भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Tuesday, April 07, 2009

मैथिली हैकू- क्षणिका- हाइकू- रामलोचन ठाकुर- गजेन्द्र ठाकुर

1. रामलोचन ठाकुर किछु क्षणिका (हाइकू)

 


१.भोजक पान
सासुरक सम्मान
पुनिमाक चान


२.हाथीक कान
नटुआक बतान
एक समान


३.दूरक चास
गामक कात बास
कोन विश्वास


४.बाँझीक फूल
महकारीक फल
के कहै भल


५.दादुर-गान
डोकाक अभियान
वेथे गुमान


६.हिजरा-नाच
ओकिल केर साँच
की ६ की पाँच




2.गजेन्द्र ठाकुर

१२ टा हैकू आ तकर बाद एकटा हैबून



१.वास मौसमी,
मोजर लुबधल
पल्लव लुप्ता


२.घोड़न छत्ता,
रेतल खुरचन

मोँछक झक्का


३. कोइली पिक्की,
गिदरक निरैठ
राकश थान


४.दुपहरिया
भुतही गाछीक
सधने श्वास


५.सरही फल
कलमी आम-गाछी,
ओगरबाही


६.कोलपति आऽ
चोकरक टाल,
गछपक्कू टा


७.लग्गा तोड़ल
गोरल उसरगि
बाबाक सारा


८.तीतीक खेल
सतघरिया चालि
अशोक-बीया


९.कनसुपती,
ओइधक गेन्द आऽ
जूड़िशीतल


१०.मारा अबाड़
डकहीक मछैड़
ओड़हा जारि


११.कबइ सन्ना
चाली बोकरि माटि,
कठफोड़बा


१२.शाहीक-मौस,
काँटो ओकर नहि
बिधक लेल


हैबून १

सोझाँ झंझारपुरक रेलवे-सड़क पुल। १९८७ सन्। झझा देलक कमला-बलानक पानिक धार, बाढ़िक दृश्य। फेर अबैत छी छहर लग। हमरा सोझाँमे एकठामसँ पानि उगडुम होइत झझात बाहर अछि अबैत। फेर ओतएसँ पानिक धार काटए लगैत अछि माटि। बढ़ए लगैत अछि पानिक प्रवाह, अबैत अछि बाढ़ि। घुरि गाम दिशि अबैत छी। हेलीकॉप्टरसँ खसैत अछि सामग्री। जतए आयल जलक प्रवाह ओतए सामग्रीक खसेबा लए सुखाएल उबेड़ भूमिखण्ड अछि बड़ थोड़। ओतए अछि जन- सम्मर्द। हेलीकॉप्टर देखि भए जाइत अछि घोल। अपघातक अछि डर हेलीकॉप्टर नहि खसबैत अछि ओतए खाद्यान्न। बढ़ि जाइत अछि आगाँ। खसबैत अछि सामग्री जतए पानि बिनु पड़ैत छल दुर्भिक्ष, बाढ़िसँ भेल अछि पटौनी। कारण एतए नहि अछि अपघातक डर। आँखिसँ हम ई देखल। १९८७ ई.।

पएरे पार
केने कमला धार,
आइ विशाल

आत्मप्रसंग - एतबा धरि तॊँ करिहेँ सूगा- रे सॊना ! रे चानी ! -गगन अजिर घन आयल कारी- स्वर्गीय बबुआजी झा "अज्ञात"

आत्मप्रसंग स्वर्गीय बबुआजी झा अज्ञात

कोसी नदिक निकट अछि बसती बाथ

जन्मभूमि, जल जीवन नियतिक हाथ।

महिसिक पीठ पढ़ल किछ चित पित मारि

कविता एखन लिखै छी खेतक आरि।

कवि समाजसँ रहलहुँ सभ दिन कात

नाम अपन रखलहुँ तेँ अज्ञात

विकट प्रश्नमय जीवन रहलहुँ व्यस्त

शिवक जटामे सुरसरि सम हम अस्त।

विधिवश प्राप्त वसंतक किरण अमन्द

गाबि उठल पिक हृदयक अभिमत छन्द।

कोन वस्तु अछि जगतक नहि निङहेस

एक चमत्कृत चित्रण कवि-कर शेष।

चलत धरणितल तटिनिक जखन प्रवाह

आबि जुड़त किछ नीको किछ अधलाह।

जखन विरंचिक विरचित सृष्टि सदोष

हैत कोन विधि अनकर कृति निर्दोष।

सहज धर्म मधुमाछिक मधु लय अन्ध

माछिक अपन प्रकृति पुनि प्रिय दुर्गन्ध।

एक कहथि भल जकरा अनभल आन

मनक आँखि नहि सबहुक एक समान।

सर्वसुगम नहि हंसक घर अछि आइ

मुह दुसैत मुहदुस्सिक ध्वज उड़िआइ।

वन्य प्रसूनक की अछि विफल सुगन्ध?

व्यापक विभु यदुपूजा यदि मन बन्ध।

जानि न जानि कते कविवर्यक अर्थ

कृतिगत हैत, ऋणी हम तनिक तदर्थ।

कयलहुँ सक भरि सेवा अम्ब! अहाँक

अहिक दया पर आगुक कर्म विपाक।

-अज्ञात

 

 

एतबा धरि तॊँ करिहेँ सूगा

एतबा धरि तॊँ करिहेँ सूगा

जतय जाँइ¸ जे करँइ¸ अपन छौ

सबल पाँखि उन्मुक्त गगन छौ

सुमधुर भाषा¸ प्रकॄति अहिंसक

अपन प्रदेश¸ अपन सभ जन छौ

 

मुदा कतहु रहि अर्जित जातिक

मान सुरक्षित रखिहेँ सूगा¸

एतबा धरि तॊं करिहेँ सूगा

 

उत्तम पद अधिकाधिक अर्थक

जाल पसारल छै कानन में

पिजड़ा बन्न प्रफुल्लित रहमे

राजा की रानिक आङन में

 

जन्म धरित्रिक मॊह मुदा तोँ

मन में सभ दिन रखिहेँ सूगा¸

एतबा धरि तॊँ करिहेँ सूगा ।

 

पराधिन छौ कॊन अपन सक

बजिहेँ सिखि-सि‌खि नव-नव भाषा

की क्षति¸ अपन कलाकय प्रस्तुत

पबिहेँ प्रमुदित दूध बतासा

 

मातॄ सुखक वरदान मुदा नहिं

पहिलुक बॊल बिसरिहेँ सूगा¸

एतबा धरि तॊँ करिहेँ सूगा ।

 

जननिक नेह स्वभूमिक ममता

रहतौ मॊन अपन यदि वाणी

देशक हैत उजागर आनन

रहत चिरन्तन तॊर पिहानी

 

मुदा पेट पर भऽर दै अनके

नहिं सभ बढ़ियाँ बुझिहेँ सूगा

एतबा धरि तॊँ करिहेँ सूगा ।

 

 

रे सॊना ! रे चानी !

सकल अनर्थक मूल एक तॊँ

एक अनीतिक खानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

जते महत्ता तॊर बढ़ै अछि

तते विश्व में सॊर बढ़ै अछि

डाकू चॊर मनुज बनि चाहय

पाइ कॊना हम तानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

तॊर पाछु पड़ि मनुज मत्त अछि

विधि-विधान सब किछु असत्त अछि

कॊनॊ पाप कर्म करबा में

नहिं किछु आनाकानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

लक्ष्य जीवनक एक पाइ अछि

मनुज गेल बनि तें कसाई अछि

दया धर्म सुविचार भेल अछि

गलि गलि संप्रति पानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

सॄष्टिक मूल धरातल नारी

यॊग जनिक मुद मंगलकारी

हत्या तनिक करै अछि

निर्मम पाइक लेल जुआनी

रे सॊना ! रे चानी !

 

देश दिशा दिस कॊनॊ ध्यान नहि

जन-आक्रॊशक लेल कान नहिं

काज तरहितर बनब कॊना हम

लगले राजा-रानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

अर्थक लेल अनर्थ करैये

पदक प्रतिष्ठा व्यर्थ करैये

सत्यक मुंह कय बंद पाइ सँ

करय अपन मनमानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

यश प्रतिपादक कॊनॊ काज नहिँ

अनुचित अर्जन, कॊनॊ लाज नहिँ

अर्थक महिमा तकर मंच पर

कीर्तिकथा सुनि कानी

रे सॊना ! रे चानी !

 

गगन अजिर घन आयल कारी


नभ पाटि कें प्रकृति कुमारी

पॊति-कचरि लेलनि कय कारी

वक समुदायक पथर खड़ी संऽ

लिखलनि वर्ण विल‌क्षण धारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

कतहु युद्ध दिनकर संऽ बजरल

पूब क्षितिज संऽ पश्चिम अविरल

अछि जाइत दौड़ल घन सैनिक

चढ़ि-चढ़ि नभ पथ पवन सवारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

लागल बरिसय मेघ झमाझम

बिजुरि भागय नाचि छमाछम

भेल गगन संऽ मिलन धरित्रिक

शॊक-शमन सभ विविध सुखकारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

कसगर वर्षा बड़ जल जूटल

बाधक आरि-धूर सभ टूटल

पॊखरि-झाखरि भरल लबालव

भरल कूप जल केर बखारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

दादुर वर्षा-गीत गवैये

झिंगुर-गण वीणा बजबैये

अंधकार मे खद्यॊतक दल

उड़ल फिरय जनु वारि दिवारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

मित्र मेघ संऽ मधुर समागम

भेल तते मन हर्षक आगम

चित्रित पंख पसारि नवैये

केकि केकारव उच्चारि

गगन अजिर घन आयल कारी

 

उपवन-कानन-तृण हरियायल

हरित खेत नव अंकुर आयल

हरित रंगसंऽ वसुधातल कें

रंङलक घन रंङरेज लगारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

थाल पानि संऽ पथ अछि पीड़ित

माल-मनुष्यक गॊबर मिश्रित

खद-खद पिलुआ गंध विगर्हित

गाम एखन नरकक अनुकारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

एखनहि रौद रहैय बड़ बढ़ियां

पसरल लगले घन ढन्ढनियां

एखनहिं झंझा उपसम लगले

पावस बड़ बहरुपिया भारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

काज न कॊनॊ बुलल फिरैये

मेघ अनेरे उड़ल फिरैये

मनुज-समाज जकां अछि पसरल

मेघहुं मे जनु बेकारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

एखनुक नेता जकां कतहु घन

झूठे किछु दै अछि आश्वासन

काजक जल नहि देत किसानक

निष्फल सभता काज-गुजारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

दूर क्षितिज घनश्याम सुझायल

इंद्र धनुष वनमाल बुझायल

विद्युत वल्लि नुकाइत राधा-

संग जेना छथि कृष्ण मुरारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

धूमिल नभ तल धूमिल आशा

सभतरि भाफक व्यापक वासा

उत्कट गुमकी गर्म भयंकर

व्याकुल-प्राण निखल नर-नारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

लागल टिपिर-टिपिर जल बरसय

कखनहुं झीसी कृश कण अतिशय

बदरी लधने मेघ कदाचित

रिमझिम-रिमझिम स्वर संचारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

कखनहुं सम्हरि जेना घन जूटल

बूझि पड़य नियरौने भूतल

बरिसय लागल अविरल धारा

गेला जेना बनि घन संहारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

निरवधि नीरद जल बरिसौलक

कृषक बंधु कें विकल बनौलक

खेत पथारक कॊन कथा बढ़ि

बाढ़ि डुबौलक घर घड़ारी

गगन अजिर घन आयल कारी

 

समीक्षा श्रृंखला - 4 : केदारनाथ चौधरीक उपन्यास “चमेली रानी” आ "माहुर" पर गजेन्द्र ठाकुर

केदारनाथ चौधरीक उपन्यास
“चमेली रानी” आ "माहुर"
केदारनाथ चौधरी जीक पहिल उपन्यास चमेली रानी २००४ ई. मे आएल । एहि उपन्यासक अन्त एहि तरहेँ आकर्षक रूपेँ भेल जे एकर दोसर भागक प्रबल माँग भेल आ लेखककेँ एकर दोसर भाग माहुर लिखए पड़लन्हि। धीरेन्द्रनाथ मिश्र चमेली रानीक समीक्षा करैत विद्यापति टाइम्समे लिखने रहथि- “...जेना हास्य-सम्राट हरिमोहन बाबूकेँ “कन्यादान”क पश्चात् “द्विरागमन” लिखए पड़लनि तहिना “चमेलीरानी”क दोसर भाग उपन्यासकारकेँ लिखए पड़तन्हि”। ई दुनू खण्ड कैक तरहेँ मैथिली उपन्यास लेखनमे मोन राखल जाएत। एक तँ जेना रामलोचन ठाकुर जी कहैत छथि- “..पारस-प्रतिभाक एहि लेखकक पदार्पण एते विलम्बित किएक?” ई प्रश्न सत्ये अनुत्तरित अछि। लेखक अपन ऊर्जाक संग अमेरिका, ईरान आ आन ठाम पढ़ाइ-लिखाइमे लागल रहथि रोजगारमे रहथि मुदा ममता गाबए गीतक निर्माता घुमि कऽ दरभंगा अएलाह तँ अपन समस्त जीवनानुभव एहि दुनू उपन्यासमे उतारि देलन्हि। राजमोहन झासँ एकटा साक्षात्कारमे हम एहि सम्बन्धमे पुछने रहियन्हि तँ ओ कहने रहथि जे बिना जीवनानुभवक रचना संभव नहि, जिनकर जीवनानुभव जतेक विस्तृत रहतन्हि से ओतेक बेशी विभिन्नता आ नूतनता आनि सकताह। केदारनाथ चौधरीक “चमेली रानी” आ “माहुर” ई सिद्ध करैत अछि। चमेली रानी बिक्रीक एकटा नव कीर्तिमान बनेलक। मात्र जनकपुरमे एकर ५०० प्रति बिका गेल। लेखक “चमेली रानी”क समर्पण - “ओहि समग्र मैथिली प्रेमीकेँ जे अपन सम्पूर्ण जिनगीमे अपन कैंचा खर्च कऽ मैथिली-भाषाक कोनो पोथी-पत्रिका किनने होथि”- केँ करैत छथि, मुदा जखन अपार बिक्रीक बाद एहि पोथीक दोसर संस्करण २००७ मे एकर दोसर खण्ड “माहुर”क २००८ मे आबए सँ पूर्वहि निकालए पड़लन्हि, तखन दोसर भागमे समर्पण स्तंभ छोड़नाइये लेखककेँ श्रेयस्कर बुझेलन्हि। एकर एकटा विशिष्टता हमरा बुझबामे आएल २००८ केर अन्तिम कालमे, जखन हरियाणाक उपमुख्यमंत्री एक मास धरि निपत्ता रहलाह, मुदा राजनयिक विवशताक अन्तर्गत जाधरि ओ घुरि कऽ नहि अएलाह तावत हुनकापर कोनो कार्यवाही नहि कएल जा सकल। अपन गुलाब मिश्रजी तँ सेहो अही राजनीतिक विवशताक कारण निपत्ता रहलोपर गद्दीपर बैसले रहलाह्, क्यो हुनका हँटा नहि सकल। चाहे राज्यक संचालनमे कतेक झंझटि किएक नहि आएल होअए।
उपन्यास-लेखकक जीवनानुभव, एकर सम्भावना चारि साल पहिनहिए लिखि कऽ राखि देलक। भविष्यवक्ता भेनाइ कोनो टोना-टापरसँ संभव नहि होइत अछि वरन् जीवनानुभव एकरा सम्भव बनबैत अछि।
एहि दुनू उपन्यासक पात्र चमत्कारी छथि, आ सफल सेहो । कारण उपन्यासकार एकरा एहि ढंगसँ सृजित करैत छथि जेना सभ वस्तुक हुनका व्यक्तिगत अनुभव होइन्हि।
“चमेली रानी” उपन्यासक प्रारम्भ करैत लेखक एकर पहिल परीक्षामे उत्तीर्ण होइत छथि जखन एकर लयात्मक प्रारम्भ पाठकमे रुचि उत्पन्न करैत अछि। -कीर्तिमुखक पाँच टा बेटाक नामकरणक लेल ओकर जिगरी दोस कन्टीरक विचार जे – “पाँचो पाण्डव बला नाम बेटा सबहक राखि दहक। सुभिता हेतौ”। फेर एक ठाम लेखक कहैत छथि जे जतेक गतिसँ बच्चा होइत रहैक से कौरवक नाम राखए पड़ितैक। नायिका चमेली रानीक आगमन धरि कीर्तिमुखक बेटा सभक वर्णन फेर एहि क्रममे अंग्रेज डेम्सफोर्ड आ रूपकुम्मरिक सन्तान सुनयनाक विवरण अबैत अछि। फेर रूपकुम्मरिक बेटी सुनयनाक बेटी शनिचरी आ नेताजी रामठेंगा सिंह “चिनगारी”क विवाह आ नेताजी द्वारा शनिचरीकेँ कनही मोदियानि लग लोक-लाजक द्वारे राखि पटना जाएब, नेताजीक मृत्यु आ शनिचरी आ कीर्तिमुखक विवाहक वर्णन फेरसँ खिस्साकेँ समेटि लैत अछि।
तकर बाद चमेली रानीक वर्णन अबैत अछि जे बरौनी रिफाइनरीक स्कूलमे बोर्डिंगमे पढ़ैत छथि आ एहि कनही मोदियानिक बेटी छथि। कनही मोदियानिक मृत्युक समय चमेली रानी दसमाक परीक्षा पास कऽ लेने छथि। भूखन सिंह चमेली रानीक धर्म पिता छथि। डकैतीक विवरणक संग उपन्यासक पहिल भाग खतम भऽ जाइत अछि।
दोसर भागमे विधायकजीक पाइ आकि खजाना लुटबाक विवरण, जे कि पूर्व नियोजित छल, एहि तरहेँ देखाओल गेल अछि जेना ई विधायक नांगटनाथ द्वारा एकटा आधुनिक बालापर कएल बलात्कारक परिणामक फल रहए। आब ई नांगटनाथ रहथि मुख्यमंत्री गुलाब मिसिरक खबास जे राजनीतिक दाँवपेंचमे विधायक बनि गेलाह।
ई चरित्र २००८ ई.क अरविन्द अडिगक बुकर पुरस्कारसँ सम्मानित अंग्रेजी उपन्यास “द ह्वाइट टाइगर”क बलराम हलवाइक चरित्र जे चाहक दोकानपर काज करैत दिल्लीमे एकटा धनिकक ड्राइवर बनि फेर ओकरा मारि स्वयं धनिक बनि जाइत अछि, सँ बेश मिलैत अछि आ चारि बरख पूर्व लेखक एहि चरित्रक निर्माण कऽ चुकल छथि। फेर के.जी.बी. एजेन्ट भाटाजीक आगमन होइत अछि जे उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर” धरि अपन उपस्थिति बेश प्रभावी रूपेँ रखबामे सफल होइत छथि।
उपन्यासक तेसर भागमे अहमदुल्ला खाँक अभियान सेहो बेश रमनगर अछि आ वर्तमान राजनीतिक सभ कुरूपताकेँ समेटने अछि। उपन्यासक चारिम भाग गुलाब मिसिरक खेरहा कहैत अछि आ फेरसँ अरविन्द अडिगक बलराम हलवाइ मोन पड़ैत छथि। भुखन सिंहक संगी पन्नाकेँ गुलाब मिसिर बजबैत अछि आ ओकरा भुखन सिंहक नांगटनाथ आ अहमदुल्ला अभियानक विषयमे कहैत अछि। संगहि ओकरा मारबाक लेल कहैत अछि से ओ मना कऽ दैत छै। मुदा गुलाब मिसिर भुखन सिंहकेँ छलसँ मरबा दैत अछि।
पाँचम भागमे भुखन सिंहक ट्रस्टक चरचा अछि, चमेली रानी अपन अड्डा छोड़ि बैद्यनाथ धाम चलि जाइत छथि। आब चमेली रानीक राजनीतिक महत्वाकांक्षा सोझाँ अबैत अछि। स्टिंग ऑपरेशन होइत अछि आ गुलाब मिसिर घेरा जाइत छथि।
उपन्यासक छठम भाग मुख्यमंत्रीक निपत्ता रहलाक उपरान्तो मात्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाओल जएबाक चरचा होएबाक अछि, जे कोलिशन पोलिटिक्सक विवशतापर टिप्पणी अछि।
उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर”क पहिल भाग सेहो घुरियाइत-घुरियाइत चमेली रानीक पार्टीक संगठनक चारू कात आबि जाइत अछि। स्त्रीपर अत्याचार, बाल-विधवा आ वैश्यावृत्तिमे ठेलबाक तेहन संगठन सभकेँ लेखक अपन टिप्पणी लेल चुनैत छथि।
माहुरक दोसर भागमे गुलाब मिसिरक राजधानी पदार्पणक चरचा अछि। चमेली रानी द्वारा अपन अभियानक समर्थनमे नक्सली नेताक अड्डापर जएबाक आ एहि बहन्ने समस्त नक्सली आन्दोलनपर लेखकीय दृष्टिकोण, संगहि बोनक आ आदिवासी लोकनिक सचित्र-जीवन्त विवरण लेखकीय कौशलक प्रतीक अछि। चमेली रानी लग फेर रहस्योद्घाटन भेल जे हुनकर माए कनही मोदियाइन बड्ड पैघ घरक छथि आ हुनकर संग पटेल द्वारा अत्याचार कएल गेल, चमेली रानीक पिताक हत्या कऽ देल गेल आ बेचारी माए अपन जिनगी कनही मोदियाइन बनि निर्वाह कएलन्हि। ई सभ गप उपन्यासमे रोचकता आनि दैत अछि।
माहुरक तेसर भाग फेरसँ पचकौड़ी मियाँ, गुलाब मिसिर, आइ.एस.आइ. आ के.जी.बी.क षडयन्त्रक बीच रहस्य आ रोमांच उत्पन्न करैत अछि।
माहुरक चारिम भाग चमेली रानी द्वारा अपन माए-बापक संग कएल गेल अत्याचारक बदला लेबाक वर्णन दैत अछि, कैक हजार करोड़क सम्पत्ति अएलासँ चमेली रानी सम्पन्न भऽ गेलीह।
माहुरक पाँचम भाग राजनैतिक दाँव-पेंच आ चमेली रानीक दलक विजयसँ खतम होइत अछि।
विवेचन: उपन्यासक बुर्जुआ प्रारम्भक अछैत एहिमे एतेक जटिलता होइत अछि जे एहिमे प्रतिभाक नीक जकाँ परीक्षण होइत अछि। उपन्यास विधाक बुर्जुआ आरम्भक कारण सर्वांतीजक “डॉन क्विक्जोट”, जे सत्रहम शताब्दीक प्रारम्भमे आबि गेल रहए, केर अछैत उपन्यास विधा उन्नैसम शताब्दीक आगमनसँ मात्र किछु समय पूर्व गम्भीर स्वरूप प्राप्त कऽ सकल। उपन्यासमे वाद-विवाद-सम्वादसँ उत्पन्न होइत अछि निबन्ध, युवक-युवतीक चरित्र अनैत अछि प्रेमाख्यान, लोक आ भूगोल दैत अछि वर्णन इतिहासक, आ तखन नीक- खराप चरित्रक कथा सोझाँ अबैत अछि। कखनो पाठककेँ ई हँसबैत अछि, कखनो ओकरा उपदेश दैत अछि। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि। फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि। नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि। एहि सभक संग जीवनानुभव सेहो एक पक्षक होइत अछि आ तखन एतए दबाएल इच्छाक तृप्तिक लेल लेखक एकटा संसारक रचना कएलन्हि जाहिमे पाठक यथार्थ आ काल्पनिकताक बीचक आड़ि-धूरपर चलैत अछि।

मिथिला चलीसा- मदन कुमार ठाकुर आ जगदम्बा ठाकुर

मिथिला चलीसा

दाेहा


अति आबस्यक जानी के सुनियाे मिथिला कऽ वास
व्ेादपुराण सब बिधी मिलल लिेखल भाेला लालदास ऽ
पंडित मुर्ख अज्ञानी से मिथिला कऽ इर् राज
पाहॅंुन बन आऐला प्रभु जिनकर चर्चा आज ऽ ऽ
चाेैपाइर्
जय जय मैथिल सब गुन से सागरा ऽ
कर्म बिधान सब गुन छैन आगर ।।
जनक नन्दनी गाम कहाबैन ।
दुर दुर से कइर् जन आबैन ।।
देखैयन सिताराम कऽ स्वम्बर ।
भेला प्रसन्य लगलैन अति सब सुन्दर ।।
प्‍ुालकित झा पंचाग से सिखलाे ।
बिघ्न – बाधा के कहुॅना निपटेलाे ।।
मंत्र उचार केलाे सब दिन थाेरे ।
ग्रह – गाेचर से भेलाे हॅु छुटकाेरे ।।
विद्यापति जी कऽ मान बढ़़ेलैन ।
बनी उगना महादेव जी आयेलैन ।।
जय जय भैरवी गीत सुनाबी ।
सब संकट अपन दुर पराबी ।।
लक्ष्मीश्वर सिंह राज बन ऐला ।
पुन्हः मिथिला कऽ स्वर्ग बनेला ।।
भुखे गरीब रहल सब चंगा ।
सब के लेल ऐला राज दरिभंगा ।।
बन याेगी शंकरा चार्य कहाेलैथ ।
अन्ेाकाे शिव मंठ निर्माण कराेलैथ ।।
धर्म चरा चर रहल सत धीरा ।
जय जय करैत आयल संत फकिरा ।।
जन्म लेलैन लक्ष्मीनाथ सहरसा ।
जिनकर दया से भेल अति सुख वार्षा ।।
साध ु संत के भेष अपनाेलैन ।
फेर गाेस्वामी लक्ष्मीनथ कहाेलैन ।।

मण्डन मिझ्ज् कऽ शास्त्रार्थ कहानी ।
जिनकर घर ताेता बाजल अमर्त वाणी ।।
पत्नीक धर्म निभे लैन विद्वुसी ।
जिनकर महिमा गेलैन तुलसी ।।
आयाची मिझ्ज् कऽ गरीबी कहानी ।
इर्नकर महिमा सब कलैन बखानी ।।
साग खा पेटक केलैन पालन।
हिनकर घर जन्मल सरस्वती के लालन ।।
काली मुर्ख निज बात जब जानी ।
भेला प्रश्न्य उच्चैट भवानी ।।
ज्ञान प्राप्तय काली दास कहाेलैथ ।
फेर मिाथिला कऽ शिक्षा दानी बनेलैथ ।।
गन्नू झा कऽ कृत्या जखन जानी ।
हसैत रहैत छैथ सब नर प्राणी ।।
केहन छलैथ इर् नर पुरूषा ।
केना देलखिन दुर्गा जी के धाेखा ।।
खट्टर काका कऽ इर्हा सम्बानी ।
खाउ चुरा – दही हाेेउ आन्तर्यामी ।।
मिथिला कऽ भाेजन जे नै करता ।
तिनाे लाेक में जगह नै पाेता ।।
साेराठ सभा कऽ महिमा न्यारी ।
गेलैन सब राज आैर नर र् नारी ।।
जानैत छैथ सब कऽ गाेत्र र्मुल बिधान ।
फेर करैत छैथ सब कन्याॅ दान ।।
अमेरिका लंदन सब घर में सिप्टिंाग ।
देखलाे सब जगह मिथिला कऽ पेंटिग।।
हे मैंथिल मिथिल कऽ कृप्पा् निघान ।
रखयाे सब कियाे संस्कृती कऽ मान ।।
छैट परमेश्री कऽ धय्यान धराबैथ ।
चाैठी चन्द्र कऽ हाथ उठाबैथ ।।
जीत वाहन कऽ कथा सुनाबैत ।
फेर मिथिला पाबैन नाम सुनबैथ ।।
स्वर संगीत कऽ ताज उदितनारायण ।
मिथिला कऽ इर् विदित परायण ।।
हाेयत जगत में इर्नकर चर्चा ।
मनाेरंजन कऽ इर् सुख सरिता ।।
शिक्षा कऽ जखन बात चलैया ।
मिथिला युनिभरसिटी जग में नाम कहाया ।।
कम्पुटरिंग छैथ या कियाे टाइर्पिंग रिपाेटर ।
बाज्ैात लिखते छैथ मिथिला कऽ शुद्व अक्षर ।।
जे सब दिन पाठ करत तन र् मन स्ॅा ।
भगवती रक्षा करतैन हुॅन्का तन धन स्ॅा ।।
हे मिथिला के पुर्वज स्वर्ग निवासी ।
लाज बचायब सब अही के आसी ।।

दाेहा


कमला काेसी पैर परैया गंगा करैया जयकार
शत्रू से रखवाला करैया सदा हिमालय पहार


“प्रेम से बाजु मिथिला समाज की जय”


मदन कुमार ठाकुर आ जगदम्बा ठाकुर
पट्टिटाेल , भैरव स्थान
झंझारपुर ़मधुबनी ़बिहार
माे – 9312460150