भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, July 21, 2008

विदेह वर्ष-1मास-1अंक-2 (15.01.2008)6. संस्कृत शिक्षा

6. संस्कृत शिक्षा

संस्कृत भाषा शिक्षणे भवताम् सर्वेषाम हार्दम स्वागतम्।
नमो नमः।
संस्कृतम् अत्यंतम् सरला भाषा।
संस्कृते संभाषणम् इतोपि सरलम्।
वयम सर्वे अपि स्वल्पेण प्रयत्नेन नित्य जीवने संस्कृतस्य उपयोगम् कर्त्तुम शक्नुवः।
आगच्छन्तु।

वयम् एदानीम संस्कृत संभाषणस्य अभ्यासम् कुर्मः।

आरम्भे मम परिचय वदामि।

मम नाम गजेन्द्रः।
भवतः नाम किम्? (पु.)
भवत्याः नाम किम्?(स्त्री.)
उत्तिष्ठतु। वदतु। मम नाम किम?
मम नाम लक्ष्मीः/श्रीः/लता/रमा/प्रीति/प्रभा/स्वाति।
मम नाम रामः/श्यामः/राजेन्द्रः।

भवतः नाम गजेन्द्रः।
समीचीनम्।

भवत्याः नाम किम?
मम नाम रज्य लक्ष्मी।
न राज्य लक्ष्मीः।
मम नाम राज्य लक्ष्मीः।
बहु समीचीनम्।
संस्कृतेण प्रथ परिचयः करणीयः इति भवंतः ज्ञातवंतः।
उत्तिष्ठतु। आगच्छंतु।
सः उदयनः। सः शशिधरः।
सः कः।

सः उदयनः। सः शशिधरः।

उत्तमम्।
अभिनयम् कुर्वंतु। वदंतु।
सः श्री अरविन्दः। सा श्रीमाँ।
सः कः। सा का।

सः श्री अरविन्दः। सा श्रीमाँ।

सः कः।सा का।
सः रामः।सा प्रिया।

का श्री माँ। सा श्री माँ।

तत् फलम्। तत् पुस्तकम्। तत् कृष्णफलकम्।

तत् किम्। किम् पुस्तकम्।

किम् वातायनम्।

एषः मंजुनाथः। सः उदयनः।
एषः कः। सः कः।
एषा प्रिया। सा श्रीमाँ।
एषा का। सा का।
एतत् पुस्तकम्/उपनेत्रम्/कङ्कतम्।
तत् कृष्णफलकम्/फलम्।
एतत् किम्। तत किम्। एषः(पु.)/एषा(स्त्री.लि.)/एतत(नपु.लि.)- लग वस्तुक हेतु।
सः/सा/तत- दूर वस्तुक हेतु।

इदानीम् अहम् एकम् एकं वस्तुं दर्शयामि। एतत किम्।

तत उपनेत्रम। तत पर्णम्।
इदानीम भवंतः एकम् एकं वस्तुं दर्शयतु। एतत किम्? एतत किम्? पृच्छतु।

तत युतकम्- (अंगा)।

पेन- लेखनी। पेंसिल- अङ्कणी।
एतेषाम् शब्दानाम अभ्यासं कृतवंतः। एतेषाम् उपयोगः कथम् करणीयः इत्यपि भवंतः ज्ञातवंतः।

फलम्/लेखनी/चशकः/जलम्/धनस्युतः अस्ति।
धनम् नास्ति।

श्री अरविन्दः कुत्र अस्ति।
सर्वत्र अस्ति।
युतकम् कुत्र अस्ति।
अत्र अस्ति।
वायुः सर्वत्र अस्ति।
जलम् कुत्र अस्ति।
अन्यत्र अस्ति।
भवतः वाहनः कुत्र अस्ति।
तत्र अस्ति।

सुभाषितम्


संस्कृत साहित्ये सुभाषितानाम् नितराम वैशिष्ट्यम अस्ति। सुष्ठि भाषितम सुभाषितम। उत्तमम् वचनमेव सुभाषितः। अपार जीवनानुभवः सुभाषितेषु निहितः भवति।
वयम इदानीम एकं सुभाषितम् श्रुण्वः।

उद्यमनैव सिध्यंति कार्याणि न मनोरथैः। नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगा।
वयम् इदानीम यत सुभाषितम् श्रुतवन्तः तस्य अर्थः एवमस्ति।
मनुष्यःप्रयत्नम् न करोति चेत् किमपि फलम् न सिध्यति। केवलम् इच्छाः संति चेत् कार्यम् न सिध्यति। सिंहः अत्यंतं बलवानः अस्ति। सः मृगराजः अस्ति।तथापि सिंहः प्रत्नं करोति चेतेव आहारं प्राप्नोति। मृगः आगत्य स्वयमेव सिंहस्य मुखे न पतति।प्रत्नं न कुर्मः चेत् किंचिदपि फलम् न सिध्यति। वयमपि अवश्यं प्रत्नं कुर्मः।


कथा
अहम् इदानीम एकं कथा वदामि। लघु कथा सरलां कथा अस्ति।संस्कृते कथा श्रवणेन भाषाभ्यासः शीघ्रम् भवति। भवंताः सावधानेन कथाम् श्रुणवंतु।
एकः काकः अस्ति। सः काकः तृषितः अस्ति। तस्य बहु पिपासा भवति। जलम् पातव्यम इति इच्छा भवति। काकः जलस्य अंवेषणं करिति। अत्र पश्यति। तत्र पश्यति। सर्वत्र पश्यति। कुत्रपि जलं नास्ति। काकः अगे-अग्रे गच्छति। दूरे एकं घटं पश्यति।काकस्य बहुसंतोषः भवति। सः घटस्य समीपं गच्छति। घटस्य उपरि उपविशति। पश्यति। घटे जलम् अस्ति। परंतु स्वल्पं जलम् अस्ति। काकः जलम् पातुम न शक्नोति। किं करोमि-इति चिंतयति। सः काकः बुद्धिमानस्ति। सः अन्यत्र गच्छति। शिलाखण्डम् आनयति। घटे पूरयति। पुनः गच्छति। शिलाखण्डम् आनयति। पूरयति। एवमेव बहुवारः करोति।
जलम् उपरि-उपरि आगच्छति। जलं बहिः आगच्छति। काकस्य बहुसंतोषः भवति।सः जलं पिबति।आनन्देन जलं पिबति। अनन्तरं दूरं गच्छति।काकः चतुरः अस्ति खलु।चतुरः काकः।
कथायाः अर्थः ज्ञातः?


प्रयाण-गीतम्

पदं धरति प्रवर्धते, भारतीय वीर सैनिकः।
पदे पदे दृश्यते, तस्य देशप्रेम गुणः।
पदं धरति प्रवर्धते, भारतीय वीर सैनिकः।
गायति देश भक्त्ति गीत,स्वतंत्रता रक्षकः।
हस्ते अस्ति शोभितः त्रिवार्णिकः ध्वजः,
पदं धरति प्रवर्धते, भारतीय वीर सैनिकः।
मस्तके लेपित चन्दनः हस्ते अस्ति शस्त्रः,
यतः हृदये वसति वीरता, शत्रु भवति क्षयः।
पदं धरति प्रवर्धते, भारतीय वीर सैनिकः।

॥सिद्धिरस्तु॥
(अनुवर्तते)

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