भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, May 17, 2008

ईश्वर के दोसर रूप " माँ "

माँ,
अई भावना कए शब्द मs बाँधबहुत कठिन अछि ईश्वर के बनेल एहेंन कृति छथिन जिनका ख़ुद ईश्वर अपन सब सs करीब महसूस करैत छैथ ! माँ ईश्वर के दोसर रूप केना छैथ ........

जखन (ईश्वर) भगवान माँ बनेल्खिंन

ईश्वर माँ के सृजन मs बहुत व्यस्त रहथिन ओही बिच एक देवदूत अवतरित भेल्खिंन आर ईश्वर सs कहाल्खिंन : अपने इ चीज के निर्माण पर बहुत समय नष्ट के रह्लो'य ! अई पर ईश्वर कहाल्खिंन 'देखई मs इ खाली हाड़ - मांस के कृति छथिन लेकिन हिनका पास एहेंन गोद हेतैन जे दुनिया भर के सकूंन सs भरल हेतैन , हिनका पास एहेंन आँचल हेतैन जकरा छाव मए किन्करो डर नै हेतैन , हिनका पास एहेंन ममता हेतैन जै सs सब छोट - मोट पीड़ा ख़त्म भो जेतैन ........

देवदूत कहाल्खिंन -: हे ईश्वर, अपने आराम करू एहेंन कृति के हमही निर्माण के दैछी ! ईश्वर कहाल्खिंन नै हम आराम नै के सकैत छलो आर इ आहा के बस के बात नै अछि ! हिनकर निर्माण हम ख़ुद कर्बैंन ! ओई जीवेत जागेत कृति के निर्माण जखन ईश्वर के लेल्खिंन तखन देवदूत हुनका परैख कए अपन प्रतिक्रिया देल्खिं -: इ बहुत काफी मुलायम छैथ ! ईश्वर कहाल्खिंन "इ काफी सख्त सेहो छथिन ! अपने कल्पना नै के सकैत छलोs एहो सहो सहो सहो कते किछ बर्दाश्त के सकैत छथिन !

इ सहनशक्ति के प्रतिकृति छैथ'की वक्त आबे पर चंडी, कलिका, दुर्गा, सेहों बैन कs अवतरित हेथिन ! धरती पर हिनकर अनेक रूप देखई लय मिलत ! देवदूत अभिभूत भेल्खिंन ! अंत मए गाल पर हाथ फेर कए कहाल्खिंन अई ठाम त पैन टपैक रहलेंन य ! हम अपने सs कहने रही न की अपने हिनका मए काफी ज्यादा चीज जोइर रहलो'य ! अई पर इश्वर कहाल्खिंन इ पैन नै नोर छियेंन ......

एकर कुन काज ?

इ ख़ुशी, ममता, कष्ट, उदासी, सुख - दुःख सब के लेल माँ के भावनात्मक प्रतिक्रिया छियेंन !देवदूत कह्लाखिंन -: अपने महान छी ! अपने के बनेल इ कृति सर्वश्रेष्ठ अछि ! हम अपने के इ कृति माँ कए सत् - सत् प्रणाम करै छियेंन !

परिभाषा स परे छैथ माँ .....

माँ एक सुखद अनुभूति अछि ! ओ एक शीतल आवरण छैथ सच'म शब्द सs परे छैन माँ के परिभाषा !

माँ शब्द के अर्थ कए उपमा अथवा शब्द के सीमा मs बाँधब सम्भव नै अछि ! इ शब्द के गहराई, विशालता, कए परिभाषित करब सरल नै अछि कियेकी इ शब्द मs सम्पूर्ण ब्रह्मांड, सृष्टि के उत्पति के रहस्य समेल अछि ! माँ व्यक्ति के जीवन मs हुनकर प्रथम गुरु होई छथिन हुनका विभिन्न रूप - स्वरुप मs पूजल जै छैन कुनू मनुष्य अपन जीवन मs मातृ ऋण सए मुक्ति नै पैब सके छैथ ! अपन मिथिला संस्कृति मs जननी आर जन्मभूमि दुनु कए माँ के स्थान देल गेल अछि !

मनुष्य अपन भौतिक आवश्यकता के पूर्ति जन्मभूमि यानि धरती माँ सs ताए जीवनदायी आवश्यकता के पूर्ति जननी सs करैत छैथ माँ अनंत शक्ति के धारनी होई छथिन ! ताहि हेतु हुनका ईश्वरी शक्ति के प्रतिरूप मैंन'क ईश्वर के सद्र्श्य मानल गेल छैन ! माँ के करीब रैह'क हुनकर सेवा के'क हुनकर शुभवचन सs जे आनंद प्राप्त होइत अछि ओ अवर्णनीय अछि ! अपन देल गेल स्नेह के सागर के बदला माँ अपन बच्चा सs किछ नै चाहेत छथिन ! ओ हर हाल मs बच्चा के हित सोचे छथिन, तही हेतु हम अपन समस्त मिथिला वासी सs हाथ जोरी विनती करे चाहब की हुनका (माँ) अपन तरफ सs कुनू तरह के दुःख नै हुवे दीयोंन इ हमर सब के कर्तव्य होबाक चाही..

3 comments:

  1. एक बेर फेर बहुत नीक प्रस्तुति।

    ঠাকুব

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  2. baDDa nik blog achhi ee

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  3. ee blog samanya aa gambhir dunu tarahak pathakak lel achhi, maithilik bahut paigh seva ahan lokani kay rahal chhi, takar jatek charchaa hoy se kam achhi.

    dr palan jha

    ReplyDelete

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