अभिभूत कहल हे सुन्दरि,करु प्रेम स्वीकार हमर।पत्नी बनि करु राज,राज्य-धन-प्राण पर।।अछि समर्पण सभ अहाँ पर,किंतु अछि किछु बंधन हमर।क्यो पूछय नहि परिचय हमर,नहि रोक-टोक करय हमर कार्य पर।।प्रेम-विह्वल शांतुनु,करि स्वीकार बंधन सकल।आनल महल मानव-गंगाकेँ,समय बितल बितिते रहल॥भेल बात विचित्र ई जे,सात पुत्र शांतुनुकेँ भेल।युवती फेकल सभकेँ गंगधारमे,राजाने किछु पुछि सकल॥ई युवती के अछि जे,बुझि परैछ क्षण कोमल।क्षण क्रूर-क्रूरतम जे,अबोध बालक केर प्राणक हेतु विकल॥पूछल राजन् अपन शर्त्त तोड़ि,आठम बेर अपनाकेँ रोकि नहि सकल।देलक युवती परिचय सकल,हम गंग आ’ ई आठ वसु छल॥देलन्हि महर्षि वशिष्ठ शाप तनिका,मर्त्यलोकक जन्म लेबक।आठम पुत्रकेँ राखब हम किछु दिन,देवव्रत देब स्वरूप सेवक॥महर्षि वशिष्ठक नन्दिनीकेँ,देखि केलक प्त्नी वसु प्रभासक।
अपन मर्त्यलोकक सखी हेतु,नन्दिनीकेँ हरण तकर परु संग॥ऋषि ताकल गौ-देविकेँ,ज्ञान-चक्षुसँ।देलक शाप वसुगणकेँ भय-क्रोधित,कएल प्रार्थना वसुघ्राण शापित॥हमर शाप नहि घूरि सकत परञ्च,सात वसु भय जायत मुक्त तुरन्त।प्रभासकेँ रहय परत ततय,किछु दिन धरि मर्त्यलोकक शरण॥
होयत यशस्वी ई बहुत,घुरि आयल वसुगण गंग पास।हे देवि बनू माता हमरा सभक,दिय’ मुक्ति तखन अछि आस॥शांतुनु भय गेल विरक्त,
छूटि गेल गंगक सानिध्य।समय बीतल गेल एकदिन,तट, धारक समक्ष॥दिव्य बालककेँ देखल तत,करि रहल केलि ततय।रोकि रहल वाणक धारसँ,गंगधारकेँ जतय॥प्रस्तुति भेलि गंग तखन,सौंपि देल देवव्रतकेँ कहल।महर्षि वशिष्टसँ लय शिक्षा,वेद-वेदांगक निखिल॥शास्त्र-ज्ञान शुक्रचार्य सन,शस्त्रमे परशुराम खल।
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पाबि पुत्र तेजस्वी घुरि अयलाह शान्तनु,देवव्रतकेँ बनाय राजकुमार,दिन बितय लागल तनिक।कैक वर्ष बीतल एना,पुनि एक दिन आयल;
शान्तनु देखलन्हि जतय।यमुना तट तर अद्भुत सुवास,
आबि रहल तरुणी तनय॥
तरुणी छलि सत्यवती तनिक,सुवास छल वरदान मुनिक,परासर जिनकर नाम।
गंगा-वियोग-विराग भेल दूर, मोनमे आयल ब्याहक विचार, प्रेम-याचना केल रज्यवर। तरुणी छलि, पिता जनिक, रहथि मल्लाहक सरदार।
कहलन्हि, हे राजा जायब,पिता जदि अनुमति देताह,तखनहि हम पत्नी बनब।
केवटराज रहथि चतुर मुदा, लगेलन्हि एकटा शर्त्त जे, बनय हमर नातियेटा, हस्तिनापुरक राजा एतय।
शान्तनु ई वचन दितथि कोना,से घुरि अयलाह अपन नगर।चिन्ता घून बनि काटय लागल,शरीर-कान्ति सकल तनय॥
देवव्रत पूछल पितासँ, हे बताऊ की बनल, चिन्ताक कारण अहाँ कय, शरीरकेँ दुबरा रहल।हे पुत्र की कहू, अहँकेँ,एकटा चिन्ता हमर,की होयत जदि अहाँकेँ,होयत युद्धमे किछु, ककर आशहम करब बढ़ायत, वंश हस्तिनापुरक हमर।।
कुशाग्र देवव्रत पूछि सारथीसँ,बात सभटा बूझि गेलाह,गेलथि केवटराज लग आ ∙
राजपाट त्यागि अयलाह।केवटराज परञ्च राखल एकटा शंका,की होयत जौँ अहाँक,पुत्र जौँ छीनि लय,हमर नातिक राज्य जौँ॥
अप्रत्याशित प्रश्नक उत्तर,
अप्रत्याशित जौँ हुअय।बुझू जे इतिहास बनत,ई प्रतिज्ञा के करय।देवव्रत पितृ भक्तसँ,ई प्रतिज्ञा भेल तखन।
नहि करब हम विवाह आजन्म,गार्हस्थ्य आश्रम छोड़ि कय।
रहब आजन्म ब्रह्मचारी,छोड़ब वानप्रस्थ आश्रम,हस्तिनापुर सिंहासनक मात्र रक्षा,करब हम आजन्म।
संन्यास आश्रम सेहो छोड़ब,संतान बूझब हस्तिनापुर सिंहासनकेँ।क्यो नहि छूबि सकत तकरा,हमरा जिबैत-जीबैत जतय।
धन्य-धन्य दिगान्त बाजल,पुष्प वर्षा कएलन्हि देवतागण,भीष्म-भीष्म धन्य-धन्य,बाजि उठल लोक सभ।
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केवटराज केलन्हि विदा,सत्यवतीकेँ सानन्द कएल ई कार्य।कालांतरमे पुत्र दू,पाओल चित्रंगद आ’ विचित्रवीर्य।
भेल देहावसान शांतुनुक, चित्रंगद पओलाह राजा आसन, गति पाओल युद्ध् मध्य एक, विचित्रवीर्यकेँ भेटल शासन। तनिक दूटा रानी छलन्हि, अम्बिका ओ’ अम्बालिका। अम्बिकाक पुत्र धृतराष्ट्र रहथि, काल छिनलक आँखि जनिकर, पाण्डु रहथि अम्बालिका पुत्र, पौण्ड्र रोग ग्रसित तनिक छल।
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सत्यवती-पुत्र चित्रांगदक मृत्यु,गंधर्व-युद्धमे भेल जखन।विचित्रवीर्यकेँ हस्तिनापुर,राज्य छल भेटल तखन।छलाह छोट आयुक ओ’,से राज्य-काजक भार सभ।भीष्मकेँ भेटल सम्हारय,से उठओलन्हि तात सभटा।भेलथि विवाह-योग्य विचित्रवीर्य जखन,भीष्मकेँ होबय लगलन्हि चिंता।समाचार सुनि स्वयंबरक खबरि,कशीराजक कन्या सभक भेटल प्रसन्नता।विदा भेलाह कशी भीष्म,जतय पहुँचल छलाह सौभदेश राजा शल्व,काशीराजक ज्येष्ठ पुत्री,अम्बा छलीह अनुरक्त जनिक।अम्बा,अम्बिका,अम्बालिका,दृष्टि फेरल भीष्म दिशि।बढि गेलीह आगू तखन,भीष्म क्रोधित भय दहोदिश,ललकारिकेँ कहलन्हि तखन ओ’समस्त राजा सुनि लिअह ई,जौँ पराजित कय सकी तौँ,स्वयंबरक भगी बनू सौँ।सभकेँ हराकए भीष्म जखन,चललाह भीष्म कशीराजक कन्याँ समेत।शाल्व रथक पाछू पड़ल आ’,ललकारि कएँ कहलक विशेष।घोर युद्ध मचि गेल तकरा,बादक ई गप्प सुनु जन।धनुष-विद्या धनी भीष्म,कएलन्हि पराजित शाल्वकेँ तखन।काशीराजक कन्यासभ कएलन्हि,प्रार्थना भीष्मसँ जखन,छोड़ि देलन्हि प्राण शल्वक,पहुँचलाह भीष्म हस्तिनापुर तुरंत।विचित्रवीर्यक व्याहक तैयारी,जखन भ’ गेल पूर्ण छल।अम्बा कहलन्हि भीष्मसँ एकांतीमे,हे गंगेय अहँ धर्मज्ञ छी।हमरा मोनमे अछि एक गोट शंका,करू अपने दूर ई।मानि लेल सौभ देश राजाकेँ,पति हम अपना हृदय-बिच।धर्मात्मा, महात्मा छी अहाँ,उद्धार करू हमर सोचि ई।भीष्म-निर्णय भेल ई जे,जाथु अम्बा शल्व लग खन।कराओल विवाह विचित्रवीर्यक,अम्बा-अम्बालिकाक संग तखन।अम्बा गेलीह शल्व लग आ’सुनाओल सभ वृतांत सभ।मानि हृदयमे पति अहाँकेँ,कएल अनुरोध भीष्मसँ हम।भीष्म छथि पठओने अहाँ लग,करु हमरा स्वीकार अहाँ।शास्त्रोक्त विधिसँ कए विवाह,पत्नी बनाऊ हमरा अहाँ।
शाल्व छलाह वीर किंतु,कहल हे अम्बे सुनू।भीष्म हराओल लोक सभ विच,जीति लए गेल अहाँकेँ सुनू।एहि अपमानक बाद की ई,बात हमरा स्वीकार हो?ई उचित अछि जाऊ अहाँ,पुनि भीष्म दरबार ओ’।घूरि कय अम्बा गेलीह,भीष्म लग ई गप कहल।भीष्म कहल-बुझाओल विचित्रवीर्यकेँ,ओ’ ह्ठी छल नहि बुझल।कहल हे भाई ई सुनू जे,दोसराकेँ पति मानि चुकल।क्षत्रियोचित नहि होयत जौँ,हम विवाह करू तखन।अम्बा कहलन्हि भीष्मकेँ हे,गंग-पुत्र सुनू तखन।अहाँ हरि अनलहुँ जखन।विवाह करू हमरासँ तखन।ई परम कर्त्तव्य होयत,स्वयंबर जीतल छलहुँ अहीं,हमर वर्त्तमानक हेतु,अहीं जिम्मेवार छी।
भीष्म कहल, छी प्रतिज्ञ हम,कएलन्हि अनुरोध विचित्रवीर्यसँ,नहि बनल गप जखन पुनि,सुझव देल शाल्वक सुनि,शल्व नहि भेलाह तैयार किंतु।बीतल छह वर्ष हस्तिनापुर-सौभ,एनाई-जेनाईमे जखन,अम्बा भरि उठलीह प्रतिशोधसँ,भीष्मे छलाह हुनक दुर्दशाक कारण।कएलन्हि कतबा राजासँ ई आग्रह,भीष्मक विरुद्ध, परंतु नहि पाबि,कोनोटा उत्तर गेलीह शरण,युद्धदेव कार्तिकेयक।हे मोरक सवारी केनिहार,युद्धक देवता कार्तिकेय।नहि क्यो पृथ्वी पर आर,भेल भीष्म अजेय।कमल नयनी अम्बाक घोर तपस्या, केलन्हि कार्तिकेयकेँ प्रसन्न।देलन्हि नहि मौलायबला कमलक माला।कहलन्हि हे अम्बे!लियह ई शस्त्र,जकर गार पहिरायब सैह करत भीष्मकेँ नष्ट।भीष्मक भय परञ्च छल ततेक,नहि क्यो तैयार भेल पहिरय माला एक।सुनलन्हि छथि द्रुपद वीर पांचाल,सेहो तैयार नहि भेलाह पहिरय ई माल।निराश हताश लटकाय ई माला,द्रुपदक महलक द्वारि।घुरलीह अम्बा अंतमे हारि,गेलीह ब्राह्म्ण तपस्वीक शरण।सभ तपस्वी कए विचार कहलन्हि,जाऊ अहाँ परुशरामक आश्रम।क्षत्रिय-दमन छथि ओ’ देथिन्ह द्ण्ड भीष्मकेँ,जे कष्ट देलन्हि अहाँकेँ अकारण।परशुराम लग पहुँचि केलन्हि प्रार्थना,सुना कय अपन अभ्यर्थना।पुछलन्हि परशुराम, कहू की करू हम,हे काशीराज कन्या।शल्व अछि प्रिय हमर बात नहि काटत,विवाह शल्वसँ करक हेतु की छी तैयार अहाँ।अम्बा कहलन्हि,हे परशुरामजी,हम आब विवाह नहि करय चाहैत छी।अछि हमर आब ई इच्छा मात्र,करू भीष्मसँ युद्ध अहाँ।भीख माँगय छी हे तात,वध दुष्टक करू अहाँ।परशुराम कए स्वीकार ई प्रार्थना,देलन्हि भीष्मकेँ ललकारा,जितेन्द्रीय,ब्रह्मचारी छलाह दुनू,धनुर्धारी-योद्धा मध्य युद्धघोष बरु।
हारि-जीतक प्रश्न नहि छल जौँ,अनिर्णायक युद्ध बनल पुनि।
अम्बा हारि भीष्मक छल सौँकैलाशक दिशि प्रयाण कएल तौँ,अम्बा गेलीह शम्भूक शरणमे।भए प्रसन्न भोला देलन्हि वर हर-हर,होयत पुनर्जन्म अम्ब सुनू अहँक,भीष्मक मृत्यु अहींक हाथ होयत।अम्बाक संयमक सेहो छल सीमा,नहि रुकि सकलीह तखन ओ’,लाल आँखि अग्निक समान,कूदि पड़्लीहचितामे।मृत्यु पाबि जन्म लेल तखन ओ’,कन्या बनि द्रुपदक राजमहलमे।खेल-खेलमे माला पहिरल ओ’,दय कय जखन गरामे।कार्तिकेय देखल अम्बकेँ फेर,पहिरैत अपन ई माला।द्रुपद देखल होयत ई फेर ,वैर भीष्मक आयत झमेला।निकालि राजमहलसँ कन्याकेँ,विदा कएल जंगल दिशि।यादि छल सभटा कन्याकेँ,पुनर्जन्मक कथन सकल ई।कएल तपस्या पाओल पुरुष रूप,नाम धरल शिखण्डी।
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