भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Sunday, September 13, 2009

'विदेह' ४२ म अंक १५ सितम्बर २००९ (वर्ष २ मास २१ अंक ४२)

'विदेह' ४२ म अंक १५ सितम्बर २००९ (वर्ष २ मास २१ अंक ४२)

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एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१. कथा- दूटा पाइ -जगदीश प्रसाद मंडल
२.२.सुरेन्द्रश लाभ(नाटक)-माई गे ! भूख लागल हए


२.३. अनमोल झा- लघुकथा
२.४. कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन -१७

२.५. कथा-नोर अंगोर- कुमार मनोज कश्यप
२.६. डॉ रमानन्द झा रमण-67म सगर राति दीप जरय
२.७. रिपोर्ताज- मनोज झा मुक्ति
२.८. अमरेन्द्र यादव-रिपोर्ट

३. पद्य


३.१. गुंजन जीक राधा

३.२. सतीश चन्द्र झा
३.३. हिमांशु चौधरी-दू टा पद्य

३.४. पंकज पराशर
३.५. नेनाक प्रश्न-सुबोध कुमार ठाकुर
३.६.निशाप्रभा झा (संकलन)-आगां

३.७. मिथिलेश कुमार झा-दू टा पद्य
३.८.कल्पना शरण-प्रतीक्षा सँ परिणाम तक-४


४. गद्य-पद्य भारती -पाखलो -५ (धारावाहिक)- मूल उपन्यास-कोंकणी-लेखक-तुकाराम रामा शेट, हिन्दी अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस, मैथिली अनुवाद-डॉ. शंभु कुमार सिंह

५. बालानां कृते- देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)२.कल्पना शरण:देवीजी.
६. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

8. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)

8.1.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
8.2. Devil Blessed Us-Shyam darihare (Devil Blessed Us- Maithili story by Shyam darihare, translated by Praveen k Jha )


विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।



गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'।


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१. संपादकीय
पञ्जीमे उपलब्ध किछु तथ्य:-
महाराजाक हेतु निहुछल कन्यासँ अपन पाँजिक रक्षार्थ कन्या चोराकेँ बियाह केलापर राजा द्वारा पञ्जीकार लोकनिकेँ बजाए हुनकर नाममे तस्कर उपाधि जोड़ब, नैय्यायिक गंगेश उपाध्यायक जन्म पिताक मृत्युक ५ सालक बाद होएब, महेशठाकुरक बहिनक विवाह कूच-बिहारक राजकुमारसँ होएब, कविशेखर ज्योतिरीश्वरक उपाधिक संग उल्लेख (हुनकर पाण्डुलिपि नेपालक पुस्तकालयसँ प्राप्त होएबासँ पूर्व), ओकर अतिरिक्त ढेर रास ढाकाकवि आ कवि शेखर लोकनिक विवरण, मुस्लिम आ चर्मकारसँ विवाहक विवरण आ समाजमे ओहिसँ भेल सन्ततिक प्रति कोनो दुराग्रहक अभाव, ई सभ पञ्जीमे वर्णित अछि।आर्यभट्टक विवरण- (२७) (३४/०८) महिपतिय: मंगरौनी माण्डैर सै पीताम्ब र सुत दामू दौ माण्ड्र सै वीजी त्रिनयनभट्ट: ए सुतो आर्यभट्ट: ए सुतो उदयभट्ट: ए सुतो विजयभट्ट ए सुतो सुलोचनभट (सुनयनभट्ट) ए सुतो भट्ट ए सुतो धर्मजटीमिश्र ए सुतो धाराजटी मिश्र ए सुतोब्रह्मजरी मिश्र ए सुतो त्रिपुरजटी मिश्र ए सुत विघुजटी मिश्र ए सुतो अजयसिंह: ए सुतो विजयसिंह: ए सुतो ए सुतो आदिवराह: ए सुतो महोवराह: ए सुतो दुर्योधन सिंह: ए सुतो सोढ़र जयसिंहर्काचार्यास्त्रस महास्त्र विद्या पारङगत महामहोपाध्या य: नरसिंह:।।
५८४(A)। चैतन्य महाप्रभु: रमापति उपाध्याय करमहे तरौनी मूलक छलाह। ओ बंगाल चलि गेलाह,हुकर शिष्य रहथि चैतन्य महाप्रभु।गंगेश उपाध्याय-छादन छादन, उदयनाचार्य-ननौतीवार ननौती (करियन, समस्तीपुर), महेश ठाकुरक मातृक काश्यप गोत्री सकराढ़ी मूलमे रुद झा। रमापति उपाध्याय प्रसिद्ध विष्णुपुरी, परमानन्दपुरी वत्सगोत्री करमहा मूलक तरौनी गामक चैतन्यक गुरु।बल्लाल सेनक समयमे हलायुध आ लक्ष्मणसेन-उद्योतकर। सिंहाश्रम मूलक म.म.हलायुधसँ १२ पुस्त पूर्व माण्डर मूलक बीजी म.म.त्रिनैन भट्ट (४०० ए.डी.लगभग) एहि पोथीक प्रस्थान बिन्दु अछि(पृष्ठ १८)। हलायुध आ नरसिंह समकालीन छलाह। नरसिंह (माण्डर मूल)सँ १२ पुस्त पूर्व त्रिनैन भट्ट मे।


संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ सितम्बर २००९) ८४ देशक ९१० ठामसँ २९,४२१ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ १,९७,८०९ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।

गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
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२. गद्य
२.१. कथा- दूटा पाइ -जगदीश प्रसाद मंडल
२.२.सुरेन्द्र9 लाभ(नाटक)-माई गे ! भूख लागल हए


२.३. अनमोल झा- लघुकथा
२.४. कुसुम ठाकुर- प्रत्यावर्तन -१७

२.५. कथा-नोर अंगोर- कुमार मनोज कश्यप
२.६. डॉ रमानन्द झा रमण-67म सगर राति दीप जरय
२.७. रिपोर्ताज- मनोज झा मुक्ति
२.८. अमरेन्द्र यादव-रिपोर्ट


जगदीश प्रसाद मंडल
कथा- दूटा पाइ

हलहोरिमे फेकुओ दिल्लीक रैलीमे जाइक विचार केलक। परसू सौझुका गाड़ी सभ पकड़त। दिल्लीक लड्डूक बात फेकुओकेँ बुझल रहै। तेँ खाइक मन रहै। अबसर भेटल छले से किऐक तऽ, ने गाड़ीमे टिकट लागत आने संगबेक कमी, मात्र चारि दिनक खेनाइ टा अपन खर्च। गाड़ीमे लोक बेसी खाइतो नहि अछि किऐक तँ पेशाव-पैखानाक समस्या रहै छै।
फेकुआ मायकेँ कहलक- ‘‘माय, परसू दिल्ली जेबउ। बटखरचाक ओरियान कऽ दिहें?’’
माय बाजलि- ‘‘की सभ लेबही?’’
फेकुआ कहलक- ‘‘दू सेर चूड़ा लऽ कऽ डॉक्टर सहाएव नागेद्र जी चलै ले कहलथिन हेँ। हमरो दू सेर चूड़ा कुट्टि दिहेँ।’’

फेकुआक बातक बिश्वास मायकेँ नहि भेलै। मने-मन सोचलक जे दू सेर चूड़ा तँ एक दिनमे लोक खाइत
अछि। चारि दिन कोना पुड़तै? फेरि मनमे अयलै जे दू सेर चूड़ो आ चारि-दुना आठ टा रोटियो पका कऽ दऽ देबै। कहुना भेलइ तँ रोटी सिद्ध अन्न भेलइ।

गाड़ी अबैसँ पहिनहि जुलूसक संग फेकुआ स्टेशन पहुँचल। जिनगीक पहिल दिन फेकुआ गाड़ीमे
चढ़त। प्लेटफार्म पर भीड़ि देखि फेकुआक मन घबड़ेबो करै आ उत्साहो जगै जे एत्ते लोक चढ़त से हेतै आ हमरा वुत्ते कि नहि चढ़ि हैत। निरमली-सकरीक बीच छोटी लाइन। गाड़ियो छोटकिये। मुदा सकरी सँ दिल्लीकक लेल गाड़ियो बड़की आ लाइनो बड़की। गाड़ीमे चढ़ि फेकुआ सकरी पहुँचल। दिल्लीक गाड़ी लगले रहै। हाँइ-हाँइ कऽ सभ निरमलीक गाड़ी सँ उतड़ि दिल्ली गाड़ीमे चढ़ल। गाड़ी खुजलै।

ओना सकरी सँ दिल्ली जाइक लेल चैबीस घंटा लगैत छै। मुदा आइ से नहि भेल। चालीस घंटामे
पहुँचल। मुदा चालीस घंटा कोना बीतल से फेकुआ बुझबे ने केलक। हलहोरियेमे पहुँच गेल। ने एक्को बेरि खेलक आ ने पानि पीलक। मुदा तइओ भूख बुझिये ने पड़ै। गाड़ी सँ उतड़ै काल फेकुआ खिड़की देने प्लेटफार्म दिशि तकलक तँ जेरक-जेर सिपाही घुमैत देखलक। मुदा फेकुआक नजरि, कतौ नहि अँटकि, मोटका सिपाही पर अँटकल। ओकर मनही पेटपर नजरि गेलै। तइ पर से छओ आंगुर चाकर ललका बेल्ट। जे बेरि-बेरि निच्चा ससरैत। चाइन पर सँ घामक टघार। दस किलोक बन्दुक सेहो कान्हमे लटकल। मुदा तखने नागेन्द्र जी सेहो अपन छबो संगीक संग हाथ सँ सभकेँ उतड़ैक इशारा देलथिन। धड़फड़ा कऽ फेकुओ उतड़ल।

प्लेटफार्म टपि जहाँ फेकुआ मुसाफिर खाना प्रवेश करै लागल कि ममिओत भाइपर नजरि गेलै। ममिऔत भाइ रतना चरिपहिया गाड़ीक ड्राइवर। अपना मालिककेँ गाड़ी पकड़वै ले आयल रहय। भाइपर नजरि पड़ितहि लगमे जा फेकुआ गोड़ लगलक। गोड़ लागि लालकिला मैदान दिसक रास्ता धेलक। पाछूसँ झटकि कऽ आगू बढ़ि रतना फेकुआसँ घरक कुशल क्षेम पूछलक।
कुशलक जबाव नहि दऽ फेकुआ कहलक- ‘‘काल्हि साँझ धरि लाल किला मैदानमे रहब तेँ ओतइ अबिहह। अखैन नै रुकबह।’’

‘‘कनी चाहो पीबि ने ले?’’

‘‘नै अखैन कुछो नै पीवह।’’

फेकुआ बढ़ि गेल। मुदा रतनाकेँ पाछू घुमैक डेगे ने उठै। फेकुऐ दिशि तकैत रहय। मने-मन विचारै लगल जे हो न हो काल्हि भेटि नहि हुअए। ओत्ते लोकमे के कत्तऽ रहत, तेकर कोन ठीक। तहूमे सौझुका बात कहलक। दिल्ली छियै। कोन ठीक जे बिजलीक इजोत रहतै की नहि। एत्ते लोकमे तँ दिनोमे अन्हार रहत। एक्को दिन मेजमानियो ने करौलियै। गाममे दीदी सुनत ते की कहत? उ की कोनो दिल्लीकेँ दिल्ली बुझैत हैत। ओ तँ गामे जेकाँ बुझैत हैत। जहिना गाममे सभकेँ सभ चिन्है छै, तहिना। मुदा ई त दिल्ली छी। भाड़ाक एक कोठरीमे सोहर गाओल जाइत छैक आ दोसरमे कन्नारोहट होइ छै। विचित्र स्थितिमे रतना पड़ि गेल। आइ घरि रतनाक बुद्धिपर एहेन भार कहियो नहि पड़ल रहै। एकाएक मनमे अयलै जे कौल्हुका छुट्टी लऽ कऽ भोरे फेकुआक भेटि करब। भेटि होइतहि लालकिला, जामा मस्जिद देखा देबइ।

दोसर दिन भोरे रतना फेकुआक भेटि करै विदा भेलि। लाल किला मैदान पहुँचते भेटि भऽ गेलइ। भेटि होइतहि दुनू भाइ गामेक बसिया रोटी खा पानि पीलक। भरि दिन संगे रहि, रैली समाप्त कऽ रतना अपना डेरापर आयल। पैघ सेठक ड्राइवर रतना, तेँ डेरो नीक। सब सुविधा। मुदा रतनाक डेरासँ फेकुआक मनमे खूब खुशी नहि भेलइ। मन पड़ि गेलइ मायक ओ बात जे सदिखन बजै- ‘‘अनकर पहीरि कऽ साज-बाज, छीनि लेलक तँ बड़ लाज।’’
अपना जैह रहए ओहि सँ सबुर करी। मुदा मायक बात फेकुआक मनमे बेसी काल नहि अँटकल। किऐक तँ तीनि दिन सँ नहाएल नहि छल। जहि सऽ देहमे लज्जतिये ने बुझि पड़ै।
रतनाके कहलक- ‘‘भैया, पहिने हम नहेबह। बिना नहेने मन खनहन नै हैत। ओना ओंघियो लागल अछि। तेँ नहा कऽ खेबह आ भरि मन सुतबह।’’

फेकुआके रतना बाथ रुम देखा देलक। बिजली जरैत। पानि चलैत। बाथ रुम देखा रतना गैस चुल्हि पजारि भानस करै लगल। भरि मन फेकुआ नहाएल। मन शान्त भेलइ। मनमे उठलै, जखन दिल्ली आबि गेलहुँ तँ किछु लइये कऽ जायब। रतना लग आवि फेकुआ बैसल।
भानसमे विलंब देखि रतना कहलकै- ‘‘बौआ देखही, ई दिल्ली छियै। एहिठाम लोक सोलह-सोलह घंटा खटैत अछि। दरमाहाक संग ओभर टाइमोक पाइ भेटइ छै। मुदा जिनगी-जीबैक लुरि नहि रहने सब चलि जाइ छै। ने गामक कर्जसँ मुक्ति होइ छै आ ने अहीठाम चैनसँ रहैत अछि। भुतलग्गु जेकाँ सदिखन बुझि पडै़त छै। तोरा एहि दुआरे कहि दइ छिऔ जे तू अपन छोट भाइ छियें।’’

रतना बात सुनि कने-काल गुम रहि फेकुआकेँ कहलक- ‘‘भैया, तू सभ तरहे पैघ छह। जखन तोरा लग छी तँ तोंही ने हमर नीक-बेजाय बुझबहक।’’

फेकुआ बातसँ रतनाकेँ अपन जिम्माक भार बुझि पड़लै।
बाजल- ‘‘देखही बौआ, एखन जे कहलिऔ से स्टील फैक्ट्रीक स्टाफक बात कहलिऔ। मुदा सब एहने अछि सेहो बात नहि छै। एहनो लोक अछि जे अपन
मेहनत आ लुरिसँ गरीब रहितो अमीर बनि गेल। अपने इलाकाक ढ़ोरबा छी। जेकरा हम तँ ढ़ोरबे कहै छिअए मुदा ओ ढ़ोढ़ाई बाबू बनि गेल। जखन गामसँ आयल, तँ बौआ-ढ़हना कऽ चारि दिनक बाद एहिठाम आयल। ओकरा शैलूनमे नोकरी लगा देलियै। किछु दिन तँ काज करैमे लाज होइ। किऐक तँ ओ धानुक छी। मुदा किछुए दिनक पछाति तेहेन हाथ बैसि गेलइ जे नउओकेँ उन्नैस करै लगल। अपनो खूब मन लगै लगलै। दरमहो बढ़ि गेलइ। तीनि सालक बाद जेना ओकरा एहिठामसँ मन उचटि गेलइ। सोचलक जे जखन लुड़ि भऽ गेल अछि तखन कतौ कमा कऽ खा सकै छी। से नहि तँ गामेक चौकपर दोकान खोलब। अपना जे दू पाइ कम्मो हैत तइ सँ की ,समाजक उपकार तँ हेतइ। सैह केलक।
ले बलैया, गामक लोक कियो ठाकुर तँ कियो नौआ तँ कियो हजमा कहै लगलै। घरक जनिजातिकेँ नौआइन कहै लगलै। सभसँ दुखद घटना तखन भेलै जखन कथा-कुटुमैती आ जातिक काजसँ अलग कयल गेलइ। मुदा ओहो कर्म-योगी। गामकेँ प्रणाम कऽ,अपन परिवारक संग दिल्ली शहर चलि आयल। वाह रे वनक फूल, एहिठाम आबि कऽ अपन कारोवार शैलून ठाढ़ कऽ लेलक। छह टा स्ठाफ रखने अछि। बहिनीक विआह इंजीनियरसँ केलक। हमहूँ विआहमे रहियै।’’

फेकुआ बाजल- ‘‘हमरो कोनो लाज-सरम नै हैत। जे काज मे लगा देबह, हम पाछु नै हटबह।’’
रतना कहलक- ‘‘परसू रवि छिअए। हमरो छुट्टी रहत। तावे दू दिन अरामे कर।’’
फेकुआ बाजल- ‘‘हमरा ओते सुतल नीक नै लगतह। चलि जेबह बुलै ले।’’
रतना कहलक- ‘‘रौ बुड़िबक! गाममे लोक खिस्सा कहै छै जे फल्लां तेहेन काबिल छै जे एक्के पाइ मे बेचि लेतउ। मुदा अहिठाम सभ काबिले छै। तैं देखबिही जे अहिठाम सभ से पैघ कारबार मनुक्खेक खरीद-बिक्रीक छैक। देहाती बुझि केओ ठकि कऽ बेचि लेतउ। कहतौ जे हवा-जहाजक नोकरी धड़ा देबउ आ चलि जेमए आन देश।’’

रतनाक बात सुनि फेकुआ क्षुब्ध भऽ गेल। मुदा मनमे अयलै जे जना हम बेदरा रही तहिना भैया कहैए। मुदा किछु बाजल नहि। दम साधि कऽ रहि गेल।

तीनि दिनक उपरान्त फेकुआ कपड़ा सिलाइक दोकानमे काज शुरु केलक। दू हजार रुपैया दरमाहा। भिनसर छओ बजेसँ राति नओ बजे धरिक डयूटी। बीचमे एक बेर अधा घंटा जलखै करै ले आ एक घंटा खाइ बेरि छुट्टी। फेकुआक मनमे उठल जे ड्यूटी तँ बीसो घंटा कऽ सकै छी मुदा सुतैक जे आठ घंटा छै से केना
पुड़त। मुदा फेरि मनमे एलै जे जखन दू पाइ कमाइ चाहै छी तखन तँ सब सुख-भोग कमबै पड़त। दोकानमे आठ टा कारीगर। आठो नोकरे। फेकुआ अनाड़ी, तेँ दोकानक झाडू़-बहारु सँ काज शुरु केलक। कपड़ा काटब आ सिलाइ मशीन चलौनाइ सेहो कने-कने सीखए लगल।


दुइये माय-बेटा फेकुआ। दस साल पहिनहि बाप मरि गेल। अपने दिल्ली धेलक आ माय गाममे। मुदा मायो थेहगरि। पुरुखे जेकाँ बोनि-बुत्ता करैत। नोकरी होइतहि फेकुआकेँ माय मन पड़लै। माये टा नहि गामो मन पड़लै। मन पड़लै गामक स्मृति। माइक ममता जगि मनकेँ खोरै लगलै। मनमे उठै लगलै- रदेशियाक परिवारमे गेटक-गेट कपड़ा.....राशि-राशिक चीज-बस्तु....रेडियो, घड़ी, टी. वी., मोबाइल इत्यादि। ककरा नहि नीक वस्तुक सेहन्ता होइत छै। मुदा ओहन सिहन्ते की जेकरा पुरबैक ओकातिये ने रहै। दू हजार महीना रुपैआक गरमी फेकुआक मनमे तरे-तर चढ़ि गेलै। कोना नहि चढ़ितै? मुदा आमदनिऐक गरमी चढ़ल खर्चक पानि पड़बे ने कयल। सोचलक जे सबसँ पहिने माएकेँ चिट्ठी लिखि जना दिअए।
आठ दिनक बाद फेकुआ रतनाकेँ कहलक- ‘‘भैया, हमरा तँ लिखल-पढ़ल नै होइए। मुदा जखन नोकरी लागि गेलौं तँ मायकेँ जनतब देब जरुरी अछि। किऐक तँ ओकरा होइत हेतै जे कत्तऽ बौआइ-ढ़हनाइए। रतनोक मनमे जँचलै। वी. आइ. पी. बैगसँ पोस्ट-कार्ड निकालि रतना चिट्ठी लिखय ले तैयार भेल।
पुछलक- ‘‘बाज की सब दीदी कऽ लिखबीही?’’
फेकुआ लिखवै लगल-
स्थान- दिल्ली
ता.- 5.6.2007

माय, गोड़ लगै छिऔ
भगवानक दया आ तोरा-सबहक, समाजक असीरवाद से तेहेन नोकरी भेटल जे कहियो मनमे नै आयल छल। दू हजार रुपैआ महीनाक तलब। अपना कते खर्च हैत। जे उगड़त से मासे-मास पठा देबउ। बेंगबा कक्काकेँ कहिअनि जे चिमनी पर जा कऽ ईंटाक दाम बुझि अबै ले। पहिने घर बना लेब। अपना कलो (चापाकल) नै छौ, सेहो गड़ा लेब। घरक आगू जे मलिकाबाक चौमास छै, ओहो कीनि लेब।’’

तोहर बेटा फेकुआ


सात बजे भिनसर। मेघौन। कखनो कऽ सुरुज देखि पड़ै आ फेर झपा जाइ। झिहिर-झिहिर पुरबा हबा चलैत रहै। पान-छओ गोटेक संग फेकुआक माय रामसुनरि धन-रोपनी करै विदा भेलि। किछुए आगू बढ़लापर डाक-प्यूनकेँ देखलक। मुदा आन स्त्रीगण जेकाँ रामसुनरि नहि जे दिनमे दू बेरि मोबाइलसँ, तीनि पन्नाक चिट्ठी आ तइ पर सँ जे समदिया भेटलै ओकरा दिअए समाद
पठौत। मन मे कोनो हल-चल नहि।
रामसुनरिक आगू मे आबि हँसैत डाकप्यून कहलक- ‘‘काकी, फेकुआक चिट्ठी
ऐलौ हेन।’’
कहि झोरासँ निकालि पोस्ट कार्ड देलक। छबो स्त्रीगण डाकप्यून कऽ चारु भागसँ घेरि कऽ ठाढ़ भेलि। हाथमे पोस्ट-कार्ड अबितहि रामसुनरिक मन, बिहाड़िमे
उड़ैत ओहि सुखल पात जेकाँ जे सरंगोलिया उठि अकास मे उड़ैत, तहिना उड़ि गेल। जिनगीक पहिल पत्र। मनमे अयलै जे पहिने ककरोसँ पत्र पढ़ा ली। ओना डाकप्यून लगमे, से चलि गेल। मुदा तेकर अफसोस नहि भेलै। किएक तँ जाधरि प्यून लगमे छल ताधरि पत्र पढ़ेबाक विचार मनमे आयलो नहि छलैक। फेरि मनमे अयलै जे काज कामै नै करब। अखन खूँटमे बान्हि कऽ रखि लइ
छी आ जखन निचेन हैब तखन पढ़ा लेब। सैह केलक।

गोसाइ डूबैत रामसुनरि निचेन भेलि। निचेन होइतहि चिट्ठी पढ़ाबए श्याम ओहिठाम विदा भेलि। श्यामोक घर लगे। पोस्ट-कार्ड हाथ मे लऽ श्याम सत्यनारायण कथा जेकाँ पढ़ै लगल। मुदा दोसरे पाँती, ‘दू हजार रुपैआ
महिना तलब, मे रामसुनरि ओझरा गेलि। मने-मन सोचए लागलि जे फेकुआ छैाँड़ाकेँ घरक सोह एलै। बुद्धियो फुटैक उमेर भेलि जाइ छै। आब कहिया चेतन हैत। अगिला साल तक बियाहो कइये देबइ। असकरे राकश जेकाँ अंगनामे रहै छी। लगले विचार बदलि गेलइ। बुदबुदा लागलि, कना लोक कहै छै जे मसोमातक बेटा दुइर भऽ जाइ छै। विचार मे डूबल रामसुनरि।
तहि बीच श्याम बाजल- ‘‘सब बात बुझलियै ने काकी?’’
श्यामक पुछब सँ रामसुनरिक भक्क खुजल।
बाजलि- ‘‘बौआ, चिट्ठी पढ़ल भऽ गेलह। की सब छौड़ा लिखने अछि?’’

काकीक मनक बात नहि बुझि श्याम खौंझा गेल। मुदा किछु बाजल नहि। पत्रकेँ निच्चामे रखि श्याम ओहिना मुह जबानिये कहै लगलनि। मुदा कार्डकेँ निच्चामे राखल देखि बेचारी रामसुनरिकेँ भेलि जे अपने दिशिसँ कहै अए। जहि सँ विश्वासे ने भेलइ। मुदा झगड़ो करब उचित नहि बुझलक। किएक तँ बेटाक पहिल पत्र छी तेँ अशुभ व्यवहार नीक नहि।

दोसर दिन एकटा पोस्टकार्ड कीनि रामसुनरि पत्र पढ़बैइयो आ लिखबैयो ले सोहन ऐठाम गेलि।
दुनू पोस्टकाड, लिखलहो आ सौदो, रामसुनरि सोहनकेँ दैत कहलक- ‘‘बौआ, पहिने पढ़ि कऽ सुना दैह। तखन लिखियो दिहऽ।’’
पत्र पढ़ि कऽ सोहन सुना देलक। समाचार सुनि रामसुनरिक मन खुशीसँ उत्साहित भऽ गेलै।
बाजलि- ‘‘बौआ आब चिट्ठी लिखि दिऔ।“

सोहन चिट्ठी लिखऽ लागल-

परमानपुर

ता. 3.7.2007

फेकू। असीरवाद।

अखन हम अपने थेहगर छी, तेँ हम्मर चिन्ता जुनि कर। रहै ले घरो अछिये। एक घैल पानि इसकूलबला कल पर सँ लऽ अबैत छी, ओइह भरि दिन चलैत अछि। तेँ पानियोक दिक्कत नहिये अछि। नहाइ ले धारो आ पोखरियो अछि। कहियो-काल बरखोमे नहा लै छी। तइ सब ले तू चिन्ता किअए करै छैं? एखन खाइ-खेलाइक उमेर छौ। तेँ कमा कऽ जे मन फुड़ौ से करिहें। अगिला साल धरि अबिहें, वियाहो कऽ देबउ। असकरे अंगना मे नीक नै लगैए।’’

माए रामसुनरि

साल भरि बीति गेल। जहिना गाममे रामसुनरि अपना काजमे हरा गेलि तहिना दिल्लीमे फेकुओ। साले भरिमे फेकुआ कपड़ा सिलाइक कारीगर बनि गेल।
अपना देहक कपड़ा-लत्ता कीनतै-कीनैत फेकुआक सालो भरिक दरमाहा सठि गेलै। माइक जिनगी तँ जहिना के तहिना रहलि मुदा फेकुआक जिनगीमे बदलाब आयल।
दुब्बर-दानर फेकुआ फुटि कऽ जुआन भऽ गेल। कपड़ा सिआइक लुरि भेने आत्मबलो मजबूत भेलै। मुदा गामक जिनगी आ दिल्लीक जिनगीक बीचक संघर्ष फेकुआक मनमे चलितहि रहलै।

रवि दिन। रतनो आ फेकुओके छुट्टी रहै। सुति उठि दुनू ममियौत-पिसियौत विचारलक जे साल भरि सँ बगेरी नहि खेलहुँ। से नहि तँ आइ बगेरिये आनब। ताहि बीच रोड पर देखलक जे पुलिसक गाड़ी इम्हर सँ ओम्हर कऽ रहल छै। दुनू भाइकेँ कोनो भाँजे नहि लगै। कोठरीसँ निकलि रतना चाहवला सँ पुछलक। चाहवलासँ भाँज लगलै जे महल्लासँ एकटा जुआन लड़की आ एकटा सेठक बेटाक अपहरण रातिमे भऽ गेलइ। समाचार सुनि दुनू भाइ डरा गेल। बगेरीक विचार छोरि गामक गप-सप करै लगल।
रतना बाजल- ‘‘बौआ, तोरा साल लागि गेलह। एक बेरि गाम जा सबकेँ भेंटि केने आबह।’’
गामक नाम सुनितहि फेकुआक मन उड़ि कऽ दोसर दुनियाँ पहुँच गेलै। मन पड़लै-चिमनीक ईंटा....चापाकल....घरक आगूक चौमास। मन गामक सीमा पर अटकि गेलइ। सीमापर सँ अंगना पहुँचैक साहसे ने होइ। किऐक तँ बाटेपर मायकेँ ठाढ़ भेलि देखए। की कहैत हैत माय? साल भरि भऽ गेलइ, ने एक्कोटा पाइ पठौलक आ न एक्को खण्ड साड़ी। कहियो काल जे अस्सक पड़ैत हैत तँ दवाइयो आनि कऽ के दैत हेतइ? पौरुकाँ जे चिट्ठी आयल, तइ दिनसँ दोसर चिट्ठियो ने अयल हेँ। हमहूँ तँ नहिये पठौलियै। छुछे चिट्ठिये लिखिने की हेतइ। मने-मन माए बुढ़िया सरापैत हैत। कहैत हैत जे छौंड़ा ढ़हलेलक ढ़हलेले रहिय गेल। मुदा हमहीं की करब? छुछे हाथे गामे जा कऽ की करब? टिकटो जोकर पाइ नइ अइ। चिन्ता आ सोग सँ फेकुआक मन दबा गेलै। कोनो बाटे ने सुझै। मनक भीतर बिरड़ो उठि गेलइ। बिरड़ोक हवामे फेकुआक मन सोगक तरसँ निकलि गेलै। मनमे अयलै, गाम तँ गाम छी। गामक लोक माघक शीतलहरी आगि तापि कऽ काटि लैत अछि। बिना कम्मल-सीरकक जाड़ बीता लैत अछि, गाछ तर जेठक रौद काटि लैत अछि। मुदा दिल्ली मे से हैत? साल भरिक कमाइ साल भरिक मौसमक अनुकूल कपड़ेमे चलि गेल। नहि लइतहुँ तँ सेहो नहि बनैत। लेलहुँ तँ गाम छुटि गेल। जहिना घनघोर बादलक फाँटसँ सूर्जक रोशनी छिटकैत तहिना फेकुओक मनमे भेल।
रतनाकेँ कहलक- ‘‘भैया, एकटा चिट्ठी लिखि दैह।’’

लगेमे रतना कऽ सभ किछु छलै। पोस्ट-कार्ड निकालि लिखै ले तैयार भेल।

फेकुआ लिखबै लगल-


दिल्ली
ता. 11.8.2008

माय, गोड़ लगै छिऔ

मनमे बहुत छलै जे तोरो बेटा दिल्लीमे नोकरी करैत छओ। मुदा सब हरा गेल। सिर्फ एक्के टा चीज बँचल जे एहिठाम दिल्लीसँ ओहिठाम गाम धरि जीवैक
रास्ता धड़ा देत। तेँ खुशी अछि। हाथ खाली अछि। गाम कोना आयब?


तोहर फेकुआ

चारिये दिनमे चिट्ठी मायक हाथ पहुँचल। चिट्ठी के हाथमे अबितहि राम सुनरि निग्हारि-निग्हारि देखै लागलि। छैाँड़ा कतौ रहए, भगवान ओकरा नीके रखथुन। बेटा धन छी। कतौ रहय। आब तँ फुटि कऽ जुआन भऽ गेल हैत। जहिना चाह-पान खा-पी बड़का लोककेँ धोधि फुटि जाइ छै तहिना तँ फेकुओके भेलि हेतै। किऐक तँ ओहो ने चाह-पान खाइत-पीबैत हैत। गोराइयो गेल हैत। मोछो-दाढ़ी भऽ गेल हेतै। जहिना भगवान घरसँ पुरुख उठा लेलनि तहिना तँ फेरि दइयो देलनि। जुआन बेटापर नजरि पहुँचतहि रामसुनरिक मन खुशीसँ नाचि उठलै। मने-मन बुद-बुदा लगलीह-दस बर्खसँ घरमे पुरुख नइ छल, तेँ कि कोनो पुरुखक घरसँ हमर घर अधला चलल। संतोषे गाछमे मेबा फड़ैत छै। परसुका बात मन पड़लै। चाहक
दोकान पर परसू पंडी जी कहैत रहथिन जे एहिबेरि शुरुहे अगहनसँ गन-गनौआ घन-घनौआ लगन अछि। हमहूँ फेकुआक वियाह कइये लेब। बियाह मनमे अबिते सोचै लागलि-बहुत दिनसँ पाँच गोटे के अंगनामे हाथो नै धुऐलौ। सेहो कइये लेब। समाजक भोज मे तँ नै सकब मुदा जहाँ धरि सकड़ता हैत, तइमे पाछुओ नै हटब। लोक ई नै बुझै जे मसोमातक बेटाक बियाह होइ छै। डफरा-वौसली, हवागाड़ी सेहो लइये जायब। अनका जेँका एक ढ़किया कऽ मुह नै पसारव। अपना बेटी-जमायकेँ जे देत से देत। हम किअए मंगिऔ। जे आदमी पोसि-पालि कऽ एकटा मनुक्ख
देबे करत तेकरासँ फेरि की मंगिऔ? किछु ने मंगबै। लुरि रहत तँ कामधेनु बना कऽ राखब नहि तँ माटिक मुरुत रहत। एकाएक रामसुनरिक नजरि चिट्ठीपर पहुँचल। पोस्ट-कार्ड निकालि, हियसि-हियासि देखै लगलीह। फुटा-फुटा करिया अक्षर तँ नहि बुझैत, मुदा कृष्ण जेकाँ कारी मुरुत जरुर बुझि पड़ै। चिट्ठी पढ़ाबै रामसुनरि विदा भेलि।

अंगनासँ निकलितहि मनमे उठलनि आब कि कोनो पहिलुका जेँका लोककेँ बारह बर्ख कटिया सोन्हबै पड़ै छै। आब तँ साले भरिमे लोककेँ धिया-पूता भऽ जायत
छैक। कहुना भेलि तँ हमरो फेकुआ शहरे-बजारक भेल की ने। एते बात मनमे अबिते मुँहसँ हँसी निकलल। असकरे। तेँ कान कऽ सुनै दुआरे तेना रामसुनरि
जोरसँ बाजलि जेना दोसर कऽ कहैत होअय। फुसिओहोक बेटी युग जीतिलक। भाग तँ मुह-कान नीकि नइ छै। नइ ते युगमे भूर करैत। वियाहक आठमे मासमे बेटी भऽ गेलइ। ई तँ धन्यवाद अइ समाजकेँ दी जे एक सूरे सब बाजल जे सतमसुआ बच्चा छिअए। जँ एना वियाहक विदागरीमे हैत तँ केहेन हैत ?

मुदा ओ बच्चा सतमसुआ नहि। समाज झूठो बाजि ओकरा सतमसुआ बच्चाक पालन-पोसनसँ बँचैलक।

रविक दरबज्जा लग अबितहि रामसुनरिक नजरि चिट्ठीपर पहुँचल। रवि दरबज्जे पर बैसि किछु लिखैत छल।
रामसुनरिक लग अवितहि रबि उठि कऽ चौकीपर बैसबैत, पुछलक- ‘‘काकी फेकू भाइक वियाह कहिया करबीही? हमहूँ बरिआती जेवउ?’’

रविक बात सुनितहि रामसुनरिक मन बृन्दाबनक रास लीलापर पहुँच गेलनि। कनिये काल कृष्णक रास-लीला देखि, धुरि कऽ आबि चिट्ठी पढ़वो आ लिखबो ले रबिकेँ कहलक। पत्र पढ़ि कऽ रबि सुना देलकनि।
पत्र लिखै ले तैयार होइत, बाजल- ‘‘की सब लिखब?’’

रामसुनरि लिखवै लागलि-

परमानपुर

ता. 15.8.2008

बौआ फेकू।

हम तोरा कमाइक कोनो आशा केने छी, जे पाइ नै छौ तेँ गाम कोना आयब? ककरो सँ पैंच-खोंइच लऽ कऽ चलि आ। तीनि भुरकुरी धान-गहूम रखने छी, वैह बेचि कऽ दऽ देवइ। आब तोहूँ चेतन भेल-ए। लोक कलंक जोड़त। हमरो आब अइ दुनियामे नीक नै लगै अए। तेँ सोचै छी जे अपन काज जल्दी पूरा ली। अगते अगहनमे चलि अबिहें। ताबे कनियाँ ठेमा कऽ रखबौ। एखैन हमहूँ थेहगर छी, मुदा अइ जिनगीक कोन ठेकान छै। आब ई परिवारो आ दुनियों तोरे सबहक ने हेतउ। टेम पर चलि अविहेँ, जइ से काज बिथुत ने होउ।

माए, रामसुनरि।

मायक पत्र सुनि फेकुआ मने-मन खुब खुशी भेल। मनमे भेलइ जे हमरो काज एहि दुनियाँ, एहि समाजमे छैक। मुदा मनमे खुशी बेसी काल टिकल नहि। लगले माघक कुहेस जेकाँ बुद्धि अन्हरा गेलइ। कोन मुह लऽ कऽ गाम जायब। साल भरिक कमाइ मायक हाथमे की देबइ। ई बात सत्य जे हमरा भरोसे
ओ नहि जीवैत अछि। मुदा हमरा ओकर कोनो दायित्व नहि अछि, सेहो तँ नहि। हे भगवान कोनो गर सुझावह।



पनरहे दिनक पछाति एकटा घटना घटल, जहिमे फेकुओक नोकरी छुटि गेल। ओना नओ गोटेक संग फेकुआ काज करैत। मुदा आठो गोटे पुरना कारीगर
समयानुसार अपना कऽ बदलैत जायत, नव-नव डिजाइनिक कपड़ा सिबैक लूरि सिखैत जायत। फेकुआ अनाड़ी, तेँ शुरुह सँ सिलाइक काज सिखै पड़लै। साल भरिमे कहुना कऽ पुरना दिल्लीक कारीगर बनल। मुदा फैशनमे बिहाड़ि ऐने फेकुआ उड़ि कऽ कातमे खसल। ओना मालिकोक मनमे बेइमानी घोसिआइल
रहै। बेइमानीक कारण छल पाइवलाक चसकल मन। एकटा अट्ठारह बर्खक लड़की कारीगर दू हजारमे भेटि गेलै।

सवा बर्खसँ शहरमे रहैत-रहैत फेकुओक सुतल बुद्धि जगि कऽ करबट बदलै लगलै। जहिसँ आत्मबलोक जन्म भऽ चुकल छलैक। मुदा खिच्चा। सक्कत बनिये रहल
छलैक। जहिना मालिक नोकरी सँ हटैक बात कहलकै तहिना फेकुआ हिसाब मंगलक। हिसाब लऽ फेकुआ डेरा विदा भेल। पाइ रहवे करए। रस्तेमे कॉफी पीबि डेरा आयल। डेरा आबि पंखा खोलि पलंगपर ओंघरा गेल। ओंघराइते मनमे अबै लगलै ई शहर छी,गाम नहि। शहर मे जहि तेजीसँ मशीन, फैशन आ जीवन-शैली
बदलि रहल अछि, ओहिमे हमरा सन-सन मुरुखक कोन बात जे पढ़लो-लिखल लोक ओंघरनिया देत। नवका मशीन पुरना इंजीनियरकेँ धक्का देत। पुरना बुद्धिकेँ
नवका बुद्धि धक्का देत। मुदा नीक-अधलाह के बुझत? सब भोग-विलासक जिनगीक पाछु आन्हर बनि गेल अछि। बाप रे, ई तँ भुमकमक लक्षण बनि रहल अछि। फेरि मनमे एलै, भरिसक हमर माथ, नोकरी छुटने, ते ने चढ़ि गेल
हेँ। ओह, अनका विषयमे अनेरे ओझराइ छी। जेकरा भोगए पड़तै ओकरा सुआस बुझि पड़ै छै, तँ हमरे की। ठनका ठनकै छै ते कियो अपना माथ पर हाथ लऽ
साहोर-साहोर करैत अछि। फेरि मनमे अयलै जे हमहूँ तँ जूड़िशीतलक नढ़ि़ये जेकाँ भेलि छी। एक दिशि चारु भागसँ कुकूर दाँतसँ पकड़ि-पकड़ि तीड़ैत अछि तँ दोसर दिशि शिकारी सब लाठी बरिसवैत अछि। गामक लूरि सीखिलहुँ नहि, सीखि लेलहुँ शहर लूरि। तँ आब लिअ। क्वीन्टलिया बोरा मे भरि-भरि रखने जाउ। फेकुआक मन औना गेल। दुबट्टियेमे हरा गेल। तीनिबट्टिया-चरिबट्टिया तँ बाकिये अछि। माएपर तामस उठलै।
बुदबुदा लागल- ‘‘ई बुढ़िया माए गछा लेलक जे शुरुहे अगहनमे चलि अबिहेँ। कनियाँ ठेमा कऽ रखबौ। बियाह कइये देबउ।’’
एक दिशि केँचुआइल कनियाँक बदलैत रुप तँ दोसर दिशि मायक सिनेह। समुद्रक पानि जेँका फेकुआक मनकेँ अस्थिर कऽ देलक। सोचै लगल जे माय नीक छोड़ि कहियो
अधलाह नहि केलक आ ने कहियो सोचलक, ओकरा पर
आँखि उठाएब अनुचित छी। काल्हिये गाम चलि जायब।
बियाहो कइये लेब। दू टा पति-पत्नी ओहन लोक एकठाम
होएब, जे किछु कऽ सकैत छी। ‘दू पाइ’ कऽ आशा हृदयमे समेटि सौझुका गाड़ी पकड़ि,तेसर दिन गाम पहुँच गेल।


सुरेन्द्रय लाभ(नाटक)
माई गे ! भूख लागल हए
डा.
दुश्य –१
(मंचपर अन्हा र पसरल अछि । नायक युवक केँ बृद्ध माता–पिता निन्ने मे भेर अछि । विघ विचरो मंच पपर हरियर मद्धिम प्रकाश फैल जाइत अछि । दर्शककेँ मात्र नायक युवक आ’ माताक विचमे चलैत सम्वाेद सुनबामे अवैत छैक ।)
युवक– माई गे माई । हमरा बचाले । हमरा बचाले माई ।
माता– वौआ कोन्नी छा ?
युवक– एननी छियौ माई, एन्नीा ।
माता– रे केम्हौर छे बेटा ? की भेलउ ?
युवक– करेज मे गोली मारि देलक ।
माता– हमर करेजके टुकडाके कोन जोइनढाहा गोली मारलक ?
बेटा रे बेटा –कान लगैछ)
युवक– एन्नीे आ’ ना माई । देखही नै कते खून बहै है ।
माता– बेटा हमर आँखि मे त ’ अन्हहरजाली लागल हउ ।
युवक– माई कनी अपना हाथे पानी पिया दे । बड पियास लागल हए ।
माता– अनै छियो बोआ । कतौ जइहा नै ।
युवक– माई! हम त जाइछियो । आइ दुनिया से जाइ छियौ ।
माता– बौआ र ेबौआ ! नै जो रे बौआ ! नै जो, नै जो रे बौआ ।
(मंचपर अन्हाइर नीक जकाँ पसरि जाइत छैक)

दृश्य –२
(अन्हा र मंचपर प्रकाशक एकटा टुकडी सूतल माता – पितापर जाइत छै । माता निन्नरमे बडबडा रहल छै– ‘ नै जो र ेबौआ ! नै जो ।’ पिता हडबडाक, उठैत अछि । मंचपर प्रकाश पसरि जाइत छैक ।)
पिता– (माताके उठवैट) एना कथी बडबडाई है ? की भेलै ?
माता– (नीन्मे ) बौआ बौआ!बौआ! ।
पिता– हे उठौ नै । भोर भेलै आब । सपना देखै है कि ?
माता– (हडबडाक’ उठैत) बौआ कोनो कोरा मे के बच्चाल है जे एना चिन्ता करै है ।
माता–(हडबडक उठैत) बौआ! कत है हमर करेज ?
पिता– केना करै है । बौआ कोनो कारा मे के बच्चाक है जे एना चिन्ताच करै है ।
माता– हमर बेटाके कुच्छो भ’ गेल । हम बड खराप सपना देखलिय ।
पिता– सपना त’ सपने होइ है ।
माता– आई कत्ते दिन देखला भ’ गेल बौआ के । –पतिक पएर पर खसैत) केहन पाथर करेज है । जाउक नै कत्तौ से हमर बेटा के खोजिक’ ले ल अवौक ।
(फककि फफकि क’ कान लगैछ )
पिता– (कान लगैछ ) गे हम कत से आनि दियो। हमरा कोनो बुझल हए जे उ कत्त है ।
माता– (कौत) बौआ रे बौआ ।
पिता– कोन खेबने उ बौआइत होतै से त’ भगबाने जनथिन्हक ।
माता– हे दिनकर दिनानाथ रछा करिहा हमर बेटा के ।
पिता– करेज मजगूत कर गे रमलगरावाली । जो हाथ मूँह धो ग ।
माता– जावत हमर बेटा नै आओतै । हम मूँहमे पानियो नै देबै । कहि दै दियो ।
पिता– जे हमरा करेज मे दरद नै होइहए ?
माता– तोरा की हएतो ?
पिता– जकर जवान बेटा भूखल– पियासल एना गामे गाम भागल फिरतै त’ ओकर बूढ बापके की हाल होइत होतै ?
माता– ई की जान गेलै मतारी के ममता ।
पिता– जवान बेटाके देखक’ बापके हौसला केहन बुलन्दल होइ है से तोँ की जान’गेलही ? लेकिन आइृ ? (कान लगैछ)
माता– तोँ कुच्छोे कह’ । हमरा मोन नै थीर, होइ हए । हमर बेटा के कुच्छोक भ’गेल ।
पिता– चप्पक अलच्छीह । उ ममरद के बेटा है मरद के । कुच्छो नै होतौ ।
(मंच पर अन्हा‍र पसैर जाइछ)
दृश्य –३
(मंचपर अन्हा र पसरल छै । चारिटा आदमी नायक युवककेँ आँखि पर पट्टी एवं हाथमेँ रस्सीो बन्हकने ढाद अछि । सभक हाथमे बन्दुाक छै )
पहिल आदमी– (युुवक सँ) जोभाग, जतेक जोरसँ तोँ भागि सकैत छेँ भाग ।
(मंचपर धीरे धीरे इजोत पसरैत अछि )
दोसर आदमी – धमह । पहिने ई सब हटा दै छियै । बेचाराके भाग मे सुविधा हएतै ।–कहैत आगू बढि दुनू हाथक रस्सीआ एवं आँखिक पट्टी खोलि दैत छैक)
तेसर आदमी – भागने आब ढाढ कीया छेँ ?
युवक– (तेसर आदमीकेँ पएर पकडैत) नै हमरा एना भगाउ नै । हम गोर लगै छी ।
(सब आदमी ढहाका लगबैछ )
चारिम आदमी – रे तोरा हमसब मुक्त क’ रहल छियौ । तखन तोँ भगैत कीयाक ने छेँ ?
युवक– हमरा बुझल अछि अहाँसब हमरा केहन मुक्ति देब । हम नै भागब । हमरा माफ क’ दिय ।
पहिल आदमी– (ढहाका लगवैछ ) अरे एकरा त’ सब पलान बुझल छै सब –पुन ः ढहाका लगवैछ आ’ एक लात ओहि युवककेँ मारैत अछि )
( ततपइचात सब आदमी अट्टहास करैत अपन लात सँ । युवकपर प्रहार करैत अछि आ’ पुन ः मंचपर अन्हाकर पसैर जाइछ )

दृश्य –४
अन्हा रसँ इजोत होइत छैक मंच पर । एकटा फरकीपर आशकेँ चारिगोटे अपन कनहा पर लदने जा’ रहल अछि । पाछू– पाछू तीन चारि गोटे रहल छैक । एकगौटे आगू–आगू कोहा आदि ल ‘क’ चलि रहल अछि । सब चिचीया रहल अछि– ‘राम नाम सत्त है , सबका यही गत है’ । पुन ः तेसर । शव यात्रा मे पाछू– पाछू चलनिहार लोढ नारा लगा रहल अछि– ‘राम नाम सत्त है , सबका यही गत है’ ।
मंच पर अन्हारर पसैर जाइछ ।

दृश्य –५
(मंचपर अन्हा र सँ इजोत होइत छैक । लाल मुखौटाधारी तीन व्य क्ति नायक युवक केँ घेरने ढाढ अछि । युवक डरे थर थर रहल अछि । एकटा मुखौटा धारीक हाथमे कता छै , दोसरके हाथमे लाठी आ’ तेसरके हाथमे पेस्तौथल छैक)
पहिल मुखौटा धारी – (युवककेँ हाथ उपर उठा ओहिपर कता रखैछ ) एहि हाथकेँ छपटि लियौ गद्धार ।
दोसर मुखौटा धारी ः नै छोड , एकर टाडे तोडि दै छी –कहैत लाठी युवकके टाडपर बजारैत अछि )
युवक– इस्सै । –हाथ जोडैत अछि) छोड दीय, छोडि दीय हमरा ।
तेसर मुखौटा धारी– (पेस्तौवल देखवेत) अखन गीडगौडाइत अछि । गोरगीट नहितन ।
युवक – हमरा माफक दीय भाईसब
तेसर मुखौटाधारी – हमसब माफ नै करै छियै , सक्सगन करै छियै , एक्स)न । तोरो माफ नै करबौ ।
युवक– तखन की करब ?
तेसर मुखौटा धारी – पहिने दुनू हाथ पएरपर गोली मारि क’ लोथ बनएवै आ’तखन धीरे धीरे परान लेबौ ।
युवक– (डराइत) नै भाइजी नै
तेसर मुखौटाधारी– (ठहाका लगवैछ) हा..........हा..............हा..................
युवक– ई सन हमरा नै चिन्हैकत छैथ । मुदा अहाँ त’ नीक जकाँ चिन्हैछत छी ।
पहिल सुखौटाधारी– (अट्टहास करैत) हमरा सभक दुनियाँमे ककरो केयो ने होइत छैक ।
युवक– हमर पराने लेबाक अछि त सीधा हमर करेज पर गोली मारु भाइजी– सीधा! हे लीय –अपन सर्टक बटन खोली करेज देखवैछ )
दोसर मुखौटाधारी– (कडकिक’) नै से नै हएतौ । हमसब विसरी कटा कटा क’ जान ले बौ ।
युवक– (कनैत) प्ली’ज भाइजी! प्ली ज । सीधा करेज पर गालि मारु । प्लीलज –कहेते पेस्तौ लवला मुखौटाधारीक पएर पर खसैत अछि । मंच पर अन्हासर पसैर जाइछ )

दृश्या –६

(मंचपर इजोत होइत छैक । किछु युवक युवती (१०–१२ गोट) अपन अपना माटरी चोटरी परदेश जा’ रहल अछि । किछु वुढवा– वुढिया लाठीक सहारापर ढाढ युवा युवतीकेँ हाथ हिला हिलाक’ विदा क’ रहल अछि । युवा युवती सब सेहो हाथ हिलवैत आगू बढि हिलवैत आगू बढि रहल अछि । बिच–बिचमे कोनो युवा – युवती बुढवा बुदियाकेँ चरण स्पैर्श करैत अशिर्वाद लैत आगू बढि रहल अछि । )
एकटा युवा– (बृद्ध पिताकेँ चरण स्पकर्श करैत) जाइ छियो बाउ ।
(अपन ओखिक नोर पोछैत अछि ।)
बुढवा– हँ जल्दी( से जा ’ बौआ । परदेशमे कमसे कम जान के रछा त होतो । जा’हमरा सूनके चिन्ताप नै करिहा –कान लगैछ०
(युवक आगू बढि जाइछ । बाँकी युवा युवतीसँ मंच खाली भऽ जाइत अछि । मात्र रहि जाइछ किछु जोडी बुढवा बुढिया । ओ लोकनि देखैत रहि जायछ बाट केँ जहिबाटे ओकर बेटा वेटी परदेश गतैक ।
मंचपर अन्हायर पर्सैर जाइछ)
दृश्य – ७
(अन्हा र मंचपर प्रकाश होइछ । पिता आंगनमे वैसि डोरी बना रहल छैक । माता जाँतामे गहूम सिसि रहल अछि एंव संगहि छठि भगवानक गीत गावि रहल अछि–
उगू हे सूरुज नाथ..........
नेपथ्यगसँ युवक कें आवाज अवैछ – माई !माईगे ।)
(गीत चलिए रहल छै )
पिता– कनिका चुप्प भ’जा’ त’ ।
माता– (चुप्प् होइत) कथिला ?
पिता– बौआके आवाज जेका बुझाई है ।
पुनः युवककेँ आवाज अवैछ– माई ! गे माई ।
माता– हँ ई त, हमरे बेटा हए । बौआ ? आबह नै, आबह ।
(युवक प्रवेश करैछ – अस्तौ व्य स्तन अवस्थाआ छै । माता–पिता पकडिकऽ कान’लगैछ– वौआ रे वौआ )
पिता– (आँखि पोछैत) एहन हालतमे कथिला घरे अएला बौआ ?
माता–।


अनमोल झा (१९७०- )-गाम नरुआर, जिला मधुबनी। एक दर्जनसँ बेशी कथा, साठिसँ बेशी लघुकथा, तीन दर्जनसँ बेशी कविता, किछु गीत, बाल गीत आ रिपोर्ताज आदि विभिन्न पत्रिका, स्मारिका आ विभिन्न संग्रह यथा- “कथा-दिशा”-महाविशेषांक, “श्वेतपत्र”, आ “एक्कैसम शताब्दीक घोषणापत्र” (दुनू संग्रह कथागोष्ठीमे पठित कथाक संग्रह), “प्रभात”-अंक २ (विराटनगरसँ प्रकाशित कथा विशेषांक) आदिमे संग्रहित।
चारि टा लघुकथा
चेतना

-पपा, अहाँ आ मम्मीक भोटर काड अछि।
-नै बेटा, नै अछि।
-तखन भोट कोना खसेबै? आब बिना ओकरे भोट नै खसब देतै।
-तऽ भोट नै खसेबै।
-टी.भी.मे अहाँ नै देखै छीयै पपा, जे कहैत छैक- यदि अहाँ भोटक दिन भोट नै खसबै छी तऽ अहाँ सूतल छी, पपा...!!

भारतीय डाक

ओकर एल.आइ.सी. कऽ पॉलिसी मैच्योर्ड भऽ गेल छलै! सामान्य आ साधारण लोक कऽ पचास हजार टाका एक संग भेटब आ ओहि सऽ पहिनेहे ओकर खल-खल कके खर्च करैक ब्यबस्था भऽ गेल रहै छैक, तकरा दऽ जल्दी सऽ जल्दी सधबैक चिन्ता छलै ओकरा।

आइ एकटा स्पीड पोस्ट सऽ पत्र एलै हे। जाहिमे सत्तरह तारीक कऽ पठाबैक स्टाम्प लागल छैक, पूरे आठ दिन पर चेक भेटलै हे। कलकत्ता सऽ लोकल डिलेवरी, स्पीड पोस्ट। भारतीय डाक पर ओकरा एखनो गर्व छैक जे देरिये सही, चेक तऽ भेटि गेल....!


युद्ध

सासु पुतौहुकऽ देखितहि कहलकै- जे हमरा बेटाकऽ नून खुआ हरि लेलक, तकरा नीक नै करथिन बाबा बैद्यनाथ !

पुतौहु कनडेरिये तकैत कहलकै- जे हमरा सँए कऽ अँखियबैयऽ तकरा बज्र खसा देथिन बिदेसर बाबा, बज्र खसा देथिन...!


टेकनोलजी

-पाइ कथी सऽ पठेलियैन बाबू कऽ।
-कथि सऽ पठेबैन। आब पहिलुका जमाना नै रहलै जे बीमा करू, ड्राफ बनाउ, रजिस्ट्री करू वा ककरो हथौतीये पठाउ। आब तऽ नवका-नवका टेकनोलजी एलैहे। कोर बैंकिंग मे एतय बाबूकऽ एकाउन्टमे जमा कऽ देलियै, ओतय संगे-संग हुनका खातामे पाइ जमा भऽ गेलैन।
-यैह! यैह ने मूर्खपना भेल। पाइ आब जहिया पठेबै गाम अहाँ, से मनीआडरे द्वारा!
-किए, से किए, ओहिमे तऽ बड़ समय लगै छै पहुँचैमे, आ कमीसनो पाँच रुपये सैकड़।
-से जे लागै। जखन डाक बाबू पाइ देमय जेतनि बाबूक, आ एक-दू गोटाक गबाही राखि पाइ देतनि तऽ गामक लोक तऽ बुझतै जे बेटा-पुतौह्पाइ पठेलकैहे। बुढ़बा के छोड़ि नै देने छै ओहिना...हँ...!!





कुसुम ठाकुर
प्रत्यावर्तन
17

डॉक्टर प्रसाद जाँच कयलाक बाद कहलाह एहि बेर तs WBC केर काज नहीं छैक मुदा दोसर बेर परि सकैत छैक। एक बरखक दवाई आ डॉक्टर बी. एन. झा केर नाम सsसबटा रिपोर्ट बना कs देलाह आ फेर एक साल बाद आबय लेल कहलाह । वेल्लोर आबय समय एकर एको रत्ती भान नहि छल जे एतेक गंभीर बीमारी भs सकैत छैन्ह। जाहि दिन डॉक्टर कुरियन बीमारी के विषय मेबतेलाह ताहि केर बाद सs हमर जेना माथ सुन्न भs गेल छल । ई बुझय मेनहि आबय जे हम की करी। नहि हम बिमारी के विषय मेहिनका सs गप्प कs सकैत छलहुँ आ नहि हमरा मेअतेक हिम्मत छल जे हम किनको आओर सs बिमारी के विषय मेगप्प करितहुं। बच्चा सब तs बहुत छोट छलथि ।


जमशेदपुर पहुँचलहुँ तs लोकक एनाई गेनाइ शुरू भs गेलैक मुदा हमरा एको रत्ती नीक नहि लागय, की कहिये लोक सब सs से नहि बुझय मेआबय आ नय हम ओहि समय हुनका लग रहि जे किछु कहब या कि सुनब । लल्लन जी अपनहि जे कहबाक के रहैन्ह कहथि । ओहो कि कहितथि, कहि दैत छलाह जे सब ठीक भs जेतैक दबाई देने छथि डॉक्टर । भीतर मेहमरा की होइत छल ई तs हम वर्णन नहि कs सकैत छी मुदा ऊपर सs अवश्य देखेबाक कोशिस करियैक जे सब ठीक छैक । बाबुजी के सेहो पूरा गप्प नहि बुझल छलैन्ह ।


माँ बाबुजी चलि गेलाह आ फेर हम ई आ दुनु बच्चा रहि गेलहुँ । एक एक कsपरिवारक सब कियो हिनका देखय लेल अयलाह, ओहि मेमात्र बिनोदजी (हमर बहिनक पति ) जे की स्वयं डॉक्टर छथि, केर छोरि आओर किनको बीमारी के विषय मेनहि बुझल भेलैंह। वेल्लोर सs आबि ई तुरन्त ऑफिस जाय लगलाह संगहि दवाई सेहो चलय छलैन्ह ।


बीमारी केर ओहि समय केर वर्णन केनाइ हमरा लेल बड कठिन अछि । हमरो बुझल आ हिनको बुझल छलैन्ह जे बीमारी खतरनाक छैक आ डॉक्टर केर हिसाबे १५ साल सँ बेसी आदमी एहि बिमारी मेनहि जीवय छैक तथापि हम दुनु गोटे एहि सन्दर्भ मेबात केनाई तs दूर कहियो ई नहि बूझय देव चाहिए जे हम एहि सs चिंतित छी । सच पूछू तs हमर तs मोन कहियो नहि मानय जे हिनका एहेन बिमारी छैन्ह । सब दिन मोन मेहोय जे एतेक नीक लोग आ शंकर जी केर भक्त के ऐना कहियो नहि भs सकैत छैक,ठीक भs जेतैन्ह । हम अपना भरि तs सदिखन हुनकर ध्यान राखियैन्ह आ कोशिस राखी जे कोनो बात सs ई नहि बुझय मेआबैन्ह कि हम हिनकर बिमारी सs चिंतित छी। नहि जानि कियैक मुदा हमरा सब दिन हिनकर काज करय मेनीक लागैत छल आ हम हिनकर सब काज अपनहि करैत छलियैक । बीमार भेला पर तs स्वाभाविक छलैक काज बेसी होइत छलैक मुदा ओ हम अपनहि करैत छलियैक।


एहि बीच मेबिनोद जी के पता चललैन्ह जे बनारस कोनो होमियोपेथिक डॉक्टर छैक जे एहि तरहक रोगक इलाज करैत छैक तs ओ ओहि ठाम जा ओकरा ओतहि सs दवाई लs आनलथिन्ह, जे हर तीन घंटा पर देबय के छलैक । घर पर देलाक बाद हम ऑफिस जयबाक समय संग दs दियैन्ह। राति मेसे छोरबाक नहि छलैक , हम घडी मेअलार्म लगा ली आ हर तीन घंटा पर उठि उठि कs दबाई दियैन्ह। मोन मेहोइत छल भगवान कहुना हिनका निक कs देथुन। हमारा भगवान पर पूर्ण विश्वास छल जे ओ नीक कs देथिन्ह। हमरा घर मेखास कs हमर माँ भोला बाबा के भक्त छथि ओ सदिखन कहैत भोला बाबा के मोन स ध्यान कयला सs ओ अवश्य सुनय छथि। हमरा होय जँ हम मोन सs भोला बाबा के ध्यान करबैन्ह तs अवश्य ओ हमर सुनताह कियैक नहि सुनताह। दबाई तs सब दिन हम जागि जागि क देलियैन्ह आ पूरा से भेलैक मुदा किछुए दिन बाद पता चललैक जे ओ डॉक्टर धोखेबाज छलैक आ लोक के दबाई मेस्टेरोइड मिला कs दैत छलैक । खैर ई सिलसिला त चलैत रहलैक। जहाँ कियो कहथि व पता चलैक जे ओ डॉक्टर या वैद नीक छथि या ओ किनको ठीक कयलथि या हुनका ओहि ठाम गेला सs फायदा भेलैन्ह हम ओहि ठाम जयबाक लेल हिनका मना लियैन्ह आ देखा दियैन्ह मुदा डॉक्टर प्रसाद केर दबाई कहियो बन्द नहि केलियैन्ह।


वेल्लोर सs अयालक किछु मास बाद बिनोद जी आ सोनी( हमर दोसर बहिनक पति आ बहिन) केर भयानक दुर्घटना भ गेलैन्ह ई सुनतहि हम दुनु गोटे धनबाद पहुचलहुँ । भगवानक इच्छा छलैन्ह जे ओ सब बाचि गेलथि । धनबाद आ पटना मेइलाज करेलाक बाद हुनका सेहो इलाजक लेल वेल्लोर जेबाक छलैन्ह। हम आ लल्लन जी दोसर बेर वेल्लोर असगर गेलहुँ । बिनोद जी किछु दिन केर बाद पहुँचलाह आ हुनका सँग हुनक भाय आ एकटा संगी छलथिन्ह । एहि बेर फेर किछु दिनक लेल लल्लन जी के अस्पताल मेभर्ती होमय परलैन्ह आ सबटा जाँचक बाद डॉक्टर प्रसाद हिनका दबाई देलथिन्ह आ chemotherapy शुरू करबाक लेल कहि अस्पताल सs छोरि देलथिन्ह मुदा ओ एहि बेरक रिपोर्ट सs खुश नहि छलाह , जतबा सुधार के हुनका आश छ्लैन्ह ततबा नहि भेल छलैन्ह ।


वेल्लोर मेडॉक्टर के जे कहबाक रहैत छैक से ओ सबटा मरीज आ घरक लोक वा जे कियो सँग मेरहैत छैक हुनके सोझा मेकहि दैत छथि । लल्लन जी के बिमारी केर विषय मेसेहो हमरा आ लल्लन जी केर सोझा मेओ सब किछु कहैत छलाह । लल्लन जी तs किछु किछु डॉक्टर सs पुछि लैत छलाह मुदा हमरा हिम्मत नहि होय जे हम किछु पुछितियैन्ह । हमरा सब दिन मोन मेआशंका बनल रहैत छल जे हमरा पूरा तरह हुनक बिमारी के विषय मेनहि बुझल अछि। एक दिन हम विचारलहुँ जे असगर डॉक्टर प्रसाद लग जाय कs हुनका सs हम पुछबैन्ह हमरा लल्लन जी के सोझा मेपुछय केर हिम्मत नहि छल । अस्पताल सs जहिया छुट्टी भेटल छलैक ओहि दिन हम लल्लन जी के कहलियैन्ह अहाँ किछु समय बिनोद जी लग हुनके केबिन मेबैसु हुनको नीक लागतैंह आ हम किछु बजार सs लेने आबैत छी ताहि केर बाद होटल चलब । हम ई कहि हुनका सँग बिनोद जी केर केबिन गेलहुँ आ किछु समय बाद लल्लन जी के छोरि ओहि ठाम सs निकलि सीधा डॉक्टर प्रसाद लग चलि गेलहुँ। हुनका स जे जानकारी भेटल ओ सुनि हमर तs माथ घुमि गेल मुदा हम अपन हिम्मत नहि छोरलहुँ आ ओहि ठाम सs सीधे निकलि बिनोदजी केर केबिन दिस जेबाक लेल जहिना निकललहुँ सामने लल्लन जी के आबैत देखि हम चुप चाप दोसर दिस मुडि गेलहुँ । हम हुनका डॉक्टर प्रसाद केर कक्ष मेजाइत साफ़ देखलियैन्ह मुदा ओ हमरा नहि देखि पयलाह । एहि तरह केर हम सिनेमा मेदेखने छलियैक मुदा असल जीवन मेहमरा सँग होयत, ई कहियो सोचनहु नहि छलियैक । हम सीधा बिनोदजी केर केबिन के लेल चलि देलहुँ मुदा रास्ता भरि डॉक्टर प्रसादक बात दिमाग मेघुमैत छल जे आब अहाँ दोसर बेर WBC आ bone marrow transplantation केर सोचि कs आयब, दोसर ई जे बाद मेहड्डी ततेक कमजोर भs जयतैन्ह जे बहुत ध्यान देबय पड़त नहि तs हड्डी टूटय के डर रहतैंह तेसर ई जे हुनक चालिस प्रतिशत cells malignant छलैन्ह जे डॉक्टर केर कहनानुसार ठीक नहि छलैक।


हम इ त बुझिए गेल छलहुँ जे लल्लन जी सेहो हमरा परोछ मेकिछु डॉक्टर प्रसाद सँ पुछय चाहैत छलाह आ ओहि लेल हुनका लग गेल छलाह । इ सोचि हमरा आओर भीतर सँ तकलीफ होइत छल जे हुनका सब बात बुझल रहतैंह तs हुनका मोनमेसदिखन तरह तरह केर भावना आबैत रहतैंह। हमरा वेल्लोर अस्पताल केर आ डॉक्टर केर इ एको रत्ती नीक नहि लागल। कम स कम रोगी के नहि बतेबाक चाहि। हम सदिखन अपन किस्मत पर गौरवान्वित होइत छलहुँ आ आजु होइत छल हे भगवान हमर इ भ्रम के नहि तोरु ।


बिनोद जी केर केबिन मेपहुँचि हम बैसि गेलहुँ, एक बेर नहि पुछालियेंह हिनका विषय मे। बिनोद जी अपनहि कहलाह , "ठाकुर जी नहि भेटलाह ओ तs अहिं के ताके लेल गेलाह अछि । हम बस एतबहि कहलियैन्ह आबि जयताह । हम अपन मोन मेआबय वाला एक एक टा उद्वेग के कोना कहितियैन्ह।


कुमार मनोज कश्यप
जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।

नोर अंगोर

'जननी जन्म-भूमिश्र्च स्वर्गादपि गरियसि' -- मायक ई आदर्श वचन छनि आ एकरा ओ अक्षरशः पालन करैत छथि । सभ बुझा कऽ थाकि गेल, मुदा ओ गाम छोड़ि अन्यत्र रहब स्वीकार नहिये केलनि । अंगदक पैर जकाँ जमल रहि गेलि ओ गाम मे । एक्के ठाम कहलनि, '' जाहि घर मे डोली पर एलहुँ, ओहि घर सँ अर्थीये पर जायब ।'' की करितहुँ हम? अंत मे भारती कें भरोसे ओकरा गाम मे छोड़ि शहर आपस आबि गेलहुँ । भारती बड़ सेवा-सुश्रूषा करैत छैक मायक---अपन जकाँ। माय सेहो बड़ खुश छलि भारती सँ। हमहुँ निश्र्िचंत भऽ गेल छलहुँ।

आई जखन सँ माय फोन सँ बतेलनि जे--- 'भारती के वियाह ठीक भऽ गेलैक आछ---आगले फागुन मे वियाह छैक----किछु मदति तऽ करहि पड़त----आहं पर ओकर माय आश धेने आछ' --- तखन सँ हमर बेचैनी बढि गेल आछ । बात मदति के नहि छैक---ओ तऽ हम कऽ देबैक। मुदा वियाह के बाद भारती अपन सासुर चलि जायत तखन गाम मे माय के सेवा-सुश्रूषा के करतनि? गामो मे लोक कहाँ भेटैत छैक? बृद्धावस्था के कारण माय एसकरे गाम मे कोना रहतीह? कनियाँ के गाम मे छोड़ि दी तऽ बच्चा सभक भविष्य की हेतैक?-----प््राश्र्नक मक़डजाल मे हम ओझरायले चलि जा रहल छी । खीझ उठि रहल आछ मायक पुरान-पंथी पर----कहु तऽ आजुक रौकेट-युग मे एहन विचार पालने रहब कतेक युत्तिᆬसंगत आछ ? मुदा के बुझाबय हुनका ।

राति भरि कछ-मछ करैत रहि गेलहुँ। कनियाँ निश्र्िचंत सुतल छथि आ दुनु बच्चो। पहरेदारक सीटीक आबाज आ हमर मोनक बेचैनी--- आपस मे तादातम्य स्थापित करबाक अनवरत प््रायास कऽ रहल आछ। धिरे सँ उठि कऽ घट-घटा कऽ पानिक गिलास खाली कऽ कऽ घर सँ बाहर निकलि टहलऽ लगैत छि हम । एकाएक विचार दिमाग मे चमकल--- राईटींग --पैड पर कलम दौड़ऽ लागल। चिट्ठी लिफाफ मे बंद कऽ कऽ बेडरुम मे एलहुँ। कनियाँ काँचे निन्न मे करोट पेᆬरैत पुछलनि, ''निन्न नहि भेल की ?'' बिनु उत्तरक प््रातिक्षा केनहिं ओ पेᆬर गहींर निन्न मे सुति गेलीह।

लेटर-बॉक्स मे चिट्ठी खसा कऽ हम ओहने आनंदक अनुभव केलहुँ जेहन कदाचित सफल ऑपरेशन के बाद रोगी करैत आछ।

किछु दिनक बाद गाम गेल रहि। भारती के माय हमर पैर पर खसि छाती पीट-पीट कऽ कानऽ लागल, ''आब हमर दुनू माय-बेटी के की हेतै मालीक ? कतेक मोश्किल सँ छौंरिक वियाह ठीक केने छलियैक; सेहो मुदैया सब मोड़ि देलकैक रे बाप! समाज सँ लड़ि कऽ छौंरि के आहाँ ओहिठाम काज करऽ देलियै, तकर बदला दुश्मनमा सभ निकालि लेलकै रौ बाप ।'' भोकारि पाड़ि कनैत रहलै ओ; मोन भरि गरियबैत रहलै। बड़ मुश्किल सँ ओ चुप भऽ सकल छल ।

खेबा काल माय ओकर स्वर मे स्वर मिलबैत कहऽ लगलीह, ''कहु तऽ मसोम्माती भऽ कऽ कोना कोना कऽ बेटीक वियाह ठीक केने छलै बेचारी ---सेहो लोक के आँखि मे गड़ऽ लगलै। अपन कोंढ धुनि कऽ बेचारी गुजर करैत छैक----एहि मे कोन लाज? बेटी समाजक होईत छैक-----धुर्‌ जो एहि गामक लोक के। हे भगवता ! कथा मोड़निहार के कहियो नीक नहि करबै। भारती मायक नोर अंगोर भऽ कऽ पड़तै एहन दुश्मन पऱ़़ ।''

हमर हाथक कौर हाथे मे आ मुँह खुजले रहि गेल छल ।

डॉ. रमानन्द झा रमण- 67म सगर राति दीप जरय




67म सगर राति दीप जरयक आयोजन मानाराय टोल, नरहन, समस्तीपुरमे 05 सितम्बर,2009 केँ डा.रमानन्द झा ‘रमण’क अध्यक्षतामे भेल। डा.विपिन विहारी ठाकुर दीप बारि उदघाटन कएल। संयोजक छलाह रमाकानत राय ‘रमा’। 19 टा कथाक पाठ आ’ ओहिपर चर्चा भेल। ओहि अवसर पर डा.विभूति आनन्दक भाषा टीकाक लोकार्पण डा.रमानन्द झा ‘रमण’, गुवाहाटीसँ आएल ललित कुमार झाक कविताक छाँहमे कलोकार्पण डा.रमानन्द झा ‘रमण’ एवं कल्पनाक सागर मे क लोकार्पण रमाकान्त राय‘रमा’ द्वारा भेल। 68म सगर राति अरविन्द ठाकुरक संयोजकत्वमे दिसम्बर,2009 क पहिल सप्ताहमे सुपौलमे होएत।



मनोज मुक्ति - रिपोर्ताज
सभ्‍ ग।ेटे कहै छयि जिवन अमूल्य छियै, बहुत तपस्याक बाद मनुष्यक जिवन भेटैत छैक। आ इहो कहवी छइ जे जीवन एकटा संधर्ष छियै, संधर्षक बाद मनुष्यके सफलता अवश्य भेटैत छइ हमरा लेल मा़त्र कहवीए मे सिमीत रहिगेल इ सब।
हमर नाम रोशन पंजियार अछि,हमर घर सुनसरी जिल्ला मे पडैत अछि। हमर परिवार एकटा किसान परिवार अछि। हमरा घर मे दाइ, बाबा,माय बाबु आ हमरा लग हमर एकटा बहीन आ दूटा भाय अछि। हम अपना परिवारक सबस जेठ संतान छी। एकटा मघ्यम वर्गीय परिवार होइतो जेठ संतानक नाता स होइ वा जेइ कारणे होइ सबहक सिनेह भरपुर हमरा भेटल। दाइ, बाबा, के विशेष इच्छा भेलाक बादो हम मैट्रिक स आगा नइ पढ सकलौ। कारण इ जे पढ मे ठिक ठाक होइतो एकही बेर मे हम एस. एल. सी. पास नइ कर सकलहुॅं, जबकी हमरा स कमजोर बहुतो वि़द्यार्थी पास भ गेल। कहुनाक दोसर बेर हम परीक्षा देलौ आ पास भेली। मैट्रिक पास क क हम काठमाण्डू गेलौ, कोनो काज करबाक लेल। काठमाण्डू जाक सबस पहिने अपना क्षे़त्रक नेता लग गेलहुॅ, जकरा हमर बाबु सब चुनाव मे बड सहयोग कैने रहथिन्ह। हूनका जाक कहलियैन जे हमरा कतहुॅ काज लगा दिय। ओ कहलैथ देखैत छियै। हम प्रत्येक दिन ओइ नेताजी ओत जाइत छलौ। ओना हमरा लगायत आरो बहुतो बेरोजगार सब नेताजी ओत पहुॅचैत छल। हमरा सबके क्षेत्र मे चारि भाग मे 3 तीन भाग, लगभग 80 प्रतिशत मधेशीक जनसं़ख्या छइ आ 20 प्रतिशत गैर मधेशीक। ताहिस नेता जी ओत मधेशी आ गैर मधेशी दुनु तरहक बेरोजगार रोज हाजरी लगवैत छल। लागातार डेढ, दू मास हम ओत गेलहुॅ, मुदा हमरा नोकरीक कोनो जोगाड नइ भ सकल। जबकी हमरा सामने मे 25/30 टा नेताजीक अपन जाति़़़़़़़़़़ भाइ या कही गैर मधेशी सबहक नोकरी भेट गेल छल। तखन हमरा सोच
आयल जे हम सब बेकारे दोसर के जितवै छी अपना क्ष़ेत्र सॅ। आब हारल थाकल हम एकटा गार्मेन्ट मे काज कर लगनहुॅ। ओत हमरा हेल्फर के काज भेटल कहियो अपना घर मे एकटा मोटा नइ उठौने छलौ हम मुदा एत दिन राति हमरा समाने लाद पडैत छल। कहुनाक 4/5 मास गुजारा कंएलहुॅ। आब हम अपने काज करबाक बात सोचलहुॅ आ एकटा पुरान साइकल किनिक ओइ मे पाछा बडका केलियर लगबाक छिटटी बन्हलहु आ तरकारी बेच लगलहुॅ। आब हम भोरे पाॅच बजे उठित छलहुॅ आ साइकल ल तरकारीक बडका बजार कालिमाटी चलि जाइत छलहुॅ आ ओत तरकारी किन क अपन डेरा चल अवैत छलहुॅ। कनी जलखइ क क तरकारी निकजका साइकल पर ध क काठमाण्डूक गलिए गली मे निकलि जाइत छलौ बेचबाक लेल। 10 बजे धरि घुमित छलहुॅ आ आबिक खाना बनाक खाक आराम करैत छलौ आ फेर 2 बजे साइकल ल क निकलि जााइत छलौ। ओना कहियो हमरा बेसी राति धरि नइ घुम पडैत छल, किया त हम दोसर स कनि कमे नाफा ल क बेच देयै रही तरहे हमर दिन बितैत छल। हम जहिया गार्मेन्ट मे काज करैत छलहुॅ त दिन राति मेहनत क क चारि साढे चारि हजार पाइ कमाइत छलौ बा उपर स ठिकदार के गारि बात मुदा तरकारी बेचे मे 6/8 हजार हम कमा लैत छलहु। अही बीच मे काठमाण्डू मे रहिरहल हमरा गाम के एकटा लडका हमरा घर मे जाक कहलकै जे रोशन साइकल पर तरकारी बेचै या। तुरन्ते हमरा गाम स चिठठी आयल घर अएबाक लेल। हम घर गेलहुॅ त हमरा दाइ, बाबा, माय बाबुजी सब गोटे कहलथि जे इ कोन काज शुरु क देले त मान, इज्जति के कोनो ठेकान नइ छौ, तोरा अही लेल तोरा मैट्रिक धरि पढलियउ। भ गेलै काठमाण्डु जाय के कोनो काज नइ छै, आब गामे मे रह। हम हूनका सबहक बोली सुनिक अबाके रहि गेलहुॅ। फेर हूनका सब के कहलियैन, देखियौ काज कोनो छोट आ नम्हर नइ होइत छैक, हम जना एस. एल. सी. पास कैने छियै त हमरा केओ हाकिम थोरही बना देतै आ दोसर मे मधेशी संगे केहन भेदभाव छइ से बुझले अछि। दोसर के नोकरी स त बहुत नीक छइ अपन काज। आहाॅ सब निश्चिन्त रहुॅ अइमे इज्जति ककरो नइ जायत रहिगेल समाज के बात त समाज आइ धरि ककरो नीक नइ कहलकैया। आहाॅ बड नीक जका रहैत छी त इश्र्या करत आ स्थिति कनि खराब भ गेल त समाज हॅसत। ताही स समाज के चिन्ते नइ करु। अहिना कहुना कहुना, समझा बुझाक घरक लोक के हम फेर काठमाण्डु
गेलहुॅ। आ पुनः तरकारिए बेचबाक काज मे लागि गेलहुॅ। हमरा मोन भेल जे मेने रोडजखने मालूम भेलइ ओकरा सबके जे हम विदेश जाय चाहैत छी बस पासपोर्ट बनाब स लक विदेश जाय धरि काज के जिम्मा ल लेलक, किया त सब काज फटफट भ जाइत छै जै 8/10 दिन मे पासपोर्ट बनिक आब मेडिकल जॉचला काठमाण्डू गेलहु मेडिकल भेलाक बाद मलेशिया क लेल पासपोर्ट मैनपावर मे बना देल गेल हमर हम फेर गाम चलि अयलहु 2 मास के बाद मे 1 लाख टका ल क अगिला 5 दिन मे काठमाण्डूद चलिआउ आहा क फलाइट उठम दिन मे कहल गेल हमरा लग 30 हजार छला आ 60 हजार कर्ज लक काठमाण्डू अएलहु हमरा उडबला हमरा संगे हमर बाबुओ औलथि पाइ पुरा बुझा देलियैक आ हमर वीजा द देलक वास्तलव मे उठम दिन मे हमर फलाइट भ गेल हम 2 वर्षक लेल एकटा कम्प नी मे सुपर भाइजरक लेल जाइत छलौ मलेशिया पहुचलहु त कम्पमनीक एकटा आदमी हमरा सबके लेब एयर पोर्ट पर आयल छल हम सब गोटे संगे कम्प नी मे गेलहु काल्हिस काज पर आब पडत कहिक कनि दूर पर रहल एकटा गोदाम सनक घर मे ल गेल हमरा सबके ओकहल गेल जे एतही रह पडत काल्हि भिने कम्पपनी मे गेलहु हमर बारी आओल त बजाक ल गेल एकटा गोदाम मे आ सामान एत स उठाक ओत धर परत से काज हमरा देखाओल गेल हमरा बड खिस उठल एजेन्ट पर, कहने छल सुपर भाइजरक काज आ एत लेबर के काज कर परैया हम नेपाल फोन केलहु...

अमरेन्द्र यादव
रिपोर्ट
जनकपुरस्थि.त एमाले पार्टी कार्यालय लग बम भेटल अछि । बम राखबाक जिम्मेवारी अखिल तराई मुक्ति मोर्चा लेने अछि । धनुपा पुलिसक अनुसार बमकेँ निष्कृ्य करय सेनाक डिस्पो्जल टोली घटनास्थँलमे पहुँचल अछि । .........................
मन्त्रीँ परिषदक बैसार-प्रधानमन्त्री क कार्यालय सिंहदरवारमे बैसयबला बैसारमे उपराष्ट्रोपती परमानन्द‍ झाक सपत प्रकरण आ सेवा सुविधा कटौती प्रति सत्तारुढ मधेशवादी दलसभक असन्तुषष्टियक विषयमे परामर्श हएत । तहिना, बैसारमे बजार हस्तपक्षेप कऽ दैनिक उपभोग्यत चीजसभ सुपत मुल्युमे उपलब्ध करेबाक अर्थ मन्त्रामलयक प्रस्ताव सहित अन्य विषयमे सेहो विमर्श हएत। कृषि तथा सहकारी मन्त्रीत मृगेन्द्रर सिंह यादव जानकारी देलन्हिय । ...................
पुर्व–पश्चिेम राजमार्ग अन्तर्गत सर्लाहीक लालबन्दी्मे एम्वु्लेन्स दुर्घटना भेलासँ एक गोटेक मृत्य आ ५ गोटे घाइल भेल अछि । पुर्वसँ पश्चिममदिस आबि रहल १ च २५२५ नम्बरेक एम्वुरलेन्स दुर्घटना भेलासँ महोत्तरी लक्ष्मी्निया ५ निवासी बिमारी ५२ वर्षिय कृपा महतोक मृत्यु भेल अछि । दुर्घटनामे घाइल ५गोटेक इलाज प्राथमिक स्वादथ्य केन्द्र लालबन्दीममे भऽ रहल- सर्लाही पुलिस जनौलक अछि । एहिबीच,अरनिको राजमार्ग अन्तमर्गत सुकुटे लग सुनकोसी नदीमे बस खसिकऽ भेल दुर्घटनामे हेरा रहल सभक खोजीकार्य आई सेहो तिव्र अछि । पुलिसक अनुसार काल्हिक राति आओर २ गोटेक लास भेटल अछि । ई सहित दुर्घटनामे मरनिहारक संख्यार २२ पहुँचल अछि । नेपाली सेना, सशस्त्रु पुलिस, नेपाल पुलिस तथा स्थानियवासीसभ भोरेसँ हेरारहल सभक रबर बोटक माध्यामसँ खोजी कऽ रहल डिएसपी प्रमोद कुमार खरेल जानकारी देलन्हि । दुर्घटनामे १३ सँ बेसी यात्री हेरारहल पुलिसक अनुमान अछि ।
......
धनुषाक खजुरीवासीक आन्दो्लनक कारण अवरुद्ध रहल नेपालक एक मात्र रेल सेवा जनकपुर रेल्वे आईसँ सुचारु भेल अछि । रेल दुर्घटनामे दोषी रहल कर्मचारीपर कारवाही आ लिक मर्मत करबाक सहमती भेलाक बाद खजुरीवासीसभ आन्दोेलन फिर्ता लेलक अछि । पटरी बिगरलाक कारण बेर बेर रेल दुर्घटना भऽ रहल कहैत स्थाकनीयवासी, वुधदिनसँ अनिश्चि्तकालीन रेल सेबा बन्द करौने छल । .................
तराईक महिलासभद्धारा मनाओल ३ दिना जितिया पाबनिक दोसर दिन आई पबनैतिनसभ निराहार उपवास कऽ रहल अछि । आई भोर सुर्य उगबासँ पहिने दहीचुडाक ओठघन खेलाक बाद ब्रती महिलासभ, उपवास शुरु केलक अछि । काल्हि नुहाधोकऽ नीकनुकुत खेलाक बाद ओसभ, व्रतक सुरुवात केने छल । काल्हिर दुपहर पवित्र जलासयमे नहाकऽ जितमहान भगवानक पुजा केलाक बाद पाबनि समाप्त हएत । तराईक थारु, राजवंशी सहित मैथिली आ भोजपुरीभाषी महिलासभ, सन्ताऽनक दीर्घ जीवन एवं सफलताक कामना करैत जितियापाबनि मनबैत अछि । ................................
नागरिक सर्वोच्चजताक मांग करैत आन्दो लनरत एकिकृत माओवादी, आई राजधानीक खुलामञ्जन जनसभा कऽ रहल अछि । संयुक्त राष्ट्रि य जनआन्दोालन, नेवाः राज्य समितिक आयोजनामे होबयबला जनसभाकेँ अध्यक्ष पष्पकमल दहाल प्रचण्ड सहित शिर्ष नेतासभद्धारा सम्वोधन करबाक कार्यक्रम अछि । सभा शुरु होयबासँ पहिने राजधानीक विभिन्न स्थानसँ र्याणली सेहो निकालल जाएत माओवादी जनौलक अछि । नागरिक सर्वोच्चताक मांग करैत देशव्यािपी जनसभा करैत आएल माओवादी, आइए जुम्लाीमे सेहो सभा आयोजना कऽ रहल अछि । .................................
५ दिनसँ रत्नसपार्क शान्ति बाटिकामे आमरन अनसनमे बैसल ३गोटे आंशिक प्राध्यायपकसभक स्वास्थ्य अत्यन्त नाजुक भेल अछि । दु सुत्रिय मांग रखैत सोमदिनसँ अनसनमे बैसल आंशिक प्राध्यापक प्रेम कुमार विश्वाकर्मा, लिलाराज बराल आ अमृतेन्द्र कर्णक स्वास्थ्य नाजुक बनैत गेल स्वास्थ्य परिक्षणमे संलग्न वीर अस्पतालक चिकित्स्कसभ बतौलक अछि । देशभरिक आंशिक प्राध्या‍पकसभकेँ करार सेवामे नियुक्त करबाक आ आगामी दिनमे आंशिक प्राध्यापक नियुक्ति करैतकाल सेवा सुविधा आ शर्त स्पष्ट होयबला ऐन निर्माण बनेबाक मांग करैत प्राध्या्पकसभ, आमरण अनसन शुरु जारी रखने अछि । एहिबीच, आन्दोतलनरत आंशिक प्राध्या‍पकसभ, अपन मांग प्रति ध्याकनाकर्षण करेबाक लेल आई प्रधानमन्त्री निवासमे धर्ना देत । प्रधानमन्त्री निवास वालुवाटारमे भोर ११ वजेसँ १ घण्टा आ १ बजेसँ २ वजे धरि शिक्षा मन्त्रालयमे धर्ना देबाक कार्यक्रम अछि । .......................
नेपाली सेनाक पृतनापतिसभक सम्मेोलन - छत्रमान सिंह गुरुङ्ग प्रधान सेनापतीमे नियुक्त भेलाक बाद होबय लागल पहिल सम्मेीलनमे ६ गोटे पृतनापति तथा उच्च सैनिक अधिकारीसभक सहभागिता रहत सेनाक प्रवक्ता रमिन्द्र क्षेत्री जानकारी देलन्हि । सम्मेलनमे नवनियुक्त सेनापती गुरुङ्ग सम्वो्धन करताह आ पृतनापतीसभद्वारा काम कारवाहीक विषयमे जानकारी करेबाक कार्यक्रम अछि । श्रोतक अनुसार प्रधानसेनापती गुरुङ्ग, पृतनापतीसभसँ परामर्शक बाद अपन अवधारणा बनेबाक तयारी कऽ रहल छथि । ..................... .
त्रिभुवन विश्व् विद्यालयक साधारण सभा-त्रिवि कार्यालय बल्खु्मे बैसयबला ५१ सद ीय सभामे प्रधानमन्त्री एवं त्रिवि कुलपती माधवकुमार नेपाल सेहो सहभागी हेेताह । सभामे ३ अर्बसँ बेसीक वार्षिक बजेट तथा प्रगति विवरण पेश कएल जाएत त्रिविक उपकुलपती माधवप्रसाद शर्मा जानकारी देलन्हि
३. पद्य

३.१. गुंजन जीक राधा

३.२. सतीश चन्द्र झा
३.३. हिमांशु चौधरी-दू टा पद्य

३.४. पंकज पराशर
३.५. नेनाक प्रश्न-सुबोध कुमार ठाकुर
३.६.निशाप्रभा झा (संकलन)-आगां

३.७. मिथिलेश कुमार झा-दू टा पद्य
३.८.कल्पना शरण-प्रतीक्षा सँ परिणाम तक-४





गंगेश गुंजन

गुंजन जीक राधा- एगारहम खेप
जड़ि से बुद्धि छैक। मनुखे सब मर्यादा थिक -समाज तकर प्रयोगधाम, सभक होइत छैक अपन-अपन खास बन्दाबन धाम हमरे-तोरे जकाँ!

आँखि खुजले पर छैक देखब संभव
बंद आँखि मे सृष्टि नहि, तकर भ्रम टा जीवित भेटैत छैक-
सृष्टिक रस-स्वाद नहि, आँखि खोल...
तखन बेचैनी मे राधा आँखि खोललनि। प्राण धक् रहि गेलनि. अरे श्रीकृष्ण !
हृदय आर्तनाद कऽ उठलनि-
‘अहाँ कतेक दुब्बर भ’ गेलौंहें कृष्ण! किएक?
-’तों जे एतेक दुबरि भ’ गेलेंहें...’
राधाक कान मे कृष्णक मर्मबेधी हंसीक गूंज-अनुगूंज आ प्रतिगुंजनक
अनन्त आवर्तनक खेल चलि रहल छल।बिरड़ो मे पड़ल कदमक एकटा
टटका-टटका हरियर पात जकाँ चकभाउर द’ रहल छलीह। से राधा छलीह।
अपन सर्वस्व कें कान्तिमय अनुभव करैत ताहि काल ओ स्वयं संॅ परिचय पात करैत
लोक छलीह। रोम रोम सर्वांग भेलि छलीह एहन !!
लाल रंग मे प्रेम लिखल हो ए
घृणा लिखल जाय कारी मे
सभ मनोरथ हरियर.पीयर
मेघ रंग हो अंग वस्त्र पहिरल मोनक
पाकल प्रस्फुटित विलास ए
विकलताक चरम बिता क’ लेब’ आयल आश्रय त
भेटलैक यैह मनुखक प्राण !
प्राण धारण कैने एउज्जर दप.दप परिधान।
सब टा रंग तिरोहित मोनक रंगशाला मे
मात्र बाँचि गेल एक रंग जे
सत्य तं रंगे नहि थिकए सब रंग कें पोतिपाति क’
करय दिअय प्रस्थान कि सबकें तेहन करय ओ आत्मलीन जे
बांचय नहिं अस्तित्व तत्वतः कोनो आनक।
रंग सात टा, स्वर सातक बनि जाय स्वतः वाणीए ध्वनि एनाटक
निःसृत होइत कतहु भरि पृथ्वी.बृंदाबन मे
हुनकर मन मेए अहांक मन मेए हम्मर मन मे.सबहक मन मे
असली यैह आ मात्र एतबे रंग.
जे होइछ भरि संसार मनक रंग!
बस।
कतय भेटत आब से सबटा सोखल धरती जे...
किंतु तथापि रंग नहिं भ जाइत अछि सब समाप्त
कोनो एक बासन मे घोडल हेरा गेला पर
माटि बहुत.बहुते बांचल रहैत अछि भरी सृष्टिक
अनगिनित कार्य व्यापार मे कोनो ने कोनो तत्वक लेने रस.
एक रती किछु कनिक रास धरतीक ऊपर सेहो बांचल रहि जाइत अछि
रंगक आभास ।
चीन्ह लेल जे हेराएल से रंग लाल छल कि पीयर.हरियर !
रंग समाप्त नहिं होइत अछि संसारक
हमर श्याम रंग
अहांक गोर नहिं हएत ख़तम कियेक तं
लोक आओत आ अबितहिं रहत निरंतर
ई संसार अनवरत अछि अनन्त!
यावत लोक रहत ताबत ई रंग रहत .
हमर श्याम रंग
राधा अहांक गोर रंग !
ई खिस्सा सब लोक कहत ।
भरि सृष्टि रहत आ
सुनत !!

(अगिला अंकमे...)

सतीश चन्द्र झा

कविता आ कनियाँ

जीवन अछि भ’ गेल छिन्न-भिन्न
सब मान प्रतिष्ठा धर्म गेल।
‘कविता’ आ ‘कनियाँ’ मघ्य आबि
छी ठाढ़ आइ दृगभ्रमित भेल।
छिटल किछु शब्दक गढ़ल अर्थ
कविता अछि अंतर के प्रकाश।
कनियाँ छथि स्नेहक पवन प्राण
जीवन के नव सुन्दर सुवास।
‘क’ सँ कविता, ‘क’ सँ कनियाँ
ह्रस्व ई लागल अछि दुनू के।
दुनू के मात्रा एक रंग अछि
बास हृदय मे दुनू के।
अंतर अछि तकराबाद बनल
अछि चाँद विन्दु कनियाँ उपर।
तैं चान जेंका छथि चढ़ल माथ
कविता अछि फेकल ताख उपर।
कविता पोथी फाटल साटल
कनियाँ नहि रहती बिना सजल।
कविता सँ कनियाँ के सब दिन
रहि गेलन्हि केहन विद्वेश बनल।
कविता कनियाँ मे भेल केना
सौतिनपन, झगरा एतेक डाह।
तै लागि जाइत छन्हि कनियाँ के
कविता सँ रौदक तेज धाह।

धरती अंबर सन बना लेब
ई मोन हृदय कतबो विशाल।
नहि समा सकत संगे-दुनू
क’ देत व्यथित क्षण हृदय भाल।

अछि अर्थ विराट एकर जग मे
शंकर के ई अछि ब्रह्म रूप।
ज्ञानी पंडित अछि चकित देखि
कविता कनियाँ के मूर्त रूप।

की करू ठाढ़ छी सोचि रहल
अछि हमरो जीवन मे दुविधा।
क’ देब त्याग कविता जखने
भेटत कनियाँ सँ सुख सुविध।

रखने छी कविता के पन्ना
कनियाँ सँ सबटा नुका- नुका।
माथक सिरहन्ना मे ठूसल
कविता किछु पुरना किछु नवका।

भेटल किछु तखने समाधन
छल जे भारी संकट विपदा।
कनियाँ पर सुन्दर नव कविता
किछु लीखि सुनाबी यदा-कदा।

लिखय लेल बैसि गेलहुँ तखने
बाहर कोनटा मे लगा घ्यान।
गृहणी सँ कविता छलै रूष्ट
नहि फुरा सकल किछु गीत गान।


बैसल रहि गएलहुँ समाधिस्थ
नहि दोसर पाँती उतरि सकल।
हे मृगनयनी, नभ चन्द्र मुखी
की करू हमर अछि कलम रुकल।



हिमांशु चौधरी-दू टा पद्य

नियति
बिछानरुपी मशान मे अर्थहीन भ
अपन लाशक कठियारी स्वयमसन भ गेल छी
इच्छा सभ मे पूर्णविराम लागि गेल अछि तेँ
एकटा नियति भ गेल छी
हँसलासँ मात्र नहि
कनएटा पडैत अछि
कनैत-कनैत थाकि जाइत छी
तखनो शांति नहि
किछु मनोविनोद करएटा पडैत अछि
बनाबटी मुस्की छोडएटा पडैत अछि
धन्य कथा!--- धन्य यथार्थ!!
तेँ जीवन मृत्यु मे लीन होइत जा रहल अछि,
जीवन आ मृत्यु मञ्जिल होइत जा रहल अछि।


टप-टप नोर आ ज्वाला


शब्द वीणा मे
अक्षरक तार लटका क
आलाप क रहल छी
ई केहन कोन अछि
जे रौद नहि दैखैत छी
ई केहन गाछ अछि
जे कोयली नहि बजैत अछि
भगवान! अल्लाह! गड!
पराधीन क्षितीज मे
छाओ बढैत जा रहल अछि
रङ्ग आ तालक
परिभाषाक शब्दजाल मे स्नेह
उपेक्षित होइत जा रहल अछि
दासताक छाँह बढैत जा रहल अछि
सपना मे आगि लगैत जा रहल अछि
शताब्दीक ई निर्मम मजाक
नोरसँ भीजल पपनी केँ
हड्डी आ चमडीक शरीरकेँ
इलेकट्रोड सुगा बनबैत जा रहल अछि
अशांत आ बेचैन बीच
भीड पचीसी खेल भेल जा रहल अछि
सभकेँ सिरक मे रखैत
सहवास करबाक नीतिसँ
आस्था दुर्वासा बनैत जा रहल अछि
मेघक गर्जन, वर्षा आ ठनकाकेँ श्रृङ्खलासँ
शीघ्र उपलब्धि दीर्घ पीडासन होइत जा रहल अछि
घृणाक ज्वालामुखीकेँ
कोनहुँ भविष्य नहि होइ तो
टप- टप नोर आ क्रोधक ज्वाला
अशोक होइत जा रहल अछि
धाहे- धाहे बीच
नव-नव पिआस बढैत जा रहल अछि
तेँ स्वर्ग! जन्नत! हेवन!
इतिहास/भूगोल मे नहि खोजि क
वर्तमान मे खोजबाक आवश्यकता बढैत जा रहल अछि।



पंकज पराशर
कराची
पछिला साठि बरख सँ
उठैत अछि हूक
आ समुद्री गर्जना मे विलीन
नोनछाह होइत रहैत अछि

एतय विद्यमान अछि बनारस
सहारनपुर मेरठ गया आ बुलंदशहर
अपने निर्णय सँ बेबस आ उदास
हम अपन बत्तीसम बरख मे करैत छी
साठि बरखक साक्षात्काेर

समय पुछैत अछि समय सँ
केहेन अछि आब मेरठ ?
केहेन अछि गया आ भागलपुर ?
प्रश्नाछकुल जनसमूह मे ठाढ़
समय बाँटैत अछि समय केँ
मात्र किछु बुन्न नोर

आब ओहि समय मे घुरब असंभव
ओहि स्मृमति मे घुरब असंभव
आ संभव सँ असंतुष्टत कराची
असंभव मे घुरबाक लेल जिद कयनेँ छल !
2009
सुबोध कुमार ठाकुर
नेनाक प्रश्न

फेर कारी मेघ छयल
देखि मन सभक हर्षायल
सुन्दर बर्खा बुन्द खसत
जीव चराचरकेँ जीवन भेटत

आँखिमे काजर सजेने
देखि मन मुदित म्र्गनयनी
बात अधरमे सजा कए
पुलकित भय छलि सेज सजेने


परञ्च नेना ठाढ़ एकसर, सोचि रहल छल बात दोसर
फेर बरखा खूब होयतय , फेर परुकेँ जकाँ सगरे ढहेतय
भूखसँ तरसब हम सभ अन्नकक़ दाना नहि भेटत,
जा कय बड़का दलानपर कानि-कानि कय राति काटब,



किएक होइत अछि जलमग्न सगरो
सुधि किएक नहि छै ककरो,
किएक अछि कोशी ओ कमला , धार ई बागमती बलानक,

छै किएक नहि उपाय एकर,
सोचि रहल छल कोमल हृदय ओकर,
जकर छल नहि ककरो लग उत्तर,

डर कल्पनाक जखन यथार्थमे बदलल रहए,
दृश्य बाढ़िक ताण्डव बनि बाध-बोन पसरल रहए,

आँखिसँ काजर दहाएल,
मृगनयनीक मुख मुरझाएल,
कष्ट-पीड़ा आर डरसँ सबहक छल देह घमायल,
के करत मालक निमेरा सोचि-सोचि बुधना दुखित भेल
भागि-भागि सभसँ कहय छल आब बाँचब दुभर भेल,

घर आँगन चार-चाँचर, भय गेल जल मग्न सगरो
नहि कमल दल नहि मखानक आ नहि छल शेष धानक
बाढ़िसँ कलहंत जीवन
छलि मिथिला शिथिल भेल
के करत प्रतिकार एकर
बनायत मिथिलाकेँ निम्मन

सभ साल आबि-आबिकेँ
बाढ़िक ताण्डव करैत अछि विकास अवरुद्ध
तोड़ि सभक आशाकेँ करए आस अवरुद्ध

मुँह फाड़ि चिकड़ि-चिकड़ि कय
नेना पूछि रहल अछि प्रश्न सभसँ

की सब दिन अहिना जीब बाढ़िक ताण्डव देखि-देखि कय

प्रश्न अबोधक नहि छै केवल
प्रश्न अछि सुबोधक
प्रश्न छै माइग्रेनक एवं प्रश्न अछि बुधना किसानक
प्रश्न छै मिथिलाक आशाक एवं प्रश्न छै मिथिला विकासक


निशाप्रभा झा (संकलन)




खोलू ने केबार खोलू ने केबार हे जननी, खोलू ने केबार। माँ के द्वार पर् फूल नेंने ठाढ छी, पूजन करब तोहार हे जननी, पूजन करब तोहार।
माँ के द्वार पर धूप नेने ठाढ छी, आरती उतारब तोहार हे जननी, खोलू ने केबार।
माँ के द्वार पर माखन नेने ठाढ छी, भोग लगाएब तोहार हे जननी, खोलू ने केबार, खोलू ने केबार हे जननी, खोलू ने केबार।
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परिछन गारि ने हम दै छी दुलहा द रहलौ आशीष यौ, सासुर मे जुनि छाती तनियौ रहु लिबौने शीशयो ॥ गारि----- गरदनि मे तौनी लगबै छी, गरदामी ने अनलौ,
नाक धरै छी नायब तैले,
हाटक बाछा बनलौ। अहाँक जनम ओलन्हि तैले बाबू लेलन्हि फीस यौ ॥ गारि----- नव बडद छी सुन्दर लागब, ते परिरु ई माला,
सासुर के धोती परिरु आ’, फेरु बाबा माला, जे जे कहलौ मानू नै त लागत ठुनका तीस यौ ॥ गारि----। मौसा हडकल मौसी गुडकल, पीसा अहाँक भरुआ,
दुल्हा मुदा अहाँ गुनि रुसियौ, सासुके दुलरुआ।
बहिन लेल हमारा घघरी मंगादेब बाबू ले’ कटपीसयौ ॥ गारि---- खेत बेचिक साइकिल देब,
आ’महिस बेचिक रेडियों, काका के दोसर बेटी की जेतनि,
विवाहलि कहियौ। बड हम पहिरब गुदडी दुल्हा जीबू लाख बरिस यौ ॥ गारि----












ब्राह्मणकगीत
ब्राह्मण बाबू के नाम हम सुनिते छलउ
नहि चिन्हि ने जानि कोना ब्राह्मण भेलउ,
अहाँ पीपरक गाछ तर रहिते छलउ,
अहाँ कोढिया केकाया जे देते छलउ। ब्राह्मण बाबू के नाम हम सुनिते छलउ, नहि चिन्हि नहि जानि कोना ब्राह्मण भेलउ,
अहाँ पीपरक गाछ तर रहिते छलउ, अहाँ अंधा के नयना जे देते छलउ। ब्राह्मण बाबू के नाम हमारा सुनिते छलउ, नहि चिन्हि नहि जानि कोना ब्राह्मण भेलउ, अहाँ पीपरक गाछ तर रहिते छलउ, अहाँ बहिरा के कान जे देते छलउ। ब्राह्मण बाबू के नाम हमारा सुनिते छलउ, नहि चिन्हि नहि जानि कोना ब्राह्मण भेलउ, अहाँ पीपरक गाछ तर रहिते छलउ, ब्राह्मण बाबू के नाम हम सुनिते छलउ। ---------------



हनुमानक गीत

कानि-कानि कहथिन सीता सुनु हनुमान यौ,
किया जो बिसरि गेलनि मोर भगवान यौ।
जल-थल, शशि-निशि ,अग्नि समान यौ, रावणक बात सुनि लागए विष समान यौ। किया जो बिसरि गेलनि मोर भगवान यौ।
हार मांस गलि पथि भेल भुगतान यौ, तइयौ ने छुटए मोर पतित प्राण यौ। किया जो बिसरि गेलनि मोर भगवान यौ। हम त कहई छी सीता अहाँ छी संज्ञान हे, लक्षुमनक संग अओता श्री भगवान हे।
कानि-कानि कहथिन सीता सुनु हनुमान यौ,
किया जो बिसरि गेलनि मोर भगवान यौ।।
_________ मिथिलेश कुमार झापरिचय-पात

नाम ________ मिथिलेश कुमार झा
पिता ________ श्री विश्वनाथ झा जन्म ________ 12-01-1970 केँ मनपौर(मातृक) मे पैतृक ________ ग्राम-जगति, पो*-बेनीपट्टी,जिला-मधुबनी, मिथिला, पिन*- 847223 डाक-संपर्क _____ द्वारा- श्री विश्वनाथ झा, 15, हाजरा रोड, कोलकाता-- 700026 शिक्षा :
प्राथमिक धरि- गामहिक विद्यालय मे। मध्य विद्यालय धरि- मध्य विद्यालय, बेनीपट्टी सँ। माध्यमिक धरि- श्री लीलाधर उच्च विद्यालय,बेनीपट्टीसँ इतिहास-प्रतिष्ठाक संग स्नातक-कालिदास विद्यापति साइंस काँलेज उच्चैठ सँ, पत्रकारिता मे डिप्लोमा-पत्रकारिता महाविद्यालय(पत्राचार माध्यम) दिल्ली सँ, कम्प्युटर मे डी.टी.पी ओ बेसिक ज्ञान। रचना: हिन्दी ओ मैथिली मे कविता, गजल, बाल कविता, बाल कथा,साहित्यिक ओ गैर-साहित्यिक निबंध, ललित निबंध, साक्षात्कार, रिपोर्ताज, फीचर आदि। प्रकाशित पहिल रचना:
हिन्दी मे– मुखपृष्ठ अखबार का- जनसत्ता(कलकत्ता संस्करण) मे 19-10-94 केँ(कविता) मैथिली मे- विधवा(कविता)-प्रवासक भेंट(मैथिली मासिक कोलकाता)-रिकार्ड तिथि उपलब्ध नहि, आरक्षण सिर्फ सत्ताक हेतु- आलेख(प्रवासक भेंट-कोलकाता)- नवम्बर 1994 कें। प्रकाशित रचना: मैथिली:- प्रायः 15 गोट कविता, 17 गोट बाल कविता, 18 गोट लघुकथा, 3 गोट कथा, 1 टा बालकथा, 44 गोट आलेख आ 6 गोट अन्य विविध विषयक रचना प्रकाशित। प्रकाशित रचना:- हिन्दी:- प्रायः 10 गोट कविता/गजल, 18 गोट आलेख, 1 गोट कथा ओ 3 गोट विविध विषय प्रकाशित।

मिथिलेश कुमार झा
दू टा पद्य
खब्बरदार

हे यौ !
एहि महान जनतंत्रक नेता,
एहि देशक जनता
बुझि गेल अहाँक चालि- प्रकृति- फूटनीति,
गमि लेलक अहाँक
गामसँ गद्दीक धरिक
सस्त बेबहार____
बैसलाक धार;
तैं सरकार, खब्बरदार!
जनतंत्रक जनता केँ
बुझिऔ जुनि
निमूधन_____
शक्ति सँ हीन;
जनताक संगठित शक्ति
बनत प्रचण्ड बिहाडि
अहाँकेँ पछाडि
गढत इतिहास
रहत साक्षी धरा-आकाश !!

गजल
उन्नति केलक गाम आब शहर लगैए,
लोक-लोक मे भेद आ जहर बढैए ।
निधोख बुलै अछि चोर रखबार दम सधने,
औंघायल कोतबाल धरि पहर पडैए ।
निट्ठाह पडल अछि रौदी जजाति जरै अछि,
पानि ने फानय धार से छहर पडैए ।
अमावस्याक राति की इजोतक आशा,
सगरो पसरल धोन्हि दुपहर बितैए ।
अपनो गाँव मे लोक बनल अनचिन्हार सन,
अनटोला केर लोक देखि क’ कुकुर-मुकैर ।


कल्पना शरण
प्रतीक्षा सऽ परिणाम तक- 4

किशोर मोहनक वृन्दावनमे रास
जलमे वरूणदेवक अस्तित्व क ज्ञान
व्रजवासीसऽ गोवर्धन पूजन करा
परास्त इन्द्रदेव पुनर्वासित स्वर्गधाम
दीन सुदामा संग गुरूकुल मे मित्रता
राधा संग अमर प्रेमकथाक निर्माण

अपन अल्हड़ताके बिसरक पाड़ी
आब बनल छल कर्मक संयोग
मथुरा स आमंत्रण आयल सुनि
व्रजवासीमे पसरल भाड़ी वियोग
विफल छल गोपी सबहक दुराग्रह
कृष्णके रोकक अनेकानेक प्रयोग

बलराम सहित युवराज के देखिकऽ
खुशी सऽ नगरमे मचल हंगामा
छल आ बल सब अकाजक बनल
द्वन्दयुद्धमे पराजित भेल कंस मामा
अपन राज पाबि प्रभु बसला द्वारिका
महल निर्मित केलैथ स्वयं विश्वकर्मा




गद्य-पद्य भारती

पाखलो
मूल उपन्यास : कोंकणी, लेखक : तुकाराम रामा शेट,
हिन्दी अनुवाद : डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस.मैथिली अनुवाद : डॉ. शंभु कुमार सिंह

पाखलो- भाग-५

एतबा सुनतहि ओ सभ चलि गेलाह। ओ राति ओ हमरहिं ओहिठाम बितौलक आ भोर होइतहिं चलि गेल। ओ अपन नाम रामनाथ कहने छल। ओ गोवाक स्वतंत्रता संग्राममे भाग लेने छल। ओ आ ओकर दूटा साथी गामक पुलिस-स्टेशन उड़एबाक लेल आएल छल। ओकरा साथी केँ तँ फिरंगी पकड़ि लेने छलैक आ एकरा पकड़बाक लेल एकर पाछू पड़ल छल। जिलेटिन (विस्फोटक पदार्थ) लगा कए ओ सभ गामक पुलिस-स्टेशन उड़ा देने छल, ई खबरि भोर होइतहिं सौंसे गाम आ लगपासक इलाकामे पसरि गेल छल।
गोवाकेँ मुक्ति भेटि गेल छलैक। ओहि दिन गोविन्दक दादी हमरा घर आएल छलाह।“भारत सरकार बहुत रास फिरंगीकेँ पकड़ि कए नाहमे ठूसि ओकरा सभकेँ पुर्तगाल भेज देने छैक।” हमरा मायकेँ वैह ई सूचना देलक। किछु क्षणक लेल ओ भावशून्य भ’ गेल छलीह। हमर बाबूजी जे पणजीमे रहैत छलाह ओ सदा-सर्वदाक लेल ओहि नाहसँ पुर्तगाल चलि गेलाह ई सोचि ओ बहुत दुखी भ’ गेलीह? ई हमरो पता नहि चलल। मुदा पछाति केँ हुनका आँखिमे नोर आबि गेलनि।
हम जखन बारह-तेरह बरखक रही, तखने हमर माय परलोक चलि गेलीह। हम एसगर भ’ गेलहुँ।
बरखाक दिन छलैक। कतेको दिनसँ लगातार बरखा होइत छलैक। नदीक बाढ़िक पानि गाम धरि पहुँचि गेल छलैक। गामक केळबाय (एक स्थानीय देवी) क मंदिरक चारू दिस बाढ़िक पानि आबि गेल छलैक। ओहि बाढ़िमे गामक पाँच टा घर गिर गेल छलैक। माल-जाल आ ओकर गोहाल सभटा ओहि बाढ़िमे भासि गेल छलैक।
हमर घर सीमानसँ बाहर पहाड़ीक कोनमे थोड़े ऊँच पर छल। बाढ़िसँ घरकेँ कोनो हानि नहि भेल छलैक। मुदा बरोबरि होम’ वला बरखा आ बसातक कारणेँ हमर घर ओहिदिन गिर गेल छल। घरक एक – दूटा कोरो – बत्ती कर्र – कर्र केर आवाजक संग टूटिकए गिर गेल। हम सूतल छलहुँ तखनहि ओ हमरा पर गिरल। हम आ हमर माय दुनू गोटे मरि जेतहुँ। हमर माय हमरा बचाबए अएलीह जकरा कारणेँ हुनका बहुत चोट लागि गेलनि। हुनका माथ पर बाँसक कोरो टूटि कए गिर गेल रहैक। ओ बेहोश भ’ गेलीह। हम हुनका मुँह पर पानिक छिंटा देलियनि तखने हुनका होश अएलनि। हम बाँचि गेलहुँ आ हमरा बेसी चोट नहि लागल ई जानि ओ बहुत हर्षित भेलीह। बादमे ओ हमरा गोद ल’ कए बहुत कानलीह। जखन ओ हमरा गर लगौने छलीह तखने हमरा हुनकर निकलल खून लागल। देखलहुँ तँ हुनका माथसँ खून बहराइत छलनि। हुनक माथ शीशा जकाँ टूटि गेल रहनि। ई देखि हम जोर सँ चिकरलहुँ। माय हमरा चुप रहबाक लेल कहलथि। हमर चिकरब सुनि कए एहि बरखामे किओ आबए बला नहि रहथि। मायक कहलाक अनुसार हम लजौनीक पातकेँ खूब नीक जकाँ पीसि कए हुनका माथ पर लगा देलियनि। बादमे हुनक खून बहब बन्न भ’ गेलनि। हुनका हिललो –डोललो नहि जा रहल छलनि आ ओ एक्कहि करोट पड़ल रहलीह।
घरक बचलका भागमे हम सोंगर लगौलहुँ। बसातो बहि रहल छलैक आ बरखा सेहो भ’रहल छलैक। बसातक संगहि रूकि – रूकि कए होमए बला बरखाक कारणेँ घरक बचलका हिस्सा सेहो उजड़ल जा रहल छलैक। उजड़ल कोरो बत्तीसँ पानि भीतर आबि रहल छलैक। घरमे कनेको सूखल जगह नहि छलैक।
मायकेँ बहुत चोट लागल छलनि एहिलेल ओ दरदसँ कुहरैत छलीह आ बीच – बीचमे अपन पयर हिलबैत छलीह। दीप लेसि हम हुनका सिरहौन लग बैसि रहलहुँ। बसातक झोंकक कारणेँ दीप बेर – बेर बुता जाइत छल जकरा हम पुनः लेसैत रही। तुफान ओ बरखा आओरो तीव्र भ’ गेलैक। हम पानि गरम क’ कए मायकेँ पियौलहुँ। देहक चोट आ घावक कारणेँ ओ भरि राति कुहरैत रहलीह। राति भीजलाक बाद हुनका बोखार आबि गेलनि जे बढ़िते गेलनि। भोर होइतहिं दादीकेँ संग ल’ कए हमरा डागदरकेँ बजएबाक अछि, से हम सोचलहुँ। मुदा राति तँ कटते नहि छलैक।
दोसर दिन भोरहिं-भोर गोविन्दक दादी डागदरकेँ ल’ कए आबि गेलाह। डागदर सुइया द’कए किछु दबाई सेहो देलकैक मुदा ताहिसँ कोनो लाभ नहि भेलैक।
ओ बीच-बीचमे आँखि खोलैत छलीह। हुनक देह उज्जर भ’ गेल छलनि आ आँखि अंदर दिस घंसल जा रहल छलनि। हुनक हाथ – पयर काँपैत छलनि। ओ हमरा अपना लग बैसबाक इशारा कएलनि। ओ हमरा किछु कहए चाहैत छलीह से हमरा बुझाएल मुदा ओ किछु बाजि नहि सकलीह।
ओहि दिन हुनक बोखार बहुत बढ़ि गेलनि। हुनक आँखि बन्न होम’ लागलनि। बोखारसँ ओ काँपए लागलीह। बादमे हुनका गरासँ घर्र – घर्र केर आवाज शुरू भेलनि आ ओ जतए सूतल छलीह ओतए किछुए क्षणमे सभ किछु शांत भ’ गेलैक। ओ हमरा छोड़िकए चलि गेलीह। हमरा अनाथ क’ कए चलि गेलीह ओ।
दादी एसगरे आबि कए हुनक अंतिम संस्कारक तैयारी कएलक। शेलपें मे रहयवला हमर मामा धरि खबरि भेजबाक लेल हमरा किओ नहि भेटल। बरखा जोरसँ होइत रहैक। गाममे आएल बाढ़िक पानि एखन धरि नहि कम भेल छलैक। श्मशान घाट पर दादी एसगरे हुनकर चिता पर लकड़ी राखैत जाइत छल आ हम हुनक संग दैत रहियनि। हमरा मायक अंतिम संस्कारक लेल दादीक अलावे आर किओ नहि आयल रहय। साँझ भ’ गलैक तखन जा कए चिता तैयार भेलैक। हम मायक लहास चिता पर राखि देलहुँ आ मुखाग्नि द’ दलहुँ। मुदा चिताकेँ आगि नहि सुनगा रहल छलैक। एक तँ भीजल लकड़ी आ उपरसँ बरखा। दादी बड्ड प्रयास कएलक मुदा बसातक झोंक आ बरखाक कारणेँ आगिक धधरो नहि उठि सकलैक। आधा राति बीति गेल रहैक हम दूइए गोटे श्मशान भूमिमे रही। चिताकेँ आगि लगएबाक प्रयास करैत – करैत दादी थाकि गेल।
जखन कोनहुँ उपाय नहि चललैक तखन चुपचाप काज करए वला दादी किछु समयक लेल ठाढ भेल आ बाजल – बाउ अहाँक हाथेँ तँ मायक चिताकेँ आगि नहि लागि रहल अछि। आब की करबैक? आब किछुओ क’ कए एहि लहासकेँ माटिए मे गाड़ि देबाक अछि।
एतबा कहि ओ कोदारिसँ धरती खोदब शुरू क’ देलक। हुनकर बात सुनिकए हमरा लागल – हँ, हम भाग्यहीन पाखलो छी। पाखलोक वंशक छी एहिलेल हमरा हाथेँ मायक चिताकेँ आगि नहि लागि रहल छैक। हमरा पाखलो नहि हेबाक चाही। ई पाखलोपन हमरा मोनकेँ कटोटि रहल छल। पाखलोपन केर अनुभूति हमरासँ असह्य भ’ रहल छल।
एक लोकक लंबाईक जोगर एकटा खदहा खोदल गेल।
माटि देबासँ पूर्व अपन मायकेँ अंतिम बेर प्रणाम क’ लिअ ! दादीक टोकलाक बाद हमरा होश आएल आ हम अपन दुनू हाथ उठा मायकेँ अंतिम प्रणाम केलियनि।
किछुए दिनक पश्चात् हम पाखलोसँ खलासी बनि गेलहुँ। जाहि कार्रेत (पुर्तगाली बस) पर दादी ड्राइवर छल ओहि बस पर ओ हमरा खलासी राखि लेलक। यात्री सभक समान बस पर चढाएब – उतारब यैह सभ काज हमरा करए पड़ैत छल। बजारक दिनतँ बसमे बहुत बेसी भीड़ भ’ जाइत छलैक। बसक अंदर ठूसल यात्री तँ उपर केराक घौर, कटहर,अनानास आदि लादल रहैत छल। उतार आ चढ़ाव पर तँ बस हकमैत – हकमैत चढ़ैत– उतरैत छल। जाधरि हम ओहि बस केर खलासी रहलहुँ ताधरि ओहि बसकेँ किछुओ हानि नहि भेलैक। हम एक्कहुँ टा ट्रिप चूकए नहि देलिऐक। बस मालिक केर भाय यात्री सभसँ पाइ लैत छलैक। ओ बहुत ओकादि मे घूमैत छल मुदा राति होइतहिं ओकर ओकादि खतम भ’ जाइत छलैक। घर पहुँचलाक बादे ओ पावलूक ओतए जा कए बहुत दारू पीबि लैत छल। ओ हमरा एक दिन दारू आनबाक लेल कहलक। हम ओकरा दारू आनिकए द’ देलिऐक, तखनहि दादी हमरा देखि लेलक आ बहुत डाँटलक। आब फेर कहियो ओकरा लेल दारू लएबाक लेल नहि जाएब एहन कहि ओ हमरा गामक देवी केळबाय केर किरिया द’ देलक। हमर एकटा आर स्मृति अछि – हम आ गैरेजक लाडू मिस्त्री बस धोबाक लेल ओहि नाला पर गेल छलहुँ। बस धोएब शुरू क’देलहुँ। गाड़ीक पितरिया चदराकेँ इमली घसि – घसिकए साफ केलहुँ। दुनू गोटे पानिसँ भीज गेल रही। सौंसे देह जाड़सँ कँपैत छल, एहिलेल लाडू बीड़ी सुनगा कए मुँहमे लगौलक आ गाड़ी धोबए लागल। अपन एकटा बीड़ी ओ हमरो देलक। हमहूँ ओकरा सुनगा कए पीबए लागलहुँ। एतबहिमे दादी ओतए पहुँच गेल हमरा बीड़ी पीबैत देखि लेलक। ओ हमरा पर बहुत गोस्सा कएलक आ हमरा एक झापड़ मारि देलक। हम ओकर पयर पकड़लहुँ, माफी माँगलहुँ मुदा ओकर गोस्सा कम नहि भेलैक। जँ अहाँ फेर कहियो बीड़ी पीलहुँ तँ अहाँकेँ अपन मायक किरिया, ओ हमरा मायक किरिया द’ देलक।
हम जहियासँ खलासी बनलहुँ तहियेसँ दादीक ओहिठाम रहय लागलहुँ। हम आ गोविन्द दुनू भाइ बनि गेलहुँ। गोविन्द हमरासँ बेसी तेज आ बुधियार छल। ओ ओतबहि तत्वज्ञानी ओ भावुक सेहो छल। जहियासँ हमर माय हमरा छोड़ि कए चलि गेलीह तहियासँ हम कानितहिं रहलहुँ अछि। तखन हमरासँ छोट रहितहुँ ओ हमरा समझबैत रहैत छल। ओ कहैत छल – अहाँकेँ पता अछि कि नहि, हमर गाय तामूओ केँ जखन प्रसव भेल रहैक तकर ठीक चारिए मासक बाद ओ मरि गेल छलीह मुदा तकर बाछाकेँ तहिया के देखने छलैक? देखियौक ! आइ वैह बाछा बरद भ’ गेल छैक। पाखल्या...यौ पाखल्या अहाँ कानू नहि, नहि तँ हमरहुँ कना जाएत। हमर बुढ़िया दादी पछिले साल भगमानक घर चलि गेलीह। ओ कहैत छलीह – जनम लेबए बला प्राणीकेँ तेँ मरबाक छैहे एकरा लेल लोककेँ दुखी नहि हेबाक चाही। ई सुनि हम बादमे अपन कानब बन्न करैत छलहुँ। हम ओकर भाषण सुनैत छलहुँ। ओ कोनहुँ तत्वज्ञानीक सदृश बजितहिं जा रहल छल।
मनुक्ख अपन जनमक संगहि अपन मृत्यु सेहो संग अनने अछि। जनम होइतहिं ओ नेना रहैत अछि। नेनासँ ओ जुआन होइत अछि। जुआनीसँ बुढ़ापा आ फेर जनमसँ आखिरी वा अंतिम अवस्थामे मनुक्खकेँ मृत्यु भेतैत अछि। जीवन – मरणक एहि अवस्थासँ सभ प्राणीकेँ गुजरहिं पड़ैत छैक। जतय – जतय प्राणी छैक ओतए – ओतए मृत्यु पसरल छैक। धरती हो, पानि हो वा अकाश, कोनहुँ जगह कोनहुँ समय पर मृत्यु होइतहिं छैक।
हम ओकरासँ पूछलहुँ – अहाँ ई सब कत’ सिखलहुँ? ई सब अहाँ पोथीमे पढ़ने छी की?ओ बाजल – हमरा ई सब विणे आजी (दादी) बतबैत छलीह। हुनकर स्मरण अबितहिं ओकरा आँखिमे नोर आबि गेलैक आर हमरा समक्ष हमरा छोड़िकए चलि गेल हमर मायक मूर्ति ठाढ़ भ’ गेल। रामायण, महाभारत आर आन कथा सभ सुनबएवाली, हमरा कांजी (मरगिल्ला) खोआ कए पैघ करएवाली, हम बाँचि गेलहुँ एहिलेल हमरा छातीसँ लगाबए वाली हमर माए, हमर आँखि देखने अछि हुनक मृत्यु......आ हुनक लहास,हमरा एहिसभ बातक स्मरण भ’ गेल। आँखिमे आएल नोर पोछि हम मोनहिं – मोन हुनका प्रणाम केलहुँ।

क्रमशः




श्री तुकाराम रामा शेट (जन्म 1952) कोंकणी भाषामे ‘एक जुवो जिएता’—नाटक, ‘पर्यावरण गीतम’, ‘धर्तोरेचो स्पर्श’—लघु कथा, ‘मनमळब’—काव्य संग्रह केर रचनाक संगहि कैकटा पुस्तकक अनुवाद,संपादन आ प्रकाशनक काज कए प्रतिष्ठित साहित्यकारक रूपमे ख्याति अर्जित कएने छथि। प्रस्तुत कोंकणी उपन्यास—‘पाखलो’ पर हिनका वर्ष 1978 मे ‘गोवा कला अकादमी साहित्यिक पुरस्कार’ भेटि चुकल छनि।

डॉ शंभु कुमार सिंह
जन्म: 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ,आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] “मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन” विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता,कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।
सेबी फर्नांडीस

क्रमशः
बालानां कृते-
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स) आ 2.कल्पना शरण: देवीजी

देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)













नताशा तइस

नताशा:चौबीस

कल्पना शरण:देवीजी:
पाबनिक महत्वच
गणेश पूजा सऽ हिन्दु सबहक पाबनिक मौसस प्रारंभ भऽ चुकल छल। एक पर एक पूजा आबै वला छल आ ताहि हिसाबे विद्यालय सेहो बन्द होयत रहत।ताहि सऽ गुरू आ चेला दुनु के परेशानी छल।देवीजी अपन विद्यार्थी सऽ अहि पर बात करैत रहैथ। ओ बच्चा सबके पढ़ाइ के लय नहिं तोड़ै लेल कहलखिन। ताहि पर बच्चा सबलग पाबनिक महत्वै पर बात उठल।
देवीजी बच्चा सबकेँ पाबैन सबहक महत्वत बता रहल छलखिन। देवीजी कहलखिन जे सब धर्ममे पाबैन होयत छै जाहि के पाछा किछु धार्मिक मान्यता रहै छै।चाँद़ तारा़ नक्षत्र आदि के अनुसार निर्धारित तिथि मे बेसीतर पर्व विशेषतः हिन्दु एवम् मुस्लिम के पाबैन मनाओल जाएत छै। इसाई धर्ममे अंग्रेजी तिथि के महत्वथ छै। पाबैन मनाबैके तिथि के अतिरिक्तस ओहि के मनाबैके विधि सेहो विशेषतः हिन्दु धर्ममे बहुत तर्कसंगत होयत छै। हिन्दु धर्म के प्रत्येकक पाबैन के नियम तेहेन छै जे ओहि पर शोध कार्य कैल जा सकैत छै।
अहि के अतिरिक्तत मनोवैज्ञानिक कारण सऽ सेहो पाबैन मनौनाइ जीवन के एकरसता हटाबै लेल बहुत महत्व पूर्ण छै। घरके साफ कऽ सजेनाइ नब कपड़ा पहनिनाइ ईश्वर के अराधना केनाइ विविध पकवान खेनाइ एक दोसर के उपहार देनाइ अहि सब सऽ पाबैन के विशेषता परिलक्षित होयत छै। किछु पाबैन ईश्वरावतार के देहावसान अर्थात् पृथ्वी सऽ विलोप हुअ पर मनाओल जायत छै जे कि खुशी मनाबै लेल नहिं बल्कि अपन अवतार सऽ दूरी बनिकऽ शोक व्यक्तप करैलेल होयत छै।
हिन्दु एवम् मुसलमान पाबनिमे व्रतक बहुत महत्व। छै। हिन्दु मे तऽ विभिन्न देवी देवताक अराधनामे व्रत करैके अलग अलग मान्यता छै। मुसलमान सबमे सबसऽ पैघ व्रत होयत छै रमजानक। जाहिमे महिना भरि लोक सब दिनभरि भूखल प्याैसल रहैत छैथ आ सूर्यास्तक बाद सऽ सूर्योदय के पहिने तक मे खाना पीना करैत छैथ। जेना मैथिल हिन्दु सब मे ओठगन खायल जायत छै तहिना रमज़ान मे सूर्योदय के पहिने सेहर (भोर) मे खाना खायल जायत छै जकरा सब सेहरी कहैत छै। तकर बाद दिन भरि निर्जला उपवास। धार्मिक मुसलमान सबके मान्यता छैन जे ई महिना पूर्णतः ईश्वरक प्रति अपन श्रद्धा अभिव्यक्ति करैके समय होयत छै। अहि महिना भरि सब पूर्ण संयम सऽ सब तरहक नशा आदि सऽ दूर रहैत ईश्वरक नाम अर्पित करै छथि। अहि के नियम बहुत कठिन छै ताहि कारण सऽ बच्चा़ गर्भवती महिला़ रोगी तथा यात्रा करैत लोक सबके ई माफ कैल गेल छै। अहि सबके अन्तमे ईद मनाओल जायत अछि।
देवी जी अपन वक्तहव्य बन्द करैत कहलखिन जे मिथिलांचल मे आर्थिक रूपसऽ उच्चवर्ग तऽ नहिं लेकिन निम्नवर्ग के कर्मचारी स्तर पर मिथिलाभाषी मुसलमानो बहुलता मे उपस्थित छथि।


बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
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विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.मैथिलीक नूतन वैज्ञानिक कोश आ २.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

१.मैथिलीक नूतन वैज्ञानिक कोश (वाक्य-प्रयोग सहित)-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा।
चरम; cərəmə; चरम; अंतिम; əⁿt̪imə; अंतिम; Last, final; adj राजाक अत्याचार चरम पर पहुँचि गेल अछि।; adj rɑːɟɑːkə ət̪jɑːcɑːrə cərəmə pərə pəɦuⁿci geːlə əcʰi।; adj राजाक अत्याचार चरम पर पहुँचि गेल अछि।
चरण; cərəɳə; चरण; पएर, डेग, प्रक्रम, पद्यक पाँति; pəeːrə, ɖeːgə, prəkrəmə, pəd̪jəkə pɑːⁿt̪i; पएर,डेग, प्रक्रम, पद्यक पाँति; foot, leg, stage, line of verse; n चरण रज धोबि पीबू हिनक पएर; n cərəɳə rəɟə d̪ʰoːbi piːbuː ɦinəkə pəeːrə; n चरण रज धोबि पीबू हिनक पएर
शरण; ɕərəɳə; शरण; आश्रय; ɑːɕrəjə; आश्रय; shelter, refuge; adj अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥; adj ət̪i d̪əjɑːlu suːni əɦɑːⁿkə ɕərəɳə əjələɦuⁿ ɟɑːni॥; adjअति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
शरण्य ; ɕərəɳjə; शरण्य; आश्रय देबा योग्यə; ɑːɕrəjə d̪eːbɑː joːgjə; आश्रय देबा योग्य; Fit for support; adj; adj; adj
शरण्युम; ɕərəɳju; शरण्यु; रक्षक,मेघ, बिहारि; rəkʂəkə,meːgʰə, biɦɑːri; रक्षक,मेघ, बिहारि; protector, cloud, wind; n; n; n
चरपट; cərəpəʈə; चरपट; दुष्टु; d̪uʂʈə; दुष्ट; mischievous; adj; adj; adj
चरफर; cərəpʰərə; चरफर; ऊर्जायुक्त, चलबा-फिरबामे पटु, चतुर; uːrɟɑːjukt̪ə, cələbɑː-pʰirəbɑːmeː pəʈu, cət̪urə; ऊर्जायुक्त, चलबा-फिरबामे पटु, चतुर; energetic, prompt, clever; adj; adj; adj
चरसा; cərəsɑː; चरसा; चाम, खाल; cɑːmə, kʰɑːlə; चाम, खाल; leather, hide; n नेताजीक हाथ थरथरा गेलनि मुदा मुँह चालू “मुँह सम्हारि क’ बाज मौगी नइँ त’ चरसा घीचि लेबौ ।; n neːt̪ɑːɟiːkə ɦɑːt̪ʰə t̪ʰərət̪ʰərɑː geːləni mud̪ɑː muⁿɦə cɑːluː “muⁿɦə səmɦɑːri kə’ bɑːɟə maːugiː nəiⁿ t̪ə’ cərəsɑː gʰiːci leːbaːu ।; n नेताजीक हाथ थरथरा गेलनि मुदा मुँह चालू “मुँह सम्हारि क’बाज मौगी नइँ त’ चरसा घीचि लेबौ ।
चरस; cərəsə; चरस; गाजाक रस जकर धूमपान कएल जाइत अछि; gɑːɟɑːkə rəsə ɟəkərə d̪ʰuːməpɑːnə kəeːlə ɟɑːit̪ə əcʰi; गाजाक रस जकर धूमपान कएल जाइत अछि; a type of smoking, hashish; n; n; n
चराँत; cərəॉⁿt̪ə; चराँत; चरबाक हेतु सुरक्षित परती; cərəbɑːkə ɦeːt̪u surəkʂit̪ə pərət̪iː; चरबाक हेतु सुरक्षित परती; land for grazing; n; n; n
चरी; cəriː; चरी; चरबा जोग घास; cərəbɑː ɟoːgə gʰɑːsə; चरबा जोग घास; vegetation required for grazing; n; n; n
शरीर; ɕəriːrə; शरीर; देह; d̪eːɦə; देह; body; adj कतय छन्हि हुनकर मृत शरीर।; adj kət̪əjə cʰənɦi ɦunəkərə mɹ̩t̪ə ɕəriːrə।; adj कतय छन्हि हुनकर मृत शरीर।
चरिबघिआ; cəribəgʰiɑː; चरिबघिआ; चारि रस्सीसँ घोरल खाट; cɑːri rəssiːsⁿ gʰoːrələ kʰɑːʈə; चारि रस्सीसँ घोरल खाट; cot netted with four fold string; adj; adj; adj
चरिष्णुr; cəriʂɳu; चरिष्णु; गतिशील, कर्मठ; gət̪iɕiːlə, kərməʈʰə; गतिशील, कर्मठ; Moveable, active; adj;adj; adj
चरित; cərit̪ə; चरित; जीवनी, आचरण; ɟiːvəniː, ɑːcərəɳə; जीवनी, आचरण; biography, behaviour; adjनहि, कतहु फेर सँ त्रिया चरित देखाओत त ने ई...।; adj nəɦi, kət̪əɦu pʰeːrə sⁿ t̪rijɑː cərit̪ə d̪eːkʰɑːoːt̪ə t̪ə neː iː...।; adj नहि, कतहु फेर सँ त्रिया चरित देखाओत त ने ई...।
चरित्र; cərit̪rə; चरित्र; चालि, चर्या, वैशिष्ट्यi; cɑːli, cərjɑː, vaːiɕiʂʈjə; चालि, चर्या, वैशिष्ट्य; character, conduct, disposition; n ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि।; n ʈreːɟeːɖiːmeː kət̪ʰɑːnəkə keːrə sⁿgə cərit̪rə-cit̪rəɳə, pəd̪ə-rəcənɑː, vicɑːrə t̪ət̪və, d̪ɹ̩ɕjə vid̪ʰɑːnə ɑː giːt̪ə rəɦaːit̪ə əcʰi।; n ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि।
चर्या; cərjɑː; चर्या; करनी, चालि, आचरण, अनुसरणीय पद्धति; kərəniː, cɑːli, ɑːcərəɳə, ənusərəɳiːjə pəd̪d̪ʰət̪i; करनी, चालि, आचरण, अनुसरणीय पद्धति; deed, conduct, routine; n पञ्जीकारजीक दैनिक चर्या कलम ओ खुरपीक संग सम्पन्न होइत छलन्हि।; n pəɲɟiːkɑːrəɟiːkə d̪aːinikə cərjɑː kələmə oː kʰurəpiːkə sⁿgə səmpənnə ɦoːit̪ə cʰələnɦi।; n पञ्जीकारजीक दैनिक चर्या कलम ओ खुरपीक संग सम्पन्न होइत छलन्हि।
शर्करा; ɕərkərɑː; शर्करा; शक्कəर, चिन्नी, साँकड़, खाँड़; ɕəkkərə, cinniː, sɑːⁿkəɽə, kʰɑːⁿɽə; शक्कर,चिन्नी, साँकड़, खाँड़; Sugar; n पञ्चामृत- दही, दूध, घृत, मधु, शर्करा; n pəɲcɑːmɹ̩t̪ə- d̪əɦiː, d̪uːd̪ʰə, gʰɹ̩t̪ə, məd̪ʰu, ɕərkərɑː; n पञ्चामृत- दही, दूध, घृत, मधु, शर्करा
शर्मा; ɕərmɑː; शर्मा; शर्मन, ब्राहाणक एक उपनाम; ɕərmənə, brɑːɦɑːɳəkə eːkə upənɑːmə; शर्मन,ब्राहाणक एक उपनाम; a surname of Brahmins; n; n; n
चर्म; cərmə–mənə; चर्म; चमड़ी, खाल; cəməɖə़ी, kʰɑːlə; चमड़ी, खाल; Skin, hide, leather; n एहि गपक चर्चा अछि, जे आर्य चर्म वस्त्र पहिरैत छलाह; n eːɦi gəpəkə cərcɑː əcʰi, ɟeː ɑːrjə cərmə vəst̪rə pəɦiraːit̪ə cʰəlɑːɦə; n एहि गपक चर्चा अछि, जे आर्य चर्म वस्त्र पहिरैत छलाह
चर्मकार; cərmərə , cərmɑːrə , cərməkɑːrə; चर्मकार; चमराक समान बनबएबला; cəmərɑːkə səmɑːnə bənəbəeːbəlɑː; चमराक समान बनबएबला; shoemaker, cobbler; n एक चर्मकार आओल आ', राजाकेँ फरिछाय बुझाओल।; n eːkə cərməkɑːrə ɑːoːlə ɑː', rɑːɟɑːkeːⁿ pʰəricʰɑːjə buɟʰɑːoːlə।; n एक चर्मकार आओल आ', राजाकेँ फरिछाय बुझाओल।
चर्पटी; cərpəʈiː; चर्पटी; सोहारी; soːɦɑːriː; सोहारी; Thin loaf; n; n; n
चर्र; cərrə; चर्र; वस्त्र फटबाक ध्व नि; vəst̪rə pʰəʈəbɑːkə d̪ʰvəni; वस्त्र फटबाक ध्वनि; sound of tearing cloth; nछोटगर-सन गेट, जाहिपर स्पष्ट रूपसँ ब्रेगेन्जा विला लिखल छलैक, अपन कब्जा पर झुलल चर्र-चर्र केर आवाज भेलैक; ncʰoːʈəgərə-sənə geːʈə, ɟɑːɦipərə spəʂʈə ruːpəsⁿ breːgeːnɟɑː vilɑː likʰələ cʰəlaːikə, əpənə kəbɟɑː pərə ɟʰulələ cərrə-cərrə keːrə ɑːvɑːɟə bʰeːlaːikə; nछोटगर-सन गेट, जाहिपर स्पष्ट रूपसँ ब्रेगेन्जा विला लिखल छलैक, अपन कब्जा पर झुलल चर्र-चर्र केर आवाज भेलैक
चरुआ; cəruːɑː; चरुआ; पीनी रखबाक बासन; piːniː rəkʰəbɑːkə bɑːsənə; पीनी रखबाक बासन; a pot for keeping processed tobacco; n; n; n
चरुभर; cəruːbʰərə; चरुभर; दानासँ भरल धानक सीस; d̪ɑːnɑːsⁿ bʰərələ d̪ʰɑːnəkə siːsə; दानासँभरल धानक सीस; paddy sheath full of corn; adj; adj; adj
चरुङ्गा; cəruːɖə़्gɑː; चरुङ्गा; चतुरङ्ग, शतरंज; cət̪urəŋgə, ɕət̪ərⁿɟə; चतुरङ्ग, शतरंज; chess; n; n;n
चर्वण; cərvəɳə; चर्वण; चिबाएब; cibɑːeːbə; चिबाएब; chewing; adj; adj; adj
चसचरा; cəsəcərɑː; चसचरा; चोरा कए आनक फसिल चरओनिहार; coːrɑː kəeː ɑːnəkə pʰəsilə cərəoːniɦɑːrə; चोरा कए आनक फसिल चरओनिहार; one who let one's cattle to graze other's crop; adj; adj; adj
शस्य; ɕəsəjə; शस्य; प्रशंसनीय; prəɕⁿsəniːjə; प्रशंसनीय; admirable; adj; adj; adj
शस्य; ɕəsəjəmə; शस्य; अनाज; ənɑːɟə; अनाज; Corn, grain; n; n; n
चसकाएब; cəsəkɑːeːbə; चसकाएब; परिकाएब; pərikɑːeːbə; परिकाएब; embolden, tempt; v.i.; v.i.; v.i.
चषक; cəʂəkə , cəʂəkəmə; चषक; कप, मदिरा पात्र; kəpə, məd̪irɑː pɑːt̪rə; कप, मदिरा पात्र; A cup, the pot for drinking wine; n; n; n
चसकब; cəsəkəbə; चसकब; परिकब; pərikəbə; परिकब; addicted, tempted; v.i.; v.i.; v.i.
चसमा; cəsəmɑː; चसमा; दृष्टिवर्धक सीसा; d̪ɹ̩ʂʈivərd̪ʰəkə siːsɑː; दृष्टिवर्धक सीसा; spectacle; nदेबलरैना फुलपेन्ट पेन्हि कऽ, चसमा पेन्हि कऽ बाबू-भैया नाहित जे रिक्शापर बैठिकऽ रिक्सा चलबइ हइ तऽ सिनेमाके गोबिना माउत कऽर हइ।; nd̪eːbələraːinɑː pʰuləpeːnʈə peːnɦi kəऽ, cəsəmɑː peːnɦi kəऽ bɑːbuː-bʰaːijɑː nɑːɦit̪ə ɟeː rikɕɑːpərə baːiʈʰikəऽ riksɑː cələbəi ɦəi t̪əऽ sineːmɑːkeː goːbinɑː mɑːut̪ə kəऽrə ɦəi।; nदेबलरैना फुलपेन्ट पेन्हि कऽ, चसमा पेन्हि कऽ बाबू-भैया नाहित जे रिक्शापर बैठिकऽ रिक्सा चलबइ हइ तऽ सिनेमाके गोबिना माउत कऽर हइ।
चसमदिल; cəsəməd̪ilə; चसमदिल; प्रत्येक्ष द्रष्टा-; prət̪jəkʂə d̪rəʂʈɑː; प्रत्यक्ष द्रष्टा; eye-witness; n;n; n
चसना; cəsənɑː; चसना; इनार कोड़बामे माटि उघबाक बासन; inɑːrə koːɖə़bɑːmeː mɑːʈi ugʰəbɑːkə bɑːsənə; इनार कोड़बामे माटि उघबाक बासन; pan used for carrying soil coming out while digging well; n; n; n
शस्त; ɕəsət̪ə; शस्त; प्रशंसनीय; prəɕⁿsəniːjə; प्रशंसनीय; admirable, praiseworthy; adj; adj; adj
शस्त्र; ɕəsət̪rə; शस्त्र; हथिआर, आयुध; ɦət̪ʰiɑːrə, ɑːjud̪ʰə; हथिआर, आयुध; weapon, arms; nतावत शस्त्र सेहो ताहि द्वारे राखल अछि, प्रसन्न भए इन्द्र अपन असल रूप धरल।; nt̪ɑːvət̪ə ɕəst̪rə seːɦoː t̪ɑːɦi d̪vɑːreː rɑːkʰələ əcʰi, prəsənnə bʰəeː ind̪rə əpənə əsələ ruːpə d̪ʰərələ।; nतावत शस्त्र सेहो ताहि द्वारे राखल अछि, प्रसन्न भए इन्द्र अपन असल रूप धरल।
शताब्दीअ; ɕət̪ɑːbd̪iː; शताब्दी; सए वर्षक खण्डt; səeː vərʂəkə kʰəɳɖə; सए वर्षक खण्ड; century, centenary; nएहि मूर्तिक रचनाकाल तेरहम चौदहम शताब्दी आंकल गेल अछि।; neːɦi muːrt̪ikə rəcənɑːkɑːlə t̪eːrəɦəmə caːud̪əɦəmə ɕət̪ɑːbd̪iː ɑːⁿkələ geːlə əcʰi।; nएहि मूर्तिक रचनाकाल तेरहम चौदहम शताब्दी आंकल गेल अछि।
चटाएब; cəʈɑːeːvə; चटाएब; चटबाएब; cəʈəbɑːeːbə; चटबाएब; get someone lick; vदही-चीनी चटाएब;vd̪əɦiː-ciːniː cəʈɑːeːbə; vदही-चीनी चटाएब
चटाइ; cəʈɑːi; चटाइ; खड़क पटिआ; kʰəɖə़kə pəʈiɑː; खड़क पटिआ; straw-mat; nदलान पर चटाइ ओछा देल गेल रहै ।; nd̪əlɑːnə pərə cəʈɑːi oːcʰɑː d̪eːlə geːlə rəɦaːi ।; nदलान पर चटाइ ओछा देल गेल रहै ।
चटकाएब; cəʈɑːkɑːeːbə; चटकाएब; डराएब, धमकी देब; ɖərɑːeːbə, d̪ʰəməkiː d̪eːbə; डराएब, धमकी देब; threaten; vt; vt; vt
चटाक; cəʈɑːkə; चटाक; टकरएबाक ध्वानि; ʈəkərəeːbɑːkə d̪ʰvəni; टकरएबाक ध्वनि; smacking sound; advचटाक!...मनसा उठिकए एक चाट देलकै।; advcəʈɑːkə!...mənəsɑː uʈʰikəeː eːkə cɑːʈə d̪eːləkaːi।; advचटाक!...मनसा उठिकए एक चाट देलकै।
चटान; cəʈɑːnə; चटान; शिला; ɕilɑː; शिला; rock; n; n; n
शतावधानी; ɕət̪ɑːvəd̪ʰɑːniː; शतावधानी; अद्भुत स्मरण शक्तिबला; əd̪bʰut̪ə smərəɳə ɕəkt̪ibəlɑː; अद्भुत स्मरण शक्तिबला; having miraculous power of memory; adj; adj; adj
शतावरी; ɕət̪ɑːvəriː; शतावरी; एक वनौषधि; eːkə vənaːuʂəd̪ʰi; एक वनौषधि; a herb, Asparagus recemosus; n; n; n
चट; cəʈə; चट; कड़ा वस्तु टुटबाक सन ध्वएनि, तुरत; kəɖə़ा vəst̪u ʈuʈəbɑːkə sənə d̪ʰvəni, t̪urət̪ə;कड़ा वस्तु टुटबाक सन ध्वनि, तुरत; crackling sound, promptly; adv चट दय ठाढ़ भ’ कए। डिबियाक बाती कखनो चट–चट कऽ कऽ चरचराइक तथा बातीक मुँहपर कारी गिरह बनि जाइक ।; adv cəʈə d̪əjə ʈʰɑːɖʰə़ bʰə’ kəeː। ɖibijɑːkə bɑːt̪iː kəkʰənoː cəʈə–cəʈə kəऽ kəऽ cərəcərɑːikə t̪ət̪ʰɑː bɑːt̪iːkə muⁿɦəpərə kɑːriː girəɦə bəni ɟɑːikə ।; adv चट दय ठाढ़ भ’ कए। डिबियाक बाती कखनो चट–चट कऽ कऽ चरचराइक तथा बातीक मुँहपर कारी गिरह बनि जाइक ।
शत; ɕət̪ə; शत; सए; səeː; सए; hundred; nओना ई सब ठाम शत-प्रतिशत सत्ये नही भ' सकैय।; noːnɑː iː səbə ʈʰɑːmə ɕət̪ə-prət̪iɕət̪ə sət̪jeː nəɦiː bʰə' səkaːijə।; nओना ई सब ठाम शत-प्रतिशत सत्ये नही भ' सकैय।
चटेनी; cəʈeːniː; चटेनी; पटिआ; pəʈiɑː; पटिआ; sitting mat; n; n; n
शतभिषा; ɕət̪əbʰiʂɑː; शतभिषा; चौबीसम नक्षत्र; caːubiːsəmə nəkʂət̪rə; चौबीसम नक्षत्र; 24th constellation consisting of 100 stars; n; n; n
शतचण्डीi; ɕət̪əcəɳɖiː; शतचण्डी; दुर्गासप्तिशती; d̪urgɑːsəpt̪əɕət̪iː; दुर्गासप्तशती; a narrative poem on the life of Goddess; n; n; n
चटचटाएब; cəʈəcəʈɑːeːbə; चटचटाएब; बेर-बेर चाट मारब; beːrə-beːrə cɑːʈə mɑːrəbə; बेर-बेर चाट मारब; slap repeatedly; v.t.; v.t.; v.t.
चटचट; cəʈəcəʈə; चटचट; तड़ातड़,तेलाह; t̪əɖə़ाt̪əɖə़,t̪eːlɑːɦə; तड़ातड़,तेलाह; hurriedly and repeatedly, greasy; advनॊर संऽ चटचट गाल। चटचट मारब।; advnəॊrə sⁿऽ cəʈəcəʈə gɑːlə।cəʈəcəʈə mɑːrəbə।; advनॊर संऽ चटचट गाल। चटचट मारब।
शतधा; ɕət̪əd̪ʰɑː; शतधा; सए प्रकारसँ; səeː prəkɑːrəsⁿ; सए प्रकारसँ; in hundred ways; adv; adv;adv
शतघ्नीॊ; ɕət̪əgʰniː; शतघ्नी; बंदूक, तोप; bⁿd̪uːkə, t̪oːpə; बंदूक, तोप; a kind of firearm; n; n; n
चटका; cəʈəkɑː; चटका; बड़ी जेकाँ एक तीमन, चटकन, थापड़; bəɖə़ी ɟeːkɑːⁿ eːkə t̪iːmənə, cəʈəkənə, t̪ʰɑːpəɖə़; बड़ी जेकाँ एक तीमन, चटकन, थापड़; curry of pulse, slap; n; n; n
चटका; cəʈəkɑː, cəʈikɑː; चटका; चिड़ै; ciɽaːi; चिड़ै; A hen-sparrow; ; ;
चटकैती; cəʈəkaːit̪iː; चटकैती; चलाकी, चतुरता; cəlɑːkiː, cət̪urət̪ɑː; चलाकी, चतुरता; cleverness; n;n; n
चटकार; cəʈəkɑːrə; चटकार; स्वादिष्ट वस्तु खएलापर जिह्वाक चटुलता; svɑːd̪iʂʈə vəst̪u kʰəeːlɑːpərə ɟiɦvɑːkə cəʈulət̪ɑː; स्वादिष्ट वस्तु खएलापर जिह्वाक चटुलता; smack, clacking of tongue while relishing some spicy dish; nचटकार सँ खाओल; ncəʈəkɑːrə sⁿ kʰɑːoːlə; nचटकार सँ खाओल
चतकार; cət̪əkɑːrə; चतकार; जनैत रहलोपर विस्मय देखाएब; ɟənaːit̪ə rəɦəloːpərə visməjə d̪eːkʰɑːeːbə; जनैत रहलोपर विस्मय देखाएब; feigned surprise; adj; adj; adj
चटकारी; cəʈəkɑːriː; चटकारी; शीघ्रता; ɕiːgʰrət̪ɑː; शीघ्रता; swiftness; n; n; n
चटक; cəʈəkə; चटक; पक्षीक विष्ठाह, शीघ्रता, शोभा, चटकलासँ भेल खाधि; pəkʂiːkə viʂʈʰɑː, ɕiːgʰrət̪ɑː, ɕoːbʰɑː, cəʈəkəlɑːsⁿ bʰeːlə kʰɑːd̪ʰi; पक्षीक विष्ठा, शीघ्रता, शोभा, चटकलासँ भेल खाधि; bird's excrement, quickness, splendour, scratch caused by splitting; adjनिर्मला जीक चटक-मटक कतए जइतनि? एक दिन एकटा योगीक माथपर कौआ चटक कए देलकैक; adjnirməlɑː ɟiːkə cəʈəkə-məʈəkə kət̪əeː ɟəit̪əni? eːkə d̪inə eːkəʈɑː joːgiːkə mɑːt̪ʰəpərə kaːuɑː cəʈəkə kəeː d̪eːləkaːikə; adjनिर्मला जीक चटक-मटक कतए जइतनि? एक दिन एकटा योगीक माथपर कौआ चटक कए देलकैक


२.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश,बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश,वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी,जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत,योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु,तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले,चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन),पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६



VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
8.2. Devil Blessed Us-Shyam darihare (Devil Blessed Us- Maithili story by Shyam darihare, translated by Praveen k Jha )

DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22 Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
Original poem in Maithili by Gajendra Thakur
Translated into English by Lucy Gracy from New York

Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in

Mandakini Living In The Heaven Came To The Earth Now
Badrivishal and Kedarnath
Meeting of Alaknanda and Mandakini
Two of the thundering streams meet
Who is living in the cloudy house?
The cloud that left
Did not return yet
But along the way
The cold wind came with earth quake
Animals trapped and fell down
Whose is this snow capped house?
Heart is shaken to see the stream
No ends of the mountain range
The slope is so steep and brook is at the ground
Edges fenced with two mountains
This is your beauty! Oh Alaknanda!
Mandakini who lives in the heaven
Is seen on the earth
The thundering bubbly torrent
The new vision I am gifted with today
Showed me the world filled with cold wind.

Devil Blessed Us-Shyam darihare (Devil Blessed Us- Maithili story by Shyam darihare, translated by Praveen k Jha )
(Devil Blessed Us- Maithili story by Shyam darihare, translated by Praveen k Jha )
The police chief had just left and the Supremo was about to retire for the day when a guard entered and saluted. Moving his neck-tied glasses to his eyes, the Supremo asked, 'now what'?
'Sir, B TV's owner has been waiting outside for long to call on', replied the guard politely.

'I won't see any TV guy right now. Ask him to come later. And with an appointment.' Said the supremo climbing stairs of his mansion.

'Sir, he is not here for an interview, but for a redressal. His nephew has been abducted.' the guard explained.

Supremo halted his steps. He turned his head, 'abducted? Nephew? How? When?'
'He didn't tell me all that', guard said humbly.
'Alright, have him wait into the outer drawing room. I will be right back'. Saying, supremo went upstairs, immediately called his brother-in-law and asked,'man! How could you kidnap B TV's owner's nephew?'

Santlal was stunned. Said,'what you sayin, Monsieur? My team got only a doctor in our custody and Monsieur has already been informed of that. We know nothin 'bout no B TV's owner's kin. My team don't touch no one without my permission, monsieur. Me sure some other team gotta done that.'
Supremo's eyes turned red. Said he,'Only your team has the wherewithal to pull this kind of a job through. No other team is authorized to lay their hands on such a figure. Contact B team, C team, D team right away and let me know within ten minutes who has him. Meanwhile, I will meet the B TV's owner and engage him in conversation.'
Angrily, supremo inserted three pints of paan instead of usual two and started downstairs grumbling,'these bastards want to gulp all the ransom all by themselves. Which is why didn't tell me. What they don't understand is they can't challenge the master.'
Supremo brought down his glasses to hang onto his chest from upon the eyes. Spitting a load into the spittoon outside the room, he entered the outer drawing room. B TV's owner and accompanying news editor and senior photographer got on to their feet and greeted him. After the supremo took to his seat, the owner started,' sir, I am B TV's CEO Suresh Bahal...'

'hnn-hnn what, CO?' interrupted the supremo.
'no sir, CEO' Mr. Suresh clarified.
'What's that?' Supremo asked diverting the talk.
'Sir, Chief Executive Officer'.
'Oh that! That what Pakistan's President calls himself and some of the chief ministers here also take pride in doing that' Supremo displayed his treasure of knowledge.
'Yes sir...yes sir' said Mr. Suresh Bahal pleased with his success in explaining. Introducing his colleagues, he said,'Sir, this is our news editor Mr. Mohan Bhatia and...'
Supremo interrupted yet again,'So, Mr. Bhat! What kind of news editing do you do - always finding fault with my state? My family is especially targeted by your TV. Why don't you show something positive once in a while?'
'Like what, sir?' Asked Mr. Bhatia.
'Like what? Why are you asking me that? Can't you see all the healthy fish growing in my pond....? Fisheries industry can be encouraged by that. Potato, onion and cabbage...high varieties of these are grown in my mansion. You won't find such varieties elsewhere. In my dairy, one cow can give thirty liters of milk! All these you can't see! All you do is to criticize!'
Mr. Bhatia was speechless. Understanding that arguing on this matter right now might be extremely harmful to the kidnapped, he folded his hands,'Sorry, sir! I will keep it in mind now on.'
'Yeah, these things should be kept in mind. Who is this third, Mr. CO?, Supremo asked.
'My name is Prabal Mishra. I am a senior photographer with B TV.' The third person introduced himself with folded hands.
'Ohhhh, so it's you, Mr. Prabal Mishra! Isn't it you who came to cover my rally and snapped photos of people squabbling for snacks and fighting each other instead of listening to me! You had interviewed shopkeepers about how my party people extorted contributions from them. What have you come here for today? Wanna snap something spicy? All of you are hands in glove with opposition. Media folks are bent on conspiring to discredit a government of poor and downtrodden...'
Supremo was lecturing them in his signature fashion to terrorize them earlier on so they won't much open their mouth later. Whereas, Mr. Suresh Bahal was shaking to his very core thinking he may have to return empty-handed.
Supremo's dissertation continued,'...especially people of your caste are dead against my government. But photos would do nothing. My government of poor and fallen will go on. Don't dream that I will ever allow a government of your caste in this state. Biggies pundits are falling at my feet in my court and you are out to disrepute me with a mere lens...!' Paan's spit was pouring out of supremo's mouth. A guard ran out and brought a spittoon. He put it along supremo's mouth. Supremo spit it all out along with a piece stuck in his throat. Keeping the spittoon in one hand, the guard passed a napkin with the other. Wiping the red saliva drooling out of his lips, supremo tossed the napkin towards the guard. Using his training skills, the guard caught the napkin with one hand. He looked at the guests anticipating an appreciation of his feat. He couldn't read the disgust and fear splattered on their faces. It didn't matter to him anyway and gloomily he went his way.

Seeing all that gurgling and spit Mr. Suresh Bahal was feeling a little dizzy. Bending his head down he tried to regain his composure and said, 'Sir, we haven't come for an interview today nor to cover any news.'
'Then why are you here? Don't tell me you came to negotiate a marriage because my son is too young and invitation I haven't extended any!' Supremo roared in laughter.

Ignoring the implied insult in his remarks, Mr. Bahal said, 'Sir, my nephew has been abducted. We came to ask for your help.'
'Hnn your nephew has been abducted? When? From where?' Supremo pretended to be surprised.
Pushing in a couple of pints of paan in his mouth out of the bowl kept besides, and topping it with some jarda, the supremo took to digging his ears with a Johnson bud. Mr. Bahal continued, 'Sir, My nephew came to the capital day before yesterday to prepare a special report. He was abducted moments after he came out of the hotel. In front of Mr. Prabal Mishra's eyes four gun-totting men forced him to their car and spirited away.'

Washing off his ear-dirt into the ashtray, the supremo asked,'Did you file a report with the police?'
'No sir.'
'If it happened in front of your photo-man Mr. Mishra, he must have seen the number on the license plate?' Supremo asked apprehensively.
Mr. Prabal Mishra concealed the truth,'no sir. Couldn't catch the no. in all that hustle.'
Supremo heaved a sigh of relief. Mr. Bahal et al became a little hopeful with this sigh. Mr. Bhatia presently said,'Sir, you have such a standing in this state that all bureaucrats and police administration tremble with fear before you.So we thought that reporting the matter to police will unnecessary publicize it and endanger the life of the victim as well as bring disrepute to your government. We suggest you personally ask the police to create a pressure...'
Mr. Suresh Bahal interrupted,'Sir, we haven't even got any call for ransom yet. Had it come, we would have resolved it then and there and wouldn't have bothered you sir.'
'My botheration is immaterial. After all, terrible it is that a journalist has been kidnapped. All this is a conspiracy to discredit my government. I ask you to have faith in me. Yet, it is not a low hanging fruit which you can enjoy immediately. You have to be a little patient.' Supremo assured them.
A guard came in and saluted,'Sir, Madam is calling you upstairs.'
'Can't you see, we are talking?', Supremo rebuked.
'Sir, the Patron has called up' the guard replied unaffected.
'Oh, shouldn't you say that.' saying supremo hurried towards the stairs.
Mr. Bahal looked towards Mr. Prabal Mishra and Mr. Bhatia. Uttered Mr. Prabal Mishra,'The supremo doesn't talk intimate on this phone. There are phones in his bedroom for special conversations.'
Then they all fell silent.
After about ten minutes, Supremo reappeared in the room and said,'All of you should now go. Be patient. I have asked the police chief and have also taken the station officer to task. We should get some information by the evening.'
'When should we come again sir?' Asked Mr. Bahal.
'Call before you come'. Supremo stood up.
No sooner had they left than supremo again ran upstairs. Elder brother-in-law was seated in the upper patio. Supremo yelled at him,'You speak such things on phone? Whole story you started narrating on the phone. You are aware that my enemies are all around. But you don't think. Now tell me what you have found out.'
'Monsieur, me inquired from everyone of my team. The boys swore they took no one except that doctor' Replied Santlal hesitatingly.
'Could you talk to the other teams?' Supremo was turning red.
'Yes, Monsieur, total five targets are in hand – two traders, a doctor, a girl and an unknown big figure.'
'Who did you talk to about that unknown guy?'
'To Nalkatta, monsieur!'
'And he said what', supremo was losing patience.
'He knew not the total thing. But he sure blurted out that his group has laid their hands on a fat target.' Santlal informed.
'Where is this asshole Nalkatta?' Supremo lost his temper.
'Me asked him to find everything and come here straight, monsieur'.
Supremo was not calming down. Shouted he,'Now this bugger Nalkatta is lifting billionaires and you are sitting on your ass. When every team has been alloted their areas then how come this B team has touched this target? What the hell have you been doing? If you are done with it then let me know.'
Santlal was panicking. Couldn't speak a thing.
Supremo's wife presently entered. Sitting besides the supremo, she asked,'What's the matter? What are you yelling at him for?'
'Go mind your own business. Don't you interfere in everything. We are talking something very important.' Supremo was extremely angry.
An orderly came in and informed,'Sir, your cousin is waiting downstairs.'
'That's Nalkatta, monsieur', Santlal spurted happily.
'Since when did he become Nalkatta?' Madam was laughing.
A thin smile came upon supremo's face too. Pinning it towards his wife, he directed,'You should go. I have to reprimand Nalkatta.'
Wife stood up and left.
Nalkatta appeared and laid prostate. Supremo remained unmoved like a stone.
Santlal asked,'What did you find out?'
Nalkatta's voice got stuck in his throat. He started choking. Supremo got up and slapped him hard on his face,'Bastard, now you are grabbing billionaires! Can your ass handle it now?'
'Monsieur, they got him by mistake.' Nalkatta spoke massaging his cheeks.
'How come by mistake?' Santlal inquired.
'Monsieur, they had the information that a hotel owner from Delhi was staying in that hotel and that he had come to attend a wedding. But they held the B. TV man instead by mistake.' Nalkatta gave his explanation.
Supremo again hit him with his foot,'And now do you have the capacity to handle it you motherfu..! Operate only as far as your infrastructure permits.'
Pretending to be Nalkatta's saviour, Santlal proposed, ' Monsieur, they cannot handle such a target. They don't have such large scale arrangement. Pray ask him to transfer the target to my team. I promise there won't be any disparity in sharing the goodies'.
'What share and what goodies! My government may even fall due to abductions of such parties' Shouting, the supremo turned to Nalkatta and ordered him,'Transfer the target to Santlal's team within two hours. Or else each one of you will face encounters'.
Trembling with fear, Nalkatta said,'will do, Monsieur. Right away.'
Nalkatta and Santlal both stood up and started out. Supremo asked from behind,'I will take the next step only after getting confirmation about the transfer, remember that.'
When they left, Supremo was so ecstatic on his skillful diplomacy that he laughed out,'These assholes think they are chiefs. I would let them take away this party of forty-fifty million and and I will always be on thirty percent? Give me all of it this time, you bloodyfools.'
It was just over half an hour that two party members of parliament and two assembly members came over. Supremo was going to have his lunch. He said to his wife,' These suckers don't understand what hour it is. Wandering around all the time. Must be some transfer-posting recco. Wait for a few minutes. Let me drive'em out first.'

Entering the meeting hall, the supremo inquired,' Aha..ha...how came all the four musketeers together?'
'Sir, the matters have gone to such an extent that it forced us to be here today.' An assembly member replied.
'Why, what happened?' Supremo asked.
'Sir, this abduction industry is growing thick and fast in the whole province' A member of parliament expressed worry.
Supremo roared with laughter and said,'Ain't that better! Opposition says that our government is not allowing any industry to come up. Go and tell'em don't we have the abduction industry growing fast and furious!'
All these four people's representatives have been known admirer of his witty remarks. But presently they all maintained their sorry posture.
Asked the supremo again,'Why these long faces?'
'Sir, just two days ago, a gangster forced one Mr. Mishra's daughter out of her home and forcibly married her. The girl kept howling horribly but no one came to her rescue out of fear of the stengun.' Spoke one member of parliament.
'Yeah..yeah the police superintendent mentioned this to me yesterday only. The search is on. Now he has married her and has kept her for the last two days...do you think she would be pristine by now that you folks are getting so distressed? Now she has to live with him be it a gangster or a gentleman like you. These brahmins can even turn an impure one to a pristine one. You guys close your eyes and ears and relax. There will be some uproar for a few days and then all will be calm. People do not have more time than that.'
'But the media is bellowing with rage' Second assembly member said.
Supremo gave him a hard glance,'if you were such a coward then why did you join politics? Thicken your skin.'
'But some response has to be there', said the first member of parliament again.
'Response has to be there so let it be there! Say that when Veerappan was abducting people no one showed any concern. And in this rule of the poor and downtrodden, the moment there is a crime, everyone starts shouting. This is a opposition conspiracy. People of this state are closely watching how they are bent on discrediting a government of the poor and the downtrodden. The exploited and troubled people will definitely avenge this of those conspirators.' Thus providing enough armor to his representatives to fight the media, the Supremo moved out for his lunch.
The representatives too went their ways satisfied praising their leader's offensive politics.
As they were leaving, Supremo had assured them further,'Folks, do not be afraid of the media. Our voters don't read newspapers, so let them write whatever they want to. Nevertheless, I have instructed the superintendent to hold a press briefing in the evening.'
Two notable things happened in the evening. The superintendent declared to the press,'the girl was not abducted, it is a love lorn case.'
The media asked,'But the girl was wailing and the stengun-totting criminals forcibly took her away. It's been two days. What has the police been doing?'
The superintendent had replied,'Even a super power like America has not been able to catch Osama Bin Laden despite all their efforts, how do you expect us to catch the kidnappers so quickly? We are trying. Please wait.'

Secondly, Supremo was informed by Santlal that the B. TV target has been moved to a safehouse. No police or media can ever trace him there.
Supremo immediately counseled Santlal,'Now don't forget that you are also a people's representative, so do not ever bring the target to your own house and yes, negotiate the ransom yourself by phone. Do not start below seventy million. Hide the vehicle used in the abduction in a secured garage. This Mishra must have read the numbers.'

After sunset, Mr. Suresh Bahal alone presented himself in supremo's court in this high-security zone. When in private, he informed,'Sir, someone called on my cell from a public phone a while ago. The kidnappers are asking for seventy million.'
Supremo expressed surprise,'I can't believe how shameless these criminals have become! Seventy million! Who asks for this kind of a figure in a ransom! Don't you worry. I am calling the police chief right here in front of you. They will beat the hell out of them. Never seen so daring criminals. Oh my God! This is now crossing limits!'
Mr. Suresh Bahal stopped him,'Sir, please do not tell anything to police. I am sure I am being followed. If you tell police the abductee's life will be in danger.'
'Then what kind of help do you want from me?' The supremo asked. He didn't expect a mediaperson to agree to a ransom so fast.

'Sir, seventy million is too much for me. You are an influential person. You know all kinds of people. You are familiar with all intricacies of this province. Please just let me negotiate through someone. I am ready to pay forty million.' Said Mr. Bahal.
'You are a mediaman. Don't give up so easily. If you pay ransom, they will be even more encouraged. If you hold your ground, I will have the police of entire state go after them big time. But of course, there are always some risks in this kind of campaign. You must be prepared to accept that. If something goes wrong it will be you guys raising all hue and cry.' Supremo extolled the strengths of his administration.
'No sir, we will not raise a voice. Please let me negotiate. It will be a great favor to me. I am arranging for the money.' Saying so, Mr. Bahal left.
How the negotiation took place and finally how much was bargained for, remained a mystery but on the third day Mr. Suresh Bahal's nephew returned safely. The same day, the whole team packed up and escaped out by next flight.
(2002)


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पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
मैथिली पोथी

विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क भा.रु.2100/-चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका प्रकाशन” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे भा.रु. 30/- अतिरिक्त जोड़ू।
बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क रु.5000/- चेक/ ड्राफ्ट/ मनीआर्डर द्वारा “ अंतिका प्रकाशन” के नाम भेजें। दिल्ली से बाहर के चेक में 30 रुपया अतिरिक्त जोड़ें।
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एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन


अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन,एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
फोन : 0120-6475212
मोबाइल नं.9868380797,
9891245023
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादवमूल्य: भा.रु.१००/-
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते,महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुरमूल्य भा.रु.१००/-(सामान्य) आ$४० विदेश आ पुस्तकालय हेतु।
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशरमूल्य भा.रो.१००/-
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आ पेपरबैक(ISBN No.978-81-907729-1-4मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-)
१२.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
१३. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संभस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: :देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
१४. गामक जिनगी (कथा संेग्रह)- जगदीश प्रसाद मंzडल): मूल्य भा.रु. ५०/- (सामान्य), $२०/- पुस्तकालय आ विदेश हेतु)ISBN978-81-907729-9-0 COMING SOON:
1.मिथिलाक बेटी (नाटक)- जगदीश प्रसाद मंडल
2.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरनमैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल।पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
3.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
4.मिथिलाक इतिहास – स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी
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ओहि बर्खमे प्रकाशित विदेह:सदेहक सभ अंक/ पुस्तिका पठाओल जाएत।
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तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)


२. संदेश-

[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]

१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।

२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।

३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।

४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।

५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।

६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।

७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।

८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।

९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।

१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।

११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।

१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।

१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।

१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।

१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।

१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाई। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे।

१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।

१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।

१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।

२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।

२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।

२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।

२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।

२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।

२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक हमर उपन्यास स्त्रीधनक विरोधक हम विरोध करैत छी। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।

२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।

२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।

२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।

२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।

३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।

३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।

३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।

३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।

३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।

३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।

३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।

३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।

३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।

३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।

४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।

४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।

४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।

४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।

४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।

४५.श्री धनकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।

४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।

४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।

४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रश‍ंसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।

४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।

५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।

५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।

५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।

५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।

५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।

५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।

५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।

५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।

५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।

५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।

६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।

६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।

६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।

६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।

६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि।

६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।

६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।



विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
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