भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Friday, July 04, 2008

विदेह 01 मई 2008 वर्ष 1 मास 5 अंक 9http://www.videha.co.in/

http://www.videha.co.in/
विदेह 01 मई 2008 वर्ष 1 मास 5 अंक 9


महत्त्वपूर्ण सूचना:(1) विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे नवम अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ' रहल अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(2) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर मैथिली-अंग्रेजी आऽ अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश (संपादक गजेन्द्र ठाकुर आऽ नागेन्द्र कुमार झा) प्रकाशित करबाओल जा' रहल अछि। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(3) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे प्रकाशित होएत। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।

'विदेह' 01 मई 2008 (वर्ष 1 मास 5 अंक 9) एहि अंकमे अछि:-
1.नो एंट्री: मा प्रविश श्री उदय नारायण सिंह 'नचिकेता'
मैथिली साहित्यक सुप्रसिद्ध प्रयोगधर्मी नाटककार श्री नचिकेताजीक टटका नाटक, जे विगत 25 वर्षक मौनभंगक पश्चात् पाठकक सम्मुख प्रस्तुत भ' रहल अछि। सर्वप्रथम विदेहमे एकरा धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित कएल जा रहल अछि। पढ़ू नाटकक प्रथम कल्लोलक दोसर खेप।
2. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आगाँ)
3. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आगाँ)
4. महाकाव्य महाभारत (आगाँ) 5. कथा(पसीधक काँट)
6. पद्य अ. विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी,
आ. श्री गंगेश गुंजन, इ.ज्योति झा चौधरी
आ' ई. गजेन्द्र ठाकुर
7. संस्कृत शिक्षा(आगाँ)
8. मिथिला कला(आगाँ)
9.पाबनि ( जानकी नवमी पर विशेष)- नूतन झा
10. संगीत शिक्षा 11. बालानां कृते- दानवीर दधीची(नाटक)
12. पञ्जी प्रबंध (आगाँ) पञ्जी-संग्राहक श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी )
13. संस्कृत मिथिला 14.मैथिली भाषापाक 15. रचना लेखन (आगाँ)
16. पोथी समीक्षा पोसपुत (कथा-संग्रह)-संतोष कुमार मिश्र- मिथिलाक्षरमे प्रकाशित प्रथम 21म सदीक मैथिली पोथी।
17. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS
a VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT..
b.VIDEHA FOR NRMs POEM

विदेह (दिनांक 01 मई, 2008)
संपादकीय
वर्ष: 1 मास: 5 अंक:9
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक 9 दिनांक 01 मई 2008) ई पब्लिश भ’ रहल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in |
अहाँकेँ सूचित करैत हर्ष भ’ रहल अछि, जे ‘विदेह’ प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका केर 9 टा अंक http://www.videha.co.in/ पर ई-प्रकाशित भ’ चुकल अछि। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ’ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ’ सातो दिन उपलब्ध होए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होए आ’ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ’ भौगोलिक दूरीक अंत भ’ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ’ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ’ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। पुरान अंक pdf स्वरूपमे डाउनलोड कएल जा सकैत अछि आ’ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ’ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। एकर अतिरिक्त संपर्क खोज स्तंभमे विदेह आ' आन-आन मिथिला आ' मैथिलीसँ संबंधित साइटमे सर्च हेतु सर्च इंजिन विकसित कए राखल गेल अछि। ओहि पृष्ठ पर मिथिला आ' मैथिलीसँ संबंधित समाचारक लिंक विकसित कए सेहो राखल गेल अछि। संपर्क-खोज पृष्ठ पर मिथिला आ' मैथिलीसँ संबंधित साइटक संकलनकेँ आर दृढ़ कएल गेल अछि। विदेहक सभ पृष्ठकेँ 10 लिपिमे देखल जा' सकैत अछि आ' ताहि हेति सभ पृष्ठ पर लिंक देल गेल अछि। भाषा मैथिलिये रहत मुदा आन भाषा-भाषी मैथिलीक आनंद अपन लिपिमे पढि कए लए सकैत छथि।
नचिकेताजी अपन 25 सालक चुप्पी तोड़ि नो एंट्री: मा प्रविश नाटक मैथिलीक पाठकक समक्ष विदेह ई-पत्रिकाक माध्यमसँ पहुँचा रहल छथि। धारावाहिक रूँपे ई नाटक विदेहमे पछिला अंकसँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
13 मई केँ एहि बेर जानकी नवमी अछि। एहि अवसर पर एहिसँ संबंधित निबंध देल जा' रहल अछि।एहि निबंधक लेखिका छथि श्रीमति नूतन झा। ज्योति झा चौधरीक पद्य मैथिली आ' अंग्रेजीमे सेहो एहि अंकमे देल जा' रहल अछि।एहि विशेष अवसर पर लहेरियासराय, दरभंगामे मैथिली पुत्र प्रदीपक सामाजिक उपन्यास सेहो रिलीज भ' रहल छन्हि।
श्री गंगेश गुंजन जीक कविता पाठकक समक्ष अछि। एहि कविताक शीर्षक नहि आयल छल, से शीर्षक हम दए देलहुँ, जे हमरा बुझायल, (किछु नमगर शीर्षक भ' गेल अछि), कारण गंगेशजीक ई-मेल बाउन्स क' रहल छलन्हि।बालानां कृतेमे दानवीर दधीचीक वैदिक स्वरूप प्रस्तुत कएल गेल अछि, अंतमे सूत्रधारसँ ईहो कहबएलहुँ जे कोना बादमे तथाकथित पंडित लोकनि ओहि कथाक बंटाधार कए देलन्हि।
श्री संतोष कुमार मिश्र जीक मैथिली कथा संग्रह पोसपुत प्रकाशित भेल अछि, जे देवनागरीक संग तिरहुतामे सेहो अछि (एके पोथीमे)। एहि पोथीक समीक्षा सेहो कएल गेल अछि।
मिथिलाक रत्न स्तंभकेँ नाम आ' वर्षसँ जतय तक संभव भ' सकल विभूषित कएल गेल अछि। एकर परिवर्द्धनक हेतु सुझाव आमंत्रित अछि। मिथिला रत्नमे बैकग्राउन्ड संगीत सेहो अछि, आ' ई अछि विश्ववक प्रथम राष्ट्रभक्त्ति गीत (शुक्ल यजुर्वेद अध्याय 22, मंत्र 22) जकरा मिथिलामे दूर्वाक्षत आशीश मंत्र सेहो कहल जाइत अछि, एकर अर्थ बालानां कृते स्तंभमे अभिनव रूपमे देल गेल अछि, आ' ग्रिफिथक देल अर्थसँ एकर भिन्नता देखाओल गेल अछि। मुख्य पृष्ठक बैकग्राउन्ड संगीत विद्यापतिक बड़ सुख सार तँ अछियेपहिनेसँ।
'विदेह' ई पत्रिकाक प्रचार सर्च इंजिन द्वारा, गूगल आ' याहू ग्रुप द्वारा, वर्डप्रेस आ' ब्लॉगस्पॉटमे देलगेल ब्लॉग द्वारा, फेसबुक, आउटलूक, माय स्पेस, ओरकुट आ' चिट्ठाजगतक माध्यमसँ कएल गेल। मुदा जखन डाटा देखलहुँ तँ आधसँ बेशी पाठक सोझे http://www.videha.co.in पता टाइप कए एहि ई-पत्रिकाकेँ पढ़लन्हि।
अपनेक रचना आ’ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे। वरिष्ठ रचनाकार अपन रचना हस्तलिखित रूपमे सेहो नीचाँ लिखल पता पर पठा सकैत छथि।
गजेन्द्र ठाकुर 01 मई 2008
389,पॉकेट-सी, सेक्टर-ए, बसन्तकुंज,नव देहली-110070.
फैक्स:011-41771725
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ggajendra@videha.co.in
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(c)2008. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ’ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ’ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

1. नाटक

श्री उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ जन्म-1951 ई. कलकत्तामे।1966 मे 15 वर्षक उम्रमे पहिल काव्य संग्रह ‘कवयो वदन्ति’ | 1971 ‘अमृतस्य पुत्राः’(कविता संकलन) आ’ ‘नायकक नाम जीवन’(नाटक)| 1974 मे ‘एक छल राजा’/’नाटकक लेल’(नाटक)। 1976-77 ‘प्रत्यावर्त्तन’/ ’रामलीला’(नाटक)। 1978मे जनक आ’ अन्य एकांकी। 1981 ‘अनुत्तरण’(कविता-संकलन)। 1988 ‘प्रियंवदा’ (नाटिका)। 1997-‘रवीन्द्रनाथक बाल-साहित्य’(अनुवाद)। 1998 ‘अनुकृति’- आधुनिक मैथिली कविताक बंगलामे अनुवाद, संगहि बंगलामे दूटा कविता संकलन। 1999 ‘अश्रु ओ परिहास’। 2002 ‘खाम खेयाली’। 2006मे ‘मध्यमपुरुष एकवचन’(कविता संग्रह। भाषा-विज्ञानक क्षेत्रमे दसटा पोथी आ’ दू सयसँ बेशी शोध-पत्र प्रकाशित। 14 टा पी.एह.डी. आ’ 29 टा एम.फिल. शोध-कर्मक दिशा निर्देश। बड़ौदा, सूरत, दिल्ली आ’ हैदराबाद वि.वि.मे अध्यापन। संप्रति निदेशक, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर।
नो एंट्री : मा प्रविश
(चारि-अंकीय मैथिली नाटक)
नाटककार उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ निदेशक, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर
(मैथिली साहित्यक सुप्रसिद्ध प्रयोगधर्मी नाटककार श्री नचिकेताजीक टटका नाटक, जे विगत 25 वर्षक मौन भंगक पश्चात् पाठकक सम्मुख प्रस्तुत भ’ रहल अछि।)
प्रथम कल्लोलक दोसर भाग जारी....विदेहक एहि नवम अंक 01 मई 2008 मे।
नो एंट्री : मा प्रविश

प्रथम कल्लोल (पछिला अंकसँ आँगा)
[चोर-उचक्का-पॉकिट-मार ताली दैत अछि, सुनि कए चौंकैत भिख-मंगनी आ प्रेमी-युगल बिनु किछु बुझनहि ताली बजाब’ लागैत अछि।]
चोर : ई त’ नीक फकरा बनि गेल यौ!
पॉकिट-मार : एम्हर तस्कर-राज त’ ओम्हर कवि-राज!
बाजारी : (खौंझैत’) कियै ? कोन गुण छह तोहर, जकर
बखान करै अयलह एत’?
पॉकिट-मार : (इंगित करैत आ हँसैत) हाथक सफाई... अपन
जेब मे त’ देखू , किछुओ बाकी अछि वा नञि...
बाजारी : [बाजारी तुरंत अपन जेब टटोलैत छथि – त’ हाथ
पॉकिटक भूर देने बाहर आबि जाइत छनि। आश्चर्य
चकित भ’ कए मुँह सँ मात्र विस्मयक आभास होइत छनि।] जा !

[बीमा बाबूकेँ आब रहल नञि गेलनि। ओ ठहक्का पाड़ि
कए हँस’ लगलाह, हुनकर देखा–देखी कैक गोटे बाजारी दिसि हाथ सँ इशारा करैत हँसि रहल छलाह।]

चोर : [हाथ उठा कए सबकेँ थम्हबाक इशारा करैत] हँसि त’
रहल छी खूब !
उचक्का : ई बात त’ स्पष्ट जे मनोरंजनो खूब भेल हैतनि।
पॉकिट-मार : मुदा अपन-अपन पॉकिट मे त’ हाथ ध’ कए देखू !

[भिखमंगनी आ प्रेमी-युगल केँ छोड़ि सब क्यो पॉकिट टेब’ लागैत’ छथि आ बैगक भीतर ताकि-झाँकि कए देख’ लागैत छथि त’ पता चलैत छनि जे सभक पाइ, आ नहि त’ बटुआ गायब भ’ गेल छनि। हुनका सबकेँ ई बात बुझिते देरी चोर, उचक्का, पॉकिट-मार आ भिख-मंगनी हँस’ लागैत छथि। बाकी सब गोटे हतबुद्धि भए टुकुर- टुकुर ताकिते रहि जाइत छथि]

भिखमंगनी : नंगटाक कोन डर चोर की उचक्का ?
जेम्हरहि तकै छी लागै अछि धक्का !
धक्का खा कए नाचब त’ नाचू ने !
खेल खेल हारि कए बाँचब त’ बाँचू ने !

[चोर-उचक्का–पॉकिट-मार, समवेत स्वर मे जेना धुन गाबि रहल होथि]
नंगटाक कोन डर चोर कि उचक्का !
आँखिएक सामने पलटल छक्का !
भिख-मंगनी : खेल–खेल हारि कए सबटा फक्का !
समवेत-स्वर : नंगटाक कोन डर चोर कि उचक्का ?

[कहैत चारू गोटे गोल-गोल घुर’ लागै छथि आ नाचि नाचि कए कहै छथि।]

सब गोटे : आब जायब, तब जायब, कत’ ओ कक्का ?
पॉकिट मे हाथ दी त’ सब किछु लक्खा !
नंगटाक कोन डर चोर कि उचक्का !

बीमा-बाबू : (चीत्कार करैत) हे थम्ह’ ! बंद कर’ ई तमाशा...
चोर : (जेना बीमा-बाबूक चारू दिसि सपना मे भासि रहल
होथि एहन भंगिमा मे) तमाशा नञि... हताशा....!
उचक्का : (ताहिना चलैत) हताशा नञि... निराशा !
पॉकिट-मार : [पॉकिट सँ छह-सातटा बटुआ बाहर क’ कए देखा –
देखा कए] ने हताशा आ ने निराशा, मात्र तमाशा...
ल’ लैह बाबू छह आना, हरेक बटुआ छह आना!
[कहैत एक–एकटा बटुआ बॉल जकाँ तकर मालिकक
दिसि फेंकैत छथि आ हुनका लोकनि मे तकरा
सबटाकेँ बटौर’ लेल हड़बड़ी मचि जाइत छनि। एहि
मौकाक फायदा उठबैत चोर–उचक्का-पॉकिटमार
आ भिख-मंगनी कतारक सब सँ आगाँ जा’ कए ठाढ
भ’ जाइत छथि।]
रद्दी-बला : [जकर कोनो नुकसान नहि भेल छल-ओ मात्र मस्ती क’ रहल छल आ घटनासँ भरपूर आनन्द ल’ रहल छल।] हे बाबू– भैया लोकनि ! एकर आनन्द नञि अछि कोनो जे “भूलल-भटकल कहुना क’ कए घुरि आयल अछि हमर बटुआ”। [कहैत दू डेग बढा’ कए नाचिओ लैत’ छथि।] ई जे बुझै छी जे अहाँक धन अहीं केँ घुरि आयल... से सबटा फूसि थिक !

बीमा-बाबू : (आश्चर्य होइत) आँय ? से की ?
बाजारी : (गरा सँ गरा मिला कए) सबटा फूसि ?
भद्र-व्यक्ति 1 : की कहै छी ?
भद्र-व्यक्ति 2 : माने बटुआ त’ भेटल, मुदा भीतर ढन–ढन !
रद्दी-बला : से हम कत’ कहलहुँ ? बटुओ अहींक आ पाइयो
छैहे! मुदा एखन ने बटुआक कोनो काज रहत’ आ
ने पाइयेक!
बीमा-बाबू : माने ?
रद्दी-बला : माने नञि बुझलियैक ? औ बाबू ! आयल छी सब
गोटे यमालय... ठाढ़ छी बन्द दरबज्जाक सामने...
कतार सँ... एक–दोसरा सँ जूझि रहल छी जे के
पहिल ठाम मे रहत आ के रहत तकर बाद...?
तखन ई पाइ आ बटुआक कोन काज ?
भद्र-व्यक्ति1 : सत्ये त’! भीतर गेलहुँ तखन त’ ई पाइ कोनो काज
मे नहि लागत !
बाजारी : आँय ?
भद्र-व्यक्ति2 : नहि बुझिलियैक ? दोसर देस मे जाइ छी त’ थोड़े
चलैत छैक अपन रुपैया ? (आन लोग सँ
सहमतिक अपेक्षा मे-) छै कि नञि ?
रमणी-मोहन : (जेना दीर्घ मौनता के तोड़ैत पहिल बेरि किछु ढंग
केर बात बाजि रहल छथि एहन भंगिमा मे... एहि
सँ पहिने ओ कखनहु प्रेमी-युगलक लग जाय
प्रेमिका केँ पियासल नजरि द’ रहल छलाह त’
कखनहु भिख-मंगनिये लग आबि आँखि सँ तकर
शरीर केँ जेना पीबि रहल छलाह...) अपन प्रेमिका
जखन अनकर बियाहल पत्नी बनि जाइत छथि
तखन तकरा सँ कोन लाभ ? (कहैत दीर्घ-श्वास
त्याग करैत छथि।)
बीमा-बाबू : (डाँटैत) हे...अहाँ चुप्प रहू! क’ रहल छी बात
रुपैयाक, आ ई कहै छथि रूप दय...!
रमणी-मोहन : हाय! हम त’ कहै छलहुँ रूपा दय! (भिख-मंगनी
रमणी-मोहन लग सटल चलि आबै छैक।)
भिख-मंगनी : हाय! के थिकी रूपा ?
रमणी-मोहन : “कानि-कानि प्रवक्ष्यामि रूपक्यानि रमणी च... !
बाजारी : माने ?
रमणी-मोहन : एकर अर्थ अनेक गंभीर होइत छैक... अहाँ सन
बाजारी नहि बूझत!
भिख-मंगनी : [लास्य करैत] हमरा बुझाउ ने!

[तावत भिख-मंगनीक भंगिमा देखि कने-कने बिहुँसैत’ पॉकिट–मार लग आबि जाइत अछि।]

भिख-मंगनी : [कपट क्रोधेँ] हँसै कियै छें ? हे... (कोरा सँ पुतलाकेँ
पॉकिट-मारकेँ थम्हबैत) हे पकड़ू त’ एकरा... (कहैत
रमणी-मोहन लग जा कए) औ मोहन जी! अहाँ की
ने कहलहुँ, एखनहु धरि भीतर मे एकटा छटपटी
मचल यै’! रमणी-धमनी कोन बात’ कहलहुँ ?
रमणी-मोहन : धूर मूर्ख! हम त’ करै छलहुँ शकुन्तलाक गप्प,
मन्दोदरीक व्यथा... तोँ की बुझबेँ ?
भिख-मंगनी : सबटा व्यथा केर गप बुझै छी हम... भीख मांगि-
मांगि खाइ छी, तकर माने ई थोड़े, जे ने हमर शरीर
अछि आ ने कोनो व्यथा... ?
रमणी-मोहन : धुत् तोरी ! अपन व्यथा–तथा छोड़, आ भीतर की
छैक, ताहि दय सोच ! (कहैत बंद दरबज्जा दिसि
देखबैत छथि-)
पॉकिट-मार : (अवाक् भ’ कए दरबज्जा दिसि देखैत) भीतर ? की
छइ भीतरमे... ?
रमणी-मोहन : (नृत्यक भंगिमा करैत ताल ठोकि- ठोकि कए) भीतर?
“धा–धिन–धिन्ना... भरल तमन्ना !
तेरे-केरे-धिन-ता... आब नञि चिन्ता !”
भिख-मंगनी : (आश्चर्य भए) माने ? की छैक ई ?
रमणी-मोहन : (गर्व सँ) ‘की’ नञि... ‘की’ नञि... ‘के’ बोल !
बोल- भीतर ‘के’ छथि ? के, के छथि?
पॉकिट-मार : के, के छथि?
रमणी-मोहन : एक बेरि अहि द्वारकेँ पार कयलेँ त’ भीतर भेटती
एक सँ एक सुर–नारी,उर्वशी–मेनका–रम्भा... (बाजैत- बाजैत जेना मुँहमे पानि आबि जाइत छनि--)

भिख-मंगनी : ईः! रंभा...मेनका... ! (मुँह दूसैत) मुँह-झरकी
सब... बज्जर खसौ सबटा पर!
रमणी-मोहन : (हँसैत) कोना खसतैक बज्जर ? बज्र त’ छनि देवराज
इन्द्र लग ! आ अप्सरा त’ सबटा छथि हुनकहि
नृत्यांगना।

[भिख-मंगनीक प्रतिक्रिया देखि कैक गोटे हँस’ लगैत छथि]

पॉकिट-मार : हे....एकटा बात हम कहि दैत छी – ई नहि बूझू जे
दरबज्जा खोलितहि आनंदे आनंद !
बाजारी : तखन ?
बीमा-बाबू : अहू ठाम छै अशांति, तोड़-फोड़, बाढ़ि आ सूखार ?
आ कि चारू दिसि छइ हरियर, अकाससँ झहरैत
खुशी केर लहर आ माटिसँ उगलैत सोना ?
पॉकिट-मार : किएक ? जँ अशांति, तोड़-फोड़ होइत त’ नीक... की
बूझै छी, एत्तहु अहाँ जीवन–बीमा चलाब’ चाहै छी की ?
चोर : (एतबा काल उचक्का सँ फुसुर-फुसुर क’ रहल
छल आ ओत्तहि, दरबज्जा लग ठाढ़ छल– एहि
बात पर हँसैत आगाँ आबि जाइत अछि) स्वर्गमे
जीवन-बीमा ? वाह ! ई त’ बड्ड नीक गप्प !
पॉकिट-मार : देवराज इंद्रक बज्र.. बोलू कतेक बोली लगबै छी?
उचक्का : पन्द्रह करोड़!
चोर : सोलह!
पॉकिट-मार : साढे-बाईस!
बीमा-बाबू : पच्चीस करोड़!
रमणी-मोहन : हे हौ! तोँ सब बताह भेलह ? स्वर्गक राजा केर बज्र,
तकर बीमा हेतैक एक सय करोड़ सँ कम मे ? [कतहु सँ एकटा स्टूलक जोगाड़ क’ कए ताहि पर चट दय ठाढ़ भ’ कए-]


पॉकिट-मार : बोलू, बोलू भाई-सब ! सौ करोड़ !
बीमा-बाबू : सौ करोड़ एक !
चोर : सौ करोड़ दू –
रमणी-मोहन : एक सौ दस !
भिख-मंगनी : सवा सौ करोड़ !
चोर : डेढ़सौ करोड़...
भिख-मंगनी : पचपन –
चोर : साठि –
भिख-मंगनी : एकसठि –

[दूनूक आँखि–मुँह पर ‘टेनशन’ क छाप स्पष्ट भ’ जाइत छैक। ]

चोर : (खौंझैत) एक सौ नब्बै...

[एतेक बड़का बोली पर भिख-मंगनी चुप भ’ जाइत अछि।]

पॉकिट-मार : त’ भाई-सब ! आब अंतिम घड़ी आबि गेल अछि –
190 एक, 190 दू, 190...
[ठहक्का पाड़ि कए हँस’ लगलाह बाजारी, दूनू भद्र व्यक्ति आ रद्दी-बला-]
पॉकिट-मार : की भेल ?
चोर : हँस्सीक मतलब ?
बाजारी : (हँसैते कहैत छथि) हौ बाबू ! एहन मजेदार मोल-
नीलामी हम कतहु नञि देखने छी !
भद्र-व्यक्ति 1 : एकटा चोर...
भद्र-व्यक्ति 2 : त’ दोसर भिख-मंगनी...
बाजारी : आ चलबै बला पॉकिट-मार...
[कहैत तीनू गोटे हँस’ लागै छथि]
बीमा-बाबू : त’ एहि मे कोन अचरज?
भद्र-व्यक्ति 1 : आ कोन चीजक बीमाक मोल लागि रहल अछि–
त’ बज्र केर !
भद्र-व्यक्ति 2 : बज्जर खसौ एहन नीलामी पर !
बाजारी : (गीत गाब’ लागै’ छथि)
चोर सिखाबय बीमा–महिमा,
पॉकिट-मारो करै बयान !
मार उचक्का झाड़ि लेलक अछि,
पाट कपाट त’ जय सियाराम !
दुनू भद्र-व्यक्ति : (एक्कहि संगे) जय सियाराम !

[पहिल खेप मे तीनू गोटे नाच’-गाब’ लागै छथि। तकर बाद धीरे-धीरे बीमा बाबू आ रद्दी-बला सेहो संग दैत छथि।]

बाजारी : कौआ बजबै हंसक बाजा
भद्र-व्यक्ति 1 : हंस गबै अछि मोरक गीत
भद्र-व्यक्ति 2 : गीत की गाओत ? छल बदनाम !
बाजारी : नाट-विराटल जय सियाराम !
समवेत : मार उचक्का झाड़ि लेलक अछि।
पाट-कपाटक जय सियाराम !

[तावत् नचैत नंदी-भृंगीक प्रवेश होइत छैक। दुनूक नृत्य छलनि शास्त्रीय तथा मुँहमे बोलो तबलेक-]
नंदी : घर-घर–घरणी
भृंगी : मर-झर जरनी
नंदी : डाहक छाँह मे
भृंगी : स्याह विशेष
नंदी : कपटक छट-फट
भृंगी : बगलक दल-दल
नंदी : हुलकि-दुलकि कए
भृंगी : भेल अवशेष !
दुनू गोटे : [एक्कहि संग गबैत-नचैत तरुआरि सँ चहुँदिसि
लड़ैत, अगणित मुदा अदृश्य योद्धाक गर काटैत- ]
चाम-चकित छी, भान-भ्रमित छी
बेरि-बेरि बदनाम कूपित छी
गड़-गड़ निगड़ ई हर-पर्वत पर
तीन लोक चहुँ धाम कथित छी

कपटक छट-फट त्रिकट विकट कट
नट जट लट-कय अट-पट संशय
नर-जर देहक बात निशेष !
डाहक छाँह मे स्याह विशेष !

[जखन गीत-नाद आ नृत्य समाप्त भ’ जाइत अछि तखन नंदी एकटा टूल पर ठाढ़ भ’ कए सब केँ संबोधित कर’ लागै छथि।]

नंदी : [सभक दृष्टि-आकर्षण करैत]
सुनू सुनू सभटा भाइ-बहीन! नीक जकाँ सुनि लिय’ आ जँ किछु जिज्ञासा हो त’ सेहो पूछि लिय’ [सब गोटे गोल भ’ कए ठाढ़ भ’ जाइत छथि।]
भृंगी : हम सब जे किछु कहब से अहि लेल कहब
जरूरी अछि, जे आब दरबज्जा खोलितहि ओहि पार जैबाक मौका भेटत सबकेँ। मुदा ई जानब जरूरी अछि जे ओहि पार अहाँ लेल की अछि प्रतीक्षा करैत! (बाजैत सभक दिसि देखि लैत छथि।) अहाँ सब जनै छी ,की छैक ओहि पार?
चोर : स्वर्ग!
पॉकिट-मार : नरक!
भिख-मंगनी : अकास!
रद्दी-बला : पाताल!
नंदी : ने क्यो पूरापूरी ठीके बाजल... आ ने क्यो गलते
बात कहल !
भृंगी : ई सबटा छैक ओहि पार– एक्कहि ठाम, एक्कहि
स्थान पर...
नंदी : आब ई त’ अहाँ सभक अपन-अपन कृतकर्मक फल
भेटबाक बात थिक... ककरा भागमे की अछि...
बाजारी : (टोकैत) से के कहत ?
नंदी : महाकाल!
भृंगी : ककरहु भेटत ढेर रास काज त’ ककरहु लेल रहत
कतेको स्पर्धा...! क्यो समय बीताओत नृत्य-गीत,
काव्य-कलाक सङे, आ क्यो एहि सबसँ दूर
रहत गंभीर शोध मे लागल !
नंदी : ककरहु लेल रहत पुष्प–शय्या...त’ ककरहु
एखनहुँ चलबाक अछि काँट पर दय... !
बीमा-बाबू : से कोना?
नंदी : देखू ! ई त’ अपन-अपन भाग्य जे एत’ अहाँ-लोकनिमे
बहुत कम्मे गोटे एहन छी जे संपूर्ण उमरि
जीबाक बाद तखन एत’ हाजिर भेल छी। क्यो बजार सँ घुरैत काल गाड़ी तर कुचलल गेल छी (बाजारी हाथ उठबैत आ कहैत “हम...हम...” ) त’ क्यो चोरि करै काल पकड़ा गेलहुँ आ गाम-घरक लोग पीटि-पीटि कए पठा देलक एत’! (चोर ई प्रसंगक आरंभ होइतहि ससरि कए पड़यबाक चेष्टा क’ रहल छल त’ ओकरा दू-तीन गोटे पकड़ि कए “हे ई थिक ...इयैह... !” आदि बजलाह) क्यो अतिरिक्त व्यस्तता आ काजक टेनशन मे अस्वस्थ भेल छलहुँ (दुनू भद्र व्यक्ति मात्र हाथ उठबैत छथि जेना स्कूली छात्र सब कक्षामे हाजिरी लगबैत अछि), त’ क्यो रेलक पटरी पर अपन अंतिम क्षण मे आबि पहुँचल छलहुँ (रद्दी बला आ भिख-मंगनी बाजल “जेना कि हम!” अथवा “हमरो त’ सैह भेल छल”। कतेको कारण भ’ सकैत छल।

[बाजैत बाजैत चारिटा मृत सैनिक मुइलो पर विचित्र जकाँ मार्च करैत करैत मंच पर आबि जाइत छथि।]

बीमा-बाबू : (चारू गोटे केँ देखबैत) आ ई सब ?
नंदी : समय सँ पहिनहि, कोनो ने कोनो सीमामे....
घुसपैठीक हाथेँ नहि त’ लड़ाई केर मैदानमे... !
मृत सैनिक : (समवेत स्वरेँ) लड़ाईक मैदानमे... !
बीमा-बाबू : बुझलहुँ ! मुदा...
नंदी : मुदा ई नहि बुझलहुँ जे बीमाक काजकेँ छोड़ि कए
अहाँ एत’ किएक आयल छी?
बीमा-बाबू : हम सब त’ सदिखन नव-नव मार्केटक खोजमे
कतहु पहुँचिये जाइ छी, एतहु तहिना बूझू... !
भृंगी : बुझलहुँ नहि...आब एतेक रास ने बीमा कंपनी आबि
गेल अछि जे ई बेचारे...
[तावत् नंदी-भृंगीक चारू कात जमा भेल भीड़ ओहि पार पाछाँ दिसि सँ एकटा खलबली जकाँ मचि गेल। पता चलल दुनू प्रेमी आपस मे झगड़ा क’ रहल छल। रास्ता बनाओल गेल त’ ओ दुनू सामने आबि गेल।]
नंदी : (जेना मध्यस्थता क’ रहल छथि) की बात थिक ?
हमरो सब केँ त’ बूझ’ दियह!
प्रेमिका : देखू ने... जखन दुनू गोटेक परिवार बिल्कुल मान’
लेल तैयार नञि छल हमरा दुनूक संबंध तखन...
प्रेमी : तखन मिलि कए विचार कैने छलहुँ जे संगहिसंग
जान द’ देब...
प्रेमिका : सैह भेल, मुदा….
नंदी : मुदा ?
प्रेमिका : मुदा आब ई कहि रहल छथि...हिनका घुरि जैबाक
छनि...
प्रेमी : हँ...हम चाहै छी एक बेर आर जीबाक प्रयास करी।
मुदा ई नहि घुर’ चाहै छथि।
प्रेमिका : हँ, हम नञि चाहै छी जे धुरि जाइ... !
रमणी-मोहन : (अगुआ कए प्रेमिका लग आबि कए) नञि जाय
चाहै छथि त’ रह दियौक ने... हम त’ छीहे ! (कहैत
आर आगाँ बढ़बाक प्रयास करैत’ छथि।)
भृंगी : धत् ! (रमणी-मोहन केँ तिरस्कार करैत) अहाँ हँटू
त’... ! आ चुप रहू !
नंदी : मुदा ई त’ अहाँ दुनू गोटे हमरा दुनू केँ धर्म-संकट
मे पहुँचा देलहुँ।
भृंगी : आ घुरबे कियै’ करब ?
प्रेमी : एक बेर आर प्रयास करी, जँ हमर दुनूक विवाहक
लेल ओ लोकनि राजी भ’ जाथि।
भृंगी : ओ– ई बात ?
नंदी : त’ एकर निदान त’ सहजेँ क’ सकै छी हम सब?
प्रेमिका : से कोना ?
भृंगी : किछुओ नहि...बस, छोट-छीन- ‘ऐक्सिडेंटे’ करबा
दिय आ ल’ आनू दुनू जोड़ी माय-बाप केँ
एतहि...यमालय मे...

प्रेमी : नहि-नहि !
प्रेमिका : से कोना भ’ सकै छइ ?
प्रेमी : हम सब नञि चाहब जे हमरा सभक लेल हुनको
लोकनिक प्राण हरल जाइन।
नंदी : तखन त’ एकहि टा उपाय भ’ सकैत अछि।
प्रेमी-प्रेमिका : (एक्कहि संगेँ) की ? कोन उपाय ?
भृंगी : इयैह...जे अहाँ दुनूक विवाह...
नंदी : एतहि क’ देल जाय...

[सब प्रसन्न भ’ जाइत छथि – स्पष्टतः सभक दुश्चिन्ता दूर भ’ जाइत छनि। प्रेमिका लजा’ जाइत छथि, प्रेमी सेहो प्रसन्न, मुदा कनेक शंकित सेहो-]
भृंगी : खाली इयैह सोच’ पड़त’ जे कन्यादान के करत...?
बाजारी : (आगाँ बढ़ि कए) आ हम त’ छी ने ! (कहैत
प्रेमिकाक माथ पर हाथ रखैत छथि; स्नेहक
आभास– प्रेमिका झुकि कए हुनक पैर धूबैत
छथि।)
भृंगी : बस आब दरकार खाली ढोल-पिपही आ बाजा–
गाजा... !
नंदी : सेहो भ’ जेतैक... !

[दुनू हाथ सँ तीन बेर ताली दैत छथि। एकटा कतार सँ ढोल–पिपही-बाजा बजौनिहार सब आबैत छथि आ बाजा-बजब’ लागै छथि। सबटा पात्र हुनके सभक पाछाँ-पाछाँ एकटा पंक्ति मे चलैत-नाचैत, आनन्द करैत बाहर चलि जाइत छथि।]

[मंच पर रहि जाइत छैक मात्र बंद विशाल स्वर्ग-द्वार ! स्पॉट-लाईट दरबज्जा पर पड़ैत अछि आ अन्हार भ’ कए प्रथम कल्लोलक समाप्तिक घोषणा करैत अछि।]
*****************
(क्रमश:)
(क्रमश:)


2.शोध लेख
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।

प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
मायानन्द मिश्रजी साहित्यकारक दृष्टिकोण रखितथि आ’ पाश्चात्य इतिहासकारक गॉसिपसँ बचितथि तँ आर्य आक्रमणक सिद्धांतकेँ नकारि सकितथि। सरस्वतीक धार ऋगवेदक सभ मंडलमे अपन विशाल आ’ आह्लादकारी स्वरूपक संग विद्यमान अछि। सिन्धु आकि सरस्वती नदी घाटीक सभ्यता तखन खतम आकि ह्रासक स्थितिमे आएल जखन सरस्वती सुखा गेलीह। अथर्ववेदमे सेहो सरस्वती जलमय छथि। ऋगवेदमे जल-प्रलयक कोनो चर्च नहि अछि, आ’ अथर्ववेदमे ताहि दिशि संकेत अछि। भरतवासी जखन पश्चिम दिशि गेलाह, तखन अपना संग जल-प्रलयक खिस्सा अपना संग लेने गेलाह। जल-प्रलयक बाद भरतवासी सारस्वत प्रदेशसँ पूब दिशि कुरु-पांचालक ब्रह्मर्षि प्रदेश दिशि आबि गेलाह।

सरस्वती रहितथि तँ बात किछु आर होइत, मुदा सुखायल सरस्वती एकटा विभाजन रेखा बनि गेलीह, आर्य-आक्रमणकारी सिद्धांतवादी लोकनिकेँ ओहि सुखायल सरस्वतीकेँ लँघनाइ असंभव भ’ गेल।
सिन्धु लिपिक विवेचन सेहो बिना ब्राह्मीक सहायताक संभव नहि भ’ सकल अछि।

ग्रिफिथक ऋगवेदक अनुवादक पादटिप्पणीमे पहिल बेर ई आशंका व्यक्त्त कएल गेल जे आर्य आक्रमणकारी पश्चिमोत्तरसँ आबि कए मूल निवासीक दुर्ग तोड़लन्हि। दुर्गमे रहनिहार बेशी सभ्य रहथि। 1947 मे ह्वीलर ई सिद्धांत ल’ कए अएलाह जे विभाजित पाकिस्तान सभ्यताक केन्द्र छल आ’ आर्य आक्रमणकारी विदेशी छलाह। एकटा भारतीय विद्वान रामप्रसाद चंद ताहिसँ पहिने ई कहि देने रहथि, जे एहि नगर सभक निवासी ऋगवेदक पणि छलाह। मुदा मार्शल 1931 ई मे ई नव गप कहने छलाह जे आर्यक भारतमे प्रवेश 2000 ई.पूर्व भेल छल, आ’ तावत हड़प्पा आ’ मोहनजोदड़ोक विनाश भ’ चुकल छल। 1934 मे गॉर्डन चाइल्ड कहलनि जे आर्य आक्रमणकारी संभवतः भ’ सकैत छथि। 1938 मे मकॉय मोहनजोदाड़ोक आक्रमणकेँ नकारलन्हि, किछु अस्थिपञ्जड़क आधार पर एकरा सिद्ध कएनाय संभव नहि। डेल्स 1964 मे एकटा निबन्ध लिखलन्हि ‘द मिथिकल मसेकर ऑफ मोहंजोदाड़ो’ आ’ आक्रमणक दंतकथाक उपहास कएलन्हि।तकर बाद ह्वीलर 1966 मे किछु पाँछा हटलाह, मुदा मकॉयक कबायलीक बदलामे सभटा आक्रमणक जिम्मेदारी बाहरा आर्यगण माथ पर पटकि देलन्हि। आब ओ’ कहए लगलाह जे आर्य आक्रमणकेँ सिद्ध नहि कएल जा’ सकैत अछि, मुदा जौँ ई संभव नहि अछि, तँ असंभव सेहो नहि अछि। स्टुआर्ट पिगॉट 1962 तक ह्वीलरक संग ई दुराग्रह करैत रहलाह। पिगॉट आर्यकेँ मितन्नीसँ आएल कहलन्हि। नॉर्मन ब्राउनकेँ सेहो पंजाब प्रदेशक शेष भारतक संग सांस्कृतिक संबंधक संबंधमे शंका रहलन्हि। संस्कृत आ’ द्रविड़ भाषाक अमेरिकी विशेषज्ञ एमेनो लिखलन्हि जे सिन्धु घाटी कखनो शेष भारतसँ तेना भ’ कए सांस्कृतिक रूपसँ जुड़ल नहि छल। जे आर्य ओतय अएलाह सेहो ईरानी सभ्यतासँ बेशी लग छलाह।

मुदा पॉर्जिटर 1922 मे भरत साहित्यिक परम्परासँ सिद्ध कएलन्हि जे भारत पर आर्यक आक्रमणक कोनो प्रमाण नहि अछि। ओ’ सिद्ध कएलन्हि, जे भारतसँ आर्य पश्चिम दिशि गेलाह आ’ तकर साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध अछि। लैंगडन सेहो कहलन्हि जे आर्य भारतक प्राचीनतम निवासी छलाह आ’ आर्यभाषा आ’ लिपिक प्रयोग करैत छलाह। ब्रिजेट आ’ रेमण्ड ऑलचिन आ’ कौलीन रेनफ्रीव आदि विद्वान प्राचीन भारतक पूर्वाग्रह विश्लेषण कएने छथि।
मितन्नी शासक मित्र, वरुण, इन्द्र आ’ नासत्यक उपासक छलाह। हित्ती राज्यमे सेहो वैदिक देवता लोकनिक पूजा होइत छल।आलब्राइट आ’ लैंबडिन सेहो दू हजार साल पहिने दक्षिण-पश्चिम एशियामे इंडो आर्य भाषा बाजल जाइत छल आ’ संख्यासोचक शब्द सेहो भारतीय छल।
ई लोकनि भारतीय छलाह आ’ ऋगवेदक रचनाक बाद भारतसँ बाहर गेल छलाह। बहुवचन स्त्रीलिंग रूप ऋगवेदक देवगणक विशिष्ट रूप अन्यत्र उपलब्ध नहि अछि। इंडो योरोपियन देवतंत्रमे भारतीय देवीगणक विरलता पूर्ववर्त्ती भारतीय मातृसत्तात्मक व्य्वस्थाक बादक योरोपीय परवर्त्ती पितृसत्तात्मक व्यवस्थाक परिचायक अछि।

आब आऊ सुमेरक जल प्रलय पर, जेकि 3100 ई.पू. मे मानल जाइत अछि। भारतीय कलि संवत 3102 ई.पू. मानल जाइत अछि। अतः एहि तिथिसँ पूर्व ऋगवेदक पूर्ण रचना भ’ गेल छल।
(अनुवर्तते)

3.उपन्यास
सहस्रबाढ़नि -गजेन्द्र ठाकुर


“काका यौ, हम नहि लगेलिअन्हि कबकबाउछ”। ई गप कहैत हमर आँखिमे नोर आबि गेल छल। बनाइकेँ किछु गोटे छौड़ा सभ दलान पर सुतलमे कबकबाउछ लगा’ देने छलन्हि। कलम दिशिसँ खेला-कुदा कए सभ आबि रहल छल। महारक कातमे कबकबाउछक पात तोड़लक, आ’ एकर पातकेँ चमड़ा पर रगड़लासँ होयबला पऋणाम पर चर्चा होमय लागल। क्यो अपन चमड़ा पर लगेबाक हेतु तैयार नहि छल से दलान पर बनाइकेँ सुतल देखि हुनके देह पर पात रगड़ि देलकन्हि। पाछाँसँ हम अबैत छलहुँ आ’ सभ छौड़ातँ निपत्ता भए गेल, बनाइक नजरि हमरा पर पड़लन्हि। से ओ’ काकाकेँ कहि देलखिन्ह। काका हमर कोनो गप नहि सुनलन्हि आ’ दस बेर कान पकड़ि कए उट्ठा-बैसी करबाक सजा भेटल। संगहि साँझमे संगी सभक संग खेलेबाक बदला काका आ’ हुनक भजार सभक संग खेत पथारक दिशि घूमबाक निर्णय भेल जाहिसँ हमर बदमस्ती कम होय।

बाढ़िक समय छल।नाओ पर बाढिक दृश्य आ’ सिल्लीक शिकार। बादमे तँ एकर शिकार पर सरकार प्रतिबंध लगा’ देलक। मुदा मोन हमर टाँगल रहल गाम परक कल्पित खेल सभक दिशि, जे हमर सभक संगी सभ खेलाइत होयताह। ई छल पहिल दिन।
दोसर दिन बेरू पहर धरि हम एहि प्रत्याशामे छलहुँ, जे आइ फेरसँ काकाक संग जाए पड़त। ओना संगी सभकेँ हम ई भास नहि होमय देलियैक जे हम एको रत्ती चिन्तित छी, आ’ नाओ आ’ सिल्लीक खिस्सा सभ तन्मयतासँ सुनैत रहलाह। मुदा हमर मुखाकृति देखि कए काका पुछलन्हि, जे आइ हमरा सभक संग जएबाक मोन नहि अछि? तँ हम नञि नहि कहि सकलियन्हि। मुदा फेर अपनाकेँ सम्हारैत कहलियन्हि, जे मोन तँ गामे पर लगैत अछि। तखन काकाकेँ व्दया लागि गेलन्हि, आ’ एहि प्रतिबन्धक संग की हम बदमस्ती नहि करब हमरा गाम पर रहबाक छूटि भेटि गेल।

गाममे डेढ़ साल धरि रहलहुँ, आ’ जखन बाबूजीक ट्रांसफर पटना भ’ गेलन्हि, तखन बड़का भैयाक संगे पहलेजाघाट आ’ महेन्द्रूघाट द’ कए पटना आबि गेलहुँ। ओतय स्कूल सभमे प्रवेश परीक्षा होइत छल आ’ बाबूजी भायकेँ छठासँ सतमाक हेतु आ’ हमरा पँचमासँ छठा आ’ सतमा दुनू वर्गक हेतु प्रवेश परीक्षामे बैसओलन्हि। आ’ तकरा बाद हमरा बुझायल जे किएक हमरा बाबूजी पचमेमे छठाक विज्ञान आ’ गणित पढ़ि लेबाक हेतु कहने छलाह। प्रवेश परीक्षामेमे ईएह दुनू विषय पूछल जाइत छल।
अस्तु हमरा छठा आ’ सतमा दुनू वर्गक हेतु आ’ भाएकेँ सतमाक हेतु चयन जिला स्कूलमे भए गेल। फेर शहरक सरकारीयो स्कूलमे ड्रेस छलैक। से दुनू गोटे बाबूजीक संग दोकान गेलहुँ आ’ ड्रेस सियाओल गेल, दू-दू टा हाफ पैंट आ’ एक-एकटा अंगा। स्कूलक पहिलुके दिन मारि होइत-होइत बचल। एकटा चौड़ा हमरा देहाती कहल तँ से तँ हमरा कोनो खराप नहि लागल। ओहि उम्रमे देहाती शब्द हमरा नीके लगैत छल, मुदा आइ सोचैत छी तँ ओ’ ई शब्द व्यंग्यात्मक रूपेँ कहने छल। फेर जखन ओ’ देखलक जे ई तँ नहि खौँझायल तखन बंगाली-बंगाली कहनाइ शुरू कएलक। हम दुनू भाइ पातर दुबर आ’ शुभ्र-शाभ्र चिक्कन-चुनमुन लगैत छलहुँ, ताहिओ द्वारे ओ’ हमरा सभकेँ बंगाली बुझि रहल छल। हम ई व्यंग्य नहि सुनि सकलहुँ, आ’ ओकरा दिशि मार-मार कए छुटलहुँ। भाइ बीच-बचाओ कएलक।
(अनुवर्तते)
4.महाकाव्य
महाभारत –गजेन्द्र ठाकुर(आँगा) ------
2.सभा पर्व

संतोष भेलन्हि पाण्डव-जनकेँ ई सुनि,
कथा धृतराष्ट्रक घुरलाह इन्द्रप्रस्थ पुनि।

दुर्योधन दुःखित मंत्रणा कएल शकुनिसँ,
संग दुःशासन कर्णक मंत्रणा फेर जुआक,
विनाशक हस्तिनापुरक छल बेर खराप।

एहि बेरक नियम राखल हारत जे से करत,
बारह वर्षक वनवास आऽ एक वर्ष अज्ञातवास।

धृतराष्ट्र दूत पठाओल हस्तिनापुर फेर।
युधिष्ठिर घुरलाह भायक संग बेर-अबेर,
सुनाओल गेल शर्त्त सभ रोकल एक बेर।

मुदा भाग्यराजक आगाँ ककर अछि चलल,
नहि मानल कएल युधिष्ठिर भाग्यक खेल।

चलि फेर पासा दुर्योधनक,वैह खेरहा,
फेंकि गोटी जिताओल शकुनि ओकरा।

हारि हारल राज्य, पाओल छल बनबास,
युधिष्ठिरक भाग्य चालि कुचालिक जीत,
राज्यक निर्णय जुआक गोटीक संगीत,
की होएत से नञि जानि सुन्न अकास।

३. वन पर्व
धर्मराज सभ हारि,
चलल फेर वैह पथ,
धर्मक आ’ शान्तिक,
छोड़ि सभ बिसारि।

माता कुन्ती छलि वृद्धा भेलि कहल,
कहल धर्मराज नञि जाऽ सकब अहाँ,
विदुर काक केर घर जा’ रहब,
जाएब कर्म भोगए हम सभ।

द्रौपदीक पाँचू पुत्र आ’ पुत्र अभिमन्युक,
सुभद्रा जएतीह अपन नैहर द्वारकापुर।

धौम्यक पुरहित संग द्रौपदी आऽ चारू भाए,
काटब हम संग तेरह वर्षक वनवास जाय।

नगरवासी सुनि गमनक ई समाचार,
कएलन्हि दुर्-दुर दुर्योधनक अत्याचार।

जाएब हमहुँ सभ संग,धर्मराज आइ,
धर्मराज घुराओल सभकेँ बुझाए जाए।

सभ घुरि गेल मुदा,नहि घुरल ब्राह्मण जन,
पुरहित कहलन्हि उपासना सूर्यक एहि क्षण।
वैह दैत छथि अन्न-फल समग्र आर्य,
उपासनाक उपरान्त प्रगट भेलाह सूर्य।

देलन्हि अक्षय पात्र नहि कम होयत अन्न,
द्रौपदी सभ ब्राह्मणकेँ आऽ पाण्डवकेँ खोआबथि,
फेर खाथि, सभ अघाथि, नञि होए खतम,
जखन नञि होए खतम पात्रसँ खाद्यान्न।

युधिष्ठिर पहुँचि सरस्वती धारक कात,
काम्यक वनमे कएलन्हि निवास।

एहि बीच सुनैत पाण्डव-प्रशंसा मुँहसँ विदुरक,
धृतराष्ट्र निकालि हटाओल विदुरकेँ दरबार-मध्य।

ओहो आबि लगलाह रहए काम्यकवनमे,
पुनि पठाओल धृतराष्ट्र ओतए संजयकेँ।

पाण्डव-जनक बुझओला उत्तर विदुर,
धृतराष्ट्र सँग गेलाह पुनि दरबार घुरि।

ऋषि-मुनिक सत्संगसँ लैत शिक्षा आऽदीक्षा,
सुनैत छलाह कथा सरिता नल दमयन्तीक,
अगस्त्यक,ऋषि श्रृंग,अष्टावक्रक,लोपामुद्राक।

कृष्ण आबि बुझाओल ब्यास अएलाह,
ब्यास कहल युद्धक हेतु करू तैय्यारी,
बिनु इन्द्रक अमोघ शिवक पाशुपत्याह,
कोना लड़ब संग भीष्म द्रोण महारथी।

(अनुवर्तते)
5. कथा
9. पसीधक काँट

मीत भाइक खिस्सा की कहब। गामसँ निकललथि नोकरी करबाक हेतु मुदा यावत लाल काकाक लग रहलाह तावत कनैत-कनैत हुनका अकच्छ क’ देलखिन्ह।
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मीत भाइ गाममे रहथि तँ पसीधक काँटक रस पोखड़िमे द’ कए पोखरिक सभटा माँछ मारि देथि।

एक बेर पुबाड़ि टोलक कोनो बच्चाक मोन खराप भेलैक तँ हिनका सँ अएलन्हि पुछबाक हेतु जे कोन दबाइ दियैक। मीत भाइ पसीधक काँटक रस पियाबय कहलखिन्ह। फेर मँहीस चरेबाक हेतु डीह दिशि चलि गेलाह। एक गोट दोसर मँहीसबार गाम परसँ अबैत देखा’ पड़लन्हि तँ पुछलखिन्ह जे हौ बाउ, पुबाड़ि टोल दिशि सँ कोनो कन्नारोहटो सुनि पड़ल छल अबैत काल? बुझू। ओ’ तँ धन रहल जे मरीजक बापकेँ रस्तामे क्यो भेँटि गेलैक आ’ पूछि देलकैक, नहि तँ अपन बच्चासँ हाथ धोबय जा’ रहल छल।
फेर मीत भाइ कंठी ल’ लेलन्हि, मुदा घरमे सभ क्यो माँछ खूब खाइत छलन्हि। एक बेर भोरे- भोर खेत दिशि कोदारि आ’ छिट्टा लए बिदा भेलाह मीत भाइ। बुन्ना-बान्नी होइत छल, मुदा आड़िकेँ तड़पैत एकटा पैघ रोहुकेँ देखि कए कोदारि चला देलन्हि आ’ रोहु दू कुट्टी भ’ गेल। दुनू ट्कड़ीकेँ माथ पर उठा कए विदा भेलाह मीत भाइ गाम दिशि। तकरा देखि गोनर भाय गाम पर जाइत काल बाबा दोगही लग ठमकि कए ठाढ़ भए गेलाह, मोनमे ई सोचैत जे वैष्णव जीसँ रोहु कोना कए लए ली। आ’ ‘बाबा दोगही’ मीत भाइक टोलकेँ गौँआ सभ ताहि हेतु कहैत छल, जे क्यो बच्चो जे ओहि टोलमे जनमैत छ्ल से संबंधमे गौँआ सभक बाबा होइत छल।
“यौ मीत भाइ। ई की कएलहुँ। वैष्णव भ’ कए माछ उघैत छी”।
”यौ माछा खायब ने छोड़ने छियैक। मारनाइ तँ नञि ने”।
अपन सनक मुँह लए गोनर भाइ विदा भए गेलाह।
से एक दिन गोनर झा टेलीफोन डायरी देखि रहल छलाह, तँ हुनका देखि मीत भाइ पुछलखिन्ह, “की देखि रहल छी”।
गोनर झा कहलखिन्ह जे “टेलीफोन नंबर सभ लिखि कए रखने छी, ताहिमे सँ एकटा नंबर ताकि रहल छी”।
“ आ’ जौँ बाहरमे रस्तामे कतहु पुलिस पूछि देत जे ई की रखने छी तखन”।

“ ऐँ यौ से की कहैत छी। टेलीफोन नंबर सभ सेहो लोक नहि राखय”।
”से तँ ठीक मुदा एतेक नंबर किएक रखने छी पुछला पर जौँ जबाब नहि देब तँ आतंकी बुझि जेलमे नहि धए देत”।
”से कोना धए देत। एखने हम एहि डायरीकेँ टुकड़ी-टुकड़ी क’ कए फेंकि दैत छियैक”।
आ’ से कहि गोनर भाइ ओहि डायरीकेँ पाड़-फूड़ि कए फेंकि देलखिन्ह।

एक दिन मीत भाए भोरे-भोर पोखड़ि दिशि जाइत रहथि तँ जगन्नाथ भेटलखिन्ह, गोबड़ काढ़ि रहल छलाह। कहलखिन्ह,” यौ मीत भाइ, अहूँ सभकेँ भोरे-भोर गोबड़ काढ़य पड़ैत अछि ?”
मीत भाइ देखलन्हि जे हुनकर कनियो ठाढ़ि छलखिन्ह से एखन किछु कहबन्हि तँ लाज होएतन्हि, से बिनु किछु कहने आगू बढ़ि गेलाह। जखन घुरलाह तँ एकान्त पाबि जगन्नाथकेँ पुछलखिन्ह, “भाइ, पहिने बियाहमे पाइ देबय पड़ैत छलैक, से अहाँकेँ सेहो लागल होयत। ताहि द्वारे ने उमरिगरमे बियाह भेल”।
”हँ से तँ पाइ लागले छल”।
”मुदा हमरा सभकेँ पाइ नहि देबय पड़ल छल आ’ ताहि द्वारे गोबरो नहि काढ़य पड़ैत अछि, कारण कनियाँ ओतेक दुलारू नहि अछि”।
एक बेर बच्चा बाबूक ओहिठाम गेलाह मीत भाइ। ओ’ पैघ लोक आ’ तेँ बड्ड कँजूस। पहिने तँ सर्दमे गुरसँ होएबला लाभक चर्च कएलन्हि, जे ई ठेही हँटबैत अछि आ’ फेर गूरक चाह पीबाक आग्रह। मुदा मीत भाए कहि देलखिन्ह जे गुरक चाह तँ हुनको बड्ड नीक लगैत छन्हि, मुदा परुकाँ जे पुरी जगन्नाथजी गेल छलाह से कोनो एकटा फल छोड़बाक छलन्हि से कुसियार छोड़ि देलन्हि, आ’ तकरेसँ तँ गुर बनैत छैक। ओहि समयमे चुकन्दरक पातर रसियन चीनी अबैत छल, से बच्चा बाबूकेँ तकर चाह पिआबय पड़लन्हि।
किछु दिन पहिने बच्चा बाबू एहि गपक चर्च कएने छलाह जे ओ’ जोमनी छोड़्ने छलाह तीर्थस्थानमे आ’ तैँ जोम खाइत छलाह। हरजे की एहिमे। मीत भाइ खूब जबाब देलन्हि ऐ बेर एहि बातक। अधिक फलम् डूबाडूबी।
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मीत भाइक बेटा भागि गेलन्हि। पुछला पर कोढ़ फाटि जाइत छलन्हि।
“यौ, लाल काका बियाह तँ करा’ देलन्हि, मुदा तखन ई कहाँ कहलन्हि जे बियाहक बाद बेटो होइत छैक”।

आब मीत भाइ बेटाकेँ ताकए लेल आ’ अपना लेल नोकरी सेहो दिल्लीक रस्ता धेलन्हि।
मुदा एहि बेर तँ मीत भाइ फेरमे पड़ि गेलाह। जखने दरभंगासँ ट्रेन आगू बढ़ल तँ सरस्वती मंद पड़ए लगलन्हि। कनेक ट्रेन आगू बढ़ल तँ एकटा बूढ़ी आबि गेलीह, मीत भाइकेँ बचहोन्ह देखलन्हि तँ कहए लगलीह
“बौआ कनेक सीट नञि छोड़ि देब”।
तँ मीत भाइ जबाब देलखिन्ह,
“माँ। ई बौआ नहि। बौआक तीन टा बौआ”।
आ’ बूढ़ी फेर सीट छोड़बाक लेल नहि कहलखिन्ह।
मीत भाइ मुगलसराय पहुँचैत पहुँचैत शिथिल भए गेलाह। तखने पुलिस आयल बोगीमे आ’ मीत भाइक झोड़ा-झपटा सभ देखए लगलन्हि। ताहिमे किछु नहि भेटलैक ओकरा सभकेँ। हँ खेसारी सागक बिड़िया बना कए कनियाँ सनेसक हेतु देने रहथिन्ह लाल काकीक हेतु। मुदा पुलिसबा सभ लोकि लेलकन्हि।
”ई की छी”।
”ई तँ सरकार, छी खेसारीक बिड़िया”।
”अच्छा, बेकूफ बुझैत छी हमरा। मोहन सिंह बताऊ तँ ई की छी”।
” गाजा छैक सरकार। गजेरी बुझाइत अछि ई”।
”आब कहू यौ सवारी। हम तँ मोहन सिंहकेँ नहि कहलियैक, जे ई गाजा छी। मुदा जेँ तँ ई छी गाजा, तेँ मोहन सिंह से कहलक”।
”सरकार छियैक तँ ई बिड़िया, हमर कनियाँ सनेस बन्हलक अछि लाल काकीक..........”
” ल’ चलू एकरा जेलमे सभटा कहि देत”। मोहन सिंह कड़कल।
मीत भाइक आँखिसँ दहो-बहो नोर बहय लगलन्हि। मुदा सिपाही छल बुझनुक। पुछलक
“कतेक पाइ अछि सँगमे”।
दिल्लीमे स्टेशनसँ लालकाकाक घर धरि दू बस बदलि कए जाए पड़ैत छैक। से सभ हिसाब लगा’ कए बीस टाका छोड़ि कए पुलिसबा सभटा ल’ लेलकन्हि। हँ खेसारीक बिड़िया धरि छोड़ि देलकन्हि।

तखन कोहुनाकेँ लाल काकाक घर पहुँचलाह मीत भाइ।
मुदा रहैत रहथि, रहैत रहथि की सभटा गप सोचा जाइत छलन्हि आ’ कोढ़ फाटि जाइत छलन्हि। तावत गामसँ खबरि अएलन्हि जे बेटा गाम पर पहुँचि गेलन्हि। लाल काकी लग सप्पथ खएलन्हि मीत भाइ जे आब पसीधक काँट बला हँसी नहि करताह। “नोकरी-तोकरी नहि होयत काकी हमरासँ” ई कहि मीत भाइ गाम घुरि कए जाय लेल तैयार भ’ गेलाह।
6. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
इ.पद्य ज्योति झा चौधरी 1.मनुष्य आ' ओकर भावना 2.हम्मर गाम
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
1.
भजन विनय
प्रभू बिनू कोन करत दुखः त्राणः॥
कतेक दुःखीके तारल जगमे भव सागर बिनू जल जान, कतेक चूकि हमरासे भ’ गेल सोर ने सिनई छी कानः॥ अहाँ के त बैनि परल अछि पतित उधारन नाम ।नामक टेक राखू प्रभू अबहूँ हम छी अधम महानः॥ जौँ नञ कृपा करब एहि जन पर कोना खबरि लेत आन। रामजी पतितके नाहिँ सहारा दोसर के अछि आनः॥

2.
भजन लक्ष्मी नारायण जीक विनय

लक्ष्मी नारायण अहाँ हमरा ओर नञ तकइ छी यौ।
दीनदयाल नाम अहाँके सभ कहए अछि यौ।
हमर दुःख देखि बिकट अहाँ डरए छी यौ।
ब्याध गणिका गिध अजामिल गजके उबारल यौ।
कौल किरात भिलनी अधमकेँ उबारल यौ।
कतेक पतितके तारल अहाँ मानि के सकत यौ।
रुद्रपुरके भोलानाथ अहाँ के धाम गेलायो।
ज्यों न हमरा पर कृपा करब हम कि करब यौ।
रामजी अनाथ एक दास राखु यौ।
3.
भजन विनय भगवती

जय जय जनक नन्दिनी अम्बे, त्रिभुवन के तू ही अवलम्बेः।
तुही पालन कारनी जगतके, शेष गणेश सुरन केः।
तेरो महिमा कहि न सकत कोउ, सकुचत सारभ सुरपति कोः।
परमदुखी एहि जगमे, के नञ जनए अछि त्रिभुवनमेः॥
केवल आशा अहाँक चरणके, राखू दास अधम केः॥
कियो नहि राखि सकल शरणोंमे, देख दुखी दिनन केः॥
जौँ नहि कृपा करब जगजननी, बास जान निज मनमे।
तौँ मेरो दुख कौन हटावत, दोसर छाड़ि अहाँकेः॥
कबहौँ अवसर पाबि विपति मेरो कहियो अवधपति को,
रामजी क नहि आन सहारा छाड़ि चरण अहाँकेः॥
(अनुवर्तते)
गंगेश गुंजन(1942- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
देश छोड़ि कत' गेल, देश छोड़ि कियेक गेलय ?

दिन केहन पहाड़ भेलय
कत कहां ऋतु औनायल
रस्ता अन्हार भेलय

चाही से गेल गाम
अनचाहल फेर आयल
बीच बाट पर तेना
आइ सूर्य ठाढ़ भेलय,
आगां अन्हार भेलय

कोनो ने समाद
कानो किछुओ सनेस नहि
जानि नहि केहन गँहींर उदेस की
ओना तं अयवाक किछु विशेष रहय
मन तें भदवरिया मेघक
अकास भेलय,
एखनहि बिन पानिक
कहार गेलय

कियेक एना कारी फूल
कियेक एना कोकनल फल
कियेक एना उष्ण बसात
एना कियेक अपस्याँत
गाम-घर,लोक, खेत-पथार
लोकक स्तब्ध मुखाकृति
डारि-पात हीन ठुठ्ठ गाछ
एतेक एना कियेक अनचिन्हार भेलय

हमर हृदय हमर प्राण केर आंगन
छोड़ि-छाड़ि बिन कहने-सुनने
कोन मृग मरीचिका मे आखिर से,
चुपचाप घरसँ बहार भेलय
देश छोड़ि कत' गेल,
देश छोड़ि कियेक गेलय ?


ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) आ' हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्र्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
1.मनुष्य आ' ओकर भावना
कठोर हृदयमे भावुकता नुकायल भेटल,
पुछलियै, “ तोहर आब कोन स्थान ?”
बड़ निर्मलतासॅं उत्तर देलक,
''हमरा सॅं नहिं तोरा सबके त्राण।

क्रोध, प्रेम, दु:ख, दया आदि जीवनक अंश
अहिसॅं पूर्णत: विमुक्त भेनाई कठिन;
परन्तु गलतकेँ बिसरा कऽ नीक विचारकेँ
आश्रय देनाय अछि अपन आधीन ।

दया परोपकारक अधिष्ठात्री अछि ,
दु:ख खुशीक महत्त्व बुझाबए छै।
क्रोध सॅं हठ, प्रेमसँ त्याग जनमैत अछि,
बस उचित दिशा निर्देशन आवश्यक छै।

मानवक बुद्धि भावनासॅं प्रभावित होइत अछि़ ;
भने ओ स्वयम्‌केँ विधाता बनओने फिरैए।
आधुनिकताक होड़मे निष्ठुरता ओढ़ने अछि,
भावनाहीन भऽ कऽ जीवित नहि रहि सकैए।
2.
हम्मर गाम
गरमी में सुर्योदय के समय कतेक शान्त आ' शीतल,
लू आ उमस सॅं ओत प्रोत दुपहरिया तेहने बिगड़ल;
सॉंझ हुअ सऽ पहिने धूल धक्कड़ आ' बिहारि,
राइत होति देरी अन्हार, ताहि पर मच्छड़क मारि।

अहि सबहक बीच बसल बस एक मात्र मिठास
अप्पन भाषाक ज देने अछि गाम जायक प्यास
जतऽ सभ्यता के लाज में अपनापन नहिं नुकाइत छल
लोक हाक दऽ कऽ हाल पूछऽ में नहिं सकुचाइत छल

अनार, शरीफा, खजूर, लताम, पपीता, जलेबी, केरा सहित लीचीक बगान
केसौर, कटहर, बेल, धात्री, जामुन, बेरक संग अप्पन पोखरिक मखान
फेर आमक गाछी सेहो अछि जतऽ गर्मी बितौनाई नहिं अखड़ल
हवा बिहारि में खसल आम बीछऽ लेल भगनाई नहिं बिसरल

गजेन्द्र ठाकुर

सपना

सपना,
सपना सुन्दर सुन्दर?

नञि, नञि छल ओतेक सुन्दर,
बच्चामे ई खूब डरओलक तोड़ैत,
आँखिसँ छिनैत सुतबाक उत्सुकता ,
जखन मोन उखड़ैत छल घबड़ाइत।

देश कालक सीमा बन्हलहुँ,
पुरखाक भ्रमकेँ अपनओने,
मुदा प्रथम बीजी-पुरुषक छद्म,
नहि छल जाइत मोनक भ्रम।

बचहनक मोनक-छाती धक-धक,
करैत छल खोज जगक जन्मक,
नहि पओने कोनो प्रश्नोत्तर,
छोड़ैत ईश्वर पर ई शाश्वत।

मुदा ईश्वरक मोन आ’ शाश्वत स्वरूपक,
नहि सोझ भेल ससरफानी पड़ल गिरह,
छाती-मोनक करैछ, बढ़ल जे धकधकी,
सपना सेहो नञि, जौँ अबैछ निन्न बेशी।

संसारकेँ सहबाक ईहो अछि प्रहेलिका,
बिनु समस्या समाधानक करैत छी,
हँसैत बिहुँसैत बनबैत सर्वोपरि भाग्यराजकेँ,
करैत छी सभटा अपने, आ’ ई छी कहैत,
कहैत जे हम छी भाग्यराजक कठपुतली।
ईश्वरक ई लीला? अछि मोनक छातीक संग,
भौतिक छातीकेँ सेहो, जे धकधकी ई बढ़बैत।

सपना सुन्दर आकि डरओन नहि कोनो,
अछि आब अबैत।

7. संस्कृत शिक्षा
(आँगा)
-गजेन्द्र ठाकुर
कथा
कश्चन् आश्रमः तत धौम्यः इति महर्षिः पाठेति स्म। बहुशिष्याः तस्य समीपे पाठनार्थम् आगच्छति स्म। एकदा महती वृष्टिः आसीत्। क्षेत्रं सर्वम् अपि जलपूर्णम् आसीत्। जलप्रवाहः आसीत्। धौम्यः शिष्यं व्दति- शिष्या कृषिक्षेत्रं सर्वं जलपूर्णम् अस्ति। सर्वत्र प्रवाहः अस्ति। अतः कुत्रापि जलबन्दः नष्टः। अस्य भवान् कृषिक्षेत्रं गत्वा तत् निवारयतु। इति वदति।शिष्यः कृषिक्षेत्रं गच्छति। सर्वत्र पश्यति। एकत्र जलबन्दः नष्टः अस्ति। शिष्यः चिन्तयति। यत्र जलबन्दः नष्टः अस्ति तत्र मृत्तिकां स्थापयति। किन्तु जलप्रावाहः अधिकः अस्ति। इति कारणतः तत न तिष्ठति। बहुजलं तत्र गच्छति। अतः शिष्यः चिन्तयति, किम् करोमि।आम्। एवं करोमि। इति चिन्तयति। स्वस्य शरीरमेव तत्र स्थापयति, स्वशिरः स्थापयति। जलबंधं सम्यक करोति। एवं जलबंधं सम्यक् कर्त्तुं स्वशरीरं स्थापयित्वा तत्र जलबंधस्य समीकरणं करोति। किंचित् समयानन्तरं शिष्यः न आगतः। गुरु चिन्तयति। शिष्यः कुत्र गतः। न आगतः। इति चिन्तयित्वा कृषिक्षेत्रं गच्छति। तत्र पश्यति। शिष्यः जलबंधे स्वशरीरं स्थापयित्वा शयनं कृतवान् अस्ति। गुरुः तम् पश्यति। गुरोः शिष्यं दृष्टवा अतीव आनन्दः भवति। सः अतीव संतुष्टः तस्मै ज्ञानं ददाति। संतोषेण तम् आलिङ्गति च एवं स्वशरीरेण जलबंधनं समीकृत्य गुओः वच्नस्य परिपालनं कृतवान्। कर्त्तव्यं सम्यक कृत्वा समापितवान्। सद्वैत शिष्यः अस्ति आरुणिः इति। तस्य उद्दालकः इति अपरं नामधेयम् अस्ति। अहो शिष्यस्य कर्त्तव्यपरतः। कथायः अर्थ ज्ञातः किल।

सुभाषितम्
वयम् इदानीम् एकं सुभाषितं श्रुण्मः।

छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे।
फलान्यापि परार्थाय वृक्षाः सत्पुरुषाः इव॥

वयम् इदानीं यत् सुभाषितं श्रुतवन्तः तस्य अर्थः एवम् अस्ति। अस्मिन् सुभाषित सुभाषितकारः वदति, वृक्षाः सत्पुरुषाः इव- वृक्षाः सत्पुरुषाः यथा परोपकारं कुर्वन्ति तथैव कुर्वन्ति। कथम् इत्युक्त्ते वृक्षाः स्वयम् आतपे तिष्ठन्ति, स्वयं कष्टम् अनुभवन्ति, किन्तु अन्येषां जनानां छायां कल्पयन्ति। छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति, तिष्ठन्ति स्वयं आतपे। तस्मिन् वृक्षे यानि फलानि भवन्ति तानि फलानि अपि वृक्षाः स्वयं न खादन्ति। फलानि अपि परार्थाय। एवमेव सत्पुरुषाः यत् सम्पादयन्ति तदपि अन्येषाम् निमित्तम्। समाजनिमित्तमेव ते एतस्य उपयोगं कुर्वन्ति\ अतः वृक्षाः सत्पुरुषा इव।
वयं पूर्वतन् पाठे पुरतः पृष्ठतः, अधः,, वामतः इत्यादिनम् अभ्यासं कृतवन्तः स्म। अर्थः ज्ञातः एव पुनः एकवारं तस्य विषये वयम् अभ्यासं कुर्मः।
भवत्याः नाम् किम्।
लक्ष्मीः कुत्र अस्ति।
विनोदः मम पृष्ठतः अस्ति।
आकाशः उपरि अस्ति।
भूमिः अधः अस्ति।
सङ्गणकस्य उपरि अस्ति।
विद्यालयः पुरुषस्य दक्षिणतः अस्ति।
फलं शकटस्य उपरि अस्ति।
कूपी अस्ति।
इतः नयतु।
भवान् ततः पुस्तकम् आनयतु।
तत किम।धनस्यूतः।
धनस्यूतः तत । अत्र प्रेषयतु।
मम न आवश्यकम्।
इतः नयतु।
इतः। ततः।
चषकः कुतः पतति।
चषकः हस्ततः पतति।
उपनेत्रम् हस्ततः न पतति।
फलं वृक्षतः पतति।
अहं गृहतः आगच्छामि।
भवति कुतः आगच्छति।
भवान् कुतः आगच्छति।
अहं विद्यालयतः आगच्छामि।
मन्दिरतः/ चित्रमंदिरतः/ ग्रामतः/ गृहतः/ ग्रंथालयतः/ अरण्यतः/ उज्जयनीतः/ काशीतः/ दिल्लीतः/ लखनऊतः/ चेन्नैतः/ चन्द्रलोकतः/ विदेशतः/ आगच्छमि।

नगरम्/ नगरतः
वनम्/ वनतः
ग्रामम्/ ग्रामतः
स्वर्गः/ स्वर्गतः
गृहम्/ गृहतः

अहं विद्यालयतः आगच्छामि।
न श्रुणोमि।
इदानीम् एकम्-एकं वाक्यं वदन्तु।
भवती एकं वाकयं वदतु।
न श्रुणोमि।
उच्चैः वदतु।
शुभाङ्गी शनैः वदति।
प्रसन्नः उच्चैः वदति।
सर्वे उच्चैः वदन्तु।
अहम् इदानीम् एकं सुन्दरं संस्कृत गीतं श्रवयामि।
सर्वे श्रुण्वन्तु। उच्चैः। शनैः।
कुक्कुरः उच्चैः भषति।
कुक्कुरः कथं भषति।
रेलयानं उच्चैः शब्दं करोति।
शिशुः/ बालकः उच्चैः रोदनं करोति।
प्रसन्नः कथं वदति।
प्रस्न्नः उच्चैः/ शनैः वदति।
सिंहः गर्जति।
अहं शीघ्रं गच्छामि।
अहं मन्दम् आगच्छामि।
अर्थः ज्ञायेत्। उत्तिष्ठतु। आगच्छतु।
एकं वाकयं लिखतु।
शीघ्रं लिखतु।
अहल्या शीघ्रं लिखति।
अहल्या कथं लिखति।
वयम् इदानीम् एकां क्रीडां क्रीडामः।
अहम् इदानीम् एकस्य गणस्य एकं सुधाखण्डं ददामि।
एतस्य गणस्य एकं सुधाखण्डं ददामि।
भवती सुधाखण्डं तस्यै ददातु।एवं दातव्यं सा तस्यै ददातु।
भवान् तस्मै ददातु।
सः तस्मै ददातु।
शीघं दातव्यम्। यः गणः शीघ्रं कार्यं समापयति तस्य जयः।
किन्तु दान समये शीघ्रम् इति वक्त्तव्यम्।
सुधाखण्डः भग्नः न भवेत्।
ज्ञातम्। आरम्भं कुर्मः।
स्वीकरोतु।
कथं गर्जति। भषति एवं प्रश्नः कुर्मः।
ममः केशालंकारः अस्ति।
इदानीं मम् केशालंकारः।
कथम् अस्ति। सम्यक् नास्ति।
अहं कथं लिखामि। सम्यक लिखामि।
माधुरी सम्यक गायति।
अहं प्रातःकाले षटवादने उत्तिष्ठामि।
अहं दशवादने भोजनं करोमि।
भोजने अहम् अन्नं/फलं खादामि।
अहं भोजने रोटिकां/फलं/पायसं खादामि।
अहम् अन्येन सह फलं खादामि।
भोजनस्य अंते दुग्धं पीबामि।


गीतम्

वर्षा आगच्छति झम् झम् झम्,
पतति बिन्दुः मम गृह मध्यम्।
नौका निर्मितकागदम् तरन्ति,
वर्षामध्ये बालाः स्नानं कुर्वन्ति।
न आगच्छति चेत् कृषकाः,
पश्यति आकशे पूजति पर्जन्यः।
हे पर्जन्य ददातु वर्षा,
आ जायताम् पच्यन्ताम् फलवत्यः,
कृषिः वर्द्धन्ति बालाः हसन्ति,
यत् वर्षा आगच्छन्ति झम् झम् झम्।
(अनुवर्तते)

8. मिथिला कला
(आँगा)

चित्रकार- प्रीति, गाम-जगेली(जिला पूर्णिया),बिहार, भारत)।

एहिमे ४१ टा स्वास्तिक जोड़ल गेल अछि। स्वस्ति भेल आशीर्वाद। ई कार्त्तिक मासक तुलसी-पूजा,शारदीय दुर्गापूजामे तुलसी-चौड़ा/ दुर्गा-मन्दिरमे अष्टमी दिन पिठारसँ बनाओल जाइत अछि। ई वैदिक यज्ञक ’सर्वतोभद्र’ छथि आऽ यज्ञक चौड़ा पर सेहो लिख्ल जाइत छथि।

बनेबाक विधि- ४१ टा स्वास्तिक आऽ ओकर बीचमे ४१ टा सिन्दूरक ठोप। नीचाँमे पाँचटा शंख, चारू कात आठ अस्त्रक अंकन, अर्ध्वमुख-अधोमुख त्रिकोण, षट्कोण, अष्टकोण, श्रीयंत्र बनाओल जाइत अछि।

9. पाबनि नूतन झा; गाम : बेल्हवार, मधुबनी, बिहार; जन्म तिथि : ५ दिसम्बर १९७६; शिक्षा - बी एस सी, कल्याण कॉलेज, भिलाई; एम एस सी, कॉर्पोरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर; फैशन डिजाइनिंग, निफ्ट, जमशेदपुर।“मैथिली भाषा आ' मैथिल संस्कृतिक प्रति आस्था आ' आदर हम्मर मोनमे बच्चेसॅं बसल अछि। इंटरनेट पर तिरहुताक्षर लिपिक उपयोग देखि हम मैथिल संस्कृतिक उज्ज्वल भविष्यक हेतु अति आशान्वित छी।”

जानकी नवमी)13 मई 2008) पर विशेष
निबंध - नूतन झा
जानकी-नवमी
वैशाख मासक शुक्ल पक्षक नवमी तिथि केँ जानकी-नवमी मनाओल जाइत अछि। लोक ओहि दिन व्रत राखैत छथि आ' सीताजीक पूजा अर्चना करैत छथि। सीता माता लक्ष्मीजीक अवतार मानल गेल छथि, तैँ ई मान्यता अछि जे ई व्रत कएलासॅं सुख एवम्‌ सम्पत्तिक प्राप्ति होइत अछि। एहि वर्ष ई पाबनि अंग्रेजी तारिख १३ मई, २००८ मंगलवार केँ अछि।
कथा अछि जे राजर्षि जनकजी केँ सीताजी शैशवावस्थामे अही दिन प्राप्त भेल रहथिन्ह।राजा जनक जनकपुरक राजा छलाह आ' संतानहीन जाहिसँ एहि दु:ख सॅं पीड़ित छलाह।एक दिन कोनो शुभ कार्यक प्रयोजन सॅं ओ’ खेतमे हर जोतए गेलाह। ओही बीच हुनकर हरसॅं लागि एक स्वर्णक कलशमे सॅं एक दिव्य बालिका प्रकट भेलीह, जिनका राजा जनक आ' हुनकर पत्नी सुनयना गोद लऽ लेलखिन। बालिकाक नाम सीता राखल गेल जकर अर्थ होइत अछि हर। देवी सीताक जानकी नाम सेहो पड़ल अछि।
किन्वदन्ति अछि जे सीताजी लक्ष्मी माताक अवतार देवी वेदवतीक पुनर्जन्म रूप छलीह। ऋषि कुषध्वजक पुत्री वेदवती परम सुन्दरी छलीह आ स्वयम्‌ केँ विष्णु देव केँ प्रति अर्पित कएने छलीह। अनेको राजासॅं आयल विवाहक प्रस्ताव अस्वीकृत कऽ दैत छलीह। अहि कारणसँ ओ अहंकारी रावण के सेहो मना कऽ देलन्हि जाहि द्वारे हुनका रावणक अत्याचार सहऽ पड़लन्हि।दुःखी भय वेदवती प्रतिज्ञा लेलन्हि जे ओ अपन पुनर्जन्ममे रावणक विनाशक कारण बनतीह आ स्वयम्‌केँ अग्निमे भष्म क’ लेलन्हि।एहि बीच मन्दोदरि गर्भवती भेलीह। अपन पतिक कुकृत्य दऽ सुनलाक बाद ओ’ अपन भावी संतानकेँ लऽ कऽ आशंकित भऽ गेलीह।ओ’ अपन नइहर गेलीह आ’ अपन माता पिताक संग तीर्थ करय लगलीह। जन्मक समय नजदीक अएला पर ओ’ अपन संतानक लेल आश्रय ताकए लगलीह। तखने संजोगसॅं संतानहीन राज जनकक खिस्सा सुनलन्हि आ' समय पाबि अपन पुत्रीकँ राजाक पथमे नुकाबएमे सक्षम भऽ गेलीह।किछु लोक इहो कहैत छथि, जे संभवत: सीताजीक जन्मक बाद हुनका पानिमे बहा’ देल गेल छल आ’ संयोगसँ ओ’ जनकजीक खेत लग कात लगलीह।
कथा इहो प्रचलित अछि जे राक्षसक अत्याचारसॅं हताहत ऋषि मुनिक शोणित एक कलशमे एकत्रित कऽ भूमिमे गाड़ि देल गेल छल। बादमे ओहि कलशसॅं सीताजीक जन्म भेल। जन्मक पाछाँ खिस्सा चाहे जे होए उद्देश्य तऽ रावणक नाशे रहए। एकर सांकेतिक अर्थ यैह अछि जे ‘यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’। अर्थात्‌ जतए स्त्रीक आदर होइत अछि ततए देवताक निवास होइत अछि आ' ओकर विपरीत स्त्रीक अपमान करनिहार दुखद अंत पाबैत छथि।
किछु लोक मानैत छथि जे सीताक जन्म फाल्गुन मासक कृष्ण पक्षक अष्टमी तिथिकेँ भेल छन्हि।

10. संगीत शिक्षा-गजेन्द्र ठाकुर
तानक गति द्रुत होइत अछि आऽ ई दोबर गतिसँ गायन/वादन कएल जाइत अछि।

आब आउ ताल पर। संगीतक गतिक अनूरूपेँ ई झपताल- १० मात्रा, त्रिताल- १६ मात्रा, एक ताल- १२ मात्रा, कह्रवा- ८ मात्रा दादरा- ६ मात्रा होइत अछि।
गीत, वाद्य आऽ नृत्यक लेल आवश्यक समय भेल काल आऽ जाहि निश्चित गतिक ई अनुसरण करैत अछि, से भेल लय।जखन लय त्वरित अछि तँ भेल द्रुत, जखन आस्ते-आस्ते अछि, तँ भेल विलम्बित आऽ नञि आस्ते अछि आऽ नञि द्रुत तँ भेल मध्य लय।
मात्रा ताल केर युनिट अछि आऽ एहिसँ लय केर नापल जाइत अछि।
तालमे मात्रा संयुक्त रूपसँ उपस्थित रहला उत्तर ओकरा विभाग कहल जाइत अछि- जेना दादरामे तीन मात्रा संयुक्त्त रहला उत्तर २ विभाग।
तालक विभागक नियमबद्ध विन्यास अछि छन्द।आऽ तालक प्रथम विभागक प्रथम मात्रा भेल सम आऽ एकर चेन्ह भेल + वा x आऽ जतय बिना तालीक तालकेँ बुझाओल जाइत अछि से भेल खाली आऽ एकर चेन्ह अछि ०.
ओऽ सम्पूर्ण रचना जाहिसँ तालक बोल इंगित होइत अछि, जेना मात्रा, विभाग,ताली, खाली ई सभटा भेल ठेका।
चेन्ह-
तालीक स्थान पर ताल चेन्ह आऽ संख्या।
सम + वा x
खाली ०
ऽ अवग्रह/बिकारी
- एक मात्राक दू टा बोल
- एक मात्राक चारिटा बोल
(अनुवर्तते)

11. बालानां कृते-गजेन्द्र ठाकुर
दानवीर दधीची
मंच सज्जा
अम्र वन, पोखरि आ’ युद्ध स्थल

वेष-भूषा
अधो वस्त्र- आश्रमवासीक हेतु
आश्विनक हेतु वैद्यक श्वेत वस्त्र
आ’ इन्द्रक हेतु योद्धाक वस्त्र
रथ आ’ अस्त्र शस्त्रक चित्र पर्दा पर छायांकित कएल जा’ सकैत अछि।


प्रथम दृश्य

( महर्षि दध्यङ आथर्वन दधीचीक तपोवनक दृश्य। सूर्योदयक स्वर्णिम आभा, फूलक गाछक फूलक संग पवनक प्रभावसँ सूर्य दिशि झुकब। यज्ञक धूँआसँ मलिन भेल गाछक पात। महर्षि सूर्योदयक दृश्यक आनन्द लए रहल छथि। मुदा दृष्टिमे अतृप्त भाव छन्हि। ओहि आश्रमक कुलपति थिकाह महर्षि, दस सहस्र छात्रकेँ विद्यादान करैत छथि, सभक नाम, गाम आ’ कार्यसँ परिचित छथि। से ओ’ तखने प्रवेश करैत एकटा अपरिचित आगंतुकक आगमन सँ साकांक्ष भ’ जाइत छथि।)


दध्यङ आथर्वन दधीची: अहाँ के छी आगंतुक?

अपरिचित: हम एकटा अतिथि छी महर्षि, आ’ कोनो प्रयोजनसँ आयल छी। कृपा कए अतिथिक मनोरथ पूर्ण करबाक आश्वासन देल जाय।
दध्यङ आथर्वन दधीची: एहि आश्रमसँ क्यो बिना मनोरथ पूर्ण कएने अहि गेल अछि आगंतुक। हम अहाँक सभ मनोरथ पूर्ण होयबाक आश्वासन दैत छी।

अपरिचित: हम देवता लोकनिक राजा इन्द्र छी। अहाँसँ परमतत्त्वक उपदेशक हेतु आयल छी।एहिसँ अहाँक कीर्त्ति स्वर्गलोक धरि पहुँचत।

(दध्यङ आथर्वन दधीची सोचमे पड़ल मंच पर एम्हरसँ ओम्हर विचलित होइत घुमय लहैत छथि। ओ’ मंच पर घुमैत मोने- मोन, बिनु इन्द्रकेँ देखने, बजैत छथि, जे दर्शकगणकेँ तँ सुनबामे अबैत अछि, मुदा इन्द्र एहन सन आकृति बनओने रहैत छथि, जे ओ’ किछु सुनिये नहि रहल छथि, आ’ मंचक एक दोगमे ठाढ़ भ’ जाइत छथि।)
दध्यङ आथर्वन दधीची: (मोने-मोन) हम शिक्षा देब तँ गछि लेने छी, मुदा की इन्द्र एकर अधिकारी छथि। बज्र लए घुमए बला, कामवासनामे लिप्त अनधिकारी व्यक्त्तिकेँ परमतत्त्वक शिक्षा? मुदा गछने छी तँ अपन प्रतिज्ञाक रक्षणार्थ मधु-विद्याक शिक्षा इन्द्रकेँ दैत छियन्हि।

इन्द्र: कोन सोचिमे पड़ि गेलहुँ महर्षि।

दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र हम अहाँकेँ मधुविद्याक शिक्षा दए रहल छी। भोगसँ दूर रहू। नाना प्रकारक भोगक आ’ भोज्यक पदार्थ सभसँ। ई सभ ओहने अछि, जेना फूल सभक बीचमे साँप। भोगक अछैत स्वर्ग अधिपति इन्द्र आ’ भूतलक निकृष्ट कुकुरमे कोन अंतर रहत तखन?
( इन्द्र अपन तुलना कुकुरसँ कएल गेल देखि कए तामसे विख-सबिख भ’ गेल। मुदा अपना पर नियंत्रण रखैत मात्र एक गोट वाक्य बजैत मंच परसँ जाइत देखल जाइत अछि।)
इन्द्र: महर्षि अहाँक ई अपमान तँ आइ हम सहि लेलहुँ। मुदा आजुक बाद जौँ अहाँ ई मधु-विद्या ककरो अनका देलहुँ तँ अहाँक गरदनि पर ई मस्तिष्क जकर अहाँकेँ घमण्ड अछि, एहि भूमि पर खसत।


दृश्य 2:

( ऋषिक आश्रम। आश्विन बन्धुक आगमन।महर्षिसँ अभिवादनक उपरान्त वार्त्तालाप। )

आश्विन बन्धु: महर्षि। आब हम सभ अहाँक मधु विद्याक हेतु सर्वथा सुयोग्य भ’ गेल छी। हिंसा आ’ भोगक रस्ता हम सभ छोड़ि देलहुँ। इन्द्र सोमयागमे हमरा लोकनिकेँ सोमपानक हेतु सर्वथा अयोग्य मानलन्हि, मुदा हमरा सभ प्रतिशोध नहि लेलहुँ। कतेक पंगुकेँ पैर, कतेक आन्हरकेँ आँखि हमरा सभ देलहुँ। च्यवन मुनिक बुढ़ापाकेँ दूर कएलहुँ। आ’ तकरे उपकारमे च्यवन हमरा लोकनिकेँ सोमपीथी बना देलन्हि।

दध्यङ आथर्वन दधीची: आश्विनौ। ब्रह्मज्ञानककेँ देब एकटा उपकारमयी कार्य अछि, आ’ अहाँ लोकनि एहि विद्याक सर्वथा योग्य शिक्षार्थी छी। इन्द्र कहने अछि, जे जाहि दिन ई विद्या हम कहियो ककरो देब तँ तहिये ओ’ हमर माथ शरीरसँ काटि खसा देत। मुदा ई शरीरतँ अछि क्षणभंगुर। आइ नहि तँ काल्हि एकरा नष्ट होयबाक छैक। ताहि डरसँ हम ब्रह्म विद्याक लोप नहि होए देबैक।

आश्विनौ: महर्षि अहाँक ई उदारचरित! मुद हमरो सभ शल्यक्रिया जनैत छी आ’ पहिने हमरा सभ घोड़ाक मस्तक अहाँक गरदनि पर लगाए देब। जखन इन्द्र अपन घृणित कार्य करत आ’ अहाँक मस्तककेँ काटत तखन अहाँक अस्ली मस्तक हमरा सभ पुनः अहाँक शरीरमे लगा देब।
(मंच पर आबाजाही शुरू भ’ जाइत अछि, क्यो टेबुल अनैत अछि तँ क्यो चक्कू धिपा रहल अछि, जेना कोनो शल्य चिकित्साक कार्य शुरू भ’ रहल होय। परदा खसए लगैत अछि, आ’ पूरा खसितो नहि अछि, आकि फेर उठब प्रारम्भ भ’ जैत अछि। एहि बेर घोड़ाक गरदनि लगओने महर्षि आश्विन बन्धुकेँ शिक्षा दैत दृष्टिगोचर ओइत छथि।)
दध्यङ आथर्वन दधीची: एहि जगतक सभ पदार्थ एक दोसराक उपकारी अछि। ई जे धरा अछि से सभ पदार्थक हेतु मधु अछि, आ’ सभ पदार्थ ओकरा हेतु मधु। समस्त जन मधुरूपक अछि। तेजोमय आ’ अमृतमय। सत्येक आधार पर सूर्य ज्योति पसारैत अछि एहि विश्वमे, आ’ चन्द्रक धवल प्रकाश दूर भगाबैत अछि रातिक गुमार आ’ आनैत अछि शीतलता। ज्ञानक उदयसँ अन्हारमे बुझाइत साँप देखा पड़ैत अछि रस्सा। विश्वक सूत्रात्माकेँ ओहि परमात्माकेँ अपन बुद्धिसँ पकड़ू। जाहि प्रकारेँ रथक नेमिमे अर रहैत अछि, ताहि प्रकारेँ परमात्मामे ई संपूर्ण विश्व।

( तखने मंचक पाछाँसँ बड्ड बेशी कोलाहल शुरू भ’ जाइत अछि। तखने बज्र लए इन्द्रक आगमन होइत अछि। एक्के प्रहारमे ओ’ महर्षिक गरदनि काटि दैत छथि। फेर इन्द्र चलि जाइत छथि। मंच पर आबाजाही शुरू भ’ जाइत अछि, क्यो टेबुल अनैत अछि तँ क्यो चक्कू धिपा रहल अछि, जेना कोनो शल्य चिकित्साक कार्य शुरू भ’ रहल होय। परदा खसए लगैत अछि, आ’ पूरा खसितो नहि अछि, आकि फेर उठब प्रारम्भ भ’ जैत अछि। एहि बेर महर्षि पुनः अपन स्व-शरीरमे देखल जाइत छथि। ओ’ बैसले छथि आकि इन्द्र अपन मुँह लटकओंने अबैत अछि।)

इन्द्र: क्षमा करब महर्षि हमर अपराध। आइ आश्विन-बन्धु हमरा नव-रस्ता देखओलन्हि। गुरूसँ एको अक्षर सिखनहार ओकर आदर करैत छथि मुदा हम की कएलहुँ। असल शिष्य तँ छथि आश्विन बन्धु।

दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र। अहाँकेँ ताहि द्वारे हम शिक्षा देबामे पराङमुख भए रहल छलहुँ। मुदा अहाँक दृढ़निश्चय आ’ सत्यक प्रति निष्ठाक द्वारे हम अहाँकेँ शिक्षा देल। हमरा मोनमे अहाँक प्रति कोनो मलिनता नहि अछि।
इन्द्र: धन्य छी अहाँ आ’ धन्य छय्हि आश्विनौ। आब हम ओ’ इन्द्र नहि रहलहुँ। हमर अभिमानकेँ आश्विनौ खतम कए देलन्हि।

(इन्द्र मंचसँ जाइत अछि। परदा खसैत अछि।)


दृश्य 3:

( स्वर्गलोकक दृश्य। चारू दिशि वृत्र आ’ शम्बरक नामक चर्चा करैत लोक आबाजाही कए रहल छथि। ओ’ दुनू गोटे आक्रमण कए देने अछि भारतक स्वर्गभूमि पर। इन्द्र सहायताक हेतु महर्षिक आश्रम अबैत छथि।)

इन्द्र: वृत्र आ’ शम्बरक आक्रमण तँ एहि बेर बड्ड प्रचंड अछि। अहाँक विचार आ’ मार्गदर्शनक हेतु आयल छी महर्षि।

दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र। कुरुक्षेत्र लग एकटा जलाशय अछि, जकर नाम अछि, शर्यणा। अहाँ ओतए जाऊ, ओतय घोड़ाक मूड़ी राखल अछि, जाहिसँ हम आश्विनौकेँ उपदेश देने छलहुँ। ब्रह्मविद्या ओहि मुँहसँ बहरायल आ’ ताहि द्वारे ओ’ अत्यंत कठोर आ’ दृढ़ भ’ गेल अछि। ओहिसँ नाना-प्रकारक शस्त्र बनाऊ, अग्नि आश्रित विध्वंसकक प्रयोग करू, त्रिसंधि व्रज, धनुष, इषु-बाण-अयोमुख-लोहाक सूचीमुख सुइयाबला आ’ विकंकतीमुख- कठोर कन्ह सन एहि तरह्क शस्त्रक प्रयोग करू, कवच आ’ शिरस्त्राणक प्रयोग करू, अंधकार पसारयबला आ’ जड़ैत रस्सी द्वारा दुर्गंधयुक्त्त धुँआ निकलएबला शस्त्रक सेहो प्रयोग करू आ’ युद्ध कए विजयी बनू।

इन्द्र: जे आज्ञा महर्षि।

( परदा खसैत अछि, आ’ जखन उठैत अछि, तँ पोखडिक कातमे घोड़ाक मूड़ीसँ इन्द्र द्वारा वज्र आ’ विभिन्न हथियार बनाओल जा’ रहल अछि, फेर परदा खसि क’ जखन उठैत अछि तँ अग्नियुक्त शस्त्र, जे फटक्काक द्वारा उत्पन्न कएल जा’ सकैत अछि, देखबामे अबैत अछि आ’ मंच धुँआसँ भरि जाइत अछि। फेर परदा खसैत अछि आ’ मंचक पाछाँसँ सूत्रधारक स्वर सुनबामे अबैत अछि।)

सूत्रधार: इन्द्रक विजय भेलन्हि आ’ दुष्ट सभ गुफामे भागि गेल। ईएह छल वैदिक नाटक बादमे एहि अर्थकेँ अनर्थ कए देलन्हि पौराणिक लोकनि, जाहि कथामे दधीचीक हड्डीसँ इन्द्रक वज्र बनएबाक चर्च कएल गेल अछि।

(पर्दा ओ’ ई असल बात अछि केर फुसफुसाहटिक संग खसले रहैत अछि, आ’ लाइट क्षणिक ऑफ भेलाक बाद ऑन भए जाइत अछि।)
2.संस्कृति
शुक्ल यजुर्वेद, अध्याय 22, मंत्र 22
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।


कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्तितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥

करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।

3.की अहाँकेँ बुझल अछि?

1.महात्मा गाँधी 15 अगस्त 1947 केँ कलकत्तामे रहथि आ’ भरि दिन उपास आ’ प्रार्थनामे बितओलन्हि।
2.विश्वक सभसँ पैघ कैंटीलीवर पुल ( दू टा बेम बीचमे योज्यसँ जुड़ल आ’ ऊपरमे लोहाक रस्सा सभसँ बैलेंस कएल) कनाडाक क्यूबेक पुल छैक। ई पुल क्यूबेक नगरक पश्चिममे सेंट लॉरेन्स धार पर अछि।
3. लिमिटेड लायबिलिटी कंपनीक पाँछा ltd लगैत छैक। तहिना जर्मनीमे एकरा हेतु एहि हेतु Gmbh , इटलीमे SpA आ’ संयुक्त्त राज्य अमेरिकामे LLC लगैत छैक।
12. पञ्जी प्रबंध-गजेन्द्र ठाकुर

पंजी-संग्राहक- श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी)
श्री विद्यानन्द झा पञीकार (प्रसिद्ध मोहनजी) जन्म-09.04.1957,पण्डुआ, ततैल, ककरौड़(मधुबनी), रशाढ़य(पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा | पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आ' संरक्षणमे संल्गन। कृति- पञ्जी शाखा पुस्तकक लिप्यांतरण आ' संवर्द्धन- 800 पृष्ठसँ अधिक अंकन सहित। पञ्जी नगरमिक लिप्यान्तरण ओ' संवर्द्धन- लगभग 600 पृष्ठसँ ऊपर(तिरहुता लिपिसँ देवनागरी लिपिमे)। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज(दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।
कालक प्रभावे अत्रिय लोकनिमे पञ्जी समाप्त भए गेल आऽ ताहि द्वारे हुनका लोकनिमे पूरा गामेकेँ छोड़ि देल जाइत अछि, जाहिसँ सिद्धांतमे भाङठ नहि होए।
पञ्जी-पुस्तकक हेतु एकटा श्लोक अछि- जलात् रक्ष तैलात् रक्ष रक्ष स्थूल बन्धनात् माने पुस्तककेँ जलसँ तेलसँ आऽ स्थूल बन्धनसँ बचाऊ।संगहि सूर्य जखन सिंह राशिमे (मोटा-मोटी १६ अगस्त सँ १६ सितम्बर धरि) रहए तखन एकरा सुखाऊ- एहि समयमे सभसँ बेशी कड़गर रौद रहैत अछि।
उतेढ- सिद्धांत लिखबासँ पहिने वर ओऽ कन्या पक्षक अधिकार ताकल जाइत अछि।कन्याक विवाहक ५-१० वर्ष पूर्व कन्याक पिता पञ्जीकारसँ अधिकार माला बनबैत छथि, जाहिमे संभावित आऽ उपलब्ध वरक सूची रहैत छैक। पञ्जीकार एहि एतु उतेढ बनबैत छथि।वर कन्या दुनू पक्षक पितृ कुलक ६ पुस्त आऽ मातृकुलक ५ पुरखाक यावेता परिचय देल जाइत अछि।यावेता परिचयक अर्थ भेल ३२ मूलक उतेढ़ जे अधिकार तकबामे प्रयोजनीय थीक। कोनो कन्या मातृ वा पितृ पुरखा कुलमे १६ व्यक्त्तिसँ छठम स्थानमे रहैत छथि। एहि १६ मे सँ १६ वा एको व्यक्त्ति वरक पितृपक्षमे अओथिन्ह तँ ओहि कन्या वरक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत।जौँ ओऽ १६ व्यक्त्ति वा एको व्यक्त्ति मातृ पक्ष (वरक) मे अओथिन्ह तँ अधिकार भए जायत।
मुदा एहिमे ई सेहो देखबाक थीक जे वर कन्या समान गोत्र आऽ समान प्रवरक नहि होथि।संगहि ई सेहो देखबाक थीक जे वरक मातामह आऽ कन्याक मूल ओऽ मूलग्राम सहित एक होए तँ सात पुस्त धरि मातृसापिण्डयक कारणेँ अधिकार नहि होएत। ई सेहो देखए पड़त जे कन्या वरक विमाताक भाइक सन्तान नहि होए।
पञ्जी सात प्रकारक होइत आछि-मूल,शाखा,गोत्र,पत्र,दूषण उतेढ़ आऽ एकटा आर।
पञ्जीक प्रारम्भसँ पहिने सभ क्यो अपन-अपन वंशावली स्वयं राखैत छलाह। हरसिंह देव ताहि हेतु एकटा संस्थाक निर्माण कएलन्हि। मैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक हेतु शंकरदत्त आऽ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त पञ्जीकार नियुक्त्त भेलाह।
दरभंगा नरेश माधव सिंह शाखा प्रणयन पुस्तकक आदेश देलन्हि।एहिसँ पहिने मूल पञ्जी सभक समान रूपेँ बनैत छल। आब सोति, जोग आऽ पञ्जीबद्धक हेतु फराक शाखा पञ्जी बनाओल जाए लागल।
गोत्र पञ्जीमे सभ गोत्र आऽ तकर प्राचीन मूल रहैत अछि।
पत्र पञ्जी लगभग ३०० वर्ष पूर्वसँ प्रचलनमे अछि। एहिमे मूलग्रामक उल्लेख रहए लागल।
दूषण पञ्जीमे वंशमे आएल क्षरणक उल्लेख रहैत अछि। ई गोपनीय पञ्जी थीक आऽ एकरा सार्वजनिक नहि कएल जाइत अछि। बहुत बादमे एकर चर्च संभव होइत अछि।
उतेढ़ पञ्जीमे सपिण्डक निवृत्ति होइत अछि- छह पुरखक प्राप्त होइत अछि। मात्र रसाढ़-अररियाक पञ्जीमे महिलाक पञ्जी भेटैत अछि।
(अनुवर्तते)
13. संस्कृत मिथिला –गजेन्द्र ठाकुर
म.म. शंकर मिश्र

पन्द्रहम शताब्दीमे भवनाथ मिश्रक घरमे मधुबनी जिलाक सरिसव ग्राममे शंकर मिश्रक जन्म भेल। भवनाथ मिश्र बहुत पैघ नैय्यायिक छलाह आऽ कहियो ककरोसँ कोनो वस्तुक याचना नहि कएलन्हि, ताहि लेल सभ हुनका अयाची मिश्र कहए लगलन्हि। शँकर मिश्र पितासँ अध्ययन प्राप्त कएलन्हि आऽ पैघ भाए जीवनाथ मिश्रससँ विद्याक अधिग्रहण कएलन्हि।
जखन शंकर मिश्र पाँच वर्षक छलाह तँ महाराज शिव सिंहक सबारी जाऽ रहल छल। राजा ओहि प्रतिभाशाली बालककेँ देखलन्हि आऽ हुनकासँ परिचय पुछलन्हि। तखन उत्तर भेटलन्हि-
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥

फेर राजाक आग्रह पर ओऽ दोसर श्लोक पढ़लन्हि-
चलितश्चकितच्च्हन्नः प्रयाणे तव भूपते।
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्रपात् ॥

राजा प्रसन्न भए द्रव्य देलखिन्ह जाहिसँ, शंकरक माए पोखरि खुनबेलन्हि, ओऽ पोखरि एखनो सरिसबमे अछि।
शंकर मिश्र महाराज भैरव सिंहक कनिष्ठ पुत्र राजा पुरुषोत्तमदेवक आश्रित छलाह। एकर वर्णन रसार्णव ग्रंथमे भेटैत अछि।
शंकर मिश्र कवि, नाटककार, धर्मशास्त्री आऽ न्याय-वैशेषिक केर व्याक्याकार रहथि।
शंकर मिश्र ग्रंथावली-
१. १.गौरी दिगम्बर प्रहसन
२. २.कृष्ण विनोद नाटक
३. ३.मनोभवपराभव नाटक
४. ४.रसार्णव
५. ५.दुर्गा-टीका
६. ६.वादिविनोद
७. ७.वैशेषिक सूत्र पर उपस्कार
८. ८.कुसुमांजलि पर आमोद
९. ९.खण्डनखण्ड-खाद्य टीका
१०.१०.छन्दोगाह्निकोद्धार
११.श्राद्ध प्रदीप
१२.प्रायश्चित प्रदीप।
अंतिम तीनू टा ग्रन्थ धर्मशास्त्र पर लिखल गेल आऽ क्रमसँ सामवेदक अनुसारे दैनिक धार्मिक कृत्यक नियमावली, श्राद्ध कर्म आऽ प्रायश्चितिक अनुष्ठानसँ संबंधित अछि।
14. मैथिली भाषापाक
भाषा आ’ प्रौद्यगिकी

कखनो काल मंगल फॉन्टमे टाइप कएलाक उत्तर pdf मे परिवर्त्तित करबाक काल किछु दिक्कत होइत छैक। एहि स्थितिमे दूटा काज करू। पहिल जे वर्डक फाइल खोलू, फेर प्रिंट विकल्पमे जाऊ। प्रिंटरमे एडोब एक्रोबेट सेलेक्ट करू, फेर आगू बढ़बासँ पहिने प्रोपेर्टीजमे जाऊ। ओहिमे do not send fonts to acrobat distiller चेक कएल होयत। एकरा अनचेक करू( टिक केर चेन्हकेँ हटाऊ) । एकर बाद ओके करू तँ pdf फाइल बनि जायत। एहि फाइलमे कखनो काल घ हलन्त आ’ ज कखनो काल चतुर्भुज रूपमे नञि पढ़बा योग्य अबैत अछि। एकरा दूर करबाक हेतु शुरूमे कंट्रोल ए सँ संपूर्ण वर्ड फाइलकेँ खोललाक बाद सेलेक्ट कए लिअ आ’ फोंन्टमे मंगल केर बदलामे ‘एरियल यूनीकोड एम एस’ फॉन्ट सेलेक्ट कए लिअ, तकरा बाद प्रिंट ऑप्शन फेर प्रिंटरमे अडोब एक्रोबेट आ’ आँगा प्रोपेर्टीजमे do not send fonts to acrobat distiller चेक कएल होयत। एकरा अनचेक करू( टिक केर चेन्हकेँ हटाऊ)। आब जे pdf फाइल बनत ताहिमे कोनो प्रकारक दिक्कत नहि होयत। पी.डी.एफ. स्प्लिटर आ’ मर्जर सॉफ्टवेयर ( जेना फ्रीवेयर सॉफ्टवेयर ‘पी.डी.एफ. हेल्पर) केर मदतिसँ आसानीसँ पी.डी.एफ. फाइल जोड़ि आ’ तोड़ि सकैत छी।


. मैथिली भाषापाक (२)- गजेन्द्र ठाकुर/ नागेन्द्र कुमार झा

मूल्यांकन
अत्युत्तम- 14-15
उत्तम- 12-13
बड़-बढ़िया- 09-11

1.गतानब: क. खाट तानब ख. खाट खोलब. ग. खाट तोड़ब घ. एहिमे सँ कोनो नहि।
2. पलानिकेँ: क. कुमनसँ ख. यत्नपूर्बक ग. सोचि कए. घ. एहिमे सँ कोनो नहि।
3. टोनब: क. गाछ रोपब ख. गाछ जरायब ग.गाछ रोपब घ. डारि खण्ड करब।
4. अकानब: क. कान काटब. ख.कान लग बाजब. ग. ध्यान नहि देब. घ. कान पाथब ।
5. गुदानब: क. देखब. ख. ध्यान राखब. ग. उपेक्षा करब. घ. मोजर देब।
6. उसनब: क. पानिमे आगिसँ सिद्ध करब ख. भुजब. ग. सुखायब. घ. एहिमे सँ कोनो नहि।।
7.बिधुनब: क. सरियायब ख.फेंकब. ग. उनटब-पुनटब घ. गेंटब।
8. पटब: क. लड़ब. ख. झगड़ा होएब. ग. मिलान नहि होयब. घ. मिलान होयब।
9. बिनब: क. नुआ बीनब-बनाएब. ख. नुआ सुखायब. ग. नुआ जराएब. घ. नुआ धोब।
10. खुनब: क. कोड़ब ख. चास देब. ग. पटाएब. घ. जोतब।
11. तुनब: क. कपड़ा बीनब. ख. कपड़ा सीब. ग. तूर तुनब. घ.भाड़ घोंटब।
12. बुनब: क. बीआ बाउग करब ख. बीआ उखाड़ब.ग. बीआ दहाएब. घ. एहिमे सँ कोनो नहि।
13. लुबधब: क. अरबधब. ख. सोहड़ि जाएब. ग. विहीन होएब घ. दुलार करब।
14. अरबधब: क. अवश्य करब. ख. फुर्ती करब. ग. अनवरत कार्य करब. घ. एहिमे सँ कोनो नहि।
15. छपब: क. तिरोधान होएब. ख. दूर जायब. ग. दबाड़ब. घ. हँसायब।
उत्तर
मैथिली भाषापाक (२) केर उत्तर:
1. क. खाट तानब ।
2. ख. यत्नपूर्बक ।
3. घ. डारि खण्ड करब।
4. घ. कान पाथब ।
5. ग. उपेक्षा करब ।
6. क. पानिमे आगिसँ सिद्ध करब ।
7. ग. उनटब-पुनटब ।
8. घ. मिलान होयब।
9. क. नुआ बीनब-बनाएब ।
10. क. कोड़ब ।
11. ग. तूर तुनब ।
12. क. बीआ बाउग करब ।
13. ख. सोहड़ि जाएब ।
14. क. अवश्य करब ।
15. क. तिरोधान होएब ।
मूल्यांकन
अत्युत्तम- 14-15
उत्तम- 12-13
बड़-बढ़िया- 09-11

15. रचना लेखन-गजेन्द्र ठाकुर
देवनागरीक अतिरिक्त्त समस्त उत्तरभारतीय भाषा नेपाल आऽ दक्षिणमे (तमिलकेँ छोड़ि) सभ भाषा वर्णमालाक रूपमे स्वर आऽ कचटतप आऽ य, र ल व, श, स, ह केर वर्णमालाक उपयोग करैत अछि। ग्वाण्ङ केर हेतु संस्कृतमे दोसर वर्ण छैक (छान्दोग्य एकर उच्चारण नहि करैत छथि मुदा वाजसनेयी खूब करैत छथि-जेना छान्दोग्य कहताह सभूमि तँ वाजसनेयी कहताह सभूमीग्वंङ), वैदिक संस्कृतमे उदात्त, अनुदात्त आऽ स्वरित (क्रमशः क॑ क॒ क॓) उपयोग तँ मराठीमे ळ आऽ अर्द्ध ऱ् केर सेहो प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे ऽ (बिकारी वा अवग्रह) केर प्रयोग श्स्कृत जेकाँ होइत अछि आऽ आइ काल्हि एकर बदलामे टाइपक सुविधानुसारे आ’ (आऽ केर बदलामे) एहन प्रयोग सेहो होइत अछि।
जेना फारसीमे अलिफ बे से आऽ रोमनमे ए बी सी होइत अछि तहिना मोटा-मोटी सभ भारतीय भाषामे लिपिक भिन्नतक अछैत वर्णमालाक स्वरूप एके रङ अछि।
वर्णमालामे दू प्रकारक वर्ण अछि- स्वर आऽ व्यंजन। वर्णक संख्या अछि ६४ जाहिमे २२ टा स्वर आऽ ४२ टा व्यञ्जन अछि।
पहिने स्वरक वर्णन दैत छी- जाहि वर्णक उच्चारणमे दोसर वर्णक उच्चारणक अपेक्षा नहि रहैत अछि, से भेल स्वर।
स्वरक तीन टा भेद अछि- ह्रस्व, दीर्घ आऽ प्लुत। जाहिमे एक मात्राक समय लागय बाजयमे से भेल ह्रस्व, जाहिमे दू मात्रा समय लागल से भेल दीर्घ आऽ जाहिमे तीन मात्रा समय लागल से भेल प्लुत।

मूलभूत स्वर अछि- अ इ उ ऋ लृ
पाणिनिसँ पूर्वक आचार्य एकरा समानाक्षर कहैत छलाह।
दीर्घ मिश्र स्वर अछि- ए ऐ ओ औ
पाणिनिसँ पूर्वक आचार्य एकरा सन्ध्यक्षर कहैत छलाह।
लृ दीर्घ नहि होइत अछि आऽ सन्ध्यक्षर ह्रस्व नहि होइत अछि।
अ इ उ ऋ एहि सभक ह्रस्व, दीर्घ (आ ई ऊ ॠ) आऽ प्लुत (आ३ ई३ ऊ३ ॠ३) सभ मिला कए १२ वर्ण भेल। लृ केर ह्रस्व आऽ प्लुत दू भेद अछि (लॄ३) तँ २ टा ई भेल। ए ऐ ओ औ ई चारू दीर्घ मिश्रित स्वर अछि आऽ एहि चारूक प्लुत रूप सेहो (ए३ ऐ३ ओ३ औ३) होइत अछि, तँ ८ टा ई सेहो भेल। भऽ गेल सभटा मिला कए २२ टा स्वर।

एहि सभटा २२ स्वरक वैदिक रूप तीन तरहक होइत अछि, उदात्त, अनुदात्त आऽ स्वरित।
ऊँच भाग जेना तालुसँ उत्पन्न अकारादि वर्ण उदात्त गुणक होइत अछि आऽ तेँ उदात्त कहल जाइत अछि।
नीँचा भागसँ उत्पन्न स्वर अनुदात्त आऽ जाहि अकारादि स्वरक प्रथम भागक उच्चारण उदात्त आऽ दोसर भागक उच्चारण अनुदात्त रूपेँ होइत अछि से भेल स्वरित।
स्वरक दू प्रकार आर अछि, सानुनासिक जेना अँ आऽ निरनुनासिक जेना अ।
दत्तेन निर्वृत्तः कूपो दात्तः। दत्त नाम्ना पुरुष द्वारा विपाट्- ब्यास धारक उतरबरिया तट पर बनबाओल एल इनार भेल दात्त। अञ प्रत्यान्त भेलासँ ’दात्त’ आद्युदात्त भेल, अण् प्रत्यायान्त होइत तँ प्रत्यय स्वरसँ अन्तोदात्त होइत। रूपमे भेद नहि भेलो पर स्वरमे भेद अछि। एहिसँ सिद्ध भेल जे सामान्य कृषक वर्ग सेहो शब्दक सस्वर उच्चारण करैत छलाह।
स्वरितकेँ दोसरो रूपमे बुझि सकैत छी- जेना एहिमे अन्तिम स्वरक तीव्रस्वरमे पुनरुच्चारण होइत अछि।
आब व्यञ्जन पर आऊ।
(अनुवर्तते)
मैथिलीक मानक लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य अग्राह्य
एखन अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठाम ठिमा,ठिना,ठमा जकर,तकर जेकर, तेकर तनिकर तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य) अछि ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय: भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय(अपवाद-संसार सन्सार नहि), किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि।यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20.
ग्राह्य अग्राह्य
1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला होयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए
61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
किछु आर शब्द
मानक मैथिली_३
तका’ कए तकाय तकाए
पैरे (on foot) पएरे
ताहुमे ताहूमे
पुत्रीक
बजा कय/ कए
बननाय
कोला
दिनुका दिनका
ततहिसँ
गरबओलन्हि गरबेलन्हि
बालु बालू
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
जे जे’
से/ के से’/के’
एखुनका अखनुका
भुमिहार भूमिहार
सुगर सूगर
झठहाक झटहाक
छूबि
करइयो/ओ करैयो
पुबारि पुबाइ
झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
पएरे-पएरे पैरे-पैरे
खेलएबाक खेलेबाक
खेलाएबाक
लगा’
होए- हो
बुझल बूझल
बूझल (संबोधन अर्थमे)
यैह यएह
तातिल
अयनाय- अयनाइ
निन्न- निन्द
बिनु बिन
जाए जाइ
जाइ(in different sense)-last word of sentence
छत पर आबि जाइ
ने
खेलाए (play) –खेलाइ
शिकाइत- शिकायत
ढप- ढ़प
पढ़- पढ
कनिए/ कनिये कनिञे
राकस- राकश
होए/ होय होइ
अउरदा- औरदा
बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
चलि- चल
खधाइ- खधाय
मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
कैक- कएक- कइएक
लग ल’ग
जरेनाइ
जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
होइत
गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
चिखैत- (to test)चिखइत
करइयो(willing to do) करैयो
जेकरा- जकरा
तकरा- तेकरा
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
हारिक (उच्चारण हाइरक)
ओजन वजन
आधे भाग/ आध-भागे
पिचा’/ पिचाय/पिचाए
नञ/ ने
बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
तखन ने (नञ) कहैत अछि।
कतेक गोटे/ कताक गोटे
कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
लग ल’ग
खेलाइ (for playing)
छथिन्ह छथिन
होइत होइ
क्यो कियो
केश (hair)
केस (court-case)
बननाइ/ बननाय/ बननाए
जरेनाइ
कुरसी कुर्सी
चरचा चर्चा
कर्म करम
डुबाबय/ डुमाबय
एखुनका/ अखुनका
लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
कएलक केलक
गरमी गर्मी
बरदी वर्दी
सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
एनाइ-गेनाइ
तेनाने घेरलन्हि
नञ
डरो ड’रो
कतहु- कहीं
उमरिगर- उमरगर
भरिगर
धोल/धोअल धोएल
गप/गप्प
के के’
दरबज्जा/ दरबजा
ठाम
धरि तक
घूरि लौटि
थोरबेक
बड्ड
तोँ/ तूँ
तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
तोँही/तोँहि
करबाइए करबाइये
एकेटा
करितथि करतथि
पहुँचि पहुँच
राखलन्हि रखलन्हि
लगलन्हि लागलन्हि
सुनि (उच्चारण सुइन)
अछि (उच्चारण अइछ)
एलथि गेलथि
बितओने बितेने
करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
करएलन्हि
आकि कि
पहुँचि पहुँच
जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
से से’
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
फेल फैल
फइल(spacious) फैल
होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
फेका फेंका
देखाए देखा’
देखाय देखा’
सत्तरि सत्तर
साहेब साहब

16.
पोसपुत कथा संग्रह श्री संतोष कुमार मिश्र, मिथिला (नेपाल)।
मिथिलाक्षरमे प्रकाशित प्रथम 21म सदीक मैथिली पोथी।

समीक्षा- गजेन्द्र ठाकुर.

पोथी समीक्षा

सन्तोष कुमार मिश्र केर कथा संग्रह पोसपुत प्राप्त भेल अछि। नेपालक एहि कथाकारक सात गोट कथा पोसपुत, एकटा ब्यथा पत्रमे, जखन कनिञा भेलखिन बिमार, सिपाहि, डाक्टर, भाग्य अप्पन-अप्पन आ’ दाग एहिमे सम्मिलित अछि। कथावस्तु प्रस्तुत करबासँ पहिने एकर अन्य पक्ष पर चर्च करब आवश्यक।

पहिल गप जे एहि पुस्तकक समीक्षासँ एकर प्रारम्भ भेल अछि। श्री कालीकान्त ‘तृषित’, देपुरा रुपैठा, जनकपुर एकर सांगोपांग समीक्षा कएलन्हि अछि, आ’ ई कथाकारक उच्च मानसिकता अछि जे ओ’ एहि समीक्षाकेँ उचित रूपमे लेलन्हि, कारण जौँ से नहि रहैत तँ एकर एहि रूपमे स्थान पोथीमे नहि भेटैत।

दोसर गप जे ई पोथी एक दिशिसँ देखला उत्तर देवनागरीमे आ’ दोसर दिशिसँ देखला उत्तर मिथिलाक्षरमे लिखल बुझि पड़ैत अछि आ’ से अछियो। 21म शताब्दीक ई प्रायः एहि तरहक प्रथम प्रयास अछि, जे मैथिलीमे देखबामे आएल अछि।

आब पहिने तृषित जीक समालोचना देखैत छी। ओ’ लिखैत छथि, जे कथाकारक कथामे पलायनवादी सोचक प्रधानता रहैत अछि, संगहि ईहो गप उठबैत छथि जे साहित्य सृष्टाकेँ तटस्थ प्रस्तोता होयबाक चाही आकि पथ प्रदर्शक, पलायनवादे होयबाक चाही आकि संघर्षक प्रेरणाश्रोत?
‘पोसपुत’क विषयमे तृषित जी कहैत छथि, जे एहिमे तीनपुस्तक वर्णन अछि, आ’ राजा महेन्द्र आ’ राजा त्रिभुवनक समयमे भेल घटनाक वर्णन जोड़बाक अभिप्राय स्पष्ट नहि अछि।
’एकटा व्यथा पत्रमे’ केर विषयमे ऋषित कहैत छथि जे कालक गति , लोकक विवशता आ’ अनुभूतिक वर्णन अछि एहिमे।
तेसर कथा ‘ जखन कनिञा भेलखिन बिमार’ केँ तृषित जी बिमार कथा घोषित करैत छथि।
‘सिपाही’ कथामे ओहि पदक विवरण अछि जे विवाह दानमे प्राथमिकता पबैत छल आ’ आब त्याज्य भ’ गेल अछि।

‘डॉक्टर’ कथाकेँ तृषितजी पलायनवादी सोचक पराकाष्ठा कहैत छथि। तृषितजीक विचारेँ डॉक्टरकेँ मरैत दम तक रोगीकेँ बचेबाक प्रयास करबाक चाही।
’भाग्य अपन अपन’ भाग्य चक्र पर आधारित अछि। ‘दाग’मे क्षणिक आवेशमे उठाओल गेल डेग, अपरिपक्व उम्रमे भेल प्रेमविवाह फेर तकरा बाद दोसराक संग भागि जायब ई सभ पथभ्रष्टताक प्रतीक अछि।
पोसपुत आत्मकथात्मक शैलीमे लिखल गेल अछि, मुदा एकर समापन अकस्मात् होइत अछि, पोसपुतक किरदानीसँ आ’ मायक नैहरि जएबासँ।
दोसर कथा पत्र शैलीमे अछि, जतय पोस्पुत कथा जेकाँ पात्र संतोष छथि। एहि कथाक समापन सेहो बड्ड हड़बड़ीमे भेल अछि, आ’ घटनाक तारतम्य लेखकसँ पाठक धरि नहि पहुँचि सकल।
ओहिना जखन कनिञा भेलखिन बिमारमे लेखक अपन कथ्य स्पष्ट नहि कए सकलाह।
सिपाहि कथामे सेहो पात्रक नाम संतोष छन्हि, मुदा कथ्य आत्मकथात्मक नहि अछि। डॉक्टरकेँ देशमे सेवा करबाक पुरस्कार भेटलैक प्रमाण-पत्रक रद्द होयब आ’ से ओकरा हेतु प्राणघातक सिद्ध भेल।भाग्य अपन-अपन पुरान खिस्सा कहबाक शैलीमे अछि, जे राजा देशमे सर्वेक्षण करएबाक हेतु राजकुमारकेँ पठबैत छथि आ’ ई कथ नीक बनि पड़ल अछि। दाग कथा कथात्मक अछि आ’ हड़बड़ीमे लिखल भाषित होइत अछि।

एहि कथा संग्रहकेँ तृषित जी समीक्षाक संग भाषायी रूपसँ संपादित नहि कएलन्हि, कारण एहिमे मानकताक अभाव अछि। प्रूफ रीडिंग सेहो नीक जेँका नहि भेल अछि। मानकताक हेतु विदेह आ’ मिथिला मंथनसँ प्रयास शुरू भेल अछि, आ’ विदेहक रचना लेखन स्तंभमे एकरा स्थान देल गेल अछि।केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर द्वारा सेहो मैथिली स्टाइल मैनुअलक निर्माण भ’ रहल अछि, आवश्यकता अछि, जे नेपालक विद्वान लोकनि सेहो अपन मत मैथिली अकादमीक मानक निर्धारण शैलीक आधार पर बनाओल जा’ रहल शैली पर देथि, जाहिसँ ई सर्वग्राह्य होए।


17. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS
a. VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT---

The period of Janaka dynasty and the Vajjian Republic are mutually exclusive. After the death of Karala Janaka it turned into a republic and became, one of the eight constituent clans of the Vajjian Confederacy , which was later destroyed by King Ajatasatru of Magadha.Videha continued to be a monarchy even after the death of Karala Janaka and this kingdom was conquered by Mahapadma Nanda and annexed to the growing Magadhan empire.Vrijis, or any two together might be called Vrijis, as well as Samvrijis or the "United Vrijis".The criminals were arraigned before the atllinkula "eight clans", a jury composed of one member from each of the separate divisions of the tribe.The name of SamVriji was a descriptive title of the whole nation of eight clans. Buddha observed that they were accustomed to hold frequent meet¬ings, to act in concert, and to uphold the ancient Vajji an institution.The ancient cities in this connection are Vaisali, Kesariya, Janakpur, Navadgarh, Siihrun, Darbhanga, Purnea and Motihari. besides Alakappo (somewhere in the neighbourhood of the Gandak) inhabited by the Balaya. It has nothing to do with the eight clans of the Vajjian Republic. The earliest champion of the republics which flourished at the time of the Buddha. were- the old Videhas, the Lichhavis, the Jnatrikas, the Vrijis proper, the Ugras, the Bhogas, the Aikshvakas and the Kauravas. The humorous remark of the Lalitavistara about the me mbers of the Licchavian Assembly and all being called raja is applicable to the Videhas.The Mahanarada-Kassapa .- the Videhas had a council of four.The Mahajanaka Jataka informs us that the senapati was to administer justice with the help of his chief judges.The Mahanarada Kassapa Jataka also informs us that the king was assisted in the administration of justice by a council. Brahmanic tradition of Videha having been a kingdom and the Buddhist tradition of its being a republic with a king, chosen by the assembly. Out of these seven officers only four appear to be the public officers, the raja, uparaja, senapati and bhandagarika, while the others were apparently the personal servants and attendants of the king.Pingala, was chosen to be the courtesan of the republic. According to the Gandhara Jataka, Videha had 16000 villages with filled storehouses, 16000 dancing girls. The existence of courtesans in a state cannot automatically make it a republican state.The Dipavamsa gives a legendary account of kings of some Indian States but it may contain some historical truth. It says that Kalara Janaka's son was Samarhkara who was followed by king Asoka, an inaugurated prince.The last of the kings of Champanagara was Nagadeva. Dipavamsa says that there were kings at Mithilanagara even after Kalara Janaka; twentyfive kings ruled at Mithilanagara, the last of them being valiant Buddhadatta, that the kingdom passed on to the master of Rajagriha -Palaliputra, i.e., Magadha.The Lalitavistara gives an interesting account of king Sumitra of the very charming city of Mithila. The king has a mighty army of elephants, horses, chariots and foot soldiers.He is rich in gold. The king is very old, unable to govern well his kingdom, and the parent of many children.Tibetan tradition says that a minister of King Virudhaka of Videha, named Sakala, was compelled to flee to Vaisali from his own country owing to the jealousy of the other ministers. The Gilgit Manuscripts where Khanda is the prime minister of an unnamed king of Videha . He was the head of 500 amatyas. Other ministers conspired to destroy him. "Where shall I go ? If I go to Sravasti, it is under a king, and so there would be the same troubles. So would be the case in Varanasi, Rajagriha and Champa which are all subject to the authority of one person (ekadhina). Vaisali is under a gana (ganadhina). What is desired by ten is disliked by twenty. So by all means I must go to Vaisali." Consequently he went to Vaisali where he was cor¬dially received by the republican Lichchhavis.
Between the compilation of the Puranas and the annihilation of Kshatriya states in India by Mahapadma Nanda there reigned among others 28 Maithilas ,i.e., 28 kings of Mithila. Thus Ajatasatru, who destroyed the Vajjian Republic, did not extirpate Mithila which continued to be a monarchy till the time of Mahapadma Nanda.
The king of Avanti, a contemporary of the Buddha, informs his wife in the course of a conversation regarding their daughter's marriage that he is connected with the rulers of Magadha, Kasi, Vanga, Surashtra, Mithila and Surasena. Buddhudatta
is indicated as the last king of Mithilanagara. Unlike Mahaviat Budha did not pass any rainy season at Mithila. The Majjhima Nikaya relate two visits of the Buddha to the Videha country.
Buddha stayed with Ananda at the Makhadeva-Ambavana and preached the Afakhadera Sutta. The other relates to the conversion of Brahmayu, a Brahmana, foremost in Mithila in his knowledge of the Vedas. He was aged 120 years. He met the Buddha when the latter had come to Mithila and taken his residence in the Makhadeva¬ Ambavana and having found thirtytwo marks of a great man in him he was converted along with his pupil Uttara to the new faith. He entertained the Buddha and the monks for a week. His death occurred not long after. The conversion of a Brahmana like Brahmayu, well versed in the Vedas, Itihasa (history), Vyakarana (grammar) and Lokayata and endowed with all the marks of a great man, must have had tremendous influence upon the fortune of Buddhism in Videha in the time of the Buddha.
Dhaniyaa or Dhanika, a herds¬man living on the bank of the river Mahi. Mithila was considered fit by the Buddhists to have been associated with some of the previous Buddhas as well. Thus it is stated that in the time of Kopagamana Buddha Mithila was the capital of king Pabbata and the Buddha preached there on his visit to the city.Padumuttara Buddha preached his first sermon to his cousins, Devala and Sujata, in the park of Mithila" and later to Ananda (a Khattiya king of Harh.savati and father of Padumuttara Buddha) and his retinue in the same spot."
17.b.
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti.
Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.


A Temple Beside The Pond
A temple beside the pond,
Surrounded with date trees;
And trees loaded with flowers,
Receiving cold cool breeze.
Coming across the acres of farmers land
From grove of mango trees,
To this holy peaceful place from home,
A narrow spiral way leads.
The pond itself adorned with lotuses,
Many water plants and weeds.
Halt for thirsty castles and tired villagers,
Pleasure of fishing and diving exceeds;
Fragrances of flowers and fireflies at night
Stand the place in good stead.

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सिद्धिरस्तु



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