ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ८१ म अंक ०१ मइ २०११ (वर्ष ४ मास ४१ अंक ८१)
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.नवीन कुमार आशा-अनामिका
३.७. १.किछु त हम करब शिवकुमार झा टिल्लू- कविता- उनटा-पुनटा २. किशन कारीगर- किछु त हम करब
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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संपादकीय
जापानमे ईश्वरक आह्वान टनका/ वाका प्रार्थना ५ ७ ५ ७ ७ स्वरूपमे होइत छल। "सेनर्यू"मे किरेजी नै होइ छै आ एकरामे प्रकृति, चान सँ आगाँ हास्य-व्यंग्य होइ छै। मुदा एकर फॉर्मेट सेहो हाइकू सन 5/7/5 सिलेबलक होइ छै। जापानी सिलेबल आ भारतीय वार्णिक छन्द मेल खाइ छै से 5/7/5 सिलेबल भेल 5/7/5 वर्ण / अक्षर। संस्कृतमे 17 सिलेबलक वार्णिक छन्द जइमे 17 वर्ण होइ छै, अछि- शिखरिणी, वंशपत्रपतितम, मन्दाक्रांता, हरिणी, हारिणी, नरदत्तकम्, कोकिलकम् आ भाराक्रांता। तैँ 17 सिलेबल लेल 17 वर्ण/ अक्षर लेलहुँ अछि, जे जापानी सिलेबल (ओंजी)क लग अछि। किरेजी माने ओहन शब्द जतएसँ दोसर विचार शुरू होइत अछि, किगो भेल ऋतुसँ सम्बन्धी शब्द। किरेजी जापानीमे पाँतीक मध्य वा अंतमे अबै छइ आ तेसर पाँतीक अंतमे सेहो जखन ई पाठककेँ प्रारम्भमे लऽ अनै छै। हाइकू जेना दू प्रकृतिक चित्रकेँ जोड़ैत अछि एकरा संग चित्र-अलंकरण विधा "हैगा" सेहो जुड़ल अछि। जापानमे ईश्वरक आह्वान टनका/ वाका प्रार्थना ५ ७ ५ ७ ७ स्वरूपमे होइत छल जे बादमे ५ ७ ५ आ ७ ७ दू लेखक द्वारा लिखल जाए लागल आ नव स्वरूप प्राप्त कएलक आ एकरा रेन्गा कहल गेल। बादमे यएह कएक लेखकक सम्मिलित सहयोगी विधा “रेन्कु”क रूपमे स्थापित भेल।हैबुन एकटा यात्रा वृत्तांत अछि जाहिमे संक्षिप्त वर्णनात्मक गद्य आऽ हैकू पद्य रहैत अछि। बाशो जापानक बौद्ध भिक्षु आऽ हैकू कवि छलाह आऽ वैह हैबुनक प्रणेता छथि। जापानक यात्राक वर्णन ओऽ हैबुन द्वारा कएने छथि। पाँचटा अनुच्छेद आऽ एतबहि हैकू केर ऊपरका सीमा राखी तखने हैबुनक आत्मा रक्षित रहि सकैत अछि, नीचाँक सीमा ,१ अनुच्छेद १ हैकू केर, तँ रहबे करत। हैकू गद्य अनुच्छेदक अन्तमे ओकर चरमक रूपमे रहैत अछि।
टिप्पणी: "सेनर्यू"मे किरेजी नै होइ छै आ एकरामे प्रकृति, चान सँ आगाँ हास्य-व्यंग्य होइ छै। मुदा एकर फॉर्मेट सेहो हाइकू सन 5/7/5 सिलेबलक होइ छै। जापानी सिलेबल आ भारतीय वार्णिक छन्द मेल खाइ छै से 5/7/5 सिलेबल भेल 5/7/5 वर्ण / अक्षर। संस्कृतमे 17 सिलेबलक वार्णिक छन्द जइमे 17 वर्ण होइ छै, अछि- शिखरिणी, वंशपत्रपतितम, मन्दाक्रांता, हरिणी, हारिणी, नरदत्तकम्, कोकिलकम् आ भाराक्रांता। तैँ 17 सिलेबल लेल 17 वर्ण/ अक्षर लेलहुँ अछि, जे जापानी सिलेबल (ओंजी)क लग अछि। किरेजी माने ओहन शब्द जतएसँ दोसर विचार शुरू होइत अछि, किगो भेल ऋतुसँ सम्बन्धी शब्द। किरेजी जापानीमे पाँतीक मध्य वा अंतमे अबै छइ आ तेसर पाँतीक अंतमे सेहो जखन ई पाठककेँ प्रारम्भमे लऽ अनै छै। हाइकू जेना दू प्रकृतिक चित्रकेँ जोड़ैत अछि एकरा संग चित्र-अलंकरण विधा "हैगा" सेहो जुड़ल अछि।जापानमे ईश्वरक आह्वान टनका/ वाका प्रार्थना ५ ७ ५ ७ ७ स्वरूपमे होइत छल जे बादमे ५ ७ ५ आ ७ ७ दू लेखक द्वारा लिखल जाए लागल आ नव स्वरूप प्राप्त कएलक आ एकरा रेन्गा कहल गेल। बादमे यएह कएक लेखकक सम्मिलित सहयोगी विधा “रेन्कु”क रूपमे स्थापित भेल।हैबूनमे वर्णनात्मक गद्यक संग हाइकू(5/7/5) वा टनका/वाका (5/7/5/7/7)मिश्रित रहै छै।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १११ देशक १,७७० ठामसँ ५९, ७१७ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,००,७१५ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
जितेन्द्र झा
अपने घरमे उपेक्षित मिथिला चित्रकला
मिथिलाञ्चलक घरक भितमे बनाओल जाएबला मिथिला लोकचित्रकला विश्वभरि ख्याति कमओने अछि । मुदा एखत अपने भूमिमे एकरा पहिचान खोजबाक स्थिति छैक । मिथिला चित्रकलाके सरकार बेवास्ता कएने अछि, तें ई व्यवसायिक रुप नहि लऽ सकल अछि । एकर व्यावसायिक प्रबद्र्धन नहि भऽ सकल अछि ।
ग्रामीण क्षेत्रक महिलाके जीवनस्तर सुधार करबाक लेल बडका साधन भऽ सकैत अछि ई चित्रकला । कियाक त खासकऽ मैथिल ललनेक हाथमे नुकाएल रहैत अछि ई चित्रकलाक जादुगरी । आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक समृद्धिक अथाह सम्भावना अछि मिथिला चित्रकलामे । लोकचित्रकलाके व्यवसायिक स्वरुप देलासं आर्थिक आ सांस्कृतिक दुनू लाभ उठाओल जा सकैत अछि । परम्परागत मिथिला चित्रकला जीवनक अंग अछि मिथिलामे । लोकचित्रकला संस्कारक द्योतक सेहो अछि ।
मुदा बढैत आधुनिकताक कारणे विस्तार प्रभावित भेल छैक । राज्य मिथिला चित्रकलाके एखनधरि चिन्ह नई सकल आरोप चित्रकारसभक छन्हि । नेपाल सरकार कलाके बढावा देबालेल ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठान खोलने अछि । जत्तऽके प्राज्ञ परिषद्मे मिथिला चित्रकलास सम्बद्ध एक्कहु गोटे नहि अछि । ई एकटा प्रमाण मात्र अछि, आन बहुतो ठाम मिथिला चित्रकलासंग सौतिनिञा व्यवहार होइत आएल छैक । एना ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानक कुलपति किरण मानन्धर कहैत छथि जे मिथिला चित्रकलाके विशेष स्थान देने छी । मिथिला चित्रकलामे विशेष दखल भेनिहारि महिलाके स्थान देल जाएत से कुलपतिक कहब छन्हि । हिनक कथनी आ करनीमे कतेक समानता अछि, आबऽ बला दिने बताओत ।
जत्तऽ समग्र कलाक उन्नतिक बात होइक ओत्तऽ मिथिला पेन्टिङक चित्रकार नईं अछि, एकरा विडम्बने कहबाक चाही ।
मिथिला चित्रकलासं सम्बद्ध चित्रकारके उचित अवसर भेटबाक चाही । नेपाल पर्यटन वर्ष २०११ मना रहल अछि, एहनमे मिथिला चित्रकलाक मादे सेहो पर्यटकके आकर्षक कएल जा सकैत अछि । एहिबीच काठमाण्डूक बबरमहलस्थित सिद्धार्थ आर्ट ग्यालरीमे एस. सी. सुमनक मिथिला चित्रकला प्रदर्शनी मिथिला कसमस हालहि सम्पन्न भेल अछि । एहि प्रदर्शनीमे कलाप्रेमी मिथिला चित्रकलाक आधुनिक आयामसभसं परिचित भेलथि । सिद्धार्थ आर्ट ग्यालरीमे हुनक ११ म् प्रदर्शनी छल ई । मिथिला क्षेत्रक जीवनशैलीक झल्काबऽ बला चित्रकलासभ देखलासं ग्यालरी मिथिलामय भऽ गेल छल । एस. सी. सुमन मिथिला चित्रकला क्षेत्रमे परिचित नाम छथि । हिनक चित्रकलासभ बेस प्रशंसा पओलक । मिथिला चित्रकला सम्बन्धमे अध्ययन अनुसन्धानक सेहो बहुत खगता छैक । मिथिला लोक चित्रकलाक कुनो खास नियम वा सिद्धान्त नहि होइत अछि । तें ई स्वच्छन्दताक पर्याय सेहो अछि । मिथिलाक समृद्ध संस्कृतिक परिचायक सेहो अछि ।
सरकार कएलक सौतिनिञा व्यवहार
एस.सी सुमन
चित्रकार, मिथिला चित्रकला
मिथिला पेन्टिङ परम्परागत कला अछि, ई कला कोनो पाठशालामे नहि सिखाओल जाइत अछि । पीढीदर पीढी ई अपने आप सिखबाक काज होइत छैक । हमहु“ अपन दाइस“ सिखल“हु । कतउ सासुस“ पुतोहु सिखैत अछि त कखनो मायस“ बेटी । ताहि परिवेशमे हमहुं अपन दाइस“ मिथिला चित्रकला सिखल“हु ।
मिथिला पेन्टिङके अन्तर्राष्ट्रिय बजारमे बहुत माग अछि । ई त हट केक अछि । कलाकारके कलाकारितामे निर्भर करैत छैक ओकर मोल । जेना हमर पेन्टिङ १७ हजारस“ लऽकऽ ८० हजारधरिक अछि । जे सहजे बिका जाइत अछि ।
मिथिला पेन्टिङ व्यावसायिक रुप लेबा दिस उन्मुख अछि । कमर्सियल मार्केटमे देखी त सेरामिकमे, ब्यागमे कपडा आदिमे एकर प्रयोग भऽ रहल अछि । तें नीक बजार छैक एकर । ज“ अपन बात करी त जहन हम बजारमे अबैत छी त प्रदर्शनी लऽ कऽ हमरा कोनो दिक्कति नई होइत अछि ।
मिथिला चित्रकलाक विकासके जे आधारसभ अछि से किछु कमजोर भऽ रहल अछि जेना पहिने माटिक घर होइत छलै । भितके घरमे मिथिला चित्रकलाके नीक अभ्यास होइत छलै । माटिक घरक ठाममे आब क्रंक्रिटके जंगल अछि भऽ गेल । सामाजिक संस्कार आदिमे सेहो भितमे लिखबाक चलन छलै । मुदा आब बच्चा ज“ पेन्सिलस“ देबाल पर किछु लिखि दैत छैक त मायबाप डांटिदैत छैक । तें भितमे लिखबाक चलन प्रभावित भेल अछि । तैइयो तराईक मुसहर वस्ती, थारु आ झांगड जातिक वस्तीमे माटिक घरमे मिथिला चित्रकला देखल जा सकैत छैक ।
नेपाल सरकार एखनधरि किछु नई कऽ सकल अछि, मिथिला पेन्टिङके लेल । मिथिला पेन्टिङ जत्तऽ अछि अपने बुतापर, अपन स्थान अपने बनौने अछि । मिथिला चित्रकलामे लागल कलाकारसभ अपने मेहनतिस“ आगु बढल अछि । ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानके गठन करैत काल प्राज्ञ परिषद्मे मिथिला चित्रकलास“ सम्बद्ध एक्कहु गोटेके नहि राखल गेल । नामके लेल सभामे मिथिला पेन्टिङसं जुडल एकगोटेके जगह देल गेलै, बादमे विवाद भेलै आ ओहो पद छोडि देलनि । व्यक्तिगत रुपमे हमरा पुछी त राज्य मिथिला चित्रकलाक लेल ने किछु कएने अछि आ ने किछु कऽ सकैया । (सुमनकसंग कएल गेल बातचीतमे आधारित)
प्रगतिक पथपर मिथिला चित्रकला
धीरेन्द्र प्रेमर्षि
साहित्यकार
गुणँत्मक दृष्टिकोणसं सेहो मिथिला पेन्टिङमे बहुत काज भऽ रहल अछि । परम्परा आ आधुनिकता दुनूके जोडिकऽ एच.सी सुमन मिथिला पेन्टिङके आगू बढा रहल छथि । मदनकला देवी कर्ण, श्यामसुन्दर यादवसहितके व्यक्तिसभ परिमाणात्मक आ गुणात्मक दुनू तरहें मिथिला पेन्टिंगके आगू बढा रहल छथि । सुमनक पेन्टिङ आधुनिकताक आकाशमे सेहो भरपुर उडान भरने अछि मुदा धर्ती बिन छोडने, जे एकदम महत्वपूर्ण बात अछि । मिथिला पेन्टिंगके साधनाके रुपमे लऽ कऽ आगु बढनिहार सभ अपने आप आगु बढि रहल छथि ।
राज्यके दिसस“ मिथिला पेन्टिङके लेल कोनो खास काज नहि भऽ सकल अछि । राष्ट्रिय स्तरमे चित्रकारसभके मूल्यांकन करैत काल मिथिला पेन्टिङस“ जुडल व्यक्तित्वके जे स्थान आ सम्मान देल जएबाक चाही, से नहि भऽ सकल अछि । जनस्तर आ अन्तर्राष्ट्रिय स्तरमे मिथिला पेन्टिङ नीक सम्मान पओने अछि ।
देशमे मिथिला पेन्टिङके स्थापित कएल जाए । खास कऽ महिला सभ एकरा जोगाकऽ रखने अछि । मैथिल महिलासभ किशोर अवस्थेसं अरिपन लिखब शुरु करैत अछि । तुसारी पावनि आदि सभ सेहो मिथिला पेन्टिङ सिखएबाक अवसर अछि । विविध पूजा–आजाक माध्यमे ओ सभ चित्रकलामे प्रवेश करैत छथि । राज्यके दिसस“ मिथिला पेन्टिङके स्वीकार्यता बढाएब, व्यावसायीक सम्भावनाके खुला करब, एहिमे लगनिहारसभके सम्मानके वातावरण बनएबाक काज करबाक चाही । तहन ई राष्ट्रिय स्तरमे स्थापित भऽ सकत । एहिमे अन्तरनिहीत वैशिष्टय जे अछि ताहिस“ ई अपने अन्तर्राष्ट्रिय रुपमे स्थापित भ जाएत, व्यापक भऽ जाएत । ं(बातचीतमे आधारित)
ऐ रचनापर अपन मतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ। 1.ज्योति सुनीत चौधरी- यूके मे भेल 2011 के वार्षिक मिथिला सांस्कृतिक कार्यक्रम पर एक विवरण, 2.समाचार:मीना झा 1
ज्योति सुनीत चौधरी यूके मे भेल 2011 के वार्षिक मिथिला सांस्कृतिक कार्यक्रम पर एक विवरण :
बहुत गर्वक बात अछि जे अपन माटि सऽ दूर रहितो यू के मे रहैवला मैथिल सब. जाहिमे बेसीतर दम्पति कार्यरत छैथ. अपन कला आ संस्कृतिके प््राति सम्मानक भाव जीवित रखने छैथ।जाहि भव्य रूपे तेसर बेरक मैथिल वार्षिक समारोह 9 अप््िराल 2011 क स्लाऊमे सम्पन्न भेल हमरा सबके अपन संस्कृतिके स्वर्णिम युगक प््राारम्भ नजदीके बुझबाक चाही।
कार्यक्रमक प््राारम्भ कल्पनाजी. जे लॉयड्स बैंकमे कार्यरत छैथ के मधुर वाणी सऽ स्वागत सम्भाषण सऽ भेल।कल्पनाजी स्वयम् भागलपुरके छैथ आ मैथिली उच्चारणमे पारंगत नहिं छैथ मुदा हुन्कर प््रायास आ अभ्यास सऽ ओ कठिन शब्दके तेहेन सहजता सऽ बजली जाहि लऽ कऽ हुन्का मिथिला के ‘कैटरीना कैफ’ कहल जा सकैत छैन। तकरबाद डॉक्टर जी डी झा सबके आर्शीवचन के संग एक भजन “जनक नन्दिनी मॉं” सुनेलखिन।पारूलके गायत्रीमन्त्र पर भरतनाट्यम् आ पारूल आ वत्सलाके ‘सुनु सुनु रसिया’ पर राधाकिसनक रूपमे नृत्य बड़ मनमोहक छल।फेर मिथिला संस्कृति पर मधुबनी ्र मिथिला पेण्टिग के माध्यम सऽ एक पावरप्वाइंट प््रोजेन्टेशन प््रास्तुत कैल गेल।फेर सबसऽ गर्वक समय छल मुख्य अतिथि आदरणीया डॉक्टर शेफालिका वर्मा जीके परिचय।
किछु डॉक्टरसब अपन अपन अवैतनिक रूपसऽ कैल गेल सामाजिक कार्य आ चिकित्सा सुविधाक अभाव. विकासक आवश्यकता आ सम्भावना पर बहुत ज्ञानपूर्ण पावरप्वाइंट प््रास्तुतिकरण केलैन। डॉ अरूण झा ह्यसेण्ट अलबन्सहृ मानसिक रोग . सामान्य चिकित्सा तथा स्त्री शिक्षा पर बजला । डॉ रीता झा सबके मोन पारलखिन जे पानि. बिजली आ पौष्टिक आहारक उपलब्धता कतेक पैघ सौभाग्य अछि।हुन्कर प््रास्तुतिकरणमे गर्भावस्थामे होयवला मृत्युक कारण पर सेहो जोर देल गेल छल।डॉ रामभद्रजी शल्य चिकित्साक कौशल्य विकास पर सेहो बजला।
अध्यक्ष डॉ अरूण झा ह्यबर्नलेहृ मैथिल साहित्यिक संस्था यूके के आर्थिक दशा पर अपन वक्तव्य देला।नब सदस्यसबहक स्वपरिचय के बाद मुख्य अतिथि अपन सुभाषण के प््राारम्भ ‘हरसिंगार’ के पंक्ति स केली जाहिमे हुन्कर नाम ‘शेफालिका’ राखैके कारण व्यक्त छल।हुन्कर भाषणमे विदेहके सबसऽ प््राचलित आ लोकप््िराय मैथिली पत्रिकाके रूपमे चर्चा भेल।कहैके आवश्यकता नहिं जे अहि पत्रिका के सम्पादक महोदयके सेहो प््राशंसा भेलैन।मुख्य अतिथिके फूल आदि उपहार देलाक बाद “विदेशमे रहै वला नबका दोसर पीढ़ी अपन संस्कृति बिसरि रहल छैथ” ताहि विषय पर वार्द विवाद प््रातियोगिता भेल।भाषा मैथिली तक सीमित नहिं छल कारण किछु बुद्धिजीवी नब पीढ़ीक लोक मैथिली बाजैमे असमर्थ छलैथ आ हुन्कर सबहक विचार बहुत महत्वपूर्ण छल।बहुत नीक विचारविमर्श छल मुदा सबहक निष्कर्ष किछु हद तक निराशाजनक छल जे ठीके हमसब अपन संस्कृति बिसरि रहल छी।मुदा अन्तमे एकटा खट्टरकक्काके प््रासंग ‘मिथिला संस्कृति’ पर हास्य नाट्य प््रास्तुत कैल गेल जाहिके संवाद बहुत तर्कसंगत आ विषय स सम्बद्ध छल।
फेर नाच गान करैलेल बच्चा सबके मिथिला पेण्टिग सऽ बनल प््रामाणपत्र देलगेल।वाद विवाद जीतनाहरके मिथिला पेण्टिग छपल टी कप देल गेल। श्रीमती माला मिश्रा. डॉ वीणा झा. डॉ विभाष मिश्र. श्रीमती अनीता चौधरी द्वारा प््रास्तुत गीत नादक कार्यक्रम सेहो बड्ड मनोरंजक छल।कविता पाठ सेहो भेल। अध्यक्ष दम्पत्ति. सचिव दम्पत्ति. कोषाध्यक्ष दम्पत्ति के संग विभाषजी सपरिवार बड्ड प््रायास केने छलैथ अहि कार्यक्रमके सफल करैमे ताहि कारणे विशेष धन्यवादक पात्र छैथ। आशा करैत छी नब अध्यक्ष आ नब सदस्यगण अकरा आर ऊपर लऽ जेता ।कार्यक्रमके चित्र लेल www.maithili.co.uk वेब साइट देखू।
2 समाचार:(मीना झा)
९.४.२०११
आइ लंदनक स्लौवक ४०० वर्ष पुरान ऐतिहासिक किला बेलिस हाउस ( Baylis House , Slough ) लंदनमे मैथिल समाज ऑफ़ यु. के. केर तेसर वार्षिक समारोह भेल। एहि समारोहमे भारतसँ मुख्य अतिथि मैथिलीक सुप्रतिष्ठित लेखिका एवं मैथिलीक महादेवी वर्मा डॉ. शेफालिका वर्मा आयल छलीह।
समारोहक आरम्भ बालिका पारुल क गायत्री मंत्रपर भारत नाट्यम नृत्यसँ भेल. डॉ. विभाष मिश्र संबोधन मे मैथिल समाज केर परिचय देलनि ,डॉ.. अरुण कुमार झा (बर्नली ) अध्यक्ष मैथिल समाज , उद्घाटन भाषण केलनि 'हम सब मैथिल समाजक स्थापना संयुक्त राज्य मे बसल मैथिल सब कोना अपन संस्कृतिक रक्षा क सकी. खास कय हमर ब्रिटिश युवा वर्ग अपन देस कोस के नै बिसरैथ, हम की छी से जानैथ, अपन परंपरा अपन संस्कृति के ज्ञान हुनका रहैक ,अपने सब देखैत छी जे कतेक ब्रिटिश युवा एहि मे आय भाग ल रहल छैथ...' . डॉ. कल्पना झा समारोहक विषय मे विस्तार से सब बात कहलनि. . श्रीमती ज्योति झा चौधरी मिथिलाक टूर पर अपन प्रोजेक्ट देखोलनी ,जाहि मे मिथिलाक संस्कार संस्कृतिक झलक छल. डॉ. रीता झा अपन प्रोजेक्ट स्त्रीक स्वास्थ्य एवं स्तिथि भारत मे कोन दयनीय अवस्था मे छैक से अपन प्रोजेक्ट से जाहिर केलनि, लोग के आह्वान केलनि जे एहि स्तिथिक रोक्वाक उपाय कयल जाय..डॉ अरुण कुमार झा (लन्दन ) अपन प्रोजेक्ट मे कन्या महाविद्यालय ,जनकपुर के देखोलनी ,जाहि मे स्कूल कोना चलि रहल अछ,कोना ओहि स्कूल के कंप्यूटर आदिक सुविधा उपलब्ध करोलनी. सब स आग्रह केलनि जे हम सब जे अपन लैपटॉप सब जे कनिको ख़राब होयत छैक टकरा फेकी दैत छी, से नहि क एकठाम जमा करी ओकरा अपन देस कोस मे भेजवाक प्रबंध करी...ठसाठस भरल हॉल मे सब मन्त्र मुग्ध सन सुनि रहल छलाह..डॉ. अरुण झा क पत्नी श्रीमती मीना झा जे स्वयं मैथिली मे लिखैत छैथ पूर्ण सहयोग द रहल छलीह समारोह मे डॉ. रामभद्र झा , डॉ. कौशलेन्द्र कर्ण, डॉ. मिथिलेश झा आदि सबहक सहयोग छल. ..तकर बाद, डॉ.नूतन मिश्र क आग्रह पर डॉ. कलाधर झा मुख्य अतिथि डॉ. शेफालिका वर्मा क परिचय करोलनी-- कोना हिनकर विषय मे केरला सरकार की सब लिखने छैक,कोना हिनक कविता सब यु.के. क पाठ्य क्रम मे छैक. ...' एहि से पहिने बालिका पारुल आ वत्सला ----- राधा कृष्ण पर बड सुन्दर नृत्य नाटिका प्रस्तुत केलनि .
समारोहक दोसर सत्र खुलल आकाशक नीचा बासंती उपवन मे मुख्य अतिथि डॉ शेफालिका वर्मा के भाषण स शुरू भेल. ओ अपन भाषण मे मिथिलांचलक अतीत केर परिचय दैत,बजलीह.. विदेशक एहि भावभूमि पर अपन मिथिला देश के देखि रहल छी.मैथिल समाजक ई ओ समारोह अछ जाहि ठाम ह्रदय ह्रदय स जुडैत अछ ,बुध्धि बुध्धि स, चिंतन चिंतन स ..सब स पहिने हम अपन हार्दिक आभार प्रकट करैत छी जे अपने सब ई सम्मान हमरा देलों. हम कत्तो मिथिला मैथिली शब्द देखैत छी ते हमर मोन प्राण अद्भुद रूप स झंकृत होम लगैत अछ. अपने सब विदेश मे रही अपन समाज के नै बिसरल छी..एहि लेल अपने सब के बेर बेर नमन...
सौँसे पृथ्वी पर यदी हम घूमी आबि ते सब ठाम कत्तो ने कत्तो एक टा छोट मोट मिथिला अवस्य भेटि जायत. मिथिलाक संस्कृति,मिथिलाक संस्कार हमरा बुझने विश्व मे स्एतते कत्तो होई. वास्तव मे मिथिला आधा बिहार मे छपल अछ,लागले पडोसी देश नेपाल ते मैथिली स महामंवित अछ..पहिने दरभंगा ,समस्तीपुर मुझफरपुर ,भागलपुर स लक सहरसा, सुपौल मधेपुरा कटिहार पुरनिया सब मिथिले
थीक..कहल जैत छैक जे चारि कोस पर पानि बदले, पांच कोस पर वाणी ...यानि सब ठाम मैथिलीक उच्चआरण अपन अपन क्षेत्र क अनुसार होइत अछ..जेना विश्व भाषा अंग्रेजी के मानल गेल छैक जाहि मे कतेको स्थान के अंग्रेजी उच्चारण समाहित अछ ..हं, ई आन गप थीक जे मुझफरपुर बज्जिका बनि गेल, ते भागलपुर अंगिका के जन्म द देलक,किन्तु, सबहक ह्रदय मे मैथिलीक संस्कार ओहिना अविरल रूप से प्रवाहित होइत रहैत अछ.. , पुनः ओ विद्यापति क गीत स मैथिलीक कव्यधारक उत्पति कहैत लोकप्रिय साहित्य बनेवा मे प. हरिमोहन झा के साहित्य रचना के बड़का योगदान कहलनि....आजुक वैचारिक क्रांति , वैज्ञानिक क्रांति क उल्लेख करैत ओ कहलनि जे संचार क्रांतिक एहि युग मे सओनसे विश्व एकटा गाम बनि गेल . हम सब देशक नै वरन विश्वक नागरिक बनि गेल छी. आय दुनियाक एक कोन स दोसर कोन धरि सोझे संवाद क लैत छी..एहि से मैथिली साहित्य के बहुत फायदा भेलैक ..नेट पर मैथिली पत्रिका सब अबी लागल ,मिथिलाक खबर अबए लागल.जाहि मे मिथिला मंथन ,मैथिल मिथिला , अनचिन्हार आखर, विदेह .कॉम आदि बहुतो पत्रिका नेट पर अवैत अछिमुदा, असगरे विदेह पत्रिका जे प्रसिद्ध साहित्यकार गजेन्द्र ठाकुर क सम्पादन मे शिव कुमार झा, उमेश मंडल आदिक संयोजन मे बंगला ,उड़िया, तमिल,तेलगु, कन्नड़, ,मलयालम, गुरुमुखी आदि लिपिमे छपैत अछ. एकटा सर्वेक्षण के अनुसार २००४ स आय धरि विदेह १०७ देश के १०७२६, ठाम स ५७,००० लोग ,२००९४९९० बेर एहि पत्रिका के देख्लनी, सब स पैघ गप छैक जे नव लेखनक प्रतिभा के उजागर कयल गेल ,आ सब जाती पातिक प्रतिभा के उजागर कयल गेल . दिल्ली स मिथिलांगन , अंतिका, कोलकाता स कर्नामृत ,मिथिला दर्शन, बम्बई स मिथिला दर्पण, आसाम स पूर्वोत्तर मैथिल, पटना स समय साल, घर बाहर, झारखंड स पक्षधर आदि आदि कतेको पत्रिका बहराय रहल अछ मुदा सब टा नेट स जुडल अछ.. हम हुनका सब के कहलों जे मैथिली पुस्तक एक से एक प्रकाशित भ रहल अछि मुदा बाज़ार नै छैक. सरकार nai ते विश्व विद्यालय के भरोसे छैक. अहाँ सब पुस्तक एहि ठाम मंगाऊ आ हिन्दीक पोथी पुस्तकालय मे एहिठाम अछिमैथिलीक पोथी किएक नै....मिथिला मैथिली बहुत तरहक समस्या स ग्रस्त अछ ओकर समाधान क सेहो सोचु....
दिल्ली सरकार क मैथिली भोजपुरी अकादेमी से बहुत काज मैथिली लेल भ रहल छैक...यानी मैथिलीक चहुमुखी विकास भ रहल अछ. तैयो मिथिलांचल बाढ़ी,रौदी,दाही , बेरोजगारी आदि समस्या स ग्रस्त अछ..सब स पैघ बात ओ कहलनि जे नबका पीढ़ी अपन भाषा बिसरल जा रहल छथि देश विदेश सब ठाम ,.. ई एकटा गंभीर प्रश्न सभक सोझा मे छैक, एहेन नहि होई जे एकदिन अपन मूल गामो बिसरी जित हवाक वेग मे पानि मे हेलैत जडविहीन भाखन जकां हेलैत रही जाय...मिथिलाक नारी लेल सेहो ओ कहलनि कोना अपन अस्तित्व लेल छटपटा रहल छथि, स्त्री के सुरक्षित नै स्वरक्षित हेवाक चाही ,निर्णय लेवाक क्षमता हेवाक चाही. भाषण क अंत अपन कविता स केलनि..हमर घर कते हेरा गेल ; कतेको श्रोता क आंखी नोरा गेल .
एकर सब स मनोरंजक कार्यक्रम रहल विदेश मे रहल मैथिल बच्चा मैथिली कोना बाजत जकर बहुत नीक आ सटीक संचालन डॉ. अरुण झा ( लन्दन) केलनि. एकर आकर्षक पक्ष छल एक दिस पुरान पीढ़ी दोसर दिस नव पीढ़ी.. दुनूक समस्या आ समाधान क चेष्टा...डॉ. विभाष मिश्र ,डॉ. नूतन मिश्र आ श्रीमती ज्योति झा चौधरी तिनु हरिमोहन झा क खट्टर ककाक तरंग पर एकटा छोट सनक स्वर- रूपक प्रस्तुत केलनि ,समूचा हॉल ठाहक्का स गूंजी उठल.
एहि समारोहक विशेष आकर्षण रहल मैथिली पुस्तक आ मिथिला पेंटिंग क बिक्री ....
गीत संगीत मे श्रीमती अनीता चौधरी आ श्रीमती माला मिश्र ,डॉ. वीणा झा आ डॉ. विभाष मिश्र क गान पर समस्त हाल झूमी उठल , पुनः अंग्रेजी कविता डॉ. सीमा झा ,मैथिली कविता श्रीमती ज्योति झा चौधरी आ डॉ. शेफालिका वर्मा क कविता ,माय विलेज ' क पाठ हुनके नतिनी सुश्री अंकिता कर्ण केलनि . डॉ वंदना कर्ण मुख्य अतिथि डॉ शेफालिका वर्मा के हाथे पुरस्कार वितरण कयल गेल . सबहक समाप्ति डॉ. मिथिलेश झा क धन्यवाद ज्ञापन स भेल ....एहि समारोहक समापन क उपरांत लागले कार्यकारिणी समिति क मीटिंग भेल , जाहि मे समय पूर्ण हेवाक कारन नव कार्यकारिणी क गठन भेल .
पुरान कार्यकारिणी
अध्यक्ष ..डॉ. अरुण झा ( बर्नली ), सचिव एवं कोषाध्यक्ष - डॉ. मिथिलेश झा ,
कार्यकारिणी क सदस्य.--डॉ. रामभद्र झा, डॉ. डॉ. वंदना कर्ण , डॉ. पूनम झा , डॉ. कल्पना झा , डॉ. राजीव रंजन दास ,
वेब साईट रचयिता श्री अखिलेश कुमार
नव समिति ..
अध्यक्ष --डॉ. अरुण झा ( लन्दन )
सचिव डॉ वन्दना कर्ण ,
कोषाध्यक्ष--डॉ. मिथिलेश झा .
कार्यकारिणी क सदस्य--डॉ. विभाष मिश्र , डॉ. राहुल ठाकुर , डॉ. आलोक झा , श्री राजेन्द्र चौधरी, श्री राज झा , श्रीमती ज्योति झा चौधरी
२०१२ मे ३१ मार्च के तारीख अखन राखल गेल ऐछ अन्नुअल जेनेरल
मीटिंग के लेल.
.....
जगदीश प्रसाद मण्डल जगदीश प्रसाद मण्डल
विहनि कथा
गुहारि
कमला कातक नवटोलीक गहबर बड़ जगताजोर। सएह सुनि अपनो गुहारि करबैक विचार भेल। भाँज लगेलौं तँ पता चलल जे ओना तीनू वेरागन-सोम, बुध आ शुक्र- भक्ता भाव खेलाइत छथि मुदा शुक्र दिनकेँ तँ साक्षात् भगवतियेक आवाहन रहै छन्हि। मन थिर भेल। डाली लगबए पड़ै छै तँए ओरियौनक विचार भेल। मन भेल जे पत्नीकेँ डाली ओिरयौनक भार दियनि। मुदा बोलकेँ रोकि विचार कहलक- “देवालयक काज छी, एकोरत्ती कुभाँज भेने गुहारियो उनटे हएत। डालीक बौस बाजरसँ कीनै पड़त। मुदा सस्ता दुआरे जनिजाति उनटा-पुनटा बौसे कीन लेतीह।”
मन उनटि गेल। अपने हाथे किनैक िनर्णए केलौं।
बाजार पहुँच फुल काढ़ल सीकीक रँगर डालीक संग बेसिये दाम दऽ दऽ नीक-नीक बौस कीनलौं। मन पड़ल जे भरि दिन उपास करै पड़त। चाहो तक नै पीब सकै छी। जँ पीबैओक मन हएत तँ गोसाइ उगैसँ पहिने भलहिं पीब लेब।
तनावसँ भरि दिन मन उदिगने रहैए। ने काज करैक मन होइए आ ने कियो सोहाइए। एहेन तनाव दुिनयाँमे ककरो भरिसके हेतै।
कोन जालमे पड़ गेल छी। तहूमे एकटा रहए तब ने। जालक-जाल लागल अछि। जमीन-जत्थाक जाल, जन जाल, मन जाल, तन जाल, शब्द जाल, विचार जाल, वाक् जाल नै जानि कते जाल बनौनिहार कते जाल बना कऽ पसारि देने अछि। एक तँ ओहिना इचना माछ जकाँ लटपटाएल छी तइपरसँ जालक-जाल। गैंचीक नजरि नै जे ससरि-फसरि छछारी कटैत जान बचा सोलहन्नी जिनगी पाबि लेब। तँए नवटोलीक गहबरमे डाली लगेलौं।
गुहरियाक कमी नै। अकलबेरेसँ गुहरिया पहुँच पतियानी लगा बैस गेल। गहबरक भीतर भगत बैस धियान मग्न भऽ गेलाह। गहबरसँ उदेलित भाव भगतक हृदेकेँ कम्पित करैत। गुहारि करए बाहर निकलल। हाथमे जगरनथिया बेंतक छड़ी नेने। भगत गुहारि शुरू करैत कहलखिन- “भगत, अश्रमसँ श्रमक बाट पकड़ि चलि जाउ। आगू किछु ने हएत।”
भगतक पछाति डलिवाह कहथिन- “पाछु घुिर नै ताकब। कतबो जोगिन सभ कानि-कानि किअए ने बजए मुदा घुरि नै ताकब।”
हमरो नम्बर लगिचाइल। मुदा एक्के वाक् सुनि उत्सुकता ओते नहिये रहए जते नव वाक् सुनैक होइक। अनेरे मनमे तुलसीक विचार उठि गेल। कहने छथि जे जेकरा जंजाल रहै छै तेकरा ने चिन्ता होइ छै। जकरा नै छै?
तही बीच भगत सोझमे आबि गेलाह। पैछले बातकेँ दोहरबैत एकटा नव बात पुछलनि- “छुटि गेल किने?”
बिनु तारतमे बजा गेल- “हँ।”
विदा भेलौं। बाटमे विचारए लगलौं जे अश्रमक अर्थ कि होइ छै। मुदा कोनो अर्थे ने लागल। हारि कऽ ऐ निष्कर्षपर एलौं जे एक सोगे आएल छलौं दोसर नेने जाइ छी।
गाम अबिते टोल-पड़ोसक लोक भेँट करए आबए लगलाह। सभ एक्के बात पुछथि- “की भेल?”
किछु गोटेकेँ प्रश्ने बना कहलियनि- अश्रमक अर्थे ने बुझलौं। अहीं कहू। मुदा जते मुँह तते रँगक उत्तर भेटऽ लगल। सुनैत-सनैत मन घोर-मट्ठा भऽ गेल। पछाति जे कियो पूछथि तँ कहए लगलियनि- “जहिना छलौं तहिना छी।”
जगदीश प्रसाद मण्डल
नाटक
कम्प्रोमाइज
पहिल दृश्य
(आसीन मास। रौदियाह समए)
सोनिया- अपनो नार सैध गेल। काल्हि मनोहर मामागामसँ आनए गेल। दुइयो-चारि बल्हीक ओरियान अपनो नै करब तँ माल-जालकेँ की खाइले देबै?
सुकदेव- मनमे तँ अपनो अछि मुदा छुछ हाथ थोड़े मुँहमे जाइ छै।
सोनिया- कोनो कि अन्न नै खाइ छी जे नै बुझब। मगर दुआरपर जेकरा गरदनिमे डोरी बन्हने छिऐ तेकर निमरजाना केकरा करए पड़तै।
सुकदेव- (मूड़ी डोलबैत) जेकरा पाइ छै उ आनो गामसँ कीन आनत। मुदा....?
सोनिया- मुदा कहने समए मानत। कोनो ओरियान तँ करैये पड़त।
सुकदेव- (तरहथ्थीसँ आँखि मलैत) ने एक्को मुट्ठी नार अछि, ने बाधमे घास अछि आ ने बाँसक पत्ता एक्कोटा हरियर अछि। आन साल अधियोपर तोड़ै छलौं तैयो कहुना कऽ काज चला लै छलौं। ऐबेर सेहो सभटा झड़ैकिये गेल......। देखियौ कि होइ छै?
सोनिया- ताबे ओहिना ठाढ़े रहत। दुआरपर लछमी कलपने प्रतबाए ककरो हेतै?
सुकदेव- गाममे ककरो देखबो कहाँ करै छिऐ जे दू मुट्ठी मांगियो लेब। जिनका सभकेँ बेसी होइतो छन्हि ओ तँ अपने पाछु तबाह छथि। जकरा छैहे नै ओ अपनो पैत नै बचा सकैए तँ दोसरकेँ की बचाओत। तहूमे दुइये-चारि दिनक बात रहैत तखैन ने। ऐबेर नै भेने अगिलो साल तेहने हएत।
सोनिया- छुछे सोग केने चिन्ता मेटाइ छै। जखैन दिने उनटा भऽ गेल तखैन सुनटा सोचने हएत।
सुकदेव- (वेवस) की उपाए करब। जखैन समैये संग छोड़ि देलक तखैन जीबैयेक कत्ते भरोस करब।
सोनिया- ई अहींटा बुझै छिऐ कि आउरो गोरे।
सुकदेव- की उपाए करब?
सोनिया- उपाए की करब! जेहेन समए बनल तेहेन बनि जाउ। तखने किछु पारो-घाट लागत। नै तँ......।
(सुकदेव सोनिया मुँह दिस, बघजर लागल जकाँ, टकटकी लगा तकैत सुकदेवक आँखि सोनिया पढ़ि)
चलु दुनू गोरे। मरहन्नाक जे बुट्टी-बाटी भेटत सेहो काटि लेब आ कतौ-कतौ जे चिचोर सभ छै सेहो काटि कऽ लऽ आनब।
सुकदेव- बेस कहलौं। जाबे बरतन ताबे बरतन। हाँसू नेने आउ। खोलियापर चुनौटी अछि सेहो नेने अाएब।
(सोनिया जाइत। मनचनक प्रवेश)
मनचन- भैया, जान बचाएब भारी भऽ गेल।
सुकदेव- से की?
मनचन- कलक पािन बन्न भऽ गेल। पानिये ने खसै छै।
सुकदेव- से की भेलह?
मनचन- पान-सात दिनसँ मटियाह पानि अबै छेलै। ओकरा जमा कऽ कहुना काज चलबै छलौं। काल्हिसँ ओहो बन्न भऽ गेल।
सुकदेव- दोसर कलसँ काज चलाबह?
मनचन- एहँ, कोनो कि एक्केटा कल बन्न भेल। टोलक सभ बन्न भऽ गेल।
सुकदेव- तखन पीबै की छह?
मनचन- पोखरिक पीबै छी। ओहो लटपटाएले अछि।
सुकदेव- बौआ कि करबहक। आखिर ऐ धरतीपर अपना सभ (मनुष्य) नै किछु करबहक तँ माल-जाल, चिड़ै-चुनमुनी बुत्ते हेतै। देखै नै छहक जे कते रंगक चिड़ै पड़ा गेल।
मनचन- भैया, तोरे सबहक मुँह देख जीबै छी। सबहक गति एक्के देखै छी। तामसो केकरापर करब। ऐ देहक कोनो ठेकान अछि। ने देहक ठेकान अछि आ ने देखिनिहारक ठेकान। तखैन तँ जाबे हाथ-पएर घिसिआइए घिसिअबै छी।
सुकदेव- अखैन जाह। निचेनमे कखनो गप करब। दू मुट्ठी मालक ओरियान करए जाइ छी। देखहक जे आसीन मास जकाँ एक्कोरत्ती लगै छै। अखुनका ओससँ खढ़-पातक डगडगी रहैत से केहेन उखड़ाह लगै छै।
मनचन- ऐसँ नीक ने जेठमे छेलै। जेठोसँ खरहर समए लगै छै। एकटा बात मन पड़ल।
सुकदेव- की?
मनचन- ऐसँ पैछला रौदी नमहर रहै कि छोट?
सुकदेव- तोरा की बुझि पड़ै छह?
मनचन- नमहर बुझि पड़ैए।
सुकदेव- ओ चारि सालक भेल रहए। एकरा तँ सालो नै लगलै।
मनचन- हमरा नमहर बुझि पड़ैए।
सुकदेव- दिन बीतने लोक दुखो बिसरि जाइ छै। तोरो सएह भेलह।
मनचन- नै भैया, से नै भेल। विधने मोटका कलमसँ लिख देने छथि तँए ने मन रहैए।
(मुस्की दैत)
मुदा एकटा बात कहै छिअह।
सुकदेव- की?
मनचन- हम सभ तँ जानिये कऽ गरीब छी तँए बुड़िवक छी। मुदा जेकरो महिक्का कलमसँ लिखलखिन ओहो तँ कोंकिआइते अछि।
सुकदेव- अखैन जाह। काजक बेर उनहि जाएत। एकटा बात मन राखिहह। पछुलका शताब्दीमे पच्चीसटा रौदी भेलै। एक सालक रौदी लोककेँ चारि बर्ख पाछु ठेलै छै।
(दूटा हाँसू नेने सोनियाक प्रवेश। सुकदेव चिन्तामग्न बैसल।)
सुकदेव- (स्वयं) कतऽ गेल पचास बर्खक जिनगी। पानिक दुआरे कोसी नहरि आ शक्तिक दुआरे पनिबिजली। जँ बनल रहैत तँ की औझके जकाँ मिथिलांचल वासीकेँ पड़ाइन लगितै। चिड़ै जकाँ उड़ैत-उड़ैत लोक चिड़ै बनि गेल। चिड़ै बनने मनुख-मनुख कहबैक जोग रहत। जकरा अपन बाप-दादाक बनाओल सुन्दर गाम-घर छै ओ घर-छोड़ि घुरमुरिया खेलाइए। खाइर.....।
(सोनियाकेँ देख)
तमाकुल अनलौं िक ओहो सठि गेल?
सोनिया- (मुँह चमका) सुआइत लोक कहै छै डोरी जरि गेल ऐंठन नै गेल। पेटक ओिरयान रहै कि नै रहै मुदा मुँहमे सुपारी चाहबे करी।
सुकदेव- सुपारीक मर्यादा की छै से अहीं बुझबै। सुपारी खेनाइक अंग छी जे खेलोपरान्त अतिथि-अभ्यागतकेँ विदाइ स्वरूप देल जाइ छै। सुपारीयो जोकर मान-मर्यादा जै पुरूखमे नै रहल ओहो पुरूखे भेल। हिजरोसँ बत्तर अछि।
सोनिया- बुझलौं, बुझलौं साँप फुसलबैक मनतर। (विचार बदलैत) एकटा बात पूछौं?
सुकदेव- एकटा किअए। एक हजार पूछू।
सोनिया- पेटक आशामे पेट काटि भरै छी आ घर अनैकाल टुटरूम-टुम भऽ जाइए। छोड़ि दिऔ बटाइ खेती?
(सोनियाक विचार सुनि सुकदेव ऊपरसँ निच्चाँ धरि सोनियाकेँ निहारि नजरि चेहरापर अँटका, अपन पैछला जिनगीपर दौड़बैत, अएना जकाँ देखए लगल। तड़पैत मने।)
सुकदेव- जखैन अपना धन-वित्त नै अछि तखैन....?
सोनिया- तखैन की?
सुकदेव- बटाइयो खेती केने अपन रोजगार तँ ठाढ़ केने छी। मारि-धुसि खटै छी, भरि पेट आकि आधा पेट खाइ तँ छी। जँ इहो छोड़ि देब तँ कि गोबर-गोइठा जकाँ कतौ पड़ल रहब।
सोनिया- बड़ीटा दुनियाँ छै। जतऽ पेट भरत ततऽ देह धुिन जिनगी बिताएब।
सुकदेव- ई तँ बुझै छी जे हाथ-पएर लारने कतौ पेट भरह। मुदा जे फुलबारी (गाम) बाप-दादाक लगाओल अछि, मनुक्ख जकाँ मनुक्ख बनि जीबैत एलौं, तकरा छोड़ि.....?
सोनिया- की आनठाम मनुक्ख नै रहै छै?
सुकदेव- हँ रहै छै। मुदा मनुक्ख मनुक्ख आ समाज समाजक बीच भुताहि गाछी, मरूभूमि पहाड़, समुद्र सदृश्य भाषा, काज बेवहारसँ जिनगी बदलि-बदलि गेल अछि। जइसँ एते खाधि मनुष्य-मनुष्यक बीच बनि गेल अछि। जइसँ कियो ककरो देखहि नै चाहैए। ऐहेन स्थितिमे.....।
सोनिया- कोनो कि खुटा गाड़ि सभदिन रहब जे अनेरे एत्ते माथा धुनि देहक हड्डी झकझकबैक कोन जरूरत अछि। बुझिते तँ छिऐ जे घरवाली घर लेती दाइ जेती छुछे।
सुकदेव- बाप-दादाक फुलबाड़ी ओ नै छिअनि जे मात्र समैया फुलक होय। बाप-दादाक फुलबाड़ी ओ छिअनि जइमे कुण्डली फुलक गाछक जड़िमे राखल अछि।
पटाक्षेप
दोसर दृश्य
(सुकदेव सोमन ऐठाम जाइत बाटमे...।)
सुकदेव- (उत्तेजित) पचास बर्खसँ किसान-बोनिहारक संग हमहूँ मिल कोसी नहरिक पानिसँ खेतिओ आ बिजलियोक सपना पुर्ति हएत तै आशामे रहलौं। मुदा आइ कि देखै छी? घरमे अन्न नै खेतमे पानि नै मशीनक नामो-निशान नै। यएह सोराज (स्वराज) साठि बर्खक छी। की हमसभ टकटकी लगौने मरि जय। मुदा ऐ उमेरमे कएले की हएत? भगवान बुढ़ाढ़ी दैते किअए छथिन। जँ दै छथिन तँ जीबैक जोगार किअए ने कए दै छथिन। की टकटकीसँ आँखि पथरा परान तियागि दी। उसैर रहल अछि गामक चास-बास, उसरि रहल अछि पशुधन, उसरि रहल अछि गामक खेत-खरिहान, उसरि रहल अछि गामक कला-संस्कृति।
(सोमनक घर। आंगनसँ निकलि सोमन देह खोलने कन्हापर धोती नेने नहाइले विदा भेल।)
सोमन- सबेरे-सबेरे केम्हर-केम्हर भैया?
सुकदेव- एलौं तँ तोरेसँ किछु विचार करए मुदा तोरा देखै छिअ जे कतौ जाइक सुर-सार करै छह।
सोमन- हँ भैया, कनी हाटपर जाएब। तँए धड़फड़ करै छी। मुदा जखैन आबि गेलह तँ किछु इशारोमे कहि दाए। जखैन भेँट भऽ गेलियह तखैन चुपे-चाप चलियो कन्ना जेबह?
सुकदेव- गप तँ गप छी, दोसरो घड़ी हएत। मुदा काजमे बाधा भेने तँ काज मारल जाएत। काज मरने जिनगी मरै छै। एक तँ समये तेहन दुरकाल भऽ गेल जे ओहिना सभ पटपटाइए। तहूपर जँ जोगारो बाधित हएत तखन तँ आरो तबाही बढ़त।
सोमन- गप जे कहि देने रहबह तँ रस्तो-पेरा सोचैत-विचारैत रहब। ओमहरसँ (हाट) घुरब तँ भेँट केने एबह।
सुकदेव- गप तँ नमहर अछि। मुदा तोरो बेर परक भदबा बनब नीक नै। अच्छा साँझमे भेँट हेबह किने?
सोमन- हाट जाएब अनठाइयो दैतिऐ। मुदा आइ सोमक हाट छी। कहैले तँ दूटा हाट लगै छै मुदा सोमक हाटक मोकाबला बरसपैतक हाट करतै।
सुकदेव- से की?
सोमन- सोमक हाटमे सीतामढ़ीक बेपारीसँ लऽ कऽ सुपौल फारविस गंज धरिक बेपारी अबै छै। छअ दिन ओकरा सभकेँ अबै जाइमे लगै छै। तहूमे गाए-बड़दक पएरे एनाइ-गेनाइ सेहो रहै छै।
सुकदेव- हँ, से तँ लगिते हेतै। तैओ ओही बेपारी सभकेँ धैनवाद दिऐ जे एते मेहनत करैए।
सोमन- अनठौने नै बनत भैया। बहरबैया बेपारी सभ मुइल-टुटल सभ उठा लइए।
सुकदेव- केहेन कारोवार ओकरा सबहक छै जे मुइल-टुटल सभ कीन लइए?
सोमन- छी हे औगताइल भाय-सहाएब, नै तँ सभ बात बुझा देतौं। एको मुट्ठी लार-पात नै रहने देहमे कछमछी लागल अछि। खढ़-पानिले जे हुकड़ैत देखै दिऐ तँ मन घोर-मट्ठा भऽ जाइए। ओना......?
सुकदेव- की ओना?
सोमन- बेर परक बात बजने बेसी नीक होइ छै। खाइर, कनी देरिये ने हएत। ओते लफड़ि कऽ चलि पुरा लेब। अपना गाममे हाटे ने होइए, नै तँ जीबैक एकटा बाट लोककेँ खुजि जैतै।
सुकदेव- हँ, से तँ होइतै। तोरो देरी हेतह।
सोमन- की करब भैया, चारू दिससँ घेरा गेल छी। तेहेन समए भऽ गेल अछि जे अपनो सबहक जान बचब कठिन भऽ गेलहेँ।
(दू डेग आगू बढ़ैत सुकदेव)
सुकदेव- कनी-मनी पूँजियो तोड़ि कऽ पहिने मनुक्खक जान बचाबह। बादमे बुझल जेतै।
सोमन- जाबे साँस अछि ताबे तँ आशामे हाथ-पएर लाड़बे-चाड़बे करब। अजगरो तँ अपन जिनगीक ओरियान करिते अछि।
पटाक्षेप
क्रमश:
तेसर दृश्य
(मवेशी हाट। माल-जालक संग अन्नो-पानि आ तीमनो-तरकारी।)
सोमन आ रामरूप
रामरूप- गोधियाँ, मालक मंदी आबि गेल अछि। दोसर कोनो बाटे नै सुझल तँए कनी घटो लगाकेँ बेच लेलौं। तोहर केहन रहलह?
सोमन- (मुस्कुराइत) सुतड़ल गोधियाँ। सुपौलिया बेपारी पकड़ाएल। अपन मन तँ झुझुआइते छलए।
सोमन- पौरूके तीन हजारमे बड़द कीनने छलौं। लार-पातक दुआरे अधो देह नै छलै। मनमे छलए जे पाँच बरख मारि-धुसि जोतबो करब आ तेकर बादो बेचब तैयो दाम आबिये जाएत मुदा की कहबह खूट्टा उसरन भऽ गेल।
रामरूप- अही दुआरे हमहूँ बेच लेलौं। तेहेन धन छलै जे मनसँ नै जाइ छलए मुदा रखबो करितौं तँ खाइले की दैतिऐ? महीना दिनसँ कपैच-कुपैच कऽ खाइले दै छेलिऐ। मुदा परसू आबि कऽ ओहो सैध गेल। गठूला घर उछेहलौं जे दू दिन चलल।
सोमन- घर उछेह खुआ लेलह तँ फेर घर?
रामरूप- खूट्टापर जेकरा बान्हि कऽ रखने छेलिऐ ओकरा जे अधो पेट खाइले नै दैतिऐ से केहेन होइत। जखने थैरमे जाइ छलौं आकि हुकड़ए लगै छलए। ओकर कलपैत मन देख अपनो मन कलैप जाइ छलए। तँए सोचलौं जे बरसात तँ अगिला साल आओत, बुझल जेतै।
सोमन- (मूड़ी डोलबैत) हँ से तँ ठीके। जैठीन एक दिन पार लगनाइ कठिन अछि तैठीन साल भरि आगूक सोचब बूड़िबक्किये ने हएत।
रामरूप- आब तँ गामे चलबह किने?
सोमन- हँ। चलब तँ गामे मुदा एकटा काज पछुआएल अछि। चलह एक फेरा लगाइयो लेब आ आधमन चाउरो कीन लेब।
रामरूप- मन तँ हमरो होइए। मुदा मालक पएरे एलौं से थाकि गेलौं। मोटरी उठबैक साहसे नै होइए।
सोमन- यएह हद करै छह तोहूँ। चलह ने कोनो दोकानपर बैस जलखैइयो चाह करब आ दस मिनट जिराइयो लेब। बुझै छहक जे कहुना पाँच रूपैया किलो सस्ता भेटतह।
(चाहक दोकान। बेंचपर चाउरक मोटरी रखि रघुवीर सेहो बैसल)
रामरूप- कनी मोटरी घुसका लिअ। की छी मोटरीमे भाय?
रघुवीर- की रहत। चाउर छी। आब िक कोनो भात खाइ छी कि दिन घीचै छी।
रामरूप- से की?
रघुवीर- अपना सबहक जे अगहनी चाउरक सुआद आ मस्ती छै से थोड़े ऐ चाउरमे छै। तखन तँ अपन हारल......।
रामरूप- की भाव देलक?
रघुवीर- तँए, कनी मन मानलक। अगहनी चाउरसँ पाँच रूपैया सस्ता अछि।
रामरूप- तब तँ गोधियाँ अपनो सभ अध-अध मन कऽ लऽ लेब, से नीके?
सोमन- हमहूँ तँ यएह सोचि कऽ कहलियह। अखन जदी कनी भीरे हएत तँ तीन दिनक सिदहामे चारि दिन कटि जाएत।
रामरूप- हम सभ पछुआएल छी तै बीच सठतै ते ने भाय?
रघुवीर- से कि अद्दी-गुद्दी बेपारी छी। पाँच गो ट्रक भिड़ौने अछि। मुदा खड़तुआ जकाँ लेबाल ढेरिअाएल अछि।
रामरूप- (मोटरी दिस देख) तरजू देखै छी। अहूँ कोनो चीज बेचैले अाएल छलौं?
रघुवीर- हँ। तरकारी उपजेबौ करै छी आ हाटमे बेचबो करै छी। भगवान दसे कट्ठा खेत देने छथि। ओकरे बीचमे कल गरा देने छिऐ आ बारहो मास तरकारीये उपजबै छी।
रामरूप- सभ किछु बिक जाइए?
रघुवीर- (कनी ठमकि) हँ बिक तँ जाइए मुदा.....?
रामरूप- मुदा की?
रघुवीर- यएह जे तेहेन चिक्कनिया लेबाल सभ भऽ गेल अछि जे चीज चिन्हबे ने करैए।
रामरूप- से की?
रघुवीर- की कहब। लहटगर देख चीज कीनैए। कीड़ी-फतिंगीक बेसी दवाइ हम नै दै छिऐ। तैसँ देखैमे समान कनी दब रहैए।
रामरूप- अहाँ किअए नै दवाइ दै छिऐ?
रघुवीर- अपनो खाइ छी किने। देखैमे ने दवाइ देल नीक लगैए मुदा जहरक अंश ओइमे रहिये जाइ छै किने। मुदा भगवान हमरो दिस देखै छथि?
रामरूप- से की?
रघुवीर- अखनो एहेन कीनिनिहार छथि जे हमरे चीजकेँ पसिन्न करै छथि। दू-पाइ महगे विकाइए। अहाँ सभ कतऽ आएल छलौं?
रघुवीर- (मिड़मिरा कऽ) की कहब भाय, रौदीक मारल डिरिआइ छी। बड़द-गाए बेचए आएल छलौं। खुट्टा उसरन भऽ गेल।
रघुवीर- (मूड़ी डोलबैत) दोसर उपाइये कि अछि। तेहेन दुरकाल समए भऽ गेल अछि जे लोकोक प्राण बँचव कठिन भऽ गेल अछि तैठाम माले-जाल गेल किने। पहिने मनुक्खक जान बचाउ। तखन बुझल जेतै।
रामरूप- अहाँ तँ हाटक तरी-घटी बुझैत हेबै। कहू जे एते-एते दूरसँ जे बेपारी सभ अबैए, से कना पार लगै छै?
रघुवीर- एकरा सबहक भाँज बड़ भारी छै। बड़का-बड़का बेपारी सभ छी। चरि-चरि, पॅच-पॅच बएच बनौने अछि। गामसँ हाट आ हाटसँ गाम एक बट्ट केने रहए। अड्डा बना-बना कारोबार पसारने अछि।
रामरूप- एकरा सभले रौदी-दाही नहिये छै।
रघुवीर- (अचंभित होइत) रौदी-दाही! हद करै छी अहूँ। सदिखन घैलापर पाइ चढ़ौने रहैए। जेना अपना सभले रौदी-दाही जनमारा छी तेना एकरा सबहक अगहन छी। एकबेर रौदी-दाही पौने सेठ बनि जाइए।
पटाक्षेप
चारिम दृश्य
(नसीबलालक घर। दरबज्जाक ओसारक कुरसीपर आँखि मूनि किछु सोचैत सोमनक संग सुकदेव अबैत)
सुकदेव- नीन छी यौ भाय?
(सुकदेवक बात सुनि आँखि ओलि धड़फड़ा कऽ)
नवीसवलाल- नै! नै! सुतल कहाँ छी। समैक फेरीसँ चिन्तित भऽ गेल छी। खेलहो अन्न देहमे नै लगैए। एक दिस जहिना पियास मेटा गेल तहिना आँखिक नीन्न सेहो। धैनवाद अहीं सभकेँ दी जे एहनो दुरकालमे हँसी-खुशीसँ जीबै छी।
सोमन- हद करै छी भाय! राँड़ कानए अहिवाती कानए तै लागल बरकुमारि कानए।
नसीवलाल- तोहर बात कटैबला नहिये छह सोमन मुदा......?
सोमन- मुदा की?
नसीवलाल- ओना, जे जते पछुआएल अछि ओ ओते समस्यासँ गरसित अछि। मुदा प्रकृतक विपैत सभपर पड़ै छै। तहूमे जे जते अगुआएल रहैए ओकरा ओते बेसी पड़ै छै।
सोमन- हँ, से तँ पड़िते छै।
नसीवलाल- बौअा, ओना तोहर उमेरो कम छह। एक गाममे रहितो कम सम्पर्कमे रहै छह। सुकदेव भाय बतरिया छथि। तहूमे बच्चेसँ दुनू गोरे गामसँ जहल तक संगे रहलौं। मुदा.....?
सोमन- मुदा की?
नसीवलाल- यएह जे आब बुझि पड़ैए जे जिनगिये ठका गेल।
सोमन- से की?
नसीवलाल- की कहबह आ कते कहबह। एकटा कोसिये नहैरिक बात सुनह। जहिया जुआने रही तहियेसँ कहै छिअह। बड़ लिलसा रहए जे कोसी नहैर बनत। डैम बनतै। नहरिक पानिसँ खेत पटत आ डैममे पनिबिजलीक यंत्र बैसतै। जैसँ तते बिजली हएत जे घर-दुआरक इजोतक संग करखन्नो चलत। मुदा सभ आशापर पानि हरा गेल। आइ जौं बिजली रहैत तँ गामो बजारे जकाँ भऽ गेल रहैत। मुदा......?
सोमन- मुदा की?
नसीवलाल- यएह जे ई बात मनसँ मेटा गेल छलए जे एहेन रौदीसँ भेँट हएत। मुदा.....!
सोमन- मुदा की?
नसीवलाल- अपन संग-संग गामोक कल्याण भऽ जाइत। खेती-पथारीक संग एते छोट-पैघ करखन्ना बनि गेल रहैत जे बेरोजगार ककरा कहै छै से तकनौसँ नै भेटैत। मुदा आइ देखै छी जे गाम-गामक लोक उजहि दिल्ली, कलकत्ता चलि गेल।
सोमन- हँ। से तँ भेल। मुदा माटियो फाँकि कऽ तँ मनुख नहिये रहि सकैए। जतऽ पेट भरतै ततऽ ने जाएत।
नसीवलाल- कहलह तँ बेस बात। मुदा गाम ताबे नै हरियाएत जाबे गामक बच्चा-बच्चा ठाढ़ भऽ अपन भविस दिस नै ताकत।
सोमन- एहेन समए भेने लोक केना ठाढ़ हएत?
नसीवलाल- सएह ने मनकेँ नचा रहल अछि। सभ माए-बाप बेटा-बेटीपर आशा लगौने रहैए जे हमरासँ नीक बनि धीया-पूता गुजरो करत आ नीक जकाँ आगूओ बढ़त। मुदा आँखि उठा दुनियाँ दिस तकै छी तँ चौन्ह आबि जाइए। बाल-बच्चाक कोन गप जे अपने बुढ़ाढ़ी भरिसक कनिते कटत।
सुकदेव- वएह बात मनमे औंढ़ मारलक भाय, तँए एलौंहेँ।
नसीवलाल- भाय, कि विचार करब। छुछ हाथ मुँहमे दैए कऽ की हएत। ने कियो गाम-घरक महौत बुझैए आ ने अपन शक्तिक उपयोग करए चाहैए। सभ अपन अमूल्य श्रम-मेहनत- दोसराक हाथे बेच बजारक चकचकीमे बौआइ-ए।
सुकदेव- यएह सभ देख ने मन उछटि गेलहेँ। मुदा ककरा कहबै, के सुनत। अहाँ तँ गुल्ली-डंटासँ अखनि धरिक संगी छी। जे तीत-मीठ भेल तैमे तँ दुनू गोरे संगे छी।
नसीवलाल- (चानि परक पसेना पोछैत) जहिना माटिक ईंटाकेँ वएह माटि पानिक संग मिल जोड़ि-साटि- दैत अछि तहिना ने मनुक्खोकेँ सिनेह साटि दैत अछि। मुदा सिनेह आओत केना? एक दिस धनक भरमार दोसर दिस भूखल पेट। तै बीच चोर-उचक्काक सघन बोन। केना लोकक परान बँचतै?
सुकदेव- सोझे चिन्ते केनौ तँ नहिये हएत। नै भगलाहाले तँ गामोमे रहनिहारले तँ सोच-विचारए पड़त। जँ से नै करब तँ एक लोटा पानि आ एकटा काठियो मुइलापर के देत।
नसीवलाल- भाय, जहिया घोड़-दौड़ करैबला छलौं तहिया तँ करबे ने केलौं, आब आइ बुढ़ाढ़ीमे की हएत? किछु करए लगै छी तँ हाथ-पएर थरथराए लगैए। जैसँ बुझलो काजमे धकचुका जाइ छी।
सुकदेव- भाय, असे तँ जिनगीक संगी छी। जै संग लोक जिनगीक रस चुसैत अछि। तेकरो छोड़ि देब......?
नसीवलाल- (सुकदेवपर आँखि गरा मूड़ी डोलबैत) भाय कहै तँ छी लाख टकाक गप। अपनो जोकर नै सोच-विचार करब तँ अकाल मरबो तँ नीक नहिये छी।
सुकदेव- नीक अधला कतऽ छै भाय! भलहिं लोक अपना जिनगीकेँ स्वार्थी बुझे मुदा जाबे धरि अपने निरोग नै रहब ताबे धरि दोसराक विषयमे कि सोच आ कि कऽ सकै छी।
नसीवलाल- हँ, से तँ ठीके। विचारोकेँ प्रभावित तँ जिनगिये करैत अछि। नीक-नीक भाषणे करब आ अपन चालि छुतहरक अछि तँ ओइ भाषणक महौते की? जहिना विज्ञान सिद्धान्त-थियोरीक- संग व्यवहारो-प्रेक्टिकलो- कऽ कऽ देखबैत अछि तहिना ने नीतिशास्त्र सेहो अछि।
सुकदेव- अखन धरि यएह बुझि ने जीबैत एलौं, मुदा.......?
नसीवलाल- हँ, समैक चक्र तँ प्रवल अछिये मुदा एहेन प्रबल तँ नै अछि जेकरासँ सामना नै कएल जा सकैत अछि। जीता-जिनगी हारियो मानि लेब, ओहो तँ......?
सुकदेव- हँ, से तँ उचित नहिये अछि। मुदा समनो तँ.......?
नसीवलाल- हँ, कठिन अछि। मुदा लंका सन राक्षसक बीच हनुमान केना.......?
सुकदेव- हँ, तहिना।
नसीवलाल- (अपसोच करैत) पाछू घुरि तकै छी तँ बुझि पड़ैए जे जरूर चूक भेल। जना कोसी नहरि आ पनिबिजली लेल सामािजक स्तरपर ठाढ़ भेलौं तेना व्यक्तिगत जीवनक बाट छुटि गेल।
सुकदेव- से की?
नसीवलाल- यएह जे जना मध्यम किसान छी। अपना खेत अछि। तेना ने खेतमे पानिक ओरियान केलौं आ ने परिवारो जोकर मशीन। जौं से केने रहितौं तँ भलहिं महग काज होइत मुदा जीबैक बाट जरूर धरौने रहैत।
सुकदेव- जखन चारि पएरबला हाथी चूकि जाइए तखन तँ मनुख दुइये पएरबला अछि। जै समए जे चूक भेल, आइ ने ओ समए बँचल अछि आ ने जिनगीक ओ अंश।
नसीवलाल- अखन धरि तँ हाले-चालमे समए निकलि गेल। काजक गप तँ छुटिये गेल। किमहर आएल छलौं?ऽ
सुकदेव- भाय, अहाँसँ नुकाएल नहिये छी। अखन तक जे जीबैक आस बटाइ खेत अछि ओ टुटि गेल। खेतबलाकेँ तँ खेत रहबे करै छन्हि मुदा बटेदारकेँ घरोक आँटा गील भऽ जाइ छै।
नसीवलाल- दुर्भाग्य अछि भाय।
सुकदेव- जकरा सोन छै ओकरा पहीनिनिहार नै छै आ जे पहीरिनिहार अछि ओकरा सोन नै छै।
नसीवलाल- से तँ अछिये। गामक बारहआना खेत नोकरिहाराक अछि। जे खेती नै करैत अछि। जखन कि बारहआना लोक खेतीपर जीबैत अछि। मुदा कोन दुख एहेन छै जेकर दवाइ नै छै।
सुकदेव- भारी बनर फाँसमे पड़ि गेल छी। अखन तक खेती छोड़ि दोसर लुरि नै सीखलौं। खांहिसो नै भेल। घरसँ बाहरो जाएब से कोन लुरि लऽ कऽ जाएब। भीख मांगि खाइसँ नीक अन्न-पानि बेतरे घरमे प्राण तियागि देब हएत। अगदिगमे पड़ि गेल छी।
नसीवलाल- अहूँसँ बेसी तँ अपने पड़ि गेल छी। अहाँ तँ नै ऐ गाम ओइ गाम जा कऽ कमाइयो-खा सकै छी मुदा.....।
सुकदेव- यएह बात मनमे अहुरिया काटि रहल अछि। जहिना संग-मिल एते दिन कटलौं तहिना आगूओ केना कटत, तेकर......?
नसीवलाल- कनितो जीब। सेहो नीक नहिये।
(कर्मदेव आ सोमनक प्रवेश)
नसीवलाज- भाय, मन तँ अखनो तेहेन हुड़कैए जे शेष जिनगी जहलेमे बिताएब मुदा बुढ़ाढ़ी.....। नवतुरियामे समाजक प्रति कोनो रूचिये नै अछि। रूचियो केना रहत। तहिना परचा पोस्टरमे परिवारक परिभाषा दैत अछि तहिना समाजक कोन बात जे माइयो-बापकेँ परिवारसँ लोक अलगे बुझैए।
कर्मदेव- काका, हमहूँ सएह पुछए एलौं जे एहेन समैमे घरसँ बिना भगने केना जीब?
नसीवलाल- बौआ, तोरे सभपर समाजक दारो-मदार अछि। मुदा जखन तोंही सभ चिड़ै जकाँ उड़ि पड़ा रहल छह तखन तँ समाजक-गामक- भगवाने मालिक।
सोमन- ककरापर करब सिंगार पिया मोरा आन्हर हे।
कर्मदेव- काका, जँ जीबैक बाट भेट जाएत तँ किअए भागब?
नसीवलाल- बौआ, तूँ तँ पढ़ल-लिखल नौजवान छह। तोरामे एते शक्ति छह जे किछु कऽ सकै छह। आशा जगाबह।
कर्मदेव- अखुनका समैसँ जे अपन तुलना करै छी तँ बुझि पड़ैए जे करिया बादल लटकल भादोक अमवसियाक बारह बजे रातिक बीच पड़ल छी।
नसीवलाल- पढ़ि-िलखि कऽ एते निराश किअए छह?
कर्मदेव- बुझि पड़ैए जे एहेन पढ़ाइ पढ़ि लेलौं जे ने घरक रहलौं आ ने घाटक।
नसीवलाल- ओना जीबैक बाट व्यक्ति-विशेष सेहो बनबैए आ बना सकैए। मुदा समाजकेँ बनने बिना जहेन हेबाक चाही से नै बनि सकैए। तँए बेगरता अछि जे दुनू संग-संग बनए। जइले तोरे सन-सन नवयुवक अपेकछा अछि। फाँड़ बान्हि मैदानमे कुदए पड़तह।
कर्मदेव- कियो तँ काजे देखि ने फाँड़ बान्हत?
नसीवलाल- (अर्द्ध हँसी हँसि) अइले समाजकेँ जगबए पड़तह। जखने समाज नीन तोड़ि सुनत तखने ओछाइन समेटि घरसँ बहरा रस्तापर आबि ठाढ़ भऽ जाएत। जखने ठाढ़ हएत तखने नव सुर्जक रोशनीमे अतीतक गौरव देखत।
कर्मदेव- की गौरव?
नसीवलाल- मिथिला दर्शनक गौरव देखैक लेल ओकर बनैक प्रक्रिया देखए पड़तह। संयुक्त परिवार बजनहि नै, बनैक आ चलैक ढंग घड़ए पड़तह। जहिना कोनो बाट कोनो स्थान धरि पहुँचबैत तहिना मिथिला दर्शन छी।
कर्मदेव- की दर्शन?
नसीवलाल- एते धड़फड़मे नै बुझि सकबहक। अखन हमहूँ औगताएल छी। मालो-चाजकेँ पानि नै पीयेलौंहेँ, हुकड़ैए।
कर्मदेव- तखन?
नसीवलाल- सौंसे समाजक बैसार ब्रह्मस्थानमे करह। सबहक विचारसँ एकटा रास्ता ताकि आगू डेग उठाबह।
कर्मदेव- आइये बैसार करब।
नसीवलाल- एते अगुतेने काज नहि चलतह। कौल्हुका समए बना काने-कान सभकेँ जना दहुन।
कर्मदेव- बेस।
पटाक्षेप।
पाँचम दृश्य
(बेरक समए। परतीपर बैसार।)
सुकदेव- (उठि कऽ) भाए-बहिन लोकनि, जते दिन अपना सबहक अजादीक भेल ओतेक उमेर हमरो भेल। किएक तँ कोसी नहरि लेल नसीवलाल भाइक संग सरकारी आॅफिसमे करीब पचास बर्खसँ धरना, प्रदर्शन सभाक संग जहलो जाइत-अबैत रहलौं। जे रौदी बिसरए लागल छलौं आ आशा एते जगि गेल छल जे रौदीसँ भेँट नै हएत। मुदा अइबेरक रौदी सिखा रहल अछि जे सभ केलाह पानिमे चलि गेल। जहिना सबहक जान अवग्रहमे पड़ल अछि तहिना तँ अपनो भऽ गेल अछि।
सोमन- (बैसले-बैसल) करबो तँ पानिये ले ने केलौं। पानि ले केलहा पानिमे गेल।
नसीवलाल- (ठाढ़ भऽ) लंगोटिया संगी सुकदेव भाय छथि। बच्चेसँ दुनू गोरे संगे रहलौं। दुनू गोटेक बीच अंतर एतबे अछि जे हमरा अपन खेत अछि आ हुनका अपन नै छन्हि। मुदा करै छी दुनू गोटे खेतिये। अपना खेत रहितौ आशा-आसीमे रहि गेलौं। तै बीच जिनगी ससरि गेल।
सोमन- एक दिस नहरि खुनाइ होइए आ दोसर ढहि-ढहि भरैए। बीचमे सरकार मदारी-नाॅच पसारने अछि।
नसीवलाल- खेतीले पानि ओहन जरूरी अछि जेहने मनुक्ख आ माल-जाल ले। बिना पानिये खेती भइये नै सकैए। जै हिसावसँ नहरि खुनाइ शुरू भेल जौं खुना गेल रहैत तँ अपना सभ बहुत अगुआ गेल रहितौं। मुदा की देखै छी?
कर्मदेव- कनी फरिछा कऽ कहियौ काका?
नसीवलाल- (हँसैत) बौआ गामक बात बड़ नमहर अछि तँए ओते नै कहि अपन बात बजै छी। दस बीघा जोत जमीन आ बाँकी गाछ बेख, खरहोरि इत्यादिमे बरदाएल अछि। बाहर मासक सालमे तीनटा मौसम जाड़, गरमी, बरसात होइए। मौनसुनी बरखासँ बरसातमे काज चलैए। बाँकी सालक आठ मास (दू मौसम) ओहिना रहैए।
सोमन- गोटे-गोटे बेर झाँटो आ पथरो खसैए।
नसीवलाल- हँ, हँ, सेहो होइए। अपन देश मूलत: किसानक देश छी। खेती-पथारी मूल्य व्यवसाय छी जे अदौसँ अखन धरि चलि अबैत अछि। समैपर बरखा भेल तँ किसानक मन हरियाएल रहल नै तँ सालो भरि मरचुन्नी रहल। प्रश्न अछि पान खाएल मुँह मुस्कियाइत रहए। जइठीन लोक पानिक जोगार केने अछि ओइठीन हरियरी अछि। उन्नतिक रास्ता पकड़ि आगू मुँहेँ ससरि रहल अछि। खेतक बले रंग-विरंगक करखन्नो ठाढ़ केने अछि। अपना सबहक जड़िये सुखाएल अछि तँ ऊपर केना पोनगत?
कर्मदेव- समस्या तँ भारी अछि?
नसीवलाल- जुगक अनुकूल भारी नै अिछ। किएक तँ आइ हम सभ ओइ जुगमे पहुँच गेल छी जइ जुगमे एहेन-एहेन समस्या धीया-पूता खेल सदृस अछि। मुदा.......?
कर्मदेव- मुदा की?
नसीवलाल- मुदा यएह जे जेकरा हाथमे काज करैक भार छै ओकर नेते भंगठल छै। कोन काज केना हएत तइ दिस नजरिये नै छै। नजरि छै जे कोन-काज केना दुइर हएत तइ दिस।
कर्मदेव- तखन की करब?
नसीवलाल- अखन बहुत बात बजैक समए नै अछि। जइ काज ले सभ एकठाम बैसलौं तइपर विचार करू। गामक लोक आ गामक सम्पत्तिमे केना संबंध स्थापित हएत तइपर िवचार करू।
कर्मदेव- हम सभ तँ नवतुरिया छी नीक-नहाँति नहिये बुझै छी तँए कनी अपने रस्ता बता दियौ?
नसीवलाल- अखन इतिहास-भूगोल देखैक काज नै अछि। अखन एतबे विचार करैक अछि जे गाममे जते जमीन अछि आ जते लोक छी ओकर हिसाब बुझैक। बारह आना जमीन हुनकर छन्हि जे खेती छोड़ि अन्तए जा नाैकरी करै छथि। चारि आना गाममे रहनिहारकेँ छन्हि। हुनके सबहक जमीन लोक बटाइ कऽ कऽ कोनो धरानी जीबै छथि। तँए जरूरी अछि ऐ खाधिकेँ भरैक। जाबे से नै हएत ताबे समस्या बनले रहल।
(कहि बैस जाइत)
कर्मदेव- बेरा-बेरी अपन-अपन विचार रखै जाइ जाउ?
सोमन- कहैले हमहूँ किसाने छी मुदा ने अपना खेत अिछ आ ने हर-बड़द। जनेपर हरो कीनै छी आ अनके खेतमे खेतियो करै छी। जेना-तेना जिनगी घिसियबै छी। आगू-पाछूक बात सेहो नहिये बुझै छी। तँए अपने-लोकनिक जे विचार हएत ओइसँ बहार हमहँू नै रहब।
(सोमन बैस जाइत। आभा उठि कऽ ठाढ़ होइत)
आभा- (जोरसँ) जँ देश अपन छी तँ देशक सम्पत्तियो अपन छी। जरूरत अछि सबहक-सुख-दुखमे सबहक भागीदारीक। जे गाममे रहि खेत जोतै छथि गामक खेत हुनका जिम्मा हेबाक चाही। जँ से नै हएत तँ जहिना मार-काटसँ इतिहास भरल अछि तहिना नव पन्ना आरो जाड़ाएत?
शान्ती- आभा बहिनक बात कटैबला नहिये छन्हि किएक तँ साले-साल पनरह अगस्तकेँ हमहूँ सभ स्वराजक झंडा फहराबै छी। मुदा की स्वराज अछि? मुदा समाजक सदस्यक संग सरकारक अंग सेहो छी तँए शान्तीसँ सभ काज करैत चलू। नसीवलाल कक्का आ सुकदेव कक्का जहिना उमेरगर छथि तहिना अनुभवी। तँए जेना-जे विचार दथि हम सभ ओ करी।
सुकदेव- जेहने नवकवरिया आभा छथि तेहने शान्ती। मुदा दुनूक विचार सुनि हृदए शान्त भऽ गेल। खुशीसँ मन भरि गेल। सबहक विचारसँ एकटा रास्ता तँइ हुअए। जेकरा मानि सभ आगू बढ़ी।
नसीवलाल- दौड़-बड़हा करैबला उमेर तँ नहिये अछि मुदा मेहौता बड़द जकाँ संग-संग बहैले तैयारे छी। अखन गाममे पढ़ल-लिखल नौजवान कर्मदेव अछि। चाहब जे दौड़-धूप करैक भार ओकरे देल जाए।
कर्मदेव- जँ समाज भार देताह तँ जहाँ धरि सकब इमानदारीसँ सम्हारब।
नसीवलाल- जते नोकरिया छथि हुनकासँ सम्पर्क कऽ सभ बात कहियनु। समाजक िनर्माण सभ मिल करब, सर्वोत्तम।
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