भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Sunday, April 09, 2006
मैथिली भाषा SAHASRABADHANIhttp://www.videha.co.in/
शुरुमे त’ लागल जेना ऑफिसमे क्यो चिन्हत की नहि। मुदा जखन हम ऑफिस पहुँचलहुँ त’ लागल जेना हीरो जेकाँ स्वागत भेल हो। मुदा एहिमे ई बात संगी-साथी सभ नुका लेलक जे हमर छडी सँ चलनाई हुनका सभमे हाहाकार मचा रहल छन्हि। सभ मात्र हमर हिम्मतक प्रशंसा करैत रहैत छलाह। जखन हम छडी छोडि कय चलय लगलहुँ आ जीन्स शर्ट-पैंट पहिरि कय अयलहुँ, तखन एक गोटे कहलक जे आब अहाँ पुरनका रूपमे वापस आबि रहल छी। एहि बातकेँ हम घर पर आबि कय सोचय लगलहुँ।अपन चलबाक फोटोकेँ प्तनीक मदति सँ हैण्डीकैम द्वारा वीयोडीग्राफी करबयलहुँ।एकबेर तँ सन्न रहि गेलहुँ। चलबाक तरीका लँगराकय दौरबा सन लागल। बादमे घरक लोक कहलक जे ई त’ बहुत कम अछि, पहिने त’ आर बेसी छल। तखन हमरा बुझबामे आयल जे संगीसभ आ ओ’ सभ जे हमरासँ लगाव अनुभव करैत छलाह, तनिका कतेक खराब लगैत होयतन्हि। तकराबाद हमरा हुनकरसभक प्रोत्साहन आ’ हमर हिम्मतक प्रशंसा करैत रहबाक रहस्यक पता चलल । अपन प्रारम्भिक जीवनक एकाकीपनक बादमे नौकरी-चाकरी पकड़लाक बाद सार्वजनिक जीवनमे अलग-थलग पड़ि जयबाक संदेह , आशा , अपेक्षा किंवा अहसास-फीलिंगक बाद जे एहि तरहक अनुभव भेल से हमर व्यक्तित्वक भिन्न विकासकेँ आ’र दृढ़ता प्रदान केलक।
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सन~~ 1885 ई.। झिंगुर ठाकुरक घरमे एक बालकक जन्म भेल।एहि वर्षमे कांग्रेस पार्टीक स्थापना बादक समयमे एकटा महत्त्वपूर्ण घटनाक रूपमे वर्णित होमयवला छल। अंग्रेजी राज अपनाकेँ पूर्णरूपसँ स्थापित कए चुकल छल।राजा-रजवाड़ासभ अपनाकेँ अंग्रेजक मित्र बुझवामे गौरवक अनुभव करैत छलाह।शैक्षिक जगतमे कांग्रेस शीघ्रअहि उपद्रवी तत्वक रूपमे प्रचारित भय गेल। मिलाजुलाकेँ कांग्रेसी लोकनि अंग्रेजीराज आ’ भारतीय रजवाड़ा सभक सम्मिलित शासनकेँ स्थायित्व आ’ यथास्थिति निर्माणकर्त्ताक रूपमे स्थान भेटि चुकल छल। कांग्रेस अपन यथास्थितिवादी स्वरूपकेँ बदलबाक हेतु भविष्यमे एकटा आन्दोलनात्मक स्वरूप ग्रहण करयबला छल। संस्क़ृतक रटन्त विद्याक वर्चस्व छल। परंतु सरकारी पद बिना आङ्ल-फारसी सिखलासँ भेटब असंभव छल।सरकारी पदक तात्पर्य राजा-रजवाड़ाक वसूली कार्यसँ संबंधित आ’ ओतबहि धरि सीमित छल। मुदा किछु समयापरान्त अंग्रेजक किरानीबाबू लोकनि सेहो अस्तित्वमे अयलाह।
तखन बालककेँ संस्क़ृत शिक्षाक मोहसँ दूर राखल गेल। मैथिल परिवारमे फारसी आ’ अंग्रेजीक प्रवेश प्रायः नहियेक बराबर छल आ’ ताहि कारणसँ अधिकांश परिवार एक पीढ़ी पाछू चलि गेल छल। मुदा झिंगुर बाबू अपन पुत्रक हेतु मौलवी साहबकेँ राखि शिक्षाक व्यवस्था कएल। तदुपरांत दरिभङ्गामे एकटा बंगालीबाबू बालककेँ अंग्रेजीक शिक्षा देलखिन्ह। बालक कलित शनैः शनैः अपन चातुर्यसँ मंत्रमुग्ध करबाक कलामे पारंगत भ’ गेलाह। जाहि बालककेँ झिंगुरबाबू अन्यमनस्क पड़ल आ’ मात्र सपनामे हँसैत देखलखिन्ह, तकर बाद ठेहुनिया मारैत, फेर चलैत से आब शिक्षा-दीक्षा प्राप्त क’ रहल छथि। हुनका अखनो मोन पड़ि रहल छलन्हि जे कोना ठेहुनिया दैत काल, नेनाक हाथ आगू नहि बढैक आ’ ओ’ बेंग जेंकाँ पाछू सँ सोझे आगू फाँगि जाइत छलाह। पूरा बेंग जेकाँ-अनायासहि ओ’ मुस्कुरा उठलाह। पत्नी पूछि देलखिन्ह जे कोन बात पर मुस्कुरेलहुँ, तँ पहिने तँ ना-नुकुर केलन्हि फेर सभटा गप कहि देलखिन्ह। तखनतँ गप पर गप निकलय लागल।
“एक दिन कलितकेँ देखलहुँ जे ठेहुनियाँ मारने आगू जा’ रहल छथि। आँगनसँ बाहर भेला पर जतय अंकर-पाथर देखल ततय ठेहुन उठा कय, मात्र हाथ आ’ पैर पर आगू बढ़य लगलाह” , पत्नीकेँ मोन पड़लन्हि।
“एक दिन हम देखलहुँ जे ओ’ देबालकेँ पकड़ि कय खिड़की पर ठाढ़ हेबाक प्रयासमे छथि। हमरो की फूड़ल जे चलू आइ छोड़ि दैत छियन्हि। स्वयम प्रयास करताह। दू बेर प्रयासमे ऊपर जाइत-जाइत देवालकेँ पकड़ने-पकड़ने कोच पर खसि गेलाह। हाथ पहुँचबे नहि करन्हि। फेर तेसर बेर जेना कूदि गेलाह आ’ हाथ खिड़की पर पहुँचि गेलन्हि आ’ ठाढ़ भ’ गेलाह” , झिंगुर बाबूकेँ एकाएक यादि पड़लन्हि।
“एक दिन हम ओहिना एक-दू बाजि रहल छलहुँ। हम बजलहुँ एक तँ ई बजलाह, हूँ। फेर हम बजलहुँ दू तँ ई बजलाह, ऊ। तखन हमरा लागल जे ई तँ हमर नकल उतारि रहल छथि”।
“ एक दिन खेत परसँ एलहुँ आ’ नहा-सोना भोजन कय खखसि रहल छलहुँ। अहाहा’ केलहुँ तँ लागल जेना कलित सेहो अहाहा’ केलथि। घूरि कय देखलहुँ तँ ओ’ गेंदसँ बैसि कय खेला रहल छलाह। दोसर बेर खखसलहुँ तँ पुनः ई खखसलाह। हम कहलहुँ किछु नहि, ई हमर नकल कय रहल छथि। दलान पर सभ क्यो हँसय लागल। फेर तँ जे आबय, कलित ऊहुहूँ, तँ जवाबमे ईहो ऊहूहूँ दोसरे तरीकासँ कहथि। उम्र कतेक हेतन्हि, नौ-वा दस महिना”।
“ हम जे सुनेलहुँ ताहि समय कतेक वयस होयतन्हि, छ’ आ’ कि सात मास”। पत्नी सासु-ससुर वा बाहरी सदस्य नहि रहला पर सोझे-‘गप सुनलहुँ’ वा’ ई करू वा’ ओ’ करू बजैत छलीह। मुदा सासु- ससुरक सोझाँ तृतीया पुरुषमे-सुनैत छथिन्ह, फलना कहैत छलैक-। आ’ फेर झिंगुर बाबू की कम छलाह. ओहो ओहिना गीताक काजक लेल काजक अनुकरणमे तृतीया पुरुषमे जवाब देथि। मुदा एकांतमे फेर सभ ठीक। पुनः मुस्कुरा उठलाह झिंगुर बाबू, ई प्रण मोने-मोन लेलथि जे कलितकेँ एहि जंजालसँ मुक्त करेतथि, ओहो तँ बूझताह जे पिता कोनो पुरान-धुरान लोक छथि। पनी पुनः पुछलथिन्ह जे आब कोन बात पर मुस्की छूटल। मुदा एहि बेर झिंगुर कन्नी काटि गेलाह। मुस्की दैत दलान दिशि निकलि गेलाह, ओतय किछु गोटे अखड़ाहाक रख-रखाबक बात क’ रहल छलाह। भोरहाकातक अखड़ाहाक गपे किछु आर छल। भोरे-भोर सभ तुरियाक बच्चा सभ, जवान सभ पहुँचि जाइत छल। एकदम गद्दा सन अखड़ाहा, माटि कय कोड़ि आ’ चूरि कय बनायल। बालक कलितकेँ छोड़ि सभ बच्चा ओतय पहुँचैत छल। झिंगुर बाबू कचोट केलन्हि तँ आन लोक सभ कहलखिन्ह जे से की कहैत छी। अहाँ हुनका कोनो उद्देश्यक प्राप्ति हेतु अपनासँ दूर रखने छी, तँ एहिमे कचोट कथीक। एकौरसँ ठाकुर परिवार मात्र एक घर मेंहथ आयल आ’ आब ओहिसँ पाँचटा परिवार भ’ गेल अछि। डकही माँछक हिस्सामे एकटा टोलक बराबरी ठकुरपट्टीकेँ भेट गेल छैक। कलितक तुरियाक बच्चाकेँ ल’ कय आठटा परिवार अछि ठकुरपट्टीमे। अखनेसँ बच्चा सभकेँ मान्यता द’ देल गेल छैक। तखने एकौरसँ एकटा समदी एलाह आ’ भोजपत्रमे तिरहुतामे लिखल संदेश देलखिन्ह। झिंगुर बाबू अँगनासँ लोटा आ’ एक डोल पानि हुनका देलखिन्ह आ’ पत्र पढ़य लगलाह। प्रायः कोनो उपनयनक हकार छलन्हि। ‘परतापुरक सभागाछी देखि कय जायब’ , ई आदेशपूर्ण आग्रह झिंगुर बाबू समादीकेँ देलखिन्ह, एकटा पूर्वजसँ मूल-गोत्रक माध्यमसँ जुड़ल दियादक प्रति अनायासहि एकत्वक प्रेरणा भेलन्हि। फेर आँगन जाय पत्र पढ़ब प्रारंभ कएल।
॥श्रीः॥
स्वस्ति हरिवदराध्यश्रीमस्तु झिंगुर ठाकुर पितृचरण कमलेषु इतः श्री गुलाबस्य कोटिशः प्रणामाः संतु। शतम~ कुशलम। आगाँ समाचार जे हमर सुपुत्र श्री गड़ेस आ’ चन्द्रमोहनक उपनयन संस्कारक समाचार सुनबैत हर्षित छी। अहाँक प्रपितामह आ’ हमर प्रपितामह संगहि पढ़लथि। अपन गोत्रीयक समाचार लैत-दैत रहबाक निर्देश हमर पितामह देने गेल छलाह। हर्षक वा’ शोकक कोनो घटना हमरा गामसँ अहाँक गाम आ’ अहाँक गामसँ हमरा गाम नहि अयने अशोचक विचार नहि करबासँ भविष्यक अनिष्टक डर अछि। संप्रति अपने पाँचो ठाकुर गुरुजनक तुल्य पाँच पांडवक समान समारोहमे आबि कृतार्थ करी। अहींकेँ अपन ज्येष्ठ पुत्रक आचार्य बनेबाक विचार कएने छी। परतापुरक सभागछीक पंचकोशीमे अपने सभ गेल छी, तेँ बहुत रास लोक गप-शपक लालायित सेहो छथि। अगला महीनाक प्रथम सोमकेँ जौँ आबि जाइ तँ सभ कार्य निरन्तर चलैत रहत। बुधसँ प्रायः प्रारम्भिक कार्य सभ शुरु भ’ जायत। इति शुभम~।
बलान धारक कातमे परतापुरक चतरल-चतरल गाछ सभ आ’ तकर नीचाँ सभागछी। बलानक धार खूब गहींर आ’ पूर्ण शांत। ई तँ बादमे हिमालयसँ कोनो पैघ गाछ बलानमे खसल आ’ हायाघाट लग सोझ रहलाक बदला टेढ़ भ’ एकर धारकेँ रोकि देलक आ’ एकटा नव धार कमलाक उत्पत्ति भेल। बलान झंझारपुर दिशि आ’ कमला मेंहथ , गढ़िया आ’ नरुआर दिशि। बलान गहींर आ’ शांत, रेतक कतहु पता नहि; मुदा कमला फेनिल, विनाशकारी। बाढ़िक संग रेत कमला आनय लगलीह। ग्रीष्म ऋतुमे बलान पूर्वे रूप जेकाँ रहैत छथि, बिना नावक पार केनाइ कठिन, किंतु कमलामहारानीकेँ पैरे लोक पार करैत रहथि। सभटा सभागछीक चतरल गाछ बाढ़िक प्रकोपमे सुखा गेल। चारूदिश रेत आ’ सभागाछी उपटि गेल। चलि गेल सभटा वैभव सौराठ। मुदा झिंगुर बाबूक कालमे परतेपुरक ध्रुवसँ पंचकोशी नापल जाइत छल, से बादहुमे परम्परारूपमे रहल।
कलित दरिभङ्गासँ परसू आबि जयताह
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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