भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Saturday, January 30, 2010
1
टिक्कलड़ पूबसँ सघन कारी मेघक एकटा एम्ह रे भासल अबैत रहय।
अरियानङ्घान आइ फेर बरिसत।
अउल केहन छैक कयने ।
गोड़ काल्हि धरि मोसकिल सँ जोगार पानि रहैक धारमे।
धत्ता मलमलिआ पर बाहु उधिआइत।
बीआ-बालि सभक जैरत रहैक ।
सुपानो भरि राति झहरल मेघ।
बितान बालुक पानि सोखबामे राकस।
नहुड़ैत झड़-बैर, बबूर आ खयरक जंगल सँ भरल धार दिश ।
सरग-असरा सेहो खेत।
बौके मेघक कृपा भेल त’ बड़ा-बेस, ने त’ धान रहि जायत।
तबतैक, जतेक रौद जतेक घाममे नहा जायत, जतेक मोन माहुर हेतइ, ततेक आर मस्त् भय हऽर जोतत ।
माहुरमे रौदक मगन भय टिटकारलक छोट-छोट बड़ादक जोड़ी केँ ।
खटहट पयरमे बलुआह थाल, पटुआक सड़ल डाँट –पात आ उखड़ल खट्टी यत-तत्र अभड़इ।
हेङ्गाक हऽरक बड़द मन्द्-मधुर चालिबला।
धपगर बड़द तेज, ।
बबुरानीमे धारक ओइपार झिसि आइत रहय।
खयर-बनीमे हाँजक-हाँज गिद्ध उतरि रहल छल।
हहा-हहा हाँजक-हाँज गिद्ध उतरि रहल छल।
हलखोरीक आइए भोरमे बड़द मरि गेलैक सोनित छेरि क’ ।
पानपिआइक बड़द खोलि क’ प्राय- अहीठाम ख्यलरबोनीमे छोडि़ देलकैए ।
ता चङेरी माथ पर संतुलित धयने धयने अबैत अपन भाउज पर नजरि पड़लै।
मुन्हीउ बड़दक गरा सँ छिटका देलकै।
निस्प न्दक क्षणीभरि निस्प्न्दद ठाढ़ रहि दुनू खयरबत्रा दिस टघरल ।
नहुँए। क्षणीभरि निस्प्न्दद ठाढ़ रहि दुनू खयरबत्रा दिस टघरल ।
उछेहने कसल-कसल जाँध धरि धोती रहय।
बेनी सोझाँ मे पनपिआइक चङेरी राखि देलकै।
सेपसँ मुँह सिक्तन भ’ गेलै।
टो्ङैत खयर-बनी मे मरल घास केँ
छेहर संठिक टाटकेँ छेदि, अन्हाेर घरक अन्हकरियाकेँ छेदि बीघाक-बीघा जजातिक ऊपरसँ लहराइत ई निसास बरोबरि सरूपक करेजा बेधि दैक ।
थल-कमल मुँहक गोरका चक्कास सन बिहुँसै।
काकुव्यं्ग्या ओइमे सदति आ बाल-सुलभ चंचलता भरल।
अहीठाँ पुछलकै रहै लहास पड़ल ने ?
छिअइ नइ सोचइ कहाँ ।
अइठाँ नइ सोचइ कहाँ ।
बथान-सोधन एकरे जिद्दक खातिर सभटा भेलै ने ।
कुल-कुड़हडि़ भेल ई घरमे ।
होइतउ हमही बरू मरि गेल रहितहुँ जे तोरा एतेक दुख नै।
उएह गेनबासँ मगर ।
साँच-उतार गेनबासँ मगर ।
पम्पा मोछक करिया गेल रहै1
तेतरि-केराबक दूनू ननदि-भाउजमे लागि रहैक।
काकु-व्यंभग्यह
विषदग्धद
वाक्-वाणक
गेल बिजलीक चर्चासँ आओर भ’ गेलैक।
गोल मीसर सङ्ग अछि रङ्ग-रभस कर’ ।
चमकि-दमहिक भोरे कऽ गेल अछि अपना इयार लग।
दिनेक गुम्ह ड़ल ओकरा दू खण्डयली क’ काटि देबैक हम।
विषदग्ध् भभा कऽ हँसलि बनी। हास।
तौं गुम्हऽड़ल-तऽ भउजी आरो .......।
नामपातरि छुरिया नाक, ध्नुउखा भँउह आ अँउठिया केश ।
पुतरी आमक फाँक सन चीरल आँखि, सदति चंचल।
खुट्टी पटुअक लागलि।
ओलय पटुअक लागलि।
भ्रूकुंचित दृष्टिएँ तकलक ननदि दिस बेनी।
मह-मह कलपू-मिसरक ओतय माथमे गमकौआ तेल पचओलक अछि।
बेलज्लील करइए फूलक गाछ जकाँ ।
दरेग हमरा पर एतेक कहिया सँ भेल’ ।
कोर-काँख जकरा नेने रहय।
क्रम-पात, रहय। हमर दोख नै।
सुइ-मुँहीक एकरे सबटा किरदानी छैक, ।
अदगोइ-बिदगोइ भरि-दिन हमरे करेत रहैए।
पिजा रूपाकेँ एखन खूब कऽ रखने अछि।
कहलही फेर भउजी के किछु त’बूझि राख।
नहुँए आमक फाँक सन आँखि गोल भेल, मुँह पर व्यंफग्यगक भाव पुछलैक-जबाव कर’ बला तों के रे ?
पातिर ठोर पर व्यंलग्यवक रेख पसरि गेलै।
हसेरीमे बापो सँ बाढि़ जेठ भाय गेनाबा परुकाँ मारल गेलै।
आस हऽर कन्ह पर टाङि पयना सँ दैत घर दिस चलल।
डबकल मेघ आबि रहल छलैक।
मऽरी खयरअनीमे खाय गि’ सभ लड़ाइ करैत छल।
छड़नि परमान धारक कछेड़ पर बसल रहय ई टोल। ई धार कोसीक थिक।
किछेड़-किछेड़मे धार बेस उत्थ-र अछि।
धत्ता इएह थिक मलमलिया जाइ पर बालुक चानी पीटल अछि, से मल-मल जकाँ रौदमे चक-चक करैछ।
झोप एहि विराट प्रसारमे यत्र-तत्र खयर बबुरक सब छिडि़आयल ।
बंध्याि कोशीक विनाशकारी बालु पोखरि इनारकेँ
मथि पोखरि इनारकेँ देने रहैक।
झँगड़ाही बबुरबन्नाासँ सटले उत्तर छल जितपुर आ तकर पश्चिम छल ।
झाङड़ झॅंगड़ाही माने आदिवासी लोकनिक टोल ङ
कंतोड़क कनेक्शन फराक हॅंटि क’ तीन घर यादव-बुन्धुन ।
कंतोड़क जेना एक तीनटा फूट-फूट खाना होथि1
विभाक आस्था ओ अनुकूले घरक ऊँचाई कि ।
सरंजाम आस्थाम ओ अनुकूले घरक ऊँचाई कि ।
अइल-फइल बास-भूमि बेस ।
निस्समन सखुआक मोट-मोट खाम्हघ, बाँसमँ सीटल मोट खढ़सँ छारल।
जाफरी मोट-मोट खाम्हा, बाँसमँ सीटल मोट-मोट खाम्ह , बाँसमूं सीटल
चौखरा मोट खढ़सँ छारल।
गोही दलान, बड़दक रहबाक पैघ-पैघ घर।
बाओन मुसहर लोकनिक घर एकदम ।
फट्टक बाँसक लागल।
महनतिया खेती बड्ड ।
सोर खढ़क पताल ठेकल।
दोबरी एहि साल उपटा दियउ फेर दोसर साल जागि जायत एहि भूमिहीन परिवार सबकेँ अपन बासडीहो नहि रहनि।
चत्री परती-पराँटक छाती चीरि चीरि मकइ, कुरथी पाट आ कि पापड़ मूड़ी उठओलक ?
धऽड़ पातर उपर एकाएक छत्ता जकाँ ! गाछ तर बाँसक खाम्हीए आ पातर-पातर बातीक मचान बान्हहल।
माशूल बिसेखी अइ इलाकाक चोर रहय।
कठमस्त छोटे काठीक जवान।
चनैल, छोटे काठीक जवान।
मगजी मुदा चारूकात घनगर केशक ।
कुइर श्या मवर्ण । गोल-गोल कुइर आँखि, बिलाइ जकाँ स्थिर, अचंचल आ क्रूर ।
चुना की रे ? जेना भक् टुटलै बिसेखीक ।
एकाक्ष पातर-कारी, नाट, छत्तर बिसेखीक क़पासँ सिद्धहस्तर चोर भय सकल छल ।
झंडी समिआनमे चारू कात बान्हभल।
पताखा समिआनमे चारू कात बान्हभल।
दफेदार लाल-लाल मुरेठा बन्ह ने सब, नील आ हाथमे लाठी नेने चौकीदान सब चारूकात ठाढ़ छल।
भोँमा फेर मालिक पर बजलै ।
उचिती मिनती केलकै।
बेबसाय इमानादारीसँ खेती क’ जीवा लेल।
धुत्थूाड़ डाँड़ कोना बूढ़ जकाँ झुका लेलक अछि, आ आँखि जे जेना नै सुझैत होइक।
उरदी खाकीक ।
चुह-चुह माथ पर घाम गेलैक।
भ्रू-कुचित कातमे ठाढ़ दरोगाजी पर नजरि पड़लै जे दृष्टिए एकरा तकैत रहथिन।
कठ-हँसी नीचामे बैसल सरुपा पर नजरि गेलै जे हँसि एकरा दिस ताकि रहल छलै।
लटबा सुतरीक जोरसँ नचा बाजल-बाबू हओ, तोरा बिसरि गेलह, हमरा बड्ड लाज भेल।
मानितहक आ तो बाबू ?
पिंडा मुइलाक बाद बेटा श्राद्ध करैत छैक। पाड़ै छै जे बापकेँ सद़गति होइ।
अइबर खेतमे दहक त’ भइया नै केलकै।
चुन्नीद खेतमे दहक त’ भइया नै केलकै।
बुनि खेतमे दहक त’ भइया नै केलकै।
चन्नी -पाट छत्तर बाजल-हँ, त’ कमजोरो हेतैक।
ठूआ-ठेकान गम्भी र भए बिसेखी बाजल-अरे एखन कोन छैक ओइ जमीनक ।
‘सीकमी-बटाइदार’ ओकरा डेढ़ बीघा दर्ज भेल रहै र्स्वेलमे ।
फिफरी ठोर पर पड़ल।
डेडढ़ी पर टोलक स्त्री गण सब जमा भेल जाइत रहय।
भउरी पारिवारक सहज स्वच्छब प्रवाह, देमय लागल हो।
रेलवीक साँय कमौआ । सरकारी नोकरी।
मुदैआ मुदा तइओ ई कलपुआ कोढि़या खातिर अपन सासुर तेयागि बाप-मायक नाक कटबैए। सभहक छाती जुरबैए ।
अओतइ एनाक’ पड़ा ! झोंट काटि एकरा चारि लात मारै आ बइला दै।
कटमटा कइए साँझ अन्नैक होइ छै।
धोनी, एकरा अपन हऽर, हरबाही, पटुआक कटनी, बजार-हाट कयनाइ सँ मतलब।
ढेकूलबला कुम्हअरा पाटक छोट कूप रहैक।
निट्ठाह कल्पठनाथमिश्र उर्फ कलपू मीसर तीस बिगहाबला गृहस्थ रहथि।
कुटिआक-पिसिआमे अपना माइक्रोसॉफ्ट संङ्ग बिजली अधिककाल गोबर-कड़सी एहि आङ्गनमे रहैत छलि।
लागलि-भिड़लि अपना माइक्रोसॉफ्ट संङ्ग बिजली अधिककाल गोबर-कड़सी एहि आङ्गनमे रहैत छलि।
जायति चारि दिनुक बाद फेर अपन सासुर ।
तररबिठुआ जखन-तखन बेटीकेँ काटय।
हुमड़ल घरबाली पर ।
बरिसल घरबाली पर ।
ताइ मुदा सँ? बिजली चुप भ’ जाय।
अऽट नजरिक भ’ कलपू ओतय प्रस्तु’त।
देया रुपया समाद दैक।
भेटघाट रुपया समाद दैक।
तइओ बन्दी रहैक टाका-पैसाक जखन जे खगता होइक, मेला घुमबा खातिर कि किछु किनबा खातिर, मुक्तत हस्तेन कलपू सरूपा मार्फत पठा दैक।
कस्तफन कलपू पर भेल।
आभ्रकाननमे एही दुहुक प्रणय अवाध गतिएँ चलय।
मानिजन गप्पज जखन अधिक पसरल, बजा क’ कहलकै-बिसेखी, समर्थ बेटी घरमे राखि तोरा जकाँ कानमे तूर-तेल द’ नै केओ सुतैए ।
सुगरकेसा छोट-छोट एकदम गढ़।
हड़ाठी-फराठी एकदम जकाँ।
पथरकोइलाक रेलवी क्वा टर पिजड़ा जकाँ लगै। धुँआँ सँ होइत केओ भकसी झोंकने जाइत होइक।
जमपुरी सदति रेलक आवाज लगै जेना मे केओ रखने होइक।
चक्काबला मोनमे बसल रहै गोरका कलपू ।
बेलस जेहने बगय छैक सुग्ग र जकाँ तेहने सोभावो छैक ।
पिठियाठोक मुदा हीरालाल आयल ।
सनकूट बात-बात पर क’ मारै।
हीआ तोरा लग अपन रहल छी।
जारिए तोरा लग अपन रहल छी।
भोकासी चारूकातसँ छी: छी: धूआँधार वर्षांगर हीरालालकेँ भेलै जे पाडि़ कान’ लागय।
अवधार सभटा छैक।
दिदगरि एहन ।
रभस घृणा सँ जरैत कण्ठे बाजलि- जा बाप-मायक नाक कटा क’ कर ‘ग’ ।
रहँय नहुँए पुछलकै बिजली-ओम्ह’रो गेल ? ओम्हएरसँ तात्पिय्र कलपू मिसरक कलमबाग दिस।
सीना-पेटमे भाउजक ब्लाेउज ढील भेलै ।
खाम्हीप फेर ओसाराक लगा बैसि गेलि।
ढल-ढल पाँखुर पर ढ़ील ।। करैत ।
नूआआङी खाली पहिरनाक ल’ क’ चललिअइ।
निछोह मकइ जकाँ ।
सङचल हमरा ।
दोदरा तोहर मारिक कल्प।ना करैत काल लागय अपने देहमे फूटल जाइत हो।
भभाक फेर हँसलि।
छहु एतर’ कथीक डऽर होइत छहु ? ककर डऽर होइत छहु ? डर ? डर दिस सोचबाक पलखति कहाँ रहैए ? तोरे सोचैत-सोचैत दिन-राति बीतल जाइए।
बाडीस काल्हि फारबिसगंजसँ बिजली खतरि नुआ, साया, आङी आ अनने रहथि।
लका नाक जोर सँ सुँघलक ।
ननगिलाट एकरा फेरि क’ एकटा ल’ लिह’ ।
बलेल-ढहलेल एकरा सब ठकि लैत छैक। जानि। ई त’ बनिआक जबरदस्तीत भेलै ने ।
कुट-कुट पैसा एकदम कटैत रहै छ’ ।
कोरा छाहरिसँ माय-बापक हीन, नीक-बेजाय खातरि डाँटयबला नै केओ रहनि।
असगनी दलानक सोझाँ बाँसक बुहत बनल रहैक।
चन्नी पाट ओइ पर सुखाइत छल।
घोकड़ी दूनू हाथ लगा लेलक।
रह’ नै-नै
दैह नै-नै ।
दोहरि आ चौपेतल मोडि़ क’ टार’ लागलि।
छिओ, कहै लेने जो।
कुश्तेम-पटकम बाजलि-तोरा सङ्ग मे डाँड़ त’ नहिए हैत हमरा ।
गोँगिआ दबल स्वेरेँ क’ गेनबा कहलकै।
रस्सी्-पगहा कोनो माल-जाल त’ छै ने जे हीरालालक हाथमे धरा देतै।
नड़ा देह दै छै ।
तखनई टारने ने टराइ छे1 त’ ब मनुक्खकक गप्पह।
बोध टारने ने टराइ छे1 त’ ब मनुक्खकक गप्पह।
गर टारने ने टराइ छे1 त’ ब मनुक्खकक गप्पह।
बमकै ई सार एना किएक छैक ?
सोझडँडि़या ई तर्क सरूपक मगजमे नै बैसलैक।
फदर-फदर बेकूफ नहितन। तखन सँ बजने जाइए।
महिसमोड़ मोचण्डड। नहितन।
पेटमेनमा खाइयो ने दै छै एकरा भरि पेट ई सार ।
कड़सीक फेर जमाय लग जा क’ बाजल-की करिओ ? सब बुझा क’ हारि गेलै। ओ एकदम जिद्द ठानि देने छैक।
कोड़ो-बाती आइ दू दिन सँ एत’ बैसल-बसैल गनि रहल अछि, एक झलक तक बिजलीक ने देखलक ।
विरूखे मोन माहुर रहैक।
फुत्काहर कयलक-नै, हम लैए जेबै।
कल पहिरनामे नूआ-आङी रहैक।
पूबला पहिरनामे नूआ-आङी रहैक।
पुनगी पीठ पर कारी चाकर जुट्टी लटकल रहै ।
नड़ा बिजली देह देलक।
अथ-उथमे गेना पड़ल किछु ने सोचि सकल।
फउदारी हीरालालाल अपनाकेँ सुरक्षित बूझि गरजल-हम क’ देबै।
छन्नाा-कौड़ी एक बापक बेटा नै जँ हम नाकमे नै बान्हि देलियै 1
बेगति ककरो के राखि नेनाइ आसान नै छै बाबू।
रेलबीक सेहो सरकारी छै। आदमी।
उजुरदारी आइ उजुरदारी देतै, तुरत उनटा बान्हद-बान्हि क’ ल’ जेतै बिसेखिआके ओइ छँउडि़ओके।
मचकी सुबधी बाजलि नहुँऍं- गे काकी, सुनलिअइए जे कलमबागमे एकटा बन्ह लकैए आ दीने-देखारे दूनू ओइ पर झुलैत रहैक।
सत्तम तोहर किरिया, बात।
निरसि ओकरा साँय देने रहै।
सोइरिएमे ई जनितउँ ने त’ तोरा नोट चटाक’ मारि दितिऔक।
धोपलक एकरा अछैत ओ बजनिहारि के। चुप रह’ ।
निड्डर केहन छैक एकर बहिन।
डेरुक महा छैक ई छँओड़ा ।
चाँछक कोशीक बाढि़सँ मारल बाँझ धतीकेँ प्रयासमे कहिआ ने अन्ना आ दवाइक मरि गेल रहितै ई सब।
बेत्रेक कोशीक बाढि़सँ मारल बाँझ धतीकेँ प्रयासमे कहिआ ने अन्ना आ दवाइक मरि गेल रहितै ई सब।
चे:चे: अप्रतिभ भेल गेना। ।
दोहरि ओए़नामे एकटा मोट रहनि।
खखास बिसेखी उठल। गरा साफ कयलक ।
उचितवक्ताल हँ-हँ बड़ा छै।
बेगति ककरा घर मे ककर नै दुख-सुख कटै छै।
सुगरा-चौरान बान्हि क’ ओकरा ल’ जयतै । चौरि क’ ल’ जेतै।
कैफियत बिसेखीक नामे साबा तीन बिगा रहै सर्वेमे खता खोलि देने। दस उसमिल घरोक फूट क’ खोलि देने रहै खाता-बिसेखी पासवान पेसर जंगी पासवान, रकबा दस डिसमिल, खानामे दर्ज रहैक।
मकान-मय बिसेखीक नामे साबा तीन बिगा रहै सर्वेमे खता खोलि देने। दस उसमिल घरोक फूट क’ खोलि देने रहै खाता-बिसेखी पासवान पेसर जंगी पासवान, रकबा दस डिसमिल, खानामे दर्ज रहैक।
सहन बिसेखीक नामे साबा तीन बिगा रहै सर्वेमे खता खोलि देने। दस उसमिल घरोक फूट क’ खोलि देने रहै खाता-बिसेखी पासवान पेसर जंगी पासवान, रकबा दस डिसमिल, खानामे दर्ज रहैक।
सिकमी छतरा मुदा भेल रहय।
बटेदार छतरा मुदा भेल रहय।
बदर आरिये आरि भेल घुरै। चेक करैत।
पेनाठ हाकिम एकरा हाथक पेना छीनि दू मारलकै-साला, अब भी झूठ बोलता है।
बकासत ई सभटा भूमि जंगबहादुर बाबूक बकास्त रहनि।
चन्नी दस गोटाक खेतमे रहैक।
फड़ल एखन नै रहै।
वासलातक फिंरगी पर चारि सालक नालिश कयने रहै जे नै बाँटि दैत अछि।
जजाति फिंरगी पर चारि सालक नालिश कयने रहै जे नै बाँटि दैत अछि।
बाजीदाबा आ सभ लीखि देलकै जे जमीन मालिकक छैक, दखल-कब्जाै ओकरे छैक।
बासलातक आ फेर तीन बरखक बाद नालिस देलकै बेचारा पर।
अदाजन एक कट्ठा आर हेतौ ? पुछलकै बिजली।
कलबल ओढ़ने रऽह ।
उछहने आँचर डाँड़मे कसि नेन रहै, नूआ जाँघ धरि ।
गोलिआ-मोलिआ सरूप बोझ बन्होने जाय।
गोडि़ एखन ओहिना घिसिआ-घिसिआ धारक कङनी पर सँ खसा देबै नीचा झाँखुड़ तर, दू दिन बाद देबै।
धत्ता मासो दिन सुखायल पर रहतै तैओ खराब नै हैतै ।
हँपीस बिजली गेल रहै1
नैरे बिजली हँसलि- पछताबा त’ हमरा कोनो चीजमे नै होइए।
गोड़ तीसेक सुखैल हँसी हँसल छतरा । बाजल-हँ। जऽन छैक ।
टंटा महा उद्धत रहे सरूपा, कोन ठेकान निरर्थक मारि लैक।
बेसाहि महा उद्धत रहे सरूपा, कोन ठेकान निरर्थक मारि लैक।
कट-मटी घरमे होमय लगलैक ।
जउड़ कदम तर बैसल स’ नक बाँट रहल छल।
भीड़ी गेनालाल ओसारा पर बैसल स ‘नक ओरिया-ओरिया ऊपर मचान पर ध’ रहल छल।
बगहा हँ, मकइ बूनि दही आ धान।
बिदाह मकइ कटला उत्तर धान कर’ जोगर भ’ जयतौक ।
ओहासी पानि एतै एम्हररो ऐ बेर ।
तेगुनिअबैत डोरी केँ बाजल बिसेखी ।
तिनपखियाक बीया थोड़ेक बदलि अनिहेँ ।
भजारीमे छत्तर काकाक बड़दक ई नै सकै छैक।
जब्बरर छैको एकरा सँ ।
टोइत बापक मोन फेर बाजल-फिरंगी अपन बड़द बेचै छैक।
गोला अपना बड़दक खूब जोड़ी लगतै ।
निड़ाडि़ आँखि तकलक बिसेखी बेटा दिस।
झीकल-झीकल एहि हँसमुखीक चक-चक उल्लअसित आँखि, हँसैत मोअ ठोर, ओण्रा्यल केश-पास,बाहु-युगल, एकर एकमा्रत प्रसन्नारता रहैक।
खोधि आ-खोधिया ई भारी बकलेल अछि। पूछत।
छरक्का के एकटा पैघ संठीक हाथमे नेन रहय।
चाहा-चिड़ै आँखि चंचल ओ अस्थिर । घेँट नमरा-नमरा चारूकात तकैत ।
झ’ड़ पुरुष नै पुरुखक कोना लाल-लाल निर्दय आँखिऍं एकरा तकै छैक, मने एकरा चटैत होइक।
टाकु मोनमे होइक ओकर धह-धह करेत दूनू आँखिमे भोँकि दैक जा क’ ।
भसत्ररि तोँ त’ भसत्ररि छेँ, ।
निठुरक हमरे जकाँ पाला पडि़तेँ त’ बुझितही।
मगनक-मन हमरा होइए तोँ ओकरी लग ओहिना रहितेँ ।
सोडर ओकर कारी पेंट-हाफ मे बरका क’ खीचि दितही।
हास क्षुब्धी ।
कलप देहक बुट्टी-बुट्टी फड़कैत। पितड़क बट्टम लागल खाकी उर्दी सन कड़-कड़ करैत।
टाटक सोचथि, इहो एकटा थिक।
भ्रमरी ई तँ एकटास्व्च्छ न्द थिक जे कोनो बकन्द् भ’ रसपान क- सकैछ।
पदद्यमकोषमे कोनो बन्दम भ6 रसपान क’ सकैछ।
आहटि एक क्षण ठाढ़ रहि लेलनि।
चल-चलन्तीे काल्हि चलिए जयताह। बेरिया ई अवसर छोड़बाक नै।
उसासि ईंट बाजलि-सा कोढि़यो की मारब एहन ईंट जे भूरकूस भ’ जयत’ ।
चनिये ईंट बाजलि-सा कोढि़यो की मारब एहन ईंट जे भूरकूस भ’ जयत’ ।
गैँच देह नेने रहथि।
मर-मूठि बक-बक क’ जेना गेल होनि।
झिक्केमझोरा दुहु मे होइत।
रोम बड़द बला एकटा छौँकी मात्र।
सकारि खूब नेने रहैक बिसेखी ।
सङेजाय हिनके टप्पहर पर बिजली, सरूप कि गेना जाय फारबिसगंज आ तकरा बाद हिनके पुरैनिञा मे।
गवाही-इजहार हिनके टप्पेर पर बिजली, सरूप कि गेना जाय फारबिसगंज आ तकरा बाद हिनके पुरैनिञा मेा
माशूल मुदा बिसेखी बीo सीo रहय। चोर।
‘जनम-हौस’ बिसेखी केँ भेलैक।
संग्रहणी मुदा बेसी दिन जहल नै काटि सकल बिसेखी। सँ जेलेमे मुइल छबे मासमे।
परोक्ष बिसेखीक भेलाक बाद गेना घरक मालिक भेल।
हेलान तखन बिदाहि क’ दिअही।
कसौँक ई त’ सभटा पानि जे देखैत छही से पानि छैक।
मनिजन तोरा नै बूझल छह काका। मालिकमे मील गेलैए।
सत्तम सरूप स्वबर हल्लुलक कय नहुँए बाजल-बात।
बिबनस बाप-बेटा मे, भाइ-भाइमे, माय-बेटीमे ।
अबलम कुंठित स्वझरेँ भूखन बाजल- एहि सँ गरीब के दस धूरक भेलै।
तोँ फेर कनेक काल चुप्पे रहि बजलाह-आ हे, मानि ले,।
भेलेँ फेर कनेक काल चुप्पे रहि बजलाह-आ हे, मानि ले,।
खिदमती तोरा कुल जमीन छोडि़ देबौक। जागीर बूझि क’ ।
धनहर खेत एकर नीक रहैक। अनका सभक जकाँ भीठ नै।
पाराँठ परती नै।
हुड्ड मुदा सोचलक, आन सब मानिओ जेते, मुदा सरुपा पर संदेह होइक। आ ।
उद्धत मुदा सोचलक, आन सब मानिओ जेते, मुदा सरुपा पर संदेह होइक। आ ।
ओजह एकठाम करबाक जे काल्हि साँझखन मालिक बजाक’ सुलहक गप्पल चलेलकै।
फऽर-फौदारी बेजाय कोन। ई झँझटसँ उग्रास हेतैक।
मऽर मोकदमाक बेजाय कोन। ई झँझटसँ उग्रास हेतैक।
खोफिया कोन ठीक अइमे, के मालिकक अछि ।
मोटे चारि जना बाँकी छै।
बाहरे बाह बड़ सुलभ लगलै ई अधिया पर सुपुर्दीक विचार।
खुलस्ता मगर एनाए भेल जे सब चुप बैसल छैक से किएक। ने किएक बजैए ।
छति आधा पर सभटा झंझअ खतभ भ’ जाय त’ कोन ।
मरौसी अरे, कोनो कि अछि हमरालोकनिक! चीज त’बबू ओकरे छैक।
लगन्ते तखन आग झोपड़ा जे से लाभ।
निकसे तखन आग झोपड़ा जे से लाभ।
हओ कि ने बोनदास ?
फा-दूआमे मालिकेक भेलै। जे जतबा लै जाइक ।
दाफानि मालिकेक भेलै। जे जतबा लै जाइक ।
केहुनिआठि नहुँए कहलकै-बाज ने।
बिसुनपद इसपी, कलक्टार, सबकेँ बेधोख दूटा सुनाब’ बला।
बिटगर बाकुट भरिक जबान मुदा की ।
भोटा-भोटी दू बेर एमेलेक मे हारि गेलै।
सेल्ला ओहिना गरजैत रहै छै बाघ जकाँ।
सुपुर्दी पहिल गप्पै जे लोक करै।
खूबज बाह रे जवान। बाह। खूबज।
दौक अलबत्त।
पेसानसँ अपन धरती-माताक पूजा करैत ? देखहक, सरकारी कानून त’ जरूर सोचि विचारिक’ बनै छैक ने।
हौक जे हेबाक छैक ।
काँकडि़ की बुझलकैए मालिक, खीरा ।
ऊखे सभ-साल माहे रस्ता ।
पएना आ ने कहिओ ई लोकनि आइ धरि हरबाही पएना छोडि़ लाठी-भाला धारण कयने रहय।
भ्रूकुचित भूखन आँखिएँ एहि परिवर्त्तनकेँ देखलक।
हुले-ले भीड़ बनि कयनाइ बड़ सहज; मुदा भीड़क लेल कोनो योजनाक रूपरेखा प्रस्तुेत कनाइ बड़ कठिन।
पेरि जकरा सर्वेमे जमीन भेलैए आ जकरा मालिक रहल छैक।
खसि सभक जुटला पर जखन छत्तर आ सरूप अपन संवाद सुनओलक त’ सभक मोन पड़लै।
बेर-परसमे ई लोकनि कहिओ ओकर ठाढ़ भेलखिन अछि ? कहिऔ ने।
निगरति छै सरकारी इनारोसँ पानि नै भरय दैजाइ छैक ओकरा सभकेँ ।
रिजन छै सरकारी इनारोसँ पानि नै भरय दैजाइ छैक ओकरा सभकेँ ।
मुदित-मुख यादव-बन्धु रहलाह।
पड़गूग’ हम किएक अइमे निरर्थक ।
निट्ठाह खूब परिश्रमी। गृहस्थ ।
कथीले हमरा खातिर आन झंझटि बेसाहत।
समधानि भोला सिंघ भाला चलओलक।
उछटि भाला गेल रहैक।
होह दिन जाइत देरी नै छैक।
भुँइआ सोहार मुदा घौर बेस नमहर। ।
तेसराँ बूट गनबा किनने रहय।
फुफरी बरसातक करणेँ लागि गेल रहैक।
वंशीवट ओकर हाथक रोपल केरो आब एकरे खातिर फुटतैक।
बौसबाक साहस मुदा हठातद्य नै होइक।
कहुँ ओकरा प्रतिएँ नीक गप्प अधलाह ने लगै।
दुत् बाजल ! अपने भूख लगतै त’ खा लेत।
बँउसि बाउ जिबैत रहितैक त’ तबिना बेनीकेँ क’ खुअओने ने रहिकतैक।
अत्र-जोग ता अपने नै करितै।
भमराह मुँह रहैक, आँखि फूलल।
जायबेँ फेर तोँ बाहर ।
बेत्रे जखन हम पहिज बेर ई सोचलहुँ जे कलपू नै जीवि सकब, त’ रामि छहरदबालजी फानिक’ भागल रही।
मुर्दघट्टी दू-दूटा टपि गेलहुँ।
फएसला सोचिले; क’ क’ हमरा कह।
भग। हँट, ।
खुहरी एके जारनिसँ छूटल दुइठा थिक।
धोखारैत बबुर, खयर आ झड़-बएरक झूकल डरिपातकेँ बाढि़क भटरङ्ग पानि धारमे उमड़ल छल।
करा बीचमे रेत, कात-कात मारैत।
भौरी बीचमे रेत, कात-कात मारैत।
भड़कछ बिजली भरि जाँघ पानिमे ठाढि़ रहय।
भीडि़ बिजली भरि जाँघ पानिमे ठाढि़ रहय।
चेकानसँ माटिक दाबल बोझ।
दिग्धीद बिजली बाजलि-रे, एकटा अपन खूनि ले।
अनगुतिये काल्हि हाथ लगा देबै।
फकसियार धारक कात खएर-बबूरक जंगल मे बाजल।
उत्तरा-चौरीक दूरसँ कतहु पटुआक बोझक सवामित्वज लेल स्वसर आयल।
सबूर ई बान्हि अइ टुटली मड़ैआमे खपतैक ? इजोरिया जकाँ पसरल, फूलक गाछ जकाँ फलायल, मह-मह करैत।
सदि-घड़ी कतबो सासु ओकरा फज्झडति क’ दौक उनटि क’ एकटा जबाव नै देतैक। सासु-ससूरक दासो-दास।
ना-भरोस सरूपक माय तैओ रहय।
बढ़ैत-फुटैत एहन रत्न- पुतोहुकेँ त्या गबाक इच्छास ने होइक। सरूपेँ देखय़।
बिग्रह घरमे क’ देतैक ।
नव-नवतारिके कोन ठेकान आइ काल्हुेक ? बेटाकेँ की कहाँ सिखा-पढ़ा देतै।
लगिचिआ नै आब भ’ गेलै। गेलै आब।
भौजो नै हय । मने-मने तोँ सरापैत हेबह।
जातक टाङ पसारि पकिड़ जोरसॅं चला देलकै जाँत।
गाँ मोन बैसि गेलैए अइ घरमे।
लिल्लास फेर हाथ चमका बाजलि-तोँ त’ काकी आरो करै छेँ ।
बरखगीड़ू तोँ छेँ, बरखगीड़ू ।
क्रम पात आङनमे ठाढ़ भेल । एहन सन जेना किछु सुनने नै हो।
बेधोक कोना ई बजै छैक बेधोक कहियो एकरा लाज-संकोच नै हेतै !
अँउसि जाँघ-छवामे नीक क’ मटिआ तेल नेने रहय जोंकक कारणेँ ।
दिग्घीं बज-बज करैत सड़ल थाल-कादोबला मे गोड़ल पटुआक एक मुट्ठी फेर घिचलक।
सरगअसरा सुतार थिकै जजातिक जमीनमे।
आठ-धो ज ‘न के बीच-बीचमे बीड़ी पिओनाइ, तमाकू देनाइ आवश्य क। मे एक धो मजूरील फराक ।
भीड़ी संठी एकट्ठा करब, की बनायब, की सुखायब, कि लाड़ब।
मरकट कलपूकेँ संकेत कय बाजलि-एहने गिरहथ, ने बीड़ी ने सुपारी। भारी गिरहथ छ’ तोँ ।
उछटि कहुँ क’ एम्ह रे ने अबैक। कलपू आ बेनी हँस’ लागल।
भाओ पैंतीस रुपैये नै बेचलहुँ जे आर बढ़तै से आब बाइस भ’ गेलै।
काटू-गोडू फेर ।
झमा आ बेचैत काल क’ खसू।
गोलाबला उपनजाबे किसान सब आ मोटाय ।
रिया-खिया बनिञा हाथे बेचू त’ क’ टाका देतह।
बोच देखने रहिअइ, मोटा क’ त’ भ’ गेलैए।
औले एखन हम सब बबूरक छाहरि तर मरइ छी आ ओकरा दू-दूटा पंखा लागल हेतइ।
केर मटिआक तेल औंसबाक दोसर राउण्डग चलल।
लैन किछु देबो करथिन त’ पहिने एक घंटा नेहोरा करा तखन।
छक नीक सन आङी ।
छक छीटबला, नीचामे पाढि़ लागल। लिह पाथर बला।
गराँ बाजलि-डर भेलह तोरा जे पड़ैए ।
नाँ ओकरे ले चीज-वस्तुज चाही। अपन कहलिय’ जे नीक कीनिक’ अनब।
अराट-बराट की त’ खाली चुप्पे। रहबेँ सपनाइत आ कि खाली बजबेँ ।
सनुकची फेर उठि गेलाह आ एकटा पितडि़आ नेने बहरेलाह।
पहिरतेँ तोँ ई सभटा ।
अधर्मताइ हमर सहल नै भेलनि।
सूति-पाती तोहर हमरा छजत ? हम अहिना तोरा लग अबैत रहबह।
रेलवी छोट क्वाहटर मे काँच पथर-कोइला मे जेना औनाइत रही तेहने मोन होमय लगैए ।
छाहरिएटा अइ जन्मामे हमरा तोहर लीखल अछि।
जान्हि समस्त् उद्वेग ओ आक्रोश जेना समाप्ती भ’ ।
आचूड़-स्नामत ओहि शान्तिमे क्षणभरि चुप्पत रहलाह।
भोगर हरिअर कचोर ।गाछ ऊपर मुँहे उठल।
बरेक बरखक बाद आ जतेक गुमार करतै आ गरमी रहतै पटुआ बढ़तै।
बिखिया-बिखिया बरखक बाद आ जतेक गुमार करतै आ गरमी रहतै पटुआ बढ़तै।
ठाँ माँझ ओहिना रहल।
दीपित कौमार्यक, दीप्तिसँ लाल पटोरसँ बेंढ़ल गोर नाम मुँह ।
दृष्टिनिक्षेपमे एके पूर्व परिचयक भावविलोपित भ’ गेलै।
-
"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
-
जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
-
खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।