भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, October 22, 2009

शब्द-विचार 1

अइली‍हि गेलीहि से सुनथि फकरा,
बैसल बिलाअड़ के तीन बखरा किछु व्य,क्ति कार्य कम करैत छथि, मुद्रा अधिकार दिस अधिक तत्पिर रहैत छथि।
अइलीहि सौतिनि करू सिङार। घरमे सौतिनिक आगमन पर ईष्यायवश जेठि जनी पसाहनि प्रारम्भय करैत छथि।
अकरी मरय नहि छुतहर फुटय नहि। दुर्जन व्यहक्तिक दुर्गति नहि अपितु प्रगतिए होइत रहैत छैक।
अकुलिनि बिआहि कुलक उपहास। उच्चि कुलमे यदि निम्नक कुलक रंग वैवाहिक सम्बचन्धन स्थाकपित करबाक प्रसंग अबैत छैक तखन एहि लोकक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अगता खेती आगाँ पछता खेती पाछाँ। अगात खेती कयनिहार सतत् प्रगति पर रहैत छथि, किन्तु पछता खेती में अधिक घाटा लगैत छैक, कम उपजैत छैक।
अगते रोपी अगते काटी। एहि उक्ति कृषककेँ अगात खेती करबाक लेल प्रेरित कयल जाइत अछि।
अगता खेती आगे-आगे,
पछता खेती भागे-जोगे। अगात खेतीक प्रसंशा तथा खेतीक निन्दाे एहि लोकोक्ति द्वारा कयल जाइत अछि।
अगरा‍हीक धनछूहा। ओहन फसादी व्यीक्ति, जो भरि गामसँ झगड़ा-फसाद मोल लैत रहैत अछि, जाहि पाछाँ पूर्वजक अर्जल सम्प त्तिकेँ स्वााहा क’ दैत अछि तकरा हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अगहने घटल झाँखब कतेक। अगहनमे नवका धान होइत अछि, लोक भरि सालक तैयारी क’ लैत अछि।
अगहन आयल कृषक मोठायल। गरीब किसान-मजदूर अगहनक बाट तकैत रहैत अछि।
अगहनक तेरह चैतक आठ, जहाँ मोन आबय तहाँ काट। तेरह दिन अगहन बीति गेला पर कोनहु खेतक धान काटि सकैत छी; तहिना आठ तेरह दिन अगहन बीति गेलापर कोनहु खेतक रब्बीत काटल वा उपाड़ल जा सकैत अछि।
अगहनमे मूहहुकेँ सातटा बोहु होइत छैक। नवका धान तैयार भ’ गेलाक कारण निर्धनो व्ययक्ति सुखी अनुभव करैत अछि।
अगहने उपास तँ अकालक कोन त्रास? पूर्व मे मिथिलामे धाने मुख्यस फसिल छलैक।
अगहन रजिपुत अहीर अषाढ़,
भादव महिँसा चैत चमार। अगहन मासमे राजपूत अर्थात् किसान वा मालिक, अषाढ़मे अहीर अर्थात् जोन-बोनिहार, भादव में पाड़ा अर्थात् मालजाल एवं चैतमे चमार अर्थात् आमिष भोजी प्रसन्नम रहैत अछि।
अगाइ केने सवाइ। अगता खेतीमे सवैया लाभ होइत छैक।
अगुताइलि नाउनि आंगुर काटय। अगुताइ अधिक नहि नीका-कार्य बिगड़बाक खतरा।
अगुताइलि कुम्हैआनि कथीदन ल’ क’ माटि कोड़य। स्वा र्थमे आन्ह र भेल हरबड़ायल जखन केओ ककरहुसँ कार्य निकालबाक हेतु पहुँचैत अछि तँ ओकरापर व्यं ग्यै एवं चुटकी लेबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
अघायल बककेँ पोठी तीत। जखन भूख लागल रहैत छैक तँ खरापो वस्तुू नीकै लगैत छैक, किन्तुए जखन कम भूख रहैत छैक, तखन कनेको दब खाद्यपदार्थ केँ लोक जीह पर नहि दैत अछि।
अछैत अन्नेथ उपास। भोजन बनयबामे कोनो प्रकारक असुविधा भयगेलाक कारण जखन भोजन नहि भय पबैत तँ एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अजगर करय ने चाकरी। अति निर्धनताक कारण निराश भेल व्य क्तिकेँ आशा बन्हवयबाक हेतु मलूक दासक एहि प्रसिद्ध सूक्तिक प्रयोग कमल जाइत अछि।
अटकन मटकन दहिया चटकन। एक प्रकारक बालोपयोगी फकरा, जकर प्रयोग कोनहु नेनाकेँ वर्जन करबाक हेतु कयल जाइत अछि।
अढ़नी दुसलनि बढ़नी के
चालनि दुसलनि सूपके। जखन स्वुयं अधलाह व्यबक्ति कोनो कम अधलाह व्यलक्ति केँ दूसैत्‍ अछि, निन्दाu करैत अछि तँ ओकरा पर व्यंँग्यक करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अण्डीएक घरमे बघण्डीयक खाम्ह । जकरा बुद्धिक अधिक दाबी रहैत छैक तकरा हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत छैक।
अतिशय लोभ बगुलबे कीन्हात,
छनमे प्राण कँकोड़बे लीन्हा । लोभी व्याक्ति पर व्यंाग्यत करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइतय अछि।
अग्रसोची सदा सुखी। जे व्यचक्ति भाविष्यछकेँ सोचिकय कोनो कार्य करैत छथि से अग्रसोची कहबैत छथि।
अधिक पसारे बूडि़ मरी,

करी थोड़ केर आप्तक। अधिक खर्च करबसँ रोकबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अधिक लोभे नहि करी,
गिद्दर गिदरनी तेँ गेलीहि। लोभी व्यिक्तिक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
अधजल गगरी छलकत जाय। आधा घैल जँ जल रहत तँ ओ अधिक आन्दोैलित होइत रहत।
अधिक जोगी मठ उजाड़। लोकक आधिक्यठसँ जाहिठाम व्यतवस्थाा बिगड़ैत छैक ताहिठम एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा व्यं ग्यत कयल जाइत अछि।
अनकर कयल धयल पर जय जगरनाथ। अकर्मण्य व्यरक्ति पर व्यं ग्यय, जे स्वं य किछु नहि कय अनकहिसँ सब काय्र करब’ चाहैत अछि तथा अन्तिम श्रेय स्वकयं लेबय अछि।
अनकर कमाइ पर तीन टिकुली। जे स्वंाय कोनो कार्य नहि कय अनकहि पर निर्भर करैत अछि, अनकर धन पर मौज उडयबाक चेष्टाछ करैत अछि, तकरा हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अनकर आस नित्त उपास। भोजनक व्यिवस्थाज स्वनयं नहि राखि यदि उनका भरोस पर रहब तँ नित्यत गड़बर चलत, उपासक सम्भाअवना रहत। दीनहीन व्याक्ति स्व यं अपन दीनताक परिचय एहि उक्ति द्वारा दैत अछि।
अनकर कूदल अनकर पीसल,
पहुँचा तक भीतर पैसल। एहि लोकोक्ति द्वारा कोनो परजीवी एवं लोभी व्य क्ति पर व्यंपग्यो कयल जाइत अछि। कार्य कम मुदा भोजन अधिक पर व्यंपगय।
अनकर खेती अनकर गाय,
कोन पापी से हाँकच जाय ? खेत छैक ककरो, माल चरि रहल छैक ककरो, हमरा ओहिसँ कोन मतलब ? एहन विचार रखनिहार व्यमक्ति पर व्यंैग्य करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अधिक बुधियार तीनठाम मखैत अछि। अधिक चलाकी केलासँ घाटा लगैत छैक।
अनकर दालि चाउर अपन पेट,
बहुत दिन पर भेल अछि भेट। कोनहु आलसी ओ पेटू व्येक्ति पर व्यंकग्यह।
अनकर धन पर विक्रम राजा। आनक धन पर मौज उड़ौनिहार व्य क्ति पर व्यंधग्यौ।
अनकर पहीरिक, साज बड़,
छीनि लेलक तँ लाज बड़। अनकर सामग्री लय कय साज श्रृंगार कयनिहार पर व्यंरग्या।
अनकर पाबी तँ नौ मन तौलाबी। जनिका मुफ्तखोरीक अभ्याास रहैत छनि से अहगरसँ लय लेबाक प्रयासमे रहैत छथि।
अनकर बेटी आन सन,
अपन बेटी परान सन। एकहिठाम जे दू रंगक व्यमवहार करैत अछि, अपन आनक विचार रखैत अछि, तकरा हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अनकर सुनरी बङौरक मुनरी,
चल गे कनही बैसूगय। अपन स्त्री क अपेक्षा आनक स्त्री कतबो सुन्द्रि रहैत छैक तथापि अपने स्त्रीे काज दैत छैक, भलेँ ओ कनहिये कियैक ने हो।
अनकर हजार हमर चूल्हिक पजार। ककरहु सम्पहत्तिसँ ईर्ष्याय तथा अपन सम्पुत्तिक घमण्डई कयनिहार व्य।क्ति पर व्यंुग्यक करबाक हेतु काकुमे एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अनजान सनजान महा कल्याणण। कोनहु अनुचित कार्य जखन धोखासँ कयना जाइत छैक तँ अशुभ आशंकाक निवारणार्थ लोक एहि एक्तिक प्रयोग करैत अछि।
अनका दूस गे लबड़ी,
अपना काँचे बड़ी। स्वं य गुणहीन रहितहुँ अनकर सतत् निन्दा कयनिहारि स्त्री क हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अनका पर ढेप तँ अपना पर पाथर। कोनहु दुष्ट व्यथक्ति पर जखन दैवी विपत्ति आबि जाइत छैक तँ लोक एहि उक्ति द्वारा प्रसन्नतता व्य क्त करैत अछि।
अनट काल सनट,
महादेवक विवाह काल लगनी। कोनो व्यवक्ति जखन असमयमे किछु (असंगत) कार्य प्रारम्भि करैत अछि तँ ओकरा पर व्यं)ग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अनदेखल चोर राजा बराबरि। जे चोर पकड़ल जाइत अछि से वेश नीक लोक एवं महान बनबाक चेष्ठा करैत अछि।
अनकर सिन्दूनर देखि कपार फोड़ी। ककरो सुखी देखि केनिहार व्यपक्ति पर व्यं ग्यन।
अनकर कमाइ पर तेलफुलेल। ककरो कोनो उद्यम नहि क’ अनकर धन पर मौज उड़ौनिहार पर व्यं’ग्यध।
अनकर बरुका अनक घी,
अहाँके ओहिमे लगैअय की ? अनकर वस्तुमक कोनो मूल्यफ नहि बुझनिहार उत्तरदायित्व‍ विहीन एवं स्वार्थी व्यनक्ति पर व्यंरग्यु।
अनका लय दानी अपना लय भिखारि। शंकर भगवानक हेतु कहल गेल अछि।
अनहामे कनहा राजा। जाहिठाम गुणज्ञ लोकक अभाव रहैत अछि ताहिठाम कम्मोञ-गुणवला व्य्क्ति श्रेष्ठव बुझल जाइत अछि।
अनाड़ी के घोड़ा आ सोनारके सोना नहि पटैत छैक। जकरा घोड़ाक विषयमे किछु ज्ञान नहि छैक से घोड़ा नहि कीनि सकैत अछि।
अन्नस बिनु कल नहि, साँय बिनु पल नहि। जहिना जीबैत रहबाक भोजनक आवश्य कता छैक तहिना पत्नी‍क हेतु ओकर पतिक आवश्यतकता छैक।
अन्नप सँ संग नहि, तीन सेर सँ कम नहि। अधिक भोजन केनिहार व्यनक्ति जखन अपरखौत बनबाक अभिनय करैत अछि तँ ओकरा पर व्यं ग्यछ करबाक हेतु एकर प्रयोग कयल जाइत अछि।
अन्हााराक जेहने जगने तेहने सुतने। आन्हार व्यजक्तिसँ कोनहु वस्तुुक ओगरबाहि सम्भाव नहि होइत छैक।
अन्ता भला तँ सब भला। प्रारम्भ‍ में जँ कतबो त्रुटि रहय किन्तुर अन्तरमे जँ सभक निवारण भ’ जाय तँ सम्पूमर्ण केँ नीक मानि लोल जाइत छैक।
अन्हूराक लेखे जेहने राति तेहने दिन। अकर्मण्य‍ व्य क्ति पर व्यंनगय।
अन्हमराक आगाँ बीअनि। अयोग्य् व्यआक्तिक स्वारगत करब व्य।थ्र, कारण ओ किछु महत्त्व नहि बुझत।
अन्ह रा कूकूर माँड़े तिरपित। जे व्य क्ति दीन हीन अछि, कहियो सुख प्राप्तक नहि भेल छैक, तकरा जँ साधारणो सुख प्राप्त भय जाइत छैक तँ ओ गद्गद् भय उठैत अछि।
अन्हठराके जगने की धधराके तपने की। खढ़ पातक धधरा शीघ्र शान्त भय जाइत छैक। अकर्मण्य व्य क्ति पर व्यं ग्यथ।
अन्ह रा चाहय दूनू आँखि। जखन ककरौ मनोनुकूल कार्य साधन भय जाइत छैक तँ ओकरा हेतु एहि लोकाक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अन्होरी बिलाडि़ माँ‍ड़े तिरपित। एहू लोकक्तिक प्रयोग ओहिना होइत अछि जेना अन्हतरा कूकुर माँड़े तिरपति’ एहि लोकोक्तिक होइत अछि।
अन्हकरी बिलाडि़ माँड़े तिरपित। एहू लोकाक्तिक प्रयोग ओहिना होइत अछि जेना अन्ह्रा कूकुर माँड़े तिरपति’ एहि लोकोक्तिक होइत अछि।
अन्दा्जी पंचे डेढ़ सय। जखन केओ निश्चित गप्पे नहि कय अन्दाेजी झटहा फेकैत अछि सँ ओकरा पर व्यंाग्यझ करबाक हेतु एहि उक्तिक पयोग कयल जाइत अछि।
अन्धेेर नगरी चौपट्टा राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा। जखन शासन-व्यीवस्थात अव्य वस्थित रहैत अछि, महगी अपन चरम पर रहैत अछि, साधारणे वस्तुख जखन मूल्यरवान वस्तुरक तुलनामे आबि जाइत अछि, तँ एहि लोकोक्तिक द्वारा सरकार पर व्यं्ग्यक कयल जाइत अछि।
अनेर गाय केर राम रखबार। जकरा केओ देखनिहार नहि तकर रक्षा कयनिहार परमात्मा होइत छथि।
अधिक क्रोधे क्रोधे नइ करी, नाग-नागिन तेँ गेलीहि। अत्यनधिक क्रोधक कारण नाग-नागिनक पतन भेलनि तेँ, क्रोध अधिक नहि करबाक चाही।
अन्न। फेकलासँ ओहि जन्मअमे लोक दरिद्र होइत अछि। कोनो नेना भोजन करैत काल जखन अन्न‍ छिडि़यबैत बर्बाद करैत अछि वा कोनो स्त्री व्यिर्थ अन्न क क्षति करैत छथि तँ एहि प्राज्ञोक्तिक प्रयोग कमल जाइत अछि।
अन्हजराके गाय बिअयलै तँ सब डाबा लऽकऽ दौड़ल। कोनो बकलेल व्याक्ति पर व्यं।ग्या करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि, जकरा सब ठकैत रहैत छैक।
अन्हकरा कूटय कि बहिरा कूटय, हमरा तँ चाउर चाही। कोनो स्वाार्थी एवं कंजूस व्य‍क्ति पर व्यंाग्य करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अन्हाअर घरक साँप सापे साँप। जाधरि निश्चित जानकारी नहि भय जाय ताधरि अपन प्रतिक्रिया व्य क्त नहि करबाक चाही।
अन्हा र भरि घरसँ भागत तँ दीपक गोझनौट तरमे बैसत। एहि लोकोक्ति केँ हिन्दीँमे कहल जाइत छैक ‘ दीप तले अन्धेदरा।’
अपन एक आँखि तँ पड़ोसियाक दूनू। कोनहु दुष्ट व्यदक्ति पर व्यं ग्या।
अपन गट्टी भरि पनबट्टी। मिथिलामे कोजागराक अवसर पर पनबट्टी वा कटोरासँ मखान परसबाक परम्प रा अछि।
अपन थीक ने आनक नीक ने। जरनियाह व्यआक्तिकेँ अनकर नीक नहि देखल जाइत छैक।
अपन सिमान पर कुकुरो बली। अपन-अपन इलाकामे सभक चलती रहैत छैक।
अपन हानिक’ परक यात्रा। परोपकार मे जखन घाटा लगैत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपन हारल बोहुक मारल केओ बजैत अछि ? जखन अपनहि गलती पर पछताय पड़ैत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
अपने असारा टाङ चिनमारा। दूरसँ नमरिकय कोनो कार्यक चेष्टात केनिहार जखन असफल रहि जाइत अछि तँ ओकरा पर एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपने छथि द्वारि भिखारि। ओकादसँ अधिक जे देखाबा करैत अछि तकरा पर व्यंजग्यत।
अपन घर हगि भर,
आनक घर बैसितो डर। अपना पर जतके अधिकार रहैत छैक से अनका पर नहि रहैत छैक।
अपन जीवन जीवन, अनकर जीवन तीमन। जे व्यवक्ति स्वाैर्थक पाछाँ ककरो परबाहि नहि करैत अछि तकरा हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपन पिया मारता तँ मारता,
भातक तर छाल्ही जे देबनि से गुन तँ मानता। ग्रामीण महिलालोकनि अपन पतिक प्रति प्रगाढ़ प्रेमक प्रदर्शन एहि लोकोक्तिक माध्यढमसँ करैत छथि।
अपन पूत भाते, परक पूत लाते। पक्षपात कर्यानिहारि स्त्री पर व्यं‍ग्ये।
अपन पूत लाते परक पूत भाते। जकरा घरमे अपन सन्तातनक उपेक्षा तथा अनकर स्वा गत होइत छैक से एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा आक्रोश व्यहक्ति करैत अछि।
अपन बड़ाइ कवल मनको दाइ। आत्मबप्रशंसी व्यआक्ति वा नारी पर व्यं ग्य। करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपन बिआह भेल गाम शेष शुद्ध भेल। अपन स्वा र्थ साधन क’ लेलाक बाद जे व्य क्ति अनका बारेमे विघ्नग-बाधा उत्पंन्नय करबाक चेष्टाय करैत अछि तकरा हेतु एहि प्रसिद्ध लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपन बेटी दाइ, बापक बेटी राइ-छाइ। अपन सन्तादनक प्रति अधिक ममत्वि होइत छैक; ओतेक बहिनिक प्रति नहि रहि जाइत छैक।
अपन भरल आँत, साँइ लय जोहथि जाँत। अपन पेट भरि लेने छथि मुदा पतिक बारेमे जाँत तकने घुरैत छथि, चिक्कतस (आटा) हेतनि तखन हुनक भोजन बनतनि।
अपना भूख तँ चूल्हि फूक,
साँय के भूख तँ माथा दूख। आलसी एवं पतिक उपेक्षा केनिहारि स्त्री पर व्यंंग्यक।
अपन महीसँ के हम कुड़हरियेसँ नाथब। महीँसकेँ सूआसँ नाथल जाइत छैक।
अपरखौक बहुरिया के पसेरी भरिक कौर। अधिक खेनहारर व्य क्ति जखन कम खेनाइक अभिनय करैत अछि अथवा ओकर जँ केओ प्रशंसा करैत रहैत छैक तँ ओकरापर व्यंपग्यर एहि उक्तिसँ कयल जाइत अछि।
अपन खुट्टाक बलेँ पड़रू चुकरैत अछि। जाहि व्यटक्तिक जडि़ जतेक सबल रहैत छैक, पैघ लोकक समर्थन रहैत छैक से जतेक निभीक रहैत अछि।
अपन घरक भूर ककरो नहि कही। अपन लोकक दुर्गुणक बखान अन्यरत्र नहि करबाक चाही।
अधिक सेवाक ओछ फल। जखन कर्तव्येक विपरीत परिणाम प्राप्ति होइत छैक तँ निराशामे एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपन पूत मारत माछ, सुरकि खायब झोर, अनकर पूत मारत माछ, नयना ढरत नोर। अपन पुत्र अथवा निकट लोकक अभाव जखन खटकैत छैक, अनकासँ मनोनुकूल कार्य नहि होइत छैक वा ओकर व्यलवहार अखडि़ जाइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपन पेट भर’ऽ दे, धिया-पुता के मर’ऽ दे। अत्यपधिक स्वा र्थी व्ययक्ति अपनहुँ चिन्ताि नहि करैत अछि। ओहने लोक पर व्यंरग्या।
अपन मामा मरि गेल,
जोलहा धुनियाँ मामा भेल। जखन अपन निकट सम्बान्धीं नहि रहैत्‍ छैक तँ लोक अनके अपन बना लैत अछि।
अपन मीठ अनकर तीत। स्वामर्थी व्याक्तिकेँ अपने वस्तु्क महत्वै बुझना जाइत छैक।
अपन सासु तँ एहने ओहन,
पितिया सासु कहवि वैसू। जाहिठाम अपने लोक आदर नहि करत ताहिठाम अनकासँ की आशा कय सकैत छी?
अपन टेटर लोककेँ नहि सुझैत छैक। अपन दोष दिस बिना देनहि अनकर आलोचना केनिहार पर व्यं ग्य।।
अपन हाथ गेल तप्परत भात गेल। सामर्थ्यग घटि गेलाक कारण जखन असुविधाक सामना करय पड़ैत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा लोक निराश व्य क्त करैत अछि।
अपन हाथ जगरनाथ। अपन सामर्थ्‍य पर विश्वा र कय जे कोनहु कार्य मे जुटि जाइत छथि, अनकर भरोस नहि रखैत छथि, सैह एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत छथि।
अपनहि पयरमे कुड़हरि मारल। जे व्यपक्ति अपन गलतीक कारण घाटामे पड़ैत छथि तनिका हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपना ने भेल भाइ, आन ने कललक दाइ। कोनहु अभावक पूर्ति नहि भेला पर विवशतामे एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अपना बिनु सपना। अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते अछि। अपन लोकक अभावक अखड़क पर विवशताक उक्ति।
अपना लय लल्ल तँ गोइठा बीछ’ऽ चल। अपना हेतु तँ किछु नहि अछि, मुद्रा अनका लाभान्वित करबाक प्रयत्नब कय रहल छी।
अपना बेहुके किछु कहब तैसऽ मतलब अनका की ? पति-पत्नीकक नोक झोंक मे अनका नहि पड़बाक चाही, अन्यनथा बकलेन बनय’ पड़ैत छैक।
अपना मोनसँ उढ़रल जाइ आ कही जे दैब उढ़ारने जाइत छथि। वा
अपने उढ़रल जाइ तँ कही जे विधि-विधाता उढ़ारने जाइत छथि। अर्थात् जा रहल छी कतहु अपना मोनसँ, किन्तुथ विधाताकेँ दोष लगबैत छियनि जे हमरा यैह लिखत छल।
अपने करनी पार उतरनी। जे जेहन कार्य करैत अछि तकरा फलो तेहने भेटैत छैक।
अपने निन्ने सूती अपने निन्नेन जागी। जकरा अपनहि बलपर करय पड़ैत छैक, अनकर कोनो सहयोग नहि भेटैत छैक, तेहने स्वासवलम्बीत स्वािभिमानी व्य क्ति एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
अपने नीक तँ आनो नीक। अपन व्यकवहार नीक रहत तँ सबठाम आदर भेटत, किन्तुन जँ स्वं य नीक व्ययवहार नहि राखब तँ अनेक ठाम संकट उत्परन्नव होइत रहत।
अपहत मरय नहि छुतहर फुटय नहि। दुष्टम एवं अपरोजक व्य्क्तिक व्य वहार सबकेँ अखरैत छैक।
अबल दुबल पर सितुआ चोख। निर्बल व्यरक्तिकेँ सब सतबैत छैक, किन्तुय सबल सँ केओ झंझट नहि करय चाहैत अछि।
अबैत अयलाह जाइत होइछनि लाज। कोनहु प्रकारक कुकार्य तँ लोक कय लैत अछि किन्तुा बाद में प्रकट भय गेलापर लज्जित अनुभव करैत अछि।
अभेला बिआह कनपट्टी सिनूर। उपेक्षाक कारण जखन ककरो कार्य बिगडि़ जाइत छैक वाउनटा-पुनटा भय जाइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
अय राजा, की परजा। हाजिरजावाबी लोकक युक्ति। निरर्थक वाक्यछ सभक प्रयोग कयनिहार पर व्यंिग्यय।
अयलहुँ तँ जयबह कतऽ कोनहु खतरासॅं सावधान करबाक हेतु वा कोनो फरेवी लोकक चालि पर व्यंेग्य करबाक हेतु एकर प्रयोग जाइत अछि।
अरजथि काशी भोगथि विश्वजनाथ। कृपणतासँ अर्जुन कयल ककरो सम्पनत्तिक उपभोग जखन केओ आने करैत अछि, निर्दयता पूर्वक ओकरा लुटबैत रहैत एहि लोको‍क्ति द्वारा व्यं ग्य कयल जाइत अछि।
अरज लय अर्जुन भोगऽलय पाँचौ।
अरजथि भीम भोगथि भगवान। अर्थ एवं प्रयोग समाने अछि।
अरबा छौंड़ी के तरबा तेल। युवा कुमारि जखन पसाहनि अधिक करय लगैत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंगग्य कयल जाइत छैकै।
अरबा छौंडी के दसटा नौड़ी। कोनो युवा कुमारि जखन श्रम करबामे अालस्यौ देखबैत अछि तथा अनेक सँ सब कार्य करबय चाहैत अछि, तँ ओकरा पर व्यंयग्यअ करबाक हेतु कोनो नारी एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अथि।
अरबा बाभनि तरवा तेल। ब्राह्मण वर्गक धीया-पुता अधिक सीट साट करैत रहल अछि।
अर्र-दर्र तेल अँकुरी पबैछी। खूब मोन लगाकय कार्य नहि कय जे केवल समय काटबाक चेष्टाि करैत छथि तनिका पर व्यंाग्यय।
अरिया चोर पडोसिया छिनार नहि पकड़ाइत अछि। एक आरिमे जकर खेत रहैत छैक तकर चोरि पकड़ेबाक सम्भाैवना कम रहैत छैक।
अलग-बलग खाँउ ढेरी नहि जाँउ। जे व्यकक्ति कोनो खतरा मोल नहि लेबय चाहैत अछि, अटकी-फटकीसँ कार्य चलबय चाहैत अछि तकरा पर व्यंकग्यट करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अन्हुकआ चलल सुथनी के नोतऽ। केओ सामान्यप व्य क्ति जखन अपन सरकुटुम्ब्क अधिक बड़ाइ करय लगैत अछि तँ नीक नहि लगलाक कारण केओ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा व्यं ग्यु करैत छैक।
अल्हुोआ मे पिढि़आ आ सगाइ मे गीत। पूर्वमे अल्हुुआक अधिक उपजलाक कारण गरीबक मुख्यह भोजन छलौक, जकरा निकृष्टु मानल जाइत छलैक।
अवसर चूकलि डोमिनि गाबय ताल बेताल। पौनी-पसारीकेँ अवसर पर जँ पर्याप्तण देब लेब नहि करबैक तँ ओ अण्टस-सण्ट‍ बजैत विदा हैत।
अल्पाहहारी सदा सुखी। कम भोजन केनिहार व्यसक्ति स्वपस्थ‍ रहैत अछि।
अषाढ़मे घुमैत फिरैत खाथि मलपूआ, अगहत मे पूछथि जे कहू ‘ कतना हूआ ’। जे व्येक्ति अषाढ़ मे रोपनि नहि करैत छथि से अगहनमे कटता कहाँसँ ? समय पर श्रम नहि केनियार पर व्यंसग्यि।
अषाढ रोपी तान-बितान, साओन रोपी लबिकऽ धान;
भादव रोपी कँकोड़वा बान, तीनू काटी एक सामना। अषाढ़ मासक सोपनि एक हाथ पर तथा साओन मासक एक बीत पर होबक चाही, किन्तुा भादव मे कँकोड़बा बान अर्थात् खूब गसिकऽ रोपबाक चाही।
अषाढ़-सौन मे डोकोक मुँ खुजि जाइत छैक। पावस ऋतुमे स्वनभावत: माटिक तरसूा निकनि टहलय लगैत अछि।
असफीक लूटि कोइला पर छाप। कोनहु बहुमूल्यल वस्तुँक बिना चिन्ता केनहि जे व्‍‍यक्ति साधारण वस्तुकक हेतु बेहाल रहैत अछि, तकरा पर व्यं ग्यु हेतु एकर प्रयोग जाइत छैक।
असल बात जरियौठा। अपन गप्पज पर अधिक जोर देबाक हेतु लोक एहि वाकयक प्रयोग करैत अछि।
अन्हएराक लेखे हीरा आँकर पाथर। कोनो बलेल व्यरक्ति पर व्यंाग्यु करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
अन्हउरा बाँटय अपने लिअय। पक्षपातपूर्ण व्यबवहार रखनिहार पर व्यंुग्या।
अन्हपराके किदन सुंघौलकै तँ कहलकै फूटि महकै छै। दुष्टिक अभावमे किछु नहि सूझैत छैक।
अन्हटरा कूकुर माँड़े तिरपित। जकरा किछु नहि जूड़यवला छैक से साधारणो वस्तु प्राप्तस कय कय प्रसन्नूताक अनुभव करैत अछि।
अहाँके किछु हो हमरा कुरवी उला दिअ। स्वाकर्थी व्यरक्ति अनकर लाचारी दिस बिना ध्याकन देनहिँ आवश्ययकताक पूर्ति करय चाहैत अछि।
अहाँ डारि-डारि हम पात-पात। कोनो चतुर व्याक्तिक भिड़न्तअ जँ दोसर अधिक चतुर सँ भय जाइत छैक तँ एकर प्रयोग होइत अछि।
अहाँ पैघ कि अहाँक पिता पैघ ? जे व्यैक्ति अपनासँ श्रेष्ठ? व्यदक्तिक उपेक्षा करैत अछि वा हुनक बातक महत्त्व नहि दय अपन बात राखय चाहैत अछि, तकरा एहि उक्ति द्वारा फटकारल जाइत छैक।
अक्षत कम देवता अधिक। जाहिठाम सामग्री कम किन्तुा उपभोक्ता् अधिक तैयार रहैत अछि, ताहिठाम एहि लोकोक्तिक प्रयोग परिस्थितिक ज्ञान करा देल जाइत अछि।
आइति पड़लेँ बुझिअ विवेक। विपत्तिक समयमे आवश्यवकता पड़ला पर ककरो विवेकक परीक्षा होइत छैक।
आइ मरिहेँ तँ काल्हि घोड़ा चढि़हँ। जखन समय हाथसँ निकलिए जायत तखन सुविधा भेटि गेलापर सेहो कोन लाभ ? समय पर सुविधा नहि भेटला पर लोक एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा आक्रोश व्यउक्तस करैत अछि।
आइ-माइ के ठोपो नहि बिलाडि़के भरि सिँउथ। जखन आवश्यकक एवं सम्माोननी व्यरक्तिक स्वाआगत बिना कयनहि कोनो साधारण व्याक्तिक वा अनपेक्षित व्यधक्तिक स्वातगत कयल जाइत अछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
आकाशे जँ फाटि आय तँ दर्जी कतेक सीबत? अतिशय समस्या ग्रस्ते व्‍यक्तिक स्थितिक चित्रण एहि लोकोक्ति द्वारा होइत अछि।
आँखिक आन्ह र नाम नयनसुख दास। गुणक अनुकुल कम नाम होइत अछि।
आँखि कनाह नीक मुदा देश कनाह नहि नीक। देशभक्तिक भावनासँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आँखिक देखल आ कानक सुनल। जाहि दृश्य केँ आखिसँ देखि ली वा जाहि संवाद केँ कानसँ सुनि ली तकरे पक्का बुझबाक चाही।
आँखिक देखल दूर करू आ भलमानुसक कहिनी करू। प्रत्यक्ष देखल दृश्य पर जे विश्वा स नहि कय अपन जिद्द पर अड़ल रहैत अछि तकरा पर व्यं ग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आँखिक लेखेँ पीठ पछुआर। कोनो साधारण कार्य जखन असम्भछव बनि जाइत छैक तँ लोक एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
आँखि ने कान बीच मे दोकान। अयोग्ये व्येक्ति पद प्राप्तन करबाक हेतु आर अधिक तत्पारता देखबैत अछि।
आँखिमे नोर दाँत निपोड़। जकरा हँसब एवं कानबमे कोनो अधिक विलम्बँ नहि होइत छैक, तेहन बचकानी स्वमभावक लोकक हेतु एहिउक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आखिर एक दिन मरना। मृत्युकक बिना भय केनहि जखन केओ कोनो भयंकर खतरा उठबय चाहैत अछि तँ ओ एहि उक्तिक प्रयोग करैत, मैदानमे कूदि पड़ैत अछि।
आगय डगरिन आगय, गोड़ तोरा लगियो, दर्द मोरा छुटि गेल लोल तोरा दगिबो। अत्योन्तद स्वाोर्थी व्याक्ति पर व्यंकग्यि, जे अपन कार्य निकालि लेलाक बाद औंठा देखा दैत छथि।
आगाँ नाथ ने पाछाँ पगहा। जकरा परिवार एवं बच्चा नहि रहैत छैक तकरा विषयमे एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल आइत अछि।
आगिक लाये डाइन आंगन अइलीहि। जखन कोनो बह्मना बनाकय केओ विशिष्टक स्थाखन पर पहुँचबाक चेष्टा् करैत अछि तँ ओकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत छैक।
अ‍ागि कहने मुँह नहि पकैत छैक। उचित गप्पग बजबामे भय नहि करबाक चाही।
आगि खयलासँ मुँह जरैत छैक,
उधार खयलासँ पेट जरैत छैक। अधिक गरम पदार्थ खयलासँ जहिना मुँह-जीह पाकि जाइत छैक तहिना उधारी सामान आर्थिक संकट ठाढ़ करैत छैक।
आगि-पानि डरे नहि डेराइत छैक। भोजनक हेतु अधिक व्येग्रता देखौनिहार व्यनक्ति पर भानस बनौनिहारि एहि लोकोक्ति द्वारा आक्रोश व्त्पर करैत छथि।
आगि लगै मड़बा बज्र कोहबरबा,
हमरा तँ खीर-पूरी सँ काज। अत्य न्तख स्वारर्थी व्यकक्ति पर व्यंाग्य् करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आगि मे पाकल कूकुर बिजलौका चमकैत अछि। कोनहु प्रकारक गलतीक कारण एक बेर जखन केओ दण्डित भय जाइत अछि तँ डसँ ओहन गलती फेर नहि करय चाहैत अछि, अपितु ओहिसँ मिलैत आनो कार्य करबामे भय होइत छैक।
आ चन्नाभ-आ चन्नाअ रस कुसियार ला। कोनो नीक इजोरिया रातिमे माय कनैत नेनाकेँ चुप करबाक हेतु चन्द्रनमा दिस देखाकय ई बाल फकरा पढ़ैत अछि, जे आब लोकोक्ति बनि गेल अछि।
आंगुर काटिकय घाव बनौलनि। स्वुयं फसाद बेसाहनिहार व्यनक्ति पर व्यं्ग्यं करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आंगुर धरैत पहुँचा पकडलनि। थोड़ सुविधा प्राप्तक करबाक लाथेँ अधिकाधिक सुविधा प्राप्ति कय लेनिहार पर व्यंाग्य्।
आजुक बनियाँ काल्हुरक सेठ। छोट व्यायपारी केँ प्रोत्सायहन देबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आठ कोस पर बदलय पानि,
दस कोस पर वानि। मिथिलामे ई प्राज्ञोक्ति प्रचालित अछि जे दस कोस अर्थात् चालिस कि.मी. पर बोली मे सेहो किछु अन्तलर आबि जाइत छैक।
आठ जोलहा नौटा हुक्कस,
ताहू पर थूक्क म थुक्काि। जोलहा-धुनिया केँ निम्ना जातिक मानल जाइत अछि, जकर व्यनवहार उच्चन कोटिक नहि रहलैक अछि।
आतुर काज दरबसँ होय। टाकाक बल पर केहनो हरबड़ी बला कार्य कयल जा सकैत अछि।
आदि ने बरिसय अरदा अन्त़ ने बरिसय हस्तस,
कहय घाघ दोनों गए पण्डित ओ गिरहस्त । प्रारम्भदमे जे आर्द्रा तक्षत्र नहि बरिसय तथा अन्तरमे जँ हथिया नक्षत्र नहि बरिसय तँ घाघ कहैत्‍ छथि जे धान नहि उपजत, जाहि कारण कृषक एवं विद्वान दूनू कष्टपमे पडि़ जेताह।
आदि विरोध नीक अन्त विरोध नहि नीक। कोनहु विषय पर प्रारम्भ्हिमे बहस भय जायब ठीक रहैत छैक।
आधा छोडि़ सौंस पर धाबय,
ऐसन डूबय बाह ने पाबय। जे सम्पू र्ण पर दौड़ैत छथि हुनकर आधा सेहो हाथसँ निकलि जाइत छनि।
आधा चितरा राइ मुराइ,
आधा चितरा जौ केराइ। चितरा नक्षत्र जखन आधा बीति जाय तँ सरिसव, तोड़ी, मूड़ इत्याआदिक खेती समाप्ता कय जौ, गहूम, केराव आदि रब्बीेक खेती प्रारम्भ, करी।
आधा कहने मर्द पूरा कहने बड़द। पुरुष केँ कम्मेू कहलासँ कार्य चलि जाइत छैक, किन्तु जकरामे पौरुष नहि छैक तकरा नीक जकाँ बुझबय पड़ैत छैक।
आधा तेजय पण्डित सर्बस तेजय गमार। बुद्धिमान व्यिक्ति आधा त्याागिकय आधा प्राप्ता कय लैत अछि।
आधे मीयाँ सेर सवाइ, आधे सारे गाँव। कोनहु एक व्यकक्तिक बड़प्पान करबाक हेतु तथा ओहिसँ ककरो मूर्ख बनाबक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आधा तितिर आधा बटेर। केओ सूगाक चित्र बनयबाक हेतु बैसलाह, किन्तुग नवसिखुआ कारण आधा तितिर सन तथा आधा बटेर सन भय गेलनि।
आनक आस तँ निल उपास। अनका भरोसे रहब तँ अधिक कान भुखले रहि जाय पड़त।
आनक धन पर मदनगोपाल। जे व्य क्ति अनकर सम्पअत्ति पर फुटानी करैत रहैत तकरा पर व्यं ग्यि करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आनक संगे करी ने चास,
ने हो अन्नर ने गामहि बास। साझी खेती नहि करबाक चाही।
आन देत खाँटि तँ हैब मोटि। अनकर सामान्यि कृपासँ जँ पैच उपकारक सम्भासवना नहि रहैत छैक तँ ओहि सहयोग केँ अस्वीनकार करबाक हेतु अपनामे लोक एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
आन मौगी के आनक चिन्ताक,
कनहीके भतारक चिन्तात। अपने बेगर्ते जे आन्ह‍र रहैत अछि, समाज आ देशप्रदेशक हाल समाचार सँ जे सर्वथा अनभिज्ञ रहैत अछि, तकरा पर व्यंाग्यम करबाक हेतु एकर प्रयोग कयल जाइत अछि।
आन्हकर कूकूर वसाते भूकय। अनावश्येक सन्देतह केनिहार, अनठेकानी झटहा फेकनिहार आ सतत् भयभीत रहनिहार पर व्यं ग्यत।
आन्हहर गुरु बहीर चेला,
मांगवि गूड़ देथि ढे‍ला। ढू ढहलेल व्यदक्तिक परस्प,र हास्या स्पाद व्यढवहार पर व्यंकग्ये करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
आन्हकर हँथोड़लनि खेतमे,
पकड़ा गेलनि बटेर। कोनो ढहलेल व्येक्ति जखन अनठेकानी कोनो हास्याव-स्पनद कार्य कय बैसैत अछि तँ ओकरा सँ चुटकी लेबाक लेल एकर प्रयोग होइत अछि।
आप रुचि भोजन पर रुचि सिंगार। भोजन अपन रुचिसँ करबाक चाही, अन्याथा अधिक खालेलासॅा हानिकारक भ’ जाइत छैक।
आक कहू मोन केहन लगैअब ? ककरो जखन अपने कयल कार्य पर पश्चाजत्ताप होइत छैक तँ पूर्वहि मना केनिहार व्यनक्ति एहि उक्ति द्वारा ओकरा पर व्यंहग्या करैत अछि।
आब पछतेने की हैत ? गलती क’ क’ पछतौनिहार व्यरक्ति पुन: ओहन गलती नहि करय ताहि लेल आ आगाँक सन्च्ि नाक लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
आब लजयलहुँ अलगा दैह। बलक प्रदर्शन केनिहार कोनो व्यनक्तिसँ जखन नहि उठलैक तँ लज्जित होइत अनकासँ उठादेबाक निवेदन केलक।
आबि गेल अगहन लागि गेल बेहरी,
भागि गेल पुरुष धस गेल मेहरी। जकरा इच्छाु नहिबौ रहैत कार्यमे पर्याप्त चन्दाइ देबय पड़ैत छैक, तकरा पर व्यंोग्य करबाक हेतु एहि प्रयोग कयल जाइत अछि।
आम खयबाक काज कि आँटी गनबाक काज ? वा
आम खयलासँ काज कि फँड़ गनलासँ काज ? वा
आम खलया सँ काज कि गाछ गनलासँ काज ? मूल कार्य केँ छोडि़ जे ओकर अधिक तहमे चाहैत अछि तँ ओकरा रोकबाक हेतु एहि लोकोक्ति सभक प्रयोग कयल जाइत छैक।
आयल चैत फुलि गेल गाल,
माघ मासक वैह हाल। खेतिहर मजदूर नवका अन्नलक काटनि-लोढ़नि मे किछु दिनक हेतु आर्थिक समयमे ओ मोटा जाइत अछि।
आयल चैत सोहाओन,
फूहडि़ मैल छोड़ाओन। अपरेजकि स्त्री़ जाड़क समयमे कम स्नालन करैत अछि, तेँ ओकरा देहमे मैल्‍ अधिक जमि जाइत छैक।
आयल पानि गेल पानि बाटे बिलायस पानि। अधिक वर्षा हेबाक सम्भा वना छल, किन्तुि फुँहिया कय समाप्तस भय गेल।
आयल बलान उठल दलान,
गेल बलान खसल दलान। कमला बलानक बाढि़ जखन अबैत छलैक तँ खेतमे गादि आबि गेलाक कारण उपज खूब होइत छलैक।
आरि जाइत कपार लाठी,
बीच बांग चरबाही। आरि पर माल पहुँचितहि लाठीसँ कपार फोडि़ दैत अछि
किन्तुा ई तँ बिच्चिहि खेतमे माल चरा रहल अछि।
आलस नीन्द किसाने नासय,
चोरे नासय खाँसी।
काँची-कूची वेश्याे नासय;
मिरगी नासय पासी।। कृषक यदि आलस्यी करैत छथि तँ हुनक नाश भय जाइत छनि।
आलसी खसल इनारमे, कहलक हम एत्तहि ठीक छी। आलसी व्यीक्तिकेँ कोनहु कार्यमे मोन नहि लगैल छैक।
आब-आब कऽ मुइलह पुत्ता, खटिये तरमे पानी;
तेहन पाट ने पढ़लह पुत्ता, अपने सीर बिसानी। कोनो हाल मियाँ फारसी पढ़बाक हेतु पदेश गेल। ओहिठाम शपथ लऽ लेलक जे ओ फारसी छोडि़ किछु नहि बाजत।
आसकतीक लेखे गंगा बड़ी दूर। आलसी व्येक्ति पर व्यंेग्यओ आसकती = आलसी ।
आसक माय निरासक बाप,
सम्प त्तिक बहिन विपत्तिक यार। स्व र्णाभूषणक विषयमे कहल जाइत अछि जे ओ केहनो विपत्तिमे कार्य अबैत छैक, कारण सोना असल धन होइत अछि।
आसिनक टूटल मरद आ चैतक टूटल बड़द नहि सम्हदरय। कहल जाइत अछि जे मनुष्ययकेँ आसिनमे तथा बड़दकेँ चैतमे स्वयस्थ्यस बिगडि़ जाइत छैक।
आसिन मासजँ बहय ईसान,
थर-थर काँपय गाय किसान। आसिन मे जखन ईशान कोनसँ झटक उठैत अछि तँ अकस्माोत् जाड़ आबिगेलाक कारण लोक एवं गाय-बड़द थर-थर काँपय लगैत अछि।
आहर भरल पो‍खरि भरल,
बहुरियाक पेट कहियो नहि भरल। कनियाँ-बहुरियाकेँ सीट-साट करबामे अनेक प्रकारक खर्च रहैत छनि, जकर पूर्ति करबामे घरबैयाकेँ कठिनाइ होइत छनि, तेँ कहल जाइत अछि जे कनियाँ-बहुरियाक आवश्याकताक पूर्ति असम्भनव रहैत्‍ छैक।
इनार कतहु पियासलकट निकट गेलैक अछि ? जे गरजू रहैत अछि
, तकरे प्रयास करय पड़ैत छैक।
इसखीक मैगति माघ मास। सीट-साट कयनिहार लोककेँ कखनोकाल, शारीरिक कष्टस अधिक होइत छैक, कारण फैशन करबाक पाछाँ ओ शरीरक चिन्ता सेहो नहि कथ पबैत अछि।
इसखी के स्यापखे बड़। सौन्दकर्य बोध रखनिहार व्य क्ति सफाइ पर अधिक रखैत अछि।
इस्सूरसँ बिस्सून पहलमान। ककरहुसँ केओ कम नहि।
इहो कोनो बात छी,
बातक चटक छी। अधिक बात बनौनिहार व्यसक्तिक आलोचनाथ्र एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
इनारक बेंगकेँ होइत छैक एतबेटा दुनियाँ छैक। क्षुद्र विचारक तुच्छै व्यिक्तिकेँ अधिक दूर धरि नहि सूझैत छैक।
ई आंगुर कटने अपने घाव, ओ आंगुर कटने अपने घाव। झगड़ा केनिहार उभय पक्ष जखन अपने लोक रहैत्‍ छैक तँ लोक (पंच वा अन्यि) ढूनूकेँ मिलयबाक चेष्टाक करैत अछि तथा एहि उक्ति द्वारा स्वीाकार करैत अछि जे दूनू अपने लोक छी, तेँ ककरो पक्ष वा विपक्ष करबाक प्रश्नेा नहि उठैत अछि।
ई ओहि जन्म्मे बाभन छल। वा
ई ओहि जन्म्मे मलाह छल। वा
ई ओहि जन्मेम मुसहर छल। वा
ई ओहि जन्म्मे गुआर छल। उक्ति प्रकारक जातीय गुण कोनो नेनामे देखि अथवा अपन जातिक विपरीत गुण देखि लोक ओहि नेनाक लेल एहिप्रकारक उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
ई गुड़ खयने कान छेदौने। कोनहु कार्यमे जखन अत्य।धिक कठिनाइ होइत छैक तँ लोकएहि उक्ति द्वारा विचार प्रकट करबाक चेष्टा करैत अछि जे बिना कष्टट केने नीक फल प्राप्तछ नहि होइत छैक; संगहि पश्चा्त्ताप सेहो होइत छैक जे ने गूड़ खैतहुँ आ ने कान छेदबय पड़ैत।
ई जुनि बूझी डाल निर्बुद्धी,
नासहि काल विनासहि बुद्धी। जखन विनाशकाल अबैत छैक तँ बुद्धि सेहो तेहने भय जाइत छैक।
ई जुनि बुझी पिया मोर हीत,
जेहने करैला तेहने तीत। कोनो नारी अपन दोष व्त्ीत करैत सखीसँ कहैत छथिजे ओ करैल सन तीत छथि1 कोनो प्रिय व्यरक्तिक मधुर आलोचना वा उपराग-उपालम्भनक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ई बरही गाम कमयताह, जनिका रूखान ने बसिला ? कोनहु कार्यक पूर्ण तैयारी नहि रहलहु पर कार्यक हेतु हरबड़ी देखौनिहार व्यलक्तिक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ईष्येंक नांगाडि कटाबी तँ छौ मास व्यतथेँ मरी। देखाँउस पर वा कोनो प्रतिक्रियावश जखन केओ हानिकारक कार्य करय चाहैत अछि तँ ओकरा ओहि कार्यक कुपरिणामक भान करदैत एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ई लोहारक कुच्ची् छथि, आगि पानि दूनूमे। नीक अधलाह दूनू जे व्यीक्ति उपस्थिते रहैत तनिका पर व्यंूग्यि करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ई बरही गाम कमयताह, जनिका रूखान ने बसिला ? कोनहु कार्यक पूर्ण तैयारी नहि रहलहु पर कार्यक हेतु हरबड़ी देखौनिहार व्यलक्तिक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
इष्येंक नांगडि कटाबी तँ छौ मास व्य्थेँ मरी। देखाँउस पर वा कोनो प्रतिक्रियावश जखन केओ हानिकारक कार्य करय चाहैत अछि तँ ओकरा कार्यक कुपरिणामक भान करबैत एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ई लोहारक कुच्ची् छथि, आगि पानि दूनूमे। नीक अधलाह दूनू कार्यमे जे व्य क्ति उपस्थिते रहैत छथि तनिका पर व्यंछग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ई संसार हाटकय मानह। एहि संसारकेँ हाट-बाजार बुझबाक चाही, जाहिठाम विभिन्ना वस्तु क खरीद बिक्रीक हेतु लोक निरन्तार अबैत रहैत अछि।
उकुर-धुकुरसँ बाँचब तखन ने सुखराती नाचब ? कोनो नीक कार्य करबसँ पूर्व अनेक बाधा प्रस्तुकत रहैत छैक, जकरा पार करबामे कठिनाइ देखि लोक एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
उकखरिमे धान तँ ककबा आन। घरमे जखन भोजनक व्यावस्थाय रहैत तखने फैशन केनाइ छजैत छैक।
उक्ख रिंभ मुँह देलहुँ तँ मुसरक कोन डर ? झंझटिया कार्य में जखन लोक हाथ लगा दैत अछि तखन फेर घुरिकय पाछाँ नहि तकैत अछि।
उखड़य किद्न ने नाम बल्लीा झा । नाम पैघ मुदा कार्य जखन छोट देखल जाइत अछि तखन ओहि सामान्यन व्यइक्ति केँ एहि लोकोक्ति द्वारा फटकारल जाइत अछि।
उचित कहने संग विधुआय। अपन मित्रहुकेँ जखन गप्प कहल जाइत अछि तँ ओ उदास भय जाइत छथि तथा मित्रतामे कमी आबय लगैत अछि।
उचित कहैत घर झगड़ा। कटु सत्यत बजला पर अपन घरहुमे झंगड़ा भय जाइत छैक। अर्थात् उचित गप्पघ बजबाक युग नहि रहल।
उजाड़ गाममे मुरार महतो। जे गाम उजड़ल छैक ताहिम मुण्डाप व्यकक्ति महत्त्वपूर्ण कहबैत अछि।
उड़न्तवमे बगेड़ी, गरन्तयमे ओल जलन्तजमे रोहु। कहल जाइत अछि जे चिड़इमे बगेड़ी माटिक तर बला ओल तथा जलचर में रोहु माछ अधिक स्वाओदिष्टड होइत अछि।
उढ़री के गामक ठेकान ? कुलटा स्त्री केँ चरित्र सम्बुन्धीम कोनो ठोस विचार नहि रहैत छैकै।
उत तब इत की ? कोनो अनर्गल कार्य केनिहार जखन मना कयलहु पर बात नहि मानैत अछि, किन्तु् बादमे सहयोग लेबाक हेतु अबैत अछि तँ ओकरा एहि उक्ति द्वारा फटकारल जाइत छैक।
उत्तम खेती मध्य म बानि,
निषिध चाकरी भीख निदान। कहल जाइत अछि जे जीवन-यापन करबाक हेतु खेती उत्तम धन्धाब थीक, वाणिज्ये-व्यबवसाय मध्य्म तथा नौकरी निषिद्ध होइत अछि।
उत्तर जानि बान्ह।ब पानि। उत्तरा नक्षत्र जखने आबि जाय तँ खेतक पानि कतहु जाय नहि देब।
उधियाइत सातु पितरके पैठ। दान करबाक राशि जखन अति तुच्छ रहैत अछि तँ दाता पर व्यंअग्यँ करबाक हेतु एहि लोकोअक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
उपाय किछु ने मोन बड़ पैध। ओकादसँ अधिक जखन केओ मनोरथ बघाड़य लगैत अछि तँ ओकरा हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
उपासक राति बड़ पियार। विपरीत परिस्थिति जखन आब’ लगैत छैक तँ लोक साधारणो सुविधाकेँ गहिकय पकड़ैत अछि।
उपास नीक कि ऐंठ नीक ? भूखसँ छटपटाइत व्यीक्तिकेँ ऐंठ-कूठ सेहो नीके लगैत छैक।
उर्दू ने फारसी मियाँजी बानरसी। गुणहीन व्याक्ति जखन अधिक सीट-साट करय लगैत अछि
,, गुणी व्य क्ति बनबाक अभिनय करैत अछि तँ ओकरा पर व्यंणग्यछ करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
उल्लूअकेँ जँ दिनमे नहि सूझैत छैक तँ एहिमे कोन दोष ? गुणी व्यनक्तिक गुण जकरा नहि देखाइ पड़ैत छैक, केवल दोषे सूझैत छैक तकरा पर व्यं ग्ये करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
उसराहीक देवी के कोदोक अक्षत। जाहिठाम जैह उपजैत छैक ताहिठाम सैह लयकय श्रेष्ठउ व्यिक्तिक सेहो स्वापगत कयल जाइत अछि।
उसराही के अन्नेै की जोलहा के धने की ? जहिना ऊसर भूमिमे अन्ने नहि उपजैत छैक वा वड़ थोड़ उपजैत छैक, तहिना जोलहा धुनियाँ केँ धन जमा नहि होइत छैक।
ऊगह चान कि लपकह पूआ। चन्द्रो दय हैत कि लगले पूरी पिरुकिया खाइत जायब।
ऊँच अटारी मधुर बसात,
घाघ कहय घरही कैलास। उँचगर घर यदि बान्ह।ल जाय, जाहिमे हवाक मधुर संचार होइत रहय, बिनु हबोक हवा पहुँचैत रहय तँ घाघ कहैत छथि जे कैलास पर्वतक आनन्दइ घरहिमे भेटत।
ऊँच घरमे अधिक बसात। पैघ घरमे अधिक बसातक झाँक लगैत छैक; तहिना पैध लोककेँ अधिक झंझटक सामना करय पड़ैत छैक।
ऊँच बड़ेरी फोँफड़, बाँस,
रीन खाइ छथि बारहो मास। यादि फोँक एवं काँच बाँससँ पैघ घर (फूसक) बना लेब तँ सब दिन कर्जक बोझसँ दबल रहब, कारण ओकर भंगठी लगले रहत।
ऊँटक आगाँ बूटक ढेरी। गुणहीन व्यबक्तिक समक्ष नीक वस्तु राखब व्यहर्थ, कारण ओ ओकर महत्वत नहि बुझि सकत।
ऊँटक मुँहमे जीरक फोड़न। जाहिठाम अधिक सामग्रीक प्रयोजन रहैत छैक, ताहिठाम जँ कनेके मात्र सामग्रीक जोगाड़ कयल जाइत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंजग्यँ कयल जाइत छैक।
ऊपर-ऊपर जपैछी माला,
मनमे रखने ही छत्तीसो कला। छल-कपट रखनिहार व्ययक्ति जँ आस्तिकताक अभिनय करैत अछि तँ ओकरापर व्यंभग्यअ करबाक हेतु एहि लोकक्तिक प्रयोग कयल जाइत छैक।
ऊपर-ऊपर बाबी, तरमे दगाबाजी। धोखेबाज व्यरक्ति पर व्यं ग्यद।
ऊपर फीट फाट नीचाँ मोकामा घाट। ऊपरसँ तड़क-भड़क अधिक किन्तु‍ भीतर में तथ्य़ हीन व्यअक्तिपर व्यंतग्यक करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ऊपर भर नीचाँ झर। जाहि व्यीक्तिक पेट खराप रहलहु पर पर्याप्तत भोजन अछि, किन्तु सतत् लोटे हाथे (शौचालय दिस) रहैत अछि, तकरा हेतु एहि उक्ति‍क प्रयोग होइत अछि।
ऊपर माला भीतर भाला। कपटी व्य क्ति पर व्यं ग्य ।
ऊँचा चढि़-चढि़ देखल,
घर-घर एकहि लेखल। घरेलू विवाद वा कोनो आन भयंकर समस्याव पर प्रिय व्यरक्ति द्वारा एहि लोकोक्तिक प्रयोग कय धैर्य धारण कराओल जाइत अछि।
एक अनार सय बीमार। कम सामग्री पर जखन अधिक लोक लोभ करय लगैत अछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक आनाक मुर्गी नौ आनाक मसाला। कम महत्त्वक वस्तु मे जखन केओ अधिक खर्च कय लैत अछि वा कम उपलब्ध करबाक हेतु जखन बहुंत अधिक खर्च पडि़ जाइत छैक तँ लोक एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एह ईर घाट दोसर बीर घाट। दू परस्पटर प्रयोजनीय व्यगक्ति जखन एक दोसरसँ दूर रहैत्‍ छथि, तँ एहि लोकोक्ति द्वारा परिस्थितिक ज्ञान कराओल जाइत अछि।
एक कलम घुसकय तँ बावन गाम लिखाय। कल जाइत अछि जे कायस्थ लोकनिक कलम बढ़ तेज होइत छनि।
एक कान दू कान तीन कान बीया बान। कोनो गुप्तक बात सेहो जखन एक कानसँ दोसर कान जाइत अछि तँ ओकरा प्रकाशमे अबैत देरी नहि लगैत छैक।
एक कौर खाइछी गायमे जाइछी। भोजन किछु नहि कार्य अधिक।
एक गाछ राहडि़ गामक बाहरि। कोनो झगड़ाउ पुरुष वा स्त्री जकरा ककरहुसँ नहि पटैत छैक, तकरा हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
एक गाम दू गाम भोज भेल,
कुकुरक जी हुलबुल्लेे गेल। अकस्मा त् अधिक आय भ’ गेलाक कारण जखन ककरो मोन उबजुबाय लगैत छैक तँ लोक ओकररा हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एक गाम मांगी तँ एक तामा,
सात गाम मांगी तँ एक तामा। कतबो प्रयत्नी केलाक बादो जखन एके भाव पड़ैत छैक तँ लोक एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एक घड़ीक रंग-ढंग, छोड़ सैयाँ मोर संग। आनन्द़क समय जखन थोड़बहि कालक हेतु अबैत अछि, तँ आनन्दह केनिहार व्य क्तिक संग एहि उक्ति द्वारा चुटकी लेल जाइत अछि।
एक घर डाइनो वकसैत छैक। अपराधक हेतु क्षमाप्रार्थी होइत दण्डल नहि देबाक निवेदन करबाक हेतु एहि प्राज्ञोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक घोड़ा घास खाय एक घोड़ा हीँ हीँ हीँ हीँ। ककरहु प्रति अत्य धिक पक्षपात केनिहार व्यहक्ति पर व्यंकग्यह करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक चोरी दोसर सीनाजोरी। जखन अपराधी व्यीक्ति अपन अपराध स्वीअकार नहिकय उनटे आक्रामक भय उठैत अछि तँ एकह लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा ओकरा पर व्यंोग्यो कयल जाइत अछि।
एक टाकाक चाटाइ नौ टाका विदाइ आमदक अपेक्षा जखन ओहि अधिक खर्च करय पड़ैत छैक, तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
एक टाकाक मुरगी नौ टाका नोचाइ। मूल वस्तुमक अपेक्षा सहायक वस्तुकमे जखन अधिक मूल्यु चुकबय पड़ैत छैक तँ एकर प्रयोग होइत अछि।
एक टाकाक लाइ नौ टाका विदाइ। आमदसँ अधिक जँ खर्च भय जाय तँ ओहन आमद पर असन्तोचष व्यैक्ति करबाक हेतु प्रयुक्तन।
एक छौंड़ी बुलकी; जेम्हँरे देखय चूड़ा दही तेम्ह रे मारय हुलकी। अधिक बुलन्ता‍ वा चंचला बालिकाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एकटा छौंड़ी के नौ लगबार,
तकरो लय गेल गामक कोतवाल। कोनो कुलटा युवतीक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
एकटा बड़द एकावनटा खुट्टा। प्रयोजनसँ बहुत अधिक प्रबन्धए रखबाक कारण जखन हास्याअस्प्द स्थिति उत्परन्नह भय जाइत छैक तँ लोक एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा प्रबन्धिक पर वा ओकर अधिक अपव्यगय पर व्यं ग्य करैछ।
एकटा बेटे की एकटा टके की ? कहल जाइत अछि जे जहिना एक टाकासँ केओ टाकावला नहि कहा सकैत अछि तहिना एकटा बेटा सँ आशा कम करबाक चाही।
एकटा मुर्गी के कयठाम हलाल करबैक ? एके व्यरक्ति एकहि कार्यक हेतु जखन एकाधिक बेर दण्डित होइत अछि, तँ ओ स्वधयं एहि उक्ति द्वारा अपन दयनीय स्थितिक संकेत दैत अछि।
एकटा हरीर भरि गाम उकासी। एकहि वस्तुभ पर जखन अनेक लोक दाबी करय लगैत अछि, ओकरा प्राप्ता करबाक हेतु जखन अनेक व्य क्ति अपन व्यबग्रता देखबैत छथि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा हँसी कयल जाइत अछि।
एकत पढ़ुआ काका ओहिना गोर, दोसर नहयने अबैत छथि। दू प्रकारक गुण रहलाक कारण जख्नर कोनो व्यनक्तिक स्वणभावमे गुणात्महक परिवर्तन अबैत छैक वा कोनो व्य्क्तिक दुर्गण मे आर वृद्धिए भय जाइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक दिस गुरु गोसाँइ दोसर मुड़आ बाग। वा एक दिस गुरु गोसाँइ दोसर कुरथी बाग। कोनो पूजा पाठसँ पूर्वहि लोक माछ आदि बारि दैल अछि। कोन समयमे कोन कार्य करी तकर विचार जे नहि रखैत अछि, अनुपयुक्ति कार्य केलाक कारण जे कोपक भाजन बनैत अछि तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत छैक।
एकतँ गंगाजल दोसर पात्रमे। दोहरा उपयुक्तो कार्य केलापर वा कोनो वस्तु क अनेक कारण ओकर प्रशंसा कयल जाइत छैक।
एकतँ अपने डाइन दोसर ओझाक संग विवाह। दोहरा दुर्गुणक कारण निन्दां करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक तँ करैत अपने तीत दोसर नीमपर चढ़त। नीमक गाछ पर लतरिकय फड़ल करैला अधिक तीत भय सकैत अछि। दोहरा गुण वा दोषक कारण जखन कोनहु वस्तु क निन्दाी वा प्रशंसा कयल जाइत अछि तँ एहने लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
एकतँ गुरीच दोसर नीम पर चढ़ल। अर्थ समाने अछि तेँ प्रयोगो समाने होइत अछि।
एक तँ अपने तीत करैल, ताहि पर पड़ल जरल मंगरैल। जरल मंगरैल सेहो अकत लगैत अछि।
एकतँ तीयाँजी अपने सुत्थ।र, दोसर खयने पेयाजु। दोहरायल दोष एकहिठाम रहलापर एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक दिन रहलनि रंग तँ, साँय खुऔलकनि संग,
एक दिन उठलनि रिस्साल मारि केलकनि भरकुस्सास। रंग= रंग रभस। रिस्सा = रीस, क्रोध।
एक दिन सासु आदर बड़ कयलनि
तपत भात अरू दूधे,
एक दिन सासु खोरनोट मारलनि,
बासि भात से छूछे। जे जनी अपन सासु वा पुतोहुक मिथ्याे प्रशंसाक पुल बन्है त रहैत छथि, तनिकापर व्यंंग्यै करबाक हेतु महिलालोकनि एहि पदक प्रयोग करैत छथि।
एकतँ बूढ़ दोसर ढहलेल। दोहरा दुर्गुणक कारण ककरो निन्दा करबाक हेतु एकर प्रयोग कयल जाइत अछि।
एकतँ शिव अपने बौराह, दोसर भाँग खयने छथि । अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते होइत अछि।
एक तँ गुआर दोसर जुआन तेसर नौ मन धान। तेहरा दोष एकहि व्यआक्तिमे रहलाक कारण ओ कोनों भयंकर काण्डन कय सकैत अछि।
एकतँ खयलहुँ गुआरक धर दोसर बिना घीके। उत्तम कोटिक भोजन नहि प्राप्तन भेला पर एहि वाक्यि आक्रोश व्यनक्ति कयल जाइत अछि वा भोजन करौनिहारक स्तवर केर उपहास कयल जाइत अछि।
एक दिन पहुना दोसर दिन कहुना तेसर दिन ठेहुना। पाहुन-परक एकहि दिनक लेल नीक लगैत छैक।
एक बेटा ओकर बाप नोकर तक्क र, चारि बेटा ओकर बाप कुकुर तक्कलर । एललौता बेटा अधिक दुलारू रहैत तथा माय-बापकेँ नौकर जकाँ खटबैत अछि, किन्तु जनिका चारिबेटा (अधिक सन्तारन) रहैत छनि तनिकातँ आर कष्टि होइत छनि, कारण बुढ़ारीमे कोनो बेटालग स्थिर भय रहव कठिन भय जाइत छनि।
एक दिन मनसे जोतलनि हर,
हगलनि पदलनि लगलनि जर। जनिका जाहि कार्यक अभ्याजस नहि रहैत छनि ताहि कार्यमे जँ ईष्या् रवश जुटि जाइत छथि तँ अत्य धिक कष्टा होइत छनि तथा उपहासक पात्र बनैत छथि।
एक दिन सात बोहु लग गेलहुँ,
एक दिन किदन एँटिकय मरल हुँ। बुद्धिमान व्यँक्ति ओरियान सँ चलैत छथि। जे अपन भविष्यमक बिना चिन्ताथ के नहि अन्धानधुन्धम खर्च कय लैत छथि बादमे कर्जामे डुबि जाइत छथि, तनिका पर व्यंाग्याछर्थ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक दिन सात स्त्री रखलहुँ एक दिन भुखले मरलहुँ। एकरहु अर्थ एवं प्रयोग समाने अछि।
एक दिस कानन एक दिस नाच। जखन उत्सएव एवं शोक दूनू प्रसंग उपस्थित भय जाइत अछि वा शोकक समयमे जँ केओ हर्षोल्लाास देखबय लगैत अछि तँ एकर प्रयोग।
एक नांगर घबाह। ढूटा विपरीत परिस्थिति जखन एकहिठाम उपस्थित भय जाइत अछि तँ एकर प्रयोग होइत अछि।
एक पन्थ ढू काज। एकहि प्रयत्ना सँ दू कार्यक योजना बनौनिहार लेल एकर प्रयोग।
एक बंगाली दोसर तोतराह। जनसामान्येँो कोनो आन भाषा भाषीक गप्पक बुझब कठिन रहैत छैक।
एक भौगीके सात लगबार,
तकरो लय गेल गामक कोतवाल। कोनो साधारण व्यकक्तिक जखन किछु कारणवश महत्त्व बढि़ जाइत छैक तथा अनेक लोक ओकरा अपना दिस घिचबाक प्रयत्न मे लागि जाइत छैक तखन एहि लोकोक्ति द्वारा ओकरा पर व्यं ग्य कयल जाइत छैक।
एक बेर बझयौ गलफड़ फट्यौ,
बघबर पंच चील्हफ सँ बच्यौा;
जे नहि जानय बन्सी क फ्यौ,
तकरे आगाँ बरसी दूयौ। एक बोर कोनो माछ जखन बन्सीीमे फाँसि गेलाक बाद कहुना गालो चिराकय भागि जाइत अछि तँ फेर दोहराकय बन्सी क बोर वा चारा खेबाक हेतु नहि जाइत अछि।
एक पोटी पर नौ रोटी। कोनो ओरियानी वा कंजूस व्यइक्ति पर व्यं ग्यं करबाक लेल एकर प्रयोग होइत अछि।
एकटा के नौत सबटा के व्यौयत। वा सब बापुते केँ व्योँ त। एक समांग केँ नोत रहला पर जँ घरभरिक धीया पुता हुनका संग चलि जाइत छथि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा हँसी जाइत अछि।
एक बिगड़य तँ दस बुझाबय,
दस बिगड़य तँ के बुझाबय ? समस्तग गामे जँ अपराधी वा दुर्व्यतसनी भय जाइत अछि, तँ ओकर सुधार सँ, कठिन भय जाइत छैक।
एक बेटी मिठाइ, दोसर बेटी लाइ,
तेसर भेल तँ तीनू बलाय। प्रथम पुत्रीक जन्म पर हर्ष होइत छैक, दोसर पर ओतेक खुशी नहि होइत छैक।
एक बजाबय चौदह आबय। जखन कोनो कार्यक लेल केओ टल्लीक मारैत छैक तँ क्रोधमे कोनो पैघ व्यलक्ति धमण्डहसँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एक मास ऋतु आगा धाबय। समयसँ पूर्वहि जखन ओहि कार्यक आभास भेटय लगैत छैक वा घटनाक समयक आभास होइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
एक मीयाँ बुडि़बक दोसर तोतराह। एकहि व्य क्तिमे दू प्रकारक आपत्ति रहला पर एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक पूतकेँ पूत नहि कही,
एक आँखिकेँ आँखि नहि कही। एकलौता बेटासँ किछु आशा राखब कठिन रहैत छैक; तहिना एक आँखिसँ अधिक दिन धरि कार्य नहि चलैत छैक, कारण ओ निरन्तिर दुर्ब्ब ल भेल चलि जाइत छैक।
एक पैसाक कड़ाही सेहो ठोकि ठाकि कऽ कीनल जाइत छैक। कोनो वस्तुइ कीनैत काल ओकर नीकजकाँ निरीक्षण परीक्षण क’ लेल जेबाक चाही।
एक बकरी एकटा वन चरि जाइत अछि। लगातार कार्य करैत रहलाक कारण सामान्योा व्यकक्ति कोनो महत्त्वपूर्ण कार्य कय लैत अछि।
एक बनियाँसँ कतहु बजार बसलैअय ? कहल जाइत अछि जे शहर बसयबामे अनेक व्य वसायी एवं ग्राहक (आम जनता) क सहयोग रहैत छैक।
एमहर इनार ओमहर बाय। दूनू स्थितिमे जखन विपरीते परिणामक आशंका रहैत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा निराशा व्यकक्तो कयल जाइत अछि।
एक विदेसी दोसर तोतराह। ककरहुमे जखन दोहरा दोष रहैछ, ओकर गप्प्म‍ बुझब कठिन रहैत छैक तँ ओकरा पर व्यं्ग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एकसर सुघन खाँ आगाँ चलताह कि पाछा ? जखन दू महत्त्वपूर्ण कार्य एक व्यपक्तिसँ सम्भदव नहि रहैत छैक, किन्तुँ अनेक कार्य उपस्थित भय जाइत छैक तँ प्रभावित व्य्क्ति आक्रोशमे एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एक मुँह अमृतसँ भरय,
लाख मुँह छाउरोसँ नहि भरय। जनसंख्या वृद्धि पर चिन्ताउ व्यकक्तय करैत एहि प्राज्ञोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक राकस दोसर नोतल। दोहरा भयावह व्यतक्ति पर व्यं।ग्या।
एक लाख पौत्र सवालाख नाती,
ताहि रावण घर दिया ने बाती। जखन दुर्दिन अबैत छैक, भाग्य। बिगडि़ छैक, तँ केहनो पैघ लोक थोआ-थाकर भय समाप्त भय जाइत अछि।
एकसर वृहस्प तियो झूठ। यदि केओ समर्थन केनिहार नहि रहनि तँ देवगुरु वृहस्प ति सेहो झुट्ठा कहा सकैत छथि।
एक लोटा सात भाइ, बेराबेरी पैखाना जाइ। जखन कम सामान पर अधिक लोक धपायल रहैत छथि तँ हँसी करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एक सेर मुर्गी नौ सेर पिटाइ। हीन कार्य करबामे जखन केओ खर्च करबाक चेष्टाब करैत अछि, ताहिपर मारि सेहो खाइत अदि तँ ओकर एहि लोकोक्ति द्वारा उपहास कयल जाइत छैक।
एक हर हत्यास दूर हर काज,
तीन हर खेती चारि हर राज। जे नीक एवं पैघ कृषक छथि तीनटा हर अर्थात् छौटा बड़द चाही।
एकसर नहि चली बाट, झारिक ऽ बैसी खाट। एकसर कतहु नहि जेबाक चाही, कारण संकटमे फँसि सकैत छी।
एक हाथे कतहु थपड़ी बजलैक अछि ? थपड़ी बजबैत काल दूनू प्रयोजन पड़ैत छैक।
एक हाथे करी दोसर हाथे पाबी। अपन-अपन कर्मक फल लोककेँ भोगहि पड़ैत छैक।
एक शरीर लेल दुइ बास। विष्णुछ एवं शंकर दूनू ईश्वोरेक दू रूप छथि।
एक हाथक काँकडि़ नौ हाथक बीआ। कोनहु असंगत बात पर एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा उपहास कयल जाइत अछि।
एकेटा बेल, लोकालोकी गेल। कम सामान आ लोक अधिक रहलाक कारण अधिक लोक ओहिसँ वंचिते रहि जाइत अछि।
एकहिटा मुर्गी दूठाम हलाल। कोनो व्युक्तिकेँ एकहि अपराध पर जखन दू बेर सजाय भेटैत छैक तँ एकर प्रयोग होइत अछि।
एकहि पटोरबे नौ रे नौ।
कहब मनसे लागत रीस, तोरा लगाकऽ पूरे बीस। एहि लोकोक्तिक पाछाँ एकटा रोचक कथा अछि।
एकहिटा भात छूलासँ पूरा हाँड़ीक पता चलैत छैक। कोनहु एक व्यकक्तिक स्व भाव-व्य वहारसँ ओहि सम्पूवर्ण समूहक स्थितिक पता चलि जाइत छैक।
एकहि साधय सब सधय,
सब साधय सब जाय। कोनहु एक विषयमे विशेषज्ञ बनि गेलापर केओ पैघ लोक बनि जाइत अछि आ ओकरा सबकथूक व्य वस्थाा भय जाइत छैक, किन्तुछ अनेक विषयमे हाथ देलापर शक्तिक क्षय होइत छैक तथा ओ कतहु एकठाम नहि रहि पबैत अछि-सबकिछु गड़बरा जेबाक सम्भा वना रहैत छैक।
एकहि गाममे टूटा रीति,
केहु घर कानन केहु घर गीत। दू प्रकारक प्रथा जखन एकहि स्थारनपर जाइत अछि, ताहूमे परस्प‍र विरोधी प्रथा, तँ लोक ओहि असंगत बात पर एहि उक्तिक प्रयोग कय बैसैत अछि।
एखन गोनू घरे। कोनहु प्रकारक सुख सुविधा प्राप्ति करबाक लेल लोक कतहु अन्य त्र जाइत अछि।
एखन दिल्लीह दूर। मिथिलासँ दिल्ली् दूर पड़ैत छैक ।
एतेक खुद्दी के बीछत ? कोनहु झंझटसँ जखन केओ भागय चाहैत अछि तँ ओकर आलस्य क बखान एहि उक्ति द्वारा कयल जाइत अछि।
एत्ता रुइया के धुनिहँ ? एतेक तूर के धूनत ? ग्रियर्सन मुसलमान (मिथिलाक) द्वारा जाहि मैथिलीक प्रयोग कयल जाइत अछि तकरा जोलही मैथिली कहने छथि।
एना एँचिकऽ कियैक चलैत छेँ रौ तँ छोटका मालिक दरोगा भेलाहय। अनकर सुखसँ जखन केओ सुखी होइत अछि तथा घमण्डओ करय लगैत अछि तँ एहि उक्ति ओकरा पर व्यंीग्यत कयल जाइत छैक।
एके फुक्केओ चानी। प्रथमहि प्रयाससँ जखन उत्तम सफलता प्रापत भय जाइत छैक तँ एहि लोकोक्ति द्वारा भागयक सराहना कयल छैक।
एके नरेना सोधलक सातो घरेना। कोनहु एक व्यधक्तिक कुचालि वा कुकर्मसँ जखन समस्तव खानदान कलंकित भय जाइत छैक तँ एहि लोकोक्ति द्वारा ओकरा धिक्काैरल जाइत छैक ।
एँडि़याओल नीक देरियाओल नहि नीक। जँ बारम्बानर केओ तंग करबाक हेतु आबय तँ ओकरा झाडि़ देनाइ ठीक, अन्यबथा विलम्बा भेलासँ अधिक झंझटमे फँसबाक सम्भाबवना रहैत छैक।
एतेक दिन पर भेट आ बज्र सन कथा। आशक विपरीत जँ व्य वहार भेटैत छैक तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा आश्च र्य व्य‍क्त् कयल जाइत अछि।
एना केने कय दिन निमहत ?
जय दिन निमहत तय दिन निमहत। बिना पुरुषार्थक जे जीबैत छथि तथा कहुना दिन कैटत छथि, तनिकापर व्यंनग्यथ करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
एको पानि जँ बरिसय स्वापती,
कोइरिन पहिरय सोनाक पाती। स्वािती नक्षत्रक वर्षा धानक हेतु तँ नीक नहि मानल गेल अछि, किन्तुन रब्बी , तरकारी एवं फलक खेतीक लेल ओ महत्त्वपूर्ण होइत अछि।
एमहर खसीतँ खाधि, ओमहर खसी तँ इनार। दूनू दृष्टिऍं जखन विरीते परिस्थितिक सामना करय पड़ैत छैक तँ ओहन स्थितिमे कर्त्ता स्वडयं एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एके माघे जाड़ नहि जाइत छैक। कोनो व्य क्ति जखन ककरहु संग कृतध्न्ताक व्यिवहार करैत छैक, लाभ उठा लेलाक वाद औंठा देखा दैत छैक तँ उक्तर ठकायल व्य क्ति एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
एहन नहि हीवा जे पुतोहु खैती घीवा। कृपण व्यहक्ति जखन उदारताक अभिनय करैत अछि तँ ओकरापर लक्ष्य कय एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत छैक।
एहि नगरी केर यैह व्य वहार,
खोलू धरिया उतरू पार। पूर्व में नदी नाला पुल कम रहैत छलैक।
एसगर जनियॉं तेँ पदमिनियाँ। कम लोक कम घर रहला पर ओकरा साफ सुथरा राखब आसान छैक, किन्तुह अधिक लोकमे सफाइ कठिन रहैत छैक।
एसगर मीयाँजी रुब्बैर खोदिहे कि कनिहँ ? जोलही मैथिलीक लोकोक्ति।
एहन चूड़ा कूटब कियैक,
धान बीछिकय खायब कियैक ? ककरहु त्रुटिपूर्ण कार्यपर व्यंिग्यअ करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
एहन झाँपने झाँपनियाँ जे भाफ ने निकले आंगनियाँ। वा तेहन झाँप ने ...। केओ जखन कोनो रहस्य केँ अति गुप्त. अछि, जकर गन्धय तक ककरो नहि लागि पबैत छैक, तँ बादमे एहि लोकोक्ति द्वारा रहस्योैदघाटन कयल जाइत अछि।
एहन नैहर जायब किअय,
अपनहिसँ आयब किअय ? पूर्वने महिलालोकनिक लेयाओन (विदागरी) द्वारा सम्माानपूर्वक नैहर वा सासुर जाइत छलीहि।
एहन हैत कथीलय एहन करब कथीलय, धोतीमे साड़ी मिलायब कथीलय ? अनमेल कोनो कार्य केलापर जखन ओकर दुस्प रिणाम भोगय पड़ैत छैक तँ लोक एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा उपहास करैत अछि।
एहन मीठा नहि जे लोक घाँटि जाय,
एहन तीतो नहि जे लोक थुकरि दिअय। अति कोनो कार्य नीक नहि होइत छैक।
एहि बेटे नाति नहि। मिथिलामे लोक पौत्रकेँ सेहो नाति कहि दैत अछि।
एकसय साठि केरा जे रोपय,
आबि निचिन्ते घरहिमे सुतय। केराक खेतीक महत्त्व विश्लेुषण हेतु एहि उक्तिक प्रयोग।
ओकरे टाड़ा तेल छैक ? कोनो व्य़क्ति जखन अधिक हरान कैयोक नहि कय दैत छैक तँ ओकरा लेल एहन वाक़्यक प्रयोग करैत अछि।
ओ काबिल की जे तीनठाम नहि माखय ? केओ जखन बुद्धिमानी करितहुँ ठका जाइता अछि, धोखा खा जाइत अछि तँ ओकरा पर व्यंजग्यो करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ओ गूड़ कहाँ जे माछी खाय ? ककरो कंजूसी पर व्यं ग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
ओछाहक प्रीति की बालुक भीत की ? ओछाह लोकसँ मित्रता केलापर लाभक बदला हानिए होइत छैक।
ओछ पूजी महाजने खाय। कम पूजीसॅा यदि दोकानदारी कयल जाइत अछि तँ जो कम्मेद दिनमे समाप्तु भय जाइत अछि, कारण किछु ने किछु उधर जाइत छैक; समय पर थोक विक्रेताक अदायगी नहि भेलाक कारण ओ माल देब बन्दग कय दैत छैक-बस दाकानदारी समाप्त ।
ओछाहीक रीन नहि खाइ,
अकुलिनिक धी नहि बिआही। छोटाहि स्त्री सँ पैंच-उधारक व्यसवहार नहि करबाक चाही, कारण ओ अधिक उकठा पैंची (तगादा) करत।
ओझाक लेखे गाम बताह,
गामक लेखे ओझा बताह। ओहन झगड़ाउ व्यबक्ति, जकरा गाम भरिमे ककरहुसँ नहि पटैत छैक तकरा पर व्यंरग्यभ करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ओझाके गाय छूटल बलाय भेल। कोनो नीको वस्तुब जखन ककरो लेल कष्ट क कारण बनि जाइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
ओझाके बीये बताह। ककरो सबटा धीया-पुता जखन दुर्जने निकलि जाइत छैक तँ ओकरा पर व्यंखग्यन करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ओझा गेलाह घर हाथ बिहाथ कय घर ? कोनहु वस्तुरक अत्ययधिक उपभोग भ’ गेलाक बाद जँ पुन: नव प्रयोगक अवसर अबैत छैक तँ एहि उक्ति द्वारा आश्चरर्य व्यतक्ति कयल जाइत छैक।
ओझा बिआह कयल गाम सुख लेल। कोनो वस्तुय कीनिक’ अनलापर यदि ओकर उपयोग भरि गामक लोक करय लगैत अछि तँ क्रेता क्रोध ओ चिन्तानसँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
ओट चटने पियास नहि मरैत छैक। वा ओस चटने पियास नहि मरैत छैक। आवश्यनकता सँ कम वस्तुव उपलब्धा एहि लोकोक्ति द्वारा असन्तो ष व्यतक्त‍ कयल जाइत अछि।
ओढ़ना जूड़य नहि दरी बिछौना। ओकादसँ अधिक जखन केओ मांग करैत अछि, रईसी अछि तँ एकर प्रयोग द्वारा व्यंसग्यई कयल जाइत छैक।
ओमहर बँटैछी एमहर डँटैछी। पक्षपात पूर्ण कार्य केनिहार लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
ओमहर बँटैछी एमहर हरैछी। बाँट बखरामे देरी लगलाक कारण जनिका लोकनिकेँ अनधैय्र होमय होमय लगैत छनि से एहि उक्तिक प्रयोग करैत छथि।
ओरियानीक भूत नौ पुस्तकक नाम जानय। ककरहु आंगन घरमे बैसय उठयवाला व्यहक्ति ओहि घरक सब बात बूझैत रहैत अछि।
ओलतीक पानि बड़ेरी नहि चढ़ैत छैक। पानि नीचे दिस ढरकैत छैक।
ओलती तरक बास आ बैर तरक चाप्तत। ओलती तर नहि बैसी, देह पर किछु खसि सकत अछि।
ओहन गुलाबक फूल ताहिमे काँट ? कोनो सुन्द रि स्त्री जखन अत्यखधिक दुर्जनताक प्रदर्शन करैत अछि,
तँ ओकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा आलोचना कयल जाइत अछि।
ओहि गामक ई गाम बहिन धी। प्रत्यमक्ष सम्बीन्धच नहियो रहैत जे निकट सम्ब्न्धीस बनबाक अभिनय करैत लाभ उठबय चाहैत अछि, तकरा पर व्यंअग्यभ करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
औनायल धूआँक घरहि में डेरा। ककरहु पर खोंझायल, खिसियायल, व्य्क्ति लगे पासमे धपायल रहैत अछि।
औनायल बिहाडि़के गामहिदऽ रास्ता। बिहाडि़ जखन उठैत छैक तँ गाममे अधिक कष्टड होइत छैक।
औरा हर्रे पीपरि चीत, सेन्ध व नोन मिलबिहऽ मीत;
जूड़ी आर उकासी जाय,
सुखसँ सूतय बहुत मोटाय। स्वाँस्य्टा सम्बिन्धील नुस्खाो। सर्दी एवं जूड़ी-ताप (तेज बोखार) क हेतु धात्री, हड़ीर, पीपरि, चित्ती सुपारी एवं सेन्धधव नोन मिलाकय औषधि बनाय प्रयोग करबाक चाही।
अंगा ने टोपी सिपाही नाम। ओकादसँ अधिक जे बड़प्पान झाड़ैत अछि तकरा पर व्यंजग्यय करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होतइ अछि।
अंग्रेजी ने फारसी बाबूजी बनारसी। पूर्व में विद्वान एवं पैघ लोक बनारस (काशी) मे बास करैत छल।
अंगरेजिया फूल आ पड़वा दूनू एक्के। अनेक आधुनिक फूल पावसमे अनायास जनेमि जाइत अछि।
ककोड़बा बिआन ककोड़बे खयलक। अधिक धीया-पुता भय गेलापर कोनो जनी अधिक तबाहीक परिस्थिति में एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत छथि।
कखनो गाड़ी पर नाव कखनो नाव पर गाड़ी। सदा एके परिस्थिति नहि रहैत छैक।
ककरो नाके टेढ़ ककरो नकमुनिये टेढ़। किघु ने किछु दोष सबमे रहिते छैक एहि भावनाकेँ व्य क्ति करबाक हेतु प्रस्तुोत लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि संगहि अपन दोष झँपबक प्रयास होइत अछि।
ककरो बोरे-बीरे नोन ककरो रोटियो पर ने नोन। आर्थिक विषमता पर असन्तोनष प्रकट करबाक हेतु एहि प्रसिद्ध लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
ककड़ी के बन्स गेल, आगू-पाछू टेढ़ भेल। फूटि-काँकडि़ टेढ़-मेढ़ हेबे करैत अछि।
ककरो लय भाँटा बाँतर ककरो लय तथ्य । एके कार्य ककरो लेल लाभकारक होइत छैक तँ ककरो लेल हानिकारक।
ककरो लय शितला शीतलि ककरोलय बाँ‍तरि। शितला माइक आराधनासँ लाभ होइत छैक, किन्तुम वैह जखन देहमे गोटीक रूपमे अबैत छथि तँ कष्टआक कारण बनैत छथि।
कखनो घृत घना, कखनो मुट्ठी भरि चना, कखनो सेहो मना। सन्त केँ भोजनक चिन्ता। नहि रहैत छनि।
कड़रिक थम्हा सितुआ चोख। केराक थम्हह ततेक पनिगर मोलायम कोमल रहैत अछि जे ओहिमे सितुआ सेहो गडि़ जाइत छैक।
कतय गेलहुँ तँ कतहु नहि। जखन लोक कतहुसँ निराश भय आपस होइत अछि तँ निराशामे एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
कतबो डोलाबह मोर कटियहिँ धार। एकाग्र चित्तसँ जे महीसँ दूहैत रहैत अछि तकर हाथक दूधक धार बीच कटियामे पड़ैत छैक।
कतबो बघारब साग तैयो सागक सगे। सागकेँ कतबो झाड़ब, साफ सुथरा करब तथा पानिमे पखारब तथापि ओहिमे गोटेक केश वा खढ़ भेटिए जायत।
कतऽ राजा कतऽ भोजबा तेली। कोनो पैघ लोकक तुलना सामान्ये लोकसँ नहि कयल जा सकैत अछि।
ककरो कुटिया ककरो झोर,
ककरहु आँखिसँ खसैछनि नोर। असमान वितरणक कारण वितरक पर दोषारोपण एवं व्यं गय करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कतबो अहीरा पिंगल पढ़य,
एक बात जंगल के कहय। ककरो चालि स्वभाव आसानी सँ नहि बदलैत छैक।
कतबो घरबा लाड़ब तैयो सैयाँ मारब। कोनो स्त्री्क दुर्ज्जयन रहैत छैक तँ कतबो काजुलि रहलहु पर ओकरा डाँट फटकार आ मारि पीट होइतहिँ छैक।
कतबो राड़ पाग पहिरथि तैयो राड़क राड़े। दुर्ज्जन व्य क्तिकेँ कतबो मुँह कान बना देबैक, तथापि ओ अपन दुर्ज्जुनता नहि छोड़ैत अछि।
कतहु बोरे-बोरे नोन, कतहु रोटियो पर ने नोन। आर्थिक विषमता पर असन्तो ष प्रकट करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कतबो करू जोग-टोन,
बौआ बैसता ओही कोन। कोनो नेना जखन अपन कुचालि नहि छोड़ैत अछि तँ ओकर ओहि आचरण पर व्यंैग्य करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कचहरीमे भीतो हाथ पसारैत छैक। कोर्ट कचहरीक जखन चक्कैर लगैत छैक तँ अपव्यभय होइत छैक, कारण ओहिठाम जेम्हवरे जाउ तेम्हैरे फीस वा घूस दियौक।
कण बचाकऽ धन सौंती। जाधरि कृपणता नहि कयल जाइत अछि ताधरि केओ धनवान नहि भय सकैत अछि।
कथीदन फाटय तँ मलार गाबी। कष्टनमे रहितहुँ जखन खुशी मनबय लगैत अछि वा जखन ककरो कष्टु अछैत ओकरासँ खुशी मनयबाक आग्रह कयल जाइत छैक तँ एहि लोकोक्ति द्वारा विरोध कयल जाइत अछि।
कनहा कूकुर माँड़े तिरपित। कोनो सामान्या वा सुद्धा व्योक्ति जखन कनिक्केम प्राप्तव भेलापर खुशीसँ कूदय लगैत अछि तँ ओकरा हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कनही गाय केर भिन्नेि बथान। जखन कोनो व्य क्ति समूह वा समाजकेँ छोडि़ कातेकात कन्नीि कटैत रहैत अछि, ककरहुसँ पटैत नहि छैक तँ ओकरा पर व्यंुग्यछ करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कनही बिलाडि़ के घरहि सिकार। आलसी एवं अकर्मण्यर व्याक्तिपर व्यंिग्यब करबाक हेतु ए‍ेहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कनहा ऊँटक दोसराति। कोनो सुद्धा सुराह व्यहक्ति लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कननी के दालि भात हँसनी के उपास। कंजूसक घरमे अन्न पानि रहैत छैक, किन्तु जे अति उदार एवं अपव्यछयी रहैत छथि तनिका घरमे सब किछु रहैत छनि।
कनहाक बिआहमे बीसटा आफद । कोनो उकड् कार्यमे लोक वेश सतर्क रहैत अदि तथापि किछु ने किछु विघ्नर बाधा अबितहि रहैत छैक।
कनही बिलाडि़ माँड़े तिरपित। सोझमतिया स्त्रीँ जखन सामान्ये उपलब्धि पर प्रसन्न् भय उठैत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यं ग्यक कयल जाइत छैक।
कनही गाय ब्राह्मण के दान। जखन कोनो तुच्छ् वा अकार्यक वस्तुय केओ दान करैत अछि तँ ओकरा पर व्यंरग्यक करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कनही घोड़ी के सोनाक लगामा । वा
कनही घोड़ी के लाल लगाम। कोनो सामान्यल वा असुन्दतर स्त्री जखन अधिक फैशन तथा आभूषण धारण करैत अछि तँ ओकरा पर व्यं ग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कनने खिजने यब पतियाय ? जाहिठामक जे व्यतवस्थाअ रहैत छैक तकर पालन करहि पड़ैत छैक।
कन्त बसन्त। न रहब विदेस। जनिका परदेश प्रवास (नौकरी) में जी नहि टिकैत छनि, थोड़बहि दिन मे भागिकय कनियाँ लग आबि जाइत छथि, तनिका पर व्यंाग्यत।
कनहू बिरले होथि भलमानुस। कनाह व्यलक्ति जखन पेंच पाँच आ दुर्ज्जयनताक व्य वहार करैत अछि तँ ओकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कनियाँक आँखिमे नोरे ने लोकनिनिक आँखिमे नोर । वा
कनियाँक आँखिमे नोरे ने लोकनिनि भोक्कायरि पाड़य। प्रयोजन जनिका रहैत छनि तनिका कोनो चिन्तान नहि किन्तुि हुनका लेल आने जखन बेहाल रहैत्‍ अछि तँ ओहि बेहाल व्य क्ति पर व्यंलग्यि करबाक हेतु ऐहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कनियाँक आँखिमे नोरे ने विधिकरी भोक्काकरि पाड़य। एडू लोकोक्तिक अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते होइत अछि।
कऽ धऽ अइली हीरा, माँड़ पसौलनि जीरा। श्रमपूर्वक कार्य सम्पा दन केओिल करय, किन्तुर यश लुटबाक हेतु अन्तेमे केओ आगाँ आबि जाय, तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कनियाँक भाय सिहाथि कनेक्शन माँड़लय। संकोचवश जखन केओ प्रमुखे व्यछक्ति अपन अधिकार सँ वंचित रहि जाइत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा आश्च र्य व्यिक्त कयल जाइत छैक।
कनियाँ के खाँइछो ने वर मांगथि दहेज। जाहिठाम किछु भेटयवला नहि छैक, ताहिठाम यदि अधिक मांग राखल जाइत छैक तँ ओहि याचक एवं दाता पर व्यंतग्यआ करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कनियाँ के माँड़ो ने लोकनिन के तरुआ। जाहिठाम प्रमुख व्येक्तिक उपेक्षा होइत अछि तथा साधारण व्य क्तिक आदर, ताहिठाम एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कनियाँ के नहि देखी कनियाँक भाइके देखी। साम्यँ रहलाक कारण हास्य -विनोदक प्रदर्शन हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कनियाँ-वरके भेटे ने अठोंगर लय मारि। उचित प्रसंग उपस्थित होयबसँ पूर्वहि जखन अनावश्यरक बहस वा समयसँ पूर्वहि अतिश्यय चिन्ताह केनिहार पर व्यंहगय एहि लोकोक्तिसँ कयल जाइत अछि।
कनियोंक भाइ आ वरोक भाइ। जे व्यकक्ति कोनो एहभ पक्षमे नहि रहि दूनू पानि मारबाक चेष्टाक करैत अछि तकरा पर व्यं ग्या।
कनियोंक माय आ वरोके माय। जे व्यकक्ति दूनू पक्षकेँ कान फूकि लड़यबाक चेष्टाक करैत अछि, तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कनियाँ दिससँ पीसी आ वरक दिससँ मौसी। दू प्रतिद्वन्द्वी पक्षक मध्य जे सन्तिलन बनयबाक चेष्टाप करैत छथि अथवा दूनू पक्षक आनन्दट लैत छथि, तनिका लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कपटी मित्र कोसलिया भाइ,
बुडि़बक बेटा ठेंठ जमाइ। मित्र जँ कपटी हो, भाइ जँ चोराकय धन जमा (कोसलिया), बेटा जँ बकलेल ढहलेल भय जाय तथा जमाय जँ बेटीक अपेक्षा दब भय जाय, तँ विपत्ति मे फँसबे करब।
कर्पूर खयने कौआ उज्जर। कर्पूर खयलासँ कौआ उज्ज र नहि भय सकैत अछि।
कपड़ा पहिरी तीन दिन,
बुध वृहस्पीति शुक्र दिन,
हरने खगने रवि दिन। नव वस्त्र पहिरबाक लेल कहल गेल अछि जे बुध, वृहस्पलति एवं शुक्र उत्तम दिन अछि।
कबीरदास के उनट बानी,
पहिने खानी तब नहानी। जे व्यखक्ति उनटा-पुनटा कार्य करैत अछि, भोजनक बाद स्ना्न करैत अछि, तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कमजोर काठकेँ कीड़ा खाय। दुर्ब्बाल व्य।क्ति अधिक सताओल जाइत अछि।
कमाइ ने खटाइ रोज चाही मलाइ। बैसलेठाम जे मौज उड़बय चाहैत रहैत अछि, तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कमाय लंगोटिय खाय नमधोतिया। मजदूर वर्ग लंगोट धारण कय खटैत रहैत अछि।
कमसुत पूत करेजक सूत। कमौआ बेटाकेँ माय-बाप अधिक मानैत छैक।
कमयने भात आ बैसने उपास। श्रमपूर्वक जे अर्जन करैत अछि ओकर घर भरल रहैत छैक, किन्तुक आलसी व्ययक्ति उपास पड़ैत रहैत अछि।
कमायने खटाय बैसल-बैसल मटकाय। आलसी पर व्यंबग्यै।
कनियाँ काने जाड़, हथिया हाथे जाड़, चितरा चित्तेँ जाड़, स्वाथती सबे जाड़। कनहा नक्षत्र (उत्तरा) में कानने जाड़ होइत छैक, हथियामे हाथ, चितरामे चित्त तथा स्वा ती नक्षत्रमे सर्वाग जाड़ लगैत छैक।
कमाय कौपीनवला खाय टोपीवला। श्रमिक श्रम करैत अछि, किन्तु उपभोग पैध लोक करैछ।
कम्मलल ओछौना कम्म ल ओढ़ना कम्मलल के सिरहाना। अभावमे लोक एके वस्तुरक अनेक उपययोग करैत अछि।
कम चाह जल्दी सेराइत अछि। निर्धन लोककेँ शीध्रे झुकि जाम पड़ैत छैक।
कर्ज खेनाइ आ पुआर तपनाइ दूनू बराबरि। कर्म सराही खेतक आरि। एहिठाम कर्मक अर्थ भाग्य सँ छैक।
कयल धयल पर जय जगरनाथ। जे व्यलक्ति बिना कृपा-कर्म कयनहि अनका द्वारा अर्जल धन पर मौज उड़बैत छथि तनिका पर व्यंरग्यौ करबाक हेतु एहि प्रसिद्ध लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कयल धयल पर जय जगरनाथ। जे व्यलक्ति बिना कृया-कर्म कयनहि अनका द्वारा अर्जल धन पर मौज उड़बैत छथि तनिका पर व्यंधगय करबाक हेतु एहि प्रसिद्ध लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कण्ठी् भेल सण्ठी । जे व्यतक्ति प्रारम्भेब माछ-मांस त्या गि कण्ठी लय लैत अछि, किन्तुि बादमे आमिष भोजन करय लगैत अछि, तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
करजानमे पाते ने घरमे केरा। बिना परिश्रमक जे व्य क्ति अधिक उपभोग करय चाहैत अछि तकरा लेल प्रयुक्तध।
करनी जनिहऽ मरनी बेरिया। वा
करिनी देखिहऽ मरनी बेर। जे अपन जीवनमे जेहन कृया-कर्म केने रहैत अछि, बुढ़ारी मे तकरा तेहने सुख-सुविधा प्राप्तज होइत छैक।
करिया मेघ डेराओन,
उजरा मेघ बरिसाओन। करिक्काघ मेध जे उठैत छैक तँ हवामे उधिया कय रहि जाइत छैक, वर्षा कम्मे काल होइत छैक।
करी ने खेती परी ने फन्दछ,
घर-घर नाचथि मूसरचन्दक। जाहि गामे अकर्मण्यथ लोकसब बसैत छथि, भरि गाम गरीबी व्याथप्तस रहैत छनि।
करू बहुरिया लूरू-खुरू,
दूनू साँझक सती एकेसाँझ हूरू। कोनहु स्त्री क भोजन अहगर होइत छनि, केवल लोकक देखाबाक लेल एक साँझक व्रत उपवास करैत छथि, किन्तु् दोसर साँझ पहिलुकोक ग्रहण कय लैत छथि।
कलबारक लडि़का भूखे मरय,
लोक कहय जे पीने अछि। पियक्कयर लोक जँ ओहुना टौजाइत रहत जँ लोककेँ यैह सन्देोह देतैक जे ओ पीने छैक।
कलियुगक उपकार गोहत्या बराबरि। उपकारक बदलामे जखन केओ कृतघ्नरता प्रकट करैत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा असन्तोकष व्यहक्त् कयल जाइत अछि।
कयल धयल दाइके नाम भौजाइके। जखन अपराध केनिहार व्याक्ति अपन बदला दोसर व्यधक्तिक नाम लगा दैत अछि, तँ ओकरा पर व्यं‍ग्यम करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत छैक।
करमही्न खेती करय,
पाथर खसय कि पाला पड़य। कोनो भाग्यिहीन व्यकक्ति, जकरा अधिक काल असफलते हाथ लगैत छैक, एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा असन्तो ष व्य कत करैत अछि।
कर आ वयस एके। टैक्सव जे एक बेर लगि जाइत छैक से अधिकांशत: कम नहि होइत छैक।
करघा छोडि़ तमाशा जाय,
नाहक मारि जोलाहा खाय। एक दिन करघाक ओगरबाह मेला देखय चलि गेल।
कल कलवार कल्लाग ओदार। कहल जाइत अछि जे कलवार (बनियाँ) सँ यदि किछु उधार लेब तँ किछुए दिनक बाद ओ तंग करय लागत, कल्लाा ओदारि देत।
कसाइक सरापसँ कतहु गाय मरलैक अछि? ककरो मनौलासँ ओकर विरोधी वा भोज्या केँ अहित नहि भय जाइत छैक।
कहलकै कतऽ जाइत छह तँ कूकुर बधिया करऽ। पुछलकै कटतह नहि कहलकै से तँ अबधरिये कऽ जा रहल छी ?
कहल कै ककरदनक परि। कहलकै कथीदनक परि। जखन कोनो प्रतिक्रियामे उपयुक्तध लोकोक्ति नहि पड़ैत छैक तँ एहि सहयोगी लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कहब तँ लागत छक दऽ। वा
कहब तँ लागत भक दऽ। ककरो कटु सत्यक कहबसँ पूर्व बहुधा लोक एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
कहाबऽ लय बड़का चोराबऽ लय लुच्छील। कोनो पैध व्यछक्तिक नीचकर्म पर एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कहिजा तँ बहिजा। बारम्बाँर समझा बुझा देलाक जखन ओ व्यमक्ति किछु नहि ध्या न दैत अछि तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा ओकरा डाँटल जाइत अछि।
कहलकै हरिण जे राम जीतथि कि रावण जीतय, हमरा तँ दूनू मारबे करताह। जखन दूनू प्रकारसँ घाटा लगबाक सम्भाूवना रहैत छैक तँ एहि उक्ति द्वारा अपन विवशता व्यवक्तै कयल जाइत अछि।
कहने सुनने यम पतिआय ? कड़गर हाकिम लाख बुझौलहुपर मानबाक लेल तैयार नहि होइत छथि-गलतीक सजाय दैयेकय छोड़ैत छथि।
कहय लगलौं औ कहागेल हौ लैलय तोँ मारबेँ रौ ? ककरो द्वारा व्यगवहार में क्रमिक हास भय गेलापर एहि उक्तिक प्रयोग कयलज जाइत अछि।
कहने राड़ दुन्नाक। दुष्टर व्य क्तिकेँ किछु निवेदन करब तँ ओ आर तंग करत।
कहाँ रसी कहाँ बसी कहाँ आबिकऽ किदस घसी। वा
कहाँ रसी कहाँ बसी कहाँ आबिकऽ डाँड़ घसी। आनठामक व्यहक्ति आबिकय जखन विशेष रूपसँ कार्यमे हस्त्क्षेप करय लगैत अछि वा स्थाानीय लोककेँ कोनहु प्रकारसँ तंग करैत अछि तँ ओकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग ग्रामीण महिलालोकनि करैत छथि।
कहाबऽ लय जमीन्दाहर जलपान किछु नहि। पैघ लोकक ओहिठाम जखन उचित मान सम्माोन प्राप्तत नहि होइत छैक तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा निन्दान कयल जाइत अछि।
कहाबऽ लय रानी चोराबऽ चमराख। देखबा सुनबामे पैध सन लोक, किन्तु कर्म करबामे माहिर जनीक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कहाबऽ लय शेख कटाबऽ लय छुछरी। कहाबऽ लय रानी चोराबऽ लय चमौटी। एहि तीनू लोकोक्तिक अर्थ एवं प्रयोग होइत अछि।
कहीं तीन-तीन कमौट कहीं खेत भासल जाय। असमान वितरण पर व्यं ग्य करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कृषक लोकनि करैत छथि।
कहियो गाड़ी पर नाव कहियो नाव पर गाड़ी। एक ने एक दिन पिरस्थिति बदलिते छैक आ तखन सब किछु उनटि जाइत छैक।
कहीं भूखल मरय कहीं लडडू सड़य। समाजमे व्यारप्तड भयंकर आर्थिक विषमता पर व्यंवग्या वा कोनो पैघ व्यकक्ति पर व्यं गय करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कहीं सँ ने थोड़ घरहिसँ थोड़। जे व्यँक्ति समाजमे प्रतिष्ठित एवं यशस्वीम रहैत छथि तनिको अपना घरमे अधिक मोजर नहि रहैत छनि।
काज ने धन्धात नौ रोटी बन्धार। कोनो आलसी पेटू व्याक्तिक लेल एहि प्रसिद्ध लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि, जे बैसलेठाम नीकनिकुत उपभोग करय चाहैत अछि।
कानऽ के मोन तँ आँखिमे गड़ल काठी। जाहि व्यमक्ति केँ अपन इच्छाए किछु रहैत छैक आ तदनुसार मनगढ़न्तक बहाना बनाया अनकर कार्य नहि करैत अछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा असन्तो ष व्यकक्तह कयल जाइत अछि।
कापर करू सिंगार पिया मोर आन्होर रे। नीक कार्य केनिहारकेँ जखन उचित प्रशंसा एवं सम्मा न नहि भेटैत छैक तँ निराश भय एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
कायथक गाममे धोबी पटबारी। योग्य व्यपक्तिकेँ छोडि़ जखन अयोग्यह व्य्क्ति द्वारा कोनो महत्त्वपूर्ण कार्य करयबाक चेष्टा् कयल जाइत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा उपहास कयल जाइत अछि।
कानल कनियाँ रहिये गेल,
कानी कटौल वर फिरिए गेल। केओ यात्राक सब तैयारी कय लेलाक बाद जखन नहि प्रस्थातन कय पबैत अछि।
काल बली तँ सब जग काँपय। कालचक्र प्रबल होइत अछि। ओहिसँ समस्त्र‍ संसार भयभीत रहैत अछि।
कानल कनियाँ रहिये गेल,
कानी कटौल वर फिरिए गेल। केओ यात्राक सब तैयारी कय लेलाक बाद जखन नहि प्रस्थातन कय पबैत अछि।
काल बली तँ सब जग काँपय। कालचक्र प्रबल अछि।
कारी अक्षर महीँस बारोबरी। मूर्ख एवं निरक्षर व्यबक्तिक लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
काँच घैल केँ मुंगराक आस ? माटिक काँच घैल अति दुर्ब्ब ल रहैत अछि।
काँइ करू कि कुँइ करू मेयाँ कहलक पकले। जाहिठाम कोनहु प्रकारक सुनवाइ नहि होइत छैक, कष्टन उठौनाइ अवश्यतम्भा्वी रहैत छैक, तेहने विवशताक क्षण में रहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
काजक माय घर करू आ पूतक माय बाहर करू। कर्मठ व्यघक्तिक सर्वत्र आदर होइत अछि, किन्तुव जे आलसी एवं अकर्मण्यह छथि, ओ कतबो पैघ रहथू, उपेक्षा सहन करय पड़ैत छनि।
काजर सिन्दूथर जरल तँ पेटो बज्जकर पड़ल ? न्यू नतम आवश्य कताक पूर्तिमे जखन बाधा अछि, जे आलसी एवं अकर्मण्ये छथि, ओ कतबो पैघ रहथु, उपेक्षा सहन करय पड़ैत छनि।
काजसँ काज कि कर्कट सँ काज? जे व्यकक्ति अनावश्यपक कोनो बातक विस्ताबर करय लगैत अछि, साधारणो कार्यक लेल विशेष भूमिका बान्हअय लगैत अछि, तकरा एहि लोकोक्ति द्वारा वर्जन कयल जाइत छैक।
काजी दुब्बदर कियैक तँ नगरक अन्दे सा सँ। वा
काकाजी दुब्ब र कियैक तँ गामक चिन्ता सँ। अनका लेल जे अनेरो बेहाल रहैत अछि, अनावश्यलक अनकर पाछाँ बौआइत रहैत अछि, तकरा पर व्यंँग्यअ करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
काटऽ लय अयलहुँ तँ फफकारो सँ गेलहुँ ? जे अधिक प्राप्ता करबाक आशासँ कतहु जाइत अछि, से किछुओ बिना प्राप्त कयने नहि लौटैत अछि।
कान कुइस कोते गरदनियाँ,
एहि तीनूसँ हारय दुनियाँ। कनाह, कुइर आँखिबला एवं घँचुल गरदनिबाला सँ संसार हारि मानैत अछि।
काल छल तँ सोन नहि आ सोन भेल तँ कान नहि। एक समयमे दूनू आवश्यभक वस्तु उपलब्धे नहि भय कोनो एकहिटा उपलब्धे भय सकय, जाहि कारण कार्य नहि चलि सकय तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा विवशताक व्यएथा कयल जाइत अछि।
कान देखी नहि कौआकेँ खेहाड़ने घुरी। ककरो कहला मात्र पर विश्वा़स कय जे आक्रोशमे आबि जाइत अछि, किन्तु यर्थाथक खोज नहि करैत अदि, तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कायथक गाममे चमार पटबारी । वा कायबक गाममे धोबी पटबारी। जाति सम्बमन्धीर अधिकांश लोकोक्ति बहुत पुरान अछि, जाहि समयमे सब अपन कौलिके उद्यम करैत छल।
कानय लागल कननी बजाबय लागल ढोल। ने जनी बात-बातमे कानय खीजय लगैत छथि घिनमा-घिनमी उठा देत छथि तनिका लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कायथ बाभन भेल मरचुनियां,
काज करयज सब जोलहा धुनियाँ। कोनहु गाममे निम्न कोटिक वा अपराधी मनोवृत्तिक लोक जखन बल प्रयोग द्वारा बढि़-चढि़ जाइत अछि, जहि कारण पैघ एवं सम्भ्रालन्तग लोककेँ दबि जाय पड़ैत छैक तँ एहि लोकोक्ति द्वारा विवशता व्यरक्त कयल जाइत अछि।
काल जाय मुदा कलंक नहि जाय। एक बेर जखन कोनहु बातक कलंक जाइत छैक तँ बहुत समय बीति गेलाक बादो उक्तत घटना बिसरैत नहि छैक।
काल्हु क बनियाँ आजुल सेठ। व्य्वसायमे लक्ष्मी बसैत छथि।
कानू कि खीजू सासुर तँ जाइये पड़त। जे कार्य अवश्याम्भायवी रहैत छैक से भैये कय रहैत छैक।
काल्हुतक नीपल गेल दहाय,
आजुक नीपल देखू हे दाइ। जे व्यीक्ति वा जनी नव कृया-कर्म कय पछिला त्रुटिक लेल क्षमा मांगि लैत छथि, तनिका लेल क्षमा करैत पंचलोकनि एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत छथि।
कारी बाभन गोर चमार,
डेरबुक छतरी महा हतियार। ब्राह्मण जँ कारी होथि, चमार जँ गोर होथि तथा राजपूत जँ डेरबुक होथि तँ कतहु खून कराइये कय रहताह।
कारी बाभन गोर चमार,
एक संग नहि उतरय पार। कारी रंगक ब्राह्मण आ गौर वर्णक चमार दूनू एक संग नहि चलि सकैत छथि-किछु ने किछु झंझट कैये लेताह।
कारी बाभन गोर शुद्र,
तनिका देखि काँपथि रूद्र। कारी ब्राह्मण एवं गोर दलित एहि दूनूकेँ पाँचियल मानल जाइत अछि।
कातिक कूकुर माघ बिलाडि़,
चैत चिड़ैया सब दिन नारि। कार्तिक मासमे कूकुर, माघ मासमे बिलाडि़, चैतमे पक्षी तथा नारी सब मासमे गर्भधारण कय सकैत अछि।
कातिक पिल्लीस माध सियारिन,
चैत चिड़ैया सदा कहारिन। एहि लोकोक्ति में कनेक्शन अन्तयर कयल गेल अछि।
काम पियारा कि चाम पियारा ? केवल मुँहकान पवित्र रहलासँ ककरो प्रतिष्ठाक नहि भेटि जाइत छैक।
काज करय मौसी भोज खाय मुँह झौंसी। जखन परिश्रम केओ सज्जभन करैत अछि, मुदा उपभोग कोनो उचक्काज कय लैत छैक, कयल ककरो उचंगि लैत छैक केओ, तँ एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कायथ के किछु लेने देने, बाभन के खुऔने, रजिपुत के खुसामद केने, रारि नारि लतियौने। कायस्थत (कर्मचारी) केँ घृस देलासँ, ब्राह्मणकेँ भोज खुऔलासँ, राजपुत केँ खुशामद (दरबार) कयलासँ तथा दृष्टु मदमाश एवं हड़ाशंखिनी नारी केँ पिटपलासँ कार्य होइत छैक।
कायथक बेटा पढ़नहि नीक कि मरानहि नीक। कायस्थान लोकनि अधिकांशत: नौकरी पर निर्भर रहैत अयलाह अछि, जाहिमे पढ़ाइ अनिवार्य छैक।
काठ गढ़लासँ चिक्क न बात गढ़लासँ रुक्खढ। जखन केओ कोनहु बातकेँ अधिक लगैत अदि तँ ओकरा एहि प्राज्ञोक्ति द्वारा उपदेश देल जाइत छैक।
कायथक छोट गुआरक मोट कतहु नहि। पढ़ल लिखल शिष्ट समाज वरीय आ कनीय पर अधिक ध्याोन रखैत अछि।
कातिक जाडा़ जनम लियो हय,
अगहनमे लडि़काई;
पूसे जाड़ा धूम मचाबे, माघे सिरक भराई। कार्तिक सँ माध धरि मास जाड़ होइत अछि।
काका चोर भतीजा पाजी,
काकीक माथ पर जूताबाजी। घरक पुरुष जखन अपराध कार्यमे लिप्तअ भय जाइत अछि तँ ओहि घरक स्त्री गण केँ सेहो ओकर कुपरिणाम भोग्यस पड़ैत छैक।
काथक कागज दौड़य दूर। कायस्था लोकनि सदासँ पढ़ाई लिखाइक कार्यमे लागल रहलाह अछि।
कालक मारल के जन बाँचय ? काल जकरा डँसि लैत छैक तकरा केओ नहि बचा सकत अछि।
कास पितर किछु गहना छी, देह तोड़ना छी।
गंजी फंजी किछु नूआ छी, देह झपना छी। छोट सैयाँ किछु सैयाँ छीं, गोड़ जतना छी। काँसा एवं पित्तरिक गहनाकेँ गहना नहि देहतोड़ना कही, गंजी जंघिया कोनो वस्त्रज नहि देहझपना भेल।
किरपिन्नीन के दुन्ना खर्च। कंजूस व्यनक्तिकेँ मूर्खताक कारण आर अधिके खर्च पडि़ छैक।
किछु कयलनि कविता आर कयलनि भनिता। पूर्वमे कविलोकनि रचनाक अन्तनमे अपन भनिता जोड़ैत छलाह।
किछु खन्ह़न किछु मोटरी बन्हकन। जाहिठाम भोजनक संग किछु मोटरी पाथेय रूपमे प्राप्त होइत छैक, ताहिठाम एहि लोकोक्ति द्वारा आमोद-प्रमोद कयल जाइत अछि।
कि जानय बाभन कि जानय बाभनक बहिया, कोइर गुआर जानय गेल कहिया ? मिथिलाक कर्मकाण्डोक मर्म एवं विधि व्यिवहारक ज्ञान अधिकांशत: मैथिल ब्राह्मण अथवा हुनक निकट सर्म्पञक मे रहनिहार क्यौ अ, धानुक,अमात, हजाम, सोनार, लोहार, चमार, कुम्हाहर आदिकेँ रहैत छैक।
की दुख जानय दुखिया, की दुखिया के माय;
की दुख जानय सीधरी, थोड़हि जल उबिआय। दुखी व्याक्ति दु:ख बुझैत अछि अथवा ओकर माय बुझैत छैक।
किछु लोहोक दोष किछु लोहारोक दोष। उभय पक्ष द्वारा जखन किछु-किछु अपराध रहैत अछि तँ पंचलोकनि एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा फडि़छयबाक प्रयत्नत करैत छथि।
किछु हाथक सफाइ किछु डण्डी् के फेर, दोसराके तीन पाव बनियाँ के सेर। कम ओजन देबाक लेल आ अधिक ओजन लेबाक लेल बनियाँ वर्ग बदनाम रहैत अछि।
की पर गेने की पर भेने,
नाचह गाबह अपना भेने। आनक प्रसन्नपता पर कोना प्रसन्ने भेल जा सकैत अछि ? अपन जखन आनन्द्क दिन आबय तँ जतेक नाचब गायब ततेक से छजत।
की परसैछी फूसि तँ किछु लगौने जाउ। झूठ बजनिहार पर व्यंलग्यन।
की बगुला तोँ लगबह दीठि,
कतेक जालसँ रगड़ल पीठ। मलाहक जालसँ कतेको बेर बझैत-बझैत बाँचल एकटा माछ बगुलाकेँ ध्या,नमग्नँ देखि कहैत अछि जे ओ व्यँर्थ दृष्टि गड़ौने अछि।
कीकर पौरुष जल बिन मीन। जलसँ निकालल माछ कोनो पुरुषार्थ नहि देखा सकैत अछि।
कुंजा चोर कभाल करय। झीझा (नेपाल) में एक समय कुंजा नामक कुख्याचत चोर छल, जकर आतंक दूर-दूर तक छलैक।
कुकुरक पेट में कतहु घी पचय ? कोनो गुप्त बात जकरासँ गुप्त नहि राखल पार लगैत छैक, भेद खुजिए जाइत छैक, तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कुकुरक भागेँ टूटल सीक। ककरो अनिष्टँ भेला पर जँ ककरो खुजि जाय वा ककरो घाटासँ जँ ककरो अत्यँधिक लाभ भ’ जाय तँ एहि लोकोक्ति द्वारा भाग्याक सराहना कयल जाइत अछि।
कुक्रिये नाम कि सुक्रिये नाम। नीक कार्य कयला पर नाम होइत छैक, किन्तुर कुकर्मीक सेहो कम नाम नहि होइत छैक।
कुम्हैरनिक बेटीके ने नैहरे बास ने सासुरे, बास। वा’ ने नौहरे सुख ने सासुरे सुख। कुम्हा रक बेटी जँ रहैत अछि तँ माटिक बर्तन बनयबामे सहयोग करय पड़ैत छैक।
कुटनी पिसनी के एक बखरा,
बैसल बिलाडि़ के तीन बखरा। जे जनी धान छथि, गहूम पीसैत छथि तँ कनेक भेटैत छनि, किन्तुी जे कोनो कार्य नहि करैत छथि तनिका अधिक प्राप्त् होइत छनि।
कुमारि छलहुँ तँ ठोपो छल,
विवाह भेल तँ सेहो गेल। पूर्वक स्थितिसँ पश्चा।तक स्थिति जँ अधिक खराप भय जाइत छैक, तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा असन्तो,ष व्यलक्तन कयल जाइत अछि।
कुकुरक पयरे जाइ, बिलाडि़क पयरे आबी। कोनहु नीक काय्र करबाक हेतु कुकुर जकाँ तेजी मे, किन्तु अबैत काल बिलाडि़ जकाँ कनेक्शन सुस्तारइत आबी।
कुबन्सन सँ निर्बन्सआ भला। यदि घरमें कुपूत जन्य् लय लिअय तँ ओहिसँ नीक जे निपुत्रीए रही, कारण कुपूत तँ सम्पूकर्ण वंशकेँ बदनाम कय देत।
कुकुरक नांगडि़ कतहु सोझ भेलैक अछि ? कोनो दुर्जन व्यकक्ति, जे कोनहु स्थितिमे सुधारबाक नाम नहि लैत अछि, तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कुपूत सँ निपूत भला। एहू लोकोक्तिक प्रयोग ओहिना होइत अछि जेना कुबन्सि सँ’ निर्बन्स भला’ क होइत अछि।
कुम्हाुरक कूकुर जकरे ढेकामे माटि लागल देखैत छैक तकरे पाछाँ छैक। सतत् माटिक कार्य करैत रहलाक कारण कुम्हाारकेँ ढेकामे माटि लागल रहैत छैक।
कुदिते कुदिते नाचऽ आबि जाइत छैक। जे कार्य सीखल नहि रहैत छैक तकर निरन्त्र अभ्याैस केलापर आबि जाइत छैक।
कुकुरो ने पूछय खेसारीक दालि। खेसारी उपलयबामे अधिक श्रम नहि करय पड़ैत छैक।
कुटितो फँक्काम पिसितो फँक्का ,
नेनाकेँ खुअबितो फँक्का । जीहक पातरि कोनो नारी पर व्यंकग्यि करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कूकुर मरथि खाय बिना,
डंडा दियनि लोहक। निर्बल व्य क्ति पर जखन केओ बल प्रयोग करैत अछि, तँ एहि लोकोक्ति द्वारा ओकर भत्र र्ना कयल जाइत अछि।
की खाउ की पीबू की लऽ परदेस जाउ। अतिशय निर्धनताक परिस्थिति में कोनेा व्यशक्ति अपन विवशता व्यनकत करैत अछि।
कूदय, फानय तोड़य तान,
दुनियाँ राखय तकरे मान। आजुक युगमे जे जतेक फसादी रहैत अछि, ततेक चलती रहैत छैक।
कूटय पीसय पनि भरय,
तीन काज नौडि़न करय। पुरान लोकोक्ति।
कूटथि पीसथि से खथि अखरा,
बैसल बिलाडि़ के तीन बखरा। कोनो आलसी-अकर्मण्य। व्य क्ति लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि, जे कार्य किछु नहि, किन्तुी नीके निकुत भोजन चाहैत अछि।
कूटि पीसि अइली हीरा,
माँड पसौलनि जीरा। एहि लोकोक्तिक प्रयोग सेहो ओहिना अछि जेनाप ‘ कऽ धऽ अइली हीरा, माँड पसौलनि जीरा’।
कुकुरकेँ दुलार करब तँ मुँह चटबे करत। दुर्जन व्युक्तिसँ अधिक मेल नहि बढ़य बाक चाही, अन्यिथा ओ हानि पहुँचा सकैत अछि।
कूकुर केँ नांगडि़ काटि देबैक तैयो कुकुरे। दुर्जन व्यनक्तिक कोनो पुण्य कैयो लैत अछि तथापि ओकर दुर्जनताक ख्याोति बनले रहैत छेक।
कूकुर कतहु आगि पाकय ? चतुर व्यहक्ति स्व यं नहि फँसैत अछि, अपितु कोनहु फसादमे दोसरकेँ फँसा दैत अछि।
केश उपाड़ने मुर्दा हल्‍लुक ? जाहिठाम अधिक श्रमक प्रयोजन छैक, ताहिठाम जँ कनेक्शन मनेक धक्काक मारि निकलि जयबाक प्रयत्नम होइत अछि, जाहिसँ किंचितो लाभक सम्भाकवना नहि तँ एहि लोकोक्ति प्रयोग कयल जाइत अछि।
कहेन-कहेन गेलाह तँ मोछवला अयलाह। पैध एवं श्रेष्टन लोकक थाकि हारि गेलाक बाद कोनो साधारण व्य क्ति धक्काल लगबय जाइत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा ओकरा पर व्यंिग्यो कयल जाइत छैक।
केओ खाइत-खाइत मरय, केओ खाय बिनु मरय। असमान वितरण एवं समाजमे व्यायप्त आर्थिक विषमता पर प्रतिक्रिया व्ययक्त करबाक लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
केओ नाक लय कनैत अछि केओ नकमुन्नी लय। गरीब-धनीक सबकेँ मनोरथ होइत छैक, किन्तुन जकरा जैह जूड़ैत छैक ताहीमे अपन मनोरथकेँ पूर्ण करबाक चेष्टा़ करैत रहैत छथि।
केओकाहूमे मगन केओ काहूमे मगन। अपन-अपन कार्यमे सब तल्ली न रहैत अछि।
कैंचा दऽ कऽ कीनल करैली मीठे लगैत छैक। करैल यद्यपि तीत होइत छैक, तथापि ओकर तरकारी लोक खाइत अछि।
कोइरिक बड़द गुआरक गाय,
कोन कारणसँ बेचल जाय। कोइर लोकनि तरकारी उपजबैत छथि, तेँ जमीनमे अधिक जोत-कोड़ लेल बड़द पोसैत छथि।
कोइर कुम्हा र के बासे ने
बाभन ताभन के के पूछैअय ? जाहि गाममे ब्राह्मणक संख्या गनण्य रहैत अछि, ताहि गामक बहुसंख्यडक समुदायक लोक एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा ब्राह्मण-विरोधी भावना व्य्क्त करैत अछि।
कोइरिन के घेघ, गहिँकी उदबेग। अनकर समस्याेसँ जे अधिक चिंतित एवं बेहाल रहैत अछि तथा अनेरे हल्लाि करैत रहैत अछि, तकरा लेला एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कोढि़या चाहय हऽ। चलैत बड़दकेँ ठाढ़ करबाक लेल हऽ कहल जाइत अछि ।
कोढि़ कमयनिहारकेँ मूंगर सनक आँटी। कोनो आलसी व्यरक्ति, जे कम परिश्रमे अधिक आय चाहैत अछि, तकरा पर व्यं ग्यामर्थ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
कोन पुरुषकेर भेलहुँ गाय,
चलिन लऽ दहाबऽ जाय। जाहि स्त्रीबक दुर्जन रहैत छैक, से ओकरा अधिक सतबैत छैक।
कोन गोत कोन मांग। जखन समय एवं परिस्थितिक प्रतिकूल कोनो कार्य करबाक लेल केओ उद्यत भय जाइत अछि तँ ओकरा एहि लोकोक्ति द्वारा मना कयल जाइत छैक।
कोरामे नेना नगरमे ढिंढोरा। कोनहु वस्तु क लगमे रहितहुँ जखन ओकर खोजमे केओ बेहाल भय जाइत अछि, तँ एहि लोकोक्ति द्वारा उपहास वा हास-परिहास कयल जाइत छैक।
कोन पूजा पर शंख बाजत ? घरमे कोनो ओरियान अछि नहि, मुदां पाहुन लोकनि केँ नीति आयल छी।
कोकटिक कुता्र पटुआक साग,
तिरहुति गीत बड़य अनुराग। मिथिलाक प्रसिद्ध वस्तुगकेँ गनबैत कहल गेल अछि जे कोकटी रंगक कुर्ता, पटुआक साग, तिरहुति गीत, अमौट, फोका मखान, छेनाक मिठाइ (रसगुल्लात), तरुणी स्त्री , रोहु माद आदि आहलादक होइत अछि।
केओ ईर घाट केओ वीर घाट। आवयश्य क कार्यार्थ लग-लग बैसबाक बदलामे दूर दूर बैसल रहैत अछि तकरा लोकनि पर व्यंकग्यै।
कोइरीक गाममे धोबी पटबारी। मिथिलामे ई मान्यीता रहल अछि ले कोइर लोकनि धनवान तथा धोबी लोकनि निर्धन एवं अपढ़ हेताह। धनवान व्यिक्तिक ओहिठाम हिसाब किताब लिखबाक लेल सुयोग्यह व्येक्ति नियुक्ता रहतैक, मूर्ख कोना ? जाहिठाम उच्चव कोटिक लोकक ओहिठाम निम्न् कोटिक लोक सम्मा नित होमय लगैत अछि, ताहिठाम एहि लोकोक्ति प्रयोग द्वारा व्यंिग्या कयल जाइत अछि।
कोइर सिपाही बकरी मरखाही। ई मान्यपता रहलैक अछि जे जहिना बकरी मरखाहि नहि भय सकैत अछि, तहिना कोइर जातिक लोक शौर्य-प्रदर्शन नहि कय सकैत छथि; ओलोकनि सज्जनन सुशील होइत छथि-मोचण्डल नहि।
कोउ घर कानन कोउ घर गीत। विधाताक सृष्टिक विशेषताक वर्णन1
कोढि़ हेबाक ढेरि उपाय। जे आलसी व्य क्ति परिश्रम नहि कय कोनो बहाना बना लैत अछि
तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कोदो-मड़ुआ अन्न नहि,
जोलहा-धुनियाँ जोन नहिं। पूर्व में जखन पटौनीक कोनो साधन नहि छलैक, धन बड़थोड़ उपजैत छलैक, ताहि समयमे लोक अलहुआ, कुरथी, राहडि़ साम काउन, कोदो, मड़ुआ आदि खेती अधिक करैत छल, जे रौदीमे सेहो उपजि जाइत छैक।
कोहबरक टेढ़ टेढ़। जे कनियाँ कोहबरे घरसँ देखबय लगैत छथि तथा ओकरा अनुशासन में रखबाक चेष्टा नहि कयल जाइत छैक, से आगाँ चलिकय सुधरि नहि पबैत अछि, अपितु आर उच्छृंरखलता देखबय लगैत अछि।
कोरामे नेना नगर मे सोर। कोनहु वस्तु क खोजमे सगरो बौअयलाक बाद जखन ओ घरहिमे भेटि जाइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कोर मे चिल्हककोर नगरमे सोर। अथवा कोररामे नेना भुतलायल कोना ? अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते अछि।
कोररामे कुम्मोर भूमिमे सुग्ग र। साफ-सुथरा धीया-पुता राजकुमार सदृश लगैत अछि, किंतु माटिमे लेड़हा गेलाक बद ओ सुग्गिर जकाँ अपवित्र भय जाइत अछि।
कौआक ठाँठमे नेनु लसकय। कौआतँ अखाद्यो वस्तुज लैत अछि, तखन नीक खयबामे असुविधा कियैक हेतैक ? पेटू व्य क्ति पर व्यंहग्य ।
कोनो वस्तु बढ़ैत अछि तार प्रमाण आ घटैत तिल प्रमाण। महगी, नदीक बाढि़ , झगड़ा-झंझट एकाएक बढि़ जाइत अछि, किंतु जखन घटय लगैत अछि तँ ओकर गति मंथर रहैत छैक-बहुत लगि जाइत छैक।
कोइरिक लडि़का जन्मरक हीन,
हाथमे खुरपी मोथा बीन। कोइर जातिक लोक अधिकांशत: तरकारी उपजबैत छथि, जनिका फसिलमे जनमल खढ़-पात निरंतर खुरपी लय कय बीछय पड़ैत छनि।
कौआ भेल भड़ारी गूँहे गूँह टार। कोनो अयोग्या व्य क्ति जखन कोनो महत्त्वपूर्ण कार्य नहि सम्हाकरि पबैत अछि, जाहि कारण अव्यावस्थाि भय जाइत छैक तँ उक्त व्यँवस्था् पर व्यं गय करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कौआ रे कक्कार आम दे पक्का , मारबौ चभक्का । जखन कोनहु मित्रक खुशामद कय किछु प्राप्तह करबाक प्रयत्न कयल जाइत अछि तँ एहि उक्तिक प्रयोग होइछ।
कौआ चलल बास करय,
बुडि़बक चलला घास करय। समय बीति गेलाक बाद कोनहु कार्यक हेतु उद्यत भे नाइ मूर्खता मानल जाइत अछि।
कौआसँ कौआक गेल्ह् बुधियार। कोनो नेना जखन अधिक देखबैत अदि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंतग्यउ कयल जाइत छैक।
कौरे-कौरे पेट आ छौबे छौबे खेत। एक-एक कौर यदि प्रदि दिन भोजन बढ़बैत वा घटबैत जायब तँ भोजन बहुत बढि़ वा घटि जायत।
किदन ने चलय तँ केराक भार। कराक भार अधिक भारी होइत छैक।
किदन ने धोय से भगते होय। जे कोनो जोगराक नहि रहैत अछि से जखन पैघ कार्य करबाक डींग हँकैत अछि तँ ओकरा पर व्यंरग्यह करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग जाइत अछि।
किदन फाटय तँ मलार गाबी। अत्य धिक हरानी-फिरीशानीमे, अत्यौधिक व्ययस्त तामे जखन केओ मनोरंजनक चेष्टात करैतअछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा व्यंअग्यक कयल जाइत अछि।
किदनमे लत्ता नहि चल कलकत्ता। ओकादसँ अधिक जे प्रयत्नक करैत अछि तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
किदनमे दम नहि बजारमे धक्काल। उपर्युक्तेन लोकोक्ति जकाँ एकरो अर्थ एवं प्रयोग होइत अछि।
करऽ गेलहुँ कुगति भऽ गेल बिघति। प्रयत्नह केलहु पर जखन उनटा-पुनटा भय जाइत छैक तँ निराशामे लोक एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
कंगालकेँ मोहु मीठ। मोहुक फुल अत्यमधिक मिट्ठ एवं कुस्वाथदु रहलाक कारण खयबाक योग्यि नहि रहैत छैक, किन्तुि निर्धन लोक ओकर पर्याप्तह उपभोग करैत अछि।
कृपणक लग्घीअक काज भेल तँ छो मास तक लग्घी् नहि भेलैक। कंजूस व्यघक्ति ककरो अपन देहक मैलो छोड़ाकय नहि देबय चाहैत अछि।
खड़े पचीसे दंग। ककरो विलक्षण उपलब्धि पर बधाइ देबाक हेतु वा आत्म प्रशंसामे सेहो एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खन कांग्रेसी खनमे संघी। अवसरवादी व्य क्ति पर व्यंहग्य्।
खनहिमे खन रंग खनहिमे तीन रंग। एकहि क्षणमे जे अनेक रूपमे प्रस्तुहत भ’ जाइत छथि अर्थात् लगले क्रोध लगले हँसी तथा लगले रूदन एहि प्रकारक नाटकीय आचरण रखनिहार वा रखनिहारि पर व्यं ग्य् करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खयबालय किछु नहि नहयबालय अहलभोरे। निर्धन व्युक्ति जखन अधिक टीमटाम (पूजापाठ) करय लगैत अछि तँ समाजमे किछु लोक उक्तह लोकोक्ति द्वारा उपहास करैत अछि।
खयबालय माँड़ नहि छाँचइ लय घोर। जे ओकादसँ बहुत अधिक खर्च करय लगैत अछि, अभाव रहितहु कर्जोलय अत्याकधुनिक सामग्रीक उपभोग करय लगैत अछि तकरा पर व्यंकग्यय करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत छैक।
खलिया बन्दू क धड़ाधड़ी। जे केवल गप्पेै छोड़ैत रहैत अछि, डपोड़शंख जकाँ कार्य किछु नहि करैत अछि तकरालेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खयबाक खर्च नहि ड्यौढ़ी पर नाच। ओकादसँ बहुत अधिक खर्च कयनिहार पर व्यंसग्यख।
खयनाइ नानाके नाम दादाके। खच्र ककरो किंतु जखन ककरो आनहिकेँ देल जाइत छैक तँ एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइछ।
खरि नहि लजाइ हँसने लजाइ। पिछडि़कय खसि पड़जा पर जँ केओ नहि देखलक तखन ओतेक कचोट नहि होइत छैक जतेक ककरो द्वारा देखि लेला वा हँसि देला पर संकोच भय जाइत छैक।
खस्सीप पीटी तकरालय जे स्वादद बूझय। स्वसयं घाटा सहियोकय ककरो मद्ति तखन कयल जाइत छैक जखन ओ व्यहक्ति कृतज्ञ रहैत अछि।
खलके औषध पीठक पूजा। दुर्जन व्यीक्तिकेँ बिना दण्डक देने कार्य नहि चलैत छैक-ताहूमे शारीरिक दण्डृ सर्वोत्तम।
खसलासँ हँसलाक लाज। एकरहु अर्थ एवं प्रयोग ओहिना होइत छैक जेना ‘ खसने नहि लजाइ हँसने लजाइ’ केर होइत छैक।
खस्सीो के जान जाय खेनिहार के स्वा दे ने। अत्यीधिक खर्च केलाक बादो जँ खेनिहार (अतिथि) सन्तुाष्टिक आभास नहि दय अयश दैत छथि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग अछि।
खस्सीै भारि घरबैया खाय, हत्याद लेने जाय। कोनो झगड़ामे वा घपलामे जखन केओ निर्दोष बाहरी फँसा देल जाइत अछि तँ प्रभावित व्यीक्ति वा हुनक सहानुभूतिमे एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
खसली पहाड़सँ रूसली भतारसँ। क्रोध प्रदर्शन जखन दोषीक बदला निर्दीषपर कयल जाइत अर्थ तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा व्यं ग्यर कयल जाइत अछि।
खाइ नानाक रोटी कहाबी दादाक पोती। उपकार भेल ककरहुसँ आ यश देलहुँ ककरो, तेहन स्थिति में प्रयुक्त,।
खाइलय किछु नहि दरी बिछौना। ओकादसँ अधिक जे आर्थिक प्रदर्शन करैत अछि तकरा पर व्यंरग्यन।
खाइ साग-पात सूती नवाबक साथ। वा बैसी नवाबक साथ। सादा जीवन एवं उच्च। विचार रखबाक चाही।
खाथि भीम हगथि सकुनी। ककरहु द्वारा क्रियाक कुपरिणाम दोसरकेँ भोगय पड़ैत छैक तँ हास्यप विनोदमे एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइछ।
खाइलय आली-बाली तेल लगाबय लय तीन-तीन माली। भोजन किछु (आइली = बाइली, कदन्नज) खाकय निर्वाह कय लेब, किन्तुइ बाहरी आडम्बनर अधिक देखायब-तेहने व्य क्ति वा जनी लेल एकर प्रयोग होइछ।
खाली हाथ मुँह नहि लगबैलय जाफर। ओकादसँ अधिक आडम्ब र कयनिहार पर व्यंसग्य ।
खाइत मड़आ सकर समान,
नदी फिरतमे लेलक पसन। मड़आक रोटी गरिष्टस रहलाक कारण सबकेँ नहि पचैत छैक।
खाइत छी घरहिसँ कनैत छी अगहनहिसँ। कृपण व्य।क्ति जे सतत् अभावक अभिनय करैत रहैत अछि, तकरा पर व्यंअग्यु करबाक हेतु प्रयुक्तत।
खाकऽ परि जाइ मारिकऽ अरि जाइ। वा खाकऽ पसरी मारिकऽ ससरी। भोजनोपरान्तर कनेक विश्राम करी, मुद्रा कतहु झगड़ा = झंझठ भय गेला पर निकसि जेबाक चाही।
खाकऽ मूती सूती वाम,
कथीलय वैद बसता गाम। भोजनोपरान्तस दिनमे लघुशंका कय वाम करौअ दयपडि़ रहलासूं अस्वनस्थक नहि भय सकैत छी।
खाटम उड़ीस आ बीहडि़क मूस। जे व्यडक्ति भूमिगत भय जाइत अछि तकर पता लगायब कठिन भय जाइत छैक।
खा मोटाकय भऽ गेल गदहा,
आगाँ नाथ ने पाछाँ पगहा। जकर शरीर एवं बुद्धि दूनू मोट रहैत छैक, केवल पेटे पर भर देने रहैत अछि, ने परिवार बसबैत अछि आने बाल बच्चेहदार बनैत अछि, तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत छैक।
खाय भली कि माय भली ? जे धीया-पुता खेनाइ भेटि गेलाक बाद अपन माइयो केँ बिसरि जाइत अछि तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत आछि।
खाली बैसल अट-पट सूझय। जकरा कोनो कार्य नहि रहैत छैक वा करय नहि चाहैत अछि से समाजमे खुराफात अधिक करैत अछि।
खाली मन सयतानक डेरा। अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते अछि।
खिच्चएरि के चारि यार,
चटनी दही घी अँचार। वा पापड़ दही...। प्रसिद्ध प्राजोक्ति तिलासंक्रान्तिक अवसर पर खिच्चदडि़ बनैत अछि जाहिमे उक्त चारू पदार्थक संग लोक भोजन करैत अछि।
खिनहरि जूड़य नहि दरी बिछौना। धानक झट्टासँ बचल चटाइ केँ खिनहरि कहल जाइत छैक।
खिसिआयल बिलाडि़ धुरखुर नोचय। क्रोध में उटपटांग काय्र कयनिहार पर व्यंधग्यु।
खाय पीबैलय सुकराती डेंगबैलय सूप। निर्दोष व्यसक्ति वा जीव केँ दंडित केनिहार पर व्यं ग्यी।
खिस्सांहिमे साग जरि गेल। गप्पस हँकनिहार असावधान वा आकान व्यपक्तिक लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खीर ख्यिलनि गप्पि दऽ,
नोर खसलनि टप्प दऽ। जे जनी अधिक भगल करैत छथि, अलाप-विलापक अभिनय करैत छथि, तनिका लेल एकहर प्रयोग होइत अछि।
खीर देखि आगू खोरनाठ देखि पाछू। दूध-दही एवं माछ माँस पर कूकुर बिलाडि़ अधिक चोट करैत अछि।
खुट्टाक बलेँ चुकरय। कोनो दुर्बलो व्यरक्तिक पाछाँ जखन पैध लोकक शक्ति रहैत छैक तँ ओ वेश कूदैत फनैत रहैत अछि पड़रू= महिँसिक बच्चाल।
खुरपी छूलहुँ बोनि पौलहुँ। जे महदूर कम्मोो कार्य कयलापर पूरापूरी मजदूरी चाहैत अछि, तकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
खेत खाय गदहा मारि खाय जोलहा। ककरो अपराधक बदला कोनो निर्दोष व्योक्तिकेँ जखन दण्डक भेटबाक सम्भा्वना रहैत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खेत भासय आरि कोड़ी। उपयुक्तय कार्यक बदला जखन केओ अनुपयुक्तआ कार्य करय लगैत अछि, जकर परिणाम भयावह भय सकॅत छैक तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा विरोध कयल जाइत छैक।
खेत खाय मर्हीस मूँह जाय पड़रूक। सबल व्यपक्ति द्वारा कयल अपराधक बदला जखन कोनो निबैल व्य्क्तिकेँ दण्डित कय देल जाइत छैक तँ आक्रोश में लोक एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
खेती ने पथारी सातटा बखारी। जे केवल फफरदललीक धन्धा करैत अछि बिना परिश्रम कयनहि बैमानीक बलपर अपन घर भरैत रहैत अछि तकरा लेल ई लोकोक्ति कहल जाइत अछि।
खेबो दी भसिअयलो जाइ। उपकारक बदला जखन अपकारे हाथ छैक वा खर्च केलाक बादो जखन किछु हाथ नहि अबैत छैक तँ एहि लोकोति द्वारा असंतोष व्यतक्तल कयल जाइत अछि।
खेत ने जोती राड़ी महींस ने पोसी पाड़ी। राड़ी खढ़ जाहि खेतमे रहैत अछि ताहिमे नीक उपज होयब कठिन रहैत छैक।
खेतिहर गेल घर दहिने बामे हर। हरबाह पर विश्वाहस कय जे कृषक निश्चिन्ती रहैत छथि तिनकर खेत नीकजकाँ तैयार नहि होइत छनि।
खेतीकय परदेस जाय, तकर जनम अकारथ जाय। जे व्यजक्ति प्रतिदिन अपन नहि देखैत तनिक खेती चौपट्टा भय जाइत छनि।
खेती घने तऽ मने। सघन तथा आधुनिक खेती केलास नीक उपज होइत छैकआ मोन प्रसन्न रहैत छैक।
खेती जोरू जोरके, जोर घटय तँ आनके। खेती एवं घरगृहस्थीप चलयबाक हेतु शक्तिक प्रयोजन होइत छैक।
खेती ने करिहऽ व्यापपार ने जैहऽ
विद्याके धन बैसल खैह’। विद्यावान ओ गुणवान व्यनक्तिके खेती वा व्यायपार नहि करय पड़त छैक।
खेती ने पथारी पहाड़ पर घराड़ी वा
खेती ने पथारी बीचठाम घराड़ी। वा खेती ने पथरी बीचठाम बखारी। जे व्येक्ति नहि करैत छथि, किन्तुर नीक आयक बलपर नीक घर-घराड़ी छनि तनिका लेल प्रयुक्तन।
खेती ने पथारी हाकिम पोत मगैअय। बिना आयक आयकर वा आनो कर वा मालगु-जारीक ओसूलीपर आक्रोश व्य क्तत करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खेती बेटी नित्तहिँ गाय,
जे नहि देखथि तिनकर जाय। खेत-पथार, धीया-पुता एवं माल-जालकेँ प्रतिदिन ध्याथन दैबय पड़ैत छैक, अन्य-था हाथ सँ निकलि जेबाक संभावना।
खेतीमे जोते कि चोते। खेतक जोत कोड़ कयलासँ एवं ओहिम गोबर-छाउर छिटलासँ नीक उपज होअत छैक।
खेती राज दिआबय, खेती भीख मंगाबय। नीक उपज भेलासँ राजा जकाँ सुख भेटैत छैक, किन्तुा नहि उपजलासँ ततेक घाटा लगैत छैक जे किसान कंगाल भय जाइत अछि।
खेतेँ चास घरेँ उपास। खेतमे नीक फसिल अछैत जँ उपास पड़य तँ मूर्खता कहल जायत।
खेल खेलयलनि बंगामे,
किरिया खयलनि गंगामे। कोनो जनी गलती कैयोकय जखन अस्वीजकार करैत किरिया खा लैत छथि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंिग्यछ कयल जाइत छनि।
खेल गे खेलनी सँय आगाँ बेलनी। जे जनी अपन पतिक समक्ष हुनका रिझयबाक हेतु अभिनय करैत रहैत छथि तनिका पर व्यंअग्यह करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
खेल खतम पैसा हजम। कोनो कार्यक्रम-भोजन, जलपान वा अन्य कोनो खाद्य सामग्री समाप्तक भय गेलापर एहि वाक्योक प्रयोग होइत अछि।
खेलरी के खेल किछु कहलो ने जाय, अदहन चढ़ा खेलरी पानि लाबय जाय। वा चाउर लाबय जाय। जे जनी अधिक चतुरा रहैत छथि, तनिकापर दोसर जनी एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंाग्यए करैत छथिन।
खेहडि़कय मारय से कि पाँका लाागत छोड़य। जे प्रहार करैत अछि से नीकेजकाँ करैत अछि, साधारण चोटकय छोडि़ नहि दैत अछि।
खोप सहितकबूतराय नम:। सब किछु जखन मूर्खताक कारण सत्याछनाश भय जाइत छैक तँ एहि लोकोक्ति द्वारा उपहास कयल जाइत छैक।
खोरनाठे पोखरि अमहारथि। असंगत एवं असंभव कार्य करबाक दुस्साएहस कयनिहार पर व्यंसग्य ।
खोलू धरिया उतरू पार,
एहि नदिया के यैह व्य वहार। जखन कोनो नदी-नाला टपबाक रहैत छैक वा कोनो लज्जायजनक कार्य करबाक विवशता रहैत छैक तँ एहि उक्तिक प्रयोग करैत काय्र प्रारंभ कयल जाइत अछि।
खं‍जनि चलली‍ह बगड़ाक चालि,
अपनोचालि बिसरलनि। नकल करबामे जखन स्वलभिमान एवं अस्मिताक हानि होइत छैक तँ एहि लोकोकित द्वारा व्यंीग्यत कयल जाइत अछि।
खग जानय खगहीके भाषा। जे जाहि समूहक व्यषक्ति रहैत्‍ अछि तकरा ताही समूहक जानकारी रहैत छैक; अपराधी जखन पुलिस बनि जाइत अछि तँ कोनो अपराधीकेँ आसनीसँ पकडि़ लैत अछि।
‘ग’ कहैत गरहत्याअ। मुँहसँ किछु निकालैत देरी जे व्याक्ति उनटे फँसि जाइत अछि, तकराप्रति सहनुभूतिा प्रदर्शित करबाक हेतु एहि लोकोकित्कस प्रयोग होइत अछि।
गठरिया फुजबो ने करय,
बहुरिया दुबरयबो ने करथि। जे व्याक्ति फोकटमे सब कार्य चाहैत रहैत छथि, ताहूमे नीक कार्य चाहेत छथि, तनिका पर व्यंकग्यक करबाक हेतु एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गट्टासँ आंगुरे मोट। मूल वस्तुंक आनुषंगिक जखन तेज निकलि जाइत अछि
,प्रधानक अपेक्षा सहायक जखन अधिक महत्त्वक भव जाइत अछि तँ एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गदहा गाबय ऊँट सराहय। दूटा न्यू न व्यअक्ति जखन एक दोसराक समर्थन करैत अछि तँ विशिष्टत व्य कित एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा उपहासकरेत छथिन।
गदहाके ने आन किसान,
धोबियाकेने आन बहान। जखन ढू व्य क्तिकेँ एक दोसराक बिना नहि बनयबला रहैत छैक, एक दोसरसँ फुटकि गेलाक बादो पुन: अछतापदता कय एक दोसराक सहयोगमे आबय पडि़ जाइत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गदहा खसलाह स्विर्गसँ रूसलाह गामक लोकसँ। ककरो द्वारा कयल अपराधक बदला जखन कोनो आन व्य क्तिसँ केओ मुँह फला लैत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यं गय कयल जाइत छैक वा पीडि़त व्यवक्ति आक्रोश व्यतक्त़ करैत अछि।
गइयो हूँ बड़दबो हूँ। जे व्यूक्ति अपन कोनो अस्मिता नहि रखैत छथि, दूनू पक्षकेँ समर्थन कय दैत छथि, ताहि व्य,क्तित्वषहीन लोक पर व्यं‍ग्या एहि उक्तिसँ कयल जाइत अछि।
गदहा गेलाह स्वइर्ग छान लगले गेलनि। निम्नग व्यअक्तिकेँ पैघो पद दय देबैक तथापि ओकर छोटपन (ओछाह आचार-विचार) नहि जाइत छैक।
गदहाके जेहने छौमन तेहने नौ मन। कोनहु व्यहक्तिक ऊपर जखन अधिक भार पड़य लगैत छैत तँ एहि लोकोक्ति द्वारा ओकरापर व्यंैग्यल कयल जाइत छैक वा स्वायं ओ अपन स्थितिक चित्रण करैत अछि।
गदहा घोड़ा एक समान। वा एक भाव। गदहाक अपेक्षा घोड़ा अधिक श्रेष्ठत पशु मानल अछि।
गदहा दुब्ब्र साओन मास। अधिक घास भेटलाक कारण माल मवेशी साओन मे मोटा जाइत अछि, किन्तुर चैत वैशाखमे लटल रहैत अछि।
गनगुआरिकेँ एकटा टांग टुटनहि की ? जकरा अधिक सम्पात्ति रहैत छैक तकरा जँ किछु क्षतियो भय जाइत छैक तथापित चिंता नहि होइत छैक।
गन्धे धान बड़दे किसान। धानक खेतमे गोबर-छाउर अधिक लाभदायक होइत छेक, सड़ल घास-पात लाभ पहुँचबैत छैक।
गनल गाहीमे चोरी। ठेकनाओल वस्तुर जखन पित्ता भय जाइत छैक तँ ओ चोरि लगले पकड़ा जाइत छैक।
गय ननदि तोहरो ननदि। ककरो अनादर करबसँ पूर्व सोचि चाही जे काल्हि एहने परिस्थितिमे अपनो अनादर भय सकैत अछि।
गय हेहरी गय थेथरी कोना, जीबैछँ,
गारि-मारि खाइछी भने जीबैछी। मान-अपमानक जे विचार नहि रखैत अछि, निरन्तरर अपमानित होइतहुँ ओहिसँ निकलबाक जे प्रयत्ना नहि करैत अछि तकरा पर व्यं्ग्य ।
गयामे पोन बनारसमे पीढ़। वा
गया किदन बनासर पीढ़ा। दू स्थाननक आवश्य़क दूरीक जे विचार बिना कयनहि कोनो कार्य करबाक चेष्ठाक करैत छथि तनिका पर व्यंकग्यक।
गरजय कतहु बरिसय कतहु। ककरो अपराधक बदला जखन सजाय दोसरकेँ द देल जाइत छैक वा सम्भादवना रहैत छैक तँ एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गरदनिमे ढोल पडि़गेल तँ बजबहि पड़त। कान्हम पर जे भार पडि़ जाइत छैक तकरा जेना-तेना निर्वहन करहि पड़ैत छैक।
गरम लोहाकेँ टण्ढान लोहा कटैत छैक। दुर्जनताकेँ सज्जानतासँ जीति लेल जाइत छैक।
गरिबहाक बोहु सभक भौजाइ। निर्धन व्यहक्तिकेँ सक्षाजमे प्रतिष्ठात नहि भेटैत छैक।
गरिबहाक बोहु सभक सरहोजि। अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते अछि।
गवाह चुस्त् मुदइ सुस्त।। सहयोगी तत्परर, किन्तुा जनिकर कार्य रहैत छनि से जखन आलस्य‍मे पड़ल रहैत छथि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गहिँकीए पसाबी बसाते ओसाबी। दोकान पर जखन खूब भीड़ रहैत छैक तँ बनिया व्यजस्त़ रहितहुँ खूब प्रसन्नुतासँ टाका हिलोड़ैत रहैत अछि।
गहूम खसय अभगता के,
धान खसय भागमन्तक के। गहूमक फसिल झटक आबि गेलाक कारण जँ खसि पड़ैत छैकतँ सडि़ जाइत छैक
, किन्तु धान खसलापर केहुनिया जाइत छैक, जाहि कारण मनी किछु अधिके दऽ जाइत छैक।
गरिबहाक बेटी धनिकहाक घर गेलि,
एक सूप चाउरमेउब जुब भेलि। निम्नप कुलक नारी किछुए धन प्रप्तिपर जखन घमण्डउक आचरण करय लगैत अछि, तँ ओकरा लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गाछमे कटहर ओठमे तेल। सफलता जखन भविष्यतक गर्भहिमे रहैत तखनहि फल प्राप्तिक हेतू उद्यत भेनिहार पर व्यंलग्यक।
गामक लेखे ओझा बताह,
ओझाक लेखे गाम बताह। कोनो व्येक्ति अपन मूर्खताक कारण जखन अपनाकेँ बुधियार तथा समाजकेँ मूर्ख बूझय लगत अछि तँ ओकरा पर व्यंजग्याबर्थ एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गामक गोड़हा खेत करी, महाजन करी भारी,
लोआ पोआ बड़द करी, हँसमुख करी नारी। कहल गेल अछि जे गोड़हा खेत स्वँयं करी, बटाइ नहि लगाबी।
गाछ चढ़ाकऽ छौ मारी। कोनहू कार्यमे धोखा देनिहार पर व्यं ग्य ।
गाछपर सँ खसलहुँ मुंगराक मारि। वा गाछसँ खसीतँ मुसराक चोट। जकरा सहानुभूतिक प्रयोजन रहैत छैक तकराजँ उझट कथा कहल जाय, फज्झयति कयल जाय तँ एहि लोकोक्ति द्वारा फज्झकति केनिहार पर व्यंलग्य्।
गाछीमे छौ गाही बाजारमे नौ गाही। कृषि उपज जखन केओ बजारहुसँ अधिक महग बेचय चाहैत अछि तँ एहि उक्ति द्वारा व्यंबग्यि कयल जाइत छैक।
गाम महाराजजीक बाँट करय बक्खोल। अनका धनपर जखन केओ नितराय लगैत अछि, तथा अनाधिकार बाँट-बखरा करय लगैत अछि, तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गाममे नोतेने बेलाहीमे नोत। अपना लोकक उचित स्वामगत नहि कय अनकर आदर आ अपनाक अनादर केओ करैत अछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा व्यं गय कयल जाइत छैक।
गाय आ ब्राह्मणकेँ घुमलहिसँ पेट भरय। एहि दूनूकेँ बन्धँनमे विकास नहि होइत छैक, अपितु स्वनच्छंिदतामे गुजर चलैत छैक।
गायकेँ मारलहुँ तैयो गेलहुँ गायमारलक तैयो गेलहुँ। गायकेँ मारलासँ अधर्म होइत छैक।
गाय गुन बाछी पिता गुन घोड़,
नहि किछु तँ थोड़बहु थोड़। बेटी माय सन होइत अछि तथा बेटा बाप सन ई सामाजिक मान्यथता अछि।
गाय छूटल बलाय भेल। कोनो नीको वस्तुे जखन कष्टाक कारण बनि जाइत अछि तँ लोक एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
गाय गुआर मिलान, ठेहुने पानि दुहान। दू अनुकूल व्यनक्ति मिलि तेसरकेँ आसानी सँ ठीक लैत अछि।
गाय नहि चोरौने छी तँ डगर तँ देखने छी। कोनो गुप्तोौ विषयपर जखन केओ किछु दाबी करय लगैत अछि वा चोर-चोर मसियात भाइक कथा चरितार्थ करय लगैत अछि तँ व्यं ग्या्र्थ एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गाय नहि रहय तँ बैल दूही? असम्भहव कार्य कतहु सम्भरव भेलैक अछि? केओ जखन असम्भवव कार्य करबाक हेतु ककरहु पर दवाब दैत अछि तँ पीडि़त व्यहक्ति एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
गाय बिकायल चरबाहिये। जखन साधारण कार्यमे अधिक अपव्यपय भय जाइत छैक तथा मूल कार्य छूटि जाइत छैक वा छुटबाक सम्भायवना रहैत छैक तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा निराशा व्य क्त् कयल जाइत अछि।
गाय मारिकय जुता दान। बहुत पैघ शोषक जखन दान-पुण्या करय लगैत अछि तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा व्यं ग्यक कयल जाइत अछि।
गारि गंजनिक लाज नहि, पेट भरलासँ काज। स्वा भिमान शून्य थेत्थार व्यइक्तिक हेतु एकर प्रयोग होइत अछि।
गालबला जीति गेल मालवता हा‍रि गेल। थोथीक बलपर जे व्याक्ति झूठो बातकेँ सत्य् प्रामणित करबाक चेष्टाा करैत अछि तकरा पर व्यंतग्यष।
गाँव दू लोक एके। मिथिलांचलक अधिकांश गाममे एकहि रंगक व्यलवहार, झगड़ा झंझट, स्वायर्थलोलुपता आदि दुर्गुण देखल जाइत अछि।
गाँव मालिकक धोधि देवानजीक। घसूखोर कर्मचारी पर व्यंकग्य ।
गिदरबाक मान आ जोनक गरामे पौआ। तुष्टीककरण नीति एवं पक्षतापूण्र व्यरवहार पर व्यं ग्य ।
गीत गीतहु विवाह चुप चुपहु विवाह। कोनहु उत्सववमे कम खर्चासँ कार्य चलयबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गीदरकेँ देल मांसक ओगरबाहि। जकर जे भक्ष्यक छैक तकरा ओ स्वाबर्थी व्यरक्ति खयबे करत।
गुआरक सराहल माछ आ मलाहक सराहल दही दूनू एके रंग। यादवलोकनि दूध-दही तथा मलाहलोकनि माछक हाल बुझैत छथिन।
गुआरक लाठी माँझ कपार। कोनो लण्ठी-मोचण्डा व्यबक्तिक व्यववहार पर व्यं ग्यप।
गुआरिन कतहु अपन दही केँ खट्टा कहैत छैक ? अपन-अपन वस्तुहकेँ सब प्रशंसा करैत, अछि, उत्कृहष्ट कहैत अछि।
गुदरी तँ उजरी भली, बेटी सुनरी भली,
बेटा बुलन्ताी भला, घोड़ा कुदन्ता भला। जँ फाटल पुरान वस्त्र पहिरैत छी तँ साफ-सुथरा राखू।
गुरुजी पूजा-पाठ केहन तँ चेला भीड़ भड़क्काप जेहन। समयानुकूल जे अपन रणनीति बनाकय कार्य करैत छथि, ओहन चतुर लोक पर व्यंयगय करबाक हेतु एकर प्रयोग।
गुरु गूड़ चेला चिन्नीक। जखन शिष्य अपन गुरुसँ बहुत आगाँ निकलि जाइत अछि तँ एहि उक्तिक प्रयोग शिष्य पर व्यं ग्यो करबाक हेतु कयल जाइत अछि।
गुरुक गुरु बजनियाँक बजनियाँ। कोनो श्रेष्ठज व्यनक्ति जखन साधारणो कार्य स्वोयं कय लैत छथि तँ हुनका पर एहि उक्ति द्वारा विनोद कयल जाइत छनि।
गुरु करी जानिकऽ पानि पीबी छानिकऽ खूब विचारिकय कोनो गुणवान श्रेष्ठन व्य्क्ति केँ गुरु बनयबाक चाही, दीक्षा मंत्र लेबाक चाही, दीक्षा मंत्र लेबाक चाही।
गुरु गोसैयॉं एक समान। गुरुकेँ साक्षात् ईश्वार कहल जाइत छनि।
गूड़क मारि धोकड़े जानय। नफासँ अधिक जँ नोकसाने भय जाय वा अधिक अपव्य य भय जाय तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा निराशा व्योक्तच कयल जाइत अछि।
गूड़क गेल केहुनी, हाथ चटिते छथि। अवसर बीति गेलाक बाद पछतौनिहार पर व्यं ग्या, जे पूर्वहु लाभान्वित भेल रहैत अछि।
गूड़ पर माछी दौड़ले अबैत छैक। जाहिठाम कोनो आकर्षण वा आर्थिक लाभ-लोभ छैक, ताहिठाम भीड़-भाड़ भैये जाइत छैक।
गुरुक संग गुरुअइ। कोनो सामान्यर व्याक्ति जखन श्रेष्ट व्यरक्तिक संग वंचना करय लगैत अछि तँ एहि उक्ति द्वारा डाँटल जाइत छैक।
गूँह पर जँ ढेप फेकब तँ छिटका पड़बे करत। नीच व्य क्तिसँ मुँह लगौला पर हानि होइत छैक।
गे छोंड़ी तोहर अंगने कतेक ? छोट समस्यातक समाधान रहैत छैक।
गँठी मे दाम नहि बाँकीपूरक सयर। जे बिना टाका पैसाक कोनो महत्त्वपूर्ण कार्य ठानय चाहैत छथि ओहन आर्थिक दुस्सा्हस कयनिहार पर व्यंओग्य ।
गेल घरक कोन ठेकान? घरक बाहर निकलि कतहु दूर चलि गेलापर ओ पुन: कहियाधरि लौटत तकर कोनो ठीक नहि रहैत छैक।
गेल मर्द जे खाय खटाइ,
गेल नारि जे खाय मिठाइ। खटाइ खयनिहार पुरुष तथा मिठाइ खयनिहारि स्त्रीरक स्वाइस्य् न चौपट्ट भय जाइत छनि।
गेल महीँस पानिमे पड़रू सहितंच। साधारण गलतीक कारण जखन पैघ घाटा लगबाक मार्ग प्रशस्तख भय जाइत छैक, कोनो उपाय नहि रहि जाइत छैकतँ एहि लोकोक्ति द्वारा निराशा व्यतक्तत कयल जाइत अछि।
गेल माघ उन्तिस दिन बाँकी। फागुनमे मात्र उन्तिस दिन जाड़ छैक।
गेलो पानि बान्ही् आरि,
तैयो सुमिरी देबमुरारि। साधारणों कार्यमे जकरा अधिक श्रम करय पड़ैत छैक, तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गोआरक गो‍नडि़ दुहु दिस चिक्क्न। जकर जे कौलिक कर्म रहैत छैक, तकरा ताहिमे दक्षता प्राप्तच रहैत छैक, ओ अभ्यमस्तद रहैत अछि।
गोआरक चटाइ गोबरक ढेर। माल-जाल पोसनिहार अपन घरकेँ अधिक साफ-सुथरा नहि राखि पबैत अछि।
गोठबिछनी बैसती कोबरा घर। कोनो समान्यस व्यिक्ति जखन अधिक आडम्बसर करय चाहत अछि वा संयोगसँ पैद्य पद प्राप्तर कय लैत अछि तँ ईर्ष्या्वश केओ एहि उक्तिक कय दैत अछि।
गोतनी के सँठलनि ओल तँ गोतनी सँठलथिन पड़ोर। जे जेहन करैत अछि तकरा तेहने फलो प्राप्त होइत छैक।
गोदीमे लडि़का नगरमे सोर। लगहिमे कोनहु वस्तुे रहला पर भ्रमवश जखन केओ बौआय लगैत अछि तँ एहि उक्ति द्वारा व्यं ग्यउ कयल जाइत छैक।
गोनू घरक घरे। लाख आर्थिक प्रयत्नअ कयलहु पर जकरा लाभक बरोबरि हानिओ भय जाइत छैक से एहि लोकोक्ति द्वारा निराशा व्यसक्तल करैत अछि।
गोनूझाक ढाकी। लाख प्रयत्नी कयलहु पर जकर आवश्य्कताक पूर्ति नहि भय पबैत छैक, से एहि उक्ति द्वारा अपन आर्थिक संकटक बखान करैत अछि।
गोनूझाक खुट्टे बताह। वा बीये बताह। जकरा घरक सब धीया-पुता बदमासे रहैत छैक तकरा कोनो एक दू बालकक उपद्रव कयलापर लोक एहि उक्ति प्रयोग करैत अछि।
गोनूझक बखारी। एकरहु अर्थ एवं प्रयोग ओहिना होइत छैक जेना गोनूझाक ढाकी कतबो भरू भरबे नहि करत।
गोनूझाक गूड़ तीत ने मधुर। जाहि कार्यमे कोनो फलाफल नहि प्राप्त होइत छैक तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गोनूझाक बिलाडि़ । गोनूझा बिलाडि़केँ सेहो छकौने छथि।
गोबर छाउर पानिमे सड़ब। तखन माटिसूं झड़य।
गोबर-माटिक काज, मौगीकेँ नहि लाज। मिथिला प्रान्ताक नारीलोकनि अपन घर-आँगनकेँ गोबर एवं माटि सानिकय नीपैत छथि, जाहिसँ ओ स्व च्छ लगैत छनि।
गोरहाक जेठ सबतवरि हेठ। गोरहाक जेठ गोबरकेँ कहल जाइत छैक।
गोरि माउग गौरवें आन्हलरि। कोनो सुन्दगरि नारी जखन रूपक धमण्डछ करय लगैत छथि तँ हुनका लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गोली कतहु जाय महीनासँ काम। जकरा केवल दरमाहासँ मतलब रहैत छैक, कर्त्तव्य क प्रति उदासीन रहैत अछि तकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
गौले गीत। एकहि बातकेँ बारम्बाोर दोहरौनिहार केँ कहल जाइत छैक ‘ गौले गीत कतेक बेर गबैत छी ?
गंगामे सेहो बेंग बसैत छैक। नीक गाम वा घरमे जँ केओ दुर्जन जाइत छैक वा सम्भारवना रहैत छैक तँ ओकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गंगाक आगाँ कूपक दोहाइ। महान व्याक्तिक समक्ष कोनो अदनाक प्रशंसा वा कोनो उत्तम वस्तुषक समक्ष साधारण वस्तुोक बड़ाइ कयला पर विरोध स्वारूप एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइ अछि।
गंगा मैया डूबैछी तँ हाथ-पयर लारू-चारू। सक्षम व्य क्तिकसँ सहायता मँगलापर जँ ओ मात्र बतौनी कय दिअय तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा व्यंयग्य् कयल जाइत अछि।
गँठी खुजय नहि बहुरिया दुबराथि नहि। जे व्युक्ति वा जनी फोकटमे नीक कार्य करा लेबय चाहैत छथि तनिका लेल एहि लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
गँठी पेटी दाम नहि ऊँचे-ऊँचे काम। ओकाद छोटो कार्य करबाक नहि, किन्तुज जे पैधे कार्यमे हाथ लगबय चाहैत छथि, तनिका पर व्यंहग्यै।
गृहस्थप गेलहा घर, बामे दहिने हर। जे कृषक स्वययं खेतमे परिश्रम नहि करैत छथि वा खेतक आरिपर तत्पंर भय काय्रनहि करबैत छथि खेती सुतरैत छनि।
घटने नाति भजार। विपन्ना लोककेँ छोट-पैघक विचार नहि रहि जाइत छैक।
घटलाहाक बहिनोइ केओ नहि,
बनलाकहाक सार सब केओ। पैघ लोकक आदर सर्वत्र होइत छैक, किन्ुि निर्धनकेँ केओ नहि पूछैक छैक।
घटलो तेली तँ नौ अधेली। बनियाँ घटलो रहैत छैक तथापित ओकरा लग किछु ने किछु नगद राशि रहिते छैक।
घटह हे पेट घटह, कोठी लागल पेहान, पसरह हे पेट पसरह, आयल खेत खरिहान। जखन घरमे अन्नस घटि जाइत छैक तँ लोक कंजूसी करय लगैत अछि, किन्तुक जखन फसिल खेतसँ खरिहान आबि जाइत छैक तँ ऐल फैलसँ करय लगैत अछि।
घड़ी मे घर जरय नौ घड़ी भदवा। भदवा-दिक्शूलक विरोधमे जखन किछु कहबाक रहैत छैक तँ लोकोक्तिक प्रयोग होइत अछि।
घर उजड़ने जारनिक दु:ख ? फूसक घर जखन खसि पड़ैत छैक तँ पर्याप्तज जा‍रनि बहराइत छैक, कारण खसलाहा धरसँ कार्यक सामान कम्मेा निकलैत छैक।
घरक मर्म तखने बुझलहुँ
चौक पुरैलय टाकन अनलहुँ। जाहि घरमे बर्त्तन-भाँड़ाक स्था‍न पर माटिक बर्त्तन रहैत छैक, ताहि घरक आर्थिक स्थिति दुर्बल मानल जाइत छैक।
घरक रोटी आधो भला। अपन वस्तुआ कनेक कम्मेा वा दब्बोि रहैत छैक, तथापि अनकासँ मंगलाक अपेक्षा अपने नीक।
घरक दुलरुआ बाहर गेल,
मुँहसुखाबऽ चाँचा भेल। अधिक सुकुमार व्य क्तिकेँ परदेशमे बड़ कष्टब होइत छैक।
घरक देवता उपास पड़थि, बाहर लेल पकवान। वा
घरक देवता लल्ल पारथि, पूरी खाथि बहिनपा। अपनकेँ छोडि़ जे व्यिक्ति अनका लेल हरान रहैत छथि तनिका पर व्यं्ग्या।
घरक मुर्गी दालि बरोबरि। अपन गाम घरमे ओतेबक प्रतिष्ठाा नहि भेटैत छैक जतेक आनठाम भेटैत छैक।
घरक फूट ककर भेल,
रावण बालि दूनू गेल। अपनामे जँ मतभेद रहैत छैक तँ ओकर कुपरिणाम भेगहि पड़ैत छैक।
घरके भेदिया लंका डाह। आपसी मतभेदक कारण लंका जरिकय भस्म भय गेलैक।
घर खरची तँ सुती निश्चिन्तत। घरमे पर्याप्तत अन्नँ रहैत छैक तखने लोक निश्चिन्ता रहैत अछि।
घर खरची नहि डेडढ़ी ढेकार। मिथ्याी आडम्बेर कयनिहार पर व्यंेग्यै।
घर खरची नहि नगर नेओत। बिना ओकादक देखाबा कयनिहार पर व्यं ग्य ।
घर करू घर करू घर बड़ रगड़ी,
तीन चीज जान मारय नोन तेल लकड़ी। विवाह कय घर बसालेब तँ आसान छैक, किन्तुक ओकर निर्वाह करब कठिन भय जाइत छैक, कारण नोन तेल लकड़ी अर्थात् पारिवारिक समस्याकमे लोक ओझराकय रहि जाइत अछि।
घर अन्हा।र तँ बाहरो अन्हाझर। स्वअयं जखन केओ घटल रहैत अछि तँ पैंचोउधार नहि भेटैत छैक।
घर घर देखल एकहि लेखल। मिला जुलाकय लगभग सब घरक हाल (व्यलवहार) एके रहैत छैक।
घर छोडि़ घुरमुरिया। विपरीत समयमे घर छोडि़ कतहु बाहर गेलासँ संकटमे फँसि जयबाक सम्भारवना रहैत छैक।
घर जरय तँ सबकेओ देखय,
मोन जरय तँ केओ नहि देखय। अत्यजधिक मानसिक क्ले श भेला पर केओ एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
घर जाय तँ बीबी मारय, बाहर जाय तँ मीयाँ मारय। निरपराध एवं निर्विकार रहितहुँ जकरा उभय स्थितिमे दण्डित होमय पड़ैत छैक से क्षुब्धि भय एहि लोकोक्तिक प्रयोग करैत अछि।
घर जरनि तँ घूर मिझाबथि। पैघ क्षति पर नहि ध्यालन दय जे आने प्रकारक प्रयत्नर करैत छथि, तनिक उपहास एहि उक्ति द्वारा कयल जाइत अछि।
घर दही तँ बाहरो दही। जनिका अपना सब किछु रहैत छनि तनिके बाहरहुमे भेटैत छनि, तनिके निमंत्रणो भेटैत छनि।
घर दुआरि भौजोक छल कयलनि ननदो। अनकर धन पर जखन केओ आन जूति चलबय लगैत अछि तँ उक्तन लोकोक्ति द्वारा व्यं ग्यउ कयल जाइत अछि।
घरनीए घर हरबाहे हर। जहिना घरक हाल गृहणी बुझैत छथिन तहिना हर जोतबाक हाल हरबाह बुझैत छैक, आन नहि बुझि सकैत अछि।
घर पर खढ़ो नहि नाम धनपति। नामक अनुकूल आर्थिको स्थिति रहब नहि छैक।
घर फूटय गाम लूटय,
गाम फूटय जयवार लूटय। अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते अछि। सामाजिक एकता पर बल।
घर बाँसे नहि घर घासे। फूसक घरकेँ सब साल खढ़सँ छारलापर अधिक दिन टिकाउ होइत छैक।
घरबे के भाते नहि पंचके लाजे नहि। अधिक आर्थिक दवाब देनिहार पर व्यंअग्य ।
घर भात तँ बाहरो भात। अपने सुभ्यकस्तो (सुखी) रहब तँ बाहरो आदर-सम्मासन भेटत।
घरमे अनाल नहि पहुनाके लाज नहि। कोनो गरीब लोकक ओहिठाम जखन पाहुन अधिक डेरा खसबय लगैत छथिन तँ एहिज लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
घरमे आगि लागल चोर के दाव लहल। कोनो दुर्घटनासँ लाभ उठौनिहार पर व्यंुगय।
घरमे कुरथीक रोटी बाहर कोरबला धोती। वा
घरमे मड़आक रोटी वा खोसारीक रोटी...। ओकादसँ अधिक आडम्बार कयनिहार पर व्यंसग्या।
घरमे चोर नगरमे सोर। भय वा भ्रमवश जखन केओ हल्ला मचाय अपन मूर्खताक प्रदर्शन करैत अछि।
घरमे पकैअय मड़ुआक रोटी
बाहर सुखाइअय रेशमी धोती। व्यरर्थ आडम्बमर कयनिहार वा भोजन केहनो मुद्रा वस्त्ररमे चकचकी कयनिहार पर व्यंकग्यह।
घरमे भीजल भांगो नहि, गाममे नोत। आडम्बभर पूर्ण आचरण पर व्यंाग्यय।
घरमे बोहु नहि बाहर बेटा किरिया। झूठ बजनिहार फरेबी पर व्यंिग्य ।
घरमे साँझ नहि बाहर ऊक सन बाती। अर्थ एवं प्रयोग पूर्वतते।
घर रोग जाय तँ जाय, वंश रोग नहि जाय। साधारण रोग-व्या।धि तँ चिकित्सा‍सँ छुटि जाइत छैक, किन्तुस जे रोग वंशानुगत होइत छैक से नीकजकाँ नहि छुटैत छैक।
घर बैसल जे बनबथि बात,
देहमे वस्त्र ने पेटमे भात। आलसी व्य्क्ति अन्‍न वस्त्र क अभावमे रहैत अछि।
घरबला बर तर बरबला घर पर। जकर जे सामान रहैत छैक तकरा नहि भेटि दोसरे व्यहक्ति जखन ओहिसँ लाभ उठबैत रहैत अछि तथा उचित अभावमे रहैत अछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
घरबालीके घरेने भतरोइयाँबाली के घर। अर्थ पूर्ववते अछि। भतरोइयँ वाली = नकली।
घरसँ घर जायब, फाटिकऽ कि मरि जायब? जकरा अत्य धिक श्रम करय पड़ैत छैक से खौंझाहटिमे एहि उक्तिक प्रयोग करैत अछि।
घरसँ बैर दिगरसँ नाता,
ऐसन मति जनि देहु विधाता। अपन लोकसँ शत्रुता तथा अनकासँ मित्रता एहन बुद्धि विधाता नहि देथि।
घरे भरि घोड़ा दौड़बिहऽ
मौगीक मोन पतियबिहऽ। जे व्यमक्ति स्त्री लग वीरता प्रदर्शन करैत अदि, किन्तुद बाहर किछु नहि करैत अछि, तकरा पर व्यंयग्य़।
घरो पैसी जाँघो काँपय? दुस्सासहसिक कार्य कयनिहार जखन भय प्रदर्शन करैत अछि तँ कहल जाइत छैक- अयँ, घरो पैसबह आ जाँघो कँपयबह से कोना हेतह ?
घाटी तर गेने माटी। पहाड़ पर नदीक जलक जे पवित्रता रहैत छैक से नीचा उतरि गेलापर नहि रहि जाइत छैक।
घानीसँ बहतौनी भारी। मूलसँ आने जखन अधिक भारी भ्य जाय।
घाव कतहु पौ कतहु। कोनो पँचियल व्युक्ति जखन दूरहिसँ खेलाइत अर्थ तँ एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
घिबही लड्डू टेढ़ो भला। वा घिबही पूड़ी...। नीक व्यडक्तिवा वस्तुहमे कनके दोषो रहैत्‍ छैक तथापित ध्या़न नहि देल जाइत छैक।
घी दैत बाभन नेड़ाबथि। दुर्बल व्यनक्तिकेँ घी नहि पचैत छैक।
घी कथीमे हेरायल तँ खिच्च डि़मे। राहडि़क दालिमे। सुस्वाकदु बनयबाक हेतु खिच्चिडि़ एवं राहडिक दालिमे घी पड़ब आवश्युक रहैत छैक।
घी पचय नहि पूरी लय मारि। ओकादसँ अधिक व्य ग्रता देखौनिहार पर व्यंसग्यय।
घी बनाबय काम बड़की बहुरियाक नाम। अनुकूल परिस्थितिक कारण वशस्वीा भेलापरजे अधिक डींग हाँकय लगैत छथि, तनिका पर व्यं ग्य ।
घी दैत घोड़ नरिआय। पौष्टिक आहारपर जे अधिक छिडि़आय लगैत अछि, ताहि दुलारू बालक लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
घीबो खायब तँ खेसारीक दालिमे? नीक वस्तु क दुरुपयोग कयनिहार पर व्यंवग्यु।
घी बनाबय खिचड़ी छोटकी बहुरियाक नाम। अनुकूल परिस्थितिक कारण यशस्वीर भेलापर कनेक्शन महत्त्व कम करबाक हेतु वा अधिक प्रशंसाक विरोध करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
घीमे तरू तेलमे तरू तैयो करैल तीते। जकर जे स्वेभाव रहैत छैक से बदलैत नहि छैक।
घेघ छल तोरा उछटि गेल मोरा। ककरो अनकर अपराधक सजाय जखन अपना भेटि जयबाक स्थिति उत्पदन्ने भय जाइत छैक तँ उक्त लोकोक्ति प्रयोग कयल जाइत अछि।
घैल भरि धान घटेसर राजा। निर्धन समूहमे ककरो एक घैल भय गेलापर जे अपनाकेँ राजा बुझि घमण्डय करय लगैत अछि।
घोघी तनने छी आ हुलकीओ दैत छी। बनावटी व्यछवहारवा अभिनय कयनिहार पर व्यंटग्यव।
घोखन्त विद्या लपटन्तन जोर,
नहि बेसी तँ थोड़बहुत थोड़। पढ़ाईमे जे खूब श्रम करैत अछि, खूब रटैत अछि, तकरे विद्या हासिल होइत छैक।
घोड़ा कूदय घोड़ी कूदरय,
बीचमे, बछेड़ी कूदय। जाहिठाम देखाँउस पर धीमापुता कूद फान करैत कोनो नव उत्सरव मनबय लगैत अछि ताहि हेतु व्यंतग्या र्थ एहि उक्तिक प्रयोग जाइत अछि।
घोड़ाक पाछाँ आ बड़काक आगाँ। घोड़ाक पाछाँ चललासँ लथार लगबाक सम्भाकवना।
घोड़ा के कोड़ा बड़दके पेना,
भलमानुसके बात, माउग के नयना। घोड़ाकेँ कोड़ासँ, बड़दकेँ ठेंगा सँ, नीकलोककेँ व्यंाग्य -वाणसँ तथा स्रीवक केँ आ‍ँखि कड़ा कयलासँ कयलासँ अनुशासित कयल जा सकैत अछि।
घोडा़क लथाड़ घोड़े सहैत छैक। जकरा जकर फज्झति सहबाक अभ्या।स रहैत छैक सैह सहैत छैक, दोसर नहि।
घोड़ाके लात मनुख के बात। घोड़ाकेँ लातसँ तथाे मनुष्योकेँ बातसँ हाँकल जाइत छैक।
घोड़ीक लथाड़ सहैत छैक। विपरीत लिंगीक प्रति आकर्षण स्वा्भविक छैक।
चक्कूत सजमनि पर खसय वासजमति चक्कूत पर, कटायत सजमनिए। दुर्बल एवं सबल व्यनक्तिमे जखन संघष्र होइत छैक तँ कोनहु स्थिति मे दुर्बलहिकेँ घाटा लगैत छैक।
चटनी बिना भोजन आ विनोद बिना जीवन। जीवनमे किछु चटकार आवश्यबक रहैत छैक, जे पाश्चानत्ये देशमे नहि पाओल जाइत अछि।
चट मकइ पट सनइ। मकइकेँ भूजि पीसि रोटी बनयबामे विशेष असुविधा नहि होइत छैक।
चट मंगनी पट बिआह। अर्थ एवं प्रयोग पूर्ववते अछि।
चढ़ैत बरिसय अरदरा, उतरैत बरिसय हस्तत; बीच में बरिसय मग्धात असरेसा, मौज करय गिरहस्त । यदि आर्द्रा, असरेस, मधा एवं हथियामे नीक वर्षा भय जात तँ धानक नीक उपज हेबे करत।
चढ़ैलय साइकिल मुदा बजबैलय घंटी छनिहे नहि। अधकट्टू सामग्रीसँ कार्य चलौनिहारक कंजूसी पर व्यंीगय।
चढ़ैलय हाथीपर मुद्रा पयर उठबे ने करय। शारीरिक अक्षमता रहितहुँ जे साहसिक कार्य करय चाहैत अछि, तकरा पर व्यंसग्यी।
चतुर भेलहुँ कहियासँ, भिन्नप भेलहुँ तहियासँ। साझी रहलपर अति उदारता किन्तुा भिन्नन भिनाउज भय गेलाक बाद जँ केओ अति कंजूसी सँ कार्य करय लगैत अछि तँ ओकरा लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत छैक।
चमारक बेटीके नाम रजरनियाँ। निर्धन व्यकक्ति जखन अपन धीया पुताक नाम नीक रखैत छल तँ पैघ लोककेँ अखड़ैत छलनि‍। ओ एहि लोकोक्ति द्वारा उपहास करेत दलथिन किन्तु आब एहि लोकोक्तिक प्रयोग कम भय गेल अछि कारण आब के ककरासँ छोट अछि ?
चमारक सरापे कतहु मरलैए ? केओ जखन ककरो अनिष्टलक कामना करेत छैक तँ उक्त् लोकोक्ति द्वारा लोक अनिष्टनक निवारण कय निश्चिन्तल होइत अछि।
चमरू मीयाँक बारह मासा। अरदर गौनिहार पर व्यंाग्यत।
चमरी जाय तँ जाय दमड़ी नहि जाय। कंजूस मकखीचूस व्यमक्तिक लेल प्रयोग होइत अछि।
चमैनसँ कतहु कोखि नुकयलैक अछि? पूर्वमे वा कतहु कोनो गामक निर्धन एखनो चमैने प्रसव करबैत रहलैक अछि।
चऽरक सम्बसन्धेै चिचोढ़ मामा। बहुत दूरसँ जे सम्ब्न्धध जोड़बाक चेष्टान करैत अछि तकरापर व्यं‍ग्यच।
चरखाक कमाइ डाइपनहि गमाइ। कम आयमे जे अधिक ताम-झाम वा पूजा-पाठ करय अछि तकरा पर व्यं-ग्यज।
चरय गेलाह चोथायल अयलाह। लाभ उठयबाल हेतु गेनिहार जखन हानि उठाकय अबैत छथि तँ हुनका पर व्यंिग्य। करबाक हेतु उक्तत लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
चरय जाय जोतल आबय। उक्तज दूनू लोकोक्तिक भाव समाने अछि।
चल गे तँ अबैछी, तोरोलय किछु लबैछी। कोनो दुर्जन स्त्री केँ काज अढ़ौलापर वा किछु मंगलापर ओ एहि लोकोक्ति द्वारा मुँह दूसि दैत अछि।
चल चलन्तीअ हगि भरन्ती्,
जे रहन्तीअ से पोछन्ती्। जे व्य्क्ति वा नारी कोनो स्थामनक पवित्रताक महत्त्व नहि बुझि घिनाकय चलि दैत अछि, जाधरि रहल ता बड़ बढि़याँ मुदा चलैत काल बिना सफाइ कयनहि प्रस्थादन कयल जाइत अछि,
तकरे सन लोकक लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
चलबाक सट्ठा नहि तम्बूतक फरमाइश। शारीरिक अक्षमता रहितहुँ जे अपनाकेँ अधिक महग बनयबाक चेष्टाँ करैत अछि, तकरा पर व्यंबग्ये ।
चल ठुमुकिया ठामहि ठुम, जाँहा पठबा ताहाँ तुम। जे आर्थिक लोभ लाभमे लागल धपायल रहैत छथि तनिका पर व्यंगग्या।
चलय ने आबय तँ अंगने टेढ़। अपन दोषपर ध्याअन नहि दय जे अनका दूसैत अछि।
चलमे घोड़ी धाने धान। उपयुक्तड रास्ता क बिना विचार कयनहि जे सोझे प्रस्था‍न कय जाइत छथि, कोनहु कार्यक लेल जे जबर्दस्ती डेग लैत छथि, तनिका लेल एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
चलैत चोरक लंगोटी लाभ। सब किघु लुटयबाक स्थितिमे जैह हाथ लागि जाय सैह ग्रहण कय लेबाक चाही।
चाउर उधार दालि उधार बाजनो बाजय उधार। अति निर्धन व्य क्ति, जकर सबकार्य पैंचे उधारसँ चलैत रहैत छैक से अपन स्थितिक बखान एहि उक्तिसँ करैत अछि।
चाउर चूड़ा भरि फँक्कास गहूम दाना दस, केराव बदाम एक दू गोट, तब मिले रस। एहि उक्तिमे भूजा फँकबाक विधि कहल गेल अछि।
चाउर छनि नहि कनसार छिपाबह। बिना ओकादक जे फरमाइस करैत रहैत अछि तकरालेल एहि उकितक प्रयोग होइत अछि।
चाचा चोर भतीजा पाजी,
चाचाक माथ पर जूताबाजी। पित्ती भातिज दूनू अपराधी मनो‍वृत्तिक छथि, तेँ कखनो मारि लागि तकैत छनि।
चामक टाट केर कूकुर रखबार। जकर जे भक्ष्यक छैक ताहि दिस ओ लपकबे तेँ ओहन रक्षक पर कोन।
चारूकात धान बीचमे भगवान। संगी साथीमे ककरो बिचला श्रेष्ठ स्था न भेटि गेलापर ओकरा संग अन्यठ संगी चौल करैत छैक।
चारूकात लत्ती बीचमे भगवत्ती। सखी सहेली लोकनि अपनामे एहि प्रकारक चौल करैत रहैत छथि।
चारि आंगन जायब तँ चारि चोत थूक, अपना घर रहब तँ चारि कुकड़ी सूत। व्यार्थ बौअयलासँ लाभक बदला हानिए होइत छैक, झगड़ा झंझटि थूकम फज्झ तिक सम्भा‍वना रहैत छैक।
चारि के चारि मत। व्यिक्ति-व्यछक्तिमे मतभिन्नकता रहैत छैक।
चारि आनाक जनेर चौदह आनाक मचान। जाहि खेती वा व्यौवसायमे लग्गयतिसँ कम लाभक समभावना रहैत छैक, ताहि लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
चारि के मुँहमे के झीक देत ? अधिक लोक द्वारा निंदा कयल जयबाक सम्भालवना पर एहि उक्ति द्वारा निराशा व्यभक्ता कयल जाइत अछि।
चालनि दुसलनि सूपके, जनिका अपने सहस्त्रु गोट छेद। वा
चालनि दुसलनि सूझके जे तोरा नीचामे छेद। जे स्वदयं अवगुण-छिद्रसँ भरल अदि, से जखन ककरो निन्दा करय लगैत अछि तँ एहि लोकोक्ति सभक द्वारा ओकरा पर व्यंलग्यभ कयल जाइत छैक।
चालि चली सादा जे निमहय बाप-दादा। सादा जीवन उच्चज विचार रखनिहार व्याक्ति द्वारा प्रयुक्ते।
चालीस तँ घालीस। चालिस वर्षक अवस्थाि भय गेलाक बाद व्यिक्तिक युवावस्थाय समाप्तं भय जाइत छैक तथाओ अधवयस् कहबय लगैत अछि।
चास दी मुदा बास नहि दी। ककरो अपन खेत बटाइ वा ओहुना मजूरीक रूपमे देबैक तँ अहाँक स्वावभित्वक भूमि पर बनल रहत, किन्तुा यदि अपन भूमिपर बसा देबैक तँ स्वाामित्वोत समाप्त भय जायत।
चालि परकीर्ति बेमायई तीनू संगे जाय। चालि चलन, स्वनभाव एवं पयरक बेमाय ई तीनू छूटैत नहि छैक, कथमपि नहि बदलैत छैक।
चिड़ै केजान जाय लडि़काके खेलौना। ककरो कष्टाक बिना चिन्ताा कयनहि जखन केओ मनोविनोद मे लागल रहैत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंतग्या कयल जाइत छैक।
चिड़ै चलल बास करय जोलहा-चलल घास करय। वा
बुडि़बक चलल घास करय। सयम बीति गेलाक बाद जखन केओ कोनो कार्य करय लेल उद्यत होइत अछि तँ एहि लोकोक्ति द्वारा ओकर उपहास कयल जाइत छैक।
चित छै चंचल मोन छै उदास,
पानिमे ठाढ़ ठाढ़ छै लागत छै पियास। जखन कोनो घटना दुर्घटनाक कारण चित चंचल वा चिन्तित भय उठैत छैक तँ कोनहु कार्यमे मोन नहि लगैत छैक अपितु ध्याुन दिस चलि गेलाक कारण कार्य गड़बराइये जाइत छैक।
चिड़ैमे कौआ मनुषमे नौआ। कौआ आन पक्षीक अपेक्षा चतुर होइत अछि।
चित्तो तोहर पट्टो तोहर। उभय स्थितिमे जे लाभमे रहैत अछि तकरा लेल एकर प्रयोग होइत अछि।
चिन्हकले चोर जान मारय। अपराधीसँ अपेक्षा नहि जोड़बाक चाही अन्यधथा अनिष्टनक आशंका बनले रहत।
चिन्हासर बनियाँ अनचिन्हाआर कूकुर कटबे करय। बनियाँ चिन्हाारे लोककेँ मूड़ैत अछि, अनचिन्हािकेँ तँ अपना दिस घिचबाक लेल विशेष सुविधा दैत अछि।
चिल्का लाथे चिलकोरी जीबय। ककरो बहानासँजखन केओ लाभ लैत रहैत अछि।
चिल्लबरके डरेँ भगबा डाही। भयवश जखन केओ अपन अधिक हानिक लैत अछि तँ एहि उक्तिक प्रयोग द्वारा रोकबाक चेष्टाि कयल जाइत अछि।
चीना मरि गेल मुकुन्दट सुतले। अतिशय आलसी व्युक्तिक लेल एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि जकर अकर्मण्येताक कारण अधिक हानि होइत छैक।
चीनाक वंशमे माढ़ा सूपत। चीन नामक वंशमे माढ़ सर्वोत्तम खाद्यपदार्थ होइत छैक।
चीन्हीै ने जानी मौसी-मौसी करी। बिना जान पहचानेक जखन केओ घुट्ठा सोहार करय लगैत अछि तँ व्यंुग्यासर्थ एहि लोकोक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
चुट्टी अपने पयरे भारी, हाथी अपने पयरे भारी। सबकेँ किछु ने किछु अपन समस्या। रहैत छैक।
चुट्टीकेँ मरैतकाल पाँखि जनमि जाइत छैक। जकर अन्त समय वा दुर्दशाक समय आबि जाइत छैक वकर तदनुकूल स्व भाव और परिस्थिति बनि गेलापर एहि उक्तिक प्रयोग होइत अछि।
चुनमुन पुतरी चुनमुन पुतरी ककर राज ? बचनीक राज दिना दुइ चारि,
फेर-फेर दाइ तोहरे राज। अस्थानयी सुविधाक तुलना स्थाययी सुविधासँ करब व्यपर्थ।
चुनरी फाटि गेल चमकी चलि गेल। कोनो नीक वस्तु प्राइज़ भेला पर झमकाबक नहि चाही, अन्यलथाओ हाथसँ निकलि जायत आ तखन मनहूस भय जाय पड़त।
चुन्नाज पोठी चाल दिअय रोहुक सिर बिसाय। कोनहु जलकरमे पहिने छोटकीए माछ उपलाइत छैक, जाहिपर लोक गाँज, ढाकी, टाइप, सहत, जाल आदि लय कय आक्रमण करैत अछि।
चुन्निए खुद्दीए पोसलहुँ धीया,
आयल पहुना लय गेल धीया। निर्धन लोक कतेक यत्नासँ बेटीक लालन-पालन करैत अछि, किन्तुँ युवा भेला पर विवाह द्विरागमन होइत छैक तथाी ओ अपन पतिक घर चलि जाइत अछि।
चूड़ोके गवाही दही देल, दूनू सनाकय पेटमे गेल। दू मित्र वा समान विचारक लोक जखन एक दोसराक पक्षमे बाजय लगैत अछि तँ एहि लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा व्यंँग्यट कयल जाइत छैक।
चूड़ा-दही बारह कोस, पूरी जिलेबी अठारहकोस। चूडा-दहीक जँ भोज रहय तँ मैथिल बारह कोसधरि जा सकैत छथि, किन्तुथ जँ पूड़ी जिलेबीक भोज हो तखन तँ पचासो किलोमीटरक यात्रा कय सकैत छथि।
चूड़ा मुर-मुर दही खट्टा,
कय पंचे अठारह कट्ठा ? संगी-साथी वा वरियातीमे बुझौलिक रूपमे एकर प्रयोग होइत अछि।
चूड़ा मुर-मुर दही खट्ठा,
सासु-पतोहुमे हँसी ठट्ठा। संगी-साथी वा वरियातीमे बुझौअलिक रूपमे एकर प्रयोग होइत अछि।
चेरिया बि‍आयलि कूथिकय,
महतमाइन कहलकै बेटिए। परिश्रम पूर्वक कार्य कयलाक बादो जँ यश नहि भेटय तँ एहि उक्तिक प्रयोग यकल जाइत अछि।
चेला मूडि़ देलहुँ मांगे खाउ। केओ जखन ककरो कोनो कार्य वा संस्था मे फँसालैत अछि, किंतु बादमे ओकर चिन्ताम नहिं करैत अछि, तँ एहि लोकोक्ति द्वारा असंतोष व्यअक्तो कयल जाइत अछि।
चैतक कटहर भादवक ओल,
की खाय राजा की खाय चोर। पूर्वमे चैतमासमे कटहरक तरकारी तथा भादवमे ओलक साना दुर्ल्लभ रहैत छल, कारण अजोह रहलाक कारण कृषक स्वभयं तोड़य चाहौत छथि, अपितु चोर चोरा कय लय जाइत अछि वा जनिका अलेल छनि से राजा जकाँ किछु तोड़बाकय तरकारी खा लैत छथि।
चैतक चूड़ा वैशाखक तेल,
जेठक चलब अषाढ़क बेल,
सौनक साग भादवक दही,
ई सबटा अपकारके कही। चैत मासमे चूड़ा खयनाइ, वैशाखमे तेल खयनाइ वा देह मे लगौनाइ, जेठक दुपहरियामे पैदल चलनाइ, आषाढ़ मासमे बेल खयनाइ साओन मासमे साग तथा भादवमे दही खयनाइ हानिकारक होइत छैक।
चैतक जाड़ हाड़मे लागय। चैत मास जाड़क समय नहि होइत छैक, किन्तुस असावधानीमे कहियो भोरहरबामे अतिशय ठण्ढी़ लागि जाइत छैक।
चैतमासमे ब्रह्मण बाछी बेचि कम्बकल किनलानि। सबटा गर्म कण्ड़ा लोक फागुनहिमे हँटा दैत छैक।
चैत हे सखि फलल बेली। मिथिलाक आमक गाछीमे जनसाधारण मचकी लगाकय उक्ती बारह मासा वा चौमासा गबैत झूलैत झूमैत रहैत अछि।
चोरक दाढ़ीमे चिचोढ़। अपराधीकेँ पकड़यबाक सतत् संदेह होइत रहैत छैक।
चोरक भगबा डाही। अपराधी केँ अपराधक दण्ड् अवश्य भेटबाक चाही।
चोरक माय चोरनी कोठी मुँह दय कानय। चोरबाक माय चोरिक धन नुकाकय रखत अछि, किन्तुक जखन बेटा पकड़ाकय दण्डित होइत छैक तँ उक्तक धनकेँ पकडि़कय कनैत रहैत अछि।
चोरक मुँह चाँइ सन। वा चान सन। अपराधीक मुँह-कान सेही उचक्काि सन लगैत छैक।
चोरक संग चोर पहरूक संग खबास। अवसरवादी एवं स्वाकर्थी लोकक हेतु प्रयोग कयल जाइछ।
चोरकेँ गरत्थास उदसास। जाहिठाम जान जयबाक खतरा रहैत छैक, ताहिठाम केवल गरदनियाँ पड़लापर आसान बुझि पड़ैत छैक।
चोरकेँ गवाहकनहि आस। अपराधीक पक्षमे गवाह नहि केओ देमय चाहैत अछि, कारण ओकरा फँसि जेबाक सम्भा वना रहैत छैक।
चोर चलल फाँसी तँ नौ गोटाके संग कय। अपराधी व्यँक्ति दण्ड सँ बचबाक लेल अनेक लोककेँ फँसा दैत अछि आ अनेक प्रकारक नाटक करय लगैत अछि।
चोर चिन्हलने गाम उजाड़। अपराधीकेँ पकड़यबामे मदति कयनिहार पर संकट आबि जाइत छैक।
चोर-चोर मसियात भाइ। एक अपराधीक मदति दोसर अपराधी तेना करैत अछि जेना ओकर ओ मसियौत भाइ होइक।
चोर चोरीसँ जाय तुम्मासफेरी सँ नहि जाय। साधु सन्तँ बनिओ गेला पर अपराधीक अपराध करबाक अभ्या स नहि जाइत छैक नहि किछु तँ सामानक हेराफैरिये कय बैसैत अछि।
चोर न्याियहिँ नष्टह। चोर यदिर अधिक सफाइ देमय लागय तँ ओकरा न्याअयालय वा पंचैतीमे उपस्थित कय दी तँ ओकरा उचित दण्डव भेटबे करतैक।
चोर न्या यहिँ नष्टं। चोर यदि अधिक सफाइ देमय लागय तँ ओकरा न्याधयालय वा पंचीतीमे उपस्थित कय दी तँ ओकरा उचित दण्डव भेटबे करतैक।
चोर बाजय जोरसँ। ये अपराध-कयने रहैत अछि से सफाइ अधिक दैत अछि।
चोर मोट बन्ह।नहि पाबी। अपराधी आ मोटाकेँ नीक जकाँ बान्हिकय रखबाक चाही, तखने ओ अधीन रहत अन्या था हाथसँ निकलि जायत।
चोर सहय इजोत ? प्रकाश होइतहिँ चोर निकलि जाइत अछि, कारण पकड़ा जयबाक सम्भा वना रहैत छैक।
चोरि कयने महापुण्यम, मंगने अधम दसा। चरित्रहीन एवं बइमान व्यहक्ति पर व्यं ग्यि करबाक हेतु एहि उक्तिक प्रयोग कयल जाइत अछि।
चोरबाक अरजल भरिघर खाय(वा सबकेओ खाय),
एसगर चोरबा फाँसी जाय। अन्त मे सजाय भेटबाक समयमे अपराधीकेँ केओ साथ नहि दैत छैक।
चोरक गवाह गिरहकटृ आ पासीक गवाह पिक्कगर। दू प्रकारक अपराधी सेहो एक दोसराकेँ बचयबाक चेष्टार करैत अछि।
चोरक खेती आ पैघक नौकरी दूनू बरोबरि। अपराधी मनोवृत्तिक लोक ईमानदारिसँ नहि कय सकैत अछि, ओ खराप हेबे करतैक।
चोरक माय सपनाइत छैक जे बेटा बड़द लेने अबैअय। चोर डाकूक माय सतत् धन प्राइज़ स्व प्तध देखैत रहैत अछि।
चोरक सरिया घँटकट्ट। एक अपराधी कोनहु प्रकारक अपराध कय सकैत अछि।
चोरक सरिया घँटकट्ट। एक अपराधी दोसर अपराधीक मित्र बनि जाइत अछि।
चोरके मारने नेबो के गारने। जहिना अपराधीकेँ सजाय आवश्य्क तहिना नेबो केँ नीकजकाँ गारलासूं रस प्राप्तह होइत छैक।
चोर जेहने हीराक तेहने खीराक। सामान्यन अपराध सेहो अपराधे कहबैत छैक।
चोरनीक चाउर टकेसेर। चोरिक वस्तु लोक सस्ते बेचि लैत अछि।
चोरनी होइहह त’ गलगरि होइहह। चोरि कयनिहार जोर-जोरसँ बाजिअपन अपराध केँ नुका पचा लेबाक चेष्टाो करैत अछि।
चोरबाक मन बसय ककडि़क खेत। अपराधीक ध्यायन केवल अपराधके योजना बनयबा दिस रहैत छैक।
चोर मोर घोड़ पानि पीबय भोर। अपराधी व्यडक्ति राति भरि जागल थाकल रहलाक कारण भोरमे जल पीबैत अछि।
चोर लऽ गेल मोटरी उसास भेल पारी। कखनी आर्थिक घाटा लगलहु पर विशेष नहि होइत छैक, अपितु भारे हल्लु क होइत छैक।
चोर सुनय धर्मक कथा ? अपराधी व्यरक्तिकेँ उपदेश एवं आदर्शक गप्पधनीक नहि लगैत छैक।
चोरारे वनोरा, ने तोरा हाथी ने तोरा घोड़ा। अपन कनीय व्य कित वा बेटा भातिज, भागिन एहि उक्ति द्वारा मधुर झिड़की देल जाइत अछि।
चोरिक धन छिपारे खाय। घरके प्रधानसँ चोराकय जे धन अन्युत्र कोसलिया करैत अछि, तकरा आने ठकि लैत छैक वा चोरि भय जाइत छैक।
चौठी चन्दा बड़ी अनन्दाक,
खिरिया पुरिया खोरे बन्दान। चौड़चन पावनि मिथिलामे बड़ नीक होइत अछि।
चौबे गेलाह छब्बेि बनय,
दूबे कहाकय अयलाह। अधिक बुद्धिमानी करबाक फेरीमे जखन आर अधिक घाटा लागि जाइत छैक तँ एहि लोकोक्ति द्वारा व्यंइग्य कय जाइत अछि।