भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, February 27, 2010

'विदेह' ५२ म अंक १५ फरबरी २०१० (वर्ष ३ मास २६ अंक ५२)- PART II

प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी (१५ फरबरी १९२१- १५ मार्च १९८५) अपन सम्पूर्ण जीवन बिहारक इतिहासक सामान्य रूपमे आ मिथिलाक इतिहासक विशिष्ट रूपमे अध्ययनमे बितेलन्हि। प्रोफेसर चौधरी गणेश दत्त कॉलेज, बेगुसरायमे अध्यापन केलन्हि आ ओ भारतीय इतिहास कांग्रेसक प्राचीन भारतीय इतिहास शाखाक अध्यक्ष रहल छथि। हुनकर लेखनीमे जे प्रवाह छै से प्रचंड विद्वताक कारणसँ। हुनकर लेखनीमे मिथिलाक आ मैथिलक (मैथिल ब्राह्मण वा कर्ण/ मैथिल कायस्थसँ जे एकर तादात्म्य होअए) अनर्गल महिमामंडन नहि भेटत। हुनकर विवेचन मौलिक आ टटका अछि आ हुनकर शैली आ कथ्य कौशलसँ पूर्ण। एतुक्का भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता ई सभटा मिथिलाक इतिहासक अंग अछि। एहिमे सम्मिलित अछि राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म, दर्शन आ साहित्य सेहो। ई इतिहास साहित्य आ पुरातत्वक प्रमाणक आधारपर रचित भेल अछि, दंतकथापर नहि आ आह मिथिला! बाह मिथिला! बला इतिहाससँ फराक अछि। ओ चर्च करैत छथि जे एतए विद्यापति सन लोक भेलाह जे समाजक विभिन्न वर्गकेँ समेटि कऽ राखलन्हि तँ संगहि एतए कट्टर तत्त्व सेहो रहल। हुनकर लेखनमे मानवता आ धर्मनिरपेक्षता भेटत जे आइ काल्हिक साहित्यक लेल सेहो एकटा नूतन वस्तु थिक ! सर्वहारा मैथिल संस्कृतिक एहि इतिहासक प्रस्तुतिकरण, संगहि हुनकर सभटा अप्रकाशित साहित्यक विदेह द्वारा अंकन (हुनकर हाथक २५-३० साल पूर्वक पाण्डुलिपिक आधारपर) आ ई-प्रकाशन कट्टरवादी संस्था सभ जेना चित्रगुप्त समिति (कर्ण/ मैथिल कायस्थ) आ मैथिल (ब्राह्मण) सभा द्वारा प्रायोजित इतिहास आ साहित्येतिहास पर आ ओहि तरहक मानसिकतापर अंतिम मारक प्रहार सिद्ध हएत, ताहि आशाक संग।-सम्पादक
मिथिलाक इतिहास (अध्याय- १५सँ १८)

अध्याय–15
मिथिलाक प्रशासनिक इतिहास
प्राचीन कालमे मिथिला एक एहेन स्थान छल जतए जनक सन शासक छलाह; याज्ञवल्म्य सन विधि विशेषज्ञ एवँ विधिकर्त्ता तथा गौतम सन प्रख्यात नैयायिक। एक ठाम एहेन त्रिरातक जुटब कोनो सामान्य बात नहि अपितु ओहि माँटिक विशेषता कहल जा सकइयै। जनक कालीन मिथिला अपना युगमे राजतंत्रक प्रधान केन्द्र छल मुदा ओ राजतंत्र सब तरहे आदर्श राजतंत्र कहल जा सकइयै आर एकर प्रमाण हमरा उपनिषदसँ भेटइत अछि। अलफातुनक दार्शनिक राजाक कल्पना मिथिलहिमे जनक युगमे साकार भेल छल आर हमर एहि कथनकेँ कोनो रूपेँ अतिशयोक्ति नहि कहल जा सकइयै। बृहदारण्यक उपनिषदसँ ज्ञात होइछ जे राजामे अपन प्रजाक हाल–चाल बुझबाक हेतु बरोबरि अपन राज्यमे भ्रमण करैत रहैत छलाह आर राजाक अहि परिभ्रमणक क्रममे गामक बृद्ध लोकनि राजाक ठहरबाक आर सुख सुविधाक व्यवस्था करैत छलाह। जाधरि राजा अहि प्रकारक यात्रापर रहैत छलाह ताधरि ओ लोकनि राजाक संग रहैत छलाह। गामक मुख्य पदाधिकारी उग्रकर्मासूत कहबैत छलाह आर ओ गामक बृद्धक संग मिलि शासन कार्य चलबैत छलाह। राजा अपन प्रजासँ प्रेम करैत छलाह आर प्रजाक स्थितिक ज्ञान प्राप्त करबाक लेल स्वयं बरोबरि भ्रमणशील रहैत छलाह। उग्रकर्मासूतकेँ पुलिस पदाधिकारी सेहो कहल गेल अछि। प्राचीनकाल ग्यारह रत्निनमे एकटा ‘सूत’ सेहो होइत छलाह आर बादमे इएह इतिहासकारक काज सेहो करए लागल छलाह। जनक कालीन मिथिलामे हिनक मुख्य काज ग्रामीण शासन व्यवस्थाकेँ सुदृढ़ बनाके राखब आर जनताक कल्याणपर ध्यान देब। एतबा सब किछु होइतहुँ ताहु दिनमे अकाल पड़ैत छल आर जनकक समयमे अनावृष्टिक कारणे अकाल पड़ल छल जाहिमे जनककेँ स्वयं हर जोतए पड़ल छलन्हि।
वैदिक कालमे मिथिलामे राजतंत्रिय व्यवस्था छल आर वंशानुगत राजतंत्र प्रणालीक जड़ि जमि चुकल छल। पवित्रताक भावना राजा लोकनिकेँ रहैत छलन्हि। राजा लोकनि शक्तिशाली होइत छलाह। राजदरबारमे ब्राह्मणक प्रधानता छल आर संगहि सेनापति आर रथकार सेहो रहैत छलाह। एतरेय ब्राह्मणक अनुसार ककरोसँ कोनो काज लेब राजाक विशेषाधिकार बुझल जाइत छल। राजा समस्त मानवक एक मात्र शासक मानल जाइत छलाह आर ओहिमे जे गैरजबाब देह होइत छलाह हुनका प्रजाक भोक्ता काल जाइत छल। जनप्रिय राजा लोकनिकेँ देवक संज्ञा भेटइत छलन्हि। ब्राह्मण साहित्यमे राजा जनककेँ सम्राट सेहो कहल गेल छन्हि। राजा जनकक समयमे राजतंत्र मिथिलामे चरमोत्कर्षपर छल। अत्याचारी राजापर अंकुश रखबाक हेतु प्राचीन मनीषि लोकनि अधिकाधिक नियम बनौने छलाह। राज्याभिषेकक अवसरपर जे शपथ ग्रहण होइत छल ताहिमे राजाकेँ ई प्रतिज्ञा करए पड़ैत छलन्हि जे ओ अपना प्रजाक हेतु किछु उठा नहि रखताह। राज्यमे सूत, ग्रामणी आर अनान्य अधिकारी वर्गक बड्ड महत्व छल आर राजाक निर्वाचनमे इएह लोकनि सर्वेसर्वा होइत छलाह। तैं तँ शतपथ ब्राह्मणमे हिनका लोकनिकेँ “राजकृत” सेहो कहल गेल छन्हि। वैदिक युगमे विदथ, सभा आर समितिक उल्लेख सेहो भेटैछ। विदथ बड्ड बड्ड पुरान संस्था छल आर मिथिलामे एकर प्रचलन छलैक अथवा नहिसे कहब असंभव। सभा समिति प्राचीन वैदिक वैधानिक संस्था छल आर एहि माध्यमसँ राजापर अंकुश राखल जाइत छल। गिलगिटसँ प्राप्त बौद्ध पाण्डुलिपिमे एहिबातक उल्लेख अछि जे मिथिलाक राजाक ओतए ५००अमात्य रहैत छलाह जाहिमे ‘खण्ड’ अमात्य अग्रगण्य छलाह। खण्ड शक्तिशाली अमात्य छलाह आर समस्त मिथिला राज्यमे हुनक धाक जमल छलहि। खण्डक वक्तव्यसँ ई स्पष्ट अछि कि जखन वैशालीमे गणराज्यक स्थापना भऽ चुकल छल तखनो मिथिलामे राजतंत्र प्रतिष्ठित राजनैतिक व्यवस्था छल। महाउम्मग्गजातकसँ ई ज्ञात होइत अछि जे मिथिलामे राजा विदेहक ओतए केवट नामक एकटा प्रधानमंत्री छलाह। मिथिलापर एकबेर जखन उत्तर पाँचाल दिसिसँ आक्रमण भेल छल तखन मिथिलाक रक्षार्थ केवट किछु उठा नहि रखने छलाह। केवटक कथा विशद विश्लेषण जातक कथामे भेटैत अछि। कराल जनकक कुकृत्यसँ तंग भए मिथिलाक जनता राजतंत्रक जूआकेँ उठा फेकलक आर ओहि स्थानपर वैशालीक देखादेखी गणतंत्रक स्थापना केलक। किछु दिनक पश्चात् विदेह गणराज्य अपन सुरक्षार्थ वैशालीक गणराज्यसँ मिलि जुलिकेँ रहए लागल आर वज्जीसंघ प्रमुख सदस्य सेहो भऽ गेल।
वैशालीक गणराज्य शासन पद्धति :- वैशालीक लिच्छवी लोकनिक शासन गणतांत्रिक छल। राज्यक शक्ति जनतामे निहित छल। कौटिल्य लिच्छवी लोकनिक हेतु ‘राजशब्दोपजीवीसंघ’क व्यवहार कएने छथि। ‘ललितविस्तार’क अनुसार वैशालीक प्रत्येक व्यक्ति अपना सम्बन्धमे इएह बुझैत छल जे ओ राजा अछि। केओ अपनाकेँ ककरोसँ छोट नहि बुझैत छलाह। ओहिठामक राज्यशक्ति समूहमे निहित छल। शासक राज्यक सेवक बुझल जाइत छलाह। परिषदक बैसक जाहि भवनमे होइत छल तकरा ‘संथागार’ कहल जाइत छल। संथागारेमे बैसिकेँ सब केओ राजनैतिक आर सामाजिक प्रश्नपर विचार विमर्श करैत जाइत छलाह। परिषदक स्भापति अथवा गणमुख्य सेहो राजा कहबैत छलाह। वैशालीमे ७७०७राजाक उल्लेख भेटैत अछि। संभवतः ई सब गोटए कुलीन परिवारक छलाह आर शासन सत्ता हिनके लोकनिक मध्य निहित छल। इएह कारण अछि जे वैशालीक शासनकेँ कुलीनतंत्र सेहो कहल गेल अछि।
आजुक संसद जकाँ ताहि दिनक संथागारमे सेहो सबटा कार्य नियमानुसार होइत छल। सदस्य लोकनिक बैसबाक प्रबन्धकेँ आसन कहल जाइत छल अर परिषदक कार्यवाहीक हेतु निश्चित गणपूर्त्ति करेनिहार पदाधिकारीकेँ गणपूरक कहल जाइत छल। परिषदमे उपस्थित प्रस्तावकेँ प्रतिज्ञा कहल जाइत छल। प्रस्तावपर बाद विवाद होइत छल आर तकर बाद ओहिपर मत लेल जाइत छल। मतकेँ गुप्त राखल जाइत छल आर पारित प्रस्तावकेँ सबकेम मानए पड़ैत छलन्हि।
गणक मुख्य अधिकारी होइत छलाह राजा, उपराजा, सेनापति, भांडागारिक इत्यादि आर सेना, अर्था आर न्याय शासनक मुख्य अंग छल। बौद्ध साहित्यमे हिरण्यक, सारथी आदि कर्मचारीक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। नायक नामक एक पदाधिकारीक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। न्याय विभागक अधिकारीकेँ विनिमय महामात्य कहल जाइत छल। अभियुक्तकेँ सर्वप्रथम हिनके समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल आर अहिठाम सर्वप्रथम आरोपक जाँच होइत छल। निरपराध भेलापर अपराधीकेँ मुक्त कऽ देल जाइत छल आर अपराध सिद्ध भेलापर पुनः ओकरा व्यावहारिक अथवा वोहारिक महामात्यक समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल। निरपराध सिद्ध भेलापर अपराधी मुक्त कऽ देल जाइत छल अन्यथा ओकरा पुनः अट्ठकुलकक समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल। क्रमशः अभियुक्तकेँ सेनापति, उपराजा आर राजाक समक्ष उपस्थित कैल जाइत छल। अभियुक्तकेँ दण्ड तखने देल जाइत छल जखन ओकर अपराध पूर्णतया सिद्ध भऽ जाइछ। समस्त न्याय प्रणालीक रिकार्ड राखल जाइत छल जकरा ‘पवेणीपुस्तक’ कहल जाइत छलैक। न्याय व्यवस्था समता आर स्वतंत्रताक सिद्धांतपर आधारित छल। अपील करबाक व्यवस्था सेहो छल।
नगर व्यवस्थाक भार नगर गुत्तिकपर रहैत छल। नगरमे शांति स्थापनाक दायित्वक भार ओहि पदाधिकारीपर छलैक। नगर गुत्तिककेँ रातिक राजा सेहो कहल जाइत छलैक।
अहिठाम ई स्मरण रखबाक अछि जे वैशाली लिच्छवी संघक राजधानी छल आर संगहि वृज्जि गणसंघक सेहो तैं वैशालीक अत्यधिक महत्व बौद्धयुगमे भगेअ छल। विदेह आर लिच्छवी संयुक्त रूपसँ संवज्जि कहबैत छलाह आर वृज्जिसंघ आठटा गणराज्य सम्मिलित छल। कल्पसूत्रक अनुसार लिच्छवीक एहेन सम्बन्ध एकबेर मल्लक संग सेहो छल आर ई दुनु गोटए मिलिकेँ एकबेर संयुक्त परिषदक निर्माण केने छलाह जाहिमे १८सदस्य छलाह–९लिच्छवी आर ९मल्ल। इहो लोकनि राजा कहबैत छलाह। साम्राज्यवादी आक्रमणक प्रकोपसँ बचबाक हेतु ई लोकनि समय–समयपर अपन संघ बनबैत छलाह। वैशाली सबमे प्रमुख छल तैं सब छोट–छोट, गणराज्य वैशालीक संग मिलिकेँ संघ बनेबाक हेतु उत्सुक रहैत छल। वृज्जिसंघ शासनकेम परामर्श देबाक हेतु एक संस्था छल अष्टकुलक जाहिमे आठो गणक प्रतिनिधि रहैत छलाह। संघक सब सदस्यक अधिकार बरोबरि छलन्हि। उच्चतम न्यायालयकेँ अष्टकुलक कहल जाइत छल। संघ शासन प्रणालीक अपन नियम छल जाहिसँ संघ शासन संचालित होइत छल। वैशाली ताहि दिनमे सर्वश्रेष्ठ संघ राज्यक केन्द्र छल।
बुद्ध वैशाली गणतंत्रक मतैक्य, सौहार्द, आदर, दृढ़ता, पराक्रम आदिक भावनासँ बड्ड प्रभावित छलाह आर बेर–बेर वैशाली अवैत रहैत छलाह। बुद्धक अनुसार जे गणराज्य निम्नलिखित सातटा आदर्शक (सप्तअपरिहाणिसुत) पालन करैत रहत तकर कहिओ ह्रास नहि हेतैक–
- i) नियमित एवँ व्यवस्थित रूपें सदति सभाक आयोजन करब–
- ii) विचार, उत्थान एवँ व्यवहारमे सदस्यक मतैक्य रहब–
- iii) व्यवह्रत सिद्धांतक प्रयोग करब–
- iv) बृद्ध लोकनिक प्रति आदर, श्रद्धा, सहयोग एवँ प्रतिष्ठाक भाव राखब–
- v) संघक चैत्यक प्रति श्रद्धा एवँ सहयोगक भावना राखब–
- vi) पराजित देशक स्त्रीक संग उचित व्यवहार करब–
- vii) अर्हत् क प्रति समुचित सहयोग एवं रक्षाक भावना राखब–
महापरिनिर्वाणसुतसँ ज्ञात होइछ ज वृज्जीसंघक शासन व्यवस्थामे–
- i) विभिन्न संघक सभाक अधिवेषन बरोबरि नियमित रूपेँ होइत रहैत छल–
- ii) वृज्जीसंघक सदस्य लोकनि बरोबरि आपसमे मिलैत–जुलैत रहैत छलाह आर शासन चलेबा सतर्कताक परिचय दैत छलाह।
- iii) ओ लोकनि अपन परम्परागत नियमक पालनक प्रति जागरूक रहैत छलाह।
- iv) शासनमे बुझनुक बृद्ध लोकनिक हाथ रहए दैत छलाह।
वैशालीमे कोना आर कहिया गणराज्यक स्थापना भेल से कहब असंभव। बुद्ध तँ लिच्छवी लोकनिक प्रशंसा ‘तावतिंश देव’ कहिकेँ केने छथि आर ओ स्वयं गणशासन प्रणालीसँ एतेक प्रभावित भेल छलाह जे ओ एहि प्रणालीकेँ अपन संघ संगठनक आदर्श मानलन्हि। ७७०७राजा ओहिठाम राजकुलोद्भव मानल जाइत छलाह आर ओहिना व्यवहारो करैत छलाह। वैशालीक पुष्करिणी हिनके लोकनिक हेतु सुरक्षित रहैत छल। ई लोकनि वैशालीक एकविशिष्ट क्षेत्रसँ संबन्धित छलाह। जैन कल्पसूत्रसँ इहो स्पष्ट होइछ वैशाली शासनक एकटा कार्यकारिणी समिति सेहो छल। वैशाली सन प्राचीन न्यायवस्थाक कोनो दोसर उदाहरण संसारमे नहि भेटैत अछि। अभियुक्तकेँ तखने दण्डित कैल जा सकैत छल जखन ओ क्रमशः सातो न्याय समितिसँ एकमतसँ दण्डित घोषित हुए। वृज्जीसंघक शासनमे सेहो समानताक सिद्धांतक पालन होइत छल। अजातशत्रुक आक्रमणक बादो जखन वैशाली मगध साम्राज्यक अंग बनि गेल तखनो एकर गणतांत्रिक स्वरूप अपना क्षेत्रमे बनले रहल। मौर्य युगसँ वैशाली–विदेह मौर्य साम्राज्यक एकटा अंग बनिकेँ रहल। अशोकक समयमे वैशालीआर चम्पारणक प्रशासनिक महत्व बढ़ल होइत कारण अहि दुहुठाम अशोकक स्तंभ अछि। अशोकक स्तंभसँ ई अनुमान लगाओल जाइछ जे प्रशासनिक दृष्टिकोणसँ मिथिलाक महत्व घटल नहि छल अपितु बढ़ले छल। अहि बाते नेपाल जेबाक मार्ग छल तैं प्रशासनिक दृष्टिये सीमासँ सटल वैशाली–विदेह राज्यकेँ सुरक्षित राखब आर ओकरा नीक संबन्ध बनौने राखब साम्राज्यवादी शासकोक अभीष्ट रहैत छलन्हि। वैशालीसँ पुर्णियाँ धरिक सीमा मिथिला प्रांतक अंतर्गत छल आर मिथिला उत्तर बिहारक एकटा प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र छल। साम्राज्यवादी छत्रछायाक अंतर्गत रहितहुँ मिथिला अपन प्रजातांत्रिक प्रणालीकेँ सोहागक सिन्दुर जकाँ संजोगने छल। पतञ्जलिक महाभाष्यमे सेहो जतए–ततए मिथिला जनपदक उल्लेख भेटैत अछि। मौर्य साम्राज्यक समाप्त भेलापर वैशाली पुनः अपन स्वतंत्रता प्राप्त केलक से बुझि पड़इयै।
वैशालीक उत्खननसँ जे बहुत रास मोहर सब भेटल अछि ताहिपर श्रेणी, सार्थवाह, कुलिक, निगम आदिक उल्लेख भेटइयै। एहेन बुझना जाइत अछि जे वैशालीमे श्रेष्ठी, सार्थवाह आर शिल्पी लोकनिक सम्मिलित निगम छल आर एहि निगमक काज विभिन्न नगर सबमे पसरल छल। श्रेष्ठी सार्थवाह कुलिक निगमक २७४टा मोहर वैशालीसम भेटल अछि जाहिमे ७५टा ईशानदासक, ३८टा मातृदासक ३७टा गोभिस्वामीक मोहर अछि। संभवतः ई लोकनि निगम शाखाक अध्यक्ष रहल होयताह ठाम–ठाम मोहर सबक अतिरिक्त भगवान, जिन्न, पशुपति आदिक नामएक उल्लेख सेहो भेटैत अछि।
गुप्तकालमे वैशाली तीरभुक्ति प्रांतक राजधानी छल आर ओहिठामसँ प्राप्त मुद्रामे एकरा अधिष्ठान सेहो कहल गेल छैक। एहि प्रांतक महत्व अहुँसँ बुझना जाइत अछि जे स्वयं गोविन्द गुप्त एहि प्रांतक राज्यपाल छलाह आर हुनक एक अभिलेख सेहो अहिठामसँ भेटल अछि।
- महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त पत्नी श्री गोविन्द गुप्त माता श्री ध्रुवस्वामिनी–
अहिठामसँ बहुत रास मुद्रा, अभिलेख आदि भेटल अछि। प्रांतीय शासकक रूपमे राजकुलक लोग नियुक्त होइत छलाह। हुनका लोकनिकेँ युवराज कुमारा माअत्य कहल जाइत छलन्हि। प्रान्तीय शासककेँ अपन अपन महासेनापति, महादण्डनायक आर अन्यान्य कर्मचारी होइत छलन्हि। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति आर तीरभुक्तिक क्षेत्र ताहि दिनक मिथिला प्रांतमे छल। युवराज कुमारमात्यक अधीन भुक्तिक शासनक हेतु उपरिक नियुक्ति होइत छल आर पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिमे करण कायस्थ ‘दत्त’ पदवी धारी ‘चिरात दत्त’क ३–४पुस्त उपरिकक पदपर विराजमान छलाह। उपरिककेँ प्रांतीय शासक अथवा गवर्नर कहल जाइत छल। प्रांतीय शासकक मुख्य कर्त्तव्य निम्नलिखित छल–
- i) शांति–व्यवस्थाकेँ सुरक्षित राखब
- ii) कर वसूलीक व्यवस्थाकेँ सुदृढ़ राखब
- iii) प्रजाक रक्षा करब
- iv) सुख–समृद्धिक प्रबन्ध करब
- v) राजाक प्रति प्रजामे बिश्वास उत्पन्न करब
- vi) सीमावर्त्ती राज्यक आक्रमणसँ अपन क्षेत्रकेँ सुरक्षित राखब।
गुप्तकालमे प्रादेशिक शासक लोकनिक सभक सोझे राजासँ छलन्हि। सामंतवादक विकास अहियुगमे प्रारंभ भऽ चुकल छल आर एकर प्रभाव शासनपर पड़ब स्वाभाविके चल। उत्खननसँ प्राप्त सामग्रीक आधारपर प्रांतीय शासनसँ सम्बन्धित निम्नलिखित कर्मचारीक विवरण भेटइत अछि।
उपरिक, कुमारपालाधिकरण, (राजकुमारक मंत्रीक कार्यालय), बलाधिकरण(सेनापतिक कार्यालय), दण्डपाशाधिकरण, (पुलिस अधिकारीक कार्यालय), महादण्डनायक (प्रमुख न्यायाधीश), विनय स्थिति स्थापक (कानून आर व्यवस्था मंत्री)
गुप्तकालमे केन्द्रीय शासनक विभिन्न विभागकेँ अधिकरण कहल जाइत छलैक आर एक प्रकारक राष्ट्रीय सेवाक प्रावधान सेहो छलैक। जकरा ‘कुमारामात्य’ कहल जाइत छलैक। ‘कुमारामात्य’ साम्राज्यक शासन प्रणालीक स्थायी सेवामे रहैत छलाह आर हुनका कतहु कोनो काजमे पठाओल जा सकैत छल। ओ लोकनि प्रशासनिक सेवाक सदस्य होइत छलाह। कवि हरिषेण सेहो अपनाकेँ कुमारामात्य कहने छथि। कुमारामात्यकन सम्बन्ध प्रांतीय आर स्थानीय शासनसँ सेहो रहैत छल। वैशालीसँ प्राप्त सूचना प्रशासनिक सम्बन्धमे एवँ प्रकारे अछि।
- i) कुमारामात्यधिकरणस्य–
- ii) युवराज पादीयकुमारामात्यधिकरण–
- iii) परमभद्दारक पादीय कुमारामात्यधिकरण–
- iv) –वालाधिकरणस्य–
- v) रण भाण्डागारिधिकरणस्य–
- vi) दण्डपाशाधिकरणस्य–
- vii) तीरभुक्तौपरिक्रमधिकरणस्य–
- viii) तीरभुक्तौ विनय स्थिति स्थापकाधिकरणस्य–
- ix) तीरभुक्तौ कुमारामात्यधिकरणस्य–
- x) वैशालयाधिष्ठानाधिकरण–
भुक्तिक अधीन विषय (जिला) होइत छल। विभिन्न श्रोतसँ ई ज्ञात होइत जे पाल
युग धरि अवैत–अवैत तीरभुक्तिमे चामुण्डा, होद्रेय, कक्ष विषय छल आर नौलागढ़सँ प्राप्त अभिलेखक अनुसार एक ‘रक्षमुक्त विषयाधिकरण’ नामक सेहो एकटा प्रशासनिक केन्द्र छल। विषयमे पादितारिक आर गौल्मिक नामक अधिकारी होइत छलाह। अक्षपटलाधिकृत गामक जमीनक लेखा–जोखा रखैत छलाह। विषयमे चारि सदस्यक एकटा परामर्शदातृ समिति सेहो होइत छल जाहिमे नगर श्रेष्ठी, सार्थवाह, प्रथमकुलिक आर प्रथमकायस्थ सदस्य होइत छलाह। विषयपति अपन जिलाक प्रमुख व्यक्तिक संग मिलिकेँ शासन करैत छलाह। वैशालीमे नगर शासन स्थानीय निगमक हाथमे छल।
अहिठाम पुण्ड्रवर्द्धन–पुर्णियाँ (जे कि पूर्वी मिथिलाक अंश रहल अछि) किछु कहिदेव आवश्यक। प्राचीन कालहिसँ प्रशासनिक, सामरिक आर साँस्कृतिक दृष्टिकोणसँ पुर्णियाँक महत्व रहल अछि आर मिथिलाक सुरक्षा सेहो पुर्णियाँक सुरक्षासँ सम्बद्ध मानल गेल अछि। गुप्तलोकनि पूर्वी प्रदेशपर अपन नियंत्रण रखबाक हेतु अहिठाम अपन शासनक एक प्रमुख केन्द्र बनौने छलाह। कनिघंमक अनुसार वैशालीक वृज्जीसंघ सेहो एहि प्रदेश अपन नियंत्रण रखैत छलाह। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक समीकरण पुर्णियाँसँ करब अत्यंत स्वाभावित बुझना जाइत अछि। अभिलेखमे कोकामुखस्वामी आर स्वेतवाराहस्वामी उल्लेख भेटइत अछि जे नेपालक धनकुट्टा नामक स्थान लग अछि आर पुर्णियाँ जिलाक अभ्यंतर सेहो। बादमे जे आर अभिलेख सबमे वराहक्षेत्र किंवा ‘पुण्ड्र’क उल्लेख भेटैछ से सब पुर्णियाँक संकेत दैत अछि। पुर्णियाँक प्रशासनकेँ नियंत्रणमे राखब अहुलेल आवश्यक छल कारण पुर्णियाँक सीमा नेपाल, असम, बंगालसँ मिलैत छल। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति बंगाल–बिहारक पूर्वी अंश मिलाकेँ छल आर पुर्णियाँ ओकर प्रमुख केन्द्र छल।
हर्षक शासन कालमे सेहो मिथिलाक प्रधानता बनल रहल। राज्यसत्ताक कमजोरीक कारणे राजतंत्रक विकेन्द्रीकरण भए गेल छल आर हर्षक मृत्युक पश्चात् तिरहूतमे अराजकता पसरि गेल छल जे लगभग ५०वर्ष धरि बनल रहल। दोसर बात इहो जे अहियुगमे सामंतवादी प्रवृत्ति दृढ़ता भेल आर शासनयंत्रमे एकर प्रभाव स्पष्ट होमए लागल। चीनी यात्री हियुएन संग सेहो एहि बातक समर्थन केने छथि। हर्षक शासनक मुख्य आधार छल व्यक्तिगत भ्रमण एवँ निरीक्षण आर तैं हर्षक परोक्ष भेलापर शासन यंत्र एकदम ढ़ील भऽ गेल आर चारूकात सब केओ अपन–अपन हाथ–पैर पसारे लगलाह। तहियासँ लकए पाल शासनक स्थापना धरि एक प्रकारक अस्थायित्व बनल रहल आर मिथिलाक क्षेत्रपर चारू दिसिसँ आक्रमण होइत रहल। एहि अराजकताक कालोमे तीरभुक्ति एक प्रमुख प्रांत छल आर उत्तर गुप्त शासक लोकनिक मुख्य शासन केन्द्र सेहो जकर प्रमाण हमरा कटरासँ प्राप्त ताम्रलेखसँ भेटैत अछि। कटरा (मुजफ्फरपुर)सँ प्राप्त जीवगुप्तक अभिलेखमे तीरभुक्तिक चामुण्डा विषयक आर तिष्टिहल पाटकक उल्लेख भेटैत अछि। तारा नामक स्थानसँ ई तँ मान्य देल गेल छल आर ओहिमे सुरभकार, याम्या आर हरिग्रामक नामक गामक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। एहि ताम्रलेखमे निम्नलिखित शासनाधिकारीक वर्णन अछि–
- i) महासन्धि विग्रहिक
- ii) अक्षपटालिक
- iii) सर्वाधिकाहिक
- iv) प्रतिहार
- v) सेनापति आर
- vi) महासामंत–
पालयुगमे तीरभुक्ति एकटा प्रधानकेन्द्र छल। ओनातँ नारायन पाल भागलपुर ताम्रलेखमे तीरभुक्तिक कक्ष (कौशिकी–कच्छ=छै परगना) विषय आर गाम सबहिक वर्णन भेटिते अछि मुदा तिरहूतक केन्द्र वनगाँवसँ जे ताम्र अभिलेख (विग्रट पाल तृतीयक) भेटल अछि ताहुसँ तीरभुक्तिक शासनपर प्रकाश पड़इयै। पालकालमे जखन कलचुरी वंशक आक्रमणक प्रकोप बढ़ल तखन पल लोकनि अपनाकेँ समेटकेँ तीरभुक्तिमे सुरक्षित रखलन्हि आर एवं प्रकारे अपन साम्राज्य आर प्रतिष्ठाकेँ वचौलन्हि। मिथिला भौगोलिक दृष्टिये सुरक्षित छल तै ओ लोकनि एम्हरे दासकिकेँ एलाह। वनगाँवक अभिलेखसँ ज्ञात होइछ जे तीरभुक्तिमे हौद्रेय (आधुनिक हरदी गाँव सहरसा) विषय सेहो छल। गुप्तयुगसँ कर्णाटवंशक स्थापना धरि तीरभुक्ति शासनज्क एकटा प्रधान केन्द्र बनल रहल। ११म शताब्दीक दूटा अभिलेख चम्पारणसँ हालहिमे उपलब्ध भेल अछि जाहिसम ताहि दिन शासन प्रणालीपर किछु प्रकाश पड़इयै। गोरखपुरसँ चम्पारण ध्रिक क्षेत्रकेँ दरदगण्डकीवंश कहल जाइत छल आर प्रशासनिक इकाईक हिसाबे दरद–गण्डकी–मण्डल जकरा अधीनमे विआलिसि विषय (४२ग्राम) छल। एहि लेखसँ ई स्पष्ट अछि जे अहिठाम विषय मण्डलक एकटा छोट अंग मानल गेल अछि। चम्पारणक ई दुनुटा अभिलेख कर्णाटक पूर्वथिक आर प्रतिहार लोकनिक सत्ताक कमजोर भेलापर ई लोकनि संभवतः एहि क्षेत्रपर अपन सत्ता स्थापित केने छलाह। एहि दुनु अभिलेखमे निम्नलिखित प्रशासनिक शब्दावली भेटइत अछि।
i) राणक, ii) ठाकुर, iii) अमात्य, iv) पुरोहित, v) महामत्तक, vi) महासन्धिविग्रहिक, vii) महाप्रतिहार, viii) महाक्षपटलिक, ix) महासाधनिक, x) महापीलुपति, xi) महासेनापति, xii) महाकटकाध्यक्ष, xiii) दुष्टसाध्यासाधनिक, xiv) दाण्डिक, xv) दण्डपाशिक, xvi) शौल्किक, xvii) गौल्किक, xviii) दूतसंप्रेषणिक, xix) तलवर्गिक, xx) अंगरक्षक, xxi) चाट–भाट,–इत्यादि–
एहिमे वर्णित बहुत रास शब्दावली पाल अभिलेखमे सेहो भेटल अछि। एहि अभिलेखसँ इहो अनुमान लगाओल जाइछ जे मिथिलाक सीमा पश्चिममे श्रावस्ती भुक्तिसँ पश्चिमोत्तरमे दरद–गण्डकी–देशसँ आर पूबमे पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिसँ मिलल जुलल छल। एवँ प्रकारे स्मस्त उत्तर बिहारक प्रतिनिधित्व प्राचीन कालक तीरभुक्ति करैत छल आर अहि दृष्टिकोणे एकर प्रशासनिक महत्व अद्वितीय छलैक जे मुगलकाल धरि बनल रहलैक। उत्तरमे कर्णाट लोकनि सिमरौन गढ़ धरि बढ़ले रहैत आर ओतए अपन राजधानी बनौने रहैत। ग्राममे ग्राम पंचायतक व्यवस्था छल आर अभिलेख सबमे पञ्चमण्डली आर पञ्चकुलक उल्लेख भेटैत अछि।
१०९७मे जखा कर्णाटवंशक स्थापना भेल तखन पुनः शासन व्यवस्थाक संगठन मिथिलाक आवश्यकताक अनुकूल गठित भेल यद्धपि एकर आधार छल सामंतवादी व्यवस्था। नान्यदेव अहिठामक शासन व्यवस्थाकेँ सुगठित केलन्हि आर मिथिलाक निजीगौरव एवँ विशिष्टताक विकास सेहो। नान्यदेव स्वयं कर्णाट वंशक संस्थापक छलाह तैं शासनमे हुनक प्रधानता रहब स्वाभाविके। शासकक प्रधान राजा होइत छलाह। प्रजाक रक्षा करब उचित बुझल जाइत छल–चण्डेश्वरतँ प्रजाकेँ विष्णु कहने छथि। राजा शासन, न्याय एवँ प्रशासनिक यंत्रक अध्यक्ष होइत छलाह। शासनकेँ सुरूचिपूर्ण ढ़ँगसँ चलेबाक हेतु राजा बरोबरि प्राचीन परम्परा एवम मान्यताकेँ ध्यानमे रखैत छलाह। शासकक संगहि संग मिथिलाक राजा प्रसिद्ध विद्वानो होइत छ्लाह आर उदाहरणस्वरूप हमरा लोकनि नान्यदेव, रामसिंह देव, शिवसिंह, लखिमा, विश्वास देवी आदिक नाम लऽ सकैत छी। राजा लोकनि परमेश्वर, परमभद्दारक, महाराजाधिराज, महानृपति, क्षितिपाल, भूपाल, मिथिलाधिपति, भूजवल भीम, भीमपराक्रम, कर्णाटचूड़ामणि, दशमदेव अवतार; एकादश अवतारा, भूमिपति, मुकुटमणि, आदि पदवीसँ विभूषित होइत छलाह। नान्यदेव, गंगदेव, रामसिंहदेवक शासन धरि तँ कोनो प्रकारक गोलमाल देखबामे नहि अवइयै परञ्च शक्तिसिंहदेवक शासनकालमे मंत्री लोकनि शासन सत्ता अपना हाथमे लऽ लेने छलाह। सामंते मंत्री होइत छलाह। शक्तिसिंहक कठोर शासनस ओ लोकनि उबि गेल छलाह तैं हुनकासँ सब अधिकार छीनिके अपना हाथमे लऽ लेलन्हि। मंत्रियेक संरक्षणमे बहुत दिन धरि हरिसिंह देव नाम मात्रक शासक छलाह सामंतवादी व्यवस्थाक फलें राजाक शक्तिक्षीण अवश्य भेल छल मुदा शक्तिशाली शासक अपन अधिकारक उपयोग कइये लैत छलाह। हरिसिंह देव, शिवसिंह देव, भैरव सिंह देव आदि शासक एकर उदाहरण छथि। सामान्यतः राजाकेँ सामन्तक बलपर निर्भर करए पड़ैत छलन्हि।
राजकेँ सहायता देबाक हेतु मंत्रिपरिषदक व्यवस्था सेहो छल। मिथिलामे प्रधानमंत्रीकेँ महामत्तक कहल जाइत छल। अन्हराठाढ़ी आर हावीडीह अभिलेखमे प्रधानमंत्री लोकनिकेँ मंत्रीक नामसँ सार्बाधित कैल गेल अछि। मंत्री लोकनिकेँ संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैकीभाव, आर संश्रयक पूर्णज्ञान रहब आवश्यक बुझना जाइत छल। श्रीधरदास एवँ रत्नदेवक वंशज मिथिलामे बहुतो दिन धरि मंत्री पदक भार सम्हारने छलाह। श्रीधरदासकेँ सेन वंश दिसिसँ महामण्डलिकक पदवी भेटल छलन्हि। रत्नदेवक वंशजकेँ सामंतवादी पदवी ‘रउत’ रहैन्ह आर विद्यापतिमे रत्नदेवक वंशज रउत रजदेवक उल्लेख अछि। रामादित्य, कर्मादित्य, वीरेश्वर, देवादित्य, गणेश्वर, चंडेश्वर आदि सेहो प्रमुख मंत्रीगण मिथिलामे भेल छथि। शक्तिसिंहक निरंकुश शासनसँ जखन मंत्रीगण उबि गेल छलाह तखन ओ लोकनि सात बृद्धक एकटा परिषद बनौलन्हि आर शक्तिसिंहकेँ गद्दीसँ उतारि ओहि परिषदक हाथमे शासन भार देलन्हि। एहिसँ मंत्रिपरिषदक व्यापकता एवँ अधिकारक पता लगइयै। पाछाँ जखन हरिसिंह देव वयस्क भेला तखन हुनक राज्याभिषेक भेल। ताहिसँ पूर्व संभवतः चण्डेश्वर राज्यक भार सम्हारने छलाह। चण्डेश्वर साँधि विग्रहिक छलाह। हुनका महावर्त्तिक नैबन्धिक सेहो कहल गेल अछि। एहिसँ प्रत्यक्ष अछि जे चण्डेश्वर बड्ड शक्तिशाली मंत्री छलाह। मंत्री लोकनि सामंत, महासामंत, मांडलिक, महामाण्डलिक, महाराज, महामतक आदि पदवी एवँ उपाधिसँ विभूषित होइत छलाह। ई लोकनि हृदयसँ दान इत्यादि सेहो करैत छलाह आर एहि दिशामे वीरेश्वर आर चण्डेश्वरक नाम अग्रगण्य अछि। चण्डेश्वरक अधीन जे एकटा सामन्त हरिब्रह्म छलाह तिना एकटा पद प्राकृत पैगंलम् मे सुरक्षित अछि। मंत्रिपरिषदक अतिरिक्त आरो कतैक पदाधिकारी होइत छलाह जेना–
i) महामुद्राधिकृत
ii) महासर्वाधिकृत
iii) महाधर्माध्यक्ष
iv) धर्माध्यक्ष
v) प्राड् विवाक
vi) कोषाध्यक्ष
vii) स्थानांतरिक इत्यादि।
ग्राम शासनक न्यूनतम इकाई छल। ग्रामक अध्यक्षकेँ ग्रामपति कहल जाइत छल। ग्रामपति कर वसूल कए राजाक ओतए पठबैत छलाह। गुल्म सेहो एकटा ग्राम पदाधिकारी होइत छलाह। तीन अथवा पाँचटा ग्रामकेँ मिलाकेँ एकटा गुल्म नियुक्त होइत छलाह। एकर अतिरिक्त दश ग्रामपति, विंशति संग्रामपति, त्रिंशति ग्रामपति, सहस्त्र ग्रामपति, इत्यादिक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। प्रत्येक ग्राममे एकटा मुखिया होइत छल। केन्द्रीय शासन ग्राम शासनक सफलतापर निर्भर करैत छल। ग्राम सभामे राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, आर साँस्कृतिक आदि विषयपर विचार विमर्श होइत छल। ग्रामक झगड़ा दान ग्राम सभामे फरियैल जाइत छल। जखन ग्राम सभा फरियैबामे असमर्थ होइत छल, तखने उपरका अधिकारीक ओतए ओ पठाओल जाइत छल। मिथिलाक समस्त राजनैतिक संगठनक आधारशिला छल ग्राम सभा। ग्राम सभाक पदाधिकारीकेँ पारिश्रामिक भेटैत छलन्हि जकर विवरण निम्नाकिंत अछि–
i) दशेश–दश गामक अधिकारीकेँ जोतबाक हेतु ओतेक जमीन भेटैत छलन्हि जतेक ओ एकहरसँ स्वयं जोति सकैत छलाह।
ii) विशंतिश–बीस गामक अधिकारीकेँ चारिटा हरसँ स्वयं जोति सकबा जोकर जमीन भेटैत छलन्हि।
iii) सतेश–एक सौ गामक अधिकारीकेँ एकटा सम्पूर्ण गामे भेटइत छलन्हि।
iv) सहसाधिपति–एक हजार अधिकारीकेँ एकटा सम्पूर्ण नगर भेटइत छलन्हि।
ग्राम शासन संगठनक प्रसंगमे गंगदेवक नाम अग्रगण्य अछि। मिथिलामे एकर सर्वश्रेष्ठ श्रेय हुनके चन्हि। ओ समस्त मिथिला राज्यकेँ राजस्व प्रशासनक दृष्टिकोणसँ कतेको परगनामे बटने छलाह आर प्रत्येक परगनाक हेतु चौधरी आर कोतवाल नियुक्त केने छलाह। इएह लोकनि ग्राम शांति आर राजस्व वसूलीक हेतु उत्तरदायी होइत छलाह आर हिनके लोकनिक योग्यता आर सहयोगपर केन्द्रीय शासनक सफलता निर्भर करैत छल। ग्राम शासन आर केन्द्रीय शासनक मध्य सम्पर्क स्थापित करबाक हेतु आर ओकरा बनाकेँ रखबाक हेतु एक प्रकारक विशेष कर्मचारी होइत छलाह जकरा ‘स्निग्ध’ कहल जाइत छल। ‘स्निग्ध’केँ ग्राम विभागक मंत्रियो कहि सकैत छी। यदा कदा ‘स्निग्ध’क स्वार्थपूर्ण आचरणसँ ग्रामीण तबाहो होइत छलाह। ‘स्वार्थ चिंतकम्’ नामक एकटा अधिकारी आर होइत छलाह जिनका ग्रामीण लोकनि ‘राहु’ बुझैत छलथिन्ह। ग्राममे पंचायतक चुनावे जनतांत्रिक पद्धतिसँ होइत छल आर मिथिलामे एकर परम्परा बड्ड प्राचीन छल। प्रत्येक गामक हेतु पुलिस (आरक्षी)क नियुक्ति सेहो होइत छल। प्रत्येक दिन पुलिस लोकनिकेँ अपन काजक ब्योरा गामक मुखियाकेँ देमए पड़ैत छलन्हि। जँ कतहु कोनो गड़बड़ी भेल तँ ओहि हेतु पुलिसकेँ उत्तरदायी ठहराओल जाइत छल।
मिथिलाक अभिलेख आर प्राचीन पोथी सबमे बहुत रास प्रशासनिक शब्दावली भेटैत अछि जाहिसँ बुझि पड़इयै जे ओ सब ताहि दिनमे व्यवहारमे छल। संग्रामगुप्तक पंचोभ ताम्रलेख(१३म शाताब्दी)मे निम्नलिखित अधिकारीक विवरण भेटइत अछि–
i) महाराजा धिराज– वर्णनरत्नाकरमे–
ii) महामाण्डलिक– i)भूपाल–
iii) महासन्धि विग्रहिक– ii)माण्डलिक–
iv) महाव्युहपि– iii)सामन्त–
v) महाधिकारिक– iv)सेनापति–
vi) महामुद्राधिकारिक– v)पुरपति–
vii) महामतक– vi)मंत्री–
viii) महासाधनिक– vii)पुरोहित–
ix) महाकटुक– viii) धर्माधिकरण–
x) महाकरणाध्यक्ष– ix) सान्धि विग्रहिक–
xi) वातिनैबन्धिक– x) महामत्तक–
xii) महादण्डनायक– xi) प्रातबलकरणाध्यक्ष–
xiii) महापंचकुलिक– xii) शांतिकरणिक–
xiv) महासामन्त राणक– xiii) दुर्गपाल–
xv) महाश्रोष्ठि दानिक– xiv)राजगुरू–इत्यादि–
xvi) गुल्मपति–
xvii) खण्डपाल–
xviii) नरपति–
xix) महौथिक–
xx) महाधर्माधिकरणिक–
इत्यादि–
चण्डेश्वरक राजनीति रत्नाकर:- भारतीय राजनैतिक विचारधाराक विकासक इतिहासमे मिथिलाक चण्डेश्वरक स्थान अग्रगण्य अछि। ओनातँ भारतमे राजनीति शास्त्रपर प्राचीन कालहिसँ ग्रंथ लिखल जा रहल अछि आर एकर प्रमाण हमरा महाभारत, शुक्र, उकानस आर कौटिल्य तथा कामन्दकमे भेटइत अछि। एहिमे कौटिल्यक ग्रंथ सर्वश्रेष्ठ अछि आर पाछाँ सब केओ ओकरे–अनुकरण केने छथि। चण्डेश्वर ग्रंथ राजनीति रत्नाकरमे सब पूर्वाचार्यक मत उद्धत अछि।
मध्ययुगीन विचारकमे चण्डेश्वरक नाम विशेष रूपें उल्लेखनीय अछि। ओ एक संभान्त, प्रतिष्ठित एवँ विद्वान परिवारमे जन्म ग्रहण केने छलाह। ओ देवादित्यक पौत्र आर वीरेश्वरक पुत्र छलाह आर ई तीनु गोटए कर्णाट शासक हरिसिंह देवक शासन काल मंत्री पदकेँ सुशोभित केने छलाह। हिनक पिती धीरेश्वर, शुभदत्त आर लक्ष्मीदत्त तथा गणेश्वर सेहो पैघ–पैघ राज्याधिकारी छलाह। ओ लोकनि अपना युगक धुरन्धर विद्वान सेहो छलाह। चण्डेश्वर मिथिलाक प्रसिद्ध निबन्धकार भेल छथि आर कृत्यरत्नाकर, दानरत्नाकर, व्यवहार रत्नाकर, शुद्धि रत्नाकर, पूजा रत्नाकर, गृहस्थ रत्नाकर, विवाद रत्नाकर, राजनीति रत्नाकर हिनक प्रमुख रचना भेल छनहि। मिथिलाक धर्म व्यवस्था आर कानूनक प्रसंगमे हिनक विवाद रत्नाकर आर वाचस्पतिक विवाद चिंतामणि प्रामाणिक ग्रंथ मानल जैत अछि। स्मृति विषयपर लिखल हुनक ग्रंथ कृत्य चिंतामणिमे उत्सव–संस्कारक वर्णन अछि। चण्डेश्वरक व्यक्तित्व एवँ कृतित्वक प्रभाव उत्तरवर्त्ती विद्वानपर सेहो देखबामे अवइयै। मैथिल आर बंगाली विद्वान हुनकासँ प्रभावित देखल जाइत छथि। मिसरूमिश्र, वर्द्धमान, वाचस्पति मिश्र, आर रघुनंदन चण्डेश्वरसँ एतेक प्रभावित छथि जे ओ लोकनि अपना ग्रथमे हुनक ग्रंथक असंख्य उदाहरण देने छथि।
ओइनवार वंशक राजा भवेशक आज्ञासँ चण्डेश्वर राजनीतिरत्नाकरक रचना केलन्हि। ओहियुगक दृष्टिये एहि ग्रंथक बड्ड महत्व अछि। राजनीति विषयपर ई एकटा प्रौढ़ ग्रंथ मानल गेल अछि। एहिमे १६टा तरंग अछि आर सबहक व्यवस्था एवं क्रमबद्धतापर चण्डेश्वर विशेष ध्यान देने छथि। विषय प्रतिपादनक द्रष्टिये सेहो ई महत्वपूर्ण मानल जा सकइयै। सोलहो तंरग एवँ प्रकारे अछि–
i) राजाक निरूपण, x) सेनापतिक निरूपण
ii) मंत्रीक निरूपण, xi) दूतक निरूपण
iii) पुरोहितक निरूपण, xii) राजाक सामान्य कार्यक निरूपण
iv) प्राडविवाकक निरूपण, xiii) दण्डक निरूपण
v) सभ्यक निरूपण, xiv) राज्यव्यवस्थाक निरूपण
vi) दुर्गक निरूपण, xv) पुरोहित आदि द्वारा राज्यदान निरूपण
vii) मंत्रणाक निरूपण, xvi) राज्याभिषेक निरूपण
viii) कोषक निरूपण,
ix) सेनाक निरूपण,
अहिठाम द्रष्टव्य जे चण्डेश्वर पहिने विजिगीषु राजा अमात्य एवँ अन्यान्य प्रवृत्ति आर राज्यव्यवस्थाक प्रतिपादन केला उत्तर राज्याभिषेकपर सबसँ अंतमे विचार करैत छथि। राजाक वास्तविक एवँ न्यायसंगत उत्तराधिकारी भेला ज्येष्ठ पुत्र आर तैं राज्याभिषेक हुनके हेतैन्ह आर ताहि प्रसंगक एहिमे विस्तृत विवरण अछि। प्रत्येक विषयक निरूपण करबाक पूर्व चण्डेश्वर प्रारंभमे कोनो प्रामाणिक विधिग्रंथ अथवा राजनीतिज्ञक मतक उदाहरण दैत छथि आर तखन अपन मत स्थापित करैत छथि। पारस्परिक मतांतर एवँ विषमतामे समन्वय स्थापित करब हुनक लक्ष्य बुझना जाइत अछि। एहि ग्रंथक प्रणयनक क्रममे ओ वेद, पुराण, धर्मग्रंथ, स्मृति ग्रंथ, सूत्र ग्रंथ, राजनीति विषयक ग्रंथ आदि अध्ययन कए ओकर समन्वय स्थापित करबाक दृष्टिये सर्वमान्य सिद्धांतक स्थापना सेहो। प्रत्येक विषयक सांगोपांग विवेचन करबामे ओ बीच–बीचमे अपन स्वतंत्र टिप्पणी सेहो देने छथि जाहिसँ ई स्पष्ट अछि जे ओ कोनो बातकेँ आँखि मुनिकेँ नहि मानए बाला छलाह। एहि आलोचनात्मक टिप्पणीसँ ग्रंथक उपयोगिता आर विलक्षणता बढ़ि गेल अछि। कोनो दृष्टिये देखला उत्तर ई निर्विवाद अछि जे ‘राजनीति रत्नाकर’ अपना ढ़ँगक एक अपूर्व ग्रंथ अछि आर राजनीति चिंतनक क्षेत्रमे मिथिलाक इ अनुपम देन अछि। प्राचीन पारिभाषिक शब्दक अर्थबोधक हेतु चण्डेश्वर जे पद्धति अपनौने छथि से विशेष रूपे उल्लेखनीय अछि। विभिन्न प्रमाणसँ अपन तर्ककेँ पुष्ट कऽ कए ओ अपन मतक स्थापना केने छथि आर ओहिमे समन्वय स्थापित करबाक प्रयास सेहो। अपन ग्रंथक अंतमे ओ लिखैत छथि–“मनु एवँ अन्य स्मृति ग्रंथमे निरूपित राजनीतिक अगाध एवम विशाल सागरसँ सार स्वरूप रत्नक चयन कए हम एहि ग्रंथक रचना कैल अछि जे भगवानकेँ मान्य हेतैन्ह, राजा द्वारा समादृत होएत आर उदार व्यक्तिक ऐश्वर्य वृद्धिक हेतु लाभदायक सिद्ध हेतैन्ह”।
मध्य युगमे जखन कि राजनीति विषयक पुस्तकक कोनो अभाव नहि छल तखन चण्डेश्वरकेँ ई पोथी लिखबाक आवश्यकता कियैक भेलैन्ह। से एकटा विचारणीय विषय। ई ग्रंथ लिखबाक पाछाँ चण्डेश्वरक अभिप्राय ई छल जे प्रत्येक राजा धर्म आर अर्थमे सामंजस्य स्थापित करैत न्यायोचित मार्गपर चलिकेँ राजनीतिक वास्तविक कर्तव्य एवँ दायित्वक निर्वाह करैथ। सोलहो तरंगक प्रतिपाध विषय देखला उत्तर ई स्पष्ट भऽ जाइछ।
i) राजा:- चण्डेश्वर मनुक मतक उद्धरण दैत लिखने छथि जे संसारक रक्षार्थ। प्रजापति राजाक सृष्टि केने छलाह। प्रजाक रक्षा कैनिहार राज्याभिषेक पुरूषकेँ राजा मनल गेल अछि। याज्ञवल्म्य द्वारा वर्णित राजाकेँ अपेक्षित गुणक वर्णन सेहो कैल गेल अछि। एहि गुणक अतिरिक्त चण्डेश्वरक अनुसार राजाकेँ धार्मिक सेहो हेबाक चाही। तीन प्रकारक राजाक वर्णन ओ करैत छथि–सम्राट (चक्रवर्त्ती), सकर (कर दै वाला) आर अकर (कर नहि दै वाला) तीनुक धर्म आर गुण एक समान होएबाक चाही। प्रजाक पालन, विद्वान, बृद्ध एवँ ब्राह्मणक रक्षा राजाक मुख्य कर्तव्य मानल गेल अछि। राजाकेँ विभिन्न विषयक ज्ञान रहबाक चाही। व्यसन रहित राजाकेँ एहिक आर पार लौकिक सफलता भेटैत छैक आर अन्याय केनिहार राजाक शीघ्रहि नाश भऽ जेबाक संभावना रहैत छैक। चण्डेश्वर कौटिल्य द्वारा निर्धारित राजाक कर्तब्य आर अधिकक चर्च नहि केने छथि।
ii) अमात्य:- राजाकेँ चाही जे ओ सात–आठ सुपरिक्षित व्यक्तिकेँ अमात्य नियुक्त करैथ कारण ओहि बिनु राज काज चलब असंभव। सन्धि विग्रह आदि प्रश्नपर राजाकेँ अमात्यक संग विचार विमर्श करबाक चाही। अमात्यक परिषदकेँ मंत्रिपरिषद कहल गेल अछि।
iii) पुरोहित:- वेद–वेदार्थक ज्ञाताके पुरोहितक पदपर नियुक्त करबाक चाही। श्रौत–स्मृति कार्यमे राजाकेँ पुरोहितक संग महात्विजक नियुक्ति करबाक चाही।
iv) प्राडविवाक:- धर्म एवम न्याय व्यवस्थाक हेतु प्राडविवाक (मुख्य न्यायाधीश)क नियुक्ति आवश्यक मानल गेल अछि। प्राडविवाकक कुलीन, शील सम्पन्न, गुणवान, सत्यवक्ता, निर्भीक, चतुर आर निपुण होएबाक चाही। प्राडविवाक तीन सभ्यक संग मिलिकेँ निर्णय दैथ से सर्वोत्तम–एकमतसँ निर्णय हो तँ ओकरे धार्मिक निर्णय मानबाक चाही।
v) सभा–सभ्य:- चारि प्रकारक सभाक वर्णन भेल अछि–
i) प्रतिष्ठिता–नगर अथवा राजा द्वारा निश्चित कैल गेल स्थानपर जे सभा आहूत हो तकरा प्रतिष्ठिता कहल गेल अछि।
ii) अप्रतिष्ठिता–कोनो गाममे आयोजित होइवाला सभाकेँ अप्रतिष्ठिता कहल गेल अछि।
iii) सुमुद्रिता–जाहिमे अध्यक्ष एवँ न्यायाधीश विराजमान होथि।
iv) शासिता–जाहिमे राजा विद्धमान होथि।
सभाक दश अंग कहल गेल अछि–राजा, अधिकारी, वक्ता, सभासद, धर्मशास्त्र, गणक, लेखक, सुवर्ण, अग्नि, जल आर दण्डधारी। राजा शासन करैत छथि, अधिकारी, वक्ता भेला, सभासद निरीक्षणक कार्य करैत छथि, धर्मशास्त्र निर्णयक काज करैत छथि अछि, गणक हिसाब लिखैत छथि, लेखक न्यायालयक कार्यवाही लिखैत छथि, सुवर्ण, अग्नि आर जल सपथक सामग्री भेल। उत्तम कार्यक अधिष्ठाता, सत्य–धर्मक प्रति अमुरक्त निर्लोभ एवँ निष्पक्ष व्यक्तिकेँ राजाकेँ सभ्य चुनबाक चाही। एहने लोग धर्म आर कर्ममे निष्णात होइत छथि। निर्णयक शुद्धता सभासदक शुद्धतापर निर्भय करैत अछि। अधार्मिक बातक्ल प्रतिवाद करब हुनक प्रमुख कर्त्तव्य छल।
vi) दुर्ग:- राजाक हेतु दुर्गक निर्माण करब आवश्यक छल। छह प्रकारक दुर्गक चर्च कैल गेल अछि। राजाकेँ स्वयं गिरि दुर्गक चर्च कैल गेल अछि। राजाकेँ स्वयं गिरि दुर्गमे आश्रय लेना चाही कारण सब दुर्ग ओकरे श्रेष्ठ मानल गेल छैक। प्रत्येक दुर्गमे सब किछु रहबाक चाही।
vii) मंत्रणा:- एकांत राजभवन अथवा जंगलमे जतए मंत्रभेदक कोनो आशंका नहि हो ततए गुप्त मंत्रणा करबाक चाही। मंत्रणाकेँ सब तरहे गुप्त राखब आवश्यक।
viii) कोष:- एहने कोषकेँ प्रशंसनीय मानल गेल अछि जाहिमे द्रव्य जमाहो मुदा बाहर नहि कैल जाए। राजाकेँ कोषक वृद्धिक हेतु सतत प्रयत्नशील रहबाक चाही।
ix) सेना:- राजाकेँ सेना आर बलक व्यवस्थापर पूर्ण ध्यान देबाक चाही। एहिमे छह प्रकारक सेनाक संयोजनक चर्च भेल अछि।
x) सेनापति:- हस्ति, अश्व, रथ, पदाति सेना, सेनापतिक अधीन रहैत अछि आर एहि पदक सेहो ओतवे महत्व अछि जतवा पुरोहित आर अमात्यक। पुरूषार्थयुक्त, लोकप्रिय, दक्ष, शस्त्रास्त्रसँ युक्त, रण विद्यामे कुशल, प्रवासक संकटकेँ सहएवाला व्यक्तिकेँ सेनापतिक पदपर नियुक्त करबाक चाही।
xi) राजदूत आर गुप्तचर:- सन्धि एवँ विग्रहक दायित्व राजदूतपर निर्भर करैत अछि। एहिपर एहि ग्रंथमे विशेष विचार कैल गेल अछि। दूतकेँ सच्चरित्र, चतुर, मेधावी, देशकालक ज्ञाता, निर्भीक, आर सुवक्ता होएबाक चाही। दूतकेँ राजाक मुँह कहल गेल अछि। दूतकेँ मारबाक नहि चाही चाहे ओ मलेच्छे कियैक ने हो? गुप्तचर सेहो राज्यक प्रमुख अंग मानल गेल अछि। स्वराष्ट्र आर परराष्ट्रक वस्तुस्थितिक पता लगाएब गुप्तचरक मुख्य कार्य छल।
xii) राजाक सामान्य कार्य:- एहि प्रसंगमे मनुक सहारा लैत चण्डेश्वर लिखैत छथि–
- i) युद्धसँ विमुख नहि हैव।
- ii) प्रजाक पालन।
- iii) ब्राह्मणक सेवा।
- iv) सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव, संश्रय (षड्गुण)क चिंतन–मनन करब
- v) साम–दाम–दण्ड–भेदपर विचार करब–दण्डक प्रयोग तखने करब चाही जखन सब उपाय निरर्थक सिद्ध हो–
- vi) राजाकेँ धनक टोहमे बरोबरि रहबाक चाही।
- vii) राज्यक रक्षा आर अपन सुरक्षा–
xiii) दण्ड:- शारीरिक–आर्थिक–देशकालकेँ ध्यानमे राखि दण्ड–विधान बनेबाक चाही।
xiv) राज्यक उत्तराधिकार:- सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्रकेँ देवाक चाही।
xv) पुरोहितक हाथे राज्याभिषेक:- उत्तराधिकार सौंपबाक पूर्वहि जँ देहावसान भऽ जाए तँ पुरोहित आर मंत्री द्वारा ज्येष्ठ पुत्रकेँ अभिषिक्त करबाक चाही। जँ कोनो पुत्र नहि ओ तँ राजवंशक कोनो उपयुक्त व्यक्तिकेँ चुनबाक चाही।
xvi) राज्याभिषेक:- राजा अपन जीवन कालहिमे ज्येष्ठ पुत्रकेँ युवराज पदपर नियुक्त कऽ सकैत छथि। जँ कोनो पुत्र नहि हो तँ प्रजा आर ब्राह्मणक परामर्शसम कोनो समीपवर्त्ती अन्यव्यक्तिकेँ ओहि पदपर आनिकेँ राज्याभिषेक कैल जा सकइयै। अभिषिक्त युवराजकेँ मान्य परम्पराक अनुसार चलबाक चाही। धर्मशास्त्र आर अर्थशास्त्रमे विरोध भेलापर मध्यम मार्गक अवलवन कए अपन व्यावहारिक बुद्धिसँ राज्यक संचालन करबाक चाही।
चण्डेश्वर अपन राजनीति रत्नाकरमे अमर सिंह, कात्यायन, कामन्दक, कुल्लूक भट्ट, कौटिल्य, नारद, भागवत, मनु, याज्ञवल्म्य, रामायण–महाभारत, लक्ष्मीधर, वसिष्ठ, विष्णु, बृहस्पति, व्यास, शुक्र, श्रीकर, हारीत, आदिसँ मत उद्धृत केने छथि। राजनीति रत्नाकर एक प्रकार संग्रह ग्रंथथिक आर मध्य युगमे जखन लोग सब मौलिक ग्रंथक अवगाहन करबामे असमर्थ छल तखन चण्डेश्वर एहि ग्रंथक रचना कए ओहि अभावक पूर्त्ति केलन्हि। एकर लोकप्रियता एवँ प्रसिद्धिक इएह कारण अछि। चण्डेश्वरक राजनीति रत्नाकर मिथिलाक हेतु एकटा आदर्श ग्रंथ भेल आर तदनुसार मिथिलामे शासन पद्धति संगठित भेल जकर प्रमाण हमरा ओइनवार वंशक शासन पद्धतिसँ लगइयै। देवसिंह अपना जीवतहि शिवसिंहकेँ युवराज बनौने छलाह। अहिठाम इहो स्मरण रखबाक अछिजे १३२५क बाद मिथिलमे मुसलमानी अमल प्रारंभ भऽ चुकल छल आर अहिठाम मुसलमान शासकक प्रतिनिधि सेहो रहैत छलाह। अहिबातकेँ ध्यानमे राखियेकेँ चण्डेश्वर अपन राजनीति रत्नाकरमे विचारक प्रतिपादित केने छथि आ अपन समन्वयताक प्रवृत्तिक परिचय सेहो देने छथि। सामंतवादी कुलीन लोकनिक प्रभाव तँ सहजहि बढ़िये गेल छल। विद्यापतिक रचना आर अन्यान्य साधन सबसँ निम्नलिखित मंत्री आर कुलीनक नाम भेटैत अछि।
i) अच्युत,
ii) महेश,
iii) रतिधर
iv) रतिपति आर शंकर
v) वाचस्पति (परिषद छलाह)
vi) रउत रजदेव
vii) अमृतकर आर अमिञंकर,
viii) गणेश्वर,
ix) चण्डेश्वर
न्याय व्यवस्थाक क्षेत्रमे मिथिलाक योग दान विशेष रहल अछि आर ताहुमे फौजदारीक क्षेत्रमे सेहो। वर्धमानक दण्डविवेक कानूनक एक प्रमुख पोथी मानल गेल अछि। न्याय व्यवस्थामे जाति सेहो देखल जाइत छल आर तदनुसार अभियुक्तकेँ सजा देल जाइत छल। सब किछु होइतहुँ वर्द्धमान बहुत अर्थमे स्पष्ट बला छलाह आर मूल सत्यकेँ पकड़ने छलाह। हुनक विश्वास छलन्हि जे लोग आ अज्ञानतावशे दिवानी मुकदमाक संख्या बढ़ैत अछि। हुनक विचार छलन्हि जे अभियुक्तकेँ एहि हिसाबे सजा देल जाइन्ह जे पुनः ओ ओहन काज नहि करए आर ओकरा चरित्रमे सुधार भऽ जाइक। ब्राह्मण अभियुक्तकेँ सुविधा भेटैत छलन्हि। गैर कानूनी ढ़ंगसँ दोसराक चीज वस्तु लेबकेँ चोरी कहल गेल अछि आर एहि प्रकारक तीनटा वर्गीकरण वर्द्धमान कएने छथि–
i) साहस कृत (डकैती)
ii) प्रकाशतस्कर (ठग)
iii) अप्रकाशास्कर (चोर)
वर्द्धमान दण्डक वर्गीकरण एवँ प्रकारे केने छथि–
दण्ड
वाक् धिक् धन् वध् निर्वासन्
धन्
धनदण्ड सर्वस्वहरण
वध
पीड़न अंगच्छेद प्रमापण
पीड़न
ताण्डव अवरोधन बन्धन विडम्बन
वाचस्पति मिश्रक अनुसार सजा देबाक अधिकार राजाकेँ छन्हि। न्यायपालिकाक अध्यक्ष राजा होइत छलाह आर हुनका कानूनक पालन करए पड़ैत छलन्हि। कानूनमे साक्ष्यक रूप ‘बृषल’केँ विश्वास नहि कैल जाइत छल आर तैं साक्षी ओ नहि भऽ सकैत छलाह। कानून आर राजनीतिक दृष्टिये वाचस्पतिक विवादचिंतामणि, नीतिचिंतामणि आर विवाद निर्णय महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। विद्यापति सेहो एकटा कानून ग्रंथ लिखने छलाह जकर नाम छल विभागसार। वकीलकेँ मिथिलामे व्यावहारिक कहल जाइत छल।
मुसलमान लोकनि शांतिसुरक्षाक हेतु ठाम–ठाम कोतवालक नियुक्ति करैत छलाह आर कोतवाल शब्दक व्यवहार हमरा विद्यापतिमे सेहो भेटैत अछि जाहिसँ ई स्पष्ट होइछ जे कोतवाल मिथिलाक शासन प्रणालीक एकटा प्रमुख अंग बनि चुकल छल। विद्यापतिमे कोतवालक हेतु कोहवार शब्दक व्यवहार अछि। बादमे कोतवालक स्थान फौजदार लेलक। काजी, ख्वाजा, मखदुम आदि शब्दक व्यवहार मिथिलाक शासन प्रणालीमे शुरू भऽ चुकल छल। वज्रघंटक विवरण सेहो भेटैत अछि। कीर्त्तिपताकासँ निम्नलिखित व्यक्ति (पदाधिकारी लोकनि?)क नाम उपलब्ध होइयै।
सूरज, राजनन्दन, हरदत्त, भिखु, पुण्डमल्ल, गोपाल मल्लिक, जयसिंह, हरिहर, रजदेव, केदारदास, सोहन, मुरारि, रामसिंह, पृथ्वीसिंह, विदु, दामोदरा, जनरंजन, सोने, विद्याधर, कमलाकर, श्रीराम, श्रीशाखो, सनेही झा। ई सब गोटए राज्यक पदाधिकारी छलाह। गोपाल मल्लिक आर पुण्डमल्ल धनुर्विद्यामे निपुण छलाह। रउत रजदेव योद्धा छलाह। युद्धक वर्णनक क्रममे ज्योतिरीश्वर ठाकुर ३६प्रकारक वस्त्रास्त्रक नाम गिनौने छथि आर विद्यापति सेहो सेनापति, दलपति आर राउतक वर्णन केने छथि। ज्योतिरीश्वर ‘राजनीति’ शब्दक व्यवहार केने छथि आर राजनीतिक केनिहारक हेतु ‘तत्वज्ञ’ शब्दक। राजनीतिकताक तत्वज्ञ्क क्रममे “मंत्रगोपन, मत्यमरण, देशरक्षा, वलावलज्ञान, कोषसंचय, व्युहरचना, व्युहप्रवेश, व्युहभंग, शंशय”क विवरण वर्णन रत्नाकरमे अछि। विद्यापतिक लिखनावलीमे निम्नलिखित शब्दावली भेटैत अछि–
- i) महापत्निक ठक्कुर
- ii) महामत्तक ठक्कुर
- iii) महासूपकार पति
- iv) महापार्णागारिक ठक्कुर
- v) स्वस्त्रागरिक
- vi) पानियगरिक
- vii) महादश नैबन्धिक ठक्कुर
- viii) महादेव गारिक ठक्कुर
- ix) कोषागार
- x) महाभानुगारिक
- xi) दलपति
- xii) राउत
- xiii) कार्यि
- xiv) ओसथि
- xv) मोकद्दम–इत्यादि।
खण्डवला कुलक समयसँ मुगल अधिकारी तिरहूतमे रहए लागल। सम्प्रति मिथिला तीन प्रमण्डलमे विभक्त अछि–तिरहूत, दरभंगा आर सहरसा।








अध्याय – 16
मिथिलाक सामाजिक इतिहास
मिथिलाक अस्तित्व वैदिक कालहिसँ अद्यावधि सुरक्षित अछि। मिथिलामे आर्यक आगमनक पूर्व मिथिलाक सामाजिक व्यवस्थाक रूपरेखा केहेन छल से कहब असंभव। ओकर ठीक–ठीक अनुमान लगायबो संभव नहि अछि। मिथिलाक संस्कृतिक अविछिन्न प्रभाव रहल अछि। आजुक मिथिलामे हमरा लोकनि जे देखैत छी ताहिसँ बहुत भिन्न ओहि दिनक अवस्था सामान्य जनक हेतु नहि छल। प्रत्येक देशक अपन अपन देशगत विशेषता होइत छैक आर ओहिपर ओहि देशक भूगोलक प्रभाव रहिते छैक। मिथिला एहि नियमक अपवाद नहि रहल अछि आर रहबे कियैक करैत? सामाजिक नियम एवँ अबधक निर्माण कोनो एक दिनमे नहि होइत छैक आर सामाजिक व्यवस्थापर मात्र भूगोलक नहि अपितु आर्थिक व्यवस्थाक प्रभाव सेहो पड़ैत छैक। पूर्व वैदिक कालमे समाजक व्यवस्था कठोर नहि बनल छल आर बहुत दूर धरि ओ व्यवस्था स्वच्छन्द एवँ मुक्त छल। समाजमे प्रत्येक व्यक्तिकेँ मुक्त वातावरणक अनुभव होइत छलैक आर ओ लोकनि कोनो स्थायी नियमक निर्माण कए नहि बैसि गेल छलाह। गतिशील समाज छल आर तैं विकासोन्मुख सेहो। एवँ प्रकारे ई समाज बहुतो दिनधरि चलल आर शनैः शनैः आर्यक विस्तार जहिना भारतवर्षक विभिन्न भागमे होमए लगलैक तहिना समाजोमे तदनुकुल परिवर्त्तन अवश्यम्भावी बुझना गेलैक आर समाजक महारथी लोकनि ओहि दिसि अपन ध्यान देलन्हि। साम्राज्यक विस्तारक संगहि अर्थनीतिक पेंच कसेऽ जाए लागल आर समाज ओहिसँ भिन्न नहि रहि सकल। वर्णाश्रमक व्यवस्था, भनेऽ कोनो इँच्च आदर्शसँ भेलहो, पछाति ओ अपन दुर्गुणक संग हमरा लोकनिक समक्ष उपस्थित भेल आर जेना जेना वर्ग विभेद बढल गेल तेना-तेना एकर स्वरूप दिन प्रतिदिन विकृत होइत गेलैक। जँ से नहि होइत तँ मिथिलामे पुनः जनक सन शासक, याज्ञवल्म्य सन विधिनिर्माता एवं गौतम सन सूक्ष्म विचारक कियैक नहि अवतीर्ण भेलाह? आर नेऽ फेर उत्पन्न भेलीह कोनो गार्गी आर मैत्रेयी? एहि मूलतथ्यकेँ जाधरि हमरा लोकनि अवगाहन करबाक चेष्टा नहि करब ताधरि हमरा लोकनिक कल्याण नहि आर ने तत्वक उचित दिगदर्शन।
सर्वप्रथम चारि वर्णक उल्लेख ऋगवेदक पुरूष सूक्तमे भेटइत अछि। प्रारंभमे एहेन बुझि पड़ैत अछि जे जखन आर्य लोकनि विस्तार भेलैन्ह आर हुनका लोकनिकेँ अहिठामक मूलनिवासीसँ सम्पर्क भेलैन्ह तखन दुहुक संस्कृतिमे पर्याप्त भिन्नता छल आर ओ लोकनिकेँ वर्णक विभाजन उचित बुझलन्हि आर तदनुकुल वर्णक विभाजन भेल। मिथिलामे आर्यक प्रसारक समय वर्णव्यवस्थाक प्रचलन भए चुकल छल। मुदा ताहि दिनमे अझुका कट्टरता देखबामे नहि अवइयै। विवाहादिक प्रसंगमे ऋगवेद आर शतपथ ब्राह्मणमे भिन्नता देखबामे अवैछ। ब्राह्मण आर क्षत्रियकेँ अपनासँ छोट वर्गमे विवाह करबाक अधिकार प्राप्त छलन्हि। ब्राह्मण कालमे शूद्र लोकनिक अवस्था शोचनीय भए गेल छल। एतरेय ब्राह्मणमे शूद्रक दुर्दशाक वर्णन भेटैत अछि। शूद्र लोकनि सब अधिकारसँ वंचित छलाह आर समाजमे हुनक स्थान निकृष्टतम् छलन्हि। कालांतरमे किछु एहेन व्यवस्था बनल जाहिमे ब्राह्मण-क्षत्रिय लोकनि सम्मिलित रूपें निम्नवर्गक शोषणमे रत भए गेलाह। एकर मूल कारण ई छल जे जँ-जँ सामाजिक व्यवस्था गूढ़ होइत गेल तँ तें ई दुहु वर्ग उत्पादनक साधन एवं तत्संबधी ज्ञानक कुंजी अपना हाथमे दबौने गेलाह आर निम्न दुहु वर्गक लोग हिनका सबहिक अधीन होइअत गेल। जखन आर कोनो चारा नहि रहलैक आर परिस्थिति दिनानुदिन बदतर होइत गेलैक तखन शूद्रकेँ वेदोसँ वंचित कैल गेलैक। एहि सब घटना क्रमक उल्लेख तत्कालीन साहित्य एवं कथा सबमे सुरक्षित अछि। दरिद्र लोकनिक की दशा रहल होइत तकर पूर्वाभास तँ महाभारतक अध्ययनसँ भेटैत अछि जतए इन्द्रोकेँ ई कहए पड़ल छन्हि जे दुःखक अनुभव करबाक हो तँ मर्त्यलोक जाकए हुनका लोकनिक संग रहिकेँ देखि आउ। महाभारतक अनुशासन पर्वमे एहि दृष्टिकोणक बहुत रास घटना वर्णित अछि।
समाजक वर्गीकरण दिनानुदिन विषम होइत गेल। शूद्र एवं अन्यान्य छोट छीन वर्ग़क लोग सब जमीनक अभावमे मजूर अथवा बेगारीक अवस्थाकेँ प्राप्त केलक आर ओम्हर दोसर दिसि गगन चुम्बी अट्टालिका ओकरा लोकनिक दयनीय एवं उपेक्षित आर असहाय अवस्थापर अट्टहास करए लागल। सूत्र एवं स्मृति साहित्यमे एहिबातक पुष्ट प्रमाण अछि। करहुक ममिलामे वैश्य-शूद्रेकेँ तंग होमए पड़ैत छलन्हि। वैदिक युगमे जाति वा वर्गक निर्णय कर्मसँ होइत छल आर आन वर्णक लोगों अपन कर्मसँ ब्राह्मण भऽ सकैत छल। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार राजा जनक याज्ञवल्म्यक उपदेश एवं अपन कर्तव्यसँ ब्राह्मण भेल छलाह। तैतरीय ब्राह्मणमे विद्वानेकेँ ब्राह्मण कहल गेल अछि।
स्त्री, शूद्र, श्वान आर गायकेँ "अनृत"क संज्ञा देल गेल छैक। विवाहमे खरीद-बिक्रीक प्रथा छल। बहु विवाहक प्रथा सेहो छल। धनसंम्पत्तिसँ सेहो स्त्रीगणकेँ वंचित राखल जाइत छल। पूर्व वैदिक कालक जे मुक्त वातावरण छल से आव समाप्त भऽ चुकल छल आर ओकर स्थान लऽ लेने छल संकीर्णता। सामाजिक दृष्टिकोणसँ संकीर्णताक समावेश घातक सिद्ध भेल। संकीर्णताक भावनाकेँ प्रश्रय देवाक हेतु अत्यधिक साहित्य एवं कर्मकाण्डी नियमक निर्माण भेल। ओना उपरसँ देखबामे तँ इएह बुझि पड़ैछ जे स्त्रीगणक स्थान समाज बड्ड उँच्च चलन्हि मुदा ई स्थिति वास्तविकतासँ बड्ड दूर छल। गार्गी आर मैत्रेयीक नामसँ कोनो देश अपनाकेँ गौरवांवित बुझओ परञ्च हमरा लोकनिकेँ एतए ई स्मरण राखब आवश्यकजे ओ लोकनि नियमक अपवाद मात्र छलीह। ओहिठाम याज्ञवल्म्यक दोसर पत्नी कात्यायनीकेँ देखिऔक तँ बुझबामे असौकर्य नहि होएत जे समाजमे स्त्रीक वास्तविक स्थिति की छल? सुलभा आर गार्गीक देनसँ भारतक दर्शन भरपुर अछि। जतए एक दिसि मनुक्खकेँ अधिकाधिक विवाह करबाक अधिकार प्राप्त छलन्हि ओहिठाम एक स्त्रीकेँ दोसर विवाह करबाक आर दोसराक संग मेल जोलक अधिकार नहीं छलैक। सुरूचि जातकमे एकटा कथा सुरक्षित अछि जकर सारांश भेल-"मिथिलाक राज्य बड्ड विस्तृत अछि आर एहिठामक शासककेँ १६०००(सोलह हजार) पत्नी छन्हि"। एहिसँ प्रत्यक्ष भऽ जाइछ जे सामाजिक व्यवस्थामे स्त्रीगणक की स्थिति छल? एतरेय ब्राह्मणमे कहल गेल अछि जे पुतोहु अपन श्वसूरक सोझाँ नहीं जाइत छलीहे। जँ अनचोकसँ श्वसूरक नजारि पुतोहुपर पड़ि जाइत छलन्हि तँ पुतोहु बेचारी नुका रहैत छलीहे। मिथिलामे पर्दा प्रथा आर पुतोहु-श्वसूरक सम्बन्धक ई प्राचीनतम उदाहरण भेल आर मैथिल समाजमे ताहि दिनसँ अद्यावधि कोनो विशेष परिवर्त्तन नहीं देखबामे अबैछ। विधवाक स्थितिओ प्रायः अझुके जकाँ छल। समाजमे विधवाकेँ हेय दृष्टिये देखल जाइत छल आर स्थिति बदतर छल। रखेल रखबाक प्रथा, दासी पुत्रक साथ दुर्व्यवहार, व्यभिचार एवं वेश्यावृत्तिक उल्लेख सेहो भेटैछ। राजदरबारमे असंख्य दासी पुत्री आर रखेलक व्यवस्था रहैत छल। मिथिलाक विभाण्डक मुनिक पुत्र ऋषि श्रृंग्यकेँ अंगक एकटा सुन्दरी फुसला लेने छलन्हि। किंवदंती अछि जे अंगक राजा लोमपाद अपन बेटी शांताकेँ एहि कार्यक हेतु अगुऔने छलाह। एहि घटनाक उल्लेख अश्वघोष सेहो कएने छथि।
-"ऋष्य श्रृंग मुनि सुतं स्त्रीष्व पंडितम्।
उपायै विविधैः शांता जग्राहच जहारच"॥
पुराण आर जातकमे वर्णित समाजमे बहुत किछु समानता अछि। दिन प्रति दिन समाजमे कट्टरता एव अनुदार भावना जड़ि पकड़ने जाइत छल। धनक महत्व बढ़ए लागल छल आर विद्या आर विद्वानक महत्व क्रमशः घटए लागल छल। ओना तँ लक्ष्मी-सरस्वतीक आपसी द्वेष बौद्धयुगमे आविकेँ विशेष रूपें चरितार्थ भेल छल मुदा ओहुँसँ पूर्वहुँ हमरा एहि सब वस्तुक स्पष्ट उदाहरण भेटइत अछि। ब्राह्मणक अपेक्षा धनाढ्यक प्रतिष्ठा बढ़ि रहल छल। आवश्यकतानुसार आब लोक अपन रोजगार चुनए लागल आर प्राचीन कालमे ब्राह्मण लोकनिक लेल जे खेती निषिद्ध मानल जाइत छल से आब नहि रहि गेल। ब्राह्मण खेती आर व्यवसाय दुहुमे लागि गेलाह। पुराणादिक अध्ययनसँ ई सब बात स्पष्ट भऽ जाइछ। बौद्धसाहित्यक अनुसार ब्राह्मण लोकनि अपन जीविकाक हेतु सब काज करैत छलाह। जातक तँ एहि प्रकारक कथा सबसँ भरले अछि। सामाजिक नैतिकतामे सेहो परिवर्त्तन भेल आर प्राचीन मूल्याँकनक मापदण्डमे सेहो समयानुसार उचित संशोधन आर परिवर्त्तन कैल गेल।
मनुक्खक जीवनक कमसँ कम तीनटा विभाजन सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषदमे देखबामे अवइयै। उपनिषद कालमे मिथिलामे क्षत्रिय ब्राह्मणक स्तर धरि पहुँचि चुकल छलाह। ज्ञान एवं ब्रह्मविद्याक क्षेत्रमे ओ कोनो रूपें ब्राह्मणसँ कम नहि छलाह। उपनिषदमे कर्मकाण्डक विरोधमे उठैत भावनाक प्रदर्शन सेहो देखबामे अवइयै। उपनिषदमे हम जे देखैत छी ताहिसँ स्पष्ट अछि जे ओ युग मिथिलाक सामाजिक-साँस्कृतिक इतिहासक उत्कर्षक युग छल आर सब तरहे सुखी सम्पन्न सेहो। एक बात जे स्मरणीय अछि उ भेल ई जे मिथिलाक क्षत्रिय शासक कोनो रूपेँ ब्राह्मणसँ अपनाकेँ कम नहीं बुझैत छलाह आर ब्राह्मणोकेँ ई स्वीकार करबामे कोनो आपत्ति नहि छलन्हि। स्वयं याज्ञवल्म्य जनकक एहि गुणकेँ स्पष्ट रूपे मनने छथि आर गीतामे सेहो एकर संकेत अछि। वर्ण व्यबस्था ताहि दिनमे एतेक दृढ़ नहि भेल छल।
बौद्ध एवं जैन धर्म कार्य क्षेत्र सेहो मिथिलामे छल आर एकर प्रभाव तत्कालीन समाजपर पड़ब स्वाभाविके छल। अवैदिक धर्मक विकासक मुख्य स्थान छल मगध आर वैशाली सेहो ओहि प्रभावसँ अक्षुण्ण नहि छल। बौद्ध युग धरि अबैत अबैत ब्राह्मण सत्ताक भीत ढ़हि रहल छल आर क्षत्रिय लोकनिक प्रभाव चारूकात दिनानुदिन बढ़ि रहल छल। भोजन भावक नियमादमे सेहो परिवर्त्तन अवश्यम्भावी भऽ गेल छल। जातकक अनुसार एहि युगमे ब्राह्मण लोकनि सबहिक संग भोजन भाव करैत छलाह आर एहेन ब्राह्मण सबकेँ कट्टर वैदिक लोकनि अपना पाँतीसँ फराकेँ रखैत छलाह। सभहिक संग खेनिहार ब्राह्मण लोकनिकेँ पतित कहल जाइत छल। सामाजिक मान्यताक हेतु एहि युगमे संघर्ष चलैत रहल आर तरह तरहक उथल-पुथलक कारणे समाजमे सतत अस्थायित्व बनल रहल।
आजीविक, जैन, आर बौद्ध संप्रदायक प्रसारसँ वेदक अपौरूषेयतामे लोगक संदेह उत्पन्न होमए लगलैक आर एवं प्रकारे समाजक वर्गीकरणमे सेहो कारण उपरोक्त तीनू सम्प्रदायक नेना वर्नव्यवस्थाक कट्टर विरोधी छलाह। एकरे प्रभाव स्वरूप जाति पातिक खाधि भोथा रहल छल आर एहि अग्निधार बहुत रास सड़ल विचारक होम सेहो भए रहल छल। प्रारंभमे वैशालीसँ आगाँ एहि विचार सबहिक दालि नहीं गलल छलैक परञ्च काल क्रमेण एकर प्रभावसँ मिथिला मुक्त नहीं रही सकल-वैशालियो पूर्णतः वर्ण-व्यवस्थासँ मुक्त नहि भऽ सकल यद्दपि बौद्ध लिच्छवी लोकनिकेँ तावतिंशदेव कहने छथि। धनक प्रभाव एहि सब क्षेत्रमे सेहो बनले छल आर गरीब मानवता कहिओ अपनापर होइत अन्यायक विरोधमे सशक्त भऽ कए ठाढ़ नहीं भऽ सकल। लिच्छवी लोकनिक रहन सहन सेहो वर्गगत छलन्हि जँ एहि व्यवस्थामे कतहु कोनो प्रकारक घूंट देखबामे अवैत हो तँ ओकरा नियमक अपवाद कहब। समाजक भद्र लोकनि चाण्डालकेँ हेय दृष्टिसँ देखैत छलाह आर समाजमे चाण्डालक स्थिति बदतर छल। ओ लोकनि नगरसँ बाहर रहैत छलाह। घृणित कार्य हुनके सबसँ कराओल जैत छल। हुनका लोकनिक अवस्थामे सुधारक कोनो आसार देखबामे नहि अबैत छल।
भृत्य, गुलाम, बहिया आदिक स्थिति तँ आर चिंतनीय छल कारण ई लोक्नि तँ शूद्रक कोटिमे छलहि। स्वयं बुद्ध जे अपना मुँहसँ गुलामक अवस्थाक वर्णन कएने छथि ताहिसँ रोमाँच भऽ जाइछ। जातकमे चारि प्रकारक गुलामक वर्णन अछि। वहियाक प्रथा मिथिलामे अति प्राचीन कालसँ चलि आबि रहल अछि। कौटिल्यक अर्थशास्त्र आर अन्यान्य ग्रंथ सबमे एकर उल्लेख भेटइयै। वेश्याक प्रचलन ऐहु युगमे छल आर वैशालीक अम्बपालीक नाम तँ सर्वविदित अछिये। यद्दपि बुद्ध स्वयं एहि व्यवस्थाक विरोधी छलाह आर एतए धरि जे ओ स्त्रीकेँ संघमे एबासँ वर्जित करैत छलाह मुदा तइयो जखन अम्बपाली हुनका प्रति अपन भक्ति दरसौलक तखन बुद्ध ओकर निमंत्रण स्वीकार कए ओतए गणिकाक ढ़ेर लागल रहैत छल। एहिमे बहुतो नृत्य एवं संगीत कलामे निपुण होइत छलीहे। कोनो कोनो राजदरबार १६०००गणिका उल्लेख भेटइयै। पर्दा प्रथाक संकेत बौद्धयुगमे भेटैत अछि।
बौद्धकालमे धनसंपति आर राज्याधिकार सामाजिक मापदण्ड भेल आर क्षत्रिय लोकनिक महत्व समाजमे एतेक बढ़लन्हि जे ओ लोकनि आब विशेषरूपेँ आहूत होमए लगलाह। विदेह-वैशालीमे ओ लोकनि आर शक्तिशाली छलाह। वर्ण-व्यवस्थामे एवं प्रकारे सेहो थोड़ेक परिवर्तन हैव स्वाभाविक भऽ गेल। अशिक्षित ब्राह्मण लोकनि निम्नस्तरकेँ प्राप्त भेलाह। क्षत्रिय लोकनिक प्रभाव वृद्धिक सबसँ पैघ उदाहरण इएह भेल जे वैशालीक अभिषेक पुष्पकरिणीमे लिच्छवी राजा लोकनि अनका स्नान नहि करए दैत रहथिन्ह। समस्त लिच्छवी क्षेत्र तीन हिस्सामे वर्ग अथवा वर्णक आधारपर बटल छल आर प्रत्येक क्षेत्रक रहनिहार अपनहि क्षेत्रमे विवाहादिक सकैत छल। पैघ वर्णक बालक जँ छोट वर्णक कन्यासँ विवाह करए तँ ताहि दिनमे एकर मान्यता छल मुदा एहिबात एकबात स्मरण राखबाक ई अछि जे राजकुमार नाभाग जखन एक वैश्य कन्यासँ विवाह केलन्हि तखन हुनका गद्दीसँ वंचित कए देल गेलन्हि। एहिसँ अनुमान लगाओल जाइत अछि जे राजदरबारमे अंर्तजातीय विवाहकेँ प्रोत्साहन नहीं देल जाइत छल। कुलेन परिवार एवँ अभिजातवर्गक सदस्य गण ताहु दिनमे एकर कट्टर विरोधी छलाह।
ब्रह्मचारी एवं धर्मप्रचारक लोकनि कतहु भोजन कऽ सकैत छलाह। ओ लोकनि जातीयताक बन्धनसँ अपनाकेँ मुक्त मनैत छलाह। शूद्र लोकनि भनसिया नियुक्त होइत छलाह। माँछ-माँउसक व्यवहार ब्राह्मण लोकनिक ओतए सेहो होइत छल। भोजन-भावमे मध्ययुगीन कट्टरता ताहि दिनमे नहि छल। गैर ब्राह्मण लोकनि सेहो सब किछु खाइत-पीबैत छलाह। छुआछूतक कट्टरता नहि रहितहुँ ई देखबामे अबैछ जे चाण्डालसँ सब केओ फराकेँ रहैत छलाह आर चाण्डाल नगरक बाहर रहैत छल। चाण्डालकेँ अछूत बुझन जाइत छल आर जँ ओकर नजरि ककरो भोजनपर पड़ि जाइत छल तँ ओहि भोजनक परित्याग कैल जाइत छल। बुद्धक संघक स्थापनाक पछाति बहुतो शूद्र आर छोट वर्णक लोग सब ओहिमे सम्मिलित भेल छल।
वर्णाश्रमक प्रधानता तथापि बौद्धयुगमे बनले रहल। एहि युगमे ब्रह्म चर्याश्रमक प्रधानता विशेष छल। विभिन्न आश्रमक महत्वपर एहि युगमे बेस विवाद चलि रहल छल। विवादक मुख्य प्रश्न इएह छल जे व्राणप्रस्थ आर सन्यासमे कोन उत्तम? ओना तँ एहि युगमे हमारा ई देखैत छी जे सन्यासक प्रवृत्ति दिनानुदिन बढ़ि रहल छल। मार्कण्डे पुराणक कथाक अनुसार वैशालीक राजा लोकनि-खनित्र, मरूत्त, वरिष्यंत, मंखदेव आदि-सन्यास ग्रहण कएने छलाह। ब्रह्मचर्य, ग्रार्हस्थ, वाणप्रस्थ आर सन्यासी सम्बन्धी नियम एखनो पूर्णरूपेण स्थायी नहि भेल छल। बौधायन धर्मसूत्रमे तँ वाणप्रस्थ आर सन्यासक प्रतिकूल वातावरण देखबामे अवइयै। किछु धर्मसूत्र सबमे गृहस्थाश्रमक अपेक्षा वाणप्रस्थक सराहना कैल गेल अछि मुदा इहो विचार ततेक संदिग्ध रूपे प्रगट भेल अछि जे ओहि सब आधारपर किछु निश्चित बात कहब अथवा कोनो मत निर्धारित करव असंभव। एहियुगमे परिवारक चर्च सेहो भेटैत अछि। ताहि दिन भिन्न-भिनाओज नीक नहि बुझल जाइत छल। कन्याक हेतु विवाहक निश्चित आयु १६वर्ष छलैक आर जाहि कन्याकेँ भाई इत्यादि नहि रहैत छलैक से अपन पैत्रिक धनक उत्तराधिकारिणी सेहो होइत छल। 'स्त्रीधन' सिद्धांतक विकास एहि युगमे भेल छल। सती प्रथाक उल्लेख सेहो ठाम-ठाम भेटैत अछि। वैशालीक राजा खनित्र आर वरिष्यंतक पत्नी सती भेल छलथिन्ह। मादरी जे अपनाकेँ एहि सतीत्वमे अनने छलीह ताहुसँ सती प्रथाक संकेत भेटैत अछि।
बौद्ध युगक ओना इतिहासमे अपन विशेष महत्व छैक परञ्च वैशालीक हेतु तँ ई स्वर्णयुग छल। जाहि पुश्करिणीक उल्लेख हमारा पूर्वहि कऽ चुकल छी ताहिमे स्नान करबाक हेतु श्रावस्तीक सेनापति बन्धुल मल्लक स्त्री मल्लिका व्यग्र छलीह आर एकर वर्णन हमरा जातकमे भेटैत अछि। जातकमे कहल गेल अछि- -"वैशाली नगरे गणराज्य कुलानाम्।
अभिषेक मंगल पोक्खरी नम्॥
ओतरित्वा नहातापानीयम्।
पातुकम् अहि समीति"॥
बन्धुल अपना पत्नीकेँ लए ओहिठाम गेलाह मुदा पहरू लोकनि हुनका दुहुकेँ नहीं जाए देलथिन्ह आर अंतमे एहि लेल युद्ध भेल आर ओ दुनु गोटए ओहिमे स्नान कए घुरइत गेलाह। एकर अतिरिक्त वैशालीमे आर कतेको दर्शनीय वस्तु छल-उदेन चैत्य, गोतमक चैत्य, चापाल चैत्य, कपिनय्य चैत्य. मर्कट हृदतीर चैत्य, मुकुट बन्धन चैत्य, इत्यादि। वैशालीमे एहि युगमे महालि, महानाम, सिंह, गोश्रृंङ्गी, भद्द आदि नामक प्रधान व्यक्ति भेल छलाह। चुल्लुवग्गमे लिच्छवी भद्रक उल्लेख एहि प्रसंगमे अछि जे एकबेर हुनका बौद्धसंघसँ निष्काषित कए देल गेल छल मुदा पुनः सुधार भेलापर हुनका लऽ लेल गेल छल। ओहि समयमे समाजसँ निष्काषित करबाक प्रथा एवं प्रकारे छल=जाहि सभ्यकेँ निष्कासित करबाक होन्हि तिनका भोजनार्थ निमंत्रण देल जाइत छलन्हि आर आसनपर बैठला उत्तर हुनक जल पात्रकेँ उलटि देल जाइत छलन्हि। पुनः जखन हुनका समाजमे लेल जाइत छलन्हि तखन ओहिपात्रकेँ सोझ कऽकेँ राखल जाइत छलैक। जाहि समयमे तोमर देव वैशालीक प्रधान छलाह तखन लिच्छवी लोकनि साज गोज कए हुनक स्वागत कएने छलाह। केओनील, केओ स्वेत आर केओ लालरंगक शास्त्रास्त्र एवं आभूषण आर वेशभूषासँ सुसज्जित भए बु्द्धक स्वागतार्थ उपस्थित भेल छलाह। महा विष्णुमे एकर विवरण एवं प्रकारे अछि-
-"संत्यत्र लिच्छवयः पीतास्या प्रीतरथा
पीत रश्मि प्रत्योदयष्टि। पीतवस्त्रा,
पीतालंकारा, पीतोष्णीशा, पीतछत्राः
पीतखङ्ग मुनिपादुका।
पीतास्या पीतरथा पीतरश्मि प्रत्योदमुष्णीशा।
पीता च पंचक कुपा नीलावस्त्रा अलंकारा:॥
वैशालीक आम्रकानन जाहिमे अम्बपाली रहैत छलीहे सेहो बड्ड प्रसिद्ध छल। बौद्ध धर्मक इतिहासक दृष्टिकोणसँ सेहो वैशालीक अत्यधिक महत्व अछि। अहिठाम ई निर्णय लेल गेल छल जे स्त्री लोकनिकेँ संघमे प्रवेशक अनुमति देल जाइन्ह। एतहि भिक्षुणी संघक स्थापना सेहो भेल छल। आनंदक कहलापर बुद्ध एहिबातकेँ मनने छलाह आर एहिपर अपन स्वीकृति दैत बौद्धधर्मक सम्बन्धमे भविष्यवाणी सेहो कएने छलाह-"स्त्री जातिक प्रवेशसँ बौद्ध धर्म आव ५००वर्ष धरि जीवित रहत"। वैशालीसँ जेबा काल बुद्ध ई कहीं गेल छलाह जे आब ओ पुनः एतए घुरिकेँ नहि आवि सकताह। वैशालीक लोग सब ई सुनि बड्ड दुखी भेलछल-
-"दं अपश्चिमं नाथ वैशाल्या स्तव दर्शनम्।
न भूयो सुगतो बुद्धो वैशाली आगमिष्यति"॥
हुनका महापरिनिर्वाणक सय वर्ष बद वैशालीमे बौद्धसंघक दोसर संगीति भेल छल। मिथिलाक माँटिमे एहेन प्रभाव जे अहिठामक लोग सब वेस तार्किक होइत छलाह। नागार्जुनक शिष्य भिक्षुदेव जखन वैशाली जेबाक हेतु प्रस्तुत भेलाह तखन नागार्जुन कहलथिन्ह-"ओना अहाँ जाए चाहैत छी तँ जाउ मुदा ई स्मरण राखब जे ओहिठामक नदीनो भिक्षुक लोकनि बड्ड जबर्दस्त तार्किक होइत छथि"।
जैन ग्रंथ सबसँ सेहो ताहि दिनक सामाजिक अवस्थाक विवरण भेटइयै। वैशालीमे क्षत्रिय, ब्राह्मण आर वणिक भिन्न-भिन्न उपनगरमे रहैत छलाह। सामाजिक क्षेत्रमे हुनका लोकनिक मध्य सहयोग एवं सहकारिताक भावना व्यापक छलन्हि। दालि, भात, तरकारीक अतिरिक्त ताहि दिनमे माँछ-माँउसक प्रचलन सेहो छल। अपना नगरसँ हुनका लोकनिकेँ बड्ड प्रेम छलन्हि। हीरा, जवाहिरात, सोना, चानीसँ हुनका लोकनिक हाथी, घोड़ा, आर सवारी सजल रहैत छलन्हि। शिकार हुनका लोकनिकेँ बड्ड प्रिय छलन्हि। अंगुत्तर निकायक अनुसार लिच्छवी बालक लोकनि बड्ड चंचल आर नटखटिया होइत छलाह। लिच्छवी लोकनि स्वतंत्रता आर स्वाभिमानक प्रेमी छलाह। शिक्षा प्राप्त करबाक हेतु ओ लोकनि दूर-दूर देश धरि जाइत छलाह। विवाहक नियमावली लिच्छवी लोकनिक हेतु कठोर छलन्हि। जाहि कन्याकेँ विवाह करबाक विचार होन्हि से लिच्छवी गणकेँ सूचना दैत रहथिन्ह आर गणक दिसि हुनका लेल सुन्दर वर चुनल जाइत छल। स्त्रीक सतीत्वक रक्षार्थ लिच्छवी लोकनिक किछु उठा नहि रखैत छलाह। एहिमे राजा आर रंकमे कोनो कानूनी भेद नहीं छल। मृतकक दाह संस्कारक सम्बन्धमे सेहो हुनका लोकनिक अपन नियम छलन्हि-मुर्दा जरेबाक, गारबाक, अथवा ओहिना छोड़ि देबाक प्रथा हुनका ओतए छलन्हि। मुर्दाकेँ गाँछमे लटकेबाक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। हुनका लोकनि ओहिठाम एकटा उत्सव होइत छल जकरा "सब्बरतिवार" कहल जाइत छल जाहिमे ओ लोकनि भरि राति जागिकेँ नाच गान करैत छलाह आर एकर उदाहरण अंगुत्तर-निकायमे भेटैत अछि।
मौर्य युगमे सर्वप्रथम समस्त भारतक राजनैतिक एकीकरण भेल आर मिथिलाक क्षेत्र अखिल भारतीय साम्राज्यक अंग बनल। सामाजिक दृष्टिकोणसँ सेहो ई युग महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। राज्यक स्वरूप मंगलकारी छल यद्दपि राजाक शक्तिमे अपार बृद्धि भेल छलैक। आर प्रत्येक व्यक्ति जीवनकेँ सुखी रूपे व्यक्त करबा लेल इच्छुक छल। ताहि दिनमे मनुष्य सुगठित, स्वरूप आर बलवान होइत छल। वस्त्राभूषणक प्रति हुनका लोकनिक स्नेह बिशेष रहैत छलन्हि आर खेल कूद, नाच गाना आर संगीतक प्रचलन बढ़िया छल। मगधक राजधानी पाटलिपुत्र ताहि दिनमे संसारक सर्वश्रेष्ठ नगर छल आर प्रधान क्रीड़ा केन्द्र सेहो। एहि क्रीड़ाक अंतर्गत शाल-भंजिका एवं अशोक पुष्प प्रचायिका विशेष रूपे प्रचलित छल। कौटिल्यक अर्थशास्त्र आर अशोकक अभिलेखमे उत्सव, समाज, आर यात्राक उल्लेख भेटैत अछि जाहिमे आमोद-प्रमोदक व्यवस्था छल आर सब केओ बड्ड उत्साहसँ ओहिमे भाग लैत छलाह। कौटिल्य वर्णाश्रम धर्मक बड्ड पैघ समर्थक छलाह। एहि धर्मक समुचित पालन कराएब राजाक कर्तव्य छल। अशोकक शासन कालमे वर्णाश्रम धर्मपर विशेष ध्यान नहि देल गेल कारण अशोक स्वयं बौद्ध छलाह आर हुनका एहि व्यवस्थापर पूर्ण आस्था नहि छलन्हि। चन्द्रगुप्त मौर्य स्वयं शूद्र छलाह तैं हम देखैत छी जे एहि युगमे शूद्रक प्रति कौटिल्यक विचार मनुक अपेक्षा विशेष उदारवादी छल। वर्ण व्यवस्थाक अंतर्गत कतेको जाति–उपजाति बढ़ि गेल। मनु तँ बहुतों विदेशी जाति सबकेँ क्षत्रियक श्रेणीमे रखने छथि। मिथिलाक लिच्छवी लोकनिकेँ सेहो मनु व्रात्य कहने छथि। व्रात्यकेँ सेहो ओ चारि वर्णमे बटने छथि–व्रात्य ब्राह्मण, व्रात्य क्षत्रिय, व्रात्य वैश्य एवँ व्रात्य शूद्र। यवन दूत मेगास्थनीज लिखने छथि जे एहिठाम युनान जकाँ गुलामक व्यवस्था नहि छल। एहि युगमे स्त्रीकेँ अवस्थामे सेहो परिवर्त्तन भेलैक। कौटिल्य स्त्रीकेँ सम्पत्ति अर्जित करबाक आर रखबाक अधिकार देने छथिन्ह। अपना जेवरपर खर्च करबाक अधिकार सेहो हुनका लोकनिकेँ छलन्हि। जँ कोनो व्यक्तिकेँ बेटा नहि रहैक तँ ओकरा बेटीकेँ ओहि सम्पत्तिक स्वामित्वधिकार भेटैत छलैक। स्त्रीक कल्याणक हेतु अशोकक समयमे “स्त्री–अध्यक्ष–महामात्र”क नियुक्ति भेल छलैक। गुलाम लोकनिक प्रति सेहो राज्यक विचार उदार छल। प्रत्येक गुलामकेँ अपन स्वतंत्रता प्राप्त करबाक अधिकार छलैक।
मौर्यौत्तर कालमे चारि वर्णक व्यवस्था बनल रहल। जति आर उपजातिक संख्यामे विशेष बृद्धि भेल। चारूवर्णक लोग अपना–अपना वर्णक अभ्यंतरहिमे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करैत छलाह। वराहमिहिरक वृहत्संहिताक अनुसार नगरमे चारूवर्णक भिन्न–भिन्न क्षेत्र होइत छल। चीनी यात्रीक विवरणसँ स्पष्ट अछि जे ब्राह्मण लोकनि पूज्य बुझल जाइत छलाह। ब्राह्मण लोकनिक शुद्ध जीवन व्यतीत करबाक प्रसंग सेहो ओहिमे भेटैत अछि। समाजमे ब्राह्मणक प्रतिष्ठा विशेष छल आर मनु ओकरा आर प्रतिष्ठित बनौलन्हि। नारदक अनुसार श्रोत्रिय लोकनिकेँ कर नहि लगबाक चाही। ब्राह्मण वर्गकेँ सब प्रकारक सुविधा प्राप्त छलन्हि। गुप्त युगमे ब्राह्मण लोकनिक वर्गीकरण वैदिक शाखाक अनुरूप भेल। पाछाँ आविकेँ एकर आर वर्गीकरण भेल।
मौर्यौत्तर कालीन भारतमे क्षत्रिय लोकनिक प्रधानता बढ़ल। शूंग वंश आर कण्ववंशक स्थापनासँ मिथिलामे पुनः ब्राह्मण धर्मक पुनर्स्थापन सम्भव भेल आर ब्राह्मण लोकनिक सत्तामे बृद्धि सेहो। एहियुगमे मिथिलाक ब्राह्मण मिथिलासँ बाहर जाए अपन शाखा–प्रशाखाक स्थापना कएने छलाह। शासन भार जे केओ लैथ हुनक धर्म क्षत्रिय युद्धविद्या, कला, संगीतमे तँ पारंगत होइते छलाह संगहि ओ लोकनि विद्वान सेहो होइत छलाह। समुद्रगुप्तक प्रयाग प्रशस्तिसँ एहिपक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै। जे केओ शासक अथवा राजा होइत छलाह हुनके क्षत्रियक संज्ञा भेटैत छलन्हि। गुप्तशासक लोकनि ओना तँ क्षत्रिय नहि छलाह मुदा जखन राजा भऽ गेलाह तखन ओ क्षत्रिय कहब लगलाह। राजाक गुणक विवरण बाणक हर्षचरितमे सेहो भेटैत अछि। कृषि आर व्यापारक भार वैश्यपर छलन्हि। ई लोकनि दान आर धर्मक प्रपक्षी होइत छलाह। स्थान–स्थानपर धर्मशाला, अस्पताल आर सत्रक स्थापना ई लोकनि बड्ड प्रेमसँ करबैत छलाह। व्यापार आर उद्योगक संचालनार्थ ई लोकनि अपना मध्य जे संगठन बनौने छलाह तकरा श्रेणी अथवा गिल्ड कहल जाइत छल। मिथिलामे श्रेष्ठी आर सार्थवाहक जे उल्लेख भेटैत अछि सेहो हिनके लोकनिक तत्वावधानमे बनैत छल। शूद्र लोकनिक स्थिति चिंतनीय छलन्हि। ओ लोकनि छोत छीन रोजगारक संग खेती गृहस्थी सेहो करैत जाइत छलाह। हुनका लोकनिकेँ वेद पढ़बाक अधिकारसँ वंचित राखल गेल छल। बिना मंत्रक ओ लोकनि अपन यज्ञादि करैत छलाह। मूल रूपें ओ लोकनि दू भागमे बटल छलाह–सत्–शूद्र आर असत्–शूद्र। असत्–शूद्रकेँ अछूत कहल जाइत छलन्हि। अनुलोम–प्रतिलोम प्रथाक कारणे कतेको मिश्रित जातिक अर्विभाव समाजमे भ चुकल छल। चाण्डालक स्थिति यथावत् छल। मिथिलाक उत्तरी छोरपर थारू आर किरात नामक जाति सेहो बसैत छल।
विवाहादिक नियममे कोनो विशेष परिवर्त्तन एहियुगमे नहि भेल। अपन–अपन जातिक अंतर्गतहिमे विवाहादि होइत छल। अनुलोम–प्रतिलोम विवाहक उल्लेख सेहो यदा–कदा भेटिते अछि। एहियुगमे स्त्रीगणक स्थितिमे आर अवनति भेल। हुनका लोकनि शूद्रे जकाँ वेदक अध्ययनसँ वंचित राखल गेल। वेद मंत्रोच्चारण ओ लोकनि नहि कसकैत छलीह। किछु गोटए पढ़ल–लिखल सेहो होइत छलीहे मुदा ओहन स्त्रीगणक संख्या महान समुद्रमे एकठोप तेल जकाँ छल। पर्दा प्रथाक सम्बन्धमे कालिदास घूंघट–घोघक उल्लेख केने छथि। एहि युगमे स्मृतिकार लोकनि विधवाक सम्बन्धमे आर कठिन नियम बनौलन्हि। शंख, अंगीरस आर हरीत स्मृतिमे तँ एतेक धरि कहल गेल आछि जे विधवाकेँ अपना पतिक चितापर जरिकेँ प्राणांत कए लेबाक चाही। तत्कालीन अभिलेखमे सेहो सतीक उल्लेख भेटइयै।
वस्त्राभूषणमे ताहिदिनक लोग शौकीन होइत छलाह। रेशमी सूती आर ऊनी कपड़ाक विशेष प्रचलन छल। धोती, साड़ी, साया, दुपट्टा, आंगी, जनउ, बाला इत्यादिक व्यवहार होइत छल। मिथिलाक क्षेत्रसँ प्राप्त मूर्त्तिसँ तत्कालीन वेशभूषाक ज्ञान होइछ। लोग सब नामीक नीचासँ धोती पहिरैत छलाह आर स्त्रीगण सब साड़ी सेहो ओहिना। स्त्रीगण अब साड़ीक संगे दूपट्टो ओढ़ैत छलीह। टोपीक व्यवहार सेहो होइत छल। नौलागढ़सँ जे एक गोटए बेस सुन्दर मुरेठा बन्हने अछि। ई मुरूत गुप्तकालीन थिक। ओहुसँ पहिलुका आर एकटा सुन्दर स्त्रीक माटिक मुरूत ओताहसँ भेटल आछि जाहिमे केश विन्यास शैली आर विशेषता देखबामे अवइयै। सौन्दर्य प्रसाधन एवँ श्रृंगार प्रक्रियाक रूप एहि दुहु माँटिक मुरूत बढ़िया जकाँ ज्ञात होइत अछि आर संगहि दु युगक सौन्दर्य साधनक ज्ञान सेहो। स्त्रीक मुरूत शुंगकालीन थिक। मिथिला आर वैशालीसँ प्राप्त माँटिक मुरूतसँ तत्कालीन सौन्दर्य प्रसाधनक चित्र भेटइयै। औंठी, कर्णफूल, कण्ठहार, बाला, इत्यादिक व्यवहार होइत छल। ताहि दिनमे जे मिथिलाक स्त्रीगण पाइत पहिरैत रहैथ तकरो अन्यतम नमूना मिथिलाक मुरूत सबमे भेटैत अछि। सुगन्धित तेल आर अन्यान्य सौन्दर्य साधनक व्यवहार सेहो ताहि दिनमे होइत छल। दाँतमे मिस्सी लगेबाक प्रथा सेहो छल आर हियुएन संग एकर उल्लेख कएने छथि।
गुप्तयुगक पछाति एवँ कर्णाटवंशक उत्थान धरि वर्णाश्रम धर्मक प्रधानता बनले रहल आर ठाम–ठाम कठोर सेहो भेल। स्मृतिकार लोकनिक रचनासँ एकर मान होइछ। अनुलोम–प्रतिलोमक फले अनेको वर्णशंकर उपजाति आदिक विकास भेल। असत् शूद्र अंतयजक नामसँ पाँचम वर्गमे परिगणित भेल। एहियुगमे पंचगौड़क कल्पना सेहो साकार भेल आर पंचगौड़ ब्राह्मण लोकनि दोसरो वर्णक जीविकाकेँ अपनौलन्हि। यज्ञल संगहि संग ओ लोकनि मूर्त्तिपूजा आर पुरोहिताइक पेशा सेहो अपनौलन्हि। ब्राह्मण लोकनि सेनापतिक काजमे सेहो निपुण होमए लगलाह। पालवंशक अधीन बहुतो ब्राह्मण सेनापति रहैथ जकर उल्लेख पाल अभिलेखमे अछि। एहियुगमे ब्राह्मण लोकनिकेँ प्रचुर मात्रामे खेत दानमे भेटल छलन्हि आर ओ लोकनि पैघ–पैघ सामंत भएल छलाह आर जमीनकेँ दोसरा हाथे खेती करबाय ओ लोकनि अपन सामंत प्रदत्त राजनैतिक अधिकारक सुरक्षामे व्यस्त रहैत छलाह। ब्राह्मण–क्षत्रिय आब खेतियो दिसि भीर गेल छलाह। शूद्र लोकनिक अवस्था आर दयनीय भगेल छलैक। एहियुगसँ डोम, चमार, नट आदिक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। भाटक उल्लेख तँ सहजहि भेटितहि अछि। एहियुगमे जातिकर्म, नामकरण, उपनयन, विवाह, श्राद्ध इत्यादि संस्कारक उल्लेख भेटैत अछि। विवाह संस्कार प्रधान सामाजिक संस्कार मानल जाइत छल। बहु पत्नित्वक उदाहरण सेहो भेटैत अछि। ब्राह्मण अन्य जातिज भोजन अथवा जल नहि ग्रहण करैत छलाह। एहियुगमे प्रायाश्चितक विधान सेहो बनल। माँछ, माउँस आर मदिराक व्यवहार होइत छल। सिद्ध कवि लोकनिक लेखतँ एहि सब विवरणस भरल अछि। चर्यावद(मैथिलीक आदि रूप)मे एकठाम लिखल अछि जे स्त्री लोकनि मदिरा बेचइत छलीह। क्षत्रिय लोकनि विशेष मदिरा पान करैत छलाह। पहिरब–औढ़बमे कोनो विशेष फर्क देखबामे नहि अवइयै। मूर्त्ति सबसँ श्रृंङ्गभरिकताक मान होइछ। कर्णफूल, हार, भुजदण्ड, करघनी, कंगन, बाला आदि आभूषणक व्यवहार होइत छल। कुमकुम लगेबाक प्रथा सेहो छल। सतीप्रथाक प्रचलन तँ चलिये आबि रहल छल। एकलेखमे दीपावलीक उल्लेख सेहो भेटैत अछि–
“दीपोत्सव दिने अभिनव निष्पंत प्रेक्षा मध्य मण्डपे”।
संगीत आर नृत्यक आयोजन तँ बरोबरि होइते छल। चर्यापदमे सतरंजक उल्लेख सेहो अछि। जूआक प्रथा प्रचलित छल। एहियुगमे अन्धविश्वास आर तंत्रमंत्रक प्रधानता बढ़ि चुकल छल। ज्योतिषपर लोकक आस्था जमि चुकल छल। विजय सेनक देवपारा अभिलेखमे ग्राम ललनाक नगर जीवनक अनभिज्ञता आर अबोधपनक उल्लेख भेल अछि। मुसलमान लोकनि भारतमे पसरि चुकल छलाह तैं एहि युगमे शुद्धिक सिद्धांतक प्रतिपादन सेहो भेल। मिथिलामे पान आर चौपाड़िक प्रचलन खूब छल।
शबरस्वामीक लेखसँ तत्कालीन मैथिल समाजक झाँकी भेटैत अछि। ओ ‘हूराहिरी’क उल्लेख कएने छथि। शतपथ ब्राह्मणमे कहल अछि–
“तस्माद वराहं गावोऽन्य धावंती”।
गम्हारी, दही, दूध, चूड़ा, आदिक उल्लेख सेहो शबरस्वामीमे भेटइयै। इहो दास आर गुलामक उल्लेख कएने छथि। हुनका लेखनीसँ चिड़इ खेबाक प्रथाक अप्रत्यक्ष रूपे उदाहरण भेटइयै। दही भातक उल्लेख सेहो ओहिमे भेटइयै। माछ खेबाक निपुणताक वर्णनमे तँ एहने बुझि पड़ैत अछि–जेना शबरस्वामी नाचि उठल होथि। ओ खीर बनेबाक उल्लेख सेहो केने छथि।
- “ये एकस्मिन कार्यिन विकल्पेन साधकाः
श्रूयंते ते परस्परेण विरोधिनोभवंति।
लोकवन्–यथा मत्स्यांन् न पयसा
समश्नीयादिति। यद्दपि
सगुणमत्स्या भवंति तथापि
पयसा सहन समश्यंते”।
एहियुगमे जातिक रूप कायस्थ जातिक विकास आर उत्थान भेलैक। उशनस आर वेदव्यासक स्मृतिमे कायस्थक उल्लेख जातिक रूपमे भेल अछि। याज्ञवल्म्य स्मृतिमे सेहो कायस्थक उल्लेख भेल अछि। गुप्तकालीन अभिलेखमे सेहो प्रथम कायस्थक उल्लेख भेटइत अछि। गुणैगार ताम्रपत्रमे सैनिक मंत्री लोकनाथकेँ कायस्थ कहलगेल छन्हि। बंगाल–पूर्णियाँ क्षेत्रक पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिमे तीन चारि पुस्त धरि चिरातदत्त (करण कायस्थ) राज्यपाल छलाह। ५५०ई.क पश्चात् कायस्थ लोकनि एक जातिक रूपमे समाजमे स्थापित भए चुकल छलाह। ‘प्रथम कायस्थ’ मुख्य सचिव होइत छलाह। कायस्थमे अखन विशेष उपजातिक वृद्धि नहि भेल छल। ‘करण’ सेहो कायस्थक द्दोतक छलाह ओना ई एकटा ‘पद’ छल जाहिपर काज केनिहार सब केओ करणिक कहबैत छलाह आर जतए एकर मुख्यालय होइत छल तकरा अधिकरण कहल जाइत छल। मिथिलामे करण कायस्थक प्रभुता कर्णाटवंशक स्थापनाक संग बढ़लैक। वैशाली क्षेत्रमे ११–१२म शाताब्दीक एकटा लेख प्राप्त भेल अछि जाहिमे करण कायस्थक उल्लेख अछि। ई लेख बुद्धक प्रतिमाक पादपीठपर खोदल अछि। एहि मूर्त्तिक दान केनिहार करणिक महायान पंथी भक्त छलाह।
- “देय धर्मोऽयम् अवरमहायानयार्यिनः
-करणिकोच्छाहः माणिकसुतस्य”–
एवँ प्रकारे हम देखैत छी जे कर्णाट वंशक स्थापना धरि मिथिलाक समाज सब स्टेजसँ गुजरि चुकल छल। नान्यदेवक पछाति मिथिलाक अपन निखार प्रत्यक्ष भेलैक आर सामाजिक क्षेत्रमे जे क्रांतिकारी परिवर्त्तन भेलैक तकरे हमरा लोकनि हरिसिंह देवी प्रथाक नामे जनैत छी जकर प्रभाव अखन धरि मिथिलामे बनल अछि।
पंजी प्रथाक विकास:- महाराज हरिसिंह देव कर्णाटवंशक अंतिम शासक छलाह जे मुसलमान द्वारा पराजित भए पड़ा गेला। पड़ेबासँ पूर्व मिथिलाक सामाजिक नियमनक हेतु ओ जे एकटा विस्तृत व्यवस्था केलन्हि ओकरे अखुना हमरा लोकनि–‘हरिसिंह देवी’ प्रथाक नामे जनैत छी अथवा सुसंस्कृत भाषामे एकरा पंजी प्रथा कहल जाइत अछि। एहि सम्बन्धमे अखनो धरि कैक प्रश्नपर विद्वानक बीच मतभेद बनले अछि। ओना एहि प्रथाक जन्म देनिहार तँ हरिसिंह देवकेँ मानल जाइत छन्हि मुदा किछु विद्वानक अनुसारे एकर इतिहास प्राचीन अछि। कुलीन प्रथाक स्थापना जँ जन्मक विशुद्धतापर भेल छल तखन तँ एहि प्रसंगपर मीमाँसक कुमारिल भट्टक मंतव्य जे तंत्रवार्तिकमे प्रसारित अछि से देखब आवश्यक–
- “विशिष्टेनैवहि प्रयत्नेन महकुलीनाः
-परिरक्षंति आत्मानम्।
-अनेनैव हेतुना राजभिर्ब्राह्मणैश्च
-स्वपितृपितामहादि पारम्पर्या–
विस्मरणार्थ समूहलेख्यानि प्रवृत्तितानि
तथाच प्रतिकूलं गुणदोष स्मरणात्तदनुरूपः
प्रवृत्ति निवृत्तयो दृश्यंते”॥
अर्थ भेल जे कुलीनकेँ अपन जातिक रक्षाक हेतु बड्ड प्रयत्न करए पड़ैत छन्हि। तहितँ क्षत्रिय एवँ ब्राह्मण लोकनि अपन पिता पितामह प्रभृति पूर्वजक नाम बिसरि नहि जाई तैं “समूह संख्य” रखैत छथि आर प्रत्येक कुलमे गुण–दोषक विवेचन कए तदनुसार साबिध करबामे प्रवृत होइत छथि।
जँ एहि प्रमाणकेँ कुलीन प्रथा अथवा पाँजि रखबाक प्रथाक प्रारंभ मानल जाहक तँ ई कहए पड़त जे सर्वप्रथम एकर उदगम मिथिलामे भेल आर बादमे जखन लोग एकरा बिसरि गेलाह छल तखन हरिसिंह देव ओकरा वैज्ञानिक पद्धतिपर पंजीबद्ध करौलन्हि। सातम–आठम शताब्दीसँ हरिसिंह देव धरिक कालमे जँ लोग एहि ‘समूह लेख’ पद्धतिकेँ विसैरि गेलाह तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि कारण एहि बीचमे मिथिलापर चारूकातसँ आक्रमण होइत रहल छल आर एक अस्थिरताक स्थिति व्यापक छल। कर्णाटवंशक स्थापनाक बाद पुनः एक प्रकार स्थायित्व आर नवजागरण आएल आर तैं सामाजिक उच्छृखंलतापर पूर्णविराम लगेबाक हेतु सामाजिक नियमनक आवश्यकता लोककेँ बुझि पड़लैक आर हरिसिंह देवकेँ ई श्रेय छन्हि जे ब्राह्मण–क्षत्रिय मध्य प्रचलित प्राचीन पद्धति अपना शासन कालमे पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक बनौलन्हि।
स्वर्गीय रमानाथ झाक अनुसारे समूह लेख्य पाँजि जकाँ राखल जाइत छल आर प्रत्येक वैवाहिक सम्बन्ध भेल उत्तर ओहिपर टीपि लेल जाइत छल। कुमारिलक ‘समूह लेख्य’ समस्त ब्राह्मणक एकत्र संग्रहित भए पंजी कहाओल। एहि परिचय सबहिक आधारपर एक एक कुल एक एकटा नाम दए देल गेल जे नाम ओहिकुलक पूर्वजक आदिम ज्ञात निवास स्थान गामक नामपर भेल ओ सैह ओहि कुलक मूल कहाओल। कुमारिलक सभ्यमे गुणदोषक विवेचन लोग स्वयं करैत छल मुदा हरिसिंह देवीक बाद आब परिचयक आधारपर गुण–दोषक विवेचण होएब प्रारंभ भेल। बंगालक कुलीन प्रथा जाति मूलक छल आर अकुलीनक संपर्क होइतहुँ कुलीन अपन कुलीनत्वसँ पतित भए जाइत छल। मिथिलामे उच्चता–नीचताक अवधारण स्मृतिक अनुसारहि भेल। मनुक उक्ति देखबा योग्य अछि–
- “कुविवाहैः क्रियालोपैर्वेदाध्ययनेन च
-कुलान्यकुलताँ यांति ब्राह्मणाइक्रमेण च”–
- उतमैरूतमैर्नित्यं सम्बन्धाना चरेत्सह
-निनिषुः कुलमुत्कर्षमधमानधमाँस्त्यजेत्”॥
- उपरोक्तसँ स्पष्ट अछि जे जातिक अपकर्ष किंवा उत्कर्ष वैवाहिक सम्बन्धसँ नियमित होइत छल। मुदा मात्र जन्मक शुद्धिमात्र एकर नियामक नहि छल। भवभूतिक मालती माधवक टीकामे धर्माधिकरणिक जगद्धर लिखने छथि–
- “जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्काराद् द्विज उच्यते
-विधया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते”॥
एतवा सब किछु रहितहुँ विधा ओ आचारकेँ गौण मानि मात्र जन्मक उत्कर्षकेँ प्रधानता दए सामाजिक नियमन जहियासँ आरम्भ भेल तहियेसँ एहि व्यवस्थामे दोष आवए लागल। विवाहक सम्बन्धमे प्राचीन कालहिसँ किछु नियम बनल छल–विवाहक अधिकार ओहि कन्यासँ भऽ सकैत अछि जे–
- i) एक गोत्रक नञ् हो।
- ii) एक प्रकारक नञ् हो।
- iii) माएक सपिण्ड नञ् हो।
- iv) बापोक दिसि कोनो पूर्वजक ६पुश्त धरि निम्ननञ हो।
- v) माएक दिसिसँ कोनो पूर्वजक ५पुश्त धरि निम्ननञ हो।
- vi) पितामह–मातामहक संतान नञ हो।
- vii) कठमाम (सतमाएक भाई)क संतान नञ हो।
स्वजनक संग विवाह नहि भऽ सकैत चल कारण ओहन विवाहसँ उत्पन्न संतानकेँ चण्डाल कहल जाइत छलैक। मिथिलामे स्मृतिसारक रचयिता हरिनाथसँ एहने गलती भऽ गेल छलन्हि आर तैं हरिसिंह देव पंजी प्रथाक निर्माण केने छलाह सैह कहल जाइत अछि। सब केओ ई कथा जानने छथि तैं अहिठाम एकरा दोहराएब हम आवश्यक नहि बुझैत छी। हरिनाथ अनधिकारमे विवाह कऽ लेने छलाह कारण हुनक पत्नी हुनक साक्षात पितिऔत भाईक दौहित्री छ्लथिन्ह। जाहि समूह लेखक उल्लेख हम पूर्वहि कैल अछि हरिसिंह देव ओकरे वैज्ञानिक पद्धतिपर आनि पंजी प्रथाक जन्मदाता कहबैत छथि। हरिसिंह देवक आदेशानुसार सब ब्राह्मणक परिचय संग्रहित भेल आर ओहि संग्रहकेँ विशिष्ट पंडितक जिम्मा लगा देल गेल जे सब किछु देखि अधिकार निर्णय करैथ आर विवाहक हेतु प्रमाण पत्र दैथ–ओहि प्रमाण पत्रकेँ ‘अस्वजन’ पत्र कहल जाइत छैक। संग्रहित परिचयमे प्रत्येक विवाह आर विवाहक संतानक नाम जोड़ल जाइत छल आर उएह परिचय पञ्जी कहाओल आर जिनका जिम्मा एकर भार देल गेलन्हि सैह पञ्जीकार कहौलथि। ‘अस्वजन पत्र’ लिखके देबाक प्रथा सिद्धांत कहाओल जे अद्यावधि ब्राह्मण आर करण कायस्थमे प्रचलित अछि।
जे लोकनि परिचय एकत्र करैत छलाह से ‘परिचेता’ कहबैत छलाह–एहि प्रसंगमे गोत्र, प्रवर आर शाखा सेहो लिखल जाइत छल। सब परिचयकेँ गोत्रक अनुसार अलग–अलग रखलासँ प्रत्येक गोत्रक भिन्न–भिन्न कुलक चित्र समक्ष आवि जाइत छल। कुलक नाम कुलक प्राचीनतम ज्ञात निवास स्थान पर राखल गेल जे ओहि कुलक “मूल” कहाओल। बादमे गोत्र आर मूलसँ प्रत्येक वंशक संकेत भेटए लागल। गुप्त युगहिंसँ एहिबातक प्रमाण भेटइत अछि जे ब्राह्मण अपन ग्राम अथवा निवास स्थानहिसँ चिन्हल जाइत छलाह आर गुप्तयुगसँ पाल युग धरिक अभिलेख सबमे ब्राह्मण लोकनिक चारि–पाँच पुस्तक विवरण भेटइत अछि। ब्राह्मण लोकनि जाहि–जाहि गाममे निवास करैत छलाह ताहि–ताहि गामक प्रशंसा सेहो अभिलेख सबमे भेटइत अछि। मध्ययुगमे राढ़क ब्राह्मण लोक ५६उपजातिमे बटि गेल छलाह आर हिनका लोकनिक वर्गीकरण गाम–गाँइ–गामीकक आधारपर भेल छलन्हि। ११–१३म शताब्दीक अभिलेखमे एकर उल्लेख भेटइत अछि। ठीक अहिना हरिसिंह देव मूल–निवासक आधारपर ब्राह्मण लोकनिकेँ करीब १८०मूलमे बँटने छलाह आर मिथिलाक करण कायस्थकेँ करीब ३५०मूलमे। अहिना अम्बष्ट कायस्थ सेहो करीब १००घरमे बटल छथि। ब्रह्मवैवर्त्त पुराणक ब्रह्मखण्डमे कहाबत अछि जे देश भेदसँ जाति भेद उत्पन्न होइछ आर मध्ययुगीन पंजी परम्परा जे जोड़ देल गेल अछि से एहिबातक सबूत मानल जा सकइयै। गाम–गामक महत्व बढ़ए लागल। संग्रहित पाँजिमे जे सबसँ प्राचीनतम ज्ञात पुरूषक नाम उपलब्ध भेल उएह ‘बीजी–पुरूष’ कहौला। जँ एक्के गामक वासी दु कुलमे भेटला तँ हुनक भेदकेँ स्पष्ट करबाक हेतु कुलक मूलक संगहि–संग नव निवास स्थानक नाम जोड़ि देल गेल।
मिथिलाक ब्राह्मण लोकनि सामवेद आर शुक्ल यजुर्वेदक अनुयायी छथि–सामवेदी कौयुम शाखीय छथि आर यजुर्वेदी माध्यान्दिन शाखीय। क्रमशः ई दुनु छन्दोग आर वाजसेआथि कहबैत छथि। सामवेदी–छन्दोगमे मात्र शाँडिल्य गोत्र प्रचलित अछि आर माध्यान्दित वाज सेवाथिमे वत्स, काश्यप, पराशर, कात्यायन, सावर्ण आर भारद्वाज। एहि सात गोत्रक कुल व्यवस्थित कहबैत छथि। ब्राह्मणक आर ग्यारहटा गोत्र जे मिथिलामे अछि से भेल–गार्ग्य, कौशिक, अलाम्बुकाक्ष, कृष्णात्रेय, गौतम, मौदगल्य, वशिष्ठ, कौण्डिन्य, कपिल आर तण्डि। प्रत्येक गोत्रमे कैकटा मूल अछि। ओना तँ लगभग २००मूलक आभास भेटैत अछि परञ्च ब्राह्मण विद्वान लोकनि मात्र सात गोट गोत्र आर ३४या ३६टा मूलकेँ व्यवस्थित मानैत छथि। मिथिलामे कुलीनताक परिचायक छल जन्मक विशुद्धता, आचारक चारूता आर विधा व्यवसाय–एहि तीनुसँ युक्त व्यक्तिकेँ श्रोत्रिय कहल जाइत छलन्हि। एहिठाम स्मरणीय जे पाँजिमे मात्र परिचय संग्रहित अछि जाहि आधारपर विवाहक अधिकारक निर्णय होइत अछि। हरिसिंह देव ब्राह्मणकेँ तीन श्रेणी (श्रोत्रिय, योग्य, जयबार)मे बँटने छलाह–ई कथन निराधार अछि। आदर्शकेँ बिसरिकेँ जखन हमरा लोकनि केवल भेदपर जोड़ देब प्रारंभ कैल तखनहिसँ एहि व्यवस्थामे कुरीतिक प्रवेश भेल। जे जे नीच काज करैत गेलाह से क्रमशः नीच होइत गेला। ब्राह्मण पाञ्जिक अनुसार अधिकार निर्णयक नियम एवँ प्रकारे अछि–
- i) कन्याक पिताक पितामहक पितामह।
- ii) कन्याक पिताक पितामहक मातामह।
- iii) कन्याक पिताक पितामहीक पितामह।
- iv) कन्याक पिताक पितामहीक मातामह।
- v) कन्याक पिताक मातामहक पितामह।
- vi) कन्याक पिताक मातामहक मातामह।
- vii) कन्याक पिताक मातामहीक पितामह।
- viii) कन्याक पिताक मातामहीक मातामह।
- ix) कन्याक माताक पितामहक पितामह।
- x) कन्याक माताक पितामहक मातामह।
- xi) कन्याक माताक पितामहिक पितामह।
- xii) कन्याक माताक पितामहीक मातामह।
- xiii) कन्याक माताक मातामहक पितामह।
- xiv) कन्याक माताक मातामहक मातामह।
- xv) कन्याक माताक मातामहीक पितामह।
- xvi) कन्याक माताक मातामहीक मातामह।
आठम पीढ़ीसँ सपिण्डत्व हटि जाइत छैक।
मिथिलामे पाञ्जिक अध्ययन अखनो वैज्ञानिक पद्धतिसँ नहि भेल अछि कारण ओकर साहित्य एतेक जटिल अछि जे सब केओ ओकर अध्ययन कइयो नहि करि सकैत छथि। रमानाथ बाबूक अतिरिक्त आर एकाध गोटए पाञ्जिक अध्ययन कएने छथि मुदा पूर्णरूपेण वैज्ञानिक ढ़ँग आर तालपत्रपर लिखित पाञ्जिक अध्ययन मेजर विनोद बिहारी वर्मा अपन “मैथिल करण कायस्थक पाञ्जिक सर्वेक्षण”मे कएने छथि। ई अध्ययन अपना ढ़ँगक अद्वितीय अछि आर पाञ्जिक अध्ययनक क्षेत्रमे ई अपन एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केलक आछि। तालपत्र हिनक काफी प्राचीन अछि आर पाँजि प्रथाक स्थापनाक लगभग ५०वर्षक अभ्यंतरहिमे लिखल अछि। एहि आधारपर अखन आरो कतेक अध्ययन प्रस्तुत कैल जा सकइयै। पाँजि प्रथाक नीव जाहि आधारपर पड़ल तकरा सम्बन्धमे मेजर वर्मा लिखैत छथि–
चण्डेश्वर ठाकुरक गृहस्थ रत्नाकरसँ उद्धत किछु स्मृतिकारक कथन उद्धृत कैल जाइछ जाहिपर पाँजी प्रथाक नींव पड़ल।–
मनुशातातपौ:-
- असपिण्डा तुया मातुर सगोत्रा चयापितुः।
-सा प्रशस्ता द्विजातीनाँ दार कर्म्मणि मैथुने॥
एवँ प्रकारे ओ गौतम, याज्ञवल्म्य, हारीत, विष्णुपुराण आदिस विभिन्न मत उपस्थित कएने छथि। पाँजि जखन उपस्थित कएल गेल तखन देशक स्थिति चिंतनीय छल। करण कायस्थ पाञ्जिक अध्ययनसँ स्पष्ट होइछ जे कठोर बन्धनक पश्चातो पाँजिमे “स्वयं गृहीता” कन्या, “चेचिक विजाती”सँ व्याहक उल्लेख, “कुलाल” जातिक उल्लेख, “चेटिका धृताः” आदिक यत्र–तत्र विवरण भेटैत अछि। जातिक रक्षा करब पाञ्जिक एकमात्र प्रयोजन छा परञ्च कायस्थ पाञ्जिक अध्ययनसँ स्पष्ट अछि–जे किछु अंतर्जातीय विवाह सेहो होइत छल। करन कायस्थक पाञ्जिमे गोत्रक उल्लेख नहि अछि। बलायिन मूलक आदि पुरूष मंधदासक गोत्र राढ़मे अत्रि, कुचबिहारमे वशिष्ट आर मिथिलामे काश्यप लिखल गेल अछि। पाञ्जिमे कतहु नहि कहल गेल अछि जे अमूक मूल श्रेष्ठ आ छोट अछि आर नेऽ भलमानुसे–गृहस्थक चर्च ओहिमे कतहु अछि।
पाञ्जिक पूर्ण शिक्षा प्राचीन कालमे पञ्जीकार लोकनिकेँ देल जाइत छलन्हि आर प्राचीन पाठशालामे मिथिलामे पाञ्जि शास्त्रक पढ़ाइ होइत आर जे एहिमे उत्तीर्ण होइत छलाह सैह ‘पञ्जीकार’ होयबाक योग्यता प्राप्त करैत छलाह। पञ्जीकारकेँ निम्नलिखित वस्तुसँ अवगत हैव आवश्यक छल–
- i) मूल निर्णय,
- ii) डेरावली,
- iii) वंशावली,
- iv) सादा उतेढ़।
पाञ्जि लिखबाक हेतु किछु नियमक पालन आवश्यक छल। पञ्जीक एक पातक एक पृष्ठक सोलह कालम आ गाम एवं प्रकारे विभक्त कैल गेल अछि–
- मायक वंशक हेतु आठ कालम आ गाम।
- पितामहीक वंशक हेतु चारि कालम आ गाम।
- प्रपितामहीक वंशक हेतु दू कालम आ गाम।
- वृद्धा प्रपितामहीक वंशक हेतु एक कालम आ गाम।
- अपन स्वयंक ५पीढ़ी पूर्वजक हेतु एक कालम आ गाम।
पाञ्जिक १६कालम विभक्त देखबामे अवइयै। एक पातक एक पृष्टमे १६मूल गामक उल्लेख रहैत अछि–३१व्यक्तिक नाम आर १६कन्याक नामक उल्लेख रहैत अछि। अहुना पाञ्जि देखबाक अथवा अध्ययन करबाक अवगति आब पञ्जीकारोकेँ नहि छन्हि। कायस्थक पञ्जीकार मूलतः दुई वंशक छथि–महुनी आर सरिसव। पाञ्जिमे जातीय इतिहास सुरक्षित अछि।–
पंज्जीक तिथि:- पञ्जीक तिथिक सम्बन्ध सेहो विद्वानक बीच मतभेद अछि। सब तथ्यक अनुशीलन केला उपरांत हमरा अपन विचार ई अछि जे पञ्जीक प्रारंभ १३१०सँ १३२७धरिक तिथि जे मनैत छथि से हमरा बुझने मान्य नहि भऽ सकइयै कारण १३२३सँ १३२७क बीच हरिसिंह देव मुसलमानी आक्रमणसँ ततेक तबाह आर व्यस्त छलाह जे ओहि समयमे कोनो एहेन काज करब असंभव छल। नेपाली श्रोतसँ इहो ज्ञात होइछ जे हरिसिंह देव १३२६ई. धरि मिथिलासँ पड़ा चुकल छलाह आर तकर बादक हुनक इतिहासक कोनो निस्तुकी पता हमरा लोकनिकेँ नहि अछि। काठमाण्डुक वीर पुस्तकालयक गोपाल वंशावलीक मूल एतए विज्ञपाठकक हेतु देल जा रहल अछि –
- “स माघ शुदि 3 तिरहूतिः हरशिंहु राजासन
मिह्लोसन तासत्र गही टो ढ़ीलीस तुरूक याके
वंङ रायत मानालपं थमु अगु गन याङ वस्यं
शिमरावन गड्ढ़ भङ्ग याङ तिरहूतिया राजा महाथ
आदिन समस्त वडङ व्यसन वंग्व हो ग्वलछिनो
लिन्दुंबिल ववः ग्वलछिनो राजगाम द्वलखा धारे वंग्व।
हिंपोतस राजा हरसिंह तो शिकध्वस
काय नो मआथ नो उभय बंधि यंङा कूलन
ज्वोङाव हंग्व राज गामया मझीधारो
धायान समस्त धन कासन”।
उपरोक्त वंशावलीसँ स्पष्ट अछि जे हरिसिंह देव ७जनवरी १३२६केँ शिमराँव गढ़क नष्ट भ्रष्ट भेला पड़ेला आर तकर बाद ओ मरि गेला। राजगाँवक माम्झी भारो हुनक पुत्रकेँ गिरफ्तार कए कैदी बना लेलकन्हि आर हुनक सब वस्तुजात लूटि–पाटि लेलकन्हि। ओ शरणार्थीक श्रेणीमे छलीह शासक हिसाबमे नहि। एहि प्रसंगकेँ जखन हमरा लोकनि ध्यानमे राखब तखन बुझना जाएत जे पञ्जी प्रबन्धक आदिमे एहि तरहे श्लोक अछि–
“शाके श्री हरिसिंह देव नृपते र्भूपार्क १२१६ तुल्ये जनि–
स्तस्माद्दंत मितेऽ ब्दकेँ द्विजगणैः पञ्जी प्रबन्धः कृतः”॥
१२१६+७८=१२९४ई. जखन हरिसिंह देव एकटा नाबालिकक रूपमे छल। अहु समयमे अहु समयमे पञ्जी प्रबन्ध सन मूल प्रश्नपर विचार करबाक दमिता हिनकामे तखन नहि हेतैन्ह तैं इहो तिथि हमरा बुझने अमान्य अछि। शक्तिसिंहक समयसँ मिथिलामे अस्तव्यस्तता छल। चण्डेश्वर ठाकुर हरिसिंह देवक मुख्य सलाहकार छलाह आर राज्यक हेतु सब काज करैत छलाह। नेपाल विजयक अवसरपर तुला पुरूष सेहो केने छलाह। १३१४ल आसपास हरिसिंह देव वयस्क भेलापर अपन राज्यक भार सम्हारलन्हि आर तखने चण्डेश्वरक तत्वावधानमे नेपाल विजयक खुश खबरी सेहो भेटलन्हि। ओम्हर मुसलमानी प्रकोप जोरसँ बढ़ि रहल छल तैं हेतु सामाजिक नियम निष्ठाकेँ सुदृढ़ करबाक हेतु हिनक ध्यान आकृष्ट कैल गेलन्हि आर एहि दिसि ध्यान देलन्हि आर पंजी प्रबन्धक व्यवस्था केलन्हि। पाञ्जिमे छोट–पैघक गप्प नहि छल–ई सभ कल्पना मात्र थिक। सब जातिक हेतु पञ्जी प्रबन्ध भेल छल मुदा मैथिल ब्राह्मण आर कायस्थ छोड़िकेँ ई चलल नहि। सूरी लोकनिक बीच सेहो पाञ्जि छल आर रहरिया तथा मधेपुरमे एकर संकेत भेटल अछि। सूरीमे पञ्जिआर पदवी एखनो विराजमान अछि। एतए पैघ काज करबाक हेतु काफी समय आर पलखतिक आवश्यकता छल तैं १३१०सँ १३१४क बीच पञ्जी प्रबन्धक प्रारंभ हैव बेसी युक्ति संगत बुझि पड़इयै।
निम्नलिखित तीनटा श्रोतपर एहि प्रसंगमे विचार करब आवश्यक–
- “शाके युग्म गुणकि सम्मित वरे भूपाल चूड़ामणिः
श्रीमच्छृ हरिसिंह देव बिजयी पञ्जी प्रबन्धः कृतः
तस्मात कर्ण बीजकलितं सुद्विंश्व चक्रेपुरा।
कायस्थ मति प्रदस्थ गुणिनः श्री शंकर दत्तभान”॥
शंकर दत्त मल्लिककेँ (सरिसव मूल)केँ १३१०–११मे हरिसिंह देव पञ्जी प्रबन्ध करबाक आदेश देने छलथिन्ह। श्यामलाल चौधरी लिखित “वंशावली मैथिल कर्ण कायस्थ उपाख्यान पुस्तक वंश कुलदीपक” (ई पांडुलिपि सम्प्रति नैशनल लाइब्रेरी, कलकत्ता,क ‘शांति देवी–राधा कृष्ण चौधरी संग्रह’मे सुरक्षित अछि आर ओहिठाम कायस्थ पञ्जीक तालपत्र पोथी सेहो)मे कहल गेल अछि जे शंकर दत्त मल्लिक अपन भागिन मोहिनवार मूल ग्रामसँ लडूआरी डेरा अवस्थित गुणपति दासकेँ पाञ्जि देलथिन्ह तैं ई वंश पञ्जीकारक वंश कहाओल। श्याम लाल चौधरी एवम प्रकारे श्लोक लिखने छथि-
- “शाके युग्म गुणार्क सम्मित परे भूपाल चूड़ामणि
तस्मात् करण विज कलितं कायस्थ पञ्जी प्रबन्धः
कृतः तस्मात् मंत्र गुणीनां श्री गुणपतिः दत्तवान॥
तेसर श्रोतकेँ स्पष्ट केनिहार छथि मेजर विनोद बिहारी वर्मा। हुनका द्वारा प्रस्तुत अध्ययनक श्रोतमे एकठाम लं.सं. २३३(=१३५२)मे लिखल कोनो ‘दत्त मल्लिक’क सबूत भेटलन्हि अछि। ई ओहि ‘दत्त मल्लिक’केँ शंकर दत्तक पुत्र शंभू दत्त मल्लिक मनैत छथि। शंभूदत्त मल्लिक पाञ्जिक नकल करब १३५२ई.शुरू केलन्हि। शंकर दत्त कवि सेहो छलाह। एहिसब तथ्यकेँ एकठाम संग्रहित कए जखन हम अध्ययन करैत छी तँ हमरा ई स्पष्ट बुझना जाइत अछि जे पाञ्जि निर्माणमे प्रमुख रूपे ब्राह्मण आर कायस्थ लोकनिक योगदान छ्लैक आर १३१०सँ १३१४क मध्य पञ्जी प्रथा व्यवस्थापित भेल। तकर बाद जखन हरिसिंह पड़ाकेँ चल गेल। तखन–पण्डित लोकनि बैसिकेँ ओकरा सरि औलहि आर ताहिमे ताहि दिनमे १५–२०वर्ष लगले हेतैन्ह तैं संभव जे ब्राह्मण–कायस्थक पाञ्जि आर वंश संग्रह करबामे जे समय लागल हेतैन्ह तकर बाद जे एकटा साँगोपाम्ग विवरण प्रस्तुत भेल होएत से १२४८ शक=१३२६/२७मे प्रकाशित भेल होएत। मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक स्थितिमे देखैत उपरोक्त तर्क हमरा बेशी युक्ति संगत बुझि पड़इयै आर तैं एकर तिथि निर्णय करबाक प्रश्नपर ओहि तथ्यकेँ ध्यानमे राखब आवश्यक।
कर्णाट आर ओइनवार युग मिथिलाक सामाजिक इतिहासक दृष्टिये महत्वपूर्ण मानल गेल अछि बौद्ध धर्मक ह्रास भेलापर एतए ब्राह्मण व्यवस्थाक पुनर्स्थापन भेल आर जातीयताक व्यवस्थामे जे थोड़ बहुत लचड़ एहि बीचमे आबि गेल छल तकरा मैथिल निबंधकार लोकनि अनेकानेक स्मृति ग्रंथादि लिखिकेँ ठोस बनौलन्हि। सामाजिक कार्य कलापक हेतु सेहो बहुत रास ग्रंथ लिखल गेल जाहिमे चण्डेश्वरक गृहस्थ रत्नाकर सर्वश्रेष्ठ अछि।
कुलीन प्रथाक विकास मिथिलामे एहियुगमे भेल। ओना एकर विश्लेषण पञ्जी प्रबन्धक प्रसंग भेल अछि परञ्ज ओकर एतिहासिक पृष्ठभूमि एहिठाम राखब आवश्यक। कुलीन व्यवस्थाक संस्थापक छलाहे आदि सूर जे पूर्वी मिथिलामे कतहुँ शासन करैत छलाह आर वृद्ध वाचस्पति हुनके ओत्तए रहि अपन न्यायकणिका नामक पुस्तकक रचना कएने छलाह। आदिसूर (९म शताब्दी)मे मिथिला आर बिहारमे बौद्धधर्मक प्रधानता छल आर तैं ब्राह्मणत्वक रक्षार्थ ओ कोलाञ्चसँ पाँचटा शुद्र ब्राह्मणकेँ बजाय अपना ओतए आश्रय देलन्हि। आदिसूरक दरबारमे ब्राह्मण लोकनिक वर्गीकरण प्रारंभ भेल छल आर पाछाँ ब्रल्ला सेन अपनाकेँ आदिसूरक वंशसँ मिलाप अपनाकेँ कुलीन प्रथाक जन्मदाता घोषित केलन्हि मुदा एहिठाम ई स्मरणीय जे मिथिलाँचलसँ प्राप्त दू ताम्र पत्र (बनगाँव आर पंचोभ) अभिलेखमे दान देबाक हेतु कोलाञ्च ब्राह्मणक उल्लेख स्पष्ट अछि। मिथिलाक पाञ्जिमे जे मूल ग्राम अछि सैह ओकर प्राचीनताक सबसँ पैघ प्रमाण मानल जा सकइयै। एवँ प्रकारे कुलीन व्यवस्थाक जन्म सर्वप्रथम मिथिलहिमे भेल छल आर पाछाँ एहिठामसँ बंगाल आर असममे ई पसरल। हरिसिंह देव ओहिसब पुराण व्यवस्थाकेँ एकत्र कए पञ्जी प्रबन्धक व्यवस्था केने छलाह। एहि प्रथाक बादसँ विवाहादिक नियम सेहो श्रृंखलाबद्ध भेल। पञ्जिआर आर घटकक प्रथा चलल। एहि प्रथाकेँ जँ रमानाथ बाबू समाजक नियमनक हेतु सर्वश्रेष्ठ मनने छथि तँ उपेन्द्र ठाकुर एकरा प्रति क्रियावादी कहने छथि। एकरा चलते सामाजिक संकीर्णता दिनानुदिन बढ़ैत गेल आर बिकौआक प्रथा प्रचलित भेल।
एहि युगमे क्षत्रियक रूपमे राजपूत लोकनिक विकास भेलन्हि–हुनको लोकनिमे पाञ्जिक प्रथा चललैन्ह मुदा बहुत दिन धरि नहि रहि सकलैन्ह। ओना मिथिलामे ताहि दिनमे गन्धवरिया राजपूतक विकास भऽ चुकल छल तथापि ज्योतिरीश्वरक वर्ण रत्नाकरमे ३६टा राजपूत जातिक वर्णन भेटैत अछि। वैश्यमे व्यापारी वर्ग, कर्मकार, कलाकार, पशुपालक, खेतिहर, साहूकार, आदि लोकक गिनती छलैक। वैश्य मूल रूपेण खेती करैत छलाह आर व्यापार सेहो। आर्थिक उन्नतिक भार हिनके लोकनिपर छलन्हि। शूद्रक स्थान दयनीय छल। तेली, सूरी, धाँगर, यादव, धानुक, केओट, अमात आदि शूद्रक श्रेणीमे गिनाइत छलाह आर हिनका लोकनिकेँ क़ॉणॉ विशेष सामाजिक अधिकार नहि प्राप्त छलन्हि। मुख्यतः ई लोकनि बान्हल मजूर होइत छलाह आर हिनका लोकनिक सब किछु अपन मालिकपर निर्भर करैत छलन्हि। जँ वर्ण रत्नाकरमे एकर उल्लेख अछि तँ विद्यापतिक लिखनावलीमे हिनका लोकनिक दयनीय स्थितिक वर्णन। वर्ण रत्नाकरमे दू प्रकारक छोट जातिक वर्णन अछि–i) अनिर्वासित आर,ii) निर्वासित। एकर अतिरिक्त ज्योतीरीश्वरक ‘मन्द–जातीय’क एकटा पैघ सूची उपस्थित कएने छथि। ओहि सबसँ छोट जातिक सामाजिक स्तित्वक पता चलइयै। गुलामी आर बेगारीक प्रथा सेहो छल।
स्त्रीक अवस्थातँ आर दयनीय भऽ गेल छल। समाजमे स्त्रीकेँ कोनो उच्च स्थान प्राप्त नहि छलन्हि आर एकर स्पष्टीकरण तँ ज्योतिरीश्वरक निम्नलिखित वाक्याहि भऽ जाइत अछि।–“स्त्रीक चरित्र अइसन दुर्लभ्य; स्त्रीक चरण अइसन दारूण”= विद्यापति सेहो स्त्रीकेँ “अलप गेआनी” कहने छथि। ई बात ठीक जे एहि युगमे लखिमा, धीरमती, विश्वास देवी सेहो भेलीहे आर चन्द्रकला सन निपुण स्त्री सेहो परञ्च हिनका लोकनिक आधारपर ई नहि कहल जा सकइयै जे समस्त मिथिला स्त्रीक स्थान हिनके सब जकाँ छल। सती प्रथाक प्रचलन सेहो छल आर ई राजपूतमे बेसी छल। चौठम (मूँगेर)सँ प्राप्त एकटा कागजसँ एहि बातक ज्ञान होइछ। भवसिंहक दुह पत्नी सेहो वाग्मतीक तटपर सती भेल छलथिन्ह। स्त्री शिक्षापर विशेष ध्यान नहि देल जाइत छल। पर्दा प्रथाक प्रचलन छल अर वैश्यावृत्तिक प्रचलन सेहो। विवाहिता स्त्री लोकनिकेँ सुहागिन कहल जाइत छलन्हि आर ओ लोकनि सिन्दुरक व्यवहार करैत छलीहे।
पाटी फारबाक, काजर लगेबाक, तरहथी रंगबाक, नह रंगबाक प्रथा स्त्रीगणक मध्य विशेष प्रचलित छल। पानसँ दाँत लाल आर मिस्सीसँ दाँत करबाक प्रथा छल। गोदना पड़ेबाक उल्लेख सेहो लोकगीतादिमे भेटइत अछि। घोघ काढ़बाक प्रथा छल। धोती साड़ीक प्रचुर व्यवहार छल आर स्त्री लोकनि साया आर चोलीक व्यवहार सेहो करैत छलीहे। कसीदा काढ़बामे मैथिलानी निपुण बुझल जाइत छली। छौड़ी सब लंहगा, घघरा आर कंचुरी पहिरैत छल। पनटीक व्यवहार होइत छल। भोज भातक प्रथा सेहो छल आर मैथिल तँ भोजन भट्ट होइते छलाह। ज्योतिरीश्वर ‘पुर्नभोज वर्णनाः’ लिखने छथि। चूड़ा दहीक विशेष व्यवहार होइत छल।
लिखनावलीमे जे पत्रादिक नमूना अछि ताहिसँ छोट जातिक सामाजिक अवस्थाक ज्ञान होइछ। स्वयं विद्यापति लिखने छथि–
“उच्चैः कक्षमधः कक्षे समकक्षे नरंप्रति
नियमे व्यवहारे च लिख्यते लिखन क्रमः”।
हिन्दू मुसलमानक सम्पर्क बढ़लासँ हिन्दू लोकनिक मध्य एक प्रकार अस्तव्यस्तता आबि गेल छल। विद्यापति अपन कीर्तिलतामे एकर विस्तृत वर्णन कएने छथि–
- “धरि आनए बाभन बटुआ, मथा चढ़ाबए गाइक चुड़ुआ।
फोट चाट जनेउ तोड़, उमर चढ़ाबए चाह घोड़।
हिन्दु बोलि दुरहि निकार, छोट ओ तुरूका भभकी मार।
हिन्दुहि गोटओ गिलिये हल, तुरूक देखि होइ भान”॥
चण्डेश्वरक कृत्य रत्नाकरमे ओहियुगक पूजा–पाठ, पविनितिहार एवँ उत्सवादिक वर्णन भेटइत अछि। गौरी पूजा, दुर्गाव्रत, दुर्गारथ, वाराह द्वादशी, मतस्यद्वादशी, रासकल्याण, महाष्टमी आदिक उल्लेख भेटइत अछि। एकर अतिरिक्त उदकोत्सव महोत्सव, विनायक पूजा, भाष्कर पूजा, सूर्यपूजा, आदिक उल्लेख सेहो भेटइत अछि। फगुआक उल्लेख सेहो भेल अछि। (विस्तृत विवरणक हेतु देखु हमर पोथी–“मिथिला इन द एज आफ विद्यापति”)।
स्मृतिकारक दृष्टिकोण:- सामाजिक समस्याक प्रति मैथिल स्मृतिकारक अपन विशिष्ट दृष्टिकोण छलन्हि जकर मूल उद्देश्य छल समन्वयात्मक प्रवृतिकेँ प्रोत्साहन देव। ओ लोकनि वैदिक एवँ अवैदिक तत्वकेँ अपन स्मृतिमे स्थान एकटा विशिष्ट समन्वयात्मक प्रवृतिकेँ जन्म देलन्हि कारण ताहिदिनक परिस्थितिमे ओकर आवश्यकता छल। एहि दृष्टिकोणसँ ओ लोकनि गौड़ीए आर उत्कलीय स्मृतिकारसँ बड्ड आगाँ छलाह। श्रीदत्त उपाध्याय, चण्डेश्वर आर विद्यापतिक कार्य एहि क्षेत्रमे प्रशंसनीय अछि। कीर्तिलतासँ जे स्थितिक भान होइछ ताहिसँ बुझना जाइत अछि जे मिथिलोमे हिन्दूक स्थिति दयनीय छल आर ओ लोकनि लाचारीक हालतमे रहैत छलाह। जखन राजकुमारे इब्राहिम शाहक प्रति कहलन्हि–“अज्ज पुष्पा पुरिसथ्थ, पातिसाह–पापोस पाइअ”, तखन दोसरा कोन गप्प? कन्याक बिक्री सेहो होइते छल। मुदा तखन मिथिलामे उपाये कि छल? विद्यापति हिन्दू मुसलमानक प्रसंगमे प्रायश्चितक कोनो चर्च नहि केने छथि। वाचस्पति सेहो एहि दिसि कोनो विशेष ध्यान नहि देलन्हि आर मात्र एतवे कटिकेँ छोड़ि देलन्हि जे मलेच्छक भाषा नहि सिखबाक थिक(मलेच्छ भाषां न शिक्षेत्)। ताहि दिन धरि बुझि पड़इयै जे मिथिलामे एहेन कोनो समस्या नहि उठल हेतैक कारण कतवो मुसलमानी प्रकोप कियैक नेऽ बढ़ल हौक एहिठाम हिन्दू शासक छल आर सूफी लोकनिक विशेष प्रभाव रहलासँ मनोमालिन्य कर्म छल। अगर ककरो जबर्दस्ती मुसलमानी बनाइयै देल गेलैक प्रायश्चित् कराके घुरेबासँ कोन लाभ। ओहिठामक लोग तँ ओहिना विशेष कट्टर होइत छल तैं समस्या एखन धरि जटिल नहि भेल छलैक।
हिन्दूधर्मकेँ सुरक्षित रखबाक हेतु बहुत रास पारिजात, रत्नाकर इत्यादि निर्माण भेल परञ्च लोक एतेक आलसी भऽ गेल छल जे ककरो एतेक पढ़बाक–बुझबाक पलखति नहि छलैक। बहुत गोटए कोनो नियमोक पालन नहि करैत छलाह। एहिसबकेँ ध्यानमे राखि शंकर मिश्र एकटा संक्षिप्त ‘छन्दोगाट्रिकोद्वार’ रचना केलन्हि आर ओकरा अंतमे लिखलन्हि–“एतावत्यपि कृते न प्रत्यवेयात्, अन्यथा तु प्रत्यवेयात्”। रूद्रधर अपन शुद्धि विवेकमे लिखलन्हि–
“सत्यमेव रत्नाकर–परिजात मिताक्षरा–हारकता दयोऽन्ये।
तत्रापि तत्रालसमानसानां भवेद प्रमोदम्य मम प्रयासः”।
चण्डेश्वर अपन गृहस्थरत्नाकरमे विवाहक नियमक प्रतिपादन कएने छथि। मैथिल परम्परामे प्रतिलोम विवाहकेँ मान्यता नहि चैक यद्दपि एहिपर विचार आर विवाद दुनु भेल छैक। मैथिल स्म्रतिकार लोकनिक सामन्त दरबारमे रहैत जाइत छलाह आर तैं ई लोकनि अपन रचनामे ब्राह्मणेटाक महत्व दैत छलाह अनका नहि। शासक आर सामन्त सेहो ब्राह्मण छलाह आर स्मृतिकार लोकनि अपने सेहो। शूद्रकेँ तँ कोनो स्थाने नहि देल जाइत छलैक। शूद्र प्राड़विवाक सेहो नहि भऽ सकैत छलाह। तथापि रूद्रधरक ई वाक्य देखबा योग्य अछि–“शूद्रस्य वृषोत्सर्ग वाक्ये एव वेद पाठाधिकारो नान्यत्र इति सर्वप्रामाणिक सिद्धम्”–(श्राद्धविवेक)।
ई कतेक हास्यास्पद बुझि पड़इयै जे जखन मुसलमान अथवा आन विदेशी ब्राह्मण–शूद्रकेँ एक्के रंग बुझैत रहन्हि आर जखन दुनुक एक भऽ कए चलब अत्यावश्यक छल तखन ब्राह्मण स्मृतिकार लोकनि अपन समन्वयात्मक प्रवृतिक बाबजूदो सबकेँ मिलाकेँ एक संग नहि लऽ चलि सकलाह। बहु विवाहक प्रथा पंजी प्रबन्धक कारणे बढ़ि गेल छल। गृहस्थ रत्नाकरक अध्ययनसँ स्पष्ट अछि जे दोसर विवाह करबाक पूर्व प्रथम पत्नीक प्रबन्ध कऽ देबाक चाही। विधवा विवाहक सम्बन्धमे कोनो स्पष्ट निर्देश नहि भेटइयै। चण्डेश्वर विवाहक सम्बन्धमे मात्र एतबे कहैत छथि जे पूर्व वर कन्याक पक्षक दिसिसँ कोनो बात ककरोसँ नुकाकेँ नहि रखबाक चाही। कोनो दोष कोनो पक्ष दिसि हो तँ ओकरा स्पष्ट कहि देबाक चाही आर जँ कोनो बात नहि कहल गेल आर विवाहक बाद ओकर पता चलल तखन ओहि हेतु दण्डक निर्देश सेहो देल अछि। मैथिल स्मृतिकारक प्रयत्नसँ हिन्दू कानूनक मिथिला स्कूलक स्थापना भेल। एहिमे ओ लोकनि लक्ष्मीधरक कृत्य कल्पतरूसँ बड्ड प्रभावित भेलाह। सामाजिक दुश्मनक विवरण वर्धमान अपन दण्ड विवेकमे ‘प्रकाश तस्कर’ कहिकेँ केने छथि–मांत्विक, ताँत्रिक, व्यापारी, वैध, झूठ गवाही देनिहार, इत्यादि भला आदमीक वेशमे समाजक हेतु खतरनाक बुझल गेल छथि।
दानपर मिथिलामे विशेष बल देल जाइत छल। चण्डेश्वरक दान रत्नाकर, रामदत्तक षोडस–महादान–पद्धति, वाचस्पतिक महादान निर्णय एवँ विद्यापतिक ‘दान वाक्यावली’ एहिबातक प्रमाण अछि। दोनोमे सप्तसमुद्रदान, हेमहास्तिरथदान, विश्व चक्रदान आदिक उल्लेख अछि। एहि सबसँ स्पष्ट अछि जे ई सब ग्रंथ राजा–महाराजा, सामंत लोकनिक हेतु लिखल जाइत छल आर सामान्य गरीब लोककेँ एहिसँ कोनो लाभ नहि छलैक। विद्यापतिकेँ छोड़ि कोनो मैथिल स्मृतिकार गरीबक हेतु दानक रास्ता नहि बतौलन्हि अछि। मैथिल स्मृतिकार लोकनि तंत्र पंचरात्र एवँ पाशुपत साहित्यसँ प्रभावित छलाह। समन्वयवादी होइतहुँ ओ लोकनि पंचोपासनाक समर्थक छलाह। दैनन्दिन जीवनकेँ नियमित रखबाक हेतु ओ लोकनि धर्मपर विशेष जोड़ देलन्हि। समाजपर एकर प्रभाव पड़ल। संस्कृतक सुरक्षा हिनका लोकनिक पचासे भेल।
समाजमे गुलामक प्रथा सेहो प्रचलित छल। गुलामीक एहेन विकराल रूप छल जे पुछु जनि। सामंतवादी व्यवस्था छल आर बन्हिल मजूर छल। वहियाक खरीद बिक्री होइत छल। गौरीव वाटिका पत्र, बही–खाता, अजातपत्र, अकरारपत्र, जनौढ़ी, निस्तार पत्र, लिखनावली आदिसँ बहिया सबहिक स्थितिक पता लगैत अछि। १८–१९म शताब्दी धरि एकर प्रचलन मिथिलामे छलैक। बहियाक स्वत्वाधिकारक प्रश्नपर बरोबरि लोककेँ आपसमे झगड़ा–झाँट होइत छलैक आर अंततो गत्वा ओकर निर्णयक चटरीमे जाके होइत छलैक।
प्राचीन कालसँ ई व्यवस्था चल अबैत छल। जातक, बौद्ध साहित्य आर कौटिल्यक अध्ययनसँ एहिपर पूर्ण प्रकाश पड़ैत अछि। मिथिलामे प्राचीन कालहिसँ दास–दासीक संख्याक विवरण प्राचीन साहित्यमे भेटैत अछि। नारदक अनुसार जँ कोनो गुलाम अपन मालिकक जीवनक रक्षा केलक आर मालिक बचि गेला तँ ओकरा गुलामीसँ मुक्तक देल जाइत छलैक। विवाद चिंतामणिमे नारदक मतकेँ वाचस्पति उद्धृत केने छथि जाहिसँ मत मान्य छल। मिथिलाक सामंतवादी समाजमे हेवनिधार खवास लोकनिक जे महत्व छलैक ताहिसँ बुझना जाइत अछि जे प्रिय पात्र गुलाम, खवास आर वहिया अपन मालिकक मोनकेँ जीतिकेँ बहुत किछु प्राप्त करिअत छल। विद्यापतिक लिखनावली आर मैथिल स्मृतिकार लोकनिक रचनादिमे सेहो एहि प्रसंगक विशेष बात भेटइत अछि।
दू ब्राह्मण परिवारमे एकटा गुलाम लकए जे झगड़ा भेल आर ताहि पर न्यायालयापन निर्णय देलन्हि से अद्यावधि सुरक्षित अछि आर तत्कालीन सामाजिक व्यवस्थापर प्रकाश दइयै। वहिया लोकनिक स्थिति बड्ड दयनीय होइत चल आर ओकरा सबहिक इज्जत सदति खतरेमे रहैत छलैक। बहिया सभहिक अदला–बदला, लिखा–पढ़ी, ककए होइत जाहिसँ केओ कत्तौसँ भागे नहि। भगलापर ओकरा सजा देल जाइत छलैक। १७७०आर १८११क दूटा एहनो उदाहरणक प्रमाण हमरा लोकनिकेँ भेटल अछि।
गुलामक अंतर्गत निम्नलिखितकेँ हमरा लोकनि राखि सकैत छी–गुलाम, नफर, खवास, धानुख, केओट, अमात, कहार, आदि जातिक लोग खवासीमे राखल जाइत छल आर बहियाकेँ बान्हल मजूर बुझल जाइत छ्लैक। एहि सबहिक लोग घर गृहस्थीसँ खेती आर बहलमानी धरि करैत छलैक। चमार जूता आर चमड़ाक कारबारक हेतु राखल जाइत छल आर ओहुना वर्गसँ बान्हल मजूर होएत छल। मिथिलाक कोन–कोनमे छोट पैघ जमीन्दारक संख्या ततेक नेऽ छल जे कोनो एहेन गाम नहि छल जाहिठाम खबासी आर बहिया गिरी नहि हो।
जखन एकर अभाव होमए लागल आर तंग भऽ कए पीड़ित–शोषित लोग भागे लागल तखन एहि व्यवस्थाकेँ दृढ़ करबाक हेतु कतेको उपाय रचल गेअ आर लिखापढ़ी शुरू भेल। जे गुलामी या वहियागिरीसँ छुटैत छल तकरा हेतु निस्तार पत्र लिखल जाइत छल। मिथिलाक सामंतवादी व्यवस्थाक ई एकटा प्रमुख अंग छल। जकर उदाहरण हेवनिधरि मिथिलामे देखबामे अवइत छल। अपना शताब्दीक उतरार्द्धमे एहि प्रथाक ह्रास देखबामे अवइयै कारण आव मिथिलाक शोलकन्हक विशेष भाग अपना गामकेँ छोड़ि कमेबाक हेतु बाहर चल जाइत अछि।
अध्याय–१७
मिथिलाक आर्थिक इतिहास

मिथिलाक आर्थिक अवस्था अति प्राचीन कालसँ अद्यपर्यंत कृषिपर आधारित रहल अछि। प्राचीन कालमे अखन जकाँ जलक अभाव नहि छल। मिथिलाक प्राकृतिक बनाबट किछु एहेन अछि जाहिसँ एहिठाम कृषिक प्रगति नीक जकाँ होइत अछि। वैदिक कालमे खेत जोतबाक, बीआ पारबाक, काटल आर फसिल तैयार विस्तृत रूपे उल्लेख भेटइत अछि। पकला उत्तर अन्नकेँ काटल जाइत छल आर तखन ओकरा बोझ बाटिकेँ खरिहानमे आनल जाइत छल। दाउन होइत छल तकर पश्चात् ओसौनी होइत छल आर तखन ओकरा सरियाकेँ व्यवहारक हेतु राखल जाइत छल। एहि लेल कृषक लोकनिकेँ बड्ड परिश्रम करए पड़ैत छलन्हि। नापतौलक आधार छल ‘खाड़ी’। बरबारीक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। मिथिलामे चाउर, जौ, मूँग, मकई, गहूम, तिल, मसुरी, आदि वस्तु उपजैत छल। जौक रोपनी शीतकालमे होइत छल आर गर्मी मासमे ओकरा काटल जाइत छल। धानक रोपनी बरसातमे होइत छल आर अगहनमे ओकर कटनी होइत छलैक। अन्हर, बिहाड़ि, बसात, अतिवृष्टि आर अनावृष्टिक संगहि हिड्डीक प्रकोपसँ कृषिकेँ धक्का पहुँचैत छलैक। अनावृष्टिसँ अकालक संभावना सेहो रहैत छलैक। सामान्य किसानक स्थिति बढ़िया नहि छल आर हुनका मालिक लोकनिक अत्याचारसँ तबाह होमए पड़ैत छलन्हि। कृषकक समूह विशाल होइतहुँ हुनका लोकनिकेँ कोनो विशेषाधिकार नहि छलन्हि आर हुनका लोकनिकेँ पर कर्जक बोझ बरोबरि बनले रहैत छलन्हि।
उपनिषदमे जे जनकक बहुदक्षिणा यज्ञक उल्लेख अछि ताहिसँ ई अनुमान लगाओल जा सकइयैजे मिथिला ताहि दिनमे एक समृद्धशाली राज्य छल। राजकोश धन–धान्यसँ अवश्ये भरल होइत अन्यथा एतेक पैघ यज्ञ ओ कइयै कोना सकितैथ। ओहि यज्ञमे हजारोक संख्यामे गाय आर सोनाक दान भेल छल। गाय बड़दपर विशेष ध्यान देल जाइत छल ताहि दिनमे। बृहदारण्यक उपनिषदक अध्ययनसँ बुझि पड़इयै जे मिथिला ताहि दिनमे सुखी सम्पन्न राष्ट्र आर ओतए कोनो वस्तुक अभाव नहि छलैक। ओहिमे सामानसँ लदल बैलगाड़ीक उल्लेख सेहो अछि। आवागमनक हेतु रथ एवँ नावक व्यवहार होइत छल। ‘स्वर्णपाद’क व्यवहार एहि बातक संकेत दैत अछि जे ताहि दिनमे सोनाक सिक्काक प्रचलन छल। आर्थिक निश्चिंतताक कारणे देशमे आध्यात्मिक एवँ बौद्धिक विकास संभव भेल छल। मैथिल लोकनि ताहि दिनमे स्वभावसँ शांत एवँ क्रियशील छलाह। पढ़ब–लिखबपर विशेष ध्यान दैत छलाह तथापि सैनिकक रूपें सेहो ओ लोकनि ककरोसँ कम नहि छलाह आर तीर चलेबामे तँ अग्रगण्ये।
वृषि मनुष्यक मुख्य कार्य छल। लोक सब विशेष कए गामे रहैत छल। गाममे ३०–४०सँ लकए १०००परिवार धरि रहैत छल। गामक समीपहि गाछी–बिरछी सेहो रहैत छल। गामक अध्यक्ष अथवा गण्यमान्य व्यक्ति गाम भोजक होइत छलाह। गामक हेतु ई सर्वश्रेष्ठ एवम महत्वपूर्ण पद छल। राजाक हेतु कर वसूल करब, कृषि व्यवस्थाक निरीक्षण करब, ग्रामीण झगड़ा–झंझटकेँ फरिछैब हिनका लोकनिक मुख्य कर्तव्य छल। जँ उपजा नहि होइत छल तँ ग्रामीण लोकनिक भोजनक व्यवस्था हिनके करए पड़ैत छलन्हि। उपजनिहार खेतमे पहरूदार सेहो राखले जाइत छल। उत्पादनक साधन मूल रूपें धनीमानी लोकक हाथमे छल तैं साधारण कृषकक स्थिति दयनीय रहब स्वाभाविके छल। जँ कोनो कारणे अन्न नहि उपजल तँ हिनका लोकनिकेँ अपार कष्टक सामना करए पड़ैत छलन्हि। अकाल पड़बाक उल्लेख प्राचीन साहित्यमे भेटैत अछि। महावस्तुमे एहि बातक स्पष्ट उल्लेख अछि जे वैशालीमे एक वेर भीषण अकाल पड़ल छल। भूखसँ पीड़ित भए असंख्यलोक मुइल छल आर मुर्दाक दुर्गन्ध पूर्ण भए गेल छल। एहि युगमे बाढ़िक प्रकोपक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। गण्डकसँ पूर्वक क्षेत्रमे जलक बाहुल्य रहैत छल। मौर्यकालीन अभिलेखमे अकाल आर अभावक उल्लेख भेटइयै। मिथिलाक अंतर्गत विदेह, वैशाली, चम्पारण, अंगुतराय, पुण्ड्र, कौशिकी कक्ष, आदि स्थान सब कृषिक हेतु प्रसिद्ध छल आर एहि समस्त प्रदेशकेँ अन्नक भण्डार कहल जाइत छल। अंगुतरायक अपन गाम सुखी सम्पन्न छल। खेती करबाक हेतु खेतकेँ छोट–छोट टुकड़ीमे बाटल जाइत छल आर खेतक बीच सबमे आड़ि सेहो होइत छल। मिथिलामे ई प्रथा अद्यपर्यंत अछिये।
ताहि दिन मिथिलामे जमीनपर स्वत्वधिकारक प्रश्न लकए विद्वानमे मतभेद बनल अछि। अखन जतवा जे साधन उपलब्ध अछि ताहि आधारपर कोनो निर्णयात्मक मतक प्रतिपादन करब कठिन अछि कारण जमीनपर दुनू पक्षक विचारक हेतु सामग्रीक अभाव नहि अछि जे प्राचीन कालमे औपचारिक रूपे समस्त जमीनक अधिकारी राजा होइत छलाह कियैक तँ परम्परागत विचारे ‘सर्वे भूमि गोपाल की” मानल जाइत छल आर राजा ईश्वरक प्रतिनिधि हिसाबे जमीनक मालिक सेहो होइत छलाह। विद्वान लोकनि तीनटा मत प्रतिपादन केने छथि–व्यक्तिगत, सामूहिक आर राजकीय स्वत्वाधिकार आर तीनू मतक पक्ष–विपक्षमे एक्के रंग तर्क देल जा सकइयै। फाहियान लिखने छथि जे केओ राजकीय जमीन जोतैत छथि हुनका ओहिमे सँ किछु अंश राजाकेँ देमए पड़ैत छन्हि। अर्थशास्त्रमे राज्य नियंत्रित कृषि व्यवस्थाक विवरण अछि। जातकमे सामूहिक स्वत्वाधिकारक विवरण भेटैत अछि।
जमीन प्राचीनकालक आर्थिक जीवनक नींव छल जाहिपर समस्त आर्थिक रूपरेखा ठाढ़ छल। जातकमे भोगगाम आर अर्थशास्त्रमे ‘आयुधीय’ गामक उल्लेख भेटइयै। एहि सभक व्याख्या प्रत्येक विद्वान अपना–अपना ढ़ँगे करैत छथि। अर्थशास्त्रमे कौटिल्य कर्मचारीकेँ नगद वेतन देबाक व्यवस्था केने छथि मुदा ‘आयुधीय’ गामक उल्लेख किछु विद्वानकेँ दोसर अर्थ लगैत छन्हि। जखनसँ प्रचुर मात्रामे जमीनक दान शुरू भेल तखनसँ सामंतवादक वीजारोपण सेहो भेल आर भारतक अन्य प्रांत जकाँ मिथिलामे सेहो सामंतवादी प्रथाक विकासक सूत्रपात भेल। सामंतवाद मिथिलामे मध्ययुगमे अपन चरमोत्कर्षपर छल। सामंतवादक प्रभावे जमीनक टुकड़ी–टुकड़ीमे बहब बढ़ए लागल आर बंगार प्रथाक श्रीगणेश सेहो भेल। गुप्त युगसँ जे प्रथा प्रारंभ भेल से मिथिलामे बनल रहल आर सामंतवादी व्यवस्थाक प्रभाव हमरा लोकनिक दैनन्दिन जीवनपर सेहो पड़ल।
सिक्का एवँ कर व्यवस्था:- एहि प्रसंग्मे कर व्यव्स्था एवँ सिक्काक प्रसंगपर विचार करब अप्रांसगिक नहि होएत। टाका–पैसाक व्यवहार होइत छल अथवा नहि से निश्चित रूपसँ कहब असंभव मुदा वैदिक साहित्यमे हिरण्य, अयस, श्याम, लौह, शीशा, कार्षापण आदिक उल्लेख भेटैत अछि। चानीक टाकाकेँ ‘निष्क’ कहल जाइत छल। सिक्काकेँ कृष्णल, सतमान, हिरण्य, पिण्ड, आर कार्षापण सेहो कहल जाइत छल। ‘स्वर्ण’ सेहो सिक्काक हेतु व्यवहार होइत छल। कतहु–कतहु सिक्काकेँ ‘पाद’ सेहो कहल गेल छैक।
राजजनक अपन यज्ञमे प्रत्येक गामपर दश–दश ‘स्वर्ण पाद’ लगौने छलाह। ओहिमे प्रत्येक ब्राह्मणकेँ तीन–तीन सतमान सेहो देल गेल छलन्हि। बौद्ध साहित्यमे सेहो एहि हेतु बहुत शब्दक व्यवहार भेल अछि। चानी आर तामाक प्राचीन सिक्का प्रचुर मात्रामे मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ प्राप्त भेल अछि–हाजीपुर, चम्पारण, वैशाली, असुरगढ़, गोरहोघाट, पटुआहा, बहेड़ा, जयमंगलागढ़, पुर्णियाँ, बलिराजगढ़, मंगलगढ़ इत्यादि। एहि सभ स्थानसँ तँ घैलक–घैल सिक्का बहराएल अछि। जातक कथामे वस्तुकदाम ‘पण’क माध्यमसँ देल गेल जाइत छल। सिक्काकेँ पण सेहो कहल जाइत छल। साधारणतः सिक्काक तीन नाप छल–२४, ३२ आर ४०रत्ती। ‘पाद’ १००रत्तीक चौथाई भाग होइत छल।
लोककेँ राजाकेँ किछु कर सेहो देमए पड़ैत छलैक। डी. आर. भण्डारकरक अनुसार जनक कालीन आर बौद्धकालीन मिथिलामे “पाद” करक व्यवहार विशेष प्रचलित छल। राजस्व प्रशासनक जे मान्य सिद्धांत छल तदनुसार मिथिलाक शासक लोकनि कर संचय आर ओसूली करैत छलाह। ‘षडभाग’ सिद्धांत तँ सर्वमान्य छल। राजा प्रजाक रक्षा करैत छलाह आर तकरा बदलामे प्रजा राजाकेँ कर दैत छल। ‘कर’क रूपमे जमीनसँ प्राप्त कर सभसँ प्रमुख छल। समाहर्त्ता राजस्व प्रशासक होइत छल। हुनका सहायतार्थ गोप तथा स्थानिक सेहो होइत छलाह। पतञ्जलिक अनुसार क्षेत्रकर नामक एकटा पदाधिकारी महत्वपूर्ण व्यक्ति होइत छलाह जे कृषियोग्य भूमिक सर्वेक्षण कए ओहिपर कर लगेबाक अनुशंसा करैत छलाह। बलि, भाग, होग, कर, हिरण्य, उदक भाग, उद्रंग, सीत आदि कैक प्रकारक कर होइत छल। एहिमे किछु कर तँ बड्ड कष्टकर छल। उपरोक्त शब्दक विश्लेषण करबामे विद्वान लोकनिक बीच मतभेद छन्हि तथापि उपरोक्त सबटा कर प्रचलित छल सेहो मान्य अछि। एकर अतिरिक्त शुल्क, क्लिप्त, उपक्लिप्त, प्रणय, विष्टी, उत्संग आदि सेहो करेक क विभिन्न नाम छल आर ई राजकीय आयक मुख्य श्रोत मानल जाइत छल। ई सब प्रकारक कर मिथिलामे व्याप्त छल आर ओहि ठामसँ प्राप्त शिलालेख आर तत्सम्बन्धी प्राचीन साहित्यमे सेहो एकर उल्लेख अछि।
सामूहिक आर्थिक जीवन:- बौद्ध साहित्यसँ इहो स्पष्ट होइछ जे मिथिलामे मिलि जुलिकेँ रहबाक व्यवस्था आर श्रेणीवद्ध भए काज करबाक आदत बहुत पुराण अछि। जातक कथासँ ई ज्ञात होइत अछि जे विदेहक निवासी बंगाल होइत समुद्रक मार्गसँ विदेह जाए व्यापार करैत छलाह। ओ लोकनि एहि हेतु सामूहिक व्यवस्था करैत छलाह–आर नाव आर जहाज सेहो बनबैत छलाह। विदेहमे बाहरोसँ व्यापारी लोकनि अबैत छलाह। एहि मानेमे पूर्व–पश्चिम दुनूसँ मिथिलाक घनिष्ट सम्बन्ध छल। आर्थिक जीवनक क्षेत्रमे एहि प्रकारक सामूहिक संगठन लाभदायक सिद्ध होइत छल आर मैथिल लोकनि लोकनि एहिसँ विशेष लाभांवित होइत छलाह। बृहदारण्यक उपनिषदसँ एकर प्रमाण भेटैत अछि। समूहिकताक हेतु गण, ब्रात, पूग, संघ, जाति, श्रेणी आदि शब्दक व्यवहार होइत छल। ‘श्रेणी’ मूलतः व्यापारी लोकनिक संगठन छल। व्यापारी लोकनि व्रार्णक कहबैत छलाह। व्यापारक संचालनक हेतु व्यापारी लोकनि अपन ‘श्रेणी’ आर संघ बनबैत छलाह। किछु गोटए एकरा गणक संज्ञा सेहो दैत छथि। रामायण–महाभारतमे सेहो व्यापारी संघक उल्लेख भेटैत अछि। रामायणमे ‘नैगम’ शब्दक व्यवहार भेल अछि। वैदिक साहित्यक ‘श्रेष्ठी’ आर उपनिषदक ‘श्रोष्ठिन’ शब्दो सेहो सामूहिकताक परिचायक थिक। मनु आर पाणिनिमे सेहो श्रेणी शब्दक उल्लेख अछि।
बौद्ध साहित्य तँ श्रेणी शब्दसँ भरले अछि। लोहार, सोनार, कुम्हार, तेली, व्यापारी, मछुआ, कुमार इत्यादि लोकनिक अपन अलग–अलग श्रेणी होइत छलैक। हुनका लोकनिक अपन नियम कानून सेहो भिन्ने छलन्हि। ओ लोकनि अपन नियम अपने मिलिकेँ बनबैत छलाह। हिनका लोकनिक मध्य जे कोनो मतभेद होइत छलन्हि तँ ओकरो निपटारा ओ लोकनि अपन संघेक द्वारा करैत छलैथ। संघ श्रेणीक प्रधान लोकनिकेँ राजदरबारमे समादर होइत छलन्हि आर कानून इत्यादि बनेबा काल हुनका लोकनिक राय–विचार लेल जाइत छलन्हि। मिथिलाक महत्वक वर्णन एहि दृष्टिकोणे महाउमग्ग जातकमे अछि जाहिसँ ई ज्ञात होइत अछि जे नगरक चारू कोनमे निगमक संगठन छल।
श्रेणीक प्रधानकेँ प्रमुख, प्रधान, जेट्ठक अथवा सेठी कहल जाइत छलैक। कमार, सोनार, लोहार, मालाकार, ताँती, कुम्हार आदि सभ वर्गक अपन–अपन प्रधान होइत छलैक। श्रेणीक अंतर्गत काज केनिहार पदाधिकारीक वेतन इत्यादि श्रेणीसँ देल जाइत छलैक। समय–समयपर राजा श्रेणीक प्रधानकेँ विचार–विमर्श करबाक हेतु बजबैत छलथिन्ह। व्यापारी वर्गक प्रतिनिधिकेँ बरोबरि राजदरबारसँ सम्पर्क राखे पड़ैत छलैक। श्रेणीकेँ बहुत रास वैधानिक अधिकार सेहो प्राप्त छलैक। सामूहिक जीवनक सभसँ पैघ प्रमाण हमरा वैशालीक उत्खननसँ प्राप्त अवशेष सबसँ भेटइत अछि। सार्थवाह, कुलिक, निगम आदि शब्दक व्यवहार ओहिठाम प्रचुर मात्रामे भेल अछि। नगर शासनमे हिनका लोकनिक बड्ड–पैघ हाथ छलन्हि। ओहिठामक बहुत मुद्रापर “श्रेष्ठी निगमस्य” उल्लिखित अछि आर ओहिपर बहुत गोटएक नाम सेहो भेटैत अछि–जेना हरि, उमा भट्ट, नागा सिंह, सालिभद्र, धनहरि, उमापालित, वर्ग्ग, उग्रसेन, कृष्ण दत्त, सुखित, नागदत्त, गोण्ड, नन्द, वर्म्म, गौरिदास इत्यादि ई सभ गोटए कुलिक छलाह। सार्थवाहमे डोड्डकक नाम आर श्रेष्ठिमे षष्ठिदत्त आर श्रीदासक नामक उल्लेख अछि। बेगूसरायसँ प्राप्त एकटा माँटिक मुद्रापर ‘श्री समुद्र’ आर दोसरपर ‘सुहमाकस्य’ लिखल भेटैत अछि। वैशालीमे बैकिंग प्रथाकेँ चालू रखबाक श्रेय हिनके लोकनिकेँ छन्हि आर वैशाली व्यापारी एवँ सम्पत्तिधारी लोकनिक केन्द्र छल। एहि युगमे मैथिल लोकनि अपन आश्चर्यकारी साहसिक भावनाक परिचय देने छलाह।
उद्योग–व्यापारक स्थानीयकरणक कारण श्रेणीकेँ बल भेटल छलैक आर व्यापारक उत्कर्षक कारणे सेट्ठी लोकनिक उत्थान भेल छल। अपन संगठनकेँ मजबूत ककए रखबाक आवश्यकता अहू लेल छलैक जे हुनका लोकनिकपर कोनो–कोनसँ कोन प्रकार घातक आक्रमण नहि आर हुनका लोकनिक स्वार्थपर आँच नहि आबे। सामूहिकताक भावनासँ जे बल भेटैत छैक तकर अनुभव ओ लोकनिक लेने छलाह आर ओकर लाभकेँ देखि चुकल छलाह। हुनक संगठित शक्तिकेँ नजर अन्दाज आब शासको नहि क सकैत छलाह। प्रत्येक व्यवसायक पृथक–पृथक सघ छल। मुग्ग–पक्क–जातकमे १८टा श्रेणी (गिल्ड)क उल्लेख अछि। रमेश मजुमदार २७टा श्रेणी (गिल्ड)क उल्लेख केने छथि। एकटा जातकमे मिथिलाक चारिटा श्रीणीक उल्लेख अछि। श्रेणी कैक प्रकारक अर्थ व्यवस्थाक सहायक छल।–
- i) बैकिंङ्ग प्रणालीकेँ जीवित राखब।
- ii) सब तरह वस्तुकेँ न्यास रूपमे सुरक्षित राखब।
- iii) कर्ज देबाक व्यवस्था करब।
- iv) अपना क्षेत्रक अंतर्गतक भूमिक व्यवस्था करब।
- v) राजस्व ओसुलीक काजमे सहायता देब।
- vi) आपसमे सद् भावना बनाके राखब।
- vii) अपना सदस्यक दिसि ठीका, पट्टा इत्यादि लेबाक व्यवस्था करब।
- viii) बिक्री व्यवस्थाकेँ नियमित करब।
- ix) अपना सदस्यकेँ अनुशासित राखब आर समय–समयपर सामयिक कर लगाएब।
- x) सामूहिक कार्यक व्यवस्था करब।
- xi) आवश्यक वस्तु जात पैदा करब।
- xii) विज्ञापन प्रसारित करब।
- xiii) आवश्यकता भेलापर स्थानीय तौरपर व्यवहारक हेतु सिक्का बाहर करब।
श्रेणीकेँ समाज आर राज्यमे प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त छलैक। जातकक अनुसार भाण्डागारिकक कार्यक्षेत्र श्रेणीक निरीक्षण धरि सीमित छल। श्रेणीक नियमक मान्यता राजाकेँ देमए पड़ैत छलन्हि। प्राचीन कालक सामूहिक जीवनमे एकर विशेष महत्व छलैक आर जातकक अनुसार मिथिलामे सेहो श्रेणी बद्ध सामूहिक जीवनक प्रमाण भेटैत अछि।
व्यापार एवँ उद्योग:- अति प्राचीन कालसँ मिथिलामे उद्योग आर व्यापारक काफी प्रगति भेल छल। मिथिला चारू कात नदीसँ घेरल अछिये आर तैं आवागमनक कोनो असुविधा कहियो रहबे नहि केलैक। विदेह्सँ तक्षशिला धरि राजमार्ग बनले छल। जातक सभ तँ मिथिलामे उद्योग–व्यापार सम्बन्धी कथा सभसँ भरल अछि। विदेहमे बाहरोसँ व्यापारी अवइत छलाह आर चीज बिक्रय करबाक हेतु श्रावस्तीक व्यापारी वैशाली आर विदेह मुख्य व्यापारक मार्गपर छल। राज गृह, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, वैशाली, कुशीनगर, कपिलवस्तु, श्रावस्ती आर मिथिलाक बीच आवागमनक मार्ग प्रशस्त छल। कश्मीरसँ होइत गाँधार धरि मिथिलासँ सोझे एक सड़क अबैत छल जकरा मिथिलासँ उज्जैन, बनारस, चम्पा, ताम्रलिप्ति, कपिलवस्तु, इन्द्रप्रस्थ, शाकल, कुशावती, पाटलिपुत्र आदि स्थानक सड़कसँ सम्बन्ध छल। सामुहिक व्यापारकेँ इ लोकनि बड्ड महत्व दैत छलाह आर समुद्रमे चलए बाला जहाजकेँ ‘वाहनम्’ कहैत छलाह। मैथिल लोकनि दक्षिणी चीनमे अपन एक साँस्कृतिक उपनिवेश सेहो बसौने छलाह आर ओतए किछु स्थानक नाम विदेह आर मिथिला सेहो रखने छलाह। रामायणमे वैशालीकेँ उद्योग व्यापारक केन्द्रक संगहि एकटा बन्दरगाह से कहल गेल अछि। चीन, तिब्बत आर नेपालक संग मिथिलाक व्यापारिक सम्बन्ध छल।
सूती कपड़ाक कारबार ताहि दिनमे मिथिलामे बेसी होइत छल। बौद्ध साहित्यक अध्ययनसँ एहि पक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै–तंतु, ताँती, तंतभण्ड, तंत–वित्थनम् आदि शब्द ताँतीसँ सम्बन्धित काजक संकेत दैत अछि। मिथिलाक ‘कोकटी’ अखनहुँ प्रसिद्ध अछि आर तखनहुँ प्रसिद्ध छल। एकर अतिरिक्त मिथिलाक मुख्य उद्योगमे अवइत अछि चीनी, तेल, हड्डीपर कैल काज, धातु उद्योग, वेंत, तारक पातक बनल वस्तु, सिलाई+फराई, इत्यादि। जहिना आई ई सब वस्तुक हेतु मिथिला प्रसिद्ध अछि तहिना प्राचीन कालहुमे छल। कुसियारक चर्च तँ तेरहम शताब्दीक तिब्बती यात्री सेहो कएने छथि। ढ़ोल, बाजा, आर अन्यान्य छोट–मोट उद्योगक निर्माण सेहो मिथिलामे होइत छल। युद्ध कालीन अस्त्र–शस्त्र सेहो बनैत छल आर कहल जाइत अछि जे लिच्छवीक विरूद्ध युद्ध शुरू करबाक कालमे अजातशत्रु रथ मूसल आर ‘महाशील कांतार’ सन यंत्रक व्यवहार केने छलाह। लिच्छवी लोकनि कुंकुम आर सुगन्धित द्रव्यक व्यापार करैत छलाह। कमार लोकनि काठपर तरह–तरहक कलाकारी करइत छलाह आर पाथर धातुक माला सेहो बनबैत छलाह। माँटिक सौन्दर्यपूर्ण वासन आदि बनैत छल आर ओहिपर तरह–तरहक पालिश आर कलाकारी होइत छल। माँटिक बासन एकटा कारी चमकैत पालिश होइत छल जकरा “नादर्न ब्लैक पालिश वेयर” कहल जाइत छलैक आर जे समस्त भारतमे एकर माँग छल। मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रसँ ई प्रचुर मात्रामे प्राप्त भेल अछि।
मिथिलामे कपूर, चानन, नोन, रेशमी, उन, अफीम, कागज, सोना, तामा, पाथर, चूना, आदि वस्तु बाहरसँ मंगाओल जाइत छल। व्यापारिक दृष्टिकोणसँ मिथिलाक सम्पर्क पूबमे ताम्रलिप्ति आर पश्चिममे भरू कच्छसँ छलैक। मिथिलासँ सभ प्रकार अन्न, दलहन आदि वस्तु बाहर जाइत छल। फल फलहारी से बाहर पठाओल जाइत छल। व्यापारक दृष्टिकोणे निम्नलिखित पथ महत्वपूर्ण छल–
- i) मिथिला–राजगीर
- ii) मिथिला–श्रावस्ती
- iii) मिथिला–कपिलवस्तु
- iv) विदेह–पुफलावती
- v) मिथिला–चम्पा
- vi) मिथिला–सिन्धु
- vii) मिथिला–प्रतिष्ठान
- viii) मिथिला–ताम्रलिप्ति
- ix) मिथिला–नेपाल–तिब्बत
स्थल मार्गक अतिरिक्त ई लोकनि समुद्र मार्गक व्यवहार सेहो करैत छलाह। गण्डकसँ गंगा आर चम्पाक मार्ग बाटे ई लोकनि ताम्रलिप्ति धरि पहुँचैत छलाह आर ओहिठामसँ सुवर्ण भूमि आर अन्यान्य स्थानपर जाइत छलाह। जातकक कथासँ ई ज्ञात होइछ जे सिन्धुक घोड़ाक व्यवहार मिथिलामे होइत छल आर सिन्धुक सम्पर्क भेलासँ मिथिलाक व्यापारिक सम्बन्ध पश्चिमोसँ घनिष्ट हैव बुझि पड़इयै। भारतक व्यापारी लोकनि वेविलोन धरि जाइत छलाह तैं संभव जे मैथिल व्यापारी सिन्धु बाटे आन व्यापारी सब संग ओम्हर जाइत होथि। प्रशस्त स्थल आर समुद्र मार्गक कारणे मिथिला का व्यापारिक प्रगति अपन उत्कर्ष पर छल आर जातक एकर सबूत अछि। (एहि विषय पर विस्तृत अध्ययनक हेतु देखु–मुहम्मद अलीक लिखल–“इकोनौमिक हिस्ट्री आफ मिथिला”)।
मौर्य युगकेँ मंगलकारी राज्यक युग कहल गेल छैक। एहि युगमे जनताक सर्वांगीण आर्थिक जीवनक नियंत्रण राज्यक माध्यमसँ होइत छल। खान इत्यादिपर राज्यक प्रभुत्व छल। राज्यक जमीन आर कृषि कार्यक निरीक्षणक हेतु अधीक्षक नियुक्त होइत छलाह। राज्यक प्रत्येक विभागक हेतु अलग–अलग निरीक्षक रहैत छलाह। राज्यक दिसिसँ कृषिकेँ विशेष महत्व देल जाइत छलैक आर जनकल्याणकेँ ध्यानमे राखि ई स्वाभाविको छल। बंजर जमीन सभमे खेती करबाक हेतु शूद्र लोकनिकेँ बसाओल जाइत छलैक। पुरोहित आर विद्वान ब्राह्मण लोकनिकेँ दानमे जमीन भेटैत छलैक। सिंचाई–पटौनी आर मालक व्यवस्था राज्यक दिसिसँ होइत छलैक। प्राकृतिक उपद्रवसँ बचबाक हेतु राज्यक दिसिसँ सभ प्रभन्ध होइत छल। गाम सभमे सहयोग समितिक व्यवस्था सेहो छल आर केओ एहिमे सम्मिलित नहि होइत छलाह हुनका दण्डित कैल जाइत छल। उद्योग, व्यापार आर वाणिज्य सेहो प्रगतिक पथपर छल। प्रशस्त राजमार्गक व्यवस्थासँ व्यापारक प्रगतिमे सहायता भेटैत छलैक। बाजारमे निर्धारित मूल्यपर सभ वस्तुक बिक्री होइत छल आर मूल्य नियंत्रण आर वेतन निर्धारणक सिद्धांतक प्रति पादन आइसँ २३००वर्ष पूर्व कौटिल्य केने छलाह। जे केओ राज्यकर देबामे असमर्थ छलाह हुनका ओहि बदलामे बेगारी करए पड़ैत छलन्हि। व्यापारीकेँ पूर्ण मात्रामे कर देमए पड़ैत छलन्हि।
गुप्त युगमे कोनो विशेष परिवर्त्तन देखबामे नहि अवइयै। कृषि, उद्योग, व्यापारक प्रगति अहुयुगमे भेल। वैशालीसँ प्राप्त मुद्रा एहि युगक आर्थिक जीवनपर प्रकाश दैत अछि। फाहियान आर हियुएन संगक यात्रा विवरणसँ ई ज्ञात होइछ जे मिथिलाक आर्थिक अवस्था ओहि युगमे बेजाय नहि छल। एहि युगमे सामंतवादी प्रथाक विकास भेल। लोककेँ आब जमीन्दारी प्रथाक अनुभव होमए लागल छलन्हि। जनताक विशिष्ट समूह अहुखन गामेमे बसैत छल आर कृषि आजीविकाक प्रधान आधार छल। ‘कर’क मात्रामे हेर–फेर आब जमीनक अनुसारे हैव प्रारंभ भेल। जाहिठाम पटौनीक व्यवस्था छल ताहिठाम कर वेसी लगैत छलैक आर वंजर जमीनक कम। हियुएन संगक अनुसार एहिठामक किसान होइत छलाह आर अधिक अन्न उपजबैत छलाह। जमीन मूलरूपसँ तीन भागमे बाँटल जाइत छल–
i) गोचर–जाहिमे भिन्न प्रकारक घास उपजैत छल।
ii) बंजर–कोनो प्रकारक उपजा नहि होइत छल।
iii) उपजाऊ–
हाटक व्यवस्था सेहो प्रारंभ भए गेल छल। हाटक निरीक्षणक हेतु ‘हट्टपति’ नामक एकटा अधिकारी सेहो नियुक्त होइत छलाह। ब्राह्मन आर क्षत्रियकेँ कर रहित जमीन छोट–छोट टुकड़ामे बाँटि चुकल छल। भूमि नापबाक प्रणाली प्रचलित भए चुकल छल आर गुप्तयुगमे एकरा कुलवाप्य कहल जाइत छल। अन्न नापबाक प्रणाली सेहो प्रचलित भए चुकल छल आर ओकरा ‘द्रोण’ कहल जाइत छलैक। खेतीबारी हरसँ होइत छल।
एहि युगमे व्यापारक प्रगति सेहो खूब भेल छल। एहियुगमे बहुतो गोटए मिथिलासँ काशी जाइत छलाह। सिक्काक रूपमे कौड़ीक प्रचलन सेहो भऽ चुकल छल। लहना–तगादाक व्यवसाय वेश बढ़ल–चढ़ल छल आर सूदक दर ९% सँ १२% धरि छल। भोजन वस्त्रक सामग्री एकठामसँ दोसर ठाम पठाओल जाइत छल। कैक प्रकारक आभूषण बनाओल जाइत छल। एक स्थानसँ दोसर स्थान सामान बैलगाड़ी आर नावपर पठाओल जाइत छल। आर सभपर चूंगीकर सेहो लगैत छलैक। एक बैलगाड़ीपर बीस बोझसँ बेसी सामान लदलासँ दू टाका शुल्क लगैत छल। कथा सरित्सागरसँ ज्ञात होइत अछि जे काशीक चारूकात रस्ताक जाल बिछाओल छल। पुण्ड्रवर्द्धनसँ पाटलिपुत्र धरि मिथिले बाटे रस्ता छल। एहि सबसँ स्पष्ट होइछ जे प्राचीन मिथिला सब तरहे सम्पन्न छल। आर देश–विदेशसँ ओकर सम्पर्के बनल छलैक। सामान्य मनुक्खक जीवनमे कोनो विशेष परिवर्त्तन नहि भेल छलैक। धनी लोकनि अपना धनकेँ गारिकेँ रखैत छलाह।
मध्ययुगीन मिथिलाक आर्थिक इतिहासक जनबाक हेतु साधनक अभाव अछि तथापि तत्कालीन साहित्यक अध्ययनसँ हमरा लोकनिकेँ पर्याप्त ज्ञान प्राप्त होइछ। ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकरमे एहि युगक आर्थिक स्थितिक विवरण भेटइत अछि। ओहि ग्रंथसँ ई प्रतीत होइछ जे ताहि दिनमे मिथिलाक ग्रामीण स्वर प्राञ्जल भए उठल छल। चाउर, जौ, विभिन्न प्रकारक दालि, बाजरा, मटर, तेलहन, कुसियार, रूई, पिआज, लहसून, दाना इत्यादि मिथिलामे प्रचुर मात्रामे उपजैत छल। चूड़ा आर चाउरक भूजाक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। सोआ, मेथी, मंगरैल आर सोंफक खेती सेहो होइत छल। आम, खजूर, नेमो, नारंगी, अनार, अंजीर, जामून, कटहर, सपाटु, लताम, पपीता आदि फलक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। चूड़ा दहीक प्रथा विशेष प्रचलित छल। अन्न रखबाक हेतु बखारी बनैत छल। चीनी आर गूड़क प्राचुर्य छल। पानक बड़का व्यवसाय मिथिलामे होएत छल। पान लगेबाक विधिपर ज्योतिरीश्वरतँ विभिन्न प्रकारक विधानो बतौने छथि। ओहिमे तरह–तरहक मशाला पड़इत छलैक आर ओ सभ मशाला देशक विभिन्न भागसँ मनाओल जाइत छलैक।
तीस प्रकारक वस्त्रक वर्णन ज्योतिरीश्वर स्वयं कएने छथि। दामी वस्त्रक अंगपोछा बनैत छल। ओ रंगरेज आर मुशहरीक उल्लेख सेहो कएने छथि। विभिन्न प्रकारक धातुसँ अनेकानेक प्रकार बासन–बर्त्तन बनैत छल। वर्णरत्नाकरमे अष्ट धातुक उल्लेख सेहो भेल अछि लोहा आर अन्यान्य धातु गलेबाक कलामे मैथिल निपुण होइत छलाह। एहिठामक लोहार लोहा गलाकेँ हऽर, खुरपी, कैंची, चक्कू, कुरहड़ि आदि बनबैत छलाह। खपरैल घरक उल्लेख सेहो भेटैत अछि। कमार लोकनि काठक अनेको वस्तु बनबैत छलाह। ज्योतिरीश्वर ३६प्रकार शास्त्रा शस्त्रक उल्लेख केने छथि।
वर्णरत्नाकरसँ ज्ञात होइछ, जे मैथिल लोकनि तंजोर, सिलहट, अजमेर, कँची, चोलप्रदेश, कामरूप, बंगाल, गुजरात, काठियावाढ़, तेलगंना, आदि स्थान सभसँ अपन वस्त्र मंगबैत छलाह। ओहिमे श्रीखण्ड, मलय आर सूरतक उल्लेख सेहो अछि। नाव बनेबामे मैथिल लोकनि सिद्धहस्त छलाह। एकर विवरण धर्मस्वामी सेहो उपस्थित केने छथि। नाव सबमे सिंह, बाघ, घोड़ा, बत्तक, साँप, माँछ आदिक चेन्ह रहैत छल। नाव बनेबामे मैथिल लोकनि अपन सौन्दर्य बोधक परिचय दैत छलाह।
स्वास्थ्यपर सेहो विशेष ध्यान देल जाइत छल। मिथिला ताहिदिनमे दूध दहीक हेतु प्रसिद्ध छल आर ओहिठाम लोग स्वस्थ होइत छल। देहक श्रृंगारक संग देहक सेवाक विन्यास सेहो छल। देह मालिश कएनिहारकेँ मरदनिया कहल जाइत छलैक। भोजनमे गरम मशालाक प्रयोग होइत छल। आर शरीरक सौन्दर्यक हेतु अगुरू, कर्पूर आदिक व्यवहार प्रचुर मात्रामे होइत चल। जीवनक एहन कोनो अंश अथवा सौन्दर्य सामग्रीक एहेन कोनो अवयव नहि जकर उल्लेख वर्णरत्नाकरमे नहि हो। पंचशायकमे एक दिसि स्त्रीक प्रसाधनक सभ विषयक वर्णन अछि तँ दोसर दिसि परिवार नियोजन आर गर्भ निरोधक तकक विधि लिखल अछि। कामसूत्रसँ कोनो अंशमे एहि ग्रंथक महत्व कम नहि अछि। ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकर, पंचशासक आर विद्यापतिक कीर्तिलता एवँ लिखनावली पढ़लासँ बहुत बातक ज्ञान होइछ।
विद्यापतिक लिखनावलीसँ ई ज्ञात होइत अछि जे राजस्वकर सेहो वसूल होइत छल। भूमि नपबाक उल्लेख सेहो ओहिमे अछि। दानपत्रक सूची सेहो राखल जाइत छल। एहि ग्रंथमे ऋण–पत्र, खेती–व्यवस्थापत्र, बन्धकी–व्यवस्थापत्र आदिक विवरण भेटइत अछि। दानवाक्यावलीमे राहरि, साठी आर लतामक चर्च अछि आर ओहिमे कैक प्रकारक वस्त्रक उल्लेख सेहो भेल अछि–कार्पासिक वस्त्र, समेम वस्त्र, क्षौम वस्त्र, कौशेय वस्त्र, कुश वस्त्र, कृमिज वस्त्र, मृगलोमजवस्त्र, वृक्षविक संभव वस्त्र आर आविक वस्त्र। कीर्तिलतामे बाजार, हाट, नगर, आदिक विशिष्ट वर्णन अछि। बजारमे पनहट्टा, धनहट्टा, सोनहट्टा, पकवानहट्टा, मछहट्टा इत्यादिक उल्लेख अछि। ओहि ग्रंथमे दरिद्रताक उल्लेख सेहो अछि। तत्कालीन दरिद्रताक विवरण ओहिमे अछि। कीर्तिपताकामे विद्यापति कहने छथि जे राजाक मुख्य कर्त्तव्य होना चाही दरिद्रताकेँ खतम करब। ऋणक उल्लेखो कीर्तिलतामे अछि आर दरिद्रताक विवरण तँ पदावलीक कतेको गीतमे। आर्थिक इतिहासक दृष्टिकोणसँ इ युग अखनो एकटा विशिष्ट अध्ययनक अपेक्षा रखइयै कारण नेऽ तँ उपेन्द्र ठाकुर आर नेऽ मोहम्मद अकीक एहि कालपर कोनो प्रकाश देने छथि। थोड़ बहुत विवरण हम मिथिला इन द एज आफ विद्यापतिमे कैल अछि। मुसलमानी प्रसारसँ आर्थिक जीवनक रूपरेखामे सेहो थोड़ेक परिवर्त्तन भेलैक मुदा तइयो मैथिल अपन कट्टरताक कारणे आन प्रांतक अपेक्षा एहिठाम अपनाकेँ फराकेँ रखलन्हि आर अपन विधि–विधानकेँ यथा शक्ति सुरक्षित सेहो।
मुसलमानी शासन कालमे मिथिलाक आर्थिक जीवनमे कोनो विशेष उल्लेखनीय प्रगति नहि भेलैक अपितु स्थिति यथावते रहलैक। शाहजहाँक समयमे जखन समस्त भारतमे अकालक स्थिति उत्पन्न भेलैक तँ मिथिलो ओहिसँ वाँचल नहि रहल। कास्तकार आर सामान्य किसानक स्थिति बड्ड दयनीय भऽ गेलैक। तिरहूतमे ताहि दिनमे बंजारा लोकनिक उपद्रव जोरपर छल। बरानिअरक यात्रा विवरणसँ ज्ञात होइछ जे बंजारा समस्या उभरिकेँ ऊपर आएल छल। कृषक लोकनिक स्थिति बदत्तर भऽ गेल छल आर औरंगजेबक परोक्ष भेलापर तँ स्थिति आर चिन्तनीय आर दयनीय भऽ गेल छल। भारतमे अंग्रेज आर अन्यान्य विदेशी लोकनिक कारवार आ व्यापार शुरू भऽ गेल छल आर शोषण प्रक्रियामे एकटा नव गति आवि गेल छलैक। १७५७मे पलासीक लड़ाईक बादक स्थितिकेँ भारतीय अर्थनीतिक इतिहासमे अंधकारपूर्ण कहल गेल अछि। अंग्रेज, मुसलमानी अमला–फैला, हिन्दू–जमीन्दार, बंजारा, सन्यासी सभ मिलिकेँ जनताकेँ लूटबामे लागल छल आर संगहि अपन–अपन जेबी गरम करबामे। देशक चिन्ता ककरोनहि छलैक। चारूकात हाहाकार आर अकालक स्थिति छल। १७५७क पछातिमे मिथिलामे बरोबरि अकाल पड़ैत रहल। बेकारीक समस्या उत्पन्न भऽ गेल। कृषि आर उद्योगक स्थिति दिन–प्रतिदिन खसए लागल। तिरहूतक गामक गाम उजार होमए लागल।
१७७०मे बड़का अकाल पड़ल आर ओहिठामक लोग खेती बारी छोड़िकेँ पड़ाए लागल। ओहि वर्षमे दरभंगाक विशेष भागमे चासक कोनो काज नहि भऽ सकल आर स्थिति एहेन भऽ गेल जे १७८३मे दरभंगाक कलक्टर एहि आशयक प्रस्ताव रखलन्हि जे अवध प्रांतसँ खेतिहर मंगाकए दरभंगामे खेतीक व्यवस्था कैल जाइक। एहि अकालक कारण मुजफ्फरपुरक कलक्टरीसँ प्राप्त कागज सभसँ ज्ञात होइछ। हाजीपूरसँ पुर्णियाँ धरि अभूतपूर्व अकाल पड़ल छल। एकर मुख्य कारण ई छल जे सरकार अकारण सभ बातमे हस्तक्षेप करैत छल, आवागमन एवँ यातायातक असुविधा छल आर ताहि दिनमे केओ एहेन योग्य नेता नहि छलाह जे एहि सभहिक निराकरणक कोनो प्रयास करितैथि। एहेन अराजक स्थितिमे जकरा जतए जे हाथ लगैक से सैह करेऽ आर जमीन्दारी अत्याचार आर शोषणक तँ कोनो कथे नहि छल। १७८२मे बाध्य भऽ कए ई नियम बनबे पड़लैक जे बिना अंग्रेजी सरकारक अनुमतिकेँ केओ जमीन्दार अपन जमीनकेँ एम्हर–आम्हर नहि कऽ सकइयै। वार्थहस्ट्र साहेब १७८७मे तिरहूतक शासक भेला। दरभंगाक महाराज आर इस्ट इण्डिया कम्पनीक बीच एहि प्रश्नकेँ लकए बरोबरि झंझट होइते रहलन्हि (देखु–हमर ‘द खण्डबालज आफ मिथिला’)। स्थिति एहेन विभत्स भऽ गेल छल जे परगन्ना पचही, आलापुर आर भौरमे किछु उपजावारी नहि होइत छल आर ई सभ जंगलमे परिवर्त्तित भऽ गेल छल। एहि सभ क्षेत्रमे जंगली जानवरक वास भऽ गेल छल। अंग्रेजकेँ अपन राज्यक सुरक्षाक चिंता छलन्हि आर जमीन्दार लोकनिकेँ अपन सम्पत्तिक आर बीचमे पिसाइत छल दरिद्र जनता जकरा हेतु चारूकात अन्हारे अन्हार छलैक। सरकार आर जमीन्दारक अतिरिक्त महाजन लोकनि सेहो निर्दय भऽ कए जनताक पसीनाक कमाई छीन लैत छलैक।
मानव–कृत शोषण यंत्रकेँ साहाय्य देनिहार प्रकृति सेहो छलैक। अतिवृष्टि आर अनावृष्टि तँ अपन रूप देखिबते छल आर ताहिपर नदीक बाढ़ि तँ अपन नङटे नाच देखिबते छल। मिथिलामे नदीक तँ अभाव अछि नहि आर प्रति वर्ष एकर बाढ़ि अखने जकाँ ताहि दिनमे अबैत छल। गंगा, गण्डक, वाग्मती, कमला, कोशी, बलान, करेह, लखनदै आदि नदीक बाढ़ि बरसातमे तीन मास धरि मिथिलाकेँ समुद्रमे बदैल दैत छलैक जाहिसँ एकर आर्थिक जीवन अस्त–व्यस्त भऽ जाइत छलैक। कोशीकेँ तँ सहजहि ‘दुखक नदी’ कहले गेल अछि। एहिसँ सब फसिल नष्ट भऽ जाइत छल, महामारीक प्रकोप बढ़ैत छल आर आवागमन एवँ यातायातक सुविधा लुप्त प्राय भऽ जाइत छल। एहना स्थितिमे बरोबरि अकाल हैव स्वाभाविके–१५५५सँ १९७५धरि मिथिलामे कतेको बेर अकाल पड़ल अछि आर महामारीक प्रकोप बढ़ल अछि–१५७३–७४, १५८३–८४, १५व९५–९६, १६३०, आर अंग्रेजक समय १७७०सँ १९००क बीच १५–२०बेर अकालक दर्शन लोककेँ भेल छलैक। १६३०क अकाल तँ अद्वितीय छल। ओहि साल मिथिलासँ बहुत रास लोगकेँ दोसर ठाम चल गेल छल। मिथिलामे बाढ़ि तँ वार्षिक क्रम जकाँ अबैत अछि आर एहेन शायद कोनो वर्ष होएत जाहिमे बाढ़ि नहि आएल हो। बाढ़ि आर अकाल मिथिलाक आर्थिक इतिहासक एकटा अभिन्न अंग मानल जाइत अछि।
१७७०क अकाल मिथिलाक इतिहासमे अद्वितीय छल आर मिथिलाक जनसंख्या घटिकेँ एक दम्म कम्म भऽ गेल छल। १८७३–७४मे पुनः एकटा ओहने अकाल मिथिलामे भेल छल जकर विवरण हमरा फतुरी लाल कविक अकाली कवितसँ भेटइयै–अकाली कवित अप्राक्शित अछि। अकालकेँ दूर करबाक हेतु आर मजूरकेँ राजे देबाक हेतु ताहि कालकेँ रेलगाड़ीक योजना चलाओल गेल जकरा सम्बन्धमे फतुरीलाल लिखैत छथि–
- “कम्पनी अजान जान कलनको बनाय शान।
-पवन को छकाय मैदानमे धरायो है॥
-छोड़त है अड़ादार बड़ा बीच धाय–धाय।
-सभेलोग हटाजात केताजात खड़ा है॥
-तारकी अपारकार खबरि देत वार वार।
-चेत गयो टिकसदार रेल की उवाई है॥
-करत है, अनोर शोर पीछे कत लगत छोर।
-जोर की धमाक से मशीन की बड़ाई है॥
-कम्पूसन पहरदार कोथी सब अजबदार।
-कोइला भर करल कार धूआँसे उड़ायो है॥
-बाजा एक बजन लाग हाथी अस।
-पिकन लाग जैसा जो चढ़नदार वैसाधर पायो है॥
-गंगाकेँ भरल धार उतरि गयो फतूर पार गाड़ीकी।
-अजबकार कवित यह बनाया है”॥
अकाल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़ि, अभाव, एवँ प्राकृतिक प्रकोपसँ मिथिलाक आर्थिक जीवन परम्परागत रूपे प्रभावित रहल अछि आर अहुखन अछिये।
अंग्रेजक अमलमे आबिकेँ जखन रेलगाड़ीक सुविधा बढ़ल आर आवागमन एवँ यातायात आर संचार व्यवस्थामे सुधार भेल तखन मिथिलाक आर्थिक इतिहासक रूपरेखामे परिवर्त्तन हैव स्वाभाविक भऽ गेल। उद्योग आर व्यापारक प्रगति सेहो भेल परञ्च ओकरा अखनो पर्याप्त नहि कहल जा सकइयै। प्राचीन कालहि मिथिलामे उद्योग–व्यापार विकसित अवस्थामे छल आर मध्य कालक विशिष्ट भागमे एकर से स्थिति बनल रहलैक मुदा इस्ट–इण्डिया कम्पनीक समयमे आबिकेँ एहिमे थोड़ेक ह्रास अवश्य भेलैक। खाद्य सामग्रीक अतिरिक्त मिथिलाक क्षेत्रमे कुसियार, तम्बाकु आर पाट आर मिरचाई बेस मात्रामे उपजैत अछि एहि लऽ कए मिथिलाक व्यापारो अछि। सब प्रकारक खादीक कपड़ा सेहो एहिठाम बनैत अछि। कोकटीक हेतु तँ मिथिला सर्वप्रसिद्ध अछिये। मिथिलामे व्यापारक प्रसिद्ध केन्द्र छल–हाजीपुर, लालगंज, बगहा, गोविन्दपुर, सतराघाट, दरभंगा, कमतौल, खगड़िया, रोसरा, पूसा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, रानीगंज, नबाबगंज, नाथपुर, साहेबगंज, राजगंज, रामपुर, अलीगंज, खबासपुर, दुलालगंज, कालियागंज, देवगंज, किसनगंज, बहादुरगंज, बारसोई, बेगूसराय, तेघड़ा, दलसिंहसराय इत्यादि। एहिमे नाथपुर तँ अंतराष्ट्रीय व्यापारक मुख्य केन्द्र छल जाहिठाम प्रचुरमात्रामे नेपाली लोकनि सामान लऽ कए अबैत छलाह आर एहिठामसँ सामान लऽ कए जाइत छलाह। अंग्रेजक अमल धरि नाथपुर एक प्रख्यात व्यापारिक केन्द्र छल। १८३६ नारेदिगर आर नाथपुरक सर्वेक्षण अंग्रेज द्वारा कैल गेल जकर रेकर्ड सम्पत्ति सुरक्षित अछि। सिन्दूर, कागज, आर अफीमक व्यापार बेस होइत छल। अफीमक कारखाना विदुपुर, लालगंज, दरभंगा, वैगनी, नवादा, आदि स्थानमे छल। पाटक कारबार पुर्णियाँ आर सहरसामे सबसँ बेसी होइत छल आरनीलक सम्बन्धमे पूर्ण विवरण हम पूर्वहिं दऽ चुकल छी।
एतवा होइतहुँ मिथिलामे २०म शताब्दीमे कोशीक प्रकोपक बढ़लासँ आर्थिक स्थिति दयनीय भऽ गेल छल। रेलमार्ग सबटा टूटि फाटि गेल, गामक गाम उजरि गेल छल। नाथपुरक व्यापारिक महत्व नष्ट भऽ गेल छल आर जे प्राचीन उपलब्धि आर्थिक दृष्टिकोणे मिथिलाक छल से आब इतिहासक वस्तु बहिकेँ रहि गेल। राष्ट्रीय आन्दोलन आर स्वदेशीक पुनरूत्थानक क्रममे कोकटीक हेतु प्रसिद्ध तिरहूत (मिथिला)केँ पुनः अखिल भारतीय खादीक प्रधान केन्द्र बनाओल गेल आर मधुबनीमे एकर मुख्यालय राखल गेल। बहुत गोटएक गुजर एखनो एहिसँ चै रहल अछि। १९५५मे कोशीकेँ बन्हबाक प्रयास भेल आर वीरपुरमे कोशी बैरेजक निर्माण भेलासँ दरभंगा, सहरसा, पूर्णियाँ आर उत्तर मूंगेर आ भागलपुर पूर्णतः लाभांवित भेल अछि। मिथिलामे आर सब नदीकेँ जँ बान्हल आर नियंत्रित कैल जाइक तँ मिथिलाक आर्थिक स्थितिक रूप रेखा बदलि जेतैक। पूर्णियाँ–सहरसा जतबे कष्ट कोशीक कारणे भोगने छल अखन ततबे सुभ्यस्त आर सम्पन्न भऽ गेल अछि। स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र जखन रेल मंत्री बनलाह तखन ओ अहि सभ क्षेत्रक टुटल फाटल रेलवे लाइनकेँ चालू करौलन्हि। एहिसँ एहि क्षेत्रक आर्थिक विकासक संभावना आर बढ़ि गेल आर दुर्भाग्यक गप्प ई एहने एक लाइनक उद्घाटनक हेतु जखन ओ ०२/०१/७५केँ समस्तीपुरमे पहुँचलाह तँ ओतए एक संदिग्ध स्थितिमे बम बिस्फोटक कारणे मारल गेलाह। एहिसँ मिथिलाक लोक सभकेँ भारी क्षति पहुँचलाह, जकर खानापूर्ति अखन धरि नहि भेल अछि।
जगदीश प्रसाद मंडल- दू टा कथा-१.डंका २ कोना जीवि?

जगदीश प्रसाद मंडल1947- गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.। कथा (गामक जिनगी-कथा संग्रह), नाटक(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यास(मौलाइल गाछकफूल, जीवन संघर्ष, जीवनमरण, उत्थान-पतन,जिनगीक जीत- उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। मुदा सीलिंगसँ बचबाक लेल कम्युनिस्ट आन्दोलनमे गेनिहार लोक सभसँ भेँट भेने मोहभंग। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
दू टा कथा-

१.डंका

चूड़लाइ, तिलकुट आ चूड़ा-मूढ़ि गमछाक एक भागमे बान्हि दोसर भाग दहिना हाथमे पकड़ि लटकौने जीवानन्द उत्तर मुँहेक रास्ता धेने डेग झाड़ने जाइत रहए कि भौयाकाकाक नजरि पड़लनि। दरबज्जाक ओसारक दछिनबरिया अखड़े चैकीपर बाँहिक सोंगरक कान्हपर माथ अड़कौने रस्ते दिस देखैत रहति कि नजरि पड़ितहि जीवानन्दकेँ किछु पूछए चाहलनि कि मन रौकए लगलनि। सोगाएल मन। मुदा जीवानन्दक आकर्षित रुप देखि मन धिक्कारए लगलनि जे सभ दिन एकठीम बैसि नीक-बेजाएक, गप्प-सप्प करैत एलहुँ आइ तँ सहजहि तिलासंक्रान्ति सन पावनि छी। तहन जँ टोकब तँ केहन होएत। गंभीर मन मुदा मुस्की दैत पुछलखिन- ‘‘कतए एत्ते हड़बड़ाएल जाइ छह जीवानन्द?’’
भैयाकाकाक टोकब कऽ अनठा आगू बढ़ि जाएव जीबानन्द उचित नहि बुझि रस्तेपर ठाढ़ भऽ कहलकनि- ‘‘की कहू काका, अइबेरक पावनि रीब-रीबेमे रहि गेल।’’
जीवानन्दक परेशानीक मिलल बात सुनि भैयाकाकाक मनमे गुदगुदी लगलनि। जहिना आत्मा खूँटा (रस्सी) सदृश्य ब्रह्यसँ मिलैत तहिना भैयाकाकाक मन जीवानन्दक व्यथा-कथा सुनै लऽ सुरसुरेलनि। चैवन्नियाँ मुस्की दैत पुछलखिन- ‘‘तिलासंक्रान्ति सन खाइ-पीबैबला पावनि तहन तोरा कोना रीब-रीवेमे जा रहल छह?’’
भैयाकाकाक बातमे जीवानन्द ओझरा गेल। मनमे उपकल नीक काज भेने खुशीसँ हँसी लगैत अछि मुदा अधला काज भेने कि हँसी नहि लगैत छैक? रास्तापर ठाढ़ भेल जीवानन्दकेँ किछु फुड़बे ने करै। जहिना खेतमे हाल कम रहने अंकुड़ नहि होइत तहिना जीवानन्दोकेँ भेल। असमंजसमे पड़ल मन सोचलकै जे भोरसँ अखन धरिक अपने बात सुना दिअनि। जँ किछु कहबनि नहि तँ मनमे हेतनि जे कोनो उकड़ू काज केने अछि। मुस्कुराइत कहए लगलनि- ‘‘काका की पूछै छी, चारि बजे भोरेक पोखरिक घाट परक पी-पाह सुनि निन्न टुटि गेल। उठैक विचार करिते रही कि पत्नी आबि कऽ कहलनि जे रतुपारवाली दीदीकेँ भरिसक दर्द उपकि गेलनि। पूर मासो छिअनि। भरिसक वएह कुहड़ैत छथि। सुनितहि मन खुशी भऽ गेल जे खूब पावनि हएत? मुदा अपन दियाद नहि रहने असथिर भेलौं। उठि कऽ गेलौं तँ देखलिऐक जनानी सभ घेड़ने। मुदा हमरा देखते सिवावाली काकी कहलनि जे बौआ गामपर नहि समहरतह डाकडर लग लऽ जाहक।’’ डाक्टरक नाओ सुनि लगमे गेलौं तँ देखलियै जे गाए-महीसि जेकाँ देहो-टाँग छिड़िऔने आ अड़ऽ-बोऽऽऽ करैत। एको क्षण विलंब करब उचित नहि बुझि खाटक ओरियान केलौं आ तमोरिया लए गेलौं। ककर मुँह देखि कऽ उठलौं जे दू कप चाहेटा पीने छी। दतमनियो पछुआएले अछि।’’
‘‘की भेलनि?’’
‘‘बेटा।’’
‘‘बेसी तबाही ने तँ भेलह?’’
‘‘ऐँह की कहू काका, जनिजाति तेहन भाउनी होइत अछि जे एक बर हेतइ आ सातबर भभटपन करत। जखन खाटपर चढ़बैत रहिएनि तहन तेना ने हाथ-पाएर कठुआ देलनि जे बुझि पड़ल दाँती लगि गेलनि। मुदा मुँहमे बोल रहबे करनि। पकड़ि-पकड़ि हाथ-पाएर सरिऔलिअनि। मन तेहन लहरि गेल जे हुअए दू ऐँड़ उपरोसँ लगा दिअनि। मुदा फेरि भेल जे अधिक दर्द भेने लोकक बुद्धियो बाँइत जाए छै। हो न हो कहीं सएह भऽ गेलि होनि।’’
मुस्की दैत भैयाकाका- ‘‘डाॅक्टर लग ने तँ बेसी भंङठी लगलह?’’
‘‘नहि। संयोग नीक रहल जे एकमुहरी काज सुढ़िआइत गेल। साते बजे निकास भऽ गेलनि। मुदा तते ने काजक ओझरी रहए जे सम्हारैत-सम्हारैत डेढ़ बजे विदा भेलौं।’’
‘‘पबनौट कत्तए लऽ कऽ जाइ छह?’’
‘‘तीन पुस्तसँ यूनूशक परिवारसँ आवा-जाही अछि। आइ भोरे हुनकर छोटकी बेटी एक मुजेला तरकारी दऽ गेल छलाए। सभ साल दइए। अपने कारोवार छन्हि। ओना पावनि सभमे सेहो पवनौट दैत छथि। तहिना हमहूँ दैत छिअनि। सैह छी। आन बेरि आठे-नअ बजे दऽ अबैत छलिएनि। मुदा आइ तँ दोसरे भाँजमे पड़ि गेलौं।’’
‘‘हमर तिल-चाउर कखन खेवह, आकि अपने ताले-बेताल रहबह?’’
‘‘की कहूँ काका मरैयोक पलखति नइए। निचेन भऽ कऽ आएब। अखन ओहो बच्चा सभ बाट तकैत हएत। सभ भोरे नहाएल आ हम दतमनियो नहि केलौंहेँ।’’
‘‘अच्छा जाह। बाट तकबह?’’ -भैयाकाका कहि चुप भऽ गेला।
‘‘तेहन माया-जालक झमेल अछि जे विचार कऽ घुसका-फुसका दैत अछि। जहिसँ समएक झूठा बनि जाइ छी। काजक अपन गति छैक। समएक गतिसँ मिलिकेँ चलैक लेल ओकरा कोना छोड़ब?’’
रस्तेपर जीवानन्दकेँ यूनूशक कोरैला बेटा आ छोटकी बेटी देखलक। देखितहि दुनू दुआरपर सँ आंगन जाए माएकेँ कहलक- ‘‘जीवानन्द कक्का अबै छथिन। बड़ीटा मोटरी हाथमे छन्हि।’’ हाटक कोबी सरिऔनाइ छोड़ि माए (यूनूशक पत्नी) अंगनाक मुँहथरिपर आबि देखलनि। तहि बीच भाए-बहीनिकेँ कहलक- ‘‘बड़का लाइ हम लेबौ।’’
बेटाक बात सुनि माए किछु बाजलि नहि। मुस्किया कऽ रहि गेलि। जीवानन्दकेँ पहुँचते माए बेटीकेँ कहलक- ‘‘कक्का ऐलखुन, प्लाष्टिक वला ओछाइन बइसै लऽ ओछा दहुन।’’
हाथक गमछा दैत जीवानन्द कहलक- ‘‘नइ दाइ, अखैन नै बैसव। झब दे गमछा अजबारि कऽ लावह।’’
जीवानन्दकेँ गेलोपर भैयाकाकाक नजरि जीवानन्देक बात ‘‘मरैयोक पलखति नहि अछि’’ पर नचैत। पावनियो रहने दतमनि करैक पलखति जेकरा नहि छैक, ओकरा लेल पावनिये की? मन आगू बढ़लनि ई दुनियाँ विचित्र रंगमंच छी। जेहने कलाकार तेहने ई रंगमंच। सुपात्रक लेल जँ इन्द्रासन सदृश्य अछि तँ कुपात्रक लेल गंध करैत नर्क जेकाँ सेहो अछि। बीरक लेल बीरभूमि, तपस्वीक लेल तपोभूमि, साधकक लेल साधना भूमि तँ चोर-डकैतक लेल सोनाक चिड़ियाँ। मधु चढ़ौनिहारक लेल मधुशाला तँ इज्जत खोरक लेल वेश्यालय सेहो छी। पार्ट खेलेनिहार सेहो अजीव अछि। कतौ पुरुख महिला बनि कलाप्रदर्शित करैत अछि तँ कतौ महिला पुरुष बनि सेहो करैत अछि। मुदा तेँ कि पुरुख पुरुख बनि आ महिला महिला बनि अपन पार्ट अदा नहि करैत छथि। जरुर करै छथि। मन आगू बढ़ि रामायण दिस बढ़लनि। हँसी लगलनि। जे मार्यादा पुरुषोत्तम राम दसमुँहा रावणकेँ मारलनि (नाश केलनि) वएह वन जेबा काल कौशल्याक संबंधमे की केलनि। माएक सेवा बेटाक धर्म नहि थिक? पितासँ कम माए होइत? मन ओझराए लगलनि। मुदा कने घुसुकि कृष्ण दिशि चलि गेलनि। कृष्णपर जाइते हँसी लगलनि। ठोर पटपटेलनि जे नान्हि-नान्हिटा छौड़ा बड़का-बड़का जहलक छहर देवाली तोड़ि बहरा जाइत अछि मुदा जे सम्पूर्ण ब्रह्माण्डकेँ नचैनिहार छथि हुनका बुते उखरिक बनहन (ऊखल बन्धन) नहि टुटलनि। भैयाकाकाकेँ छगुन्तासँ नजरि निच्चाँ भेलनि, मुदा लगले बदलि गेलनि। नजरि बदलितहि जोरसँ हँसी लगलनि। मनमे एलनि शिवजी। हद केलनि ओहो शिवसँ शिवनियो बनैमे देरी नहि लगलनि।
फेरि घुरि कऽ भैयाकाकाक मन जीवानन्देपर चलि एलनि। जाधरि जीवानन्द सन-सन बेटा समाजमे नहि जन्म लेत ताधरि समाजक उन्नति कागजपर बनाओल फूल-फलक गाछ सदृश्य होएत। जहि समाजक लोक पावनिक पाछू पनरह-पनरह दिन पहिनेसँ लगल रहैत अछि। तहूमे एकटा नहि कतेको पावनि सालक भीतर अछि, खर्चाक बाट तँ चैड़गर देखै छियै मुदा आमदनीक बाटपर नजरिये नहि अछि। कियो चारि बजे भोरे स्नान कऽ लाइ-मूढ़ी खाए लगल कियो चारि बजे अपराहनमे तदमनि करत। कि चारि बजे भोरक सूर्य चारि बजे उपराहनोमे रहैत छथि। सूर्य तँ महाविशाल रुपमे अवस्थिति छथि। तहन मौसम किऐक बदलैत अछि? कि तहि सदृश्य मनुष्यक नहि अछि।
रस्तेक बँसबीटीमे दतमनि तोड़ि रस्तेसँ करैत जीवानन्द आंगन आबि बाल्टीन-लोटा लाए सोझे कलपर पहुँचल। हाँइ-हाँह कुड़ुड़ कऽ अधे-छिधे नहा आंगन आबि पीढ़ीपर बैसि पत्नीकेँ कहलखिन- ‘‘पहिने लाइ-मुरही आ तिलवा नेने आउ?’’
‘‘आब कलौ खाएब कि भुज्जा-भरड़ी खाएब।’’
‘‘हद करै छी अहूँ भोरुका स्नान अखन केलौं आ खाइ बेरिमे साँझ पड़ि गेल। सभ सखी सासुर गेल हमरा लेखे चैत पड़ि गेल। ठीके लोक कहै छै। भिनसरसँ बाहर बजे धरि लोक जलखैक बेर बुझैत अछि आ बारह बजेसँ पहिल साँझ धरि कलौक समए। जइ समएक काज पछुआ गेल पहिने ओकरा ने पुराएब। जँ से नइ करब तँ दुनियाँक संग कोना चलि सकै छी।’’
जीवानन्दक बात सुनि पत्नी -सुधा- भरि थारी चूड़ा-मुरही लाइक संग-संग तरुओ तरकारी घरसँ आनि आगूमे रखि ठाढ़ भऽ गेली। भरल थारी देखि मुस्कुराइत जीवानन्द बाजल- ‘‘एते किअए अनलौं। बिधे पुरबैक अछि। जहिना नइ पान तँ पानक डंटियोसँ काज चलैत अछि तहिना लाइ मुरहीक बिधे पुराएब। मुदा खिच्चैड़ो तँ लइये भऽ गेल हएत?’’
पतिक बात कटैत सुधा बाजलि- ‘‘नै जखन अबैक चाल-चूल पेलहुँ तखन खिचड़ी बनेलौं। धीपले अछि।’’
‘‘तखन तरुआ किअए पानि भेल अछि।’’
‘‘तरकारी आ तरुआ सबेरे बनेलहुँ। तेँ सरए गेल अछि।’’
दू-तीनि फँका फकितहि जीवानन्दकेँ तरास जोर केलक। गिलास भरि पानि पीबि निच्चाँमे रखितहि सुधा बाजलि- ‘‘तिलासंक्रान्तिमे सभ अपन-अपन बहीनि ऐठाम पवनौट लऽ कऽ जाइत अछि अहाँ छोड़ि देवइ?’’
पत्नीक बात सुनि जीवानन्दक मन थारीसँ हटि बहीनिपर पहुँच गेल। सासुर बसैसँ पहिलुका बहीनिपर नजरि पड़ितहि गठुलाक टाटपर सँ कोना तिलकोरक पात तोड़ि आनि माएकेँ तरै लऽ दइत छलि। जहन भानस करै जोगर भेलि तहन कत्ते सिनेहसँ तरुआ तरि खुअबैत छलि। उझुक मारि-मारि पत्नीक बात मनमे उठैत। सोचए लगल, जँ एक्के दिन अपनो बेटाक विआह आ साढ़ूओक बेटाकेँ विआह होय, तहन की करैक चाही। विचारमे अबितहि अपना दिस तकलक। पावनिक दिन छी, बेरि झुकि गेल मुदा नहायोक छुट्टी नहि भेलि छलए। अखनो धरि चैन नहि भेलहुँ। भैयाकाकाक तिल-चाउर पछुआएले छन्हि। कि हमरा हिस्सामे पैघ लोक लग बैसि एक्को घंटा बुझै-सुझैक लेल नहि अछि? सदिखन काजक टिकटिकिया कपारपर चढ़ले रहैत अछि। मन घुमि कऽ भरदुतियापर पहुँचल। ठाँउ कऽ अरिपन बना पीढ़ी धोय केहन आसन बनबैत अछि। तहिपर बैसि जोड़ल दुनू हाथ धोय सिन्नुर पिठार लगा फुल-पान रखि आराधना करैत अछि। कि ओहि बहीनिकेँ विसरि जाएब। कथमपि नहि। मुदा बहीनो कि हमरासँ अधला जिनगी जीवैत अछि। सभ तरहे ओ नीक अछि। भागिन कओलेजमे पढ़ैत अछि। केहन ठाठसँ भगिनियोक विआह केलक। अपन सभ लूरि सिखा माए अपने जेकाँ बना देने छैक। कोनो चीजक कमी छैक। ओ कि हमरे पवनौटक भरोसे हएत। मनमे खुशी एलै। मुस्की दैत बाजल- ‘‘आइ तँ सभ ठाम पावनि छीहे। कोनो कि दुइर होइबला वौस अछि। काल्हि भोरे गेलासँ एते तँ हएत जे सभहक एकदिना तरुआ हमरा दू दिना हएत।’’ कहि हाँइ-हाँइ कऽ खा जीवानन्द भैयाकाका एहिठाम विदा भेल।
अखन धरि भैयाकाका आँखि बन्न कऽ चैकीपर डूबले रहथि कि फड़िक्केसँ जीवानन्द कहलकनि- ‘‘गोड़ लगै छी काका। तिल-चाउर खाइ लऽ एलौंहेँ।’’
जीवानन्दक बोली सुनि भैयाकाका आँखि खोलि असिदवाद दैत कहलखिन- ‘‘बहुत दिन जीवह जीवानन्द। हम तँ लटकि गेलियह। देहसँ कम्मो लटकलहुँ मुदा मनसँ बेसी लटकि गेलहुँ। बुझि पड़ैत अछि जे लहास ढोइ छी। अनेरे अनकर हिस्सा अन्न-पानि दुरि करै छी। मुदा तरे-तर गणेशजी जेकाँ पेट फुलल जाइए। भने तूँ आबिये गेलह। होइए जे टन दे प्राण तियागि दी मुदा पेटक जे अकुरी सभ अछि ओ जाधरि नहि निकलत ताधरि प्राणो कोना छोड़त?’’
हँसैत जीवानन्द कहलकनि- ‘‘अंकुरी तँ लोक छठिमे घाटपर खाइत अछि अहाँ आइयो खुआएब तँ खुआ दिअ।’’
भैयाकाका- ‘‘जहिना जनमौटी बच्चाक मल मृत्युकाल निकलैत अछि तहिना छोटका बाबाक खुऔल अंकुरी तोरा दए दैत छिअह। अपन गामक चारिम बसान छी। शुरुमे दू परिवार धारक मुँह बदलने आबि कऽ बसल। खेती शुरु भेल। जानवरक उपद्रवक संग-संग मनुक्खोक उपद्रव शुरु भेल। अपन रक्षाक लेल उपजौनिहार तैयार भेल। मुदा सोलहन्नी रक्छा तइयो नहि भऽ सकल। पानिक सुविधा दुआरे गाम धुधुआ कऽ बढ़ल। जानवरो आ मनुक्खोक उपद्रवसँ बचैक लेल बलक जरुरत भेल। गाम-गाममे अखड़ाहा बनए लगल। लोक कुश्ती लड़ि अपन शक्तिक परिचय दिअए लगल रहै। गामे-गाम डंको हुअए लगल रहै। तहियेसँ अपना गाममे तिलासंक्रान्तिक दिन अपनो गाममे डंका शुरु भेल।’’
भैयाकाका बजितहि रहति कि जीवानन्दक मुँह बाजि उठल- ‘‘कक्का अपन बात कने रोकि कऽ राखू। हम बिसरि जाएब।’’
मुस्की दैत भैयाकाका- ‘‘बाजह?’’
जीवानन्द- ‘‘पावनिक दिन रहने मन छनगल रहै। तमोरिया (डाॅक्टर ऐठाम) मे इलाज शुरु होइते भौजी (रतुपारवाली) केँ खलास भऽ किछु सूढ़िआएल देखि ड्योढ़वाली काकीकेँ गाम पठा देलिएनि। मन खुशी रहबे करनि। होइन जे के पहिने भेंट हएत जेकरा सोझामे पेटक गुदगुदी बोकरि दिअनि। संयोगो नीक रहलनि। मदनावालीकेँ अंगनासँ मुड़ियारी दैत देखलखिन। छुतका (अशौच) दुआरे हाँइ-हाँइ अंगनेक चुल्हिपर लोहियामे तरकारी तरैत छलीह। सोझामे देखि काकी (ड्योढ़वाली) ससरि कऽ आंगन बढ़ली! नजरि पड़ितहि मदनावाली भौजी आग्रह करैत कहलकनि- ‘‘एत्तै आवथु काकी। बिना पाएर-हाथ धोनहि चुल्हिक पाछूमे बैसि गेलीह। तीनसल्ला अड़ुआक तरुआ बढ़बैत कहलकनि- काकी कने नोन देखि लेथुन।’’
दुनू गोटे चुल्हिये लग बैसि खाए लगली।
जीवानन्दक बात सुनि ठहाका दैत भैयाकाका कहए लगलखिन- ‘‘अच्छा, तोहर बात भऽ गेलह। आगूक सुनह। केवल अपने गामटा मे डंका नहि होएत, आनो-आनो गाममे होएत छलए। तीन बजे भोरेसँ ढोलिया गाछपर चढ़ि वा बड़की पोखरिक मोहारपर सँ ढोल बजवए लगैत। बेरुका समए डंका होइत छलए। किछु दिनक पछाति रुपैयाक प्रवेश भेने डंका दंगलमे बदलि गेल।’’
विचहिमे जीवानन्द- ‘‘दू साल पहिने तक तँ होइत छलैए।’’
जीवानन्दक बात सुनि कनेकाल गुम्म रहि भैयाकाका कहए लगलखिन- ‘‘जाधरि मालिक (जमीन्दार) केँ मालगुजारिये धरि होय ताधरि गाम शान्त छलए। मुदा जखन मालगुजारी तरे लोकक खेत निलाम हुअए लगल तहन ओ पाएर पसारए लगल। महाजनी सेहो करए लगल। छपरिया सिपाहीक आगमन गाममे भेल। पहिने तँ ओ कचहरियेक हातामे माने कम्पाउण्डमे अखड़ाहा ख्ुनि लडै़, मुदा किछु दिनक पछाति गामक डंका अपना अखड़ाहापर लए गेल। साले-साल डंका करवए लगल। एकाएकी परोट्टाक खलीफा पीठ देखवए लगल। अपन इज्जत बचा हम मकरक रविकेँ डंका करवैत रहलहुँ। मुदा ओ सभ (छपरिया) डंकामे बलउमकी करए लगल। साले-साल झंझट हुअए लगल।’’
भैयाकाकाक बात सुनि जीवानन्दक आँखि भरि गेलइ। जीवामन्दक भरल आँखि देखि बजलाह- ‘‘जाधरि छोटका बावा छलाह ताधरि कोनो गम नहि छलए। ओना समयो करबट लेलक। समएकेँ दहिन होइतहि शक्ति बढ़ए लगल। तिला-संक्रान्तिसँ अढ़ाइ मास पहिने मन बेकाबू भऽ गेल। पुरने अखड़ाहाकेँ छीलि-छालि खुनलौं। लपटनिहार सभ संग दिअए लगल। मालिकक खलीफाकेँ माटि पठा कहलियै जे जँ एक माएक दूध पीने हुअए तँ कचहरीक हात्तासँ बाहर आबि जतए तोरा फड़िअवैक हुअए, फड़िया लाय। देशक हवा देखि बुझि पड़ल जे सभ जागल अछि केवल हमहींटा मुरदा भेलि छी।’’
जीवानन्द- ‘‘तहन की भेल?’’
भैयाकाका- ‘‘ओहो (छपरिया) लक्ष्मण रेखा (सरकारी हाता) छोड़ि बाहर अबैक मानि लेलक। डंका भेल मुदा बाह रे संतोष ढोलिया। ओहि दिनक ओकरो हाथकेँ (बजवैक) धन्यवाद दी जे जहिना कुरुक्षेत्रमे कृष्णक शंखक आवाज रहनि ताहिसँ मिसियो भरि ढोलक अवाज नहि रहैक। कहए लेल तँ अधिक गामक देखिनिहार (कुश्ती देखिनिहार) रहथि मुदा संख्या कम रहैक। तहूमे ओहन देखिनिहार बेसी रहए जे ओहि खलीफाक (छपरिया) पीठि ठोकैत। मुदा नजरि पड़ितहि देखि लेलियेक जे मुँहक ठोर कारी सियाह छै। मनमे एहेन शक्ति उठि गेल, जहिना आगिमे घीउ देलासँ उठैत, तहिना। लंगोटो नहि पहीरए लगलौं, धोतियेक ढट्ठाकेँ बरहा जेकाँ वाँटि कसि कऽ बान्हि लेलहुँ। इम्हर ढोलपर संतोष अवाज दिअए लगल- चट-धा, गिड़-धा, चट्-धा गिर-धा।’’
‘‘अवाज सुनि कूदि कऽ अखड़ाहापर गेलहुँ। मनमे उठल जे अनेरे हाथ की मिलाएव। बाँहि पकड़ि लेलहुँ।’’
ढोलिया हाथ बदललक। ढाक्-ढिना, ढाक-ढिना, ढाक-ढिना बजवए लगल। ढोलक अवाज तँ दहिन रहए मुदा देखिनिहारक अवाज वाम भऽ गेल। फेरि ढोलिया हाथ बदलि- ‘‘चट्-गिड़-धा, चट-गिड़ धा, चट-गिर धा’’ बजवए लगल। हमरो साहस बढ़ल। भय मनसँ निकलि गेल। मुदा माटिपर चलि गेलहुँ। माटिपर जाइते ढोलिया (संतोष) हाथ बदललक। मेही अवाजमे- ‘‘धाक्-धिना, तिरकट-तिना। धाक्-धिना, तिरकट-तिना।’’ माटि परक दाँवसँ उपर भेलहुँ। देखिनिहारक आँखि सेहो बदलल। उपर होइतहि ढोलिया मोट अवाज आ भौड़ी अवाजमे बजवए लगल- ‘‘चटाक-चट-धा, चटाक-चट-धा।’’ अवाजेक संग ओकरा उठा कऽ पटकि देलियै। मुदा पीठ गरे खसल। माटिपर खसितहि ताल बदललक। बजवए लगल- ‘‘धिक-धिना, धिक-धिना।’’
अवाज सुनि धाँइ दऽ चित केलहुँ। चीत करितहि ढोलसँ अवाज निकलए लगल- ‘‘धा-गिड़-गिड़, धा-गिड़-गिड़।
भैयाकाकाक बात सुनि जीवानन्द कहलकनि- ‘‘अहाँ ऐहन चैनक समुद्रमे पहुँच गेल छी जे मगन भऽ जीवैत हएब?’’
मगन सुनि भैयाकाकाक हृदय, बाढ़िसँ उमड़ल गंगा जेकाँ जे अपन घर (नदी) छोड़ि गाछी-विरछी, खेत-पथार पहुँच पवित्र (गंदा साफ) करए लगैत, तहिना भऽ गेलनि। विहृल भऽ कहए लगलखिन- ‘‘बौआ तोरा देखि हृदय शान्तसँ प्रशान्त भऽ जाइत अछि आब तँ तोरे सभपर छहरो-महर हएत आ दारो-मदार अछि। मुदा हवाक गंदगी तेना ने विहारिमे पसरि गेल जे एक्को क्षण जीवैक मन नहि होइत अछि। लीला सभ जे देखै छी तँ शूल जेकाँ सदिखन हृदयकेँ बेधैत रहैत अछि। आजुक पीढ़ी जीवनक रास्तासँ एते दूर हटि रहल अछि जे मनुष्यक औरुदा (सए वर्ख) सँ घटि कुत्ताक औरुदा (बारह वर्ख) मे बदलल जा रहल अछि। दुख एतवे नहि होइत अछि जे औरुदे टा घटि रहल छैक, मनुष्यक वृतियो टुटि-टुटि ओम्हरे जा रहल अछि। जहि रुपक व्यवहार भऽ रहल छैक ओहि सभसँ आगम बुझि पड़ैत अछि जे माए-बाप, भाए-बहीनि, सभहक संवंध आ शिष्टाचार एहि रुपे नष्ट भऽ रहल अछि जे साधना भूमिकेँ मरुभूमि बनब अनिवार्य छैक।
२ कोना जीवि?

सेवा निवृत्तिक सातम सालक सातम मास, सातम मासक सातम दिन सात बजे साँझमे दू-जनियाँ सोफापर दुनू परानी प्रोफेसर शंकर कुमार ओंघराएल माने पड़ल छलाह। दुनू बेकतिक मन खटाइल। दस बजे करीब दिनेमे सुनने छलाह जे संगीक संगिनी चुल्हिक गैसक रिसावसँ झड़कि अस्पतालक सीटपर चिकड़ि-चिकड़ि कानि रहल छथि। सत्तरि बर्षक अवस्थामे संगी अपने दौड़-धूप कऽ रहल छथि। मुदा अस्पतालक डाॅक्टरो नर्सो आ कम्पाउण्डरो जी-जान बँचवै पाछु लगौने छथि। तेकर कारण अछि जे एक तँ पाइक कमी नहि दोसर पहुँचो नीक। संगिनीक घटनाकेँ तँ सरस्वती लगसँ नहि देखने छलीह मुदा समाचारक रुपमे सुनने छलीह। जहिसँ करेज तेना दहलि गेलनि जे साँसक गतिसँ छातीक धकधकी तेज भऽ गेलनि। नस-नसमे डरक भूत समाए गेलनि। अन्हारक वाण जेकाँ चारु कातसँ मृत्युक तीर बेधए लगलनि। जहिना बेरागी अनुचित काजसँ डरैत, जोगी भोगसँ डरैत तहिना सरस्वती मृत्युक भयसँ।
पाँच सए एम.एल.बला हृीस्कीक बोतल प्रो. शंकर कुमारकेँ बेअसर बुझि पड़लनि। मनक चिन्ता रुपी तीर हृीस्कीक तीरकेँ रस्तेमे रोकने। लग अबै नहि दन्हि। कछ-मछ करैत पत्नीकेँ कहलखिन- ‘‘चाह पीबू।’’
सरस्वतीक मन चाह पीबिसँ सुरक्षित चुल्हि नहि जराएव बुझनि। अपन अज्ञाक उल्लंघन होइत देखि शंकरक मन महुराए लगलनि। जहिना भोज्य-पदार्थक बरतनमे गिरगिट खसि महुरबैत, तहिना। डेग भरि पाछु घुसुकि मुस्की दैत दोहरा कऽ कहलखिन- ‘‘चलू, हमहीं चाह बनाएब। कीचेनक तँ सभ किछु देखल नहि अछि। अहाँ देखा-देखा देब।’’
जिनगीक अंतिम अवस्थामे पतिपर जीति देखि ढेग सन देह कऽ उठा कीचेन दिस बढ़लीह।
चाह बना कीचेनमे पीवए लगलथि। मुदा तइओ गप-सप करैक मन किनको नहि करैन। मनक सोग नव विषएकेँ मनमे आबै नहि दन्हि। जहिना घी नहि अरघिनिहारकेँ थारीमे देखितहि जीह ओकिया लगैत तहिना नव विचारपर नजरि पड़ितहि जीह माने मन पचपचाए लगनि। चाह पीबि दुनू गोटे कोठरीमे आबि पुनः सोफापर परि रहलाह। गुम-सुप। जहिना साधक साधनामे लीन भऽ समाधिस्त होइत तहिना दुनू गोटे अपन-अपन विचारक दुनियाँमे औनाए लगलाह।
सरस्वतीक नजरि पाँच वर्खक अवस्थापर पहुँचलनि। की छलए माए-बापक राज? खेनाइ, खेलेनाइ, पढ़नाइक संग पावनिमे उपास केनाइ आ फूल तोड़ि पूजा केनाइ। बस। यैह छलए जिनगी। मनमे सुख-दुखक जनमो कहाँ भेलि छलै। सोहनगर वातावरणमे विआह भेलि। नैहरसँ सेवा करैक लेल नोकरनी आएल छलि।
सासुरो सम्पन्ने रहए। कोनो अभाव सासुरोमे नहिये रहए। नोकरे पानियो भरैत, आ भानसो करैत रहए। अपनो प्रोफेसरे छलाह। पाइक संग प्रतिष्ठो बनौने छलाह। विद्यार्थीसँ शिक्षक धरिक बीच सम्मानित छलाह। अपनासँ बीसे बेटोक पढ़ैपर खर्च केलनि। आजुक जे महगाइ शिक्षामे आबि गेल अछि ओ इमानदार कमेनिहारक लेल असंभव भऽ गेल अछि। दरमाहासँ तँ नहिये मुदा पिताक देल सम्पत्तिसँ तँ एत्ते जरुर केलनि। अमेरिकामे बेटाकेँ पढ़ा लिलसा मेटौलनि। मुदा अखन की देखै छी? एहि अबस्थामे दिन-राति तीनि मंजिलापर उतड़ब-चढ़ब पार लागत। ओहिना तँ देह-हाथ बिनबिनाइत आ देह भारी बुझि पड़ैत अछि। तहिपर परिवारक सभ काज? एहि उमेरमे बूढ़ि-कनियाँ बनि जीवि रहल छी। तरे-तर पसेना चलए लगलनि। अनायास मुँहसँ निकलिलनि- ‘‘एहि जीवनसँ मरब नीक।’’
पत्नीक बात सुनि शंकर कुमारक भक्क खुजलनि। अखन धरि हिनकर चेतनाहीन भेलि मन देखैत छलनि अपन पैछला जिनगी। गामक स्कूल। कते सिनेहसँ पिताजी घरक देवताकेँ गोड़ लगा, कन्हापर चढ़ा ‘सरस्वती माताक जय’ आंगनसँ निकलि सरस्वतीक मंदिरमे लऽ गेलाह। की हम ओहिसँ कम अपना बेटाकेँ केलहुँ? कथमपि नहि। डेरामे गाड़ल देवता तँ नहि अछि मुदा देवालमे टांगल फोटो आ अष्टद्रव्यक बनाओल मुरती तँ अछिये। बाड़ीक बसन्ती गुलाब तँ नहि मुदा मह-मह करैत भकराड़ रुपमे बनल प्लास्टिकक फूल तँ चढ़ौनहि छिअनि। धुमन-सरड़क धुपक बदला गुगूल आ अगरबत्ती तँ चढ़वितहि छिअनि। मोटर-साइकिलपर चढ़ा शहरक सभसँ नीक विद्यालयमे पढ़ेवे केलिएनि। जते पिता जी हमरा पढ़ौलनि, हमरा की पढ़ौलनि एक सीमा धरि पहुँचा देलनि। तहिना तँ हमहूँ केलिएनि। नोकरी भेलापर ताधरि पत्नी गाममे रहलीह जाधरि बावू-माए जीबैत रहलाह। मरैइयो काल धरि माए संगे खाइले कहथि। मुदा संगे नहि खाए एकठाम बैसि कऽ खाइ। मुदा बेटाकेँ जहिये कनभेंटमे नाओ लिखेलहुँ तहियेसँ एक शहरमे रहनहुँ फुट-फुट रहए लगलहुँ। समएक अनुकूल शिक्षो बदलल। एकाएक नजरि आगू बढ़ि जिनगीक अवस्थापर गेलनि। चारिम अवस्था। जहि अवस्थामे सभ कथूसँ सम्पन्न भऽ, अभावकेँ निर्मूल नष्ट कऽ परिवारसँ उपर उठि समाजमे मिलि जाएब होइत छैक। हमर समाज केहन? जहि समाजमे मनुष्यक संग-संग जीव-जन्तु माटि-पानि, घर-दुआर धरि एक-दोसरकेँ नीक-अधला सुख-दुखमे संग दैत अछि। एकठाम बैसि सभ भोज-काजमे खाइत अछि तहिना दसगरदा उत्सवो हॅसी-खुशीसँ मनवैत अछि। ढोल-डम्फापर होरी गाबि-गाबि नचबो करैत अछि। जूरशीतलमे इनार-पोखरि उड़ाहबो करैत अछि। शिव-पार्वती बना बाजाक संग गामो घुमैत अछि।
जहिना बाढ़ि अएलापर एक किस्मक माने लेभेलक जमीन पानिमे संगे डूबि जाइत अछि। तहिना गाछी-कलम पानि-बिहाड़ि सहैत अछि।
बेटाकेँ अमेरिकामे पढ़ेलहुँ। ओ ओहि समाज आ संस्कृतिमे तेना मिलि गेल जे अपन सभटा बिसरि गेल। आइ जँ हम अमेरिका जाए रहए लगी तँ कि ओहिठामक जिनगी दुनू बेकतीकेँ कतेक दिन जीवए देत? कि दुनियाँमे मृत्यु छोड़ि हमरा लेल किछु नहि शेष बचल अछि। निराश मनमे एलनि ‘करनी देखिहह मरनी बेरि।’ जिनगीमे कतए चूक भेल? जँ चूक नहि भेलि तँ एहि अवस्थामे पहुँच कोना गेल छी?
पत्नीक बात ‘एहि जीवनसँ मरब नीक’ सुनि धड़फड़ा कऽ उठि बजलाह- ‘‘अखन सुतै बेरि अछि जे सुति रहलौं?’’
- ‘‘सुतल कहाँ छी। भानस करैसँ मन असकताइत अछि।’’
- ‘‘तँ की भुखले रहब।’’ शंकर कुमार बाजि तँ गेलाह मुदा मन पाछु घुरि कऽ तकलकनि। एक तँ ओहिना करैक बाट धेने छी तहूमे जे दस-बीस वर्ख जीवो करितहुँ से तेहन रोग भेलि जाइत छनि जे भुखले मरब। रातिमे खाएव नहि तँ नीन कोना होएत? जँ नीन नहि हएत तँ जीवि कते दिन?
पत्नी- ‘‘कता दिन कहलहुँ जे नोकर राखि लिअ?’’
नोकर सुनि शंकर अमती काँटक ओझरीमे पड़ि गेलाह। देखैमे नान्हि-नान्हिटा मुदा छाँह जेँका छोड़ैले तैयार नहि। मनमे जोर मारलकनि जे अपने जिनगी भरि नोकरी केलहुँ। बेटो-पुतोहू -दुनू इन्जिनियर- अनके नोकरी करैत अछि आ अपने नोकर रक्खू। जहन ड्यूटी करैत छलहुँ बेसी तलब उठवै छलहुँ तहन नोकरे ने रखलहुँ। कारणो छलए जे पत्नी थेहगर छलीह। बेटा-पुतोहूक अशो छलनि। थोड़े बुझै छेलथिन जे बुढ़ाढ़ी ऐहन हएत। आइ-काल्हि नोकर कते महग भऽ गेल अछि से थोड़े बुझै छथिन। तकलीफ हेतनि बजवे करतीह। भलेहीं हमरा बुते पुराओल हुअए वा नहि। पहिले जेकाँ पाँच रुपैआ दस रुपैआमे नोकर भेटत। तहूमे बाल-बोधकेँ थोड़े रखि सकै छी। अनेरे लेनी कऽ देनी पड़त। घरक सुख जहलमे भेटत। जँ सियान राखब तँ तीनि हजारसँ कम लेत। तहूमे कि कोनो स्कूल-कओलेज आ कि मिल-फैक्टरीक नोकरी हेतइ। घरमे काज करत तँ खाइ लऽ नहि देबइ से हएत तहूमे तँ नीक-निकुत बेसी वएह खाएत। तहूमे तेहेन समए आबि गेल जे सम्पत्तिये दुनू बेकतीक जानो लेत। जानपर नजरि पड़िते आँखि ढबढ़बा गेलनि। जाने नहि तँ जहान की? जहिना वीणाक तार टुटलापर अवाज निकलैत तहिना टूटल जिनगीक स्वरमे शंकर कुमार पत्नीकेँ कहलखिन- ‘‘अहाँक मन असकताइत अछि तँ पड़ू। कहुना-कहुना कऽ क्षुधा तृप्त करै जोकर टभका लइ छी।’’
मने-मन सरस्वती बजलीह- ‘‘कोना जीबि?’’

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