भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Monday, July 21, 2008
विदेह वर्ष-1मास-1अंक-2 (15.01.2008)3.महाकाव्य 1.महाभारत(आगाँ)
1.महाभारत(आगाँ)
शांतनुक संग सत्यवतीक,
विवाह छल भेल जे।
चित्रांगद आऽ विचीत्रवीर्य बाल दुइ आयल से।
बालक दुनू छोटे छल,
शांतनुक प्रयाण भेल।
चित्रांगदक भीष्म,
तखन राज्याभिषेक कएल।
घमंडी से छल एहन की
देव की दानव बुझय,
की गंधर्व की मानव
ककरो नहि टेर करय।
आऽदेह छोड़ल,
युद्ध संग गंधर्वक कए|
विचित्रवीर्यक राज सेहो चलल
बड्ड थोड़ दिन।
क्षयक बीमारी छल
अल्पायु मे मृत्युक अदिन।
धृतराष्ट्रक आऽ पांडुक
जन्मो नहि भेल छल।
विधिक विधान छल,
ज्येष्ठ पुत्र अंध भेल ,
पौण्ड्र ग्रस्त पाण्डुकेँ
राज्य-काज देल गेल।
अंबिकाक पुत्र धृतराष्ट्र,
अंबालिका पुत्र पाण्डु छल।
अंबिकाक दासीसँ
विदुरक भेल जन्म छल।
शिक्षा होमय लागल सभक
भीष्मक संरक्षणमे,
भीष्मकेँ चिंता भेल विवाह कोना
होयत गय,
धृतराष्ट्रक हेतु से खोजल एक कन्याकेँ।
शिवक वरदान छल गांधारीके
सय पुत्रक,
बढ़त वंश शोचल ई प्रयत्न से
शुरू कएल।
गांधार नरेश सुबल भेला तैयार जखन,
विवाह धृतराष्ट्रक भेल शकुनिक बहिन सँ।
सुनि पतिक अंधताक गप्प पट्टी बान्हल,
आँखि रहितहु नेत्रहीनक जिनगी गुजारल।
सय पुत्रक माता छल दुःशला एक पुत्री,
सिंधु नरेश जयद्रथ भेल जिनकर पति।
कृष्णक पिता वासुदेवक बहिन छलि पृथा,
शूरसेनक पुत्री छलीह रहलीह जाय मुदा,
पिताक पिसियौत कुंतीभोज छल संतानहीन,
हुनके स्नेह भेटल पृथा भेलि कुंती पुनि।
कृष्ण-सुदर्शन,बलरामक दीदी भेलीह ओऽ,
सत्कार विप्रवरक करैत छलीह ओऽ।
एहिना एक बेर दुर्वासा देल मंत्र एकटा,
पढ़ब मोनसँ देव आयत बजेबनि जिनका।
नेनमति बुद्धि छल सूर्यकेँ बजाओल ओऽ,
पुत्र-प्राप्ति भेल कुमारियेमे से लोकलाज,
बाधक छल बहादेल बच्चा बिच गंगधार।
कौरवक सारथी अधीरथकेँ भेटलथि ओऽ,
सारथी सूतक ओऽ माय राधा जनिक,
राधेयक नाम लेल सूतपुत्र पराक्रमी।
शरीर कवचयुक्त कान कुंडलसँ शोभित।
कर्ण नाम्ना छल राधेयक ओऽ पोषित।
तकर बाद पाण्डुक कुंतीसँ विवाह भेल।
मद्रनरेशक पुत्री माद्री दोसर पत्नी भेलि।
पाण्डु युद्ध-कार्य मात्र कएल जीति राज।
दूर रहि राज-काज भोगल सुख मात्र।
कुंती-माद्रीक संग वन-विचरण मे रत।
शिकार खेलाइत वनमे संग शृंखलताक।
एक मुनि श्राप देल संतानविहीनताक।
पाण्डुक मोनमे विरक्ति भेल शापसँ।
संतान प्राप्तिक ई इच्छा देखि कुंती,
खोललन्हि दुर्वासाक देल मंत्रक भेद।
मंत्रे यमसँ धर्मराज,भीमसेन वायुसँ,
इंद्रसँ अर्जुन कुंतीक पुत्र तीन भेल।
कुंतीक मंत्रसँ माद्रीकेँ भेल पुत्रक आश।
अश्विनद्वय सँ भेल नकुल-सहदेव प्राप्त।
पाण्डुक मृत्यु पंचपाण्डव जन्मक बाद,
भेलीह सती पतिक संग माद्री वनहिमे।
पाण्डव ओऽ कुंतीकेँ जंगलसँ हस्तिनापुर,
अनलन्हि नगरमे सभ वनक मुनिवर।
पंच पाण्डवक संग आयलि कुंती नगरमे।
जुमि गेल सभ नर नारी ठाम-ठामे।
ऋषि-मुनि वन प्राणीक संगतिमे शील।
मुग्धित सुशील पाण्डवकेँ मोन भरि देखि गुणि।
------------------------------------------------------------------------
कृपाचार्यक आचार्यत्वमे शिक्षा,
पाबि रहल दुर्योधन कौरव,
पाबि सकय छथि हुनके लग रहि,
पाण्डव जन सभ शिक्षा ई सभ ।
धृतराष्ट्र सोचि ई तखन कएल,
ताहि तरहक व्यवस्था,
दुर्योधन-कौरवक संग रहताह
पंच पाण्डव भ्राता।
भीम छलाह बलशाली सभमे,
दुर्योधनमे छल इरखा बड़।
करय लागल दुर्योधन भीमक,
मृत्यु योजना गंगे तट।
जल क्रीड़ाक हेतु गेल लय,
तट दुर्योधन पाण्डवकेँ।
खाद्य मध्य मिलाओल विष,
खोआओल भोजन भीमहिकेँ।
सभ गेल नहाबय गंगमध्य,
नशा भीमकेँ आयल,
कात अबैत खसलाह
ओतय भीम अड़रा कय ।
दुर्योधन बान्हल लताकुञ्ज सँ ।
फेकल धार ओकरा निश्चिंत,
त्रास मुक्त कौरवघुरि आयल।
गंग मध्य डँसलक एक नाग,
विष कटलक विषकेँ से देखू
काटत के पाण्डवक भाग।
विषक प्रभाव भेल दूर,
भीम चललाघरकेँ,
उठलाह झुमैत होइत मदमस्त,
कथा सुनाबय भ्राताकेँ।
युधिष्ठिर घरमे सोचथि,
भीम पहुँचि गेल होयताह।
नहि देखल घर भीम,
माथ पर बल अयलन्हि कनियेटा।
तावत भीम झूमि अयलाह,
षडयंत्रक कथा सुनाओल सभटा।
कुंती चिंतित भेलि विदुरसँ,
पूछलभेल ई नहि उचित।
विदुर बुझाओल पाण्डव,
छथि बलशाली किञ्चित।
हुनकर दुर्योधन करि पाओत,
नहि कोनो अहित।
भीमकेँ जिबैत देखि दुर्योधन-भ्राता,
मोन मसोसि रहि गेल
ओ’ दुष्ट दुरात्मा।
------------------------------------------------------------
कौरव पाण्डव लीन कंदुक खेलि रहल।
कंदुक खसल इनारमे नहि निकलि रहल।
सोझहि छल एक ब्राह्मण बाटे आबि रहल,
तेज जकर ओकर महिमा छल गाबि रहल।
बाणक वार पुनि पुनि कएल फेर ऊपरसँ,
खेंचि कय निकालल गेंद धनुर्विद्याकौशलसँ।
भीष्मकेँ सुनायल बालवृन्द कलाकारी ओकर,
द्रोण नाम्ना कृपाचार्यक छल जे बहिनि वर।
अश्वत्थामा पुत्र जनिक सहपाठी द्रुपद छल।
द्रुपद देल एकवचन राज देब आध हम।
देल वचन बिसरलसे राजा बनला उत्तर।
अपमानित कएल से फूटि, राजा ओ’ दंभी।
प्रतिशोधक बाट ताकि रहल बनि प्रतिद्वन्दी।
निर्धनताक जिनगी जिबैत छलाह घूमि रहल।
अश्वत्थामाक संग आजिविकाक खोजमे पड़ल।
हस्तिनापुरक आग्रह छलाह नहि टारि सकल।
कृतज्ञताक भारसँ अश्वत्थामा-द्रोण हस्तिनापुरक।
धनुर्विद्याक पाठ शुरु कएल कौरवक आ’पाण्डवक।
पाठक उपरांत समय आयल छल लक्ष्य भेदक।
परीक्षाक चातुर्यक संगहि कुशलताक रण-कौशलक।
लक्ष्य बनल एकटा गोट-बेश ऊँच वृक्ष पर,
राखल काठक चिड़ै आँखि जकर लक्ष्य छल।
सभकेँ पूछल द्रोण बाजू की छी देखि रहल?
सभ क्यो गाछ वृक्ष पक्षिक संग देखि रहल।
पार्थकेँ पूछल अहाँ छी कथी देखि रहल सकल।
माथ पक्षिक अतिरिक्त नहि किछु छी देखल।
अर्जुनक बाण पक्षिक शिरोच्छेदन कएलक।
अर्जुन भेलाह प्रिय-स्नेहिल द्रोणक हृदयक।
बीतल समय शस्त्र-प्रदर्शन छल आयल।
(अनुवर्तते)
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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