भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, January 30, 2010

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दहिनबरियाकेँ हऽरक लाबनि उअने ठिठकारलक सरुप ।
टिक्कलड़ पूबसँ सघन कारी मेघक एकटा एम्ह रे भासल अबैत रहय।
अरियानङ्घान आइ फेर बरिसत।
अउल केहन छैक कयने ।
गोड़ काल्हि धरि मोसकिल सँ जोगार पानि रहैक धारमे।
धत्ता मलमलिआ पर बाहु उधिआइत।
बीआ-बालि सभक जैरत रहैक ।
सुपानो भरि राति झहरल मेघ।
बितान बालुक पानि सोखबामे राकस।
नहुड़ैत झड़-बैर, बबूर आ खयरक जंगल सँ भरल धार दिश ।
सरग-असरा सेहो खेत।
बौके मेघक कृपा भेल त’ बड़ा-बेस, ने त’ धान रहि जायत।
तबतैक, जतेक रौद जतेक घाममे नहा जायत, जतेक मोन माहुर हेतइ, ततेक आर मस्त् ‍ भय हऽर जोतत ।
माहुरमे रौदक मगन भय टिटकारलक छोट-छोट बड़ादक जोड़ी केँ ।
खटहट पयरमे बलुआह थाल, पटुआक सड़ल डाँट –पात आ उखड़ल खट्टी यत-तत्र अभड़इ।
हेङ्गाक हऽरक बड़द मन्द्-मधुर चालिबला।
धपगर बड़द तेज, ।
बबुरानीमे धारक ओइपार झिसि आइत रहय।
खयर-बनीमे हाँजक-हाँज गिद्ध उतरि रहल छल।
हहा-हहा हाँजक-हाँज गिद्ध उतरि रहल छल।
हलखोरीक आइए भोरमे बड़द मरि गेलैक सोनित छेरि क’ ।
पानपिआइक बड़द खोलि क’ प्राय- अहीठाम ख्यलरबोनीमे छोडि़ देलकैए ।
ता चङेरी माथ पर संतुलित धयने धयने अबैत अपन भाउज पर नजरि पड़लै।
मुन्हीउ बड़दक गरा सँ छिटका देलकै।
निस्प न्दक क्षणीभरि निस्प्न्दद ठाढ़ रहि दुनू खयरबत्रा दिस टघरल ।
नहुँए। क्षणीभरि निस्प्न्दद ठाढ़ रहि दुनू खयरबत्रा दिस टघरल ।
उछेहने कसल-कसल जाँध धरि धोती रहय।
बेनी सोझाँ मे पनपिआइक चङेरी राखि देलकै।
सेपसँ मुँह सिक्तन भ’ गेलै।
टो्ङैत खयर-बनी मे मरल घास केँ
छेहर संठिक टाटकेँ छेदि, अन्हाेर घरक अन्हकरियाकेँ छेदि बीघाक-बीघा जजातिक ऊपरसँ लहराइत ई निसास बरोबरि सरूपक करेजा बेधि दैक ।
थल-कमल मुँहक गोरका चक्कास सन बिहुँसै।
काकुव्यं्ग्या ओइमे सदति आ बाल-सुलभ चंचलता भरल।
अहीठाँ पुछलकै रहै लहास पड़ल ने ?
छिअइ नइ सोचइ कहाँ ।
अइठाँ नइ सोचइ कहाँ ।
बथान-सोधन एकरे जिद्दक खातिर सभटा भेलै ने ।
कुल-कुड़हडि़ भेल ई घरमे ।
होइतउ हमही बरू मरि गेल रहितहुँ जे तोरा एतेक दुख नै।
उएह गेनबासँ मगर ।
साँच-उतार गेनबासँ मगर ।
पम्पा मोछक करिया गेल रहै1
तेतरि-केराबक दूनू ननदि-भाउजमे लागि रहैक।
काकु-व्यंभग्यह
विषदग्धद
वाक्-वाणक
गेल बिजलीक चर्चासँ आओर भ’ गेलैक।
गोल मीसर सङ्ग अछि रङ्ग-रभस कर’ ।
चमकि-दमहिक भोरे कऽ गेल अछि अपना इयार लग।
दिनेक गुम्ह ड़ल ओकरा दू खण्डयली क’ काटि देबैक हम।
विषदग्ध् भभा कऽ हँसलि बनी। हास।
तौं गुम्हऽड़ल-तऽ भउजी आरो .......।
नामपातरि छुरिया नाक, ध्नुउखा भँउह आ अँउठिया केश ।
पुतरी आमक फाँक सन चीरल आँखि, सदति चंचल।
खुट्टी पटुअक लागलि।
ओलय पटुअक लागलि।
भ्रूकुंचित दृष्टिएँ तकलक ननदि दिस बेनी।
मह-मह कलपू-मिसरक ओतय माथमे गमकौआ तेल पचओलक अछि।
बेलज्लील करइए फूलक गाछ जकाँ ।
दरेग हमरा पर एतेक कहिया सँ भेल’ ।
कोर-काँख जकरा नेने रहय।
क्रम-पात, रहय। हमर दोख नै।
सुइ-मुँहीक एकरे सबटा किरदानी छैक, ।
अदगोइ-बिदगोइ भरि-दिन हमरे करेत रहैए।
पिजा रूपाकेँ एखन खूब कऽ रखने अछि।
कहलही फेर भउजी के किछु त’बूझि राख।
नहुँए आमक फाँक सन आँखि गोल भेल, मुँह पर व्यंफग्यगक भाव पुछलैक-जबाव कर’ बला तों के रे ?
पातिर ठोर पर व्यंलग्यवक रेख पसरि गेलै।
हसेरीमे बापो सँ बाढि़ जेठ भाय गेनाबा परुकाँ मारल गेलै।
आस हऽर कन्ह पर टा‍ङि पयना सँ दैत घर दिस चलल।
डबकल मेघ आबि रहल छलैक।
मऽरी खयरअनीमे खाय गि’ सभ लड़ाइ करैत छल।
छड़नि परमान धारक कछेड़ पर बसल रहय ई टोल। ई धार कोसीक थिक।
किछेड़-किछेड़मे धार बेस उत्थ-र अछि।
धत्ता इएह थिक मलमलिया जाइ पर बालुक चानी पीटल अछि, से मल-मल जकाँ रौदमे चक-चक करैछ।
झोप एहि विराट प्रसारमे यत्र-तत्र खयर बबुरक सब छिडि़आयल ।
बंध्याि कोशीक विनाशकारी बालु पोखरि इनारकेँ
मथि पोखरि इनारकेँ देने रहैक।
झँगड़ाही बबुरबन्नाासँ सटले उत्तर छल जितपुर आ तकर पश्चिम छल ।
झाङड़ झॅंगड़ाही माने आदिवासी लोकनिक टोल ङ
कंतोड़क कनेक्शन फराक हॅंटि क’ तीन घर यादव-बुन्धुन ।
कंतोड़क जेना एक तीनटा फूट-फूट खाना होथि1
विभाक आस्था ओ अनुकूले घरक ऊँचाई कि ।
सरंजाम आस्थाम ओ अनुकूले घरक ऊँचाई कि ।
अइल-फइल बास-भूमि बेस ।
निस्समन सखुआक मोट-मोट खाम्हघ, बाँसमँ सीटल मोट खढ़सँ छारल।
जाफरी मोट-मोट खाम्हा, बाँसमँ सीटल मोट-मोट खाम्ह , बाँसमूं सीटल
चौखरा मोट खढ़सँ छारल।
गोही दलान, बड़दक रहबाक पैघ-पैघ घर।
बाओन मुसहर लोकनिक घर एकदम ।
फट्टक बाँसक लागल।
महनतिया खेती बड्ड ।
सोर खढ़क पताल ठेकल।
दोबरी एहि साल उपटा दियउ फेर दोसर साल जागि जायत एहि भूमिहीन परिवार सबकेँ अपन बासडीहो नहि रहनि।
चत्री परती-पराँटक छाती चीरि चीरि मकइ, कुरथी पाट आ कि पापड़ मूड़ी उठओलक ?
धऽड़ पातर उपर एकाएक छत्ता जकाँ ! गाछ तर बाँसक खाम्हीए आ पातर-पातर बातीक मचान बान्हहल।
माशूल बिसेखी अइ इलाकाक चोर रहय।
कठमस्त छोटे काठीक जवान।
चनैल, छोटे काठीक जवान।
मगजी मुदा चारूकात घनगर केशक ।
कुइर श्या मवर्ण । गोल-गोल कुइर आँखि, बिलाइ जकाँ स्थिर, अचंचल आ क्रूर ।
चुना की रे ? जेना भक् टुटलै बिसेखीक ।
एकाक्ष पातर-कारी, नाट, छत्तर बिसेखीक क़पासँ सिद्धहस्तर चोर भय सकल छल ।
झंडी समिआनमे चारू कात बान्हभल।
पताखा समिआनमे चारू कात बान्हभल।
दफेदार लाल-लाल मुरेठा बन्ह ने सब, नील आ हाथमे लाठी नेने चौकीदान सब चारूकात ठाढ़ छल।
भोँमा फेर मालिक पर बजलै ।
उचिती मिनती केलकै।
बेबसाय इमानादारीसँ खेती क’ जीवा लेल।
धुत्थूाड़ डाँड़ कोना बूढ़ जकाँ झुका लेलक अछि, आ आँखि जे जेना नै सुझैत होइक।
उरदी खाकीक ।
चुह-चुह माथ पर घाम गेलैक।
भ्रू-कुचित कातमे ठाढ़ दरोगाजी पर नजरि पड़लै जे दृष्टिए एकरा तकैत रहथिन।
कठ-हँसी नीचामे बैसल सरुपा पर नजरि गेलै जे हँसि एकरा दिस ताकि रहल छलै।
लटबा सुतरीक जोरसँ नचा बाजल-बाबू हओ, तोरा बिसरि गेलह, हमरा बड्ड लाज भेल।
मानितहक आ तो बाबू ?
पिंडा मुइलाक बाद बेटा श्राद्ध करैत छैक। पाड़ै छै जे बापकेँ सद़गति होइ।
अइबर खेतमे दहक त’ भइया नै केलकै।
चुन्नीद खेतमे दहक त’ भइया नै केलकै।
बुनि खेतमे दहक त’ भइया नै केलकै।
चन्नी -पाट छत्तर बाजल-हँ, त’ कमजोरो हेतैक।
ठूआ-ठेकान गम्भी र भए बिसेखी बाजल-अरे एखन कोन छैक ओइ जमीनक ।
‘सीकमी-बटाइदार’ ओकरा डेढ़ बीघा दर्ज भेल रहै र्स्वेलमे ।
फिफरी ठोर पर पड़ल।
डेडढ़ी पर टोलक स्त्री गण सब जमा भेल जाइत रहय।
भउरी पारिवारक सहज स्व‍च्छब प्रवाह, देमय लागल हो।
रेलवीक साँय कमौआ । सरकारी नोकरी।
मुदैआ मुदा तइओ ई कलपुआ कोढि़या खातिर अपन सासुर तेयागि बाप-मायक नाक कटबैए। सभहक छाती जुरबैए ।
अओतइ एनाक’ पड़ा ! झोंट काटि एकरा चारि लात मारै आ बइला दै।
कटमटा कइए साँझ अन्नैक होइ छै।
धोनी, एकरा अपन हऽर, हरबाही, पटुआक कटनी, बजार-हाट कयनाइ सँ मतलब।
ढेकूलबला कुम्हअरा पाटक छोट कूप रहैक।
निट्ठाह कल्पठना‍थमिश्र उर्फ कलपू मीसर तीस बिगहाबला गृहस्थ रहथि।
कुटिआक-पिसिआमे अपना माइक्रोसॉफ्ट संङ्ग बिजली अधिककाल गोबर-कड़सी एहि आङ्गनमे रहैत छलि।
लागलि-भिड़लि अपना माइक्रोसॉफ्ट संङ्ग बिजली अधिककाल गोबर-कड़सी एहि आङ्गनमे रहैत छलि।
जायति चारि दिनुक बाद फेर अपन सासुर ।
तररबिठुआ जखन-तखन बेटीकेँ काटय।
हुमड़ल घरबाली पर ।
बरिसल घरबाली पर ।
ताइ मुदा सँ? बिजली चुप भ’ जाय।
अऽट नजरिक भ’ कलपू ओतय प्रस्तु’त।
देया रुपया समाद दैक।
भेटघाट रुपया समाद दैक।
तइओ बन्दी रहैक टाका-पैसाक जखन जे खगता होइक, मेला घुमबा खातिर कि किछु किनबा खातिर, मुक्तत हस्तेन कलपू सरूपा मार्फत पठा दैक।
कस्तफन कलपू पर भेल।
आभ्रकाननमे एही दुहुक प्रणय अवाध गतिएँ चलय।
मानिजन गप्पज जखन अधिक पसरल, बजा क’ कहलकै-बिसेखी, समर्थ बेटी घरमे राखि तोरा जकाँ कानमे तूर-तेल द’ नै केओ सुतैए ।
सुगरकेसा छोट-छोट एकदम गढ़।
हड़ाठी-फराठी एकदम जकाँ।
पथरकोइलाक रेलवी क्वा टर पिजड़ा जकाँ लगै। धुँआँ सँ होइत केओ भकसी झोंकने जाइत होइक।
जमपुरी सदति रेलक आवाज लगै जेना मे केओ रखने होइक।
चक्काबला मोनमे बसल रहै गोरका कलपू ।
बेलस जेहने बगय छैक सुग्ग र जकाँ तेहने सोभावो छैक ।
पिठियाठोक मुदा हीरालाल आयल ।
सनकूट बात-बात पर क’ मारै।
हीआ तोरा लग अपन रहल छी।
जारिए तोरा लग अपन रहल छी।
भोकासी चारूकातसँ छी: छी: धूआँधार वर्षांगर हीरालालकेँ भेलै जे पाडि़ कान’ लागय।
अवधार सभटा छैक।
दिदगरि एहन ।
रभस घृणा सँ जरैत कण्ठे बाजलि- जा बाप-मायक नाक कटा क’ कर ‘ग’ ।
रहँय नहुँए पुछलकै बिजली-ओम्ह’रो गेल ? ओम्हएरसँ तात्पिय्र कलपू मिसरक कलमबाग दिस।
सीना-पेटमे भाउजक ब्लाेउज ढील भेलै ।
खाम्हीप फेर ओसाराक लगा बैसि गेलि।
ढल-ढल पाँखुर पर ढ़ील ।। करैत ।
नूआआङी खाली पहिरनाक ल’ क’ चललिअइ।
निछोह मकइ जकाँ ।
सङचल हमरा ।
दोदरा तोहर मारिक कल्प।ना करैत काल लागय अपने देहमे फूटल जाइत हो।
भभाक फेर हँसलि।
छहु एतर’ कथीक डऽर होइत छहु ? ककर डऽर होइत छहु ? डर ? डर दिस सोचबाक पलखति कहाँ रहैए ? तोरे सोचैत-सोचैत दिन-राति बीतल जाइए।
बाडीस काल्हि फारबिसगंजसँ बिजली खतरि नुआ, साया, आङी आ अनने रहथि।
लका नाक जोर सँ सुँघलक ।
ननगिलाट एकरा फेरि क’ एकटा ल’ लिह’ ।
बलेल-ढहलेल एकरा सब ठकि लैत छैक। जानि। ई त’ बनिआक जबरदस्तीत भेलै ने ।
कुट-कुट पैसा एकदम कटैत रहै छ’ ।
कोरा छाहरिसँ माय-बापक हीन, नीक-बेजाय खातरि डाँटयबला नै केओ रहनि।
असगनी दलानक सोझाँ बाँसक बुहत बनल रहैक।
चन्नी पाट ओइ पर सुखाइत छल।
घोकड़ी दूनू हाथ लगा लेलक।
रह’ नै-नै
दैह नै-नै ।
दोहरि आ चौपेतल मोडि़ क’ टार’ लागलि।
छिओ, कहै लेने जो।
कुश्तेम-पटकम बाजलि-तोरा सङ्ग मे डाँड़ त’ नहिए हैत हमरा ।
गोँगिआ दबल स्वेरेँ क’ गेनबा कहलकै।
रस्सी्-पगहा कोनो माल-जाल त’ छै ने जे हीरालालक हाथमे धरा देतै।
नड़ा देह दै छै ।
तखनई टारने ने टराइ छे1 त’ ब मनुक्खकक गप्पह।
बोध टारने ने टराइ छे1 त’ ब मनुक्खकक गप्पह।
गर टारने ने टराइ छे1 त’ ब मनुक्खकक गप्पह।
बमकै ई सार एना किएक छैक ?
सोझडँडि़या ई तर्क सरूपक मगजमे नै बैसलैक।
फदर-फदर बेकूफ नहितन। तखन सँ बजने जाइए।
महिसमोड़ मोचण्डड। नहितन।
पेटमेनमा खाइयो ने दै छै एकरा भरि पेट ई सार ।
कड़सीक फेर जमाय लग जा क’ बाजल-की करिओ ? सब बुझा क’ हारि गेलै। ओ एकदम जिद्द ठानि देने छैक।
कोड़ो-बाती आइ दू दिन सँ एत’ बैसल-बसैल गनि रहल अछि, एक झलक तक बिजलीक ने देखलक ।
विरूखे मोन माहुर रहैक।
फुत्काहर कयलक-नै, हम लैए जेबै।
कल पहिरनामे नूआ-आङी रहैक।
पूबला पहिरनामे नूआ-आङी रहैक।
पुनगी पीठ पर कारी चाकर जुट्टी लटकल रहै ।
नड़ा बिजली देह देलक।
अथ-उथमे गेना पड़ल किछु ने सोचि सकल।
फउदारी हीरालालाल अपनाकेँ सुरक्षित बूझि गरजल-हम क’ देबै।
छन्नाा-कौड़ी एक बापक बेटा नै जँ हम नाकमे नै बान्हि देलियै 1
बेगति ककरो के राखि नेनाइ आसान नै छै बाबू।
रेलबीक सेहो सरकारी छै। आदमी।
उजुरदारी आइ उजुरदारी देतै, तुरत उनटा बान्हद-बान्हि क’ ल’ जेतै बिसेखिआके ओइ छँउडि़ओके।
मचकी सुबधी बाजलि नहुँऍं- गे काकी, सुनलिअइए जे कलमबागमे एकटा बन्ह लकैए आ दीने-देखारे दूनू ओइ पर झुलैत रहैक।
सत्तम तोहर किरिया, बात।
निरसि ओकरा साँय देने रहै।
सोइरिएमे ई जनितउँ ने त’ तोरा नोट चटाक’ मारि दितिऔक।
धोपलक एकरा अछैत ओ बजनिहारि के। चुप रह’ ।
निड्डर केहन छैक एकर बहिन।
डेरुक महा छैक ई छँओड़ा ।
चाँछक कोशीक बाढि़सँ मारल बाँझ धतीकेँ प्रयासमे कहिआ ने अन्ना आ दवाइक मरि गेल रहितै ई सब।
बेत्रेक कोशीक बाढि़सँ मारल बाँझ धतीकेँ प्रयासमे कहिआ ने अन्ना आ दवाइक मरि गेल रहितै ई सब।
चे:चे: अप्रतिभ भेल गेना। ।
दोहरि ओए़नामे एकटा मोट रहनि।
खखास बिसेखी उठल। गरा साफ कयलक ।
उचितवक्ताल हँ-हँ बड़ा छै।
बेगति ककरा घर मे ककर नै दुख-सुख कटै छै।
सुगरा-चौरान बान्हि क’ ओकरा ल’ जयतै । चौरि क’ ल’ जेतै।
कैफियत बिसेखीक नामे साबा तीन बिगा रहै सर्वेमे खता खोलि देने। दस उसमिल घरोक फूट क’ खोलि देने रहै खाता-बिसेखी पासवान पेसर जंगी पासवान, रकबा दस डिसमिल, खानामे दर्ज रहैक।
मकान-मय बिसेखीक नामे साबा तीन बिगा रहै सर्वेमे खता खोलि देने। दस उसमिल घरोक फूट क’ खोलि देने रहै खाता-बिसेखी पासवान पेसर जंगी पासवान, रकबा दस डिसमिल, खानामे दर्ज रहैक।
सहन बिसेखीक नामे साबा तीन बिगा रहै सर्वेमे खता खोलि देने। दस उसमिल घरोक फूट क’ खोलि देने रहै खाता-बिसेखी पासवान पेसर जंगी पासवान, रकबा दस डिसमिल, खानामे दर्ज रहैक।
सिकमी छतरा मुदा भेल रहय।
बटेदार छतरा मुदा भेल रहय।
बदर आरिये आरि भेल घुरै। चेक करैत।
पेनाठ हाकिम एकरा हाथक पेना छीनि दू मारलकै-साला, अब भी झूठ बोलता है।
बकासत ई सभटा भूमि जंगबहादुर बाबूक बकास्त रहनि।
चन्नी दस गोटाक खेतमे रहैक।
फड़ल एखन नै रहै।
वासलातक फिंरगी पर चारि सालक नालिश कयने रहै जे नै बाँटि दैत अछि।
जजाति फिंरगी पर चारि सालक नालिश कयने रहै जे नै बाँटि दैत अछि।
बाजीदाबा आ सभ लीखि देलकै जे जमीन मालिकक छैक, दखल-कब्जाै ओकरे छैक।
बासलातक आ फेर तीन बरखक बाद नालिस देलकै बेचारा पर।
अदाजन एक कट्ठा आर हेतौ ? पुछलकै बिजली।
कलबल ओढ़ने रऽह ।
उछहने आँचर डाँड़मे कसि नेन रहै, नूआ जाँघ धरि ।
गोलिआ-मोलिआ सरूप बोझ बन्होने जाय।
गोडि़ एखन ओहिना घिसिआ-घिसिआ धारक कङनी पर सँ खसा देबै नीचा झाँखुड़ तर, दू दिन बाद देबै।
धत्ता मासो दिन सुखायल पर रहतै तैओ खराब नै हैतै ।
हँपीस बिजली गेल रहै1
नैरे बिजली हँसलि- पछताबा त’ हमरा कोनो चीजमे नै होइए।
गोड़ तीसेक सुखैल हँसी हँसल छतरा । बाजल-हँ। जऽन छैक ।
टंटा महा उद्धत रहे सरूपा, कोन ठेकान निरर्थक मारि लैक।
बेसाहि महा उद्धत रहे सरूपा, कोन ठेकान निरर्थक मारि लैक।
कट-मटी घरमे होमय लगलैक ।
जउड़ कदम तर बैसल स’ नक बाँट रहल छल।
भीड़ी गेनालाल ओसारा पर बैसल स ‘नक ओरिया-ओरिया ऊपर मचान पर ध’ रहल छल।
बगहा हँ, मकइ बूनि दही आ धान।
बिदाह मकइ कटला उत्तर धान कर’ जोगर भ’ जयतौक ।
ओहासी पानि एतै एम्हररो ऐ बेर ।
तेगुनिअबैत डोरी केँ बाजल बिसेखी ।
तिनपखियाक बीया थोड़ेक बदलि अनिहेँ ।
भजारीमे छत्तर काकाक बड़दक ई नै सकै छैक।
जब्बरर छैको एकरा सँ ।
टोइत बापक मोन फेर बाजल-फिरंगी अपन बड़द बेचै छैक।
गोला अपना बड़दक खूब जोड़ी लगतै ।
निड़ाडि़ आँखि तकलक बिसेखी बेटा दिस।
झीकल-झीकल एहि हँसमुखीक चक-चक उल्लअसित आँखि, हँसैत मोअ ठोर, ओण्रा्यल केश-पास,बाहु-युगल, एकर एकमा्रत प्रसन्नारता रहैक।
खोधि आ-खोधिया ई भारी बकलेल अछि। पूछत।
छरक्का के एकटा पैघ संठीक हाथमे नेन रहय।
चाहा-चिड़ै आँखि चंचल ओ अस्थिर । घेँट नमरा-नमरा चारूकात तकैत ।
झ’ड़ पुरुष नै पुरुखक कोना लाल-लाल निर्दय आँखिऍं एकरा तकै छैक, मने एकरा चटैत होइक।
टाकु मोनमे होइक ओकर धह-धह करेत दूनू आँखिमे भोँ‍कि दैक जा क’ ।
भसत्ररि तोँ त’ भसत्ररि छेँ, ।
निठुरक हमरे जकाँ पाला पडि़तेँ त’ बुझितही।
मगनक-मन हमरा होइए तोँ ओकरी लग ओहिना रहितेँ ।
सोडर ओकर कारी पेंट-हाफ मे बरका क’ खीचि दितही।
हास क्षुब्धी ।
कलप देहक बुट्टी-बुट्टी फड़कैत। पितड़क बट्टम लागल खाकी उर्दी सन कड़-कड़ करैत।
टाटक सोचथि, इहो एकटा थिक।
भ्रमरी ई तँ एकटास्व्च्छ न्द थिक जे कोनो बकन्द् भ’ रसपान क- सकैछ।
पदद्यमकोषमे कोनो बन्दम भ6 रसपान क’ सकैछ।
आहटि एक क्षण ठाढ़ रहि लेलनि।
चल-चलन्तीे काल्हि चलिए जयताह। बेरिया ई अवसर छोड़बाक नै।
उसासि ईंट बाजलि-सा कोढि़यो की मारब एहन ईंट जे भूरकूस भ’ जयत’ ।
चनिये ईंट बाजलि-सा कोढि़यो की मारब एहन ईंट जे भूरकूस भ’ जयत’ ।
गैँच देह नेने रहथि।
मर-मूठि बक-बक क’ जेना गेल होनि।
झिक्केमझोरा दुहु मे होइत।
रोम बड़द बला एकटा छौँकी मात्र।
सकारि खूब नेने रहैक बिसेखी ।
सङेजाय हिनके टप्पहर पर बिजली, सरूप कि गेना जाय फारबिसगंज आ तकरा बाद हिनके पुरैनिञा मे।
गवाही-इजहार हिनके टप्पेर पर बिजली, सरूप कि गेना जाय फारबिसगंज आ तकरा बाद हिनके पुरैनिञा मेा
माशूल मुदा बिसेखी बीo सीo रहय। चोर।
‘जनम-हौस’ बिसेखी केँ भेलैक।
संग्रहणी मुदा बेसी दिन जहल नै काटि सकल बिसेखी। सँ जेलेमे मुइल छबे मासमे।
परोक्ष बिसेखीक भेलाक बाद गेना घरक मालिक भेल।
हेलान तखन बिदाहि क’ दिअही।
कसौँक ई त’ सभटा पानि जे देखैत छही से पानि छैक।
मनिजन तोरा नै बूझल छह काका। मालिकमे मील गेलैए।
सत्तम सरूप स्वबर हल्लुलक कय नहुँए बाजल-बात।
बिबनस बाप-बेटा मे, भाइ-भाइमे, माय-बेटीमे ।
अबलम कुंठित स्वझरेँ भूखन बाजल- एहि सँ गरीब के दस धूरक भेलै।
तोँ फेर कनेक काल चुप्पे रहि बजलाह-आ हे, मानि ले,।
भेलेँ फेर कनेक काल चुप्पे रहि बजलाह-आ हे, मानि ले,।
खिदमती तोरा कुल जमीन छोडि़ देबौक। जागीर बूझि क’ ।
धनहर खेत एकर नीक रहैक। अनका सभक जकाँ भीठ नै।
पाराँठ परती नै।
हुड्ड मुदा सोचलक, आन सब मानिओ जेते, मुदा सरुपा पर संदेह होइक। आ ।
उद्धत मुदा सोचलक, आन सब मानिओ जेते, मुदा सरुपा पर संदेह होइक। आ ।
ओजह एकठाम करबाक जे काल्हि साँझखन मालिक बजाक’ सुलहक गप्पल चलेलकै।
फऽर-फौदारी बेजाय कोन। ई झँ‍झटसँ उग्रास हेतैक।
मऽर मोकदमाक बेजाय कोन। ई झँ‍झटसँ उग्रास हेतैक।
खोफिया कोन ठीक अइमे, के मालिकक अछि ।
मोटे चारि जना बाँकी छै।
बाहरे बाह बड़ सुलभ लगलै ई अधिया पर सुपुर्दीक विचार।
खुलस्ता मगर एनाए भेल जे सब चुप बैसल छैक से किएक। ने किएक बजैए ।
छति आधा पर सभटा झंझअ खतभ भ’ जाय त’ कोन ।
मरौसी अरे, कोनो कि अछि हमरालोकनिक! चीज त’बबू ओकरे छैक।
लगन्ते तखन आग झोपड़ा जे से लाभ।
निकसे तखन आग झोपड़ा जे से लाभ।
हओ कि ने बोनदास ?
फा-दूआमे मालिकेक भेलै। जे जतबा लै जाइक ।
दाफानि मालिकेक भेलै। जे जतबा लै जाइक ।
केहुनिआठि नहुँए कहलकै-बाज ने।
बिसुनपद इसपी, कलक्टार, सबकेँ बेधोख दूटा सुनाब’ बला।
बिटगर बाकुट भरिक जबान मुदा की ।
भोटा-भोटी दू बेर एमेलेक मे हारि गेलै।
सेल्ला ओहिना गरजैत रहै छै बाघ जकाँ।
सुपुर्दी पहिल गप्पै जे लोक करै।
खूबज बाह रे जवान। बाह। खूबज।
दौक अलबत्त।
पेसानसँ अपन धरती-माताक पूजा करैत ? देखहक, सरकारी कानून त’ जरूर सोचि विचारिक’ बनै छैक ने।
हौक जे हेबाक छैक ।
काँकडि़ की बुझलकैए मालिक, खीरा ।
ऊखे सभ-साल माहे रस्ता ।
पएना आ ने कहिओ ई लोकनि आइ धरि हरबाही पएना छोडि़ लाठी-भाला धारण कयने रहय।
भ्रूकु‍चित भूखन आँखिएँ एहि परिवर्त्तनकेँ देखलक।
हुले-ले भीड़ बनि कयनाइ बड़ सहज; मुदा भीड़क लेल कोनो योजनाक रूपरेखा प्रस्तुेत कनाइ बड़ कठिन।
पेरि जकरा सर्वेमे जमीन भेलैए आ जकरा मालिक रहल छैक।
खसि सभक जुटला पर जखन छत्तर आ सरूप अपन संवाद सुनओलक त’ सभक मोन पड़लै।
बेर-परसमे ई लो‍कनि कहिओ ओकर ठाढ़ भेलखिन अछि ? कहिऔ ने।
निगरति छै सरकारी इनारोसँ पानि नै भरय दैजाइ छैक ओकरा सभकेँ ।
रिजन छै सरकारी इनारोसँ पानि नै भरय दैजाइ छैक ओकरा सभकेँ ।
मुदित-मुख यादव-बन्धु रहलाह।
पड़गूग’ हम किएक अइमे निरर्थक ।
निट्ठाह खूब परिश्रमी। गृहस्थ ।
कथीले हमरा खातिर आन झंझटि बेसाहत।
समधानि भोला सिंघ भाला चलओलक।
उछटि भाला गेल रहैक।
होह दिन जाइत देरी नै छैक।
भुँइआ सोहार मुदा घौर बेस नमहर। ।
तेसराँ बूट गनबा किनने रहय।
फुफरी बरसातक करणेँ लागि गेल रहैक।
वंशीवट ओकर हाथक रोपल केरो आब एकरे खातिर फुटतैक।
बौसबाक साहस मुदा हठातद्य नै होइक।
कहुँ ओकरा प्रतिएँ नीक गप्प अधलाह ने लगै।
दुत् बाजल ! अपने भूख लगतै त’ खा लेत।
बँउसि बाउ जिबैत रहितैक त’ तबिना बेनीकेँ क’ खुअओने ने रहिकतैक।
अत्र-जोग ता अपने नै करितै।
भमराह मुँह रहैक, आँखि फूलल।
जायबेँ फेर तोँ बाहर ।
बेत्रे जखन हम पहिज बेर ई सोचलहुँ जे कलपू नै जीवि सकब, त’ रामि छहरदबालजी फानिक’ भागल रही।
मुर्दघट्टी दू-दूटा टपि गेलहुँ।
फएसला सोचिले; क’ क’ हमरा कह।
भग। हँट, ।
खुहरी एके जारनिसँ छूटल दुइठा थिक।
धोखारैत बबुर, खयर आ झड़-बएरक झूकल डरिपातकेँ बाढि़क भटरङ्ग पानि धारमे उमड़ल छल।
करा बीचमे रेत, कात-कात मारैत।
भौरी बीचमे रेत, कात-कात मारैत।
भड़कछ बिजली भरि जाँघ पानिमे ठाढि़ रहय।
भीडि़ बिजली भरि जाँघ पानिमे ठाढि़ रहय।
चेकानसँ माटिक दाबल बोझ।
दिग्धीद बिजली बाजलि-रे, एकटा अपन खूनि ले।
अनगुतिये काल्हि हाथ लगा देबै।
फकसियार धारक कात खएर-बबूरक जंगल मे बाजल।
उत्तरा-चौरीक दूरसँ कतहु पटुआक बोझक सवामित्वज लेल स्वसर आयल।
सबूर ई बान्हि अइ टुटली मड़ैआमे खपतैक ? इजोरिया जकाँ पसरल, फूलक गाछ जकाँ फलायल, मह-मह करैत।
सदि-घड़ी कतबो सासु ओकरा फज्झडति क’ दौक उनटि क’ एकटा जबाव नै देतैक। सासु-ससूरक दासो-दास।
ना-भरोस सरूपक माय तैओ रहय।
बढ़ैत-फुटैत एहन रत्न- पुतोहुकेँ त्या गबाक इच्छास ने होइक। सरूपेँ देखय़।
बिग्रह घरमे क’ देतैक ।
नव-नवतारिके कोन ठेकान आइ काल्हुेक ? बेटाकेँ की कहाँ सिखा-पढ़ा देतै।
लगिचिआ नै आब भ’ गेलै। गेलै आब।
भौजो नै हय । मने-मने तोँ सरापैत हेबह।
जातक टाङ पसारि पकिड़ जोरसॅं चला देलकै जाँत।
गाँ मोन बैसि गेलैए अइ घरमे।
लिल्लास फेर हाथ चमका बाजलि-तोँ त’ काकी आरो करै छेँ ।
बरखगीड़ू तोँ छेँ, बरखगीड़ू ।
क्रम पात आङनमे ठाढ़ भेल । एहन सन जेना किछु सुनने नै हो।
बेधोक कोना ई बजै छैक बेधोक कहियो एकरा लाज-संकोच नै हेतै !
अँउसि जाँघ-छवामे नीक क’ मटिआ तेल नेने रहय जोंकक कारणेँ ।
दिग्घीं बज-बज करैत सड़ल थाल-कादोबला मे गोड़ल पटुआक एक मुट्ठी फेर घिचलक।
सरगअसरा सुतार थिकै जजातिक जमीनमे।
आठ-धो ज ‘न के बीच-बीचमे बीड़ी पिओनाइ, तमाकू देनाइ आवश्य क। मे एक धो मजूरील फराक ।
भीड़ी संठी एकट्ठा करब, की बनायब, की सुखायब, कि लाड़ब।
मरकट कलपूकेँ संकेत कय बाजलि-एहने गिरहथ, ने बीड़ी ने सुपारी। भारी गिरहथ छ’ तोँ ।
उछटि कहुँ क’ एम्ह रे ने अबैक। कलपू आ बेनी हँस’ लागल।
भाओ पैंतीस रुपैये नै बेचलहुँ जे आर बढ़तै से आब बाइस भ’ गेलै।
काटू-गोडू फेर ।
झमा आ बेचैत काल क’ खसू।
गोलाबला उपनजाबे किसान सब आ मोटाय ।
रिया-खिया बनिञा हाथे बेचू त’ क’ टाका देतह।
बोच देखने रहिअइ, मोटा क’ त’ भ’ गेलैए।
औले एखन हम सब बबूरक छाहरि तर मरइ छी आ ओकरा दू-दूटा पंखा लागल हेतइ।
केर मटिआक तेल औंसबाक दोसर राउण्डग चलल।
लैन किछु देबो करथिन त’ पहिने एक घंटा नेहोरा करा तखन।
छक नीक सन आङी ।
छक छीटबला, नीचामे पाढि़ लागल। लिह पाथर बला।
गराँ बाजलि-डर भेलह तोरा जे पड़ैए ।
नाँ ओकरे ले चीज-वस्तुज चाही। अपन कहलिय’ जे नीक कीनिक’ अनब।
अराट-बराट की त’ खाली चुप्पे। रहबेँ सपनाइत आ कि खाली बजबेँ ।
सनुकची फेर उठि गेलाह आ एकटा पितडि़आ नेने बहरेलाह।
पहिरतेँ तोँ ई सभटा ।
अधर्मताइ हमर सहल नै भेलनि।
सूति-पाती तोहर हमरा छजत ? हम अहिना तोरा लग अबैत रहबह।
रेलवी छोट क्वाहटर मे काँच पथर-कोइला मे जेना औनाइत रही तेहने मोन होमय लगैए ।
छाहरिएटा अइ जन्मामे हमरा तोहर लीखल अछि।
जान्हि समस्त् ‍ उद्वेग ओ आक्रोश जेना समाप्ती भ’ ।
आचूड़-स्नामत ओहि शान्तिमे क्षणभरि चुप्पत रहलाह।
भोगर हरिअर कचोर ।गाछ ऊपर मुँहे उठल।
बरेक बरखक बाद आ जतेक गुमार करतै आ गरमी रहतै पटुआ बढ़तै।
बिखिया-बिखिया बरखक बाद आ जतेक गुमार करतै आ गरमी रहतै पटुआ बढ़तै।
ठाँ माँझ ओहिना रहल।
दीपित कौमार्यक, दीप्तिसँ लाल पटोरसँ बेंढ़ल गोर नाम मुँह ।
दृष्टिनिक्षेपमे एके पूर्व परिचयक भावविलोपित भ’ गेलै।

'विदेह' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ५०)- Part_IV

१. कुमार पवन-नहि बिसरैछ/
काल्हि तँ रवि छै २. रोशन जनकपुरी
चप्ा्ि तल आ सड़क ३.ओम कुमार झा- थर थर कापिँ रहल छौ तोहर पयर ४. राजदेव मंडल- कविता


कुमार पवन, वास्तविक नाम–डॉ. पवन कुमार झा
जन्मतिथि–27/12/1958, स्थायी पता– ग्राम+पत्रालय–मुरैठा, भाया–कमतौल, जिला–दरभंगा, बिहार पिन कोड–847304
वर्त्तमान पता–द्वारा–डॉ. पी. के. झा, पी. जी. टी. (हिन्दी), केन्द्रीय विद्यालय, कटिहार (बिहार), पिन कोड–854105 मो. 09430038969
शिक्षा–एम. ए. (हिन्दी), बी. एड., पी. एच. डी., आजीविका–केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे पी. जी. टी. (हिन्दी)क रूपमे कार्यरत
लेखन–विगत शताब्दीक नवम् दशकक प्रारंभमे कविता लेखन सँ साहित्य–कर्म प्रारंभ। प्रायः डेढ़ दशक धरि कविता, कथा, व्यंग्य आ आलोचनात्मक निबंधक विरल लेखन। एक दशकक मौनक बाद लेखनक दोसर पारी 2008 ई. मे प्रारंभ। शीघ्रहिं कविता–संग्रह कथा–संग्रह आ व्यंग्य–संग्रहक प्रकाशनक तैयारी।

नहि बिसरैछ

नहि बिसरैछ....नहि बिसरैछ
एको पलक लेल नहि बिसरैछ
जाड़क ओ ठिठुरैत कनकनायल भोर....

सघन कुहेस केँ चीरैत
मध्यम गतिएँ आगाँ बढ़ैत
बिलमल छल मुजफ्फरपुर टीसन पर
अवध आसाम एक्सप्रेस
स्लीपरक कोच नम्बर सात मे
इक्का दुक्की लोक सभ
टायलेट दिस अबैत जाइत
बाकी यात्री सभ मारने गुबदी अलसाइत....
चाहवला बिस्कुटवला
अघन अघन स्मानक
सस्वर विज्ञापन करैत
कऽ रहल छल जड़ता केँ भंग....
कि तखनहि ओ
चढ़ल छल बॉगी मे चुपचाप
प्रायः दस बर्खक दुब्बर–पातर धुआ
कँचि आयल आँखि
बहैत सुड़सुड़ाइत नाक
मैल–चिक्कट फाटल शर्ट सँ
कहुना कऽ झँपने अपन देह
गर्दनि सँ ठेहुन धरि
मुलकल कठुआयल खाली–खाली पएर....

निःशब्द लागल बहारय ओ
बॉगी मे छिड़िआयल
प्रयुक्त–परित्यक्त पदार्थ सभ
खाली डिस्पोजेबुल कप
खोइया चिनिञा बादामक
सिगरेटक मिझायल शेषांश
सिट्ठी तमाकुलक
अँइठ–कुइठ भरल कागजी प्लेट....

मारि कऽ ठेहुनियाँ निहुरैत
निचला बर्थ तर ढुकैत
चीज वस्तु सभ केँ
एम्हर ओम्हर घुसकबैत
एतऽ सँ ओतऽ धरि बॉगी भरि
बहारैत रहल....बहारैत रहल
खुजि कऽ ट्रेन अपन गति सँ बढ़ैत रहल....

खतम कऽ काज
पसारि देने रहय ओ
अपन कठुआयल हाथ
एम्हर बॉगी भरि पसरल देखि गंदगी
राति मे जे यात्री सभ भेल रहथि परेशान
तनि गेल छलनि एखन हुनके सभक चेहरा
देखि कऽ एहि अवांछित याचक केँ
क्यो असहज
देखि छौड़ाक घिनायल धुआ
प्रश्नाकुल क्यो जे
कोन लापरबाहक ई अछि संतान
देशक बेसम्हार जनसंख्याक प्रति चिंतित क्यो
विस्मित क्यो
आखिर विदाउट टिकट ई सभ चलैत अछि कोना
क्यो–क्यो तँ एकदम स्पष्ट छलाह–
चोरक गिरोहक तँ ई अछि एजेंट....

जाड़क ओहि कनकनायल भोर मे
कोच नम्बर सातक बोनाफाइड यात्री सभ
मसृण कम्बलक उष्णता मे सुटकल
करैत रहलाह धुरझाड़ विमर्श
जनसंख्या विस्फोट पर
असुरक्षित यात्रा पर बाल मजदूरी पर
सरकारक असफलता पर
देशक दुर्दशा पर
आ ओम्हर ओ
दस बर्खक गरजू अबोध मजदूर
सभ किछु सुनैत रहल
सुनियो कऽ टारैत रहल
ठोर–पर ठोर सटौने
एक–एक व्यक्ति लग जाइत रहल
अप्पन नान्हिटा खाली हाथ
बेर–बेर पसारैत रहल....

नहि बिसरैछ....नहि बिसरैछ
एको पलक लेल नहि बिसरैछ
खजूर–पातक बाढ़नि पकड़ने ओ
वाम हाथ
याचना मे पसरल ओ
खाली–खाली दहिन हाथ
आ काँची सँ भरल ओ चमकैत आँखि दून
नहि बिसरैछ....।


काल्हि तँ रवि छै

ओ आइ मुदित छलाह
दूनू बेकती कामकाजी
कहुना कऽ एक दोसरा सँ राजी
बूढ़ छलथिन माय बाप
तीन तीन टा बाल बच्चा अध्ययनरत
पलखति नहि दम लेबाक एक दोसराक हाल पुछबाक
दगमगाइत सम्हरैत
कोसक कोस दौगैत
कण–कण केँ दुहैत
क्षण–क्षण हकमैत
मुट्ठी मे बसात पकड़ैत
ठेहिआयल छलार
मुदा, आइ मुदित छलाह

मुदित छलाह जे
सप्ताहक आइ छैक अंत
काल्हि तँ रवि छैक
रहब कल्हि निश्चिंत
काल्हि तँ रवि छैक....

जदपि ओ नीक जकाँ जनैत छलाह
राखल छनि तैयार कयल
काजक दीर्घ पुर्जी
काजक आगाँ अपन कोन मर्जी
बजौने छनि काल्हिए दर्जी
काल्हिए जुटयबाक छनि घरक खर्ची
कीनबाक छनि माय–बापक लेल दबाइ
ट्यूटर बिनु अटकल छनि बेटाक पढ़ाइ
ठीक करयबाक छनि टी. बी.
कतोक दिन सँ पत्नी चथिन्ह परेशान
गैसक चूल्हि कऽ रहल छनि हरान
नोकरी करथु कि भुकभुकाइत चूल्हि सँ संघर्ष
स’ख तँ भइए गेलनि सुड्डाह
मुदा, कैयो नेञ सकैत छथि आह....

से ओ नीक जकाँ जनैत छलाह
जे पछिले अनेक रवि जकाँ
कल्हुको रवि आयल
जेना अबैत रहल अछि
आबि कऽ चलि कायत
जेना जाइत रहल अछि
औचके मोन
चलल छलनि प्रश्नोत्तर
की सरिपहुँ काल्हि रवि रहए?
की सरिपहुँ काल्हि रहब निफिक्किर?
नहि!
जिनगी मे कोनो रवि कहाँ?
समय बीतैत अछि अविराम
जिनगी मे कतय अछि आराम?
तदपि पता नहि किएक
बना कऽ रखैत एकटा सुखद भ्रम
ओ आइ मुदित छलाह
चलू सप्ताहक आइ छैक अंत
काल्हि त रवि छैक
रहब काल्हि निश्चिंत
काल्हि तँ रवि छैक


२. रोशन जनकपुरी
चप्ा्ि तल आ सड़क
तहिया
सडक गर्म कएने रहै
ओ चप्प्ल सब
जकर चुल्हाए रहै ठंंढा
आ पेट रहै खाली,
अपन चुल्हाखके पक्षमे
अपन चुल्हाखके पक्षमे,
चप्पहलक चापस’
आ ठंढा चुल्हाीके तापस’

जनमलै एकटा ज्वासलामुख्‍ी
आ एकटा भूकम्पव,
आ हमर चप्पमलवाली मायके आंइखमे
आश भइर गेल रहै
गर्म चुल्हार के

आ अखन,
चप्पनल सबत अखनो सड़केपर अछि
मुदा जुत्ता सब
जे तहिया चप्पबल संगे सड़के पर दौड़ैत रहै,
दिशा बदलि लेने आदि
हमर चप्पिल वाली मायके पेट
अखनो खालिए अछि
चुल्हाा अखनो ठंडे अछि
आ हम्मार
चप्प्लवाली मायके आंइखमे
आक्रोश भइर गेल अछि

तैं,
आक्रोशके गीत
लिखाइते रहबाक चाही
अग्नीत गीत गबैते रहबाक चाही
आ चप्पेल सब के
सड़क गर्म करिते रहबाक चाही



३.ओम कुमार झा

थर थर कापिँ रहल छौ तोहर पयर

रे खसवादी तो वाजल छें मधेशीया होइत अछि कायर
मुदा मधेशीयाक जोस देखि थरथर काँपि रहल छौ तोहर पायर।

जागी गेल छै मधेशी अपन अधिकार हथियाब लेल
घरघर सँ उमरल छै मधेशी मधेशी सरकार बनाब लेल

पचसि शहीदक खुन कहि रहल छै, उठ मधेशी उठ उठ
धोखा, फरेब देखा रहल छौ, गिरिजा कोइराला उँट ।

हिरण्यह कश्येप प्रचण्डब वाजल ओ बन्दुरक उठाओल मधेशीके मार लेल
मधेशीक बच्चाय बच्चा् प्रहलाद वनी खनत गड़दा ओकरो गार’ लेल

मधेशक भुमिसँ आन्दोेलनक ज्वाबला धधकल छै
जे आओत ओकरा मिझाब ओ ओहि जरि मरलै

झुकल गिरजा, झुकल प्रचण्ड झुकल मधेशी दलाल सभ
पयर पकड़ि गिरगिरेनै गिरजा– दलाल सभ ।

वहुत खएले मधेशीक कमाई आव नहि तोरा पचतौ रे
मधेशी अप्पमन हिस्साो नेने आब तोरा नहि छोड़तौ रे।

दू शय अठतीस वरिस सँ मधेशिया के वड़ ठकले रे
छद्म रुप तोहर देखार भ गेलौ आव तो नहि बचवे रे ।

लोकतंत्रक नकाब लगा राक्षसी रुप तों नुकाओले रे
हमरे घर फुटाक हमरे भाइके बंधुआ–वहिया बनौले रे

खबरदार आब सुने नङटा आव नहि चालि चलतौ रे
अप्पान अधिकार लेव’ लेल मधेशिया सिंहदरबार बँटतौ र ।

जनसंख्या‍क आधारमे चुनावी क्षेत्र ल छोड़बौ रे
तोहर नाक रगड़ि संघीय व्यमवस्थात ल लेबौ रे ।

आई मधेशीयाक हुनकर सुन
जन जन वजै छै एके बात
मधशी एकता जिन्दा वाद
मधेशी एकता जिन्दाबवाद ।
४.
राजदेव मंडल
1.झाँपल अस्तितत्व

नहि जानि कहियासँ
चाँपल अछि
हमर अस्तिकत्वव
एकटा आकृतिसँ
झाँपल अछि
कखनहुँ काल
ओ देखबैत अछि-त्रास
बारम्बातर हटेबाक
हम कऽ रहल छी-प्रयास
किन्तुर ओ नहि छोड़ैत अदि-बास
टकराइत रहैत अछि
हमरा मतिसँ
निर्बाध अपना गतिसँ
देखऽ चाहैत छी हम
सरुप
नहि अछि हुनक कोनहुँ-रुप
सुनने छलहुँ हम खिस्साछमे
एहन अनजानकेँ
देखि सकैत अछि शीशामे
हम मानैत छी
खास ज्ञानेन्द्रि याँसँ जानैत छी
भीतरमे ओ लगा रहल अछि-फानी
सुनि रहल छी वक्र-वाणी
प्राप्तल करबाक लेल उत्क र्ष
करऽ पड़त आब संधर्ष
नहि तँ बना सकैत अछि हमरा जोगी
किन्तु अस्तिहत्वैक लेल अछि
एहो उपयोगी।
2. रहब अँहीं सभक सँग

चिचियाकेँ सोर पाड़ैत
हमर कंठ दुखा गेल
पियाससँ जेना
ठोर सुखा गेल
चारुभर भरल लहाश
कऽ रहल अछि हमर उपहास
कियो नहि सुनैत अछि
हमर आवाज
कतऽ चलि गेलाह
हमर समाज
जरुरी छल
एहि रुढ़िकेँ तोड़ि देब
भविष्यढक हेतु
नव दिशा मोड़ि देब
अहाँ सभ तँ अपनहि छी अगाध
अग्रसर होऊ छोड़ू विवाद
नहि रोकि सकत कोनो बिध्नध बाध
हम नहि कएलहुँ कोनहु बड़का अपराध
हेओ एमहर आउ
नहि खिसिआऊ
नहि करब आब नियम भंग
नहि करब अहाँ सभकेँ तंग
लिअ अपन राज
नहि चाही हमरा ताज
नहि बदलब आब अपन रँग
रहब मिलि जुलि सभक सँग।
3.आह-
लिअ पड़त आह
करुणा अथाह
बाहर शीतलता
किन्तुी भीतरमे दाह
चारुभरसँ
घेरलक आह
लोग कहि रहल
वाह-वाह
अछि विश्वालस
छूबि लेब आकाश
किन्तुे पाइर तर अछि
असंख्ये लहाश
चिचिआइत दास
तइयो
बढ़ल जा रहल मनक चाह
पार लगाउत कोन नाह
बिनु लेने आह
कि भेटि सकत
वाह-वाह
परंच,
नहि छी लापरवाह
खोजब नवका राह।
4. ज्ञानक झंडा
अनन्तन अभिलाषा
बदलि देलक परिभाषा
आकाश सब जगह भरती भऽ गेल
चिरई चह-चह
लोग सह-सह
गन्धस मह-मह
अन्नस गह-गह
भरल जान-माल
टूटि गेल जर्जर जाल
ज्ञान आब तोड़य ताल
भागल तंत्र-मंत्र
सर्वत्र चलि रहल यंत्र
आब नहि चलत
अंधविश्वातसक हथकंडा
फहरा रहल
विज्ञानक झंड़ा
चहुँदिश छँटि गेल अन्हाथर
भऽ रहल जय-जायकार
नित नूतन आविष्काजर
अपरम्पानर
बना रहल धराकेँ स्वयर्ग सन
किन्तुल कतऽ सँ आनत
ओहन जन-मन
तइयो लगौने आस
कऽ रहल प्रयास
नहि जानि झंडा आब कतऽ गड़त
कोन नव दुनियाँ केँ खोज करत।
बालानां कृते-
१. आशीष चौधरी २. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक प्रसंग ३. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)

आशीष चरैया, अररिया
नाम: आशीष कुमार चौधरी
पिताक नाम: श्री नवल किशोर चौधरी
पता: गाम–चरैया, जिला–अररिया,
बिहार।

लघु कथा
जीत गयो मोर कान्हा

बड्ड पुरान एकटा सच कथा अछि। एकटा मगंलवार गामक लड़का छलै जकर नाम विद्यानंद छलै। ओकर बियाह नहि होमए छल। किऐक तँ उ आंखिसँ आन्हर छलै। बड्ड दिनक बाद एकटा धीमा गामक लड़कीसँ बियाह तए भेल आ बड्ड पैसा लऽ कए ओकर बियाह धीमा गाममे तए भेल। किएक तँ उ लड़का हाई स्कूलमे मास्टर सेहो छलै। ई द्वारे ओकरा बड्ड रास पैसा दऽ कए लड़कीक बाप बियाह तए केलक। बड्ड रास बरियाती लऽ कए लड़काक बाप पहुंचल लड़की बलाक ओतए। ओतए विधि विधानसँ ओकर दुनूक बियाह भेल रातिमे सब बरियाती गण खाना खऽ कए सभ सुते चलि गेल। भोरमे बिग्जी कऽ कए सभक इच्छा भेल लड़की देखैक। किऐक तँ ब्राह्मण सभक नियम छलै लड़कीक सुहाग देबेक तखन जाकै सभ लड़कीक देखैत छलै तखन ओकरा बड्ड रास समान आ पैसा देल जाए छलै। लड़काक बाप रातिमे बियाहक बाद लड़कीक देखैत कहलक रहै “जीत गयौ मोर कान्हा” तखन जा कए लड़कीक बाप कहलक “भोर भयो तब जानो” किऐक तँ लड़की जे छलै उ एकटा पैरसँ लाचार छलै। तँ जा कए लड़कीक बाप ढ़ेर रास टका पैसा दऽ कए अपन लड़कीक बियाह मास्टर लड़कासँ बियाह करबाक बड्ड खुश छलै। ते उ कहलक जे भोर भयो तब जानो। भोर होबेपर जखन लड़काक बाप कहलक कनेकटा लड़कीक खड़ा करू हम लड़कीक लम्बाई देखब तँ लड़की जब खड़ा भेल तँ लड़काक बापकेँ लागल जे हम हारि गेलो आ सब बरियाती गण वापस अपन गाम मगंलवार चलि गेल। लेकिन ई एकटा कहानी बनि गेल। उ दुनू लड़का आ लड़की बड्ड खुश रहै लागल किऐक तँ उ मास्टर सेहाब छलै। अखन उ सुमरित हाई स्कूलमे हिन्दीक मास्टर छलै। आ बड्ड नीक मास्टर अछि। किऐक तँ हमहुं उ मास्टरसँ पढ़लै छलौ।

२. जगदीश प्रसाद मंडल
किछु प्रेरक प्रसंग
31 मेहनतक दरद
एकटा लोहार छल। मेहनत आ लूरि स परिवार नीक-नहाँति चलबैत छल। मुदा बेटा जेहने खर्चीला (खरचीला) तेहने कामचोर छलैक। बेटाक चालि-चलनि देख लोहार कऽ बड़ दुख होय। सब दिन दश टा गारि आ फज्झति बेटा कऽ करै मुदा तइयो बेटा कऽ धनि सन। कोनो गम नहि। लोहार सोचलक जे इ ऐना नै मानत। जाबे एकरा खर्च करै ले पाइ देनाइ नहि बन्न कऽ देवैक ताबे एहिना करैत रहत। दोसर दिन स पाइ देब बन्न कऽ कहलकै- अपन मेहनत स चारियो टा चैवन्नी कमा कऽ ला तखन खर्च देबौक। नइ त एक्को पाइ देखब सपना भऽ जेतौक।
बापक बात सुनि बेटा कमाइक परियास करै लगल। मुदा लूरिक दुआरे हेबे ने करै। अपन पैछला रखल चारि टा चैवन्नी नेने पिता लग आबि कऽ देलक। लोहार (पिता) भाँथी पजारि हँसुआ बनबैत छल। चारु चैवन्नी के लेाहार आगि मे दऽ कहलकै- ई पाइ तोहर कमाइल नइ छिऔ। पिताक बात सुनि बेटा लजाइत ओतऽ स ससरि गेल।
दोसर दिन बेेटा के कमाइक हिम्मते ने होय। चुपचाप माए स चारि टा चैवन्नी मंगलक। माए देलकै। चारु चैवन्नी नेने बेटा बाप लग पहुँचल। बेटाक मुहे देखि बाप बुझि गेल।। चारु चैअन्नी बेटा बाप केँ देलक। भीतर स बाप कऽ तामस छलैक। ओ चारु चैवन्नी हाथ मे ल पुनः आगि मे फेकि देलक कि हल्ला करैत बेटा बापक हाथ पकड़ि कहलक- बाबू ई हमर मेहनतक पाइ छी। एकरा किऐक बेदरदी जेँका नष्ट करैत छियैक?
बाप बुझि गेल। मुस्कुराइत बेटा के कहै लगल- बेटा! आब तोँ वुझले जे मेहनतक कमाइक दरद केहेन होइ छै। जाधरि अन्ट-सन्ट मे हमर कमेलहा खरच करै छलै ताबे हमरो ऐहने दरद होइ छलै।
पिताक बात बेटा बुझि गेल। तखने शपथ खेलक जे एक्को पाइ फालतू खर्च नइ करब।
32 मैक्सिम गोर्की
बच्चे स मैक्सिम गोर्की निराश्रित भऽ गेल रहथि। ओहि दशा मे जीवैक लेल झाड़ू लगौनाइ स लऽ कऽ चैका-बरतन चैकीदारी सब केलनि। कैक दिन त कूड़ा-कचड़ाक ढ़ेरी स काजक बस्तु ताकि-ताकि निकालि बेचि क अपनो आ बूढ़ि नानीक पेटक आगि बुझावथि। ऐहन परिस्थिति मे पढ़ब-लिखब असाघ्य कार्य थिक। ऐहन असाध्य परिस्थिति स मुकावला क अनुकूल बनौनिहार मैक्सिम गोरकियो भेलाह। रद्दी-रद्दी पत्रिका फाटल-पुरान अखबार सब एकत्रित क पढ़नाई सिखलनि। जखन पढ़ैक जिज्ञासा बढ़लनि तखन समय बचा क वाचनालय जाय लगलाह। रसे-रसे लिखैक अभ्यास सेहो करै लगलथि। कोनो-कोनो बहाना बना साहित्यकार सभ स संबंध बनबै लगलथि। जे किछु ओ (गोर्की) लिखथि ओकरा साहित्यकार सभ स सुधार करबथि।
वैह मैक्सिम गोर्की रुसक महान् साहित्यकार भेलाह। अन्यायी शासनक विरुद्ध जनताक अधिकारक लेल सिर्फ लिखबे टा नहि करथि बल्कि हुनका सभक बीच जा संगठित आ संघर्षक नेतृत्व सेहो करथि। जखन हुनकर लिखल किताब तेजी स बिकै लगल तखन ओ अपन खर्च निकालि बाकी सब पाइ संगठन चलबै ले द देथिन।
33 मूलधन
एकटा बृद्ध पिता तीनि बरखक लेल तीर्थाटन करै निकलै चाहथि। निकलै स पहिने चारु बेटा केँ बजा अपन सब पूँजी बरोबरि क बाँटि कहलखिन- तीनि सालक लेल हम तीर्थाटन करै जा रहल छी। अगर जीबैत घुमलहुँ ते अहाँ सभ पूँजी घुरा देब नहि त कोनो बाते नहि।
अपन हिस्सा रुपैआ क जेठका बेटा सुरक्षित रखि पिताक प्रतीक्षा करै लगल। मझिला बेटा सूद पर लगा देलक। सझिला ऐश-मौज मे फूँकि देलक। छोटका ओकरा पूँजी बुझि व्यवसाय (कारोवार) करै लगल।
तीनि सालक बाद पिता आयल। चारु स पूँजी आपस मंगलक। घर स आनि जेठका वहिना रुपैआ घुरा देलक। मझिला सूद सहित मूलधन घुरौलक। सझिला त खर्च क नेने छल तेँ अगर-मगर करैत चुप भ गेल। छोटका व्यवसाय स खूब कमेने छल तेँ चारि गुणा घुमौलक।
चारिम (छोटका) बेटा कऽ प्रशंसा करैत पिता कहलक- रुपैआ त वियाजो पर लगा बढ़ाओल जा सकैत अछि मुदा ऐहेन काज अधिक पूँजीवलाक छियै। मुदा जे अपने पूँजी दुआरे बेरोजगार अछि ओकरा लेल नहि। ओकरा त जैह पूँजी छैक ओकरा अपन श्रमक संग जोड़ि जिनगी कऽ ठाढ़ करै पड़तैक। ताहू मे परिवारक दायित्ववला केँ आरो सोचि-विचारि इमनदारी स चलै पड़तैक। तखने परिवार चैन स चलि सकै छैक।
34 कपटी दोस्त
एकटा सज्जन खढ़िया छल। ओ (खढ़िया) कतेको स दोस्ती केलक। दोस्ती एहि दुआरे करैत जे बेरि पर हमहू मदति करबै आ हमरो करत। एक दिन शिकारीक कुत्ता ओकरा पकड़ै ले खेहारलक। खढ़िया भागल। भागल-भागल खढ़िया दोस्त गाय लग पहुँच कहलकै- अहाँ हमर पुरान दोस छी। कुत्ता हमरा रबारने अबै अए। अहाँ ओकरा अपन सींग स मारि कऽ भगा दिओ जइ स हमर जान बचि जायत।
खढ़ियाक बात सुनि गाय कहलकै- हमरा घर पर जाइक समय भ गेल। बच्चा डिरिआइत हैत। आब एक्को क्षण ऐठाम नइ अँटकब।
गायक बात सुनि खढ़िया निराश भ गेल। कुत्ता सेहो पाछू स अबिते रहै। ओ (खढ़िया) ओइठाम स पड़ायल घोड़ा लग पहुँचल। घोड़ो पुरान दोस्त खढ़ियाक छलैक। घोड़ा लग पहुँच खढ़िया कहलकै- दोस अहाँ अपना पीठि पर बैसाय लिअ। जइ से हमरा ओइ कुत्ता स जान बँचि जायत।
घोड़ा कहलकै- हमरा पीठि पर कोना बैसब? हम त बैसबे बिसरि गेलहुँ।
घोड़ाक बात सुनि खढ़िया निराश भ पड़ायल। जाइत-जाइत गदहा लग पहुँच कहलकै- दोस! हम मुसीबत मे पड़ि गेल छी। अहाँ दुलत्ती चलबै जनै छी। कुत्ता के मारि क भगा दिऔ जइ स हमर जान बँचि जायत।
खढ़ियाक बात सुनि गधा कहलकै- घर पर जाइ मे देरी हैत ते मालिक मारत। तेँ हम जाइ छी।
फेरि खढ़िया भागल। जाइत-जाइत बकरी लग पहुँच कहलकै- दोस! हम मरि रहल छी। अहाँ जान बचाउ।
अपन ओकाइत देखैत बकरी उत्तर देलकै- दोस! झब दे ऐठाम से दुनू गोटे भागू नइ त हमहू खतरा मे पड़ि जायब।
बकरीक बात सुनि खढ़िया आरो निराश भ गेल। मन मे एलै जे अनका भरोसे जीवि बेकार छी। अपने बूते अपन दुख मेटा सकै छी। भले ही मन-मुताबिक जिनगी नहि जीवि सकी। तखन खढ़िया छाती मजगूत क पड़ायल। पड़ायल-पड़ायल एकटा झारी मे नुका रहल। कुत्ता देखवे ने केलकै। दौड़ल आगू बढ़ि गेल। खढ़ियाक जान बँचि गेलै।
35 भीख
एकटा मच्छर मधुमाछी छत्ता लग पहुँचल। छत्ता मे ढ़ेरो माछी छलै। छत्ता लग बैसि मच्छर माछी कऽ कहलकै- हम संगीत विद्या मे निपुण छी। अहूँ सब संगीत सीखू। हम सिखा देब। जकर बदला मे थोड़े-थोड़े मधु देब जहि स हमरो जिनगी चलत।
मधुमाछी सब अपना मे बिचार करै लगल। मुदा बिना रानी माछीक बिचार स क्यो किछु नहि कऽ सकैत तेँ रानी स पूछब जरुरी छलैक। सब बिचारि एकटा माछी कऽ रानी लग पठौलक। रानी माछी सब बात सुनि कहलकै- जहिना संगीत-शास्त्रक ज्ञाता मच्छर भीख मंगै ले अपना ऐठाम आइल अछि तहिना जँ हमहू सब मेहनत छोड़ि देब त ओकरे जेँका दशा हैत। तेँ मेहनतक संस्कार छोड़ि सस्ता संस्कार अपनौनाइ मुरुखपना हैत। अगर अहूँ सब कऽ संगीतक शौक होइ अए ते मेहनतो करु आ बैसारी मे संगीतों सीखू।

36 भगवान
सिद्ध पुरुष भऽ कबीर प्रख्यात भ गेल छलाह। दूर-दूर स जिज्ञासु सब आबि-आबि दर्शनो करैत आ उपदेशो सुनैत। मुदा कबीर अपन व्यवसाय (कपड़ा बुनब) नहि छोड़लनि। कपड़ो बुनैत आ सत्संगो करथि। एकटा जिज्ञासु कबीरक व्यवसाय देखि पूछलकनि- जाधरि अपने साधारण छलहुँ ताधरि कपड़ा बुनब उचित छल मुदा आब त सिद्ध-पुरुष भऽ गेलिऐक तखन कपड़ा किऐक बुनै छी?
जिज्ञासुक विचार सुनि मुस्कुराइत कबीर उत्तर देलखिन- पहिने पेटक लेल कपड़ा बुनैत छलहुँ। मुदा आब जनसमाज मे समाइल भगवानक देह ढ़कैक लेल आ अपन मनोयोगक साधनाक लेल बुनैत छी।
एक्के काज रहितहुँ दृष्टिकोणक भिन्नताक उत्पन्न होइवला अंतर कऽ बुझला स जिज्ञासुक समाधान भऽ गेलनि।
37 एकाग्रचित
इंग्लैडक इतिहास मे अल्फ्रेडक नाम इज्जतक संग लेल जाइत अछि। ओ (अल्फ्रेड) अनेको साहसी काज परजाक लेल केलनि। तेँ हुनका महान् अल्फे्रड (अल्फ्रेड द ग्रेट) नाम स इतिहास मे चरचा अछि।
शुरु मे अल्फ्रेड साधारण राजा जेँका क्रिया-कलाप करैत छलाह। जहिना बाप-दादाक अमलदारी मे चलैत छल तहिना। खेनाई-पीनाई ऐश मौज केनाई यैह जिनगी छलनि। जहि स एक दिन ऐहेन भेलैक जे हुनकर कोढ़िपना दुश्मनक लेल बरदान भऽ गलैक। दुश्मन आक्रमण कऽ अल्फ्रेड क सत्ता स भगा देलक। नुका क ओ एकटा किसानक ऐठाम नोकरी करै लगल। बरतन माँजब पानि भरब आ चैकाक काज अल्फ्रेड करै लगल। नमहर किसान रहने अल्फ्रेडक देख-रेख हुनकर पत्नी करैत छलीह।
एक दिन ओ (पत्नी) कोनो काजे बाहर जाइत छलीह। बटलोही मे दालि चुल्हि पर चढ़ल छलै। औरत अल्फ्रेड कऽ कहि देलक जे दालि पर धियान राखब। अल्फ्रेड चुल्हि लग बैसि अपन जिनगीक संबंध मे सोचै लगल। सोचै मे एत्ते मग्न भऽ गेल जे बटलोहीक दालि पर धियाने ने रहलै। बटलोहिक सब दालि जरि गेलै। जखन ओ औरत घुरि क आइल त देखलक जे बटलोहिक सब दालि जरि गेल अछि। क्रोध स अल्फ्रेड केँ कहलक- अरे मुर्ख युवक! बुझि पड़ै अए जे तोरा पर अल्फ्रेडक छाप पड़ल छौक। जहिना ओकर दशा भेलै तहिना तोरो हेतौ। जे काज करै छेँ ओकरा एकाग्रचित भऽ कर।
बेचारी औरत कऽ की पता जे जकरा कहै छियै ओ वैह छी। मुदा अल्फ्रेड चैंकि गेल। अपन गलतीक भाँज लगबैै लगल। मने-मन ओ संकल्प केलक जे आइ स जे काज करब ओ एकाग्रचित भऽ करब। सिर्फ कल्पने कयला स नहि होइत। अल्फ्रेड नोकरी छोड़ि देलक। पुनः आबि अपन सहयोगी सभ स भेटि कऽ धनो आ आदमियोक संग्रह करै लगल। शक्ति बढ़लै। तखन ओ दुश्मन पर चढ़ाई केलक। दुश्मन केँ हरौलक। पुनः सत्तासीन भेल। सत्तसीन भेला पर पैघ-पैघ काज कऽ महान भेल।

38 सीखैक जिज्ञासा
महादेव गोविन्द रानाडे दछिन भारतक रहथि। ओ बंगला भाषा नहि जनैत रहथि। एक दिन रानाडे कलकत्ता गेलाह। कलकत्ता मे अपन काज-सब निपटा आपस होइ ले गाड़ी पकड़ै स्टेशन ऐलाह त एकटा बंगला अखवार कीनि लेलनि। बंगला अखवार देखि आश्चर्य स पत्नी कहलकनि- अहाँ त बंगला नइ जनै छी तखन अनेरे इ अखवार किऐक कीनि लेलहुँ?
मुस्कुराइत रानाडे जबाव देलखिन- दू दिनक गाड़ी यात्रा अछि। आसानी स बंगला सीखि लेब।
नीक-नहाँति रानाडे बंगला लिपि आ शब्द गठन पर ध्यान दऽ सीखै लगलथि। पूना पहुँच पत्नी केँ धुर-झार अखवार पढ़ि क सुनवै लगलखिन। ऐहन छलनि साठि वर्षीय रानाडे क मनोयोग। तेँ अंतिम समय धरि हर मनुष्य केँ सीखैक जिज्ञासा रहक चाही।
39 अनुभव
व्यक्ति अपन अनुभव स सीखवो करैत अछि आ दोसरोक लेल दिशा निर्धारित करैत अछि। एक दिन झमझमौआ बरखा होइत रहै। मेधो गरजै। बिजलोको चमकै। तेज हवो बहै। ओहि समय रास्ता पर भगैत एक आदमीक मृत्यु भ गेलैक। बरखा छुटलै। लग-पासक लोक जखन निकलक ते रास्ता पर ओहि आदमी केँ देखलक। चारु भर स लोक जमा भऽ क्यो कहै- बादलक आवाज स मृत्यु भेलै। त क्यो किछु कहै त क्यो किछु।
ओहि समय एक अनुभवी आदमी सेहो पहुँचलथि। ओ कहलखिन- जँ आवाज स मृत्यु होइत त बहुतो लोक आवाज सुनलक। सबहक होइतैक। तेँ मृत्यु आवाज स नहि लग मे ठनका गिरला स भेल।
40 असिरवादक विरोध
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर अभाव आ गरीबीक बीच पढ़ि पचास टाकाक मासिक नोकरी शुरु केलनि। हुनक सफलता देखि कुटुम्ब-परिवार सभ असिरवाद देमए पहुँचै लगलनि। एकटा कुटुम्ब कहलकनि- भगवानक दया स अहाँक दुख मेटा गेल। आब आराम स रहू आ चैन स जिनगी बिताउ।
ई असिरवाद सुनितहि विद्यासागरक आखि स नोर खसै लगलनि। नोर पोछैत कहलखिन- जइ अध्यवसायिक बले हम ओहन भीषण परिस्थितिक मुकावला केलहुँ ओकरे छोड़ि दइ ले कहै छी। अहाँ कऽ ई कहैक चाहै छल जे जहि गरीबीक कष्ट स्वयं अनुभव केलहुँ ओहि परिस्थिति कऽ बिसरु नहि। अपन असाध्य श्रम स ओहि अवरुद्ध रास्ता क साफ करु।


३.देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा अड़तीस

नताशा उनचालीस


नताशा चालीस


बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदानई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
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1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ इआद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दालान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ/लए कए
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए 61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे


71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करैऔ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि

181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ /करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि/नहि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)-आ (conjunction-and)/आ
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/ओ
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए(अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह(बिकारी)क प्रयोग उचित

२६५.केर/-क/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझ छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि।वक्तव्य/ वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.बाली/ (बदलएबाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ , षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ ऐछ
छथि- छ इ थ – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए।
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) –रामक आ संगे राम के/ राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ रामकेँ- राम कऽ राम के

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)

३.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक
धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1. Sindhu Poudyal-Indo-Nepal Relations: A Personal Reflection


DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22 Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul

Sindhu Poudyal-
Indo-Nepal Relations: A Personal Reflection

The contrasting attitude among the states and nations around the world is quite obvious. But the history itself shows that the most important aspect of the war and dirty politics has been caused by the important factor called religion. But striking fact which strikes me is that how the two nations which can generally be called as having the same religious and secular outlook come with such a rebellious attitude with each other. In 1950’s with the introduction of ‘Indo- Nepal Treaty of Peace and Friendship’, both the countries come together to initiate their relationship with each other including the security affairs. This treaty is said to be the continuation of the ‘Sugauli Treaty’ which was signed on December 2, 1815 and ratified by March 4, 1816, between the India (under the British domination) and then existing Kingdom of Nepal. The Treaty which was signed in 1950 carries with it some of the crucial issues like allocation of the citizenship to the Indian Nepalese including the security and other external affairs. Though in its detailed analysis the Contract deals with many important issues to enhance the relationship among the two nations but I am trying to give here a very short analysis of the issue of Citizenship for the Indian Nepalese.
In that contract one of the important fact which came out is the as I mentioned in earlier paragraph as the issue of the Citizenship where both the nations agreed on the fact that, "neither government shall tolerate any threat to the security of the other by a foreign aggressor" and obligated both sides "to inform each other of any serious friction or misunderstanding with any neighboring state likely to cause any breach in the friendly relations subsisting between the two governments. "This will be in return give "special relationship" as well as the promotion of the preferential treatment to Nepal. This is also followed by the point of allocation of the equal economic and educational rights to the Nepalese as the Indian citizens, who are residing in India for a long period of time. This togetherness for Peace and Friendship also focuses on the issues like, the problems pertaining to citizenship, Economic developments and cultural relations between two countries-
The importance of the contract in this very matter of fact is crucial from the point of view of identity and inhabitance of the Indian Nepalese. Indian Nepalese have their long history of inhabitants as Indian citizens starting from the education to the economic development of the country we can not ignore the contribution of these peoples especially at the time of independence, the bravery and the sense of Nationalism which they showed can never be denied. Hence in such a situation to regard them as non Indians and to discriminate is in no way acceptable. Moreover in some cultural aspects, Nepalese and traditional north Indians having similarity. With viewing the fact of the matter it is necessary and justified in my view to give the citizenship to the Nepalese in India.
India and Nepal both the countries are rich in their historical and cultural perspectives. But there are certain factors which sometimes cause severe problems and tension for the country from time to time and for which both the nations are facing difficulties starting from Geographical and Economic problems to the minor problems like common ethnic, linguistic and cultural problems. The problem as such is not a new one. India and Nepal are having the cold war amongst themselves. Though the problem has not been with such a larger gratitude; its outcomes are in no way going to serve any fruitful purpose. It will create communal tension and unnecessary burden to the peoples of both the nations.
Though the Contract among the two nations have focused on some of the crucial issues but still I found the citizenship issue most important for discussing here. Though most of the times the issues revealed and signed in the treaty are not seen to be successful but this type if issues enhance the friendly relation among the Nations, not only with the India but with the all the Nations at a large.

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महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७ Combined ISBN No.978-81-907729-7-6 विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइटhttp://www.shruti-publication.com/ पर।

महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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विदेह: सदेह : १ : तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:१)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर; सहायक-सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा
Details for purchase available at print-version publishers's site http://www.shruti-publication.com or you may write to shruti.publication@shruti-publication.com

"मिथिला दर्शन"

मैथिली द्विमासिक पत्रिका

अपन सब्सक्रिप्शन (भा.रु.288/- दू साल माने 12 अंक लेल
भारतमे आ ONE YEAR-(6 issues)-in Nepal INR 900/-, OVERSEAS- $25; TWO
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दर्शन"केँ देय डी.डी. द्वारा Mithila Darshan, A - 132, Lake Gardens,
Kolkata - 700 045 पतापर पठाऊ। डी.डी.क संग पत्र पठाऊ जाहिमे अपन पूर्ण
पता, टेलीफोन नं. आ ई-मेल संकेत अवश्य लिखू। प्रधान सम्पादक- नचिकेता।
कार्यकारी सम्पादक- रामलोचन ठाकुर। प्रतिष्ठाता
सम्पादक- प्रोफेसर प्रबोध नारायण सिंह आ डॉ. अणिमा सिंह। Coming
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अंतिका प्रकाशन की नवीनतम पुस्तकेँ
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मीडिया, समाज, राजनीति और इतिहास

डिज़ास्टर : मीडिया एण्ड पॉलिटिक्स: पुण्य प्रसून वाजपेयी 2008 मूल्य रु. 200.00
राजनीति मेरी जान : पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.300.00
पालकालीन संस्कृति : मंजु कुमारी प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 225.00
स्त्री : संघर्ष और सृजन : श्रीधरम प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु.200.00
अथ निषाद कथा : भवदेव पाण्डेय प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.180.00

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु.125.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
बडक़ू चाचा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कविता-संग्रह



या : शैलेय प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 160.00
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कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
पेपरबैक संस्करण

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
मैथिली पोथी

विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क भा.रु.2100/-चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका प्रकाशन” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे भा.रु. 30/- अतिरिक्त जोड़ू।
बया, हिन्दी तिमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15%और उससे ज्यादा की किताबों पर 20%की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
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अंतिका प्रकाशन
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादवमूल्य: भा.रु.१००/-
२.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलनखण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि)
खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर)
खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ)
खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण)
खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन )
खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत)- गजेन्द्र ठाकुर मूल्य भा.रु.१००/-(सामान्य) आ $४० विदेश आ पुस्तकालय हेतु।
३. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (मूल्य भा.रु.१२५/- US$ डॉलर ४०) आ पेपरबैक (भा.रु. ७५/- US$ २५/-)
४/५. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संलस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
६. गामक जिनगी (कथा संेग्रह)- जगदीश प्रसाद मंकडल): मूल्य भा.रु. ५०/- (सामान्य), $२०/- पुस्तकालय आ विदेश हेतु)
७/८/९.a.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश; b.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आ c.जीनोम मैपिंग ४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.- मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध-सम्पादन-लेखन-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा
P.S. Maithili-English Dictionary Vol.I & II ; English-Maithili Dictionary Vol.I (Price Rs.500/-per volume and $160 for overseas buyers) and Genome Mapping 450AD-2009 AD- Mithilak Panji Prabandh (Price Rs.5000/- and $1600 for overseas buyers. TIRHUTA MANUSCRIPT IMAGE DVD AVAILABLE SEPARATELY FOR RS.1000/-US$320) have currently been made available for sale.
१०.सहस्रबाढ़नि (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक)-ISBN:978-93-80538-00-6 Price Rs.100/-(for individual buyers) US$40 (Library/ Institution- India & abroad)
११.नताशा- मैथिलीक पहिल चित्र श्रृंखला- देवांशु वत्स
१२.मैथिली-अंग्रेजी वैज्ञानिक शब्दकोष आ सार्वभौमिक कोष--गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा Price Rs.1000/-(for individual buyers) US$400 (Library/ Institution- India & abroad)
13.Modern English Maithili Dictionary-Gajendra Thakur, Nagendra Kumar Jha and Panjikar Vidyanand Jha- Price Rs.1000/-(for individual buyers) US$400 (Library/ Institution- India & abroad) COMING SOON:
I.गजेन्द्र ठाकुरक शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-
१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२
खण्ड-८
(प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग
२.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास
स॒हस्र॑ शीर्षा॒
३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह
स॑हस्रजित्
४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह
शब्दशास्त्रम्
५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक
उल्कामुख
६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध
नाराशं्॒सी
७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक
जलोदीप
८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह
बाङक बङौरा
९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह
अक्षरमुष्टिका
II.जगदीश प्रसाद मं डल-
कथा-संग्रह- गामक जिनगी
नाटक- मिथिलाक बेटी
उपन्यास- मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत
III.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरन मैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल। पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
IV.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
V.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
VI.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
VII.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
VIII.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
IX.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
X. स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-
मिथिलाक इतिहास, शारान्तिधा, A survey of Maithili Literature
XI. मैथिली चित्रकथा- नीतू कुमारी
XII. मैथिली चित्रकथा- प्रीति ठाकुर
(After receiving reports and confirming it that Mr. Pankaj Parashar copied verbatim the article Technopolitics by Douglas Kellner (email: kellner@gseis.ucla.edu) and got it published in Hindi Magazine Pahal (email:editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in and info@deshkaal.com website: www.deshkaal.com) in his own name. The author was also involved in blackmailing using different ISP addresses and different email addresses. In the light of above we hereby ban the book "Vilambit Kaik Yug me Nibadha" by Mr. Pankaj Parashar and are withdrawing the book and blacklisting the author with immediate effect.)
Details of postage charges availaible on http://www.shruti-publication.com/
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Address your delivery-address to श्रुति प्रकाशन,:DISTRIBUTORS: AJAY ARTS, 4393/4A, Ist Floor,Ansari Road,DARYAGANJ.Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107 Website: http://www.shruti-publication.com e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com (विज्ञापन)




(कार्यालय प्रयोग लेल)
विदेह:सदेह:१ (तिरहुता/ देवनागरी)क अपार सफलताक बाद विदेह:सदेह:२ आ आगाँक अंक लेल वार्षिक/ द्विवार्षिक/ त्रिवार्षिक/ पंचवार्षिक/ आजीवन सद्स्यता अभियान।
ओहि बर्खमे प्रकाशित विदेह:सदेहक सभ अंक/ पुस्तिका पठाओल जाएत।
नीचाँक फॉर्म भरू:-
विदेह:सदेहक देवनागरी/ वा तिरहुताक सदस्यता चाही: देवनागरी/ तिरहुता
सदस्यता चाही: ग्राहक बनू (कूरियर/ रजिस्टर्ड डाक खर्च सहित):-
एक बर्ख(२०१०ई.)::INDIAरु.२००/-NEPAL-(INR 600), Abroad-(US$25)
दू बर्ख(२०१०-११ ई.):: INDIA रु.३५०/- NEPAL-(INR 1050), Abroad-(US$50)
तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
आजीवन(२००९ आ ओहिसँ आगाँक अंक)::रु.५०००/- NEPAL-(INR 15000), Abroad-(US$750)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)


२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रिं‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस पं्क्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- अहाँ द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोग अनुचित-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जे अपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि.....ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे हमर उपन्यास स्त्रीधनक जे विरोध कएल गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रशंुसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मे समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँक जुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी- मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल। पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो अहाँसँ आशा अछि।
विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

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