भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Monday, February 15, 2010

'विदेह' ५२ म अंक १५ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५२)- PART I

'विदेह' ५२ म अंक १५ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५२)

वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश

२. गद्य
२.१.भालचन्द्रश झा- -बाल-शिक्षणपर निबन्ध हमर शिक्षण-यात्रा
२.२. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (अध्याय- १५सँ १८)

२.३.जगदीश प्रसाद मंडल- -दू टा कथा-१.डंका २ कोना जीवि?

२.४.१.सपथमे मैथिली- सुजीतकुमार झा २.बेचन ठाकुर,नाटक-‘छीनरदेवी’

२.५.जनकपुरमे मिथिला महोत्स्वक आयोजन : नवअध्यानयक शुभारंभ- -रामभरोस कापडि भ्रमर २.-कथा- ऋषि बशिष्ठ-पूत कमाल
२.६.१. प्रकाश चन्द्र-नचिकेताक ‘प्रियंवदा’ : एक विश्लेषण २. बिपिन झा-युवा हेतु प्रेमक "समुचित मार्ग" (वेलेण्टाइन डे विशेष पर)

२.७.१. कुमार मनोज कश्यप-कथा- कचोट २.कथा-मुसिबत– सन्तोिष कुमार मिश्र ३. दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी

२.८.१. विद्यानन्द झा-किशोर लोकनिक लेल दूटा कथा २ श्याकमसुन्दबर शशि- जनकपुरके खवरि



३. पद्य

३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ

३.२. गंगेश गुंजन:अपन-अपन राधा १८म खेप

३.३. कामिनी कामायनी-वसंत
३.४. शिव कुमार झा-किछु पद्य

३.५. आमोद कुमार झामैथिल नँइ–छोटका

३.६. सरोज ‘खिलाडी‘-गीत

३.७.१.सत्यक जीत- सतीश चन्द्र झा२. मनोज कुमार मंडल ३.कल्पना शरण-नुकाएल दिनकर
३.८. कालीनाथ ठाकुर, -एक श्रद्धाञ्जलि-- कोकिलकेँ२. तीनटा कविता राजदेव मंडलजीक

४. गद्य-पद्य भारती अन्नावरन देवेन्दर-अंतिम शब्द (तेलंगानाक किसान द्वारा आत्महत्यासँ पहिने पत्नीसँ कहल)-(तेलुगु कविता: तेलुगुसँ अंग्रेज पी. जयलक्ष्मी द्वारा, अंग्रेजीसँ मैथिली गजेन्द्र ठाकुर द्वारा)

५. बालानां कृते-१.. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक कथा २.. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)३.कल्पना शरण-देवीजी

६. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]

7.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
7.1.NAAGPHAANS-PART_II-Maithili novel written by Dr.Shefalika Verma-Translated by Dr.Rajiv Kumar Verma and Dr.Jaya Verma, Associate Professors, Delhi University, Delhi

7.2.Original Poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy of New York.-In the depth of my heart

विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions

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मैथिली देवनागरी वा मिथिलाक्षरमे नहि देखि/ लिखि पाबि रहल छी, (cannot see/write Maithili in Devanagari/ Mithilakshara follow links below or contact at ggajendra@videha.com) तँ एहि हेतु नीचाँक लिंक सभ पर जाऊ। संगहि विदेहक स्तंभ मैथिली भाषापाक/ रचना लेखनक नव-पुरान अंक पढ़ू।
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव



भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।



गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
विदेह जालवृत्तक डिसकसन फोरमपर जाऊ।
"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाऊ।

१. संपादकीय
कविता: कविता लोक कम पढ़ैत अछि। संस्कृतसन भाषाक प्रचार-प्रसार लेल कएल जा रहल प्रयास, सम्भाषण-शिविरमे सरल संस्कृतक प्रयोग होइत अछि। कथा-उपन्यासक आधुनिक भाषा सभसँ संस्कृतमे अनुवाद होइत अछि मुदा कविता ओहि प्रक्रियामे बारल रहैत अछि। कारण कविता कियो नहि पढ़ैत अछि आ जाहि भाषा लेल शिविर लगेबाक आवश्यकता भऽ गेल अछि, ताहि भाषामे कविताक अनुवाद ऊर्जाक अनर्गल प्रयोग मानल जाइत अछि। मैथिलीमे स्थिति एहन सन भऽ गेल अछि, जे गाम आइ खतम भऽ जाए तँ एहि भाषाक बाजएबलाक संख्या बड्ड न्यून भऽ जएत। लोक सेमीनार आ बैसकीमे मात्र मैथिलीमे बजताह। मैथिली-उच्चारण लेल शिविर लगेबाक आवश्यकता तँ अनुभूत भइए रहल अछि। तँ एहि स्थितिमे मैथिलीमे कविता लिखबाक की आवश्यकता आ औचित्य ? समयाभावमे कविता लिखै छी, एहि गपपर जोर देलासँ ई स्थिति आर भयावह भऽ सोझाँ अबैत अछि। एहना स्थितिमे आस-पड़ोसक घटनाक्रम, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, आक्षेप आ यात्रा-विवरणी यैह मैथिली कविताक विषय-वस्तु बनि गेल अछि। मुदा एहि सभ लेल गद्यक प्रयोग किएक नहि ? कथाक नाट्य-रूपान्तरण रंगमंच लेल कएल जाइत अछि मुदा गद्यक कवितामे रूपान्तरण कोन उद्देश्यसँ। समयाभावमे लिखल जा रहल एहि तरहक कविता सभक पाठक छथि गोलौसी केनिहार समीक्षक लोकनि आ स्वयं आमुखक माध्यमसँ अपन कविताक नीक समीक्षा केनिहार गद्यसँ पद्यमे रूपान्तरकार महाकवि लोकनि ! पद्य सर्जनाक मोल के बूझत ! व्यक्तिगत लौकिक अनुभव जे गहींर धरि नहि उतरत तँ से तुकान्त रहला उपरान्तो उत्कृष्ट कविता नहि बनि सकत। पारलौकिक चिन्तन कतबो अमूर्त रहत आ जे ओ लौकिकसँ नहि मिलत तँ ओ सेहो अतुकान्त वा गोलौसी आ वादक सोंगरक अछैतहुँ सिहरा नहि सकत। मनुक्खक आवश्यक अछि भोजन, वस्त्र आ आवास। आ तकर बाद पारलौकिक चिन्तन। जखन बुद्ध ई पुछै छथि जे ई सभ उत्सवमे भाग लेनिहार सभ सेहो मृत्युक अवश्यंभाविताकेँ जनै छथि? आ से जे जनै छथि तखन कोना उत्सवमे भाग लऽ रहल छथि। से आधुनिक मैथिली कवि जखन अपन भाषा-संस्कृतिक आ आर्थिक आधारक आधार अपना पएरसँ नीचाँसँ विलुप्त देखै छथि आ तखनहु आँखि मूनि कऽ ओहि सत्यताकेँ नहि मानैत छथि, तखन जे देश-विदेशक घटनाक्रमक वाद कवितामे घोसियाबए चाहै छथि, देशज दलित समाज लेल जे ओ उपकरि कऽ लिखऽ चाहै छथि, उपकार करऽ चाहै छथि, तँ ताहिमे धार नहि आबि पबै अछि। मुदा जखन राजदेव मंडल कविता लिखै छथि-
....
टप-टप चुबैत खूनक बून सँ
धरती भऽ रहल स्नात
पूछि रहल अछि चिड़ै
अपना मन सँ ई बात
आबऽ बाला ई कारी आ भारी राति
कि नहि बाँचत हमर जाति...?
तँ से हमरा सभकेँ सिहरा दैत अछि। कविक कवित्वक जाति, ओहि चिड़ैक जाति आकि..। कोन गोलौसी आ आत्ममुग्ध आमुखक दरकार छै एहि कविताकेँ। कोन गोलौसीक आ पंथक सोंगर चाही एहि सम्वेदनाकेँ। तँ कविताकेँ उत्कृष्टता चाही। भाषा-संस्कृतिक आधार चाही। ओकरा खाली आयातित विषय-वस्तु नहि चाही, जे ओकरापर उपकार करबाक दृष्टिएँ आनल गेल छै। ओकरा आयातित सम्वेदना सेहो नहि चाही जे ओकर पएरक नीचासँ विलुप्त भाषा-संस्कृति आ आर्थिक आधारकेँ तकबाक उपरझपकी उपकृत प्रयास मात्र होअए। नीक कविता कोनो विषयपर लिखल जा सकैत अछि। बुद्धक मानवक भविष्यक चिन्ताकेँ लऽ कए, असञ्जाति मनकेँ सम्बल देबा लेल सेहो, नहि तँ लोक प्रवचनमे ढ़ोंगी बाबा लेल जाइते रहताह। समाजक भाषा-संस्कृति आ आर्थिक आधारक लेल सेहो, नहि तँ मैथिली लेल शिविर लगाबए पड़त। बिम्बक संप्रेषणीयता सेहो आवश्यक, नहि तँ कवि लेल पहिनेसँ वातावरण बनाबए पड़त आ हुनकर कविताक लेल मंचक ओरिआओन करए पड़त, हुनकर शब्दावली आ वादक लेल शिविर लगा कऽ प्रशिक्षण देल जएबाक आवश्यकता अनुभूत कएल जएत आ से कवि लोकनि कइयो रहल छथि ! मिथिलाक भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता आ राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म आ दर्शन सेहो साहित्यमे अएबाक चाही। आ से नहि भेने साहित्य एकभगाह भऽ जएत, ओलड़ि जएत, फ्रेम लगा कऽ टँगबा जोगड़ भऽ जएत। कविता रचब विवशता अछि, साहित्यिक। जहिया मिथिलाक लोककेँ मैथिली भाषा सिखेबा लेल शिविर लगाओल जएबाक आवश्यकता अनुभूत होएत, तहिया कविताक अस्तित्वपर प्रश्न सेहो ठाढ़ कएल जा सकत। आ से दिन नहि आबए ताहि लेल सेहो कविकेँ सतर्क रहए पड़तन्हि।
मैथिली आ ब्रेल लिपि
फ्रांसक लुइस ब्रेल -अठारह सए नौ ई. मे जन्म आ अठारह सए बावन ई.मे मृत्यु- जे अपने आन्हर छलाह पन्द्रह बर्खक अवस्थामे ब्रेल लिपिक आविष्कार आँखिसँ विहीन लोकक लेल कएने रहथि। एहि लिपिमे कागजपर विशेष प्रिंटरसँ उठल-उठल बिन्दुक माध्यमसँ -जकरा हाथक स्पर्शसँ अनुभव कएल जा सकए- भाषाक संप्रेषण होइत अछि। एकरा दुनू हाथक स्पर्शसँ पढ़ल जाइत अछि। दहिना हाथ संदेशकेँ रूपान्तरित कए संप्रेषित करैत अछि आ वाम हाथ अगिला पंक्तिक प्रारम्भक अनुभव करैत अछि। एहि लिपिकेँ सामान्यतः डेढ़ सए शब्द प्रति मिनटक गतिसँ पढ़ल जा सकैत अछि जे आँखि द्वारा पढ़ल जाएबला सामान्य शब्द संख्या तीन सए शब्द प्रति मिनटक अदहा अछि।
एहि लिपिक आधारकेँ सेल कहल जाइत अछि। एकटा सेलक निर्माण छह टा बिन्दुक संयोजनसँ होइत अछि। एहिसँ तिरसठि प्रकारक विभिन्न वर्णक –अक्षर-संख्या आ विराम-अर्द्धविराम आदि चेन्ह- निर्माण होइत अछि।
हमर लिखल सहस्रबाढ़नि जे मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक अछि (ISBN:978-93-80538-00-6) २००९ मे रिलीज भेल आ पुअर होम दरभंगा स्थित ब्लाइन्ड स्कूलकेँ पठाओल गेल अछि।

संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ फरबरी २०१०) ९५ देशक १,१०० ठामसँ ३८,५०३ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,२६,५९६ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद (http://www.box.net/shared/75xgdy37dr)बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....
१.डॉ. जेकील आ मिस्टर हाइडक कथा अंग्रेजी विषएमे स्कूलमे पढ़ने रही। एकटा वैज्ञानिक रहथि डॉ. जेकील हृदएसँ कलुषित। मोन करन्हि जे चोरि-उच्क्कागिरी करी। से एकटा द्रवक खोज कएलन्हि जकरा पीबि कऽ ओ मिस्टर हाइड बनि जाथि आ रातिमे चोरि-उच्क्कागिरी करथि। एक रातुक गप अछि जे मिस्टर हाइड ककरो हत्या कऽ भागि रहल रहथि मुदा भोर भऽ गेल रहै से लोक सभ हुनका खेहारए लगलन्हि। ओ डॉ.जेकीलक घरमे पैसि गेलाह (कारण डॉ.जेकील तँ ओ स्वयं छलाह) आ केबार भीतरसँ लगा लेलन्हि। लोक सभ चिन्तित जे डॉ. जेकीलकेँ ई बदमाश मारि देतन्हि से ओ सभ केबार पीटए लगलाह। मिस्टर हाइड द्रव पीअब शुरु केलन्हि मुदा ओहि दिन दवाइमे रिएक्शन नहि भेलैक आ हुनकर रूप डॉ. जेकीलमे नहि बदलि सकलन्हि। आब एहि कथाक अन्तमे मिस्टर हाइड माथ नोचि रहल छथि जे हुनका अपन समस्त पापक प्रायश्चित मिस्टर हाइड बनि करए पड़तन्हि।
२. पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... हिनकर रियल आइडेन्टिटी हम नाङट करै छी आ ई आब अभिशप्त छथि अपन शेष जीवन मिस्टर हाइड रहि अपन कुकृत्यक सजा भुगतबाक लेल।
३.मैथिलमे ई एकटा तथ्य छै जे चुपचाप जे गारि सुनै अछि तकरा कहल जाइ छै जे ओ बड्ड नीक लोक छथि। मुदा समए आबि गेल अछि मिस्टर हाइड सभकेँ देखार करबाक आ ओकरा कठोर सजा देबाक। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। मैथिलीमे बहुत गोटे छथि जे हिन्दीमे बैन भेल लेखककेँ पोसै छथि (मैथिली सेवाक लेल) जे जखन ककरो गारि पढ़बाक होए तँ ओ तकर प्रयोग कऽ सकथि।
४.एहि ब्लैकमेलरक डॉ. जेकील आ मिस्टर हाइड बला चरित्र मैथिल सर्जनाक विरोधमे मैथिल-जन पत्रिकामे एक दशक पहिने उजागर भऽ गेल छल मुदा लोक हिनका पोसैत रहल।
५.आरम्भमे सेहो ई एकटा चिट्ठी मैथिलीक सम्पादकक विरोधमे देलन्हि जे छपि गेल आ ओकर घृणित भाषाक कारण भाइ साहेब राजमोहन झाकेँ माफी माँगए पड़लन्हि आ फेर ई मिस्टर हाइड सेहो ओहि सम्पादकसँ लिखितमे माफी मँगलन्हि।
६.एकटा आग्रह आ आह्वान: सुभेश कर्ण आ समस्त मैथिली-प्रेमी-गण- एहि मिस्टर हाइडक ब्लैकमेलिंग आ एब्युजक द्वारे अहाँ सभकेँ मैथिली छोड़ि कऽ जएबाक आवश्यकता नहि अछि, कारण पापक घैला भरि गेलाक बाद ई आब अभिशप्त छथि अपन शेष जीवन मिस्टर हाइड रहि अपन कुकृत्यक सजा भुगतबाक लेल।
जे.एन.यू.मे छात्र-छात्रा सभसँ पोस्टकार्ड पर साइन लऽ ओहिपर अपन रचना लेल प्रशंसा-पत्र पठबैत घुमैत अपस्याँत कथित गोल्ड मेडेलिस्ट(!!!) मिस्टर हाइडकेँ चिड़ैक खोता तोड़बाक सख शुरुहेसँ छन्हि। पहिल कथा गोष्ठीमे जखन ई सहरसामे सभसँ पुछने फिरै छथि जे साहित्यकार बनबासँ की-की सभ फाएदा छै तखन ई एकटा पाइ आ पुरस्कारक लेल अपस्याँत मैथिल युवा-पीढ़ीक प्रतिनिधित्व करै छथि, जे राजमोहन झा जीक शब्दमे मैथिलीसँ प्रेम नञि करैत अछि। ई मिस्टर हाइड सेहो ओहि सम्पादकसँ लिखितमे माफी मँगलन्हि आ जखन ओ माफ कऽ देलखिन्ह तखन फेर हुनका गारि पढ़ब शुरु कऽ देलन्हि। हमरासँ लिखित मेल-माफी अस्वीकार भेलाक बाद मिस्टर हाइडक माथ नोचब स्वाभाविके। मिस्टर हाइड ककरो इनकम टैक्स, कस्टम वा सरकारी नोकरीमे देखै छथि, सुनै छथि तँ पाइक मारल जेकाँ हिनका मोनमे ब्लैकमेलिंग कुलुबुलाए लगै छन्हि, प्रायः आनन्द फिल्मक एक गोट कलाकार जेकाँ- जे एहने मिस्टर हाइड लेल कहै अछि- जे ई डॉक्टर रहितए तँ किडनी बेचितए, से ओ जतए छथि ओतहु ब्लैकमेलिंगक धन्धा शुरू कैये देने छथि। मुदा चिड़ैक खोता उजाड़ैत-उजाड़ैत मधुमाखीक छत्ता उजाड़बाक गल्ती एहेन ब्लैकमेलर कैये दैत अछि। जे सरकारी नोकरी वा इन्कम-टैक्स, कस्टममे ई ब्लैकमेलर रहितए तँ देश जरूर बेचि दैतए।

kellner@ucla.edu" Dear Gajendra
thanks for the detective work. was there a response?
best regards,
Douglas Kellner
Philosophy of Education Chair
Social Sciences and Comparative Education
University of California-Los Angeles
Box 951521, 3022B Moore Hall
Los Angeles, CA 90095-1521

Fax 310 206 6293
Phone 310 825 0977
http://www.gseis.ucla.edu/faculty/kellner/kellner.html

dear Gajendraji,
apnek mail milal. Pankajjik kritya janike bar dukh bhel. Ahi se maithilik nam kharab hoyat achhi. Apnek kadam ekdum uchit achhi.
Rajiv K Verma
These People are hellbent to bring down the literary discourse down to the gutter. Now you have been receiving mails like one. We are with you and i have forwarded your mails to Maithili speaking people all across the country

--
VIJAY DEO JHA
dhanyvad. muda ehne lok sabjagah aadar pabait achi
shridharam

अहां कें सूचनार्थ पठेने छी जे पंकज पहिनेहो इ सब काज करैत रहय छलैए।
aavinash

Dear Gajendra g

You are doing very well in the field of collecting all the documents related to the Maithili. Videha. Com realy a adventureous collection. I will also find some time to learm the article published through the videha.
Now your detective style theft the sleeping of many of the so called literary personnel. Go a head
jai Maithili jai Mithila
Sunil Mallick
President
MINAP, Janakpur

Dear Gajendra g

You are doing very well in the field of collecting all the documents related to the Maithili. Videha. Com realy a adventureous collection. I will also find some time to learm the article published through the videha.
Now your detective style theft the sleeping of many of the so called literary personnel. Go a head
jai Maithili jai Mithila

Sunil Mallick
President
MINAP, Janakpur

your efforts are commendable. Anysuch ghost writer or fake identity holder must be boycotted from literature at once Thanks.

shyamanand choudhary

Namaskar.
Chetna samitik sachiv ken mailak copy hastgat kara del achi.
Dr. Ramanand Jha' Raman'
गजेन्द्र जी ,
चेतना समिति हिनका सम्मानित कएलक अछि सेहो हमरा ज्ञात नहिं | यद्यपि हमहू चेतना क स्थाई सदस्य | जे हो. मुदा निंदास्पद घटना तं ई थिके तें दुखी कयलक | कतिपय नव मैथिल-प्रतिभाक आकलन-मूल्यानकनक हमर अपन स्नेग्रही स्वभाव, एहि दुर्घटनाक बाद तं आब चिंता मे ध' देलकय|
देखी,
सस्नेह ---गं गुंजन
प्रिय गजेंद्रजी
हम अपने विस्मित भेलहुँ| बहुत दु:खद दृश्य | सृजन विरूद्ध साहित्यिक सन्दर्भ मे ई घटना आधुनिक मैथिलीक बहुत कुरूप प्रसंग क' क' स्मरण कैल जायत
सस्नेह,
गंगेश गुंजन.
PRIYA MAITHILJAN
APPAN BHASHA- SANSKAR-SANSKRITI KE ASMARAN KARU AA EHAN VIVADAASAPAD LEKANI B KARANI KE VIRAM DIYA. ESWAR KE SAKCHI MANI - DIL PAR HATH RAKHI AA KULDEVI KE ASMARAN K-K YAD KARU KI SACHHAI KE KATEK KARIB CHHI.NIK BATAK LEL MANCH KE UPYOG KARI TA UTTAM.
DHANYABAD.
SAPREM,PK CHOUDHARY
Gajendra babu
pankaj puran chor achhi. Ham sab okar likhit ninda das sal pahine aarambh me kene rahi. Okra ban k kay ahan nik kayal. Chetna samiti ke seho samman wapas lebak chahi aa okar ninda karbak chahi.
subhash Chandra yadav
प्रिय ठाकुरजी!
(माननीय संपादक)
“विदेह ई-पत्रिका” [मैथिली]
एखन धरिक उपलब्ध साक्ष्यक आधार पर हम अपनहिक संग जाएब पसिन्न करब।
शंभु कुमार सिंह
Sir I have sent the link of Parashar's duplicacy to several people
along with Pranabh Bihari who had traslated that article. I had
telephonic conversation with him also and he was quite upset over
Parashar;s duplicay
Pranav is my junior and a good friend of mine. since you have referred Pranav who had traslated that article it is unfortunate that he was misused by Parashar. But i must congratulate you for exposing scam run by Parashar and his team. Parashar, though must not be blamed if he lifted the article of Nom Chomskey . Now i must doubt the artistic sensibility of Parashar who is now a pseudo-- intellectuals. I am amazed that how did he dare to publish the article of Nom Chomskey as his own.
God bless him no more
Vijay Deo Jha
Dear Gajendraji,
I fully agree with you that we must fight against blatant cases of wrongful appropriation.
हां अपन मेल में लिखने छी जे विदेह आर्काइव से संबंधित लेखक'क सबटा रचना हटा लेल जायत। अहि से आर्काइव सं ई प्रसंग सेहो, एकर साक्ष्य सेहो मेटा जायत। हमर मत ई जा साक्ष्यब रहबाक चाही निक आ अधलाह दुनु तरहक काज'क। अहां अप्पसन कामेंट आ र्निणय सेहो आर्काइव मे जा के संबंधित रचना के पोस्टा-स्क्रिाप्टर के रुप मे भविष्या'क पाठक'क लेल सुरक्षित राखि सकैत छियन्हिि।
ई दोहरेबाक बहुत औचित्यक नहि जे विदेह निक लागि रहल अछि आ अहांक परिश्रम एकदम देखा रहल अछि।
ईति,
सदन।


Sadan Jha
Sadan Jha

Thank you and same to you.

Nishikant Thakur

Thanx Gajendraji, for your immediate response. I must congratulate you for the work you have done to save the sanctity of the literature world as a whole.

I feel proud for the person like you who shows the courrage to bell the cat. If the so called writers like Parasharji are there to spoil the sea, on the other side it is very hopeful sight to have a person like you who is alert enough to take care of such filth & keep the sea clean.

Thanx for enlightening me on the subject.

Regards,
Bhalchandra Jha.

पंकज पराशरकेर एहन कार्य पर स्मरण अबैत अछि करीब बीस-पचीस साल पहिलुक घटना, जहिया आकाशवाणी दरभंगासँ म,म,डॉ, सर गंगानाथ झाक एकमात्र मैथिलीक कारुणिक पदकेँ एक गोट कवि द्वारा अपन कहि प्रसारित कए देल गेल छल, जे बादमे (सजग श्रोता द्वारा सूचना देलाक बाद) आजन्म बैन कए देल गेलाह । कहबाक तात्पर्य जे जँ हम मैथिल दरभैगा- मधुबनीमे गंगानाथ बाबूक पदकेँ अपन कहि सकैत छी तँ ई कोन बड़का गप । निश्चये एहन रचनाकारकेर सङ्ग कड़गर डेग उठाएब आवश्यक ।
ajit mishra

Dear Gajendrajee,
We should take strong step to prevent such intellectual cheats.
My support is always with you.
K N Jha
This seems to be a dangerous trend and we should also try and refrain from publishing anything from such authors. Regards,
Prof. Udaya Narayana Singh
प्रियवर ठाकुर जी,
मैथिल साहित्यकार आब साइबर क्राइम सेहो क रहल छथि, ई जानि अपार प्रसन्नता भेल |
पंकज पराशर के नकारात्मक बुद्धिक पूर्ण उपयोग करबाक लेल हम नोबेल प्राइज सा सम्मानित कराय चाहैत छी |
बुद्धिनाथ मिश्र
Sampadak Mahoday
Apne ehi prakarak durachar rokwak lel je prayash ka rahal chhee
ohi lel dhanyabad.Ehen blackmailer sa maithili ken bachayab aawashyak
achhi
Sadar
SHIV KUMAR JHA


गजेन्द्र भाई,
नमस्कार ! मैथिली मे एहि तरहक काज लगातार भ' रहल अछि । किछु व्यक्ति एहि धंधा मे अग्रसर छथि । मैथिलीक सम्पादक लोकनिक अनभिज्ञताक फायदा कतेको अंग्रेजी पढ़निहार तथाकथित साहित्यकार लोकनि उठा रहल छथि । पंकज जीक पहल मे छपल लेख के हम सेहो पढ़्ने र्ही आ किछुए दिनक बाद हम नेट पर मूल लेखकक आलेख के सेहो पढ़लहु । हमरा त' आश्चर्य लागल छल जे पंकज जी आलेखक कम स कम शीर्षक त' बदलि लैतथि मुदा हुनका एतेक ज्ञान रहितनि तखन की छल ।

एतबे नहि , हिनक बहुत रास कवितो अंग्रेजी साहित्य स' हेर-फेर कयल गेल अछि । खैर ! जे करथि ... । मुदा एहि बेर कहाबत ठीक होबाक चाही " सौ सोनार के त' एक लोहार के " । प्रकाशन मे जे भी कियो व्यक्ति गलती क' रहल छथि हुनका गंभीर क्रिमिनल बुझबाक चाही ।

धन्यवाद एहि लेल अहाँ के जे एतेक जोरदार तरीका स' एहि गप्प के उठैलहु ।

अहाँक

प्रकाश चन्द्र ।
pankaj parashar vala prasang bar dukhad laagal ,,
kamini
Gajendr jee,
maamailaa ke tool jatabe debainhi, sabhak oorjaa otabe svaahaa hetai. हमर मनतब एतबे, जे एक बेर अहां देखार क देलहुं, आब छोडि देल जाओ. हिन्दीयो मे एहिना भ रहल छै. बेर बेर आ खराब भाषा मे लिखल मोन के दुखी करैत अछि. फेर लागैत अछि जे अहि मे समय कियैक नष्ट करी?
हिन्दुस्तान मे जाति आ सेहो मैथिली से जाति नयि जाएत. हम एकरा नयि मानैत छलहुं मुदा आब 30 बरख से मैथिली मे लिखनाक बाद आब देखल जे एक ओर
1 मैथिली साहित्य मे लिली जी, उषा जी आ शेफलिका जी के बाद यदि किओ नाम लैत अछि त हमर.
2 एखनो कोनो पत्रिका बै छै त हमरा लेल रचनाक आग्रह होइते छै.
3 एखनो हम ओतबे सक्रिय छी आ निरंतर लिखि रहल छी.
4 दुखद जे हमरा बाद (सुस्मिता पाठक आ ज्योत्स्ना मिलन के हम अपने तुरिया बुझैत छी) के बाद एहेन कोनो सशक्त कोन, महिला लेखने नयि आएलए.
5 ई स्थिति रहलाक बादो, आब जहन हम देखै छी, त पाबै छी जे हमरा पर, हमर रचना यात्रा अथव हमर रचना पर किछु नयि लिखल गेलए, चाहे ओ मोहन भारद्वाज रहथु अथवा आन किओ. जहन हमर दशक केर चर्च होइत छै, तीन चारिटा नाम पर सविस्तार चर्चा होइत छै, जाहि मे हमर नाम नयि रहैत छै. हमर नाम मात्र सन्दर्भ लेल जोडि देल जाइत छै.
6 एतेक दिन मे मात्र रमण जी हमरा पर एक गोट लेख लिखलन्हि. हम ओकरा पुन: टाइप करबा के अहां लग पठायब.
7 जाति पाति धर्म आ द्वेष पर कहियो ध्यान नयि देलाक कारणे त कही हमर ई स्थिति नयि छै, आब हमरा ई सोचबा मे आबि रहल अछि.
8 हमर शिक्षक, जे स्वयं हिन्दी के ख्यातिलब्ध कथाकार छथि, हमरा बुझेने रहलाह जे हम मैथिली मे लिखब बन्न क; दी, कियैक त हम गैर मैथिल (जाति विशेष) से नयि छी, तैं हमर लेखन के कहियो मैथिल सभ नयि नोटिस करताह, कहियो किछु नयि करता.. अपन भाषाक प्रति प्रेम के आगरह कारणे हम हुनकर बात नयि मानलियै, लिखैत गेलहुं, मुदा आब लागि रहलअए जे हुनकर कहबी सही छलन्हि की?
9 एखनो की हाल छै मैथिली मे, देखियो. ओकरा विरुद्ध किछु करियु. मैथिली मे जे पैघ पैघ संस्था चाइ, चेतना समिति सनक, सभ बेर विद्यापति पर्व मनबैत छथि. लाखो खर्च करै छथि, मुदा नीक लेखक केर पोथी सभ बेर 5-7 टा निकालैथु, से नयि होबैत छन्हि.
10 हमरा भेटल जानकारी के मोताबिक विद्यापति हॉल किराया पर चढै छै. तकरा मे कोनो आपत्ति नयि, यदो ओकरा से किछु आय होबै. मुदा ओकरा मैथिलीक काज अथवा नाटक आदि लेल मांगल जाएत, त; नयि भेटै छै. यदि ओकर शुल्क चुका दी, तहन त किरायाके रूप मे किऊ ल' सकि छै. एकरा सभ के उजागर करी.
11 व्यक्ति से संस्था पैघ होइत छै. जतेक संस्था सभ छै, तकरा पर लिखी, साहित्य अकादमीक मैथिली विभाग सहित.
12 लिली रेक सभटा रचनाक अनुवाद अधिकार हमरा देने छथि. हुनक साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त पोथी 'मरीचिका' केर हिन्दी अनुवाद लेल पिछला 2-3 साल से हम लिखि रहल छी. साहित्य अकादमीक पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य" मे हम पिछला 25 साल से अनुवाद सहित छपि रहल छी. मुदा हमरा से अनुवादक नमूना मांगल गेल. ओहि कुर्सी पर जे स्वनाम धन्य बैसल छथि, हुनका हमरा मादे नयि बूझल त कोनो मैथिल साहित्यकार से पूछि सकैत छलाह. ई तहिने भेलै, जेना एक बेर एक गोट चैनल ऋषिकेश मुखर्जी से हुनकर बायोडाटा मंगने छल आ एखनि पढल समाचारक अनुसारे आ. जानकी वल्लभ श्हस्त्री से हुनकर बायोडाटा पद्मश्री लेल मांअगल गेलैय.
13 अपन विनम्रता दर्शाबैत हम लिली जीक दू तीन टा कथाक हिन्दी अनुवाद हम पठा देलियन्हि. तैयो अई पर कोनो विचार नयि. लिखला के बाद हमरा कहल गेल जे हम लिली जी से साहित्य अकादमी के अनुवादक अधिकार दियाबे मे मददि करी. आरे भाई, अहां के अनुवाद से मतलब अछि ने, आ जहन हम अनुवाद क; के देब' लेल तैयार छी तहन अकादमी के किअयैक अधिकार चाही? अई लेल जे अकादमी अपन पसीनक आदमी के अनुवाद लेल द; सकय. एखनि धरि ओकरा पर निपटारा नयि भेलैये. अकादमी से फेर कोनो पत्र नयि आएल अछे. अनुवाद तैयार राखल छै. लिली जी आब बहुत बुजुर्ग भ; गेल छथि. हुनक मात्र इयैह इच्छा छै (आ बहुत स्वाभाविक) जे हुनकर पोथी सभ हुनका सोझा मे प्रकाशित भ; जाए.
14 लिली जी के पोथी हिन्दी मे आनबाक श्रेय हमरे अछि, ई मनितहुं ओकरा रेकॉर्ड केनाए मैथिल समीक्षक आवश्यक नयि बुझैत छथि. एकरा पर लडू.
15 मैथिली के भारतीय ज्ञानपीठ से पुस्तक प्रकाशन लेल हमही आगां एलहुं आ प्रभास जी आ लिली जी के पोथी बहार भेलै.भारतीय ज्ञानपीठ से मैथिली पुस्तक प्रकाशन के श्रेय हमरे छन्हि, ईहो मनैत ओकरा रेकॉर्ड केनाए मैथिल समीक्षक आवश्यक नयि बुझैत छथि. एकरा पर लडू.
गजेन्द्र जी, मैथिलीक ई सभ मानसिकता पर आन्दोलन करी जाहि से रचनाकार आ वरिष्ठ रचनाकार सभ के अपमानित नयि होब' पडै. अहां चाही त' एकरा विदेह पर द' सकै छी.
हम दोसर बात सेहो लिखि के पठायब. मुदा हम फेर कहब, जे हम व्यक्ति के नयि संस्था आ व्यक्ति के मानसिकता के दोष देबन्हि. लोक पढथु आ पूचाथु ई स्वनामधन्य सभ से जे जकरा से अहां के गोलौंसी अछे, तकरा पर अहां लिखब आ जकरा से नयि अछे, जे मौन भावे लिखि रहलए कोनो विविआद मे पडल बगैर, हुनका लेल ई व्यवहार?
-विभा रानी.
Shri gajendraji

good work.

Anha sa ehina neer khshir vivekakak ummeed lagatar banal rahat.

chor ke ehina dekhar kelak baad dandit seho karbak prayas karbaak chahi. anha bahut raas neek pahal ka rahal chhi.


Saadhuvaad.

manoj pathak.


गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in

२. गद्य
२.१.भालचन्द्र9 झा- -बाल-शिक्षणपर निबन्ध हमर शिक्षण-यात्रा
२.२. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास (अध्याय- १५सँ १८)

२.३.जगदीश प्रसाद मंडल- -दू टा कथा-१.डंका २ कोना जीवि?

२.४.१.सपथमे मैथिली- सुजीतकुमार झा २.बेचन ठाकुर,नाटक-‘छीनरदेवी’

२.५.जनकपुरमे मिथिला महोत्सरवक आयोजन : नवअध्याययक शुभारंभ- -रामभरोस कापडि भ्रमर २.-कथा- ऋषि बशिष्ठ-पूत कमाल
२.६.१. प्रकाश चन्द्र-नचिकेताक ‘प्रियंवदा’ : एक विश्लेषण २. बिपिन झा-युवा हेतु प्रेमक "समुचित मार्ग" (वेलेण्टाइन डे विशेष पर)

२.७.१. कुमार मनोज कश्यप-कथा- कचोट २.कथा-मुसिबत– सन्तोेष कुमार मिश्र ३. दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी

२.८.१. विद्यानन्द झा-किशोर लोकनिक लेल दूटा कथा २ श्या.मसुन्दमर शशि- जनकपुरके खवरि

भालचन्द्रद झा--बाल-शिक्षणपर निबन्ध
हमर शिक्षण-यात्रा
भालचन्द्रण झा-
मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दी, मराठी, अग्रेजी आ गुजरातीमे निष्णात। १९७४ ई.सँ मराठी आ हिन्दी थिएटरमे निदेशक। बीछल बेरायल मराठी एकांकी-मराठीसँ मैथिली अनुवाद।
बाल-शिक्षणपर निबन्ध
हमर शिक्षण-यात्रा

ई गोट पचीस- तीस बरख पुरान गप्पश अछि। तहिया हम नव-नव ए.टी.डी. (आर्ट टीचर्स डिप्लोकमा) कएने रही। मुम्ब इक (तखन बम्बनइ रहै) एक गोट प्रसिद्ध स्कू.लक प्राथमिक विभागमे सहायक शिक्षकक रूपमे नाकरी धऽ लेलहुँ। आध दिन नोकरी आ अ‍ाध दिन अपन कॉलेजक अगिलुका पढ़ाइ। किछुए दिनमे हमर पढ़एबाक पद्धतिकेँ लऽ कऽ अभिभावक सभक उपराग आबऽ लगलैक। नहूँ-नहूँ ई उपरागक स्वकर कनेक ऊँच बुझाए लागल। बात मुख्यािध्यारपक धरि पहुँचि गेलै।

मुख्याझध्यातपक शैक्षणिक क्षेत्रमे राष्ट्रुपति अवार्ङसँ विभूषित छलाह। अपन काजक प्रति एतेक समर्पित, जे जाहि दिन हुनकर अपन बेटीक बियाह रहनि, ओहू दिन अपन काजक क्षतिपूर्तिक वास्ते् भोरमे पाँचे बजे अपना टेबुलपर हाजिर। आ ककरो कानोकान खबरि धरि नहि। ने किओ प्यू न आ ने कोनो सहायक। मुहूर्तक समएसँ किछु पहिने फोन कऽ देल गेलनि तँ कन्याकदान करबाक हेतु विवाह मण्ड।पमे पहुँचलाह (महाराष्ट्र्मे विवाह दिनमे होइत छै)।

एकदिन हठात प्यूतन आबिकऽ हमरा हुनक समाद देलक जे ‘हेड गुरूजी अपनेकेँ याद कएलनि अछि’। एहने बिना कोनो कारणक ओ ककरो डिस्टऽर्ब नहि करैत छलाह। खासकऽ हमरा। हमरा सँ कनेक विशेष लगाव होएबाक कारण। जे हम ओहिकालक शिक्षक सभक लॉटमे नवतुरिए रही। दोसर जे कला शिक्षकक हैसियतसँ हम बिनु ककरो कहने अपने मोनसँ स्कूेलमे अनेक तरहक विधाक काज करी। रूटीनसँ हटिकऽ किछु-किछु नब-नब प्रयोग करबामे हमरा बड्ड मोन लागए। किछु विषयान्त र तँ होएत मुदा एतऽ उदाहरणक वास्तेस एक-दू गोट छोट-छिन प्रसंग कहब आवश्यक हएत।

शिशु-वर्गक नेन्ना सभ जहन पहिल-पहिल बेर स्कूबल अबैत अछि तँ माए-बापकें छोड़ैत नञि रहैत छैक। कनैत-कनैत अपस्यॉं त भेल रहैत छैक। झौहरि तँ एतेक पड़ैत छैक जे कान नञि देल जाइत छैक। स्कू लक पूरा स्‍टाफ ओकरा सभकें तरह-तरहसँ बौंसऽ मे लागल रहैत अछि। हमहूँ ओहि प्रयासमे लागल रही। नेन्ना सभक ध्याान बँटेबाक वास्ते हम किछु कागज आ ऑइल पेस्ट ल (मोमक रंग-पेन्सिल) आनि कऽ ओकरा सभक सोझाँमे राखऽ लगलिऐक। परिणामो जल्दी्ये देखाए लागल। ओहिमे सँ किछुकें तँ ओ कागज आ पेन्सिल देखिते मातर तरबा लहमरि मगजमे पहुँचि गेलै। ओ सभ कागजकेँ हाथमे लऽ कऽ ओकरा चिर्री-चिर्री कऽ देलकै। पेन्सिल टुकड़ी-टुकड़ी कऽ कऽ बीगि देलकै।

एक गोट नेन्नाकें जहन हम बहुत फोर्स केलिऐ तँ ओ हमरा हाथसँ पेन्सिल छीनि कऽ सामने राखल कागजपर जेना टूटि पड़ल। हाँ‍‍ञि-हाँ‍‍ञि कऽ पेन्सिलकेँ कागजपर घसऽ लागल। एक बेर जे कागजपर पेन्सिल रखलकै से फेर बिनु उठौनहें पूरा कागजकें भरि देलकै। मुदा एहि के बाद ओ शांत भऽ गेलै। भऽ सकैये, ओकर एनर्जी जबाब दऽ देने होइ। अथवा ओ हमर प्रतिक्रियाक प्रतीक्षा करऽ लागल हुअए। वा हमर प्रति अपन क्रोधक प्रदर्शन करबाक वास्तेा ओ एहि माध्य्मक उपयोग केलाक बाद शांत भऽ गेल।

बहुत दिन धरि हम एहि विषएमे सोचैत रहलहुँ। से किएक तँ पूर्ण विश्वा स अछि जे छोटोसँ छोट, प्रत्येजक कृतिक (Act) किछु अर्थ होइत छैक, किछु प्रयोजन होइत छैक। भने आइ ओहि विशिष्ट् कृतिक सार्थकता दृष्टिपथमे नहि आबए। मुदा बिना कोनो प्रयोजने कृति भऽ नञि सकैत अछि। कमसँ कम एतेक तँ बुझबामे आबिये गेल जे आत्मए-प्रगटीकरण हेतु चित्रकला सन प्रभावी दोसर माध्यकम नहि। जाहि माध्यषममे बिना कोनो संस्कागर वा व्यााकरणकेँ नेन्नो अपन मोनक गप्पन व्यसक्त‍ कऽ सकैत हुअए, ओहिसँ सरल आ श्रेष्ठद कोन माध्यिम भऽ सकैत अछि ?

किछु दिनक बाद जहन नेन्ना सभ स्कूणलक माहौलसँ घुलि-मिलि गेल, हम एही तरहक एक गोट आर प्रयोग कएल। एक गोट कक्षाक साफ-सफाइ करा कऽ पूरा फर्शपर उज्ज-र प्ले्न कागज पसारि देलिऐक। कोठरीमे एक गोट स्पी कर टँगवा देलिऐक । आ डोलमे भित्र-भित्र रंगकें घोरि कऽ कोठरीगक बाहरक जमीनपर हेरा देलिऐक, जाहिसँ कोठरीमे जाइ काल ओकरा सभकें ओहि रंगेपर सँ जाए पड़ैक। आ तकर बाद कोठरीक स्पीऐकरपर नेन्ना सभक कोनो परिचित गीत शुरू कऽ देलिऐक। नेन्ना सभकें खालीए पएर ओहि कोठरीमे जएबाक लेल कहि देल गेलैक।

अनेक रंगसँ पोताएल तरबा लऽ कऽ गीतक तालपर नेन्ना सभ ओहि उज्जऐर प्लेकन कागजपर नाचऽ लागल। ओहि कागज परक रंग-बिरंगा छापकें देखि कऽ ओकर सभक जे प्रतिक्रिया भेलैक तकर वर्णन कोनो प्रतिभाशाली, संवेदनशील कवि कऽ सकैत छल। तकरा बाद तँ ओ सभ अपनेसँ बाहर जा-जा कऽ अपना पसंदक रंगमे पएर पोति-पोति कऽ भरि पोख अपन तरबाकें ओहि कॅनवासपर अंकित करऽ लागल। एहि तरहें बनल रंग-छापकें (Colour Print) चुनि-चुनि कऽ जहन ओकर फ्रेम बनाओल गेलै, तहन तँ ओकर सौंदर्य आर निखरि गेलैक। ओहि फ्रेमकें शिशुवर्गक कक्षा सभमे टाँगि देल गेलैक। तकरा बाद बहुत दिन धरि नेन्ना सभ अपन-अपन पएरक छाप चीन्हरऽ मे अपन आनन्द हेरैत रहल।

कहक माने ई जे एहि तरहक प्रयोग सभसँ हमर मुख्याकध्याआपक बड्ड प्रसत्र होथि। प्यूदन जखन हुनक समाद देलक तँ हम पहिल फुरसहतिमे हुनकर केबिनमे पहुँचि गेलहुँ। ओ जाहि तरहें वातावरण बनबऽ लगलाह ओहिसँ ई बुझबा मे कनेको भाङ्गठ नहि भेल जे कोनो गम्भी र बात छैक। खैर ओकर अधिक विस्ताारमे नहि जाइत एतऽ एतबे कहब जरूरी अछि, जे अभिभावक सभ हमर पढ़एबाक पद्धतिक विरोधमे हुनका धरि पहुँचि गेल रहथि। मिला-जुला कऽ उपराग एतबे जे ‘अहाँ नेन्ना सभकेँ चित्र बनाएब नञि सिखबैत छिऐक। घरमे नेन्ना सभक चित्र पूरा करबाक जिम्मेरदारी माए-बापकें उठबऽ पड़ैत छैक।’

उपराग सुनिते एहि तरहक सोचक मूल स्रोत बुझबामे भाङ्गठ नञि भेल। एहि तरहक सोचक मूल स्रोत छैक प्रचलित शिक्षा पद्धति। हम सभ जाहि शिक्षा-व्य वस्थारकें अंगिकार कएने छी, ओकर सभसँ भारी समस्याद हमरा जनितब इएह जे एहि शिक्षा-पद्धतिसँ नेन्ना सभक मोनपर जाहि तरहक संस्काकर पड़ब अपेक्षित‍ से नञि भऽ रहल छैक। विद्यार्थीकें स्वसयंसिद्ध बनएबामे जाहि तरहक ज्ञान, मेहनत आ संयमक आवश्यिकता होइत अछि, ओकर पूर्ण अभाव। किताबमे छपल शब्दव पढ़ि देलहुँ वा पढ़वा देलहुँ। ओही महक किछु शब्दवक पर्यायवाची शब्दपक अर्थ कहि कऽ पड़सि देलहुँ। भऽ गेलै! छुतिका छुटि गेलै।

स्वा इत गुरूदेव रविन्द्रहनाथ ठाकुरकें ‘शान्तिनिकेतन’ आरंभ करबाक आवश्यरकता बुझेलनि ! आ हम सभ एखनो धरि वएह लकीरक फकीर बनाबऽ मे लागल छी। नवीनताकेँ स्वीरकारब तँ हमरा सभकें जेना पापे बुझाइत रहैत अछि। तें एहि युगक महान वैज्ञानिक आइन्सकटाइनकें ई कहऽ पडलनि, जे ‘हमर शिक्षा-दीक्षा तँ ओही दिन समाप्तत भऽ गेल, जाहि दिन हमरा स्कूालमे भर्ती करा देल गेल।’
कला जकाँ सृजनशील विषएक अवस्था कोनो भित्र नञि अछि। ब्लैमकबोर्डपर कोनो चित्र खीचि देल आ नेन्ना सभकेँ ऑर्डर भऽ गेल, जे एकरा देखिकऽ चित्र बनबै जाऊ। भऽ गेलै। आब अपने टाइम-पास करबाक हेतु फ्री छी। गार्जियनो सभ एहिना सिखने छथि। तें नेन्नाकें कॉपी भरल देखलन्हि आ भऽ गेलाह प्रसन्न, जे चलू, पढ़ाई भऽ रहल छैक। कॉपी भरि रहल छैक। मुदा ओ सभ ई नञि सोचैत छथि, जे ब्लैचकबोर्डपर बनाएल चित्र तँ कोनो वयस्करक दिमागक प्रतिमा (Image) छैक। नेन्ना सभक दिमागमे ओहि प्रतिमाकेँ स्थालपित करबाक धडफड़ी किएक ? नेन्ना सभक दिमागक विकास-क्रमक अनुरूप ओकर अपनो किछु प्रतिमा हेबे करतैक। ओकरा सोझा अनबाक प्रयास किएक ने, जाहिसँ ओकर अपन स्वोतंत्र विकास होइ?

एहि बातकें एहि तरहें बूझल जाए। मानि लिअ जे वयस्क, शिक्षक अपन विकसित (! ) दिमागसँ एकगोट फुजल छत्ताक चित्र ब्लैूकबोर्ड पर बना कऽ नेन्ना सभकें ओकरा बनाबऽ लेल कहैत छथि। ब्लैककबोर्डपर चित्रित फुजल छत्ता, भौमितिक आकारक अनुरूप साधरणतया अर्धगोल देखाइत छैक। मुदा अहाँ देखबैक जे नेन्ना सभक मानस पटलपर भौमितिक आकारक मिती (Dimension) स्पगष्टक नहि भेल छैक। पचमा- छठमा दर्जामे जहन भूमिती पढ़ाएल जेतैक तँ ओकरो दिमागमे मितीक अंतर स्पणष्टो भऽ जेतै।

एहि अवस्थानमे वयस्क शिक्षक जहन अपन चित्रक तुलनामे नेन्ना सभक चित्रमे ‘गलती’ सुधारऽ लगैत छैक तँ नेन्ना सभ बाजि तँ किछु नञि सकैत अछि। मुदा भीतरे-भीतर ओकरा सभक दिमागमे घोंघाउज (Confusion) शरू भऽ जाइत छैक। किएक तँ ओकरा जनितबें ओहो वएह चित्र बनौने अछि। तहन गलती कोन तरहक भेलैक, से बुझबाक प्रगल्भओता एखन ओकरामे विकासित नहि भेल छैक। नेन्ना सभक चित्र वयस्कह सभक चित्रसँ भिन्न भने देखाइत हुअए, मुदा गलत नहि भऽ सकैत अछि। तें हमरा जनितब नेन्ना सभक चित्र देखबाक नञि पढ़बाक वस्तुभ होइत अछि। एहि बातकें जखन चित्रकला सिखाबऽ बला शिक्षके नञि बुझैत छथि तँ सामान्या स्त्री -पुरुषक कथे की !

ब्लै कबोर्डपर चित्र बना कऽ पढ़ाएब नेन्ना सभक स्वछतंत्र सोचपर अन्यालय करब भेलैक। ओकरा आश्रित बनेनाइ भेलैक। हम योजित विषयपर नेन्ना सभक स्तढरपर चर्चा कऽ ओकरा सभकें प्रेरित करबामे अधिक विश्वा स राखैत छी, जाहिसँ ओकरा सभक मानस पटलपर ओहि विषएकेँ लऽ कऽ ओकर अपन स्वधतंत्र बिम्बर बनौ, आ तकरा बाद ओ सभ अपन क्षमताक अनुरूप कागजपर ओकरा उतारए। भनहि ओ चित्र वयस्कऽ सभक दृष्टियेँ कतबो बेढब, आकारहीन, मितिहीन होइ मुदा ओहि चित्रमे नेन्ना सभक अपन व्यबक्तित्वौ हेतैक, ओकरासँ अपनत्व हेतैक, ओकर आत्मआविश्वाउस बढ़तैक, स्वनतंत्र रूपसँ अपन दिमाग लगएबाक आदति लगतैक।

नेन्ना सभक चित्रमे एहिसँ अपेक्षा हमरा अपराध बुझाइत अछि, किएक तँ एखन ई विषए पढ़एबाक मूल उद्देश्यभ, एहि विषएक प्रति ओकरा मोनमे आत्मी,यता उत्पनन्न करब छैक, ओकरा चित्रकार बनेनाइ नञि। ई तँ काले तए करतै जे ओ चित्रकार बनत की नञि। एहि विषएक माध्य,मसँ ओकरामे खाली नवनिर्माणक क्षमताक प्रति आस्थाै जागृत कएल जा सकैत अछि।

एक गोट ठोस उदाहरणसँ एहि संकल्पनाकें आर बेसी स्पिष्ट, कएल जा सकैत अछि। साधारण रूपसँ जहन नेन्ना सभकेँ मुर्गीक चित्र बनेबाक लेल कहल जाइत छैक तँ ओ मुर्गीक पेटमे अन्डाै सेहो देखबैत छै। आब हम सभ तथाकथित संस्कारसँ ग्रस्तब लोक जहन ई चित्र देखैत छी, तँ गुम भऽ जाइत छी। जे केहन मतसुन्न नेन्ना अछि ई ? मुर्गीक पेटमहुक अन्डा कतऽ सँ देख लेलक ई ? बस लगलहुँ ओकरा हूथऽ ... तरह-तरहसँ ओहि महक गलती बुझाबऽ। चीजक ‘असलियत’ बुझने, लगलहुँ ओकरा ‘असली’ चीजक अर्थ बुझाबऽ।

असलियत ई अछि जे आठ-दस साल धरि नेन्ना सभकें यथार्थ दृष्टि प्राकृतिक रूपसँ भेटल रहैत छैक। एकरा दोसर शब्देमे ‘एक्सर रे’ दृष्टि सेहो कहि सकैत छिऐक। प्रत्येकक वस्तुसकें देखबाक ओकर अपन दृष्टिकोण होइत छैक। वस्तु कें आर-पार ओ देख सकैत अछि। मुदा हमरा सभक दृष्टिमे ओकर एहि दृष्टिकें कोनो मोजरे नञि। हम सभ सदखनि अपन तथाकथित वयस्कर (!) संस्कामरित दृष्टिकोणसँ सभ चीजकें नपबाक अभ्य स्त छी। तैं ओकर यथार्थवादी दृष्टिकोणकेँ पढबामे हम सभ सक्षम होइत छी।

ई रहने हमरा आओर तँ बुझितिऐक जे नेन्ना जहन मुर्गीक आङ्गिक विशेषताक बारेमे ख्या।ल करैत छैक तँ ओकर यथार्थवादी दृष्टिकोण इएह कहैत छैक जे मुर्गी अन्डाी दैत छै। ई सोचिते ओकर मोन कहैत छै, एकर माने कतहु अन्डाट जमा हेतैक। तुरत ओकर स्म्रण ओकरा मदद करक वास्ते हाजिर भऽ जाइत छैक। माएसँ सुनने अछि, मुँहसँ खाएल अन्न पेटमे चलि जाइत छैक। माने पेटमे जमा होएबाक जगह छैक। ओ पेटमे अन्डाा देखा दैत छैक। एहि प्रक्रियामे ओ गलत कोना आ कतऽ भेल? रहल वैज्ञानिक सत्य ताक गप्पक। तँ जेना-जेना ओकर उम्र बढतैक, उपरका दर्जामे ओ जाएत, ओकरा ईहो स्पखष्ट भऽ जेतैक। एखनि तँ शिक्षकक उद्देश्यप ई होबाक चाही जे ओ निडरतासँ अपना आपकें व्यनक्त करबामे सक्षम हुअए। हमरा बुझने अपन कल्प ना लादि कऽ शिक्षक आ गार्जियन सभ ओकर प्राकृतिक यथार्थकें, तार्किक दृष्टिकोणकें, ओकर स्म रणशक्तिक विकासकें कुंठित करबामे लागल छथि।

सभाक उपसंहार करैत हम एतेक अवश्यद कहलियन्हि, जे जाहि दिन नेन्ना सभक चित्रमे अपने सभ दखल देब बन्न कऽ देबन्हि, ओही दिनसँ नेन्ना सभक मानसिक विकास शुरू भऽ जेतैक।



दुइये बरखमे मास्टहरीसँ हमर मोन उपटि गेल। नोकरी छोडि देलहुँ। मुदा ई भाव सदिखन बनल रहल जे हम स्कूरल नञि, अपन सिखबाक प्रयोगशाला छोडि़ रहल छी। मुदा ईहो स्थिति बहुत दिन धरि नञि रहल। पुरना स्कू लक एक गोट स्टासफ हमर अभित्र छलाह। एकदिन हमरा अचक्केछ भेट गेलाह। कहऽ लगलाह जे एक गोट शिक्षक एक गोट झुग्गीस बस्तीअमे स्कूनल खोलि रहल छथि। ओकर विशेषता ई अछि जे ओहि स्कू लमे ओ एहने विद्यार्थीकेँ एडमिशन देबऽ चाहैत छथि जकरा कोनो आन स्कूरलमे एडमिशन नहि भेटैत छै।

गप्प वास्तमवमे ध्याान देबऽ योग्यच रहैक। एहन स्कू ल खोलबाक हेतु तेहन ध्येतयवादी शिक्षक सभक आवश्यटकता हेतैक। अपन अभिन्नक मंतव्यह बुझबामे हमरा कनियो भाङ्गठ नहि भेल। मुदा हमरा एकहि नोकरीमे ई बुझबामे आबि गेल छल जे मास्टमरीमे जाहि तरहक संयम, स्थैभर्य आ धैर्यक आवश्यीकता होइत छैक, हमरामे ओकर लेशो मात्र नञि अछि। हुनका तत्कामल हम कोनो वचन नञि देलियन्हि। असलमे हम फेरसँ ओहि रुटीनमे फँसऽ नहि चाहैत छलहुँ। मुदा ओ अपनहिसँ हमर नामक सिफारिश कऽ देलन्हि। किछुए दिनमे हमरा ओहि मुख्याध्याापकजीक समाद भेटि गेल। ई १९८१-८२ क गप्पक अछि।

एक गोट शिष्टातचारक धर्म बुझि हम हुनकासँ भेंट करबाक निश्चकय कएल। मुदा हुनक कथा-वार्तासँ हम बड्ड प्रभावित भेलहुँ। ओहो हमर प्रतिक्रिया स्वसरूप टिप्प्णीसँ प्रभावित बुझएलाह। हम ट्रायल बेसिसपर किछु दिनक हेतु हुनकर ऑफर स्वीोकार करबाक निश्चेय केलहुँ। एहिबेर हमर नियुक्ति माध्यहमिक दर्जा (पँचमा सँ दसमा दर्जा) हेतु भेल रहए। झुग्गीन बस्तीेक ओहि स्कूयलमे सभ तरहक अपराध बेरोकटोक चलै छल। दारू बनेनाइ, बेचनाइ, पिनाइ आ जूआ खेलेनाइ तँ बड्ड साधारण गप्प्।

बस्तीइक स्वाबभाविक अस्वपच्छखतासँ पसरल दुर्गन्धि आ दारूक गंधसँ स्कूहलमे नाक नञि देल जाइ। स्कूओलक खिड़कीक निच्चाी जुआक दाँव लगै। ओ तँ धन्य कही मुख्याध्याुपकजीक जे ओ निडरतासँ एहिसभ सँ निपटैत छलाह। लाठी लऽ कऽ खिहारि-खिहारि कऽ ओकरा सभकेँ भगबथि। आ स्कूकलमे ओकरे सभक बेटा-बेटीकें पढ़एबाक भार उठाबथि। बेरोजगार युवक सभ महिला शिक्षिका सभकें बड्ड उछन्नरि दै। जान मुट्ठीमे लऽ कऽ सभ व्यावहार चलैक, किएक तँ कखन ककरासँ उट्ठा-बज्जारि भऽ जाए, एकर कोनो गैरेंटी नञि।

अनुकूल परिस्थितिमे कोनो काजकें सफल बनेनाइ कोनो विशेष गप्पए नञि। मुदा सभ तरहसँ परिस्थितिक प्रतिकूलतामे कोनो काजकें सफल बनेनाइ एकटा उपलब्धिये कहल जा सकैत अछि। आ सेहो शिक्षा जेकाँ एक गोट गंभीर तथा जिम्मेंदारीबला क्षेत्रमे। मुख्याजध्या।पकजीक एहि साहसकें एक तरहें तपस्ये कहल जएबाक चाही। बस इएह एक गोट बात छल जाहि सँ हम हुनका दिसि आकर्षित भेलहुँ। एक गोट भित्र तरहक, शिक्षाक असली बेगरताबला नेन्ना सभक संग साथक अनुभव।

स्कू लक टाइम-टेबुलमे ‘चित्रकला’ एकतरहें जगह भरऽ बला (Filter) विषयक तौरपर लेल जाइत अछि। टाइम-टेबुलमे सभसँ अग्रिम स्थागन पाबऽ बला विषए होइत अछि गणित (हिसाब), दोसर मान विज्ञानक, तेसर मान देल जाइत अछि भाषाकें, ताहूमे अंग्रेजीक स्थावन प्रथम, तहन मातृभाषा, तकरा बाद द्वितीय भाषा। चारिम स्थादनपर इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रनकें कोनहुना फिट कऽ देल जाइत छैक। तहन अबैत छैक नम्बभर पॉलिसी मैटरबला विषए सभक, जेना कार्यानुभव, हस्ततकला, चित्रकला, पी.टी., जकरा ‘खेल’ क नामपर शहीद कऽ देल जाइत छैक। सप्ता्हमे एक-दू बेर सांस्कृ्तिक कार्यक नामपर अनेक तरहक छूटल-छिरियाएल विषएसँ छुतिका छोड़ा लेल जाइत छैक।
अइ कथापर गौर केलासँ शिक्षाक दर्जा आ ओहिसँ होबऽबला परिणामक अंदाज अ‍ाबि सकैत अछि। आटा पीसऽबला मशीनकें देखियौ। ओकर मुँहमे गहूम अथवा आन कोनो अनाज उझील देल जाइत छैक। आ किछुए कालमे दोसर दिसिसँ पिसाए आटा बहरा जाइत छैक। आजुक शिक्षा-पद्धतिकें देखिकऽ हमरा ई स्कूपलो सभ विद्यार्थी बनाबऽ बला बड़का-बड़का मशीने बुझाए लगैत अछि, जाहिमे प्रत्येमक वर्ष विद्याक अर्थी उठाओल जाइत अछि।
त्रुटि दृष्टिकोण (Vision) मे नञि, त्रुटि कार्यान्व्यन (Execution) मे अछि। प्रत्येपक विषयक अपन किछु विशिष्टदता छैक। समय आ स्थाहनक मर्याद अछि। तैँ सम्प्रुति मात्र किछु पॉलिसी मैटरबला विषएक सन्दअर्भमे हम अपन विचार राखब। असलमे एहि सभ विषएकें दू गोट श्रेणीमे राखल जा सकैत अछि। दिमागमे तनाव पैदा करऽ बला विषए आ दिमागी तनावकें ढील (Relax) करऽ बला विषय।
मुख्यक विषए सभ कोनो ने कोनो सिद्धान्त(क व्यामकरणक ज्ञान दैत छैक। एहि तरहक विषए सभमे शरीर स्थिर रहैत छैक मुदा दिमागी एकाग्रता, सतर्कता, आ जागरूकता अपन चरमपर, जाहिसँ दिमागपर दबाव बनैत छैक। दोसर दिस हस्तगकला, चित्रकला, संगीत, कार्यानुभव, पी.टी. (खेल) एहि तरहक विषए सभमे एक तरहक नवनिर्मितिक आनन्दक भेटैत छैक। संपूर्ण शरीरमे भित्र-भित्र तरहक लय, ताल आ भंगिमामे कृतिशील रहलासँ मनोरंजनक अनुभति होइत छैक। एहिसँ तनाव आ दबावकें ढील होमएमे मदति भेटैत छैक।

तें नेन्ना सभक टाइम-टेबुलमे एहि दूनू तरहक विषएकें एहि तरहें बान्हतल जएबाक चाही, जाहिसँ समतोल (Balance) बनल रहै। जतेक सम्भनव भऽ सकै, तनाव उत्पेत्र करऽबला विषएक बाद, तनावकेँ मुक्त करबाक वास्तेभ दोसर तरहक विषएक रचना करबाक चाही। जाहि सँ अगिलुका विषएक तनाव झेलबाक क्षमता उत्पेत्र भऽ सकए। अइमे मेहनति छैक, दिमागी छैक। योजनाबद्ध तरीकासँ काज करबाक परीक्षा छैक। के करत ? मुदा एहि विषए सभक योग्यक नियोजनसँ की चमकाजन र भऽ सकैत छैक तकर प्रत्याक्ष अनुभव हमरा एहि स्कूभलमे कएल अपन प्रयोगसँ भेल।

जाहि तरहक वातावरणसँ ई स्कूदल घेराएल छल तकर वर्णन तँ ऊपर केनहे छी। एहन वातावरणमे के टिकए ? तें शिक्षक सभक कमी सदिखन बनल रहैक। कोटा पद्धतिसँ शिक्षकक नियुक्ति, तकरामे आर अड़चनि पैदा करए। बहुत रास विषएक शिक्षके नहि भेटै। आपसमे कहुना कऽ ऐडजस्टक करैत विषए सभ पढ़ाअ‍ोल जाइ। हमरो कोनो ने कोनो शिक्षकक क्षतिपूर्ति करबाक वास्ते बेगरतू कक्षामे पठा देल जाए। हमहूँ एकरा एक गोट मौका बूझि कऽ टाइम-टेबुलपर देल विषए पढाबऽ लागी। कतहु अंग्रेजी तँ कतहु मराठी, कतहु हिन्दी तँ कतहु आन कोनो विषए।

ताबत ए.टी.डी. कएलाक बाद हम रुपारेल कॉलेजसँ बी.ए. कऽ लेने रही। थिएटर डिप्लोेमा चलि रहल छल। तैं पँचमासँ दसमा धरिक नेन्ना सभकें विषए पढ़ेनाइ ततेक कठिन नञि बुझाए। हम बी.ए. अर्थशास्त्रए लऽ कएने रही। तें दसमा वर्गमे अर्थशास्त्र पढ़एबाक जिम्मान हमरे दऽ देल गेल रहए। नियामनुसार ई ठीक नञि छल। किऐक तँ हमर नियुक्ति रहए स्पेंशल शिक्षकक रूपमे। मुख्या विषए पढ़एबाक हेतु हम प्रशिक्षित नञि रही। मुदा मुख्यानध्या्पको मजबूर छलाह। दोसर कोनो उपाये नञि रहनि।

अहिना एकदिन हमरा दिमागमे एक गोट बात आएल। जे एकहि कक्षामे एक गोट विद्यार्थी प्रथम अबैत छैक। आ ओकरे बगलमे बैसऽबला फेल भऽ जाइत छैक, से किएक ? दोसर बात जे फेल विद्यार्थियो कोनो विषएमे बढिञाँ अंक आनैत अछि तँ कोनोमे खराप, से किएक ? जखन कि कक्षा, शिक्षक, समए सभ एके रंगक होइत छैक। किछु कारण तँ अवश्येअ हेतैक।

विचार केला सन्ताा ई बुझाएल जे जाहि विषएमे ओ बेसी अंक आनैत अछि ओहिमे अवश्येथ एहन किछु गप्प, छैक जे ओकरा पसिन्न छैक। तें ओहि विषएमे ओकर मोन अधिक रमै‍त छैक। दोसर विषएमे ठीक एकर उल्टाे हेतैक। यदि ओहि विशिष्टे विषएमे सँ ओकर पसीन (Interest) केँ ताकि लेल जाए तँ दोसर विषएमे ओकर ओहि पसीनकें पैदा कऽ कऽ परिणाम बदलल जा सकैत अछि की नहि ?

हम एहि दिशामे प्रयत्न करबाक निश्चदए केलहुँ। ओहि समएमे प्रत्येrक कक्षाकें विद्यार्थी-संख्याेक अनुसार ‘अ’-‘ब’-‘क’-‘ड’-‘ई’ ...एहि तरहेँ भिन्न-भिन्न विभागक संरचना कएल जाए। एहि व्यअवस्थाममे ‘अ’-‘ब’ मे बढिञाँ, पास होबऽ बला विद्यार्थी आ ओकरा बादक दर्जामे सभ भुसकौल, फेल होबऽबला विद्यार्थी सभ राखल जाइ। आब अइ तरहक भिन्न-भिनाऊज करबाक अनुमति नञि छैक। मिझ्झर कऽ बैसाएल जाइत छैक। तँ हम आठमा ‘ड’ क चारि गोट विद्यार्थीकेँ हेरि ओकरा सभकें दत्तक लेबाक विचार कएलहुँ। माने एहि चारि गोट विद्यार्थीक परीक्षा-परिणाममे परिवर्तन अनबाक दृष्टिसँ हम ओकरा सभक मार्गदर्शन करबाक जिम्माए उठा लेलहुँ।

विद्यार्थी सभक मानसिकताकें परखऽ लेल हम चित्रकलाकें आधार बनाओल। हमरा सफलतो दृष्टिगोचार होमए लागल। एहि प्रयोगक पराकाष्ठापमे हमरा आश्चार्यजनक गप्पम सभक पता लागल। पँचमा दर्जाक एक गोट विद्यार्थी हमरा एहेन भेटल, जकरा कोनो चित्र बनाबऽ कहिऐक तँ ओ अपन चित्रकलाक कॉपी ठाढ़े (Vertical) अवस्थामे पकड़ैक। पहिने तँ एहि बातकें हम कोनो गम्भीचरतासँ नहि लऽ पेलहुँ। मुदा जहन एकर पुनरावृत्ति होमए लगलैक तखन हमर ध्या न एहि दिसि गेल। तकरा बाद तँ हम जानि-बूझि कऽ ओकर प्रत्येरक कृतिकें अपन अध्यमयनक (Study) विषए बना लेलहुँ।
ओकर रचना, आकृतिक बनावट, रंगक चुनाव, रंगबाक पद्धति... ओकर प्रत्ये क कृतिकें कखनो हम अलग (Isolate) कऽ कऽ देखिऐक तँ कखनो आन विद्यार्थी सभक तुलनामे। ई क्रम बहुत दिन धरि चलैत रहलैक। एकर चरम आबि गेलै ओहि दिन, जहिया हम विषए देने रहिऐक ‘हमर परिवार’ (My family) । ओकर ई चित्र जेना भक दऽ हमर आँखि फोलि देलक। एहि चित्रसँ जाहि तरहक निष्क।र्ष निकलल ओहिकें ठीकसँ बुझबा लेल सर्वप्रथम ओकर चित्रक बनावटकेँ ठीकसँ बूझए पड़त।

सभसँ पहिने ओकरा द्वारा कागजकें ठाढ़ कऽ कऽ पकड़बाक पाछाँक रहस्यन बूझि ली। कॉपी ठढ़का आयतक आकार लऽ लैत छैक। जाहिमे चौड़ाइ कम आ लम्बापइ बेसी होइत छैक। एहिसँ ओ ‘जगहक संकोच’ दिसि हमर सभक ध्याान आकृष्टा करऽ चाहैत छल। छोट जगह ओकर नियति बनि गेल छलैक। स्थाचनक ई अभाव ओकरा दिमागपर एतेक हाबी छलैक जे ओ एहिसँ बाहर सोचिये नहि सकैत छल।

आब ओकर चित्रक संरचनाक (Construction) विषएमे। कागचक भीतर दिसि चारूकात अंदाजसँ एक-दू इन्चकक बॉर्डर छोडि़ कऽ ओ रेघ खिचने छल। जेना ठाढ़ आयताकार कागजक भीतर एक गोट आर ठाढ़ आयत। चित्रक परिपूर्णतामे ई डायनिंग टेबुल जकॉं देखाइत छल। डायनिंग टेबुलक छवि (Image) ओकरा लेल आइ-काल्हुमक सिनेमा आ टीभी प्रोग्रामक देन छलैक, ई बूझल जा सकैत अछि।

टेबुलक उपरका हिस्सा्मे दू गोट अल्प वयी नेन्नाक बीचमे एक गोट वयस्कू स्त्री केँ चित्रित कएल गेल रहैक। ई सम्भ वत: ओकर माए आ भाएक छवि छलैक। आ ओकरा सभक आगूमे थारी, बाटी, आ गिलास सदृश किछु समान सभ। निचलुका हिस्साओमे केवल एक गोट नेन्नाक आकार। सम्भमवत: ओ स्व यं। ओकरो आगूमे ओहिना किछु बासन सभ। टेबुलक बिचला पूरा हिस्साल खाली।

रंगक नामपर जे रंग भेटलैक ओकरा ओ पोछि-पाछि देने रहैक। एहिमे प्रत्ये क वस्तुीक प्रति ओकर उदासीनता प्रकट भऽ रहल छलैक। मुदा ओहूमे गौर करबाक गप्पप ई जे लाल रंगक उपयोग प्रमाणमे किछु बेशिये बुझाइत रहैक। ई ओकर मरखाहा (Aggresive) प्रवृत्तिक निदर्शक छलै। आर किछु छोट-मोट विशेषता (Details) भऽ सकैत अछि जे हम बिसरि गेल होएब। मुदा कुल मिला कऽ ओहि नेन्नाक मानसिकता बुझबाक दृष्टिसँ ओकरा द्वारा चित्रित दृश्य क एतबा वर्णन काफी अछि।

ओहि चित्रकें लऽ कऽ एक गोट कला शिक्षकक रूपमे तथा प्रत्ये क कृतिक पाछाँक सत्य क सन्धातनमे रुचि राखऽबला एक गोट विद्यार्थीक रूपमे हमरा अपना जे बुझाएल ताहि दिसि देखी। चित्रक विषए रहैक हमर परिवार (My family)। ई चित्रित करबाक वास्तेि विद्यार्थी द्वारा ‘खाइक बेर’ क दृश्यनक चुनाव करब, हमरा जनितब ओहि नेन्नाक जागृत बुद्धिकेँ देखाबैत छल। किएक तँ मुम्बिइ सन शहरमे साधारण रूपसँ इएह ओ बेर होइत अछि, जाहिमे परिवारक सभ सदस्यिक एक संगे बैसब संभावित छैक। वास्तएवमे किओ बैसैत छैक कि नञि ई आन गप्प, अछि। आन नेन्ना सभमे किओ एकरा लेल ‘बगीचा’ क चुनाव कएने छल, तँ किओ कोनो समारम्भगक। एहि सभ विभिन्ना दृश्य क चुनावक पाछाँ सम्बान्धित पारिवारिक स्थितिकें लऽ कऽ बनल मानसिकताक छाप स्प ष्टस रूपसँ बुझाइत छलैक।
आब चित्रक रचनाक मादे। डायनिंग टेबुलक एक छोरपर बनल दू गोट नेन्नाक बीचमे बैसल स्त्री् तथा दोसर छोरपर चित्रित एकसरि नेन्ना। ई पारिवारिक समबन्धूमे आएल कोनो तरहक दूरी दिसि इंगित करैत अछि। सभसँ चौंकाबऽबला गप्पन तँ ई छल जे एहि चित्रमे वयस्के पुरुषक रूपमे ककरो चित्रित नहि कएल गेल रहैक। हमरा बुझने ई बात परिवारसँ गाएब पिताक अस्तित्वेक सम्बुन्धिमे छल। टेबुलक दोसर कोन्टाा महक एक गोट नेन्नाक आकारक माध्यवमसँ ओ ककरो एकसरिपन (Loneliness) देखा रहल छल। साइत परिवार-समूहसँ दुराएल नेनपन!

कोनो ठोस निर्णयपर पहुँचबाक पहिने विचार कएलहुँ जे ओहि विद्यार्थीसँ एहि सम्ब)न्ध मे गप्पो कएल जाए। ओकरा अपन विश्वापसपात्र बनएबाक दृष्टिसँ प्रयत्नज शुरू कएलहुँ। किछुए दिनमे ओ बधि गेल। तकरा बाद फुसिए आहे-माहे करैत, ओकरा पोल्हार-पोल्हाह कऽ जाहिसँ ओकरा कोनो तरहक शंका नञि होइ, ई ख्यााल रखैत ओकर दिन क्रम, घरक वातावरण, माता-पिता, भाइ-बहिन इत्याञदि जीवन सम्बखन्धीा बातक लेबऽ लगलहुँ। गप्प करिते सभ चीज फरिछा गेल। दुर्भाग्यरसँ हमर कयास ठीके रहए।

आब ओकर बापसँ गप्पत करब हमरा बड्ड आवश्य्क बुझाए लागल। दू-तीन बेरुक समादक बाद ओ भेंट करऽ आएल। किछु परिचय-पात्र भेलाक पश्चा्त जतबे गम्भी रतासँ हम ओकर बेटाक बारेमे चिन्ता व्यदक्त करैत गेलहुँ, ओतबे दृढ़तासँ ओ एहि गप्प‍क खंडन करैत रहल। ओकरा मोने हम अनेरे एहि गप्पिकें गंभीर बुझि रहल छलहुँ। हारि कऽ हम ओहि विषएकें छोड़ि ओकर नोकरीक विषएमे, ओकर परिवारक विषएमे, ओकर दिनचर्याक विषएमे गप्प करऽ लगलहुँ।

बेटा नान्हिएटा रहैक, जखन ओकर पहिल स्त्रीर स्व,र्ग सिधारि गेल रहैक। टुअर नेन्नाकें माएक कमी नञि बुझाइ, तैं ओ दोसर बियाह कऽ लेलक। नव माउगिसँ दू गोट आर नेन्ना, एक गोट बेटा, एक गोट बेटी। घरमे कमाए जोगरि वएह एके टा बेकति। भोरे काजपर चलि जाए तँ आबए साँझखनि। ई सभ बढिञाँसँ चलि रहल रहैक, एक तँ दोसर माउगि अपन नेन्ना आ ओकर पहिल नेन्नामे कहिओ कोनो फरक नहि केलकै। ई छल एहि दिसि देखबाक ओकर दृष्टिकोण।

तैयो हम अपना मर्यादामे ओकरा हृदए धरि एतेक बात पहुँचा देलाइक जे एहि बेटाक बारेमे जतबा ओ बूझैत अछि ओतबा सभ किछु ठीक ठाक नञि छै। तैं तरहें आस-पड़ोससँ, दोस्तम महीमसँ, आन कोनो स्रोतसँ एहि गप्पओक वास्त विकताक जतेक जल्दीप पता लगा लेत, ओकरा हेतु ओतबे योग्ये हेतैक। खैर, बात आएल-गेल भऽ गेलैक। हमहूँ रुटीनमे लागि गेलहुँ।

एकदिन अचानक शिक्षक-कक्षमे ओ हाजिर भऽ गेल। नमस्का र पातीक पश्चाात हम अपन व्य्क्तिगत काजमे लागि गेलहुँ। हमरा भेल अपन कोनो काजसँ ओ आएल होएत। मुदा जहन बड़ी काल धरि बिना कोनो एहन विशेष व्युवहारक मूड़ी खसौने बैसल देखलिऐक तँ शंका भेल। औपचारिकतावश पूछि देलिऐक जे कोनो विशेष कार्यसँ आएल छह की विद्यर्थीक रुटीन रिपोर्ट लेबाक वास्तेि। हालाँकि अहि बातक संभावना कम्मे रहैक। कनेक कालक दुबिधाक बाद ओ कहलक जे अहींसँ भेंट करबाक अछि। अपन देह-भंगिमासँ ओ बड्ड डिस्ट र्ब्डक बुझाएल। किछु संकोचमे सेहो रहए। हमरा कने-मने ई बुझबामे आबि गेल जे हम जे ओकर बेटाक मादे कहने रहिऐक, ओही सम्बमन्ध मे कोनो हेतैक। ओकरा सहज करबामे कनेक बेर तँ लागल मुदा हमरा लऽ कऽ सभ तरहें आरश्वहस्त। भेलाक बाद गरम बालुमे फुटैत मकइक लाबा जकाँ ओ भड़भड़ाए लागल।

संपूर्ण रामायणक सार ई जे हम विद्यार्थीक चित्रकलाक आधारपर जे गप्पम ओकरा कहने रहिऐक तकर वास्त्विकता ओकरा समक्ष आबि गेल रहैक। हम जाहि शंकाक बीज ओकरा हृदएमे रो‍पि देने रहिऐक ओ राति-दिन ओकरा खिहारऽ लगलैक। ओहिसँ पाछाँ छोड़एबाक हेतु ओ एहि बातक तहमे जएबाक निश्चऐय केलक, जाहिसँ हमर सिद्धान्तहक झूठ वा सत्यु सामने आबि गेलापर ओकरा कमसँ कम एहि दुबिधासँ छुटकारा तँ भेटिये जेतैक। मुदा भेलै उन्टात। सत्य‍क ई चेहरा ओकर कल्प नोसँ अधिक भयंकर छलै।

नव पत्नी,कें अपन संतान भेलाक बादक परिस्थितिमे भेल बदलावसँ ओ पूर्णरूपेण अनभिज्ञ छल। भोरूक गेल नोकरीसँ साँझ धरि घुरए। बेटा किछु कहबो करैक तँ नेन्ना सभक गप्पल बूझि कऽ बातकें टारि जाए। पत्नीसयो हँसी-मजाकक आधार लऽ कऽ गप्प्क गंभीरताकें स्पिष्ट नहि होमऽ दैक। पतिक परोक्षमे ओहि नेन्नासँ ओकर व्यवहार पास-पड़ोसक लोक सभक नजरिमे सेहो आबऽ लागल रहैक। मुदा मुंबइ सन महानगरमे अनकर जीवनमे केओ जल्दी। पैसार नञि करैत अछि। ककरो एतेक फुरिसतिए कतऽ ?

केओ किछु कहियो दैक तँ पत्नीस कानि-भाखि कऽ ओहि बातकें एना घुमा देथि जे ओकरा पत्नीनक बातपर अविश्वाुस करबाक कोनो कारणें नहि रहि जाइक। हमरासँ चर्च भेलाक बाद ओ काजपर सँ कोनो ने कोनो बहन्ने औचक्केंस घर घूरऽ लागल। घरबाक व्य वहारपर दूरेसँ नजरि राखऽ लागल तँ परिणामो दे‍खाए लगलैक। लोक सभक मुँहसँ सूनल गप्प क सत्य ता दृष्टिमे आबऽ लगलैक। पहिने तँ एकाध दिनक बात बूझि कऽ अनठेलक। मुदा अनुभवक पुनरावृतिसँ ओ ठहकल।

स्कू ल छुटलाक बाद बेटा घर लौटए तँ सतमाय दरबज्जोय नञि फोलए। बेरहटिया धरि भोजन-भात निपटा कऽ दुनू नेन्नाक संग सूति रहए। आ ई दरबज्जात ठोकैत-ठोकैत कानि –बाजि कऽ भूखल-पिआसल चौकठेपर बस्तान लेने ओकर उठबाक बाट जोहैत बैसल रहि जाए। पड़ोसी सभक नजरि पड़ैक तँ ओ सभ किछु खुआ दैक। स्त्री् उठैक तँ बहन्ना बना दैक जे मोन खराप छल, आँखि लागि गेल तैं नञि बुझलिऐक। ऊपरसँ डरो देखा दैक जे बाबूकें कहबही तँ बूझि लिहें। छोट-छोट गप्पआपर लोहछा देनाइ तँ सामान्यस गप्पे रहैक।

नेन्ना नहूँ-नहूँ अपना कोश (Cell) मे घुसऽ लगलैक। ओकरा असुरक्षाक भाव घेरऽ लगलैक। नेन्ना सभक ‘अहं’ बहुत व्या पक होइत छैक। ओहि ‘अहं’ केँ नान्हियोटा धक्काग लगलासँ ओ लोहछि जाइत अछि। मुदा नेन्ना सभ लग ओहि भावनाकें, दर्दकें, व्य क्त करबाक हेतु सियान सन साधन नञि होइत छैक। योग्य शब्द संग्रह नञि होइत छैक। दोसर शब्दकमे एहि उम्रक नेन्ना सभ लग हम-अहाँ आसानीसँ बूझि सकिऐ एहि तरहक भावनाक आदात-प्रदानक कोनो स्पदष्टक भाषा विकसित नहि भेल रहैत छैक।

तैँ ओ सभ अपन भावनाकेँ प्रतीकात्मक रूपसँ व्यक्त करबाक प्रयत्न करैत देखाइत अछि। ई प्रतीकात्मकता उम्रक विभिन्न अवस्थामे भिन्न–भिन्न तरहक होइत जाइत छैक। उदाहरणार्थ, शैशवावस्थामे नेना सभ अनेकानेक तरहसँ कानि कऽ अपन भावना व्यक्त करैत छथि। आइ तँ एहि तरहक भाषाक विश्लेषण सेहो सम्भव भऽ गेल अछि। एहि भाषाकेँ ज्ञाता वा अभ्यासक, नेना सभक कानब सुनि कऽ ओहि विशिष्ट समएमे हुनक जे माँग आ समस्या छनि तकर निदान कऽ सकैत छथि। बाल्यावस्थामे अपन विरोध जतएबाक हेतु नेना सभ रूसि कऽ खेनाइ बारि कऽ अथवा कोनो आन तरहक नोकसान कऽ कऽ अपन भावनाकेँ व्यक्त करैत देखाइत अछि।

नेना सभक व्यक्त करबाक इएह प्रतीकात्मक भाषाक कड़ीमे चित्रकला एक गोट महत्वपूर्ण अध्याय अछि। तैं हमर कहब अछि, जे नेना सभक चित्रकला देखबाक नहि अपितु पढ़बाक वस्तु होइत अछि। विद्यार्थीक पिताकेँ हम जतेक बुझा सकलिऐक, बुझेलिऐक। ‘जे बेटा भीतरसँ पूर्ण रूपेण टूटि गेल अछि, ओकरा शीघ्रातिशीघ्र मूल स्वभावपर आनब अति आवश्यक अछि। सभसँ पहिने ओकरा भीतरसँ असुरक्षाक भावनाकेँ निकालब जरुरी अछि। ओकर हेराएल आत्मविश्वासकेँ पुनः प्रस्थापित केनाइ जरूरी अछि। पाछाँ छुटि गेल माता–पिताक अस्तित्वकेँ ओकरा जीवनमे सम्मिलित करब जरूरी अछि। ओकरा भीतर ई विश्वास जगेनाइ जरूरी अछि जे ओहो एहि परिवारक एक गोट महत्वपूर्ण सदस्य अछि। एहि परिवारक ओकरो आवश्यकता छैक आ आन सदस्य जकाँ ओकरो सभ तरहेँ सभपर समान हक छैक। अन्यथा एहि परिवारक व्यवहारसँ एखन धरि ओकरा भीतर जाहि तरहक शत्रुत्व (Hatred) पनपि रहल अछि, ओ आगू चलि कऽ एहन भयानक रूप लऽ सकैत अछि, जकर एखन कल्पनो नञि कएल जा सकैत अछि’।

ई सुनि कऽ ओ किछु ठहकल। पूछलक, ‘तखन आब उपाय की’? हम कहलियन्हि- ‘उपाय ई जे सभसँ पहिने अपना घरबालीकेँ बुझबिऔन्ह जे हुनकर व्यवहारक की परिणाम भऽ सकैत अछि। तकरा बाद किछु दिनक छुट्टी लऽ लिअ। एहि माहौलसँ ओकरा बाहर निकालू। सपरिवार पन्द्रह–बीस दिनक लेल कतहु बाहर घुमि आउ। मुदा एहि पूरा समएमे ओकरा ई अनुभव कराओल जाए जे आइ धरिक अनुभवसँ ओकर जे भावना बनल छलैक से गलत छै। खास कऽ सतमाएक माध्यमसँ ई सन्देश जाए। एहि यात्राक सभ कार्यक्रम ओकरा केन्द्रमे राखि कऽ बनाओल जेबाक चाही। मुदा सतभाय, सतबहीन, सतमाय तथा पिताक समान सहभागिता रहौक। ओकरा प्रति सभक व्यवहार सहज रहौक। ओहिमे कोनो तरहक देखाबा नहि रहौक। नेनाकेँ ई शंका नञि होइ जे जानि–बुझि कऽ हमरापर विशेष ध्यान देल जा रहल अछि। एहिसँ अपन पुरनका अनुभवकेँ ओ एक गोट दुःस्वप्न मानि कऽ ओहिसँ बाहर आबि जाएत। मुदा ओकर बाद एहि पुरनका अनुभवक ने चर्चा होए आ ने पुनरावृत्ति’।

ओकर किछुए दिनक बाद हम स्कूल छोड़ि देने रही। मुदा हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे ओहि विद्यार्थीक जीवनमे अवश्ये किछु सकारात्मक उद्यम भेल हेतैक, जकर पूर्ण श्रेय जएबाक चाही चित्रकला सन सृजन शील विषएकेँ जकरा माध्यमसँ ओ अपन आंतरिक भावनाकेँ व्यक्त करबामे सक्षम भऽ सकल।

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